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थी । वात्स्यायन ने पूर्वोक्त पाँच वाक्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित पाँच वाक्यों को भी माननेवाले नैयायिकों का उल्लेख किया है ( न्या० भा० १११ । ३२ ) । वे वाक्य ये हैं - (१) जिज्ञासा, (२) संशय, (३) शक्यप्राप्ति, (४) प्रयोजन, ( ५ ) संशय व्युदास । भाष्यकार के मन्तव्यानुसार इनकी नितान्त आवश्य कता अनुमान के लिए न होने से इनका उल्लेख नहीं किया जाता। ये सिद्धि के लिए सहायकमात्र हैं, अत इनका वर्णन 'न्याय' में नहीं किया जाता । अब इसकी विशेषता पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। यह पञ्चावयव वाक्य मनोवैज्ञानिक आधार पर अवलम्बित है। पाश्चात्य न्याय में डिडक्शन और इन्डक्शन भेद कर तर्क दो प्रकार का माना जाता है, पर भारतीय न्याय में इन दोनों का श्लाघनीय सम्मेलन किया गया मिलता है। व्याप्य और व्यापक के नियत सम्बन्ध पर ही अनुमान की पूरी इमारत खडी रहती है। इसी व्याप्ति की सूचना उदाहरण वाक्य की विशेषता है। चतुर्थ वाक्य उपनय या परामर्श वाक्य को अपनी खास विशिष्टता है। बिना परामर्श के अनुमान नहीं हो सकता । अनुमान के लिए व्याप्तिज्ञान की ही आवश्यकता नहीं, प्रत्युत उस व्याप्ति का प में रहना भी उतना ही आवश्यक है । अतः व्याप्य हेतु का पक्षधर्म होना (व्याप्तिविशिष्टपक्षधर्मताज्ञान) परामर्श माना जाता है। केवल धूमवान् होने से पर्वत की अग्निमत्ता अनुमित नहीं हो सकती, जब तक धूम और अग्नि की व्याप्ति का ज्ञान न हो और इस प्रकार वह्नि व्याप्य धूम का ज्ञान पर्वत में न हो । निगमन हेतु-द्वारा सिद्ध प्रतिज्ञा का उल्लेख करता है। जिसकी प्रतिज्ञा आरम्भ में की गई थी वही हेतु द्वारा सिद्ध कर दिया गया है, यही निगमन वाक्य प्रदर्शित करता है। अनुमान प्रक्रिया में व्याप्ति का स्थान अत्यन्त महत्व का है। इसलिए भारतीय दार्शनिकों ने, विशेषतया नैयायिकों ने व्याप्ति की आलोचना करने में इतनी कुशाग्र बुद्धि का परिचय दिया है कि वह दार्शनिक जगत् में एक आश्चर्यजनक व्यापार स्वीकार किया जाता है। व्याप्ति के लक्षण के विषय में पर्याप्त विवेचना नव्यन्याय के ग्रन्थों में की गई है। हेनु ( धूम ) तथा साध्य ( वह्नि ) के नियत साहचर्य सम्बन्ध को व्याप्ति कहते हैं। दो वस्तुओं के एक साथ विद्यमान होने से ही उनमें व्याप्ति की कल्पना हम तब तक नहीं कर सकते जब तक हमें उनके सदा नियम से एकत्र रहने की सूचना न मिले । 'जहाँ धूम है वहाँ अग्नि है इस साहचर्य को सत्ता हम नियतरूप से पाते है, अतः धूम तथा वाह्न की व्याप्ति न्यायसंगत प्रतीत होती है। इसीलिए व्याप्ति को प्राचीन ग्रन्थों में 'अविनाभाव' के नाम से पुकारते थे । अविनाभाव जो वस्तु जिसके बिना विद्यमान न रह सके उनका सम्बन्ध है। धूम को सत्ता तभी है जब वह्नि के साथ उसका सम्बन्ध स्वीकार किया जाता है । व्याप्ति धूम तथा वह्नि के साथ सम्पन्न होती है, परन्तु वह्नि तथा धूम के साथ व्याप्ति कथमपि सिद्ध नहीं होती। क्योंकि वह्नि के स्थलों में धूम की सार्वत्रिक विद्यमानता उपलब्ध नहीं होतो । उदाहरणार्थं अयोगोलक पिण्ड ( लोहे के जलते हुए गोले ) में अग्नि के रहने पर भी धूम नहीं दीख ) पड़ता । अग्नि के साथ धूम का सम्बन्ध तभी सिद्ध हो सकता है जब गोली लकड़ी का उपयोग जलाने के लिए किया जाय । इस आद्वेन्धनसंयोग को न्यायशास्त्र में 'उपाधि' कहते है। व्याप्ति के लिए उपाधि का अभाव नितान्त आवश्यक है । अतः हेतु और साध्य के नियत और अनौपाधिक ( उपाधिविरहित ) सम्बन्ध को व्याप्ति के नाम से पुकारते हैं ( हेतु साध्ययोरनौपाधिको नियतः सम्बन्धो व्याप्ति, भा०प०, का० ६८-६९) । कतिपय मनुष्यों में मरणधर्मस्व की सत्ता को देखकर समस्त मानवों में उस धर्म की विद्यमानता को मान बैठना कहाँ को बुद्धिमत्ता है ? ऐसी सार्वत्रिक व्याप्ति की स्थिति किस प्रकार प्रमाण-प्रतिपन्न मानी जा सकती है ? इसका उत्तर दार्शनिकों ने भिन्न-भिन्न रूप से दिया है। बौद्ध नैयाबिकों ने ( दिङ्नाग, धर्मकीर्ति आदि ) व्याप्ति के निषेधात्मक पक्ष पर विशेषरूप से जोर दिया है यथा साध्य के अभाव में हेतु को अनुपलब्धि। उनके मतानुसार अविनाभाव का प्रत्येक दृष्टान्त हेतु तथा साध्य के नियत सम्बन्ध को सूचित करता है । यह सम्बन्ध तादात्म्य अथवा तदुत्पत्ति (कार्यकारणभाव) पर अवलम्बित रहता है । वेदान्तियों के मन्तव्यानुसार व्याप्ति साहचर्यावलोकन पर अवलम्बित रहती है। दो वस्तु यदि एक साथ सदा रहती है ( सहचार ) तथा इसके विपरीत कोई भी दृष्टान्त हमारी दृष्टि में न आया हो (व्यभिचारादर्शन ) तो वेदान्त के अनुसार उनमें व्याप्ति सम्बन्ध माना जा सकता है ( व्यभिचारादर्शने सति सहचारदर्शनेन गृह्यते व्याप्तिः, वे० प० पृ० ८३ ) । नैयायिक लोग व्याप्ति की प्रमाणिकता के विषय में वेदान्तियों के मत को स्वीकार करते हैं कि अनुभव को एकरूपता व्याप्ति को तथ्य सिद्ध कर सकती है परन्तु अन्वय, व्यतिरेक, व्यभिचाराग्रह, उपाधिनिरास, तर्क और सामान्यलक्षणप्रत्यासत्ति- इन साधनों के प्रयोग करने से ही व्याप्ति के तथ्य का यथार्थ परीक्षण किया जा सकता है । व्याप्ति की सिद्धि करने के लिए पहली बात आवश्यक है - अन्वय । 'तत्सत्वे तत्सत्ता अन्वय' । एक वस्तु की सत्ता होने पर दूसरी की सत्ता होना अन्वय कहलाता है यथा धूम को सत्ता होने पर वह्नि को सत्ता । दूसरा साधन व्यतिरेक है- "तदभावे तदभावो व्यतिरेक "। एक वस्तु के अभाव में दूसरी वस्तु का अभाव हो, यथा वह्नि के अभावस्थलों पर धूम का अभाव । दोनों में किसी प्रकार का व्यभिचार न होना चाहिए । व्यभिचाराग्रह ) । इतने साधनों के होने पर भी व्याप्ति की सिद्धि नहीं होती जब तक उपाधि का निरास ( दूरीकरण ) न किया जाय । अनुकूल तक इसका पाँचवा सहायक साधन है । धूम तथा वह्नि की व्याप्ति के लिए तर्क की अनुकूलता है कि यदि पर्वत में वह्नि न होता, तो धूम भी नहीं होता पर धूम की सत्ता प्रत्यक्ष प्रमाण से निष्पन्न है । अतः तर्क दोनों के साहचर्य का द्योतक है। इतने पर भी सन्देह के लिए स्थान है, पर अन्तिम साधन से उसका सर्वथा निरास किया जाता है। इतना तो निश्चित है कि समग्र मानवों के परीक्षण का अवसर हमें न मिल सकता है और न यह साध्य ही है तथापि सामान्यलक्षणा प्रत्यासत्ति के द्वारा हम मानवता तथा मरणशीलता के पारस्परिक सम्बन्ध को सिद्ध मानकर समग्र मनुष्यों को मरणशील बताने के अधिकारी हो सकते हैं। इतने उपायों से इस प्रकार प्रामाणित होने से ही व्याप्ति की सत्यता मानने में कथमपि संकोच न होना चाहिए । तर्क का जो लक्षण ऊपर (पृ० २४६) दिया गया है, वह 'अविज्ञाततत्त्वेऽर्थे कारणोपपत्तितस्तत्व-ज्ञानार्थमूहस्तर्क : ' न्या० सू० ११११४० के आधार पर है । अन्नंभट्ट ने इसका लक्षण 'व्याप्यारोपेण व्यापकारोपस्तर्कः' किया है अर्थात् व्याप्य के आरोप से व्यापक का आरोप करना । पर्वत में अग्न्यभाव मानने से उसे धूभाभाववान् भी मानना पड़ेगा, जो वास्तव में वह नहीं है । अतः तर्क अप्रमा का एक भेद माना जाता है। प्राचीन नैयायिक तर्क के ११ प्रकार मानते है ( स० द० सं० पृ० ९३ ) परन्तु नव्य नैयायिक केवल ५ प्रकार - आत्माश्रय, अन्योन्याश्रय, चक्रक, अनवस्था तथा तदन्यबाधितार्थप्रसंग ( विश्वनाथ - १।१।४० न्याय-सूत्रवृत्ति )। तत्वज्ञान के साधन में तर्क की उपादेयता सर्वत्र स्वीकृत की गई है। पाश्चात्य जगत् में न्याय की रूपरेखा ग्रीक दार्शनिक अरस्तू (अरिस्टॉटल) ने निश्चित की थी । कतिपय परिवर्तनों के साथ उनकी उद्भावित शैली तथा सिद्धान्तों का अनुगमन आज भी पश्चिमी तर्क करता है। उनके अनुमान १ द्रष्टव्य चिन्तामणि का व्याप्तिग्रहोपाय प्रकरण तथा भाषा-परिच्छेद का० १३७ की मुक्तावली । वाक्य ( सिलाजिज़म ) के साथ 'न्याय' की तुलना अत्यन्त शिक्षाप्रद है। पाश्चात्य अनुमान में आकारगत सत्यता को ही उपलब्धि होती है, तात्त्विक सत्यता की आवश्यकता नहीं मानी जाती, परन्तु भारतीय अनुमान में दोनों प्रकार की सत्यताओं का होना अनिवार्य रहता है। पश्चिमी तार्किक वाक्य तोन प्रकार के होते हैं- (१) निरपेक्षवाक्य ( केटेगारिकल ), (२) काल्पनिक (हाइपोथेटिकल ), ( ३ ) वैकल्पिक ( डिसजनकटिव), परन्तु भारतीय तार्किक वाक्य केवल प्रथम प्रकार का ही होता है। पश्चिमी न्याय में केवल तीन वाक्यों से अनुमान की पूरी प्रक्रिया निष्पन्न होती है(१) साध्यवाक्य ( मेजर प्रेमिस), (२) पक्षवाक्य ( माइनर प्रेमिस) तथा (३) फलवाक्य ( कंक्ल्यूजन ), परन्तु भारतीय न्यायशास्त्र में ५ वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। पश्चिमी न्याय में अनुमान कभी भावात्मक, कभी अभावात्मक, कभी पूर्ण व्यापी ( यूनिवरसल) और कभी अंशव्यापी ( पर्टिकूलर ) होकर विविधरूप धारण करता है, परन्तु भारतीय न्याय-वाक्य ) पूर्ण व्यापी भावात्मक एक ही प्रकार का होता है। परन्तु सबसे महान् अन्तर भारतीय न्याय में परामर्श ( उपनय ) की स्थिति से है। पश्चिमी न्याय में प्रथम दोनों वाक्यों का समन्वयात्मक वाक्य नहीं होता, परन्तु भारतीयन्याय में हेतु वाक्य और उदाहरण का एकीकरणात्मकरूप उपनय को सत्ता नितान्त आवश्यक है, वास्तव में परामर्शज्ञान से हो अनुमिति का उदय होता है। यहाँ हेतु के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होने से समस्त दोष ( हेत्वाभास ) हेतु के आभास पर अवलम्बित रहते हैं, परन्तु पश्चिमो न्याय में पक्षाभास ( एलिसिट माइनर ) तथा साध्याभास ( एलिसिट मेजर ) नामक दोपों की भी सत्ता स्वीकृत की गई है । परार्थानुभेद और स्वार्थानमान प्रकार भी पश्चिमी जगत् में उपलब्ध नहीं होते। मोटे तौर से दोनों में ये स्फुट प्रतीयमान विभेद हैं । हेतु के द्वारा हो अनुमान की सिद्धि होती हैं। अतः हेतु के निर्दोषता के विषय में नैयायिकों का विशेष आग्रह रहता है। हेतु में पाँच गुणों के होने पर वह सत्-हेतु कहा जाता है - ( १ ) पक्षे सत्ता ( हेतु का पक्ष में १ रहना ) ( २ ) सपक्षे सत्ता (सपक्ष में हेतु का विद्यमान होना ); ( ३ ) विपक्षाद् व्यावृत्तिः ( पक्ष से विपरीत दृष्टान्तों में यथा कूप, जलाशय आदि में हेतु का अभाव ); ( ४ ) असत्प्रतिपक्षत्वम् ( साध्य से विपरीत वस्तु की सिद्धि के लिए अन्य हेतु का अभाव ) (५) अबाधितविषयत्व ( प्रत्यक्षादि प्रमाणों द्वारा बाधित न होना ) । अनुमान की सत्यता हेतु के इन गुणों पर अवलम्बित रहती है। यदि इन गुणों में से किसी में त्रुटि लक्षित होती है तब सत् हेतु न होकर हेतु का आभास मात्र रहता है ( हेतु + आभास ) अर्थात् आपाततः हेतु में निर्दुष्टता लक्षित होती है, पर वास्तव में वह दोष से संवलित रहता है। इसे ही 'हेत्वाभास' कहते हैं। बौद्ध न्याय में इनके अतिरिक्त पक्ष और दृष्टान्त के दोषों का भी विस्तृत विवेचन किया गया मिलता है । हेत्वाभास के नाम इस प्रकार हैं२५९ ( १ ) सव्यभिचार ( अनैकान्तिक ), ( २ ) विरुद्ध, ( ३ ) प्रकरणसम ( सम्प्रतिपक्ष ), ( ४ ) साध्यसम ( असिद्ध ), ( ५ ) कालातीत ( बाधित ) । सव्यभिचार हेतु साध्य के साथ भी रहता है तथा उससे पृथक् इसके तीन प्रकारों में साधारण हेत्वाभास में हेतु साध्य तथा साध्याभाव दोनों में विद्यमान रहता है । असाधारण में हेतु पक्ष में ही निश्चित रहता है, इसके लिए सपक्ष तथा विपक्ष दृष्टान्त का अभाव रहता है । अन्वय तथा व्यतिरेक दृष्टान्त से रहित हेतु अनुपसंहारी कहलाता है। विरुद्ध हेत्वाभास में हेतु साध्याभाव से व्याप्त रहता है तथा सत्प्रतिपक्ष में उस साध्य के अभाव को सिद्ध करनेवाला दूसरा हेतु विद्यमान रहता है। असिद्ध तीन प्रकार का होता है - आश्रयासिद्ध ( पक्ष की असिद्धि होने पर ), स्वरूपासिद्ध ( हेतु की असिद्धि होने पर ), व्याप्यत्वासिद्ध ( व्याप्ति के सोपाधिक होने पर ) । बाधित हेत्वाभास में साध्य का अभाव अनुमान से इतर प्रमाणो से सिद्ध रहता है । अतः साध्य की सिद्धि के लिए अनुमान के प्रयोग करने से कोई लाभ नहीं प्रतीत होता । संक्षेप में हेत्वाभासों का यही सामान्य परिचय है । (ग) उपमान उपमान नैयायिकों का तीसरा प्रमाण है। पहिले अनुभूत किसी वस्तु के साथ सादृश्य धारण करने के कारण जहाँ किसी नई वस्तु का ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे 'उपमान' कहते हैं। "गो के सदृश गवय होता है" इस वाक्य के श्रवणानन्तर जंगल में जानेवाला पुरुष जब गो की समानतावाले पशु को देखकर उसे 'गवय' पद का वाच्य समझता है तब इस ज्ञान का अनुभव उसे 'उपमान' के द्वारा होता है। अत उपमान में वस्तुद्वय का सादृश्य-ज्ञान करण है तथा 'गवय गो के समान होता है' इस वाक्य का स्मरण सहकारी कारण है । सादृश्य कई प्रकार का हो सकता है - 'एकान्त सादृश्य' एक गाय का दूसरी गाय के साथ; 'कतिपयांश में सादृश्य' गाय का सादृश्य भैंस के साथ तथा 'आंशिक' सादृश्य मेरु तथा सर्पप का सत्तांश में सादृश्य । परन्तु यकार ने इन सादृश्यों का उपमान के लिए खण्डन किया है और प्रसिद्ध सादृश्य को उपयुक्त ठहराया है। समानता के अंगों को विपुल संख्या उपमान में महत्त्वशालिनी नहीं है, प्रत्युत समानता की विख्याति तथा महत्ता । अत प्रसिद्ध सादृश्य के बल पर जहाँ संज्ञा तथा संज्ञी का सम्बन्ध स्थापन किया जाता है उसे उपमान कहते हैं ( समाख्यासम्बन्ध प्रतिपत्तिः उपमानार्थः- न्यायवार्तिक १२११६ ) । न्याय दर्शन उपमान के स्वतन्त्र प्रमाण मानने में दार्शनिकों ने बड़ी विप्रतिपत्ति खड़ी की है। चार्वाक उपमान का प्रामाण्य नहीं स्वीकार करते । दिङ्नाग उपमान को प्रत्यक्ष के अन्तर्गत मानते हैं । वैशेषिक लोग इसे अनुमान के अन्तर्मुक्त बतलाते हैं, 'गो सदृश होने से यह पशु गवय है' यह ज्ञान हेतु के ऊपर अवलम्बित होने से अनुमान का एक प्रकारमात्र है। सांख्य 3 उपमान में शब्द तथा प्रत्यक्ष की आंशिक स्थिति मानता है । गवय में गोसादृश्य का ज्ञान प्रत्यक्ष से होता है तथा गो-सादृश्यवान् पशु के गवय होने में उपदेष्टा का वाक्य प्रमाणभूत है । भासवंज्ञ ने नैयायिक होने पर भी उपमान को शब्द के अन्तर्गत स्वीकृत किया है। जैनदर्शन उपमान को प्रत्यभिज्ञामात्र मानता है। मीमांसा" तथा वेदान्त उपमान को स्वतन्त्र प्रमाण मानते हैं अवश्य पर उनकी कल्पना नैयायिक कल्पना से नितान्त भिन्न पड़ती है। इन विप्रतिपत्तियों का मार्मिक खण्डन न्यायग्रन्थों में किया गया है। वास्तव में उपमान अंशत. अन्य प्रमाणों के ऊपर अवलम्बित होने पर भी अन्ततः एक स्वतन्त्र प्रमाण है। उपमान सोधा सादा न होकर एक मिश्रित व्यापार है। 'रावय गोसमान पशु होता है' इस अंश में शब्द को, गवय में गो सादृश्य के अनुभव में प्रत्यक्ष की, 'यही गवय है ' इस अंश में पूर्ववाक्य की स्मृति तथा अनुमान की सत्ता भले ही सिद्ध मानी जाय, परन्तु 'गवयपद का वाच्य यहो गवयपशु है' इस अंश में उपमान स्वतन्त्र प्रमाण है ही, क्योंकि यह अंश किसी अन्य प्रमाण के अन्तर्गत नहीं माना जा सकता । १ न्यायवार्तिक १-१-६ । २ द्रष्टव्य उपस्कार वै० सू० ९/२/५ सूत्र पर । ३ द्रष्टव्य तत्त्वकौमुदी, कारिका ५ १४ प्रमेय कमलमार्तण्ड पृ० ९७ - १००। ५ शास्त्रदीपिका पृ० ७४ - ७६ । ६ वेदान्तपरिभाषा परिच्छेद ३ । ( घ) शब्द शब्द अन्तिम प्रमाण है । आप्तोपदेशः शब्दः (न्या० सू० १॥१॥६) । किसी आप्त पुरुष के उपदेश को शब्द कहते हैं। आप्त वह कहलाता है जो वस्तु को यथार्थरूप से जानता है तथा हितोपदेष्टा होने के कारण जिसके वाक्यों को हम प्रमाण मान सकते हैं। लौकिक तथा वैदिक रूप से शब्द दो प्रकार हैं । लौकिक शब्द लौकिक पुरुषों के वाक्य को कहते हैं। वैदिक शब्द श्रुति के वाक्य को कहते हैं। पद के समूह को वाक्य कहते हैं। पद शक्ति से सम्पन्न रहता है। नैयायिक लोग दो प्रकार की शक्ति मानते हैं - अभिधा तथा लक्षणा । पदशक्ति के विषय में बड़ा मतभेद है। प्राचीन नैयायिकगण ईश्वर की इच्छा को संकेत मानते हैं । 'यह शब्द इस अर्थ को बोध करे' इसी ईश्वरेच्छा पर शब्द-संकेत निर्भर रहता है, पर नव्यनैयायिक पुरुष की इच्छा को भी संकेत का कारण मानते हैं। संकेतग्रह के विषय में भी दार्शनिको में गहरा मतभेद है । न्याय जाति, व्यक्ति तथा आकृति - इन तीनों के ऊपर संकेत स्वीकार करता है । वाक्यार्थ-बोध के लिए आकांक्षा, योग्यता तथा सन्निधि का रहना नितान्त आवश्यक है । वेद के विषय में नैयायिकों तथा मोमांसकों ने बड़ा विचार किया है, पर दोनों के विचार एक दूसरे से अत्यन्त विभिन्न पड़ते हैं। ईश्वर को सत्ता न माननेवाली मीमांसा को वेद के विषय में ईश्वर को कर्तृता अंगीकृत नहीं है । अतः पुरुष ( ईश्वर ) के द्वारा उद्भूत न होने से वेद अपौरुषेय हैं, परन्तु न्याय जगत्कर्तृ स्वरूप से ईश्वर को मानता है तथा वेद को ईश्वरकर्तृक होने से पौरुपेय मानता है। नित्यता के विषय में दोनों का ऐकमत्य है । जयन्तभट्ट ने वेद की पौरुषेयता सिद्ध करने के लिए बड़ी प्रबल युक्तियों का उपन्यास किया है। बौद्ध तथा जैन ग्रन्थकारों में वेद में अनेक दार्थों की उद्भावना की है, पर इनका खण्डन न्याय तथा मीमांसा ने बड़ी तर्ककुशलता के साथ किया है । वेद-प्रामाण्य न मानने पर भी जैन तथा बौद्ध दर्शन शब्द प्रमाण को मानते है। जिस प्रकार ब्राह्मण दार्शनिकों को वेदवचन प्रमाणभूत हैं, उसी प्रकार बौद्धों को बुद्धवचन ( पाली त्रिपिटक ) तथा जैनों को जैनागम ( अर्धमागधी में लिखित 'अंग' ) माननीय हैं । अतः शब्द इन दोनों के लिए भी ज्ञान का एक स्वतन्त्र साधन है कार्य-कारण सिद्धान्त प्रमाण का लक्षण देते समय हमने ऊपर 'करण' शब्द का प्रयोग किया है । असाधारण कारण को 'करण' कहते हैं- वह विशिष्ट वस्तु जो किसी कार्य के उत्पादन में विशेषरूप से कारण हो, करण कहलाती है। यहाँ 'कारण' का विचार अप्रासङ्गिक न होगा। कार्य के नियत रूप से पूर्व होने वाला वस्तु 'कारण' कहलाती है; नियत पूर्ववर्ती कहने से तात्पर्य यह है कि उस कार्य के वास्ते बिना किसी व्यवच्छेद के उस वस्तु को पूर्ववर्ती होना ही चाहिए । यदि यह पूर्ववर्तिता कादाचित्क है - कभी है और कभी नहीं है, तो उसे कारण नहीं माना जा सकता । कारण को अनन्यथा सिद्ध होना भी उतना ही आवश्यक है। उन वस्तुओं को 'अन्यथासिद्ध' कहते हैं जिनको कार्य विशेष के लिए उपादेयता उतनी उत्कट रूप से नहीं होती। विश्वनाथ ने पाँच प्रकार के 'अन्यथासिद्धों' का वर्णन मुक्तावली ( का० २० - २२ ) में किया है। दण्डत्व, दण्डरूप, आकाश, कुलालपिता तथा अपनी पीठ पर मिट्टी लाने वाला गर्दभ - इन सब की घटोत्पादन में कारणता नहीं होतो, क्योंकि नियतपूर्ववर्ती होने पर भी ये अन्यथासिद्ध हैं। मिट्टी के लाने में गर्दभ का बहुल प्रयोग होने पर भी उसमें घट के प्रति कारणता का अभाव हो है, क्योंकि दूसरे साधनों से भी वही कार्य निष्पन्न किया जा सकता है । अतः गर्दभ की घटोत्पत्ति के प्रति नितान्त आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार कारण का मान्य लक्षण है - अनन्यथासिद्धनियतपूर्ववृत्तित्वं कारणत्वम् ( दीपिका पृ० २५ तथा मुक्तावली का० १६ ) । प्रागभाव के प्रतियोगी की संज्ञा 'कार्य' है ( कार्य प्रागभाव-प्रतियोगि) । जिस वस्तु का अभाव होता है, उसे अभाव के प्रति 'प्रतियोगी' कहते हैं । उत्पत्ति से पूर्व कारण ( मृत्तिका) में कार्य ( घट ) का अभाव 'प्रागभाव' है । इसके प्रतियोगी अर्थात् घट को कार्य कहेंगे । कार्य-कारण सम्बन्ध को मीमांसा दर्शनशास्त्र का एक नितान्त मौलिक कार्य है, क्योंकि इसी सम्बन्ध पर अन्य सिद्धान्तों की संगति सिद्ध होती है। कार्य-कारण का सम्बन्ध चार प्रकार का माना जाता है - असत् से सत् की उत्पत्ति (बौद्ध), सत् से सत् की उत्पत्ति ( सांख्य - सत्कार्यवाद ), सत् से असत् कार्य का उदय ( वेदान्त - विवर्तवाद ), तथा सत् से उत्पत्ति से प्रथम असत् कार्य की उत्पत्ति ( न्याय ) । न्याय के अनुसार कारण में कार्य की सत्ता उत्पत्ति से पूर्व नहीं रहती अर्थात् कारण सामग्री के उपयोग करने से मृत्तिका में 'घट' नामक एक अभूतपूर्व नवोन वस्तु की उत्पत्ति होती है। नैयायिक दृष्टि में कार्य उपादानकारण से एकदम भिन्न है । जिस सूत्र-समूह से पट बनता है, वह सूत ही कपड़ा नहीं है, प्रत्युत कपड़ा सूत से अत्यन्त भिन्न है। कारण व्यापार से पूर्व कार्य कारण में विद्यमान नहीं रहता । अतः इस सिद्धान्त का नाम असत्-कार्यवाद या आरम्भवाद है। कारण तीन प्रकार का होता है -- समवायो कारण, असमवायी कारण तथा निमित्त कारण । जिसमें समवाय सम्बन्ध से रहते हुए कार्य की उत्पत्ति होती है, उसे समवायी कारण ( या उपादान कारण ) कहते हैं जैसे घड़े के लिए मिट्टी । समवायिकारणता द्रव्य की ही होती है। कार्य के साथ अथवा कारण के साथ एक वस्तु में समवाय सन्बन्ध से रहते हुए जो कारण होता है, वह असमवायी कहलाता है। तन्तु संयोग पट का असमवायी कारण है, क्योंकि पटरूपी कार्य के साथ तन्तुसंयोग तन्तुरूप एक द्रव्य में समवाय सम्बन्ध में निवास करता है। कारण पट के साथ तन्तुरूप एक ही तन्तु में समवाय सम्बन्ध से विद्यमान है, अतः तन्तुरूप पटरूप का असमवायी कारण है। असमवायो कारण नैयायिकों की अपनी खास सूझ है जिसे अन्य दार्शनिकों ने खण्डन करने के लिए अनेक युक्तियाँ दी हैं। गुण तथा क्रिया हो असमवायी कारण हो सकते हैं। इन दोनों से भिन्न कारण को निमित्त कारण कहते हैं जैसे घड़े का बनाने वाला कुलाल तथा उसके औजार। इन त्रिविध कारणों की परस्पर सहकारिता से ही कार्य को उत्पत्ति होती है । इन तीनों में से कार्योत्पत्ति के लिए जो असाधारणविशिष्ट या नितान्त साधक है उसे करण कहते हैं ( साधकतमं करणम् भष्टा० १।४।४२) । (४) न्याय-तत्त्वसमीक्षा न्यायसूत्र ( ११११९ ) में प्रमेय के द्वादश भेद स्वीकृत किये गये हैं( १ ) आत्मा-सब वस्तुओं का देखने वाला, भोग करने वाला, जानने वाला । ( २ ) शरीर-भोगों का आयतन या आधार; ( ३ ) इन्द्रियजिनके द्वारा आत्मा बाह्य वस्तुओं का भोग करता हैभोगों के साधन, ( ४ ) अर्थ - भोग किये जानेवाले वस्तुजात; ( ५ ) बुद्धिभोग, ज्ञान; ( ६ ) मन-सुखदु ख आदि आन्तर भोगों का साधनभूत इन्द्रिय ( ७ ) प्रवृत्ति - मन, वचन तथा शरीर का व्यापार; ( ८ ) दोषजिसके कारण अच्छे या बुरे कामों में प्रवृत्ति होती है; ( ९ ) प्रत्यभावपुनर्जन्म (१०) फल - सुखदुख का संवेदन या अनुभव; (११) दुख इच्छाविघातजन्य क्लेश या पीड़ा; (१२) अपवर्ग - दुःख से आत्यन्तिकी निवृत्ति । इन्हीं पदार्थों का ज्ञान मुक्ति के लिए सहायक है। अतः इन वस्तुओं को 'प्रमेय' कहते हैं । जगत् तथा आत्मा की नैयायिक कल्पना वैशेषिक के समान हो है । अतः इनका रूप अगले परिच्छेद में विवेचित किया जायगा । उदयनाचार्य ने न्याय- कुसुमाञ्जलि में ईश्वर को सिद्धि अकाट्य युक्तियों के सहारे की हैं। उन्ही की कतिपय युक्तियाँ संक्षेप में दी जाती हैं - ( १ ) कार्यात्-जगत् के समस्त पदार्थ परमाणुजन्य, सावयव तथा अवान्तर महत्त्वविशिष्ट हैं। कार्य के लिए कर्ता की सत्ता मानना उचित ही है। घट की उत्पत्ति तदुत्पादक कुलाल की सत्ता के बिना न्यायसंगत नहीं है; उसी प्रकार कार्यरूप इस जगत् की सृष्टि करने वाला कोई चेतन पदार्थ अवश्य होगा । ( २ ) आयोजनात्- सृष्टि के अवसर पर परमाणुद्वय के संयोग से दुव्यणुक की उत्पत्ति होती है। परन्तु जड़ परमाणुओं को एक साथ आयोजन होना स्वयं सिद्ध नही हो सकता। इसके लिए किसी चेतन पदार्थ की कल्पना नितान्त तर्कयुक्त है । ( ३ ) धृत्यादे - तीसरो युक्ति संसार के धारण करने के विषय में है । यदि कोई चेतन धारण करने वाला न होता, तो यह जगत् कब का गिर गया होता। इस सृष्ट जगत् का नाश प्रलयकाल में होता है। अतः नाश के लिए किसी नाशकर्ता की आवश्यकता बनी हुई है । ( ४ ) पदात - इस जगत् में अनेक कला-कौशल विद्यमान हैं; जैसे वस्त्र का बनाना, गृह की एक विशिष्ट प्रकार से रचना करना । इस सम्प्रदाय व्यवहार के लिए, इसकी उत्पत्ति के लिए किसी ज्ञानवान् व्यक्ति की कल्पना करना पड़ता है । ( ५ ) प्रत्ययतः - श्रुति हमारे लिए परम प्रमाण है। उसके प्रतिपादित सिद्धान्तों में किसी प्रकार की त्रुटि या विप्रतिपत्ति लक्षित नहीं होती । कितने भी कुशाग्रबुद्धि के द्वारा किया गया अनुमान श्रुति की शिला पर पटके जाने से, विरुद्ध होने पर, चूर चूर हो जाता है। श्रुति की इस प्रमाण श्रेष्ठता का रहस्य यहां कि वह सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ ईश्वर के द्वारा निर्मित की ज्ञान ईश्वर का परिचायक है । ( ६ ) श्रुतेः - श्रुति को सिद्धि बतलाती है। श्वेताश्वतर उपनिषद् (६।११) प्रतिपादित कर रहा है कि एक ही ईश्वर सब प्राणियों में छिपा हुआ है, सर्वव्यापी है, सब प्राणियों का अन्तरात्मा है, वह सबका नियामक तथा रक्षक है। भगवद्गीता ( ९ । १७ ) में श्रीकृष्ण ने अपने जगत् का पिता, माता, धाता तथा प्रभव, प्रलय तथा स्थान बतलाया है । ( ७ ) वाक्यात् - महाभारत आदि ग्रन्थों के रचयिता के समान वाक्यभूत वेदों का भी कोई न कोई रचयिता अवश्य होगा । ( ८ ) संख्याविशेषात् - द्व्यणुक में परिणाम की उत्पत्ति परमाणु-गत परिमाण ( पारिमाण्डल्य ) से न होकर परमाणुगत संख्याद्वय से होती है, ऐसा नैयायिकों का सिद्धान्त है । यह द्वित्व संख्या अपेक्षाबुद्धि के द्वारा जन्य होती है जो चेतन व्यक्ति के ही द्वारा निष्पन्न हो सकती है। ऐसी स्थिति में व्यणुकों में संख्या की उत्पत्ति ईश्वर की सत्ता को सिद्ध कर रही है । ( ९ ) अदृष्टात्धर्म करने से पुण्य तथा अधर्म करने से पाप उत्पन्न होता है। धर्माधर्म का अपर नाम अदृष्ट है। अदृष्ट कर्मफल के उत्पादन में कारणभूत माने जाते हैं, परन्तु जड़ अदृष्ट में फलोत्पादन शक्ति बिना चेतन की प्रेरणा से सम्भव नहीं। अत अदृष्ट की फलवत्ता के लिए ईश्वर को मानना हो न्यायसंगत होगा । इन युक्तियों की सहायता से न्याय ईश्वर की सिद्धि स्वीकार करता है । ( ५ ) न्याय - आचारमीमांसा न्याय-वैशेषिक में आचार की सूक्ष्म मोमांसा बड़े विस्तार के साथ की गई है। विश्वनाथ ने मुक्तावली का० १४७ - १५० में इस विषय की समीक्षा १ इन युक्तियों को सक्षेप में उदयनाचार्य के न्यायकुसुमाञ्जलि (५१) के एक श्लोक में इस प्रकार प्रदर्शित किया है -- कार्यायोजन त्यादेः पदात् प्रत्ययतः श्रुतेः । वाक्यात् सख्या विशेषाच साध्यो विश्वविदव्ययः ॥ बड़े मार्मिक ढंग से की है। मनुष्य की प्रत्येक चिकीर्षा ( करने की इच्छा ) किसी विशेष प्रयोजन के ऊपर आश्रित रहती है। चिकीर्षा के तीन हेतु हैं-( १ ) कृतिसाध्यताज्ञान- इस बात का ज्ञान कि यह कार्य हमारे द्वारा साध्य हो सकता है; ( २ ) इष्टसाधनताज्ञान कार्य के करने से किसी अभिलषित वस्तु की सिद्धि का ज्ञान; ( ३ ) बलवदनिष्टाजनकताज्ञानबलवान् अनिष्ट के न उत्पन्न होने का ज्ञान । इन तीनों ज्ञानों की चिकीर्षा के प्रति हेतुता है, प्रथम दो भावात्मक हेतु और अन्तिम अभावात्मक हेतु है। समग्र प्रवृत्ति के मूल ये ही हैं। कार्य हमारे प्रयत्नों से साध्य हो सकता है, इसका ज्ञान नितान्त आवश्यक है। इस ज्ञान के अभाव में वर्षा की उत्पत्ति में अथवा चन्द्रमण्डल के आनयन में जीव की प्रवृत्ति नहीं होती। अभोष्ट की सिद्धि का ज्ञान भी उतना ही आवश्यक है। जब तक किसी भी अभिलषित पदार्थ की सिद्धि का ज्ञान हसे नहीं है, तब तक हमारी प्रवृत्ति हो नहीं सकती। तृप्त पुरुष के भोजन में अप्रवृत्ति का कारण यही है । बलवान् अनिष्ट की अनुत्पत्ति का बोध भी प्रवृत्ति उत्पन्न करने में साधक होता है। रोग से दूषितचित्त पुरुष विषभक्षण कर आत्महत्या इसीलिये कर लेता है कि उसे बलवान् अनिष्ट न उत्पन्न होने का ज्ञान रहता है। उपादान का प्रत्यक्ष होना भी इसी प्रकार हेतु होता है। संक्षेप में प्रवृत्ति के दो कारण है -- कार्यताज्ञान ( इस कार्य का करना हमारा कर्तव्य है, इसका ज्ञान ) तथा इष्टसाधनताज्ञान ( कार्य के करने से इष्ट वस्तु की उत्पत्ति का ज्ञान ) । प्रथम पक्ष प्राभाकरों का है। द्वितीय पक्ष नैयायिकों तथा भाट्टमतानुयायी मीमांसकों का । प्रवृत्ति के तीन कारण हैं-- राग ( सुख देने वाले पदार्थों में आसक्ति ), द्वेष ( प्रतिकूल वस्तुओं से विरक्ति ) तथा मोह ( वस्तु के यथार्थ रूप न जानने से मिथ्याध्यवसाय, वस्तुपरमार्था परिच्छेदलक्षणो मिथ्यावसायो मोह ) । ये तीन प्रवृत्ति के साक्षात्कारण है। ये तीनों विशिष्ट समुदाय के प्रतिनिधि हैं । अत गौतम ने ४।१।३ सूत्र में इनके सम्मिलित रूप को 'त्रैराश्य' कहा है। रागपक्ष में काम, मत्सर, स्पृहा, तृष्णा तथा लोभ की गणना है। द्वेषपक्ष में क्रोध, इर्ष्या, असूया, द्रोह, अमर्ष का तथा मोहपक्ष में मिथ्याज्ञान, विचिकित्सा (किं स्विदिति विमर्श = यह क्या है ? ऐसा विचार ), मान ( असद्गुणाध्यारोपेण स्वोत्कर्षंबुद्धिः = अविद्यमान गुणों की कल्पना कर अपने को उत्कृष्ट मानना = घमंड ), प्रमाद ( असावधानता ) का समावेश किया जाता है। प्राणीमात्र के समस्त प्रवृत्तियों का उदय इन्हीं कारणों से होता है। परन्तु राग द्वेष को उत्पादक होने से मोह की प्रवृत्ति में सब से अधिक हेतुता है। वात्स्यायन के द्वारा निर्दिष्ट पूर्वोक्त दोषों का विस्तृत वर्णन जयन्त भट्ट ने न्यायमञ्जरी ( प्रवर्तनालक्षण दोषा १११११८ ) में किया है। वचन, मन तथा शरीर के आरम्भ को प्रवृत्ति कहते हैं ( न्या० सू० १।१।१७ ) प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है? - पापिका तथा पुण्या । कायिक, वाचिक तथा मानसिक भेद से ये दोनों तीन प्रकार के होते हैं। पूर्वोक्त दोषों के वश होकर प्राणी शरीर से अहिंसाम्तेयादि कर्मों को करता है, वचन से मिथ्या परुषादि वाक्यों का उच्चारण करता है, मन से परद्रोह, नास्तिक्य आदि करता है। यह पापात्मिका प्रवृत्ति अधर्म उत्पन्न करती है। शरीर से दान-परित्राणादि का, वचन से सत्य-हितादि का, मन से दयाश्रद्धादि का आचरण पुण्य प्रवृत्ति है जो धर्म की उत्पत्ति करती है। सूत्रकार के शब्दों में दुःख से अत्यन्त विमोक्ष को अपवर्ग कहते हैं ( तदत्यन्त विमोक्षोऽपवर्ग १।१।२२ ) । 'अत्यन्त' का अभिप्राय है कि उपात्त जन्म का परिहार, तथा अन्य जन्म का अनुत्पादन । गृहीत जन्म मुक्ति का नाश तो होना ही चाहिए, परन्तु भविष्य जन्म की नितरां अनुत्पत्ति भी उतनी ही आवश्यक है। इन दोनों की सिद्धि होने पर आत्मा १ द्रष्टव्य न्यायभाष्य १/१/२; न्यायमञ्जरी न्या० सू० ११ ११७ । का दुःख से आत्यन्तिकी निवृत्ति सम्पन्न होती है। जब तक वासनादि आत्मगुणों का उच्छेद सिद्ध नहीं होता, तब तक दुःख की आत्यन्तिकी निवृत्ति नहीं हो सकती। इसलिए मुक्तावस्था में आत्मा के नवों विशेषगुणों-बुद्धि, सुख, दुख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म तथा संस्कारका मूलोच्छेद हो जाता है। धर्म तथा अधर्म के कारण ही सुख और दुःख की उत्पत्ति होती है। अतः ये दोनों संसाररूपी प्रासाद के स्तम्भरूप हैं। इन गुणों के उच्छेद होने से शरीरादि कार्यों का अनुत्पाद हो जाता है। भोगायतन शरीर के अभाव में इच्छा, द्वेष, प्रयत्नादिकों के साथ आत्मा का सम्बन्ध कथमपि सिद्ध नहीं होता। अतः मुक्तावस्था में आत्मा के विशेषगुणों का अत्यन्ताभाव अंगीकार करना सोपपत्तिक है । मुक्त आत्मा के स्वरूप का सुन्दर परिचय न्यायमञ्जरी ( पृ० ७७ ) में दिया गया है - स्वरूपैकप्रतिष्ठान परित्यक्तोऽखिलैर्गुणैः । ऊर्मिषटकातिगं रूपं तदस्या हुर्मनीषिण. । संसारबन्धनाधीनदुःखकेशाद्यदूषितम् ॥ अर्थात् मुक्त दशा में आत्मा अपने विशुद्ध स्वरूप में प्रतिष्ठित और अखिल गुणों से विरहित रहता है । 'ऊर्मि' का अर्थ क्लेश विशेष है। भूख प्यास प्राण के, लोभमोह चित्त के, शीत आतप शरीर के कुशदायक होने से ऊर्मि कहे जाते हैं। मुक्त आत्मा इन छ ऊमियों के प्रभाव को पार कर लेता है और दुःख कुशादि सांसारिक बन्धनों से वह विमुक्त हो जाता है । मुक्त आत्मा में सुख का भी अभाव रहता है। अतः मुक्तावस्था में आनन्दोपलब्धि नहीं होती। इस सिद्धान्त का मण्डन नैयायिकों ने बढ़े आग्रह के साथ किया है । वेदान्तियों का मत इसके ठीक विपरीत पड़ता । इसका खण्डन जयन्त भट्ट ने बड़े विस्तार के साथ किया है १] द्रव्य १ । १ । २२ सूत्र पर न्यायभाष्य और वार्तिक । ( पृ० ७८ - ८१ )। उनके कथन का सारांश यह है कि सुख के साथ राग का सम्बन्ध लगा हुआ है और यह राग बन्धन का साधन है । अतः मोक्ष को सुखात्मक मानने में बन्धन की निवृत्ति कथमपि हो नहीं सकती। 'आनन्दं ब्रह्म' आदि आनन्द बोधक वाक्यों का तात्पर्य दुःखापाय-बोधन में ही है । ज्वर या शिरःपीदादि-व्याधि-दुःखों के निवृत्त हो जाने पर सुखी होने की कल्पना लोक व्यवहार में भी न्याय्य मानी जाती है। उद्योतकर ने दो प्रकार का निःश्रेयस माना है' - अपरनिःश्रेयस तथा परनिःश्रेयस । तत्वज्ञान ही इन दोनों का कारण है। जीवन्मुक्ति को अपरनिःश्रेयस कह सकते हैं, पर निःश्रेयस विदेहमुक्ति है । वाचस्पति ने तात्पर्य टोका ( पृ० ८०-८१) में इन दोनों का अन्तर विस्तार से विवेचन किया है। आत्मा के विषय में चार प्रतिपत्तियाँ हैं - श्रवण, मनन, ध्यान तथा साक्षात्कार । आन्वीक्षिकी का उपयोग संशयादितत्त्व तथा प्रमाणतत्त्व के बोधन में होता है, परन्तु मनन से भी सद्योरूप से साक्षात्कार का उदय नहीं होता, क्योंकि विपर्यय ज्ञान के नाश हो जाने पर भी उसकी वासना का उपक्षय नहीं होता । ध्यान आत्मसाक्षात्कार के लिए नितरां उपादेय है। बिना योगज-ध्यान के आत्मतत्व की अपरोक्ष अनुभूति उत्पन्न नहीं होती। चतुर्थी प्रतीति पाने वाले पुरुष को जीवन्मुक्त कहते हैं। परन्तु प्रारब्धकर्मों का सम्बन्ध तब तक भी लगा ही रहता है। इनकी भी उपभोग से जब क्षीणता हो जाती है, तभी परनिःश्रेयस का उदय होता है ( परं निःश्रेयसं न तावद् भवति यावत् उपभोगादुपात्तकर्माशयप्रचयो न क्षीयते । तस्मात् तत्त्वसाक्षात्काराधानप्रयत्नात् परः तदुपभोगप्रयत्नश्चास्थेय तथा च न तुल्यकाल उत्पादः परापरयोनिश्रयसयो - तात्पर्यटीका पृ० ८१ ) । १ निश्रयसस्य परापरभेदात् । यत्तावदपरं निःश्रेयसं तत् तत्त्वज्ञानान्तरमेव भवति । X x परं च नि. श्रेयसं तत्त्वज्ञानात् क्रमेण भवति - न्यायवार्तिक १।११ । मुक्ति के साधनों का विचार करना अब आवश्यक है। गौतम ने दु स्वजन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानानामुत्तरोत्तशपाये तदन्तराभावात् अपवर्गः ( १ । ११२ ) सूत्र में मोक्षमार्ग के स्वरूप का परिचय दिया है। मिथ्याज्ञान से रागद्वेषादि दोषों का सद्भाव होता है, उनसे शुभा या अशुभा प्रवृत्ति का उदय होता है जिससे शरीर धारण करना पड़ता है। जन्म देने से प्रतिकूल संवेदनात्मक दुःखों की उत्पत्ति होती है। मिथ्याज्ञान आदि का अविच्छेदेन प्रवर्तमान होना संसार है । इस संसारोच्छेद के लिए कारणभूत मिथ्याज्ञान का समुच्छेद नितान्त स्पृहणीय है। मिथ्याज्ञान का धंस होता है तत्व ज्ञान से । अतः आत्मस्वरूप विषयक तत्त्वज्ञान से ही दुखात्यन्तनिवृत्तिरूप अपवर्ग की सिद्धि होती है। जयन्तभट्ट ने न्यायमञ्जरी ( पृ० ८९-९१ ) में कर्मज्ञानसमुच्चयवाद का विशदरूपेण खण्डन कर ज्ञान की ही उपयोगिता पर जोर दिया है। परन्तु तत्वज्ञान से आत्मसाक्षात्कार को सिद्धि के लिए ध्यान धारणादि योग प्रसिद्ध उपायों का अवलम्बन नितरां श्रेयस्कर है । गौतम ने ने 'तदर्थं यमनियमाभ्यामात्मसंस्कारो योगाच्चाध्यात्मविध्युपायै.' ( न्या० सू० ४।२।४६ ) सूत्र में प्राणायाम आदि उपायों के आश्रय लेने की बात स्पष्टाक्षरों में प्रतिपादित की है 1 न्यायदर्शन की भारतीय दर्शन साहित्य को सबसे अमूल्य देन है शास्त्रीय विवेचनात्मक पद्धति । प्रमाण की विस्तृत व्याख्या तथा विवेचना कर न्याय ने जिन तत्त्वों को खोज निकाला है, उनका उपयोग अन्य दर्शन भी कतिपय परिवर्तन के साथ अपने विवरणों में निश्चय रूप से करते हैं । हेत्वाभासों का सूक्ष्म विवरण प्रस्तुत कर न्याय ने अनुमान को दोषनिर्मुक्त बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इस पर कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र का यह कथन है कि गौतम मुनि को अपने दर्शन में अपवर्ग के साधक तत्त्वज्ञान का वर्णन करना उचित था, परन्तु इसके विपरीत उन्होंने छल वितण्डा जाति आदि का वर्णन करके परममं के भेदन में अपने अमूल्य समय को व्यर्थ बिताया। परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है, क्योंकि इनका उपयोग परममं के भेदन में ही नहीं किया जाता है। सूत्रकार ने स्वयं जल्पवितण्डा को तत्वाध्यवसाय के रक्षणार्थ उसी प्रकार उपयोगी माना जिस प्रकार कण्टक- शाखा का आवरण बीज के अङ्कुरों की रक्षा करता न्या० सू० ४/२/५० 1 अत. इनका उपयोग विनाशात्मक न होकर रचनात्मक है। इनके अभाव में सूक्ष्ममति नास्तिकों की अपातत रमणीय युक्तियों से प्रतारित होकर साधारण मनुष्य न जाने कब का उन्मार्ग का पथिक बन गया होता। अतः इनके वर्णन करने में गौतम की निसर्ग-निर्मल करुणावृत्ति झलकती हुई दोख पड़ती है । परन्तु न्यायदर्शन की तर्कपद्धति जितनी सन्तोषजनक है, उतना सन्तोषदायक उसका तत्त्वज्ञान नहीं है। न्याय ने इस जगत् को ज्ञान से पृथक एक स्वतन्त्र सत्तात्मक वस्तु बतलाया है तथा उसमें अनेक नित्य पदार्थों की कल्पना की है। आत्मा के अतिरिक्त परमाणु, मन, आकाश, काल तथा दिक सब नित्य माने जाते हैं। इस दृष्टि से जगत् की व्याख्या करने में अनेक त्रुटियाँ परिलक्षित होती हैं । न्याय की व्याख्या में इतने नित्य पदार्थों के अस्तित्व मानने के लिए कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता । १ द्रष्टव्य अन्ययोग-व्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, श्लोक १०. २ दुः शिक्षित कुतर्काश-लेश- वाचालिताननाः । शक्याः किमन्यथा जेतुं वितण्डाटोपपण्डिताः ॥ गतानुगतिको लोकः कुमार्ग तत् प्रतारितः । मागादिति च्छलादीनि प्राइ कारुणिको मुनिः ॥ न्यायमज्जरी ( पृ० ११ ) सञ्चा दर्शन वही हो सकता है जिसमें एक नित्य पदार्थ की सत्ता मानकर समस्त पदार्थों का सम्बन्ध उसीसे प्रदर्शित किया जाय तथा सद्वस्तु के एकत्व पर ज़ोर दिया जाय। इस सिद्धान्त के अनङ्गोकार करने से न्याय में अनेक दोष दृष्टिगत होते हैं । ईश्वर को निमित्तकारणरूप से जगत् का स्रष्टा बतलाकर न्यायदर्शन ने उसमें मानवीय भावों की कमजोरियों को उपस्थित कर दिया है। नैयायिक ईश्वर लौकिक कर्ता के अनुरूप कल्पित किया है। जिस प्रकार बढ़ई अपने हथियारों से काठ को काट पीट कर कुरसी, टेबुल आदि बनाया करता है और जिस प्रकार दूकान में बैठा हुआ लोहार लोहे से तरह तरह के सामान बनाया करता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर परमाणुओं से जगत् की सृष्टि किया करता है। वह इस सृष्टिकार्य के लिए उपादान कारणों के ऊपर अवलम्बित रहता है। उपादानों को सत्ता पर अवलम्बित रहनेवाला ईश्वर किस प्रकार सर्वशक्तिमान् तथा परमस्वतन्त्र माना जा सकता है ? वेदान्त ने ईश्वर को जगत् का उपादान तथा निमित्तकारण दोनों मानकर इस अनुपपत्ति को दूर कर दिया है, परन्तु न्याय में इस अनुपपत्ति का निरास कथमपि नहीं किया जा सकता । न्याय ने आत्मा के स्वरूप को स्वतन्त्रता दिखलाकर तथा उसे शरीर और इन्द्रियों से पृथक स्थायी नित्य पदार्थ प्रमाणित कर चार्वाक तथा बौद्ध के सिद्धान्तों का युक्तियुक्त खण्डन किया है तथा आत्मा को स्वतन्त्रता भली प्रकार प्रदर्शित की है, परन्तु मुक्त आत्मा की जो कल्पना की है, वह दार्शनिकों के प्रबल खण्डन का विषय है। नैयायिक मुक्ति का सिद्धान्त अन्य दार्शनिकों के कौतुकावह कटाक्ष का विषय है - मुक्तावस्था में समस्त अज्ञानावरणों से विमुक्त आत्मा में नित्य आनन्द को मानने वाले वेदान्ती श्रोहर्षं ने नैषधचरित में नैयायिक मुक्ति की जो दिल्लगो उड़ाई है है वह पण्डितसमाज में अपनी रोचकता के कारण नितान्त प्रसिद्ध है। उनका कथन है कि जिन सूत्रकार ने सचेता पुरुषों के लिए ज्ञानसुखादि विरहित शिलारूप प्राप्ति को जोवन का परम लक्ष्य बतलाकर उपदेश दिया है उनका अभिधान गोतम शब्दतः ही यथार्थं नहीं है, अपितु अर्थतः भी । वह केवल गो ( बैल ) न होकर गोतम ( अतिशयेन गौ. - गोतमः ) पक्का बैल है । वैष्णव दार्शनिकों ने भी इसीलिए नैयायिकों के ऊपर फबतियाँ सुनाई हैं। मुक्तावस्था में आनन्दधाम गोलोक तथा नित्यवृन्दावन में सरस विहार करने की व्यवस्था बतलाने वाले वैष्णव लोग इस नीरस मुक्ति की कल्पना से घबरा उठते हैं और भक्तभावुक हृदय से पुकार उठते हैं कि वृन्दावन के सरस निकुंजों में शृगाल बन कर जीवन बिताना हमें मंजूर है, परन्तु हम लोग वैशेषिक मुक्ति को पाने के लिए कथमपि इच्छुक नहीं हैं । १ मुक्तये यः शिलात्वाय शास्त्रमूचे सचेतसाम् । गोतमं तमवेक्ष्येव यथा वित्थ तथैव सः ॥ -नैषधचरित १७ । ७५ । २ वरं वृन्दावने रम्ये शृगालत्वं वृणोम्यहम् । वैशेषिकोक्तमोक्षातु सुखलेशविवर्जितात् ॥ अष्टम परिच्छेद वैशेषिक दर्शन पण्डित मण्डली में एक सुप्रसिद्ध कहावत प्रचलित है - काणादं पाणिनीयं च सर्वंशास्त्रोपकारकम् । शब्द के यथार्थं निर्णय में पाणिनीय व्याकरण के समान पदार्थों के स्वरूप निर्णय में वैशेषिक दर्शन अत्यन्त उपादेय है। इस दर्शन का नाम वैशेषिक, काणाद तथा औलूक्य दर्शन है । अन्तिम दोनों नाम इसके आद्य प्रवर्तक उलूक ऋषि के पुत्र महर्षि कणाद के नाम पर दिये गये हैं, पर 'वैशेषिक' नाम का रहस्य क्या है ? इसके रहस्य को विद्वानों ने भिन्न भिन्न रूप से बतलाया है। चीनदेशीय दार्शनिक चिस्तान ( ५४९ - ६२३ ई० ) तथा कहेइची ( ६२३-६८२ ई० ) के द्वारा संगृहीत एक प्राचीन परम्परा के अनुसार कणाद सूत्रों का 'वैशेषिक' नामकरण अन्यदर्शनों से, विशेषतः सांख्यदर्शन से, विशिष्ट अर्थात् अधिकयुक्तियुक्त होने के कारण किया गया था ? । पर भारतीय विद्वन्मण्डली के अनुसार 'विशेष' नामक पदार्थ की विशिष्ट कल्पना करने के कारण कणाद दर्शन को 'वैशेषिक' संज्ञा प्राप्त हुई है (व्या० मा० ११४९) । वैशेषिक दर्शन की उत्पत्ति कब हुई ? बौद्ध ग्रन्थों में ( मिलिन्द प्रश्न, लंकावतार-सूत्र, ललितविस्तर आदि ) वैशेषिक दर्शन का नामोल्लेख पाया जाता है; इन ग्रन्थों में न्याय सिद्धान्तों को भी वैशेषिक नाम से ही स्मरण किया है। सांख्य तथा वैशेषिक मतों को बुद्ध से पूर्वकालीन मानने में बौद्ध सम्प्रदाय की एकवाक्यता दीख पड़ती है। जैन तत्त्व- समीक्षा सम्भवत १ द्रष्टव्य डा० उई ( Dr. Ui ) - वैशेषिक फ़िलासफ़ी पृ० ३-७१ वैशेषिक पदार्थों की कल्पना पर आश्रित है। अतः वैशेषिक दर्शन जैन तथा बौद्ध दोनों से प्राचीनतर प्रतीत होता है। (१) वैशेषिक दर्शन के आचार्य इस दर्शन के सूत्रकार महर्षि कणाद हैं । त्रिकाण्डशेष कोष में इनका के दूसरा नाम 'काश्यप' मिलता है तथा किरणावली में उदयनाचार्य ने इन्हें कश्यप मुनि का पुत्र बतलाया है। अतः इनके 'काश्यप' गोत्र नाम होने में सन्देह नहीं है । श्रोहर्षं ने नैषध (२२१३६) में कणाददर्शन को औलूक संज्ञा दी है । वायुपुराण में कणाद प्रभास निवासी सोमशर्मा के शिष्य और शिव के अवतार बतलाये गये हैं । अतः कणाद मुनि काश्यप गोत्री, सोमशर्मा के शिष्य तथा उलूक मुनि के पुत्र वैशेषिक सूत्रों की संख्या ३७० है और वे १० अध्यायों में विभक्त हैं और प्रत्येक अध्याय में दो आह्निक है। प्रथम अध्याय के प्रथम आह्निक में द्रव्य, गुण तथा कर्म के लक्षण तथा विभाग का, दूसरे आह्निक में 'सामान्य' का, दूसरे तथा तीसरे अध्यायों में नव द्रव्यों का, चतुर्थ अध्याय के प्रथमाह्निक में परमाणुवाद का तथा द्वितीयाहिक में अनित्यद्रव्य विभाग का, पञ्चम अध्याय में कर्म का, पष्ठ अध्याय में वेदप्रामाण्य के विचार के बाद धर्माधर्म का, ७ व तथा ८ वें अध्याय में कतिपय गुणों का, ९ वें अध्याय में अभाव तथा ज्ञान का, १०व में सुख-दुख-विभेद तथा त्रिविध कारणों का वर्णन किया गया है। न्यायसूत्रों से तुलना करने पर वैशेषिक सूत्र प्राचीन ठहरते हैं। इनका रचनाकाल तृतीय शतक विक्रम पूर्व है । १ न्यायकन्दली की म. म. विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी की प्रस्तावना पृ० ७-१०। १ द्रष्टव्य बोडस - तर्कसंग्रह की प्रस्तावना पृ० ४० । कुप्पुस्खामीप्राइमर आफ इंडियन लाजिक प्रस्तावना पृ० (३०) । ब्रह्मसूत्र २।२।११ के शाङ्करभाष्य को रत्नप्रभा टीका में तथा अन्यत्र कई स्थलों में वैशेषिकसूत्रों के ऊपर 'रावणभाष्य' का उल्लेख किया गया मिलता है, पर यह भाष्य आजकल उपलब्ध नहीं है । भारद्वाज वृत्ति नितान्त प्राचीन प्रतीत होती है। पं० जयनारारायण ने विवृत्ति रचकर तथा महामहोपाध्याय पण्डित चन्द्रकान्त तर्कालङ्कार ने भाग्य का निर्माण कर इन सूत्रों के यथार्थ अर्थ के समझने में हमारा बड़ा उपकार किया है । प्रशस्तपाद - प्रशस्तपाद का पदार्थ-धर्म-संग्रह' वैशेषिकतत्त्वों के निरूपण के लिए नितान्त मौलिक ग्रन्थ है। साधारण रोति से इसे भाग्य कहते हैं पर यह सूत्रस्थ पदों के उल्लेखपूर्वक उक्तानुक्तिचिन्तासमन्वित प्रबन्ध नहीं है । इसमें तो ग्रन्थकार ने केवल वैशेषिक सिद्धान्तों के ऊपर अपने स्वतन्त्र विचारों को प्रामाणिक रूप से प्रतिपादित किया है । सूत्र के बाद इस दर्शन के इतिहास में सर्वमान्य प्रामाणिक ग्रन्थ यही प्रशस्तपाद भाष्य है। इसमें विशेषतः परमाणुवाद, जगत् की उत्पत्ति तथा प्रलय, प्रमाण तथा गुणों का विस्तृत विवेचन उपस्थित किया गया है बसुबन्धु के द्वारा इनके सिद्धान्तों के खण्डन किये जाने और न्याय-भाध्य में इनके सिद्धान्तों के उपयोग किये जाने से इन्हें वात्स्यायन और से बसुबन्धु प्राचीन द्वितीय शतक में होना न्यायसंगत प्रतीत होता है । प्रशस्तपादभाष्य के आधार पर 'चन्द्र' नामक किसी आचार्य ने दशपदार्थी शास्त्र की रचना की जिसमें द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, समवाय तथा विशेष - इन पट पदार्थों के अतिरिक्त शक्ति, अशक्ति, सामान्य विशेष तथा अभाव ये चार नवीन पदार्थ स्वीकृत किये गये हैं। चन्द्र सप्तम शताब्दी से पहले के ही होंगे, क्योंकि इसका अनुवाद ६४८ ई० में चीन भाषा में किया गया उपलब्ध होता है जिसका अंग्रेजी अनुवाद जापानी विद्वान् डा० उई ने किया है १ आचार्य ध्रुव - न्यायप्रवेश की प्रस्तावना पृ० १८ ।
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जेलके अनुभव - ४१ 'राजनीतिक' कैदी हम राजनीतिक तथा अन्य कैदियों में कोई भेद नहीं करते। आपके लिए ऐसा कोई भेद किया जाये, यह तो निस्सन्देह आप भी नहीं चाहेंगे ? " जब गत वर्ष के अन्तमें सर जॉर्ज लॉयड यरवदा जेल आये थे; ये वाक्य उन्होंने तभी कहे थे । मेरे मुंहसे असावधानीसे यह "राजनीतिक " विशेषण निकल गया, उसीके ' उत्तरमें वे इस प्रकार बोले थे । मुझे अधिक सावधानीसे काम लेना चाहिए था, क्योंकि मैं जानता था कि गवर्नर महोदयको इस शब्दसे चिढ़ है। फिर भी, अजीब बात है कि हममें से अधिकांश कैदियोंके दैनिक व्यवहारके टिकटोंपर "राजनीतिक " ' शब्द अंकित था। जब मैंने इस असंगतिकी चर्चा की तो उस समयके जेल सुपरिंटेंडेंटने बताया कि यह तो एक खानगी चीज है और केवल अधिकारियोंकी सुविधाके लिए है। आप कैदियोंको इस भेदपर विचार करनेकी जरूरत नहीं; क्योंकि इसके आधारपर कोई हक नहीं माँगा जा सकता । सर जॉर्ज लॉयडकी कही हुई बातको मैंने अपनी स्मृतिके अनुसार तो शब्दशः हीं दिया है। सर जॉर्ज लॉयडने जो कुछ कहा था उसमें एक दंश था, और वह भी कितना अहेतुक । वे जानते थे कि मैं किसी मेहरबानी या विशिष्ट व्यवहारकी । याचना नहीं कर रहा था । प्रसंगवश इस विषयमें साधारण सी चर्चा निकल आई थी । लेकिन वे मुझे यह जताना चाहते थे कि कानून और प्रशासनकी दृष्टि में तुम्हारी स्थिति औरोंकी स्थिति से किसी भी तरह बढ़कर नहीं है । और अकारण ही, सिद्धान्तके नामपर इस भेदका प्रतिवाद किया जाना और दूसरी ओर व्यवहारमें इस भेदको अमली जामा पहनाना एक शोचनीय असंगति तो थी ही और तिसपर अधिकांश अवसरोंपर इस भेदका प्रयोग राजनीतिक कैदियों के विरुद्ध ही किया जाता था । सच तो यह है कि भेदसे बचना असम्भव है। यदि इस तथ्यकी उपेक्षा न की जाये कि कैदी भी मनुष्य ही है, तो उसके रहन-सहनको समझना और तदनुसार जेलोंमें उसकी व्यवस्था करना जरूरी होगा । यहाँ सवाल गरीब और अमीर अथवा शिक्षित और अशिक्षित में भेद करनेका नहीं है । कुल सवाल उनके रहन-सहनके उन तौर-तरीकोंमें भेद करनेका है, जिनके कि वे अपनी पूर्व परिस्थितियोंके कारण आदी हो गये हैं । इस वस्तुस्थितिको अनिवार्य रूपसे मान लेनेकी बजाय ऐसा कहा जाता है कि अपराध करनेवाले लोगोंको यह समझ लेना चाहिए कि कानून किसीका लिहाज नहीं करता और चाहे कोई अमीर आदमी चोरी करे अथवा कोई ग्रेजुएट या मजदूर, कानूनकी दृष्टिमें सब समान हैं । यह तो एक निर्दोष और अच्छे कानूनका १. इस लेखमालाके पहले तीन लेखोंके लिए देखिए खण्ड २३ । २. बम्बईके गवर्नर; कैदियों में भेदके सम्बन्ध में गांधीजी के पत्रके लिए देखिए खण्ड २३, पृष्ठ १८६-८७ । २४-१ गलत अर्थ लगाना है। यदि कानूनकी दृष्टिमें सभी समान हैं, जैसा कि होना भी चाहिए, तो हर आदमी के साथ उसकी सहनशक्तिको देखकर बरताव किया जाना चाहिए । जिस चोरका शरीर नाजुक हो उसे भी ३० कोड़े लगाना और जो शरीर - से हट्टा-कट्टा हो उसे भी ३० कोड़े लगाना, निष्पक्ष व्यवहार नहीं माना जायेगा । वह तो नाजुक शरीरवाले के साथ अनुचित सख्ती और शायद हट्टे-कट्टे शरीरवाले के प्रति अनुग्रह ही कहा जायेगा । उसी तरह, उदाहरण के तौरपर, मोतीलालजी को सख्त जमीनपर बिछी नारियलकी खुरदरी चटाईपर सुलाना, समान व्यवहारका नहीं अतिरिक्त सजा देनेका उदाहरण होगा। जेलकी व्यवस्थामें यदि यह स्वीकार कर लिया जाये कि कैदी भी मनुष्य ही है, तो कैदीको जेलमें प्रवेश कराने के समयकी प्रक्रिया आजसे भिन्न हो । अँगुलियोंके निशान जरूर लिये जायेंगे; रजिस्टरमें उसके पहले के अपराध भी दर्ज किये ही जायेंग; लेकिन साथ ही कैदीकी आदतों और रहन-सहनका ब्योरा भी दर्ज किया जायेगा । यदि अधिकारी कैदियोंको मनुष्य समझने लगें तो उन्हें जो पद्धति स्वीकार करनी होगी उसे "भेद करना " न कहकर "वर्गीकरण " ही कहा जायेगा । एक प्रकारका वर्गीकरण तो आज भी मौजूद है। उदाहरण के लिए, कुछ अहातों में कदियोंको लम्बी कोठरियों में इकट्ठा रखा जाता है। खतरनाक अपराधियोंके लिए अलग-अलग कोठरियाँ होती हैं और तनहाईकी सजावालोंको ताला लगाकर अलग-अलग रखा जाता है। फिर, फाँसीवालोंकी कोठरियाँ भी होती हैं, जिनमें फाँसीकी सजा सुनाये गये कैदियोंको रखा जाता है और अन्तमें हवालाती कैदियोंके लिए अलग कोठरियाँ होती हैं । पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ज्यादातर राजनीतिक कैदियोंको अलग या तनहाई में रखा जाता था। कुछको तो फाँसीकी सजा पाये हुए अपराधियोंकी कोठरियोंमें भी रखा जाता था। लेकिन यहाँ में एक बात साफ कर देना चाहूँगा, अन्यथा अधिकारियोंके साथ कहीं अन्याय न हो जाये । वह बात यह है कि जिन्हें इन विभागों और कोठरियोंकी जानकारी नहीं है, वे ऐसा सोच सकते हैं कि फाँसीकी सजा सुनाये गये कैदियोंकी कोठरियाँ खास तौरपर कुछ खराब होती होंगी, लेकिन वस्तुस्थिति एसी नहीं है । जहाँतक यरवदा जेलका सम्बन्ध है, इन कोठरियोंकी बनावट बहुत अच्छी है और ये हवादार हैं। लेकिन जो चीज बहुत आपत्तिजनक है वह है इनके इर्द-गिर्दका वातावरण । जैसा मैंने ऊपर बताया, वर्गीकरण अनिवार्य है और वह किया भी जाता है । फिर कोई कारण नहीं कि वह वैज्ञानिक और मानवतापूर्ण भी क्यों न हो। मैं जानता हूँ कि मेरे सुझाये हुए ढंगसे वर्गीकरण करनेका मतलब है सारी पद्धतिमें आमूलचूल परिवर्तन । बेशक, इसमें खर्च ज्यादा होगा और नई पद्धतिको चलाने के लिए दूसरे ढंगके लोगोंकी भी जरूरत होगी। लेकिन आज अतिरिक्त खर्च होगा तो अन्तमें बचत भी होगी। मैं जो क्रान्तिकारी परिवर्तन सुझा रहा हूँ उसका सबसे बड़ा लाभ तो यह होगा कि अपराधों की संख्या में निश्चित रूपसे कमी आ जायेगी और कैदियोंका जेलके अनुभव - ४ सुधार होगा । फिर तो जेल सुधार गृह हो जायेंगे और समाजमें पाप करनेवाले लोग उन स्थानों में जाकर सुधर जायेंगे और लौटकर आनेपर समाजके प्रतिष्ठित सदस्य बन जायेंगे। हो सकता है, वह दिन बहुत दूर हो; लेकिन अगर हम पुरानी रूढ़ियोंके मोहमें न पड़ गये हों तो जेलोंको सुधार गृह बनाने में हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए । यहाँ मुझे एक जेलरके सारगर्भित वचन याद आते हैं । उसने कहा था : "जब कभी मैं कैदियोंको भरती करता हूँ या उनकी तलाशी लेता हूँ अथवा उनके बारेमें रिपोर्ट करता हूँ, मेरे मन में अक्सर एक सवाल उठता है; क्या में इनमें से ज्यादातर लोगोंसे अच्छा हूँ ? ईश्वर जानता है कि इनमें से कुछ जिन अपराधोंके कारण यहाँ आये हैं, उनसे बुरे अपराध तो मैंने किये हैं। फर्क इतना ही है कि इन बेचारोंके अपराधका पता लग गया और मेरे अपराधका पता नहीं लग पाया । जो बात इस नेक जेलरने स्वीकार की, क्या वही हममें से बहुतोंके साथ लागू नहीं होती ? समाज उनपर तो अँगुली नहीं उठाता । लेकिन हमें तो, जिन लोगोंमें बच निकलनेकी चतुराई नहीं है, उनके प्रति सदा शंकित बने रहनेकी आदत पड़ गई है। कारावासके परिणामस्वरूप अकसर वे पक्के अपराधी बन जाते हैं । कोई भी व्यक्ति पकड़ा गया कि उसके साथ पशुओंका-सा व्यवहार शुरू हो जाता है। अभियुक्त जबतक अपराधी न सिद्ध कर दिया जाये तबतक सिद्धान्ततः उसे निर्दोष माना जाता है। लेकिन व्यवहारमें उसकी देख-रेखके लिए जिम्मेदार लोगोंका रवैया दम्भपूर्ण और तिरस्कार-भरा होता है। मनुष्य अपराधी करार दिया गया कि वह समाजका अंग रह ही नहीं जाता । जेलका वातावरण उसमें अपने आपको हीन माननेकी आदत पैदा कर देता है । राजनीतिक कैदियोंपर इस निर्वीर्य बनानेवाले वातावरणका असर आमतौरपर नहीं होता । मनको खिन्न बना देनेवाले इस वातावरणके असरमें आने की बजाय वे उसके खिलाफ संघर्ष करते हैं और कुछ अंशोंमें उसे सुधार भी पाते हैं । समाज भी उन्हें अपराधी नहीं मानता । इसके विपरीत, वे वीर पुरुष और शहींद माने जाते हैं । जेलमें उन्हें जो कष्ट भोगना पड़ता है, उसका बखान लोग बहुत बढ़ा-चढ़ाकर करते हैं और कभी-कभी यह अति प्रशंसा राजनीतिक कैदियोंके नैतिक पतनका भी कारण बन जाती है। लेकिन दुर्भाग्यकी बात यह है कि राजनीतिक कैदियोंके प्रति आम लोग जितनी उदारता दिखाते हैं, अधिकारीगण उतनी ही सख्ती बरतते हैं; अधिकांश मामलोंमें यह सख्ती बिलकुल बेजा हुआ करती है। सरकार राजनीतिक कैदियोंको साधारण कैदियोंसे अधिक खतरनाक मानती है। एक अधिकारीने बड़ी गम्भीरतासे कहा था कि राजनीतिक कैदीके अपराध से पूरे समाजको खतरा रहता है, जब कि साधारण अपराधसे केवल अपराधीका ही नुकसान होता है । एक दूसरे अधिकारीने मुझे बताया कि राजनीतिक कैदियोंको अलग रखने और पत्र-पत्रिकाएँ न देनेका कारण यह है कि उन्हें अपने अपराधका एहसास कराया जाये । उसने कहा, राजनीतिक कैदी "कैद" में गौरवका अनुभव करते हैं । स्वतन्त्रता खो जाने से जहाँ साधारण अपराधियोंको दुःख होता है, राजनीतिक अपराधियोंपर उसका कोई असर ही नहीं होता । उसने आगे कहा कि इसलिए यह स्वाभाविक है कि सरकार उन्हें सजा देनेका कोई और उपाय करे; इसीलिए उन्हें साधारणतया जो सुविधाएँ बेशक मिलनी चाहिएं, वे नहीं दी जातीं । मैंने 'टाइम्स ऑफ इंडिया के साप्ताहिक अंक, या 'इंडियन सोशल रिफॉर्मर' या 'सर्वेट ऑफ इंडिया' अथवा 'मॉडर्न रिव्यू' या 'इंडियन रिव्यू' की माँग की थी। अधिकारीने उसीके जवाबमें यह बात कही थी । जो लोग अखबारोंको नाश्तेकी ही तरह जरूरी मानते हैं, उनके लिए यह बहुत कड़ी सजा थी । पाठक इसे मामूली सजा न समझें । मैं तो कहूँगा कि अगर श्री मजलीको समाचारपत्र दिये गये होते तो उनके मस्तिष्कमें खराबी पैदा न होतीं। इसी तरह उस आदमी के लिए जो अपनेको हर अवसरपर सुधारक नहीं मानता यह बहुत उद्वेगजनक सिद्ध होगा कि उसे खतरनाक अपराधियोंके साथ रख दिया जाये, जैसा कि यरवदा जेलमें लगभग सभी राजनीतिक कैदियोंके साथ किया जा रहा था । जो लोग सिवा गालीके बात नहीं करते या जिनकी बातचीत आमतौर पर अशिष्टतापूर्ण होती है, उनके साथ रह सकना आसान काम नहीं है । यदि सरकार अक्लसे काम लेकर साधारण कैदियोंपर अच्छा असर डालने के लिए राजनीतिक कैदियों के साथ सलाह-मशविरा करके उन्हें ऐसे वातावरण में रखती तो यह बात समझमें आ सकती थी। लेकिन मैं मानता हूँ कि यह बात व्यावहारिक नहीं है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि राजनीतिक कैदियोंको अरुचिकर वातावरण में रखना उन्हें अतिरिक्त सजा देना है, जिसके वे कदापि पात्र नहीं हैं। उन्हें अलग रखा जाना चाहिए और वे किस तरह रहते आये हैं, यह समझकर उनके साथ तदनुसार बरताव करना चाहिए । आशा है, सत्याग्रही लोग इसका और अगले अन्य किसी प्रकरणमें मैंने जेलके सुधारकी जो हिमायत की है, उसका गलत अर्थ नहीं लगायेंगे । सत्याग्रहियोंको चाहे जैसी असुविधाएँ सहनी पड़ें, उनका इस कारण रोष करना शोभा नहीं देगा। वह तो क्रूरसे - क्रूर व्यवहारके लिए तैयार होकर ही आया है। इसलिए यदि व्यवहार भलमनसीका किया जाये तो ठीक है; यदि न किया जाये तो भी ठीक ही है । १. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ३६८-६९ । २. टिप्पणियाँ स्वर्गीया श्रीमती रमाबाई रानडे रमाबाई रानडेका' निधन राष्ट्रकी एक बहुत बड़ी हानि है। हम जिन गुणोंकी एक हिन्दू विधवामें कल्पना करते हैं वे उन सब गुणोंकी साकार मूर्ति थीं । अपने तेजस्वी पतिके जीवन-कालमें वे उनकी सच्ची मित्र और सहधर्मिणी रहीं। उन्होंने अपने पतिके दिवंगत होने के बाद उनके एक प्रिय कामको आगे बढ़ाना ही अपना जीवन-कार्य बना लिया था । श्री रानडे समाज सुधारक थे और भारतीय नारियोंके उत्थान में उनकी गहरी रुचि थी। इसलिए रमाबाई प्राणपणसे सेवासदनके काममें जुट गई । इसी काम में उन्होंने अपनी समूची शक्ति लगा दी । इसीका परिणाम है कि आज भारत-भरमें सेवासदन - जैसी कोई दूसरी संस्था नहीं है। वहाँ लगभग एक हजार बालिकाओं और महिलाओंको शिक्षा दी जा रही है। कर्नल मैडॉकने मुझे बतलाया है कि सैसून अस्पतालमें ही सबसे अच्छी और सबसे अधिक संख्या में भारतीय नसे तैयार की जाती हैं और वे सब नर्से सेवासदनसे आई हुई होती हैं। इसमें शक नहीं कि रमाबाईको देवधर जैसा अथक परिश्रमी और छोटीसे-छोटी चीजोंका भी पूरा पूरा ध्यान रखनेवाला एक कार्यकर्ता भी मिल गया था। लेकिन उनके पास सुयोग्य और निष्ठावान सहयोगी थे, यह तथ्य भी रमाबाईको ही अधिक प्रशंसनीय बनाता है । सेवासदन सदा उनकी पवित्र स्मृतिका जीवन्त स्मारक बना रहेगा। मैं अपनी इस दिवंगत बहनके परिवार और सेवासदनके अनेक बालक-बालिकाओंके प्रति विनम्रतापूर्वक अपनी सहानुभूति प्रकट करता हूँ । प्रिंसिपल गिडवानी मेरे पूछने पर श्रीमती गिडवानी अपने एक पत्र में लिखती हैंः कुछ समय पहले जब में अपने पतिसे मिलने गई, तब देखा कि अधि कारी लोग उनके साथ अशिष्टतासे पेश आ रहे थे। वे कोठरीमें बन्द थे और उनके कपड़े मैले थे । सात दिनके अनशनके कारण वे बहुत दुबले दिख रहे थे । इससे पहले चौरीचौराके समय भी उन्होंने अनशन किया था, लेकिन तब वे इतने कमजोर नहीं हुए थे । उनको अन्य बन्दियों जैसा ही खाना दिया जाता है। मुलाकातियोंको उनसे मिलनेमें तरह-तरहकी कठिनाइयाँ पैदा की १. (१८६२-१९२४); महादेव गोविन्द रानडेकी पत्नी २. पूनाके सैसून अस्पतालके सर्जन-जनरल, जिन्होंने जनवरी, १९२४ में गांधीजी का एपेण्डिसाइटिसका ऑपरेशन किया था । ३. गो० कृ० देवधर ( १८७९-१९३५); सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीके सदस्य; बादमें उसके अध्यक्ष । ४. आसूदोमल देकचन्द गिडवानी, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबादके प्रधानाचार्थं । जाती हैं। उनके भाईने मुलाकात के लिए दो बार लिखा, पर कोई सन्तोषप्रद उत्तर नहीं दिया गया। लेकिन मैं इस सबकी चिन्ता नहीं करती । इन्सान कठिनाइयों में से गुजरकर ही ऊपर चढ़ता है । यह करुणाजनक पत्र एक पतिपरायणा महिलाका लिखा हुआ है, श्रीमती गिडवानीका पत्र प्रकाशनके लिए नहीं लिखा गया था । वह एक मित्रको लिखा गया घरेलू पत्र है। मैंने उन मित्रको लिखा था कि वे श्रीमती गिडवानीसे उनके पतिकी हालत के बारेमें पूछें। यदि श्रीमती गिडवानी द्वारा बतलाई गई बातें सही हैं तो उनसे नाभाके वर्तमान प्रशासनकी इज्जत नहीं बढ़ती । प्रिंसिपल गिडवानीपर कोई मुकदमा नहीं चलाया गया है, फिर भी स्पष्ट है कि उनके साथ पक्के अपराधियों जैसा ही बरताव किया जा रहा है। श्री जिमंडने बतलाया है कि प्रिंसिपल गिडवानीने मानवताकी भावनासे प्रेरित होकर ही राज्यकी सीमामें प्रवेश किया था । नाभाके प्रशासकोंसे मेरा कहना है कि वे या तो इस कथनका खण्डन करें या अपनी सफाई दें। इस बातका मैं वादा करता हूँ कि उनकी सफाईमें दिये गये उनके बयानको भी मैं उसी तरह प्रकाशित करूँगा जिस तरह मैंने श्रीमती गिडवानीके कथनको किया है। पत्रकारिताकी भाषा एक मित्र पूछते ह : क्या आपने "महात्माको मानपत्र " शीर्षकसे लिखा गया 'क्रॉनिकल का अग्रलेख पढ़ा है ? उसमें लेखकने लिखा है कि "यदि दो-तीन विरोधकर्ताओंके भाषणोंकी रिपोर्ट विरोध सूचित करती हो तो कहना पड़गा कि विरोध केवल विरोधके लिए किया गया था और उसके पीछे कुछ ऐसे पेशेवर झगड़ालू लोग ही थे, जिनके मनमें महात्माके आन्दोलनकी सफलतासे ईर्ष्याके कारण बड़ी ही कटुभावना व्याप्त हो गई है । 'टाइम्स' जब श्री मुहम्मद अलीके बारेमें लिखता है तो आप उसे उपदेश सुनाने लगते हैं। लेकिन क्या उस 'क्रॉनिकल' के बारेमें आप चुप रहना चाहेंगे जो अपने आपको आपका अनुयायी बतलाता है और राजनीतिक विरोधियोंके लिए ऐसी असंयत और अयथार्थ भाषाका प्रयोग करता है ? 'टाइम्स' को कभी उपदेश देनेकी बात मुझे तो याद नहीं पड़ती। वैसे अगर कभी मैं यह चाहता भी तो साहस न होता । साफ है कि लेखकने मेरे उन शब्दोंका हवाला दिया है जो मैंने देशी भाषाओंकी उन कुछ- एक पत्रिकाओं के बारेमें लिखे थे जो आजकल झूठी बदनामी फैलानेका अभियान-सा चला रही हैं । हुआ यह था कि मैंने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में अनुवाद किये हुए कुछ अंश देखे और मुझे उनके बारेमें लिखना ही पड़ा । पर मैंने उसमें 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को नहीं, सम्बन्धित पत्रिकाओंको ही सलाह दी थी । पत्र लेखक खुद उसे देखकर अपनी तसल्ली कर सकता है । मैं यह आरोप तो स्वीकार नहीं कर सकता कि मैंने 'टाइम्स ' को कभी 'उपदेश' दिया, पर हाँ, मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि 'क्रॉनिकल' के लेखकको अहिंसात्मक असहयोगके अपने दावे के अनुरूप भाषाका प्रयोग करना चाहिए था और मानपत्रका विरोध करनेवालोंकी मंशापर शक नहीं करना चाहिए था। अवश्य ही पत्र लेखकने जिसका हवाला दिया है वह लेख मैंने नहीं पढ़ा है। आमतौरपर मैं अपने बारेमें भारतीय समाचारपत्रों में निकलनेवाले लेख इत्यादि पढ़ता ही नहीं, चाहे उनमें मेरी प्रशंसा की गई हो । प्रशंसाकी मुझे दरकार नहीं है क्योंकि बिना किसी भी बाहरी सहायताके मेरो मनमें पहलेसे ही काफी अहम् भरा पड़ा है और अपनी निन्दा इस ख्यालसे नहीं पढ़ता कि कहीं मेरे भीतरका असुर सौम्य भावनाओंपर हावी होकर मेरी अहिंसाको न धर दबोचे । पूरा लेख पढ़ने के बाद मेरे इस कथनमें तदनुसार संशोधन किया जा सकता है। फिर भी, मेरा अपना अनुमान यह है कि उक्त बातें श्री जे० बी० पेटिट और कानजी द्वारकादासको नजरमें रखकर कही गई हैं। मैं इन दोनोंसे भलीभाँति परिचित हूँ । हम लोगोंके आपसी सम्बन्ध आज भी उतने ही मैत्रीपूर्ण हैं, जितने कि असहयोगके प्रारम्भसे पहले थे । मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि इन दोनों में से किसीके भी दिलमें मेरे प्रति किसी प्रकारकी कटुता हो सकती है। वे साफसाफ कहते हैं कि मेरे तरीके उन्हें पसन्द नहीं हैं। कमसे-कम वे तो विरोध करनेके लिए विरोध नहीं करेंगे। जिनकी राय मानपत्र देने के पक्ष में थी उनसे मैंने यह सुना है कि उस अवसरपर श्री पेटिटने इतने संयमित ढंगसे अपनी बात कहीं कि उनके स्वभावको देखते हुए वह एक आश्चर्यजनक चीज ही थी। मुझे मालूम है कि श्री पेटिट चाहे जब आवेश में आकर बोल सकते हैं लेकिन प्रस्तुत मामले में उन्हें यह अहसास रहा कि उन्हें एक मित्रके खिलाफ बोलनेका दुखद कर्त्तव्य निभाना है। निगमके एक काफी पुराने सदस्यकी हैसियतसे उन्हें लगा कि निगम एक ऐसे व्यक्तिको मानपत्र देकर अपनी परम्पराओंके विरुद्ध आचरण करेगा जिसके सौजन्यको उसकी (पेटिटके तई) घृणित राजनीति से अलग रखकर नहीं देखा जा सकता । सर्वश्री पेटिट और कानजी हृदयसे ऐसा मानते थे कि बम्बई नगर निगम एक गलत काम कर रहा है। इसलिए मेरी विनम्र सम्मतिमें उनका विरोध प्रकट करना उचित ही था । बेशक, आजकल हमारे देशके सार्वजनिक जीवनमें एक दूसरेके इरादोंपर जरूरतसे ज्यादा शंका की जाती है । ( सहयोगियोंकी तो बात छोड़िए) स्वराज्यवादियोंमें भी कोई ऐसा नहीं है जिसके इरादोंपर अपरिवर्तनवादी लोग कोई शक जाहिर न करें और स्वराज्यवादी लोग भी अपरिवर्तनवादियों के साथ ऐसा ही सलूक करते हैं । और उदार दलके लोगोंपर तो दोनों ही ऐसा शक करते हैं। समझमें नहीं आता कि जिन्हें पहले ईमानदार माना जाता था वे ही अब एकाएक राजनीतिक विचारोंके परिवर्तनके कारण बेईमान कैसे हो गये । चूँकि असहयोगियोंके विरोधियोंने नहीं, बल्कि असहयोगियोंने अपनी विचार-धारा बदली है, इसलिए उनको खास सावधानी रखनेकी जरूरत है, अपने विपक्षियोंसे कहीं ज्यादा । यदि दोनोंमें मतभेद है तो इसमें विपक्षियोंका १. बम्बईके दानशील पारसी समाज-सेवी । २. होमरूल लीगके प्रमुख सदस्य और गांधीजी के मित्र । कोई दोष नहीं हो सकता । इसलिए मैं तो अपना पूरा रोष विचारकर्ताओं की बजाय विचारोंके प्रति प्रकट करता । मुझे लगता है कि वाइकोम सत्याग्रह अपनी मर्यादाएँ भंग करने लगा है। मैं तो यह चाहता हूँ कि सिख अपना लंगर बन्द कर दें और यह आन्दोलन सिर्फ हिन्दुओं तक सीमित रहे । कांग्रेस के कार्यक्रम में शामिल कर लिये जानेसे ही यह हिन्दुओं और गैर-हिन्दुओंका आन्दोलन नहीं बन जाता, ठीक उसी प्रकार जैसे खिलाफत आन्दोलन कांग्रेस के कार्यक्रममें शामिल कर लिये जानेपर भी मुसलमानों और गैर मुसलमानोंका आन्दोलन नहीं बन गया। इसके सिवा खिलाफत आन्दोलनके विरुद्ध ब्रिटिश सर कारके रूप में गैर-मुसलमान लोग थे । अगर हिन्दू या दूसरे गैर-मुसलमान लोग मुसलमानोंके अपने अन्दरूनी धार्मिक झगड़ोंमें दखल देने लगें तो वह बेजा मदाखलत होगी और अगर मुसलमान उसे धृष्टतापूर्ण समझें तो वह ठीक ही होगा। इसी तरह जो मामला सिर्फ हिन्दू समाजके सुधारसे सम्बन्धित है यदि उसमें गैर-हिन्दू टाँग अड़ाना चाहें तो कट्टरपंथी हिन्दू नाराजी जाहिर करेंगे ही । यदि मलाबारके हिन्दूसुधारक गैर हिन्दुओंकी सहानुभूतिको छोड़कर और किसी प्रकारकी सहायता अथवा हस्तक्षेप स्वीकार करेंगे या उसे प्रोत्साहन देंगे तो वे सारे हिन्दू समाजकी हमदर्दी खो बैठेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि वाइकोममें इस आन्दोलनका नेतृत्व करनेवाले हिन्दू सुधारक अपने कट्टरपंथी भाइयोंके विचारोंमें जोर-जबरदस्तीके बलपर परिवर्तन नहीं चाहते। जो भी हो, नेताओंको वह सीमा रेखा जान लेनी चाहिए जिसका अतिक्रमण किसी भी सत्याग्रहीको नहीं करना है। मैं सुधारकोंका पूरा सम्मान करते हुए, अनुरोध करना चाहता हूँ कि वे सनातनी लोगोंको आतंकित करनेकी कोशिश न करें । मैं इस विचारसे सहमत नहीं हूँ कि वाइकोममें जिस रास्तेको लेकर संघर्ष चल रहा है, यदि वह खुल जाता है तो मलाबार-भरमें छुआछूतकी समस्या हल हो जायेगी 1 वाइकोममें यदि अहिंसापूर्ण तरीकोंसे विजय हासिल की गई तो इसमें शक नहीं कि पण्डे - पुजारियों द्वारा फैलाये गये अन्ध-विश्वासोंके गढ़की नीवें आमतौरपर हिल जायेंगी, पर हर स्थानपर जब भी समस्या सिर उठाये तब उसे वहीं स्थानीय रूपसे ही हल करना पड़ेगा । गुजरातमें कहीं एक जगह कोई कुआँ हरिजनोंके इस्तेमालके लिए खोल दिये जानेका यह मतलब नहीं होगा कि गुजरातके सारे कुएँ उनके लिए खुल जायेंगे और अगर ईसाई, मुसलमान, अकाली और इन हिन्दू सुधारकोंके सभी गैरहिन्दू मित्र भी कट्टरपंथी हिन्दुओंके विरुद्ध प्रदर्शन करने लगें, इन सुधारकोंकी पैसेरुपये से मदद करने लगें और अन्तमें आतंकित करके उनपर हावी हो जायें तो हिन्दूधर्मका क्या होगा ? क्या हम इसे सत्याग्रह कह सकेंगे ? क्या सनातनी लोगोंका घुटने टेक देना स्वेच्छाप्रेरित कहा जायेगा ? क्या उसे हिन्दू धर्म में सुधार कहेंगे ? ३. पत्र लेखकोंसे मेरे नाम पत्र भेजनेवालोंकी संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इनमें सम्पादकके नाम पत्र लिखनेवाले और वे लोग भी शामिल हैं जो सार्वजनिक महत्त्वके विषयोंके बारेमें मेरी सलाह माँगते हैं। मैं इन्हें आश्वस्त करना चाहता हूँ कि मुझसे जहाँतक बन पाता है, मैं सभी पत्रोंको पढ़ता हूँ और यथासामर्थ्य इन स्तम्भोंमें उनके उत्तर भी देता हूँ । साथ ही मैं यह मानता हूँ कि मैं अपने पत्र लेखकों द्वारा चर्चित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों के बारेमें पूरे विस्तारसे लिखने में असमर्थ हूँ । मेरे लिए यह भी सम्भव नहीं है कि मैं सभी पत्रोंका अलग-अलग उत्तर दूँ । पत्र - लेखक 'यंग इंडिया' को ही उनके नाम भेजा गया मेरा व्यक्तिगत पत्र समझनेकी कृपा करें। यदि लोग चाहते हैं कि उनके पत्रोंपर ध्यान दिया जाये तो उनके पत्र संक्षिप्त, साफ लिखे और निर्वैयक्तिक होने चाहिए । [ अंग्रेजीसे ] यंग इंडिया, ८-५-१९२४ ४. आत्म-निरीक्षणका आमन्त्रण एक सम्माननीय पत्र लेखकका पत्र नीचे देते हुए मुझे प्रसन्नता के साथ पीड़ाका भी अनुभव हो रहा हैः 'यंग इंडिया' के हालके लेखने मेरी अधिकांश शंकाओंको दूर कर दिया है, किन्तु अभी कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें, मैं चाहता हूँ, थोड़ा और साफ कर दिया जाये तथा फिर इन्हें शीघ्र ही 'यंग इंडिया' में प्रकाशित कर दिया जाये । कौंसिलोंमें प्रवेश सम्बन्धी आपके विचार अब मेरे सम्मुख बिलकुल स्पष्ट हो गये हैं और अब वे मुझे परेशान नहीं करते। किन्तु मैं चाहता हूँ कि आप नगरपालिकाओं और जिला बोर्डोंमें बहुमत प्राप्त करने के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करें । मैंने १९२१ में इन मुद्दोंपर आपका मत जानने की इच्छासे आपको एक तार' भेजा था । तब मुझे आपने उत्तर दिया थाः "नगरपालिकाओंपर अधिकार कर सकते हो, जिला बोडोंके बारेमें सन्देह है। " १९२३ के अन्त में सभी नगरपालिकाओंमें नये चुनाव हुए हैं और असहयोगियोंने उनमें से अधिकांशपर अधिकार कर लिया है। हमने जिला १. यह सूचना यंग इंडियाके बादके अंकोंमें बार-बार दी जाती रही थी। २. यह तार उपलब्ध नहीं है । बोर्डके चुनाव भी लड़े हैं। हमारे इन चुनावोंके अनुभव बहुत ही दुःखजनक हैं । उनसे कांग्रेस कार्यको बल नहीं मिला है, प्रत्युत हममें बहुत बड़ी कमजोरी आई है। उनके फलस्वरूप हमारे असहयोगी कार्यकर्ताओंमें परस्पर तीखे मतभेद, द्वेष तथा घृणाके भाव पैदा हो गये हैं। दूसरी ओर हमने अपने नरमदलीय समर्थकों, जमींदारों तथा इनमें दिलचस्पी रखनेवाले अन्य लोगोंकी सहानुभूति भी लगभग गँवा दी है। उन्होंने अब डराने-धमकानेका रुख अख्तियार कर लिया है और वे हमारे मार्ग में रोड़े अटकाने तथा हमें बदनाम करनेका भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। इससे भी अधिक गम्भीर बात यह है कि हमें सरकारसे सम्बन्ध रखना पड़ता है। हम सरकारसे अनुदान प्राप्त करते हैं, इसलिए हमारे लिए सरकारी अधिकारियोंको सभी कुछ लिख भेजना जरूरी हो जाता है। यहाँ हमें जनताकी सेवा करनेका अवसर तो अवश्य मिलता है, किन्तु हम जो श्रम, समय और शक्ति इसमें लगाते हैं, उसका उतना परिणाम नहीं निकलता और उससे हमारा जल्दी स्वराज्य लेनेको कार्य भी सचमुच आगे नहीं बढ़ता । जिला बोर्डके अन्तर्गत देशी भाषाओंके प्राथमिक, माध्यमिक तथा मिडिल स्कूल हमारे नियन्त्रणमें रहते हैं, परन्तु हमको उन्हें विहित सरकारी नीतिके अनुसार ही चलाना पड़ता है। अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे अपनी राय बतायें। हमारे जिलेमें बोर्डके अध्यक्ष और उपाध्यक्षका शीघ्र ही चुनाव होनेवाला है; हमें आपका स्पष्ट उत्तर चाहिए कि हम इन स्थानोंके लिए चुनाव लड़ें या न लड़ें । एक बात साफ समझ में आती है और वह यह है कि यदि हम अपने आदमियोंको अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नहीं बनवा सकते तो हमारा इन संस्थाओं में जाना व्यर्थ है । मेरा अन्तिम प्रश्न है, हमें अपने कांग्रेस संगठनोंका क्या करना चाहिए ? वर्तमान नियमोंके अनुसार हमें गाँवोंसे मण्डलोंके लिए, मण्डलोंसे थानोंके लिए, थानोंसे तहसीलों अथवा जिलेके लिए जिलेसे प्रान्तके लिए तथा प्रान्तसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके लिए सदस्य चुनने होते हैं। यह एक बहुत ही बड़ा काम है जिसे सँभालना मुश्किल है। हमारे पास न तो कार्यकर्ता हैं और न पैसा है, इसलिए हम इस विराट् संगठनको चलाने में असमर्थ हैं । हममें से कुछ कहते हैं कि हमें अपनी सारी गतिविधि जिला बोर्डों और नगरपालिकाओंपर केन्द्रित करनी चाहिए, तथा कांग्रेस संगठनको भगवान्पर छोड़ देना चाहिए । कांग्रेस संगठनों को चलाते रहना बड़े खर्चका काम है और वह साराका-सारा काम लगभग बन्द ही पड़ा है । जहाँतक रचनात्मक कार्यका प्रश्न है, उसमें न तो हमारे कार्यकर्त्ताओंकी रुचि है, न गाँववालोंकी, और न जनताकी हो । उसमें बहुत अधिक समय लगता है और उससे स्वराज्य शीघ्र कैसे प्राप्त हो सकता है, यह बात मेरी
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को स्वर्ग मे या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे ही हाथ मे दे रखी है ? उसे सीधी या टेढ़ी घुमाना हमारे हाथ है। मनुष्य की सुगति व दुर्गति उसके भले बुरे संकल्पो, विचारो पर ही सर्वथा निर्भर है। पापमय विचारो से वह पापात्मा और पुण्यमयी विचारों से वह निःसदेह पुण्यात्मा बन जाता है। उच्च व पवित्र विचारो से, कितना ही पतित मनष्य क्यो न हो वह भी उच्चातिउच्च पवित्रात्मा वन सकता है। परन्तु भगवान् कहते हैं "उससे बुद्धि का निश्चय पूरा होना चाहिये।" अर्थात् ऐसा पुरुष फिर पाप कर्म नही कर सकता "विश्वासो फलदायकः, ।" यह भगवान का वचन है। जितना विश्वास अधिक होगा उतना उसका फल भी अधिक होता है । महापुरुषों का विश्वास इतना प्रवल और अनन्य होता है कि वे पानी का घी और वालू की चीनी तक बना सकते हैं। ऐसा ही अनन्य विश्वास हमारा भी होना चाहिये। "संशयात्मा विनश्यति ' - संशयी पुरुष का नाश होता है। अतः निःसंदेह भाव से संकल्प करने पर हमारा अवश्य ही उद्धार होगा, इसमे कोई आश्चर्य नही है। सच पूछिये तो कुकल्पना ही शैतान है। अतः जिसको तरना हो उसे चाहिये कि हठ पूर्वक कुबुद्धि को, कुविचारो को त्याग कर सुबुद्धि को धारण करे और आज ही से, इसी समय से पवित्र विचारो को शुरू कर दे । निःसन्देह अपरिमित कल्याण होगा । अतः निद्रा के पूर्व रोज पाव घण्टा अवश्य पवित्र संकल्प किया करो। इससे सब कुस्वप्नों का नाश होकर, तुममे एक अद्भुत दैवी शक्ति प्रकट होगी और तुम्हारे सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध होगे । "पुरुषप्रयत्नशीलस्य प्रसाध्यं नास्ति'" - मनुष्य के उचित प्रयत्न करने पर प्रसाध्य कुछ भी नही है । आज सादी रहन सहन भीतर सो मैलो हियो, बाहर रूप अनेक । नारायण तासों भलो, कौवा तन मन एक । खुद "न-खरा" शब्द ही मनुष्य की खोटी चाल को साबित कर रहा है। विशेष सज धज करना, ऊँचे ऊँचे और रङ्गबिरगे भड़कीले व कामोत्तेजक कपड़े पहनना, अपने हाथ अपने गले मे मालाये पहनना, श्रङ्गमे और बालो मे सुगन्धित तैल, इत्र आदि लगाना, नेक्टाई, कालर, रिस्टवाच से अपने को संवारना, बार बार शीशे में सूरत देखना, पान से मुँह लाल करना, ये सब ब्रह्मचर्य के लिये काल समान हैं। परन्तु शोक की बात है कि कई सयाने माता पिता खुद अपने ही हाथ से, अपने बच्चो का इन विषय प्रवृत्तिकर बातो मे फंसा रहे और इस प्रकार अपने बच्चो को बिगाड़ रहे है । भत्ता ऐसे लोग विषय को कैसे जीत सकते हैं ? "वहत कबीर सुनो भाई साघो ये क्या लड़ेंगे रण में ?" यदि हमारे इर्द गिर्द शृङ्गारपूर्ण सामग्री न हो तो आत्मसंयम के कामो में बहुत ही सहायता मिल सकती है और हम बड़ी आसानी से प्रात्मसंयम कर सकते हैं। पास में खाने के लिये होने पर जैसे बराबर झूठी ही भूख लगती है, वैसे ही विलासी वस्तुओं और व्यक्तियों से घिरे रहने पर मन में काम भी बराबर जाग उठता है। ऐसा करना प्रसंशयतः अपने भले मन को और भी बिगाड़ना है, श्राग मे तेल डालना है, और वास्तव में यह भी एक प्रकारका छिपा कुरूंग है। अतः इन सब भोग विलास को बातों से सदैव दूर रहो। सादी रहन-सहन अथवा भोग-विलास से विरक्ति ही ब्रह्मचर्य रक्षा का सहज उपाय है। सादगी हो जीवन है और सजावट ही नाश है, यह तत्वपूर्ण रीति से ध्यान में रखो। सत्संगत्वे निःसंगत्वं निःसंगत्वे निर्माहत्वम् । निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तः ॥ - श्रीमच्छङ्कराये । "सत्संग से निःऩग ( Non attachmont ) की प्राप्ति होती. है, निःसङ्ग से निर्माहत्व अर्थात् विषय से अप्रीति बढ़ती है, निर्मोह से सत्य का पूरा ज्ञान व निश्चय होता है और सत्तत्व निश्चल ज्ञान से मनुष्य जीवन्मुक्त होता है अर्थात् इस संसार से तर जाता है।" नियम चौथावक्तव्य-संसार में 'आत्मोन्नति के लिये जितने साधन है इन सघ में सतसंग सच में श्रेष्ठ उपाय है। 'सत्सङ्ग यह शब्द अत्यन्त महत्व का है। सत्सङ्ग में संसार की तमाम उन्नतिकर बातो का समावेश होता है। जैसे पवित्र व ऊँचे विचार करना पवित्र स्वदेशी खद्दर पहनना आदि धनन्त वातो का समावेश होता है और 'कुसंग' में संसार की तमाम स्व-पर-नाशकारी बातों का समावेश होता है। सत्सङ्ग से मनुष्य देवता बनता है और कुसङ्ग से मनुष्य राक्षस बन जाता है। भक्त तुलसीदास जीपूछते " को न कुसङ्गति पाय नसाई ?" सच है, कुसङ्ग से आन तक बड़े बड़े शीलवान् गुणवान, और होनहार वालक-बालिकाएँ तथा स्त्री पुरुष धूल में मिल गये हैं । कुसंङ्ग का प्लेग महान् भयानक होता है। जगली जानवर का या काले साँप का भी साथ बहुत अच्छा है, उससे मनुष्य की केवल मृत्यु ही होगी। परन्तु दुर्जन का संग महान दुर्गतिकर है, वह मनुष्य को नीच योनियों मे व नरक मे ही डालने वाला है । पन्डित विष्णुशर्मा कहते हैं"वर प्राणत्यागो न पुनरधमाना सुपगमः ।" "प्राण त्याग देना अच्छा है परन्तु नीचों के पास जाना तक बुरा है।" "जैसा संग वैसा रंग" यही प्रकृति का कायदा है। ध्रुवां के संग से सफेद मकान भी काला पड़ जाता है। लता में का कीड़ा लता ही के तुल्य हरा बन जाता है। वैसे ही दुर्जन के साथ मनुष्य भी दुर्जन वन जाता है और सज्जन के साथ सज्जन "कामो के संग काम जागे" "कायर के सग शूर भागे पै भागेक "काजर की कोठरी मे कैसोहू समाने घुसो, एक रेखा काजर की लागे पै लागे ।" कवि का यह कथन अक्षरशः सत्य है। नीच पुरुष अपनेही तुल्य अपने मित्रों को भी नीच, पापी और दुरात्मा बना डालते हैं और सत्पुरुष अपने ही जैसे अपने मित्रों को भी पुन्यात्मा महात्मा बना देते हैं। सत्संग की महिमा अपरम्पार है । सत्संग से मनुष्य को मोत की प्राप्ति होती है और कुसंग से नरक की प्राप्ति होती है। सत्संग की महिमा और कुसंग की अघमता किसी से छिपी नहीं है। कुसंग से मनुष्य जीते जी ही नरक का सा अनुभव करने लग जाते हैं । इसी कारण से गोस्वामी जी कहते हैं- "बरु भव वास नरक कर ताता, दुष्ट संग जनि देहि विधाता ।" अतः कल्याण चाहने वालों को कुसंग को एकदम प्रतिज्ञापूर्वक त्याग देना चाहिए और सत्संग को प्रयत्नपूर्वक प्राप्त करना चाहिए । कुमित्रों से मित्ररहित रहना ही लाख गुना श्रेष्ठ है, क्योकि कुसंग से धर्म, अर्थ काम और मोक्ष चारों मटियामेट हो जाते हैं और अन्त में महान् अधोगति होती है। परन्तु सत्संग से चारो पुरपार्थ अनायास सघ जाते हैं। याद रखो, राजपाट, गज, चाजि, धन, स्त्री, पुत्रादि सव कुछ मिलेंगे, परन्तु सत्संग मिलना परम दुर्लभ है। "बिन सत्संग विवेकन होई, राम कृपा विन सुलभ न सोई । "' - यह गोस्वामी जी का वचन अक्षरशः सत्य है ! मोक्ष के सव साधन एक तरफ और सत्संग एक तरफ, दोनो में सत्संग का ही दर्जा वहुत ऊँचा है। "तात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला इक अंग " तुलै न ताहि सकल मिलि, जो सुख लव सत्संग । सच है 'सठ सुधरहि सतसंगति पाई" कैसे ? तो कैसे "पारस परसि कुधातु सुदाई ।" यह नितान्त सत्य है कि 'सम्पूर्ण दुराचार और व्यभिचार की जड़ एकमात्र कुसंगति ही है। अतः ब्रह्मचारियों को तथा अभ्युदयेच्छुको को चाहिए कि कभी भी जीभ से बुरी बात न कहें, कान से बुरी बात न सुने (कैसे कजली, होली को गालियां व भद्दे भद्दे गीत आदि) श्रींख से बुरी चीज न देखें (जैसे नाटक, तमाशा सिनेमा, नाचवाली रामलीला, भद्दे चीज इत्यादि) पैर से बुरी जगह न जायें, हाथ से बुरी चीज न छुवें और मन से विषय-चिन्तन हरगिज न करें। बल्कि कुभावों को
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कोई भी यह भी नहीं सोचा था कि नई संरचना क्या होगी"वियाग्रा", जब टीम में नए प्रतिभागियों के चयन पर कॉन्स्टेंटिन मेलैड का शो शुरू हुआ कई योग्य उम्मीदवार थे, रूसी भूमि सुंदर और प्रतिभाशाली लड़कियों में समृद्ध है और फिर भी उनमें से तीन सबसे मजबूत बने - आवाज, स्त्रीत्व और चुंबकीय आकर्षण का अद्भुत सौंदर्य ने अपना काम किया हाल ही में, "वियाग्रा" की एक नई रचना लोगों को प्रस्तुत की गई थी इसमें तीन खूबसूरत लड़कियों - अनास्तासिया कोज़ेविनोको, मिसा रोनानोवा और एरिका हर्सेग शामिल हैं। प्रसिद्ध निर्माता और संगीतकार कॉन्स्टेंटिनमेलैडेज़ अपने अस्तित्व की संपूर्ण अवधि 13 से अधिक वर्षों के लिए "वीआईए ग्रा" समूह का ट्यूटर है। इस समय के दौरान, सामूहिक कई बार बदल गया है। समूह में हुआ बदलाव न केवल अपने प्रतिभागियों के भाग्य से संबंधित है, बल्कि शो व्यवसाय में तकनीकी, शैलीगत और सामाजिक रुझानों को भी दर्शाता है। सब के बाद, "वीआईए ग्रा" हमेशा महिला समूह के नंबर 1 द्वारा मंच पर रहे। और वह हमारे समय के कई लोकप्रिय सितारों के लिए "जीवन का विद्यालय" बन गया। इस स्कूल के स्नातक वेरा ब्रेजनेव, Svetlana Loboda, एलेन विनितसिया, अल्बिना डजनबेवा, आशा Meyher-Granovsky, Anna Sedokova और अन्य प्रसिद्ध गायक, टीवी प्रस्तुतकर्ता और अभिनेत्रियों कर रहे हैं। चार सीआईएस देशों के पंद्रह हजार प्रतिभागियोंकई महीनों के समूह के लोकप्रिय गायकों में से एक बनने के लिए सही के लिए लड़ाई लड़ी के लिए (रूस, कजाकिस्तान, बेलारूस और यूक्रेन)। अंतिम दो परस्पर विरोधी तिकड़ी में चुने गए हैं। आकर्षक पसंदीदा एक जूरी सदस्य इगोर वेर्निक - अनास्तासिया Kozhevnikova, मिशा रोमानोवा और एरिक Herceg - मारिया Goncharuk, रेड इंडियन जूलिया Louth और जल श्यामला डायना Ivanitskaya यूक्रेन से अद्भुत और बेहद प्रतिभाशाली लड़कियों के साथ प्रतिस्पर्धा की। दो पूरी तरह से अलग टीमों की जीत के लिए केवल एक कदम करना था। प्रतिभागियों की इस अदम्य ऊर्जा, लड़कियों में से प्रत्येक की असंदिग्ध प्रतिभा, उनके अद्भुत कामुकता और स्त्रीत्व - लेकिन वहाँ कुछ है कि उन्हें एकजुट था। दर्शकों द्वारा एसएमएस वोटिंग ने भाग्य का फैसला कियासदस्य। यह अनुमान लगाने में मुश्किल था कि वे किसके लिए प्राथमिकता देंगे। वोटिंग और मतों की गणना के पूरा होने पर, इगोर वर्निक ने शो के विजेताओं के नामों के साथ लिफाफा खोल दिया। वे सुंदर यूक्रेनी महिलाओं - अनास्तासिया कोज़ेविनोको, मीसा रोनानोवा और एरिका हर्सेग थे समूह कॉन्स्टेंटिन मेलैडज़ के निर्माता के मुताबिक, लड़कियां बहुत आशाजनक, रचनात्मक और विविध हैं, इसलिए वे निश्चित रूप से जीएआई की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं को अवशोषित कर सकेंगे और सामूहिक की सफलता को तेरह वर्ष के अस्तित्व के इतिहास के साथ बढ़ा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दर्शकों के आदी होने के लिए काफी तरह से नहीं, "वियाग्रा" का एक अद्यतन समूह होगा। नई संरचना में इसके चमकीले रंग लाएंगे। इसके अलावा, यह तय किया गया था कि टीम की छवि को कुछ हद तक बदलने का फैसला किया गया, जिससे नए सदस्यों की विशिष्टताओं को ध्यान में रखा गया। नए समूह "वियाग्रा" की रचना को परिभाषित किया गया है, और अबपौराणिक संगीत सामूहिकों के प्रशंसकों ने अपने नए प्रतिभागियों की आत्मकथाओं में तेजी से रुचि रखी है चलो पता लगाओ कि कॉन्सटेंटिन मेलैडज़ के शो में आने से पहले लड़कियों का जीवन क्या था। नैस्त्य का जन्म युज़ह्नुकेर्नस्क शहर में हुआ थायूक्रेन में मैकोलाइव क्षेत्र छह साल की उम्र में, वह गायन शुरू कर दिया और बच्चों के गाना बजानेवालों "बूंदों" में गाना शुरू कर दिया। आठ वर्ष की आयु में, नस्तिया पियानो का अध्ययन करने के लिए संगीत स्कूल गया मध्य और संगीत विद्यालयों में पढ़ाई के समानांतर, लड़की कोरियोग्राफी करने में कामयाब रही और "गलेटा" नामक पॉप गाने के थिएटर में अभिनय कौशल सीखने में कामयाब रहा। बड़ा मंच के एक कलाकार बनने के बच्चों के सपने का नेतृत्व कियाNastya जीवन पर है वह अपने आप को और उसकी प्रतिभा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ी लड़की ने विभिन्न संगीत प्रतियोगिताओं में भाग लिया, उनमें से "द फर्स्ट स्लोव्स", "रनिंग ऑन द वेव्स", "यंग गैलीचिना" और अन्य लेकिन उस समय उसने बहुत सफलता हासिल नहीं की। जूरी का ध्यान आकर्षित करने वाली एकमात्र चीज है, इसलिए यह युवा लड़की की अदम्य ऊर्जा पर है। जब Anastasia सोलह बदल गया, वहशो "सुपरज़िरका" पर अपनी पहली कास्टिंग में भाग लिया लेकिन, दुर्भाग्य से, लड़की फिर से ध्यान से वंचित थी। नास्तिया ने हार नहीं छोड़ी और शो "एक्स फैक्टर" का कास्टिंग करने के लिए चले गए, जो पहले दौर से आगे नहीं पारित हुआ। निराशाजनक और एक बड़ा मंच के अपने सपने को छोड़कर, अनास्तासिया कीव राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी और डिजाइन विश्वविद्यालय में एक छात्र बन गया। जब उन्होंने "मैं चाहता था कि" वीआईए ग्रू शो के कास्टिंग की शुरुआत के बारे में सीखा, तो मैंने आखिरी बार अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। और इस बार उसकी किस्मत मुस्कुराई गई - उन्हें नए "वियाग्रा" में शामिल किया गया था! इस लेख में आप जो फोटो देख रहे हैं वह लड़की की वास्तविक खुशी का प्रदर्शन करती है! बीस साल की उम्र तक उसने अपना पहला बड़ा सपना महसूस किया, और यह एक वास्तविक जीत है! एरिका का जन्म मलाया डोबरन नामक गांव में हुआ था, जो उज्जोरोड के निकट हंगरी के साथ यूक्रेनी सीमा के पास स्थित है। लड़की मिश्रित रक्त हैः उसका पिता हंगरी है, मां यूक्रेनी और हंगेरियाई की बेटी है एरिका के माता-पिता से शादी कर ली, जब वे बहुत ही छोटे थे- 22 उनके पिता थे, 18. जब वह पांच थी, तो उन्होंने एक दूसरे बच्चे का फैसला किया। जन्म बहुत मुश्किल था, जिसने एरिका की मां के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। परिवार की भलाई और छोटे बच्चों की परवरिश के लिए चिंता परिवार के पिता निकोलस के कंधों पर पूरी तरह से गिर गई। एरिका हंगरी के स्कूल में गई, जहां सप्ताह में केवल दो घंटे यूक्रेनी भाषा का अध्ययन किया गया। इस प्रयोजन के लिए दैनिक मैं घर से 12 किलोमीटर की दूरी पर गया और सीमा पार कर गया। जब देश की सीमाओं को पार करने के नियमों को मुश्किल हो गया, तो लड़की को स्कूल बदलना पड़ा। हाई स्कूल में, एरिका एक स्थानीय चर्च में लिसेयुम में पढ़ी, एक चर्च गाना बजानेवालों में गाया। औसतन प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बादलड़की फेरेक राकोसी II के नाम पर ट्रांस्पेरपैथीयन हंगरी के इंस्टीट्यूट के छात्र बनने के लिए बेरहोवो शहर में गई थी। अध्ययन करते समय, एरिका स्थानीय कैफे में एक वेट्रेस के रूप में काम करती थी। 2008 लड़की के लिए बदलाव का वर्ष था। मॉडलिंग बिजनेस में उसके हाथ की कोशिश करने के लिए उसने लगभग 30 किलोग्राम वजन घटाया। उसने विज्ञापन गहने और नीचे पहनने के कपड़ा में अभिनय किया। नए सिरे समूह के तीसरे एकल कलाकार में पैदा हुआ थाखेरसॉन के यूक्रेनी शहर जन्म के समय, माता-पिता ने अपनी बेटी को नतालिया नाम दिया उसका वास्तविक नाम Mogilenets है मिशी रोनानो एक सुंदर छद्म नाम है, जिसकी लड़की एक बार प्यार करती थीं, दो लोगों की याद में आई थी। लड़की ने एक माध्यमिक विद्यालय में अध्ययन किया और अक्सर बदमाशी के साथियों से पीड़ित थे। यह कल्पना करना मुश्किल है, लेकिन एक बच्चे के रूप में उसने बहुत कुछ झुठलाया। यह तब शुरू हुई जब मिशी पांच साल की थी जब उसके माता-पिता के बीच एक झगड़ा का अनैच्छिक गवाह बन गया। लड़की को याद है कि यह उसके लिए कितना मुश्किल था, क्योंकि वह दुकान में उसे चबाने वाली गम भी नहीं खरीद सकती थी, क्योंकि विक्रेताओं ने उसे नहीं समझा। डॉक्टरों की सलाह पर, माता-पिता ने लड़की को दियाअभ्यास वोकल्स आश्चर्य की बात है और मश्या की कोई सीमा नहीं थी, जब उन्हें पता चला कि जब वह गाती है तो वह तबाही नहीं करती थी। तब से, उसने सीखा सामग्री को भी नहीं बताया, भले ही उसे जवाब देने के लिए बुलाया गया, लेकिन "गाया" एक अभिनेत्री बनने का सपना उसने उसे लेने की ताकत दे दीसभी संभावित संगीत प्रतियोगिताओं में भागीदारी उसने "लिटिल ज़िरका", "कैरसुसल मेलोडी", "स्वीट टैलेंट" में पुरस्कार ले लिया। मिशा रोनानोवा को किवा वैराइटी एंड सर्कस स्कूल में शिक्षित किया गया था, जहां उन्होंने 2007 में प्रवेश किया था। 23 साल की उम्र में, उसका सपना सच हो गया - वह एक असली कलाकार बन गया, जो कि पौराणिक समूह "वियाग्रा" के एकल कलाकार था। बैंड ने पहले से ही कई नए गाने दर्ज किए हैं,क्लिप हटाने, दौरे पर काम किया। लड़कियों का पहला संयुक्त कार्य रचना "अरमिस्टिस" है, जिसे पहले से ही प्रतिभाशाली निर्देशक एलन बैडोव ने शूट किया है। और 4 नवंबर, 2013 को मॉस्को में राज्य क्रेमलिन पैलेस में अपना पहला कॉन्सर्ट एक अद्यतन "वियाग्रा" दिया। नई लाइनअप - एरिका, नैस्त्य और मिशा - ने दर्शकों को जीता, लड़कियों ने हजारों प्रशंसकों को पाया, मंच पर अपना समर्पित कार्य दिखाते हुए। और यह केवल उनका पहला संगीत कार्यक्रम था!
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शत्रुग्नकुमारोऽसौ मथुरापुर्या सुरकहृदयोऽस्यन्तम् । न तथापि एति भेजे वैदेया विरहितो तथासीद् रामः ॥२८॥ स्वप्न इव भवति चारुसंयोगः प्राणिनां यदा तनुकालः । जनयति परमं तापं निदाघर विर श्मि जनितादधिकम् ॥ २६ ॥ इत्यार्षे रविषेणाचार्य प्रोक्ते श्रीपद्मपुराणे मथुरोपसर्गाभिधानं नाम नवतितमं पर्व ।।६०॥ सुन्दर थी, कामधेनुके समान समस्त मनोरथोंके प्रदान करनेमें चतुर थी और स्वर्ग जैसे भोगोपभोगोंसे सहित थी तथापि शत्रुघ्नकुमारका हृदय मथुरा में ही अत्यन्त अनुरक्त रहता था वह, जिस प्रकार सीताके बिना राम, धैर्यको प्राप्त नहीं होते थे उसी प्रकार मथुर के बिना धैर्यको प्राप्त नहीं होता था ॥२७-२८॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! प्राणियोंको सुन्दर वस्तुओंका समागम जब स्वप्नके समान अल्प कालके लिए होता है तब वह ग्रीष्मऋतु सम्बन्धी सूर्य की किरणोंसे उत्पन्न सन्तापसे भी कहीं अधिक सन्तापको उत्पन्न करता है ॥२६।। इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें मथुरापर उपसर्गका वर्णन करनेवाला नब्बेवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥१०॥ अथ राजगृहस्वामी जगादाद्भुतकौतुकः । भगवन्केन कार्येण तामेवासावयाचत ॥१॥ बहबो राजधान्योऽन्याः सन्ति स्वर्लोकसलिभाः । तत्र शत्रुघ्नवीरस्य का प्रीतिर्मंथुरां प्रति ॥२॥ दिग्यज्ञानसमुद्रेण गणोडुशशिना ततः । गौतमेनोध्यत 'प्रीतियथा तत्कुरु चेतलि ॥३॥ बहवो हि भवास्तस्य तस्या मेवाभवस्ततः । तामेव प्रति सोदेकं स्नेहमेष न्यषेवत ॥४॥ संसारार्णवसंसेवी जीवः कर्मस्वभावतः । जम्बूद्वीपभरते मथुरां समुपागतः ॥५॥ करो यमुनदेवाख्यो धर्मैकान्तपराङ्मुखः । स प्रेत्य कोडवालेयवाय सत्वान्यसेवत ॥६॥ भजत्वं च परिप्राप्तो मृतो भवनदाहतः । महिषो जलवाहोऽभूदायते गवले वहन् ॥ ७॥ षड्वारान्महियो भूत्वा दुःखप्रापणसङ्गतः । पञ्चकृत्वो मनुष्यत्वं दुःकुलेष्वधनोऽभजत् ॥८॥ मध्यकर्मसमाचाराः प्राप्यार्यत्वं मनुष्यताम् । प्राणिनः प्रतिपद्यन्ते किञ्चित्कर्मपरिक्षयम् ॥३॥ ततः कुलम्धराभिख्यः साधुसेवापरायणः । विप्रोडसावभवद्वपी शीलसेवाविवर्जितः ॥१०॥ अशति इव स्वामी पुरस्तस्या जयाशया । यातो देशान्तरं तस्य महिषी ललिताभिधा ॥११॥ प्रासादस्था कदाचित्सा वातायनगतेक्षणा । निरैचत तकं विप्रं दुश्चेष्टं कृतकारणम् ॥१२॥ सा तं क्रीडन्तमालोक्य मनोभवशराहता । आनाययद्द्वहोऽत्यन्तमाप्तया चित्तहारिणम् ॥१३॥ तस्या एकासने चासावुपविष्टो नृपश्च सः । अज्ञातागमनोऽपश्यत्सहसा तद्विचेष्टितम् ॥ १४ ॥ अथानन्तर अद्भुत कौतुकको धारण करने वाले राजा श्रेणिकने गौतम स्वामी से पूछा कि हे भगवन् ! वह शत्रुघ्न किस कार्यसे उसी मथुराकी याचना करता था ॥१॥ स्वर्गलोकके समान अन्य बहुत सी राजधानियाँ हैं उनमें से केवल मथुरा के प्रति ही वीर शत्रुघ्नकी प्रीति क्यों है ?॥२॥ तब दिव्य ज्ञानके सागर एवं गणरूपी नक्षत्रोंके बीच चन्द्रमा के समान गौतम गणधरने कहा कि जिस कारण शत्रुघ्नकी मथुरा में प्रीति थी उसे मैं कहता हूँ तू चित्तमें धारण कर ।।३।। यतश्च उसके बहुतसे भव उसी मथुरा में हुए थे इसलिए उसीके प्रति वह अत्यधिक स्नेह धारण करता था ।।४।। संसार रूपी सागरका सेवन करने वाला एक जीव कर्मस्वभावके कारण जम्बूद्वीप सम्बन्धी भरतक्षेत्र की मथुरा नगरीमें यमुनदेव नामसे उत्पन्न हुआ। वह स्वभावका कर था तथा धर्मसे अत्यन्त विमुख रहता था। मरनेके बाद वह क्रमसे सूकर, गधा और कौआ हुआ ॥५-६॥ फिर बकरा हुआ, तदनन्तर भवनमें आग लगने से मर कर लम्बे-लम्बे सींगोंको धारण करनेवाला भैंसा हुआ। यह भैंसा पानी ढोनेके काम आता था ।।७।। यह यमुनदेवका जीव छह बार तो नाना दुःखोंको प्राप्त करनेवाला भैंसा हुआ और पाँच बार नीच कुलोंमें निर्धन मनुष्य हुआ ।।८।। सो ठीक ही है क्योंकि जो प्राणी मध्यम आचरण करते हैं वे आर्य मनुष्य हो कुछ-कुछ कर्मोंका क्षय करते हैं ।।६।। तदनन्तर वह साधुओं की सेवा में तत्पर रहने वाला कुलन्धर नामका ब्राह्मण हुआ। वह कुलन्धर रूपवान् तो था पर शीलको आराधनासे रहित था ॥१०॥ एक दिन उस नगरका राजा विजय प्राप्त करनेकी आशासे निःशक की तरह दूसरे देशको गया था और उसकी ललिता नामकी रानी महल में अकेली थी। एक दिन वह झरोखेपर दृष्टि डाल रही थी कि उसने संकेत करनेवाले उस दुश्चेष्ट ब्राह्मणको देखा ।।११-१२।। क्रीडा करते हुए उस फुलन्धर ब्राह्मणको देख कर रानी कामके बाणों से घायल हो गई जिससे उसने एक विश्वासपात्र सखी के द्वारा उस हृदयहारीको अत्यन्त एकान्त स्थानमें बुलवाया ।।१३।। महलमें जाकर वह १. प्रीतिं म० । मायाप्रवीणया तावद्देव्या क्रन्दिसमुन्नतम् । वन्दिकोऽयमिति त्रस्तो गृहीतश्च भटैरसौ ॥१५॥ अष्टाङ्गनिग्रहं कर्तुं नगरीतो बहिः कृतः । सेषितेनासकृद्द्दष्टः कल्याणाल्येन साधुना ॥१६॥ यदि प्रवजसीत्युक्त्या तेनासौ प्रतिपक्षवान् । राज्ञः क्रूरमनुष्येभ्यो मोचितः 'श्रमणोऽभवत् ॥ १७ ॥ सोऽतिकष्टं तपः कृत्वा महाभावनयान्वितः । अभूतु विमानेशः किन्नु धर्मस्य दुष्करम् ॥१८॥ मथुरायां महाचित्तश्चन्द्रभद्र इति प्रभुः । तस्य भार्या घरा नाम त्रयस्तस्याश्च सोदराः ॥१६॥ सूर्याब्धियमुनाशब्दैर्देवान्तैनमभिः स्मृता । श्रीसत्स्विन्द्रप्रभोग्राक मुखान्ताश्चापराः सुताः ॥२०॥ द्वितीया चन्द्रभद्रस्याद्वितीया कनकप्रभा । आगत्य विमानात् स तस्यां जातोऽचलाभिधः ॥२१॥ कलागुणसमृद्धोऽसौ सर्वलोकमनोहरः । बभौ देवकुमाराभः सस्क्रीडाकरणोद्यतः ॥२२॥ अयान्यः कश्चिदकाख्यः कृत्वा धर्मानुमोदनम् । श्रावस्त्या मङ्गिकागर्भे कम्पेनापाभिधोऽभवत् ॥२३॥ कबाटजीविना तेन कम्पेन । विनयान्वितः । अपो निर्धाटितो गेहाद् दुद्राव भयदुःखितः ॥२४॥ अथाचलकुमारोऽसौ नितान्तं दयितः पितुः । धराया भ्रातृभिस्तैश्च मुखान्तैरष्टभिः सुतैः ॥२५॥ ईष्यमाणो रहो हन्तु मात्रा ज्ञात्वा पलायितः । महता कण्टकेनौ ताडित स्तिलके वने ॥२६॥ रानी के साथ जिस समय एक आसनपर बैठा था उसी समय राजा भी कहींसे अकस्मात् आ गया और उसने उसकी वह चेष्टा देख ली ॥१४॥ यद्यपि मायाचारमें प्रवीण रानीने जोरसे रोदन करते हुए कहा कि यह वन्दी जन है तथापि राजाने उसका विश्वास नहीं किया और योद्धाओंने उस भयभीत ब्राह्मणको पकड़ लिया ॥१५॥ तदनन्तर आठों अङ्गोंका निग्रह करनेके लिए वह कुलन्धर विप्र नगरीके बाहर ले जाया गया वहाँ जिसकी इसने कई बार सेवा की थी ऐसे कल्याण नामक साधुने इसे देखा और देखकर कहा कि यदि तू दीक्षा ले ले तो तुझे छुड़ाता हूँ । कुलन्धरने दीक्षा लेना स्वीकृत कर लिया जिससे साधुने राजाके दुष्ट मनुष्योंसे उसे छुड़ाया और छुड़ाते ही वह श्रमण साधु हो गया ॥१६-१७॥ तदनन्तर बहुत बड़ी भावना के साथ अत्यन्त कष्टदायी तप तपकर वह सौधर्मस्वर्गके ऋतुविमानका स्वामी हुआ सो ठीक ही है क्योंकि धर्मके लिए क्या कठिन है ? ॥१८॥ अथानन्तर मथुग में चन्द्रभद्र नामका उदारचित्त राजा था, उसकी स्त्रीका नाम धरा था और घराके तीन भाई थे - सूर्यदेव, सागरदेव और यमुनादेव । इन भाइयोंके सिवाय उसके श्रीमुख, सन्मुख, सुमुख, इन्द्रमुख, प्रभामुख, उप्रमुख अर्कमुख और अपरमुख ये आठ पुत्र थे । ॥१६-२०।। उसी चन्द्रभद्र राजाकी द्वितीय होने पर भी जो अद्वितीय - अनुपम थी ऐसी कनकप्रभा नामकी द्वितीय पत्नी थी सो कुलंधर विप्रका जीव ऋतु-विमानसे च्युत हो उसके अचल नामका पुत्र हुआ ।।२१।। वह अचल कला और गुणोंसे समृद्ध था, सब लोगोंके मनको हरनेवाला था और समीचीन क्रीड़ा करनेमें उद्यत रहता था इसलिए देव कुमारके समान सुशोभित होता था ।।२२।। अथानन्तर कोई अङ्क नामका मनुष्य धर्मको अनुमोदना कर श्रावस्ती नामा नगरीमें कम्प नामक पुरुषकी अङ्गिका नामक स्त्रीसे अप नामका पुत्र हुआ ।।२३।। कम्प कपाट बनानेकी आजीविका करता था अर्थात् जातिका बढ़ई था और उसका पुत्र अत्यन्त अविनयी था इसलिए उसने उसे घर से निकाल दिया था। फलस्वरूप वह भयसे दुखी होता हुआ इधर-उधर भटकता रहा ।।२४।। अथानन्तर पूर्वोक्त अचलकुमार पिताका अत्यन्त प्यारा था इसलिए इसकी सौतेली माता धराके तीन भाई तथा मुखान्त नामको धारण करनेवाले आठों पुत्र एकान्त में मारनेके लिए उसके साथ ईर्ष्या करते रहते थे। अचलकी माता कनकप्रभाको उनकी इस ईर्ष्याका पता चल गया १. भ्रमणो म० । २. दृष्यमाणो म० । गृहीतदारुभारेण तेनापेनाथ वीक्षितम् । अतिकष्टं कणन् खेदादचलो निश्चलः स्थितः ॥ २७॥ दारुभारं परित्यज्य तेन तस्यासिकन्यया । आकृष्टः कण्टको दस्वा' कटकं चेति भाषितः ॥२८॥ यदि नामाचलं किञ्चिालोकविश्रुतम् । स्वया तस्य ततोऽभ्याशं गन्तव्यं संशयोजितम् ॥२६॥ अपो यथोचितं यातो राजपुत्रोऽपि दुःखवान् । कौशाम्बीबाह्यमुद्देशं प्राप्तः सत्त्वसमुन्नतः ॥३०॥ तत्रेन्द्रदत्तनामानं कोशावत्ससमुद्भवम् । ययौ कलकलाशब्दात् सेवमानं खरूलिकाम् ॥३१॥ विजित्य विशिखाचार्य लब्धपूजोऽथ भूभृता प्रवेश्य नगरीमिन्द्रदत्ताख्यां लम्भितः सुताम् ॥ ३२॥ क्रमेण चानुभावेन चारुणा पूर्वकर्मणा । उपाध्याय इति ख्यातो वीरोऽसौ पार्थिवोऽभवत् ॥ ३३॥ अङ्गायान् विषयाजित्वा प्रतापी मथुरां श्रितः । बाह्योद्देशे कृतावासः स्थितः कटकसङ्गतः ॥३४॥ चन्द्रभद्रनृपः पुत्रमारोऽयमिति भाषितैः । सामन्ताः सकलास्तस्य भिनास्येनार्थसङ्गतैः ॥३५॥ एकाकी चन्द्रभद्रश्च विपादं परमं भजन् । श्यालान् सम्प्रेषयडेवशब्दान्तान् सन्धिवान्छया ॥३६॥ दृष्ट्वा ते तं परिज्ञाय विलक्षास्त्रासमागताः । अदृष्टसेवकाः साकं धरायास्तनयैः कृताः ॥ ३७॥ अचलस्य समं मात्रा सञ्जातः परमोत्सवः । राज्यं च प्रणताशेषराजकं गुणपूजितम् ॥३८॥ इसलिए उसने उसे कहीं बाहर भगा दिया। एक दिन अचल तिलक नामक वनमें जा रहा था कि उसके पैर में एक बड़ा भारी काँटा लग गया। काँटा लग जानेके कारण दुःखसे अत्यन्त दुःखदायी शब्द करता हुआ वह उसी तिलक वनमें एक ओर खड़ा हो गया। उसी समय लकड़ियों का भार लिये हुए अप वहाँ से निकला और उसने अचलको देखा ॥२५-२७।। अपने लकड़ियाँका भार छोड़ छुरीसे उसका काँटा निकाला । इसके बदले अचलने उसे अपने हाथका कड़ा देकर कहा कि यदि तू कभी किसी लोक प्रसिद्ध अचलका नाम सुने तो तुझे संशय छोड़कर उसके पास जाना चाहिए ॥२८-२६॥ तदनन्तर अप यथायोग्य स्थान पर चला गया और राजपुत्र अचल भी दुःखी होता हुआ धैर्यसे युक्त हो कौशाम्बी नगरीके बाह्यप्रदेशमें पहुँचा ।।३०।। वहाँ कौशाम्बीके राजा कोशाबत्सका पुत्र इन्द्रदत्त, बाण चलाने के स्थान में बाण विद्याका अभ्यास कर रहा था सो उसका कलकला शब्द सुन अचल उसके पास चला गया ।।३१।। वहाँ इन्द्रदत्तके साथ जो उसका विशिखाचार्य अर्थात् शस्त्र विद्या सिखानेवाला गुरु था उसे अचलने पराजित किया था । तदनन्तर जब राजा कोशावत्सको इसका पता चला तब उसने अचलका बहुत सन्मान किया और सम्मानके साथ नगरी में प्रवेश कराकर उसे अपनी इन्द्रदत्ता नामको कन्या विवाह दी ।।३२।। तदनन्तर वह क्रम-क्रमसे अपने प्रभाव और पूर्वोपार्जित पुण्यकर्म से पहले तो उपाध्याय इस नाम से प्रसिद्ध था और उसके बाद राजा हो गया ।।३३॥ तत्पश्चात् वह प्रतापी अङ्ग आदि देशोंको जीत कर मथुरा आया और उसके बाह्य स्थानमें डेरे देकर सेनाके साथ ठहर गया ।।३४।। यह चन्द्रभद्र राजा 'पुत्रको मारनेवाला है' ऐसे यथार्थ शब्द कहकर उसने उसके समस्त सामन्तोंको अपनी ओर फोड़ लिया ।।३५।। जिससे चन्द्रभद्र अकेला रह गया। अन्तमें परम विपादको प्राप्त होते हुए उसने सन्धिकी इच्छा से अपने सूर्यदेव, अब्धिदेव और यमुनादेव नामक तीन साले भेजे ॥३६॥ सो वे उसे देख तथा पहिचान कर लज्जित हो भयको प्राप्त हुए और धरा रानीके आठों पुत्रों के साथ-साथ सेवकोंसे रहित हो गये अर्थात् भयसे भाग गये ।।३७ ।। अचलको माता के साथ मिलकर बड़ा उल्लास हुआ और जिसमें समस्त राजा नम्रीभूत थे तथा जो गुणोंसे पूजित था ऐसा राज्य उसे प्राप्त हुआ ॥३८॥ १. कण्टकं म० । २. अथो ख० । ३. कोशाम्बात्ससमुद्भवम् म० । कोशावसमयोज्झितम् क० ।
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मुक्तिके उपायोमे भेदविज्ञानकी प्रतिष्ठा - इस ही समस्त उपायको सक्षिप्त शब्दोमे आचार्योंने बताया है भेद विज्ञान । शरीरसे यह मैं चैान्यस्वरूप भिन्न हूँ । वचनोसे भी यह मैं चित्स्वरूप भिन्न हूँ और मानसिक जो सकल्प विकल्प होते है, विचार तरग होते हैं उनसे भी मैं भिन्न हूँ । यो सकस्त अनात्मतत्त्वोसे श्रात्माको पृथक् जानना भेद दिज्ञान है। इसी प्रकार सर्व पर पदार्थोंसे विविक्त निज स्वरूप मात्र आत्मतत्त्वका परिचय होना भेद विज्ञानका फल है । इस तत्त्वको उपाध्यायोसे, आचार्योसे गुरुवोसे वक्तावोसे खून सुना भी तो भी सुनने मासे शान्तिलाभ नहीं हो सकता है किन्तु अपने परिणतिसे उसे उतारे और अपने प्रकाश देख सके तो मुक्तिकी पात्रता होती है । तत्त्वका मूल्याङ्कन - भैया तत्त्वकी वात सुनकर उसका मर्म न उतारा तो इस लोग लोकोक्तिमे कहते है कि इस कानसे सुना और दूसरे कानसे निकाल दिया । एक ऐसा कथानक चला ग्राता है कि किसी स्वर्णकारने पीतलकी धातुकी कोई दो पुतलियाँ बनायी। उन दोनो पुतलियो की सकल सूरत, श्राकार प्रकार बिल्कुल एक सा था । कोई भी अन्तर उन दोनो पुतलियोमे न दीखता था। वह राजदरबारमे उन दोनो पुतलियोको लेकर पहुँचा और बोला - महाराज । मेरे पास ये दो पुललियाँ है, इ मेसे एककी कीमत तो २ रुपया है और एक की कीमत २ लाख रुपया है । लोग सुनकर आय में आ गये । सबने देखा कि दोनो एक-सी पुललियाँ हैं, इतना अन्तर कस आ गया ? बहुत विचार किया, पर परख न सके । तब राजाने कहा - ऐ स्वर्णकार । तुम्ही बताओ कि दोनो पुतलियोकी कीमतमे इतना अन्तर क्यो है ? तब उसने बताया कि इस पुतलीकी कीमत है २ ), क्योकि देखो मैं इसके कानमे यह धागा डालता हूँ तो दूसरे कान से निकल जायगा । और इस पुतलीकी कीमत २ लाख रु० है, इसके कानमें धागा डालता हूँ यह धागा पेटके अन्दर पहुँच जायगा । तो एक पुतली यह शिक्षा देती है कि कुछ मनुष्य हितकी वाते इस कानसे सुनते हैं और दूसरे कानसे निकाल देते हैं उन्हें अपने दिलमें उतारनेका यत्न नहीं करते है वे इस ससारमे भटकते रहते हैं, और दूसरी पुतली यह शिक्षा देती है कि कुछ मनुष्य हितकी बाते सुनते हैं और उन्हें अपने दिलमे उतारनेका यत्न करते हैं, वे शाश्वत आनन्दकी उपलव्वि कर लेते हैं । ऐसे जीवोकी ही हम श्राप पूजा और उपासना करते हैं । जीवपर अज्ञान सकट - इस जीवपर सबसे महान् सकट है तो अज्ञानका, - मिथ्यात्वका । विषय सुख केवल कल्पनामात्र रम्य है। ये विषय सुख जीवके हितरूप नही हैं । अनेक सकटोंसे ये विषय सुख भरे हुए हैं, किन्तु स्वकीय शुद्ध आनन्दका परिचय न होनेसे इस अज्ञानी जीवके विषयोमे, विषयोकी साधनामे हो रुचि बनी रहती है। और, पर पदार्थों में जब तक लगाव रखा तो उनका तो वियोग होगा ही। इस जीवकी कल्पनावोसे कही वियोग रुक न जाएगा अथवा सयोग न हो जायगा तव यह अज्ञानी जीव दुखी होता है । जो अपने स्वानुभवसे अपना आनन्द स्वाधीन होकर लिया करते हैं उनको कही भी विघ्न नही है। जिनका पराश्रित भाव है परकी ओर जिनका लगाव है वे सदा सकिलष्ट रहा करते हैं, यह सब प्रज्ञानका प्रसाद है। इम जीवने हिसकी बात सुनी तक भी नहीं, परिचयमें माना तो उसके बाद की कहानी है और अनुभव में उतर जाना यह तो सर्वोत्कृष्ट विभूति है। व्यामोहके कारण स्वयमे स्वयका प्रदर्शन - यहाँ यह कह रहे हैं, कि ऐसे तत्यको केवल सुनने मार्गसे भी मोदाकी प्राप्ति नहीं होती है। सुने भी शोर मुखसे खूब बोले भी, सयको सुनाये भी चर्चा भी य रे, ऐसी चर्चा करे कि दूसरे तो अपना हित कर जायें पर स्वय उतारे नहीं तो इसे पावि नहीं मिली। सुने तो भी और बंले तो भी उससे कार्य सिद्धि नहीं है जब तक कि इस भिन्न आत्माको मिन्ने रुपये स्वयं न भाने, किसको भाना है, किसयो लक्ष्यमे लेना है? वह है तो स्वय, पर विषय कपायां के परिणामोमे उपयोग जब रगीला हो जाता है तो स्वयको हो सकल स्वयका हो स्वरूप स्वयको नही दीखता है, इसपर हो कितने रग चढ़े हुए हैं । वाह्यविषयक ग्रान्तरिक, रङ्गः- प्रथम तो बाहरमे इस जढ घन सम्पदामे जो ममता बनी हुई है यह रंग चढा हुआ है। हैं सब अत्यन्तं भिन्न पदार्थ । न जन्मते माथ आयें हैं और न मरने पर साथ जायेंगे और जीवन तक भी रहे प्रायें पाम इसका भी कोई चि नहीं है, फिर यह मान रहा है कि मेरा यह कान परिवार मित्र जन सब युद्ध है । इन सबको जो कि प्रत्यन्त भिन्न है, इसके क्षेत्र में भी प्रवाहित नही हैं उन्हें भी मानता है कि ये मेरे हैं । खैर कभी बाह्य पदार्थोंको मिश्र कहनेकी आदत यन जाए तो यह शरीर रूप ही अपनेको मान लेता है, यह हो तो मैं हूँ । शरीरसं भिन्न में कोई शाश्वत तत्व हूँ इस घोर दृष्टि नहीं लगाता है । आन्तरिक रङ्ग कदाचित शरीरसे भी न्यारा कुछ सोचनेकी उमङ्ग भाये तोयहाँ तक उमङ्ग रहती है, यहाँ तक ही उसकी जानकारी रहती है कि यह मैं वह हूँ जो बोलता है सुनता है, विचारता है, प्रेम करता है, कपाय विषये सुख भोगने वाला जो कुछ है सो ही में हूँ यहाँ तक उसकी बुद्धि रम जाती है लेकिन क्या मैं ये विचार वितर्क कपाय हूँ, में मिट जाने वाला नहीं है, जिस तत्त्वकेः प्राधारपर ये 'राग रङ्गों का स्रं तभूत जो कुछ एक मूल पदार्थ है वह मैं हूँ। मैं रागादिक रूप नही हूँ ऐसा ध्यान करना चाहिए। ऐसा भी ध्यान किया और कुछ स्वभाव विकासकी ओर भी दृष्टि दी तो यह भटक हो जाती है कि एक शुद्ध जानन देखन है, ज्ञानप्रकाश है वह शुद्ध ज्ञान प्रकाश में हूँ। यद्यपि यह स्वभावके अनुरूप विकास लेकिन शुद्ध जाननहार तो में प्रारम्भसे न रहा आया । जो कभी हुआ पहिले न था वह मैं नहीं है। वह मेरा शुद्ध विकास है, उस भुद्ध विकासके अन्तरमे भी जो स्रोतरूप शाश्वत स्वभाव है वंह मैं हूँ । प्रवर्तमान स्थिति - भैया ! परम विविक्त इस अतस्तत्वकी भावना जब तक न भायी जाय यह जीव मुक्तिका पात्र नही होता 1, समझ लीजिए कि हमें शान्ति लाभ लेनेकेलिए कहाँ उपयोग ले जाना उसके विरुद्ध हम कितना बाहर बाहरमे फँसे हुए हैं और तिसपर भी सबसे बडी विडम्बना यह है कि हम बाहरी पदार्थोंमे उपयोग लगाये चतुराई समझते हैं, गल्ती-गल्ती रूप से समझमे आये तो भला है, पर गल्ती करके उसहोमे अपनी चतुराई मान देते हैं । तो जो गल्तीको चतुराई माने उसकी गल्ती कभी टूट नहीं सकती है । प्रसगसे हटकर नि समे आना- भैया, क्या किया जाय, जगतमे ऐसा ही सग है, ऐसा ही प्रसग है, यह मोही जीवोसे भरा हुआ है, यहाँ जिन्हे देखते हैं वही विषय कपायोमे फ्से हुऐ है । उनकी वृत्तिको देखकर मे भी यह भावना जगती है, वासना बनती है कि मैं बनू वडा, बाह्य पदार्थोंका करे सचय, लेकिन लोकमे अपना यश लूटें, कीर्ति उत्पन्न करें। लेकिन कीर्ति उत्पन्न करनेसे उत्पन्न नहीं होती है बनावट करनेसे कीर्ति नही हुआ करती है और हो भी जाय किसी भी प्रकार तो इस कीर्तिके कारण कीर्तिवानको कुछ लाभ नही होता है । लाभ नही होता है । लाभके मायने शान्ति । इस मनुष्यको, इस जीवको अपने सत् आचारके कारण सत् श्रद्धा और ज्ञान के कारण शाति हो सकती है, वाह्यके सचयपर, वाह्यके उपयोगपर शांतिकी निर्भरता नही है । जैसे जैसे इसको प्राप्ति विषय भी अहितकर लगने लगते हैं, अरुचिकर हो जाते है और वैसे ही वैसे इसके अतस्तत्त्वमे दृढता होती जाती है और जैसे ही जैसे इसके शुद्ध ज्ञानप्रकाशमे दृढता होती जाती है तो ये सुगमप्राप्त विषय भो अरुचिकर होते जाते है । - आत्माकी वृहणशीलता - प्रत्येक पुरुपकी यह चाह रहती है कि मैं ऐसा व्यापार करू ऐसा काम करू जो मजबूत हो और सदा निभता रहे। थोडा लाभ हो, अध्र व लाभ हो इसके बाद फिर उससे भी गये वीते जाये ऐसी बात को कोई पंसद नही करता है । प्रकृति है वढते रहने व वढे हुए रहनेकी इसकी । इसका नाम ब्रह्म है जो अपने गुरणोसे बढनेका स्वभाव रखता हो उसे ब्रह्म कहते हैं। तब निर्णय करो कि ऐसा कौनसा काम है जिस कार्य से हमे ऐसी अटूट, अमिट शांति मिले कि जिसकी सीमा भी नही और कभी अत भी नही । पराधीन सुख इस शातिको उत्पन्न नहीं कर सकता है। वह तो पराधीन है, माना हुआ है। यह मान्यता ही स्वय अस्थिर है और जिसका पाकर यह सुख होता है वह भी अस्थिर है और ये भोगने वाले परिणमन भी स्थिर हैं। हम इस दुनियासे निवृत्त होकर एक अलौकिक एकत्वस्वरूप अपने आपमे पहुचे, यह मैं अकेला अपने आपसे ही बात चीत करके सतुष्ट रह सकू, ऐसी स्थिति बन सके तो शातिकी पात्रता है । ! एकान्तमे अज्ञानीकी ऊब और ज्ञानीकी तृप्ति- अज्ञान मे तो लोग अकेले रहनेमे भी घवडाहट मानते है, चित्त नही लगता है, अकेले है, किससे बात करे, विना बात चैन नहीं मिलती है। कोई न भी हो तो भी अपने पास पडोस को अपने आपके नजदीकके वनानेका यत्न करते हैं, दिल तो लगा रहे, समय तो कटे पर ऐसा समय कटनेमे कोई सुविधाका मौलिक अन्तर नही आता है क्योकि वे सब पराधीन वातें है । जिसके ज्ञानानन्दस्वरूप निज अतस्तत्त्वका निर्णय है और उसमे ही सतोप माना है
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वाइपर जहरीले सांप हैं, का प्रतिनिधित्व करते हैंएक स्वतंत्र परिवार वे अंटार्कटिका, मेडागास्कर, हवाई, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर लगभग पूरी पृथ्वी में निवास करते हैं। इसलिए, पाठकों को यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि एक वाइपर एक व्यक्ति को कैसे और कहाँ काट सकता है। जहरीली उभयचरों और प्राथमिक चिकित्सा के नियमों के संपर्क पर भी चर्चा की जाएगी, क्योंकि ऐसी जानकारी प्रकृति में जाने वालों के लिए अच्छी मदद हो सकती है। स्थापित राय के विपरीत, वाइपर आक्रामक नहीं होते हैं और किसी व्यक्ति पर हमला करने का सपना नहीं देखते हैं। इसके विपरीत, जब उसे मिलते हैं, तो सांप को जितना संभव हो उतना दूर क्रॉल करना होगा। लेकिन इन सरीसृपों की आदत में छिपाने के लिएशिकार के लिए प्रतीक्षा करने वाले, हॉलोज़, घास या मुकाबले के तहत, अकसर यह इस तथ्य की ओर जाता है कि लापरवाह लोग जो जंगल में खुद को खोजते हैं, एक साँप को परेशान या डरा देते हैं, इसे खुद को बचाने के लिए मजबूर करते हैं इसलिए दम पर लोगों की संख्या बढ़ती है, और, संयोगवश, आंकड़ों के मुताबिक, 70% मामलों में अपराधी खुद शिकार होता है। किसी व्यक्ति के लिए सांप की काट के परिणाम हो सकते हैंअलग है, जबकि घातक परिणाम काफी कम दर्ज हैं। विषाक्तता में अक्सर एक आसान रूप होता है - रोग खुद को काटने की जगह पर एक छोटे से दर्दनाक सूजन के रूप में प्रकट होता है, जो कुछ समय बाद ही अपने आप से गुजरता है लेकिन, दुर्भाग्य से, समय-समय पर विषाक्तता के कारण गंभीर समस्याएं हैं। यह सब उस पर निर्भर करता है, जहां, किसका, और जब सांप काट लिया गया था। हम इसे और अधिक विस्तार से बताएंगे। एक सांप क्या दिखता है? सांप आम तौर पर जंगलों में रहता है। , 75 सेमी तक होती है एक नीले-भूरे रंग या काले रंग है। पीठ पर विपरीत वक्र पट्टी के साथ, भूरे-भूरे रंग की एक प्रकाश - और के अपने निकटतम रिश्तेदार, फ्लैट क्षेत्रों में रहने वाले, झाड़ियों या मिट्टी gullies के साथ ऊंचा हो गया शुष्क ढलानों पर - मैदान योजक। इस परिवार का एक अन्य प्रतिनिधि, वैसे, लाल किताब - एडर Nikolsky - बिल्कुल काला। यह वन-मैदान सांप के अंतर्गत आता है। जैसा कि आप देख सकते हैं, प्रत्येक प्राकृतिक क्षेत्र का अपना हैजहरीला निवासी। और, वैसे, वे सभी विशेष बड़प्पन में भिन्न नहीं होते हैं और यात्री को अपनी उपस्थिति के बारे में चेतावनी नहीं देते हैं, इसके विपरीत, उदाहरण के लिए, सुंदर और बहुत खतरनाक अफ्रीकी शोर वाइपर से। एक काटने, जिसके परिणाम की भविष्यवाणी करना मुश्किल नहीं है, इसे केवल जोर से हिसिंग और शरीर की दुर्जेय सूजन के बाद से प्राप्त किया जा सकता है। और हमारे "हमवतन", भयभीत हैं और फैसला किया है कि खतरे के पास है, अनावश्यक आवाज़ों के बिना, तुरंत हमला कर रहे हैं। वसंत या शरद ऋतु की शुरुआत में प्रकृति पर जाएं, याद रखें कि वर्ष के इस समय में, वाइपर अपने सर्दियों के स्थान के करीब रहते हैं। आमतौर पर, यह हैः - Glade, - बिजली लाइनों, - वन किनारों, - निर्माण अपशिष्ट के साथ उद्यान भूखंड, - भूमि सर्वेक्षण डंप। गर्मियों में, सांप कहीं भी हो सकते हैं, हालांकि दिन के दौरान।उन सभी को सबसे ज्यादा पसंद है, जहां आप सूरज में डुबकी लगा सकते हैं (वाइपर बहुत थर्मोफिलिक हैं): पत्थरों की सतह, एक खड्ड की दक्षिणी ढलान या सूरज की धार। वैसे, इसी कारण से वे रात में आपके अलाव तक को रेंग सकते हैं। और ताकि बाद में इस पर विचार नहीं करना पड़ेवाइपर के काटने के प्रभाव, पर्यटक को तुरंत सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिएः सड़क पर घने तलवों के साथ उच्च जूते पहनें, उनमें जींस की पतलून डालें (इन पतलून का कपड़ा काफी घना है, इसलिए केवल इस वर्दी पर यात्रा पर जाना उचित है) अपने हाथों से, पत्तियों और सूखी शाखाओं के ढेर को धक्का देना, मिंक, खोखले, या रास्ते से पत्थर फेंकना। रात में, अपने पैरों के नीचे एक टॉर्च चमकना सुनिश्चित करें। और सुबह रुकने पर जागते हुए, तम्बू के बाहर बने सभी बैग और जूतों को ध्यान से देखें। एक वाइपर के काटने का प्रभाव इसके विष की संरचना पर निर्भर करता है। खतरनाक जहर वाइपर क्या है? तथ्य यह है कि अधिकांश भाग के लिए यह हीमो-और साइटोटोक्सिक है। यही है, इसकी कार्रवाई के परिणामस्वरूप, रक्त कोशिकाओं या ऊतकों में एक गहरा संरचनात्मक और कार्यात्मक परिवर्तन होता है, जो उनकी मृत्यु का कारण बनता है। ऐसा प्रभाव जहर में निहित तथाकथित नेक्रोटाइजिंग एंजाइमों की भारी मात्रा के कारण होता है। लेकिन वाइपर विष में कोई न्यूरोटॉक्सिन नहीं हैं,जिसके कारण तंत्रिका तंत्र पर इसका प्रभाव नहीं देखा जाता है। हाँ, और अपने समकक्षों - एपीएस या रक्त लोमड़ियों की तुलना में बहुत कम मात्रा में एक वाइपर के जहर का उत्पादन करता है। हालांकि, ऐसे व्यक्ति के लिए जो सांप के काटने का सामना कर चुका है, इसके परिणाम अभी भी काफी दुखद हो सकते हैं, खासकर अगर उसे पहले से ही कार्डियोवास्कुलर सिस्टम की समस्या थी या गलत तरीके से प्राथमिक चिकित्सा दी गई थी। इस तथ्य के बावजूद कि वीआईपी काटने निश्चित हैंबहुत बार, मौत हमेशा होने वाली घटना से दूर होती है - संभावना 1% से कम है (अन्य चीजों के अलावा, जो मधुमक्खियों, ततैया या सींगों द्वारा डंक मारते थे, कई और मर गए)। फिर भी, इसमें थोड़ा सुखद है। लेकिन काटने के परिणाम क्या होंगे यह कुछ कारकों पर निर्भर करता हैः - सांप का आकार। यह स्थापित किया जाता है कि सांप जितना बड़ा होता है, उसके पास उतनी ही जहरीली ग्रंथियां होती हैं, और स्वाभाविक रूप से, जहर बड़े मात्रा में जारी होता है। - पीड़ित का वजन और ऊंचाई। सांप द्वारा काटे गए जीव जितना बड़ा होगा, उतना कम जहर होगा। तो, एक कुत्ते या बच्चे पर एक वाइपर के काटने का प्रभाव एक वयस्क की तुलना में बहुत अधिक गंभीर होगा। रहस्य इस तथ्य में निहित है कि सांप का जहर तेजी से और पूरी तरह से पीड़ित के शरीर में एक छोटी मात्रा और द्रव्यमान के साथ अवशोषित होता है। - जगह काटो। ऐसा माना जाता है कि किसी व्यक्ति के पैर या किसी जानवर के पंजे की तुलना में गर्दन, कंधे और छाती में काटने से ज्यादा खतरनाक है। - पीड़ित का स्वास्थ्य। हृदय रोग की उपस्थिति में, सदमे के विकास का खतरा होता है, जिससे घबराहट और तालमेल से ट्रिगर किया जा सकता है, जल्दी से शरीर के माध्यम से जहर फैल सकता है। काटने की गंभीरता में निर्णायक भूमिकाअडर साधारण ने जो जहर आवंटित किया है उसकी मात्रा निभाता है। और यह सीधे उभयचर की शिकार की आदतों पर निर्भर करता है। वाइपर केवल जीवित रहते हैं, मध्यम आकार के शिकारः चूहे, छिपकली, और कभी-कभी मोल्स। वह तेजी से, एक घात से करता है, जिसके बाद वह जहर की कार्रवाई का इंतजार करता है। वैसे, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि साँप सावधानी से इसका उपयोग करता है, जब भी संभव हो, कुछ को आरक्षित रखने की कोशिश करता है, इसलिए कुछ मामलों में इसका काटने मनुष्यों के लिए पूरी तरह से हानिरहित हो जाता है (चिकित्सा में इसे "सूखा" कहा जाता है)। लेकिन, चूंकि घाव में प्रवेश करने वाले जहर की मात्रा निर्धारित करना मुश्किल है, इसलिए किसी भी मामले में घायल को तत्काल सहायता दी जानी चाहिए। एक वाइपर काटने की तरह क्या दिखता है? यह जानना महत्वपूर्ण है कि सबसे जहरीला विष विष हैयह वसंत में होता है, जिसका अर्थ है कि वर्ष के इस समय में एक व्यक्ति को पैदल यात्रा करते समय विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। इसके अलावा, वाइपर काटने के ज्ञान और मुख्य परिणामों के साथ हस्तक्षेप नहीं करता है। - काटने की साइट बहुत दर्द करती है। - प्रभावित अंग जल्दी सूज जाता है और काले धब्बों के साथ बैंगनी-नीला हो जाता है। - ठंड लगना, मतली, चक्कर आना हो सकता है। - कुछ मामलों में, तापमान में वृद्धि होती है। - ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। - असामयिक देखभाल के मामले में, काटने के क्षेत्र में ऊतक परिगलन विकसित होता है। गंभीर मामलों में, एक वाइपर के काटने के प्रभाव हो सकते हैंरोगी की उत्तेजना की एक छोटी अवधि को व्यक्त करें, जो जल्दी से उनींदापन और उदासीनता से बदल दिया जाता है। पीड़ित को मुंह में सूखे और कड़वे स्वाद की शिकायत होती है, नाड़ी काफ़ी तेज़ होती है, कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना। विशेष रूप से गंभीर मामलों में, पतन विकसित हो सकता है। गुर्दे और यकृत के कार्य परेशान होते हैं, और फेफड़ों में ठहराव के कारण होने वाली नम किरणें सुनाई देती हैं। थोड़ा याद करते हैं और याद करते हैंकैसे व्यवहार करें, अगर टहलने के बाद, आप अचानक रक्तवाहक के शरीर पर पाए जाते हैं - एक टिक। क्यों? और फिर, कि किसी तरह से घायल कीट और वाइपर के शिकार की क्रियाएं समान होनी चाहिए। आश्चर्य? व्यर्थ में। तो, टिक काटने के बाद (मनुष्यों में) क्या परिणाम हो सकते हैं, हम चर्चा नहीं करेंगे - यह एक अन्य लेख का विषय है। स्मरण करो कि पहले क्या करना है। यह सही है, आपको जल्द से जल्द और सही तरीके से परजीवी का पता लगाने की आवश्यकता है (इसे हटा दें)। ऐसा ही तब किया जाना चाहिए जब एक सांप काटता है - समय और सक्षम रूप से सहायता प्राप्त करना बहुत महत्वपूर्ण है। पीड़ित को लेटाओ ताकि सिर शरीर के स्तर से नीचे हो - इससे मस्तिष्क परिसंचरण के उल्लंघन की संभावना कम हो जाएगी। अंग से सभी गहने निकालें (यह बहुत ऊपर सूज सकता है)। पक्षों से काटने को काटें, इस प्रकार घाव को खोलना, और अपने मुंह से 15 मिनट के लिए जहर में चूसना, इसे बाहर थूकना (सहायक व्यक्ति के लिए यह खतरनाक नहीं है)। शराब या आयोडीन के साथ घाव कीटाणुरहित करें। एक पट्टी या पट्टी के साथ प्रभावित अंग को स्थिर करें। रोगी को पर्याप्त मात्रा में पेय (लेकिन कॉफी नहीं) दें। उसे जल्द से जल्द सुविधा में ले जाएं। हर समय एक वाइपर के काटने के बाद परिणामउन्होंने लोगों को इतना डरा दिया कि मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए वे कई पूरी तरह से बेकार प्रक्रियाओं के साथ आए जो न केवल रोगी की स्थिति को कम करने में असमर्थ हैं, बल्कि नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। इसलिए, याद रखें कि आपको सांप के काटने से नहीं करना चाहिए। - किसी भी तरह से एक हार्नेस लागू न करें! यह बेकार है, और इसके अलावा, जहर पहले से ही शरीर के ऊतकों पर विनाशकारी रूप से कार्य करता है, और अगर हम इस प्लाइट को जोड़ते हैं जो रक्त परिसंचरण में हस्तक्षेप करता है, तो कुछ ही मिनटों में उनकी मृत्यु हो सकती है। और हार्नेस को हटाने के बाद इस के परिणामस्वरूप गठित अपघटन उत्पादों, मौजूदा विषाक्तता को बढ़ा देगा। - काटने की जगह को सावधानी न करें! आप मौजूदा घाव में एक जलन जोड़ देंगे, और यह बिल्कुल अर्थहीन है। - घाव न काटें - यह बेकार है, लेकिन संक्रमण से नींद नहीं आती है। - रोगी को शराब न दें - यह पूरे शरीर में जहर को तेजी से फैलाने में मदद करेगा। - पृथ्वी के साथ घाव को छिड़कें नहीं, इसके लिए वेब या घास न लगाएं - टेटनस को छोड़कर, आपको ऐसी प्रक्रियाओं से कुछ भी नहीं मिलेगा।
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उनका ग्रहरण किया गया हो। यों व्यवहार में प्रथम प्रतिमा से ही निशि-भोजन त्याग पर जोर दिया जाता है, जिसका प्रतिमानुसार विधान छठवें दर्जे पर भाता है। तात्पर्य यह है कि वह त्याग गुरुजनों के सम्मुख प्रतिज्ञा लेकर उसी प्रतिमा में किया जाता है, और फिर उस व्रत का उल्लंघन करता बड़ा दूषरण समझा जाता है । यह व्यवस्था एक उदाहरण द्वारा समझाई जा सकती है। प्रथम वर्ग में पढ़नेवाले विद्यार्थी की एक पाठ्य पुस्तक नियत है, जिसका यथोचित ज्ञान हुए बिना वह दूसरी कक्षा में जाने योग्य नही माना जाता । किन्तु उस वर्ग में होते हुए भी द्वितीयादि वर्गों की पुस्तको का पढना उसकेलिये वर्ज्य नहीं, अपितु एक प्रकार से वांछनीय ही है । तथापि वह प्रयम वर्ग मे उसके पूर्ण ज्ञान व परीक्षा का विषय नही माना जाता । इसीप्रकार व्रतो की साधना यथाशक्ति पहली या दूसरी प्रतिमा से ही प्रारम्भ हो जाती है, किन्तु उनका विधिवत् पूर्ण परिपालन उत्तरोत्तर ऊपर को प्रतिमाश्रो मे होता है । यह व्यवस्था जैन अनेकान्त दृष्टि के अनुकूल है। मुनिधर्म - उपर्युक्त श्रावक की सर्वोत्कृष्ट ग्यारहवी प्रतिमा के पश्चात् मुनिधर्म का प्रारम्भ होता है, जिसमे आदितः परिग्रह का पूर्णरूप से परित्याग कर नग्न-वृत्ति धारण की जाती है, और अहिंसादि पाच व्रत महाव्रतों से रूप मे पालन करने की प्रतिज्ञा ली जाती है । मुनि को अपने चलने फिरने में विशेष सावधानी रखना पड़ती है। अपने आगे पाच-हाथ पृथ्वी देख-देख कर चलना पडता है, और अन्धकार मे गमन नही किया जाता, इसी का नाम ईर्या समिति है । निन्दा व चापलूसी, इसी, कटु श्रादि दूषित भाषा का परित्याग कर मुनि को सदैव संयत, नपीतुली, सत्य, प्रिय और कल्याणकारी वारगी का ही प्रयोग करना चाहिये । यह मुनि को भाषा समिति है । भिक्षा द्वारा केवल शुद्ध निराभिष श्राहार का निर्लोभ भाव से ग्रहरण करना मुनि की एषणा समिति है । जो कुछ थोडी बहुत वस्तुएं निग्रथ मुनि अपने पास रख सकता है, वे ज्ञान व चरित्र के परिपालन- निमित्त ही हुआ करती है; जैसे ज्ञानार्जन के लिये शास्त्र, जीव रक्षा निमित्त पिच्छिका एवं शोच-निमित्त कमडल । ये क्रमश. ज्ञानोपधि, संयमोपधि और शौचोपधि कहलाती हैं। इनके रखने व ग्रहरण करने मे भी जीवरक्षा निमित्त सावधानी रखनी आदाननिक्षेप समिति है। मल-मूत्रादि का त्याग किसी दूर, एकान्त, सूखे व जीव जन्तु रहित ऐसे स्थान पर करना जिससे किसी को कोई प्रापत्ति न हो, यह मुनि की प्रतिस्थापन समिति है । चक्षु आदि पाचो इन्द्रियों का नियंत्रण करना, उन्हे अपने-अपने विषयों की घोर लोलुपता से प्राकर्षित न होने देना, ये मुनियों के पांच इन्द्रिय-निग्रह हैं। जीव मात्र में, मित्र-शत्रु मे, दुःख-सुख मे, लाभ-अलाभ मे, रोष-सोष भाव का परित्याग कर समताभाव रखना, तीर्थकरो की गुरगानुकीर्तन रूप स्तुति करना, मर्हन्त व सिद्ध की प्रतिमाभों व प्राचार्यादि की मन-वचन-काय से प्रदक्षिणा प्ररणाम आदि रूप वन्दना करना; नियमितरूप से आत्मशोधन - निमित्त अपने अपराधो की निन्दा गर्दा रूप प्रतिकमरण करना; समस्त योग्य आचरण का परिवर्जन, अर्थात् अनुचित नाम नही लेना, अनुचित स्थापना नहीं करना, एवं अनुचित द्रध्य, क्षेत्र, काल, भाव का परित्याग रूप प्रत्याख्यान तथा अपने शरीर से भी ममत्व छोडने रूप विसर्गभाव रखना, ये छह मुनियों की आवश्यक क्रियाएं हैं। समय-समय पर अपने हाथो मे केशलौच, अचेलकवृत्ति, स्नानत्याग, दन्तधावन त्याग, क्षितिशयन, स्थितिभोजन अर्थात् खडे रह कर आहार करना, और मध्यान्ह काल में केवल एक बार भोजन करना, ये मुनि की अन्य मात विशेष साधनाए है । इसप्रकार मुनियो के कुल अट्ठाइस मूलगुण नियत किये गये है । २२ परीषहउपर्युक्त नियमो से यह स्पष्ट है कि साधु की मुख्य साधना है समत्व, जिसे भगवद्गीता मे भी योग का मुख्य लक्षरग कहा है ( समत्वं योग उच्यते ) । इस समताभाव को भग्न करने वाली अनेक परिस्थितियों का मुनि को सामना करना पडता है, और वे ही स्थितिया मुनि के समत्व की परीक्षा के विशेष स्थल है। ऐसी परिस्थितिया तो प्रगरिणत हो सकती है किन्तु उनमे से वाईस का विशेषरूप से उल्लेख किया गया है, और सन्मार्ग से च्युत न होने के लिये तत्सम्बन्धी क्लेशो पर विजय प्राप्त करने का प्रादेश दिया गया है। साधु अपने पास न खाने-पीने का सामान रखता, और न स्वयं पकाकर खा सकता । उसे इसके लिये भिक्षा वृत्ति पर अवलवित रहना पडता है, सो भी दिन में केवल एक बार । उसे समय-समय पर एक व अनेक दिनों के लिये उपवास भी करना पडता है । अतएव बीच-बीच मे उसे भूख-प्यास सतावेगे ही । इसी लिये क्षुषा ( १ ) और तृषा ( २ ) परीषह उसे प्रादि मे ही जीतना चाहिये । वस्त्रों के अभाव मे उसे शीत, उष्ण (३-४), डांस-मच्छर ( ५ ) व नग्नता ( ६ ) के क्लेश होना अनिवार्य है, जिन्हे भी उसे शान्तिपूर्वक सहन करना चाहिये । एकान्त मे रहने, उक्त भूख-प्याम ग्रादि की बाधाए सहने तथा इन्द्रिय विषयों के प्रभाव से उसे मुनि अवस्था से कभी अरुचि भी उत्पन्न हो सकती है। इस भरति परीषह को भी उसे जीतना चाहिये (७) । मुनि को जब-तब और विशेषतः भिक्षा के समय नगर व ग्राम में परिभ्रमरण करते हुए व गृहस्थों के घरो मे सुन्दर व युवती स्त्रियो का एवं उनके हाव-भाव-विलासो का दर्शन होना अनिवार्य है। इससे उसके मन मे चचलता उत्पन्न हो सकती है, जिसे जीतना स्त्री - परीषह- जय कहलाता है ( 5 ) । मुनि को वर्षाऋतु के चार माह छोड़कर शेष काल में एक स्थान पर अधिक न रह कर देश - परिभ्रमरण करते रहना चाहिये । इस निरंतर यात्रा से उसे मार्ग की अनेक कठिनाइया सहनी पडती है, यही मुनि का चर्या परीषह है ( 8 ) । ठहरने के लिये मुनि को श्मशान, वन, ऊजड घर, पर्वत - गुफाओ आदि का विधान किया गया है, जहा उन्हे नाना प्रकार की, यहां तक कि सिह-व्याघ्रादि हिंस्र पशुओ द्वारा आक्रमण की बाधाए सहनी पडती हैं; यही माधु का निषद्या परीषह-विजय है ( १० ) । मुनि को किचित् काल शयन के लिये खर विषम, शिलातल आदि ही मिलेगे, इसका क्लेश सहन करना शय्या परीषह-जय है ( ११ ) । विरोधी जन मुनि को बहुधा गाली-गलौच भी कर बैठते है, इसे महन करना प्राक्रोश परीषह-जय है ( १ २ ) । यदि कोई इससे भी आगे बढकर मार-पीट कर बैठे, तो उसे भी सहन करना वध-परीषह-जय है (१३) मुनि को अपने आहार, वसति, श्रौषध प्रादि के लिये गृहस्थो से याचना ही करनी पड़ती है (१४) । किन्तु इस कार्य मे अपने मे दोनता भाव न आने देने को याचना परीषह-जय, तथा याचित वस्तु का लाभ न होने पर रुष्ट न होकर अलाभ से उसे अपनी तपस्या की वृद्धि में लाभ ही हुआ ऐसा समझकर सन्तोष भाव रखने को अलाभ-विजय कहते है ( १५ ) । यदि शरीर किसी रोग, व्याधि व पीडा के वशीभूत हो जाय तो उसे शान्तिपूर्वक सहने का नाम रोग-विजय है (१६) चर्या, शैया व निषद्यादि के समय जो कुछ तृरण, काटा ककड आदि चुभने की पीडा हो, उसे सहना तृरणस्पर्श-विजय है ( १७ ) । साधु को अपने शरीर से मोह छोड़ने के लिये जो स्नान न करने, दन्तादि अग-प्रत्यगों को साफ न करने तथा शरीर का अन्य किसी प्रकार भी संस्कार न करने के कारण उत्पन्न होनेवाली मलिनता से घृरणा व खेद का भाव उत्पन्न न होने देने को मल परीषह-विजय कहते है ( १८ ) । सामान्यतया व्यक्ति को विशेष सत्कार पुरस्कार मिलने से हर्ष, भौर न मिलने से रोष व खेद का भाव उत्पन्न होता है। किन्तु मुनि को उक्त दोनों अवस्थाओं में रोष-तोष की भावना से विचलित नहीं होना चाहिये । यह उसका सत्कार पुरस्कार विजय है ( १९) । विशेष ज्ञान का मद होना भी बहुत सामान्य है । साधु इस मद से मुक्त रहे, यह उसका प्रज्ञा - विजय ( २० ) । एवं ज्ञान न होने पर उद्विग्न न हो, यह उसका प्रज्ञान-विजय है (२१) । दीर्घ काल तक तप करते रहने पर भी प्रवधि या मन पर्ययज्ञानादि की प्राप्ति रूप ऋद्धि-सिद्धि उपलब्ध न होने पर मुनि का श्रद्धान विचलित हो सकता है कि ये सब सिद्धियां प्राप्य हैं या नहीं, केबलशानी ऋषि, मुनि, तीर्थकरादि हुए हैं या नहीं, यह सब तपस्या निरर्थक ही है, ऐसी अश्रद्धा उत्पन्न न होने देना प्रदर्शन - विजय है ( २२ ) । ये बाईस परीषह-जय मुनियो की विशेष साधनाए हैं, जिनके द्वारा वह अपने को पूर्ण इन्द्रिय-विजयी व योगी बना लेता है। १० धर्मउपर्युक्त बाईस परीषहो मे मन को उभाड कर विचलित करके, रागद्वेष रूप दुर्भावो से दूषित करनेवाली जो मानसिक अवस्थाए है उनके उपशमन के लिये दशधर्मों और बारह अनुप्रेक्षा(भावनाओ) का विधान किया गया है। धर्मों के द्वारा मन को कषायो को जीतने के लिये उनके विरोधी गुणों का अभ्यास कराया जाता है, तथा अनुप्रेक्षाओं से तत्व - चिन्तन के द्वारा सासारिक वृत्तियों से अनासक्ति उत्पन्न कर वैराग्य की साधना में विशेष प्रवृत्ति कराई जाती है। दश धर्म है - उत्तम क्षमा, मार्दव, प्रार्जव, शोच, सत्य, सयम, तप, त्याग, श्राचिन्य और ब्रह्मचर्य । क्रोधोत्पादक गाली-गलौच, मारपीट, अपमान आदि परिस्थितियों में भी मन को कलुषित न होने देना क्षमा धर्म है । ( १ ) कुल, जाति, रूप, ज्ञान, तप, वैभव, प्रभुत्व एव शील आदि सबधी अभिमान करना मद कहलाता है। इस मान कपाय को जीतकर मन मे सदैव मृदुता भाव रखना मार्दव धर्म है । ( २ ) मन मे एक बात सोचना, वचन से कुछ और कहना तथा शरीर से करना कुछ और, यह कुटिलता या मायाचारी कहलाती है । इस माया कषाय को जीतकर मन-वचन-काय की क्रिया मे एकरूपता ( ऋजुता ) रखना प्रार्जव धर्म है । (३) मन को मलिन बनाने वाली जितनी दुर्भावनाए हैं उनमे लोभ सबसे प्रबल अनिष्टकारी है। इस लोभ कपाय को जीतकर मन को पवित्र बनाना शौच धर्म है । (४) असत्य वचन की प्रवृत्ति को रोककर सदैव यथार्थ हित-मित प्रिय वचन बोलना सत्य धर्म है । ( ५ ) इन्द्रियों के विषयों की ओर से मन की प्रवृत्ति को रोककर उसे सत्यप्रवृत्तियों में लगाना संयम धर्म है । (६) विषयो व कषायो का निग्रह करके आगे कहे जानेवाले बारह प्रकार के तप मे चित्त को लगाना तप धर्म है । ( ७ ) बिना किसी प्रत्युपकार व स्वार्थ भावना के दूसरों के हित व कल्याण के लिये विद्या ग्रादि का दान देना त्याग धर्म है । ( ८ ) घर-द्वार, धन-दौलत, बन्धु-बान्धव, शत्रु-मित्र सबसे ममत्व छोड़ना, ये मेरे नहीं हैं, यहां तक कि शरीर भी सदा मेरे साथ रहनेवाला नहीं है, ऐसा अनासक्ति भाव उत्पन्न करना अकिंचन धर्म है, (६) तथा रागोत्पादक परिस्थितियों में भी मन को काम वेदना से विचलित न होने देना व उसे आत्म चिन्तन मे लगाये रहना ब्रह्मचर्य धर्म है ( १० ) । इन दश धर्मों के भीतर सामान्यतः चार कषायो तथा अणुव्रत व महाव्रतों द्वारा निर्धारित पाच पापी के अभाव का समावेश प्रतीत होता है। किन्तु धर्मों की व्यवस्था की विशेषता यह है कि उनमे कषायों और पापो के प्रभाव मात्र पर नहीं, किन्तु उनके उपशामक विधानात्मक क्षमादि गुरगो पर जोर दिया गया है । चार कषायो के उपशामक प्रथम चार धर्म हैं, तथा हिंसा, असत्य, चौर्य, श्रब्रह्म व परिग्रह के उपशामक क्रमशः संयम, सत्य, त्याग, ब्रह्मचर्य और अकिंचन धर्म है। इन नौ के अतिरिक्त तप का विधान मुनिचर्या को विशेष रूप से गृहस्थ धर्म से आगे बढाने वाला है । १२ अनुप्रेक्षाएअनासक्ति योग के अभ्यास के लिये जो बारह अनुप्रेक्षाएं या भावनाएं बतलाई गई है, वे इस प्रकार है- आराधक यह चिन्तन करे कि संसार का स्वभाव बडा क्षरणभंगुर है, यहा मेरा-तेरा कहा जानेवाला जो कुछ है, सब अनित्य है, अतएव उसमें प्रासक्ति निष्फल है, यह अनित्य भावना है ( १ ) । जन्म-जरा - मृत्यु रूप भयो से कोई किसी की रक्षा नहीं कर सकता ; इन भयो से छूटने का उपाय आत्मा मे ही है, अन्यत्र नहीं; यह प्रशरण भावना है ( २ ) । संसार मे जीव जिस प्रकार चारों गतियों में घूमता है, और मोहवश दुख पाता रहता है; इसका विचार करना संसार भावना है ( ३ ) । जीव तो अकेला ही जन्मता व बाल्य, यौवन व वृद्धत्व का अनुभव करता हुआ अकेला ही मृत्यु को प्राप्त होता है; यह विचार एकत्व भावना है ( ४ ), देहादि समस्त इन्द्रिय-ग्राह्य पदार्थ आत्मा से भिन्न हैं, इनसे आत्मा का कोई सच्चा नाता नही है, यह अन्यत्व भावना है ( ५ ) । यह शरीर रुधिर, मास व अस्थि का पिड है; भौर मल-मूत्रादि प्रशुचि पदार्थों से भरा हुआ है, इनसे अनुराग करना व उसे सजाना-बजाना निष्फल है, यह मशुचित्व भावना है ( ६ ) । क्रोधादि कषायों से तथा मन-वचन-काय की प्रवृत्तियों से किस प्रकार कर्मों का आस्रव होता है, इसका विचार करना आाखव भावना है (७) । व्रतों तथा समिति, गुप्ति, धर्म, परीषहजय व प्रस्तुत धनुप्रेक्षाओं द्वारा किस प्रकार कर्मास्रव को रोका जा सकता है, यह चिन्तन संबर भावना है ( ५ ) । व्रतों आदि के द्वारा तथा विशेष रूप से बारह प्रकार के तपों द्वारा बंधे हुए कर्मों का किस प्रकार क्षय किया जा सकता है, यह चिन्तन निर्जरा भावना है ( ६ ) । इस अनन्त आकाश, उसके लोक व अलोक विभाग, उनके अनादित्व व अकर्तृत्व तथा लोक मे विद्यमान समस्त जीवादि द्रव्यो का विचार करना लोक भावना है ( १० ) । इस अनादि ससार मे यह जीव किस प्रकार प्रज्ञान और मोह के कारण नाना योनियो में भ्रमरण के दुख पाता रहा है, कितने पुण्य के प्रभाव से इसे यह मनुष्य योनि मिली है, तथा इस मनुष्य जन्म को सार्थक करने वाले दर्शन- ज्ञान चारित्र रूप तीन रत्न कितने दुर्लभ है, यह चिन्तन बोधिदुर्लभ भावना है ( ११ ) । सच्चे धर्म का स्वरूप क्या है, और उसे प्राप्त कर किस प्रकार सासारिक दुःखो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, यह चिन्तन धर्म भावना है ( १२ ) । इस प्रकार इन बारह भावनाओ से साधक को अपनी धार्मिक प्रवृत्ति में दृढ़ता व स्थिरता प्राप्त होती है । ३ गुप्तियाऊपर अनेक बार कहा जा चुका है कि मन-वचन-काय की क्रिया रूप योग के द्वारा कर्मास्त्रव होता है, और कर्मबन्ध को रोकने, तथा बधे हुए कर्मों की निर्जरा करने मे इस त्रियोग की साधना विशेषरूप से आवश्यक है। यथार्थत समस्त धार्मिक साधना के मूल मे मन-वचन-काय की प्रवृत्ति निवृत्ति ही तो प्रधान है। अतएव इनकी सदसत् प्रवृत्ति का विशेष रूप से स्वरूप बतलाकर साधक को उनके सम्बन्ध में विशेष सावधानी रखने का आदेश दिया गया है । मन और वचन इन दोनो की प्रवृत्ति चार प्रकार की कही गयी है - सत्य, असत्य, उभय और अनुभव । सत्य मे यथार्थता और हित, इन दोनो बातो का समावेश माना गया है । इसी सत्य के अनुचिन्तन मे प्रवृत्त मन की अवस्था को सत्य मन, उससे विपरीत असत्यमन, मिश्रित भाव को उभय मन, और सत्यासत्य दोनो से हीन मानसिक अवस्था को अनुभय रूप मन कहा गया है । इन अवस्थाओ मे से सत्य मनोयोग की ही साधना को मनोगुप्ति कहा गया है । शब्दात्मक वचन यथार्थत मन की अवस्था को व्यक्त करनेवाला प्रतीक मात्र है । प्रतएब उक्त चारो मनोदशाभी के अनुकूल वचन पद्धति भी चार प्रकार की हुई । तथापि लोक व्यवहार मे सत्य-बचन भी वश प्रकार का रूप धारण कर लेता है। कही शब्द अपने मूल वाच्यार्थ से च्युत होकर भी जनपद, सम्मति, स्थापना, नाम, रूप, अपेक्षा, व्यवहार, संभावना, भाव व उपमा सम्बन्धी रूढियों द्वारा सत्य को प्रगट करता है। वारणी के अन्य प्रकार से भी नौ भेद किये गये हैं, जैसे-आमंत्ररणी, भाज्ञापनी, याचनी, आपृच्छनी, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, संशयवचनी, इच्छानुलोमनी और अक्षरगता । इनका सत्य-असत्य से कोई सबन्ध नही। अतएव इन्हे अनुभय वचनरूप कहा गया है । साधक को इस प्रकार मन और वचन के सत्यासत्य स्वरूप का विचारकर, अपनी मन-वचन की प्रवृत्ति को संभालना चाहिये, औौर तदनुसार ही कायिक क्रिया मे प्रवृत्त होना चाहिये, यही मुनि का त्रिगुप्ति रूप ६ प्रकार का बाहू य तपउक्त समस्त व्रतो आदि की साधना कर्मास्त्रव के निरोध रूप संवर व बधे हुए कर्मों के क्षय रूप निजंरा करानेवाली है। कर्म-निर्जरा के लिये विशेषरूप से उपयोगी तप साधना मानी गई है, जिसके मुख्य दो भेद है - बाह्य और आभ्यन्तर । अनशन, अवमौदर्य, वृत्ति परिसख्यान, रम परित्याग, विविक्त शय्यासन एवं कायक्लेश, ये बाहूय तप के छह प्रकार है । सब प्रकार के आहार का परित्याग अनशन; तथा अल्प आहार मात्र ग्रहण करना अवमौदयं या ऊनोदर तप है । एक ही घर से भिक्षा लगा, इस प्रकार दिये हुए आहार मात्र को ग्रहण करूगा, इत्यादि रूप से आहार सम्बन्धी परिस्थितियों का नियन्त्रण करना वृत्ति परिसंख्यान; तथा घृतादि विशेष पौष्टिक एवं विकारी वस्तुओ का त्याग, तथा मिष्टादि रसो का नियमन करना रस-परित्याग है । शून्य गृहादि एकान्त स्थान मे वाम करना विविक्तशम्यासन है, तथा धूप, शीत, वर्षा आदि बाधाओ को विशेष रूप से सहने का एवं आसन विशेष से लम्बे समय तक स्थिर रहने आदि का अभ्यास करना कायक्लेश तप है । ६ प्रकार का अभ्यन्यर तपआभ्यन्तर तप के छह भेद है - प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान । प्रमादवश उत्पन्न हुए दोषो के परिहार के लिये आलोचन, प्रतिक्रमरण आदि चित्तशोधक क्रियाम्रो में प्रवृत्त होना प्रायश्चित तप है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र व उपचार की साधना में विशेष रूप से प्रवृत्त होना विनय तप है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र का स्वरूप बताया ही जा चुका है। आचार्यादि गुरुजनो व शास्त्रों व प्रतिभाओं आदि पूज्य पात्रों का प्रत्यक्ष मे व परोक्ष मे मन-वचन-काय की क्रिया द्वारा आदर-सत्कार व गुणानुवाद आदि करना उपचार विनय है। प्राचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शिक्षाशील, रोगी, गरण, कुल, संघ, साधु तथा लोक-सम्मत अन्य योग्यजनो की पीड़ा-बाधाओ को दूर करने के लिये सेवा में प्रवृत्त होना वैयावृत्य तप है। धर्म शास्त्रों की याचना, पृच्छमा, धनुचिन्तन, बार-बार भावृत्ति व धर्मोपदेश, यह सब स्वाध्याय तप है। गृह, धन-धान्यादि बाहु योपाधियो तथा क्रोधादि अन्तरंगोपाधियो का त्याग करना व्युत्सर्ग तप है । ध्यान - ( आर्तव रौद्र ) . - छठा अन्तिम अन्तरंग तप ध्यान है, जिसके चार भेद माने गये हैंरौद्र, धर्म और शुक्ल । अनिष्ट के संयोग, इष्ट के वियोग, दुख की वेदना तथा भोगो की अभिलाषा से जो सक्लेश भाव होते हैं, तथा इस अनिष्ट परिस्थिति को बदलने के लिये जो चिन्तन किया जाता है, वह सब प्रार्त ध्यान है। झूठ बोलने, चोरी करने, धन-सम्पत्ति की रक्षा करने तथा जीवो के घात करने में जो क्रूर परिणाम उत्पन्न होते होते हैं, वह रौद्र ध्यान है। ये दोनो ध्यान व्यक्ति को स्वय दुःख देते हैं, समाज में भी प्रशान्ति उत्पन्न करने के कारण होते हैं, एवं इनसे अशुभकर्मों का बन्ध होता है, इसलिये ये ध्यान अशुभ और त्याज्य माने गये है। शेष दो ध्यान जीव के लिये कल्यारणकारी होने से शुभ है। धर्म ध्यान - इन्द्रियो तथा राग-द्वेष भावो से मन का निरोध करके उसे धार्मिक चिन्तन में लगाना धर्मध्यान है । इस चिन्तन का विषय चार प्रकार का हो सकता है - प्राज्ञाविचय, श्रपायविचय, विपाक- विचय और संस्थान- विचय । जब ध्याता शास्त्रोक्त तत्वों के स्वरूप, कर्मबन्ध आदि ज्ञान की व्यवस्था व चरित्र के नियम आदि के सूक्ष्म चिन्तन मे ध्यान लगाता है, तब श्राशाविचय नामक ध्यान होता है। श्राज्ञा का अर्थ हैशास्त्रादेश; और विचय का अर्थ है-- खोज या गवेषरण । इस प्रकार शास्त्रादेश का गवेषण, अर्थात् धर्म के सिद्धान्तो को तर्क, न्याय, प्रमारण, दृष्टान्त श्रादि की योजना द्वारा समझने का मानसिक प्रयत्न धर्म-ध्यान है । अपाय का अर्थ है विघ्न-बाधा, अतएव धर्म के मार्ग में जो विघ्न-बाधाएं उपस्थित हों, उन्हें दूरकर धर्म की प्रभावना बढ़ाने के लिये जो चिन्तन किया जाता है, वह प्रपाय- विचय धर्मध्यान है। ज्ञानावररणादि कर्म किस प्रकार अपना फल देते हैं, तथा जीवन के नाना अनुभवन किस-किस कर्मोदय से प्राप्त हुए; इस प्रकार कर्मफल सम्बन्धी चिन्तन विपाक- विचय धर्मध्यान है; और लोक का स्वरूप कैसा है, उसके ऊर्ध्व प्रधः तिर्यक् लोको की रचना किस प्रकार की है, भौर उनमें जीवो की कैसी क्या दशाएं पाई जाती हैं, इत्यादि चिन्तन संस्थान - विजय
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मध्य प्रदेशका बौद्ध - पुरातत्त्व मध्यप्रदेशीय शिल्प-स्थापत्य विषयक कलावशेषोके परिशीलनसे ज्ञात होता है कि बौद्ध संस्कृतिका प्रभाव इस भू-भागपर, बहुत प्राचीन कालसे रहा है । शिलोत्कीणित लेख, गुफा एवं प्रस्तर तथा धातु-मूर्तियाँ आदि उपर्युक्त पक्तिकी सार्थकता सिद्ध करती है । बौद्धोमे कलाविषयक नैसर्गिक प्रेम शुरूसे रहा है । जबलपुर जिलेके रूपनाथ नामक स्थानपर सम्राट् अशोकका एक लेख पाया गया है। सभव है उन दिनों बौद्ध वहाँ रहे हो या उस स्थानकी प्रसिद्धि के कारण, अशोकने प्रचारार्थ शिक्षाएँ वहाँ खुदवा दी हो। यह लेख उसने बौद्ध होनेके २।। वर्ष बाद खुदवाया था । इससे इतना तो निश्चित है कि सम्राट अशोक द्वारा मध्य प्रदेश मे बौद्ध धर्मकी नीव पड़ी। मध्यप्रदेशीय शासनकी ग्रीष्मकालीन राजधानी पचमढ़ीमे भी कुछ गुफाएँ है, जिनका सबध बौद्ध धर्मसे बताया जाता है । मौर्य साम्राज्यके बाद मध्यप्रान्तपर जिन शक्तिसपन्न राजवशोने शासन किया, उनमंसे अधिकतर परम वैदिक थे । अत मौर्य शासन के बाद बौद्ध धर्मका व्यवस्थित प्रचार, जैसा होना चाहिए था, न हो पाया । समसामयिक समीपस्थ प्रादेशिक पुरातन स्थापत्योके अन्वेषणसे फलित होता है कि तत्रस्थ शासन वैदिक होते हुए भी, बौद्ध संस्कृति अनुन्नत नही थी । मेरा तात्पर्य साँची व परवर्ती बौद्ध अवशेषोसे है । कहा जाता है कि नागार्जुन बरारके निवासी थे । ये बौद्ध धर्मके विद्वान्, पोषक एव प्रचारक आचार्य तो थे ही साथ ही महायान सप्रदायकी माध्यमिक शाखाके स्तभ भी थे । ये महाकवि अश्वघोषकी परम्परा के श्री प्रयागदत्त शुक्ल, होशंगाबाद-हंकार, १० ८९, चमकीले नक्षत्र थे । दर्शनशास्त्र एवं आयुर्वेदमं इनकी अबाधगति थी । भारतीय प्रायुर्वेद-शास्त्रमे रस द्वारा चिकित्सा करनेकी पद्धतिका सूत्रपात, इन्हीके गभीर अन्वेषणका परिणाम है। प० जयचन्द्र' विद्यालंकारने अश्वघोषके 'हर्षचरित' के आधार पर लिखा है कि नागार्जुन दक्षिण कोसल (छत्तीसगढ़ ) के राजा सातवाहनके मित्र थे । चीनी पर्यटक श्युश्रान्-चुभाङ्ने भी आयुर्वेदमे पारगत बोधिसत्त्व नागार्जुनका बहुमान पूर्वक स्मरण किया है । बाण कवि भी इसका समर्थन करते है। इसलिए इनका काल ईस्वी की दूसरी शताब्दीसे पीछे नहीं जा सकता । यहॉपर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि नागार्जुन और सिद्धनागार्जुन एक ही थे या पृथक् ? पं० जयचन्द्र विद्यालंकारने दोनोको एक ही माना है। जैन साहित्यमे सिद्ध नागार्जुनका वर्णन विशद रूपमे आया है। मूलत वे सौराष्ट्रान्तर्गत हकगिरिके निवासी व प्राचार्य पादलिप्तसूरि के शिष्य थे । इनकी भी आयुर्वेद एवं वनस्पति शास्त्रमें अद्भुत गति थी । रससिद्धिके लिए इन्होने बड़ा परिश्रम किया था । सातवाहन इनको सम्मानकी दृष्टि से देखता था, पर यह सातवाहन छत्तीसगढका न होकर, प्रतिष्ठानपुर - पैठन ( नाशिक के समीप ) का था। दोनो नागार्जुनके जीवनकी विशिष्ट घटनाओको गभीरतापूर्वक देखे तो आशिक साम्य परिलक्षित होता है । तन्त्रविषयक योगरत्नमाला और साधनामाला वगैरह कुछ ग्रन्थोमे पर्याप्त भाव-साम्य है; पर जहाँतक भाषाका प्रश्न है, इन ग्रन्थोके रचयिता नागार्जुन ही जान पडते है, क्योंकि सिद्धनागार्जुनके समय जैन सप्रदाय में अपने भावको संस्कृत भाषामे व्यक्त करनेकी प्रणाली ही नही थी । मेरे जेष्ठ गुरु बन्धु मनि श्री मंगलसागरजी महाराज साहबके ग्रन्थ सग्रहमे नागार्जुन कल्प नामक एक हस्त लिखित प्रति है, उसमे भारतीय रस चिकित्सा एव अनेक प्रकारके महत्त्वपूर्ण व आश्चर्यजनक रासायनिक प्रयोगोंका सकलन है । इसकी भाषा प्राकृत मिश्रित अपभ्रंश है। यह कृति 'भारतीय बाङ्मयके भ्रमररत्न, सिद्धनागार्जुनकी होनी चाहिए, क्योंकि प्राकृत भाषा में होनेसे ही, मै इसे उनकी रचना नही मानता, पर कल्प में कई स्थानोंपर पादलिप्तसूरिका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया है, जो इनके सब प्रकारसे गुरु थे । प्रश्न रहा अपभ्रश प्रतिलिपिका, इसका उत्तर भी बहुत सरल है। प्रत्यत लोकप्रिय कृतियोमे भाषा विषयक परिवर्तन होना स्वाभाविक बात है । नागार्जुन और सिद्धनागार्जुन भारतीय इतिहासकी दृष्टि से विवेचनकी अपेक्षा रखते हैं। उभय-साम्य, समस्याको और भी जटिल बना देता है। सिद्धनागार्जुनके जीवन-पटपर इन ग्रन्थोसे प्रकाश पड़ता है, प्रभावकचरित्र, विविधतीर्थकल्प, प्रबन्धकोष, प्रबन्ध चिन्तामणि, पुरातन प्रबन्ध संग्रह और पिण्डविशुद्धिको टीकाएँ आदि । बौद्ध नागार्जुन, रामटेकमें रहा करते थे। आज भी वहाँ एक ऐसी कन्दरा है, जिसका सबध, नागार्जुनसे बताया जाता है । "चीनी प्रवासी कुमारजीव नामक विद्वान्ने नागार्जुनके संस्कृत चरितका अनुवाद, चीनी भाषामं सन् ४०५ ई० मे किया था " ( रत्नपुर श्री विष्णुमहायज्ञ स्मारक ग्रन्थ पू० ८१) । मध्यप्रदेशके प्रसिद्ध अन्वेषक स्व० डाक्टर हीरालालजी'ने नागार्जुनपर निम्न पक्तियोमे अपने विचार व्यक्त किये है -- "स्त्रीष्टीय तीसरी शताब्दी में अन्यत्र यह सिद्ध किया गया है कि विदर्भ देशके एक ब्राह्मणका लडका रामटेककी पहाड़ी पर मौतकी प्रतीक्षा करनेको भेज दिया गया था, क्योंकि ज्योतिषियोने उसके पिताको निश्चय करा दिया था कि वह अपनी आयुके सातवे बरस मर जायगा । यह बालक रामटेकके पहाड़की एक खोहमे नौकरोंके साथ जा टिका । अकस्मात् वहाँसे त्वसर्पण महाबोधिसत्त्व निकले और उस बालककी स्व० डॉ० हीरालाल-मध्यप्रदेशीय भौगोलिक नामार्थ - परिचय पृष्ठ १२-१३, कथा सुनकर आदेश किया कि नालेन्द्र विहारको चला जा, वहाँ जानेसे मृत्युसे बच जावेगा । नालेन्द्र अथवा नालिन्दा मगध देशमे बौद्धोका एक बडा विहार तथा महाविद्यालय था । उसमें भर्ती होकर यह वरारी बालक अत्यत विद्वान् और बौद्धशास्त्र - वेत्ता हो गया । इसके व्याख्यान सुननेको अनेक स्थानोसे निमन्त्रण प्राये । उनमेसे एक नाग-नागिनियोका भी था । नागोके देशमे तीन मास रहकर उसने एक धर्म-पुस्तक नागसहस्त्रिका नामकी रची और वहीपर उसको नागार्जुनकी उपाधि मिली, जिस नामसे अब वह प्रख्यात है। रामटेक पहाडमे अभीतक एक कन्दरा है जिसका नाम नागार्जुन ही रख लिया गया है।" उपर्युक्त पक्तिमे वर्णित समस्त विचारोसे मै सहमत नहीं हूँ । इसपर स्वतन्त्र निबन्धकी ही आवश्यकता है, पर हाँ, इतना अवश्य कहना पडेगा कि नागार्जुनने अपनी प्रतिभासे विद्वद्जगत्को चमत्कृत किया है । ८४ सिद्धोकी २ सूचियोमे भी एक नागार्जुनका' नाम है, पर वे कालकी दृष्टि से बहुत बाद पड़ते है । अलबेरुनी नागार्जुनके लिए इस प्रकार लिखता है"रसविद्याके नागार्जुन नामक एक ख्यातिप्राप्त श्राचार्य थ, जो सोमनाथ ( सौराष्ट्र ) के निकट देहकमें रहते थे, वे रसविद्या में प्रवीण थे, एक ग्रन्थ भी उनने इस विषयपर लिखा है । वे हमसे १०० वर्ष पूर्व हो गये हैं।" अलबेरुनीका उपर्युक्त उत्लेख कुछ अशोमे भ्रामक है। मुझे तो 'श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी -- 'नाथ सम्प्रदाय' १० २९, अलबेरुनीने इन्हीं नागार्जुनको सिद्धनागार्जुन मान लिया है, जो स्पष्टतः उनका भ्रम है। दुर्गाशंकर के० शास्त्री - - - ऐतिहासिक संशोधन, पृ० ४९८ । ऐसा लगता है कि उसने सुनी हुई परम्पराको ही लिपिबद्ध कर दिया और वही आज हमारे लिए ऐतिहासिक प्रमाण हो गया। जहाँतक रसविद्याके विद्वान् व सौराष्ट्रके दैहिक निवासी होनेका प्रश्न है, मै सहमत हूँ, जैनसाहित्य नागार्जुनको ढकगिरिका निवासी प्रमाणित करता है, जो सोमनाथके निकट न होते हुए भी सौराष्ट्र-देशमे तो है ही। सोमनाथके निकट लिखनेका तात्पर्य यह होना चाहिए कि उन दिनो उनकी ख्याति काफी बढ़ी हुई थी, यहातक कि सोमनाथके नामसे सौराष्ट्रका बोध हो जाता था, इसलिए अलबेरुतीने भी वैसा ही लिख दिया । रसशास्त्र के आचार्य भी ढंकवाले नागार्जुन ही थे । अव प्रश्न रह जाता है दैहिक और ढंकके साम्यका । दैहिक या ऐसे ही नामका कोई ग्राम सोमनाथके निकट है या नहीं ? ढक नोमनाथमे कितना दूर पड़ता है, इसके निर्णयपर ही आगे विचार किया जा सकता है । इन पक्तियोमे इतना तो सिद्ध ही है कि अलबरूनी भी रसशास्त्री नागार्जुनको सौराष्ट्रका मानता है। जिस ग्रन्थकी चर्चा उसने की है, मेरी रायमे वह नागार्जुनकल्प ही होना चाहिये । अलबेरुनीने जो समय दिया है वह नवम शती का अन्त भाग पडता है। यही उनका भ्रम है । इस भ्रमका भी एक कारण मेरी समझमे आता है वह यह कि ८४ सिद्धोमे नागार्जुनका भी नाम आता है, इसका समय अलबेरुनीके उल्लेबसे मिलता-जुलता है । नागार्जुनके नाम-साम्य के कारण ही अलबेन्नी से यह भूल हो गई जान पड़ती है । सिद्धोकी सूचीवाले नागार्जुन आयुर्वेदके ज्ञाता थे, यह यह ज्ञात विषय है। उपर्युक्त विवेचन मे सिद्ध है कि कोई एक नागार्जुन रसतत्रके आचार्य हो गये है और उनका आयुर्वेद-जगत्मे महान् दान भी है। सुश्रुतके टीकाकार उल्हणका मत है कि सुश्रुतके प्रसिद्धकर्ता नागार्जुन ही है । रसवृन्द और चक्रपाणि लिखते है कि प्रमुक पाठ नागार्जुनने कहे है। माधवके टीकाकार विजयरक्षितने नागार्जुन कृत आरोग्यमंजरीके कई उद्धरण.
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लारा दत्ता हिन्दी फिल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं। वह वर्ष २००० की मिस यूनीवर्स थीं। लारा की पहली फ़िल्म अंदाज़ थी। उसके बाद वो कई सफल फ़िल्मों में दिख चुकी है जैसे-मस्ती, नो एन्ट्री, काल, भागम भाग, पार्टनर, हाउसफुल, और चलो दिल्ली। . 26 संबंधोंः टेनिस, दूल्हा मिल गया, नो एन्ट्री (२००५ फिल्म), पार्टनर (2007 फ़िल्म), पंजाबी समुदाय, फ़ना (२००६ चलचित्र), ब्रह्माण्ड सुन्दरी, भागम भाग (2006 फ़िल्म), मस्ती, मस्ती (2004 फ़िल्म), महेश भूपति, मिस यूनीवर्स 2000, हाउसफुल (2010 फ़िल्म), हे बेबी (2007 फ़िल्म), होमो सेपियन्स, ग़ाज़ियाबाद, आंग्ल-भारतीय समुदाय, काल, काल (२००५ चलचित्र), अभिनेत्री, अंदाज़, अंदाज़ (2003 फ़िल्म), उत्तर प्रदेश, १६ अप्रैल, १९७८, २००७। टेनिस खेल 2 टीमों के बीच गेंद से खेले जाने वाला एक खेल है जिसमें कुल 2 खिलाडी (एकल मुकाबला) या ४ खिलाड़ी (युगल) होते हैं। टेनिस के बल्ले को टेनिस रैकट और मैदान को टेनिस कोर्ट कहते है। खिलाडी तारो से बुने हुए टेनिस रैकट के द्वारा टेनिस गेंद जोकि रबर की बनी, खोखली और गोल होती है एवम जिस के ऊपर महीन रोए होते है को जाल के ऊपर से विरोधी के कोर्ट में फेकते है। टेनिस की शुरूआत फ्रांस में मध्य काल में हुई मानी जाती है। उस समय यह खेल इन-डोर यानि छत के नीचे हुआ करता था। इंगलैड में 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में लान टेनिस, यानि छत से बाहर उद्यान में खेले जाने वाले का जन्म हुआ और बाद में सारे विश्व में लोकप्रिय हुआ। आज यह खेल ओलम्पिक में शामिल है और विश्व के सभी प्रमुख देशों के करोड़ों लोगो में काफी लोकप्रिय है। टेनिस की विश्व स्तर पर चार प्रमुख स्पर्धाए होती है जिन्हे ग्रेन्ड स्लेम कहा जाता है - हर साल जनवरी में ऑस्ट्रेलिया की ऑस्ट्रेलियन ओपन, मई में फ़्रांस की फ़्रेन्च ओपन और उसके दो हफ़्तों के बाद लंदन की विम्बलडन, सितम्बर में अमेरिका में होने वाली स्पर्धा को अमेरिकन ओपन (संक्षेप में यूएस ओपन) कहा जाता है। विम्बलडन एक घास के कोर्ट पर खेला जाता है। फ्रेंच ओपन मिट्टी के आंगन (क्ले कोर्ट) पर खेला जाता है। यूएस ओपन और ऑस्ट्रेलियन ओपन के मिश्रित कोर्ट पर खेला जाता है। . दूल्हा मिल गया (दुल्हा मिल गया, دولھا مل گیا, Found A Groom) मुदस्सर अज़ीज़ द्वारा निर्देशित 2010 की एक बॉलीवुड रोमांस फिल्म है। सुष्मिता सेन, इशिता शर्मा और फरदीन खान इसके मुख्य कलाकार हैं। फिल्म 8 जनवरी 2010 को रिलीज़ की गई और वह 2010 में रिलीज होने वाली सबसे पहली बॉलीवुड फिल्मों में से एक थी (उसी दिन दूसरी फिल्म प्यार इम्पॉसिबल भी रिलीज़ की गई). नो एन्ट्री (२००५ फिल्म) नो एन्ट्री २००५ में बनी हिन्दी भाषा का एक हास्य चलचित्र है। इसके निर्देशक अनीस बाज्मी और निर्माता बोनी कपूर हैं। इसमें मुख्य भुमिका में हैं - सलमान खान, अनिल कपूर, फ़रदीन खान, लारा दत्ता, सेलिना जेठली, ईशा देओल और बिपाशा बसु। समीरा रेड्डी विशेष भूमिका में हैं। यह चलचित्र को एक तमिल चलचित्र चार्ली चैपलिन पर आधारित है। . पार्टनर (2007 फ़िल्म) पार्टनर 2007 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। . पंजाबी समुदाय में मुख्यतः पंजाबी भाषा बोलने वाले लोग, पंजाब प्रांत में रहने वाले या पलायन करने वाले लोग आते हैं। श्रेणीःपंजाबी लोग. फ़ना (२००६ चलचित्र) कोई विवरण नहीं। ब्रह्माण्ड सुन्दरी (मिस यूनिवर्स) मिस यूनिवर्स संगठन द्वारा आयोजित किया जाने वाली एक वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सौन्दर्य प्रतियोगिता है। प्रतियोगिता को १९५२ में कैलिफोर्निया स्थित कपड़ा कंपनी पेसेफिक मिल्स द्वारा स्थापित किया गया था। प्रतियोगिता कैसर-रोथ और बाद में गल्फ एंड वेस्टर्न इण्डस्ट्रीज का हिस्सा बनी, वर्ष १९९६ में इसे डोनाल्ड ट्रम्प ने अधिग्रहित कर लिया। अपने प्रतिद्वंद्वी प्रतियोगिताओं - मिस वर्ल्ड और मिस अर्थ - की तरह दुनिया की सबसे अधिक प्रचारित सौंदर्य प्रतियोगिताओं में से एक है। वर्ष 2013 में यह खिताब वेनेजुएला की गैब्रिएला इसलऱ़ ने जीता है। . भागम भाग (2006 फ़िल्म) भागम भाग 2006 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। . मस्ती कुछ लोगों द्वारा मिलकर, बिना किसी को नुक्सान पहुंचाए, मजे करना मस्ती के दायरे में आता है। . मस्ती (2004 फ़िल्म) मस्ती 2004 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। . महेश भूपति (जन्मः 7 जून, 1974) एक भारत के पेशेवर टेनिस खिलाड़ी हैं। लिएंडर पेस के साथ मिलकर उन्होंने तीन डबल्स खिताब जीते हैं जिनमें 1999 का विबंलडन का खिताब भी शामिल है। साल 1999 भूपति के लिए स्वर्णिम वर्ष साबित हुआ क्योंकि इसमें उन्होंने अमेरिकी ओपन मिश्रित खिताब जीता और फिर लिएंडर पेस के साथ रोलां गैरां और विंबलडन समेत तीन युगल ट्राफी अपने नाम की। वह और पेस सभी ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंटों के फाइनल में पहुंचने वाली पहली युगल जोड़ी बने थे। साल 1999 में ही दोनों को युगल की विश्व रैंकिंग में पहली भारतीय टीम बनने का गौरव हासिल हुआ। ओपन युग में 1952 के बाद यह पहली उपलब्धि थी। हालांकि बीच के सालों में महेश भूपति और लिएंडर पेस के बीच कुछ मतभेद हो गए जिसकी वजह से दोनों ने एक-दूसरे के साथ खेलना बंद कर दिया पर 2008 बीजिंग ओलंपिक्स के बाद से उन्होंने पुनः साथ-साथ खेलना शुरू कर दिया। . मिस यूनीवर्स 2000 मिस यूनीवर्स का ४९वाँ संस्करण था जिसे भारत की लारा दत्ता ने जीता। श्रेणीःमिस यूनीवर्स. हाउसफुल (2010 फ़िल्म) हाउसफुल ३० अप्रैल २०१० को प्रदशित होने वाली एक बॉलीवुड फिल्म है जिसका निर्देशन साजिद खान ने किया है। फिल्म के प्रमुख सितारों में अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अर्जुन रामपाल, लारा दत्ता, दीपिका पादुकोण और जिया खान हैं। फिल्म के अन्य चरित्र बोमन ईरानी और रणबीर कपूर ने निभाए हैं। फिल्म के एक गाने में जैकलीन फर्नांडीज़ विशेष भूमिका में हैं। फिल्म में संगीत शंकर-अहसान-लॉय का है। फिल्म को अधिकतर लंदन में फिल्माया गया है। . हे बेबी (2007 फ़िल्म) हे बेबी 2007 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। . होमो सेपियन्स/आधुनिक मानव स्तनपायी सर्वाहारी प्रधान जंतुओं की एक जाति, जो बात करने, अमूर्त्त सोचने, ऊर्ध्व चलने तथा परिश्रम के साधन बनाने योग्य है। मनुष्य की तात्विक प्रवीणताएँ हैंः तापीय संसाधन के द्वारा खाना बनाना और कपडों का उपयोग। मनुष्य प्राणी जगत का सर्वाधिक विकसित जीव है। जैव विवर्तन के फलस्वरूप मनुष्य ने जीव के सर्वोत्तम गुणों को पाया है। मनुष्य अपने साथ-साथ प्राकृतिक परिवेश को भी अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है। अपने इसी गुण के कारण हम मनुष्यों नें प्रकृति के साथ काफी खिलवाड़ किया है। आधुनिक मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले, सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे। होमो इरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया। पहली शाखा का निएंडरथल मानव में अंत हो गया और दूसरी शाखा क्रोमैग्नॉन मानव अवस्था से गुजरकर वर्तमान मनुष्य तक पहुंच पाई है। संपूर्ण मानव विकास मस्तिष्क की वृद्धि पर ही केंद्रित है। यद्यपि मस्तिष्क की वृद्धि स्तनी वर्ग के अन्य बहुत से जंतुसमूहों में भी हुई, तथापि कुछ अज्ञात कारणों से यह वृद्धि प्राइमेटों में सबसे अधिक हुई। संभवतः उनका वृक्षीय जीवन मस्तिष्क की वृद्धि के अन्य कारणों में से एक हो सकता है। . ग़ाज़ियाबाद, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित एक नगर है। यह उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत का एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है और दिल्ली के पूर्व और मेरठ के दक्षिणपश्चिम में स्थित है। ग़ाज़ियाबाद में ग़ाज़ियाबाद जिले का मुख्यालय स्थित है। स्वतंत्रता से पहले ग़ाज़ियाबाद जिला, मेरठ जिले का भाग था पर स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राजनैतिक कारणों से इसे एक पृथक जिला बनाया गया। ग़ाज़ियाबाद का नाम इसके संस्थापक ग़ाज़ीउद्दीन के नाम पर पड़ा है, जिसने इसका नाम अपने नाम पर ग़ाज़ीउद्दीननगर रखा था, लेकिन बाद में, इसका नाम छोटा करके ग़ाज़ियाबाद कर दिया गया। . आंग्ल-भारतीय या ऐंग्लो इंडियन(ऍङ्ग्लो-इण्डियन) विशेष शब्द है जो जाति और भाषा के संबंध में प्रयुक्त होता है। जाति के संबंध में यह उन अंग्रेजों की ओर संकेत करता है जो भारत में बस गए हैं या व्यवसाय अथवा पदाधिकार से यहाँ प्रवास करते हैं। इनकी संख्या तो आज भारत में विशेष नहीं है और मात्र प्रवासी होने के कारण उनको देश के राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त नहीं, परंतु एक दूसरा वर्ग उनसे संबंधित इस देश का है और उसे देश के नागरिकों के सारे हक भी हासिल हैं। यह वर्ग भारत के अंग्रेज प्रवासियों और भारतीय स्त्रियों के संपर्क से उत्पन्न हुआ है जो ऐंग्लो इंडियन कहलाता है। इनकी संख्या काफी है और लोकसभा में इनके विशेष प्रतिनिधि के लिए संवैधानिक अधिकार भी सुरक्षित हैं। इस समुदाय के समझदार व्यक्ति अपने को सर्वथा भारतीय और भारत के सुख-दुःख में शरीक मानते हैं, परंतु अधिकतर ये स्थानीय जनता से घना संपर्क नहीं बना पाते और इंग्लैंड की सहायता की अपेक्षा करते हैं। इनका अंग्रेजों से रक्तसंबंध होना, अंग्रेजी का इनकी जन्मजात और साधारण बोलचाल की भाषा होना और उनका धर्म से ईसाई होना भी उन्हें अपना विदेशी रूप बनाए रखने में सहायक होते हैं। उनकी समूची संस्कृति अंग्रेजी विचारधारा और रहन-सहन से प्रभावित तथा अनुप्रमाणित है। तथापि अब वे धीरे-धीरे देश की नित्य बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होते जा रहे हैं। ऐंग्लो इंडियन शब्द का व्यवहार प्रवासी अंग्रेजों की भारतीय माताओं से प्रसूत संततियों अथवा उनसे प्रजनित संतानों से भिन्न भाषा के अर्थ में भी होता है। ऐंग्लो इंडियन भाषा के अनेक रूप हैं। कभी तो इसका प्रयोग भारतीयों द्वारा लिखी शुद्ध अंग्रेजी के अर्थ में हुआ है और कभी उन अंग्रेजों की भाषा के संबंध में भी जिन्होंने भारत में रहकर लिखा है, यद्यपि भाषाशास्त्र की दृष्टि से दोनों में स्थानीय प्रभावों के अतिरिक्त कोई विशेष भेद नहीं है। फिर ऐंग्लो इंडियन से तात्पर्य उस संकर हिंदी भाषा से भी है जो भारत के ऐंग्लों इंडियन अपने से भिन्न भारतीयों से बोलते हैं। इस शब्द का व्यवहार अनेक बार उस हिंदी भाषा के संबंध में भी हुआ है जिसे हिंदुस्तानी कहते हैं। परंतु इस अर्थ में इसका उपयोग अकारण और अनुचित दोनों हैं। नोट':- राष्ट्रपति को लोकसभा में 2 एंग्लो इंडियन को मनोनीत करने का अधिकार हैं। जबकि राज्यपाल विधान सभा मे 01 एंग्लो इंडियन को मनोनीत करता है। . काल . काल (२००५ चलचित्र) काल २००५ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। . अभिनेत्री वह महिला कलाकार है जो एक चलचित्र या नाटक में किसी चरित्र का अभिनय करती है। पुरुष कलाकार के लिए अभिनेता शब्द का प्रयोग किया जाता है। . अंदाज़ के कई अर्थ है. अंदाज़ (2003 फ़िल्म) अंदाज़ 2003 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। . आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। . 16 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 106वॉ (लीप वर्ष मे 107 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 259 दिन बाकी है। . १९७८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। . वर्ष २००७ सोमवार से प्रारम्भ होने वाला ग्रेगोरी कैलंडर का सामान्य वर्ष है। .
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मेवार में वर्षा का भोसत २४ इंच झालावाड़ में ३७ इंच और बाँसवाड़े में ३८ इंच के लगभग है। अधिक ऊँचाई के कारण आबू पर वर्ष में ५७-५८ इंच के लगभग वर्षा होती है। जल की अधिकता से इस तरफ कई घने जंगल हैं जिनमें इमारती काम के लिये उपयोगी लड़की के अतिरिक्त तरहतरह के फल-फूल भी होते हैं। इस भाग में फसलें साधारणतया दो होती हैंउनालू और सियालू । परन्तु जलवायु की आर्द्रता के कारण लोगों को प्रायः मलेरिया और मंदाग्नि की शिकायत रहती है। भौगोलिक स्थिति का प्रभाव - राजस्थान की प्राकृतिक स्थिति और अलवायु का प्रभाव इसके इतिहास, इसकी संस्कृति और इसके निवासियों की रहन-सहन एवं आचार-विचार पर बहुत पड़ा है। यहाँ के लोग बड़े परिश्रमी, बड़े साहसी एवं बड़े कष्ट-सहिष्णु होते हैं । चित्रकला, संगीत और कविता के ये बड़े प्रेमी होते हैं और अपने पूर्वजों की गौरव-गाथाओं के सुनने-सुनाने में बड़ा रस लेते हैं। इनमें धर्म-भीरता, रुढ़िवादिता और यशः प्रियता कुछ विशेष देखने में आती है। यहाँ की राजपूत जाति की वीरता और वैश्य जाति की व्यापारिक बुद्धि एवं दानशीलता विश्व विख्यात है। इसके सिवा यहाँ की भील जाति भी अपने पुरुषार्थ, अपनी स्वामिभक्ति और अपने अतिथिसरकार के लिए बहुत प्रसिद्ध है। बहुत दीर्घ काल तक इस जाति ने गजपूतो को उनके स्वाधीनता संग्राम में सहायता दी है। महाराणा प्रताप के मुख्य साथी भील ही थे। जिस समय औरंगजेब ने उदयपुर पर आक्रमण किया उस समय महाराणा राजसिंह की सेना में ५०००० भील थे। आजकल भील एक जंगली जाति मानी जाती है। परन्तु एकता और स्वावलंबन ये इस जाति के दो ऐसे गुण हैं जो भारत की अन्य किसी जाति में इतनी अधिक मात्रा में नहीं पाये जाते । संगीत- केवल वीरता के क्षेत्र में ही नहीं, संगीतकला, चित्रकला, शिल्पकला और साहित्य के क्षेत्र में भी राजस्थान ने बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की है। संगीत का आदर यहाँ के राजदरबारों एवं देव-मंदिरों में निरंतर रहा। यहाँ के रागों में 'मीराबाई का मलार बहुत प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक राग माँद और राग सिंधू ये दो राग राजस्थान के खास अपने है। राग माँ शृंगार रस के लिये बहुत उपयुक्त है। इसका उत्पत्ति स्थान जैसलमेर माना गया है।" राग सिंधू बीर रस का राग है। प्राचीन काल में रण१०. ओझा; उदयपुर राज्य का इतिहास, पृ० ५५८ । १९. ओशा; राजपूताने का इतिहास, पहली जिल्द, १० ३१ । प्रयाण के समय ढोली और ढाड़ी लोग इसे सेना के आगे गाते हुए चलते थे। डिंगल भाषा के कवियों ने इसका वर्णन किया है।" युद्ध का अवसर न होने से यह राग अब शनैः शनैः विस्मृत होता चला जा रहा है। संगीत-शास्त्र संबंधी प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में इस राग का नामोल्लेख नहीं मिलता। परन्तु अठारवीं शताब्दी और उसके बाद के कुछ ग्रंथों में इसका नाम देखने में भाता है। उदयपुर के सरस्वती भंडार में 'रागमाला' की एक चित्रित प्रति सुरक्षित है । यह कदाचित् महाराणा जयसिंह के राजम्ब-काल (सं० १७३७-५५) में तैयार की गई थी। इसमें राग सिंधू को राग दीपक का पुत्र बतलाया गया है। इसमें राग सिंधू का एक भव्य चित्र भी है। संगीतकला के साथ-साथ संगीत- साहित्य को भी राजस्थान से बहुत प्रोत्साहन मिला है। संगीत शास्त्र संबंधी कई उत्कृष्ट ग्रंथ यहाँ लिखे गये हैं जिनमें संगीत कला के विविध अंगो का बड़ा सूक्ष्म और वैज्ञानिक विवेचन मिलता है। इनमें मेवाड के महाराणा कुँभाजी (सं० १४९०-१५२५) के रचे तीन ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं-संगीत- मीमांसा, संगीतराज और सूदप्रबंध ११ इनमें संगीतराज सब से बड़ा है। कहा जाता है कि इसमें १६००० श्लोक थे। परंतु आजकल यह ग्रंथ पूरा नहीं मिलता। जयपुर के कछवाहा राजा भगवंतदास (सं० १६३०-४६) के पुत्र माधवसिंह बड़े संगीत प्रेमी थे। उन्होंने खानदेश के पुंडरीक विठ्ठल से 'राग-मंजरी' नाम का एक ग्रंथ लिखवाया था" जो प्रकाशित भी हो चुका है। भगवंतदास से कोई दो सौ वर्ष १२. (क) हुवो अति सींघवौ राग, वागी हको । भाट आया पिसण, घाट लागै थका ।। (ख) सखी अमोणी साहिबो, निरमै काळी नाग । सिर राखे मिण समग्रम, रीमै सिधू राग ।। (ग) आळस जाणे ऐस में, बघु ढीलै विकसत । सींधू सुणियाँ सो गुण, कवच न माबै कत ॥ १३. हरबिलास सारडा; महाराणा कुंभा, पृ० १६६ । १४. एम० कृष्णमाचार्य; हिस्ट्री आव क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर, पृ० ८६२ । १५. ओझा; राजपुताने का इतिहास, पहली जिल्द, पृ० ३२ । पश्चात् महाराजा प्रतापसिंह (सं० १८३५ - ६० ) जयपुर के राजसिंहासन पर आसीन हुए। इनके समय मे 'राधा-गोविंद-संगीत-सार', 'राम-रत्नाकर' और 'स्वर-सागर' तीन बहुत उत्तम कोटि के ग्रन्थ इस विषय पर लिखे गये ।" इसी प्रकार बीकानेर के महाराजा अनूपसिंह (सं० १७२६-५५) ने भी अपने राजाश्रित पंडित भाष भट्ट से 'संगीत-अनूपांकुश', 'अनूप-संगीत-विलास' और 'अनूप-संगीत-रत्नाकर' नामक तीन ग्रन्थ बनवाये थे । १७ चित्रकला~-~राजस्थान चित्रकला के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है। यहाँ के राजकीय चित्रालयों तथा राजपूत सरदारों के घरों में प्राचीन चित्र बहुसंख्या में पाये जाते हैं, जिनमें कोई-कोई चार सौ वर्ष तक के पुराने हैं। ये चित्र एक विशेष शैली में अंकित किये गये है जिसे कला-विशेषज्ञों ने 'राजस्थानी शैली' नाम दिया है। इन चित्रो में देवी-देवताओं, राग-रागिनियों, पौराणिक कथाओं, सामंतो, युद्ध-घटनाओं आदि के चित्र अधिक देखने में आते हैं। ये चित्र मोटे बॉमी कागज पर मिलते हैं। रंगो की उज्ज्वलता, करना की सुघड़ता और वातावरण की तीव्रता इन चित्रों की मुख्य विशेषताएँ हैं। इनमें आलंकारिकता कुछ अधिक पाई जाती है, पर भाष- कोमलता का भी सर्वथाअभाव नहीं है। इनके द्वारा गुप्तकालीन तथा उससे पूर्व की भारतीय चित्रकला का भी अच्छा आभास मिलता है। इन चित्रों में अनेक ऐसे हैं जिन पर मुगल शैली का यथेष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। ये चित्र अकबर- जहाँगीर के समय या उसके बाद के हैं। इनमे मानव आकृति के यथार्थ चित्रण की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। सोन्दर्य और अभिव्यक्ति की दृष्टि से ये चित्र अनुपम हैं । फुटकर चित्रों के अतिरिक्त संस्कृत, राजस्थानी, फारसी आदि भाषाओं के चित्रित ग्रन्थ भी राजस्थान में बहुत मिलते हैं। ये ग्रन्थ खुले पत्रों के रूप में भी मिलते हैं और सजिल्द पुस्तकाकार में भी खुले पत्रोंवाले चित्रित ग्रन्थों को राजस्थान में 'जोतदान' कहते हैं। इन ग्रन्थों के चित्रों के चारों ओर सादी कोर होती है और प्रत्येक चित्र के ऊपर उससे संबंधित पूरा छंद अथवा उस छंद का संक्षित गद्यात्मक विवरण लिखा रहता है। रामायण, महाभारत पृथ्वीराज रासौ आदि बड़े आकार के ग्रन्थों की केवल मुख्य-मुख्य घटनाओं के चित्र बनाये गये हैं, पर 'बिहारी सतसई' जैसे छोटे ग्रन्थों के प्रत्येक पद्य का १६. बजनिधि-मन्थावली ( ना० प्र० सभा द्वारा प्रकाशित); पृ० ४८ (मूमिका) । १७. ओझा; बिकानेर राज्य का इतिहास, १० २८६ । चित्रांकन किया गया है। जयपुर के पोथीखाने में रज्मनामा ( महाभारत का फारसी में सारांश) की एक सचित्र प्रति सुरक्षित है जो मुगल सम्राट् अकबर की आशा तैयार की गई थी। इसमें १६९ चित्र है। इस पर चार लाख कृपया खर्च हुआ था और अकवरी दरबार के चौदह चित्रकारों ने इस पर काम किया था ।" यह ग्रन्थ भारतीय चित्रकला के भंडार का अनमोल रत्न है और मुद्रित भी हो चुका है। इस प्रकार की चिश्रित पोथियों का सबसे बड़ा संग्रह उदयपुर के 'सरस्वती भंडार' में पाया जाता है जहाँ लगभग ५० ग्रंथ विद्यमान हैं। शिल्प-संगीतकला और चित्रकला के समान प्राचीन काल में राजस्थान की शिल्पकला भी बहुत बढ़ चढ़ी थी। आयु चिसीह, नागदा, चंद्रावती, झालरापाटन आदि स्थानों के कुछ प्राचीन देवालयों में खुदाई का काम इतना सुन्दर और बारीकी के साथ किया गया है कि उसे देखकर मनुष्य चकित रह जाता । इसी तरह बहुत से अन्य स्थानों में भी शिल्प चातुर्य के उत्कृष्ट नमूने पाये जाते है । उदयपुर में कोई सवा सौ मील पूरब दिशा में बाढ़ोली नामक एक छोटा-सा प्राचीन गाँव है जो नवी दशवीं शताब्दियों में बहुत समृद्ध था और महाती नाम से विख्यात था । यहाँ शिव, विष्णु, गणेश, त्रिमूर्ति आदि के कई जीर्ण-शीर्ण मन्दिर है जिनकी कारीगरी की भारतीय शिल्प के विशेषज्ञ फर्ग्यूसन ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है, और शेषशायी नारायण की मूर्ति के सम्बन्ध में तो यहाँ तक कह दिया है कि मेरी देखी हुई हिंदू मूर्तियों में यह सर्वोत्तम है। प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टाड ने भी यहाँ की तक्षणकला को अद्भुत और वर्णनानीत बतलाया है ।" भाषा - प्राचीन काल में राजस्थान की राजकीय भाषा संस्कृत थी । विद्वान् लोग अपने ग्रंथोंकी रचना इसी भाषा में करते थे और यहाँ के दानपत्र तथा शिलालेख आदि भी इसी भाषामे लिखे जाते थे। लेकिन जनसाधारण की भाषा प्राकृत थी । अशोक के समय का एक स्तम्भ-लेख जयपुर राज्यान्तर्गत १८. टी० एच० हैडले. कैरियरम अब दि जयपुर ऐग्जिबिशन, भाग चतुर्थ, • भूमिका, पृ० १ । २०. दि हिन्दी आय इंडियन रेड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, १० १३४ । २१. दि एनस एंड एटिविवटीज आव राजस्थान (क्रक्स का सम्करण), पृ० १७५२-१७६४ । वैराट गाँव से मिला है जो उस समय को प्राकृत में है। प्राकृत के बाद यहाँ अपभ्रंश का प्रचार हुआ। इसमें भी प्रचुर साहित्य रचा गया जिसका अधिकांश श्रेय जैन विद्वानों को है। डिंगल-लगभग छठी से लेकर तेरहवीं शती तक अपभ्रंश यहाँ की साहि त्यिक भाषा के पद पर आरूद रही। तदनन्तर इसका प्रभाव क्षीण होने लगा और इसी के लोकप्रचलित रूप राजस्थानी ने इसका पद ग्रहण करना प्रारम्भ किया जिसका एक रूप (मारवादी) डिंगल नाम से विख्यात हुआ । डिंगल भाषा में चारण लोगों ने अधिक लिखा है। इसलिए कोई कोई ढिंगल साहित्य को चारण साहित्य भी कहते है। राजस्थान में इस जाति के लोग पहले पहल भारवाद में आकर बसे थे। वहाँ से धीरे-धीरे राजस्थान की दूसरी रियासतों में फैले और अपने साथ अपनी भाषा को भी ले गये । इस प्रकार इसका प्रवेश राजस्थान की अन्य रियासतों में हुआ। राजपूतो और चारणोंका पारस्परिक संबंध बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा था। उन्होंने डिंगल भाषा-साहित्य को बहुत प्रोत्साहन दिया। मध्यकालीन हिंदू-मुसलिम संघर्ष के वातावरण और राजनीतिक घटनाचकोसे भी बहुत मदद मिली। राजा-महाराजाओं द्वारा सम्मानित होते देख अन्य जातियों के लोगों ने भी इसे अपनाया और इसमें साहित्य-निर्माण करना प्रारम्भ किया। डिंगल साहित्यके दो सर्वश्रेष्ठ काव्य 'ढोला मारूस दूहा' और 'वेलिकिसन रुकमणी री' चारणेतर कवियों ही के रचे हुए हैं। डिंगल का सर्वोत्तम गद्य-अंथ 'नैणसी री ख्यात' भी एक वैश्य लेखक की रचना है । डिंगल साहित्य प्रधानतया वीर रसात्मक है। इसमे राजपूत जाति के इतिहास, उसकी संस्कृति एवं उसकी भाव-भावनाओं की बड़ी सुन्दर व्यंजना हुई है। स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ ठाकुरने इसकी प्रशंसा मे लिखा है कि "भक्ति रस का काव्य तो भारतवर्ष के प्रत्येक साहित्य में किसी न किसी कोटि का पाया जाता है। राधा-कृष्ण को लेकर हर एक प्रान्त ने मंद या उच्च कोटि का साहित्य पैदा किया है। लेकिन राजस्थान ने अपने रक्त से जो साहित्य निर्माण किया है उसके जोद का साहित्य और कहीं नहीं पाया जाता । और उसका कारण है। राजस्थानी कवियों ने कठिन सत्यके बीच में रहकर युद्ध के नगःरॉके बीच अपनी कविताएँ बनाई थीं। प्रकृति का तांडव रूप उनके सामने था । क्या आज कोई केवल अपनी भावुकता के बल पर फिर वहां कप्य - नेमण कर सकता है ? "इस साहित्यमें जो भाव है, जो उद्वेग है वह राजस्थान का खास अपना । यह केवल राजस्थान के की वस्तु है" " रवि बाबू का यह कथन अक्षरशः सत्य है। वास्तव में यह साहित्य है ही ऐसा । युद्ध का, रणभूमि का, वीरोल्लास का, जैसा सजीव, ओजपूर्ण और ' मार्मिक चित्रण डिंगल साहित्यमें मिलता है वैसा भारत की अन्य किसी प्रांतीय भाषा में नहीं मिलता । विशेषकर बीर महिलाओंके हृदयस्थ भावों का वर्णन तो डिगलके कवियोका ऐसा सुन्दर और स्वाभाविक बन पड़ा है कि देखकर मन मुग्ध हो जाता हैःसहणी सबरी हूं सखी, दो उर उलटी दाह । दूध लजाणे पृत सम, वलय लजाणे नाह ।। १ ।। नायण आज न मॉड पग, काल मुणीजै जंग । धारां लागीजें वर्णा, तो हीजे घण रंग ॥ २ ॥ विण मरियों विण जीतियाँ, जो धव आवै धाम । पग पग चूड़ी पाछ, हूँ रावत री जाम ॥ ३ ॥ मैंगल रहिया घूम । बाजूबॅड़ री लूम ॥ ४ ॥ २२. राजस्थान वर्ष २, अक ४, पृ० ७२ । मादर्न रिव्यु, दिसंबर सन् १९३८, पृ० ७१० । -२३. हे सखी ! और सब बाले मुझे सहन हो सकती हैं किन्तु यदि पति मेरी चूडियों को लजा दे और पुत्र मेरे दूध को, तो ये दो बाते मेरे लिये समान रूप से दाहकारी एवं हृदय को उलट देनेवाली है ।। १ ।। हे नाइन ! आज मेरे पैरमे महावर मत लगा, कल युद्ध सुना जाता है। यदि मेरे पति धारा-तीर्थ में स्नान करे अर्थात् तलवार की धार से कटकर युद्ध में काम आवे तो फिर (मती होने के समय ) खुल रग देना ।। २।। हे सखी ! यदि मेरे पति बिना मृत्यु या बिना जीत के घर आ गये तो मैं पग-पग पर अपनी चूडियो के टुकड़े कर डालेगी ! मै भी राजपूत की बेटी हूँ ।। ३ ।। हे ननद ! हाथी झूम रहे है और में तलवार चलाना चाहती हूँ। मेरे भुजबद की लटकन को ऊपर बाँध दो। यह बहुत उलझती है ॥ ४ ॥
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कढ़ाई छोटे से बड़े के लिए needlewomen प्यार करता था। शौक यह उनकी रचनात्मकता को दिखाने के लिए अनुमति देते हैं और एक अच्छा समय होगा। आप कढ़ाई के लिए एक सरल योजना मिल जाए, आप सुरक्षित रूप से काम करने के लिए शुरू कर सकते हैं, और यह कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने साल के हो। चिकनी सतह वयस्कों और बच्चों, तौलिए, पर्दे, कुशन कवर, नैपकिन और मेज़पोश बनाने के लिए कपड़े के साथ सजाया जा सकता है। विभिन्न सामान और सामान, अधिक बेहतर लग रही है अगर वे कढ़ाई के साथ सजाया जाता है। कार्ड, छोटे चित्रों - एक प्यारा उपहार है कि अपने हाथों से भी एक बच्चे को बना सकते हैं। कढ़ाई - बच्चों की रचनात्मकता के लिए बहुत अच्छा काम। शुरुआती के लिए योजनाएं इंटरनेट और पत्रिकाओं पर उपलब्ध हैं। कुशल कशीदाकारों पूरी तस्वीर पैदा करते हैं। बेशक, इस तरह के काम समय और कड़ी मेहनत लेता है। लेकिन कढ़ाई कढ़ाई करने के जानने के लिए आसान है, केवल एक छोटे से धैर्य और रहस्यों में से कुछ ज्ञान की आवश्यकता है। चिकनी सतह - कढ़ाई needlewomen की पसंदीदा तकनीकों में से एक है, यह आप अविश्वसनीय रूप से यथार्थवादी रचनाओं बनाने के लिए अनुमति देता है। यह एक तंग टांके जो पूरी तरह लेपित वेब है। टांके की दिशा अलग हो सकता है, यह इस आशय पर निर्भर करता है। कढ़ाई कढ़ाई पार की तुलना में अधिक जटिल है, लेकिन इस तकनीक नाजुक टुकड़े और सटीक और रंग संक्रमण के लिए अनुमति देता है। कढ़ाई योजना पर भरोसा करने का फैसला किया है, लेकिन अगर अनुभवी स्वामी अंततः उन्हें का उपयोग नहीं करते हो सकता है। शुरुआती के लिए सरल रूपांकनों के साथ प्रारंभ करें, और आप को बहुत शीघ्र इस तकनीक में महारत हासिल। फूल - कई कढ़ाई साटन सिलाई द्वारा प्रेमिका। योजनाएं हैं पैटर्न सर्किट, जो बाद में अनुदेश के अनुसार टांके से भरा है। कुशल श्रमिकों के सुंदर काम को देखते हुए, महत्वाकांक्षी needlewoman जल्दी से जानने के लिए इसी तरह की कृतियों को बनाने का तरीका चाहता है। यह संभव है, लेकिन हम चरणों में कार्य करना चाहिए। आधारशिला - कैसे अलग प्रदर्शन करने के लिए सीखने के लिए टांके के प्रकार और टांके। शानदार शुरुआत - एक सरल कढ़ाई साटन सिलाई। शुरुआती कभी कभी प्राथमिक के लिए योजनाएं हैं, लेकिन वे ठीक छोटे विवरण पर प्रशिक्षित करने के लिए अनुमति देते हैं। समय गुजरता के रूप में, आप सहज, रंग संक्रमण प्रदर्शन करेंगे भी चार्ट को देखे बिना। कढ़ाई कढ़ाई आप निम्नलिखित सामग्री की जरूरत हैः - आधार कपड़ा; - घेरा; - सुई कढ़ाई; - धागे (आमतौर पर लोमक); - विशेष छोटे कैंची; - उंगली की रक्षा के लिए नोक। कढ़ाई कढ़ाई सूट लगभग किसी भी धागा। कपास और रेशम नाजुक कपड़े के लिए ले लो। कढ़ाई कढ़ाई के लिए सबसे लोकप्रिय धागा - सोता। प्रत्येक किनारा (अंटी) 6 पतली धागे है कि आसानी से अलग कर दिया और उपयोग किया जाता है अलग के होते हैं। सोता निर्माताओं व्यापक पैलेट की पेशकश - 400 रंग। घने ऊतक पर अच्छा कपास धागा "आइरिस" या ऊन है, लेकिन रंग की संख्या बहुत कम है। कढ़ाई साटन सिलाई के लिए सिलाई धागे अपने मजबूत मरोड़ की वजह से नहीं किया जाता है। सुइयों के चयन के संबंध में, वहाँ कोई विशेष आवश्यकताओं हैं, यह केवल यार्न और कपड़े की मोटाई पर भरोसा करने के लिए आवश्यक है। पतले कपड़े आधार 1-2 धागे कढ़ाई सोता की आवश्यकता होगी। देखभाल कि सुई आंख भी विस्तृत नहीं है इतनी के रूप में कपड़े ख़राब करने के लिए नहीं है। मोटे कपड़े कढ़ाई सोता या पूर्ण skeins ऊन। सुई कढ़ाई गैर नाजुक कपड़े - मोटी कपास के लिए 1-3 - 9-12 - घने ऊन के लिए 4-8 नंबर। - बल्कि घने कपड़े (बुना हुआ नहीं)। निट पर कढ़ाई के मामले में, ऊन या अन्य मुहर है, जो तब काटा जा सकता है का उपयोग करें। कपड़े अच्छी तरह से फैला है, तो ड्राइंग विकृत नहीं किया जाएगा। - पैटर्न हस्तांतरण विधिः कार्बन पेपर, अनुरेखण कागज, विशेष धोने योग्य मार्कर। लौह-ऑन स्थानान्तरण, आप एक पेंसिल या एक पूर्ण रेखाचित्र, जो सब्सट्रेट एक लोहे का उपयोग कर के लिए स्थानांतरित कर रहा है उपयोग कर सकते हैं। - ध्यान से कढ़ाई फ्रेम करने के लिए कपड़े देते हैं। - पसंदीदा धागा - सोता या रेशम। मैप्स रंगों प्रसिद्ध निर्माताओं - डीएमसी, मदीरा, एंकर - आइटम के सैकड़ों युक्त और चयन और सबसे नाजुक संक्रमण निष्पादित कर सकते हैं, खासकर अगर यह कढ़ाई रंग है। योजनाएं, साबित चयन करने की आवश्यकता है तो अपने काम अविश्वसनीय रूप से यथार्थवादी है। - ड्राइंग समोच्च, छिपा जाना चाहिए ताकि कढ़ाई, थोड़ा यह परे हो जाता है। - टांके, कसकर बंद सामग्री होना चाहिए ऐसा नहीं के रूप में देखा जाना चाहिए। - टांके के अलग अलग दिशाओं दिलचस्प रंग प्रभाव को प्राप्त होगा। आप कढ़ाई खुद सीखने का फैसला है और सब कुछ आप की जरूरत खरीदा है, तो आप आसानी से सीवन पर पुस्तकों में योजनाओं की एक किस्म मिल सकता है। कदम कार्यशालाओं द्वारा चरण का विस्तार से वर्णन काम करने के लिए। कढ़ाई कढ़ाई योजना - फूल - एक लंबे समय के लिए सबसे लोकप्रिय बने हुए हैं। आप हर स्वाद सूट करने के लिए एक विकल्प मिल सकता है। शुरुआती के लिए कई किताबें कढ़ाई साटन सिलाई के रूप में कला के इस प्रकार के लिए समर्पित needlewomen। योजनाएं, खूबसूरती से सचित्र हैं, इसलिए उन लोगों के साथ, काम करने के लिए बहुत आसान है, खासकर अगर आप घर से दूर कर रहे हैं। इसके अलावा प्रस्ताव पर शुरुआती के लिए पाया जा सकता है पहले से तैयार किट, वे पहले से ही आयोजक, एक विस्तृत चित्र, कपड़े, सुई से जुड़ी सही रंग के धागे की है। एक सरल टांके में कोट एक दूसरे के समानांतर में प्रदर्शन कर रहे हैं, वे कसकर विस्तार भरा, ड्राइंग सीधा किनारा। सीवन का एक प्रकार है कि विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है - यह कढ़ाई साटन सिलाई है। आरेख सरल लग रही है, लेकिन मंशा के निष्पादन परिशुद्धता की आवश्यकता है। दो तरफा के सरल सतह, तो अपने चेहरे और उत्पाद के नीचे ही दिखते हैं। यह बहुत अच्छा लग रहा है और आप भर में इस तकनीक का उपयोग करने के लिए अनुमति देता है। धागा की छोर मुख्य कैनवास टांके के नीचे छिपा कर रहे हैं, लेकिन नोड्स बना नहीं कर रहे हैं। धागा सुरक्षित करना गलत है। तत्व के अंदर आप कुछ टांके "आगे सुई" ऐसा करने के लिए, और इतना है कि अंत ड्राइंग सतह पर बने रहे तो धागा खिंचाव की जरूरत है। इसके बाद, कढ़ाई टांके धागा के अंत बंद करो, और यह नहीं देखा जा सकेगा। धागा काम कर बांधा जाता है के बाद, बुनियादी पैटर्न सही रूप में एक रेखा खींचने से घने टांके निष्पादित किया जाता है। यह ध्यान और धैर्य की आवश्यकता है। टांके विभिन्न कोणों पर लगाया जा सकता है, लेकिन हमेशा एक दूसरे के समानांतर। धागा तनाव का ट्रैक रखें। पुष्प रूपांकनों - एक बहुत ही लोकप्रिय कढ़ाई साटन सिलाई। योजना जटिलता के विभिन्न स्तरों के एक महान विविधता है। उदाहरण के लिए, आप रंगीन धागे के साथ एक सरल फूल सीना कर सकते हैं। प्रारंभ करना - फूल के केंद्र। एक सरल चिकनी सतह का उपयोग करना, बस पत्ते बाहर ले जाने के। एंटीना सीवन डंठल छाप। नतीजतन, आप एक अच्छे चिकनी पक्षीय आंकड़ा मिलता है। बेशक, आप मिल गया यह "उत्कृष्ट"! कढ़ाई कढ़ाई craftswomen के लिए सरल योजना शुरुआती आत्मविश्वास महसूस अनुमति देते हैं। आज, यह लोकप्रिय कढ़ाई है - खसखस। इन अद्भुत रंग के चित्र को खोजने के लिए मुश्किल हो सकता है। नीचे कदम निर्देश है कि नौसिखिया craftswomen खसखस कढ़ाई की अनुमति देने से कदम है। तकनीक - चीनी सद्भाव। - कपड़े पर पैटर्न का अनुवाद करें। - एक दूसरे के साथ सद्भाव में, अलग अलग रंग की एक धागा का चयन करें। फूल - लाल और काले रंग, तनों और पत्तियों के लिए - हरी। - लाल धागे फूलों और कलियों छाप। - ग्रीन डंठल कैरी (स्तंभ सीवन) और पत्तियों (सरल चिकनी सतह)। कढ़ाई क्षेत्र - तस्वीर में के रूप में। - केंद्रीय फूल का काला धागा कढ़ाई। हो गया! यह एक अफीम की कढ़ाई करने के लिए सबसे आसान तरीका है। तुम्हें पता है, रंग संक्रमण का उपयोग कर सकते हैं अगर आप अनुभव के साथ कुशल कामगार हैं। कढ़ाई कढ़ाई रंग - सबसे लोकप्रिय मूल भाव कपड़े को सजाने के लिए। योजनाएं बहुत आसान हो सकता है, लेकिन परिणाम केवल चौंकाने वाली है। लोक वेशभूषा लंबे अमीर कढ़ाई के साथ सजाया गया है। लोकप्रिय योजनाओं कपड़ों पर कढ़ाई घंटे की बस कुछ आधुनिक फैशनेबल चीजों को बदलने होंगे। उदाहरण के लिए, सजाने कढ़ाई सरल टी शर्ट, हम पुष्प मूल भाव का प्रयोग करेंगे। हम की जरूरत हैः - सफेद टी शर्ट ; - कढ़ाई सिलाई के लिए आरेख; - सोता; - छोटे प्लास्टिक घेरा; - स्थानांतरण पैटर्न के लिए धोने योग्य मार्कर; - सुई; - घेरा। हम एक मार्कर के साथ "प्रसारण" द्वारा इस योजना के लिए स्थानांतरण। घेरा में कपड़े जकड़ना और कढ़ाई शुरू करते हैं। सबसे पहले कढ़ाई टहनियाँ सीवन "आगे सुई" बाहर ले जाने के। आकृति पत्ते बायपास डंठल सीवन, फिर उन्हें सरल कढ़ाई के साथ भरें। फूल भी आरेख के अनुसार एक सरल चिकनी सतह छाप। जब फ्रेम में पूरे पैटर्न बना है, हम उन्हें एक नए स्थान पर ले। फैशनेबल कढ़ाई शर्टः और यहाँ नतीजा है। कपड़े, कशीदाकारी, विशेष वर्ण, क्योंकि यह अद्वितीय है है। यह प्रियजनों के लिए या अपने आप के लिए एकदम सही उपहार है। इस प्रकार, कढ़ाई - अद्भुत शिल्प है कि आप सुखद क्षणों का एक बहुत दे।
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How to satisfy woman in bed in Hindi: क्या आप जानना चाहते हैं कि अपनी गर्लफ्रेंड, वाइफ या फीमेल पार्टनर को बिस्तर पर कैसे संतुष्ट करें? तो आप बिलकुल सही जगह आए हैं, इस लेख में आपको बताया जाएगा कि सेक्स के दौरान अपना ध्यान कहाँ और कैसे फ़ोकस करें ताकि आप अपनी साथी की यौन इक्षा को पूरा कर सकें। दो लवर्स की बात हो या फिर शादीशुदा जीवन की सभी यही सोंचतें हैं कि बिस्तर पर महिलाओं को संतुष्टि की प्राप्ति, लम्बे टाईम से होती है मतलब यह कि अगर आप ज्यादा देर तक अपने पार्टनर के साथ सेक्स करते हैं तो वह आपसे बिस्तर पर संतुष्ट हो जायेगी। लेकिन यह सोचना बिल्कुल गलत है। सेक्स महिला और पुरुष दोनों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसलिए ये जरूरी है कि सेक्स के दौरान पुरुष और महिला दोनों को ही समान रूप से यौन आनंद की प्राप्ति हो। वैज्ञानिको का मानना है कि सेक्स करते समय अगर सही से महिला को सेक्स के लिए तैयार किया जाता है तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में शरीरिक उत्तेजना ज्यादा होती है, लेकिन बहुत सी महिलाएं सेक्स के दौरान शारीरिक रूप से असंतुष्ट होने के बावजूद अपने पार्टनर से अपनी सेक्स की भावनाएं व्यक्त नहीं कर पातीं। इन सेक्स करने के टिप्स को अपनाकर आप न केवल खुद में अलग आत्मविश्वास महसूस कर सकते हैं, बल्कि अपने पार्टनर को चरम-सुख प्रदान कर उन्हें संतुष्ट भी कर सकते हैं। हम आपको बता दें कि महिलाओं में सेक्स की संतुष्टि के लिए ज्यादा टाईम तक सेक्स करने की जरूरी नहीं होतो है उससे कंही ज्यादा जरूरी बिस्तर पर रति क्रिया करते समय सेक्स पोजीशन और सही समय पर अपने पार्टनर के साथ सेक्स करने की होती है। बिस्तर पर जाते ही तुरंत सेक्स करने की कोशिश कभी न करें, कपड़े उतारें और पार्टनर को कुछ देर हग करने के बाद अलग हो जाए। उसके सामान्य होने का इंजतार करें। फिर उसे कुछ देर तक गले लगाकर फोरप्ले की प्रक्रिया धीरे धीरे शुरु करें। जैसे किस करना, गले और कान के पास हल्का किस करें और चूसें, काने के नीचे जीभ से चाटें। महिलाए सेक्स के आनंद के साथ संतुष्ट होने की भी कामना करती है वो भी सुरक्षित तरीके से, इसलिए इसका हमेशा ख्याल रखें। अगर उनके मन में प्रेग्नेंट होने का डर बना रहेगा तो बह सेक्स को सही से एन्जॉय नहीं कर पाएगीं। इस समय उनकी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी आप पर होती है। इसलिए हमेशा सेक्स शुरू करने से पहले गर्भनिरोध का पूरा ख्याल रखें। आवेश में आकर सेक्स कभी न करें। (और पढ़ें - फोरप्ले क्या होता है करने के तरीके, फायदे और नुकसान) प्राकृतिक रूप से महिलाएं संभोग करने के लिए जल्द गर्म या उत्तेजित नहीं होतीं। उन्हें सेक्स के लिए तैयार होने में समय लगता है। जब पुरूष के अन्दर ज्यादा समय तक सेक्स करने की क्षमता न हो तब महिला से सेक्स से जुड़े टापिक पर बातें करें और ज्यादा समय उनके स्तनों को सहलाने और गले के आस-पास किस करने में लगाए। आपको बता दें कि कुछ महिलाओं को हॉट तो कुछ को साफ्ट सेक्स करना पसंद होता है। अगर आपकी पार्टनर को हार्ड सेक्स करना पसंद है तो उसके साथ थोड़ा बहुत जबरदस्ती करें ताकि उसे अधिक आनंद आ सके। लेकिन इससे ठीक उलटा है साफ्ट सेक्स पसंद करने वाली के साथ, अगर आपने कुछ भी जबरदस्ती करना चाहा तो शायद वो आपसे नाराज भी हो सकती है और आपको बुरा आदमी समझ सकती है। ऐसे में आप अपनी पार्टनर से फोरप्ले के दौरान सेक्स करने से जुड़ी बातें कर सकते हैं जैसे तुम्हे सेक्स की कौन सी पोजीशन पसंद है या क्या तुम मेरे ऊपर आना पसंद करोगी। (और पढ़ें - फोरप्ले आइडिया जिससे वो हो जाएंगे बेकाबू) शारीरिक संबंध बनाने से पहले अपनी पार्टनर को कंफर्टेबल फील करना बेहद ज़रूरी होता है। अगर वह तनाव में रहेगी तो उन पलों को एन्जॉय नहीं कर पायेगी। माहौल को हल्का बनाने और स्ट्रेस कम करने के लिए आप अपनी पार्टनर से रोमांटिक बातें कर सकते है। उनकी सेक्स की इच्छा पूछ सकते हैं कभी कभी सेक्सी और नॉटी बातें भी आपकी पार्टनर को सेक्स के लिए उत्तेजित कर सकती है। और उनको सेक्स में जल्दी संतुष्ट कर सकतीं हैं। सेक्स करते समय बीच-बीच में पार्टनर से बातचीत जारी रखें। साथी को पूर्ण संतुष्ट करने के लिए रुक-रुक कर सेक्स का आनंद लें। अगर पार्टनर आपसे ज्यादा तेज करने को कहे तो समझे की बह चरम सुख के करीब हैं और आप सही राह पर जा रहें हैं ऐसे में फोरप्ले को बढ़ा दें जिसमे पार्टनर के स्तनों को चूसना या तेजी से दबाने की जरुरत है। अगर आप चाहें तो उनकी योनि को भी अपनी जीभ से चाट सकते हैं यदि आप ऐसा करते हैं तो आपकी पार्टनर पागलों की तरह कराहने लगेगी और ऐसा करते रहने को कहेगीं हो सकता है वह इसी दौरान चरम सुख प्राप्त कर लें और आप उसे संतुष्ट कर पायें । आदमी एक बार सेक्स करने के बाद कुछ देर के लिए शिथिल हो जाता है पर महिलाए और ज्यादा सेक्स चाहती है। इसलिए यदि आप ठन्डे पड़ गए हैं तो महिला की योनि में किस करने के साथ ही उंगली भी करते रहें और थोड़ी देर बाद जब आप फिर से तैयार हो जायें तो भरपूर समय के साथ सेक्स इंज्वाय करें महिला को संतुष्ट करने के लिए सेक्स जल्दी खत्म करने की गलती कभी न करें। (और पढ़ें - क्या करें जब सेक्स पार्टनर संतुष्ट न हो) पूर्ण सेक्स संतुष्टि और चरम सुख पाने के लिए सेक्स पोजीशन बदलना बेहद ज़रूरी है। सेक्स करते समय पोजीशन बदलने से सेक्स और उत्तेजक हो जाता है। साथ आपकी पार्टनर को भी नए-नए तरीके से सेक्स करना पसंद आ सकता है। एक बात का विशेष ध्यान में रखे, सेक्स पोजीशन के मामले में कभी भी अपनी पार्टनर के साथ ज़बरदस्ती नहीं करें। कुछ सेक्स पोजीशन ऐसी होती हैं जो महिला की योनि में मौजूद क्लाइटोरिस को उत्तेजित करतीं हैं जिससे महिला जल्दी संतुष्ट हो जाती है। आप उन सेक्स पोजीशन में सेक्स करने की कोशिश करें जैसे डोगी स्टाइल सेक्स पोजीशन या वुमन ऑन टॉप सेक्स पोजीशन। (और पढ़ें - बेस्ट सेक्स पोजीशन (यौनासन या यौन आसन) जो आपको देंगे पूरा मजा) सेक्स के दौरान अपनी महिला पार्टनर को पूरी तरह संतुष्ट करने के लिए आपको सेक्स संबंधी जानकारी जुटाने की जरूरत है। इसमें आपको सेक्स पोजीशन, महिला के शरीर की जानकारी, स्त्री की योनि की जानकारी, ओर्गास्म और महिला के शरीर के कामोत्तेजक अंगो की जानकारी होनी चाहिए। ज्यादातर लोगों को सेक्स करने की सही जानकारी नहीं होती है, जिसकी वजह से वो अपने पार्टनर को संतुष्ट नहीं कर पाते। और एक बात का धयान रखें जो आप पोर्न मूवीज में देखते हैं वैसा रियल लाइफ में नहीं होता है। इसलिए इनसे सीखने की वजाह किसी सही जगह से सेक्स से जुडी जानकारी जुटाएं और उसे अमल में लायें। (और पढ़ें - ऐसी 7 बातें, जो पार्टनर का मूड झट से बना देती है रोमांटिक) अक्सर महिलाएं अपनी महिला दोस्तों के साथ सेक्स संबंधी मुद्दों पर बात करती हैं, लेकिन अपने पार्टनर के साथ इन्हें साझा नहीं करतीं। अगर आप चाहतीं हैं की आपका पार्टनर आपको पूर्ण यौन सुख दे तो इन बातों को अपने पार्टनर के साथ साझा करें। इससे आप उन्हें अपनी फीलिंग्स को बेहतर तरीके से समझा पाएंगी। (और पढ़ें - इन बातों से जानें क्या आप सेक्स के लिए तैयार हैं) सेक्स में संतुष्टि प्राप्त करने के लिए अपने पार्टनर का आत्मविश्वास बढ़ाएं। ज्यादातर महिलाओं के अंदर अपने मोटे शरीर और योनि के काले रंग को लेकर कई बार हीन भावना आ जाती है, जिसकी वजह से वह सेक्स के दौरान अपनी कामेच्छा को अपने पार्टनर के सामने पूरी तरह प्रकट नहीं कर पाती। इसलिए ये जरूरी है कि सेक्स के दौरान आप उनकी खूबसूरती की तारीफ करें। इससे उनका आत्मविश्वास शिखर पर पहुंच जाएंगा। ऐसा महिला के साथ ही नहीं बल्कि पुरुषों के साथी भी होता है यदि आपको लगता है की आपका मेल पार्टनर सेक्स के दौरान अपने शरीर या प्राइवेट पार्ट को लेकर कॉंफिडेंट नहीं है तो उसे आप सेक्स के दौरान आवाज ना निकालकर या उनकी तारीफ़ करके उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं, ताकि वो आपको संतुष्ट कर सकें। (और पढ़ें - जाने पेनिस का एवरेज साइज कितना होता है) पार्टनर को बिस्तर पर संतुष्ट न कर पाने वाले कई मर्द शीघ्रपतन की समस्या का शिकार होते है। जिसमे एक दो झटके लगाने पर ही उनका वीर्यपात (ejaculation) तो हो जाता है जिससे उनकी पार्टनर संतुष्ट नहीं हो पाती है। ऐसे में उन्हें स्टॉप-स्टार्ट तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। जैसे ही आपको लगे की आप वीर्यपात करने वाले है तो थोड़े समय के लिए पेनिस को वेजाइना से बाहर निकालकर रुक जाए। जब आप सामान्य हो जाएँ तो दुबारा शुरू करें। ऐसा करने पर आप पार्टनर को संतुष्ट कर पाएंगे। अगर आपको फिर भी लगता है कि आप नही कर पा रहे तो डाक्टर से राय लें। किसी के बताए नुस्खे को न आजमाए। (और पढ़ें - प्रीमैच्योर इजैकुलेशन (शीघ्रपतन) के लिए स्टार्ट स्टॉप मेथड) इसी तरह की अन्य जानकारी हिन्दी में पढ़ने के लिए हमारे एंड्रॉएड ऐप को डाउनलोड करने के लिए आप यहां क्लिक करें। और आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं।
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तकनीकी सहायता - संघ के अन्य विशेष संगठनों की भाँति यह प्राविधिक सहायता कार्यक्रम के अन्तर्गत अपने विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न प्रदेशों को उपयुक्त परामर्शों द्वारा लाभ पहुँचाता है। स्वास्थ्य एवं कल्याणकारी कार्य अन्तर्राष्ट्रीय अणु शक्ति एजेंसी - इस अन्तर्राष्ट्रीय अणु शक्ति एजेंसी ( International Atomic Agency ) की स्थापना २६ जुलाई, १९५६ को हुई । संयुक्त राष्ट्रसघ के प्रधान कार्या लय, न्यूयार्क में हुए एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में २६ अक्टूबर, १९५६ को उसकी नियमावली स्वीकार की गयी थी और वह तब लागू हुई जब कि कम-से-कम आठ हस्ताक्षरकर्ता राज्यों ने, जिनमें कनाडा, फ्रांस, सोवियत रूस, ब्रिटेन और अमेरिका भी थे, अपने स्वीकृति पत्र जमा कर दिये । एजेंसी का संयुक्त राष्ट्रसंघ के साथ कार्य सम्बन्ध संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा द्वारा नवम्बर, १९५६ तथा एजेंसी की जेनरल कान्फ्रेंस के द्वारा अक्टूबर, १९९७ में स्वीकार किया गया । उद्देश्य - संसार भर में शान्ति, व्यवस्था तथा सम्पन्नता में अणु-शक्ति के योग को बढ़ावा देना तथा विस्तृत करना और यह सुनिश्चित करना कि उसके द्वारा की जाने वाली सहायता का नैतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग नही किया जायगा । संगठन - नियमावली में एक साधारण सभा सम्मेलन, एक गवर्नर बोर्ड, एक कर्मचारी भण्डल जिसका मुखिया एक महानिर्देशक होता है, की व्यवस्था है । साधारण सभा में एजेंसी के समस्त सदस्य होते हैं। इसके नियमित वार्षिक अधिवेशन होते हैं तथा आवश्यकतानुसार विशेष अधिवेशन भी बुलाये जा सकते हैं । सभी अन्य बातो के अलावा गवर्नर बोर्ड के सदस्यों को निर्वाचित करती है, बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट पर विचार करती है, एजेंसी के बजट स्वीकार करती है और संयुक्त राष्ट्र को पेश करने के लिए रिपोर्ट स्वीकार करती है। साधारण सभा नियमावली के क्षेत्र के अन्तर्गत किसी भी विषय पर विचार कर सकती है । विश्व स्वास्थ्य संगठन (W. H. Ox) विश्त्र-व्यापी पैमाने पर स्वास्थ्य की समस्या के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत एक विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation ) की स्थापना गयी है । सामाजिक और आर्थिक परिषद् ने एक अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सम्मेलन का आयोजन करके इसका संविधान बनवाया और ७ अप्रिल, १६४८५८ को इस संगठन की स्थापना कर दो गयी । इस संगठन के तीन अंग है : (१) सब सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों की असेम्बली ( २ ) असेम्बली द्वारा चुने गये अट्ठारह व्यक्तियों द्वारा नियत होने वाले चिकित्सा आदि का विशेष ज्ञान रखने वाले अट्ठारह व्यक्तियों का कार्यवाहक (Executive) बोर्ड तथा (३) सचिवालय अफ्रिका, अमेरिका, दक्षिण-पूर्वी एशिया, यूरोप, पूर्वी भूमध्यसागर और पश्चिमी प्रशान्त महासागर के क्षेत्रों के लिए इसके प्रादेशिक संगठन है। इसका मुख्य कार्यालय जेनेवा विश्व स्वास्थ्य संगठन का उद्देश्य संसार को बीमारी से मुक्त करना है। इसके उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठन निम्न कार्यों को करता है-- (१) अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य के कार्यों का संचालन तथा सम्वन्ध (२) महामारियों तथा बीमारियों के उन्मूलन के कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना, (३) स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसन्धान, (४) आकस्मिक लोटों को रोकने का यत्न करना, (५) मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य करना, (६) terft के अन्तर्राष्ट्रीय नामों के निदान सम्बन्धी कार्यों में एकरूपता स्थापित करना, (७) लोगों के वातावरणीय स्वास्थ्य की तथा आहार, पोषण, सफाई, निवासगृह तथा काम करने को दशाओं को उन्नत करना, (८) बाद्यपदार्थो, दवाइयों तथा अन्य ऐसी वस्तुओं के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय मापक निश्चित करना, (६) स्वास्थ्य के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा इसके विशेष संगठनों तथा अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी संस्थाओं में सहयोग स्थापित करना, तथा (१०) स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रशासनात्मक और सामाजिक प्राविधियों का अध्ययन करना । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं और इन कार्यों का अनु मान निम्नलिखित तथ्यों से लगाया जा सकता है :-- इसने यूनान में मलेरिया निरोध के लिए बड़े पैमाने पर सहायता की और वहाँ इस बीमारी के उन्मूलन में संगठन को पर्याप्त सफलता मिली। भारत में इसने क्षय रोग के निवारण के लिए बी० सी० जी० वैक्सीन पर्याप्त मात्रा में दी। ईथियोदिया की सरकार के लिए चिकित्सा के शिक्षण की एक विस्तृत योजना बनायी तथा इटriter सरकार को बन्दरगाहों में स्वास्थ्य की परिस्थितियाँ उत्कृष्ट बनाने में सहायता दी । इसने विभिन्न देशों को आवश्यक दवाइयाँ तथा डाक्टरी का बहुमूल्य सामान उपलब्ध कराया तथा अल्पविकसित देशों को सरकारों द्वारा सुझाये गये सरकारी अफसरों के सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सम्बन्धी उच्च अध्ययन के लिए छात्रवृत्तियाँ प्रदान की है। मलेरिया निरोध के लिए विभिन्न देशों को डी० डी०टी० तथा अन्य बीमारियों को रोकने के लिए पेन्सिलीन आदि दवाइयाँ बहुत बड़ी मात्रा में प्रदान की है। अन्तर्राष्ट्रीय बाल-पातकालीन कोष art के स्वास्थ्य पर विशेष रूप से ध्यान देने के लिए संघ के अन्तर्गत साधारण सभा ने ११ सितम्बर १६४६ को अन्तर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष की स्थापना की । यह संस्था आर्थिक और सामाजिक परिषद् की देख-रेख में काम करती है । १६५० में संयुक्त राष्ट्रसंघ को साधारण सभा ने इसके कार्य क्षेत्र को बढ़ाकर संसार भर के fareer afrefer देशों के बालकों को हर तरह की आवश्यकता की पूर्ति की व्यवस्था को । १९५३ में यह कोप स्थायी बना दिया गया। इन दिनों इसका कार्य संसार के प्रायः सभी देशों में हो रहा है। इसके द्वारा मलेरिया, यक्ष्मा आदि कठिन रोगों का निवारण, प्रसूतिकागृहों एवं शिशु कल्याण केन्द्रों की स्थापना, धातृविद्या प्रशिक्षण, शिशु आहार की व्यवस्था, दुग्ध संरक्षण और वितरण आदि कार्य किये जाते हैं। इन कार्यों के अतिरिक्त भूकम्प, बाढ़ आदि के समय यह विभाग प्रसूतिकाओं एवं शिशुओ की अपेक्षित सहायता करता है । इस संस्था की अधिक प्रशिक्षण केन्द्र सहायता के भारत के विभिन्न स्थानों में अस्पतालों और स्कूलों में सौ से स्थापित हो चुके हैं; जहाँ परिचारिकाओं को धातृविद्या की शिक्षा व्यन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धं जाती है। मातृमंगल एवं शिशु कल्याण के लिए यह संस्था विशेष रूप से कार्य कर रही है । १६६२ में इस संस्था के कार्यों का बहुत विस्तार किया गया । इस समय एक सौ एवं क्षेत्रों में इसकी पाँच सौ परियोजनाएँ चल रही है । विश्व - शरणार्थी संगठन (U.N.H.C.R. ) इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ की साधारण सभा द्वारा १ जनवरी, १९५१ को हुई थी । प्रारम्भ में इसका कार्य काल १९५८ तक ही रखा गया था, किन्तु पुनः इसकी अवधि वृद्धि १९६६ तक के लिए की गयी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य शरणार्थियों को अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण देना है। यह संस्था शरणार्थियों को स्वदेश लौटाकर अथवा उनका एक नवीन समुदाय स्थापित कर उनकी समस्याओं का स्थायी रूप से समाधान करने का प्रयत्न करती है। शरणार्थियों के लिए काम-धन्धे, न्याय, शिक्षा, धार्मिक स्वतन्त्रता, साहाय्य आदि प्राप्त करने के अधिकार इस संस्था द्वारा स्वीकार किये गये हैं। शरणार्थियों को विभिन्न देशो में यात्रा करने के लिए रिपोर्ट भी दी जाती है । जो शरणार्थी बसाये नहीं जा सके थे, उनकी संख्या १९६२ के आरम्भ में अस्सी हजार ( १९६१ ) से घटकर अट्ठावन हजार हो गयी है । उसी प्रकार उक्त काल में कैम्प में रहनेवालों फेलिक्स की संख्या पन्द्रह हजार से घटकर नौ हजार रह गयी। इस संस्था के वर्त्तमान उच्चायुक्त इनीडर ( स्विट्जरलैंड ) है । संघ के गैर राजनीतिक कार्यो का मूल्यांकन पुराने राष्ट्रसंघ की तरह संयुक्त राष्ट्रसंघ को गैर-राजनीतिक कार्यों में सराहनीय सफलता मिली है। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक तथा ऐसे ही अन्य कार्यों में संयुक्त राष्ट्रसंघ की विभिन्न संस्थाओं संगठनों से संसार के लोगों को अत्यधिक लाभ पहुँचा है। इसके श्रम संगठन ने मजदूरों की दशा को उन्नत किया है तथा खाद्य एवं कृषि संगठन ने अन्न का उत्पादन बढ़ा कर अकालों को नियन्त्रित करने का प्रयास किया है। विश्व स्वस्थ्य संगठन ने बीमारियों के प्रतिरोध में बड़ी सहायता पहुँचायी है और यूनेस्को ने मनुष्य के सांस्कृतिक विकास के लिए बड़े प्रशंसनीय कार्य किये है। एक समालोचक ने ठीक ही कहा है कि 'निरस्त्रीकरण और राजनीतिक कार्यों का खरगोश तो अभी झपकी ले रहा, किन्तु संघ की विशेष संस्थाओं को प्राविधिक सहायता और सहयोग का कछुआ बहुत आगे बढ़ गया है।" वस्तुतः संयुक्त राष्ट्रसंघ के कल्याणकारी कार्य उसके राजनीतिक कार्यों की अपेक्षा बहुत अधिक सफल रहे हैं । संयुक्त राष्ट्रसंघ का मूल्यांकन महान प्रयोग की असफलता युद्धों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्ति समाधान तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना मानव-इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना थी । अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की दिशा में इतने विशाल पैमाने कभी प्रयोग नहीं हुआ था। चार्टर में अन्तर्राष्ट्रीय संगठन को उन बुराइयों को दूर यल किया गया जिनके कारण पुराना राष्ट्रसंघ असफल हो गया था और संयुक्त राष्ट्रसंघ को पहने की अपेक्षा एक उत्कृष्ट और शक्तिशाली संगठन बनाया गया था। इसका संगठन और कार्यसंयक्त राष्ट्रसंघ पद्धति का सिलसिला उन्नीसवी शताब्दी के किसी भी व्यक्ति को महान् आश्चर्य में डाल दे सकता है। यदि उस युग का कोई यादमी जी उठे और संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रधान कार्यालय न्यूयार्क में पहुँच जाय तो वह इस प्रयोग को देखकर दंग हो जा सकता है। इतने पवित्र और महान् प्रयोग के लिए वह द्वितीय विश्व युद्धकालीन राजनेताओं को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता जिन्होंने संघ की मशीन का निर्माण किया। लेकिन कुछ दिनों के अध्ययन के बाद उसको पता चल जायगा कि संघ की मशीन त्रुटियों से परिपूर्ण है और इसके भाग दूसरे से किसी प्रकार सम्बद्ध नहीं है। अपने २४-२५ वर्ष के जीवन में संयुक्त राष्ट्रसंघ को प्रत्येक महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्य में प्रायः विफलता का सामना ही करना पड़ा है। इसकी विफलताएँ निम्नलिखित तथ्यों से प्रकट हो जाती है : १. संयुक्त राष्ट्रसंघ का एक उद्देश्य राष्ट्रों के बीच हथियारबन्दी की होड़ को रोकना था। लेकिन संघ अभी तक निरसीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न देशो के बीच समझौता नहीं करा सका है। २. दक्षिण अफ्रिका को श्वेत सरकार ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर और उद्देश्यों का अतिक्रमण किया है। वह भारतीय तथा अश्वेत जातियों के साथ प्रजातीय दुर्व्यवहार करके संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा उद्घोषित मौलिक मानवीय अधिकारों का उल्लंघन करती रही है। इसके अतिरिक्त अभी तक संयुक्त राष्ट्रसंघ इस सरकार से राष्ट्रसंघ के संरक्षित प्रदेश दक्षिण-पश्चिमी अफ्रिका को वापस नहीं ले सका है। ३. संयुक्त राष्ट्रसंघ का उद्देश्य संसार के एक ऐसे सहयोग का वातावरण कायम करना था रद्ध की सम्भावनाएँ कम हों। लेकिन पूर्व और पश्चिम के मतभेदों तथा महाशक्तियों के वैमनस्य और विरोध को मिटाने में यह पूर्णतया असफल रहा है । ४. सदस्यता के सम्बन्ध में भी संयुक्त राष्ट्रसंघ असफल रहा है। इसके अन्दर आपसी मतभेद इतना अधिक है कि अभी तक चीन, जर्मनी, कोरिया आदि देश इसके सदस्य नहीं बन पाये है। संघ में इन राज्यों का अभी तक न शामिल होना इसकी त्रुटियों का योतक है । ५. महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में संयुक्त राष्ट्रसंघ बहुत यसफल रहा है। इसके समक्ष कश्मीर का प्रश्न १६४७ से ही पड़ा हुआ है, लेकिन संघ इस समस्या को नहीं सुलझा पाया है जिसके कारण १९६५ में पाकिस्तान और भारत के बीच तीन सप्ताह तक भयंकर युद्ध हुआ । संसार में संकट पैदा करने वाले अभी तीन स्थल है- जर्मनी, कोरिया और वियतनाम और संयुक्त राष्ट्रसंघ में इन समस्याओं को सुलझाने का कोई यत्न नहीं हुआ है । इतने विशाल अन्तर्राष्ट्रीय प्रयोग की महान विफलता इतनी अल्प व्यवधि में क्यों और कैसे हो गयी ? इसका एक हो उत्तर है-अमरीकी और सोवियत गुट का मतभेद । संयुक्त राष्ट्रसंघ का मूल आधार महान शक्तियों में सहयोग था। चार्टर के जन्मदाताओं ने सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त को स्वीकार कर संयुक्त राष्ट्रसंघ का जन्म दिया था और इस सिद्धान्त के मूल में यह बात थी कि शान्तिप्रिय राज्य मिल-जुलकर काम करेंगे और शान्ति भंग करनेवाले के विरुद्ध संगठित होकर कार्रवाई करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और संयुक्त राष्ट्रसंघ अपने जन्म के
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नमूना हो । दक्षिण कनाडा मे स्थित जैन स्तम्भ भी विशेष उल्लेखनीय है । प्राचीन वास्तुनिर्माण कला के उत्तम नमूनों के रूप में कितने ही प्राचीन मन्दिर वर्तमान है, जो ईसा की छठी, सातवीं या आठवीं शताब्दी या उसके बाद के हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली जिले मे रामनगर मे एक प्राचीन शिव मन्दिर है, जो ईसा के पूर्व या पश्चात् की प्रथम शताब्दी का माना जाता है। इतिहास मे पता चलता है कि गुप्तकाल में ब्राह्मण धर्म उत्कर्ष को पहुँच चुका था । सम्भव है कि उस समय बहुत से अच्छे-अच्छे मन्दिर बनवाए गए होंगे, किन्तु एक भी अवशिष्ट नहीं है । ईसा की छठी शताब्दी के पश्चात् के जो मन्दिर हैं, उनके दो विभाग किये जा सकते है - (१) उत्तर भारत के मन्दिर और (२) दक्षिण भारत के मन्दिर । इनके पुन दो-दो उपविभाग किये जाते है - उत्तर पश्चिम व उत्तर-पूर्व के मन्दिर, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण पूर्व के मन्दिर । उत्तर भारत के मन्दिरो की विशेषता के बारे में डॉ० स्मिथ लिखते हे कि यावर्त - शैली की विशेषता यह है कि उसमे ऊपर निकली हुई गुम्मद रहती है, जिसमे पसलियों के समान ऊपर उठी हुई रेखाएं रहती है । यह बाँस की बनी हुई रथ के ऊपर वाली छत की नकल है। उत्तरपश्चिम के मन्दिरों की विशेषता यह है कि उनके शिखर सीधे रहते है, सिरे पर एक लम्बा शिखर रहता है, आस-पास बहुत से छोटे छोटे शिखर रहते है। इन मन्दिरों का मुख्य शिखर चौरस आधार पर से चार स्थान पर ढाल बनाकर सीधा ऊपर उठता है और ऊपर के गोल पत्थर से मिल जाता है। इस प्रकार खजुराहो, नेमावर, खुर्दा, ऊन और ग्वालियर ( मध्य भारत ), तथा देउल ( खानदेश, बम्बई प्रदेश ), सिन्नर ( नासिक जिला ) आदि स्थानों में है। उत्तर-पूर्व के मन्दिरों की विशेषता यह है कि इनके शिखरों का आधार चतुर्भुज आकार का रहता है, किन्तु कोण दर की ओर कमान बनाते हुए जाकर गोलाकार बनाते अमरकण्टक, छत्तीसगढ़ (मध्य प्रदेश ) आदि स्थानो मे है । पश्चिम दक्षिण ( चालुक्य शैली) के मन्दिरो की विशेषता यह है कि उनमे शिखर नहीं रहते। उनका ऊपरी सिरा साढ़ीदार 'पिरेमिड' के समान रहता है व ऊपर एक ठोस गुम्मद रहती है। इस प्रकार के मन्दिर बदामी (कर्नाटक), तज्जौर (सुब्रह्मण्यम् का मन्दिर ), काञ्ची ( मुक्तेश्वर का मन्दिर ) आदि के है । दक्षिण पूर्व के मन्दिरो को 'गोपुर वाले मन्दिर' कहते हैं । इनके शिखर का ऊपरी भाग गोल या चौरस रहने के बदले लम्बे व गोल किनारो का रहता है। मदुरा मे मोनाक्षी का मन्दिर, मद्रास मे वेदगिरीश्वर का मन्दिर, त्रिचनापल्ली में तिरुचिन्न पतिराय का मन्दिर व तजौर मे राजराजेश्वर का मन्दिर इसी श्रेणी के हैं । इन मन्दिरों के अतिरिक्त काश्मीर का मार्तण्ड - मन्दिर नेपाल के मन्दिर तथा गुजरात व आबू पर्वत के जैन मन्दिर, जिनमें से दो सगमरमर के बने हुए हैं, अपनी-अपनी विशेषताओ से परिपूर्ण हैं, व कला की दृष्टि से सुन्दर है। स्थापत्य, शिल्पकारी आदि स्थापत्य, शिल्पकारी आदि के बारे मे वैदिक काल का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलता, किन्तु यजुर्वेद (३०/६-७, ११, १७, २०) से मणिकार, सुवर्णकार आदि का उल्लेख आता है, उसके सहारे कहा जा सकता है कि कदाचित् शिल्पकारी का ज्ञान उस समय रहा हो । क्योंकि गहने पहनने की भावना में ही कला की भावना भरी हुई है । मोहन्ञ्जोदडो व हडप्पा से यक्ष, पृथ्वी, पशुपति आदि की छोटी-छोटी सुन्दर मूर्तियाँ मिट्टी के छोटे-बड़े बरतन, खिलौने, सोने आदि के छोटे-छोटे फूल इत्यादि कला के सुन्दर नमूने प्राप्त हुए हैं। मौर्य काल से स्थापत्यादि कला के विकास का स्पष्ट पता चलता है। इस काल की कला के अच्छे अच्छे नमूने श्राज भी वर्तमान हैं। अशोक के स्तम्भो व उनके ऊपर के लेप से उत्कृष्ट कला का ज्ञान होता है। सारनाथ (बनारस ) मे जो अशोक का स्तम्भ है, उसके ऊपरी छोर पर एक ही ओर पीठ किये हुए चार सिहों की मूतियाँ है, जो अब सारनाथ के सग्रहालय में रखी गई हैं व जिनका चित्र स्वतन्त्र भारत ने अपनी राज-मुद्रा के लिए अपनाया है। ये मूर्तियाँ इतनी अच्छी व सजीवतापूर्ण हैं कि देखने में मालूम होता है कि साक्षात् सिह ही बैठे हो । डॉ० स्मिथ का तो कहना है कि इतनी अच्छी मूर्ति बनाने की कला का ज्ञान भारत के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देता । इस समय की और भी अच्छा अच्छी मूर्तियाँ उपलब्ध हैं। बेसनगर (मध्य भारत ) में स्त्री की दो बडी बडी मूर्तियाँ मिली हैं, जो बिलकुल सजीव मालूम होती हैं। परखम से प्राप्त मूर्ति, जो आजकल मथुरा के संग्रहालय में है, इस काल के कुछ पूर्व की कला का नमूना है । ऐसो ही मूर्तियाँ साँची से भी प्राप्त हुई हैं। मूर्तियों के अतिरिक्त, बौद्ध स्तूपों की पथरीली चहारदीवारी व उसमे बने हुए तोरणों पर खुदे हुए चित्रों की उत्कृष्ट कला से उस समय के कलाविदा के कौशल का पता चलता है। भारूत स्तूप (ई० पू० दूसरी शताब्दी) की चहारदीवारी व तोरणों पर गौतम बुद्ध के जीवन की घटनाएँ तथा जातकों की कथाएँ चित्र रूप में अकित की गई हैं। एक स्थान पर नागजातक का वर्णन चित्रित है व दूसरे स्थान पर बुद्ध की माता मायादेवी का स्वप्न चित्रित किया गया है। तीसरे स्थान पर श्रावस्ती के जेतवन का चित्र है जिसमें भूमि, वृक्ष व विभिन्न स्थल व अनाथपिण्डर का सिक्को से लदी बैलगाड़ी खाली करना चित्रित किया गया है। इसी प्रकार अजातशत्रु व प्रसेनजित् का एक बडे जुलूस मे बुद्ध से मिलना अति है। ऐसी कला बौद्ध गया के मन्दिर की चहारदीवारी व स्तम्भों पर भी कित की गई है। साँची के स्तूपों की चहार दीवारी के तोरणों पर की गई कारीगरी मे इस कला के सौन्दर्य की चरम सीमा होती है। इन तोरणों पर बौद्ध देवलोक, बिम्बिसार का बुद्ध के दर्शनों के लिए दरबारियों के साथ राजगृह से निकलना, निरजना नदी के पुर में बुद्ध को डूबने से बचाने के लिए शिष्यों सहित काश्यप का नाव मे बैठकर शीघ्रता से जाना, बुद्ध का पानी की सतह पर से चलकर श्राना आदि का बहुत ही सुन्दरता से अमन किया गया है । शुभकाल के पश्चात् इस कला के विकास के तीन विभिन्न प्रकार दृष्टिगोचर होते हैं, जैसे गान्वार-कला, मथुरा-कला व श्रमरावती (कृष्णा नदी के किनारे) कला । जब बैक्ट्रिया के यूनानियों ने अफगानिस्तान व पञ्जाब को जीता, तब वे अपने साथ अपनी कला को भी ले श्राए । यह विदेशी कला स्थानीय वातावरण मे पुष्पित व पल्लवित होकर प्रासपास फैलने लगी । बैक्ट्रिया की कला से प्रभावित पश्चिमोत्तर भारत की कला को गान्धार - कला कहते हैं । प्रारम्भ । प्रारम्भ मे भारत में रहने वाले यूनानियो ने अपने कलाकारों द्वारा मूर्तियाँ, तथा मन्दिर आदि बनवाये । समय के प्रवाह से सब यूनानी बौद्ध या हिन्दू दन गए । इन यूनानी भारतीय कलाकारों ने सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्ति बनाना प्रारम्भ किया। ये मूर्तियाँ कला की दृष्टि से बहुत ही सुन्दर हैं। इन पर पत्थर मे कपडे के जो मोड बनाये गए हैं वे बिलकुल नैसर्गिक है। ये कलाकार बुद्ध की जीवन-घटनाओ व जातक कथाओं को पत्थर पर करने लगे । कुशान-सम्राटों ने भी इस कला को अपनाया। कनिष्क के तीसरे वर्ष को बोधिसत्व को मूर्ति से भी, जो सारनाथ (बनारस) में मिली है, कला की उत्कृष्टता का पता चलता है। कनिष्क के राजस्वकाल मे गान्धार के यूनानी कलाविदों ने मथुरा की मौलिक कला को सुधारा और यही सुधरी हुई कला मथुरा कला के नाम से विख्यात हो गई । मथुरा कला द्वारा गान्धार-कला ने भारत की विभिन्न कला-शैलियों को प्रभावित किया था। परखाम की मूर्ति व सारनाथ में बोधिसत्व की मूर्ति यूनानियो द्वारा परिष्कृत किये जाने के पूर्व की मथुरा-कला के नमूने हैं । यूनानी कलाकारों ने मथुरा की कला को इस प्रकार सुधार कि गान्धार की मूर्तियों के ठीक समान मूर्तियाँ मथुरा में भी बनाई जाने लगीं। उन्होंने यूनानी वेश-भूषा का समावेश इसमें करा दिया।
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आईसीसी क्रिकेट विश्व कप एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप है। टूर्नामेंट खेल के शासी निकाय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा हर चार साल आयोजित किया जाता है। टूर्नामेंट दुनिया में सबसे ज्यादा देखी गयी खेल स्पर्धाओं में से एक है, यह केवल फीफा विश्व कप और ओलंपिक पीछे है। पहली बार विश्व कप 1975 में इंग्लैंड में आयोजित किया गया था, पहले तीन विश्व कप इंग्लैंड में मेजबानी किए गए थे। लेकिन 1987 टूर्नामेंट के बाद से विश्व कप हर चार साल दूसरे देश में आयोजित किया जाता है। सबसे हाल ही टूर्नामेंट २०१५ में आयोजित की गई थी, यह टूर्नामेंट ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने मेजबानी की थी और इसे ऑस्ट्रेलिया ने जीता। . चैंपियंस लीग ट्वेंटी20, (संछिप्त में CLT20) एक प्रमुख क्रिकेट टीमों की शीर्ष घरेलू टीमों के बीच खेला जाने वाला वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय ट्वेंटी 20 क्रिकेट प्रतियोगिता थी। प्रतियोगिता 2008 में अक्टूबर 2009 में आयोजित पहले संस्करण के साथ शुरू हुई थी। यह संयुक्त रूप से बीसीसीआई, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया और क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका के स्वामित्व में था, और एन॰ श्रीनिवासन की अध्यक्षता की गई, जो आईसीसी के अध्यक्ष भी थे। सुंदर रामन सीएलटी 20 और आईपीएल के मुख्य संचालन अधिकारी (सीओओ) थे। टूर्नामेंट सितंबर और अक्टूबर के बीच भारत या दक्षिण अफ्रीका में दो से तीन सप्ताह तक आयोजित किया गया था। इसमें यूएस $ 6 मिलियन का कुल इनाम पूल था, जिसने विजेता टीम को $ 2.5 मिलियन प्राप्त करने के साथ, इतिहास में एक क्लब क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए सबसे अधिक। प्रारूप में आठ टेस्ट खेलने वाले देशों के प्रीमियर ट्वेंटी 20 प्रतियोगिताओं की सबसे अच्छी टीम शामिल थी, जो भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका की टीमों का समर्थन करती थी। दर्शकों की दिलचस्पी, अस्थिर प्रायोजकों और अन्य आवश्यक कारकों की कमी की वजह से 15 जुलाई 2015 को तीन फाउंडिंग बोर्डों ने घोषणा की थी कि टूर्नामेंट खत्म हो जाएगा, इस प्रकार 2014 चैंपियंस लीग ट्वेंटी 20 टूर्नामेंट की अंतिम श्रृंखला थी। . एडम क्रेग गिलक्रिस्ट (जन्म 14 नवंबर 1971 बेलिंगन,न्यू साउथ वेल्स में) एक पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी है। जिनको गिली या चर्च के उपनामों से भी जाना जाता है। इन्होंने अपना पहला प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच 1992 में, पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच 1996 में और टेस्ट क्रिकेट मैच 1999 में खेला। इनके अलावा इन्होंने इंडियन प्रीमियर लीग में डेक्कन चार्जर्स और किंग्स इलेवन पंजाब की ओर से भी खेलते थे। . ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड ने ओडीआई (ODI) मैच होस्ट किया। पीले कपड़ों में बल्लेबाज हैं जो ऑस्ट्रेलियाई है जबकि नीले कपड़ों में भारतीय क्षेत्ररक्षण टीम हैं। एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (ओडीआई (ODI)) क्रिकेट की एक शैली है, जिसमें दो राष्ट्रीय क्रिकेट टीमों के बीच प्रति टीम 50 ओवर खेले जाते हैं। क्रिकेट विश्व कप इसी प्रारूप के अनुसार खेला जाता है। एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैचों को "लिमिटेड ओवर इंटरनेशनल (एलओआई (LOI))" भी कहा जाता है, क्योंकि राष्ट्रीय टीमों के बीच सीमित ओवर के क्रिकेट मैच खेले जाते हैं और यदि मौसम की वजह से व्यवधान उत्पन्न होता है तो वे हमेशा एक दिन में समाप्त नहीं होते. डकवर्थ लुईस नियम क्रिकेट के सीमित मैच के दौरान किसी प्रकार की प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों एवं अन्य स्थितियों में अपनाया जाने वाला नियम है, ताकि मैच अपने निर्णय तक पहुँच सके। यह नियम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। इस नियम के तहत घटाए गए ओवरों में नए लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। इस लक्ष्य निर्धारण विधि को एक ख़ास सांख्यिकीय सारणी की मदद से निकाला जाता है जिसका संशोधन समय-समय पर होता रहता है। इस नियम का विकास इंग्लैंड के दो सांख्यिकी के विद्वान फ्रैंक डकवर्थ और टौनी लुईस ने किया था। . क्रिकेट में एक बल्लेबाज नाबाद (not out) कहलाता है यदि वह पारी की समाप्ति तक बल्लेबाज़ी करता है। श्रेणीःक्रिकेट शब्दावली. न्यूज़ीलैंड प्रशान्त महासागर में ऑस्ट्रेलिया के पास स्थित देश है। ये दो बड़े द्वीपों से बना है। न्यूजीलैंड (माओरी भाषा मेंः Aotearoa आओटेआरोआ) दक्षिण पश्चिमि पेसिफ़िक ओशन में दो बड़े द्वीप और अन्य कई छोटे द्वीपों से बना एक देश है। न्यूजीलैंड के ४० लाख लोगों में से लगभग तीस लाख लोग उत्तरी द्वीप में रहते हैं और दस लाख लोग दक्षिणि द्वीप में। यह द्वीप दुनिया के सबसे बडे द्वीपों में गिने जाते हैं। अन्य द्वीपों में बहुत कम लोग रहतें हैं और वे बहुत छोटे हैं। इनमें मुख्य है. अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी भाग को पूर्वी अफ्रीका कहते हैं। इसमें बुरूंडीकोमोरोज़जिबूतीईरीट्रियाइथियोपियाकीनियामैडागास्करमलावीमारीशसमोजाम्बिकरवांडासेशल्ससोमालियातंजानियायुगांडाजाम्बियाज़िम्बाबवे देश आते हैं। इनके विस्तृत आंकड़े इस प्रकार से हैंः- . फ़ीफा विश्व कप (प्रायः मात्र विश्व कप), फेडरेशन इंटरनेशनेल डी फुटबॉल एसोसिएशन (फीफा), खेल की वैश्विक शासी निकाय के सदस्यों के वरिष्ठ पुरुषों की राष्ट्रीय टीमों द्वारा खेली जाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संघ फुटबॉल प्रतियोगिता है। 1930 में उद्घाटन टूर्नामेंट के बाद हर चार साल से आयोजित किया जाता है, सिवाय 1942 और 1946 में, जब द्वितीय विश्व युद्ध के कारण से आयोजन नहीं किया जा सका था। मौजूदा चैंपियन ब्राज़ील में 2014 टूर्नामेंट जीतने वाले जर्मनी है। टूर्नामेंट के मौजूदा स्वरूप के बारे में एक महीने की अवधि में मेजबान देश के भीतर स्थानों पर खिताब के लिए प्रतिस्पर्धा में 32 टीमों को शामिल है, इस चरण में अक्सर विश्व कप के फाइनल में कहा जाता है। वर्तमान में पिछले तीन साल से अधिक जगह लेता है, जो एक योग्यता चरण, टीमें मेजबान देश के साथ टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई जो निर्धारित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। 19 विश्व कप टूर्नामेंट के आठ विभिन्न राष्ट्रीय टीमों द्वारा जीता गया है। ब्राजील पांच बार जीता है और वे हर टूर्नामेंट में खेला है के लिए एक ही टीम हैं। चार खिताब प्रत्येक के साथ, इटली तथा जर्मनी, दो खिताब प्रत्येक के साथ अर्जेंटीना और उरुगुए और इंग्लैंड, फ्रांस और स्पेन, एक खिताब के साथ प्रत्येक। विश्व कप में दुनिया के सबसे व्यापक रूप से देखी जाने वाली खेल की घटनाओं में से एक है, एक अनुमान के अनुसार 71,51,00,000 लोगों को जर्मनी में आयोजित २००६ फीफा विश्व कप का फाइनल मैच देखा। . प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से में कैरेबियन द्वीप पर स्थित इस देश को अंग्रेजों ने अफ्रीका और भारत से गन्ना उत्पादन के लिए लाए गए गुलामों की मदद से आबाद किया था। महज 430 वर्ग किमी में फैले इस द्वीप के आस-पास के देश में पश्चिम में सेंट विंसेंट व द ग्रेनाजिनस और सेंट लुसिया और दक्षिण में त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले इस देश में प्रशांत महासागर में चलने वाली हवाएं वातावरण को शीतल बनाए रखती हैं। सामाजिक और राजनीतिक सुधारों की धीमी शुरुआत के बावजूद आज मानव विकास सूची में इस देश का स्थान ऊपर के 75 देशों में आता है। श्रेणीःदेश श्रेणीःउत्तर अमेरिका. ब्रिजटाउन बारबाडोस की राजधानी और वहाँ का सबसे बड़ा नगर है। . महेंद्र सिंह धोनी अथवा मानद लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र सिंह धोनी (एम एस धोनी भी) झारखंड, रांची के एक राजपूत परिवार में जन्मे पद्म भूषण, पद्म श्री और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित भारतीय क्रिकेटर हैं। धोनी भारतीय क्रिकेटर तथा भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान हैं और भारत के सबसे सफल एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कप्तान हैं। शुरुआत में एक असाधारण उज्जवल व आक्रामक बल्लेबाज़ के नाम पर जाने गए। धोनी धीरे-धीरे भारतीय एक दिवसीय के सबसे शांतचित्त कप्तानों में से जाने जाते हैं। उनकी कप्तानी में भारत ने २००७ आईसीसी विश्व ट्वेन्टी २०, २००७-०८ कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज २००७-२००८ के सीबी सीरीज़ और बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी जीती जिसमें भारत ने ऑस्ट्रेलिया को २-० से हराया उन्होंने भारतीय टीम को श्रीलंका और न्यूजीलैंड में पहली अतिरिक्त वनडे सीरीज़ जीत दिलाई ०२ सितम्बर २०१४ को उन्होंने भारत को २४ साल बाद इंग्लैंड में वनडे सीरीज में जीत दिलाई। धोनी ने कई सम्मान भी प्राप्त किए हैं जैसे २००८ में आईसीसी वनडे प्लेयर ऑफ़ द इयर अवार्ड (प्रथम भारतीय खिलाड़ी जिन्हें ये सम्मान मिला), राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार और २००९ में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म श्री पुरस्कार साथ ही २००९ में विस्डन के सर्वप्रथम ड्रीम टेस्ट ग्यारह टीम में धोनी को कप्तान का दर्जा दिया गया। उनकी कप्तानी में भारत ने २८ साल बाद एक दिवसीय क्रिकेट विश्व कप में दुबारा जीत हासिल की। सन् २०१३ में इनकी कप्तानी में भारत पहली बार चैम्पियंस ट्रॉफी का विजेता बना। धोनी दुनिया के पहले ऐसे कप्तान बन गये जिनके पास आईसीसी के सभी कप है। इन्होंने २०१४ में टेस्ट क्रिकेट को कप्तानी के साथ अलविदा कह दिया था। इनके इस फैसले से क्रिकेट जगत स्तब्ध रह गया। धोनी लगातार दूसरी बार क्रिकेट विश्व कप में २०१५ क्रिकेट विश्व कप में भारत का नेतृत्व किया और पहली बार भारत ने सभी ग्रुप मैच जीते साथ ही इन्होंने लगातार ११ विश्व कप में मैच जीतकर नया रिकार्ड भी बनाया ये भारत के पहले ऐसे कप्तान बने जिन्होंने १०० वनडे मैच जिताए हो। और उन्होनें कहा है कि जल्द ही वो एक ऐसा कदम उठाएंगे जो किसी कप्तान ने अपने कैरियर में नहीं उठाया वो टीम को २ हिस्सों में बाटेंगे जो खिलाड़ी अच्छा नहीं खेलेगा उसे वो दूसरी टीम में डाल देंगे और जो खिलाड़ी अच्छा खेलेगा वो उसे अपनी टीम में रख लेंगे इसमें कुछ नये खिलाड़ी भी आ सकते हैं। धोनी ने ४ जनवरी २०१७ को भारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय और ट्वेन्टी-ट्वेन्टी टीम की कप्तानी छोड़ी। . मिशेल स्टार्क ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के खिलाड़ी हैं। . भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मुंंबई (पूर्व नाम बम्बई), भारतीय राज्य महाराष्ट्र की राजधानी है। इसकी अनुमानित जनसंख्या ३ करोड़ २९ लाख है जो देश की पहली सर्वाधिक आबादी वाली नगरी है। इसका गठन लावा निर्मित सात छोटे-छोटे द्वीपों द्वारा हुआ है एवं यह पुल द्वारा प्रमुख भू-खंड के साथ जुड़ा हुआ है। मुम्बई बन्दरगाह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ सामुद्रिक बन्दरगाह है। मुम्बई का तट कटा-फटा है जिसके कारण इसका पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है। यूरोप, अमेरिका, अफ़्रीका आदि पश्चिमी देशों से जलमार्ग या वायुमार्ग से आनेवाले जहाज यात्री एवं पर्यटक सर्वप्रथम मुम्बई ही आते हैं इसलिए मुम्बई को भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। मुम्बई भारत का सर्ववृहत्तम वाणिज्यिक केन्द्र है। जिसकी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 5% की भागीदारी है। यह सम्पूर्ण भारत के औद्योगिक उत्पाद का 25%, नौवहन व्यापार का 40%, एवं भारतीय अर्थ व्यवस्था के पूंजी लेनदेन का 70% भागीदार है। मुंबई विश्व के सर्वोच्च दस वाणिज्यिक केन्द्रों में से एक है। भारत के अधिकांश बैंक एवं सौदागरी कार्यालयों के प्रमुख कार्यालय एवं कई महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थान जैसे भारतीय रिज़र्व बैंक, बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज, नेशनल स्टऑक एक्स्चेंज एवं अनेक भारतीय कम्पनियों के निगमित मुख्यालय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुम्बई में अवस्थित हैं। इसलिए इसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं। नगर में भारत का हिन्दी चलचित्र एवं दूरदर्शन उद्योग भी है, जो बॉलीवुड नाम से प्रसिद्ध है। मुंबई की व्यवसायिक अपॊर्ट्युनिटी, व उच्च जीवन स्तर पूरे भारतवर्ष भर के लोगों को आकर्षित करती है, जिसके कारण यह नगर विभिन्न समाजों व संस्कृतियों का मिश्रण बन गया है। मुंबई पत्तन भारत के लगभग आधे समुद्री माल की आवाजाही करता है। . (From top left to bottom right) Melbourne city centre, Flinders Street Station, Shrine of Remembrance, Federation Square, Melbourne Cricket Ground, Royal Exhibition Building रात में मेलबॉर्न शहर मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया का दूसरा बड़ा और दूसरा पुराना शहर है। यह ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य की राजधानी है। इस शहर को २५ जून १८५० में बसाया गया था। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। कला और संस्कृति का केंद्र मेलबर्न पोर्ट फिलिप खाड़ी के पास स्थित है। प्रायः इस शहर को ऑस्ट्रेलिया की खेल और सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है। मेलबर्न की स्थापना 1835 में हुई थी। बाद में कई सालों तक यह ऑस्ट्रेलिया का प्रमुख शहर बना रहा। 1901 से 1927 तक मेलबर्न यहां की राजधानी भी रहा। अपनी वैश्िवक अपील के कारण यह पर्यटकों को भी पसंद आता है। यहां के प्रमुख पर्यटक स्थलों की बात की जाए तो इन जगहों का सबसे पहले आता है। . यह क्रिकेट मैदान ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में स्थित है। मेलबोर्न क्रिकेट मैदान आस्ट्रेलिया के यारा पार्क में स्थित एक प्रमुख खेल का मैदान है। मेलबोर्न क्रिकेट क्लब का घरेलु मैदान भी है। यह आस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा स्टेडियम, विश्व का सबसे बड़ा क्रिकेंट स्टेडियम, दुनिया का दंसवा बड़ा स्टेडियम है। मेलबोर्न क्रिकेट मैदान 1956 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक का मुख्य केन्द्र तथा 2006 के राष्ट्र्मंडल खेल का भी मुख्य मैदान रहा है। श्रेणीःऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैदान श्रेणीःविश्व के प्रमुख खेल मैदान श्रेणीःआस्ट्रेलिया के प्रमुख खेल मैदान. मोहिंदर अमरनाथ भारद्वाज (का जन्म सितम्बर 24, 1950,पटियाला,भारत में हुआ) एक पूर्व क्रिकेटर (1969-1989) और वर्तमान में क्रिकेट विश्लेषक हैं। उन्हें सामान्यतः "जिम्मी" के नाम से जाना जाता है। वे स्वतंत्र भारत के पहले कप्तान, लाला अमरनाथ के पुत्र हैं। उनके भाई सुरिंदर अमरनाथ एक टेस्ट मैच खिलाड़ी थे। उनके भाई राजिंदर अमरनाथ पूर्व प्रथम श्रेणी के खिलाड़ी हैं और वर्तमान में क्रिकेट कोच हैं। मोहिन्दर ने दिसम्बर 1969 में चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहली बार प्रदर्शन किया। अपने कैरियर के उत्तरार्ध में, मोहिंदर को, तेज गति के खिलाफ खेलने वाले सबसे बेहतरीन भारतीय क्रिकेटर के रूप में देखा गया। इमरान खान और मैलकम मार्शल दोनों ने, उनकी बल्लेबाजी, साहस और दर्द को सहने और उस पर विजय पाने की क्षमता की प्रशंसा की है। 1982-83 में मोहिंदर ने पाकिस्तान (5) और वेस्ट इंडीज (6) के खिलाफ 11 टैस्ट खेले और दोनों सीरीज में कुल मिला कर 1000 से अधिक रन बनाये। अपने "आदर्श" के रूप में, सुनील गावस्कर ने दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में मोहिंदर अमरनाथ का वर्णन किया है। उन्होंने पर्थ में वाका में (दुनिया में सबसे तेज और उछलने वाले विकेट) जेफ थॉमसन के खिलाफ अपनी सबसे तेज बल्लेबाजी का प्रदर्शन करते हुए अपना पहला टेस्ट शतक बनाया। उन्होंने इस मैच के बाद भी शीर्ष वर्ग की तेज गेंदबाजी के खिलाफ टेस्ट शतक जमाया. युवराज सिंह (युवी) भारत के महान क्रिकेट खिलाडी हैं। इन्होंने 20-20 विश्व कप 2007 में इंग्लैंड के खिलाफ 6 गेंदों में 6 छक्के मारे थे, और 20-20 में 12 गेंदों में अर्धशतक बनाने का विश्व रिकॉर्ड भी उनके नाम है। युवराज सिंह को विश्व कप 2011 में अहम भूमिका निभाने में मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट चुना गया। इनका जन्म 12 दिसंबर 1981 को चंडीगढ़ में भूतपूर्व क्रिकेट खिलाड़ी योगराज सिंह के यहाँ जाट परिवार में हुआ था। उनको सिक्सर किंग नाम से जाना जाता है। इंडियन प्रीमियर लीग में किंग्स इलेवन पंजाब, पुने वॉरियर्स इंडिया, रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर, दिल्ली डेयरडेविल्स की और से खेल चुके हैं, हाल में आईपीएल विजेता सनराइजर हैदराबाद से खेल रहे हैं। इन्होंने १ ओवर में ६ छक्के लगाने का विश्व रिकार्ड बनाया है . रिकी थॉमस पॉन्टिंग, एओ (जन्म 19 दिसम्बर 1974) को पंटर का उपनाम दिया गया था। एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में २००२ से २०११ तक वे ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रहे। टेस्ट क्रिकेट में २००४ और २०११ के बीच ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की उन्होंने कमान सम्भाली. "स्नान क्षेत्र जहाँ केवल श्वेत लोगों को स्नान की अनुमति थी": १९८९ में डर्बन के समुद्र के किनारे तीन भाषाओं में लिखा एक बोर्ड दक्षिण अफ्रीका में नेशनल पार्टी की सरकार द्वारा सन् १९४८ में विधान बनाकर काले और गोरों लोगों को अलग निवास करने की प्रणाली लागू की गयी थी। इसे ही रंगभेद नीति या आपार्थैट (Apartheid) कहते हैं। अफ्रीका की भाषा में "अपार्थीड" का शाब्दिक अर्थ है - अलगाव या पृथकता। यह नीति सन् १९९४ में समाप्त कर दी गयी। इसके विरुद्ध नेल्सन मान्डेला ने बहुत संघर्ष किया जिसके लिये उन्हें लम्बे समय तक जेल में रखा गया। . लाहौर (لہور / ਲਹੌਰ, لاہور) पाकिस्तान के प्रांत पंजाब की राजधानी है एवं कराची के बाद पाकिस्तान में दूसरा सबसे बडा आबादी वाला शहर है। इसे पाकिस्तान का दिल नाम से भी संबोधित किया जाता है क्योंकि इस शहर का पाकिस्तानी इतिहास, संस्कृति एवं शिक्षा में अत्यंत विशिष्ट योगदान रहा है। इसे अक्सर पाकिस्तान बागों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। लाहौर शहर रावी एवं वाघा नदी के तट पर भारत पाकिस्तान सीमा पर स्थित है। लाहौर का ज्यादातर स्थापत्य मुगल कालीन एवं औपनिवेशिक ब्रिटिश काल का है जिसका अधिकांश आज भी सुरक्षित है। आज भी बादशाही मस्जिद, अली हुजविरी शालीमार बाग एवं नूरजहां तथा जहांगीर के मकबरे मुगलकालीन स्थापत्य की उपस्थिती एवं उसकी अहमियत का आभास करवाता है। महत्वपूर्ण ब्रिटिश कालीन भवनों में लाहौर उच्च न्यायलय जनरल पोस्ट ऑफिस, इत्यादि मुगल एवं ब्रिटिश स्थापत्य का मिलाजुला नमूना बनकर लाहौर में शान से उपस्थित है एवं ये सभी महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के रूप में लोकप्रिय हैं। मुख्य तौर पर लाहौर में पंजाबी को मातृ भाषा के तौर पर इस्तेमाल की जाती है हलाकि उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा भी यहां काफी प्रचलन में है एवं नौजवानों में काफी लोकप्रिय है। लाहौर की पंजाबी शैली को लाहौरी पंजाबी के नाम से भी जाना जाता है जिसमे पंजाबी एवं उर्दू का काफी सुंदर मिश्रण होता है। १९९८ की जनगणना के अनुसार शहर की आबादी लगभग ७ लाख आंकी गयी थी जिसके जून २००६ में १० लाख होने की उम्मीद जतायी गयी थी। इस अनुमान के मुताबिक लाहौर दक्षिण एशिया में पांचवी सबसे बडी आबादी वाला एवं दुनिया में २३वीं सबसे बडी आबादी वाला शहर है।. लंदन (London) संयुक्त राजशाही और इंग्लैंड की राजधानी और सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। ग्रेट ब्रिटेन द्वीप के दक्षिण पूर्व में थेम्स नदी के किनारे स्थित, लंदन पिछली दो सदियों से एक बड़ा व्यवस्थापन रहा है। लंदन राजनीति, शिक्षा, मनोरंजन, मीडिया, फ़ैशन और शिल्पी के क्षेत्र में वैश्विक शहर की स्थिति रखता है। इसे रोमनों ने लोंड़िनियम के नाम से बसाया था। लंदन का प्राचीन अंदरुनी केंद्र, लंदन शहर, का परिक्षेत्र 1.12 वर्ग मीटर (2.9 किमी2) है। 19वीं शताब्दी के बाद से "लंदन", इस अंदरुनी केंद्र के आसपास के क्षेत्रों को मिला कर एक महानगर के रूप में संदर्भित किया जाने लगा, जिनमें मिडलसेक्स, एसेक्स, सरे, केंट, और हर्टफोर्डशायर आदि शमिल है। जिसे आज ग्रेटर लंदन नाम से जानते है, एवं लंदन महापौर और लंदन विधानसभा द्वारा शासित किया जाता हैं। कला, वाणिज्य, शिक्षा, मनोरंजन, फैशन, वित्त, स्वास्थ्य देखभाल, मीडिया, पेशेवर सेवाओं, अनुसंधान और विकास, पर्यटन और परिवहन में लंदन एक प्रमुख वैश्विक शहर है। यह दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र के रूप में ताज पहनाया गया है और दुनिया में पांचवां या छठा सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र जीडीपी है। लंदन एक है विश्व सांस्कृतिक राजधानी। यह दुनिया का सबसे अधिक का दौरा किया जाने वाला शहर है, जो अंतरराष्ट्रीय आगमन द्वारा मापा जाता है और यात्री ट्रैफिक द्वारा मापा जाने वाला विश्व का सबसे बड़ा शहर हवाई अड्डा है। लंदन विश्व के अग्रणी निवेश गंतव्य है, किसी भी अन्य शहर की तुलना में अधिक अंतरराष्ट्रीय खुदरा विक्रेताओं और अल्ट्रा हाई-नेट-वर्थ वाले लोगों की मेजबानी यूरोप में लंदन के विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा संस्थानों का सबसे बड़ा केंद्र बनते हैं। 2012 में, लंदन तीन बार आधुनिक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन गया। लंदन में लोगों और संस्कृतियों की विविधता है, और इस क्षेत्र में 300 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं। इसकी 2015 कि अनुमानित नगरपालिका जनसंख्या (ग्रेटर लंदन के समरूपी) 8,673,713 थी, जो कि यूरोपीय संघ के किसी भी शहर से सबसे बड़ा, और संयुक्त राजशाही की आबादी का 12.5% हिस्सा है। 2011 की जनगणना के अनुसार 9,787,426 की आबादी के साथ, लंदन का शहरी क्षेत्र, पेरिस के बाद यूरोपीय संघ में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला है। शहर का महानगरीय क्षेत्र यूरोपीय संघ में 13,879,757 जनसंख्या के साथ सबसे अधिक आबादी वाला है, जबकि ग्रेटर लंदन प्राधिकरण के अनुसार शहरी-क्षेत्र की आबादी के रूप में 22.7 मिलियन है। 1831 से 1925 तक लंदन विश्व के सबसे अधिक आबादी वाला शहर था। लंदन में चार विश्व धरोहर स्थल हैंः टॉवर ऑफ़ लंदन; किऊ गार्डन; वेस्टमिंस्टर पैलेस, वेस्ट्मिन्स्टर ऍबी और सेंट मार्गरेट्स चर्च क्षेत्र; और ग्रीनविच ग्रीनविच वेधशाला (जिसमें रॉयल वेधशाला, ग्रीनविच प्राइम मेरिडियन, 0 डिग्री रेखांकित, और जीएमटी को चिह्नित करता है)। अन्य प्रसिद्ध स्थलों में बकिंघम पैलेस, लंदन आई, पिकैडिली सर्कस, सेंट पॉल कैथेड्रल, टावर ब्रिज, ट्राफलगर स्क्वायर, और द शर्ड आदि शामिल हैं। लंदन में ब्रिटिश संग्रहालय, नेशनल गैलरी, प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय, टेट मॉडर्न, ब्रिटिश पुस्तकालय और वेस्ट एंड थिएटर सहित कई संग्रहालयों, दीर्घाओं, पुस्तकालयों, खेल आयोजनों और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों का घर है। लंदन अंडरग्राउंड, दुनिया का सबसे पुराना भूमिगत रेलवे नेटवर्क है। . लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड (आमतौर पर लॉर्ड्स के नाम से जाना जाता है) लंदन के सेंट जॉन्स वुड में स्थित एक क्रिकेट खेलने वाला मैदान है। इसका नामकरण इसके संस्थापक थॉमस लॉर्ड के नाम पर किया गया है; यह मैदान मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) के स्वामित्व में है और मिडिलसेक्स काउंटी क्रिकेट क्लब, द इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट क्लब (ईसीबी), द यूरोपियन क्रिकेट काउंसिल (ईसीसी) और अगस्त, 2005 तक इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) का गृह स्थान रहा है। लॉर्ड्स को "क्रिकेट के घर" के रूप में संदर्भित किया जाता है और यहां दुनिया का सबसे पुराना खेल संग्रहालय भी स्थित है। आज लॉर्ड्स अपने मूल स्थान पर नहीं है, 1787 और 1814 के बीच लॉर्ड द्वारा यहां स्थापित तीन मैदानों में से यह तीसरा है। उनका पहला मैदान जिसे अब लॉर्ड्स के पुराने मैदान के रूप में जाना जाता है, आज के डोरसेट स्क्वायर के पास स्थित था। दूसरा मैदान लॉर्ड्स मिडिल ग्राउंड है जिसका 1811 से 1813 के बीच इस्तेमाल किया गया था, उसके बाद उसकी आउटफील्ड से गुजरने वाली रीजेंट्स कैनल के निर्माण कार्य के कारण इसे बंद कर दिया गया। वर्तमान में लॉर्ड्स का जो मैदान है वह मिडिल ग्राउंड के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। लॉर्ड्स में एक प्रमुख पुनर्निर्माण योजना प्रस्तावित है जिससे मैदान में दस हजार अतिरिक्त लोगों के बैठने की जगह बनेगी साथ ही इसमें अपार्टमेंट्स और एक आइस रिंक भी जुड़ जाएंगे. शेन वॉर्न 2015 क्रिकेट विश्व कप के दौरान शेन कीथ वॉर्न (जन्मः 13 सितंबर 1969, Shane Keith Warne) ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी है जिन्हें व्यापक रूप से खेल के इतिहास में सबसे महान गेंदबाजों में से एक माना जाता है। 1992 में वॉर्न ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला था और श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन के बाद वह दूसरे गेंदबाज बने थे जिन्होंने 1000 अंतरराष्ट्रीय विकेट (टेस्ट और वनडे मैचों में) लिये। वॉर्न के 708 विकेट टेस्ट क्रिकेट में किसी भी गेंदबाज द्वारा लिये गए सर्वाधिक विकेट थे, जब तक कि मुरलीधरन ने इससे ज्यादा विकेट नहीं ले लिये थे। वॉर्न उपयोगी निचले क्रम के बल्लेबाज भी थे। वह एकमात्र खिलाड़ी है जिन्होंने 3000+ टेस्ट रन बनाए लेकिन कभी शतक नहीं जड़ा। उनका करियर मैदान के बाहर विवादों से ग्रस्त रहा। इन में प्रतिबंधित पदार्थ के लिए सकारात्मक परीक्षण पाए जाने पर क्रिकेट से प्रतिबंध शामिल था। साथ ही सट्टेबाजों से पैसा स्वीकार करके खेल को बदनामी में लाने का आरोप और भी कई विवाद। वह जनवरी 2007 में ऑस्ट्रेलिया की इंग्लैंड पर 5-0 की द एशेज की जीत के अंत में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से सेवानिवृत्त हुए। उस समय ऑस्ट्रेलियाई टीम के अभिन्न अंग में से तीन अन्य खिलाड़ी भी रिटायर हुए- ग्लेन मैकग्रा, डेमियन मार्टिन और जस्टिन लैंगर। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वॉर्न ने हैम्पशायर काउंटी क्रिकेट क्लब के लिये प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेला। 2008 में आईपीएल की टीम राजस्थान रॉयल्स के कोच और कप्तान की भूमिका निभाई और टीम को जीत दिलाई। कुल मिलाकर उन्होंने 1992 से 2007 तक 145 टेस्ट मैच खेलें थे जिसमें उन्होंने 25.41 की गेंदबाज़ी औसत से 708 विकेट लिये। 1993 से 2005 तक उन्होंने 194 एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय में 293 विकेट लिये। 1999 क्रिकेट विश्व कप की विजेता टीम में उनका अहम योगदान था। . सचिन रमेश तेंदुलकर (अंग्रेजी उच्चारणः, जन्मः २४ अप्रैल १९७३) क्रिकेट के इतिहास में विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ौं में गिने जाते हैं। भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले वह सर्वप्रथम खिलाड़ी और सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित एकमात्र क्रिकेट खिलाड़ी हैं। सन् २००८ में वे पद्म विभूषण से भी पुरस्कृत किये जा चुके है। सन् १९८९ में अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के पश्चात् वह बल्लेबाजी में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। उन्होंने टेस्ट व एक दिवसीय क्रिकेट, दोनों में सर्वाधिक शतक अर्जित किये हैं। वे टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ हैं। इसके साथ ही टेस्ट क्रिकेट में १४००० से अधिक रन बनाने वाले वह विश्व के एकमात्र खिलाड़ी हैं। एकदिवसीय मैचों में भी उन्हें कुल सर्वाधिक रन बनाने का कीर्तिमान प्राप्त है। उन्होंने अपना पहला प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच मुम्बई के लिये १४ वर्ष की उम्र में खेला था। उनके अन्तर्राष्ट्रीय खेल जीवन की शुरुआत १९८९ में पाकिस्तान के खिलाफ कराची से हुई। सचिन क्रिकेट जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं और विश्व भर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उनके प्रशंसक उन्हें प्यार से भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं जिनमें सबसे प्रचलित लिटिल मास्टर व मास्टर ब्लास्टर है। क्रिकेट के अलावा वह अपने ही नाम के एक सफल रेस्टोरेंट के मालिक भी हैं। तत्काल में वह राज्य सभा के सदस्य हैं, सन् २०१२ में उन्हें राज्य सभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर पर फिल्म 'सचिनः ए बिलियन ड्रीम्स' बनी। इस फ़िल्म का टीज़र भी बहुत रोमांचक हैं। टीजर में एक ऐसे इंसान को उसी की कहानी सुनाते हुए देखेंगे जो एक शरारती बच्चे से एक हीरो बनकर उभरता है। ख़ुद सचिन तेंदुलकर का भी ये मानना है कि क्रिकेट खेलने से अधिक चुनौतीपूर्ण अभिनय करना है।सचिन - ए बिलियन ड्रीम्स' का निर्माण रवि भगचंदका ने किया है और इसका निर्देशन जेम्स अर्सकिन ने। . हीरे और सोने की खानों के लिए प्रसिद्ध जोहांसबर्ग दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा शहर है। क्षेत्रफल में बड़ा होने के साथ-साथ यह दक्षिण अफ्रीका का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर भी है। अफ्रीका के इस सबसे विकसित शहर को नजदीक से जानने के लिए बहुत बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। पर्यटक यहां अपारथिद म्यूजियम, हेक्टर पीटरसन म्यूजियम, गोल्ड रीफ सिटी, जोहांसबर्ग जू, जोहांसबर्ग आर्ट गैलरी आदि स्थान देख सकते हैं। . वानखेड़े स्टेडियम मुंबई का एक प्रमुख खेल का मैदान हैं। यहाँ क्रिकेट खेला जाता हैं। . यह एक प्रमुख खेल का मैदान हैं । . विव रिचर्ड्स' कैरियर ग्राफ प्रदर्शन. सर इसाक विवियन एलेक्जेंडर रिचर्ड्स, केजीएन, ओबीई (जन्म - 7 मार्च 1952 सेंट जॉन, एंटीगुआ) वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर हैं। क्रिकेट जगत में इनके दूसरे नाम विवियन या, विव और किंग विव के रूप अधिक लोकप्रिय नाम से जाना जाता है, रिचर्ड्स को 100 सदस्यों के विशेषज्ञ पैनल ने बीसवीं शताब्दी के पांच महान खिलाड़ियों की सूची में शामिल किया है, इस सूची में विवियन रिचर्ड्स के अलावा सर डोनाल्ड ब्रेडमैन, सर गैरीफील्ड सोबर्स, सर जैक हॉब्स और महान लेग स्पिनर शेन वार्न का नाम भी शामिल है। फरवरी 2002 में क्रिकेट की बाइबल कही जाने वाली क्रिकेट पत्रिका विजडन द्वारा विवियन रिचर्ड्स की एक पारी को वन डे अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट (ओडीआई) की सर्वश्रेष्ठ इनिंग घोषित किया गया। इसी वर्ष दिसंबर में विज़डन ने उन्हे वन डे क्रिकेट का सर्वकालीन और टेस्ट क्रिकेट के तीन महान बल्लेबाज़ों में से एक घोषित किया, सवा सौ साल के क्रिकेट इतिहास में सिर्फ दो बल्लेबाज़ सर डान ब्रेडमैन और भारत के सचिन तेंदुलकर का स्थान ही उनसे ऊपर आंका गया है। . गद्दाफी स्टेडियम या क़ज़ाफ़ी स्टेडियम (قذافی اسٹیڈیم) लाहौर, पाकिस्तान में स्थित एक प्रमुख क्रिकेट का मैदान है। इसकी दर्शक क्षमता 27,000 है। . ग्लेन मैकग्रा (अंग्रेज़ीः Glen Donald McGrath ग्लेन डॉनल्ड मक्ग्रा या मग्रा) एक ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज और ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के सदस्य थे। . ऑस्ट्रेलिया, सरकारी तौर पर ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल दक्षिणी गोलार्द्ध के महाद्वीप के अर्न्तगत एक देश है जो दुनिया का सबसे छोटा महाद्वीप भी है और दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप भी, जिसमे तस्मानिया और कई अन्य द्वीप हिंद और प्रशांत महासागर में है। ऑस्ट्रेलिया एकमात्र ऐसी जगह है जिसे एक ही साथ महाद्वीप, एक राष्ट्र और एक द्वीप माना जाता है। पड़ोसी देश उत्तर में इंडोनेशिया, पूर्वी तिमोर और पापुआ न्यू गिनी, उत्तर पूर्व में सोलोमन द्वीप, वानुअतु और न्यू कैलेडोनिया और दक्षिणपूर्व में न्यूजीलैंड है। 18वी सदी के आदिकाल में जब यूरोपियन अवस्थापन प्रारंभ हुआ था उसके भी लगभग 40 हज़ार वर्ष पहले, ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप और तस्मानिया की खोज अलग-अलग देशो के करीब 250 स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाईयो ने की थी। तत्कालिक उत्तर से मछुआरो के छिटपुट भ्रमण और होलैंडवासियो (Dutch) द्वारा 1606, में यूरोप की खोज के बाद,1770 में ऑस्ट्रेलिया के अर्द्वपूर्वी भाग पर अंग्रेजों (British) का कब्ज़ा हो गया और 26 जनवरी 1788 में इसका निपटारा "देश निकला" दण्डस्वरुप बने न्यू साउथ वेल्स नगर के रूप में हुआ। इन वर्षों में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई और महाद्वीप का पता चला,19वी सदी के दौरान दूसरे पांच बड़े स्वयं-शासित शीर्ष नगर की स्थापना की गई। 1 जनवरी 1901 को, छः नगर महासंघ हो गए और ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल का गठन हुआ। महासंघ के समय से लेकर ऑस्ट्रेलिया ने एक स्थायी उदार प्रजातांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था का निर्वहन किया और प्रभुता संपन्न राष्ट्र बना रहा। जनसंख्या 21.7मिलियन (दस लाख) से थोडा ही ऊपर है, साथ ही लगभग 60% जनसंख्या मुख्य राज्यों सिडनी,मेलबर्न,ब्रिस्बेन,पर्थ और एडिलेड में केन्द्रित है। राष्ट्र की राजधानी केनबर्रा है जो ऑस्ट्रेलियाई प्रधान प्रदेश (ACT) में अवस्थित है। प्रौद्योगिक रूप से उन्नत और औद्योगिक ऑस्ट्रेलिया एक समृद्ध बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है और इसका कई राष्ट्रों की तुलना में इन क्षत्रों में प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है जैसे स्वास्थ्य, आयु संभाव्यता, जीवन-स्तर, मानव विकास, जन शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और मूलभूत अधिकारों की रक्षा और राजनैतिक अधिकार. ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय क्रिकेट टीम है। ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया के देश का प्रतिनिधित्व करता है। यह टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सबसे पुराना संयुक्त टीम, 1877 में पहले कभी टेस्ट मैच में खेला होने है। टीम भी निभाता एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और ट्वेंटी -20 अंतर्राष्ट्रीय, 2004-05 सत्र में 1970-71 के मौसम और पहले ट्वेंटी -20 अंतरराष्ट्रीय में दोनों पहले वनडे में भाग लेने वाले इंग्लैंड के खिलाफ न्यूजीलैंड के खिलाफ, दोनों के खेल जीत। टीम ऑस्ट्रेलियाई घरेलू प्रतियोगिताओं में खेल टीमों से अपने खिलाड़ियों को खींचता है - शेफील्ड शील्ड, ऑस्ट्रेलियाई घरेलू सीमित ओवर क्रिकेट टूर्नामेंट और बिग बैश लीग। राष्ट्रीय टीम 788 टेस्ट मैच खेले हैं, 372 जीत, 208 खोने, 206 ड्रा और 2 टाई। ऑस्ट्रेलिया नंबर एक टीम कुल मिलाकर टेस्ट क्रिकेट में कुल मिलाकर जीत के संदर्भ में, जीत-हार का अनुपात स्थान पर रहीं और प्रतिशत जीतता है। 28 फरवरी 2016 और अधिक पढ़ें के रूप में, ऑस्ट्रेलिया आईसीसी टेस्ट चैम्पियनशिप पर 112 रेटिंग अंक में पहले स्थान पर है। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के 871 वनडे मैच खेले हैं, 539 जीत, 292 खोने, 9 टाई और कोई परिणाम में समाप्त 31 के साथ। वे वर्तमान में नेतृत्व आईसीसी वनडे चैम्पियनशिप, किया होने 2002 में अपनी शुरुआत के बाद से 161 से 130 महीनों के लिए ऐसा। ऑस्ट्रेलिया एक रिकार्ड सात विश्व कप के फाइनल में छपने (1975, 1987, 1996, 1999, 2003, 2007 और 2015) बना दिया है और विश्व कप के कुल में एक रिकार्ड पांच बार जीत लिया है; 1987, 1999, 2003, 2007 और 2015। ऑस्ट्रेलिया की पहली टीम, लगातार चार विश्व कप फाइनल (1996, 1999, 2003 और 2007) में प्रदर्शित करने के 3 जीतने के लिए वेस्टइंडीज (1975, 1979 और 1983) और पहली टीम ने लगातार तीन विश्व कप दिखावे के पुराने रिकॉर्ड श्रेष्ठ है लगातार विश्व कप (1999, 2003 और 2007)। यह भी घर की धरती पर विश्व कप (2015) जीतने के लिए दूसरी टीम है, के बाद भारत (2011)। टीम 2011 क्रिकेट विश्व कप में जहां पाकिस्तान उन्हें 4 विकेट से हरा पर 34 लगातार विश्व कप में अपराजित था मैचेस 19 मार्च तक। ऑस्ट्रेलिया भी आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी दो बार जीत लिया है - 2006 में और 2009 में - उन्हें पहली और एकमात्र टीम चैंपियंस ट्रॉफी टूर्नामेंट में विजेताओं को वापस करने के लिए वापस बनने के लिए कर रही है। टीम भी निभाई है 88 ट्वेंटी -20 अंतरराष्ट्रीय, जीत 44, लॉस 41, टाई 2 और 1 कोई परिणाम नहीं 2010 आईसीसी विश्व ट्वेंटी -20, जो वे अंत में इंग्लैंड को खो के फाइनल बनाने में समाप्त होने के साथ। 24 फरवरी 2016 के रूप में, ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम टेस्ट मैचों में, वनडे में और टी20ई में आईसीसी द्वारा स्थान पर, पहले और आठवें है। . ओलम्पिक खेल वर्तमान की प्रतियोगिताओं में अग्रणी खेल प्रतियोगिता है जिसमे हज़ारों एथेलीट कई प्रकार के खेलों में भाग लेते हैं। ओलम्पिक की शीतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन प्रतियोगिताओं में २०० से ज्यादा देश प्रतिभागी के रूप में शामिल होते हैं। ओलम्पिक खेल प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल से आयोजित किये जाते हैं। ओलम्पिक खेलों का आयोजन अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति करती है। . आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफ़ी (अंग्रेज़ीः ICC Champions Trophy), विश्व क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा आयोजित की जाने वाली एक द्विवार्षिक प्रतियोगिता है। इसे क्रिकेट के विश्व कप के बाद सबसे बड़ी प्रतियोगिता के रूप में देखा जाता है और कुछ लोग इसे मिनी विश्व कप भी कहते हैं। १९९८ से शुरु होकर अभी तक कुल ८ बार इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है जिसे, समयवार क्रम में, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, भारत तथा श्रीलंका (अनिर्णीत), वेस्ट इंडीज़, ऑस्ट्रेलिया, भारत व पाकिस्तान ने जीता है। टूर्नामेंट के आठ संस्करणों में कुल मिलाकर तेरह टीमों ने भाग लिया, जिसमें आठ ने 2017 में आखिरी संस्करण में भाग लिया। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के तीन प्रारूपों में से प्रत्येक के लिए केवल एक शिखर टूर्नामेंट रखने के आईसीसी के लक्ष्य के अनुरूप रखा गया था। . आईसीसी टेस्ट चैम्पियनशिप में 10 टीमों कि टेस्ट क्रिकेट खेलने के लिए क्रिकेट के खेल में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद द्वारा चलाए जा रहे एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता है। प्रतियोगिता है कि यह बस एक रैंकिंग योजना सभी अंतरराष्ट्रीय मैचों है कि अन्यथा घर या दूर स्थिति का कोई विचार के साथ नियमित रूप से टेस्ट क्रिकेट का समय निर्धारण के हिस्से के रूप में खेला जाता है पर मढ़ा है अर्थों में काल्पनिक है। संक्षेप में, हर टेस्ट श्रृंखला के बाद दोनों टीमें एक गणितीय सूत्र के आधार पर अंक प्राप्त शामिल किया गया। प्रत्येक टीम के अंक कुल एक 'रेटिंग' देने के लिए खेले गए मैचों के अपने कुल संख्या से विभाजित है, और टेस्ट खेलने वाले टीमों (यह एक तालिका में दिखाया जा सकता है) रेटिंग के आदेश से क्रमबद्ध हैं। उच्च और निम्न दर्जा टीमों के बीच एक मैच तैयार की उच्च दर्जा टीम की कीमत पर कम रेटेड टीम को फायदा होगा। एक 'औसत' है कि टीम के रूप में अक्सर के रूप में यह खो देता मजबूत और कमजोर टीमों में से एक मिश्रण खेलते समय जीतता 100 की रेटिंग करना चाहिए था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद पुरस्कार में एक ट्राफी, आईसीसी टेस्ट चैम्पियनशिप गदा, टीम के सर्वोच्च रेटिंग धारण करने के लिए। गदा का तबादला जब भी एक नई टीम रेटिंग सूची के शीर्ष पर चलता है। टीम है कि 1 अप्रैल प्रत्येक वर्ष पर रेटिंग्स तालिका के शीर्ष पर है यह भी एक नकद पुरस्कार, वर्तमान में $1 मिलियन जीतता है। भारत वर्तमान में, आईसीसी टेस्ट चैम्पियनशिप में सबसे अधिक रैंकिंग दल कर रहे हैं जब वे न्यूजीलैंड के साथ टेस्ट श्रृंखला 3-0 से जीत दर्ज की अक्टूबर 2016 में शीर्ष पर कार्यभार संभाल लिया हो रही है। . इडेन गार्डेंस (बांग्लाः ইডেন গার্ডেন্স), भारत का एक प्रमुख खेल का मैदान हैं। यह कोलकाता में स्थित हैं। यहाँ क्रिकेट खेला जाता हैं। . बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगालीः কলকাতা, पूर्व नामः कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। . अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (अंग्रेज़ीः International Cricket Council,इंटरनॆशनल क्रिकेट काउंसिल, संक्षेप में - ICC, आईसीसी) विश्व भर में क्रिकेट की प्रतियोगिताओं की नियंत्रक तथा नियामक संस्था है। प्रतियोगिताओं तथा स्पर्धाओं के आयोजन के अलावा यह प्रतिवर्ष क्रिकेट में अपने क्षेत्र के सफलतम खिलाड़ियों तथा टीमों को पुरस्कार देती है, खिलाड़ियों तथा टीमों का प्रदर्शन क्रम (Ranking) निकालती है। यह हर जगह अंतर्राष्ट्रीय मैच में अम्पायर नियुक्त करती हैं। आईसीसी 106 सदस्य हैंः 10 पूर्ण सदस्य है कि टेस्ट मैच खेलने, 38 एसोसिएट सदस्य, और 57 संबद्ध सदस्य। आईसीसी संगठन और क्रिकेट के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट, खासकर आईसीसी क्रिकेट विश्व कप के शासन के लिए जिम्मेदार है। यह भी अंपायरों और रेफरियों कि सब मंजूर टेस्ट मैच, एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय और ट्वेंटी -20 अंतरराष्ट्रीय में अंपायरिंग की नियुक्ति करती है। यह आईसीसी आचार संहिता, जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए अनुशासन के पेशेवर मानकों का सेट घोषणा, और भी भ्रष्टाचार के खिलाफ और समन्वित कार्रवाई मैच फिक्सिंग अपनी भ्रष्टाचार निरोधक और सुरक्षा इकाई (एसीएसयू) के माध्यम से। आईसीसी के सदस्य देशों (जिसमें शामिल सभी टेस्ट मैच) के बीच द्विपक्षीय टूर्नामेंट पर नियंत्रण नहीं है, यह सदस्य देशों में घरेलू क्रिकेट का शासन नहीं है और यह खेल का कानून है, जो मेरीलेबोन क्रिकेट क्लब के नियंत्रण में रहने के लिए नहीं है। अध्यक्ष निर्देशकों की और 26 जून 2014 के बोर्ड के प्रमुख एन श्रीनिवासन, बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष, परिषद के अध्यक्ष के रूप में पहले की घोषणा की थी। आईसीसी अध्यक्ष की भूमिका काफी हद तक एक मानद स्थिति बन गया है के बाद से अध्यक्ष की भूमिका और अन्य परिवर्तन की स्थापना 2014 में आईसीसी के संविधान में किए गए थे। यह दावा किया गया है कि 2014 में परिवर्तन तथाकथित 'बिग थ्री' इंग्लैंड, भारत और ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रों को नियंत्रण सौंप दिया है। मौजूदा आईसीसी अध्यक्ष जहीर अब्बास, जो जून 2015 में नियुक्त किया गया था अप्रैल 2015 में मुस्तफा कमाल के इस्तीफे के बाद है। कमल, बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष, 2015 विश्व कप के बाद शीघ्र ही इस्तीफा दे दिया है, संगठन का दावा है दोनों असंवैधानिक और अवैध चल रही है। वर्तमान सीईओ डेविड रिचर्डसन है। अप्रैल 2018 में, आईसीसी ने घोषणा की कि वह 1 जनवरी 2019 से अपने सभी 104 सदस्यों को ट्वेन्टी-२० अंतरराष्ट्रीय की मान्यता प्रदान करेगी। . १९७५ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर प्रूडेंशियल कप) क्रिकेट विश्व कप का पहले संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह इंग्लैंड में 7-21 जून 1975 को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/series/60793.html टूर्नामेंट प्रूडेंशियल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा प्रायोजित किया गया था और इसमे आठ टीमो ने भाग लिया था। प्रत्येक मैच 60 ओवर प्रति टीम का था और पारंपरिक सफेद कपड़ों में और लाल गेंदों के साथ खेला गया था और सरे मैच दिन के दौरान खेले गए थे। टूर्नामेंट का फाइनल वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया के बीच था, और वेस्ट इंडीज ने ऑस्ट्रेलिया को लॉर्ड्स मे खेले गए फाइनल मे 17 रन से पराजित कर पहला क्रिकेट विश्व कप जीता। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/match/65049.html . १९७९ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर प्रूडेंशियल कप) क्रिकेट विश्व कप का दूसरा संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह इंग्लैंड में 9-23 जून 1979 को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/series/60806.html टूर्नामेंट प्रूडेंशियल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा प्रायोजित किया गया था और इसमे आठ टीमो ने भाग लिया था। प्रत्येक मैच 60 ओवर प्रति टीम का था और पारंपरिक सफेद कपड़ों में और लाल गेंदों के साथ खेला गया था और सरे मैच दिन के दौरान खेले गए थे। टूर्नामेंट का फाइनल वेस्ट इंडीज और इंग्लैंड के बीच था, और वेस्ट इंडीज ने इंग्लैंड को लॉर्ड्स मे खेले गए फाइनल मे 92 रन से पराजित कर अपना निरंतर दूसरा क्रिकेट विश्व कप जीता। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/match/65063.html . १९८३ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर प्रूडेंशियल कप) क्रिकेट विश्व कप का तीसरा संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह इंग्लैंड में ९-२५ जून १९८३ को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/series/60832.html टूर्नामेंट प्रूडेंशियल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा प्रायोजित किया गया था और इसमे आठ टीमो ने भाग लिया था। प्रत्येक मैच ६० ओवर प्रति टीम का था और पारंपरिक सफेद कपड़ों में और लाल गेंदों के साथ खेला गया था और सरे मैच दिन के दौरान खेले गए थे। टूर्नामेंट का फाइनल भारत और वेस्ट इंडीज के बीच था, और भारत ने वेस्ट इंडीज को लॉर्ड्स मे खेले गए फाइनल मे ४३ रन से पराजित कर अपना पहला क्रिकेट विश्व कप जीता। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/match/65090.html . १९९२ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर बेंसन एंड हेजेज विश्व कप) क्रिकेट विश्व कप का पांचवां संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में २२ फरवरी से २५ मार्च १९९२ को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/series/60924.html टूर्नामेंट बेंसन एंड हेजेज द्वारा प्रायोजित किया गया था और इसमे नौ टीमो ने भाग लिया था। प्रत्येक मैच ५० ओवर प्रति टीम का था और रंगीन कपड़ों में और सफेद गेंदों के साथ खेली गया था और अधिकतम मैच दूधिया रोशनी (फ्लडलाइट्स) के दौरान खेले गए थे। टूर्नामेंट का फाइनल पाकिस्तान और इंग्लैंड के बीच था, और पाकिस्तान ने इंग्लैंड को मेलबोर्न क्रिकेट ग्रांउड मे खेले गए फाइनल मे २२ रन से पराजित कर अपना पहला क्रिकेट विश्व कप जीता। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/match/65156.html . १९९६ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर विल्स विश्व कप) क्रिकेट विश्व कप का छठा संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह पाकिस्तान, भारत और श्रीलंका में १४ फरवरी से १७ मार्च १९९६ को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/series/60981.html टूर्नामेंट विल्स द्वारा प्रायोजित किया गया था और इसमे बारह टीमो ने भाग लिया था। प्रत्येक मैच ५० ओवर प्रति टीम का था और रंगीन कपड़ों में और सफेद गेंदों के साथ खेली गया था और अधिकतम मैच दूधिया रोशनी (फ्लडलाइट्स) के दौरान खेले गए थे। टूर्नामेंट का फाइनल श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया के बीच था, और श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को गद्दाफी स्टेडियम मे खेले गए फाइनल मे ७ विकेट से पराजित कर अपना पहला क्रिकेट विश्व कप जीता। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/match/65192.html . २००३ क्रिकेट विश्व कप क्रिकेट विश्व कप का आठवां संस्करण था जिसका संगठन आईसीसी ने किया था। इस विश्व कप का आयोजन दक्षिण अफ्रीका,ज़िम्बाब्वे तथा केन्या ने मिलकर किया था। २००३ विश्व कप की शुरुआत ०९ फ़रवरी को हुई थी तथा २३ मार्च २००३ को फाइनल मैच भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। यह पहला संस्करण था जो अफ्रीका में खेला गया था। २०१३ विश्व कप में कुल १४ क्रिकेट टीमों ने हिस्सा लिया था, जो कि सबसे ज्यादा टीमें थी जिन्होंने विश्व कप में हिस्सा लिया तथा कुल ५४ मैच खेले गए थे। १९९९ क्रिकेट विश्व कप के आधार पर दो ग्रुप बनाए गए थे। ग्रुप की उच्च तीन टीमों ने क्वालिफाई किया था। टूर्नामेंट का फाइनल ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच था, और ऑस्ट्रेलिया ने भारत को वेंडरर्स मे खेले गए फाइनल मे १२५ रनों से पराजित कर अपना तृतीय क्रिकेट विश्व कप जीता। . २००७ ICC क्रिकेट विश्व कप, टूर्नामेंट का नौवां संस्करण था और इसे 13 मार्च से 28 अप्रैल 2007 तक वेस्ट इंडीज़ में, खेल के एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय स्वरूप में खेला गया. आईसीसी (ICC) क्रिकेट विश्व कप २०११, दसवां क्रिकेट विश्व कप था और इसकी मेजबानी टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले तीन दक्षिण एशियाई देशों द्वारा की गई थीः भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश. आईसीसी (ICC) क्रिकेट विश्व कप २०१५, 11 वाँ आईसीसी क्रिकेट विश्व कप था, और इसकी मेजबानी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड द्वारा मिलकर की गई। यह 2015 फ़रवरी 14 - मार्च 29 तक चला जिसके दौरान 49 मैच 14 स्थानों में खेले गए। 26 मैच ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड, ब्रिस्बेन, कैनबरा, होबार्ट, मेलबोर्न, पर्थ और सिडनी में आयोजित किए गए तथा 23 मैच न्यूजीलैंड के ऑकलैंड, क्राइस्टचर्च, डुनेडिन, हैमिल्टन, नेपियर, नेल्सन और वेलिंग्टन में हुए। टूर्नामेंट का फाइनल मेलबोर्न क्रिकेट ग्रांउड पर खेला गया और इसे ऑस्ट्रेलिया ने जीता। . २०१९ क्रिकेट विश्व कप इंग्लैंड और वेल्स द्वारा आयोजित किया जाएगा। यह बारहवें क्रिकेट विश्व कप प्रतियोगिता होगी और पांचवीं बार यह इंग्लैंड और वेल्स में आयोजित किया जाएगा। . 2023 क्रिकेट विश्व कप इसकी मेजबानी अकेला भारत करेगा। यह घोषणा जून 2013 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की लंदन में वार्ता के दौरान की गई। 2023 क्रिकेट विश्व कप 13वाँ विश्व कप है तथा भारत चौथी बार मेजबानी कर रहा है। . १९८७ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर रिलायंस विश्व कप) क्रिकेट विश्व कप का चौथा संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह भारत और पाकिस्तान में ८ अक्टूबर-८ नवंबर १९८७ को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/series/60876.html टूर्नामेंट रिलायन्स इण्डस्ट्रीज द्वारा प्रायोजित किया गया था और इसमे आठ टीमो ने भाग लिया था। प्रत्येक मैच ५० ओवर प्रति टीम का था और पारंपरिक सफेद कपड़ों में और लाल गेंदों के साथ खेली गया था और सरे मैच दिन के दौरान खेले गए थे। टूर्नामेंट का फाइनल ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच था, और ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को इडेन गार्डेंस में खेले गए फाइनल में ७ रन से पराजित कर अपना पहला क्रिकेट विश्व कप जीता। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/match/65117.html . १९९९ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर आईसीसी क्रिकेट विश्व कप) क्रिकेट विश्व कप का सातवाँ संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह इंगलैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड और वेल्स में १४ मई से २० जून १९९९ को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/content/series/61046.html?template. यहां पुनर्निर्देश करता हैः विश्व कप क्रिकेट, विश्वकप क्रिकेट, क्रिकेट वर्ल्ड कप, क्रिकेट विश्व कप।
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किसी भी राष्ट्र की प्रतिभा खेलों में उसकी उत्कृष्टता से बहुत कुछ जुड़ी होती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में अच्छा प्रदर्शन केवल पदक जीतने तक सीमित नहीं होता बल्कि राष्ट्र के स्वास्थ्य, मानसिक अवस्था एवं लक्ष्य के प्रति सतर्कता व जागरुकता को भी निरुपित करता है। साथ ही मानव के समग्र विकास में भी खेलों की अहम भूमिका होती है। खेल मनोरंजन के साधन और शारीरिक दक्षता पाने के एक माध्यम के साथ-साथ लोगों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित करने और उनके बीच के संबंधों को बेहतर बनाने में भी सहायता करता है। दो राय नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्ध्यिों ने हमेशा ही देश को गौरान्वित किया है। लेकिन सच्चाई यह है कि सवा अरब की आबादी वाले देश में उत्कृष्ट खिलाड़ियों, अकादमियों और प्रशिक्षकों की भारी कमी है और उसका नतीजा यह है कि देश खेल के क्षेत्र में अभी भी बहुत पीछे है। एक आंकड़े के मुताबिक देश में सिर्फ पंद्रह प्रतिशत लोग ही खेलों में अभिरुचि रखते हैं। गौर करें तो इसके लिए समाज का नजरिया और सरकार की नीतियां दोनों जिम्मेदार हैं। समाज में अभी भी वहीं पुरानी धारणा स्थापित है कि खेल के बजाए पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। दरअसल समाज को लगता है कि खेलकूद के जरिए नौकरी या रोजी-रोजगार हासिल नहीं किया जा सकता। यह सच्चाई भी है। गौर करें तो सरकार का ध्यान भी खेलों के आधारभूत ढांचे में परिवर्तन और उससे रोजगार को जोड़ने के प्रति नहीं है। उसका पूरा ध्यान इस बात पर होता है कि राष्ट्रीय खेल अकादमियों को अध्यक्ष व सदस्य कौन होगा। देखा भी जाता है कि जब भी सरकारें बदलती हैं तो खेल में खेल होना शुरु हो जाता है। यहां तक कि मामला न्यायालय की चैखट तक पहुंच जाता है और उसे दखल देना पड़ता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह कि खेल संगठनों के नियंता भी ऐसे लोग हैं जिन्हें खेल का एबीसीडी भी मालूम नहीं लेकिन उन्हीं के हाथों में खेल का भविष्य है। भला ऐसे माहौल में खेल का विकास कैसे होगा। खेलों के विकास के लिए जरुरी है कि सरकार स्पष्ट नीति के साथ स्कूलों, काॅलेजों, विश्वविद्यालयों व खेल अकादमियों में धनराशि बढ़ाकर बुनियादी ढांचे के विकास की गति तेज करे ताकि खेल की क्षमता बढ़ सके। उचित होगा कि सरकारें स्कूल स्तर से ही खेल को बढ़ावा देने का काम शुरु करें। स्कूलों में बच्चों की प्रतिभा एवं विभिन्न खेलों में उनकी अभिरुचित का ध्यान रखकर उन्हें विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इसके बाद उन्हें उचित प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध होना चाहिए। लेकिन सच्चाई है कि स्कूलों में खेल के प्रति उदासीनता है और उसका मूल कारण खेल संबंधी संसाधनों की भारी कमी और खेल से जुड़े योग्य अध्यापकों का अभाव है। कमोवेश स्कूलों जैसे ही हालात माध्यमिक विद्यालयों की भी है। यहां खेल का केवल औपचारिकता निभाया जाता है। दूसरी ओर काॅलेजों और विश्वविद्यालयों की बात करें तो यहां संसाधन तो हैं लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में खेलों के प्रति छात्रों की अनासक्ति बनी हुई है। उचित होगा कि केंद्र व राज्य सरकारें खेलों में सुधार के लिए पटियाला में स्थापित खेल संस्थान की तरह देश के अन्य स्थानों पर भी संस्थान खोलें। ऐसा इसलिए कि उचित प्रशिक्षण के जरिए देश में खेलों का स्तर ऊंचा उठाया जा सकता है। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि जब तक खेलों को रोजगार से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक देश में खेलों की दशा सुधरने वाली नहीं है। अगर खेलों में नौजवानों को अपना भविष्य सुनिश्चित नजर आएगा तभी वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। खेलों में भविष्य सुरक्षित न होने के कारण ही नौजवानों में उदासीनता है और खेल के क्षेत्र में देश की गिनती फिसड्डी देशों में होती है। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि खेल में स्थिति न सुधरने का एकमात्र कारण सरकार की उदासीनता भर नहीं है। बल्कि खेल से विमुखता के लिए काफी हद तक समाज का नजरिया भी जिम्मेदार है। आज भी देश में एक कहावत खूब प्रचलित है कि 'पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब'। देखा जाता है कि अकसर माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें खींच आती हैं जब उनका बच्चा आवश्यकता से कुछ ज्यादा खेलने लगता है। उन्हें डर सताने लगता है कि उनका बच्चा खेलेगा तो पढ़ेगा ही नहीं। स्कूलों में भी गुरुजनों द्वारा बच्चों को डांटते हुए सुना जाता है कि दिन भर खेलोगे तो पढ़ोगे कब। अगर सरकार की नीतियों में खेल से रोजगार का जुड़ाव हो तो फिर माता-पिता के मन में बच्चे के भविष्य को लेकर किसी तरह की चिंता नहीं होगी। सच तो यह है कि देश में खेल के प्रति उत्साहजनक वातावरण निर्मित नहीं हो पा रहा है और उसी का नतीजा है कि आज देश अंतर्राष्ट्रीय खेलपदकों से महरुम रह जाता है। हां, यह सही है कि अब पहले के मुकाबले ओलंपिक और एशियाड खेलों में भारत के खिलाड़ी उत्तम प्रदर्शन कर रहे हैं और वे पदक जीतकर देश का मान बढ़ा रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि देश में खेल का मतलब क्रिकेट बनकर रह गया है और बाकी खेलों को दरकिनार कर दिया गया है। फुटबाल, कबड्डी, तीरंदाजी, जिमनास्टिक जैसे खेल के खिलाड़ियों को उस तरह का सम्मान नहीं मिलता जितना कि क्रिकेटरों को। यहां तक कि विज्ञापनों में भी क्रिकेटर ही छाए रहते हैं। यहीं वजह है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भारत की दशा चिंतनीय और शोचनीय है। खेल प्रदर्शनों पर गौर करें तो ब्राजील के रियो ओलंपिक 2016 में भारत का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक व लचर रहा। रियो में 119 खिलाड़ियों का दल भेजा गया था लेकिन भारत को सिर्फ दो मेडल मिले। रियो में सिर्फ पीवी सिंधु (सिल्वर) और साक्षी मलिक (कांस्य) ही मेडल जीत पायी। किसी भी भारतीय पुरुष को मेडल नहीं मिला। दो मेडल के साथ भारत को मेडल लिस्ट में 67 वां स्थान मिला। इस दयनीय स्थिति से समझा जा सकता है कि भारत में खेलों की क्या स्थिति है। यह सच्चाई है कि दुनिया के दूसरे सर्वाधिक जनसंख्या वाले हमारे देश में खेलों का जो स्तर होना चाहिए वह नहीं है। भारत को अपने पड़ोसी देश चीन से सीखना चाहिए कि 1949 में आजाद होने के बाद 1952 के ओलंपिक में एक भी पदक नहीं जीता लेकिन 32 वर्ष बाद 1984 के ओलंपिक में 15 स्वर्ण पदक झटक लिया। आज चीन हर ओलंपिक खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर दुनिया को अचंभित कर रहा है। उसके ओलंपिक पदकधारकों में महिलाओं की तादाद भी अच्छी होती है। अच्छी बात यह है कि अब भारत में भी महिला खिलाड़ी कीर्तिमान रच रही हैं। दरअसल चीन ने खेल को प्राथमिकता में शामिल कर अपनी नीतियों को उसी अनुरुप ढाला है जिसके अपेक्षित परिणाम सामने आ रहे हैं। अगर भारत भी नई प्र्रतिभाओं को खेल के प्रति आकर्षित करना चाहता है तो उसे गांवों से लेकर नगरों तक के खेल की बुनियादी ढांचे में आमुलचूल परिवर्तन करना होगा। उसे खेल प्रशिक्षण की आधुनिक अकादमियों की स्थापना के साथ-साथ समुचित प्रशिक्षण, खेल धनराशि में वृद्धि तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन करना होगा। उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों एवं प्रशिक्षकों को सम्मानित करना होगा। यही नहीं मेजर ध्यानचंद जैसे अन्य महान खिलाड़ी को भी भारत रत्न की उपाधि से विभुषित करना होगा। गौरतलब है कि आज भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मन पद्मभूषण से सम्मानित मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन है। खेल में उनके महत्वपूर्ण योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन को भारत में खेल दिवस के रुप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद विश्व हाॅकी में शुमार महानतम खिलाड़ियों में से एक अद्भुत खिलाड़ी रहे हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा व लगन से देश का मस्तक गौरान्वित किया। दो राय नहीं कि अब खेलों के प्रति बदलते नजरिए से भारत खेल के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है लेकिन सच तो यही है कि अभी भी चुनौती जस की तस बरकरार है। यहां समझना होगा कि जब तक खेल के विकास के लिए ईमानदार नीतियों को आकार नहीं दिया जाएगा और खेल को रोजगार से जोड़ा नहीं जाएगा तब तक भारत में खेल के विकास की गति धीमी ही रहेगी।
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आग्नेय पर्व पहला अध्याय पहला खंड अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये. नि होता सत्सि बर्हिषि.. (१) हे अग्नि! हम सब आप की स्तुति (पूजा) करते हैं. यज्ञ में आप को आमंत्रित करते हैं. आप आ कर कुश (घास) के आसन पर बैठिए. आप हवि (अग्नि में डाली जाने वाली पवित्र चीजें) देवताओं तक पहुंचाइए. (यह माना जाता है कि हम अग्नि में जो पदार्थ डालते हैं, वे अग्नि के द्वारा मंत्र से संबंधित देवता तक पहुंचते हैं). (१) त्वमग्ने यज्ञाना ५ होता विश्वेषा हितः देवेभिर्मानुषे जने.. (२) हे अग्नि! आप यज्ञों के पुरोहित हैं. आप सब का कल्याण करने वाले हैं. देवताओं ने ही आप को मनुष्यों (जनों) के बीच में स्थापित किया है. (२) अग्निं दूत वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्. अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम्.. (३) हे अग्नि! आप सब कुछ जानने वाले हैं. आप धन के स्वामी हैं. इस यज्ञ को अच्छी तरह करने के लिए हम आप को दूत मान कर भेज रहे हैं. ( हवि अग्नि के माध्यम से संबंधित देवता तक पहुंचती है, इसलिए अग्नि को देवता का दूत माना जाता है). (३) अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद् द्रविणस्युर्विपन्यया. समिद्धः शुक्र आहुतः.. (४) हे अग्नि! आप अपने पूजकों को धन देने वाले हैं. समिधा (जिस से यज्ञ की अग्नि प्रज्वलित की जाती है) से आप को अच्छी तरह प्रकाशित किया गया है. आप हमारी स्तुति से प्रसन्न होइए. यज्ञ में विघ्न डालने वालों (राक्षसों एवं दुष्ट प्रवृत्तियों) को नष्ट कीजिए. (४) प्रेष्ठं वो अतिथि स्तुषे मित्रमिव प्रियम्. अग्ने रथं न वेद्यम्.. (५) हे अग्नि! आप पूजकों को धन देने वाले हैं. उन्हें मित्र की तरह बहुत प्रिय हैं. मेहमान की तरह पूजा करने योग्य हैं. आप हमारी पूजा से प्रसन्न होइए. (५) त्वं नो अग्ने महोभिः पाहि विश्वस्या अरातेः. उत द्विषो मर्त्यस्य.. (६) हे अग्नि! आप ईर्ष्याद्वेष करने वाले लोगों और दुश्मनों से हमें बचाइए. हे अग्नि! हमें बहुत सुखसंपन्नता प्रदान कीजिए. (६) एह्यू षु ब्रवाणि ते ऽ ग्न इत्थेतरा गिरः एभिर्वर्धास इन्दुभिः.. (७) हे अग्नि! आप पधारिए. हम आप के लिए शुद्ध वाणी से मंत्र पढ़ रहे हैं. आप उन्हें सुनिए. सोमरस से आप समृद्ध बनिए. (७) आ ते वत्सो मनो यमत्परमाच्चित्सधस्थात्. अग्ने त्वां कामये गिरा.. (८) हे अग्नि! हम आप के पुत्र हैं. मन से आप को आमंत्रित करना चाहते हैं. आप श्रेष्ठ जगह से भी हमारे लिए आइए. हम वाणी (मंत्र पाठ) से आप को भजते हैं. (८) त्वामग्ने पुष्करादध्यथर्वा निरमन्थत. मूर्ध्ना विश्वस्य वाघतः.. (९) हे अग्नि! आप सर्वश्रेष्ठ और सारे संसार के धारक हैं. अथर्वा (ऋषि) ने कमल के पत्तों पर अरणि (लकड़ी) मथ कर आप को उत्पन्न (प्रकाशित) किया. (९) अग्ने विवस्वदा भरास्मभ्यमूतये महे. देवो ह्यसि नो दृशे.. (१०) हे अग्नि! आप हमारी रक्षा कीजिए. स्वर्ग देने वाले इस काम को सिद्ध करिए (साधिए). आप ही हमें राह दिखाने वाले हैं. (१०) दूसरा खंड नमस्ते अग्न ओजसे गृणन्ति देव कृष्टयः अमैरमित्रमर्दय.. (१) हे अग्नि! बल चाहने वाले मनुष्य आप को नमस्कार करते हैं. मैं भी आप को नमस्कार करता हूं. आप अपने बल से दुश्मनों का नाश कीजिए. ( १ ) दूतं वो विश्ववेदस हव्यवाहममर्त्यम्. यजिष्ठमृञ्जसे गिरा.. ( २ ) हे अग्नि! आप ज्ञान के स्वामी हैं. आप हवि को देवताओं तक ले जाने वाले हैं. आप देवताओं के दूत हैं. मैं आप की कृपा पाने के लिए प्रार्थना करता हूं. (२) उप त्वा जामयो गिरो देदिशतीर्हविष्कृतः वायोरनीके अस्थिरन्.. (३) हे अग्नि! यजमान की वाणी से प्रकट होने वाली श्रेष्ठ स्तुतियां आप का गुणगान कर रही हैं. हम आप को वायु के पास स्थापित करते हैं. (३) उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम्. नमो भरन्त एमसि.. (४) हे अग्नि! हम आप के सच्चे भक्त हैं. दिनरात आप की पूजा करते हैं. दिनरात आप का गुणगान करते हैं. आप हम पर कृपा करिए. (४) जराबोध तद्विविढि विशेविशे यज्ञियाय. स्तोम s रुद्राय दृशीकम्.. (५) हे अग्नि! हम प्रार्थना कर के आप को आमंत्रित करते हैं. आप हम सब पर कृपा करने के लिए यज्ञ मंडप में आइए. दुष्टों का नाश करने वाले आप को हम सुंदर प्रार्थनाओं से बारबार आमंत्रित कर रहे हैं. (५) प्रति त्यं चारुमध्वरं गोपीथाय प्र हूयसे. मरुद्भिरग्न आ गहि.. (६) हे अग्नि! आप इस उत्तम यज्ञ में सोमपान के लिए बुलाए जाते हैं. आप मरुतों (देवताओं) के साथ आइए. (६) अश्वं न त्वा वारवन्तं वन्दध्या अग्निं नमोभिः सम्राजन्तमध्वराणाम्.. (७) हे अग्नि! आप प्रसिद्ध (यज्ञ के) पूंछ वाले घोड़े के समान हैं. आप यज्ञ के रक्षक हैं. हम प्रार्थनाओं से आप की पूजा व नमस्कार कर रहे हैं. अर्थात् जैसे घोड़ा अपनी पूंछ से कष्ट देने वाले मच्छर आदि हटा देता है, वैसे ही आप अपनी लपटों (ज्वालाओं) से हमारे कष्ट दूर कीजिए. (७) और्वभृगुवच्छुचिमप्नवानवदा हुवे. अग्नि ६ समुद्रवाससम्.. (८) हे अग्नि! आप समुद्र में रहने वाले हैं. भृगु और अप्नवान जैसे ऋषियों ने जिस तरह सच्चे मन से आप की प्रार्थना की, उसी तरह हम भी सच्चे मन से आप की प्रार्थना करते हैं. (८) अग्निमिन्धानो मनसा धिय सचेत मर्त्यः. अग्निमिन्धे विवस्वभिः.. (९) हे अग्नि! मनुष्य मन लगा कर आप को तथा अपनी श्रद्धा को जगाता है. सूर्य की किरणों के साथ आप को प्रकाशित करता है. (९) आदित्प्रत्नस्य रेतसो ज्योतिः पश्यन्ति वासरम्. परो यदिध्यते दिवि.. (१०) हे अग्नि! स्वर्गलोक से ऊपर सूर्य रूप में अग्नि प्रकाशित होती है. तभी सब प्राणी उस प्रकाश वाले तेज का दर्शन करते हैं. (१०) तीसरा खंड अग्निं वो वृधन्तमध्वराणां पुरूतमम्. अच्छा नप्त्रे सहस्वते.. (१) हे ऋत्विजो (उपासको)! अग्नि तुम्हारे अहिंसक यज्ञों में सहायक, श्रेष्ठ (उत्तम), सब के हितकारी व बलशाली हैं. तुम ज्वालाओं (लपटों) से बढ़ते हुए अग्नि की सेवा में जाओ. ( १ ) अग्निस्तिग्मेन शोचिषा य छं सद्विश्वं न्य ३ त्रिणम् अग्निर्नो व सते रयिम् .. ( २ ) अग्नि अपनी तेज लपटों से राक्षसों और अन्य विघ्नों को नष्ट करें. अग्नि हमें सब प्रकार का धन (सुख) प्रदान करें. (२) अग्ने मृड महाँ अस्यय आ देवयुं जनम्. इयेथ बर्हिरासदम्.. (३) हे अग्नि! आप हमें सुख दीजिए. आप महान व गतिशील यानी सामर्थ्यवान हैं. आप देवताओं के दर्शन के इच्छुक यजमान के पास कुश (घास ) के आसन पर विराजने के लिए यहां पधारिए. (३) अग्ने रक्षा णो अछं हसः प्रति स्म देव रीषतः. तपिष्ठैरजरो दह.. (४) हे अग्नि! आप पापों से हमारी रक्षा कीजिए. आप दिव्य तेज वाले हैं. आप अजर (बुढ़ापे से रहित) हैं. आप हमारा नुकसान करने की इच्छा रखने वाले शत्रुओं को अपने तेजताप से भस्म कर दीजिए. (४) अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः. अरं वहन्त्याशवः.. (५) हे अग्नि! अपने तेज गति वाले श्रेष्ठ और कुशल घोड़ों को (यहां पधारने के लिए) रथ में जोतिए. (५) नि त्वा नक्ष्य विश्पते द्युमन्तं धीमहे वयम्. सुवीरमग्न आहुत.. (६) हे अग्नि! हम आप की शरण में हैं. यजमान आप को आमंत्रित करते हैं. आप की पूजा करते हैं. आप की पूजा से सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं. हम ने हृदय से आप को यहां स्थापित किया है. (६) अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्. अपा s रेता s सि जिन्वति.. (७) हे अग्नि! आप सर्वोच्च (सब से ऊंचे) हैं. आप स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक का पालन करने वाले हैं. आप इन के स्वामी हैं. आप जल के सारे जीवों को जीवन देते हैं और काम में लगाते हैं. (७) इममू षु त्वमस्माक¸ सनिं गायत्रं नव्य ६ सम्. अग्ने देवेषु प्र वोचः.. (८) हे अग्नि! आप हमारी इस हवि को देवताओं तक पहुंचाइए. हम गायत्री छंद में आप की प्रार्थना कर रहे हैं. आप हमारी इन दोनों चीजों को देवताओं तक पहुंचा दीजिए. (८) तं त्वा गोपवनो गिरा जनिष्ठदग्ने अङ्गिरः स पावक श्रुधी हवम्.. (९) हे अग्नि! गोपवन ऋषि ने आप को अपनी स्तुति से उत्पन्न किया है. आप अंगों में रस के रूप में निवास करते हैं. आप पवित्र करने वाले हैं. आप हमारी प्रार्थना सुनिए. (९) परि वाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत्. दधद्रत्नानि दाशुषे.. (१०) हे अग्नि! आप सर्वज्ञ व अन्नों के स्वामी हैं. आप हवि के रूप में दिए गए पदार्थों को ******ebook converter DEMO Watermarks*******
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सौ रुपये लेकर दस्तावेज लिख दिया । आखिर, वह स्टाम्प खरीद ही चुके थे । कप्तान साहव पैसा लेकर लौटे, तो पलटन के दोस्त के भेजे सौ रुपये भी आ गये थे। उनके पास अब दो सौ रुपये थे । चन्द्रसिंह एक दिन बागेश्वर जा रहे थे । गोमती नदी के किनारे वागेश्वर मन्दिर है। वहाँ भीड़ लगी थी, आसपास के गाँवों से लोग भागे-भागे आ रहे थे । पूछने पर मालूम हुआ कि महात्मा गाँधी आये हैं । चन्द्रसिंह महात्मा गाँधी का नाम बहुत सुने थे, लेकिन उन्होंने उन्हें कभी देखा नहीं था । गाँधीजी के साथ मोहन जोशी और हरगोविन्द पंत भी थे । चन्द्रसिंह का अभी इनसे कोई परिचय नहीं था । चन्द्रसिंह वागेश्वर पहुँचे । देशी बाजे के साथ वहाँ गाँधीजी का स्वागत किया गया और डाक बँगले में ठहराया गया । सुना कि गाँधीजी 21 दिन का उपवास कर रहे हैं । अल्मोड़ा में उनकी मोटर के नीचे पद्मसिंह नाम का एक पुरुष दवकर मर गया था, इसीलिए वह उपवास कर रहे थे । उस दिन गाँधीजी का व्याख्यान होनेवाला था । भाषण मंच के सामने फौजी गांरखा टोपी पहिने चन्द्रसिंह बैठे थे । आते ही गाँधीजी की नजर उस टोपी पर पड़ी और वह उँगली से उस ओर दिखलाते हँसकर बोले- "क्या यह मुझे डराने के लिए यहाँ बैठे हैं ?" सभी लोग हँस पड़े । चन्द्रसिंह ने उठकर कहा- "अगर कोई मुझे दूसरी टोपी दे, तो मैं इसे उतारकर उसे पहनने के लिए तैयार हूँ।" किसी ने अपने झोले में से गाँधी टोपी निकालकर चन्द्रसिंह की तरफ फेंकी । चन्द्रसिंह ने उस टोपी को गाँधीजी की ओर फेंककर कहा- "मैं वूढ़े के हाथ से टोपी लूँगा ।" महात्माजी ने टोपी को चन्द्रसिंह की ओर फेंक दिया । चन्द्रसिंह ने उसे लेकर सिर पर रखते हुए खड़े होकर प्रतिज्ञा की कि मैं इसकी कीमत चुकाऊँगा । सभा में तालियाँ पिटीं । चन्द्रसिंह के लिए यह दिन अविस्मरणीय था । उन्होंने महात्माजी का दर्शन ही नहीं किया, उनके हाथ से टीपी पाई । यह काँटों का मुकुट था, जिसको सिर पर रखते खुशी के मारे उनकी आँखें डवडवा आईं । कुली-प्रथा कुमाऊँ से उठ गई थी । महात्माजी ने कुमाऊँवालों को सफलता पर बधाई दी । उसी समय स्वराज्य-भवन की उन्होंने नींव भी डाली । चन्द्रसिंह बागेश्वर में कुछ चीजें खरीदने गये थे। उन्हें खरीदकर मैगढ़ी लौट आये। एक हफ्ते और रहने के बाद 26 जून 1929 को वह अपनी पलटन के लिए रवाना हुए । नमक सत्याग्रह (1930 ई.) मैगढ़ी से चलते वक्त न जाने क्यों चन्द्रसिंह को एक तरह की बेचैनी हो रही थी । चौदह वर्षों के अपने फौजी जीवन में वह प्रायः हर साल एकाध बार छुट्टी लेकर घर आते थे मगर उनका चित्त कभी ऐसा उदास नहीं हुआ । हो सकता है, नये गाँव में ले जाकर अपनी गृहस्थी अच्छी तरह जमा भी नहीं पाई थी कि उन्हें फिर न जाने कितने दिनों के लिए जाना पड़ रहा था । चलते वक्त सबसे पीछे आशीर्वाद उनकी सास ने दिया, जो सास बनने से पहिले भी उनसे परिचित थीं । अब वह अपने दामाद को फिर नहीं देखने को थीं । चन्द्रसिंह लंडीकोतल में 2-18 रा. ग. रा. में जा मिले । उनकी पलटन जुलाई से नवम्बर तक वहीं रही। मामूली कवायद-परेड और चाँदमारी के सिवा और कोई काम नहीं था । पहिले अखबार मँगाने का उन्होंने प्रबन्ध किया था, उसे उनके दोस्तों ने चालू रक्खा था । इस छुट्टी में उनको जो-जो खबरें मालूम हुईं और बागेश्वर में महात्मा गाँधी से कैसे दर्शन हुआ था, वह सब बातें उन्होंने अपने साथियों को बतलाईं । लाहौर षड्यन्त्र केस, दिल्ली बम केस चल रहे थे । चन्द्रसिंह और उनके अपने विचारवाले साथियों में बड़ी बेचैनी थी । वहाँ फौजी कैम्प में मिलकर बात करने का कोई अवसर नहीं था । लंडीकोतल की छावनी दूसरी छावनियों से भी बढ़कर जेलखाना थी । कैम्प के चारों ओर काँटेदार तारों की बाढ़ लगी थी । बाजार में जाने के लिए भी उन्हें कमाण्डर से छुट्टी लेनी पड़ती । महीने के अन्त में जब कभी 'विश्वमित्र' की कॉपी आती, तो उसको पढ़ने के लिए समय 220 / राहुल-वाङ्मय - 21 : जीवनी और संस्मरण न मिलता । दिन में आदमी आते रहते थे, न जाने कौन खुफिया का काम कर रहा हो; और रात को बत्ती जलाने की मनाही थी । वह पठानों का इलाका था, जो संगीन के बल पर दबाकर रक्खे गये थे और हर वक्त अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को दिखाने के लिए तैयार थे । बहुत कोशिश करने पर चन्द्रसिंह के दोस्तों ने ब्रिगेड के कैन्टोनमेन्ट बाजार में एक दर्जी से ठीक-ठाक किया । वहीं पर चन्द्रसिंह जाकर अखबारों को पढ़ आते । उनके दूसरे साथी भी इस काम के लिए वहीं जाया करते थे। राष्ट्रीयता की भावना अब थोड़े से लोगों का षड्यन्त्र नहीं था, वह बाँध तोड़कर भारत में बह रही थी। इसलिए अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानी सैनिकों को चाहे जितना छन्द-बन्द से रखना चाहा हो, पर राष्ट्रीयता को रोक नहीं सकते थे। गढ़वाली बटालियन की बदली पेशावर हुई । 21 नवम्बर 1929 को वह लंडीकोतल से रवाना हुई, और तीन दिन पैदल चलने के बाद पेशावर छावनी के निकल्सन लाइन में पहुँची। निकल्सन एक मशहूर अंग्रेज सेनापति था, जिसने 1857 ई. में दिल्ली को विद्रोहियों के हाथ से छीनने में सफलता प्राप्त की थी, उसी के नाम से इस लाइन या बैरक का नाम निकल्सन था । एक दूसरी लाइन हरिसिंह लाइन कही जाती थी । हरिसिंह महाराजा रणजीतसिंह का बहुत बड़ा सेनापति था । उसने पठानों को गुलाम बनाने के लिए उन पर बड़े अत्याचार किये थे । जमरूद किले में वह मारा गया था । हरिसिंह का नाम अंग्रेज क्यों अमर करना चाहते थे ? वह पठानों और सिक्खों (पंजाबियों) की सनातन शत्रुता का प्रतीक था, जिसको जीवित रखना अंग्रेज अपने हित की बात समझते थे । यह लाइनें जमरूद सड़क के किनारे ताकाल गाँव के पास अवस्थित हैं। उन दिनों पेशावर में चार बटालियनें रहती थीं-एक गोरा रेजिमेन्ट, दूसरी 2/7 रेजिमेन्ट, तीसरी चन्द्रसिंह की 2 / 18 रॉयल गढ़वाली राइफल और चौथी 4 / 11 सिक्ख बटालियन । इसके अतिरिक्त रिसाले का टूप, खच्चरवाला तोपखाना, विमान सेक्शन, मोटर कम्पनी, मलिशिया स्क्वाड्रन आदि भी थे । पेशावर अंग्रेजों का एक जबर्दस्त सैनिक गढ़ था, यह सबको मालूम है। पेशावर छावनी में चारों पलटनें बारी-बारी से ब्रिगेड की ड्यूटी करती थीं । हरेक बटालियन को दो घंटे की नोटिस पर पेशावर शहर में जाने के लिए मुस्तैद रहने का हुकुम था । शहर में कोई बलवा हो जाय या आग लग जाय, तो तुरन्त फौज को भेजा जाता था । बटालियन जब ड्यूटी देती तो दूसरे बटालियन को सरहद के गवर्नर की सेवा, छावनी और किले की ड्यूटी, रसद गारद की ड्यूटी या मेडिकल कॉलेज की ड्यूटी करनी पड़ती । तीसरी बटालियन का काम होता पास के कबाइली अफरीदियों के आक्रमण से पेशावर के इलाके की हिफाजत करने के लिए हर वक्त तैयार रहना । चौथी बटालियन अफरीदी और सिनवारी कबाइलियों से पेशावर की हिफाजत के लिए तैयार रक्खी जाती ये ड्यूटियाँ चारों बटालियनें बारी-बारी से करतीं । इनके अतिरिक्त उन्हें पलटनों की मामूली रोजमर्रा की ड्यूटियाँ कवायद परेड करते ही रहना पड़ता था । चन्द्रसिंह की बटालियन को पहिले पहिल अफरीदियों के आक्रमण से बचाने की ड्यूटी पर लगाया गया । इस ड्यूटी में गारद लगाने की जरूरत नहीं पड़ती थी और बटालियन को रात भर छावनी के सामने लगे कँटीले तारों की लाइन में रहते पेट्रोल (पहरेदारी) का काम करना पड़ता था । बाकी समय कवायद-परेड में जाता । किसी शिकायत पर कम्पनी के कमाण्डर ने चन्द्रसिंह को हवलदार मेजरी से हटाकर कम्पनी क्वार्टर-मास्टरी हवलदार बना दिया । इसमें काम कम था । सिर्फ कम्पनी के रसद, गोला-बारूद, वर्दी आदि के देखने-भालने की जिम्मेदारी थी । लिखने-पढ़ने का काम कुछ ज्यादा था । कारण बतलाते हुए कम्पनी कमाण्डर ने कहा- "चन्द्रसिंह, तुम हुकुम के कामों में गफलत करते हो । मेरे पास शिकायत आई है कि तुम अपनी ड्यूटी पर हाजिर नहीं रहते । " चन्द्रसिंह ने कहा-"हुजूर, मुझे तो तनखाह से गरज है, आप चाहे भंगियों के साथ रख दें ।" कम्पनी कमाण्डर अंग्रेज था, वह यह सुनकर जल मरा, उसका चेहरा सुर्ख हो गया । समझा होगा, देश में जो आग लगी हुई है, उसकी आँच हमारे इन क्रीत दासों को भी छू गई है। चन्द्रसिंह को इससे कोई दुःख नहीं हुआ । तनखाह के ऊपर जो आठ रुपये मासिक मिलते थे, वह भी पहिले की तरह मिल रहे थे । क्वार्टर- मास्टर का काम होता है, रसद की देखभाल करना । घी, आलू, आदि वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली / 221 सभी चीजों की सुविधा थी, साथ ही सिपाहियों की जवावदेही नहीं थी । वाजार जाने का मौका भी इसमें बहुत पेशावर छावनी से कैन्टोनमेन्ट (छावनी) बाजार एक मील पर पड़ता । विना प्लाटून कमाण्डर की आज्ञा के कोई सैनिक लाइन से बाहर नहीं जा सकता । इसलिए बाहर से खवर या समाचारपत्र लाना आसान नहीं था । दल का कोई आदमी उन्हें देखते ही पूछता- "महाशयजी, क्या खवर है ?" आर्यसमाजी होने से अब उनका नाम शायद महाशय भी पड़ गया था । इसी समय लाहौर में कांग्रेस की तैयारियाँ हो रही थीं । देश के बड़े-बड़े नेताओं के जोशीले वक्तव्य अखबारों में निकल रहे थे । उस वक्त कौन अभागा हो सकता था, जो देश की खबरों को जानने की उत्सुकता न रखता हो ? एक दिन चन्द्रसिंह नारायणसिंह के साथ यही पता लगाने के लिए सदर बाजार गये । वह चाहते थे, अखवार मँगाने का कोई इंतिजाम किया जाय । उस दिन इतवार था । दोनों फौजी वर्दी छोड़ सूट-बूट पहिन बिना इजाजत लिये सदर बाजार चले गये । एक मकान का दरवाजा खुला था और अन्दर से 'जय जगदीश हरे, पिता जय जगदीश हरे' की आवाज आ रही थी । चन्द्रसिंह समझ गये कि यह आर्यसमाज मन्दिर है। दोनों ही आर्यसमाजी थे, इसलिए निधड़क मकान के भीतर चले गये । देखा, वहाँ कितनी ही लड़कियाँ और स्त्रियाँ हवन करके आरती गा रही हैं। उन्हें देखकर अपनी गलती मालूम हुई और वह तुरन्त लौट पड़े । इस पर वहाँ बैठी एक महिला ने आश्वासन देकर पूछा- "आप यहाँ कैसे आ गये ?" चन्द्रसिंह ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया- "वहिनजी, हम दोनों आर्यसमाजी हैं। आरती की आवाज सुनकर भीतर चले आये। हमें यह मालूम नहीं था कि यह स्त्री समाज है । गलती के लिए हमें क्षमा करें ।" महिला ने कहा- "नहीं, नहीं, क्षमा माँगने की जरूरत नहीं । यहाँ भगवान की आरती हो रही है । आप भी इसमें शामिल हो सकते हैं।" थोड़ा परिचय हो जाने के बाद चन्द्रसिंह ने अखवार की बात कही, महिला ने अपने भाई का परिचय दिया, जो आर्यसमाज का प्रधानमन्त्री था । महिला ने बताया कि आप उनके पास जायँ, वह अखवार का इंतिजाम कर देंगे । वह स्वयं लड़कियों के स्कूल की अध्यापिका थी । दोनों महिला के भाई की दूकान पर पहुँचे । संयोग से वह वहाँ मौजूद थे। उन्होंने अपनी गरज बतलाई, तो भाई ने अखबार मँगा देने की जिम्मेदारी ले ली । एक महीने का दाम तीन रुपया भी जमा कर दिया । उक्त सज्जन ने अपने नाम से अखबार मँगा लेने का जिम्मा ले लिया और पढ़ने के लिए 'चाँद' पत्रिका भी . दे दी। अखबार उन्हें कोई नहीं मिला, रुपये हजम हो गये । सदर बाजार में युक्तप्रदेश के एक हलवाई ने अपनी दूकान खोल रक्खी थी। अपने प्रदेश का होने के कारण चन्द्रसिंह ने उसके सामने भी अखवार का दुखड़ा रोया। हलवाई ने एक अखवारफरोश को बुला अपनी दूकान पर रोज का हिन्दी का एक अखबार रख जाने के लिए वचन ले लिया । चन्द्रसिंह ने यहाँ भी महीनेभर के लिए रुपये जमा कर दिये । यह इंतिजाम कुछ पक्का था । अपने में से सात-आठ निश्चित कर लिये थे, जो बारी-बारी से आकर यहाँ से अखबार ले जाते थे । कम्पनी में जब हाजिरी की पुकार हो जाती, तो एक-एक आदमी चन्द्रसिंह की कोठरी के भीतर आकर अखबार पढ़ जाता । रोशनी बाहर न जाय, इसके लिए दरवाजे पर कम्बल लगा दिया गया था । अखबार पढ़कर हरेक अपनी कम्पनी के अपने दलवाले सभी आदमियों को बातें सुनाता । अखबार तलाशी में मिल जाता, तो इसका भारी दण्ड भोगना पड़ता है, इसलिए पढ़कर रातों-रात उसे पानी में डालकर गला दिया जाता था और चन्द्रसिंह की अर्दली में रहनेवाला सिपाही उसे सबेरे कूड़े में डाल आया करता । इस तरह वह अपनी भावना और तीव्र जिज्ञासा की तृप्ति किया करते थे। इसी बीच लाहौर में पं. जवाहरलाल नेहरू के सभापतित्व में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। 26 दिसम्बर 1929 को 'पूर्ण स्वतन्त्रता भारत का लक्ष्य है', इसकी घोषणा की गई । सारे देश में जोश की लहर दौड़ रही थी । उसका एक अंश अखबारों द्वारा चन्द्रसिंह की बटालियन के जवानों में भी पहुँच रहा था। एक दिन अखबार लाने की बारी चन्द्रसिंह की थी । पेशावर में वायसराय के आने की खबर थी, इसलिए रात-दिन बैरक की सफाई और बटालियन की ड्रिल 222 / राहुल-वाङ्मय - 21 : जीवनी और संस्मरण
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सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा के अनुसार, वर्तमान मेंपित्त नली प्रणाली की बीमारियों की संख्या में वृद्धि हुई। यह एक अस्वास्थ्यकर जीवनशैली, कुपोषण, और एक व्यक्ति की वंशानुगत पूर्वाग्रह के आचरण द्वारा समझाया गया है। प्रत्येक वर्ष पित्त उच्च रक्तचाप के विकास के साथ बीमारियों में वृद्धि हुई है। हमारे लेख में इस गंभीर रोगविज्ञान पर चर्चा की जाएगी। बिलीरी उच्च रक्तचाप सबसे अधिक हैयकृत और पित्त मूत्राशय में होने वाली घातक प्रकृति के निओप्लाज्म का एक सामान्य अभिव्यक्ति। अक्सर, यह रोगविज्ञान यांत्रिक जौनिस के साथ होता है। पैनक्रिया के सिर पर दिखाई देने वाला ट्यूमर पित्त नलिकाओं पर दबाव डालना शुरू कर देता है, और वहां स्थित पत्थरों या पॉलीप्स दबाव की उपस्थिति को बढ़ावा देते हैं, जो पित्त को सामान्य रूप से बहने की अनुमति नहीं देता है। शल्य चिकित्सा एंडोस्कोपिक हस्तक्षेप का उपयोग करते हुए, इस तरह के उच्च रक्तचाप का इलाज किया जाता है। पित्त उच्च रक्तचाप निम्नलिखित रोगजनक स्थितियों के तहत विकसित करने में सक्षम हैः - सौम्य और घातक ट्यूमर,पित्त नलिकाओं में से एक में उत्पन्न होता है, जिससे बहिर्वाह का उल्लंघन होता है। इसके अलावा, इस तरह के रोगविज्ञान के उद्भव पास के अंग नियोप्लाज्म में विकसित नलिकाओं में से एक के निचोड़ने की ओर जाता है। - गैल्स्टोन रोग और कैलकुस cholecystitis।इस तरह की बीमारियों को हेपेटोबिलरी सिस्टम के विभिन्न हिस्सों में अघुलनशील पत्थरों के गठन और यांत्रिक पीलिया की घटना के रूप में चिह्नित किया जाता है। - परजीवी के नलिकाओं में उपस्थिति - हेल्मिंथ्स। इसके अलावा जन्मजात जन्म के कारण भी यह बीमारी विकसित हो सकती हैपित्तीय पथ के विकृतियां, जिनमें लुमेन का एक संशोधित आकार और व्यास होता है। इस मामले में, बीमारी के संकेत पहले ही बचपन में दिखाई देते हैं। प्रारंभिक पर पित्त उच्च रक्तचाप के लक्षणअपने विकास के दौरान, वे किसी भी तरह से खुद को प्रकट नहीं करते हैं, यही वजह है कि कई रोगियों को यह बीमारी शुरू होती है। हालांकि, यह निम्नलिखित लक्षणों के लिए रखवाली के लायक हैः - कमजोरी; - पेट फूलना, - दस्त; - सही हाइपोकॉन्ड्रिअम में दर्द। मुख्य लक्षण, स्पष्ट रूप से सिंड्रोम की ओर इशारा करते हुएपित्त उच्च रक्तचाप, पोर्टल प्रणाली में दबाव के साथ जुड़े प्लीहा की मात्रा में वृद्धि है। बाद के चरण में, एनीमिया, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया और ल्यूकोपेनिया होते हैं। इसके कारण पीलिया होता हैपित्ताशय की थैली पर यांत्रिक दबाव। पेट की गुहा में द्रव (जलोदर) जमा हो सकता है, जिसकी एक विशेषता थेरेपी के लिए इसका प्रतिरोध है। इससे छुटकारा पाने में आमतौर पर लंबा समय लगता है। रोगी पेट की मात्रा बढ़ाना शुरू कर देता है, पैरों में सूजन होती है, पेट की दीवार पर पूर्वकाल की नस का विस्तार होता है। रोग का सबसे गंभीर प्रकटन हैपेट, मलाशय, या घेघा में रक्तस्राव। यह सब खून की उल्टी के साथ है। और अगर अन्नप्रणाली में रक्तस्राव होता है, तो मल में रक्त की अशुद्धता होगी। निम्नलिखित मामलों में साधन अनुसंधान विधियों का आयोजन किया जाता हैः - पित्त उच्च रक्तचाप की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए; - इस तरह की विकृति की घटना का कारण बनने वाले रोग को स्थापित करने के लिए। निम्नलिखित विधियों को सबसे अधिक जानकारीपूर्ण माना जाता है। उपचार योजना चुनने में महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एकपित्त उच्च रक्तचाप पित्त नली ब्लॉक के स्तर का निर्धारण है। इस मामले में, मुख्य गैर-इनवेसिव विधि पेट की गुहा और रेट्रोपरिटोनियल स्पेस की अल्ट्रासाउंड परीक्षा है। इस तरह के निदान के कारण, बाहरी और इंट्राहेपेटिक पित्त नलिकाओं के विस्तार का पता लगाया जाता है, जो इस तरह के विकृति का लक्षण है। डिस्टल ब्लॉक स्तर के साथ पित्त उच्च रक्तचापहेपेटिकोहोलेडोच के विस्तार की विशेषता है, और थोड़ी देर के बाद इंट्राहेपेटिक नलिकाएं पतला हो जाती हैं, और पित्ताशय के आकार में वृद्धि होती है। 10 मिमी से अधिक व्यास के साथ एक वाहिनी एक रसौली के मामले में होता है। एक उच्च ब्लॉक के साथ, एक टूटे हुए पित्ताशय की थैली की उपस्थिति और इंट्राहेपेटिक नलिकाओं के विस्तार का पता लगाया जाता है। 51.3% मामलों में ट्यूमर मनाया जाता है। पेट और रेट्रोपरिटोनियल अंगों का सीटी स्कैनअंतरिक्ष कई अंगों की संरचनात्मक सुविधाओं की कल्पना करने में मदद करता है। इस तरह के एक अध्ययन से बड़े आकार की संरचनाओं के संबंध में काफी सटीक परिणाम प्राप्त करना संभव हो जाता है और यह आकलन करता है कि आसन्न संरचनाओं में वे कितनी दृढ़ता से अंकुरित होते हैं। यदि इस तरह के विकृति का संदेह है,पित्त उच्च रक्तचाप के रूप में, विशेषज्ञ सबसे अधिक बार इंडोस्कोपिक रेट्रोहोलियोपियोप्रोटोग्राफी या कोलेजनियोग्राफी करते हैं। इस तरह के तरीकों के साथ रेडियोपैक पदार्थों की शुरूआत अलग-अलग तरीकों से की जाती है, लेकिन एक समान परिणाम होता है। एक्स-रे तस्वीर पर इस पदार्थ के कारण, डक्टल प्रणाली की धैर्य की डिग्री का आकलन करना संभव है। इस तरह के एक अध्ययन को एक आक्रामक विधि माना जाता है,और केवल एक कठिन मामले में, अर्थात् संदिग्ध घातक ट्यूमर के मामले में इसका सहारा लें। आमतौर पर अल्ट्रासोनोग्राफी के नियंत्रण में यकृत का एक उद्देश्यपूर्ण ट्रेपायोपॉपी किया जाता है। पैथोलॉजी के फोकस से ऊतक की एक छोटी मात्रा ली जाती है, जिसे हिस्टोपैथोलॉजिकल परीक्षा के अधीन किया जाता है। प्राप्त परिणाम नियोप्लाज्म की प्रकृति का न्याय करना संभव बनाता है। यदि उपर्युक्त नैदानिक विधियाँ नहीं हैंपित्त उच्च रक्तचाप के कारण की पहचान करने में सक्षम, फिर ऑपरेशन करें। यह एक बार में नैदानिक और चिकित्सीय सर्जिकल जोड़तोड़ दोनों को अंजाम देने के अवसर के साथ लैप्रोस्कोपिक या लैपरोटोमिकली प्रदर्शन किया जा सकता है। डायग्नोस्टिक्स की मदद से, प्रत्यक्ष दृश्य और अंतर्गर्भाशयी बायोप्सी की जाती है। सर्जिकल जोड़तोड़ का पता चला विकृति विज्ञान की प्रकृति के आधार पर किया जाता है। यदि पित्त उच्च रक्तचाप का निदान किया गया है, तो उपचार रूढ़िवादी या शल्य चिकित्सा द्वारा किया जाता है। रूढ़िवादी उपचार आमतौर पर किया जाता हैकार्यात्मक विकार, जिसका उन्मूलन ऐसी दवाओं द्वारा "एटेनोलोल", "नाइट्रोग्लिसरीन", "मोनोप्रिल", "एनप्रिलिन", "नाइट्रोसोरबाइड", "सॉलोडेक्सिड", "एडनीट" के रूप में किया जाता है। सर्जिकल उपचार केवल बाहर किया जाता हैयदि सूचीबद्ध दवाएं कोई परिणाम नहीं लाती हैं। ऑपरेशन जलोदर, आंत, पेट और अन्नप्रणाली के रक्तस्राव, साथ ही हाइपरप्लेनिअल सिंड्रोम के विकास का पता लगाने में किया जाता है। सर्जिकल हस्तक्षेप के आधुनिक तरीकों में लैप्रोस्कोपी का उपयोग शामिल है, जो एक कम प्रभाव वाला है, एक कैमरा, माइक्रोमैनिपुलेटर और प्रकाश के साथ पतली ट्यूबों के छोटे चीरों के माध्यम से परिचय के साथ बख्शते संचालन। मॉनिटर पर एक छवि दिखाई देती है, जिसके आधार पर डॉक्टर बाधा को हटा देता है। किसी भी मामले में आत्म-औषधि और नहीं कर सकतेट्यूमर को हटाने के लिए दवाएं और रसायन लें, पेट की मात्रा को कम करें और बिना डॉक्टर के पर्चे के पत्थरों को हटा दें। इसके अलावा, यदि जिगर और पित्ताशय की थैली के उच्च रक्तचाप का पता चला है, तो निम्नलिखित चिकित्सीय क्रियाएं की जाती हैंः - तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स के इष्टतम स्तर को बनाए रखने के लिए ड्रॉपर लगाएं; - दवाओं का उपयोग करें जो यकृत कोशिकाओं के रक्त की आपूर्ति और पोषण में सुधार करते हैं; - एंटीबायोटिक थेरेपी बाहर ले; - पित्त पथ के विघटन आचरण।
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3. एक मिलाजुला संविधान ( Composite Constitution) ग्रेट ब्रिटेन का संविधान विकसित संविधान है । यह केवल मुख्य रूप से अलिखित ही नहीं बल्कि इसका निर्माण किसी एक संविधान सभा यां राजा द्वारा नहीं हुआ । इस कारण अंग्रेज़ी संविधान वास्तव में इतिहास की देन है। जिस प्रकार छोटी-छोटी नदिये मिल कर क्रमशः एक महान नदी का रूप धारण कर लेती हैं ठीक उसी प्रकार कई लोगों या जातियों की भिन्न-भिन्न देन ने मिलकर धीरे-धीरे आधुनिक अंग्रेजी संविधान को बनाया । प्रो. ऐडम्ज़ ( Adams ) के शब्दों में "अंग्रेजी राष्ट्र को अंग्रेजी भाषा की भांति अंग्रेजी संविधान भी अनेकों विभिन्न साधनों द्वारा निर्मित हुआ है । "I यह बात स्वयं सिद्ध है कि अंग्रेजी भाषा कई भाषाओं को मिलाकर बनी है । इसकी लिपी रोमन भाषा से ली गई है और इसमें केल्ट, (Celt) रोमन, जर्मन, फ्रांसीसी, लातीनी (Latin ) तथा अन्य कई भाषाओं से शब्द लिए गए हैं । इसी तरह अंग्रेज़ी राष्ट्र के लोग कई जातियों से सम्बन्ध रखते हैं। इनमें केल्ट, रोमन, फ्रांसीसी; जर्मन, एंगलो-सेक्सन तथा अन्य कई जातियों के लोग शामिल हैं। इस प्रकार अंग्रेजी संविधान या अंग्रेज़ी सरकार के ढांचे के निर्माण में कई जातियों ने योगदान दिया । केल्ट और रोमन जातियों ने इंगलैंड के संविधान के विकास में कोई सीधा भाग न लिया। एंगलो-सेक्सन, (Anglo-saxon ) तथा डैन्ज़ (Danes) जातियों ने आधुनिक अंग्रेजी सरकार के ढांचे का निर्माण किया। इस ढांचे के अनुसार राजा (King) सर्वेसर्वा था, परन्तु उसकी शक्तियों के प्रयोग करने में एक प्रसिद्ध सामन्तों की सभा सहायक थी, जिसका नाम वाईटां (Witan ) या विटनजेमूट था । इसके लगभग 50 और 60 के बीच सदस्य थे और यह सभा कार्यकारिणी, विधान पालिका तथा न्यायपालिका का काम करती थी, अर्थात इससे यह कहा जा सकता है कि शुरू से ही अंग्रेजी सरकार में पृथक्करण के सिद्धांत ( Separation of powers) को कोई विशेष जगह नहीं मिली। एंगलो-सेक्सन काल में इंगलैण्ड के स्थानीय सरकार के ढाँचे को भी बनाया गया जो आज भी मुख्य बातों में उसी रूप में काम कर रहा है । इस ढाँचे में शायर (Shire ) या जिला, हंडर्ड (Hundred) और छोटे-छोटे गांवों की सभाएं होती थीं । नार्मन विजय (Norman conquest) के साथ वाईटां के स्थान पर एक महान सभा (Curia Regis) का निर्माण हुआ । राजा राष्ट्र की एकता का प्रतीक वन गया। बाकी सरकार का ढांचा वैसे ही बना रहा। 1295 में ऐडवर्ड I ने आधुनिक पार्लियामेंट का प्रारम्भ किया । इस तरह कई विभिन्न स्रोतों से आधुनिक अंग्रेजी संविधान का क्रमशः निर्माण होता रहा है । 1. Adams, George B. "Constitutional History of England......P.5 "The English Constitution like the English nation and the English langnage was derived from a variety of sources." विकसित संविधान (British Constitution : a Growth) "संविधान" शब्द लातीनी भाषा के शब्द 'कांस्टीचूरे' (Constituere ) से बना है । इसका अर्थ " स्थापित करना " है । इस प्रकार संविधान किसी राज्य या राष्ट्र के उन मौलिक नियमों का संग्रह है जो सरकार के रूप और अलग-अलग प्रशासकीय संस्थाओं का निर्माण करते हैं । यह नियम यदि लिखित हों तो संविधान को लिखित कहा जाता है और यदि अलिखित हों तो संविधान को अलिखित कहा जाता है । संविधान के लिखित या अलिखित होने का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता क्योंकि संसार का कोई भी संविधान लिखित तथा अलिखित नियमों के बिना नहीं चल सकता । इसलिए डा० फाईनर ( Herman Finer ) के मतानुसार "प्रत्येक राज्य का संविधान होता है, राजनैतिक संस्थाओं की वह श्रृंखला जो राज्य के अन्दर सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न हो ।" I मनरो (Munro ) का भी यही विचार है कि "यदि किसी देश के लोग कुछ ऐसे नियमों या धाराओं या रीति-रिवाजों को स्वीकार करते हों जो उनकी सरकार का आधार हो, तो वे नियम उन लोगों का संविधान बनाते हैं । इसका कोई महत्त्व नहीं कि वे मौलिक नियम किसी एक लेख - पत्र में लिखे गये हों या बहुत से लेखों में बटे हुये हों या कभी भी लिखे न गये हों ।" " अलिखित संविधान (Unwritten Constitution) संसार के अनेकों स्वतन्त्र देशों में अकेला ग्रेट ब्रिटेन का संविधान एक अलिखित संविधान है। इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ (U. N. O.) के लगभग 124 देश सदस्य हैं । इनमें 123 देशों का संविधान लिखित है । केवल इंगलैंड का संविधान ही अलिखित है । लिखित संविधान की रचना तीन प्रकार से की जा सकती है । (I) संविधान किसी विशेष संविधानिक सभा (Constituent Assembly or Convention ) द्वारा एक लेख-पत्र के रूप में लिखा जाये, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका (U. S. A.) का 1. Finer, Herman: "Governments of Greater European Powers." ( Henry Holt, N. Y. - 1956) ...p. 42. "Every state has a constitution: the system of fundamental political institution having supreme authority in its territory." 2. Munro, W. B. "The Governments of Europe." (MacMillanN. Y.-1954) p. 18. "If certain rules, provisions, and customs are accepted by the people as the basis of government then they have a constitution. It matters little whether the basic rules are embodied in a single document, or in several documents, or in none at all." संसार को प्रमुख शासन प्रणालियां संविधान 1787 में उस समय की 13 रियासतों के प्रतिनिधियों की सभा (Convention ) द्वारा बनाया गया । इसी तरह भारतवर्ष का संविधान 1949 में एक संवैधानिक सभा द्वारा लिखा गया जो 1946 में बनाई गई थी । ( 2 ) संविधान का निर्माण कुछ एक विशेष महान व्यक्तियों द्वारा निर्मित किया जा सकता है, जैसे रूस (U. S. S. R.) का आधुनिक संविधान 1936 में स्टालिन (Stalin) ने कुछ_ साथियों के साथ बनाया । इस प्रकार नेपाल का संविधान डा० जैनिंगज़ ने लिखा था जो दुर्भाग्यवश इस समय लागू नहीं है । ( 3 ) कई बार लिखित संविधान किसी विदेशी सरकार या संस्था द्वारा भी बनाया जा सकता है, जैसा कि कैनेडा ( Canada) आस्ट्रेलिया (Australia) का संविधान अंग्रेजी पार्लियामैंट के एक्ट द्वारा बनाया गया था । जापान (Japan) के आधुनिक संविधान को जनरल मैकार्थर ( General MacArthur) के आधीन 1947 में मित्र राष्ट्रों की संस्था ने बनाया, जिसे बाद में जापान की शीदेश सरकार ( Shidehara Government) ने स्वीकार कर लिया । ग्रेट ब्रिटेन का आधुनिक संविधान ऊपर दिये गये किसी भी तरीके से नहीं बना । इस कारण दो ताकवैल (De Tocque ville ) ने यह कहा था कि इंगलैंड का कोई संविधान नहीं है, परन्तु यह वात ठीक नहीं है क्योंकि इंगलैंड के संविधान का एक लिखित संविधान की भांति निर्माण नहीं हुआ । इसके विपरीत इंगलैंड का संविधान विकसित संविधान है अर्थात् इंगलैंड का संविधान इंगलैंड के लम्बे चौड़े इतिहास की देन है । इस बात को ध्यान में रखते हुए एनसन (Anson ) अंग्रेजी संविधान की उचित व्याख्या करते हुए लिखता है " अंग्रेजो संविधान का ढांचा टेढ़ा मेढ़ा है । यह ऐसे भवन की तरह है जिसे कई मालिकों ने बारी बारी अपनाया है और जिसमें वे अपनी सुविधा के अनुसार या समय के फैशन के अनुसार बराबर लगातार परिवर्तन लाते रहे । इस कारण इस पर बहुत लोगों का प्रभाव पड़ा है और यह ( संविधान) क्रमबद्ध न होकर उपयोगी है। इसकी पारिभाषिक शब्दावली अव भी पुरानी है, परन्तु इनका अर्थ बदल चुका है.....! इसमें परिवर्तन अचेत्तन रूप से होते रहे हैं जिसके कारण कई स्थानों पर कानून और अभिसमयों, व्यवहार तथा सिद्धांत में काफ़ी अन्तर आ गया है । "1 1. Anson ; "Law and Customs of the Constitution"; Vol. I......p. 1. "The British Constitution is ..a somewhat rambling structure, and like a house which many successive owners have altered just so far as suited their immediate wants or the fashion of the time, it bears the marks of many hands, and is convenient rather than symmetrical. Forms and phrases survive which have long since lost their meaning, and the adoption of practice to convenience by a process of unconscious change has brought about in many cases a divergence of law and custom, of theory and practice". ग्रेट ब्रिटेन का संविधान पूर्ण रूप से अलिखित संविधान भी नहीं है । इसके कुछ तत्व या नियम लिखे हुए हैं। इस बात का उचित वर्णन करते हुए बिरच ( Birch) कहता है कि "बेशक इंगलैंड का संविधान अलिखित है परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि इंगलैंड में कोई संवैधानिक कानून ( a body of Constitutional Law) लिखित रूप में नहीं है ।" ऐसे कई अधिनियम (Acts) मौजूद हैं जो इंगलैंड की सरकार की विभिन्न संस्थानों के रूप, शक्तियों और कार्यों का वर्णन करते हैं। उदाहरणतयः विल आफ़ राईटस ( Bill of Rights 1689 ), ऐक्ट आफ़ सैटलमैंट (Act of Settlement, 1701) राजा की शक्तियों को सीमित करते हैं । इसी प्रकार 1911 और 1949 के पार्लियामैंट ऐक्ट (Parliament Acts 1911, 1949) लार्ड सभा (House of Lords) की शक्तियों को निश्चित करते हैं। इसी तरह 1928 और 1948 के निर्वाचन अधिनियम ( People's Representation Act of 1928 and 1948) इंगलैंड की आधुनिक चुनाव पद्धति (Electoral system) को निर्धारित करते हैं । " इस प्रकार ( ग्रेट ब्रिटेन की सरकार की कई विभिन्न संस्थाओं के सम्बन्ध में लिखित कानून मिलते हैं । यदि किसी बात का अभाव है तो वे ऐसे लिखित तथा कानूनी नियम हैं जो इन संस्थाओं के बीच निश्चित सम्बन्ध को निर्धारित करते हों । " . इस चर्चा से यह सिद्ध होता है कि इंगलैंड का आधुनिक संविधान अलिखित होते हुए भी आंशिक रूप से लिखित है । इसका निर्माण अन्य देशों के संविधानों की भांति किसी विशेष रीति द्वारा नहीं हुआ है । इसके विपरीत इसका निर्माण इतिहासिक विकास द्वारा हुआ है। यही कारण है कि मनरो (Munro ) अंग्रेज़ी संविधान को "संस्थाओं, सिद्धान्तों तथा व्यावहारिक नियमों का अजीब मिला जुला रूप" कहता है । इसमें कई अधिनियम और शाही फ़रमान (Charters and Statutes ), न्यायाधीशों के निर्णय, देश का साधारण कानून, प्रथायें तथा अभिसमय शामिल हैं । यह किसी एक लेख पत्र (document) में नहीं लिखा हुआ वल्कि सैंकड़ों लेख पत्रों का संग्रह है । • इसका निर्माण किसी एक स्रोत से नहीं हुआ बल्कि बहुत से स्रोतों से हुआ है । यह अभी भी पूर्ण नहीं है बल्कि एक लगातार अटूट विकास है। यह बुद्धि और व्यवहारिक घटनाओं को सन्तान है जिसका विकास मार्ग कभी अकास्मिक घटनाओं और कभी 1. Birch, A. H. "The British System of Government." ( Allen and Unwin Ltd. London - 1967).p. 29. "There is no lack of statutory provisions regarding the various institutions of government, considered individually. What is lacking is a documentary and authoritative statement of the relations between these institutions." उच्चकोटि की निर्माण इस तथ्य को सकते हैं :संसार की प्रमुख शासन प्राणलियां क्रियाओं ने निर्धारित किया सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित उदाहरण दिए जा 1. संविधानिक राजतंत्र का विकास ( Development of Constitution Monarchy) :-कानूनी दृष्टि से ग्रेट ब्रिटेन की सरकार का प्रमुख राजा हैं । आजकल इंगलैंड के सिंहासन पर रानी ऐलिजबँथ द्वितिय (Elizbeth II) विराजमान है। राजा या रानी राज्य की सर्वोच्च सत्ता का आधार है। राजा ही देश की वास्तविक सरकार अर्थात मन्त्रिमण्डल के मुख्य प्रधान मन्त्री, को सरकार चलाने के लिए नियुक्त करता है । मन्त्रिमण्डल के अन्य मन्त्री भी राजा द्वारा प्रधान मन्त्री के परामर्श पर ही नियुक्त किए जाते हैं। इंगलैंड का मन्त्रिमण्डल रानी का मन्त्रिमण्डल कहलाता है। देश की सभी सेवायें भी रानी की सेवायें कहलाती हैं । इंगलैंड की फ़ौज रानी की सेना कहलाती है । हवाई सेना रानी की हवाई फ़ौज ( Royal Air Force) कहलाती है. और इंगलैंड के न्यायालय रानी के न्याय को लागू करते हैं । इंगलैंड के कानून रानी के हस्ताक्षर के साथ कानून बनते हैं जबकि उन कानूनों को पास करने का अधिकार पार्लियामेंट को है । किन्तु यह केवल कानूनी व्यवस्था है। वास्तव में रानी का कार्य केवल पार्लियामेंट द्वारा पास किए गए कानूनों पर हस्ताक्षर करने से अधिक नहीं । मन्त्रिमण्डल भी इसी प्रकार लोगों की चुनी हुई पार्लियामैंट में से चुना जाता है । रानी केवल लोक सदन ( House of Commons) में बहुमत प्राप्त करने वाले राजनैतिक दल के नेता को ही प्रधान मन्त्री मनोनीत करती है। इस प्रकार वास्तव में राज्य की प्रमुसत्ता पर आज जनता का अधिकार है । इंग्लैंड के इतिहास में यह परिवर्तन धीरे-धीरे हुआ । राजा की राजसत्ता संवैधानिक रूप में आज भी वैसे ही है जैसे इस देश के संवैधानिक इतिहास ( Constitutional History ) के आरम्भ में थी । परन्तु व्यवहारिक रूप में यह सत्ता आज लोगों के पास है । इंग्लैंड का संवैधानिक विकास ऐंगलो सैक्सन ( Anglo-Saxon ) काल से शुरू होता है । उस समय राजा सर्वेसर्वा था । परन्तु उसकी सहायता के लिए एक सभा होती थी जिसमें देश के बड़े-बड़े सामन्त शामिल थे। नार्मल विजन (Norman Conquest 1066) के बाद भी राजा का पद शक्तिशाली रहा । इतिहास की 1. Munro, Willium. B. and Avearst, M. "Governments of Europe" (Macmillan-4th ed. 1954)P. "It is a complex amalgam of institutions, principles, and prac tices,.........It is not derived from one source, but from several. It is not a completed thing, but a process of growth. It is a chiled of wisdom and of chance, whose course has been sometimes guided by accident and sometimes by high design." पहली मुख्य घटना, जिसने राजा की शक्ति को सीमित किया और आधुनिक संवैधानिक राजतन्त्र की नींव रखी, महान् पत्र (Magna Carta 1215) थी । मँगना कार्टा हासल करने में भले ही उस समय के सामन्तों का हाथ था, इंग्लैंड की जनता का नहीं, तो भी इस महान् पत्र ने दो प्रसिद्ध विचारों के साथ आधुनिक संवैधानिक सरकार की नींव रखी । ये दो सिद्धान्त न्यूमैन (Neumann ) के शब्दों में यह थे कि "राजा की शक्ति कानून द्वारा सीमित है, और प्रजा को यह अधिकार प्राप्त है कि वह शान्तिपूर्ण ढंग से ऐसी संस्था को बना सकें जो उनके अधिकारों को सुरक्षित रखें ( और राजा की शक्ति को सीमित करें) । यहां तक कि यदि शान्ति पूर्ण ढंग से यह न हो सके तो प्रजा संघर्ष से भी राजशक्ति को सीमित कर सकती है । इन्हीं दो सिद्धान्तों के महत्व को बतलाने के लिए स्तब्ज ( Bishop Stubbs) इंग्लैंड के संवैधानिक विकास के इतिहास ( English Constitutional History ) को मैगना कार्टा पर टीका टिप्पणी का एक लम्बा चौड़ा इतिहास कहता है ।" मैग़ना कार्टा के पास होने के बाद इतिहास में धीरे-धीरे इसका महत्व पता चला । 13वीं और 14वीं शताब्दी में इन्हीं सिद्धान्तों पर राजा और जनता में संघर्ष चलता रहा । इस संघर्ष में राजा एडवर्ड (Edward ) तथा रिचर्ड II (Richard II ) को सिंहासन से हाथ धोना पड़ा। 15वीं शताब्दी में लंकास्टरियन से ( Lancasterian) क्रान्ति के उपरान्त राजा की शक्ति सीमित हो गई और देश में संवैधानिक सरकार स्थापित हो गई । परन्तु टयूडर वंश (Tudro) के सिंहासन सम्भालने के वाद 16वीं शताब्दी में राजा की सत्ता फिर बढ़ गई और राजा और संसद में संघर्ष कुछ समय के लिए शान्त हो गया । किन्तु 17वीं शताब्दी में स्टुयर्ट ( Stuart ) वंश के सिंहासन सम्भालने के बाद यह संघर्ष बहुत बढ़ गया और गृह युद्ध (Civil war 1642-48) के बाद राजा की निरंकुश शक्ति को बहुत धक्का पहुँचा । अन्त में शानदार क्रांति ( Glorious Revolution, 1688) ने राजा की निरंकुश सत्ता को समाप्त कर दिया और संवैधानिक सरकार का निर्माण किया । इस क्रांति के बाद अभिसमयों ( Conventions ) द्वारा धीरे-धीरे राजा की सत्ता इंगलैंड के मन्त्री मण्डल को मिल गई जो जनता द्वारा चुनी हुई पार्लियामैंट के प्रति उत्तरदायी है । 1. Neumann, Robert. G. "European and Comparative Government." p 10. "......that the King was bound by the Law, and that his subjects had a right to set up machinery to enforce this obligation, if necessary by Civil War." 2. W. Stubbs. "The Constitutional History of England." Vol. II pp. 2.
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ओ हेनरी की कहानी 'द लास्ट लीफ'तो सबने पढ़ी होगी। कहानी में एक लड़की जॉन्सी को निमोनिया हो जाता है और वो रोज़ अपने कमरे से एक बेल के गिरते पत्तों को देखती है। उसे लगता है जिस दिन आखिरी पत्ता गिरेगा, वो दिन उसकी ज़िंदगी का भी आखिरी दिन होगा। धीरे-धीरे दरक रहे जोशीमठ की गलियों में घूमते हुए आपको ऐसा लगेगा कि आप जॉन्सी के गांव ग्रीनविच में हैं। यहां भी भोर होते ही लोग सबसे पहले अपने घरों के दीवारों की दरारों को देखते हैं और पाते हैं कि इनकी चौड़ाई बढ़ रही है, कहानी में बेहराम नाम के एक बूढ़े कलाकार ने बेल के आखिरी पत्ते को दीवार पर पेंट कर बीमार लड़की की जान बचा ली थी। लेकिन जोशीमठ के लोग जानते हैं उनकी कहानी में ऐसा कोई कलाकार नहीं, जो उन्हें उनकी जड़ों से उखड़ने से बचा ले। एकाएक लोगों को घर बार छोड़ने के लिए कह दिया गया है। सालों-साल बसाई गृहस्थी को एकाएक कैसे शिफ्ट किया जा सकता है ? वो समझ नहीं पा रहे हैं। कितना सुंदर लेकिन अभिशप्त शहर है ये, आधे सीमेंट और आधे काठ के बने घर, सुंदर अलसाई सी गलियां जिन्हें हिमालय दूर से ताक रहे हैं। ऐसे सुंदर मुहल्लों की सड़कों पर लोगों के घरों के फ्रिज, टीवी, पलंग, बर्तन कमर पर लादे लोग चलते दिख जाएंगे। हालांकि ये शिफ्ट करना नहीं बल्कि उखड़ना है। उखड़ने की ये प्रक्रिया सड़कों की आबोहवा को तो असहज कर ही रही है, सामान को ताकने वाले पड़ोसियों को भी जैसे चिढ़ा कर कह रही है। आज हमारी बारी है तो कल तुम्हारी होगी। तरह छोड़ना पड़ेगा। वो बोले- मैं सुबह उठा तो देखा कि घर की दरारें और चौड़ी हो गई हैं, परिवार के सारे लोग ऊपर शिफ्ट हो चुके हैं। मुझे भी रात में यहां सोते डर लगता है। जानता हूं कि आज या कल में मुझे भी घर छोड़ना पड़ेगा, इस उम्मीद के साथ आया था कि पुरखों की ज़मीन पर नया काम काज शुरू करेंगे, लेकिन अब तो रहने तक का ठिकाना नहीं। जोशीमठ का मेन बाज़ार यूं तो किसी भी पहाड़ी कस्बे का आम बाज़ार ही लगता है, लेकिन ये बाज़ार आज का नहीं है, गढ़वाल हिमालय का गज़ेटियर लिखने वाले अंग्रेज अफ़सर एचची वॉल्टन ने अपने 1910 के ब्यौरे में इस बाज़ार का ज़िक्र एक संपन्न बाज़ार की तरह किया है। उस विवरण के मुताबिक कभी यहां तिब्बत के व्यापारी भी व्यापार करने आया करते थे। बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी के लिए रास्ता इसी जगह से निकलता है तो बर्फ देखने की चाह में औली जाने वाले पर्यटक भी यहीं रुकते हैं, ज़ाहिर है शहर की इकोनामी का इंजन पर्यटन ही है, लेकिन दरारें सामने आने के बाद ये इंजन ठप हो गया है। बाज़ार में दुकानदार खाली बैठे हैं और झुंडों में बात करते दिख जाते हैं। 65 साल के कमल किशोर अपनी फोटोकॉपी करने की दुकान पर बिना बोहनी के बैठे हैं, वो कहते हैं पहाड़ पर तो वैसे ही रोज़गार नहीं है, लड़कों के पास नौकरियां कहां है, कोई घर चलाने के लिए छोटी सी दुकान खोले बैठा है तो कोई उस दुकान में काम कर रहा है, यहां से जाने के बाद परिवार समेत भूखों मरना पड़ेगा। ऐसा ही डर रमेश डीमरी भी जता रहे हैं, बाज़ार में उनकी ज्वेलर्स की दुकान है, 30 साल से दुकानदारी कर रहे श्रीराम बता रहे हैं कि ऐसा कभी नहीं देखा, वो कहते हैं- किसी के पास काम नहीं है। बोहनी करना मुश्किल है। टूरिस्ट बिल्कुल नहीं हैं, ठंड के सीज़न में लोग औली में बर्फ देखने आते थे, अब सब ठंडा है। सरकार लोगों को यहां से हटा रही है लेकिन कोई बताए कि अगर यहां से हटेंगे तो करेंगे क्या। दरअसल सबसे ज्यादा मार टूरिज्म से जुड़े काम-धंधों पर ही पड़ी है। होटल और रेस्टोरेंट वाले अपनी प्रॉपर्टीज़ खाली कर रहे हैं, सीज़न होने के बावजूद पर्यटक पूरी तरह गायब हैं। सिंहधार में दिलबर सिंह कुंवर अपने घर में ही होमस्टे चलाते हैं। परिवार में बेटा और बहू है, जिनके दो छोटे बच्चे भी हैं। बेटा अनूप टैक्सी का काम करता है। इनका पूरा परिवार टूरिस्टों की आवाभगत से ही चलता है। वो निराश आंखों से कहते हैं कि-"घर में किसी के पास स्थाई रोज़गार नहीं है, अभी हमारा घर सेफ़ ज़ोन में है लेकिन कभी ना कभी तो ये घर छोड़ना ही पड़ेगा, ऐसे में हमें घर नहीं, रोज़ी रोटी का इकलौता सहारा भी छोड़ना पड़ेगा"। करनजीत सिंह सालों से मेन बाज़ार में चश्मे की दुकान चला रहे हैं। रोज़ी-रोटी और गृहस्थी सब यहीं है।वो यहां किराए पर रहते हैं और कहते हैं कि उनका संकट दोहरा है। वो बताते हैं कि- किराएदारों के लिए तो सरकार के पास कोई योजना है ही नहीं। ज़िंदगी के इस पड़ाव पर फिर से सबकुछ बसाना पड़ेगा, पता नहीं हो पाएगा कि नहीं। फिलहाल तो किराए के जिस घर में रह रहे हैं उस में रहते हुए ही डर लग रहा है कि कहीं गिर ना पड़े। कुछ ऐसा ही संकट रमेश का भी है। जोशीमठ बाज़ार के जिस कोने में वो बैठे हैं उस पर नज़र पड़ने के बाद आपकी नज़रें वहीं ठहर जाएंगी। वो जूते मरम्मत करने का काम करते हैं और उस माइलस्टोन की आड़ में बैठे हैं जिस पर नीचे पीपकोटी और ऊपर गाज़ियाबाद की दूरी लिखी है। 40 साल पहले बिजनौर से रोजी-रोटी कमाने आए रमेश को अब उसी जगह वापस जाना होगा, जिसे छोड़कर वो खाने-कमाने जोशीमठ आए थे। वो कहते हैं- काम काज तो ठप है ही, साथ में डर के मारे नींद नहीं आ रही, भूख भी गायब हो गई है, अब जल्द वापस बिजनौर चले जाएंगे। 4 दशक से ढाबा चला रहे दिलबर सिंह के हाथ परांठा सेंकने के इतने अभ्यस्त हैं कि वो हमसे बात करते करते, परांठे भी सेंक रहे हैं। आदतन हाथ तवे पर बिना मेहनत ही चल रहे हैं, लेकिन ये पूछे जाने पर कि ढाबा बंद होने पर वो क्या करेंगे? उनकी आवाज़ में वो ठहराव नहीं दिख पाता। चेहरे पर चिंता की लकीरें आती हैं और कहते हैं- नहीं पता, यही सोचते हैं तब की तब देखेंगे। हर शहर के बाज़ार में एक चौक मज़दूरों का भी होता है। जोशीमठ में भी ऐसे कुछ लोगों से मुलाकात हुई जो नेपाल से मज़दूरी करने जोशीमठ आए हैं। उनमें से एक दल बहादुर कहते हैं कि- शहर में फिलहाल इतनी अस्थिरता है कि सारे काम ठप हैं, सिर्फ शिफ्टिंग का काम चल रहा है, मैं सालों से यहां काम कर पेट भर रहा हूं। ये पूछने पर कि क्या वो वापस नेपाल जाएंगे, वो जवाब में कहते हैं- इतना आसान नहीं है, अगर वहां पेट भर लेते तो यहां क्यों आते? हालत ये है कि जाना भी आसान नहीं, रहना भी आसान नहीं। जोशीमठ में फिलहाल एक साथ बहुत कुछ दिख रहा है। लोग इस त्रासदी के बीच और भी बहुत कुछ देखने को मजबूर हैं। वो मुख्यमंत्री की पूजा देख रहे हैं। सरकार की उदासीनता देख रहे हैं और घरों की रोज़ चौड़ी होती दरारें भी देख रहे हैं। कहते हैं ज्यादा अनुभव इंसान को शब्दहीन बना देता है। इसी उजड़ते बाज़ार में मुझे साहित्यकार उदय प्रकाश की कहानी मैंगोसिल भी याद आ गई, कहानी में एक किरदार है सूरी, जिसे 'मैंगोसिल' नाम की लाइलाज बीमारी है। मर्ज ये है कि बच्चे का सिर रोजाना अपने आप बड़ा होता रहता है। डॉक्टरों के पास बीमारी का कोई इलाज नहीं। जादुई यथार्थवाद से जुड़ी इस कहानी का एक कोना, एक मेटाफर से भी जुड़ा है, जिसके मुताबिक सूरी रोज अपने आस-पास इतना गलत होते देखता है कि उसका सिर इन नकारात्मक घटनाओं को इकट्ठा करता रहता है, जो उसके सिर के आकार के बढ़ने की वजह बनती है। जोशीमठ में पान की गुमटी चला रहे एक शख्स (नाम उनके कहने पर छुपाया गया है) को देखकर मैंगोसिल याद आ गई। मैंने विस्थापन से जुड़ा एक सवाल जब उनसे पूछा, तो वो पहले बिना अखबार से आंखें हटाए चुपचाप सुनते रहे। फिर ठंडी, खामोश निगाहों से मुझे देखा और एक सांस में बोलते चले गए। जाऊंगा। घर में दोनों बच्चे बेरोज़गार हैं, सरकार क्या नौकरी दे सकती है किसी को, सब तमाशा हो रहा है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा क्या हो रहा है। कभी लगता है कि ज़हर खा लूं। ना मुझे परेशानी, ना सरकार को... वो कह देगी कि आत्महत्या कर मर गया। इतना बोल वो फिर चुप हो गए। सूरी के सिर की लाइलाज बीमारी मुझे उनकी आँखों में दिख गई, जिनमें कहे जाने के लिए इतना कुछ था कि बयां नहीं हो सकता था। इसीलिए वो खामोश हो गए थे। दरअसल वो जोशीमठ की एंट्री के उस कोने में बैठे हैं जहां से वो सब कुछ देखते हैं, टीवी चैनलों के कैमरे, राजनेताओं का आना-जाना। वीवीआईपी सेक्युरिटी का कारवां और धूल उड़ाती गाड़ियों का गुबार। अपनी छोटी सी गुमठी में बैठे वो खुद की और जोशीमठ की सच्चाई देखते हैं और फिर वो सब भी जिसे वो तमाशा कहते हैं। (जोशीमठ से अल्पयू सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट)
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"एक मई, 1960 से 1 मई, 2023 तक सार्वजनिक जीवन में लंबा समय बिताने के बाद अब कहीं रुकने पर विचार करने की आवश्यकता है। इसलिए, मैंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होने का फ़ैसला किया है। " शरद पवार के इन दो वाक्यों ने यशवंतराव चव्हाण केंद्र के सभागार को सचमुच हिला कर रख दिया। यह इत्तेफ़ाक़ ही है कि शरद पवार को राजनीति में लाने वाले, पालने-पोसने वाले और अपना बेटा जैसा ही मानने वाले यशवंतराव चव्हाण के नाम पर बने हॉल में पवार ने अपने इस्तीफ़े की घोषणा की। शरद पवार से अपना इस्तीफ़ा वापस लेने की मांग को लेकर नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम स्थल पर धरना दिया। प्रत्येक नेता ने अपना पक्ष रखा और पवार से इस्तीफ़ा वापस लेने का अनुरोध किया। इस मौके पर एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, जितेंद्र अवहाद जैसे वरिष्ठ नेता भावुक हो गए। वहीं अजित पवार ने ये भी कहा है कि शरद पवार अपने इस्तीफ़े के फ़ैसले पर फिर से विचार करने को तैयार हो गए हैं। शरद पवार 1 मई 1960 से राजनीति में सक्रिय हैं। पिछले छह दशकों की महाराष्ट्र की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती रही। वह सत्ता में हों या न हों, बहुमत में हों या न हों, महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार 'फैक्टर' को सबसे अहम फैक्टर माना जाता है। साढ़े तीन साल पहले जब कहा जाता था कि शरद पवार राजनीति के दूसरे चरण के अंत तक पहुंच गए हैं, तो उन्होंने राज्य में एक अभूतपूर्व 'महाविकास अघाड़ी' बनाकर साबित कर दिया कि 'मैं अब भी सक्रिय हूं'। पवार का राजनीतिक जीवन एक तरह से महाराष्ट्र समकालीन राजनीतिक इतिहास है। उनके राजनीतिक जीवन की 8 महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएं या फ़ैसले, जिनका महाराष्ट्र और देश की राजनीति पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ा, उस पर एक नज़र डालते हैंः शरद पवार ने 1960 में शुरू की राजनीति और छह दशकों तक महाराष्ट्र की राजनीति की बने धुरी रहे। आपातकाल के बाद कांग्रेस में दो फाड़ हो गया और पवार 'रेड्डी कांग्रेस' के साथ चले गए। जुलाई 1978 में उन्हें महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। साल 1986 में कांग्रेस में वापसी और 1988 में महाराष्ट्र के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। साल 1993 में, पवार तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। पवार 1996 से ही केंद्र की राजनीति में अहम किरदार बन गए। 1999 में पवार ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया और कांग्रेस से अलग होकर 'राष्ट्रवादी कांग्रेस' बनाई। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन का श्रेय मुख्य रूप से पवार को ही दिया जाता है। पवार बीसीसीआई और आईसीसी की लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। कहा जाता है कि शरद पवार प्रधानमंत्री पद के क़रीब दो बार पहुंचे थे। 1978 में पवार को राजनीति में यशवंतराव से हाथ मिलाए और खुद को स्थापित किए काफ़ी समय हो गया था। तब तक वे राज्य में मंत्री भी बन चुके थे। लेकिन एक घटना ने उन्हें महाराष्ट्र का सबसे युवा मुख्यमंत्री बना दिया और महाराष्ट्र की राजनीति को भी बदल कर रख दिया। 1977 में आपातकाल के बाद कांग्रेस दो गुटों में विभाजित हो गई, 'इंदिरा कांग्रेस' और 'रेड्डी कांग्रेस'। यशवंतराव के साथ, वसंतदादा पाटिल, शरद पवार सहित महाराष्ट्र के कई नेता 'रेड्डी कांग्रेस' में चले गए थे। 1978 में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए तो दोनों कांग्रेस अलग-अलग लड़ीं। जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन बहुमत से पीछे रह गई। फिर दोनों कांग्रेस एक साथ आईं और इस गठबंधन सरकार के वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री बने, जबकि नासिकराव तिरपुडे उपमुख्यमंत्री बने। लेकिन इस सरकार में कई नेता असहज थे। सरकार में विवाद बढ़ने लगे। अंत में शरद पवार 40 समर्थक विधायकों के साथ बाहर चले गए और साढ़े चार महीने में गठबंधन सरकार गिर गई। पवार की इस पहली बग़ावत का कई तरह से विश्लेषण किया गया। यह भी कहा गया कि 'वसंतदा की पीठ में खंजर भोंका गया'। यह भी कहा गया कि यशवंतराव ने गोविंद तलवलकर की भविष्यवाणियों का हवाला देकर पवार का समर्थन किया। बाहर आए पवार ने अपनी 'सोशलिस्ट कांग्रेस' की ओर से सरकार बनाने के लिए पहल की। अंत में जुलाई 1978 में शरद पवार 38 साल की उम्र में 'प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी' यानी 'प्रलोद' की सरकार बनने के साथ महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने। यह सरकार डेढ़ साल से ज़्यादा चली। इस बीच देश के समीकरण भी बदले। जनता पार्टी में फूट पड़ गई। अंत में इंदिरा गांधी की सिफ़ारिश पर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया और पवार की पहली सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया गया। 1980 में महाराष्ट्र में सरकार के विघटन के बाद, वह लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहे। लेकिन इस दौरान कांग्रेस पार्टी और महाराष्ट्र में भी कई चीज़ें बदलीं। पंजाब में अस्थिरता का मुद्दा प्रमुख हो गया और अंत में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। राजीव गांधी ने देश और पार्टी की कमान संभाली। राजीव के बाद कांग्रेस में एक नई पीढ़ी बनने लगी। जैसा कि पवार ने खुद अपनी राजनीतिक आत्मकथा में लिखा है, "राजीव गांधी ने कांग्रेस में वापस आने और साथ काम करने की इच्छा जताई थी। " महाराष्ट्र और कांग्रेस के कुछ नेता पवार की वापसी के ख़िलाफ़ थे। इसी दौरान, राजीव गांधी की आंधी के सामने पवार अपनी पार्टी से लोकसभा के सदस्य भी बने, 1984 में वे पहली बार बारामती से लोकसभा पहुंचे थे। लेकिन वे जल्द ही महाराष्ट्र लौट आए। यह राजीव गांधी की इच्छा थी, लेकिन कांग्रेस को उनकी ज़रूरत भी थी ताकि महाराष्ट्र में शिवसेना के बढ़ते प्रभाव के सामने युवा नेतृत्व कांग्रेस को संभाले रखे। राजनीतिक विश्लेषक नितिन बिरमल अपनी पुस्तक 'पॉवर स्ट्रगल' में लिखा है, 'वसंतदादा पाटिल का गुट भी तब तक नेतृत्व विहीन हो चुका था। ' केंद्रीय नेतृत्व ने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का पद एआर अंतुले, बाबासाहेब भोसले, नीलांगेकर पाटिल और शंकरराव चव्हाण को दिया, लेकिन इनमें से किसी के पास पूरे महाराष्ट्र में जन समर्थन नहीं था। उस दौर में शरद पवार की सोशलिस्ट कांग्रेस आगे बढ़ रही थी, लेकिन यह भी स्पष्ट होता जा रहा था कि कांग्रेस के बिना सरकार नहीं बन सकती। इसकी वजह यह थी कि राजीव गांधी के नेतृत्व को भारी जन समर्थन हासिल था। इसे भांपते हुए पवार ने कांग्रेस में लौटने का फ़ैसला लिया था। उन्होंने 1986 में औरंगाबाद में इस निर्णय की घोषणा की। 1988 में, राजीव गांधी ने शंकरराव चव्हाण को अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया और शरद पवार दूसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। शरद पवार के राजनीतिक जीवन में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है। क्योंकि उनके करियर के इन्हीं दिनों के बारे में कहा जाता है कि पवार के हाथों से प्रधानमंत्री बनने का मौका निकल गया। 90 के दशक की शुरुआत तक, पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर पवार की स्थिति महत्वपूर्ण हो गई थी क्योंकि वे कांग्रेस में लौट आए थे और मुख्यमंत्री बने। 1991 में राजीव गांधी की हत्या में हो गई थी और कांग्रेस में नेतृत्व का सवाल एक बड़ा मुद्दा बन गया। सोनिया तब राजनीति में नहीं आयीं थीं। जैसा कि पवार ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है, "कांग्रेस में कई लोग, ख़ासकर युवा, चाहते थे कि पवार पार्टी का नेतृत्व करें। " राजीव की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तो नहीं मिला लेकिन वह उसके क़रीब पहुंच गई थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में पवार उतरे, लेकिन वोटिंग में पी। वी नरसिम्हा राव को ज़्यादा वोट मिले और पवार के हाथों से मौका निकल गया। हालांकि उस सरकार में वो रक्षा मंत्री बने। नरसिम्हा राव की इस सरकार को कुछ वर्षों से शुरू हुए राम जन्मभूमि आंदोलन के निर्णायक दौर का सामना करना पड़ा था। 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या की बाबरी मस्जिद को गिरा दिया और देश में सांप्रदायिक तनाव का माहौल बन गया। इस तनाव का सबसे ज़्यादा असर मुंबई में दिखा। मुंबई में दंगे भड़क उठे और देश की आर्थिक राजधानी आग की लपटों में घिर गई। उस मुश्किल दौर में मार्च 1993 में, पवार तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। वैसे तो यह बदलाव मुंबई दंगों के मद्देनजर हुआ, लेकिन कई लोगों ने इसकी राजनीतिक व्याख्या की नरसिम्हा राव दिल्ली में पवार के रूप में कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने उन्हें वापस मुंबई भेज दिया। वहीं पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, "अनिच्छा से सही लेकिन महाराष्ट्र के हित के बारे में सोचते हुए, मैंने मुख्यमंत्री बनना स्वीकार किया। " 1995 में महाराष्ट्र की सत्ता से हटने वाले शरद पवार 1996 में गठबंधन राजनीति का दौर शुरू होने के बाद दिल्ली की राजनीति में अहम नेता बन गए। बाद में, वह कांग्रेस की ओर से लोकसभा में विपक्ष के नेता बने। कहा गया कि गठबंधन के इस दौर में पवार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की दौड़ में क़रीब पहुंचे थे। कांग्रेस बहुमत में नहीं थी, लेकिन उसके समर्थन से सरकारें बन रही थीं। सोनिया गांधी के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण रहे। इसमें कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की एक कतार पवार के ख़िलाफ़ काम करती रही। सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने का फ़ैसले किया और फिर कांग्रेस के अंदर का गणित भी बदल गया। एक बड़े वर्ग की यह भी राय थी कि सोनिया को प्रधानमंत्री बनना चाहिए। अंततः 1999 में शरद पवार ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया और पीए। संगमा और तारिक अनवर के साथ मिलकर 'राष्ट्रवादी कांग्रेस' की स्थापना की। कांग्रेस में पवार की यह दूसरी बग़ावत थी। 1999 में लोकसभा और विधानसभा के एक साथ हुए चुनाव में राज्य में कांग्रेस और एनसीपी अलग-अलग चुनाव लड़ीं। लेकिन चुनाव के बाद दोनों पार्टियों के बीच महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए गठबंधन भी हो गया। इस बीच केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार तीसरी बार आई और पांच साल तक चली। लेकिन 2004 में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सोनिया ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया। सोनिया की पसंद के तौर पर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। जिस मुद्दे पर पवार को आपत्ति थी, वह सोनिया के फ़ैसले से जाती रही। उस वक्त कहा जाता था कि अगर शरद पवार कांग्रेस में होते तो उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना होती। बहरहाल, 'राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी' कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा रही और पवार नई सरकार में शामिल हुए। वे अगले 10 वर्षों तक कृषि मंत्री बने रहे। उतार चढ़ाव वाले राजनीतिक सफ़र में 2019 में उन्होंने जो गठबंधन बनाया, वह सबसे नाटकीय माना जा सकता है। मोदी सरकार के दूसरी बार भारी बहुमत से वापसी हो गई। देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना की मदद से पांच साल तक महाराष्ट्र की सरकार चला चुके थे। हालांकि चुनाव से पहले सभी विश्लेषक बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार की वापसी की भविष्यवाणी कर रहे थे और पवार के कई साथी पार्टी भी छोड़कर बीजेपी के खेमे में जा रहे थे। ऐसे समय में शरद पवार ने चुनावी अभियान की धुरी अपने हाथों में ले ली और गठबंधन के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का फ़ैसला अपने हाथों में रखा। केंद्रित किया, पवार स्थानीय मुद्दों को उठाते रहे। इस चुनाव अभियान में सतारा की बारिश में उनका भाषण वायरल हो गया। । जब नतीजे आए तो बीजेपी की सीटें 122 से 105 हो गई थीं। एनसीपी और कांग्रेस की सीटें बढ़ी थीं। शिवसेना तो सिमट गई, लेकिन बीजेपी के साथ उनके पास स्पष्ट बहुमत था। यहां पवार की राजनीतिक रणनीति ने खेल बदल दिया। मुख्यमंत्री पद की मांग को लेकर शिवसेना ने बीजेपी से किनारा करना शुरू कर दिया है। शिवसेना ने पवार से बातचीत शुरू की। लेकिन सवाल यही था कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी एक साथ कैसे आएंगे जब वे राजनीतिक रूप से, वैचारिक रूप से एक-दूसरे के विरोधी हैं? यहां पर पवार की इतने सालों की कूटनीति अहम हो गई। शिवसेना के एनडीए छोड़ने और गठबंधन में आने के लिए शरद पवार ने सोनिया गांधी को भी मना लिया था। इस दौरान महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा। जब नए 'महाविकास अघाड़ी' के सत्ता में आने की संभावना बनी तो अजित पवार ने बग़ावत की और बीजेपी के साथ मिल गए। लेकिन पवार के मराठी दांव से फडणवीस और अजीत पवार की 84 घंटे की सरकार गिर गई। 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे ने 'महाविकास अघाड़ी' के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। कहा जाता है कि शरद पवार कभी हारते नहीं हैं। जब वो खुद चुनाव लड़ते हैं तो जीत उनकी होती है, जब जीत पक्की न हो तो वो नहीं लड़ते हैं। लेकिन फिर भी उन्हें एक चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और वह उनके चुनावी करियर की एकमात्र हार थी। बेशक वह राजनीतिक क्षेत्र में नहीं बल्कि क्रिकेट के मैदान में थी। 2004 में उन्हें तत्कालीन अध्यक्ष जगमोहन डालमिया के हाथों 'भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड' यानी 'बीसीसीआई' के चुनाव में बेहद कड़े मुक़ाबले में हार माननी पड़ी थी। इससे पहले 2001 में, उन्होंने 'मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन' के चुनाव में अजीत वाडेकर को हराया था। भारत में क्रिकेट प्रबंधन पर उनका प्रभाव तेजी से बढ़ा। लेकिन 2004 में मिली हार ने उन्हें झकझोर दिया था, लेकिन अगले ही साल उन्होंने डालमिया को हरा दिया और 'बीसीसीआई' के अध्यक्ष बन गए। उसके बाद, पवार और उनके गुट ने कई वर्षों तक भारतीय क्रिकेट को नियंत्रित किया। 2010 में वे 'इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल' यानी 'आईसीसी' के अध्यक्ष बने। उनके समय में ही टी-20 क्रिकेट की 'इंडियन प्रीमियर लीग' शुरू हुई, जिसने भारतीय क्रिकेट का चेहरा ही बदल दिया। हालांकि 2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोढ़ा समिति की सिफ़ारिशों को स्वीकार करने के बाद, क्रिकेट प्रबंधन में पवार की पारी का अंत हो गया। औरंगाबाद के मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बदलकर 'डॉ बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय' करने का प्रस्ताव 1978 में पवार के नेतृत्व में 'प्रलोद' सरकार आने से पहले से हो रही थी। 'प्रलोद' सरकार के सत्ता में आने पर पवार ने मुख्यमंत्री के रूप में विधान सभा में प्रस्ताव पेश किया था, जो पारित भी हो गया। लेकिन उसके बाद मराठवाड़ा में सवर्ण और दलितों के बीच दंगे हुए। इस फ़ैसले पर रोक लग गई लेकिन 1988 में जब पवार फिर से मुख्यमंत्री बने तब भी बात आगे नहीं बढ़ी। आखिरकार 14 जनवरी 1994 को, जब पवार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने, तो नाम बदला गया। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हज़ारों कर्ज़दार किसानों की आत्महत्याएं राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गईं थीं, इसे लेकर सरकारों की आलोचनाएं भी हो रही थीं। 2008 में केंद्रीय कृषि मंत्री रहते हुए उन्होंने किसानों की कर्ज़ माफ़ी का फैसला लिया। सरकार ने इससे पहले इस तरह की कर्ज माफ़ी नहीं की थी। देशभर के किसानों और उनके कृषि आधारित उद्योगों का क़रीब 72 हज़ार करोड़ रुपये माफ़ कर दिया गया। हालांकि इस बात की आलोचना भी हुई क्योंकि सरकार ने सीधे बैंकों को भुगतान किया, इसलिए समृद्ध किसानों के कर्ज़ भी माफ़ कर दिए गए। उसके बाद ही किसानों की कर्ज़ माफ़ी राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में दिखाई देने लगी। 2009 में यूपीए सरकार की वापसी के पीछे यह भी एक कारक रहा है। 17 दिसंबर 2016 को मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन की बैठक में शरद पवार ने कहा था कि वह क्रिकेट प्रशासन से संन्यास ले रहे हैं। पवार के उस फ़ैसले की उम्मीद तो थी लेकिन वह भी थोड़ा चौंकाने वाला फ़ैसला था। वास्तव में, वह समय भारतीय क्रिकेट प्रशासन के लिए एक बहुत ही मुश्किल दौर था और लोढ़ा समिति की सिफ़ारिशों के अनुसार, यह तय था कि पवार को उम्र और कार्यकाल दोनों के आधार पर पद छोड़ना होगा। लेकिन कोर्ट का अंतिम फ़ैसला आने के पहले ही पवार ने संन्यास की घोषणा कर दी। इस घटना को छह साल से भी ज़्यादा हो गए हैं। लेकिन क्रिकेट में पवार का दबदबा पिछले एमसीए चुनाव में साफ़ दिखा था। अक्टूबर 2022 में हुए उस चुनाव में आशीष शेलार ने अपना पैनल उतारा और फिर वो शरद पवार से मिलने गए, इसकी काफ़ी चर्चा हुई। अंत में इसी शेलार-पवार पैनल के अमोल काले ने एमसीए के अध्यक्ष बनने के लिए पूर्व क्रिकेटर संदीप पाटिल को हराया। ज़ाहिर सी बात है कि पवार के समर्थन के बिना वह यह चुनाव नहीं जीत पाते। भले ही वह अब राजनीति से संन्यास ले लें, पवार सामाजिक कारणों से जुड़े रहेंगे और महाराष्ट्र की राजनीति पर उनका प्रभाव जल्द ख़त्म नहीं होगा।
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दुष्कर्म के 5 चर्चित मामलों ने खोली महिला सुरक्षा की पोल (सिंहावलोकन : 2017) नई दिल्ली, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा को लेकर देश में बड़े-बड़े वादे किए गए। महिलाओं के खिलाफ इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए 'सख्त कानून से लेकर पैनिक बटन' तक तमाम तरह के वादों की झड़ी लगा दी गई, लेकिन साल 2017 में महिलाओं के खिलाफ कई नृशंस वारदातें हुईं, जो हमें रुककर सोचने को मजबूर करती हैं और महिला सुरक्षा के इन खोखले वादों की पोल खोलती हैं। इस कड़ी में देश में दुष्कर्म के उन पांच झकझोरने वाली वारदातों को पेश किया गया है, जो मोदी के 'न्यू इंडिया' के दौर में सच्चाई की परत दर परत खोलती है। इस साल 18 जून को एक रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें बताया गया कि इस साल दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले घटे हैं, लेकिन दिल्ली पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 31 मई 2017 तक दिल्ली में दुष्कर्म के 836 मामले दर्ज किए गए, जो 2016 की समान अवधि में 924 थे। वर्ष 2017 की शुरुआत में यमुना एक्सप्रेसवे पर जेवर-बुलंदशहर मार्ग पर चार महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले ने सबकी भौंहे तान दी थीं। कार में सवार एक परिवार जेवर से बुलंदशहर जा रहा था। रास्ते में कार का टायर पंक्चर होने पर ड्राइवर मदद मांगने के लिए कार से उतरा। इस दौरान छह लोगों ने रोड, चाकू और बंदूक की नोक पर उन पर हमला किया और महिलाओं को पास की झाड़ी में खींचकर ले गए और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। दुष्कर्म के दूसरे चर्चित मामले में दिल्ली-गुरुग्राम सीमा पर चलती कार में तीन लोगों ने सिक्किम की 26 वर्षीया महिला के साथ दुष्कर्म किया। महिला को रात दो बजे गुरुग्राम से अगवा किया गया था और पांच घंटे तक उसकी आबरू तार-तार किए जाने के बाद हैवान पीड़िता को सड़क पर फेंककर फरार हो गए। दुष्कर्म की इन घटनाओं पर जब देश उबल रहा था, तो इसी बीच शिमला में एक स्कूली बच्ची के साथ दिल दहलाने वाली घटना हुई। चार जुलाई को नाबालिग स्कूली छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। पीड़ित बच्ची शाम को स्कूल से घर लौट रही थी, लेकिन वह घर नहीं पहुंची। बच्ची की लाश दो दिन बाद कोटखाई के जंगल में मिली। इस मामले की जांच के लिए राज्य पुलिस की विशेष टीम भी गठित की गई। हालांकि, हिमाचल प्रदेश पुलिस ने मामले में छह संदिग्धों को गिरफ्तार किया था, जिसमें से एक की हिरासत में मौत हो गई थी। इस मामले को 'एक और निर्भया कांड' कहा गया। इस साल चौथा चर्चित दुष्कर्म मामला गुरुग्राम का रहा। गुरुग्राम के मानेसर में 19 साल की युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म ने एक बार महिला सुरक्षा के खोखले दावों की पोल खोल दी थी। यह महिला अपने आठ महीने के बच्चे के साथ ऑटो से सफर कर रही थी कि ऑटो चालक और ऑटो में सवार दो अन्य लोगों ने मौका पाकर महिला के साथ दुष्कर्म किया। इस बीच जब बच्चा रोया, तो हैवानों ने गुस्से में आकर उसे सड़क पर फेंक दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। पांचवां मामला विशाखापट्टनम से है, जहां दिनदहाड़े सड़क किनारे एक महिला के साथ दुष्कर्म के मामले ने सभी के होश उड़ा दिए। इस मामले में समाज की संवेदनहीनता भी सामने आई, क्योंकि जिस वक्त एक शख्स शराब के नशे में चूर होकर खुलेआम महिला के साथ दुष्कर्म कर रहा था, उस वक्त सड़क पर काफी लोग आ-जा रहे थे। लेकिन किसी ने भी हैवान को रोकने की कोशिश नहीं की, बल्कि तमाशबीन बने रहे। इतना ही नहीं, कुछ लोग तो इस घटना का मोबाइल पर वीडियो भी बनाते दिखे। ये मामले यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा को लेकर कुछ नया नहीं हुआ है। इस बीच केंद्र में सरकार बदली। परिवर्तन और अच्छे दिन लाने के वादे के साथ आई नई सरकार भी पुराने र्ढे पर चलती दिख रही है, इसलिए महिला सुरक्षा के मामले में कुछ भी नहीं बदला है। इसी बात को समझाते हुए दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल कहती हैं कि कानून को कड़ा करना होगा और समाज को भी अपने नजरिए में बदलाव लाना होगा। स्वाति ने आईएएनएस से कहा, निर्भया कांड के बाद लगा था कि महिला सुरक्षा को लेकर तस्वीर बदलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और न ही होता दिख रहा है। कानूनों को कड़े करने के साथ-साथ समाज को अपने नजरिए में बदलाव लाना होगा। किसी घटना पर आंख मूंदकर बैठने के बजाय तुरंत उसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू करनी होगी। महिलाओं के साथ जुल्म के मामलों में समाज की संवेदनहीनता भी देखने को मिल रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। शाजापुर (मप्र)। आज शनिवार को मध्यप्रदेश के शाजापुर के दौरे पर पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यहाँ के कालापीपल विधानसभा क्षेत्र में लोगों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने पोलायकला में प्रदेश की भाजपा सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरा। इसके साथ ही उन्होंने ओबीसी आरक्षण, जातिगत जनगणना, पेपर लीक और किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दों को भी उठाया। अपने संबोधन के शुरुआत में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मैंने संसद में जैसे ही अदाणी जी की बात शुरू की। वैसे ही मेरी लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी। आप सोचिए, अदाणी की रक्षा करने के लिए एकदम मेरी लोकसभा की सदस्यता को रद्द कर दिया। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं सच्च बोलता हूं। सरकार का रिमोट कंट्रोल अदाणी जी के हाथ में है। सच्चाई अदाणी जी से बड़ी है। राहुल ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राज्य की शिवराज सरकार को जमकर घेरा। उन्होंने कहा कि मप्र हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार का केंद्र है जितना भ्रष्टाचार बीजेपी के लोगों ने मप्र में किया है, पूरे देश में नहीं किया है। बच्चों के फंड्स, मिड-डे मील के फंड्स, स्कूल यूनीफॉर्म के फंड्स चोरी किए। महाकाल कॉरिडोर में भाजपा ने पैसा चोरी किया। व्यापमं स्कैम को आप सब जानते हैं। एक करोड़ युवाओं को नुकसान पहुंचाया। सीट्स बेची जाती है। पेपर लीक किए जाते हैं। पिछले दिनों संसद से पारित होने के बाद शुक्रवार को नारी शक्ति वंदन कानून लागू हो गया। हालांकि, इसके प्रभावी होने से पहले जनगणना और परिसीमन की शर्तों को पूरा करना होगा। राहुल ने सभा में महिला आरक्षण से जुडी इन्हीं शर्तों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले भाजपा ने महिला आरक्षण की बात की। हमने एक सवाल उठाया। भाजपा ने कोई जवाब नहीं दिया। हमने पहले कहा कि महिला आरक्षण अच्छा है लेकिन इसमें आपने दो छोटी लाइनें लिख रखी है। इन्हें मिटाइए। एक लाइन थी- महिला आरक्षण से पहले सर्वे करने की जरूरत है। दूसरी लाइन थी- महिला आरक्षण करने से पहले हमें परिसीमन करना है। इससे महिला आरक्षण दस साल बाद होगा। आज नहीं होगा। हमने कहा कि यह दो लाइन बदलिए। महिला आरक्षण में ओबीसी आरक्षण क्यों नहीं है? राहुल ने महिला आरक्षण के जरिए ओबीसी के मुद्दे पर भी मोदी सरकार को घेरा। राहुल ने कहा कि हमने सवाल पूछा कि महिला आरक्षण में ओबीसी आरक्षण क्यों नहीं है? नरेंद्र मोदी जी आप कहते हैं कि आप ओबीसी नेता हैं। ओबीसी के लिए काम करते हैं। आपने महिला आरक्षण में ओबीसी आरक्षण क्यों नहीं किया? राहुल संसद में देश में ओबीसी सचिवों की कमी के मुद्दे के जरिए सरकार बरसे थे। आज मध्यप्रदेश में भी उन्होंने कहा कि ओबीसी की आबादी कितनी है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। ओबीसी की आबादी हिंदुस्तान में लगभग 50 प्रतिशत है। 90 अफसरों में सिर्फ तीन अफसर ओबीसी के हैं। दो-तीन साल पहले देखते तो हिंदुस्तान की सरकार में 90 में से शून्य अफसर ओबीसी से थे। यह देश की सच्चाई है। राहुल गांधी ने कहा कि हिंदुस्तान के सामने सिर्फ एक मुद्दा है- जातिगत जनगणना। कांग्रेस की सरकार बनी तो पहला काम यही होगा। हमारी सरकार थी तब हमने जातिगत जनगणना करवाई थी। नरेंद्र मोदी जानते हैं कि हिंदुस्तान में ओबीसी कितने हैं। वह बताना नहीं चाहते कि ओबीसी कितने हैं? वह आपको सच्ची शक्ति नहीं देना चाहते हैं। हमारा पहला काम जातिगत जनगणना होगा। हमारी सरकार आएगी तो हम देश को बता देंगे कि कितने ओबीसी हैं। राहुल ने कहा कि आप किसान हैं। आप लोग यहां सोयाबीन उगाते हैं। किसानों ने हमें बताया कि सरकार यहां उचित दाम नहीं देती है। हमने मप्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ समेत हर राज्य में किसानों की कर्ज माफी की थी। कमलनाथ जी किसानों का कर्ज माफ कर रहे थे। यहां बीजेपी वालों ने आपको धोखा देकर सरकार चुरा ली। राहुल ने भाषण में आरोप लगाया कि पिछले 18 साल में यहां 18 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। हर रोज तीन किसान यहां मरते हैं। यहां इनकी सरकार है। यह लोग चुने हुए लोगों के लिए काम करते हैं। हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार किसान टैक्स दे रहे हैं। इन्होंने किसानों को दबाने, खत्म करने के काले कानून लाए। नरेंद्र मोदी जी कहते हैं कि किसानों के फायदे के लिए यह कानून लाए हैं। जब उनके फायदे का है तो किसान सड़क पर क्यों उतरे हैं। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने कई राज्यों में लोगों के लिए गारंटियों का एलान किया है। सभा में राहुल ने कहा, 'कर्नाटक में हमने किसानों, महिलाओं, गरीबों के लिए पांच गारंटी दी। कर्नाटक की महिलाएं बस में जाने के लिए एक रुपया नहीं देती है। कहीं भी जाना हो, फ्री में जाती हैं। हर महीने उनके बैंक खातों में सरकार सीधे पैसा देती है। राहुल गांधी ने कहा कि हमारी विचारधारा की लड़ाई है। एक तरफ कांग्रेस है और दूसरी तरफ भाजपा और आरएसएस। एक तरफ गांधी जी और दूसरी तरफ गोडसे। एक तरफ नफरत और एक तरफ मोहब्बत है। यह लोग जहां जाते हैं, वहां नफरत फैलाते हैं। मप्र में किसान, युवा इनसे नफरत करने लगा है। इन लोगों ने जो जनता के साथ किया, वह अब जनता उनके साथ कर रही है। इस वजह से हमने यह सात जन आक्रोश यात्राएं मप्र में निकाली हैं। इससे पहले कन्याकुमारी से कश्मीर तक चले थे। मप्र में लगभग 370 किमी हमारी भारत जोड़ो यात्रा चली थी।
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История Украины не обделена противоречиями, которые не смогут объяснить даже самые искушенные идеологи незалежности. То, что Киев, Полтава и Днепропетровск были центрами русской культуры, нам хорошо известно. А вот Львов, Тернополь и Ивано-Франковск ныне считаются рассадниками проукраинских настроений, хотя еще 100 лет назад среди галичан и жителей соседних провинций царили идеи панрусизма и панславизма. प्राचीन काल से, गैलिसिया एक मोनो-जातीय क्षेत्र था, जहां विभिन्न जातीय समूह सह-अस्तित्व में थे। 19 सदी के अंत में सबसे पहले प्राप्त पुरातात्विक जानकारी बताती है कि यह भूमि सफेद क्रोटों द्वारा बसाई गई थी। अलग-अलग समय में, मोराविया, हंगरी, चेक गणराज्य और पोलैंड की सेनाएं युद्धों के साथ यहां बह गईं। 981 AD में, पुराने ओल्ड रूसी राजकुमार व्लादिमीर Svyatoslavovich ने Cherven और Przemysl पर कब्जा कर लिया और उन्हें Kievan Rus में शामिल कर लिया। भविष्य में, रूसी राजकुमार पश्चिमी प्रतियोगियों के साथ अलग-अलग सफलता के साथ लड़ रहे हैं जब तक कि 1254 में, प्रिंस डेनियल रोमानोविच गैलिशियन-वोलिन भूमि को एकजुट करता है और गैलिशियन शाही घर की स्थापना करता है। पूर्वी यूरोप में गैलिसिया, सांस्कृतिक और राजनीतिक वर्चस्व की सर्वोच्च समृद्धि का वह काल था, जिसे आज स्वेदिमो इतिहासकार भूल गए हैं। तब पूर्वी स्लाव अंततः गैलिसिया में मजबूत हुए, मुख्य रूप से इसके पूर्वी भाग में, आज पश्चिमी यूक्रेन के क्षेत्र का गठन किया गया। एक मजबूत और रूसी दिमाग वाली राज्य को तब अपने किसी भी पड़ोसी की जरूरत नहीं थी। गैलीच के डेनियल की मृत्यु के बाद, लिटिल रूस की महानता, जैसा कि गैलिसिया को कहा जाता था, धीरे-धीरे दूर हो जाती है। गैलिशियन-वोलिन विरासत के लिए युद्ध के दौरान, क्षेत्र का क्षेत्र पोलैंड और लिथुआनिया के बीच विभाजित है। इस क्षण से गैलिशियन् के रूसी और उत्पीड़न की उल्टी गिनती शुरू होती है - रूसी लोग, जो विदेशियों की शक्ति के तहत गिर गए। इसलिए, हम इस तथ्य पर बसे हैं कि मूल रूसी भूमि को राज्यों की संरचना में पूरी तरह से आत्मा में शामिल किया गया था। गैलिसिया, बुकोविना और ट्रांसकारपैथिया की आबादी स्पष्ट रूप से रोसोफोबिक केंद्रों के बीच सैंडविच थी। अपने आप को पहचानने और अपने अतीत की स्मृति को संरक्षित करने के लिए, क्षेत्र के निवासियों ने खुद को रुसिन कहा। उनमें से कई लोगों को कैथोलिक धर्म अपनाने और उकसाने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन वे खुद के अंदर रूसी बने रहे। पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल का विभाजन, जो एक पूरी तरह से अस्थिर राज्य बन गया था, ने गैलिशियन् को अपनी खुद की शक्ति, या कम से कम सांस्कृतिक अलगाव की आशा दी। शायद ऐसा होता अगर रूस अब्रोड रूसी साम्राज्य में वापस आ जाता। इसके अलावा, कई कठिन और निराशाजनक सदियों के बाद, गैलिशियन स्वदेशी रूसी लोगों के साथ फिर से मिलेंगे, अपने मूल और जड़ों की ओर लौटेंगे। दुर्भाग्य से, इस क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति और ऑस्ट्रिया-हंगरी की आक्रामकता ने रूस को इस आक्रामक जर्मन साम्राज्य के लिए रोसोफाइल गैलिसिया को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया, जहां जर्मनों को छोड़कर लगभग सभी राष्ट्रों को स्वयं का उल्लंघन और बल द्वारा कुचल दिया गया था। यहीं से शुरू होती है मस्ती। सबसे पहले, साधारण गैलिशियन् ने अधिकांश ऑर्थोडॉक्सी को बरकरार रखा, हालांकि यह लगभग सभी व्यवसाय सरकारों द्वारा निषिद्ध था। इससे उन्हें रूस के साथी विश्वासियों के साथ पुनर्मिलन की उम्मीद थी। वास्तव में, 16-18 शताब्दियों की सांस्कृतिक अलगाव, ऑस्ट्रियाई लोगों द्वारा शुरू किया गया और जारी रहा, विफल रहा - गलित्स्काया रस ने अभी भी जर्मन एड़ी के नीचे सुस्त अस्तित्व के विकल्प के रूप में काम किया। इसका मुख्य कारण यह था कि न तो पश्चिमी स्लाव, न ही जर्मन, और न ही हंगेरियन या कोई भी अन्य लोग गालिसिया को अन्य विकास विकल्प प्रदान कर सकते हैं। Ukrainians का विचार, जो बिस्मार्क और अन्य यूरोपीय आंकड़े बाद में चिपक गए, सिद्धांत रूप में मौजूद नहीं थे। चुनाव कुछ इस तरह थाः पोलोनाइजेशन से गुजरना या राष्ट्रीय पहचान को संरक्षित करना और ऐसा कुछ जिसे तब "रूसीता" नहीं कहा जाता था, लेकिन इसके द्वारा सीधे निहित था। और गैलिशियंस ने अपनी पसंद बनाई। पूरे यूरोप में 1848 वर्ष और बुर्जुआ-लोकतांत्रिक क्रांतियों की एक श्रृंखला ने गैलिसिया के राष्ट्रीय आंदोलनों के विकास पर अपना प्रभाव डाला। पहली बार, "Ukrainians" दिखाई दिया - स्व-स्वतंत्रता के समर्थकों ने अपना संगठन, "मुख्य रुस्काया राडा" बनाया, जो तीन साल तक चला और पहली बार घोषणा की गई कि गैलिशियन् महान यूक्रेनी लोगों का हिस्सा हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि यह "संसद" ऑस्ट्रियाई अधिकारियों की सहायता से बनाया गया था और इसके द्वारा आवश्यक समय आने पर उनके द्वारा भंग कर दिया गया था। उसी समय, कुछ आंकड़े जिन्होंने Glavnaya Ruska Rada के कामकाज में भाग लिया, वे खुले पैन-रूसीवाद की स्थिति में थे, लेकिन ऑस्ट्रिया-हंगरी के प्रशासन से बड़े पैमाने पर होने वाले दमन के कारण उचित पैमाने पर विस्तार नहीं कर सके। रूस-समर्थक गैलिशियन् बुद्धिजीवियों के बीच यूक्रेनीकरण के विपरीत, गैलिशियन रसोफाइल आंदोलन की स्थापना की गई थी। इसके लोकप्रियकरण के लिए आवश्यक शर्तें 19 सदी की शुरुआत में उत्पन्न हुईं, जब इवान ओरलाई, यूरी वेलेनिन, मिखाइल बालुदैन्स्की और अन्य लोगों के रूप में इस क्षेत्र की सांस्कृतिक परतों के प्रतिनिधि रूसी साम्राज्य में चले गए। वहां उन्होंने रूथियन और ग्रेट रूस की जातीय समानता पर सक्रिय शोध किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कार्पेथियन-रुथियन बोली रूसी बोली की एक सरल ध्वनि है, जिसे चर्च स्लावोनिक भाषा के आधार पर भी बनाया गया है। 19 सदी की बिसवां दशा में, गैलिशियन सांस्कृतिक और राष्ट्रीय व्यक्ति निकोलाई Kmitskievich रहते थे और काम करते थे, लिखते थे कि गैलिशियन और ग्रेट रूसी बोली की समानता भी एक एकल के हिस्से के रूप में उनके भालू की जातीय समानता का अर्थ है, लेकिन "अत्यधिक रशियन लोगों"। गैलिसिया के रसोफाइल सहानुभूति मुख्य कारक द्वारा आयोजित किए गए थेः लोगों की एकता और बुद्धिजीवी। दोनों सामान्य ग्रामीण और गैलिशिया के उच्च सांस्कृतिक तबके, जो अभी तक विक्षिप्त और उक्रेनाइज़ नहीं हुए थे, रूसी लोगों की एकता पर खड़े थे, और कुछ भी उनके दृढ़ संकल्प और विश्वास को हिला नहीं सकता था। उस समय, ऑस्ट्रिया-हंगरी के पूर्व में कई रूथेनियन समाचार पत्र बनाए जा रहे थे - गैलिकैनिन, कार्पेथियन रुस, ज़ोरा गैलीट्सकाया और कई अन्य। कुल प्रचलन का लगभग 80% लविवि में छपा था, जो रूसीवाद, पोलोनाइजेशन और यूक्रेन के बीच टकराव का केंद्र बन गया। उत्तरार्द्ध व्यावहारिक रूप से लोकप्रिय नहीं थाः अगर समर्थक रूसी गैलिशियन् के समाचार पत्रों को बिक्री से उनकी आय प्रदान की गई थी, तो प्रो-यूक्रेनी मूड के प्रिंट मीडिया पूरी तरह से और पूरी तरह से राज्य सब्सिडी पर निर्भर थे। अर्द्धशतक के अंत में, वसीली द ग्रेट का समाज बनाया गया था, रूसी भाषा पर सवाल और रूसी लोगों के समुदाय को एजेंडे पर रखा गया था। गैलिशियन सेजम भी कार्य करता है - इस क्षेत्र के सीमित स्वायत्त प्रबंधन का एक निकाय, जिनके कुछ कर्तव्यों का प्रतिनिधित्व नैतिक गैलिशियन् द्वारा किया गया था। यह तर्कसंगत है कि ऑस्ट्रो-हंगेरियन प्रशासन, जो गैलिसिया का नेतृत्व करता था, मदद नहीं कर सकता था, लेकिन रूस के शक्तिशाली राष्ट्रीय उत्थान को नोटिस कर सकता था। स्थिति उम्मीद से कहीं आगे बढ़ गई है। ऑस्ट्रिया के सत्तारूढ़ हलकों में, गैलिशियन राष्ट्रीय आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया गया - स्थानीय रसोफिले के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू हुई। एक पैन-यूरोपीय अनुनाद ऑस्ट्रो-हंगेरियाई साम्राज्य के अधिकारियों द्वारा ओल्गा ग्रैबर के खिलाफ शुरू की गई एक प्रक्रिया के कारण हुआ था, जो ट्रांसकारपथिया के रुसिन के नेता एडॉल्फ डोब्रानस्की की बेटी थी। उस पर एक पैन-स्लाविक संगठन के निर्माण और प्रबंधन का आरोप लगाया गया था, जिसका उद्देश्य ऑस्ट्रिया से मूल रूसी भूमि को फाड़ना था। अभियोजक और अभियोजन पक्ष के व्यक्ति में, हंगरी के प्रधान मंत्री, कलमन टीसा ने परीक्षण में बात की। हालांकि, ग्रैबर के खिलाफ मामला बहुत बेरहमी से गढ़ा गया था, जिस पर अंग्रेजी और फ्रेंच अखबारों ने भी ध्यान दिया था। सार्वजनिक समर्थन के लिए धन्यवाद, बेटी और पिता को उनके अपराध के सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया गया था, लेकिन डोबरियनस्की को रूसी या किसी अन्य स्लाव द्वारा बसे ऑस्ट्रो-हंगेरियन प्रांतों में बसने के लिए मना किया गया था। उस क्षण से, दमन मशीन पूरी तरह से चालू थी। गैलिशियन रसोफाइल्स के नेताओं को न केवल बेअसर किया जा सकता था, बल्कि राजनीतिक क्षेत्र से उन्हें खत्म करने के लिए उन पर हर संभव उपाय लागू किए गए थे। बुकोरीना, गैलिसिया और उग्रिक रस के बारे में सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पुरातात्विक कार्यों के लेखक ग्रिगरी कूपचानको को बार-बार गिरफ्तार किया गया था। अन्य समर्थक रूसी कार्यकर्ताओं के घरों में नियमित रूप से खोज की गई, सार्वजनिक गतिविधि में सभी प्रकार की बाधाओं की मरम्मत की गई, और बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के बाद से, ऑस्ट्रियाई पुलिस ने रूसी एजेंटों के वातावरण में अपने एजेंटों उत्तेजक को पेश करने के लिए एक नियम बनाया, और यह अभ्यास बहुत लोकप्रिय हो गया। बीसवीं शताब्दी में रोसोफिल्स और गैलिशिया के आम तौर पर समर्थक रूसी निवासियों के प्रति ऑस्ट्रियाई अधिकारियों का रवैया असहनीय हो गया। चूंकि जर्मन राष्ट्र और रूसी राष्ट्र के बीच टकराव को आने वाले वर्षों का मामला माना जाता था, इसलिए सभी वैचारिक विरोधियों ने जर्मन भाषी वातावरण में लगातार सफाई की। हालांकि, ये केवल फूल थे - जामुन संघर्ष की शुरुआत के साथ चले गए। युद्ध शुरू होते ही, गैलिसिया सीधे इसमें शामिल हो गया। अगस्त 5 के 1914 पर, गैलिसिया की लड़ाई हुई - युद्ध के रूसी रंगमंच पर सबसे महत्वपूर्ण लड़ाइयों में से एक। इधर, रूसी सैन्य परंपरा ने स्पष्ट रूप से ऑस्ट्रियाई एक को हरायाः जनरल इवानोव की कमान के तहत दक्षिण-पश्चिमी मोर्चे की सेना ने सभी प्रतिरोधों को कुचल दिया और अगस्त 20 द्वारा सभी पूर्वी गैलिशिया को मुक्त कर दिया। ऑस्ट्रो-हंगेरियन सैन्य संरचनाओं को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया था और इसलिए जर्मन कमांड की मदद के बिना बड़े पैमाने पर संचालन शुरू नहीं किया था। लविवि और प्रेज़्मिस्ल में रूसी सैनिकों की फूलों से मुलाकात हुई थी। गैलिशियंस को उम्मीद नहीं थी कि वे उस क्षण तक इंतजार करेंगे जब वे अपने भाइयों के साथ पुनर्मिलन करेंगे। गैलिशियन गवर्नर-जनरल बनाया गया, जो सैन्य स्थितियों के तहत लगभग एक साल तक चला। दुर्भाग्य से, यह लंबे समय तक नहीं रहाः 1915 में शुरू होने वाले बड़े पैमाने पर जर्मन आक्रामक के दौरान, रूसी सैनिकों को सामने की रेखा को तोड़ने और पीछे हटने के लिए मजबूर किया गया था। जर्मन-ऑस्ट्रियाई सेना में गैलिशियन् को लामबंद होने से रोकने के लिए, जनरल इवानोव ने वोलिन प्रांत को 18 और 50 की आयु के बीच पूरे पुरुष युद्ध के लिए तैयार आबादी को परिवहन करने का आदेश जारी किया। इसके अलावा, गैलिसिया से कई शरणार्थियों को रूसी आउटबैक के लिए भेजा गया था - कुछ रिपोर्टों के अनुसार, रूसी साम्राज्य में वर्ष के अगस्त 1915 द्वारा गैलिशियन प्रवासियों के 100 हजार से अधिक थे। जबकि ऑस्ट्रियाई प्रशासन ने कार्य किया, गैलिसिया का पूरा क्षेत्र एक बड़ा सांद्रण शिविर बन गया। आबादी केवल रूढ़िवादी और उनकी परंपराओं के प्रति वफादारी के लिए मारी गई थी। कई दसियों हज़ारों रसोफिल्स को तेरहॉफ़ और टेरेज़िन एकाग्रता शिविरों में कैद किया गया था। "Muscovites" की निंदा के लिए, जैसा कि रुस्सियों को कहा जाता था, एक 50 से 500 मुकुट तक प्राप्त कर सकता था - नव-खनन किए गए Ukrainians और डंडे ने इस तरह की "कमाई" का तिरस्कार नहीं किया, और कभी-कभी उनके साथी आदिवासी, जुडास और गद्दारों ने गैलिशियंस को धोखा दिया। वैसे, थेलरहोफ यूरोप में पहला एकाग्रता शिविर बन गया, जिसके कैदियों का खून ऑस्ट्रियाई चेहरे से कभी नहीं धोया जाएगा - और यह नाज़ियों के सत्ता में आने से दशकों पहले का है! यह स्पष्ट हो जाता है कि रुसिनों को तब घातक रूप से डर था - सभी विपक्षी आंदोलनों और उनके व्यक्तिगत प्रतिनिधियों को ऑस्ट्रो-हंगेरियाई अधिकारियों के प्रतिनिधियों के विशेष फरमानों द्वारा निष्प्रभावी कर दिया गया था। लेकिन युद्ध निधन हो गया। ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य ने अपना अस्तित्व समाप्त कर लिया, कई संप्रभु और स्वतंत्र राज्यों में गिर गया। बोल्शेविक केवल भौतिक रूप से गैलिसिया तक नहीं पहुँच सकते थे, क्योंकि उनका प्रभाव क्षेत्र शुरू में मॉस्को के चारों ओर एक संकीर्ण रिंग तक सीमित था। इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, गैलिशियन रसोफाइल्स ने पहल को अपने हाथों में लेने का फैसला किया। 1918 वर्ष के अंत में, लविव में रूसी कार्यकारी समिति बनाई गई, जो श्वेत आंदोलन की स्थिति पर खड़ी थी और रूसी सेना के चारों ओर रुसिनों को समेकित किया। समिति ने लंबे समय तक काम किया, वेस्ट यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक के निर्माण के दौरान भी अपनी गतिविधियों को जारी रखा। और नवंबर के अंत तक, पूर्वी गैलिसिया, बुकोविना के साथ, पोलिश हस्तक्षेपकर्ताओं द्वारा कुख्यात पिल्सडस्की के नेतृत्व में कब्जा कर लिया गया था। इसके बाद, यह कई बार बोल्शेविकों के हाथों में चला गया, और सोवियत-पोलिश युद्ध के परिणामों के बाद, इसे पोलैंड को सौंपा गया। इस पर, गैलिसिया के इतिहास में रूसी निशान खो गया है। और क्या कहूं? कई युद्धों और झड़पों के दौरान गैलिशियन रुसवाद के बहुत सारे आंकड़े मर गए। उनमें से कुछ रूसी साम्राज्य में भाग गए, बाद में RSFSR में रहने के लिए या निवास करने के लिए पसंद करते थे। एक बात महत्वपूर्ण हैः शत्रु योक के तहत 500 से अधिक वर्षों के लिए आयोजित किया जाना, रूसीता के एक मॉडल के रूप में शेष, गैलिशियनों ने इनकार कर दिया या उनके विचारों और विश्व साक्षात्कार को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। उनके लिए पहला झटका पोलिश कब्जे के दौरान भड़का था, जो पश्चिमी यूक्रेन और पश्चिमी बेलारूस को जातीय ध्रुवों द्वारा आबाद अनन्त Kresy Wschodnie के रूप में देखा गया था। और वर्ष के 1939 के बाद, यूक्रेन की विचारधारा यहां आई, जिसने पहले कीव, निप्रॉपेट्रोस, खेरस और रूसी महिमा के कई अन्य शहरों में बाढ़ आ गई थी। और फिर भी, गैलिशियन रस के निवासियों ने आत्म-घृणा की उस विचारधारा को स्वीकार कर लिया जिससे वे घृणा करते थे, जो दशकों से उनके सिर पर निहित है? किसने उन्हें छोटे शहरों के राष्ट्रवाद को तरजीह देते हुए उनकी ऐतिहासिक जड़ों, महान रूसी लोगों के साथ उनके संबंध को छोड़ दिया? क्या उन्हें हमेशा के लिए पश्चिम के गुलाम बन गए और रूस की कीमत पर रहते हुए, रूसी से नफरत करते हैं? यह एक कठिन प्रश्न है। शायद बीसवीं शताब्दी के कई बोझ, जो पहले रूसी भूमि पर गरीबी और तबाही लाए थे, एक भूमिका निभाई और गैलिशियन सरल अवसरवादी, मॉडल पोल, फिर नाज़ी और फिर - यूक्रेनियन, लेकिन रूसी बन गए। इसके अलावा, लविवि और पूरे गैलिसिया यूक्रेन के उपरिकेंद्र बन गए, जहां से यह अल्सर अब पूरे देश में विचलन करता है। बांदेरा, फासीवाद और सब कुछ मानव के साथ विश्वासघात अब गैलिशियन संपत्ति है, हालांकि एक बार स्थानीय रसियन "Ukrainians" और उनके विनम्र नौकरों के खिलाफ सबसे अधिक उत्साही सेनानी थे।
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'मैं अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँ?' शाम के धुँधलके का समय है। सड़क के खंभों की रोशनी के चारों ओर बर्फ की एक गीली और मोटी परत धीरे-धीरे फैलती जा रही है। बर्फबारी के कारण कोचवान योना पोतापोव किसी सफेद प्रेत-सा दिखने लगा है। आदमी की देह जितनी भी मुड़ कर एक हो सकती है, उतनी उसने कर रखी है। वह अपनी घोड़ागाड़ी पर चुपचाप बिना हिले-डुले बैठा हुआ है। बर्फ से ढका हुआ उसका छोटा-सा घोड़ा भी अब पूरी तरह सफेद दिख रहा है। वह भी बिना हिले-डुले खड़ा है। उसकी स्थिरता, दुबली-पतली काया और लकड़ी की तरह तनी सीधी टाँगें ऐसा आभास दिला रही हैं जैसे वह कोई सस्ता-सा मरियल घोड़ा हो। योना और उसका छोटा-सा घोड़ा, दोनों ही बहुत देर से अपनी जगह से नहीं हिले हैं। वे खाने के समय से पहले ही अपने बाड़े से निकल आए थे, पर अभी तक उन्हें कोई सवारी नहीं मिली है। 'ओ गाड़ी वाले, विबोर्ग चलोगे क्या?' योना अचानक सुनता है, हड़बड़ाहट में वह अपनी जगह से उछल जाता है। अपनी आँखों पर जमा हो रही बर्फ के बीच से वह धूसर रंग के कोट में एक अफसर को देखता है, जिसके सिर पर उसकी टोपी चमक रही है। 'विबोर्ग!' अफसर एक बार फिर कहता है। 'अरे, सो रहे हो क्या? मुझे विबोर्ग जाना है।' चलने की तैयारी में योना घोड़े की लगाम खींचता है। घोड़े की गर्दन और पीठ पर पड़ी बर्फ की परतें नीचे गिर जाती हैं। अफसर पीछे बैठ जाता है। कोचवान घोड़े को पुचकारते हुए उसे आगे बढ़ने का आदेश देता है। घोड़ा पहले अपनी गर्दन सीधी करता है, फिर लकड़ी की तरह सख्त दिख रही अपनी टाँगों को मोड़ता है और अंत में अपनी अनिश्चयी शैली में आगे बढ़ना शुरू कर देता है। योना ज्यों ही घोड़ा-गाड़ी आगे बढ़ाता है, अँधेरे में आ-जा रही भीड़ में से उसे सुनाई देता है, 'अबे, क्या कर रहा है, जानवर कहीं का! इसे कहाँ ले जा रहा है, मूर्ख! दाएँ मोड़!' 'तुम्हें तो गाड़ी चलाना ही नहीं आता! दाहिनी ओर रहो!' पीछे बैठा अफसर गुस्से से चीखता है। फिर रुक कर, थोड़े संयत स्वर में वह कहता है, 'कितने बदमाश हैं... सब के सब!' और मजाक करने की कोशिश करते हुए वह आगे बोलता है, 'लगता है, सब ने कसम खा ली है कि या तो तुम्हें धकेलना है या फिर तुम्हारे घोड़े के नीचे आ कर ही दम लेना है!' कोचवान योना मुड़ कर अफसर की ओर देखता है। उसके होठ जरा-सा हिलते हैं। शायद वह कुछ कहना चाहता है। 'क्या कहना चाहते हो तुम? 'अफसर उससे पूछता है। योना जबर्दस्ती अपने चेहरे पर एक मुस्कराहट ले आता है, और कोशिश करके फटी आवाज में कहता है, 'मेरा इकलौता बेटा बारिन इस हफ्ते गुजर गया साहब!' 'अच्छा! कैसे मर गया वह?' योना अपनी सवारी की ओर पूरी तरह मुड़ कर बोलता है, 'क्या कहूँ, साहब। डॉक्टर तो कह रहे थे, सिर्फ तेज बुखार था। बेचारा तीन दिन तक अस्पताल में पड़ा तड़पता रहा और फिर हमें छोड़ कर चला गया... भगवान की मर्जी के आगे किसकी चलती है!' 'अरे, शैतान की औलाद, ठीक से मोड़!' अँधेरे में कोई चिल्लाया, 'अबे ओ बुड्ढे, तेरी अक्ल क्या घास चरने गई है? अपनी आँखों से काम क्यों नहीं लेता?' 'जरा तेज चलाओ घोड़ा... और तेज...' अफसर चीखा, 'नहीं तो हम कल तक भी नहीं पहुँच पाएँगे! जरा और तेज!' कोचवान एक बार फिर अपनी गर्दन ठीक करता है, सीधा हो कर बैठता है और रुखाई से अपना चाबुक हिलाता है। बीच-बीच में वह कई बार पीछे मुड़ कर अपनी सवारी की तरफ देखता है, लेकिन उस अफसर ने अब अपनी आँखें बंद कर ली हैं। साफ लग रहा है कि वह इस समय कुछ भी सुनना नहीं चाहता। अफसर को विबोर्ग पहुँचा कर योना शराबखाने के पास गाड़ी खड़ी कर देता है, और एक बार फिर उकड़ूँ हो कर सीट पर दुबक जाता है। दो घंटे बीत जाते हैं। तभी फुटपाथ पर पतले रबड़ के जूतों के घिसने की 'चूँ-चूँ, चीं-चीं' आवाज के साथ तीन लड़के झगड़ते हुए वहाँ आते हैं। उन किशोरों में से दो लंबे और दुबले-पतले हैं जबकि तीसरा थोड़ा कुबड़ा और नाटा है। 'ओ गाड़ीवाले! पुलिस ब्रिज चलोगे क्या?' कुबड़ा लड़का कर्कश स्वर में पूछता है। 'हम तुम्हें बीस कोपेक देंगे।' योना घोड़े की लगाम खींचकर उसे आवाज लगाता है, जो चलने का निर्देश है। हालाँकि इतनी दूरी के लिए बीस कोपेक ठीक भाड़ा नहीं है, पर एक रूबल हो या पाँच कोपेक हों, उसे अब कोई एतराज नहीं... उसके लिए अब सब एक ही है। तीनों किशोर सीट पर एक साथ बैठने के लिए आपस में काफी गाली-गलौज और धक्कम-धक्का करते हैं। बहुत सारी बहस और बदमिजाजी के बाद अंत में वे इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि कुबड़े लड़के को खड़ा रहना चाहिए क्योंकि वही सबसे ठिगना है। 'ठीक है, अब तेज चलाओ! 'कुबड़ा लड़का नाक से बोलता है। वह अपनी जगह ले लेता है, जिससे उसकी साँस योना की गर्दन पर पड़ती है। 'तुम्हारी ऐसी की तैसी! क्या सारे रास्ते तुम इसी ढेंचू रफ्तार से चलोगे? क्यों न तुम्हारी गर्दन...!' 'दर्द के मारे मेरा तो सिर फटा जा रहा है,' उनमें से एक लंबा लड़का कहता है। 'कल रात दोंकमासोव के यहाँ मैंने और वास्का ने कोंयाक की पूरी चार बोतलें चढ़ा लीं।' 'मुझे समझ में नहीं आता कि आखिर तुम इतना झूठ क्यों बोलते हो? तुम एक दुष्ट व्यक्ति की तरह झूठे हो!' दूसरा लंबा लड़का गुस्से में बोला। 'भगवान कसम! मैं सच कह रहा हूँ!' 'हाँ, हाँ, क्यों नहीं! तुम्हारी बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी इसमें कि सुई की नोक में से ऊँट निकल सकता है!' 'हें, हें, हें... आप सब कितने मजाकिया हैं!' योना खीसें निपोर कर बोलता है। 'अरे, भाड़ में जाओ तुम!' कुबड़ा क्रुद्ध हो जाता है। 'बुढ़ऊ, तुम हमें कब तक पहुँचाओगे? चलाने का यह कौन-सा तरीका है? कभी चाबुक का इस्तेमाल भी कर लिया करो! जरा जोर से चाबुक चलाओ, मियाँ! तुम आदमी हो या आदमी की दुम!' योना यूँ तो लोगों को देख रहा है, पर धीरे-धीरे अकेलेपन का एक तीव्र एहसास उसे ग्रसता चला जा रहा है। कुबड़ा फिर से गालियाँ बकने लगा है। लंबे लड़कों ने किसी लड़की नादेज्दा पेत्रोवना के बारे में बात करनी शुरू कर दी है। योना उनकी ओर कई बार देखता है। वह किसी क्षणिक चुप्पी की प्रतीक्षा के बाद मुड़कर बुदबुदाता है, 'मेरा बेटा... इस हफ्ते गुजर गया।' 'हम सबको एक दिन मरना है। 'कुबड़े ने ठंडी साँस ली और खाँसी के एक दौरे के बाद होठ पोंछे। 'अरे, जरा जल्दी चलाओ... खूब तेज! दोस्तो, मैं इस धीमी रफ्तार पर चलने को तैयार नहीं। आखिर इस तरह यह हम सबको कब तक पहुँचाएगा?' 'अरे, अपने इस घोड़े की गर्दन थोड़ी गुदगुदाओ!' 'सुन लिया... बुड्ढे! ओ नर्क के कीड़े! मैं तुम्हारी गर्दन की हड्डियाँ तोड़ दूँगा! अगर तुम जैसों की खुशामद करते रहे तो हमें पैदल चलना पड़ जाएगा! सुन रहे हो न बुढ़ऊ! सुअर की औलाद! तुम पर कुछ असर पड़ रहा है या नहीं?' योना इन शाब्दिक प्रहारों को सुन तो रहा है, पर महसूस नहीं कर रहा। वह 'हें, हें' करके हँसता है। 'आप साहब लोग हैं। जवान हैं... भगवान आपका भला करे!' 'बुढ़ऊ, क्या तुम शादी-शुदा हो?' उनमें से एक लंबा लड़का पूछता है। 'मैं? आप साहब लोग बड़े मजाकिया हैं! अब बस मेरी बीवी ही है... वह अपनी आँखों से सब कुछ देख चुकी है। आप समझ गए न मेरी बात। मौत बहुत दूर नहीं है... मेरा बेटा मर चुका है और मैं जिंदा हूँ... कैसी अजीब बात है यह। मौत गलत दरवाजे पर पहुँच गई... मेरे पास आने की बजाए वह मेरे बेटे के पास चली गई...' योना पीछे मुड़कर बताना चाहता है कि उसका बेटा कैसे मर गया! पर उसी समय कुबड़ा एक लंबी साँस खींच कर कहता है, 'शुक्र है खुदा का! आखिर मेरे साथियों को पहुँचा ही दिया!' और योना उन सबको अँधेरे फाटक के पार धीरे-धीरे गायब होते देखता है। एक बार फिर वह खुद को बेहद अकेला महसूस करता है। सन्नाटे से घिरा हुआ... उसका दुख जो थोड़ी देर के लिए कम हो गया था, फिर लौट आता है, और इस बार वह और भी ताकत से उसके हृदय को चीर देता है। बेहद बेचैन हो कर वह सड़क की भीड़ को देखता है, गोया ऐसा कोई आदमी तलाश कर रहा हो जो उसकी बात सुने। पर भीड़ उसकी मुसीबत की ओर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ जाती है। उसका दुख असीम है। यदि उसका हृदय फट जाए और उसका दुख बाहर निकल आए तो वह मानो सारी पृथ्वी को भर देगा। लेकिन फिर भी उसे कोई नहीं देखता। योना को टाट लादे एक कुली दिखता है। वह उससे बात करने की सोचता है। 'वक्त क्या हुआ है, भाई? 'वह कुली से पूछता है। 'नौ से ज्यादा बज चुके हैं। तुम यहाँ किसका इंतजार कर रहे हो? अब कोई फायदा नहीं, लौट जाओ।' योना कुछ देर तक आगे बढ़ता रहता है, फिर उकड़ूँ हालत में अपने गम में डूब जाता है। वह समझ जाता है कि मदद के लिए लोगों की ओर देखना बेकार है। वह इस स्थिति को और नहीं सह पाता और 'अस्तबल' के बारे में सोचता है। उसका घोड़ा मानो सब कुछ समझ कर दुलकी चाल से चलने लगता है। लगभग डेढ़ घंटे बाद योना एक बहुत बड़े गंदे-से स्टोव के पास बैठा हुआ है। स्टोव के आस-पास जमीन और बेंचों पर बहुत से लोग खर्राटे ले रहे हैं। हवा दमघोंटू गर्मी से भारी है। योना सोए हुए लोगों की ओर देखते हुए खुद को खुजलाता है... उसे अफसोस होता है कि वह इतनी जल्दी क्यों चला आया। आज तो मैं घोड़े के चारे के लिए भी नहीं कमा पाया - वह सोचता है। एक युवा कोचवान एक कोने में थोड़ा उठकर बैठ जाता है और आधी नींद में बड़बड़ाता है। फिर वह पानी की बाल्टी की तरफ बढ़ता है। 'क्या तुम्हें पानी चाहिए?' योना उससे पूछता है। 'यह भी कोई पूछने की बात है?' 'अरे नहीं, दोस्त! तुम्हारी सेहत बनी रहे! लेकिन क्या तुम जानते हो कि मेरा बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा... तुमने सुना क्या? इसी हफ्ते... अस्पताल में... बड़ी लंबी कहानी है।' योना अपने कहे का असर देखना चाहता है, पर वह कुछ नहीं देख पाता। उस युवक ने अपना चेहरा छिपा लिया है और दोबारा गहरी नींद में चला गया है। बूढ़ा एक लंबी साँस ले कर अपना सिर खुजलाता है। उसके बेटे को मरे एक हफ्ता हो गया लेकिन इस बारे में वह किसी से भी ठीक से बात नहीं कर पाया है। बहुत धीरे-धीरे और बड़े ध्यान से ही यह सब बताया जा सकता है कि कैसे उसका बेटा बीमार पड़ा, कैसे उसने दुख भोगा, मरने से पहले उसने क्या कहा और कैसे उसने दम तोड़ दिया। दफ्न के वक्त की एक-एक बात बतानी भी जरूरी है और यह भी कि उसने कैसे अस्पताल जा कर बेटे के कपड़े लिए। उस समय उसकी बेटी अनीसिया गाँव में ही थी। उसके बारे में भी बताना जरूरी है। उसके पास बताने के लिए इतना कुछ है। सुनने वाला जरूर एक लंबी साँस लेगा और उससे सहानुभूति जताएगा। औरतों से बात करना भी अच्छा है, हालाँकि वे बेवकूफ होती हैं। उन्हें रुला देने के लिए तो भावुकता भरे दो शब्द ही काफी होते हैं। चलूँ... जरा अपने घोड़े को देख लूँ - योना सोचता है। सोने के लिए तो हमेशा वक्त रहेगा। उसकी क्या परवाह! वह अपना कोट पहन कर अस्तबल में अपने घोड़े के पास जाता है। साथ ही वह अनाज, सूखी घास और मौसम के बारे में सोचता रहता है। अपने बेटे के बारे में अकेले सोचने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाता है। 'क्या तुम डटकर खा रहे हो?' योना अपने घोड़े से पूछता है... वह घोड़े की चमकती आँखें देखकर कहता है, 'ठीक है, जमकर खाओ। हालाँकि हम आज अपना अनाज नहीं कमा सके, पर कोई बात नहीं। हम सूखी घास खा सकते हैं। हाँ, यह सच है। मैं अब गाड़ी चलाने के लिए बूढ़ा हो गया हूँ... मेरा बेटा चला सकता था। कितना शानदार कोचवान था मेरा बेटा। काश, वह जीवित होता!' एक पल के लिए योना चुप हो जाता है। फिर अपनी बात जारी रखते हुए कहता है, 'हाँ, मेरे प्यारे, पुराने दोस्त। यही सच है। कुज्या योनिच अब नहीं रहा। वह हमें जीने के लिए छोड़कर चला गया। सोचो तो जरा, तुम्हारा एक बछड़ा हो, तुम उसकी माँ हो और अचानक वह बछड़ा तुम्हें अपने बाद जीने के लिए छोड़कर चल बसे। कितना दुख पहुँचेगा तुम्हें, है न?' उसका छोटा-सा घोड़ा अपने मालिक के हाथ पर साँस लेता है, उसकी बात सुनता है और उसके हाथ को चाटता है। अपने दुख के बोझ से दबा हुआ योना उस छोटे-से घोड़े को अपनी सारी कहानी सुनाता जाता है।
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आजतक के महामंच 'एजेंडा आजतक' पर शनिवार को दूसरे दिन राजनीति से लेकर बॉलीवुड तक की कई दिग्गज हस्तियां शिरकत की. सबसे पहले एजेंडा आजतक के मंच पर पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पहुंचे. उन्होंने राज्य में होने वाले चुनाव को लेकर अपनी बात रखी. इसके अलावा राजद नेता तेजस्वी यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधा. इसके बाद एक्टर आयुष शर्मा ने अपनी फिल्म अंतिम और एक्टर कार्तिक आर्यन ने धमाका के बारे में जानकारी दी. फिर महबूबा मुफ्ती से लेकर अश्विनी वैष्णव तक कई दिग्गजों ने अपने विचार रखे. एजेंडा आजतक पर आज 15 दिग्गजों ने अपने विचार रखे. राजनीति से लेकर मनोरंजन जगत तक, कई हस्तियों ने बेबाक अंदाज में अपनी बात रखी. दिन की शुरुआत पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से हुई. चन्नी के बाद आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी नीतीश सरकार पर जमकर हमला बोला. इसके बाद वीर सावरकर पर बहस हुई और कई इतिहासकारों ने अपने विचार रखे. राजनीति मंथऩ के बाद मनोरंजन जगत से अंतिम के आयुष शर्मा ने दस्तक दी. फिल्म पर तो बात की ही, सलमान खान संग रिश्तों पर भी रोशनी डाली. आयुष के बाद एजेंडा आजतक पर कार्तिक आर्यन का भी धमाका देखने को मिला जिन्होंने ना सिर्फ अपनी फिल्म पर बात की, बल्कि खूब मौज-मस्ती भी करते दिख गए. बाद में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने दस्तक दी और उनकी अयोध्या वाली किताब पर बहस हुई. मुख्तार अब्बास नकवी ने भी उनकी हर सफाई पर सवाल उठाए और तीखा प्रहार किया. इस तीखी बहस के बाद केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी अपने विचार रखे. न्याय को लेकर सरकार की योजनाएं बताईं और जजों की नियुक्ति पर भी सफाई पेश की. इसके बाद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा और फिर उन्हीं के आरोपों क जवाब उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने दिए. इसके बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रेलवे का भविष्य बताया और बुलेट ट्रेन पर भी बात की. इन राजनीतिक चर्चाओं के बीच सारा अली खान ने भी अपनी फिल्म अतरंगी रे को प्रमोट किया. सबसे आखिर में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनावी मौसम में अपनी पार्टी की रणनीति बताई और विपक्ष पर भी निशाना साधा. यूपी चुनाव को लेकर बीजेपी अध्यक्ष ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने जोर देकर कहा है कि आगामी चुनाव में बीजेपी की 300 से ज्यादा सीटें आने वाली हैं. उन्होंने सीएम योगी के नेतृत्व में विश्वास जताते हुए कहा है कि ये जीत एकतरफा होने वाली है और पूरे विपक्ष का सूपड़ा साफ हो जाएगा. यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी की सक्रियता पर जेपी नड्डा ने तंज कसा है. उनके मुताबिक चुनाव में आने का सभी को अधिकार है. अच्छी बात है कि प्रियंका गांधी भी प्रचार कर रही हैं. लेकिन उनके मुताबिक लिखे हुए भाषणों से राजनीति नहीं की जा सकती. जोर देकर कहा गया है कि प्रियंका रीडर हैं,लीडर नहीं. किसान आंदोलन पर जेपी नड्डा ने कहा है कि उनकी सरकार समझाने में पूरी तरह सक्षम है. लेकिन उन्हें ये ही नहीं पता किसान क्या समझना चाहते हैं. कई बार उनसे पूछा गया था कि कौन से क्लॉज में उन्हें दिक्कत है, उन्हें क्या समझ नहीं आ रहा है. लेकिन किसान सिर्फ कानून वापसी पर अटक गए थे. किसान आंदोलन पर बीजेपी अध्यक्ष ने साफ कर दिया है कि इसका चुनाव पर कोई असर नहीं होने वाला है. उनके मुताबिक ये कोई पूरे भारत का आंदोलन नहीं था. सिर्फ एक वर्ग प्रदर्शन कर रहा था. बीजेपी अध्यक्ष ने ये भी कहा है कि किसानों की मांग पर मंथन किया जाएगा. कमेटी बनी हुई है, वहां पर बातचीत की जाएगी. जिन्ना विवाद पर जेपी नड्डा ने अखिलेश यादव पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि ऐसी बयानबाजी सपा प्रमुख की मानसिकता दिखता है. उनके मुताबिक बीजेपी के लिए अखिलेश यादव कोई चैलेंज नहीं हैं. लेकिन उनकी मानसिकता जरूर चैलेंज है. वो मानसिकता का ही हम विरोध करते हैं और इसे चुनाव में चैलेंज भी करेंगे. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा है कि कोरोना काल में सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ता ही जमीन पर दिखे. पूरा विपक्ष गायब हो गया था और लोगों की मदद करने के लिए भाजपा के लाखों कार्यकर्ता आगे आए थे. हर तरह की मदद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मुश्किल समय में की थी. एक्ट्रेस सारा अली खान की फिल्म अतरंगी रे रिलीज होने जा रही है. फिल्म में सारा अली खान, अक्षय कुमार और धनुष संग काम कर रही हैं. सारा मानती हैं कि दोनों अक्षय और धनुष बड़े स्टार हैं. एक अगर साउथ का थलाइवी है तो दूसरा दक्षिण का थलाइवी है. उनके मुताबिक धनुष संग उन्होंने काफी मजा किया, वहीं अक्षय की डेडिकेशन ने उन्हें इंप्रेस किया. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि रेलवे को बेचने का कोई इरादा नहीं है. उन्होंने विपक्ष के आरोपों को नकारते हुए कहा है कि ऐसा सवाल पूछना ही गलत है क्योंकि ये कभी नहीं होगा. उन्होंने सभी को गारंटी देते हुए कह दिया है कि निजीकरण का मतलब ये नहीं कि रेलवे को बेच दिया जाएगा. मोदी सरकार के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बुलेट ट्रेन पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विस्तार से बात की है. उनके मुताबिक काम तेजी से हो रहा है लेकिन अभी तक महाराष्ट्र में जमीन अधिकरण को लेकर दिक्कत है. वहीं जापानी कंपनियों की कार्यशैली की वजह से भी देरी हो रही है. वे सबकुछ रेडी चाहते हैं, उसके बाद ही कुछ काम शुरू किया जाएगा. उम्मीद जताई गई है कि 2026 तक लोग बुलेट ट्रेन से ट्रैवल कर पाएंगे. बॉलीवुड में कैंसिल कल्चर काफी चलता है. कभी कोई एक्टर विवादों में आ जाए तो प्रोजेक्ट हाथ से चले जाते हैं. अब इस कल्चर पर रवीना टंडन ने कहा है कि उन्हें इस इंडस्ट्री में तीस साल हो गए हैं. आज तक कोई उन्हें काम करने से नहीं रोक पाया है. वे यहां तक कह गई हैं कि आगे भी उन्हें कोई काम करने से नहीं रोक सकता. वे मानती हैं कि बोलने का हक सभी को है और किसी के काम को ऐसे ही नहीं छीना जा सकता. एक्टर आशुतोष राणा ने अभिव्यक्ति की आजादी पर बड़ा बयान दे दिया है. उनके मुताबिक बोलना तो इंसान दो साल की उम्र में ही सीख जाता है, लेकिन ये समझने में पूरी जिंदगी बीत जाती है कि क्या बोलना चाहिए, कितना बोलना चाहिए, कब बोलना चाहिए. जब ओम बिरला से सवाल पूछा गया कि क्या सदन में राहुल गांधी को बोलने का पूरा मौका नहीं दिया जाता, इस पर लोकसभा स्पीकर ने दो टूक जवाब दे दिया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि कांग्रेस नेता को हर बार बोलने का पूरा मौका दिया गया है. उनके मुताबिक कई बार लिस्ट में उनका नाम नहीं होता, लेकिन फिर भी बात रखने का अवसर दिया जाता है. विपक्ष के नेता खुद बोलते हैं कि बोलने का पूरा मौका दिया जाता है. हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर घंटों मंथन होता है. जब से राज्यसभा से 12 सासंदों को निलंबित किया गया है, ये विवाद बढ़ता जा रहा है और विपक्ष लगातार अपना विरोध कर रहा है. अब जब ये सवाल लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से पूछा गया तो उन्होंने इस पर जवाब देने से इनकार कर दिया. उनके मुताबिक कुछ नियम होते हैं और वे उन्हें नहीं तोड़ सकते. दूसरे सदन में क्या हो रहा है, क्या किया जा रहा है, इसकी चर्चा कभी भी लोकसभा में नहीं की जा सकती. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने बनने जा रहे नए संसद भवन को काफी अहम माना है. उनके मुताबिक अगले 100 साल को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण हो रहा है जहां पर हर नए सदस्य के लिए बैठने का भी इंतजाम रहेगा और सभी खुलकर अपने विचार रखेंगे. उनके मुताबिक भारत का नया संसद भवन आजादी का भी प्रतीक होने वाला है. वो संसद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की ताकत दिखाएगा. एलजी मनोज सिन्हा ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में जो किलिंग होती हैं, वो गलत है. उसकी कड़े शब्दों में निंदा होनी चाहिए. हर हमले का मुंहतोड़ जवाब भी दिया जाएगा. लेकिन उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया एक ऐसा इकोसिस्टम भी सक्रिय है जो ऐसी किलिंग को बढ़ावा देना चाहिए. जो ऐसा काम कर रहे हैं, वो ज्यादा बड़े दोषी हैं, उनसे ज्यादा खतरा है. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल ने साफ कर दिया है कि नए भारत में सिर्फ उन्हीं लोगों से बात की जाएगी जिनकी आस्था भारत के तिरंगे में रहेगी. जोर देकर कहा गया कि सॉफ्ट सेपरेटिज्म का जमाना लद चुका है. उनके मुताबिक जो भारत के हक की, कश्मीर के हक की बात करेगा, उनके सुझाव माने जाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि हमारी सरकार कश्मीरी पंडितों के लिए काफी काम कर रही है. अगले तीन महीने में सभी को जमीन पर उसर दिखने लगेगा. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि पिछले दो सालों में घाटी का काफी विकास किया गया है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के जरिए सड़कों का जाल बिछाया गया है. अब यहां पर निवेश होता है. लेकिन जिनका चश्मा कमजोर है, उन्हें विकास दिखाई नहीं देता है. लेकिन हम लोग सिर्फ आम कश्मीरी के लिए काम करते हैं. विकास वहीं सही है जो अंजाम तक पहुंचता है. पीडीप प्रमुख ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की कि वर्तमान सरकार ने घाटी के लोगों का भरोसा तोड़ा है. उनकी माने तो 370 हटने के बाद भी कश्मीर में कुछ नहीं बदला है. उन्होंने साफ कर दिया है कि अगर कश्मीर आज भारत का हिस्सा है, तो उसमें बड़ा हाथ जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी जैसे बड़े नेताओं का है. उन्होंने उस समय के और भी कई कांग्रेस नेताओं को इसका श्रेय दिया है. वे मानती हैं कि अगर आज के नेता तब होते तो शायद कश्मीर, पाकिस्तान में होता. महबूबा मुफ्ती ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोला है. उन्होंने जोर देकर कहा है कि ये सरकार गोडसे वाला कश्मीर बनाना चाहती है. ये हमारा गांधी वाला हिंदुस्तान नहीं है. लेकिन आज की सरकार ने अपनी राजनीति के लिए कश्मीर को कुर्बान कर दिया. मुफ्ती की माने तो पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के समय जरूर कश्मीर समस्या पर काम हुआ था. पाकिस्तान से बात हुई थी, हुर्रियत के साथ मंथन हुआ था, सीज फायर लागू किया गया था. लेकिन अब कश्मीर की कोई नहीं सुनता. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा है कि वर्तमान सरकार ने कश्मीर के लिए कुछ नहीं किया. देश की एक मुस्लिम मेजोरिटी स्टेट थी, लेकिन अब उसे भी नहीं बचाया गया. मुफ्ती के मुताबिक ये सरकार गोडसे वाला कश्मीर बनाना चाहती है. ये गांधी का हिंदुस्तान नहीं है. ये नया जरूर है लेकिन आदर्शों वाला नहीं है. जवानों के साथ दिवाली मनाने के सवाल पर किरन रिजिजू ने कहा, मैं उन लोगों के साथ दिवाली मनाता हूं, जो अपने परिवार से साथ कभी दिवाली नहीं मनाते. रिजिजू ने कहा, ऐसा मै सिर्फ अपनी देश के प्रति सेवा के लिए करता हूं. हालांकि, मेरे बच्चे हमेशा कहते हैं कि पापा आप हमारे साथ दिवाली क्यों नहीं मनाते. रिजिजू ने कहा, लोगों की समस्याओं का हल निकालना ही हमारी प्राथमिकता है. जब मुझसे कोई जज, वकील या आम आदमी मिलना चाहता है, तो बहुत ओपन माइंड से उनसे मिलता हूं. ताकि लोगों की बात सुनकर सरल तरीके से उनका हल निकाल सकूं. जहां भी मैंने काम किया, जहां मंत्रालय में रहा, मैं इसी तरह से काम करता हूं. सलमान खुर्शीद ने कहा, संविधान सभी धर्मों को एक मानता है. अयोध्या के फैसले से पहले हम सबने कहा था कि इसे स्वीकार करेंगे. मेरी किताब कहती है कि अयोध्या के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समझे के ये फैसला सही है. मैं याद दिला दूं कि यह फैसला सिर्फ मंदिर पर नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एक मंदिर बनेगा और एक मस्जिद बनेगी. मेरा घर किसने जलाया, कोई इसका जवाब दे दे. क्या ये लोग बोको हरम से आए थे. आईएसआईएस के थे. या फिर हिंदुत्व वाले थे. कोई जवाब दे दे. केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, हिंदुत्व हिंदुस्तान की आत्मा है और इसी संस्कृति और संस्कार का नतीजा है कि जब हिंदुस्तान बंटा तो एक भारत बना और एक पाकिस्तान. हिंदुस्तान की संसद में वसुधैव कुटुम्बकम लिखा है. भारत की संस्कृति का ही नतीजा है कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश बना. लेकिन पाकिस्तान धार्मिक कट्टरपंथ बना. जिस समय पाकिस्तान बना, वहां 26% अल्पसंख्यक थे, आज 2% बजे हैं. भारत में 8% अल्पसंख्यक थे. आज ये बढ़कर 28% तक पहुंच गया है. यानी भारत की संस्कृति की वजह से किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग को नुकसान नहीं पहुंचाया गया. उन्होंने कहा, अयोध्या पर फैसला आया. सभी ने स्वीकार किया. किसी ने खुशी नहीं मनाई और किसी ने दुख नहीं जताया. इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि अगर अयोध्या को लेकर इस तरह की बात फैलाई जा रही है, तो यह सब साजिश के तहत किया जा रहा है. धर्मयुद्ध सेशन में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, आग लगी है, उसे बुझाना है. इसलिए ये किताब लिखी. अगर हिंदू धर्म के लोगों को नहीं पता कि सूर्य का उदय क्या होता है, तो दुख की बात है. मैंने एक उदय की बात की. मैंने सूर्यास्त की बात नहीं. किताब को पढ़िए तो बात समझ आ जाएगी. खुर्शीद ने कहा, हिंदुत्व के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह जीने का तरीका है. उन्होंने कहा, धर्म में परिवर्तन नहीं हो सकता. लेकिन जीने के तरीकों में परिवर्तन हो सकता है. पहले भी हुए हैं. इसलिए मैंने कहा, कुछ लोग हिंदुत्व में परिवर्तन कर रहे हैं. ये अच्छी बात नहीं है. इसलिए मैंने सामान कहा. उन जैसा, किस बात पर मिलता है कि धर्म का दुरुपयोग उन्होंने भी किया, इन्होंने भी किया है. ये कहना मेरा कर्तव्य है. आयुष शर्मा ने बताया कि उन्हें पहली बार एक विज्ञापन के लिए 15 हजार रुपए मिले थे. इसमें भी 3000 रुपए काट लिए गए थे. जब उन्होंने इस बारे में अपने पिता को बताया कि उन्हें इतने पैसे मिले हैं. तो आयुष शर्मा के पिता ने कहा, सिद्धिविनायक मंदिर में दान कर दो. आयुष ने बताया कि सलीम खान ने एक फिल्म में लिखा था, मैं फेंके हुए पैसे नहीं उठाता. ऐसे ही उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम भले ही राजनीति से जुड़े पार्टी से हो. लेकिन जब तुम खुद कमाओगे तो उसका मजा ही अलग होगा. उन्होंने बताया था कि भले ही मैंने वो डायलॉग फिल्म में लिखा, लेकिन वह रियल था. तुम कभी किसी के पैसे मत उठाना. ये बात मेरे लिए काफी अहम रही. एजेंडा आजतक में अभिनेता आयुष शर्मा पहुंचे. उन्होंने अपनी फिल्म अंतिम के बारे में बात की. इसके अलावा उन्होंने बताया कि कैसे अर्पिता को लेकर उन्होंने सलमान खान से बात की थी. आयुष शर्मा ने कहा, वे मुंबई में पढ़ाई करने आए थे. लेकिन साथ ही उन्होंने एक्टर बनने का फैसला किया. उसी दौरान उनकी मुलाकात अर्पिता से हुई. अर्पिता से दोस्ती हो गई. बाद में जब वे सलमान खान से जब मिलने गए थे, तो वे बड़ी आसानी से मान गए. आयुष ने कहा, मैं सलमान खान से मिलने गया, उन्हें बताया कि मेरा नाम आयुष है. इसके बाद हमारी कुछ बातें हुईं. उन्होंने मुझसे कुछ सवाल पूछे, मैंने सीधे सीधे उत्तर दिया. उन्हें ये बात काफी अच्छी लगी. तेजस्वी यादव ने कहा, सरकार का मन बढ़ा हुआ है. अगर विपक्ष और मीडिया कमजोर होती है, तो लोकतंत्र के लिए ये अच्छा नहीं है. सीएम नीतीश कुमार को ए, बी, सी, डी, क, ख, ग, घ की भी जानकारी नहीं रहती. उन्हें कुछ पता नहीं रहता. कुछ भी पूछ लो, नीति आयोग की रिपोर्ट देखी, नहीं. कुछ भी पूछो पता नहीं. देखा नहीं. तेजस्वी यादव ने कहा, जो लोग रोजगार मांगते हैं, उनपर लाठी चलाते हैं. जो किसानों की बात करते हैं, उनपर लाठी चलाते हैं. जो महंगाई की बात करते हैं, उन पर लाठी चलाते हैं. लोग अधिकार की बात सीएम, पीएम से ही मांगेंगे. लेकिन आज एक नया ट्रेंड चल रहा है कि सिर्फ विपक्ष से सवाल किया जाता है. सरकार से कोई कुछ नहीं पूछना चाहता. हर चीज का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ दिया जाता है. बिहार में कितनी बहार सेशन में बात करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा, बिहार विधानसभा में हमारी हार में भी जीत थी. क्योंकि हम जनता के बीच असली मुद्दे लेकर गए थे. इसे जनता ने स्वीकार किया. लेकिन मैं हमेशा ये कहता हूं कि ये सरकार पिछले दरवाजे की सरकार है. हमारे गठबंधन को एनडीए गठबंधन से सिर्फ 12000 कम वोट मिले. जनता ने कुछ ओर नतीजे दिए थे और चुनाव आयोग ने कुछ और नतीजे दिखाए. तेजस्वी यादव ने कहा, बिहार में बहार नहीं, बिहार बर्बाद है. क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार हैं. विक्रम सम्पत ने कहा, हिंदुत्व की परिकल्पना 1923 में रत्नागिरी की जेल में रह कर की. उस वक्त 'खिलाफत' आंदोलन चला. पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. इसके काउंटर के लिए उन्होंने हिंदुत्व क्या है, के बारे में लिखा. बाद में हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने. उन्होंने हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना की. कौन हिंदू है. ये धर्म से जुड़ा नहीं है, यह सांस्कृतिक और राष्ट्र से जुड़ा हुआ. जो अपने देश में विश्वास रखता, न की टर्की में. हिंदू राष्ट्र में सब कुछ एक समान होंगे. कानून के दायरे में सब एक जैसे हैं. कोई बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक नहीं होगा. किसी को कोई विशेष अधिकार नहीं मिलेंगे. धर्मनिरपेक्षता को राष्ट्र, राजनीति से कैसे अलग रखा जा सकता है. इसके बारे में उन्होंने लिखा. सावरकर आरएसएस के हिस्सा नहीं थे. उनके रिश्ते ऊपर नीचे होते रहते. गोवलकर के संघ प्रमुख रहने पर दोनों के रिश्ते भी अच्छे नहीं रहे. चमन लाल ने कहा, मुस्लिमों और ईसाइयों के लिए उनके हिंदुत्व में कोई जगह नहीं थी. सावरकर और महात्मा गांधी के रिश्ते भी अच्छे नहीं रहे. इतिहासकार विक्रम संपत ने कहा, सावरकर 1911 में पहली बार अंडमान के जेल में गए थे. वहां कैदियों के मानवाधिकारों का हनन होता था. वहां उनके साथ बर्बर व्यवहार किया गया. साल में एक बार पत्र लिखने की छूट थी. डेढ़ साल में एक बार परिवार के लोगों से मिल सकते थे. वे अच्छे वकील थे. वे लिखते थे कि हमारी स्थिति स्पष्ट कीजिए कि हम क्यों जेल में बंद हैं. अगर हम भारतीय जेल में हैं, तो हमें और राहत मिल सकती है. तो सभी कैदियों की स्थिति स्पष्ट करें. मेरे नाम के जुड़ने से और कैदी रिहा नहीं हो रहे, तो मुझे रहने दीजिए बाकियों को रिहा कर दीजिए, इससे मुझसे खुशी होगी. रंजीत सावरकर ने कहा, वे ऐसे राष्ट्रभक्त थे, जो सिर्फ यही सोचते थे कि अगर ये देश के लिए सही है, तो मुझे करना है और गलत है तो नहीं करना है. उनका विचार था, कोई भी विचार स्थल काल और परिस्थिति के हिसाब से बदलता है. जो आज के समय में उपयुक्त है, वो मुझे करना है. विक्रम संपत ने कहा, सावरकर प्रखर राष्ट्रभक्त थे. एक क्रांतिकारी, समाजसुधारक देश के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले वीर थे. वहीं, चमन लाल ने कहा, विनायक दामोदर सावरकर हिंदुस्तान की आजादी की तीन धाराओं में से एक का प्रतिनिधित्व करते थे. जो धर्म आधारित विचारधारा थी. आजतक एजेंडा में 'सावरकर के नाम पर' सेशन शुरू हो गया. इसमें रंजीत सावरकर, विक्रम संपत और चमन लाल अपनी बात रख रहे हैं. भारत और पाकिस्तान कभी एक थे. भारत और पाकिस्तान के लोगों में प्यार है. कई लोगों की राजनीति हैं. लेकिन राजनीति के चलते आज ऐसी स्थिति है कि दोनों देशों एक दूसरे के बारे में बुरा सोचते हैं. हमारी संस्कृति में नफरत नहीं है. पड़ोसी से अच्छे रिश्ते रखना हमारी परंपरा रही. हमे सिखाया जाता है, कि हम सबके साथ प्यार रखें. लेकिन जब हमें कोई दबाएगा, तो हम सक्षम हैं उसे जवाब देने के लिए. सीएम चन्नी ने कहा, नवजोत सिंह सिद्धू हमारे अध्यक्ष हैं. अध्यक्ष को पार्टी की लाइन पर काम करना होता है. जब पार्टी अध्यक्ष कुछ कहते हैं, तो हम उस लाइन पर काम करते हैं. जब कुछ रह जाता है, तो वे फिर कहते हैं, हम फिर करने में जुट जाते हैं. ये आलोचना काफी जरूरी है. कोई भी लोग राजनीति में आया है, उसकी सोच होती है, आगे बढ़ने की. सीएम से लेकर पीएम बनने की. अगर आपमे सोच नहीं है, तो काम नहीं कर पाएंगे. अगर नवजोत सिंह सिद्धू की सीएम बनने की सोच है, तो उसमें क्या बुरा है. चुनाव में जनता, पार्टी आलाकमान और विधायक तय करेंगे कि कौन सीएम बनेगा. चन्नी से जब पूछा गया कि वे आने वाले चुनाव में भी पंजाब के कप्तान हैं. तो इस सवाल पर उन्होंने कहा, ये टीम वर्क है. मैं कप्तान नहीं हूं. सिर्फ प्लेयर हूं. चुनाव में हम सबको मेहनत करनी है. पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी एजेंडा आजतक के दूसरे दिन मंच पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने बताया कि कैसे जब उन्हें पता चला कि वे पंजाब के सीएम बनने वाले हैं, तो रोने लगे थे. चरणजीत सिंह ने कहा, राहुल गांधी का फोन आया था. उन्होंने कहा, आप सीएम बनने वाले हैं. तो मैंने कहा, ये क्या कर रहे हो, किसी और को सीएम बना दो, मैं इसके काबिल नहीं हूं और मैं ये कहकर रोने लगा था. आजतक के महामंच 'एजेंडा आजतक' पर शुक्रवार को पहले दिन राजनीति से लेकर बॉलीवुड तक की कई दिग्गज हस्तियों ने शिरकत की. इस दौरान दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने आगामी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति पर चर्चा की तो वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम ने केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा. इसके अलावा किसान नेता राकेश टिकैत और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अलग अलग सेशन के दौरान मंच पर कृषि कानून वापसी बात चर्चा की.
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धन प्राप्ति के साधनों पर विचार कीजिये । भाग्य से भी धन मिलता हुआ देखा जाता है, परन्तु भाग्य एक ऐसा बल है जिसपर किसी का स्व तन्त्र अधिकार नहीं होता। अतएव भाग्य के भरोसे अकर्मण्य बनना ठीक नहीं । तुलसी का मत है कि घर में कल्पतरु एवं कामधेनु के चित्र टाँगने से विपत्ति नाश नही होता - "चित्र कल्पतरु कामधेनु गृह लिखे न विपति नसावै ।" कौटिल्य का भी मत है कि धन, धन से हो पैदा होता है, तारे बेचारे क्या सहायता करेगे - "अर्थो ह्यर्थस्य नक्षत्रं किं करिष्यति तारकाः ।' हमें यही मानना चाहिए कि बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य से धन पैदा होता है और पैदा होने पर उससे उसी की वृद्धि होती है। परिश्रम पैसे का पिता है । कार्य या परिश्रम व्यापार के रूप में भी हो सकता है और नौकरी के रूप में भी । सेवा-वृत्ति को शास्त्रों ने हेय माना है। इसमें सन्देह नहीं कि यथेच्छ धन का अर्जन और उपभोग व्यापार से ही हो सकता है। जो सम्पत्ति का पूर्ण उपभोग करना चाहे, उसे व्यवसाय को ही धनागम का साधन बनाना चाहिये । व्यवसाय चाहे छोटा ही हो, नौकरी से अधिक फलप्रद और आशाप्रद होता है। दासता में पराधीनता रहती है, इसलिये अपने को दूसरों के अनुकूल बनाने में बड़ा कृत्रिम रूप बनाना पड़ता है। इन बातों को ध्यान में रखिये परिस्थितिवश आप चाहे व्यापार करें या नौकरी, यदि आप उन्नति करना चाहते हैं तो इन बातों को ध्यान में रखिये - १ - किसी के हाथ अपने मामा और अपनी नैतिकता को न वेचिये । चाहे आप नौकरी या व्यापार करते हों करने निकले हों, अपने मनुष्योचित आदर्शों को न भूलिये । नैतिक पतन होते ही मनुष्यता पतित हो जाती है । ऐसा कार्य न कीजिये जो आत्मा के प्रतिकूल हो । धन से सब-कुछ खरीदा जा सकता है, परन्तु किसी भले आदमी की मान मर्यादा नहीं खरीदी जा सकती है । २ - दूसरों की दया कृम पर अवलम्बित न रहिये - दूसरों मे हम भाग्य को भी लेते है । भाग्य से अनौकरी मिल सकती है, अथवा व्यापार के लिये अच्छा अवसर प्राप्त हो सकता है, पर उसके उपयोग में उसकी ( भाग्य की ) सहायता काम नहीं देगी। आत्म-योग्यता से ही अच्छे पद या अच्छे अवसर का लाभ लिया जा सकता है। दूसरों में हम मित्रों और बड़े आदमियों को भी लेते हैं। वे एक सीमा तक ही आप के सहायक हो सकते हैं। यदि आप में आत्म-समर्थता न होगी तो वे परीढ़ नहीं बन सकते । अंग्रेजी मे एक कहावत है कि भगवान् उन्हीं को सहायता देता है जो स्वावलम्बी होते है --'God helps those who help themselves.' एक सुप्रसिद्ध विलायती विचारक (Sir Willam Temple) का यह अनुभवात्मक कथन इस सम्बन्ध में याद रखने योग्य है - "A man that only translates shall never be a poet, nor a painter that only copies, noi a swimmer that swims always with bladder, so people that trust wholly on otheis' chality and without industry of their own will always be poor" ( भावार्थ - ऐसा व्यक्ति जो केवल ग्रन्थों का अनुवाद करता है, कभी कवि अर्थात् मेधावी नहीं हो सकता, ऐसा व्यक्ति जो केवल दूसरों के चित्रो के आधार पर चित्र बनाता है कभी चित्रकार अर्थात् कलाकार नहीं हो सकता, ऐसा व्यक्ति जो केवल वायुगर्भित रबर की थैली के सहारे तैरता है कभी तैराक अर्थात् पारंगत नहीं हो सकता, उसी तरह जो लोग अपने व्यवसाय अर्थात् परिश्रम पर अवलम्बित न होकर केवल दूसरों की सहायता के भरोसे रहते है, वे सदैव दरिद्र अथवा द्रव्य - सकट में ही रहेगे ।) - "काकी प्रभुता नहिं घटी पर घर गये रहीम ।" अतएव स्वावलम्बी बनिये; दूसरों का मुँह न ताकिये; दूसरों का मुँह ताकना श्वान-वृत्ति है। मुँह देखने का आनन्द तभी आता है, जब दोनों ओर से हो अर्थात् कोई आपकी उपयोगिता को देखे और आप उसकी जेब को सच्ची नज़र से देखें । ३ - भूलकर भी संतोष न कीजिये - साधुओं की दृष्टि में 'संतोषः परमं सुखम्' एक अच्छा सिद्धान्त हो सकता है, परन्तु सांसारिक मनुष्य के लिए संतोष करने का अर्थ है जड़ होकर बैठ जाना । जड़ता या स्थिरता कम-से-कम लक्ष्मी को प्रिय नहीं है, वे महाचंचला हैं। उनके साथ दौड़ने पर ही उनका साहचर्य प्राप्त होता है। उसी से आशा बनी रहती है और आशामय जीवन ही सबसे सुखी जीवन है। संतोषी होकर निराशावादी या निराशावादी होकर संतोषी न बनिये । इच्छा शक्ति को प्रबल और चैतन्य रखिये । ४ - भविष्य को देखिये - यदि आप में आशा की एक भी चिनगारी है तो भविष्य को देखिये क्योंकि आज के बाद का प्रत्येक क्षण आपको उसी में बिताना है। उस पर आपका कुछ अधिकार है। और वह आपके बनाने से बन भी सकता है । समय से आगे सोचने-विचारने वाला ही नेता, अग्रगामी माना जाता है। अतएव यदि आप अपने क्षेत्र के नेता बनना चाहते है तो आज से दस वर्ष बाद का कार्यक्रम बनाकर तब चलिये; उसी तरह चलिये जैसे एक स्थान से दूसरे स्थान की रेल यात्रा करते समय आप मार्ग की सारी तैयारी करके और निश्चित स्थान का टिकट लेकर चलते हैं। भविष्य को देखिये, परन्तु अधकारमय भविष्य को नहीं । ५ - समय को पकड़िये -- समय सबसे बड़ा सेठ है । वह एक ऐसा सेठ है जो बड़ी-बड़ी जुल्फें रखकर चलता है और पीछे से खल्वाट है - 'क्वचित् खल्वाट निर्धनः'- कोई गंजा - शायद ही निर्धन मिले। सामने से पकड़ने पर ही वह पकड़ में आता है। उसके पीछे दौड़ने से अवसर हाथ से निकल जाता है और समय के पीछे रहने वाला व्यक्ति बैठकर पछताने के सिवा कुछ नहीं कर सकता । अंग्रेजी में एक कहावत है कि समय ही धन है - Time 1s money. हमारे शास्त्रों में भी महाकाल की बड़ी महिमा गाई गई है । उसका अभिप्राय यही है कि समय बड़ा बली है, उसका सम्मान करना चाहिए। सम्मान स्वागत आगे बढ़कर ही किया जाता है । पीठ पीछे प्रायः निन्दा ही होती है। समय की बलवत्ता इससे सिद्ध होती है कि वह सबको परिवर्तित एवं व्यतीत करता है । वह आयु को भोगता है । काल-स्वामी सूर्य प्रत्येक दिन सबकी आयु का एक भाग लेकर तभी अस्त होता है। जब वह आपसे कुछ लेता है तो बुद्धिमानी इसी में है कि आप भी उससे अपनी आयु का उचित मूल्य लें, अपनी वस्तु को व्यर्थ न जाने दें । अतएव एक-एक घण्टा और एक-एक क्षण को पकड़िये । पकड़ने का अर्थ है प्रत्येक क्षण कुछ-न-कुछ करते रहना । कुछ करते रहने का अर्थ खुराफात करना नहीं, बल्कि कोई-न-कोई उपयोगी कार्य करना । वे क्षण ही आपके लिए मूल्यवान हो जाएँगे। बुद्धिमान् का एक घण्टे का जीवन मूर्ख के सम्पूर्ण जीवन के बराबर माना जाता है, क्योंकि बुद्धिमान् व्यक्ति उस एक घण्टे का उचित उपयोग करना जानता है और करता भी है। अ एक मिनट को भी व्यर्थ व्यतीत न होने दीजिये । आवश्यक कार्यों में 'कभी' की अपेक्षा अधिक महत्त्व दीजिये । दुनिया बड़ी तेजी से भागती है; एक मिनट में वह कहीं-से-कहीं एक दूसरे वातावरण में चली जाती है। अतएव यथासंभव कामों को वादे पर न टालिये । तत्काल करने योग्य कर्मों को तत्काल कीजिये । कल का दिन अपने अनेक भंझटों को लेकर आयेगा, यही मानिये । 'शुभस्य शीघ्रम् ' की नीति को अपनाइये । स्वर्ण - संयोग की प्रतीक्षा न कीजिये । स्वर्ण-संयोग अपने आप नहीं आ सकता । उसका बीज यदि आज बोइयेगा तभी वह कल फला हुआ मिल सकता है । यही प्रकृति का नियम है । 'कल' का विधाता या पिता 'आज' ही निर्बल होगा तो उसका पुत्र 'कल' भी जन्म से निर्बल होगा । भविष्य के भरोसे बैठना मुर्खता है । भविष्य का थोड़ा भाग तो आपको प्रत्येक क्षण और प्रत्ये घण्टे के बाद तत्काल प्राप्त होता है । उसको अपने से दूर न मानना चाहिए और अपने लक्ष्य पर वहीं से चल पड़ना चाहिए जहाँ आप खड़े हैं। एक विद्वान् ने कहा है कि जीवन-यात्रा का मार्ग ठीक वहीं से प्रारम्भ होता है, जहाँ खड़े हैं। भविष्य स्वर्ण अवसर तभी बन सकता है जब कि आप स्वयं उसके लिये तैयार मिलें । इंग्लैण्ड के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री डिज़रायली ने कहा है कि जब अवसर आये तब उसके लिये तैयार मिलना ही मनुष्य की सफलता का गुप्त रहस्य है"The secret of success for a man is to be ready fot his opportunity when it comes.' ." - Disraeli. यह तैयारी आज ही से शुरू करने से पूरी हो सकती है। आग लगने पर आपकुँआ खोदने दौड़ेंगे तो उससे आपका घर नहीं बच सकता । परिस्थिति के पूर्व तैयार रहने ही में बुद्धिमानी है। साधनों का संचय आजही से करने से ठीक अवसर पर उनका उपयोग हो सकता है। अव दूरदर्शी बनिये । आँखें इतनी ऊँचाई पर इसीलिये रक्खी गई हैं कि मनुष्य दूर तक देख सके । -समय को पहचानिये - समय का सम्मान करने के साथ ही उसको पहचानने का भी अभ्यास कीजिये । समय को पहचानना या पढ़ना सरल नहीं है, क्योंकि वह सर्वदा एक-सा नहीं रहता, बदलता रहता है। पंचांग, कैलेण्डर या घड़ी के सहारे नहीं, बल्कि उसके प्रभाव के आधार पर उसकी गति को पहचानिये । कालज्ञ होना एक महान गुण है, इसीलिये प्राचीन विद्वानों को काल-दर्शी या त्रिकालदर्शी कहा जाता था । समय को पहचानकर उसके अनुसार आचरण करने वाला ही सर्व सफल होता है। समय को, परिस्थिति को, शीघ्र पहचानने वाला ही प्रत्युत्पन्नमति होता है। उसको ठीक पहचानकर उसके अनुकूल अपने जीवन में परिवर्तन करना चाहिये । इसका अर्थवादी होना नहीं, बल्कि कालानुवर्त्ती बनना है। समयानुसार विचार करना, व्यवहार करना और कर्म करना, सफलता का साधक होता है। समय को पढ़िये । उसको पढ़ने का मुख्य साधन है आपका विवेक; बाह्य साधन है, अखबार । पञ्चांग से काल- ज्ञान प्राप्त करने की अपेक्षा अखबार से प्राप्त कीजिये ।
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परिवर्तन को स्वीकार कर सहसा सहस्र हिन्दुओ का परित्याग कर दिया जाय ?' इस पर मालवीयजी महाराज का गन्तहृदय उद्वेलित हो उठा और उन्होने अपने बंगले पर काशी के मूर्धन्य पण्डितों को एक सभा बुलायी और सवने एक स्वर से स्वीकार किया और व्यवस्था दी कि बलात् मुसलमान बनाये गये हिन्दुओ को वापस लेने के लिए किसी प्रकार की शुद्धि प्रक्रिया को आवश्यकता नही है - एक मात्र गगाजल और राम नाम पर्याप्त है। मालवीयजी महाराज बहुत थक गये थे, उनके मुंह के पास मैंने कान लगाया तो सुन सका- राम नाम, गंगा जल-चस" " चार-पाच दिन मेहनत करके मालवीयजी ने एक वक्तव्य तैयार कराया । इस वक्तव्य में उन्होंने लिखा कि "धर्म परिवर्तन वन्द होना चाहिए।" "जो जबरदस्ती मुसलमान बनाये गये है और फिर हिन्दू बनना चाहते है, उन्हें फिर हिन्दू समाज में प्रवेश करने की सुविधा मिलनी चाहिए । हिन्दुओ की आत्मरक्षा का प्रवन्ध करना चाहिए।" "स्त्रयं जीवित रहना और दूसरो को जीवित रखना उसका उद्देश्य हो ।" " में अपने हिन्दू माइयो से यह नहीं कहता कि जहा मुसलमान कमजोर या कम हो, वहा वे उन पर आक्रमण करें, पर मै हिन्दुओ को यह अवश्य कह रहा हू कि जहा वे दुर्बल है वहा सवल बनें, जहा उनकी संख्या कम है, वहा वे सफलतापूर्वक अपनी रक्षा करें।" उन्होंने लिखा कि "यदि मुसलमान तथा अन्य जाति या धर्म के माननेवाले लोग हिन्दुओ के साथ शान्ति से रहना चाहते है, तो उन्हें हिन्दुओ के धर्म का आदर करना पडेगा । वे हिन्दुओ के पूजागृहो, मन्दिरो को भ्रष्ट नही कर सकेंगे, और धार्मिक स्वतन्त्रता, जीवन की पवित्रता एवं स्त्रियो के सतीत्व का उन्हें अवश्य सम्मान करना होगा ।" उनका यह भी कहना था कि "हिन्दुओ की तथा अन्य जातियो की राजनीतिक उन्नति कांग्रेस के हाथो में सुरक्षित हो सकती है । पर हिन्दुभो के विरुद्ध साम्प्रदायिक प्रश्नो पर, तथा धार्मिक, सामाजिक और सास्कृतिक उन्नति के प्रश्नो पर अन्तिम निर्णय देने का अधिकार निश्चय ही किसी हिन्दू सस्था को ही है, जो इसकी ओर से बोलने तथा कार्य के लिए प्रतिनिधित्व करती हो ।" उनकी धारणा थी कि "सामाजिक सगठन के आधार पर निर्मित अराजनीतिक संस्थाओं के अभाव ने राष्ट्रीयता के मोर्चे को दुर्बल बना दिया है" १. महामना मालवीयजी वर्थ सैनटिनरी कोमिमोरेशन वाल्युम, पृ० २३२ । ५७२ महामना मदन मोहन मालवीय जीवन और नेतृत्व तथा "खुश करने की राजनीतिक नीति तथा मुस्लिम लीग की असम्भव मागो को जन्म दिया है। " वे चाहते थे कि "अत्मसम्मान और आत्मरक्षा के लिए हिन्दू स्वयंसेवको की संस्थाएं कायम की जायें । हिन्दू हिन्दुओ की रक्षा करें, और मुसलमानो के अत्याचारो का दृढता से मुकाबला करें।" इस वक्तव्य की भाषा बहुत कडी और कडवी थी । इसमें मालवीयजी के अपने सन्तुलन और धैर्य की कमी थी । पर यह वक्तव्य मुस्लिम नेताओं की नीतिरीति तथा कलकत्ता और नोआखाली में किये गये अत्याचारों की प्रतिक्रिया थी । वक्तव्य मूलरूप से रक्षात्मक था, उसका उद्देश्य न तो हिन्दू साम्प्रदायिकता के आधार पर मुस्लिम लीग की तरह को किसी राजनीतिक संस्था को कायम करना था, और न आक्रमणशील हिन्दुत्व को प्रोत्साहित करना था। नोआखाली की प्रतिक्रिया में बिहार में उपद्रव हुए, जिनमे मुसलमानो के जान-माल की बहुत क्षति हुई। उन्हें कष्टो का सामना करना पड़ा । इन उपद्रवो के सम्बन्ध में मालवीयजी का वक्तव्य अवश्य ही महत्त्वपूर्ण होता । पर वे तो नोभाखाली से सम्बन्धित वक्तव्य देने के दो-चार दिन बाद ही इतने बीमार हो गये कि स्वस्थ चित्त से कोई काम करना उनके लिए सम्भव ही नही था । पर सन् १९२३ और सन् १९३१ में इस प्रकार के उपद्रवो के सम्बन्ध में मालवीयजी ने जो कहा था उससे यह स्पष्ट है कि बिहार की घटनाओ ने उन्हें बहुत दुखी किया होगा। अप्रैल सन् १९२३ में उन्होने कहा था - " हिन्दू बलवान् होकर मुसलमानो को तकलीफ दें, ऐसी मेरी स्वप्न में कल्पना नही है ।" उन्होने यह भी कहा था कि " अगर कोई हिन्दू किसी मुसलमान को मुसलमान होने के कारण हानि पहुँचावे, और कोई मुसलमान किसी हिन्दू को हिन्दू होने के कारण दु ख दे, तो हमारी गणना संसार की सम्य जातियों में कभी नही हो सकती ।" अगस्त सन् १९२३ में उन्होने हिन्दू महासभा के अधिवेशन में कहा था - "अपना आचरण ऐसा बना लो कि किसी मुसलमान या किसी ईसाई को बेजा शिकायत न हो।" सन् १९३१ में उन्होने कहा थाः "मैं मनुष्यत्व के सामने जांत पाँत नही मानता । हिन्दू और मुसलमान, इन दोनो में जब तक प्रेम-भाव उत्पन्न नही होगा, तब तक किसी का कल्याण नहीं होगा। वक्तव्य के तीन चार दिन बाद गोपाष्टमी को संध्या समय वे ७-८ मील दूर शिवपुर गोशाला के उत्सव में गये । यह गोशाला उनके प्रयत्न और प्रेरणा से तैयार हुई थी। उत्सव में उन्होने गोरक्षा पर छोटा-सा भाषण किया । विश्वविद्यालय को लौटते-लौटते काफी रात हो गयी। रास्ते में ठण्ड लग जाने से शरीर में पीड़ा हो गयी। एक दो दिन कुछ ख्याल नहीं किया। जब ज्वर का प्रकोप बहुत बढने लगा, तब आयुर्वेदिक औपधियो का प्रयोग शुरू किया। पर दशा विगडती हो गयो । देश की कारुणिक दशा की चिन्ता करते हुए वे बेहोश से हो गये और इस दशा में वे महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम लेते रहे । इस समय भी उनमें इतनी चेतना थी कि जब उनके दौहित्र शिवकुमार ने उन्हें पुरुषसूक्त सुनाते हुए कुछ गलती की, तब उन्होने शिवकुमार जी को रोक कर शुद्ध उच्चारण बताया। इसी तरह जव डाक्टर घाण्डेकर ने रक्त की परीक्षा के लिए रक्त लेने का प्रयत्न किया, तब यह समझ कर कि उन्हें इंजेक्शन दिया जा रहा है, सूई चुभोने से रोक दिया । जव गोविन्दजी ने बताया कि इजेक्शन नही दिया जा रहा है, रक्त निकाला जायगा, तब वे चुप हो गये । इसी तरह जब दशा इतनी बिगडी की ऊर्ध्व-श्वास चलने लगा, तब चिकित्सको ने आक्सीजन देने का निश्चय किया । मालवीयजी को यह बुरा लगा । इस पर उनकी पुत्री मालतीजी ने कहा कि आक्सीजन कोई ऐलोपैथिक दवा नही है, और यदि आप इसका प्रयोग स्वीकार करेंगे तो हम सब को सुख मिलेगा, तो वे राजी हो गये । उर्ध्व - श्वास का प्रकोप बढता गया । ज्वर भी १०५६ डिग्री हो गया । उर्ध्व-श्वास तीन दिन तक चलता रहा । सहसा तापमान १०५६ पर से घट कर १०५ पर आ गया, और उनकी शान्ति गम्भीर होने लगी- श्वास की गति मन्द हो चली । वाबू पुरुषोत्तमदास टण्डन ने, जो वहाँ उस समय उपस्थित थे, कहा - "अब वे जा रहे है ।" 'हरे राम हरे राम' 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' को ध्वनि सब ने ऊँची कर दो। उन्हें शय्या पर से उठा लिया गया, भीतर चौकी पर ले जा कर रक्खा गया। उनके मुख में तुलसीदल और गंगाजल छोडा गया । वहाँ पर गोबर से लिपी भूमि पर अपनी स्वाभाविक शान्तमुद्रा में उन्होने १२ नवम्बर सन् १९४६ को प्राण छोड दिये । शोक और श्रद्धांजलि मालवीयजी के निधन से हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ-साथ सारी वाराणसी में शोक छा गया । विश्वविद्यालय दस दिन के लिए बन्द कर दिया गया। नगर को अन्य शैक्षिक संस्थाएं भी एक दिन के लिए बन्द कर दी गयी । व्यापारियो ने भी उस दिन अपना कारोवार वन्द कर दिया। शवयात्रा में विश्वविद्यालय के अध्यापको, विद्यार्थियों और कर्मचारियो के अतिरिक्त सब जाति और सम्प्रदाय के नागरिको की अपार भीड थी । कांग्रेस और हिन्दू सभा के अतिरिक्त बहुत सम्प्रदायों के प्रतिनिधि भी उसमें शामिल थे । सड़क के दोनो ओर बहुत से नागरिक दर्शनार्थं खडे थे । जब मर्थी गुरुद्वारे के पास पहुँची, तब सिक्खों ने अपने जातीय झंडे से शव का सम्मान किया, रेशमी वस्त्र अर्पण किये और फूलो की वर्षा की । कई घटो के बाद मणिकर्णिका घाट पर विल्व- चन्दन की चिता पर उनका विधिवत् दाहसंस्कार हुआ । काशी में कई दिन तक जनता तथा विभिन्न संस्थाओं की ओर से शोक सभागो मे मालवीयजी को श्रद्धाञ्जलिया अर्पित की गयी। प्रयाग, लखनऊ, कानपुर तथा सुल्तानपुर, बलिया आदि युक्त प्रान्त के नगरो के अतिरिक्त बगलोर, मद्रास, पटना, मुजफ्फरपुर, लाहौर, अमृतसर, नागपुर, आदि नगरो मे भी एक दिन के लिए बाजार बन्द करके शोक सभाए की गयी । देश वे बहुत से प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने मालवीयजी के निधन पर अपनी सम्वेदना के साथ उनके व्यक्तित्व और उनकी सेवाओं के सम्बन्ध में वक्तव्य प्रकाशित किये । उनके निधन पर गाधीजी ने जो उस समय नोआखाली के गाँवो में भ्रमण कर रहे थे, लिखा : मालवीयजी अमर है " प्रारम्भिक योवन से लेकर परिपक्व बुढापे तक परिश्रम ने उन्हें अमर बना दिया है । वे अपने अनुयायियो के सेवक थे समझौते की भावना उनके स्वभाव का अंग था ।" उनका आन्तरिक जीवन पवित्रता का मूर्तिमान था । वे करुणा और कोमलता के निधान थे । धार्मिक ग्रन्थो का उनका ज्ञान वृहद् था । " महात्माजी ने तो सन् १९३१ में एक सदेश में लिखा थाः "आज मालवीयजी के साथ देशभक्ति में कौन मुकाबला कर सकता है । यौवन काल से प्रारम्भ करके आज तक उनकी देशभक्ति का प्रवाह अविच्छिन्न चलता आया है।" पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा "हमें अत्यन्त शोक है कि अब हम उस उज्ज्वल नक्षत्र का दर्शन नहीं कर सकेंगे जिसने हमारे जीवन में प्रकाश दिया, बालकाल से ही प्रेरणा दी तथा भारत से प्रेम करना सिखाया" " डाक्टर राजेन्द्रप्रसाद ने लिखा "एक महान् व्यक्तित्व आज संसार से उठ गया। पंडित, मालवीयजी के काम और उनके नाम से भावी पीढी को यह प्रेरणा मिलेगी कि दृढ भक्ति से मनुष्य के लिए सव कुछ सम्भव है। मालवीयजी १. आज १५ नवम्बर सन् १९४६ ।
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कतर एयरवेज़ कंपनी क्यू.सी.एस.सी. (القطرية, अल कतरिया), जिसे कतर एयरवेज़ के नाम से जाना जाता है, कतर की राष्ट्रीय ध्वजवाहिका वायुसेवा है। यह सेवा विश्व भर के १०० गंतव्यों को अपने दोहा स्थित आधार से जोड़ती है। इसमें १०० विमानों के बेड़े का सहयोग भी है। कतर एयरवेज कंपनी Q.C.S.C., कतर एयरवेज के रूप में काम करती है। यह कतर की एक राज्य के स्वामित्व वाली एयरवेज है । इसका मुख्यालय दोहा में कतर एयरवेज टॉवर में है, एयरलाइन हब और स्पोक नेटवर्क को संचालित करती है, जिससे यह दुनिया भर में १२५ से अधिक अंतरराष्ट्रीय स्थलों जैसे की अफ्रीका, मध्य एशिया, यूरोप, सुदूर पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और ओशिनिया को अपने बेस हमद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से संचालित करती है, और साथ में यह एक १०० से भी अधिक विमानों के बेड़े का उपयोग करती है l कतर एयरवेज २२ नवंबर, १९९३ को स्थापित किया गया था, लेकिन इसका संचालन २० जनवरी १९९४ से शुरू करा गया थाl अम्मान पहले मई १९९४ में परोसा गया थाl अप्रैल १९९५ में, एयरलाइन के सीईओ ७५ वर्षीय जो शेख हमद बिन अली बिन जबोर अल थे। . 6 संबंधोंः एफ सी बार्सिलोना, डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, दोहा अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, २०१८ फीफा विश्व कप, 2017 कतर राजनयिक संकट। फुटबॉल क्लब बार्सिलोना, जिसे आमतौर पर केवल बार्सिलोना या कभी कभी मात्र बार्का के नाम से जाना जाता है, स्पेन के कैटलोनिया प्रांत के बार्सिलोना में स्थित एक पेशेवर फुटबॉल क्लब है। जोआन गम्पेर् के नेतृत्व में स्विस, अंग्रेजी और कैटलन फुटबॉल खिलाड़ियों के एक समूह द्वारा 1899 में स्थापित यह क्लब कैटलन संस्कृति और कैटलन राष्ट्रवाद का प्रतीक बन चुका है और शायद इसीलिए इसका आदर्श वाक्य है- ""Més que un club" (अर्थात् केवल एक क्लब मात्र नहीं)। अन्य फुटबॉल क्लबों के विपरीत इसके समर्थक ही इस क्लब के मालिक हैं और इसका संचलन भी करते हैं। यह क्लब € 483000000 के सालाना कारोबार के साथ विश्व का चौथा और और कुल मूल्य 2600000000 € के साथ दुनिया का दूसरा सबसे धनी फुटबॉल क्लब है। क्लब की रियल मैड्रिड के साथ एक लंबे समय से प्रतिद्वंद्विता है, दोनों टीमों के बीच मैच को एल क्लासिको (एक क्लासिक) के रूप में देखा जाता है। इस क्लब ने 23 ला लिगा (लीग मैच), 27 कोप देल रेय (क्षेत्रीय कप), और 11 सुपेर कोप दे एस्पन (स्पेनी सुपर कप) जीते हैं, तथा अंतरराष्ट्रीय क्लब फुटबॉल में बार्सिलोना ने 5 यूईएफए चैंपियंस लीग, 4 यूईएफए सुपर कप और 3 फीफा क्लब विश्व कप ट्राफियां जीती हैं। 2009 में बार्सिलोना ला लिगा, कोपा डेल रे और यूईएफए चैंपियंस लीग की तिकड़ी एक साथ जीतने वाला पहला स्पेनिश क्लब बना। यह क्लब उसी वर्ष स्पेनिश सुपर कप, यूईएफए सुपर कप और फीफा क्लब विश्व कप कों भी जीतने के साथ ही एक ही साल में छह प्रतियोगिताओं में से छह जीतने वाला पहला फुटबाल क्लब बन गया। . डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, जिसे सोनेगांव हवाई अड्डा भी कहा जाता है, एक नागरिक अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र है, जो कि महाराष्ट्र राज्य के नागपुर शहर के लिए बना है। इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय संविधान लेखक तथा आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के नाम पर रखा गया है। यह विमानक्षेत्र भारत के एक महानगर में स्थित होने के कारण, एक मुख्य विओमानक्षेत्र का कार्य भी करता है, जो भारत की वायु यात्रा को बढ़ावा देने में भी सहायक है। यह विमानक्षेत्र नागपुर शहर को भारत के सभी मुख्य शहरों से जोड़ता है। साथ ही कई अन्तर्राष्ट्रीय गंतव्यों से भीः जैसे शारजाह, दुबई, दोहा, इत्यादि से भी जोड़ता है। . दोहा अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र (مطار الدوحة الدولي) कतर का एकमात्र व्यापारिक/ वाणिज्यिक विमानक्षेत्र है। यहाँ 60 चेक-इन द्वार, 42 पार्किंग बे एवं 8 बैगेज बेल्ट हैं। इस विमानक्षेत्र के कई बार विस्तार के बाद भी अत्यधिक प्रयोग व भार दॄश्य होता है। यहां की वर्तमान क्षमता स्थिति 120 लाख यात्री प्रतिवर्ष है। यहां की उड़ानपट्टी नागर विमानक्षेत्र में विश्व की सबसे लंबी उड़ानपट्टियों में से एक है। यह विमानक्षेत्र कतर एयरवेज़ का मुख्य बेस भी है। कुछ समय पूर्व तक यह विमानक्षेत्र मुख्यतः कतर में तेल एवं गैस कंपनियों के कर्मचारियों द्वारा छुट्टी मनाने जाने व वापस आने के लिये ही प्रयोग किया जाता रहा था। आजकल इस विमानक्षेत्र पर छुट्टी मनाने आने वाले सैलानियों एवं ट्रांज़िट यात्रियों की भीड़ भी मिलती है। कतर एयरवेज़ के विस्तार के साथ-साथ भी यह विमानक्षेत्र बढ़ता जा रहा है। वर्ष २०१० में यह कार्गो ट्रैफ़िक के अनुसार विश्व का 27वां व्यस्ततम विमानक्षेत्र था। यहां का नियंत्रण टावर (कंट्रोल टावर) एवं सहायक भवन कुर्टिस डब्ल्यु. फ़ेन्ट्रेस, FAIA, RIBA, फ़ेन्ट्रेस आर्किटेक्ट्स द्वारा डिज़ाइन की गयी हैं। अभी इस विमानक्षेत्र के विस्तार की योजना २०१३ के मध्य तक की है जब निर्माणाधीन न्यू दोहा अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र आर्म्भ होना संभावित है। यह नया विमानक्षेत्र पुराने वाले से 4 कि.मी दूर स्थित है और इसका क्षेत्रफ़ल 5760 एकड़ (लगभग. 2200 हेक्टेयर) है। यह अपने प्रथम चरण के पूर्ण होने पर 1.5 करोड़ यात्री प्रतिवर्ष की क्षमता वहन कर सकेगा। . इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र भारत की राजधानी एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का प्रधान अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र है। यह नई दिल्ली नगर केन्द्र से लगभग १६ कि॰मी॰(10 मील) दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के नाम पर बना यह भारत का व्यस्ततम विमानक्षेत्र है। ।वेबदुनिया। । नई दिल्ली। रविवार, 13 मार्च 2011(10:53IST। अभिगमन तिथिः २४ नवम्बर २०१२ हवाई अड्डे के नवीनतम टर्मिनल-३ के चालू हो जाने के बाद से ४ करोड़ ६० लाख यात्री क्षमता तथा वर्ष २०३० तक की अनुमानित यात्री क्षमता १० करोड़ के साथ यह भारत के साथ-साथ पूरे दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा और सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापार संबंधी विमानन केन्द्र बन गया है। भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई के छत्रपति शिवाजी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र के साथ इसके आंकड़े मिलाकर देखें तो ये दोनों दक्षिण एशिया के आधे से अधिक विमान यातायात को वहन करते हैं। इस विमानक्षेत्र के संचालक दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (डयल) इसे विश्व का अगला अन्तर्राष्ट्रीय ट्रांज़िट हब बनाने के प्रयास कर रहा है। लगभग ५,२२० एकड़ (२,११० हेक्टेयर) की भू-संपदा में विस्तृत, दिल्ली विमानक्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिये प्राथमिक नागर विमानन हब (केन्द्र) है। सर्वप्रथम इसका संचालन भारतीय वायु सेना के पास था, जिसके बाद उसने इसका प्रबंधन दायित्व भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण को सौंप दिया। मई २००६ से हवाई अड्डे का प्रबंधन दिल्ली अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट लिमिटेड (डायल) के पास आया। डायल जीएमआर समूह के नेतृत्व में एक संयुक्त उद्यम (ज्वाइन्ट वेन्चर) है। डायल ही विमानक्षेत्र के आगे हो रहे विस्तार एवं आधुनिकीकरण के लिये भी उत्तरदायी है। इस निजीकरण का भरपूर विरोध भाविप्रा कर्मचारियों ने किया, किन्तु अन्ततः ३ मई २००६ को यह प्रबंधन स्थानांतरण संपन्न हो गया। वर्ष २००१-१२ में विमानक्षेत्र से ३५८.८ लाख यात्रियों की आवाजाही संपन्न हुई और यहां के विस्तार कार्यक्रम योजना के अनुसार इसकी क्षमता वर्ष २०३० तक १० करोड़ यात्री तक हो जायेगी। यहां के नये टर्मिनल भवन के २०१० के राष्ट्रमंडल खेलों से पूर्व निर्माण के बाद ही इसकी वार्षिक ३४० लाख यात्रियों की क्षमता है। यहां का टर्मिनल-३ विश्व का ८वां सबसे बड़ा यात्री टर्मिनल है। सितंबर २००८ में यहां ४.४३ कि.मी लंबी नयी उड़ानपट्टी (रनवे-३) का उद्घाटन हुआ था। इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र को २०१० में एयरपोर्ट काउन्सिल इन्टरनेशनल द्वारा १५०-२५० लाख यात्री श्रेणी में विश्व का चौथा सर्वोत्तम विमानक्षेत्र, एवं एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सर्वाधिक प्रगति वाला विमानक्षेत्र होने का सम्मान मिला था। वर्ष २०११ में विमानक्षेत्र को इसी परिषद द्वारा पुनः २.५-४ करोड़ यात्री क्षमता श्रेणी में विश्व का दूसरा सर्वोत्तम विमानक्षेत्र होने का गौरव मिला था। यह स्थान कोरिया के इंचेयन अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र के बाद था। इसके अलावा वर्ष २०११ में ही यह विमानक्षेत्र विश्व का ३४वाँ व्यस्ततम विमानक्षेत्र बना जिसकी यात्री आवागमन संख्या ३,४७,२९,४६७ रही एवं पिछले वर्ष के मुकाबले यातायात में इसने १७.८% की बढ़ोत्तरी भी दर्ज की। . २०१८ फीफा विश्व कप (फीफा विश्व कप का 21वां संस्करण) 14 जून 2018 से 15 जुलाई 2018 के बीच रूस में एक अंतर्राष्ट्रीय पुरूष फुटबॉल टूर्नामेंट है। रूस इस प्रतियोगिता की मेज़बानी प्रथम बार कर रहा है। बत्तीस देशों की टीमें फाइनल टूर्नामेंट में भाग लिया। सभी मैच ब्राजील के 12 विभिन्न स्टेडियमों में मैच खेले गए। अर्जेंटीना में आयोजित हुए 2006 विश्व कप के बाद से यूरोप में आयोजित होने वाला यह पहला विश्व कप है। इससे पहले 2014 का टूर्नामेंट जर्मनी ने जीता था। १५ जुलाई २०१८ को २०१८ फीफा विश्व कप का फाइनल है। . अरब प्रायद्वीप जून 2017 में, कई देशों ने सऊदी अरब के नेतृत्व में कतर से अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर दिये हैं। इन देशों ने संकट को समाप्त करने के लिए कतर से राजनयिक संबंध समाप्त किए, क्योंकि कतर आतंकवादी संगठनों का समर्थन करने, आंतरिक मामलों में दखल देने, और ईरान का समर्थन करने के कारण किया गया है। अन्य देशों ने भी इसके साथ संबंधों में कटौती की है, जिसमें बहरीन, मिस्र, यमन (हादी के नेतृत्व वाली सरकार), संयुक्त अरब अमीरात, लीबिया (हाउस के प्रतिनिधियों और सरकार के राष्ट्रीय एकॉर्ड), और मालदीव शामिल हैं। खाड़ी सहयोग परिषद के दो सदस्यों, कुवैत और ओमान ने कतर के खिलाफ सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सदस्यों का साथ नहीं दिया। कुवैत चाहता था कि कोई वार्ता कर के कोई मध्य का मार्ग निकल जाये और दोनों के मध्य तनाव कम हो जाये। ईरान ने भी तनाव कम करने हेतु वार्ता हो, इसका प्रयास किया था। .
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महाराष्ट्र के पुणे में रविवार को पुलिस और वारकरी भक्तों के बीच बहस हो गई। इसके बाद आरोप लगे कि पुलिस ने भक्तों पर लाठीचार्ज किया है। घटना का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। महाराष्ट्र पुलिस ने सड़क हादसों से जुड़ी एक रिपोर्ट साझा की है, जिसमें बताया गया है कि 2023 के शुरूआती 4 महीनों में 4,922 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर के किराडपुरा इलाके में बुधवार रात दो पक्षों में झड़प हो गई। इस दौरान लोगों ने एक-दूसरे पर पथराव किया और कई वाहनों में आग लगा दी। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस ने एक महिला कपड़ों की डिजाइनर अनिक्षा के खिलाफ FIR दर्ज कराई है। महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में 48 वर्षीय पत्रकार शशिकांत वारिशे को थार से कुचलने के मामले में लोगों की नाराजगी बढ़ती दिख रही है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को आतंकी हमले की धमकी भरा ईमेल मिला है। ईमेल में कहा गया है कि तालिबान से जुड़ा एक व्यक्ति जल्द ही मुंबई में हमले को अंजाम देगा। महाराष्ट्र के औरंगाबाद क्राइम ब्रांच के एक सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) पर नशे की हालत में एक महिला के घर में घुसकर उसे छेड़ने और उसके पति और सास को पीटने का आरोप लगा है। महाराष्ट्र के वाशिम जिले में मुगल शासक औरंगजेब की तस्वीर के साथ डांस करने पर सोमवार को आठ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले बढ़ रहे हैं। ताजा मामला महाराष्ट्र के पालघर जिले का है, जहां एक 16 वर्षीय नाबालिग के साथ गैंगरेप हुआ है। सोशल मीडिया ट्रोलिंग बॉलीवुड सितारों के लिए नया नहीं है। हालांकि, बीते कुछ दिनों में ट्रोलिंग ने मानसिक उत्पीड़न और हिंसा का भी रूप ले लिया है। इस साल जून में सलमान खान को जान से मारने की धमकी दी गई थी जिसके बाद उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई थी। महाराष्ट्र के पालघर में गरबा कार्यक्रम में डांस करते समय एक युवक बेहोश हो गया। आनन-फानन में युवक को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने युवक को मृत घोषित कर दिया। महाराष्ट्र के सांगली में पालघर जैसी घटना सामने आई है। वहां बच्चा चोरी करने के शक में भीड़ ने चार साधुओं की बेहरमी से पिटाई कर दी। महाराष्ट्र के पुणे से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक महिला को उसके पति और ससुराल वालों ने खुले में नग्न नहाने के लिए मजबूर किया। महाराष्ट्र के रायगढ़ के समुद्र तट पर एक संदिग्ध नाव मिलने से हलचल मच गई है। हरिहरेश्वर तट पर मिली इस नाव से AK-47 राइफलें और गोलियां बरामद की गई हैं। आयकर विभाग की टीम ने महाराष्ट्र के जालना में स्टील और कपड़ा उत्पादन सहित रियल एस्टेट से जुड़े उद्योगपतियों के ठिकानों पर छापेमारी करते हुए कुल 390 करोड़ रुपये की बेहिसाब संपत्ति जब्त की है। महाराष्ट्र के भंडारा जिले में एक 35 वर्षीय महिला के साथ गैंगरेप का सनसनीखेज मामला सामने आया है। आरोपी रेप के बाद महिला को निर्वस्त्र कर सड़क पर छोड़कर फरार हो गए। भाजपा की पूर्व नेता नुपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल द्वारा पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई विवादित टिप्पणी को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादित टिप्पणी कर सुर्खियों में आईं पूर्व भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा को लगातार धमकियां मिल रही हैं। महाराष्ट्र के नांदेड जिलें में एक महिला द्वारा भूख से बिलखते अपने दो मासूम बच्चों की गला घोंटकर हत्या करने का दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर में दिल दहलाने वाला हादसा हुआ है। गुरुवार रात को डीजल से भरे टैंकर और लकड़ी ले जा रहे ट्रक के बीच हुई आमने-सामने की भिड़ंत के बाद लगी भीषण आग में चालक सहित नौ लोगों की जलकर मौत हो गई। महाराष्ट्र पुलिस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार के खिलाफ आपत्तिजनकर टिप्पणी पोस्ट करने के आरोप में एक और व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार में भागीदार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने को लेकर NCP कार्यकर्ताओं के शनिवार को भाजपा प्रवक्ता विनायक आंबेकर के साथ मारपीट और अभद्रता करने का मामला सामने आया है। महाराष्ट्र के पालघर जिले में स्थित एक स्टील कंपनी के 100 से अधिक श्रमिकों ने अपनी मांगे पूरी नहीं होने को लेकर शनिवार को कंपनी की फैक्ट्री पर हमला बोल दिया। महाराष्ट्र के ठाणे में एक बुजुर्ग के महज नाश्ता परोसने में देरी करने पर अपनी बहू की गोली मारकर हत्या करने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। वारदात के बाद से आरोपी फरार है। 24 Mar 2022केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह से संबंधित मामलों को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को ट्रांसफर कर दिया है। सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये आदेश दिया। महाराष्ट्र पुलिस में कार्यरत महिला पुलिसकर्मियों के लिए बड़ी ही राहत की खबर आई है। महाराष्ट्र के नागपुर में अपने प्रेमी से शादी करने के लिए एक 19 वर्षीय युवती द्वारा अपने ही गैंगरेप की झूठी कहानी रचने का हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। महाराष्ट्र के ठाणे जिले में 15 वर्षीय नाबालिग से गैंगरेप का बड़ा ही हैरान और शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को थप्पड़ जड़ने संबंधी अपने बयान के कारण कानूनी पचड़ों में फंसे केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को पुलिस ने अगले हफ्ते उसके सामने पेश होने को कहा है। महाराष्ट्र के नांदेड़ में कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को रोकने के लिए होला-मोहल्ला जुलूस निकालने की इजाजत नहीं देना पुलिस को भारी पड़ गया। महाराष्ट्र की एक अदालत ने चार वर्षीय मासूम का यौन शोषण करने के मामले में दोषी पाए गए एक 80 वर्षीय बुजुर्ग दंपित को 10 साल जेल की सजा सुनाई है। महाराष्ट्र सरकार ने जलगांव के पुलिसकर्मियों पर लगे लड़कियों से जबरदस्ती स्ट्रिप डांस (कपड़े उतरवाकर डांस) कराने के आरोपों को गलत बताया है। महाराष्ट्र के पालघर में एक प्रेम कहानी का खौफनाक अंत सामने आया है। एक प्रेमी ने उसके साथ घर बसाने का सपना लेकर आई प्रेमिका की न केवल हत्या की, बल्कि पुलिस से बचने के लिए उसे शव को खुद के फ्लैट की दीवार में चुनवा दिया। नागपुर में ऑनलाइन धोखाधड़ी का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। इंटीरियर डिजाइनर को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गिरफ्तार किए गए रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी को अलीबाग की एक अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में बड़ी घटना सामने आई है। सोमवार शाम को यहां पांच मंजिला इमारत की तीन मंजिले भ्रभराकर गिर गई। शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने और परीक्षा में नकल रोकने के लिए विभिन्न राज्यों की ओर से प्रतिवर्ष व्यवस्थाओं पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन कुछ राज्यों में लोग भारी सुरक्षा के बाद भी विद्यार्थियों को नकल कराने से नहीं चूकते हैं। मालेगांव ब्लास्ट की जांच के दौरान वर्तमान में भोपाल से सांसद प्रज्ञा ठाकुर को गिरफ्तार करने के बाद चर्चा में आए 1988 बैच के IPS अधिकारी परमबीर सिंह ने शनिवार को मुंबई के नए पुलिस कमिश्नर की कमान संभाल ली है। महाराष्ट्र के पुणे में एक ढोंगी धर्मगरू द्वारा धार्मिक अनुष्ठान के नाम पर युवती से दुष्कर्म करने और उसकी चार नाबालिग बहनों से छेड़छाड़ करने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। महाराष्ट्र के वर्धा में प्यार के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करने से नाराज युवक द्वारा सात दिन पहले जिंदा जलाई गई एक 24 वर्षीय महिला लेक्चरर ने सोमवार सुबह दम तोड़ दिया। डॉक्टर को भगवान का रूप माना जाता है और लोग बीमार होने पर इसी उम्मीद से उनके पास जाते हैं कि वह उन्हें स्वस्थ कर देंगे। इसी आस्था और विश्वास का फायदा उठाकर कुछ लोग न केवल कमाई करने में जुटे हैं बल्कि उनके स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे की ओर से गत शनिवार को मुंबई की नाइटलाइफ के लिए दुकानें, मॉल और रेस्त्रां को 24 घंटे खोले जाने की घोषणा के बाद राजनीतिक बहस तेज हो गई है। 1993 के मुंबई सीरियल बस धमाकों के आरोप में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा आरोपी डॉक्टर जलीस अंसरी उर्फ डॉक्टर बम गुरुवार को मुंबई से फरार हो गया। महाराष्ट्र के ठाणे में चार व्यक्तियों ने गांजा पीने से रोकने के लिए एक व्यक्ति की हत्या कर दी। सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। महाराष्ट्र में 10 वर्षीय लड़की के साथ महीनों बलात्कार और उसके गर्भवती होने का मामला सामने आया है।
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कहा गया है कि ये लक्षण यदि म्लेच्छ में भी मिलते हैं, तो वह भी शिवस्वरूप ही माना जाता है। यहाँ भक्ति की प्रधानता मानी गई है। भक्ति के लक्षणों और भेदों को बताकर उसकी महिमा बताई गई है। शिवयोगियों की चर्या और उनकी महिमा भी वर्णित है। शिवधर्म के ज्ञान, क्रिया, चर्या और योग नामक चार मार्गों का स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि इस शिवमार्ग का अनुसरण शिवज्ञान की प्राप्ति के लिये आवश्यक है। पंचाक्षर मन्त्र की इसमें सर्वोपरि उपयोगिता है। चन्द्रज्ञानागम (१.१.१०-१३) और कूर्मपुराण (२.१-११) में स्थित ईश्वरगीता के ६-७ अध्यायों की पद्धति से यहाँ पति, पशु और पाश का स्वरूप वर्णित है और बताया गया है कि त्रिविध पाशों के छेदन के लिये वीरशैव-दीक्षा आवश्यक है। जीवों की श्रेष्ठता का क्रम बताते हुए कहा गया है कि शिवनाम का स्मरण पाशों को काटने का सर्वोत्तम उपाय है। इसके लिये श्रद्धा अपेक्षित है। श्रद्धा के रहने पर ही भक्ति का उदय होता है और भक्तिसम्पन्न व्यक्ति ही वीरशैव-दीक्षा का अधिकारी बन पाता है। इस प्रकार यहाँ कर्म, ज्ञान और भक्ति का निरूपण कर अन्त में सभी प्रकार के शैवों के लिये पालनीय सामान्य सदाचार तथा वीरशैवों के लिये विशेष सदाचारों का निरूपण किया गया है। तेरहवें पटल में प्रधानतः करपंकज पर इष्टलिंग की पूजा का विधान वर्णित है। प्रथमतः यहाँ अन्य पीठों की अपेक्षा पाणिपीठ की विशेषता बताई गई है। पाणिपीठ का स्वरूप बताते हुए यहाँ कहा गया है कि हाथ की पांच अंगुलियों में पंचब्रह्म और पंचाग्नि की भावना करनी चाहिये । पाणिपीठ की कमल के रूप में भावना कर उसमें समस्त देवताओं और शास्त्रों की भावना का विधान बताकर इस करपंकज में इष्टलिंग की पूजा का क्रम, पालनीय नियम और उनकी महिमा बताई गई है। इष्टलिंग के अभिषेक का, उसके लिये आवश्यक पात्रों का और अभिषेकार्ह जल का विधान बताकर अभिषेक के बाद की पूजा के क्रम को बताते हुए कहा गया है कि इष्टलिंग की पूजा करते समय शिवभक्त को बीच में उठना नहीं चाहिये। करपीठ पर इष्टलिंग की पूजा का अनन्तगुणित फल मिलता है, इतना बताकर यहाँ कहा गया है कि पूजा का क्रम गुरुमुख से ही जानना चाहिये। इस करपीठ में सभी देवता और तीर्थ निवास करते हैं (१३.७३), यह बताकर यहाँ पटल समाप्ति पर्यन्त विस्तार से पाणिपंकज पर पूजा की महिमा गाई गई है। चौदहवें पटल में दो विषय मुख्यतः वर्णित हैं- एक तो अष्टबन्ध (स्थावर) लिंग का लक्षण और दूसरे गुरु की उपासना का क्रम। पंचसूत्र-प्रमाण लिंग का विधान पहले भी बताया जा चुका है। उसी का यहाँ पुनः निरूपण हुआ है। साथ ही यहाँ लिंग के सखंड, अखंड आदि भेदों का स्वरूप बताकर कहा गया है कि अपनी योग्यता के अनुसार इनकी उपासना करनी चाहिये। भक्ति का इसमें विशेष स्थान है। इष्टलिंग के प्रमाण को और उसके धारण करने की विधि को बताकर यहाँ कहा गया है कि धारित लिंग के नष्ट हो जाने पर उसका प्रायश्चित्त करना पड़ता है। पूजोपयोगी पात्रों का तथा शिवपात्र का लक्षण बताकर कहा गया है कि इन पात्रों में तीर्थों का आवाहन करना चाहिये। बिना आधार के पात्रों का पूजा में उपयोग वर्जित है, अतः यहाँ इन आधारों की भी चर्चा की गई है। इतना बता देने के बाद यहाँ पाणिलिंग की पूजा के नियम वर्णित हैं। कामना के अनुसार पूजा की दिशा का भी यहाँ निर्देश है। इष्टलिंग के निर्माण और पूजा का सारा विधान बताने के बाद यहाँ कहा गया है कि गुरु और देवता की अभिन्न रूप में भावना करनी चाहिये। इसके बाद सद्गुरु के स्मरण, पूजन, ध्यान आदि का विधान बताकर श्रीगुरु की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। सद्गुरु की उपासना से संबद्ध यहाँ के कुछ श्लोक गुरुगीता में भी उपलब्ध हैं। पन्द्रहवें पटल में वीरशैवों के त्रिविध भेदों का निरूपण है। यहाँ देवी भगवान् से अन्य मतों की अपेक्षा वीरशैव मत की अपनी विशेषताओं के विषय में प्रश्न करती है। भगवान् देवी के इस प्रश्न की प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि वीरशैव मत के रहस्य को न जानने वाले मनुष्य इस संसार में ही डूबते-उतराते रहते हैं। वीरशैव मत की विशेषताओं को बताते हुए वे पहले वीरशैवों के अधिकार-भेद से होने वाले जिन तीन भेदों का उल्लेख करते हैं, वे हैं- सामान्य वीरशैव, विशेष वीरशैव और निराभारी वीरशैव २०। बाद में यहाँ क्रमशः इन तीनों के लक्षणों का विस्तार से निरूपण हुआ है। इसके बाद कहा गया है कि इष्टलिंग के नष्ट हो जाने पर निराभारी वीरशैव को प्राणत्याग कर देना चाहिये। निराभारी व्रत को स्वीकार कर उसको छोड़ देने वाला पाप का भागी होता है और इसका पालन करने वाला शिवस्वरूप को प्राप्त कर सदा आनन्दसागर में लीन रहता है। इसीलिये निराभारी के लिये पालनीय नियमों का इस पटल के अन्तिम भाग में विस्तार से वर्णन है। सोलहवें पटल के प्रारंभ में षड्विध लिंगों का वर्णन है। भगवती पारद आदि से निर्मित लिंगों के विषय में प्रश्न करती है और भगवान् प्रश्न का उत्तर देते हुए स्थिर, चर, स्थिरचर, चरस्थिर, स्थिरस्थिर और चरचर नामक छः प्रकार के लिंगों का निर्देश करते हैं। यहाँ पंचविध लिंगों का तो नामोल्लेखपूर्वक वर्णन मिलता है, किन्तु स्थिरस्थिर नामक लिंग का विवरण उपलब्ध नहीं होता। ऐसा लगता है कि "चराचरात्मकं विश्वम्" (१६.२१-२२) इत्यादि श्लोकों में लिंगतत्त्व के रूप में उसीका वर्णन हुआ है। इस प्रकार षड्विध लिंगों का निरूपण कर यहाँ बताया गया है कि प्रपंच (जगत्), लिंग और देह में साधक को कोई भेद नहीं करना चाहिये। आगे संक्षेप में निराभारी की चर्या को बताकर पुनः पंचसूत्र-प्रमाण लिंग की संक्षिप्त चर्चा है। अलग-अलग रंग के शिवसूत्र (दोरक) का अलग-अलग फल होता है, यह बताकर आगे कहा गया है कि समर्थ व्यक्ति ही निराभारी वीरशैव व्रत में प्रवेश करे। निराभारी के द्वारा पालनीय नियमों का विस्तार से वर्णन करने के बाद यहाँ कहा गया है कि इसके लिये सबसे कठिन व्रत यह है कि इसको इष्टलिंग के नष्ट हो जाने पर देह त्याग करना पड़ता है। यह किसी की अगवानी नहीं करता, किसी को प्रणाम नहीं करता। ऐसे निराभारी शिवयोगी की सेवा-शुश्रूषा अनन्त फलदायक मानी गई है। इस निराभारी शिवयोगी की पर्यन्तावस्था में प्रकट होने वाले लक्षणों का भी यहाँ वर्णन किया गया है और कहा गया है कि इनका पूजन करने वाले को अनन्त सुख की प्राप्ति होती है। पटल के अन्त में तुर्यवीर व्रत की प्रशंसा की गई है। २०. इन त्रिविध वीरशैवों का निरूपण सूक्ष्मागम (७.३०-७९) तथा चन्द्रज्ञानागम (१.१०.३५-४८) में भी मिलता है। चन्द्रज्ञानागम (१.१०.४२-४४) में स्वतन्त्र और वैदिक के रूप में निराभारी के भी दो भेद किये हैं। सत्रहवें पटल में वीरशैव ब्राह्मण की दिनचर्या निरूपित है। अनादि और आदि मत को छोड़कर यहाँ शेष शुद्धशैव आदि पांच मतों का स्वरूप बताकर तुर्य वीरशैव की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए शैवागम-संमत ३६ तत्त्वों का २१ निरूपण किया गया है। विरक्त शैवों के दस गुणों का परिगणन भी यहाँ (१७.३३-३४) किया गया है। देवी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् शिव शैवों के द्वारा प्रति दिन संपादनीय कार्यों (आह्निकों) २ का निरूपण करते हुए स्नानविधि, भस्मनिर्माणविधि, भस्मधारणविधि, भस्ममहिमा, रुद्राक्षमालाधारण, पाणिपीठ पर इष्टलिंग पूजन, विरक्त शिवयोगी के लिये भिक्षाटन के नियम आदि का स्वरूप बताते हैं और कहते हैं कि देहपात पर्यन्त शिवयोगी वीरव्रत का पालन करता रहे। वीर माहेश्वरों के पांच यज्ञों२३ का भी यहाँ निरूपण किया गया है और अन्त में इनके आठ विशेष लक्षणों को बताते हुए कहा गया है कि इन लक्षणों से सम्पन्न २४ म्लेच्छ भी भगवान् शिव को अतिप्रिय है। अठारहवें पटल में निर्याण याग का विधान है, जो कि वैदिक वाङ्मय में पितृमेध के नाम से वर्णित है। जब शिवभक्त यह समझे कि मेरा अन्तकाल निकट है, तो उस समय उसे क्या करना चाहिये, इस विषय को बताकर कहा गया है कि देह से प्राण का उत्क्रमण हो जाने पर शिष्य अथवा पुत्र उसका और्ध्वदेहिक कृत्य करे, विमान द्वारा मृतदेह को समाधि स्थल पर ले जाय। यहाँ मृत देह के संस्कार के लिये बनाये जाने वाले गर्त (समाधि) की निर्माण विधि का और उसमें शव के निक्षेप का पूरा विधान विस्तार से बताया गया है। पत्नी के सहगमन की विधि का भी यहाँ वर्णन है। संस्कार-स्थल पर समाधि बनाने, वहाँ प्रारंभ में मृत्तिका-लिंग की तथा बाद में उस स्थल पर शिवालय के निर्माण की और पूजनक्रम की विधि को बताने के साथ समाधिस्थल की पूजा का स्थायी प्रबन्ध करने का भी निर्देश मिलता है। लिंग-मुद्रा से अंकित वृषभ के उत्सर्ग की विधि का तथा निर्याण याग में दीक्षित व्यक्ति के कर्तव्यों का भी निरूपण कर यहाँ बताया गया है कि अपनी शक्ति के अनुसार समाधि स्थल पर बगीचा लगाना चाहिये। निर्याण याग के अनुष्ठान के फल का वर्णन करने के साथ यहाँ कार्तिक मास के में करणीय विशेष कृत्यों का भी निरूपण किया गया है। वापी, कूप, तटाक आदि के निर्माण का तथा दीप प्रज्वालन का भी विधान यहाँ प्रदर्शित है। २१. यहाँ (१७.२९-३३) परिगणित तत्त्वों की नामावली कुछ भिन्न प्रकार की है। २२. इस विषय का विस्तार चन्द्रज्ञानागम क्रियापाद एकादश पटल, मकुटागम क्रियापाद द्वितीय पटल तथा कारणागम तृतीय पटल में देखिये। मनुस्मृति (३.७०-७२) के अनुसार ब्रह्मयज्ञ (स्वाध्याय), पितृयज्ञ (तर्पण-श्राद्ध), देवयज्ञ (होम), ये पंचयज्ञ के नाम से प्रसिद्ध हैं। भूतयज्ञ (बलि-वैश्वदेव) और नृयज्ञ (अतिथिपूजन) - सिद्धान्तशिखामणि (९.२१-२५) आदि वीरशैव मत के ग्रन्थों में तप, कर्म, जप, ध्यान और ज्ञान की पंचविध शिवयज्ञ के रूप में मान्यता है। मकुटागम में (१.२.३९) मनुस्मृति-संमत तथा प्रस्तुत आगम में (१२.१३-१९; १७.८०-८२) वीरशैव मत-संमत पंचयज्ञों का विधान है। सूक्ष्मागम (६. २६-३५) में भी इन्हीं का प्रतिपादन हुआ है। शिवपुराण वायवीय संहिता के उत्तर भाग (१०. ४८-५४) में ये पाशुपत व्रत के रूप में चर्चित हैं। पाशुपत मत के ग्रन्थों में इनका क्रियालक्षण योग में अन्तर्भाव है। २४. ऊपर की १९ संख्या की टिप्पणी देखिये। उन्नीसवें पटल में विशेषतः सिद्धिदिवस (मृत्युतिथि) पर किये जाने वाले कर्तव्यों का निरूपण है। गुरु-शिष्य परम्परा की व्याख्या करते हुए यहाँ बताया गया है कि यह परम्परा निरन्तर चलती रहती है, अतः आज का शिष्य ही कल गुरु कहलाने लगता है। विभिन्न गतियों का निरूपण करते हुए यहाँ कहा गया है कि गुरु के ऋण से मुक्ति पाने के लिये उसे अपने पूर्वजों की समाधि-स्थली पर मण्डप आदि का निर्माण कराना चाहिये, जिससे कि सामान्य जन को भी उचित सुविधा मिले। बिना जातिभेद के सबको समान समझ कर उनकी सहायता करनी चाहिये। समर्थ व्यक्ति ही यह सब कर सकता है। असमर्थ व्यक्ति के लिये भी उसके शारीरिक श्रम से सम्पन्न होने वाले परोपकार के कार्यों का वर्णन किया गया है। नारी के लिये बताया गया है कि वह अपने पति की समाधि की यावज्जीवन पूजा करे। पिता, गुरु आदि की मृत्युतिथि पर किये जाने वाले धार्मिक कृत्यों को बताकर यहाँ कहा गया है कि ये सब कार्य पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ करने चाहिये। व्यक्ति यहाँ जो कुछ भी अच्छा या बुरा करता है, उसमें करने वाला, कराने वाला, प्रेरणा देने वाला और उसका अनुमोदन करने वाला- इन चारों की समान भागीदारी रहती है। अतः व्यक्ति को भले काम में स्वयं भी लगना चाहिये और दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिये। समाधि स्थल पर दान की महिमा को बताते हुए कहा गया है कि यहाँ विद्वानों को बसाना चाहिये। विधवा स्त्री के कर्तव्यों के निरूपण के साथ यह पटल समाप्त होता है। बीसवें पटल में दीक्षाभेदों का विधान निरूपित है। देवी प्रश्न करती है कि अनुशैव आदि छः प्रकार के शैवों की दीक्षा एक सरीखी है या इनमें परस्पर अन्तर है ? प्रश्न का समाधान करते हुए शिव कहते हैं कि अनधिकारी व्यक्ति को दीक्षा नहीं देनी चाहिये। दीक्षा के अधिकारी का लक्षण बताते हुए वे कहते हैं कि अनुशैव आदि छः प्रकार के शैवों को एककलशा दीक्षा दी जाती है। इसके साथ वीरशैव मत में प्रवेश के अधिकारी का लक्षण विस्तार से बताकर कहा गया है कि सामान्य वीरशैव और विशेष वीरशैव को त्रिकलशा दीक्षा और तुर्य (निराभारी) वीरशैव को पंचकलशा दीक्षा दी जाती है। इनके स्वरूप का संक्षेप में उल्लेख करने के साथ यहाँ कहा गया है कि तुर्य वीरशैव विधि और निषेध से ऊपर उठ जाता है। तुर्य वीरशैव की चर्या की और इष्टलिंग के नष्ट हो जाने पर उसके देहत्याग की पुनः यहाँ चर्चा की गई है। अष्टांग मैथुन के त्याग और दीक्षांग होम की विधि के प्रदर्शन के बाद तुर्य वीरशैव के स्वच्छन्द विचरण का यहाँ उल्लेख है। आगे देवी के प्रश्न के उत्तर में शिव कहते हैं कि योग्यतासम्पन्न व्यक्ति को व्युत्क्रम से भी दीक्षा दी जा सकती है, किन्तु सामान्यतः इन दीक्षाओं को क्रम से ही देना चाहिये। अन्त में यहाँ इन सभी दीक्षाओं की अपनी-अपनी विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। इक्कीसवें पटल में ज्ञानयोग का निरूपण है। देवी ज्ञानयोग के विषय में प्रश्न करती है और उसके उत्तर में भगवान् शिव कहते हैं कि इसी तरह का प्रश्न पहले वटपत्रशायी भगवान् कृष्ण ने मुझसे किया था। उस समय मैंने उनको जो उत्तर दिया.
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रसों का राशीकरण जहाँ तक देखने-सुनने मे ग्राया, और विद्वानो से पूछने पर जान पड़ा, इस विषय पर किसी ग्रन्थकार ने विचार नहीं किया, कि यह सब रस सर्वथा परस्पर भिन्न और स्वतन्त्र हैं, अथवा इन का राशीकरण हो सकता है, 'परा' 'अपरा' जाति के सम्बन्ध के अनुसार । किसीकिसी ने रसों की संख्या घटाने चढ़ाने का यत्न तो किया है । यथा, 'वात्सल्य' रस दसवाँ है, ऐसा कोई मानते हैं । परमेश्वर की, अथवा किसी भी इष्टदेव की, नवधा 'भक्ति' के रस को भी अलग मानते हैं । कोई कहते हैं कि सब रस चमत्कारात्मक 'अद्भुत' के ही भेद है । पर विद्रलोकमत ने नौ को ही मान रक्खा है, और जो नये बताए जाते हैं, उन का वह इन्हीं मे इधर-उधर समावेश कर लेता है। पर इन नौ का जन्म कैसे ; एक से दो दो से चार, इत्यादि क्रम से, पर वापर 'सामान्यों' की, ये नौ 'ग्रपर' जाति या 'विशेष' सन्तान है या नहीं ? इन प्रश्नो पर विचार नहीं मिलता । और बिना 'विशेष' र 'अपरा जातियां' को 'सामान्य' की कवार मे संग्रह किये, चित्त को सन्तोष नहीं, शास्त्र मे शास्त्रता नहीं । यहा भूतपृथग्भावम् एकस्थम् अनुपश्यति, तत एव च विस्तारं, ब्रह्म सम्पद्यते तदा । (गीता ) पृथक्ता को एकता में स्थित, एकता को पृथक्का मे विस्तृत, जब पुरुष जान लेता है, तब उस का वह्म, अर्थात् वेद, अर्थात् ज्ञान, संपन्न, संपूर्ण, होता है, तथा तब पुरुष, अर्थात् जीव, चूह्ममय, ब्रह्मरूप, निष्पन्न हो जाता है । इस लिये इस प्रश्न पर विचार करना उचित है । 'रस' पदार्थ सब नौ रसों का 'सामान्य' स्पष्ट ही है । 'रस' के स्वरूप की भी मीमांसा करने से स्यात् पता चले, कि इस एक से सद्यः नौ की पृथक्-पृथक् उत्पत्ति हुई, अथवा एक से दो या तीन, और दो या तीन से चार या छः या नौ, इस क्रम से 'परा अपरा जाति और 'विशेष' के रूप से जन्म हुआ । 'रस' का मुख्य ग्रथं 'जल' 'द्रव' है । 'रस' का अर्थ सहस्रगुणम् उत्स्रष्टुम् श्रादत्तं हि रसं रविः । (रघुवंश ) जैसे सूर्य, जो 'रस', जल, पृथ्वी पर से सोखता है, उस का सहस्र गुना वर्षा काल मे लौटा देता है, वैसे सच्चा सदाचारी राजा, जो बलि, कर, प्रजा से लेना है, उस सत्र को उसी प्रजा की भलाई के लिये प्रजा पर ही व्यय करता है, अपनी आरामतलवी और ऐयाशी बदमाशी मे नहीं । मरकोषं मे जल के पर्यायों में 'धन-रस' है। ग्राम का रस; ईख का रस; पान का रस, अनार, अंगूर, नारंगी आदि का रस - यह सब उस के 'विशेष' है । रसक 'आस्वादन', चपण, ( फारमो मे 'चोइन' ), धीरे धीरे 'चखने' से, जो 'अनुभव' हो, उस को भी 'रस' कहते हैं । यदि भूखा बच्चा जल्दी-जल्दी श्रम खा जाय, तो उस को 'स्वाद' तो अवश्य ग्रावेगा ही, पर, भूख की मात्रा अधिक और स्वाद की मात्रा कम होने से, 'रस' नहीं, आवेगा । खा चुकने पर, जब उस के मुँह पर मुस्कुराहट और आँखों मे चमक देख पड़े, और वह कहे कि 'बढ़ा मीठा था', तब जानना चाहिये कि उस को 'रस' आया । खाते वक्त भी, कवलों को जल्दी जल्दी निगल न जाय, एक-एक लुक्रमे को ज़बान पर देर तक रख कर, चुभला कर, चना कर, चर्वण कर, उस का जायका ले र पहिचाने और कहे कि इस का ऐसा और उमदा ( या खराव ) जायका है, तो भी उस को 'रस' ( या कु-रस' ) ग्रा रहा है } ऐसे ही, दो मनुष्य, क्रोध मे भरे, एक दूसरे पर खनों से प्रहार कर रहे हों, तो दोनो का 'भाव' रौद्र वश्य है, पर उन को रौद्र का, 'रस' नहीं रहा है; किन्तु, यदि एक मनुष्य, दूसरे को गहिरा (गभीर) घाब पहुँचा कर काम करके, ठहर जाय और कहे - 'क्यों, और लड़ोगे, फिर ऐसा करोगे, तो समझ गए न ?', तो उस को रौद्र 'रस' ग्राया, ऐसा जानना चाहिये । दो लड़के कुश्ती लड़ते हैं; शोर करते हुए, हाँफते हुए, दाँत पीस कर, एक दूसरे को गिरा देने, हरा देने, के जतन मे तन मन से लगे हैं; उन को. 'वीर-रस' नहीं, 'वीर-भाव' है । पर एक लड़का दूसरे को पटक कर अलग खड़ा हो जाता है, और कहता है, 'क्यों, कैसा 'भाव' और 'रस' का भेद पटका'!; अब इस को 'वीर-रस' या दूसरे को लज्जा या क्रोध का 'भाव' हुआ; लड़ते समय दोनो को 'वीर-भाव' था; लेकिन अगर, गर, लड़ते वक्त भो, बीच बीच मे, मुस्कुराते हुए, एक दूसरे से कहें कि, 'देखो, अच तुमको पटकता हूँ', तो उस समय उन को 'वीर रस भी रहा है । किसी दुःखी दरिद्र को देख कर किसी के मन मे करुणा उपजे और उस को धन दे, वा अन्य प्रकार से उस की सहायता करे, तो दाता को करुणा का, दया का, दुःखी के शोक मे अनुकंर्पा, अनु-क्रोश, अनु शोक, ( हम्-दर्दी, अंग्रेज़ी 'सिम्-पैथी' ) का 'भाव' हुआ, पर 'रस' नहीं आया; यदि सहायता कर चुकने के बाद उस के मन में यह वृत्ति उठै - 'कैसा दुःखी था, कैसा दरिद्र था, कैसा कृपापात्र था', तो जानना कि उस को करुण रस आाया । महापुरुष की कथा को सावधान सुनना, और उस के प्रति भक्ति का 'भाव' उपजना भी, 'रस' नहीं; पर मन में यह वृत्ति उदित होना कि 'वाह, कैसे लौकिक उदार महानुभाव चरित हैं, इनके सुनने से हृदय मे तत्काल कैसी उत्कृष्ट भक्ति का संचार होता है, कैसे सात्विक भाव चित्त मे उदित होते हैं ' - यह, बहुमान और भक्ति से संबद्ध - 'अद्भुत रस' का ग्राना है । किसी को किसी दूसरे से किसी विषय मे तीव्र ईर्ष्या, मत्सर, का 'भाव' उत्पन्न हो, पर उस के वश हो कर वह कोई अनुचित कार्य न कर बैठे, और उस भाव की वर्त्तमानता मे ही, अथवा उस के हट जाने या मंद हो जाने पर, अपने से या मित्रों से कहे - 'कैसा दुर्भाव था, क्या-क्या पाप करा सकता था', तो जानना कि उस को, ईर्ष्या से सम्बद्ध, मनुष्य के चित्त की विचित्रता, 'अद्भुतता' का 'रस' या; अथवा यदि चित्त की क्षुद्रता पर अधिक ध्यान गया, और 'ग्लानि' का, 'निवेद' का, भाव बढ़ा, तो वैराग्य और 'शांत' रस वै। पहलवान अपनी भुजा को देखता, ठोंकता, और प्रसन्न होता है, अपने बल का 'रस' लेता है । सुंदर स्त्री पुरुष अपने रूप को 'दर्पण' मे ('दर्पयति इति दर्पण ) देखकर आनंदित होते हैं, 'मै ऐसा रूपवान्, ऐसी रूपवती, हूं', अपने रूप का 'रस' लेते हैं। ऐसे दर्प के भाव से सम्बद्ध तीन 'रस' कहे जा सकते हैं; 'श्रृंगार' ( 'मदन' का एक नाम 'कं-दर्प' भी है ), 'सुख-दुःख' थौर 'आनन्द 'हास्य' ( अपनी श्रेष्ठता पर. प्रसन्न होने से ), और 'वीर' भी ('इस विषय मे मैं ने दूसरों को दबा दिया है, मेरे मुक्काविले का कोई नहीं है'; "भुवनत्रयसुभ्र वां, सौ, दमयन्ती कमनीयता मदं, उदियाय यतस् तनुश्रिया, दमयन्तीति ततोऽभिधां दधौ" ( नैषध ), विदर्भ के राजा भीम की बेटी का ( जिस का विवाह निषध के राजा नल से हुआ ) नाम 'दमयन्ती' हुआ । क्यों ? इस लिये कि जन्म लेते ही उस ने अपने सर्वोत्कृष्ट सौन्दर्य से तीनो लोकों की सुन्दर से सुन्दर स्त्रियां के, कमनीयता सुन्दरता के, मद का, अभिमान का, दमन कर दिया । 'मद', 'गर्व', 'दर्प' ही, 'वीर-रस' का 'भाव' है; और वह कई प्रकार का होता है, ऐश्वर्य-मद् बल-मद, रूप-मद, धन-मद, विद्या-मद, ग्राभिजात्य-मद ( ऊंचे कुल मे जन्म का ), इत्यादि । जैसे बच्चे तीती वस्तु को चीख कर 'सी-सी' करते हैं चीखना चाहते हैं, अर्थात् यदि यति मात्रा मे तीतापन नहीं है तो उस मे दुःख मानते हुए भी सुख मानते हैं, सो दशा साहित्य के उन रसों की है जिन के 'भाव' - यथा भय, बीभत्स, आदि- 'दुःख'- द भी हैं, पर उन के 'स्मरण' मे ('सुख' मय नहीं तो 'ग्रानंद' - मय, 'रस' उठता है। 'ग्रानन्द' और 'सुख' में सूक्ष्म भेद है । क्यों सुख मे भी जीवात्मा को 'आनन्द मिलता है, और दुःख से भी ( सुख नहीं ) 'ग्रानन्द' मिलता है, तथा भयानक और बीभत्स आदि कथाओं में क्यों 'रस' मिलता है - इस का विस्तार से विचार करने का यत्न, 'दि सायंस श्राफ दि इमोशन्स' नाम की अंग्रेज़ी मे लिखी पुस्तक मे, मै ने किया है। थोड़े मे, 'मै हूँ', आत्मा को अपने अस्तित्व का अनुभव करना ही, 'ग्रानन्द' है। परमात्मा, सब सान्त भावों का, 'विद्या' द्वारा निषेध कर के, 'मै मैं ही हूँ, मै से अन्य कुछ भी नहीं हूँ', इस अनन्त 'आनन्द' का सदा एकरस खंड स्वाद लेता है। जीवात्मा, 'विद्या' द्वारा सान्त भावों कोढ़कर, 'मै यह शरीर हूँ', शरीर की सभी अवस्थाओं और क्रियाओं से अपने अस्तित्व का अनुभव करता है, चाहे वह अवस्था या क्रिया सुखमय हों या दुःखमय हों; बल्कि, दुःख मे अपने अस्तित्व का अनुभव तीव्र हो जाता है; प्रसिद्ध है कि सुख का वर्ष दिन बराबर, दुःख का 'बुद्धिपूर्वक भावों का श्रास्वादन' दिन वर्ष बरावर । तत्रापि, काम-क्रोध यादि क्षोभात्मक भावों मे अपने अस्तित्व का अनुभव अधिक तीक्ष्ण होता है । 'काममयः एवायं पुरुपः', 'चित्तं वै वासनात्मकम्', 'काममयः', 'इच्छामयः', इच्छान्तर्गत - सर्वप्रका रक-काम-क्रोध-लोमादि-प्रेम-मैत्री-त्यागादि-मयः जीवात्मा' । अत एव, इच्छा, वासना, तृष्णा, के क्षय से मोक्ष अर्थात् परमात्म-भाव सिद्ध होता है । सुख दुःख दोनो से ( विशेष अर्थ मे ) 'ग्रानन्द' होता है; ( "जो मज़ा इन्तिज़ार मे देखा, वो नहीं वस्लि यार मे देखा "; . ( " विपदः सन्तु नः शश्वत् तत्र तत्र, जगद्गुरो !, भवतो दर्शनं यत् स्याद् पुनर्भवदर्शनं" ) कुन्ती ने कृष्ण से कहा, हे जगद्-गुरो, हमारे ऊपर विपत्ति पर विपत्ति पड़े, यही अच्छा है, क्योंकि, तत्र हम आप को सच्चे हृदय से याद करेंगे, और का दर्शन पायेंगे. जिस के पीछे, फिर से, भव का, जनन-मरण का दर्शन न होगा । काव्य मे 'भयानक' 'बीभत्स' यदि केवन से आनन्दात्मक सृहणीय 'रस', दो प्रकार की विरुद्ध प्रकृतियों के, तवीयतों के, लोगों को उठता है, और वे उस को शौक़ से, ज़ौक़, जायके, रस, से, मन्त्रिपूर्वक, सुनते पढ़ते है । एक क़िस्म वह जो अपने मे भयकारक बीभत्सोत्पादक बलवान् की सत्ता का 'स्मरण', वाहन, कल्पन, कर के, वह रस चलते हैं जो खल को अपने बल का प्रयोग, दुर्बलों को पीढ़ा देने के लिये करने से होता है, विद्या विवादाय, धनं महाय, शक्लिः परेषां परिपीड़नाय, खलस्य; साधोर् विपरीतम् एतत्, ज्ञानाय, दानाय, च रक्षणाय । दूसरी प्रकृति के लोग, पीड़ित, भयभीत, बीभत्सित के भाव का, अपने मे उद्भावन चिंतन कर के, उस के साथ अनुकम्पा के करुण रस का, और दुट के ऊपर क्रोध घृणा आदि के रस का, यास्वादन करते हैं, और सचमुच दुःखी इस लिये नहीं होते, कि निश्चय से जान रहे हैं, कि यह सब मिथ्या कल्पना है, कहानी है, वास्तव में यह कष्ट हम को नहीं है । साधुसजन की विद्या, धन, बल, तो ज्ञान, दान, दुर्बल रक्षा के लिये है। निष्कर्ष यह कि बुद्धिपूर्वक अनिच्छापूर्वक, 'स्वाद' नहीं, किन्तु बुद्धिपूर्वक इच्छापूर्वक, "की अनुशायिनी चित्तवृत्ति का नाम पशु भी 'रस' लेते हैं 'रस' है । 'भाव' ( क्षोभ, संरंभ, संवेग, उद्वेग, आवेग, आवेश, जोश, जज़ूबा, अँगरेज़ी 'ईमोशन' 'पैशन') का अनुभव 'रस' नहीं है; किंतु उस अनुभव का 'स्मरण', 'रसन', रस है । 'भाव-स्मरणं रसः' । और स्वा दन का रूप यह है - 'मै क्रोधवान् हूँ' ('ग्रहं- क्रोधवान् अस्मि' ), 'मै (ग्रहं ) करुणावान् हूँ', 'मै शोकवान् हूँ', 'मै भक्तिमान् हूँ', 'मै ईर्ष्यावान हूँ', 'मै बलवान् हूँ', 'मै सुरूप हूँ' । अर्थात् 'मै हूँ' - यही रस का सार-- तत्त्व है, 'रस-सामान्य' है । ऐतरेय ब्राह्मण मे कहा है, "... पुरुषे तु एव विस्तरां आत्मा, स हि प्रज्ञानेन सम्पन्नतमः, विज्ञातं वदति, विज्ञातं पश्यति... ( पशवः ) न विज्ञातं वदन्ति, न विज्ञातं पश्यन्ति,. . . " । पशु जानते हैं, देखते हैं, पर यह नहीं जानते कि हम जान, देख, बोल रहे हैं। मनुष्य जानता, देखता, बोलता है, और साथ ही, यह भी जानता है कि हम जान, देख, बोल रहे हैं । इस लिये पुरुष मे आत्मा का आविर्भाव सब प्राणियों से अधिक है, उस मे ज्ञान भी है और प्रज्ञान भी है। आत्मज्ञान का प्रारम्भ मनुष्ययोनि मे पहुँच कर, जीव को होता है । इसी लिये "मोक्षस्तु मानवे देहे" । ऐसा ऐतरेय ब्राह्मण मे कहा तो सही है, कि पशु "न विज्ञातं वदन्ति", पर इस को भी "वैशेष्यात् तु तद्वादः", सापेक्ष उक्ति जानना चाहिए । पशु सर्वथा इस प्रकार के 'प्रज्ञान' से रहित ही हैं, ऐसा नहीं कह सकते; क्योंकि वे 'खेलते' हैं, और "खेलना', 'क्रीड़ा', 'लीला', का मर्म 'आत्मानुभव रस' ही है । मुँह से, व्यक्त वाणी से, वे यह नहीं कह सकते हैं कि हम को यह यह अनुभव हो रहा है; पर ऐसा कह सकने का बीज उन मे है अवश्य; बल्कि, व्यक्त नहीं तो अव्यक्त स्पष्ट विविध प्रकार की ध्वनियों से, ग्रावाज़ों से, कह्ते भी हैं; कुत्ते के खेलने के मिथ्या भूँकने और और सचमुच गुस्से के भूँकने और गुर्राने मे, बहुत भेद होता है। ऐसे प्रज्ञान के, कसकने के, वीज़ का पशुओं मे भी होना उचित ही है, क्योंकि वे भी तो परमात्मा, चैतन्य की ही कला है। और यह सत्र अनन्त जगत् ( 'पुनः पुनः गच्छति, जंगम्यते, सदा गच्छत्येव, इति जगत् ' ), अनन्त संसार ( 'संसरति इति', PIA KIL A
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बलवन्तराय मेहता अध्ययन दल के प्रतिवेदन के पश्चात् सम्पूर्ण देश में पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना के साथ आयोजन प्रक्रिया में जिस मात्रा में लोकप्रिय सहभागिता के विचार और गांव के ऊपर स्तर पर लोकतांत्रिक जनप्रिय संस्थाओं के साथ कुछ सीमा तक परस्पर सम्बन्ध का विकास हुआ मालूम होता है, उसी अनुपात में जिला पंचायतों की कार्य पद्धति की सुस्पष्टता एवं तदनुकूल स्पष्ट होती है । 'बलवन्तराय मेहता अध्ययन दल ( जनवरी 1957 ) लोकतांत्रिक आयोजन की जरूरतों के अनुरूप इसे बनाने के लिए जिला प्रशासन के ढांचे के पुर्नगठन का प्रश्न है, सम्बन्धित अपने भौतिक विचारार्थ विषय में कुछ नहीं बात जोड़ी है । यद्यपि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण से सम्बन्धित दल के प्रस्ताव ने भारत की आर्थिक प्रक्रिया में एक बड़े संस्थागत अभाव को पूरा किया लेकिन न तो पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकरण और न ही निम्न स्तरों पर योजनाओं का विकास उसकी तीव्रता, व्यापकता या सफलता में वृद्धि कर पाया है । M 'कुछ अधिनियमों में जिला स्तर के पंचायत के आयोजन कार्य का उल्लेख किया गया । आन्ध्र अधिनियम ने जिला पंचायत को जिले से सम्बन्धित तैयार की गयी नीति एवं योजनाओं का सम्बन्ध समन्वय एंव एकीकरण करने तथा सम्पूर्ण जिले से सम्बन्धित योजनायें तैयार करने का अधिकार दिया है। बिहार जिला परिषद अधिनियम जिला परिषद को जिले के लिए योजनायें तैयार करने का अधिकार प्रदान करती हैं। हिमाचल प्रदेश अधिनियम के अनु जिला परिषद, प्लान परियोजनाओं, स्कीमोंया दो चार अधिक समितियों के लिए सामान्य अन्य कार्यों को तैयार करने के लिए सलाह देती हैं और उससे पंचायत समितियों से सम्बन्धित विकास योजनाओं के सम्बन्ध, समन्वय और समीकरण का अधिकार प्राप्त है। 2 पंजाब, राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल के अधिनियमों में समन्वय की बात कही गयी है, अतः जिले की सम्पूर्ण योजना में जिला पंचायत की भूमिका का लम्बे समय से विचार होता रहा है। अतः स्पष्ट होता कि विभिन्न राज्यों के अधिनियमों में इस महत्वपूर्ण तथ्यों का उपयोग किया गया है। 'दांतेवाला कार्यकारी दल ने आयोजन वाले मसले का बड़ी योग्यता से विवेचन किया है। इस दल ने जिला पंचायत द्वारा समुचित रूप से निपटाये जाने वाले कार्यों से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार किया है। ये क्षेत्र आयोजन एवं विकास सम्बन्धी कार्यों के कार्यान्वयन 1. बलवन्त राय मेहता अध्ययन दल प्रतिवेदन 1937 2. पंचायती समिति रिपोर्ट 1978 औप. सीट, पृष्ठ 60 दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण होंगे । विकास केन्द्र सम्पूर्ण आर्थिक गति को क्रियाशील बनायेंगे और समीपवर्ती क्षेत्रों के लिए सुख-सुविधाओं में सुधार लाने के कार्य में सहायता करेंगे । 1 राष्ट्रीय कृषि आयोग के अनुसार आर्थिक तथा सामाजिक स्तर पर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को सामान्य विकास संरचना के अन्तर्गत गांवों के गरीब लोगों के साथ जोड़ा जा सकता है। अनुसूचित जातियों /जनजातियों के विकास हेतु स्वीकृत नीति के अनुसार- 'नौवीं पंचवर्षीय योजना में विकास पर मुख्य बल सामान्य क्षेत्रों द्वारा दिया जाना था। राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों में योजना कार्यान्वयन विभाग को ऐसी योजनायें बनाने के लिए कहा गया था। जिनके लाभ अनुसूचित जातियों/जनजातियों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों को पहुंच सके । 2 बड़ी मात्रा में जल संसाधनों और सामुदायिक भूमि को कानूनी तौर पर पंचायतों को नियंत्रण में दे दिया जाता है। दुर्भाग्य है कि इनका निर्धन वर्गों के लिए पूर्णतः उपयोग नहीं किया जाता है। अतः पंचायतों को केवल भूमि उपलब्ध करायी जाती है। बल्कि निर्धन वर्गों के विकास से सम्बन्धित ऐसी जमीनों पर आधारित कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए । पंचायतों के कार्य पद्धति के अन्तर्गत इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि पंचायतें उन अतिक्रमित जमीन को उसके मौलिक कमजोर वर्ग के मालिक को सौप दिये जाने का कार्यक्रम अख्तियार करें। जिन जमीनों को गांव के प्रभावशाली लोग सामुदायिक सम्पत्ति के बहुमूल्य भागों का अतिक्रमण करते हैं । 'जिला पंचायतों को अतिक्रमण घटाने सहित इन जमीनों के सम्बन्ध में नियात्मक कार्य विकासात्मक कार्यों के एक भाग के रूप में सम्मिलित किये गये हैं । 3 वन विभाग के पास बड़ी मात्रा में आरक्षित बाग होते हैं जिनमें पेड़ भी नहीं होते हैं । जिनमें उपयोगी लकड़ियां नहीं होती हैं। वन विभाग के संरक्षण में गांवों के इर्द-गिर्द संरक्षित वन भी होते हैं जिनमें उपयोगी लकड़ियां नहीं होती हैं। पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से इन आरक्षित वनों के क्षेत्रों को बंटाने का अभियान कार्य चलाया जा रहा है। अपरिभाषित क्षेत्र की भूमि को भी निर्धन वर्गों को आवंटित करना जिला पंचायतों के कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत है। कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं जिन्हें बंजर कहा जाता है। कमजोर वर्ग के लाखों लोगों की ऐसी भूमि आवंटन की व्यवस्था जिला पंचायतों के कार्यक्रम का एक अंग है। भूमिहीन श्रमिक जो 1. पूर्ववत्, पृष्ठ 61 2. द्रष्टव्य नौंवीं पंचवर्षीय योजना, भारत सरकार 20002 3. सर्वेक्षण से प्राप्त सूचनाओंओ के आधर पर सर्वाशतः आदिवासी, हरिजन और पिछड़ी श्रेणियों की जातियों में आते हैं, को यदि उपर्युक्त प्रकार की भूमि को आवंटित किया जाता है तो कमजोर वर्गों को अधिक आर्थिक सुदृढ़ता प्राप्त करने का अवसर मिल जाता है । कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ अनुपयोगी खारा जल भरा रहता है । सहकारी समितियों के द्वारा संसाधनों, ऊर्जा और अपेक्षित टेक्नालॉजी को मुहैया कराकर मछली पालन का कार्य भी करवाने का कार्य अनेक राज्यों में जिला पंचायतों के कार्य का अंग है। कठिनाई यह है कि जिला पंचायतों पर ग्रामीण विकास के लिए जो दायित्व लादे गये हैं उनकी पूर्ति के लिए अप्रचुर राशि इस संस्था को उपलब्ध करायी जाती रही है । फल यह हुआ कि सारे कार्य मात्र नारा बनकर रह गये हैं। कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकारों को सम्बन्धित स्थानीय स्तरों पर पर्याप्त शक्तियों और कार्यों का मात्र विकेन्द्रीकरण करना तब तक कारगर नहीं होगा जब तक अनुमानित वित्तीय संसाधन जिला पंचायतों को उपलब्ध नहीं कराया जाता है। बलवन्त राय मेहता के नेतृत्व में गठित पंचायती राज समिति की सिफारिशें 'पंचायती राज के गठन, आय, कार्यकरण पर विशेष प्रकाश डालती हैं। उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में जो पंचायती चुनाव सम्पन्न हुआ है वह उक्त समिति की अनुशंशाओं और सिफारिशों पर आधारित है। जिला पंचायतों के कार्य पद्धति से सम्बन्धित सिफारिशें निम्नवत् हैं- 1 एक जिले से सम्बन्धित सभी विकास कार्य जो अब राज्य सरकार द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं, जिला परिषदों को सौंपे जायेंगे। कुछ एक कार्यों में जो इस प्रकार के विकेन्द्रित किये जा रहे हैं, ये शामिल हैं कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र, स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार, ग्रामीण उद्योग, विपणन, पिछड़े वर्गों का कल्याण आदि । जहां तक शिक्षा का सम्बन्ध है। यह जिला परिषद को इस शर्त पर सौंपी जा सकती है कि 'स्थानान्तरण और नियुक्ति की देखरेख के लिए वह एक विशेष समिति का गठन करेगी। स्थानीय निकायों द्वारा पर्यवेक्षण से न केवल अध्यापकों की उपस्थिति में सुधार होगा वरन् यह आशा की जाती है कि विद्यार्थियों के स्कूल छोड़ने का अनुपात भी कम हो जायेगा । प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम को भी बढ़ावा मिलेगा। '2 पंचायतों के सामूहिक कार्यों को गतिशील बनाने, संगठन बनाने तथा परियोजना तैयार करने के लिए मुख्य भूमिका अदा करनी होगी । 1. पंचायती राज समिति रिपोर्ट, 1978 औप. सीट 164 2. पूर्ववत्, पृष्ठ 166 जिला पंचायतों के लिए जिस संसाधन की आवश्यकता है वह है कार्यान्वयन के लिए उन्हें सौंपे गये कार्यों के साथ-साथ सोद्देश्य कार्य आवंटन तथा जन वितरण । जिला पंचायत की पूर्ण रूपेण स्थापना हो जाने पर जब वे उपलब्ध अथवा उनको सौंपे गये संसाधनों से अपनी योजनाओं को कार्यान्वित कर सकती है तब जिला पंचायतों को नियात्मक कार्य सौंपने के प्रश्न का पुनरीक्षण किया जाय । जिला पंचायतों को उत्पादन केन्द्रों के साथ उचित रूप से समन्वित किया जाना चाहिए । इस सम्बन्ध में अन्य संस्थाओं के सहयोग से उन्हें विपणन, निवेश, आपूर्ति, प्रतिक्षण तथा सेवा और कल्याण की जरूरतों से सम्बन्धित आवश्यक निर्णय लेने होंगे । 'विविध प्रकार के व्यवसायों के विकास कार्यक्रमोंओ की अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए अधिक मात्रा में प्रासंगिकता है। पंचायतों को डेयरी, मुर्गी पालन, सुअर पालन, मछली पालन, जंगल वन आदि जैसे क्षेत्रों में ग्रामीण इलाकों में इन व्यवसायिक धन्धों को शुरू करने में शामिल किया जा सकता है । 1 जिला पंचायतों के जन संस्था के रूप में अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों के लिए वित्त विकास निगमों (जो कुछ राज्यों में कार्य कर रहे हैं और जहां पर ये विद्यमान नहीं हैं, वहां स्थापित किया जाना चाहिए ) को अनुसूचित जातियों/जनजातियों पर आधारित विभिन्न कार्यक्रमों के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता प्रदान करने हेतु क्षेत्र आधार पर सहायता सुलभ कर सकती है । जिला पंचायत विकासात्मक, म्यूनिसिपल तथा कल्याणकारी कार्यों को करती रहेगी। अतः यह उनके लिए ही सम्भव होगा कि वे अंशकालिक सहायक के बजाय एक पूर्णकालिक पंचायत अधिकारी रखें। उनका वेतन व भत्ते पर्याप्त रूप से योग्य कार्मिकों को आकृष्ट कस्ने के लिए उपयुक्त होनी चाहिए। जिला स्तर पर विभिन्न विकास विभागों को यथेष्ट रूप से कर्मचारी वर्ग ( अर्थात् कृषि विस्तार अधिकारी, पशु चिकित्सा, स्टॉक मैन, मछली पालन, विस्तार सहायक, वाणिज्यिक फसल कार्यकर्ता, लघु उद्योग प्रोत्साहन कर्मचारी और स्वास्थ्य उपकेन्द्र कर्मचारी वर्ग आदि) को जिला पंचायत स्तर पर कार्य करना चाहिए । विकास कार्यों की मात्रा में वृद्धि और उनकी जटिलता के कारण विकासात्मक अपेक्षाओं 1. पूर्ववत्, पृष्ठ 167 का निरन्तर अध्ययन करने और पंचायती राज संस्थाओं की देखभाल करने वाले राज्य स्तर के विभागों के ढांचे तथा कार्यों का निर्माण करने की आवश्यकता है। पंचायती राज विभाग में जिस प्रकार महत्वपूर्ण विभागों के लिए मंत्री आदि की व्यवस्था की जाती है, होनी चाहिए । रोजमर्रा के प्रशासनिक कार्यों के लिए सुदृढ़ पंचायती राज निदेशालय और विकास आयुक्त के अधीन एक सचिवालय विभाग अनिवार्य होगा। लेकिन विकास विभागों को पंचायती राज संस्थाओं के सफल कार्यपद्धति की भूमिका निभानी होगी। राज्य सरकार को स्वतंत्र टीम द्वारा, जिनमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली शिक्षा संस्थायें और विश्वविद्यालय भी शामिल हैं - जिला पंचायतों की कार्य पद्धति का समय-समय पर स्वतंत्र मूल्यांकन कराने की व्यवस्था भी करानी चाहिए । कार्य पद्धति की सीमायें आय-व्यय के अनुपात में बढ़ती घटती हैं। एक तरह जहां जिला पंचायतों की कार्य पद्धति का उल्लेख आवश्यक है वहीं दूसरी ओर कार्य पद्धति के सफल निर्वाह के लिए जिला पंचायतोंओ की आय उसकी रीढ़ है। 'बलवन्त राय मेहता अध्ययन दल ने अपने प्रतिवेदन में जिला पंचायतों के कार्य पद्धतियों को सुदृढ़ आधार प्रदान करने हेतु वित्त के प्रचुर प्रावधान का भी उल्लेख किया है । 1 जिला पंचायतों को दी गयी कराधान शक्तियाँ सीमित तथा विशिष्ट होनी चाहिए और उन्हें न्यायोचित रूप से सम्पादित किया जाना चाहिए। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कुछ एक धन्धों तथा व्यवसायों जिनमें कमजोर वर्गों का बाहुल्य है, को साविधिक उपबन्धों के माध्यम से छोड़ दिया जाना चाहिए । करों के अतिरिक्त पंचायती राज संस्थाओं की रोशनी, सफाई, जलापूर्ति आदि ऐसी सेवाओं के लिए शुल्क / कर उगाहना चाहिए । एकरूपता के अभाव व मनमाने पन से बचने के लिए इन शुल्कों को निम्नतम तथा अधिकतम दर को निर्धारित किया जाना चाहिए। चूंकि कर लगाने की शक्ति उनकी वसूली की शक्ति से अलग नहीं की जानी चाहिए। अतः जिला पंचायतों के अधिकारियोंओ को स्वयं कर वसूलना चाहिए। आय की सुदृढ़ता पर आधारित अतिरिक्त ग्रामीण उत्पादन कार्य के लिए पंचायतों को आत्म निर्भर होने की आवश्यकता है। सभी लोगों में अर्न्तनिहित चेतना को विकसित करने हेतु प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों को महत्व देना चाहिए । इस प्रकार जिला पंचायतों के कार्य पद्धति 1. दृष्टव्य - बलवन्तराय मेहता अध्ययन दल रिपोर्ट 1957
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कम्पनीकी ही। चाहे जो हो, अब तो इस बहुमूल्य निर्णयको पाकर उनका आत्मप्रेम अवश्य ही सन्तुष्ट हो चुका होगा । । लेकिन अनिवार्य 'लिक्विडेशन' ( दीवाले ) की जो अपील की गई है, उससे पता चलता है कि इस अभियोगका हेतु वादीकी क्षतिपूर्ति कराना नहीं, बल्कि प्रतिवादीका सत्यानाश करना था । अगर वे इसी में सन्तुष्ट हैं, तो भले ही रहें । उन्हें यही मुबारक हो । इसमें शक नहीं कि उनकी यह उड़ान पतनकी निशानी है । जिस 'फॉरवर्ड' को इतनी बेदर्दीके साथ कुचला गया है, वह लोगोंके जीवनमें प्रतिफलित होकर जीवित रहेगा । उसके हाथों सुलगी हुई आग उन हजारों दिलोंमें दूने जोशके साथ भभक उठेगी, जो अब अपने प्रिय पत्रके स्तम्भों द्वारा अपने विचार प्रकट करनेका वैध साधन खो चुके हैं। आन्ध्रके देहातोंकी यात्रा कर रहा होनेके कारण इन घटनाओंका सिलसिलेसे अनुशीलन नहीं कर सका हूँ, फिर भी मैं देखता हूँ कि नवजात 'न्यू फॉरवर्ड' के प्रकाशनको रोकनेके लिए भी कुत्सित प्रयत्न किये जा रहे हैं। सम्भव है कि कई विषम कठिनाइयोंके रहते हुए भी जो साधन-सम्पन्न कानूनदाँ लोग बंगालके राष्ट्रीय आन्दोलनको जीवित रखे हुए हैं, वे इस मामले में भी सरकारको पीछे छोड़ दें । लेकिन अगर वे सरकारको प्राप्त और उसके द्वारा मनमाने ढंगसे प्रयुक्त कानूनी और विशेष कानूनी अधिकारोंका सफलतापूर्वक मुकाबला न भी कर सकें तो भी सरकारके साथ वीरता और निडरतापूर्वक बराबरीसे लड़नेके लिए देश उनका आभारी होगा । देशमें एक ऐसी भावना जाग्रत हो चुकी है, जिसे दुनियाकी कोई ताकत कुचल नहीं सकती। 'फॉरवर्ड' मर चुका है, 'फॉरवर्ड' दीर्घायु हो । अंग्रेजीसे ] यंग इंडिया, ९-५-१९२९ ३४१. आन्ध्र देशमें [४] यात्रा - कार्यक्रम और विभिन्न स्थानोंपर एकत्र किये गये चन्देके विवरणसे देखा जा सकता है कि कार्यका दबाव बना हुआ है, हालाँकि विभिन्न गाँवोंमें जो विविध अनुभव हो रहे हैं और लोगोंमें जो जोश और उत्साह दिखाई पड़ता है उससे मेरा ज्ञान भी बढ़ा है और मेरी आस्था भी दृढ़ हुई है । चन्देकी कुल रकम जो 'यंग इंडिया' में पहले ही छापी जा चुकी है, १, ११, - ६५३ रु० ९ आ० ७३ पा० है । मुझे यह भी कहना चाहिए कि साथी कार्यकर्ताओं में प्रत्येक कार्यको निश्चित समय पर कर डालनेकी प्रवृत्तिमें बहुत तेजी आई है और उनमें निर्धारित समय क्रमका पालन करनेकी तो मानों एक सुखद होड़ ही चल रही है । फलतः इस समय हम १. इसके बाद पश्चिमी गोदावरी जिलेके विभिन्न गाँवोंमें प्राप्त चन्देका ब्योरा दिया गया था। चन्देकी कुल रकम १,५४,९३१ रु० १५ मा००३ पा० थी। आन्ध्र देशमें [४] एक्सप्रेस रेलगाडीकी नियमबद्ध गतिसे यात्रा कर रहे हैं और सभाओं आदिके कार्यक्रम निपटा रहे हैं। सुबह या शाम एक गाँवसे दूसरे गाँवको रवाना होनेके निश्चित समय पर देशभक्त कोंडा वेंकटप्पैया और अन्य स्थानीय मित्र हँसते हुए मेरे पास उपस्थित हो जाते हैं । समय-पालनकी इस नियमितता और पहलेकी तुलनामें सभाओंकी अपेक्षा - कृत सुव्यवस्थितताके फलस्वरूप हमारा दौरा ग्रीष्मऋतु की इस गरमीमें भी न केवल सह्य बल्कि सुखद भी हो गया है। पुरुष और स्त्रियाँ जिस उत्साहसे अपने रुपये और पैसे देनेके लिए आती हैं उसे देखकर मन आशा और आनन्दसे भर उठता है । मैं ये पंक्तियाँ तुनी नामक एक गाँवमें स्त्रियोंको एक सभा करनेके तुरन्त बाद लिख रहा हूँ । एक बूढ़ी स्त्री, जो स्पष्टतः गरीब थी और जिसकी उमर लगभग ७५ वर्ष रही होगी, जिसका शरीर तो वर्षोके बोझसे झुक गया था किन्तु जिसके चेहरे और आँखों में आनन्दकी चमक थी, मेरे पास आई और उसने मेरे हाथमें चार आने रख दिये। पैसा देते समय उसको आँखोंमें, जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता, किसी प्रकारका दोनताका भाव नहीं था । उसके तुरन्त बाद एक खादीधारिणी प्रौढ़-सी महिलाने मेरे हाथमें ५ रुपये और एक पैसा रखा । मैंने उससे सीधा सवाल किया, " किसका दान ज्यादा बड़ा है, तुम्हारा या इस वृद्ध बहनका ? " उसने बिना किसी झिझकके निर्णयके स्वरमें उत्तर दिया, " दोनों बराबर हैं । " मुझे बेहद खुशी हुई । इस उत्तरने मुझे निरुत्तर कर दिया, लेकिन मैं प्रसन्न हुआ। मैं इस बहुत ही बुद्धिमत्तापूर्ण और गहराईमें जाकर सत्यको छू लेनेवाले उत्तरके लिए तैयार नहीं था । उसने आगे कहा, "मैं राष्ट्रीय आन्दोलनमें कई वर्षोंसे रुचि लेती रही हूँ और उसमें अपनी शक्तिके अनुसार मुझसे जितना अधिक बना है सदा दिया है। खादी में मेरा विश्वास है और मैं हमेशा खादी ही पहनती हूँ । " इस दौरेकी अवधिमें मुझे जो अनेक सुखद अनुभव हुए हैं उनके अक्षय संग्रह से लिया गया यह केवल एक ही उदाहरण है। ऐसे अनेक उदाहरण मेरे पास हैं, लेकिन अब मुझे अन्य विषयोंकी चर्चा करनी चाहिए । कार्यकर्ताओंकी सभा तनकू और जगहोंकी तरह कार्यकर्त्ताओंकी एक सभा हुई । ऐसी सभा मैं खासकर हरेक जिलेके दौरेकी समाप्ति पर करता हूँ, और उसका समय शामको ३ और ४ के बीचका होता है । इस सभा कोई १०० कार्यकर्त्ता थे । उसमें हर तरहके सवालोंकी चर्चा हुई । यह एक सवाल तो हर जगह पूछा ही जाता है कि कांग्रेसियोंके ताल्लुका या जिला बोर्डों, नगरपालिकाओं और विधान परिषदों आदिके चुनावोंमें भाग लेनेसे क्या खादी और दूसरे रचनात्मक कार्यों में बाधा नहीं पड़ेगी । इस सभामें यही सवाल और भी ज्यादा आग्रहके साथ पूछा गया । मेरा अनुभव यह है कि इन संस्थाओंसे हमें जितना लाभ हो सका है उसकी तुलनामें उनपर हमारे अच्छे कार्यकर्ताओंकी शक्तिका व्यय कहीं अधिक होता है । यह देखा गया है कि हमारे कुछ १. २ मईको । उत्तम कार्यकर्ताओंको ज्यादा ठोस काम करनेकी इच्छासे नगरपालिकाओं आदिको छोड़ कर बाहर आना पड़ा। इसके सिवाय, इन संस्थाओं में बहुत सारा राग-द्वेष, लड़ाईझगड़ा, अपनी मनचाही चीज करानेके लिए पर्देकी आड़में की जानेवाली बहुत सारी खींचतान होती है; अपने स्वार्थीको सिद्धिके लिए इतनी ज्यादा कोशिश की जाती है कि ईमानदार कार्यकर्त्ता उनमें बहुत ज्यादा दिनतक नहीं रह सकते । कांग्रेसी लोग इन संस्थाओं में दिलचस्पी लें, इसके पक्षमें एक कांग्रेसी भाईने उसका एक लाभ यह बताया था कि उनमें कांग्रेसियोंकी उपस्थिति से हुकूमतके आगे दीनतापूर्वक झुक जानेकी मनोवृत्तिके बदले उसके खिलाफ लड़नेकी स्वस्थ मनोवृत्तिको बल मिलता है। किन्तु कुल मिलाकर मुझे ऐसा लगता है कि यदि लड़नेकी मनोवृत्तिको हम रचनात्मक कार्यका बलिदान करके पैदा कर रहे हैं तो कहना होगा कि हम उसकी बहुत ज्यादा कीमत चुका रहे हैं । इसलिए तनकूकी सभा मैंने कार्यकर्ताओंको सुझाया कि अगर उन्हें यह निश्चय हो गया हो कि चुनावमें भाग लेनेसे या इन संस्थाओंमें दिलचस्पी लेनेसे कोई प्रभावकारी सेवा नहीं की जा सकती तो उन्हें अपने दिमागसे इन संस्थाओंकी बात निकाल देनी चाहिए । यदि कांग्रेसी इन चुनावों में कोई हिस्सा न ले रहे होते तो जिस तरह वे इन संस्थाओंकी बात न सोचते उसी तरह उक्त परिस्थिति में भी उन्हें उनका खयाल अपने मनसे निकाल देना चाहिए। यदि इन संस्थाओंमें जाकर काम करने और रचनात्मक कार्य करनेके बीचमें चुनाव करना ही हो तो इसमें कोई सन्देह ही नहीं है कि रचनात्मक कार्य ज्यादा बड़ी चीज है। आखिर हमारे पास कांग्रेसके कार्यकर्त्ता हजारोंकी तादादमें हैं जबकि इन तथाकथित निर्वाचित संस्थाओं में हरेक जिलेसे कुछ इने - गिने लोग ही प्रवेश कर सकते हैं । जो लोग उनमें विश्वास करते हैं वे भले उनमें प्रवेश करें, लेकिन जो उनमें विश्वास नहीं करते वे प्रवेश करनेवालोंके प्रति न किसी तरहकी ईर्ष्याका भाव रखें और न किसी तरहकी नाराजी दिखायें । इस सभा एक सुझाव यह भी पेश किया गया था कि जिन जिलों में सूत काफी प्रमाणमें काता जाता है वहाँसे वह उन जिलोंमें लाया जाये, जहाँ बहुत ज्यादा गरीबी न होनेके कारण सूत कातने के लिए तो कोई तैयार नहीं होता किन्तु जहाँ ऐसे बुनकर जरूर हैं जिन्हें अगर हाथ-कता सूत दिया जाये तो वे उसकी खादी सहर्ष बुन देंगे। इस सुझावसे मैंने जोरदार असहमति जाहिर की । मैंने कहा, जो जिला सूतका उत्पादन करता है वह जबतक उसका उपयोग कर सकता हो तबतक वहाँसे सूत लाना गलत होता है । सफल हाथकताईका रहस्य ही इस बातमें है कि सारा सूत वहीं बुना जाये जहाँ वह काता जाये । जहाँ स्थानिक बुनकर विदेशी सूत या मिलका सूत बनते हैं वहाँ उनसे उनका यह धन्धा छुड़वानेमें तबतक कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए जबतक कि उसी जगह या उस जिलेमें हाथकते सूतका उत्पादन न होने लगे । अलबत्ता अपनी शक्तिके अनुसार हम हाथकताई करने या यज्ञार्थ सूत कातनेका प्रचार करनेकी पूरी कोशिश अवश्य करें। यदि ऐसा सूत पर्याप्त मात्रा में काता जाने लगे तो उससे किसी भी जिलेके बुनकरोंको काफी काम मिल जायेगा । आन्ध्र देशमें [[४] एक आदर्श सहकारी संस्था विजयानगरममें मैने एक सहकारी खादी संस्था देखी जो अपना काम बहुत सफलतापूर्वक कर रही है और जो अपने क्षेत्रमें मेरे खयालसे सारे भारतवर्ष में अद्वितीय है । मैं नीचे इस संस्था द्वारा दिये गये अभिनन्दनपत्रमें से निस्संकोच एक अंश उद्धृत करता हूँ : ? हमारे इस भण्डारमें जो भी कपड़ा है वह सारा हमारे द्वारा खरीदे हुए कपाससे बनाया गया है। बाहरसे हमने कुछ भी नहीं मँगाया है। हमने दूसरे प्रान्तोंसे, यहाँ तक कि अपने ही प्रान्तके दूसरे जिलोंसे खादी न मँगानेका संकल्प किया है क्योंकि हमारा विश्वास है कि खादीके ऐसे आयातसे खादीकी प्रगतिकी उसी तरह हानि होगी जिस तरह कि विदेशी कपड़ेके आयातसे होगी । हमारा यह भी विश्वास है कि खादी आन्दोलनका उद्देश्य यह है कि जगह-जगह कताई और बुनाईका ज्यादा से ज्यादा व्यापक प्रसार किया जाये, और उस जिलेके लोगोंको ज्यादा से ज्यादा बड़ी संख्या में रोजगार मुहैया किया जाये। ऐसा किया जाये तो ही खादीका सही विकास होगा । हमारे अमुक कपड़ोंकी कीमतें अखिल भारतीय चरखा संघकी कीमतोंसे छः पाई प्रति गज अधिक हैं। हम आपको अत्यन्त विनयपूर्वक एक पैंट और एक २३ गज चौड़ा तथा ३ गज लम्बा कम्बल दे रहे हैं। ये दोनों चीजें पप्पू जगन्नायाकुलुकी बनाई हुई हैं। यह भाई बुनकर हैं और हमारी संस्थाके संचालक हैं। हम नम्रतापूर्वक प्रार्थना करते हैं कि ये दोनों वस्तुएँ आश्रमके संग्रहालयमें रखी जायें । पप्पू जगन्नायाकुलुकी ये दोनों कृतियाँ आश्रमके संग्रहालय में अवश्य रखी जायेंगी । दोनों अपने ढंगकी बेजोड़ वस्तुएँ हैं। मुझे विजगापट्टममें अपने मेजबान श्री बानोजीरावसे महीन खादीके दो टुकड़े भी भेंटमें मिले हैं। श्री बानोजीराव जमींदार हैं और यह खादी उनकी जमींदारीके एक गाँव बोंटलकोडुरुकी बनी हुई है । ये कपड़े क्रमशः ५३ और ६६ वर्ष पुराने हैं। मुझे इस आदर्श सहकारी संस्थाके उपनियम प्राप्त हो गये हैं। ये नियम जिस उद्देश्यसे बनाये गये हैं उसे सिद्ध करनेमें समर्थ हैं। उनके अनुसार कातनेवाले और बुनाई करनेवाले लोग संस्थाके सदस्य बन सकते हैं । सदस्योंके लिए संस्थाके द्वारा पैदा की गई खादी खरीदना जरूरी है; इसी प्रकार सदस्य जो सूत कातें या जो खादी तैयार करें उसको उन्हें संस्थाको बेचना चाहिए । इन उपनियमोंमें से 'व्यापार' शीर्षकके अन्तर्गत दिया गया यह अंश मैं यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ । १. यहाँ केवल कुछ अंश ही दिये गये हैं। २. यहाँ नहीं दिया गया है।
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दक्षिण अमेरिका हमारे लोगों के लिए, ऑस्ट्रेलिया के रूप में ही रूप में के रूप में रहस्यमय वास्तव में बस के रूप में अप्राप्य, समझ से बाहर और रहस्यमय है। इस पर साहसिक पुस्तकों के एक बहुत कुछ लिखा गया है और एक ही राशि कम नहीं साहसिक फिल्में हटा दिया है। जंगल, बंदर, घड़ियाल, पिरान्हा - यह सब जरूरी है एक अच्छा एक्शन फिल्म में मौजूद होना चाहिए, और यह सभी दक्षिण अमेरिका के लिए पूरी तरह से विशेषता है। लेकिन इस तरह के टकसाली बातों तक ही सीमित नहीं महाद्वीप पर मौजूद हैं। सबसे दिलचस्प भौगोलिक विशेषताओं में से एक दक्षिण अमेरिका के पहाड़ हैं। वे एक शब्द में वर्णित किया जा सकताः "सबसे अच्छा। " क्योंकि लगभग सभी विशेषताओं वे दुनिया के अन्य पर्वत श्रृंखला "जीत"। तो, दक्षिण अमेरिका के पहाड़ों - सबसे लंबी चेन। उनकी कुल लंबाई लगभग नौ हजार किलोमीटर तक पहुँचता है। एक ही समय वे देशों की अधिकतम संख्या के माध्यम से जाने से कम - सात राज्यों में स्थित हैं। केवल पहाड़ की ऊंचाई दक्षिण अमेरिका सिस्टम में दूसरे स्थान पर कब्जाः वे हिमालय से आगे हैं। वे ग्रह पर उच्चतम बिंदु निर्धारित करने के लिए विजेता रहे हैं। हालांकि, हम ध्यान दें, है सबसे ऊंची पर्वत Aconcagua - - दक्षिण अमेरिका में फिर से तुरंत एवरेस्ट इस प्रकार है, लेकिन एक ही समय में भी पूरे गोलार्द्ध के सर्वोच्च शिखर है। और Aconcagua - पहाड़ जीत के सभी बाकी की ऊंचाई के लिए प्रतियोगिता में एक विलुप्त ज्वालामुखी, के बाद से दुनिया में उच्च ज्वालामुखी कोई और अधिक है। यह दक्षिण अमेरिका में सबसे बड़ा पहाड़ अर्जेंटीना के क्षेत्र में स्थित है और लगभग सात किलोमीटर (6960 मीटर) की ऊंचाई है। इसका नाम - एंडीज - दक्षिण अमेरिका के पहाड़ों, हम कह सकते हैं, प्राप्त हुआ है प्राचीन Incas से। शब्द "अंता" उनकी भाषा में मतलब "पहाड़ तांबे"। जाहिर है, Incas इस धातु मूल्यवान, यदि ऐसा है तो उनके पहाड़ों नामित अन्य खनिजों से अधिक है। इतना ही नहीं तांबा दक्षिण अमेरिका की समृद्ध एंडीज पर्वत। वहाँ विकसित और अन्य धातुओं रहे हैं। उनमें से, सीसा, जस्ता, टिन और यहां तक कि वैनेडियम। प्लेटिनम और सोने का खनन कर रहे हैं और उच्च गुणवत्ता वाले पन्ने - और कीमती धातुओं की समृद्ध जमा पाया। एंडीज की तलहटी में, हालांकि वे इराक या सऊदी अरब में के रूप में इतना महत्वपूर्ण नहीं हैं तेल और गैस क्षेत्रों (मुख्य रूप से वेनेजुएला में) कर रहे हैं। दक्षिण अमेरिकी पर्वत श्रृंखला पश्चिम और उत्तर से पूरे महाद्वीप चारों ओर से घेरे। "केवल" तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर - इसकी चौड़ाई लंबाई के साथ तुलना में बहुत बड़ी नहीं है। लेकिन एंडीज की अपनी विशाल लंबाई की वजह से - दक्षिण अमेरिका के पहाड़ों - कई भागों, जो भी कहा जाता है में वितरित करने का निर्णय "समूहों। " भूगोलवेत्ता चार तरह के "खंड" कर रहे हैं। पहले भाग - उत्तरी एंडीज। सबसे उत्तरी दक्षिण अमेरिका (प्लस त्रिनिदाद के द्वीप) - यह एक अपेक्षाकृत कम पहाड़ों तट के साथ चलने के लिए है। उन्होंने यह भी उच्च सरणी कॉर्डिलेरा डे मेरिडा, जो पश्चिम में स्थित है, और सिएरा नेवादा डी सांता मार्ता की एक अलग प्रणाली, प्रशांत तट पर पहले से ही स्थित शामिल हैं। एंडीज के इस हिस्से में दक्षिण अमेरिका में उच्चतम पर्वत - क्रिस्टोबल कोलोन (5744 किमी)। पश्चिमी एंडीज, केंद्रीय के समानांतर भी, सागर के किनारे, इक्वाडोर में पहले से ही एक रीढ़ की हड्डी में मिल जाती हैं। दोनों विलुप्त और सक्रिय - उन दोनों के बीच वहाँ ज्वालामुखी हैं। उनमें से - दक्षिण अमेरिका का दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत (चिम्बोरज़ो)। यह भी एक ज्वालामुखी, Aconcagua तरह है, लेकिन 700 मीटर नीचे। यहाँ वहाँ भी अब उच्चतम सक्रिय ज्वालामुखी है - कोटोपैक्सी। लेकिन ऊंचाई प्राप्त कर ली और छह किलोमीटर है। पूर्वी एंडीज भी सक्रिय ज्वालामुखी चिह्नित किया गया। यहाँ वे काफी अधिक है, लेकिन अभी भी कोटोपैक्सी नीचे हैं। हालांकि औसत दक्षिणी कॉर्डिलेरा के उच्चतम हिस्सा है भी दक्षिण अमेरिका में पहाड़ कहा जाता है। चिली-अर्जेंटीना भाग - एंडीज में सबसे संकीर्ण। कुछ स्थानों यह एक एकल के लिए कम हो जाता है में रिज, मुख्य कॉर्डिलेरा कहा जाता है। यह जहां Aconcagua है। आधे से भी कम क्लस्टर के शिखर नहीं - सक्रिय ज्वालामुखियों में आज। और अंत में, दक्षिणी एंडीज। सिर्फ साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर - मुख्य भूमि पहाड़ों फिर से छोड़ने के इस हिस्से, और सबसे प्रमुख शिखर में। दक्षिणी कॉर्डिलेरा की औसत ऊंचाई, भूगोल गणना में - चार किलोमीटर है। पहाड़ों काफी युवा हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर पहले से ही गठन पूरा कर लिया है। अब वहाँ एक धीमी गति से उनके विनाश है। यह पास के प्रशांत महासागर है, जो लगभग परीक्षा है पहाड़ों की उपस्थिति के द्वारा त्वरित किया गया है। दक्षिण अमेरिका के नक्शे पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि कैसे पास फिट पानी। सागर अंतरिक्ष और आर्द्र हवा से हवाओं विनाश की प्रक्रिया में तेजी लाने, और इसलिए पहाड़ों एक साल ऊंचाई में लगभग एक सेंटीमीटर खो रहे हैं। हालांकि, एक योगदान दिया, और ज्वालामुखी, जो, के रूप में कहा गया है, एंडीज में कई, और उनमें से एक महत्वपूर्ण संख्या अभी भी सक्रिय। धन्यवाद करने के लिए उन्हें कुछ चोटियों अभी भी "बढ़ने" कर सकते हैं, ताकि प्रणाली की औसत ऊंचाई ही रहता है। एंडीज के विभिन्न स्थानों में बहुत अलग और इलाके और स्थलाकृति, और वनस्पति है। यह सच है कि पहाड़ की तह भागों विभिन्न भूवैज्ञानिक अवधियों में पर्वतमाला की वजह से है, सबसे पहले। और दूसरी, तथ्य यह है कि दक्षिणी कॉर्डिलेरा बहुत लंबा है और कई प्राकृतिक क्षेत्रों से पार कर जाता। ठंड से एंडीज के मध्य भाग पेरू वर्तमान बहुत अच्छा क्षेत्र हो जाता है। एक पठार Puna कहा जाता है पर तापमान 10 से अधिक है और कभी कभी चला जाता है और -25 डिग्री वृद्धि नहीं करता है। यहाँ वहाँ भी दुनिया अटाकामा रेगिस्तान में सबसे शुष्क है। दक्षिणी एंडीज - उपोष्णकटिबंधीय है। गीला बर्फ या बारिश की बहुतायत - और हालांकि में हवा का सबसे गर्म माह 15 से ऊपर गर्म नहीं मिलता है, यह बहुत नम और बारिश की एक बहुत कुछ है। इसलिए, यदि आप दक्षिण अमेरिका के पहाड़ों के एक छोर से यात्रा की, तो आप सबसे अधिक जलवायु क्षेत्रों गवाह कर सकते हैं। दक्षिणी कॉर्डिलेरा, उसकी ऊंचाई और असामान्य, पर्वतारोहियों के लिए बहुत ही दिलचस्प के लिए धन्यवाद। यहाँ दुनिया भर से आते हैं, सहित रूस से, और पूर्व सोवियत संघ के अन्य भागों से। सबसे लोकप्रिय चढ़ाई दो "वस्तु": दक्षिण अमेरिका में उच्चतम पर्वत, जो है, Aconcagua, और Alpamayo शिखर। सूची में पहले से उबरने के लिए काफी सरल माना जाता है। गोरा आकर्षक, बल्कि इसलिए हुआ क्योंकि उस की अपनी ऊंचाई और विचारों। हालांकि, Aconcagua चढ़ाई की विजय के लिए एक अच्छा अनुभव, धीरज और के विश्वसनीय पोर्टेबिलिटी की आवश्यकता है हवा। खोजकर्ता के लिए खतरा ज्यादातर Aconcagua क्षेत्र में अस्थिर मौसम है। उसे अचानक परिवर्तन और इस तरह के एक खतरनाक पहाड़ हैं। एक और बात - Alpamayo। यह दक्षिण अमेरिका के और पहाड़ों की दस प्रमुख वैश्विक "समस्या" के बीच सबसे अभेद्य माना जाता है। "दीवारों" और जमीन Alpamayo के बीच कोण 60 डिग्री तक पहुँचता है। यहां तक कि अच्छी तरह से सुसज्जित पर्वतारोहियों अक्सर पहाड़ के आधे नहीं मिलता है। हम शीर्ष इकाई के लिए आया था। और पहली बार के लिए Alpamayo बेल्जियम-फ्रांसीसी अभियान से 1951 में वश में किया गया था, दो पर्वतारोहियों। शुरुआती के बीच पर्वतारोहियों कोटोपैक्सी के लिए दिलचस्प चढ़ाई पर विचार किया। ज्वालामुखी हालांकि वैध है, लेकिन अब सोता है। कई अन्य चोटियों की तरह, वह दूर नहीं पहली बार द्वारा मोहित हो गया था। 19 वीं सदी में, दो पर्वतारोहियों शीर्ष पर चढ़ाई करने के लिए कोशिश की और नहीं कर सके। यह सिद्धांत रूप में, यह आश्चर्य की बात है, लेकिन निराशाजनक है कि वे नहीं किया है केवल पिछले 300 मीटर की दूरी पर काबू पाने के लिए सक्षम किया गया नहीं है,। मार्ग की मुश्किल क्षणों के बावजूद, अब उपलब्ध कोटोपैक्सी भी एक नवागंतुक तैयार किया। मुख्य बात - दिल से पोशाक के लिए, शीर्ष पर की तापमान शायद ही कभी -10 से ऊपर उठकर मत भूलना। एक दिलचस्प विस्तार एक रात में यात्रा के लिए की जरूरत हैः हम पगडंडी से पिघल बर्फ से पहले शिविर में लौटने चाहिए। ताकि दक्षिण अमेरिकी पहाड़ों बहुत अलग अलग दिशाओं में दिलचस्प हैं, और यदि आप, वहां जा सकते हैं आप निश्चित रूप से करना चाहिए।
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घर पर आंत्र सफाई के लिए सबसे सुलभ तरीकों में से एक एनिमा का उपयोग है। सोडा के साथ विशेष रूप से प्रभावी एनीमा। एनिमा न केवल भेदक प्रभाव के अधिकारी, उनके आवेदन के बाद, आदमी के समग्र स्वास्थ्य में सुधार। वजन घटाने - जो लोग इस प्रक्रिया का उपयोग के अधिकांश ध्यान दें एक और सकारात्मक विशेषता यह है। प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य (कैसे एक एनीमा करने के लिए सोडा के साथ, नीचे वर्णित किया जाएगा) - संचित विषाक्त पदार्थों, अपशिष्ट, मल पत्थरों का विरेचन। यह इस भड़काती है एक चयापचय विकार, जो अत्यधिक वजन की ओर जाता है। एनीमा सोडा के साथ यह लंबे समय तक कब्ज के लिए आवश्यक हो सकता है। इसके अलावा, इस प्रक्रिया,, गुर्दे, जठरांत्र संबंधी मार्ग के चिकित्सा परीक्षाओं के लिए प्रदर्शित हो सकता है ऑपरेशन से पहले, विषाक्तता के मामले में चिकित्सीय एनिमा का उपयोग करने से पहले। सोडा क्षारीय ओर करने के लिए जल संतुलन बदलती है, जिससे दस्त के साथ जुडा हुआ मल अम्लता लिए एक प्रभावी उपचार। सोडा समाधान एक शांत प्रभाव है, जो बहुत गुदा और पेट में दर्द दूर होता है। अक्सर सबसे गैस्ट्रो आंत्र रोग (दस्त, कब्ज, उल्टी, आंत्रशोथ, आंत्रशोथ), श्वसन रोगों (ARD, फेफड़ों की सूजन), रोगों तंत्रिका विज्ञान (निः शुल्क जलन, सिर दर्द, चक्कर आना, तंत्रिका tics, दौरे) का कारण, एलर्जी प्रतिक्रियाओं, क्रोनिक थकान, मानसिक विकारों कीड़े का एक संक्रमण है। परजीवी विषाक्त पदार्थों व्यक्ति की संचार प्रणाली पर एक निराशाजनक प्रभाव है और एनीमिया भड़काने। गंभीर मामलों में, कैंसर का विकास हो सकता है। तंत्रिका तंत्र पर अभिनय, विषाक्त पदार्थों को नींद संबंधी विकार, सिर दर्द, मांसपेशियों में गड़बड़ी भड़काने। कीड़े प्रतिरक्षा प्रणाली है, जो कई बीमारियों के पाठ्यक्रम exacerbates को कमजोर। यही कारण है कि उद्भव और कीड़े के रोगों के विकास के लिए योगदान? सिस्टमैटिक अनियमित और अनुचित आहार बड़ी आंत अपाच्य भोजन जन के गठन को बढ़ावा देता है। अलग अलग तरीकों से पेट के कीड़े के संचय घुसना और तेजी से गुणा करने के लिए शुरू करने के लिए। उनमें से एक बहुत कुछ के लिए मानव शरीर में रास्तेः गंदे हाथों, फल, सब्जियों, कुत्तों, बिल्लियों, और अन्य संक्रमित लोगों, जल, वायु, कीड़े के बीजाणुओं से युक्त। शरीर में प्रवेश करने के बाद परजीवी अपने जीवन भर में पोषक तत्वों को खिलाने और विष वे उत्पादन उगलना शुरू करते हैं। यह सब प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर और विभिन्न रोगों के विकास के लिए योगदान देता है। यह निदान और अंतर्निहित बीमारी के इलाज में बहुत महत्वपूर्ण खाते में आंत्र परजीवी की उपस्थिति, इसलिए है जब उसे पता चलता है कि यह उन्हें नष्ट करने के लिए कार्रवाई को लागू करने के लिए आवश्यक है। खैर कीड़े से सोडा के साथ एनीमा साबित। सोडा एनीमा भी दवाओं के जहरीले प्रभाव को रोकता है। Antiparasitic उपचार प्रभावी है ही अगर शरीर और एक आहार के सामान्य सफाई। हो रही अतिरिक्त वजन से छुटकारा जब काफी लोकप्रिय है सोडा के साथ एनीमा। समीक्षा जो लोग इस विधि की कोशिश की है, इस उपकरण की प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया। पहले से ही के बाद पहली प्रक्रिया के बारे में दो किलोग्राम लेता है। के दौरान शरीर की शुद्धि संचित विषाक्त पदार्थों है कि आंतों और पूरे जीव के सामान्य कामकाज को बाधित से छुटकारा मिलता है। संचित विषाक्त बड़े पैमाने पर शरीर के लिए फायदेमंद ट्रेस तत्वों के अवशोषण को रोकता है और महत्वपूर्ण अंगों के काम है कि गंभीर बीमारियों भड़काती में बाधा। सोडा के साथ एनीमा, संचित प्रदूषण के शरीर को प्रदर्शित करता है भोजन से पोषक तत्वों का अवशोषण को बढ़ावा देता है, और कोशिकाओं के कामकाज में सुधार। यह सब आंतों के सक्रिय काम करने के लिए योगदान देता है और चयापचय, जो अंततः वसा के जमा होने क्रमिक उन्मूलन की ओर जाता है में सुधार होगा। कैसे सोडा के साथ एक एनीमा तैयार करने के लिए? प्रक्रिया के लिए समाधान पहले से तैयार है। यह झरने के पानी के उपयोग को प्राथमिकता अगर ऐसा नहीं होता है, तो आप नल का पानी उबाल और यह खड़े होने देना होता है है। सोडा के साथ एनीमा करने के लिए सबसे प्रभावी था, तुम्हें पता है और घटकों के अनुपात में निरीक्षण करने के लिए की जरूरत है। आवश्यक प्रक्रियाओं के लिए पानी, गर्मी के लगभग 800 मिलीलीटर लेने के लिए और के 20-30 ग्राम जोड़ने के लिए बेकिंग सोडा। जिसके परिणामस्वरूप समाधान 38-42 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर लाया गया था यह भी पानी एनीमा 2 लीटर के दो अतिरिक्त भागों को तैयार करने के लिए आवश्यक है। एनीमा सोडा और नमक के साथ बड़ा प्रभाव है, तो समाधान एक छोटे से नमक जोड़ा जा सकता है। - 2 एनीमा एल गुदा Esmarch हलकों का उपयोग कर के माध्यम से दर्ज करना होगा। समाधान एक अधिकतम संभव समय धारण करना चाहिए और आंत्र खाली करने के लिए। - इसके बाद, तुरंत सोडा और आंत 30 मिनट की देरी में परजीवी से एनीमा की शुरुआत की। इस समय के बाद, आप आंत्र खाली करने के लिए की जरूरत है। बहुत अशांत और दर्दनाक प्रतिक्रिया सफाई पर तुरंत बंद कर देना चाहिए। बाद में प्रक्रियाओं में, समाधान में पानी की मात्रा कम करने के लिए सलाह दी जाती है। - प्रक्रिया एक सफाई समाधान (2 एल पानी) शुरू करने से पूरा हो गया है। चिकित्सीय सफाई परिसर में दस दिनों के लिए हर दूसरे दिन किया जाता है। सोडा के साथ एनीमा 5-7 बजे या 18-19 बजे - दिन में दो बार प्रयोग किया जाता है, खासकर समय चलाते हैं। जहाँ तक संभव हो वसा और जंक फूड को खत्म करने के आवश्यक प्रक्रियाओं के साथ समानांतर में, सब्जियों और फलों को प्राथमिकता देते हैं। एक आदमी उसके बाएं ओर स्थित है, और तुला अपने घुटनों अपने पेट के लिए तैयार की गई। मग Esmarch आवश्यक हो, तो कमरे के तापमान पर समाधान डालना नीचे की ओर 1-1. 5 मीटर और निचले छोर तक इसे बढ़ाने के लिए। यह ट्यूब से पानी और हवा की एक छोटी राशि छोड़ने के लिए आवश्यक है। जबकि कम नहीं रबर समाधान ट्यूब पर क्रेन की पूरी भरने के बाद बंद कर दिया कप है। टिप वैसलीन और अलग नितंबों से लिप्त है, आसान रोटरी आंदोलनों गुदा में यह शुरू। ट्यूब टिप के 3-4 सेमी, जबकि आंदोलन समानांतर कोक्सीक्स के लिए, नाभि, तो ट्यूब 5-8 सेमी से आगे उन्नत है की ओर शुरू की है। फिर ट्यूब 1-2 सेमी पर निकाल दिया जाता है और एक नल खोला जाता है। दबाव पानी बड़ी आंत में पहुंच जाएगा। आंत्र के लगभग भावना "भरने" तुरंत दिखाई देगा। इस समय, यह ट्यूब बन्द रखो या वाल्व बंद करके समाधान के प्रवाह की दर को निलंबित करने के लिए आवश्यक है। खाली मग डूश पूरी तरह से नहीं करना चाहिए। आंत हवा घुसना नहीं चलता है, एक छोटे से तरल के तल पर छोड़ दिया है। जिस वाल्व बंद है, टिप निकाल दिया जाता है। मैन सभी चौकों पर हो जाता है। एक बार जब टिप दर्ज किया गया है, सिर और कंधों से नीचे उतारा और गहराई से और बार बार पेट में सांस लेने के लिए शुरू किया जाना चाहिए। यह आत्म पकड़ प्रक्रिया के लिए अधिक उपयुक्त है। इसके अलावा, इस पद्धति का उपयोग, आप में प्रवेश करने और तरल पदार्थ की एक बड़ी मात्रा पकड़ कर सकते हैं। जो लोग सोडा के साथ एनीमा सफाई की कार्रवाई की कल्पना की कोशिश की है से अधिकांश, इसके सकारात्मक प्रभाव का उल्लेख किया। यह प्रक्रिया केवल पूरी तरह से शरीर में हल्कापन नहीं है नहीं है शरीर को शुद्ध, लेकिन यह भी काफी अच्छी तरह से किया जा रहा बेहतर बनाता है,। इसके अलावा, समीक्षा बताते हैं कि अगर आप एक आहार पर बैठते हैं, तो यह संयोजन के रूप में एनीमा के साथ बहुत आसान हस्तांतरण। कृमिरोग नमक के घोल के उपचार में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उपचार के दौरान, वहाँ बलगम की बड़ी मात्रा के निपटान, और कीड़े के निष्कासन है। नतीजतन - मरीज की हालत अप वसूली पूरा करने के लिए, काफी सुधार हुआ। इस पद्धति का उपयोग करने का एक परिणाम के रूप में उन्मूलन helminths रोग के लक्षण है कि कीड़े द्वारा परजीविता और उनके चयापचय अपशिष्ट जहर की वजह से नशा उकसाया गया खत्म करने में मदद करता है। मरीजों को लगता है कि वे ठीक हो गए हैं ,. कई सकारात्मक प्रभाव के बावजूद, सोडा एनिमा मतभेद की एक संख्या है। यह प्रक्रिया इस तरह के रूप की स्थिति में किया जाता हैः - बृहदान्त्र और मलाशय की सूजन; - खून बह रहा बवासीर; - खून बह रहा है पाचन; - मलाशय के घातक ट्यूमर; - गुदा विदर; - मलाशय के भ्रंश; - गर्भावस्था; - स्तनपान। याद रखें कि एनिमा के उपयोग - यह शरीर उपचार का सिर्फ एक सहायक विधि है। सबसे पहले, आप एक संतुलित आहार और एक स्वस्थ जीवन शैली के नियमों का पालन करना होगा।
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चूंकि समाज ने नुकसान के बारे में सीखाआनुवांशिक रूप से संशोधित उत्पाद, "ई" लेबल किए गए योजक, और रासायनिक उद्योग में प्रयुक्त सर्फैक्टेंट (सर्फैक्टेंट), लोग ध्यान से स्टोर में खरीदे जाने वाले सभी सामानों की संरचना का अध्ययन करते हैं। और व्यर्थ नहीं, क्योंकि हमारे लिए परिचित केक या शैम्पू के एक या कई तत्व हानिकारक और उपस्थिति के लिए भी हानिकारक हो सकते हैं और शरीर के लिए पूरी तरह से हानिकारक हो सकते हैं। इस लेख में हम बात करेंगेसर्फैक्टेंट्स और विशेष रूप से एक सर्फैक्टेंट जैसे लॉरिल ग्लूकोसाइड के बारे में। हम आपको बताएंगे कि डिटर्जेंट और सफाई उत्पादों का यह घटक किस प्रकार से लिया गया है, त्वचा पर इसका क्या प्रभाव है, चाहे वह हानिकारक है। इसके अलावा, चलो सर्फैक्टेंट के वास्तविक नुकसान के बारे में बात करते हैं। यदि आप डिटर्जेंट के इन अनिवार्य तत्वों और सौंदर्य प्रसाधनों को हानिकारक देखभाल करने के लिए उपयोग किया जाता है, तो यह आलेख कुछ लोकप्रिय मिथकों को समाप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उस भूमिका की परिभाषा पर आगे बढ़ने से पहले,जो कॉस्मेटिक्स में लॉरिल ग्लूकोसाइड बजाता है, सर्फैक्टेंट्स के बारे में कुछ शब्द कहें। उन लोगों को बिल्कुल गलत नहीं होगा जो जानबूझकर उन्हें हानिकारक मानते हैं। दरअसल, कुछ दशकों पहले, प्रसाधन सामग्री और डिटर्जेंट में जोड़े गए सर्फैक्टेंट अधिक आक्रामक थे और त्वचा पर हानिकारक प्रभाव पड़ा। लेकिन आज खरीदार पक्ष के लिए स्थिति बेहतर हो गई है, और सर्फैक्टेंट्स के पास कभी-कभी त्वचा की उपस्थिति और गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, सतह सक्रिय के खतरों की बात कर रहे हैंपदार्थ, इसका मतलब यह है कि उन्हें उच्च सांद्रता में श्वास लेने या अपने सिर को धोने के लिए शुद्ध रूप में एक शैम्पू के रूप में उपयोग करने के लिए उपयोगी नहीं होगा। यदि सर्फैक्टेंट कैंसरजन्य नहीं है, तो, नौ से एक की संभावना के साथ, यह आपके बालों और त्वचा को कोई महत्वपूर्ण नुकसान नहीं पहुंचाएगा। एकमात्र जोखिम समूह कुछ प्रकार के त्वचा रोगों वाले लोग हैं। व्यापक रूप से विज्ञापित में क्या शामिल हैशैंपू और शॉवर जेल? ये तेल, जड़ी बूटियों के जड़ी बूटियों और उपयोगी पौधों के निष्कर्ष हैं। लेकिन इस शैम्पू को खुद तैयार करने की कोशिश करें। कैमोमाइल, थाइम, ऋषि का एक जलसेक बनाओ, और फिर अपने सिर को धोने की कोशिश करें। और क्या होता है? शायद अंदर के बाल और गुणवत्ता में मजबूत और बेहतर हो जाते हैं, लेकिन आप इस तरह के "शैम्पू" के साथ तेल और गंदगी को धो नहीं सकते हैं। प्राकृतिक अवयव, यदि आप उन्हें कॉस्मेटिक उत्पाद बनाते हैं, तो पाउडर न करें, फोम न करें, अच्छी तरह से धोएं, और व्यावहारिक रूप से गंदगी और तेल को न हटाएं। यही कारण है कि सर्फैक्टेंट का प्रयोग रासायनिक और कॉस्मेटिक उद्योग में किया जाता है। इसके अलावा, धोने के लिए सर्फैक्टेंट आवश्यक हैंपानी के लिए मेकअप और क्रीम के लिए पानी और तेल के भंडारण के दौरान विघटित नहीं हुआ था। ऐसा लगता है कि इस विघटन में दो चरणों में भयानक? तथ्य यह है कि तेल की सतह पर त्वचीय के लिए अवांछनीय सूक्ष्मजीवों का गठन किया जा सकता है। पहले, रासायनिक उद्योग बूम से पहले, surfactant,पशु वसा की जगह, लेकिन उनका उपयोग पर्यावरण अनुकूल या मानवीय नहीं है। रसायन पर आविष्कार किए गए पहले सर्फैक्टेंट त्वचा पर प्रभाव की डिग्री के मामले में कम और आक्रामक नहीं थे। आखिरकार, इन पदार्थों के लिए क्या हैं? वे त्वचा को साबुन बनाते हैं, फोम बनाते हैं। यदि आप गहरी खुदाई करते हैं, तो त्वचा के ऊपरी परत को सर्फैक्टेंट द्वारा उजागर किया जाता है, और शैम्पू या क्रीम के सक्रिय पदार्थ में त्वचा में प्रवेश करने की क्षमता होती है। सतह सक्रिय की मुख्य समस्या क्या हैपदार्थ, इसलिए यह है कि वे सक्रिय पदार्थ के साथ त्वचा को एक साथ घुमा सकते हैं, और एक साथ मिट्टी या अनावश्यक वसा के साथ आपकी त्वचा की वसा लेने के लिए। नतीजतन, त्वचा की सतह सूखी, परेशान हो सकती है, एक दांत या लाली होगी। हम नुकसान के मुद्दे के करीब आ गएसर्फेकेंट्स। क्या यह सच है या यह मिथक है? कभी-कभी मुँहासे, मुंह, सूखी और निर्जीव त्वचा, भंगुर बाल की उपस्थिति में, हम गरीब पोषण, नींद की कमी, विटामिन की कमी को दोषी ठहराते हैं। हालांकि, समस्या सभी तरफ से मांगी जानी चाहिए। दैनिक स्वच्छता प्रक्रियाओं के दौरान हम जो भी उपयोग करते हैं वह भी "बुराई" का स्रोत बन सकता है। हमारी त्वचा एक सार्वभौमिक अवशोषक हैयह सब उस पर लागू होता है। एक सस्ती शॉवर क्लीनर, एक अतिदेय क्रीम या मेकअप का उपयोग करने से पहले, सोचें कि इस उत्पाद के सक्रिय तत्व त्वचा में प्रवेश करेंगे और रक्त में आ जाएंगे। यही कारण है कि जैविक सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है, समाप्ति तिथियों पर ध्यान दें और, ज़ाहिर है, आक्रामक सामग्री वाले उत्पादों का उपयोग करने से बचने का प्रयास करें। रसायनज्ञ त्वचा पर उनके प्रभाव की डिग्री के अनुसार सर्फैक्टेंट को चार समूहों में विभाजित करते हैं, फोम की क्षमता और पानी में गंदगी को हटाते हैं। आधा शताब्दी से अधिक लोग धन का उपयोग कर रहे हैंसर्फैक्टेंट युक्त स्वच्छता और सौंदर्य प्रसाधन। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पहले रासायनिक उद्योग में, cationic हार्ड और एनीओनिक लोगों का अधिक उपयोग किया गया है, अब सक्रिय पदार्थों के उपयोग के प्रति एक हल्का तरीका प्रभाव के साथ एक preonderance है। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि आप जो भी साधन उपयोग करते हैंन ही इस्तेमाल किया (अर्थात् शैम्पू, शॉवर जेल, स्वच्छ साबुन), आपको बाल नहीं मिलेगा और त्वचा छील नहीं जाएगी। सर्फैक्टेंट्स के उपयोग से नुकसान काफी हद तक अतिरंजित है। इस योजना में सबसे अधिक आता हैसोडियम लॉरिल सल्फेट, इस सर्फैक्टेंट की बहुत बुरी प्रतिष्ठा है। सौंदर्य प्रसाधनों में सल्फेट्स की भयावहता पर लेख पढ़ने के बाद शैम्पू, आधुनिक महिलाओं और लड़कियों में इस घटक को देखते हुए, इसे कूड़ेदान में फेंकने के लिए तैयार हैं। हालांकि, पकड़ यह है कि बाल जो बाद में हैशैम्पू या कंडीशनर का उपयोग चमकदार और विशाल हो जाना चाहिए, वे जीवित नहीं होंगे, क्योंकि उनमें पहले से ही मृत केराटिनिज्ड कोशिकाएं शामिल हैं। अपने लिए न्यायाधीश, अगर बाल या नाखून वास्तव में जीवित थे, तो बालों या नाखूनों को काटने की प्रक्रिया नरक यातना होगी। यह पता चला है कि रेशमी और "जीवित" बाल कर सकते हैंबनें, केवल तभी जब आप उन्हें गंदगी या वसा से साफ़ करते हैं। अधिक फोमिंग एजेंट में आपके सिर को धोने के लिए डिटर्जेंट होगा, आपके साफ बालों को और अधिक सुंदर और स्वस्थ लगेगा। एक और सवालः "सल्फाट युक्त सर्फैक्टेंट डर्मिस को परेशान करते हैं?" यह चिकित्सकीय साबित होता है कि अगर बातचीत कम से कम एक घंटे तक चलती है तो वे वास्तव में त्वचा को नुकसान पहुंचाएंगे। क्या आप कल्पना करते हैं कि आप अपने बालों को एक घंटे से अधिक समय तक शैम्पू में भंग कर सकते हैं? इसके अलावा, शुद्ध रूप में बड़ी मात्रा में सर्फैक्टेंट का श्वास हानिकारक हो जाएगा। यह पता चला है, बहुत सारे लेखों पर भरोसा नहीं करते हैं,जो सर्फैक्टेंट के नुकसान के बारे में एक दूसरे की असत्यापित जानकारी के बाद दोहराता है। यदि आप वास्तव में इस विषय में रूचि रखते हैं, तो इसे विस्तार से या शांत रूप से सामान्य कॉस्मेटिक माध्यमों का उपयोग करें। यह "SAW" क्या है, हमने पता लगाया। वे दोनों हानिकारक हो सकते हैं, और एलर्जी या अन्य नकारात्मक गुणों का उच्चारण नहीं किया है। सतह-सक्रिय पदार्थ रसायनविदों द्वारा बनाए जाते हैंकच्चे माल के तीन प्रकार से। उन्हें प्राप्त करने का पहला तरीका प्राकृतिक सामग्री - वसा और तेल का उपयोग कर रहा है। उत्पादन का दूसरा तरीका तेल का उपयोग है। सर्फैक्टेंट्स का उत्पादन करने का तीसरा तरीका संश्लेषण है, यानी, प्राकृतिक और कृत्रिम उत्पत्ति के विभिन्न उत्पादों की प्रयोगशाला में कृत्रिम उत्पादन है। इस आलेख में चर्चा की गई लॉरिल ग्लूकोसाइड, तैयारी की विधि द्वारा सर्फैक्टेंट के पहले समूह को संदर्भित करती है। अधिक विस्तार से वर्णन करने लायक है। आइए विश्लेषण करें कि कैसे लॉरिल ग्लूकोसाइड संश्लेषित किया जाता है, त्वचा के लिए नुकसान और इसके लाभ, चाहे वह निषिद्ध रूप से कॉस्मेटिक उत्पादों का उपयोग करना संभव हो, जिसमें यह निहित है। आज के बीच सबसे लोकप्रियप्रयुक्त सर्फैक्टेंट के प्रकार कार्बनिक पदार्थ होते हैं। वे सस्ता और निकालने में आसान हैं, वे त्वचा और पर्यावरण को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, और कुछ सक्रिय पदार्थ भी उपयोगी हो सकते हैं। सौंदर्य प्रसाधनों में लॉरिल ग्लूकोसाइड का प्रयोग अक्सर किया जाता है, क्योंकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक कच्चे माल से प्राप्त होता है। यह डिटर्जेंट में भी पाया जा सकता है। लॉरिल ग्लूकोसाइड का रासायनिक रूप से वर्णन किया जाता है? फॉर्मूला यहः सी18एच36हे6. रासायनिक साधनों से नारियल के तेल और ग्लूकोज सेमोटी सील करें। लॉरिल ग्लूकोसाइड संश्लेषित किया गया था। इस सर्फैक्टेंट की तैयारी उत्कृष्ट साबुन, गंदगी हटाने, और त्वचा पर नरम प्रभाव के कारण है। शैंपू, शॉवर जेल में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला लॉरिल ग्लूकोसाइड। इसके अलावा यह अंतरंग स्वच्छता के लिए बच्चों के डिटर्जेंट, क्रीम में जोड़ा जाता है। एक और प्रकार की बहुत नरम सतह सक्रिय हैपदार्थ, जिसका उपयोग अभी तक एलर्जी प्रतिक्रियाओं का खुलासा नहीं किया गया है, कार्बोक्साइल लॉरिल ग्लूकोसाइड है। पदार्थ का विवरणः यह एक नरम आयनिक सर्फैक्टेंट है, जिसे शैंपू, शॉवर जेल, क्रीम और साबुन में जोड़ा जाता है। चीनी और स्टार्च के अतिरिक्त इस पदार्थ को नारियल और हथेली के तेल से प्राप्त किया जाता है। अक्सर, सौंदर्य प्रसाधन के उपयोगकर्ता नुकसान के बारे में पूछते हैंसोडियम लॉरिल ग्लूकोसाइड जैसे पदार्थ। यहां एक गलती है - सबसे अधिक संभावना है, सोडियम लॉरिल सल्फेट है। फोम के उत्कृष्ट गठन के कारण यह सक्रिय सर्फैक्टेंट व्यापक रूप से शैंपू में प्रयोग किया जाता है। सोडियम सोडियम लॉरिल सल्फेट एक मजबूत एलर्जन है, यह बालों की संरचना को सूखता और कमजोर करता है, जिससे डैंड्रफ़ हो सकता है। लॉरिल ग्लूकोसाइड के साथ सोडियम लॉरिल के साथ कुछ भी आम नहीं है। सबसे फोमिंग सक्रिय पदार्थ सल्फेट हैं। इनमें सोडियम लॉरिल सल्फेट, सोडियम लॉरेन सल्फेट, सोडियम लॉरिल ग्लूकोसाइड हाइड्रोक्सीप्रोपील सल्फोनेट और अन्य। ज्यादातर खरीदारों का मानना है कि "सल्फेट" शब्द खतरे को इंगित करता है, और यदि आप वास्तव में अपने बालों की सुंदरता की परवाह करते हैं तो ऐसे सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करना बेहतर नहीं है। लेकिन यह मामला नहीं है। जैसा ऊपर बताया गया है, ऐसे सर्फैक्टेंट केवल तभी हानिकारक होंगे जब बड़ी मात्रा में और शुद्ध रूप में उपयोग किया जाता है। सल्फेट्स के साथ शैंपू का अक्सर उपयोग किया जाता हैसैलून और हेयरड्रेसर में पेशेवर सौंदर्य प्रसाधन और सौंदर्य प्रसाधन, ग्राहक के सिर को जल्दी और अच्छी तरह से धोने और बालों की सुंदर उपस्थिति का ख्याल रखने के लिए। इस तरह के शैंपू और जेल बहुत फोम बनाते हैं, आसानी से धोया जाता है, और बाल सुंदर हो जाते हैं। हालांकि, अगर आप रोज़ाना इस कॉस्मेटिक्स को लागू करते हैं, तो आप सुखाने के प्रभाव को देख सकते हैं, बाल भंगुर हो जाएंगे। क्या लॉरिल ग्लूकोसाइड स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है? सर्फैक्टेंट युक्त कॉस्मेटिक्स का उपयोग करने के लिए निश्चित रूप से अनुशंसा नहीं की जाती है, एटोपिक डार्माटाइटिस वाले लोग। अन्य मामलों में, कोई सर्फैक्टेंट नहीं, यहां तक कि सल्फेट फॉर्मूला होने से, गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया नहीं होगी। यदि आप त्वचा के लाल रंग को देखते हैं, तो स्नान के बाद, आपको खरोंच की इच्छा है, दूसरों के साथ कॉस्मेटिक तैयारी को प्रतिस्थापित करना आवश्यक है। अगर हम सर्फैक्टेंट्स के बारे में बात करते हैं,तब शैंपू, शॉवर जेल, साबुन और कंडीशनर की संरचना में उन्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। खतरा केवल उन सर्फैक्टेंट हैं जो तेल और इसके डेरिवेटिव से प्राप्त होते हैं। समय पर, देखभाल करने वालेसौंदर्य प्रसाधन और सफाई एजेंटों अक्सर कार्बनिक पदार्थों है कि कम मात्रा में पूरी तरह से हानिरहित हैं का उपयोग करें, त्वचा नरम, जल्दी से तेल और गंदगी धुल, बाल और त्वचा के समग्र स्वरूप को स्वस्थ और स्वच्छ बना रही है। Lauryl glucoside - यह आज सबसे आम इस्तेमाल किया सर्फेकेंट्स से एक है। यह एक अच्छा फोम, झाग, और स्थिरता बनाए रखने की क्षमता प्रदान करता है। कार्बोक्सिलेट सोडियम lauryl glucoside, सल्फेट glucoside कार्बोज़ाइलेस - तैयारी और एक पृष्ठसक्रियकारक के आवेदन की एक ऐसी ही विधि। अधिकांश भाग के लिए वे एलर्जी का कारण नहीं है, और दूसरी तरफ, त्वचा नरम और यह स्वस्थ दिखने लगता है।
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अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः होकर चमकता रहता है । स्त्रोके इस सप्तम शुद्ध अति शुद्ध सार पदार्थको रज कहते हैं । वीर्य काँचकी तरह चिकना और सफेद होता है और रज लाखकी तरह लाल होता है । इस प्रकार रससे लेकर वीर्य और रजतक छः धातुओंके पाचन करने में पाँच दिनके हिसाबसे पूरे तीस दिन लगभग चार घंटे लगते हैं। वैज्ञानिकोंने ऐसा निश्चय किया है कि चालीस सेर भोजनसे एक सेर रक्त बनता है और एक सेर रक्तसे दो तोला वीर्य बनता है। इस प्रकार एक तोला वीर्यके बराबर चालीस तोला अर्थात् आधा सेर रक्त होता है। यदि नीरोग मनुष्य सेरभर भोजन करे तो चालीस सेर भोजन चालीस दिन में होगा। अर्थात् चालीस दिनकी कमाई दो तोला वीर्य हुई । इस हिसाबसे तीस दिन अर्थात् एक महीने की कमाई डेढ़ तोला हुई। एक बार में मनुष्यका वीर्य कम-से-कम डेढ़ तोला तो निकलता ही होगा । इतने कठोर परिश्रमसे तीस दिनमें प्राप्त होनेवाली डेढ़ तोला अमूल्य अतुल दौलत एक समय में ही फूँक डालना कितनी बड़ी मूर्खता है । 'मरणं विन्दुपातेन । जोवनं विन्दुधारणम् ।। अर्थात् वीर्यका नाश ही मृत्यु है और ब्रह्मचर्य अर्थात् वीर्यको रक्षा ही जीवन है । योगियों के लिये ब्रह्मचर्यका वास्तविक स्वरूप - रयि अर्थात् अन्नके खींचनेके लिये जो प्राणोंकी आभ्यन्तर क्रिया होती है उसीका नाम भूख है, वह वृक्षों, पशु, पक्षी आदि और मनुष्यों में समान है । वृक्ष प्राणों के अनुकूल ही अन्नको खींचते हैं। यही कारण है कि विशेष विशेष वृक्ष उन विशेष स्थानोंमें जहाँ उनके अनुकूल पृथ्वी-जलादिमें परमाणु नहीं होते हैं नहीं उगते हैं। पशु आदि भी प्राणोंके अनुकूल ही अन्नको खींचते हैं, यदि मनुष्य के कुसझसे इस स्वाभाविक बुद्धिको न खो बैठे हों किंतु मनुष्य नाना प्रकारकी वासनाओंसे भ्रमित होकर इस विवेक बुद्धिको खो देता है कि किस समय प्राणको किस-किस विशेष रयि अर्थात् अन्न की आवश्यकता है। कभी-कभी प्राणों में भी कई विशेष कारणोंके अधीन होकर बाहर रयि अर्थात् अन्नकी ओर आकर्षित होने की आभ्यन्तर क्रिया होती है। यही काम-विपयवासनाके पीछे जाना है । इसके वशीभूत हो जाने से ब्रह्मचर्यका खण्डन होता है । इसलिये योगी के लिये ब्रह्मचर्यका वास्तविक स्वरूप प्राणोंपर पूरा अधिकार प्राप्त कर लेना है और प्राण आदि पञ्च वायु अन्तःकरणका सम्मिलित कार्य है । अतः अन्तःकरणपर पूरा अधिकार कर लेना आवश्यक है । यह अधिकार ब्रह्मनिष्ठा से प्राप्त होता है अर्थात् उस क्रमसे ब्रह्मनिष्ठ होना ही पूर्ण ब्रह्मचर्यका वास्तविक स्वरूप है। अधिक जानकारीके लिये सूत्र ३१ का विशेष विचार देखें । ५. अपरिग्रह - धन, सम्पत्ति, भोग-सामग्री अथवा अन्य वस्तुओंको अपनी ( शरीर-रक्षा आदि ) आवश्यकताओंसे अधिक केवल अपने ही भोगके लिये स्वार्थ-दृष्टि से संचय या इकट्ठा करना परिग्रह है। ( आवश्यक वह वस्तु है जिसके बिना अभ्यास अथवा धार्मिक कार्य निर्विघ्नतापूर्वक न चल सकें अर्थात् जो अध्यात्मोन्नति अथवा धार्मिक कार्यों में साधनरूपसे आवश्यक हो; किन्तु ऐसी वस्तुओंका संग्रह भी बिना किसी प्रकारकी आसक्ति या लगावके होना चाहिये अन्यथा वह भी परिग्रह ही समझा जावेगा ।) इससे बचना अपरिग्रह है । पर योगीके लिये तो सबसे बड़ा परिग्रह अविद्या आदिक्लेश, शरीर और चित्त आदिमें ममत्व और अहङ्कार हैं, जो सब परिग्रहके मूल कारण हैं। इसके लिये इन सब क्लेशों आदिका न रखना ही अपरिग्रहका लक्षण अभिमत है। शेष सूत्र ३१ के विशेष विचारमें देखें । [ सूत्र ३१ सङ्घति - इस प्रकार सामान्यरूपसे यर्मोका निरूपण करके अगले सूत्र में उनकी सबसे ऊँची अवस्था बतलात हैं - जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ॥ ३१ ॥ शब्दार्थ - नाति-देश-काल-समय अनवच्छिन्नाः = जाति, देश, काल और समय ( संकेत 'नियमविशेष' ) की सीमासे रहित, सार्वभौमाः = सब अवस्थाओंमें पालन करने योग्य; महाव्रतम् = महाव्रत है अन्वयार्थ - नाति, देश, काल और समयकी हदसे रहित सर्वभूमियोंमें पालन करने योग्य यम महाव्रत कहलाते हैं । व्याख्या - जाति, देश, काल और समय ( संकेत, नियमविशेष ) की हदसे रहित होनेका यह अभिप्राय है कि इनके द्वारा हिंसा आदि यम संकुचित न किये जायँ । जातिद्वारा संकुचित - गौ आदि पशु अथवा ब्राह्मणकी हिंसा न करूँगा । देशद्वारा संकुचित - हरिद्वार, मथुरा आदि तीर्थोंमें हिंसा नहीं करूंगा । कालसे संकुचित - चतुर्दशी, एकादशी आदि तिथियों में हिंसा नहीं करूँगा । समयद्वारा संकुचित- समयका अर्थ यहाँ काल नहीं है बल्कि विशेष नियम या विशेष संकेत है। जैसे देव अथवा ब्राह्मणको प्रयोजन-सिद्धि के लिये हिंसा करूँगा अन्य प्रयोजनसे नहीं। इसी प्रकार अन्य यमोंको समझ लेना चाहिये । अर्थात् समयावच्छिन्न सत्य - प्राणहरण आदिके संकटसे अतिरिक्त मिथ्याभाषण न करूँगा । समयावच्छिन्न अग्तेय - दुर्भिक्षके अतिरिक्त चोरी न करूँगा । समयावच्छिन ब्रह्मचर्य ऋतुकालसे अन्य समयमें स्त्रीगमन न करूँगा । समयावच्छिन्न अपरिग्रह परिवार के परिपालन के लिये ही परिग्रह ग्रहण करूँगा । नत्र ये यम इस प्रकारकी संकीर्णतासे रहित सब जातियों के लिये सर्वत्र सर्वदा सर्वथा पालन किये जाते हैं, तब महाव्रत कहलाते हैं । विशेष विचार - ( सूत्र ३१ ) इस सूत्रका यह भी भाव है कि यमका पालन किसी जातिविशेष, देश-विशेष, काल-विशेष या अवस्था-विशेषके मनुष्योंके लिये नहीं है; किंतु यह भूमण्डलपर रहनेवाली सभी नाति, देश, काल और अवस्थावालोंके लिये पालने योग्य है; इसीलिये ये सार्वभौम महाव्रत कहलाते हैं। इससे पूर्व के सूत्र में हमने यमका वह लक्षण किया है, जो योगियोंको अभिमत है । इस सूत्रके वि० वि० में हम उनका वह विशाल व्यापक और सामान्य स्वरूप दिखलानेका यत्न करेंगे, जिसका सम्बन्ध सम्पूर्ण मनुष्य-समाज और सारे राष्ट्रोंसे है । तीसवें सूत्रकी सङ्गतिमें बतला आये हैं कि यमोंका सम्बन्ध केवल व्यक्तियोंसे नहीं है परंतु सारे मनुष्य-समाजसे है, इसलिये सारे मनुष्य इनके पालन करने में समष्टिरूपसे परतन्त्र हैं। कोई मनुष्य चाहे वह किसी नाति, देश, काल, अवस्था, वर्णाश्रम, मत-मतान्तरका क्यों न हो, यदि उसे मनुष्य समानमें रहना है तो उसके लिये ये यम सर्वदा माननीय और पालनीय हैं। । संसार में फैली हुई भयंकर अशान्तिके नाशका केवलमात्र उपाय यमोंका यथार्थरूपसे पालन करना है । यमके अर्थ ही शासन और व्यवस्था रखनेवालेके हैं। इनके पालनसे संसारकी अवस्था ठीक रह सकती है । यह शङ्का कि क्षत्रिय शासकादि अहिंसा और गृहस्थी ब्रह्मचर्यका पालन नहीं कर सकते, यमोंको यथार्थरूपसे न समझने के कारण उत्पन्न होती है। उसके निवारणार्थ यमोंके स्वरूपको और स्पष्टरू पसे दिखलानेका यत्न करते हैं अहिंसा - जिस प्रकार सारे क्लेशोंका मूल अविद्या है, उसी प्रकार सारे यमोंका मूल अहिंसा है । हिंसा तीन प्रकारको है ( १ ) शारीरिक - किसी प्राणीका प्राण-हरण करना अथवा अन्य प्रकारसे शारीरिक पीड़ा पहुंचाना; ( २ ) मानसिक - मनको क्लेश देना; (३) आध्यात्मिक-अन्तःकरणको मलिन करना । यह राग, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मोह, भवादि तमोगुण वृत्तिले मिश्रित होती है, जैसा कि सूत्र तीसकी व्याख्या में बतला आये हैं। किसी प्राणीकी किसी प्रकारकी हिंसा करनेके साथ-साथ हिंसक अपनी आत्मिक हिंसा करता है, अर्थात् अपने अन्तःकरण की हिंसाके क्लिष्ट संस्कारोंके मलसे दूषित करता है । इन तीनों प्रकारकी हिंसाओंमें सबसे बड़ी हिंसा आध्यात्मिक हिंसा है, जैसा कि ईशोपनिषद् - में बतलाया है - असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः । तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥ ( ईश उ० मं० ३ ) जो कोई आत्मघाती लोग हैं ( अर्थात् अन्तःकरणको मलिन करनेवाले हैं ); वे मरकर उन लोकोंमें ( योनियोंमें ) जाते हैं जो असुरोंके लोक कहलाते हैं और घने अँधेरेसे ढके हुए है अर्थात् ज्ञानरहित मूढ़ नीच योनियों में जाते हैं । शरीर तथा सनकी अपेक्षा आत्मा श्रेष्ठतम है, क्योंकि शरीर और मन तो आत्माके करण (साधन) हैं, जो मनुष्यको उसके कल्याणार्थ दिये गये हैं। इसलिये हिंसक अधिक दयाका पात्र है, उसके प्रति भी द्वेप अथवा बदला लेने की भावना रखना हिंसा है। इसलिये जिसपर हिंसा की जाती है उसके तथा हिंसक दोनोंके कल्याणार्थ हिंसा-पापको हटाना चाहिये । योगीमें अहिंसाव्रतकी सिद्धिसे आत्मिक तेज इतना बढ़ जाता है कि उसकी संनिधिसे ही हिंसक हिंसाकी भावनाको त्याग देता है। मानसिक शक्तिवाले मानसिक बलसे हिंसाको हटा दें, वाचिक तथा शारीरिक शक्तिवाले जहाँतक उनका अधिकार है उस सीमातक इन शक्तियोंको हिंसाके रोकने में प्रयोग करें। शासकों तथा न्यायाधीशोंका परम कर्तव्य संसार में अहिंसाव्रतको स्थापन करना है। जिस प्रकार कोई मनुष्य मदोन्मत्त अथवा पागल होकर किसी घातक शस्त्रसे जो उसके पास शरीर-रक्षाके लिये है, अपने हो शरीरपर आघात पहुँचाने लगे तो उसके शुभचिन्तकों का यह कर्तव्य होता है कि उसके हितार्थ उसके हाथों से वह शस्त्र हरण कर ले। इसी प्रकार यदि कोई हिंसक शरीररूपी शस्त्रसे जो उसको उसकी आत्माके कल्याणार्थ दिया गया है, दूसरोंको तथा अपनी ही आत्माको हिंसारूपी आघात पहुँचा रहा है और अन्य किसी प्रकारसे उसका सुधार असम्भव हो गया है तो अहिंसा तथा उसके सहायक अन्य सब यमोंको सुव्यवस्था रखनेवाले शासकोंका परम कर्तव्य होता है कि उसके शरीरका उससे वियोग कर दें। यह कार्य अहिंसाव्रतमें बाधक नहीं है वरं अहिंसाव्रतका रक्षक और पोषक है। पर यदि यह कार्य द्वेषादि तमोगुणी वृत्तियों अथवा बदला लेनेकी भावनासे मिश्रित है तो हिंसाकी सोमामें आ जाता है। अहिंसाके स्वरूपको इस प्रकार विवेकपूर्वक समझना चाहिये कि सत्त्वरूपी धर्म, वैराग्य और ऐश्वर्य ( श्रेष्ठ भावनाओं ) के प्रकाशमें अहिंसा तथा उसके अन्य सब सहायक यर्मोमें; और तमरूपी अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य और अनैश्चर्य ( नीच भावनाओं) के अन्धकार में हिंसा तथा उसके पा० मो० प्र० ४९
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3 में निम्न प्रावधान का अन्तःस्थापन :अधिनियम की विद्यमान धारा-53 के अन्त में निम्न प्रावधान अन्तःस्थापित किया जाता है : "परन्तु राज्य शासन के नियंत्रणाधीन निगम, द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामले में, नियत क्रम में उनके द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं नियुक्त कर्मचारी, अवैधानिक कृत्य के लिए उत्तरदायी होंगे। उक्त अवैधानिक कृत्य का भार ऐसे व्यक्ति पर होगा, जिसपर अपराध अधिरोपित किया गया हो, परंतु यह भी कि अनुसंधान के दौरान अन्य किसी व्यक्ति / लोक सेवक, जिनके अवैधानिक कृत्य का मामला संज्ञान में आता है, तो उनके मामले में सक्षम स्तर से स्वीकृति के उपरांत आरोप अधिरोपित किया जा सकेगा। झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की विद्यमान धारा - 54 (लाइसेंस प्राप्त विक्रेताओं अथवा उसके सेवकों के कतिपय विधि विरूद्ध कार्यों के लिए शास्तियों) में निम्न प्रावधान का अन्तःस्थापनःअधिनियम की विद्यमान धारा-54 के अन्त में निम्न प्रावधान अन्तःस्थापित किया जाता है : "परन्तु राज्य शासन के नियंत्रणाधीन निगम द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामले में नियत क्रम में उनके द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं नियुक्त कर्मचारी, अवैधानिक कृत्य के लिए उत्तरदायी होंगे। उक्त अवैधानिक कृत्य का भार ऐसे व्यक्ति पर होगा, जिसपर अपराध अधिरोपित किया गया हो, परंतु यह भी कि अनुसंधान के दौरान अन्य किसी व्यक्ति / लोक सेवक, जिनके अवैधानिक कृत्य का मामला संज्ञान में आता है, तो उनके मामले में सक्षम स्तर से स्वीकृति के उपरांत आरोप अधिरोपित किया जा सकेगा। 7. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की विद्यमान धारा-55 के अंत में नई धारा 55- 'क' 55- 'ख', 55-'ग', 55-'घ', 55-ड.' एवं 55-'च' का अन्तःस्थापन : धारा 55- 'क'- किसी स्थान को सामान्य मदिरा पान गृह के रूप में खोलने, रखने या उपयोग में लाने के लिए या किसी भी ऐसे स्थान के देख-रेख उसका प्रबंध या नियंत्रण रखने के लिए या ऐसे किसी स्थान के कारोबार का संचालन करने की सहायता करने के लिए शास्ति- जो कोई इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम, जारी की गई किसी अधिसूचना या दिये गये किसी आदेश के या इस अधिनियम के अधीन मंजूर की गई किसी अनुज्ञप्ति, परमिट या पास के उल्लंघन में (क) किसी स्थान को सामान्य मदिरा पान - गृह के रूप में खोलेगा, रखेगा या उपयोग में लायेगा, या (ख) सामान्य मदिरा पान गृह के रूप में खोले गये, रखे गये या उपयोग में लाये गये किसी स्थान की देख-रेख या उसका प्रबंध' या नियंत्रण रखेगा या ऐसे स्थान का कारोबार का संचालन करने में किसी भी रीति में सहायता करेगा. "वह ऐसे कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक हो सकेगी या जुर्माने से जो पाँच हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो पच्चीस हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा और पश्चातवर्ती अपराध कारित करने के लिए वह कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो दस हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो पचास हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा। धारा 55 - 'ख' मदिरा पान हेतु स्वीकृत अनुज्ञप्ति परिसर के अतिरिक्त किसी अन्य मदिरा पान-गृह में मत्त पाये जाने के लिए या मदिरा पान करने के प्रयोजन के लिए मदिरा के साथ पाये जाने के लिए शास्तिजो कोई इस अधिनियम के अधीन या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम, जारी की गई अधिसूचना, या दिये गये किसी आदेश के या इस अधिनियम के अधीन मंजूर की गई किसी अनुज्ञप्ति परमिट या पास के उल्लंघन में, मदिरा पान हेतु स्वीकृत अनुज्ञप्ति परिसर के अतिरिक्त किसी अन्य मदिरा पान-गृह में मत्त पाया जाये या मदिरा पान करता हुआ पाया जायेगा या मदिरा पान करने के प्रयोजन से मदिरा के साथ वहाँ उपस्थित पाया जायेगा वह ऐसे जुर्माने से, जो पाँच हजार रूपये तक का हो सकेगा, दण्डित किया जायेगा और किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में जो किसी मदिरा पान हेतु स्वीकृत अनुज्ञप्ति परिसर के अतिरिक्त किसी अन्य मदिरा पान-गृह में उस समय पाया जाएगा जबकि वहाँ मदिरा पान चल रहा हो, जबतक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि वह वहाँ मदिरा पान करने के प्रयोजन से उपस्थित था। धारा 55-'ग- किसी स्थान को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा अपराध, जो धारा 47, धारा 49, धारा 55, धारा 55- 'क' एवं 55- 'ख' के अधीन दंडनीय है, किये जाने हेतु उपयोग में लाये जाने देने के लिए शास्ति- जो कोई किसी स्थान का स्वामी होते हुए या उसका उपयोग या देख-रेख या प्रबंध या नियंत्रण रखते हुए, उस स्थान को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा अपराध, जो कि धारा 47 धारा 49, या धारा 55 या धारा 55- 'क' एवं 55- 'ख' के अधीन दंडनीय है, किये जाने हेतु जानते हुए उपयोग में लाये जाने देगा, वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो दस (10) हजार रूपये से कम का नहीं होगा, किन्तु जो बीस (20) हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा। पश्चातवर्ती अपराध के लिए वह कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो रू0 20000/- (बीस हजार रूपये) से कम का नहीं होगा किन्तु जो रू0 50000/- (पचास हजार रूपये) तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा। धारा 55- 'घ- धारा 47 या 55 के अधीन दंडनीय अपराधों को करने से अलग रहने के लिए बंध - पत्र का निष्पादन(क) जब कभी कोई व्यक्ति धारा-47 या धारा-55 के अधीन दंडनीय किसी अपराध का दोष-सिद्धि ठहराया जाता है एवं दोष-सिद्धि ठहराने वाले मजिस्ट्रेट का यह मत है कि ऐसे व्यक्ति से यह अपेक्षा करना आवश्यक है कि वह उन धाराओं के अधीन दंडनीय अपराधों को करने से अलग रहने के लिए एक बंध-पत्र निष्पादित करे तो मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति पर दंडादेश पारित करते समय यह आदेश कर सकेगा कि वह तीन वर्ष से अनाधिक की ऐसी कालावधि के दौरान जैसा वह निर्दिष्ट करे, ऐसे अपराध को करने से प्रविरत रहने के लिए उसकी आय के अनुपात के अनुसार राशि का प्रतिभूतिओं सहित या रहित (With or without Securities) एक बंध-पत्र निष्पादित करें। (ख) बन्ध-पत्र का प्रारूप और ऐसे बंध-पत्र से संबंद्ध समस्त विषयों को दण्ड प्रक्रिया संहिता के उपबंधों का लागू होना- बंध-पत्र द्वितीय अनुसूची में अन्तर्विष्ट प्रारूप में होगा और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का अधिनियम संख्याक-2) के उपबंध जहाँ तक वे लागू होते है, ऐसे बंध-पत्र से संबंद्ध समस्त विषयों को उसी प्रकार लागू होंगे, मानो वह शान्ति बनाये रखने के लिए उस संहिता कि धारा 106 के अधीन निष्पादित किये जाने के लिए आदेशित बंध-पत्र है। (ग) परिस्थितियाँ जिनमें बंध-पत्र शून्य होगा- यदि अपील में या अन्यथा दोष-सिद्धी अपास्त कर दी जाए, तो इस प्रकार निष्पादित बंध-पत्र शून्य हो जाएगा। (घ) अपील न्यायालय या उच्च न्यायालय की आदेश करने की शक्ति- इस धारा के अधीन, किसी अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय द्वारा, जबकि वह पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा है, भी आदेश किया जा सकेगा। धारा 55- 'ड. - मजिस्ट्रेट का किसी व्यक्ति को यह कारण बताने के लिए अपेक्षित करना कि सद्व्यवहार के लिए बंध-पत्र निष्पादित करने के लिए क्यों न आदेशित किया जाए(क) जब कभी राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त किये गये प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट को यह सूचना प्राप्त होती है कि उसकी अधिकारिता के स्थानीय सीमाओं के भीतर कोई व्यक्ति इस अधिनियम की धारा 47 या धारा 55 के अधीन दण्डनीय अपराध को अभ्यासिक / भय मुक्त / निडर रूप से करता है, या करने का प्रयत्न करता है, या उसके किये जाने का दुष्प्रेरण करता है तो ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से यह कारण बताने की अपेक्षा कर सकेगा कि क्यों न उसे तीन वर्ष से अनाधिक ऐसी कालावधि के लिए, जैसा मजिस्ट्रेट निर्देशित करें, अपने सद्व्यवहार हेतु प्रतिभूतिओं सहित बंध-पत्र (Bond with surities) निष्पादित करने के लिए आदेशित किया जाए। (ख) उपधारा (क) के अधीन कार्यवाही में दण्ड प्रक्रिया संहिता के उपबंध का लागू होना-दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का अधिनियम संख्याक - 2) के उपबंध जहाँ तक वे लागू होते हैं उपधारा (क) के अधीन किन्हीं भी कार्यवाहियों को उसी प्रकार लागू होंगे, मानो कि उसमें निर्देशित बंध-पत्र उस संहिता की धारा 110 के अधीन निष्पादित किए जाने के लिए अपेक्षित बंध-पत्र है। धारा 55- 'च'- सार्वजनिक स्थानों पर मद्यपान या मद्यपान कर उत्पात के लिए शास्ति (क) सार्वजनिक स्थानों पर मद्यपान के लिए शास्ति- जो कोई मद्यपान हेतु अनुज्ञप्त परिसर के अतिरिक्त, सार्वजनिक स्थानों जैसे शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, स्नान घाट, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन तथा आम रास्ता आदि में मदिरा पान करते हुए या नशे आदि में चूर पाया जाता है तो उसे जुर्माने से, जो प्रथम अपराध के लिए एक हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु 5 (पाँच) हजार रूपये तक का हो सकेगा तथा अपराध के पुनरावृत्त किए जाने की दशा में, जुर्माने से जो 5 (पाँच) हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो 10 (दस) हजार रूपये तक का हो सकेगा तथा तीन मास के कारावास से दण्डित किया जायेगा। (ख) सार्वजनिक स्थानों पर मद्यपान कर उत्पात करने के लिए शास्ति- जो कोई मद्यपान हेतु अनुज्ञप्त परिसर अनुज्ञप्त परिसर के अतिरिक्त, सार्वजनिक स्थानों जैसे शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, स्नान घाट, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, आम रास्ता आदि में मदिरा पान करने के पश्चात उत्पात करते हुए पाया जाता है तो उसे जुर्माना से, जो दस हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो पच्चीस हजार रूपये तक का हो सकेगा तथा तीन मास के कारावास से दण्डित किया जायेगा। झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की धारा 56 (केमिस्ट की दुकान आदि में उपभोग के लिए शास्ति / दण्ड) में संशोधन :- अधिनियम की धारा 56 की उपधारा (1) में पाँच हजार रूपये शब्द समूह के स्थान में दस हजार रूपये शब्द समूह और अधिनियम की धारा 56 की उपधारा (2) में एक हजार रूपये शब्द समूहों के स्थान में पाँच हजार रूपये समूह प्रतिस्थापित किये जायेंगे। झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की विद्यमान धारा - 57 (अनुज्ञप्तिधारी या उसके सेवक के कतिपय कृत्यों के लिए दण्ड) में निम्न प्रावधान का अन्तःस्थापन :- अधिनियम की विद्यमान धारा 57 के अन्त में निम्न प्रावधान अन्तःस्थापित किया जाता हैझारखण्ड विधान सभा की त्रैमासिक पत्रिका "परन्तु राज्य शासन के नियंत्रणाधीन निगम द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामले में, नियत क्रम में उनके द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं नियुक्त कर्मचारी, अवैधानिक कृत्य के लिए उत्तरदायी होंगे। उक्त अवैधानिक कृत्य का भार ऐसे व्यक्ति पर होगा, जिसपर अपराध अधिरोपित किया गया हो, परंतु यह भी कि अनुसंधान के दौरान अन्य किसी व्यक्ति / लोक सेवक, जिनके अवैधानिक कृत्य का मामला संज्ञान में आता है, तो उनके मामले में सक्षम स्तर से स्वीकृति के उपरांत आरोप अधिरोपित किया जा सकेगा। 10. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की विद्यमान धारा-58 (किसी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के लिए आयात निर्यात, परिवहन, विनिर्माण, विक्रय या कब्जा) के अन्त में धारा 58 (3) का अन्तःस्थापनः- अधिनियम की धारा 58 के अन्त में धारा 58 (3) के रूप में निम्न प्रावधान अन्तःस्थापित किया जाता है : धारा - 58 ( 3 ) " परन्तु राज्य शासन के नियंत्रणाधीन निगम द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामले में, नियत क्रम में उनके द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं नियुक्त कर्मचारी, अवैधानिक कृत्य के लिए उत्तरदायी होंगे। उक्त अवैधानिक कृत्य का भार ऐसे व्यक्ति पर होगा, जिसपर अपराध अधिरोपित किया गया हो, परंतु यह भी कि अनुसंधान के दौरान अन्य किसी व्यक्ति / लोक सेवक, जिनके अवैधानिक कृत्य का मामला संज्ञान में आता है, तो उनके मामले में सक्षम स्तर से स्वीकृति के उपरांत आरोप अधिरोपित किया जा सकेगा। 11. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की विद्यमान धारा-59 (अनुज्ञप्तिधारी का उनके सेवकों के कृत्यों के लिए आपराधिक दायित्व) में निम्न प्रावधान का अन्तःस्थापन :- अधिनियम की विद्यमान धारा-59 के अन्त में निम्न प्रावधान अन्तःस्थापित किया जाता है :79 "परन्तु राज्य शासन के नियंत्रणाधीन निगम, द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामले में नियत क्रम में उनके द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं नियुक्त कर्मचारी, अवैधानिक कृत्य के लिए उत्तरदायी होंगे। उक्त अवैधानिक कृत्य का भार ऐसे व्यक्ति पर होगा, जिसपर अपराध अधिरोपित किया गया हो, परंतु यह भी कि अनुसंधान के दौरान अन्य कोई व्यक्ति / लोक सेवक, जिनके अवैधानिक कृत्य का मामला संज्ञान में आता है, तो उनके मामले में सक्षम स्तर से स्वीकृति के उपरांत आरोप अधिरोपित किया जा सकेगा। 12. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की धारा-62 (उन अपराधों के लिए शास्ति / दण्ड, जो अन्यथा दण्डनीय न हो) में संशोधनः- अधिनियम की धारा-62 में संशोधन निम्नवत किया जाता है जो कोई किसी भी ऐसे कार्य या जान बुझकर किसी ऐसे गतिविधि का, जोकि इस अधिनियम के उसके अधीन बनाये गये किसी भी नियम जारी की गई किसी भी अधिसूचना या दिये गये किसी आदेश के उपबंधों में से किसी भी उपबंध के उल्लंघन में किया गया हो, और जिसके लिए इस अधिनियम में अन्यथा उपबंध न हो, दोषी हो, वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि तीन माह तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दस हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा। परन्तु राज्य शासन के नियंत्रणाधीन निगम द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामले में, नियत क्रम में उनके द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं नियुक्त कर्मचारी, अवैधानिक कृत्य के लिए उत्तरदायी होंगे। उक्त अवैधानिक कृत्य का भार ऐसे व्यक्ति पर होगा, जिसपर अपराध अधिरोपित किया गया हो, परंतु यह भी कि अनुसंधान के दौरान अन्य कोई व्यक्ति / लोक सेवक, जिनके अवैधानिक कृत्य का मामला संज्ञान में आता है, तो उनके मामले में सक्षम स्तर से स्वीकृति के उपरांत आरोप अधिरोपित किया जा सकेगा। 13. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की विद्यमान धारा-64 (अपराध करने के प्रयत्न के लिए शास्ति) के अन्त में निम्न प्रावधान का अन्तःस्थापनःअधिनियम की संशाधित धारा 64 के अन्त में निम्न प्रावधान अन्तःस्थापित किया जाता है, यथा"परन्तु राज्य शासन के नियंत्रणाधीन निगम, द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामले में, नियत क्रम में उनके द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं नियुक्त कर्मचारी, अवैधानिक कृत्य के लिए उत्तरदायी होंगे। उक्त अवैधानिक कृत्य का भार ऐसे व्यक्ति पर होगा, जिसपर अपराध अधिरोपित किया गया हो, परंतु यह भी कि अनुसंधान के दौरान अन्य कोई व्यक्ति / लोक सेवक, जिनके अवैधानिक कृत्य का मामला संज्ञान में आता है तो उनके मामले में सक्षम स्तर से स्वीकृति के उपरांत आरोप अधिरोपित किया जा सकेगा। 14. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की वर्तमान धारा-66 ( अधिहरण योग्य वस्तुएं) में संशोधन :- अधिनियम की धारा-66 में संशोधन निम्नवत किया जाता है, यथाधारा-66 (2) में अंकित वाक्य "shall likewise be liable to confiscation" के उपरान्त एवं अंकित Proviso के पहले निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगासाथ ही यह कि उपरोक्त वर्णित वाहन, कार्ट, जलयान, रॉफ्ट अथवा परिवहन के अन्य साधन को बॉण्ड अथवा स्यूरिटी पर विमुक्त नहीं किया जाएगा। ये सभी, न्यायालय के आदेश के उपरान्त ही विमुक्त किये जायेंगे। 15. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की विद्यमान धारा-68 में संशोधन अधिनियम की धारा 68 में संशोधन निम्नवत किया जाता है, यथा" 68. अपराधों का प्रशमन करने और अधिहरण योग्य सम्पत्ति को निर्मुक्त करने की शक्ति(1) आयुक्त, समाहर्ता या राज्य सरकार द्वारा इसके लिए शक्ति प्रदत्त उत्पाद पदाधिकारी जो उत्पाद अधीक्षक की पंक्ति के नीचे का न हो(क) धारा 89 के खण्ड (ञ) के अधीन बने किन्हीं नियमों द्वारा अधिरोपित किसी प्रतिबन्ध के अधीन रहते हुए किसी व्यक्ति से, जिसकी अनुज्ञप्ति, पारक या पास धारा-42 के खण्ड (क), खण्ड (ख) या खण्ड (ग) के अधीन विखण्डित या निलम्बित किये जाने योग्य हो, या जिसपर इस अधिनियम की धारा-47, 49, 52, 52-'क', 53, 55, 56, 58 और 61 से भिन्न किसी अन्य धारा के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के करने का युक्तियुक्त रूप से संदेह किया जाता हो, यथास्थिति विखण्डित या निलंबित करने के बदले या ऐसे अपराध के प्रशमन स्वरूप, यथा विहित न्यूनतम रकम के अध्यधीन, कम गम्भीर अनियमिततओं के लिए 10 (दस) हजार रूपये तक एवं वैसी गम्भीर अनियमिततओं के लिए जिससे राजस्व की क्षति पहुँची हो, प्रथम बार में वास्तविक राजस्व क्षति का दो गुणा या पाँच लाख रूपये जो अधिक हो एवं द्वितीय बार उल्लंघन में वास्तविक राजस्व क्षति का चार गुणा एवं दस लाख रूपये जो अधिक हो, स्वीकार कर सकेंगा अधिनियम या नियम के प्रावधानों के संबंध में तीसरे बार उल्लंघन या अपराध के लिए जिससे राजस्व की क्षति हुई हो अनुज्ञप्ति, पारक एवं पास विखण्डित कर दी जाएगी। (ख) किसी भी मामले में, जिसमें कोई सम्पत्ति धारा-66 अधीन अधिहरण योग्य समझी जाकर अभिगृहीत की गई हो, दण्डाधिकारी द्वारा धारा 67 (1) के तहत आदेश पारित किये जाने के पूर्व तक उतनी रकम के भुगतान पर जो समाहर्ता या वैसे उत्पाद पदाधिकारी द्वारा प्राक्कलित मूल्य से अधिक न हो, उस सम्पत्ति को निर्मुक्त कर सकेगा। परन्तु यह भी कि जहाँ इस प्रकार अभिग्रहीत की गई सम्पत्ति, इस अधिनियम के उल्लंघन में आयातित, निर्यातित, परवहित या विनिर्मित की गई मदिरा हो, तो वैसी मदिरा निर्मुक्त नहीं की जायेगी परन्तु इसका निष्पादन उस तरीके से किया जायेगा जैसा कि विहित किया जाय। (2) जब उपधारा (1) के खण्ड (क) में उल्लिखित राशियों का शोधन किया जा चुका हो तो अभियुक्त व्यक्ति यदि वह हिरासत में हो तो रिहा कर दिया जायेगा और मदिरा को छोड़कर अभिग्रहित की गई सम्पत्ति (यदि कोई हो) निर्मुक्त कर दी जायेगी और ऐसे व्यक्ति या ऐसी सम्पत्ति के विरूद्ध आगे कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। 16. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की धारा - 78 (अपराधों का अन्वेषण करने वाले उत्पाद पदाधिकारियों की शक्तियाँ और कर्त्तव्य) के साथ नई उपधारा-78 (5) का अन्तःस्थापन : धारा 78 (5). अधिकारी आदि को बाधा पहुंचाना या उस पर हमला करने के लिए दण्ड- जो कोई (i) किसी उत्पाद पदाधिकारी या इस अधिनियम के अधीन शक्तियों का प्रयोग करने वाले किसी व्यक्ति, या (ii) इत्तिला देने वाले किसी व्यक्ति या किसी ऐसे अधिकारी या व्यक्ति की, जबकि वह इस अधिनियम के अधीन शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, सहायता करने वाले किसी अन्य व्यक्ति पर हमला करेगा या उसे बाधा पहुंचाएगा, वह ऐसे कारावास से जो दो वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो दो हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा। 17. झारखण्ड उत्पाद अधिनियम, 1915 की धारा-79 (4) में संशोधन : जब कभी कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन बिना वारंट के, धारा 47 के अंतर्गत विधि विरूद्ध तरीके से संग्रहित की गई 20 (बीस) लीटर से कम मदिरा की जप्ति की स्थिति में धारा 49, 52, 52- 'क', 53, 55, 56 या धारा 58 को छोड़कर अधिनियम के अधीन किसी अन्य धारा के तहत दण्डनीय किसी भी अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है, और वह जमानत देने को तैयार हो, तो वह जमानत पर, अथवा उसे अपने स्वयं के बंध-पत्र पर रिहा करने वाले अधिकारी के विवेकानुसार मुक्त किया जायेगा। धारा 47 के तहत अवैध मदिरा की जप्ति 20 (बीस) लीटर से कम होने पर भी आरोपी किसी भी अदालत के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए आवेदन नहीं कर सकेगा। विधि विरूद्ध तरीके से संग्रहित 20 (बीस) लीटर से अधिक मदिरा की जप्ति की स्थिति में धारा-47. धारा-49, धारा-52, 52- 'क', धारा-53, धारा-55, धारा 56 या धारा-58 के तहत अपराध गैर-जमानतीय होंगे और इस संबंध में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 के अधिनियम 2) के प्रावधान ऐसे अपराधों पर भी लागू होंगे। यह विधेयक झारखण्ड उत्पाद (संशोधन) विधेयक, 2022 दिनांक 04 अगस्त, 2022 को झारखण्ड विधान सभा में उद्भूत हुआ और दिनांक 04 अगस्त, 2022 को सभा द्वारा पारित हुआ।
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बान फू वान और " आणधिक फ्ल्यू " वहाँ के स्कूल का अध्यापक, फ्या वोंग इस बीच मेरे पास बना रहा । वह युवक बुद्धिमान जान पड़ता था। उसने हमें बताया कि उसने इसी गॉव में जन्म लिया था परन्तु शिक्षा उसने १९५४ में उत्तरी वियत नाम में पायी थी । इस बात से मेरी जिज्ञासा जागी क्योंकि साम्यवादियों का आम रवैया है कि प्रत्येक दूरवर्ती गाँव से वे एक अत्यंत बुद्धिमान लड़का चुन लेते हैं, चीन या उत्तरी वियत नाम में कुछ समय उसे शिक्षा देते हैं ( यानी साम्यवाद की ) और मास्टर बना कर उसे वापस उसके गाँव में भेज देते हैं। चाओ खुओंग हमेशा कहता था कि लाओस में ये "अध्यापक " साम्यवादियों के सबसे सक्रिय एजेंट है । फ्या वोंग फ्रांसीसी बोल सकता था । अत्यंत आकर्षक उसके तौर-तरीके थे और उसने हमें बहुत सहयोग दिया। परन्तु राजनीति पर वह किसी प्रकार से भी बातचीत करने को तैयार नहीं हुआ। चूँकि गाँव में वह सबसे अधिक पढ़ा-लिखा व्यक्ति था, इसलिए मैं बहुत सी ज़रूरी और बुनियादी दवाइयाँ उसे दे आया। उसने भी वचन दिया कि भविष्य में वह गम्भीर रोगियों को नाम था के अस्पताल भेजता रहेगा । मुझे बिलकुल नहीं मालूम कि हमारे प्रति उसके क्या विचार थे, परन्तु कम कम बाक़ी गाँव वालों की तरह उसे भी अब इतना तो मालूम हो गया था कि सभी गौरांग राक्षसी स्वभाव के नहीं होते । लौटत हुए घाटी के तल के पास एक आदमी ने हमें रोका । उसने हमसे अपने बच्चे को देखने की विनती की । उसके कथनानुसार बच्चे को " सिर का रोग था। रास्ते से कुछ ही हट कर उसका गाँव था और उसमें पूरी दस झोंपड़ियाँ भी नहीं थीं। हम उसके साथ हो लिये । दृढ़ क़दमों से और तेजी के साथ वह हमें रास्त दिखाते हुए आगे-आगे चलने लगा, परन्तु वह डरा हुआ था । आखिर हम उसके गाँव पहुॅचे जो मृत्यु की गोद में सोया-सा जान पड़ता था। उसकी झोंपड़ी में तेल में का दिया जल रहा था । एक अंधेरे कोने की ओर उसने उंगली उठायी और कहा"नी " । वहाँ उसका लड़का लेटा था । चार बरस का बालक दीन कुत्ते की तरह मिमिया रहा था। मैंने उसकी परीक्षा की। उसे मस्तिष्क का एक रोग था और उसकी मॉसपेशियों पूर्णतया निष्क्रिय हो गयी थीं। उसकी टॉगें और बॉहें गॉठदार लकड़ियों जैसी हो रही थीं । उसके फूले हुए पेट से पता चलता था कि उसमें कीड़ों ने राज जमा रखा था। लड़का एक चटाई पर अपने पेशाब में पड़ा था । वास्तविकता से उसका कोई सम्पर्क नहीं रहा गया था। उसके मस्तिष्क के क्षति प्रस्त होने के लक्षण स्पष्ट थे । १३२ मैं उस बालक के लिए कुछ भी नहीं कर सकता था। निरापद और साफ़-सुथरे आधुनिक अमरीकी अस्पतालों के आशाओं के भंडार में भी मुझे उसके लिए कोई आशा दिखायी नहीं देती थी। मैंने यथासम्भव स्थिति को स्पष्ट किया । उस आदमी ने मेरी राय को दार्शनिक की तरह भवितव्यता के रूप में स्वीकार किया। अपने पुत्र के लिए उसकी अन्तिम आशा मुझ गौरांग ओझा पर टिकी हुई थी । यह सोच कर कि मुझे रोगी से उसकी आशा की अन्तिम किरण नहीं छीननी चाहिए, में स्थिति का पूर्णतया अंधकारमय चित्रण करने से डरता था । मैंने आशा का थोड़ा-सा प्रकाश क़ायम रखने का प्रयत्न किया, परन्तु मेरी आत्मा मुझे ज्यादा उम्मीद बँधाने से रोक रही थी। उस आदमी ने बताया कि गाँव में इस तरह के मरीज़ अनेक हैं । बाद में मैंने जान और बाब के साथ इस रोग के बारे में विचार विनिमय किया और हम इस निष्कर्ष पर पहुॅचे कि यह कोई पारिवारिक रोग होगा । अंधेरा पड़ने से पहले ही हम उस डेरे पर पहुँच गये जहाँ हमने साइकिलें छोड़ी थीं। पिछली रात जंगल में सोने के बाब के प्रयत्नों की बात याद करके हम तीनों ने साइकिलों से सीधे नाम था चले जाने का फ़ैसला किया । मज़दूर और किउ टट्टुओं और सामान के साथ अगले दिन आने वाले थे । रात पड़ने में लगभग एक घंटे की देर थी । हमने सोचा कि हम इतनी देर में पहुँच जायेंगे । लगभग एक घंटे तक हम चलते रहे । हम अपनी दुखती हुई टाँगों से जितनी तेज़ हो सकती थी उतनी तेज़ साइकिलें चला रहे थे । मड़क सूखी हुई थी; कभी कहीं पानी रास्ते पर जमा मिल जाता था । एक जगह पर रास्ते की तंगी को देखते हुए हम ढाल पर बहुत ज्यादा तेज़ी से चले जा रहे थे । रास्ते के एक तरफ़ सैकड़ों फ़ीट गहरा खड्ड था । एक मोड़ लेते हुए साइकिल मेरे काबू से बाहर हो गयी । पहिये फिसल गये और मैं हैंडल के ऊपर से ज़मीन पर आ गिरा। पेट के बल मैं सड़क पर फिसला चला जा रहा था और ठीक सामने था खड्ड । मुझे इतना याद है कि मैने अपनी गति को रोकने के लिए बाँहें फैला कर हाथ ज़मीन में गड़ाये । इसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है । क्षण भर बाद मेरी चेतना लौट आयी। उस समय मैं सड़क के सिरे पर पड़ा था, परन्तु था सड़क पर ही । मेरा सीना और पेट बुरी तरह छिल गया था। मेरी क़मीज़ का सामने का हिस्सा रक्त और धूल से सना हुआ था। मैंने अपने हाथ पर नज़र डाली और यह देख कर घबरा गया कि बाँयें हाथ का अंगूठा कलाई से नव्वे अंश का कोण बना रहा था । अँगूठा अपनी जगह से हट गया था और कलाई की बान फू वान और " आणविक फ्ल्यू एक हट्टी टूट गयी थी । मुझे याद आया कि इस हालत में क्या करना चाहिए । जितने ज़ोर में हो सकता था उतने जोर मे मैने अँगूठे को आहिस्ता-आहिस्ता खींचा। दर्द से जान तो निकल-सी गयी लेकिन अँगूठा ठिकाने पर आ गया । इतनी देर में बाब और जान भी मोड़ पार आ गये । मेरी टूटी-फूटी साइकिल से बचने के प्रयत्न में उन्होंने कठिनाई से अपनी साइकिले रोकीं। उनके मुँह से इतना ही निकला, " भाग्यवान हो जो खड्ड में नहीं गिरे।" एकाएक हमें खयाल आया कि मुझे किसी डाक्टर के पास जाना होगा और एक्स-रे कराना होगा। लेकिन इस इलाके में डाक्टर सिर्फ़ मैं था और एक्स-रे की मशीन हमारे पास थी नहीं । डाक्टर को खुद अपना इलाज न करने की तालीम दी जाती है । लेकिन टूटी हुई और अपने स्थान से हटी हड्डी को बैठाना ज़रूरी था। एक डाक्टर के लिए जिसके कि पेशे में हाथों का बहुत महत्त्व रहता है, इस तरह की चोट बहुत भयावह थी । परन्तु वान फू वान के मार्ग में डा. टामस इली की यह चोट लाओस कार्रवाई " की कहानी में अत्यन्त तुच्छ चीज़ थी । साइकिल कुछ मुड़ गयी थी। उसे हमने पत्थर से ठोक कर सीधा किया । रोगियों की परिचर्या का मेरा छोटा बैग साइकिल के पीछे बँधा हुआ था। अपने हाथ को जो तेज़ी से सूजता जा रहा था, बैग से इलास्टिक की पट्टी निकाल कर बाँधा और हम वहाँ से चल पड़े । इस यात्रा के अन्तिम तीस मिनटों में बरसात भी खूब जोर से होती रही । जिस समय हम नाम था पहुँचे उस समय अधेरा हो चुका था । सी सीढ़ियों पर बैठा हुआ हमारा इंतज़ार कर रहा था । उसका मन उससे कह रहा था कि हम एक दिन पहले ही लौट आयेंगे। अपने लौटने की उस झुटपुटी घड़ी में हमें अपना घर बहुत प्यारा और भला मालूम हुआ । मै खून और धूल में सना हुआ था और मेरे हाथ में बड़ी-सी पट्टी बँधी थी । बाब थकावट से और खटमलों के काटने से इतना शक्ति-हीन हो गया था कि उसके लिए सरकना भी दूभर था । जान थकान से संज्ञा - शून्य हो रहा था । कोई घंटे भर हम फ़र्श पर ही पड़े रहे । सी ने वहीं हमें काफ़ी दी । आखिर हम तीनों ने बारी-बारी से स्नान किया और बिस्तर पर पड़ गये । मेरा हाथ दर्द कर रहा था, सूजन बढ़ती जा रही थी और मैं सोच रहा था कि एक्स-रे की मशीन तक पहुॅचूंगा कहाँ और कैसे ? आखिर पहुँचना नहीं ही हुआ । प्लास्टर, भाग्य और भगवान की कृपा ने मेरा हाथ ठीक किया और जोड़ में खराबी नहीं आयी । अगले दिन सुबह जल्दी ही हम अस्पताल पहुँचे । सारे गाँव में आह चान की अन्त्येष्टि की शानदार तैयारियाँ की जा रही थीं। परन्तु जब आह चान की मृत्यु का कारण हमें ज्ञात हुआ तो हम हैरान रह गये । नाम था में हर आदमी को मालूम था कि आह चान की जिस रोग से मृत्यु हुई थी उसका नाम था " किआ एटोमिक " ( आणविक ज्वर ) जिसका साधारणतया अर्थ हो सकता है आणविक फ्ल्यू ! सबसे पहले स्वयं चाओ खुओंग ने हमें इसके विषय में बताया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह बिल्कुल मूर्खतापूर्ण बात है । वह जानता था कि कोई भी बुखार या इन्फ़्लूएंजा बिजली की सी इस तेजी से प्राण नहीं से ले सकता । उसने बताया कि यह अफ़वाह आग की तरह फैली थी और सबको इस पर विश्वास था । अफवाह शुरू कैसे हुई ? सारे नाम था में कुल दो या तीन रेडियो थे । हमारे घर में सी ने शपथ ले कर कहा कि रेडियो पोकिंग पर यह समाचार नहीं आया था । हमारे छोटे-से रेडियो पर केवल यही स्टेशन सुना जा सकता था ! सारे प्रान्त में एक मात्र शक्तिशाली रेडियो चाओ खुओंग के यहाँ था और उसने बताया कि किसी भी स्टेशन से उसने " किआ एटोमिक" की चर्चा नहीं सुनी थी । आह चान की अन्त्येष्टि के संस्कार नौ दिन तक होते रहे । हरकारे सब तरफ़ खबर देने दौड़ाये गये थे और दूर-दूर के गाँवों से सम्बन्धी और मित्र नाम था आये थे । शोक की यह लम्बी अवधि बहुत ही अजीब थी । बौद्ध भिक्षु प्रार्थना करने के साथ सुगंधित बत्तियाँ जलाते जाते थे, शोक प्रकट करने वाले रोते थे, संगीतज्ञ अपने वाद्य और मंजीरे बजाते थे तथा बहुत रात गये तक खाना-पीना होता रहता था । अन्त में नवें दिन आह चान का शव लाओस की प्राचीन धार्मिक राजधानी लुआंग परबंग की तरफ़ सिर करके लकड़ी के एक मंच पर रखा गया और उसे अग्नि दी गयी । परन्तु " किआ एटोमिक " की चर्चाी उस अग्नि की लपटों के साथ समाप्त नहीं हुई । आश्चर्य की बात है कि इसी समय, १९५७ की जून में पश्चिमी जगत एशियाई फ़्ल्यू में चिन्तित था । दूर पूर्व के इस कोने में जिसका संसार के संवाद-वाहन साधनों से कोई सम्बंध न था, किसी व्यक्ति ने उस इंफ़्लूएंजा के एक ऐसे प्रतिरूप का आविष्कार कर डाला था जिसकी उत्पत्ति अमरीका में हुई थी । मैं मानता हूँ कि यह सूक्ष्म प्रचार का आदर्श उदाहरण था, और गौरांगों की डाक्टरी सहायता पर करारा वार था, क्योंकि डाक्टरी सहायता नाम-था में बहुत लोकप्रिय हो रही थी । आह चान की आकस्मिक मृत्यु, बान फू वान के पास पहाड़ों में उस बालक की मरणासन्न अवस्था, जिसके कि रोग के सामने पूर्णतया असमर्थ रहा था, मेरे हाथ की चोट, हमारी यात्रा की थकान, और इस बात पर हीनता का अनुभव कि हमारे सामने जो काम पड़ा था उसके मुकाबले हमारी सफलताएँ कितनी तुच्छ थीं, लाखों आदमियों के लिए हम कुछ नहीं कर सकते थे- इन घटनाओं और चीज़ों ने मुझे निराजा के गहरे गर्त के किनारे ला पटका । तभी एक पत्र आया । इस समय मुझे उसीकी आवश्यकता थी । मेरे डाक्टरी स्कूल के भूतपूर्व अध्यक्ष, डा. मेल्विन कास्बर्ग का पत्र था वह । उन्होंने लिखा- "टाम, तुम्हारे सामने गहन निराशा के क्षण भी आयेंगे, जब तुम्हें इस विशाल कार्यक्षेत्र में अपने तमाम प्रयत्न उपेक्षणीय प्रतीत होंगे। लेकिन यह याद रखना, टाम, कि मानवता की प्रगति के प्रत्येक चरण का उद्गम, खोजने पर, किसी एक व्यक्ति, किसी छोटे-से समूह में दिखायी देगा । इसलिए हिम्मत मत हारना, और जैसा कई बरस पहले सेंट पाल ने कहा था, 'अपने विश्वास को अडिग रखना' । " अध्याय १० नदी से यात्रा करने का सुझाव जान डीविटी का था। जब नाम था से प्रस्थान करने का समय निकट आने लगा तब उसने प्रस्ताव किया कि सीधे वियंतियेन जाने के बजाय हम लोग छोटी-छोटी नौकाओं में नाम था नदी से प्रस्थान करें और रास्ते में अलग से पड़े हुए गाँवों में रोगियों को देखते चलें । चाओ खुओंग ने इस योजना का तीव्र विरोध किया। उसका कहना था कि नदी का मार्ग खतरनाक था और यात्रा के योग्य नहीं था । इसके अतिरिक्त उस मार्ग में पड़नेवाले गाँवों के लोग गोरे लोगों से शत्रुता रखते थे । उसने कहा कि उसके जेलखाने में अधिकांश राजनीतिक बन्दी उसी इलाक़ के थे ; स्वयं उसके सैनिक शान्ति और व्यवस्था के लिए नदी में कुछ मील से अधिक दूर जाने का साहस नहीं करते थे । फिर उसे इसमें सन्देह था कि हमें इस यात्रा के लिए नाविक भी मिल सकेंगे जो अपने को खतरे में डालने को तैयार हों । १३६ मैन डा. औदोम को सन्देश भेजा और उन्होंने तुरन्त स्वीकृति दे दी । बूढ़े गवर्नर ने तुरन्त हथियार डाल दिये और कहा कि उस पर अब कोई जिम्मेदारी न थी । फिर भी उसने सशस्त्र रक्षकों का एक अग्रगामी दल भेजने की व्यवस्था की और चार बन्दूक-धारी हमारे साथ जाने को तैनात किये । हमें एक विशेष प्रकार की नौकाओं से जाना था। ये नौकाएँ कोई बारह फ्रीट लम्बी होती हैं। सिर्फ़ इसी प्रकार की नौकाऍ नदी के तेज प्रवाह में चल सकती थीं । नाविकों के विषय में गवर्नर की बात बिलकुल सही निकली; नाविक तय करने में हमें बहुत कठिनाई हुई । किसी भी नाविक ने पहले यह यात्रा नहीं की थी; फिर डाकुओं और तेज बहाव का खतरा था और इनके ऊपर मौसम बरसात का था । इसलिए घनघोर बरसात का मुक़ाबला करना था । किसी तरह कुछ अतिरिक्त पैसे के लालच और चाओ खुओंग के दबाव से काम बन गया। जान ने तीन नावें तय कर लीं। प्रत्येक में चार-चार नाविक थे । दो नाव को खेने के लिए बीच में बैठते थे; बाक़ी दो दोनों सिरों पर खड़े हो कर लम्बे-लम्बे चप्पुओं से नाव को मोड़ते थे । हमने दवाइयों, भोजन-सामग्री और डेरे लगाने के समान को तीनों नावों में इस प्रकार वॉटा कि यदि कोई नाव डूब भी जाय तो हमें खाने, सोने और मरीजों को देखने में कोई कठिनाई न हो । प्रस्थान के लिए सूर्योदय का समय निश्चित किया गया था परन्तु लाओ रीति-नीति के अनुसार व दोपहर से कुछ पहले ही हम चल सके। हम समय पर तैयार हो कर अपने सामान के साथ नौकाओं पर पहुँच गये। प्रमुख नाविक कुछ मिनटों में आने वाला था परन्तु आया एक घंटे के बाद आया भी तो उसने हमें देखा और यह कह कर चल दिया कि काग़ज़ लाने के लिए उसे वापस चाओ खुओंग के पास जाना पड़ेगा । दुभाषियों का कहना था कि नाविकों की हिम्मत जवाब दे रही थी : लुटेरों और नदी के खतरों से व परिचित थे अतः ये ; नतरे उठाने के लिए ज्यादा मेहनताना चाहते थे। मैं उन्हें दोष नहीं दे सकता । नाविक आख़िर गवर्नर के पास से लौटे और हमने एक बार फिर अपने उन दस-बारह मित्रों से विदा ली जो पेड़ों के नीचे बैठ कर अपने को हल्की-हल्की बरसात से बचाने के प्रयत्न कर रहे थे। मैं एक नाव के बीच में बनी हुई बाँस की झोंपड़ी में जा बैठा और नाविकों के आ जाने के बाद मैंने नौसेना के तरीके से लंगर उठाने का आदेश दिया; परन्तु लंगर उठा नहीं। अमरीकियों और नाविकों ने सारा सामान नावों में जिस ढंग मे जमाया था वह प्रमुख नाविक को जँचा नहीं । अतः सारा सामान उतारा गया और वज़न के बारे में प्रमुख नाविक के सुझाव तथा मूल्य के बारे में मेरी आज्ञा के अनुसार उसे वापस चढ़ाया गया । इस तरह । आखिर सामान की लदाई पूरी हुई और हम अच्छी तरह दुआ-बंदगी किये बिना ही किनारा छोड़ कर चल दिये। अब तक बारिश जोर से होने लगी थी और चार दिन तक नहीं रुकी । बरसात में भीगते हुए मित्रों से हमने हाथ हिला कर बिदा ली । जल के तेज बहाव में पहले दिन की यात्रा जितनी खतरनाक रही उतनी ही दिलचस्प भी । दो-दो नाविक हर नौका में अगले और पिछले सिरों पर खड़े हो कर लम्बे-लम्बे चप्पुओं से नावें को इधर-उधर मोड़ते जाते थे । दो-दो नाविक बैठे हुए छोटे चम्पुओं से नावें खे रहे थे। उन्हें चप्पू बहुत नहीं चलाने पड़ते थे क्योंकि नदी की धारा ही हमें बहाये लिये जा रही थी। नावें लहरों पर डोलती हुई चली जा रही थीं। यह सोच कर कि हम लोग ही नहीं हमारा सामान भी सुकुमार होगा, नाविकों ने नौकाओं में ताड़ के पत्तों को छतें-सी बना दी थीं । नाव के गीले फ़र्श पर इनके नीचे किसी तरह बैठा जा सकता था । ये ढालू छतें हमारा सिर छूती थीं । अविराम वर्षा में इतना बचाव भी बहुत था, परन्तु कुछ ही समय में बरसात का पानी छतों के पार आने लगा और हम भीग गये; उस छत के नीचे बैठना या खुले में बैठना बराबर हो गया । तीन घंटे सफ़र करने के बाद हमने पहला क़याम किया । नाविक नौकाओं से उतर कर पानी को पार करके जंगल में गये, इस उद्देश्य से कि नावों की बगल में लगाने के लिए कुछ हरे बाँस काट लायें । नावें बुरी तरह हिचकोले खा रही थीं इसलिए बाँस लगाना जरूरी जान पड़ता था । बहाव अनुमान से कहीं ज्यादा तेज था । यहाँ नदी के किनारा था ही नहीं । बरसात की बाढ़ से पानी इतना बढ़ गया था कि बड़ी-बड़ी झाड़ियों और पेड़ नदी के पाट में आ गये थे और किनारों की जगह केवल पेड़ दिखायी देते थे जिन पर कई फ़ीट ऊँचा पानी चढ़ा हुआ था। जब हमें किसी तरह पहला ढालू किनारा दिखायी दिया तो एक बार फिर हमने नावें रोकीं । इस बार हमें अपना अत्यन्त मूल्यवान सामान लेकर उतरना पड़ा। हम पैदल घने जंगल में चल पड़े। हम जल के किनारे-किनारे चल रहे थे और नौकाएँ तेज बहाव में चल रही थीं; कहीं चट्टानों से टकराती थीं, कहीं लकड़ी के लड़ों के बीच से गुजरती थीं। जल के सफ़ेद घने झाग ने उन्हें घेर रखा था। एकाएक वे जल के न. प्र. ५ एक शान्त भाग में आ पहुँचीं और नाविकों ने उन्हें जल के किनारे लगा दिया । हम कैमरा और दूसरा सामान अपने सिरों पर उठाये हुए घुटनों घुटनों पानी में खड़े थे । ऊपर से बारिश गिर रही थी। इस तरह कभी नाव से उतर कर और कभी नाव में चढ़ कर, रुकते और चलते हुए पहला दिन पूरा हुआ । बरसात बराबर होती रही । पहली रात हम एक छोटे गाँव में पहुँचे । उस समय वहाँ केवल कुछ बूढ़ी औरतें ही थीं । अपने चार बन्दूकधारी सैनिकों के साथ हम डाक्टरी सहायता देने वाले परोपकारी दल के बदले कोई आक्रमणकारी दल ही प्रतीत होते थे । औरतें डर गयीं । उन्होंने बताया कि पुरुष जंगल में शिकार के लिए गये हैं और कुछ देर बाद लौटेंगे । हमने उनसे कहा कि हमें तो सिर छुपाने को एक खाली झोंपड़ी की ज़रूरत है ताकि हम अपने कपड़े वगैरा सुखा कर भोजन की व्यवस्था कर सकें । गाँव भी टूटी-फूटी अतिथिशाला हमें दिखा दी गयी। किसी तरह हमने हाथ-मुँह धोये, आग के पास बैठ कर कपड़े सुखाये, अपना वही सी राशन का खाना गर्म करके भोजन किया । फिर तुरन्त ही हमनें मच्छरदानियाँ लगायीं और बिस्तर खोल कर निद्रा देवी की गोद में चले गये । रात को गर्मी पहुँचाने वाली शराब और पुख्ता जमीन के सपने देखते रहे । सुबह झोंपड़ी के पास गाँव वालों की भीड़ जमा होने की आवाजों से मेरी नींद टूटी । हमें किसी क़िस्म का भय न था, क्योंकि यह गाँव नाम-था के काफ़ी नजदीक था और हमें मालूम था कि यहाँ के कई आदमी हमारे अस्पताल आ चुके थे । कुछ पुराने बीमारों को हमने पहचाना । यहाँ ज्यादा लोगों को डाक्टरी इलाज की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि ये लोग अक्सर नाम था आया करते थे । यद्यपि मौसम में जरा भी सुधार नहीं हुआ, फिर भी हमारी यात्रा दसगुनी अधिक रोचक हो गयी। हम गहरी घाटियों से गुजर रहे थे, परन्तु किनारों पर यहाँ ऊँची-ऊँची चट्टानें नहीं थीं, हरे-भरे विशाल जंगल खड़े थे । हम अपनी-अपनी नावों में बैठे हुए अपने साथियों को बार-बार पुकारते और कहते जाते थे - "देखो, कैसा जानवर है वह ! उसे देखा, कौन सी चिड़िया थी वह ? बन्दर तो नहीं था ?" वगैरह । उस रोज हमने कई गाँवों में मुकाम किया। एक गाँव में हमने अपना वही भोजन किया । नदी के किनारे का हर गाँव अपने अलग रोग से पीड़ित था । कोई भी रोग ऐसा न लगता था जो एक से दूसरे गाँव आया हो या आ सकता हो । ये गाँव एक-दूसरे से बिलकुल असम्बद्ध हैं। इनमें परस्पर न व्यापार होता है न आवागमन । जहाँ तक प्रगति का प्रश्न है यह स्थिति हानिकर है, तथापि इससे यह लाभ भी है कि संक्रामक रोग नहीं फैल पाते। कुछ गाँवों में हैजा कुछ में पेचिश । खुजली, दाद, बेरी-बेरी, सभी गाँवों में समान रूप से फैले हुए थे। मुझमें कभी नही आयेगी । हमने दूसरी रात जिस गाँव में काटने का फ़ैसला किया था, उसके बारे में हमारा नयाल था कि वहाँ विरोधी प्रचार ने कुछ असर किया होगा । इसलिए हम कुछ शंकित थे। गाँव बहुत गरीब था और बहुत ही अलग पड़ता था । नाम-था से भी उसका सम्बंध न था । जंगल की बग़ल से चल कर हम गाँव पहुँचे । एक पहाड़ से सट कर वह बसा हुआ था । हमने मुखिया के घर का पता पूछा । हमें रास्ता बता कर सारा गाँव ही हमारे पीछे-पीछे उस ओर को चल दिया। एकाएक एक आदमी अपने लड़के को लेकर भीड़ से बाहर निकल आया । लगता था कि वह आदमी गाँव का कोई प्रमुख व्यक्ति था । हमारे पास आ कर वह घुटनों के बल बैठ गया। अपने हाथ अपने मुख के सामने कर के वह हमें धन्यवाद देने लगा और अपने गाँव में उसने हमारा स्वागत किया । नाम-था में शुरू के दिनों में हमने उसके लड़के के 'क्काशिओरकोर' रोग का इलाज किया था । हमने लड़के को स्वस्थ कर के पिता को रोग की पुनरावृत्ति रोकने के उपाय बता दिये थे । लड़के ने जान के पास आ कर अपने हाथ उसकी कमर में डाल दिये । उसके मन में किसी प्रकार का डर न था क्योंकि मेरे साथियों की दया- ममता का उसे अनुभव चुका था। इससे गॉव में तुरन्त ही हमारे प्रति सद्भावना पैदा हो गयी और तास्सीएँग ने अपने घर की सीढ़ियों पर आ कर हमें अन्दर बुला लिया। यह बूढ़ा तास्सीऍग खूब आदमी था। उससे हमने कई सवाल पूछे। हमने पूछा कि अपने गाँव में कभी पहले भी उसने गोरे लोग देखे थे । उसने कहा - " नहीं । फिर हमने पूछा कि उसे या उसके परिवार के दूसरे लोगों को जो सब वहीं बैठे थे, हम कुछ अजीब लोग तो नहीं दिखायी देते । उसने ईमानदारी से जवाब दिया - " हाँ " जैसे-जैसे सन्ध्या बीतती गयी उन लोगों के प्रति हमारी और हमारे प्रति उन लोगों की दिलचस्पी बढ़ती गयी । हमने उससे पूछा कि उसने अपने गाँव में चीनी लोग भी कभी देखे थे या नहीं। उसने जवाब दिया - " हाँ ; चीनी लोग यहाँ अक्सर आते हैं, पर हाल में कुछ दिनों से नहीं आये हैं । " मैंने पूछा - " कब से ? " बूढ़े ने बताया - " यही कोई दस मौसमों से । " यदि इस गाँव में प्रचार हो रहा था तो इस क़बीले के लोग ही कर रहे थे, चीनी लोग नहीं । बहुत बार साम्यवादियों ने उत्तरी लाओस के क़बायली युवकों और युवनियों को चाँदी का लोभ देकर युन्नान और कैंटन बुलाया था । उन चीनी प्रदेशों में धीरे-धीरे और नर्मी से, लेकिन दृढ़तापूर्वक साम्यवादी धारणाएँ उनके मस्तिष्क में बैठायी जाती थी । साम्यवादी इन लोगों को तरह-तरह के सब्जबाग दिखाते थे और विशेषतया प्रगति " के सपने दिखाते थे । इन युवकों और युवतियों के मन में यह विश्वास बैठ जाता था कि ये नये भूमि सुधारक उनके पिछड़े हुए गाँवों का कुछ हित करेंगे । तब वे अपने पूर्वजों के गाँवों को लौट कर असत्य के प्रचारक बन जाते थे। अपने गाँवों के अज्ञानी लोगों से वे कहते थे - " हम स्कूल बनायेंगे। हमें पढ़ना-लिखना आता है और हम चाहते हैं कि आप लोग भी ज्ञान प्राप्त करें । " और भोले-भाले लोग ज्ञान प्राप्त करने की लालसा ले कर उन्हें सहयोग प्रदान करते थे । इन गाँववालों को राजनीतिक क्षेत्र को किसी भी बात का पता नहीं है । उन्हें मालूम नहीं है कि दुनिया में कैसी खाई पड़ गयी है । दो विभिन्न विचारधाराओं का उन्हें जरा भी ज्ञान नहीं है - एक ईश्वर के प्रति आस्था रखने वालों की और दूसरी अनीश्वरवादियों की। उन्हें खयाल तक नहीं है कि अमरीका क्या है और कहाँ है ? इन लोगों के मन में घृणा पैदा करना कठिन है। यह इस देश की रीति है कि गाँव में जो भी अतिथि आये उसका आदर-सत्कार करना चाहिए। आम तौर पर गाँव का कोई बड़ा-बूढ़ा चाँदी के एक बर्तन में पुष्प, मोमबत्तियाँ और भेंट की अन्य वस्तुएँ ले कर हमारा स्वागत करने के लिए नदी पर उपस्थित रहता था । इस छोटे से गाँव में एक अनोखापन था; इसमें चलने वालों के लिए मार्ग पर पटरी बनी हुई थी । सारे देश में मैंने सिर्फ़ इस गाँव में ही ये पटरियाँ देखीं । एक खास बात यह थी कि यहाँ पटरी सड़क के बीच में थी । बरसात से सड़क पर इतना ज्यादा और गहरा कीचड़ हो गया था कि गाँव वालों ने सड़क के बीच ऊँचा रास्ता बना दिया था । उसके दोनों किनारों पर मुंडेर भी लगी थी । मिट्टी के ढेले और पत्थर जमा कर यह पटरी बनायी गयी थी, ताकि चलने वालों के पैर रपटने से बचे रहें । इन लोगों को हम अमरीकी दर्शनीय वस्तु लग रहे थे । हमारा डिब्बे खोल कर भोजन बनाने का सामान निकालना, खाना पकाना, कुछ अजीब से उपकरणों से भोजन करना, काफ़ी का काला पाउडर, दूध का सफेद पाउडर, और शक्कर मिला कर उसमें खौलता हुआ पानी डाल कर काफ़ी बनाना - यह सब विचित्र रंग-ढंग देख कर उन्हें बड़ा आनन्द आ रहा था; जिसने ये चीजें पहले कभी न देखी हों उसके लिए हैं भी बहुत अजीब । इन गॉव वालों के लिए हम संसार की सबसे मनोरंजक और दर्शनीय चीज़ थे तथा हमारी औषधियों का चमत्कार अत्यंत ग्राह्य । उन्होंने हमारे बारे में थोड़ी-बहुत बातें सुन रखी थीं और हमें सशरीर देखने को वे उत्सुक थे । इस गाँव में कई लोग रोगों से पीड़ित थे, परन्तु लाओस में मानसिक रोगों का नामो-निशान भी नहीं था। अपने साल भर के आवास में मैंने वहाँ मामूली से मानसिक रोग का भी कोई रोगी नहीं देखा । प्राचीन नक्शे के अनुसार नेल गाँव पर हमारा आधा रास्ता तय होता था । तीसरे दिन तीसरे प्रहर के बाद हम इस गाँव में पहुॅचे। दूसरे गाँवों जैसा ही यह गाँव था, कुछ बड़ा ज़रूर था और पुलिस की चौकी भी थी इसमें । बरसात तो हो ही रही थी । उस बरसात में ही गाँव का मुखिया हमारा स्वागत करने आया । इस आदमी को लिखना और पढ़ना आता था और फ्रांसीसी भाषा भी थोड़ी-बहुत बोल लेता था । काफ़ी बड़ा और बढ़िया मकान था उसका । फ्रांसीसी प्रशासन के ज़माने में कई बरस वह राजधानी वियंतियेन में रह चुका था। उसके मकान से लगा हुआ था छोटा-सा औषधालय, जिसमें एक पुरुष नर्स के रूप में नियुक्त था, लेकिन जिसके पास दवा के नाम पर एस्पिरिन, कुनैन और पट्टियाँ भी नहीं थीं। कानूनी रूप से वह शाही राज्य के जन स्वास्थ्य विभाग के मातहत था, परन्तु नियमित रूप से उसके पास दवाइयाँ आदि पहुँचाने का कोई उपाय ही नहीं था । शाही सरकार इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में दवाइयाँ और सामान भेजने से डरती थी कि कहीं वे चीजें लुटेरों के हाथ में न पड़ जायें । में यहाँ हम बहुत रात गये तक रोगियों को देखते रहे । एक औरत के गाँठ थी; एक लड़के की आँख में वह बीमारी थी जिसमें आंख की पुतली सफ़ेद और उभरी हुई गोली- सी बन जाती है; कंठमाला कई औरतों के थी ; और एक पुरुष हर्निया ( आंत उतर जाने की बीमारी ) से पीड़ित था । मैंने दवाओं के कई बक्स उस पुरुष नर्स को दे दिये । वह काफ़ी बुद्धिमान जान पड़ता था । उसने हमारा बहुत आभार माना । यहाँ की सारी बातें हमने बाद में मंत्री महोदय को बतायीं । मुखिया ने हमें भोजन कराया। भोजन में हमारी अपनी चीजें भी शामिल थीं । भोजन करने के बाद हमें अतिथि कक्ष में ठहराया गया । रक्षकों के अग्रगामी दल ने उसे हमारे आगमन की सूचना पहले से दे दी थी, इसलिए उसने हमारे लिए चारपाइयाँ बनवा दी थीं । " ये अजीब गोरे आम लोगों की तरह पत्तों की चटाइयाँ बिछा कर फ़र्श पर नहीं सोते । न जाने क्यों ये अपने गद्दे एक लकड़ी के चौखटे पर बिछाते हैं और उसे चारपाई कहते हैं । " उसने यह चारपाइयाँ हमारे लिए बनवायी थीं, परन्तु नाप में गड़बड़ हो गयी थी । वे चौड़ी इतनी ही थीं कि उन पर आदमी चाहे पेट के बल, चाहे पीठ के बल चुपचाप सीधा पड़ा रह सकता था । करवट लेने की कोशिश करता तो सीधा ज़मीन पर आता । छः फ़ुट लम्बे बाब बेचारे की रात बड़ी मुश्किल में बीती । अगले दिन सुबह जल्दी ही हम वहाँ से चल दिये। कई घंटों के बाद एक नाव बड़ी तेज़ी से हमारा पीछा करती हुई आती दिखायी दी । जब वह हमारे करीब पहुँच गयी, तो उसमें बैठे हुए आदमी ने हमें बताया कि वह नेल के उत्तर में कहीं रहता था । नेल में उसकी बहन रहती थी। रात को हमारे पहुँचने पर उसकी बहन को जब मालूम हुआ कि हम लोग ही नाम-था के वे गौरांग डाक्टर हैं, जिनकी चर्चा वहाँ भी लोगों ने सुन रखी थी, तब वह तुरन्त अपने भाई के गाँव को पैदल ही रवाना हो गयी और उसे साथ ले कर सुबह वापस पहुँची । लेकिन तब तक हम लोग रवाना हो चुके थे । अतः एक नाव ले कर वे हमारे पीछे आये । उस आदमी की लड़की मरणासन्न अवस्था में थी । नदी और जंगल के कारण आस-पास कहीं ठहरना सम्भव न था। इसलिए हम अगले गाँव तक चलते गये । वहाँ वह आदमी अपनी पुत्री को अतिथिगृह में लाया । उसे बहुत खतरनाक क़िस्म का निमोनिया था। उसकी सॉस में अतिम क्षणों की घरघराहट सुनायी दे रही थी। उसके दिल की धड़कनें इतनी धीमी पड़ गयी थीं कि बहुत मुश्किल से उन्हें सुन पाया । उसके होठ आक्सीजन की कमी से नीले पड़ गये थे । हमने उसके लिए भरसक कोशिश की, उसे दवाइयाँ दीं, और अन्त में उसके पिता को कई दिन तक इलाज जारी रखने के लिए पर्याप्त औषधियाँ दे दीं । मैं जानता था कि वह सारा इलाज बेकार था क्योंकि उसका जीवित रहना सम्भव न था। उसकी आयु केवल तीन वर्ष, यानी मेरी भतीजी की आयु के बराबर थी । वह रात हमने खा-खो गाँव में गुज़ारी। यह छोटा-सा गाँव घृणाजनक था । यहाँ हम पर सबको वास्तव में सन्देह था। गाँव के हर बच्चे को कुक्कुर खाँसी हो रही थी। रात का वातावरण उस खाँसी की आवाज़ों से गूँज रहा था । हमारे पास - टेट्रामाइसीन' जो इस रोग की रामबाण औषधि है, बहुत थी; परन्तु बच्चों के गले में अचल रूप से अटका हुआ ऐसा कफ़ मैंने और कहीं नहीं देखा । रात जागते हुए कटी और सुबह हम अपना सामान लाद कर चल पड़े।
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लगभग सन् १६०० से ठेठ खड़ी बोली का युग आरम्भ होता है, जो लगभग सन् १९२० तक "द्विवेदी-युग" के रूप में भी मान्य है। "छत्तीसगढ़ मित्र" मध्यप्रदेश का प्रथम मासिक पत्र है, जो यथार्थ रूप में साहित्यिक था। इसका पहला अंक जनवरी, सन् १६०० में पेन्डा (बिलासपुर) से प्रकाशित हुआ और अन्तिम दिसम्बर, १६३२ में इसके प्रकाशक रायपुर के प्रसिद्ध जनसेवी स्वर्गीय पण्डित वामन बलीराम लाते थे और सम्पादक स्वनामधन्य पण्डित माधवराव सप्रे तथा पण्डित रामराव चिचोलकर (वकील, बिलासपुर)। श्री चिचोलकर जो सन् १६०६ में ही गोलोकवासी हो गए। प्रथम कुछ ग्रंक कयूमी प्रेस, रायपुर से और बाद में देशसेवक प्रेस, नागपुर में छपते रहे। यह उल्लेखनीय है कि ठाकुर जगमोहन सिंह की भाषा उतनी ही परिष्कृत थी, जितनी आज किसी साहित्यिक की हो सकती है और सप्रे जी के उद्देश्य उतने ही प्रगतिशील थे, जितने आज किसी सम्पादक के हो सकते हैं। "मित्र" हिन्दी को भारत की 'राष्ट्र-भाषा' मानता था। सप्रे जी अपने घर में भी मराठी न बोल कर हिन्दी बोलते थे। "मित्र" हिन्दी को ठोस, सुरुचिपूर्ण, प्रगतिशील साहित्य देना चाहता था। "मित्र" ने पालोचना के स्तर को बहुत ऊपर उठाया। अपने छोटे से जीवन में उसने तत्कालीन मासिकों में काफ़ी उच्च स्थान प्राप्त कर लिया। सब पत्रों ने उसकी नीति की प्रशंसा की और सब प्रसिद्ध साहित्यिकों ने उसे लेखादि दिए। "मित्र" के कालकवलित होने का कारण वही था - आर्थिक समस्या । सप्रे जी ने इसके बाद सन् १६०५ में नागपुर में "हिन्दी ग्रन्थमाला" की नींव डाली, जो मासिक पुस्तक के रूप में प्रस्थापित हुई। प्रकाशक देशसेवक प्रेस था। इसने लगभग दस उत्तम पुस्तक प्रकाशित की जैसे "मिल" कृत "लिवर्टी" का अनुवाद-"स्वाधीनता", अनुवादक पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदी "महारानी लक्ष्मीबाई" आदि । "माला" में लेख, निबन्ध, कविताएँ आदि भी छपती थी। अन्य स्थानीय बोलियों के स्थान में भारत भर में खड़ी बोली का प्रचार "माला" का उद्देश्य था। "हिन्दी कविता की भाषा", "खड़ी बोली की कविता " यादि लेख पण्डित कामताप्रसाद जी गुरुद्वारा लिखे गये थे, जिनमें यह प्रतिपादित किया गया था कि खड़ी बोली कविता तथा उच्चकोटि के साहित्य के निर्माण के लिये सर्वथा उपयुक्त है। इसके बाद १९०७-१६०८ मे सप्र जी ने "हिन्दी-केसरी" साप्ताहिक का सम्पादन किया, जिसकी ओजस्विनी भाषा प्रसिद्ध थी। सप्रे जो प्रान्त की हिन्दी के स्तम्भ तो हैं ही, वे योजस्विनी हिन्दी के पिता ही है। तथापि सप्रे जी का व्यक्तित्व साधु का साहित्यिक तपस्वी का था। युग ने उन्हें राजनीति में भाग लेने के लिये प्रेरित किया, अन्यथा "गीतारहस्य", "दास-बोष", "आत्म-विद्या" की कोटि की और भी सामग्री उनके द्वारा प्राप्त होती । आगे "कर्मबीर" तथा "श्री शारदा" के संस्थापन में भी सप्रे जी का प्रमुख प्रभाव था। इस लेख की सीमा परिमित हूँ। विद्वर पण्डित गोविन्दराव हर्डीकर (वकील-सिहोरा) ने पण्डित माधवराव सप्रे की जीवनी लिख कर हिन्दी का बड़ा उपकार किया है। प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इसे प्रकाशित कर एक स्तुत्य कार्य किया है। जिन्हें "छत्तीसगढ़ मित्र", "हिन्दी-अन्यमाना" "हिन्दी-केसरी", "कर्मवीर", "श्री शारदा" तथा "राष्ट्रीय हिन्दी मन्दिर" और मध्यप्रदेश तथा अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कुछ अधिवेशनों का अधिक विवरण पढ़ना हो, वे सप्रे जी की इस जोवनी का अवश्य अवलोकन व मनन करें। सन् १६०८ से १९११ तक हम प्रान्त में हिन्दी मासिक का प्रभाव देखते हैं। यह छोटा-सा सुषुप्त काल धन्य प्रान्तों में भी पाया जान पड़ता है। प्रयाग की "सरस्वती" विशेष रूप से और "मर्यादा" ही इस समय कदाचित् समस्त हिन्दी प्रान्तों का प्रतिनिधित्व करती थीं। इसका कारण सम्भव है, यह हो कि इस समय पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदी अपने प्रखर प्रताप को प्राप्त हो रहे थे। जो अवधी-व्रज मिश्रित पत्रिकाएँ निकालते थे, उनकी हिम्मत आगे पाने की नहीं थी। जो विशुद्ध खड़ी बोली को पत्रिका निकालना चाहते थे, वे तैयारी में लगे हुए थे इस काल में पत्रिका की कमी रही हो, हमारे प्रान्त में लेखकों की कमी नहीं थी। वे पत्र-पत्रिकाओं में ही नहीं, नागरी प्रचारिणो-सभा काशी तथा अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन में भी छाए हुए थे। सम्वत् १६६८ (सन् १६११) के द्वितीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, कार्य विवरण दूसरे भाग में हमारे तीन विद्वानों के लेख हैः- पण्डित गङ्गाप्रसाद अग्निहोत्री, पण्डित रघुवरप्रसाद द्विवेदी और पण्डित ताराचन्द दुबे। इन लेखकों ने प्रान्त के लेखकों के जो नाम गिनाए हैं। उनमें कुछ ये है पण्डित लोचनप्रसाद जी पांडेय, पण्डित कामताप्रसाद जो गुरु पण्डित प्यारेलाल जी मिश्र, पण्डित लज्जाशंकर का पण्डित गणेशदत्त पाठक, पण्डित नर्मदाप्रसाद मिश्र, पण्डित सुखराम चौबे "गुणाकर" पण्डित प्रयागदत्त शुक्ल, डाक्टर हीरालाल (डी. लिट्), पण्डित गणपतलाल चौबे, पण्डित माखनलाल चतुवंदी, बाबू जीवराखन लाल, संगद अमीर अली "मीर", सेठ रामनारायण राठी आदि। सन् १९१०-११ में "बालाघाट" और हितकारिणी" प्रकाशित हुई। "बालाघाट" स्थानीय शिक्षा विभाग के अफ़सरों के उत्साह से प्रकाशित हुआ और एक वर्ष चला "शिक्षा-प्रकाश" जो एक वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था, इस वर्ष "हितकारिणी" में परिवर्तित हो गया और कुछ दिन यूनियन प्रेस में छप कर सन् १९२१-२२ तक हितकारिणी प्रेस (पुराने यूनियन प्रेस) में छपता रहा। "हितकारिणी प्रान्त को सबसे अधिक दीपंजीवी पत्रिका थी। पण्डित रघुवरप्रसाद द्विवेदी एक साथ उच्च कोटि के विद्वान्, साहित्यिक और उच्च कोटि के शिक्षक व वक्ता, तथा व्यक्तित्वशील मानव थे। उनका समस्त व्यक्तित्व "हितकारिणी" को प्राप्त था। कभी-कभी पूरा पंक उन्हें अकेले ही लिखना पड़ता था परन्तु "हितकारिणी" के लिये उन्होंने कोई कष्ट बड़ा नहीं समझा। "हितकारिणी" साहित्य तथा शिक्षा, दोनों ही की पत्रिका थी। उसने समस्त शिक्षकों तथा साहित्यिकों के लिये द्वार खोल दिये। लेखकों से तो लेख लिये ही, उसने लेखक ढालना भी आरम्भ कर दिया जिन्हें अपने काम का समझा, उन्हें अपने पास खींच लिया, जैसे पण्डित नर्मदाप्रसाद मिश्र व पण्डित मातादीन शुक्ल पण्डित शालिग्राम द्विवेदी भी एक प्रकार से "हितकारिणी" के कुटुम्बी थे। विद्यार्थियों को सबसे पहले इस पत्रिका में स्थान मिला। पूज्य पदुमलाल जी बक्शी विद्यार्थी जीवन से "हितकारिणी" में लिखते थे, यह लेखक भी अपने दस वर्ष के जीवन में "हितकारिणी" ने प्रान्त को लेखकों और कवियों से भर दिया। द्विवेदी द्वय ने इन लेखकों की भाव-भाषा परिष्कृत की तो गुरु जी ने व्याक रण सुधारा फल यह हुआ कि "हितकारिणी' के लेखक पदुमलाल जी और मातादीन जो "सरस्वती" और "माधुरी" की गद्दी पर जा विराजे यह कहना नितान्त सत्य है कि इन दस वर्षों का प्रान्तीय हिन्दी साहित्य अधिकतर शिक्षकों द्वारा निर्मित किया गया, यद्यपि डा. बल्देवप्रसाद मिश्र, मुत्रीलाल जी वर्मा, स्व. देवीप्रसाद जी गुप्त "कुसुमाकर", मावलीप्रसाद श्रीवास्तव, रामदयाल जी तिवारी तथा अन्य महानुभावों ने भी खुल कर हाथ बँटाया। "हितकारिणी" के लेखक शहर-शहर, गांव-गांव में फैले थे। उनकी गणना सम्भव नहीं। तथापि विशेष प्रयोजन प्रैल १९१८ से मार्च १६१६ तक की फाइल से कुछ नाम दिए जाते हैं सर्वश्री गोविन्द रामचन्द्र चाँद, गजानन गोविन्द पाठले, गनपत राव गनोद वाले, दशरथ बलवंत यादव, रामचन्द्र रघुनाथ सर्वटे, जहूरबा प्रिवनाय बसक, गोपाल दामोदर तामस्कर। "हितकारिणो" को सफलता तथा दीर्घ जीवन के दो कारण ऊपर बतलाए गए हैं-द्विवेदी जी का व्यक्तित्व और उनकी उदार नीति। एक कारण और था। सरकार "हितकारिणी की प्रति माह एक हजार प्रतियां खरीद लेती थी। "हितकारिणी" का अन्त राजनीतिक उथल-पुथल के कारण हुआ। शाला के राष्ट्रीय बनाने का प्रयत्न किया गया। सरकार की कोप-दृष्टि हुई। शाला तो बच गई पर पत्रिका गई, यद्यपि वार्षिकांक अब भी प्रकाशित होता है। अप्रैल सन् १९१३ में खण्डवा से "प्रभा" प्रकाशित हुई। श्री कालूराम जो गंगराडे का नाम प्रधान सम्पादक के रूप में छपता था, पर पत्रिका के कर्त्ता, घर्त्ता, विधाता पण्डित माखनलाल जी चतुर्वेदी थे। पत्रिका बहुत सज-धज से निकलती थी। लेखक हिन्दी के गणमान्य लेखकों की श्रेणी के ही होते थे। श्री मैथिलीशरण जी गुप्त द्वारा अनु दित उमर खय्याम की कुछ स्वाइयां सचित्र प्रकाशित हुई थीं। दो साल के बाद "प्रभा" नागपुर से प्रकाशित होने लगी और कुछ दिन के बाद ग्रस्त हो गई। सम्भवतः सर्वाभाव ही कारण रहा होगा। मार्च सन् १९२० में पण्डित मातादीन जी शुक्ल के सम्पादन में छात्र सहोदर" मासिक का जन्म हुआ। शुक्ल जी ने केवल अपनी शक्ति व साधनों से लगभग दो वर्ष तक यह पत्र चलाया। पत्र का कलेवर तथा पठन-सामग्री सुन्दर और सुरुचिपूर्ण होती थी। "हितकारिणी" और "छात्र-महोदर" में यह भेद था कि सहोदर गान्धी जी की नीति का प्रवल समर्थक था, जबकि "हितकारिणी" किसी अंश तक सरकारी नीति का समर्थन करती थी। "छात्र सहोदर" से छात्रों तथा नए लेखकों को पर्याप्त स्फूति तथा प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। शुक्ल जी बतलाते थे कि वे उस समय प्रतिदिन १८ घंटे परिश्रम करते थे। खेद है कि इतने त्याम और परिश्रम के बाद भी "महोदर" शुक्ल जी को लम्बा घाटा देकर समाप्त हो गया । सन् १६१६ में जबलपुर में अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन और १६२० में मध्यप्रदेश सम्मेलन के अधिवेशन हुए। सन् १९२० में "कर्मवीर" भी बहुत घूम-घाम से प्रकाशित हुआ। इन सब कारणों से साहित्यिक वातावरण सजग और सचेष्ट हो उठा। उस समय प्रान्त और बाहर के अनेक प्रसिद्ध साहित्यिकों का निवास भी जबलपुर हो रहा था, यथा पण्डित माधवराव सप्रे, पण्डित सुन्दरलाल, पण्डित माखनलाल चतुर्वेदी पण्डित मनोहर कृष्ण गोलबलकर तो सदा से साहित्य के पुजारी थे ही इन सब के परामर्श से बाबू गोविन्ददास जी ने सन् १६२० में राष्ट्रीयहिन्दी-मन्दिर की स्थापना की और तारीख़ २१ मार्च १९२० को "श्री शारदा" मासिक का जन्म हुआ। पण्डित नर्मदा-प्रसाद जो मिश्र, इसके सम्पादक थे और मावली प्रसाद जो श्रीवास्तव तथा बाद में स्व. मातादीन शुक्ल, सह-सम्पादक कुछ समय बाद पण्डित द्वारकाप्रसाद मिश्र भी "शारदा" के स्टाफ़ में आए। मार्च १९२३ तक "श्रीशारदा" बहुत धूमधाम से निकली। उसमें बड़े-से-बड़े साहित्यिकों के लेख आदि प्रकाशित होते थे और सुन्दर मुखपृष्ठ तथा रङ्गीन और सादे चित्रों से उसकी सुन्दरता निखर उठती थी। प्रान्त के साहित्यिक जागरण का प्रमुख श्रेय "श्री शारदा" को भी है। "हितकारिणी", "प्रमा" "छात्र सहोदर" के बन्द हो जाने के कारण, इस समय "श्री शारदा" प्रान्त की एकमात्र साहित्यिक पत्रिका थी। सन् १६२२ में पण्डित नर्मद्राप्रसाद मिश्र और पण्डित मातादीन शुक्ल "श्री शारदा" से हट गए। पण्डित द्वारकाप्रसाद मिश्र के सम्पादन में वह मार्च ११२३ तक निकल कर बन्द हो गई। "श्री शारदा" के बन्द हो जाने का कुछ कारण तो संचालक मण्डल का प्रापसी मतभेद था, पर प्रधान कारण था बाबू गोविन्ददास जी की कृष्ण मन्दिर ( जेल ) यात्रा । "श्री शारदा" के साथ-साथ "शारदा-पुस्तक-माला" का भी प्रकाशन होता था। इसके सम्पादक पण्डित कामताप्रसाद जो गुरु और सहायक सम्पादक श्री मावलीप्रसाद जी श्रीवास्तव थे। माला से अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुए, जैसे "रसज्ञ रंजन", "पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदी', 'हजरत मुहम्मद की जीवनी', यादि। सन् १९१५-१६ में पण्डित नर्मदाप्रसाद मिश्र के सम्पादकत्व में किताबी-साइज में "शारदा-विनोद गल्प-पत्रिका भी निकलती थी; प्रकाशक शारदा भवन पुस्तकालय, जबलपुर था। सन् १६२६ से दो-तीन साल तक श्री शिंगवेकर जी, सुपरिन्टेन्डेन्ट, नार्मल स्कूल, "शिक्षण-पत्रिका" निकालते रहे हैं। इसमें साहित्यिक सामग्री भी रहती थी । मराठी "उदम" पत्र सन् १९१८ में प्रकाशित हुआ था। पिछले १० वर्षों से उसका हिन्दी संस्करण भी प्रकाशित हो रहा है। वह पत्र अपने ढंग का अलग और उल्लेखनीय है। उसका उद्देश्य सब प्रकार के उद्योग-धन्धों, व्यापारव्यवसायों, आदि की व्यावहारिक, नित्य लाभ पहुंचाने वाली शिक्षा देना है। "प्रेमा" का उल्लेख में अत्यन्त संकोचपूर्वक कर रहा हूँ। उसका प्रथम अंक अक्तूबर १६३० और अन्तिम अंक मार्च १६३३ में प्रकाशित हुआ। १६२७ में मैंने "प्रेमा पुस्तकमाला" के प्रकाशन की बात सोची थी। सन् २६२८ में इंडियन प्रेस का कार्य आरम्भ किया। जबलपुर के साहित्यिक बन्धुओं से परिचय बढ़ा। "लोकमत" के कारण भाई परिपूर्णानन्द वर्मा, श्री सत्यकाम विद्यालंकार, बाबू कुलदीप सहाय, ठाकुर काशीप्रसाद सिंह आदि से सम्पर्क हुआ। "लोकमत" बन्द होने पर परिपूर्णानन्द जो के सहयोग से "प्रेमा" प्रकाशित हुई। सम्पादन का भार उन्हीं पर था। मैं प्रबन्धक ही था। प्रशंसा होती गई, घाटा धाता गया। कोई चारा न देख परिपूर्णानन्द जी काशी चले गए। कुछ अंक वहीं से निकले। फिर "प्रेमा" जबलपुर आई। अन्त में दस-बारह हजार का घाटा देकर "प्रेमा" समाप्त हो गई। सन् १९२० के बाद हिन्दी ने नया कदम उठाया। उसने स्वतन्त्रता से सोचना शुरू किया। पुरानी परिपाटी से हट कर छायावाद, रहस्यवाद आादि की और उसका ध्यान गया। इबर विश्वविद्यालयों ने हिन्दी के लिये द्वार खोल दिये। उसमें विवेचनात्मकता, गवेषणात्मकता, आलोचनात्मकता साई लेखक, कवि यादि नवीन प्रयोगों के लिये तरस रहे थे। उस समय जबलपुर के साहित्यिक क्षेत्र में एक बड़ी होनहार मण्डली थी, जो प्राज ख्याति और प्रतिष्ठा से भरपूर है, यथा सर्वश्री केशवप्रसाद पाठक, भवानीप्रसाद तिवारी, भवानीप्रसाद मिश्र, नर्मदाप्रसाद खरे, ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी, गुलाब प्रसन्न "शावाल" गौरीशंकर "लहरी", बद्रीनारायण शुक्ल, केशवप्रसाद वर्मा, देवीदयाल चतुर्वेदी "मस्त", प्यारेलाल "संतोषी", आदि। ये सब "प्रेमा" को सहायता को टूट पड़े। केशवप्रसाद जी तो उसके प्रधान पथ-प्रदर्शक और नीति-निधारक थे। नर्मदाप्रसाद जी ने कभी उसे भिन्न माना ही नहीं। उस समय के सभी वयोवृद्ध और लब्ध प्रतिष्ठित लेखकों ने "प्रेमा" को सहयोग दिया। आर्थिक सहयोग के लिये सरकार तथा संस्थाओं के बहुतेरे द्वार खटखटाए, पर व्यर्थ । "प्रेमा" ने रस-विशेषांक निकाल कर एक रस कोष बनाना चाहा था। वह अधूरा रह गया। हास्व-रसांक (सम्पादक श्री प्रश्नपूर्णानन्द वर्मा), शान्त रसांक (सम्पादक श्री सम्पूर्णानन्द वर्मा, रसांक (सम्पादक श्री लोकनाथ द्विवेदी खिलाकारी) और करुण रसांक (सम्पादक श्री केशवप्रसाद पाठक) निकल पाए। बाकी के लिये बाद में प्रयत्न किया पर सफलता न मिली। "प्रेमा" ने हिन्दी को उमर खय्याम व हालावाद दिया। ऊपर लिख साए है कि सन् १९१३ में श्री मैथिलीशरण जी गुप्त ने "प्रभा" में कुछ स्वाइयां अनूदित की थी। तब से इस पर कोई प्रयास नहीं हुआ था। "प्रेमा" में केशवप्रसाद जी का सफल तथा प्रामाणिक अनुवाद इस जोर-शोर से प्रकाशित होने लगा कि मनुवादों की धूम मच गई। इसके प्रभाव से हालावादी कविताओं का आविर्भाव हुआ। श्री बच्चन जी की पहली कविता 'प्रेमा' में छपी थी। साथ-साथ "प्रेमा पुस्तकालय" का भी प्रकाशन हुआ। उमर खय्याम की रुवाइयां, प्रदीप आदि पहले और अब भी प्रकाशन होता है-प्राणपूजा (भवानी प्रसाद जी तिवारी), कुंजबिहारी काव्य-संग्रह आदि प्रकाशन हुए। श्री ब्रिजलाल जी बियाणो ने प्रकोला से हिन्दी मासिक पत्र निकालने का कई बार प्रयत्न किया। सन् १९२६ में उन्होंने "राजस्थान" मासिक शुरू किया, जिसके सम्पादक सत्यदेव विद्यालंकार थे। यह मासिक कुछ समय ही चला। इसके पूर्व भी आपने एक मासिक पत्र का प्रकाशन किया था। फिलहाल आप "प्रवाह" नाम का मासिक-पत्र निकाल रहे हैं, जिसका उल्लेख मागे आयेगा। पण्डित रविशंकर शुक्ल जी के संरक्षण में डिस्ट्रिक्ट कौन्सिल, रायपुर से, सन् १६२० के लगभग शायद कोई शिक्षा विषयक पत्रिका निकली थी। सन् १३३५ के लगभग फिर उन्हीं के संरक्षण में, उसी संस्था से "उत्थान" नामक मासिक-पत्र प्रकाशित हुआ। सम्पादक थे-पडित सुन्दरलाल त्रिपाठी पत्र इण्डियन प्रेस द्वारा सुन्दर रूप में मुद्रित किया जाता था। उसमें शिक्षा और साहित्य का अनुपात लगभग बराबर रहता था। शिक्षा संस्थाओं और जनता, दोनों को "उत्थान" प्रिय था। वह लगभग साढ़े तीन वर्ष चला। पूज्य शुक्ल जी की रचनात्मकता तथा संगठनशीलता लोक प्रसिद्ध है। उनके प्रयत्न से राष्ट्रीय विद्यालय, कांग्रेस-भवन आदि कब के बन गए थे। उनके साथ भी कृष्णमन्दिर का प्रेम लगा था। वे जेल गए, "उत्पान" समाप्त हुआ।
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भजहब क्या है ? उनके कहने से तो ऐसा मालूम पडता था कि शायद ईश्वर ने उन्हें अनशन की तारीख तक सुझा दी थी । ऐसी मिसाल पेश करना कितना खतरनाक होगा और अगर वापू मर गये । तो, हिन्दुस्तान की क्या हालत हो जायगी ? मुझे भविष्य सूना और उदास दीखने लगा, और जब मै उसपर विचार करता था तो मेरे दिल में एक निराशा छा जाती थी । इस तरह में लगातार विचारों ही विचारो मे डूवता रहा । मेरे दिमाग में गडबडी मच गई, और गुस्सा, निराशा और जिस व्यक्ति ने इतनी बडी उथल-पुथल पैदा कर दी उसके प्रति प्रेम से वह सराबोर हो गया। मुझे नहीं सूझता था कि मैं क्या कहूँ, और सबसे ज्यादा अपने-आपके प्रति मं चिडचिडा और बद-मिजाज हो गया । और फिर मुझमें एक अजीब बात हुई। मुझपर भावनाओं का ऐसा दौर शुरू हुआ कि एक मकट-काल ही आ उपस्थित हुआ, पर अन्त में जाकर मुझे कुछ शान्ति मालूम हुई, और भविष्य भी इतना अन्धकार पूर्ण दिखाई नही दिया । बापू मे ऐन मौके पर ठीक काम कर डालने की अजीव मूझ थी, और मुमकिन है कि उनके इस काम के भी - जो मेरे दृष्टि विन्दु में बिलकुल असमर्थनीय था- कोई बडे - नतीजे हो, और वह केवल उमी काम के छोटे से सीमित क्षेत्र में नहीं बल्कि हमारी राष्ट्रीय लडाई के व्यापक स्वरूपो में भी । और अगर वापू मर भी गये, तो भी हमारी स्वतंत्रता की लडाई चलती रहेगी। इसलिए कुछ भी नतीजा हो, इन्सान को हर हालत के लिए तैयार और मुस्तैद रहना चाहिए । अपने दिमाग को गांधीजी की मृत्यु तक वरदात करने के लिए विना हिचकिचाहट के तैयार करके मेने शान्ति और धैर्य धारण किया, और दुनिया और दुनिया की हर घटना का सामना करने को तैयार हो गया । इसके बाद सारे देश में एक भयकर उथल-पुथल मचने, हिन्दू समाज में उत्साह की एक जादूभरी लहर आ जाने की खबरे आईं, और मालूम होने लगा कि अस्पृश्यता का अब खात्मा ही होनेवाला है। मैं सोचने लगा कि यरवडा जेल में बैठा हुआ यह छोटा-सा आदमी कितना वडा जादूगर है, और लोगों के दिलों में खलबली मचा देनेवाली डोर हिलाना वह कितनी अच्छी तरह जानता है ! उनका एक तार मुझे मिला। मेरे जेल आने के बाद यह उनका पहला ही मदेश था, और इतने लम्बे अर्से के बाद उनका यह तार मिलने से मुझे लाभ ही हुआ । इस तार में उन्होंने लिखा "इन वेदना के दिनों में मुझे हमेशा तुम्हारा ध्यान रहा है। तुम्हारी राय जानने को मैं बहुत ज्यादा उत्सुक हूँ। तुम्हें मालूम है, मैं तुम्हारी राय की कितनी क़दर करता हूँ। मैंने इन्दु ( और ) सरूप के बच्चों को देखा । इन्दु खुश और कुछ तगड़ी दीखती थी। तबीयत बहुत ठीक है । तार से जवाब दो । स्नेह । " यह एक असाधारण बात थी, लेकिन उनके स्वभाव के अनुसार ही थी, कि उन्होने अपने अनशन की पीड़ा और अपने काम-काज के बीच भी मेरी लड़की और मेरी बहन के बच्चो के आने का जिक्र किया, और यह भी लिखा कि इन्दिरा तगडी हो गई है । उस वक्त मेरी बहन भी पूना की जेल म थी, और ये सब बच्चे पूना के स्कूल में पढ़ते थे । वह जीवन मे छोटी दीखनेवाली बातो को कभी नही भूलते, जिनका वास्तव में बड़ा महत्व भी होता है । ठीक उसी वक्त मुझे यह खबर भी मिली कि चुनाव के सवाल पर कोई समझौता भी हो गया है । जेल के सुपरिन्टेण्डेण्ट ने महरबानी करके मुझे गाधीजी को जवाब भेजने की इजाजत दे दी, और मैंने उन्हे यह तार भेजा " आपके तार और यह संक्षिप्त समाचार मिलने से कि कोई समझौता हो गया है, मुझे बड़ी राहत और खुशी हासिल हुई। पहले तो आपके अनशन के निश्चय से मानसिक क्लेश और बड़ी दुविधा पैदा हुई, पर आखिरमे आशावाद की विजय हुई और मुझे मानसिक शान्ति मिली । पद- दलित वर्गों के लिए बड़े से बड़ा बलिदान भी कम ही है । स्वतन्त्रता की कसौटी सबसे छोटे की स्वतन्त्रता से करनी चाहिए, मगर मुझे यह ख़तरा मालूम होता है कि कहीं हमारे एक मात्र लक्ष्य को दूसरे सवालात ढक न ले। मैं धार्मिक दृष्टिकोण से निर्णय करने में असमर्थ हूँ । यह भी ख़तरा है कि दूसरे लोग आपके तरीकों का दुरुपयोग करेंगे। लेकिन एक जादूगर को मैं कैसे सलाह दे सकता हूँ ? स्नेह ।" पूना मे जमा हुए भिन्न-भिन्न लोगो ने एक समझौते पर दस्तखत किये, और ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने उसे चटपट मंजूर कर लिया और उसके मुताबिक अपना पिछला 'निर्णय' बदल दिया, और अनशन तोड दिया गया । मै ऐसे समझौतो और इकरारनामो को बहुत नापसन्द करता हूँ, लेकिन पूना के समझौते मे क्या-क्या तय हुआ इसका खयाल न करते हुए भी मैने उसका स्वागत किया । उत्तेजना खत्म हो चुकी थी, और हम जेल के अपने मामूली कार्यक्रम मे लग गये । हरिजन आन्दोलन और जेल मे से गाधीजी की प्रवृत्तियों की खबरे हमे मिलती रहती थी । लेकिन उनसे मुझे खुशी नही होती थी । इसमे शक नहीं कि अछूतपन को मिटाने और दुखी दलित जातियों को उठाने के आन्दोलन को उससे बडे गजब का बढावा मिला, लेकिन वह समझौते के कारण नहीं, बल्कि देशभर में जो एक जेहादी जोश फैल गया था उसके कारण। यह तो अच्छी वात थी । लेकिन इसीके साथ-साथ यह भी साफ जाहिर था कि इससे सविनय भग को नुकसान पहुँचा । देश का ध्यान दूसरे सवालो पर चला गया, और कांग्रेस के कई कार्यकर्ता हरिजन कार्य मे लग गये । शायद उनमें से ज्यादातर लोग कम खतरे के कामो मे लगने का बहाना चाहते ही थे, जिनमे जेल जाने, या इससे भी ज्यादा, लाठी खाने और सम्पत्ति जब्त कराने का डर न हो । यह कुदरती हो था, और हमारे हजारो कार्यकर्ताओ मे से हरेक से यह उम्मीद करना ठीक भी न था कि वह गहरे कष्ट-सहन और अपने परिवार के भग और नाश के लिए हमेशा तैयार रहे । लेकिन हमारे बडे आन्दोलन का इस तरह धीरेधीरे हास होना देखकर दिल में दर्द होता था। फिर भी, सविनय भग तो चलता ही रहा, और मौके मौके पर मार्च-अप्रैल १९३३ को कलकत्ता-काग्रेस जैसे बडे-वडे प्रदर्शन हो हो जाते थे । गाधीजी यरवडा जेल मे थे, मगर उन्हें लोगो से मिलने और हरिजन-आन्दोलन के मुताबिक हिदायते भेजने को कुछ सुविधाये मिल गई थी। कुछ भी हो, इससे उनके जेल में रहने की तीक्ष्णता कम हो गई थी । इन सब बातो से मुझे बडी उदामी हुई । कई महीने बाद, मई १९३३ मे, गाधीजी ने अपना इक्कीस दिन का उपवास गुरु किया। इसकी खबर से भी पहले तो मुझे वडा धक्का लगा, लेकिन होनहार ऐसा ही था, यह समझकर मैंने उसे मजूर कर लिया और अपने दिल को समझा लिया । वास्तव में मुझे उन लोगो पर ही झूझल आई जो उनपर उपवास का निश्चय कर लेने और घोपित कर देने के बाद उसे छोड देने का जोर डाल रहे थे । उपवास मेरी तो समझ के बाहर था और निश्चय कर लेने के पहले अगर मुझसे पूछा जाता तो मैं जोर से उसके खिलाफ राय देता, लेकिन में गाधीजी की प्रतिज्ञा का बड़ा महत्व समझता था, और किसी भी व्यक्ति के लिए मुझे यह गलत मालूम होता था कि वह किसी भी व्यक्तिगत मामले में, जिसे वह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण समझते थे, उनकी प्रतिज्ञा को तुड़वाने की कोशिश करे। इस तरह हालाकि मै खिन्न था, फिर भी उसको गवारा करता रहा । अपना उपवास शुरू करने से कुछ दिन पहले उन्होंने मुझे अपने खास ढंग का एक पत्र भेजा, जिससे मेरा दिल बहुत हिल गया । चूकि उन्होने जवाब मांगा था, इसलिए मैने निम्नलिखित तार भेजा "आपका खत मिला । जिन मामलों को मैं नहीं समझता उनके बारे में मैं क्या कह सकता हूँ ? मैं तो एक वेगाने देश में, जहाँ आप एक"मेरो कहानौ मात्र परिचित मीनार की तरह हैं, अपना कहीं पता ही नहीं पाता हूँ; अँधेरे में अपना रास्ता टटोलता हूँ, लेकिन ठोकर खाकर गिर जाता हूँ । नतीजा जो कुछ हो, मेरा स्नेह और मेरे विचार हमेशा आपके साथ होंगे।" एक ओर उनके कार्य को मैं बिलकुल नापसन्द करता था, और दूसरी ओर उन्हे आघात न पहुँचाने की भी मेरी इच्छा थी। इस द्वन्द्व का मुझे सामना करना पडा था । मगर फिर भी मैंने महसूस किया कि मैने उन्हे प्रसन्नता का संदेश नही भेजा, और अब जब कि वह अपनी भयकर अग्नि-परीक्षा मे से, जिसमे उनकी मृत्यु भी हो सकती थी, गुजरने का निश्चय कर ही चुके है, तो मुझे चाहिए कि मुझसे जितना बन सके उतना में उन्हें प्रसन्न बनाऊँ । छोटी-छोटी बातो का भी मन पर बडा असर होता है, और उन्हें जीवन बनाये रखने के लिए अपना सारा मनोबल लगा देना पडेगा । मुझे ऐसा भी लगा कि अब जो कुछ भी होकर रहे, चाहे दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु भी हो जाय तो उसे भी कडे दिल से बरदाश्त कर लेना चाहिए । इसलिए मने उन्हें दूसरा तार भेजा "अब तो जब आपने अपना जोखों का काम शुरू कर ही दिया है, तो मैं फिर अपना स्नेह और अभिनन्दन आपको भेजता है, और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अब मुझे यह ज्यादा साफ़ तौर पर दिखाई देता है कि जो कुछ होता है वह अच्छा ही होता है, और कुछ भी नतीजा हो, आपकी विजय ही है । " उनका उपवास पूरा हो गया और वह जीवित रहे । उपवास के पहले ही दिन वह जेल से रिहा कर दिये गये, और उनके कहने से छ हफ्तो के लिए सविनय भग स्थगित कर दिया गया । बीच मे देश में भावना का फिर एक उभाड़ आया । कि क्या राजनीति में यह सही तरीका है ? मुझे तो लगने लगा, कि यह केवल पुनरुद्धार - वाद है और इसके सामने स्पष्ट विचार करने का तरीका बिलकुल नहीं ठहर सकता । सारा हिन्दुस्तान, या उसका ज्यादातर हिस्सा, सम्मान से महात्माजी की तरफ निगाह गडाये हुए था, और उनसे उम्मीद करता था कि वह चमत्कार पर चमत्कार करते चले जायँ, अस्पृश्यता का नाश कर दे, और स्वराज्य हासिल करले, इत्यादि, और खुद कुछ भी न करे । गाधीजी भी दूसरो को विचार करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते थे, उनका जोर पवित्रता और बलिदान पर था। मुझे लगा कि हालाकि मै गाधीजी पर बडी भावुकतापूर्ण आसक्ति रखता हूँ फिर भी मानसिक दृष्टि से मै उनसे दूर होता चला जा रहा हूँ । अक्सर वह अपनी राजनैतिक हलचलो में अपनी सहज वृत्ति से, जो गलती नही करती थी, काम लेते थे । अच्छा और फायदेमन्द काम करने का उनमे स्वभावसिद्ध गुण है, लेकिन क्या राष्ट्र को तैयार करने का रास्ता श्रद्धा का ही है ? कुछ वक्त के लिए तो यह फायदेमन्द हो सकता है, मगर अन्त मे क्या होगा ? और मैं यह नहीं समझ सका कि वह वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को, जिसकी बुनियाद हिंसा और सघर्ष पर है, कैसे मजूर कर लेते है, जैसाकि वह मजूर करते हुए दीखते है ? मेरे अन्दर जोर से सघर्प चलने लगा, और में दो प्रतिस्पर्धी निष्ठाओ की चक्की मे पिसने लगा। मैने जान लिया कि जब मैं जेल की चहारदीवारी से बाहर निकलूंगा, तव भविष्य में मेरे सामने मुसीवत ही खडी मिलेगी। मुझे प्रतीत होने लगा कि मै अकेला और निराश्रय हूँ, और हिन्दुस्तान, जिसे मैने प्यार किया और जिसके लिए मैंने इतना परिश्रम किया, मुझे एक पराया और हड़वडाहट में डालनेवाला देश मालूम होने लगा । क्या यह मेरा कुसूर था कि मैं अपने मुल्कवालो की स्पिरिट और विचार प्रणाली से अपना मेल न बैठा सका ? मुझे मालूम हुआ कि अपने गहरे-सेगहरे साथियो के और मेरे बीच में एक अप्रत्यक्ष दीवार खटी हो गई है, और उसको पार करने में अपने आपको असमर्थ पाकर मै दुखी हो गया और मन मसोस कर बैठ गया । उन सब पर मानो पुरानी दुनिया ने, पुरानी विचारधाराओ, पुरानी आशाओ और पुरानी इच्छाओ की दुनिया ने अपना आवरण डाल रक्खा था। नई दुनिया का निर्माण होना तो अभी बहुत दूर था । दो लोको के बीच भटकता, आश्रय की कुछ आश नही, पडी है एक दूसरे मे उठने की शक्ति नही । हिन्दुस्तान, सब बातो से ज्यादा, धार्मिक देश समझा जाता है, और हिन्दू और मुसलमान और सिख और दूसरे लोग अपने-अपने मतो का अभिमान रखते हैं, और एक-दूसरे के सिर फोडकर उनकी सचाई का सुबूत देते है । हिन्दुस्तान में और दूसरे मुल्को मे मजहब के, और कम-से-कम मौजूदा रूप में संगठित मजहब के, दृश्य ने मुझे भयभीत कर दिया है, मैंने उसकी कई वार निन्दा की है, और उसको जड मूल से १ सूल अग्रेजी पद्य निम्नप्रकार है "Wandering between two worlds, one dead, The other powerless to be born With nowhere yet to rest his head मिटा देने तक की ख्वाहिश की है । मुझे तो प्राय हमेशा यही मालूम हुआ कि अन्धविश्वास और प्रतिगामिता, जड सिद्धान्त और कट्टरपन, मिथ्या- विचार और शोषण और स्थापित स्वार्थों के सरक्षण का ही नाम मजहब है । मगर यह भी मुझे अच्छी तरह मालूम है कि उसमे और भी कुछ है, उसमे कुछ ऐसी चीज भी है जो इन्सानो की गहरी आन्तरिक आकाक्षा को भी पूरा करती है। वरना उसका इतनी जबरदस्त ताकत बनना जैसाकि वह वना हुआ है कैसे मुमकिन था, और उससे वेशुमार पीडित आत्माओ को शान्ति और विश्राम कैसे मिल सकते थे ? क्या वह शान्ति सिर्फ अन्धविश्वास की छाया या शका के अभाव का बहाना ही था ? क्या वह वैसी ही गान्ति थी जेसी खुले समुद्र के तूफानो से बचकर किसी बन्दरगाह में मिलती है, या उससे कुछ ज्यादा थी ? कुछ बातो मे तो सचमुच वह इससे कुछ ज्यादा ही थी । लेकिन इसका भूतकाल कैसा भी रहा हो, आजकल का संगठित मजहब तो ज्यादातर एक खाली ढोल ही रह गया है, जिसके अन्दर कोई तत्त्व नही है । श्री जी० के० चेस्टरटन ने इसके लिए ( अपने खास तरह के मजहब के लिए नही, मगर दूसरो के लिए 1 ) भूगर्भ में पाये जानेवाले ऐसे 'फॉसिल' की उपमा दी है, जो किसी ऐसे जानवर या सजीव वस्तु का सिर्फ ढाचामात्र है कि जिसके अन्दर से उसका अपना जीवित तत्त्व तो पूरी तरह से निकल चुका है, लेकिन जिसका ऊपरी पञ्जर रह और जिसके अन्दर कोई बिलकुल दूसरी ही चीज भर दी गई है । और, अगर किसी मजहब मे कोई महत्वपूर्ण चीज रह भी गई है तो, उसपर और दूसरी हानिकर चीजो का आवरण चढ गया है । मालूम होता है कि यही बात हमारे पूर्वी मजहबो मे, और पश्चिमी मजहबो मे भी, हुई हे । चर्च आफ इग्लैण्ड एक ऐसे मजहब की मिसाल है, जो किसी भी मानी मे मजहब नहीं है । किसी हद तक, यही बात सारे सगठित प्रोटेस्टेण्ट मजहबो के बारे मे सही है, लेकिन इसमें सबसे आगे बढा हुआ चर्च आफ इग्लैण्ड ही है, क्योकि वह अर्से से एक सरकारी राजनैतिक महकमा बन चुका है । १ १. हिन्दुस्तान में चर्च आफ इंग्लैण्ड तो प्रायः सरकार से अलग मालूम ही नहीं होता है । जिस तरह ऊंचे सरकारी मुलाजिम साम्राज्यवादी सत्ता के प्रतीक है उसी तरह ( हिन्दुस्तान के ख़जाने से ) सरकार की तरफ़ से तनख्वाह पानेवाले पादरी और चेपलेन भी हैं । हिन्दुस्तान की राजनीति में चर्च कुल मिलाकर एक रूढ़िवादी और प्रतिगामी शक्ति रही है और आम तौर पर सुधार या प्रगति के विरुद्ध रही है। सामान्य ईसाई मिशनरी हिन्दुस्तान के पुराने इतिहास और संस्कृति से आम तौर पर बिलकुल मजहव क्या है ? उसके बहुत से अनुयाथियो का चारित्र्य वेगक ऊँचे-से-ऊँचा है मगर यह मार्के की बात है कि किस तरह इस चर्च ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गरज को पूरा किया है, और पूंजीवाद और साम्राज्यवाद दोनो को किस तरह नैतिक और ईसाई जामा पहना दिया है। इस मजहब ने एशिया और अफ्रीका में अग्रेजो की लुटेरी नीति का समर्थन करने की कोशिश की है, और अंग्रेजो मे एक गैरमामूली और रश्क करने योग्य भावना भरदी है कि हम हमेशा ठीक ही और सही काम करते हैं । इस वडप्पन भरी सत्कार्य - भावना को इस चर्च ने पैदा किया है या वह खुद उससे पैदा हुई है, यह मे नही जानता । यूरोपियन महाद्वीप के और अमेरिका के दूसरे देश, जो इग्लैण्ड के बरावर खुश नसीव नहीं हुए है, अक्सर कहते है कि अग्रेज मक्कार है- 'परफाइड एलबियन' ना चाकिफ होते हैं और वे यह जानने की जरा भी तकलीफ नहीं उठात कि वह कैसी थी या कैसी है। ये गैरईसाइयों के पापों और कमजोरियों को दिखाते रहने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। बेशक, कई लोग इनमें बहुत ऊचे अपवाद-रूप हुए हैं। चार्ली एण्डरूज़ से बढ़कर हिन्दुस्तान का दूसरा सच्चा दोस्त नही हुआ, जिनमें प्रेम और सेवा की भावना और उमढती हुई मैत्री खूब लबालब भरी हुई है। पूना के क्राइस्ट सेवा सध में भी कुछ अच्छे अग्रेज़ हैं जिनके मज़हब ने उन्हें दूसरों को समझना और उनकी सेवा करना, न कि अपना वडप्पन दिखाना, सिखलाया है और जो अपनी सारी बडी-वडी योग्यताओं के साथ हिन्दुस्तान को जनता की सेवा में लग गये हैं। दूसरे भी कई अग्रेज पाढरी हुए हैं, जिनको हिन्दुस्तान याद करता है। १२ दिसंबर १९३४ को लाई-सभा में बोलते हुए केण्टरबरी के धर्माध्यक्ष ने १६१६ के मागटेगु चम्सफोर्ड-सुधारों की प्रस्तावना का जिक्र करते हुए कहा था कि "कभी-कभी मुझे ख़याल आता है कि यह बड़ी घोषणा कुछ जल्दबाजी से कर दी गई है, और मेरा अनुमान है कि महायुद्ध के बाद एक उतावलेपन का और उदारता पूर्ण प्रदर्शन कर दिया गया है, लेकिन जो ध्येय निश्चित कर दिया गया है उसे वापस नहीं लिया जा सकता ।" यह गौर करने लायक़ बात है कि इग्लिश चर्च का धर्माध्यक्ष हिन्दुस्तान की राजनीति के बारे में ऐसा अनुदार दृष्टिकोण रखता है। जो चीज भारतीय लोकमत के अनुसार बिलकुल ही नाकाफी समझी गई, और इसी कारण जिसके लिए असहयोग और वाद की तमाम घटनाये हुई, उसको धर्माध्यक्ष साहब 'उतावलेपन का और उदारतापूर्ण' प्रदर्शन कहते हैं । इग्लैण्ड के शासकवर्ग के दृष्टिकोण से यह एक सन्तोष-प्रद सिद्धान्त है, और इसमें शक नहीं कि अपनी उदारता के सम्बन्ध में उनका यह विश्वास, जो कि अविवेक की हद तक पहुँच जाता है, उनके अन्दर सन्तोष की एक सात्विक ज्योति पैदा किये बिना न रहता होगा । यह एक पुराना ताना है । लेकिन शायद यह इलजाम तो अग्रेजो की कामयाबी पर हसद के सबब से लगाया जाता है, और निश्चय ही कोई दूसरे मुल्क भी इग्लैण्ड के दोष नही निकाल सकते, क्योंकि उनके भी कारनामे इतने ही खराब है। जो राष्ट्र जानता हुआ भी मक्कारी करता है, उसके पास हमेशा इतना शक्ति - सग्रह नही रह सकता, जैसा कि अंग्रेजों ने बार-बार दिखलाया है; और इसमे उसके खास तरह के 'मजहब' ने जहाँ अपना स्वार्थ सधता हो वहाँ नीति-अनीति की चिन्ता करने की भावना को भोथरा करके उसे मदद दी है । दूसरी जातियो और राष्ट्रो ने अक्सर अग्रेजो से भी बहुत खराव काम किये है, लेकिन अंग्रेजो की बराबर वे अपनी स्वार्थसाधना को गुण बनाने में कामयाब नहीं हुए है । हम सभीके लिए यह बहुत आसान है कि हम दूसरो के तिल के बराबर दोष को ताड के बराबर बता दे, लेकिन शायद इस करतब मे भी अंग्रेज ही सबसे ज्यादा बढकर है । प्रोटेस्टेण्ट - मत ने नई परिस्थिति के मुताबिक बन जाने की कोशिश की, और दोनो दुनिया का ही ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहा । जहाँतक इस दुनिया का ताल्लुक था वहाँतक तो वह खूब ही कामयाब हुआ, लेकिन मजहब की दृष्टि से वह सगठित मजहब के रूप मे न घर का रहा न घाट का । और धीरे-धीरे मज़हब की जगह भावुकता और व्यवसाय आ गया । रोमन केथोलिक मत इस नतीजे से बच गया। क्योकि वह पुरानी जड को ही पकडे रहा, और जबतक वह जड़ कायम रहेगी तबतक वह भी फलता-फूलता रहेगा । पश्चिम में आज वही एक अपने सीमित अर्थ मे जिन्दा मजहब है । एक रोमन कैथोलिक दोस्त ने जेल मे मेरे पास केथोलिक-मत पर कई पुस्तके और धार्मिक पत्र भेज दिये थे, और मैने उन्हें बडी दिलचस्पी से पढ़ा था । उन्हे पढने पर मुझे लगा कि अब भी बहुत लोगो पर उसका बडा प्रभाव है । इस्लाम और प्रचलित हिन्दू धर्म की तरह ही उससे भी सन्देह और मानसिक द्वन्द्व से राहत १. चर्च आफ इंग्लैण्ड हिन्दुस्तान की राजनीति पर किस तरह अपना अप्रत्यक्ष असर डालता है, इसकी हाल ही में एक मिसाल मेरे देखने में आई है । ७ नवम्बर १९३४ को कानपुर में युक्तप्रान्तीय हिन्दुस्तानी ईसाई कान्फ्रेन्स में स्वागताध्यक्ष श्री ई० डी० डेविड ने कहा था कि "ईसाई की हैसियत से, हमारा यह धार्मिक कर्तव्य है कि हम सम्राट् के राजभक्त रहे, जो कि हमारे 'धर्म के संरक्षक' हैं।" लाज़िमी तौर पर इसका मतलब है हिन्दुस्तान में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का समर्थन । श्री डेविड ने आई० सी० एस०, पुलिस और सारे प्रस्तावित विधान के बारे में, जिससे उनके विचारानुसार हिन्दुस्तान के ईसाई मिशन ख़तरे में पड़ सकते हैं, इंग्लैण्ड के 'कहर' अनुदार लोगों की राय के साथ भी अपनी सहानुभूति जाहिर की थी । मिल जाती है और भविष्य के जीवन के बारे मे एक आश्वासन मिल जाता है, जिससे इस जीवन की कसर पूरी हो जाती है । मगर, मेरा खयाल है कि इस तरह की सुरक्षितता चाहना मेरे लिए तो नामुमकिन है । मै तो खुले समुद्र को ही ज्यादा चाहता हूँ, जिसमे चाहे जितनी आँधियाँ और तूफान हो, न मुझे पर लोक की या मौत के बाद क्या होता है इसके बारे में मुझे कोई दिलचस्पी नही है । इस जीवन की समस्याये ही मेरे दिमाग को भर देने के लिए काफी मालूम होती है । चीनियो की परम्परागत जीवन-दृष्टि, जो कि मूलत नैतिक है लेकिन फिर भी गैर-मजहवी या नास्तिकता का रग लिये हुए है, मुझे पसन्द आती है, हालाँकि जिस तरह वह अमल में लाई जा रही है वह मुझे पसन्द नही है । मुझे तो 'ताओ' यानी मार्ग या जीवन के पथ मे दिलचरपी है, मै चाहता हूँ कि जीवन को समझा जाय, उसका त्याग नही बल्कि उसको अगीकार किया जाय, उसके अनुसार चला जाय, और उसको उन्नत बनाया जाय । मगर आम मजहवी दृष्टिकोण इस दुनिया से ताल्लुक नहीं रखता । मुझे वह स्पष्ट विचार का दुश्मन मालूम होता है, क्योंकि उसकी बुनियाद सिर्फ कुछ स्थिर और अपरिवर्तनीय मतो और सिद्धान्तो को बिना चूँ-चपड किये स्वीकार कर लेने पर ही नहीं है, बल्कि वह मानसिक प्रवृत्ति, भावना और भावुकता पर भी आधारित है । वह, मै जिन्हे आध्यात्मिकता और आत्मासम्बन्धी वाते समझता हूँ, उनसे बहुत दूर है, और वह, जान-बूझकर या अनजान मे इस डर से कि शायद असलियत पूर्व निर्धारित विचारो से मेल न खाय, असलियत से भी आँखे बन्द कर लेता है । वह् सकुचित है, और दूसरी तरह की रायो या खयालात को वरदाश्त नहीं करता । वह आत्म-मर्यादित और अहंकारपूर्ण है, और अक्सर खुदगर्जा और मौका - परम्तो को अपनेसे बेजा फायदा उठाने देता है । इसके मानी यह नहीं है कि मजहब को माननेवाले अक्सर ऊँचे-से-ऊँचे नैतिक और रूहानी ढग के लोग नही हुए है, या अभी भी नहीं है । लेकिन इसके यह मानी जरूर है कि अगर नैतिकता और आध्यात्मिकता को दूसरी दुनिया के पैमाने से न नापकर इसी दुनिया के पैमाने से नापना हो तो मज़हत्री दृष्टिकोण अवश्य ही राष्ट्रो की नैतिक और आध्यात्मिक प्रगति में सहायता नही देता वल्कि बाधा तक डालता हं । आम तौर पर, मजहव ईश्वर या परमतत्त्व की अ-सामाजिक या व्यक्तिगत खोज का विषय बन जाता है, और मजहबी आदमी समाज की भलाई की बनिस्बत अपनेआपकी मुक्ति की ज्यादा फिक्र करने लगता है। रहस्यवादी अपने अहकार से छुटकारा पाने की कोशिश करता है, और इस कोशिश में अक्सर अहकार को ही बीमारी उसके पीछे लग जाती है । नैतिक पैमानो का ताल्लुक समाज की ज़रूरतो से नही रहता,
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आखिकार कांगे्रस का चिंतन शिविर राहुल के भविष्य की चिंता में तब्दील होकर रह गया। सवा सौ साल पुराने राजनीतिक दल के लिए इस तरह व्यक्ति केंद्रित हो जाना शुभ लक्षण नहीं है। कांग्रेस में वैसे ही राहुल की हैसियत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बाद दूसरे नंबर पर थी। अब महज तकनीकी रूप से उपाध्यक्ष पद से नवाज दिए जाने के बाद कौन-सा चमत्कार हो जाने वाला है, यह कांग्रेस के रणनीतिकार ही जान सकते हैं। बड़ी जिम्मेवारी के बड़े अर्थ बड़े पद से कहीं ज्यादा जिम्मेवारी के यथार्थ की अनुभूति और उनके जमीनी अमल से जुड़े होते हैं। यह सही है कि वर्तमान भारत नौजवानों का देश है। 45 करोड़ युवा भविष्य के सुनहरे सपने लिए आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन इनके सपनों को यदि हकीकत में बदलने की कोई योजना राजनीतिक दृष्टा के मन-मस्तिष्क में नहीं है तो सपनों को यथार्थ में बदलना नामुमकिन ही है। राजनीति की पकी जमीन पर पूरे एक दशक तक खुला खेल खेलने का अवसर मिलना आसान नहीं है, लेकिन अवसर को भुनाने में नाकाम रहना जरूर राहुल की सोच और कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है। अब लोकसभा चुनाव के करीब सवा साल पहले राहुल पार्टी का चेहरा घोषित कर दिए गए हैं। इस घोषणा में यह भी प्रतिध्वनित है कि कांग्रेस 2014 में बहुमत में आती है तो प्रधानमंत्री राहुल गांधी ही होंगे। इसके पहले उन्हें इसी साल होने वाले नौ विधानसभा के चुनावों में भी करिश्माई नेतृत्व दक्षता का परिचय देना होगा। उपाध्यक्ष पद के लिए मनोनीत हो जाने के अगले दिन बड़े नाटकीय अंदाज में राहुल ने शिविर के मंच से कहा, बीती रात मेरी मां मेरे कमरे में आई। उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और रोने लग गई। मां ने कहा, सत्ता जहर होती है। बावजूद हमें सत्ता का उपयोग आम लोगों को सबल बनाने में करना है। भारतीय पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन की कथा विश्व प्रसिद्ध है। इस अवसर पर अमृत तो देवता पी गए, लेकिन जीव जगत की रक्षा के लिए विष अकेले भगवान शिव को पीना पड़ा। इसी लोक कल्याण के कारण शिव को नीलकंठ भी कहा गया। साफ है, कांग्रेस की साख और आगामी लोकसभा चुनाव में उसकी बरकरारी बनाए रखने का चुनौतीपूर्ण काम राहुल के कंधों पर आ गया है। अब यदि सत्ता में कांग्रेस या संप्रग-2 की वापसी होती है तो सत्ता की मलाई तो पूरी कांगे्रस और उसके सहयोगी चखेंगे, लेकिन नाकामी मिलती है तो उसका गरल बेचारे राहुल को पीना पड़ेगा। जबकि सत्ता बहाली की जबाबदेही नौ साल से प्रधानमंत्री बने बैठे मनमोहन सिंह को सौंपनी चाहिए थी, क्योंकि जनाधार खोती जा रही कांग्रेस जिस दुर्दशा में है, उसके लिए जिम्मेवार राहुल को नहीं ठहराया जा सकता? मनमोहन सिंह की आर्थिक सुधार संबंधी नीतियां ऐसी हैं, जिनसे महंगाई लगातार बढ़ रही है और आम आदमी की कमर टूटती जा रही है। मनमोहन के कड़े फैसलों की कतार में कैसे संभव है कि राहुल कांग्रेस की जनहितकारी छवि को बहाल करें? राहुल ने भावुक और लोक-लुभावन जो भाषण चिंतन शिविर में दिया, उसे सुनने वालों की आंखें तो नम हो सकती हैं, लेकिन समस्याओं के समाधान के सूत्र नहीं तलाशे जा सकते? यह ठीक है कि कांग्रेस राहुल को युवाओं के सपनों का प्रतीक मानकर उन्हें देश का अगला प्रधानमंत्री बना देने की पुनीत मंशा पाले हुए है, लेकिन यह विडंबना ही है कि देश का यही 45 करोड़ युवा मतदाता कांग्रेस और राहुल गांधी से सबसे ज्यादा खफा है। विज्ञान और तकनीकी शिक्षा से जुड़ा यह युवा अब इतना नरम दिल भी नहीं रहा कि अतीत की भावुकता में बहाकर उसकी भावनाओं का आसानी से राहुल अपने हित में दोहन कर लें। उसमें प्रतिरोध की ताकत और स्वस्फूर्त प्रदर्शन की भावना अंगड़ाई ले रही है। यही युवा भ्रष्ट्राचार मुक्त भारत के लिए अन्ना आंदोलन में हुंकार भरता दिखाई देता है। राहुल इस दोहरे चरित्र के पाखंड को अवाज देते हुए बड़ी सटीक बात कहते हैं, भ्रष्ट लोग ही भ्रष्टाचार खत्म करने की बात कर रहे हैं। दूसरी तरफ महिलाओं के प्रति अनादर की भावना रखने वाले ही महिला सशक्तिकरण पर भाषण देते हैं। यदि राहुल के भाषण को इन युवाओं के आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो तमाम दिग्गज कांग्रेसियों ने भी तो इन आंदोलनों के चलते यही किया। श्रीप्रकाश जयसवाल और बेनीप्रसाद वर्मा ने खुले मंच से महिलाओं का अनादर किया। कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता मनीष तिवारी ने अन्ना हजारे को भ्रष्ट ठहराया और विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कानून मंत्री रहते हुए गैर कानूनी काम करके विकलांग कल्याण के लिए मिली राशि हड़प ली। इन सब हरकतों को अंजाम तब दिया गया, जब राहुल पार्टी के सबसे प्रभावशाली महासचिव थे। इन्हें दंडित करने की बात तो दूर, राहुल ने इनके मर्यादाहीन बयानों की निंदा तक नहीं की। यही वजह है कि आज के दौर का समझदार युवा नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कहीं ज्यादा निकट है। राहुल गांधी ने भरोसा जताया है कि अब 100 में 99 पैसे आप तक पहुंचेंगे और हम भ्रष्टाचार खत्म करेंगे, लेकिन संप्रग-2 के कार्यकाल में नित नए घपले-घोटाले सामने आए हैं। उनसे तो यही तय होता है कि व्यवस्था में सुधार और बदलाव की जो भी कोशिशें हुई हैं, सत्ता के बिचौलिए उतने ही शक्तिशाली हुए हैं। दरअसल, सत्ता में बैठे जिन भ्रष्टाचारियों और दलालों को ठिकाने लगाने के लिए जिन कड़े कानूनी उपायों की जरूरत है, उस लोकपाल को सालों से सभी राजनीतिक दल लंबित रखे हुए हैं। शासन-प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की दलीलें देने वाले राहुल की इस लोकपाल को अमल में लाने के नजरिये से अभी तक कोई रुचि या भूमिका देखने में नहीं आई। अब कांग्रेस में वैधानिक रूप से नंबर दो की भूमिका में आ जाने के बाद राहुल का दायित्व बनता है कि वे वाकई अपने भाषण में कही बातें व्यावहारिक रूप में देखना चाहते हैं तो एक संकल्प लें और जरूरी हुआ तो हठ की हद पर आकर लोककल्याणकारी विधेयकों को संसद में पारित कराएं। उन्हें यहां गौर करने की जरूरत है कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जन भावना को नकारते हुए परमाणु बिजली और खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश विधेयक को अमल में ला सकते हैं तो वे क्यों नहीं लोक कल्याण से जुड़े विधेयकों को पारित करा सकते हैं? राहुल गांधी ने सवाल उछाला है कि चुनाव से ठीक पहले दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को टिकट मिल जाता है। कई उम्मीदवार सीधे पैराशूट से उतर कर कार्यकर्ताओं पर थोप दिए जाते हैं। दलबदलू चुनाव हार जाते हैं तो वे अपने मूल दल में लौट जाते हैं और पैराशूट से थोपा उम्मीदवार जीतकर हवाई जहाज में उड़ जाता है। साफ है, ऐसे मौकापरस्त नेता, दल और कार्यकर्ताओं की हित चिंता क्यों करने लगे? ऐसे बाहु और अर्थबलियों को क्यों कांग्रेस के टिकट दिए जाएं? राहुल को अपनी यह पीड़ा दूर करने के लिए न तो संसद में विधेयक पेश करने की जरूरत है और न ही बहुमत की? यह नीति से कहीं ज्यादा नैतिकता से जुड़ी चिंता है। राहुल अब कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत पर तो हैं ही, लोकसभा और विधानसभा के टिकट वितरण कांग्रेस समिति के प्रभारी भी हैं। उनकी कथनी और करनी में फर्क पेश न आए, इसके लिए उन्हें ही संकल्प लेने की जरूरत है। इस संकल्प को कार्यरूप में अंजाम इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव से दे सकते हैं। फरवरी में पूर्वोत्तर भारत के तीन प्रांतों और अप्रैल-मई में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हैं। राहुल को चाहिए कि वे एक भी दलबदलू, भ्रष्ट और महिला-अपमान से जुड़े नेता को टिकट न दें। यदि वे इन चार प्रांतों में अपने संकल्प का ढृढ़ता से पालन करते दिखते हैं तो देश के युवाओं में संदेश जाएगा कि राहुल चुनौतियों से रूबरू हो रहे हैं और बदलाव के लिए प्रतिबद्ध हैं। कांग्रेस की दशा सुधरने और दिशा सुनिश्चित होने का मार्ग इन्हीं विधानसभा चुनावों से होकर गुजरने वाला है। यदि राहुल कथनी-करनी में एकरूपता लाने में नाकाम रहते हैं तो सत्ता का जहर पीने को तैयार ही रहें। Read More:
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शॉर्टकटः मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ। यूईएफए यूरोपा लीग, पूर्व में यूईएफए कप के रूप में जाना जाता था, 1971 में स्थापित एक फुटबॉल प्रतियोगिता है। यह यूरोपीय क्लबों के लिए दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता मानी जाती है। प्रतियोगिता के पहले 25 वर्षों के लिए, फाइनल दो लेग पर खेला गया था, लेकिन 1998 के बाद से, प्रतियोगिता का फाइनल एक तटस्थ स्टेडियम में आयोजित किया जाता है। टॉटनहम हॉटस्पर 1972 में उद्घाटन प्रतियोगिता जीती थी। खिताब 28 विभिन्न क्लबों द्वारा जीता गया है और जिनमें से 12 एक बार से अधिक खिताब जीता है। सेविला ५ खिताब के साथ प्रतियोगिता में सबसे सफल क्लब हैं। अंग्रेज़ी पक्ष मैनचेस्टर यूनाइटेड मौजूदा चैंपियन हैं, वे २०१७ फाइनल में अजाक्स को 2-0 से हरा दिया था। . २००८ यूईएफए कप फाइनल, 14 मई 2008 पर मैनचेस्टर, इंग्लैंड में सिटी ऑफ मैनचेस्टर स्टेडियम में हुए एक फुटबॉल मैच था। यह रूस के जेनिट सेंट पीटर्सबर्ग और स्कॉटलैंड के रेंजर्स के बीच खेला गया था। जेनिट सेंट पीटर्सबर्ग ने यह फाइनल 2-0 से जीता। इस प्रकार सीएसकेए मास्को के बाद इस टूर्नामेंट को जीतने के लिए केवल दूसरा रूसी पक्ष बनने। . यूईएफए यूरोपा लीग फाइनल की सूची और २००८ यूईएफए कप फाइनल आम में 13 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): ए सी एफ फिओरेंटीना, एफ सी बेयर्न म्यूनिख, एफसी जेनिट सेंट पीटर्सबर्ग, पीएफसी सीएसकेए मास्को, बायर लेवरकुसेन, मैन्चेस्टर, यूईएफए यूरोपा लीग, रेड स्टार बेलग्रेड, रेंजर्स एफ.सी., स्कॉट्लैण्ड, ओलिम्पिक डी मार्सिले, २००७ यूईएफए कप फाइनल, २००९ यूईएफए कप फाइनल। ए सी एफ फिओरेंटीना, आमतौर पर बस फिओरेंटीना के रूप में संदर्भित, फ्लोरेंस, तुस्कन्य् से एक पेशेवर इतालवी फुटबॉल क्लब है। 1926 में एक विलय (फिर से 2002 निम्नलिखित दिवालियापन में स्थापित) द्वारा स्थापित, फिओरेंटीना अपने अस्तित्व के बहुमत के लिए इतालवी फुटबॉल के शीर्ष स्तर पर खेला है, केवल चार क्लब अधिक सेरी ए सीजन में निभाई है। फिओरेंटीना 1955-56 में और फिर 1968-69 में दो इतालवी चैंपियनशिप जीत ली है, साथ ही छह कोप्पा इटालिया ट्राफियां और एक इतालवी सुपर कप जीतने जैसा है। यूरोपीय मंच पर, फिओरेंटीना 1960-61 में यूईएफए कप विनर्स कप जीता था और बाद में अंतिम एक साल खो दिया। वे रियल मैड्रिड के खिलाफ खोने, 1956-57 यूरोपीय कप में उपविजेता और भी 1989-90 के सत्र में उपविजेता के रूप में परिष्करण, करीब यूईएफए कप जीतने के लिए आया था। 1931 के बाद से, क्लब वर्तमान में 47,282 की क्षमता है, जो स्तदिओ अर्तेमिओ फ्रन्छि में खेला है। . फुटबॉल क्लब बेयर्न म्यूनिख e. V, आमतौर एफसी बेयर्न, एफसी बेयर्न म्यूनिख के रूप में जाने जाते, म्यूनिख, बवरिअ में स्थित एक जर्मन स्पोर्ट्स क्लब है। यह सबसे अच्छा एक रिकॉर्ड 23 राष्ट्रीय खिताब और 16 राष्ट्रीय कप जीत चुके हैं, जर्मनी में सबसे सफल फुटबॉल क्लब बुन्देस्लिग, जर्मन फुटबॉल लीग प्रणाली के शीर्ष स्तर में खेलता है और जो अपने पेशेवर फुटबॉल टीम के लिए जाना जाता है। एफसी बेयर्न फ्रांज जॉन के नेतृत्व में ग्यारह फुटबॉल खिलाड़ियों द्वारा 1900 में स्थापित किया गया था। बेयर्न 1932 में अपनी पहली राष्ट्रीय चैम्पियनशिप जीत ली क्लब 1963 में अपनी स्थापना के समय में बुन्देस्लिग के लिए नहीं चुना गया था। फ्रांज बेकनबावर के नेतृत्व में, यह एक पंक्ति (1974-76) में यूरोपीय कप तीन बार जीता है, जब क्लब में 1970 के दशक के मध्य में सबसे बड़ी सफलता की अपनी अवधि था। 2005-06 सीजन बायर्न एलियांज एरीना में अपने घरेलू मैच खेला है। इससे पहले टीम के 33 साल के लिए म्यूनिख ओलंपिया स्टेडियम में खेला था। राजस्व के मामले में, बेयर्न म्यूनिख 2012 में € 368,400,000 सृजन, जर्मनी में सबसे बड़ा खेल क्लब और दुनिया में चौथी सबसे बड़ी फुटबॉल क्लब है। बेयर्न 200,000 से अधिक सदस्यों के साथ एक सदस्यता आधारित क्लब है। 231197 के सदस्यों के साथ 3202 आधिकारिक तौर पर पंजीकृत प्रशंसक क्लब भी हैं। . फुटबॉल क्लब जेनिट (Футбо́льный клуб «Зени́т», जेनिट), जेनिट सेंट पीटर्सबर्ग के रूप में भी जाना जाता है, सेंट पीटर्सबर्ग शहर से एक रूसी फुटबॉल क्लब है। 1925 में स्थापित, क्लब रूसी प्रीमियर लीग में खेलता है। जेनिट को 2000 के दशक में सफलता मिली, इस समय के दौरान वे तीन रूसी प्रीमियर लीग खिताब जीता, यूरोपीय मंच पर वे 2008 यूईएफए कप और यूईएफए सुपर कप जीता है। . पेशेवर फुटबॉल क्लब सेना का केन्द्रीय स्पोर्ट्स क्लब, मास्को, (Профессиональный футбольный клуб ЦСКА, Москва) (Professional Football Club Central Sports Club of Army, Moscow) एक रूसी पेशेवर फुटबॉल क्लब है। यह मास्को के शहर में आधारित है। क्लब को लोकप्रिय स्तर पर सीएसकेए के रूप में भी बुलाय जाता है। 1911 में स्थापित, सीएसकेए छह सत्रों में पाँच खिताब के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अपनी सबसे सफल अवधि मे था। सीएसकेए साम्यवादी युग के दौरान सोवियत सेना के अधिकारी टीम थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद से यह एक शेयरधारक के रूप में रक्षा मंत्रालय के साथ निजी स्वामित्व बन गया है। सीएसकेए जब 2005 में UEFA कप जीता तो वह एक यूरोपीय खिताब जीतने वाले पहले रूसी क्लब बन गया। . बायर 04 लेवरकुसेन भी बायर लेवरकुसेन के रूप में जाना, लेवरकुसेन या बस बायर, लेवरकुसेन, नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में स्थित एक जर्मन फुटबॉल क्लब है। यह TSV बायर 04 लेवरकुसेन, जिसके सदस्य भी एथलेटिक्स, जिमनास्टिक, बास्केटबाल और RTHC बायर लेवरकुसेन (रोइंग, टेनिस और हॉकी) सहित अन्य खेलों में भाग लेने के एक स्पोर्ट्स क्लब की सबसे प्रसिद्ध पूर्व विभाग है। 1999 में फुटबॉल विभाग क्लब से बाहर रखा गया है और बायर 04 लीवरकुसेन जीएमबीएच बुलाया गया था। क्लब कारखाने में श्रमिकों के लिए फार्मा दिग्गज बायर की मदद से 1904 में गठन किया गया था। बायर लेवरकुसेन बुन्देस्लिग, जर्मन फुटबॉल लीग प्रणाली के शीर्ष स्तर में खेलते हैं। लीवरकुसेन एक DFB-पोकल और एक यूईएफए यूरोपा लीग जीत चुके हैं। 1958 के बाद से, बायर लेवरकुसेन के स्टेडियम बय अरेना है। . मैनचेस्टर इंग्लैंड के ग्रेटर मैनचेस्टर क्षेत्र में एक नगर और महानगरीय बोरो है। १८५३ में इसे नगर का दर्जा दिया गया। २००७ में यहाँ की कुल जनसंख्या ४,५८,१०० थी जबकी ग्रेटर मैनचेस्टर महानगरीय क्षेत्र की कुल जनसंख्या २५,६२,२०० थी। श्रेणीःअमेरिका के शहर. यूईएफए यूरोपा लीग, यह पहले यूईएफए कप नामित किया गया था, एक वार्षिक पुरुषों के फुटबॉल क्लब प्रतियोगिता है, योग्य यूरोपीय फुटबॉल क्लब के लिए जो 1971 के बाद से यूईएफए द्वारा आयोजित किया जाता है। क्लब अपनी राष्ट्रीय लीग और कप प्रतियोगिताओं में उनके प्रदर्शन के आधार पर प्रतियोगिता लिए अर्हता प्राप्त करते है। इससे पहले यह यूईएफए कप बुलाया जाता था, प्रारूप में एक परिवर्तन के बाद प्रतियोगिता 2009-10 सत्र के बाद यूईएफए यूरोपा लीग के रूप में जाना गया है। यूईएफए फुटबॉल रिकॉर्ड प्रयोजनों के लिए, यूईएफए कप और यूईएफए यूरोपा लीग, एक ही प्रतियोगिता माने जाते है। 1999 में, यूईएफए कप विनर्स कप को समाप्त कर दिया गया था और यूईएफए कप के साथ विलय कर दिया गया। 2004-05 प्रतियोगिता के लिए एक ग्रुप चरण नॉकआउट चरण से पहले जोड़ा गया। 2009 पुनः ब्रांडिंग मे यूईएफए इंटरटोटो कप के साथ एक विलय शामिल था, एक बढ़े हुए प्रतियोगिता प्रारूप का उत्पादन हुआ, साथ ही एक विस्तारित ग्रुप चरण और पात्रता मानदंड बदल। यूईएफए यूरोपा लीग के विजेता यूईएफए सुपर कप के लिए उत्तीर्ण होते है और 2015-2016 के सत्र के बाद से पिछले सत्र के यूईएफए यूरोपा लीग के विजेताओं यूईएफए चैंपियंस लीग के लिए अर्हता प्राप्त करेंगे। खिताब 28 विभिन्न क्लबों द्वारा जीता गया है और जिनमें से 12 एक बार से अधिक खिताब जीता है। सेविला ५ खिताब के साथ प्रतियोगिता में सबसे सफल क्लब हैं। अंग्रेज़ी पक्ष मैनचेस्टर यूनाइटेड मौजूदा चैंपियन हैं, वे २०१७ फाइनल में अजाक्स को 2-0 से हरा दिया था। . फुटबॉल क्लब च्र्वेना ज़्वेज़्दा बेलग्रेड (Serbian Cyrillic: Фудбалски клуб Црвена звезда Београд -), आमतौर पर रेड स्टार बेलग्रेड या बस रेड स्टार के रूप में जाना जाता है, बेलग्रेड में एक सर्बियाई पेशेवर फुटबॉल क्लब आधारित है, रेड स्टार स्पोर्ट्स सोसायटी का प्रमुख हिस्सा है और सर्बिया में सबसे सफल क्लब, 25 राष्ट्रीय चैंपियनशिप और सर्बियाई और पूर्व यूगोस्लाव प्रतियोगिताओं दोनों में 24 राष्ट्रीय कप के रिकार्ड के साथ. रेंजर्स एफ.सी. रेंजर्स फुटबॉल क्लब स्कॉटिश पेशेवर फुटबॉल लीग में खेलता है, जो ग्लासगो में स्कॉटलैंड के एक फुटबॉल क्लब आधारित है। अपने घरेलू मैदान शहर के दक्षिण पश्चिम में इब्रोक्ष् स्टेडियम है। 1872 में स्थापित, रेंजरों मूल स्कॉटिश फुटबॉल लीग के दस संस्थापक सदस्यों में से एक थे। 2012 में, रेंजरों फुटबॉल क्लब पीएलसी एक समझौते पर अपने लेनदारों के साथ पहुँच नहीं किया जा सकता है जब परिसमापन में जिसके परिणामस्वरूप, दिवालिया हो गया। अपने व्यापार और रेंजरों एफसी सहित संपत्ति, जो करने के लिए क्लब के स्कॉटिश फुटबॉल एसोसिएशन सदस्यता रेंजरों मौसम 2012-13 के शुरू में स्कॉटिश फुटबॉल लीग के तीसरे डिवीजन में relaunch करने के लिए सक्षम करने के लिए समय में स्थानांतरित किया गया था, एक नई कंपनी द्वारा खरीदा गया था। घरेलू फुटबॉल रेंजर्स में लीग खिताब 54 बार, स्कॉटिश कप 33 बार और स्कॉटिश लीग कप 27 बार जीत है और एक ही सीजन में इन तीनों का तिहरा को प्राप्त करने, दुनिया में किसी भी अन्य क्लब से अधिक लीग खिताब और trebles जीत लिया है सात बार. स्काटलैंड यूनाइटेड किंगडम का एक देश है। यह ग्रेट ब्रिटेन का उत्तरी भाग है। यह पहाड़ी देश है जिसका क्षेत्रफल ७८,८५० वर्ग किमी है। यह इंगलैंड के उत्तर में स्थित है। यहां की राजधानी एडिनबरा है। ग्लासगो यहाँ का सबसे बड़ा शहर है। स्कॉटलैण्ड की सीमा दक्षिण में इंग्लैंड से सटी है। इसके पूरब में उत्तरी सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में नॉर्थ चैनेल और आयरिश सागर हैं। मुख्य भूमि के अलावा स्कॉटलैण्ड के अन्तर्गत ७९० से भी अधिक द्वीप हैं। यूँ तो स्कॉटलैंड यूनाइटेड किंगडम के अधीन एक राज्य है लेकिन यहाँ का अपना मंत्रिमंडल है। यहाँ की मुद्रा का रंग और उस पर बने चित्र भी लंदन के पौंड से कुछ अलग है। लेकिन उनकी मान्यता और मूल्य दोनों ही पौंड के समान है। यहाँ घूमने और लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहाँ के लोग इंग्लैंड सरकार से थोड़े से खफा रहते हैं। . ओलिम्पिक डी मार्सिले (लोकप्रिय ओएम) के रूप में जाना, या बस मार्सिले, मार्सैय शहर में स्थित एक फ्रेंच फुटबॉल क्लब है। 1899 में स्थापित, क्लब लिगुए 1 में खेलते हैं और फ्रांसीसी फुटबॉल के शीर्ष स्तर में अपने इतिहास के सबसे अधिक खर्च किया है। मार्सिले फ्रेंच चैंपियन नौ बार किया गया है और कूप डी फ्रांस एक रिकॉर्ड दस बार जीत लिया है। 1993 में, क्लब यूईएफए चैंपियंस लीग जीतने वाले पहले और एकमात्र फ्रेंच क्लब बन गया। 1994 में, मार्सिले उनके घरेलू ट्रॉफी खोने, क्योंकि एक रिश्वत कांड से चला, लेकिन यूईएफए चैंपियंस लीग खिताब नहीं थे। 2010 में, मार्सिले पूर्व क्लब कप्तान डिडिएर देस्छम्प्स् के नेतृत्व के तहत, फिर फ्रेंच चैंपियन बन गया। मार्सिले का घरेलू मैदान है कि वे 1937 के बाद से खेला है, जहां शहर के दक्षिणी भाग में स्थित 60031 व्यक्ति क्षमता स्टेड वेलोड्रम है. २००७ यूईएफए कप फाइनल, 16 मई 2007 पर ग्लासगो, स्कॉटलैंड में हैमपडेन पार्क में हुए एक फुटबॉल मैच था। यह दो स्पेनिश टीमें सेविला और एस्पेनयॉल के बीच खेला गया था। फाइनल अतिरिक्त समय के बाद 2-2 पर समाप्त हुआ, लेकिन अंत में सेविला पेनल्टी शूटआउट पर फाइनल 3-1 से जीता। . २००९ यूईएफए कप फाइनल, 20 मई 2009 पर इस्तांबुल, तुर्की में सुकरु साराकोगलू स्टेडियम में हुए एक फुटबॉल मैच था। यह यूक्रेन के शख्तर् डोनेट्स्क और जर्मनी के वेर्डर ब्रेमेन के बीच खेला गया था। शख्तर् डोनेट्स्क ने फाइनल अतिरिक्त समय में 2-1 से जीत लिया। इस प्रकार ट्रॉफी जीतने वाली पहली यूक्रेनी क्लब बनने। . यूईएफए यूरोपा लीग फाइनल की सूची 104 संबंध है और २००८ यूईएफए कप फाइनल 22 है। वे आम 13 में है, समानता सूचकांक 10.32% है = 13 / (104 + 22)। यह लेख यूईएफए यूरोपा लीग फाइनल की सूची और २००८ यूईएफए कप फाइनल के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखेंः
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कर हो मान ले और जिसका निर्णय किसी दूसरेको न करना पड़ा हो । भयवाद ( हि० पु० एक ही गोत या वंशके लोग, भाई बन्द । २ बिरादरीका आदमी, सजातीय । भगव्यूह ( स० ० ) भये सति व्यूहः । राजाओंका व्यूहभेद । युद्धकालमें भयव्यूह रचना चाहिये, क्योंकि भय उपस्थित होने पर इस व्यूहमें आश्रय ले कर प्राणरक्षा की जा सकती है। व्यूह देखो । भयहरण ( स० वि० ) भयका नाश करनेवाला, भय दूर करनेवाला । भयहारी ( हिं० वि० ) डर छुड़ानेवाला, डर दूर करनेवाला । भया ( स० स्त्री० ) एक राक्षसी जो कालकी बहन और हेतिकी स्त्री थी। विद्युत् इसीके गर्भसे उत्पन्न हुआ था । भयाकुल ( स० पु० ) भयरी व्याकुल, डरसे घबराया हुआ । भयातिसार ( स० पु० ) अतिसारका एक भेद । इसमें केवल भयके कारण दस्त आने लगते हैं। भयातुर ( स० वि० ) भयातुर, डरसे घवगया हुआ । भयानक ( स० पु० ) विभेत्यस्मादिति भी ( शीङ् भियः । उ ३३८२ ) इति आनक । १ व्याघ्र, वाघ । २ राहु । ३ शृङ्गारादि आठ रसोंके अन्तर्गत छठा रस । इसमें भोषण दृश्यों (जैसे- पृथ्वी के हिलने वा फटने समुद्र में तूफान आने आदि ) का वर्णन होता है। इसका वर्ण . श्याम, अधिष्ठाता देवता यम, आलम्बन भयङ्कर दर्शन, उद्दीपन उसके घोर कर्म और अनुभाव कंप, स्वेद, रोमाथ आदि माने गये हैं। जुगुप्सा, वेग, सम्मोह, संत्रास, ग्लानि, दोनता, शङ्का, अपस्मार, भ्रान्ति और मृत्यु आदि इस रसके व्यवभिचारिभाव हैं। ( वि० ) २ भयङ्कर, डरावना । भयापह (सं० पु०) भयंअपहन्तीति हन् ( अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते पा १।२।१०३ ) इति । १ राजा । वि०) २ भयनाशक । भयावह ( स० वि० ) आवहतीति आ वह अच् भयस्य । आवहः । भयङ्कर, डरावना । भयावहा ( स० स्त्री० ) रात्रि; रात । - भर भय्य ( स० क्लो०) भी भावे यत्, वेदे निपातनात् साधुः । भय, डर । भय्या ( हिं०० ) भैया देखो । भर ( स० वि० ) भरतीति भृ-पचाद्यं च १ अतिशय, बहुत । २ भरणकर्त्ता, भरणपोषण करनेकाला । ( २ ) ३ भार, बोझ । ४ संग्राम । ५ दो सौ पलका एक परि माण । भर ( हिं० पु० ) १ भार, बोझ । २ पुष्टि, मोटाई । (वि०) ३ कुल पूरा, तमाम । भर- युक्तप्रदेश, अयोध्या और पश्चिम बङ्गाल-वास्त निम्नश्रेणीको एक क्षत्रिय जाति । जातितत्त्व विगण इस जातिको द्राविड़ीय शाखा के अन्तर्गत समझते हैं । इस जाति के लोग साधारणतः राजभर, भरत वा भरतपुत्र नामसे परिचित होते हैं। इस जातिकी उत्पत्तिके सम्बन्ध में नाना स्थानोंमें नाना प्रकारको किम्बदन्तियां प्रसिद्ध हैं। सामाजिक और कौलिक आचारादिमें समुन्नत हो कर थे क्रमशः उच्चश्रेणीके हिंदू समझे जाने लगे हैं। कोई कोई कहते हैं, कि ये क्षत्रियराज भरद्वाजके वंशधर हैं। अयोध्या और युद्धप्रदेशके भरोका कहना है कि, उनके पूर्वपुरुष अयोध्या के पूर्वा शमें राज्य करते थे। अयोध्या के उस * अनार्य आकृति-विशिष्ट इस जातिने किसी समय भारत क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की थी, इसका कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता । पुराणादि में भी इस भर जातिकी प्रतिष्ठाका कोई उल्लेख नहीं है । जातितत्त्वविदोंका अनुमान है कि, यह जाति टलेभी द्वारा वर्णित वरहई ( Burrhai ) वा प्लिनीकी उबारी ( llbarae ) होगी । किन्हींन ब्रह्मपुराण - वर्णित जयध्वज वंशावतंश भारतको अथवा महाभारतोक्त भीमसेन द्वारा पराजित भर्गजातिको वर्तमान भरजातिका पूर्वपुरुष माना है। और कोई कोई कहते हैं, कि पार्वतीय भरत ( शबर चर्चर आदि ) जातिसे भरजातिका अभ्यु दय स्वीकार करते हैं। शेरिंग सा०ने लिखा है कि हिन्दूशास्त्रोंमें दस्यु और असुर शब्दसे अनार्य जातिका उल्लेख हुआ है। अनार्य द्वारा विताड़ित हो कर आर्योका इतस्ततः गमन और उपवेशन स्थापन उनाव प्रदेश के इतिहास - वर्णित कनकसेनका परासंब और पलायन उसका समर्थन कर रहा है।. प्राचीन और प्रसिद्ध सूर्यवंशीय राजाओंका शासन प्रभाव विलुप्त होने पर यहां भरजातिका आधिपत्य विस्तृत हुआ। सूर्यवंशीय राजा कनकसेनके राजत्वकालमें इस अनार्य भरजातिंने हिमालय के पार्वतीय निवाससे अवतीर्ण हो कर अयोध्या में प्रतिष्ठा प्राप्त की। राजा कमकसेन दुद्धर्ष भरोका आक्रमण सह न सके जिससे वे गुजरातकी तरफ भाग गये। उनके साथ होनबल क्षत्रिय सन्तानगण भी नाना स्थानोंमें फैल गये हैं । दस्युवृत्ति और लूट मार आदि इनका प्रधान कार्य है। अपने में किसोको धर्मचर्चा करते हुए देखते हैं, तो उसे विशेष लाञ्छित करते हैं। गाजीपुर, बस्ती, मोर्जापुर, भरोच आदि जिलों के दुर्गादिके ध्वंसावशेषसे प्रमाणित होता है, कि इस दुर्द्धर्ष जातिने किसी समय सुदूर विस्तृत युक्तप्रदेश में आधिपत्य विस्तार किया था । कौशिक राजपूतों द्वारा वे गोरख पुरसे भगाये गये थे। विन्ध्याचलके निकटवर्ती पम्पापुरमें इनकी राजधानी थो । प्रतनतत्वविदुगण केवलमाल किम्बदन्तियों पर आस्था स्थापन कर भरजातिकी पूर्व प्रतिपति स्वीकार करने में सहमत नहीं हैं। साहबुद्दीन गोरीके भारताक्रमण और कनोज पति जयपालके अधःपतन के समय राजपूतजाति पूर्व प्रान्तमें अध्युषित हुई । उस समय • भर लीग राजपूतों से पराजित हुए थे। ये आजमगढ़ और गाजीपुरसे सेनगरों द्वारा मिर्जापुर और इलाहा बादके आसपाससे गहरवाड़ों द्वारा, गोरखपुरसे 'कौशिकों' द्वारा, फैजाबाद और अयोध्यासे बाई तथा भद्रोही और प्रयागके पश्चिमभागसे मोना, बाई, सोनक आदि जातियों द्वारा भगाये गये थे। इस प्रकारले भर-शक्ति के अधःपतन होनेके बाद समग्र युतप्रदेश राजपूतजातिकी विभिन्न श्रेणियों के सरदारों के शासनाधीन हो गया था। उक्त राजपूतगण + वर्त्तमान प्रत्नतत्त्वबिद्गण भरजातिकी इस पूर्वतन गौरव-: वार्ताको स्वीकार नहीं करते। पहले जो ध्वंसावशेष भरजातिके कीर्तिस्तम्भ समझे गये थे, सब उनमेंसे बहुतसे विभिन्न राजवंशों द्वारा आरोपित प्रमाणित हुए हैं । 'छतो' नामसे परिचित हुए । उपर्युक घटना परम्परा द्वारा किसी ऐतिहासिक सत्य पर नहीं पहुंचा जा सकता । कारण, सिवा एक किम्बदन्तीके इस विषय में और कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इनमें भरद्वाज, कनोजिया और राजभर नामक तीन स्वतन्त्र श्रेणियां हैं। मिर्जापुरी भर भुंइहार, राजभर और दुसाद नामक तीन श्रेणियों में विभक्त हैं। भुँइहार लोग अपनेको उन लब्धप्रतिष्ठ भरराजों के वश घर और सूर्यवंशीय राजपूत कहा करते हैं । ये सगोलमें, अथवा पितृ वा मातृ-कुलमें विवाह नहीं करते, किंतु यदि ४ या ५ पीढ़ीमें पिण्ड वाधक न हो, तो ये लोग बूआको कन्याके साथ भी विवाह कर लेते हैं। अपने घरमें विवाह करना हो इनको विशेष अभिप्रेत है। आजमगढ़ के राजभर वास्तव में हिंदू हैं। इनके सम्पूर्ण क्रियाकलाप हिंदुओं के समान हैं । ये हिंदू भरगण 'पतैत' कहलाते हैं । निम्नश्रेणी के भरोको 'खुन्तैत' कहते हैं । पतैतों ने अपने आचारादि द्वारा समाजमें उच्च स्थान प्राप्त किया है, और खुन्तैत लोग शूकर-पालन जैसे निकृष्ट व्यवसायमें जीवन बिताते हैं। उक्त दोनों श्रेणियों में परस्पर आदान प्रदान प्रचलित रहने पर भी शूकर-व्यवसायियों के साथ उन्नत व्यक्ति अपनी सन्तानका विवाह सम्बन्ध नहीं करते । लाकर-पालन भर समाजमें नोच समझा जाता है। यदि कोई अविवाहिता बालिका स्वजातीय किसो युवकके साथ अवैध प्रणयसे आसक्त हो, तो जातीय सभा उस कन्या के पितासे जुर्माना ले कर लड़कीको जाति । ले लेती है। इस वर्ष से बड़ी कन्याका विवाह निषिद्ध है। वह कन्या समाज में 'रजस्वला' होने के कारण निन्दनीय है, उसके साथ कोई भो कनेंगी साहबका कहना है कि पूर्वाभिमुखी विशाल राजपूतवाहिनी नागवंशीय राजाओं द्वारा पराजित हुई थी। जो क्षत्री अब उक्त प्रदेशमें प्रबल हैं वे भरके सिवा और कोई नहीं हो. सकते । भारतमें आर्योंक प्रभावके समय इनका प्रभाव घढ गया था । अन्य विद्वान इनके गठन साहश्यले अनुमान करते हैं, कि ये : विड़ीय कोल अथवा शबरजातिके होंगे। बिन्ध्याचलके कैमूर अधित्यकावासी अनार्यजातिके साथ इनका बहुत कुछ सुसादृभ्य है।
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चुप तुम रहो, चुप हम रहें. . . एक ख़ूबसूरत शाम और मेहमानों से सजी महफ़िल में गीत गाता एक क्लब सिंगर. जिसने भी 1996 की हिंदी फ़िल्म 'इस रात की सुबह नहीं देखी' को देखा है, उन्हें ये गीत याद होगा. पूरी फ़िल्म में वो क्लब सिंगर सिर्फ़ और सिर्फ़ इस गाने में दिखाई देता है. दुबला-पतला सा एक युवक जो कुछ सालों में तमिल फ़िल्मों का सुपरस्टार और हिंदी फ़िल्मों का हीरो बनने वाला था- नाम था आर माधवन, जो अब नई फ़िल्म 'रॉकेट्री' में नज़र आ रहे हैं. चंद सेकेंड के इस रोल में आर माधवन की मौजूदगी तो दर्ज नहीं हुई थी और फ़िल्में अभी दूर थी. लेकिन टीवी पर वो एक्टर नाम बनने की ओर क़दम बढ़ा चुके थे. 90 के दशक में एक के बाद उनके सीरियल आए- बनेगी अपनी बात, साया, घर जमाई, सी हॉक्स. . . और इनके ज़रिए वो अच्छे ख़ास मशहूर हो गए. वैसे फ़िल्मों में माधवन ने अपना डेब्यू तमिल या हिंदी में नहीं, 1997 की इंग्लिश फ़िल्म 'इन्फ़र्नो' और 1998 में आई 'शांति शांति शांति' नाम की एक कन्नड़ फ़िल्म से किया था. आर माधवन उन चंद अभिनेताओं में से एक हैं, जो हिंदी, तमिल और कुछ हद तक दूसरी भाषाओं में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं. दक्षिण भारत के कई सुपरस्टार हिंदी फ़िल्मों में काम कर चुके हैं, जैसे रजनीकांत, चिरंजीवी, नागार्जुन, कमल हासन, मोहनलाल, पृथ्वीराज, राणा दग्गुबती और इनकी कुछ फ़िल्में हिट भी रहीं. लेकिन श्रीदेवी, वैजयंतीमाला, रेखा, हेमा मालिनी, जया प्रदा जैसी अभिनेत्रियों के उलट, दक्षिण भारतीय हीरो को हिंदी फ़िल्मों में सीमित सफलता मिली है. रामचरण, एनटीआर जूनियर जैसे हीरो का तात्कालिक क्रेज़ ज़रूर है, लेकिन ये अभी शुरुआती दौर है. माधवन इस क्रम का अपवाद कहे जा सकते हैं, जिन्होंने इस धारणा को तोड़ा है. उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी. कुछ दिन पहले बीबीसी से बातचीत में माधवन ने अपनी सफलता को यूँ बयां किया था, "दरअसल मैं दोनों भाषा ठीक तरह से बोल लेता हूँ. मैं (तब के) बिहार और आज के झारखंड (जमशेदपुर) में पला-बढ़ा हूँ. चूँकि हिंदी ठीक से बोल लेता हूँ, तो दर्शकों को मेरे साथ रिलेट करना आसान हो गया. मैं तमिल परिवार से हूँ, तो वो भाषा भी ठीक से बोल लेता हूँ. मणिरत्नम जी ने मुझे इंट्रोड्यूस किया है. तमिल इंडस्ट्री में भी मुझे स्वीकार करने में लोगों को कोई दिक्कत नहीं हुई. " उन्होंने कहा था, "मैं सिक्स पैक वाला हीरो तो हूँ नहीं. रोमांटिक फ़िल्में कम ही की हैं मैंने. लेकिन मैंने जो भी फ़िल्में की हैं, वो ये सोचकर की हैं कि युवा दर्शकों को ये न लगे कि 'मैडी रीचेबल' है. मैं उनके लिए एस्पिरेशनल होना चाह रहा था. उन्हें लगे कि चाहे वो 'तनु वेड्स मनु' का मनु हो या 'थ्री इडियट्स' का फ़रहान- मैडी में एक क्षमता है, जो हममें भी होनी चाहिए. तो मैंने ऐसे ही रोल चुने, जो एस्पिरेशनल हों और वो लोगों को पसंद आया. " आर माधवन की इस सफलता के क्रम को समझने के लिए उनके अतीत में भी झाँकना होगा. आर माधवन की पैदाइश झारखंड के जमदेशपुर में हुई- हिंदी परिवेश, तमिल परिवार और महाराष्ट्र में पढ़ाई. इसका उन पर मिला-जुला असर हुआ. एक्टर बनना कोई शुरुआती सपना नहीं था. फ़िल्म 'थ्री इडियट्स' के फ़रहान वाला सीन जहाँ माँ-बाप बेटे के इंजीनियर बनाना चाहते हैं, कुछ वैसा ही मिलता-जुलता क़िस्सा माधवन की ज़िंदगी में भी था. बोर्ड में 58 फ़ीसदी नंबर आए. एनसीसी कैडेट के रूप में प्रदर्शन इतना अच्छा रहा कि इंग्लैंड भेजा गया, जहाँ ब्रिटिश आर्मी के साथ ट्रेनिंग ली. बीएससी इलेक्ट्रॉनिक्स किया जैसा कि माँ-बाप की ख़्वाहिश थी कि इंजीनियर जैसा कुछ बने. लेकिन सबकी इच्छा के ख़िलाफ़ माधवन ने पब्लिक रिलेशन्स में मास्टर्स किया. कोल्हापुर में पब्लिक स्पीकिंग की क्लास भी लेने लगे, तो ज़बरदस्त हिट हो गए. बाद में मुंबई आकर थोड़ी बहुत मॉडलिंग की, तो वहाँ से सीरियल और फ़िल्मों का रास्ता खुल गया. टुकड़ों-टुकड़ों में ये तब्दीलियाँ होती रहीं, लेंकिन माधवन के करियर में बड़ा बदलाव तब आया, जब 2000 में उन्हें मणिरत्नम ने अपनी तमिल फ़िल्म अलईपायुदे (Alaipayuthey) में लिया और फिर 2001 में तमिल फ़िल्म 'मिन्नले' आई. रोमांटिक हीरो के तौर पर बस माधवन युवाओं के दिल में बस गए और फिर तमिल फ़िल्म 'रन' से माधवन ने एक्शन में एंट्री ली. मणिरत्नम की फ़िल्म युवा के जिस रोल में आपने अभिषेक बच्चन को देखा, वो रोल 2004 में तमिल फ़िल्म में माधवन ने ही किया था. 'एक लड़की देखी बिल्कुल बिजली की तरह. एक चमक और मैं अपना दिल खो बैठा. बस अब एक ही तमन्ना है. रहना है उसके दिल में'. यही वो डायलॉग और फ़िल्म है, जिससे आर माधवन ने 2001 में हिंदी फ़िल्मों में बतौर रामोंटिक हीरो एंट्री ली. उस वक़्त तो फ़िल्म पिट गई, लेकिन माधवन 'मैडी' के नाम के उस रोमांटिक रोल से मशहूर हो गए. माधवन तमिल में सुपरस्टार रोल में स्थापित होते गए, तो 2005 के बाद से हिंदी फ़िल्मों में ज़्यादा दिखने लगे. हिंदी में उन्होंने छोटा रोल या सह कलाकार का रोल करने में भी गुरेज़ नहीं किया. जैसा उनकी फ़िल्म 'दिल विल प्यार व्यार' का डायलॉग भी है- 'बड़ी चीज़ों की क़ीमत कभी छोटी नहीं हुआ करती. ' फिर चाहे फ़िल्म 'गुरु' (2007) के आदर्शवादी पत्रकार श्याम सक्सेना का रोल हो, जो अभिषेक बच्चन (धीरूभाई) को चैलेंज करता है, 'मुंबई मेरी जान' का निखिल हो, जो मुंबई ब्लास्ट के बाद डिप्रेशन से गुज़र रहा है या फिर 'रंग दे बसंती' (2006) का फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट अजय सिंह राठौड़ हो, जो सिखाकर जाता है कि 'कोई भी देश परफ़ेक्ट नहीं होता, उसे बेहतर बनाना पड़ता है. ' या फिर थ्री इडियट्स का फ़रहान जिसकी ये बात आज भी चेहरे पर शरारत भरी प्यारी मुस्कान ला देती है कि 'दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है, लेकिन दोस्त फ़र्स्ट आ जाए तो ज़्यादा दुख होता है'. हिंदी फ़िल्मों में 2009 की फ़िल्म 'थ्री इडियट्स' एक तरह से उनके लिए गेमचेंजर साबित हुई. हालांकि, बीच-बीच में उनकी कई हिंदी फ़िल्में फ्लॉप भी हुईं. और यही वो वक़्त था, जब माधवन ने फ़िल्मों से ब्रेक ले लिया. माधवन को लगातार मिलती रही सफलता को इस नज़रिए से भी देखा जा सकता है कि उन्होंने अपने आप को रिइन्वेंट किया है. उनका रोमांटिक हीरो वाला अच्छा ख़ासा फेज़ चल रहा था. लेकिन 2010-11 के आसपास 40 की उम्र में उन्होंने बैकसीट लेते हुए कई सालों का ब्रेक लिया और नए तरीके से वापसी की. तब उनकी फ़िल्म 'तनु वेड्स मनु' रिलीज़ हुई ही थी और ज़बरदस्त धूम मचा रही थी. पीटीआई से बातचीत में माधवन ने कहा था, "ब्रेक लेने को लेकर मैं थोड़ा नर्वस तो था. लेकिन सिर्फ़ बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करते रहने का कोई मतलब नहीं है, अगर आप अच्छी फ़िल्मों में काम नहीं कर रहे हो. मैंने आमिर ख़ान से ये सीखा. 'लगान' के दौरान उन्होंने भी चार साल का ब्रेक लिया था. अगर आप अच्छा काम नहीं करते, तो लोगों को भी याद नहीं रहता. " वापसी के बाद माधवन ने 'इरुधी सुत्रु' (irudhi Suttru) जैसी तमिल फ़िल्म की, जिसमें वो किसी रोमांटिक या एक्शन हीरो के रूप में नहीं, बल्कि एक बॉक्सिंग कोच के रोल में थे, जो एक युवा लड़की को ट्रेन करने का चैलेंज लेते हैं. इस रोल के लिए माधवन ने बॉक्सिंग सीखी, एक असल मार्शल आटर्स खिलाड़ी को रोल के लिए मनाया. इस फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और माधवन को फ़िल्मफेयर अवॉर्ड. जब हिंदी में 'साला ख़डूस' फ़िल्म को रिलीज़ करने की बारी आई, तो माधवन ने ख़ुद इसे डिस्ट्रीब्यूट करने का ज़िम्मा उठाया. माधवन ने एनकाउंटर स्पेशिलस्ट का जो रोल सुपरहिट तमिल फ़िल्म 'विक्रम वेधा' में किया था, आज ऋतिक रोशन वही रोल हिंदी में करने जा रहे हैं. करियर और ज़िंदगी में रिस्क लेने की बात पर माधवन कहते हैं, "मुझे ख़तरा कभी नज़र ही नहीं आता. ख़तरा नज़र आए तो मैं डरूँ न. कभी-कभी तो ऐसी जगह घुस गया हूँ, जहाँ लगता है कि मैं कहाँ जा रहा हूँ. चाहे वो एक्टिंग हो, पहली बार निर्देशन हो, पब्लिक स्पीकिंग का करियर हो या मोटसाइकिल और स्कीइंग का शौक हो, मैं एक हद तक सफल रहा हूँ. मैंने लाइफ़ में संघर्ष नहीं किया. मैं तो एक्टर बनने आया ही नहीं था. राह चलते इंसान को एक्टर बना दिया. मणिरत्नम ने सच में एक राह चलते इंसान को साउथ में सुपरस्टार बना दिया. राजकुमारी हिरानी, राकेश मेहरा इन सबने बुलाया. शाहरुख़ ख़ान मेरी पहली निर्देशित फ़िल्म में हैं. इसमें कुछ संघर्ष नहीं है. मैं इसे संघर्ष कहूँगा तो भगवान मेरे से ख़फ़ा हो जाएँगे. मैंने हर पल का आनंद लिया है. " फ़िल्में और रोल ही नहीं, माधवन ने समय के साथ नए माध्यमों को भी अपनाया है. 2018 में उन्होंने ब्रीद के साथ पहली बार वेबसिरीज़ में भी क़दम रखा. और 50 साल की उम्र में माधवन ने ख़ुद को नया चैलेंज दिया. उन्होंने फ़िल्म डाइरेक्ट, प्रोडयूस और लिखने का ज़िम्मा उठाया और वो भी एक मुश्किल विषय पर- इसरो वैज्ञानिक डॉक्टर एस नांबी नारायण की कहानी, जिन्हें जासूस करार दिया गया और करियर तबाह हो गया लेकिन दशकों बाद वो बेक़सूर साबित हुए. सिर्फ़ हीरो की भूमिका में काम करने वाले माधवन ने तब फ़िल्म बनाने का बीड़ा उठाया, जब फ़िल्म शुरु होने के कुछ दिन बाद निर्देशक अलग हो गए, जबकि इससे पहले माधवन को निर्देशन का कोई तज़ुर्बा नहीं है. डॉक्टर नांबी नारायण की बात चली है तो उनकी कहानी किसी भी फ़िल्मी थ्रिलर से कम नहीं है. 30 नंवबर, 1994 की दोपहर देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिक नांबी को अचानक गिरफ़्तार कर लिया जाता है. उस व़क्त डॉक्टर नांबी इसरो के क्राइजेनिक रॉकेट इंजन कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे थे. इस प्रोजेक्ट के लिए वो रूस से तकनीक ले रहे थे. अख़बारों ने रातोंरात उन्हें 'गद्दार' घोषित कर दिया, एक ऐसा गद्दार जिसने मालदीव की दो महिलाओं के हनी ट्रैप में फंसकर रूस से भारत को मिलने वाली टेक्नोलॉजी पाकिस्तान को बेच डाली. उन पर भारत के सरकारी गोपनीय क़ानून (ऑफ़िशियल सीक्रेट लॉ) के उल्लंघन और भ्रष्टाचार समेत अन्य कई मामले दर्ज किए गए. जब भी उन्हें जेल से अदालत में सुनवाई के लिए ले जाया जाता, भीड़ चिल्ला-चिल्लाकर उन्हें 'गद्दार' और 'जासूस' बुलाती. झूठों आरोपों के एवज़ में 2018 में डॉक्टर एस नांबी नारायणन को सुप्रीम कोर्ट ने मुआवज़े के तौर पर 50 लाख रुपए देने का आदेश दिया. विज्ञान, भावनाओं, न्याय और दर्दनाक सफ़र वाली इसी कहानी को आर माधवन अपनी नई फ़िल्म 'रॉकेटरी' में लेकर आए हैं. एक एक्टर, एक प्रोड्यूसर के बाद बतौर निर्देशक के तौर पर आना माधवन की ख़ुद को परखने की ये शायद नई कसौटी है. इस फ़िल्म के किरदार में फिट होने के लिए माधवन ने अपने दाँत और जबड़ा तुड़वाकर नए तरीक़े से सेट करवाए, ताकि वो डॉक्टर नांबी जैसे दिख सकें. रॉकेटरी वो फ़िल्म जिसके लिए माधवन को शाहरुख़ ख़ान ने कहा था कि उन्हें इस फ़िल्म का हिस्सा बनना है और उन्हें कोई भी रोल चलेगा. ये वही माधवन हैं, जिनकी पहली फ़िल्म 'अकेली' 1997 में बनी, तो कभी रिलीज़ ही नहीं हो पाई, क्योंकि कोई ख़रीदने वाला नहीं था और अभी कुछ साल पहले आख़िरकार यूट्यूब पर रिलीज़ की गई. ऐसा नहीं है कि माधवन ने औसत या फ़्लॉप फ़िल्में नहीं की. दिल विल प्यार व्यार, जोड़ी ब्रेकर, झूठा ही सही, रामजी लंदनवाले, सिंकदर ऐसी कई फ़िल्में हैं, जो आईं और चली गईं. लेकिन वक़्त, उम्र, दर्शक, तकनीक, ओटीटी जैसे नए मीडियम, इन सबके हिसाब से ख़ुद को ढालते हुए माधवन ने ख़ुद की लगातार नई पहचान बनाई है. माधवन की छवि एक ऐसे शख़्स की तरह मन में उभरती है, जो स्टार तो हैं पर स्टारडम की उलझनों से थोड़ा दूर. जब मेरी सहयोगी मधु पाल ने माधवन से ये सवाल पूछा तो उन्होंने जवाब कुछ यूँ दिया, "मुझे बच्चन साहब, कमल हासन, रजनीकांत जी सबसे मिलने का मौक़ा मिला है. मैं समझता हूँ कि स्टारडम कभी न कभी हमसे दूर हो जाएगा. हम सब तो बच्चन बनकर नहीं रह पाँएगे. ये शानो-शौक़त हमसे चली ही जानी है, पर अगर हम उसी स्टारडम वाले माइंडसेट में रहेंगे तो बाद के दिन बर्बाद हो जाते हैं. " "मैंने शुरुआत से यही सोचा है कि अपनी औकात में रहूँ. जितनी चादर है उतने ही पैर फैलाऊँगा. मैं मानता हूँ कि स्टारडम को बस इतना ही इस्तेमाल करूँ कि कुछ देर के लिए स्क्रीन पर लोगों को ख़ुश कर सकूँ. बाक़ी मैं ख़ुद को दूसरे बंधनों से मुक़्त करना चाहता हूँ. " वैसे इन दिनों एक्टर, डाइरेक्टर, राइटर से परे माधवन की एक नई पहचान भी है- 16 वर्षीय अंतरराष्ट्रीय तैराक वेदांत माधवन के पिता जो भारत के लिए कई मेडल जीत चुके हैं. माधवन कहते हैं, वेदांत भी जानता है कि जितनी चर्चा उसकी हो रही है, उसकी एक वजह ये है कि वो आर माधवन का बेटा है, जबकि उससे बेहतर तैराकी करने वाले बच्चे भी हैं. मैं ख़ुश हूँ कि वेदांत इस बात को समझता है. उसे बचपन से ही तैराकी का शौक रहा है. थ्री इडियट्स करने की वजह से मैं समझ चुका था कि मुझे उसे आज़ादी देनी होगी. वे कहते हैं, मुझे ये भी पता है कि कभी न कभी मैं उसका दुश्मन सा बन जाऊँगा जैसे पिता और बच्चों के बीच तक़रार होता है. पर प्यार भी है. किसी भी पिता की तरह मुझमें भी वो सारी भावनाएँ हैं- डर, घबराहट, प्यार. 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लक्ष्मी प्रसाद जायसवाल कोयला चीज ही ऐसी है कि इसे छूने मात्र से हाथ काला हो जाता है और दलाली करने से मुंह काला। कोयला घोटाला की गूंज संसद से सड़क तक सुनाई पड़ रही है। पिछले 21 अगस्त से संसद की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ी हुई है। बताते हैं प्रतिदिन संसद के ना चलने से 7. 5 करोड़ का नुकसान हो रहा है। यह भारी नुकसान वास्तव में चिंता का विषय है। संसद में लगातार जारी गतिरोध संसद के गरिमा के लिए खतरनाक है। गतिरोध समाप्त करने की जिम्मेवारी सत्ताधारी दल की अधिक है क्योंकि विपक्ष की मांग जायज है। प्रश्न उठता है कि लोकतांत्रिक व संसदीय प्रणाली में विकल्प क्या है, विशेष कर जब सत्ताधारी दल संवेदनशून्य हो तथा आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हो। जिस सरकार को विपक्ष की संसदीय भाषा तथा मर्यादित विरोध की चिंता ना हो, सिविल सोसायटी की मांग सुनाई न पड़ती हो तथा अपने ही संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा धूल-धूसरित करने से कोई गुरेज न हो, उस सरकार के नेतृत्व में संसद की गरिमा के मायने क्या है ? संसदीय बहस का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि इससे कोई परिणाम नहीं निकलता है। बहस में तर्प, कुतर्प और थोथी दलील का सहारा लिया जाता है। संसद में हुई बहस संसद की कार्यवाही का हिस्सा बनकर किताबों में कैद हो जाती है। विवश होकर विपक्ष जब संसद की कार्यवाही ठप करता है तो सत्तारूढ़ दल संसद में बहस कराने का राग अलापती है क्योंकि बचाव का और कोई बेहतर तरीका हो नहीं सकता। तहलका काण्ड को लेकर कांग्रेस ने भी एक महीने तक संसद नहीं चलने दिया था। कारगिल युद्ध में खरीदे गये ताबूत में कथित घोटाले को लेकर तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस का दो वर्षों तक इसी कांग्रेस ने संसद में बहिष्कार किया था। आश्चर्य की बात है आज तक केन्द्र की इस कांग्रेस सरकार ने कथित ताबूत घोटाला के सम्बन्ध में एफआईआर भी दर्ज नहीं करवा सकी। वही कांग्रेस आज भाजपा को नसीहत दे रही है तथा संसद में बहस से भागने का आरोप लगा रही है। संसद में जो बहस होगा वह तो सार्वजनिक रूप से सड़कों पर हो ही रहा है। सरकार के मंत्री रोज बोल रहे हैं और प्रधानमंत्री ने भी स्वयं बोला है। प्रधानमंत्री इसे घोटाला मानने को तैयार नहीं है। नीलामी के जरिए कोयला ब्लॉक आवंटन के फैसले को लागू करने में सात साल की देरी-उनके नजरो में कोई अनियमितता नहीं है। 2004 में प्रतिस्पर्धा बोली के जरिए आवंटन नीति की घोषणा हुई थी और अधिसूचना 2 फरवरी, 2012को जारी हुई। कांग्रेसी मंत्री और नेता अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। वे शून्य क्षति की बात कर रहे हैं, कैग को शून्य लगाने की आदत पड़ गई है, कैग के प्रमुख का कोई राजनैतिक एजेण्डा है, कैग अपनी सीमा का अतिक्रमण कर रहा है, कोयला ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकारों (राजस्थान, छत्तीसगढ़, उडीसा, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल) के दबाव में किया गया और कोयला जमीन से निकला ही नहीं तो नुकसान कैसा आदि तर्प दिये जा रहे हैं। अनर्गल प्रलाप की पराकाष्ठा है कि नितीन गडकरी के विदेश में होने को भी मुद्दा बनाया जा रहा है। सोनिया भी विदेश गई है और विगत कई बार से विदेश में इलाज के नाम पर जा रही है परन्तु देश को कोई खबर नहीं दी जा रही है। रहस्य कांग्रेसियों को भी नहीं मालूम है। यही सब बातें तो संसद के अन्दर बहस में भी होनी थी परन्तु परिणाम क्या निकलना था? न्यायालय में वादी-प्रतिवादी के बीच बहस होती है, दोनों पक्षों की बहस सुनकर न्यायाधीश कोई निर्णय सुनाता है लेकिन संसद में तो ऐसी कोई व्यवस्था है नहीं। संसद में निर्णय संख्या बल के द्वारा होता है और संख्या बल सत्तारूढ़ दल के पास ही होता है। समाज में सामान्य परम्परा है जब कोई किसी का बकाया वापिस न करे, बार-बार मांगने, अनुनय-विनय करने पर भी बकाया दर वापिस नहीं करता है तो जिसका बकाया है वह हाथ पकड़ कर सरेआम बाजार में बकाया वसूल लेता है यदि उसमें ताकत है। जनता को अधिकार है कि इन भ्रष्टाचारियों के जेब से अपने हक व अधिकार को छीन लें। लोकतंत्र में विपक्ष ही जनता के अधिकारों का प्रयोग करती है। एनडीए ने अपनी ताकत का परिचय दिया है। इसमें कुछ अनुचित नहीं है और जनता को न्याय दिलाती है। संसद में गतिरोध उत्पन्न करना भाजपा की मजबूरी है। 2जी के मामले में भी यदि संसद ठप नहीं होती तो जेपीसी का गठन नहीं होता और न ही ए. राजा का इस्तीफा होता। यदि कैग को शून्य लगाने की आदत पड़ गई है, यदि इसने अपनी सीमा का अपामण किया है। यदि इसका कोई राजनैतिक एजेण्डा है तो कैग के खिलाफ अवमानना का मुकदमा सरकार क्यों नहीं चलाती है? कैग से जवाब तलब क्यों नहीं किया जाता है और उसको हटाने के लिए प्रक्रिया क्यों नहीं शुरू की जाती है? स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा अपने ही सरकार के सर्वोच्च संवैधानिक संस्था के खिलाफ अंगुली उठाना अत्यन्त ही शर्मनाक उदाहरण है। सर्वोच्च न्यायालय के बाद कैग का ही स्थान सर्वोच्चता में आता है। कैग ने सीना ठोक कर कहा है वह उचित समय पर पूछे जाने पर उचित जवाब देने के लिए तैयार है। सरकार को यदि हिम्मत है और प्रधानमंत्री पाक-साफ हैं तो कैग की चुनौती को स्वीकार करना चाहिए। कैग ने आजतक जितने भी घोटाले व अनिमियतताओं को उजागर किया है कोई भी निराधार या असत्य नहीं निकला है। कैग के द्वारा ऑडिट करने की एक प्रािढया है जो विभिन्न स्तरों से होकर गुजरती है और उसके पास इस विषय की तज्ञता है। अत कैग की रिपोर्ट कोई सामान्य अटकलबाजी नहीं होती। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी प्रारम्भ में इसी प्रकार का लचर तर्प दिया गया था उसमें भी शून्य क्षति तथा कैग पर अंगुली उठाई गई थी परन्तु परिणाम क्या निकला-सरकार के दो मंत्रियों को जाना पड़ा तथा समस्त लाईसेन्स रद्द करने पडे और मामला सर्वोच्च न्यायालय तथा जेपीसी के अन्तर्गत चल रहा है। दोषारोपण राज्य सरकारों पर किया जा रहा है कि कुछ राज्य सरकारों के दबाव में कोयला ब्लॉक आवंटित किया गया। संघीय प्रणाली के अन्तर्गत किसी भी मुद्दे पर राज्य सरकार अपनी राय जाहिर कर सकती है परन्तु उसको मानना या ना मानना केन्द्र सरकार के हाथ में है। यदि राज्य सरकार की मर्जी से ही सब कुछ चलना है तो केन्द्र सरकार की आवश्यकता ही क्या? अयोध्या में बाबरी ढांचा गिरने के बाद पांच राज्यों की निर्वाचित सरकार को केन्द्र की कांग्रेसी सरकार ने भंग कर दिया। क्या इन राज्यों ने अपनी बर्खास्तगी की मांग की थी। गुजरात सरकार कई बार आतंकवाद के विरुद्ध गुजकोका अधिनियम विधानसभा से पारित करवा कर भेज चुकी है परन्तु केन्द्र सरकार के दबाव में महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं मिल सकी है। एफडीआई का अधिकांश राज्य सरकारें विरोध कर रही है परन्तु केन्द्र सरकार लागू करने पर आमादा है। कोयला आंवटन के मामले में केन्द्र सरकार का तर्प इस कहावत को चरितार्थ करती है मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू। मूल प्रश्न है कोयला घोटाला हुआ की नहीं। 1086 लाख करोड़ का आंकड़ा भले ही अक्षरस सत्य न हो परन्तु केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री को स्पष्ट हां या ना में उत्तर देना चाहिए। यदि घोटाला नहीं हुआ तो 57 कोयला ब्लॉक का आवंटन रद करने का विचार सरकार क्यों कर रही है। सी. बी. आई क्या जांच कर रही है। सरकार की नीयत यदि साफ है तो इतना हंगामा होने पर भी सरकार कैग की रिपोर्ट जांचने के लिए निपक्ष न्यायिक जांच आयोग की घोषणा क्यों नहीं करती, एफआईआर दर्ज क्यों नहीं कराई जा रही है। रही बात प्रधानमंत्री के इस्तीफे की, प्रधानमंत्री को स्वयं इस्तीफे की पेशकश नैतिकता के आधार पर पहले दिन ही करनी चाहिए थी। एक मामूली रेल दुर्घटना पर लाल बहादुर शास्त्राr ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये त्याग पत्र दे दिया था। एक सामान्य आरोप लगने पर लाल कृष्ण आडवणी ने आरोप मुक्त होने तक संसद में प्रवेश न करने की घोषणा का पालन किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने को ईमानदार होने का गर्व है और सारा देश अबतक उनको ईमानदार मानता भी रहा है। किन्तु इन दिनों अनेक घोटालों के कारण उनकी ईमानदार छवि तार-तार हो गई है। उनके प्रधानमंत्रीत्व काल में जितने बडे-बडे घोटाले एक के बाद एक प्रगट हो रहे हैं और सभी का बचाव वे जिस ढंग से करते नजर आते हैं। इस हालत में उन्हें ईमानदार मानना कहां तक उचित है यह बहस का नया विषय हो सकता है। घोटाले पर परदा डालने के लिए कभी वे गठबंधन धर्म निभाने का आड़ लेते हैं, कभी कैग पर सवाल उठाते हैं, कभी भाजपा (विपक्ष) पर पलटवार करने की कोशिश करते हैं। यूपीए टू के कार्यकाल में ऐसे कितने ही अवसर आये जब उन्हें स्वयं त्यागपत्र देने की पेशकश करनी चाहिए थी। कोयला घोटाला तों ताबूत में आखिरी कील के समान है जिसमें स्वयं वह प्रत्यक्ष ढंग से संलिप्त है। ईमानदारी और नैतिकता का तकाजा था उन्हें स्वयं त्यागपत्र देकर सारे मामले को किसी निष्पक्ष न्यायिक जांच एजेन्सी को जांच के लिए सौंप देते परन्तु बेशर्मी से वह कह रहे है। मैं इस्तिफा नहीं दूंगा। उन्हें तो आखिर 2014 में जाना ही है फिर अपनी बेदाग छवि को क्यों दागी बनाने पर तुले हैं? 2014 में यदि चमत्कारवश पुन कांग्रेस सत्ता में आती है तो भी निश्चित ही मनमोहन सिंह को उनकी इन्हीं कमजोरियों और घोटालों का सहारा लेकर कांग्रेस बाहर का रास्ता दिखाने वाली है और युवराज को प्रधानमंत्री की बागडोर सौंपने वाली है। असलीयत में प्रधानमंत्री की गिरती छवि से कांग्रेस आन्तरिक रूप से खुश है क्योंकि इसके कारण राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। अच्छा हो वे अभी सम्मान पूर्वक त्यागपत्र देकर अपनी छवि को बरकरार रखें। संसद से सड़क तक हंगामा मचा हुआ है परन्तु युवराज राहुल चुप हैं कोई प्रतिािढया न संसद में न संसद के बाहर इसका रहस्य क्या है। सोनिया स्वयं कमान सम्हाले हुए है। अपनी टीम को भाजपा को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए संसद के भीतर ललकार रही है और सड़क पर भी जवाब देने के लिए जोश भर रही है। नतीजा दिग्विजय सिंह, मणी शंकर अय्यर, मनीष तिवारी जैसे नेताओं की फौज मोर्चा सम्हालने के लिए मैदान में कूद पड़ी है। आडवाणी ने संसद के भीतर यूपीए सरकार को अवैध कहा तो सोनिया तिलमिला गई। जो सरकार सब प्रकार के अवैध हथकण्ड़ों के सहारे चल रही हो उस सरकार को क्या नाम देना चाहिए। आडवाणी ने मनमोहन सिंह को सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहा था तब मनमोहन भी तिलमिला गये थे परन्तु आज देश-विदेश में सर्वत्र मनमोहन सिंह पर अंगुली उठ रही है लोग थू-थू कर रहे है, सर्वे में सबसे निचले पायदान पर आ गये हैं। टाईम पत्रिका असफल प्रधानमंत्री के रूप में चित्रित कर रहा है तब भी वे खामोश हैं। मेरी खामोशी ही हजारों प्रश्नों का जवाब है'यह बोल कर अपनी किरकिरी ही करवाया है। देश के चारों ओर से आवाज उठ रही है देश को न बोलने वाला, न सुनने वाला, न देखने वाला प्रधानमंत्री नहीं चाहिए। यूपीए सरकार और उसके मंत्री पर जब भी कोई आरोप लगता है तो भाजपा और एनडीए सरकार के उदाहरण दिये जाते हैं। कहा जाता है एनडीए/भाजपा के शासन काल में भी ऐसा हुआ था। भाजपा/एनडीए के शासन काल में यदि कोई गलत काम हुआ उसका यह अर्थ नहीं है कांग्रेस/यूपीए को गलती करने का अधिकार मिल गया या उसकी गलती क्षम्य है। यह ऐसा ही है जैसे कोई अन्धा काना को कहे तू भी तो काना है। केन्द्र सरकार कोयला घोटाले की जांच पीएसी को सौंपने की बात कर रही है। जेपीसी की भी बात हो रही है परन्तु 2जी मामले में लोक लेखा समिति (पीएसी) का क्या हश्र हुआ रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करने दिया। पीएसी के चेयर मैन डॉ. मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटा दिया। जेपीसी की कार्यवाही को बाधित किया जा रहा है क्योंकि जोपीसी का चेयर मैन कांग्रेस का सदस्य है और बहुमत जोपीसी में कांग्रेसी सदस्यों का है। 2जी मामले में स्वयं प्रधानमंत्री ने जेपीसी के समक्ष उपस्थित होने की इच्छा संसद में प्रगट की थी परन्तु जब जेपीसी में बतौर गवाह वितमंत्री श्री चिदम्बरम तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बुलाने की मांग हो रही है तो जेपीसी में हंगामा खड़ा हो रहा है। 2जी घोटाले में यदि ए राजा और दयानिधि मारन जा सकते हैं, कॉमनवेल्थ घोटाले में सुरेश कालमाड़ी की छुट्टी हो सकती है आदर्श सोसाइटी घोटाले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख हटाये जा सकते है तो प्रधानमंत्री के साथ रियायत क्यों? मनमोहन सिंह स्वयं तत्कालीन कोयला मंत्री के रूप में संलिप्त हैं और सरकार का मुखिया होने के कारण सबसे पहले जिम्मेदारी उन्हीं की बनती है तो उन्हें इस्तीफा क्यों नहीं देना चाहिए।
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ब्रसेल्स में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में, नाटो डगलस लुटे के अमेरिकी राजदूत ने रूस के कार्यों की आलोचना की। यह बाल्टिक सागर में अमेरिकी विमानों के साथ रूसी सेनानियों के अभिसरण के बारे में था, लिखता है "Gazeta. ru,". उनके अनुसार, नाटो और अमेरिका बाल्टिक क्षेत्र में जिम्मेदारी से व्यवहार करेंगे। "हम हवाई क्षेत्र और बाल्टिक सागर क्षेत्र के समुद्र में खिलाड़ी होंगे जो अंतरराष्ट्रीय दायित्वों और नियमों का पालन करते हैं। और हम रूस को भी ऐसा करने के लिए आमंत्रित करते हैं, "- राजदूत ने कहा «Delfi». इससे पहले, हम याद करते हैं, अमेरिकी रक्षा सचिव एश्टन कार्टर ने अमेरिकी वायु सेना के विमानों के पास रूसी पायलटों की कार्रवाई को खतरनाक कहा। अप्रैल के मध्य में, अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने अमेरिकी विध्वंसक के पास Su-24 के पारित होने की घटना के बाद रूसी विदेश मंत्रालय के प्रमुख, सर्गेई लावरोव के सामने अपना विरोध व्यक्त किया। Тем временем в западные СМИ попали другие новости о российских самолётах. Как выяснилось, страны НАТО находятся в зависимости от... российских самолётов. Нет, не от тех, что любят сближаться с американскими кораблями и самолётами в Балтийском море, а от военно-транспортных. अख़बार "बादशाह ज़ेतुंग" कल्पना करने की कोशिश कर रहा हैः अगर रूस पश्चिम का असली विरोधी बन गया तो क्या होगा? बेतुकापन तुरंत दिखाई देगाः तथाकथित रक्षा गठबंधन, यानी नाटो, रूस के साथ युद्ध में "मास्को की मदद के बिना" करने में सक्षम नहीं होगा। व्यंग्य से व्यंग्य? खैर, नहींः वास्तविकता! हर बार, जर्मन संस्करण को याद दिलाता है, जब बुंडेसवेहर (हेलिकॉप्टरों, बख्तरबंद कर्मियों के वाहक, आदि) के भारी भार को ले जाया जाता है, बंडलर एंटोनोव ब्रांड के बड़े रूसी विमानों पर निर्भर हो जाता है। निर्भरता की यह समस्या न केवल जर्मनों के लिए विशेषता है। यूरोपीय राज्यों और कनाडा के 15 ने दस साल से अधिक समय पहले रूस को नियमित परिवहन सेवाएं प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसके लिए आज एंटोनोव्स का उपयोग किया जाता है। SALIS समझौता (रणनीतिक एयरलिफ्ट अंतरिम समाधान, रणनीतिक हवाई परिवहन पर अंतरिम निर्णय) XNXX वर्ष में लागू हुआ। अखबार ने कहा कि वह वास्तव में केवल एक अस्थायी समाधान माना जाता था, लेकिन इसे नियमित रूप से नवीनीकृत किया गया था। हालांकि, बाद वाला एक पूरी तरह से सामान्य मामला था, नर्वस उत्तेजना का कारण नहीं था। लेकिन कुछ समय से सब कुछ बदल गया है। अब यहाँ "घबराहट से भरा हुआ है। " क्यों? क्योंकि "क्रीमिया के विनाश के बाद रूस पश्चिम के लिए दुश्मन बन गया। " यही कारण है कि नाटो के विदेश मंत्रियों ने ब्रसेल्स में चर्चा की कि यह कैसे किया जाए ताकि गठबंधन वास्तव में "हमले की स्थिति में" खुद की रक्षा कर सके। SALIS अनुबंध 2016 के अंत तक वैध है। वैसे, कंपनी रुसलान सैलिस जीएमबीएच, जिसके साथ नाटो का एक समझौता है, जर्मन रक्षा विभाग के प्रतिनिधियों के बयान के अनुसार, "एक अत्यधिक विश्वसनीय भागीदार है। " हालांकि, यह ध्यान दिया जाता है कि "राजनीतिक प्रभाव" को बाहर नहीं किया जा सकता है। इस समस्या को हल करना मुश्किल है। यदि SALIS अनुबंध को नवीनीकृत नहीं किया जाता है, तो यह सेना के रसद के उल्लंघन की धमकी देता है। अन्य सुविधाओं को कहां खोजें? आखिरकार, आज, रुस्लान सैलिस जीएमबीएच के साथ एक अनुबंध के तहत, नाटो के पास एक्सएनयूएमएक्स है जो दुनिया में संचालित एक्सएनयूएमएक्स एंटोनोव विमान से है। "हवाई जहाज" विषय एक कारण के लिए बढ़ गया है। नाटो शिखर सम्मेलन आ रहा हैः यह वारसॉ में जुलाई 8-9 पर आयोजित किया जाएगा। मई 22 पर, नाटो महासचिव जेन स्टोलटेनबर्ग ने पोलस्कॉय रेडियो के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि शिखर सम्मेलन में महत्वपूर्ण निर्णय किए जाएंगे। "नाटो शिखर सम्मेलन जुलाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा," उन्होंने कहा। TASS। "नाटो नई सुरक्षा स्थिति के अनुकूल होने के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेगा। " महासचिव ने कहा कि "पूर्वी यूरोप में नाटो की उपस्थिति को मजबूत किया जाना चाहिए। " उनके अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि "वे उन लोगों में सबसे आगे होंगे जो अपनी सेना को मजबूत करेंगे। " "मजबूत" स्टोलटेनबर्ग के बारे में विवरण नहीं बताया गया है। यूरोपीय प्रेस, विशेष रूप से, फ्रांसीसी समाचार पत्र ले मोंडे, ' " वाशिंगटन की स्थिति जैसा दिखता है। व्हाइट हाउस का कहना है कि मॉस्को के साथ संबंधों को संशोधित करने का मुद्दा सिद्धांत में इसके लायक नहीं है। पेरिस और बर्लिन के लिए, वे शीत युद्ध में वापसी को अस्वीकार करते हैं। और नाटो के बारे में क्या? और नॉर्थ अटलांटिक एलायंस रूस-नाटो समझौते को दरकिनार करने के तरीके ढूंढ रहा हैः इसलिए परियोजना "नाटो के पड़ोसी क्षेत्रों में स्थिरता की रक्षा करने के लिए"। खैर, और पैसाः वर्ष के फरवरी 2016 में, वाशिंगटन ने पूर्वी यूरोप में रक्षा खर्च में चार गुना वृद्धि की घोषणा की। प्रकाशन संकेत देता है कि पेरिस मास्को के संबंध में नहीं, बल्कि वाशिंगटन के संबंध में, एक नियमन की नीति लागू करने का प्रयास कर रहा है। समाचार पत्र बताते हैं कि पेरिस रूस-नाटो परिषद की कम से कम एक बैठक आयोजित करने के पक्ष में है। फ्रांस ने रूस को संबोधित तथाकथित विद्रोह की नीति के उलट, तथाकथित दक्षिणी पक्ष में - सीरिया और लीबिया के लिए जोर दिया, जहां से वास्तविक, काल्पनिक नहीं, खतरा आता है। जैसे कि उन्होंने फ्रेंच की आवाज सुनी, नाटो बॉस स्टोलटेनबर्ग ने अचानक घोषणा की कि उन्हें एलायंस के जुलाई शिखर सम्मेलन से पहले राजदूत स्तर पर रूस-नाटो परिषद की बैठक बुलाने का अवसर मिलेगा। स्टोलटेनबर्ग ने बिंदुओं की सूचना दी बीबीसीनाटो के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों ने रूस के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की। स्टोल्टेनबर्ग के अनुसार, सैन्य घटनाओं को रोकने के लिए परिषद एक अच्छा उपकरण हो सकता है। बैठक की तारीख रूस, बीबीसी के साथ विचार-विमर्श के दौरान निर्धारित की जाएगी। हालांकि इस तरह के बयान रूसियों को खुश नहीं करते थे। रूसी संघ के विदेश मामलों के मंत्री ने जेन्स स्टोलटेनबर्ग को उनके शब्दों के लिए फटकार लगाई। सर्गेई लावरोव को नाराज किया गया था, कि राजनयिक संचार के मानदंडों का उल्लंघन करते हुए, स्टोल्टेनबर्ग ने घोषणा की कि गठबंधन के विदेश मंत्रियों ने वारसा में शिखर सम्मेलन से पहले परिषद की बैठक आयोजित करने का फैसला किया था। "पृथ्वी पर उसने ऐसा क्यों कहा? रूस-नाटो परिषद सर्वसम्मति के आधार पर काम करती है। यदि वे इस पर चर्चा करना चाहते हैं, तो उन्हें हमारे साथ चर्चा करने दें, और माइक्रोफ़ोन पर न चढ़ें ", - लावरोव ने कहा "Lenta. ru". इसमें कुछ को रूसी संघ के स्थायी प्रतिनिधि ने नाटो, अलेक्जेंडर ग्रुशको द्वारा जोड़ा गया था, जिन्होंने उल्लेख किया था कि एक गठजोड़ एक भू-राजनीतिक विरोधी के बिना मौजूद नहीं हो सकता है। "आज, यह कहना सुरक्षित है कि नाटो राजनीतिक और सैन्य रूप से रूस को रोकने की दिशा में आगे बढ़ रहा है और, जाहिर है, गठबंधन एक बड़े भू-राजनीतिक विरोधी के बिना मौजूद नहीं हो सकता है," लीड RIA "समाचार" वे ब्रसेल्स में रूसी पत्रकारों के लिए बोले गए शब्द। इसलिए, हम "हवाई जहाज" विषय, और ब्रसेल्स में नाटो की बैठक में उठाए गए मुद्दों और पोलैंड में आगामी गठबंधन शिखर सम्मेलन और मॉस्को के आधिकारिक पते के बिना "रूस-नाटो परिषद की बैठक के अचानक" रूस-नाटो परिषद की बैठक के दीक्षांत समारोह के बारे में स्टोल्टेनबर्ग के एकपक्षीय विचारों की संदिग्धता को बढ़ाते हैं। जुलाई में, गठबंधन यूरोप के पूर्व में रूस को शामिल करने की प्रसिद्ध रणनीति को मजबूत करेगा। इस प्रकार, एक नया शीत युद्ध अंततः "स्वीकृत" होगा, जिसमें से नाटो के नेताओं, साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने हमेशा पूर्व को लगातार नकार दिया है। हालांकि, वे खुद से दूरी बनाना जारी रखेंगेः आखिरकार, नाटो का मामला विशेष रूप से रक्षात्मक है। नाटो मत बनो, रूसियों ने लंबे समय तक वारसा में आलू वोदका को फटा दिया और पतले लातवियाई लड़कियों को खराब कर दिया। ब्रसेल्स में कुछ इस कारण।
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पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है। नागरिकता क़ानून से लेकर भीमा कोरेगाँव मामले पर उद्धव ठाकरे और शरद पवार के बीच मतभेद कितना बड़ा है? यदि दोनों पक्षों में सब ठीक है तो गठबंध सरकार बनने के बाद से ही इस पर बयानबाज़ी क्यों तेज़ हो रही है? कहीं सरकार गिरेगी तो नहीं? यदि ऐसा हुआ तो क्या शिवसेना फिर बीजेपी के साथ सरकार बनाएगी? देखिए आशुतोष की बात। क्या जामिया मिल्लिया इसलामिया में पुलिस कार्रवाई के 'झूठ' के पोल खुल रहे हैं? पुलिस ने किस आधार पर दावा किया था कि वह लाइब्रेरी में नहीं घुसी थी? अब जो एक के बाद एक वीडियो आ रहे हैं उसमें पुलिस के दावे ग़लत साबित नहीं होते? वीडियो में सीसीटीवी कैमरे और दूसरी चीजों में तोड़फोड़ करते दिखे पुलिसकर्मी की आख़िर क्या कहानी है? देखिए आशुतोष की बात। बीजेपी तो ज़ाहिर तौर पर ख़ुद को राम के नाम पर वोट माँगती रही है, लेकिन दूसरी तरफ़ केजरीवाल ने भी आप को हिंदू पार्टी के तौर पेश कर दिया। क्या केजरीवाल का हनुमान चालीसा पाठ सोची-समझी रणनीति नहीं थी? तो क्या दिल्ली विधानसभा चुनाव से एक बड़ा सवाल खड़ा नहीं हुआ है कि असली हिंदू पार्टी कौन है? बीजेपी या आम आदमी पार्टी? देखिए आशुतोष की बात। अमित शाह ने कहा है कि बीजेपी नेताओं के नफ़रत वाले बयान के कारण दिल्ली चुनाव में नुक़सान हुआ होगा। तो नफ़रत वाले बयान बीजेपी के नेता किसके इशारे पर दे रहे थे? ख़ुद अमित शाह ने क्यों कहा था कि बटन ऐसा दबाना जिससे शाहीन बाग़ को करंट लगे? अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और योगी जैसे नेता क्यों नफ़रत वाले दे रहे थे? देखिए आशुतोष की बात। आम आदमी पार्टी की धमाकेदार जीत के बाद अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। देश भर के नेता बधाइयाँ दे रहे हैं। केजरीवाल की राजनीतिक ताक़त बढ़ी है। क्या विपक्षी दलों में केजरीवाल सबसे ताक़तवर नेता हो गए हैं? क्या इन नेताओं में पीएम पद के उम्मीदवारों में केजरीवाल सबसे आगे होंगे? देखिए आशुतोष की बात। प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमति शाह सहित पूरी बीजेपी के जुटने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली चुनाव में ज़बरदस्त शिकस्त दी। बीजेपी क्यों हार गयी? क्या केजरीवाल से निपटना मोदी के वश की बात नहीं? मोदी के लिए बड़ी चुनौती क्यों साबित हो रहे हैं केजरीवाल? क्या मोदी को डरना चाहिए? देखिए आशुतोष की बात। कल जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आएँगे तो क्या एग़्जिट पोल ग़लत साबित हो जाएँगे? पहले भी कई बार एग़्जिट पोल ग़लत साबित हुए हैं। क्या मनोज तिवारी का 48 से ज़्यादा सीटें जीतने का दावा सच साबित होगा? क्या साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, शाहीन बाग़ जैसे मुद्दे बीजेपी के लिए चल गए? देखिए आशुतोष की बात में वरिष्ठ पत्रकार शैलेश के साथ चर्चा। एग्ज़िट पोल्स से लगता है कि 'आप' बड़ी जीत दर्ज करेगी। तो प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी बीजेपी की इतनी ख़राब हालत क्यों हो गई? ऐसी स्थिति के लिए क्या रहे वो दस कारण? क्या बीजेपी का 'राष्ट्रवाद' और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं चला? देखिए आशुतोष की बात। प्रधानमंत्री मोदी ने किस आधार पर कहा कि भारत के बँटवारे के लिए नेहरू ज़िम्मेदार थे? क्या यह नेहरू के क़द को कम करने का बीजेपी का लगातार प्रयास का नतीजा नहीं है? क्या यह उसका नतीजा नहीं है जिसमें पटेल के क़द को बड़ा किया जाए? बँटवारे से सहमत होने की शुरुआत किसने की और इस मामले में नेहरू और पटेल की क्या स्थिति थी? देखिए आशुतोष की बात वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ के साथ चर्चा। दिल्ली का चुनाव प्रधानमंत्री मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल क्यों बन गया है? और यदि यह लड़ाई मोदी और केजरीवाल के बीच में है तो फिर नतीजे कैसे आएँगे? कहीं 2015 की स्थिति तो नहीं बनेगी? 2014 में मोदी लहर के बावजूद केजरीवाल 2015 के दिल्ली चुनाव में 70 में से 67 सीटें कैसे ले आए थे? देखिए सत्य हिंदी पर आशुतोष की बात। क्या केजरीवाल दोबारा मुख्यमंत्री बन पाएँगे या फिर चुनाव हार जाएँगे? कांग्रेस का खाता भी खुल पाएगा या नहीं? इससे भी बड़ा सवाल है कि अमित शाह की बीजेपी का क्या होगा? अमित शाह ने दिल्ली जैसे राज्य में जिस तरह से पूरी ताक़त झोंक दी है और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है, उसका नतीजा क्या होगा? देखिए आशुतोष की बात में वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री और दिलबर गोठी की चर्चा। अरविंद केजरीवाल हनुमान भक्त क्यों बन गए? वह हनुमान चालीसा क्यों पढ़ रहे हैं या इस पर ज़ोर दे रहे हैं? क्या वह देश की साम्प्रदायिक राजनीति में कूद कर साम्प्रदायिक हो रहे हैं या फिर वह बीजेपी के हिंदुत्व की काट में अपने आप को हिंदू नेता के तौर पर पेश कर रहे हैं? देखिए सत्य हिंदी पर आशुतोष की बात। दिल्ली के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी कूद पड़े हैं। प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा, क्या उससे यह नहीं पता चलता कि शाहीन बाग़ के नाम पर पिछले 10 दिन से नफ़रत फैलाने का खेल चल रहा है? प्रधानमंत्री अपने इस बयान से बीजेपी को जिताएँगे या हराएँगे? यदि हराएँगे तो उनके निशाने पर कौन है? देखिए आशुतोष की बात। जामिया में शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोली किसने और क्यों चलाई? क्या यह नफ़रत की राजनीति का नतीजा नहीं है? केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने दो दिन पहले ही चुनावी रैली में नारा लगवाया था "देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को"। एक के बाद एक दूसरे कई नेता भी ऐसी ही बयानबाज़ी करते रहे हैं। आख़िर क्यों ऐसी स्थिति आन पड़ी? देखिए आशुतोष की बात में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश और वीरेंद्र सेंगर के साथ चर्चा। बीजेपी नेता केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के गंभीर आपत्तिजनक भाषणों पर चुनाव आयोग ने मामूली कार्रवाई क्यों की? उन्हें चुनाव अभियान से भी नहीं रोका, क्यों? देश संविधान के हिसाब से चलेगा या मनमानी तरीक़े से? संवैधानिक संस्थाएँ कमज़ोर क्यों हुईं? कौन हैं ज़िम्मेदार? देखिए आशुतोष की बात। दिल्ली चुनाव में एक हफ़्ते का समय बाक़ी है। बीजेपी साम्प्रदायिक एजेंडे पर क्यों उतर आई है? शाहीन बाग़ को चुनावी मुद्दा क्यों बना रही है? बीजेपी नेता क्यों आपत्तिजनक बयान दे रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है? क्या केजरीवाल के विकास के चुनावी मुद्दे से बीजेपी का निपटना मुश्किल हो रहा है? देखिए आशुतोष की बात। देश का केंद्रीय मंत्री क्या आम सभा में ऐसा नारा लगवा सकता है- देश के गद्दारों को. . . गोली मारो सालों को? क्या यह हत्या के लिए उकसाने वाला नारा नहीं है? केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने यह नारा बार-बार क्यों लगवाया? सत्य हिंदी पर देखिए आशुतोष की बात। नागरिकता क़ानून, नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार में क्या संबंध हैं? क्या मोदी और नीतीश कुमार एक ही राह पर हैं? अपनी ही पार्टी के नेता प्रशांत किशोर और पवन वर्मा के विरोध के बावजूद नीतीश कुमार नागरिकता क़ानून के पक्ष में क्यों खड़े दिखते हैं? क्या यह बिहार विधानसभा चुनाव के लिए है? क्या नीतीश मोदी के जाल में फँस गए हैं? देखिए आशुतोष की बात। जेपी नड्डा के अध्यक्ष बनते ही क्या अब बीजेपी में अमित शाह युग ख़त्म हो गया है? क्या यह संभव है कि पीछे के दरवाज़े से पार्टी में सबकुछ अमित शाह तय करेंगे? या फिर जेपी नड्डा को अध्यक्ष बनाकर आरएसएस पार्टी को अपने एजेंडे पर चलाएगा? क्या बदलेगा इस पर देखिए आशुतोष की बात में वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री और विजय त्रिवेदी के साथ चर्चा। हिंदुत्ववादी विचारधारा वाले योगी आदित्यनाथ विवादों में क्यों रहे हैं? मुसलिमों के ख़िलाफ़ अक्सर विवादित बयान क्यों देते रहे हैं? अब उन्होंने क्यों कहा कि मुसलमानों की आबादी 7-8 गुणा बढ़ी है? उन्होंने ऐसा किस आधार पर कहा? क्या यह साफ़ झूठ नहीं है? उन्होंने ऐसा क्यों कहा? सत्य हिंदी पर देखिए आशुतोष की बात।
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जाकर नाक कान मे छेद करवा आई और फिर मेरा धन डूबता गया। मेरी तो पत्नी के हाथो मे जैसे छेद है छेद ।" दुर्गुणी ने परमानद उफ सनकी लात को लाल आखो से देखा तो उनकी घिग्घी बध गई । सामने धमचद अब तक चौवीस सुइयो मे धागा डालकर खड़े हुए थे । दुर्गुणी से बोले, "लगता है आयें कमज़ोर हो गई हैं। सुइयों के छेद तक नही नजर आते । यह लो जैसे उस मटके वाले ने एक एक मटका पानी का भर के दिखाया था, तभी आप ले गयी थी, में एक एक सुई के छेद से धागा आर पार करके देता हू फिर शिकायत न आये यह लो यह लो " कहते हुए उन्होंने सारी सुइयो से घागे खीच निकाले और फिर वाले कागज मे सारी सुइया छद करके दुर्गुणी की तरफ मुस्कराते हुए ऐसे बढाईं जैसे किसी ने कत्था चूना लगावर पान की गिलौरी दी है । दुर्गुणी चुपके से सुइया लेकर घर जा पहुची। फिर धागा डालने लगी फिर छेद नदारद । धागे की नोक थूक से गीली करती, उगलियों से सिवइयों की तरह मरोडती, पर नामुराद धागा था कि यहा वहा भटकता फिरता था। उसे लग रहा था कोई बाधा दौड मे से जैसे किसी को सुरग से निकलना तो है लेकिन निकल नही पा रहा। अब दुर्गुणी ने धागे को थोडी और थूक लगाई। सुई की तरफ ऐसे वढाया जैसे कोई शिकारी अपना तीर साध रहा हो। या कोई जादूगर आग के गोले से निकलने को कमर कस कर रहा हो- पर नामुराद सुई का छेद ही नही। वे अपने बेटे पप्पू से बोल उठी- तूने तो आख की डाक्टरी पास कर ली, पर आस की जाच परख न हुई । मेरी जण आख देख । लगता है, कुछ इही मे सरावी आ गई है, वरना यह कैसे हो गया कि सुई में छेद हो और मुझे छेद भी नजर न आवे । अये । मैं तो कल से देख रही हू, पीतल की छलनी के भी सारे छेद बाद हो गये हैं। बाहर जो तेरे पिता ने जालीदार सीमेन्ट को टुकडिया लगवाई थी, वह भी सीधी सपाट हो गई हैं। देख तो मेरी आख को कुछ हुआ है या सारी चीजो के मुह बाद हो गये है ।" और वह सिरथाम कर बैठ गई । उनका बेटा आख का डाक्टर हो गया, लेकिन उनके लिए वही पप्पू ही था । इसीलिए अगले दिन पप्पू ने उहे कह दिया--" दो दिन बाद आख टेस्ट होगी।" दुर्गणी बोली"- मैंने आठवी जमात तो पास कर ली बेटा । अब कौन से टेस्ट दूगो 'तू ऐसे हो देस ले। किती कमज़ोर है आस पर लिया होगा । मैं अब कोई टेस्ट न दूगो हा ।" लेकिन उन पप्पू अगले दिन उन्हे जैसे तैसे मनाकर अस्पताल ले गया, तब उसे ध्यान आया, आस पडोस की औरतो ने खूबसूरत डिजायनदार चश्मे चढा रहे हैं। अब यह भी उनमे शामिल होगी । दुर्गुणो ने सोचा- सोने के फेम मे शीशे जडवा लूगी । आयँ गमज़ोर हुई तो उन्हे कुछ तो फायदा मिले। पति रामरग के पास ढेरो सोना था । दुर्गुणी ने कान मे छ मुकिया पहन रखी थी। नाक मे मोने का लोग था । आज वा काटा भो उसने सुन तो रखा था, लेआय मे छेद करवाकर वह कैसे आज घा वाटा पहनती । अव मौरा मिला था तो सोच लिया, पप्पू से बहेगीसिर्फ सोने के चश्मे में ही फिट होंगे आम के शोशे । उह । आखें भी क्या ला हैं। भूसी रहती हैं, लेविन वमजोर नही होती । वमजोर होती हैं तो नजर ही नहीं आता कि क्या हुआ । यो उसे आठवी पाम करने के बाद से ही मस्ते उपयाम पढने का चाव हो गया था पर आये किस किस चीज्र से कमजोर होती हैं, यह वह न समझ सको। अब टेस्ट की घडी मिर पर आ गई। आस पर चश्मा चढा कर ऐसे रख दिया कि जैसे कोई स्टैण्ड हो जहा अब चीजें टागी जायेंगी । (वह) पप्पू उस चश्मे मे एक एक करके शीशे घढाता निकालता । सामने का लिसा अ व सद ज साफ होता जा रहा था । बहुत स्पष्ट वाह वाह । कहकर वह युशी से उछल पड़ी। जैसे कोई बहुत बडा टैस्ट दे दिया हो । डाक्टर ने अव जैसे टेस्ट षे नम्बर दिये हो । शायद तीन और चार नम्बर के शीशे थे । एक पर्ची बना पर पप्पू ने उहे घर भिजवा दिया । अगले ही दिन सोने का पानी चढा चश्मा दुर्गुणी को आख के लिए आ गया था । दुर्गुणी चाहती तो थी कि चश्मे का भी किसी से उदघाटन करचाये पप्पू कह रहा था, नजदीव और दूर का चश्मा अलग अलग बनेगा । दूर वालो को भी नजदीक लाने को कितना अच्छा तरीका है । पप्पू चश्मे के शीगे बार बार ऐसे पोछ रहा था जैसे चमका रहा हो, या तेज़ कर रहा हो । दुर्गुणो ने भो अपनी आखें बार बार पोछी । कान पोछे । पप्पू ने दो हाथो से ऐन उनकी तरफ ऐसे बढाई जैसे किसी अमूल्य वस्तु को तश्तरी मे लाकर पश किया जाय । दुर्गुणी ने पप्पू के आगे मुह झुकाया ओर ऐनक को सिर आखा पर धारण करने को वढी । आह । कमानी ने दोनो कान कस कर पकड लिए थे । आसो पर जैसे फेम करा दिया हो । अब उनमे धूल पडने का भो इतना खतरा न रहेगा । नाक पर चश्मा ऐसे फिट बैठा था जैसे यह नाक इसी चश्मे के लिए ही बनी थी। दुर्गुणी ने अब चश्मा टेस्ट करने का सोचा । सामने देखा तो आगन मे सीमेट की जालीदार झरोखो मे एवं एक छेद साफ दिखाई दिया। आगन के बाह्र सडक पर देखा - जेद्रो कासिंग को सफेद मोटी लकीरें उभर कर साफ नज़र आने लगी । हर आदमी का चेहरा साफ सुथरा, हर आदमी ने भाज ही जसे धुले कपडे पहने हो । दीवारों पर नई सफेदी हो गई - यह सब एक ही रात का चमत्कार है । जहा सब तरफ एक जाला सा नजर आता था, वह हट गया । आज तक उसे दूर से आते हुए आदमी के आख कान नाक कभी न नजर आये । लम्बे छोटे बालो से हो अदाजा तगा लेती थी कि आने वाला पुष्प है या स्त्री । लेकिन जब से समानता के अधिकार मागने वालियो ने सिर के बाल भी पुरपनुमा करा लिए थे, तब से बेचारी की यह पहचान भी जाती रही । वह आगे पीछे देखकर ही सामने वाले की नमस्ते का जवाव दिया करती थी । पहले हर आदमी आधुनिक चित्रकला का नमूना था, अब वह (चाहे कितनाही गदा हो) उसे साफ दिखाई दे रहा था। दुर्गुणी खुशी से फूली न ममाई । पप्पू भी खुश था कि आज पहली बार उसे अपनी मा की सेवा का मौवा मिला था । उसने मा से पूछ ही लिया - "भामने का पेड दिखाई दे रहा है, मा। ' "हा, हा, उसके पत्ते दिखाई दे रहे है, पत्तो की धारिया भी दिखाई दे रही है रे 'ऐं ।" पप्पू की लगा मा की आखें जरूरत से ज्यादा तेज हो गयी हैं कि तभी गौर से देखा ~~ अब वह नजदीक का चश्मा साफ करके आख पर चा रही है पप्पू तुरन्त बोला--- "ओहो, पहले उस चश्मे को उतारो, तभी तो दूसरा चढेगा ।" "अये हा, एक ही नाव जो ठहरी । वरना दो होती तो एक पर पास का चश्मा लटका रहता पप्पू अभी वहा से गया भीन था कि दुगुणी बोल उठी-"अब ले आना वर्मचन्द की दुकान की दालें पत्थर बीन बीन कर, दाल और पत्थर अलग अलग तुलवाऊंगी अब तक वह लूटना रहा है । पत्थरो की कीमत पिछली दालो से घटा घटा कर ही पैसे दूगी ।" दुर्गुणी का पाव पिछले दिनो दुर्गुणों ने जाने कैमी दवाई खाई थी कि शरीर फूलता जा रहा था। कभी गाल फूले होते तो कभी आखें सूजी हुईं । दुर्गुणी अपनी शक्ल शीशे मे देखती तो हसी आ जाती । और किसी के गाल इतने फूले होते तो शायद मुक्का मारकर उन्हें पिचका देती लेकिन यह तो मोटे हो चुके थे जैसे दूध मे भोगी डवलरोटी हो या तीन चार दिन पडे आटे की रोटी हो । बार वार अपना चेहरा देखती । लगता था ज़रूर कही से उसके भीतर हवा भरती चली जा रही है। बैठे बैठे उसे लगता वह पहिया बन गई है उसे फुला दिया गया है अब वह गोल गोल चक्कर काटेगी। कभी मोटर का पहिया कभी स्कूटर का पहिया - हाय राम सोचकर वह फिर मुह फुला कर बैठनी तो सोच लेती अब तो गाल ऐसे फूल चुके है कि मुह फूला हुआ है या नही यह अन्दाजा भी नहीं लगाया जा सकता, वाह 1 अब वह खडी होती तो अपने आपको सभालती । देह फूल गई थी लेकिन पाव वही थे। उनमे सूजन आई तो ऐसे कि ऐडियो के ऊपर का हिस्सा फूला हुआ था टाग और पैर को जोड़ने वाली हड्डिया फूली हुई थी । दुर्गुणी खडी होती तो पैर जैसे भार सभालने से इन्कार कर देते । जाना कही और चाहती थी लेकिन पैर कही और मुडे हुए होते । वह अपने पैरो को सकेत देना चाहती थी पर पैर कहा सुनते है किसी की । वह तो तू तडाक जवाब देना ही जानते हैं । वस बात बेबात पर जवाब देने लगते । आज सुबह से पाव का दद बढ गया था जब से उनका बेटा डाक्टर पप्पू दौरे पर गया था उन्हे एक भी बीमारी न थी । आज वह वापस आने लगा था तो वीमारी भी आने लगी। अरे हाय रे । कहकर वह रोने लगी। दर्द भी जाने कैसे उठता । पैर के ऊपर के हिस्से मे दर्द की लहर मी उठती सारा शरीरझनझना जाता था । जैसे कोई दद को छेड रहा हो- फिर वह दर्द आतो मे से होता हुआ मस्तिष्क मे जा पहुंचा है । हाय क्या होगा ? कहकर वह अपने पाव को देखने लगी। इतना नीचे होने पर, हर वक्त जमीन चाटने पर भी देखो तो कैसे ठाठ से रहते है । दो पल मे ही सारी जमीन नाप लेते हैं। सारे शरीर का बोझ ढोना इ हे अच्छा लगता है वैसे अगर आदमी भी चलते समय अपने दोनो हाथ, पाव के साथ जोड़कर चलने लगे तो शायद वह ज्यादा तेज चले लेकिन हाथ तो कोमल है - अगर मेरे पाव को कुछ हो गया तो ? तभी दुर्गुणी को अपनी आखो के आगे लाठी टेकते वैसाखी लगाये लोग दिखाई दिये। उसने घबराकर दोनो हाथो से मुह ढाप लिया ज़ोर से रो पड़ी "मेरे पाव की रक्षा करो भगवान । यह पाव कभी गलत रास्ते पर नही चले । इन पावो पर में अपने आप खडी हुई। अच्छा पति मिला, पुत्र मिला, धनधान्य, रूप सम्पन्नता सब मिला । लेकिन पाव ही न होगा तो यह सब व्यथ है । पाव के बिना तो कोई चल ही नहीं सकता, कुछ हो ही नहीं सकता। कायदे से देखो । पेड की तरह तो यह पाव जड हैं। जडो की तरह इनमे ही पानी डालो तो पूरी देह हरी भरी रहे । शुक्र है पाव मिट्टी मे जकडे हुए नही थे वरना कितनी मुश्किल होती। पर हाय मिट्टी मे जकडे होते तो अच्छा था । सराव अच्छे तो नजर न आते । अगर तगडाकर चलना पड़ा तो - हाय । सोचकर उनके पाव का दर्द और बढ़ गया । अब वह लौट गई तो लगा दर्द सीधी लकीर की तरह पाव से लेकर आस तक लम्बा है। रह रहकर टीस सी उठनी । पाव को गौर से देखने लगा पाव थोडा फूल रहा है फिर पिचक रहा है - फिर फूल जाता है, उहे हैरानी हुई । जी चाहा सबसे कहे देखो देखो पाव सास ले रहा है पर फिर चुप हो गई । कहे तो किसे कहे । बेटा डाक्टर हो तो बीमार होकर भी तसल्ली तो रहती है। आये तो सही पप्पू । हो सकता है पाव की हड्डी गल गई हो । कौन कहे कोई फोडा हो । आजकल तो हडिडयो पर फोडे निकल आते है - जाने कैसे कैसे रोग आ गए है । इलाज निकले नही और रोग दिनोदिन सवार हो रहे हैं। पहले भली प्रकार रोग हो, डाक्टर इलाज इन्जेक्शन निकाले तभी तो यह रोग प्रचलित हो । हर ऐरे गैरे को भी अब बडे से वडा रोग होने लगा है। हाय रे पप्पू में मर गई रे । हड्डियो के डाक्टर को दिखा दे । कहकर वह चुप हो गई। फिर सोचा अगर हडिडयो का डाक्टर सिर्फ हड्डियो का ढाचा मात्र होता या फिर ? हा हड्डिया देखने के लिए पहले तो पूरे शरीर की खाल अलग करके किनारे पर रख देता फिर हरेक हडडी उलट पलट कर देखता और उनमे जो
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४६. इंग्लैंड और रूस एक तुलना श्री स्क्राइनने ७ जुलाई, १९०३ को इम्पीरियल इन्स्टिट्यूटमें "इंग्लैंड और रूस द्वारा एशियाइयोंपर शासन " विषयपर एक मनोरंजक भाषण दिया था, जिसे ईस्ट ऐंड वेस्टने अपने अक्टूवरके अंकमें छापा है। इस विषयमें हम दक्षिण आफ्रिकाके लोगोंको वौद्धिक ही नहीं, बल्कि उससे कुछ अधिक दिलचस्पी है । अनन्त एशिया और उसकी हजारों जातियोंपर, जिनमें बहुत-सी वातोंमें जमीन-आसमानका अन्तर होते हुए भी, कुछ ऐसी समानता है, जिसकी व्याख्या नहीं हो सकती, इन दोनोंमें से किसी एकके शासनकी सफलता या असफलताके वारेमें अन्तिम निर्णय देना राष्ट्रोंके इतिहासमें अभी बहुत जल्दी करना होगा। वक्ताने कहा था : रूसी सम्राट् - जार के कई करोड़ बौद्ध और मूर्ति पूजक प्रजाजन हैं और २०,७०,००,००० हिन्दू भारत-सम्राट्को सत्ता स्वीकार करते हैं, किन्तु पूर्वमें केवल इस्लाम इन दोनोंके अधिकारियोंके सम्मुख एक जैसी समस्याएँ प्रस्तुत करता है। • • • • ब्रिटिश भारतमें नबोके कमसे कम ५,३८,०४,००० अंनुयायी हैं । सन् १८९७ की जनगणनाके अनुसार, रूसके महान्, गौर वर्णीय जारके शासनाधीन मुसलमानोंकी संख्या १,८७,०७,००० इसके विपरीत, मैं कह दूँ कि, तुर्कीमें खलीफाके प्रजाजन, जो उनका धर्म मानते हैं, १,८५,००,००० से कम t इस प्रकार यह प्रत्यक्ष है कि श्री स्क्राइनने अपनी तुलनाको सुनिश्चित मर्यादाएँ बना ली हैं, इसलिए यद्यपि उनके भाषणका व्यापक अर्थ लगानेकी गुंजाइश नहीं है, फिर भी वह पठनीय है। भारतीय शासनको कहीं " उदार निरंकुशता " का नाम दिया गया है । यद्यपि इन शब्दोंमें परस्पर विरोधाभास है; किन्तु कदाचित् वे भारतमें अंग्रेजी राजकी अवस्थाको बहुत कुछ यथार्थ रूपमें व्यक्त करते हैं। जबतक अंग्रेजी राजकी प्रभुतामें हस्तक्षेप नहीं होता, तबतक भारतके लोगोंके प्राचीन कालसे चले आते हुए रीति-रिवाजोंका लिहाज किया जाता है और उन्हें अछूता रहने दिया जाता है। उनको अपने देशके मामलोंमें न्यूनाधिक मोटे तरीकेका स्वशासन प्राप्त है । सन् १८५७' की ऐतिहासिक घोषणा और उसके बाद एकके बाद दूसरे वाइसरायोंकी घोषणाएँ बताती हैं कि उनके पीछे जाति, रंग और धर्मके सव भेदभावोंको समाप्त करने और साम्राज्यके समस्त प्रजाजनोंको समान अधिकार देनेका इरादा है। इसलिए यदि स्वयं भारतमें इन घोषणाओंपर पूरा अमल नहीं हो पाता तो इसका कारण यह नहीं कि अधिकारी उन्हें पूरा करना नहीं चाहते, बल्कि यह है कि व्यवहारमें ब्रिटिश शासनकी सर्वोच्चताके सम्बन्ध में अनुचित भय या शासितोंके सम्बन्धमें अनिश्चित सन्देहसे उनके हाथ रुकते हैं। इसलिए अस्थायी स्खलनोके बावजूद यह आशा करनेके लिए पर्याप्त आधार है कि ज्यों-ज्यों लोगोंकी स्वाभाविक राजभक्तिको परीक्षाके अवसर आते जायेंगे त्यों-त्यों सन्देह या भय धीरे-धीरे विलुप्त होते जायेंगे और उनका स्थान विश्वास लेता जायेगा। दक्षिण आफ्रिकाकी अभी हालकी लड़ाई और चीनके अभियानसे भारतीय शासकोंके मनपर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा है और भारतीय दृष्टिकोणसे १. प्रत्यक्षतः १८५८ के बजाय भूलते लिखित । " ईस्ट रैड एक्सप्रेस" और हम ट्रान्सवालमे ब्रिटिश भारतीयांको स्थितिके बारेमे हमारे विनारोकी तरफ हमारा सहयोगी बराबर ध्यान देता रहता है । इसे हम अपना सम्मान ही समझते है । हम यह भी मानते है कि भारतीयोंकी बहुत-सी कठिनाइयोंकी जडमे गलतफहमियाँ है और सयमके साथ विचार-मीनिमगमे गलतफहमियाँ दूर भी हो सकती है। इसलिए हमारे सहयोगीने गत १४ नारीगके आमें जो लिखा है उसका जवाब देते हुए हम उस प्रग्नपर फिर वापस आते है। सहयोगीने लिखा है कि पीटर्सवर्ग शहरमे लडाईसे पहलेकी अपेक्षा भारतीय परवानेदारोकी गंग्या अन कुछ बढ़ गई है। हम इसे स्वीकार करते है, परन्तु जहांतक स्पेलोनकेन जिलेगे सम्बन्ध है, हम अत्यन्त निश्चयपूर्वक कहते है कि वहाँ परवानोकी गरयामे बहुत ही कम वृद्धि हुई है। उस जिलेमें जो भी भारतीय दूकानदार इस समय व्यापार कर रहे है वे अपनी अपनी जगहों में दस-दस, बल्कि इससे भी अधिक, वर्पोसे व्यवसाय करते है । सहयोगीको हम यह भी बता दें कि उन्हें अपने परवानोंको नये करवानेके लिए बहुत अधिक जद्दोजहद करनी पड़ी है। परन्तु ये तो उसके दुनके मामले है और व्यापक रूपसे फैली हुई बीमारीके लक्षण मान है । एक्सप्रेसके इन शब्दोमे गारा मर्म आ जाता है : साफ-साफ बात कहना अच्छा होता है, इसलिए हम स्वीकार करते है कि सम्भव हो सके तो ट्रान्सवाल अपनी सीमाके अन्दर स्वतन्त्र एशियाइयोंको नहीं चाहता। उसका कारण, जैसा कि कुछ हलकोंमें सयाल मालूम होता है, यह नहीं है कि हम पढ़े-लिखे भारतीयोंको हीन मानते है; बल्कि यह है कि कानून सम्मत शर्तोंपर गोरोंके लिए उनके सम्मुख होड़में टिकना असम्भव है। व्यापारियोंकी हेसियतसे नेटालमें सारे व्यापारपर उनका तेजीसे एकाधिपत्य होता जा रहा है। वे फुशल व्यापारी तो है हो; परन्तु इसके साथ अत्यन्त मितव्ययी भी है । इस कारण अपने तमाम प्रतिस्पधियोंके मुकाबलेमें वे हर चीज कम कीमतमें बेच सकते है। अगर कहीं उनके पैर यहाँ जम गये तो यहां भी वही हाल होगा । इसीलिए हम ईस्ट रंडवासी लोग एशियाइयोंको व्यापारिक या सामाजिक दर्जा देनेके इतने विरोधी हैं। हमें तो सिर्फ एक प्रकारके एशियाईकी जरूरत है, और वह है अकुशल गिरमिटिया मजदूर । आत्मरक्षा प्रकृतिका पहला कानून हे । उसका तकाजा है कि यहाँ अन्य सभी लोग वजित निवासी हों, भले ही यह कठोरता दिखाई दे । जिन लोगोंके अधिकार फिलहाल यहाँ है उनके अधिकारोंकी यथासम्भव रक्षा की जाती रहेगी, परन्तु यहाँ रियायतें तो बन्द होनी ही चाहिए । भारतीयोके प्रति उपनिवेशमें जो दुर्भाव है, उसका असली कारण इसमें आ जाता है। इसके जवाबमे बहुत कुछ कहा जा सकता है; परन्तु उसे हम थोड़ेसे-थोड़े शब्दोंमें कहनेकी कोशिश करेगे । ऊपरके कथनमे नेटालका उदाहरण दिया गया है; परन्तु अगर जरा भी गहराईसे उसकी जाँच की जायेगी तो उससे यह प्रकट हो जायेगा कि इससे तो उलटी ही बात सिद्ध होती है । नेटालमें भारतीय व्यापारी बड़ी संख्यामें जरूर है; परन्तु व्यापारका सर्वोत्तम भाग तो यूरोपीयोके ही हाथोमे है और आगे भी रहेगा । भारतीय व्यापारी जहाँ अपने गुजर-बसरके लिए नेटालमें अच्छी कमाई कर सके है, वहां उनमें से एकको भी अभी वह दर्जा प्राप्त नहीं हो सका "ईस्ट रैंड एक्सप्रेस" और हम है, जो हारवे, ग्रीनेकर ऐंड कम्पनी अथवा एस० वूचर ऐंड सन्सको, अथवा अन्य बड़े व्यापारी संस्थानोंको प्राप्त है, यद्यपि कुछ भारतीय व्यापारियोंने भी अपने व्यापारका प्रारम्भ उन्हीं दिनों किया था, जिन दिनों इन पेढ़ियोंने । वस्तुतः हम खुद एक भारतीय व्यापारीका उदाहरण जानते हैं, जो अपने साथ पूंजी लेकर आया था । यहाँ उसने एक अव्यवसायी यूरोपीयको अपना साझीदार बना लिया। दोनों गहरे दोस्त बन गये, और आज भी दोनोंके आपसी सम्बन्ध बहुत सन्तोपजनक हैं। फिर भी व्यापार शुरू करते समय जिस यूरोपीयके पास अपनी पूंजी भी नहीं थी, वह दौड़में अपने पुराने साझीको बहुत पीछे छोड़ गया है और अब उपनिवेशमें उसकी स्थिति प्रथम श्रेणीकी है। किन्तु इस घटनाकी व्याख्या बिलकुल स्पष्ट है। भारतीय व्यापारीकी आदतें यूरोपीयके मुकावले कम खर्चीली हैं; परन्तु उसमें यूरोपीय व्यापारीकी संगठनशक्ति, अंग्रेजी भाषाकी जानकारी और उसके यूरोपीय सम्बन्धोंसे प्राप्त व्यापारिक लाभकी कमी सहज है। हमारी रायमें भारतीय व्यापारीकी तरह किफायतशारी न होनेकी कमी यूरोपीय व्यापारी इन गुणोंसे पूरी ही नहीं कर लेता, वल्कि उसको इनका और भी अधिक लाभ मिलता है। खुद भारतमें बड़े-बड़े भारतीय व्यापारी संस्थान हैं; परन्तु वहाँ बड़ी-बड़ी यूरोपीय पेढ़ियाँ इन गुणोंसे ही उनका मुकाबला कर रही हैं। आज भी सबसे अधिक कमाई देनेवाले व्यापार ज्यादातर यूरोपीयोंके ही हाथोंमें हैं; यद्यपि भारतीयोंकी योग्यता तथा साहसिकताको वहाँ पूरा-पूरा अवकाश प्राप्त है। इसलिए, चाहे दक्षिण आफ्रिका हो या अन्य कोई देश, भारतीय व्यापारियोंने तो मव्यस्य या आढ़तियोंका ही काम किया है। हम यह स्वीकार करनेके लिए स्वतन्त्र हैं कि अपवाद रूपमें वे छोटे यूरोपीय दूकानदारोंके मुकाबलेमें कहीं कहीं सफलता प्राप्त कर सकते हैं; परन्तु वहाँ भी, जैसा कि सर जेम्स हलेटने कहा है, कुल मिलाकर यूरोपीय व्यापारी ही नफेमें रहते हैं; क्योंकि दूसरे क्षेत्रोंमें उनकी साहसिकताके लिए खूब अवकाश रहता है । यदि भारतीय नेटालमें न आये होते तो जो यूरोपीय व्यापारी काफिरोंके वीच व्यापार करनेवाले छोटे-छोटे दूकानदार बने रहते वे ही आज या तो थोकके बड़े व्यापारी हैं, जिनके मातहत पचासों आदमी काम कर रहे हैं, या खुद ऐसे थोक व्यापारके संस्थानोंमें लगे हुए हैं। आज यहाँ उनकी अपनी करमुक्त जायदादें हैं, और वे वेरिया [ उर्वनमें वनीमानी और शौकीन लोगोंके मुहल्ले ] में अपेक्षाकृत सुख-चैनकी जिन्दगी बिता रहे हैं। इसलिए हमारा खयाल तो यह है कि भारतीयों की सादगी और किफायतगारीका जरूरत से ज्यादा तूल बांधा गया है । परन्तु क्या इस विषयमें साम्राज्यको दृष्टिसे कुछ भी कहनेको नहीं रह जाता ? भलेके लिए हो या बुरेके, और भारतीय कितने ही छोटे क्यों न हों; परन्तु वे आखिर साम्राज्यके हिस्सेदार तो हैं ही । ऐसी सूरतमें उनकी योग्यता या मिहनत उन्हें जितनेका अधिकारी ठहराये, उतना मुनासिव हिस्सा क्या उन्हें देनेसे इनकार करना उचित है ? हमारा सहयोगी चाहता है कि ट्रान्सवालमें भारतीय केवल गिरमिटिया मजदूरोंको हैसियतसे ही आयें, उससे ज्यादा अन्य किसी हैसियतसे नहीं । आत्मरक्षा अवश्य प्रकृतिका पहला कानून हो सकता है; परन्तु हम नहीं मानते कि प्रकृति किसीको यह भी सिखाती है कि जिसकी सहायतासे वह ऊपर चढ़ा हो उसको हस्तीको ही मिटा दे। शुद्ध स्वार्थकी दृष्टिसे यह क्षम्य हो सकता है कि आप एक सम्पूर्ण प्रजातिके लिए उपनिवेशके दरवाजे बन्द कर दें। परन्तु प्रकृतिके किसी भी कानूनके साथ इस व्यवहारका मेल बैठाना बहुत मुश्किल मालूम होता है कि एक आदमीका दूसरेके स्वार्थके लिए उपयोग कर लिया जाये और जव उसकी जरूरत समाप्त हो जाये तब उस गरीबको ठोकर मारकर हटा दिया जाये । परन्तु दक्षिण आफ्रिकाका वर्तमान संघर्प उन लोगोंके अधिकारोंकी पूरी रखाके लिए है, जो दक्षिण आफिका पहलेले ही बसे हुए हैं। इस बातको हमारा सहयोगी स्वीकार करता है; परन्तु साथ ही "यथागम्भव" जेगा सुरक्षित तथा संदिग्ध मन्द जोड़ देता है; पर उस वापर निर्भर करेगा कि इस प्रश्नको किन दृष्टिगे देखा जाता है और यह गगासम्भव" शन्द भारतीय गमाजकी उचित आवश्यकताओं की पूर्ति की हुक्तक जाता है या नही । हमारा रागाल है, पत्रकारको हैसियतसे हमारी भांति हमारे सहयोगीका भी कर्तव्य है कि हम लोकमतको ग तरह शिक्षित करें, जिससे इस कठिनाईको पार करनेका उत्तम मार्ग निकल गये । [ अंग्रेजी से ] श्री क्रेसवेल अभी कुछ पहलेतक 'विलेज मेन रीफ गोल्ड माइनिंग कम्पनी लिमिटेड' के प्रवन्धक थे, जिससे उन्होंने अब इस्तीफा दे दिया है और वह मजूर कर लिया गया है। उन्होंने अपना इस्तीफा देते हुए कम्पनीके सेक्रेटरी श्री बिलबोको जो लम्बा पत्र लिखा था वह जोहानिंगवर्गके पत्रोंमें भी प्रकाशनार्थ भेजा है । जोहानिसबर्ग में बतनी श्रम-आयोगके सामने अपना चौंका देनेवाला बयान देते हुए उन्होंने जो खयाल पैदा किया था उगीकी पुष्टि उस लम्बे पनगे होती है। इस बयान में उन्होंने अत्यन्त निश्चयात्मक बताया था कि उग बडे साननिगमकी खानोंकी खुदाईके लिए खुदाईके लिए गिरमिटिया एशियाई मजदूर लानेका प्रयत्न आर्थिक आवश्यकताकी अपेक्षा एक राजनीतिक चाल अधिक है। पाठकोंको याद होगा कि उस समय श्री केसवेलने अपने कथनकी पुष्टिमें अपने नाम लिखा गया श्री टार्बटका एक पत्र पेश किया था, जिसमें बताया गया था कि इन दिनों गोरे मजदूरांगे काम लेनेका जो प्रयोग चल रहा है उसे अधिकांश खान कम्पनियाँ पसन्द नहीं करती। यह पत्र पेश करनेके कारण ही श्री फ्रेगवेलगे जवाब तलब किया गया था । श्री विलन्नो लिखते है : आपके द्वारा श्री टारवटके २३ जुलाई १९०२ के व्यक्तिगत पत्रका प्रकाशन संचालकों की दृष्टिमें अक्षम्य है। " श्री क्रेमवेलके लिए यह सम्भव न था कि वे यह डंक सहकर चुप बैठ जाते । कम्पनीको लिखा वह लम्बा पत्र उसीका परिणाम था । श्री क्रेसवेलके प्रति किसीको भी सहानुभूति हुए बगैर नहीं रह सकती। सब कठिनाइयाँ सहकर भी उन्होंने अपनी खानोंपर गोरे मजदूरोंसे काम लेनेका प्रयोग सफलतापूर्वक किया है । वे इसे पूरे दिलसे पसन्द भी करते थे; परन्तु वे वस्तुतः अकेले पड़ गये । अधिक उत्पादन और अधिक मुनाफेकी जोरदार माँग पूरी करनेमें वे पिछड़ गये । जैसा कि हम इन कालमोंमें पहले अनेक बार लिख चुके हैं, हम तो यही कह सकते है कि इस विषय में श्री क्रेसवेलने जो रुस ग्रहण किया है, आनेवाली पुश्तोंका लाभ उसीमें है । समय ही बताएगा कि उपनिवेशमें खान-उद्योगके तथाकथित विकास के लिए अगर एशियासे कभी गिरमिटिया मजदूर लाये गये तो यह एक गलत कदम होगा, जिससे आनेवाली पुश्तें दुःखी होंगी और इस योजनाके बनानेवालोंकी वेझिझक निन्दा करेंगी। श्री क्रेसवेलका त्यागपत्र तो एक छोटी और व्यक्तिगत बात है। इससे उन्हें आर्थिक कष्ट हो सकता है, या शायद न भी हो । परन्तु वहाँसे उनके हट जानेसे सुधारकोंका काम और भी कठिन हो जाता है । इस दृष्टिसे उनके हट जाने से उन लोगोंकी बड़ी हानि हुई है, जो न केवल वर्तमान पीढ़ी के कल्याण के लिए चिन्तित हैं, बल्कि भावी पीढ़ियोंके हितोंका भी उतना ही खयाल रखते हैं । ४९. क्लार्क्सडॉर्पका एशियाई "बाजार कुछ दिन पहले हमने क्लार्क्सडॉर्पकी एशियाई वस्तीके वारेमें लिखा था। उसके जवाबमें हमारे सहयोगी क्लार्क्सडॉर्प माइनिंग रेकर्डने जो बहुत ही संयत लेख लिखा है उसे हम हर्षके साथ अन्यत्र दे रहे हैं। इसमें निकायका यह आश्वासन है कि क्लार्क्सडॉर्पके ब्रिटिश भारतीयोंके साथ असमानता और अन्यायका व्यवहार करनेकी उसकी इच्छा नहीं है। हम उसके लिए निकायके कृतज्ञ हैं । परन्तु हम यह कहनेको अनुमति चाहते हैं कि सहयोगीने अपने लेखमें कुछ बातें खुद स्वीकार की हैं, जिनसे प्रकट है कि क्लार्क्सडॉर्पके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति कितनी कठिन है और प्रस्तावित नये स्थानके बारेमें उनका मन्तव्य कितना उचित है। यह भी साफ तौरपर स्वीकार किया गया है कि प्रस्तावित स्थानके कमसे कम कुछ हिस्सेको तो जिला-सर्जनके प्रतिवेदनमें भी बुरा वताया गया है । उस आपत्तिका यह कोई जवाब नहीं कि सारे स्थानकी एक साथ जरूरत नहीं होगी। अगर उसकी जरूरत नहीं है तो वह नक्शेमें शामिल ही क्यों किया गया था ? अगर आवासी मजिस्ट्रेट ही कुछ नीची भूमिवाले वाड़े अर्जदारोंको दे देते तो उन्हें कौन रोकनेवाला था ? सरकारने तो इन वाड़ोंके बँटवारेके सम्बन्धमें बहुत अधिक सत्ता अपने हाथोंमें रख छोड़ी है । वह आग्रह कर सकती थी कि सबसे पहले निचले हिस्सोंको ही निपटायेगी । अब भी हमारा खयाल यही है कि निकायके लिए ऐसा रुख अख्तियार करना और यह कहना ठीक नहीं कि एक बार स्थानका निश्चय हो जानेके बाद उसके हाथों में कुछ नहीं रह जाता। आखिर स्थानोंका चुनाव करनेमें उसका भी तो हाथ था ही । इसलिए हमें यह खयाल अवश्य होता है कि अगर जिला-सर्जनके प्रतिवेदनको पानेके बाद वह निचले हिस्सोंको बाजारकी जमीनमें शामिल करनेका विरोध करता तो यह उसके लिए बहुत शोभाजनक होता । सहयोगी आगे लिखता हैः उल्लिखित स्थान शहरमें उपलब्ध एकमात्र स्थान है। अब केवल तीस वाड़े बचे हैं, जिनको अभी कब्जेमें नहीं लिया गया है; परन्तु किसी भी हालत में एशियाई वस्तीके तौरपर उनका उपयोग नहीं किया जा सकता । वर्तमान बस्तीके पास शहरके उत्तर और पश्चिममें कुछ बाड़े जोड़े जा सकते थे; किन्तु उससे लगे हुए बाड़ोंके मालिक स्वभावतः इस कार्रवाईका विरोध करेंगे । अब, यह स्पष्ट रूपसे लाचारीकी स्वीकृति है और साथ ही इस बातकी भी कि निश्चित किया गया स्यान शहरसे बड़ी दूरीपर है। ब्रिटिश भारतीयोंके लिए कोई स्थायी स्थान निश्चित करनेके सिद्धान्तको थोड़ी देरके लिए अगर अलग रख दिया जाये, तो हमारा खयाल है कि अगर निकाय कोई ऐसा उपयुक्त स्थान प्राप्त नहीं कर सकता, जहाँ ब्रिटिश भारतीय उतनी ही सुविधासे व्यापार कर सकें जितनी सुविधासे वे शहरमें अवतक कर रहे थे, तो वह उनको जहाँ अभी वे है वहीं पड़े रहने दे । परन्तु एक बार उन्हें अलग रखनेका सिद्धान्त स्वीकार कर लेनेके बाद अपने पड़ोसमें ब्रिटिश भारतीयोंको रखनेपर आपत्ति करनेवाले लोग मिल ही जाया करेंगे। तब क्या शहरी निकाय इसी तरह अपनी लाचारी बताकर ब्रिटिश भारतीयोंको शहरोंसे इतनी दूर फेंक देना चाहते हैं, जहां व्यापार करना उनके लिए असम्भव हो जाये ? अंग्रेज स्वभावतः निहित स्वार्थीको छेड़ना पसन्द नहीं करते, और अपने विरोवीके साथ भी न्यायका व्यवहार साथ ही "यथासम्भव " जेगा सुरक्षित तथा संदिग्ध गन्द जोड़ देता है; पर यह तो उस वानपर् निर्भर करेगा कि इस प्रश्नको किन दृष्टि से देखा जाता है और यह "गयागम्भा" शन्द भारतीय समाजकी उचित आवश्यकताओकी पूर्ति की हदतक जाता है या नही । हमारा गंगाल है, पत्रकारको हैसियतसे हमारी भांति हमारे सहयोगीका भी कर्तव्य है कि हम लोकमतको उग तरह शिक्षित करें, जिससे इस कठिनाईको पार करनेका उत्तम मार्ग निकल गो । श्री क्रेसवेल अभी कुछ पहलेतक विलेज मेन रीफ गोल्ड माइनिंग कम्पनी लिमिटेड' के प्रवन्धक थे, जिससे उन्होंने अब इस्तीफा दे दिया है और वह मजूर कर लिया गया है। उन्होंने अपना इस्तीफा देते हुए कम्पनीके सेक्रेटरी श्री बिलबोको जो लम्बा पन लिगा था वह जोहानिग वर्गके पत्रोंमें भी प्रकाशनार्थ भेजा है । जोहानिसबर्ग में बतनी श्रम आयोगके सामने अपना चौका देनेवाला बयान देते हुए उन्होंने जो सयाल पैदा किया था उगीकी पुष्टि इस लम्बे पनगे होती है। इस वयानमे उन्होंने अत्यन्त निश्नयात्मक बताया था कि उस बडे गाननिगमकी खानोंकी खुदाईके लिए गिरमिटिया एशियाई मजदूर लानेका प्रयत्न आर्थिक आवश्यकताको अपेक्षा एक राजनीतिक चाल अधिक है। पाठकोंको याद होगा कि उग गमय श्री क्रेसवेलने अपने कथनकी पुष्टिमं अपने नाम लिगा गया श्री टार्बटका एक पत्र पेश किया था, जिसमें बताया गया था कि इन दिनो गोरे मजदूरोगे काम लेनेका जो प्रयोग नल रहा है उसे अधिकांश खान - कम्पनियाँ पसन्द नहीं करती। यह पत्र पेश करनेके कारण ही श्री केसवेलमे जवाव तलब किया गया था। श्री बिलनो लिखते हैः "आपके द्वारा श्री टारवटके २३ जुलाई १९०२ के व्यक्तिगत पत्रका प्रकाशन सचालकोकी दृष्टिमें अक्षम्य है।" श्री क्रेमवेलके लिए यह सम्भव न था कि वे यह डंक सहकर चुप बैठ जाते । कम्पनीको लिखा वह लम्बा पत्र उसीका परिणाम था । श्री केसवेलके प्रति किसीको भी सहानुभूति हुए वगैर नहीं रह सकती । सव कठिनाइयाँ सहकर भी उन्होंने अपनी खानोंपर गोरे मजदूरोसे काम लेनेका प्रयोग सफलतापूर्वक किया है । वे इसे पूरे दिलसे पसन्द भी करते थे; परन्तु वे वस्तुतः अकेले पड़ गये । अधिक उत्पादन और अधिक मुनाफेकी जोरदार माँग पूरी करनेमें वे पिछड़ गये । जैसा कि हम इन कालमोंमें पहले अनेक बार लिख चुके है, हम तो यही कह सकते है कि इस विषयमें श्री क्रेसवेलने जो रुख ग्रहण किया है, आनेवाली पुश्तोंका लाभ उसीमें है। समय ही बताएगा कि उपनिवेशमें खान-उद्योगके तथाकथित विकास के लिए अगर एशियासे कभी गिरमिटिया मजदूर लाये गये तो यह एक गलत कदम होगा, जिससे आनेवाली पुश्तें दुःखी होंगी और इस योजनाके बनानेवालोंकी वेझिझक निन्दा करेंगी । श्री क्रेसवेलका त्यागपत्र तो एक छोटी और व्यक्तिगत बात है। इससे उन्हें आर्थिक कष्ट हो सकता है, या शायद न भी हो । परन्तु वहाँसे उनके हट जानेसे सुधारकोंका काम और भी कठिन हो जाता है । इस दृष्टिसे उनके हट जानेसे उन लोगोंकी बड़ी हानि हुई है, जो न केवल वर्तमान पीढ़ी के कल्याण के लिए चिन्तित हैं, बल्कि भावी पीढ़ियोंके हितोंका भी उतना ही खयाल रखते हैं । ४९. क्लार्क्सडॉर्पका एशियाई कुछ दिन पहले हमने क्लार्क्सडॉर्पकी एशियाई बस्तीके वारेमें लिखा था । उसके जवावमें हमारे सहयोगी क्लार्क्सडॉर्प माइनिंग रेकर्डने जो बहुत ही संयत लेख लिखा है उसे हम हर्षके साथ अन्यत्र दे रहे हैं। इसमें निकायका यह आश्वासन है कि क्लार्क्सडॉर्पके ब्रिटिश भारतीयोंके साथ असमानता और अन्यायका व्यवहार करनेकी उसकी इच्छा नहीं है। हम उसके लिए निकायके कृतज्ञ हैं । परन्तु हम यह कहनेकी अनुमति चाहते हैं कि सहयोगीने अपने लेखमें कुछ बातें खुद स्वीकार की हैं, जिनसे प्रकट है कि क्लार्क्सडॉर्पके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति कितनी कठिन है और प्रस्तावित नये स्थानके बारेमें उनका मन्तव्य कितना उचित है । यह भी साफ तौरपर स्वीकार किया गया है कि प्रस्तावित स्थानके कमसे कम कुछ हिस्सेको तो जिला-सर्जनके प्रतिवेदनमें भी बुरा बताया गया है। उस आपत्तिका यह कोई जवाब नहीं कि सारे स्थानकी एक साथ जरूरत नहीं होगी। अगर उसकी जरूरत नहीं है तो वह नक्शेमें शामिल ही क्यों किया गया था ? अगर आवासी मजिस्ट्रेट ही कुछ नीची भूमिवाले बाड़े अर्जदारोंको दे देते तो उन्हें कौन रोकनेवाला था ? सरकारने तो इन वाड़ोंके बँटवारेके सम्बन्धमें बहुत अधिक सत्ता अपने हाथोंमें रख छोड़ी है। वह आग्रह कर सकती थी कि सबसे पहले निचले हिस्सोंको ही निपटायेगी । अब भी हमारा खयाल यही है कि निकायके लिए ऐसा रुख अख्तियार करना और यह कहना ठीक नहीं कि एक बार स्थानका निश्चय हो जानेके बाद उसके हाथों में कुछ नहीं रह जाता। आखिर स्थानोंका चुनाव करनेमें उसका भी तो हाथ था ही । इसलिए हमें यह खयाल अवश्य होता है कि अगर जिला सर्जनके प्रतिवेदनको पाने के बाद वह निचले हिस्सोंको बाजारकी जमीनमें शामिल करनेका विरोध करता तो यह उसके लिए बहुत शोभाजनक होता । सहयोगी आगे लिखता हैः उल्लिखित स्थान शहरमें उपलब्ध एकमात्र स्थान है। अब केवल तीस बाड़े बचे हैं, जिनको अभी कब्जेमें नहीं लिया गया है; परन्तु किसी भी हालत में एशियाई वस्तीके तौरपर उनका उपयोग नहीं किया जा सकता। वर्तमान बस्तीके पास शहरके उत्तर और पश्चिममें कुछ बाड़े जोड़े जा सकते थे; किन्तु उससे लगे हुए वाड़ोंके मालिक स्वभावतः इस कार्रवाईका विरोध करेंगे । अब, यह स्पष्ट रूपसे लाचारीकी स्वीकृति है और साथ ही इस बातकी भी कि निश्चित किया गया स्थान शहरसे बड़ी दूरीपर है। ब्रिटिश भारतीयोंके लिए कोई स्थायी स्थान निश्चित करनेके सिद्धान्तको थोड़ी देरके लिए अगर अलग रख दिया जाये, तो हमारा खयाल है कि अगर निकाय कोई ऐसा उपयुक्त स्थान प्राप्त नहीं कर सकता, जहाँ ब्रिटिश भारतीय उतनी ही सुविधासे व्यापार कर सकें जितनी सुविधासे वे शहरमें अवतक कर रहे थे, तो वह उनको जहाँ अभी वे हैं वहीं पड़े रहने दे। परन्तु एक बार उन्हें अलग रखनेका सिद्धान्त स्वीकार कर लेनेके बाद अपने पड़ोसमें ब्रिटिश भारतीयोंको रखनेपर आपत्ति करनेवाले लोग मिल ही जाया करेंगे। तब क्या शहरी निकाय इसी तरह अपनी लाचारी बताकर ब्रिटिश भारतीयोंको शहरोंसे इतनी दूर फेंक देना चाहते हैं, जहां व्यापार करना उनके लिए असम्भव हो जाये ? अंग्रेज स्वभावतः निहित स्वार्योको छेड़ना पसन्द नहीं करते, और अपने विरोधीके साथ भी न्यायका व्यवहार
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"रोलिंग इन दी दीप" (2010) "रोलिंग इन दी दीप" वह गीत है जिसने एडेल को अमेरिका में एक पॉप सुपरस्टार में बदल दिया। पॉप, ब्लूज़, डिस्को और सुसमाचार के तत्वों को फ्यूज करना, यह एक ऐसा गीत है जो एक विशिष्ट शैली के बिना है। नतीजतन, "रोलिंग इन द दीप" ने किसी अन्य गीत की तुलना में अधिक अलग शैली रेडियो चार्ट पर प्रदर्शित होने के लिए एक बिलबोर्ड रिकॉर्ड सेट किया। लैटिन और रॉक रेडियो पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के दौरान यह मुख्यधारा के पॉप, वयस्क पॉप और वयस्क समकालीन रेडियो चार्टों में सबसे ऊपर था। "रोलिंग इन द दीप" को एडेल के दूसरे एल्बम 21 के पहले एकल के रूप में रिलीज़ किया गया था। इसने अकेले यूएस में लगभग छह मिलियन प्रतियां बेची हैं और बिलबोर्ड हॉट 100 के शीर्ष पर सात सप्ताह बिताए हैं। "रोलिंग इन द दीप" ने ग्रैमी जीता वर्ष के रिकॉर्ड और वर्ष के गीत के लिए पुरस्कार। एडेल के साथ अपने काम से पहले, निर्माता पॉल एपवर्थ फ्लोरेंस और मशीन के साथ अपने पहले एल्बम लुंग्स पर अपने काम के लिए जाने जाते थे। एडेल को एक साथ काम करने के बारे में कुछ भयावहता थी क्योंकि उसने सोचा था कि उनकी संगीत शैली बहुत अलग थी। उसने अब इसे "स्वर्ग में बने मैच" के रूप में संदर्भित किया है। पॉल एपवर्थ और एडेल ने अपने प्रेमी के साथ एडेल के ब्रेक अप के चलते एक दोपहर में "रोलिंग इन दी दीप" रचित की। "आप की तरह कोई" (2011) एडेल का कहना है कि उसने "किसी की तरह आप" लिखा था जब वह अपने टूटे रिश्ते के बारे में नाराज गीत लिखने से थक गई थी। उसने रिश्ते में दो साल के बारे में खुद को ठीक महसूस करने के लिए लिखा था। एडेल ने "किसी की तरह आप" प्रदर्शन किया फरवरी 2011 में ब्रिट अवार्ड्स में रहते थे और अंत में आँसू में लगभग टूट गए थे। प्रदर्शन की प्रशंसा के साथ सराहना की गई और गीत लगभग तुरंत यूके पॉप एकल चार्ट के शीर्ष पर गया। अगस्त 2011 में, एडेल ने एमटीवी म्यूजिक अवॉर्ड्स में लाइव गीत का प्रदर्शन किया और इसके पांच सप्ताह के लिए बिलबोर्ड हॉट 100 के शीर्ष पर चढ़ने के लिए अमेरिका में समान चार्ट प्रभाव पड़ा। "किसी की तरह आप" यूएस पॉप चार्ट पर # 1 हिट करने के लिए केवल एक पियानो और एकल आवाज की पहली रिकॉर्डिंग बन गई। यह वयस्क पॉप और वयस्क समकालीन चार्ट पर # 1 पर भी पहुंच गया। "आपके जैसे कोई" लैटिन गाने चार्ट पर शीर्ष 10 और रॉक रेडियो चार्ट पर शीर्ष 25 पर पहुंच गया। एडेल ने अमेरिकी गीतकार डैन विल्सन के साथ "Someone Like You" गीत लिखा था। वह डिक्सी लड़कियों के साथ "नाट रेडी टू मेक नाइस" लिखने के लिए ग्रैमी अवॉर्ड विजेता थे। "किसी की तरह आप" एल्बम 21 के लिए लिखे गए अंतिम गीतों में से एक था। एडेल ने कहा कि गीत लिखने से वह अपने प्रेमी के साथ अपने रिश्ते को समाप्त करने के साथ शांति महसूस कर रही है। "पीछा फुटपाथ" (2008) "पीछा फुटपाथ" यूके में एडेल की सफल पॉप हिट पॉप सिंगल चार्ट पर # 2 पर टक्कर लगी। बाद में, यह गीत अमेरिका में एडेल के पहले चार्ट हिट में # 21 पर पहुंच गया और आखिरकार बिक्री के लिए प्रमाणित प्लैटिनम बन गया। "पीछा फुटपाथ" वर्ष के रिकॉर्ड और वर्ष के गीत के लिए ग्रैमी अवॉर्ड्स के लिए नामित किया गया था। एडेल ने सर्वश्रेष्ठ नए कलाकार और सर्वश्रेष्ठ महिला पॉप वोकल के लिए ग्रैमी अवॉर्ड्स जीते। एडले ने अक्टूबर 2008 में शनिवार की रात लाइव पर प्रदर्शन किया जब यह अमेरिका में अपना पहला बड़ा एक्सपोजर प्राप्त हुआ। ग्रैमी अवॉर्ड जीत के बाद यह अमेरिका में चार्टों पर भी अधिक चढ़ गया। साथ-साथ संगीत वीडियो को अपने अद्वितीय नृत्य दिनचर्या के लिए प्रशंसा मिली, जिसमें फुटपाथ पर क्षैतिज झूठ बोलने वाले नर्तकियों के साथ प्रशंसा हुई। एडेल का कहना है कि उन्होंने छह महीने के अपने प्रेमी को शामिल करने वाली घटना के बाद "पीछा फुटपाथ" लिखा था। उसने पाया कि वह उस पर धोखा दे रहा था, और वह एक पब में गई और चेहरे पर उसे पेंच कर दिया। उसे बाहर निकाल दिया गया और अकेले सड़क पर चली गई कि वह क्या पीछा कर रही थी। उसने शुरुआत में गीत गाकर और उसे अपने सेल फोन पर रिकॉर्ड करके लिखा था। "हैलो" (2015) तीन साल में एडेल का पहला नया एकल रिकॉर्ड-शटरिंग हिट बन गया। "हैलो" ने अमेरिका में रिलीज होने के अपने पहले सप्ताह में 1. 11 मिलियन प्रतियां बेचीं। फ्लो रिडा के "राइट राउंड" ने 636,000 के पिछले एक सप्ताह के बिक्री रिकॉर्ड को लगभग दोगुना कर दिया। यह एक शक्तिशाली भावनात्मक गीत है जो एडेल के लिए सभी उच्च उम्मीदों को पूरा करता है। इसने गेट से भारी हिट होने के लिए 25 एल्बम स्थापित किया। 25 ने रिलीज के पहले सप्ताह में अकेले यूएस में 3. 3 मिलियन से अधिक प्रतियां बेचीं * एनएसवाईएनसी द्वारा 2. 4 मिलियन के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ दिया। "हैलो" ने आखिरकार यूएस में पॉप चार्ट पर # 1 पर # 1 बिताए। यह दुनिया में लगभग हर दूसरे महत्वपूर्ण पॉप बाजार में # 1 मारा। अमेरिका में, "हैलो" मुख्यधारा के शीर्ष 40, वयस्क पॉप, और वयस्क समकालीन रेडियो चार्टों के साथ-साथ नृत्य चार्ट को शीर्ष पर भी # 1 पर पहुंच गया। एडेल ने ग्रेग कुर्स्टिन के साथ "हैलो" लिखा था। वह केली ग्रैक्ससन के साथ "स्ट्रॉन्डर" और "चांदेलियर" पर सिया के साथ उनके ग्रैमी नामित काम के लिए जाने जाते थे। ग्रेग कुर्स्टिन ने भी "हैलो" बनाया। गीत लिखने की प्रक्रिया छह महीने से अधिक समय ले ली और मुख्य रूप से घर के बजाय लंदन में लिखा गया जहां एडेल लिखना पसंद करता था। "माई लव भेजें (आपका नया प्रेमी)" (2016) एडेल का वर्णन है "मेरे प्यार को भेजें (आपका नया प्रेमी)" एक "खुश तुम चले गए" गीत के रूप में। यह एक पूर्व प्रेमी को समर्पित है। उन्होंने "आई न्यू यू वेयर ट्रबल" पर टेलर स्विफ्ट के साथ अपना काम सुनने के बाद गीत पर मैक्स मार्टिन और शैलबैक के साथ काम करने का फैसला किया। स्वीडिश जोड़ी ने सह-लेखन और रिकॉर्ड का उत्पादन किया। "माई लव (टू योर न्यू प्रेमी)" में एडेल के अधिकांश कामों की तुलना में अधिक उत्साही, लयबद्ध पॉप महसूस होता है। इसे एल्बम 25 से तीसरा एकल के रूप में रिलीज़ किया गया था। "माई लव (टू योर न्यू प्रेमी)" अमेरिका में शीर्ष 10 पॉप हिट बन गया और वयस्क पॉप और वयस्क समकालीन रेडियो में शीर्ष 10 तक पहुंच गया। "सेंड माई लव (टू योर न्यू प्रेमी)" का कंकाल लिखा गया था जब एडेल केवल तेरह था। वह एमी वाइनहाउस के पहले एल्बम फ्रैंक से प्रेरित थीं। एडेल के साथ गीत पर काम करने के लिए मैक्स मार्टिन ने लंदन का दौरा किया। उसने कहा कि यह एक हल्का गीत था क्योंकि वह हर समय अंधेरा नहीं जा सका। "स्काईफॉल" (2012) एडेल 2011 के आरंभ में पूछे जाने पर अगले जेम्स बॉन्ड थीम गीत को करने के लिए असाइनमेंट स्वीकार करने में संकोच नहीं कर रहा था। निर्माता ने सोचा कि वह शर्ली बेससी के क्लासिक जेम्स बॉण्ड विषयों का अनुभव वापस ला सकती है। आखिरकार, वह और निर्माता / गीतकार पॉल एपवर्थ ("रोलिंग इन द दीप") के बाद "स्काईफॉल" पूरा हुआ, एडेल ने कहा कि यह एक मजेदार अनुभव था। गीत के पहले मसौदे में लिखने के लिए दस मिनट लग गए। "स्काईफॉल" इस तरह के क्लासिक जेम्स बॉन्ड विषयों को प्रेरणा के लिए "गोल्डफिंगर" और "लाइव एंड लेट डाई" के रूप में देखता है। अक्टूबर 2012 में रिलीज होने पर, "स्काईफॉल" ने आलोचनात्मक प्रशंसा अर्जित की और अमेरिका और ब्रिटेन दोनों में पॉप चार्ट में बढ़ोतरी की। यह यूएस पॉप चार्ट पर # 8 पर और ब्रिटेन में # 2 पर पहुंच गया। रीमिक्स ने "स्काईफॉल" को शीर्ष 10 नृत्य हिट में बदलने में मदद की। गीत ने सर्वश्रेष्ठ मूल गीत के लिए अकादमी पुरस्कार और विजुअल मीडिया के लिए लिखित सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए ग्रैमी अवॉर्ड जीता। रिपोर्ट के अनुसार, स्काईफॉल फिल्म निर्देशक सैम मेंडेस ने एडेले को प्रेरणा के रूप में कार्ली साइमन के क्लासिक "नोबॉडी डू इट बेटर" के साथ एक व्यक्तिगत गीत लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने फिल्म के लिए लिपि पढ़ी और कहा कि वह इसके साथ प्यार में पड़ गई है। इसने गीत को लिखना आसान बना दिया। रिकॉर्डिंग के ठीक ट्यूनिंग में अधिक समय लगा। "स्काईफॉल" रिकॉर्डिंग बनाने की पूरी प्रक्रिया में अठारह महीने लगे। "मेक यू फेल माई लव" (2008) गीत "मेक यू फेल माई लव" मूल रूप से बॉब डायलन द्वारा 1 99 7 के एल्बम टाइम आउट ऑफ माइंड के लिए लिखा गया था और रिकॉर्ड किया गया था। बिली जोएल ने गीत को कवर किया और उसी वर्ष यूएस पॉप चार्ट पर # 50 पर ले गया। उनका संस्करण वयस्क समकालीन चार्ट पर शीर्ष 10 तक पहुंच गया। 1 99 8 में गर्थ ब्रूक्स देश चार्ट पर # 1 और वयस्क समकालीन चार्ट पर शीर्ष 10 पर "टू मेक यू फेल माई लव" शीर्षक के तहत गीत के साथ गए। एडेल का संस्करण 1 9 एल्बम से एकल के रूप में रिलीज़ किया गया था। शो एक्स फैक्टर पर प्रतिद्वंद्वियों द्वारा गीत को कवर किए जाने तक यह एक प्रमुख हिट नहीं बन गया। "मेक यू फेल माई लव" ब्रिटेन के शीर्ष 10 में पांच अलग-अलग मौकों पर उतरा है। मार्च 2016 में, एडेल ने ब्रसेल्स बमबारी के पीड़ितों की यादों को सम्मानित करने के लिए ओ 2 एरेना में "मेक यू फेल माई लव" का प्रदर्शन समर्पित किया। "फायर टू द रेन" (2011) एल्बम सेट 21 से अमेरिका में एडेल का लगातार तीसरा # 1 हिट एकल था "सेट टू द रेन"। गीत एक लश स्ट्रिंग व्यवस्था का उपयोग करता है जो एल्बम के कई अन्य गीतों से अलग है। Lyrically, यह सभी Adele गाने के सबसे शक्तिशाली में से एक है। एडेल ने फ्रेज़र टी स्मिथ के साथ गीत को सह-लेखन किया, और उन्होंने इसे बनाया। अमेरिका में शैली चार्ट की एक विस्तृत श्रृंखला तक पहुंचने में 21 से अपने दो पूर्ववर्तियों के पदों पर "फायर टू द रेन" का पालन किया गया है। यह मुख्यधारा के शीर्ष 40, वयस्क पॉप और वयस्क समकालीन रेडियो चार्टों में # 1 तक पहुंचने वाली चट्टान, नृत्य, लैटिन और पॉप चार्ट पर दिखाई दिया है। डीवीडी लाइव एट द रॉयल अल्बर्ट हॉल से "सेट फायर टू द रेन" की एक लाइव रिकॉर्डिंग सर्वश्रेष्ठ पॉप सोलो प्रदर्शन के लिए ग्रैमी अवॉर्ड जीती। "फायर टू द रेन" दो एडेल गीतों में से एक था, जिसमें "रोलिंग इन द दीप" भी शामिल थी, जिसमें एरिया फ्रैंकलिन ने 2014 के एल्बम अरेथा फ्रैंकलिन टेक्स ऑन द ग्रेट दिवा क्लासिक्स पर शामिल किया था । "अफवाह है यह" (2011) "अफवाह है यह" एडेल के ब्लूसी वोकल्स लेता है और उन्हें 60 के दशक के समूह समूह वोकल्स और एक स्टॉम्पिंग आत्मा हरा करने के लिए वेल्ड करता है। हालांकि कुछ लोगों का मानना था कि यह गीत मीडिया के साथ एडेल के रिश्ते के बारे में होना चाहिए, उन्होंने जोर देकर कहा कि इसका उद्देश्य उन मित्रों के लिए था जो बॉयफ्रेंड के साथ अपने टूटने के बारे में अफवाहें फैलते थे। "अफवाह है यह" वन रिपब्लिक के रयान टेडर द्वारा उत्पादित किया गया था। यह "कुछ पसंद है" के साथ एक समीक्षकों द्वारा प्रशंसित गली मैश-अप का हिस्सा था जो कि बिलबोर्ड हॉट 100 पर # 11 पर पहुंच गया। 21 से चौथे एकल के रूप में रिलीज किया गया, "अफवाह है इट" मुख्यधारा, वयस्क पॉप में शीर्ष 10 में पहुंच गया , और वयस्क समकालीन रेडियो। एडेल ने कहा है कि रयान टेडर गीत को पहचानना आसान है, इसलिए जब उसने उसके साथ सहयोग किया, तो उसने "अफवाह है" पर कुछ अलग करने की कोशिश की। उन्होंने गीत को उसी निराशाजनक मूड से बाहर आने के रूप में भी पहचाना है जिसके परिणामस्वरूप "गहरी रोलिंग" बन गई। एडेल ने "रूमर हैस इट" का वर्णन "ब्लूसी-पॉप स्टॉम्पिंग गीत" के रूप में किया है। "गृहनगर महिमा" (2007) "शोटाउन ग्लोरी" टीवी शो ग्रेज़ एनाटॉमी के साउंडट्रैक पर दिखाया गया था। शक्तिशाली टीवी संगीत पर्यवेक्षक अलेक्जेंड्रा पात्सव ने गीत चुना जब उसने एडेल को लॉस एंजिल्स में होटल कैफे में लाइव किया। उन्हें कोलंबिया रिकॉर्ड्स के कार्यकारी जोनाथन पामर द्वारा प्रदर्शन देखने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। "गृहनगर महिमा" को अतिरिक्त एक्सपोजर प्राप्त हुआ जब इसे प्रतियोगिता शो सो यू थिंक यू कैन डांस पर नृत्य संगत के रूप में इस्तेमाल किया गया। एडेल को "गृहनगर महिमा" के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पॉप वोकल के लिए ग्रैमी अवॉर्ड नामांकन मिला।
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'अण्वः परिमण्डलाः" मर्याद परमाणु गोल होता है। सबसे जगन्य भवमाहना गोल होती है। जोव की भो सबसे जमन्य प्रवगाहना वर्तुलभाकार प्रर्थात् गोल होती है। श्री कुन्दकुन्द भाचार्य ने नियमसार में पुद्गल परमाणु का कथन इस प्रकार किया हैअत्तादि अत्तमक अत्तत व इदिए गेमं । ज दृव्वं अविभागी तं परमाणु विभागाहि ॥२६॥ अर्थ - जिसका आादि, मध्य औौर भन्त एक है और जिसको इन्द्रियाँ ग्रहण नहीं कर सकतीं ऐसा जो भविभागी (विभाग रहित) पुद्गल द्रव्य है उसे परमाणु समझो। 'भेदादणु' ।।५/२७।।' इस सूत्र द्वारा यह बतलाया गया है कि परमाणु स्कब के मेद से उत्पन्न होता है, मत प्रनादि काल से अब तक परमाणु की अवस्था में ही रहने वाला कोई भी परमाणु नहीं है। अपदेसो परमाणु पदेसमेत्तो य सयमसदो जो । खिद्धो वा लुक्खो वा दुपदेसादित्तमहवदि ।।१६३।। [प्रवचन० ] मर्थात् पुद्गल परमाणु, भप्रदेश है (बहुप्रदेशी नहीं है), एक प्रदेशमात्र है, स्वय प्रशब्द है, स्निग्धता या रूना के कारण द्विप्रदेशादि स्कषरूप बघ अवस्था का अनुभव करता है । सम्वेसि खंघाणं जो अंतो तं वियाण परमाणु । सो सम्सदो असो एक्को अविभागो मुन्तिमवो ॥७७॥ [पणास्तिकाय] अर्थ स्कंध पर्याय का जो प्रन्तिम भेद है वह परमाणु है, वह परमारण, विभाग के प्रभाव के कारण प्रविभागी है, एक प्रदेशी होने से एक है । मूर्तद्रव्यरूप से अविनाशी होने से नित्य है । रूपादि के परिणाम से उत्पन्न होने १. महापुराण सर्ग २४ श्लोक १४८ २. धवल पु० ११ पृ० ३३-३५, सूत्र २० की टीका । ३ मोक्ष-शास्त्र । ४. 'न धागादि परमाणु नाम करिषदस्ति ।' राजवार्तिक ५/२२/१० । [ सूत्र २५ के कारण मूर्तिप्रभव है। शब्द परमाणु का गुण नहीं है किन्तु पुद्गल स्कघ रूप पर्याय है, अत परमाणु प्रशब्द है । एयपदेसो वि अरणू खाणाखचप्पदेसदो होदि । बहुसो उवयारा तेरण य काश्रो भरगति सव्वड ॥ २६॥ [वृहद् द्रव्य-सग्रह] अर्थ - एकप्रदेशी भी परमाणु अनेक स्कन्धरूप बहुप्रदेशी हो सकता है, इस कारण सर्वज्ञदेव ने पुद्गल परमाणु को उपचार से काय कहा है । परमाणु निरवयव भी है और सावयव भी है। द्रव्यायिक नय का भवलम्बन करने पर दो परमारणुप्रो का कथंचित् सर्वात्मना समागम होता है, क्योंकि परमारण, निरवयव होता है । यदि परमाणु के अवयव होते हैं ऐसा माना जाय तो परमाणु को अवयवी होना चाहिए । परन्तु ऐसा नहीं है, क्योकि अवयव के विभाग द्वारा अवयवो के सयोग का विनाश होने पर परमाणु का प्रभाव प्राप्त होता है, पर ऐसा है नहीं, क्योंकि परमाणु रूप कारण का प्रभाव होने से सब स्थूल कार्यों (स्को) का भी प्रभाव प्राप्त होता है। परमाणु के कल्पितरूप अवयव होते हैं, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योकि इस तरह मानने पर अव्यवस्था प्राप्त होती है। इसलिए परमाणु को निरवयव होना चाहिए । निरवयव परमारणो से स्थूल कार्य की उत्पत्ति नहीं बनेगी, यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि निरवयव परमाणुधो के सर्वा स्मना समागम से स्थूल कार्य (स्कघ) की उत्पत्ति होने में कोई विरोध नहीं माता। पर्यायाधिक नय का भवलम्बन करने पर दो परमाणुधो का कथचित् एकदेशेन समागम होता है। परमाणु के अवयव नहीं होते, यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यदि उसके उपरिम, भभस्तन, मध्यम औौर उपरिमोपरिम भाग न हों तो परमाणु का ही प्रभाव प्राप्त होता है। ये भाग कल्पित रूप होते हैं, यह कहना ठीक नहीं है, क्योकि परमाणु में ऊर्ध्वंभाग, प्रधोभाग, मध्यमभाग तथा उपरिमोपरिमभाग कल्पना के बिना भी उपलब्ध होते हैं । परमाणु के अवयव है इसलिये उनका सर्वत्र विभाग ही होना चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर तो सब वस्तुओं के प्रभाव का प्रसग प्राप्त होता है। जिनका भिन्न-मिन प्रमारणों से ग्रहण होता है और जो मिन्न-मिन दिशा वाले हैं वे एक हैं यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर विरोध भाता है। अवयवो से परमाणु नहीं बना है यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि अवयवो के समूहरूप ही परमाणु दिखाई देता है । अवयवों के सयोग का विनाश होना चाहिये यह भी कोई नियम नहीं है, क्योंकि प्रनादि सयोग के होने पर उसका विनाश नहीं होता।" इस प्रकार अविभागी पुद्गल परमाणु द्रव्याथिक नय के अवलम्बन से निरवयव है और पर्यायायिक नय से सावयव है। पुद्गल परमाणु निरवयव ही है, ऐसा एकान्त नहीं है । द्वि-मरणुक यादि स्कच कार्यों का उत्पादक होने से पुद्गल परमारण स्यात् कारण है, स्कंध-भेद से उत्पन्न होता है, मत स्याद कार्य है । परमारण से छोटा कोई भेद नहीं है, भत स्यात् अन्त्य है, प्रदेश भेद न होने पर भी गुणादि-भेद होने के कारण परमाणु अन्त्य नहीं भी है । सूक्ष्म परिरणमन होने से स्यात् सूक्ष्म है और स्कूल कार्य की उत्पत्ति की योग्यता रखने से स्याद स्कूल भी है। द्रव्यता नहीं छोडता, भत स्यात् नित्य है, स्कषपर्याय को प्राप्त होता है और गुणों का विपरिगमन होने से स्यात् भनित्य है। प्रदेशत्व की विवक्षा में एक रस, एक गष, एक वर्ण और दो स्पर्श वाला है, अनेक प्रदेशी स्कधरूप परिणमन की शक्ति होने से अनेक रस आादि वाला भी है । स्कघरूप कार्य-लिंग से अनुमेय होने के कारण स्यात् कार्यलिंग है भीर प्रत्यक्षज्ञान का विषय होने से कार्यलिंग नहीं भी है। इस प्रकार परमाणु डे विषय में अनेकान्त है। यदि यह कहा जाय कि परमाणु मनादिकाल से धरणु रहता है सो यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यदि परमाणु अपने अरगुत्व को नहीं छोड़ता तो उससे स्कषरूप कार्य भी उत्पन्न नहीं हो सकता। इससे यह स्पष्ट हो जाता १ धवल पु० १४१० ५६-५७ / २ तत्वार्थराजवातिक प्र० ५ सू० २४ बार्तिक १६ । ३. न हि तस्यानादिपारिणामिकाब्यबस्वस्म कार्बमस्ति, सत् स्वभावाविनिवृत्त । [व० रा ० बा० ५/२५/८] है कि स्कष अवस्था में परमाणु परशुरूप से नही रहता है किन्तु भरण त्व को छोडकर स्कधस्व को प्राप्त हो जाता है । पुद्गल परमाणु अवस्था में सरलेषसम्बन्ध से रहित है, प्रत परमाणु अवस्था शुद्ध है, इसीलिये परमारण स्वभाव-पर्याय है। परमाणु किसी गुरण की पर्याय नहीं है मत द्रव्यपर्याय है । परमाणु रूप पर्याय चिरकालस्थायी मी है इसलिये परमाणु व्यंजन पर्याय है। मत परमाणु को पुद्गल की स्वभाव-द्रव्य व्यजन-पर्याय कहा गया है । पुद्गल की स्वभाव-गुसा व्यंजन पर्याय - वर्णगंघरसैकैकाविरुद्ध स्पर्शद्वयं स्वभावगुरण व्यंजन पर्यायाः ॥२६॥ सूत्रार्थ पुद्गलपरमाणु मे एक वर्ण, एक गध, एक रस और परस्पर भविरुद्ध दो स्पर्श होते हैं। इन गुरणों की जो चिरकाल स्थायी पर्यायें हैं वे स्वभाव-गुण-व्यजन पर्यायें हैं । विशेषार्थ-तीखा, चरपरा, कसायला, खट्टा मीठा इन पाच रसो मे से एक काल में एक रस रहता है। शुक्ल, पीत, रक्त, काला, नीला इन पाच बरणों में से एक वर्ण एक काल में रहता है। सुगन्ध, दुर्गन्ध इन दो प्रकार की गध में से कोई एक गध एक काल मे रहती है । शीत व उष्ण स्पर्श मे से कोई एक, तथा स्निग्ध व रूक्ष स्पर्श में से कोई एक, इस प्रकार दो स्पर्श एक काल में परमाणु में रहते हैं । अर्थात् शीत-स्निग्ध, शीत-रूक्ष, उष्ण स्निग्ध, उष्ण-रू-स्पर्श के इन चार युगलों में से कोई एक युगल एक काम में एक परमाणु में रहता है। शीत-उष्ण ये दोनो स्पर्श या स्निग्ध-रूक्ष ये दोनों स्पर्श एक काल में एक परमारण, मे नही रह सकते, क्योंकि ये परस्पर में विरुद्ध है। एवरसवरणगंधं दो फास सहकारणमसद । स्वधंतरिवं दव्वं परमाणु स वियाणा ।।८१।। [पचास्तिकाब] धर्व-जिसमें कोई एक रस, कोई एक बर्ग, कोई एक मंच बदो स्प
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की खाद्य स्थिति, आर्थिक अवस्था तथा मुद्रा प्रबंध बडी सकटपूर्ण स्थिति में पहुच चुके है और इस विषय में सरकार की हाथ पर हाथ रख कर बैठ रहने की नीति से उस युद्ध- प्रयत्न को हानि पहुच सकती है, जो लडाई मे जीत हासिल करने के लिए अत्यावश्यक है । भाषण का पूरा विवरण दिल्ली के एक अग्रेजी दैनिक "डॉन" ने, जिससे स्वय मि० जिन्ना का सम्बन्ध था, प्रकाशित किया था । जहा तक गाधीजी से किये गये अनुरोध का सम्बन्ध है, पूरे विवरण मे भी वह उसी तरह दिया हुआ है, जिस तरह वह सक्षिप्त विवरणो में दिया हुआ है । मि० जिन्ना ने कहा था " इसलिए कांग्रेस की स्थिति वैसी ही है, जैसी पहले थी । सिर्फ यह दूसरे शब्दो और दूसरी भाषा में बताई गई है, किन्तु इसका मतलब है अखड हिन्दुस्तान के आधार पर हिन्दू राज और इस स्थिति को हम कभी स्वीकार न करेगे । यदि गाधीजी पाकिस्तान के आधार पर मुसलिम लीग से समझौता करने को तैयार हो जायँ तो मुझसे अधिक और किसी को खुशी न होगी। मै आपसे कहता हू कि हिन्दू और मुसलमान दोनो ही के लिए वह वडा शुभ दिन होगा। यदि गांधीजी इसका फैसला कर चुके है तो उन्हे मुझे सीधा लिखने में दिक्कत ही क्या है ( हर्षध्वनि ) वह वाइसराय को पत्र लिख रहे है । वह मुझे सीधा क्यो नही लिखते ? वाइसराय के पास जाने, डेपुटेशन भेजने और उनसे पत्र व्यवहार करने से लाभ ही क्या है ? आज गाधीजी को रोकनेवाला कौन है ? मै एक क्षण भी विश्वास नहीं कर सकता - इस देश में यह सरकार चाहे जितनी शक्तिशाली क्यो न हो और हम उसके विरुद्ध चाहे कुछ क्यो न कहे, मै नही मान सकता कि यदि मेरे नाम ऐसा पत्र भेजा जाय तो सरकार उसे रोकने का साहस करेगी । ( जोरो की हर्ष- ध्वनि ) "यदि सरकार ने ऐसा कार्य किया तो यह सचमुच बहुत ही गम्भीर वात होगी । परन्तु गाधीजी, कांग्रेस या हिन्दू नेताओ की नीति में परिवर्तन होने का कोई लक्षण मुझे नही दिखाई देता।" गांधीजी के पत्र पर रोक पाठको को स्मरण होगा कि जब मि० जिन्ना से गाधीजी के अनशन के दिनो मे नेता- सम्मेलन में भाग लेने का अनुरोध किया गया था तब उन्होने यह कहकर सम्मेलन में भाग लेने से इकार कर दिया था कि गाधीजी ने यह खतरनाक अनशन काग्रेस की माग पूरी कराने के लिए किया है और यदि दवाव में आकर इस माग को स्वीकार कर लिया गया तो इसके परिणामस्वरूप मुसलमानो की माग नष्ट हो जायगी और इस प्रकार सम्मेलन में भाग लेने से भारतीय मुसलमानो के हितो की हानि होगी । गाधीजी ने मि० जिन्ना के भाषण का विवरण समाचारपत्रो में पढ़ने ही उन्हें पत्र लिखने की अनुमति के लिए भारत सरकार को लिया। पत्र को बाकायदा पूना से बम्बई- सरकार के पास और उनके मन में भारत सरकार तक पहुचने में तीन सप्ताह का समय लग गया होगा। मई के अनिम दिनो में अन बारी में भारत सरकार की एक विज्ञप्ति प्रकाशित हुई। इससे जनता में बडी सनसनी फैल गयी । विज्ञप्ति में यह नहीं बताया गया कि गांधीजी द्वारा मि० जिन्ना को लिखे गये पत्र में क्या था । उसमे सिर्फ यही कहा गया था कि गानीजी मि० जिन्ना से मिल कर बडे प्रसन्न होगे । भारत सरकार ने वडा निराला और पेचीदा रास्ता अस्तियार किया। उसे या तो गावीजी का पत्र मि० जिन्ना के पास भेज देना चाहिए था या उसे रोक लेना चाहिए था। परन्तु सरकार ने इसमें से कुछ भी नहीं किया। सरकार ने यही कहा कि गावीजी ने इस आगय का अनुरोध किया है, किन्तु दूसरी विज्ञप्ति मे बताये गये कारणों से सरकार उन पत्र को मि० जिन्ना के पास भेजने में असमर्थ है। सरकार ने विज्ञप्ति की एक प्रतिलिपि मि० जिन्ना के पास भेज दी। भारत में प्रतिक्रिया गांधीजी के लिसे पत्र को मि० जिन्ना के पास भेजने से इन्कार करने से लन्दन के सरकारी हल्को मे जो प्रतिक्रिया हुई उस पर 'रायटर' के राजनीतिक सवाददाता ने प्रकाश डाला था। उसने लिखा कि "भारत मे हुए इस निश्चय का बिटिननरकार पूरी तरह समर्थन करेगी। सरकारी तौर पर यह कहा गया कि भारत की हिफाजत और युद्ध को सफलतापूर्वक चलाये जाने का महत्व सबसे अधिक होने के कारण गाधीजी या किसी दूसरे नजरबन्द काग्रेमी नेता को युद्धकाल के दरमियान राजनीतिक बातचीत में भाग लेने की सुविधा तब तक नहीं दी जा सकती जब तक वे युद्ध प्रयत्न के प्रति असहयोग करने और उनके खिलाफ आन्दोलन करने की नीति का त्याग नही करते, या विज्ञप्ति के शब्दो में, जब तक उनके देश के सार्वजनिक जीवन में भाग लेने से हानि का खतरा बना हुआ है । " 'माचेस्टर गार्जियन' ने लिखा - - "भारत सरकार का यह निश्चय अपनी पहले की नीति के अनुसार हो सकता है, लेकिन शासन कार्य मे अपरिवर्तनशीलता ही एकमात्र गुण नही होता और न्याय का तकाजा तो यह कहता है कि भारत सरकार कितनी ही बार अपने वचन से टल गयी है। सरकार दूसरे नेताओ को गांधीजी से मिलने की इजाजत क्यो नही देती, जिससे देखा जा सके कि क्या परिणाम निकलता है।" गाधीजी का पत्र भेजने से भारत सरकार के इन्कार करने पर अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मि० एम० ए० जिन्ना ने 'टाइम्स आफ इण्डिया' पत्र को एक वक्तव्य देते हुए कहा - "गाधीजी का यह पत्र मुसलिम लीग को ब्रिटिश सरकार से भिडा देने की एक चाल है, ताकि उनकी रिहाई हो सके और उसके बाद वह जैसा चाहे कर सके ।" उन्होंने यह भी कहा कि "मैने अखिल भारतीय मुसलिम लीग के दिल्लीवाले अधिवेशन में जो सुझाव रखे थे उन्हे मजूर करने या अपनी नीति में परिवर्तन करने की कोई इच्छा गाधीजी की नहीं जान पडती ।" आगे उन्होने यह भी कहा कि "उस भाषण मे मैने कहा था कि अगर गाधीजी मुझे पत्र लिखने, ८ अगस्त को कांग्रेस के प्रस्ताव मे बताये कार्यक्रम को समाप्त करने और इस प्रकार कदम पीछे हटाकर अपनी नीति में परिवर्तन करने और पाकिस्तान के आधार पर समझौता करने को तैयार हो तो हम पिछली बातो को भूलने को तैयार है। मेरा अब भी विश्वास है गाधीजी के ऐसे पत्र को रोकने की हिम्मत सरकार नहीं कर सकती । "गाधीजी या किसी भी दूसरे हिन्दू नेता से मिलने के लिए मै खुशी से तैयार रहा हूँ और आगे भी रहूँगा, लेकिन सिर्फ मिलने की इच्छा प्रकट करने के लिए ही पत्र लिखने से मेरा मतलब न था और अब सरकार ने गाधीजी के एक ऐसे ही पत्र को रोक लिया है। मुझे भारत सरकार के गृह विभाग के सेक्रेटरी से २४ मई को सूचना मिली है, जिसमें लिखा है कि गाधीजी ने अपने पत्र में सिर्फ मुझसे मिलने की इच्छा प्रकट की है और सरकार ने यह पत्र मेरे पास न भेजने का निश्चय किया है । " दिल्ली के 'डॉन' से प्रकाशित मि० जिन्ना के भाषण के विवरण तथा खुद जिन्ना साहब द्वारा दिए गए सक्षेप में एक बडा भारी फर्क है। पहले विवरण मे मि० जिन्ना की माग सिर्फ यही थी कि गाधीजी पाकिस्तान के आधार पर उन्हे लिखे। इसका मतलब यही हो सकता था कि गाधीजी को पाकिस्तान के सिद्धान्त तथा नीति के सम्बन्ध में बातचीत करने को रजामन्द होना चाहिए । यहाँ यह स्मरण रखना चाहिये कि जबतक मि० जिन्ना ने लफ्ज पाकिस्तान को दोहराने के सिवा उसके अर्थ या विस्तार के विषय में कुछ भी नहीं कहा था । इसके अलावा, उन्होने बम्बई प्रस्ताव वापस लेने और हृदय परिवर्तन का सबूत देने की बात कहाँ कही थी ? शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार गाधीजी से हृदय परिवर्तन को कहती थी और उससे भी अधिक शक्तिशाली मि० जिन्ना उसे दोहराते थे । प्रतिहिंसाशील ब्रिटिश सरकार आश्वासन और गारण्टियाँ माँगती है और अधिक प्रतिहिसाशील मि० जिन्ना कहते थे कि गाधीजी को कदम पीछे हटाने और बम्बईवाले प्रस्ताव के कार्यक्रम तथा नीति में परिवर्तन करने के लिए तैयार रहना चाहिये । क्या उन्होने मूल भाषण मे यह मुझाव पेश किया था ? सच तो यह है कि मि० जिन्ना अपने वक्तव्य में कुछ जरूरत से ज्यादा बढ गये थे । गाधीजी के पत्र को सरकार ने जिस हिकारत की नजर से देखा था उसकी अंग्रेजी और उर्दू के पत्रों मे एक समान निन्दा की गयी थी । परन्तु मि० जिन्ना के तर्कों का सव से सम्मान
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इन्द्रजित के साथ विषम युद्ध की राक्षसी माया में निपुण है, उसे साफ देख रहा है । यद्यपि रामायण के युद्धकाण्डान्तर्गत ४६वें सर्ग में कथा कुछ भिन्न है, तथापि इसमें सन्देह नहीं कि प्रस्तुत तक्षण उसीका प्रदर्शन है। प्राम्चनम् के इस तक्षण - खण्ड में सबसे परे बांई ओर हम देखते हैं कि विभीषण अपने बांये हाथ पर त्रिशूल लिए खड़ा है और दाहिने हाथ से आकाश की ओर इशारा कर रहा है जहाँ से, बादलों में छिप कर, इन्द्रजित राम पर बाणों की वर्षा कर रहा था । दाहिनी ओर राम धनुष से तीरों को छोड़ते हुए दर्शाये गये हैं; उनके पैर एक दूसरे पर टिके हुए हैं, और उनका लक्ष्य वह दिशा है जिसकी ओर विभीषण ने इशारा किया था । किन्तु इन्द्रजित् स्वयं चतुर या और चूँकि वह राम को देख रहा था और स्वयं उनसे अदृश्य था, इसलिए राम के वाण अन्तरिक्ष में पहुँच कर विफल हो जाते हैं। अनएव यह स्वाभाविक ही है कि राम के चेहरे पर उदासी और शोक की छाया दिखलाई गई है, क्योंकि उनके जीवन में यह पहला अवसर है जब उनके चाण लक्ष्य से भ्रष्ट हो रहे हैं । पाँचवां और छठा तक्षण-खण्ड इन्द्रजित से लक्ष्मण का युद्ध पाँधवें और छठे खण्ड में रावण के पुत्र इन्द्रजित के साथ लक्ष्मण का युद्ध दर्शाया गया है, जिसमें उस भयंकर शत्रु के छल-छमों के विरुद्ध चतुर विभीषण ने इन्हें परामर्श दिया था और उससे इनकी रक्षा की थी । वाल्मीकीय रामायण (युद्धकाण्ड) के अनुसार पहली बार इन्द्राजित् नागास्त्र से बन्धे हुए दोनों बन्धुओं को घायल करता है, और फिर उन्हें मरा हुआ समझ कर अपने पिता रावण के पास जाकर उसे यह समाचार सुनाता है। राक्षसों में बड़ा मोद-प्रमोद होता है। नागास्त्र के प्रभाव से अचेत होकर राम और लक्ष्मण रण-क्षेत्र में मरे हुए जैसे पड़े रहते हैं। शीघ्र ही साँपों का शत्रु पक्षिराज गरुड़ रण-क्षेत्र के ऊपर मंडराता हुआ उस स्थान पर पहुँचता है जहाँ दोनों भाई पड़े हुए हैं। इससे साँप उन्हें छोड़कर लुक-छिप जाते हैं। इस प्रकार जब राम लक्ष्मण बन्धन से छूट जाते हैं तो फिर लड़ाई होती है, जिसमें एक एक करके अनेकों सेनाध्यक्ष मारे जाते हैं । इसलिए रावण एक बार फिर इन्द्रजित को ही रण-क्षेत्र में भेजता है। इस बार भी वह उसी यज्ञ को करता है से उसके शत्रु उसको देख नहीं सकते । वानर सेना छिन्न भिन्न इन्द्राजित् आदि से राम लक्ष्मण का युद्ध होने लगती है और अन्त में वह राम-लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र छोड़ता है, जिसके प्रबल प्रभाव से उनको ऐसी मूर्च्छा आती है मानो मर गये हों । वानर सेना के नायक आपस में सलाह करके हनुमान् को सञ्जीवनी बूटी लाने को भेजते हैं, जो किसी खास पहाड़ पर उगती थी । हनुमान् जल्दी में उस बूटी को पहचान नहीं सकता, इसलिए भ्रम से बचने के लिए वह समूचे पहाड़ को ही उठा कर उस स्थान पर ले आता है, जहाँ राम-लक्ष्मण और दूसरे वीर अचेत पड़े हैं । पहाड़ की हवा लगते ही सत्र जीवित हो उठते हैं, और पहले ही जैसे स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट हो जाते हैं। तीसरी बार जब रावण का भाई कुम्भकर्ण और राक्षसी सेना के कुछ और दिग्गज सेनाध्यक्ष राम और लक्ष्मण के बाणों का शिकार बन कर सनातन पथ का अनुसरण करते हैं तो राक्षसराज को शोक की वह मूर्च्छा आती है जिसमें आश्वासन देना भी दुष्कर हो जाता है । इस संकट के अवसर पर फिर · इन्द्रजित् ही उसका ढाढ़स बंधाता है। अपने पिता को आश्वासन देकर वह एक बार फिर यज्ञ करने के लिए निकुम्भिला की गुफा में जाता है, जिससे वह अपने शरीर को अलक्ष्य और इसलिए अजय बना सके । यह जान कर कि इन्द्रजित कहीं बाहर ठहरा हुआ है विभीषण इस रहस्य को भाँप लेता है । वह लक्ष्मण को हनुमान् की पीठ पर चढ़ाता है, और सब मिलकर उस दुरात्मा को अलक्ष्य बनने से रोकने के लिए उसके पास पहुँचते हैं । वे उसको तत्परता से यज्ञ करते हुए देखते हैं और जब उसकी दृष्टि विभीषण पर पड़ती है तो वह क्रोध से आग-बबूला हो जाता है। चाचा भतीजे का आपस में वादविवाद होने लगता है; अन्त में लक्ष्मण उससे कहते हैं 'वीर का काम चोर की तरह छिप कर लड़ना नहीं है ।" छुटकारे का और कोई रास्ता न देख कर वह गधों से खोचे जाते हुए रथ पर चढ़ कर मैदान में कूद पड़ता है और फिर भयंकर युद्ध होने लगता है, जिसमें इन्द्रजित् गजब का हत्या काण्ड रच कर राम की सेना को छिन्न-भिन्न कर डालता है । अन्त में उसके साथ लक्ष्मण का द्वन्द्व युद्ध होता है, जिसमें प्रत्येक वीर अपनी निपुणता और दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को चलाने की सिद्धहस्तता दिखलाता है । दोनों एक दूसरे को पछाड़ने की चेष्टा करते हैं, यहाँ तक कि आखिर लक्ष्मण ऐन्द्र की सहायता का आवाहन करते हैं और उसके अधिष्ठातृ-देव की आराधना करके सौगंद साते हुए कहते हैं कि यदि राम धर्मात्मा और सदाचारी हैं तो इस पत्र से रावणि ( इन्द्रजित ) के मरने में कोई सन्देह नहीं । फिर उस यत्र के अन्दर मन्त्र फेंक कर वे उसे सीधे इन्द्रजित् के गले पर लक्ष्य करके फेंकते हैं, जिससे उसका सिर धड़ से अलग हो जाता है और वह निर्जीव हो कर धड़ाम से रणक्षेत्र में गिर कर इन्द्राजित् से विषम युद्ध धराशायी हो जाता है। पाँचवें तक्षण में हमें बांई ओर सबसे पहले राम दिखाई देते हैं। उनके बाद निशाना दागने की हालत में खड़े हुए लक्ष्मण अपने विशाल धनुप को टँकारित कर रहे हैं। उनकी दाहिनी ओर एक हाथ में एक छोटी-चौड़ी तलवार लिये हुए बिभीषण खड़ा है । इस मण्डली के सामने एक बन्दर, सम्भवतः हनुमान् बैठा हुआ लड़ाई देख रहा है। उसका चेहरा और घुटनों तक शरीर के कुछ अंश विशीर्ण हो गये है । छठे खण्ड में सबसे परे बांई ओर एक बन्दर रण-क्षेत्र में कूदता दिखाई देता है । उसके नीचे कुछ दाहिनी ओर को एक राक्षस है, जिसके चांयें हाथ में एक छोटी सी और दाहिने हाथ में एक लम्बी तलवार है । इस लम्बी तलवार से वह अपने सामने खड़े हुए किसी शत्रु पर आक्रमण कर रहा है। उसके ऊपर कुछ और दाहिनी ओर हम इन्द्रजित को कमर तक बादलों में छिपा हुआ देखते हैं, जो स्वयं यदृश्य रह कर युद्ध का सञ्चालन कर रहा है । वह अपने दाहिने हाथ को उठाये तर्जनी दिखा रहा है । उसके नीचे घुमड़े हुए बादल सुन्दर स्वाभाविक ढंग से दर्शाये गये हैं । वादलों के नीचे एक भूत या राक्षस - जैसा दिखाई देता है, जिसकी बड़ी बड़ी आँखें हैं और जो मुँह वाये चिल्ला रहा है। बृहद्भारतीय चित्रकारी में रामायम सातवां तक्षण-खण्ड यह खण्ड अधूरा है और इसलिए यह बताना सम्भव नहीं कि उसमें रामायण का कौन सा दृश्य या घटना दर्शाई गई है। फिर भी हम इतना कह सकते हैं कि उसमें युद्ध-काएड की कोई घटना दर्शाई गई है, अपना वह इसी काण्ड के किसी बड़े पटल का परिशेष- मात्र है। सबसे परे बांई ओर किसी राजकुमार का केयूर और कंगन से सजा हुआ दाहिना हाथ दिखाई देता है । वह इस हाथ में धनुष लेकर उसे खींच रहा है, ताकि उससे तीर छोड़े । उसकी दाहिनी जंघा और टांग के भी कुछ अंश दिखाई देते हैं, जो आलीढ- मुद्रा की दशा में स्थित है अर्थात् बांये पैर से कुछ आगे हटकर भुके हुए हैं। उसकी दाहिनी ओर एक और व्यक्ति धनुष से तीर छोड़ने के लिए खड़ा है, किन्तु उसका दाहिना हाथ और धनुष दोनों ही लुप्त हो चले हैं। इन दो व्यक्तियों के बीच किसी दढ़ियल आदमी का सिर और चेहरा दिखाई देता है । उसके कानों और शरीर के अन्य अवयवों को देखने से मालूम होता है कि यह रावण के भाई मिण को छोड़ कर और कोई नहीं हो सकता । इसलिए उसकी बांई ओर का धनुर्धारी व्यक्ति लक्ष्मण और उसकी दाहिनी ओर का मुकुटधारी व्यक्ति जिसके पीछे परिवेष है --- सयं श्रीरामचन्द्र होंगे ।
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इकोनॉमिस्ट पत्रिका के सितंबर अंक (9 के लिए सं। 2013) ने वर्तमान आर्थिक स्थिति (गुबनोव एस। स्वायत्त मंदी, रूस में प्रणालीगत संकट के अंतिम चरण के रूप में एक दिलचस्प विश्लेषण दिया। // अर्थशास्त्री। 2013 सं। 9)। हमने लेखक, प्रोफेसर सर्गेई सेमेनोविच गुबनोव से घरेलू अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में बताने के लिए कहा। - सर्गेई सेमेनोविच, रूसी अर्थव्यवस्था के साथ अब क्या हो रहा है? - कई नवाचार हैं, लेकिन वे सभी एक चीज में अभिव्यक्ति पाते हैं - आर्थिक मंदी। मंदी के दौर में रूस यह सच है कि सरकार यह विश्वास दिलाती है कि जीडीपी बढ़ रही है, और केवल इस वृद्धि की दर घटकर असीम रूप से छोटी हो जाती है। ऐसा लगता है कि यह खुद को आराम देने के लिए प्रतिकूल नहीं है, भले ही यह नैनोस्टैंड हो, क्योंकि मधुमक्खी और कैंसर के लिए मछली है। हालांकि, वस्तुतः कोई वृद्धि नहीं है। वृद्धि के बजाय, गिरावट है - जीडीपी, बजट, सकल मांग, जनसंख्या, उद्यमों और राज्य की क्रय शक्ति में गिरावट। जबकि मुख्य जिंस निर्यात की कीमतें - तेल और गैस - पिछले साल से कम नहीं हैं। वे बहुत लंबे हैं। इसलिए, नवाचारों में से एक यह है कि विकास की उपस्थिति का समर्थन करने के लिए कमोडिटी निर्यात के लिए उच्च कीमतें बंद हो गई हैं, जो अभी भी विकास के बिना विकास का सार है। इस प्रकार, डॉलर के संदर्भ में, 2002 समय में 5,5 के बाद जीडीपी में वृद्धि हुई। लेकिन क्या एक्सएनयूएमएक्स द्वारा श्रम की उत्पादकता और रूसियों के जीवन स्तर में वृद्धि हुई थी? ऐसा कुछ नहीं है। अंतिम उपयोग वस्तु संसाधन केवल 5,5% की वृद्धि हुई, और बाकी सभी पेट्रोडॉलर की मुद्रास्फीति से फुलाया गया बुलबुला है। जीडीपी के कमोडिटी वाले हिस्से का वॉल्यूम अभी भी आरएसएफएसआर की राष्ट्रीय आय के एक्सएनयूएमएक्स के स्तर के मुकाबले एक्सएनयूएमएक्स% से कम है, जब तक, गोर्बाचेव की अव्यवस्था पहले ही यूएसएसआर के विनाश के यॉट्सिन ऑर्गी में डाली जा चुकी है। 2013 से पहले, नाममात्र वृद्धि हुई थी, लेकिन कोई विकास नहीं हुआ था। अब कोई विकास नहीं है। 2012 की दूसरी छमाही के बाद से, अर्थव्यवस्था क्षीणन बैंड में फिसल गई है, और फिर गिरावट - अभी भी मामूली है। राज्य के बजट में उद्योग, पूंजी निवेश, रोजगार, निर्यात, लाभ, प्राप्तियां लुढ़क जाती हैं। आबादी की क्रय शक्ति अक्षम्य रूप से सूख जाती है। मंदी ने पहले से ही समग्र मांग को प्रभावित किया है, और बहुत संवेदनशील है। बजट अनुक्रम, सभी के लिए दर्दनाकः लोगों, उद्योगों, क्षेत्रों। यह नहीं देखा कि राजस्व कैसे बढ़ाया जाए, क्रेमलिन निर्दयतापूर्वक खर्चों में कटौती करता है। ऊपर की ओर प्रवृत्ति नीचे की ओर हो गई। मुख्य कारण निर्यात-कच्चे माल मॉडल के संरक्षण की नीति है - खाद और इसलिए रूसी विरोधी। इस नीति के कारण, रूस एक प्रणालीगत संकट में डूबा हुआ है, विदेशी पूंजी पर काम करना जारी रखने के बजाय, नए औद्योगीकरण पर, श्रम उत्पादकता में वृद्धि, जीवन स्तर और जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा रहा है। - क्या यह मंदी है, जिसकी संभावना आपने डेढ़ साल पहले, जनवरी 2012 में वापस घोषित की थी? - सच है, इस तरह की मंदी की संभावना पर चर्चा की गई थी। 2011 के अंत में, यह याद रखने योग्य है कि दुनिया बार-बार मंदी की प्रत्याशा में भटकती है। G7 देशों के लिए, IMF, वर्ल्ड बैंक और अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने 2012 की पहली छमाही की तुलना में बाद में निराशा की भविष्यवाणी की। एन रुबीनी भयानक भविष्यवाणी के साथ गाना बजानेवालों में शामिल थे। दिसंबर 2011 के मध्य में, मेरे सहयोगियों और मैंने यह जांचने का निर्णय लिया कि क्या 2012 वास्तव में एक और पतन का वर्ष होगा। और चक्रीय संकटों के हमारे मॉडल की भविष्यवाणी की ओर मुड़ गए। गणना से पता चला है कि "मंदी की दूसरी लहर" के ट्रबड्रोज़ ने जल्दबाज़ी मेंः 2012 पर, इसकी संभावना शून्य थी। एक साल बीत चुका है, और हमारा निष्कर्ष सटीक निकलाः मॉडल ने हमें निराश नहीं किया। उसी समय, एक नहीं बल्कि अप्रत्याशित परिणाम सामने आया। उसने सीधे रूस को छुआ। जैसा कि यह निकला, जबकि औद्योगिक देशों में मंदी अब तक अविश्वसनीय है, फिर हमारे देश के लिए, इसके विपरीत, ऐसी संभावना मौजूद है - और गंभीरता से लिया जाना पर्याप्त है। इसलिए, मुझे यह जोड़ना था कि रूस में मंदी के बिना "सात बड़े" देशों में संभव है - विषम रूप से और उनके साथ अलग-अलग समय पर। यह शायद उद्धृत करना उचित हैः "2012 में विकसित देशों के लिए मंदी के खतरे नहीं हैं। रूस के लिए, यह खतरा मौजूद है, इसके अलावा, यह 2008 की तुलना में बहुत अधिक गंभीर है। "(एस। गुबनोव। क्या दुनिया में मंदी-2012 की संभावना है? // अर्थशास्त्री। 2012। 1)। - 2013 में घरेलू अर्थव्यवस्था का पतन कितना गहरा है? - मंदी अभी भी मध्यम है, वास्तविक गिरावट सकल घरेलू उत्पाद के 1,7% से अधिक नहीं है। - आपका अनुमान रोसस्टेट गणना से भिन्न होता है, जो माइनस 1,7% के बजाय, पहली तिमाही के लिए GDP का 1,6%, दूसरी तिमाही के लिए 1,2% और समग्र रूप से वर्ष की पहली छमाही के लिए 1,4% देता है। यह न बताएँ कि यह विसंगति कहाँ से आती है और आप कैसे सोचते हैं? - गणना आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर, दो तरीकों से की गई थी। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के संतुलन की विधि और जीडीपी के उपयोग के घटकों के संरचनात्मक-गतिशील विश्लेषण की विधि का उपयोग किया गया था। ऐसा लगता है कि कार्यप्रणाली, एल्गोरिथ्म और गणना उपकरण के विवरण और सूक्ष्मताओं में जाना अनावश्यक है। मुख्य परिणाम खुद के लिए बोलते हैं। औपचारिक रूप से, रोजस्टैट का अनुमान सही हैः नाममात्र के संदर्भ में, पहली तिमाही में जीडीपी बढ़ी। 2013% पर 1,6। लेकिन क्या वास्तविक जीडीपी उपयोग में वृद्धि हुई है? वास्तव में, कोई वृद्धि नहीं है; इसके विपरीत - एक कमी है। कुल में, 1,7% से। दुर्भाग्य से, दूसरी तिमाही की गणना के लिए आवश्यक डेटा अभी भी गायब है। हम केवल यह जानते हैं कि दूसरी तिमाही पहले की तुलना में बेहतर नहीं थी। दो लगातार तिमाहियों में "लाल" एक मंदी है। मुख्य रूप से जीडीपी वृद्धि है, लेकिन वास्तव में इसका उपयोग करने के लिए कुछ भी नहीं है। और क्रेमलिन को सांख्यिकीय रूप से आर्थिक विकास दिखाने के लिए भंडार खर्च करना पड़ता है। - क्या तत्व मंदी के लिए एक बड़ा योगदान देता है? - सबसे बड़े माइनस सकल संचय में। शुद्ध निर्यात में कमी के कारण मुआवजा अंतिम खपत की रेखा पर था। राज्य ने व्यक्तिगत निवेश कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए और न्यूनतम, अनिवार्य सामाजिक खर्च के लिए विदेशी मुद्रा भंडार खर्च किया। यह स्पष्ट है कि विदेशी मुद्रा भंडार दुर्लभ हैं। इसलिए, बजट की गणना सभी मामलों में बढ़ती है, सरकार की नजर में अनिवार्य नहीं है। इनमें - विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष, आदि। साथियों को तकलीफ नहीं होती। निजी बैंकों की मदद से, वे गहन रूप से विदेश में अपना किराया वापस लेते हैं। सामाजिक बहुमत पीड़ित है, क्योंकि मंदी का सारा बोझ उसके कंधों पर पड़ता है। राज्य कर्मचारियों के लिए सूचकांक स्थगित कर दिया जाता है, घरेलू टैरिफ में वृद्धि होती है, बिजली की खपत के आरोएसिक विनियमन को लागू किया जाता है, मजदूरी में कटौती की जाती है, बेरोजगारी बढ़ती है, यहां तक कि आरएएस की संपत्ति, जो निजीकरण से प्रभावित नहीं हुई है, बिक्री के लिए तैयार हो रही है - सरकार एक तिनका पकड़ रही है। संक्षेप में, केवल राज्य भंडार से समर्थन हमें जीडीपी में सांख्यिकीय विकास दिखाने की अनुमति देता है। लेकिन वास्तविक संसाधनों की जरूरत है। पेपर त्सफिर उनकी कमी की भरपाई नहीं करता है, यह न तो निवेश की भूख को संतुष्ट करता है, न ही बजट को, न ही कमोडिटी को, न ही ऊर्जा को। इसलिए रूस वास्तव में मंदी में है, और बजट कम आपूर्ति में है। - उच्च तेल और गैस की कीमतों के साथ, 2013 से अर्थव्यवस्था क्यों नीचे खिसकने लगी? - कारणों को आंतरिक और बाह्य में विभाजित किया गया है। सरकार का मानना है कि बाहरी कारण हैंः वे कहते हैं कि दुनिया में हर जगह कम विकास दर हैं। यह तर्क गलत है। 2013 से पहले, जी -7 देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने गुणात्मक परिवर्तनों के लिए अधिक संघर्ष किया, और फिर सरकार ने इस तथ्य का श्रेय लिया कि जीडीपी विकास के मामले में, रूस कई धीमी गति से आगे था। अब औद्योगिक देश धीमे से फुर्तीले हो गए हैं, एक औद्योगिक उछाल हासिल किया है, और वह - वे अचानक रूसी अर्थव्यवस्था को धीमा करना शुरू कर दिया है? बकवास। उन्हें कुछ भी करने के लिए नोड। यह सत्य से ध्यान हटाने के लिए तर्क को अनफिट करने के लिए कोई अर्थ नहीं रखता है। बाहरी कारण उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं जितने कि आंतरिक। आंतरिक लोगों की ओर मुड़ते हुए, अपने मौलिक और तात्कालिक लोगों में अपने विभाजन को ध्यान में रखना चाहिए। शुरू में, मौलिक कारण। वे एक प्रणालीगत संकट से जुड़े हुए हैं, जो कि कंप्रैडर संपत्ति के प्रभुत्व के कारण होता है और निर्माण से निकालने वाले उद्योग के अलगाव का कारण बनता है। मूल्य श्रृंखलाएं स्वायत्त टुकड़ों में विभाजित होती हैं और अक्षम होती हैं। इंटरमीडिएट उत्पादन फाइनल से कटा हुआ है। यहां से डिंडोट्रोपोराइजेशन, विज्ञान और शिक्षा का क्षरण। परिणामस्वरूप, राष्ट्रीय आर्थिक मूल्य वर्धित गुणक औद्योगिक देशों की तुलना में 7-10 गुना कम है। अंतिम उत्पाद का आकार भयावह रूप से छोटा है, और हां यहां तक कि compradors के पक्ष में विभाजित है। यह रूस के लिए एक ऐतिहासिक रूप से अप्रमाणित आर्थिक प्रणाली शत्रुतापूर्ण है। मैं ध्यान देना चाहूंगाः रूस में, अब सभी समान कारणों में कार्रवाई के कारण यूएसएसआर का पतन हुआ। ये सभी राष्ट्रीय संपत्ति, डॉलर के भ्रष्टाचार, देशहित पर निजी स्वार्थ की सर्वोच्चता और सरकार और लोगों की नैतिक और राजनीतिक एकता की हानि को नकारते हैं। विनाशकारी कारणों को समाप्त नहीं किया गया है, और प्रणालीगत प्रतिबंधों को हटाया नहीं गया है। ऑलिगार्सिक-कंप्रैडर संपत्ति के आधार पर, एक महत्वपूर्ण द्रव्यमान का संचय होता रहता है, और जब पहुंचता है, तो हमारे देश के पतन की श्रृंखला प्रतिक्रिया के लिए एक हल्का झटका पर्याप्त होगा। आंतरिक प्रणाली का संकट रूस को तब तक अपने घुटनों पर रखेगा जब तक कि कच्चे माल का निष्कर्षण उसके अधिकतम और उच्च-तकनीकी औद्योगिक प्रसंस्करण से उच्च उत्पादों के साथ समाप्त उत्पादों में काट दिया जाता है। लेकिन घरेलू उद्योग के दोनों क्षेत्रों को एकजुट करने के लिए, उन्हें एक ही दोहन में शामिल करने के लिए, और केवल उनके लिए आम है, एकीकृत संपत्ति पूरी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के उदय के लिए ड्राइविंग बल बना सकती है। बदले में, राज्य में अंतिम परिणाम पर उनके समन्वित और समन्वित काम को सुनिश्चित करने के लिए केवल एक योजना और आर्थिक प्रणाली, ऊर्ध्वाधर एकीकरण के कानून और आम सहमति योजना के सिद्धांत के अनुरूप लाया गया। कोई भी प्रणालीगत संकट केवल पुरानी आर्थिक प्रणाली, प्रतिक्रियावादी और नए, ऐतिहासिक रूप से प्रगतिशील एक की स्थापना को समाप्त करके हल किया जाता है। इसका कोई और रास्ता नहीं है। Россия так или иначе обречена на новое решение вопроса о собственности и своей политико-экономической системе. Все дело лишь в том, каким образом страна добьется исторически верного решения - преимущественно эволюционным или революционным, «сверху» или «снизу», либо при синхронном политическом обновлении «низов» и «верхов». Исход зависит, как учит история, от степени соответствия между объективными и субъективными факторами. ऐसा लगता है कि मूलभूत कारणों को पर्याप्त रूप से रेखांकित किया गया है। तत्काल लोगों के बीच, यह आवश्यक हैः निर्यात की मात्रा में गिरावट, मूल्य के लिए निर्यात की मांग की नकारात्मक लोच के प्रभाव की उपस्थिति, विदेशों में पूंजी निर्यात की तीव्रता, निवेश पर बदले में गिरावट, लाभप्रदता का दोहरा पूर्वाग्रह जो निवेश के सामान के उत्पादन को पंगु बना देता है और संचय निधि को कम कर देता है। 2012 की दूसरी छमाही के बाद से रूसी निर्यात की मासिक गतिशीलता ज्यादातर नकारात्मक रही है। क्यों? यह मूल्य निर्धारण के बारे में नहीं है। तेल और गैस के लिए, वे पिछले वर्ष की तुलना में हैं, उदाहरण के लिए, तेल के लिए - 106 और 108 डॉलर प्रति बैरल। धातु की कीमतें गिर गई हैं, लेकिन धातुओं का हिस्सा इतना बड़ा नहीं है कि पूरे निर्यात की गतिशीलता को नीचे लाया जा सके। जाहिर है, एक नया कारक सामने आया है, क्योंकि तेल और गैस की ऊंची कीमतें जीडीपी को नहीं खींचती हैं। और वास्तव में, ऐसा कारक मौजूद है। यह यूरोपीय संघ के देशों से एक कीमत पर निर्यात मांग की नकारात्मक लोच है। उच्च कीमत, हमारे हाइड्रोकार्बन कच्चे माल के लिए यूरोपीय संघ की मांग कम है। एकमात्र अपवाद वर्ष की चौथी तिमाही है जब ईंधन की आपूर्ति की आवश्यकता होती है। वर्ष के शेष तीन चौथाई एक नकारात्मक लोच देते हैं। नीचे की रेखाः अभी विदेशी देशों में गैस के निर्यात के भौतिक वॉल्यूम, मुख्य रूप से यूरोपीय संघ के लिए, 1,5 की तुलना में लगभग 2007 गुना कम हैं। तेल निर्यात के वॉल्यूम भी कम हैं। धातुकर्म निर्यात की मात्रा में गिरावट को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि कच्चे माल का निर्यात जीडीपी वृद्धि का स्रोत क्यों नहीं रह गया है। - क्या यह अस्थायी या दीर्घकालिक है? - लंबे समय तक, गंभीरता से और लंबे समय तक। मुझे याद है कि रेडियो पर हम, मारत मजीतोविच, यहां तक कि एक्सएनयूएमएक्स की शुरुआत में यूरोपीय संघ के ऊर्जा संतुलन, धातु तेल, प्लास्टिक आदि सहित तेल-तेल ऊर्जा और अपशिष्ट रीसाइक्लिंग तकनीकों की संभावनाओं पर चर्चा की। तब ऐसा लग रहा था कि यूरोपीय संघ को सालों तक 2009-5 की आवश्यकता होगी, ताकि इन परिवर्तनों से रूस से तेल और गैस की खरीद के लिए मांग की जा सके। हालांकि, वर्ष के 7 में, यूरोपीय तेजी से कामयाब रहे। अब उनके पास 4-15% की मात्रा में - तेल और गैस कच्चे माल के आयात प्रतिस्थापन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। धन्यवाद, वैसे, नव-औद्योगिक विकास के लिए, जो तेल और पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों के विकास को गति देता है, जिससे आप श्रम, ऊर्जा और संसाधनों में बचत बढ़ा सकते हैं। निस्संदेह, बाद के वर्षों में कीमत पर नकारात्मक लोच का प्रभाव केवल बढ़ेगा। यह जर्मन ऊर्जा क्षेत्र पर हाल के विश्लेषणात्मक आंकड़ों द्वारा स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। तथ्य एक तथ्य हैः वस्तु निर्यात और रूसी जीडीपी की कीमतों के बीच एक सीधा आनुपातिक संबंध टूट गया है। इसे अब जोड़ा नहीं जा सकता है, और यह रूस की दया पर नहीं है। तेल और गैस के उच्च मूल्य अब जीडीपी में वृद्धि की गारंटी नहीं देते हैं, जबकि उनकी गिरावट घरेलू अर्थव्यवस्था में गिरावट की गारंटी देती है। - इसलिए निर्यात-कच्चे माल मॉडल के डिफ़ॉल्ट के बारे में आपका निष्कर्ष? - मूल रूप से, हाँ। हालांकि, स्थिति खराब हो गई है। 2008 के विपरीत, अब सभी शर्तें शब्द के पूर्ण अर्थ में डिफ़ॉल्ट रूप से बनाई गई हैं। विदेशी ऋण रूस के सभी सोने और विदेशी मुद्रा भंडार (200 बिलियन के मुकाबले 700 बिलियन) से लगभग 500 बिलियन अधिक है। कुख्यात "एयरबैग" एक कल्पना बन गया हैः यह बाहरी ऋण को कवर करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। जीवन स्थिरीकरण कोष की स्थापना के बाद से अपनाई गई नीति के पतन का कारण बना। बार-बार तनाव करना आवश्यक हैः यह फंड और रूबल की कीमत पर डॉलर को स्थिर करने की नीति है। वाशिंगटन द्वारा लगाई गई लाइन और ए। कुड्रिन द्वारा प्रवर्तित शुरुआत में हमारे देश के हितों का खंडन किया गया। रूस की सुरक्षा की मुख्य गारंटी स्वयं रूस का काम है, न कि अमेरिकी डॉलर पर। - और पूंजी के निर्यात के बारे में क्या? - यहाँ सिद्धांत के कुछ बिंदु दिए गए हैं। पहलाः रूस से पूंजी के निर्यात की मात्रा अब 2 की तुलना में 2010 गुना अधिक है। दूसराः रूसी संघ के सेंट्रल बैंक ने गलत तरीके से पूंजी के निर्यात की मात्रा का अनुमान लगाया है, यही कारण है कि आंकड़ा को 3,5 बार कम करके आंका गया है। एक सटीक अनुमान के अनुसार, पिछले 9,5 वर्षों में, लगभग 1 ट्रिलियन को रूस से बाहर पंप किया गया है। तुलना के लिएः यह उन 1,5 ट्रिलियन से 20 गुना अधिक है। रूबल, जिसका उद्देश्य 2020 से पहले की अवधि में सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण करना है। और तीसरा बिंदुः पूंजी के निर्यात का मतलब एक विदेशी व्यापार असंतुलन है जिसमें देश अपने तकनीकी निवेश खो देता है, अर्थात। नई नौकरियां। वास्तव में, 9,5 वर्षों में, हमारे देश ने 5 मिलियन से अधिक नई, उच्च-तकनीकी नौकरियों के साथ पश्चिम को प्रस्तुत किया है। लेकिन उसने उन्हें प्राप्त नहीं किया, और याद करना जारी रखा। आजकल, अक्सर सवाल सुना जाता हैः एक नए औद्योगीकरण के लिए पैसा कहाँ से प्राप्त करें? ऐसा बयान मौलिक रूप से गलत है। कंप्रैडर सिस्टम के साथ उन्हें लेने के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन अगर यह एक नियोजित प्रणाली होती, तो उन्हें बस कहीं से लेने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि वे रूस में ही रहते और रूस के लिए काम करते। - वर्ष की पहली छमाही में, मुनाफे की कुल राशि में तेजी से गिरावट आई - 20% के बारे में। विनिर्माण उद्योग में लाभप्रदता में और भी अधिक गिरावट। यहां वापसी की दर ब्याज दर से कम है। इस तरह के सहसंबंध तकनीकी निवेशों के भुगतान को समाप्त करता है, संचय निधि को कम करता है, जिसके परिणामस्वरूप यह केवल सामान्य गिरावट को बढ़ाता है। लाभप्रदता के दोहरे पूर्वाग्रह के बारे मेंः विनिमय लेनदेन पर सट्टा पूंजी के लाभ की दर न केवल विनिर्माण, बल्कि खनन उद्योग की लाभप्रदता से भी कई गुना अधिक है। इसलिए, अतिप्रवाह एक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के भीतर एक शाखा से नहीं, बल्कि विदेशों में एक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से आता है। निचला रेखाः रूस पूंजी निवेश के बिना रहता है, नई नौकरियों के बिना, विखंडन और अविकसितता में डूबा हुआ। यह कच्चे माल के निर्यात मॉडल के डिफ़ॉल्ट होने का भी प्रमाण है। दरअसल, कच्चे माल के निर्यात मॉडल का डिफ़ॉल्ट रूस की स्वायत्त मंदी का प्रत्यक्ष कारण है, जो 2013 के साथ शुरू हुआ था। - तात्कालिक संभावनाएँ क्या हैं? - औद्योगिक देशों में मंदी में देरी हो रही है, जैसा कि हमारी गणना दिखाती है, कम से कम 2014 के मध्य तक। इसलिए, आने वाले महीनों में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट की संभावना नहीं है। चौथी तिमाही में, नकारात्मक लोच का प्रभाव थोड़ी देर के लिए गायब हो जाएगा, निर्यात की मात्रा थोड़ी बढ़ जाएगी और जीडीपी में खींच जाएगा। लेकिन यह केवल एक्सएनयूएमएक्स की शुरुआत तक चलेगा। आगे सांख्यिकीय विकास फिर से विदेशी मुद्रा भंडार द्वारा समर्थित होगा, लेकिन वे एक्सएनयूएमएक्स वर्ष से अधिक नहीं के लिए पर्याप्त होंगे। यह संभव है कि 2014 के अंत की ओर, एक और वैश्विक मंदी टूट जाएगी। यदि रूस इसे निर्यात-कच्चे माल के मॉडल के साथ पूरा करने के लिए होता है, तो सिस्टम-आर्थिक संकट एक बजट डिफ़ॉल्ट होगा और परिणामस्वरूप एक आंतरिक राजनीतिक होगा। एक स्वायत्त मंदी के तथ्य के आधार पर, विकल्प पहले से ही छोटा है और दो चीजों में से एक के लिए उबलता हैः या तो विकास की प्रणालीगत बाधाओं को हटा दें, संपत्ति के ऊर्ध्वाधर एकीकरण की ओर मुड़ें, या उन्हें ढेर करना जारी रखें, कंप्रेशर संपत्ति को संरक्षित करने के लिए कच्चे माल के निर्यात मॉडल के जानबूझकर पुनर्मूल्यांकन में संलग्न हैं। पहला रास्ता जीत की ओर जाता है, और दूसरा हार का, जो रूस के लिए ऐतिहासिक रूप से अस्वीकार्य है।
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आज होने जा रही दोनों बैठकों में एक आधारभूत फर्क यह है कि एनडीए कुनबा एकजुटता दिखाने के लिए एकत्र हो रहा है लेकिन यूपीए या यूं कहें कि विपक्षी दल एकजुट होने को बैठेंगे. लोकसभा चुनाव को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच शह-मात का खेल अभी से शुरू हो गया है. पता नहीं यह संयोग है या फिर सियासी योजना का हिस्सा, जब बेंगलुरु में विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता से बाहर करने की रणनीति बना रहे होंगे तो ठीक उसी दिन ही एनडीए गठबंधन 2024 के चुनाव में सत्ता की हैट्रिक के लिए दिल्ली में बैठक कर रहा होगा. इन दोनों बैठकों में शामिल होने को सोमवार को ही देश भर से नेतागण दिल्ली और बेंगलुरु पहुंचे. कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने शाम को विपक्षी दलों के लिए डिनर भी रखा. इन दोनों बैठकों के साथ लोकसभा चुनाव 2024 की तस्वीर भी साफ होने लगेगी. दोनों बैठकों में एक आधारभूत फर्क यह है कि एनडीए कुनबा एकजुटता दिखाने के लिए एकत्र हो रहा है लेकिन यूपीए या यूं कहें कि विपक्षी दल एकजुट होने को बैठेंगे. एनडीए में निर्विवाद रूप से भाजपा लीडर है, बाकी सहयोगी की भूमिका में हैं. यूपीए या विपक्षी दलों में अभी यह तय होना बाकी है. बंगलौर की बैठक में 26 दलों को बुलाया गया है और एनडीए के कुनबे में कुल 38 दल शामिल हैं. इसमें ताजा एंट्री यूपी के सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की है. अभी कई लाइन में हैं. विपक्षी दलों की पटना में आयोजित बैठक में 15 दल शामिल हुए थे. असल में अब यह महत्वपूर्ण भी नहीं रहा कि किस गठबंधन में कितने दल शामिल हैं या होने वाले हैं? वर्षों से राजनीतिक पार्टियां कपड़ों की तरह निष्ठा बदलती आ रही हैं. हर हाल में सत्ता में बने रहने के लिए खास तौर से छोटे दल खूब टूटे-बिखरे और फिर खड़े हुए. इतनी एका और टूट के बीच अभी भी देश में तीन राजनीतिक दल ऐसे हैं, जो फिलहाल किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं. इनमें बीजू जनता दल, भारत राष्ट्र समिति और वाईएसआर कांग्रेस. ये तीनों क्रमशः ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सत्ता संभाल रही हैं. बहुजन समाज पार्टी भी अभी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. वोट के हिसाब से कौन भारी है? इस बीच एक सवाल तेजी से हवा में उछला है कि वोट के हिसाब से कौन भारी है? एनडीए या यूपीए? इसका कोई स्पष्ट डेटा उपलब्ध नहीं है. लेकिन इतना तय है कि नॉर्थ-ईस्ट में एनडीए मजबूत दिखती है. कारण यह है कि वहां आदिवासी आबादी सबसे ज्यादा है और एनडीए ज्यादातर राज्यों में सत्ता में है. दक्षिण भारत में अनेक कारणों से बीजपी कमजोर है लेकिन उत्तर प्रदेश में एनडीए बहुत मजबूत है. बिहार में भी स्थिति अच्छी है. संभव है कि सीटों के हिसाब से चुनाव में कुछ कम या ज्यादा हो जाए लेकिन जदयू के निकलने के बाद बिहार में बीजेपी का आत्मविश्वास मजबूत हुआ है. कहने की जरूरत नहीं है कि अनेक छोटे दलों के साथ रिश्ता बनने की वजह से यह स्थिति बनी है. गुजरात-महाराष्ट्र में भी एनडीए मजबूत दिखता है. चुनावी राज्यों राजस्थान, एमपी और छतीसगढ़ में लोकसभा सीटों के हिसाब से अभी एनडीए ही मजबूत है. पर, इसका असली आकलन विधानसभा चुनाव के बाद किया जाना आसान होगा. विपक्ष की पटना बैठक से जो संकेत निकले थे वह बहुत स्पष्ट थे. बंगलौर में होने वाली यह जुटान केवल और केवल नरेंद्र मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के इरादे से हो रही है. इसी मुद्दे पर सब एक हैं, अन्यथा विपक्षी पार्टियों में काफी अंतर्विरोध देखा जा सकता है. पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुए चुनावों में हिंसा हुई. इसका विरोध वामदलों ने भी किया और कांग्रेस ने भी लेकिन विपक्षी एकता में ये सारे दल एक साथ हैं. नेशनल कांफ्रेस ने पटना बैठक में आम आदमी पार्टी को धारा 370 के मुद्दे पर घेरा. आम आदमी पार्टी ने अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस को धमकी दे दी थी कि जब तक उसका स्टैंड क्लीयर नहीं होता, केजरीवाल विपक्ष की किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे. हालांकि, कांग्रेस ने बंगलौर बैठक से ठीक पहले आम आदमी पार्टी का साथ देने का फैसला सुना दिया है. पर, विपक्षी एकता में सब साथ हैं. इस एकता में समानांतर कई कान्फ्लिक्ट भी देखने को मिलते हैं. मसलन, टीएमसी जिसके खिलाफ राज्य में लड़ रही है, उन्हीं कम्युनिस्ट पार्टियों और कांग्रेस को जगह देने अपने राज्य में कितनी तैयार होगी? उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का अपना अलग स्वैग है. वह केंद्र में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को भी बहुत ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं है. मतलब सीटें अपने हिसाब से देने का मन बनाकर काम कर रही है. पंजाब और दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी भी अपने इलाके में बहुत ज्यादा समझौता करती हुई नहीं दिखती है. विपक्ष में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस को छोड़कर एक भी दल ऐसा नहीं है, जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हो. वोट बैंक हो. क्या यूपीए का वजूद खत्म हो जाएगा? महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टियां टूट चुकी हैं. इनकी ताकत कमजोर हो चली है. इनका जमीनी आकलन चुनाव बाद हो पाएगा. क्योंकि टूटन के बाद पहला चुनाव होने वाला है. पटना बैठक में ही तय हो गया था कि बनने वाले नए गठबंधन का नाम अभी नए सिरे से तय होगा यानी यूपीए का वजूद यहीं खत्म हो जाएगा. इतने ढेर सारे अंतर्विरोधों के बीच यूपीए या विपक्षी एकता की बैठक हो रही है. देखना रोचक होगा कि यह एकता आगे क्या और कैसे काम करती हुई दिखेगी? उधर, एनडीए की खास बात यह है कि यहां पहले दिन से भारतीय जनता पार्टी बड़े भाई के रूप में है. बाकी सब छोटे भाई हैं. पर, एनडीए के कर्ता-धर्ता नरेंद्र मोदी, अमित शाह ने राज्यों में कई मौकों पर छोटा भाई बनने में संकोच नहीं किया. यही कारण है पंजाब में शिरोमणि अकाली दल फिर से एनडीए का हिस्सा बन सकता है. यहां भाजपा ने कभी भी बड़ा भाई बनने की कोशिश नहीं की. नॉर्थ ईस्ट के ज्यादातर राज्यों में जहां से एक-दो एमपी आते हैं, वहां भी भाजपा ने छोटे दलों को सपोर्ट किया और केंद्र में उनका सपोर्ट लिया. इसी का परिणाम है कि अनेक सहयोगियों के जुडने, छूटने फिर जुडने के बावजूद बीते 25 साल से एनडीए का मजबूत वजूद कायम है. एनडीए का मजबूत घटक भाजपा एक और सावधानी बरतती हुई देखी जाती है. नागालैंड से लेकर सिक्किम और यूपी से लेकर बिहार में छोटे-छोटे दलों को भाजपा ने महत्व दिया. उनके साथ गठजोड़ किया. इसका दोनों को लाभ हुआ. अकेले लड़ते हुए ये दल राज्यों में कुछ नहीं कर पाते थे. आज वे सत्ता में भागीदार हैं. बिहार में जीतन राम मांझी, उपेन्द्र कुशवाहा, चिराग पासवान, उनके चाचा पशुपति पारस, उत्तर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद ऐसे ही नाम हैं, जो अकेले कुछ खास कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. भाजपा के साथ मजबूत हो जाते हैं. इन्हें मैनेज करना भी भाजपा के लिए बहुत आसान होता है. जदयू से मुक्त होने के बाद एनडीए गठबंधन में एक भी दल ऐसा नहीं है, जो एकदम सिर उठाकर बगावत कर सके. एनडीए ने अनेक मौकों पर बड़प्पन भी दिखाया. 2019 में प्रचंड बहुमत से जीतने वाली भाजपा ने एनडीए सहयोगियों को मंत्रिमंडल में साथ रखा. यह पहल छोटे दलों की नजर में उसे अलग स्थान देता है. क्या गुल खिलाएगी विपक्षी एकता? वहीं साल 2004 में आम चुनाव के बाद वजूद में आई यूपीए टूटती-बिखरती रही और आज इस नाम के बदले गठबंधन नया नाम तय करने की सोच रहा है. यह एकता क्या गुल खिलाएगी, देखा जाना बाकी है. इसमें शामिल हर नेता की अपनी महत्वाकांक्षा है. सबको हर हाल में महत्वपूर्ण रहना है. देखना रोचक होगा कि आगे क्या स्थिति बनती है.
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प्रश्न.1 महासागरीय अम्लीकरण पर चर्चा कीजिये। यह समुद्री जैव विविधता को कैसे प्रभावित करेगा? (150 शब्द) प्रश्न.2 जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन क्षरण आपस में किस प्रकार संबंधित हैं? चर्चा कीजिये कि अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत का क्षरण अधिकतम क्यों होता है? (150 शब्द) उत्तर 1: हल करने का दृष्टिकोणः - महासागरीय अम्लीकरण का संक्षिप्त परिचय दीजिये। - सागरीय जैव विविधता पर अम्लीकरण के प्रभाव की चर्चा कीजिये। - उचित निष्कर्ष दीजिये। - महासागरीय अम्लीकरण का आशय समुद्र के जल के पीएच में निरंतर कमी होना है, जिसका कारण वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का अवशोषण करना होता है। - जब CO2 समुद्री जल में घुल जाती है तो इससे कार्बोनिक अम्ल बनता है, जिसके कारण जल की अम्लता बढ़ जाती है। - महासागरीय अम्लीकरण की यह प्रक्रिया कई दशकों से चल रही है जिसका मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन को जलाना है जिससे बड़ी मात्रा में वायुमंडल में CO2 का उत्सर्जन होता है। मुख्य भागः - महासागरों की बढ़ती अम्लता का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और इस पर निर्भर जीवों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता हैः - कंकाल (आवरण) निर्माणः कई समुद्री जीव जैसे मोलस्क, कोरल और प्लैंकटन की कुछ प्रजातियाँ अपने कंकाल के विकास हेतु कैल्शियम कार्बोनेट पर निर्भर होते हैं। हालाँकि अधिक अम्लीय समुद्री जल में कैल्शियम कार्बोनेट की उपलब्धता में कमी आती है, जिससे इन जीवों के लिये अपने कंकाल को बनाना और बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इससे कमजोर या विकृत कंकाल होने के साथ इनकी मृत्यु भी हो सकती है। - खाद्य श्रृंखला बाधित होनाः महासागरीय अम्लीकरण से खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिये प्लैंकटन की कुछ प्रजातियाँ समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार होती हैं और यह कई अन्य प्रजातियों के अस्तित्व के लिये आवश्यक होती हैं। इनमें गिरावट आने से संपूर्ण खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो सकती है। - मछलियों पर प्रभाव पड़नाः महासागरीय अम्लीकरण से मछलियों का व्यवहार भी प्रभावित हो सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि बढ़ी हुई अम्लता से शिकारियों का पता लगाने या भोजन का पता लगाने की मछलियों की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे इनकी संख्या में गिरावट आ सकती है। - जैव विविधता की हानि होनाः समुद्र के अम्लीकरण से समुद्री जैव विविधता में गिरावट आ सकती है। इसमें कुछ प्रजातियाँ पीएच स्तर में बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में प्रजातियों की विविधता में कमी आती है। - प्रवाल विरंजन होनाः प्रवाल, समुद्र के अम्लीकरण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। बढ़ी हुई अम्लता से प्रवाल विरंजन हो सकता है। जिससे कई अन्य प्रजातियों के आवास और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है। महासागरीय अम्लीकरण का समुद्री जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अम्लीकरण के प्रभावों का संपूर्ण खाद्य श्रृंखला पर प्रभाव होने से जीवों के कंकाल का कमजोर होना, जीवों के व्यवहार में परिवर्तन आने के साथ प्रजातियों की संख्या में गिरावट आ सकती है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ समुद्री जैव विविधता की रक्षा हेतु अन्य कदम उठाने से महासागरों पर होने वाले विपरीत प्रभावों को कम किया जा सकता है। उत्तर 2: हल करने का दृष्टिकोणः - ओज़ोन क्षरण और जलवायु परिवर्तन के संबंध के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये। - अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत के अधिक क्षरण के कारणों का वर्णन कीजिये। - उचित निष्कर्ष दीजिये। - जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन क्षरण दो अलग-अलग लेकिन परस्पर जुड़ी पर्यावरणीय समस्याएँ हैं। मानव गतिविधियाँ जैसे कि जीवाश्म ईंधन को जलाने और रसायनों के उपयोग से इसे बढ़ावा मिलता है। - जीवाश्म ईंधन को जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होने के कारण वातावरण में ऊष्मा में वृद्धि होती है जिससे ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों का निर्माण होता है। - ओज़ोन क्षरण के लिये जिम्मेदार कई रसायन जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) भी शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जिसकी जलवायु परिवर्तन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। - ओज़ोन परत के क्षरण का प्रभाव जलवायु पर भी पड़ सकता है। ओज़ोन परत सूर्य से निकलने वाले पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करती है। - जलवायु परिवर्तन के कारण पवन के पैटर्न और तापमान में होने वाले परिवर्तन से ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों का वितरण और क्षय प्रभावित हो सकता है। - निचले वातावरण में तापमान वृद्धि से ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों के निर्माण को बढ़ावा देने वाली स्थिति पैदा हो सकती है जिसकी ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों के विघटन में भूमिका होती है। - इन दोनों मुद्दों को हल करने के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने हेतु ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। मुख्य भागः - अद्वितीय वायुमंडलीय और मौसम संबंधी स्थितियों के कारण अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत का अधिक क्षरण होता है जिससे तथाकथित "ओज़ोन छिद्र" हेतु अनुकूल वातावरण बनता है। इसके कुछ प्रमुख कारक हैं जैसेः - ध्रुवीय भंवरः सर्दियों के महीनों के दौरान अंटार्कटिक क्षेत्र में ध्रुवीय भंवर का विकास होता है जो इस क्षेत्र को विश्व के बाकी हिस्सों से अलग करता है। इससे ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों के निर्माण के लिये अनुकूल स्थिति बनती है, जो छोटे बर्फ के क्रिस्टल से बने होते हैं जो क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं जिससे क्लोरीन अणुओं का उत्सर्जन होता है। ये क्लोरीन अणु वायुमंडल में ओज़ोन के अणुओं को विघटित करते हैं जिससे ओज़ोन छिद्र बनता है। - निम्न तापमान होनाः अंटार्कटिक क्षेत्र में अत्यधिक ठंडे तापमान के कारण स्थिर वायुमंडलीय दशाएँ विकसित होती हैं जिससे वायुमंडल की निचली और ऊपरी परतों के बीच वायु का मिश्रण नहीं हो पाता है। इसका अर्थ यह है कि ओज़ोन क्षयकारी वायु, सतह के पास संग्रहित हो जाती है। - ओज़ोन क्षयकारी अभिक्रियाएँः ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों, निम्न तापमान और ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों की उपस्थिति से विभिन्न ओज़ोन क्षयकारी अभिक्रियाएँ होती हैं। सीएफसी के विघटन से निकलने वाले क्लोरीन अणु ओज़ोन अणुओं के साथ प्रतिक्रिया करके इन्हें ऑक्सीजन अणुओं में तोड़ देते हैं। - मौसम में होने वाला परिवर्तनः इस क्षेत्र में ओज़ोन परत का अधिकतम क्षरण अंटार्कटिक वसंत ऋतु (सितंबर से नवंबर) के दौरान होता है, जब कई महीनों के अंधेरे के बाद सूर्य का इस क्षेत्र की ओर गमन होता है। इस समय अधिक यूवी विकिरण के कारण ओज़ोन क्षयकारी अभिक्रियाओं में वृद्धि होती है जिससे ओज़ोन छिद्र का निर्माण होता है। मानवीय गतिविधियों से वातावरण में सीएफसी जैसी गैसों के उत्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन क्षरण जैसी अंतर्संबंधित चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इसलिये व्यक्तियों और सरकारों के लिये यह आवश्यक है कि वे ओज़ोन-क्षयकारी गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये निर्णायक कार्रवाई करने के साथ स्थायी भविष्य को सुरक्षित करने के क्रम में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने का प्रयास करें। अद्वितीय वायुमंडलीय और मौसम संबंधी स्थितियों के कारण अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत का अधिक क्षरण होता है। ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और उपभोग को समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के कारण हाल के वर्षों में ओज़ोन छिद्र के आकार में कमी आई है। भविष्य में ओज़ोन परत को पूरी तरह से ठीक करने के लिये इस दिशा में नियमित निगरानी और निरंतर कार्रवाई किया जाना आवश्यक है।
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2.2 किसी भी वर्ष बी.टेक. कार्यक्रम में प्रवेश भारत सरकार के आदेश के अनुसार होगा। वर्तमान में ये केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के दिशा-निर्देशों के अनुसार संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) मुख्य और एचएससी परीक्षाओं में सीएसएबी द्वारा संबंधित वर्ष के लिए आयोजित काउंसलिंग के माध्यम से प्रदर्शन पर आधारित हैं। 2.3 संस्थान के किसी भी कार्यक्रम में अनंतिम रूप से या अन्यथा पंजीकृत प्रत्येक छात्र, सीनेट द्वारा निर्धारित योग्यता डिग्री/अनंतिम प्रमाण पत्र और ऐसे अन्य दस्तावेजों की प्रतियां प्रस्तुत करेंगे। इन दस्तावेजों को निर्धारित तिथि तक जमा करना होगा। किसी भी छात्र का प्रवेश, अनंतिम या अन्यथा, जो निर्धारित तिथि तक या तो आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करता है या प्रवेश के लिए किसी अन्य निर्धारित आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहता है, संस्थान द्वारा रद्द किया जा सकता है। 2.4 यदि यह पाया जाता है कि छात्र ने प्रवेश के समय गलत जानकारी दी थी या कुछ प्रासंगिक जानकारी को दबा दिया था तो ऐसे किसी भी छात्र के प्रवेश को सीनेट द्वारा किसी भी समय रद्द किया जा सकता है। 2.5 असंतोषजनक शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर या अनुशासनात्मक आधार पर संस्थान किसी भी छात्र के प्रवेश को रद्द करने का अधिकार रखता है और उसे उसके आजीविका के किसी भी चरण में पढ़ाई बंद करने के लिए कह सकता है। बीटीआर3: उपस्थिति और अनुपस्थिति का अवकाश 3.1 (क) छात्रों को सभी कक्षाओं (व्याख्यान, ट्यूटोरियल, प्रयोगशाला, प्रैक्टिकल, कार्यशालाओं आदि) में भाग लेना अपेक्षित है, जिसके लिए उन्हें पंजीकृत किया गया है। (ख) छात्रों को सभी कक्षाओं में भाग लेना होगा। छात्र को अंतिम सेमेस्टर परीक्षा में उपस्थित होने से वंचित किया जा सकता है यदि कक्षा में उस की उपस्थिति 75 प्रतिशत से कम है और फिर उस पाठ्यक्रम में "एफ" ग्रेड प्रदान किया जाएगा। अनुपस्थिति का अवकाश 3.2 (क) छात्रों से सेमेस्टर के दौरान संस्थान से दूर रहने की अपेक्षा नहीं की जाती है। (ख) छात्रों को निकट परिवार में मृत्यु जैसी स्थितियों में अनुपस्थिति की छुट्टी दी जा सकती है। इस तरह की छुट्टी किसी भी स्थिति में एक सप्ताह से अधिक नहीं होगी। (ग) बीमारी के कारण अनुपस्थिति का अवकाश उचित अनुमति लेने के बाद प्रदान किया जाएगा, जो की तीन सप्ताह से अधिक नहीं होगा। आपात स्थिति के कारण, इस तरह की अनुमति बाद में और आवश्यक होने पर अभिभावक द्वारा ली जा सकती है। (घ) यदि किसी सेमेस्टर में अनुपस्थिति की अवधि तीन सप्ताह से अधिक है, तो छात्र को अपने द्वारा पंजीकृत सभी पाठ्यक्रमों को छोड़ते हुए सेमेस्टर छोड़ना होगा। सीनेट केवल विशेष परिस्थितियों में लंबे समय तक अनुपस्थित रहने और खोए हुए समय की पूर्ति करने की छात्र की क्षमता का पता लगाने के बाद ही इसकी अनुमति दे सकती है। (ड.) खंड 3.2 (क) से 3.2 (घ) के अनुसार अनुपस्थिति की छुट्टी को उपस्थिति के रूप में नहीं माना जाएगा। 3.3 छात्र की ज़िम्मेदारी होगी कि वह छात्रावास के वार्डन जिसमें वह निवास कर रहा / रही है, और संबंधित प्रशिक्षकों को छुट्टी पर जाने से पहले अपनी अनुपस्थिति के बारे में बताए। बीटीआर4: आचरण और अनुशासन 4.1 छात्र संस्थान के दायरे के भीतर और बाहर राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के छात्रों की तरह आचरण करेंगे। 4.2 छात्र अनुशासन से संबंधित सभी मुद्दों के लिए, सामान्य दिशा निर्देश छात्र अनुशासन की पुस्तिका में बताए गए हैं। बीटीआर5: शाखा परिवर्तन 5.1 सामान्य रूप से, स्नातक कार्यक्रम की एक विशेष शाखा में भर्ती छात्र स्नातक होने तक उस शाखा में अध्ययन जारी रखेगा। 5.2 विशेष मामलों में, संस्थान दूसरे सेमेस्टर के बाद छात्र को पढ़ाई की एक शाखा से दूसरी शाखा बदलने की अनुमति दे सकता है। इस तरह के बदलाव की अनुमति इसके बाद के प्रावधानों के अनुसार दी जाएगी। 5.3 केवल उन छात्रों को दूसरे सेमेस्टर के बाद शाखा / कार्यक्रम में बदलाव के लिए योग्य माना जाएगा, जिन्होंने पहले प्रयास में अपने अध्ययन के पहले दो सेमेस्टर में आवश्यक सभी सामान्य क्रेडिट को पूरा और उत्तीर्ण किया है। 5.4 इच्छुक पात्र छात्रों द्वारा शाखा / कार्यक्रम में परिवर्तन के लिए आवेदन निर्धारित प्रपत्र में भेजकर किया जाना चाहिए। शैक्षणिक अनुभाग प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के दूसरे सेमेस्टर के अंत में आवेदन मांगेगा और पूर्ण किए गए फॉर्म को अधिसूचना में निर्दिष्ट अंतिम तिथि तक जमा करना होगा। 5.5 छात्र वरीयता के क्रम में अपनी पसंद की शाखा / कार्यक्रम, जिसमें वे बदलाव करना चाहते हैं, को सूचीबद्ध कर सकते हैं। आवेदन जमा होने के बाद विकल्पों में फेरबदल करने की अनुमति नहीं होगी। 5.6 शाखा / कार्यक्रम का परिवर्तन आवेदकों की वरीयता के क्रम में कड़ाई से किया जाएगा। इस प्रयोजन के लिए दूसरे सेमेस्टर के अंत में प्राप्त सीपीआई पर विचार किया जाएगा। टाई के मामले में, आवेदकों की जेईई रैंक पर विचार किया जाएगा। 5.7 आवेदकों को शाखा में बदलाव की अनुमति केवल वरीयता के क्रम से ही दी जा सकती है, बशर्ते कि एक शाखा की छात्र संख्या मौजूदा छात्र संख्या से दस प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए और स्वीकृत से दस प्रतिशत ऊपर नहीं जानी चाहिए। 5.8 उपरोक्त नियमों के अनुसार संबंधित आवेदकों के किए गए शाखा के सभी परिवर्तन तीसरे सेमेस्टर से प्रभावी होंगे। इसके बाद किसी भी शाखा / कार्यक्रम में परिवर्तन की अनुमति नहीं दी जाएगी। 5.9 शाखा के सभी परिवर्तन अंतिम और आवेदकों पर बाध्यकारी होंगे। एक बार शाखा में परिवर्तन मंज़ूर होने के बाद, किसी भी छात्र को किसी भी परिस्थिति में, प्रस्तावित शाखा में परिवर्तन से इनकार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। बीटीआर6 पाठ्यक्रम संरचना संस्थान में शिक्षा अध्ययन के सेमेस्टर-आधारित क्रेडिट प्रणाली के अनुसार आयोजित की जाती है। छात्र को पाठ्यक्रम की कक्षाओं में भाग लेने और इसके लिए क्रेडिट अर्जित करने की अनुमति केवल तभी है जब वह उस पाठ्यक्रम के लिए पंजीकृत हो । क्रेडिट सिस्टम की प्रमुख विशेषता एक छात्र के प्रदर्शन / प्रगति के निरंतर मूल्यांकन की प्रक्रिया है जो एक छात्र को उसकी क्षमता या सुविधा के अनुकूल उपयुक्त गति से प्रगति करने की अनुमति देता है, बशर्ते निरंतरता के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं को डिग्री के पूरा करने की अधिकतम स्वीकार्य अवधि के भीतर पूरा किया जाए। छात्र के प्रदर्शन / प्रगति को उस क्रेडिट की संख्या से मापा जाता है जिसे उसने अर्जित किया है, अर्थात् संतोषजनक तरीके से पूरा किया है। छात्र द्वारा प्राप्त पाठ्यक्रम क्रेडिट और ग्रेड के आधार पर ग्रेड प्वाइंट की गणना की जाती है। कार्यक्रम में संतोष जनक प्रगति और निरंतरता के लिए न्यूनतम ग्रेड बिंदु बनाए रखने की आवश्यकता है। डिग्री के लिए योग्यता प्राप्त करने के लिए अर्जित क्रेडिट की न्यूनतम संख्या और न्यूनतम ग्रेड बिंदु भी हासिल किए जाने चाहिए। 6.1 पाठ्यक्रमों के शिक्षण को क्रेडिट में बदला जाएगा; क्रेडिट निम्नलिखित सामान्य पैटर्न के आधार पर पाठ्यक्रमों को दिए गए प्रति सप्ताह 1 घंटा व्याख्यान (एल) प्रति सप्ताह 1 घंटे का ट्यूटोरियल (टी) प्रति सप्ताह 2 घंटे प्रयोगशाला (पी) प्रति सप्ताह 3 घंटे प्रयोगशाला 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धान पादप समूहों (जाती) का एक प्रमुख्य खाद्य फसल है, जो घास की प्रजाति ओरिजा सैटाइवा (एशियाई चावल) या ओरीजा ग्लोबेरिमा (अफ्रीकी चावल) का बीज है. अनाज के रूप में यह दुनिया की मानव आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए सबसे व्यापक रूप से खाया जाने वाला मुख्य भोजन है. यह पूरेे संसार की आधा प्रतिशत आबादी का मूल भोजन श्रोत है जो कुल फसलों के क्षेत्रफल का एक चैथाई क्षेत्र में लगाया जाता है. धान के कुल उत्पादन में ९० प्रतिशत योगदान केवल एशिया महाद्वीप करता है. वर्तमान परिवेश में भारत धान की पैदावार में चाइना के बाद दूसरे स्थान पर सुशोभित है. भारत में धान को ४३८५५ हजार हेक्टेयर में लगाया जाता है, जिसके फलस्वरूप १०४७९८ हजार टन उत्पादन होता है. गन्ने (१. ९ बिलियन टन) और मक्का (१. 0 बिलियन टन) के बाद यह दुनिया भर में तीसरी सबसे ज्यादा उत्पादन वाली कृषि वस्तु है. मानव पोषण और कैलोरी सेवन के संबंध में चावल सबसे महत्वपूर्ण अनाज है, जो मनुष्यों द्वारा दुनिया भर में खपत कैलोरी का पांचवां हिस्सा प्रदान करता है. धान भारतवर्ष में मुख्यतः उत्तर प्रदेश , पश्चिम बंगाल , आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार राज्यों में लगाया जाता है. बिहार धान का उत्पादन करने वाले राज्यों में पांचवें स्थान पर आता है. , यहाँ धान को मुख्यतः वर्ष में एक बार ही लगाया जाता है. चावल की खेती के लिए मानसून आने से पहले खेत को तैयार कर लेना चाहिए. सबसे पहले चावल के अंकुर को नर्सरी में तैयार करना चाहिए और इसके बाद लगभग ४० दिनों के पश्चात उसे खेत में प्रत्यारोपण कर देना चाहिए. भारत तथा विश्व के कुछ हिस्सों में चावल के बीज को सीधे खेत में भी बोया जाता है परंतु नर्सरी द्वारा किए जाने वाले चावल की खेती में ज्यादा उपज होती है. चावल को पहले नर्सरी में इसलिए उगाया जाता है ताकि केवल अंकुरित बीज ही खेत में स्थापित हो सके और अधिक संख्या में पौधे उग सके. नर्सरी से केवल स्वस्थ पौधों के स्थानांतरण में मदद मिलती है. नर्सरी के लिए कम क्षेत्र की आवश्यकता होती है इसलिए इसमें मानसून आने से पहले बीज बो दिए जाते हैं और मुख्य मानसून के समय उसे खेत में प्रत्यारोपण कर दिया जाता है. खेत में धान की बुवाई से ठीक पहले पानी जमा कर दिया जाता है और सभी खरपतवार को निकाल दिया जाता है. जब नर्सरी से निकाल कर धान के पौधों की बुवाई की जाती है तो खरपतवार उसकी प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें प्रारम्भ से अंकुरित होना पड़ेगा और धान पहले से नर्सरी में अंकुरित हो चुका होता है. रोपाई के बाद पानी भर दिया जाता है और इस तरह खेत के अधिकांश हिस्से में खरपतवार नहीं उगते हैं. पारंपरिक प्रणाली में, अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए चावल की नर्सरी जुटाना और उचित समय पर रोपाई करना बहुत महत्वपूर्ण है. उत्तर भारत में मई के अंत से पहले चावल की नर्सरी लगाने की सिफारिश की जाती है, क्योंकि फिर जल्दी या देर से रोपाई से अधिक जीवाणु जैसे की झुलसा या बकेनिया रोग का खतरा होता है और कीटों के हमले में वृद्धि होती है. देरी से नर्सरी लगाने के कारण उत्पादित कर्नेल धान की कटाई के दौरान टूट जाता है. देरी से तैयार नर्सरी की रोपाई अंतिम उपज को कम करके पैदावार को कम करती है. धान की फसल पर लगभग १४०० कीट ब्याधि का प्रकोप होता है, और संज्ञानतः १०० से ज्यादा कीट की प्रजातियाँ धान की अलग - अलग अवस्था पर आक्रमण करती है, जिनमे लगभग २० प्रजतियाँ धान को आर्थिक रूप से नुकसान पहुँचाती है. शोध से यह पता चला है की धान की कुल उत्पादन का २०. ७ प्रतिशत छति केवल कीड़ो के कारण होती है. धान में कीड़ो का प्रकोप नर्सरी अवस्था से हीं शुरू हो जाता है और धान के कटने तक विद्यमान रहता है. यह कीट केवल धान के फसलों को ही क्षति पहुँचाता है. इस कीट की प्रौढ़ मादा पत्तियों के ऊपरी सिरे पर एक समूह में ५०-८० अंडे देती है, जो की हलके पीले रंग लिए हुए, अंडाकार या चपटी तथा बादामी रंग के बालों से ढकी होती है. इन अंडो से ५-१० दिनों में हलके पीले रंग की नई सुँढ़ियाँ बाहर निकलती है, जिसका शिर्ष गहरे भूरा रंग की होती है. इनके प्रौढ़ पतंगों के अगली पृष्ठों पर एक काला धब्बा प्रतीत होते है. इस कीट का कीटडिंभ अवस्था ही क्षतिकर होता है. इस कीट की सुँढ़ियाँ अंडो से बाहर निकलकर धान के नए पौधों के मध्य कलिकाओं की पत्तियों में अंदर घुस जाती है तथा अंदर हीं अंदर तने के पोषवाह को खाती है, जिसके परिणामस्वरूप पौधा सूख जाता है. जिसे वैज्ञानिक भाषा में डेड हार्ट कहा जाता है. इस कीट का प्रकोप बाली वाली अवस्था में हो तो बालियाँ सूख कर सफेद हो जाती है, तथा दाने नहीं बन पाते हैं. १) धान की कटाई के बाद खेत में बचे हुए अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। २) इस कीट के प्रबंधन हेतु पौधों के ऊपरी भाग की पत्तियों को काट देना चाहिए जिससे अंडे नष्ट हो जाते है. ३) पौधों की रोपाई से पहले इसकी जड़ों को ४ से ५ घंटों के लिए १ मि ली क्लोरपाइरीफॉस २० इ सी नामक दवा को १ लीटर पानी में मिलकर डुबो कर रखें. ४) इस कीट से बचने के लिए प्रपंच (२० ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से व्यवहार किया जा सकता है. ५ ) अंडा परजीवी ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम ५०,००० अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से व्यवहार करना लाभकारी होता है. ६) अगर खेतों में ५ या उससे ज्यादा डेड हार्ट दिखाई दे तो रसायनिक प्रबंधन उपयोग में लाना चाहिए, जैसे ट्राइएजोफॉस ४० इ सी नामक दवा की १५० मि ली मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से ५० लीटर पानी के साथ मिलाकर छीड़काव करना चाहिए, अथवा कार्टप हाइड्रोक्लोराइड ४ जी २५ की ग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छीड़काव करना चाहिए. ख) धान का पत्तर कटी कीट (स्वार्मिंग पिल्लू) इस कीट के व्यसक गहरे भूरे रंग के होते है जबकि व्यसक नर कीट के पहले पैरों पर भूरे रंग की बाल होती है। इसकी प्रौढ़ मादा निशाचर होती है और सम्भोग के लगभग २४ घंटे बाद, धान या घास की पत्तियों पर २००- ३०० अंडे एक समूह में देती है. इस कीट के अधिक प्रकोप से ऐसा लगता है जैसे कोई मवेशी ने पूरे खेत को चर लिया हो। इस कीट के आक्रमण से धान की पैदावार में १० -२० प्रतिशत का नुकसान होता है. १) इस कीट के प्रबंधन हेतु प्रकोप की शुरूआती अवस्था में गुच्छेदार अण्डों व सुँढ़ियों को हाथ से नष्ट कर देना चाहिए। २) नर्सरी में अंकुर अवस्था में पानी डाले ताकि इनकी सुँढ़ियाँ पानी में गिर जाये तथा शिकारी चिड़ियों द्वारा इनका शिकार कर लिया जाये। ३) छोटे क्षेत्रो में बतखों को उस खेत में छोड़ा जा सकता है क्यूंकि बतख इनकी सुँढ़ियों को खा जाता है। ४) रसायनिक प्रबंधन हेतु क्लोरपैरिफॉस २० इ० सी० नामक दवा का १२५० मि० ली० लेकर ५०० से १००० लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। १) इस कीट के प्रबंधन हेतु धान लगी खेतों को एकान्तर सूखा और गीला करना चाहिए ताकी इसकी बढ़ती हुई संख्या को रोका जाये. २) सघन खेती में इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है इसलिए धान की दो मोरियों के बीच २०×१५ से० मी० दुरी रखनी चाहिए. ३) कीट का प्रकोप शुरू होने पर १० दिन के अंतराल पर अंडा परजीवी क्रिप्टोरिनस लिविडिपेनिस का ५०-७५ अंडे प्रति मीटर क्षेत्रफल में प्रयोग करना चाहिए. ४) रसायनिक प्रबंधन हेतु इमिडाक्लोप्रिड २०० एस० एल० नामक दवा का १०० मि० ली० मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से या क्वीनलफास २५ इ० सी० नामक दवा की २ ली० मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. यह कीट सर्वव्यापी है और धान उगने वाली सभी क्षेत्रों में पाया जाता है. यह कीट ज्यादातर तराई वाले हिस्से में पाया जाता है, जहा पानी स्थिर अवस्था में रहता है. सामान्यतः इस कीट के द्वारा धान की पैदवार में ५-२० प्रतिशत तक नुकसान होता है. इस कीट की प्रौढ़ मादा धान की पत्तियों के निचली सतह पर लगभग ५० अंडे अकेले या ४ के समूह में देती है. इस कीट की नवजात सूंढ़ियाँ पत्तियों को मोड़कर एक बेलनाकार आवृति बनाकर रहती है, और २३-२८ दिनों में पूर्ण विकसित होकर व्यसक कीट निकलता है. यह कीट पत्तियों की ऊपरी सतह के उत्तको को खुरचकर खाता है, जिसके परिणामस्वरूप पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते है. यह कीट अपनी बेलनाकार आकृति में पानी के उपर तैरती रहती है. इस कीट की सूंढ़ियाँ हीं मुख्य रूप से फसल को नुकसान पहुँचाती है. यह पत्तियों को किनारे से खाना शुरू करती है, और केवल मुख्य तने को छोड देती है. इस कीट के अधिक प्रकोप से पौधों का बढ़ना रूक जाता है और कभी-कभी पौधे सुख भी जाते है. १) इस कीट के प्रबंधन हेतु खेतों से पानी को निकाल दे ताकि तैरती हुए सूंढ़ियाँ मर जाए. २) खेतों के पानी में मिट्टी का तेल डालकर एक रस्सी के दोनों छोरों को पकड़ कर धान के पौधों को जोर से हिलाएं ताकि इस कीट की सूंढ़ियाँ नीचे गिरकर मर जाए. ३) रसायनिक नियंत्रण हेतु क्वीनलफॉस २५ इ० सी० नामक दवा की १. ४ ली० मात्रा २५० ली० पानी में मिलकर एक हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. धान में प्रायः कुछ रोग भी लगते है, जिनका प्रबन्धन किफायती उपज प्राप्त करने के लिए आवशयक है. यह रोग धान के सभी चरणों और पौधों के सभी भाग जो की मिटटी की सतह से ऊपर है उनको संक्रमित करता है. इस बीमारी के संक्रमण से पत्तियों पर छोटे छोटे धब्बे उत्पन हो जाते है और बाद में इन धब्बो का आकार बढ़ जाता है तथा धब्बो के मध्य में राख के रंग जैसा प्रतीत होता है. कभी कभी कुछ छोटे धब्बे मिल कर एक बड़े अनियमित आकार का धब्बा बना लेते है. यह धब्बे अक्सर आँखों के आकार के होते है. सबसे पहले कैप्टान या कार्बेन्डाजिम या थिराम या ट्राईसाइक्लोजोल के साथ 2. 0 ग्राम प्रति कि ग्रा बीज लेकर बीज उपचार करें. धान के पौधे को नर्सरी से मुख्य खेत में लगाने से पहले उसके जड़ को लगभग ३० मिनट तक २. ५ किग्रा स्यूडोमोनास फ्लुओरोसेंट १०० लीटर पानी में डुबा कर रखें. मुख्य खेत में नाइट्रोजन उर्वरक का निर्धारित दर से ज्यादा उपयोग न करें. यदि संभव हो तो सहनशील किस्मो का ही उपयोग करें. बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर ट्राईसाइक्लोजोल (१ ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ) या कार्बेन्डाजिम (१ ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ) या एडिफेनफोस ( १ मिलीलीटर प्रति १ लीटर पानी के साथ ) का छिड़काव करें. धान की फसल में यह रोग नर्सरी तथा मुख्य खेत दोनों में ही लगता है. पत्तिओं पर बहुत छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई पड़ते है जो बाद में लाल और भूरे रंग के गोलाकार तथा अंडाकार धब्बे बन जाते है. बहुत सारे धब्बे एक साथ संगठित होने लगते है और पत्तियाँ सूखने लगती है. यह रोग बीज से भी संक्रमित होते है तथा उनके ऊपर एक मखमली कवक की चादर दिखने लगती है. रोग से संक्रमित हुए बहुत सारे पौधों के समूह को उनके अलग रंग के कारण दूर से ही बड़ी सरलता से पहचाना जा सकता है. यह रोग फसल में ५० प्रतिशत से भी ज्यादा का नुकसान करने में सक्षम है. बीज बोने से पहले उसे थिराम या कैप्टान (२ ग्राम प्रति १ किलोग्राम बीज के साथ) से उपचारित कर लें. यदि संभव हो तो सहनशील किस्मो का ही उपयोग करें. मुख्य खेत में मैंकोजेब (२ ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ) का छिड़काव करें. धान का टुंग्रो विषाणु से संक्रमित पौधों का आकार बहुत ही छोटा हो जाता है तथा पत्तो की चैड़ाई भी कम हो जाती है. पत्तियों का रंग पीला या संतरी हो जाता है तथा जंग लगे प्रतीत होते है. इस प्रकार की विषमताए विषाणु से संक्रमित पोधो में प्रायः पत्तियों के बाहरी हिस्से से प्रारम्भ होकर अंदर की ओर होता है. यह विषाणु हरी पत्ती फुदक नामक कीट से फैलता है. यदि संभव हो तो सहनशील किस्मो का ही उपयोग करें. पौधाशाला (नर्सरी) को दानेदार कीटनाशक से छिड़काव करना चाहिए. कीटो के निगरानी तथा नियंत्रण क लिए प्रकाश जाल लगाएं. पत्तिओ का पीलापन कम करने हेतु यूरिया ( २ प्रतिशत) का छिड़काव करें। संक्रमण दिखाई पड़ने पर कार्बोफुराण ( १ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ) का छिड़काव करें. कोई भी दानेदार दवाई के प्रयोग से मुख्य फसल में टुंग्रो विषाणु को फैलने से रोका जा सकता है. इस रोग का प्रारम्भ में ही संक्रमण हो जाने से १०० प्रतिशत तक उपज में गिरावट हो जाती है. रोगजनक पौधों की जड़ तथा तने के पास घास के द्वारा पत्तियों में रंध्रो द्वारा प्रविष्ट होता है और संवहन तंत्र के भीतर बढ़ता है, इसलिए रोग के लक्षण प्रायः पत्तियों के ऊपरी भाग से आरम्भ होते हैं, जिसमें पीले या पुआल के रंग के लहरदार क्षतिग्रस्त स्थल पत्तियों के एक या दोनों किनारों के सिरे से प्रारम्भ होकर नीचे की ओर बढ़ते हैं और अन्त में पत्तियाँ सूख जाती हैं. यह रोग तेज वर्षा, सिंचाई के पानी तथा कीटों द्वारा तेजी से फैलता है. मृदा में नाइट्रोजन की अधिक मात्रा होने से रोग की उग्रता बढ़ती है. रोग के जीवाणु फसल के अवशेषों तथा खरपतवारों पर आश्रय लिए रहते हैं. रोग रोधी किस्में ही उगाएं. संतुलित उर्वरकों का उपयोग करें तथा समय≤ पर पानी निकालते रहें. रोग के लक्षण प्रकट होने पर ७५ ग्राम एग्रीमाइसीन-१०० और ५०० ग्राम ब्लाइटाक्स का ५०० लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर छिड़काव करें, १० से १२ दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार दूसरा एवं तीसरा छिड़काव करें. अक्सर बारिश के मौसम में धान के पौधे इस रोग की चपेट में आ जाते हैं. अधिक बुवाई की दर या घनिष्ठ पौधे की दूरी, मिट्टी में रोग, और उच्च उपज वाली उन्नत किस्मों का उपयोग भी रोग के विकास का पक्षधर है. रोग के प्रारम्भ में अंडाकार या दीर्घवृत्तीय हरे रंग के घाव जैसे प्रतीत होने वाले निशान, आमतौर पर पत्ती के म्यान पर १-३ सेंटीमीटर लंबे होते हैं, जो शुरू में मिट्टी या पानी के स्तर से ऊपर होते हैं. अनुकूल परिस्थितियों में, ये प्रारंभिक घाव कई बार शीथ, पत्तियों के ऊपरी हिस्से तक भी फैल जाते हैं. उर्वरक को उचित दर में ही उपयोग करें. बुवाई से पहले २ ग्राम प्रति किलोग्राम के दर से बीज को कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लें. १ ग्राम कार्बेन्डाजिम ५० डब्लूपी (५४० ग्राम प्रति एकड़) या २ ग्राम मैन्कोजेब ७५ डब्लूपी १ लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
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बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मिलने के बाद उर्दू अख़बार इंक़लाब ने राहुल गांधी का हवाला देते हुए 'हां, कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है' शीर्षक से ख़बर छापी. इसके बाद से प्रधानमंत्री समेत भाजपा नेताओं ने कांग्रेस के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया. संसद के मानसून सत्र के शुरू होने के पहले देश की राजनीति में हिंदू-मुस्लिम का तड़का लग चुका है. दरअसल गत 11 जुलाई को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के कुछ प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बैठक में मुसलमानों से जुड़े मुद्दों और देश की वर्तमान राजनीतिक व सामाजिक स्थिति पर चर्चा की थी. इसके अगले दिन इस कार्यक्रम को लेकर उर्दू अखबार इंकलाब में 'हां, कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है' शीर्षक से रिपोर्ट लिखी गई. अखबार की इस रिपोर्ट के सामने आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के तमाम नेता इंकलाब की इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण का आरोप लगाने लगे. Urdu daily Inqalab has quoted Rahul Gandhi saying "Yes Congress is a Muslim party". Is the quote correct or party will contradict it? उन्होंने आगे लिखा कि मुसलमान एक मुस्लिम पार्टी नहीं चाहते हैं, वे एक राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष पार्टी चाहते हैं, जो नागरिकों के बीच भेदभाव न करती हो. इसके बाद भाजपा नेताओं ने इस बयान को मुद्दा बना दिया. भाजपा प्रवक्ता अनिल बलूनी ने 12 जुलाई को ट्वीट किया कि दैनिक इंक़लाब में 'जनेऊधारी' राहुल गांधी का बयानः कांग्रेस मुस्लिम पार्टी है. 12 जुलाई को ही ज़ी हिंदुस्तान चैनल ने इस रिपोर्ट के हवाले से एक डिबेट कार्यक्रम भी चलाया. इसके बाद 13 जुलाई को भाजपा की वरिष्ठ नेता और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने पार्टी मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा कि एक समाचार पत्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से बातचीत में कहा कि कांग्रेस पार्टी एक मुस्लिम पार्टी है. इसके अगले दिन यानी 14 जुलाई को आजमगढ़ में एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक को लेकर कांग्रेस से पूछा कि वे मुस्लिम पुरूषों की ही पार्टी है या फिर मुस्लिम महिलाओं की भी पक्षधर है. उन्होंने कहा कि हमने अखबार में पढ़ा कि कांग्रेस नामदार ने कहा है कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है. उन्होंने कहा, 'यह बहस पिछले दो दिनों से चल रही है लेकिन उन्हें राहुल के बयान पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि यूपीए सरकार में कांग्रेस के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि देश के प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिमों का ही है. हालांकि इसके बाद कांग्रेस ने भाजपा के दावे को खारिज करते हुए उर्दू अखबार की रिपोर्ट में बताए गये राहुल गांधी के बयान से इनकार किया. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस भारत के सभी लोगों की पार्टी है और भाजपा सरकार झूठ फैला रही है. कौन-कौन लोग थे राहुल के साथ बैठक में? राहुल गांधी के साथ इस संवाद बैठक में इतिहासकार इरफान हबीब, सामाजिक कार्यकर्ता इलियास मलिक, कारोबारी जुनैद रहमान, ए एफ फारूकी, अमीर मोहम्मद खान, वकील जेड के फैजान, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट फराह नकवी, सामाजिक कार्यकर्ता रक्षंदा जलील सहित करीब 15 लोग शामिल हुए. इनके साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद और पार्टी के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष नदीम जावेद भी मौजूद थे. अखबार के बयान पर क्या कहना है बैठक में शामिल लोगों का? इस खबर के चर्चा में आने के बाद सबसे पहले इतिहासकार इरफान हबीब ने ट्वीट करके इसे झूठ बताया. उन्होंने कहा कि इस तरह की कोई भी चर्चा बैठक के दौरान नहीं हुई. Taken a back to hear that Rahul Gandhi is being accused of calling the Congress a Muslim party in a meeting where I was present. It seems to have malicious intent, no such issue came up at all. वहीं, बैठक में उपस्थित रही जेएनयू की सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस में फैकल्टी गजाला जमील ने द वायर से कहा कि बैठक में राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा कि वह मुस्लिमों को समान नागरिक के तौर पर देखते हैं- न ज्यादा, न कम. कांग्रेस पार्टी को लेकर उन्होंने इस बात का संज्ञान लिया कि कई गलतियां हुईं हैं लेकिन उन्होंने साफ किया कि कांग्रेस पारंपरिक रूप से भारत के समुदायों और वर्गों को जोड़ने का काम करती रही है. उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी पार्टी भारतीय समाज के सभी वर्गों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका जारी रखेगी. बैठक में उपस्थित लोगों ने इस स्थिति की सराहना की और उन्हें सारी बातों के ऊपर न्याय और समानता के मूल्यों को दृढ़ता से बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया. वहीं, ऑल्ट न्यूज से मीटिंग में मौजूद सुप्रीम कोर्ट के वकील फुजैल अहमद अयूब ने इस संबंध में बात की. उनके मुताबिक, ऐसा कोई बयान नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि मीटिंग में राहुल गांधी से पूछा गया कि कांग्रेस के लिए मुस्लिम कितने महत्वपूर्ण हैं. इस पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस के लिए मुस्लिम उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने दूसरे समुदाय या धर्म. इसके अलावा लेखक और एक्टिविस्ट फराह नकवी भी बैठक में मौजूद थीं. उन्होंने भी राहुल गांधी के कथित बयान से इनकार किया है. द वायर में लिखे अपने लेख में उन्होंने इस बैठक के बाद भाजपा द्वारा बवाल करने पर कई सवाल उठाए है. फराह लिखती हैं, 'अगर राहुल गांधी या मीटिंग में मौजूद किसी भी व्यक्ति द्वारा कांग्रेस को 'मुस्लिम पार्टी' कहे जाने की फेक न्यूज़ को भूल भी जाएं तो यह सोचना दिलचस्प होगा कि क्या सीतारमण सच में यह मानती हैं कि किसी ऐसे देश में जहां 86 फीसदी आबादी गैर-मुस्लिमों की है, वहां ऐसी किसी पार्टी का कोई लोकतांत्रिक भविष्य हो सकता है. बजाय इसके मैं यह जानना चाहती हूं कि क्यों कोई नेता- भले ही किसी भी पार्टी का हो- किसी सामान्य मुस्लिम नागरिक से नहीं मिल सकता, जिसके मन में कुछ वाजिब सवाल हों. या फिर भाजपा कहना चाहती है कि पार्टियों को मुस्लिमों के नाम पर केवल तीन तलाक़ पीड़ित मुस्लिम महिलाओं से मिलना चाहिए. भाजपा की बहस क्या है? क्या लोकतांत्रिक भारत में अल्पसंख्यक अधिकारों पर बात नहीं कर सकते? क्या केवल मुस्लिम नाम के लोगों के मौजूद होने से ये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मामला बन जाता है? क्या एक ही मुस्लिम होता तो ठीक था? 11 लोग ज्यादा होते हैं? मैं समझ नहीं पा रही हूं कि चल क्या रहा है? क्या कहना है इंकलाब अख़बार का? कांग्रेस भले ही इंकलाब की रिपोर्ट को खारिज कर चुकी हो लेकिन अखबार अपनी रिपोर्ट पर कायम है. इंकलाब के संपादक शकील शम्सी ने द वायर से बातचीत में कि वह रिपोर्ट पर कायम हैं. उन्होंने कहा कि बवाल उनकी रिपोर्ट पर नहीं बल्कि पत्रकार शाहिद सिद्दीकी के ट्वीट पर हैं. उन्होंने हमारी रिपोर्ट का गलत अंग्रेजी अनुवाद किया. हमने अपने इंट्रो में साफ किया है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, हां कांग्रेस पार्टी मुसलमानों की पार्टी है क्योंकि मुल्क का मुसलमान कमजोर है और कांग्रेस हमेशा से कमजोरों के साथ रही है. हालांकि रिपोर्ट को पढ़ने पर कई खामियां नजर आती हैं. सबसे पहले पूरी रिपोर्ट में रिपोर्टर ने यह कहीं भी नहीं लिखा है कि वह बैठक में उपस्थित था या नहीं. अगर नहीं रहा है तो किसके हवाले से खबर लिखी गई है. रिपोर्टर ने किसी भी नेता या सूत्रों के हवाले से भी रिपोर्ट होने का जिक्र नहीं किया है. सूत्र का जिक्र सिर्फ रिपोर्ट की अाखिरी लाइन में है जिसमें यह कहा गया है कि राहुल गांधी बहुत ही जल्द कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात करेंगे. लेकिन जब आप रिपोर्ट पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है कि सब कुछ उनकी आंखों के सामने हुआ है. हालांकि अंसारी ने यह भी कहा कि इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने का मक़सद किसी पार्टी की हिमायत या विरोध करना नहीं था बल्कि हमारे लिए यह एक सामान्य खबर थी. रिपोर्ट में चार लोगों का बयान छापा गया है इलियास मलिक, फराह नकवी, जेडके फैजान और इरफान हबीब. लेकिन इरफान हबीब और फराह नकवी ने पहले ही इस बात से इनकार कर चुके हैं. इसके बाद अखबार ने सोमवार के अंक में कांग्रेस के अल्पसंख्यक मोर्चे के चेयरमैन नदीम जावेद का इंटरव्यू छापा है, जिसमें कांग्रेस नेता ने कहा है कि अखबार ने कोई गलत बयान नहीं छापा है. उर्दू अखबार में छपे इंटरव्यू में नदीम जावेद ने कहा कि राहुल गांधी ने मुसलमानों के ताल्लुक से न कोई गलत बात कही है और न ही इंकलाब ने कोई गलत बात लिखी है. फिलहाल कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चे के चेयरमैन का यह बयान कांग्रेस के उस आधिकारिक रुख से पूरी तरह उलट है जिसमें पार्टी ने राहुल गांधी के ऐसे किसी बयान से इनकार किया है. नदीम जावेद में अपने इस साक्षात्कार के संबंध में कई ट्वीट किए है, जिसमें उन्होंने अपना पक्ष रखा है. उन्होंने लिखा, 'कांग्रेस गांधी,नेहरू और मौलाना आज़ाद की पार्टी है, अगर इस मुल्क को सुपर पावर बनाना है और दुनिया के विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा करना है, तो हमे समाज के वंचित तबकों, दलितों, पिछड़ो,मुसलमानों आदि के सवाल उठाने और हल करने पड़ेंगे. राहुल गांधी कांग्रेस के इसी मूल विचार को बढ़ाने की बात करते हैं. एक उर्दू दैनिक को दिए गए बयान में मैंने इसी बात को रेखांकित किया है, भाजपा हमेशा ही राजनीतिक विमर्श को हिन्दू-मुसलमान की ओर ले जाने का घृणित एवं असफल प्रयास करती है, हम इस तरह के विचार की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते है। (3/3) फिलहाल नदीम जावेद के इस बयान के बाद भाजपा के नेताओं को फिर से मुद्दा मिल गया. भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने सोमवार एक ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस की अल्पसंख्यक इकाई के अध्यक्ष नदीम जावेद ने राहुल गांधी के इस विवादास्पद बयान की पुष्टि की. दूसरी ओर भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि कांग्रेस का इन आरोपों से इनकार करना उसका पाखंड है. कांग्रेस ने हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति की है, जिस वजह से इस देश को काफी नुकसान हुआ है. प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा है, इसलिए वह चुप्पी साधे हुए हैं. उनके अल्पसंख्यक इकाई के अध्यक्ष ने भी कहा है कि कांग्रेस मुस्लिम पार्टी है. इस बात को भी वह नकार नहीं रहे हैं. कांग्रेस हमेशा से पाखंड करती रही है, यह एक सांप्रदायिक पार्टी है.
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स्थापित हो जायगी । तब यह अवस्था नहीं रहेगी कि तुम्हारी प्रकृतिका एक भाग तो भगवान्के अर्पित हो और बाकी के भाग अपनी साधारण वृत्तियों में पड़े हों, साधारण चीजोंमें लिप्त हों, बल्कि तब यह होगा कि तुम्हारे सम्पूर्ण जीवनको भगवान् अपने हाथमें ले लेंगे और तुम्हारी प्रकृतिका सम्पूर्ण रूपान्तर क्रमशः साधित होता रहेगा । पूर्णयोगकी साधना में सम्पूर्ण जीवनका रूपान्तर करना होगा, उसको दिव्य बनाना होगा । इस कामको पूरे ब्योरेके साथ करना होगा और यह देखना होगा कि कहीं कोई छोटी-से-छोटी चीज भी बाकी न जाय । इस साधनामें ऐसी कोई चीज नहीं है जो तुच्छ या उपेक्षणीय समझी जाय । तुम यह नहीं कह सकते कि 'जब मैं ध्यान करता हूँ, दर्शनशास्त्रसम्बन्धी पुस्तकें पढ़ता हूँ या इन बार्तालापोंको सुनता हूँ तब तो मैं भागवत-ज्योतिकी ओर अपने आपको खोलकर रक्खूँगा और उसका आवाहन करूँगा, किन्तु जब मैंटा हूँ या किसी मित्रसे मिलता हूँ तब यदि उसको बिल्कुल भूल भी जाऊँ तो चल सकता है।' इस भावको बनाये रखनेका तो यह अर्थ हुआ कि तुम्हारा कभी भी रूपान्तर न हो सकेगा और कभी भी तुम्हें भगवान्के साथ सच्ची एकता न प्राप्त होगी । सदा तुम्हारे दो भाग बने रहेंगे, अधिक-सेअधिक जो कुछ तुम्हें मिल सकेगा वह इस महत्तर जीवनकी कुछ झाँकीमात्र होगी। इसका कारण यह है कि इस अस्थायद्यपि ध्यानके समय तुम्हारी आन्तर चेतनामें कतिप। अनुभूतियाँ और साक्षात्कार तुम्हें भले ही हों, पर तुम्हारा स्थूल शरीर और तुम्हारा बाह्य जीवन तो रूपान्तरित हुए विना यों ही पड़ा रह जायगा । जिस आन्तर प्रकाशका शरीर और बाह्य जीवनपर कोई असर नहीं होता वह किसी विशेष उपयोग में नहीं आता । कारण, इससे यह जगत् तो जैसा-का-तैसा ही रह जाता है। और यही है जो अभीतक लगातार होता आ रहा है। वे लोग भी जिन्हें अति महान् और शक्तिशाली उपलब्धि हुई थी जगत्से अलग हट गये, जिससे वे अपनी आन्तर स्थिरता और शान्तिमें अक्षुब्ध रूपसे निवास कर सकें। इन लोगोंने जगत् को अपने ही मार्गपर चलते रहनेके लिये छोड़ दिया, परिणाम यह हुआ कि विश्वसत्ताकी इस भौतिक भूमिकापर दुःख और जड़ता, मृत्यु और अज्ञानका राज्य पूर्ववत् अबाध गतिसे चालू रहा । जो लोग इस प्रकार किनारा खींच लेते हैं उनके लिये इस उपद्रवसे त्राण पाना, इन कटिनाइयोंसे दूर भागना और दूसरे लोकमें अपने लिये एक सुखी अवस्थाका पा लेना भन्ने ही सुखकर हो, किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि वे इस जगत् और जीवनको अमार्जित और अरूपान्तरित अवस्था में ही छोड़ जाते हैं; यही नहीं, बल्कि वे अपनी निजी बाह्य चेतनाको भी अपरिवर्तित अवस्थामें और अपने शरीरको सदाकी नाईं असंस्कृत अवस्था में ही छोड़ देते है । ये लोग जब भौतिक जगत् में वापस लौटें तब यह सम्भव है कि इनकी दशा एक साधारण मनुष्यकी अपेक्षा भी बुरी हो, कारण इन लोगोंने स्थूल वस्तुओंपर प्रभुता प्राप्त करनेकी शक्तिको गँवा दिया होता है, अतएव यह सम्भव है कि भौतिक जीवनके साथ इनका व्यवहार बिल्कुल बेढंगा हो और इस जीवनकी धारामें वे अपनेको असहाय बोध करें तथा उनका जीवन प्रत्येक गुजरती हुई शक्तिकी दयापर निर्भर करे । इस प्रकारका आदर्श उनके लिये भले ही ठीक हो जो इसे चाहते हैं, किन्तु हम लोगोंका योग यह नहीं है। कारण हम चाहते हैं इस जगत्पर तथा उसकी समस्त गतियोंपर भगवान्की विजय और यहाँ, इस पार्थिव जगत्में ही भगवान्की उपलब्धि । परन्तु यदि हम चाहते हैं कि यहाँ भगवान्का राज्य हो तो जो कुछ भी हम हैं, जो कुछ भी हमारे पास है और जो कुछ भी हम यहाँ करते हैं, उस सबको हमें भगवान्को दे देना चाहिये । इस प्रकार सोचनेसे काम नहीं चलेगा कि अमुक बात गौण है अथवा बाह्य जीवन और उसकी आवश्यकताओंसे दिव्य जीवनका कोई सम्बन्ध नहीं है । यदि हम इस तरहका बर्ताव करेंगे तो हम वहाँ ही पड़े रहेंगे जहाँ हम सदा रहे हैं और इस बाह्य जगत्पर विजय कभी मिलेगी ही नहीं, यहाँ इस पार्थिव भूमिकापर किसी चिरस्थायी परिणामकी प्राप्ति होगी ही नहीं । 'जो लोग बहुत अधिक ऊपर उठ चुके हैं, क्या वे इस भूमिकापर फिर वापस आते हैं ?? हाँ, यदि इस भूमिकाका रूपान्तर करनेका उनका सङ्कल्प हो तो जितना अधिक वे ऊपर उठे होंगे, उतना ही उनका यहाँ वापस आना निश्चित है । और जिन लोगोंकी इच्छा यहाँसे भाग जानेकी है, वे भी, जब दूमरी दिशामें पहुँच जाते हैं तब हो सकता है कि यह अनुभव करें कि आखिर इस प्रकार भाग आनेका कोई विशेष फल नहीं हुआ । 'क्या इस बातका स्मरण बहुतोंको रहता है कि वे ऊपर पहुँच गये थे और पुनः वापस आये हैं ?? चेतनाकी एक विशेष अवस्था में पहुँच जानेपर यह स्मृति हो सकती है । आंशिक रूपमे किसी थोड़ेसे कालके लिये इस अवस्थाका स्पर्श करना बहुत अधिक कठिन नहीं है, गभीर ध्यान में, स्वप्नमें अथवा सूक्ष्म जगतोंके दृश्य जब दिखायी देते हैं तब किसीको इस प्रकारका अनुभव या आभास हो सकता है कि पहले वह अमुक जीवन बिता चुका है, उसको अमुक प्रकारका साक्षात्कार हुआ था, अमुक सत्यका उसको ज्ञान हुआ था । परन्तु इसे पूर्ण साक्षात्कार नहीं कहा जा सकता । पूर्ण अवस्थाको प्राप्त करनेके लिये यह आवश्यक है कि साधक उस स्थायी चेतनाको प्राप्त कर ले जो हमारे अंदर ही है, जो सनातन है तथा हमारे भूत, वर्त्तमान और भात्री जीवनको एक साथ धारण किये हुए है । ' जिस समय हम मानसिक प्रवृत्तियों में अथवा बुद्धि के व्यापारोंमें एकाग्र रहते हैं उस समय हम भगवान् को कभीकभी क्यों भूल जाते अथवा उनके स्पर्शको क्यों गँवा देते हैं? यह इसलिये होता है कि तुम्हारी चेतना अभीतक बँटी हुई है । तुम्हारे मनमें भगवान् अभीतक अच्छी तरह बस नहीं गये हैं, अभीतक तुम दिव्य जीवनपर पूर्णरूपसे न्योछावर नहीं हुए हो । नहीं तो चाहे जितना तुम मन-बुद्धिके व्यापारोंमें लीन क्यों न रहो फिर भी तुमको यह भान रहेगा कि भगवान् तुम्हारी सहायता कर रहे हैं और तुमको धारण किये हुए हैं। अपनी प्रत्येक प्रवृत्तिमें, चाहे वह बौद्धिक हो या बाह्य, तुम्हारा एकमात्र मन्त्र होना चाहिये 'स्मरण रखो और समर्पण करो।" तुम जो कुछ भी करो वह सब भगवान् के अर्पणरूप हो । और यह भी तुम्हारे लिये एक सुन्दर साधना बन जायगा और अनेकों मूर्खतापूर्ण और निरर्थक कामोंसे तुम्हारी रक्षा करेगा । 'कर्म करनेके आरम्भ में प्रायः ऐसा किया जा सकता है, किन्तु जैसे-जैसे कोई कार्य में लीन होता जाता है वैसे-वैसे वह भूलता जाता है । स्मृति बनाये रखनेका क्या उपाय है ?" जिस अवस्थाको प्राप्त करना है, जो योगकी वास्तविक पूर्णता है, अन्तिम प्राप्ति और सिद्धि है, जिसके लिये बाकी सब कुछ केवल तैयारीमात्र ही है, वह तो एक ऐसी चेनना है जिसमें भगवान्के त्रिना कुछ भी काम ही नहीं चलता। कारण, उस समय यदि तुम भगवान्के बिना होओ तो तुम्हारी क्रियाका आधार ही लुप्त हो जाता है, ज्ञान, शक्ति सब कुछ चले जाते हैं । परन्तु जबतक तुम यह अनुभव करते रहोगे कि जिन शक्तियोंका तुम उपयोग कर रहे हो वे तुम्हारी अपनी हैं तबतक तुम भगवान्के सहारेको नहीं गँवा दोगे । योगसाधनकी आरम्भिक अवस्था में यह बहुत सम्भव है कि बहुधा तुम भगवान्को भूल जाओ। परन्तु सतत अभीप्साके द्वारा तुम्हारी स्मृति बढ़ जाती है और विस्मृति घटती जाती है। परन्तु इसको किसी कठोर तपस्या या ड्यूटीके रूपमें नहीं करना चाहिये, यह साधना तो प्रेम और आनन्दकी एक सहज अभिव्यक्ति स्वरूप होनी चाहिये । जब तुम इस प्रकार कर सकोगे तब तुम्हारी साधनामें शीघ्र ही एक ऐसी अवस्था आ जायगी कि तुम यदि प्रत्येक क्षण और अपने प्रत्येक कार्यमें भगवान्की उपस्थितिका अनुभव न करो, तो तुम तुरन्त अपने-आपको अकेला, उदास और दुःखी अनुभव करने लगोगे । जब भी तुम्हें यह दिग्वायी पड़े कि तुम भगवान्की उपस्थितिका अनुभव किये बिना ही किसी कामको कर सकते हो और फिर भी चैनसे रह सकते हो, तो तुमको यह समझना चाहिये कि तुम्हारी सत्ताके उस भागका अभीतक समर्पण नहीं हुआ है । यह तो साधारण मानव-समाजका तरीका है, जिसे भगवान्की जरूरत ही क्या है ? परन्तु दिव्य जीवन के साधकका मार्ग सर्वथा भिन्न होता है। और जब भगवान्के साथ तुम्हारी पूर्णरूपसे एकता हो जाती है, तब यदि क्षणभरके लिये भी भगवान् तुमसे अलंग हो जायँ, तो तुम बस निर्जीव हो जाओगे और पछाड़ खाकर गिर पड़ोगे । कारण अब भगवान् ही होते हैं तुम्हारे प्राणके प्राण, तुम्हारे समग्र जीवन, तुम्हारे एकमात्र और सम्पूर्ण शरण । अब यदि भगवान् तुम्हारे साथ न हों तो फिर तुम्हारे पास कुछ रह ही नहीं जाता । 'साधनाकी आरम्भिक अवस्थामें साधारण कोटिकी पुस्तकोंका पढ़ना, साधकके लिये उचित है क्या ?" रूपान्तरके खादको तुम चख न लो तबतक रूपान्तरित चेतना और उसकी गतियोंको समझना असम्भव है । भगवान् के साथ एकताको प्राप्त हुई चेतनाका एक मार्ग है जिसके द्वारा तुम जो कुछ भी पढ़ो, जो देखो उस सबमें रस ले सकते हो, यहाँतक कि अत्यन्त निरर्थक पुस्तकोंमें भी और अत्यन्त अरुचिकर दृश्योंमें भी। तुम अत्यन्त घटिया संगीतको - ऐसे संगीतको भी जिसे सुनकर कोई बहाँसे भाग जाना चाहे - सुनकर - भी उसमें आनन्द ले सकते हो, उसके बाह्य स्वरूपके कारण नहीं, बल्कि उस संगीतके पीछे जो कुछ उसके कारण । यह नहीं कि इस अवस्थामें तुम उच्च कोटिके संगीत और हीन कोटिके संगीतमें जो भेद है उसके विवेकको गँवा देते हो, बल्कि तुम इन दोनोंके परे जाकर वहाँ पहुँच जाते हो जिसको वह संगीत व्यक्त करता है। कारण संसारमें ऐसी कोई चीज है ही नहीं जिसका अन्तिम सत्य और आश्रय भगवान्में न हो । और यदि किसी चीजके भौतिक, नैतिक या रसमय रूपको देखकर तुम वहीं न रुक जाओ, बल्कि उसके परे पहुँचकर उसका जो आत्मा है, उस चीजके अंदर वर्तमान जो भगवान्का अंश है, उसका स्पर्श करो तो साधारण इन्द्रियोंको जो कुछ तुच्छ, दुःग्वदायी अथवा बेसुरा लगता है उसके अंदर भी तुम सौन्दर्य और आनन्दको प्राप्त कर सकते हो । धर्म-ग्रन्थोंको पढ़ते हुए भी तुम भगवान्से दूर रह सकते हो, और अत्यन्त मूर्खतापूर्ण प्रकाशनोंको पढ़ते हुए भी तुम भगवान्के स्पर्श में रह सकते हो। जबतक 'किसी मनुष्यको भूतकालका औचित्य दिखलाने के लिये क्या यह कहा जा सकता है कि उसके जीवनमें जो कुछ घटना हुई है यह होनी ही चाहिये थी ?" यह तो स्पष्ट ही है, जो कुछ हुआ है वह होनेको ही था, यदि उस प्रकार अभिप्रेत न होता तो वैसा होता ही नहीं। हमने जो भूलें की हैं, हमपर जो विपत्तियों पड़ी हैं, वे भी होनी ही चाहिये थीं, कारण उनकी कोई आवश्यकता थी, हमारे जीवनमें उनकी कोई उपयोगिता थी । परन्तु सच पूछो तो इन बातोंको मनके द्वारा समझाना असम्भव है और चाहिये भी नहीं। कारण जो कुछ हमारे जीवनमें बीता है उसकी कोई आवश्यकता थी, यह आवश्यकता मानसिक तर्कके लिये नहीं थी, किन्तु इसलिये थी कि यह हमको वहाँ पहुँचा दे जो मनकी कल्पनाशक्तिसे परे है। परन्तु इसकी व्याख्या करनेकी कोई आवश्यकता है क्या ? यह समग्र विश्वब्रह्माण्ड प्रत्येक चीजकी व्याख्या प्रत्येक क्षण स्वयं कर रहा है। और यह समग्र वित्र जैसा है इस कारणको लेकर ही कोई विशिष्ट घटना घटती है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि प्रकृतिके निष्ठुर नियमोंको हम अपनी अन्ध अनुमति देनेके लिये बँधे हुए हैं। अपने भूतकालको तुम निश्चित तथ्य कहकर स्वीकार कर सकते हो, और उसकी एक आवश्यकता थी ऐसा बोध कर सकते हो, फिर भी उससे तुम्हें जो अनुभव मिला उसका उपयोग तुम उस शक्तिके निर्माण के लिये कर सकते हो जो तुम्हें अपने वर्तमान और भविष्य कालका सचेतन रूप से सञ्चालन और गठन करनेकी क्षमता प्रदान करेगी । 'भगवान्को योजनामें हरेक घटनाका काल भी निश्चित किया हुआ रहता है क्या ?? कौन किस भूमिकासे देखना और बोलता है, इस बातपर इस प्रश्नका उत्तर निर्भर करता है। भागवत चेतनाकी एक भूमिका है जहाँ सत्र कुछ परमार्थतः जाना हुआ रहता है और सृष्टिकी समम्त योजना पूर्वदृष्ट और पूर्वनिश्चित रहती है। इस प्रकारकी दृष्टि तो विज्ञानमय लोककी उच्चतम भूमिका में पहुँचनेपर ही प्राप्त होती है, यह् पुरुषोत्तमकी अपनी दृष्टि हैं। परन्तु जब तक हम इस चेतनाको प्राप्त न कर लें तबतक वहाँकी बातें करना निरर्थक है, क्योंकि वहाँकी बातें उस भूमिकापर ही काम देती हैं और वे हमारी वर्तमान दृष्टिसे परे हैं । चेतनाकी निम्नतर भूमिकामें तो पहलेसे कुछ भी सिद्ध या नियत नहीं होता, सब कुछ तैयार होनेकी प्रक्रियामें होता है। यहाँ इस भूमिकामें निर्धारित घटनाएँ हैं ही नहीं, यहाँ तो केवल सम्भावनाओंका खेल है, और इन सम्भावनाओंके संघर्ष के भीतरसे ही वह वस्तु सिद्ध की जाती है जो होनेको होती है। इस भूमिका पर हम पसन्दगी और चुनाव कर सकते हैं। हम चाहें तो किसी एक सम्भावनाका त्याग कर दूसरीको स्वीकार कर सकते हैं, किसी एक मार्गका अनुसरण कर दूसरेको छोड़ दे सकते हैं । हम यह सब कुछ कर सकते हैं। फिर जो कुछ वस्तुतः घटित होता है वह चाहे किसी उच्चतर भूमिकामें पूर्वदृष्ट और पूर्वनिश्चित किया हुआ ही क्यों न हो । परम चेतना प्रत्येक बातको पहलेसे जानती है, कारण वहाँ उसकी अनन्ततामें सब कुछ पहलेसे सिद्ध किया हुआ रहता है। परन्तु अपनी लीलाके लिये और जो कुछ उसके परम आत्मामें पूर्वनिर्दिष्ट है उसको पार्थिव भूमिकापर कार्यान्वित करने के लिये, यहों, इस पृथ्वीपर वह इस प्रकार विचरती है मानो समस्त कहानी उसे ज्ञात ही न हो, वह इस प्रकार कार्य करती है मानो वह किसी नये और अपरिचित सूतको बुन रही हो । उच्चतर चेतनामें पूर्वनिश्चित समस्त चित्रयोंके सम्बन्ध में उसको जो भविष्य ज्ञान है उसकी आपात दृष्ट यह विस्मृति ही है जो क्रियात्मक जीवन में व्यक्तिको उसकी अपनी स्वतन्त्रता, स्वाधीनता और आरम्भ-शक्तिका भान कराती है। व्यक्ति के अंदर जो ये तत्त्व हैं वे ही उसके व्यावहारिक यन्त्र और साधन हैं और इनके द्वारा ही वे सत्र गतियाँ और परिणाम जो चेतनाकी अन्य भूमिकापर योजित किये हुए और पूर्वदृष्ट होते हैं, यहाँ इस पार्थिव भूमिकापर सिद्ध किये जाते हैं । यदि तुम नाटकके एक पात्रका उदाहरण लो तो इस विषयके समझने में तुम्हें सहायता मिलेगी । नाटकके पात्रको अपने पार्टका सम्पूर्णरूपसे ज्ञान रहता है । रंगमञ्चपर जो घटना घटनेवाली है उसका क्रम और परिणाम उसके मनके अंदर होता है। परन्तु जब वह रंगमञ्चपर आता है तो उसे इस प्रकार आना पड़ता है मानो वह कुछ जानता ही नहीं, उसे इस प्रकार अनुभत्र करना और पार्ट करना पड़ता है, मानो वह इन समस्त बातोंका जीवन में प्रथम अनुभव कर रहा हो, मानो सम्भावनाओं, घटनाओं और आश्चर्योंसे भरा हुआ यह कोई एकदम नया जगत् है जिसका पट उसकी आँखोंके आगे खुल रहा हो। 'तो क्या वास्तविक स्वतन्त्रता जैसी कोई चीज है ही नहीं ? क्या सब कुछ यहाँतक कि जीवकी स्वतन्त्रता भी पूर्णरूपसे पूर्व निर्धारित की हुई होती है, और क्या प्रारब्ध बाद ही परम रहस्य है ?" स्वतन्त्रता और प्रारब्ध, स्वाधीनता और नियतिवाद, ये चेतनाके विभिन्न स्तरोंके सत्य हैं। अज्ञानके कारण यह होता है कि मन इन्हें एक ही स्तरपर लाकर रख देता है और एक दूसरेमें विरोध देखता है। चेतना कोई एक ही प्रकारकी सद्वस्तु नहीं है, वह बहुविध हैं, वह किसी समतल भूमिकी जैसी नहीं है, वह तो अनेक दिशाओं में फैली हुई है । उच्चतम ऊँचाईपर पुरुषोत्तम हैं और निम्नतम गहराईपर जड प्रकृति ( Matter ) है, और इस निम्नतम गहराई और उच्चतम ऊँचाईके बीचमें चेतनाओंकी अनन्त भूमिकाओंका क्रमविन्यास है । उनकी तुम प्रतिध्वनिमात्र करते हो, उसके विश्वयन्त्रके कुचल देनेवाले मायाचक्रपर आरूढ़ होकर तुम असहाय रूपसे भ्रमण करते रहते हो । जड प्रकृतिके क्षेत्र में और साधारण चेतनाके स्तरपर तुम हर ओरसे बँधे हुए हो । प्रकृतिकी यान्त्रिकताके गुलाम होनेके कारण तुम कर्मकी सांकलसे जकड़े हुए हो, और इस सांकलके बन्धनमें जो कुछ घटना घटती है वह अचूक रूपसे पूर्व कर्मोके परिणामस्वरूप होती है। इस अवस्थामें भी तुम्हें जो यह भान होता है कि तुम्हारी गति स्वतन्त्र है सो तो एक भ्रम ही है, यथार्थ - में इस भूमिकापर दूसरे लोग जो कुछ करते हैं उसको ही तुम दोहराते भर हो, प्रकृतिकी जो सम्पूर्ण गतियाँ हैं, परन्तु ऐसा होना कोई आवश्यक बात नहीं है । तुम चाहो तो अपनी स्थितिको बदल दे सकते हो और नीचे पड़े रहकर रौंदे जाने या कठपुतलीकी तरह नचाये जानेके स्थानपर इसके ऊपरकी स्थिति में उठ जा सकते हो और वहाँसे ही संसारचक्र और उसकी अवस्थाओंपर दृष्टिपात कर सकते हो तथा अपनी चेतनाके परिवर्तनद्वारा तुम यहाँतक कर सकते हो कि इस चक्रको फिरानेवाले किसी हत्थेको हथिया लो, जिससे कि इन आपातदृष्ट अनिवार्य घटनाओंको परिचालित कर सको और इन निश्चित अवस्थाओंको परिवर्तित कर सको। एक बार जहाँ तुम अपने आपको इस भँवरसे बाहर निकाल लाये और ऊपर ऊर्ध्वमें जाकर खड़े हुए कि तुम अपने आपको मुक्त पाओगे । समस्त गुलामीसे मुक्ति पाकर केवल इतना ही नहीं होगा कि अब तुम प्रकृतिके एक निष्क्रिय उपकरण नहीं रहे, बल्कि अब तुम उसके एक सक्रिय प्रतिनिधि बन जाओगे । अब केवल यही नहीं होगा कि तुम अपने कर्मफलोके बन्धनसे मुक्त हो गये, बल्कि अब तो तुम अपने कर्मफलोंको भी बदल दे सकोगे। एक बार जहाँ तुम शक्तियोंकी लीलाको देख पाओगे, एक बार जहाँ तुम चेतनाकी उस भूमिका में ऊपर उठ गये जहाँसे शक्तियोंका प्रादुर्भाव होता है और इन गतिशील उद्गमोंके साथ अपने आपको एक कर लोगे, तो फिर तुम उस श्रेणीके नहीं रहोगे जिनका परिचालन किया जाता है, बल्कि उस श्रेणीके हो जाओगे जो परिचालन करती है । अस्तु ! यही है योगका वास्तविक ध्येय कर्म चकसे बाहर निकलकर भागवत गतिमें प्रवेश करना । योगके द्वारा तुम प्रकृतिकी उस यान्त्रिक गतिसे छुटकारा पा जाते हो जिसमें तुम्हारी अवस्था एक मूढ़ गुलामकीसी है, जहाँ तुम एक असहाय और बेबस उपकरणकी तरह हो, और तुम एक दूसरी ही भूमिका में ऊपर उठ जाते हो जहाँ किसी उच्चतर भवितव्यताको कार्यमें परिणत करने में तुम एक सचेतन सहयोग देनेवाले और उस कार्यके लिये भगवान्के एक सक्रिय प्रतिनिधि बन जाते हो । चेतनाकी यह गति द्विविध होती है। पहले तो चेतनाका आरोहण होता है, तुम अपनेको जड प्राकृतिक चेतनाकी सतह से ऊपर उठाकर श्रेष्ठतर क्षेत्रोंमें ले जाते हो । परन्तु निम्नतर क्षेत्रोंसे ऊर्ध्वतर क्षेत्रोंमं जो यह आरोहण होता है वह ऊर्ध्वतर चेतनाको निम्नतर क्षेत्रों में अवतरण करनेके लिये आवाहन करता है। पार्थिव भूमिकासे ऊपर उठने के फलस्वरूप ऊपरकी किसी चीजको भी तुम इस पृथ्वीपर उतार लाते हो - किसी ऐसी ज्योति या शक्तिको उतार लाते हो जो इस पृथ्वीकी पुरानी प्रकृतिका या तो स्वयं रूपान्तर कर देती है या उसको रूपान्तरित होने के लिये प्रवृत्त कर देती है । और तत्र यह होता है कि वे जो अभीतक एक दूसरेसे अलग, बेमेल और विषम थे - तुम्हारे अंदर जो कुछ उच्च है वह और जो कुछ निम्न है वह, दूसरे शब्दों में तुम्हारी सत्ता और चेतनाके आन्तर और बाह्य स्तर - एक दूसरेसे मिल जाते और धीरे-धीरे आपसमें जुड़ जाते हैं तथा क्रमशः एक सत्य और एक सामञ्जस्य में परिणत हो जाते हैं । लोग जिन्हें चमत्कार कहते हैं, वे इसी तरह घटिन होते हैं। यह जगत् चेतनाकी अनेक भूमिकाओं द्वारा निर्मित हुआ है और प्रत्येक भूमिकाके अपने-अपने जुदा नियम हैं । एक भूमिकाके नियम दूसरी भूमिकापर लागू नहीं होते। चमत्कारका अर्थ ही है किसी प्रकारका आकस्मिक अवतरण, किसी अन्य चेतना और उसकी शक्तियोंका - जो बहुधा प्राणकी शक्तियाँ होती हैं - इस स्थूल-भौतिक लोकमें आविर्भूत हो जाना । यहाँकी स्थूल - भौतिक यन्त्र रचनापर किसी उच्चतर भूमिकाकी - - यन्त्र रचना हठात् उतर आती है। यह इस तरह होता है मानो कोई बिजली हमारी साधारण चेतनाके बादलोंको चीरकर उसमें उतर आयी हो और अन्य शक्तियों, अन्य गतियों तथा अन्य परिणामोंको उसमें भर दिया हो । और इसके फलको ही हम चमत्कार कहते हैं, क्योंकि हमारी साधारण भूमिकामें जो स्वाभाविक नियम काम कर रहे हैं उनमें अचानक एक परिवर्तन हो गया दिखायी देता है, ऐसा जान पड़ता है कि इन नियमों में एकाएक कोई हेर-फेर हो गया है, किन्तु इस परिवर्तन या हेरफेरके कारण और व्यवस्थाको हम जान या देख नहीं पाते, क्योंकि इस चमत्कारका मूल कारण तो किसी दूसरी भूमिकामें विद्यमान होता है । अपने इस पार्थिव लोकपर अन्य ऊर्ध्व लोकोंके इस प्रकारके हमले होना कोई बहुत असाधारण बात नहीं है । ये तो बराबर होते ही रहते हैं, और यदि हमको दृष्टि हो और इनको किस प्रकार देखा जाता है इस बातका ज्ञान हो तो चमत्कार तो हमको प्रचुर परिमाणमें होते हुए दिखायी देंगे। विशेषतः वे साधक जो उच्चतर भूमिकाओंकी शक्तियोंको इस पार्थिव चेतनापर नीचे उतार लानेका प्रयत्न कर रहे हैं, उनमें तो ये अनवरत होते ही रहते हैं । 'क्या सृष्टिका कोई निश्चित लक्ष्य है ? क्या इसका कोई अन्तिम ध्येय है जिसकी ओर यह अग्रसर हो रही है ?? नहीं, यह विश्त्र एक ऐसी गति है जो शाश्वतरूपसे स्वतः उद्घाटित हो रही है । यहाँ ऐसा कुछ नहीं है जिसको यह कहा जा सके कि यही इसका अन्त है, यही एक लक्ष्य है। परन्तु कार्यसञ्चालन के लिये हमको इस गतिका - जो स्त्रयं अनन्त है - खण्ड कर लेना पड़ता है और यह कहना पड़ता है कि हमारा अमुक लक्ष्य है, कारण कार्य करनेके लिये हमें किसी ऐसी चीजकी आवश्यकता पड़ती है जिसपर हम अपना लक्ष्य बाँध सकें । एक चित्र आँकनेमें तुम्हें उसकी रचना और रंगोंकी एक निश्चित आयोजना कर लेनेकी आवश्यकता होती है, तुम्हें एक सीमा बाँधनी होती है, जो कुछ चित्रित करना है वह सब कुछ एक नियत ढाँचेमें या जाय ऐसा करना होता है, किन्तु वह सीमा मिथ्या होती है, वह ढाँचा केवल सांकेतिक होता है। असल में चित्रको एक सतत निरवच्छिन्न धारावाहिता होती है जो किसी भी विशिष्ट ढाँचेका अतिक्रमण करती है, और उसकी प्रत्येक निरत्रच्छिन्नता, प्रत्येक धारा उसी प्रकारसे एक-एक ढाँचेमें उतारी जा सकती है और इस प्रकार अनगिनती ढाँचोंका कभी न समाप्त होनेवाला एक ढेर लग जा सकता है। हम यह कहते हैं सही कि हमारा लक्ष्य अमुक है, किन्तु हम यह जानते हैं कि इस लक्ष्यके परे जो दूसरा लक्ष्य होगा उसका यह प्रारम्भमात्र है, और इस प्रकार हमारे सामने एकके बाद दूसरा लक्ष्य आता रहता है और यह श्रृंखला सदा बढ़ती ही रहती है, कभी भी बन्द नहीं होती । साधना और अध्यात्मवाद ( लेखक - श्रीलालजीरामजी शुक्ल एम्० ए० ) साधना प्रत्येक धर्मका एक मुख्य अङ्ग है । प्रत्येक धर्ममें तीन प्रकारकी भावनाएँ होती हैं। मनुष्य जीवनके लक्ष्यकी कल्पना, उसकी वर्तमान परिस्थिति और लक्ष्यको प्राप्त करने का उपाय । साधना लक्ष्यको प्राप्त करने का उपाय है । प्रत्येक धर्मका सामाजिक स्वरूप और वैयक्तिक स्वरूप होता है । जिस धर्मके अंशको समाजमें नैतिक नींव या सामाजिक प्रतिबन्धोंके रूप में देखा जाता है वही वैयक्तिक जीवनमें साधनाके रूप में व्यक्त होता है। व्यक्ति और समष्टिमें इतना प्रगाढ़ सम्बन्ध है कि हम एककी स्थिति दूसरेके विना नहीं पाते । समाज और व्यक्तिका भी वैसा ही सम्बन्ध है । सुव्यवस्थित समाज मनुष्यको अपने जीवनके लक्ष्य की प्राप्ति करनेमें सुविधाएँ देता है और अनेक प्रकारके नियन्त्रणोंसे उसे उस ओर अग्रसर करता है। इसी तरह एक साधक अपने-आपके ऊपर पूरा अधिकार प्राप्त करके और अपने जीवनको सुव्यवस्थित रूपसे चलाकर समाजका स्वभावतः ही कल्याण करता है। इस तरह यदि हम देखें तो व्यक्तिके सुख और शान्तिमें समाजका सुख और शान्ति है। अच्छा समाज वही है जिसमें मनुष्यों में साधनाकी भावनाएँ उठें। उपर्युक्त कथनसे यह स्पष्ट है कि साधनाकी प्रथम आवश्यकता सुयोग्य वातावरण है। यह् वातावरण मनुष्य अपनी पूर्व सुकृतिसे प्राप्त करता है । श्रीकृष्ण भगवान् इस प्रसङ्गमें कहते हैंप्राप्य पुण्यकृतां लोकानुपित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रोऽभिजायते ॥ अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥ तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । यतते च ततो भूयः संसिद्धा कुरुनन्दन ॥ योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यत्रानोंके लोकोंको प्राप्त होकर उनमें बहुत वर्षोंतक निवास करके फिर शुद्ध आचरणवाले श्रीमान् पुरुषोंके घर जन्म लेता है। अथवा वैराग्यवान् पुरुष उन लोकोंमें न जाकर ज्ञानवान् योगियोंके ही कुलमें जन्म लेता है। इस प्रकारका जन्म संसारमें अत्यन्त दुर्लभ है। वहाँ उस पहले शरीरमें संग्रह किये हुए बुद्धिसंयोगको अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे अर्जुन ! उसके प्रभावसे वह फिर परमात्माकी प्राप्तिरूप सिद्धिके लिये ( पहलेसे बढ़कर ) प्रयत्न करता है ।
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यूक्रेन के एक मॉल में सोमवार को एक रूसी मिसाइल का हमला हुआ, जिसमें कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई और 40 से अधिक लोग घायल हो गए। क्षेत्रीय गवर्नर ने कहा कि मृतकों की संख्या बढ़ सकती है। पोल्टावा के प्रशासन के प्रमुख दिमित्रो लुनिन ने कहा कि 10 की मौत हो गई और 40 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। महाराष्ट्र के सांगली जिले में दो भाइयों के परिवार के नौ सदस्यों की मौत के मामले में जांच में उजागर हुआ है कि उन्हें एक तांत्रिक और उसके ड्राइवर ने कथित तौर पर जहर देकर मार डाला। पुलिस ने सोमवार को बताया कि दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। पहले इसे आत्महत्या का मामला माना जा रहा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मेलन स्थल पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से मुलाकात की। पंजाबी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को आज तगड़ा झटका लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जाने-माने एक्टर, शायर और लेखक सुरिंदर शर्मा का निधन हो गया है। लेकिन सोशल मीडिया पर एक ऐसी खबर वायरल हुई जिसकी वजह से लोग कॉमेडियन सुरेंद्र शर्मा को श्रद्धांजलि देने लगे। महाराष्ट्र में मचे सियासी घमासान के बीच खबर आई है कि 22 जून को शाम 5 बजे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा देने वाले थे, लेकिन महा विकास अघाडी (MVA) के सहयोगियों ने उन्हें ऐसा न करने के लिए मना लिया। दिल्ली पुलिस ने सोनिया गांधी के पीए पीपी माधवन के खिलाफ रेप का केस दर्ज किया है। 506 और 376 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। अपने खिलाफ रेप केस पर सोनिया के पीए ने कहा कि यह बिल्कुल निराधार है, यह एक साजिश है। ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धारा 153/295 के तहत गिरफ्तार किया है। उन पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप है। मोहम्मद जुबैर के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए/295ए के तहत मामला दर्ज था। आज वह जांच में शामिल हुए और रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत होने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की सबसे बड़ी उम्मीद जल्द पूरी हो सकती है। पाकिस्तान मीडिया के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ उसकी डील पर जल्द ही मुहर लग सकती है। पाकिस्तान को आईएमएफ से मिलने वाली रकम 13 वें पैकेज का हिस्सा होगी। कंगाल पाकिस्तान को मिलेगा IMF का सहारा, लेकिन जनता को चुकानी पड़ेगी भारी कीमत ! पॉपुलर कॉमेडियन कपिल शर्मा इन दिनों सुर्खियों में छाए हुए हैं। वह द कपिल शर्मा शो की पूरी टीम के साथ कनाडा में लाइव शो कर रहे हैं। अपने लाइव शो के दौरान कॉमेडियन ने पंजाब के जाने-माने सिंगर सिद्धू मूसेवाला को श्रद्धांजलि दी। कपिल शर्मा ने दी सिद्धू मूसेवाला को श्रद्धांजलि, लाइव शो के दौरान सिंगर को बताया अपना 'छोटा वीर' जर्मनी के श्लॉस इलमाऊ में जी 7 शिखर सम्मेलन से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास गए और उनका अभिवादन किया। इसका वीडियो भी सामने आया है। नामांकन दाखिल करने के बाद पत्रकारों के साथ बातचीत में यशवंत सिन्हा ने कहा कि वह इस पद का उम्मीदवार घोषित करने के लिए वह सबसे पहले विपक्षी दलों को बधाई देते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह इस पद के लिए चौथे विकल्प थे। गत शनिवार को गुजरात की एटीएस ने सीतलवाड़ को मुंबई से हिरासत में लिया। पुलिस इन्हें उसी रात अहमदाबाद लेकर आई। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तीस्ता एवं जाकिया जाफरी के बारे में टिप्पणी की। साथ ही जाकिया की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह सुनवाई योग्य नहीं है। उप चुनाव में सपा की हार के बाद मायावती हो या ओवैसी, वह वोटर को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं, कि जो मतदाता भाजपा को हराना चाहता है, उसे यह समझ लेना चाहिए कि समाजवादी पार्टी के अंदर भाजपा को हराने की क्षमता नहीं रह गई है। सलामी बल्लेबाज ईशान किशन के साथ आयरलैंड के खिलाफ मलाहाइड में भारत के पहले टी20 मैच में पिच पर उतरे ऑलराउंडर दीपक हुड्डा बल्लेबाजी की शुरूआत करने में थोड़ा नर्वस थे। महाराष्ट्र राजनीतिक संकट पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई। शीर्ष अदालत की अवकाश पीठ ने अर्जियों पर सुनवाई करते हुए शिंदे गुट को जहां बड़ी राहत दी, वहीं महाराष्ट्र सरकार सहित सभी पक्षों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए पांच दिनों का वक्त दिया। डिप्टी स्पीकर की भूमिका के ईर्द-गिर्द हुई बहस के दौरान कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह नोटिस भेजने की वैधानिकता का परीक्षण कर सकता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने गुवाहाटी के होटल में ठहरे हुए नौ बागी मंत्रियों के विभाग अन्य मंत्रियों को आवंटित कर दिए हैं। बागी मंत्रियों के विभाग अन्य मंत्रियों को इसलिए दिए जा रहे हैं ताकि प्रशासन चलाने में आसानी हो। मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशायल (ED) द्वारा गिरफ्तार दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की न्यायिक हिरासत 2 सप्ताह के लिए और बढ़ाई गई है। उन्हें 30 मई को गिरफ्तार किया गया था। वो अभी अस्पताल में भर्ती हैं। टीम इंडिया के नियमित कप्तान रोहित शर्मा इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट से पहले कोरोना की चपेट में आ गए हैं। ऐसे में विराट कोहली को एकमात्र टेस्ट में कमान सौंपे जाने की मांग हो रही है। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है, सुरक्षाबलों ने कुलगाम जिले में दो आतंकियों को ढेर कर दिया है, आतंकियों संग ये मुठभेड़ नौपोरा-खेरपोरा, त्रुबजी इलाके में हुई है, बताया जा रहा है कि मारे गये आतंकी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे और ये सुरक्षाबलों के निशाने पर थे। महाराष्ट्र में पिछले कई दिनों से जारी सियासी उठापटक पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जहां 12 जुलाई को अगली सुनवाई होगी। इस सुनवाई पर हर किसी की नजर है। वहीं शिवसेना आज मुंबई में फिर से एक मेगा रैली करने जा रही है जिसमें आदित्य ठाकरे शामिल होंगे। शिंदे कैंप और ठाकरे समर्थकों के बीच बयानबाजी का सिलसिला जारी है। माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर ने पत्रकार राणा अय्यूब के अकाउंट पर भारत ने रोक लगा दी है। ट्विटर ने ये कार्रवाई सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत की है। वहीं रविवार को राणा अय्यूब ने अपने ट्विटर अकाउंट पर नोटिस पोस्ट किया और कहा कि हैलो ट्विटर, आखिर ये है क्या? राणा अय्यूब ने ट्विटर पर जो नोटिस शेयर किया, उसमें लिखा था कि भारत के स्थानीय कानूनों के तहत दायित्वों का पालन करने के लिए हमने भारत में इस अकाउंट पर रोक लगा दी है। कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जम्मू में अग्निपथ भर्ती योजना (Agnipath Recruitment Scheme) का विरोध किया और योजना को वापस लेने की मांग की। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सोमवार को देश के सभी विधानसभा क्षेत्रों में 'सत्याग्रह' कर रही है। वह सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना को लागू करने के 'तुगलकी' फैसले को वापस लेने की मांग कर रही है। करीब एक हफ्ते से महाराष्ट्र में चल रहे सियासी ड्रामे में उद्धव ठाकरे (Udhhav Thackeray) के भाई राज ठाकरे (Raj Thackeray) की एंट्री हो गई है। महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे और शिव सेना के बागी विधायक और मंत्री एकनाथ शिंदे की राज्य में जारी सियासी संकट के बीच 2 बार बात हो चुकी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या शिंदे और राज ठाकरे के बीच कोई खिचड़ी पक रही है। महाराष्ट्र :सियासी संकट में राज ठाकरे की एंट्री, शिंदे के साथ मिलकर भाई को देंगे बड़ा झटका ! महाराष्ट्र में ईडी ने शिवसेना नेता संजय राउत पर को समय जारी किया है। जमीन घोटाले के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने संजय राउत को कल यानि मंगलवार सुबह 11 बजे पेश होने को कहा है। ईडी 1,034 करोड़ रुपए के पात्रा चॉल भूमि घोटाला मामले में शिवसेना नेता की संपत्ति को अटैच कर चुका है। महाराष्ट्र की सियासत में इस समय उथल-पुथल मची हुई है। बगावत को लेकर शिंदे गुट और उद्धव गुट आमने-सामने हैं और एक दूसरे पर हमले कर रहे हैं। शिवसेना नेता संजय राउत बागी विधायकों पर लगातार निशाना साध रहे हैं। उन्होंने बागी विधायकों को धमकी दी है और उनके लिए जो बातें कहीं हैं वे बागी विधायकों को काफी नागवार गुजरी हैं। शिवसेना में चले रहे महासंकट के बीच संजय राउत बागियों को लेकर लगातार तीखे बयान दे रहे हैं। राउत ने कई मर्यादाओं को ताक पर रखकर ऐसे बयान दिए हैं जिससे शिंदे समर्थक भड़क उठे हैं। आज महाराष्ट्र के जलगांव में शिंदे समर्थक विधायक गुलाबराव पाटिल के सपोर्टर सड़क पर उतर आए और उन्होंने संजय राउत के खिलाफ न केवल नारेबाजी की बल्कि उनका पुतला भी जलाया और इसे जूते चप्पल से भी पीटा। शिवसेना के बागी नेताओं एवं एकनाथ शिंदे पर संजय राउत ने बड़ा बयान दिया है। राउत ने सोमवार को कहा कि शिवसेना के जो विधायक गुवाहाटी के होटल में बैठे हैं उनकी जमीर मर गई है और उनका केवल शरीर बचा है। शिवसेना नेता ने कहा कि बागी विधायक भी उनके संपर्क में हैं। एकनाथ शिंदे आज भी उनके करीबी हैं। Shivsena Crisis : बागियों पर संजय राउत का बड़ा हमला, 'होटल में बैठे नेताओं की जमीर मर गई है' बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट और रणबीर कपूर जल्द ही पेरेंट्स बनने वाले हैं। आलिया भट्ट ने खुद सोशल मीडिया पर तस्वीर शेयर कर फैंस को यह जानकारी दी। उन्होंने इंस्टाग्राम पर जो फोटो शेयर की उसमें वो और उनके पति रणबीर कपूर दोनों दिख रहे हैं। मालूम हो कि आलिया और रणबीर ने इस साल अप्रैल महीने में शादी की थी। तम अडानी (Gautam Adani) के नेतृत्व वाला पोर्ट-टू-एनर्जी समूह अडानी ग्रुप (Adani Group) बड़ा कदम उठाने जा रहा है। अडानी ग्रुप तांबे (Copper) में बड़ा निवेश कर रहा है। तांबा मैन्युफैक्चरिंग के सेक्टर में कदम रखने के लिए अडानी ग्रुप ने गुजरात के मुंद्रा में 10 लाख टन के सालाना उत्पादन (MTPA) वाली इकाई की स्थापना के लिए बैंकों से लोन भी लिया है। शिवसेना में बगावत के बाद महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार संकट में आ गई है। मामला अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया है। इस बीच शिवसेना बागी विधायकों पर तीखे और निजी हमले करने में लगी हुई है और पार्टी के सांसद और प्रवक्ता संजय राउत की जुबान लगातार जहर उगल रही है। इस बीच पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए बागियों पर एक बार फिर हमला किया है। Maharashtra Crisis: मुखपत्र 'सामना' के जरिए शिंदे कैंप पर बरसी शिवसेना, बागियों को कहा 'नचनिया' जीत का रंग हमेशा चटख होता है और जब जीत ऐसी जगह पर मिले. . . जहां लंबे वक्त से कोशिश हो रही हो तो उसका मजा कई गुना नहीं, बल्कि कई-कई गुना बढ़ जाता है। यूपी विधानसभा चुनाव में अपने दम पर सभी पार्टियों को चारों खाने चित करने के बाद बारी थी सूबे के दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव की वो भी उस सीट की जो समाजवादी पार्टी का गढ़ रही है। लेकिन बीजेपी ने यहां भी सेंधमारी करके 2024 लोकसभा चुनाव के पिक्चर की झलक दिखा दी। महाराष्ट्र में पिछले कई दिनों से जारी सियासी उठापटक पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इस सुनवाई पर हर किसी की नजर है। वहीं शिवसेना आज मुंबई में फिर से एक मेगा रैली करने जा रही है जिसमें आदित्य ठाकरे शामिल होंगे। शिंदे कैंप और ठाकरे समर्थकों के बीच बयानबाजी का सिलसिला जारी है। जर्मनी में जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन के पहले दिन रविवार को जी-7 के नेताओं ने यूक्रेन पर रूस पर हमले, यूक्रेन की स्थिति और हमले के बाद से होने वाले प्रभाव पर चर्चा की। इस दौरान रूस के राष्ट्रपति वलादिमीर पुतिन की एक फोटो की भी चर्चा हुई और जी-ज के नेतओं ने उनका जमकर मजाक उड़ाया। पुतिन की जिस फोटो का मजाक उड़ाया गया, उसमें वो बिना शर्ट के एक घोड़े पर सवार थे। पुतिन का मजाक उड़ाने वाला ये वीडियो अब सोशल मीडिया में वायरल हो गया है। आज हफ्ते के पहले ही कारोबारी दिन भारतीय शेयर बाजार शानदार मजबूती के साथ खुला। आज घरेलू बाजार पर ग्लोबल मार्केट का असर है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स 618. 67 अंक (1. 17 फीसदी) उछलकर 53346. 65 पर खुला। वहीं निफ्टी 181. 10 अंक (1. 15 फीसदी) ऊपर 15880. 40 के स्तर पर खुला। मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति ने आगामी चुनाव के लिए विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने का फैसला किया है। टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव आज दिल्ली में चुनाव के लिए यशवंत सिन्हा के नामांकन में शामिल होंगे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के बेटे केटी रामा राव के साथ टीआरएस के कुछ सांसद भी शामिल होंगे। शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे ने कहा है कि हिंदू हृदय सम्राट वंदनीय बालासाहेब ठाकरे के हिंदुत्व के विचारों के लिए और बालासाहेब की शिवसेना को बचाने के लिए हम मर भी जाएं तो हम इसे अपनी नियति मानेंगे। एक और ट्वीट में उन्होंने कहा कि बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना उन लोगों का समर्थन कैसे कर सकती है। भारत जैसे विशाल देश में एक समान मौसम नहीं रहता है। जिसका असर परिवहन साधनों पर भी पड़ा है। देश में जाल की तरह फैले यातायात साधन ट्रेन पर असर पड़ता है। जिसकी वह से भारतीय रेलवे किसी ना किसी रूट में ट्रेन कैंसिल करना पड़ता है। इसलिए आज भी कई ट्रेनें रद्द करनी पड़ी है। हार्दिक पांड्या की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कप्तानी पारी की विजयी शुरुआत ही हुई है। हार्दिक की अगुवाई वाली भारतीय टीम ने रविवार को आयरलैंड के खिलाफ दो मैचों की सीरीज के पहले टी20 में 7 विकेट से धमाकेदार जीत दर्ज की। यह मैच बारिश से प्रभावित रहा, जिसकी वजह से 12-12 ओवर का खेल ही संभव हो सका।
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कपड़े, कुर्सी, कोच, टेबल वगैरः पर डाले जाते हैं। इसलिए उनमें मैल नहीं दिखाई पड़ता, तो भी उन्हें धुलवा डालना चाहिए । पलँग-पोश, बहुत साफ रखने चाहिए। हमने कई शौकीनों को देखा है कि वे बिछौनों पर सफेद चादर तो रखते हैं, लेकिन उसकी सफ़ाई का ध्यान नहीं रखते, यह गन्दापन है । और खास कर पलँगपोश और तकिये की खोली वगैरः बिलकुल साफ़ रखनी चाहिए । इसी तरह ओढ़ने की सौड़, रजाई, दोहर या चादर को साफ़ रखना भी लाजिमी है। निवारवाले पलंग की निवार भी धुला कर साफ़ रखनी चाहिए । मतलब यह कि बैठने, उठने, सोनें, लेटने की जगह और उस वक्त काम में आने वाले कपड़े बिलकुल साफ सुथरे रखने चाहिएँ । चारपाई पर ही सोना ज्यादा फायदेमन्द है। क्योंकि जो वजनदार होने के कारण पहिले पहिल नीचे की तरफ जाती है और फिर साफ हो कर ऊपर आती है। ज़मीन पर सोनेवाले को बारम्बार वही पड़ी हुई हवा सांस में खींचनी पड़ती है। किन्तु चारपाई पर सोने से छोड़ी हुई हवा नीचे चली जाती है और साफ हवा सांस के साथ मिल जाती है। लेकिन चारपाइयों की सफाई अच्छी तरह रखनी चाहिए । नीवारदार चारपाइयों की सफाई नीवार को धुलाने से हो जाती है, लेकिन सुतली बगैरः से बुनी हुई चारपाइयों की सफाई जरा मुश्किल से होती है। क्योंकि चुनी हुई को उधेड़ कर फिर से चुनने में बहुत समय लगता है, और हर एक आदमी बुनना भी नहीं जानता। इसलिए ऐसी 'चारपाइयों को दिन भर धूप में डाल रखना रखना चाहिए, और वरों की सफाई रात को सोते वक्त काम में लाना चाहिए। ऐसी चारपाइयाँ जो • रात दिन मकानों में बन्द रहती हैं, और कभी धूप या हवा में नहीं रखी जातीं, साफ और अच्छी नहीं हो सकतीं। इसलिए अगर हर रोज न हो सके तो तीसरे चौथे दिन चारपाइयाँ, कोच, - वगैरः धूप में डाल देनी चाहिएँ । जो चारपाइयां हवा और धूप में नहीं डाली जातीं और झाड़ी • नहीं जातीं, उनमें खटमल खूब हो जाते हैं । जो खून में अपना ज़हर छोड़ते और चारपाई पर सोनेवाले को नींद नहीं आने देते हैं । "इससे तन्दुरुस्ती खराब हो जाती है। इसलिए चारपाइयों की सफाई -बहुत ज़रूरी है। हम खटमलों को भगाने के कुछ उपाय इसी पुस्तक के चौथे अध्याय में लिखे गे । घर में वेकाम चीजें नहीं रहने देनी चाहिएँ । कुछ लोगों को सी होती है कि अपने घर निकम्मी चीजें इकठ्ठी करके • मकान को गंदा सा बनाये रखते हैं । बहुत ही जरूरी चीज़ों और सजाने की वस्तुओं के सिवाय सोने बैठने के मकान में ओर कोई चीज़ नहीं रखनी चाहिए । जो मकान निकम्मी चीजों से भरा रहता है, उसको हवां कभी साफ़ नहीं हो सकती। घर के अंदरी हरएक चीज़ खूब अच्छी तरह झाड़ वुहार कर ठीक जगह पर रखी होनी चाहिए । लकड़ी की बनी चीजों पर बरसात के पहले वार्निश कर देना चाहिए। क्योंकि बरसात में लकड़ियों से एक तरह की बदबू निकलती है जो हवा को बिगाड़ती है। यह देखा गया है कि बरसात के पूरी हो जाने पर लोग मकान की लकड़ियों में या लकड़ी की बनी चीजों पर तेल या वार्निश लगाते हैं । लेकिन यह उल्टी बात है, लकड़ी पर तेल या वार्निश बरसात के पहिले लगा देना चाहिए, ताकि बरसात के पानी का लकड़ी पर कुछ भी असर न होने पात्रे । मकान में सब चीजों को ठीक जगह पर अच्छी तरह से रखना ही "सफाई" है । और चाहे जहाँ चाहे जिस हालत में 'पटक देने का नाम ही गन्दगी है। जैसे-पहिनने के कपड़े खूँटी पर टाँगने चाहिएँ, लेकिन उन्हें बुरी तरह एक कोने में डाल दिया । टेवल पर ठीक तरह से किताव, काराजं, ढावात, कलम -वगैरः पढ़ने लिखने का सामान रखने से वह शोभा पाती है और उसी पर रही काग़ज, टोपी, ब्रुश, तेल की शीशी, वूटपालिश, गेलिस, चाय का प्याला, सिगरेट, पान तम्बाकू, छाता, वेत वगैरः 'फैलाए रखना ही मैलापन है । मतलब यह कि घर को साफ़ रखने के लिए सब चीजों का उनकी जगह पर ही रखना ठीक है। इससे घर का इन्तज़ाम अच्छा रह सकता है । 'दावात रखने की जगह जो ठहराई हुई है, उसे वहीं रखना चाहिए। कैंची रखने की जगह पर ही कैंची हो । जहाँ चाकू रक्खा जाता है, उससे काम कर चुकने के बाद भी उसे वहीं रक्खो । दियासलाई की जगह पर दिया-सलाई हो। इस तरह बन्दोबस्त रखने पर दो फ़ायदे होंगे (१) घर में सफाई रहेगी और ( २ ) जरूरत पड़ने पर उस चीज़ के लिए सारा घर न ढूँढना पड़ेगा । मकान की दीवारों में ज्यादा ताक (आले) नहीं रखने चाहिएँ और न जगह-जगह पर दीवार में कीलें या खूँटियाँ ही होनी चाहिएँ । ज्यादा ताकों के होने से मैलापन ज्यादा फैलता है । ताकों को साफ़ रखना चाहिए । मकान में १० ताक रखने के बदले एक आलमारी वनवा लेना अच्छा है। आलमारी की सफ़ाई भी जरूरी है। इसी तरह जगह-जगह खूँटियों के होने से जगह-जगह पर कपड़े टांगे जाते हैं, इससे हवा के आने-जाने और साफ होने में फर्क पड़ जाता है । इसके सिवाय कपड़ों की आड़ में मच्छर, मकड़ी वगैरः छुपे रहते हैं- इसलिए कपड़े लटकाने की एक ही जगह ठहरा लेनी चाहिए । और दीवार पर क़ाग़ज़ या कपड़ा कीलों से ठोक कर वहीं कपड़े रखने चाहिएँ । ऐसा करने से बहुत सहूलियत हो जावेगी । मैले कपड़े घर में नहीं रखने चाहिएँ उन्हें फौरन धुलने दे देना चाहिएँ । सामान को मकान के कोनों में अथवा दीवारों से इस तरह सटा कर न रखे कि, उनकी आड़ में चूहे, मेंढक, सांप, बिच्छू, वर, छिपकली, मच्छर, पिस्सू, मकड़ी, और दूसरे कई बीमारी पैदा करनेवाले जन्तु छुप कर रह सकें । जो भी चीज़ रक्खी जावे उसके आसपास कचरा न रह सके, और अच्छी तरह झाड़ा बुहारा जा सके । गाँवो से क़स्बों के लोग पान तम्बाकू कहीं ज्यादा खाते हैं । पान खाना अच्छा है, लेकिन तभी तक जब तक कि वे ज्यादा न खाये जावें । एक बात और भी ध्यान में रखनी चाहिए कि पान की पीक घर में, दीवारों पर, कोनों में, किवाड़ों के पीछे या घर के दरवाजे पर या ख़िड़कियों में थूकना बहुत बुरा है। पान का पीक अगर थूकना हो तो एकान्त में, ऐसी जगह, जहाँ सूरज की धूप आती हो, थूकना चाहिए । जर्दा खाना या मुश्क़ी तम्बाकू खाना बहुत ही बुरा है। तम्बाकू जहर है, यह बात हम पीछे बतलायें हैं, इसलिए जो इसे खाते हैं वे भूलते हैं । तम्बाकू खाने वाले को थूकना पड़ता ही है - थूकते वक्त उसे अच्छी बुरी जगह का कुछ भी ध्यान नहीं होता और हर कहीं धूंक मारता है। पान की तरह जर्दा खाने वाले के मुँह से भी सुगन्ध नहीं बल्कि एक तरह की बहुत ही बुरी दुर्गन्ध आती है । जिससे न खाने वाले आदमी का जी मिचलाने लगता है; और अगर उल्टी नहीं भी होती तो कम से कम उल्टी होने की सी हालत तो ज़रूर हो जाती है। फिर जहाँ कहीं भी वह शृंकता है, वहाँ दुर्गन्ध आती है। यहाँ सन् १५०३ ई० की वह चात याद आती है - "जब स्पेनवाले पारागुव के किनारे पर उतरे थे, तब वहाँ के रहनेवालों ने ढोल बजा कर इन पर लड़ाई के लिए चढ़ाई कर दी। उन्होंने स्पेनबालों पर हथियार नहीं चलाये; चल्कि वे एक पत्ती चबाते और उसका रस उनपर थूकते थे।" ये पत्तियाँ तम्बाकू की थीं। ऐसा करने में उनका यह मतलब था कि स्पेनवालों की आँखों में यह रस गिर जावे और वे अंधे वन जावें । तमाखू की सूखी पत्तियों को भट्टी में चढ़ा कर जो रस निकाला जाता है, वह निकोटिन नामक जहर होता है। तमाखू के रस से ३०० आदमियों की मौत हो सकती है। निकोटिन का एक बूँद घर में डाल देने भर से घर भर की हवा ज़हरीली हो जाती है। तमाखू खाने से तन्दुरुस्ती तो खराब होता ही है, किन्तु जहाँ तहाँ घर में थूकने से भी घर की सब हवा ज़हरीली हो कर न खाने वालों की तन्दुरुस्ती भी ख़राब कर देती है। इसलिए तम्बाकू खाना और खा कर घर में थूकते फिरना ग़न्दगी की खास निशानी है। घर की सफाई के लिए घर में तम्बाकू खाना और थूकना निहायत बुरा है। जिस तरह तम्बाकू खाना ग़न्दगी का कारण है, उसी तरह पीना भी बुरा है । तमाखू का धुआँ बहुत ही बदबूदार होता है । घर भर की हवा खरात्र हो जाती है । इसके लोग गलियों सड़कों, बागीचों, और ऐसे ही दूसरे आम मुक़ामों तमाखु, पी कर हवा ख़राब करते हैं वे दुनिया के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार करते हैं । तमाखू का बहुत ही हानिकारक है, इसलिए हुक्का चिलम, तमाखू, सिगरेट, बीड़ी न तो घर में खुद पीना चाहिए और न दूसरों ही को पीने देना चाहिए । सड़कों और गलियों की हवा खराब करनेवाले इन पियक्कड़ों के लिए म्यूनीसिपाल्टी को कुद्र तदबीर सोचना चाहिए । लेकिन ऐसी आशा करना लेखक का स्वप्न ही कहा जा सकता है । हिन्दुस्तानियों के घरों में खास कर हिन्दुओं के घरों में, चौके की छूत छात का जितना ध्यान रखा जाता है, उतना सफ़ाई का नहीं रक्खा जाता । रसोई घर की सफाई एक बहुत ज़रूरी बात है । क्योंकि रसोई की शुद्धि से स्वास्थ का बहुत कुछ सम्बन्ध है । गंदी हवा में, गंदे मकान में, गन्दे वर्तनों में और गन्दे आदमियों द्वारा बना हुआ खाना जहर बन जाता है। इसलिए रसोई घर की सफाई बहुत जरूरी है। रसोई घर रोज लीपना चाहिए । वह चूने, का हो तो रोज रसोई वन चुकने के बाद उसे धोकर साफ कर देना चाहिए । रसोई घर में एक कपड़े की छत जरूर बाँधनी चाहिए । चूल्हे में लकड़ियाँ ही जलानी चाहिए । घर में कण्डे ( उपले ) नहीं जलाने चाहिएँ। इनके जलाने से घर की हवा खराब होती है । लकड़ियों की कमी से या ग़रीबी की बढ़ती से यह पशुओं का पाखाना जलाने की रीति हिन्दुस्तान में चल पड़ी है। दूसरे देशों में गोचर महज खाद के ही काम में लाया जाता है, जलाया नहीं जाता। आज से कुछ सदियों पहले भारत में गोवर जलाने के काम में नहीं लाया जाता था । गोवर का कीमती खाद बनता है इसलिए हमें चाहिए कि वरों में हम गोवर न जला कर लकड़ियाँ ही जलावें । पत्थर का कोयला, या मिट्टी का तेल जलानेवाला, स्टोव्ह ( चूल्हा ) भोजन बनाने के काम में भूल कर न लाना चाहिए । इनके धुआँ से घर की हवा तो खराब होती हो है; पर खाने की चीजें भी जहरीली हो जाती हैं । निकलने के लिए मकान की छत में एक छेद रखना चाहिए । यह छेद ठीक चूल्हे के ऊपर होना चाहिए । के बने मकानों में रसोई घर में निकलने के लिए मकान में एक बम्बा बनाया जाता है। रसोई में आनेवाला वर्त्तन बिलकुल साफ़ होना चाहिए । पीतल, तांबा, लोहा आदि के चर्तन जरूरत मुआफिक काम में लाने चाहिए । आजकल जो "ऐल्यूमीनियम " के वर्त्तन बाजार में २१३ पैसा तोले के हिसाब से मिलते हैं, उन्हें भूल कर भी काम में न लाना चाहिए । गांव वालों के मुकाबले में शहरों और कस्बों वाले ऐसे वर्त्तनों को ज्यादह् काम में लाते हैं। ऐसे वर्त्तनों का रखना एक फैशन हो गया है । पर ये थोड़े ही दिनों के बाद खराब हो जाते हैं । इनकी चमक उड़ जाने पर इन्हें साफ करना मुश्किल हो जाता है । । इनमें चेचक की बीमारी की तरह गट्टे पड़ जाते हैं, जिन्हें लाख कोशिश करने पर भी माँज कर या धो कर साफ नहीं किया जा सकता । इसके अलावा इन में भोजन बनाने अथवा खाने से भोजन ज़हरीला हो जाता है । डाक्टर हरबर्टस् ने लिखा है कि - खाने की हरएक चीज़ में किसी न किसी रूप में थोड़ा बहुत नमक जरूर रहता है और ऐल्यूमीनियम में नमक के रखे रहने से "क्लोराइड" नामक ज़हर उत्पन्न हो जाता है। इसलिए ऐल्यूमीनियम के बर्तनों में भोजन बनाने और खाने से बहुत नुक़सान होता है । वर्त्तनों की सफाई के साथ ही साथ भोजन बनाने वाले के हाथ, कपड़े और शरीर की शुद्धि भी बहुत जरूरी है। भोजन बनाते समय जो कपड़ा रसोई में हाथ पोंछने अथवा वर्त्तन पोंछने के काम में आता है उसे भी रोज़ धोना चाहिए । दूसरे तीसरे दिन सोड़ा मिला कर उसे पानी में उबाल कर धो डालना चाहिए । सड़ा अन्न, बहुत दिन का आटा, और ऐसी खाने की चीजें जिनमें वदवू पैदा हो गई हो घर में नहीं रखनी चाहिए। थोड़े से लोभ में पड़ कर तन्दुरुस्ती नहीं खराव करना चाहिए ।। घर में अगर पालतू जानवर घोड़ा, भैंस, चकरी वगैरः हो तो उनके रहने की जगह को साफ़ रखने का खूब नयाल रखना चाहिए । जानवरों के बांधने की जगह उनकी पेशाब, गोबर वगैरःज्यादह देर तक न पड़े रहने पावें । जानवर के सामने की ज़मीन कुछ ऊँची और पीछे की जमीन कुछ ढालू रखनी चाहिए जिससे पेशाब सहज ही में पीछे की ओर वह जावे । गोशाला में गीला-पन रहने से मच्छरों और पिस्तुओं का उपद्रव शुरू हो जाता है । इसलिए जहां तक हो सके उसे गीला न रहने देना चाहिए । मच्छरों का जोर मालूम होते ही वहां पर धुआँ करना चाहिए, इससे मच्छर भाग जावेंगे। पिस्सुओं के हटाने के लिए ढोर चांधने की जगह सूखी घास जला देनी चाहिए। दीवारों के पास कुछ ज्यादह घास जलानी चाहिए, जिससे दीवारों पर ऊँचे बैठे हुए पिस्सू भी न रहने पावें जानवरों को कभी-कभी नहला भी देना चाहिए । घोड़े का तबेला अगर घर से दूर ही रखा जावे तो ठीक हो । घर के दरवाजों पर ऐसे पढ़ें रखने चाहिएँ जिनके अन्दर से हवा तो मकान में वसूची सके, लेकिन मक्खियाँ न घुसने पावें । मनुष्य को चाहिए कि मक्खियों को अपनाजानी दुश्मन समझे । उन्हें मकान में न आने दे। अपनी चीजों पर और खास कर भोजन की चीज़ों पर बिलकुल न बैठने दे । अपने शरीर पर भी मक्खियों को नबैठने देना चाहिए। मक्खी हमारे घरों में हमारे साथ रहती हैं । पर इनको सिंह से ज्यादा खतरनाक और साँप से ज्यादा जहरीली समझना चाहिए । मक्खियाँ हम लोगों में कई तरह के रोग पैदा करती हैं । एक रोग को दूसरे तक पहुँचाने का काम मक्खियाँ ही करती हैं। इसके बराबर कोई गन्दा प्राणी नहीं है । हम भंगियों से छूना इसीलिए बुरा समझते हैं कि वह पाखाना वगैरः साफ़ करने का काम करता है, लेकिन मक्खी तो पाखाने से भरे पंजों और मुंह से हमारे भोजन पर आ बैठती हैं और पाखाना ही नहीं इससे भी बुरी चीज ऐसे खिला देती हैं कि हमें जान ही नहीं पड़ता। मक्खी के पेट की आग बड़ी तेज होती है । वह खाती जाती है और पलपल में पाखाना करती जाती है। भोजन घर बैठते हो मक्खी खाना खाने लगती है और पाखाना भी "घरों की सफाई फिरने लगती है। इसीसे अन्दाज़ कर लीजिए कि वह कितना गन्दा प्राणी है । मान लीजिए कि सड़क पर किसी दमे के या तपैदिक़ के बीमार ने कफ़ डाला है। मक्खी उस पर बैठी और उसे खाने लगी । थोड़ी देर बाद वह उड़ी और एक भोजन करते हुए मनुष्य के भोजन पर जा बैठी । जो दमे या क्षय के कीड़े उसके पंजों में उलझ गये थे उन्हें उसने भोजन पर छोड़ दिया और पाखाना फिर कर इन्हीं रोंगों के जंतुओं को भोजन पर हग दिया। अ विचार कीजिए कि भोजन करनेवाले की क्या दशा होगी । अगर उसके शरीर में इन बीमारी के जन्तुओं के पनपने लायक खून और दूसरी शारीरिक धातु होंगी तो ये रोग फौरन उस पर चढ़ाई कर देंगे । नहीं तो वे जन्तु कमजोर हो कर शरीर में मर जावेंगे अथवा किसी रूप में जीवित रहेंगे और मौका मिलते ही फिर बलवान हो कर उस मनुष्य को बीमार बना देंगे । क़स्बों और शहरों में बीमारों की संख्या इन मक्खियों के कारण ही ज्यादह होती है । और ऐसी-ऐसी बीमारियाँ होती हैं जिन्हें गांवों के लोग सपने में भी नहीं जानते ! ये मक्खियाँ हलवाइयों की दूकानों से बीमारियाँ लोगों में वाँटती हैं। क्योंकि हलवाई की मिठाइयों पर सड़क की बाजारू गन्दी और रोग पैदा करनेवाली मक्खियों चौबीसों घण्टे उड़ा करती हैं। म्यूनीसिपाल्टियाँ हलवाइयों की दूकानों पर थोड़ी बहुत देख भाल तो रखती है; परन्तु इससे भी अधिक सावधानी की जरूरत है। गांवों में हलवाइयों की दुकानें नहीं होतीं, और न लोग इतने चटोरे ही होते हैं, इसलिए वहां शहरों की भांति इतने रोग भी नहीं होते । हैजे के दिनों में मक्खियों की वजह से ही घर-घर हैजा फैलता है। रोगी के दस्त और क़य पर मक्खियाँ बैठ कर दूसरे के भोजन में हैजे के बीज डाल देती हैं। बस, फिर उसे भी हैजा हो जाता है। मतलब यह है कि मक्खी एक भयंकर जीव है। इसे अपना कर दुश्मन मान कर इससे बचते रहना ही अच्छा है । कुछ लोगों का कहना है कि अगर मक्खी न होती तो संसार में बहुत गन्दगी फैल जाती। क्योंकि यह करोड़ों रोग-जंतु लिए किरती है। यदि सब मक्खियाँ इन रोग जन्तुओं को एक साथ लोगों पर छोड़ दें तो देखते-देखते प्रलय हो जाय । यह बिलकुल ठीक है। मक्खियों की रचना प्रकृति ने इसीलिए की है कि वह वायुमण्डल को शुद्ध रक्खें । परन्तु इस लिए नहीं कि वह हमारे भोजन तथा काम की चीजों पर बैठ कर उन्हें गन्दा करती रहें । ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि इसीलिए दी है कि वह अपने भले बुरे का ज्ञान खुद प्राप्त करे। इसलिए हमें अपने इन रात-दिन के साथी दुश्मनों से बचने का अच्छी तरह ध्यान रखना चाहिए । जानकारों ने खूब जाँच पड़ताल कर के यह साबित किया है कि एक मक्खी पर लाखों से लगा कर करोड़ों तक रोग पैदा करने वाले महीन जंतु लदे रहते हैं। इसके पंख, पीठ, पूंछ, पाँव, सिर, कोई भी ऐसा हिस्सा नहीं है जिस पर रोग के जन्तु हज़ारों और लाखों की तादाद में न पाये जाते हों। हम इन जंतुओं को अपनी आँखों से नहीं देख सकते । हाँ, खुर्दबीन की मदद से, जिसमें कि मक्खी भेड़ के बरावर दिखाई देती है उसके शरीर पर रोगों के अनगिनत कीड़े दिखाई दे सकते हैं। घरोंकी सफाई मक्खी खा-जाने पर हमें क़य हो जाती है - यही एक ज़बरदस्त सबूत इस बात का है कि मक्खी एक ज़हरीला जानवर है । इसके शरीर पर इतने रोग-जन्तु होते हैं कि उन्हें पेट में हम कर जाना मनुष्य की ताकत के बाहर है । उतने रोग-जंतु नहीं पाये जाते जितने कि क़स्बों की मक्खियों पर और कस्बे की मक्खियों पर उतने रोग पैदा करने वाले जन्तु नहीं होते जितने कि शहरों की मक्खियों पर होते हैं । मक्खियों को हटाने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि मकानों को साफ़ सुथरा रक्खा जाय। उनमें ऐसी चीजें न आने दी जावें, जिनसे मक्खियाँ आवें। बाजारों में दूकानदारों को अपनी सब चीजें, और खास कर खाने की चीजें टँक कर रखनी चाहिए । मिठाइयों पर ही मक्खियाँ बैठती हों सो नहीं - जिन चीज़ों में शकर का हिस्सा अधिक होता है, उन सब पर बैठती हैं । आटा, दाल, गुड़, शक्कर, फल, मेवा, मांस, इत्यादि चीज़ों पर भी मक्खियाँ बहुत बैठती हैं इसलिए इन चीज़ों को ढाँक कर रखना चाहिए या ये चीजें बाजारू नहीं खरीदनी चाहिए । ये चीजें वहीं से लेना चाहिए जहाँ मक्खियाँ न भिनभिनाती हों। मक्खियों को भगाने के हम कई उपाय चौथे अध्याय में बतायेंगे । घर के आँगन में हर शख्स को एक छोटी-सी बगिया ज़रूर लगानी चाहिए । वृक्षों से मकान की हवा साफ़ रहती है । म्यूनोसिपालिटी का कर्ज है कि क़स्बों में या शहरों की सड़कों पर, नीम, पीपल, जामुन आदि के पेड़ ज़रूर बोवें । इनसे शहर की हवा साफ होती रहेगी। गृहस्थ को अपने घर में फुलवारी लगानी चाहिए । यदि इतनी जगह न हो तो कुण्डों में, गमलों में फूतपत्ती ज़रूर लगानी चाहिए । तुलसी और एरण्ड के पौधे घरों में जरूर रखने चाहिए। इनसे रोग-जन्तु मर जाते हैं और मक्खियों का उत्पात नहीं होने पाता । फूल फुलवारी से एक तो मकान की शोभा बढ़ती है; फूल वगैरः मिलते रहते हैं और दूसरे मकान की हवा शुद्ध रहती है । ऐसे "एक पन्थ दो काज " वाले काम को ज़रूर करना चाहिए । अव हमें उन भाइयों से कुछ कहना है जो मांस खाते हैं । यह एक मानी हुई बात है कि शाकपात, अन्न, दूध, दही, फल फूल की भाँति मांस खुशबूदार नहीं होता । ताजा से ताजा गोश्त भी बदबूदार होता है । वह एक दो दिन रख छोड़ने की चीज़ नहीं है । जिस तरह अन्न, फल, फूल, कन्द, मूल मिठाई आदि कई दिन तक रक्खे जा सकते हैं; उस तरह मांस या मांस से बना हुआ भोजन कई दिन तक नहीं रक्खा जा सकता। कहने का मतलब यह है कि रक्त, मांस, हड्डी आदि हवा को खराब करने वाली चीजें हैं, इसलिए इन्हें घर में कभी न आने देना चाहिए । मांस पकाते समय वदवू फैलती है - ऐसी दशा में मांस का घर में आना ठीक नहीं है। इसी तरह शराव, प्याज, लहसुन भी चदवू करती हैं। इन्हें दवा के अलावा कभी घर में रख कर हवाखराब न करनी चाहिए ।
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समय की एक लंबी अवधि के लिए यह एक लोकप्रिय स्नोमोबाइल "Buran" बनी हुई है। मालिकों की समीक्षा का कहना है कि यह एक आधुनिक वाहन है कि, उच्च लागत के बावजूद, खरीदारों के बीच बहुत लोकप्रिय है। हम इन इकाइयों के मुख्य विशेषताओं को समझने की कोशिश करो। इस ब्रांड के लगभग 40 वर्षों के लिए ग्राहकों को खुश स्नोमोबाइलिंग। इस समय के दौरान, ब्रांड में कुछ मॉडल है कि अभी भी बहुत लोकप्रिय हैं जारी किया गया था। रूस शिकारी, खोजकर्ता लंबे सराहना की कितना अच्छा और विश्वसनीय स्नोमोबाइल "Buran"। यह के मालिकों की समीक्षा मूल रूप से, अच्छा के अलावा अभी हाल ही में हमारे देश में यह समान धन के अन्य मॉडलों को खरीदने के लिए असंभव था कर रहे हैं। पहले "Buran" XX सदी के देर से 60-ies में कनाडा की स्नोमोबाइल की एक प्रति के रूप में बनाया गया था। और उत्तरी अमेरिका में, इस तरह के परिवहन मनोरंजन के लिए बनाया गया था, जबकि रूस स्नोमोबाइल के कुछ क्षेत्रों की जरूरत में हर रोज इस्तेमाल के सख्त थे। एक स्नोमोबाइल का चयन करने के लिए उन्हें अपनी आवश्यकताओं के आधार पर किया जाना चाहिए। इन मॉडलों क्षेत्रों में उपयोग जहां उच्च पारगम्यता के लिए आदर्श हैं। 2 स्ट्रोक इंजन के साथ मॉडल हर रोज इस्तेमाल के लिए पर्याप्त है। मछुआरों और शिकारी स्नोमोबाइल के लिए - सबसे अच्छा विकल्प न केवल परिचालन गुणों के लिए, लेकिन यह भी मूल्य में। विशेषताएं मॉडल "Buran" एक स्नोमोबाइल "Buran" की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता - एक महान चेसिस है। मुख्य रोटरी स्की और शक्तिशाली कैटरपिलर मशीन के कारण किसी भी यातायात समस्याओं से निपटने के लिए आसान है। उच्च मार्जिन इलाके भी परिवहन, जो आसानी से पत्थर, खाइयों, लकीरें, पास और अन्य कठोर पर काबू पा के बुनियादी विशेषताओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता स्थानों, हमारे देश में पर्याप्त जो तक पहुँचने के लिए है। आधुनिक स्नोमोबाइल "Buran" कई संस्करण में उपलब्ध हैंः - और - इस लाइनअप में बेस मॉडल है और एक छोटी फ्रेम है। - ई - एई और एडीए, जो बिजली शुरुआत का एक मॉडल है। - डी - विस्तारित आधार के साथ विज्ञापन और एडीई के एक मॉडल। - 4T और 4TD 4 स्ट्रोक इंजन अद्यतन, अलग क्षमता और गतिशीलता के साथ सुसज्जित। स्नोमोबाइल "Buran ए ' यह सबसे लोकप्रिय स्नोमोबाइल "Buran" है, यह के मालिकों की समीक्षा सबसे आम हैं। मॉडल कम फ्रेम पर आधारित है, यह सादगी और आपरेशन में असभ्यता, लोगों और माल के परिवहन के लिए इस्तेमाल किया की विशेषता है, और कम तापमान पर ऑपरेशन के लिए अपरिहार्य है। इस तरह के एक "Buran" संभाल करने के लिए आसान और जंगली नालों, और अंतहीन टुंड्रा की चिकनी सतह, और गहरी बर्फ और बर्फ hummocks के साथ है। यह स्नोमोबाइल एक स्की और दो पटरियों के साथ सुसज्जित है, इसलिए कम से कम शाखाओं और समुद्री मील चेसिस मॉडल में झाड़ियों बंद हो जाता है के साथ कि उत्कृष्ट पारगम्यता को दर्शाता है। पटरियों के कुल क्षेत्रफल के कारण जमीन पर न्यूनतम दबाव प्रदान करता है, और केवल स्की एक जंगली इलाके पर युद्धाभ्यास के साथ copes। फ़्रेम आधुनिकीकरण - यह सुरंग है, जो वृद्धि हुई निकासी के साथ संयोजन में गहरी बर्फ में आरामदायक आंदोलन प्रदान करता है में एक सामने बेवल है। यह मॉडल - सबसे सस्ती स्नोमोबाइल "Buran"। समीक्षा मालिकों सबसे महत्वपूर्ण में से एक के रूप में यह आंकड़ा का कहना है। आप 100 000 रूबल की सीमा में इसे खरीद सकते हैं। "Buran एई" - यह इस ब्रांड के वाहनों की संख्या में एक और बुनियादी मॉडल है। इस संस्करण में बिजली के शुरू और दो पटरियों के साथ सुसज्जित है, तो यह किसी भी सड़क की स्थिति के साथ copes। "Buran ई और एडीए" स्नोमोबाइल के बारे में "Buran" लंबी व्हीलबेस समीक्षा का कहना है कि लम्बी फ्रेम समर्थन सतह क्षेत्र के लिए धन्यवाद अधिक बन गया है और इसलिए पारगम्यता अधिक था। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब भुरभुरा और गहरी बर्फ पर एक स्नोमोबाइल संचालित हो रहा है। उपकरण मॉडल के संदर्भ में कुछ भी नया नहीं हैः - 2 सिलेंडर 2 स्ट्रोक इंजन। - वॉल्यूम - 635 सेमी 3। आधार "Buran ई" के बढ़ाव के कारण कार्गो क्षेत्र मिला है। पैकेज एक युग्मन उपकरण है, जो एक ट्रेलर 500 किलो वजन तक टो कर सकते हैं शामिल हैं। स्टैंडर्ड किट एक घूर्णन योग्य सुर्खियों सुर्खियों कि प्रकाश क्षेत्रों के बिना क्षेत्रों को उजागर करता भी शामिल है। एक स्नोमोबाइल "Buran एडीए" के रूप में एक मॉडल के इस तरह के बारे में, टिप्पणियाँ दिलचस्प हैं। उदाहरण के लिए, यह उल्लेख किया है कि मशीन खराबी के बिना उत्कृष्ट पारगम्यता और लंबी अवधि के संचालन से पता चलता है। दूसरी ओर, अक्सर श्रृंखला है, जो बहुत सुविधाजनक नहीं है, इसके अलावा में, बहुत शोर मोटर चल बदलना होगा। एक तकनीकी दृष्टि से, इस मॉडल एक लम्बी फ्रेम, बिजली के शुरू, लोड मंच और पिवट हेडलाइट है। "Buran 4T / 4D" इस मॉडल की विशिष्ट सुविधाओं निम्नलिखित शामिल हैंः - ईंधन की खपत क्षमता। - 4 स्ट्रोक इंजन, जो एक उच्च शक्ति बन गया है। - बहुत बढ़िया कर्षण गुणों। यह स्नोमोबाइल "Buran 4T" उचित उपकरण की वजह से मालिकों की अच्छी समीक्षाएँ प्राप्त,। मॉडल अच्छा कारबुरेटेड इंजन उच्च शक्ति अद्यतन, जबकि निर्माताओं में से स्तर को कम कर दिया ईंधन की खपत। निकास प्रणाली भी अलग था - एक संशोधित पोर्ट के साथ और फ्रेम स्नोमोबाइल साइलेंसर के लिए स्थानांतरित कर दिया। वहाँ एक दो गति गियरबॉक्स है, जो आप इष्टतम ड्राइविंग मोड चुनने के लिए अनुमति देता है। स्नोमोबाइल की समीक्षा "Buran 4T" मार्क serviceability मॉडलः ताकि आप आसानी से हुड अंतरिक्ष बनाए रख सकते हैं हुड के विशेष डिजाइन, एक hinged आधार है। सीट के नीचे एक विशाल सामान कम्पार्टमेंट है, जो भी "Burana 4T" के कई मालिकों द्वारा नोट जाती है। एक और नवीनता - सही स्टीयरिंग इकाई एक लम्बी प्लास्टिक लीवर फ़ीड गैस से सुसज्जित है। यह हीटिंग है, जो नियंत्रण मॉडल के आराम बढ़ जाती है है। देखा जा सकता है, यह बहुत कार्यात्मक है और अच्छी तरह से सोचा स्नोमोबाइल "Buran 4T" - समीक्षा के मालिकों गलती से न केवल इलाके पर, लेकिन यह भी आपरेशन मॉडल की अधिकतम सुविधा पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर रहे हैं। "Buran 4T / 4D" - एक अद्वितीय स्नोमोबाइल, जो सबसे चरम स्थितियों में व्यावहारिक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता। अपने छोटे से आकार और आयामों के बावजूद, यह उत्कृष्ट प्रदर्शन गुण को दर्शाता है। और इसलिए विशेष रूप से शिकारी और anglers सर्दियों मछली पकड़ने से प्यार करता था। कई के लिए आगे देख रहे थे, लेकिन जब होगा अद्यतन स्नोमोबाइल "Buran 4T / 4TD"। समीक्षा का कहना है कि नए मॉडल के लिए एक बेहतर इंजन सेट हो जाएगा, और कार में ही अधिक टिकाऊ और किफायती हो जाता है। लागत मॉडल - 250 000 अप करने के लिए है, जो भी कई उपभोक्ताओं द्वारा विख्यात है। इस तरह के उन्मुखीकरण के वाहनों के लिए एक उचित मूल्य माना जाता है। टेस्ट ड्राइव क्या करते हैं? यह उल्लेखनीय है, लेकिन आज आप किसी भी कार का परीक्षण कर सकते हैं। भुगतान नहीं ध्यान और स्नोमोबाइल "Buran" 4 स्ट्रोकः विशेषज्ञ समीक्षा से पता चला कि शिकार और मछली पकड़ने में इस्तेमाल के लिए, इस तरह के मॉडल बस अपूरणीय है। मॉडल के बारे में समीक्षा इंगित करता है कि ब्रांड की स्नोमोबाइल हमारे देश में पहली बार दिखाई दिया, और तुरंत शिकारी के बीच लोकप्रिय बन गया है, विश्वसनीयता और संचालन की सादगी के लिए धन्यवाद। दो पटरियों की उपस्थिति, एक बहुत मदद मिलती है क्योंकि घर के लिए उनमें से एक का टूटना के मामले में दूसरे नंबर पर पहुंचा जा सकता है। एक और सुविधाजनक डिजाइन समाधान - स्की शरीर के धनुष के बीच में स्थित हैः यह आप आसानी से छोटे पेड़ के साथ क्षेत्रों काबू पाने के लिए अनुमति देता है। रनिंग स्नोमोबाइल एक मैनुअल स्टार्टर द्वारा किया जाता है, और स्की लीफ स्प्रिंग सस्पेंशन से लैस हैं। ईंधन सभी मॉडलों के लिए - यह अवचक्र शाफ्ट से क्रैंकशाफ्ट से टोक़ संचरण की कीमत पर कम से कम 76 स्नोमोबाइल के आंदोलन का एक ऑक्टेन रेटिंग के साथ पेट्रोल है। इस मामले में, आप को बदलने के द्वारा मशीन की गति बदल सकते गियर अनुपात किसी भी सड़क की स्थिति के तहत variator की। स्नोमोबाइल "Buran" 2-तार या 4 स्ट्रोक इंजन से लैस है। यह चार पक्षों के साथ फ्रेम से जुड़ा हुआ है, और कंपन को कम करने के लिए - घुड़सवार रबर आघात अवशोषक। variator मोटर के आंदोलन द्वारा नियंत्रित की पुली के बीच की दूरी। एक स्नोमोबाइल शोषण, आप लगातार जांच करने के लिए विश्राम के बन्धन अखरोट तथ्य यह है कि इंजन विस्थापित किया जा सकता है, और चर गति बेल्ट जल्दी से विफल करने के लिए सुराग की जरूरत है। चेसिस और इन मशीनों के संचरण एक नज़र रखी मोटर slewing स्की, एक वि बेल्ट variator के होते हैं और श्रृंखला ट्रांसमिशन के साथ बॉक्स रिवर्स। आरामदायक डबल तह सीट एक ट्रंक के रूप में उपयोग के लिए विस्तृत संभावनाओं को खोलता है। कठोर विंडशील्ड बनाने के लिए इस्तेमाल Plexiglass, जो इस प्रकार की मशीनों के लिए एक दोष माना जाता है। आमतौर पर, कांच दरारें पहले से ही पहली यात्रा पर, तो यह की भावना वास्तव में छोटा है। अधिक बार इस तरह के एक परिणाम के पेड़ के लिए नेतृत्व नहीं, बर्फ के भार तले आमादा। आदर्श रूप में, इस तरह के मशीनों एक प्लास्टिक सामग्री से एक गिलास है, जो विभिन्न लोच, बाहरी प्रभावों के लिए लचीलापन और प्रतिरोध किया जाएगा के साथ सुसज्जित किया जाना चाहिए। प्रतिक्रिया इंगित करता है कि जल्दी "Buranov" संशोधन एक दोष यह है - जब पीछे स्नोमोबाइल स्की बर्फ में फंस और खड़ी खड़ा है। खतरा यह है कि स्की बिल्कुल निलंबन से बाहर आ सकते हैं, और इसे वापस माउंट करने के लिए, वेल्डिंग मशीन के साथ खुद को हाथ होगा। यह बहुत ही पहला मॉडल, एक आधुनिक स्नोमोबाइल "Buran 4TD" अच्छी समीक्षा हो जाता है, तथ्य यह है कि कमियों के कई समाधान हो गया है करने के लिए धन्यवाद अलग करता है। इस प्रकार, स्नोमोबाइल की और अधिक उन्नत मॉडल में हम इस समस्या का एक त्रिकोणीय रबर बफर, जो खड़ी स्की छोड़ देना नहीं है स्थापित करने को हल किया। डिजाइन "Buran" ट्रैक स्नोमोबाइल रबर जो आगे overmoulded फाइबरग्लास छड़ के साथ प्रबलित है बुना जाता है। दो पटरियों, उत्कृष्ट प्रवाह क्षमता प्रदान करते हैं, जबकि उच्च आकर्षक प्रयास है, जो यह आसान माल ढोना के लिए बनाता है को प्राप्त करने। पेट्रोल और गैस संघनन के लिए अनुकूलित मोटर्स अतिरिक्त एक इलेक्ट्रिक स्टार्टर के साथ सुसज्जित किया जा सकता है। स्नोमोबाइल के लिए फ्रेम स्टील से बना है, और संशोधन में "Buran ई" यह एक बड़ा सामान कम्पार्टमेंट है। फाइबरग्लास हुड कुछ पूरा रोशनी के चाहने वालों के साथ सुसज्जित हैं, विश्वसनीय और टिकाऊ है। polyethylene से बना पारदर्शी ईंधन टैंक के लिए धन्यवाद, यह करने के लिए नेत्रहीन उस में ईंधन की स्थिति की निगरानी संभव है। दो सीट स्लेज विस्तार polypropylene से बना है और अशुद्ध चमड़े में शामिल है। सीट के नीचे एक विशाल ट्रंक है। ट्रांसमिशन के साथ सुसज्जित है एक CVT, मैनुअल श्रृंखला ड्राइव, पीछे और तटस्थ गियर के साथ संचरण, जो मैन्युअल रूप से पर स्विच किया जा सकता। फ्रंट सस्पेंशन वसंत प्रकार, ताकि मशीन किसी भी ऑफ-रोड के साथ सामना करने के लिए आसान है। चेसिस - एक कैटरपिलर ट्रैक रोलर्स निलंबन, जो एक दोहरी बैलेंसर्स है। यह कैटरपिलर के तनाव को समायोजित करने के लिए संभव है। चेसिस की एक महत्वपूर्ण विशेषता - यह भी एक स्नोमोबाइल बर्फ के उपयोग के बिना।
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कमका त्याग करना मूर्खता और दुर्बलताका सूचक है; इससे तुझे स्वर्ग तो मिलेगाही नहीं, उलटे दुष्कीति अवश्य होगी । तब श्रीभगवानने पहले अशोच्यानन्यशोचस्त्वं प्रशावादांश्च भावसे " अर्थात् जिस बातका शोक नहीं करना चाहिये, उसीका तो तू शोक कर रहा है; और साथ साथ ब्रह्मज्ञानकीभी बड़ी बड़ी बातें छाँट रहा है - कहकर अर्जुनका कुछ थोड़ा-सा उपहास किया; और फिर उसको कर्मके ज्ञानका उपदेश दिया। अर्जुनकी शंका निराधार नहीं थो । गत प्रकरणमें हमने यह दिखलाया है, कि अच्छे अच्छे पंडितोंकीभी कभी कभी क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये ? " यह प्रश्न चक्करमें डाल देता है। परंतु कर्म-अकर्मकी चितामें अनेक अड़चनें आती हैं. इसलिये कर्म छोड़ देना उचित नहीं है। विचारवान् पुरुषोंको ऐसी युक्ति अर्थात् 'योग' का स्वीकार करना चाहिये, जिससे सांसारिक कर्मोका लोप तो होने न पावे, और कर्माचरण करनेवाला किसी पाप या बंधनमेंभी न फँसे; - यह कहकर श्रीकृष्णने अर्जुनको पहले यही उपदेश दिया है, "तस्माद्योगाय युज्यस्व " - अर्थात् तभी इसी युक्तिका स्वीकार कर । यही 'योग' कर्मयोगशास्त्र है। और जब कि यह बात प्रगट है, कि अर्जुनपर आया हुआ संकट कुछ लोक-विलक्षण या अनोखा नहीं था - ऐसे अनेक छोटे-बड़े संकट संसारमें सभी लोगोंपर आया करते हैं तब तो यह बात आवश्यक है, कि इस कर्मयोगशास्त्रका जो विवेचन भगवद्गीतामें किया है, उसे हरएक मनुष्य सीखे । किसीभी शास्त्र के प्रतिपादनमें कुछ मुख्य और गूढ अर्थको प्रकट करनेवाले शब्दोंका प्रयोग किया जाता है। अतएव उनके सरल अर्थको पहले जान लेना चाहिये; और यहभी देख लेना चाहिये कि उस शास्त्रके प्रतिपादनकी मुल शैली कैसी है। नहीं तो फिर उसके समझनेमें कई प्रकारकी आपत्तियाँ और बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। इसलिये कर्मयोगशास्त्रके कुछ मुख्य मुख्य शब्दोंके अर्थकी परीक्षा यहाँपर की जाती है। सबसे पहला शब्द 'कर्म' है । 'कर्म' शब्द 'कृ' धातुसे बना है। उसका अर्थ करना, व्यापार, हलचल' होता है; और इसी सामान्य अर्थमें गीतामें उसका उपयोग हुआ है- अर्थात् यही अर्थ गीतामें विवक्षित है। ऐसा कहनेका कारण यही है, कि मीमांसाशास्त्र में और अन्य स्थानोंपरभी इस शब्दके जो संकुचित अर्थ दिये गये हैं, उनके कारण पाठकोंके मनमें कुछ भ्रम उत्पन्न न होने पावे। किसीभी धर्मको लीजिये; उसमें ईश्वर प्राप्ति के लिये कुछ-न-कुछ कर्म करनेके लिये कहा है । प्राचीन वैदिक धर्म के अनुसार देखा जाय, तो यज्ञयागही वह कर्म है, जिससे ईश्वरकी प्राप्ति होती है। वैदिक ग्रंथोंमें यज्ञ-यागकी विधि बताई गयी है; परंतु इसके विषय में कहीं कहीं परस्पर विरोधी वचनभी पाये जाते हैं। अतएव उनकी एकता और मेल दिखलानेकेही लिये जैमिनीके पुर्वमीमांसाशास्त्रका प्रचार हुआ है । जैमिनीके मतानुसार वैदिक या श्रौत यज्ञ-याग करनाही प्रधान और प्राचीन धर्म है। मनुष्य जो कुछ करता है, वह सब यज्ञके लिये करता है । यदि उसे धन कमाना है, तो यज्ञके लिये और धान्य संग्रह करना है, तो यज्ञहीके लिये ( मभा. शां. २६. २५ ) । जबकि यज्ञ करनेकी आज्ञा वेदोंहीने दी है, तब यज्ञके लिये मनुष्य कुछभी कर्म करे; वह उसको बंधक नहीं होगा। वह कर्म यज्ञका एक साधन है - वह स्वतंत्र रीतिसे साध्य वस्तु नहीं है । इसलिगे यज्ञसे जो फल मिलनेवाला है, उसीमें उस कर्मके फलकाभी समावेश हो जाता है - उस कर्मका कोई अलग फल नहीं होता । परंतु यज्ञके लिये किये गये ये कर्म यद्यपि स्वतंत्र फल देनेवाले नहीं हैं, तथापि स्वयं यज्ञसे स्वर्गप्राप्ति ( अर्थात् मीमांसकोंके मतानुसार एक प्रकारकी सुखप्राप्ति ) होती है; और इस स्वर्गप्राप्ति के लियेही यज्ञकर्ता मनुष्य बड़े चावसे यज्ञ करता है। इसीसे स्वयं यज्ञकर्म 'पुरुषार्थ' कहलाता है; क्योंकि जिस वस्तुसे किसी मनुष्यकी प्रीति होती है और जिसे पानेकी उसके मनमें इच्छा होती है; उसे 'पुरुषार्थ ' कहते हैं ( जै. सू. ४. १. १ और २ ) । यज्ञका पर्यायवाची 'ऋतु' शब्द है । इसलिये 'यज्ञार्थ' के बदले 'ऋत्वर्थ भी कहा करते हैं । इस प्रकार सब कर्मोके दो वर्ग हो गये : एक 'यज्ञार्थ' (ऋत्वर्थ ) कर्म, अर्थात् जो स्वतंत्र रीतिसे फल नहीं देते, अतएव अबंधक हैं; और दूसरे पुरुषार्थ कर्म, अर्थात् जो पुरुषको लाभकारी होनेके कारण बंधक है। संहिता और ब्राह्मण ग्रंथों में सारा वर्णन यज्ञ-यागादिकोंकाही है। ऋग्वेद संहितामें इंद्र आदि देवताओंकी स्तुति संबंधी सूक्त हैं, तथापि मीमांसकगण कहते है, कि सब श्रुतिग्रंथ यज्ञ आदि कर्मोहीके प्रतिपादक है, क्योंकि उनका विनियोग यज्ञके समय मेंही किया जाता है । इन कर्मठ, याज्ञिक या केवल कर्मवादियोंका कहना है कि वेदोक्त यज्ञ-याग आदि कर्म करनेसेही स्वर्गप्राप्ति होती है, अन्यथा नहीं होती। चाहे ये यज्ञ-याग अज्ञानसे किये जायें या ब्रह्मज्ञान से । यद्यपि उपनिषदोंमें ये यज्ञ ग्राह्य माने गये हैं, तथापि इनकी योग्यता ब्रह्मज्ञानसे कम ठहराई गयी है । इसलिये निश्चय किया गया है, कि यज्ञ-यागसे स्वर्गप्राप्ति भलेही हो जाय; परंतु इनके द्वारा सच्चा मोक्ष नहीं मिल सकता । मोक्षप्राप्ति के लिये ब्रह्मज्ञानहीकी नितान्त आवश्यकता है। भगवद्गीताके दूसरे अध्यायमें जिन यज्ञ-याग आदि काम्य कर्मोंका वर्णन किया है - " वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः " (गीता २.४२ ) - वे ब्रह्मज्ञान के बिना किये जानेवाले उपर्युक्त यज्ञ-याग आदि कर्मही हैं । इसी तरह यहभी मीमांसकोंहीके मतका अनुवाद है, कि " यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः " (गीता ३. ९) अर्थात् यज्ञार्थ किये गये कर्म बंधक नहीं हैं; शेष सब कर्म बंधक हैं । इन यज्ञ-याग आदि वैदिक कर्मोंके अतिरिक्त, अर्थात् श्रौत कर्मोंके अतिरिक्त औरभी चातुर्वर्ण्यके भेदानुसार दूसरे आवश्यक धार्मिक कर्म मनुस्मृति आदि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं; जैसे क्षत्रिय के लिये युद्ध और वैश्यके लिये वाणिज्य । पहले पहल इन वर्णाश्रम कर्मोका प्रतिपादन स्मृति ग्रंथों में किया गया था। इसलिये इन्हें 'स्मार्त कर्म' या 'स्मार्त यज्ञ भी कहते हैं । इन श्रौत-स्मार्त कर्मोंके सिवा औरभी धार्मिक कर्म हैं; जैसे व्रत, उपवास आदि। इनका विस्तृत प्रतिपादन पहलेपहल सिर्फ़ पुराणोंमें किया गया है, इसलिये इन्हें 'पौराणिक कर्म' कह सकेंगे । इन सब कर्मोंके औरभी तीन - नित्य, नैमित्तिक और काम्य भेद किये गये हैं। स्नान, संध्या आदि जो हमेशा किये जानेवाले कर्म हैं, उन्हें नित्यकर्म कहते हैं । इनके करनेसे कुछ विशेष फल अथवा अर्थकी सिद्धि नहीं होती; परंतु न करनेसे दोष अवश्य लगता हैं । नैमित्तिक कर्म उन्हें कहते हैं, जिन्हें किसी कारणके उपस्थित हो जानेसे करना पड़ता है; जैसे अनिष्ट ग्रहोंकी शांति, प्रायश्चित्त आदि, जिसकेलिये हम शांति या प्रायश्चित्त करते हैं, वह निमित्त यदि पहले न हो गया हो, तो हमें नैमित्तिक कर्म करनेकी कोई आवश्यकता नहीं । जब हम कुछ विशेष इच्छा रखकर उसकी सफलताके लिये शास्त्रानुसार कोई कर्म करते हैं, तब उसे काम्य कर्म कहते हैं; जैसे वर्षा होनेके लिये या पुत्रप्राप्ति के लिये यज्ञ करना । नित्य, नैमित्तिक और काम्य कर्मोंके सिवा कुछ और कर्म हैं; जैसे मदिरापान इत्यादि, जिन्हें शास्त्रोंने त्याज्य कहा है । इसलिये ये कर्म निषिद्ध कहलाते हैं । नित्य कर्म कौन कौन हैं, नैमित्तिक कौन कौन हैं और काम्य तथा निषिद्ध कर्म कौन कौन हैं - ये सब बातें धर्मशास्त्रों में निश्चित कर दी गयी हैं । यदि कोई किसी धर्मशास्त्रीसे पूछे कि अमुक पुरुषका कर्म पुण्यप्रद है या पापकारक, तो वह सबसे पहले इस बातका विचार करेगा, कि शास्त्रोंकी आज्ञाके अनुसार वह कर्म यज्ञार्थ है या पुरुषार्थ; नित्य है या नैमित्तिक; अथवा काम्य है या निषिद्ध; और इन बातोंका विचार करके फिर वह अपना निर्णय करेगा । परंतु भगवद्गीताकी दृष्टि उससेभी व्यापक और विस्तीर्ण है । मान लीजिये, कि अमुक एक कर्म शास्त्रों में निषिद्ध नहीं माना गया है; अथवा उसे विहित कर्मही कहा गया है - जैसे युद्धके समय क्षात्रधर्मही अर्जुनके लिये विहित कर्म था । पर इतनेहीसे यह सिद्ध नहीं होता, कि हमें वह कर्म हमेशा करतेही रहना चाहिये; अथवा उस कर्मका करना हमेशा श्रेयस्करही होगा। यह बात पिछले प्रकरणमें कही गयी है, कि कहीं कहीं तो शास्त्रकी आज्ञाएंभी परस्पर विरुद्ध होती हैं। ऐसे समयमें मनुष्यको किस मार्ग स्वीकार करना चाहिये, इस बातका निर्णय करनेके लियें कोई युक्ति है या नहीं ? यदि है तो वह कौन-सी ? बस, यही गीताका प्रतिपाद्य विषय है । इस विषयमें कर्मके उपर्युक्त अनेक भेदोंपर ध्यान देनेकी कोई आवश्यकता नहीं । यज्ञ-याग आदि वैदिक कर्मों तथा चातुर्वर्ण्यके कर्मोंके विषयमें मीमांसकोंने जो सिद्धान्त किये हैं, वे गीतामें प्रतिपादित कर्मयोगसे कहाँतक मिलते हैं, यह दिखानेके लिये प्रसंगानुसार गीतामें मीमांसकोंके कथनकाभी कुछ विचार किया गया है; और अंतिम अध्याय (गीता १८. ६) में इसपरभी विचार किया है, कि ज्ञानी पुरुषको यज्ञयाग आदि कर्म करना चाहिये या नहीं। परंतु गीताके मुख्य प्रतिपाद्य विषयका क्षेत्र इससे व्यापक है । इसलिये गीताके प्रतिपादनमें 'कर्म' शब्दका " केवल श्रौत अथवा स्मार्त कर्म " इतनाही संकुचित अर्थ नहीं लिया जाना चाहिये; किंतु उससे अधिक व्यापक रूप लेना चाहिये । सारांश, मनुष्य जो कुछ करता है - जैसे खाना, पीना, खेलना, रहना, उठना, बैठना, श्वोसोच्छ्वास करना, हँसना, रोना, सूंघना, देखना, बोलना, सुनना, चलना, देना, लेना, सोना, जागना, मारना, लड़ना, मनन और ध्यान करना, आज्ञा या निषेध करना, दान देना, यज्ञ-याग करना, खेती या व्यापारधंधा करना, इच्छा करना, निश्चय करना, चुप रहना इत्यादि इत्यादि - ये सब भगवद्गीताके अनुसार 'कर्म' ही हैं; चाहे वे कर्म कायिक हों, वाचिक हों अथवा मानसिक हों ( गीता ५. ८, ९ ) । और तो क्या, जीना मरनाभी कर्मही हैं। प्रसंग आनेपर यहभी विचार करना पड़ता है कि 'जीना या मरना इन दो कर्मोमेंसे किसका स्वीकार किया जाये ? इस विचारके उपस्थित होनेपर कर्म शब्दका अर्थ ' कर्तव्य कर्म' अथवा ' विहित कर्म हो जाता है । (गीता ४. १६) । मनुष्यके कर्मके विषयमें यहाँतक विचार हो गया । अब इससे आगे बढ़कर सब चर-अचर सृष्टिके - अचेतन वस्तुकेभी - व्यापारमें 'कर्म' शब्दहीका उपयोग होता । इस विषयका विचार आगे कर्मविपाक प्रक्रिया में किया जाएगा। कर्म शब्दसेभी अधिक भ्रमकारक शब्द 'योग' है। आजकल इस शब्दका रूढ़ार्थ " प्राणायामादिक साधनोंसे चित्तवृत्तियों या इंद्रियोंका निरोध करना अथवा " पातंजल सूत्रोक्त समाधि या ध्यानयोग " हैं । उपनिषदोंमेंभी इसी अर्थमें इस शब्दका प्रयोग हुआ है ( कठ. ६. ११ ) । परंतु ध्यानमें रखना चाहिये, कि ये संकुचित अर्थ भगवद्गीतामें विवक्षित नहीं है । 'योग' शब्द 'युज्' धातुसे बना है; जिसका अर्थ "जोड़, मेल, मिलाप, एकता, एक अवस्थिति " इत्यादि होता है । और ऐसी स्थितिकी प्राप्तिके "उपाय, साधन, युक्ति या कर्म " कोभी योग कहते हैं । यही सब अर्थ अमरकोश (अ. ३.३.२२) में इस तरहसे दिये इस तरहसे दिये हुए हैं - "योगः संहननोपायध्यानसंगतियुक्तिषु ।" फलित ज्योतिषमें कोई ग्रह यदि इष्ट अथवा अनिष्ट हों, तो उन ग्रहोंका 'योग' इष्ट या अनिष्ट कहलाता है; और 'योगक्षेम' पदमें 'योग' शब्दका अर्थ " अप्राप्त वस्तुको प्राप्त करना " लिया गया है ( गीता ९. २२ )। भारतीय युद्धके समय द्रोणाचार्यको अजेय देखकर श्रीकृष्णने कहा है, कि "एको हि योगोऽस्य भवेद्वधाय " ( मभा. द्रो. १८१. ३१ ) अर्थात् द्रोणाचार्य को जीतनेका एकही 'योग' ( साधना या युक्ति ) है; और आगे चलकर उन्होंने यहभी कहाना है कि हमने पूर्वकालमें धर्मकी रक्षाके लिये जरासंध आदि राजाओंको 'योग' हीसे मारा था । उद्योगपर्व ( अ. १७२ ) में कहा गया है, कि जब भीष्मने अंबा, अंबिका और अंबालिकाको हरण किया, तब अन्य राजा लोग 'योग, योग कहकर उनका पीछा करने लगे थे। महाभारतमें 'योग' शब्दका प्रयोग इसी अर्थमें अनेक स्थानोंपर हुआ है। गीतामें 'योग', 'योगी' अथवा योग शब्दसे बने हुए सामासिक शब्द लगभग अस्सी बार आये है; परंतु चार-पाँच स्थानोंको छोड़ (गीता ६. १२ और २३) योग शब्दसे 'पातंजल योग' अर्थ कहींभी अभिप्रेत नहीं है। सिर्फ़ 'युक्ति, साधन, कुशलता, उपाय, जोड़, मेल' ये ही अर्थ कुछ हेरफेरसे सारी गीतामें पाये जाते हैं। अतएव कह सकते हैं, कि गीताशास्त्र के व्यापक शब्दोंमेंसे 'योग' भी एक शब्द है; परंतु योग शब्दके उक्त सामान्य अर्थोंसेही - जैसे साधन, कुशलता, युक्ति आदिसेही काम नहीं चल सकता । क्योंकि वक्ता इच्छाके अनुसार यह साधन संन्यासकाभी हो सकता है; कर्म और चित्तनिरोधका हो सकता है; मोक्षका अथवा औरभी किसीका हो सकता है। उदाहरणार्थ, गीतामें कहीं कहीं अनेक प्रकारकी व्यक्त सृष्टि निर्माण करनेकी भगवानकी ईश्वरी कुशलता और अद्भुत सामर्थ्यको 'योग' कहा गया है ( गीता ७. २५; ९.५; १०. ७; ११.८ ) और इसी अर्थमें भगवानको 'योगेश्वर' कहा है ( गीता १८.७५ ) । परंतु यह गीताके 'योग' शब्दका मुख्य अर्थ नहीं है । इसलिये, वह बात स्पष्ट रीतिसे प्रकटकर देनेके लिये 'योग' शब्दसे किस विशेष प्रकारको कुशलता, साधन, युक्ति अथवा उपायको गीतामें विवक्षित समझना चाहिये, उस ग्रंथमें योग शब्दकी व्याख्यायों की गयी है - "योगः कर्मसु कौशलम् " (गीता २.५०) अर्थात् कर्म करनेकी किसी विशेष प्रकारकी कुशलता, युक्ति, चतुराई अथवा शैलीको योग कहते हैं । शांकरभाष्यमेंभी 'कर्मसु कौशलम् का यही अर्थ लिया गया है - " कर्ममें स्वभावसिद्ध रहनेवाले बंधकत्वको तोड़नेकी युक्ति " । यदि सामान्यतः देखा जाय, तो एकही कर्मको करनेके लिये अनेक 'योग' या 'उपाय' होते हैं। परंतु उनमेंसे जो उपाय या साधन उत्तम हो उसीको 'योग' कहते हैं। जैसे द्रव्य उपार्जन करना एक कर्म है। इसके अनेक उपाय या साधन हैं- जैसे : चोरी करना, जालसाजी करना, भीख मांगना, सेवा करना, ऋण लेना, मेहनत करना आदि । यद्यपि धातुके अर्थानुसार इनमें से हरएकको 'योग' कह सकते हैं, तथापि यथार्थ 'द्रव्यप्राप्ति योग' उसी उपाय कहते हैं, जिससे हम अपनी " स्वतंत्रता कायम रखकर मेहनत करते हुए धन प्राप्त कर सके । जब स्वयं भगवानने गीतामें 'योग' शब्दकी निश्चित और स्वतंत्र व्याख्या कर दी है ( योगः कर्मसु कोशलम् - अर्थात् कर्म करनेकी एक प्रकारकी विशेष युक्तिको - योग कहते हैं ), तब सब पुछो तो इस शब्दके मुख्य अर्थ के विषयमें कुछभी शंका नहीं रहनी चाहिये; परंतु स्वयं भगवानकी बतलाई हुई इस व्याख्यापर ध्यान न दे कर टीकाकारोंने गीताका मथितार्थभी मनमाना निकाला है । अतएव इस भ्रमको दूर करनेके लिये 'योग' शब्दका कुछ अधिक स्पष्टीकरण होना चाहिये । यह शब्द पहलेपहल गीताके दूसरे अध्याय में आया है; और वहीं इसका स्पष्ट अर्थभी बतला दिया है। भगवानने अर्जुनको पहले सांख्यशास्त्र के अनुसार यह समझा दिया कि युद्ध क्यों करना चाहिये ; इसके बाद उन्होंने कहा कि "अब हम तुझे योगके अनुसार उपपत्ति बतलाते हैं" (गीता २. ३९) । और फिर इसका वर्णन किया है, कि जो लोग हमेशा यज्ञ-यागादि काम्य कर्मोमें निमग्न रहते हैं और उनकी बुद्धि फलाशासे कैसे व्यग्र हो जाती है (गीता २.४१-४६) । इसके पश्चात् उन्होंने यह उपदेश दिया है, कि बुद्धिको अव्यग्र, स्थिर या शांत रखकर, "आसक्तिको छोड़ दे; परंतु कर्मोंको छोड़ देनेके आग्रहमें न पड़ " और "योगस्थ होकर कर्मोका आचरण कर " (गीता २.४८) । यहींपर पहले पहल 'योग' शब्दका अर्थभी स्पष्ट कर दिया है, कि "सिद्धि और असिद्धि दोनोंमें समत्वबुद्धि रखनेको योग कहते हैं । इसके बाद यह कहकर, कि "फलकी आशासे काम करनेकी अपेक्षा समत्वबुद्धिका यह योगही श्रेष्ठ है " ( गीता २.४९ ) और बुद्धिकी समता हो जानेपर कर्म " करनेवालेको कर्मसंबंधी पाप-पुण्यकी बाधा नहीं होती । इसलिये तू इस 'योग' को प्राप्त कर ।' तुरंतही योगका यह लक्षण फिरभी बतलाया है कि "योगः कर्मसु कौशलम् " ( गीता २.५० ) । इससे सिद्ध होता है, कि पाप-पुण्यसे अलिप्त रहकर कर्म करनेकी जो समत्वबुद्धिरूप विशेष युक्ति पहले बतलाई गई है, वही 'कौशल' है; और इसी कुशलता अर्थात् युक्तिसे कर्म करनेको गीतामें 'योग' कहा है। इसी अर्थको अर्जुनने आगे चलकर "योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन " ( गीता ६.३३ ) - समताका अर्थात् समत्व बुद्धिका यह योग जो आपने बतलाया - इस श्लोकम स्पष्ट कर दिया है । इसके संबंधमें, कि ज्ञानी मनुष्यको इस संसार में कैसे बर्ताव करना चाहिये, श्रीशंकराचार्य के पूर्वही प्रचलित हुए वैदिक धर्मके अनुसार दो मार्ग हैंः एक मार्ग यह है, कि ज्ञानकी प्राप्ति हो जानेपर सब कर्मोका संन्यास अर्थात् त्यागकर दें; और दूसरा यह कि ज्ञानकी प्राप्ति हो जाने परभी कर्मोंको न छोड़ें - उनको जन्मभर ऐसी युक्ति के साथ करते रहें, कि उनके पाप-पुण्यकी बाधा न होने पावे । इन्हीं दो मार्गोंको गीतामें संन्यास और कर्म-योग कहा है ( गीता ५. २ ) । संन्यास कहते हैं त्यागको, और योग कहते हैं मेल को । अर्थात् कर्मके त्याग और कर्मके मेलहीके उक्त दो भिन्न मार्ग हैं। इन्हीं दो भिन्न मार्गोंको लक्ष्य करके आगे ( गीता ५.४ ) ( सांख्य और योग ) 'सांख्ययोगी' ये संक्षिप्त नामभी दिये गये हैं। बुद्धिको स्थिर करनेके लिये पातंजलयोग-शास्त्र के आसनोंका वर्णन छठे अध्यायमें है सही; परंतु वह किसके लिये है ? तपस्वीके लिये नहीं; किंतु वह कर्मयोगी - अर्थात् युक्तिपूर्वक कर्म करनेवाले मनुष्यको 'समता' की युक्ति सिद्ध करनेके लिये बतलाया गया है। नहीं तो फिर "तपस्विभ्योऽधिको योगी वाक्यका कुछ अर्थ ही नहीं हो सकता। इसी तरह इस अध्यायके अंत (६.४६) में अर्जुनको जो उपदेश दिया गया है, कि 'तस्माद्योगी भवार्जुन' उसका अर्थ ऐसा नहीं हो सकता, कि " हे अर्जुन ! तू पातंजल योगका अभ्यास करनेवाला बन जा । इसलिये उक्त उपदेशका अर्थ " योगस्थः कुरु कर्माणि " ( २.४८ ), " तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् " ( गीता २.५०), 'योगमात्तिष्ठोत्तिष्ठ भारत (४. ४२) इत्यादि वचनोंके अर्थके समानही होना चाहिये। अर्थात् उसका यही अर्थ लेना उचित है कि, " हे अर्जुन ! तू युक्तिसे कर्म करनेवाला योगी अर्थात् कर्मयोगी बन जा । क्योंकि यह कहनाही संभव नहीं कि, "तू पातंजल योगका आश्रय लेकर युद्धके लिये तैयार रह । " इसके पहलेही साफ़ साफ कहा गया है, कि " कर्मयोगेण योगिनाम् " (गीता ३.३) अर्थात् योगी पुरुष कर्म करनेवाले होते हैं । महाभारतके (मभा. शां. ३४८. ५६) नारायणीय अथवा भागवत धर्मके विवेचनमंभी कहा गया है, कि इस धर्मके लोग अपने कर्मोका त्याग किये बिनाही युक्तिपूर्वक कर्म करके ( सुप्रयुक्तेन कर्मणा ) परमेश्वरकी प्राप्ति कर लेते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है, कि 'योगी' और 'कर्मयोगी दोनों शब्द गीतामें समानार्थक हैं; और इनका अर्थ "युक्तिसे कर्म करनेवाला " होता है; तथा 'कर्मयोग' शब्दका प्रयोग करनेके बदले, गीता और महाभारत में छोटेसे 'योग' शब्दकाही अधिक उपयोग किया गया है। "मैंने तुझे जो यह योग बतलाया है, इसीको पूर्वकालमें विवस्वान कहा था ( गीता ४.१ ); और विवस्वानने मनुको बतलाया था; परंतु उस योगके बादमें नष्टसा हो जानेपर फिर वही योग तुझसे कहना पड़ा - इस अवतरणमें भगवानने जो 'योग' शब्दका तीन बार उच्चारण किया है, उसमें पातंजल योगका विवक्षित होना नहीं पाया जाता; किंतु " कर्म करनेकी किसी प्रकारकी विशेष युक्ति, साधन या मार्ग" अर्थ ही लिया जा सकता है। इसी तरह जब संजय गीताके कृष्ण-अर्जुन संवादको 'योग' कहता है । ( गीता १८.७५ ) तबभी यही अर्थ पाया जाता है। श्रीशंकराचार्य स्वयं संन्यासमार्गवाले थे। तोभी उन्होंने अपने गीताभाष्यके आरंभमेंही वैदिकधर्मके दो भेद - प्रवृत्ति और निवृत्ति - बतलाये है; और 'योग' शब्दका अर्थ श्रीभगवानकी की हुई व्याख्या के अनुसार कभी 'सम्यक् - दर्शनोपायकर्मानुष्ठानम् ' (गीता ४४. २) और कभी " योगः युक्तिः" (गीता १०.७ ) किया है। इसी तरह महाभारत मेंभी 'योग' और 'ज्ञान' दोनों शब्दोंके विषय में स्पष्ट लिखा है, कि " प्रवृत्तिलक्षणो योगः ज्ञानं संन्यासलक्षणम् " ( मभा. अश्व. ४३.२५ ) । अर्थात् योगका अर्थ प्रवृत्तिमार्ग और ज्ञानका अर्थ संन्यास या निवृत्ति - मार्ग है । शांतिपर्वके अंतमें, नारायणीयोपाख्यानमें 'सांख्य' और 'योग' शब्द तो इसी अर्थ में अनेक बार आये हैं; और इसकाभी वर्णन किया गया है, कि ये दोनों मार्ग सृष्टिके आरंभ में भगवानने क्यों और कैसे निर्माण किये । ( मभा. शां. २४० और ३४८ ) । पहले प्रकरणमें महाभारत से जो वचन उद्धृत किये गये हैं, उनसे यह स्पष्टतया मालूम हो गया है, कि यही नारायणीय अथवा भागवतधर्म भगवद्गीताका प्रतिपाद्य तथा प्रधान विषय है। इसलिये कहना पड़ता है, कि 'सांख्य' और 'योग' शब्दोंका जो प्राचीन और पारिभाषिक अर्थ ( सांख्य = निवृत्ति; योग = योग = प्रवृत्ति ) नारायणीय धर्ममें दिया गया है, वही अर्थ गीतामेभी विवक्षित है। यदि इसमें किसीको शंका हो, तो गीतामें दी हुई इस व्याख्यासे - " समत्वं योग उच्यते " या " योगः कर्मसु कौशलम् - तथा उपर्युक्त " कर्मयोगेण योगिनाम्" इत्यादि गीताके वचनोंसे उसे शंकाका समाधान हो सकता है। इसलिये अब यह निर्विवाद सिद्ध है, कि गीतामें 'योग' शब्द प्रवृत्तिमार्ग अर्थात् 'कर्मयोग के अर्थहीमें प्रयुक्त हुआ है। वैदिक धर्म ग्रंथोंकी कौन कहे, यह 'योग' शब्द, पाली और संस्कृत भाषाओंके बौद्धधर्म-ग्रंथोंमेंभी, इसी अर्थमें प्रयुक्त है। उदाहरणार्थ, संवत् ३३५ के लगभग लिखे 'मिलिंदप्रश्न' नामक पालीग्रंथ में 'पुब्जयोगो' (पूर्वयोग) शब्द आया है; और वहाँ उसका अर्थ 'पुब्बकम्म' ( पूर्वकर्म ) किया गया है (मि. प्र. १. ४) । इसी तरह अश्वघोष कविकृत - जो शालिवाहन शकके आरंभ में हो गया है- 'बुद्धचरित' नामक संस्कृत काव्यके पहले सर्गके पचासवें श्लोकमें यह वर्णन है - आचार्यकं योगविधौ द्विजानामप्राप्तमन्यैर्जनको जगाम । अर्थात् "ब्राह्मणोंको योगविधिकी शिक्षा देने राजा जनक आचार्य ( उपदेष्टा ) हो गये । इनके पहले यह आचार्यत्व किसीकोभी प्राप्त नहीं हुआ था " । यहाँपर 'योग-विधि' का अर्थ निष्काम कर्मयोगकी विधिही समझना चाहिये । क्योंकि गीता आदि अनेक ग्रंथ मुक्त कंटसे कह रहे हैं कि जनकजीके बर्तावका यही रहस्य है; और अश्वघोषने अपने 'बुद्धचरित' ( मु. च. ९.१९ और २० ) में यह दिखलानेके लिये, कि "गृहस्थाश्रममें रहकरभी मोक्षकी प्राप्ति कैसे की जा सकती है " जनकहीका उदाहरण दिया है। जनकके दिखलाये हुए मार्गका नाम 'योग' था; और यह बात बौद्ध धर्म ग्रंथोंसेभी सिद्ध होती है । इसलिये गीताके 'योग' शब्दकाभी यही अर्थ लगाना पड़ता है। क्योंकि गीताहीके कथनानुसार ( गीता ३.२० ) जनककाही मार्ग उसमें प्रतिपादित किया गया है। सांख्य और योग इन दो मार्गोंके विषयमें अधिक विचार आगे किया जाएगा। प्रस्तुत प्रश्न यही है, कि गीतामें 'योग' शब्दका उपयोग किस अर्थमें किया गया है। जब एक बार यह सिद्ध हो गया कि गीतामें 'योग' का प्रधान अर्थ कर्मयोग और 'योगी' का प्रधान अर्थ कर्मयोगी है, तो फिर यह कहनेकी आवश्यकता नहीं, कि भगवद्गीताका प्रतिपाद्य विषय क्या है। स्वयं भगवान् अपने उपदेशको 'योग' कहते हैं ( गीता ४ . १- ३ ) ; बल्कि छठे ( गीता ६.६३ ) अध्यायमें अर्जुनने और गीताके अंतिम उपसंहार (गीता १८.७५) में संजयनेभी गीताके उपदेशको 'योग' ही कहा है। इसी तरह गीताके प्रत्येक अध्यायके अंत में, जो अध्याय-समाप्तिदर्शक संकल्प है, उसमेंभी साफ़ साफ़ कह दिया है, कि गीताका मुख्य प्रतिपाद्य विषय 'योगशास्त्र' ही है। परंतु जान पड़ता है, कि उक्त संकल्पके शब्दोंके अर्थपर टीकाकारोंने ध्यान नहीं दिया। आरंभ के दो पदों - "श्रीमद्भगवद्गीतासु उपनिषत्सु के बाद इस संकल्पमें दो शब्द " ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे " औरभो जोड़े गये हैं। पहले दो शब्दोंका अथ है - " भगवानसे गाये गये उपनिषदमें "; और पिछले दो शब्दोंका अर्थ "ब्रह्मविद्याका योगशास्त्र अर्थात् कर्मयोग-शास्त्र " है, जो कि इस गीताका विषय है । ब्रह्मविद्या और ब्रह्मज्ञान एकही बात है; और इसके प्राप्त हो जानेपर ज्ञानी पुरुषके लिये दो निष्ठाएँ या मार्ग खुले होते हैं ( गीता ३.३ ) । एक सांख्य अथवा संन्यास मार्ग अर्थात् वह मार्ग जिसका ज्ञान होनेपर कर्म करना छोड़ कर विरक्त होकर रहना पड़ता है; और दूसरा योग अथवा कर्ममार्ग अर्थात् वह मार्ग, जिसमें कर्मोंका त्याग न करके ऐसी युक्तिसे नित्य कम करते रहना चाहिये जिससे मोक्ष प्राप्ति में कुछभी बाधा न हो । पहले मार्गका दूसरा नाम 'ज्ञाननिष्ठा' भी जिसका विवेचन उपनिषदोंमें अनेक ऋषियोंने और ग्रंथकारोंनेभी किया है। परंतु ब्रह्मविद्या के अंतर्गत कर्मयोगका या योगशास्त्रका तात्त्विक विवेचन भगवद्गीताके सिवा अन्य ग्रंथों में नहीं है। इस बातका उल्लेख पहले किया जा चुका है, कि अध्याय -समाप्ति-दर्शक संकल्प गीताकी सब प्रतियोंमें पाया जाता है; और इससे प्रकट होता है, कि गीताकी सभी टीकाओंके रचे जानेके पहलेही उसकी रचना हुई होगी । इस संकल्प के रचयिताने इस संकल्पमें " ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे " इन दो पदोंको व्यर्थही नहीं जोड़ दिया है; किंतु उसने गीताशास्त्र के प्रतिपाद्य विषयकी अपूर्वता दिखानेहीके लिये उक्त पदोंको उस संकल्पमें साधार और हेतुसहित स्थान दिया है। अतः इस बातकाभी सहज निर्णय हो सकता है, कि गीतापर अनेक सांप्रदायिक टीकाओंके होनेके पहले गीताका तात्पर्य कैसे और क्या समझा जाता था। यह हमारे सौभाग्यकी बात है कि इस कर्मयोगका प्रतिपादन स्वयं भगवान् श्रीकृष्णहीने किया है, जो इस योगमार्गके प्रवर्तक और सब योगोंके साक्षात् ईश्वर ( योगेश्वर = योग X ईश्वर ) हैं; और लोकहितके लिये उन्होंने अर्जुनको उसका रहस्य बतलाया है । गीताके 'योग' और 'योगशास्त्र' शब्दोंसे हमारे 'कर्मयोग' और 'कर्मयोगशास्त्र' शब्द कुछ बड़े हैं सही; परंतु अब हमने कर्मयोगशास्त्र सरीखा बड़ा नामही इस ग्रंथ और प्रकरणको देना इसलिये पसंद किया है, कि जिससे गीताके प्रतिपाद्य विषयके संबंध में कुछभी संदेह न रह जावे । एकही कर्म करनेके जो अनेक योग, साधन या मार्ग हैं, उनमेंसे सर्वोत्तम और शुद्ध मार्ग कौन है; उसके अनुसार नित्य आचरण किया जा सकता है या नहीं; नहीं किया जा सकता, तो कौन कौन अपवाद उत्पन्न होते हैं, और वे क्यों उत्पन्न होते हैं; जिस मार्गको हमने उत्तम मान लिया है, वह उत्तम क्यों है; जिस मार्गको हम बुरा समझते हैं, वह बुरा क्यों है; यह अच्छापन या बुरापन किसके द्वारा या किस आधारपर निश्चित किया जा सकता है; अथवा इस अच्छेपन या बुरेपनका रहस्य क्या है - इत्यादि बातें जिस शास्त्र के आधारसे निश्चित की जाती हैं, उसको 'कर्मयोगशास्त्र' या गीताके संक्षिप्त रूपानुसार 'योगशास्त्र' कहते हैं । 'अच्छा' और 'बुरा' दोनों साधारण शब्द हैं। इन्हींके समान अर्थमें कभी कभी शुभ-अशुभ हितकर -अहितकर, श्रेयस्कर अश्रेयस्कर, पाप-पुण्य, धर्म्य अधर्म्य इत्यादि शब्दोंका उपयोग हुआ करता है। कार्य-अकार्य, कर्तव्य-अकर्तव्य, न्याय्य - अन्याय्य इत्यादि शब्दोंकाभी अर्थ वैसेही होता है । तथापि इन शब्दोंका उपयोग करनेवालोंके सृष्टिरचनाविषयक मत भिन्न भिन्न होने के कारण 'कर्मयोग' शास्त्र के निरूपणके पंथभी भिन्न भिन्न हो गये हैं। किसीभी शास्त्रको लीजिये; उसके विषयोंकी चर्चा साधारणतः तीन प्रकारसे की जाती है । (१) इस जड़ सृष्टिके पदार्थ ठीक वैसेही हैं, जैसे कि वे हमारी इंद्रियोंको गोचर होते हैं। इसके परे उनमें और कुछ नहीं है - इस दृष्टिसे उनके विषयमें विचार करनेकी एक पद्धति है, जिसे आधिभौतिक विवेचन कहते हैं । उदाहरणार्थ, सूर्यको देवता न मानकर केवल पाँचभौतिक जड़ पदार्थोंका एक गोला माने; और उष्णता, प्रकाश, वजन दूरी, और आकर्षण इत्यादि उसके केवल गुणधर्मोहीकी परीक्षा करें; तो उसे सूर्यका आधिभौतिक विवेचन कहेंगे । दूसरा उदाहरण पेड़का लीजिये । इसका विचार न करके, कि पेड़के पत्ते निकलना, फूलना, फलना आदि क्रियाएँ किस अंतर्गत शक्तिके द्वारा होती हैं, जब केवल बाहरी दृष्टिसे विचार किया जाता है, कि जमीनमें बीज बोनेसे अंकुर फूटते हैं, फिर वे बढ़ते हैं; और उसीसे पत्ते, शाखा, फूल इत्यादि दृश्य विकार प्रकट होते हैं, तब उसे पेड़का आधिभौतिक विवेचन कहते हैं । रसायनशास्त्र, पदार्थविज्ञानशास्त्र, विद्युच्छास्त्र इत्यादि आधुनिक शास्त्रोंका विवेचन इसी ढंगका होता है । और तो क्या, आधिभौतिक पंडितभीको यह मानते हैं, कि उक्त रीतिसे किसी वस्तुके दृश्य गुणोंका विचार कर लेनेपर उनका काम पूरा हो जाता है - सृष्टिके पदार्थोंका इससे अधिक विचार करना निष्फल है । (२) जब उक्त दृष्टिको छोड़कर इस बातका विचार किया जाता है, कि जड़ सृष्टिके पदार्थोंके मूलमें क्या है; क्या, इन पदार्थोंका व्यवहार केवल उनके गुण-धर्मोहीसे होता है, या उसके लिये किसी तत्त्वका आधारभी है; तो केवल आधिभौतिक विवेचनसेही काम नहीं चलता, हमको कुछ आगे बढ़ना पड़ता है। उदाहरणार्थ, जब हम यह मानते हैं, कि पांचभौतिक सूर्यके जड़ या अचेतन गोलेमें सूर्य नामक एक देवताका अधिष्ठान है; और इसीके द्वारा इस अचेतन गोले ( सूर्य ) के सब व्यापार या व्यवहार होते रहते हैं, तब उसको उस विषयका आधिदैविक विवेचन कहते हैं। इस मतके अनुसार यह माना जाता है, कि पेड़में, पानीमें, हवामें अर्थात् सब पदार्थों में, अनेक देवता हैं; जो उन जड तथा अचेतन पदार्थोंसे भिन्न तो हैं, किंतु उनके व्यवहारोंको वे ही चलाते हैं । ( ३ ) परंतु जब यह माना जाता है, कि सृष्टिके हज़ारों वे जड़ पदार्थोंमें हज़ारों स्वतंत्र देवता नहीं हैं; किंतु बाहरी सृष्टिके सब व्यवहारोंको चलानेवाली, मनुष्यके शरीरमें आत्मस्वरूपसे रहनेवाली, और मनुष्यको सारी सृष्टिका ज्ञान प्राप्त करा देनेवाली एकही चित्-शक्ति है, जो कि इंद्रियातीत है ओर जिसके द्वाराही इस जगतका सारा व्यवहार चल रहा है; तब उस विचार पद्धतिको आध्यात्मिक विवेचन कहते हैं। उदाहरणार्थ, अध्यात्मवादियोंका मत है, कि सूर्यचंद्र आदिका व्यवहार, यहाँतक कि वृक्षोंके पत्तोंका हिलनाभी, इसी अचित्य शक्तिकी प्रेरणासे हुआ करता है । सूर्य-चंद्र आदिमें या अन्य स्थानों में भिन्न भिन्न तथा स्वतंत्र देवता नहीं हैं। प्राचीन कालसे किसीभी विषयका विवेचन करनेके लिये ये तीन मार्ग प्रचलित हैं; और इनका उपयोग उपनिषद - ग्रंथों में भी किया गया है। उदाहरणार्थ, ज्ञानेंद्रियाँ श्रेष्ठ हैं या प्राण श्रेष्ठ हैं, इस बातका विचार करते समय बृहदारण्यक आदि उपनिषदोंमें एक बार उक्त इंद्रियोंके अग्नि आदि देवताओंको और दूसरी बार उनके सूक्ष्म रूपों ( अध्यात्म ) को ले कर उनके बलाबल का विचार किया गया है (बृ. १.५.२१ और २२; छां. १. २ और ३; कौषी. २.८ ) ; और, गीताके सातवें अध्यायके अंतमें तथा आठवेंके आरंभ में ईश्वरके स्वरूपका " अध्यात्मविद्या जो विचार बतलाया गया है, वहभी इसी दृष्टिसे किया गया है । विद्यनाम् " ( गीता १०.३२ ) इस वाक्यके अनुसार हमारे शास्त्रकारोंने उक्त तीन मार्गोंमेंसे, आध्यात्मिक विवरणकोही अधिक महत्त्व दिया है। परंतु आजकल उपयुंक्त तीन शब्दों ( आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक ) के अर्थको थोड़ा-सा बदलकर प्रसिद्ध आधिभौतिक फ्रेंच पंडित कोंटने* आधिभौतिक विवेचनकोही अधिक महत्त्व दिया है। उसका कहना है, कि सृष्टिके मूल-तत्त्वको खोजते रहनेसे कुछ लाभ नहीं; यह तत्त्व अगम्य है । अर्थात् इसको समझ लेना कभीभी संभव नहीं । इसलिये इसकी कल्पित नींवपर किसी शास्त्रकी इमारतको खड़ा कर देना न तो संभव है और न उचित । असभ्य और जंगली मनुष्योंने पहले पहल जब पेड़, बादल और ज्वालामुखी पर्वत आदि हिलते-चलते पदार्थोंको देखा, तब उन लोगों ने अपने भोलेपनसे इन सब पदार्थोंको देवताही मान लिया । यह कोंटके मतानुसार, 'आधिदैविक विचार हुआ; परंतु मनुष्योंने उक्त कल्पनाको शीघ्र ही त्याग दिया और वे समझने लगें कि इन सब पदार्थों में कुछ न कुछ आत्मतत्त्व अवश्य भरा हुआ है। कोंटके मतानुसार मानवी ज्ञानकी उन्नतिकी यह दूसरी सीढ़ी है । इसे वह 'आध्यात्मिक' कहता है; परंतु जब इस रीतिसे सृष्टिका विचार करने परभी प्रत्यक्ष उपयोगी शास्त्रीय ज्ञानकी कुछ वृद्धि नहीं हो सकी, तब अंतमें मनुष्य सृष्टिके पदार्थोंके दृश्य गुण-धर्मोहीका और अधिक विचार करने लगा; जिससे * फ्रान्स देशमें ऑगस्ट कोंट ( Auguste Comte ) नामक एक बड़ा पंडित गतशताब्दीमें हो चुका है । इसने समाजशास्त्रपर एक बहुत बड़ा ग्रंथ लिखकर बतलाया है, कि समाजरचनाका शास्त्रीय रीतिसे किस प्रकार विवेचन करना चाहिये । अनेक शास्त्रोंकी आलोचना करके इसने यह निश्चित किया है, कि किसीभी शास्त्रको लो, उसका विवेचन पहले पहल Theological पद्धतिसे किया जाता है; फिर Meta - physical पद्धतिसे होता है; और अंत में उसको Positive स्वरूप मिलता है । उन्हीं तीन पद्धतियोंको हमने इस ग्रंथ में आधिदैविक, आध्यात्मिक और आधिभौतिक ये तीन प्राचीन नाम दिये हैं। ये पद्धतियाँ कुछ कोंटकी निकाली हुई नहीं हैं; ये सब पुरानीही हैं तथापि उसने उनका ऐतिहासिक क्रम नई रीतिसे बाँधा है; और उनमें आधिभौतिक (Positive ) पद्धतिकोही श्रेष्ठ बतलाया है; बस इतनाही कोंटका नया शोध है। कोंटके अनेक ग्रंथोंका अंग्रेजी में अनुवाद हो गया है । अब वह रेल और तार सरीखे उपयोगी आविष्कारोंको ढूंढ़ कर सृष्टिपर अपना अधिक प्रभाव जमाने लग गया है। इस मार्गको कोंटने 'आधिभौतिक' नाम दिया है। उसने निश्चित किया है कि किसीभी शास्त्रया विषयका विवेचन करनेके लिये अन्य मार्गोंकी अपेक्षा यही आधिभौतिक मार्ग अधिक श्रेष्ठ और लाभकारी है। कोंटके मतानुसार समाजशास्त्र या कर्मयोगशास्त्रका तात्त्विक विचार करनेके लिये इसी आधिभौतिक मार्गका अवलंब करना चाहिये । इस मार्गका अवलंब करके इस पंडितने इतिहासकी आलोचना की; और सब व्यवहारशास्त्रोंका यही मथितार्थ निकाला है, कि इस संसार में प्रत्येक मनुष्यका परम धर्म यही है, कि वह समस्त मानत्र जातिसे प्रेम करें और सब लोगोंके कल्याणके लिये सदैव प्रयत्न करता रहे । मिल और स्पेन्सर आदि अंग्रेज पंडित इसी मतके पुरस्कर्ता कहे जा सकते हैं। इसके उलटे कांट, हेगेल, शोपेनहौएर आदि जर्मन तत्त्वज्ञानी पुरुषोंने, नीतिशास्त्र के विवेचनके लिये इस आधिभौतिक पद्धतिको अपूर्ण माना है और हमारे वेदान्तियोंकी नाई अध्यात्मिबुद्धिसेही नीतिके समर्थन करने के मार्गको आजकल उन्होंने युरोपमें फिर स्थापित किया है । इसके विषय में और अधिक आगे चलकर लिखा जाएगा । एकही अर्थके विवक्षित होनेपरभी अच्छा और बुरा के पर्यायवाची भिन्न भिन्न शब्दों का - जैसे 'कार्य-अकार्य' और 'धर्म्य अधयं' का - उपयोग क्यों होने लगा ? इसका कारण यही है कि विषय प्रतिपादनका मार्ग या दृष्टि प्रत्येककी भिन्न भिन्न होती है । अर्जुनके सामने यह प्रश्न था कि जिस युद्धमें भीष्म, द्रोण आदिका वध करना पड़ेगा, उसमें शामिल होना उचित है या नही ( गीता. २.७ ) और यदि इसी प्रश्नका उत्तर देनेका प्रसंग किसी आधिभौतिक पंडितपर आता, तो वह पहले इस बातका विचार करता, कि भारतीय युद्धसे स्वयं अर्जुनको दृश्य हानि या लाभ कितना होगा; और कुल समाजपर उसका क्या परिणाम होगा । यह विचार करके तब उसने निश्चय किया होता, कि युद्ध करना 'न्याय्य' है या 'अन्याय्य' । इसका कारणय ह है कि किसी कर्मके अच्छेपन या बुरेपनका निर्णय करते समय ये आधिभौतिक पंडित यही सोचा करते हैं, कि इस संसार में उस कर्मका आधिभौतिक परिणाम अर्थात् प्रत्यक्ष वाह्य परिणाम क्या होगा - ये लोग इस आधिभौतिक कसौटीके सिवा और किसी साधन या कसौटीको नहीं मानते । परंतु ऐसे उत्तरसे अर्जुनका समाधान होना संभव नहीं था। उसकी दृष्टि उससे भी अधिक व्यापक थी। उसे केवल अपने सांसारिक हितका विचार नहीं करना था; किंतु उसे पारलौकिक दृष्टिसेभी यह निर्णय कर लेना था कि इस युद्धका परिणाम मेरी आत्मा के लिये श्रेयस्कर होगा या नही। उसे इस बातकी कुछभी शंका नहीं थी, कि युद्धमें भीष्म-द्रोण आदिओंका वध होनेपर तथा राज्य प्राप्ति होनेपर मुझे ऐहिक सुख मिलेगा या नहीं; और मेरा शासन लोगोंको दुर्योधनसे अधिक सुख& दायक होगा या नहीं। उसे यही देखना था, कि में जो कर रहा हूँ वह 'धर्म्य' है या 'अधर्म्य'; अथवा 'पुण्य' है या 'पाप'; और गीताका विवेचनभी इसी दृष्टिसे किया गया है । केवल गीतामेही नहीं; किंतु महाभारत में कई स्थानोंपरभी कर्मअकर्मका जो विवेचन है, वह पारलौकिक और अध्यात्मदृष्टिसेही किया गया है । और वहाँ किसीभी कर्मका अच्छापन या बुरापन दिखलानेके लिये प्रायः सर्वत्र 'धर्म' और 'अधर्म' इन दो शब्दोंका उपयोग किया गया है। परंतु 'धर्म' और उसका प्रतियोगी 'अधर्म' ये दोनों शब्द अपने व्यापक अर्थके कारण कभी कभी भ्रम उत्पन्न कर दिया करते हैं । इसलिये यहाँपर इस बातकी कुछ अधिक मीमांसा करना आवश्यक है कि कर्मयोगशास्त्र में इन शब्दोंका उपयोग मुख्यतः किस अर्थमें किया जाता है। नित्य व्यवहारमें 'धर्म' शब्दका उपयोग केवल "पारलौकिक सुखका मार्ग " इसी अर्थमें किया जाता है। जब हम किसीसे प्रश्न करते हैं, कि "तेरा कौनमा धर्म है ? " तब उससे हमारे पूछनेका यही हेतु होता हैकि तू अपने पारलौकिक कल्याणके लिये किस मार्ग - वैदिक, वौद्ध, जैन, ईसाई, मुहम्मदी या पारसी पर चलता है; और वह हमारे प्रश्न के अनुमारही उत्तर देता है। इसी तरह स्वर्गप्राप्ति के लिये साधनभूत यज्ञ-याग आदि वैदिक विषयोंकी मीमांसा करते समय " अथातो धर्मजिज्ञासा आदि धर्मसूत्रोभी धर्म शब्दका यही अर्थ लिया गया है; परंतु 'धर्म' शब्दका इतनाही संकुचित अर्थ नहीं है । इसके सिवा राजधर्म, प्रजाधर्म, देशधर्म, कुलधर्म, मित्रधर्म इत्यादि सांसारिक नीति बंधनोंकोभी 'धर्म' कहते हैं। धर्म शब्दके इन दो अर्थोंको यदि पृथक् करके दिखलाना हो, तो पारलौकिक धर्मको 'मोक्षधर्म' अथवा सिर्फ़ 'मोक्ष' और व्यावहारिक धर्म अथवा केवल नीतिको केवल 'धर्म' कहा करते हैं। उदाहरणार्थ, चतुर्विध पुरुषार्थकी गणना करते समय हम लोग ' धर्म अर्थ, काम, मोक्ष' कहा करते हैं। इसके पहले शब्द 'धर्म' मेंही यदि मोक्षका समावेश हो जाता, तो अंतमें मोक्षको पृथक् पुरुषार्थ बतलानेकी आवश्यकता न रहती । अर्थात् यह कहना पड़ता है, कि 'धर्म'पदसे इस स्थानपर संसारके सैकड़ों नीतिधर्मही शास्त्रकारोंको अभिप्रेत है। उन्हींको हम लोग आजकल कर्तव्यकर्म, नीति, नीतिधर्म अथवा सदाचरण कहते हैं; परंतु प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में 'नोति' अथवा 'नीतिशास्त्र' शब्दोंका उपयोग विशेष करके राजनीतिहीके लिये किया जाता है। इसलिये पुराने जमानेमें कर्तव्यकर्म अथवा मदाचारके सामान्य विवेचनको 'नीतिप्रवचन' न कहकर 'धर्मप्रवचन' कहा करते थे। परंतु 'नीति' और 'धर्म' इन दो शब्दोंका यह पारिभाषिक भेद सभी संस्कृत ग्रंथों में नहीं माना गया है। इसलिये हमनेभी इस ग्रंथ में 'नीति', 'कर्तव्य' और 'धर्म' शब्दोंका उपयोग एकही अर्थमें किया है; और मोक्षका विचार जिन स्थानोंपर करना है, उन प्रकरणोंके 'अध्यात्म' और 'भक्तिमार्ग' ये स्वतंत्र नाम रखे हैं। महाभारतमें गी. र. ५
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समाप्त होने पर पूर्ण उपवास में उपर्युक्त दोनों लक्षण म्पष्ट रूप से दीखने ही चाहिए । हमारे चिकित्सालयों में अतिजीर्ण तथा कष्टसाध्य रोगी होने के कारण पूर्ण उपवास के उदाहरण कम मिलते है । शरीर-शुद्धि पूर्ण होने तक ले जानेवाली शारीरिक एवं मानसिक शक्ति बहुत कम लोगों में पायी जाती हैं । सम्पूर्ण शरीर-शुद्धि तक उपवास करना कई दृष्टियों से हितकर है; क्योंकि पूर्ण शुद्धि के पश्चात् रोगी की सच्ची भूख खुलने के कारण उसको कम समय में सन्तुलित आहार पर ला सकते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर समय की बचत ही होती है। पूर्ण शरीर-शुद्धि के अन्त तक पहुँचे विना उपवास तोडने से रोगी को रसाहार या शुद्धाहार में अधिक समय तक रखना पड़ता है। अथवा थोडे दिनों के अन्तर पर छोटे-छोटे उपवास करके भी गरीर-शुद्धि प्रक्रिया पूरी हो सकती है । क्या पूर्ण शरीर-शुद्धि के बिना भी सच्ची भूख खुल सकती है ? शरीर में पोषक तत्वों का ( आपत् काल के लिए ) जो सचय रहता हैं, उपवास काल में गरीर उसी पर अपना निर्वाह तथा जीवनक्रम चलाता है । प्रायः ऐसा देखा गया है कि पुराने जीर्ण रोगियों के शरीर पर विजातीय द्रव्य का बोझ इतना अधिक होता है कि उन सबको शरीर से बाहर निकालने के पूर्व ही शरीर के पोषक तत्वों का सचय समाप्त हो जाता है । अब पोषक तत्त्वों का सग्रह समाप्त होने पर शरीर को कहाँ पोषण मिलेगा १ लेकिन शरीर विवेकी है, वह गलती नहीं करता । अन्दर का पोषण समाप्त होने पर बाहर से आहार द्वारा पोषण की माँग करता है. ताकि भुखमरी ( Starvation ) से शरीर की रक्षा की जा सके । इस प्रकार सचित पोषक तत्वों की समाप्ति के बाद, शरीर-शुद्धि अधूरी रहने के बावजूद शरीर पोषक तत्वों की माग सच्ची भूख द्वारा उपवास - ही चारता है । वह कृत्रिम भूख नहीं होती, वह सतत बनी रहेगी, जब तक कि उसको कुछ योग्य पोषण न दिया जाय । बहुत सम्भव है कि ऐसे मौके पर पूर्ण शरीर-शुद्धि के आठो लक्षणों मैं से सच्ची भूख के अलावा और कोई भी लक्षण प्रकट न हो । जीभ भी पूरी तौर से साफ न हो । आँख या पेशाब में भी कुछ ग़न्दगी दिखाई दे । अर्थात् सच्ची भूख के अतिरिक्त अन्य सातो लक्षण विलकुल दिखाई न देते हों, फिर भी रसाहार द्वारा ही उपवास तोडना चाहिए, सच्ची भूख लगने पर तोड़ने में देर करना उचित नहीं है । ऐसे रोगी को थोड़े दिन के बाद पुन उपवास करवाया जा सकता हैं; जब उपवास की कमजोरी दूर हो जाय एव कुछ शक्ति पैदा हो जाय । इस प्रकार के दो उपवास के बीच रोगी को शुद्धाहार अर्थात् सूखे तथा ताजे फल, कच्ची ताजा शाक-सब्जी और आवश्यकता होने पर किंचित् प्रोटीन ( दूध तथा सूखे मेवे या मूँग का पानी भी ) दे सकने है । दूसरे उपवास की तैयारी की दृष्टि से ही प्रोटीन की मात्रा कम-सेकम देना उचित है । आहार का प्रकार तथा परिमाण निश्चित करते समय गरीर-शुद्धि की ओर अधिक ध्यान या झुकाव रहे; ताकि शरीर के सचित मल में वृद्धि न होने पाये और आगे आनेवाले उपवास की काल मर्यादा में कुछ कमी की जा सके । कभी-कभी ऐसा देखा गया है कि प्रारम्भ में दो-एक छोटे उपवाम करने से शरीर को भी धीरे-धीरे उपवास की आदत हो जाती है और इसके बाद अधिक लम्बे उपवास रोगी आसानी से कर सकता है। कटिन जीर्ण रोगियों के लिए उपवास की काल मर्यादा अनुभवी चिकित्सक की सलाह से ही निश्चित करनी चाहिए, अन्यथा खतरनाक स्थिति पैदा होने की सम्भावना रहती है । उपवास की काल मर्यादा एक रोगी को सम्पूर्ण शरीर-शुद्धि के लिए कितने दिन का उपवास करना चाहिए, यह बात उपवास के प्रारम्भ में ही निश्चित करना करीरउपवास तोडना करीब अशक्य है। शरीर में मल-संचय कितना है ? रोग कितना पुराना है ! रोगी की जीवनी शक्ति तथा मानसिक अवस्था कैसी है ? इन चारों बातो का सही तौर पर पता लगने पर ही उपवास की अवधि निर्धारित की जा सकती है । प्रतिदिन रोगी के पास जाकर उसकी शारीरिक तथा मानसिक अवस्था का निरीक्षण करते हुए उसके उपवास-काल मे एक-एक दिन की वृद्धि करने में बडी आसानी होती है। रोगी के मन पर उपवास की लम्बी अवधि का बोझ नही होना चाहिए । रोगी अगर स्वयं अकेले में लम्बा उपवास करना चाहता है, तो भी उसे प्रतिदिन अपनी शारीरिक स्थिति का निरीक्षण करते हुए एक-एक दिन आगे बढना चाहिए । ५-७ दिन या १० दिन के छोटे उपवास की अवधि शुरू में निश्चित की जा सकती है। लेकिन इससे लम्बा उपवास अनुभवी चिकित्सक की देखरेख में एक-एक दिन बढ़ाते हुए ही करना, उपयुक्त है। उपवास तोड़ने की विधि उपवास तोडना एक 'कला' है । शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से दरोगी की उपवास की मर्यादा पूरी हो चुकी है या नहीं, यह जानना जरूरी है। कभी-कभी रोगी की मानसिक दुर्बलता या अल्प अनुभवी चिकित्सक के मन में उपवास के प्रति अज्ञात रूप से भय रहता है। उसके कारण भी उपवास तोड़ने मे जल्दवादी की जाती है । इसके विपरीत अपवाद के तौर पर कभी-कभी रोगी या चिकित्सक का अति आग्रही स्वभाव होने के कारण उवास तोडने में अनावश्यक देर भी की जा सकती है। इन दोनों प्रकार की गलतियों से बचकर उचित समय पर व्यवस्थित ढंग से गान्तिपूर्वक उपवास तोडना बहुत महत्त्व की बात है । पेह के पके सतरे के रस से उपवास तोडना सर्वोत्तम है । तीन सप्ताद् या उससे अधिक लम्बे समय का उपवाम तोडते समय इसके समपरिमाण में पानी पिलाना चाहिए। इससे रस सुपाच्य हो जाता है। १०-१५ दिन के छोटे उपवास में रस में पानी मिलाने की आवश्यकता नहीं है। रस को तार की बारीक चलनी या मोटे कपडे मे अच्छी तरह छान लेना चाहिए । संतरे का रस सुपाच्य होने के कारण उससे शरीर को अल्प समय में पोषण मिलने लगता है। उसका स्वाद खटमिट्टा होने के कारण वह रुचिकर लगता है । मोसम्बी के रस में शक्कर की मात्रा अधिक होने के कारण वह पचने में संतरे की अपेक्षा कुछ भारी होता है। वैसे छोटे उपवास के बाद मोसम्बी से भी उपवास तोडा जा सकता है, लेकिन लम्बे उपवास तो सतरे के रस से ही तोडने चाहिए । अन्यथा मोसम्बी से गैस पैदा होने की संभावना रहती है। फिर भी सतरे के अभाव मे मोसंबी-रस मे ड्योढा या दुगुना पानी मिलाकर दिया जा सकता है। मोसची खूब अच्छी पकी हुई होनी चाहिए, अधपकी या कच्ची मोसची का रस कुछ कसैला होता है। उससे रोगी की भूख मद पड़ जाती है और कभी-कभी पेट में दर्द भी हो सकता है। इसलिए दुर्बल या जीर्ण रोगी के छोटे उपवास भी सन्तरे के रस से तोड़ना उचित है । इससे भूख उत्तरोत्तर बढ़ती है एवं पाचनसम्बन्धी कोई समस्या पैदा नहीं होती। कितने दिनो के उपवास के बाद कितनी मात्रा में रस देना चाहिए. यह 'उपवास की कहानी' प्रकरण में विस्तृत रूप से बताया गया है। फिर भी प्रथम दिन १० तो० रस में ५ या १० तोला पानी मिलाकर ३-४ घंटे के अन्तर से देना चाहिए । भूख-वृद्धि के अनुसार रस की मात्रा बढ़ाते हुए ३ से ७ दिन तक रसाहार पर रखना चाहिए। इसके उपरान्त ३ से ७ दिन तक ताजे मीठे मुलायम फल, कच्ची ताजी मुलायम साग-भाजी (पकी या कच्ची ) पर रखना उचित है। इसके पश्चात् रोगी को प्रमशः संतुलित आहार पर लाना चाहिए । इस प्रकार साधारण तौर पर तीन सप्ताह के बाट रोगी को पूर्ण आहार पर लाया जा सकता है। लम्बे उपवास में पूर्ण शुद्धि के पश्चात् सच्ची भूख खुलने पर रोगी को संतुलित आहार पर शीघ्र या कम अवधि में ला सकते हैं, फिर भी उसमें कम-से-कम १२ या १५ दिन का समय तो लग ही जायगा । पूर्ण लबे उपवास के बाद भूख इतनी स्पष्ट एवं तीव्र होती है कि आहार में क्रमशः, लेकिन शीघ्रतापूर्वक वृद्धि करनी पड़ती है। उस समय अनावश्यक विलम्ब करना उचित नहीं है। इसलिए भूख की तीव्रता के अनुसार रसाहार या शुद्धाहार में वृद्धि तथा परिवर्तन करना चाहिए । सावधानी न रखने पर भूख एकदम नष्ट हो जाती है। उस अवस्था में भूख खोलने के लिए रोगी को पुनः दो-एक दिन के रसाहार या उपवास पर रखने की आवश्यकता रहती है। भूख से थोडी कम खूराक लेकर पेट को सदैव हल्का रखना सुरक्षित है । यह ध्यान में रखना चाहिए कि लम्बे उपवास के बाद शरीर को प्रोटीन, वसा तथा प्राकृतिक शर्करा की आवश्यकता प्रचुर मात्रा में होती । तथापि पाचन-सस्थान जब नियमित रूप से विधिवत् काम करने लगे तभी प्रोटीन, वसायुक्त गरीर बाँधनेवाला आहार ( शुरू करना उचित है । पाचन पर विशेष बोझ न डालते हुए शरीर को पुष्ट बनाने का कार्य करना चाहिए । जल्दबाजी के कारण अपचन पैदा न हो जाय, उतनी सावधानी रखें । विशेष सावधानी अम्लता ( Acidity ), आमाशय-क्षत, आत्र-क्षत, सधिवात, जीर्ण प्रतिश्याय ( सर्दी ), दमा, दाद, डॅकवत (Eozema) आदि रोगो मे जब पूर्ण शुद्धि होने तक लम्बा उपवास करने में रोगी असमर्थ रहता है, तव पूर्ण शरीर-शुद्धि के पहले उपवास तोडने का प्रसग आता है। ऐसे मौके पर ऐसे रोगियों को खट्टे सन्तरे या मौसम्बी का रस अनुकूल नही पडता । इससे उनके रोग-लक्षणों में वृद्धि हो सकती है । इसलिए ऐसे रोगियों को मीठी मौसम्बी या अगूर का रस देना हितकर है । मौसम्बी या अगूर के अभाव में सूखे फल किसमिस, मुनका काली
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हृदय (heart) को दोवालों में पाई जाती है । यह विशेष प्रकार की पट्टीदार पेशी होती है, जिसके रेशे शाखायुक्त होते तथा इनको प्रशायाएँ समीपवर्ती रेशों की शाखाओं से जुड़ी रहती है । किया जाता है और बहुत दृढ होता है। योजक उतक की कोशिकाएँ संगठित न होकर विखरा रहती है। इस तक की विशेषता यह है कि इसकी कोशिकाएँ तो सजीव, किंतु मैट्रिक्स निर्जीव होता है । यहां निर्जीव पदार्थ अन्य ऊतकों को परस्पर बाँधे रहता है। इन कोशिकाओं को उत्पत्ति भ्रूण को मेसेन्कारमो (me.erchyme) कोशिकामों से होती है, जिनमें वारोक जीवद्रव्यीय प्रवर्ध (prot.hasnic proce-ses ) उगे रहते है । संयोजोऊतक भी कई प्रकार के होते हैं । चित्र २, ३ र ४ में विभिन्न प्रकार के संयोजी ऊतक दिखाए गए हैं । पेशीय ऊतक-- पेशियों का निर्माण ऐसी कोशिकाओं द्वारा हुआ होता है, जो श्रावश्यकता पड़ते ही तत्काल सिकुड़ जाती हैं । ये कोशिकाएँ लंबो लंबो, रेशों को प्राकृति को, होती है। उत्तेजना प्राप्त होने पर ये किसी भी दिशा में मुड़ सकती हैं। पेशी की कोशिकाएँ सवरण कार्य नही करती और वे संयोजी ऊतक द्वारा परस्पर जुड़ी रहती है । पेशीय ऊतक तीन प्रकार के होते है : स्तरित, अनस्तरित तथा हार्दिक । स्तरित ऊतक (striated ti sue) को स्वैच्छिक (voluntarv ) , पट्टीदार ( striped ) या कंकालीय (skeletal) पेशी ऊतक भी कहते हैं । स्तरित पेशीय रेशे बहुत लंबे, बेलनाकार होते और सार्कलिमा ( sarcolemma ) चित्र ४. जालक उत्त-क नामक एक प्रति पतली भिल्ली द्वारा के रहते हैं। स्तरित पेशी के संकुचनशील रेशों में दो प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं, जिनके कारण ये रेशे गहरो और हल्की पट्टियों से युक्त दिखलाई देते है । मनस्तरित पेशी ऊतक को चिकना पेशी रेशा भी कहते हैं । इन रेशो को कोशिकाएँ तकुने (spindle ) की आकृति की होती है। अतस्तरित पेशी अधिक यादिम (primitive) प्रकार की मानी जाती है । कजेको जनुयों में यह मुख्यतया मूत्राशय, पाचन नाल, श्वातली को दीवानों यादि में पाई जाती है। उन्हें पक (involuntary) पेशो भी कहते हैं । स्तरित पेशो उन स्थानों पर पाई जाती है जहां तोत्र गति की ग्रावश्यकता होती है। जैसे तेजी से उड़नेवाने फोड़ों के पंधी में ऐसी पेशियों अत्यधिक विकसित होती है। हार्दिक पेजो (cardiac muscle) केवल तंत्रिकोय ऊतक तंत्रिकीय ऊतक की कोशिकाएँ प्रति उत्तेजनगील (irri;able) होती हैं। उच्चतर जंतुओं में तंत्रिका तंत्र अतिविकसित अवस्था में होता है । तविकातंत्र (nervous system) तंत्रिका उनक द्वारा बना होता है । इस ऊतक को कोशिकाएं तंत्रिका कोशिकाएँ (cells) कहलाती हैं। इन कोशिकायों में रेशे होते हैं । तत्रिकाएँ समस्त शरीर में फैली रहती है और इनमें न्यूरानो (neurons ) की शृंखलाएँ (chains ) पाई जाती हैं । तंत्रिका रंशे कोशिकाद्रव्य (crtoplasm ) द्वारा बने तथा एक कोशिका भिल्ली ( cell membrane ) द्वारा ढके रहते हैं। कुछ रेशों की लंबाई तीन फुट तक होती है, जैसे स्पाइनल कार्ड से निकलकर हाथ या पैर तक फैला रेशा तीन फुट से भी अधिक लंबा होता है । तंत्रिका रेशे दो प्रकार के होते हैं : ऐक्सन और डेंड्राइट । ऐक्सन कोशिका संवेदनाओं को दूर ले जाती और डेंड्राइट बाहरी संवेदनाओं को कोशिका तक लेती है (रा० सिं० ) ऊतक परीक्षा निदान के लिये जीवित प्राणियों के शरीर से ऊतक (टिशू ) कोलकर जो परीक्षण किया जाता है उसे उनक परीक्षा (स) कहते हैं । द के निदान की ग्रन्य विधियां उपलब्ध न होने पर, संभावित ऊतक के अपेक्षाकृत एक बड़े टुवाड़े का सूक्ष्म अध्ययन ही निदान को सर्वोत्तम रीति है । शल्य चिकित्सा मे उसको महत्ता अधिक है, क्योंकि इसके द्वारा ही निदान निश्चित होता है तथा शल्य चिकित्सक को आंख बंदकर इलाज करने के बदले उचित इलाज करने का मार्ग मिल जाता है । ऊतक परीक्षा विधि रोग के प्रकार और शरीर में उसकी स्थिति पर निर्भर रहती है । जव अर्बुद सतह पर स्थित रहता है तब यह परीक्षा अर्बुद को काटकर की जाती है। किंतु जब वह गहराई में स्थित रहता है तब ऊतक का एक छोटा टुकड़ा पोली मुई द्वारा चूसकर अलग किया जा सकता है । यह 'सुई-उतक-परीक्षण (नाडिल-वाइप्सी) कहलाता है । ऊतक के इस तरह अलग करने के बाद विकृति-विज्ञान परीक्षक ( पैथालॉजिस्ट ) उसे हिम के समान जमाकर और उसके सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुप्रस्थ काट लेयर, कुछ मिनटों में ही निदान कर लेता है। स्तवग्रथि प्रर्बुद जैसे गंगी में, निदान की तुरंत आवश्यकता होने के कारण, यही विधि उपयोग में लाई जाती है, अन्यथा साधारणतः ऊतक का स्थिरीकरण करके और उसे सुखाकर मीम में जमा दिया जाता है । इसके बाद उससे एक इष्टिका (क) काटन जाती है । इस इष्टिका के सूक्ष्म अनुप्रस्थ काट (सेक्शन ) लेकर उन्हें उपयुक्त रंगों से रंजित किया जाता है। इस विधि मे साधारणतः एक से लेकर तीन दिन तक लगते हैं । कुछ चिकित्सक उतक परीक्षण के विपक्ष में हैं, क्योंकि उनकी यह शंका है कि ग्रंथियों के काटने से रोग गिरायों तथा नसीका तंत्री द्वारा फैल जाता है, किंतु यह सिद्ध हो चुका है कि ऊतक परीक्षा द्वारा रोग बढ्ने की संभावना प्रायः नही रहती । ( श्री० प्र०) ऊतक विज्ञान या ऊतिकी (Histology ) की परिभाषा देते हुए स्टोरर ने लिखा है : "ऊतक विज्ञान या सुक्ष्म शारीर (microscopic anatomy ) अंगों के भीतर ऊनकों को संरचना तथा उनके विद्वान ( arrang ment ) के अध्ययन को कहते है ।" अँगरेज का हिस्टोनॉजी यूनानी भाषा के शब्द हिस्टोस् (histos) तथा लॉजिया ( logia) से मिलकर बना है, जिनका अर्थ होता है उसको ( tissues ) का अध्ययन ।" अतः ऊतक विज्ञान व विज्ञान है, जिसके अंतर्गत ऊनको को सूक्ष्म संरचना तथा उनकी व्यवस्था अथवा विभागका प्रध्ययन किया जाता है । 'तर शब्द भाषा के शब्द टिशू (tissu) से निकला है, जिनका होता है या बनावट (texture ) 1 हम शब्द का प्रयोग सारी वैज्ञानिक (anatonist ) विट (Bichat) ने १८ शताब्दी के मं में शारीर या शरीर रचना विज्ञान के प्रसंग में किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक में लगभग बीस प्रकार के ऊतकों का उल्लेख किया है । किंतु, आजकल केवल चार प्रकार के मुख्य ऊतकों ( ३० ऊतक ) को मान्यता प्राप्त है, जिनके नाम हैं : इपोथिलियमी (epithelial), संयोजक (connective ) , पेशीय ( muscular) और तंत्रिकीय ऊतक ( nervous tissues ) । ( qualitative) ही होती हैं, संख्यात्मक (quantitative) नहीं । इसका कारगा यह है कि इन विधियों से रासायनिक पदार्थों के विस्तार (di tribution ) का ही पता चलता है, उनकी सांद्रता (concentration) कितनी है, इसका ज्ञान नहीं हो पाता । (२) लिंगरस्ट्रोम तथा लैग द्वारा विकसित अस्थायीकृत ( unfixed) तथा मालग्न विच्छेदों ( froen sections ) को जैवरासायनिक क्रियाओं (biolgical activities) की माप इस विधि की दूसरी विशेषता है । (३) अंत में, इस विधि द्वारा यह पता लगाया जाता है कि कोशिकाओं के एकल घटकों (isolat d constituents ) की क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं । इस विधि को वेन्स्ले ने विकसित किया था । इसके अंतर्गत कोशिकाओं के केंद्रकों (nuclei), माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria ) कणिकाओं (sccretory granules ) आदि को पृथक् करके उनकी रामायनिक तथा एंजाइनी ( enzymatically) परीक्षाएं की जाती हैं । आदिकाल से ही मनुष्य पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों को उनकी आकृति तथा आकार के द्वारा पहचानता रहा है । विज्ञान के विकास के साथ वनस्पतियों तथा जंतुनो के शरीर के भीतर की संरचना जानने की भी जिज्ञासा उत्पन्न होती गई । इसी जिज्ञासा के फलस्वरूप शल्यक्रिया ( surgery ) का विकास हुआ । चिकित्मा तथा जीववैज्ञानिकों ने पशु और वनस्पतियों की चीरफाड़ करके उनके अंग की संरचनाओं-- अंग प्रत्यंगों का अध्ययन प्रारंभ किया। इसी अध्ययन के फलस्वरूप संपूर्ण शारीर (gross anatomy ) की उत्पत्ति हुई । इसी के साथ जब सूक्ष्मदर्शी यंत्रों (micro-copes ) का विकास हुआ तो जटिल आंतरिक संरचनाएँ भी स्पष्ट होती गई । इस सूक्ष्मदर्शीय यांत्रिक अध्ययन को भौतिकी की संज्ञा प्रदान की गई । अतः ब्लूम तथा फॉसेट के शब्दों में "ऊतिकी या सूक्ष्मदर्शी शारीर के अंतर्गत शरीर की वह प्रांतरिक संरचना आती है जो नंगी आँखों से नहीं दिखलाई देती" । समस्त सजीव प्राणियों की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक (functional) इकाई कोशिका ( cell) होती है। इसी कोशिका के अध्ययन को कोशिका विज्ञान ( cytology ) कहा जाता है । कोशि काओं के पुंजों (groups) से ऊतकों और ऊतकों से अंगों को रचना होती है । ऊतकों की संरचना का अध्ययन करनेवाले विज्ञान को प्रतिको तथा अंगों की संरचना का अध्ययन करनेवाले विज्ञान को शारीर कहते हैं । ऊतिकी तथा कोशिका विज्ञान के अध्ययनों के कारण शरीर के दुर्भेद्य रहस्यों का भेदन होता गया। इन दोनों के संमिलित अध्ययन से ऊतिकी-रोग-विज्ञान ( histopathology ) का विकास हुआ । तन् १९३२ में नॉल एवं रस्का ने इलेक्ट्रान माइक्रॉस्कोप का श्राविप्कार किया, जिससे कोशिकाओं तथा ऊतकों की जटिलतम संरचनाओं का स्पष्टीकरण हुआ। इसी के साथ साथ शरीरक्रियाविज्ञान (physiology ) का भी विकास होता गया और नए नए रहस्यों का निरा वरण संभव हुआ । इस प्रकार इन तीनों विज्ञानों के संमिलित प्रयास से जीववैज्ञानिक क्षेत्र में पूर्व है । ऊतिकी और कोशिकाविज्ञान मुख्य रूप से सूक्ष्म संरचनाओं के आकारकीय स्वरूप को स्पष्ट करते हैं । किंतु जब से एनिलीन रंजकों (aniline dyes ) का अन्वेपण हुआ तब से कोशिकाओं की जटिल संरचनाओं का भी ज्ञान प्राप्त होने लगा है। आज सैकड़ों प्रकार के रंजकों का प्रयोग करके सूक्ष्म से सूक्ष्म संरचनाओं पर प्रकाश डाला जा रहा है । इस प्रकार, ऊतिकी के क्षेत्र में अव रसायनविज्ञान का भी प्रवेश हो गया है । भाँति भाँति के स्थायीकरों ( fixatives ) के प्रयोग से रंजकों की रासायनिक प्रतिक्रियाओं का समुचित ज्ञान प्राप्त हो रहा है । जीवद्रव्य (protoplasm ) , कोशिका द्रव्य ( cytoplasm ) तथा उनमे और कोशिकाओं के अनेक अंगों ( organelles ) की रासायनिक संरचनाओं का ज्ञान व सर्वसाधारण के लिये सुलभ है । ये अंगक किस प्रकार विशेषीकृत कार्य संपादित करते हैं, यह अब अज्ञात नहीं रह गया है । सूक्ष्म संरचनाओं (microscopic structure ) की रासायनिक प्रकृति के अध्ययन को ऊतिकीरसायन (histochemistry ) या कोशिकारसायन ( cytochemistry ) कहा जाता है और अब ऊतिकी तथा ऊतिकीरसायन का एक साथ अध्ययन किया जाता है । हेलेन डोन के मतानुसार इस प्रकार की अध्ययनविधियों की तीन प्रमुख कोटियाँ हैं : (१) ऊतकों के आंतरिक रासायनिक पदार्थों को, उनके वर्ग को परीक्ष ( colour test ) को प्रतिक्रिया और उनको प्रकाशिक विशेषताओं ( optic characters ) की पृष्ठभूमि में पहचान ( identification) । ये विधियाँ सामान्यतया गुरणात्मक वेली को ऊतिकी विषय पर लिखी पुस्तक में ऊतक विज्ञान के साथ ही कोशिका वैज्ञानिक अध्ययन पर भी वन दिया गया है । बेली के मतानुसार, "चूकि ऊतक विज्ञान संरचना संबंधी अध्ययन ( structural science) है और विच्छेदन ( dis-ection ) द्वारा प्राप्त शरीररचना संबंधी ज्ञान की पूर्ति करता है, अतः इसके शरीर क्रिया - विज्ञान (physiology ) तथा रोगविज्ञान ( pathologv ) से घनिष्ठ संबंध पर भी बल देना आवश्यक है ।" (वेलोज टेक्स्ट ग्रॉव हिस्टोलॉजी, संशोधक विल्फ़ेड एन० कोपेनहावर एवं डोरोथी डी० जॉनसन, विलियम्स ऐंड विल्किन्स कं०, वाल्टीमोर, १४वी आवृत्ति, १९५८) 1 इनके मतानुसार भी ऊनक विज्ञान का आधार कोशिकाशारीर (cell anatomy) अथवा कोशिकाविज्ञान ( cytology ) ही है । उपर्युक्त विवरण से यह प्रकट होता है कि कोशिकाविज्ञान तथा ऊतकविज्ञान का एक साथ अध्ययन किया जाना चाहिए । चूंकि कोशिकाएँ अतिसूक्ष्म संरचनाएँ होती हैं, अतः हम ऊतक विज्ञान को सूक्ष्मशारीर (microscopic anatomy ) का ही पर्याय मानकर ऊतिकी का अध्ययन करेंगे । चूँकि ऊतक कोशिकाओं द्वारा ही बने होते हैं, अतः ऊतिकी का अध्ययन हम कोशिकाओं के ही नाव्यन से करेंगे । ऊतिकीय विधियाँ - ऊतकों के सम्यक् अध्ययन के लिये यह प्राव - श्यक है कि सूक्ष्मदर्शक यंत्र तक उन्हें लाने के पूर्व उनको विशेष पद्धतियों द्वारा अभिकर्मित ( treatemnt ) किया जाये। उतक का सूक्ष्म अध्ययन करने के लिये यह अनिवार्य है कि वह अति पतला हो । जीवित ऊतक के विभिन्न भागों में बहुत समानताएँ पाई जाती है अतः उसका ठीक ठीक अध्ययन संभव नहीं होता । इन कठिनाइयों को दूर करने के लिये सर्वप्रथम ऊतक को ४ से ८ माइक्रॉन तक विच्छेदित कर लिया जाता है । इस कार्य के लिये 'माइक्रोटोम' यंत्र का प्रयोग किया जाता है । जीवित ऊतक का इतना सूक्ष्म विच्छेद तब तक संभव नहीं होता, जब तक वह कड़ा न हो । अतः ऊतक को कड़ा करने के लिये उसे विशेष प्रकार के रसायनों के घोल में स्थायीकृत ( fix ) किया जाता है। स्थायीकरण के उपरांत इस ऊतक को अलकोहलों के विभिन्न बोलो. अभिरंजकों ( stains ) तथा अन्य रसायनों में अभिकर्मित ( treat) करके निर्जल कर लिया जाता है । अंत में इसे विशेष गलनांक (melting point ) के पैराफीन मोम में, जो एक विशेष ताप पर पहले से ही गलाकर तैयार रखा जाता है, डाल दिया जाता है । कुछ समय बाद मोम के साथी के टुकड़ों को चतुर्भुजाकार (rectangular) साँचे में डाल दिया जाता है । जब मोम जमकर कड़ा हो जाता है, तो उसके छोटे छोटे टुकड़े काट लिए जाते हैं। इन टुकड़ों को माइक्रोटोम के विशेष भाग में जमाकर उसमें एक अति धारदार चाकू (razor ) से विशेष मोटाई के अनेक सेक्शन काट लिए जाते हैं । इन सेक्शनों को काँच की पट्टियों पर रखकर अध्ययन के लिये रख लिया जाता है । काँच की पट्टियों को होटिंग प्लेट पर रखकर उनका मोम गला लिया जाता है और ऊतक का सेक्शन काँच की पट्टी पर जम जाता है । इन सेक्शनों से लदी काँच की पट्टियों को विशेष रसायनों तथा अल्कोहल के घोलों में निर्जल
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सोर्श -- हरयाणा के हिस्सार जिले में स्थित यह एक कस्बा है, जिसके समीपस्थ किसी एक टीले से एक अभिलेख प्राप्त हुआ था ( एपि० इं०, XXI, भाग viii) 1 शिविपुर --शोरकोट अभिलेख के अनुसार शोरकोट का प्राचीन नाम शिविपुर या शिवपुर था, जो शिबियों की राजधानी थी ( एपि० इं०, XVI, 1921, पृ० 17; लाहा, ट्राइब्स इन ऐंट इंडिया, पृ० 83 ) । उत्तरापथ में स्थित शिवपुर या शिबियों की नगरी का वर्णन पाणिनि के भाष्यकार ने किया है (द्रष्टव्य, पतञ्जलि, IV. 2, 2 ) । शिव या शिवि-जन इरावती एवं चन्द्रभागा नदियों के मध्य पंजाब में झंग के शोरकोट क्षेत्र में रहते थे और इसलिए इसे उत्तरापथ में संमिलित किया गया है। यह एक अत्यंत प्राचीन जाति प्रतीत होती है, जिसका उल्लेख संभवतः प्रथम बार ऋग्वेद (VII. 18. 7 ) में हुआ है । वे दीर्घकाल तक स्वतंत्र थे, क्योंकि इनका उल्लेख न केवल सिकंदर कालीन यूनानी भूगोलवेत्ता एवं इतिहासकार वरन् पाणिनि ( IV. 2.109) के भाष्यकार भी करते हैं। बाद में वे भारत के सुदूर दक्षिण में चले गये थे ( तु० दशकुमार चरितम्, अध्याय, VI; वृह ( संहिता, अध्याय, XIV. श्लोक, 12 ) । ललितविस्तर ( पृ० 22 ) और महावस्तु में (लाहा, स्टडी ऑव द महावस्तु, पृ० 7) शिविदेश को जम्बुद्वीप के सोलह महाजनपदों में से एक बतलाया गया है। अरिट्ठपुर शिवि जनपद की राजधानी थी ( जातक, IV. पृ० 401 ) । अरिट्ठपुर (संस्कृत, अरिष्टपुर) को संभवतः पंजाब के उत्तर में स्थित टॉलेमी की अरिस्तीबोथ्रा से समीकृत किया जा सकता है, जो संभवतः द्वारावती ही है ( जातक, फासबाल, भाग, VI, पृ० 421; नं० ला० दे, ज्यॉग्रेफिकल डिक्शनरी, पृ० 11, 187 ) । क्षेमेन्द्र की बोधिसत्त्वावदानकल्पलता में शिववती नगरी का वर्णन है, जिसे राजा शिवि द्वारा शिवि देश की राजधानी से समीकृत किया जा सकता है ( 91 वाँ पल्लव) । प्राचीन यूनानी लेखकों ने पंजाब में स्थित सिबोइ ( Siboi ) के प्रदेश का उल्लेख किया है। विस्तृत विवरण के लिए द्रष्टव्य, बि० च० लाहा, इंडोलॉजिकल स्टडीज़, भाग, I पृ० शोण - (शोणा) यह गंगा की विज्ञात सबसे बड़ी निचली सहायक नदी है । एरियन की सोन, आधुनिक सोन् नदी, जबलपुर जिले में मैकाल (मेकल ) पर्वत - माला से निकलकर उत्तर पूर्व की ओर बघेलखंड, मिर्जापुर और शाहाबाद जिलों से गुजरती हुई पटना के समीप गंगा में मिलती है । रामायण के अनुसार ( आदिकाण्ड, 32 वाँ सर्ग, श्लोक, 8 - 9 ) यह सुरम्या नदी गिरिव्रज को परिवृत करने वाली दो पहाड़ियों और मगध से होती हुयी प्रवाहित होती है और इस कारण इसे मागधी कहा जाता था । पद्मपुराण (उत्तरखण्ड, श्लोक, 35-38 ) में इस बड़ी नदी का उल्लेख किया गया है। पुराणों में इसे ऋक्ष पर्वतमाला से निकलने वाली महत्त्वपूर्ण नदियों में से एक बतलाया गया है । इस नदी को पार करके दधीचि अपने पिता की तपोभूमि में पहुँचे थे ( हर्षचरित, प्रथम उच्छ्वास ) । कालिदास ने अपने रघुवंश ( VII. 36 ) में इसका उल्लेख किया है । मगध में राजगृह होकर बहने वाली इसके प्रवाह को सम्भवतः सुमागधा या सुमागधी कहा जाता था । यह बघेलखंड में पाँच सहायक नदियों, मिर्जापुर जिले में चार, पालामऊ और शाहाबाद जिले प्रत्येक में एक-एक नदी द्वारा आपूरित होती है। यह नदी पटना के पहले ही गंगा में मिलती है ( तु० रघुवंश, VII. 36, भागीरथीशोण इवोत्तरंग ) । विस्तृत विवरण के लिए द्रष्टव्य बि० च० लाहा, रिवर्स ऑव इंडिया, पृ० 261 सोरों - - इसका प्राचीन नाम सुकरक्षेत्र या सद्कार्यों का क्षेत्र था । यह कस्बा बरेली से मथुरा के राजपथ पर, गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित था ( कनिंघम, एं० ज्यॉ० इं० पू० 418 ) । यह उ० प्र० के इटावा जिले में स्थित था ( इंस्क्रिप्शंस ऑव नर्दर्न इंडिया, दे० रा० भंडारकर द्वारा पुनरावृत, नं० 416, वि० सं० 1245) I शृंगवेरपुर ( शृंगिवेरपुर ) -- बताया जाता है कि राम ने यहाँ पर गंगा को पार किया था। कनिंघम ने इसे सिंगरौर से समीकृत किया है, जो इलाहाबाद से पश्चिमोत्तर में 22 मील दूर एक बहुत ऊँचे कगार पर स्थित है ( आ० स० रि०, XI. 62, ज० रा० ए० सो० बं०, XV. संख्या, 2, 1949, पृ०131 ) । स्रुघ्न - - यह थानेश्वर से 38 या 40 मील दूर पर स्थित था । युवान- च्वाङ् ने इसे सु-लुकिन-ना ( Su-lukin-na ) कहा है। इसकी परिधि 1,000 मील थी । यह पूर्व में गंगा तक तथा उत्तर में एक उच्च पर्वतमाला तक फैला हुआ था जब कि यमुना इसके मध्य से बहती थी । कनिंघम के अनुसार, इसमें अवश्यमेव गिरि तथा गंगा नदियों के बीच में स्थित अंबाला और सहारनपुर जिले के कुछ भागों समेत, गढ़वाल और सिरमौर के पहाड़ी इलाके संमिलित थे । ( कनिंघम, एं० ज्यॉ० इं०, पृ० 395 और आगे ) । स्थानेश्वर ( स्थाणीश्वर ) -- यह प्राचीन भारत के प्राचीनतम स्थानों में से एक था । इसका नाम या तो ईश्वर अथवा महादेव का निवास स्थान होने के कारण, स्थान से या स्थाणु एवं ईश्वर के नामों के संयोग से ग्रहण किया गया । युवान- च्वाङ् ने इसे स-त-नि-शि-फा- लो ( Sa-ta-ni-shi-fa-lo ) कहा है, जिसकी परिधि 1, 100 मील से भी अधिक थी । वाण के हर्षचरित् (तृतीय उच्छ्वास ) के अनुसार यह श्रीकण्ठजनपद की राजधानी थी। कुरुक्षेत्र नामक प्रसिद्ध रणक्षेत्र थानेश्वर के दक्षिण की ओर, अंबाला से लगभग 30 मील दक्षिण में और पानीपत से 40 मील उत्तर में स्थित है। इस नगर में एक प्राचीन एवं जीर्ण किला था, जो सिरे पर लगभग 1200 फीट का वर्गाकार था, ( कनिंघम, एं०, ज्यॉ० इं०, पृ० 376 और आगे, 701 )। एस० एन० मजूमदार ने (कनिंघम, एं० ज्यॉ० इं०, इंट्रोडक्शन, XLIII ) इसे विनय महावग्ग ( V. 13, 12 ) और दिव्यावदान ( पृ० 22 ) में वर्णित थून (स्थून ) से समीकृत करने का सुझाव रखा है। थून ब्राह्मणों का एक गाँव था ( तु० जातक, VI, 62 ) जो मध्यदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित था ( विनय टेक्स्टस, सै० बु० ई०, XVII. 38-39 ) । शुक्तिमती -- महाराजा वैश्रवण के शासनकाल में 107 वर्षाकित कोसम अभिलेख में इस स्थान का उल्लेख प्राप्त होता है जो संभवतः कौशाम्बी के समीप स्थित था । चेतिय जातक ( संख्या, 422 ) में इसे सोत्थिवती नगर कहा गया है ( एपि० इं०, XXIV, भाग, IV ) । यह चेदि-नरेश धृष्टकेतु की राजधानी थी ( महाभारत, III. 22 ) । यह शुक्तिमती नदी के तट पर स्थित था, जो महा भारत के अनुसार (भीष्मपर्व, VI. 9 ) भारतवर्ष की एक नदी थी । सुमेरु -- पद्यपुराण (उत्तरखंड, श्लोक, 35-38 ) तथा कालिकापुराण (अध्याय, 13, 23; अध्याय 19-92) में इसका उल्लेख किया गया है। शिव ने इसका शिखर देखा था (कालिकापुराण, अध्याय, 17. 10 ) । इस पर्वत से जम्बु नदी निकलती है (वही, अध्याय, 19 32 ) । यह सिनेरु या मेरु पर्वत ही । सुंसुमारगिरि ( सिशुमार पहाड़ी ) -- यह मर्ग देश में था ( संयुत्त, III, 1 ) । यह मेसकलावन के किसी मृगवन में स्थित था । यह एक नगर था तथा इसकी राजधानी का यह नाम इसलिए था कि इसके निर्माण के प्रथम दिन ही निकटवर्ती एक झील में किसी कच्छप ने शोर मचाया था ( पपंचसूदनी, II, 65; सारत्थत्त्पकासिनी, II, 249 ) । वत्सराज उदयन एवं उसकी रानी वासवदत्ता का पुत्र, राजकुमार बोधि इस पहाड़ी पर रहता था और उसने यहाँ पर कोकनद नामक एक प्रासाद बनवाया था। बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार यह भर्ग राज्य की राजधानी थी, और इसका प्रयोग एक दुर्ग के रूप में किया जाता था ( मज्झिम, I, 332-338;II, 91-97 ) । कुछ विद्वानों ने इसे वर्तमान चुनार पहाड़ी से समीकृत किया है (घोष, अर्ली हिस्ट्री ऑव कौशाम्बी, पृ० 32 ) । इस पहाड़ी पर निवास करने वाले एक धनी गृहस्थ ने अपनी पुत्री का विवाह अनाथपिण्डिक क़े के पुत्र के साथ किया था ( रा० ला० मित्र, नर्दर्न बुद्धिस्ट लिटरेचर, पृ० 309) 1 सुन्दरिका -- यह प्राचीन भारत की सात पवित्र नदियों में से एक है । यह • कोशल की एक नदी थी जो अतिसंभवतः अचिरावती या राप्ती की सहायक नदी थी । यह श्रावस्ती से अधिक दूर नहीं थी ( सुत्तनिपात, पृ० 79 ) । सुनेत -- इसके भग्नावशेष पंजाब के लुधियाना जिले में स्थित हैं, जो लुधियाना नगर से तीन मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है ( जर्नल ऑव द न्युमिसमेटिक • सोसायटी ऑव इंडिया, जिल्द, IV, भाग, I, पृ० 1-2 ) । सुवर्णगुहा - यह चित्रकूट पर्वत पर है जो हिमालय क्षेत्र में स्थित है (जातक, III, 208)। श्वेतपर्वत ( सेतपब्बत ) - - यह हिमालय में तिब्बत के पूर्व में स्थित है ( संयुत्त, I, 67)। तक्षशिला -- (चीनी, शी-शी-चेंग Shi-Shi-Cheng ) - यह गन्धार जनपद की राजधानी थी । पाणिनि एवं पतञ्जलि ने क्रमशः अपनी अष्टाध्यायी ( 4, 3, 93) और महाभाष्य ( 1, 3, 1; 4, 3, 93, पृ० 588-89 ) में इसका वर्णन किया है। इसका उल्लेख प्रथम कलिंग शिलालेख में है। अशोक के शासनकाल में तक्षशिला में, जो सदैव एक विद्रोहशील प्रांत था प्रांताधिपति के रूप में एक कुमार की नियुक्ति की गयी थी । शिलालेखों में अशोक के शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों का उल्लेख किया गया है, जब तक्षशिला में इस प्रकार की कोई अशांति नहीं थी । एरियन ने इस नगर को विशाल, समृद्ध एवं जनाकीर्ण बतलाया है। स्ट्रेबो ने यहाँ की भूमि की उर्वरता की प्रशंसा की हैं । प्लिनी ने इसे एक प्रसिद्ध नगर बतलाया है, और कहा है कि यह पहाड़ियों की तलहटी में समतल में स्थित था। कहा जाता है कि पहली शती ई० के मध्य यहाँ पर ट्र्याना का अपोलोनियस ( Apollonius of Tyana ) तथा उसका साथी दमिस ( Damis ) आया था, जिन्होंने इसे निनेवा के आकार का बतलाया है, जो पतली किंतु सुव्यवस्थित सड़कों से युक्त किसी यूनानी नगर की भाँति प्राकारयुक्त था । सिकंदर के वंशानुगत होने के लगभग 80 वर्षों के पश्चात् तक्षशिला पर अशोक का आधिपत्य हो गया था। सातवीं शती ई० में युवान - च्वाङ् इस नगर में आया था, जब यह कश्मीर का एक अधीनस्थ राज्य था। चीनी यात्री के अनुसार तक्षशिला की परिधि 2,000 ली से तथा इसकी राजधानी की परिधि 10 ली से अधिक थी । यहाँ की भूमि उर्वर थी और यहाँ पर प्रवाहशील नदियों के कारण अच्छी पैदावार और प्रचुर वनस्पति 1 एच० एवं एफ० द्वारा अनूदित, III, १० 90. होती थी । यहाँ की जलवायु स्वास्थ्यवर्धक थी तथा यहाँ के निवासी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे । यद्यपि यहाँ पर अनेक विहार थे, किन्तु उनमें कुछ निर्जन हो चुके थे । यहाँ पर कुछ एक विहारों में रहने वाले भिक्षु महायान धर्मावलंबी थे (वाटर्स, ऑन युवान च्वाङ्, I, 240 ) । बौद्ध एवं जैन कहानियों में इसका वर्णन प्रमुख रूप से किया गया है । यह प्राचीन भारत में शिक्षा का एक महान केंद्र था। विविध कलाओं एवं शास्त्रों के अध्ययन के लिए भारत के विभिन्न भागों से यहाँ विद्यार्थी आते थे । कोशलनरेश प्रसेनजित् और मगध - नरेश बिम्बसार के विख्यात राजवैद्य जीवक की शिक्षा यहीं पर हुयी थी ( बि० च० लाहा, हिस्टॉरिकल ग्लीनिंग्स, अध्याय, I ) । उस समय के विद्यार्थी जीवन का एक अति सुंदर चित्र एक जातक में प्रस्तुत किया गया है ( जिल्द, II, पृ० 277 ) । इस नगर को पश्चिमी पंजाब के रावलपिंडी जिले में स्थित आधुनिक तक्षशिला से समीकृत किया गया है। इस पुर को मद्रशिला भी कहा जाता था और कालांतर में इसका नाम तक्षशिला पड़ा, क्योंकि यहीं पर एक ब्राह्मण-भिक्षुक ने राजा चन्द्रप्रभ का शिरोच्छेद किया था (दिव्यावदान माला, नर्दर्न बुद्धिस्ट लिटरेचर, पृ० 310 ) । भद्रशिला नामक नगर वैभवयुक्त, समृद्ध एवं जनसंकुल था । लंबाई-चौड़ाई में यह नगर 12 योजन था तथा यह चार तोरणों द्वारा सुविभक्त और ऊँचे महराबों एवं गवाक्षों द्वारा सज्जित था । हिमालय के उत्तर में स्थित यह नगर चन्द्रप्रम नामक राजा के शासनांतर्गत था ( बोधिसत्वावदान-कल्पलता, पञ्चम पल्लव ) । इस नगर में एक राजोद्यान था ( दिव्यावदान, पू० 315 ) । बोधिसत्त्वावदान-कल्पलता, ( 59 वाँ पल्लव) के अनुसार जब कुणाल इसे जीतने के लिए भेजा गया था, तव तक्षशिला राजा कुंजरकर्ण के अधीन थी । दिव्यावदान से ऐसा प्रतीत होता है कि तक्षशिला अशोक के पिता मगध-नरेश बिन्दुसार के साम्राज्य में संमिलित थी । तक्षशिला, जो गन्धार की प्राचीन राजधानियों में से एक थी, सिन्धु नदी के पूर्व में स्थित थी । कनिंघम के विचार से तक्षशिला शाह-ढेरी के समीप काल-कासराय के ठीक एक मील उत्तर-पूर्व में, किसी दुर्गीकृत नगर के विस्तृत भग्नावशेषों में जिनके परितः कम से कम पचपन स्तूप, अट्ठाइस विहार और नौ मंदिर पाये गये थे, स्थित है। शाह- ढोरी से ओहिंद की दूरी 36 मील और ओहिंद से हश्त - नगर की दूरी 38 मील है । इस प्रकार कुल दूरी 74 मील है, जो प्लिनी द्वारा 1 संप्रति पश्चिमी पाकिस्तान में स्थित । बतलायी गई तक्षशिला और पुष्कलावती ( Peukelaotis ) के बीच की दूरी से 19 मील अधिक है । इस असंगति का समाधान करने के लिए कनिंघम ने 60 मील को 80 मील (LXXX ) पढ़ने का सुझाव रखा है जो 73½ अंग्रेजी मीलों के बराबर है या जो दोनों स्थानों के मध्य की वास्तविक दूरी से केवल आधा मील कम है ( कनिंघम, ऐंश्येंट ज्यॉग्रेफी, पृ० 121 ) । डॉ० भंडारकर का मत है कि (कार्माइकेल लेक्चर्स, 1918, पृ० 54, पा० टि० ) अशोक के शासन काल में तक्षशिला गन्धार की राजधानी नहीं थी, क्योंकि उसके तेरहवें शिलाशासन से यह व्यक्त होता है कि गन्धार उसके खास राज्य में नहीं था, जबकि कलिंग के प्रथम शासन से यह स्पष्ट है कि तक्षशिला प्रत्यक्षतः उसके अधीन था, क्योंकि उसका एक पुत्र वहाँ पर नियुक्त किया गया था। यह तथ्य कि तक्षशिला उस समय गंधार की राजधानी नहीं थी, टॉलेमी के इस कथन से पुष्ट होता है कि गंडराई ( गन्धार ) देश अपने प्रोक्लाइस ( Proklais ) - पुष्करावती नगर समेत सिंधु नदी के पश्चिम में स्थित था ( तु० लेग्गे, ट्रावेल्स ऑव फा- ह्यान, पृ० 31-32; बि० च० लाहा, ट्राइब्स इन ऐंश्येंट इंडिया, पृ० 394-95; वि० च० लाहा, हिस्टॉरिकल ग्लीनिंग्स, अध्याय, I ; वि० च० लाहा, ज्यॉग्रफी ऑव अर्ली बुद्धिज्म, पू० 52-53; जर्नल ऑव द गंगानाथ झा रिसर्च इंस्टीट्यूट, जिल्द, VI. भाग, 4, अगस्त, 1949, पृ० 283-88 ) । तक्षशिला के उत्खननों एवं भग्नावशेषों के लिए द्रष्टव्य, आर्क० स० इं० रि०, II, ( 1871 ), पृ०112 और आगे; V. ( 1875 ), 66 और आगे; XIV ( 1882 ), 8 और आगे; ए० रि० आर्क० स० इं०, 1912-13, (1916) ; आर्क० स० इं० ए० रि०, 1929-30, पृ० 55 और आगे; वही, 1930-34, पृ०149 176, एनुअल रिपोर्ट ऑव द आर्क्लॉजिकल सर्वे ऑव इंडिया, 1936-7 (1940 ) । विस्तृत विवरण के लिए द्रष्टव्य, जे० मार्शल, गाइड टु तक्षशिला, तृतीय संस्करण ( 1936 ) ; बि० च० लाहा, इंडोलॉजिकल स्टडीज़, भाग I, पृ० 14-17. तमसा -- महाराज सर्वनाथ के खोह ताम्रपत्र-अभिलेख में इस नदी का वर्णन प्राप्त होता है, जो आधुनिक तमस या टोंस नदी है । यह नागौद के दक्षिण में महियार * से निकलती है और रीवां के उत्तरी भाग से बहती हुयी, इलाहाबाद से दक्षिण-पूर्व में लगभग 18 मील दूर गंगा में मिलती है ( का ० इं० इं० जिल्द, III ) । मार्कण्डेयपुराण (सर्ग, LVII, 22 ) में इस नदी का वर्णन है । पाजिटर के अनुसार यह इलाहाबाद के आगे गंगा में दाहिने तट पर मिलती है । कूर्मपुराण * मध्यप्रदेश में एक भूतपूर्व रियासत । XLVII. 30 ) में इसका एक अन्य नाम तामसी भी बतलाया गया है। कुछ लोगों की मान्यता है कि तमसा या पूर्वी टोंस नदी फैजाबाद से निकलती है। आजमगढ़. से बहती हुयी यह बलिया के पश्चिम में गंगा में मिलती है। यह रामायण-ख्याति की एक ऐतिहासिक नदी मानी जाती है ( रामायण, आदिकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक, 3 ) । राम ने अपना पहला पड़ाव इस नदी के तट पर किया था, जो गंगा से अधिक दूर नहीं थी और इसे पार कर के उन्होंने सड़क पकड़ कर यात्रा की थी और बाद में वह श्रीमती नदी पहुँचे । राम ने इस नदी की प्रशंसा की और इसमें स्नान करने की इच्छा की, क्योंकि यह पंक-हीन थी (रामायण, आदिकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक, 4-6 ) । रघुवंश के अनुसार, दशरथ ने अनेक यज्ञ-यूप बनवा. कर इस नदी के तट को अरंकृत किया था ( IX 20 ) । इस नदी का तट सदैव मुनियों से भरा रहता था ( रघुवंश, IX. 72 ) । दक्षिण टेंस नदी ऋक्ष पर्वत से उत्तर पूर्व की ओर बहती हुयी इलाहाबाद के आगे गंगा में मिलती है। यह बाँई ओर से दो तथा दाहिनी ओर से दो उपनदियों द्वारा आपूरित है। तामसवन- कनिंघम ने इसे पंजाब में सुल्तानपुर से समीकृत किया है । इसे रघुनाथपुर भी कहा जाता है ( ज० ए० सा० वं०, XVIII, पृ० 206, 479 ) 1 थूण ( स्थूण ) - स्थानेश्वर के अंतर्गत देखियं । त्रिगर्त - महाभारत (II, 48, 13 ) में वर्णित यह देश रावी एवं सतलज के मध्य स्थित था और इसकी राजधानी कहीं जालंधर के समीप थी । प्राचीन काल में यह काँकड़ा क्षेत्र का वाचक था ( मोचीचन्द्र, ज्यॉग्रफिकल ऐंड इकॉनॉमिक स्टडीज़ इन द महाभारत, उपायनपर्व, पू० 94 ) । दशकुमारचरितम् में त्रिगर्त्त देश में रहने वाले तीन समृद्ध गृहस्थों से संबंधित एक घटना का वर्णन है जो परस्पर भाई थे। उनके जीवन काल में निरंतर बारह वर्षों तक वर्षा नहीं हुयी; वृक्षों में फल नहीं लगे; वर्षालु बादल दुर्लभ थे; अनेक स्रोत एवं नदियाँ सूख गयीं थी तथा नगर, ग्राम, कस्बे तथा अन्य संनिवेश नष्ट हो गये थे, ( बृ० 150 - 151 ) । विस्तृत विवरण के लिए, द्रप्टव्य लाहा, ट्राइव्स इन ऐंश्येंट इंडिया, अध्याय, 12 ) । तृणविन्दु-श्राश्रम- प्रजापति के पुत्र पुलस्त्य यहाँ पर समाधि लगाने के लिए आये थे । यह मेरु पर्वत के किनारे स्थित था । जब वह वैदिक ऋचाओ का पाठ कर रहे थे, तृणविन्दु ऋषि की कन्या उसके समक्ष उपस्थित हुयी । पहले तो वह अभिशप्त हुई किंतु बाद में पुलस्त्य ने उससे विवाह कर लिया । तुलम्ब - - यह कस्बा रावी नदी के बाँयें तट पर मुल्तान के उत्तर-पूर्व में 52 मील दूर पर स्थित है (कनिंघम, एं० ज्यॉ० इं०, 1924, पृ० पृ० 257 ) । मूलतः
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फंसे हुए कर्ज़ (एनपीए) के काफ़ी बढ़ जाने की आशंका जताई गई है. है. हुए कर्ज़ बढ़कर 8. 1-9. 5 फ़ीसदी हो सकता है, जो सितंबर 2021 में 6. 9 फ़ीसदी रही है. भी हो सकती है. हिस्सा रहा है. जहां 6. 9 फ़ीसदी हो गई, वहीं शुद्ध एनपीए केवल 2. 3 फ़ीसदी रह गई. बुधवार को दिल्ली सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, कोरोना संक्रमण के 923 नए मामले रिपोर्ट हुए हैं. 30 मई के बाद एक दिन में रिकॉर्ड हुए कोविड संक्रमण के मामलों की ये रिकॉर्ड संख्या बताई जा रही है. संक्रमण के नए मामलों के साथ दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट बढ़कर 1. 29 हो गई है. मंगलवार को दिल्ली में 496 नए मामले रिपोर्ट हुए थे. दिल्ली सरकार ने मंगलवार को येलो अलर्ट का एलान किया था और आज राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट कल से दोगुना यानी एक फ़ीसदी पर पहुंच गया है. येलो अलर्ट के तहत स्कूल, कॉलेज, शैक्षणिक संस्थान, सिनेमा हॉल, जिम और स्पा पर पाबंदी लगा दी गई है. मॉल को ऑड-ईवन के आधार पर खोलने के लिए इजाजत दी गई है. मेट्रो में भीड़-भाड़ को देखते हुए 50 फीसदी क्षमता के साथ चलाने की इजाजत दी गई है. दिल्ली में रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक नाइट कर्फ्यू भी लागू है. देश में फिलहाल कोरोना के कुल एक्टिव केस क़रीब 77 हज़ार हैं. इनमें से 9,195 नए केस 24 घंटे में सामने आए हैं. भारत में अब तक ओमिक्रॉन वैरिएंट के 781 मामले सामने आए हैं. दुनिया की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी एप्पल का कहना है कि कुछ समस्याओं के चलते आईफ़ोन असेंबल करने वाली अपनी सहयोगी कंपनी फ़ॉक्सकॉन के तमिलनाडु के कारखाने को निगरानी (प्रोबेशन) में रखने का फ़ैसला लिया गया है. एप्पल के अनुसार, दोनों कंपनियों ने पाया था कि उस कारखाने के कर्मचारियों की आराम करने और खाने की जगह कंपनी के ज़रूरी मानकों को पूरा नहीं करते. वैसे पिछले साल उसने अपने एक दूसरे सप्लायर विस्ट्रोन को प्रोबेशन पर डाल दिया था, क्योंकि वहां उसके कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर हंगामा किया था. तब एप्पल ने कहा था कि वो उसे तब तक कोई काम नहीं देगी जब तक कि श्रमिकों की समस्याएं दूर नहीं हो जाती. एप्पल का ताज़ा क़दम फ़ॉक्सकॉन के संयंत्र में इस महीने श्रमिकों के आंदोलन के बाद आया. इस आंदोलन में तमिलनाडु में चेन्नई के निकट उसके श्रीपेरंबुदुर संयंत्र के क़रीब 250 महिलाओं को फ़ूड प्वाइजनिंग का शिकार हो जाना पड़ा. उसमें से 150 से अधिक महिलाओं को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. उस संयंत्र में 17 हज़ार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. इस समस्या के बाद कंपनी को 18 दिसंबर को फ़ॉक्सकॉन के इस संयत्र को बंद करना पड़ा था. दोनों कंपनियों ने अभी तक ये नहीं बताया है कि इसे कब दोबारा खोला जाएगा. लगभग सभी धर्मों का प्रचार सोशल मीडिया पर बढ़ा है. नन से लेकर इमाम और बाकी धर्मों के प्रचारक भी इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं और धर्म की बातें करते हैं. बीबीसी की एक रिसर्च में पता चला है कि टिकटॉक वह प्लेटफॉर्म है जहां धार्मिक कंटेट सबसे अधिक तेज़ी से फैल रहा है. सऊदी अरब ने कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग को एक बार फिर अनिवार्य कर दिया है. ये नियम इनडोर और आउटडोर दोनों जगह मान्य होंगे. सऊदी सरकार के एक मंत्री जानकारी दी है कि नए नियम कल यानी गुरुवार से लागू होंगे. सऊदी अरब में भी हालिया दिनों में सक्रमण के मामले बढ़े हैं. भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं. संक्रमण पर काबू पाने के लिए पाबंदियों का दौर शुरू हो गया है. अमेरिका और फ्रांस में नए मामलों का नया रिकॉर्ड कायम हो चुका है. वहीं, एक्सपर्ट दावा कर रहे हैं कि ओमिक्रॉन की चुनौती से निपटना आसान नहीं है. भारत में भी ओमिक्रॉन और कोरोना के दूसरे वैरिएंट से जुड़े केस बढ़ने के बाद ये सवाल किया जा रहा है कि क्या ये संक्रमण की तीसरी लहर की दस्तक है? कई एक्सपर्ट इस सवाल को पूरी तरह ख़ारिज नहीं कर रहे हैं. देश के कुछ हिस्सों में भले ही अब भी भीड़ भरी राजनीतिक रैलियां जारी हों लेकिन सरकारों ने पाबंदियां लगाना शुरू कर दिया है. दिल्ली सरकार ने मंगलवार को येलो अलर्ट का एलान किया था और आज राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट कल से दोगुना यानी एक फ़ीसदी पर पहुंच गया है. देश में फिलहाल कोरोना के कुल एक्टिव केस क़रीब 77 हज़ार हैं. इनमें से 9,195 नए केस 24 घंटे में सामने आए हैं. भारत में अब तक ओमिक्रॉन वैरिएंट के 781 मामले सामने आए हैं. सबसे ज़्यादा 238 संक्रमित दिल्ली से हैं. महाराष्ट्र में ये संख्या 167 है. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने बताया कि मुंबई में पॉजिटिविटी रेट 4 फ़ीसदी है. वहीं, राज्य सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे ने बताया कि पिछले हफ़्ते जहां 150 नए केस रोज आ रहे थे अब ये संख्या दो हज़ार केस रोजाना तक पहुंच रही है. बुधवार को अकेले मुंबई में कोरोना संक्रमण के 2510 नए मामले रिपोर्ट हुए हैं. तमिलनाडु के हेल्थ सेक्रेटरी जे राधाकृष्णन के मुताबिक चेन्नई में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं और टेस्ट की संख्या दो गुनी कर दी गई है. सौ फ़ीसदी कॉन्ट्रेक्ट ट्रेसिंग की जा रही है. बढ़ते मामलों के बीच दिल्ली स्थित पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के प्रोफ़ेसर श्रीनाथ रेड्डी ने बीबीसी से कहा कि राहत सिर्फ ये है कि अब तक ओमिक्रॉन से जुड़े मामलों में गंभीर लक्षण नहीं दिखे हैं. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि हम केस बढ़ते हुए देख रहे हैं. ख़ासकर बड़े शहरों में मामले बढ़ रहे हैं. मुंबई में 70 प्रतिशत का उछाल आया है. दिल्ली में 50 फीसदी मामले बढ़े हैं. हम जानते हैं कि ये बहुत संक्रामक वैरिएंट है. लेकिन अभी अस्पतालों में भीड़ नहीं है. ज़्यादातर केस में मामूली लक्षण दिखे हैं. ये राहत की बात है. हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि मामूली लक्षण होने के बाद भी ओमिक्रॉन वैरिएंट से जुड़ा जोखिम कम नहीं है. अमेरिका में जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी के ग्लोबल हेल्थ डायरेक्टर लॉरेंस गॉस्टिन भी कहते हैं कि ओमिक्रॉन वैरिएंट बड़ी चुनौती पेश कर रहा है. प्रोफेसर लॉरेंस ने कहा कि ये धरती का सबसे संक्रामक रोगाणु हो सकता है. हो सकता है कि ये इतिहास का सबसे ज़्यादा संक्रामक वायरस बन जाए. ये धरती पर मौजूद हर इंसान को प्रभावित कर सकता है. अब सवाल ये है कि क्या हम इसके साथ रह सकते हैं. "अब हमें ये पता लगाना है कि क्या ये गंभीर बीमारी की वजह बन रहा है. क्या इसकी वजह से अस्पताल जाना पड़ रहा है. क्या ये मौत की वजह बन रहा है और उसके मुताबिक बचाव के तरीके आजमाए जाने चाहिए. हमें इसी दिशा में सोचना चाहिए. " प्रोफ़ेसर लॉरेंस ने जैसे आगाह किया, वैसा अमेरिका और यूरोपीय देशों में दिख भी रहा है. अमेरिका में एक दिन में कोरोना के नए मामले सामने आने का नया रिकॉर्ड कायम हुआ. देश में सोमवार को साढ़े चार लाख नए केस दर्ज हुए. यूरोप के कई देश भी ओमिक्रॉन वौरिएंट पर रोक लगाने में जूझ रहे हैं. फ्रांस में एक दिन में करीब डेढ़ लाख नए केस मिले. इटली, ग्रीस, पुर्तगाल और इंग्लैंड में भी रिकॉर्ड मामले सामने आए हैं. ये माना जा रहा है कि क्रिसमस की वजह से मामले दर्ज करने में हुई देरी भी केस की संख्या बढ़ने की एक वजह हो सकती है. कोरोना महामारी में परिवार गंवाया, उत्तर प्रदेश चुनाव में क्या चाहते हैं ये लोग? जिन चेहरों की हंसी इस घर की दीवारों पर गूंजा करती थी, आज वही चेहरे इन दीवारों पर लटकी तस्वीरों में कैद हैं. कोरोना की भयावह दूसरी लहर इस परिवार पर कहर बनकर टूटी और परिवार के आठ सदस्यों को अपने साथ बहा ले गई. 22 अप्रैल से 15 मई के बीच क़रीब एक महीने में इस परिवार ने चार सगे भाइयों, दो बहनों, मां और बड़ी मां की अर्थियां उठने का दर्द सहा. लखनऊ से सटे इमलिया गांव के इस एक परिवार की कहानी उत्तर प्रदेश में उस वक़्त की भयावह तस्वीर को दिखाती है. सीमा यादव आज भी उस वक़्त को याद करके सिहर जाती हैं, जब एक के बाद एक होती मौतों से उनका पूरा परिवार उजड़ गया. समाजवादी पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कानपुर रैली में गड़बड़ी फैलाने के आरोप में गिरफ़्तार किए गए पांच कार्यकर्ताओं को पार्टी से निकाल दिया है. सपा की ओर से जारी किए गए आधिकारिक बयान में कहा गया है, "समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश पर सचिन केसरवानी, अंकुर पटेल, अंकेश यादव, सुकांत शर्मा और सुशील राजपूत को कल दिनांक 28 दिसंबर, 2021 को कानपुर में हुई घटना में तथाकथित संलिप्तता के कारण समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. " इससे पहले समाचार एजेंसी एएनआई ने रिपोर्ट दी थी कि मंगलवार को कानपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा में गड़बड़ी फैलाने की साज़िश रचने के आरोप में पुलिस ने पाँच लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया है. महिलाओं पर केंद्रित सोशल कम्युनिटी प्लेटफॉर्म पंखुड़ी और ग्रैबहाउस कंपनी की संस्थापक पंखुड़ी श्रीवास्तव की मौत चर्चा में है. ऐसी ख़बरें हैं कि उनका निधन कार्डियक अरेस्ट से हुआ है. वे 32 साल की थीं. इससे पहले 40 वर्षीय अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. क्या युवाओं में दिल की बीमारी बढ़ रही है? ब्रिटेन के अदालती इतिहास में इसे सबसे बड़ा तलाक़ केस कहा जा रहा है. अलग हो चुकी पत्नी से मामला सुलझाने के लिए दुबई के अरबपति शासक पर 55 करोड़ पाउंड की देनदारी आई है, यानी लगभग 5500 करोड़ या 55 अरब रुपये. ब्रिटेन के हाई कोर्ट ने मंगलवार को राजकुमारी हया बिंत अल-हुसैन से सेटलमेंट की राशि 25 करोड़ पाउंड तय की है. हया 47 साल की हैं और वो जॉर्डन के पूर्व किंग हुसैन की बेटी हैं. कांग्रेस पार्टी ने बुधवार को मोदी सरकार पर देश के रणनीतिक हितों के साथ समझौता करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस का कहना है कि मुनाफा कमाने वाली सरकारी कंपनी सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को एक ऐसी प्राइवेट कंपनी के हाथों बेचा गया है जिसे उस कारोबार का कोई अनुभव नहीं था. नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कांग्रेस के प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने ये दावा किया कि अलग-अलग तरीकों से कंपनी का मूल्यांकन करने पर सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड का वैल्यूएशन 957 करोड़ रुपये 1600 करोड़ रुपये के बीच में पड़ता है. कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने ग़ाज़ियाबाद की इस सरकारी कंपनी को नंदल फाइनेंस एंड लीजिंग प्राइवेट लिमिटेड को 210 करोड़ रुपये में बेच डाला. गौरव वल्लभ ने कहा, "हमारी मांग है कि इस बिक्री को रोका जाए. नंदल फाइनेंस के प्रमोटर नोएडा-ग़ाज़ियाबाद के क्षेत्र में एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी भी चलाते हैं और वे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के साथ करीबी रखने के लिए जाने जाते हैं. " सरकार ने सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को नंदल फाइनेंस एंड लीजिंग प्राइवेट लिमिटेड को 210 करोड़ रुपये में बेचने का एलान किया था. कंपनी की रिज़र्व कीमत 194 करोड़ रुपये रखी गई थी. एयर इंडिया की बिक्री के बाद विनिवेश की जाने वाली ये दूसरी सरकारी कंपनी है. कांग्रेस प्रवक्ता ने ये भी दावा किया कि सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को खरीदने वाली प्राइवेट कंपनी के पास महज 10 कर्मचारी हैं और नेशनल कंपनी लॉ अपीलाट ट्राइब्यूनल में कंपनी के ख़िलाफ़ एक मुक़दमा भी लंबित है. कोरोना महामारी की शुरुआत में डेमी स्किपर को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. वो बताती हैं कि उन्होंने बीते डेढ़ साल में कई चीज़ों का ट्रेड किया. उनका लक्ष्य था कि वो एक हेयरपिन के बदले एक मकान ले सकें, इस चुनौती को डेमी पूरा करने में कामयाब रहीं. देखिए उनकी कहानी. पाकिस्तान का कटासराज मंदिर देखा आपने? पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से दो घंटे की दूरी पर है पोथोहर पठार. यहां प्राचीन हिंदू मंदिर हैं जिन्हें कटासराज मंदिर कहते हैं. कहा जाता है कि यह जगह महाभारत कालीन है. दो साल के अंतराल के बाद, भारत से 87 यात्रियों का जत्था इन मंदिरों में आया. ये सभी यात्री वाघा बॉर्डर के रास्ते 17 दिसंबर को लाहौर पहुंचे. फिर सभी लोग 18 दिसंबर को कटासराज गए और 23 दिसंबर को भारत लौट गए. कटासराज की अगली यात्रा मार्च के महीने में शिवरात्रि के मौके पर आयोजित की जाएगी. कोलकाता समेत पूरे पश्चिम बंगाल में एक बार फिर तेज़ी से बढ़ते कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार स्कूलों-कॉलेजों को दोबारा बंद करने, लोकल ट्रेनों की संख्या घटाने और 50 फ़ीसदी कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम शुरू करने पर विचार कर रही है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को एक प्रशासनिक बैठक में हालात की समीक्षा के बाद इसके संकेत दिए. राज्य में बीते 24 घंटों के दौरान नए मरीजों की तादाद में रिकार्ड तीन सौ से अधिक की वृद्धि हुई है. कोरोना के मामले 439 से बढ़ कर 752 तक पहुँच गए हैं. दूसरी ओर, ओमिक्रॉन के पाँच नए मरीज बुधवार को सामने आए. राज्य में अब तक ऐसे 11 मरीज सामने आ चुके हैं. बीते 24 घंटे में जो 752 मामले सामने आए हैं उनमें से 382 अकेले कोलकाता में हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और लोकल ट्रेन सेवाओं पर फ़ैसला राज्य में कोविड-19 की स्थिति की अगली समीक्षा बैठक के बाद लिया जाएगा. अगले महीने होने वाले गंगासागर मेले को ध्यान में रखते हुए लोकल ट्रेनों को तत्काल बंद करना संभव नहीं है. ध्यान रहे कि करीब 20 महीने बाद बीते 16 नवंबर को राज्य के स्कूल-कॉलेज खोले गए थे. वैसे, राज्य में ओमिक्रॉन के पहले मामले की पुष्टि होते ही सरकार ने कोरोना की पाबंदियों को 15 जनवरी तक बढ़ा दिया था. इनमें रात 11 से सुबह पांच बजे तक कर्फ्यू भी शामिल है. लेकिन क्रिसमस और नए साल को ध्यान में रखते हुए 24 दिसंबर से पहली जनवरी तक इसमें ढील दी गई है. ममता ने आम लोगों से कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करने की अपील की है. आरबीएल बैंक, अचानक से यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक की कतार में खड़ा नज़र क्यों आ रहा है? रिज़र्व बैंक का कहना है -ऑल इज़ वेल. आरबीएल बैंक के नए मुखिया, अंतरिम सीईओ राजीव आहूजा का भी कहना है -ऑल इज़ वेल. लेकिन इन दोनों के जगाए भी भरोसा क्यों नहीं जग रहा है? कुछ तो पर्देदारी है. आख़िर आरबीएल बैंक में हुआ क्या है कि कई सालों से निवेशकों की आंख का तारा रहा यह बैंक अचानक यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक की कतार में खड़ा हुआ नज़र आ रहा है. और इससे बड़ा सवाल यह है कि क्या हुआ है जिसके बारे में न तो बैंक का मैनेजमेंट कुछ कह रहा है और न ही आरबीआई? रिज़र्व बैंक का कहना है कि बैंक में नकदी की कोई किल्लत नहीं है और खाताधारकों को घबराने की ज़रूरत नहीं है. विक्रम मिसरी बने नए डिप्टी एनएसए, चीन के साथ बदलेगा माहौल? तीन साल तक चीन में भारतीय राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं देने वाले विक्रम मिसरी को भारत का अगला उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार या डिप्टी NSA नियुक्त किया गया है. वो पंकज सरन की जगह लेंगे जो 31 दिसंबर तक इस पद बने रहेंगे. सरन रूस और बांग्लादेश में भारत के राजदूत रह चुके हैं. वहीं मिसरी ऐसे समय में चीन के राजदूत थे जब भारत और चीन के बीच संबंध बेहद नाज़ुक दौर से गुज़र रहे थे. भारत और चीन के बीच लद्दाख़ में नियंत्रण रेखा पर 19 महीनों तक सीमा गतिरोध बना हुआ था और अभी भी कुछ जगहों पर चीन और भारत के बीच डिसएंगेजमेंट प्रक्रिया को लेकर बातचीत चल रही है. ओमिक्रॉन के तेजी से बढ़ते मामलों पर आज का कार्टून. उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने एमवे, टपरवेयर और ऑरिफ्लेम जैसी डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों पर पिरामिड बिज़नेस मॉडल और पैसे बाँटने वाली योजनाओं को बढ़ावा देने से रोक लगा दी है. समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने कहा है कि इन कंपनियों को 90 दिनों के भीतर नए नियमों पर अमल करना होगा. नए नियमों के अनुसार, वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री के बाद आने वाली शिकायतों के लिए ये कंपनियाँ, इसके विक्रेताओं की तरह ही ज़िम्मेदार होंगी. केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी किए गए कन्ज़्यूमर प्रोटेक्शन (डायरेक्ट सेलिंग) रूल्स, 2021 डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर डायरेक्ट सेलिंग करने वाले विक्रेताओं, दोनों पर लागू होंगे. नए नियमों के अनुसार, राज्य सरकारों को कंपनियों और विक्रेताओं की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए व्यवस्था बनानी होगी. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऐसा पहली बार है जब कन्ज़्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री के लिए नियम बनाए गए हैं. अगर इनका अनुपालन नहीं किया गया तो क़ानून के अनुसार दंडात्मक प्रावधान भी उन पर लागू होंगे. नए नियमों के अनुसार, डायरेक्ट सेलिंग कारोबार से जुड़ी कंपनियों पर पिरामिड मॉडल और इस कारोबार से जुड़े लोगों को कमीशन के बंटवारे की प्रक्रिया पर भी रोक लगा दी गई है. ये नियम उन कंपनियों पर भी लागू होंगे जो भारतीय तो नहीं हैं लेकिन भारत में कारोबार करती हैं. महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे ने कहा है कि बुधवार को शायद मुंबई में 2000 से भी ज़्यादा कोरोना के नए मामले आ सकते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह यहाँ हर दिन 150 नए मामले सामने आ रहे थे, लेकिन अब ये मामले 2000 हो गए हैं. पिछले 24 घंटों में मुंबई में 1377 मामले दर्ज किए गए थे. उससे एक दिन पहले ये संख्या 809 थी. आदित्य ठाकरे ने ट्वीट किया है कि मुंबई में कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र बीएमसी के साथ उनकी बैठक हुई है, जिसमें मौजूदा स्थिति और तैयारियों की समीक्षा कई गई. साथ ही इस बैठक में 15 से 18 साल के बच्चों को वैक्सीन देने की योजना पर भी चर्चा हुई. आदित्य ठाकरे ने लोगों से अपील की है कि वे घबराएँ नहीं, लेकिन सतर्कता बरतें.
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मानलो भोर वह नित्य सस्कार एक स्वभावी सरकार सर्व पदार्थों में काम करा रहा है तो यह बात नहीं बनने की, जिस पदाथ में किया हो रही है उस ही पदार्थ में सकार की छांट करे कि इसमें किस तरहका सस्कार है तो विदिन हो जायगा कि उस पदार्थ मे जो एक विशेष प्रकारको किया होती रह रही है बस उसका नाम सस्कार है जिम क्रिया के बाद क्रिया चलनी रहती है। तो वेग नामका कोई मस्कार गुण नहीं, सो वह पदार्थों की क्रियाका कारण बने यह बात सिद्ध नहीं हो सकती । भावनामक संस्कार के द्वितीय भेदका शकाकार द्वारा प्रतिपादन - भव शकाकार कहता है कि सरकारका दूसरा भेद है भावना नामका सरकार देती है जीवमे कितना काम कराता रहता है। कहते है ना कि इस पुरुषमे ऐसा सस्कार पडा है कि वह अपने प्रच्छे कामको करता जायगा और उसमे ऊगा नहीं। मस्कार पड़ा है। इस बच्चेम वनपनसे धर्मका मस्कार पड़ा है तभी तो देखो । अब तक ध्यान पूजा, सामायिक प्रदि धार्मिक कार्योम इसका चित्त नगा रहता है । सस्कारजीवोम भी होता है । और उपका न म है भावना । तो सस्कार गुण कैसे नहीं है ? सस्कार गुणके ही कारण बच्चे लोग जवानीमे भी सम्हने रहते हैं । तो भावना नामक सरकार है और वह गुण नित्य है, सर्वव्यापक है। उसका ज्व मम व'य सम्बन्ध होता है तव जीवोच्छी है । किसीका बुरी भावना, संस्कार हो गया तो बुरो परिगति, किया बनती हेगो । तो इस तरह २१ वाँ जो सस्कार नामक गुण है उसको अनुभूतिसे भी मिद्धि होती है । भावनात्मक संस्कार की यथार्थ म्परेखामान कहते हैं कि भावनात्मक जो सरकार बनाया है वह हमे प्रतिष्ट नहीं है दृष्ट है, उसे हम भी मानते हैं, पर वह भावना नामक सरकार है या ? घारा नामक मतिज्ञान है । पहिले पहिने अनुमवसे सामर्थ्य प्राप्त हुई है। जिस ऐसे श्रा माका एक प्रभिन्न धारणा नाम ज्ञान है, जो स्मृतिका कारण बनता है उस होका नाम सरकार है । यह सस्कार कोई नय गुण नहीं है, सवपापक एक नहीं है न्तु जिम जीन किमी पदाथको जार उसकी वारवार भावना को, उसकी वारगर जनमा बनयो उसमें उपयोगका कुछ जरा निरन्तर बनाये रहातो एक धारणानक संस्कार बन जाता है । सस्वर कहो, भावना कहो, घारणा कड़ो इन सबका एक ही सर्य है । प जीव जा समारने रुल रहे हैं सबमें मेनिश न पाया जाता है। मतिर श्रृज्ञान ये दोनोके दोनों समस्त छद्मस्थ जीवोपे पाये जाते हैं । मतिज्ञान अर्थ है इन्द्रिय और मनके निमित्त से जो ज्ञान हो वह पतिज्ञा है अथ है - मतिज्ञान से जाने गए पदाव में जितना मतिज्ञान मे जाने उससे और अधिक कुछ अन्य बातें जान लेना सोश्रुतशनि है। जैसे आँखें खोलते ही पदार्थ देवा नीर उपमे रूपका ज्ञान हुआ । जैसे जाना कि यह हरा है, तो यह जानना श्रुत ज्ञान है। जाना ता हरेको हो । पर हरा है ६ इस प्रकारका विकल्प जब तक नहीं उठा और प्रतिभास रहा उस स्थिति को कहते हैं मतिज्ञान । मतिज्ञान निर्विकल ज्ञान है, श्रुतज्ञान सविकल्प ज्ञान है । तो मतिज्ञानसे जाना रूप । स्थूल रूपसे समझ लिया, जान लिया कि यह रूप है, या कुछ भी घटना मतिज्ञान से जान ली । उस ज्ञान के सद्भाव भावान्तर सत्का सद्भावरूप ज्ञान किया । फिर उसमे निर्णय किया कि यह ही है। फिर उसकी धारणा बन गयी। एक स्थूल दृष्टान्त देखिये । जैने काई पुरुष सामने आ रहा है । पहिले तो समझा कि यह पुरुष फिर समझा कि यहीका है और निर्णय कर लिया कि यह तो यहींका प्रमुक पुरुष है । फिर उसे कुछ देर तक जानता रहे या अभ्यामकी वजह से एक बारमे हो जाना, अब उसके उपयोग मे धारणा बन गयी । धारणाका अर्थ है कालान्तरमें भी न भूलना । किसी पुरुषको सुबह देखा या जब मौका आया तो वह धारणा जग जाती है और स्मृति हो जाती है कि यह पुरुष सुबह मिला था । तो स्मृतिज्ञानका कारणभूत है सस्कार । सस्कारके जगाये जाने से होतां स्मरण । उसी सस्कारका नाम है । धारणा । धारणा से भिन्न अन्य कोई सस्कार नामका गुण नहीं है । धारणापर नाम सस्कारका व्यवहारमे विशिष्ट सहयोग - हम प्रापका घारणा ज्ञान कितना उपयोगी बन रहा है। शास्त्रोका प्रथं लगाते हैं, यह बात कल यहा तक सुनी थी, श्रव इसके आगे यहाँ सुनी जा रही है। ये सब धारणायें हैं। अन्य बात भी छोडो - कोई शब्द सुनकर हम उसका अर्थ समझ लेते हैं तो क्या उसमे घारणा काम नहीं कर रही है ? वेन्च कहा तो यह अर्थ कहा गया, क्या यह धारणा के बिना समझ रखा है ? वेन्च शब्द का यह अर्थ है, यही पदार्थ है ऐसी धारणा प्राय सभी जीवोको लगी हुई है और उसी धारणाके बलपर बड़े बड़े व्यवहार किए जाते हैं। लेन देन धारणा के बिना नहीं बन सकते। कुछ लेन देन नहीं भी लिखे जाते हैं उनका ख्याल रहता है। जैसे कोई पुस्तक मांगकर ले गया तो उसे कोई डायरामे तुरन्त लिख तो नहीं लेता, हीं रुपयोका लेन देन लिख लिया जाता है। तो छोटी मोटी चीजोके लेनदेनका काम धारणासे ही चलता है। पहिले जमाने में रुपयो का लेन देन भी न लिखा जाता था । तो उसका भी धारणासे काम चलता था । अव जब लोगोके चित्तमे वेईमानी माने लगी तब उसके लिखनेकी पद्धति बन गई । रुपया दिया तो लिखा दिया । जब उसमे भी वेईमानी चली तो दस्तखत कराये जाने लगे, ज़ब उसमे भी वेईमानी चलने लगी तव उसके स्टैम्प खरीदे जाने लगे। उसमे भी बेईमानी चली तब उसकी रजिस्ट्री होने लगे। जैसे जब चार्ज सम्हाला जाता है तो चार्जमे भी तो लेन देन है लेकिन उसको लिखित करके देते हैं। शक है कि कही यह न कह दे कि यह चीज चार्जमे नही दो। तो लिखनेपर भी यह जो व्यवहार चलता है वह सब धारणा पूर्वक चलता है, और वह धारणा है क्या ? श्रास्म के ज्ञान गुणकी पर्याय है । कोई ऐसा सस्कार नहीं है जो दुनिया मे एक नित्य छाया हुआ है और जिसके सम्बन्धको जोडकर जीवोका व्यवहार बनाया जाता हो, किन्तु जीव स्वय ज्ञानमय और उस ज्ञानका ही एक परिणमन है धारणा सस्कार । सस्कार भी पर्याय है, गुरण नहीं है। पर्याय और गुणका मोटा भेद यह है कि पर्याय अनित्य होती है और गुरण नित्य होता है। सस्कार क्या नष्ट नहीं होता ? नष्ट हो जाता है । धारणापर नाम सस्कारका कार्य संस्कार मतिज्ञान के प्रवग्रह ईहा अवाय और घारणा नामक चारभेदोंमे से था भेद जब हैं तक जिसको संस्कार बना हुआ है तो सारे काम किए जाते हैं। स्वप्न मे भी सरकार काम करता है । कभी कोई खोटा स्व प्न पाप वाला भी भा रहा हो तो वहाँपर भी सस्कार जो पहिले अच्छा बनाया हुआ है वह काम देता है और स्वप्न में भी विवेककी बात जागृत होती है और विवेकके कारण वह खोटे पापोसे बच जाता है । सस्कार वेडोशीमें भी काम देता है । कुछ लागो ऐसी धारणा है कि जो पुरुष बेहोश हो जाता है और जिसका वेहोशी में मरण होता है उसकी गति बिगड जाती है, पर यह नियम नहीं है । वेहोश पुग्ष भी यदि झानी है उसका सरकार अच्छा है तो उस बेहोशीमें भी प्रन्दर ही ग्र दर वह बराबर सावधान है। अपने आत्मदशन मे उस सावधानी के कारण उसकी गति नहीं बिगडती । क्या जो बेहोश न रहें, जागते ही बोल बोलकर मरें कोई विशेषता प्राप्त करली ? यदि उनका सस्कार भला है तो बोल करके मरे तो क्या, वेहोशीमें मरे तो क्यो ? उससे कोई बिगाड नही है । वेहोशी में होता क्या है ? ज्ञान वेहोश नही होता, किन्तु इन्द्रियाँ वेहोश होती है । वही इन्द्रियज ज्ञात हो पाता है, मगर इन्द्रियज ज्ञानसे वहाँ मतलब क्या है ? इन्द्रियज्ञान न हुभा न सही, पोर किसी तरह यह भी कह सकते हैं कि अगर बेहोशीके कारण से इन्द्रियज ज्ञान नहीं हो रहा तो उसको भपनी अन्त सावधानी मिलने में बडा सहयोग ही उससे मिल रहा है। वहीं बाहरी बातोंका ज्ञान और उल्काव न हो सका तो सस्कार घारणा ऐसे दृढ़तम मतिज्ञानको परिणति है कि जिसके कारण इस जीवको बहुत कुछ प्रात्महितके लिए सहयोग मिल सकता है । संस्कार एव सर्व विशेषोका श्रनिषेध, किन्तु यथावत् प्रत्ययकी आवश् यकता - भावना नामक संस्कार है और वह उत्पन्न किया जाता है वार बान्का उपयोग लगानेसे अब किसी जीवके तो ऐसी विशिष्ट योग्यता है कि कुछ ही वार उपयोग लगानेसे घारण बन गयी। कुछ बहुत बहुत उपयोग लगाना होता है तब धारणा बनती । है । बच्चोमे ही देखो ! किसने अन्तर पाये जाते हैं। कोई बालक एक ही बात ध्यान से सुनले तो उसे धारणा बन जाती है, कोई दो तीन वारा उसमें उपयोग लगायें तो धारणा वन जाती है और कुछ बालक ऐसे होते हैं जो पचासो बार भी उपयोग लगाते हैं, पर धारणा नहीं बन पाती है। तो ज्ञानावरका जैसा जिसका क्षयोपशम है उसके मनुसार उसमें उस प्रकारको धारणा वन जाया करती है । तो सस्कार नामक गुण की बास जो विशेषवादमे कहा है तो सस्कारको मना नहीं किया जा रहा, बल्कि जो जो भी कहा है गुणोंके सम्बन्धमें उनको किमीको भी मना नही किया जा सकता। मगर वे किस रूपसे है ? गुण रूपसे कि पर्याय रूपसे ? उनका क्या स्वरूप है उसका विश्लेपरण किया जा रहा है । तो इसी प्रकार यह संस्कार भावना नामक कोई एक नित्य एक स्वभावो गुण नहीं है, किन्तु ज्ञानावरण के क्षयोपशमके अनुसार जिस जीवको जितनी योग्यता मिली है वह अपने मतिज्ञानमे उतनी ही धारणा बनाता है और अपने सस्कार बनाता है। तो भावना नामक संस्कार तो अनिष्ट नहीं, किन्तु कोई पृथकभूत. गुरण माना जाय, जीवसे अलग कोई गुरण है भावना नामक सो बात नहीं है । वह जीव ही की चीज है । जिस पदार्थ में संस्कार है वह सस्कार उस पदार्थकी ही चीज है । अब उसमे यह छटनी करें कि वह गुरग है कि पर्याय है, किस ढगका है सो तो उत्तर सही आ जायगा, लेकिन पदार्थ से भिन्न कही अलग सस्कार नामका गुण कहा जाय और उसका सम्बन्ध कर करके काम निकाला जाय यह बान प्रयुक्त है । स्थितस्थापक मस्कारकी मीमासा --शकाकार कहता है कि एक स्थापक नामका सस्कार भी गुणरूसे सिद्ध है। स्थिनस्थापकका अर्थ यह है कि जो पदार्थ स्थित है, ठहरा हुवा है उस पदार्थको उस ही प्रकार से स्थापित किये रहना । इसका कारण स्थितस्थापक सस्कार नामका गुण है । और जिस पदार्थ में इस सस्कारका जब शैथिल्य होता है तो वह पदार्थ चलित होने लगता है । स्थित हुआा पदार्थ स्थिरतापे स्थिर रहे ऐसा उसमे एक स्थितस्थापक नामका संस्कार है और यह सस्कार गुणका तीसरा प्रकोर है। समाधानमे कहते हैं कि स्थितस्थापकरूप सस्कार तो असम्भव ही है । अच्छा बताघ्रो कि वह स्थितस्थापक संस्कार किस पदार्थको स्थापित करना है ? इस सस्कारका कार्य तो यही है ना कि पदार्थको हो वैसीको हो वैसी स्थिति बनाये रखना । तो क्या स्थितस्थापक सस्कार प्रस्थिर स्वभाव वाले पदार्थको स्थित बनाये रखना है या स्थित स्वभाव वाले पदार्थको यह सस्कार स्थित बनाये रखता है ? स्थित पद र्थको ज्योका त्यो स्थिर बनाये रखना वहीका वही, वैसा ही ठहरा हुआ बनाये रखना यह जो गुण है सो स्थिर स्वभाव वाले पदार्थको ठहराये रहता है या अस्थिर स्वभाव वाले पदाथको ठहराये रहना है ? स्थित स्थापक संस्कार गुणको अस्थिर स्वभाव पदार्थकी स्थितिका कारण मानने पर अनिष्पत्ति - यदि कहो कि अस्थिर स्वभाव वाले पदार्थको यह सस्कार ठहराये रहता है तो यह तो बिल्कुल विरुद्ध बात है। पदार्थ तो मस्थिर स्व. भाव वाला है मागने ठहर नहीं रहा है, चलित होता रहे ऐसे स्वभाव वाला है और उस पदार्थको स्थितस्थापक नम्कार ठहराये रखना है तो इसका अर्थ यह हुआ कि सरकारने पदार्थ के स्वभावपो बदल दिया। लेकिन पदार्थका जो स्वभाव है। कोटि उपाय किये जानेपर भी बदला नहीं जा सकता । अन्यथा कोई पदार्थं व्यवस्था हो न रहेगी। प्रात्माका चैतन्यस्वभाव है यह भी कभी बदल जायगा । जिस जिस पदार्थका गुणका, कमका जो जो भो स्वभाव है यह बदलवा हो जोयगा तो फिर पदार्थ हो क्या anems thatantr रहेंगे? तो अस्थिर स्वभाव वाले पदार्थको स्थित स्थापक नामक सरकार ठहराये रहता है यह बात नहीं बनती। और, यदि अस्थिर स्वभाव वाले पदार्थको सस्कार ठहरा दे तो बिजलीको क्यो नही ठहरा देता ? बिजली अस्थिर स्वभाव वाली है तो उसे भी ठहरा दे लेकिन वह दूसरे क्षरण भी नहीं ठहरती। फिर तीसरा दोष यह है कि एक क्षण के बाद वह पदार्थ तो मिलेगा ही नही क्योकि वह अस्थिर स्वभाव वाला है । अपना स्वभाव दूसरे क्षरण रख ही नही सकता । अर्थात् उसका विनाश हो जाता है। तो एक क्षण के बाद पदार्श जब रहा ही नहीं, उसका स्वभाव हो गया तो यह स्थित स्थापक सस्कार फिर किसको ठहराये ? और अग्र ठहरा दे ता अस्थिर स्वभाव न रहा फिर पदार्थका । देखो - अव ठहर, गया, स्थिर हो गया । इसमे अस्थिर स्वभाव वाले पदार्थको स्थित स्थिापक नामका सस्कार ठहराये रहता है यह पक्ष सिद्ध नहीं होता। स्थित स्थापक सस्कार गुणको स्थिरस्वभाव पदार्थकी स्थितिका कारण माननेपर सस्कारकी प्रकिञ्चितकता और असिद्धि - श्रव यदि दूसरा पक्ष कहोगे याने स्थिरस्वभाव वाले पदार्थका स्थित स्थापक नामक संस्कार ठहराये रहना है यह सरकार उस पदार्थको वहीता वही ठहराये रहता है, उस ही ढगका बनाये रहता है जो पदार्थ स्वय स्थिर स्वभाव रखता है। तो यहाँ यह वात विचारनेकी है कि जब पदार्थ ही स्वयं स्थिर स्वभाव वाला है तो उसको ठहराने के लिये अलग से स्थित स्थापक सस्कारको कल्पनाकी क्या आवश्यकता हुई ? पदार्थ स्वय स्थिर रवभाव वाले हैं और वे वहाँ स्थिरता से रहेंगे ही, फिर स्थित स्थापक सम्कारकी कल्पना की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह पदार्थ प्रकिञ्चितकर हो गण । पदार्थ जव स्वभावसे उस ही प्रकार ठहरा हुआ है फिर और कोई क्या करे ? स्थित स्थापकका फिर काम क्या रहा ? वह प्रकिञ्चितकर हो गया। इस कारण यह बात मानना श्रेष्ठ है कि यह पदार्थ अपने कारण की वजह से जिस जिस प्रकारके रूपसे इसमे जो परिणति होती है, दशा बनती है उस होका नाम स्थिर स्थापक सस्कार है अन्य मौर कुछ नहीं है । उसको किसी नामसे कह लो । पदार्थमे अपने ही कारण से जिस प्रकार परिरगमनकी बात पडी हुई है उस प्रकार वह पदार्थ होता ही है । तो उसमें भव भिन्न कोई नवीन सस्कार लगाना यह बिल्कुल व्यर्थ है । तो सस्कार नामक गुरण भी सिद्ध न हो सका । शकाकार द्वारा धर्म व अधर्मनामक गुणके सद्भावका प्रस्ताव - भव शकाकार कहता है कि धर्म और प्रधम नामके भी तो गुरण है। देखो - सारा जहान धर्म अधर्मके ही प्राधीन होकर सुख और दुख भोग रहा है । धर्मका फल है सुख देना, स्वर्गौमें उत्पन्न करना और अधर्मका फल है दुख देना, नरकादिक गतियों में उत्पन्न करना । तो जिस धर्म अधर्मका सारा हो ठाठ यहाँ नजय श्रा रहा है उस धर्म संघर्म नामक गुणको कैसे मना किया जा सकता है ? लोग तो इष्ट वस्तुदोक प्राप्त करने के लिए अधिकाधिक प्रयत्न करके हैरान होने हैं फिर भी उनकी प्राप्ति नहीं होती तो क्यो प्राप्ति नही होनी कि उनके पास प्रमो धर्म गुणका सम्बन्ध नहीं बना है और जो दरिद्र हैं, पानी है, प्रकुलीन है, दु.ख भोगते हैं उनके प्रथम गुणका सम्बन्ध बना हुआ है इसलिए दुखो हैं । तो धर्म प्रधर्म नामक गुग्गुके वश मे यह सारा ससार पड़ा हुआ है। इस घम अधर्म गुणका निषेध नही किया जा सकता । वहुत-बहुत दूरकी चीजे खिचती दुई चली आायें यह घमगुणका होता प्रताप है। बहुत दूरते अनिष्ट वस्तुवें शत्रु खिचकर चले आयें और उन्को बरबाद करदें यह अधम गुणकर ही तो प्रभाव है। अन्यथा बतलावो कि बहुत दूर रहने वाले इष्ट अनिष्ट पदाथ, मुचकारी और दुखकारी पदार्थ किसकी प्रेरणा खिचकर इस धर्मी और अवर्मीको सुख दुख देने के लिए आते हैं ?त मानना पडेगा कि कोई धर्म और प्रघमं गुण है। विशेषवादोक्त धर्म अधर्म नामक अष्टके गुणत्वका निराकरण-अव उक्त शफाके समाधान में कहते हैं कि धर्म और अधर्म य अदृष्टके भेद है। इन्हे भाग्य कहो तो ये धर्म प्रघर्म नामक सदृष्ट प्रात्माका गुण नहीं है। यह बात पहिले भी बहुत विस्तारसे बता दी गई थी कि धर्म और धर्म जो है वे श्रात्मगुरण नहीं है किन्तु एक पौगलिक पिण्ड हैं। इस लोकमे प्रत्येक ससारी जीवके साथ स्वभाव से ही ऐसा कार्मारणवर्गनाओोका ढेर लगा हुआ है कि जो इस भवके बाद श्रागे मागे भवमे भी जीवके साथ जोयगा । वे कर्म तो साथ जायेंगे ही जो बँधे हुए है लेकिन है विस्रसोपचय कामरणवर्गरणायें भी इस जीवके साथ जाती हैं। जैसे कभी जगल में घूमते हुएमे मक्खियोका झुण्ड घूनने वाले पुरुष के सिरपर मंडराने लगता है। और भी नई मषित्वया उस झुण्डपें भाकर मिल जाती हैं। जहां जहां वह पुरुष जाता है वहाँ वहाँ वे मक्खियां भी जाती हैं और वह मक्खियोका झुण्ड उस पुरुषके लिए वेचैनीका कारण बन जाता है ऐसे ही ये विमोचय परमार भी, कार्मारणवर्गगाके स्कप जो इसमें बद्ध हैं वे भी जीवके साथ इस तरह लगे हुए हैं कि जहाँ जाये यह जीव वहा ये कार्माणवर्गरणायें भी आती है और जो कम बघे है वे मी जाते है वह है श्रदृष्ट तो श्रदृष्ट भाग्यका नाम है । वह जीवका गुण नहीं है, पात्मा से पृथक् पदार्थ है, पौद्गलिक है । अदृष्टका और भात्माके विकारका निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध तो है पर द्रव्य पृथक-पृथक है । भाग्य गुरण नहीं है किन्तु भाग्य स्वय द्रव्य है । इसको रूढ़ि मे धर्म और मधमके नामसे कहा जा रहा है । उमका सही नाम पुण्य और पार है। धम अधर्मकी विशुद्ध व्याख्या- धर्म और अधर्मको व्याख्या यह है कि प्रात्माका स्वभाव हो सो धर्म है प्रोर जो ग्रात्माका स्वभाव नहीं किन्तु विभाव है सो भधर्म है । पुण्य सघं है श्रात्माके जो शुभ विकार हैं उनका नाम है पुण्य और आत्मा के जो अद्युम विकार है उनका नाम है पाप और उन शुभविकारों के कारण से वरीसामु वसूत्रप्रवणत जो कार्मारणवर्गरणायें बनी, उनमे जा शुभ प्रकृतिपना जिसमे श्राया है वह कहलाता है पुण्य कम और जिसमें पाप प्रकृतिपना श्राया है, खोटा अनुमान प्राया है उन्ह कहते है पाप । तो पुण्यकम पापषम तो ससारा जीवोफे साथ लगकर उन्हें इस ससारमे भ्रमाते रहते हैं और धर्म इस जीवको सस्कारके दुखोस छुटाकर उत्तम सुवमें पहुँचा देता है। इस दृष्टिमे पुण्य है सो भी अधर्म है, पाप है मो भी प्रथम है। शुभोपयोग है वह भी श्रात्माका स्वभाव नहीं है और पशुभोपयोग है वह भी अत्मीका स्वभाव नहीं है। घम तो घम है प्रचलित है, घारगलन नहीं है। मूत्र स्वरूपको देखिये । प्रात्काका जो स्वभाव है वह घम है । वह घम धारण, पालनरूर नहीं। वह तो स्वभावमात्र है। अब उस स्वभावमा जान करना है वह जीव दृष्टि करने रूप परिगतिमे घमगलन कर रहा है। घमालन कहत किस है ? लेना स्वभाव में उपयोग रमाना वह है धमपालन । घमपालन धर्म नहीं, धर्म भावका न म है, किन्तु स्वकष्ट करना उसका नाम धर्मपालन है । परिणमन स्वय धर्म नहीं है पर्याय है, स्वभाव नहीं है, ता धर्म और धर्म ालन ये द बातें है भ धर्मगलनमें भी प्रोर विस्तार निरखिये मारमाका जो विशुद्ध सहज चैनन्यस्वभाव है उसकी दृष्टि ह ना, उसमे उपयोग रमना उसका अनुभव होना यही है घमगलन । निश्चयत और व्यवहारत धर्मपालन- निश्चय धर्मपालनक अतिरिक्त जो कुछ भी प्रवृत्तिमालन नहीं है। लेकिन इस घमगलन रूप निश्चय परिणति के सहायक जितने प्रवर्तन हैं उ हें भी धम पालन कहते हैं और वह व्यवहारत धर्मगलन कहलाता है। निश्चय से आत्मविशुद्ध सहज चैतन्यम्त्रगावकी दृष्टि अनुभव और रमण होना इसका नाम है घमशलन और इस निश्चय घमके पालनको पात्रता बनाये रखने वाली जो व्यवहारकी हें कहते हैं व्यवहारधर्म । जैसे मंदिर आना, पूजा करना स्वाध्याय करना । ब्रन नियम पालन करने वाले के लिए साक्ष तू घमपालन करने वाले के लिए साक्षात् धर्मपालनकी पात्रता बनाये रखना हम व्यवहार धमका काम है । इन धर्मोके करते हुए ब च बॅच जब जब भी पात्म स्वभायपर दृष्टि जगे तब वह धम लिन कर रहा है । तो इन दिश मे ऐसा कह सकते हैं कि जैसे युद्ध में सूट ढल और तलवार दोका याग किया करते हैं। पहले समय से युद्ध में सैनिक लोग मदकर, कवच पहि कर ढ न औौर तलवार लेकर युद्ध क्षेत्र मे उतरते थे । एलरका काम था शत्रुका घ त करना विजय प्राप्त करना । और ढाल फ्राकाश का बार रोकना । ढाल शत्रुका घात नहीं करती बल्कि बारको रोकनी है और तलवार शत्रुका धान करती है। इसी तरह व्यवहार धर्म सो ढालकी भान है घोर निश्चय धम ननवारको भात है । जीवके शत्रु है विषय कपाय । पञ्चे न्द्रिय के विषमेश्योग रमना, लोकपणा आदिके लिए स्वच्छन्द प्रयतन हाना ये सव जीवका साक्षात् घान करने वाले है । तो हन शत्रु वोका घात निश्चय घमसे होता है । सामजनोको मारो जि दगी भर मौर काम करनेको है ही क्या ? यही एक
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जैसे विद्वान शामिल हैं। सभी ने एकमत से यह स्वीकार किया है कि वृक्ष-वनस्पतियों में प्राण तत्व का सिद्धांत वैदिक-काल से ही प्रचलित था । क्रुक्स के अनुसार सूक्ष्म प्राण एक शक्ति है जिसे जीवन का आधार कहा जा सकता है। इसी शक्ति से शरीर के समस्त भीतरी और बाहरी व्यापार संपन्न होते है। वनस्पतिशास्त्रियों ने इसके लिये मैग्नेटिज्म- चुम्बकत्व, वाइटिलिटी-प्राणशक्ति और वाइटल फोर्स- प्राण आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया है। वनस्पतियों के शरीर में प्राण, अपान, उदान, व्यान और समान ये 5 प्राण काम करते हैं। उनमें शब्द, स्पर्श, रुप, रस और गंध की अनुभूति होती है । उष्मा से न केवल पुष्प एवं फल मुरझा जाते हैं अपितु पत्ते व शाखाएँ भी प्रभावित होते हैं। इसी तरह इन पर शीत का भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वृक्ष-वनस्पतियों को स्पर्श ज्ञान भी हैं। वे शब्द ग्रहण करते एवं समझते हैं। उन पर संगीत एवं भावनाओं का व्यापक प्रभाव पड़ता है। लतायें वृक्ष को आवेष्टित करते हुए आगे बढ़ती हैं अतएव उनमें दृष्टि भी है ।। वैशेषिक दर्शन के अनुसार पेड़-पौधों को पंचतन्मात्राओं से युक्त माना गया है। जड़ समझे जाने वाले वृक्षों के कार्य व्यापारों को अनुप्रेरित करने वाले प्राण चेतना के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। वनस्पतिशास्त्रियो ने प्रोटोप्लाज्म को जीवन का भौतिक आधार माना है जो निर्जीव वस्तुओं में नहीं होता। वृक्षों में जीवों की तरह ही प्रोटोप्लाज्म होता है जो उनके प्राणचेतना से संपन्न होने का सबसे में बड़ा प्रमाण है। विकासवादी वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन के अनुसार समूचा जंतु एवम् वनस्पति जगत बहुत सरल एवं निम्न श्रेणी के जीवधारियों एवं वनस्पति से विकसित होते-होते विकास की इस अवस्था में पहुँचा है। इस प्रकार जब हम विकास मार्ग को खोजते हुए पीछे जाते हैं, तो पौधों तथा जानवरों के आदिम रूप पर पहुँचते हैं । डार्विन का मानना है कि इस स्तर पर पौधों तथा जंतुओं में कोई अंतर नहीं था और तब दोनों का मूल एक ही था । कालांतर में किन्हीं कारणों से इन मूल प्राणियों का विकास दो दिशाओं में हुआ जिससे वनस्पति एवं जन्तु का प्रादुर्भाव हुआ । तात्पर्य यह कि डार्विन ने भी अपने विकासवादी सिद्धांत की प्रक्रिया में वनस्पतियों को प्राणयुक्त माना है । 2 अभी हाल ही में किये गये एक शोध से पता चला है कि पेड़-पौधों के पास भी बिल्कुल मनुष्यों जैसी ही अपनी रक्षा प्रणाली होती है। जब कोई इनके पत्तों को तोड़ता है या किसी अंग को नुकसान पहुँचाता है तो वे इसका प्रतिरोध करते हैं । इसे 'प्रेरित प्रतिरोध' की संज्ञा दी गयी है । कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार हम पेड़ों की प्रतिरोध प्रणाली में अगर व्यवधान न करें तो पेड़-पौधों का प्रतिरोध कीड़ो-मकोड़ों से मुकाबला करता रहता है। पत्तियों पर इल्ली के बैठते ही पेड़-पौधे पत्ती के ऊपर जेस्मोनिक अम्ल की मात्रा बढ़ा देते हैं । इस अम्ल से पत्तों पर एक ऐसा रसायन पैदा होता है जिससे इल्ली या अन्य कीड़े-मकोड़े भाग खड़े होते हैं । इस प्रेरित प्रतिरोध की मदद से पौधे अपनी पत्तियों की रक्षा करते हैं । अखण्ड ज्योति, मथुरा, मार्च 1997, पृ० 9-101 वही, पृ० 10। सृष्टि का उद्भव - सृष्टि के उद्भव का प्रश्न आज भी एक पहेली है जिसे विद्वान अपनेअपने तरीकों से बूझ या बूझा रहे हैं। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में भी इस मसले पर व्यापक विमर्श मिलता है । ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में सृष्टि के उद्भव एवं उसके विकास का सुचितित विवरण प्राप्त होता हैउस समय न सत था न असत, न भाव था न अभाव न अंतरिक्ष था न सुदूर व्योम वह आवरण क्या था जिसमें वह लिपटा हुआ था इसका आश्रय या आधार क्या था? यदि था तो कहाँ था ? क्या यह अथाह एवं अनंत जल रूप था उस समय मृत्यु तो थी नहीं इसलिये अमरता भी नहीं थी रात और दिन का विभाजन नहीं था बिना वायु के ही अपने स्वत्व से श्वसन क्रिया चल रही थी उससे पृथक या उससे ऊपर कुछ नहीं था । तम के भीतर तम छिपा हुआ था और सब कुछ अभिन्न और अरुप था सब कुछ निराकार और शून्य में समाया हुआ था फिर उसमें से उष्मा पैदा हुई और उससे महत की उत्पत्ति हुई फिर कुछ होने की कामना पैदा हुई और वही सृष्टि का बीज बन गयी ॥ सृष्टि के उद्भव एवं विकास क्रम का उल्लेख भविष्य पुराण में इस तरह मिलता है - 'जब ब्रह्मा अपनी रात्रि के अंत में सोकर उठते हैं तब सत् असत् रूप मन को उत्पन्न करते हैं। वह मन सृष्टि करने की इच्छा से विकार को प्राप्त होता है तब उससे प्रथम आकाश तत्व उत्पन्न होता है । विकारयुक्त आकाश से सब प्रकार के गंध को वहन करने वाले पवित्र वायु की उत्पत्ति होती है जिसका गुण स्पर्श है। इसी प्रकार वायु से प्रकाशयुक्त तेज और फिर तेज से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति होती है । 2 गौरतलब है कि यहाँ पर आकाश के बाद वायु की उत्पत्ति का जिक्र है, जिससे क्रमशः प्रकाश, जल और पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। यहाँ यह प्रश्न उठता है कि पृथ्वी की उत्पत्ति से पहले वायु का अस्तित्व किस रूप में रहा होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि पृथ्वी की उत्पत्ति के मूल में वायु की महती भूमिका रही होगी जो जीवन के लिए मूलभूत जरूरत है। यह विचार कि सृष्टि के ऋग्वेद, नासदीय सूक्त, 10 129 14। सक्षिप्त भविष्य पुराणाक, गीताप्रेस गोरखपुर, जनवरी, 1992, पृ० 21। आरंभ में जल जैसा कुछ था प्राचीन साहित्य में बार-बार दुहराया जाता है । पर यह जन न होकर जलमय सा कुछ था जिसमें सभी तत्व द्रवीभूत होकर मिले हुए थे । इसे ही अप्रकेत, सलिल, जल, संसार जल आदि जल जैसी संज्ञायें दी गयी है । ऋग्वेद की एक ऋचा के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति सोम से हुई। सोमः पवते जनिता मतीनां जनिता दिवो जनिता पृथिव्याः । जनिताग्नेः जनिता सूर्यस्य जनिता इंद्रस्य जनितीत विष्णोः ॥ वैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार सारा ब्रह्माण्ड पदार्थ (matter) एवं ऊर्जा (Energy) से बना है। इसकी आयु 10 से 13 अरब वर्ष आँकी गयी है। संभवतः इसकी उत्पत्ति ईलेम (ylem) नामक आदि पदार्थ के एक अत्यधिक तप्त, विशाल एवं सघन गैसीय बादल से हुई। पृथ्वी का उद्गम लगभग 46 अरब वर्ष पूर्व ज्वलित गैस के एक घूर्णी - बादल से हुई। भूपटल की स्थापना से लेकर आज तक पृथ्वी के इतिहास को चट्टानों की आयु के अनुसार 5 महाकल्पों में बाँटते हैं - 1 आद्यकल्पी (Archaeozoic) 2 प्राजीवी (Proterozoic) 3 पुराजीवी (Palaeozoic) 4 मध्यजीवी (Mesozoic) 5 नूतनजीवी (Coenozoic ) विभिन्न युगों के अंतर्गत वनस्पतियों एवं जीवों का विकास 1. आर्कियोजोइक महाकल्प ( 4 अरब वर्ष पूर्व से 2.5 अरब वर्ष पूर्व ) - इस महाकल्प के आरंभ में ही आदिसागर में जीवन की उत्पत्ति हो चुकी थी। इस महाकल्प में जीवन के केवल परोक्ष प्रमाण ही मिलते हैं । 2. प्रोटीरोजोइक महाकल्प ( 2.5 अरब वर्ष पूर्व से 59 करोड़ वर्ष पूर्व ) - महाकल्प के आरंभ में वैक्टीरिया एवं नील- हरित शैवाल का विकास हुआ । इसी काल में समुद्री प्रोटोजोआ, समुद्री स्पंजों, मोलस्का, आर्थ्रोपोडा, कृमि एवं अन्य अपृष्ठवंशी जीव अस्तित्व में आये। 3. पेलियोजोइक महाकल्प ( 59 करोड़ वर्ष पूर्व से 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व ) - जीव एवं पादपों के विकास की दृष्टि से यह क्रांतिकारी समय था । इसी महाकल्प में पहली बार जन्तुओं और पादपों का सागर से भूमि पर पदार्पण हुआ। भूमि पर जिम्नोस्पर्म एवं टेरिडोफाइट पादपों के घने जंगल बने और पृष्ठवंशी जन्तुओं का उदय हुआ। महत्वपूर्ण परिवर्तनों के कारण इसे छः कल्पों में बाँटा गया हैआधुनिक जतु विज्ञान - डॉ० रमेश गुप्ता, मुजफ्फर नगर, 1998, पृ० 31-32। ( क ) कैम्ब्रियन कल्प ( 59 करोड़ वर्ष पूर्व से 50.5 करोड़ वर्ष पूर्व ) - एक कोशिकीय शैवालों से बहुकोशीय एवं तंतुवत शैवालों की विभिन्न जातियों की उत्पत्ति हुई । ( ख ) आर्डोविशियन कल्प ( 50.5 करोड़ वर्ष पूर्व से 43.8 करोड़ वर्ष पूर्व ) - इस काल में कुछ स्थलीय पादप प्रकट हुये । (ग) सिल्यूरियन कल्प ( 43.8 करोड़ वर्ष पूर्व से 40.8 करोड़ वर्ष पूर्व ) - फर्न जैसे कुछ स्थलीय पादपों की उत्पत्ति हुई । स्थलीय आर्थ्रोपोडा, पंखहीन कीटों एवं मछलियों का विकास शुरु हुआ। (घ) डिवोनियन कल्प ( 43.8 करोड़ वर्ष पूर्व से 36 करोड़ वर्ष पूर्व ) - साइलोफाइट्स, माँस तथा वर्तमान लाइकोपोड्स इक्वीजिटम जैसी फर्नी एवं हार्स टेलों के व्यापक फैलाव से प्रथम जंगल बने। इस कल्प में जिम्नोस्पर्मों की उत्पत्ति और उद्विकास हुआ । जंतुओं के विकासक्रम में यह 'मछलियों का युग' था। (ङ) कार्बोनीफेरस कल्प ( 36 करोड़ वर्ष पूर्व से 28.6 करोड़ वर्ष पूर्व ) - पादप वर्ग मे इस समय दलदली जंगलों में क्लब माँस, हार्सटेल, लाइकोपोड, बीजधारी फर्नी तथा जिम्नोस्पर्मी (अनावृत्तबीजी) का विस्तार हुआ । ब्रायोफाइट्स का उदय हुआ। प्राणी वर्ग में यह 'उभयचरों का युग' था। (च) परमियन कल्प ( 28.6 करोड़ वर्ष पूर्व से 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व ) - विशालकाय जिम्नोस्पर्मो (सागौन, चीड़, साइकैड) का उद्भव हुआ। प्राणी वर्ग में स्तनी रूप सरीसृप एवं प्रथम छोटे कीट का विकास हुआ। 4. मीसोजोइक महाकल्प ( 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व से 6.50 करोड़ वर्ष पूर्व ) - यह महाकल्प 'सरीसृपों के युग' नाम से विख्यात है। इसे तीन कल्पों में बाँटा गया हैं। ( क ) ट्राइएसिक कल्प ( 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व से 21.3 करोड़ वर्ष पूर्व ) - जिम्नोस्पर्म पादपों का व्यापक विकास हुआ। साइकेड्स, गिन्कगो, कोनिफरो आदि के विशाल जंगल बने । विशालकाय एव उड़ने वाले सरीसृप तथा अंडयुज स्तनी का विकास हुआ। ( ख ) जुरैसिक कल्प ( 21.3 करोड़ वर्ष पूर्व से 14.4 करोड़ वर्ष पूर्व ) - विकसित बीजधारी फर्मों से प्रथम द्विबीजपत्री एवं आवृत्तबीजी पादपों की उत्पत्ति हुई । प्रथम कीटभक्षी एवं शिशुधानी युक्त (Marsupial) स्तनी अस्तित्व में आये। (ग) क्रिटेशियस कल्प ( 14.4 करोड़ वर्ष पूर्व से 6.50 करोड़ वर्ष पूर्व ) - पादप वर्ग में आवृत्तबीजी पादपों का प्रभुत्व बढ़ा। माजूफल (oak), द्विफल (maple) आदि आवृत्तबीजियों के जंगल बने । प्रथम एकबीजपत्री आवृत्तबीजियों की उत्पत्ति हुई। प्रथम आधुनिक पक्षी एवं जरायुज स्तनी अस्तित्व में आये। 5. नूतनजीवी या सीनोजोइक महाकल्प ( 6.50 करोड़ वर्ष पूर्व से आज तक ) - इसे दो कल्पों और इन कल्पों को क्रमशः पाँच एवं दो युगों में बाँटा जाता है। ( क ) तृतीयक कल्प ( 6.50 करोड़ वर्ष पूर्व से 20 लाख वर्ष पूर्व ) (i) पेलियोसीन युग ( 6.50 करोड़ वर्ष पूर्व से 5.49 करोड़ वर्ष पूर्व ) - पुष्पी पादपो एवं पुरातन स्तनियों का काफी विस्तार हुआ। (ii) इओसीन युग (5.49 करोड़ वर्ष पूर्व से 3.8 करोड़ वर्ष पूर्व ) - अनेक वर्तमान कालीन पादपों की उत्पत्ति हुई। घास पादपों की उत्पत्ति इसमें महत्वपूर्ण थी। स्थल पर ऊँट-घोड़े, सुअर, चूहे, बन्दर तथा समुद्र में ह्वेल जैसे स्तनियों की उत्पत्ति हुई । (iii) ओलिगोसीन युग ( 3.8 करोड़ वर्ष पूर्व से 2.46 करोड़ वर्ष पूर्व ) - पादप वर्ग में उष्णकटिबंधीय घने जंगलों का अधिकतम विकास हुआ। एकबीजपत्री एवं पुष्पित पादप काफी विकसित हुये । जन्तु वर्ग में घोड़ों, कपियों व आधुनिक कीट अस्तित्व में आये। (iv) मायोसीन युग (2.46 करोड़ वर्ष पूर्व से 51 लाख वर्ष पूर्व ) - स्थलीय पादपों का उद्विकास चरम सीमा पर था । इसी युग में मानव जैसे कपियो की उत्पत्ति हुई । (v) प्लायोसीन युग ( 51 लाख वर्ष पूर्व से 20 लाख वर्ष पूर्व ) - काष्ठीय पादपों के स्थान पर कोमल, शाकीय, पुष्पित तथा एकबीजपत्री पादपों का विस्तार हुआ। आदि मानव की उत्पत्ति, हाथी, ऊँट, घोड़े का आधुनिकीकरण हुआ। ( ख ) चतुर्थक कल्प ( 20 लाख वर्ष पूर्व से वर्तमान तक ) - इसे दो युगों में बाँटते हैं(i) प्लीस्टोसीन युग (20 लाख वर्ष पूर्व से 11000 वर्ष पूर्व तक ) - इस समय छोटे एवं कोमल शाकीय पौधों का विकास जारी रहा। मानव जाति में सभ्यता एवं सामाजिक जीवन की स्थापना हुई। (ii) आधुनिक युग Holocene epoch - ( 11000 वर्ष पूर्व से आज तक ) - वनस्पति वर्ग में कोमल शाकीय पौधों तथा एकबीजपत्री पादपों का अधिकाधिक उद्विकास हो रहा है। जन्तुओं में सर्वोच्च जाति के रूप में मानव का प्रभुत्व स्थापित हो चुका है। वानस्पतिक आधार पर भौगोलिक नामकरण - पुराणों में विश्व को प्रायः सात द्वीपों में विभाजित करने की परम्परा दिखाई पड़ती है। इन द्वीपों के नामकरण के मूल में संबंधित क्षेत्र में वनस्पति विशेष का अधिकाधिक उत्पादन ही रहा होगा, तथ्यो से ऐसा प्रतीत होता है। भारत को
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मेडिकल आँकड़े हरकत प्रणाली में संख्या में वृद्धि और रोगों की प्रगति दिखा। तेजी से, पुराने रोगियों उनके जोड़ों के दर्द की पीड़ा के बारे में शिकायत करते हैं। युवा लोगों को बीमारी भी बख्शा नहीं कर रहा है, और बच्चों यह से पीड़ित हैं। संयुक्त रोग यह बहुत प्रारंभिक दौर पहचान करने के लिए उनके आगे प्रगति और अन्य जटिलताओं को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। मानव अस्थि प्रणाली रोग गठिया के बीच सबसे आम जटिल और कम जटिल उपचार की घटना की विशेषता है। और क्योंकि हर किसी को इस रोग से ग्रस्त एक व्यक्ति रुमेटी गठिया के रोगियों में विरोधी सीसीपी परख के बारे में पता है। यह आदर्श इस लेख में दी गई हो जाएगा। विरोधी सीसीपी परीक्षण क्या है? आरए, या गठिया - दोनों बच्चों और वयस्कों को प्रभावित करता है कि जोड़ों की एक जटिल विकृति है। रोग श्लेष झिल्ली की सूजन, संयुक्त उपास्थि के विनाश, और इसकी विरूपण की विशेषता है। कि विषमता के परिणामों प्रारंभिक अवस्था में नहीं पाया गया और शीघ्र उपचार शुरू किया नहीं किया गया है बहुत खतरनाक हो सकता है। विकार और संयुक्त विनाश मोटर समारोह है, जो एक विकलांगता से ज्यादातर मामलों में है की कुल या आंशिक नुकसान का खतरा पैदा। क्यों के लिए की जरूरत विरोधी सीसीपी के विश्लेषण रुमेटी गठिया में? नोर्मा प्रदर्शन काफी महत्व की है। यह किसलिए है? एक महत्वपूर्ण कदम एक समय पर ढंग गठिया का निदान करने में, जो रोगी, भड़काऊ प्रक्रिया बंद करो और संयुक्त समारोह बहाल करने के लिए है, जिनमें से प्रभावी और सही उपचार की सलाह नहीं है। इस उद्देश्य के दो तरीकों कि एंटीबॉडी की एकाग्रता का निर्धारण करने के चक्रीय पेप्टाइड (विरोधी सीसीपी) tsitrullinovomu करने की अनुमति, और रुमेटी कारक (आरएफ) के लिए। शुरुआती दौर में असामान्यताओं के निदान के लिए, डॉक्टरों, विरोधी सीसीपी विश्लेषण का उपयोग करने की सलाह दी जाती क्योंकि इस प्रक्रिया में और अधिक सटीक संकेतक है और मंच की परवाह किए बिना रोग निर्धारित करने के लिए अनुमति देता है। आरएफ के लिए परीक्षण काफी विशिष्ट है, और परिणाम की सटीकता काफी हद तक विकृति विज्ञान के विकास की अवधि पर निर्भर करता है। गठिया विरोधी सीसीपी परीक्षण का उपयोग कर के प्रारंभिक काल में अच्छी तरह से पता चला है। इसके अलावा, उसे एंटीबॉडी और मार्कर है कि वहाँ प्रसारित, इस रोग की प्रगति के दौरान की खोज की रक्त के लिए धन्यवाद। यह परीक्षण रक्त में चक्रीय पेप्टाइड एंटीबॉडी tsitrullinovogo रिश्तेदार राशि को मापता है। यह पेप्टाइड - चयापचय का एक महत्वपूर्ण घटक। Citrulline प्रतिक्रिया जैव रासायनिक anginina का उपयोग कर अलग एमिनो एसिड जा रहा है के दौरान ही बना है। यही कारण है कि गठिया में क्या विरोधी सीसीपी है। नोर्मा नीचे दी जाएगी। चेतावनी! मुझे कहना पड़ेगा कि citrulline प्रोटीन संश्लेषण में शामिल नहीं है और शरीर से एक निश्चित समय के लिए प्रदर्शित किया जाता है। यह गठिया के जोड़ों को प्रभावित करता है शरीर में कई परिवर्तन से होकर गुजरती है। एक ही समय प्रोटीन अमीनो एसिड श्रृंखला की संरचना, संयुक्त उपास्थि की कार्यक्षमता को प्रभावित करने में citrulline का निर्माण किया। पेप्टाइड कि citrulline होता है, विदेशी के रूप में प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा माना जाता है और इस खतरे को समाप्त करने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन कर रहा है। क्या फायदे रुमेटी गठिया में विरोधी सीसीपी के विश्लेषण करता है? नोर्मा यह सब करने के लिए पता होना चाहिए। विरोधी सीसीपी परीक्षण रुमेटी सहित गठिया के केवल विभिन्न प्रकार के निर्धारण में मदद करता है, लेकिन कोई रास्ता नहीं में अन्य रोगों के निदान के लिए उपयुक्त है। क्योंकि यह उसके बारे में शुरुआती दौर में न केवल रोग, लेकिन यह भी रोग और उसके चरित्र की अवस्था का पता लगाता है रक्त सीरम परीक्षा का यह तरीका, सबसे नकचढ़ा और एक ही समय में सटीक से एक है। परीक्षण इसके विकास की शुरुआत में आमवाती जोड़ों और आरए के निदान के लिए संकेत दिया जाता है। अध्ययन सबसे पूर्ण उपचार योजना है, जो दर्द और सूजन को हटाने, रुमेटी गठिया के रूप में इस तरह के रोगों के त्वरित निपटान से छुटकारा पाने का उद्देश्य बनाने के लिए अनुमति देता है। सीसीपीए आरएफ भर में कई लाभ हैंः कई महीनों पहले विकास अविशिष्ट जोड़दार सिंड्रोम या गठिया के एक अधिक जटिल रूप में गठिया के लिए विरोधी सीसीपी एंटीबॉडी का पता लगाने के उच्च संभावना; 70% में आरए के शुरुआती चरणों में निर्धारित करने के लिए; रोग की प्रकृति का निर्धारण करने के लिए; मामलों के 79% में एक प्रगतिशील कदम में आरए निर्धारित; विशिष्टता और 98% द्वारा विश्लेषण की सटीकता। और यह सब विश्लेषण रुमेटी गठिया में विरोधी सीसीपी पता लगा सकते हैं। यह क्या है, हम की समीक्षा की है। सीसीपीए विधि एक उच्च परिशुद्धता कहा जा सकता है, कनेक्शन, जिसके साथ उनके डॉक्टरों अधिक रोगियों को जो सब गठिया के लक्षण है के लिए दिया जा की संभावना थी में। परीक्षण के परिणाम के अनुसार गठिया के रूप है, साथ ही अपने वर्तमान है, जो सही रोगी उपचार आवंटित करने के लिए अनुमति देता है भविष्यवाणी करने के लिए निर्धारित किया जा सकता। विश्लेषण के लिए तैयार करने की प्रक्रिया क्या है? विरोधी सीसीपी के एक मरीज विश्लेषण करने के लिए प्रशासन के बाद, वह नियमों के एक नंबर का पालन करना चाहिए। परीक्षण (8 घंटे) से पहले खाने के लिए नहीं कर सकते हैं। चाय, जूस और कॉफी सहित किसी भी तरल, 24 घंटे के भीतर नहीं किया जा सकता। इस नियम ने भी धूम्रपान करने के लिए लागू होता है क्योंकि धूम्रपान न करने 2 घंटे के लिए सिगरेट देने के लिए जब तक यह गठिया में विरोधी सीसीपी का विश्लेषण करेगा होगा। स्पष्टीकरण तो और अधिक सटीक हो जाएगा। परीक्षण की एक विशेषता सिर्फ एक खाली पेट पकड़े यह कह सकते हैं। परीक्षण एक नस से खून लेने से किया जाता है। फिर, यह मट्ठा, जो बाद में विरोधी सीसीपी के लिए इस्तेमाल किया जाता है से निकाला जाता है। सीरम spetstsentrifuge में बरामद किया। विश्लेषण और प्रयोगशाला रोजगार की जरूरत के आधार पर, परिणाम एक सप्ताह के भीतर या दिन में एक बार सेवन उपलब्ध हो जाएगा। महत्वपूर्ण! सीरम केवल एक बार जमे हुए किया जा सकता है, तो परिणाम पहले से ही जब फिर से ठंड गलत हो जाएगा। कैसे रुमेटी गठिया में ACCP विश्लेषण है? यह क्या है, हम पहले से ही जानते हैं। अनुसंधान की प्रक्रिया के बारे मेंः सीरम टेस्ट ट्यूब और लेजर रैयत में रखा गया है। इस विधि tsitofluometriey कहा जाता है। लेजर बीम और अपने तरल चरित्र बिखरने से अनुपस्थिति या शरीर में विरोधी सीसीपी की उपस्थिति पर आंका जा सकता है। विश्लेषण पूरी तरह से सुरक्षित है और रोगी के लिए दर्द रहित, बल्कि pricey है। परीक्षण लागत तात्कालिकता और प्रयोगशाला की कीमतों के आधार पर, परीक्षण के, सात सौ हजार rubles के एक हजार से भिन्न होता है। इस विश्लेषण सभी रोगियों को नहीं भेजी जाती है, यह रोगी के लक्षण और शिकायतों की जांच की जरूरत है। इसके बाद, पर विचार कैसे बाहर रुमेटी गठिया में विरोधी सीसीपी परीक्षण के परिणाम की डिकोडिंग ले जाने के लिए। परीक्षण के परिणाम के अनुसार चिकित्सक उपस्थिति या अनुपस्थिति आरए की, रोग की अनुमानित मंच और अपने पाठ्यक्रम की गंभीरता के बारे में जानता है। यह ध्यान देने योग्य है कि चिकित्सा के क्षेत्र में इस परीक्षण के कुछ जिसका दर अलग अलग उम्र के लोगों से अलग नहीं है में से एक है। रक्त प्राप्त करने के बाद अप करने के लिए 8 डिग्री के तापमान पर सप्ताह में एक से अधिक नहीं के लिए भंडारित किया जा सकता है। तब गठिया में सीसीपीए का विश्लेषण। -200 डिग्री -, रक्त के नमूने के इष्टतम ठंड तापमान है तो यह अनिश्चित काल के लिए यदि आवश्यक हो तो संग्रहित किया जा सकता। पुरुषों, महिलाओं और सभी उम्र के बच्चों के नॉर्म विश्लेषण वर्णित किया जा सकता 3-3. 1 IU / मिलीलीटर और केवल कुछ दुर्लभ मामलों में यह थोड़ा बदला जा सकता है मेंः बच्चे की कम उम्र में पूरी तरह से हड्डी प्रणाली का गठन नहीं करने के लिए - 2,7-2,7 यू / एमएल; सीसीपीए आरए गर्भवती महिलाओं - 3. 8-4 यू / एमएल; बुजुर्ग लोगों में 2 यू / एमएल के लिए क्रमिक वृद्धि की अनुमति दी। कैसे विश्लेषण खड़ा है? खाते में विश्लेषण के परिणामों लेते हुए विशेषज्ञ जटिल उपचार, प्रभावशीलता जिनमें से फिर पुनः परीक्षण होगा प्रदान करती है। उपचार के सही होने रक्त सीरम एंटीबॉडी की मात्रा को कम के आधार पर आंका जाना चाहिए। यह गठिया के रूप में विरोधी सीसीपी की उपस्थिति के लिए खड़ा हैः 0-20 - सूचक नकारात्मक है, 20,0-39,9 - सकारात्मक, दुर्बलता से व्यक्त किया; 40-59,9 - सकारात्मक; 60 से अधिक इकाइयों - सकारात्मक, दृढ़ता से व्यक्त किया। महत्वपूर्ण! तथ्य यह है कि 20 यू / एमएल आदर्श विश्लेषण माना जाता है के बावजूद, कई विशेषज्ञों का मानना है कि आरए रक्त डेटा में एंटीबॉडी के अभाव में बाहर रखा जा सकता है जब सीसीपीए विश्लेषण पैरामीटर शून्य हैं, यानी,। यह हर मरीज है कि सीसीपीए विश्लेषण 95% पर मान्य है याद किया जाना चाहिए, और यदि परीक्षा परिणाम नकारात्मक था, लेकिन यह गठिया के सभी लक्षण है, तो आपको निदान के अन्य तरीकों, उपस्थित चिकित्सक द्वारा निर्धारित का उपयोग कर अतिरिक्त परीक्षण का संचालन करने की आवश्यकता होगी। हम रुमेटी गठिया में विरोधी सीसीपी के विश्लेषण पर विचार किया है। महिलाओं, पुरुषों और सामान्य मूल्यों के बच्चों थोड़े अलग हैं।
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2013 में त्यौहार "किनोटाव्र" के निर्देशकों मेंनतालिया मर्कुलोवा और एलेक्सी चूपोव ने अपनी पहली रचना - पेंटिंग "अंतरंग स्थानों" को प्रस्तुत किया। यूरोपीय आर्थहाउस की भावना से फिल्माई गई इस फिल्म ने उन समस्याओं को छुआ, जो किसी ने अभी तक रूस में अपने रचनाकारों से स्पष्ट रूप से नहीं कही थीं। निर्देशकों ने यौन कुंठा के सभी हाइपोस्टेस का प्रदर्शन किया, जो रातोंरात पवित्र नैतिकता और आत्म-संयम के पंथ द्वारा शासित दुनिया में एक व्यक्ति को मजबूर कर सकता है। फिल्म "अंतरंग स्थानों" की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पृष्ठभूमि, अभिनेताओं ने शानदार ढंग से अपने नायकों की छवियों का खुलासा किया, असाधारण साजिश ट्विस्ट ने इसे विजेता की पीठ पर खड़ा किया। फिल्म को 2014 की सबसे उज्ज्वल घटना के रूप में पहचाना गया था और इसने सभी उच्च गुणवत्ता वाली उत्तेजक परियोजनाओं के रूप में, जोशीले चर्चाओं, तूफानी तालियों और तीखी आलोचना की। मर्कुलोव और चूपोव की तस्वीर कहानियों से बुनी गई हैमध्यम वर्ग के नागरिक - सफल, आर्थिक रूप से सुरक्षित, लेकिन गहरे दुखी। अपने जीवन के एक निश्चित चरण में, वे अपनी अंतरंग समस्याओं में फंस गए और अपने स्वयं के परिसरों के चक्कर में उलझ गए। फिल्म "अंतरंग स्थानों" में अभिनेताओं ने अवतार लियाहीरो खुद को वास्तव में भव्य आकार के सिर में "तिलचट्टे" के साथ। एक सफल प्राकृतिक आदमी, सर्गेई खुद में समलैंगिक शुरुआत पाकर आश्चर्यचकित था, अपनी पत्नी के प्रशंसक के लिए जुनून पैदा कर रहा था। उसे इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि चौथा दर्जन में उसे आश्चर्यचकित करने वाले जीवन का क्या करना है, क्योंकि वह उसकी वासना की वस्तु को ट्रैक करता है। और अनुकरणीय परिवार का आदमी अलेक्सी बदलने से डरता हैपत्नी। सुंदर महिलाओं के खतरनाक प्रभाव से बचने के लिए, वह केवल निम्न वर्ग के प्रभावशाली आयाम वाली महिलाओं को देखने का फैसला करती है और यह देखकर हैरान होती है कि वे उसे प्रसन्न करते हैं। एक नया शौक़ीन व्यक्ति अपने मनोविश्लेषक बोरिस का खुलकर स्तूप में परिचय कराता है। डॉक्टर, हालांकि, पाप के बिना भी नहीं है। उसके जुनून की वस्तु भ्रमित हो गई। और उन्हें अंतरंग करने के लिए बोरिस की आवश्यकता नहीं है। इस मूक पागलपन के बीच, उठोबहुविवाहित फोटो कलाकार-डीवीकेमनेनेट्स इवान और ल्यूडमिला पेत्रोव्ना, जो कि अदम्य यौन भूख के साथ बाल्ज़कोवसोगो उम्र की महिला है और देश में इरोटिका पर प्रतिबंध लगाने की एक भावुक इच्छा है। हंसना या रोना? फिल्म "अंतरंग स्थानों" के अभिनेताओं को पहले नंगे रखा गया थादर्शक अपने नायकों के गुप्त रहस्य देख सकते हैं जो कि सहानुभूति पैदा कर सकते हैं, और घृणा, और घबराए हुए लोग। गति चित्रों की शैली निर्धारित करना मुश्किल है। इसमें सब कुछ हैः असली नाटक, और विनीत कॉमेडी, और इरोटिका, और बिल्कुल सफल नहीं, बल्कि अलैंगिक। आखिरकार, यह जुनून के बारे में नहीं है, बल्कि उन समस्याओं के बारे में है जो व्यक्तित्व को नष्ट करते हैं। इस कारण से, दर्शकों को मोशन पिक्चर माना जाता हैअस्पष्ट। नायकों के अंतरंग संघर्षों को देखते हुए, कुछ लोग हंसे बिना रुके, दूसरों ने ईमानदारी से नायकों के साथ सहानुभूति जताई और राहत की सांस लीः स्क्रीन पर, वास्तविकता वास्तविक जीवन की तुलना में अधिक भयानक और बदसूरत है। फिर भी अन्य लोगों ने भयावह अनैतिकता के लिए तस्वीर को दोषी ठहराया, अश्लील शब्दावली की एक बहुतायत और नग्नता की सबसे सौंदर्यवादी प्रस्तुति नहीं थी, जिसने तस्वीर को पारंपरिक इरोटिका से दूर बना दिया। कास्टिंग कास्ट कैसी थी? फिल्म की बाद की विशेषताओं को देखते हुएकास्टिंग अभिनेता के दौरान निर्देशकों को बहुत मुश्किलें होती हैं। भूमिकाओं के लिए कई आशाजनक आवेदकों ने परियोजना में भाग लेने से इनकार कर दिया, इसे "संदिग्ध नग्नता" माना। तब किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि निर्देशकों को कार्लोवी वैरी में "पूर्व के पश्चिम" कार्यक्रम के मुख्य पुरस्कार किन्नोत्र समारोह में "बेस्ट डेब्यू के लिए" पुरस्कार मिलेगा, और फिल्म को स्वयं फिल्म क्रिटिक्स और फिल्म क्रिटिक्स का डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा। हालांकि, कुछ प्रसिद्ध अभिनेता तुरंतउत्तेजक परियोजना की शक्तिशाली क्षमता को महसूस किया। तो, प्रसिद्ध अभिनेत्री ओलेसा सुदिलोवस्काया, जिसने स्वेतलाना की भूमिका निभाई, फोटोग्राफर इवान की पत्नी को स्क्रिप्ट के साथ खुशी हुई। अपने एक साक्षात्कार में, अभिनेत्री ने स्वीकार किया कि वह स्वेच्छा से मुफ्त में चौंकाने वाली तस्वीर में दिखाई देंगी, क्योंकि वह मार्कुलोवा और चुप्पोवा के विचार से प्रभावित थीं। मुझे स्वेतलाना सुज़िलोव्सकाया की भूमिका के लिए लड़ना पड़ाः वह अंतहीन परीक्षणों में चली गई और निर्देशकों की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी। फिल्म "अंतरंग" में भाग लेने के लिए कास्टिंग के दौरानउन जगहों पर जहां अभिनेताओं और भूमिकाओं को सावधानी से चुना गया था, और कुछ पात्रों के लिए शूटिंग की शुरुआत के लिए एक भी उपयुक्त उम्मीदवार नहीं था। तो, अव्यक्त समलैंगिक सर्गेई को खुद को चूपोव के परिणामस्वरूप खेलना पड़ा। वह एक पेशेवर अभिनेता नहीं थे, लेकिन एक जोखिम भरा प्रयोग करने का फैसला किया। और नैतिकता के पर्यवेक्षक ल्यूडमिला पेत्रोव्ना की भूमिका परनिर्देशकों ने कास्टिंग शुरू होने के छह महीने बाद ही अभिनेत्री को ढूंढ लिया। जूलिया ऑग द्वारा उनकी शानदार प्रस्तुति, जिसे मर्कुलोवा और चुपोव ने शुरू में ऐसी सनकी छवि के बारे में सोचा भी नहीं था। निर्देशकों के दृष्टिकोण से, उसका सुखद रूसी चेहरा ग्राम जीवन के बारे में प्रस्तुतियों में बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन प्रयोगात्मक परियोजनाओं में नहीं। जैसा कि यह निकला, वे गलत थे। जूलिया को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया। फिल्म का मुख्य किरदार अवतार लेता हैकरिश्माई अभिनेता यूरी कोलोकोलनिकोव। पंथ टीवी श्रृंखला "गेम ऑफ थ्रोन्स" से भविष्य के मैगनर टेनोव स्टीयर ने एक चौंकाने वाले फोटोग्राफर इवान की भूमिका निभाई, जिनकी रचनात्मक गतिविधि जननांगों को फिल्माने के लिए नीचे आती है, और उनकी जीवन स्थिति - पूर्ण यौन स्वतंत्रता के लिए। खुशी के लिए बनाया गया आदमी, नायक को मानता हैKolokol'nikova। और यदि ऐसा है, तो जीवन से सब कुछ क्यों नहीं लिया जाता है? इवान के घर में दो पत्नियां हैं, जिसे फोटोग्राफर की बहुविवाह के साथ मजबूर किया जाता है, और वह एक से दूसरे तक भटकती है, और कई बार वह अपने मॉडलों के साथ सोती है। अपने आप को सीमित क्यों करें, नैतिकता के लिए एक सेनानी समझ में नहीं आता है, वह मनोविश्लेषक बोरिस (तैमूर बडलबेयली) द्वारा एक लंबी यात्रा पर एक अश्लील अभिशाप भेजता है, अपने रोगियों पर थोपने की मांग करता है, और एक ही समय में सामाजिक रूपरेखा पर। फिल्म "अंतरंग स्थानों" में अभिनेताओं ने शुद्ध रूप से दिखायालोगों के बीच वैचारिक संघर्ष, आधुनिक समाज में अत्यंत प्रासंगिक है। इवान की स्थिति प्यूरिटन नैतिकता के खिलाफ एक खुला विद्रोह है, लेकिन आसपास के लोग एक घोटालेबाज फोटोग्राफर के जीवन सिद्धांतों को स्वीकार करने में मुश्किल हैं। उनकी व्यक्तित्व और रचनात्मक खोज की आलोचना की जाती है। इवान की एक फोटो प्रदर्शनी, जो एक क्लोज-अप दिखाती हुई जगह है, नैतिक समिति पर प्रतिबंध लगाने के लिए उत्सुक है। ल्यूडमिला पेत्रोव्ना समाज में पवित्रता और शुद्धता के लिए एक प्रबल सेनानी है। उसे रोटी मत खिलाओ - मुझे विश्व सिनेमा की मास्टरपीस से हल्की इरोटिका काट दो। और इवान की प्रदर्शनी और पूरी तरह से आंशिक महिला को डुबोती हैसदमे में, क्योंकि इसकी सामग्री स्पष्ट रूप से "पोर्नोग्राफ़ी" की अवधारणा को ग्रहण करती है। और टीवी स्क्रीन पर टूटी हुई लाशों के खिलाफ ल्यूडमिला पेत्रोव्ना कोई आपत्ति नहीं करती है, और नग्न प्रकृति महिला के लिए एक असली ठोकर बन जाती है। आखिरकार, उनके चेहरे की शांत भावहीन अभिव्यक्ति के पीछे, जो पूरी फिल्म में अभिनेत्री जूलिया अगस्त द्वारा प्रतिभाशाली रूप से व्यक्त की गई थी, जुनूनी कामुक कल्पनाएं भटक रही हैं। काम से घर आकर, वह पहली बातवाइब्रेटर पकड़ लेता है। ल्यूडमिला पेत्रोव्ना के लिए केवल मृत बैटरी एक वास्तविक त्रासदी बन जाती है। कष्टप्रद गलतफहमी से बचने के लिए, वह उन्हें इतनी मात्रा में खरीदती है जैसे कि निकट भविष्य में दुनिया को परमाणु युद्ध का सामना करना पड़ेगा, और दुकानें पृथ्वी के चेहरे से गायब हो जाएंगी। फिल्म के प्रीमियर से पहले निर्देशक क्या नहीं सोच सकते थे? इस एंटीपोड नायक कोलोकोलनिकोव शामिल थेफिल्म "अंतरंग स्थानों में मर्कुलोवा और चूपोव।" अभिनेताओं और भूमिकाओं ने एक ऐसी प्रतिक्रिया को उकसाया, जिसकी निर्देशक खुद कभी उम्मीद नहीं करते थे। ल्यूडमिला पेत्रोव्ना की रंगीन छवि, पाखंड, पाखंड और कुल अकेलेपन को उजागर करते हुए, रूसी राज्य ड्यूमा के कुछ सदस्यों के प्रयोगात्मक विचारों के खिलाफ एक वास्तविक विरोध बन गया। उसका कुछ कैरिकेचर फिगर लग रहा थाशुरुआत में सोवियत संघ से "ग्रीटिंग्स" के साथ फिल्म प्रोजेक्ट बकरू बाकुरदेज़ और यूलिया मिशकिन के निर्माताओं ने इस तथ्य के बावजूद कि मर्कुलोव और चूपोव ने आधुनिक रूस में कई नैतिक समितियां पाईं। और खुद ऑग ने खुद एक साक्षात्कार में उल्लेख किया कि जब वह इस भूमिका के लिए तैयारी कर रही थी, तो उसने क्षेत्रीय कोम्सोमोल समिति की महिलाओं को याद किया, जो राजनीतिक जानकारी के क्षेत्र में युवा लोगों को शिक्षित करने के लिए सुदूर अतीत में उनके स्कूल में आई थीं। फिल्मांकन के दौरान, न तो निर्माता, न ही निर्देशक, और न ही अभिनेता सोच सकते थे कि ल्यूडमिला पेत्रोव्ना गर्म चर्चाओं का उद्देश्य बन जाएगी। आखिरकार, नैतिकता के लिए कट्टरपंथी लड़ाके अचानक देश में दिखाई दिए। हालांकि, जब फिल्म "अंतरंग स्थानों" को देखते हुए, अभिनेता दर्शकों को न केवल नैतिकता और राजनीति के विषयों पर प्रतिबिंबित करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, बल्कि नाटकीय कथानक ट्विस्ट की भी उम्मीद करेंगे। इलेसा स्वेतलोव्सकाया और दिनारा यनकोवस्की द्वारा निष्पादित इवान स्वेतलाना और सायन की पत्नियां, क्रमशः एक दूसरे के प्रति रक्तहीनता की शत्रुता को छोड़कर, कम से कम घबराहट पैदा कर सकती हैं। फोटोग्राफर के घर में लगभग मध्ययुगीन स्थापित कियाआदेश। असंगत सायन एक कत्लेआम नौकरानी की भूमिका निभाता है, कुछ हद तक आधुनिक सिंड्रेला की याद दिलाता है, जो घर में धूल के प्रत्येक छींटे के लिए डिज्नी परी कथाओं से एक बुरी राजकुमारी की तरह एक लाल लाल बालों वाली स्वेतलाना है। नायिका सुदज़िलोव्सना के भी कर्तव्य हैं, निस्संदेह, अधिक महत्वपूर्ण हैं। स्वेतलाना इवान के निजी पीआर एजेंट हैं, लेकिन, अपनी स्थिति के बावजूद, वह अकेले रात बिताती है, अगले कमरे से बिस्तर की नीरसता को सुनकर। दोनों महिलाएं अपने-अपने तरीके से दुखी हैं। लेकिन उनके अपमान का चरम तब पहुंच जाता है जब इवान केवल अपने पति या पत्नी के शवों तक ही सीमित रहता है, और नायकों के लिए इस तरह के मोड़ के बाद भावनात्मक विस्फोट से बचा नहीं जा सकता है। सुदज़िलोवस्काया और यांकोवस्काया तनाव और नाटक दोनों बनाने में कामयाब रहे। इस कहानी का अंत औसत उद्देश्यों से रहित है, जैसा कि रूसी निर्देशकों द्वारा फिल्म निर्माण की पूरी रचना है। कोई कम अजीब प्रेम त्रिकोण प्रकट नहीं होता हैदर्शकों के सामने, जब अलेक्सी चुपोव, एकातेरिना शेगलोवा और पावेल आर्टेमयेव के नायक मंच पर आते हैं। फिल्म में उनकी एकमात्र कहानी दर्शक को हंसा नहीं पाती है। और नायिका ई। शेचग्लोवा ईवा विशेष रूप से संवेदनशील फिल्म प्रशंसकों को रोने में सक्षम बनाती है। उसके पीछे, अनगिनत मजबूर गर्भपात। और घर के एकांत कोने में, एक युवती एक नोटबुक रखती है जिसमें वह अल्ट्रासाउंड से पृष्ठों पर चित्र चिपकाकर अपने अजन्मे बच्चों की स्मृति को संरक्षित करने की सख्त कोशिश करती है। उनके नीचे, ईव उन नामों पर हस्ताक्षर करता है, जो वह उन्हें देना चाहते थे। जब घर के जीवनसाथी की दहलीज बदल जाएगी तो सबकुछ बदल जाएगायुवा सर्कस जादूगर, जिसकी भूमिका बैंड के पूर्व एकल कलाकार "कोर्नी" पावेल आर्टेमयेव द्वारा निभाई गई थी, वह आगे बढ़ेगा। आखिरकार, दोनों पति-पत्नी एक आकर्षक आदमी के साथ प्यार में पड़ जाते हैं। और फिर असली त्रासदी शुरू होती है। और जब दर्शक खूब हँसेंगे? लेकिन मोशन पिक्चर्स में केवल नाटक ही नहीं चलाया जाता है।अभिनेताओं। "अंतरंग स्थान" - एक फिल्म जो बहुत हँसी की अनुमति देती है। निकिता तरासोव और केसेनिया कटिमालोवा द्वारा निभाई गई अलेक्सेई और ओल्गा की कहानी शुरू से अंत तक कॉमिक के साथ परवान पर है। एक फिल्म में सभी पात्रों की तरह, पति या पत्नी पीड़ित हैंउनकी विशेष समस्याओं में सेः एक पत्नी अपने पति पर ध्यान नहीं दे रही है, और बिस्तर में अपनी खुद की यौन असहायता से एक पति है। एलेक्सी, जिन्होंने जानबूझकर सुंदर लड़कियों से बड़े सेल्सवुमेन पर स्विच किया था, अब विशाल अल्बीना से दूर नहीं देख सकते हैं। चाहे वह व्यभिचार करने का फैसला करता है और उसकी पत्नी के साथ उसके संबंध कैसे विकसित होते हैं, दर्शक को पता चल जाएगा कि वह फिल्म को आखिर कब तक देखेगा। निकिता तारासोव एक सनकी और बनाने में कामयाब रहीअपनी समस्याओं में उलझे परिवार के व्यक्ति की थोड़ी हास्यास्पद छवि। इस भूमिका ने अभिनेता को सच्ची सफलता दिलाई। फिल्म "अंतरंग स्थानों" के प्रीमियर के तुरंत बाद, उन्हें "द बैटल ऑफ सेवोपोपोल" के ऐतिहासिक उत्पादन के लिए आमंत्रित किया गया था। मर्कुलोवा और चुपोवा को सम्मानित करने वाले अभिनेताआलोचकों और दर्शकों दोनों से सबसे अधिक प्रशंसा। बाद में, उनकी समीक्षाओं में, बार-बार इंगित किया गया कि कितनी अच्छी तरह, लगभग दोषरहित, अभिनेताओं ने फिल्म "अंतरंग स्थानों" में अपनी भूमिका निभाई। और दर्शकों की राय का मतलब निर्देशकों से बहुत है। कई, निश्चित रूप से, असाधारण दृष्टि और सूक्ष्म हास्य पसंद करते हैं। हालांकि, फिल्म प्रशंसकों के एक महत्वपूर्ण हिस्से ने जानबूझकर अशिष्टता, असंगति और अवसाद के साथ फिल्म को दोहराया। यूलिया अगस्त और यूरी को विशेष प्रशंसा मिलीकोलोकोलनिकोव, जिन्होंने उज्ज्वल, रंगीन छवियां बनाईं। एकाटेरिना शेच्ग्लोवा, जिनकी नायिका ईवा ने उनकी उदास आँखों और आकर्षक उपस्थिति के साथ उन पर जीत हासिल की, दर्शकों के दिलों में प्रवेश करने में कामयाब रही। सिनेमा-प्रेमियों ने अपनी समीक्षाओं में ओलेसा सुदिलोव्सकाया का भी उल्लेख किया, जो पूरी तरह से खुले रूप से कला-घर रिबन में फिट हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि इसमें भाग लेने के लिए कलाकार को "दूसरी योजना की सर्वश्रेष्ठ महिला भूमिका" के लिए पुरस्कार मिला।
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मिनरल वॉटर "बोरोजोमी" को इसका श्रेय दिया जा सकता हैकिंवदंतियों की श्रेणी उसके उपचार गुणों को XIX सदी की पहली छमाही में मान्यता दी गई थी, जब कर्नल में से एक ने आश्चर्यजनक रूप से सामान्य पानी के साथ पेट की समस्याओं को ठीक किया। वह जॉर्जिया में बोरजोमी नदी के निकट एक स्रोत पर पाया गया था। इस जगह पर एक रिसॉर्ट का आयोजन किया गया था, जो अब तक एक अद्वितीय प्राकृतिक और जलवायु क्षेत्र बना हुआ है। पानी एक प्राकृतिक तरीके से सतह पर आता है। इसमें किशोर जल शामिल हैं, जो जटिल ज्वालामुखी प्रक्रियाओं के कारण बनते हैं। "बोरोजोमी" औषधीय तालिका जल की श्रेणी को संदर्भित करता है यह रिफ्रेशिंग से कार्य करता है, जिससे जीव के नमक संतुलन को क्रम में लगाया जा सकता है। इस सोडियम बिकारबोनिट पानी का उपयोगक्रोनिक गैस्ट्रेटिस और गैस्ट्रोडोडेनाइटिस, पेट के अल्सर या ग्रहणी के मामलों में सिफारिश की है। लेकिन गहराई की अवधि में, इस पानी को पीने से निषिद्ध है। "बोरोजोमी" का लाभकारी प्रभाव तब होता है जबआंत्र श्लेष्म की सूजन और जठरांत्र संबंधी जटिलताओं के मामले में अग्नाशयशोथ के साथ स्थिति में सुधार भी पानी "Borjomi" में मदद मिलेगी उपयोग के लिए संकेत मोटापे के मामले में और किसी भी प्रकार के मधुमेह के मामलों में दिखाई देते हैं। यह शरीर के चयापचय प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने में सक्षम है, साथ ही निकासी प्रणाली पर लाभकारी प्रभाव भी है। "बोरोजोमी" ऊपरी श्वसन तंत्र और सर्दी के रोगों से बहुत जल्दी से मुकाबला करता है यह विभिन्न कार्यों के बाद पुनर्वास प्रक्रिया को बहुत तेज करने में भी सक्षम है। "बोरोजोमी" के उपयोग के संकेत उसके कारण हैंसंतुलित संरचना, जो आपको आंशिक रूप से इसे टेबल पानी से बदलने की अनुमति देता है। हालांकि, अपने आहार तालिका से बाहर जाने के लिए पूरी तरह से सिफारिश नहीं की जाती है। खनिज पानी में एक अद्वितीय रसायन हैरचना जो इसकी उपयोगी गुणों को निर्धारित करती है यह एक क्षारीय पानी है, इसकी खनिज 5.5-7.5 ग्राम प्रति लीटर है। Borjomi की रचना शरीर के लिए 80 से अधिक उपयोगी रासायनिक तत्वों और यौगिक शामिल हैं। इसमें कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम और क्लोरीन की एक महत्वपूर्ण राशि है। इसके अतिरिक्त, मैग्नीशियम, सिलिकॉन, एल्यूमीनियम, स्ट्रोंटियम, टाइटेनियम, बोरान, सल्फर और फ्लोरीन यौगिकों इसकी मात्रा में कम मात्रा में मौजूद हैं, साथ ही ज्वालामुखी मूल की राख भी मौजूद हैं। अपनी अनूठी संरचना के कारण, बोरोजोमीपेट के एसिड-बेसिक बैलेंस के सामान्यीकरण से पूरी तरह से सामना करना पड़ता है, भोजन की पाचन से निपटने में मदद करता है। पानी का नियमित उपयोग ग्लाइकोजन की मात्रा बढ़ाता है, एक पशु प्रोटीन जो एक साथ यकृत गतिविधि और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है। "बोरोजोमी" के उपयोग के अन्य संकेत गुर्दे में मूत्र के पत्थर हैं। यह व्यास में 0.7 सेंटीमीटर से अधिक नहीं हो सकता है। एक हैंगओवर से ग्रस्त व्यक्ति के लिएसिंड्रोम, खासकर वास्तविक पानी "बोरोजोमी" हो जाता है इस मामले में उपयोग के लिए संकेत शरीर में नमी को बनाए रखने के लिए पानी की क्षमता से निर्दोष हैं और निर्जलीकरण से बचाते हैं। Borjomi न केवल एक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता हैउपचार के घटक, लेकिन रोकथाम के लिए भी। उदाहरण के लिए, गर्मी के दौरान यह आपकी प्यास बुझाने में ही नहीं, बल्कि नमक संतुलन भी बहाल कर सकता है, जो नमी के नुकसान के कारण शरीर में परेशान हो रहा है। गर्भावस्था के दौरान, इस औषधीय पानी के उपयोग पर कोई सख्त प्रतिबंध नहीं है, लेकिन फिर भी यह एक दिन में एक से अधिक गिलास खाने के लिए उपयुक्त नहीं है। इस खुराक को इस तथ्य से समझाया गया है कि शरीर को पानी के भाग के रूप में प्रसंस्करण लवण के लिए समय और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। "बोरोजोमी" विषाक्तता के दौरान की स्थिति को कम करने में मदद करेगा, और ईर्ष्या से भी बचाएगा, क्योंकि इस स्थिति में गोलियों को छोड़ देना होगा। "बोरोजोमी" का प्रयोग करें गर्भवती महिलाओं को केवल तब ही गैस से जारी किया जा सकता है। कई मायनों में बच्चों के लिए संकेत और मतभेदउनकी उम्र पर निर्भर करता है डॉक्टर तीन साल से कम उम्र के बच्चों को बोरोजोमी पीने की सलाह नहीं देते हैं। इस समय के अंत में, यह कब्ज के लिए निर्धारित किया जा सकता है, क्योंकि पानी में एक मूत्रवर्धक, रेचक और शुद्ध प्रभाव होता है। नियमित उपयोग बच्चों के शरीर में पोटेशियम की मात्रा को बढ़ाता है, जो उनके सामान्य विकास के लिए आवश्यक है। बच्चों को पीने की अनुमति दी जाने वाली पानी की मात्रा,उनके शरीर के द्रव्यमान पर निर्भर करता है अनुशंसित खुराक बच्चे के वजन का प्रति किलोग्राम 4 मिलीलीटर है। बच्चे को किस प्रकार की जठरांत्र ग्रस्त है, यह निर्भर करेगा कि आप भोजन के पहले या बाद में बोरोजी को पीते हैं या नहीं। अधिक वजन वाले लोगों को अधिक पानी पीना चाहिए,दूसरों की तुलना में जल निकासी आहार पानी "बोरोजोमी" को मदद करेगा खनिज जल का उपयोग आंत के काम पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, लिपिड चयापचय को गति देता है और एटीपी-एसिड बनाता है। विघटित होने के बाद, अतिरिक्त ऊर्जा का उत्पादन होता है, और एंजाइम का काम होता है, जो वसा को तोड़ता है, में सुधार भी होता है। शरीर को विषाक्त पदार्थों से शुद्ध किया जाना शुरू होता है। यदि आप पीते हैं तो शरीर जल्दी से विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पायेगासुबह में बोरोजोमी खनिज पानी वजन घटाने में योगदान देता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि पूरे आहार में इसके केवल शामिल होना चाहिए। चिकित्सा के पानी को उचित पोषण और मध्यम शारीरिक श्रम के साथ जोड़ा जाना चाहिए। आप बोरोजोमी में एक दिन का बंद भी कर सकते हैं, लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि केवल एक दिन ऐसा सप्ताह हो सकता है। अधिक वजन वाले लोग खा सकते हैंखनिज पानी, इससे पहले इससे पहले गैस जारी की थी। तथ्य यह है कि यह गैस्ट्रिक रस के उत्पादन को उत्तेजित करता है, जिससे भोजन का उपभोग करने की इच्छा बढ़ती है। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, "बोरोजोमी" का एक चिकित्सीय प्रभाव है, जो सर्दी, खांसी और ब्रोंकाइटिस से छुटकारा पाने में मदद करता है। प्रश्न के सवाल पर विशेषज्ञों के बहुमतठंड और खांसी के दौरान सही ढंग से "बोरोजोमी" पीने से 1: 1 अनुपात में पानी और दूध को मिलाकर लेने की सिफारिश की गई है। पानी को पहले पानी से हटाया जाना चाहिए। यदि कोई विशेष इंहेलर नहीं है, तो साधारण गहरी व्यंजन उपयोग किया जाता है। जल "बोरोजोमी" को 50 डिग्री तक गर्म करने और पांच मिनट तक श्वास लेने की आवश्यकता होती है। इस पानी का उपयोग करते समय मतभेदसबसे पहले, अल्सर से पीड़ित लोगों को ध्यान देना चाहिए इस तरल के अत्यधिक उपयोग उन्हें अच्छा नहीं करेंगे। तथ्य यह है कि Borjomi सहित अधिकांश खनिज पानी में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड की अत्यधिक मात्रा में, पेट की दीवारों को कुचलना होगा, और केवल इसके साथ समस्याओं को बढ़ाएगा। कार्बन डाइऑक्साइड पेट, पित्त स्राव और पित्त के गठन के स्रावी और मोटर कार्यों को बाधित करेगा, और शरीर में एसिड-बेस बैलेंस का उल्लंघन भी कर सकता है। खनिज औषधीय जल के सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं ज्यादातर लोग गलत तरीके से सोचते हैं कि यह पानी पूरी तरह से भोजन कक्ष को बदल सकता है और इसे असीमित मात्रा में उपभोग कर सकता है। Borjomi एक उच्च नमक सामग्री है 100 मिली पानी के लिए इन खनिजों के आठ ग्राम हैं। यह खुराक शरीर के लिए जरूरी आदर्श से अधिक है। अतिरिक्त खनिजों का शरीर पर उनकी नकारात्मक कमी के रूप में उनकी कमजोरी होगी मानव अंगों और ग्रंथियों को उत्पादित पदार्थों के साथ अतिभारित किया जाएगा, और उनका काम बिगड़ जाएगा। इससे पूरे शरीर के कामकाज को प्रभावित होगा। "बोरोजोमी" अनियंत्रित हो सकता हैपदार्थों के यौगिकों यह विशेष रूप से शराब के विषाक्तता के दौरान स्पष्ट किया जाता है। चिकित्सीय खनिज पानी हेगओवर के पाठ्यक्रम की सुविधा प्रदान कर सकता है, हालांकि, इस प्रक्रिया को सुरक्षित करना मुश्किल नहीं है। यह इस तथ्य के कारण है कि अंतर्वेशन के बाद शराब और इसके अपघटन के उत्पादों से संतृप्त खनिज पदार्थ अराजक जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं का कारण हो सकते हैं, जो अब तक का अध्ययन नहीं हुआ है। इससे चयापचय में एक अपरिवर्तनीय परिवर्तन हो सकता है।
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Udaipur. Rajasthan उच्च न्यायालय के न्यायाधीपति डॉ पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने कहा है कि पक्षकारों के न्याय दिलाने में और बार और बेंच के संबंधों को सकारात्मक रखने में अधिवक्ता की भूमिका कृष्ण के रूप में है और यह भूमिका न्याय व्यवस्था के लिए अधिवक्ता को सशक्त बनाती है. डॉ भाटी ने तकनीक के साथ बेहतर तैयारी करने पर आह्वान किया. बार एसोसिएशन Udaipur के नवनिर्वाचित कार्यकारिणी के शपथ ग्रहण समारोह को संबोधित करते हुए Rajasthan उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति डॉ पुष्पेंद्र भाटी ने कहा कि उनका Udaipur से गहरा लगाव है और वह Udaipur को बचपन से पसंद करते आए हैं doctor भाटी ने कहा कि सीनियर अधिवक्ताओं से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला है और मेवाड़ के सीनियर अधिवक्ताओं ने न केवल Udaipur में वर्णन Rajasthan और देश में न्याय व्यवस्था में कई बड़े पदों पर रहकर Udaipur का गौरव बढ़ाया है और और उनसे उन्हें इस न्याय व्यवस्था में बहुत कुछ सीखने को मिला है. डॉ भाटी ने कहा कि देश की आजादी से लेकर आज तक अधिवक्ता पक्षकारों के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता रहा है और उसकी भूमिका न्याय के हित में उसे समाज में बेहतर रूप से स्थापित करती है उन्होंने सीनियर अधिवक्ताओं से आह्वान किया कि वह जूनियर अधिवक्ताओं को इस प्रोफेशन में ठहराव के लिए हर तरीके से प्रोत्साहित करें और उनके लिए शैक्षणिक सत्र के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षित भी करें. उन्होंने देश की आजादी में अधिवक्ताओं के रूप में महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू एवं पाकिस्तान के जिन्ना का भी जिक्र करते हुए कहा कि वे बेहतरीन अधिवक्ता रहे जिन्होंने आजादी की लड़ाई को अपने तरीके से लड़कर पक्षकारों के लिए अच्छी वकालत की. उन्होंने अधिवक्ताओं को मानवीय संवेदना ओं को रखकर भी पक्षकारों को सकारात्मक न्याय दिलाने के लिए प्रेरित किया उन्होंने अपने मित्र कुलदीप माथुर के साथ 30 वर्ष के संस्करण भी सुनाएं. Rajasthan उच्च न्यायालय के न्यायाधश पति कुलदीप माथुर ने कहा कि वह Udaipur में दूसरी बार आए हैं और दोनों ही बार वह doctor पुष्पेंद्र भाटी के साथ ही आए हैं उन्होंने कहा कि Udaipur बार में बढ़ती अधिवक्ताओं की संख्या को देखकर जिला एवं सत्र न्यायालय परिसर को अन्यत्र शिफ्ट करने पर विचार करना होगा ताकि एक ही छत के नीचे अधिवक्ताओं पक्षकारों को सभी सुख सुविधाएं मिल सके और वह बेहतर महसूस कर सकें उन्होंने Jodhpur में Rajasthan उच्च न्यायालय बिल्डिंग के बाहर बनने के दौरान किए गए विरोध प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा कि उनका विरोध जारी ही रहते हुए भी जब Rajasthan उच्च न्यायालय बनकर तैयार हो गया तो आज पक्ष कार और अधिवक्ताओं को एक ही छत के नीचे पार्किंग लिटिगेट सेंड वकीलों के लिए चेंबर कैंटीन सब सुविधाएं मिल रही है जिससे बाहर से आने वाला अधिवक्ता भी पक्षकार भी अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है. माथुर ने नवनिर्वाचित अध्यक्ष से कहा कि उन्हें इस दिशा में भी विचार करके शीघ्र निर्णय लेना चाहिए. माथुर ने अधिवक्ताओं द्वारा की जा रही हड़ताल का पक्ष लेते हुए कहा कि वह हड़ताल के विरोध में नहीं है लेकिन उन्होंने आह्वान किया कि अधिवक्ता को जो भी हड़ताल करनी है वह गौरव मैं वह गरिमा में रहकर ही करनी होगी जिससे वह इस प्रोफेशन की गरिमा को भी बनाकर रख सकें और अपनी बात संबंधित व्यक्ति नेता विभाग तक पहुंचा सके. समारोह में Rajasthan उच्च न्यायालय की judge भर्ती डॉ श्रीमती नूपुर भाटी ने कहां की देश में महिलाओं की 50% की भागीदारी है लेकिन न्याय व्यवस्था में वर्तमान में 66% महिलाओं की भागीदारी होने से सीनियर अधिवक्ताओं की यह जिम्मेदारी है कि वह महिला अधिवक्ताओं को इस व्यवसाय में ठहराव के लिए प्रोत्साहित करें और उन्हें हर संभव मदद करें उन्होंने महिलाओं से अपने प्रकरणों की वस्तुस्थिति को गंभीरता से लेने सशक्त वकालत करने और आने वाले समय को देखकर पेपर लेस वर्क करने के लिए तकनीक का भी उपयोग करने का आह्वान किया. समारोह में बतौर गेस्ट आए महापौर जी एस्टार्क व नगर निगम के उपमहापौर पारस सिंघवी भी मौजूद रहे जीएस टाक के चले जाने के बाद उपमहापौर भारत सिंह जी ने कहा कि नगर निगम जिला एवं सत्र न्यायालय परिसर और अधिवक्ताओं के साथ सदैव सकारात्मक काम करता आया है उन्होंने नवनिर्वाचित कार्यकारिणी की मांग पर Monday से दो सफाई कर्मी नियमित लगाने और आने वाले समय में महिला व पुरुष अधिवक्ताओं के साथ पक्षकारों के लिए अत्याधुनिक सुलभ सुविधा कंपलेक्स बनाने की घोषणा की है. समारोह में बार काउंसिल ऑफ Rajasthan के को चेयरमैन राम रतन सिंह ने कहा कि मेवाड़ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने से यहां पक्ष कार सस्ता सुलभ न्याय से वंचित है गरीबी के कारण वह न्याय प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं ऐसे में Rajasthan उच्च न्यायालय के अतिथियों से उन्होंने Udaipur में Rajasthan उच्च न्यायालय की खंडपीठ स्थापित होने से पूर्व तक सर्किट बेंच भिलाई जाने की मांग की है उन्होंने अतिथियों का स्वागत करते हुए अधिवक्ताओं के वेलफेयर के लिए भी आजीवन सदस्यता नहीं लेने पर वार्षिक सदस्यता लेने पर जोर दिया. समारोह में आमंत्रित जिला एवं सत्र judge चंचल मिश्रा के Jodhpur में किसी कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए चले जाने पर उनके प्रतिनिधि के रूप में आई कमर्शियल कोर्ट की जज शिवानी जोहरी भटनागर ने कहा कि Udaipur में कई प्रतिष्ठित अधिवक्ता रहे हैं इनसे उन्हें सिविल और फौजदारी मामलों में एक बेहतरीन सीखने को भी मिला है उन्होंने यहां के अधिवक्ताओं को जूनियर अधिवक्ताओं को अच्छी तरीके से प्रशिक्षण देने पर जोर दिया. नवनिर्वाचित अध्यक्ष राकेश मोगरा ने अपनी कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष योगेंद्र दशोरा महासचिव शिव कुमार उपाध्याय सचिव चेतन प्रकाश पालीवाल वित्त सचिव हरीश सेन एवं पुस्तकालय सचिव राकेश आचार्य के साथ आमंत्रित सदस्य के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता धन सिंह जाला मनोज अग्रवाल गणेश लाल तेली जयवर्धन सिंह निर्भय सिंह दुलावत चेतन चौधरी श्रीमती उलेमा मंसूरी को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई और वर्ष पर्यंत बार और अधिवक्ताओं के हित में कार्य करने का आग्रह किया. समारोह में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश मोगरा एवं महासचिव शिव कुमार उपाध्याय ने अपनी कार्यकारिणी के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद जी बख्शी एवं शकुंतला जोशी एवं नीता जैन के साथ अतिथि डॉ पुष्पेंद्र भाटी कुलदीप माथुर नूपुर भाटी पारस सिंघवी राम रतन सिंह एवं शिवानी जोहरी का ऊपर ना उड़ा कर माला पहना कर प्रतीक चिन्ह देकर सम्मान किया. इस दौरान कुलदीप माथुर की पत्नी नीता माथुर का भी अभिवादन किया गया. समारोह में नवनिर्वाचित अध्यक्ष राकेश मोगरा की दादी एवं वरिष्ठ अधिवक्ता स्वर्गीय सवाई लाल मोगरा की पत्नी ने तीसरी पीढ़ी के रूप में वकालत कर रहे अपने पोते राकेश मोगरा का सार्वजनिक मंच पर आकर माला उड़ाकर शाल पहनाकर आशीर्वाद देकर सम्मानित किया इस दौरान पूरे सदन ने उठकर भावविभोर होकर अभिवादन किया. उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि राकेश उनके परिवार का तीसरी पीढ़ी का अधिवक्ता होकर अध्यक्ष बना है दादी ने पोते से कहा कि वह अधिवक्ताओं के स्थाई विकास के लिए कोई सकारात्मक कदम उठाएं. समारोह में Banswara प्रतापगढ़ चित्तौड़गढ़ सलूंबर नाथद्वारा राजसमंद Bhilwara और Jodhpur के नवनिर्वाचित कार्यकारिणी के पदाधिकारियों ने भी Udaipur पहुंच कर अतिथियों का प्रतीक चिन्ह भेंट कर स्वागत और अभिनंदन किया वही नवनिर्वाचित इन बार एसोसिएशन के कार्यकारिणी पदाधिकारियों का बार एसोसिएशन Udaipur के पदाधिकारियों ने भी सम्मान किया. समारोह में बार एसोसिएशन Udaipur के वरिष्ठ अधिवक्ता महिला अधिवक्ता सहित चित्तौड़ Bhilwara मावली सलूंबर नाथद्वारा प्रतापगढ़ Jodhpur सहित विभिन्न बार से आए अधिवक्ताओं न्यायिक अधिकारी गण सहित आमंत्रित अतिथियों ने भाग लिया. समारोह का संचालन एडवोकेट बृजेंद्र सेठ ने किया वहीं धन्यवाद की रस्म महासचिव शिव कुमार उपाध्याय ने अदा की समारोह में सैकड़ों अधिवक्ता उपस्थित रहे. समारोह का समापन राष्ट्रगान से हुआ.
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श्रज्ञानवासनासे अनेक पदार्थों के निर्णयका कथन -घट पर मकान आदिक अनेक पदार्थों का निर्णय करने वाला ज्ञान तो प्रज्ञानरूप है। ये नाना प्रकारके पदार्थ मयो विज्ञात होने लगते उसका कारण यह है कि प्रविद्याकी वासना लगी हुई है और उम हीके सकेतका स्मरण बनता है उससे विकल्प की प्रतीत होने लगती है और फिर यह अन्यकी अपेक्षा रखकर प्रतीतिमे प्राता है, यह वासविक वम्नुस्वरूप नहीं है । जर अन्य अस्तित्त्वकी अपेक्षा न दसकर अन्य पदार्थको कल्पनाएँ न बनाकर जो कुछ प्रतिभास हो वह है वस्तुका स्वरूप । और पदार्थमात्र उतना ही है । यह बहुत लम्बे समय तक याद रखना होगा कि जो ;छ कहा जा रहा है वह ब्रह्माद्वैतका स्वरूप कहा जा रहा है और इस ही दृष्टि से सुनना । सर्व विश्वको प्रतिभासान्त प्रविष्टका कथन - जो कुछ प्रतिभास हो रहा है वह सव प्रतिभास हो रहा है वह सब प्रतिभास स्वरूप जब कभी अपने आपका ज्ञानस्वरूप ज्ञानमे प्राता है तो वह ज्ञानमे भाता है तो वह ज्ञानस्वरूप ज्ञानमे ही तो प्रविष्ट है वाहर तो नहीं है। इस प्रकार जो जो कुछ भी प्रतिमासमे भा रहा है वह सब प्रतिभासके अन्तर न मे ही प्रविष्ट है, वाह्य भय कुछ नहीं है। जो कुछ दिख रहा है, प्रज्ञात हो रहा है यह सव मायारूप है । परमार्थवस्तुभूत तत्त्व तो एक ब्रह्म ही है । जो जो प्रतिभास होता है वह सब प्रतिभासके अन्दर ही प्रविष्ट है। जैसे प्रतिभास का खुदका स्वरूप प्रतिभासमे आता है तो वह प्रतिभासमे ही प्रविष्ट है । जो जो कुछ ज्ञानमे भ्राता है वह सब ज्ञानमे ही प्रविष्ट है। और यह सर्व चेतन प्रचेननरूप समग्रवस्तु प्रतिभासमे भा रहा है अत सव प्रतिभासान्त प्रवष्टि है, इस अनुमानसे भी श्रात्मा द्वैतकी सिद्धि होती है । विश्वकी प्रतिभासमात्रत्मताका अनुमान ब्रह्माद्वैत कहो, भात्माद्वैत कहो एक ही बात है। एक ब्रह्मके सिवाय इस लोकमे अन्य कुछ तत्त्व नहीं है। यहाँ यह अनुमान बनाया गया है कि सर्व पदार्थ ज्ञानमे ही गभित हैं, क्योकि ज्ञात होनेसे । यह हेतु प्रसिद्ध नहीं है क्योंकि सभी पदार्थोंका साक्षात् अथवा प्रसाक्षात् कुछ भी प्रतिभास न हो तो किसी सत्यके विकल्पकी व्यवहारकी उत्पत्ति ही न होगी और कहा भी न जा सकेगा । सब कुछ प्रथम ज्ञानमे आता है और वह ज्ञानरूप ही है वास्तवमे भेद कल्पना करके प्रज्ञानकी वासना के कारण सब कुछ भिन्न भिन्न समझमे आता है । ब्रह्माद्वैतके सिद्धान्तमे सीपीसी बात उन्होंने यह रखी है कि सब कुछ एक ब्रह्म है और उसकी ही ये नाना सृष्टिया हैं तो यह सब उसका ही बाग है, सब उसका ही प्रसार है वैभव है ये सब चीजें कुछ नही हैं । ब्रह्मा तवादके आगमवाक्योसे अभेद सृष्टिमूल ब्रह्मका समर्थन - इस बातको भागममे भी लिखा है ऐसा वे ब्रह्माद्वैतबादी ही अपना आगम रख रहे हैं - मवं वै खल्विद ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन । आराम तस्य पश्यन्ति न त पश्यति कश्चन ऐसा हमारे आगममे लिखा है कि जगतमे जो कुछ है वह समस्त पदार्थ ब्रह्म है । ये नाना कुछ भी चीजे नही हैं और लोग जो कुछ निरखते हैं, उस एक ब्रह्म के आरामको, बागको फैलावको ही निरखते हैं, उस ब्रह्मको को नहीं देखता । औौर, भी बताया गया है । पुरुष एवंत सर्व यद्भुत यच्च भाव्य स एव हि सकललोकसर्गन्थितिप्रलयहेतु ।" यह सब कुछ जो अब तक हुम्रा जो आगे होगा वह सब एक यह ब्रह्म ही है, एक सर्वव्यापक या मा ही है और वह ही समस्त जगतकी सृष्टि स्थिति और प्रलयका कारणभूत है । जैसे कि मकडी जालकी सृष्टि रचती है तो वह जाल क्या मकडीसे जुदा है ? ल गोको ख़ुदा मालूम देती है उस जालकी व्यक्ति होनेपर यह लगने लगता है कि यह जाल पूरा गया है और देखो इसमे यह मक्डी फसी है वह जाल न्यारा है । मकडी न्यारी है और वह फसी है यो लंग देखते है पर वास्तविकता क्या है । वह जाल मकडीकी रचना है, मकडीसे ही उत्पन्न हुई है और वह मकडी उस जालके बीच रह रही है। वहीं दो चीज क्या है ? सब कुछ एक ही वरसु है । इसी तरह यह सारा जगत एक ब्रह्म ही है ब्रह्मसे ही यह सर्जित हुआ है और व्यक्तस्प हो जानेपर यह सब माया है और इस मायाके बीच यह ब्रह्म रह रहा है, सब कुछ वही एक ब्रह्म है, वही रचनाका, ठहरनेका और विनाशका कारण बन रहा है अथवा जैसे चन्द्रकान्तर्मारणसे जल नि वलता है तो उस जलकी रचनाका मूल हेतु तो चन्द्रकान्तर्माण है इसी तरह यह सव व्यक्त दृष्टिगोचर हो रहा है पर इस समस्त लोकका कारणभूत इसकी रचनाका साधन एक परम ब्रह्म ही है। अथवा जैसे वटका बीज प्रकुरोका कारणभूत है । वे भकुर क्या बीजसे न्यार हैं? वह एक बीजका ही फैलाव है । इसी प्रकार यहु सारा जगत ब्रह्मका ही फैलाव है । जितने भी जीव है जन्ममरण करने वाले समस्त प्राणियोका कारणभूम यह ब्रह्म ही है । ब्रह्मस्वरूपके ज्ञानकी प्रमाणता व कल्याणकारिताका कथन- इस ब्रह्मस्वरूपका ग्रहण करने वाला जो ज्ञान है वह तो प्रमाण है और सब पदार्थोंका ग्रहण करने वाले ये सव ज्ञान प्रमाण है क्योकि ये सारे पदार्थ हो मिथ्या है । तो मिथ्या पदार्थको सम्यक् रूपसे जाने वह ज्ञान मिथ्या है और प्रमाण है। अभेद ही एक तत्त्व है । भेद तो विकल्प और मूढतामें प्रकट हूं ता है । जो इस जगतको, जो इम समग्र लोकको भेदरूपसे देखा करते हैं उनकी तो निन्दा की गई है । 'मृत्यो स मृतुमाप्नोति य इह नानेव पश्यति । उपनिषदमे यह बताया है कि वह पुरुष मृत्युके द्वारा मनुको प्राप्त हंता है जो यहाँ कुछ भी नाना निरखता है, जो भेदरूपसे नाना रूपमे इस लेकको निरखता है, उसकी मृत्यु होती रहती है। इसका तात्पर्य यह है कि जो एक अभेद चैतन्यमात्र ब्रह्मस्वरूपको देखता है वह तो मृत्युसे बचता है, भ्रमर होता प्रसङ्गमे थोडा ग्याद्वादीकी भी बात सुनिये । स्याद्वादी तय विभाग के कारण इस ही चीजको उनमे भी और अधिक ऊंचे ले जा सकते हैं। चैतन्यम्वरूप एक है, किन्तु स्याद्वाढवादी कहते हैं कि चैतन्यस्वरप एक हैमा एउपनाला देनेसे भी चैतन्यस्वरूप त्रिगड जाता है। वह तो केवल अनुभूतिका तत्त्व है, गनुभव करिये उसके बारेमें बह चैतन्यस्वरूप एक हे अथवा नाना है ऐसो जीभ मत हिलायो । उस ही चैतन्यस्वरूपका लक्ष्य करके एक ब्रह्माद्वैतका सिद्धान्त प्रकट हुआ है। देशभेदसे पदार्थभेद करनेकी शवयनका प्रदर्शन प्रकरणमे यह कहा जा रहा है कि लोगोको जो ये पदार्थ भिन्न-मि नजर आते हैं, नाना नजर आते है क्या यह देशके दसे इन पदार्थोंका भेद है ? देशभेदो तो भेद करना मिथ्या है, क्यों कि जैसे एक प्रकाश है, स्वरूपसे ग्रभित है उस आकाशमे यह भेद करना कि यह इनके घरका आकाश है, यह मेरे घरका आकाश है, त ऐमा कह भले ही लो, किन्तु ऐसा श्रद्धान करणा मिथ्या है। आकाश तो स्वरूपसे भिन्न है फिर घर भी दिक ये भेदसे आकाशमे भेद न पड जायगा, क्योंकि भीटका भेद आकाशमें न प्रवेश करूंगा। इन प्रकार देशमा भेद प्रयों में प्रवेश नहीं कर सकता। देश न्यारे-न्यारे हैं। तो रहें देशके भेद अर्थमे भेद नहीं बनता। इसे यो समझिये थोडा जैनसिद्धान्तका एक दृष्टान्त लेकर । जिस जिस स्थानमे जीव हैं उसी उसी स्थानमे पुद्गल हैं। धर्म, अधर्म प्रकाश, काल ये ६ प्रकारके द्रव्य हैं । तो एक जगह इतने पदार्थ श्रा जानेसे क्या वे एक हो गए ? देशका अभेद होनेसे पदार्थ एक तो नही हो जाता। तो इसी कार देश का भेद होनेसे भी वे पदार्थ अनेक नही हुए। देशभेदकी साधनामे विकल्पोका उत्थापन ब्रह्माद्वैतवादी कर रहे हैं - अच्छा बताओ यह देशभेद हो कैसे गया ? वया अन्य देशके भेदसे देशभेद हुआ या स्वत हुआ ? पूछा यह गया था कि ये पदार्थ जो नाना नजर आ रहे हैं ये भिन्न भिन्न क्यों नजर भा रहे हैं ? क्या देशके भेदसे भिन्न-भिन्न नजर या हे हैं ? तो देश भी जो भिन्न-भिन्न न र भा रहे हैं यह अमुक स्थान है, यह अमुक स्थान है, ये भी क्यो नजर थी रहे हैं ? इसमें कारण अन्य देशभेद मानोगे तब तो अनवस्या दोष प्रायगा। फिर वह देशमेद अन्य देशभेदसे हुआ, फिर वे भिन्न-भिन्न स्थान अन्य देशभेदसे हुए। और, यदि स्वत. ही मानते हो तो इन पदार्थोंको भिन्न-भिन्न समझाने के लिए देशभेद से हो वताना किन्तु सीधा ही भाव भेद माननेको वात न बोलना । भेदकी कल्पना करनेका प्रगाम ही क्यो करे ? इस कारण यह बात युक्त है कि ये जो पदार्थोंमे भेद नजर आ रहे हैं यह सब मिथ्या है। ये पदार्थ देशभेदके कारण भी मिन-भिन नही बन सकते हैं। कालमेदसे पदार्थभेद न होनेका मन्तव्य-~-कालभेदसे भी मिन्न-मिन्न नही बन सकते जैसे कालभेदसे लाग भिन्न-भिन्न कहा करते हैं कि यह चीज कल हुई अब यह चीज भाज नहीं है, यह कन हो जायगी इसप्रकार जो समयके भेदमे पदार्थों मे भेद माना है तो वह भी पूरा नहीं पड़ सकता, क्योकि कालका भेद ही प्रत्यक्षसे सिद्ध नही है । प्रत्यक्ष तो केवल सामने रहने वाली वस्तुमात्रको अस्तित्त्व मात्रको जानता है, इसमे कालभेद नही है। प्रत्यक्षसे गई गुजरी बात जाननेमे नही आया करती । प्रत्यक्ष विषय प्रतीत भविष्यकाल नही है अथवा उन कालोमे रहने वाले जो भिन्न भिन्न पदार्थ हैं उनका भेद प्रत्यक्षका विषय नहीं है, अतएव कालभेदसे भी हम इन पदार्थोको भिन्न-भिन्न नहीं मान सकते । आकारभेदसे भी पदार्थ भेदकी श्रमान्यता इसी तरह आकारभेदसे भी हम इन पदार्थोंको भिन्न-भिन्न नहीं कह सकते। आकारमेद पदार्थों का भेदक यह किसी भिन्न प्रमाणसे जाना जाता है ? अन्तर्वस्तु और बाह्यवस्तु इनके सिवाय और कुछ भी प्रतिभाममान नही होता है। न अन्य कोई प्रमाणका स्वरूप है । जो कुछ भी ज्ञानमे प्राता है वह सब एक प्रतिभासमय एक ब्रह्मका ही स्वरूप है, प्रतएव न ग्राकारभेदसे भी अर्थका नेद नजर आता है। जितने भी भिन्न-भिन्न पदार्थ दृट्टि - गोचर होते है वे सब मिथ्या है और मिथ्याका ज्ञान करना अप्रमारण है । एक परमात्मम्वरूपका ही ज्ञान करने वाला जो ज्ञान है वही प्रमाणभूत है, इन प्रकार ब्रह्माद्वैतवादी प्रपूर्व अर्थके ज्ञानकी प्रभारणताका खण्डन कर रहे हैं। इस अद्वैतवादके सिद्धान्तमे हरथमान, तर्क्यमारण समस्त पदार्थ मिथ्या है, मिथ्या ही नहीं, असत् हैं एक अभेद निरश नित्य अपरिणामी चात्मा है, ब्रह्म है। उस प्रभेद परमात्मत्वमात्र तत्त्वकी सिद्धि इसलिये एक दार्शनिक द्वारा की जा रही है कि उमे प्रमाण स्वरूपमें दिये गये "प्रपूर्वं अर्थ" इस विशेषणसे विरोध है, क्योंकि यह दार्शनिक सर्वथा अभेदवादी है । वस्तुस्वरूपकी निर्दोष व्यवस्था - वस्तु स्वरूपकी निर्दोष व्यवस्था तो यह है कि एक पदार्थ इतना हुआ करता है जितना कि वह अपनेमे अखण्ड हो । और, अखण्ड हं नेके प्रतिफलस्वरूप अनेमे अपने आपका परिणमन करता हो । अपनेसे बाहर कही परिणमन न हो, बाहरसे किसी ओोरसे अपनेमे परिणमन न आये केवल अपने आप जितने प्रदेशमे हैं उतनेको एक वस्तु कहते हैं इस दृष्टिसे जगतमें अनन्त वस्तुयें हैं। जिन सब वस्तुवोको हम जातिरूपमे विभाजित करें तो उन सबकी ६ जातियां बनती हैं - जीव, पुद्गल, धर्म, प्रघर्म, आकाश और काल । जिनमे चेतना पायी जाय, जो जानन देखनहार हो ऐसे जितने पदार्थ हैं वे सब जीव कहलाते हैं । जिनमे चेतना नहीं है, और रूप, रस, गध, स्पर्श है वे सब पुद्गल जातिमे गिने जाते हैं । ये दो जातिके पदार्थ तो व्यवहारमे बहुत प्राते हैं। इनके अतिरिक्त ४ जातियां ओर हैं एक धर्मद्रव्य - जो जीव और पुदेगलके चलनेमें महायक हो, निमित्त कारण हो वह एक ही है । एक अधर्म द्रव्य जो जीव और पुद्गलके ठहरनेमे निमित्त कारण हो, एक ग्राकाश द्रव्य जिसमे पदार्थ रहा करे और एक कालद्रव्य जिसमे असख्यात कालद्रव्य हैं, वे लोकालोकके एक- एक प्रदेशपर अवस्थिन हैं और अपने प्रदेशपर जो भी पदार्थ स्थित हो उसके परिगमनके कारण है। इस तरह छ जातिके पदार्थ हैं। प्रतिव्यक्तिगत भेदका प्रकाश - जीव और पुद्गलमे तो अनन्त व्यक्तिया स्पष्ट ही है अनन्त जीव है और अनन्त पुद्गल है। वस्तुस्वरूपकी व्यवस्था तो ऐसी है, किन्तु ह्माद्वैतवादी यहाँ यह कह रहे है कि ये भिन्न भिन्न पदार्थ मालूम हुए ना, यह सब अज्ञानसे प्रतीत होता है। वास्तवमे तो एक ब्रह्मरवरूप ही है । वह ब्रह्मस्वरूप निर्विकल्प हैं, एक सत्तामात्र है। जैसा कि कुछ भी जानते समयसे पहिले जो कुछ एक सामान्य प्रतिभास होता है उस रूप यह एक ब्रह्म है। इस सिद्धिके सिलसिले मे ब्रह्माद वाटी कह रहे है कि यदि कोई लोग जैन या अन्य कोई भेदवादी लोग यह कहे कि हमे भेद सही तो मालूम पड रहा है जैसे अपने त्राप जीवो के सम्बन्धमे ग्रहका प्रत्यय हुआ करना है मै हूँ। मैं तो हर प्रकार मैं मैं के ज्ञानमें भेद तो पडा हुआ है । तवादमे ग्रह प्रत्ययसे भी परमार्थ सतुके अलक्ष्यका प्रतिपादन इस प्रकार ब्रह्मा तवादी यह उत्तर दे रहै है कि यह बात सही नहीं है क्योकि बहुत से लोग जो अह अह कहकर अपना अलग अलग चरितत्त्व समझ रहे है उसमे शुद्ध बोध का तिभास नही है । जिसको ग्रह करके माना है वह स्वय भाया है। मैं सुखी हूँ । मैं दुखी हूँ । मैं मोटा हूँ, मैं दुबला हु श्रांदिक रूपमे जो हम लोग में मैं का अनुभव बरते है तो वह मुस आदिकका या शरीरका आलम्बन करके अनुभव करते है । जो यद्रह्मस्वाप है उसका प्राश्रय करके उसका लक्ष्य लेकर लोग यह ग्रह नहीं बोलते तो यहा भेद तत्त्व सिद्ध किया जा रहा है । अहसे जो कुछ भी लोग रयाल करते हैं बह किसी अन्य पदार्थका स्याल करके यह बोला करते हैं, उसग्रहमे ब्रह्मतत्स्वपरमान्मस्वरूप नहीं पकड़ा जा रहा है। मैं सुखी हूँ तो सुरूपर लक्ष्य देकर सुस रूप जो परिग्रामने वाला है ३स तरह विकल्प और कल्पनाश्रोमे जो ग्मने वाला है वह में है तो ऐसा वह मैं मायारूप हू, शुद्ध ब्रह्म नहीं हू । बोव स्वरूपका आलम्बन करके उसका कोई अनुभव नहीं करता । वहा तो निविकरपता आती है। जैसे कि जैन लोग भी तो मिथ्यात्वके उद्यमे जीव जिस जिसको अई ग्रह से ग्रहण करते हैं ने सब भी तो पर्याय है, मिथ्या हैं। तो यहाँ ब्रह्मावादमे जिम- जिस को जुदा-जुदा व्यक्तिरूपमे मैं-मैं अनुभव करते है वह सब भेद है, मिथ्या है। प्राकारभेदसे भी पदार्थोके भेदके प्रभावका कथन- यहाँ ब्रह्मवादी वादियोमे पथरहे हैं कि हम क्या प्राकारभेदसे पदार्थोम भेद मालूम करते हो तो आकार से जाना जाता है या म्वत जाना जाना है ? पढ़ने जाना जाता है इस विषयमे नहां तक ये अापत्तियाँ दी । यदि यह कहा कि ये पदार्थ सभीके सभी तो अपनः- गपनादा-जुदा प्राकार लिए हुए है स्त्रय अपने को जानते रहते हैं यदि ऐसा कहो तो ब्रह्मवादी- कह रहे हैं कि इस तरहसे तो समस्त पदार्थ अपने ही प्रकाशमे नियत है यह आपत्ति आायगी । और ऐसा होनेपर तो जिसे हम चस्मा कह कह रहे है, उसके स्वरूपने अपने आकार और स्वरूपको जाना । जिसे मैं कह रहा है उसने स्वयं अपने आपके आकारको जाना। तब कोई भी पदार्थ किसी दूसरेको जान तो न सका । हम ग्राप परपदार्थों के सम्बन्धमे कुछ निर्णय चाह रहे है और हम केवल अपने तक ही जान पाते है तो फिर निर्णय कैसे बनेगा, आकारभेद कैसे सिद्ध होगा ? यो देशभेद कालभेदसे और आकारभेदसे भी पदार्थोंमे भेद सिद्ध नहीं होता । एक प्रभेद ही तत्त्व है । समयानुरूप तौर तके कथनका व्यवहार - देखये । आज कल इस सिद्धान्तका प्रचार तो बहुत है, पर कुछ ऐसे अटपटे ढङ्गमे है कि वही पुरुष पहिले बडा भेद सिद्ध कर रहा औौर थोडी देर बादमे उसका दिमाग बदल जाता है तो अभेदको सिद्ध करने लगता, इस तरह भी परम्परासे और रूढिसे अद्वैतके मानने वाले प्राण भी है। जैसे अभी चर्चा कर रहे हो कि एक ईश्वरने इन सब जीवोको बनाया, ये राव न्यारे-न्यारे है, पुद्गरा न्यारे प्यारे है । ये सव पदार्थ सत्त्व गुण, रजोगुण, तमोगुणकर सहित है । सबकी जुदी-जुदी खूब सत्ता मानने जैसी बात कहते है । थोडी ही देरमे खबर मा जाय कि पडिताई तो इसमे और ज्यादा समझी जाती है कि एक ब्रह्म है अन्य कुछ नही है ऐसा कहना चाहिए तो इस वुद्धिमे प्रेरित होकर फिर यो वालने लगते है। बहुत बडी पडिताई बुद्धिमानीकी वात मानी जाती है। तो इस कथन मे मान ली जाती है। जैसे कि अभी कहा है सब कुछ एक ही अभेदस्वरूप ब्रह्म हे और कहते ही है सव । सव कुछ एक परमात्मतत्त्व है, मन्य तो सव उसकी माया है। इस अभेदवादको यहाँ सिद्ध किया जा रहा है। अविद्यारूप शास्त्र विद्याप्राप्तिके हेतुपर प्राशङ्का भैया । जितने भी कथन इस प्रसङ्गमे अभी पहे जा रहे है वे सब एक ब्रह्माद्वैतवादीके है । वे दूसरोको श्रो एक शङ्का उठाते हैं कि यदि जैन आदिक भेद मानने वाले दार्शनिक ऐसा कहे कि तुम्हारा यह सर्व विश्व एकस्वरूप ब्रह्म, यदि विद्यास्वभावरूप है ज्ञानरूप, बोध स्वभाव है और वही है सब यह ससारमे वोधस्वरूप । ब्रह्मके अतिरिक्त तो कुछ ससार नाना नहीं तो जब विद्यारूप ही हैं तो फिर इन जीवोको मोक्षके लिए शास्त्रोमे प्रवृत्ति क्यो करायी जाती है ? जब हम सब ज्ञानरूप ही हैं, बोधरप हो है. ब्रह्म ही हैं तो फिर शास्त्रोकी प्रवृत्ति व्यर्थ बन जायगी। क्योकि शास्त्रोकी प्रवृत्ति तो तव करे जव अविद्यासे हटने और विद्यामे लगनेका स्वभाव पडा हो या हम लोगोको जरूरत हो, हम गब तो विद्यारूप है और शास्त्र हैं अविद्यारूप और अविद्याम्प शास्त्र विद्यारप प्रो कैसे प्राप्त करा दें? एक ब्रह्म है उसके प्रतिरिक्त जो कुछ है वह सव प्रज्ञान है मायारूप है, शास्त्र भी मायारप हो गये और सारे उपदेश भी मायारूप है, समस्त व्यवहार माया है । तो शास्त्रोकी प्रवृत्ति फिर क्यो की जाय ? कही अविद्यासे विद्या भी मिला करती है ? अद्वैतवादमे शास्त्रकी अव्यर्थताका समाधान - इस प्रकार ब्रह्माद्वैतवादी उत्तर देते हैं कि विद्यास्वभाव होनेपर भो शास्त्रादिककी व्यर्थता नही है । शास्त्र विद्यामे नही लगाते है, किन्तु जितना अज्ञान बसा हुआ है उसका परिहार कराते हैं । यदि यह मैं विद्यास्वभाव न होता तो अनेक प्रयत्न करनेपर भी अविद्याका परिहार नही हो सकता था । हूँ में विद्यास्वभाव लेकिन शास्त्र की प्रवृत्ति हमे यो करनी पड़ती कि भविद्याकी प्रवृत्तियोका, प्रज्ञानके परिणमनोका परिहार हो जाय। श्रज्ञान हटानेके लिए हम शास्त्र पढते हैं, ज्ञान बनाने के लिए हम शास्त्र नही पढते । ऐसा ब्रह्माद्वैतवादी कह रहे हैं क्योंकि यदि यह कह बैठें कि हम ज्ञान पैदा करनेके लिए शास्त्र पढते है तो इसका अर्थ यह हो जायगा कि हम ज्ञानरूप नहीं हैं। शास्त्रोका हम ज्ञान बनाते है तो शास्त्रोकी प्रवृत्ति ज्ञानविकासमे कारण नही है किन्तु प्रज्ञानके हटानेमे कारण है, क्यो कि अविद्या ब्रह्मसे अलग वस्तिवमे कुछ नही है। अविद्याकी मायाकी सत्ता नही हुआ करती इस कारण यह अविद्या दूर हो जाती है। यदि वास्तवमे श्रविद्याका सद्भाव मान लें जैसा कि ब्रह्मस्वरूप है, परमात्मस्वरूप है उसी तरह माया भी कुछ होती है यो यदि सत्ता मान लें तो फिर उसे कभी हटाया हो न जा सकेगा । किसी भी सत्ता का प्रभाव कभी नहीं हुआ करता । इस कारण शास्त्रोकी प्रवृत्ति अविद्याके हटानेके लिए है और ऐसा तो सभी दार्शनिक मानते है कि मुमुक्षुवोका जितना भी प्रयत्न है, निर्वारण प्राप्त करने वालोका जितना भी प्रयत्न है वह सब प्रविद्याके उच्छेदके लिए है । मोह रागद्वेष प्रज्ञान जो कि अतात्त्विक है उनके विनाशके लिए है। यह तवादका प्रयोजन - भैया । बहुत कुछ अशो तक ब्रह्माद्वैतवादमे हम अपना दिमाग लगाये, उसकी वातको मानकर चलें तो तत्काल फायदा तो जरूर होता है कि बहुत से विकल्प हमारे हटने लगते है। जब हम जानें कि यह मायारूप है। वास्तविक नही है, किन्तु एक अकल्पनीय ब्रह्मस्वरूप है वह ही सबका मूल है, इसतरह जब हम एक अकल्पनीय ग्रह्मस्वरूपपर दृष्टि देते हैं तो ये सब विकल्प हमारे शान्तसे होने लगते है, लेकिन ऐसा उपयोग बदल लेना, इस तरहका शान्त हो लेना यह देर तक नहीं टिक पाता है तथा अन्ततो गत्वा आत्ममग्न नही कर सकता । यो तो जैसे किसी लडकेको हुचकी आ रही हो और उसको कोई अचम्भे वाली वात कोई सुना दे या उसके हो लिए कोई ऐसा सुना दे कि तुम उसके घरमे क्यो सूनेमे गये थे, तुम नहीं क्यो चोरी करने गए थे। तो उसका कुछ उपयोग बदल जाता है और उसकी हिचकी थोडी देरको बन्द हो जाती है । औौर, ऐसा लोग करते भी हैं। कुछ देर बादमे फिर वह हिचकी चलने लगती है, वह तो रोग ही है। इसीतरह समस्त 'सतृपदार्थों का प्रभाव मान लेनेपर और मात्र एक कोई ब्रह्म मान लेनेपर कुछ कल्पनाएँ तो शान्त हो जाती है कुछ अतिव्यक्त मोह रागद्वेषको परिणतिया मिट तो जाती है पर वहा फ्टि यो नही बैठ पाता है कि ऐसा सोचनेमे स चने वालेने स्वमे अपने ज्ञानको नही पाया । यदि उस ही ब्रह्मम्वरूपको केवल एक अपने आपमे इस स्वभावको सोचता कि मैं तो चैतन्यमान हू और जो कुछ भी यहाँ परिणमन बनता है वह सब मायारूप है इस प्रकार अपने आपकी इन विभाव सृष्टियोको मायारूप समझकर उनसे अपनेको हटाकर अपने एक ज्ञानम्वभावमे चित्त देता तो सोचने वाला भी यही है और अपने आपके भूतकी बात सोची तो यह इसमे मग्न हो जाता। हम उस स्वरूपको समझने के लिए अपनेसे मिन्न अन्यत्र दृष्टि लगायें कि इन सबका उपादानभूत कोई एक ब्रह्म है तो अन्यत्र दृष्टि लगानेसे अपने आपमे स्वरूपमग्नता नही हो पाती है इतना अन्तर है । अनादि विद्याके उच्छेदका तर्क - इस प्रसङ्गमे ब्रह्माद्वैतसे कोई प्रश्न कर रहा है कि अविद्या भी तो अनादिकाल से चली आयी है। जैसे ब्रह्मस्वरूप अनादि है तो यह विद्या भी अनादि है और प्रनादिमे चली आयी हुई श्रविद्याका उच्छेद कैसे हो सकता है। इसपर ब्रह्माद्वैतवादने उत्तर दिया कि देखो तुम्हारे यहाँ भी तो प्रागभाव अनादिसे चला आया है, उसका भी तो विनाश होता है। कैमी सुन्दर युक्तिसे उत्तर दे रहे है। प्रागभावका अर्थ है जो चीज बनती है उससे पहिले वह चीज नही रहती ऐसा तो सर्वत्र है ही। जैसे आज यह घडा वन रहा है तो इस घडेका ग्राजमे पहिले अनन्तराल तक प्रभाव था । तो प्रागभाव का समय है अनन्तकात अर्थात् प्रागभाव अनादिसे है। सो वहाँ भी जब घडा बन गया तो प्रागभाव मिट गया । जो इस समय रोटी बनायी जा रही हो उस रोटीका पहिले प्रभाव है कि नहीं ? तो कब तक प्रभाव रहा ? आज जो ८ बज रोटी वन रही है उसका प्रभाव ७ बजे है कि नही ? ७ बजे रोटी तो न थी। इसोप्रकार १० वर्ष पहिले, सैकडोसागर पहिले, और अनन्तकाल पहिले कभी भी इस रोटीका सद्भाव न था, अब बन रही है रोटी । तो रोटीका प्रागभाव रहा अनन्तकाल तक । रोटी बननेपर अनादिसे चला हुआ रोटीका प्रागभाव मिट जाता ना। इस तरह अनादिकालसे चली आयी हुई अविद्याका भी विनाश हो जाता है, और जैसे यो समझिये कि घडा बना तो घडेसे पहिले घटेका प्रागभाव था तो उस प्रागभावका नाम रख दीजिए अघट घट तो हुआ एक मिनटमे और अघट रहा अनन्तकाल तक । तो उस घटका सद्भाव अलगमे क्या है ? घटका प्रागभाव ही अघट है इसीतरह अविद्याका सद्भाव और कुछ नही है, विद्याका प्रागभाव ही अविद्या 4। जब तत्त्वज्ञानरूप विद्याको उत्पत्ति होती है तो अविद्या अपने आप नष्ट हो जाती है जैसे कि घडा बननेहर घडेका प्रभाव अपने ग्राप दूर हो जाता है। ब्रह्म और अविद्यामें भिन्नाभिन्नादि विचार - अद्वैतवादी बह रहे हैं कि भैरवाद यह पूछा था कि भविद्या प्रयुसे अभिन्न है कि भिन्न है, सो भिन्न प्रभिन्न के वस्तुमे करने है । प्रविद्या तो श्रवस्तु है, इसमे भिन्न प्रकिा विकल्प पवित्रा ये विकल्प नहीं उठाये जा सकते, यह सब कुछ प्रविधा माया है, मिथ्याभिाग है। जैन मिद्धान्नमे भी नो माने शरीरको गायारूप बताते, प्रौराधिक नीज बताते, निमित्त और उपादानपर दृटि हूँ तो न जीव की यह चीज है न पुद्गलकी यह नीज है । जीव और पुद्गलके परकार निमित्त नैमितिक भावने गा मारा नगार दिन रहा है। नो हम इन सबको किनी एककी बाव नही कह नवने । भैया । जैन गिद्धान्नमे तो नय विभाग है। द्रव्य गुग्ण पर्यायी व्यवस्था है किन्तु मद्वैतवादीसिद्धान्तमे द्रव्य गुरण पर्यायको व्यवस्था नहीं है। जो ब्रह्म है वह सवैय परिणाम है । का यह सब कुछ परिगमन नहीं है, किन्तु मायाका है, प्रकृतिका है, यह गव परिणमन झूठ है, इन सनकी मत्ता मिथ्या है, एक ब्रह्मरून है इस कार अपरिणामी नित्य निरक्ष एक स्वभावी ब्रह्मतत्त्वकी सिद्धि की जा रही है । शास्त्रमननादिकी त्रविद्यामे स्वपर विद्या के प्रशमनके सामर्थ्यका मन्तव्य - अद्वैतवादोसे ध्रुव भेदवादी पूछ रहे है कि हम जो मात्माकी बात सुनते हैं, थात्मतत्त्वका मनन करते है, भात्मतत्त्वका ध्यान करते है यह तो ब्रह्मसे भित्र है ना ? हाँ ग्रहह्मसे भिन्न है । तो यह अविद्यारूप हुआ ना । आत्माकी कथनी सुनना, चर्चा करना, आत्मा का मनन करना, ध्यान करना जब ये सब अविद्या है तो उन प्रविद्यास्वभावी प्रयत्नोसे विद्याकी प्राप्ति कैसे बन सकेगी ? ब्रह्माहतवादी इसपर उत्तर देते है और कितने तर्कके साथ उत्तर देते हैं । आप यह समझगे कि ठीक ही तो कह रहे ह । उनका उत्तर है कि जैसे किसी पानीमे गदापन है, कीचड भरा हुआ है, धूलका विशेष सम्बन्ध है ऐसे उस क्लुषित जलमे जब कोई निर्मली, चूर्ण वगैरह डालते हैं जो कि उस पानीको साफ करती है तो वहाँ वह चूर्ण उस धूलको भी नीचे दवा देता है और वह पूर्ण खुद भी नीचे दब जाता है। तो जो गन्दे जलके उस कीचको दबाने के लिए एक दवाई डालते है तो उस दवाईका यह काम है कि वूलको नीचे दवाकर खुद भी नीचे दब जाय । इसी तरह ये आत्माके ध्यान मनन आदिक तो जरूर है किन्तु इस अविद्या का इतना काम है कि भिन्न पदार्थ निरखनेको अविद्याको दबाकर खुद दब जाय । स्वपरप्रणामनपर विपका एक और उदाहरण और भी देखिये किसी विपको दूर करनेके लिए विप डालते है, विषैली चीजफा विष दूर करनेके लिए विष प्रयोग करते है तो उस विषका यह काम है कि दूसरे विषको शान्त कर दे और खुद भी शान्त हो जाय । तो जैसे विप खुद शान्त होकर दूसरे विषको शान्त कर देता है इसीप्रकार यह अविद्या भी शानध्यान स्वाध्याय ये सब मेदभावको शान्त कराकर खुद शान्त हो जाती है। ऐसा इस अविद्यामे प्रभाव है । यह अविद्या अपने आपमे उत्पन्न हुआ जो भाव है, अनेक प्रकारके जो दुराग्रह है, यह चौकी है, यह कमण्डल है, यह पुरुष है, यह पक्षी है आदिक जो भेद डालने के आग्रह है उनको भी यह स्वाध्यायरूपी अविद्या शान्त कर देती है और यह अविद्या स्वय शान्त हो जाती है। और यह जीव यह ब्रह्म अपने स्वरूपमे अवस्थित हो जाता है । तो अविद्याका यह काम है । यह शका नही कर सकते कि फिर शास्त्र पढना व्यर्थ है। शास्त्र पढनेका जो ज्ञान है इसे भी ब्रह्म वादने ज्ञान माना है । यह शास्त्र पढनेका श्रज्ञान इन भिन्न भिन्न चीजोको समझानेका जो अज्ञान लगा है इस प्रज्ञानको नष्ट कर देता है और खुद नष्ट हो जाता है। स्वपरविकल्पप्रशामनपर एक और दृष्टान्त - जैसे जैन सिद्धान्तका एक दृष्टान्त लो- दो नय होते ह-निश्चयनय और व्यवहारनय व्यवहारनय तो अन्य वस्तुमे अन्य कस्तुका सम्बन्ध जोडना कहलाता है और निश्चयनयमे एक ही वस्तुमे एक ही वस्तुके सहजस्वरूपको देखनेका काम बना रहता है । अव विकल्प की दृष्टिसे देखिये तो ब्यवहारनय भी विकल्प है और निश्चयनय भी विकल्प है। जब ध्यानी पुरुष अपने शुद्ध आत्मतत्त्वमे मग्न होना चाहता है तो भले ही व्यवहारनय पहिले साधक रहे लेकिन उस निर्विकल्प दशा से पहिले समयपर तो निश्चयनय साधक बनता है। वहाँ यदि कोई प्रश्न कर बैठे कि निश्चयनय भी विकल्प है, वह विकल्प अविकल्प दशाका कारण कैसे बन जाता है ? तो जैसे वहा यही उत्तर दिया जा सकता है कि उस शुद्ध निश्चयनयके विकल्पमे यह प्रभाव है कि बड़े बड़े व्यवहारनयके विकल्पोको समाप्त करते हुए खुद भी समाप्त हो जाता है और वहा निर्विकल्प दशा जगती है । इसीतरह हमारा ब्रह्माद्वैतवाद है । उस बह्मस्वरूपमे मग्न होनेके लिए जो शास्त्र अव्ययन आदिक करते हैं, आत्मध्यान आत्ममननका उपाय बनता है, यद्यपि ये उपाय भी सब मिटते हैं, विद्यास्वरूप तो एक अकल्पनीय अनिर्वचनीय स्वरूप है लेकिन यह आत्मध्यान आदिककी प्रविद्या भी इन बडी बडी अविद्यावोसे, भिन्न-भिन्न चीज मानने हठको, भज्ञानको समाप्त करते हुए खुद भी समाप्त हो जाता है । यो शास्त्रकी प्रवृत्ति व्यर्थ नही है और फिर भेदको बताने वाली जो यह अविद्या है इसका जब बिनाश हो जाता है तो एकस्वरूप स्वय अवस्थित हो जाता है । अभेदब्रह्मकी सिद्धिमे अभेद आकाशका उदाहरण - जैसे ५० घडे रखे है, जब हम भेददृष्टि रखते हैं यह घडा है, यह घडा है तो हमे वहीं आकाशका भी भेद नजर आता है, इस घडेका आकाश इस घडेमे है, इस घडेका प्रकाश इस घडेमे है । - यदि हम घडेके भेदको बताने वाली श्रविद्याको समाप्त कर दें तब एक शुद्ध प्रकाश रहता है इसीतरह जब हम इस भेदको दूर कर दे तो एक दृष्टि रहती है। इसप्रकार ब्रह्मवाद प्रभेदकी सिद्ध कर रहा है। एक शुद्ध ब्रह्म ही तत्त्व है । जैसे आकाश एक है, अखण्ड है, नित्य है, भपरिणामी है, इसी प्रकार ब्रह्म (आत्मा) एक है, अखण्ड है, नित्य है, अपरिणामी है इस परमोत्मरूपका ग्राहक ज्ञान ही प्रमाण है, इसके अतिरिक्त अन्य कुछ नही है, प्रत अपूर्व अयका निश्चय कराने वाला ज्ञान प्रमाण है यह कथन युक्त नहीं है। समारोपित भेदसे लोकव्यवहारका अद्वैतवादमे कथन - लोकमे पदार्थं हैं तो अनन्तानन्त, किन्तु उनकी जातिका भ। भेद न करके चोर उन सब पदार्थों के एक सामान्य सत्त्वस्वरूपका ही आग्रह करके अद्वैतवादी कह रहे है कि ये जितने भी पदार्थ दिखते है ये वास्तव में कुछ नही है, एक यद्वैतव्रह्म ही तत्त्व है । इसपर यह शका की जा सकती है कि अनंत मानने पर फिर सुख दुख बन्ध मोक्ष आदिक कुछ भी भेदकी व्यवस्था न रह सकेगी क्योकि ये सब भेदमे हैं। इसके उत्तर में श्रद्धं तवादी कहते हैं कि कल्पितभेदसे भी सुग्ब दुख वन्ध मोक्ष आदिकके भेदकी व्यवस्था बन सकती है। जैसे भदवादी भी यह कहा करते हैं कि मेरे शिरमे पोडा है, मेरे पैरमे वेदना है । क्या शिरमे पीडा होती है ? अथवा पैरमे वेदना होती है। वेदना तो जीव मे होती है । शिर और पैर तो भौतिक चीज हैं फिर भी जीवमे होने वाली वेदनाको उपचारसे अपनी कल्पनाके अनुसार पैर और शिरमे कह देते है तो कलिनतभेदसे भी है भेद हो जाता है। इसी प्रकार ब्रह्माद्वैतवादमे भी यह बताया गया है कि जितने लोक मे ये भेद देखे जा रहे हैं, भिन्न-भिन्न पदार्थ माने जा रहे है, ये सब भेदकी कल्पनासे होते हैं, वास्तविक कुछ भी भेद नही है । लोकव्यवहारमे समारोपित भेदका शङ्कापरिहारपूर्वक समर्थन यदि इसके उत्तरमे जैन आदिक यह कहे कि पैर श्रादिकमे पीडा तो नहीं है पर वेदना का अनिकरण जरूर है अर्थात् पर शिरमें कुछ रोग हो जानेके निमित्तसे प्रात्मामे पीढाका अनुभव होता है, तो कुछ तो सम्बन्ध है इस कारण उसके भेदमे भेदकी व्यव स्था बन सकती है । इसके उत्तरमे अद्व तवादी कहते हैं कि यह भी युक्त नहीं है । क्योकि शिर और पैर तो कुछ तत्त्व ही नहीं हैं, ये क्या बेदनाका कुछ अनुभव कर लेंगे ? यदि शिर पर अनुभव करलें तो यह नास्तिक मत हो गया कि जीव कुछ नही है जो यह शरीर है, ढाँचा है यही है जीव और यही जानना है, यही भोगता है । इस शरीरके अतिरिक्त जीव कुछ नहीं है यही प्रसङ्ग भ्रा जायगा । तो इस तरह ब्रह्मा तवादी कहते जा रहे हैं कि एकत्व ही वास्तवमे सिद्ध है । प्रत्यक्षसे, धनुमानसे और आगमसे ब्रह्मवाद ही तत्त्व सिद्ध होता है, भिन्न-भिन्न पदार्थ कोई तत्त्व नही है, ऐसा ब्रह्माद्वंतवादीने इसलिए यह प्रकरण रखा कि प्रमाणका स्वरूप कहा जा रहा था कि जो रय और अपूर्व अर्थका निर्णय कराये वह ज्ञान प्रमाण है, तो अद्वैतवाद दर्शनका कथन है कि अर्थ तो अपूर्व और भिन्न-भिन्न कुछ होता ही नहीं । केवल एक ब्रह्म ही सत् है और ये सब पदार्थ मिथ्या है तब इसका बान करना कैसे सत्य कहला येगा ? इस प्रकार अतवादने अपना पक्ष रखा। एक ब्रह्मसाधक प्रमाणके विकल्पोकी मीमासा - अब अद्वैत तत्त्वके सम्वन्धमे भाचार्यदेव कहते हैं कि सारा विश्व एक है, अभेद है ऐसा अभेद जो सिद्ध कर रहे हो, क्या इस वजहसे कर रहे हो कि अभेदको सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण है, अथवा इस कारण कह रहे हो कि भेदको सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण ही नही है भेदमे वाघा डालने वाला कोई प्रमारण है । दोनो बातोसे भी अभेदकी सिद्धि की नही जा सकती है, जिसमे यह तो कहना युक्त है नही कि भेदकी सिद्धि प्रमाणसे नही है इस कारण एक अभेद ही ब्रह्म है। यह बात तो तुम्हारी इस कारण प्रयुक्त है क्योकि प्रत्यक्ष आदिक भेदके अनुकूल ही पड रहे हैं । हम आखसे या इन्द्रियसे जो कुछ भी जानते है प्रत्यक्षसे स्पष्ट यह सब जुदा जुदा मालुम पड रहा है और फिर भेद माने बिना तो यह भी व्यवस्था नहीं कर सकते कि कौन प्रमाण होता है कौन अप्रभारण होता है। जैसे अभेद प्रमाण है और भेद अप्रमाण है यह कहा तो कुछ प्रमाण होना कुछ प्रमारण होना ये दो चीजे है क्या ? यदि कहो कि ये दो चीजे हैं तो प्रभेद कहाँ रहा, अद्वैत कहाँ रहा ? फिर दो बातें हो गई । यदि कहो कि नही दो बात नही है तो प्रमाणकी अप्रमाण बताये विना सिद्ध नही और अप्रमाणका प्रमाण बताये बिना सिद्धि नही । तो भेद माने बिना तो हम क ई भी मनुष्य अपना सिद्धान्त रख ही नही 'सकते । आखिर यह तो समझना ही होगा कि मेरी बात प्रमारणभूत है इसके अतिरिक्त मन्य प्रमाण है । भेद, अपेक्षा, प्रतिपक्ष धर्म ये तो प्रत्येक तत्त्वके साथ जुड़े हुए है। जहाँ मु हसे "यह है" इतना भी निकला कि उसमे ही यह जुड़ा हुआ है कि यह और कुछ चीज नही है । तो है और नहीं, इनका भेद तो प्रत्येक कथनमे जुडा ही रहता है । कोई कहे कि मेरी बात सच है इसका क्या यह अर्थ नही है कि मेरी बात झूठ नही है ? तो सत्य असत्य, भेद अभेद, सुख दु.ख वष मोक्ष सब कुछ है, द्वैतका निषेध नही कर सकते । सर्वाभेदसाधक प्रमाणका अभाव - - यदि कहो कि अभेदका साधक प्रमाण मौजूद है इस कारण हम अभेद सिद्ध करते है तो पहिली बात तो यह है कि जो सिद्ध करना चाहे और कोई प्रमाण देकर सिद्ध करना चाहे तो जो प्रमाण देंगे वे तो कहलायेगे साधक और जिस वातको सिद्ध करेंगे वह कहलायगा साध्य । यो साध्य और साधकका भेद तो मानना ही पडेगा । साध्य साधक भेद भावके बिना निर्णय ही सम्भव नही फिर अभेद साधक प्रमाणके समान लोगे ? यदि है अमेद साधक प्रमाण तो अभेद हुआ साध्य और प्रमाण हुआ साधक । तो यो अभेद भा गया । भेद के बिना तो कुछ सिद्ध नही किया जा सकता । अभेदके एक व्यक्तिगतत्व व अनेक व्यक्तिगतत्वका विकल्प-आवान्तरसत्तावादी कह रहे हैं कि जो तुमने यह कहा था कि सर्वप्रथम निर्विकल्प प्रत्यक्षमे एकत्व ही ज्ञात होता है कहा था ना, कि जब नेत्र खुले, तो खुलनेक साथ ही सर्वप्रथम जब कि कुछ व्यक्तिगत सत्ता विदित होती है उससे भी पहिले कुछ प्रकाश सा विदित होता है वह परमार्थ सत् है, ब्रह्म है ऐसा जो कहा है तो हमे वतलावी कि वहा जो एकत्व विदित होता है वह एक व्यक्तिय रहने वाला विदित होता है या अनेक व्य३१२ ] क्तियोंमे रहनेवाला एकत्व ज्ञात होता है या व्यक्तिमात्रमे रहने वाला एकत्व ज्ञात होता है। यहा प्रश्न यह किया गया है कि जो कोई यह मानता है कि जब हम कुछ भी जानते हैं तो उस जाननेने सर्वप्रथम अभेद एक निर्विकल्प प्रकाश ज्ञात होता है । तो वह एकत्व वह प्रकाश जिसे तुमने एक माना है वह क्या एक व्यक्तिमे नजर आया या अनेक व्यक्तियोमे या व्यक्तिमात्रमें ? एकव्यक्तिगत अभेदके प्ररूपणसे सर्वाद्वितकी असिद्धि उस एकत्वको यदि एक व्यक्तिगत मानोगे तो यह बतलावो कि वह एकत्व फिर सर्वव्यापक है या उस ही एक व्यक्तिमे व्यापक है ? जो एकत्व नजर छाया वह उस ही एक व्यक्तिमे व्यापक है तो विश्वरूप एकत्व कहाँ रहा ? यो वह एक वस्तु विदित हुई मो समय वस्तुओमे एक-एक व्यक्तिगत एकत्व निरखे तन वे सब प्रत्येक पदार्थ न्यारे-न्यारे हुए यदि कहा कि नही, एकत्व एक व्यक्तिगत तो दीना, पर वह सर्वव्यापक दीखा, तो यह तो परस्पर विरुद्ध बात है। सर्वव्यापक हो और फिर एक व्यक्तिमे वैघा हुआ हो यह बात कँपे सम्भव हो सकती है ? तो इससे तुम्हारे अभेद की सिद्धि नहीं हो सकती है। अनेक व्यक्तिगत अभेदके प्ररूपणसे सर्वाद्वितकी प्रसिद्धि - यदि यह कहो कि अनेक व्यक्तियोमें पाया जाने वाला एक अभेद एक्त्व एक स्वरूप जाना तो यह वतलावो कि वह एकत्व व्यक्तियोके आधार रूपये प्रतिभास होता है, ज्ञान मे चाता है या व्यक्तियोका घाघार न करके स्वय हो केवल एकत्व, ब्रह्म ज्ञात होता है। जिस ब्रह्मकी सिद्धि कर रहे हो वह ब्रह्म अनेक व्यक्तियों में पाया जाता है ऐसा मानते हो तो वह ब्रह्म व्यक्तियोके आधारमे रहता हुआ मालूम होता है या किसी भी व्यक्ति के आधारसे न रहकर स्वतंत्र स्वच्छन्द रहता हुआ मालूम होता है। यदि कहो कि व्यक्तियो आधारमे रहता है वह ब्रह्म, तब तो भेद सिद्ध हो गया, क्योंकि प्रत्येक ध्यक्तियोमं वह ब्रह्म रहा भाया । व्यक्ति अधिकररण हैं एकत्व अथवा ब्रह्म आधेय है, जिसे सर्वव्यापी कह रहे हो, लो यो भी यह भेद हुआ और अनेक व्यक्तियोसे भी भेद हुआ भेटकी प्रत्यक्षसिद्धता - किन्ही भी व्यक्तियोका आधार न करके ब्रह्म अपने आप सर्वत्र मौजूद है यह मानोगे तव तो बीचमें, अन्तरालमे वह ब्रह्म प्रतीत होना चाहिए । एक व्यक्ति यहा बैठा एक दो गज दूर बैठा तो वीचमे यह अन्तर क्यो ग्रा जाता । जब ब्रह्म सर्वव्यापी है तो वह आत्मा गर्वत्र रहना चाहिए। तो इस प्रकार भव तो प्रत्यक्षके ही विरुद्ध है। जो भौधी सी बान है उसका निषेध करके एक कल्पित दो मोर ले जाना यह कहाकी वृद्धिमानी है। धौर, देखिये जितने भी कार्य होते है ६ राव व्यक्तियोंसे होते हैं, भेदसे या जाति नहीं होते। जैसे कोई कहे कि यह काम पल्दी कराओ। कैसे कराये मनुष्य जातिसे भगवो तो मनुष्य जानि करेगी क्या ? अरे वसे तो मनुष्य होगा। तो जो नाम प्यारो हंगा उम काममे तुमने मनुष्य जातिकी कल्पना की। व्यक्तिकी कल्पना नही होती है कल्पना होती है जातिको अर्थक्रिया याने कार्यका होना व्यक्तिसे होता है जातिसे नही होता । कोई कहे कि जावो मनभर दूध लावो । कहाँसे लायें ? अरे गौ जातिसे दूध लावो । भला बतलावो गौ जाति से भी दूध निकलता है क्या ? अरे दूध तो गायोसे निकाला जायगा । तो कोई भी काम हो वह पदार्थसे बनता है, व्यक्तिसे बनता है जातिकी तो सदृशतासे कल्पनावी जाती है। तो इस प्रकार समस्त पदार्थों मे जो एक सत् स्वरूपकी कल्पना की जाती है वह सदृशतासे की जाती है । अथंत्रियासे पदार्थके अस्तित्वकी प्रसिद्धि भैया । चूकि सभी पदार्थ अपना अपना अस्तित्त्व रखते है अतएव अस्तित्त्वका स्वरूप लेकर एक ऐसी जाति बन गई कि सत् एकस्वरूप है। केवल अस्तित्त्वमे भेद क्या ? आपके शरीरमे, हाथ पैरमे आपके भीतरके कपात्र आदिक भावोमे फर्क है लेकिन कुछ भी होता है है मात्रमे क्या फर्क है ? तो वह है' मात्र जब सब पदाथों मे एक समान है तो इस सहश्ताको लेकर एक सत् स्वरूप माना जा सकता है। प्रत्येक पदार्थकी व्यवस्था जातिमे भी नही होती किन्तु परिणमनसे होती है। अर्थ त्रिया अर्थ से होती है। प्रत्येक पदार्थ अपना स्वरूप लिये हुए है, अपने ही प्रदेशमे रहता है, उसका गुरण शाश्वत है। वह भी उस पदार्थमे है, उसकी पर्याय परिणत हं ती हैं वे भी उस पदार्थके प्रदेशमे हैं पदार्थ से वाहर पदाथ का कोई काम नही है। परिणमनका ही नाम अर्यक्रिया है। जो परिणमन जितनेमे होना ही पड़े, जितनेसे बाहर कभी न हो बस उसका नाम एक उदार्थ है । पदार्थकी मर्यादाका कारण भी परिणमन है। जैसे मेरे क्रं धादिक परिगमन मेरे ही प्रदेशमे हो सकते हैं और मेरेसे बाहर एक प्रदेशमात्र भी अन्यत्र नहीं हो सकते, इस कारण यह मैं एक हू । इसी प्रकार प्रत्येक हृदार्थोंमे भी यही बात है। इससे तो पदार्थ ज्ञात होते है, पर जातिसे पदार्थकी व्यवस्था नही है। जाति कल्पित है, व्यक्ति कल्पित नही है । सिद्धान्तका मौलिक प्रयोजन यद्यपि ब्रह्माद्वैतवादका प्रयोजन भी यही है कि किसी प्रकार रागद्वेष मंह छूटे, रागद्वेष मोहकी वेदना ही व स्तिवक विपदा है । जीवोपर और कुछ विपदा नहीं है। ये बाह्य पदार्थ हैं, आज कोई अपने पास है, क्ल रहे या न रहे, यह जीवपर कोई विपदाकी बात नही है । परपदार्थमे जो मोहभाव वना, अज्ञान बना, रागद्वैप बना यह ही एक विपदा है। इस विपदासे वचना सभी दार्शनिकोने इष्ट माना है। किन्होने ईप्वरकी कृपापर अपनी विपदाका छूटना माना है तो ईश्वर भक्तिमे ही इस शैल से तन्मय ह ते है कि हे प्रभो । तू ही मेरा पिता है रक्षक है। मेरी खबर ले इस प्रकार भक्तिमे लीन होते है । यहाँ इस ब्रह्माद्वैत सिद्धान्तमै मोह रागद्वैष दूर करनेका यह उपाय सोचा गया है कि यह मानें कि दुनियामे ये सब पदार्थ कुछ है ही नहीं, मादास्प है, इन्द्र-जाल है, जब ये कोई वास्तविक चीज नही है तो फिर इनसे रागद्वेष मोह क्यो किया जायगा ? और ऐसे इन पदार्थों से अपना चित्त हटानेके लिये कुछ तो अाधार चाहिए जिसमे अपना चित्त लगाये । नो जिसमे उपयोग देनेनर इन वाह्य पदार्थोसे हमारा उपयोग हट जाय, ऐसा कोई बताना अवश्य पडेगा । यह उपयोग हटने - हटने का ही काम नहीं करता बल्कि एक दृष्टिमे देखिये कि उपयोगका काम हटना नहीं है किन्तु लगना ही है। जिस ओर यह उपयोग लगा उसका ही नाम है दूसरी जगहसे हटना कहनाया । उपयोगका हटना काम नही है, लगना काम है । तो इन भिन्न-भिन्न पदार्थों से उपयोग हटाये इसके लिए एक अद्वैत सत्स्वरूप अनिर्वचनीय ब्रह्म है, ऐसे अद्भुत, अजानी, अविकल्प पदार्थों की ओर उपयोगको ले गए तो वहाँ उपयोग ले जाकर फिर ये भेदवादके उपयोग न टिक सकेंगे यद्यपि उद्देश्य तो अद्वैतवादका भी उत्तम है' कौन जीव सुख नहीं चाहता ? प्रत्येक जीव सुख चाहता है और जो जितने प्रयत्न करता है वह अपने सुखके लिए करता है, किन्नु वात यह देखना होगा कि जो प्रयत्न किये जा रहे है वे सही है अथवा नहीं है। बाह्यके उपयोगमे निर्विकल्प स्थितिकी असभवता -अब इस प्रसङ्गमे निरखिये - जो सत् नही है उसका कुछ भी परिरगमन नही होता, न मायारूप न परमार्थरूप । मैं हूँ ऐसा अपने आपमे अपना निर्णय है, यह मै निर्विकल्प होना चाहूँ तो कुछ अपने आपमे ही ऐसा परमार्थतत्त्व खोजना होगा कि जिसमे लगनेपर फिर विकल्प सब समाप्त हो जाये । यो अपने मापने चैतन्य ब्रह्म परम ब्रह्मस्वरूपको निरखा जाय तो खुद ज्ञान हो और खुदके सहजस्वरूपमे मग्न होना चाहे तो यह बात तो चिग सकनेकी बन जायी लेकिन हम सारे विश्वका ठेका लें, इन सब पदार्थोंका मूल कोई एक ब्रह्म है ऐसा निरखकर हम सारे लोकमे एक ब्रह्म है ऐसा निरखें तो स्वसे दूर ही रहे । चाहे किसी रूपमे तत्त्वको रखे । जब हमारा चित्त हमारा उपयोग हममे न रह सका, वाहर रहा तो ऐसे उपायसे निर्विकल्प स्थितिकी भाशा करना असम्भव है। निर्विकल्प स्थिति नहीं बन सकती है । यहाँ आत्माद्वैतवादी यह कह रहे हैं कि लोकमे सब कुछ एक ब्रह्म ही है । जो कुछ ये भेद नजर भा रहे है ये सब कल्पित है, मायारूप हैं। तब उनसे पूछा जा रहा है कि यह जो एकत्व है, जो एकाकारता है वह एक व्यक्तिके जाननेके माध्यमसे जाना जा रहा है या समस्त व्यक्तियोका हम ग्रहरण करके जान रहे है कि यह ब्रह्म, यह एकत्व समस्त पदार्थोंमे मौजूद है । यदि कहोगे कि हम एक व्यक्तिको ग्रहण करके ही इस लोकव्यापी एकत्वको जान जायेंगे तो यह विरोधकी बात है कि हम एक व्यक्तिको ग्रहण करें और सर्वव्यापक एकत्वको जान जायें । एकाकारता तो उसका नाम है कि भनेक व्यक्तियोमे कुछ एकरूप हो उसे ही कह सकेंगे सर्वव्यापक एक । पर तुम तो एक व्यक्तिको ग्रहण कर रहे तो अनेक व्यक्तियोमे अनुयायीरूपसे रह सकने वाला कोई एकत्व एक व्यक्तिको ग्रहण करनेसे कैसे जान सकेगा । जैसे एक गोको देखनेसे उसकी एक जातिका ज्ञान नही हो सकता क्योकि गौ जातिका अर्थ क्या है कि समस्त गायोमे
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थोड़ी दूर पर कई प्रसिद्ध देखने योग्य छोटे-बड़े नगर हैं जिन्हें समय और सामर्थ्यवाले यात्री, विशेषकर अमेरिकावाले, अवश्य देखने जाया करते हैं । जर्मन लोगों में सिर पर छोटे और आगे-पीछे बराबर बाल रखनेवाले अधिक मिले । डेनमार्क (दानमार्क) दूसरे दिन सबेरे भोजन कर फिर रेलगाड़ी में बैठ डेनमार्क को चले । हमबर्ग से लुवेक होते वार्न मुंडे तक गाड़ी भूमि पर दौड़ी और मुंडे से पूरी ट्रेन हम लोगों को लिए दिए बड़े जहाज पर चढ़ा दी गई । समुद्र में करीब दो ढाई घंटे तक ट्रेन को लिए जहाज हम लोग अपनी अपनी गाड़ियों से उतरकर जहाज की छतों, कमरों, बरामदों में घूमते, सैर करते और उसके होटलों में अपने इच्छानुसार भोजन तथा उपाहार इत्यादि करते चले । यह इस प्रकार का पहला अनुभव हुआ । इससे बड़ी सुविधा भी हुई, नहीं तो असबाब के उतार-चढ़ाव इत्यादि में समय तथा व्यय लगता और दूसरी गाड़ी में चढ़ने इत्यादि का बखेड़ा होता । यह समुद्र जर्मनी के अधिकार में है, जहाज से उतरने के पहले ही पासपोर्ट इत्यादि की जाँच हुई और जेदसर पर जहाज किनारे लगा । फिर तुरंत ही रेलगाड़ी भूमि पर दौड़ने लगी । करीब डेढ़ घंटे चलकर फिर एक छोटा सा समुद्र, इसी तरह जहाज पर ट्रेन लादकर, पार किया गया और उसके बाद फिर जमीन पर चलकर साढ़े सात बजे डेनमार्क की राजधानी कोपिनहेगन में पहुँचे । यहाँ से रेलगाड़ी बदलकर रात को नौ बजे एल्सिनोर उतरे। वहाँ से जहाज पर समुद्र पार कर स्वीडन ( स्वर्य, Sverje ) देश के हेल्सिंगबार्ग नगर के मैगनस स्टीनबाक्स स्कूल में हम लोग ठहराए गए । डेनमार्क बहुत ही सुंदर छोटा सा देश है जो ब्रिटिश द्वीप क्या आयरलैंड से भी छोटा है। यहाँ की खेती प्रसिद्ध है। इधर की गायों का रंग लाल और दूध बहुत होता है। इस देश से भोज्य पदार्थ - मक्खन, पनीर, - हेल्सिंगबार्ग का मैगनस स्टीनबाक्स स्कूल जिसमें हम लोग ठहरे अंडे और सूकर का मांस - अँगरेजों के देश में बहुत जाता है, इस कारण इसका व्यवसाय यहाँ बहुत होता है। यहाँ के तथा स्वीडन और नारवे (नार्य, Norje) के सिक्के क्रोन कहलाते हैं जो बारह प्राने के बराबर हैं। इनके सौ भाग करके, जिन्हें और कहते हैं, काम में लाते हैं । ये ताँबे, काँसे और चाँदी के होते हैं। इनके ऊपर नोट होते हैं । डेनमार्क के सिक्कों में बीच में छेद होता है। नारवे तथा स्वीडन के सिक्के कुछ अच्छे माने जाते हैं, इस कारण डेनमार्क के नोट स्वीडन तथा नारवे में किंचित् बट्टे पर चलते हैं, किंतु मूल्य तीनों का बराबर है। कोपेनहेगन यहाँ के लोग इसको केबनाव्न ( Kobnhavn ) कहते हैं । यह डेनमार्क देश का प्रधान नगर तथा राजधानी है। यहाँ का राज्य प्रबंध अँगरेजी ढंग पर राजा और पार्लमेंट के अधिकार में है। यह देश प्रायः जल से घिरा है और इसमें बहुत से छोटे-बड़े टापुओं के समूह हैं। यह प्रधान नगर सात लाख मनुष्यों की बस्ती है और हर तरह से लंदन नगर के नमूने पर बसा जान पड़ता । यहाँ की दूकानें, सड़कें और होटल इत्यादि बहुत स्वच्छ हैं। सड़कें खूब चौड़ी हैं, जिन पर मोटर बसों और ट्रामगाड़ियों के अतिरिक्त बाइसिकलें बहुत दौड़ा करती हैं। यहाँ की प्रधान सड़कों में विशेषता यह है कि सड़क के दोनों ओर चार छः अंगुल ऊँची बाइसिकल की सड़क है क्योंकि यहाँ पैरगाड़ियों की संख्या बहुत है । लोग इसको बाइसिकलों का नगर कहते हैं । पैदल चलनेवालों के लिये पटरियाँ हैं और तब मकान हैं। यहाँ भी समुद्र का किनारा और जहाजों का अड्डा है । यहाँ कई सार्वजनिक संग्रहालय है जैसे दूसर बड़े बड़े नगरों में हर देश में हैं । अँगरेजी भाषा की इस देश में भी वैसी ही दुर्गति है जैसी फ्रांस इत्यादि में । इस देश की भाषा डेनिश या डूश है। यहाँ के निवासियों की शिक्षा यहीं की भाषा में होती है। केवल वैकल्पिक रूप से कहीं कहीं विदेशी भाषा थोड़ी पढ़ा दी जाती है। यहाँ की भाषा में जो थोड़े अँगरेजी शब्द प्रयुक्त होते भी हैं उनकी लिखावट बहुत भिन्न, किंतु अधिक सुगम तथा उच्चा३८२ रण के अनुसार, होती है। जैसे 'रूम' शब्द आर यू एम ( Ram ) से लिखते हैं न कि आर ओ ओ एम (Room) से । 'फ्री' एफ आर आई (Fri) से लिखते हैं न कि एफ आर ई ई (Free) से । यहाँ का टोनहाल बहुत ही सुंदर तीन चार मंजिल का है जिसके आगे बहुत बड़ा मैदान है जहाँ बड़ा फुहारा छूटा करता है। उसके पास फूलों की दूकानें खूब हैं। यहाँ का एक बड़ा स्कूल "स्कोलेन वेड नवौडेन" देखा जिसमें सात से १५ वर्ष तक के १५०० लड़के, लड़कियाँ पढ़ते तथा अनेक तरह का हाथ का काम सीखते हैं, जैसे बढ़ई, लोहार, दर्जी का । लड़कियों को भोजन बनाने और सिलाई में बेल-बूटे इत्यादि तथा चित्रणकला भी सिखाई जाती है। यहाँ की प्रधान अध्यापिका एक देवी हैं जो उस समय भारतीय महिला की तरह गले में मूँगा और सोने के दानों की माला पहने हुए थीं । यहाँ बच्चों को कसरत खूब सिखाई जाती है जो पियानो तथा अन्य बाजे की गत पर नाच के ढंग से कराई जाती है। यहाँ अन्य कई बड़े बड़े विद्यालय भी हैं जो इन दिनों ग्रीष्मावकाश के कारण बंद थे । विश्वविद्यालय में साढ़े तीन हजार विद्यार्थी और सौ अध्यापक हैं । यहाँ की पार्लमेंट का नया भवन बहुत ही सुंदर बना है। इसके बाहर बड़े मैदान में यहाँ के पहले के प्रभावशाली राजा की मूर्ति ऊँचे चौतरे पर बनी है जिसके एक ओर की दीवार में वहाँ की भाषा में जो शब्द खुदे हैं उनका अर्थ है - "प्रजा का प्रेम ही हमारा बल है ।" क्या भारत सरकार भी ऐसा कहने के लिये तैयार है या उसका बर्ताव भारतीयों के साथ ऐसा है जिसके नाते यह वाक्य उसके प्रति लागू हो ? टिवोली उद्यान यहाँ की यह बहुत बड़ी वाटिका जगत्-प्रसिद्ध है। इसके बाहर कई बड़े शानदार होटल ( भोजनालय ) हैं जिनमें सबसे बड़ा विभव३८३ युक्त वीवेल रेस्टोरों है जो बहुत मँहगा है । यह उद्यान यहाँ के सबसे बड़े केंद्रीय रेलवे स्टेशन के पास ही है। बहुत विस्तृत बगीचा बहुत ऊँची दीवारों से घिरा हुआ है जिसमें दर्शकों की भीड़ शुल्क देकर बराबर जाती है। संध्या समय अधिक तथा गर्मी के दिनों में और छुट्टी के दिन तो दर्शक बहुत ही अधिक होते हैं। शिक्षा-सभा के सदस्यों के लिये १४ अगस्त को संध्या समय इसमें बिना बाहरी शुल्क दिए ही जाने की आज्ञा हो गई थी। भीतर कई बड़े बड़े रमग्रीक स्थान, झील, बगीचे, फूलों की क्यारियाँ, अनेक फुहारे, भवन और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिये बहुत प्रकार के मनोविनोद की सामग्री है । इसके भीतर भी कई प्रकार के बड़े बड़े भोजनालय हैं जहाँ बाजा बजता रहता है, लोग खाते-पीते हैं। एक स्थान पर मर्दों की बाइसिकल पर विलक्षण कसरत और फिर बहुत ऊँचे स्थान से रस्सी के ऊपर भूला भूलते हुए हवा में उड़ान की अद्भुत कलाबाजी होती थी । स्कूल के करीब दो सौ लड़के-लड़कियों की एक बड़ी पलटन लड़ाई के सब सामान - तोप, बंदूक, बाजा इत्यादिलिए पैदल तथा घोड़ों पर सवार निकली जो बहुत ही सुंदर थी । एक छोटी सी गाड़ी में राजा-रानी बनकर एक लड़का और एक लड़की बैठे थे । दोतरफा सिर झुकाते और नमस्कार करते जाते थे । उनके यह सारी पलटन जाती थी। घोड़े भी बचकाने थे । एक बिजली की रेलगाड़ी बनावटी पहाड़ों, सुरंग इत्यादि में होकर बड़े झटके के साथ ऊपर नीचे जाती थी जिसका शुल्क 1) प्रति व्यक्ति लगता था । हम लोग भी इसमें कौतूहल वश चढ़े थे । कई जगह अनेक प्रकार के जुए तथा निशानेबाजी इत्यादि के खेल हो रहे थे । एक ऐनाघर विचित्र बना था । उसमें जाकर लोग अपनी शकलें छोटी, बड़ी, नाटी, मोटी, दुबली, टेढ़ी-मेढ़ी देखते थे, झील में नौका की सैर होती थी । पहाड़ के झरनों की नकल जंगल तथा जंगली जानवरों सहित बहुत अच्छी बनी थी । एक नाटक हो रहा था, जिसके पात्र बिना बोले ही नाटक करते थे जिसे "डम शो" कहते स्थान स्थान पर बहुत प्रकार के बैंड बजते थे । रात को बिजली की रोशनी बड़ी जगमगाहट के साथ हुई । वृक्षों, लताओं इत्यादि पर रोशनी खूब गुथी हुई थी । सब एकदम से कई रंग के शीशों द्वारा रौशन हो गए थे। यह प्रायः रात भर रहा होगा । इस प्रकार का तमाशा गरमी में करीब पाँच महीने बराबर हुआ करता है और नित्य हजारों आदमियों का मेला रहता है इसके भीतर की सफाई सराहने योग्य है । यहाँ का जंतु-संग्रहालय भी प्रसिद्ध है । और देशों की तरह यहाँ भी अनेक छोटे-बड़े जीव घरों में स्वच्छंदता के साथ घूमते हैं । यहाँ बगीचे के भीतर जाने का III) टिकट लगता है। भीतर भोजनालय भी हैं । लकड़ी का एक धरहरा करीब २०० फुट ऊँचा है जिस पर बिजली के पिंजड़े द्वारा चढ़ने का ।) और पैदल सीढ़ी द्वारा जाने का ।। लगता है । ऊपर से सारे बगीचे का, जिसमें झोल इत्यादि भी हैं, और सारे नगर का अपूर्व दृश्य यहाँ से देख पड़ता है, बहुत से भवन खपरैल से छाए हुए मालूम पड़ते हैं । यह संग्रहालय सबेरे ८ बजे से संध्या के ७ ।। बजे तक खुला रहता है। यहाँ के विशेष जानवरों में बड़े बड़े हाथी, अनेक विचित्र प्रकार के बंदर, जंगली ऊदबिलाव, बिल्ली के कुटुंबी किंतु बड़े भयानक मांसाहारी कई प्रकार के व्याघ्र और चीते, गदहे, बकरियाँ, हिरन, भेड़ें, शेटलैंड पोनी (काले रंग का छोटा नाटा टट्टू ), भैंस (तिब्बती जिसका नाम यहाँ लामा लिखा है ), ऊँची लंबी गर्दन का जिराफ की तरह का अनोखा जानवर, हिपोपोटेमस, ध्रुव-प्रदेश के सफेद भालू तथा साइबीरिया और तिब्बत के भूर और काले भालू, जल व्याघ्र, लाल लंबी चोंच की काली बतक इत्यादि हैं । कला-भवन - संग्रहालय समय कम होने से यहाँ के अनेक प्रसिद्ध संग्रहालय बिना देखे ही छोड़ दिए गए । सबसे प्रसिद्ध यहाँ का कलायुक्त चित्रों का संग्रहालय देखा जो वास्तव में बड़े ही अद्भुत चित्रों का भांडार है । यहाँ कई चित्राचार्यों के बनाए अनेक नमूने हैं जिनको देखकर तृप्ति नहीं होती । जो चित्र बहुत अच्छे जान पड़े वे ये हैं - कोपिनहैगन पर गोलंदाजी जो सन् १८०७ में हुई थी, फूलों का प्राकृतिक दृश्य जिसमें समुद्र, बादल, किला, वृक्ष तथा जहाजी सेना इत्यादि खूब दिखलाए गए हैं, एक बड़ी तसवीर जिसमें सूर्य की किरणों का प्रकाश, शरीर के रंग, पुट्ठे, छाया, प्रभात की लालिमा इत्यादि का बहुत अच्छा चित्रण है, क्लेत्र के गाँव का दृश्य, जंगल का चित्र जिसमें हरिण और घास का अच्छा दृश्य है, दीवार में बहुत बड़ी ऊँची उभरी हुई मूर्तियों की सामूहिक बनावट जिसमें करीब २० मूर्तियाँ सोनहले इत्यादि चौदह भिन्न भिन्न रंगों के मार्बल पत्थर पर बनी हुई हैं और जो कला का अद्भुत नमूना है। कई चित्रों पर चित्रकला के बड़ेबड़े प्रसिद्ध आचार्यों के नाम अंकित हैं 1 यह संग्रहालय कई हजार बहुत उत्तम चित्रों से सुसज्जित है। धरातल तथा भूधरी में अनेक प्रकार के बहुमूल्य पत्थरों, पलस्तरों इत्यादि की अच्छे अच्छे ऐतिहासिक व्यक्तियों की बड़ी-बड़ी मूर्तियों का बड़ा संग्रह है। जिस वाटिका में यह संग्रहालय है वह भी बहुत अच्छी है। गुलाब के के बहुत बड़े बड़े, मधुर सुगंधवाले, फूलों की क्यारियाँ हरी घास के गलीचों में बहुत ही अच्छी लगती है । इसके बाहर सड़क पार करके एक बड़ा उद्यान, राज-वाटिका, पड़ता है जो बहुत सुंदर तथा स्वच्छ है। इसमें सीमेंट की सड़कें हैं, दोनों ओर लंबी वृक्षावली है। स्थान स्थान पर हरी घास के गलीचे और रंग विरंगे फूलों की फुहारों सहित क्यारियाँ हैं। इसमें कई मूर्तियाँ भी स्थान स्थान पर बैठाई हुई हैं। यह बगीचा खूब लंबाचौड़ा और बहुत मनोहर है। यहाँ ऐसे कई बगीचे और संग्र हालय देखने योग्य बताए गए, किंतु समयाभाव से हम लोग न देख सके । यहाँ तथा इस नगर के बाहर कई प्राचीन प्रसिद्ध राजगढ़ हैं जिनका वर्णन यहाँ की पुस्तकों में है हैं । इन सबको देखने के लिये सप्ताह भर भी कम होगा। बाहर के स्थानों में हम लोगों ने फंडारक्सब में किला फ्रेडरिक्सबार्ग किला देखा जो छोटे छोटे तीन टापुओं में, पुलों द्वारा बड़ा घेरा बनाकर, बनाया हुआ है । बीच बीच के जल-भाग खाई का काम देते हैं । यह इस देश के बड़े प्राचीन ऐतिहासिक स्थानों में से मुख्य है । यह राज-भवन था जो अब सार्वजनिक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया किले का दूसरा दृश्य गया है। इसमें यहाँ के दृश्यों के चित्रों का संग्रह भी बिका करता है। इस किले के बाहर पास ही छोटा सा स्वच्छ ग्राम हिलरोड नाम का है जो इस देश के ग्रामों का एक अच्छा नमूना कहा जा सकता है । फोक स्कूल (प्रौढ़ पाठशाला) इसके पास ही हम लोग एक फोक स्कूल में गए । इस देश में स्थान स्थान पर छोटे बड़े लड़के-लड़कियों की शिक्षा के लिये
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शामके ७.०० बजने वाले हैं लेकिन सोनाली अभी तक अपने ऑफिस में काम कर रही है। कल उसके बॉस कंपनी के काम से विदेश जा रहे हैं उनके प्रजेंटेशन मे फायनल टच अभी बाकी है। ६.०० बजे तो आखिरी स्लाइड का डेटा मिला है, उसे डालके स्लाईड फायनल करके उसने बॉससे डिस्कशन तो कर लिया। पर एक बार में मान ले, वो बॉस क हाँ। चेंज के बाद चेंज, बताता है. सोनाली अब थोडी सी परेशान दिख रही है। आज उसे वक्त पर निकलना था, जाते हुए हॉस्पिटल से रिपोर्ट कलेक्ट करना था। पूरा प्लान करके आई थी, लेकिन इस प्रेजेंटेशन ने उसके पूरे प्लांट को चौपट कर दिया था।वो फायनल टच मार ही रही है इतनेमे फोन बजता है,सोनालीः (मनमे) "अब कौन है, पहले ही मैं जल्दी मे हूं।" फोन की तरफ देखती है 'हसबंड' सोनालीः" हाँं, मनोज।" मनोजः "सोनाली, पहूंची क्या?" सोनालीः "अरे, क हाँ यार, अभी भी ऑफिस मे हूॅ।" मनोजः "अरे!!!! क्या कह रही हो, अभी तक निकली नहीं?? दोपहर को तो बोली थी की टाईम पे निकलोगी!!" सोनालीः " हाँ! बोला तो था, पर नहीं निकल पाई! बॉस कल अॅब्रॉड जा रहे है, उनके प्रजेंटेशन, मिटींग की तैयारी कर रही हूं!" मनोजः" अरे, पर तुम्हे हॉस्पिटल भी तो जाना है। याद है ना? अब निकलोगी कब, पहूंचोगी कब, तुम् हाँरे पहुंचने तक तो बंद हो जायेगा।" सोनालीः "अब बस हो ही गया, बस ५ मिनट में निकल रही हूं!" मनोजः "जल्दी निकलो, और कूछ प्रॉब्लेम है तो मुझे फोन करदो। मुझे घर पहुंचने हे १० बज जाएंगे, अभी एक कॉल है। मैं २ घंटे बिजी रहुंगा। अगर फोन नहीं ऊठा पाया तो, मेसेज डाल देना। मैं कॉल कर दूंगा।" सोनालीः "ओके, मैं रखती हुं अब, जल्दी खतम करके निकलना है।" मनोजः "ठीक हैं। मिलते हैं।" (वो फोन रखके जानेकी तैयारी करती है) पाच-सात मिनिट में वो अॉफीस से निकलती हैं. थोडी दूरर जाते ही उसे एहसास होता है की उसे भूख लगी है! वो बाजूवाले दूकान से चिप्स और बिस्किट्स उठाती है! अब वो टॅक्सी का इंतजार कर रही है, १० मिनिट हो गये पर, एक भी टॅक्सी नहीं रुकती है। 'आज क्या हो गया है? एक भी टॅक्सी नहीं रुक रही है!! हमेशा ऐसा ही होता हैं, जब भी जल्दी होती है, कुछ ना कुछ जरुर बीच में आ जाता है, पहले बॉस, अब ये टॅक्सी।' वो मनमे सोचती हैं, उसके पेशन्स अब खत्म हो रहे है। चलो बस स्टॉप तक चलती हूं, टॅक्सी नहीं तो कम से कम बस तो मिल ही जायेगी। ये सोचके वो बस स्टॉप की तरफ चल देती है। ५-७ मिनट में वो पहूंच जाती है। बसें आ तो रही है पर सब खचाखच भरली हुईं! वो अपनी एरिया वाली बसकी राह देखना शुरु कर देती है। खडे खडे अपनी बॅगसे चिप्स निकालती है। चिप्स खाते खाते उसका ध्यान बार बार घडी की तरफ जाता है, 'समय बिता जा र हाँ है और ये बस आनेका नाम नहीं ले रही है। पता नहीं मै समयमें पहूंच पाऊंगी के नहीं' वो मन मे सोच रही थी.जैसे जैसे समय बितता जाता है, वो और बेचैन होती है, ना टॅक्सी ना ही बस, पता नहीं आज क्या प्रॉब्लेम है। वो इधर ऊधर देख रही थी की अचानक उसका ध्यान बस स्टॉप के अंदरवाले बेंच पे बैठी एक नन्ही लडकीपर जाता है, वो लडकीभी उसीकी तरफ लेख रही थी 'क्या प्यारीसी बच्ची हैं, पर ये ऐसे अकेली क्यो बैठी हैं?' सोनाली मनमें सोचती हैं।सोनाली चारोतरफ देखती है, बस स्टॉप पे एक और आदमी खडा होता हैं, 'शायद ये बच्ची इनके साथ रहेगी, और कोई दिख भी तो नहीं र हाँ' वो बच्चीकी और देखके मुस्कुराती हैं। बच्ची सिर्फ देखती ही रहती हैं, कुछ जवाब नहीं देती है। सोनाली अपने पासवाला चिप्स का पॅकेट आगे बढाती हैं। ये नुस्का काम कर जाता है, वो बच्ची झटसे उसके हाँथसे वो पॅकेट छीन लेती हैं। चिप्स निकालती है और ४-५ खाने के बाद सोनाली की तरफ देखके मुस्कुराती हैं। चिप्स का पॅकेट छोटा होनेके कारण झटसे खत्म हो जाता है! खाली पॅकेट देखके ऊस बच्चीका चेहरा उतर जाता है। वो रोनीसी सुरतसे सोनाली की तरफ देखती है, सोनाली के समझमे आ जाता है की बच्ची को भूख लगी हैं, वो बैग मे से अभी खरीदा हुआ बिस्कूट का पुडा निकालती है और बच्ची की तरफ देखती है। बच्चीके चेहरे पे अब मुस्कुराहट वापस आई हैं। वो झटसे अपना हाँथ आगे बढाती हैं, सोनाली पुडा पीछे चुपाकर बच्चीसे पूंछती है "ये आपको तभी मिलेगा जब आप अपना नाम बताएगी" बच्ची उसे सुनकर अनसुना कर देती है। वो बिस्किट्स केलिये अपना हाँथ आगे बढाती हैं। सोनाली फिरसे उसे वही सवाल करती है, फिरसे कोई जवाब नहीं।' शायद बिस्किट्स मिलनेके बाद में जवाब दे दे' यह सोचकर सोनाली उसे बिस्किट्स का पुडा खोलकर दे देती है। बच्ची झपककर पुडा हाँथमे लेती हैं और बिस्किट्स निकालकर खाना शुरू कर देती है। ' अब बताओ आपका नाम!!' सोनाली उम्मीदमे उसे पूंछती है। बच्ची फिरसे अनसुना करके खाना शुरू रखती हैं। 'अब क्या करे? पूछने केलिये य हाँँ कोई है भी तो नहीं, चलो अब और थोडी देर इंतजार करती हुं, शायद भुख मिटने के बाद जवाब दे ' इतने मे एक बस आके रूकती हैं, सोनाली देखती है की ये बस तो उसकी घर की तरफ जानेवाली है। इतनी देरके बाद आखिर आ ही गयी, सोनाली बस की तरफ बढती है. वो बसमे चढने ही वाली होती है तभी उसका ध्यान बच्ची की तरफ जाता है। ' पर ये बच्ची?, इसका क्या? मैं इसे ऐसे अकेले कैसे छोड दु' वो वापस पीछे हटती है। बस अभी भी वही खडी है। सोनाली के मनमे हॉस्पिटल और बच्ची के बीच में द्वंद्व शुरू है। कुछही पलोमे वो बस निकलने वाली हैं। आखिर सोनाली पिछे हटती है, वो बच्चीको ऊस हाँलतमे नहीं छोड सकती। वो पीछे मुड के बच्ची की तरफ देखती है वो बच्ची बिस्किट खाना रोककर सोनाली की तरफ ही देख रही होती है उसके चेहरे को देखकर सोनाली को साफ पता चलता है कि वह बच्ची डरी हुई है। उसे डर है कि कहीं सोनाली निकल ना जाए इसलिए वह डरी सहमी सी सोनाली की तरफ देख रही है। जैसे ही सोनाली पीछे मुड़के उस बच्ची की तरफ चलने लगती है वह बच्ची मुस्कुराती है, उसको तसल्ली हो जाती है कि सोनाली उसे अकेला नहीं छोड़ेगी। वह वापस बिस्कुट खाने में दंग हो जाती है. अब कुछ भी हो जाए सोनाली उस बच्ची को अकेला नहीं छोड़ सकती. सोनाली बच्ची की तरफ जाती है. बोलती है "देखो अब मैं तुम् हाँरे लिए रुक भी गई हूं, अब तो तुम् हाँरा नाम बताओ" बच्ची सोनाली की तरफ देखती है शायद उसे सवाल समझ में आता है लेकिन कुछ बोलती नहीं। वह वापस बिस्कुट खाने में मशगूल हो जाती है। सोनाली उसे पूछती है "तुम् हाँरे मां बाप क हाँं है?मम्मी डैडी!! जैसे ही मम्मी डैडी का नाम सुनती है वह बच्ची बिस्कुट खाना रोके रोने लगती है उसके आंखों से आंसू छलकते हैं सोनाली बच्ची को अपने करीब ले लेती है "देखो बेटा, मैं तुम्हें तुम् हाँरे मम्मी डैडी के पास पहुंचा देती हूं, लेकिन क हाँं पर है वह तुम्हें य हाँं अकेला छोड़कर वह क हाँं चले गए।" बच्ची सिर्फ सोनाली की तरफ देखती है लेकिन कुछ नहीं बोलती। अपने हाँथ से उस तरफ इशारा करती है। "अच्छा, तुम् हाँरे मम्मी डैडी उधर गए हैं।" बच्ची फिर कोई जवाब नहीं देती। 'कहीं यह बच्ची गूंगी नहीं।' सोनाली मन में सोचती हैं। बेटा आप कुछ बोलती क्यों नहीं हो बच्ची सिर्फ सोनाली का मुंह ताकते रहती है। "बेटा आप बोल सकती हो?" फिर कोई जवाब नहीं। अब सोनाली को सूझ नहीं र हाँ कि करना क्या है। वह बच्ची को अपने साथ चलने के लिए कहती है। बच्ची झट से सोनालिका हाँथ पकड़ लेती है। सोनाली देखती है कि सामने एक दुकान है सोनाली बच्ची को लेकर दुकान की तरफ जाती है वह दुकानदार से पूछती हैसोनालीः भाई साहब, क्या आप इस बच्ची को जानते हैं? दुकानदारः नहीं मैडम, क्यों? क्या हुआ?सोनालीः यह बच्ची अकेले ही सामने बस स्टॉप पर बैठी थी! पता नहीं अकेले कैसे पहुंच गई, क्या आपने देखा उसे कौन व हाँं पर छोड़ गया।दुकानदारः नहीं मैम साहब मेरा ध्यान नहीं था। आप बच्ची से क्यों नहीं पूछ लेती?सोनालीः भाई साहब मैं कब से वही प्रयास कर रही हूं लेकिन लगता है यह बच्ची गूंगी है। कुछ बोलती ही नहीं है।वह दुकानदार बच्ची की तरफ देखता है दुकानदारः आपका नाम क्या है बेटा? आपके मम्मी डैडी क हाँं है? आपको य हाँं कौन छोड़ गया? आप क हाँं रहती हो? बच्ची कुछ जवाब नहीं देती. वह सोनाली को लिपटकर उसके पीछे जाकर छुप जाती है। दुकानदारः मैडम, आप पुलिस के पास क्यों नहीं जाती? वह इसके माता-पिता को ढूंढ लेंगे। सोनालीः भाई साहब इतने छोटे से बच्चे को पुलिस के हाँथ में दे दूं! थोड़ा आगे जाकर पूछती हूं शायद कोई इस को पहचानने वाला मिल जाए। आप प्लीज एक काम कर सकते हैं? अगर कोई इस बच्ची को ढूंढता हुआ आ जाए तो उसे तो उन्हें उस तरफ भेज दीजिएगा। क्योंकि इस बच्ची ने अपना हाँथ उस तरफ दिखाया था। शायद इसका घर उधर ही है।दुकानदारः जरूर मैडम मैं जरूर बता दूंगा अगर कोई मदद लगी तो मुझे बता दीजिएगा। सोनाली अब उस बच्ची को लेकर आगे बढ़ती है। थोड़ा आगे जाने के बाद उसे और चार पांच दुकानें दिखती है। उसमें से एक दुकान खाने-पीने की है। सोनाली बच्ची को लेकर उस दुकान में जाती है।सोनालीः भाई साहब आप इस बच्ची को जानते हैं। पहले कहीं से देखा है।दुकानदारः नहीं तो। क्यों? क्या हुआ? सोनालीः अरे यह बच्ची अकेली ही व हाँं बैठी थी। शायद बोल भी नहीं पाती है इसलिए बता नहीं पा रही है कि उसके माता-पिता क हाँं पर है। मैंने सोचा यही आसपास की रहेगी इसलिए पूछ रही हूं। दुकानदारः नहीं बहन जी। हमें तो नहीं पता। आप एक काम कीजिए। आगे 1 बच्चों के कपड़े की दुकान है। उन लोगों को शायद पता हो सकता है, वह बच्चों को आते-जाते देखते रहते हैं।सोनालीः ठीक है, धन्यवाद। सोनाली व हाँं से निकलती है, थोड़ा आगे जाने के बाद उसे कपड़े की दुकान दिखाई देती है। जैसे ही वह कपड़े की दुकान की तरफ बढ़ती है उसका फोन बजता है। फोन की तरफ देखती है 'हसबैंड' सोनालीः हाँं मनोज।मनोजः पहुंची क्या हॉस्पिटल? कुछ पता चला?सोनालीः अरे क हाँं यार!! मैं अभी तक यहीं पर हूं।मनोजः मतलब अभी ऑफिसमें हो?सोनालीः नहीं यार, ऑफिस से निकले बहुत समय हो गया। लेकिन थोड़ा रास्ते में अटक गई हूं।मनोजः मतलब? मैं कुछ समझा नहीं!! सोनालीः अब कैसे समझाऊं? जैसे ही मैं घर जाने के लिए बस स्टॉप पर पहुंची, तो एक छोटी सी अस हाँय बच्ची व हाँं पर अकेली बैठी थी, शायद गूंगी है। और उसके मां-बाप क हाँं पर है बता नहीं पा रही है। तो अभी मैं उसके मां बाप को ढूंढ रही हूं। मनोजः अरे सोनाली यह क्या यार? तुम्हें पता है हॉस्पिटल जाना कितना इंपोर्टेंट है!!सोनालीः हाँं!! पता है, पर इस बच्ची को अकेला भी तो नहीं छोड़ सकती। कुछ हो गया तो?? तुम्हें पता है आजकल न्यूज़ में क्या क्या आ र हाँ है। यह तो अच्छा हुआ कि मेरी उस पर नजर पड़ गई। अब दो तीन जगह पर पूछती हूं नहीं तो इसको पुलिस के पास ले जाती हूं।मनोजः हाँं सही है। बराबर क हाँ तुमने। ठीक है, तो देख लो ये सब हो जाने के बाद रिपोर्ट मिलता है तो, वरना कल लेना पड़ेगा। मुझे आने की जरूरत है?? सोनालीः अरे नहीं!! मैं मैनेज कर लूंगी। कुछ लगेगा तो मैं फोन कर दूंगी।मनोजः ठीक है। लेकिन, फोन करना। और कुछ गड़बड़ दिखाई दिए तो जरुर फोन करना, मैं तुरंत आ जाऊंगा। ओके, अब रखता हूं, वापस कॉल में जाना है।सोनालीः ठीक है, मैं बता दूंगी। दुकानदारः नहीं, नहीं बहनजी। हम में से कोई नहीं जानता इसे। पहले कभी नहीं देखा। क्यों क्या हुआ? कुछ प्रॉब्लम है? सोनालीः अरे हाँं!! मतलब, यह बच्ची अकेली ही उस बस स्टॉप पर बैठी थी। इसके मां-बाप क हाँं पर है कुछ पता नहीं इसलिए ढूंढ रही हूं। दुकानदारः तो बच्ची से पूछ लीजिए ना!! सोनालीः अरे नहीं भाई साहब!! यह बच्ची गूंगी है। कुछ बोल नहीं पाती है। कब से वही प्रयास कर रही हूं। सोनाली बच्ची को लेकर दुकान से निकलती है। अब उसे समझ में नहीं आ र हाँ है कि करना क्या है!! वह बच्ची की तरफ देखती है। वह बच्ची मासूम चेहरे से सोनाली की तरफ देख रही है। अब सोनाली को उस बच्ची में कुछ ज्यादा ही इंटरेस्ट आने लगता है। वह उस बच्ची में इन्वॉल्व हो जाती है। अगर कोई नहीं मिलता है तो वो उसे घर ले जाने के लिए भी तैयार हैं। सोनालीः बेटा और कुछ चाहिए? कुछ खाना पीना है? बच्ची अपना सर हिलाती है। सोनालीः चलो पहले एक काम करते हैं। आपके कपड़े कितने मेले हो गए हैं। आपके लिए कुछ कपड़े ले लेते हैं। सोनाली पीछे मुड़कर उस दुकान में वापस जाती है। सोनालीः भाई साहब, इस बच्ची के साइजका कुछ फ्राक वगैरह मिलेगा? इसके कपड़े बहुत गंदे हो गए हैं। दुकानदारः क्यों नहीं बहनजी! अभी दिखाता हूं। अरे गणेश, जरा बहन जी को कपड़े दिखाना बच्ची के लिए।। दस मिनट १०-१२ फ्रॉक्स देखने के बाद सोनाली उसमें से दो फ्रॉक उठाती है। बच्ची को पूछती है, कि उसे अच्छा लगा?? बच्ची खुशी से हाँं कर देती है। सोनाली दुकानदार से वह दोनों फ्रॉक खरीद लेती है। बच्ची को वहीं दुकान के ट्रायल रूम में फ्रॉक पहनाने के लिए ले जाती है। पहले उस दुकानदार से थोड़ा पानी पानी लेकर बच्ची का मुंह साफ करती हैं, और फिर उन दोनों में से एक अच्छा सा फ्रॉक देखकर उस बच्ची को पहनाती है। साफ होने के बाद वह बच्ची बहुत ही प्यारी लगने लगती हैं। सोनाली उसकी तरफ देखती ही रहती है। इधर खुद को नए फ्रॉक में देखकर बच्ची बहुत खुश हो जाती है, और सोनाली से लिपट जाती है। सोनाली भी बच्ची को अपने करीब ले लेती है। 1 मिनट के बाद सोनालीको याद आता है के इस बच्ची को अपने मां-बाप के पास छोड़ना है और मुझे हॉस्पिटल जाना है। घड़ी में करीब 8:15 होने वाले हैं, 'अरे आज तो हॉस्पिटल होने से र हाँ, 8:30 बजे तो लॅब बंद हो जाएगा। इसका मतलब है आज रिपोर्ट मिलने वाला नहीं है।' वह तुरंत दुकान के बाहर आती है और लैब में फोन लगाती है। "मैं सोनाली बोल रही हूं, मुझे हॉस्पिटल पहुंचते बहुत देर हो जायेगी, क्या प्लीज आप मेरा रिपोर्ट हॉस्पिटल के रिसेप्शन पर रख सकते हैं??" हाँं मैंने ऑलरेडी कर दिया है"" आप व हाँं पर रख दीजिए मैं घर जाते हुए उठा दूंगी"" प्लीज कीजिए ना भाई साहब" सोनाली फोन रख देती है अब पुलिस के पास जाने के पास सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं बचा। 'तीन चार दुकानों में तो पूछ लिया, अब थोड़ी देर में तो दुकानें भी बंद हो जाएगी। और कितनी दुकानों में जाऊं??' यह सोचकर सोनाली आगे जाती हैं, थोड़ा आगे जाने के बाद उसे एक स्कूल नजर आता है। स्कूल के बाहर सिक्योरिटी वाला गार्ड भी बैठा है। सोनाली को एक आखिरी उम्मीद दिखाई देती है, वह स्कूल के पास जाती है और गार्ड से पूछती है। सोनालीः भाई साहब आप इस बच्ची को जानते हैं क्या? यह बच्चे य हाँं पर पढती तो नहीं?सिक्योरिटी गार्डः मेम साहब मैं तो रात का गार्ड हूं। ये दिन में आती होगी तो मुझे नहीं पता। आप बच्ची सेही पूछ लीजिए ना!!सोनालीः यह बच्ची बोल नहीं सकती, यही तो प्रॉब्लम है।सिक्योरिटी गार्डः तो मेम साहब इस स्कूल में नहीं पढ़ सकती। ईस स्कूल में वैसी कोई क्लास नहीं है। सोनालीः ठीक है धन्यवाद।। क्या आपको पता है कि य हाँं पर पुलिस स्टेशन क हाँं पर है? सिक्योरिटी गार्डः हाँं मेम साहब। थोड़ा आगे जाने के बाद एक स्लम एरिया मिलेगा, वहीं पर लेफ्ट में पुलिस चौकी है। सोनालीः थॅंक्यु भाईसाहब।। सोनाली बच्ची को लेकर आगे की तरफ जाती है। बीच में उसे गुब्बारे वाला और खिलौने वाला दिखता है। सोनाली बच्ची के लिए दो तीन खिलौने लेती है, और फिर उसके हाँथ में एक गुब्बारा भी दे देती है। बच्ची और ज्यादा खुश हो जाती है ।उसकी तो आज दिवाली ही है, अच्छा खाने को मिला, अच्छे कपड़े, अच्छे खिलौने मिले। बच्ची बहुत खुश हो जाती है, और उसकी खुशी देखकर सोनाली और खुश हो जाती है। 'बस यही खुशी तो देखनी है, और क्या' वह मन में सोचती है। 5 मिनट आगे जाने के बाद सोनाली को पुलिस चौकी दिखाई देती है। वह पुलिस चौकी के अंदर जाती है व हाँं पर एक हवलदार साहब बैठे रहते हैं।सोनालीः हवलदार साहब, मेरा नाम सोनाली है, यह बच्ची मुझे एक बस स्टॉप पर मिली य हाँं से आगे हनुमान चौक में जो बस स्टॉप है ना उस स्टॉप में यह बच्ची अकेली बैठी थी। पता नहीं इसके मां-बाप वगैरह कौन है!! और यह बच्ची बोल भी नहीं सकती। तो मैंने सोचा शायद आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं।। हवलदारः अरे, एक मिनट में शायद मैं जानता हूं। अभी थोड़ी देर पहले किसी ने य हाँं पर एक बच्ची को जाने की खबर दी थी। 1 सेकंड, आपको बच्ची का नाम पता है ?? हवलदार एक पेपर निकालता है उस पर साथ एक फोटो भी लगा रहता है। फोटो बच्ची से मैच करता है। सोनाली भी फोटो देखती है। हवालदारः रुकीये, बच्ची को लेकर यहीं पर रुकीये। मैं उसके माता-पिता को बुला लेता हूं। वे सामने ही रहते हैं । सोनाली व हाँं पर एक कुर्सी पर बच्ची को लेकर बैठ जाती है। अब उसे खुशी भी है और दुःख भी है कि बच्ची के माता-पिता मिल गये। 'अब वे आकर इसे ले जायेंगे। ' वो मनमे सोचती है। करीब 10 मिनट के बाद एक गरीब औरत दौड़ते दौड़ते पुलिस चौकी में घुसती है। जैसे ही वह सोनाली के पास बैठी बच्ची को देखती है तुरंत भाग के उसे उठा लेती है। औरतः अरे अंकिता, क हाँं थी मेरी बच्ची?? कब से ढूंढ रहे हैं तुम्हें!! जाने बिना बताए क हाँं चली गई? पीछे से बच्ची के पापा भी चले आते हैं। वह भी नजदीक आके सोनाली को गले लगा लेते हैं। बच्ची के पिताः अरे मेरी बच्ची क हाँं चली गई थी तुम?? क हाँं क हाँं नहीं ढूंढा तुम्हें।। वह दोनों हवालदार के पास चले जाते हैं। बच्ची के पिताः धन्यवाद हवलदार साहब। बच्ची को ढूंढने के लिए। हवालदारः अरे धन्यवाद मेरा मत कीजिए। धन्यवाद उनका कीजिए, वो मैडम आपकी बच्ची को सही सलामत य हाँं तक लेकर आई हैं। तभी उसके माता-पिता को यह भी ध्यान में आता है कि अंकिता के कपड़े भी नए हैं। उसके हाँथ में खिलौने भी है। वह सोनाली के पास जाते हैं। बच्ची की मांः मैडम पता नहीं कैसे आपका शुक्रिया अदा करें । हम तो शाम से रो रो के पागल हो गए हैं। बच्ची कहीं मिल नहीं रही थी। कई जगह ढूंढ के आ गए, कहीं कुछ पता नहीं चल र हाँ था। बच्ची के पिताः अभी भी मेरे कुछ दोस्त बच्ची को ढूंढने के लिए गए हैं। आपको क हाँं मिली है?? सोनालीः जी यह हनुमान चौक में बस स्टॉप पर बैठी थी। मैं अपने ऑफिस से निकली थी और बस के लिए वेट कर रही थी। देखा तो यह बच्ची अकेली पीछे बैठी थी। मैंने पूछने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी। बच्ची की मांः मैडम अंकिता बोल नहीं पाती। सोनालीः बीच में बहुत सी जगह पर पूछा, पर कोई इसे पहचान नहीं सका। इसलिए सीधा पुलिस थाने चली आई। बच्ची की मां सोनाली के पैर छुने लगती है, सोनाली उन्हें रोककर उठा लेती है, सोनालीः अरे, ये क्या कर रही है आप?? बच्ची की मांः आपके बहुत एहसान हुए हैं हमपे। सोनालीः इसमें एहसान की क्या बात है! !! लेकिन हनुमान चौक तो य हाँं से बहुत दूर है यह बच्ची य हाँं से व हाँं पर कैसे पहुंच गई?? बच्ची के पिताः वह क्या हुआ शाम को मैंने उसे थोड़ा डांटा था, और उसने रोना चालू कर दिया। रोते-रोते बाहर चली गई। हमें लगा यही बाहर जा कर बैठी है, या पड़ोस में दोस्तों के पास गई है, आएगी अभी। लेकिन आधा घंटा होने के बाद जब वह वापस नहीं आई, तो हमने उसे ढूंढना चालू कर दिया। हम दोनों ने आजू-बाजू में बहुत सी जगह पर ढूंढा। बहुत लोगों को पूछा लेकिन किसी से कुछ पता नहीं चला। रो रो के इसकी तो जान ही निकल रही थी, तभी हमने पुलिस स्टेशन आकर कंप्लेन लिखवाई और फिर ढूंढने के लिए चले गए थे। जैसे ही हवलदार साहब का फोन आया, तुरंत दौड़कर आ गए। सोनालीः "अरे भाई साहब इतनी छोटी सी बच्ची को कोई डांटता थोड़ी है??" बच्ची के पिताः "अब क्या करें मैम साहब? यह तो होता ही रहता है। कुछ ना कुछ करना पड़ता है। लेकिन हमें क्या पता वह घर छोड़ कर चली जाएगी।" सोनालीः" भाई साहब आइंदा से इसको मत डांटीये। कितनी प्यारी बच्ची है, ऐसी बच्ची को कोई डांट भी कैसे सकता है।" बच्ची के पिताः "जी मेम साहब बिल्कुल हम ध्यान रखेंगे। और यह कपड़े खिलौने वगैरह??सोनालीः अरे वह तो प्यारी सी अंकिता के लिए मेरी तरफ से छोटा सा तोहफा है। उसकी वजह से मेरी शाम बहुत अच्छी कटी। बहुत प्यारी बच्ची है आपकी, मैं उसे मिलने के लिए वापस आऊंगी।" बच्ची की मांः "अरे जरूर मेम साहब आप कभी भी आइएगा, और पता नहीं मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूं।" सोनालीः "उसकी कोई जरूरत नहीं है खुशी तो मेरी थी मुझे अंकिता के साथ थोड़ा समय बिताने को मौका मिला। जाओ बेटा, अपने घर जाओ। हम बाद में वापस मिलेंगे। अंकिता झट से अपने पापा की गोदी से अंकिता की तरफ झपकती है। वह बहुत खुश है, आज उसको बहुत नई चीजें मिली। खिलौने मिले, कपड़े मिले। वो सोनाली को एक झप्पी दे देती है और फिर उतर कर अपने मां बाप के साथ चली जाती है।सोनाली उनके पीछे पुलिस स्टेशन से नीचे उतरती है और आगे जाने वाली अंकिता को देखने लगती है। " मेरा नाम सोनाली है, मेरे लिए, लॅबवालों ने कुछ रिपोर्ट रखे हैं क्या?? रिसेप्शन वाली लड़की टेबल पर रखा हुआ एक लिफाफा सोनाली के हाँथ में दे देती है।जैसे ही लिफाफा मिलता है, सोनाली की धड़कन तेज हो जाती है। 'पता नहीं अंदर क्या लिखा है?' वह मन में सोचती है। "थैंक यू वेरी मच" सोनाली उसे बोलती है और वह रिपोर्ट लेकर हॉस्पिटल की लॉबी में आ जाती है। व हाँं पर भगवान की मूर्ति है, सोनाली हाँथ जोड़कर भगवान को प्रणाम करती है और वह लिफाफा खोलती है। जैसे ही वह रिपोर्ट पढती है, उसकी आंखों से आंसू छलक ने लगते हैं। वह भगवान को और एक बार प्रणाम करती है, और आंसू पोंछती है। क्यों ना हो? आखिर शादी के 15 साल बाद और 4 बार आईवीएफ फेल होने के बाद आखिरकार वह मां बनने जा रही है। अपने पांचवें और आखरी अटेम्प्ट में। डॉक्टर ने उसे चेतावनी दी थी के ये अटेम्प्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि उसकी उम्र अब ज्यादा है, और ये रिस्क हो सकता है। फिर भी वो ये रीस्क लेती है।। उसका दिल में भर आता है। तुरंत उसके सामने अंकिता का चेहरा आ जाता है। और वह अपने पर्स में हाँथ डालती है, अपना फोन निकालने के लिए। यह खुशखबरी मनोज को भी तो देनी है। उसने तो बच्ची का नाम भी सोच लिया है 'अंकिता'।।
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प्रमाद युग । २८३ नये - पुराने कपडे एकत्र कर भूकप- पीड़ितों के लिये भेजे । सन् १९३५ मे देवदत्त मिश्र परिषद् के सभापति चुने गये, किन्तु कुछ रंगारंग कार्यक्रमों के अतिरिक्त प्रसाद युग के अन्त तक कुछ न हो सका । परिषद् अपने नाटक सामान्यतः मिनर्वा, अफेड तथा नाट्यमंदिर के रंगालयों में प्रदर्शित किया करती थी और रग-सज्जा, रंगदीपन आदि के सभी तत्कालीन साधनों का उपयोग किया करती थो । सभी वस्त्राभरण, रंगोपकरण बी० दास एण्ड कं० मे किराये पर मंगाए जाते थे। परिषद् ने पारसी-हिन्दी रंगमच के नाटकों और नाट्य-पद्धति से विद्रोह कर एक साफ-सुथरा, परिष्कृत, कलापूर्ण एवं राष्ट्रीय हिन्दी रगमच खड़ा करने का प्रयास अवश्य किया, किन्तु अपनी परिसीमाओं के भीतर याबद्ध होने के कारण 'महात्मा ईसा' जैसे गंभीर नाटक को छोड़कर उसने इस युग की प्रसाद-धारा के अन्य नाटकों को नहीं अपनाया । अभिनय की कृत्रिमता दूर करने, मच पर पारसी रगमच को अनावश्यक तडव - भडक से यथानभव दूर रहकर सादगी और वस्तुवादिता लाने और रंगमंच को राष्ट्रोत्थान के पुरस्करणार्थ प्रस्तुत करने मे परिषद् का योगदान अविस्मरणीय है। कलकत्ते की बजरंग परिषद् से पृथक् होकर कुछ कलाकारों ने सन् १९१९-२० मे श्रीकृष्ण परिषद् को स्थापना की । इस संस्था ने कुछ नाटक नाटककार कन्हैयाल 'कातिल' के निर्देशन में प्रस्तुत किये और हिन्दी नाट्य परिषद् की भाँति अपनो आय का बहुत बडा अंश राष्ट्र हित में लगाया । यह परिषद् अब विशेष सत्रिय नहीं है । उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि हिन्दी के इस अव्यावसायिक रंगमच पर, एकाध अपवादो को छोड़ कर, रंग-सज्जा के लिये अधिकाशत रंगे हुए परदो, फ्लाटो आदि से ही काम चला लिया जाता था और पारसी मच के अन्य वाह्याडंबरी का प्रदर्शन उनकी आर्थिक क्षमता के बाहर की बात हुआ करती थी । इस रगमच का लक्ष्य रंगसज्जा, वेश-भूषा आदि की तडक भडक दिखलाना न होकर प्रायः नये प्रयोग करना, अभिनय को कृत्रिमता को दूर करना और रंग-शिल्प को वस्तुवादी, सरल तथा अल्प-व्यय-साध्य बनाना या । फिर भी कानपुर को कैलाश क्लब जैसी कुछ नाट्य-संस्थाएँ इस युग मे भी नये प्रयोगों से दूर बनी रही । कुल मिला कर प्रसाद युग का रंगमंच भारतेन्द्र युग और बेताब युग की रूढियो और परम्पराओ से आगे न बढ सका । यह मंच प्रसाद के विशिष्ट शैली के नाटको की आवश्यकताओं को पूर्ति के लिये अपर्याप्त एवं अक्षम था। फिर भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि व्यावसायिक एवं अव्यावसायिक, दोनों प्रकार के मचो ने प्रसाद की नाट्य-चेतना को बहुत दूर तक प्रभावित किया और वे अनेक प्रयोगों के बाद ही अपनी नाट्य-पद्धति और रंग-शिल्प को एक निश्चित रूप दे सके। (२) हिन्दीतर भारतीय रंगमंचः स्थिति तथा समकालीन युग प्रसाद युग में हिन्दी की ही भांति बेंगला और गुजराती में भी कुछ सीमा तक प्रयोगनिष्ठ नाटक रगमंच से दूर जा पडा, किन्तु फिर भी सभी आलोच्य हिन्दीतर भारतीय भाषाओं में नाटकों और उनके लेखकों का संबंध किसी-न-किसी रूप मे व्यावसायिक नाटक मडलियों के साथ बना रहा । मराठी को छोड, जिसमे नाटक व्यावसायिक रगमंच के साथ एकप्राण बना रहा, शेष सभी भाषाओं में उनके युगद्रष्टा जिन नाटककारी ने इस युग का नेतृत्व किया, उनकी कृतियों से अव्यावसायिक रगमंच को प्रेरणा मिली, क्योकि व्यावसायिक मच को परपरागत आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाने, रगमच पर नई परम्पराओं एवं कला-विधान को स्थापना करने, भाषा के संस्कार एवं अलकृति के कारण उनके प्रयोगों के लिये एक ऐसे मंच की आवश्यकता प्रतीत हुई, जो व्यवसाय-दृष्टि को दूर रख कर कुछ दूर तक चल सके। यह प्रयोगनिष्ठ अव्यावसायिक मंच हिन्दी, बंगला और गुजराती में व्यावसायिक मन के साथ-साथ एक-दूसरे का पूरक और कही एक-दूसरे का प्रतिस्पर्धी बन कर चलता रहा। सन् १९१२ ई० मे नाट्याचार्य गिरीशचन्द्र घोष और मिनर्वा के परिचालक महेन्द्र मित्र के निधन और २८४ । भारतीय रगमच का विवेचनात्मक इतिहास सन् १९१६ मे स्टार के परिचालक, नट एव नाटककार अमरेन्द्रनाथ दत्त के महाप्रयाण से बंगला के दो प्रमुख रगालयो-मिनर्वा और स्टार की गति कुछ काल के लिये कुठिन हो गई। कुछ कलाकारो के अवकाश-ग्रहण या वय वृद्धि के साथ उनकी कला के अस्तगत होने के कारण बेंगला रंगमच पर कुशल कलाकारों का दैन्य उपस्थित हो गया। गिरीश बाबू के सुपुत्र सुरेन्द्रनाथ घोष ( दानी बाबू) इस दैन्य को दूर करने के लिये अपनी अद्भुत क्षमता एव कला-दाक्षिण्य का परिचय देते रहे, तभी सन् १९२१ मे कलकत्ता के विश्वविद्यालय संस्थान में चाणक्य की भूमिका कर ( १९१२ ई० ) प्रसिद्धि पाने वाले प्राध्यापक शिशिरकुमार भादुडी ने अध्यापको छोड़कर व्यावसायिक मच जगत् मे प्रवेश किया और अपने अध्यवसाय और नाट्य-कौगल के बल पर बंगला रगमच को एक नवीन दिशा दी। उन्होंने सर्वप्रथम बँगला मच पर पाश्चात्य भावाभिनय-पद्धति की अवतारणा की, किन्तु वे गिरीश की भाँति सर्वगतः तप कर अपने युग का नेतृत्व न कर सके। यह नये प्रयोगो का युग था, जिसकी सूचना कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ ठाकुर अपने नवीन शैली के नाटको- 'शारदोत्सव' (१९०८ ई० ), 'राजा' (१९१० ई० ) और 'डाकघर' ( १९१२ ई० ) द्वारा दे चुके थे। प्राकृतिक अथवा मानवीय प्रतीको को लेकर जिन लौकिक एवं पारलौकिक तत्त्वो की अवतारणा की गई है, वे हैं सत्य और आनंद की उपलब्धि, आत्मा का अज्ञान के घोर सम को भेद कर परमात्मा से साविध्य अथवा उसमे विलय रवीन्द्र के नाटकों में निहित प्रसगनिष्ठ तत्त्व-निरूपण सामान्य । सामाजिक के लिये ग्राह्य नहीं है, अत उनके नाटकों के लिये सर्वसाधारण के मच की हो नही, असाधारण तत्त्वज्ञान सम्पन्न सामाजिकों के मच की आवश्यकता थी, जिसकी स्थापना के लिये रवीन्द्र को स्वय प्रयत्नशील होना पडा । शान्तिनिकेतन की बालक-बालिकाओं को लेकर रवीन्द्र ने अपने इन नवीन नाटको के सफल प्रयोग कर इस नवीन मच की स्थापना को। बाद में उनके कुछ लोकप्रिय नाटक अथवा नाट्यरूपान्तर व्यावसायिक रंगमच द्वारा भी किये गये । आर्ट थियेटर द्वारा रवीन्द्र के 'चिरकुमार सभा, नाट्य मंदिर द्वारा उनके 'विसर्जन', प्रस्तुत 'शेषरक्षा' और 'तपती', नवनाट्य मंदिर द्वारा 'योगायोग' (रवीन्द्र के उसी नाम के उपन्यास का नाट्य रूपातर ) अभिनीत किये गये । रवीन्द्र न केवल नाटककार थे, वरन् वे एक कुशल नट एव प्रयोक्ता भी थे । शातिनिकेतन द्वारा अभिनीत नाटको मे वे स्वयं भी भूमिकाएं करते थे और नाट्य-शिक्षा का कार्य भी करते थे। रवीन्द्र ने नाट्याचार्य शिशिर के साथ भी अनेक भूमिकाएँ की थी। शिशिर केवल नट, नाट्य-शिक्षक एवं परिचालक थे, जबकि रवीन्द्र इसके अतिरिक्त नाटककार एव कवि भी थे, अत. प्रसाद के समकालीन होने के कारण बंगला मे इस युग को रवीन्द्र युग' के नाम से अभिषिक्त करना समीचीन होगा । रवीन्द्र युग अनिवार्यत विशिष्ट अव्यावसायिक मच का युग होते हुए भी व्यावसायिक दृष्टि से गिरीश युग मे किसी प्रकार कम महत्त्वपूर्ण नही । इस युग मे कोहिनूर स्टार और मिनर्वा जैसे पुराने रगालय किमी-न-किसी प्रकार अपने अस्तित्व का परिचय देते रहे, तो दूसरी ओर मनमोहन थियेटर, आर्ट थियेटर, नाट्य मंदिर, नव-नाट्य मंदिर, थोरगम्, नाट्य-निकेतन, कलकत्ता थियेटर लि०, रगमहल आदि कई नये रमालयो अथवा नाट्य-संस्थाओं की स्थापना हुई। इनमें से नाट्य मंदिर आदि नई संस्थाओं की स्थापना के पीछे शिशिर कुमार भादुडी के गत्यात्मक व्यक्तित्व का हाथ रहा है । मराठी में यह युग रगभूमि का उत्कर्ष काल रहा है, क्योंकि सन् १९१४ मे प्रथम महायुद्ध के प्रारंभ हो जाने के कारण प्राय, सभी मराठी नाटक मठलियो ने भरपूर धनोपार्जन किया, और युद्धोत्तर-काल मे रगभूमि का अपकर्ष आसन्न दिखाई पडने लगने पर मामा वरेरकर नवीन शैली के अपने नाटको को लेकर सामने आये और एक नये युग का सूत्रपात किया । यद्यपि मामा का कृतित्व उनके महत्त्वाकांक्षी दावो और नाटको की सामयिकता एव प्रचारात्मकता के कारण विवाद का विषय बन गया है, किन्तु इसमे कोई सन्देह नहीं कि उन्होंने नाटकों के
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रात के दृश्यों में हम अक्सर चीजों का सामना करते हैं।आम। किसी को एक सेट टेबल या कंप्यूटर मॉनीटर पर बार-बार विचार करना पड़ता है; दूसरों को अपने बालों को अपनी नींद में जोड़ना पड़ता है। हर कोई इस तरह के कताई पर ध्यान नहीं देगा। और व्यर्थ में। बाल, एक नियम के रूप में, व्यक्ति के साथ अवचेतन की बातचीत में एक प्रतीकात्मक प्रतीक है। आइए समझें कि सपने में बाल देखने का क्या अर्थ है, और उनका ध्यान क्यों रखें। शुरुआत के साथ, प्रश्न में मानव शरीर (बाल के सिर) के गुप्त अर्थ के बारे में पाठक को प्रबुद्ध करने लायक है। क्या आपने सोचा है कि एक औरत क्यों नहीं कर सकती हैचर्च के पास जाने के लिए? यह परंपरा अवसर से नहीं उभरी। इसकी जड़ें सदियों की गहराई में खो गई थीं। ऐसा लगता था कि महिलाओं की ब्राइड्स और कर्ल किसी प्रकार के एंटेना हैं। उनके माध्यम से, वह अंतरिक्ष (या दूसरी दुनिया) से गुप्त जानकारी समझती है। चर्च, निश्चित रूप से, इसे सभी पाखंडी और शैतानी ताकतों की machinations कहा जाता है। हालांकि, पवित्र चर्च में जादूगर कार्य को रोकने के लिए, सुंदरियों को उनके बालों को एक रूमाल से ढकने के लिए कहा गया था। यह कहानी हमें केवल उस हिस्से में रूचि देती है जिसे प्राचीन पूर्वजों ने देखा था। हमारे सिर एंटेना से भरे हुए हैं जो पतली दुनिया से मस्तिष्क तक जानकारी प्राप्त करते हैं और संचारित करते हैं। इस तरह के एक सिद्धांत से इंकार करने के लिए, विज्ञान नहीं कर सका (या कोशिश नहीं की)। तो यह पता चला है कि एक सपने में बालों को जोड़ना - मतलब है "उच्च" के साथ संपर्क की आवश्यकता है। एक सरल तरीके से, एंटीना समायोजित करें। इस तरह के एक विचार के आधार पर कई दुभाषियों ने अपनी प्रतिलिपि बनाई। आइए उन्हें बारीकी से देखें। यह बुद्धिमान लेखक रूट पर सही देखता है। एक सपने में बालों को जोड़ना असामान्य पारस्परिक संबंधों में खींचा जाने का जोखिम है। सहमत हैं, स्वाभाविक रूप से, जब एक व्यक्ति दूसरे को समान मानता है। खासकर जब अंतरंग संचार की बात आती है। और यदि आप एक कंघी या ब्रश में हेरफेर करने का सपना देखते हैं, तो आपको इस बारे में सोचना चाहिए कि वह साथी पास है या नहीं। आखिरकार, एक व्यक्ति के बालों को जोड़कर एक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के पूर्ण अवशोषण के लिए प्रयास करता है, जैसा कि श्री मेनेघेटी का दावा है। वह जो बाल करता है, वह पीड़ित के रूप में कार्य करेगा। सपना संकेत, चेतावनी। विशेष रूप से यह चिंताजनक है कि "हेयरड्रेसर" की पहचान अज्ञात हो गई है। आप को मनोवैज्ञानिक प्रकृति के कपटी नेटवर्क द्वारा घनिष्ठ रूप से देखा जा रहा है। आम तौर पर, लेखक को आश्वस्त है कि एक सपने में बाल देखकर घनिष्ठ क्षेत्र में कुछ घटनाएं होती हैं जो किसी व्यक्ति के जीवन पर गंभीर प्रभाव डालती हैं। कर्ल के रूप में, आप उनके अभिविन्यास को निर्धारित कर सकते हैं। अगर वे सुंदर, शानदार, स्वस्थ हो गए, तो इसका मतलब है कि साथी सुंदर होगा, और उसके साथ संचार आत्मा में खुशी पैदा करेगा। हंग, गंदा, निराश, ज़ाहिर है, वास्तविकता में विपरीत घटनाओं की ओर इशारा करते हुए। यहां हमें एक अलग डिक्रिप्शन योजना का सामना करना पड़ रहा है। निर्देशिका के कंपाइलर मानव स्वास्थ्य के साथ कर्ल के प्रकार के वास्तविक संबंध से आगे बढ़ते हैं। एक सपने में लंबे बाल का मिश्रण - बीमारों के लिए वसूली के लिए। लेकिन इसके विपरीत, रोग के विपरीत, उन्हें देखें। इसके अलावा, यह व्याख्या केवल कर्ल के मालिक से संबंधित है। यही है, अगर आपको परिचित लोगों के किसी के साथ अपने सपने में अपने बालों को बांधने का मौका मिला, तो वह सुरक्षित रूप से दुर्भाग्य से छुटकारा पाने के लिए उसके ऊपर है। जब वे वास्तव में उपस्थित नहीं होते हैं तो किसी के सिर पर लंबे समय तक चलने के लिए एक बीमारी का अग्रदूत होता है। बाल भूरे रंग के होने पर भी बदतर। यह, इस संग्रह के आश्वासन के अनुसार, महान दुख का मतलब है। शायद कोई प्रिय और करीबी सपनों को हमेशा के लिए छोड़ देगा। शोक पहनना है। अपने बालों को धोने के लिएः घर पर - बेहतर के लिए एक बदलाव के लिए, एक दूसरे पर - चिंताओं और परेशानियों के लिए। हमें किसी की देखभाल करना, मदद करना, आंसू मिटा देना और अन्य लोगों की समस्याओं को हल करना होगा। मॉर्फियस देश में किसी के कर्ल को काटने के लिए - इस व्यक्ति के साथ भारी, घातक झगड़ा करने के लिए। यहां हम इस विषय पर भी आते हैं।रिश्तों। श्री मिलर ने अपने लिंग के अनुसार सपने देखने वालों के लिए व्याख्याओं को विभाजित करने का फैसला किया। तो, एक महिला के लिए दर्पण के सामने एक सपने में बालों को जोड़ना उसका हल्कापन है। एक कपटी seducer द्वारा सेट जाल में गिरने का खतरा है। एक कड़वी भाग्य एक खूबसूरत औरत की प्रतीक्षा करता है, अगर वह दिमाग नहीं लेती है, जो सपने में आने वाले सुराग से निर्देशित होती है। अगर लड़की ने उसके सिर पर काले और हल्के तारों को देखा, तो उसके सामने एक मुश्किल विकल्प होगा। इच्छाओं में केवल ज्ञान और संयम जीवन परिस्थितियों की जटिलताओं को समझने में मदद करेगा। लेकिन सफेद बाल का मतलब असीमित खुशी है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसके साथ क्या करते हैं। जब एक औरत ने देखा कि एक आदमी अपने बालों को एक सपने में जोड़ रहा था, तो उसे इस सज्जन से सावधान रहना चाहिए। उनकी भावनाएं अमानवीय हैं। मर्केंटाइल और गणना उनके कार्यों का मार्गदर्शन करती है। साहस उसकी खुशी नहीं लाएगा। एक आदमी अपने तारों को कंघी कर रहा है - सफलता के लिए, अगर वे स्वस्थ और सुंदर दिखते हैं। और विफलता के लिए, जब सिर स्पैस, गंदे या फीका बाल था। इस लेखक के पास अपना दृष्टिकोण हैअवचेतन के गुप्त संकेतों की मान्यता। उनकी राय में, बाल मादा जननांग का प्रतीक हैं। और उसकी सभी व्याख्याएं इस विवादास्पद तथ्य से ठीक आती हैं। अगर एक औरत ने सपना देखा है कि वह अपने कर्ल को जोड़ रही है, तो उसे मिस्ड अवसरों पर पछतावा करना होगा (पढ़नाः अस्वीकार भागीदारों)। इस तरह की एक साजिश एक आदमी को बताती है कि वह यौन क्षेत्र में नई उपलब्धियों के लिए तैयार है। एक सपने में ग्रे बाल हर किसी को परेशान करना चाहिए। यह नपुंसकता, जुनून की कमी का प्रतीक है। हर कोई जानता है कि सेलेस्टियल में एक और शासनकालदृष्टिकोण। इसलिए, उनका डिक्रिप्शन यूरोपीय लेखकों द्वारा प्रस्तुत किए गए लोगों के समान नहीं है। इसलिए, एक सपने में भूरे बालों को चीनी द्वारा दीर्घायु और महान खुशी का संकेत माना जाता है। और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस तस्वीर का सपना देखा गया है। जीवन से सपना लेने के लिए तैयार हो जाओ। अगर मुझे अपने सिर पर कर्ल को जोड़ना पड़ा, तो सपना किताब पेर्क की सिफारिश करती है। जल्द ही जीवन परिस्थितियों में बेहतर बदलाव आएगा। सभी दुःख एक तेज घोड़े के खुर के नीचे से चिड़ियों की तरह उड़ जाएगा। चिंता व्यर्थ हो जाएगी। आप खुशी से और गर्व से आगे बढ़कर, खुशी से आगे देख सकते हैं। हालांकि, इस अद्भुत स्रोत में बुरे संकेत हैं। यदि किसी आदमी के सपनों में तंग आते हैं, तो आपको बेटे या पोते के नुकसान के कारण पीड़ित होना पड़ेगा। खुले कर्ल के साथ प्रिय पति को देखने के लिए - उसके राजद्रोह के लिए। दुश्मनों की साजिशों का सामना करने के लिए स्वयं को अपने चेहरों को कैसे कवर किया जाता है, यह महसूस करने के लिए खुद को नंगे सिर के रूप में जाना जाता है। हमें मुकदमेबाजी में प्रवेश करना होगा, जिसके परिणामस्वरूप दुखी होगा। लेखक की आशावादी देखो व्याख्या। लड़की के लिए कर्ल मुकाबला - शादी के लिए। सहमत हैं, अच्छा। अगर उसने एक सपना देखाः माँ अपने बालों को पकड़ती है, पता है, यह माता-पिता है जो दूल्हे की पसंद को प्रभावित करेगा। ऐसा पूर्वानुमान आधुनिक लड़कियों के लिए काफी सकारात्मक नहीं लग सकता है। उन्हें इस तथ्य पर प्रतिबिंबित होना चाहिए कि एक और खुशहाल जीवन आयोजित करने में अनुभव युवा शौक की तुलना में अधिक उपयोगी है। अगर वे पालन करते हैं, तो मातृ सलाह सुनना उचित है। और नहीं, तो अपने आप को माता-पिता के पते पर करें, आगे के भाग्य पर अपने विचार की व्याख्या करें। वह आपको बताएगी कि सिर में क्या गलत है, सही विचार, उसके अवलोकन और अनुभव साझा करें। उस विवाहित महिला की शादी से डरना चाहिए। जैसा कि सपना किताब कहती है, वह परिवार की समस्याओं से जुड़ी एक दुखी सड़क की भविष्यवाणी करता है। शायद पति / पत्नी के हिस्से पर हमला। पवित्र के साथ बातचीत में सावधानी और सावधानी बरतना आवश्यक है। कौन, जैसा कि वे कहते हैं, forewarned forearmed है। एक आदमी अपने हेजहोग को जोड़कर - मेहमानों के लिए, अच्छा। असहज, हालांकि! बुद्धिमान सकारात्मक भविष्यवाणियों के इस स्रोत में, हममिलेगा श्री हससे यकीन है कि रात के दृश्यों में बालों को जोड़ना व्यक्ति को काम करने के लिए एक और गंभीर दृष्टिकोण के लिए प्रेरित करना है। आखिरकार, सपने आसन्न असफलताओं, असफलताओं और हानियों की बात करता है। मजबूत लिंग के प्रतिनिधियों को विशेष ध्यान देने की सिफारिश की जाती है। अगर वे खुद को उन्मुख नहीं करते हैं, तो रात के स्वर्गदूतों की अच्छी सलाह खारिज कर दें, वे परिवार के कल्याण को खतरे में डाल देंगे। नुकसान अस्वीकार्य हो सकता है। श्री हससे के अनुसार व्यापारिक लोगों को नवीनतम निर्णयों का विश्लेषण करना चाहिए, परियोजनाओं की प्रगति का निरीक्षण करना चाहिए। सबसे अधिक संभावना है कि, एक शर्मनाक गलती उनकी पिछली गणनाओं में आ गई, जिसने बीमारियों या साधारण चोरों को खेत में रखने की इजाजत दी। सुरक्षात्मक या सक्रिय उपायों को लेने की तत्काल आवश्यकता है। अन्यथा, दिवालियापन अपरिहार्य है। जो महिलाएं कर्ल के संयोजन को देखते हैं उन्हें भी पूर्व विचार की आवश्यकता होती है। पहने हुए धोखेबाज के पास। अपने पंजे वाले पंजे में न आएं - यह निकट भविष्य के लिए सपने देखने वाला लक्ष्य है।
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झारखंड से निकलने वाली सभी नदियाँ यहाँ की पठारी भूभाग से निकलतीं हैं। यहाँ की नदियां बरसाती नदियां हैं। अर्थात ये नदियाँ बरसात के महीनों में पानी से भरी रहती हैं, जबकि गर्मी के मौसम में सूख जाती हैं। ये नदियां पानी के लिए मानसून पर निर्भर करती है। कठोर चट्टानी क्षेत्रों से होकर प्रवाहित होने के कारण झारखंड की नदियाँ नाव चलाने के लिए उपयोगी नहीं है। मयूराक्षी नदी झारखंड की एकमात्र नदी है, जिसमें वर्षा ऋतु में नावें चला करती हैं। झारखंड राज्य की बेसीन प्रणाली को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है । झारखंड की प्रमुख नदियों में दामोदर, उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल, स्वर्णरेखा, शंख , अजय तथा मयूराक्षी है। उत्तरी कोयल तथा दामोदर प्रथम वर्ग में शामिल नदियाँ है। जबकि स्वर्णरेखा, शंख ,दक्षिणी कोयल दूसरे वर्ग में शामिल नदियाँ है। इन दोनों प्रवाह प्रणाली के बीच स्थित जल विभाजक झारखंड के लगभग मध्य भाग में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर फैला है। झारखंड से निकलने वाली सबसे बड़ी और लंबी नदी दामोदर नदी है। इसका उद्गम स्थल छोटा नागपुर का पठार है। यह लातेहार जिला के टोरी नामक स्थान से निकलती है। दामोदर नदी को बंगाल का शोक भी कहते हैं। दामोदर नदी देवनद या देवनदी के नाम से भी प्रचलित है। साहित्य पौराणिक कथाओं में देवनंद के नाम से भी इसका उल्लेख है। दामोदर नदी लातेहार जिले से निकलकर हजारीबाग, मानभूम, गिरिडीह, धनबाद होते हुए बंगाल में प्रवेश कर बाँकुड़ा होती हुई हुगली के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। दामोदर नदी की लंबाई 290 किलोमीटर है। वैसे इसकी कुल लम्बाई 524 km है।इसकी सहायक नदियों में कोनार, बोकारो,जमुनिया, कतरी और बराकर प्रमुख है। दामोदर नदी रामगढ़ जिला के रजरप्पा में भैरवी नदी से मिलकर जलप्रपात बनाती है यहाँ माँ छिन्नमस्तिके सिद्धपीठ है। यह झारखंड के एक प्रमुख पर्यटक स्थल भी हैं । दामोदर नदी का अपवाह क्षेत्र 12,800 वर्ग किमी है जो हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, लातेहार, रांची, लोहरदगा है। स्वर्णरेखा नदी छोटानागपुर पठार में रांची जिले के नगड़ी नामक गांव से निकलती है। यहां से बहती हुई यह नदी पूर्वी सिंहभूम जिले में प्रवेश करती है,यहां से उड़ीसा राज्य में चली जाती है। पठारी चट्टानों वाली प्रदेश से प्रवाहित होने के कारण स्वर्णरेखा नदी तथा इसकी सहायक नदियां, गहरी घाटियां तथा जलप्रपात का निर्माण करती है। यह रांची से 28 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में हुंडरू जलप्रपात बनाती है, जहां से यह 320 फीट की ऊंचाई से गिरती है। यह झारखंड के दूसरे सबसे ऊंचा जलप्रपात है। स्वर्णरेखा मुख्यता बरसाती नदी है, वर्षा काल में इस में पानी भरा रहता है, परन्तु गर्मी में सूख जाता है। इस नदी के सुनहरे रेत में सोना मिलने की संभावना के कारण इसे स्वर्ण रेखा नदी कहा जाता है लेकिन सोना फिलहाल प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि यह रेत के कणों में बहुत ही कम मात्रा में होता है। राढू इसकी सहायक नदी है, यह नदी मार्ग में जोन्हा के पास एक जलप्रपात का निर्माण करती है जो 150 फीट की ऊंचाई पर है यह जलप्रपात गौतम धारा जलप्रपात के नाम से जाना जाता है। स्वर्णरेखा नदी की एक विशेषता यह है कि उद्गम स्थान से लेकर सागर में मिलने तक यह किसी की सहायक नदी नहीं बनती है। यह सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके तीन प्रमुख सहायक नदियां हैं राढू ,काँची और खरकई है। पूरब से बहती हु़ई इसमें आ मिलती है । बराकर नदी भी एक बरसाती नदी है, छोटानागपुर के पठार से निकलकर हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद और मानभूम में जाकर दामोदर नदी में मिल जाती है। यह बरसात में उमड़ कर बहती है, फिर धीमी गति से अपना अस्तित्व बनाए रहती है। इस नदी पर दामोदर घाटी परियोजना के अंतर्गत मैथन बांध बनाया गया है जिससे बिजली का उत्पादन किया जाता है। इस नदी का उल्लेख बौद्ध एवं जैन धार्मिक ग्रंथों में हुआ है।गिरिडीह के निकट इस नदी के तट पर बराकर नामक स्थान है, जहां जैन मंदिर है। मैथन के निकट बराकर नदी के तट पर कल्याणेश्वरी नामक देवी मंदिर है। उत्तरी कोयल नदी राँची पठार के मध्य भाग से निकलकर पाट क्षेत्रों में ढालों पर बहती हुए उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं। यह औरंगा और अमानत नदियों को भी अपने में विलीन कर लेती है तथा साथ ही कई छोटी नदियां को अपने में विलीन करते हुए 255 किलोमीटर की पहाड़ी और मैदानी दूरी तय कर सोन नदी में मिल जाती है। औरंगा और अमानत नदी इसकी सहायक नदियां हैं। यह नदी गर्मी के मौसम में सूख जाती है,लेकिन बरसात के दिनों में बाढ़ के साथ उमड़ कर बहने लगती है। बूढ़ा नदी महुआटांड क्षेत्र से निकलकर सेरेंगदाग पाट के दक्षिण में इससे मिलती है, यह दोनों नदियों के मिलन का महत्व बूढ़ा घाघ जलप्रपात के कारण का बढ़ जाता है। दक्षिणी कोयल नदी रांची के पास नगड़ी गांव की पहाड़ी से पश्चिम में बहती हुई लोहरदगा पहुंचती है फिर उत्तर पूर्वी होकर दक्षिण दिशा में हो जाती है। फिर यह गुमला जिले से होकर सिंहभूम के रास्ते शंख नदी में जा मिलती है। लोहरदगा से 8 किलोमीटर उत्तर पूर्व में या दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाती है और यह लोहरदगा तथा गुमला जिले से होते हुए सिंहभूम में प्रवेश करती है। अंत में यह नदी गंगापुर के निकट नदी में समा जाती है, इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी कारो है, इसी स्थान पर कोयलाकारो परियोजना का निर्माण किया गया है। यह आगे चल कर शंख नदी मे मिल जाती है। इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी "कारों" नदी है। इसी पे "कोयलाकारों परियोजना" का निर्माण किया गया है । मुहानाः शंख नदी (उड़ीसा) कन्हार नदी राज्य के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पलामू के सरगुजा से निकलती है और पलामू के दक्षिणी-पश्चिमी सीमा का निर्माण करती हुई उत्तर की ओर बहती है। कन्हार नदी सरगुजा को पलामू से 80 किलोमीटर तक बाँटती है। यह नदी गढ़वा में भंडारित प्रखंड प्रवेश करती है यह रंका प्रखंड की पश्चिमी सीमा से होते हुए धुरकी प्रखंड में प्रवेश करती हैं। फल्गु नदी भी छोटा नागपुर पठार के उत्तरी भाग से निकलती है। अनेक छोटी-छोटी सरिताओं के मिलने से इस नदी की मुख्यधारा बनती है,जिससे निरंजना भी कहते हैं। इसको अंतत सलिला या लीलाजन भी कहते हैं, बोधगया के पास मोहना नामक सहायक नदी से मिलकर या विशाल रूप धारण कर लेती है। गया के निकट इसकी चौड़ाई सबसे अधिक पाई जाती है। पितृपक्ष के समय देश के विभिन्न भागों से लोग फल्गु नदी में स्नान करने के लिए आते हैं और पिंडदान करते हैं। सकरी नदी भी छोटानागपुर से निकलकर हजारीबाग, पटना, गया और मुंगेर जिले से होकर प्रवाहित होती है। झारखंड से निकलकर या उत्तर पूर्व की ओर बहती हुई कियूल और मनोहर नदियों के साथ मिलकर गंगा के ताल क्षेत्रों में बिखर जाती हैं। रामायण में इस नदी को सुमागधी के नाम से पुकारा गया है उस काल में यह नदी राजगीर के पास से प्रवाहित होती थी, यह नदी अपने मार्ग बदलने के लिए प्रसिद्ध है। पुनपुन नदी झारखंड में पुनपुन एवं उसकी सहायक नदियों का उद्भव हजारीबाग के पठार वह पलामू के उत्तरी क्षेत्रों में क्षेत्रों से होता है। यह नदी तथा उसकी सहायक नदियां उत्तरी कोयल प्रवाह क्षेत्र के उत्तर से निकलकर सोन के समांतर बहती है। पुनपुन का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। इस नदी को पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है, पुनपुन नदी को कीकट नदी भी कहा जाता है,लेकिन इससे कहीं-कहीं बमागधी भी कहा जाता है। गंगा में मिलने के पूर्व इसमें दरधा और मनोहर नामक सहायक नदियां भी आ मिलते हैं। चानन नदी को पंचाने भी कहा जाता है, वास्तव में इसका नाम पंचानन है जो कालांतर में चानन बन गया है। यह नदी 5 धाराओं के मेल से विकसित हुई, इसलिए इससे पंचानन कहा गया है। "पंचाने नदी" भी कह्ते है । छोटा नागपुर पठार से इस की सभी धाराएं निकलती है। शंख नदी नेतरहाट पठार के पश्चिमी छोर में उत्तरी कोयल के विपरीत बहती है। पाट क्षेत्र के दक्षिणी छोर से इसका उद्गम होता है, यह गुमला जिले के रायडी के दक्षिण में प्रारंभ होती है। यह नदी शुरू में काफी सँकरी और गहरी खाई का निर्माण करती है। मार्ग में राजा डेरा के पास 200 फीट ऊंचा जलप्रपात बनाती है, जो सदनीघाघ जलप्रपात के नाम से प्रसिद्ध है। यह नदी शुुुुरु मे काफी सँकरी और गहरी खाईं बनाती है ।यह राजाडोरा के पास 200 feet ऊँचा जलप्रपात बनाती है जो " सदनघाघ जलप्रपात " केे नाम सेे जाना जाता है । शंख नदीः उदगम - चैनपुर प्रखंड (गुमला जिला) अजय नदी का उद्गम क्षेत्र मुंगेर है, जहां से प्रवाहित होते हुए यह देवघर जिले में प्रवेश करती है। यहाँ से यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बढ़ती हुए प्रवाहित होती है, पश्चिम से आकर इसमें पथरो नदी मिलती है। आगे चलकर इसमें जयंती नदी मिलती है यह दोनों सहायक नदियां हजारीबाग, गिरिडीह जिले से निकलती हैं। अजय नदी जामताड़ा में कजरा के निकट प्रवेश करती है, संथाल परगना के दक्षिणी छोर में यह नदी कुशबेदिया से अफजलपुर तक प्रवाहित होती है। यह झारखंड मे देवघर तथा जमतारा मे बहती है। इसकी 2 सहायक नदी पथरो तथा जयन्ती नदी है जो हजारीबाग तथ गिरिडीह से निकलती है । देवघर के पुनासी मे इस नदी पे पुनासी जल परियोजना के तह्त पुनासी डैम का निर्माण किया जा रहा है। मयूराक्षी नदी देवघर जिले के उत्तर-पूर्वी किनारे पर स्थित त्रिकुट पहाड़ से निकलती है। यह दुमका जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग में प्रवेश करती है, यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई आमजोड़ा के निकट दुमका से अलग होती है। झारखंड से निकलकर यह बंगाल में सैंथिया रेलवे स्टेशन के निकट गंगा में मिल जाती है। यह नदी अपने ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में मोतिहारी के नाम से भी जानी जाती है, यह भुरभुरी नदी के साथ मिलकर मोर के नाम से पुकारी जाती है, इसका दूसरा नाम मयूराक्षी है। इसकी सहायक नदियों में टिपरा, पुसरो,भामरी , दौना,धोवइ आदि प्रमुख है। इस नदी पर कनाडा के सहयोग से मसानजोर डैम का निर्माण किया गया है, इस डैम को कनाडा डैम भी कहा जाता है। मोर या मयूराक्षी नदीः-इस नदी के ऊपरी प्र्वाह क्षेत्र मे "मोतीहारी" के नाम से जाना जाता है। यह भुरभुरी नदी से मिलकर "मोर" के नाम से पुकारी जाती है। मुहानाः गंगा ( पश्चिम बंगाल ) यह नदी मैकाल पर्वत के अमरकटक पठार से निकलती है । इसकी लंबाई 780 -784 कि. मी. है । यह नदी पटना के पास गंगा नदी मे मिल जाती है। यह नदी झारखंड के 45 km की सीमा बनाती है यह पलामू की उतरी सीमा बनाते हुए प्रवाहित होती है। क्षेत्र विशेष में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे :-सोनभद्र ,हिरन्यवाह / हिरण्यवाह। इसकी सहायक नदी उत्तरी कोयल है। इसका अपवाह क्षेत्र पलामू और गढ़वा है। ब्राह्मनि नदी उद्गम दुमका जिले के दुधवा पहाड़ी से निकलकर पश्चिम बंगाल में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी है गुमरो और एरो नदी। बांसलोइ नदी गोड्डा जिला के पास बाँस पहाड़ी से निकलकर मुराइ के पास गंगा नदी मे मिल जाती है । गुमनी नदी राजमहल के पहाड़ी से निकलती है और झारखंड कि सीमा को पार कर गंगा मे मिल जाती है । इसका अपवाह क्षेत्र 1313 वर्ग km है। औरंग नदी लोहरदगा जिले के किस्को प्रखंड के उम्दाग गाँव निकलती है। यह उतरी कोयल की सहायक नदी है। इसकी सहायक नदी घाघरी, गोवा , नाला, धधारी, सुकरी है । बूढ़ा नदी महुआटाँडा से निकल कर सरेंदाग पाट के दक्षिण मे उतरी कोयल से मिल जाती है । झारखंड क सबसे ऊँचा जलप्रपात "बूढ़ाघाघ जलप्रपात" इसी नदी पर स्तिथ है । अमानत नदी का उद्गम स्थल चतरा है। यह करीब 100 किलोमीटर की लंबी दूरी तय कर के कोयल नदी मे मिल जाती है । इसकी प्रमुख्य सहायक नदियां जिजोइ, माइला, जनुमिया, खेरा, चाको, सलाही, पाटन है । हरमु नदी राँची के नगाड़ी प्रखंड के पास से निकल कर कुल 14 किलोमीटर कि यात्रा तय क्र नमकुम मे स्वर्णरेखा नदी मे जा मिलती है। काँची नदी राँची जिले के तमाड़ इलाके से निकलती है। सिल्ली होते हुए ये स्वर्णरेखा नदी मे जा मिलती है। तजना नदी बुंडू-तमाड़ इलाके से निकलती है ।यह आगे जा के खूँटी जिले से होते हुए "कारो नदी" मेे मिल जाती है। गंगा नदी झारखंड की सीमा मे सबसे पहले संथाल परगना के साहेबगंज जिला मे तेलियागड़ी से कुछ दूर पश्चिम में छूती है और पुरब दिशा मे बहती है। यह नदी साहेबगंज जिला मे 80 कि. मी. की दूरी तय करती हैै।
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चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को पेंशन का पारदर्शी और परेशानीमुक्त वितरण सुनिश्चित करने के लिये एक नया मंच ई-पेंशन पोर्टल शुरू किया। - पोर्टल के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एंड-टू-एंड ऑनलाइन पेंशन पोर्टल पेंशन प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये वित्त विभाग द्वारा विकसित किया गया है। - यह पेंशनभोगियों को शारीरिक रूप से कहीं भी जाने की आवश्यकता को समाप्त कर देगा और प्रक्रिया को पारदर्शी, कागज़रहित, संपर्करहित और कैशलेस बनाएगा। - सेवानिवृत्त होने वाले राज्य सरकार के कर्मचारियों की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए पोर्टल उनके आवेदनों (पीपीओ) की स्थिति को ट्रैक करेगा। - केंद्र सरकार द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य के वित्त विभाग ने पोर्टल बनाया है, जिसमें 59 वर्ष छह महीने की आयु प्राप्त करने वाले कर्मचारियों की स्थिति को ट्रैक करने का विकल्प होगा। इससे राज्य के लगभग 11.5 लाख पेंशनभोगियों को लाभ होगा। - यह प्रणाली राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिये लागू की गई है और जल्द ही अन्य विभाग भी इस प्रक्रिया में शामिल होंगे, जिससे लाखों लोगों को लाभ होगा और किसी को भी पेंशन के लिये भागना नहीं पड़ेगा। चर्चा में क्यों? 30 अप्रैल, 2022 को उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) और उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीईआईडीए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन अगले जून में किया जाएगा। - अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर 19 में से 14 फ्लाईओवर का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। बेतवा और यमुना नदी पर पुल का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। इस एक्सप्रेसवे को आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे से जोड़ने का काम भी पूरा हो चुका है। - बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे की कुल लंबाई 296.07 किमी. है। यह एक्सप्रेसवे चित्रकूट, बाँदा, हमीरपुर, जालौन, औरैया और इटावा से होकर गुज़रेगा। - उल्लेखनीय है कि इस एक्सप्रेसवे के बनने से पूरा बुंदेलखंड क्षेत्र आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के ज़रिये राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सीधे जुड़ जाएगा। चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर में श्री सत्य साईं हार्ट हॉस्पिटल, राजकोट एवं अहमदाबाद द्वारा आयोजित मेगा फ्री हार्ट कैंप का उद्घाटन करते हुए कहा कि यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज लागू करने वाला राजस्थान देश का अग्रणी राज्य बन चुका है। - मुख्यमंत्री ने कहा कि 'मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना' में प्रदेश के लगभग 1 करोड़ 34 लाख परिवार जुड़ चुके हैं तथा किडनी, हार्ट, लीवर, बोनमेरो ट्रांसप्लांट जैसे महँगे इलाज़ भी इस योजना में निःशुल्क किये जा रहे हैं। - सभी अस्पतालों में आईपीडी एवं ओपीडी मरीजों के लिये निःशुल्क उपचार व निःशुल्क एमआरआई, एक्स-रे तथा सीटी स्कैन की सुविधा भी शुरू कर दी गई है। - उल्लेखनीय है कि प्रदेशवासियों को इलाज के खर्च से चिंतामुक्त करने एवं बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करवाने की दृष्टि से राज्य सरकार ने 'मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना' एवं 'मुख्यमंत्री निःशुल्क निरोगी राजस्थान' जैसी महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ शुरू की हैं। - उन्होंने कहा कि सत्य साईं हार्ट हॉस्पिटल के साथ किये गए एमओयू के तहत 314 हृदय रोग से पीड़ित बच्चों और अन्य लोगों की निःशुल्क सर्जरी की गई है। सरकार द्वारा बच्चों को गुजरात आने एवं जाने के लिये 5 हज़ार रुपए की राशि उपलब्ध कराई जा रही है। - यह अस्पताल हार्ट ऑपरेशन जैसे महँगे ऑपरेशन निःशुल्क कर रहा है। इस दौरान मुख्यमंत्री अस्पताल से ठीक होकर आए बच्चों से मिले तथा बीमार बच्चों से मिलकर उन्हें निःशुल्क हार्ट सर्जरी का टोकन दिया। - मुख्यमंत्री ने कहा कि निःशुल्क निरोगी राजस्थान योजना में 5 हज़ार से अधिक दवाईयाँ, सर्जिकल्स एवं सूचर्स सूचीबद्ध करने की कार्यवाही की जा रही है। साथ ही सभी अस्पतालों में बिना किसी खर्च के पूरा इलाज़ कैशलेस करने की व्यवस्था की गई है। - वहीं मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत आने वाले, सामाजिक-आर्थिक जनगणना, 2011 में चिह्नित नागरिक, संविदाकर्मी, लघु और सीमांत किसान तथा कोविड अनुग्रह राशि प्राप्त करने वाले सभी परिवारों का बीमा प्रीमियम प्रदेश सरकार द्वारा भरा जा रहा है तथा अन्य सभी परिवार बीमा प्रीमियम की आधी राशि देकर योजना से जुड़ सकते हैं। चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री आवास से राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक की मोबाइल एटीएम यूनिट वैन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस दौरान उन्होंने मोबाइल एटीएम वेन का अवलोकन कर पहला ट्रांजेक्शन भी किया। - राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक को नाबार्ड के सहयोग से कुल 4 मोबाइल एटीएम वैन उपलब्ध करवाई गई हैं। ये मोबाइल एटीएम वैन बैंक सेवा क्षेत्र के सभी ज़िलों में दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों एवं ढ़ाणियों में आमजन को बैकिंग सेवाएँ प्रदान करेंगी। - इसके साथ ही सीमा पर तैनात सैनिकों को बैकिंग सेवाएँ उपलब्ध करवाने का कार्य भी इन वैनों के द्वारा किया जाएगा। - मोबाइल एटीएम वैनों के माध्यम से वित्तीय साक्षरता एवं डिजिटल बैंकिंग के बारे में जागरुकता के लिये शिविर आयोजित कर आमजन को बैंकिंग के बारे में जागरूक किया जाएगा व सरकारी योजनाओं की जानकारी जन-जन तक पहुँचाई जाएगी। चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को राज्य सरकार द्वारा 'मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना' में बीमित परिवारों को दुर्घटनाओं से होने वाली मृत्यु अथवा पूर्ण स्थायी अपंगता की स्थिति में आर्थिक संबल प्रदान करने के उद्देश्य से 'मुख्यमंत्री चिरंजीवी दुर्घटना बीमा योजना' की शुरुआत की गई है। - मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में सभी बीमित परिवार योजना के पात्र लाभार्थी होंगे और बीमित परिवार के सदस्य अथवा सदस्यों की दुर्घटना में मृत्यु होने अथवा दुर्घटना के कारण हाथ, पैर, आँख की स्थायी पूर्ण क्षति होने पर पाँच लाख रुपए तक का आर्थिक संबल प्रदान किया जाएगा। - मुख्यमंत्री चिरंजीवी दुर्घटना बीमा योजना के अंतर्गत बीमित परिवार के सदस्य की सड़क दुर्घटना में, छत से गिरने के कारण, मकान के ढहने से, डूबने से, रासायनिक द्रव्यों के छिड़काव के कारण, बिजली के झटके तथा जलने से होने वाली मृत्यु/क्षति पर योजना का लाभ देय होगा। - बीमा योजना के तहत बीमित परिवार के सदस्य की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर 5 लाख रुपए, दुर्घटना में दोनों हाथों या दोनों पैरों या दोनों आँखों अथवा एक हाथ एवं एक पैर या एक हाथ व एक आँख या एक पैर एवं एक आँख की पूर्ण क्षति पर 3 लाख रुपए तथा तथा दुर्घटना में हाथ पैर आँख की पूर्ण क्षति पर 1.5 लाख रुपए का लाभ दिया जाएगा। - योजना का संचालन राज्य बीमा एवं प्रावधाई निधि विभाग के माध्यम से किया जाएगा। चर्चा में क्यों? 30 अप्रैल, 2022 को केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी की मौज़ूदगी में राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के बालोतरा इलाके में स्थित 'मियाँ का बाड़ा' रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 'महेश नगर हॉल्ट' कर दिया गया। - इससे पहले 2018 में इस गाँव का नाम बदलकर मियाँ का बाड़ा से महेश नगर किया गया था, लेकिन रेलवे स्टेशन का नाम नहीं बदला जा सका था। यह गाँव पाकिस्तान के सीमावर्ती बाड़मेर ज़िले की समदड़ी तहसील में आता है। - उल्लेखनीय है कि 2018 में राजस्थान के तीन गाँवों के नाम तत्कालीन भाजपा सरकार ने बदले थे। इसमें मियाँ का बाड़ा गाँव का नाम बदलकर महेश नगर, इस्माइल खुर्द का नाम नाम बदलकर पिचनवा खुर्द और नरपाड़ा को नरपुरा किया गया था। चर्चा में क्यों? 30 अप्रैल, 2022 को फ्राँस में प्रदेश की पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रसार और कलात्मक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये मध्य प्रदेश पर्यटन और संस्कृति, फ्रेंच इंस्टीट्यूट एवं अलायंस फ्राँसे के मध्य एमओयू हस्ताक्षरित किया गया। - काउंसिल जनरल ऑफ फ्राँस जीन मार्क सेरे चर्लेट की उपस्थिति में मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के प्रबंध संचालक एस. विश्वनाथन, भारत में फ्राँस दूतावास/भारत में फ्रेंच इंस्टीट्यूट (IFI) के निदेशक इमैनुएल लेब्रन डेमियंस और अलायंस फ्राँसे भोपाल (AFB) की प्रेसीडेंट डॉ. बर्था रथिनम ने एमओयू पर हस्ताक्षर किये। - एमओयू के तहत मध्य प्रदेश और फ्राँस के बीच पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियों को साझा किया जाएगा। साथ ही फ्राँस के पर्यटकों को मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थलों और आयोजन के संबंध में जानकारी देकर आमंत्रित किया जाएगा। - एमओयू में शामिल गतिविधियों में सांस्कृतिक और कलात्मक आदान-प्रदान, संगोष्ठियों, सम्मेलनों का आयोजन, त्योहारों, कार्यक्रमों, वाद-विवाद, प्रदर्शनियाँ, कार्यशालाएँ, प्रशिक्षण, त्योहारों का विकास और संयुक्त कार्यक्रम, संगीत कार्यक्रम और फिल्मों की स्क्रीनिंग आदि है। - फ्राँस के प्रतिनिधि दल को संचालक विश्वनाथन ने प्रदेश के पर्यटन स्थलों, पर्यटन संबंधी गतिविधियों और निगम द्वारा दी जाने वाली पर्यटक सेवाओं तथा सुविधाओं और प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन, जैसे- खजुराहो डांस फेस्टिवल, तानसेन समारोह ग्वालियर सहित अन्य आयोजनों की जानकारी दी। चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भवन एवं अन्य सन्निर्माण मंडल में पंजीकृत भवन कर्मकार कल्याण मंडल एवं अन्य सन्निर्माण श्रमिकों के लिये मुख्यमंत्री श्रमिक सियान सहायता योजना की घोषणा की। - इस योजना में बुज़ुर्ग श्रमिकों को एकमुश्त 10 हज़ार रुपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी। - इस योजना के लिये ऐसे श्रमिक पात्र होंगे, जिनकी न्यूनतम आयु 59 वर्ष तथा अधिकतम आयु 60 वर्ष होगी। इसके साथ ही ये श्रमिक विगत 5 वर्षों से मंडल के अंतर्गत पंजीकृत होने चाहिये। चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 'मितान योजना' का शुभारंभ किया। इसके तहत नागरिक सेवाएँ घर तक पहुँचाई जाएंगी। - इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तहत 14 नगर निगमों में शुरू किया गया है। शीघ्र ही पूरे प्रदेश में इस योजना का विस्तार किया जाएगा। - वर्तमान में 14 नगर निगमों में 13 प्रकार की सेवा उपलब्ध होगी और अन्य सेवाएँ भी इस योजना के माध्यम से प्राप्त की जा सकेंगी। - योजना के तहत लोगों को जन्म प्रमाण-पत्र, विवाह, निवास, आय, मृत्यु प्रमाण-पत्र एवं अन्य सेवाओं की घर पहुँच सुविधा प्राप्त होगी। - मितान योजना की सारी प्रक्रिया डिजिटल होगी। सेवाओं हेतु लोगों को मितान टोल फ्री नंबर 14545 पर कॉल करना होगा। - इस योजना के शुरू होने से सरकारी प्रक्रिया और आसान होगी। सरकारी ऑफिस के चक्कर काटने से मुक्ति मिलेगी। - मुख्यमंत्री ने कहा कि इस योजना के माध्यम से सभी नागरिकों विशेषतः बुज़ुर्गों, दिव्यांगों एवं निरक्षरों को घर बैठे आसानी से कई प्रकार की सेवाएँ मिल सकेंगी। चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई मंत्रिपरिषद् की बैठक में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए। - मंत्रिपरिषद् ने 1 नवंबर, 2004 से नियुक्त शासकीय सेवकों के लिये नवीन अंशदायी पेंशन योजना के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना लागू करने के निर्णय का अनुमोदन किया। नवीन अंशदायी पेंशन योजना हेतु वेतन से की जा रही 10 प्रतिशत की मासिक अंशदान की कटौती 1 अप्रैल, 2022 से सामाप्त कर सामान्य भविष्य निधि नियम के अनुसार मूल वेतन के न्यूनतम 12 प्रतिशत कटौती के प्रस्ताव को सहमति दी गई। - अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को मात्रात्मक त्रुटि के कारण जाति प्रमाण-पत्र प्राप्त करने में हो रही कठिनाइयों को दूर करने के उद्देश्य से अंग्रेज़ी में अधिसूचित जाति को मान्य करने तथा जाति प्रमाण-पत्रों में अंग्रेज़ी में ही अधिसूचित जाति का उल्लेख करने का निर्णय लिया गया। - छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग, छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल एवं विशेष कनिष्ठ कर्मचारी चयन बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षाओं के शुल्क माफ करने के निर्णय का अनुमोदन किया गया। - 'राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मज़दूर न्याय योजना' में हितग्राही परिवार के मुखिया को वार्षिक आधार पर प्रदाय सहायता राशि 6 हज़ार रुपए से बढ़ाकर 7 हज़ार रुपए तथा प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों के देवस्थलों पर पूजा करने वाले बैगा, गुनिया, पुजारी, देवस्थल के हाट पाहार्या एवं बाजा मोहरिया को भी इस योजना के तहत लाभ प्रदान करने का निर्णय लिया गया। - छत्तीसगढ़ राज्य प्रत्याभूति मोचन निधि योजना, 2022 प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया तथा छत्तीसगढ़ शासन भंडार क्रय नियम, 2002 (यथा संशोधित, 2022) में संशोधन के प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। - छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 में संशोधन के प्रस्ताव तथा छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2022 के प्रारूप का अनुमोदन किया गया। - छत्तीसगढ़ टूरिज़्म बोर्ड द्वारा संचालित इकाइयों के लिये रियायती दर पर होटल बार लाइसेंस प्रदान किये जाने के निर्णय के साथ ही स्थानीय लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान करने और पर्यटकों की सुविधा में वृद्धि की दृष्टि से छत्तीसगढ़ टूरिज़्म बोर्ड के अधीन 26 इकाइयों को लीज पर दिये जाने का निर्णय लिया गया। - आदिवासियों की स्वयं की भूमि में वृक्ष कटाई की प्रक्रिया को सरलीकृत करने हेतु छत्तीसगढ़ आदिम जनजातियों का संरक्षण (वृक्षों में हित) संशोधन विधेयक, 2022 के प्रारूप का अनुमोदन किया गया। - छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता (संशोधन) विधेयक, 2022 के प्रारूप का अनुमोदन किया गया। - मिट्टी की उर्वरा शक्ति के पुनर्जीवन हेतु रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के बदले वर्मी कंपोस्ट खाद के उपयोग के साथ गौ-मूत्र एवं अन्य जैविक पदार्थों के उपयोग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस वर्ष अक्षय तृतीया 3 मई, 2022 से प्रदेश में माटी पूजन महाअभियान का शुभारंभ करने का निर्णय लिया गया। - दुर्ग-भिलाई औद्योगिक क्षेत्र में सिटी बस प्रारंभ किये जाने एवं नवीन मार्गों के प्रकाशन के संबंध में परिवहन मंत्री को अधिकृत किया गया। - छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल अंतरण योजना नियम, 2010 में संशोधन के प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। चर्चा में क्यों? 1 मई, 2022 को उत्तराखंड के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि उच्च शिक्षा में नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम तैयार कर लिया गया है। इसे इसी साल नए शिक्षा सत्र से लागू किया जाएगा। - नई शिक्षा नीति के तहत तैयार पाठ्यक्रम को मुख्य सचिव के समक्ष प्रस्तुतीकरण के बाद इसे कैबिनेट की मंज़ूरी के लिये भेजा जाएगा। उत्तराखंड इसे सबसे पहले लागू करने वाला पहला राज्य होगा। - उल्लेखनीय है कि राज्य विश्वविद्यालयों की ओर से नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम तैयार किये जाने के लिये माध्यमिक शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में पूर्व में टास्क फोर्स गठित की गई थी। उच्च शिक्षा मंत्री को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया था। - विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में फैकल्टी की कमी के चलते वार्षिक परीक्षा प्रणाली को लागू किया गया था, लेकिन अब इसे समाप्त कर सेमेस्टर सिस्टम को लागू किया जाएगा। इस संबंध में जल्द निर्णय लिया जाएगा। - प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों में चॉइस इस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम लागू होगा। इस सिस्टम के तहत छात्रों का क्रेडिट बैंक बनेगा, इसी के आधार पर उनका एक से दूसरे महाविद्यालयों में दाखिला हो सकेगा। - नई शिक्षा नीति के तहत जो पाठ्यक्रम तैयार किया गया है, उसमें 70 फीसदी पाठ्यक्रम सभी विश्वविद्यालयों में समान रूप से लागू रहेगा, जबकि 30 फीसदी पाठ्यक्रम को विश्वविद्यालय अपने हिसाब से बदल सकेंगे। पाठ्यक्रम को रोज़गारपरक भी बनाया गया है।
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India Today Conclave East 2021 कार्यक्रम के अंत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बंगाल की हमारी भाजपा की सरकार मोदी सरकार के मॉडल पर चलेगी. देश के हर क्षेत्र में मोदी जी ने आमूलचूल परिवर्तन किए हैं. मोदी सरकार मजबूत फैसले लेने वाली सरकार है. अमित शाह ने ममता सरकारी तीन बड़ी समस्याएं गिनाते हुए कहा, 'ममता जी के शासन में बंगाल में- प्रशासन का राजनीतिकरण हुआ है. राजनीति का अपराधीकरण हुआ है. भ्रष्टाचार को संस्थागत किया गया है. इन तीनों चीजों के रहते बंगाल विकास की प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ सकता है. असम में हमारी सरकार ने बहुत अच्छा काम किया है. मुझे पूरा भरोसा है कि असम की जनता फिर एक बार भाजपा को आशीर्वाद देगी. ' उन्होंने कहा, 'जो पार्टी के मूल सिद्धांत होते हैं, उन्हें हम नफा-नुकसान के तराजू में नहीं तोलते हैं, राष्ट्रहित के तराजू में तोलते हैं. चाहे फायदा हो या नुकसान. जो मूल सिद्धांत होते हैं, उसमें भाजपा अडिग रहती है. ' अमित शाह ने कहा, 'जब भी हम जीतते हैं तो कांग्रेस और विपक्ष हमेशा कहता है कि ईवीएम में घपला हुआ. मगर जब वो जीतते हैं तो शपथ ले लेते हैं. हार जाते हैं तो कहते हैं कि गड़बड़ है. ' अमित शाह ने कहा, 'चुनाव एक संवैधानिक प्रक्रिया है मत व्यक्त करने की. मैं बंगाल की जनता को आश्वस्त करता हूं कि इस बार आपको बूथ पर कोई भी गुंडा नहीं मिलेगा, डर मत रखिए. चुनाव आयोग पुख्ता इंतजाम करने वाला है. ' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, मुझे लगता है बंगाल में कहीं पर भी किसी भी किसान ने न कोई धरना किया है और न कोई प्रदर्शन किया है. यहां किसानों के जो धरने प्रदर्शन हो रहे हैं वो 6,000 रुपये प्राप्त करने के लिए हो रहे हैं, जो ममता दीदी उन्हें भेजती नहीं है. अमित शाह ने कहा, 'हमारा सही समय हम नहीं जनता तय करती है. ये लोकतंत्र है, किसी के कहने से कोई वोट दे देगा ऐसा नहीं होता है. जनता बड़ी मैच्योर होती है, सही समय किस पार्टी का है ये जनता को तय करना है. ' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पश्चिम बंगाल का अगला मुख्यमंत्री बंगाल का ही धरती पुत्र होगा और बीजेपी से ही होगा, लेकिन कैलाश विजयवर्गीय नहीं बनेंगे. अमित शाह ने कहा, 'मैं बंगाल में ममता सरकार को उखाड़ने ही आया हूं. यहां भाजपा की सरकार तभी आ सकती है, जब टीएमसी सरकार को उखाड़कर फेंक दिया जाए. ममता जी की सरकार ठीक से नहीं चल रही है, जनता इस सरकार को उखाड़कर फेंक देगी. हमारी ममता दीदी से कोई कड़वाहट नहीं है. मगर उनके राज में भ्रष्टाचार हो रहा है उससे उन्हें चिढ़ होती है तो कोई क्या कर सकता है. ' दागी नेताओं के बीजेपी में शामिल होने पर शाह ने कहा कि बीजेपी में आए नेताओं पर चल रहे मामले खत्म नहीं हुए. उन्होंने हिंसा पर बात करते हुए कहा कि बीजेपी की सरकार आएगी तो पाताल से भी टीएमसी के गुंडों को खोज निकालेंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 'बंगाल में टीएमसी के गुंडे बचेंगे नहीं, भाजपा की सरकार आएगी तो गुंडों को पाताल से भी ढूंढ लेंगे. हमारे कार्यकर्ताओं की जिसने भी हत्या की होगी, कानून के दायरे में उसे जेल के अंदर डालेंगे. हमारी पार्टी की 3 स्तर पर स्क्रीनिंग कमेटी है, मंडल, जिला और प्रदेश स्तर पर. ये तीनों कमेटी जिसका नाम एप्रूव करती है, उसको राष्ट्रीय अध्यक्ष जी एप्रूव करते हैं. ' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 'मैं बंगाल के किसानों से कहना चाहता हूं कि हमारी सरकार बनने के बाद हम यहां के किसानों को उनका बकाया 12,000 रुपये भी देंगे और 6,000 रुपये की नई किस्त भी देंगे. हम बंगाल में हमारी तैयारी कर रहे हैं, बंगाल की जनता को अपने साथ जोड़ रहे हैं. इसके लिए हम मेहनत कर रहे हैं. CAA देश की संसद का बनाया हुआ कानून है, इसका इम्प्लीमेंटेशन होना है और शरणार्थियों को नागरिकता मिलनी है. ' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पीएम किसान निधि की राशि सरकार सीधे किसानों के खाते में डालती है. इसके लिए किसानों की सूची, उनकी बैंक डिटेल चाहिए होती, ममता जी को पूछिए की कितनी डिटेल उन्होंने भेजी हैं? सिर्फ एक चिठ्ठी उन्होंने भेजी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 'जय श्रीराम धार्मिक नारा ही नहीं है, ये तुष्टिकरण के खिलाफ एक प्रतीक है. दुर्गा पूजा के लिए क्या कोर्ट के दरवाजे खटखटाने होंगे? बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा नहीं कर पाएंगे क्या? रामनवमी के दिन शोभा यात्रा नहीं निकाल सकते? ये नारा परिवर्तन का नारा है. मुझे नहीं पता कि दीदी जय श्रीराम के नाम से क्यों चिढ़ती हैं. जय श्रीराम को धार्मिक नारे के रूप में इंटरप्रेट करने का प्रयास जो तृणमूल कांग्रेस कर रही है, वो गलत है. ' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, लेफ्ट-कांग्रेस और अन्य पार्टियों के गठबंधन से हमें कुछ लेना देना नहीं है. हमें पूरा विश्वास है कि हम पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना रहे हैं. लोकसभा में हमारे वोट बढ़े हैं. पिछली बार के चुनाव में जनता उलझन में थी कि बीजेपी जीत सकती है या नहीं जीत सकती. लेकिन इस बार उन्हें पक्का विश्वास है कि बीजेपी जीत रही है. अब लोग सोचते हैं कि बीजेपी को 200 से ज्यादा सीटें मिलेंगी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, परिवर्तन यात्रा नाम रखने के पीछे भाजपा का उद्देश्य केवल मुख्यमंत्री, सत्ता या किसी मंत्री को बदलना नहीं है. हमारा एजेंडा बंगाल के जनमानस के अंदर अभी जो चल रहा है, उसको रोकने और परिवर्तित करने की इच्छा जगाना है. स्थिति में परिवर्तन तब होता है, जब जन जन के अंदर इच्छा और आकांक्षा हम जगाएं कि लोकतांत्रिक तरीके से जो गलत चल रहा है, उसको रोके और कुछ अच्छा करें. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, हम बंगाल में 200 से ज्यादा सीटों के साथ सरकार बनाएंगे. हम बंगाल की स्थिति को बदलने लिए आए हैं. उन्होंने कहा कि मुझे मालूम नहीं कि दीदी जय श्री राम के नारे से क्यों चिढ़ती हैं. उन्होंने कहा, जय श्री राम तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ बंगाल के लोगों का नारा है. ये राजनीति से अलग नहीं है, ये संस्कृति और भावनाओं का सवाल है. India Today Conclave East 2021 के आज के आखिरी सत्र 'पावर पॉलिटिक्सः बंगाल के लिए लड़ाईः क्या बीजेपी कर सकती है परिवर्तन? ' में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शिरकत की. ममता बनर्जी ने कहा कि विधानसभा चुनाव को लेकर मेरा आत्मविश्वास 110 फीसदी है. साथ ही उन्होंने कहा कि चुनाव के नतीजे नहीं बता सकती लेकिन इस बार पिछले दोनों चुनावों से ज्यादा सीटें आएंगी और संख्या 221 से कम नहीं होगी. चुनाव आयोग से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन वीवीपैट में हैकिंग नहीं होना चाहिए. चुनाव आयोग को सभी का सम्मान करना चाहिए, सिर्फ सेंट्रल गवर्नमेंट से. कितने सीट से चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि नंदीग्राम से पक्का चुनाव लड़ेंगी. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर अमित शाह अगर यहां से चुनाव लड़के जीत जाएं तो उन्हें बंगाल का होम मिनिस्टर बना दूंगी. ममता बनर्जी ने कहा कि ट्रेड मिल पर दौड़ते वक्त ही बजट बनाया. जब दौड़ते हैं तो दिमाग भी काम करता है. उन्होंने कहा कि ट्रेड मिल पर चलते वक्त अखबार पढ़ती हूं, पेपर देख लेती हूं और कुछ सोचना होता है तो वो भी सोच लेती हूं. ममता बनर्जी ने कहा कि वैक्सीनेशन पर कहा कि हमारे यहां 10 करोड़ लोग हैं और हमें 3 लाख ही डोज मिले हैं. केंद्र सरकार कहती है कि वो जिस कंपनी का कहेंगे उन्हीं का दवा लेना होगा. लेकिन बाजार में कम्पीटिशन क्यों नहीं होना चाहिए. ममता बनर्जी ने कहा कि हम किसी भी भारतीय को बाहरी नहीं कहते. लेकिन जो बाहर से गुंडागर्दी करने के लिए आते हैं हम उन्हें बाहरी कहते हैं. हमारे यहां सभी राज्यों के लोग हैं और कभी किसी को परेशानी नहीं हुई. हम बाहर से आकर किसी को लूटने नहीं देंगे. दिल्ली से बंगाल को क्यों कंट्रोल करेगा कोई, यहां बंगाल का आदमी ही बंगाल को कंट्रोल करेगा. ममता बनर्जी ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी के घर वालों के बारे में मैं भी बता सकती हूं. अमित शाह ने अपने बेटे को क्रिकेट बोर्ड में शामिल किया, लेकिन मैंने कभी कुछ नहीं कहा. वो मेरा भतीजा है लेकिन मैं ऐसी राजनीति नहीं करती. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी के काफी सदस्यों ने हमारे साथ हाथ मिलाया है. जो लोग बीजेपी में गए हैं, वो हमारे लिए ज्यादा अच्छा है. अच्छा है कि हम ज्यादा साफ हो गए हैं. बीजेपी तो वाशिंग मशीन में साफ हुई है और हम ऐसे साफ हुए हैं. बंगाल में हैट्रिक लगने पर क्यां करेंगी ममता बनर्जी, इस पर उन्होंने कहा कि हम पहले ही बहुत कुछ कर चुके हैं. कोविड में केंद्र ने पैसा नहीं दिया. अम्फान तूफान में भी केंद्र ने पैसा नहीं दिया. इसके बाद भी हमने लोगों को मदद की. उन्होंने कहा कि एमएसएमई में बंगाल नंबर एक पर है और ये आंकड़े केंद्र सरकार के हैं. स्कील इंडस्ट्री, ई गवर्नेंस में नंबर वन हैं. गवर्नर जगदीप धनखड़ द्वारा बंगाल की सरकार पर लगाए गए आरोपों पर ममता बनर्जी ने कहा कि आज गवर्नर का रोल पूरी तरह बदल गया है. उन्हें तो बीजेपी जो कहती है वो करते हैं, हम क्या करें, क्षमा कर देना चाहिए. किसान आंदोलन पर ममता बनर्जी ने कहा कि सरकार को तीनों कानून वापस लेना चाहिए. हम किसानों के साथ हैं. बंगाल में किसान शांत हैं क्योंकि उन्हें पता है कि टीएमसी सरकार उनका भला करेगी. उनके साथ खड़ी है. ममता ने कहा, हम संघ से नहीं लड़ रहे, हम बीजेपी से लड़ रहे हैं. ये कहते हैं कि जो हम कहते हैं वहीं सही है. जो नहीं मानेगा वो भुगतेगा. आज देश के सभी व्यापारी और कारोबारी भय में जी रहे हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े कार्यक्रम में हुई नारेबाजी पर ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी ने नारेबाजी करवाकर सुभाष चंद्र बोस के कद को छोटा कर दिया. उन्होंने कहा कि बीजेपी वालों को किसी बात की जानकारी नहीं होती फिर भी उन्हें कुछ भी बोलना होता है. ममता बनर्जी ने कहा, जिसके पास हिम्मत है वो लड़ता जाता है. उन्होंने कहा कि 99 फीसदी लोगों को हमने किसी न किसी स्कीम में जरूर कवर किया है. हमारी पार्टी लोगों के लिए काम करती है. हम कभी टैक्स नहीं बढ़ाते, मजदूरों की इंडस्ट्री नहीं बंद करते, डीजल-पेट्रोल का रेट भी नहीं बढ़ाते. धर्म और जाति के नाम पर चुनाव के सवाल पर ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाल में कभी जाति के नाम पर कभी चुनाव नहीं हुए. लेकिन बीजेपी ने इसकी शुरुआत की है. पहले धर्म के नाम पर किया और अब जाति के नाम पर बांट रहे हैं. उन्होंने यहां भी बंगालियों को ही आपस में बांटने का काम कर रहे हैं. वो कहते हैं कि वो बांग्लादेश का बंगाली है और ये बंगाल का बंगाली है. साथ ही वो हमेशा सीबीआई और ईडी का डर दिखाते रहते हैं. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शिरकत की. नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) पर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कहा, 'असम में एक पुस्तक है, 'द गेम कॉल्ड एनआरसी'. कोई भी राजनीतिक दल एनआरसी नहीं चाहते. यह एक खेल है. प्रवासियों को कहा जाता है कि आपकी रक्षा करेंगे, हमें वोट दें. अन्य कहते हैं, वे आपके लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, हमें वोट दें. इस तरह ये खेल चलता रहता है. ' किसानों के आंदोलन पर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कहा, 'यदि इन सभी कानूनों को चुनौती दी जा रही है तो इस पर कुछ राजनीतिक अधिकारियों को काम करना होगा. मुझे उम्मीद है कि अदालत को कुछ रास्ता निकाल सकता है. इस पर कानूनी या राजनीतिक रूप से समाधान निकालना होगा. हालांकि यह हो नहीं रहा है. SC ने कहा है कि यह लॉ एंड ऑर्डर का मामला है. ' राजद्रोह के मामलों के सवाल पर जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, 'हम भयानक समय में जी रहे हैं. ' यह पूछे जाने पर कि धमकी कहां से आ रही है, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कहा, 'हर जगह से. ' इस सवाल पर कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति के बाद, उन्हें सरकार समर्थक न्यायाधीश के रूप में देखा गया और विपक्ष के हमलों पर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कहा, 'यह हमला क्या है? एक जज या पूर्व जज हमलों से हीं घबराता. यदि किसी न्यायाधीश ने एक सचेत निर्णय लिया है, तो सेवानिवृत्ति के बाद हमला किया जाएगा. वो चाहते हैं कि उनके अनुसार आचरण करें नहीं तो हमला करेंगे. ' उन्होंने कहा कि कुछ जज हमलों के शिकार रहे हैं. महुआ मोइत्रा के कमेंट पर पूर्व CJI रंजन गोगोई ने कहा कि उनके पास सही फैक्ट तक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि मुझ पर आरोप लगाने वाले मेरा नाम लेने से क्यों डरते रहे. भारत के लोग बिना तथ्यों के आरोप लगाते हैं, ये समस्या है. कानून पर भरोसा क्यों नहीं, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि वहां फैसला नहीं बस तारीख पर तारीख है. पूर्व CJI, जस्टिस रंजन गोगोई ने भारतीय न्यायपालिका के लिए रोडमैप पर बात करते हुए कहा, न्यायपालिका कितनी महत्वपूर्ण है, इस पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'मेरे मन में जो है वह ये कि इस काम के लिए सही आदमी हो. जैसे आप सरकार में अधिकारियों को नियुक्त करते हैं, आप न्यायाधीश नियुक्त नहीं कर सकते. न्यायाधीश के लिए एक पूर्णकालिक प्रतिबद्धता होती है. यह एक जुनूनी काम है. यह 24 बाई 7 की नौकरी है. कितने लोग इस बात को समझते हैं कि एक न्यायाधीश किस प्रकार काम करता है' इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 के 'तीसरा स्तंभः भारतीय न्यायपालिका का रोडमैप' सत्र में पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने शिरकत की. उन्होंने कहा कि आप जजों को अफसरों की तरह नियुक्त नहीं कर सकते. भाजपा के लोकसभा सांसद तापिर गाओ ने सत्र के दौरान कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि पार्टी ने हमेशा सच्चाई को छुपाया है जबकि भाजपा ने नहीं. उन्होंने कहा, 'भाजपा की सच्चाई ये है कि मोदीजी ने कभी कोई बात नहीं छिपाई. चाहे वह पैंगोंग झील का मामला हो या फिर गालवान का. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद, सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अभ्यास करने का अधिकार मिला है. ' पूर्व सांसद निनॉन्ग एरिंग ने कहा, 1914 में एक मैप बना जिसे चीन ने भी माना. तब तिब्बत अगल देश हुआ करता था, उस पर चीन का नियंत्रण नहीं था. लेकिन अभी चीजें पूरी तरह बदल गई हैं. हम उनके साथ हाथ मिलाकर कहते हैं कि हिन्दी-चिनी भाई-भाई और वो हमारे जवानों को नुकसान पहुंचाते हैं. 20-20 जवान शहीद हो जाते हैं. पूर्व भारतीय राजनयिक राजीव डोगरा ने कहा कि चीन इस क्षेत्र में कभी हार न मानने के लिए जाना जाता है. जनरल बिक्रम सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा, "एलएसी, यह एक वास्तविक रेखा नहीं है. इसे लेकर दोनों तरफ अलग-अलग धारणाएं हैं. हमें यह समझना होगा कि चीन ने हमें जो चुनौती दी, वह फिंगर 4 की ओर आने के संदर्भ में थी. यह सैन्य नेतृत्व के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है. " चीन के साथ पहले भी सामरिक समझौते हुए हैं लेकिन इसके बावजूद चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता. इस पर जनरल बिक्रम सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा, इस मामले में चीन का बेहद खराब रिकॉर्ड रहा है. इसलिए हमें हमेशा चौंकन्ना रहना चाहिए. चीनी नेतृत्व हमेशा दबाव में होता है. सेनाओं पीछे हटने पर उन्होंने कहा कि हम बेहतर भविष्य की कामना के साथ आगे बढ़ना चाहिए. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 के 'फ्लैशपॉइंटः ब्रेक्ड बॉर्डर्सः भारत की चीन नीति-युद्ध या समझौता? ' सत्र में पूर्व कांग्रेस सांसद निनॉन्ग एरिंग, जनरल बिक्रम सिंह (सेवानिवृत्त), बीजेपी के लोकसभा सदस्य तापिर गाओ और इटली और रोमानिया में पूर्व भारतीय राजदूत रहे राजीव डोगरा ने शिरकत की. अजीत मोहन ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह स्पष्ट होना महत्वपूर्ण है कि कोई भी व्हाट्सएप संदेशों को नहीं पढ़ सकता है. हमारे पास आपके मैसेज का एक्सेस तक नहीं है क्योंकि वे एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड हैं और इसलिए यह कभी भी पढ़े नहीं जा सकते. दूसरा, जनवरी के कुछ हफ्तों में लोगों ने इस बात का संकेत दिया कि वो वास्तव में अपने संचार की गोपनीयता के बारे में परवाह करते हैं. अगर यह धारणा है कि मैसेज प्राइवेट नहीं हैं, तो अन्य एप्लिकेशन होंगे जो उन विकल्पों को प्रदान करेंगे. हम जानते हैं कि बहुत प्रतिस्पर्धा है. हमें हर दिन भरोसा रखना होगा और जब भी अन्य सेवाएं बेहतर प्रस्ताव के साथ आती हैं, तो प्रतिस्पर्धा होता है. ' अजीत मोहन ने कहा, हम पूरी तरह से यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी निभाते हैं कि इन प्लेटफॉर्म्स (सोशल मीडिया) की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है. हमारी जिम्मेदारी भी है कि हम यह सुनिश्चित करें कि इन प्लेटफॉर्म्स के मिसयूज को कम करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. सरकार और ट्विटर के बीच टकराव और भारत में सोशल मीडिया पर इसके निहितार्थ के बारे में उनकी राय के बारे में पूछे जाने पर, अजीत मोहन ने कहा, 'मैं कुछ बातें कहना चाहता हूं. इसमें कोई दोराय नहीं है कि हम एक कंपनी के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. हम एक खुले इंटरनेट नेटवर्क में भारत में स्वतंत्रता के साथ काम करने की क्षमता से लाभान्वित होते हैं. ' फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट और मैनेजिंग डायरेक्टर अजीत मोहन ने कहा, फेसबुक के गलत तरीके से इस्तेमाल पर उन्होंने कहा, हम अरबों लोगो का उनकी फैमिली और दोस्तों के साथ कनेक्शन बनाए रखना चाहते हैं लेकिन ये कभी चाहते कि इस प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल किया जाए. व्हाट्सएप विवाद पर उन्होंने कहा कि हम किसी के भी मैसेज नहीं पढ़ सकते. यहां तक कि हमारे पास आपके मैसेज का एक्सेस तक नहीं. यूजर्स की प्राइवेसी हमारे लिए सर्वोपरी है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 के 'पब्लिक पॉलिसीः डिजिटल गोपनीयता का मिथक' सत्र में फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट और मैनेजिंग डायरेक्टर अजीत मोहन शामिल हुए. अगर वो बंगाल के वित्त मंत्री होते तो क्या करते, इस पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने कहा, किसी भी स्टेट में विकास के लिए मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर सबसे बड़ी भूमिका निभाता है. और राज्य में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर मजबूत हो इसके लिए जरूरी है कि राज्य में कानून व्यवस्था, लेबर कानून, जमीन, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोड, इलेक्ट्रिसिटी समेत कई सुविधाओं का होना जरूरी है. उन्होंने आगे कहा कि आपको जानकार हैरानी होगी कि पश्चिम बंगाल में मैन्यूफैक्चरिंग में लगे लोगों की संख्या गुजरात में मैन्यूफैक्चरिंग में लगे लोगों की संख्या के तीन गुणा है. इसके बाद भी गुजरात आगे क्योंकि वहां के मैन्यूफैक्चरिंग की प्रकृति बहुत अलग है. हर जिले में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के विकास की तुलना करनी होगी और जहां कुछ भी नहीं है वहां काम करना होगा. टेक्नोलॉजी पर काम करना होगा. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 के इस सत्र में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय शामिल हुए. बंगाल पर कर्ज की मात्रा के बारे में बात करते हुए अमित मित्रा ने कहा, 'FRBM उस सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात है जिसे आप उधार ले सकते हैं. कोरोनोवायरस महामारी से पहले यह 3 प्रतिशत था. हमने इसे हर साल 3 प्रतिशत से नीचे रखा. साथ ही उन्होंने कहा कि कर्ज के बारे में बात नहीं कर सकते क्योंकि नागालैंड का कर्ज और महाराष्ट्र का कर्ज तुलनीय नहीं है. ' उन्होंने कहा, 'कोरोनोवायरस के बीच में, हमारा राजकोषीय घाटा 2. 9 प्रतिशत पर था. जबकी केंद्र का 9 प्रतिशत रहा. ' 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम को बंगाल में लागू नहीं करने की बात पर पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस योजना के लिए करीब 5,500 करोड़ रुपये की राशि जारी किया जिसमें से 80 फीसदी पैसा विज्ञापन पर लगा दिया. वहीं पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने कन्याश्री योजना के तहत 9000 करोड़ रुपये खर्च किए. साथ ही कन्या श्री प्रकल्प योजना ( Kanyashree Prakalp Scheme 2020 ) के तहत सरकार की तरफ से स्कूली छात्राओं को 25 हजार रुपये तक स्कॉलरशिप दी गई. छात्राओं को साईकिल बांटी गई. इससे स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या में बड़ी उछाल देखी गई. उन्होंने बताया कि आज हम केंद्र सरकार से एक भी सिक्का लिए बिना बंगाल के सभी निवासियों को 100 प्रतिशत स्वास्थ्य बीमा प्रदान कर रहे हैं. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 के सत्र 'आर्थिक एजेंडाः विकास बनाम लोकलुभावन- बंगाल मॉडल' में पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने शिरकत किया. पश्चिम बंगाल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अग्निमित्रा पॉल ने कहा, 'बंगाल में सोशल मीडिया पोस्ट के लिए लोगों की गिरफ्तारी की गई. ' इसका जवाब देते हुए नुसरत जहां ने कहा कि वह हर दिन अपने सोशल मीडिया पोस्ट और अपनी पसंद के लिए घेरी जाती हैं. भाजपा के अग्निमित्रा पॉल ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया है और इस बात पर नुसरत जहां भी मुझसे सहमत होंगी. जवाब में नुसरत जहां ने कहा कि मैं इससे सहमत नहीं हूं. अल्पसंख्यकों को यह डर है कि अगर बीजेपी की सरकार आएगी, तो हमारी उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी. नुसरत जहां ने कहा कि पश्चिम बंगाल पूर्ण रूप से मां दुर्गा और महिला सशक्तीकरण की बात होती है. इस पर बीजेपी की अग्निमित्रा पॉल ने राज्य में महिलाओं की तस्करी को लकर टीएमसी सांसद पर हमला किया. साथ ही उन्होंने कहा कि सीएम ममता बनर्जी द्वारा बांटी गई साइकिल को बंगाल में क्यों नहीं बनाया गया. इस पर, नुसरत जहां ने कहा कि भाजपा के नेता उन्हीं साइकिलों पर प्रचार क्यों कर रहे हैं? पश्चिम बंगाल भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष अग्निमित्रा पॉल ने कहा कि 'जय श्री राम' कोई राजनीतिक नारा नहीं है. यह 'जय सिया राम' और 'राम राम' की तरह ही है, यह समृद्धि को दर्शाता है. किस बात से फैशन डिज़ाइनर अग्निमित्रा पॉल ने राजनीति का रास्ता अपनाया? राजनीति में युवाओं के प्रवेश पर बोलते हुए, तृणमूल कांग्रेस के नुसरत जहां ने कहा, 'हमेशा युवाओं ने अपने बलिदानों के बल पर क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व किया है. मेरे लिए राजनीति 'गेम-चेंजर' होना है. मेरे लिए राजनीति विभिन्न क्षेत्रों में जागरूकता लाने के लिए है. ' शिक्षा की मदद से जिस तरह मैं एक बदलाव ला सकती हूं. राजनीति समाज और लोगों के मुद्दों के बारे में समझ पैदा करने के लिए मदद करती है. मैं अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटना चाहती हूं. ' इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 के सत्र 'पॉलिटिक्स रिडीफाइंडः द मार्च ऑफ न्यू-एज पॉलिटिशियन्स' में टीएमसी सांसद नुसरत जहां और पश्चिम बंगाल भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष अग्निमित्रा पॉल ने शिरकत किया. इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नेता पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने कहा कोई किसी दूसरे के लिए वोटकटवा साबित होगा, यह बात करना ही गलत है. सभी का अधिकार है चुनाव लड़ने का. हम ऐसी सरकार चाह रहे हैं कि लोगों को सुविधाएं मिलें. हम नहीं चाहते कि इमाम को सरकार भत्ता दे. टीएमसी के प्रवक्ता और मिजोरम के पूर्व महाधिवक्ता बिस्वजीत देब ने सांप्रदायिक राजनीति की बात पर पलटवार करते हुए कहा कि तृणमूल हमेशा विकास में विश्वास करती है. उन्होंने कहा, 'हम इस बात से चिंतित नहीं हैं कि विभाजनकारी राजनीति में कौन शामिल है. हम केवल राज्य के विकास को लेकर चिंतित हैं. ' उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी तुष्टिकरण या विभाजनकारी राजनीति में विश्वास नहीं करती है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2021 में बोलते हुए, CPIM के मोहम्मद सलीम ने कहा कि पश्चिम बंगाल चुनाव विभाजनकारी राजनीति का वाटरलू होने जा रहा है. उन्होंने कहा, 'बंगाल में विभाजनकारी राजनीति विफल रही है, इस कारण भाजपा इस खेल से बाहर हो गई है. लेकिन ममता बनर्जी और तथागत रॉय एक ही स्कूल में पढ़े हैं. युवा बेरोजगार हैं लेकिन वो मंदिरों के बारे में बात कर रहे हैं. ' टीएमसी के प्रवक्ता और मिजोरम के पूर्व महाधिवक्ता बिस्वजीत देब ने कहा अल्पसंख्यक सिर्फ मुस्लिम समाज में ही नहीं बल्कि हर वर्ग में हैं. टीएमसी के लिए सभी धर्म एक समान हैं. साथ ही उन्होंने इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नेता पीरजादा अब्बास सिद्दीकी पर निशाना साधते हुए कहा कि इन्होंने चुनाव से ठीक पहले ही पार्टी की शुरुआत क्यों की. साथ ही उन्होंने मुस्लिम समाज के लिए ममता सरकार के कामों का बखान किया. हालांकि, उनके सवाल के जवाब में पीरजादा ने कहा कि अगर सरकार ने हमें मरदसे, स्कूल और अस्पताल दिए होते तो ये नहीं होता. त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने कहा, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम सबसे पिछड़े हुए हैं. पार्टियां उन्हें पिछड़ा रखती हैं ताकि उन्हें पूरे समुदाय को संबोधित न करना पड़े. मुस्लिम समुदाय में, महिलाएं विशेष रूप से सबसे पिछड़ी हैं. इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नेता पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने कहा कि अल्पसंख्यक हर जगह हैं. उन्होंने कहा कि जहां जहां मुस्लिम लोगों की संख्या ज्यादा है वहां स्कूल, कॉलेज और अस्पताल ज्यादा नहीं हैं. वहां उन्हें सिर्फ वोट बैंक के रूप में देखा जाता है. कलकता यूनिवर्सिटी में भी सिर्फ 20 फीसदी मुस्लिम टीचर्स हैं. ऐसे ही उन्होंने बंगाल की यूनिवर्सिटीज के बारे में बात करते हुए कहा कि हर एक जगह मुस्लिम टीचर्स की संख्या कम है. शिक्षा से मुस्लिम समाज को काफी दूर रखा गया है. उन्होंने चुनाव का रुख क्यों किया इस बात पर उन्होंने कहा कि हम अपने समाज को शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में मदद करने के लिए राजनीति में आए हैं. India Today Conclave East 2021 के इस सेशन (MINORITY MATTERS: Vote for faith: Empowerment or divisive discourse? ) में टीएमसी के प्रवक्ता और मिजोरम के पूर्व महाधिवक्ता बिस्वजीत देब, इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नेता पीरजादा अब्बास सिद्दीकी, पूर्व संसद सदस्य अभिजीत मुखर्जी, त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय शामिल हुए. थोड़ी देर में CPI (M) नेता मोहम्मद सलीम भी इस सेशन में जुड़ेंगे. गवर्नर ने बताया कि ममता बनर्जी से मुलाकात के दौरान कैसी बातचीत होती है. राज्यपाल जगदीप ने पश्चिम बंगाल के बारे में बात करते हुए कहा कि हम एक ज्वालामुखी पर बैठे हैं, एक भी पखवाड़ा ऐसा नहीं गुजरता जब लोग अवैध बम बनाने के काम के कारण मारे नहीं जाते हों. उन्होंने कहा, 'लोग मुझे एजेंट कहते हैं, हां मैं संविधान का एजेंट हूं और उसकी स्क्रिप्ट पढ़ता हूं. मैंने कभी संविधान की लक्ष्मण रेखा पार नहीं की. ' पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा, 'मुझे राज्य या केंद्र सरकार द्वारा कोई विशेष काम करने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता है. ' उन्होंने कहा, 'मेरी शपथ क्या कहती है? उसमें मैंने कहा था कि मैं भारतीय संविधान की रक्षा और बचाव करूंगा. साथ ही उसमें यह भी कहा था कि, मैं पश्चिम बंगाल के लोगों की सेवा करूंगा. आप एक राज्यपाल से क्या उम्मीद करते हैं? ' उनकी भूमिका के सवाल, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा, 'राज्यपाल एक आसान पंचिंग बैग होता है. यदि राज्य में केंद्र से अलग पार्टी की सरकार हो तो आरोप लगाना बेहद आसान होता है. मैं इसके बारे में बहुत स्पष्ट हूं, मैं केवल भारतीय संविधान से मार्गदर्शन लेता हूं. ' उन्होंने कहा कि जिस दिन मीडिया डर जाएगा उस दिन के लिए डर लगता है. उन्होंने कहा कि मुझे कोई भी रिपोर्ट नहीं मिल पाती. सभी रिपोर्ट्स को ममता सरकार द्वारा रोक दिया जाता है. मैंने कई बार राज्य से जुड़े मामलों को लेकर अफसरों से रिपोर्ट मांगी लेकिन नहीं मिली. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट कार्यक्रम में जगदीप धनखड़ ने कहा कि उन्होंने कहा कि बंगाल में इतना डर है कि लोग डर के कारण अपने डर की चर्चा नहीं करते. उन्होंने कहा कि अगर ये डर रहेगा तो संविधान का क्या मतलब है, कानून का क्या मतलब है. इस डर के बीच स्वच्छ तरीके से चुनाव कैसे हो सकते हैं. उन्होंने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आरोप लगाते हुए कहा कि यहां सरकारी अफसर राजनीति के काम में लगे हुए हैं. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट कार्यक्रम की शुरुआत बॉलीवुड के दिग्गज सिंगर पापोन के सुरीले म्यूजिक के साथ हुई. इस दौरान उन्होंने फोक म्यूजिक की यात्रा और उसकी खूबसूरती के बारे में चर्चा की. इस दौरान उन्होंने कई भाषाओं में गाने भी गाए. India Today Conclave East 2021 Live देखने के लिए यहां क्लिक करें. कला, संस्कृति और आर्थिक तरक्की पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय, फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसिंडेंट अजीत मोहन, हेमंत कनोरिया, चेयरमैन (श्री इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड), हर्षवर्धन नियोतिया, प्रेसिडेंट (अंबुज नियोतिया ग्रुप), बंधन बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर चंद्रशेखर घोष, लक्ष्मी टी के मैनेजिंग डायरेक्टर रुद्र चटर्जी, मशहूर गायिका उषा उत्थुप, फिल्म निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी, एक्टर सब्यसाची चक्रवर्ती, प्रोसेनजीत चटर्जी और तोता रॉय चौधरी शिरकत करेंगे. पूर्व आर्मी चीफ जनरल बिक्रम सिंह (सेवानिवृत्त), बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा ले चुके ले. कर्नल सज्जाद जहीर, 1971 की जंग में हिस्सा ले चुके कर्नल अशोक कुमार तारा, भारतीय सेना के पूर्व चीफ जनरल शंकर रॉय चौधुरी भी कॉन्क्लेव का हिस्सा होंगे. बंगाल और असम विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, टीएमसी के राज्यसभा सांसद डॉ. शांतनु सेन, टीएमसी सांसद नुसरत जहां, पश्चिम बंगाल भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष अग्निमित्रा पॉल, बीजेपी सांसद स्वपन दासगुप्ता, असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता और लोकसभा सांसद प्रद्युत बोरदोलोई, CPI (M) के महासचिव सीताराम येचुरी, CPI (M) नेता मोहम्मद सलीम, कांग्रेस विधायक निनॉन्ग एरिंग, भाजपा सांसद तापिर गाओ, सीपीआई (एम) नेता डॉ. फवाद हलीम, पूर्व संसद सदस्य अभिजीत मुखर्जी, त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय, लोकसभा सांसद डॉ. काकोली घोष दस्तीदार, टीएमसी के प्रवक्ता और मिजोरम के पूर्व महाधिवक्ता बिस्वजीत देब, इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नेता पीरजादा अब्बास सिद्दीकी, कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा, इतिहासकार और पूर्व सांसद डॉ. सुगाता बोस अपनी बात रखेंगे. कार्यक्रम की शुरुआत बॉलीवुड के दिग्गज सिंगर पापोन के सुरीले म्यूजिक के साथ होगी. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के महामंच पर ऐन चुनाव से पहले होगी बंगाल की कला संस्कृति और विरासत से लेकर आर्थिक तरक्की तक पर गहरी चर्चा. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट का ये सिलसिला 2017 में शुरू हुआ था और इस बार इसका चौथा आयोजन 11 और 12 फरवरी को हो रहा है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव (India Today Conclave East 2021) के चौथे संस्करण का आयोजन बंगाल में होने जा रहा है. पश्चिम बंगाल के आईटीसी रॉयल बंगाल में सजने वाले इस मंच पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत कई बड़ी हस्तियां नजर आएंगी. विचार-मंथन के दृष्टिकोण से देश के सबसे बड़े मंच पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, राज्यपाल जगदीप धनखड़, राज्यसभा सांसद और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा, असम के कैबिनेट मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, टीएमसी सांसद सांसद डेरेक ओ ब्रायन सहित कई शीर्ष राजनेताओं के साथ ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होगी. बंगाल और असम में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ये चर्चा बेहद अहम मानी जा रही है.
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विकीहाउ एक "विकी" है जिसका मतलब होता है कि यहाँ एक आर्टिकल कई सहायक लेखकों द्वारा लिखा गया है। इस आर्टिकल को पूरा करने में और इसकी गुणवत्ता को सुधारने में समय समय पर, 131 लोगों ने और कुछ गुमनाम लोगों ने कार्य किया। विकीहाउ एक "विकी" है जिसका मतलब होता है कि यहाँ एक आर्टिकल कई सहायक लेखकों द्वारा लिखा गया है। इस आर्टिकल को पूरा करने में और इसकी गुणवत्ता को सुधारने में समय समय पर, 131 लोगों ने और कुछ गुमनाम लोगों ने कार्य किया। यह आर्टिकल १४,९६३ बार देखा गया है। क्या आप अपने शिक्षक को खुश करना चाहते हैं? आप में से हर कोई अपने स्कूल के दिनों में ऐसा करना चाहता होगा। आप के सर्वश्रेष्ठ छात्र बनने के पीछे जो भी कारण हो, उस के लिए ऐसे बहुत सारे तरीके हैं, जिन से आप खुद को बेहतर बना सकें। एक अच्छा छात्र बनना मतलब, कक्षा में अच्छी श्रेणी हासिल करना ही नहीं, इस के साथ-साथ एक अच्छा इंसान बनना और अपने शिक्षक को दर्शाना कि आप अपनी कक्षा को गंभीरता से ले रहे हैं। विधि 1 का 3: 1अपने मस्तिष्क को और अपने शरीर को, सीखने के लिए तैयार करेंः यदि आप का शरीर सीखने के लिए तैयार रहेगा, तो आप हर चीज़ अच्छे से सीखकर स्कूल में अच्छा समय बिता पाएँगे! अपने शरीर को तैयार करने के लिए बहुत सारे तरीके मौजूद है। इन का अभ्यास करेंः - अच्छी नींद लें। यदि आप चाहते हैं कि आप का दिमाग़ सही तरह से काम करे, तो इस के लिए आप को अपनी नींद पूरी करने की ज़रूरत है। आप को सारा दिन चौकन्ना रहना होगा। यदि आप की आँखें लंच के बाद खुद-ब-खुद बंद होने लगें, तो इस का अर्थ यही निकलता है कि आप की नींद पूरी नहीं हुई है। अधिकांश लोगों के लिए, 8 घंटे की नींद की ज़रूरत होती है। - यदि आप सारा दिन सिर्फ़ जंक फूड खाते हैं, तो आप का शरीर सही तरीके से काम नहीं कर पाएगा। यदि आप सर्वश्रेष्ठ छात्र बनना चाहते हैं, तो आप बन सकते हैं, और ऐसा करने में, हरी सब्जियाँ, घर का बना खाना और फल आप को सहायता भी प्रदान करेंगे। - भरपूर मात्रा में पानी पिया करें। आप के दिमाग़ को अच्छी तरह से काम करने के लिए पानी की ज़रूरत होती है। आप का शरीर भी अच्छी तरह काम करने के लिए पानी चाहता है। दिनभर में बहुत सारा पानी पिएँ, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि कुछ लोगों को अन्य लोगों की तुलना में ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है। यदि आप के मूत्र का रंग गाढ़ा है, तो इस का यही अर्थ समझें कि आप को ज़्यादा पानी पीने की ज़रूरत है, और वहीं यदि इस का रंग साफ है, तो इस का अर्थ यह अतिरिक्त पानी है। 2जो आप के लिए काम करे, उसी तरीके से सीखेंः हर कोई अपने-अपने तरीकों से सीखता है; इसे ही सीखने का तरीका कहा जाता है।[१] X रिसर्च सोर्स एक ऐसे तरीके की तलाश करें, जो आप के काम आए और फिर उसी तरीके से सीखने की कोशिश करें। इस में कोई शक नहीं कि आप अपने घर पर ही सब से अच्छे से पढ़ाई कर सकते हैं, लेकिन अपने शिक्षक से बात कर के आप उन्हें कुछ ऐसे तरीकों का उपयोग करने के लिए मना सकते हैं, जो हर किसी के काम आए। - उदाहरण के लिए, आप ने शायद कभी गौर किया होगा, कि आप के लिए चार्ट्स या पिक्चर्स को याद रखना कितना आसान रहता है। इस का मतलब यह है, कि आप शायद दृश्यों के माध्यम से अच्छी तरह पढ़ पाते हैं, तो आप को अपनी पढ़ाई में ज़्यादा से ज़्यादा दृश्यों या चित्रों का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए, आप जिस भी चीज़ को याद करना चाहते हैं, उसे छोटे-छोटे भागों में एक चार्ट पर बना लें। - हो सकता है कि आप म्यूज़िक सुनते हुए अच्छी तरह से पढ़ाई कर पाते हैं या फिर आप के शिक्षक के द्वारा बोर्ड पर लिखी गई बातें आप याद ना रख पाते हों लेकिन उन के द्वारा कही गई बातों को याद रखना आप के लिए आसान लगता हो, इस का यही अर्थ निकलता है कि आप सुनकर सीखने वाले विद्यार्थी हैं और आप किसी बात को सुनकर ज़्यादा अच्छे से सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए आप अपने शिक्षक की बातों को रिकॉर्ड कर सकते हैं, ताकि होमवर्क करते वक़्त आप इन्हें सुनकर कुछ बेहतर कर पाएँ। - हो सकता है किसी क्लास के वक़्त आप को ऐसा महसूस हो, कि आप उस पर ध्यान देना चाहते हैं, लेकिन अभी आप को सच में खड़े हो जाना चाहिए या फिर यहाँ वहाँ घूमना शुरू कर देना चाहिए। हो सकता है आप कमरे में घूम-घूम कर पढ़ाई करते हों। तो इस का अर्थ यही निकलता है, कि आप गति के साथ सीखना पसंद करते हैं, जिस का मतलब आप किसी चीज़ को तब और भी अच्छे से सीख पाते हैं, जब आप का शरीर गति में होता है। इस के लिए जब आप के शिक्षक आप को पढ़ाएँ तो आप अपने हाथ में मिट्टी के टुकड़ों के साथ खेल करते रहें, इस तरह से आप का शरीर गति में रहेगा। 3ध्यान देंः आप को कक्षा में अपनी श्रेणी को सुधारने के लिए और भी ज़्यादा सीखने के लिए, शिक्षक के द्वारा कही जाने वाली बातों पर ध्यान देना चाहिए। यदि आप विचलित हो जाते हैं, तो आप कुछ महत्वपूर्ण जानकारी को छोड़ देंगे और बाद में किस बात को सुनें और किस पर ध्यान लगाएँ यह समझ पाना, आप के लिए और भी कठिन हो जाएगा। - यदि आप को अपने शिक्षक की बातों में ध्यान लगाने में परेशानी हो रही है, तो कक्षा में सबसे आगे बैठने और कक्षा में ज़्यादा शामिल रहने की कोशिश करें। जब आप के शिक्षक कुछ बहुत ही दिलचस्प बात बताते हैं, और आप उस बारे में और भी जानकारी पाना चाहते हैं, तो अपना हाथ उठाएँ और उन से सवाल करें। 4नोट्स बनाना सीखेंः नोट्स बनाना (और "अच्छे" नोट्स बनाना) थोड़ा सा कठिन हो सकता है, लेकिन इस के ज़रिए आप को पढ़ाई करना और भी आसान लगने लगेगा, जिस का अर्थ आप की श्रेणी और बेहतर हो जाएगी और आप के परीक्षा के परिणाम में भी सुधार आएगा। ध्यान रखें, आप को आप के शिक्षक के द्वारा बोली गई हर एक बात को लिखने की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ़ ऐसी कुछ महत्वपूर्ण बातों को ही लिखें, जिन्हें बाद में याद रख सकने में आप को तकलीफ़ हो। 5समय पर और अच्छी तरह से अपना होमवर्क करेंः भले ही आप को अपने होमवर्क में अच्छी ग्रेड नहीं मिलती, लेकिन इसे समय पर और अच्छी तरह से पूरा कर के आप को अपनी ग्रेड को सुधारने में मदद ज़रूर मिलेगी। और आप अपने होमवर्क को जितना अच्छा से कर सकें, करें। जब आप को कुछ समझ ना आ रहा हो, तो किसी से मदद माँगें! आप के शिक्षक ही ट्यूटर की तरह आप को मदद कर सकते हैं या फिर अगले दिन कक्षा में उन के पास जाकर पूछें। - अपने होमवर्क को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय दें। इस का यह अर्थ भी हो सकता है, कि टीवी कम देखें और अपने दोस्तों के साथ कम समय बिताएँ। - होमवर्क करने के लिए अच्छा माहौल मिलना, आप को इसे पूरा करने में मदद करेगा। किसी ऐसी शांत जगह पर जाएँ, जहाँ पर आप को कोई भी विचलित ना कर पाए। यदि आप किसी लाइब्रेरी जा सकते हैं, तो यह और भी बेहतर स्थान होगा। यदि आप के घर में बहुत शोरगुल हो रहा है और आप कहीं बाहर नहीं जा सकते हैं, तो घर की छत पर जाएँ या फिर बाथरूम में जाकर होमवर्क करें। 6सीखने के लिए अलग-अलग तरीकों को ढूँढेंः कक्षा में ना पढ़ाई गई चीज़ों की पहले से ही जानकारी, आप को आगे के लिए तो तैयार करेगी ही, साथ ही आप के शिक्षक को भी प्रभावित करेगी। कुछ दिलचस्प तरीकों के साथ में की गई पढ़ाई आप को ज़्यादा समय तक याद रहती है। तो अपने सारे विषयों को पढ़ने के लिए ऐसे ही कुछ तरीकों को खोजें, जिन से आप अपना ध्यान और भी ज़्यादा केंद्रित कर के पढ़ाई कर सकें। और इस तरह से आप अपनी कक्षा में और भी सफलता प्राप्त कर पाएँगे। - उदाहरण के लिए, यदि आप भारतीय इतिहास के बारे में पढ़ रहे हैं, तो इस विषय पर ऑनलाइन मौजूद डॉक्युमेंट्स को देख कर आप इस से और भी ज़्यादा सीख सकते हैं। - आप किसी भी विषय के बारे में अपने आसपास मौजूद लाइब्रेरी से किताबें लेकर भी पढ़ाई कर सकते हैं, लेकिन आप ऑनलाइन जाकर और भी ज़्यादा जानकारी पा सकते हैं। हालाँकि, Wikipedia हर समय ही सही नहीं होती, लेकिन फिर भी इस पर से अच्छी जानकारी प्राप्त हो जाती है। आप यूट्यूब पर वीडियो देख कर भी जानकारी पा सकते हैं। - जब आप का स्कूल बंद हो, तब भी कुछ ना कुछ सीखे। गर्मी की छुट्टियों में, सप्ताहांत में भी पढ़ाई करते रहें और अगले साल की पढ़ाई की सामग्री उपलब्ध होने के फ़ौरन बाद ही पढ़ाई करना शुरू कर दें। जैसे गर्मी की छुट्टी में, पहले से की हुई पढ़ाई को कुछ समय के लिए दोहराने से और आने वाले सेशन की पढ़ाई करने से, जैसे कि आप पहले से ही बहुत कुछ जानकारी पा चुके हैं तो, आप स्कूल के शुरू होते ही आश्वस्त महसूस करेंगे। 7जल्दी पढ़ना शुरू करेंः परीक्षा में अच्छे अंक पाने का सब से अच्छा तरीका है, कि आप परीक्षा के लिए जितना भी जल्दी हो सके पढ़ाई शुरू कर दें। निश्चित रूप से इसे आख़िरी रात के लिए ना छोड़ दें। दो या तीन हफ्ते पहले से पढ़ाई की शुरुआत कर देना आप के लिए बेहतर होगा। - परीक्षा में आने वाले संभावित प्रश्नों को लिख लें और इम्पोर्टेन्ट पॉइंट्स के नोट्स बना लें। परीक्षा की सुबह थोड़ा जल्दी उठने की कोशिश करें और पढ़ाई के दौरान आपके द्वारा बनाए गए नोट्स को एक बार ध्यान से पढ़ लें। इन नोट्स को आखिर में एक बार पढ़ने से आप सभी जरूरी पॉइंट्स को रिवाइज़ कर सकते हैं। परीक्षा जितनी कठिन होगी, आपको उतनी ही जल्दी पढ़ाई शुरू कर देनी चाहिए। दो या तीन सप्ताह आमतौर पर एक अच्छा स्टार्टिंग पॉइंट होता है। विधि 2 का 3: 1लोगों को अच्छा महसूस कराएँः अच्छा छात्र होना, अच्छी ग्रेड पाने से भी ज़्यादा कुछ है। आप को एक अच्छा इंसान बनने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करते रहना चाहिए। आप एक बुली (bully) या कक्षा का एक बिगड़ा हुआ छात्र तो नहीं बनना चाहेंगे, और यह आप को सर्वश्रेष्ठ छात्र भी नहीं बना देगा। लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें। किसी को भी परेशान ना करें और ना ही उन्हें कुछ ऐसा कहें जिस से उन्हें दुख पहुँचे। 2हर किसी की सहायता करेंः जब भी आप किसी की मदद कर सकें, तो ऐसा कर के एक अच्छे इंसान बनें। यदि आप को कुछ करते आता है या फिर आप को किसी चीज़ को करने का बेहतर तरीका पता है, तो लोगों को भी समझाएँ। ऐसा करते वक़्त खुद को उन से बेहतर या स्मार्ट ना दिखाएँ, सिर्फ़ अच्छे और मित्रता के भाव से समझाएँ। आप और भी बहुत सारी चीज़ें कर सकते हैं, जैसे किसी भारी सामान को उठाते वक़्त उन की मदद करें। - उदाहरण के लिए, यदि कोई कुछ दिन के लिए बाहर गया है, तो उस के वापस आने के बाद उसे अपने नोट्स दें। 3लोगों का सम्मान करें, भले ही वे आप के साथ ग़लत व्यवहार करेंः जब लोग आप के साथ बुरा व्यवहार करें, तब भी आप उन के प्रति सम्मान दिखाएँ। उन पर चिल्लाएँ नहीं और ना ही उन को शारीरिक कष्ट दें। उन की ओर ज़्यादा ध्यान ना दें और उन से भी उसी तरह का बर्ताव रखें, जिस तरह का, आप अन्य लोगों के साथ रखते हैं। - लोगों के प्रति सम्मान दिखाएँ। भले ही उन के विचार आप से कुछ अलग हों, लेकिन फिर भी उन का सम्मान करें। लोगों को उन के अलग तरह के होने के कारण उन्हें बुरा महसूस ना कराएँ, उन्हें उन के जैसे रहने दें, हर एक इंसान के अपने अलग विचार होते हैं। 4शांत रहेंः जब आप कक्षा में हों, तो जितना ज़्यादा हो सके शांत रहें। यहाँ-वहाँ भागकर लोगों को तंग ना करें। स्कूल की परेशानियों को ले कर तनाव में ना आए। यह आप के लिए सही नहीं है, और इस के कारण आप के अन्य लोगों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं। - हल्की-हल्की साँसें लेकर, खुद को शांत रखने में मदद करें। बस एक ही बात याद रखें कि हर एक चीज़ ठीक हो जाएगी। और आप इसे कर सकते हैं! - अच्छी ग्रेड के बारे में सोचना बंद कर दें। आप को अपना सारा ध्यान सीखने पर केंद्रित करना चाहिए, आप की ग्रेड खुद-ब-खुद ठीक हो जाएगी। याद रखें कि ग्रेड से ज़्यादा ज्ञान मायने रखता है। 5चीज़ों को हर किसी के लिए मजेदार बना देंः जब भी आप कक्षा में हों तो उत्साही और सकारात्मक बने रहें। सीखने का उत्साह हर किसी को सीखने के लिए और भी प्रेरित करता है। जब तक आप अपने मन किसी चीज़ को सीखने की इच्छा जाहिर नहीं करेंगे, तब तक आप कुछ भी नहीं सीख पाएँगे। - जैसे कि, आप की कक्षा में ग्रहों के बारे में सिखाया जा रहा है, तो अपने मनपसंद ग्रह की तस्वीर कक्षा में लेकर जाएँ, और वहाँ मौजूद लोगों से भी ऐसा ही करने का कहें। 6वास्तविक बने रहें! सब से ज़रूरी है, कि आप जैसे भी हैं, वैसे ही बने रहें। यदि आप किसी और की तरह बर्ताव कर रहे हैं, तो कभी भी एक अच्छा इंसान नहीं बन सकते। जो भी चीज़ें आप को खुश करे वही करें। अपनी पसंद की चीज़ों को बाँटें। ऐसे लोगों के साथ दोस्ती करें, जो आप को अपने लिए अच्छा महसूस कराते हो। दूसरे लोग क्या सोचते हैं, उस की चिंता ना करें। सच्चाई यही है, आज से कुछ सालों बाद आप को इन में से किसी एक के नाम भी याद नहीं रह जाएँगे। यदि उन को ऐसा नहीं लगता कि आप एक अच्छे व्यक्ति हैं, तो फिर तो ये आप को बिल्कुल भी याद नहीं रख पाएँगे। आप को कुछ याद रहेगा तो वो यही कि, आप को जो कुछ भी खुशी दे सकता था, आप वो नही कर पाए। विधि 3 का 3: 1शिष्ट बनेंः यदि आप अपने शिक्षक को खुश करना चाहते हैं, तो शिष्टता के साथ ही उस की शुरुआत करें। विशेष रूप से जब अन्य छात्र अशिष्ट हों, तो आप उन सब से अलग दिखेंगे और बहुत ही जल्दी अपने शिक्षकों की नज़र में आएँगे। आप कुछ इस तरह की चीज़ें कर सकते हैंः - विध्वंशक ना बनें। जब आप के शिक्षक कक्षा में मौजूद हों और कुछ बोल रहे हों, तो अन्य लोगों को नोट्स देकर, उन के साथ बातें कर के या फिर मज़ाक कर के उन्हें परेशान ना करें। - हर चीज़ समय पर (या उस से पहले) करें और उनकी एक भी क्लास ना छोड़ें। - उन से बात करते वक़्त सभ्य रहें। उन्हें "मेडम (mam) या सर (sir)" कह कर पुकारें और हर बात में कृपया और धन्यवाद जैसे शब्दों का प्रयोग करें। इस तरह के शब्दों का प्रयोग करते वक़्त गंभीरता दिखाएँ नहीं तो उन को ऐसा लगेगा कि आप उन का मज़ाक बना रहे हैं। 2सवाल करेंः जब छात्र अपने शिक्षक से प्रश्न करते हैं, तो उन्हें अच्छा लगता है। इस के पीछे के कुछ कारण भी हैं। सब से पहले, इस से उन्हें यह महसूस होगा कि आप उन की बातों पर ध्यान दे रहे हैं। दूसरी ओर, इस से उन्हें ऐसा लगेगा, कि आप को उन की बातों में दिलचस्पी है और आप मज़े से उस विषय के बारे में सुन रहे हैं। हर किसी स्मार्ट होना और मददगार होना अच्छा लगता है। जब आप के पास कोई सवाल हो, तो उन से सवाल करें और देखें कैसे आप के शिक्षक आप को पसंद करने लगते हैं। - उदाहरण के लिए, यदि आप के शिक्षक केमिस्ट्री के एवोगेड्रो (Avogadro's) नंबर की बात कर रहे हैं, तो उन से पूछें कि इन संख्याओं को किस तरह से याद कर सकते हैं। - उन से कुछ बेमतलब के सवाल ना करें। यदि आप के पास पूछने लायक कोई भी सवाल ना हो, तो ज़रूरी नहीं है कि आप कुछ भी फालतू के प्रश्न करने लगें। आख़िर में आप अपने शिक्षक को परेशान कर देंगे और उन्हें लगने लगेगा कि आप ये सब सिर्फ़ उन का ध्यान आकर्षित करने के लिए कर रहे हैं। 3मदद के लिए पूछेंः आप को ऐसा लग सकता है, कि आप के शिक्षक से मदद माँगने पर वे गुस्सा हो जाएँगे, और इस तरह से आप बेवकूफ़ साबित होंगे। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, आप यदि बेवकूफ़ ना लगने के डर से सवाल पूछना ही छोड़ देंगे तो आप कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएँगे। मदद के लिए पूछकर, आप अपने शिक्षक की नज़रों में स्मार्ट लगने लगेंगे और इस से उन्हें खुशी ही महसूस होगी। जब आप सवाल करेंगे, तो आप के शिक्षक को यह बात समझ आएगी कि आप अच्छी तरह से मेहनत करेंगे और उन की पढ़ाई हुई बातों पर और भी ध्यान देने लगेंगे। यदि आप आगे आकर उन से मदद माँगेंगे, तो इस से उन्हें गर्व ही महसूस होगा। - उदाहरण के लिए, यदि कुछ ही हफ्तों में आप की गणित की परीक्षा आने वाली है, और आप को किसी सवाल को हल करने में समस्या हो रही है, तो अपने शिक्षक के पास में जाकर उसे हल करने में मदद माँगें। और जब तक आप को अच्छे से समझ ना आ जाए, तब तक उन से पूछते रहें। - कुछ इस तरह से बोलें, कि " सर, मुझे यह सवाल हल करने में परेशानी हो रही है। क्या आप मुझे लंच में मिल कर इसे अलग तरीके से हल करना सिखा सकते हैं?" 4एक मददगार छात्र बनेंः एक ऐसे छात्र बनें जो हर समय सिर्फ़ किसी ना किसी उलझन में ही ना बने रहे, बल्कि कभी-कभी दूसरों की मदद भी करने को तैयार रहे। इस का तात्पर्य एक ऐसा छात्र बनने से है जो किसी सवाल को हल करने में अन्य छात्रों की मदद कर सके। उदाहरण के लिएः - हर समय (असभ्य हुए बिना) कक्षा के नियमों का पालन करने की याद दिलाएँ। - यदि झगड़ा चल रहा हो, तो जल्दी से किसी शिक्षक को लेकर आएँ या फिर झगड़ा बंद कराएँ, या फिर परिस्थिति के अनुसार जो सही समझ आए वही करें। - अपने शिक्षक के पेपर्स, कुछ सामान ले जाकर या फिर किसी छात्र के सवाल में उन की मदद कर के या आप को जो भी उचित लगे, कर के उन की मदद करें। - किसी समस्या का समाधान निकालने के लिए अपने सहपाठियों की मदद करें। 5अपने काम में हमेशा शीर्ष पर रहेंः अपना होमवर्क समय पर करें। परीक्षा के कुछ हफ्ते पहले कुछ गाइड ले कर आएँ, और किसी से मदद के लिए पूछें। नोट्स लेकर आएँ। जब आप के शिक्षक आप की इस कड़ी मेहनत को देखेंगे, तो भले ही आप को बहुत अच्छे अंक ना मिलें, लेकिन फिर भी वे आप को पसंद करेंगे। - शर्माएँ नहीं। जब भी आप के शिक्षक, कक्षा में कोई सवाल करें, तो इस अवसर का लाभ उठाकर, सब से पहले सवाल का जवाब दें, भले ही आप को उस का सही जवाब ना मालूम हो, लेकिन फिर भी जवाब दें। आप के शिक्षक आप के आत्मविश्वास को देखेंगे और इस तरह से आप शीर्ष के छात्र बनने की तरफ अपने कदम आगे बढ़ा पाएँगे। - परीक्षा के समय खुद को शांत रखें। बेचैन होने से आप याद किए गए पाठ भूल सकते हैं। रात को पूरी नींद लें और परीक्षा के पहले अच्छा नाश्ता करें। - सलीके से रहें। अपने होमवर्क को सलीके से करें, अपने फोल्डर को सलीके से रखें। इस तरह से आप को अपनी चीज़ें सही जगह पर व्यवस्थित रखने में मदद मिलेगी। - जब आप घर वापस आएँ, तो कक्षा में किए गए हर एक कार्य पर नज़र डालें। इस तरह से आप को कक्षा में किए गए हर एक कार्य का अवलोकन करने में मदद होगी। - यदि संभव हो, तो अगले दिन कक्षा में पढ़ाए जाने वाले पाठ को भी रात में ही पढ़ लें। इस तरह से आप को कक्षा में उस पाठ पर ध्यान केंद्रित करने में मदद होगी। - हर दिन स्कूल से वापस आकर, थोड़ा पढ़ाई ज़रूर करें, ताकि परीक्षा के समय भी आप को रात भर पढ़ाई करने की बजाय, हर रोज़ जितनी ही पढ़ाई करनी पड़े। - कक्षा में बताए गई सब से ज़रूरी बातों को, कक्षा के ख़त्म होने के बाद एक बार और दोहरा लें, इस तरह से आप ज़्यादा समय तक इन बातों को याद रख पाएँगे। - आप जो भी पाना चाहते थे, उसे पाने के बाद - जैसे, परीक्षा में सब से ज़्यादा अंक पाना - अपने इस परिश्रम के लिए खुद को पुरस्कृत करना ना भूलें। - केंद्रित रहें और ऐसे लोगों की ओर ध्यान ना दें, जो आप का मज़ाक बनाते हों। यदि आप स्कूल में कुछ अच्छा करना चाहते हैं, तो इस के लिए आप को शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं है। - सच में मददगार छात्र होने में और अति-उत्साही छात्र होने में बहुत फ़र्क है। अन्य लोगों को भी अपने शिक्षक की मदद करने का मौका दें। - खुद को काम के बोझ के नीचे ना दबा दें। जीवन में सिर्फ़ स्कूल ही मायने नहीं रखता! ये बात ना भूलें कि आप एक इंसान हैं। - यदि आप नकल कर रहे हैं, तो आप के पकड़े जाने की पूरी उम्मीद है, और यदि आप के शिक्षक ने आप को नकल करते हुए देख लिया, तो वो आप के लिए अपने विचारों को बदल लेंगे। सभी लेखकों को यह पृष्ठ बनाने के लिए धन्यवाद दें जो १४,९६३ बार पढ़ा गया है।
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कार्प तालाबों और नदियों में रहता है। यह मछली कार्प के प्रकार से संबंधित है। एक तालाब में रहने वाले एक कार्प में नदी में रहने वाली प्रजातियों से थोड़ा अलग आकार होता है। तो पहली कक्षा गोलाकार और बड़े पैमाने पर humpbacked है, और दूसरा एक पहले प्रकार से बड़ा है और इसका रंग हल्का है। दोनों प्रजातियों में सिर के किनारों पर स्थित मूंछ होता है। इस तरह की मछली को स्पॉन्गिंग के आधार पर बहुत ज्यादा पकड़ा जा सकता है। कार्प मछली के प्रकार को संदर्भित करता है जो बहुत हैप्रतिरोधी। कैवियार को बंद करने के लिए, वे लंबे और कठिन जगह पर जाते हैं। डैम्स, जो कभी-कभी अपने रास्ते को अवरुद्ध करते हैं, उनके लिए बाधा नहीं होती है। वे पानी से ऊंचाई से दो मीटर तक कूद सकते हैं। कार्प स्पॉन्गिंग जगह चुनती है जहां स्नैग या रीड होते हैं। ऐसा किया जाता है ताकि कोई भी अपना कैवियार नहीं खा सके। कार्प के व्यक्ति स्वतंत्र रूप से पुरुष व्यक्ति के पक्ष में एक विकल्प बनाते हैं। पसंद आसान नहीं है, क्योंकि पुरुषों के झुंड इसके पीछे चल सकते हैं। मादा कार्प मोटा और बड़ा है। स्पॉन्ग कार्पः यह घटना कब शुरू होती है? पहली छोर अप्रैल के अंत में शुरू होती हैरूसी संघ का केंद्रीय क्षेत्र। यह सब लगभग 14 दिन तक रहता है। 15 मई के आसपास स्पॉन्गिंग शुरू होती है। तालाब में स्पॉन्ग कार्प नदी की तुलना में पहले होता है। इस मछली की बड़ी संख्या में टैडपोलजून के शुरू में दिखाई देता है। इस घटना को इस तथ्य से समझाया गया है कि इस समय यह गर्म है, हवा और पानी का तापमान स्थिर है। यह भी होता है कि गर्मी के अंत में स्पॉन्गिंग की घटना देखी जा सकती है। लेकिन यह काफी सामान्य नहीं है और व्यक्तिगत क्षणों को संदर्भित करता है। कार्प उम्रः जब स्पॉन्गिंग होती है? स्पॉन्गिंग की अवधि मछली और जगह पर निर्भर करती है। अंडे की शुरुआत में सबसे छोटी तलना, और फिर अधिक मछली जमा की जाती है। वृद्ध व्यक्तियों के बाद, स्पॉन्ग कार्प की शुरुआत एक युवा पीढ़ी लेती है। कार्प स्पॉन होने पर पानी का तापमान क्या होना चाहिए? स्पिल के दौरान मछली खेल के लिए जाती है। एक संकेत है जो कहता है कि उस समय कार्प स्पॉन्गिंग की अवधि होती है जब गेहूं खिलता है। फिर यह बहुत गर्म हो जाता है। पानी का तापमान लगभग 1 9 डिग्री हो सकता है। आपको यह जानने की जरूरत है कि ठंडे पानी की कार्प में स्पॉन नहीं होता है। इस समय, मछली शांतता से तैरती है और खेलती नहीं है। स्पिल एक जगह नहीं हैकार्प स्पॉन्गिंग होता है क्योंकि अंडे अलग हो जाते हैं और घास पर और चट्टानों पर रहते हैं। जब पानी कुछ समय बाद छोड़ देता है, तो कैवियार पानी से सूख जाएगा और सूखे, या पक्षी इसे खाएंगे। लेकिन यहां तक कि छोटे व्यक्तियों को भी उसी मछली द्वारा नष्ट कर दिया जाता है, उदाहरण के लिए, पाइक। अंडे की सबसे बड़ी संख्या गड्ढे या बे में बनी हुई है। इस तथ्य को इस तथ्य से समझाया गया है कि इस तरह के स्थानों को पहुंचने में कठोर माना जाता है और शिकारियों वहां नहीं जा सकते हैं। मैं और मछली कैसे पकड़ सकता हूँ? कार्प प्राप्त करने के लिए कुछ सुझाव हैंः - फेरोमोन की मदद से। यह मछली को आकर्षित करता है और भूख बढ़ता है। लेकिन निकट भविष्य में रोस्पोट्रेबनाडोजर इस उपकरण के आगे उपयोग को प्रतिबंधित करने वाला कानून तैयार कर रहा है। - टैक्स जिन्हें अधिक संवेदनशील माना जाता है। स्पॉन्गिंग की विशेषताएं क्या हैं? कार्प के स्पॉन्गिंग समय आमतौर पर के लिए जिम्मेदार हैसुबह। दोपहर के भोजन के बाद, खेल बंद हो जाता है। लंबे समय तक महिला व्यक्ति स्पॉनिंग के लिए क्षेत्र चुनते हैं। असल में, उनकी पसंद पौधे क्षेत्र है। यह तब भी होता है जब मादा उस जगह पर अपने अंडे डालती है जहां पानी कम होता है। यह इस तथ्य से भरा हुआ है कि भविष्य में, पानी की कमी के कारण, कार्प तैरने में सक्षम नहीं होगा और गहरे पानी में लौटने में सक्षम होने के बिना मर जाएगी। कार्प स्पॉन्गिंग समय कैसा दिखता है? स्पॉन्गिंग के दौरान, पुरुष नमूने महिलाओं के पास तैरते हैं, विस्फोट करते हैं। इस तरह की एक दिलचस्प घटना एक किलोमीटर की दूरी पर शांत मौसम में मानव कान के अधीन है। अंडे जो बाहर निकल गए थे, मादापूंछ को इस तरह से बताता है कि वे धीरे-धीरे पौधों पर पड़ते हैं। एक पुरुष मादा के पीछे तैरता है और उन्हें दूध से ढकता है। इस पदार्थ की एक छोटी राशि भी हर अनाज को उर्वरित करने के लिए पर्याप्त है। कार्प कैवियार अन्य मछली की रोई से अलग हैपरिवार। इस पर कोई धारा नहीं है, श्लेष्म पदार्थ के बिंदु छोटे जर्दी पर लागू होते हैं। इस कारण से, स्पॉन को उर्वरित करने के लिए कई पुरुषों की आवश्यकता होती है। अंडा से युवा मछली में औसत रूपांतरण क्या है? प्रक्रिया जब थोड़ा कैवियार बदल जाता हैमछली पानी के तापमान पर निर्भर करता है। यदि यह लगभग 20 इकाइयां है, तो पानी का तापमान भी कम होने पर परिवर्तन स्वयं एक सप्ताह से थोड़ा अधिक होगा, परिवर्तन में तीन सप्ताह का समय लग सकता है। बशर्ते कि पानी ठंडा हो, यह संभव हैकार्प की संतान की निरंतरता नहीं होगी। चार सौ हजार अंडे, एक नियम के रूप में, केवल तीन हजार रहते हैं, और केवल चार सौ मछली में बदल जाते हैं। सबसे पहले, छोटी मछली जो अभी निकलीzooplankton खाओ। पहले वर्ष में, कार्प को सर्दी के तथ्य के बावजूद कार्प तेजी से बढ़ता है। इस घटना को इस तथ्य से समझाया गया है कि वे सबकुछ खाते हैं। उनके पास वार्मिंग के लिए पर्याप्त भोजन है। लोग उन्हें "राष्ट्रीय सुअर" कहते हैं क्योंकि वे पशु और पौधे की उत्पत्ति के तत्वों पर भोजन करते हैं। जब कार्प काटने? गर्मियों में कार्प मछली पकड़ने के बाद शुरू होता हैसितंबर तक। दिन के दौरान, मछली को गर्मी पसंद नहीं है, इसलिए वे गड्ढे में और तीन मीटर की गहराई में छिपाते हैं। यह झाड़ी में भी पाया जा सकता है। जब कार्प spawning के बाद pecks? आमतौर पर बादल मौसम में, गर्मी के रूप में यह मछली गहरी जगहों में कुछ भी नहीं खाती है और छुपाती है। - वायुमंडलीय दबाव कम होना चाहिए। यह अवधि उस समय से मेल खाती है जब दिन का गर्म समय बीत चुका है या बारिश हो रही है। - सक्रिय कार्प आमतौर पर रात में, चोटी के लिए शुरू होता हैया तो सुबह या देर शाम को। इसका मतलब यह नहीं है कि आप दोपहर में मछली पकड़ नहीं सकते हैं। यदि आप सही चारा और मछली पकड़ने की तकनीक चुनते हैं, तो आप कर सकते हैं। - पालतू कार्प प्रजातियों को पानी का गर्म तापमान पसंद होता है, अर्थात् गर्म, गर्म नहीं और ठंडा नहीं, जो लगभग 20 डिग्री के अनुरूप होता है। - आम तौर पर कार्प थैक्स या स्नैग में पाया जाता है। खैर, यदि ऐसी जगह है, जहां तक संभव हो, ताकि मछली को डराने का कोई मौका न हो। भारी सिंकर्स पकड़ते समय उपयोग करने की सिफारिश की जाती है। आप खाड़ी के पास, बांध के पास कार्प भी पकड़ सकते हैं। क्या carps विशेष कहा जाता है? पर्यावरण में ऐसी कार्प प्रजातियां हैं जो प्रजनन करने में सक्षम नहीं हैं। इन मछलियों में एक तरफ दूध होता है और पीठ पर एक छोटा सा बैग होता है, जहां अंडे होते हैं। कार्प विभिन्न तरीकों से पकड़ा जा सकता है। पकड़े जाने का सबसे आम प्रकार कताई है, फिर फीडर और सामान्य मछली पकड़ने के ध्रुव पर पकड़ रहा है। एंग्लरों के बीच इस प्रकार का कार्प बहुत स्वादिष्ट माना जाता है। स्पॉन्गिंग से परिपक्व रूपों की अवधि को खतरनाक और दीर्घकालिक माना जाता है, क्योंकि वे पक्षियों और अन्य प्रकार की मछलियों द्वारा खाए जाते हैं।
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दाजचर्मपर्व ] जो द्विज चारों वेदोंका अध्ययन करनेके बाद भी मोहवश पतित मनुष्योंसे दान लेता है, उसका गदहेकी योनिमें जन्म होता है ॥ ४६ ॥ खरो जोवति वर्षाणि दस पश्च व भारत । खरो मृतो बलीवदः सप्त वर्षाणि जीवति ॥४७॥ भारत ! गदहेकी योनिमें वह पंद्रह वर्षों तक जीवित रहता है । उसके बाद मरकर बैल होता है । उस योनिमें वह सात वर्षोंतक जीवित रहता है ॥ ४७ ॥ बकीवों मृतश्चापि जायते ब्रह्मराक्षसः । ब्रह्मरक्षश्च मासांस्त्रीस्ततो जायति ब्राह्मणः ॥४८॥ जब बैलका शरीर छूट जाता है, तब वह ब्रह्मराक्षस होता है। तीन मासतक ब्रह्मराक्षस रहने के बाद फिर वह ब्राह्मणका जन्म पाता है ।। ४८ ॥ पतित याजयित्वा तु कृमियोनौ प्रजायते । तत्र जीवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत ॥४९॥ भारत ! जो ब्राह्मण पतित पुरुषका यज्ञ कराता है, वह मरनेके बाद कीड़ेकी योनिमें जन्म लेता है और उस योनिमें पंद्रह वर्मोंतक जीवित रहता है ।। ४९ ॥ कृमिभावाद् विमुक्तस्तु ततो जायति गर्दभः । गर्दभः पञ्च वर्षाणि पञ्च वर्षाणि सूकरः ॥५०॥ कुक्कुटः पञ्च वर्षाणि पञ्च वर्षाणि जम्बुकः । श्वा वर्षमेकं भवति ततो जायति मानवः ॥५१॥ कीड़ेको योनिसे छूटनेपर वह गदहेका जन्म पाता है। पाँच वर्षतक गदहा रहकर, पाँच वर्ष सूअर, पाँच वर्ष मुर्गा पाँच वर्ष सियार और एक वर्ष कुत्ता होता है। उसके बाद वह मनुष्ययोनिमें उत्पन्न होता है । ५०-५१ ॥ उपाध्यायस्य यः पापं शिष्यः कुर्यादबुद्धिमान् । स जीव इह संसारांस्त्रीनाप्नोति न संशयः ॥५२॥ प्राक् श्वा भवति राजेन्द्र ततः क्रव्यात्ततः खरः । ततः प्रेतः परिक्लिष्टः पश्चाज्जापति ब्राह्मणः ॥५३॥ जो मूर्ख शिष्य अपने अध्यापकका अपराध करता है, वह यहाँ निम्नाङ्कित तीन योनियों में जन्म ग्रहण करता है, इसमें संशय नहीं है। राजेन्द्र ! पहले तो वह कुत्ता होता है, फिर राक्षस और गदहा होता है। उसके बाद मरकर प्रेतावस्था में अनेक कष्ट भोगनेके पश्चात् ब्राह्मणका जन्म पाता है।५२-५३। मनसापि गुरोर्माय यः शिष्यो याति पापकृत् । स उप्रान् प्रति संसारानधर्मेणेह चेतसा ॥५४॥ जो पापाचारी शिष्य गुरुपत्नी के साथ समागमका विचार भी मनमें लाता है, वह अपने मानसिक पापके कारण भयंकर योनियोंमें जन्म लेता है ॥ ५४ ।। भ्ययोनौ तु स सम्भूतस्त्रीणि वर्षाणि जीवति । तत्रापि निधनं प्राप्तः कृमियोनौ प्रजायते ॥५५॥ कृमिभावमनुप्राप्तो वर्षमेकं तु जीवति । ततस्तु निधनं प्राप्तो ब्रह्मयोनौ प्रज्जायते ॥५६॥ पहले कुत्तेकी योनिमें जन्म लेकर वह तीन वर्षतक जीवन धारण करता है। उस योनिमें मृत्युको प्राप्त होकर वह कीड़ेकी योनि में उत्पन्न होता है। कीटयोनिमें जन्म लेकर वह एक वर्षतक जीवित रहता है। फर मरनेके बाद उसका ब्राह्मण-योनिमें जन्म होता है ॥ ५५-५६ ॥ यदि पुत्रसमं शिष्यं गुरुर्हन्यादकारणे । आत्मनः कामकारेण सोऽपि हिंस्र प्रजायते ॥५७॥ यदि गुरु अपने पुत्रके समान शिष्यको बिना कारण के ही मारता-पीटता है तो वह अपनी स्वेच्छाचारिता के कारण हिंसक पशुकी योनिमें जन्म लेता है ।। ५७ ।। पितरं मातरं चैव यस्तु पुत्रोऽवमन्यते । सोऽपि राजन् मृतो जन्तुः पूर्व जायेत गर्दभः ॥५८ ॥ राजन् ! जो पुत्र अपने माता-पिता का अनादर करता है, वह भी मरने के बाद पहले गदद्दा नामक प्राणी होता है॥ गर्दभत्वं तु सम्भाप्य दश वर्षाणि जीवति । संवत्सरं तुकुम्भीरस्ततो जायेत मानवः ॥ ५९॥ गदहेका शरीर पाकर वह दस वर्षोंतक जीवित रहता है । फिर एक सालतक घड़ियाल रहनेके बाद मानव-योनिमें उत्पन्न होता है ।। ५९ ॥ पुत्रस्य मातापितरौ यस्य रुष्टावभावपि । गुर्वपण्यानतः सोऽपि मृतो जायति गर्दभः ॥३०॥ जिस पुत्रके ऊपर माता और पिता दोनों ही रुष्ट होते है, वह गुरुजनोंके अनिष्टचिन्तन के कारण मृत्यु के बाद गदहा होता है । ६० ।। खरो जीवति मासांस्तु दश श्वा च चतुर्दश । बिडालः सप्तमासांस्तु ततो जायत मानवः ॥ ११ ॥ गदहेकी योनि में वह दस मासतक जीवित रहता है। उसके बाद चौदह महीनतिक कुत्ता और सात मास तक बिलाव होकर अन्तमें वह मनुष्यकी योनिमें जन्म ग्रहण करता है ।। ६१ ॥ मातापितरावाक्रश्य सारिकः सम्प्रज्ञायते । ताडयित्वा तु तावेव जायते कच्छपो नृप ॥६२।। माता-पिताको निन्दा करके अथवा उन्हें गाली देकर मनुष्य दूसरे जन्ममें मैना होता है। नरेश्वर ! जो मातापिताको मारता है, वह कछुआ होता है ॥ ६२ ॥ कच्छपो दश वर्षाणि त्रीणि वर्षाणि शल्यकः । व्यालो भूत्वा च षण्मा सांस्ततो जयति मानुषः॥६३॥ दस वर्षतक फछुआ रहनेके पश्चात् तीन वर्ष साही और छः महीनेतक सर्प होता है। उसके अनन्तर वह मनुष्यको योनिमें जन्म लेता है ॥ ६३ ॥ भर्तृपिण्ड मुपाइनन् यो राजद्विष्टानि सेवते । सोऽपि मोहसमापन्नो मृतो जायति वानरः ॥६४।। बो पुरुष राजाके टुकड़े खाकर पलता हुआ भी मोहवश उसके शत्रुओंकी सेवा करता है, वह मरनेके बाद वानर होता है । ६४ ॥ वानरो दश वर्षाणि पञ्च वर्षाणि मूषिकः । भ्वाथ भूत्वा तु षण्मासांस्ततो जायति मानुषः । ६५ ॥ दस वर्षोंतक वानर, पाँच वर्षोंतक चूहा और छः महीनोंतक कुत्ता होकर वह मनुष्यका जन्म पाता है ॥६५॥ भ्यासापहर्ता तु नरो यमस्य विषयं गतः । संसाराणां शतं गत्वा कृमियोनौ प्रजायते ॥६६॥ दूसरोंकी धरोहर हड़प लेनेबाला मनुष्य यमलोक में जाता और क्रमशः सौ योनियोंमें भ्रमण करके अन्तमें कीड़ा होता है। ६६ । तत्र जोवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत । दुष्कृतस्य क्षयं कृत्वा ततो जायति मानुषः ॥ ६७॥ भारत ! कीड़ेकी योनिमें बह पंद्रह वर्षोंतक जीवित रहता है और अपने पापोंका क्षय करके अन्तमें मनुष्ययोनिमें जन्म लेता है ॥ ६७ ।। असूयको नरस्यापि मृतो जायति शार्ङ्गकः । विश्वासहर्ता तु नरो मीनो जायति दुर्मतिः ॥६८॥ दूसरोंके दोष ढूंढ़नेवाला मनुष्य हरिणकी योनिमें जन्म लेता है तथा जो अपनी खोटी बुद्धिके कारण किसी के साथ विश्वासघात करता है, वह मनुष्य मछली होता है ॥ ६८ ॥ भूत्वा मीनोऽष्ट वर्षाणि मृतो जायति भारत । मृगस्तु चतुरो मासांस्ततश्छागः प्रजायते ॥६९॥ भारत ! आठ वर्षौंतक मछली रहकर मरनेके बाद वह चार मासतक मृग होता है। उसके बाद बकरेकी योनिमें जन्म लेता है ।। ६९ ॥ [ मनुशासनपर्वचि महाराज ! जो पुरुष लजाका परित्याग करके अज्ञान और मोहके वशीभूत होकर धान, जौ, तिल, उड़द, कुलथी, सरसों, चना, मटर, मूँग, गेहूँ और तीसी तथा दूसरे-दूसरे अनाजोंकी चोरी करता है, वह मरनेके बाद पहले चूहा होता है ।। ७१-७२ ॥ छागस्तु निधनं प्राप्य पूर्ण संवत्सरे ततः । कीटः संजायते जन्तुस्ततो जायत मानुषः ॥७०॥ बकरा पूरे एक वर्षपर मृत्युको प्राप्त होने के पश्चात् कोड़ा होता है। उसके बाद उस जीवको मनुष्यका जन्म मिलता है । घान्यान् यवांस्तिलान् माषान् कुलत्थान सर्षपांचणान् कलापानथ मुद्गांच गोधूमानतसींस्तथा ॥७१. सस्यस्यान्यस्य हर्ता व मोहा जन्तुर चेतनः । स जायते महाराज भूषिको निरपत्रफ ॥७२॥ ततः प्रेत्य महाराज मृतो जायति सुकरः । स्करो जातमात्रस्तु रोगेण म्रियते नृप ॥७३॥ राजन् ! फिर वह चूहा मृत्युके पश्चात् सूअर होता है। नरेश्वर ! वद्द सूअर जन्म लेते ही रोगसे मर जाता है ॥७३॥ ध्वा ततो जायते मूढः कर्मणा तेन पार्थिव । भूत्वा श्वा पञ्च वर्षाणि ततो जायति मानवः ॥७४॥ पृथ्वीनाथ ! फिर उसी कर्मसे वह मूढ़ जीव कुत्ता होता है और पॉच वर्षतक कुत्ता रहकर अन्तमें मनुष्यका जन्म पाता है ।। ७४ ॥ परदाराभिमर्श तु कृत्वा जायति वै वृकः । भ्वा शृगालस्ततो गृध्रो व्यालः कङ्को बकस्तथा ॥ ७५ ॥ परस्त्री गननका पाप करके मनुष्य क्रमशः भेड़िया, कुत्ता, सियार, गीध, साँप, कङ्क और बगुला होता है ॥ ७५ ॥ भ्रातुर्भाय तु पापात्मा यो धर्षयति मोहितः । पुंस्कोकिळत्वमाप्नोति सोऽपि संवत्सरं नृप ॥७६॥ नरेश्वर ! जो पापात्मा मोहवश भाईकी स्त्री के साथ बलात्कार करता है, वह एक वर्षतक कोयलकी योनिमें पड़ा रहता है । ७६ ॥ सखिभार्या गुरोर्भाय राजभार्या तथैव च । प्रघर्षयित्वा कामाय मृतो जायति सूकरः ॥७७॥ जो कामनाको पूर्ति के लिये मित्र, गुरु और राजाको स्त्रीका सतीत्व भङ्ग करता है, वह मरने के बाद सूअर होता है। सूकरः पञ्च वर्षाणि दश वर्षाणि श्वाविधः । बिडालः पञ्च वर्षाणि दश वर्षाणि कुक्कुटः ॥७८ ॥ पिपोलिकस्तु मासांत्रोन कीटः स्यान्मासमेव तु । पतानासाद्य संसारान् कृमियोनौ प्रजायते ॥७९॥ पाँच वर्षतक सूअर रहकर दस वर्ष भेड़िया, पाँच वर्ष बिलाव, दस वर्ष मुर्गा, तीन महीने चींटी और एक महीने कीड़ेकी योनिमें रहता है। इन सभी योनियों में चक्कर लगानेके बाद वह पुनः कीड़ेकी योनिमें जन्म लेता है ॥७८-७९॥ तत्र जीवति मासांस्तु कृमियोनौ चतुर्दश । ततोऽघमंक्षयं कृत्वा पुनर्जायति मानवः ।।८०॥ उस कीट-योनिमें वह चौदह महीनोंतक जोवन धारण करता है। तदनन्तर पापचय करके वह पुनः मनुष्य-योनिमें भन्म लेता है ॥ ८० ॥ दानधमपर्व ] उपस्थिते बिवाहे तु यज्ञे दानेऽपि वा विभो । मोहात् करोति यो विष्णुं स मृतो जायते कृमिः॥८१॥ प्रभो । जो विवाह, यश अथवा दानका अवसर आनेपर मोहवश उसमें विघ्न डालता है, वह भी मरनेके बाद कीड़ा ही होता है ॥ ८१ ॥ कृमिर्जीवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत । अधमस्य क्षयं कृत्वा ततो जयति मानवः ॥८२ ।। भारत ! वह कीट पंद्रह वर्षों तक जीवित रहता है। फिर पापका क्षय करके वह मनुष्ययोनिमें जन्म लेता है ॥ ८२ ॥ दत्त्वा तु यः कन्यां द्वितीये दातुमिच्छति । सोऽपि राजन् मृतो जन्तुः कृमियोनौ प्रजायते ।।८३।। राजन् ! जो पहले एक व्यक्तिको कन्यादान करके फिर दूसरेको उसी कन्याका दान करना चाहता है, वह भी मरनेके बाद कीड़ेकी योनिमें जन्म लेता है ।। ८३ ।। तत्र जीवति वर्षाणि त्रयोदश युधिष्ठिर । अधर्मसंक्षये युक्तस्ततो जायति मानवः ॥२४॥ युधिष्ठिर ! उस योनिमें वह तेरह वर्षों तक जीवन धारण करता है। तदनन्तर पापक्षयके पश्चात् वह पुनः मनुष्ययोनिमें उपन्न होता देवकार्यमकृत्वा तु पितृकार्यमथापि वा । मनिर्वाप्य समझनन् वै मृतो जायति वायसः ॥८५॥ जो देवकार्य अथवा पितृकार्य न करके बलिवैश्वदेव किये बिना ही अन्न ग्रहण करता है, वह मरने के बाद कौएकी योनिमें जन्म लेता है । ८५ ॥ वायसः शतवर्षाणि ततो जायति कुक्कुटः । जायते व्याळकश्चापि मासं तस्मात् तु मानुषः ॥८६॥ सौ वर्षोंतक कौए के शरीरमें रहकर वह मुर्गा होता है। उसके बाद एक मासतक सर्प रहता है । तत्पश्चात् मनुष्यका जन्म पाता है ॥ ८६ ॥ ज्येष्ठं पितृसमं चापि भ्रातरं योऽवमन्यते । सोऽपि मृत्युमुपागम्य क्रौञ्चयोनी प्रजायते ॥८७॥ बड़ा भाई पिताके समान आदरणीय है, जो उसका अपमान करता है, उसे मृत्यु के बाद क्रौञ्च पक्षीकी योनिमें चन्म लेना पड़ता है ।। ८७ ।। कोचो जीवति वर्ष तु ततो जायति धीरकः । ततो निधनमापन्नो मानुषत्वनुपाश्नुते ।।८८।। कौन होकर वह एक वर्षतक जीवित रहता है। उसके बाद चीरक जातिका पक्षी होता है और फिर मरनेके बाद मनुष्य-योनि में जन्म पाता है ॥ ८८ ॥ वृषलो ब्राह्मणीं गत्वा कमियोनौ प्रजायते । ततः सम्प्राप्य निधनं जायते सूकरः पुनः ॥ ८९४ शुद्ध-जातिका पुरुष ब्राह्मण जातिकी स्त्री के साथ समागम करके देहत्याग के पश्चात् पहले कीड़ेकी योनि में जन्म लेता है। फिर मरनेके बाद सूअर होता है ।। ८९ ।। सूकरो जातमात्रस्तु रोगेण म्रियते नृप । भ्वा ततो जायते मूढः कर्मणा तेन पार्थिव ॥९०॥ नरेश्वर ! सूअरकी योनिमें जन्म लेते ही वह रोगसे मर जाता है । पृथ्वीनाथ ! तत्पश्चात् वह मूढ़ जीव उसी पापकर्मके कारण कुत्ता होता है ॥ ९० ॥ श्वा भूत्वा कृतकर्मासौ जायते मानुषस्ततः । तत्रापत्यं समुत्पाद्य मृतो जायति मूषिकः ॥९१॥ कुत्ता होनेपर पापकर्मका भोग समाप्त करके वह मनुष्ययोनिमें जन्म लेता है। मनुष्ययोनिमें भी वह एक ही संतान पैदा करके मर जाता और शेष पापका फल भोगनेके लिये चूहा होता है । ९१ ॥ कृतघ्नस्तु मृतो राजन् यमस्य विषयं गतः । यमस्य पुरुषैः क्रुद्धैवधं प्राप्नोति दारुणम् ।।१२।। राजन् ! कृतघ्न मनुष्य मरने के बाद यमराजके लोक में जाता है। वहाँ क्रोधमें भरे हुए यमदूत उसके ऊपर बड़ो निर्दत्रताके साथ प्रहार करते हैं । ९२ ।। दण्डं समुद्गरं शूलमग्निकुम्भं च दारुणम् । असिपत्रवनं घोरवालुकं कूटशाल्मलीम् ॥९३॥ पताश्चान्याश्च वहीश्च यमस्य विषयं गतः । यातनाः प्राप्य तत्रोप्रास्ततो वध्यति भारत ॥४॥ भारत ! वह दण्ड, मुद्गर और शूलकी चोट खाकर दारुण अग्निकुम्भ ( कुम्भीपाक ), असिपत्रवन, तपी हुईं भयंकर बालू काँटोंसे भरी हुई शाल्मली आदि नरकोंमें कष्ट भोगता है । यमलोकमें पहुँचकर इन ऊपर बताये हुए तथा और भी बहुत से नरकोंकी भयंकर यातनाएँ भोगकर वह वहाँ यमदूतोंद्वारा पीटा जाता है । ९३-९४ ।। ततो हतः कृतघ्नः स तत्रोग्रैर्भरतर्षभ । संसारचक्रमासाद्य कृमियोनौ प्रजायते ॥९५॥ भरतश्रेष्ठ ! इस प्रकार निर्दयी यमदूतोंसे पीड़ित हुआ कृतघ्न पुरुष पुनः संसारचक्र में आता और कीड़ेकी योनिमें जन्म लेता है ।। ९५ ॥ कृमिर्भवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत । ततो गर्भ समासाद्य तत्रैव म्रियते शिशुः ॥९६॥ भारत ! पंद्रह वर्षोंतक वह कीड़ेकी योनिमें रहता है। फिर गर्भमें आकर वहीं गर्भस्थ शिशुकी दशामें ही मर जाता है ।। १६ ।। ततो गर्भशतैर्जन्तुर्बहुभिः सम्प्रपद्यते । संसारांश्च बहून् गत्वा ततस्तिर्यक्षु जायते ॥९७॥ इस तरह कई सौ बार वह जीव गर्भको यन्त्रणा भोगता है। तदनन्तर बहुत बार जन्म लेने के पश्चात् वह तिर्यग्योनिमें उत्पन्न होता है ।। ९७ ॥ ततो दुःखमनुप्राप्य बहु वर्षगणानिह । अपुनर्भवसंयुकस्ततः कुर्मः प्रजायते ॥९८॥ इन योनियों में बहुत वर्षों तक दुःख भोगनेके पश्चात् वह फिर मनुष्ययोनिमें न आकर दीर्घकाल के लिये कछुआ हो जाता है । ९८ ।। दधि हत्वा बकश्चापि प्लवो मत्स्थान संस्कृतान् । चोरयित्वा तु दुर्बुद्धिर्मधु दंशः प्रजायते ॥ ९९ ।। दुर्बुद्धि मनुष्य दहीकी चोरी करके बगला होता है, कच्ची मछलियोंकी चोरी करके वह कारण्डव नामक जलपक्षी होता है और मधुका अपहरण करके वह डॉस (मच्छर ) की योनिमें जन्म लेता है ।। ९९ ।। फलं वा मूलकं हृत्वा अपूपं वा पिपीलिकाः । चोरयित्वा व निष्पावं जायते हलगोलकः ॥१००॥ फल, मूल अथवा पूएकी चोरी करनेपर मनुष्यको चींटी की योनिमें जन्म लेना पड़ता है। निष्पाव ( मटर या उड़द ) को चोरी करनेवाला इलगोलक नामवाला कीड़ा होता है ।। ००॥ पायसं बोरयित्वा तु तित्तिरित्वमवाप्नुते । हत्या पिष्टमयं पूपं कुम्भौलूकः प्रजायते ॥१०१॥ खीरकी चोरी करनेवाला तीतरकी योनिमें जन्म लेता है। आटेका पूआ चुराकर मनुष्य मरने के बाद उल्लू होता है ।। १०१ ।। अयो हृत्वा तु दुर्बुद्धिर्वायसो जायते नरः । कांस्यं हृत्वा तु दुर्बुद्धिरितो जायते नरः ॥१०२॥ लोहेकी चोरी करनेवाला मूर्ख मानव कौवा होता है। काँसकी चोरी करके खोटी बुद्धिवाला मनुष्य हारीत नामक पक्षी होता है । १०२ ॥ [ मनुशासनपर्वाण जन्म लेता है। कौशेय ( रेशमी ) वस्त्रको चोरी करनेपर मनुष्य बत्तक होता है ।। १०४ ॥ है राजतं भाजनं हत्वा कपोतः सम्प्रजायते । हत्वा तु काञ्चनं माण्डं कृमियोनौ प्रजायते ॥१०३ ॥ चाँदीका बर्तन चुरानेवाला कबूतर होता है और सुवर्णमय भाण्डकी चोरी करके मनुष्यको कोड़ेकी योनि में जन्म लेना पड़ता है ।॥ १०३ ॥ अंशुकं चोरयित्वा तु शुको जायति मानवः । चोरयित्वा दुकूलं तु मृतोः हंसः प्रजायते ॥१०५ ॥ अंशुक ( महीन कपड़े ) की चोरी करके मनुष्य तोतेका जन्म पाता है तथा दुकूल ( उत्तरीय वस्त्र ) की चोरी करके मृत्युको प्रान हुआ मानव हंसकी योनिमें जन्म लेता है । १०५ ।। क्रौञ्चः कार्पासिकं हृत्वा मृतो जायत मानवः। चोरयित्वा नरः पट्ट् त्वाविकं चैव भारत ॥१०६॥ क्षौमं च वस्त्रमादाय शशो जन्तुः प्रजायते । सूती वस्त्रकी चोरी करके मरा हुआ मनुष्य क्रौञ्च पक्षीकी योनि में जन्म लेता है। भारत ! पाटम्बर, मेड़के ऊनका बना हुआ तथा क्षौन ( रेशमी ) वस्त्र चुरानेवाला मनुष्य खरगोश नामक अन्तु होता है ।। १०६३ ।। वर्णान् हत्वा तु पुरुषो मृतो जायत बर्हिणः ॥१०७॥ हत्वा रक्तानि वस्त्राणि जायते जीवजीवकः । पत्रोर्ण चोरयित्वा तु कृकलत्वं निगच्छति । कौशिकं तु ततो हत्वा नरो जायति वर्तकः ॥१०४॥ कनी वस्त्र चुरानेबाला कुकल ( गिरगिट ) की योनि में अनेक प्रकारके रंगोंकी चोरी करके मृत्युको प्राप्त हुआ पुरुष मोर होता है। लाल कपड़े चुरानेवाला मनुष्य चकोरको योनिमें जन्म लेता है ॥ १०७ ॥ वर्णका दींस्तथा गन्धांश्चोरयित्वेह मानवः ॥१०८॥ छुच्छन्दरित्वमाप्नोति राजँल्लोभपरायणः । तत्र जीर्वात वर्षाणि ततो दश च पञ्च च ॥ १०९५ राजन् ! जो मनुष्य लोभके वशीभूत होकर वर्णक ( अनुलेपन ) आदि तथा चन्दनकी चोरी करता है, वह छछूंदर होता है। उस योनिमें वह पंद्रह वर्षतक जीवित अधर्मस्य क्षयं गत्वा ततो जायति मानुषः । चोरयित्वा पयश्चापि बलाका सम्प्रजायते ॥११०॥ फिर अधर्मका क्षय हो जानेपर वह मनुष्यका जन्म पाता है। दूध चुरानेवाली स्त्री बगुली होती है ॥ ११० ॥ यस्तु चोरयते तैलं नरो मोहसमम्वितः । सोऽपि राजन् मृतो जन्तुस्तैलपायी प्रजायते ॥ १११॥ राजन् ! जो मनुष्य मोहयुक्त होकर तेल चुराता है, वह मरनेपर तेलपायी नामक कीड़ा होता है ॥ १११ ॥ मशस्त्रं पुरुषं हत्वा सशस्त्रः पुरुषाधमः । अर्थार्थी यदि वा वैरी स मृतो जायते खरः ॥११२॥ जो नोच मनुष्य धन के लोमसे अथवा शत्रुताके कारण हथियार लेकर निहत्ये पुरुषको मार डालता है, वह अपनी मृत्यु के बाद गदहेकी योनिमें जन्म पाती है । ११२ ॥
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बैकस्टोरीः हेली रेनहार्ट ने मूल रूप से अमेरिकी आइडल के सीज़न 9 के लिए कोशिश की, लेकिन उसे अपनी तकनीक पर काम करने और वापस आने के लिए कहा गया। न्यायाधीशों की सलाह पर ध्यान देते हुए, वह सीजन 10 में तीसरे स्थान पर रही। "ओह! डार्लिंग" (बीटल्स) हेलि रेनहार्ट ने मूल रूप से अमेरिकी आइडल के सीजन नौ के लिए ऑडिशन किया था और कहा गया था कि वह काफी तैयार नहीं थी लेकिन फिर से कोशिश करने के लिए, जिसने 10 सीज़न में किया था। उसके मिल्वौकी ऑडिशन के लिए, बीटल्स के क्लासिक "ओह! डार्लिंग" का उसका कवर बहुत था स्टाइलिज्ड और थोड़ी सी जगह पर, लेकिन उसने वादा दिखाया जिसने सभी तीन न्यायाधीशों को हॉलीवुड के माध्यम से वोट देने के लिए प्रेरित किया। "ओह! डार्लिंग" एबी रोड पर दिखाई दी, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में कभी भी एक के रूप में रिलीज़ नहीं हुई थी। बी गेज के रॉबिन गिब ने 1 9 70 के दशक में एसजीटी मिर्च के लोनली हार्ट्स क्लब बैंड मूवी के लिए गीत रिकॉर्ड किया और पॉप चार्ट पर गीत # 15 पर लिया। अमेरिकी आइडल पर सीज़न नौ के सेमीफाइनल दौर के दौरान केटलन एपपरलीपर ने गीत का प्रदर्शन किया। "फॉलिन" "(एलिसिया कीज) आपके पूरे जीवन में कुछ गाने हैं जिन्हें आप पहली बार याद कर सकते हैं, और आमतौर पर यह गीत अनोखा था और आपके साथ एक तार था। ऐसे कई लोगों के लिए ऐसा मामला है जो पहली बार याद करते हैं कि उन्होंने एलिसिया कीज़ के पहले एकल "फॉलिन" को सुना था, जिसे 2001 में दुनिया में प्रदर्शित किया गया था। यह गीत प्रतिभा के साथ इतना लोकप्रिय रहा है कि इसे इस्तेमाल होने से प्रतिबंधित किया गया है ऑस्ट्रेलियाई आइडल, लेकिन हेली रेनहार्ट ने इसे शीर्ष 24 सप्ताह के दौरान लिया और इसे अपनी सफलता के साथ खुद बनाने की कोशिश की। "ब्लू" (लीन रेम्स) "मैं तुम्हारा बच्चा आज रात हूँ" (व्हिटनी ह्यूस्टन) "ब्लू" के शीर्ष 12 सप्ताह के प्रदर्शन के बाद थोड़ा सा फ्लैट गिरने के बाद हेली रेनहार्ट अपनी छवि को हिलाकर देख रहे थे । न्यायाधीशों ने हेलि रेनहार्ट की संगीत दिशा पर सही तरीके से सवाल उठाया, क्योंकि ऐसा लगता था कि वह हर हफ्ते संगीत की एक अलग शैली करता है, और जेनिफर लोपेज़ ने अपनी अजीब चालों का हवाला दिया। "मैं आपका बच्चा आज रात" शीर्षक ट्रैक था और 1 99 0 में रिलीज हुई व्हिटनी ह्यूस्टन के तीसरे एल्बम से पहला एकल था, और यह व्हिटनी का आठवां नंबर एकल एकल बन गया। "आप वास्तव में मुझे पकड़ लिया है" (चमत्कार) हेली रेनहार्ट के शीर्ष 11 सप्ताह में "यू आर रीली गॉट ए होल्ड ऑफ मी" का प्रदर्शन लाइव शो के दौरान पहला था जहां सभी तीन न्यायाधीशों ने अपनी उदासीन, भावनात्मक स्वर वितरण के लिए उच्च प्रशंसा की। जबकि एक अच्छा प्रदर्शन अमेरिकी आइडल पर एक प्रतियोगी को बचाने की दिशा में एक लंबा सफर तय करेगा, सीजन 10 पर गायकों की गुणवत्ता इतनी ऊंची थी कि हैली रेनहार्ट को गायन प्रतियोगिता में अग्रदूत के रूप में परिभाषित करने के लिए एक बड़ा संघर्ष होगा। जबकि अधिकांश लोग स्मोकी रॉबिन्सन के साथ "यू आर रीली गॉट ए होल्ड ऑफ मी" को जोड़ते हैं, लेकिन गीत को केवल चमत्कारों में श्रेय दिया जाता था जब इसे 1 9 62 में रिलीज़ किया गया था और पॉप और आर एंड बी चार्ट दोनों में शीर्ष 10 तक पहुंच गया था। "बेनी एंड द जेट्स" (एल्टन जॉन) पीस ऑफ माई हार्ट "(बिग ब्रदर एंड होल्डिंग कंपनी) हेली रेनहार्ट ने अमेरिकी आइडल सीज़न 10 के शीर्ष 11 रेडक्स सप्ताह के दौरान बहुत सी गति उठाई, जब उन्होंने "बेनी और जेट्स" का प्रदर्शन किया, और न्यायाधीशों ने महसूस किया कि शीर्ष 9 सप्ताह के दौरान गति जारी है, जिसका प्रदर्शन "टुकड़ा" मेरा दिल। " हालांकि गीत को आम तौर पर जेनिस जोप्लिन को श्रेय दिया जाता है, लेकिन उनकी संख्या 12 हिट के लिए उचित क्रेडिट बिग ब्रदर और होल्डिंग कंपनी को जाता है, जो जेनिस जोप्लिन ने नेतृत्व किया था। "पीस ऑफ माई हार्ट" मूल रूप से 1 9 67 में एर्मा फ्रैंकलिन द्वारा दर्ज किया गया था, लेकिन देश के प्रशंसकों को इसे 1 99 4 से फेथ हिल की दूसरी नंबर एक हिट के रूप में पहचाना जाएगा। "मुझे कॉल करें" (ब्लोंडी) अमेरिकी आइडल के सीजन 10 में, गायकों की गुणवत्ता इतनी अधिक थी कि न्यायाधीशों की औसत समीक्षा भी चिंता का कारण हो सकती है। हेली रेनहार्ट ने शीर्ष 8 सप्ताह के दौरान ब्लॉन्डी के "कॉल मी" गायन के दौरान दुविधा का सामना किया, जिसमें अमेरिकी गिगोलो फिल्म शामिल थी। जबकि उनका प्रदर्शन ऊर्जावान था और उनके वोकल्स ठीक थे, हेली को दर्शकों से जुड़ने में कोई समस्या हो सकती थी। ब्लोंडी ने 1 9 80 में "कॉल मी" के साथ छह सप्ताह में छह सप्ताह बिताए, जिसने उस गीत में पूरे साल के नंबर एक गीत का योगदान दिया। "रोलिंग इन द दीप" (एडेल) जब न्यायाधीश जेनिफर लोपेज़ सीजन दस में अमेरिकी आइडल में शामिल हो गए, तो कुछ चिंता थी कि वह सिर्फ पाउला अब्दुल को "अच्छे न्यायाधीश" के रूप में बदल सकती हैं। हालांकि वह पैनल पर एक दोस्ताना उपस्थिति रही है, जेनिफर लोपेज ने पूरे सत्र में प्रतिभागियों को कुछ स्वागत रचनात्मक प्रतिक्रिया भी जोड़ा है। हेली रेनहार्ट ने उस फीडबैक को प्राप्त किया जब लोपेज़ ने संकेत दिया कि रेनहार्ट " रोलिंग इन द दीप " के शीर्ष 7 सप्ताह की प्रस्तुति में अपनी पूरी क्षमता नहीं दिखा रहा था। एडेल ने अपना पहला यूएस नंबर एक "रोलिंग इन दी दीप" के साथ बनाया, जो प्रसारण के समय दस नंबर पर पहुंच गया था। हैली रेनहार्ट ने गीत का प्रदर्शन करने के बाद सुबह आईट्यून्स एकल चार्ट पर नंबर एक पर लौट आया। "मैं पृथ्वी को महसूस करता हूं" (कैरोल किंग) अमेरिकन आइडल सीज़न 10 पर शीर्ष 6 रात का पहला युगल हेली रेनहार्ट और केसी अब्राम के पास गया, जिन्होंने "आई महसूस महसूस किया। " केसी अब्राम और हेली रेनहार्ट के बीच रसायन इतनी मजबूत थी कि न्यायाधीश स्टीवन टायलर ने केसी से पूछा कि वह कितने समय से हैली से प्यार कर रहा था, जो दोनों के मित्रता के स्तर के बारे में अफवाहें और अटकलों को बढ़ावा देता था। जबकि "आई फेल द अर्थ मूव" कैरोल किंग के पहले नंबर एक सिंगल के साथ "इट्स टू लेट" के साथ बन गया, इस गीत ने पॉप गायक मार्टिका के लिए 1 9 8 9 में दूसरी बार बिलबोर्ड हॉट 100 को भी मारा, जिसने अपनी तीसरी शीर्ष 40 हिट उनका पहला आत्म-शीर्षक एल्बम। "खूबसूरत" (कैरोल किंग) यदि अमेरिकी आइडल ने सबसे बेहतर प्रतियोगी के लिए अतिरिक्त अंक दिए हैं, तो हैली रेनहार्ट फिर से नीचे तीन में दिखाई नहीं देगी। कैरोल किंग के "सुंदर" के शीर्ष 6 प्रदर्शन से पता चला कि उनकी आवाज शक्तिशाली और व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य है। "सुंदर" कैरोल किंग की 1 9 71 की उत्कृष्ट कृति टेपेस्ट्री से एक एल्बम काट था, और रिचर्ड मार्क्स और बारब्रा स्ट्रिसेंड जैसे कलाकारों द्वारा कवर किया गया है। "तुम और मैं" (लेडी गागा) हेली रेनहार्ट को शीर्ष तीन सप्ताह में गाए जाने के लिए एक निरस्त गीत का चयन करने के लिए सभी तीन न्यायाधीशों से अमेरिकी आइडल सीज़न 10 की सबसे भ्रमित और निराशाजनक प्रतिक्रिया मिली। असल में, रिलीज़ किया गया गीत लेडी गागा की अत्यधिक प्रत्याशित तीसरी सीडी से एक अग्रिम ट्रैक था, लेकिन जेनिफर लोपेज़ और रैंडी जैक्सन दोनों ने केवल अपने गीत की पसंद की आलोचना की बजाय यह उल्लेख किया कि उसके स्वर कितने मजबूत थे या उन्होंने क्या किया अधिक समकालीन गीत। "आप और मैं" लेडी गागा की तीसरी सीडी बोर्न द वे से एक रॉबर्ट जॉन "मठ" लेंज-निर्मित ट्रैक है, जिसे 24 मई, 2011 को हेल रेनहार्ट ने गीत गाए जाने के तीन हफ्ते बाद रिलीज होने वाला था। "राइजिंग सन का घर" (पशु) अमेरिकन आइडल सीजन 10 के शीर्ष 5 सप्ताह की हाइलाइट, और संभवतः पूरे सीज़न में, हैली रेनहार्ट द्वारा "हाउस ऑफ द राइजिंग सन" का शक्तिशाली प्रदर्शन था। गीत के पहले नोट्स से जहां हैली ने पूरे बैंड के साथ शक्तिशाली बंद करने के लिए कैपेला गाया था, हैली दो मिनट के भीतर दावेदार से आगे दौड़ने वाली थी, और उन लोगों को भ्रमित कर रहा था जो 10 सत्र के लिए विजेता चुनने की कोशिश कर रहे थे। "राइजिंग हाउस सूर्य "18 वीं शताब्दी में एक लोक गीत के रूप में शुरू हुआ, लेकिन आधुनिक सफलता मिली जब जानवरों ने गीत का एक रॉक संस्करण रिकॉर्ड किया और इसे 1 9 64 में अमेरिका और ब्रिटेन में पॉप चार्ट पर नंबर एक पर ले गया। "अर्थ गीत" (माइकल जैक्सन) अमेरिकी आइडल जैसे शो को देखना असंभव है और 100% निष्पक्ष रहता है, और यही वह तरीका है कि वास्तविकता टीवी निर्माता वफादारी बनाने का प्रयास करते हैं जो दर्शकों को हर हफ्ते वापस आते रहते हैं। हेली रेनहार्ट की वफादारी को शीर्ष 4 सप्ताह में परीक्षण में डाल दिया गया था , क्योंकि प्रशंसकों ने जेनिफर लोपेज़ और रैंडी जैक्सन की "अर्थ सॉन्ग" के कवर के बारे में आलोचना की थी। जबकि रैंडी जैक्सन ने कहा कि हैली रेनहार्ट ने गीत के अंत में चिल्लाया और जेनिफर लोपेज़ ने केवल गीत पसंद के बारे में बात की, हैली के प्रशंसकों ने एक प्रभावशाली प्रतिपादन सुना। "पृथ्वी गीत" संयुक्त राज्य अमेरिका में माइकल जैक्सन के लिए केवल एक मामूली सफलता थी, लेकिन यह 1 99 5 के अंत में 14 देशों में नंबर एक रैंकिंग को पीछे छोड़कर कहीं और भारी हिट थी। "मैं (किसके पास कुछ नहीं है)" (बेन ई किंग) "क्या है और क्या कभी नहीं होना चाहिए" (लेड ज़ेपेल्लिन) अमेरिकी आइडल सीजन 10 में हेली रेनहार्ट के पास एक और शानदार क्षण था, जो शीर्ष 3 सप्ताह के अपने पहले गीत के रूप में लेड ज़ेपेल्लिन गाते थे। हालांकि प्रदर्शन के दौरान हेली रेनहार्ट गिर गया, फिर भी वह वापस आ गई और दर्शकों को उसके जादू के नीचे रखा। हेली रेनहार्ट के स्पिल के नेतृत्व में न्यायाधीश स्टीवन टायलर ने कहा, "यह नहीं है कि आप कितनी बार गिरते हैं, यह कितना बार उठता है," एक उद्धरण जिसने शीर्ष 3 पर हैली के रन को सारांशित किया। "क्या है और क्या कभी नहीं होना चाहिए" लेड ज़ेप्पेलिन के दूसरे एल्बम पर उचित रूप से शीर्षक दिया गया । भले ही "क्या है और क्या कभी नहीं होना चाहिए" उस समय एक के रूप में जारी नहीं किया गया था, यह लेड ज़ेप्पेलिन के सबसे सम्मानित गीतों में से एक बन गया है। "रियानॉन" (फ्लीटवुड मैक) जिमी इवोइन अमेरिकी आइडल सीजन 10 के शीर्ष 3 प्रतियोगी के लिए अपने गीत विकल्पों के साथ तीन-तीन-तीन गए। हेली रेनहार्ट के लिए उनका "रियानान" का चयन प्रेरित था, और हेली एक कमजोर, परिष्कृत पल के साथ आया। जब "रियानॉन" को अपने स्वयं के शीर्षक वाले एल्बम से 1 9 76 में फ्लीटवुड मैक द्वारा एकल के रूप में रिलीज़ किया गया था, तो यह पॉप चार्ट पर नंबर 11 तक पहुंचने में बड़ी सफलता थी। हालांकि, यह सफलता एक कीमत के साथ आई, क्योंकि कई श्रोताओं ने गीत और उसके लेखक स्टीवी निक्स को जादूगर के साथ जोड़ा। "आप Oughta पता" (एलानिस Morissette) शो को लपेटकर और न्यायाधीशों के पसंद के गाने हेली रेनहार्ट थे, जिन्होंने एलानिस मॉरिसेट के "यू ओघटा नो" के एक निश्चित रूप से मिश्रित संस्करण में बदल दिया। सभी तीन न्यायाधीशों ने कोरस को एक हाइलाइट के रूप में उद्धृत किया, लेकिन छंदों पर हैली रेनहार्ट की डिलीवरी थोड़ा सा फ्लैट थी। आश्चर्यजनक रूप से, "आप ओघटा नो" अपने शुरुआती 1995 की रिलीज में कभी भी बिलबोर्ड हॉट 100 तक नहीं पहुंचे क्योंकि मावेरिक / वार्नर ब्रदर्स रिकॉर्ड्स ने गीत के लिए कभी भी एक एकल रिलीज नहीं किया था, जिससे गीत चार्ट के लिए अपात्र था, लेकिन एल्बम जगज्ड लिटिल पिल्ल को बहुपक्षीय स्थिति में कैटापल्ट कर रहा था। यह अगले वर्ष तक नहीं था जब "यू ओग्टा नो" को "यू लर्न" के फ्लिप पक्ष के रूप में शामिल किया गया था, जो अंततः गीत 100 पर दिखाई देता था, जो छः नंबर तक पहुंच गया था। "ब्रीथेलेस" - कोरिने बेली राय (1 सेंट हॉलीवुड वीक सोलो) "कैरी ऑन वेवर्ड सोन" - कान्सास (हॉलीवुड समूह) "भगवान आशीर्वाद बच्चे" - बिली हॉलिडे (अंतिम हॉलीवुड वीक सोलो) "बेबी इट्स यू" - द शियरलेल्स (टॉप 40)
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मुख्य समाचार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज करेंगे आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना का शुभारम्भ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा सरकार गरीबों के उत्थान के लिए कर रही है सतत् प्रयास इस दिशा में अनेक जन कल्याणकारी योजनाएं की जा रही है संचालित उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकार सबका साथ सबका विकास के मूल मंत्र पर कर रही है काम उप मुख्यमंत्री डॉ0 दिनेश शर्मा ने कहा प्रदेश सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए उठा रही है प्रभावी कदम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना का शुभारम्भ करेंगे देश भर में शुरू हो रही इस योजना के बारे में प्रधानमंत्री ने बताया कि स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की दिशा में यह योजना मील का पत्थर साबित होगी श्री मोदी ने कल ओडिसा के तालचेर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए यह बात कही उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत दस करोड़ से ज्यादा गरीबों को पांच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा प्रधानमंत्री ने कहा कि केन्द्र सरकार देश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है आयुष्मान भारत योजना के तहत कल से प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना पीएम जय इसकी शुरूआत हो रही है इस योजना के तहत देश के दस करोड़ गरीब परिवारों को करीबकरीब पचास करोड़ लोगों को अगर गंभीर बीमारी के इलाज के लिए आवश्यकता पड़ेगी तो सालभर में पांच लाख रूपये तक का हेल्थ इंश्योरेंश दिया जाएगा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि केन्द्र किसानों के समग्र विकास और कल्याण के लिए वचनबद्ध है कल ही छत्तीसगढ़ के जांजगीर में एक किसान सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने किसानों के लाभ के लिए फसल बीमा योजना किसान सम्पदा योजना मृद्रा स्वास्थ्य कार्ड और अन्य योजनाएं शुरू की हैं उन्होंने कहा कि इन कार्यक्रमों का उद्देश्य दो हजार बाईस तक किसानों की आमदनी दोगुनी करना है श्री मोदी ने कहा कि सरकार की नीतियों का लक्ष्य आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है गांव के जीवन में किस प्रकार से परिवर्तन आ रहा है हर नागरिक के दिल में किस प्रकार से सपने आकार भी ले रहे हैं और साकार भी हो रहे हैं क्योंकि सरकार का इरादा नेक है हमारी नीतियां स्पष्ट है हमारी नियत साफ है एक ही मकसद हैसामान्य मानवीय के जीवन में बदलाव लाना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल सत्तासी करोड़ सत्तावन लाख रूपये की लागत से गोरखपुर में कुल छत्तीस परियोजनाओं का शिलान्यास तथा लोकार्पण किया जिसमें तीस करोड़ रूपये की लागत से नौ परियोजनाओं का शिलान्यास तथा सत्तावन करोड़ सत्तावन लाख रूपये की सत्ताईस परियोजनओं का लोकार्पण किया इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी आसरा योजना के सातसात लाभार्थियों को आवास की प्रतीक चाभी और प्रमाण पत्र तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत सात लाभार्थियों को अन्त्योदय और पात्र गृहस्थी का राशन कार्ड वितरित किया इस अवसर पर अपने सम्बोधन में मुख्यमंत्री ने लाभार्थियों के प्रति अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि वे अपने आवंटित आवासों में रहें उन्होंने कहा कि सरकार गरीबो के उत्थान के लिए सतत् प्रयासरत है और इस दिशा में अनेक जन कल्याणकारी योजनाएं संचालित कर रही है श्री योगी ने कहा कि सरकार ने कुष्ठ रोगियों को एकएक मुख्यमंत्री आवास राशनकार्ड प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है उन्होंने कहा कि वनटांगियां मुसहर थारू एवं अन्य जन जातियों के लोगों को भी राशन कार्ड पेंशन और अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जायेगा जिससे उनका सामाजिक उत्थान हो सके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बरेली बदायूं शाहजहांपुर पीलीभीत बहराइच सीतापुर और हरदोई सहित प्रदेश के सभी जिलों में संक्रामक बीमारियों पर प्रभावी नियंत्रण के निर्देश दिये हैं राज्य के बरेली देवी पाटन और लखनऊ मंडल के सात जनपदों में बुखार के रोगियों में वृद्धि के मद्देनज़र श्री योगी ने अधिकारियों से संक्रामक रोग नियंत्रण कार्य योजना का पूरी तरह क्रियान्वयन करने को कहा है इस बारे में जानकारी देते हुए सरकारी प्रवक्ता ने बताया है कि मुख्यमंत्री के निर्देशों के अनुसार स्वास्थ्य विभाग प्रभावित इलाकों में व्यापक स्तर पर ज़रूरी उपाय कर रहा है जिला मुख्यालय में संचालित सभी सरकारी अस्पतालों में फीवर हेल्प डेस्क बनाई गई है जहां बुखार पीड़ित मरीजों की जांच और विशेष देखभाल की जा रही है इसी तरह प्रभावित क्षेत्रों में ब्लाक स्तरीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में भी बुखार पीड़ितों के लिए जांच और ज़रूरी इलाज की व्यवस्था की गई है प्रवक्ता ने बताया कि इस समय सबसे ज्यादा प्रभावित बरेली जिले में एक सौ बावन टीमें सक्रिय है और एक राज्य स्तरीय टीम सभी कार्यो की निगरानी कर रही है जनपद के दस ब्लाकों के तकरीबन एक सौ पचास गांव प्रभावित पाये गये हैं जहां स्वास्थ्य टीमें घरघर जाकर इक्यासी हज़ार से ज्यादा रोगियों को चिन्हित कर चुकी है इन टीमों ने लगभग साढ़े तीन हज़ार बुखार पीड़ितों की जांच और उनका इलाज किया है बहराइच जिले के दो विकास खंडों में बारह गांव बुखार से सर्वाधिक प्रभावित हैं यहां सक्रिय स्वास्थ्य टीमों ने अब तक अड़सठ मरीजों की जांच और उनका उपचार किया है आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक इन प्रभावित जिलों में किसी रहस्यमयी बुखार का प्रकोप नहीं है बल्कि मलेरिया बुखार फैल रहा है उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकार सबका साथसबका विकास के मूल मंत्र पर समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए काम कर रही है श्री मौर्य कल लखनऊ में भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा द्वारा आयोजित सामाजिक प्रतिनिधि बैठक में लोगों को संबोधित कर रहे थे उन्होंने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिये जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि पिछड़ा वर्ग को हर तरह का न्याय दिलाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है श्री मौर्य ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपना एकएक पल राष्ट्र के नव निर्माण के लिए समर्पित कर रहे हैं उन्होंने कहा कि कांग्रेस और उसके समर्थन में खड़ी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ऐसे परिश्रमी प्रधानमंत्री की कार्यशैली और उनके कार्यों पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं इसका जवाब देश की समझदार जनता ही देगी उन्होंने कहा कि सपा बसपा और कांग्रेस के शासनकाल में गरीबों को उनका हक जाति और धर्म देखकर दिया जाता था जबकि मौजूदा सरकार सबका साथसबका विकास की नीति पर काम करते हुए हर वर्ग को उसका हक दे रही है उधर उप मुख्यमंत्री श्री मौर्य ने फैजाबाद में फैजाबाद सुल्तानपुर अम्बेडकर नगर अमेठी और बाराबंकी जिलों की एक सौ उन्नीस परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया प्रदेश के उप मुख्यमंत्री डॉ0 दिनेश शर्मा ने कहा है कि राज्य सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए प्रभावी कदम उठा रही है श्री शर्मा कल जौनपुर में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में पंडित दीन दयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वावधान में आयोजित एक सेमिनार में भाग लेने के बाद मीडिया से बातचीत कर रहे थे उन्होंने कहा कि प्रदेश में जल्द ही छियालीस राजकीय डिग्री कॉलेज खोले जायेंगे उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शोध भी उनकी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है डॉ0 शर्मा ने कहा कि बोर्ड और विश्वविद्यालय में नकलविहीन परीक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रदेश सरकार कृतसंकल्प है और इसके लिए प्रभावी उपाय किये जा रहे हैं वस्तु और सेवा कर जी एस टी का भुगतान करने वाले डीलरों के लाभ के लिए नया सरलीकृत जी एस टी रिटर्न फॉर्म छह महीने में उपलब्ध हो जाएगा बेंगलुरु में जी एस टी नेटवर्क के बारे में मंत्री समूह की दसवीं समीक्षा बैठक के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री और मंत्री समूह के प्रमुख सुशील कुमार मोदी ने बताया कि इंफोसिस से कहा गया है कि वह जी एस टी परिषद की सिफारिश के आधार पर नया फॉर्म तैयार करे यह जी एस टी रिटर्न दाखिल की प्रक्रिया को और आसान बना देगा किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के हिमेटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर एके त्रिपाठी ने आम जन मानस में एनीमिया रोगों के प्रति जागरूकता के लिए संवरती जिन्दगी नाम की एक फिल्म तैयार की है अपनी फिल्म के बारे में उन्होंने बताया कि एनीमिया हमारे देश में बहुत ज्यादा व्याप्त है आधा से तीन चौथाई जनता इससे पीड़ित है इसकी वजह से बच्चों में महिलाओं में बुजुर्गों में सभी को परेशानी होती है तरहतरह की बीमारियां और पैदा हो जाती हैं क्योंकि पन्चानबे प्रतिशत केसेज में एनीमिया तत्वों की कमी से होती है और यह किसी गरीबी की वजह से नहीं है ये इस वजह से होती है क्योंकि हम जागरूक नहीं हैं जीवन शैली का सही प्रयोग नहीं करते हैं और लापरवाही करते हैं अज्ञानतावश जागरूक करने की तरहतरह की विधाएं हैं वैसे मैं अस्पताल में मरीजो को एवं उनके तीमरदारो को बताते हैं तो इस प्रयास में हम लोगों ने एक लघु फिल्म संवरती जिन्दगी बनाई
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Small Cell Cancer Symptoms: स्मोकिंग के दौरान छोड़ा जाने वाला धुआं सांस के द्वारा दूसरों के भीतर जाता है। Small Cell Cancer Symptoms: अगर आप धूम्रपान करने वालों में से हैं तो आप को कई तरह की स्वास्थ्य परेशानियां हो सकती हैं। लंग कैंसर उनमे से सबसे आम है। आज हम आपको धूम्रपान और एससीएलएस जोखिम स्तर, और उसके जोखिम को कम करने के तरीके बताने जा रहे हैं। स्मॉल सेल कार्सिनोमा (एससीएलसी) सभी फेफड़ों के कैंसर के 10% से 15% के बीच होता है। आमतौर पर फेफड़ों के कैंसर के इस आक्रामक रूप के दो प्रकार मौजूद हैंः तेजी से बढ़ने वाले ये कैंसर बेहद घातक होते हैं। वास्तव में, निदान के समय, एससीएलसी वाले लगभग 70% लोगों में उनके कैंसर का मेटास्टेटिक फैलाव होता है। विकिरण और कीमोथेरेपी से थोड़ी राहत मिलती है। धूम्रपान केवल SCLC जोखिम कारक नहीं है। अन्य जोखिम कारक नीचे दिए गए हैं। स्मोकिंग के दौरान छोड़ा जाने वाला धुआं सांस के द्वारा दूसरों के भीतर जाता है। सेकेंड हैंड धुएं और फेफड़ों के कैंसर के बीच संबंध सर्वविदित है - लगभग 7,300 लोग हर साल फेफड़ों के कैंसर के पुराने धुएं से संबंधित रूपों से मर जाते हैं - लेकिन ऐसे प्रमाण बढ़ रहे हैं जो आक्रामक एससीएलसी के बढ़ते कारण के रूप में निष्क्रिय धुएं के संपर्क में आने की ओर इशारा करते हैं। इससे भी अधिक, सेकेंड हैंड धुएं से अस्थमा, वातस्फीति और सीओपीडी से कई बीमारियां होती हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती हो सकते हैं और आपके जीवन की गुणवत्ता में काफी कमी आ सकती है। रेडॉन एक रेडियोधर्मी रसायन है जो जमीन की मिट्टी में पाया जाता है। यह यू. एस. में फेफड़ों के कैंसर का दूसरा प्रमुख कारण है और धूम्रपान न करने वालों में कैंसर का पहला प्रमुख कारण है। उच्च रेडॉन का स्तर फेफड़ों में जमा हो सकता है जब यह निष्क्रिय, गंधहीन, रंगहीन गैस इमारत की नींव में दरार या छेद के माध्यम से घर के अंदर फंस जाती है। थोड़े समय के लिए रेडॉन एक्सपोजर हानिरहित हो सकता है। फिर भी, यदि एक विस्तारित अवधि के लिए उजागर किया जाता है, तो ये हानिकारक कण फेफड़ों की परत में प्रवेश कर सकते हैं और विकिरण छोड़ सकते हैं, आपके सेल के डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर ट्यूमर बना सकते हैं। एस्बेस्टस कैंसर के सबसे आम कारणों में से एक है, जो सभी मामलों में 18% और प्रति वर्ष लगभग 3,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है। यह तीन प्रकार के फेफड़ों के कैंसर का कारण बनता हैः गैर-छोटी कोशिका, छोटी कोशिका और मेसोथेलियोमा। ये कैंसर आमतौर पर एक्सपोजर के 15 या अधिक वर्षों बाद विकसित होते हैं। सीमेंट, फर्श की टाइलों और पाइपों जैसी निर्माण सामग्री में इसके उपयोग पर नियमों के कारण आज एस्बेस्टस फाइबर को अंदर लेना कम आम है। हालाँकि, पुराने घरों (1980 के दशक से पहले निर्मित) में यह अभी भी एक समस्या है। जिन घरों का निरीक्षण नहीं किया गया है या जिन्हें फिर से बनाया जा रहा है, उनके परिणामस्वरूप आप अनजाने में इस कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ के जहरीले स्तर को सांस ले सकते हैं। आवासीय वायु प्रदूषण से फेफड़ों का कैंसर शहरी अमेरिकी शहरों और दुनिया भर में चिंता का एक बढ़ता हुआ कारण है। कैलिफ़ोर्निया में, 350, 000 से अधिक लोगों को देखने वाले एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहते थे, उनमें एससीएलसी, एनएससीएलसी और एडेनोकार्सिनोमा विकसित होने की संभावना अधिक थी। हालांकि, संघ प्रारंभिक चरण के गैर-छोटे सेल कैंसर वाले लोगों के लिए थे, विशेष रूप से एडेनोकार्सिनोमा। इसी तरह के परिणाम दक्षिण कोरियाई अध्ययन में पाए गए, जिसमें पाया गया कि वायु प्रदूषण सभी फेफड़ों के कैंसर के मामलों का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है, जिसकी उच्चतम दर घनी आबादी वाले शहरी केंद्रों के आसपास है। आर्सेनिक के लिए लगातार संपर्क - आमतौर पर दूषित पानी या व्यावसायिक जोखिम के अनजाने अंतर्ग्रहण के माध्यम से - आजीवन गैर-धूम्रपान करने वालों में एससीएलसी के विकास से जुड़ा हुआ है। ध्यान दें, केस रिपोर्ट्स ने एससीएलसी के ऐसे मामलों की पहचान की है जो अस्थमा के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक चीनी दवाओं में पाए जाने वाले आर्सेनिक के लंबे समय तक संपर्क में रहने के बाद 30 वर्षों में उत्पन्न होते हैं। रेडिएशन थेरेपी आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला फेफड़ों के कैंसर का इलाज है, जो मुश्किल से दिखने वाले फेफड़ों के कैंसर कोशिकाओं को मारने, पुनरावृत्ति को कम करने या आपके कैंसर के वापस आने की संभावना को कम करने के लिए उपचार के दौरान या बाद में शुरू किया जाता है। विकिरण चिकित्सा एक्स-रे की उच्च खुराक का उपयोग तेजी से विभाजित होने वाले कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुंचाने के लिए करती है, इस प्रक्रिया में उन्हें नष्ट कर देती है। विकिरण चिकित्सा शायद ही कभी फेफड़ों के कैंसर का कारण बनती है, विशेष रूप से छोटे सेल उपप्रकार, लेकिन यदि ऐसा होता है, तो यह आमतौर पर इलाज किए जा रहे एक से अलग होता है। कभी-कभी आपके आनुवंशिकी आपको फेफड़ों के कैंसर का शिकार कर सकते हैं। यह उन व्यक्तियों में अधिक होने की संभावना है, जिनके परिवार के तत्काल गैर-धूम्रपान करने वाले सदस्य हैं जिन्हें फेफड़ों का कैंसर है या हुआ है। कुछ विरासत में मिले उत्परिवर्तन माता-पिता से उनके बच्चों में पारित किए जा सकते हैं, हालांकि इन जीनों और फेफड़ों के कैंसर के सटीक विकास के बीच संबंध स्थापित नहीं किया गया है। राष्ट्रव्यापी स्वीडिश परिवार-कैंसर डेटाबेस के अंतर्राष्ट्रीय डेटा में फेफड़ों के कैंसर से प्रभावित माता-पिता की संतानों के लिए फेफड़ों के कैंसर का 1. 77% बढ़ा जोखिम और इससे भी अधिक जोखिम-भाई बहनों के बीच 2. 15% पाया गया। फेफड़े के कैंसर के पारिवारिक रूप कई गैर-आनुवंशिक कारकों से प्रभावित हो सकते हैं, जिसमें समान जीवन शैली, जैसे आहार और व्यायाम, और समान वातावरण, जैसे उच्च स्तर के इनडोर और बाहरी वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहना शामिल है। धूम्रपान छोड़ना, उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्र से बाहर जाना और मास्क पहनना, और आम तौर पर स्वस्थ जीवन जीना जिसमें सही खाना और व्यायाम करना शामिल है, आपके फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को कम करने के तरीके हैं, भले ही आप अपने आनुवंशिक प्रोफ़ाइल के आधार पर उच्च जोखिम में हों। यदि आप धूम्रपान नहीं करते हैं तो क्या आपको फेफड़ों का कैंसर हो सकता है? एस्बेस्टस, रेडॉन, सेकेंड हैंड स्मोक और वायु प्रदूषण जैसे जहरीले पदार्थों के संपर्क में आना उन लोगों में फेफड़ों के कैंसर के सामान्य कारण हैं, जिनका धूम्रपान का इतिहास नहीं है। जो लोग अक्सर कार्यस्थल में निम्नलिखित, अक्सर रेडियोधर्मी पदार्थों के संपर्क में आते हैं, उनमें भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा अधिक होता हैः नॉन-स्मॉल सेल कार्सिनोमा (NSCLC) घातक लंग नियोप्लाज्म का सबसे आम प्रकार है, जो सभी फेफड़ों के कैंसर का 80% से 85% है। जबकि वर्तमान और पूर्व धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान करते समय या छोड़ने के वर्षों बाद इस प्रकार का कैंसर हो सकता है, अधिकांश गैर-धूम्रपान से संबंधित फेफड़ों के कैंसर भी इसी श्रेणी में आते हैं। एनएससीएलसी के तीन मुख्य प्रकार हैंः अन्य फेफड़े के ट्यूमर जो फेफड़ों को प्रभावित कर सकते हैं उनमें लिम्फोमा, एडेनोइड सिस्टिक कार्सिनोमा और सार्कोमा शामिल हैं। इन ट्यूमर के कारणों को आनुवंशिक स्थितियों या अज्ञातहेतुक कारणों से जोड़ा जा सकता है। नीचे दो तरीके दिए गए हैं जिनसे आप फेफड़ों के कैंसर के खतरे को कम कर सकते हैं। तंबाकू उत्पादों के हानिकारक रसायन एससीएलसी के सबसे बड़े दोषी हैं। जबकि धूम्रपान कभी नहीं करना और जल्दी छोड़ना फेफड़ों के कैंसर को रोकने के दो सबसे अच्छे तरीके हैं, नए शोध से पता चलता है कि किसी भी बिंदु पर छोड़ना-फेफड़े के कैंसर के निदान के बाद भी-आपके समग्र स्वास्थ्य दृष्टिकोण में काफी सुधार हो सकता है, जीवन को लम्बा खींच सकता है और बीमारी के बढ़ने के जोखिम को कम कर सकता है। फेफड़ों के कैंसर के शुरुआती लक्षण सूक्ष्म और गैर-विशिष्ट हो सकते हैं। अपने लक्षणों को किसी और चीज़ से जोड़ना आम बात है - भले ही आप लंबे समय से धूम्रपान करने वाले हों - जैसे अस्थमा या निमोनिया, लेकिन फेफड़ों के कैंसर के कई ऐसे संकेत हैं जिनसे आप अवगत होना चाहते हैं और जिन्हें आप अनदेखा नहीं करना चाहते हैं, जिनमें शामिल हैंः -खून खांसी (हेमोप्टाइसिस) -स्मॉल सेल लंग कैंसर फेफड़े के कैंसर का एक आक्रामक रूप है जो मुख्य रूप से सिगरेट पीने के कारण होता है। जब आप फेफड़ों के कैंसर के बारे में सोचते हैं, तो आप शायद पारंपरिक सिगरेट के बारे में सोचते हैं, लेकिन किशोर और युवा वयस्क आबादी में लोकप्रियता में वृद्धि के साथ ई-सिगरेट, वेप पेन और हुक्का केंद्र स्तर पर ले जा रहे हैं। ये तंबाकू उत्पाद पारंपरिक सिगरेट की तुलना में और भी अधिक अनियंत्रित हैं, इसलिए शरीर को होने वाले समग्र नुकसान अज्ञात हैं। इससे भी अधिक, फलों के स्वाद और भ्रामक विपणन रणनीतियाँ कभी-कभी युवाओं को यह सोचने के लिए प्रेरित कर सकती हैं कि ये उत्पाद उनके मुकाबले कम हानिकारक हैं।
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राजनीतिक विचार 143 (3) होंगल के राष्ट्रीय राय अन्तर्राष्ट्रीयदाद और युद्ध सम्वन्यो विवार होगत के राज्य सम्बन्ध विचरों से यह स्पष्ट है कि यह राष्ट्रीय राज्य (Nation State) का समर्थन करते हुए उसे गटर का मर्वोच्च रूप है। वह अतर्राष्ट्रीय अथवा विश्व व्यापी सगठन के राष्ट्रीय राज्य के ऊपर होने की कल्पना नहीं करता। होंगल की दृष्टि में राज्य के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न आत्मरक्षा का है। अपना अस्तित्व बायम रखने के लिए राज्य कोई कार्य करने को पूर्ण स्वतन्त्र है। रोगल के अनुसार, राज्य स्वय पूर्ण मस्तिष्व है जो अच्छाई और बुराई सन्मा और लम्पटल और धाखे बाजी आदि के भागयक नियमों को स्वीकार नहीं करता। राज्य को अन्य राज्यों में सम्बन्ध स्थापित करने में कोई आपति नहीं होती बशर्ते उससे उसकी सुरक्षा कायम रहती हो अन्तर्राष्ट्रीय सम्बय ऐसे प्रभुता सम्पन्न राज्यों के साथ होते है जो यह विश्वास करते हैं कि अपना हित उचित है तथा अपने के विरुद्ध कार्य करना पाप है अर्थात् जब राज्यों की विशेष इच्छारे आपसी समझौते से पूर्ण नहीं हो पाती तो विवाद को केवल युद्ध द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है। होल था गा है कि युद्ध को पूर्ण बुराई नहीं मानना चाहिए। वह युद्ध को धो दुर्म नहीं जनता होगा अतिवादी होने के कारण किसी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था एवं वनून वा समर्थन नहीं करता । होके अन्तर्राष्ट्रीयध के विचारों पर स्पष्टतया अराजकता को छाप है। (4) हीगल के दण्ड और सम्पति सम्वन्धी विवर होनी है किसी अधिकार के उल्लंघन होने पर राज्य का कर्तव्य हो जाता है कि वह अपराधों को ददिन करे उसी दृष्टि में दग्द का उद्देश्य सार्वजनिक सुरक्षा नहीं है, बल्कि इण्ड का अभिप्राय केवल यही है कि जिस अधिकार को अवज्ञ द्वारा जिस व्यक्ति के प्रति तथा समाज एवं न्याय-विधान के प्रति अत्याचार हुआ है उसका बदला लिया जा सके। के अनुसार जब अधिकार का अतिक्रमण हो इस अधिकार की स्थापना का एक मात्र उपाय पीड़ित व्यक्ति पर किए गर अन्याचार का सार्वजनिक निराकरण और द्वितीय उनके माध्यम से समाज और के मों पर अधिकार चेष्टा का निराकरण सम्पत्ति के विषय में हौगल को मान्यता थी कि व्यक्ति को पूर्णता के लिए उस आवश्है, क्योंकि इसके द्वारा व्यक्तिको इच्छा क्रियाशील रह सकती है। व्यक्तिगत सम्पति के अभाव में व्यक्तित्व का विकास सम्भव नहीं है। होगन के अनुसार सम्पति का निर्माण राज्य अथवा समाज नहीं करता है t प्रत्युत् यह मानत मित्य को अनिवार्य अवस्था (5) होगन के सविधान सम्वन्धी विचार होगल के अनुसार संविधान कोई आवश्यक कृति नहीं होती, बल्कि उसका निर्माण समान गाजिक, राजनीतिक संस्थाओं के भीतर अनेक पौडियों के न करने वाले जन समूहों की आदतों के अनुपालन से होता है हीगल ने संविधानिक शक्तियों को तीन भयों में बाँटा है- (1) विधायी (2) प्रशासनिक एव (3) राजतन्त्रात्मक (6) हीगल के इतिहास सम्यर्थी निवार हांगल के अनुसार, "इतिहराग नव आत्मा के आत्म-शोध के लिए की गई एक तीर्थ यात्रा है।" इतिहास का मार्ग मानव विदेक द्वारा प्रशस्त होता रहता है और विश्व इतिहास विश्व का निर्णय है। इस निर्णय से यहाँ अर्थ है कि एक जाति की दूसरी जाति पर विजय जो एक जाति से दूसरी जाति में विश्व चेतना के स्थानान्तरित होने से है। हींगल ने विश्व इतिहास को स्वाधीको अनुभूति की धार अवस्याओं में विभक्त किया है- (1) पौर्वात्य (2) यूनापी (3) रोमन एय (4) जर्मनी रोगन के अनुसार इतिहास को अपनी समस्याएँ होती है जिनके लिए उसके अपने समाधान होते हैं। हीगल के अनुसार, "इतिहास बुद्धिमानों का पथ प्रदर्शन करता है तथा मूर्खो को घसीटता है इतिहास का प्रजाह और मानव-समाज की व्यवस्थाओं का विकास नियमों के अनुसार होता है।" (7) होमल के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार होंगल के राजनीतिक चिन्तन का अधिक विवादास्पद विषय उसका वैयक्तिक स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार है । हौगल ने स्वतन्त्रता यो व्यक्ति के जीवन वा सार मानते हुए कहा था कि "स्वाधीनता मनुष्य का एक विशिष्ट गुण है जिसे अस्वीकार करना उसकी मनुष्यता को अस्वीकार करता है, इसलिए स्वाधीन होने का अर्थ है अपने अधिकारों और कर्तव्यों को तिलाजल दे देना, क्योंकि राज्य के अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु स्वाधीनता का प्रतीक नहीं हो सकती। गोगल के अनुसार राज्य स्वयं में एक साध्य होते हुए स्वतन्त्रता को प्रसारित करने का एक साधन है। विश्वात्मा का सार तत्व स्वतन्त्रता ही है और स्वतन्त्र चेतना को प्रगति विश्व का इतिहास है। जर्मन जाति को सर्वप्रथम इस चेतना की अनुभूति हुई कि मनुष्य एक मनुष्य के नाते स्वतन्त्र है। हीगल के अनुसार स्वतन्त्रता सामाजिक है जिसकी प्राप्ति सामाजिक कार्यों में भाग लेने से होती है। समाज और व्यक्ति के सहयोग के बिना कोई स्वतन्त्रता सम्भव नहीं है। सेबाइन के अनुसार, 12 वेपर राज दर्शन का स्वाध्ययन (हिन्दी] पू185186 144 प्रतियोगो राजनीति विज्ञान (खण्ड 1 ) "होल का विश्वास का कि स्वतन्त्रता को एक सामाजिक व्यवहार समझना चाहिए। वह दस विशेषता है जो समुदाय के नैतिक विकास के आधार पर उत्पन्न होती है। वह विसंगत प्रतिभा से वस्तु नहीं है। वह एक प्रकार की स्थिति है जो व्यक्ति को समुदाय की नैदिक और वैधानिक सत्याओं के माध्यम से प्राप्त होती है, अन उसे स्वेच्छा अथवा व्यक्तिगत प्रवृति नहीं माना जा सकता। स्वतन्त्र व्यक्तिगत क्षमता को महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य के निष्पादन में लगा देने में है। फार्ल मार्क्स जीवन-परिचय (Lafe Sketch) वैज्ञानिक समावद के नायक कामा ने समाजवाद को स्वप्नलोकसेर एक जनक्रान्ति के रूप में इस प्रकार बदल दिया है कि आज का युग समाजवाद का युग कहलने लगा है। कार्ल मार्क्स का जन्म एक मुश्री मध्यम वर्गीय परिवार में पश्चिम एशिया के ट्रोविन नगर में 5 मई, 1818 को हुआ था। उसका पिता एक साधारण बकोल तथा माता एक यहूदी महिला थी। मार्क्स बचपन में प्रतिभाशाल था। 1836 में मार्क्स ने न्यायशास्त्र के अध्ययन के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1841 में उसने जेना विश्वविद्यालय से डॉक्टर को उपाधि प्राप्त की। 1849 में मार्क्स मदन में बस गया और अपने जीवन के शेप 34 वर्ष वहीं विवार 1883 में मार्क्स का निधन हो मार्क्स के प्रस्थ (Works of Marx) - कार्ल मार्क्स की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ ये हैं(1) दो फिलासफी ऑफ पावरों (1847) (The Philosophy of Poverty, 1843) (2) दो कम्युनिस्ट मैनफेस्टो (1848) (The Communist Manifesto 1848) (3) दास कैपीटल (1867) (Das Capital, 1867) (4) क्लास स्ट्रगल इन फ्राँस ( Class Struggle in France) 1. मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद सम्बन्धी विचार मार्क्सवादी समाजवाद को सर्वहारा समाजवाद या वैज्ञानिक समाजवाद के नाम से सम्बोधित किया जाता है। माद अपने समाजवाद को वैज्ञानिक मानता है, क्योंकि यह इतिहास के अध्ययन पर आधारित है। मार्क्स का दर्शन विराट तथा सुगम्बन्ध है। केटलिन के अनुसार, उसका क्रान्तिकारी कदम वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त पर स्थित है, वर्ग संघर्ष अतिरिक्त मूल्य के आर्थिक सिद्धान्त पर, आर्थिक सिद्धान्त इतिहास को आर्थिक व्याख्या पर आर्थिक व्याख्या मार्क्स के हवाद पर और द्वन्द्ववाद भौतिकवादी आध्यात्मिक किया पर स्थित है। स्पष्टत मार्क्स की विचारधारा के चार आधार स्तम्भ है- (1) द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism), (2) इतिहास की विवादी व्याख्या (Materialistic Interpretation of History), (3) वर्ग सघर्ष का सिद्धान्त (Theory of Class Struggle) एवं (4) अतिरिक् मूल्य का सिद्धान्त (Theory of Surplus Value) ( (1) इन्द्वात्मक भौतिकवाद कार्ल मार्क्स का सम्पूर्ण राजनीतिक दर्शन द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त पर आधारित है। इन्द्वात्मक भौतिकवाद मार्क्स के दर्शन को बढ़ाता है जिस आश्रय समस्त साम्यवादी लेते है। शार्ट हिस्ट्री ऑफ दी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ दो मोति यूनियन में अधिकृत रूप से कहा गया है कि द्रवाद की सहायता से दल प्रत्येक स्थिति के प्रति सही दृष्टिकोण बना सकता है। सामयिक घटनाओं के आन्तरिक सम्बन्धों को समझ सकता है, उनकी दिशा को जान सकता है कि वे वर्तमान में किस प्रकार और किस दिशा में चल रही है, वह यह भी देख सकता है कि भविष्य में उनकी दिशा क्या होगी मार्क्स के अनुसार भौतिक पदार्थ इस जगत् का आधार है। भौतिक जगत् की वस्तुएँ तथा घटना परस्पर अवलम्बित है। भौतिक जगत् में परिवर्तन होता रहता है। कुछ प्रवृत्तियों विकसित होती है, कुछ नष्ट होती है तो कुछ पुनरावृत्ति होती है। यह विकासक्रम निरन्तर चलता रहता है। मार्क्स कहता है कि विकास की पृष्ठभूमि में समस्त प्राकृतिक पदार्थों में एक आभ्यंतरिक विरोध रहता है जिससे भौतिक जगढ़ का विकास होता है। इसके तीन अग होते है- (1) वाद (2) प्रतिवाद एव (3) सवाद अथवा सश्लेषण । 1. सेवाइन राजनैदिक दर्शन का इतिहस सुन्ड 2 पू 616 2. Quoted in Carew Theory and Practice of Communism, p 28.
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यह भी सुनें या पढ़ेंः गुजरात में बैठे अतीक अहमद ने कैसे रची यूपी दहलाने की साजिश? मनीष जी, उमेश पाल अपहरण केस का फैसला 17 साल बाद आया, जबकि पिछले महीने ही उनकी सरेआम हत्या भी कर दी गई। उसमें भी अतीक अहमद ही मुख्य आरोपी है। तो क्या था ये 17 साल पुराना मामला और उम्रकैद की सजा सुनाते हुए क्या कहा है कोर्ट ने? Umesh Pal Hatyakand: यूपी में कानून व्यवस्था को लेकर क्यों मचा शोर? जी, आपको बता दें कि उमेश पाल की पिछले महीने 24 फरवरी को धूमनगंज, प्रयागराज में हत्या कर दी गई थी। वह बसपा के पूर्व विधायक राजू पाल की हत्या में मुख्य गवाह थे। 28 फरवरी 2006 को इनका अपहरण कर लिया गया था। आज का फैसला इसी अपहरण के मामले में आया है। दरअसल, ये मामला इतना चर्चित था, उसके बावजूद उमेश पाल लगातार अपहरण को लेकर शिकायतें दर्ज कराते रहे, थाने में दौड़ते रहे लेकिन उनकी एफआईआर तक दर्ज नहीं हो रही थी। जब बीएसपी की सरकार बनी तब 5 जुलाई 2007 में इस मामले की एफआईआर दर्ज हुई। अतीक का प्रयागराज में और सरकार में इतना दबदबा था कि इस पूरे मामले की एफआईआर ही दर्ज नहीं हो रही थी। आज इलाहाबाद में एमपी-एमएलए की स्पेशल कोर्ट ने इनको सजा सुनाई है, हालांकि इस पूरे मामले में 11 आरोपी बनाए गए थे। लेकिन इनमें सजा सिर्फ तीन को हुई है जिसमें माफिया अतीक अहमद, उनके वकील खान सोलत अनीस और शूटर है दिनेश पासी उनको सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। और क्षतिपूर्ति के रूप में एक-एक लाख का जुर्माना लगाया गया है। पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना अलग से लगाया गया है। यह उमेश पाल के परिवार को दिया जाएगा। इन सब मामले में पुलिस ने उनके भाई अशरफ को भी कोर्ट में पेश किया था। लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले इसलिए बरी कर दिया गया है। चूंकि अतीक अहमद पहले से ही हिरासत में थे, बाकी जो दो हैं खान सोलत अनीस और दिनेश पासी को तत्काल हिरासत में ले लिया गया है। यह मानिए कि जब से अतीक अपराध की दुनिया में है, तब से यह पहला मामला है, करीब 43-44 साल हो गए। 1979-80 में अतीक के ऊपर पहला केस दर्ज हुआ था। तब से 100 से ज्यादा मुकदमे हैं। तब से यह पहला मामला है जिसमें उसे सजा हुई है। बहुत बड़ी बात है कि 101 मामले दर्ज हैं, 44 साल बाद पहली बार किसी मामले में सजा हुई है तो कितना महत्वपूर्ण है ये? क्या बाकी अपराधियों के लिए एक बड़ा संदेश देता है ये फैसला? क्या अपराध पर लगाम लग पाएगी इससे? पे 100 मुकदमें थे और करीब 50 से ज्यादा मुकदमें अब भी हैं। 50 मामलों में या तो कहीं न कहीं गवाह नहीं आए, या साक्ष्य नहीं जुटे या कोर्ट ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी तो उन सब मामलों में बरी हो चुका है। और 12 मुकदमें तो ऐसे हैं जिनमें मुकदमा दर्ज हुआ लेकिन उसमें ट्रायल तक नहीं शुरू नहीं हो पाया। और 6 मुकदमों में पुलिस ने जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट तक लगा दी है। एक मामले में तो पुलिस ने ही बता दिया कि अतीक को गलत नामजद किया गया है। तो इस पूरे मामले से देख सकते हैं कि अतीक का खौफ कितना था। अगर थोड़ा पीछे चलें तो 25 जनवरी 2005 को जब बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या हुई थी और उमेश पाल ही अकेले ऐसे थे जो मुकर नहीं रहे थे। वो इस पर अड़े हुए थे कि हम अतीक को सजा दिलवा के रहेंगे। वह प्रयागराज के धूमनगंज इलाके में जा रहे थे मोटरसाइकिल से, तभी 2006 में 28 फरवरी को उनका अपहरण कर लिया गया। और उनको इतना टॉर्चर किया गया, इतना मारा-पीटा गया कि जब उसके कैद से छूटे तो बोलने की स्थिति नहीं थे। और उसके बाद एफआईआर दर्ज कराने के लिए भटकते रहे, पुलिस थाने जाते रहे। वहां के तमाम आला अफसरों से मिलकर शिकायत की लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। जुलाई 2007 में एफआईआर दर्ज हुई। तो अतीक का खौफ इतना है। ये भी माना जाता है कि पुलिस में भी उसके लोग हैं। आप इससे मान सकते हैं कि 100 मुकदमों में 50 मुकदमें ऐसे हैं जो जिसमें ढीली पैरवी के चलते कुछ हुआ ही नहीं। तमाम मामलों में न तो गवाह मिले, न साक्ष्य जिसकी वजह से वह दोषमुक्त हो गया। पुलिस खुद जिसमें कह रही हो कि अतीक तो इसमें था ही नहीं, तो इतना खौफ था। उसकी इतनी पूरी सेटिंग कह सकते हैं, तो जाहिर सी बात है कि इस पूरे खौफ, दबदबा को यह सजा खत्म करेगी। पहली बार सजा होना, इससे पुलिस का इकबाल होता है। अगर ये बात सामने आएगी कि कोर्ट सजा भी देती है और सजा से उनको आगे मुश्किलें आ सकती हैं, तो लोगों के मन में इससे पुलिस के प्रति, कोर्ट के प्रति इकबाल बुलंद होगा। आपने अतीक अहमद के खौफ की बात की। खौफ अतीक अहमद के अंदर भी दिखा जब सजा के बाद यूपी की जेल के बजाए उसने साबरमती जेल वापस भेजने की गुजारिश की। तो यूपी की जेल में क्यों नहीं रहना चाहता वह? और साबरमती जेल में किस मामले में बंद है? देखिए, एक किस्सा है जो पुराना है थोड़ा। 26 दिसंबर 2018 को को लखनऊ में रियल एस्टेट के व्यवसायी मोहित जायसवाल का किडनैप कर लिया गया। किडनैपिंग करने के बाद उनको कहीं ऐसी जगह नहीं ले जाया गया जो किसी बदमाश का अड्डा हो या मकान हो। उसको सीधे देवरिया जेल ले जाया गया, जहां पर अतीक अहमद बंद था। मोहित ने पुलिस वालों को खुद बताया कि अतीक और उसके साथियों ने मारा-पीटा, उनको धमकाया और करीब 45 करोड़ की प्रॉपर्टी अपने नाम लिखवा लिया। उसके बाद ये मामला इतना चर्चित हो गया, उसके बाद उसको बरेली जेल ट्रांसफर कर दिया गया। लोकसभा चुनाव नजदीक था तो बरेली जेल प्रशासन ने यह कहकर मना कर दिया कि अतीक अहमद बड़ा माफिया है, बड़ा गुंडा है इसको हम नहीं रखेंगे। इसके बाद चुनाव का हवाला देकर उसको नैनी जेल में शिफ्ट कर दिया गया। चूंकि ये पूरा मामला चर्चित हो चुका था तो 2019 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले दो ऑर्डर दिए। एक, सीबीआई जांच की जाए इस पूरे मामले की और उन्होंने कहा कि अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश से बाहर किसी जेल में शिफ्ट किया जाए। दरअसल, कोर्ट का और लोगों का मानना था कि अतीक अहमद का जेलों में सिक्का चलता है। जैसे आपने देखा कि वह देवरिया जेल में है और एक रियल एस्टेट व्यवसायी को किडनैप करके वहां ले जाया गया और वहां उसको मारा-पीटा गया। उसके बाद जून 2019 में उसको अहमदाबाद के साबरमती जेल में शिफ्ट कर दिया गया। साबरमती जेल में वह अपने आपको थोड़ा सुरक्षित महसूस कर रहा है क्योंकि उसके तमाम साथी उमेश पाल हत्याकांड के बाद गायब हैं। कहीं छिप गए हैं। अब उसका नेटवर्क लगभग-लगभग ध्वस्त हो चुका है। तो उसको डर है कि जेल में कुछ भी हो सकता है क्योंकि उसने लोगों से केवल दुश्मनी ही मोल ली है तो जेलों में उसके तमाम दुश्मन भी मौजूद हैं। इसलिए उसने मांग कि है कि उसे साबरमती जेल शिफ्ट कर दिया जाए। और उमेश पाल अपहरण केस में तो उसे सजा हो गई लेकिन अब उमेश पाल की हत्या भी पिछले महीने कर दी गई। उसमें भी वह आरोपी है। वो मामला अभी अब चलेगा। उमेश पाल के परिवार वालों की अगर बात की जाए, तो क्या वो इस फैसले से संतुष्ट हैं? क्या कहना है उनका? उमेश पाल के परिवार वाले इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। उनकी पत्नी जयापाल और उनकी मां शांति देवी, दोनों से हमारी बात हुई। दोनों की आंखें नम थीं। पत्नी तो रोने लगी। और उनका ये कहना है कि कम से कम फांसी की सजा मिलनी थी। उस मामले में वे आगे की पैरवी करेंगे। वे भी किसी से डर नहीं रहे हैं। उमेश पाल का पूरा परिवार ये चाहता है कि उनके साथ पूरा न्याय हो। आजीवन कारावास की सजा को वो बिलकुल भी नहीं मानते हैं। हालांकि अब कोर्ट ने सजा दी है तो आगे जो होगा वह कानूनी रूप से होगा लेकिन जब उमेश पाल की मां ने मीडिया से कहा कि मेरा बेटा शेर था। उसे धमकाया गया, किडनैपिंग की गई, मारपीट की गई और अंततः उसको मार दिया गया। लेकिन वो पीछे नहीं हटा। तो उसके परिवार वाले भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। वो फांसी से कम की सजा पर बिलकुल भी पीछे नहीं हट रहे हैं। जी, एक बड़ा माफिया जिसका यूपी में खौफ था उसे कोर्ट ने सख्त सजा सुनाई है उम्रकैद की। देखना होगा, इससे क्या संदेश जाता है। क्या यूपी में अपराध पर लगाम लगेगी इससे? बहुत-बहुत शुक्रिया मनीष श्रीवास्तव जी आपका।
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Hemostatic संदंश को रोकने के लिए सेवाखून बह रहा है, उनकी सहायता से एक जब्ती होती है और रक्त वाहक के ठंडे बस्ते या ठोके का एक अस्थायी निचोड़ है। इन उपकरणों के आकार की सीमा कई दर्जन है। इस किस्म को 1 से 20 मिमी तक विभिन्न आकार के जहाजों की उपस्थिति और विभिन्न हेमोस्टेटिक तकनीकों के उपयोग से समझाया गया है। ऑपरेशन के दौरान काटने वाले छोटे जहाजों को एक दबाना के साथ समझा जाता है, और फिर दबाना से ऊपर एक स्ट्रिंग के साथ ligated (सिले)। Hemostatic संदंश कि इस्तेमाल किया जाता है,अस्थायी रूप से जहाजों को निचोड़ करने के लिए, मतभेद हैं छोटे जहाजों से खून बह रहा रोकने के लिए बनाया गया एक दबाना, पोत के अंत को घायल कर सकता है। एक नियम के रूप में, यह कठोर सामग्री से बना है क्लैंप्स, जिन्हें नाड़ी भी कहा जाता है, लोचदार पदार्थों से बने होते हैं, यह उनके डिजाइन सुविधाओं के कारण होता है इन उपकरणों के नाम पूरी तरह से उनके उद्देश्य के अनुरूप हैं आपातकाल के मामले में, वे नैपकिन को ठीक करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, इसे याद किया जाना चाहिएः नेपकिन या कपास और धुंध गेंदों को फिक्स करने के लिए कम से कम एक बार उपयोग किए जाने वाले हेमोस्टैटिक क्लैम्प, अब उनके इच्छित उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं किए जा सकते हैं। यह उनके कामकाज के विरूपण और कार्यशीलता की हानि के कारण है। भविष्य में, उन्हें चिह्नित किया जाना चाहिए और केवल गेंदों और नैपकिन को ठीक करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। Hemostatic संदंश निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा करना होगाः 2. संवहनी clamps अस्थायी रूप से रक्त के प्रवाह को रोकने और पोत की अखंडता को पुनर्स्थापित करने की अनुमति (संवहनी सीवन के सीवन) को अनुमति देता है। 3. क्लैंप को कुचल करना जिससे क्लैंप लागू होने के बाद पोत के लुमेन में थ्रोम्बस के गठन को बढ़ावा देना है। Hemostatic clamps में नीचे सूचीबद्ध भागों शामिल हैंः ऑपरेशन से पहले, सर्जन को व्यक्तिगत रूप से हेमोस्टैटिक (दांतेदार, सीधे, घुमावदार - कोई फर्क नहीं पड़ता) के clamps की स्थिति की जांच करनी चाहिए, क्योंकिः क्लैंप शाखाओं के आकार, काम की सतह के प्रोफाइल, उद्देश्य और उपकरण के आकार में भिन्न होते हैं। निम्नलिखित प्रकार के clamps हैंः 1। हीस्टेटाइटिक सीधे दंत चिकित्सा, लंबाई में 15 से 20 सेंटीमीटर, जबड़े के काम की सतह पर तिरछे चीरा के साथ एक अलग या स्क्रू ताला होता है। जबड़े के सिरों के पास एक तरफ दांत होते हैं, दूसरी ओर एक और दो होते हैं। लॉक को बंद करने पर, एक दूसरे के बीच में प्रणों को गिरना चाहिए। 2। अनुप्रस्थ निशानालुओं के साथ, वे दाँतेदार होते हैं, लेकिन काम की सतह में अनुप्रस्थ कटौती होती है। स्टेनलेस स्टील से बने, सतह को चमकने के लिए पॉलिश किया जाता है। 16 से 20 सेमी की लंबाई, सीधे या घुमावदार हो सकता है। 3। न्यूरोसर्जिकल हेमोस्टैटिक क्लैंप "मच्छर", प्रकाश, 15.5 सेमी लंबा, एक स्क्रू ताला है। एक कांटेदार शंकु के रूप में अनुदैर्ध्य खंड में स्पंज, उनकी काम की सतह पर एक पतली अनुप्रस्थ पायदान होता है। उत्पादित घुमावदार या सीधे खड़ी और क्षैतिज रूप से वे मुख्य रूप से न्यूरोसर्जिकल संचालन के दौरान छोटे जहाजों के हेमोडाइसिस के लिए उपयोग किया जाता है। 4। निर्माण पर बच्चों के प्रकार "मच्छर" पिछले एक जैसा है, लेकिन उनके पास पतले ब्रंच हैं लंबाई 12.5 सेमी, सीधे और घुमावदार चेहरे के जहाजों पर काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया, पैरेन्शिमल अंगों के संचालन के लिए बच्चों के सर्जरी में, मस्तिष्क की एरोकॉइड झिल्ली। 5. गहरी घावों में जहाजों और संयुक्ताव पर लगाए जाने वाले हेमोस्टेसिस के लिए डिज़ाइन किया गया गहरा खोखला। उनकी लंबाई 26 सेमी है, स्पंज का एक सीधा या घुमावदार आकार और एक छोटी लंबाई है। "मच्छर" प्रकार के clamps भी Halstead clamps के नाम सहन। वे एक पतली काम की सतह से अलग हैं दबाना "मच्छर" नवजात शिशुओं के लिए घुमावदार उपयोग किया जाता है हेमोस्टेसिस को बाहर किया जाता है न्यूरोसर्जिकल परिचालन के दौरान छोटे जहाजों। बिल्रॉथ के क्लैंप और जहाजों को दबाना यह काम करने वाले स्पंज और एक छोटे से पायदान के साथ-साथ बाहर से शंक्वाकार सतह भी है। आकर्षक ब्रंचें खुलते हैं, जिससे कम ऊतक घायल हो जाते हैं। पोपर का क्लैंप एक लंबी, सीधे सर्जिकल क्लैंप होता है जिसका इस्तेमाल पित्ताशय की थैली पर किया जाता है। ऑपरेशन से पहले, सर्जन को व्यक्तिगत तौर पर चाहिएclamps की कार्यक्षमता का परीक्षण। इस बड़े धमनियों के साथ विशेष रूप से सच है। उदाहरण के लिए, अतिव्यापी मध्यच्छद गैस्ट्रिक बंध, बल्कि, यह बाईं जठरीय धमनी क्लैंप जो दोषपूर्ण है तक फैली, पोत, जो गंभीर रक्तस्राव हो सकता है की भरा भागने अंत है। कैसे clamps चाकू सही ढंग से करने के लिए? मेसेंटरी की चौड़ाई (लिगमेंट), जो इसके माध्यम से गुजरती हैं, उसकी मोटाई के लिए व्युत्क्रम आनुपातिक होना चाहिए। निम्नलिखित को याद रखना आवश्यक हैः - एक बड़े आकार के शेष स्टंप नेक्रोज़ेस हो सकते हैं, जो पुरूष सूजन पैदा कर सकता है; - deserosized सतह के एक बड़े क्षेत्र की उपस्थिति एक आसंजन रोग पैदा कर सकता है; - लचीलापन, जिसे थोक वसा पर लगाया गया था, किसी भी समय टूट सकता है। बंधन (मेसेंटरी) के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में, जिन्हें हटाया नहीं जाएगा, क्लेंप्स और लिगचर सर्जन द्वारा लगाए जाएंगे, सहायक उन्हें हटाए जाने वाले मेसेंटरी पर रखे जाएंगे। क्लैम्प के बीच अस्थिभंग या मेसेंटरी का छेदउस क्षेत्र के करीब बना हुआ है जो कि बनी हुई है। शेष स्टंप की मात्रा थोड़ा और अधिक करना बेहतर है, यह गारंटी के रूप में काम करेगा कि लिगचर का टूटना नहीं होगा। यह मामूली कोण पर स्नायुबंधन और स्नायुबंधन के लिगेंमेंट को लागू करने के लिए अनुशंसित है, क्योंकि जबकि स्टंप की मात्रा बढ़ जाती है, और इससे लिगचर के मजबूत निर्धारण में योगदान होता है। निम्नलिखित नियम हैं जिनका पालन करने की आवश्यकता हैः 1. लिगेंचर के छोर को नहीं खींचें। तो वे पोत के अंत से फाड़ा जा सकता है। 2. आपको पतला कूपर कतरनी ब्लेड और धागे के विमान के बीच 40-50 डिग्री का एक कोण देखना चाहिए। 3. कैंची के निचले ब्लेड को गाँठ में रोका जाना चाहिए। 4. लैगचर का कटौती अंत 1-2 मिमी से अधिक नहीं होना चाहिए। उथले घावों में, प्रत्यक्ष लोगों का उपयोग करने के लिए यह अधिक फायदेमंद है। लेकिन धुंध के नैपकिन के चमड़े के नीचे के वसा को लगाए जाने के लिए, घुमावदार हेमोस्टैटिक क्लैंप अधिक उपयुक्त हैं। उपकरण एक सूखी जगह में जमा किए जाते हैं15-20 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर इसे उन कमरों के साथ एक कमरे में ढूंढने की अनुमति नहीं है जिनके वाष्प धातुओं के जंग (फॉम्रिन, आयोडीन, ब्लीच) का कारण बन सकते हैं। वर्तमान के लिए उपकरणउपयोग करते हैं, अलमारी में तैयार कर ली और प्रकार और गंतव्य से उन्हें छँटाई। उन जो कार्बन स्टील के बने होते हैं, सतत परिवहन या भंडारण के दौरान तटस्थ वैसलीन या तेल कवर संसाधित। यह अंत पेट्रोलियम जेली 60-70 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पिघलाया जाता है के लिए, यह में डूब जाता है उपकरण और फिर मोम कागज में लपेट दिया। निम्नलिखित से उपकरण को लुब्रिकेट न करेंसामग्रीः स्टेनलेस स्टील, एल्यूमीनियम, पीतल, कांस्य स्नेहन के लिए टूलकिट की तैयारी निम्नानुसार हैः सोडा और साबुन, सूखी, जंग के लिए पानी में degrease या फोड़ा, पॉलिश करके किसी भी जंग के निशान को हटा दें। इंस्ट्रूमेंटेशन केवल दस्ताने के साथ संसाधित किया जाना चाहिए, निशान के निशान जंग गठन करने के लिए नेतृत्व कर सकते हैं।
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सितंबर 1812 में, स्टिंगेल और एसेन की कमान के तहत रूसी सैनिकों ने रीगा की दिशा में प्रशिया कोर को हराने की कोशिश की। आक्रामक विफल रहा, हमारे सैनिक रीगा लौट आए। 8 (20) जुलाई 1812 प्रशिया के सैनिक (एकाऊ की लड़ाई) मितवा पर कब्जा कर लिया। 22 जुलाई को नेपोलियन के निर्देश पर कौरलैंड के लिए एक विभाग बनाया गया था। कब्जे के दौरान, क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो गया था, सेना के लिए रोटी, घोड़े, कपड़ा, चर्मपत्र कोट निकाल लिए गए थे, और 15 मिलियन का मौद्रिक योगदान लगाया गया था। ग्रेट आर्मी के विभिन्न प्रमुखों, रेगिस्तानों द्वारा कौरलैंड को भी लूट लिया गया था। 16 जुलाई (28 जुलाई), 1812 को प्रशिया कोर के कमांडर ने रीगा के आत्मसमर्पण की मांग की। जनरल एसेन ने मना कर दिया। नदी के किनारे प्रशिया के सैनिक तैनात थे। मीसा, उन्नत पदों को डीवीना के बाईं ओर धकेलती है। ग्रामीणों की टुकड़ियों को दाहिने किनारे पर भेजा गया। रीगा से, उनके खिलाफ टुकड़ियाँ निकलीं, जो स्थानीय शिकारियों के साथ थीं (जैसा कि तब स्वयंसेवकों को बुलाया जाता था)। एसेन ने दुश्मन के खिलाफ छँटाई करने की हिम्मत नहीं की। यह इस तथ्य से उचित था कि उनकी वाहिनी में मुख्य रूप से अनुभवहीन, आरक्षित और आरक्षित बटालियन और स्क्वाड्रन शामिल थे। इसने पीटर्सबर्ग को परेशान कर दिया। 20 जुलाई (1 अगस्त) को स्वेबॉर्ग से रीगा के लिए 67 गनबोट आए। वे कई बार नदी के ऊपर श्लोक और उससे ऊपर गए, प्रशिया के साथ झड़प करते हुए, लेकिन बहुत अधिक परिणाम के बिना। नतीजतन, जुलाई का अंत और पूरा अगस्त निष्क्रियता में बीत गया। रीगा के सैन्य गवर्नर ने गंभीर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं की, रीगा में उन्होंने विट्गेन्स्टाइन कोर की आशा की, जो सफलतापूर्वक औडिनोट और सेंट-साइर की वाहिनी के साथ लड़े। मार्शल मैकडोनाल्ड के पास एक बड़े शहर की पूर्ण घेराबंदी शुरू करने के लिए पर्याप्त ताकत नहीं थी। नेपोलियन का सफलतापूर्वक विरोध करने के लिए स्वीडिश प्रश्न को हल करना आवश्यक था। फ्रांस के पक्ष में स्वीडन का प्रदर्शन उत्तर-पश्चिमी रणनीतिक दिशा में रूस की स्थिति को तेजी से खराब कर सकता है। 1807वीं शताब्दी की शुरुआत में रूसी-स्वीडिश संबंध जटिल थे। एक ओर, स्वेड्स ने 1808 वीं शताब्दी की हार और क्षेत्रीय नुकसान को याद किया। बदला लेने की पार्टी थी। दूसरी ओर, रूस और स्वीडन, सहयोगी के रूप में, फ्रांस के साथ लड़े। 1809 में, फ्रांस के साथ तिलसिट शांति के समापन के बाद, रूस ने स्वीडन के साथ एक सफल युद्ध शुरू किया, जो इंग्लैंड के पक्ष में रहा। XNUMX-XNUMX के युद्ध में स्वीडन की हार हुई और फिनलैंड को रूसी साम्राज्य में मिला लिया गया। हार की पृष्ठभूमि के खिलाफ, स्वीडिश राजा गुस्तावस एडॉल्फ वी को उखाड़ फेंका गया था, और स्वीडिश रिक्स्डैग ने मार्शल बर्नडॉट को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में चुना था। स्वीडन ने इंग्लैंड के साथ गठबंधन छोड़ दिया और डेनिश नॉर्वे पर दावा करना शुरू कर दिया। रूस ने इस मामले में समर्थन का वादा किया था। एक नए रूसी-फ्रांसीसी युद्ध के दृष्टिकोण के साथ, स्वीडन रूस के पक्ष में झुक गया। स्वीडन को इंग्लैंड की महाद्वीपीय नाकाबंदी से बहुत नुकसान हुआ, अंग्रेज इसके मुख्य व्यापारिक भागीदार (जैसे रूस) थे। जवाब में, नेपोलियन ने जर्मनी में स्वीडिश पोमेरानिया पर कब्जा करने का आदेश दिया। इससे स्वीडन और रूस और भी करीब आ गए। 5 अप्रैल को, पीटर्सबर्ग संघ संधि पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके अनुसार स्टॉकहोम ने फिनलैंड को रूस के रूप में मान्यता दी, और रूसी-तुर्की वार्ता में मध्यस्थता करने का वादा किया। बदले में, सेंट पीटर्सबर्ग ने नॉर्वे में शामिल होने में स्वीडन का समर्थन करने का वादा किया। दोनों शक्तियों ने फ्रांस के खिलाफ निर्देशित सैन्य गठबंधन में प्रवेश किया। उन्होंने जर्मनी (पोमेरेनियन प्रोजेक्ट) में संयुक्त लैंडिंग की योजना भी विकसित की। रूसी सेना के कमांडर-इन-चीफ के रूप में कुतुज़ोव की नियुक्ति के बाद - 8 अगस्त (20), 1812 को, रूसी संप्रभु अलेक्जेंडर I स्वीडन के क्राउन प्रिंस से मिलने के लिए अबो गए। 12 अगस्त को सम्राट अबो में थे, 15 तारीख को क्राउन प्रिंस कार्ल-जोहान (बर्नडॉट) पहुंचे। बर्नडॉट ने रूस की मदद के लिए 30वीं कोर लगाने की पेशकश की। फिनलैंड के बदले। सिकंदर ने इस तरह के सौदे से इनकार कर दिया। फ्रांस के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में संभावित संयुक्त लैंडिंग के विचार पर भी चर्चा हुई। 18 अगस्त (30) को अबो की संधि संपन्न हुई। स्टॉकहोम ने अंततः फ़िनलैंड और ऑलैंड द्वीप समूह को छोड़ दिया। रूस ने इसे दक्षिणी स्वीडन में तैनात करने के लिए 35-मजबूत सहायक कोर लगाने का वादा किया, जबकि स्वीडिश सेना डेनमार्क के साथ युद्ध में व्यस्त थी। सिकंदर ज़ीलैंड के डेनिश द्वीप को स्वीडन में मिलाने के लिए सहमत हो गया। बर्नाडोट ने डची ऑफ वारसॉ के हिस्से को रूसी साम्राज्य में शामिल करने पर सहमति व्यक्त की। पीटर्सबर्ग ने स्वीडन को 1,5 मिलियन रूबल का ऋण प्रदान किया। दोनों पक्षों ने इंग्लैंड को गठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार, स्वीडन के डर के बिना, रूस को उत्तर-पश्चिम में एक स्वतंत्र हाथ मिला, जो फिनलैंड पर कब्जा करने के लिए नेपोलियन के आक्रमण का लाभ उठा सकता था। बदले में, पीटर्सबर्ग ने नए स्वीडिश बर्नाडोट राजवंश के अधिकारों को मजबूत किया। डेनमार्क के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई स्थगित कर दी गई (लंदन के साथ सहमत होना और स्वीडिश और रूसी सैनिकों को तैयार करना आवश्यक था, नेपोलियन के साथ युद्ध जारी रहा), इसलिए रूस को स्वीडन का समर्थन करने के लिए सैनिकों का उपयोग करने का अवसर मिला। रीगा के गैरीसन को मजबूत करने के लिए फ़िनिश गवर्नर-जनरल फ़ैडी फेडोरोविच शेटिंगेल की कमान के तहत फ़िनिश कोर भेजने का निर्णय लिया गया। जनरल लड़ रहा थाः उसने 1807 में फ्रांसीसी के साथ लड़ाई लड़ी, घायल हो गया, दो बार स्वेड्स के साथ लड़ा। फ़िनिश कोर 1810 की शरद ऋतु में फ़िनलैंड में तैनात सैनिकों से बनाया गया था। 1812 के वसंत और गर्मियों में, उन्हें आंशिक रूप से बाल्टिक सागर के तट पर पोमेरानिया में, स्वेड्स के साथ, नियोजित लैंडिंग के लिए अलैंड द्वीप समूह में स्थानांतरित कर दिया गया था। कोर में शामिल हैंः 6 वीं और 21 वीं इन्फैंट्री डिवीजन, फिनिश ड्रैगून रेजिमेंट और डॉन कोसैक लोशिलिन रेजिमेंट। कुल मिलाकर, जुलाई 1812 के अंत तक - 21 हजार सैनिक। 18 अगस्त (30) को, रीगा के पास हेलसिंगफोर्स, अलंड्स और अबो से एक कोर भेजने का आदेश दिया गया ताकि वहां की चौकी को मजबूत किया जा सके। सिकंदर प्रथम ने रीगा के गवर्नर-जनरल को रीगा और मितवा से दुश्मन को पीछे धकेलने का निर्देश दिया। उथले पानी के कारण रीगा तक पहुंचना नामुमकिन होने के कारण वाहिनी 28 अगस्त को रेवेल में उतरी। खराब मौसम ने जहाजों के हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया, कुछ स्वेबॉर्ग लौट आए, दूसरों के प्रस्थान में देरी हुई। फ़िनिश गवर्नर-जनरल ने प्रतीक्षा नहीं की और उपलब्ध बलों के साथ निकल पड़े - 10 हजार लोग। 8 सितंबर (20) को मोहरा रीगा में था। 10 सितंबर (22) को, स्टिंगेल की वाहिनी ने रीगा से संपर्क किया। रीगा की दिशा में एक खामोशी थी। मैकडॉनल्ड्स के कोर ने रीगा को सक्रिय कदम उठाए बिना देखा, क्योंकि उसके पास एक सफल घेराबंदी और हमले के लिए पर्याप्त बल और साधन नहीं थे। इसके अलावा, प्रशिया नेपोलियन के नाम पर लड़ने में धीमे थे और पहले कभी हमला नहीं किया। ग्रेवर्ट की जगह लेने वाले प्रशिया के जनरल लुडविग योर्क ने रूसियों को नाराज नहीं करने की कोशिश की। मितवा में प्रशिया के सैनिक तैनात थे। मई में वापस, डेंजिग से घेराबंदी तोपखाने (130 बंदूकें) भेजी गईं, जो अगस्त की शुरुआत में तिलसिट पहुंचे और अगस्त के अंत में बौस्का के पास रुएंटल में लाए गए। लेकिन मार्शल के पास घेराबंदी शुरू करने का समय नहीं था, क्योंकि नेपोलियन का आदेश प्रतीक्षा करने के लिए आया था। उस समय फ्रांसीसी सम्राट मास्को जा रहे थे और उनका मानना था कि सिकंदर के साथ जल्द ही शांति पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। इसलिए, रीगा की घेराबंदी नहीं की जा सकी। दूसरी ओर, एसेन ने निर्णायक छंटनी के लिए खुद को बहुत कमजोर माना। केवल कभी-कभी हमारे गश्ती दल ने दुश्मन को परेशान किया। काउंट स्टिंगेल के फिनिश कॉर्प्स के आने से हमारे पक्ष में शक्ति का संतुलन बदलने वाला था। फ़िनिश वाहिनी को रीगा में भेजकर, अलेक्जेंडर I ने शहर से घेराबंदी को उठाने का कार्य निर्धारित किया। लेकिन सेंट पीटर्सबर्ग में पहुंचने के बाद, सिकंदर ने काउंट स्टिंगेल को एक अधिक महत्वाकांक्षी कार्य निर्धारित कियाः रीगा और फ़िनलैंड की दो वाहिनी, जिनकी संख्या 35-40 हजार संगीन और घुड़सवार सेना होनी चाहिए, न केवल रीगा में दुश्मन को हराने के लिए थे, वरन उसे नेमन से निकालकर विल्ना को भी जाना। यहाँ नेमन पर प्रशिया को देखने के लिए और अन्य सेनाओं के बेरेज़िना में आने की प्रतीक्षा करने के लिए। हालांकि, एसेन और स्टिंगेल इस तरह के कार्य को पूरा नहीं कर सके। सबसे पहले, जनरलों के पास सुवोरोव का निर्माण नहीं था। दूसरे, जनरलों ने लक्ष्यों की प्रधानता और प्राथमिकता के बारे में बहस करना शुरू कर दिया। तीसरा, नियोजित से कम सैनिक थे। यह माना जाता था कि रीगा 20 हजार सैनिकों को रख सकती है, और काउंट स्टिंगेल - 15 हजार। एस्सेन ने किले की रक्षा के लिए 5 हजार छोड़े और जनरल लेविज को 10 हजार देने में सक्षम थे। तूफान के कारण फिनिश कोर को सड़क पर 5 हजार का नुकसान हुआ नतीजतन, वे 21 हजार से अधिक लोगों पर हमला नहीं कर सके। अर्थात् शत्रु पर कोई श्रेष्ठता नहीं थी। सैन्य परिषद में, एसेन, स्टिंगेल और लेविज़ ने यॉर्क के 16-मजबूत प्रशियाई कोर पर हमला करने का फैसला किया, जो मितवा-ओले क्षेत्र में तैनात था। 14 सितंबर (26), 1812 को, आक्रामक शुरू हुआ। दाईं ओर, तटीय फ़्लैक ने काम किया छोटी नावों का बेड़ा रियर एडमिरल मोलर, उसे जनरल ब्रिसमैन की 2-मजबूत टुकड़ी द्वारा समर्थित किया गया था, जिसे मितावा क्षेत्र में प्रशिया की तर्ज पर जाना था। कर्नल रोसेन की 1-मजबूत टुकड़ी ने ओलाई के खिलाफ कार्रवाई की। फ़िनिश कोर की मुख्य सेनाएँ और रीगा की चौकी - 19 तोपों के साथ 23 हज़ार से अधिक, बौस्का रोड के साथ मार्च किया। स्टिंगेल के सैनिकों ने प्रशिया की अग्रिम टुकड़ियों को उलट दिया। दुश्मन की प्रगति के बारे में जानने के बाद, जनरल यॉर्क ने रूएंथल में घेराबंदी पार्क को कवर करते हुए एकाऊ में एक कोर इकट्ठा करना शुरू कर दिया। 15 सितंबर (27) को दोपहर के आसपास, स्टिंगेल की वाहिनी ने एकाऊ में यॉर्क के सैनिकों पर हमला किया। एक छोटी सी झड़प के बाद, प्रशियाई एकाऊ नदी के उस पार वापस चले गए और वहाँ कसकर पकड़ लिया। रूसियों ने दुश्मन को पछाड़ना शुरू कर दिया, और प्रशिया के सैनिकों ने आ नदी के पार पीछे हट गए, बॉस्क और रुएन्थल के बीच खड़े होकर, उनकी घेराबंदी तोपखाने की रक्षा की। काउंट स्टिंगेल ने एकाऊ पर कब्जा कर लिया, मोहरा बौस्का में था। दुर्भाग्य से, रूसी कमांडरों ने आक्रामक को जल्दी से विकसित करने के लिए अच्छी शुरुआत का उपयोग नहीं किया। उस क्षण का उपयोग करें जब संख्यात्मक श्रेष्ठता हमारे पक्ष में थी। ब्रिसमैन और रोसेन की टुकड़ियों के साथ संयुक्त अभियान के लिए 3 सैनिकों को मितावा भेजकर स्टिंगेल ने खुद को कमजोर कर लिया। इस बीच, दुश्मन, इसके विपरीत, बलों को केंद्रित करता है। यॉर्क ने अस्थायी रूप से मितवा को आत्मसमर्पण करने का फैसला किया और वहां क्लीस्ट गैरीसन को उसका पालन करने का आदेश दिया। नतीजतन, प्रशिया कोर फिनिश कोर की तुलना में मजबूत हो गया। घेराबंदी पार्क को बचाने के लिए, प्रशिया ने मेज़ोटेन में एक जवाबी हमला करने का फैसला किया। मेसोटेन में दुश्मन की गतिविधियों के बारे में जानने के बाद, स्टिंगेल ने बौस्का रोड को छोड़ दिया और दाईं ओर मुड़ गया, वह भी मेसोटेन की ओर। रात में, मोहरा ने दुश्मन के बाएं हिस्से को मारने के लिए आ नदी को पार किया। अंधेरे में और नदी पार करते समय, हमारे सैनिकों ने आदेश खो दिया, इसने क्लेस्ट के प्रशिया को हमले का सामना करने की अनुमति दी। यॉर्क से सुदृढीकरण प्राप्त करने के बाद, क्लेस्ट ने खुद पर हमला किया। हमारा मोहरा पीछे हट गया। स्टिंगेल, ऐसी परिस्थितियों में जब यह स्पष्ट हो गया कि दुश्मन को ताकत में फायदा था, खासकर घुड़सवार सेना और घोड़े के तोपखाने में, आक्रामक जारी रखने की हिम्मत नहीं हुई और सेना को रीगा में वापस ले लिया। यॉर्क ने तुरंत रूसी कमान की गलतियों का फायदा उठाया, 18 सितंबर (30) को भोर में जवाबी कार्रवाई की और हमारे रियरगार्ड पर हमला किया। जबकि रियर गार्ड ने प्रशिया को वापस पकड़ लिया, स्टिंगेल की कोर ओलाई में पीछे हट गई, जहां वह ब्रिसमैन और रोसेन की टुकड़ियों के साथ जुड़ गया। मितवा, जिस पर हमारे सैनिकों ने दो दिनों तक कब्जा किया था, को फिर से छोड़ दिया गया। शहर में, दवीना पर एक पुल के निर्माण के लिए तैयार सामग्री को नष्ट कर दिया गया, 4 बंदूकें और विभिन्न आपूर्ति पर कब्जा कर लिया गया। इस असफल अभियान में रूसी नुकसान - लगभग 2,5 हजार लोग, प्रशिया - 1 हजार। 20 सितंबर (1 अक्टूबर), 1812 को, रूसी सैनिक रीगा लौट आए। असफलता ने शहरवासियों पर बहुत प्रभाव डाला। उसी समय आया खबर है दुश्मन द्वारा मास्को पर कब्जा करने के बारे में। रीगा में बैठना नहीं चाहते, स्टिंगेल ने विट्गेन्स्टाइन की पहली कोर को पोलोत्स्क दिशा में मदद करने के लिए फिनिश कोर को स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी। नतीजतन, 1 सितंबर (23 अक्टूबर) को, स्टिंगेल की 4 वीं वाहिनी रीगा से निकली। रीगा और डुनामुंडे में, पूर्व गैरीसन बने रहे - 10 हजार सैनिक। 17 अक्टूबर (17) को, जनरल फिलिप पॉलुची ने रीगा सैन्य गवर्नर और एक अलग कोर के कमांडर के रूप में जनरल एसेन की जगह ली। मैकडोनाल्ड, रीगा के पास रूसी सैनिकों की उन्नति के बारे में जानने के बाद, डनबर्ग में एक रेजिमेंट छोड़कर, यॉर्क की मदद करने के लिए अपनी सेना को स्थानांतरित कर दिया। यह देखते हुए कि अब कोई खतरा नहीं था, उसने फ्रांसीसी डिवीजन को डनबर्ग लौटा दिया। नतीजतन, ग्रैंडजीन का फ्रांसीसी डिवीजन पूरे अभियान में निष्क्रिय था, इसका उपयोग रीगा या पोलोत्स्क दिशा में नहीं किया गया था। घेराबंदी पार्क को वापस भेज दिया गया, अंत में रीगा की घेराबंदी की योजनाओं को छोड़ दिया गया। 1812 की देर से शरद ऋतु तक, दोनों पक्ष फिर से निष्क्रिय थे। सेंट-साइर ने मैकडॉनल्ड्स को विट्गेन्स्टाइन के खिलाफ आक्रमण शुरू करने के लिए 12 सैनिकों को पोलोत्स्क भेजने की पेशकश की। मैकडोनाल्ड ने उत्तर दिया कि वह 4-5 हजार से अधिक सैनिकों को आवंटित नहीं कर सकता, क्योंकि उसे एक बड़े क्षेत्र की रक्षा करनी थी, और यदि यह कमजोर हो गया, तो रीगा कोर द्वारा एक नया हमला संभव था। सेंट-साइर ने उत्तर दिया कि रूसियों पर हमले के लिए 5 हजार पर्याप्त नहीं थे। मैकडोनाल्ड रूस से पीछे हटने वाला अंतिम व्यक्ति था। 5 दिसंबर (17), 1812 तक, उनके सैनिक अपने पिछले पदों पर खड़े रहे। उन्हें नेपोलियन के मुख्यालय से कोई निर्देश नहीं मिला, जो रूस से अपनी उड़ान के दौरान ग्रैंड आर्मी में शासन करने वाले सामान्य भ्रम के कारण था। मैकडोनाल्ड ने फ्रांसीसी सेना की हार और पीछे हटने के बारे में विल्ना और मितवा तक पहुंचने वाली सभी अफवाहों को खारिज करते हुए आदेश की प्रतीक्षा की। केवल 6 दिसंबर (18) को मूरत ने 10 वीं वाहिनी को वापस लेने का आदेश दिया। 7 दिसंबर को, मैकडॉनल्ड्स ने वाहिनी को तिलसिट की ओर वापस ले जाने का आदेश दिया। 8 दिसंबर (20) को, प्रशिया ने मितवा छोड़ दिया। कमांडर-इन-चीफ कुतुज़ोव ने मैकडॉनल्ड्स को रोकने के लिए विट्गेन्स्टाइन की वाहिनी को रूसियों (अब रसीनाई) के पास जाने का आदेश दिया। सबसे आगे एडजुटेंट जनरल कुतुज़ोव और मेजर जनरल डिबिच की टुकड़ियाँ थीं। प्रशिया के लिए, पॉलुची की सेना ने रीगा को भी छोड़ दिया। मुख्य रूसी सेना धीरे-धीरे आगे बढ़ी, इसलिए वे मैकडोनाल्ड को हराने में विफल रहे। फ्रांसीसी मार्शल ने उस खतरे पर संदेह किया जिसने उसे धमकी दी, मार्च को तेज कर दिया, और 15 दिसंबर (27) को कुतुज़ोव के पूर्व मोहरा, जो पहले से ही तिलसिट में था, व्लास्तोव की टुकड़ी को हराया। कुतुज़ोव ने दुश्मन की पूरी वाहिनी को रोकना संभव नहीं मानते हुए, दुश्मन के लिए तिलसिट का रास्ता साफ कर दिया। मैकडॉनल्ड टिलसिट में रुक गया, यॉर्क के पीछे के स्तंभों की प्रतीक्षा कर रहा था। इस बीच, मेमेल पर मार्च करते हुए डिबिच टुकड़ी ने प्रशिया सैनिकों के लिए सड़क काट दी। केवल 1 रूसी थे और प्रशिया (400-14 हजार) उन्हें उलट सकते थे। हालांकि, प्रशिया के जनरलों क्लेस्ट और योर्क रूसियों से लड़ना नहीं चाहते थे। यॉर्क ने अपने जोखिम और जोखिम पर 16 दिसंबर (18) को रूसियों के साथ टॉरोजेन कन्वेंशन का समापन किया, जिसके अनुसार उनकी वाहिनी "तटस्थता" का पालन करने लगी। यह समझौता रूस के पक्ष में प्रशिया के संक्रमण और फ्रांसीसी विरोधी गठबंधन की शुरुआत थी। मैकडॉनल्ड्स के साथ टिलसिट में मौजूद प्रशियाई सैनिकों को रूसियों के साथ यॉर्क के समझौते की खबर मिली, उन्होंने फ्रांसीसी छोड़ दिया और अपने कोर में शामिल होने के लिए चले गए। मैकडोनाल्ड के पास लगभग 5 हजार सैनिक बचे थे, और 19 दिसंबर को वह जल्दबाजी में तिलसिट से कोनिग्सबर्ग के लिए पीछे हट गया। पूर्वी प्रशिया के शहर और वारसॉ के डची, एक के बाद एक, रूसी सैनिकों द्वारा कब्जा कर लिया गया था। नेपोलियन की सेना के अवशेष विस्तुला भाग गए। - लेखकः
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जाते हैं, मानों । "परोपकाराय सतां विभूतयः" इस सदुक्ति का अक्षरशः पालन करते हुए, स्वामीजी ने अपनी विद्या, अनुभव, ज्ञान, और सुसंचित सामग्री को जनसाधारण के लिए ऐसे सुलभ, सुकर और निर्मल रूप वा वेश में बनोकर, बड़ा भारी काम कर दिया। क्या यह कम कारीगरी वा थोड़ी चतुराई है कि महा पंडितों के लिए भी दुर्जेय, मुनिगण को भी दुप्प्राप्य और अगम्य ब्रह्मविद्या के कठिन कर्कश इंद्रियातीत गहन विषयों और प्रकरणों को इतना सहज और सुगम कर दिया है ? यह कारीगरी ही नहीं है यह जादूगरी है। संस्कृत जानने वालों को भी, संस्कृत में लिपटे रहने से, जो बातें ढीम वा ढेले सी प्रतीत होती थीं, वेही बातें साधारण हिन्दी जानने वाले साधारण पुरुषों तक को भी मनोमोदकारी रुचिरा और सहज, घरकी सी चीजें, प्रतीत होने लग जाती हैं। यही नहीं, अपितु पढ़कर वा सुनकर मनमुग्ध हो जाता है, चित्त चिंतारहित होकर चंतन्य हो जाता है. रुचि रोचकता से प्रचुरता धारती है, बुद्धि को सुबोधता के कारण, वा सुबोध की प्राप्ति के कारण, सन्तोष तथा समाधान मिल जाता है, हिये का एक वह 'शूल' कांटे की तरह निकल जाता है जो "विन निजभापा" मिले खटकता सा रहता था। यह तो एक प्रकार से कांचन मणि संसर्ग है, स्वर्ण और सुगन्ध का मेल है, कि अध्यात्म ऐसे अमूल्य रत्न को-सृष्टि के कोनूर को ज्ञान के सत्य सौंदर्य को - ब्रह्म वा परमात्म तत्व को - स्वर्णमयी नागरी गुण आगरी में विराजित वा प्रकाशित करके स्वामी सुन्दरदासजी ने संसार के अज्ञान तिमिर को हटाने का यह बड़ाभारी और सहज काम ( कारीगरी वा जादूगरी का ) करके जगत में सावधानी से छोड़ा है। अपनी कविता में छन्दों की विशेषता को अधिकार स्वामीजी ने यहां तक दिया था कि छन्दों के नाम से ही ग्रन्थों के नाम रख दिये । यथाः - ( १ ) सवैया । ( २ ) गुन उत्पत्ति नीसानी ( ३ ) गुरुमहिमा नीसानी ( ४ ) ज्ञानभूलना अटक ( ५ ) पचंगम छंद ( ६ ) अडिल्ला छन्द । ( ७ ) महिला छन्द (८) पूर्वीभाषा वर । "रसवदेव काव्यम्" - "वाक्यं रसात्मकं काव्यम्"* काव्य वह वाक्य है जो रसात्मक ( वाक्य ) हो । शब्दयोजना का वह रूप जो पूरा अर्थ ढ़े वह वाक्य । और जिस पूर्ण शब्दयोजना में रस हो - शब्द और मन ( बुद्धि वा चित्त ) को रसास्वादन मिले वह काव्य है । "काव्य में रसही सर्वोपरि चमत्कारक आस्वादनीय पदार्थ है । रस के स्वरूप का ज्ञान और इसका आस्वादन ही काव्य के अध्ययन ( श्रवण और मनन ) का सर्वोपरि फल है" रस क्या है और उसकी निष्पत्ति क्योंकर होती है ? - "विभावानुभाव-व्यभिचारि-संयोगाद्-रस-निप्पत्तिः" (नाट्यशास्त्र अ० ६) "कारणान्यथ कार्याणि सहकारिणि यानि च । रत्यादेः स्थायिनो लोके तानि चेनाट्यकाव्ययोः ॥ ३७ ॥ व्यभिचारिणः । विभावाअनुभावाश्च कथ्यंते व्यक्तः स तैर्विभाद्यः स्थायीभावो रसस्मृतः" ॥ ३८ ॥ ( काव्यप्रकाश ४ । ) लोक व्यवहार में रति आदि चित्तवृत्तियों वा मनके विकारों वा भावों के जो (१) कारण (२) कार्य और (३) सहकारी कारण कहे जाते हैं वे ही नाटक और काव्य में रति आदि भावों के कारण (प्रयोजन वा हेतु ) से, क्रमशः (१) विभाव, (२) अनुभाव और (३) व्यभिचारी ( वा संचारी ) भाव कहे जाते हैं। उन विभावादि से व्यक्त ( प्रगट ) होकर ही रस कहाता है । ( स्थायी भाव है सो ही रस, और रस है सो ही स्थायीभाव है ) । (१) विभाव - रसका कारण वा हेतु है। इसके दो भेद होते हैं ( क ) आलंबन * "साहित्यदर्पण" पृ॰ २१ - "वाक्यं रसात्मकं काव्यं दोपास्तस्यापकर्षकाः । उत्कर्षहेतवः प्रोक्तागुणांलंकाररीतयः ॥३॥ * "काव्य-कल्पद्रुम" पृ० ९५-१५० पर्यंत । विभाव, और ( ख ) उद्दीपन विभाव । ( २ ) अनुभाव-विभावों के पीछे रसों का अनुभव करानेवाले हैं। मानों सहायक हैं और फलस्वरूप भी हैं। और भावबोधक भी हैं । स्तंभादि आठ ८ सात्विकभाव भी इन ही के अन्तर्गत वा मिलते-जुलते हैं ( ३ ) संचारीभाव ( वा व्यभिचारी ) चित्त की चिंता आदि न्यारी २ वृत्तियों का नाम है । रस वा स्थायीभाव के ये सहकारी कारण हैं। रस में यथासंभव संचार करते हैं। परन्तु ये न्स की तरह अधिक स्थिर नहीं रहते हैं । अवस्था विशेष में उत्पन्न होकर अपना प्रयोजन हो चुकने पर, स्थायीभाव को उचित सहायता देकर लोप हो जाते हैं । - ( ४ ) स्थायीभाव-भाव की परिपक और स्थिर अवस्था को स्थायीभाव कहते हैं । तत्र ही यह रस है । स्वामी सुन्दरदासजी की रचनाओं के सम्बन्ध में रस की चर्चा करने में अन्यत्र हम कह चुके हैं कि उनकी सतस्त रचनाएं शांतरस-प्रधान हैं। यह भी हम कह चुके हैं कि भाषा-साहित्य में यह स्वामी जी, उन परोपकारी धर्मनीति प्रतिष्ठापक कवियों में से हैं जिन्होंने शृङ्गाररस की हानिकारक कविता का तिरस्कार करके हिन्दी काव्य की अनेक छटाएँ शांतरस को ही प्रधान बना रख कर, कर दिखाई हैं। इसमें उनको अच्छी सफलता भी हुई है। और इस सफलता के वल से ही वे इस मार्ग में सिंह के समान अद्वितीय और शूरवीर के समान विजयपताका धारण किये हुए हैं। शृङ्गाररस ही को सर्वप्रधान मानने की प्रथा हिन्दी कवियों ही में नहीं, संस्कृत के कवियों में भी प्राचीनकाल से रूढ़ी-सी हो गई थी। यहां तक कि रस के नाम से ( जैसे वैद्यक में वैद्य लोग पारढ़ ही को रस कहते सिहाते हैं, वैसे ) शृङ्गार रस को ही रस नाम से पुकार कर प्राचीन साहित्यिक विद्वानगण अपने आपको मानों धन्य ही मानते रहे हैं। परन्तु ऐसी कल्पना की बड़ी उनकी एक वृथा- सी बढ़ी ही है । जब कि वेढ़ भगवान् ने ही "रसोबैँसः" कह कर रस को ब्रह्म का स्वरूप बता दिया है तो इन तुच्छ सांसारिक विषय के प्रतिपादक मानवियों के इस ढखोसले की वात कैसे मान्य होने के योग्य समझी जा सकती है। सच कहा है कि "अमली मिश्री छाँड के आफू खात सरात" । उनको तो चसका रसिकता का लगा हुआ रहता था, उनकी महिमा और प्रतिष्टा राजा वादशाह रईसों को रिझा कर हाथी, पालकी, आभूषण, इज्जत आदि मान की बातें इस ही शृङ्गारी कविता के प्रताप से प्रायः प्राप्त होती थीं। हां, उनमें से कुछ कवि शृङ्गार के अतिरिक्त वीर और शांत की कविता के करने में भी मन लगाते थे। और हम कहेंगे कि सच्ची बड़ाई उनकी, इन रसों की कविता से ही परमेश्वर और न्याय परायण लोक के सामने, निर्णीत होने के योग्य समझी जानी चाहिये । इस ही कारण महाकवि केशवदास, रामभक्त होने और भक्ति और ज्ञान वैराग्य की शांतरस - प्रधान कविता के भी करने से ही, सच्ची प्रतिष्ठा पाने के योग्य समझ गये । ऐसा वे न करते तो उनकी इतनी उच्चता की मर्यादा उनको स्यात् प्राप्त भी नहीं होती। और तुलसीदास - सूरदास के पास वे कैसे विठाये जाते । समझदार सत्यप्रिय साहित्यिक-समालोचकों ने शृङ्गार की हीनता और इसके अनिष्टकारी अवगुणों को ध्यान में रख कर इसे ( शृङ्गार रस ) को उच्चता नहीं दी है । यथा हम यहां हमारे समय के एक विद्वान् - पं० वदरीनाथजी भट्ट ही की सम्मति को उद्धृत कर देते हैं जिससे हमारे कथन की प्रतीति हो जायगी । वे अपने छोटे परन्तु वहुमूल्य ग्रन्थ "हिन्दी" के पृ० ८३ पर लिख चुके हैं कि"केशवदासजी को स्थान हिन्दी - कवियों में कितना ऊँचा है, यह वात इस दोहे से प्रकट हो जाती हैः-"सूर सूर तुलसी ससी, उडुगन केशवदास, अबके कवि खद्योत- सम जहँ-तहँ करत प्रकास" । यह ओड़छे के रहनेवाले थे। अकबर के पूसिद्ध मुसाहिव वीरवल इनका वड़ा आदर करते थे । सुनते हैं कि केवल एक ही छंढ़ पर रीझ कर एक बार उन्होंने केशव को छः लाख रुपये दे डाले थे। अबतक हिंदी काव्य में शृङ्गार और भक्ति का मेल किया जाता था। परंतु, 'रसिकप्रिया', 'नखशिख' आदि पुस्तकें लिख कर, केशवदास ने शृङ्गार की चर्चा भक्ति से अलग भी की, और काव्यविज्ञान के ग्रन्थों का बीज-सा डाल दिया, जिससे साहित्य के खेत में जड़ की ओर से सरस और ऊपर की ओर से सूखा-सा एक अजीब पेड़ खड़ा हो गया, जिसमें पीछे से अनगिनती, देखने में सुन्दर किंतु नीरस फल लगे जो आज भी देखे जा सकते हैं" । देखिये, भट्टजी ने कितनी अच्छी बात कह दी है। उनका खास अभिप्राय केशवदासजी के उस अनिष्टकारी करतूत से है, जिस द्वारा, भक्ति से शृंगार को पृथक् कर डालने के कारण, कोरी "गुलो बुलबुल, मुलो काकुल", सनम के नखरे और कामोत्तेजक भापा- लालित्य और अश्लील काव्य-रचना - साहित्य में फैल कर सर्वनाश का सामान बना । उनकी देखादेख अनेक कवि केवल नायिकाभेद और नग्न शृङ्गार रस में प्रवृत्त हो गये । जिससे घराने नष्ट हो गये, राज्य और सलतनत चोपट हो गये, मर्द गढ़ में मिल गये, समाज में कामी पुरुषों की भरमार हो गई, शृङ्गार का बोलवाला हो गया, धीरवीर हिंजड़े हो गये, शूरता रसातल में धस गई, भारत मानों कायरता से गारत-सा हो गया । और भी अनेक हानियाँ, काम की अधिक प्रवृत्ति से, हुई जो शृङ्गार-प्रधान काव्यों से हमारे देश में भलीभांति देखने वा सुनने में आई और इतिहास से जानी जाती हैं। वह वीज विप का था जिससे शृङ्गार का विपवृक्ष उगट कर विप फल लगे जिनको खाते ही मर गये और अब भी मर जाते हैं। नीरस शब्द कह कर बहुत गहरी बात कही गई है। अर्थात कोरे शृङ्गार-रस से नीरसता आई। इससे समझ लिया जाय कि शृङ्गारस उत्तम रस कहां रहा। हमारे साहित्यिक विद्वानों में ऐसे भी दीर्घ विचार के महात्मा ( ? ) हो गये हैं कि जिनको शांतरस तो रस ही प्रतीत नहीं हुआ और वे इतने बढ़ कर कह गये कि रस आठ ही हैं, शांतरस यह मत किसी २ नाटकाचार्य का ही है कि शांतरस नाटक में दिखाया जा नहीं सकता, इससे लोन नहीं ।
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चितेरों के महावीर ३३ एकाधिकार । अब तुम्हीं सोचो, जो व्यक्ति प्रचेनन पदार्थों पर प्रपना स्वामित्व, अधिकार नहीं रखना चाहता वह एक जीवित स्त्री का मालिक कैसे हो सकेगा? महावीर के सामने नारी की निकटता और त्याग का प्रश्न नहीं है । स्वयं के ग्रह कार के विसर्जन का संकल्प है। घर में वे इस प्रकार रहते थे जैसे न हों । उनकी इस अनुपस्थिति से अभी माँ बाप ही चिंतित रहते हैं । सन्तान के प्रति मोह जागृत कर अपने कर्मों को वृद्धि करते हैं। विवाह होने पर पत्नी भी इसमें सम्मिलित हो जायेगी । महावीर की यह दृष्टि थी ! वे इस जन्म में जीवों को कर्मों से मुक्ति पाने का मार्ग बताने माये थे, कर्मों का संचय कराने नहीं। महावीर तुम्हारी बान ही सोच रहे थे । नारी के संयोग से उन्हें प्रपनी मुक्ति का भय नहीं था। वे अपने कारण किसी नारी की मुक्ति की प्रबंधि लम्बी नहीं करना चाहते थे । इस बात पर भी सोची विवाह क्यों होता है ? इसलिए कि नारी एवं पुरुष दोनों कही न कहीं प्रपूर्ण हैं, उनके संयोग से परस्पर में पूर्णता की प्राप्ति हो । महावीर तो इस अपूर्णता से कब के ऊपर उठ चुके थे। देह धौर फात्मा की भिन्नता का जब से उन्होंने प्रनुभव किया, देह की प्रावश्यकताओं की पूर्ति करना उन्होंने छोड़ दिया था। उनके सम्पर्क में प्राकर कोई अपने को पूर्ण कर सकता था, उन्हें पूर्ण होने के लिए किसी की प्रपेक्षा नहीं थी। फिर वे विवाह किमलिए करते ? विवाह की तीसरी सार्थकता है संतान की प्राप्ति । इसके मूल में है व्यक्ति को वह आकांक्षा, जिसमें वह अपने प्रश को सुरक्षित रखना चाहता है । जिन इच्छाप्रों की पूर्ति वह स्वयं नहीं कर सका उनकी पूर्ति सन्तान के माध्यम से करना चाहता है । इच्छाप्रों के संग्रह का इतना लम्बा जाल महावीर कैसे स्वीकार कर लेते ? इच्छाओं के विसर्जन के लिए हो तो उनकी साधना थी । अतः उन्होंने जिस पथ का अनुसरण किया वह उनकी महावीरता का ही द्योतक है। श्रायुष्मति ! नाराज तो नही हो ?" 'गुरुदेव ! अपने प्रज्ञान पर लज्जित हूँ । ज्ञात नहीं था, महावीर के जीवन में प्राप का इतना प्रवेश है। प्राचार्यप्रवर ! आगे की कथा कहें ।' कनकप्रभा यह कहकर अपने आसन पर बैठ ही नहीं पायो थी कि शिल्पीसंघ से एक प्रश्न और उमरा - 'समाधानो के इस दौर में इस अन्तेवासी को ३४ चितेरों के महावीर भी कृतार्थ करें गुरुदेव ! जैनधर्म की श्वेताम्बर परम्परा महावीर के विवाह को स्वीकार करती है। कहते हैं, उनके 'प्रियदर्शनी' नाम की एक पुत्री भी थी जिसका 'जामालि' नामक विचारक से हुआा था। भाचार्यप्रवर ! एक ही धर्म की दो परम्पराओं में ऐसा विरोध क्यों ?" 'भद्र श्रीकण्ठ ! विरोध होने पर ही तो परम्परा बनती है किसी धर्म में । यह स्वाभाविक है, क्योंकि प्रत्येक महापुरुष के जीवन का मूल्यांकन करने के लिए हर व्यक्ति स्वतन्त्र होता है। जिसकी दृष्टि का जो पैमाना सदनुसार वह तथ्यों की गहराई तक पहुँच पाता है। जिस प्रसङ्ग को तुम बात कर रहे हो वह श्वेताम्बरों के 'कल्पसूत्र' नामक ग्रंथ में उल्लिखित है। उसके पूर्व के ग्रंथों में नहीं। महावीर को विवाहित मानने के कारणों पर विचार करें तो बात स्पष्ट हो सकेगी। प्रमुख कारण यह है कि महावीर की महिला का अर्थ - "कसी भी प्रारणी का मन न दुखाना, उस समय तक निश्चित हो चुका था। अतः जो व्यक्ति छोटे से छोटे प्रारणी के प्रति करुणावान् है, वह अपने माता-पिता की भावना को ठेस कैसे पहुंचायेगा ? उनकी किसी बात का विरोध में करेगा ? इसलिए जब माता-पिता ने कहा, उन्होंने विवाह कर लिया। जब तक वे जीवित रहे, महावीर ने गृहत्याग नहीं किया, प्रादि । इन बातों को श्वेताम्बर परम्परा ने इमलिए दृढ़ता से स्वीकार किया ताकि मह वीर की करुणामय अहिंसा एव अनाग्रही वृत्ति प्रधिक उजागर हो सके। इस प्रसङ्ग को स्वीकार करने में दूसरा कारण तत्कालीन सामाजिक प्रभाव है। समाज में मर्यादापुरुषोतम राम के प्रादर्श प्रचलित थे । मातापिता के प्रति कर्तव्यनिष्ठ एवं प्राज्ञाकारी के रूप में । ब्राह्मण परम्परा के एक आदर्शपुरुष के समकक्ष महावीर को गृह- दायित्वों से पलायन करने वाला कैसे मान लिया जाता ? प्रतः उनमें वे सभी गुरण प्रतिष्ठित किये गये जो एक महापुरुष में होना चाहिए । यद्यपि इन सभी गुणों और विशेषताथों को उपलब्धि महावीर को पिछले जन्मों में हो चुकी थी। इस भांतिम जन्म में वे इन सबसे ऊपर उटने आये थे सो उठे भो । किन्तु वहां तक दृष्टि कुछ ही साधकों की पहुंच पायी है । महावीर के जीवन से इस मान्यता के जुड़ने तक भगवान बुद्ध द्वारा पत्नी चितेरों के महावीर ३५ पुत्र को सोता हुआ छोड़कर गृहयाग की कथा अभी पुरानी नहीं पड़ी थी। वह महापुरुष कंमा, जो कठिनाईयों से भाग खडा हो ? प्रतः महावीर के जीवन के साथ जैसे चडकौशिक सर्प, कीलें ठाकने वाला ग्वाला, स्थाररुद्र, मादि की कथाएं जुड़ीं वैसे ही उनकी त्यागवृत्ति, कत्तं व्यपरायगगता एवं कारुणिकता को उजागर करने के लिए उनके भरे-पूरे परिवार की प्रतिष्ठा की गयो । पत्नी, पुत्री, दामाद इन सबको त्यागकर महावीर निकल पडे। कितने बड़े त्यागी, ? किन्तु वास्तविकता यह थी कि उन्होंने राजसी वंभव, राजभवन, परि बार के सदस्यों के अस्तित्व को ही नहीं स्वीकारा था, त्याग किसका करते ? इन सबकी भसारता का बोध जिस दिन पूर्ण रूप से सघन हो गया उस दिन वे इनसे बाहर हो गये। पुनः उनमें फंसने का प्रश्न ही नहीं उठता। इस प्रसंग में एक बात यह भी नजर पाती है कि यदि महावीर का विवाह हुआ होता तो गृह-त्याग के बाद ४२ वर्षों के तपस्वी जीवन में कहीं तो यशोदा से उनकी भेंट होती ? किसी स्थान पर उनकी पुत्री ने उन्हें महार दिया होता ? और कुछ नहीं तो इतिहास हो उनकी मस्पायु के सम्बन्ध में कुछ कहता ? किन्तु इस प्रसंग की जितनी अर्थवत्ता थी, उतना ही इसके साथ हुआ । भद्र श्रीकण्ठ ! इतना और समझ लें, हर महापुरुष अपने समय के बाद स्वयं के अनुरायिमों द्वारा निर्मित घेरों में जीवित रहता है। चाहे वे उसे अलौकिक बनायें या समारी। किन्तु उसकी गुणवत्ता में कोई कमी नहीं भाती । अतः यदि महावीर के व्यक्तित्व को गहरायी से समझना है तो कम से कम इतने दायरे तो बनायें, जिनमें सहजता से विचारों प्रादान-प्रदान हो सके। तुमने इस प्रश्न को उठाकर मुझे भौर चितन का अवसर दिया। मैं प्रसन्न हूं। किन्तु कुछ थक भी गया हूं । अतः भागे की कथा अब मध्यान्ह में कह सकूंगा। तब तक भाप सब भी बिराम ६. अभिनिष्क्रमरण मध्यान्ह के अंतिम प्रहर में शिल्पीसंघ पुनः एकत्र हुआ। इसके पूर्व अवकाश के क्षणों में प्राचार्य द्वारा कथित अब तक की कथा के सम्बन्ध में वे सभी कलाकार विचार-विमर्श कर यहां आये थे। आगे की कथा के प्रति भव वे पूर्ण सजग थे और उत्सुक भी। प्राचार्य अपने भासन पर बैठे हुए ध्यान मग्न थे। उनके सौम्य चेहरे को देखकर लगता था वे वैशाली के प्रास-पास विचरण करते हुए भगवान महावीर के प्रसगों को वातावरण से समेट रहे हैं। नयन खुलते ही उन्होंने कथासूत्र को सम्हाल लिया'महावीर माता-पिता को विवाह के प्रति अपनी विरक्ति के भाव बतलाकर निश्चित नहीं हो गये थे। उनकी चिन्तन की यात्रा और गतिशील हो गयी । पपने जीवन के सम्बन्ध में उन्होंने सोचा-में ग्राज जिन क्षरणभंगुर पदार्थों और रिस्ते-नातों के बीच हूं, उन्हें कितनी बार भोगा है ? क्रमशः उनके स्वरूप को जब जान पाया तो लगा इनसे मेरा सम्बन्ध हो क्या है ? भोर तब मैंने उसे खोजने की यात्रा प्रारम्भ कर दी जो मेरा था। मेरा है। पूर्व जन्म के अनन्त मव ग्रात्मा के स्वरूप को अनुभव करने में लग गए । आत्मा और ज्ञान की प्रभिन्नता से परिचित होते ही यह सारा संसार भज्ञान और मोह से पीड़ित नजर आने लगा। मैं क्रमशः इस बन्धन से विलग होने लगा । और भाज इस तिथि तक पहुंच पाया हूँ कि स्वयं को सत्य की उपलब्धि के समीप पाता हूँ ।' कभी वर्धमान अपने युग की स्थिति, वातावरण के सम्बन्ध में सोचने लगते तो पाते कि लोग धार्मिक क्रियाकाण्डों और दार्शनिक मत-मतान्तरों में बुरी तरह फम गये है। दूसरी ओर कुछ ऐसे विचारक भी हैं, जो इस प्रकार के विकृत धार्मिक क्रियाकाण्डों से मुक्ति तो चाहते हैं किन्तु उन्हें सही रास्ता नहीं मिल रहा है। प्रत्येक विचारक क्रान्ति का स्वयं भगुमा बनना चाहता चितेरों के महावीर ३७ है। इस धार्मिक प्रशान्ति का समाधान उसके पास भी नहीं है । इन सब विचारकों के प्रयत्नों का समन्वय कैसे हो ? किस प्रकार समाज को एक सरल एवं पुरुषार्थी धर्म की प्राप्ति हो, महावीर इस पर गहरायी से चितन करते रहते । जब कभी उनकी दृष्टि सामाजिक दशा पर उठ जाती तो उनका हृदय करुणा से भर जाता । वे देखते कि किस प्रकार समाज का एक वर्ग सब पर छाया हुआ है ? शिक्षा, सुविधाएं एवं स्वतन्त्रता किसी एक वर्ग तक ही सीमित हो गयी हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि समाज का आर्थिक पक्ष ही कटा जा रहा है, जो किसी भी समाज के विकास के लिए अनिवार्य है । तत्कालीन राजनीतिक दशा उन्होंने बहुत समीप से देखी थी । साम्राज्यबादी प्रवृत्ति के कारण स्वतन्त्र राज्यों का अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है, जिसके मूल में है परिग्रही और भयात्मक प्रवृत्तियों की प्रबलता । समाज की इन परिस्थितियों के प्रभाव से मानव-मानव के बीच बहुत अन्तर आ गया है। कैसे होगा मेरी सात्रता एवं ज्ञान का इन सबके कल्याण में उपयोग ? मेरे पूर्व इतने तीर्थकर हुए हैं। प्रत्येक ने जनहित के लिए कुछ ल कुछ प्रयत्न किये हैं। किन्तु मेरे समय की स्थिति बिकट है। अतः मुझे निश्चित रूप से कुछ नया करना होगा । भले उसकी साधना में यह जीवन लगा देना पड़े । मुझे अब इन सब व्यवधानों के भागे निकलना होगा और लगना होगा माश्मशुद्धि की दिशा में एकाग्र हो । तभी यह उपलब्ध हो सकेगा, जिससे स्वयं मुझे और इस प्रशांत जगत् को अपना लक्ष्य प्राप्त होगा । इस प्रकार महावीर के मन में वैराग्य की तरंगें चंचल हो उठी थीं। उनके उफान से सासारिक बन्धनों का किनारा डहने हो बाला था ।' 'प्रायः महापुरुष जगत् की आवश्यकता हुआ करते हैं। इसलिए जगत् की शक्तियां, बाताबरण जो चाहें सो उनसे कार्य करालें । वे स्वयं कुछ महां करने नहीं पाते। महावीर का वैराग्य जब इतना प्रबल हो गया तो लोकान्तिक देवों ने आकर उनसे प्रार्थना की -- प्रभो ! आपने इस संसार का कल्याल करने के लिए इस जन्म को धारण किया है। आपका मन स्वयं बीत रागत्तम की उपलब्धि हेतु संकल्पित है । अतः आप अपनी साथमा और ज्ञान ३८ चितेरों के महावीर द्वारा जगत् को वह प्रकाश दें, जिसकी वह प्रतीक्षा कर रहा है। भाप स्वयं कारुणिक हैं। प्रापका अभिनिष्क्रमण अब निकट ही है ।' देवों को इस प्रकार की बन्दना मे महावीर साधना में प्रवृत्त होने के लिए और प्रातुर हो गये। उनके इम सकल्प का समाचार इन्द्र को प्रवधिज्ञान से प्राप्त हुआ। वह महावोर की जन्मभूमि कुण्डलग्राम में या पहुँचा तथा भनेक उत्सवों एवं प्रायोजनों को हर्षपूर्वक सम्पन्न करने लगा। महावीर अपने अभिनिष्क्रमण के प्रति जितने ही मौन थे, उतनी ही वैशाली के घर-घर में उसकी चर्चा होने लगी। परिपक्व बुद्धि के लोग वर्धमान के इम संकल्प को प्रशंसा में व्यस्त थे । वे सिद्धार्थ और माता त्रिशला को ऐसे सुपुत्र की प्राप्ति के लिए धन्य समझ रहे थे। कुछ ढलती उमर के लोग चिंतित थे कि देखो, इस बुढ़ापे में सिद्धार्थ को पुत्र से कोई सहारा न मिला। बच्चों को पता नहीं था कि यह क्या हो रहा है ? किन्तु वे खुश थे कि देखो कितने उत्सव हो रहे हैं। किशोरवय के लोगों को महावीर से स्पर्धा हो रही थी। कितना तेजस्वी है इसका स्वरूप, इसको कान्तिमयी देह ? किशोरियां फुस-फुसा रही थीं - - हाय ! हतभाग्या यशोदा ? ऐसा जीवनसाथी हाथ से निकल गया। इनके ये वन जाने के दिन हैं ? प्रौढ़ा महावीर से एक बात करने को तरस गयीं। इतने दिन ये राजभवन में बन्द रहे और अब निकलेगे तो मौन हो जायेंगे। माताएं, जननी त्रिशला के दुख की कल्पना कर रही थीं । जितने लोग, उतनी ही बातें । यह तो नगर की स्थिति थी। राजभवन की तो बात ही मत पूछो । एक विषाद-सा छा गया था। जिसे देखो वही चुप इशारों का साम्राज्य हो गया था। जैसे इस सबसे महावीर रुक जायेंगे। परिजनों ने जाना ही नही था कि वर्षमान की उन्होंने कोई सेवा की है। परिचारिकाएं अपनी-अपनी कलाए भूलने लगीं थीं। महावीर ने कोई अवसर ही नहीं दिया उन्हें अपनी माज्ञापालन करने का ! और सब यह व्यक्ति हमेशा के लिए चना जायेगा। सभी हैरान थे। निश्चिन्त थे तो मात्र सिद्धार्थ । उनके समक्ष स्वप्नमाला अब साकार हो रही थी। उन्होंने सोचा--'बर्धमान अपने लक्ष्य पर ही जा रहा है। वह मुझसे अच्छी तरह जानता है कि उसे क्या करना है। वह प्रशा और अनुभव चितेरों के महावार ३९ में मुझमे बडा है। दिनोंदिन भीर बड़ा होगा। किसी पिता का इससे बड़ा और क्या सोभाग्य होगा कि उसका पुत्र उससे श्रेष्ठ निकला। झात्मकल्याण का माग प्रशस्त हो ।' यह कहते हुए प्राचार्य कश्यप का गला रुंघ भाया । क्षण भर विराम के लिए वे रुके । तभी कनकप्रभा ने पूछ लिया -- गुरुदेव ! माता त्रिशला को इस समय कैसा लगा ? 'प्रायुष्मति ! तुम इसकी कल्पना अच्छी तरह कर सकोगी कि एक नारी को प्राणों से प्रिथ पुत्र के विछोह का दुख कितना हुआ होगा ? मां त्रिशला ने जैसे ही वर्षमान के इस प्राध्यात्मिक प्रयाण का समाचार सुना, उनको ममता बावली हो उठो । प्रारण सकट में फस गये । वे सोचने लग-- 'यही दिन देखने के लिए मैंने वर्धमान को जन्म दिया था ? उसे जन्में उन्तीस वर्ष हो गये । मैंन उसके कोमल चरणों के नीचे धूल नहीं लगने दी। बही प्रब बीहड़ पर्वतों में घूमेगा ? मेघ गरजते थे तो में भवन के सारे वातायन बन्द करा देती थी कि मेरा लाड़ला कहीं गर्जन से डर न जाये । वह अब सिहों कीं गजना मौर हाथियों की चिहाड़ को सुनता फिरेगा ? कैसे सहेगा वह मूसलधार वर्षा, पत्थर गला देने वाली ठंड और भस्म कर देने वाली प्रचड गर्मी ? यहां तो वह दस बार मनाने पर नाममात्र को भोजन करता था, वहां क्या खायेगा जंगलों मे ?" इन सब पाशंकामों से रानी त्रिशला का रोम-रोम काप उठा । वात्सल्य को तीव्रता से वे मूछित हो गयीं । परिचारिकामों के उपचार के बाद जब वे सचेत हुई तो मूर्छा के साथ उनका वात्सल्य-मोह भी टूटने लगा। उन्हें पति सिद्धाय द्वारा कथित स्वप्नों के परिणाम याद आने लगे। उन्होंने वर्धमान को प्रात्मकल्याण का पथिक और धर्म प्रवर्तक होना बतलाया था। अतः यह कुछ अनहोनी नहीं है। इस विचार के प्राते हो वे वर्धमान के जन्म से अपने को सार्थक मानने लगी । और उस सुपुत्र के दर्शन करने को लालायित हो उठीं, जो उनसे जन्म लेकर भी अब उनका नहीं था। वहां उपस्थित देवों ने भी माता त्रिशला को अपने बचनो द्वारा सान्त्वना दी और कहा- 'जगदम्बे ! प्राप एक लोकोद्धारक विभूति को जन्म देकर धन्य हो गयी हैं। वर्षमान तीर्थदूर हैं। वे सभी प्रकार के परिवहों को जीतने में समर्थ होते हैं । अतः प्राप उनके दुख की कल्पना से चितित न हों। बल्कि उन्हें प्राशीष दें कि वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हो ।' तभी वहां राजा सिद्धार्थ भी आ गये । प्रियकर बोले- 'हां' त्रिशले ! हमें श्रव यही करना चाहिए । चलो, से दृष्टि मिलते ही वर्धमान का जैसा हमने जन्मोत्सव मनाया था, जैसे ही उसके निष्क्रमगा की तैयारी करें ? मन मे ममता और प्रांखों में घिरे सावन-भादों वाली त्रिशला अब क्या उत्तर दे? वह सबके साथ चल दी । देवयोनि की सार्थकता इतनी है कि देवों को तीर्थंकरों के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में न केवल सम्मिलित होने अपितु विभिन्न उत्सवों का प्रायोजन करने का सौभाग्य भी प्राप्त होता है। वर्धमान का अभिनिष्क्रमण हुआ तो देव उसमें सबसे भागे थे। उन्होंने चन्द्रप्रभा नाम की पालकी सजायी । वर्धमान को वस्त्राभूषण पहनाकर उसमें बैठाया और गातेबजाते राजभवन से निकल पड़े। वे क्या निकले, सारा राजभवन ही सूना हो गया । राजकुटुम्ब, राज्याधिकारी, सम्भ्रान्त नागरिक, जिसने भी सुना वही उनके पीछे हो लिया । मार्गशीर्ष शुक्ला १०वीं (ई. पू. ५६६) के दिन का चौथा पहर कुम्डग्राम के लिए हर्ष और विषाद का प्रतीक बन गया । नागरिक भीड़ में सम्मिलित थे, किन्तु उनकी समझ में न आ रहा था कि वे अपने प्यारे राजकुमार के वनगमन, गृहत्याग पर दुखी हों अथवा मानव कल्याण जैसे कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले इस सपूत पर फूले न समायें ? थोड़ी ही देर बाद उनके मोह पर उनकी सद्बुद्धि की विजय हो चुकी थी और उनकी जयघोषो से सारा राजमार्ग गूंज उठा। उस क्षत्रिय कुण्डपुर के बाहर थोड़ी ही दूर पर 'ज्ञातखण्ड' नामक उद्यान था। चारों ओर हरा-भरा तथा पुष्प एव लताओं से रमणीक उसी के एक कोने में अशोकवृक्ष के नीचे वर्धमान की पालकी उतारी गयी । वह भूखण्ड वर्धमान के तेज से आलोकित हो उठा । बिम्बधुनों ने भारती उतारी । देवतामों ने उत्सवों से जंगल में मंगल कर दिया। बर्धमान अभी तक इस चितेरों के महावीर ४९ प्रायोजन में मौन भाव से सम्मिलित थे। जिसने जो कहा मो करते रहे । किन्तु उनका मन वीतरागता में ही लीन था। उद्यान में आते ही वे प्रमुदित मन से पालकी से उतरे औौर एक शिलाखण्ड पर, जिस पर स्वस्तिक अंकित था, बैठ गये । बिना किसी आकुलता के पल भर में साथ प्राये जनसमूह से उन्होंने बिहा लो और इस संसार के बन्धनों से मुक्त हो गये । देह की शोभास्वरूप जो भी उपकरण थे - वस्त्र, आभूषण, केश उन्हें क्रमशः उन्होंने उतार फेंका। पांच मुट्ठियों में भरकर उतारे गये सिर के केश मानों प्रतीक थे। उस कर्मकालिमा के, जो पांच व्रतों के पालन से क्रमशः धुल जाती है। वर्धमान का वस्त्र, माभूषणों से विमुक्त शरीर अपने असली स्वरूप में आकर मानों कह रहा था कि संसार की प्रत्येक वस्तु को तब तक जानने का प्रयत्न करो जब तक उस पर कोई प्रावरण शेष न रहे । इस प्रकार सिद्धों को नमस्कार कर उस शुभमुहूर्त में वर्षमान पद्मासन में प्रासीन हो गये । प्रात्मा की अनन्त गहराईयों में विचरण करने लगे । उन्हें देख लगता था जैसे उन्होंने प्रतीक्षित निधि पा ली है। जैसे कोई भात्मसिन्धु का तलस्पर्शी अन्वेषक उसको अतल गहराईयों से ज्ञान के मोती बटोर रहा हो । यह सब उस पद्मासन मुद्रा का हो प्रभाव था । भद्र ! तुम सब जानते हो मूर्तिकला और चित्रकला में इस पद्मासन मुद्रा को कितना महत्वपूर्ण स्थान मिला है। क्योंकि प्रात्मा से साक्षात्कार करने का यह प्रमुख साधन था। पौर महावीर की यात्रा इसके लिए ही थी ।' 'प्राचार्यप्रवर ! उस प्रात्म-प्रन्वेषक यात्री को सादर प्रणाम के साथ एक समाधान का आकांक्षी हूँ । क्या सचमुच इतने बड़े राजपाट, धन-गैभव, सुख-संपदा भौर स्नेही परिवार का त्याग उन्होंने पलभर में कर दिया था ? तनिक भी मोह नहीं हुआ उन्हें ? फिर भी उन्हें 'महावीर' तो कहा गया, 'महात्यागी' नहीं ? 'भद्र चित्रांगद ! तुम्हारा सोचना ठीक है। बिल्कुल गैसा ही, जैसा एक संसारी व्यक्ति सोच सकता है। महावीर को 'महात्यागी' नहीं कहा गया इसकाः गहरा कारण है। वास्तव में उन्होंने कुछ त्यागा हो नहीं । स्थागते तो वे हैं जिनके पास कुछ होता है। महावीर के चारों घोर जो कुछ ठोभव, सुखसम्पदा हमें दिखती है वह हमारे भोगी होने के कारण है। हम में उन सब सांसारिक वस्तुओं के संग्रह करने की लालसा है। इसलिए में बड़ी कीमती दिखती हैं। और लगता है कि जिन वस्तुओं की प्राप्ति के लिए हम मर मिटते हैं, उन्हें महावीर ने कैसे त्याग दिया ? यह हमारी दृष्टि का भ्रम है, जिसे महावीर कब का तोड़ चुके थे । 'महावीर दो कारणों से सांसारिक सम्पदा के स्वामी नहीं थे। प्रथम, दे निर्भय थे, अतः अपनी सुरक्षा के लिए उन्होंने किसी वस्तु का संग्रह नही किया। दूसरे वे यह भी जान चुके थे कि इन वस्तुओं की प्रात्मकल्याण के लिए कहीं कोई सार्थकता नहीं है । प्रतः ये मेरी नहीं हैं। यही भाव उनका परिवार के सदस्यों के प्रति था, राजभवन के प्रति था और जो भी उनसे अपने को सम्बन्धित मानता था उसके प्रति था । अतः जिस प्रकार हम रास्ते में मील के पत्थरों को छोड़ते हुए गन्तव्य की मोर बढ़ते जाते हैं उसी प्रकार वर्षमान इन सब वस्तुओं के बीच निस्पेक्ष भाव से गुजर गये। उनकी महावीरता भी किसी सर्प को पराजित करने अथवा कहीं पौरुष दिखलाने के कारण नहीं है, अपितु उन्होंने मानवमन की उन वृत्तियों को जीता है, जो प्रात्मकल्यारण के क्षेत्र मे पागे नहीं बढ़ने देती। प्रतः वे भोग को छोड़ने और त्याग को पकड़ने के कारण नहीं बल्कि दोनों स्थितियों में ग्रात्मस्वभाव के प्रति सजग बने रहने के कारण 'महावीर' है ।' 'भद्र श्रीकण्ठ ! कुछ दुविधा में दिखते हो । निःसंकोच चितन को गति दो ।' 'भाचार्यप्रवर ! भाप से क्या छिपा है ? महावीर वस्त्र त्यागकर दिगम्बर हो गये। पूर्ण अपरिग्रही होकर प्रात्मसाधना मे लीन । फिर भो उनके अनु. यापियों की एक परम्परा यह क्यों मानती है कि कुछ दिनो तक वे वस्त्र घारण किये रहे, भले वह देवताओं के द्वारा दिया गया हो ?' 'बहुत अध्ययन किया है श्रीकण्ठ तुमने । तुम निश्चित रूप से अपनी कला द्वारा मेरी कल्पना को साकार कर सकोगे। अभी जैसे मैंने कहा कि भोग में पगी दृष्टि ने महावीर को भी सम्पत्तिथाली मोर वैभवशाली मान लिया और चितेरों के महावीर ४३ फर उनका त्याग कराकर उन्हें प्रतिशय त्यागी स्वीकार कर लिया उसी प्रकार उन्हे निपट नग्न और सवस्त्र देखने वालों की भी अपनी दृष्टियां हैं। हो सकता है, जिन्होंने उन्हें उस अखण्ड व्यक्तित्व पर खडे हुए देखा हो, जहां उघाड़ने के लिए कुछ बचा ही न हो । सब कुछ स्वच्छ, निर्मल, आकाश सा । आत्मा अलग और शरीर अलग। अब शरीर को संभारने वाला रहा हो कौन ? अतः उन्हें महावीर की काया प्राकृतिक रूप में ही दिखायी पड़ेगी। और जिन लोगों की दृष्टि महावीर के व्यक्तित्व के विशेष गुणों के मूल्यांकन में ही तृप्त हो गयी होगो, उनकी आंख महावीर की नग्नता तक पहुंची हो न होगी । महावीर जैसा महापुरुष नग्न कैसे होगा ? प्रतः देवताघों द्वारा प्रदत्त वस्त्र का कथानक उनके साथ जुड़ जाना स्वाभाविक है । और जैसे-जैसे महावीर की साधना सघन हुई वह देवदूष्य भी उनसे विलग हो गया । वास्तव में महावीर किसी वस्तु को छोड़ने के प्रति चाग्रही नहीं रहे, क्योंकि उन्होंने किसी को पकड़ हो न रखा था। उनकी साधना में जब वस्त्र छूट गया जब भोजन छूट गया भोर जब स्वयं शरीर का ममत्व तिरोहित हो गया वे छोड़ते चले गये । यही उनकी अनासक्ति की पभिव्यक्ति है। अपरिग्रह का विस्तार ।' 'कहते हैं कि महावीर जैसे ही पद्मासन होकर ध्यानमुद्रा में लोन हुए तथा पूर्णरूपेण श्रामण्य-जीवन व्यतीत करने का संकल्प किया, उन्हें मनःपर्यंय ज्ञान की प्राप्ति हो गयी। ऐसा ज्ञान, जिसके द्वारा दूसरे के अन्तःकरण के हलन-चलन को भी जाना जा सके। यह संकेत था, उम केवलज्ञान रूपी प्रकाश के प्रति समर्पित होने का, जिसको उपलब्धि के लिए वर्धमान इस यात्रा पर निकल पड़े थे । धार्मिक जगत् में प्रात्मोपलब्धि के लिए प्रारम्भ की गयी यह मनोखी यात्रा थी ।' 'प्राचार्यप्रवर ! एक अनुरोध है मेरा । भाज कथा को अब यहीं विराम दे दें । मेरा मन वर्षमान के साथ इस गुहा, इस उपत्यका से अभिनिष्क्रमण कर गया है। शायद इन कलाकार बन्धुओ का भी । हमे भी वैशाली के नागरिकों, त्रिशला, सिद्धार्थ और राजभवन के उस विषाद मिश्रित हर्ष में सम्मिलित होन दें, जिसे रगों के माध्यम से हमें इन दीवालों पर मकित करना है। और फिर श्राप भी तो क्लान्त हुए होंगे गुरुदेव ! चलकर वेतवा के किनारे तक घूम ४४ चितेरों के महावीर मायें ।' 'भद्र' कनकप्रथा ! तुम ठीक कहती हो । चौदह सौ वर्ष पूर्व हुए महावीर के अभिनिष्क्रमण से ग्राज यह वनखण्ड मुझे सूना लगता है। अद्भुत था वह महापुरुष, जो वातावरण में इतना संजोया हुआ है।' क्षणभर बाद वह गुहा सिद्धार्थ के राजभवन-सी नीरव हो गयी । कुण्डग्राम के राजमार्गों-सी सुनी। ७. अभिव्यक्ति की खोज प्राज शिल्पी संघ गुहा के द्वार से थोड़ा हटकर एक मनोरम मैदान में एकत्र हुआ था । प्रातकाल की कुनकुनी धूप सब के वदन सेंक रही थी । मैदान के एक छोर पर बडी शिला पर प्राचार्य कश्यप विराजमान थे । लगता था- गुहारूपी राजभवन से अभिनिष्क्रमण कर स्वयं महावीर इस वनखण्ड में ध्यानस्थ हो गये हैं । और अपने तपस्वी जीवन की, सत्य को प्रकाशित करने के माध्यम खोजने की कथा स्वयं कह रहे हैं 'कलाकार मित्रों ! भगवान महावीर तीस वर्ष की अवस्था में अब उस यात्रा पर निकल पड़े थे, जहां से उन्हें ऐसी शक्ति प्राप्त करनी थी कि वे अपनी सत्य की अनुभूति को जनमानस तक पहुंचा सकें । अतः इस यात्रा में वे इतने घूमे-फिरे कि छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा व्यक्ति उनके सम्पर्क में आया । तरह-तरह के अनुभव उन्हें हुए । अनेक कष्टों को उन्होंने सहा । किन्तु यह सब कुछ उनके लिए कर्मों की निजंरा का माध्यम था । इन सब घटनाओं के प्रति वे कृतज्ञ थे कि उन्होंने कर्मक्षय का उन्हें अवसर प्रदान किया। और उसकी उपलब्धि में सहयोग, जिसके माध्यम वे जगत् को अन्धकार से प्रकाश में ला सके । महावीर केवलज्ञान प्राप्ति के पूर्व लगभग १२ वर्षों तक तपश्चर्या करते रहे । इस अवधि का सम्पूर्ण इतिहास किसी एक ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं है । हो भी नहीं सकता था, क्योंकि ये सब अनुभव महावीर के निजी थे । किन्तु कुछ घटनाओं के आधार पर, कुछ संकेतों की व्याख्या स्वरूप उनके इस जीवन को क्रमबद्ध रूप में उपस्थित किया जा सकता है। यहां भी दोनों परम्पराओं में प्रचलित मान्यताओं का महारा लेना पड़ेगा। उन तथ्यों का जो सत्य के द्वार तक पहुंचने में सहायक होंगे। एक बात और ध्यातव्य है कि महावीर के इस तपस्वी जीवन में जिन ग्रामों, नगरों, जनपदों व व्यक्तियों के नाम परम्परा से प्राप्त होते हैं, उन सभी को ऐतिहासिक सिद्ध नहीं किया जा सकता और ४६ चितेरों के महावीर न आज इतने समय बाद उनकी पहिचान ही की जा सकती है। इतना अवश्य है, संयोग से कुछ का अस्तित्व अभी भी मिल जाय। दूसरे, यह सब आवश्यक भी नहीं लगता। क्योंकि हमारा उद्देश्य महावीर के जीवन के उन सूत्रों को पकड़ना है, जिनसे जीवन में प्रकाश की सम्भावना है। वे कहां से प्राप्त हुए उन स्थितियों को समझना है। उनकी प्रामाणिकता पर विचार करना इतिहासज्ञों का कार्य है। इस प्राथमिक के साथ ही मैं आगे की कथा कह सकूँगा - 'एक मुहूर्त दिन शेष रहते महावीर उस वनखण्ड से निकल कर कमरिग्राम पहुंचे और वहीं रात्रि व्यतीत करने के विचार से ध्यान में खड़े हो गये । वे साधना में लीन थे अतः पूर्ण रूप से जाग्रत । उन्हें नींद लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। कहते हैं, उसी दिन सांयकाल किसी एक ग्वाले ने अपने बैलों की रक्षा का भार उन्हें सौंप दिया और वह कहीं कार्य से चला गया । लौटने पर उसे जब वहां बैल नहीं मिले तो उसने महावीर से पूछा । महावीर ध्यान में मौन थे । अतः उनके मौन के कारण उस ग्वाले का मन महावीर के प्रति शंका से भर गया। उसने बहुत से पाखण्डियों को इस प्रकार का कार्य करते देखा था । अतः वह खिन्न हो उन्हें रस्सी से मारने को प्रवत्त हुआ । तभी इस घटना के साक्षी इन्द्र ने उसे रोक लिया और महावीर का परिचय देकर उसे वहां से विदा किया। तदनन्तर इन्द्र ने महावीर से भी प्रार्थना की कि आपको इस साधनाकाल में अनेक कष्ट झेलने होंगे। अतः मुझे आप अपनी सेवा में रहने की आज्ञा दीजिए ताकि आपको ज्ञान की उपलब्धि निर्विघ्न हो सके । किन्तु तपस्वी महावीर ने इन्द्र को यह कह कर विदा कर दिया कि मर्हन्त अपने पुरुषार्थ और बल से ही केवल ज्ञान की स्थिति को प्राप्त होते हैं, किसी के सहारे नहीं । अतः मैं अंकेला ही साधनापथ में विचरण करूंगा । प्रातःकाल वहां से चल कर महावीर 'कोल्लाग' सन्निवेश में पहुंचे, जहां उन्होंने 'बहुल' ब्राह्मण के यहां क्षीरान से प्रथम पारणा की। वहां से विहार कर वे मोराक सन्निवेश में पहुंचे। वहां एक प्राश्रम के कुलपति ने उन्हें अपने यहां ठहरने का निमन्त्रण दिया। किन्तु महावीर वर्षावास में वहां पुनः पाने की बात कहकर आगे चल दिये । विभिन्न स्थानों में उन्होंने शिशिर चितेरों के महावीर ४७ और ग्रीष्म ऋतु में साधना की तथा वर्षा के प्रारम्भ होते ही वे पुनः उस ग्राश्रम में लौट आये । किन्तु कुछ समय व्यतीत होने पर ही उन्हें लगा कि प्राश्रम का वातावरण उनके अनुकूल नहीं है। प्रतः वे वहां से भी चल पड़े और शेष प्रथम वर्षाकाल उन्होंने अस्थिक ग्राम में पूरा किया । अस्थिक ग्राम का प्रथम वर्षावास भगवान महावीर के तापस जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां रहते हुए उन्होंने आगामी भ्रमण के सम्बन्ध में कुछ निर्णय लिये । ऐसे स्थानों पर ठहरने का निश्चय किया जहां ध्यान में बाघा न पढे । महावीर ने मौन रहना ही श्रेयस्कर समझा, क्योंकि लोग तरह-तरह के प्रश्न पूछकर उन्हें परेशान कर सकते थे। प्रश्नों का समाधान करना सरल था, किन्तु इससे प्रात्मध्यान में बाधा पड़ती थी । गृहस्थों से कोई विशेष सम्बन्ध न रखने का उन्होंने प्रयत्न किया । कहा जाता है कि इसी ग्राम के परिसर में शूलपाणि नामक व्यन्तर का एक चैत्य था। महावीर जब उसमें ठहरने के लिए गये तो ग्रामवासियों ने उस व्यन्तर देव की भयानकता और क्रूरता से उन्हें परिचित कराया। किन्तु वे उनकी आज्ञा लेकर उसी चैत्य के एक कोने में ध्यान लगाकर खड़े हो गये । शूलपारिग ने महावीर की इस निर्भयता को अपना अपमान समझा और सांझ होते ही उसने अपने पराक्रम दिखाना प्रारम्भ कर दिये । भयंकर हाथी, पिशाच एवं विषधर नाग आदि के नाना रूप धारण कर वह देव उन्हें रात्रि भर कष्ट देता रहा । महावीर का तन आहत हो गया, किन्तु मन से वे पूर्ववत् ध्यान में मग्न रहे । फलस्वरूप शूलपाणि का हृदय परिवर्तित हो गया । उसको क्रूरता विदा हो गयी । ग्रामवासी इस घटना को देखकर महावीर की साधनां के प्रति श्रद्धा से भर उठे । मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को महावीर ने अस्थिक ग्राम से वाचाला की तरफ विहार किया। वाचाला जाने के लिए कनकखल प्राश्रम पद से होकर जाना पड़ता था । भगवान महावीर जिस दृष्टिविष सर्प रहता था, जिसके नेत्रों से यद्यपि गांव के ग्वालों ने महावीर को इस रास्ते से जाने को रोका था, किन्तु प्रभय और करुणा के धारक वर्धमान को इसकी क्या चिन्ता ? वे उसी मार्ग ४८ चितेरों के महावीर में एक देवालय के समीप ध्यानारूढ़ हो गये। सांयकाल जब सर्प अपने निवास स्थान पर लौटा तो इस निर्जन प्रदेश में एक मानव को देखकर शंकित हो उठा । उसने अनेक बार अपनी विषभरी दृष्टि से महावीर को भस्म करना चाहा । किन्तु जब सफल न हुआ तो उन पर झपट कर उसने उनके पैर के अंगूठे में काट खाया । उसके आश्चर्य की सीमा न रही जब उसने देखा कि महावीर के पैर से खून की जगह दूध निकल रहा है। जैसे ही उसने महावीर से दृष्टि मिलायी उसे सुनायी पड़ा - समझ चण्डकौशिक ! समझ ।' यह नाम सुनते ही उस दृष्टिविष सर्प का सब क्रोध जाता रहा । उसे अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो माया, जिसमें वह किसी आश्रम का कुलपति था और अपने कर्मों के कारण इस रूप में जी रहा था । उसने महावीर के समक्ष प्रायश्चित किया और कुछ दिनों पश्चात् देह छोड़कर स्वर्ग में देव हो गया । महावीर के साथ घटित इन प्रसंगों की अपनी अर्थवत्ता है। ऐसा लगता कि महावीर की साधना का स्वरूप इतना अनोखा था कि उन्हें उस युग में पहिचानना कठिन हो गया था। तत्कालीन सभी धार्मिक विचारक किसी न किसी मत के प्रतिपादक थे। उन्होंने कुछ निश्चित चिन्ह पकड़ रखे थे । जो उनके अनुयायी थे वे उनकी सेवा करते थे और जो नहीं थे, वे किनारा काटकर अलग हो जाते थे। किन्तु महावीर के साथ यह दिक्कत थी । वे इतने वीतरागी हो गये थे कि साधारण लोग उनसे निकटता का अनुभव नहीं कर पाते थे । न तो ये किसी को मुख-सम्पदा की प्राप्ति कराते थे और न ही उनके कष्टों का प्रत्यक्ष निवारण करते थे। यही कारण है कि उन्हें अपरिचित- सा जानकर कभी कोई सता लेता था । कभी कोई प्रणाम कर लेता था । तपश्चर्या के इस साधनाकाल में महावीर ने जो कठिन से कठिन रास्ता चुना है तथा लोगों के मना करने पर उन्हीं स्थानों पर रात्रि में ठहरे हैं, जहां किसी न किसी विघ्न की सम्भावना थी इसमें भी एक गहरा कारण है । वे यह जान लेना चाहते थे कि उनकी आत्मा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कितनी जागी हुई है ? उनके सम्पर्क में आने वाली ऐसी आत्मामों पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है ? साथ ही इन कथा प्रसंगों से महावीर के आन्तरिक गुणों को भी ग्रहण करने में सुगमता होती है। सांप के काटने पर उनके चितेरों के महावीर ४ पैर से निकलना चमeकार भले लगे, अतिशयोक्ति भी, किन्तु वह इस बात का प्रमाण है कि महावीर में जीवों के प्रति अगाध ममत्व के भाव है। उनके साथ कोई कुछ भी करे, महावीर का प्रत्युत्तर करुणा ही होगा। महावीर की साधना के इस दूसरे वर्ष की प्रमुख घटना है-मक्खलिपुत्रं गोशालक का उनके साथ सम्बन्ध होना। कहा जाता है कि विहार करते हुए जब महावीर राजगिरि पहुंचे और पास के उपनगर नालन्दा में एक तन्तुवाय शाला में वर्षावास किया तो उसी समय वहीं पर गोशालक नामक एक मेख जातीय युवा भिक्षु भी ठहरा हुआ था। महावीर के तप, ध्यान और माचरणं आदि से गोशालक बहुत प्रभावित हुआ और उसने महावीर के शिष्य होने का निश्चय किया। किन्तु महावीर ने इसका कोई तत्काल उत्तर नहीं दिया। गोशालक निरन्तर उनके साथ लगा रहा । एक बार कार्तिक पूर्णिमा का दिन था । भिक्षा-चर्या को जाते हुए गौशालक ने महावीर से पूछा- 'ग्राज मुझे भिक्षा में क्या मिलेगा ?" उन्होंने उत्तर दिया- 'कोदों के नन्दुल, छाछ और कूट रुपया ।' गोशालक महावीर की इस भविष्यवाणी को मिथ्या प्रमाणित करने के लिए उस दिन धनाड्य लोगों के यहाँ ही भिक्षार्थ गया। किन्तु वहां कुछ प्राप्त न कर सका । मन्त में एक कर्मकार ने उसे भिक्षा में वही दिया जो महावीर ने कहा था । इस घटना का गोशालक पर बड़ा प्रभाव पड़ा। वह सोंचने लगा वही होता है जो पहले से निश्चित होता है। इस प्रकार वह नियतिवादी हो गया। अपने इस विचार को और अधिक पुष्ट करने के लिए वह भाजीवकों के उपकरण छोड़कर महावीर का शिष्य बन गया और निरन्तर उनसे इस प्रकार के प्रश्न पूछना रहा । नालन्दा से बिहार कर महावीर अपनी साधना के तीसरे और चौथे वर्ष में कोल्लाग सन्निवेश, सुवर्णखल, ब्राह्मणगांव, चम्पा, कलायसंनिवेश कुमारा, चोरात एवं कपंगला आादि अनेक स्थानों पर भ्रमण करते रहे। गोशालक उनके साथ बना रहा। कभी वह पार्श्व परम्पन के मुनियों से विवाद लेता तो कभी वैदिक परम्परा के साधुओं से । किन्तु महावीर उसे हमेशा समझाते रहते और आत्मध्यान का उपदेश देते थे। इस प्रकार के भ्रमण में महावीर को अनेक कष्ट झेलने पड़े। कभी उन्हें कोई गुप्तचर समझकर पकड़ लेता तो कभी वे डाकुओं से घिर जाते । किन्तु महावीर कहीं प्रतिरोध न करते। उनकी इस मध्यस्थ वृत्ति के कारण एक ओर जहाँ तत्कालीन तपस्वियों को ईर्षा होती, वहीं दूसरी भोर महावीर की साधना में श्रद्धा रखने वाले व्यक्तियों की भी संख्या बढ़ती जा रही थी। कभी-कभार महावीर के पिता सिद्धार्थ के मित्र या परिचित लोग भी उनको मिल जाते। वे उनकी इस अपूर्व साधना को देखकर सिद्धार्थ के भाग्य को सराहने लगते । महावीर ने अपने कष्ट निवारण के लिए किसी की सहायता नहीं ली। इसका भी एक कारण है। महावीर यह जानते थे कि जिस किसी के द्वारा मेरा शरीर सताया जाता है या जो मुझे उपसर्ग पहुंचाने का प्रयत्न करते हैं, ने भने अपनी हानि कर रहे हों, किन्तु मेरा भला कर रहे हैं। उनके निमित्त से मेरे कर्मों की निर्जरा हो रही है। इस बात का गहन दर्शन है। यदि कोई किसी को सता रहा हो तो ऊपर से तो लगेगा कि वह व्यक्ति दुष्ट है। गलत काम कर रहा है। किन्तु इससे सताये जाने वाला उपकृत हो रहा है। उसके प्रति अपने कर्मों से प्रऋरण हो रहा है। शायद यही कारण है कि एक दो प्रसंगों को छोड़कर महावीर ने अपने जीवन में शारीरिक दृष्टि से किसी की सहायता नहीं की। भले उनके अन्तस् की करुणा इससे अधिक कार्य करती रही हो। किन्तु इस गहराई का चिन्तन तभी भ्रा सकता है, जब व्यक्ति अपने पूर्वजन्मों की श्रृंखला में जागृत होकर उतरे। महावीर ने अपनी साधना में इसी का प्रयत्न किया है। अनार्य देश राढभूमि में विचरण कर महावीर ने अनार्य लोगों की अवहेलना, निन्दा, खर्चना और ताड़ना आदि को अनेक बार सहा । वे यदि किसी घर के बरामदे में रात्रि में खड़े होकर ध्यान करने लगते तो लोग उन्हें बोर समझकर भगा देते। वे जब भिक्षा लेने किसी द्वार पर पहुंचते तो दूसरे धर्म के साधु व भिखमंगे उन्हें धक्का देकर भागे सरका देते। किसी सराय यादि में यदि वे विभाग के लिए रुकते तो उनके कान्तिमय शरीर और तारुण्य की लालची स्त्रियां उन्हें परेशान करने लगतीं। किन्तु महावीर इन सबकी उपेक्षा करते चितेरों के महावीर ५१ रहे। उन्हें मात्र अपना लक्ष्य दिखता था, मार्ग के कंटक, कंकड़ नहीं इसीलिए वे बागे बढ़ते रहे । साधना के छठे वर्ष में कूपिय ग्राम मे कंसाली की ओर जाने के लिए महावीर ने जब विहार किया तो गोशालक ने साथ चलने के लिए मना कर दिया। उसने कहा - 'आपके साथ रहते हुए मुझे बहुत कष्ट उठाने पड़ते आप समर्थ होते हुए भी मेरी सहायता नहीं करते। इसलिए आपके साथ अब मैं नहीं चलूंगा।' महावीर मौन रहते हुए भागे बड़ गये । शालिशीर्ष ग्राम के उद्यान में कटपूतना नामक ब्यम्वरी ने महावीर पर चोर उपसर्ग किया। महावीर ध्यान से विचलित नहीं हुए। प्रतः उनकी मनःस्थिति क्रमशः इतनी विकसित हुई कि उन्हें उसी समय 'लोकावधि' नाम का ज्ञान प्राप्त हो गया, जिससे वे लोक के समस्त द्रव्यों को साझाङ जानने और देखने लगे। यहां से महावीर भद्दिया की ओर प्रस्थान कर गये । भदिया के चातुर्मास में ६ माह तक इधर-उधर घूमकर गोशालक फिर प्राकर महावीर के साथ हो गया किन्तु अभी तक उसने अपनी नियतिवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा था। कहा जाता है कि एक बार महाबीर सिद्धार्थपुर से कर्मग्रान जा रहे यहाँ वैश्यामन नामक एक तापस से मोशालक का मतभेद हो गया। अतः उत सापस ने तेजोलेश्या छोड़कर उसे भस्म करना चाहा। तब महावीर ने तुरन्त शीतलेश्मा छोड़कर गोबालक को बचाया । तेजोलेश्या के प्रभाव से गोशालक बहुत प्रभावित हुआ और उसने महावीर से उसे प्राप्त करने की विधि पूछ ली। कुछ समय बाद, महावीर की साधना के बसवें वर्ष में वह उनसे प्रथम हो गया। छः माह तक रूप, भातापना आदि करके उसने तेजोलेश्या प्राप्त की, फिर निमित्तशास्त्र पढ़ा। और इस प्रकार असाधारण शक्तियों का चार होकर वह भाजीविक सम्प्रदाय का स्वर्ग तीर्थकर बन गया । इधर महावीर विभिन्न प्रकार के ध्यान करते हुए भावस्ती पहुंके यहाँ उन्होंने अपना दसवां वर्षावास किया। श्रावस्ती से कौसाम्बी वाराणसी, राजगिरि, मिथिला बादि नवरों में बिहार करते हुए महावीर पुनः भाये जहां उन्होंने साथवा का ग्यारहवां वर्ष पूरा किया ? :८. जगत् के प्रति समर्परण यहां तक की कथा कहकर आचार्य कश्यप क्षरण भर के लिए रुके। वे कथा का सूत्र पकडना ही चाहते थे कि एक जिज्ञासु कलाकार पूछ बैठाआचार्यप्रवर ! आपने महावीर की साधना का विस्तार से वर्णन किया । वे कितना घूमे-फिरे यह भी बतलाया । किन्तु गुरुदेव ! महावीर को तो ! प्रात्मसाधना करनी थी। एक स्थान पर ध्यानस्थ होकर भी तो वे ज्ञान प्राप्त कर सकते थे। तब इतना भ्रमण किसलिए ? प्राचार्य प्रश्न सुनकर थोडा मुस्कुराये । श्रोताओं पर दृष्टि डालते हुए वे समाधान की मुद्रा में हो गये -- 'भद्र सागरदत्त ! तुमने प्रथम प्रश्न पूछा । किन्तु बहुत ही महत्वपूर्ण सामान्य सी बात है, महावीर क्षत्रिय थे। राजा दिग्विजय करते ही हैं। अतः उन्होंने भी सोचा-मैं पदयात्रा द्वारा ही दिग्विजय लूं । हैन सही बान ?" मारा शिल्पीसब समाधान की सरलता का अनुभव करते ही एक-दूसरे की ओर देखते हुए इसने लगा । प्रश्नकर्ता को दुविधा में पड़ने का अधिक अवसर प्राचार्य ने नहीं दिया। वे गम्भीरता पर उतर भाये'नही भद्र ! केवल ऐसा नहीं था। महावीर जैसी आत्माएँ कोई कार्य निरर्थक और सासारिक दृष्टि से नहीं करती हैं। महावीर के निरन्तर बारह वर्षो तक घूमते रहने और देश के इस छोर से उस छोर तक के लोगों के बीच विचरने का एक दूसरा कारण था। इसलिए मैं कहता हूँ कि उन्होंने अपना घर नही त्यागा था, केवल उसके विस्तार को वे समझ गये । यह भवन, यह नगर, यह भूखण्ड, प्रदेश, देश कुछ भी उनका नहीं है, ऐसा कहना तभी सम्भव जब सारी धरती ही उनकी हो । जैसे कोई मकान मालिक भवन, बरामदे, प्रवेश कक्ष, शयनगृह, रसगृह आदि में से किसी एक को पकड़कर नहीं बैठ जाता, बल्कि पूरे भवन को अपना सानता है। उसी प्रकार महाजीद अपनी साधना में यह देखने निकले थे कि उनकी आत्मा का विस्तार कहां तक है इस चिंतेरों के महावीर ४३ धरती के कितने भूभाग ने उनके अस्तित्व को स्वीकार किया है ? 'वास्तव में महावीर का अमरण जीवन की व्याल्या का सजीव रूप वा लोगों को प्रासकि और मोह समझ में या जाय, इसलिए वे पूर्ण मनालकी और निर्मोही होकर घूमे। उनके द्वारा विभिन्न कष्टों को सहना और मौन रहना इस बात की उद्घोषणा करता था कि जो कष्ट पा रहा है वह कुछ और हैं, तथा जो शान्तखडा मानन्दित हो रहा है वह कोई और है। जीक सजीव के इस भेदविज्ञान की मूक व्याख्या करने हो महावीर विचरण करते रहे । उनके बिचरण से ही यह पता चलता है कि सद् एवं असद्वृत्तियों का कहां टकराव होता है तथा असद् की पराजय और सद् की विजय के मूल में क्या कारण हैं ? अतः महावीर की बिहार-यात्रा एक संसार है। स्वयं महावीर जीव के प्रतीक । उनको कष्टों में डालने वाले प्रसवृत्तियों के प्रतिरूप तथा इन सब स्थितियों में भी परम ज्ञान की उपलब्धि कर लेना मात्मा की पूर्णमुक्ति की सम्भावना का द्योतक है।' 'सुरुदेव ! सुन्दर व्याख्या की अापने महावीर की साधनामय यात्रा की। जितना जीवित प्रश्न उतना ही सशक्त समाधान। इस बातावरण में मेरा मन् भी तर्क पर उतर पाया। क्षमा करें प्राचार्य ! महावीर अपने इस साधना काल में अनेक बार वैशाली आये होंगे। अपनी जन्मभूमि के समीष । क्या कभी उनकी अपने माता-पिता से भेट हुई ? और यदि हुई तो क्या अनुभव किया होगा ममतामयी त्रिशला ने, ज्ञानी सिद्धार्थ ने और स्वयं महाबीर मे ?" 'आयुष्मत्ति कनकप्रभा ! तुम्हारे भावपुर्ण चेहरे से लग रहा है कि तुम उम्र दृश्य से गुजर रही हो जब भगवान बुद्ध अपनी जन्मभूमि में घाये थे। से उनके पिता पत्नी मशोधरा एवं पुत्र राहुल ने उनको अगवानी की बी कितना मर्शमक था वह दृश्य, जब पुत्र राहुल मां के कहने पर अपने पिता से दाम मांग रहा था । इसके उत्तर में बुद्ध ने उसे प्रभावित कर लिया था अपने संघ में । दुखहारी यशोधरा एक बार फिर चली गई थी ? देवी कनकप्रभा ! भगवान महावीर ने ऐसा कुछ नहीं किया। एक बार जिन बन्धनों से अपने को मुक्त क्रिया को किसर 1. महाकीर की याचा निरंतर मागे बढ़ने की कीली चायें होंगेः उन्हें कुछ ऐसा नहीं लगा कि उनका कोई भर भी है। माता-पिता अपवा स्वजन भी हैं। वे इन सम्बन्धों से ऊपर उठ चुके थे। जहां तक उनके मातापिता की अनुभूति का प्रश्न है, हो सकता है यदि ममता का बन्धन अधिक प्रबल रहा होगा तो वे महावीर के दर्शन करने गये हों। किन्तु इतिहास इस सम्बन्ध में मौन है। एक सम्भावना यह भी लगती है कि महावीर के मातापिता पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी थे और अभी तक महावीर के धर्म का कोई स्वरूप स्पष्ट नहीं हो सका था । भतः उनकी भोर इनका कोई झुकाव ही न रहा हो । धार्मिक मामले में उस युग में अधिक कहरता का पालन होता था। श्रीकन्ठ ! तुम्हें तो मालूम है, सम्भवतः इन्हीं प्रश्नों के कारण एक परम्परा में महावीर के अभिनिष्क्रमण के पूर्व ही उनके माता-पिता की मृत्यु स्वीकार की गई है।' 'आचार्य ! क्षमा करें व्यवधान के लिए। मुझे लगता है, हम तथ्यों की पकड़ मजबूत कर रहे हैं। इससे सत्य की व्याख्या मधूरी रह जावेगी। आपने महावीर की साधना की अभी विस्तार से बात की। अनेक उपसर्गों को उन्होंने सहा, रात्रि में वे सोये नहीं तथा भोजन भी बहुत ही कम उन्होंने किया, इत्यादि । किन्तु गुरुदेव ! मात्र इतने के लिए तो महावीर का निष्क्रमण नहीं हुया होगा ? वे ध्यान के द्वारा क्या उपलब्ध कराना चाहते थे, क्या उन्हें मिला ? मैं जानना चाहता हूं।' 'प्रिय चित्रांगद ! तुम्हारी प्रशा के अनुकुल है यह प्रश्न । महावीर निश्चय ही किसी अनुपम शक्ति, अलौकिक ज्ञान की खोज में निकले थे। हम प्रायः अपनी शक्ति और ज्ञान के पैमानों से नाप कर उनके व्यक्तित्व को छोटा कर देते हैं। कहते हैं-~महावीर अहिंसक थे, त्यागी थे, क्षमावान थे आदि-आदि । ये गुण हमारे लिए महत्व के हैं। महावीर जैसी बात्मा तो इनसे ऊपर उठ चुकी थी । अतः उनकी बारह वर्षों की साधना कोष और क्षमा, हिंसा और महिसा, त्याग और भोग बादि जैसे तुम्दों से मुक्त होने की थी । वे दोनों स्थितियों में दृष्टा होने का प्रयत्न कर रहे थे। और वे इतने बीतरागी हो जाते थे कि शरीर की सामान्य क्रियाओं की उन्हें आवश्यकता ही अनुभव नहीं होती थी इसलिए वे निद्रा न लेते थे। भोजन न करते थे। फिर भी उनका शरीर कान्तिमम एवं स्वस्थ बना रहा। यह भौतिक आवश्यकताओं को कम करने का सबसे बड़ा उदाहरण था। इस बात का प्रतीक भी कि व्यक्ति यदि आत्मा के प्रति निरन्तर जागृत होता जाये तो कर्मबन्धन की अनेक क्रियाएँ स्वमेव तिरोहित होती जाती हैं । 'महावीर की साधना और ध्यान इस बात पर भी केन्द्रित था कि वे सत्य की खबर जीवन के जितने रूप और स्तर हैं उन सब तक पहुंचा देना चाहते थे । जो उन्हें उपलब्ध हो रहा था उसे वे कण-करण में वितरण करते जा रहे थे । यही कारण है कि कथाओं, प्रसंगों में देव, मानव, व्यन्तर पशु, पक्षी, सज्जन, दुर्जन सभी प्रकार के जीव महावीर के सानिध्य से कृतार्थ हुए हैं। अतः आात्मिक जागरण की ओर प्रारणी जगत् को भाकर्षित करना महावीर की साधना का प्रतिपाद्य था। उन्होंने विभिन्न प्रकार ध्यानों द्वारा स्वयंपूर्ण जागरण की उपलब्धि की है। उनके केवलज्ञान प्राप्ति के प्रसंग को कहने के पूर्व उनके अन्तिम वर्ष की साधना से भाप सबके साथ और गुजरना चाहूंगा 3 एकाग्र हो सुनें ।" 'साधना के १० वें वर्ष में महाबीर मेंढिय ग्राम से बत्सदेश की राजधानी कौशाम्बी पधारे । सारी नगरी उनकी अगवानी के लिए उमड़ पड़ी । जो भीड़ में पीछे भी रह गए तो उनका मन सबसे आगे बन्दना करने दौड़ रहा था। महावीर के उस नगर में प्रवेश करते ही उसकी शोभा बढ़ गई । प्रत्येक नागरिक महावीर के सानिष्य के लिए आतुर था। क्योंकि उस समय तक महावीर की समतामयी दृष्टि एवं निरहंकारी भाव पर्याप्त प्रसिद्धि पा चुके थे । उनके चरणों से अपने ग्रांगन को पवित्र करने की हरेक के मन में भाकांक्षा थी। महावीर नासाग्र दृष्टि किए चलते जा रहे हैं। वे आगे-मागे और जनसमुदाय उनका गुणगान करते हुए पीछे-पीछे जिस मार्ग से वे निकल जांय वहीं के प्रासादों के बातायन खुल पड़ते देखने लगते हजारों नेत्र उनकी कान्तिमयी मनोरम छमी को । किन्तु यह क्या ? महावीर ने समस्त कौशाम्बी का भ्रमण कर लिया और किसी एक के घर भी बाहार ग्रहण नहीं किया ? जैसे ही लोगों का ध्यान इस तरफ गया, बात कानों-कानसरे मर में फैल गयी । सामन्मणों का ५६ चितेरों के महावीर गया। श्रावकों, सार्थवाहों, श्रष्ठों, सामन्तों के कुछ के कुछ उनके चरणों में लौटने लगे। किन्तु महावीर ने किसी की घोर भांख उठाकर भी नहीं देखा। उनकी वीतरागता और ध्यान की बात तो सुनी थी लोगों ने, लेकिन इस प्रकार भ्रमण करते हुए उनके प्रमुपस्थित होने का दृश्य उस दिन ही लोगों ने देखा । कितना अद्भुत ? कितना चिन्ताजनक ? कौशाम्बी के राजा से न रहा गया । वह दोडा भाया । उसने महावीर की अगवानी की। राजभवन में भोजन के लिए उन्हें मामन्त्रित किया। किन्तु महावीर हैं, जो सौम्य मुद्रा में धागे चले जा रहे हैं। इतने मौन कि लोग उनकी प्राकांक्षा की कल्पना भी न कर सके और हताश उन्हें जाता हुभा देखते रहे । महावीर नगर से निकलकर समीप के उद्यान में जाकर ध्यान सग्न हो भये । इघर नगर में तरह-तरह की बाते। जो श्रमण परम्परा के अनुयायी थे, महावीर के श्रद्धालु, उन्हें अपनी धार्मिकता पर सन्देह होने लगा । दुख इस बात पर कि उनके घर से अंतिम तीर्थकर आज भूखे लौट गये । तथा जो ब्राह्मण परम्परा के अनुयायी या अन्य तीर्थक थे, उन्हें यह कहने का अवसर मिल गया कि देखा-जैन साधु कितने मानी होते हैं ? महावीर ने हमारे राजा तक का निमन्त्रण नहीं माना। कुछ लोग यह खोजने में लग गये कि नगर में अवश्य कोई ऐसा अपुण्यशाली व्यक्ति है, जिसके प्रभाव से आज महावीर की पारणा में विघ्न आ गया । नगर सेठ कृषभानु की सेठानी तो और भी चिन्तित । उसे लगा कि उसके भवन के पिछवाड़े तलघर में जिस कुमारी चन्दना को उसने अपनी सौत समझकर बांधकर डाल रखा है, उसी के पाप के कारण महावीर उसके घर में तो नँया, उसकी रक्या तक में नहीं आये। उनके दर्शन से भी वह रह गयी । किन्तु उसने तुरन्त निश्चय किया कि अब में ध्यान रखूंगी कि महावीर इस ओर न आ जाय अन्यथा उन्हें किराना पड़ेगा और ने अपना प्रबन्ध पूरा कर लिया। राजकुमारी चन्दना क्या सोच रही थी, उसे शब्दों में कहना कठिन है बाद जा रहा था कि वह राजा चेतक की होने पर भी मान्य चिंतेरों के महावीर ५७ के कारण शत्रुओं के हाथ पड़ गयीं। वहां से किसी प्रकार छूटी तो सेठ कृषभानु उसे पुत्री बनाकर घर पर ले जाये। उसे लगा दूसरा पिता ही उसने पा लिया है। किन्तु उसका अप्रतिम रूप उसका बैरी बन बैठा। सेठानी से सौतिया ढाह के कारण अबसर देखकर उसे बेड़ी पहिला दीं और इस तलघर में डाल दिया । श्रद सूप में रखे इन कोंदो के भोजन से ही उसका जीवन है। बाहर की दुनिया कैसी है, उसे कोई खबर नहीं। पता नहीं वह कब मुक्त होगी ? दूसरे दिन कौशाम्बी में फिर वही जमघट और महावीर के निराहार मोट जाने पर वही विषादपूर्ण नीरवता । धीरे-धीरे यह एक कम बन गया । महावीर जब तक उस प्रदेश में रहे, खाली हाथ लौटते रहे। इधर-उधर बिहार करने भी चले गए तो किसी नगर में उनकी पारणा न हो सकी। लोगों ने उनको भोजन कराने के अनेकों प्रयत्न कर लिए । भ्रमण-परम्परा में साडु द्वारा आहार के लिए जो भी अभिग्रह लिए जाते थे उन्हें पूरा करने का अव कर लिया गया। किन्तु सब विकल । बोर इस प्रकार महावीर को निराहार भ्रमरण करते हुए लगभग पांच माह व्यतीत हो गए। उनके मौन, उनके ध्यान एब मुख पर वही सौम्यता देखकर लोग आश्चर्यचकित थे । छठा माह पूरे होने में मात्र पांच दिन रह गए। महावीर दैनिक क्रम में कौशाम्बी नगरी के मार्गों का भ्रमण कर रहे थे। जनसमुदाय उनकी जयजयकार करता हुआ उनका अनुगमन कर रहा था। किसी ने सेठ कृषजांनु की गली का मार्ग प्रशस्त किया । महावीर उघर चल पड़े। तलघर में राजकुमारी चन्द्रमा को कोलाहल सुनायी पड़ा। स्पष्ट होने पर ज्ञात हुआ महावीर इधर आ रहे हैं। वह मानन्द से उड़खना चाहती थी उनकी बन्दना करने के लिए । किन्तु सोचने लगी- मैं उन्हें बाहार में क्या दूंगी ? एक तो मेरो, ऐसी दशा और दूसरे ये असे कोंदों के दाने ? ऐसा मेरा. पुण्य कहां ?" तभी उसे लगा कि महावीर, तो इस भवन की ओर ही जा रहे हैं। वह उनके प्रति बंद्धा से भर गयी और उन्हें देखने उत्साह से जैसे ही उठी उसकी बेड़ियों की कड़ियां टूट सम। यह सूप में पदों को लेकर ही दरवाजे की ओर भावी देखा महाबीर उसी की कोर शान्तभाव से लेकर हैं । ५८ चितेरों के नहावीर चन्चना का रोम-रोम नाच उठा। वह आगे बढ़ी। भक्तिपूर्वक उसने वर्धमान अगवानी की। उन्होंने उसकी विनय को स्वीकार कर लिया और दोनों हाथ भोजन लेने की मुद्रा में कर दिये । यह एक अपूर्व दृश्य था। हजारों नर-नारी अपने नयनों को सार्थक कर रहे। देख रहे थे कि चन्द्रमा महावीर के हाथों में कोंदे डाल रही है, वे सीर बनते जा रहे हैं। महावीर दोनों स्थितियों में प्रसन्न हैं । चन्दना आत्मशक्ति से भरती जा रही है। उसे लग रहा है कि जितने दाने कोंदे वह दे पा रही है उससे असंख्य गुणा ज्ञान उसमें समाहित होता जा रहा है। पता ही नहीं चल रहा कि वह महावीर को आहार दे रही है या उनसे ज्ञान का आहार ले रही है। महावीर बहार लेकर वहां से कब चल दिये किसी को पता नहीं चला। क्योंकि सभी चन्दना के भाग्य की सराहना में खो गये थे। चारों ओर उसकी कीति ही उपस्थित थी। बहुत दिनों बाद एक भारतीय नारी का फिर सम्मान हुआ था । उसके शील का । उसकी प्रभु को समर्पित श्रद्धा का । कृषभानु सेठ की पत्नी चन्दना के चरणों पर नत थी और चन्दना उसके द्वारा दी गयीं बेड़ियों की कृतज्ञ थी, जिनके आशीर्वाद से आज वह आत्मबोष के द्वार पर खड़ी हो सकी है। सेठ कृषभानु इस सव अप्रत्यासित को देखता हुआ महावीर की चरण-रज को बटोरने में लगा था। आज वह कृतार्थ हो गया।' लोग जब यथार्थ पर लौटे, परस्पर विचार-विमर्श हुआ, शानियों ने अपनी बुद्धि को पैनी किया तब यह जान पाया कि महावीर को इतने समय तक आहार इसलिए नहीं मिला, क्योंकि उनका अभिग्रह था -- था -- 'मुण्डितसिर, पांवों में बेड़ियों सहित तीन दिन की भूखी, दासत्व को प्राप्त हुई कोई राजकुमारी यदि कोंदों के दाने सूप में रखकर द्वार पर खड़ी हुई मुझे आहार के लिए अवगाहन करेगी तो पारणा करूंगा, अन्यथा नहीं।' किसके वश में था यह अभिग्रह पूरा करना ? धन्य हो राजकुमारी चन्दनबाला को, जिसने हमें, हमारी नगरी को यह सौभाग्य प्रदान किया है।' 'और आचार्यप्रवर ! हमारा सौभाग्य है कि आप के मुख से सुनकर हम भगवान महावीर की कथा को अपने सामने घटता हुआ देख रहे हैं। उनके प्रति पूर्ण श्रद्धा के साथ एक छोटा-सा प्रश्न है। मैंने सुना है कि १२ वर्ष की साधना में महावीर ने केवल ३४९ दिन ही बाहार लिया। इतने दिनों तक बिना भोजन के थे कैसे रह लेते थे ? और इसने कठिन से कठिन मंभिवह करने की उन्हें क्या आवश्यकता थी ? जिज्ञासावश ही पूछ रहा हूं-गुरुदेव । 'वत्स श्रीकण्ड ! तुम्हारी विनम्रता और उत्कंठा हे मैं परिचित और तुम मेरी समाधान की शैली से। अतः उतना ही ग्रहण करना जो तुम्हें रुचिकर हो । तुम्हारी कला को सायंक। भोजन से हमारा गहरा सम्बन्ध है । इसलिए हम सोचते हैं कि महावीर इतने दिन बिना भोजन के कंसे रह गये ? वस्तुतः महावीर ने भोजन छोड़ने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया। उनसे अनायास भूजन छूट गया। उनकी साधना की यह उपलब्धि थी कि उनके शरीर को अब स्कूल भोजन की आवश्यकता नहीं रह गयी थी । शरीर को जिन कारणों से भूख लगती है, वे कार्य प्रायः विसर्जित हो चुके थे। यह इसलिए सम्भव हो सका क्योंकि महाबीर की उपस्थिति शरीर में बहुत कम ही रहती थी। मुझे तो लगता है, जितने दिन उन्होंने बाहार लिया उत्तने दिन ही वे शरीर के हो सके। अन्यथा हमेशा वे आत्मा के समीप रहे । आत्मा के साथ इस निकटता के कारण ही सम्भवतः वे अपने उन दिनों को 'उपवास' का दिन कहते थे। दूसरी बात यह भी प्रतीत होती है कि भोजन करना एक बडे बारम्भ के साथ जुड़ जाना है। न जाने कितने जीवों के कायिक और मानसिक घात-प्रतिषातों का इसमें भागीदार बनना पड़ता है। महावीर की अहिंसा बहुत गहरे तलों तक उतरी थी । अतः वे ऐसे सूक्ष्म भोजन से ही काम चला लेते थे, जिसमें कम से कम प्रारम्भ हो । अभिग्रह धारण करने के पीछे भी यही भावना निहित दिलायी देती है। इतनी कठिन प्रतिज्ञा लेने से शायद ही भोजन का संयोग बैठे ऐसे जितने दिन भी गुजरे वे महाबीर के लिए उपयोगी होते थे । अभिग्रह लेने के दूसरा प्रमुख कारण यह था कि अपनी प्रतिज्ञाओं के द्वारा महावीर यह जान लेना चाहते थे कि उनकी जगत् के लिए कितनी आवश्यकता है ? इस जन्म में वे स्वयं के लिए कुछ पाने व करने नहीं है जो कुछ उन्हें उपलब्ध अतः वे यह देख लेना चाहते वे कि उनके जीवन को सुरक्षित रखने में जगत् का वातावरण मिलना ६० चिंतेरों के महावीर सजग है ? 'महाबीर कभी-कभी अभिग्रह ले लेते थे कि जिस घर के सामने दो बैन खड़े होंगे, द्वार पर चम्पक पुष्पों का वृक्ष होगा तथा कोई सुहामिन पूर्ण कलश लिए खड़ी होगी वही भोजन करूंगा। अब इन स्थितियों से उनकी साधना व ध्यान का कोई सम्बन्ध नहीं है। किन्तु उनका यह अभिग्रह यदि पूरा होता है तो उसका अर्थ है कि वनस्पति, पशु-जगत् एवं मानव का समन्वय प्रयत्न महावीर को जीवन देने के लिए उत्सुक है। इसकी दूसरी अन्विति यह है कि महावीर का हृदय जीवन के निम्न से निम्न तल तक विकसित हो चुका था, जहां उसके स्पन्दन के अनुरूप व्यवस्था करने में होड़ लग जाती थी। जीवन के प्रति इतनी अनासक्ति, जीवषा के प्रति इतना अभय और जगत् के जड़चेतन पदार्थों की व्यवस्था के प्रति इतनी निश्चिन्ता महावीर जैसी विकसित भारमाएं ही कर सकती हैं। सम्पूर्ण जगत् महावीर का घर हो गया था एवं समस्त प्रारणी उनके स्वजन इस बात की घोषणा करते हैं उनके भोजन । के निमित्त लिए गये कठिन से कठिन अभिग्रह ' एक बात और आपको बता दूं । जिस प्रकार महावीर अपने भोजनादि भावश्यकताओं के लिए जगत् पर निर्भर थे उसी प्रकार वे अपने जीवन की सुरक्षा के प्रति भी निश्चित थे । भापको ज्ञात होगा कि उनके इस साधना काल में जब भी उन पर कोई उपसर्ग हुआ, उन्हें सताया गया तो इन्द्र ने आकर उनसे आज्ञा चाही कि वह उनकी रक्षा में सहायक हो किन्तु महावीर ने उसकी सहायता को स्वीकार नहीं किया। महावीर की इस निडरता की परीक्षा के लिए संगमक नामक एक देव लगातार छह माह तक उन्हें अनेकों कष्ट देकर उनको विचलित करने का प्रयत्न करता रहा, किन्तु अन्त में हार कर भाग गया। इस प्रकार की जितनी भी कवाएं उनकी अच्छी निष्पत्तियां हैं। इससे ज्ञात शक्तिशाली था कि उसे साधना में किसी महावीर के जीवन के साथ सम्बद्ध हैं, होता है कि महाबीर का चित्र इतना दूसरे की अपेक्षा नहीं थी। महावीर अपनी इस अन्तर्याईगह में चूंकि निःसन होकर अकेले चल सके, इसलिए समस्त खम उनका हो गया. उन्होंने यह प्रभारिणत कर दिया कि सच्चा साधु नहीं
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शॉर्टकटः मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ। ओशिआनिया ओशिआनिया ओशिआनिया (जिसे कभी कभी ओशियानिका भी कहा जाता है), एक भौगोलिक क्षेत्र है जिसमे शामिल भूखण्ड जिनमें से अधिकतर द्वीप हैं जो, प्रशांत महासागर और इसके आस पास फैले हुये हैं। "ओशिआनिया" शब्द को 1831 में फ्रांसीसी अन्वेषक ड्यूमाँट द'उर्विल द्वारा गढ़ा गया था। आज यह शब्द कई भाषाओं में ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप और निकट के प्रशांत द्वीपों के लिए प्रयोग किया जाता है, यह क्षेत्र आठ स्थलीय पारिस्थितिक क्षेत्रों मे से भी एक है। ओशिआनिया की सीमाओं को कई तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है। अधिकांश परिभाषाएँ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और न्यू गिनी और मलय द्वीपसमूह के सभी भागों या कुछ भाग को ओशिआनिया बताती हैं।. पितृवंश समूह ऍम का ओशिआनिया में फैलाव - आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍम या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप M एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर ओशिआनिया के द्वीप राष्ट्रों में मिलते हैं, जैसे की नया गिनी, फ़िजी, टोंगा, सोलोमन द्वीपसमूह, वग़ैराह। पश्चिमी नया गिनी में (जो इण्डोनेशिया का एक राज्य है) अधिकाँश पुरुष इसी पितृवंश समूह के वंशज हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३२,०००-४७,००० वर्ष पहले दक्षिण पूर्व एशिया या ओशिआनिया के मॅलानिशिया क्षेत्र में रहता था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 . ओशिआनिया और पितृवंश समूह ऍम आम में 7 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): टोंगा, नया गिनी, फ़िजी, मॅलानिशिया, सोलोमन द्वीपसमूह, इंडोनेशिया, अंग्रेज़ी भाषा। टोंगा, आधिकारिक रूप से टोंगा राजशाही, दक्षिण प्रशान्त महासागर में स्थित एक द्वीपमण्डल है, जिसमें १६९ द्वीप है, जिनमें से ३६ अबसासित हैं। राजशाही उत्तर-दक्षिण पंक्ति में लगभग ८०० किलोमीटर तक फैली हुई है। . नया गिनी (New Guinea), ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में स्थित विश्व का दूसरा सबसे बड़ा द्वीप है। यह ऑस्ट्रेलिया की मुख्य भूमि से उस समय अलग हो गया जब इस क्षेत्र को जिसे अब टॉरेस जलडमरुमध्य के नाम से जाना जाता है को, पिछले हिमयुग के बाद आयी बाढ़ ने पानी से भर दिया। पापुआ नाम एक लंबे समय से इस द्वीप के साथ संबद्ध रहा है। द्वीप के पश्चिमी आधे भाग में इंडोनेशिया के प्रांत पापुआ और पश्चिम पापुआ स्थित हैं, जबकि पूर्वी आधा भाग एक स्वतंत्र देश पापुआ नया गिनी स्थित है। . फ़िजी जो कि आधिकारिक रूप से फ़िजी द्वीप समूह गणराज्य (फ़िजीयाईः Matanitu Tu-Vaka-i-koya ko Viti) के नाम से जाना जाता है, दक्षिण प्रशान्त महासागर के मेलानेशिया मे एक द्वीप देश है। यह न्यू ज़ीलैण्ड के नॉर्थ आईलैण्ड से करीब २००० किमी उत्तर-पूर्व मे स्थित है। इसके समीपवर्ती पड़ोसी राष्ट्रों मे पश्चिम की ओर वनुआतु, पूर्व में टोंगा और उत्तर मे तुवालु हैं। १७वीं और १८वीं शताब्दी के दौरान डच एवं अंग्रेजी खोजकर्तओं ने फ़िजी की खोज की थी। १९७० तक फ़िजी एक अंग्रेजी उपनिवेश था। प्रचुर मात्रा मे वन, खनिज एवं जलीय स्रोतों के कारण फ़िजी प्रशान्त महासागर के द्वीपों मे सबसे उन्नत राष्ट्र है। वर्तमान मे पर्यटन एवं चीनी का निर्यात इसके विदेशी मुद्रा के सबसे बड़े स्रोत हैं। यहाँ की मुद्रा फ़िजी डॉलर है। फ़िजी के अधिकांश द्वीप १५ करोड़ वर्ष पूर्व आरम्भ हुए ज्वालामुखीय गतिविधियों से गठित हुए। इस देश के द्वीपसमूह में कुल ३२२ द्वीप हैं, जिनमें से १०६ स्थायी रूप से बसे हुए हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ लगभग ५०० क्षुद्र द्वीप हैं जो कुल मिला कर १८,३०० वर्ग किमी के क्षेत्रफल का निर्माण करते हैं। द्वीपसमूह के दो प्रमुख द्वीप विती लेवु और वनुआ लेवु हैं जिन पर देश की लगभग ८,५०,००० आबादी का ८७% निवास करती है। . मॅलानिशिया का सांस्कृतिक क्षेत्र मॅलानिशिया ओशिआनिया का एक उपक्षेत्र है जो प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग से लेकर आराफ़ूरा सागर तक और फिर पूर्व में फ़िजी तक का इलाक़ा है। इसमें ऑस्ट्रेलिया के उत्तर और उत्तर-पूर्व के कई द्वीप शामिल हैं, जैसे के नया गिनी, फ़िजी, सोलोमन द्वीपसमूह, वानुअतु, वग़ैराह। . सोलोमन द्वीप पापुआ न्यू गिनी के पूर्व में मेलानेसिया में करीब एक हजार द्वीपों वाला एक देश है। करीबन 28,400 वर्ग किलोमीटर (10,965 वर्ग मील) में फैले इस देश की राजधानी गुआडलकैनाल द्वीप पर स्थित होनिअरा है। माना जाता है कि सोलोमन द्वीप पर हजारों साल पहले मेलोनेशियाई लोग रहा करते थे। यूनाइटेड किंगडम ने 1890 में सोलोमन द्वीप पर एक संरक्षित राज्य की स्थापना की। द्वितीय विश्व युद्ध की सबसे संघर्षपूर्ण लड़ाई 1942-45 के सोलोमन द्वीप अभियान के दौरान लड़ी गई, जिसमें गुआडलकैनाल की लड़ाई शामिल है। 1976 में लोगों ने स्वशासन और दो साल बाद आजादी हासिल की थी। सोलोमन द्वीप एक संवैधानिक राजतंत्र है, जिसकी मुखिया महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। 1998 में हुई जातीय हिंसा, सरकारी भ्रष्ट व्यवहार और अपराध ने देश और समाज की स्थिरता को कमजोर किया है। जून 2003 में ऑस्ट्रेलियाई नीत बहुराष्ट्रीय बल क्षेत्रीय सहायता मिशन सोलोमन द्वीप (RAMSI) सोलोमन द्वीप पर शांति बहाल करने, जातीय उपद्रवियों पर लगाम लगाने और नागरिक प्रशासन में सुधार के उद्देश्य से पहुंची है। उत्तर सोलोमन द्वीप स्वतंत्र सोलोमन द्वीप और बौगैन्विल्ले प्रांत के बीच पापुआ न्यू गिनी में विभाजित हैं। . इंडोनेशिया गणराज्य (दीपान्तर गणराज्य) दक्षिण पूर्व एशिया और ओशिनिया में स्थित एक देश है। १७५०८ द्वीपों वाले इस देश की जनसंख्या लगभग 26 करोड़ है, यह दुनिया का तीसरा सबसे अधिक आबादी और दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी बौद्ध आबादी वाला देश है। देश की राजधानी जकार्ता है। देश की जमीनी सीमा पापुआ न्यू गिनी, पूर्वी तिमोर और मलेशिया के साथ मिलती है, जबकि अन्य पड़ोसी देशों सिंगापुर, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया और भारत का अंडमान और निकोबार द्वीप समूह क्षेत्र शामिल है। . अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ीः English हिन्दी उच्चारणः इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। . ओशिआनिया 33 संबंध है और पितृवंश समूह ऍम 14 है। वे आम 7 में है, समानता सूचकांक 14.89% है = 7 / (33 + 14)। यह लेख ओशिआनिया और पितृवंश समूह ऍम के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखेंः
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है जिसमें उच्चतम स्तर की इंजीनियरी, ट्रेक्नोलॉजी, खनम मोर धातुकर्म की शिक्षा प्रदान की जाती है । यहाँ बिहार सरकार द्वारा स्थापित फास्फेट का एक कारखाना भी है। राष्ट्रीय कोयलाविकास निगम ने कोयले के अनुसंधान के लिये मनुसंधानशाला भी खोल रखी है, जिसमें कोयले का परीक्षण पोर कोयले पर मनुसंधान होता है। नगर की जनसंख्या ४१, ३४६ ( १९६१ ई० ) है । है। जहाँ भी सिंध नदी का जल सिंचाई के लिये उपलब्ध है. वहीं गेहूँ की खेती का स्थान प्रमुख है और इसके अतिरिक्त कपास एवं धन्य मनाजों की भी खेती होती है तथा ढोरों के लिये चरागाह हैं। हैदगबाद (सिंध) के भागे नदी ३,००० वर्ग मील का डेल्टा बनाती है । गाद धौर नदी के मार्ग परिवर्तन करने के कारण नदी मे नौसंचालन खतरनाक है । [ म० ना० मे० ] सिंध स्थिति . २८° २६' से २३°३५' उ० प्र०] तथा ६५° ३० से सिंधी भाषा सिंध प्रदेश की प्राधुनिक भारतीय प्रायँभाषा जिसका संबंध पैशाची [ 7 ] नाम की प्राकृत और वाचड [ : ] नाम की अपभ्रंश से जोड़ा जाता है। इन दोनो नामो से विदित होता है कि सिंधी के मूल मे धनार्य तत्व पहले से विद्यमान थे, भले ही वे पार्य प्रभावों के कारण गौण हो गए हों। सिधो के पश्चिम मे बलोची, उच्चर मे लहँदी, पूर्व में मारवाड़ी. और दक्षिण में गुजराती का क्षेत्र है। यह बात उल्लेखनीय है कि इस्लामी शासनकाल मे सिंघ मोर मुलतान (लहंदीभाषी ) एक प्रात रहा है, मोर १८४३ से १९३६ ई० तक सिंध बबई प्रांत का एक भाग होने के नाते गुजराती के विशेष संपर्क में रहा है । ७१° १०' पू० दे० । यह क्षेत्र पश्चिमी पाकिस्तान में सिंध नदी को घाटी में स्थित है जो शुष्क तथा वर्षाहीन है। यहाँ की उपज तथा जनसंख्या सिंध नदी के कारण है। इस नदी में सक्खर स्थान पर एक बाँध बनाया गया है, जहाँ से दोनों किनारों पर सिचाई के लिये महरें निकाली गई हैं । अतः यहाँ गेहूँ, जौ, कपास, दलहन, बान, तिलहन मौरईस की अच्छी फसलें होती है। शेष भाग में कही कही बाजरा और ज्वार होता है, नही तो सर्वत्र निम्न कोटि की घास या कंटीली झाड़ियाँ ही होती है, जहाँ लोग ऊँट तथा भेट बकरियाँ चराते हैं। कराँची, हैदराबाद, लरकाना, सक्खर, दादू पौर नवाबशाह मुख्य नगर हैं। जलवायु यहाँ विषम है। कराची उत्कृष्ट कोटि का बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है कुछ काल तक यह पाकिस्तान की राजधानी था । [रा० स० ख० ] सिंघ ( Indus ) नदी या नद उत्तरी भारत की तीन बड़ी नदियों में से एक है। इसका उद्गम बृहद् हिमालय में मानसरोवर से ६२.५ मील उत्तर में सेंगेखबब ( Senggekhabab ) के स्रोतों में है। अपने उद्गम से निकलकर तिब्बती पठार की चौड़ी घाटी में से होकर, कश्मीर की सीमा को पारकर, दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के रेगिस्तान और सिंचित भूभाग में बहती हुई, कराँची के दक्षिण मे अरब सागर में गिरती है । इसकी पूरी लंबाई लगभग २,००० मील है । बलतिस्तान ( Baltistan ) मे खाइताशो ( Khaitassho ) ग्राम के समीप यह जास्कार धंणी को पार करती हुई १०,००० फुट से अधिक गहरे महाखड़ में, जो ससार के बड़े खड्ड़ों मे से एक है, बहती है। जहाँ यह गिलगिट नदी से मिलती है, वहाँ पर यह बन बनाती हुई दक्षिण पश्चिम की घोर झुक जाती है। भटक में यह मैदान में पहुंचकर काबुल नदी से मिलती है। सिंध नदी पहले अपने वर्तमान मुहाने से ७० मील पूर्व में स्थित कच्छ के रन में विलीन हो जाती थी, पर रन के भर जाने से नदी का मुहाना सब पश्चिम की घोर खिसक गया है । झेलम, चिनाब, रावी, व्यास एवं सतलुज सिंध नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। इनके अतिरिक्त गिलगिट, फाबुस, स्वात, कुर्रम, टोची, गोमल, सगर मादि अन्य सहायक नदिय हैं। मार्च मे हिम के पिघलने के कारण इसमे प्रचानक भयंकर बाढ मा जाती है। बरसात में मानसून के कारण जल का स्तर ऊंचा रहता है। पर सितंबर में जलस्तर नीचा हो जाता है मौर जाड़े भर नीचा ही रहता है । सतलुज एवं सिंघ के संगम पास सिष का जल बड़े पैमाने पर सिचाई के लिये प्रयुक्त होता है । सन् १९३२ में सक्खर में सिंध नदी पर लॉयड बाँध बना है जिसके द्वारा ५० लाख एकड़ भूमि की सिचाई को जाती सिंघ के तीन भौगोलिक भाग माने जाते हैं - १. सिगे (शिरो भाग ), २. विचोलो (बोच का ) धौर ३. लाड ( म० लाट प्रदेश, नोन का ) 1 सिरो की बोली सिराइकी कहलाती है जो उत्तरी सिंध मे खेरपुर, दादू, लाडकावा भौर जेकबाबाद के जिलो में बोली जाती है । यहाँ बलोच पोर जाट जातियों की अधिकता है, इसलिये इसको बरोबिकी और जतिको भी कहा जाता है। दक्षिण में हैदराबाद और कराची जिलों को बोली लाड़ी है और इन दोनों के बीच मे विचोली का क्षेत्र है जो मीरपुर खाम और उसके आसपास फैला हुआ है । विचोली सिंघ की सामान्य और साहित्यिक भाषा है। सिंध के बाहर पूर्वी सीमा के पासपाम थडेली, दक्षिणी मीमा पर कच्छी, और पश्चिमी सीमा पर लासी नाम की संमिश्रित बोलियाँ हैं। पडेली ( घर = चल == मरुभूमि ) जिला नवाबशाह और जोधपुर की सीमा तक व्याप्त है जिसमें मारवाडी मौर मिघी का समिश्ररण है। कच्छी (कच्छ, काठियवाड़ में) गुजराती और सिंधी का एवं लासी (लासबेला, बलोचिस्तान के दक्षिण मे) बलोचो और सिधो का समिश्रित रूप है। इन तीनो सीमावर्ती बोलियो मे प्रधान तस्त्र सिधी हो का है । भारत के विभाजन के बाद इन बोलियों के क्षेत्रो मे सिधियों के बस जाने के कारण सिंधी का प्राधान्य मौर बढ गया है। गिधी भाषा का क्षेत्र ६५ हजार वर्ग मील मोर बोलनेवालो की संख्या ६५ लाख से कुछ ऊपर है । सिधी के सब शब्द स्वगत होते हैं। इसकी ध्वनियों में ग, ज, ड, द भोर व अतिरिक्त और विशिष्ट ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में सवणं ध्वनियों के साथ ही स्वरतंत्र को नीचा करके काकल को बंद कर देना होता है जिससे द्वित्व का सा प्रभाव मिलता है। ये भेदक स्वनग्राम हैं। संस्कृत के त वर्ग +र के साथ मूर्धन्य ध्वनि भा गई है, जैसे पुटू या पुटु ( √ पुत्र ), मंडू ( √मत्र ), निड ( / निद्रा ), डोह ( / द्रोह ) । संस्कृत का संयुक्त व्यंजन और प्राकृत का द्वित्व रूप सिधी मे समान हो गया है किंतु उससे पहले का ह्रस्व स्वर दीर्घ नहीं होता जैसे भ ( हि० भाव), जिभ (जिह्वा), खट (खट्वा, हि० खाट), सुठो ( / सुष्ठ ) । प्रायः ऐसी स्थिति में दीर्घ स्वर भी हम्व हो जाता है, जैसे डो ( / दोघं), सिसी ( / शीर्ष), तिको ( / तीक्ष्ण ) । जैसे भर दत्तः औौर सुप्त, से दतो, सुतो बनते हैं, ऐसे ही सादृश्य के नियम के अनुसार कृतः से कोतो, पोत से पीतो आादि रूप बन गए हैं यद्यपि मध्यग का लोप हो चुका था। पश्चिमी भारतीय मार्यभाषाओं की तरह सिधी ने भी महाप्राणत्व को सयत करने की प्रवृत्ति है जैसे साडा ( / साधं, हि० साढे ), कानो (हि० खाना), कुलण (हिं० खुलना), पुचा ( स० पृच्छा ) । सज्ञायों का विवरण इस प्रकार से पाया जाता है प्रकारात सज्ञाएँ सदा स्त्रीलिंग होती है, जैसे खट (खाट), तार, जिभ (जीम), बाँह, ह (शोभा); मोकारात सज्ञाएँ सदा पुल्लिंग होती हैं, जैसे घोडो, कुतो, महिनो ( महीना), उफ्तो,(धूम); भा, भोर -ई में मत होनेवाली सज्ञाएं बहुषा स्त्रीलिंग है, जैसे हवा, गरोला (खोज), मखि, राति, दिलि (दिल), दरी (खिड़की), घोड़ी, बिल्ली - प्रपवाद रूप से सेटि (सेठ), मिसिरि ( मिसर), पखी, हाथी, साँइ और संस्कृत के शब्द राजा, दाता मादि पुंल्लिंग हैं; -उ, ऊ में पंत होनेवाले संज्ञापद प्राय. पुल्लिंग हैं, जैसे किताबु, घरु, मुँहु, मारहू ( मनुष्य ), रहाकू (रहनेवाला) प्रपवाद हैं विजु ( / विद्युत्), खड ( खाड), श्राबरू, गऊ पुल्लिंग से स्त्रोलिंग बनाने के लिये - इ, ई, -णि और प्राणी प्रत्यय लगाते हैं -- फुकुरि (मुर्गी), छोकरि भिक (चिडिया), बकिरी, कुत्ती; घोबिणि, शीहरिण, नोकियरिणी, हाथ्यागी । लिग दो ही है - स्त्रीलिंग मोर पुल्लिंग वचन भी दो ही हैं --एकवचन धौर बहुवचन । स्त्रीलिंग शब्दो का बहुवचन ऊँकागत होता है, जैसे जाल ( स्त्रियाँ ), खट्टू ( चारपाइयाँ), दवाऊँ ( दवाएँ ) (पॉखें ), पुल्लिंग के बहुरूप में वैविध्य हैं । मोकारांत शब्द आकारात हो जाते हैं - घोड़ो से घोडा, कपड़ो से कपडा प्रादि, उकारात शब्द प्रकारात हो जाते हैं। घरु से घर, व ( वृक्ष ) से वरण, इकारात शब्दो में ऊं बढ़ाया जाता है, जैसे मेड्यू । ईवारात और ऊकारात शब्द वैसे ही बने रहते हैं । संज्ञामों के कारकीय रूप परसगों के योग से बनते हैं - कर्ताक.मं - के, खे; करण -सौ, सप्रदान के, खे, लाइ, प्रपादान - काँ खाँ, तो ( पर से ), माँ ( में से ); संबध - पु० एकव० जो, बहुव० जा, स्त्रीलिंग एक्व० जी. बहुव० जू, अधिकरण में, ते (पर)। कुछ पद धपादान अधिकरण कारक मे विभक्त्यत मिलते हैं - गोठू (गाँव से), घरू (घर से ), घरि (घर मे), पटि ( जमीन पर), बेलि ( समय पर ) । बहुव० में संज्ञा के तिर्यक् रूर - उनि प्रस्थय ( तुलना कीजिए हिंदी-मों) से बनता है - छोकयु नि, दवाउनि, राजाउनि, इत्यादि । सर्वनामों की सूची मात्र से इनकी प्रकृति को जाना जा सकेगा१. माँ, भाऊं ( मै), भसी ( हम ) ; तिर्यक् क्रमशः मू तथा भर्सा; २ तू; व्हीं, ही ( तुम); तिर्यक रूप तो, तन्ही; ३. पुं० हू अथवा ऊ (बह, वे ), तिर्यक् रूप हुन हुननि; स्त्री० हूम, हू, तियंक रूप हो, उहे; पु० हो अथवा हीउ ( यह, ये), तिर्थक रूप हिन, हिननि; स्त्री० इहो, इहे, तिर्यक् रूप इन्हे । इझो ( यही ), उभो ( वही ), बहुव० इभे, उभे; जो, जे ( हि० जो ) ; था, कुजाड़ो ( क्या ); केरु, कहिड़ो (कौन ) ; को ( कोई ); की, कुझु (क्रुख); पारण ( भाप, खुद ) । विशेषणों में प्रकारांत शब्द विशेष्य के लिंग, कारक के तिर्यक् रूप, और वचन के अनुरूप बदलते हैं, जैसे सुठो छोकरो, सुठा छोकरा, मुठी छोकरी, सुट्युनि छोकयु नि खे । शेष विशेषरण अविकारी रहते हैं। सख्यावाची विशेषणों में अधिकतर को हिंदीभाषी सहज मे पहचान सकते हैं । ब ( दो ), टे ( तीन ), दाइ ( दस ), परिदह ( १८), वीह ( २० ), टोह ( ३० ), पंजाह ( ५० ). साठा दाह ( १०॥ ), वीणो ( दूना ), टीखो ( तिगुना ), सजो ( सारा ), समृगे ( समूचा ) मादि कुछ शब्द निराले जान पड़ते हैं । कारांत होती है- हलर ( चलना ), बधरणु ( बाँधना ), टपरणु ( फौंदना ) घुमर, खाइ, कर, पचर (पाना.) वर ( जाना ), विहरणु ( बैठना ) इत्यादि । कर्मवाच्य प्रायः धातु में इज- या ईज ( प्राकृत / भज्ज ) जोड़कर बनता है, जैसे मारिजे ( मारा जाता है), पिटिजन (पीटा जाना ); अथवा हिंदी की तरह वञ (जाना ) के साथ संयुक्त किया बनाकर प्रयुक्त होता है, जैसे मारयो वजे थो (मारा जाता है)। प्रेरणार्थक क्रिया की दो स्थितियाँ हैं-लिखाइणु ( लिखना ), लिखराइणु ( लिखवाना ); कमाइ ( कमाना ), कमाराइणु ( कमवाना ), कृदतो मे वर्तमानवालिक हमंदो ( हिलता ), भजदो ( टूटता ) - मोर भूतकालिक - बच्चलु ( बचा ), मायंलु ( मारा ) - लिग भौर वचन के अनुसार विकारो होते हैं । वर्तमानकालिक कृदत भविष्यत् काल के पथ मे भी प्रयुक्त होता है। हिंदी की तरह कृदतो में सहायक क्रिया ( वर्तमान माहे, या; भूत हो, भविष्यत् हुँदो मादि ) के योग से अनेक क्रियारूप सिद्ध होते । पूर्वकालिक कृदत घातु में इ या . ई लगाकर बनाया जाता है, जैसे खाई ( खाकर ), लिखी ( लिखक र ), विधिलिङ और प्राशार्थक क्रिया के रूप सस्कृत प्राकृत से विकसित हुए हैं - माँ हली ( मैं चलू ), मसी हल ( हम चले ), तू हली ( तू चले ), तू हल ( तू चल ), तव्हो हलो ( तुम चलो ) ; हू हले, हू हलीन। इनमे भी सहायक क्रिया जोडकर रूप बनते है। हिंदी की तरह सिधी में भी संयुक्त क्रियाएँ पवरणु ( पड़ना ), रहग्णु ( रहना ), वठणु ( लेना ), विष्णु ( डालना ), छदर ( छोड़ना ), सघणु ( सकना ) आादि के योग से बनती हैं। मिघी की एक बहुत बड़ी विशेषता है उसके सार्वनामिक प्रत्यय जो सज्ञा और क्रिया के साथ संयुक्त किए जाते हैं, जैसे पुॐ ( हमारा लडका ), भासि ( उसका भाई ), भाउरर्शन ( उनके भाई ); चयुमि ( मैंने कहा ), हुजेई ( तुझे हो ), मारियाई ( उसने उसको मारा ), मारियाईमि ( उसने मुझको मारा ) । सिंधी अव्यय संख्या में बहुत अधिक हैं। सिंधी के शब्दभंडार में भरबी-फारसी-तत्व पन्य भारतीय भाषाम्रो की मपेक्षा अधिक हैं। सिधी मोर हिंदी की वाक्यरचना, पदक्रम और मन्वय में कोई विशेष पतर नहीं है । एक शताब्दी से कुछ पूर्व तक सिंधी मे चार लिपियाँ प्रचलित थी। हिंदू पुरुष देवनागरी का हिंदू स्त्रियाँ प्रायः गुरुमुखी का, व्यापारी लोग (हिंदू मुसलमान दोनों) 'हटवारिणको' का (जिसे सिंधी लिपि भी कहते है), और मुसलमान तथा सरकारी कर्मचारी भरबी फारसी लिपि का प्रयोग करते थे । सन् १८५३ ई० में
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क्योंकि वह तो करीब-करीब मेरी भी और आप सबकी पूरी तौरसे मातृभाषा है। इसलिए उसमें में जो कुछ कहूंगा यह आप सही सही समझ सकते हैं । यह ( डा० सुशीला नैयर) मेरे भाषणको अंग्रेजीमें कर तो लेती है, क्योंकि वह खासा अंग्रेजी जानती है, फिर भी उसमें कमी रह जाती है । इसलिए आज मैंने थोड़ा समय निकालकर अंग्रेजीमें लिख रखा है। यहां में उसीको ध्यान में रखते हुए बात कहूंगा। परंतु अखबारों वही छपेगा जो मैंने लिख रखा है। तो शुरूमें मैं उस खतकी बात बता देना चाहता हूं, जिसमें मुझे प्रार्थना चालू रखनेके बारे में कोसा गया है और लिखा है कि झूठा है, ठीक तरहसे जवाब भी नहीं देता । ऐसा जो लिखते हैं वे बालक हैं । उम्र में भले ही सयाने हो गए हों, पर बुद्धिमें बालक ही रहे हैं । उनको मेरी यह बात चुभती है कि मैं यही क्यों कहता हूं कि 'मरो', 'मरो' । ऐसा क्यों नहीं कहता कि पहले 'मारो- काटो और फिर मरो' । वे चाहते हैं कि मैं तलवारका बदला तलवार और आगका बदला आग से लेनेको कहूं । लेकिन मैं अपने सारे जीवनके विरुद्ध नहीं जा सकता और मानव-कानूनकी जगह पाशविक कानूनकी हिमायत करनेका अपराधी नहीं बन सकता । जब कोई मुझे मारने आवेगा तब मैं यह कहते कहते मरूंगा कि ईश्वर तेरा भला करे । इसके बदले उनका आग्रह है कि मैं पहले मारनेको कहूं और बादमें मरना पड़े तो मरनेको कहूं । अगर मैं ऐसा कहनेको तैयार नहीं हूं तो वे मुझे कहते हैं कि 'तुम अपनी बहादुरी अपनी जेबमें रखो !' और यहांसे जंगलमें भाग जाओ । पर वे ऐसा क्यों कहते हैं ? इसलिए कि मुसलमान सबको मारते हैं । तो क्या इसी बात पर हिंदू भी मारनेको उतारू हो जाएं और फिर दोनों दीवाने बन जायं ? क्या मुसलमान बिगड़ जायं तो हम भी बिगड़ें ? कहा जाता है कि सब मुसलमान खराब हैं, गंदे (दिलके ) हैं । और यह भी बताते हैं कि सब हिंदू फरिश्ते हैं। लेकिन मैं इस बातको नहीं मान सकता । एक मुसलमान महिलाका खत मेरे पास आया है। उसमें लिखा है कि जब आप अबिल्ला' की ईश्वरकी स्तुति करते हैं तो उसे 'आज उर्दू नज्ममें क्यों नहीं करते ? मेरा उत्तर यह है कि जब मैं नज्म पढ़ने लगूंगा तब उसपर खफा होकर मुसलमान पूछेंगे कि अरबीका तरजुमा करनेवाले तुम कौन होते हो ? और वे पीटने श्रायंगे तब मैं क्या कहूंगा ? सही बात यह है कि जो चीज जिस भाषामें कही गई और जिस पर तप किया गया उसी भाषामें उसका माधुर्य होता है । बिशपोंने अंग्रेजी - बाइबिलकी भाषाको बहुत परिश्रमसे मधुर बनाया है और लेटिनसे भी अंग्रेजीमें वह किस तरह मीठी हो गई है। अंग्रेजी सीखना चाहनेवालेको बाइबिल तो सीखनी ही चाहिए । मैं अंग्रेजी भाषाका द्वेषी नहीं, उसका प्रशंसक हूं । पर गलत जगह जाकर वह गंदी हो जाती है । सो मैं 'ओज अबिल्ला' की भाषाका माधुर्य छोड़नेको तैयार नहीं; क्योंकि हमारे पास ऐसे कवि नहीं हैं जो वैसी ही मधुरतासे उसका ग्रनवाद कर सकें । आज मैं अहिंसाके शाश्वत नियमकी बात नहीं कहूंगा । हालां कि उसपर मेरा दृढ़ विश्वास है । यदि सारा हिंदुस्तान उसे सोच-समझकर अपना ले तो वह बेशक सारी दुनियाका नेता बन जायगा । यहां तो मैं केवल यह कहना चाहता हूं कि कोई आदमी विवेकके अलावा और किसी चीजके आगे न झुके । लेकिन आजकल तो हमने विवेक बिलकुल ही भुला दिया है । विवेक तभी कायम रह सकता है जब हममें बहादुरी हो । आज जो चल रहा है वह बहादुरी नहीं है । इन्सानियत भी नहीं है । हम बिलकुल जानवर - जैसे बन गये हैं। हमारे अखबार रोज-रोज हमें सुनाते हैं कि यहां हिंदु बरबादी कर डाली और वहां मुसलमानोंने क्या हिंदू और क्या मुसलमान, दोनों ही बुरा काम करते हैं । यह मैं माननेको तैयार हूं कि मुसलमान ज्यादा बरबादी कर रहे हैं; पर जब दोनों ही बुराई करते हैं तब किसने ज्यादा बुराई की और किसने कम, यह जानना बेकार है। दोनों गलतीपर हैं । खबर आई है कि हमारे नजदीक ही गुड़गांवमें कई गांव जल गए हैं । किसने किसके मकान जलाए हैं, इसका पता चलानेकी कोशिश में मैं हूं; पर सही पता लगना कठिन है। लोग कहेंगे कि जब इतने करीबमें यह सब हो रहा है तब यहां बैठा मैं लंबी-चौड़ी बातें कैसे सुना रहा हूं ? जब आप लोग यहां आ गए हैं और हमारी बदकिस्मतीसे गुड़गांवमें यह हो रहा है तब अपने मनकी बात मैं आपसे कहूंगा ही। और मेरा यही कहना है कि हमारे चारों ओर अंगार जलते रहें तो भी हमें तो शांत ही रहना है और चित्त स्थिर रखते हुए हमें भी इस अंगारमें जलना है। हम क्यों दहशतके मारे यह कहते फिरें कि दूसरी जूनको यह होनेवाला है, वह होनेवाला है ? जो बहादुर होंगे उनके लिए उस दिन कुछ भी होनेवाला नहीं है । यह यकीन रखिए । सबको एक बार मरना ही है । कोई अमर तो पैदा हुआ नहीं है । तो फिर हम यही निश्चय क्यों न कर लें कि हम बहादुरीसे मरेंगे और मरते दमतक अपनी ओरसे बुराई नहीं करेंगे ? जान-बूझकर किसीको मारेंगे नहीं । एक बार मनमें ऐसा निश्चय कर लेंगे तब आप स्थिरचित्त रहेंगे और किसीकी ओर नहीं ताकेंगे । जो डरा-धमकाकर पाकिस्तान लेना चाहेंगे उनसे कह देंगे कि इस तरह रत्तीभर भी पाकिस्तान मिलनेवाला नहीं है। आप इन्साफपर रहेंगे, हमारी बुद्धिको समझा देंगे, दुनियाको समझा देंगे तो आप पूरा का पूरा हिंदुस्तान ले जा सकते हैं । जबर्दस्तीसे तो हम पाकिस्तान कभी नहीं देंगे । और अंग्रेजोंसे क्या कहूं ! अगर वे मिशन-योजनासे हटते हैं तो वे दगाबाज हैं । हम दगाबाज न बनेंगे और न बनने देंगे। हमारा और उनका संबंध १६ मईकी घोषणासे है । उसीके आधारपर विधानपरिषद् बनी है। उसके मुताबिक हम चलेंगे। इसके अलावा हम कुछ नहीं जानते । दूसरा कुछ तभी हो सकता है जब हम खामोश हो जायं, लड़ाई-दंगा न रहे और हम शांत होकर बैठें । पर हम दबेंगे नहीं । इन चार दिनोंमें इतना पाठ आप सीख लें तो सब कुछ मिलनेवाला है । भले ही वे सारे हथियार जो बटोरे हैं जमा लें । जब हम इतनी बड़ी सल्तनतके मुकाबले में डट गए और उनके इतने सारे हथियारोंसे नहीं डरे, उसके झंडेके सामने सिर नहीं झुकाया तो अब हम क्यों लड़खड़ाएं ? जब कि आजादी मिलने ही वाली है, हम यह सोचनेकी गलती न करें कि अगर हम न झुके -- चाहे यह भुकना पाशविक शक्तिके आगे ही क्यों न हो तो आजादी हमारे हाथोंसे निकल जायगी । अगर हम ऐसा सोचेंगे तो हमारा नाश निश्चित है । मैं लंदन से आनेवाले तारोंमें विश्वास नहीं करता । मैं यह आशा नहीं छोड़ंगा कि ब्रिटेन गत वर्षके १६ मईके केबिनट मिशनके वक्तव्यकी इबारत और भावनासे बाल-बराबर भी नहीं हटेगा, जबतक कि भारतकी पार्टियां अपने आप कोई फर्क करनेको रजामंद न हो जाएं । इस कामके लिए दोनोंको एक जगह मिलना होगा और मानने लायक हल निकालना पड़ेगा । यहांके अंग्रेज अफसरोंके लिए कहा जाता है कि वे बदमाश हैं । इन दंगों में उनका हाथ है, वे ही हमें लड़ाते हैं। लेकिन जबतक यह गंभीर आरोप ठीक-ठीक साबित नहीं हो जाता तबतक हमें उनपर इल्जाम नहीं लगाना चाहिए । मैं तो कहूंगा कि अगर हम लड़ना नहीं चाहते तो लड़ाई कैसे होगी ? मैं अगर यहां बैठी हुई अपनी लड़कीसे लड़ना न चाहूं तो मुझे कौन लड़ा सकता है ? और माउंटबेटन साहबका काम आसान नहीं है । वे बड़े सेनापति हैं, बहादुर हैं; पर अपनी उस बहादुरीको वे यहां नहीं बता सकते । यहांपर वे अपनी सेना लेकर नहीं आए हैं। यहां वे फौजी वर्दीमें नहीं आए हैं, सिविलियन बनकर आए हैं और उनका कहना है कि मैं अंग्रेजोंसे हिंदुस्तान छुड़वा देनेके लिए आया हूं । अब हमें देखना है कि वे किस तरह जाते हैं । माउंटबेटन साहबको अपने गवर्नर जनरलके पदको शोभित करना है । उन्हें अपनी सारी चतुराई और सच्ची राजनीतिज्ञता बतानी है। अगर वे जरा भी चूक जायंगे, जरा भी सुस्ती कर जायंगे तो ठीक न होगा । इसलिए हम और आप सब मिलकर प्रार्थना करें कि भगवान उनको सन्मति दे और इतनी बात वे जान लें कि सोलह मईकी बातसे बालभर भी फरक जबर्दस्तीसे वे नहीं कर सकते । अगर करते हैं तो वह दगा होगा और दगा किसीका सगा नहीं होता। दगेका अंत भलाईमें कभी या नहीं सकता। आप लंदनकी ओर न देखें, न वाइसरायकी ओर देखें । इसका मतलब यह नहीं कि इंग्लैंड में जितने अंग्रेज हैं, सब-के-सब बुरे हैं । उनमें बहुत से भले भी हैं। माउंटबेटन साहब भी भले हैं । पर वे सब घरमें भले हैं । जब यहां आकर दखल देते हैं तो वे बुरे बन जाते हैं। अब वह पुरानी बात नहीं रही कि जब अंग्रेजोंकी हिफाजतका वादा जरूरी समझा जाता था। सिविल सर्विसमें जो अंग्रेज लोग हैं उन्हें अब अपने यहां नौकर रखने के लिए हम मजबूर नहीं हैं । अगर सिविलयन रहना चाहें तो रहें और अंग्रेज व्यापारी भी रहना चाहें तो वे भी रहें; लेकिन उनको बचाने के लिए यहां एक भी अंग्रेज सिपाही नहीं रह सकेगा । हिंदुस्तानियोंकी खिदमत और उनकी मुहब्बतके जरिए ही वे रह सकते हैं। अगर कोई पागलपनमें उन्हें नुकसान पहुंचाएं तो उसकी जिम्मेदारी हमपर नहीं होगी । अंग्रेजोंके हिंदुस्तान से पूरी तरहसे चले जाने में कुछ देर लग सकती है। उन्होंने इसके लिए १९४८ के जूनकी ३० तारीख़ कायम की है । उस दिनको आजसे पूरे बारह महीने बाकी रहे हैं । अगर वे इससे पहले जा सकें तो उन्हें जाना है । लेकिन उसके बाद तो वे एक दिन भी नहीं टिक सकते । यह तो प्रामिसरी नोट की - सी बात है। अगर प्रामिसरी नोटमें इतवारके दिन रुपया देनेका वचन दिया है तो उसे सोमवारपर नहीं टाला जा सकता । इसी तरह अंग्रेज भी ३० जूनके बाद यहां नहीं रह सकते । अंग्रेज-प्रजाने उन्हें जो आदेश दिया है उसका उन्हें पालन करना है । आखिर वाइसराय उसी अंग्रेज-प्रजाके नौकर हैं । इस दूसरी या तीसरी जुनको वह हमें बतायंगे कि वह क्या करना चाहते हैं और किस तरह यहांसे जायंगे । यह उनका कर्तव्य है और उसे पूरा करना उनका काम है। हमको अपना धर्म खुद देखना है । फिर मैं सोचता हूं, मैं कौन हूं ? मैं किसका नुमाइंदा हूं ? बरसों बीते, मैं कांग्रेस से बाहर निकल आया हूं । चवन्नीका मेम्बर भी नहीं हूं । पर कांग्रेसका खादिम हूं। मैंने उसकी बरसोंतक सेवा की है और कर रहा हूं । इसी तरह मैं मुस्लिम लीगका भी खादिम हूं और राजका भी खादिम हूं । सबका खादिम हूं, पर नुमाइंदा किसीका नहीं हूं । हां, एकका मैं नुमाइंदा जरूर हूं । मैं कायदे आजमका नुमाइंदा हूं; क्योंकि उनके साथ मैंने शांति-पलपर दस्तखत किए हैं। हम दोनोंने मिलकर कहा है कि हिंसासे कोई राजनैतिक बात हम नहीं ले सकते । यह बहुत बड़ी बात है । उस अपीलपर दूसरे लोगोंकी सही भी लेनेकी बात थी, लेकिन जिन्ना साहबने कहा कि मुझे तो अकेले गांधीजीकी ही सही चाहिए । इस तरह मैं जिन्ना साह्बका नुमाइंदा बन गया । उनके अलावा मैं किसीका नुमाइंदा नहीं हूं । लेकिन मैंने अपीलपर हिंदूकी हैसियतसे दस्तखत नहीं किए, किंतु हिंदू मैं जन्मसे अवश्य हूं, कोई मुझे हिंदू मिटा नहीं सकता । मैं मुसलमान भी हूं, क्योंकि मैं अच्छा हिंदू हूं और इसी तरह पारसी और ईसाई भी हूं । सब धर्मोकी जड़ में एक ही ईश्वरका नाम है । सबके धर्मशास्त्र एक-सी बात कहते हैं । मैंने कुरान देखा है और जैसा कि उस बहनने लिखा था, मैं नहीं मानता कि कुरानमें काफिरोंको कत्ल करनेकी बात लिखी है । मैंने बादशाह खान और अब्दुस्समदखां साहबसे, जिन्होंने आज बढ़िया तरीके से आत पढ़ी है, पूछा तो वे भी नहीं कहते कि कुरानमें गैरमुस्लिमको कत्ल करनेके लिए लिखा है । विहारके मुसलमानों में से किसीने नहीं कहा कि क्योंकि अविश्वासी हैं, इसलिए हम आपको कल करेंगे और नोग्राखालीके मौलवियोंने भी ऐसा नहीं कहा; बल्कि उन्होंने राम धुनको ढोलकके साथ होने दिया । कुरानमें जो लिखा है उसका मतलब इतना ही है कि खुदा काफिरसे पूछेगा। खुदा तो सबसे पूछेगा । मुसलमान से भी पूछेगा । वह लफ्जको नहीं पूछेगा, कामोंको पूछेगा। बाकी जो गंदा देखना चाहें, हर जगह गंदा देख सकते हैं । ऐसी कोई चीज नहीं जिसमें श्रच्छा व बुरा न मिला हो । हमारी मनुस्मृतिमें भी लिखा है कि अछूतोंके कानमें सीसा डालो । पर मैं कहूंगा कि हिंदू धर्मशास्त्रोंकी यह