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विकास एआई द्वारा संचालित संक्षिप्त सारांश के लिए 'सारांश सामग्री' पर क्लिक करें। प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को दायर करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि न्याय की प्रक्रिया पुलिस स्टेशन में अपराध का पंजीकरण करने के साथ शुरू होती है। अपराध प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 154 के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट को दायर करने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। भारत के उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 2008 की रिट याचिका (अपराध) संख्या 68 (ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार तथा अन्य) में अन्य बातों के साथ-साथ, दिनांक 12.11.2013 को दिए अपने निर्णय में यह कहा था, 'संहिता की धारा 154 के अंतर्गत एफआईआर का पंजीकरण अनिवार्य है, यदि सूचना संज्ञान अपराध के घटित होने का प्रकटन करती है और ऐसी स्थिति में कोई प्रारंभिक जांच अनुमत नहीं है।' पीओए अधिनियम के अंतर्गत किए जाने वाले अपराध संज्ञान हैं। ऐसी स्थिति में प्रभावित व्यक्ति को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) (पीओए) अधिनियम के अध्याय-II, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) (संशोधन) अधिनियम, 2015 (2016 की संख्या 1) द्वारा यथा संशोधित संगत उपबंधों के अनुसार क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) अवश्य दायर करनी चाहिए। मतदान न करने या किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने या विधि द्वारा उपबंधित से भिन्न रीति से मतदान करने; किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के नामनिर्देशन का प्रस्ताव या समर्थन नहीं करेंगे। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी ऐसे सदस्य को जो संविधान के भाग IX के अधीन पंचायत या संविधान के भाग IXक के अधीन नगरपालिका का सदस्य या अध्यक्ष या अन्य किसी पद का धारक है, उसके समान कर्तव्यों या कृत्यों के पालन में मजबूर या अभित्रस्त करेगा। मतदान के पश्चात्, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उपहति या घोर उपहति या हमला करेगा या सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार अधिरोपित करेगा या अधिरोपित करने की धमकी देगा या किसी ऐसी लोक सेवा के उपलब्ध फायदों से निवारित करेगा, जो उसको प्राप्य हैं। किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने या उसको मतदान नहीं करने या विधि द्वारा उपबंधित रीति से मतदान करने के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करेगा। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध मिथ्या, द्वेषपूर्ण या तंग करने वाला वाद या दांडिक या अन्य विधिक कार्यावाहियां संस्थित करेगा। किसी लोक सेवक को मिथ्या या तुच्छ सूचना देगा जिससे ऐसा लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति करने या क्षुब्ध करने के लिए करेगा। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अवमानित करने के आशय से लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर अपमानित या अभित्रस्त करेगा। लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर जाति के नाम से अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को गाली-गलौज करेगा। अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्य द्वारा सामान्यता धार्मिक माने जाने वाली या अति श्रद्धा से ज्ञात किसी वस्तु को नष्ट करेगा, हानि पहुंचाएगा या अपवित्र करेगा। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विरुद्ध शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाओं की या तो लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा या चिह्नों द्वारा दृश्य रूपण द्वारा या अन्यथा अभिवृद्धि करेगा या अभिवृद्धि करने का प्रयत्न करेगा। अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अति श्रद्धा से माने जाने वाले किसी दिवंगत व्यक्ति का या तो लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा या किसी अन्य साधन से अनादर करेगा। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी स्त्री को साशय यह जानते हुए स्पर्श करेगा कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है, जबकि स्पष्ट करने का ऐसा कार्य, लैंगिक प्रकृति का है और प्राप्तिकर्त्ता की सहमति के बिना है। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी स्त्री के बारे में, यह जानते हुए कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है, लैंगिक प्रकृति के शब्दों, कार्यों या अंगविक्षेपों का उपयोग करेगा। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य द्वारा सामान्यतः उपयोग किए जाने वाले किसी स्रोत, जलाशय या किसी अन्य स्रोत के जल को दूषित या गंदा करेगा जिससे वह इस प्रयोजन के लिए कम उपयुक्त हो जाए जिसके लिए वह साधारणतः उपयोग किया जाता है। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को लोक समागम के किसी स्थान से गुजरने के किसी रूढ़िजन्य अधिकार से इंकार करेगा या ऐसे सदस्य को लोक समागम के ऐसे स्थान का उपयोग करने या उस पर पहुंच रखने से निवारित करने के लिए बाधा पहुंचाएगा जिसमें जनता या उसके किसी अन्य वर्ग के सदस्यों को उपयोग करने और पहुंच रखने का अधिकार है। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उसका गृह, ग्राम या निवास का अन्य स्थान जोड़ने के लिए मजबूर करेगा या मजबूर करवाएगा। किसी क्षेत्र के सम्मिलित संपत्ति संसाधनों का या अन्य व्यक्तियों के साथ समान रूप से कब्रिस्तान या शमशान भूमि का उपयोग करना या किसी नदी, सरिता, झरना, कुआं, तालाब, कुण्ड, नल या अन्य जलीय स्थान या कोई स्नानघाट, कोई सार्वजनिक परिवहन, कोई सड़क या मार्ग का उपयोग करना; साइकिल या मोटर साइकिल आरोहण या सवारी करना या सार्वजनिक स्थानों में जूते या नये कपड़े पहनना या विवाह की शोभा यात्रा निकालना या विवाह की शोभा यात्रा के दौरान घोड़े या किसी अन्य यान पर आरोहण करना; जनता या समान धर्म के अन्य व्यक्तियों के लिए खुले किसी पूजा स्थल में प्रविष्ट करना या जाटरस सहित किसी धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक शोभा यात्रा में भाग लेना या उसको निकालना; किसी शैक्षणिक संस्था, अस्पताल, औषधालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, दुकान या लोक मनोरंजन या किसी अन्य लोक स्थान में प्रविष्ट होने या जनता के लिए खुले किसी स्थान में सार्वजनिक उपयोग के लिए अभिप्रेत कोई उपकरण या वस्तुएं; किसी वृत्तिक में व्यवसाय करना या किसी ऐसी उपजीविका, व्यापार, कारबार या किसी नौकरी में नियोजन करना, जिसमें जनता या उसके किसी वर्ग के अन्य लोगों को उपयोग करने या उस तक पहुंच का अधिकार है। धारा 3(1) के अंतर्गत विनिर्दिष्ट अत्याचारों के अपराधों के लिए, 6 माह से 5 वर्ष तक जुर्माना सहित दंड का प्रावधान है। धारा 3(2)(i) के अंतर्गत अपराधों के लिए मृत्युदंड देने का प्रावधान है। धारा 3(2)(ii) के अंतर्गत अपराधों के लिए कम से कम 6 माह जिसे 7 वर्ष अथवा उससे अधिक अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है, जुर्माना सहित दंड देने का प्रावधान है। धारा 3 (2)(iv) के अंतर्गत अपराधों के लिए जुर्माना सहित आजीवन सजा का दंड देने का प्रावधान है। धारा 3(2)(iv)(v) के अंतर्गत अपराधों के लिए जुर्माना सहित आजीवन सजा का दंड देने का प्रावधान है। धारा 3(2)(vक) के अंतर्गत अपराधों के लिए, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की अनुसूची में विनिर्दिष्ट अपराधों के लिए आईपीसी के अंतर्गत यथा विहित दंड देने का प्रावधान है। क्रम सं. कोई अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ रखना (अधिनियम की धारा 3(1)(क) क्रम संख्या (2) और (3) के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के चरण पर 10% और क्रम सं. (1), (4) और (5) के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट के चरण पर 25%। 50%, जब आरोप-पत्र न्यायालय को भेजा जाता है। क्रम सं. (2) और (3) के लिए निचले न्यायालय द्वारा आरोपी को दोषसिद्ध ठहराने पर 40% और इसी प्रकार क्रम सं. (1), (4) और (5) के लिए 25%। मल-मूत्र, मल, पशु-शव या अन्य कोई घृणाजनक पदार्थ इकट्ठा करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ख) क्षति करने, अपमानित करने या शुद्ध करने के आशय से मल-मूत्र, कूड़ा, पशु-शव इकट्ठा करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ग) जूतों की माला पहनाना या नग्न या अर्ध-नग्न घुमाना(अधिनियम की धारा 3(1)(घ) कपड़े उतारना, बलपूर्वक सिर का मुण्डन करना, मूंछे हटाना, चेहरे या शरीर को पोतना जैसे कार्य बलपूर्वक करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ड.) किसी भूमि को सदोष अधिभोग में लेना या उस पर खेती करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(च) किसी भूमि या परिसरों से सदोष वेकब्जा करना या अधिकारों सहित उसके अधिकारों के उपभोग में हस्तक्षेप करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ज) बेगार करने अथवा अन्य प्रकार के बलात्श्रम या बंधुआ श्रम करने के लिए।(अधिनियम की धारा 3(1)(झ) मानव या पशु-शव का निपटान करने या उनकी अंतेष्टि ले जाने या कब्रों को खोदने के लिए विवश करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ञ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को हाथ से सफाई करने के लिए तैयार करना या ऐसे प्रयोजन के लिए उसे नियोजित करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ट) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की स्त्री को किसी देवदासी के रूप में निष्पादित या संवर्धित करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ठ) मतदान करने, नामनिर्देशन फाइल करने से रोकना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ड) पंचायत या नगरपालिका के किसी पदधारक को उसके कर्त्तव्यों के पालन में मजबूर, अभित्रस्त या बाधित करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ढ) मतदान के बाद हमला करना और सामाजिक तथा आर्थिक बहिष्कार अधिरोपित करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(ण) किसी विशिष्ट अपराधी के लिए मतदान करने या उसको मतदान नहीं करने के लिए इस अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(त) मिथ्या, द्वेषपूर्ण या अन्य विधिक कार्रवाइयां संस्थित करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(थ) किसी लोक सेवक को कोई मिथ्या या तुच्छ सूचना देना।(अधिनियम की धारा 3(1)(द) अवमानित करने के आशय से लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर अपमानित या अभित्रस्त करना। (अधिनियम की धारा 3(1)(ध) लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर जाति के नाम से गाली-गलौज करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(न) धार्मिक मानी जाने वाली या अतिश्रद्धा से ज्ञात किसी वस्तु को नष्ट करना, हानि पहुंचाना अथवा अपवित्र करना। (अधिनियम की धारा 3(1)(प) शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाओं की अभिवृद्धि करना। (अधिनियम की धारा 3(1)(फ) अति श्रद्धा से माने जाने वाले किसी दिवंगत व्यक्ति का या तो लिखित या किसी अन्य साधन से अनादर करना। (अधिनियम की धारा 3(1)(ब) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री को साशय स्पर्श करने का ऐसा कार्य, जो लैंगिक प्रकृति का है, उसकी सहमति के बिना करना। (अधिनियम की धारा 3(1)(म) भारतीय दंड संहिता की धारा 326(ख)(1860 का 45) स्वेच्छया अम्ल फैंकना या फैंकने का प्रयत्न करना। (अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) पीड़ित व्यक्ति के चेहरे का 2% से अधिक जलने पर और आंख, कांन, नाक और मुंह के काम न करने के मामले में अथवा शरीर के 30% से अधिक जलने आठ लाख पच्चीस हजार रुपए। शरीर के 10% से 30% तक जलने पर पीड़ित व्यक्ति को चार लाख पचास हजार रुपए। चेहरे के अलावा शरीर के 10% से कम भाग के जलने पर पीड़ित व्यक्ति को 85,000/- रुपए। भारतीय दंड संहिता की धारा 354(ख)(1860 का 45) -- किसी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला अथवा आपराधिक बल का प्रयोग। (अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) भारतीय दंड संहिता की धारा 326(क)(1860 का 45) - लैंगिक उत्पीड़न और लैंगिक उत्पीड़न के लिए दंड। (अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) भारतीय दंड संहिता की धारा 326(ख)(1860 का 45) - निवस्त्र करने के आशय से स्त्री पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।(अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) भारतीय दंड संहिता की धारा 354(ग)(1860 का 45) - दृश्यरतिकता। (अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) भारतीय दंड संहिता की धारा 354(घ)(1860 का 45) - पीछा करना।(अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) भारतीय दंड संहिता की धारा 376(ख)(1860 का 45) - पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथुन। (अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) भारतीय दंड संहिता की धारा 376(ग)(1860 का 45) - प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन।(अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) भारतीय दंड संहिता की धारा 509(1860 का 45) - शब्द अंगविक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित हैं।(अधिनियम की अनुसूची के साथ पठित धारा 3(2)(भक) पानी को गंदा करना अथवा उसका मार्ग बदलना। (अधिनियम की धारा 3(1)(य) जब पानी को गंदा कर दिया जाता है तब उसे साफ करने सहित सामान्य सुविधा को बहाल करने की पूर्ण लागत संबंधित राज्य सरकार अथवा संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन द्वारा वहन की जाएगी। इसके अतिरिक्त, स्थानीय निकाय के परामर्श से जिला प्राधिकारी द्वारा निर्धारित की जाने वाली समुदायिक परिसंपत्तियों को सृजित करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के पास आठ लाख पच्चीस हजार रुपए की राशि जमा की जाएगी। किसी लोक स्थान पर जाने से अथवा लोक स्थान के मार्ग को उपयोग करने के रूढ़िजन्य अधिकार से वंचित करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(र) घर, गांव, निवास स्थान को छोड़ने के लिए बाध्य करना। (अधिनियम की धारा 3(1)(ल) अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को निम्नलिखित के संबंध में किसी रीति से बाधित या निवारित करना। क. किसी क्षेत्र के सम्मिलित संपत्ति संसाधनों का या अन्य व्यक्तियों के साथ समान रूप से कब्रिस्तान या शमशान भूमि का उपयोग करना या किसी नदी, सरिता, झरना, कुआं, तालाब, कुण्ड, नल या अन्य जलीय स्थान या कोई स्नानघाट, कोई सार्वजनिक परिवहन, कोई सड़क या मार्ग का उपयोग करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(लक)(क) ख. साइकिल या मोटर साइकिल आरोहण या सवारी करना या सार्वजनिक स्थानों में जूते या नये कपड़े पहनना या विवाह की शोभा यात्रा निकालना या विवाह की शोभा यात्रा के दौरान घोड़े या अन्य किसी यान पर आरोहण करना।(अधिनियम की धारा 3(1)(za)(ख) ग. जनता या समान धर्म के अन्य व्यक्तियों के लिए खुले किसी पूजा स्थल में प्रविष्ट करना या जाटरस सहित किसी सामाजिक या सांस्कृतिक शोभा यात्रा में भाग लेना या उसको निकालना।(अधिनियम की धारा 3(1)(लक)(ग) घ. किसी शैक्षणिक संस्था, अस्पताल, औषधालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, दुकान या लोक मनोरंजन या किसी अन्य लोक स्थान में प्रविष्ट होने या जनता के लिए खुले किसी स्थान में सार्वजनिक उपयोग के लिए अभिप्रेत कोई उपकरण या वस्तु का उपयोग करना। (अधिनियम की धारा 3(1)(लक)(घ) ड. किसी वृत्तिक में व्यवसाय करना या किसी ऐसी उप-जीविका, व्यापार, कारबार या किसी नौकरी में नियोजन करना, जिसमें जनता या उसकी किसी वर्ग के अन्य लोगों को उपयोग करने या उस तक पहुंच का अधिकार है।(अधिनियम की धारा 3(1)(लक)(ड.) संबंधित राज्य सरकार अथवा संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन द्वारा अन्य व्यक्तियों के समान सभी आर्थिक और सामाजिक सेवाओं के उपबंधों को बहाल किया जाएगा और पीड़ित व्यक्ति को एक लाख रुपए की राहत राशि दी जाएगी। निचले न्यायालय में आरोप पत्र भेजने पर उस राशि का पूर्ण भुगतान किया जाएगा। निर्योग्यता। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की अधिसूचना संख्या 16-18/97-एनआई दिनांक 1 जून, 2001 में उल्लिखित विभिन्न निर्योग्यताओं का मूल्यांकन करने के लिए दिशा-निर्देश और प्रमाणन के लिए प्रक्रिया। अधिसूचना की एक प्रति अनुबंध-II पर है। (क) 100 प्रतिशत असमर्थता। (ख) जहां असमर्थता 50 प्रतिशत से अधिक लेकिन 100 प्रतिशत से कम है। (ग) जहां असमर्थता 50 प्रतिशत से कम है। (क)50%, चिकित्सा जांच होने और पुष्टि कारक चिकित्सा रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद। (ख)50%, जब आरोप-पत्र न्यायालय को भेजा जाता है। (क)50%, चिकित्सा जांच होने और पुष्टि कारक चिकित्सा रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद। (ख)50%, जब आरोप-पत्र न्यायालय को भेजा जाता है। (क)50%, चिकित्सा जांच होने और पुष्टि कारक चिकित्सा रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद। (ख)50%, जब आरोप-पत्र न्यायालय को भेजा जाता है। बलातसंग अथवा गैंग द्वारा किया गया बलातसंघ। (i) बलातसंघ (भारतीय दंड संहिता की धारा 375(1860 का 45) (ii) गैंग द्वारा किया गया बलातसंघ (भारतीय दंड संहिता की धारा 376घ (1860 का 45) (i) 50%, चिकित्सा जांच और पुष्टि कारक चिकित्सा रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद। (ii) 25%, जब आरोप-पत्र न्यायालय को भेजा जाता है। (iii) 25%, जब निचले न्यायालय द्वारा सुनवाई के समापन पर। (i) 50%, चिकित्सा जांच और पुष्टि कारक चिकित्सा रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद। (ii) 25%, जब आरोप-पत्र न्यायालय को भेजा जाता है। (iii) 25%, जब निचले न्यायालय द्वारा सुनवाई के समापन पर। (i) 50%, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद। (ii) 50%, जब न्यायालय को आरोप-पत्र भेजा जाता है। हत्या, मृत्यु, नरसंहार, बलातसंग, स्थायी असमर्थता और डकैती के पीड़ितों को अतिरिक्त राहत। (i) अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति से संबंधित मृतक व्यक्तियों की विधवा या अन्य आश्रितों को पांच हजार रुपए प्रति माह की दर से बेसिक पेंशन जो कि संबंधित राज्य सरकार अथवा संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन के सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू है, और ग्राह्य मंहगाई भत्ता और मृतक के परिवार को एक सदस्य को रोजगार या कृषि भूमि, एक मकान, यदि आवश्यक हो, तो उसकी तत्काल खरीद द्वारा व्यवस्था करना। (ii) पीड़ित व्यक्तियों के बच्चों की स्नातक स्तर तक की शिक्षा और उनके भरण-पोषण का पूरा खर्चा। बच्चों को सरकार द्वारा वित्तपोषित आश्रम स्कूलों अथवा आवासीय स्कूलों में दाखिला दिया जाएगा। (iii) 3 माह की अवधि के लिए बर्तनों, चावल, गेहूं, दालों, दलहनों आदि की व्यवस्था। पूर्णतः नष्ट किया/जला हुआ मकान। जहां मकान को जला दिया गया हो या नष्ट कर दिया गया हो, वहां सरकारी खर्चे पर ईंट अथवा पत्थर के मकान का निर्माण किया जाएगा या उसकी व्यवस्था की जाएगी। इस संबंध में और आगे जानकारी प्राप्त करने के लिए उप-मंडलीय मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट, राज्य सरकार के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास निदेशक और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग से कृपया संपर्क करें। ( यदि आपके पास उपरोक्त सामग्री पर कोई टिप्पणी / सुझाव हैं, तो कृपया उन्हें यहां पोस्ट करें)
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महोदय / महोदया, कृपया जाली नोट पकड़ने तथा उन्हें जब्त करने से संबंधित 20 जुलाई 2017 तक जारी अनुदेशों को समेकित करते हुए जारी हमारे 20 जुलाई 2017 के मास्टर परिपत्र डीसीएम (एफएनवीडी) सं.जी - 4/16.01.05/2017-18 का संदर्भ लें । मास्टर परिपत्र को अब तक जारी सभी निर्देशों को शामिल करते हुए अद्यतन किया गया हैं और इसे बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध किया गया है। इस मास्टर परिपत्र में उपरोक्त विषय पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों को समेकित किया गया हैं, जो इस परिपत्र की तारीख पर प्रचलन में हैं । (मानस रंजन महान्ति) जाली नोट निम्नलिखित द्वारा जब्त किये जा सकते हैं; काउंटर पर प्रस्तुत किए गए बैंक नोटों को प्रामाणिकता के लिए मशीनों के द्वारा परीक्षण किया जाना चाहिए । इसी प्रकार से, बैक ऑफिस / मुद्रा तिजोरी में थोक निविदा के माध्यम से सीधे ही प्राप्त बैंक नोट, मशीनों के माध्यम से प्रमाणीकृत किए जाने चाहिए । काउंटर पर प्राप्त नोटों में या बैक ऑफिस / मुद्रा तिजोरी में पहचान किए गए जाली नोटों के लिए, ग्राहक के खाते में कोई क्रेडिट नहीं दिया जाना है । किसी भी स्थिति में, जाली नोटों को प्रस्तुतकर्ता को लौटाया नहीं जाना चाहिए अथवा बैंक शाखाओं/ कोषागारों द्वारा नष्ट नहीं किया जाना चाहिये। बैंकों के स्तर पर पता लगाये गये जाली नोटों की जब्ती में असफलता को, संबंधित बैंक की जाली नोटों के संचलन में इरादतन संलिप्तता मानी जाएगी और उन पर दण्ड लगाया जायेगा । जाली नोट के रुप में वर्गीकृत नोटों पर निर्धारित (अनुबंध I के अनुसार) "जाली बैंकनोट" स्टैम्प से चिन्हित कर उन्हें जब्त किया जाये । इस प्रकार से जब्त प्रत्येक नोट के ब्यौरे एक अलग रजिस्टर में प्रमाणीकरण के साथ अभिलिखित किये जाएंगे । जब बैंक शाखा के काउंटर / बैक ऑफिस तथा मुद्रा तिजोरी अथवा कोषागार में प्रस्तुत बैंकनोट जाली पाये जाते हैं, तब उक्त पैरा 3 के अनुसार नोट पर स्टैम्प लगाने के बाद निविदाकर्ता को निर्धारित फार्म (अनुबंध II) के अनुसार प्राप्ति सूचना रसीद जारी की जानी चाहिए । उक्त रसीद चल रहे सिरीयल नंबरों में, खजांची और जमाकर्ता द्वारा प्रमाणित होनी चाहिए । इस आशय का नोटिस आम जनता की जानकारी के लिए कार्यालयों शाखाओं मे विशेष रूप से प्रदर्शित किया जाना चाहिए । जहां निविदाकर्ता संबंधित रसीद पर प्रतिहस्ताक्षर करने के लिए इच्छुक नहीं है, ऐसे मामलों में भी प्राप्ति सूचना रसीद जारी की जानी है । पुलिस को जाली नोट का पता लगने की घटना की रिपोर्टिग करते समय, निम्न प्रक्रिया का अनुपालन किया जाए : एक ही लेन-देन में 4 पीसेस तक जाली नोटों की पहचान के मामलों में, नोडल अधिकारी द्वारा पुलिस प्राधिकरण या नोडल पुलिस स्टेशन को माह की समाप्ति पर संदिग्ध जाली नोटों के साथ निर्धारित फार्मेट में एक समेकित रिपोर्ट (संलग्नक III के अनुसार) भेजी जाए। एक ही लेन-देन में 5 या उससे अधिक पीसेस तक जाली नोटों की पहचान के मामलों में, नोडल बैंक अधिकारी द्वारा तुरंत वे जाली नोट, निर्धारित फार्मेट में (संलग्नक IV) एफआईआर दर्ज करते हुए जांच-पड़ताल के लिए स्थानीय पुलिस प्राधिकरण या नोडल पुलिस स्टेशन को अग्रेषित किये जाएं। मासिक समेकित रिपोर्ट/एफआईआर की एक प्रति बैंक के प्रधान कार्यालय में बनाये गये जाली नोट सतर्कता कक्ष को (केवल बैंकों के मामले में) भेजी जाएगी और कोषागार के मामले में, भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित निर्गम कार्यालय को भेजी जाये । पुलिस प्राधिकारियों से उनको मासिक समेकित रिपोर्ट और एफआईआर द्वारा प्रेषित जाली नोटों की प्राप्ति सूचना प्राप्त की जाये । यदि पुलिस को नकली बैंक नोट बीमाकृत डाक द्वारा भेजे गए हैं तो उनकी प्राप्ति सूचना अनिवार्य रूप से ली जाये और उन्हें रिकार्ड में रखा जाए । पुलिस प्राधिकरण से प्राप्ति सूचना प्राप्त करने के लिए उचित अनुवर्ती कार्रवाई आवश्यक है । यदि मासिक समेकित रिपोर्टों को प्राप्त करने/ एफआईआर दर्ज करने में पुलिस की अनिच्छा के कारण कार्यालयों / बैंक शाखाओं को किसी भी कठिनाई का सामना करना पड रहा है तो उसका निपटान जाली बैंकनोटों की जांच से संबंधित मामलों की समन्वय हेतु नामित पुलिस प्राधिकरण के नोडल अधिकारी की सलाह से किया जाये । नोडल पुलिस स्टेशन की सूची भारतीय रिजर्व बैंक के संबन्धित कार्यालय से प्राप्त की जा सकती हैं । जाली नोटों के परिचालन को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों की आसानी से पहचान करने के क्रम में, बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे बैंकिंग हॉल / क्षेत्र तथा काउंटर को सीसीटीवी की निगरानी तथा रिकॉर्डिंग में रखें तथा रिकॉर्डिंग को संरक्षित रखें । बैंकों को ऐसी पहचान के स्वरुप/प्रवृत्तियों पर निगरानी रखनी चाहिए और संदिग्ध स्वरुप/प्रवृत्तियों को तत्काल भारतीय रिजर्व बैंक/पुलिस प्राधिकारी के ध्यान में लाना चाहिए। जाली नोटों की पहचान और उक्त की सूचना पुलिस, आरबीआई आदि को देने में बैंकों द्वारा की गई प्रगति और उससे संबंधित समस्याओं पर विभिन्न राज्य स्तरीय समितियाँ अर्थात राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी), करेंसी प्रबंधन पर स्थायी समिति (एससीसीएम) राज्य स्तरीय सुरक्षा समिति (एसएलएससी), आदि की बैठकों में नियमित रूप से विचार - विमर्श किया जाए । बैंक-शाखाओं/कोषागारों में पकड़े गए जाली भारतीय बैंक नोटों के आंकड़े, नीचे दिये गये पैरा- 10 के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक, निर्गम कार्यालय को प्रेषित की जानेवाली मासिक विवरणियों में शामिल किये जायें। भारतीय दंड संहिता में "जाली बनाना" की परिभाषा में विदेशी सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी करेंसी नोट भी शामिल हैं। पुलिस और सरकारी एजेंसियों से अभिमत /राय देने हेतु प्राप्त संदिग्ध विदेशी करेंसी नोटों के मामलों में, उन्हें यह सूचित किया जाये कि वे उक्त नोटों को नई दिल्ली स्थित सीबीआई की इंटरपोल विंग के पास उनसे पूर्व परामर्श के बाद भेज दें। बैंकों को अपना नकद प्रबंधन कुछ इस तरह पुनर्निर्धारित करना चाहिये जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि ₹ 100 और उससे अधिक मूल्य वर्ग की नकद प्राप्तियों को उन नोटों की मशीन प्रसंस्करण द्वारा प्रामाणिकता की जांच के बिना पुनः संचलन में नहीं डाला जाए। ये अनुदेश दैनिक नकद प्राप्ति के परिमाण को ध्यान में लिए बगैर सभी शाखाओं पर लागू होंगे। इस अनुदेश के किसी भी गैर अनुपालन को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों का उल्लंघन माना जाएगा। एटीएम मशीनों से जाली नोटों की प्राप्ति संबंधित शिकायतों का निपटान करने और जाली नोटों के संचलन पर रोक लगाने के उद्देश्य से यह अत्यावश्यक है कि एटीएम मशीनों में नोटों को भरने से पूर्व पर्याप्त सुरक्षा उपायों/ नियंत्रणों को लागू किया जाये । एटीएम मशीनों के माध्यम से जाली नोटों का वितरण, संबंधित बैंक द्वारा जाली नोटों के संचलन के लिये किया गया एक प्रयास माना जायेगा । मुद्रा तिजोरी विप्रेषणों /शेषों में जाली नोटों का पाये जाने को भी संबंधित मुद्रा तिजोरी द्वारा जान -बूझकर जाली नोटों के संचलन के लिये किया गया प्रयास माना जायेगा जिसके परिणामस्वरूप पुलिस प्राधिकरण द्वारा विशेष तहकीकात और अन्य कार्रवाई जैसे संबंधित मुद्रा तिजोरी के प्रचालनों को स्थगित करना, की जा सकती है । निम्नलिखित परिस्थितियों में जाली नोटों के अनुमानित मूल्य की मात्रा तक हानि की वसूली के अलावा, जाली नोटों के अनुमानित मूल्य का 100% दंड लगाया जाएगा : 20 जून 2012 के परिपत्र सं.डीपीएसएस.केंका.पीडी.2298/02.10.002/2011-12 के अनुसार व्हाइट लेबल एटीएम मे लोड की गई नकदी की गुणवत्ता तथा उसकी असलियत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी प्रायोजक बैंक की होगी। 30 दिसंबर, 2016 के परिपत्र सं.डीपीएसएस.केंका.पीडी.1621/02.10.002/2016-17 के अनुसार रिटेल आउटलेट से नकदी प्राप्त की जाती है तो व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर एटीएम द्वारा वितरित किए गए मुद्रा नोटों की गुणवत्ता तथा प्रामाणिकता के लिए स्वयं ही पूर्णतः उत्तरदायी होगा । प्रत्येक बैंक जिला-वार नोडल अधिकारी नियुक्त करें और उसकी जानकारी भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय और पुलिस प्राधिकरण को दें । पैरा 5 में यथाउल्लिखित, जाली नोट के पहचान की रिपोर्टिंग के मामले, नोडल बैंक अधिकारी के माध्यम से आने चाहिए। नोडल बैंक अधिकारी जाली नोट पाये जाने से संबंधित सभी कार्यकलापों के लिए एक संपर्क अधिकारी के रूप में भी कार्य करेगा। जाली नोटों के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों को बैंक की सभी शाखाओं में प्रचारित करना । इन अनुदेशों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखना । वर्तमान अनुदेशों के अनुसार जाली नोटों की पहचान से संबंधित आंकड़े को समेकित करना और भारतीय रिज़र्व बैंक, एफआईयू - आईएनडी तथा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) को प्रेषित करना । पुलिस प्राधिकरण और निर्दिष्ट नोडल अधिकारी के साथ जाली नोटों के मामलों से संबंधित अनुवर्ती कार्रवाई करना। इस तरह से संकलित जानकारी को बैंको के केंद्रीय सर्तकता अधिकारी से साझा करना तथा उन्हें काउंटरों पर स्वीकृत /जारी किये गये जाली नोटों से संबंधित मामलों की रिपोर्ट देना । ऐसी मुद्रा तिजोरियों; जहाँ पर दोषपूर्ण/जाली नोट आदि का पता लगा है, की आवधिक आकस्मिक जाँच करना । सभी मुद्रा तिजोरियों/ बैक आफिस में उपयुक्त क्षमता वाली नोट सॉर्टिग मशीनों के प्रचालन को सुनिश्चित करना और जाली नोटों के पता लगाने पर सावधानी पूर्वक निगरानी करना और उक्त का उचित रूप से रिकार्ड रखना । यह सुनिश्चित करना कि केवल छांटे गये और मशीनों से जांचे गये नोट ही एटीएम मशीनों में डाले जायें/ काउंटरों से जारी किये जायें और नोटों के प्रसंस्करण तथा पारगमन के समय आकस्मिक जांच सहित पर्याप्त सुरक्षा उपायों की व्यवस्था । जाली नोट सतर्कता कक्ष उपरोक्त पहलुओं को शामिल करते हुए तिमाही आधार पर, संबंधित तिमाही की समाप्ति के पंद्रह दिनों के भीतर, मुख्य महाप्रबंधक, मुद्रा प्रबंध विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, अमर भवन, चौथी मंजिल, सर पी.एम.रोड, फोर्ट, मुंबई - 400001 तथा आरबीआई के क्षेत्रीय कार्यालय के निर्गम विभाग जिसके कार्य क्षेत्र के अंतर्गत जाली नोट सतर्कता कक्ष कार्यरत हैं, को वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट प्रेषित करें । उपर्युक्त रिपोर्ट ई-मेल द्वारा भेजी जाये। हार्ड प्रति भेजने की आवश्यकता नहीं है । जाली नोट सतर्कता कक्षों के पते को अद्यतन करने के उद्देश्य से बैंक प्रत्येक वर्ष में, 1 जुलाई को अनुसार निर्धारित प्रोफार्मा (अनुबंध V) में ई- मेल से पते आदि आरबीआई को प्रस्तुत करें । हार्ड प्रति भेजने की आवश्यकता नहीं है । जाली नोटों की पहचान सुगम बनाने के लिए सभी बैंक शाखाओं /निर्दिष्ट बैक आफिसों को, अल्ट्रा-वायलेट लैम्प / अन्य उपयुक्त नोट सॉर्टिंग / पहचान वाली मशीनों से सुसज्जित होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, सभी मुद्रा तिजोरी शाखाओं में सत्यापन, प्रसंस्करण और छँटनी करने वाली मशीनों की व्यवस्था होनी चाहिये और मशीनों का इष्टतम स्तर तक उपयोग होना चाहिये । इन मशीनों को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मई 2010 में निर्धारित "नोट सत्यापन और फिटनेस सार्टिंग मानदंडो" के अनुरूप होना आवश्यक हैं । बैंक, पहचान किये गये जाली नोटों सहित नोट छँटनी मशीनों के माध्यम से प्रसंस्कृत नोटों का दैनिक रिकार्ड रखेंगे । बैंकों को जनता के उपयोग हेतु, काउंटर पर नोट गिनने वाली कम से कम एक मशीन (जिसमें दोनों तरफ संख्या प्रदर्शित करने की सुविधा हो), लगाने पर भी विचार करना चाहिए । बैंक की सभी शाखाओं द्वारा पता लगाये गये जाली नोटों के आंकड़े मासिक आधार पर निर्धारित प्रारूप में सूचित करना आवश्यक है । माह के दौरान बैंक शाखाओं में पता लगाये गये जाली नोटों के ब्योरे दर्शानेवाला विवरण (अनुबंध VI) संकलित किया जाए और संबंधित रिज़र्व बैंक के निर्गम कार्यालय को इस प्रकार प्रेषित किया जाये कि वह आगामी माह की 7 तारीख तक उन्हें प्राप्त हो जाये । धनशोधन निवारण नियम, 2005 के नियम 3 के तहत, बैंकों के प्रधान अधिकारियों को भी ऐसे नकदी लेन देन, जहां जाली नोटों को असली नोटों के रूप में प्रयोग में लाया गया है, की सूचना, सात कार्यदिवस के अंदर, निदेशक, एफआईयू आईएनडी, वित्तीय खुफिया ईकाई-भारत, 6वीं मंजिल, होटल सम्राट, चाणक्यपुरी, नई दिल्ली-110021 को, FINnet पोर्टल पर सूचना अपलोड करके करने की आवश्यकता है। इसी प्रकार, एफआईसीएन की पहचान के आंकड़े नैशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो की बेबसाईट के वेब आधारित सॉफ्टवेयर पर भी अपलोड किए जाएँ। माह के दौरान किसी जाली नोट की पहचान नहीं किये जाने की स्थिति में 'निरंक' विवरणी भेजी जाये । पुलिस प्राधिकरण / न्यायालयों से पुनः प्राप्त सभी जाली नोटों को बैंक की अभिरक्षा में सावधानीपूर्वक परिरक्षित किया जाये और संबंधित शाखा द्वारा उक्त का रिकार्ड रखा जाये। बैंक के जाली नोट सतर्कता कक्ष को भी ऐसे जाली नोटों का शाखावार समेकित रिकार्ड रखना होगा । इन जाली नोटों का सत्यापन संबंधित शाखा के प्रभारी अधिकारी द्वारा छमाही (31 मार्च और 30 सितंबर) आधार पर किया जाना चाहिये । पुलिस प्राधिकरण से प्राप्ति की तिथि से इन जाली नोटों का तीन वर्ष की अवधि के लिए परिरक्षण किया जाना चाहिये। इसके पश्चात पूर्ण ब्योरे के साथ इन जाली नोटों को भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित निर्गम कार्यालय को भेजा जाये । जाली नोट जो न्यायालय में मुकदमेबाजी के अधीन हैं उन्हें न्यायालय निर्णय के बाद संबंधित शाखा के पास तीन वर्ष तक रखा जाए । यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि बैंकों और कोषागारों / उप- कोषागारों में नकदी व्यवहार करनेवाला स्टाफ, बैंकनोटों की सुरक्षा विशेषताओं से पूरी तरह परिचित हो । जाली नोट की पहचान के संबंध में बैंक -शाखा के कर्मचारियों को पर्याप्त प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से अनुबंध - VII में दर्शाये गये बैंक नोटों की सुरक्षा विशेषताएँ तथा डिज़ाइन सभी बैंकों / कोषागारों को इस निर्देश के साथ भेजे गये हैं कि वे इन्हें आम जनता की जानकारी के लिए प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित करें । शाखाओं के स्तर पर प्रदर्शित करने के लिए 2005-06 श्रृंखला के बैंकनोटों के पोस्टरों की आपूर्ति की गयी है। रू. 2000/-, रू.500/-, रू. 200/- तथा रू. 50/- के नए डिजाईन के बैंक नोट की सुरक्षा विशेषताओं का विवरण https://www.paisaboltahai.rbi.org.in/ लिंक पर उपलब्ध है। अन्य बैंक नोटों का विवरण भी उपरोक्त लिंक के "अपने नोट को जानिए" के तहत उपलब्ध है। प्राप्ति के समय ही, जाली नोटों का पता लगाने में स्टाफ सदस्यों को सक्षम बनाने हेतु, नियंत्रक कार्यालयों /प्रशिक्षण केंद्रों को बैंक नोटों की सुरक्षा विशेषताओं पर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करने चाहियें । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नकदी का लेन-देन करनेवाले सभी बैंक कर्मी, वास्तविक भारतीय बैंक नोटों की विशेषताओं के संबंध में प्रशिक्षित हैं । भारतीय रिज़र्व बैंक भी, संकाय सहायता और प्रशिक्षण सामग्री प्रदान करेगा।
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तारीखे गुंजरात क्षेत्र में था तो यह अतिम युद्ध है अन्यथा वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो बिना युद्ध किये चला जाय। जनत आशियानी ने आदेश दिया कि, "लाशी के बीच में ढूंढा जाय, सम्भवत कोई व्यक्ति जीवित मिल जाय जिससे इस बात की जांच की जा सके।" एक व्यक्ति जीवित मिला। उससे पूछा गया कि, "क्या एमादुलमुल्य स्वयं युद्ध के समय था ?" उसने कहा कि, "हाँ ।" खुदावन्द खा ने निवेदन किया कि, "यह अतिम युद्ध था । अब किसा में शाही सेना से युद्ध करने का सामर्थ्य नही ।" हुमायूँ का माडू की ओर प्रस्थान क्योंकि अहमदाबाद अस्करी मीज़ को प्रदान हो चुका था अत उसने निवेदन किया कि, "यदि हज़रत जहाँबानी सीधे अहमदाबाद में प्रविष्ट हो जायेंगे तो नगर नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा।" इस कारण उन्होंने अस्वरी मर्ज़ा को अहमदाबाद जाने की अनुमति दे दी और स्वय अहमदाबाद के बाहर बतवा होते हुए सरखीज में पडाव किया। तीसरे दिन दरबार के विश्वासपात्री सहित (२९) उन्होने अहमदाबाद की सैर की यादगार नासिर मोर्ज़ा को पटन नामक वस्वा प्रदान कर दिया, कासिम हुसेन खा का भरौंच और हिन्दू वेग को ५-६ हजार अश्वारोहियो सहित वुमन हेतु नियुक्त कर दिया कि जहाँ कहीं कोई विद्रोह हो वह सहायता हेतु पहुँच जाये और दानुओ को नष्ट करने का प्रयत्न करे । वे स्वय सूरत, जूनागढ तथा बन्दरदीव की ओर रवाना हुए। मार्ग के मध्य से लौटकर चाम्पानीर तथा अहमदाबाद को अपने वायी ओर करते हुए बुरहानपुर को पार किया । वहाँ से मन्दू पहुँचे। मुगुलो को गुजरात में पराजय जब इस प्रकार ३-४ मास व्यतीत हो गये तो सुल्तान के अमीरी में से खाने जहाँ शोराजी ने नौसारी में एक दृढ स्थान बनाकर सेना एकत्र करना प्रारम्भ कर दिया। वहां से निकल कर उसने कासिम हुसेन खा के सम्बन्ध अब्दुल्लाह साऊजवेव से युद्ध किया और उसे नौसारी से निकाल दिया । सैयिद इस्हाक न पहुँच कर खम्वायत पर अधिकार जमा लिया और वे दोनो ओर सेनाए एकत्र करने लगे । रूमी ना, जिसके अधिकार में मूरत नामक बन्दरगाह था, खाने जहाँ से मिल गया और समुद्र के मार्ग से युद्ध हेतु भरौच के विरुद्ध जहाज भेजे । खाने जहाँ खुशकी वे मार्ग से चला । कासिम हुसेन खा मुवावला न कर सका और भरोंच से भागवर चाम्पानीर पहुँच गया। उन लोगोने भरौंच पर अधिकार जमा लिया और सैयिद लाद जियू ने, जो बरोदा के आमपास था, उस नगर को जो दौलताबाद पहलाता है, अपने अधिकार में कर लिया। दरियाँ खा तथा मुहाफिजुल मुल्य रायसेन वे विले में थे । यहाँ से वे पटन की ओर रवाना हुए। अस्करी मोर्जा ने यादगार मोर्जा के पास आदमी भेजे विक्योकि गुजराती लोग पटन के समीप पहुँच गये है अत यह उचित होगा कि तुम अहमदाबाद की ओर रवाना हा ताकि हम लोग मिलकर युद्ध करें । यादगार नासिर मोर्जा ने उत्तर लिखा कि, "मै तुमसे महायता नहीं चाहता। मुझमें इतनी शक्ति है कि मै इनसे युद्ध पर मवें । यदि मै अहमदाबाद आता हूँ तो पटन हाथ से निकल जायगा। मुझसे अहमदाबाद आने का आग्रह न करो।" मीज अस्करी ने उसके बुलाने पर जोर दिया और आग्रह किया कि, "यदि तू न आयेगा तो पादशाह का विरोधी समझा जायेगा।" वह विवश होकर पटन का छोडनर अहमदाबाद पहुँचा। जब भरोच, सम्वायत, पटन तथा वरीदा गुजरातियों के हाथ (३०) में आ गये तो उन्होंने सभी स्थानों से मुल्तान बहादुर के पास बन्दर दीव में पत्र भेजे कि, मुगुल कालीन भारत - हुमायं "हम लोगो ने पादशाह के प्रताप से इतने थानों को मुगलों से छीन लिया है। समस्त मुगुल अहमदाबाद में एकत्र होगये है। यदि विजयी पताकाएँ प्रस्थान करें तो हम थोडे से परिश्रम से अहमदाबाद से भी उन्हें निकाल देंगे।" सुल्तान बहादुर, जोकि इस अवसर की खोज में था, इसको बहुत बडी देन समझकर तत्काल अहमदाबाद की थोर रवाना हो गया। चारों ओर से सेनायें एकत्र होने लगी । वह सरखोज पहुँचा । उसको सेना में नित्य प्रतिवृद्धि होने लगी । अस्करी मीर्जा, यादगार नासिर मोर्जा, कासिम हुसेन सा एव हिन्दूबेग ने, अहमदाबाद के किले से निकलकर असावल की ओर, जो कि सरखीज के समक्ष है, सुल्तान बहादुर के मुकाबले में पडाव कर दिया । ३-४ दिन उपरान्त वे अकारण तथा विना युद्ध किय हुए घाम्पानीर की ओर चल खडे हुए । सुल्तान ने पीछा किया । संयिद मुबारक तथा उलुग खा को हिरावल नियुक्त किया । मीर्जाओ की सेनाओं के पोछे के भाग मे नासिर मोर्जा था। उसने पलटकर महमूदाबाद में युद्ध किया । यादगार (नासिर ) मोर्ज़ा घायल हो गया। वह पुन लौटकर मोर्चाआ के पास पहुँचा। क्यों कि वर्षा ऋतु आ गई थीअत सुल्तान ने महमूदाबाद के महलों में पडाव किया । मोर्जा लोग वडी तेजी से यात्रा कर रहे थे । नाले तया नदियों में बाढ आ गई थी। कोलियो तथा वासियों ने प्रत्येक दिशा से लूटमार प्रारम्भ वर दी थी। पाडे तथा खेमें वर्षा की अधिकता के कारण नष्ट हो गये और कुछ जल में डूब गये । सक्षेप में, वे अत्यधिक कठिनाई झेलते एव बडी अव्यवस्थित दशा में एमादुलमुल्क के ताल व पास, जो चाम्पानीर के किले के नीचे है, पहुँचे । उनके पास बहुत कम संख्या में में थे। यादगार नासिर मोर्ज़ा ने फकोर के खेमे में पड़ाव किया । तरदी बॅग खा किले के नीचे उतरा और वह प्रत्येक मोजां की सेवा में उपस्थित हुआ और प्रत्येक को घोड़े भजे तथा आतिथ्य किया। दूसरे दिन मोर्जा लोग एकत्र हुए और उन्होंने हिन्दू बेग से परामर्श किया कि हम जनत आशियानी को क्या मुह दिखायेंगे । मन्दू ६-७ दिन को यात्रा की दूरी पर है अत यह उचित होगा कि किले के ऊपर (३१) जाखजाना है उसे तरदो बग से ले लें और तैयारी करके पुन सुल्तान से युद्ध करें ।" मीर्जाओ म से प्रत्येक ने अपने वकील तरदी बंग खा के पास भेजे और कहलाया कि, "क्योकि सेना की दशा बड़ी ख़राब हो गई है अत यह आवश्यक है कि हम लश्कर को आश्रय प्रदान करें और पुन सुल्तान बहादुर पर आक्रमण करे । किले के ऊपर अत्यधिक खजाना है। थोडा सा हमें भेज दो ताकि तैयारी करके वापस हो ।" तरदो बेग ने स्वीकार न किया और उत्तर भेजा कि, "मै विना आदेश के नहीं दे सकता।" इसी बीच में सुल्तान बहादुर महमूदाबाद से आगे बढकर महेन्द्री नदी के तट पर, जो चाम्पानीर से १५ कुरोह पर है, पहुँच गया। दूसरे दिन तरदी बेग खा किले से नीचे उतर कर मोर्खाओं को सेवा में जा रहा था कि उसका एक विश्वासपात्र जो कि मोर्जाओ के पास से आ रहा था, मार्ग में मिल गया। उसने उसके कान में कहा कि, "मोर्ज़ाओं ने तुझे वन्दी बनानवी योजना बना ली है।" तरदी बेगखा के हृदय में आया कि बिना पता लगाये हुए वापस हाना तथा किले के ऊपर पहुँच जाना उचित नही । वहु फकोर के घर में उतर पडा और लोगो को इस आदाय से भेजा कि वे पता लगाकर आयें । अन्त में जब उसे विश्वास हो गया कि यह सत्य है तो वह लौटवर किले के ऊपर पहुँचा और उसने मदेश भेजा कि, "आप लोग यहाँ से मन्द्र चले जायें।" १ लेखक । क्योंकि मोजओ को दशा बडी शोचनीय हो गई थी अत उन्होंने मिलकर निश्चय किया कि अस्करी मोर्जा वादशाह वर्न और हिन्दू वेग उसका वकील । अन्य मोर्ज़ाओ के नाम पर बहुत वडी-वडी विलायते रक्खी गईं । उन्होंने प्रतिज्ञा की तथा वचनबद्ध हुए विन्तु तरदी वेग इस बात का आग्रह करता रहा कि वे शीघ्र मन्द्र चले जाये और इसी उद्देश्य से उसने मोर्ज़ाओ को सेना पर तोप चलाई। वे लोग ५-६ दिन उपरान्त इस आशय से रवाना हो गये कि घाट करजी से होते हुए आगरे चले जायें और उसे अधिकार में कर ले। सुल्तान बहादुर को ज्ञात हुआ कि मोर्ज़ा लोग चल दिये तो वह भी महेन्द्री नदी से आग बढा । जब तरदी बेग ने सुना कि मुल्तान किले को ओर आ रहा है तो वह जितना खजाना ले जा सकता था उसे लदवाकर किले से नीचे उतरा और पाल के मार्ग से जिधर से ६ दिन में मन्दू पहुँचा जा सकता है, जात आशियानी को सेवा में रवाना हो गया। सुल्तान बहादुर चाम्पानीर पहुँचा। मौलाना महमूद लारी तथा (३२) अन्य मुगुली को, जो रह गये थे, उनकी श्रेणी के अनुसार आश्रय प्रदान किया तथा सरोपा, घोडे एव खर्च देकर उन्हें वहाँ से चले जाने की अनुमति दे दी। जितना खज़ाना शेप रह गया था उसे अपने अधिकार में वर लिया। कुछ लोगो का यह विश्वास है कि कुछ स्थानो का खजाना अब भी उसी प्रकार सुरक्षित है। हुमायं का आगरा पहुँचना तरदो वेग खा ने जन्नत आशियानो को मीर्जाओं की योजना तथा जो कुछ उन्होंने निश्चय किया था, उसको सूचना दी। वे तत्वाल मन्दू से रवाना होकर हिन्दुस्तान पहुँचे ताकि मीजओ के पहुँचने एवं उनके विद्रोह करने के पूर्व वे आगरे पहुँच जाय और वहाँ उपद्रव की अग्नि को न भडक्ने दें। सयोग से करजी नामक घाट पर मोर्जाओ की जनत आशियानी से भेट हो गई। वे उनकी सेवा में उपस्थित हुए और कोई भी सफलता न प्राप्त करके आगरे की ओर उनके साथ-साथ रवाना हुए। मुहम्मद जमान द्वारा गुजरात पर अधिकार जमाने का प्रयत्न (३६) मुहम्मद ज़मान मोर्ज़ा को सुल्तान बहादुर ने मुगुलो के प्रभुत्व के समय इस आशय से हिन्दुस्तान भेज दिया था कि वह समस्त राज्य में विघ्न डाले। वह लाहौर तक पहुँचवर बहुत बडे उपद्रव का कारण बना । जब जनत आशियानी आगरे लौट गये तो वह पुन अहमदाबाद पहुँचा विन्तु इसी बोच में उसे सुल्तान बहादुर की हत्या के समाचार प्राप्त हुए । वह मार्ग से शीघ्रातिशोघ्र इस आशय मे बन्दरदीव पहुँचा कि फिरगियो से सुल्तान बहादुर के खून का बदला ले। वह इस भेस में सुल्तान बहादुर को माता के समक्ष उपस्थित हुआ। वह काले वस्त्र धारण किये हुए था और उसको सेना के उच्च पदाधिकारी भी वाले वस्त्र पहिने हुए थे। सुल्तान बहादुर की माता ने तीन सौ सरोग मुहम्मद जमान मोर्जा हेतु भेजे और उसे उस नीले वस्त्र से निकाल कर विदा घर दिया। वह दीव को ओर रवाना हुआ। खजाना उसके पीछे-पीछे था । जब खजाना पहुँच गया तो उसने सब पर अधिकार कर लिया। उसका उद्देश्य यही था कि खजाना अधिकार में १ सुल्तान बहादुर की मृत्यु के विवरण का अनुवाद नहीं किया गया । मुगुल कालीन भारत - हुमायं वरले । यह प्रसिद्ध है वि सात सौ सोने से भरे हुए सन्दूक थे । उसने हब्शी तथा तु दासी को, जो खजाने को रक्षा हेतु नियुक्त थे, सबही को प्रोत्साहन दिया। मुगुल लोग उदाहरणार्थ गजन्फर बेग तथा अन्य लोग सब के सब मुहम्मद जमान मोर्जा की सेवा में उपस्थित हुए। उसके पास १०-१२ हजार उत्तम अश्वारोही एकत्र हो गय । खजाने की धन-सम्पत्ति सबवाबांट दी गई। क्योंकि वहु विलासप्रिय व्यक्ति था अत वन्दरदीव के आसपास भोगविलास में व्यस्त हो गया । नाना प्रकार के भोजन तथा पेय एकत्र किये जाते और वह उनसे लाभान्वित होता । उसके हृदय में आया कि गुजरात की सल्तनत पर अधिकार जमा ले। यदि वह उस अवसर से लाभ उठाकर शोघ्रातिशीघ्र अहमदाबाद चला जाता और राजधानी पर अधिकार जमा लेता तो गुजरात वे राज्य पर भी अधिकार जमा लेता किन्तु भग, अफीम, मंदिरा में ग्रस्त रहने के कारण उसने फिरगिया वो हजारी, लाखो तथा करोडा इस आशय से घूम में दे दिये कि वेत्रवार के दिन उसके नाम का सुखा पड़वाने को अनुमति दे । इतने अधिक जाने तथा सेना के बावजूद वह कोई भी सफलता ने प्राप्त वर सका। यदि वह ऐसी सेना को लेकर शोघ्रातिशोध अहमदाबाद चला जाता तो गुजरात वाले (३७) तैयार न हो सकते थे और सल्तनत उसे प्राप्त हो जाती विन्तु यह भाग्य की बात है जिसे भी प्राप्त हो जाय जब ( गुजरात के) अमीरी को, जो अहमदाबाद में थे, यह समाचार प्राप्त हुए कि उसने बन्दरदीव में अपने नाम का खुबा पढवा दिया है और खजाने तथा सेना पर अधिकार जमा लिया है तो उन्होंने निश्चय किया वि जन वह अहमदावाद की आर रवाना हो तो वे नगर को खाली वर दे और प्रत्येक किसी न किमी दिशा को चला जाय एवं विश्वस्त लोग मुहम्मद जमान मोर्जा से भेंट करें। इसी बीच में एमादुलमुल्ल, जिसने प्रारम्भ में अस्करी भीर्जा से युद्ध किया था, दरवार में उपस्थित हुआ और इरितयार सा तथा अफजल वेग से, जो कि सुल्तान के प्रतिष्ठित वकील थे, कहा कि, "आप लोग राज्य का हित विस बात में समझते है ?" जब उसने उन लोगो के साहम मे क्मी देगी तो कहा कि, "आप लोग वकील है, मैं दास हूँ। जिस प्रकार में सुल्तान का दाम या उसी प्रकार आप लोगो का दाम बनने के लिए कटिवद्ध हूँ । इस दरिद्र मुगुल वे समक्ष सिर झुकाना एवं उसे सल्तनत प्रदान करना मर्यादा के विरुद्ध है। गुजरात के सुल्तानी के दासो में से मं जोवित हूँ। आप लोग मुहम्मद जमान मीर्जा के समक्ष, जा कि हमार पादशाह का सेवक था, अपने सिर भूमि पर रक्खें, यह वडी लज्जा की बात है।" इन लोगों ने उत्तर दिया कि, "मलिक् तू जानता है कि गुजरातियों को क्या दशा हो गई है ? उनमें कोई साहस नहीं रहा है। वे निरन्तर कष्टों का सामना करते रह है। हमारा सुल्तान शहीद हो गया है। खजाने मुहम्मद जमान वे हाथ में पहुँच चुके हूँ। अब क्या हो सकता है ? इतने गुजराती वहाँ से प्राप्त हो सकते हैं जो १०-१२ १०- १२ हजार मुगुलो का, जो कि मुफ्त के खजाने से समृद्ध हो गये है, मुचावला कर सकें ? " उमने उत्तर दिया "कि आप लोग साहस से काम ले । अहमदाबाद नगर में रहे। मुझे नियुक्त करके से पूर्ण अधिकार प्रदान कर दें और राज्य के उत्तराधिकारी की ओर से वकालत का खिलअत एव सरोपा मुझे प्रदान कर दे। मैं पादशाही कूरको अभिवादन करके प्रस्थान करूंगा। यदि मै मुहम्मद जमान मोर्जा बोदड न दे सकूँगा तो में अपने आप को गुजरात के वादशाही का नमकहराम समभूंगा । मुझे विश्वास है कि यदि में उससे युद्ध कर सका तो उसे बन्दी बना लाऊँगा। यदि वह गुजरात के बाहर चला गया तो विना युद्ध किये ही हमारा उद्देश्य पूरा हो जायेगा ।" इन वकीलो ने उसके साहस एवं पौरुष को देखकर उसको यह शर्तें स्वीकार कर ली कि वह सेना को जो (३८) जागोर प्रदान करेगा वह मान्य होगी। उस समय उसके पास ९ अश्वारोही थे । यह नगर से निकलकर नदी के उस पार उस्मानपुर में ठहरा । जागीर प्रदान करने तथा लश्कर एक्त्र करने की घोषणा करने सेना एकत्र करने में व्यस्त हो गया। जो कोई तीन घोडे ले आता और चेहरे लिखवाता तो उसे एक लाख तन्के जागीर में दे दिये जाते। यहाँ तक कि एक मास में लगभग ४० हज़ार अश्वारा ही तैयार हो गये । मुहम्मद जमान मोर्खा का पलायन जब एमादुलमुल्क ने अपनी सेना की सख्या ४० हजार से अधिक वर लो तो मुहम्मद जमान के विरुद्ध रवाना हुआ । उसका विचार था कि वह भी उसका मुकाबला करेगा। वह अपने स्थान से न हिला । एमादुलमुल्व का साहस और भी बढ़ गया । वह शोघ्रातिशीघ्र उनके विरुद्ध पहुँचा। गुहम्मद जमान ने खाईं खोद कर अरावा तैयार कर लिया। हुसामुद्दीन मोरक वल्द मीर खलीफा ने, जो वि मुहम्मद जमान मोर्चा का वकील तथा सिपहसालार था, निक्ल कर थोडा बहुत युद्ध किया किन्तु फिर पुन अरावे में प्रविष्ट हो गया। गुजरात की सेना ने अवरोध कर लिया। तीसरे दिन (३९) वे पक्तियाँ मुव्यवस्थित करके अरावी तथा खाई के विरुद्ध रवाना हुए। मुहम्मद जमान खजाना लेकर पोछे से बाह्र निवल गया । मोर हुसामुद्दीन मीरक गुजरात की सेना के साथ युद्ध में व्यस्त था और मुहम्मद जमान कुशलतापूर्वक निकल कर सिंध की ओर रवाना हो गया। एमादुलमुल्क ने विजय प्राप्त कर ली । मोरव, मुहम्मद ज़मान के पास पहुँच गया। मुहम्मद ज़मान कुछ समय तक सिंघ में रहा । अन्ततोगत्वा वह जन्नत आशयको सेवा मे पहुँचा और निष्ठावान् सेवका में सम्मिलित हो गया। वह शेरशाह से युद्ध के समय मारा गया । कुछ लोगो का मत है कि वह नदी में डूब गया किन्तु कुछ लोगों का मत है कि उसकी युद्ध में हत्या हो गई।
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भूतविद्या क्या है? अध्यात्मवाद की बात करें तो ज्यादातर लोगयह भावना कॉल, दिवंगत रिश्तेदारों और प्रसिद्ध लोगों के साथ संचार प्रस्तुत करता है जिन्हें रहस्यमय फिल्मों में देखा गया है। इस लेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि वास्तव में आध्यात्मिकता क्या है, इसकी उत्पत्ति कहां और कब हुई, भविष्य में इसका विकास कैसे हुआ। "अध्यात्मवाद" शब्द लैटिन स्पिरिटस से बना था, जिसका अर्थ है "आत्मा, आत्मा," और इसका अर्थ है धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांत। एक शिक्षण के रूप में आध्यात्मिकताः यह क्या है? अध्यात्मवाद की रहस्यमय शिक्षाओं का सार हो सकता हैइस धारणा के रूप में सूत्रबद्ध करें कि किसी व्यक्ति का आध्यात्मिक अंग शरीर की शारीरिक मृत्यु के बाद भी अपना अस्तित्व बनाए रखता है। इसके अलावा, यह एक नियम के रूप में, एक मध्यस्थ के माध्यम से रहने वाले के साथ संवाद करने में सक्षम है। इस सिद्धांत के अनुयायियों का दावा है कि आत्माएं प्राकृतिक घटनाओं और संपूर्ण भौतिक सार को नियंत्रित करती हैं। बुरी आत्माओं की सहायता से किए जाने वाले जादू के टोटकों को जादू टोना कहा जाता है। बाइबल और, तदनुसार, चर्च स्पष्ट रूप से आध्यात्मिकता के सभी रूपों की निंदा करता है। इस प्रवृत्ति के शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकेइतिहास हजारों साल लंबा है। यह प्राचीन यूनानियों और रोमनों द्वारा अभ्यास किया गया था, अध्यात्मवाद का विचार मध्य युग में जाना जाता था, हालांकि इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। आधुनिक के अध्यात्मवाद का इतिहास 1848 से गिना जाता है। प्राचीन शिक्षाओं को ग्वाड्सविले (न्यूयॉर्क) शहर में पुनर्जीवित किया गया था। इस समय, एक निश्चित जॉन फॉक्स ने एक घर किराए पर लिया, जिसमें जल्द ही अजीब खटखटाहट सुनाई देने लगी, जिसकी उत्पत्ति घर के निवासियों के लिए स्पष्ट नहीं थी। मार्गरेट, फॉक्स की बेटी, वापस दस्तक दी औरकिसी अज्ञात बल के संपर्क में आया। लड़की एक पूरी वर्णमाला बनाने में कामयाब रही, जिसके माध्यम से उसने रहस्यमय मेहमानों के साथ संवाद किया और उन सवालों के जवाब प्राप्त किए जो उसे सबसे ज्यादा चिंतित करते थे। संभवतः, हमारे कई पाठक इस घटना को साधारण की संख्या तक सीमित कर देंगेः एक अतिरंजित लड़की ने अपनी कल्पनाओं और संवेदनाओं को वास्तविकता के रूप में लिया, बस। और हम इससे सहमत हो सकते हैं यदिकुछ समय बाद आध्यात्मिक चमत्कारों ने संयुक्त राज्य अमेरिका और बाद में पूरी दुनिया को पीछे नहीं छोड़ा। एक छोटे से अमेरिकी घर में एक दस्तक "पहुंच" और दूर के देशों, जिनमें से कई ने आध्यात्मवाद के अध्ययन के लिए विशेष संस्थान और स्कूल बनाए थे, जो भविष्य के माध्यमों के प्रशिक्षण में लगे थे। वैसे, दुनिया भर में आज उनकी संख्या एक मिलियन से अधिक है। और ये केवल "प्रमाणित" विशेषज्ञ हैं। 1850 में, अपसामान्य घटना किएक नीचता पर हुआ, एलन कारडेक का अध्ययन करना शुरू किया। उन्हें एक दोस्त की बेटियों द्वारा मदद की गई थी, जिन्होंने माध्यम के रूप में काम किया। अगले मौके पर, उन्हें अपने "मिशन" के बारे में बताया गया, जो यह था कि उन्हें दुनिया की संरचना के बारे में नए विचारों से मानव जाति को परिचित कराना चाहिए। कारडेक को तुरंत अपने चुनाव पर विश्वास था औरअध्यात्मवादी संवादों के आधार पर उनके "पवित्रशास्त्र" को बनाने के बारे में, "आत्माओं" से सवाल पूछना और उत्तर को व्यवस्थित रूप से रिकॉर्ड करना उन्हें ताली या नॉक (एक पारंपरिक कोड का इस्तेमाल किया गया था) या एक आध्यात्मिक बोर्ड के अनुसार तैयार किया गया था। दो साल बाद, कार्दक को विश्वास था कि उसे प्राप्त हुआ थामानव जाति के उद्देश्य और नियति को "ब्रह्मांड का एक नया सिद्धांत" बनाने के लिए आवश्यक मात्रा में जानकारी। इस प्रकार, उनकी पुस्तकें प्रकाशित हुईंः "द बुक ऑफ़ स्पिरिट्स" (1856), "द बुक ऑफ़ मीडियम" (1861), "द गस्पेल इन द इंटरप्रिटेशन ऑफ स्प्रिट्स" (1864), और कुछ अन्य। हालांकि, यह माना जाना चाहिए कि एलन कारडेक के विचारों को पादरी की कठोर आलोचना के अधीन किया गया था, और यहां तक कि आध्यात्मिकता के प्रशंसक भी उनके साथ पूरी तरह से सहमत नहीं थे। अध्यात्मवाद के विचार ने विशेष लोकप्रियता प्राप्त कीअत्यधिक विकसित देश - इंग्लैंड, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली में, मुख्य रूप से उच्च समाज और बुद्धिजीवियों में। इसलिए, यह दावा किया जाता है कि समाज के पिछड़े वर्गों के माध्यमों पर विश्वास किया जाता है। अध्यात्मवादी दावा करते हैं किः - मृत्यु के बाद मानव आत्मा का अस्तित्व बना रहता है, यह अमर है। - एक अनुभवी माध्यम की मदद से कोई भी कर सकता हैमृतक रिश्तेदार या किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की आत्मा को बुलाना सीखें, और उससे संपर्क करें, उससे आवश्यक सलाह, मदद या अपने भविष्य को जानें। - मृतकों पर कोई दैवीय निर्णय नहीं है, सभी लोग, चाहे वे जीवन कैसे भी हों, मृत्यु के बाद आत्मा की अमरता को पा लेंगे। कार्दकोवसोगो आध्यात्म का विचार यही थायह आध्यात्मिक विकास पुनर्जन्म (पुनर्जन्म) के कारण है। सांसारिक मांस में "कपड़े पहने", आत्माओं को शुद्ध किया जाता है और सुधार किया जाता है, इस दुनिया में लौटकर, फिर से सांसारिक परीक्षणों को सहन करता है। एक आत्मा जो पुनर्जन्म के सभी चरणों से गुजरी है, "शुद्ध" बन जाती है और अनन्त जीवन प्राप्त करती है। सांसारिक जीवन में उसके द्वारा अधिग्रहित सब कुछ (कार्देक के अनुसार) नहीं खोया है। कार्देक ने दावा किया कि उन्होंने स्वयं "आत्माओं" की रिपोर्टों के आधार पर इस अवधारणा का गठन किया। अध्यात्मवाद एक प्रकार का धर्म हैअपने अनुयायियों से पूर्ण आज्ञाकारिता की मांग करता है, बदले में अमरता का वादा करता है। यह मूल रूप से यीशु मसीह की शिक्षाओं के विपरीत है। इसलिए, यह तर्क दिया जा सकता है कि अध्यात्मवाद अपने मुख्य सिद्धांतों के साथ मसीह और ईसाई धर्म का खंडन है। इसका श्रेय काले शैतानी दर्शन को दिया जा सकता है। अध्यात्मवाद सत्र कैसा है? इस अनुष्ठान और विशेष की स्पष्ट सादगीशानदारता ने ऐसे सत्रों को उन लोगों के बीच बड़ी लोकप्रियता दिलाई जो अज्ञात में रुचि रखते हैं। अध्यात्मवाद आमतौर पर कई लोगों द्वारा संचालित किया जाता है। वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए, यह आवश्यक है कि प्रतिभागियों में से कोई एक माध्यम हो या कम से कम उपयुक्त योग्यता और इस तरह के सत्र के संचालन में कुछ अनुभव हो। संस्कार रात के बारह बजे शुरू होता है औरसुबह चार बजे तक रहता है। उनके सांसारिक जीवन (उदाहरण के लिए, जन्मदिन या मृत्यु) के दौरान कुछ दिनों के बाद आत्मा की आत्माओं को कॉल करना उचित है। आत्माओं का आह्वान, माध्यमों के अनुसार, पूर्णिमा का पक्षधर है, जो माध्यम की अलौकिक क्षमताओं को बढ़ाता है। सत्र के लिए चयनित मंद कमरा है, के साथमोमबत्तियों और धूप की बहुतायत। परंपरा से, सत्र में भाग लेने वाले खिड़की या दरवाज़े को छोड़ देते हैं, ताकि कुछ भी कमरे में प्रवेश करने से आत्मा को रोक न सके। यह वांछनीय है कि आइटम हैं जो विकसित आत्मा से जुड़े हैंः तस्वीरें, तावीज़, चित्र, मोमबत्तियों के अलावा, धूप, विभिन्न वस्तुओं,मृत व्यक्ति के साथ, अध्यात्मवाद के लिए एक बोर्ड, या Ouija, जिसे बहुत से लोग रहस्यवादी फिल्मों से जानते हैं, आवश्यक है इसमें वर्णमाला के अक्षर, दस प्रथम संख्याएँ और शब्द "हाँ" और "नहीं" हैं। इसके अलावा, इसमें एक तीर है। इसके साथ, आत्माएं सवालों के जवाब देती हैं। इस बोर्ड का आविष्कार इतने समय पहले नहीं हुआ था। पहला ओइजु एक साधारण घर के खेल के रूप में एलिजा बॉन्ड के साथ आया था। लेकिन उस समय मनोगत के लिए एक बहुत ही सामान्य जुनून था। बॉन्ड के साथी ने सुझाव दिया कि तथाकथित टॉकिंग बोर्ड को एक प्राचीन मिस्र के खेल के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिसके साथ पुजारियों ने कथित तौर पर भविष्य की भविष्यवाणी की थी। उसी समय, उसे नाम दिया गया था। "औइजा" मिस्र से "सौभाग्य" के रूप में अनुवादित। खेल पूरी दुनिया में तेजी से फैल गया हैयूरोप को एक "मनोग्रंथ" के रूप में पेटेंट किया गया है, जो लोगों को मन पढ़ने में मदद करता है। थोड़ी देर बाद, फ्रांस के एलन कारडेक ने इसे आत्माओं के साथ संवाद करने के लिए डिज़ाइन किया गया उपकरण बताया। इसलिए, होम एंटरटेनमेंट से, व्हिगी एक आध्यात्मिक उपकरण बन गया है। हालांकि अमेरिकी आविष्कारक और रहस्यमयइसका आविष्कार, प्राचीन मिस्र में पहले से मौजूद कुछ ऐसा था, जहां मृतकों की दुनिया का पंथ बहुत विकसित थाः पुजारी नियमित रूप से इसके साथ "संचार" का अभ्यास करते थे, इस पर नक्काशी वाले जादुई प्रतीकों के साथ एक गोल मेज का उपयोग करते थे। सोने की एक अंगूठी को एक लंबे तार पर लटका दिया गया था। जब आत्मा से एक सवाल पूछा गया, तो अंगूठी लहरा रही थी, जैसा कि माध्यमों ने दावा किया, भगवान सेठ की मदद से, और चित्रलिपि की ओर इशारा किया। पुजारी केवल सेट की बातों की व्याख्या कर सकते थे। यह ज्ञात है कि ऐसे तख्तों को, जो देवताओं के साथ संवाद करने के लिए परोसा जाता था, प्राचीन यूनानियों, चीनी और भारतीयों द्वारा उपयोग किया जाता था। वाडजी की मदद से आधुनिक माध्यम मृत लोगों की आत्माओं के साथ संवाद करते हैं, न कि बुतपरस्त देवताओं के साथ। सबसे लोकप्रिय बोर्ड वाजजी हैं20 वीं शताब्दी की शुरुआत, जब, दो युद्धों के बाद, लोगों ने अपने लाखों प्रियजनों को खो दिया। वे रुचि रखते थे कि मृतक रिश्तेदार की आत्मा को कैसे उकसाया जाए, किसी तरह से उसकी आत्मा के संपर्क में आए। इस समय, बोर्डों का उत्पादन विकसित होता है और बहुत जल्द प्रत्येक माध्यम अपने स्वयं के बोर्ड का अधिग्रहण करता है। यह माना जाता था कि उसके साथ संचार के बाएं निशान पर आत्माओं के साथ संवाद करने के बाद। वडजी किसी भी प्रजाति की लकड़ी से बनाया जाता है। बोर्ड के चारों ओर आसान आंदोलन के लिए एक सूचक अक्सर तीन लकड़ी की गेंदों से सुसज्जित होता है। आधुनिक सत्रों में इसे अक्सर तश्तरी से बदल दिया जाता है। यह एक खाली खिड़की या एक तेज अंत के साथ अक्षरों और संख्याओं को इंगित करता है। एक सत्र में एक माध्यम या कई प्रतिभागी आसानी से तश्तरी की उंगलियों को छू सकते हैं और आत्माओं के हित के सवाल पर सभी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। समय के साथ, वे महसूस करने लगते हैं कि सूचक स्वतंत्र रूप से पत्र से पत्र की ओर बढ़ता है, लगातार उन्हें चिह्नित करता है और इस प्रकार एक उत्तर बनाता है। एक शपथ का संचालन कैसे किया जा रहा है? अनुष्ठान प्रतिभागी मेज पर, चारों ओर बैठते हैंअध्यात्मवाद के लिए बोर्ड फिट बैठता है, मोमबत्तियों की व्यवस्था की जाती है। एक सूचक के रूप में सबसे अधिक बार उपयोग किया जाता है चीनी मिट्टी के बरतन तश्तरी, जो एक तीर खींचता है। फिर इसे एक मोमबत्ती की लौ के ऊपर थोड़ा गर्म किया जाता है और आध्यात्मिक सर्कल के केंद्र में रखा जाता है। आत्माओं ने एक तश्तरी पर उंगलियां रखीं, बमुश्किलउसे छूना। प्रतिभागियों की उंगलियों को अपने निकटतम पड़ोसी की उंगलियों को छूना चाहिए। इस प्रकार, चक्र बंद हो जाता है। इसके बाद, सत्र में भाग लेने वाले लोग आत्मा को बुलाना शुरू करते हैं, इसे नाम से बुलाते हैं, प्रकट होने के लिए। कॉल को लंबे समय तक दोहराया जाता है, कभी-कभी इस प्रक्रिया में एक घंटे से अधिक समय लग सकता है। ऐसा होता है कि एक आध्यात्मिक भावना बिल्कुल नहीं है। तश्तरी की उपस्थिति इसकी उपस्थिति का संकेत देगीः दर्शकों के किसी भी प्रयास के बिना, यह मुड़ना शुरू कर देता है और यहां तक कि तालिका के ऊपर भी बढ़ सकता है। यह आत्मा से सवाल पूछने का समय है। आमतौर पर वे माध्यम से निर्धारित होते हैं। पहला प्रश्न अधिमानतः मोनोसाइलेबिक से पूछा जाता है, जिसका अर्थ है कि उत्तर "हाँ" या "नहीं।" अनुभवी माध्यम चेतावनी देते हैं, अध्यात्मवाद नहीं हैखेल। केवल वे लोग जो हर चीज पर गहराई से विश्वास करते हैं, जो ऐसा कर सकते हैं। आत्माओं बहुत दुष्ट हैंः वे अक्सर कसम खाते हैं और झूठ बोलते हैं। यदि सत्र का संचालन शौकीनों द्वारा किया जाता है, तो सत्यता पर भरोसा करना काफी कठिन है। यह जाँचने के लिए कि क्या आप भाग्य-विद्या से सत्य हैं, उनसे कुछ प्रश्न पूछें, जिनके उत्तर उन लोगों में से किसी एक को अच्छी तरह से ज्ञात हैं। मृत्यु से संबंधित प्रश्न न करें,हमारी सच्चाई के बाहर आत्मा और आत्मा का जीवन। सत्र के अंत से पहले, विनम्रता से भावना का धन्यवाद करें, तश्तरी को पलट दें और तीन बार मेज पर दस्तक दें, आपको सूचित करते हुए कि आप आत्मा को मुक्त कर रहे हैं। सत्र के दौरान निषिद्ध हैः - आत्माओं के साथ दिन में एक घंटे से अधिक संवाद करें, हालांकि अनुष्ठान स्वयं समय में सीमित नहीं है; - एक सत्र में तीन से अधिक आत्माओं को बुलाना; - एक सत्र से पहले बड़ी मात्रा में वसायुक्त और मसालेदार भोजन और शराब लें। अज्ञात के साथ संचार के अधिकांश प्रशंसकबलों का मानना है कि आध्यात्म का आधिपत्य खतरनाक नहीं है। उनका मानना है कि वास्तव में उन लोगों की आत्माएं जिन्हें वे कहते हैं, वे उनके पास हैं और उन्हें भविष्य के बारे में सवालों के विश्वसनीय जवाब देते हैं। लेकिन यह मुख्य गलत धारणाओं में से एक है। आध्यात्मिकता एक खतरनाक व्यवसाय है, और वे इसके लायक नहीं हैं।बेकार जिज्ञासा के लिए अध्ययन। आध्यात्मिक अध्ययन काफी हानिरहित दिखते हैं, लेकिन केवल पहली नज़र में। अक्सर, नहीं उन आत्माओं सत्र प्रतिभागियों के फोन पर आते हैं। कॉल किसे आता है? अगर आप थोड़ा रिसर्च करते हैंयह निर्धारित करने के लिए कि कौन अधिक बार भाग लेने वाले लोगों द्वारा एक नीचता में परेशान है, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह प्रतिभा ए पुश्किन की भावना है। किसी कारण के लिए, हमारे देश में वे आत्माओं कवियों को बहुत पसंद करते हैंः अख्तमातोवा, यसिनिन, वायसोस्की और लेर्मोंटोव में आत्मा की भावनाएं। खैर, इस सूची में अलेक्जेंडर सर्गेइविच अग्रणी हैं। ऐसे सत्रों में हिस्सा लेते लोगआश्वस्त हैं कि वे प्रसिद्ध लोगों या उनके प्रियजनों और प्रिय लोगों की आत्माओं से मिलते हैं। हालाँकि, यह भ्रामक है। चर्च के लोगों का दावा है कि इस तरह के अनुष्ठानों के दौरान, निचली सूक्ष्म परतों में रहने वाले अंधेरे संस्थान लोगों के पास आते हैं। वे भविष्य की भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं हैं। वे हमारी वास्तविकता में दिखाई देते हैं, न कि उन लोगों के आह्वान पर जो एक नीचता के लिए इकट्ठे हुए हैं। अध्यात्मवाद का मुख्य खतरा यही हैकि सत्र के अंत में कमरे में बुलाया इकाई रहेगी। आधिकारिक तौर पर, ऐसे मामले होते हैं जब घर में आध्यात्मिक प्रवचन आयोजित करने के बाद एक पॉलीगेटिस्ट उसमें बस जाता है। अध्यात्मवाद के प्रत्येक सत्र के बाद, एक पुजारी को पवित्र करने और कमरे को साफ करने, पोषित सार को बाहर निकालने के लिए आमंत्रित करना आवश्यक है। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, आध्यात्मिकतावादी पत्रिका के प्रकाशक,और वह उन दिनों के इस लोकप्रिय प्रकाशन के प्रधान संपादक हैं, वी। पी। ब्यकोव, जो बाद में अध्यात्म से मोहभंग हो गए, उन्होंने कई मामलों का वर्णन किया जिसमें अन्य शक्तिशाली ताकतों के साथ संचार में बेहद निराशाजनक परिणाम हुए। उदाहरण के लिए, 1910 में उन्होंने साइनाइड पोटेशियम, वी। ई। युकुन्चेव को स्वीकार करते हुए आत्महत्या कर ली, जो मॉस्को के चुडोव मठ में एक नौसिखिया था। एक समय वह कई आध्यात्मिक हलकों का सदस्य था। 1911 में एक छात्र ने मरने की कोशिश कीमास्को विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले Tymoshenko। कई वर्षों तक वे अध्यात्म में लगे रहे। उसी समय के आसपास, मॉस्को के सबसे प्रसिद्ध अध्यात्मविदों में से एक, वोरिबीव का निधन हो गया, जिसने एक गंभीर बीमारी के साथ, इलाज से इनकार कर दिया। वह अपने निधन में तेजी लाने के लिए लग रहा था। बुल्स अपनी यादों में बहुत कुछ लेकर आता हैऐसे मामले जब आध्यात्मिकता के प्रेमियों को समय से पहले मरने की उम्मीद की जाती थी, कभी-कभी रहस्यमय परिस्थितियों में, माध्यमों की भागीदारी के साथ शरारत सत्र के बाद कई दुर्भाग्य के साथ पीड़ित थे। उन्नीसवीं शताब्दी के सत्तर के दशक में दिमित्रीइवानोविच मेंडेलीव ने "कमीशन फॉर द स्टडी ऑफ मीडियम फेनोमेना" बनाया। इसमें कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक शामिल हैं। आयोग का निष्कर्ष असंदिग्ध थाः आध्यात्मिक घटना अचेतन आंदोलनों से आती है या एक सचेत धोखा है। समिति के सदस्यों के अनुसार, अध्यात्म एक अंधविश्वास है। यह निष्कर्ष मेंडेलीव के ब्रोशर में प्रस्तुत किया गया था "आध्यात्मिकता पर निर्णय के लिए सामग्री।"
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ऐसा नहीं है कि परिवार के सदस्यों और सगे संबंधियों ने ही अतीत में राजाओं के साथ दगाबाजी करते हुए तख्तापलट किया, बल्कि संसदीय लोकतंत्र में भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं. महाराष्ट्र में रविवार को हुआ सियासी घटनाक्रम इसका ताजा उदाहरण है. मराठा क्षत्रप शरद पवार भी अब उस सूची में शामिल हो गए हैं जिसमें अभी तक ठाकरे, अब्दुल्ला, मुलायम सिंह यादव, बादल और नंदामुरी तारक राम राव उर्फ एनटीआर का नाम शामिल था. इनमें से अधिकांश ने अपनी मेहनत के दम पर वापसी की. अब देखने वाली बात यह है कि पवार अपने करियर की सबसे कठिन और अपमानजनक चुनौती से कैसे निपटेंगे. पवार ने 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था और अपने दम पर पार्टी को आगे बढ़ाया. अब उनके सामने बगावत से निपटने की चुनौती है. पवार के लिए इससे भी अधिक शर्मनाक बात यह है कि यहां अपने विधायकों ने ही उनका साथ छोड़ दिया है. वहीं दूसरी तरफ कई बयानबाजियों के बावजूद भी कांग्रेस में महाराष्ट्र में एकजुट है. पवार अक्सर अपनी पूर्व पार्टी पर कटाक्ष करते रहे हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस में शामिल लोगों को यह स्वीकार करना चाहिए कि सबसे पुरानी पार्टी का प्रभाव अब 'कश्मीर से कन्याकुमारी' तक वैसा नहीं है जैसा पहले हुआ करता था. पवार को यूपी के उन जमींदारों के बारे में एक किस्सा सुनाना भी पसंद आया था, जिन्होंने अपनी अधिकांश जमीन खो दी है और अपनी 'हवेली' को मेंटेन करने में असमर्थ रहे. यूपी के जमींदारों से कांग्रेस की तुलना करते हुए एक समय उन्होंने कहा था, 'मैंने उत्तर प्रदेश के जमींदारों के बारे में एक कहानी बताई थी जिनके पास बड़ी 'हवेलियाँ' हुआ करती थीं. भूमि हदबंदी कानून के कारण उनकी जमीनें कम हो गईं. हवेलियाँ बची रहीं लेकिन उनकी देखभाल और मरम्मत करने की उनकी कैपिसिटी नहीं रही. जब जमींदार सुबह उठता है, तो वह आसपास हरा-भरा खेत देखता है और कहता है कि यह सारी जमीन उसकी है. यह कभी उनका था, लेकिन अब उनका नहीं है. ' शायद पवार भी यह नहीं जानते होंगे कि वह खुद जल्द ही उसी तरह के जमींदार बन जाएंगे. नाम, निशान और वजूद की लड़ाई. . . NCP से अजित की बगावत के बाद अब सुप्रिया के पास क्या बचा? यह भी कहा जा रहै है कि कम से कम 2024 तक तो पवार दो नावों पर सवार होने का इरादा रखते हैं. वह और उनकी बेटी सुप्रिया महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में रहकर विपक्ष में रहेंगे, जबकि दूसरी तरफ 'अग्रिम पार्टी' होगी जिसमें भतीजे अजीत पवार और भरोसेमंद लेफ्टिनेंट प्रफुल्ल पटेल शामिल हैं जो एनडीए में रहेंगे. हालाँकि, सारा दारोमदार इस बात पर रहेगा कि राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले प्रभावशाली मराठा मतदाता [30 प्रतिशत से अधिक] कैसे अजित पवार के कदम पर प्रतिक्रिया देते हैं. मराठों का वोटिंग पैटर्न अब तक मिला-जुला रहा है और पश्चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी की तुलना में बीजेपी के ख़िलाफ़ ज़्यादा वोटिंग हुई है. भाजपा के प्रति मराठों की नापसंदगी का एकमात्र कारण यह रहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव के बावजूद पवार खुद कभी भी भाजपा की तरफ नहीं गए. विश्वासघात का सबसे दुखद हिस्सा यह रहा है कि पवार को धोखा दुश्मनों ने नहीं अपनों ने दिया. पवार कर रहे थे कोशिश? यह एक खुला रहस्य है कि पवार पिछले कुछ हफ्तों से राकांपा नेताओं के बीच एकता की भावना बहाल करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली. राकांपा का एक वर्ग कथित तौर पर भाजपा के साथ बातचीत कर रहा था और कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना [उद्धव] वाले महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा था. लगातार इनकार के बावजूद यह बात मीडिया में आई थी कि पवार के भतीजे अजित की अमित शाह और अन्य बीजेपी दिग्गजों से मुलाकात हुई थी. एनसीपी प्रमुख के रूप में पवार का इस्तीफा और उसके बाद सुले को एनसीपी प्रमुख के रूप में पदोन्नत करने का उद्देश्य अजीत पवार को रोकना था, लेकिन इसका उलटा असर हुआ. एनसीपी विभाजन का असर 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा. 2019 के लोकसभा में, भाजपा और तत्कालीन संयुक्त शिवसेना सेना ने 48 लोकसभा सीटों में से 42 सीटें हासिल की थीं. 2024 के लिए अजित पवार की मदद से एनडीए के 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की स्क्रिप्ट तैयार करने की कोशिश की जा रही है. राकांपा में विभाजन का न केवल एमवीए पर, बल्कि पश्चिमी महाराष्ट्र में कांग्रेस पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जहां वह राकांपा के साथ गठबंधन में है. अजित पवार का दलबदल काफी हद तक वैसा ही है जैसे चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एन टी रामाराव को किनारे कर दिया था या जिस तरह से अखिलेश यादव ने पिता मुलायम सिंह यादव को मात दे दी थी. अजित पवार ने विधायकों के बीच अपना दबदबा दिखाया है. 82 साल के पवार 50 साल से ज्यादा समय से राजनीति में सक्रिय हैं. उन्होंने राजनीति में कई उतार और चढ़ाव देखे हैं. साल 1967 में वे 27 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने. 32 साल की उम्र में पहली बार सीएम बन गए. 45 साल पहले शरद ने भी सत्ता के लिए बगावत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी. उन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत कांग्रेस से की, लेकिन दो बार उसके ही खिलाफ गए और सत्ता में आए. पहली बार 1978 में और दूसरी बार 1999 में. साल 1977 में आम चुनाव के बाद कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई थी. नाम रखा गया कांग्रेस (I) और कांग्रेस (U). शरद पवार भी बगावत का हिस्सा बने. वे कांग्रेस (U) में शामिल हुए. साल 1978 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव आया और दोनों धड़े एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरे. इस बीच, जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और 99 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि कांग्रेस (I) ने 62 और कांग्रेस (U) ने 69 सीटें जीतीं. किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. राज्य में जनता पार्टी ने सरकार बनाने के लिए संभावनाएं तलाशीं. लेकिन, जनता पार्टी को रोकने के लिए I और U ने गठबंधन कर लिया और सरकार बना ली. यह सरकार डेढ़ साल से ज्यादा चली. बाद में जनता पार्टी में फूट पड़ गई और महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. हालांकि, कुछ महीने बाद शरद पवार ने कांग्रेस (यू) से भी बगावत की और जनता पार्टी से हाथ मिला लिया. जनता पार्टी के समर्थन से शरद पवार 38 साल की सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बने. तब देश की राजनीति में इंदिरा गांधी सक्रिय थीं. 1977 की इमरजेंसी के बाद कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही थी. हालांकि, साल 1980 में इंदिरा गांधी सरकार की वापसी हुई तो पवार की सरकार बर्खास्त कर दी गई. बाद में 1986 में पवार कांग्रेस में शामिल हो गए. तब कांग्रेस की कमान राजीव गांधी के हाथों में थी और वो देश के प्रधानमंत्री थे. कुछ ही दिनों में पवार फिर गांधी परिवार के करीब आ गए और 26 जून 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी मिल गई. पवार 26 जून 1988 से लेकर 25 जून 1991 के बीच दो बार मुख्यमंत्री बने. NDA में अजित पवार की एंट्री, एकनाथ शिंदे के लिए कैसे साबित हो सकती है बुरी खबर! जुलाई 1978. एक उमस भरी दोपहरी में शरद पवार महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटील के घर पर खाने पर गए थे. बुलावा खुद पाटील ने ही भेजा था. वे अपने इस युवा उद्योग मंत्री (शरद पवार) से कुछ चर्चा करना चाहते थे. कहते हैं कि शरद पवार गए, खाना खाया, बातचीत की और चलते हुए. उन्होंने दादा पाटील के आगे हाथ जोड़े, कहा- दादा, मैं चलता हूं, भूल-चूक माफ करना. . . सीएम वसंत दादा तब कुछ समझे नहीं, लेकिन शाम को एक खबर ने महाराष्ट्र समेत दिल्ली की राजनीति को भी हिला दिया था. साल था 1999. तारीख 15 मई. कांग्रेस की CWC की बैठक थी. शाम को हुई इस बैठक में अचानक ही शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर की तरफ से विरोध के सुर सुनाई दिए. संगमा ने कहा, सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा बीजेपी लगातार उठा रही है. ये सुनना सोनिया के लिए उतना हैरानी भरा नहीं था, जितना वह अगले व्यक्ति की आवाज सुनकर हुईं. यह कोई और नहीं, शरद पवार थे, जिन्होंने तुरंत ही संगमा की बात का समर्थन किया और अपनी हल्की-मुस्कुराती आवाज में पहले तो संगठन में एकता लाने के लिए सोनिया गांधी की तारीफ की और फिर तुरंत ही अगली लाइन में प्रश्नवाचक चिह्न उछाल दिया. शरद पवार ने कहा, 'कांग्रेस आपके विदेशी मूल के बारे में बीजेपी को जवाब नहीं दे सकी है. इस पर गंभीरता से विचार की जरूरत है. इस तरह, साल 1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का विरोध किया और उसके बाद तीनों नेताओं को पार्टी से निकाल दिया गया. महज 10 दिन बाद ही तीनों ने मिलकर 25 मई 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया.
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10. प्राधिकारी नोट करते हैं कि रॉल अथवा शीट रूप से इतर विनाइल टाइल्स भारतीय बाजार में एक नया उत्पाद है। यह उत्पाद आरंभिक स्तर पर है और संबद्ध सामानों के लिए उत्पादन केवल क्षति की अवधि के दौरान भारत में शुरु हुआ है। भारत में संबद्ध सामानों की मांग भारत में घरेलू उत्पादन शुरु होने से पूर्व विचाराधीन उत्पाद के आयातों द्वारा पूरी की जाती थी। 11. विचाराधीन उत्पाद का विनिर्माण किसी रूप में पीवीसी और कैल्शियम कार्बोनेट का प्रयोग करके किया जाता है। कुछ हितबद्ध पक्षकारों ने इस संबंध में स्पष्टीकरण की मांग की है कि क्या रिसाइकिल पीवीसी का प्रयोग करके विनिर्मित विनाइल टाइलें विचाराधीन उत्पाद के क्षेत्र के अंतर्गत शामिल हैं। प्राधिकारी नोट करते हैं कि यद्यपि घरेलू उद्योग अपने अपशिष्ट के रूप में पीवीसी में रिसाइकिल्ड और वर्जिन पीवीसी का प्रयोग करता है तथापि वह बाजार से रिसाइकिल्ड पीवीसी नहीं लेता है। किसी भी दशा में, यह नोट किया जाता है कि विभिन्न कच्ची सामग्री का प्रयोग इस उत्पाद को भिन्न नहीं बनाता और इसीलिए वर्तमान मामले में रिसाइकिल्ड तथा वर्जिन पीवीसी का प्रयोग करके विनिर्मित सामान विचाराधीन उत्पाद के क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल हैं। साफ्ट फ्लोरिंग को विचाराधीन उत्पाद के क्षेत्र से अलग किया गया है क्योंकि इसका विनिर्माण पीवीसी और कैल्शियम कार्बोनेट का प्रयोग करके नहीं किया जाता है। हितबद्ध पक्षकारों ने दावा किया है कि याचिकाकर्ताओं से उत्पाद में शामिल किए जा रहे नए घटकों को स्पष्ट करने के लिए कहा जाना चाहिए। उत्तर में याचिकाकर्ताओं ने यह स्पष्ट किया है कि यह उत्पाद अभी आरंभिक स्तर पर है जिसके कारण इसके घटक एक समायावधि में विकसित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, यद्यपि पूर्व में इस उत्पाद की बिक्री बिना कुशन के की जा रही थी, तथापि अब कुशनयुक्त उत्पादों की आपूर्ति की जा रही है। प्राधिकारी नोट करते हैं कि हितबद्ध पक्षकारों ने किसी उत्पाद विशिष्ट घटक का दावा नहीं किया है जिसके आधार पर इसे हटाए जाने की मांग की गई है और इस प्रकार उत्पाद के क्षेत्र में इस कारण किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है। कुछ हितबद्ध पक्षकारों ने इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगा है कि क्या विनाइल प्लंक्स विचाराधीन उत्पाद के क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल हैं। प्राधिकारी नोट करते हैं कि विनाइल प्लंक्स आयताकार में टाइले हैं और इसीलिए विचाराधीन उत्पाद के क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल हैं। कुछ हितबद्ध पक्षकारों ने यह तर्क दिया है कि लचीली टाइलों को विचाराधीन उत्पाद के क्षेत्र से अलग किया जाना चाहिए। प्राधिकारी नोट करते हैं कि लचीली टाइलों के संबंध में अन्य हितबद्ध पक्षकारों द्वारा कोई सूचना दायर नहीं की गई है। प्राधिकारी नोट करते हैं कि रिजिड टाइलों में भी लचीलेपन का एक घटक है और लचीलापन वह घटक है जो विनाइल टाइलों की मोटाई और लंबाई से आता है। 2.5 एमएम की विनाइल टाइल 8 एमएम की विनाइल टाइल से अधिक लचीली है। रिकॉर्ड में उपलब्ध सूचना यह दर्शाती है कि संबद्ध सामान फोल्डेड अथवा रॉल्ड होने में अक्षमता के कारण बाजार क्षेत्र में रिजिड विनाइल टाइलों के रूप में जाने जाते हैं। इस प्रकार, टाइलों के लचीलेपन के आधार पर इसे हटाया जाना आवश्यक नहीं है । किसी भी हितबद्ध पक्षकार ने ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया है कि हटाए जाने के लिए अनुरोध किए गए उत्पाद की तकनीकी विशिष्टताएं घरेलू उद्योग द्वारा उत्पादित नहीं की जा सकती। इस तर्क के संबंध में कि क्या याचिकाकर्ता रॉल फार्म में उत्पादों का विनिर्माण कर रहे हैं, प्राधिकारी नोट करते हैं कि विचाराधीन उत्पाद रॉल अथवा शीट फार्म में विनाइल टाइलों को अलग करता है। याचिककर्ताओं ने यह अनुरोध किया है कि संबद्ध सामान रॉल्ड फार्म में नहीं हो सकते क्योंकि उत्पाद की रॉलिंग अथवा फोल्डिंग से उत्पाद में दरारें आ जाएंगी। प्राधिकारी यह भी नोट करते हैं कि याचिकाकर्ता केवल रॉल अथवा शीट फार्म से इतर विनाइल टाइलों का उत्पादन करते हैं और इसीलिए इन्हें विचाराधीन उत्पाद के क्षेत्र से अलग रखा गया है। रिकॉर्ड में उपलब्ध सूचना के आधार पर प्राधिकारी नोट करते हैं कि घरेलू उद्योग द्वारा उत्पादित संबद्ध सामानों और संबद्ध देशों से आयातित संबद्ध उत्पाद में कोई ज्ञात अंतर नहीं है। ये दोनों भौतिक विशेषताओं, विनिर्माण प्रक्रिया, प्रकार्य और प्रयोग, उत्पाद विशिष्टियों, वितरण एवं विपणन तथा सामानों के प्रशुल्क वर्गीकरण के संदर्भ में तुलनीय हैं। ये दोनों तकनीकी और वाणिज्यिक रूप से प्रतिस्थापनीय हैं। उपभोक्ताओं ने इन दोनों का परस्पर परिवर्तनीय रूप से प्रयोग किया है और कर रहे हैं। प्राधिकारी नोट करते हैं कि याचिकाकर्ताओं द्वारा विनिर्मित उत्पाद नियमावली के नियम 2 (घ) के अनुसार संबद्ध देशों से भारत में आयात किए जा रहे विचाराधीन उत्पाद की समान वस्तु हैं। 18. अतः, वर्तमान जांच के लिए विचाराधीन उत्पाद संबद्ध देशों के मूल के अथवा वहां से निर्यातित 0.15 एमएम से 0.7 एमएम की रेंज में मोटाई वाली संरक्षी परत के साथ 8 एमएम की अधिकतम टाइल मोटाई और 2.5 एमएम की न्यूनतम टाइल मोटाई वाली "रॉल अथवा शीट फार्म से इतर विनाइल टाइल" है । टाइल की मोटाई में कुशन की मोटाई शामिल नहीं है। बाजार क्षेत्र में विचाराधीन उत्पाद लग्जरी विनाइल टाइल, लग्जरी विनाइल फ्लोरिंग, स्टोन प्लास्टिक कम्पोजिट, एसपीसी, पीवीसी फ्लोरिंग टाइल, पीवीसी टाइल्स या रिजिड विनाइल टाइल, रिजिड विनाइल फ्लोरिंग के रूप में जाना जाता है और वर्तमान जांच परिणाम में लग्जरी विनाइल टाइल अथवा एलवीटी के रूप में उल्लिखित किया गया है। लग्जरी विनाइल टाइल क्लिक अथवा लॉक यंत्र के साथ अथवा बिना उसके हो सकती हैं। लग्जरी विनाइल टाइल उस विनाइल की किस्म के लिए आमतौर पर उद्योग द्वारा प्रयुक्त शब्द है जो वास्तव में घिसाई और निष्पादन में सुधार लाने के लिए बढ़ाई गई परत के साथ प्राकृतिक सामग्री की दिखावट बताती है। विचाराधीन उत्पाद का प्रयोग आवासीय और वाणिज्यिक भवनों में फर्शों की कवरिंग के लिए किया जाता है। विचाराधीन उत्पाद शीर्ष 3918 के अंतर्गत सीमा प्रशुल्क अधिनियम के अध्याय 39 के तहत वर्गीकृत है। विचाराधीन उत्पाद का समर्पित सीमाशुल्क वर्गीकरण नहीं है । यद्यपि विचाराधीन उत्पाद 39181090 के तहत वर्गीकरण योग्य है, तथापि, आवेदकों ने दावा किया है कि उत्पाद का आयात कोड 39181010, 39189010, 39189020 और 39189090 के तहत भी हो रहा है । तथापि, सीमाशुल्क वर्गीकरण केवल सांकेतिक है और वर्तमान जांच में विचाराधीन उत्पाद के दायरे पर बाध्यकारी नहीं है। घरेलू उद्योग का क्षेत्र और आधार अन्य हितबद्ध पक्षकारों के विचार घरेलू उद्योग और आधार के संबंध में अन्य हितबद्ध पक्षकारों द्वारा निम्नलिखित अनुरोध किए गए थेः यह स्पष्ट नहीं है कि नियम 2(ख) के तहत एक व्यापारी के रूप में डब्ल्यूजीबीएल को घरेलू उद्योग के क्षेत्र में कैसे शामिल किया जा सकता है। इस संबंध में, डब्ल्यूजीबीएल के व्यापारिक प्रचालनों के ब्यौरों पर विचार किया जा सकता है कि क्या उनके पास डब्ल्यूएफएल के उत्पाद को बेचने के विशिष्ट अधिकार हैं और क्या वे अन्य उत्पाद बेचते हैं। यह बात दोहराई जाती है कि पाटनरोधी नियमावली के नियम 2 ( ख ) के अनुसार केवल एक उत्पादक ही घरेलू उद्योग का भाग बनने का पात्र है। चूंकि नियम 2 (ख) में घरेलू उद्योग के भाग के रूप में "व्यापारी" की परिकल्पना नहीं है अतः घरेलू उद्योग के भाग के रूप में उनकी मूल कंपनी (डब्ल्यूआईएल) के व्यापारिक अंग (डब्ल्यूजीबीएल) पर विचार करने के लिए आवेदक उद्योग (डब्ल्यूएफएल) का कोई प्रयास झूठा, गलत माना गया और कानून के समर्थन के बिना है और इसीलिए इसे सीधे ही रद्द किया जाना चाहिए। घरेलू उद्योग द्वारा उद्धृत मामले के संबंध में यह अनुरोध है कि उद्धृत मामले का इस मामले पर कोई प्रभाव नहीं है क्योंकि नियम 2(ख) घरेलू उद्योग के क्षेत्र से संबंधित है जिसमें उद्धृत मामला एकल आर्थिक कंपनी के तहत किसी निर्यातक से पूरे उत्तर की स्थिति से संबंधित है। अतः, उद्धृत मामले का इस मामले पर कोई प्रभाव नहीं है। इसके विपरीत, घरेलू उद्योग एक भी उदाहरण देने में विफल रहा, जहां प्राधिकारी ने घरेलू उद्योग के भाग के रूप में व्यापारी को माना है अथवा क्षति विश्लेषण या क्षति मार्जिन के लिए उसके खर्चों को शामिल किया है। उपर्युक्त के मद्देनजर यह विनम्र अनुरोध है कि वर्तमान जांच में डब्ल्यूएफएल और डब्ल्यूजीबीएल को एकल आर्थिक कंपनी के रूप में नहीं माना जा सकता। उत्तरदाता माननीय प्राधिकारी से विनम्र अनुरोध करते हैं कि वे कृपया घरेलू उद्योग के अनुरोध को रद्द करें। उपर्युक्त तथा घरेलू उद्योग के कानूनी रूप से असंधारणीय अनुरोध के पूर्वाग्रह के बिना यह अनुरोध है कि आवेदक उद्योग का यह दावा कि व्यापारिक कंपनी को घरेलू उद्योग माना जाना चाहिए, भी तथ्यों के किसी औचित्य के बिना है। इस संदर्भ में, प्राधिकारी का ध्यान उनकी वार्षिक रिपोर्ट की ओर आकर्षित किया जाता है जिसमें यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया है कि संबद्ध पक्षकारों के साथ उनके सभी लेन-देन समिपष्ट कीमतों के आधार पर हैं। मामला ऐसा होने पर आवेदक के लिए कानूनी तौर पर और संकल्प मात्र रूप से प्राधिकारी से यह अनुरोध करने का पूर्णतः कोई आधार नहीं है कि वे क्षतिरहित कीमत परिकलन के लिए अथवा क्षति विश्लेषण के लिए डब्ल्यूजीबीएल से संबंधित किसी आंकड़े पर विचार करें। यह अनुरोध है कि चूंकि डब्ल्यूएफएल अपनी संबद्ध कंपनी को आस-पास (जैसा कि उनकी वार्षिक रिपोर्ट में उल्लिखित है) की कीमतों पर संबद्ध सामानों की बिक्री कर रहा है। अतः, प्राधिकारी को उनकी कीमतों पर विचार करना चाहिए जिन पर डब्ल्यूएफएल ने डब्ल्यूजीबीएल को संबद्ध सामानों की बिक्री की है।
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रस और सोदर्य ही पाते है, सीन्दर्य जितना ही देखते हैं, उतनी ही हृदय मे अभावप्रतीति और भी अधिक जाग उठती है। देखकर भी देखने की साध किसी तरह भी मिटती नही, मालूम होता है यह अपूर्ण है। जभी अपूर्ण समझते है तभी सीमा आँखो के सामने दिखाई देती है, तभी अनजाने में हृदय रो उठता है । सोचते हैं और भी - ओर भी आगे जायँ, सभवत सुदूर भविष्य में किसी न किसी दिन उसे आयत्त कर सकेंगे। किन्तु हाय मोह । यह समझ नहीं पाते है कि काल-प्रवाह मे इस आकाङ्क्षा की तृप्ति हो नही सकती । आनन्द चाहे जितना ही क्यो न बढे, सौन्दर्य चाहे जितना ही छल्छला उठे, तृप्ति तत्र भी बहुत दूर की वस्तु है, क्योकि और भी विकास हो सकता है एव कभी भी इस नमविकास की सम्भावना दूर होगी नहीं । इससे ज्ञात हो जायगा कि हृदय जिसकी आकाङ्क्षा करता है वह ससीम सौन्दर्य अथवा परिमित आनन्द नही है । यदि ऐसा होता तो एक न एक दिन क्रमविकास से उसकी तृप्ति हो जाती । वस्तुत. यह असीम सौन्दर्य, अनन्त प्रेम, निरवच्छिन्न आनन्द है। पूर्ण सौन्दर्य का सम्भोग पहले हुआ है, इसी लिये पूर्ण सौन्दर्य की आकाङ्क्षा होती है, विच्छिन्न ( खण्ड ) सौन्दर्य से तृष्णा मिटती नही । जिसका विरह है, उसे पाये विना व्याकुलता का अवसान हो नहीं सकता । इसलिये प्रश्न रह गया कि यह पूर्ण सौन्दर्य कब मिला था ? हम पहले देख चुके हैं कि कालनम से इस पूर्ण सकते; करोड़ों कल्पो मे भी हम ऐसा सौन्दर्य पायेंगे नहीं जिससे हो न सके, अर्थात् काल के मध्य मे पूर्ण सौन्दर्य का विकास हो में जो विकास होता है वह क्रमविकास है । इस क्रम का अन्त नहीं है । और भी अधिक, और भी अधिक हो सकता है - किन्तु कभी भी पूर्णता होनी नहीं । यदि यह सत्य है तो यह भी सत्य है कि काल में कभी इसकी अनुभूति भी होती नहीं । अर्थात् हम जिस सौन्दर्य की अनुभूति हुई है, वह कोई सुदूर अतीत में नहीं है, किसी दिगन्तस्थित नक्षत्र में नहीं है अथवा किसी विशिष्ट काल या देश में नहीं है । अतएव एक प्रकार से यह प्रश्न ही अनुपपन्न है। किन्तु घूम फिर कर प्रश्न फिर भी होता है । परस्पर विरुद्ध होने पर भी यह सत्य है कि इस सौन्दर्य का आस्वादन जब हमे हुआ था तब काल नहीं था - जहाँ हमने इसका आस्वादन किया था वहाँ देश नहीं था । वह हमारी 'योग' अवस्था अथवा मिल्न था । उसके बाद वर्तमान अवस्था 'योगनश' अथवा विरह है। फिर उस योग में जाने के लिये हम छटपटा रहे हैं, पुनमिल्न चाहते है। अर्थात् हम देश और काल में निर्वासित हुये है । फिर देश काल को छिन्न भिन्न कर, विलीन कर वैसे ही योगयुक्त होना चाहते है । किन्तु यह वियोग क्या अत्यन्त वियोग ह ? पूर्ण ने विच्छेद क्या सचमुच इतना वालविक है? नहीं, यह बात नहीं है। वियोग सत्य दें, विच्छेद त्वीकार्य हैकिन्तु उस वियोग के मूल मे भी नित्य योग खोया नहीं है, वह कभी न्योता नहीं है । यदि सो गया होता, तो यह वियोग चिर वियोग हो जाता, पिर लेटने की सम्भावना नहीं रहती। यह जो आकाङ्क्षा है, यह जो ससीम अतृप्ति है, यह बतला रही है कि असीम के साथ योग एकदम टूटा नहीं है । स्मृति है - इसी लिये योग है । वह योग, वह अनुभूति अस्पष्ट है, यह हम स्वीकार करते है, किन्तु वह है अवश्य । यदि यह अनुभूति - यदि पूर्ण का यह आस्वादन न रहता तो सौन्दर्य का कोई मानदण्ड न रहता । मान के बिना तुलना करना सम्भव न होता । जब हमे दो फूले हुये फूलो को देख कर किसी समय एक दूसरे की अपेक्षा सुन्दर जॅचता है, तब अनजाने मे सौन्दर्य के मानदण्ड का हम प्रयोग करते है । जहाँ तारतम्य का बोध होता है वहाँ निश्चय ही मान के न्यूनाधिक्य की निर्णायक उपाधि रहती है। प्रकृत स्थल में चित्तस्थित पूर्ण सौन्दर्य की अस्पष्ट अनुभूति अथवा अनुभवाभास ही बाह्य सौन्दर्य के तारतम्य का बोधक निमित्त है । अर्थात् बाहर की वस्तुओ को देखकर उनमे जो पूर्ण सौन्दर्य का जितना अधिक निकटवर्ती प्रतीत होता है वह उतना सुन्दर लगता ! सौन्दर्य का विकास जैसे क्रमिक है यह सन्निकर्ष भी वैसे ही क्रमिक है। बाहर में जैसे पूर्ण विकसित सौन्दर्य का कभी सम्भव नही वैसे ही सन्निकर्ष की इस चरमावस्था का अर्थात् एकीमाव का भी सम्भव नहीं है । देश और काल मे जब पूर्ण सौन्दर्य प्राप्त नहीं होता एव वृत्तिज्ञान जब देश और काल की सीमा में बॅधा रहता है तब पूर्ण सौन्दर्य वृत्ति के निकट प्रकाशित नहीं हो पाता, यह बात सत्य है । बल्कि वृत्ति पूर्ण सौन्दर्य की प्रतिबन्धक है । सौन्दर्य का जो पूर्ण आस्वाद है, वृत्ति रूप में वही विभक्त हो जाता है। वृत्ति से जिस सौन्दर्य का बोध होता है वह खण्ड सौन्दर्य है, परिच्छिन्न आनन्द है। पूर्ण सौन्दर्य स्वय ही अपने को प्रकट करता है, उसे अन्य कोई प्रकट नहीं कर सकता। वृत्ति के द्वारा जो सौन्दर्य-बोध का आभास प्रस्फुटित होता है वह सापेक्ष, परतन्त्र, क्रम से बढ़ने वाला और काल के अन्तर्गत है । पूर्ण सौन्दर्य उससे विपरीत है । इस पूर्ण सौन्दर्य की छाया लेकर ही खण्ड सौन्दर्य अपने को प्रकट करता है । तब क्या पूर्ण सौन्दर्य और खण्ड सौन्दर्य दो पृथक् वस्तुऍ हैं ? नहीं, ऐसा नही । दोनों वास्तव में एक है । लेकिन इस वियोगावस्था मे दोनो को ठीक एक कहना सम्भव नहीं है। मालूम पडता है दो पृथक् हैं। यह जो दो का अनुभव होता है, इसी के भीतर वियोग की व्यथा छिपी हुई है। इसको जोर जबरदस्ती से एक नहीं किया जा सकता । किन्तु फिर भी सत्य बात यह है कि दोनो ही एक हैं। जो सौन्दर्य बाहर है वही अन्दर है, जो खण्ड सौन्दर्य होकर इन्द्रिय-द्वार मे वृत्ति रूप से विराजमान होता है, वही पूर्ण सौन्दर्य-रूप में अतीन्द्रिय भाव से नित्य प्रकाशमान है। गुलाब का जो सौन्दर्य है वह भी वही पूर्ण सौन्दर्य है, शिशु के प्रफुल्लित मुखकमल में जो शोभा है, वह भी वही पूर्ण सौन्दर्य है- जिसे जब जहाँ जिस रूप से जिस किसी सौन्दर्य का बोध हुआ है, वह भी वह पूर्ण सौन्दर्य ही है। यहाॅ प्रश्न उठ सकता है कि सभी यदि पूर्ण सौन्दर्य है एव पूर्ण सौन्दर्य यदि सभी का आस्वादित और आस्वाद्यमान है तो ऐसी स्थिति मे फिर सौन्दर्य के लिये आकाङ्क्षा क्यों होती है ? बात यह है, पूर्ण सौन्दर्य का बोध अस्पष्टरूप से सभी को है। किन्तु अस्पष्टता ही अतृप्ति की हेतु है । इस अस्पष्ट को स्पष्ट करना ही तो सब चाहते है। जो छाया है उसे काया देने की इच्छा होती है। वृत्ति द्वारा इस अस्पष्ट का स्पष्टीकरण होता है, जो छाया के तुल्य था वह मानो स्पष्ट रूप से भास उठता है । भासित हो उठता है सही, किन्तु खण्डरूप से । इसी लिये वृत्ति की सहायता से स्पष्ट हुए सौन्दर्य का साक्षात्कार होने पर भी, खण्ड होने से, ससीम होने के कारण उससे तृप्ति परिपूर्ण नही होती । वृत्ति तो अखण्ड सौन्दर्य को पकड नही सकती । अखण्ड सौन्दर्य के प्रकाश में वृत्ति कुण्ठित हो जाती है। में इसी बात को और स्पष्टरूप से कहते हैं। कल्पना कीजिये, एक खिला गुलाब का फूल हमारी दृष्टि के सामने पडा है, उसके सौन्दर्य ने हमे आकृष्ट किया हैउसका सुन्दररूप मे हम अनुभव कर रहे है। इस अनुभव का विश्लेषण करने पर हमारे हाथ क्या लगता है ? यह सौन्दर्य कहाँ है ? यह क्या गुलाब मे है, अथवा हममें है अथवा दोनों में है। इस अनुभव का स्वरूप क्या है ? आपातत. यही प्रतीत होता है कि यह केवल गुलाब मे नहीं है। यदि वहीं होता तो सभी गुलाब को सुन्दर देखते। किन्तु सब उसे सुन्दर देखते नहीं। और यह केवल हममे अर्थात् द्रष्टा में है यह कहना भी ठीक नहीं है। यदि ऐसा होता तो हम अर्थात् द्रष्टा मत्र वस्तुओं को सुन्दर देखते, किन्तु हम सभी को सुन्दर देखते नही । इसलिये मानना होगा कि इस अनुभव के विश्लेषण से सिद्धान्त होता है कि वर्तमान क्षेत्र में जब वृत्ति द्वारा बोध हो रहा है तत्र सौन्दर्य खण्डित सा हुआ है, एक ओर अस्पष्ट है अथ च पूर्ण सौन्दर्य है, जो हममे है, दूसरी हममे है, दूसरी ओर स्पष्ट अथ च खण्ड सौन्दर्य है, जिसे हम गुलाब मे देख रहे हैं। किन्तु यथार्थ रस- स्फूर्ति के समय ऐसा रहता नहीं। तब सौन्दर्य द्रष्टा में नहीं रहता, गुलाब मे भी नहीं रहता । द्रष्टा और गुलाब तब एकरस साम्या - वस्थापन्न हो जाते हैं, केवल सौन्दर्य ही, स्वप्रकाशमान सौन्दर्य ही तब रहता है। यही पूर्ण सौन्दर्य है, जिसमे भोक्ता और भोग्य दोनों ही नित्यसम्भोगरूप से विराजमान रहते हैं । वृत्ति द्वारा सौन्दर्योपलब्धि किसे कहते है ? जब किसी विशिष्ट वस्तु का हम प्रत्यक्ष करते हैं, तब वह वस्तु हमारे चित्त में स्थित आवरण को धक्का देकर थोडा बहुत हटा देती है। चित्त पूर्ण सौन्दर्यावभासमय है, किन्तु यह अवभास आवरण से ढका होने से अस्पष्ट है। किन्तु सर्वधा ढका नहीं है, न हो ही सकता है। मेघ सूर्य को ढक्ता है, किन्तु एकबारगी टक नहीं सकता। यदि एकबारगी ढकता तो मेघ स्वयं भी प्रकाशित न होता । मेव जो मेघ है, वह भी वह प्रकाशमान होने से है, इसलिये वह सूर्यालोक की अपेक्षा रखता है। उसी प्रकार आवरण चित्त को एकबारगी टक नहीं सकता । चित्त को ढकता है, किन्तु आवरण का भेद करके भी ज्योति का स्फुरण होता है। इसी लिये पूर्ण सौन्दर्य, आवरण के प्रभाव से, अस्पष्ट होने पर भी एक्कारगी अप्रकाशमान नहीं है । जहाँ चित्त है वही यह बात लागू होती है। पर अस्पष्टता का तारतम्य अवस्य है। यह जो आवरण के कारण अस्पष्टता है आवरण के हटने पर वह भी सटता में बदल जाती है। आवरण के तनिक हटने पर जो सता दिखती हैं वह किञ्चित् मात्र है। घर के झरोखे के छिद्र से अनन्त आकाश का जैसे एकदेशमात्र दिखलायी देता है आशिक रूप से आवरण हटने पर उसी प्रकार पूर्ण सौन्दर्य का एकदेशमात्र ही प्रकाशित होता है । यह प्रकाशमान एकदेश ही खण्ड सौन्दर्य के नाम से प्रसिद्ध है। यह आशिक आवरणनाश ही वृत्तिज्ञान है । इसलिये जो गुलाचे का सौन्दर्य है वह भी पूर्ण सौन्दर्य ही है, पर एक एकदेशमात्र है। इसी प्रकार जगत् का सम्पूर्ण सौन्दर्य ही उस पूर्ण सौन्दर्य का एकदेश है। आवरणभङ्ग के 'तारतम्य वश उद्घाटित सौन्दर्य के तारतम्य अथवा वैशिष्ट्य का निरूपण होता है। किन्तु आवरणभङ्ग के वैशिष्ट्य का नियामक क्या है ? आपाततः यह बाह्य पदार्थ के स्वरूप में स्थित वैशिष्ट्य के रूप से हीं गृहीत होगा। किन्तु हम आगे देखेंगे कि यही अन्तिम बात नहीं है, इसलिये आवरणभङ्ग का भेद, जो स्वाभाविक है, वह इस अवस्था मे कहा नहीं जा सकता । आपाततः कहना ही होगा कि आगन्तुक कारण के वैचित्र्य वश आवरण के हटने पर भी वैचित्र्य रहता है । स्फटिक के समीप नील वर्ण की स्थिति से स्फटिक नीला प्रतीत होता है और पीत वर्ण की स्थिति से पीला प्रतीत होता है यह आगन्तुक कारणजन्य भेद का दृष्टान्त है । चक्षु के निकटस्थित घट में घटाकार वृत्ति एव पट मे पटाकार वृत्ति चित्त धारण करता है, यह भी आगन्तुक भेद है । ठीक उसी प्रकार फूल के सौन्दर्य और लता के सौन्दर्य दोनो मे अनुभव का भेद जानना होगा। फूल के सौन्दर्यास्वाद की जो वृत्ति है, लता के सौन्दर्यास्वाद की वृत्ति उससे विलक्षण है, इसका कारण आगन्तुक है । फूल और लता का वैशिष्ट्य जैसे सत्तागत है वैसे ही ज्ञानागत भी है, फिर आखादगत भी है। इसलिये स्वीकार करना होगा कि फूल और लता मे ऐसा विशिष्ट कुछ है जिससे एक एक प्रकार की सौन्दर्यानुभूति का उद्दीपक है, दूसरा दूसरी प्रकार की । किन्तु यह आपेक्षिक सत्य है । बाह्य पदार्थ यदि परमार्थतः नहीं रहते अथवा जिस अवस्था मे नही रहते तब अथवा उस अवस्था मे बाह्य पदार्थ के स्वरूपगत वैशिष्ट्य के द्वारा रसानुभूति के वैचित्र्य का उपपादन नही किया जाता । सत्ता जैसे एक और अखण्ड होने पर भी फूल और लता खण्डसत्ता है, ज्ञान जैसे एक और अखण्ड होने पर भी फूल का ज्ञान और लता का ज्ञान अर्थात् फूलरूप ज्ञान और लतारूप ज्ञान परस्पर विलक्षण हैं वैसे ही सौन्दर्य एक और अखण्ड होने पर भी फूल का सौन्दर्य और लता का सौन्दर्य अर्थात् फूलरूप सौन्दर्य और लतारूप सौन्दर्य परस्पर भिन्न है। इस जगत् मे दो वस्तुऍ टीक एक नहीं है । प्रत्येक वस्तु का एक स्वभाव है, एक व्यक्तित्व है, एक विशिष्टता है जो दूसरी वस्तु मै नही होती । यदि यह सत्य है, तो खण्ड सत्ता जैसे अनन्त संख्या में तथा प्रकार मे, खण्ड जान भी वैसे ही अनन्त है, खण्ड सौन्दर्य भी वैसे ही अनन्त है । किन्तु जो सत्ता है वही तो ज्ञान है, क्योंकि प्रकाशमान सत्ता ही ज्ञान है और अप्रकाशमान सत्ता आलोक है। फिर जो ज्ञान है वही आनन्द है, क्योंकि अनुकूल ज्ञान हो, भला लगना ही आनन्द या सौन्दर्यबोध है और प्रतिकूल ज्ञान ही दुख या कढर्यता है । सत्ता जब ज्ञान होती है तत्र वह नित्यज्ञान है आर ज्ञान जब आनन्द होता है, तब वह नित्य सवैद्यमान आनन्द है । यह नित्य सवेग्रमान
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एक ज़ोंबी, सरल अर्थ में, एक जीवित शव है। सिनेमाई शब्दों में, यह एक पिशाच से अलग है जिसमें इसकी शक्तियां (आकार देने, फेंग) या कमजोरियां (सूरज की रोशनी, पवित्र पानी, लहसुन) नहीं होती हैं और आमतौर पर उन्नत मस्तिष्क कार्य की कमी होती है। शब्द "ज़ोंबी" को 1 9 2 9 में अमेरिकी सार्वजनिक चेतना में एक हाईटियन क्रेओल शब्द के रूप में पेश किया गया था जो वूडू द्वारा पुनर्मिलन किया गया था; इसके तुरंत बाद, मोशन पिक्चर उद्योग द्वारा डरावनी फिल्मों की एक श्रृंखला में इसका शोषण किया गया। सिनेमाई लाशों का रूप और कार्य पूरे वर्षों में स्थानांतरित हो गया है, लेकिन डरावनी शैली के भीतर ज़ोंबी फिल्म की उपस्थिति शुरुआती '30 के दशक से स्थिर बल बनी हुई है। प्रारंभिक फिल्म लाशियां हैतीयन परंपरा के लिए अपेक्षाकृत सच रहीं। "जीवित मृत" को एक वूडू जादू द्वारा एनिमेटेड माना जाता था, और आमतौर पर उन्हें "मास्टर" के कर्मचारियों के रूप में उपयोग किया जाता था, जिन्होंने उन्हें उठाया था। उनकी उपस्थिति जीवित रहने के समान थी, सिवाय इसके कि उनकी त्वचा राख थी और उनकी आंखों को अंधेरा कर दिया गया था या कभी-कभी चरम आकार में बग किया जाता था। आम तौर पर, वे मूक और धीमी गति से चल रहे थे, दिमाग में अपने गुरु के घृणित आदेशों का पालन करते थे (हालांकि फिल्म के अंत में, मास्टर अक्सर नियंत्रण खो देते थे)। 1 9 32 का व्हाइट ज़ोंबी , बेला लुगोसी अभिनीत एक खलनायक वूडू मास्टर के रूप में हैती में ज़ोंबी की स्थिरता के प्रभारी के रूप में, फिल्म की इस प्रारंभिक शैली के लिए एक आकृति है। इसे आम तौर पर नाम से ज़ोंबी की विशेषता रखने वाली पहली फिल्म माना जाता है, हालांकि 1 9 20 में डॉ कैलिगारी की कैबिनेट में , शीर्षक चरित्र ने स्लीपवाल्कर, या "सोममबुलिस्ट" को नियंत्रित किया, जिसे सीज़ारे नाम से शुरुआती फिल्म लाश के समान ही रखा गया था। '30 और 40 के दशक के दौरान, ज़ोंबी और वूडू फिल्में फैलीं, राजाओं के राजा जैसे लाश , लाश के विद्रोह और लाश का बदला सालाना जारी किया जा रहा है। ब्रॉडवे और द घोस्ट ब्रेकर्स पर लाश जैसे कई लोगों ने इस विषय को हल्के ढंग से व्यवहार किया, जबकि अन्य, जैसे मैं एक ज़ोंबी के साथ चलना , बहुत नाटकीय था। 50 के दशक तक, फिल्म निर्माताओं ने स्थापित ज़ोंबी फिल्म मानकों के साथ खेलना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए, उन्होंने लोगों को ज़ोंबी में बदलने की विधि के साथ प्रयोग किया। वूडू की बजाय, किशोर लाश ने तंत्रिका गैस का उपयोग करके पागल वैज्ञानिक को दिखाया, जबकि बाहरी अंतरिक्ष और अदृश्य आक्रमणकारियों से योजना 9 में एलियंस मरे हुओं को उठाए, और पृथ्वी पर द लास्ट मैन (रिचर्ड मैथेसन पुस्तक आई एम लीजेंड के आधार पर), एक वायरस lumbering, ज़ोंबी की तरह "पिशाच" बनाता है। अदृश्य आक्रमणकारियों और पृथ्वी पर लास्ट मैन ने ज़ोंबी को और भी खतरनाक बना दिया, जिससे उन्हें अपहरण और भारी श्रम जैसे पुरुषों के कार्यों से मुक्त किया गया; इसके बजाय, वे सिंगल-दिमागी हत्या मशीन बन गए, एक भूमिका जो अगली पीढ़ी के जीवित मृतकों में खिलाएगी। द लास्ट मैन ऑन अर्थ एंड इनविज़िबल आक्रमणकारियों (और, हद तक, बॉडी स्नैचर्स के लाल डरावनी प्रेरित आक्रमण और आत्माओं के सपने देखने वाले कार्निवल ) जैसी फिल्मों में हत्यारे लाशों द्वारा ग्रहण किए गए ग्रह का अपोकैल्पिक परिदृश्य एक युवा फिल्म निर्माता को प्रेरित करने में मदद करता है जॉर्ज ए रोमेरो नाम 1 9 68 में, रोमेरो ने अपने निर्देशक पदार्पण, नाइट ऑफ द लिविंग डेड को रिलीज़ किया, जो ज़ोंबी फिल्मों में क्रांतिकारी बदलाव के लिए आगे बढ़ेगा जैसा कि हम उन्हें जानते हैं। हालांकि उन्होंने पूर्व फिल्मों से कुछ तत्व उधार लिया, रोमेरो ने कुछ व्यवहार और नियम बनाए जो अगले तीन दशकों तक ज़ोंबी फिल्मों के लिए मॉडल को अपने जीवित मृतकों को प्रस्तुत करेंगे। सबसे पहले, ज़ोंबी जीवित खाने के लिए एक लालसा भूख से प्रेरित थे। दूसरा, ज़ोंबी हमलों को स्पष्ट विस्तार से दिखाया गया था, जो कि बढ़ी हुई सिनेमाई गोर के युग में उभर रहा था। तीसरा, मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाकर लाश को मार दिया जा सकता है। चौथा, ज़ोंबीवाद संक्रामक था और एक काटने से फैल सकता है। प्रारंभिक, क्लासिक ज़ोंबी लोअर से एक बड़ा अंतर वूडू से दूर शिफ्ट और जीवित मृतकों को नियंत्रित करने वाले मास्टर की अवधारणा थी। अन्य तत्व जो रोमेरो द्वारा जरूरी नहीं थे, लेकिन जो रोमेरो-एस्क्यू ज़ोंबी परंपरा का हिस्सा बन गया, उनमें शामिल थेः धीमी, असंतुलित आंदोलन, एक अपोकैल्पिक शून्यवाद जिसमें केवल अस्तित्व एक जीत है और ज़ोंबीवाद को प्लेग के रूप में उपचार है। रोमियो 1 9 78 के डॉन ऑफ द डेड के साथ शुरू होने वाले कई अनुक्रमों के साथ अपनी विरासत में शामिल होगा - जिसने स्पष्ट गोर को और भी आगे बढ़ाया - और 1 9 85 के डेड ऑफ द डेड । कई तेजी से हिंसक और अंधेरे ज़ोंबी फिल्मों ने रोमेरो के कदमों का अनुसरण किया, जिसमें 1 99 0 के रीमेक और नॉटलॉग सह-लेखक जॉन ए रुसो से फिल्मों की ऑफशॉट रिटर्न ऑफ द लिविंग डेड सीरीज़, साथ ही इटली ( ज़ोंबी ) और स्पेन (अंतर्राष्ट्रीय) अंधेरे मृत )। अन्य - जैसे मैं आपका रक्त पीता हूं , डेविड क्रोनबर्ग के शिवर्स और रबीड और रोमेरो के स्वयं के क्रेज़ीज़ - जबकि लाशों को शामिल नहीं करते हुए, रोमेरो के कामों के homicidal contagion संरचना का उपयोग किया। 21 वीं शताब्दी में, फिल्म निर्माताओं ने ज़ोंबी फिल्म सम्मेलनों के साथ तेजी से खिलवाड़ किया है। कुछ, जैसे निवासी ईविल और मृतकों के घर , को उच्च-ऑक्टेन वीडियो गेम एक्शन में प्रेरणा मिली है। अन्य, जैसे कि 28 दिन बाद और आई एम लीजेंड , ने संक्रामक बीमारियों का उपयोग किया है जो ज़ोंबी जैसी राज्य बनाते हैं। शॉन ऑफ द डेड जैसे लाइटहार्टेड फिल्मों और इस बीच, "ज़ोंबी कॉमेडी" या " ज़ोम कॉम " शब्द का निर्माण हुआ है , जबकि अन्य ने इसे रोमांटिक कोण के साथ एक कदम आगे बढ़ाया है जो उन्हें "रोम ज़ॉम कॉम" क्षेत्र। डॉन ऑफ द डेड के 2004 के रीमेक ने परंपरागत ज़ोंबी व्यवहार को भी बदल दिया, जिससे उन्हें धीमी और लकड़ी की बजाय शारीरिक रूप से त्वरित और चुस्त कर दिया गया। और डायरी ऑफ़ दी डेड एंड द ज़ोंबी डायरीज़ ने अन्य सर्वव्यापी 21 वीं शताब्दी की डरावनी प्रवृत्ति के साथ लाश को विलय कर दिया हैः " पाया फुटेज " प्रारूप। आज, ज़ोंबी पहले से कहीं अधिक लोकप्रिय हैं, टी-शर्ट, खिलौने, वीडियो गेम और अन्य व्यापार बाजार में बाढ़ और टेलीविजन पर सबसे ज्यादा देखे जाने वाले शो में से एक बनने के साथ। 2013 में, यह भी साबित हुआ कि लाश एक बड़े बजट हॉलीवुड ब्लॉकबस्टर का समर्थन कर सकते हैं - और उस पर एक सफल, अमेरिका में 200 मिलियन डॉलर और दुनिया भर में $ 500 मिलियन से अधिक कमाई। यदि कोई संदेह है कि ज़ोंबी घटना वैश्विक नहीं है, ऑस्ट्रेलिया ( वार्मवुड ), जर्मनी ( रैमबॉक ), फ्रांस ( द हॉर्डे ), भारत ( ज़ोंबी का उदय) , ग्रेट ब्रिटेन ( कॉकनी बनाम लाश ), जापान से विदेशी प्रविष्टियां ( स्टेसी ), ग्रीस ( एविल ), दक्षिण अफ्रीका ( लास्ट ओन्स आउट ), स्कैंडिनेविया ( डेड स्नो ), हांगकांग ( बायो ज़ोंबी ), न्यूजीलैंड ( ब्लैक भेड़ ), दक्षिण अमेरिका ( प्लागा ज़ोंबी ), चेकोस्लोवाकिया ( चोकिंग हैज़ार्ड ) और यहां तक कि क्यूबा ( मृतकों के जुआन ) को आराम करने के लिए रखना चाहिए (पन इरादा)। उल्लेखनीय ज़ोंबी सिनेमाः - व्हाइट ज़ोंबी (1 9 32) - लाश के विद्रोह (1 9 36) - द वॉकींग डेड (1 9 36) - घोस्ट ब्रेकर्स (1 9 41) - लाश के राजा (1 9 41) - मध्यरात्रि में बोवेरी (1 9 42) - मैं एक ज़ोंबी के साथ चलना (1 9 43) - वूडू मैन (1 9 44) - ब्रॉडवे पर लाश (1 9 45) - मोरा ताऊ की लाश (1 9 57) - द ब्रेन ईटर (1 9 58) - अदृश्य आक्रमणकारियों (1 9 5 9) - योजना 9 से बाहरी अंतरिक्ष (1 9 5 9) - किशोर लाश (1 9 5 9) - ज़ोंबी का रक्त (1 9 61) - मैं आपकी त्वचा खाओ (1 9 64) - अविश्वसनीय रूप से अजीब जीव जो जीवित रह गए और मिश्रित लाश बन गए (1 9 64) - द लास्ट मैन ऑन अर्थ (1 9 64) - लाश का प्लेग (1 9 66) - नाइट ऑफ लिविंग डेड (1 9 68) - टॉम्ब ऑफ़ द ब्लाइंड डेड (1 9 71) - बच्चों को मृत चीजों के साथ नहीं खेलना चाहिए (1 9 72) - चलो स्लीपिंग कॉर्प्स ली (1 9 74) - शुगर हिल (1 9 74) - शॉक वेव्स (1 9 77) - डॉन ऑफ द डेड (1 9 78) - ज़ोंबी (1 9 7 9) - दफन ग्राउंड (1 9 81) - डेड एंड बरीड (1 9 81) - डे डेड डेड (1 9 85) - रिटर्न ऑफ लिविंग डेड (1 9 85) - क्रिप्प्स की नाइट (1 9 86) - नाइट ऑफ द लिविंग डेड (1 99 0) - डेड एलीव (2002) - निवासी ईविल (2002) - हाउस ऑफ द डेड (2003) - अंडेड (2003) - डॉन ऑफ़ द डेड (2004) - शॉन ऑफ़ द डेड (2004) - भूमि की भूमि (2005) - फिडो (2007) - ग्रह आतंक (2007) - डेड ऑफ डेड (2008) - डायरी की डायरी (2008) - डेड स्नो (200 9) - Zombieland (200 9) - गर्म निकाय (2013) - विश्व युद्ध जेड (2013) - ज़ोंबी सर्वनाश के लिए स्काउट्स गाइड (2015) - गौरव और पूर्वाग्रह और लाश (2016)
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speech
माध्यम से एक कार्य प्रणाली को वर्गीकृत किया जा सकता है क्योंकि इसके बीच अपेक्षाकृत उच्च मनोबल है और यह मानव विषयों के बीच अपेक्षाकृत उच्च स्तर की नौकरी की संतुष्टि है। आप यह भी देख सकते हैं कि दूसरी तरफ क्या होता है, जब कार्य या कम मनोबल के साथ सामान्य असंतोष होता है तो हस्ताक्षर क्या जुड़े होते हैं। तो, वे बहुत कम उत्पादकता और उच्च लागत हो सकते हैं जो इंगित करता है कि लोग वास्तव में काम करने या कुछ करने के बारे में खुश नहीं हैं। उत्पादों और सेवाओं की खराब गुणवत्ता यह फिर से एक और बहुत ही दिलचस्प है जिसे आप नौकरी असंतोष का संकेत जानते हैं, या चोट दर या दुर्घटना दर आमतौर पर बढ़ सकती है क्योंकि वे खुश नहीं हैं। इसलिए, वे अपने मन की अच्छी स्थिति में नहीं होंगे और वे कुछ ऐसा करेंगे जो गैरअनुपालन है। और वे कुछ ऐसा करेंगे जो असुरक्षित है और इससे उच्च स्तर की चोटें या दुर्घटनाएँ हो सकती हैं। आम तौर पर गरीब हाउसकीपिंग (housekeeping) हो सकती है, सभी सामग्री हैंडलिंग (handling) मुद्दों को सही समय पर उपलब्ध नहीं होती है क्योंकि वे कहीं रखे जाते हैं और उस समय का पता नहीं लगाया जा सकता है जब उन्हें जरूरत होती है। तो, ये सभी संकेतक आम तौर पर असंतुष्ट हैं या उनके पास एक निश्चित कार्य संरचना में काम करने का कम मनोबल है। इसके अलावा कभी-कभी जीवन और अंग कानून सहित कंपनी (company) की संपत्ति में तोड़फोड़ के मामले भी हो सकते हैं क्योंकि इस तरह की तोड़फोड़ से लोग चीजों को जला सकते हैं या लोग नाराज़ हो सकते हैं या प्रशासन में लोगों को भीड़ सकते हैं ताकि फिर से मानव विषयों के बीच उच्च असंतोष का संकेत हो । जानते हैं, कार्य प्रणाली से जुड़े। समय-समय पर उच्च श्रम कारोबार या उच्च अनुपस्थिति हो सकती है। बस कार्य प्रणाली के कामकाज के पीछे समग्र नियमित प्रक्रियाओं को खतरे में डालना जो फिर से संकेतक भी हो सकते हैं । तो, ये कुछ हस्ताक्षर हैं जो यह इंगित करते हैं कि क्या लोग आमतौर पर संतुष्ट हैं या आम तौर पर एक निश्चित नौकरी के बारे में असंतुष्ट हैं जो वे प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरा मुद्दा जिसका मैं उल्लेख करना चाहूँगा वह है नौकरी विशेषज्ञता । और वास्तव में, यह एक संगठनात्मक सिद्धांत के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है जहां आप देखेंगे कि कुछ कार्यकर्ता हैं जो सीमित कार्यों में विशेषज्ञता प्राप्त करेंगे। (स्लाइड (slide) समय देखेंः 08:19 ) Job Specialization Important organization principle in which workers specialize in a limited range of tasks • Work content is simple, task time is short • High efficiency and productivity Often viewed negatively by workers because tasks tend to be routine, boring, unappealing, and unrewarding Alternatives to job specialization: • Job enlargement and job enrichment • Job rotation_ और आम तौर पर फिर से विशेषज्ञता यदि आप संगठन के डिज़ाइन (design) या संरचनात्मक डिज़ाइन (design) के सिद्धांतों को देखते हैं, तो मुझे लगता है कि मैंने इसे कुछ व्याख्यान पहले ही सचित्र कर दिया था। नौकरी की विशेषज्ञता भी एक संगठन संरचना बनाने का एक आधार हो सकती है। आप एक निश्चित अंतिम लक्ष्य या कार्य प्रणाली से जुड़े कार्य के एक निश्चित भाग के लिए समान कौशल सेट (set) या समाजीकरण वाले लोगों को एक साथ समूहित करते हैं। इसलिए, जब हम नौकरी विशेषज्ञताओं के बारे में बात करते हैं, तो हमें यह पहचानना होगा कि कार्य सामग्री सरल कार्य समय कम है और इसका परिणाम उच्च दक्षता और उत्पादकता में हो सकता है यदि हम कार्य को वर्गीकृत या वर्गीकृत करने के सिद्धांत के रूप में नौकरी विशेषज्ञता का उपयोग करना चाहते हैं। समूहों में। तो, यह नहीं है कि यह अपनी कमियों है; हालांकि, ऐसा नहीं है कि विभिन्न कार्यों में मैन (man) पावर (power) के स्पेशलाइजेशन (specialization) आधारित आवंटन से हमेशा उच्च स्तर की उत्पादकता या दक्षता प्राप्त होती है, क्योंकि इसे हमेशा कुछ श्रमिकों द्वारा नकारात्मक रूप से देखा जा सकता है, जो कहते हैं कि कुछ विशिष्ट जो आपके साथ एक अच्छा संबंध रखते हैं, जानते हैं उच्चतर प्रशासनिक नियंत्रकों के साथ अच्छे संबंध से विशेषज्ञता के आधार पर आसानी से काम मिल जाएगा। इसलिए, विशेषज्ञता को नकारात्मक रूप से व्यक्त किया जाता है और इसे कुछ चीजों के रूप में देखा जाता है, जो कि व्यक्तियों के समूह के पक्ष में दिया जाता है, यह कहकर कि वे विशेष हैं, इसलिए वे इस तरह के कार्य कर रहे हैं। इसलिए, और फिर विशेषज्ञता के पास कुछ अन्य कमियाँ भी हैं, अगर यह बहुत विशिष्ट है और संगठन संरचना को विशेषज्ञता के सिद्धांत पर डिज़ाइन (design) किया गया है, तो बहुत अधिक रोज़गार नहीं हो सकते हैं। इसलिए, यदि एक निश्चित कार्यकर्ता या एक मानव विषय को कहने या ऑटोमोटिव (automotive) में पेंट (paint) लगाने में विशेषज्ञता प्राप्त है, तो वह आवश्यक रूप से भागों या घटकों की मरम्मत में एक अच्छा फिट (fit) नहीं हो सकता है। इसलिए, सबसे अधिक जो कुछ कर सकता है, वह इस व्यक्ति को पेंट (paint) की मरम्मत के मुद्दों, या पोस्ट (post) असेंबली (assembly) दोषों से संबंधित मुद्दों के तनाव को हल कर सकता है जो पेंटेरा के छिलके के कारण उत्पन्न होते हैं। लेकिन फिर विधानसभा या वेल्ड (weld) संरचनाओं में पेंट (paint) से पूरी तरह से डोमेन (domain) बदलना बहुत अच्छा विचार नहीं हो सकता है। इसलिए, कभी-कभी यह बहुत नियमित हो जाता है कि आप जानते हैं कि कोई व्यक्ति या कार्यकर्ता क्या कर रहा है; दिनचर्या निश्चित रूप से अपील की ऊब में कमी लाती है। और फिर यह भी कि यदि नौकरियाँ अत्यधिक विशिष्ट हैं और वे एक क्रिस्क्रॉस (crisscross) खिलाड़ी के लिए सक्षम नहीं हैं, तो यह हमेशा एक ऐसी स्थिति में परिणाम होता है जहां आप इनाम नहीं दे सकते हैं, क्योंकि कुछ ऐसे लोगों के एक निश्चित समूह के लिए योजना बनाई गई है जो एक निश्चित क्षेत्र में विशिष्ट हैं। एक प्रणाली द्वारा उत्पन्न कार्य की आवश्यकता पर उन्हें काम करने के लिए आरंभ किया जाएगा। इसलिए, अगर उस क्षेत्र में आम तौर पर काम नियमित होता है, तो उच्च उत्पादकता या उच्च दक्षता का कोई सवाल ही नहीं था, क्योंकि सब कुछ एक संतुलन में है। और इसलिए, प्रक्रिया में शायद ही कोई कमी हो और सब कुछ बहुत, बहुत नियमित या मानक प्रतीत होता हो; हालाँकि, अगर कोई ऐसा मामला है जहाँ निश्चित रूप से किसी विशेष उत्पाद के कुछ क्षेत्र में कोई चुनौती है या हमें ऐसा संगठन कहना चाहिए जहाँ मैन (man) पावर (power) को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। और कुछ लोगों को काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और वे इस विशेषज्ञता डोमेन (domain) को दूसरे क्षेत्र में जाने के लिए छोड़ देते हैं और फिर काम करते हैं जो निश्चित रूप से बहुत उत्पादक और कुशल कर्मचारी माना जाता है। तो, ये संगठनात्मक सिद्धांत, संरचना सिद्धांत के रूप में नौकरी विशेषज्ञता से जुड़े कुछ नकारात्मक संबंध हैं। और इसलिए, वहाँ कुछ विकल्प हैं जो नौकरी विशेषज्ञता के लिए हैं। उदाहरण के लिए, कोई नौकरी में इज़ाफा कर सकता है, और मैं निम्नलिखित स्लाइड्स में व्यक्तिगत रूप से इन विषयों का इलाज करने जा रहा हूं। किसी को निर्णय लेने के कुछ स्तर देकर आप लोगों की नौकरी को समृद्ध कर सकते हैं, एक वाहन के असेंबली (assembly) लाइन (line) पर हमें एक निश्चित घटक के फिट (fit) होने के साथ जुड़े कार्य करने के लिए कहते हैं, और एक कार्यकर्ता के रूप में आप जानते हैं कि इस विधानसभा में है लचीली प्रणाली जहां कई मॉडल होते हैं, और एक मिश्रण मॉडल का उत्पादन होता है। तो, हो सकता है कि आपके पास सामग्री के नियोजन से संबंधित निर्णय हो सकता है, जो आपके कार्य केंद्र में और आपके कार्य केंद्र के माध्यम से वाहन के लिए अग्रिम में विभिन्न मॉडलों (models) के लिए होगा। इसलिए, यदि आप जानते हैं कि आज की विशेष पारी में 30 अलग-अलग वेरिएंट (variant) होंगे, तो ऑपरेटर (operator) को मीटर (meter) के पास सामग्री की उपलब्धता पर ध्यान देना बेहतर होगा और योजना बना सकते हैं कि इन वाहनों में विभिन्न प्रकार के तीस अलग-अलग घटक फिट (fit) किए जा रहे हैं । और यदि आप पारी की शुरुआत में सोचते हैं कि आपको लगता है कि वे सामग्री उपलब्ध नहीं हैं, तो वह हमेशा अपनी छाप देने के लिए एक अलार्म (alarm) उठा सकता है कि हां मुझे एक निश्चित प्रकार की नौकरी के लिए एक निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। इसलिए, आप मूल रूप से अधिक जिम्मेदारियां मान रहे हैं ताकि यह प्रणाली सुचारु रूप से चले, और यह कार्यकर्ता को फिर से प्रेरित करने का सवाल हो सकता है, यह फिर से कार्यकर्ता को पुरस्कृत करने का प्रश्न हो सकता है यदि इस तरह की समस्याएं नियमित आधार पर होती हैं। तो, आप अधिक से अधिक जिम्मेदारियों को देने या गुल्लक द्वारा ऊर्ध्वाधर स्तर पर नौकरी को समृद्ध कर रहे हैं। एक व्यक्ति जो एक उत्पाद की जांच के बाद असेंबली ( assembly) लाइन (line) पर एक ऑपरेटर (operator) होता है और एक चीज के बारे में निरीक्षण करता है जो उसने किया है और एक रिकॉर्ड (record) का रखरखाव करता है यह एक अतिरिक्त कर्तव्य है जिसे वह उस कार्य में अपनी नौकरी के संवर्धन के संदर्भ में मान रहा है जो वह है अन्यथा बाहर ले जाने, कुछ संगठन और कुछ मामलों में उद्योग के साथ उपलब्ध कठोर गुणवत्ता मानदंडों के कारण, लोगों को विभिन्न प्रकार के कार्यों में इस तरह के संवर्धन रणनीति पर ध्यान दिया जाएगा जो आपको तर्क करने और छह सिग्मा आधारित नियंत्रणों की प्रक्रिया में जाने में मदद करेंगे। उच्च गुणवत्ता। इसलिए, निश्चित रूप से, लोगों को विभिन्न विशिष्टताओं में घुमाने का एक और विकल्प हो सकता है। तो, यहाँ प्रशिक्षण का सवाल है और मानव कारणों से जुड़े सीखने की अवस्था का सवाल है। क्योंकि जाहिर है, अगर एक इंसान को एक निश्चित कार्य करने के लिए विशेष किया जाता है, और वह मान लेता है कि वह कार्य को बदल देता है और उसे फिर से पूरी दक्षता से एक अलग कार्य करना है। इसलिए, सभी लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए नहीं है कि लोगों को आपके बारे में जानने के लिए, भिन्न सीखने की प्रतिक्रियाएँ या सीखने की अवस्था हो सकती है और एक बार जिनके पास तेजी से प्रतिक्रियाएँ होती हैं, वे ऐसे रोटेशन (rotation) के लिए अधिक अपनाने योग्य हो सकते हैं, जो उनके सीखने के संदर्भ में कम हैं। क्षमताओं। तो, इसलिए, स्क्रीनिंग (screening) का सवाल है कि हर किसी को घुमाया नहीं जा सकता, लेकिन कुछ को घुमाया जा सकता है। लेकिन तब आप जॉब (job) स्पेशलाइजेशन (specialization) के क्षेत्र से बाहर निकलते हैं, जब आप जॉब (job) इज़ाफा जॉब (job) संवर्धन और जॉब (job) रोटेशन (rotation) की ऐसी रणनीति पेश करते हैं। तो आइए हम व्यक्तिगत रूप से देखें कि उनका क्या मतलब है। (स्लाइड (slide) समय देखेंः 15:25 ) Job Enlargement and Job Enrichment Job enlargement - horizontal increase in the number of activities included in the work, but the activities are still of the same type or level Example: worker assembles entire product module rather than just three parts in the module Job enrichment - vertical increase in work content, so that scope of responsibility is increased Example: worker plans, sets up, produces, and inspects parts rather than just produces इसलिए, जैसा कि मैंने आपको बताया था कि नौकरी में वृद्धि का मतलब आमतौर पर काम में शामिल गतिविधियों की संख्या में क्षैतिज वृद्धि होगी। लेकिन गतिविधियाँ अभी भी उसी प्रकार के स्तर के हैं उदाहरण के लिए, कार्यकर्ता केवल एक घटक या एक भाग को उत्पाद मॉड्यूल (module) में इकट्ठा करने के बजाय, वह उन सभी घटकों को इकट्ठा करने के लिए जिम्मेदार है जो एक निश्चित मॉड्यूल (module) में हैं। इसलिए, एक तरह से वह कार्यों का एक विस्तारित सेट (set) प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वह उस निश्चित विधानसभा के पीछे जिम्मेदार हो रहा है जिसे वह एक निश्चित उत्पाद के लिए बना रहा है। इसलिए, एक बार नौकरी मॉड्यूल (module) को बढ़ाकर उन्हें वह सम्मान या आदेश दें या हमें बताएं कि आप उस उत्पाद के पीछे एक स्वामित्व जानते हैं जो वह पैदा कर रहा है। तो, नौकरी में इज़ाफा आम तौर पर उस उद्देश्य से किया जाता है; जाहिर है, एक समय वितरण होने जा रहा है ऐसा नहीं है कि अगर कार्यकर्ता को उपलब्ध कुल समय एक्स (X) है तो आप उसे कुछ ऐसा दे सकते हैं जो 2 एक्स (X) या 3 एक्स (X) है। तो, यह समय संतुलित होना चाहिए। लेकिन फिर आप उसे विभिन्न स्तरों पर हिस्सेदारी दे सकते हैं, जहां उसे लगता है कि वह क्या कर रहा है, उसी समय सीमा के भीतर उसे ऐसा लगता है कि वह ऐसा कर रहा है ताकि नौकरी में इज़ाफा हो, वह नौकरी में वृद्धि कर सकता है, जो ऊर्ध्वाधर वृद्धि के बारे में है। कार्य सामग्री मुझे लगता है कि मैंने इस क्षेत्र के बारे में पर्याप्त उल्लेख किया है। कार्य उपकरण वह पर्याप्त मशीनरी (machinery) सेट (set) करता है वह आपको निरीक्षण करता है कि आप जानते हैं, उसके मूल कार्य से जुड़ी ये सभी चीजें उपांग हैं जिनके लिए
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१ अहिंसा-व्रत जैसे नदी के प्रवाह को मर्यादित रखने के लिये दो किनारों की आवश्यकता होती है, वैसे ही जीवन के प्रवाह को शुद्ध और सरल बनाने के लिये व्रतों की आवश्यकता है। नदी अगर यह कहे कि 'मुझे दो किनारों का बंधन नहीं चाहिये, मैं तो स्वतंत्र होकर बहूँगी तो उसका पानी इतस्ततः छिन्न-भिन्न हो जायगा । यही हाल मानव जीवन का भी है। मनुष्य पर व्रतों का बंधन नहीं रहेगा, तो उसकी जीवन-शक्ति भी तितर-वितर होकर क्षीण हो जायगी । अतः जीवन-शक्ति को केन्द्रित कर योग्य दिशा में उसका उपयोग करने के लिये व्रतों को अनिवार्य आवश्यकता है। भगवान् महावीर ने वारह व्रत बताये हैं। उसमें सबसे पहला व्रत अहिंसा का है । दशवकालिक सूत्र में कहा है किसव्वे जीवा वि इच्छन्ति जोविउं न मरिज्जिउं । तम्हा पाणीवह घोरं निग्गंथा वज्जयंति रगं ।। अर्थात्- सभी प्राणियों को जीवन प्रिय होता है और मरण अप्रिय । अतः साधक पुरुषों द्वारा प्राणी वध नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि यह भयंकर पाप है । हिंसा की व्याख्या करते हुए प्राचार्य उमास्वाति कहते हैं कि- 'प्रमत्तयोगात् प्राण-व्यपरोपणं हिंसा' प्रर्थात् प्रमत्तयोग से प्राणों का नाश करना हिंसा है। प्रमत्तयोग अर्थात् राग-द्वेष से की गई प्रवृत्ति हिंसा होती है । सब प्राणियों को अपने कर्मानुसार रक्षा करने के लिये नाखून, खाने के लिये दाँत और डाढ़, देखने के लिये नेत्र, सुनने के लिये कान, सूंघने के लिये नाक, चखने के लिये जीभ श्रादि मिले हुए हैं । इन अंगोपांग को छीन लेने का अधिकार मनुष्य को नहीं है । जो मनुष्य एक नाचीज मक्खी की पांख भी नहीं बना सकता है, उसे उसको मारने का क्या अधिकार है ? परन्तु स्वार्थांध बना हुआ मनुष्य कुछ विचार नहीं कर सकता है। मांसाहार करने वाले कई बार यह दलील करते हैं कि 'ये सभी पशु-पक्षी किसके लिये उत्पन्न किये गये हैं ? ईश्वर ने इन्हें मनुष्यों के लिये ही उत्पन्न किया है ।' ऐसा कहने वालों से अगर सिंह यह कहे कि 'ईश्वर ने मनुष्यों का सृजन मेरी खुराक के लिये ही किया है' तो कहिये लोग इसका क्या जवाब दे सकेंगे ? इस दलील में और कोई तथ्य नहीं है। उसमें केवल स्वार्थ और स्वादलोलुपता ही है । जैसा जीव मनुष्य में है, वैसा ही जीव पशु पक्षियों में भी है । जैसे मनुष्य यह नहीं चाहता कि सिंह या वाघ उसको अपना आहार बना ले, वैसे ही मनुष्य को भी चाहिये कि वह अपने खाने के लिये पशु-पक्षियों का उपयोग न करें । हां, यह सच है कि मनुष्य में एक विशिष्ट प्रकार की बुद्धि है, जो कि पशु-पक्षियों में नहीं है । परन्तु इसका अर्थ यह नहीं, कि वह इसका उपयोग पशु-पक्षियों को पकड़ने में, मारने में और खाने में करें । ऐसा करना तो बुद्धि का दुरुपयोग ही कहा जायेगा । अतः उसे अपनी बुद्धि का सदुपयोग सब की रक्षा करने में ही करना चाहिये । जैसे मानव को अपना जीवन- प्रिय है, वैसे पशु-पक्षियों और छोटे-छोटे जीवों को भी अपना जीवन प्रिय होता है । अतः जीव हिंसा से दूर रहना चाहिये । अहिंसा आध्यात्मिक जीवन की है- नींव है । इसीलिये बारह व्रतों में उसे सर्व प्रथम स्थान दिया गया है । भगवान् महावीर के शब्दों में कहें, तो श्रहिंसा भगवती है । विना भगवती की शरण में प्राये साधक. पुरुष अपना विकास नहीं कर सकता है । सब व्रतों में हिंसा व्रत जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही उसका पालन दुष्कर है । महात्माजी के शब्दों में कहें तो 'अहिंसा का मार्ग जितना सीधा है, उतना ही वह सकडा भी है। यह मार्ग खांडे की धार पर चलने जैसा है । नट, जिस रस्सी पर एक नजर रख चलते हैं, उससे भी सत्य-अहिंसा की यह रस्सी पतली है । थोड़ी भी सावधानी रही कि धड़ाम से नीचे जा गिरे । उसके दर्शन तो प्रतिक्षण उसकी साधना करने से ही हो सकते हैं ।' किसी को भी नहीं मारना - इसका समावेश तो होता ही है, परन्तु कुविचारों को नहीं छोड़ना भी किसी का बुरा चाहना, जो वस्तु दूसरों को चाहिये अपना अधिकार जमाये रखना भी हिंसा है । हमें हिंसा है । उस पर अहिंसा के पालन से ही सच्ची शान्ति प्राप्त की जा सकती है । हिंसा से कभी शान्ति नहीं मिल सकती । अंग्रेज लेखक ल्युथर ने कहा है कि - Nothing good ever comes of violence अर्थात् - हिंसा में से कभी अच्छा परिणाम निकलने वाला नहीं है। एक दूसरे अनुभवी ने लिखा है कि - The violence done to us by others is often less painful than that which we do to others. अर्थात् हम दूसरों को कष्ट देते हैं, उसके बदले अगर वे हमें कष्ट दें, तो यह उतना दुःखदायी नहीं होता है, जितना कि हम दूसरों को देते हैं । हम दूसरों को अधिक कष्ट देते हैं, जब कि दूसरों की तरफ से हमें बहुत कम कष्ट दिया जाता है । इस वक्रोक्ति में रहस्य यह है कि अपनी तरफ से किसी को दुःख न पहुँचे, इसकी हमें सावधानी रखनी चाहिये । दूसरे शब्दों में कहें, तो खुद सहन करना और दूसरों को न सताना, यही सबका ध्येय होना चाहिये । इसी का नाम हिंसा है । दया, करुणा, अनुकम्पा, सेवा, प्रेम, मैत्री आदि सभी अहिंसा के ही स्वरूप हैं । दयालु-हृदय नन्दनवन की तरह होता है । जैसा कि कहा भी है - Paradise is open to all kind hearts. दयालु-हृदय के लिये स्वर्ग के द्वार खुले ही होते हैं । निष्ठुर-हृदय के बादशाह से एक दयालु हृदय का कंगाल वड़ा-चढ़ा होता है । यही बात टेनीसन ने भी कही है कि- Kind hearts are more than coronets. एक दूसरे विद्वान् ने भी कहा है कि Kindness is the golden chain by which society is bound together. ufq çar aîì zavi जंजीर समाज को संगठित रखने के लिये है। वायरन के शब्दों में कहें तो - The drying up a single tear has more of honest fame than shedding ceas of gore. अर्थात[ ७ युद्ध में खून को नदियाँ बहा देने वाले विजेता से वह साधारण मनुष्य, जो दुखी मानव का ग्रांसू पोंछता है, अधिक प्रशंसा का पात्र है । अतः अहिंसा के साथ-साथ दया और मैत्री की भी आराधना करनी चाहिये । दया से जीवन उन्नत बनाया जा सकता है । एक समय की बात है, एक जंगल में आग लग गई। सभी पशु-पक्षी उससे बचने के लिये इधर-उधर दौड़ रहे थे । उस जंगल में एक हाथीभी अपने झुण्ड के साथ रहता था । आग से बचने के लिये उसने अपने झुण्ड के साथ मिल कर एक योजन अर्थात् चार कोस का मैदान साफ कर डाला । जहाँ एक सूखी घास का तिनका भी न रहा, वहाँ अब आग लगने का डर नहीं था । अतः भागे हुए पशु वहाँ आकर इकठ्ठे होने लगे । हाथी ने तो अपने समुदाय की रक्षा के लिये ही यह मैदान साफ किया था, परन्तु फिर भी उदार भाव से उसने अन्य प्राणियों को भी वहाँ आश्रय दिया । मैदान पशुओं से सारा भर गया था । कहीं पांव रखने की भी जगह न रही । इतने में एक खरगोश वहाँ ग्रा पहुँचा । पर जगह कहाँ ? इतने ही में नायक हाथी ने अपना एक पाँव शरीर खुजलाने के लिये ऊपर उठाया । खरगोश ने पाँव के नीचे की जगह खाली देखी, तो तुरन्त वहाँ आकर बैठ गया । हाथी ने पाँव नीचा किया, तो उसे मालूम हुआ कि यहाँ भी कोई प्राणी आकर बैठ गया है । अतः उसने अपना पाँव पुनः ऊपर उठा लिया और तीन पैर से ही खड़ा रहा । जंगल की दावाग्नि तीन दिनों बाद शान्त हुई । उस दिन तक हाथी ने अपना पाँव ऊपर ही उठाये रखा । अग्नि के शान्त हो जाने पर वहाँ के सभी प्राणी धीरे-धीरे बाहर निकलने लगे । उस खरगोश के चले जाने पर हाथी ने भी अपना पाँव जमीन पर रखने के लिये नीचा किया। परन्तु लगातार तीन रोज तक इस तरह खड़े रहने से उसकी नसें तन गई थीं अतः धड़ाम से नीचे गिर पड़ा और तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो गया । यही हाथी का जीव मगध राजा श्रेणिक के यहाँ मेघकुमार के नाम से उत्पन्न हुआ। अनुकम्पा, करुणा, दया या ग्रहिंसा का ही प्रताप है, 'कि एक हाथी का जीव मर कर राजकुमार बना । हाथी जैसा प्राणी भी अपने जीवन की परवाह न कर इतनी दया पाल सकता है, तो संस्कारी मानव से विशेष प्राशा रखना अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता । हाथी का यह प्रदर्श दृष्टान्त ग्राज के श्रीमन्तों को याद रखने जैसा है । हाथी जैसे पशु के पास अन्य कोई ऐसा वाह्य साधन नहीं होता है कि जिससे वह दूसरों की मदद कर सके । फिर भी उसने अपने शरीर बल का उपयोग कर चार कोस की जमीन पशु-पक्षियों के रक्षण के लिये साफ कर दी - उपद्रव रहित बना दी । तब कहिये, ग्राज के श्रीमन्त जिनके पास सूट द्रव्य और आय के भी अनेकों साधन हैं, वे चाहें तो अपने तन, मन, धन और द्रव्य - साधन सामग्रियों का कितना सदुपयोग कर सकते हैं ? हाथी जितना करुणाभाव भी आज के श्रीमन्तों में श्रा जाय, तो संसार की विषमता दूर होने में देर न लगे । विषमता दूर होने पर सव मनुष्य अपना जीवन सुख से व्यतीत कर सकते । फिर किसी को भी अपने जीवन निर्वाह के लिये श्रनीति का सहारा न लेना पड़े, न असत्य बोलना पड़े, और न किसी का शोषण ही करना पड़े। ऐसा करने से ही दोनों को अर्थात् श्रीमतों और गरीबों का श्रेय निहित है। विशेष भोग देने की बात तो दूर रही, श्रीमन्त अपने मकान की छाया का उपयोग ही गरीबों को करने दें, तो इससे उन्हें काफी राहत मिल सकती है। बचा हुआ अन्न, फटे हुए वस्त्र और काम में न आने वाली अन्य वस्तुएँ गरीबों को दे दी जाय, तो यही उनके लिये रेगिस्तान में पानी की नहर सिद्ध होगी । श्रीमन्तों के लिये तो यह बढ़े हुए नखों और बालों को काट डालने जैसी सामान्य वात ही कही जायगी। किसी-किसी स्थान पर तो बिल्कुल विपरीत स्थिति दिखाई पड़ती है। अपने कुए में से कोई गरीब पानी भरने प्राता है, तो उसे चौकीदार द्वारा धमकाया जाता है । कुए के पानी का भी यह हाल है, तो नल के पानी की तो बात ही कहाँ रही ? ऐसी संकुचित मनोवृत्ति वालों के लिये मेघकुमार के हाथी के भव की अनुकम्पा उदारता और स्वार्थ त्याग की भावना शिक्षाप्रद है । हमारे पूज्य गुरुदेव इन सब व्रतों की बड़ी व्यापक और सुन्दर व्याख्या करते हैं । वे कहते हैं कि 'मन, वचन और काया की कोई भी प्रवृत्ति करने से पूर्व उसके भावी परिणाम का विवेकमय विचार करना अहिंसा है। अहिंसा का उपासक व्यापार करने से पूर्व यह विचार कर लेता है कि मेरा व्यापार शोषक है या पोषक ? जिस व्यापार से दूसरे की आजीविका छिन जाती हो, हिंसा का आधार लेना पड़ता हो, तो ऐसे व्यापार से हिंसक व्यक्ति अलग ही रहता है । वह अपने जीवन की हर एक प्रवृत्ति को इसी कसौटी पर कस कर देखता है । इसका प्राचार, विचार. और उच्चार अहिंसामय ही होता है।' जैन लोग जलाने के लिये लकड़ी या कंडों का उपयोग भी देन कर करते हैं । चूल्हा, सिगड़ी, चक्की आदि को भी साफ कर उपयोग में लाते हैं । शाक-भाजी को भी बारीकी से देखकर पकाते हैं। इस प्रकार लट, कीड़ी ग्रादि जीवों की रक्षा करने के लिये इतनी सावधानी रखते हैं। वनस्पति के जीवों की रक्षा करने के लिये वे अमुक हरी शाक-भाजी का भी त्याग कर देते हैं । एक लट को मारने के लिये यदि कोई उसे पाँच लाख रुपया भी दे, तो वह उन्हें लेकर लट को मारने के लिये तैयार नहीं होगा । इस प्रकार अहिंसा के पालन में जैन लोग इतनी अधिक सावधानी रखते हैं, फिर भी प्रश्न यह है कि उनकी अहिंसा में तेजस्विता क्यों नहीं है ? इसका उत्तर स्पष्ट है कि वे हिंसा का व्यापक अर्थ समझे नहीं हैं। हिंसा के दो प्रकार हैं - एक विषेधात्मक अहिंसा और दूसरी विधेयात्मक अहिंसा । किसी भी जीव को कष्ट नहीं देना, निषेधात्मक अहिंसा है और पीड़ितों का दुःख दूर करना, यह विधेयात्मक ग्रहा है। जैसे किसी को कष्ट देना हिंसा है, वैसे ही शक्ति होने पर पीड़ितों का दुख दूर न करना भी हिंसा है । एक मनुष्य भूख से तड़फड़ा रहाहो, और आपके पास बचा हुआ भोजन पड़ा हो, फिर भी आप उसकी भूख शान्त न करें, तो अहिंसा का पालन कैसे किया जा सकता है ? एक मनुष्य कपड़े के विना ठंड से थरथर काँप रहा है, आपके पास वस्त्रों की पेटियाँ भरी पड़ी हैं, आप चाहें तो उसे वस्त्र देकर उसका कष्ट निवारण कर सकते हैं, फिर भी आप उसके प्रति उपेक्षा रखें, तो ऐसी हालत में श्राप हिंसक कैसे कहे जा सकते हैं ? एक बीमार मनुष्य की सेवा करने के लिये आपके पास समय और सामर्थ्य भी है, फिर भी आप उसकी सेवा न करें तो समझ लेना चाहिये, कि अभी आपके जीवन में अहिंसा पूर्ण रूप से प्रकट नहीं हुई है । ज्ञान होने पर दूसरों का दूर नहीं करते हैं, तो समझ लेना चाहिये कि अभी हम अहिंसा का विधेयात्मक रूप समझे ही नहीं । बिजली के भी दो तार होते हैं - नेगेटिव और पोजेटिव । ये दोनों जब शामिल होते हैं, तभी बिजली प्रकाश देती है । इसी प्रकार जीवन में भी जब अहिंसा के दोनों प्रकाशों का निषेधात्मक और विधेयात्मक रूपों का संगम होता है, तभी वह अहिंसा सजीव होकर तेजस्वी बन सकती है । मैत्री, अहिंसा का विधेयात्मक स्वरूप है। मंत्री सुखप्रद है और द्वेष दुःखप्रद । मनुष्यों के परस्पर व्यवहार में मंत्री का प्रभाव होता है, तो दुनिया में दुख बढ़ जाता है । चोर को अपना घर छोड़ कर दूसरा घर प्रिय नहीं होता । इसीसे वह अपने लाभ के खातिर दूसरे के घर से चोरी करने के लिये प्रेरित होता है एक खूनी अपने शरीर को ही चाहता है, दूसरे के शरीर को नहीं । इसीसे वह दूसरे का खून करने के लिये तत्पर हो जाता है। एक श्रीमन्त अपने कुटुम्ब को ही चाहता है, दूसरों के कुटुम्ब को नहीं । इसीसे वह अपने कुटुम्ब की भलाई के लिये दूसरों के कुटुम्बों का शोषण करता है । राजा अपने देश के सिवाय अन्य देशों को नहीं चाहता है । इसीलिये वह दूसरे देशों पर चढ़ाई करता है । अपने घर की तरह ही दूसरों का घर भी समझ लिया जाय, तो फिर कोई किसी के यहाँ चोरी कर सकता है ? सभी अपने शरीर की तरह ही दूसरों का शरीर भी कीमती समझने लग जाय, तो फिर कोई किसी का खून कर सकता है ? सभी अपने कुटुम्ब की तरह ही ग्रन्थ कुटुम्बों को भी चाहने लग जाय, तो कौन किसका शोषण कर सकता है ? सभी अपने देश की तरह अन्य देशों को भी चाहने लग जाएं, तो कौन किस पर चढ़ाई कर सकता है ? इस प्रकार अगर गहरा विचार किया जाय, तो प्रतीत होगा कि दुनिया के सभी दुःखों की एक दिव्य औषधिमैत्री ही है । अहिंसक पुरुप सेवाभावी होता है, उसमें सेवावृत्ति ठूंसठूस कर भरी होती है। अहिंसा के आराधक को अपने घर से सेवा की शुरुआत करनी चाहिये और धीरे धीरे उसे सारी दुनियाँ तक फैला देनी चाहिए । परन्तु उसकी सेवा में स्वार्थ की गंध नहीं चाहिए । सेवा निष्काम भाव से करनी चाहिये । अन्यथा वह सेवा, सेवा नहीं, कुसेवा हो जायगी । सेवा के क्षेत्र में ऊंचनीच का भेदभाव, गरीब-श्रीमन्त का भेदभाव या स्वजन-परजन का भेदभाव नहीं हो सकता है । ऐसी निःस्वार्थ अहिंसा का प्रभाव हर एक पर पड़ता है । जितने परिमाण में सेवा का विकास हुआ होता है, उतने ही परिमाण में उसका प्रभाव भी पड़ता है। अहिंसक के सामने क्रूर प्राणी भी अपनो हिसक स्वभाव भूल कर नम्र वन जाता है। जैसा कि कहा भी है कि - 'हिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैर-त्यागः' अहिंसा के निकट सव प्राणी अपना वैर छोड़ देते हैं । किसी भी क्रूर, दुष्ट या हिंसक मनुष्य को सुधारना होगा, तो आप उसे हिंसा या क्रोध से नहीं सुधार सकेंगे, परन्तु अहिंसा, प्रेम और मैत्री से ही उसका सुधार किया जा सकेगा। अपने नौकर को भी दवाव से, हुक्म से या से नहीं सुधार सकेंगे। आप अपने प्रेमपूर्ण वर्ताव से हो उसे सुधार सकेंगे । कई लोग कहते हैं कि दया का बदला कई बार उल्टा मिलता है, दया बताने जाते हैं, तो नौकर भी सिर पर सवार हो जाता है। ऐसा कहना ठीक नहीं है । जो नौकर प्रेमपूर्ण व्यवहार के प्रति भी सावधानी प्रदर्शित करता है, उसके लिये अगर आप कठोर बनेंगे, तो उसका व्यवहार और अधिक कटु हो जायगा । उदार सेठ के प्रति भी जो नौकर असावधानी बर्तता है, वह नौकर अनुदार सेठ को इससे भी अधिक नुकसान पहुंचाता है। कठोर बरताव से उसमें सुधार होने की संभावना बहुत कम रहती है, जब कि बिगड़ने की प्रेमहीन बनने की अधिक निकर्ष यही है कि चाहे जैसी परिस्थति क्यों न हो, मैत्री और प्रेमपूर्ण बर्ताव का परिणाम ही अच्छा निकलता है । कोई मनुष्य चाहे जितना बुरा क्यों न हो, पर चंडकौशिक सर्प जितना तो भयंकर नहीं होगा न ? चंडकौशिक सर्प का विष मीलों तक हवा में मिलकर असर पहुँचाता था और कोई भी प्राणी उसके पास नहीं जा सकता था। ऐसे जहरीले सर्प को भी भगवान महावीर ने अपनी मैत्री से सुधारा था । भगवान् महावीर ने अपने आदर्श व्यवहार से जो मार्ग दूसरों को सुधारने का बताया, वही राजमार्ग है। उसी पर चल कर दुनिया का कल्याण हो सकता है । गालियाँ देकर किसी का दिल दुखाना, अपमान करना, निन्दा करना, मन से किसी का बुरा सोचना, किसी को लड़नेझगड़ने की सलाह देना आदि सभी हिंसा के भिन्न-भिन्न प्रकार हैं, जो कि अहिंसा के उपासक के लिये त्याज्य हैं । हिंसा और अहिंसा का माप निकालना कठिन नहीं है । जितने अंशों में समभाव हो, उतने ही अंशों में हिंसा और जितने में विषमभाव हो, उतने ही अंशों में हिंसा समझ - लेनी चाहिये । समभावी पुरुष पत्थर का जवाव भी फूल से देता है । विषय-कषाय पर विजय पाना ही है और यही तप भी है । अहंभाव के त्याग का नाम ही अहिंसा है । ऐसी हिंसा का पालन वीर पुरुष ही कर सकता है । कायर का इसमें काम नहीं । ग्रहिंसा के पालन के लिये हमारे गुरुदेव फरमाया करते हैं कि वरसते हुए पानी का प्रहार जैसे किसान अपनी खेती के लिये हर्षित होकर झेलता रहता है, वैसे ही हिंसक को भी अपनी हंस रूपी खेती की प्रगति के लिये सभी तरह के कष्टों और पत्तियों को सहर्प झेलते रहना चाहिये । चार - अहिंसा व्रत के पांच प्रतिचार कहे गये हैं । ये अतिचार साधक को जानने योग्य हैं, आचरण के योग्य नहीं । ये पांच अतिचार इस प्रकार हैं बन्धवधच्छविच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः ।' वन्व, वध, छविच्छेद, अतिभार, और अपाननिरोध । बंध-किसी भी प्राणी को गाढ़ बन्धन से बांधना, या उसे अपने इष्ट स्थान पर जाने से रोकना बंध कहलाता है । कई लोग बंध का अर्थ बड़ा मर्यादित कर देते हैं और उसका अर्थ पशु तक ही समझते हैं । मानव को अनेक तरह से वांध लेने में वे व्रतभंग नहीं समझते। उनका यह अर्थ ठीक नहीं है । बंध का अर्थ मानव के व्यवहारों में भी लागू होता है। नौकरों को अधिक समय स्थानों पर जाने देने में अन्तराय तक रोक रखना, उन्हें अपने इष्ट डालना, निर्दिष्ट समय के उपरान्त उनसे इच्छा विरुद्ध काम लेना, इन सबका भी बंध के अतिचार में समावेश होता है । एक मनुष्य गरीबी की वजह से नौकरी करता है, परन्तु उसकी गरीबो का अनुचित लाभ उठा कर उससे अधिक काम लेना ठीक नहीं है । यह अधर्म है। ऐसा करने से बंध का अतिचार लगता है, औौर व्रत में दूषण लगता है । वध - किसी भी त्रस जीव को मारना वध है । स्पष्टतः आज कोई किसी को मारना चाहेगा नहीं, परन्तु आज व्यवहार इस तरह का हो गया है कि उसमें इस प्रतिचार से बचना कठिन-सा हो गया है । बैलों के प्रार लगाना और घोड़ों के चाबुक लगाना वध है। दयाधर्मो अपने हाथों से चाबुक लगाने में हिचकिचा जायेंगे। यह सही वात है, परन्तु जब वे कभी घोड़ागाड़ी या बैलगाड़ी से मुसाफिरी कर रहे हों, उस समय हाँकने वाला बैलों पर आर लगावे या घोड़ों पर चाबुक जमावे तो क्या वे उस समय मना करेंगे या जल्दी पहुंचने की इच्छा से उसके कार्य में अपनी मूक सम्मति प्रकट करेंगे ? बैल या घोड़े को चाबुक लगाने का निमित्त बैठने वाला ही बनता है । अतः वह भी अपनी मूक सम्मति द्वारा चाबुक मारने वाले की तरह ही वध अतिचार का भागी बनता है । चमड़े की अधिकांश वस्तुएँ पशुओं की हिंसा करके ही बनाई जाती हैं । सुकोमल चमड़ों की वस्तुओं के लिये नवजात पशु की या गर्भस्थ पशु की हत्या की जाती है और उसके चमड़े से ये चमकीली और कोमल वस्तुएँ तैयार की जाती हैं। ऐसी वस्तुओं का उपयोग करने वाला भी परोक्षतः वध में भागीदार बनता है। इसी तरह चरवी वाले और रेशमी वस्त्र पहिनने वाले या मोती के गहने धारण करने वाले भी त्रस और पंचेन्द्रिय जीव के वध के भागीदार बनते हैं। वृत्तिच्छेद का पाप भी बन्ध की तरह ही है। शास्त्रों में कहा गया है कि वृत्तिच्छेद करने वालों को भी वध का ही पाप लगता है । वध में स्पष्ट रूप से प्राणियों का वध होता है, जब कि वृत्तिच्छेद में अस्पष्ट रूप से । अतः वध के अतिचार का विचार करते समय इसका भी विचार करना चाहिये कि कहीं हमारी `क्रिया वृत्तिच्छेद करने वाली तो नहीं है ? गृहोद्योग को नष्ट करने वाले जो व्यवसाय-धन्धे हैं, उनसे कई गरीबों और विधवाओं की ग्राजीविका नष्ट हो जाती है । जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कारखानों, मिलों या यंत्रोद्योग को उत्तेजना देते हैं, पोषण करते हैं, वे इस वृत्तिच्छेद के भागीदार बनते हैं । पहले की गरीब विधवाएं चक्की पीस कर अपना भरणपोषण करती थीं, वालकों को वड़ा करती थीं और पढ़ाती थीं । परन्तु जब से अनाज पीसने की चक्की आई, तब से गरीब विधवाओं का यह धन्धा छिन गया है। उनकी आजीविका नष्ट हो गई है। इसमें सूक्ष्म रूप से वध का पाप रहा हुआ है। कपड़े की मिलों से चरखा चलाने वालों का तथा बुनकरों का धन्धा नष्ट हो गया है। इस वृत्तिच्छेद के भागीदार सभी मिल मालिक और शेयर होल्डर ही गिने जायेंगे। इस प्रकार गृहोद्योग बन्द करने वाले जितने भी यंत्रोद्योग हैं, उनमें बनी हुई वस्तुओं का उपयोग करने से भी वृत्तिच्छेद और वध का भागीदार वनना पड़ता है । कई लोग यह तर्क करते हैं कि 'हम तो मिलों के तैयार कपड़े पहनते हैं, इसमें क्या पाप करते हैं ? हम उन्हें बनवाते थोड़े ही हैं ? इसका पाप तो मिल चलाने वालों को लग सकता है, हमको क्यों ! इस पर जरा गहरा विचार करेंगे, तो आपको प्रतीत
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दुनिया सुंदर, रहस्यमय और आश्चर्य की बात करने में सक्षम हैहर दिन उदाहरण के लिए, कुछ लोग जानते हैं कि दुनिया में कम लोकप्रिय सार्वजनिक शिक्षा है, जो कि प्रशांत महासागर के विशाल विस्तार के बीच खो गई है - नाउरू गणराज्य की दुनिया में सबसे छोटी हैः नक्शे पर इसे भूगोल के हर प्रशंसक नहीं मिलेगा। यह एक विशिष्ट प्रवाल एटोल है,लाखों साल गहराई से बढ़ती। एक लंबी खोज के परिणाम स्वरूप की खोज, नक्शे पर नाउरू गणराज्य एक मामूली लंबाई अंडाकार तरफ सेंध साथ (4 किमी चौड़ा और 6 किमी लंबी) की तरह लग रहा है - यह ऍनिबरे बे (पूर्वी तट) है। तिथि करने के लिए, नाउरू का द्वीप बढ़ जाता है30-40 मीटर की औसत से समुद्र के स्तर से। (विभिन्न स्रोतों, कम से कम 60 और 71 से अधिक नहीं मीटर के अनुसार) पर सतह केवल द्वीप के उच्चतम बिंदु होगा - ग्लोबल वार्मिंग के बारे पर्यावरणविदों के निराशावादी भविष्यवाणियों सच हो, तो इसमें से अधिकांश पानी के तहत किया जाएगा। अपने आप में, नाउरू का द्वीप एक विशाल शब्द में वर्णित किया जा सकता हैः दुःखदायक एक छोटे से राज्य का इतिहास स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अजीब और दुखद दोनों के बीच कितनी दूरी है। लोग यहां प्राचीन काल में यहां बसने लगेः लगभग 3 हजार साल पहले वैज्ञानिकों का मानना है कि यह एक प्राचीन नृजाज था, जिसकी वजह से बाद में पॉलिनेशियन और माइक्रोनेशिया का गठन किया गया था। उस समय जब कप्तान द्वारा द्वीप की खोज की गई थीअंग्रेजी जहाज, D.Firn (1798), यह 12 जनजातियों, जो राज्य का दर्जा की बहुत कम विचार था का निवास स्थान था। आसपास के पानी में Nauruans मछली, खेती की अपनी प्रजाति (मिल्कफिश) अंतर्देशीय जल में से एक है, बड़ा हो गया नारियल और pandanus और किसी भी तरह सभ्यता के बिना कामयाब (क्षेत्र में वहाँ एक झील बुआडा कहा जाता है)। इंग्लैंड के फायरन ने राय में दिलचस्पी नहीं ली हैस्वदेशी लोग, जिसे द्वीप "सुखद" कहा जाता है और न्यूजीलैंड के लिए छोड़ दिया जाता है, जहां वह मूल रूप से चला गया था। इस क्षण से मूल निवासी की जनजातियां शुरू हुईंः भविष्य के नाउरू गणतंत्र को "प्रगतिशील" हमलों के लगभग लगभग लगातार हो रहे थे। शुरू करने के लिए, यूरोपियों ने द्वीप पर दिखाई दिया, और उनके साथ - मजबूत मादक पेय थे। स्थानीय आबादी ने "सभ्यता के उपहार" को बहुत जल्दी से पेश किया। भाग - पिया, हिस्सा एक दूसरे युद्धों में मारे गए, कोई नई बीमारियों (वैतनिक रोगों सहित) से परिचित हो गया। क्योंकि एक छोटे से देश में संसाधन नहीं थे,खुद को बचाने के लिए, "अच्छा सफेद लोग" उसे अपने संरक्षण में ले गए सबसे पहले, मूल निवासी के मामलों इंग्लैंड में लगे हुए थे, 1888 में, इस द्वीप को बेहिचक जर्मनों द्वारा कब्जा कर लिया गया, जिन्होंने जलगुगा कंपनी के प्रबंधन को इसे दे दिया। हालांकि, द्वारा और बड़े, कोई भी विशेष रूप से नाउरू में दिलचस्पी थी - खजूर के पेड़ तो प्रशिक्षित पक्षियों के साथ मूल मछली पकड़ने बहुत बड़ा व्यवसाय की शार्क से प्रभावित नहीं हैं। द्वीप जब नाटकीय रूप से स्थिति बदल गईफॉस्फेट रॉक की खोज की समृद्ध जमा - वे जो उसकी कहानी एक निर्णायक प्रभाव था। जब यह स्पष्ट हो गया पैसा बनाने के लिए कुछ है कि वहाँ, शक्तियों तुरंत नाउरू से अधिक लेने के लिए है किः राज्य किसी की कमजोरी का लाभ लेने के, कभी नहीं बन दुनिया hegemon सक्षम नहीं है। 1906 में, द्वीप की प्रकृति को व्यवस्थित खनन के दौरान नष्ट करना शुरू किया। जब प्रथम विश्व, एक मिठाई टुकड़ा,खनिजों से भरा हुआ, बहुत से लोग मिलना चाहते हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई लोग आगे बढ़ने वाले पहले थे (जापानी के आगे नहीं, जो शाब्दिक रूप से पहुंचे, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी)। इसलिए भविष्य के नौरू गणराज्य ने वैश्विक युद्ध में भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के "विंग के तहत" लीग ऑफ नेशनल के स्थानांतरण में उन्हें एक साथ द्वीप का प्रबंधन करना पड़ा, लेकिन ज्यादातर इन कार्यों ऑस्ट्रेलिया द्वारा ग्रहण कर लिए गए थे। खनिज संसाधनों के अवैध खनन थापूर्ण गति, जबकि प्राकृतिक संसाधनों के बहुत मालिक बहुत कम थे मूल निवासी ने अर्ध-सभ्य अस्तित्व को आगे बढ़ाया, जो फास्फोरियों के सक्रिय निष्कर्षण से जटिल था, और फिर युद्ध फिर से टूट गया। विजेताओं का संकेतपूर्ण क्रूरताः यह क्यों नहीं जाना जाता है, लेकिन वे चुउक द्वीप समूह, जहां उनमें से लगभग आधे की मृत्यु हो गई को 1.2 हजार। स्थानीय लोगों निर्वासित। केवल 1946 Nauruans में जीवित बचे लोगों को अपनी मातृभूमि पर लौटने के लिए सक्षम थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, 1 9 46 में,लंबे समय तक रहने के लिए लीग ऑफ नेशंस का आदेश दिया संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाई गई, उसके सभी जनादेश क्षेत्रों को उनकी देखभाल के तहत लिया गया है। द्वीप के संरक्षक, जो अब नाउरू गणराज्य हैं, को पहले के समान ही नियुक्त किया गया था - और जीवन अपनी बारी में प्रवाह शुरू हुआ। स्वतंत्रता के लिए प्रयास करते हुए, मूल निवासी ने शुरू किया50 के दशक में प्रकट 1 9 27 में गठित, नेताओं की परिषद स्थानीय सरकार की एक इकाई में बदल गई थी जिसका औपनिवेशिक सरकार में एक सलाहकार वोट का अधिकार था। यह विरल है, लेकिन "थोड़ा सा, एक चम्मच - यह अच्छा है।" तब यह था कि स्थानीय लोगों के लिए खुश दिनों की शुरुआत हुईआबादी काः फास्फोरियों का निष्कर्षण नाउरू के नियंत्रण में था - राज्य जल्दी से समृद्ध हो गया (इसके नागरिकों के साथ)। नेट पर एक अजीब कहानी है कि कैसे द्वीप पुलिस प्रमुख ने लेम्बोर्गिनी को यह साबित करने के लिए खुद को प्राप्त किया कि वह इसमें फिट नहीं होंगे (जाहिरा तौर पर, ओशिनिया में भी, एक स्वाभिमानी कानून प्रवर्तन अधिकारी बहुत अच्छी तरह से खिलाया जाना चाहिए)। बनाने के द्वारा वित्त में सुधार करने का एक प्रयासअपतटीय क्षेत्र विफल - अमेरिका की अगुआई वाली विश्व समुदाय, संदिग्ध मूल के पैसे को लुभाने के लिए एक स्थानीय परियोजना को बर्दाश्त नहीं करने जा रहा था - इस तरह की एक सम्मानित शक्ति के दबाव में आसान कमाई के विचार को त्यागना पड़ा। धन प्राप्त करने के प्रयास में, द्वीपवासी नहीं करते हैंघृणित हैंः बुराई बोलते हुए कहते हैं कि रूस ने नाउरू को अबकाज़िया और दक्षिण ओसेशिया को पहचानने का भुगतान किया था। द्वीपियों और राजनीतिक व्यापार के लिए पैसे कमाएं, चीन और ताइवान के बीच संतुलन। कहा गया है कि 1986 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में लगे हुए हैं, दुनिया भर में दूसरे, 2014 में 160 वें पर "फिसल", लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि स्थिति बिगड़ना जारी है। द्वीप के डेमोक्रेटिक संगठन व्यक्तित्वसंसद ने एक 18 deputies का "बहुत" का आयोजन किया। यह यारेन जिले में स्थित है - इस "नाउरू की राजधानी" की तरह है, कि आसपास के सरकारी कार्यालयों के बहुमत दिया। राजनीतिक रूप से नागरिकों बहुत (लगभग भी) सक्रिय हैं :. 10 हजार की आबादी पर तीन राजनीतिक दलों - प्रभावशाली की संख्या और दंगों है कि 2003 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के साथ के दौरान, द्वीपवासियों शक्तियों और कुछ ही हफ्तों बाहरी दुनिया से संपर्क बिना छोड़ दिया के निवास जला दिया। सामान्य तौर पर ऑस्ट्रेलिया के साथ संचार बहुत मजबूत है - इस बिंदु पर कि नाउरू का सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम ऑस्ट्रेलियाई न्यायालय है। लेकिन सबसे दुखद बात पर्यावरण की स्थिति है। लगभग एक सदी फॉस्फेट खनन के लिए लगभग द्वीप का लगभग पूरे क्षेत्र (9 0% तक) का ढंका हुआ था - यह अपनी मिट्टी परत खो गया और तथाकथित में बदल गया। "चंद्र परिदृश्य", जो पर्यावरणविदों ने ग्रह को डरा दिया। चूंकि किसी को भी प्राकृतिक संसाधनों की बहाली के बारे में कोई परवाह नहीं थी, लगभग हर जगह - खानों, चट्टानों, बेकार रॉक के ढेर की जटिलताएं - ये ऐसी प्रभावशाली प्रजातियां हैं पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए एक कार्यक्रम के लिए नाउरू पैसा मांगने का कभी टायर नहीं करता है संयुक्त राष्ट्र, जिसमें 1 999 में युवा छोटे राज्य में प्रवेश किया, हर संभव तरीके से मदद करने की कोशिश कर रहा है। अभी तक, हालांकि, उल्लेखनीय सफलता हासिल की गई है।
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ब्राह्मण को दिया और ग्यारह अभंग उसे लिख दिए । ब्राह्मण की तुकाराम के प्रति श्रद्धा न थी । उस ने वे अभंग और वह नारियल वहीं छोड़ वहाँ से कूच किया । इतने ही में श्रीशिवाजी महाराज के पुराणिक का पानी भरने वाला ब्राह्मण कोंडोवा वहाँ या । तुका राम जी ने वे अभंग नारियल के साथ उसे दे डाले । प्रभंगों में बड़ा उपदेश किया था कि "ईश्वर के पास मोक्ष इत्यादि पुरुषार्थी की गठरी नहीं है कि वह अलग उठाकर तुम्हारे हाथ में रख दे । इंद्रियों को जीत कर और मन को काबू में रख किसी साधना के लिए निर्विषय-निरिच्छ होना चाहिए । उपवास, पारण, व्रत, वेदमंत्रों के पाठ इत्यादि सब कर्मों का फल शांत है अर्थात् उस का फल थोड़े नियमित दिन तक ही मिलता है । सावधानता से मन की इच्छाएँ दूर की जावें तो दुःख की प्राप्ति सुलभता- पूर्वक टाली जा सकती है । स्वप्न में लगे घावों से व्यर्थ रोने वालों के साथ तुम भी क्यों रोते हो । तुकाराम के मन से फल प्राप्त करना हो तो जड़ को सँभालना चाहिए और सब काम छोड़ ईश्वर की शरण लेनी चाहिए ।" कोंडोबा ने श्रद्धापूर्वक अभंगों का पाठ किया ही दिन में विद्याभ्यास कर वह अच्छा पंडित हो गया। कुछ दिन बाद जब कोंडोबा ने नारियल फोड़ा तो उस के भीतर से सुवर्ण मुद्रा और मोती निकले । पीछे से पता लगा कि अहमदाबाद के एक मारबाड़ी भक्त ने वह नारियल तुकाराम जी को गुप्त दान करने के लिए मेजा था । ज्ञानेश्वर जी की ओर से आए ब्राह्मण के चले जाने पर श्राप ने ज्ञानेश्वर जी को संदेश भेजने के अर्थ से कुछ अभंग किए । ये अभंग बड़ी लीनता से भरे हुए हैं। एक अभंग में कहा है कि "महाराज, श्राप सब ज्ञानियों के राजा हो और इस लिए ज्ञानराज कहते हैं। मुझ ऐसे नीच मनुष्य को यह बड़ापन काहे के लिए ? पैर की जूती पैर में ही ठीक रहती है। ब्रह्मा आदि देव भी जहाँ श्राप की शरण आते हैं वहाँ दूसरे किस की झाप के साथ तुलना की जावे ? तुकाराम को तो आपकी गहरी युक्तियाँ नहीं समकीं और इसी लिए वह आपके पैरों पर अपना सिर झुकाता है । " काडोपंत लोहोकरे नाम का एक पुनवाडी का ब्राह्मण कीर्तन करते समय तुकाराम जी के साथ मृदंग बजाया करता । एक बार कुछ धनी लोग काशी- यात्रा जाने की इच्छा से तुकाराम जी की प्रशांस लेने आए । उन लोगों को देख कोडोपंत के भी मन में काशी जाने की इच्छा हुई, पर द्रव्याभाव के कारण वे चुप हो रहे । तुकाराम भी ने उन की इच्छा पहिचान एक होन उठा कर उन्हें दिया और कहा कि " जसे जाने की इच्छा है उस के लिए एक होन बहुत है। प्रतिदिन एक होन मिलना कठिन नहीं और एक होन से अधिक एक दिन में खर्च करने की भी आवश्यकता नहीं । रोज़ इस होन को भँजा कर खर्च करो पर कम से कम एक पैसा रोज़ बाकी रक्खो । दूसरे दिन तुम्हें फिर होन मिलता जावेगा ।" कोडोपंत ने एक दिन परीक्षा ली । सब खर्च कर शेष पैसे सिरहाने रख सो गया । सुबह देखता है कि पैसे ग़ायब और उन के स्थान में दूसरा होन तैयार । कोडोपंत को विश्वास हुआ और उन्हीं लोगों के साथ हो गया । तुकाराम जी ने कोडोपंत के साथ गंगा माई को विश्वनाथ को और विष्णुपद को एकएक ऐसे तीन अभंग दिए । विश्वनाथ जी से आपकी प्रार्थना थी कि "शंकरजी, श्राप तो हो विश्व के नाथ और मैं तो हूँ दीन अनाथ । मैं बौरा ग्राप के पैर गिरता हूँ। आप जो कुछ कृपा करें वह थोड़ी ही मुझे बहुत है। श्राप के पास कुछ कमी नहीं और मेरे संतोष के लिये अधिक की आवश्यकता नहीं। महाराज, तुकाराम के लिये कुछ कभी प्रसाद भेजिये । " कोंडोपंत की सब तीर्थयात्रा उसी होन पर निभ गई । प्रतिदिन उसे एक होन मिलता रहा। ब्राह्मणं चार महीने काशी में रह कर लौटा। घर आने पर होन अपने पास ही रखने की इच्छा से तुकाराम जी से झूठ मूठ श्रा कर कहा कि होन खो गया । तुकाराम जी हँस कर चुप हो गए। घर जा कर कोडोपंत ने देखा तो होन सचसत तुकाराम मुच हो खो गया था । तुकाराम जी के पास दूसरे दिन श्रा कर अपना अपराध कबूल किया और असत्य - भाषण के लिये क्षमा माँगी। श्रीतुकाराम जी महाराज की आसाढ़ कार्तिक की पंढरपुर की वारी बराबर जारी थी। केवल एक कार्तिकी की एकादशी को आप बहुत बीमार होने के कारण न जा सके । जिस समय दूसरे वारकरी लोग पंढरी जाने के लिये निकले, तब श्राप ने कुछ अभंग लिख कर श्रीविठ्ठल की सेवा में भेजे । तुकाराम-सा प्रेमी भक्त, कार्तिक एकादशी का-सा । पुण्यकारक आनंद-प्रसंग और केवल देह-दुःख के कारण पंढरी तक जाना असंभव ! इस स्थिति में क्या श्राश्चर्य कि तुकाराम जी का जी तड़पता रहा और 'देह देहू में पर मन पंढरी में' यह स्थिति हुई । इस वसर पर जो भंग के मुँह से निकले, उन में तुकाराम जो का हृदय बिल्कुल निचोड़ा पाया जाता है । करुण रस से वे अभंग भरे हुए हैं। पत्र का प्रारंभ इस प्रकार है। "हे संतों, मेरी ओर से श्रीविठ्ठल से विनती करो और पूछो कि मेरे किन अपराधी से मुझे इस बार श्रीविठ्ठल के चरण कमलों से दूर रहना पड़ा । अनेक प्रकार से मेरी करुण-कहानी पंढरीश को सुना । तुकाराम को तो इस बार पंढरी और पुंडलीक के ईंट पर के श्रीविठ्ठल के चरण देखने की आशा नहीं है।" कुछ अभंगों के बाद आप कहते है, "हे नाथ, मेरे कौन से गुणदोष समक्ष कर श्राप ने ऐसो उदासीनता धारण की है १ अन्यथा आप के यहाँ तो कोई प्रयोग्य बात होने की राति नहीं हैं। श्रतएव इस का विचार मुझे ही करना चाहिए कि आपके प्रति मेरा भाव कैसा है । तुकाराम तो यही समझता है कि उसी के बुद्धि-दोष से श्राप ने उसे दूर किया है ।" कुछ अभंगों के बाद आप ईश्वर पर नाराज़ हो कहते हैं, "अगर मन में इतना छोटापन है, तो हमें पैदा ही क्यों किया १ हम दूसरे किस के पास मुँह फाड़ रोवें ! अगर अाप ही मुझ को छोड़ देंगे, तो दूसरा कौन इस बात की खबर लगा कि मैं भूखा हूँ या नहीं १ श्रम और किस की राह है, ? किधर देखें, कौन मुझे गले लगावेगा ! मेरे मन का दुःख कौन पहचानेगा और कौन इस संकट में से मुझे उचारेगा ? हे पिता, क्या आप ऐसे तो न समझ बैठे कि तुकाराम अपना भार स्वयं उठा सकता है ? " आगे " महाराज, आज तो आप पूरे-पूरे लोभी बन गए । धन ही धन जोड़ने के पीछे पड़ा वह धन के लिये ही पागल बन जाता है। फिर उसे और कुछ नहीं दीखता । अपने बाल-बच्चे तक उसे प्यारे नहीं लगते । पैसे की तरफ़ देखते उसे सच बातें फ़ीकी मालूम देती है। तुकाराम समझता है कि आप को भी इसी तरह से लालच आ गई है।" इसी चित्तावस्था में आप को गरुड़ जी के दर्शन न हुए। गरुड़ जो बोले, "अगर आप चाहें तो आप को पीठ पर पंढरपुर ले चलूँ । देव आप को भूले नहीं हैं। पर इतने भक्तों को छोड़ वे कैसे के पास सकते हैं । अगर वे यहाँ चले श्रावें तो पंढरपुर कैसा रंग में भंग हो जावे ?" तुकाराम जा समझ गए । आप चित्त को शांति प्राप्त हुई कि श्रीविठ्ठल मुझे भूले नहीं हैं। पर भगवान् के वाहन पर बैठ पंढरपुर जाना श्राप ने उचित न समझा । श्राप देहू ही रहे । संत लोग पंढरपुर से लौटते समय इस बार देहू आए और देहू में ही थोड़े समय के लिये पंढरपुर हो गया। तुकाराम जो के अभंग खूब गाए गए । तुकाराम जी के अभंगों की कीति उन के जीवन काल में ही .. खूब फैल गई । इन के अभंग लोग लिख ले जाने लगे और गाने लगे । तुकाराम अपनी पहचान रखने के लिये अपने अभंगों के अंतिम चरण में 'तुका' पद रख देते थे । पर तुक से तुक मिला कर कवि बनने वाले बहुत से कवि तुका का नाम अपने ही बनाये हुये अभंगों में रख देते। फल यह होता कि इस बात को पहचानना बड़ा, कठिन हो जाता कि फल अभंग तुकाराम का है या नहीं। ऐसे ही एक सालोमालो नामक कवि तुकाराम जी के ही समय में हो गये । वे खुद अभंग रचते और लोग उन्हें याद करें, इस लिये उन के अंतिम चरणों में 'तुका' की छाप लगा देते । तुकाराम जी के मत से अत्यंत विरुद्ध -ऐसे कुछ प्रभंग भी सालोमालों बनाते और उन्हें तुकाराम जी के ही नाम से फैलाते । जब तुकाराम जी को उन के भक्तों ने यह बात कही " कि सालोमालो खुद अपने को हरिदास कहला कर आप के अभंगों का नाश कर रहा है, आप अभंग रूप में बोले "चावल गलगए या नहीं, यह देखने के लिये घोटना नहीं पड़ता । एक दाने से भांत की परीक्षा होती है। हंस की चोंच दूध और पानी फ़ौरन दूर कर देती है। यदि किसी ने पहनने का अच्छा कपड़ा फाड़ उसे गुदड़ी बनाई तो बात किस की बिगड़ी ? तुकाराम की समझ में तो दाने और फूस अलग करने में कुछ कष्ट नहीं ।" पर भक्तों को यह बात ठीक न मालूम हुई। उन में से दो भक्तों ने तुकाराम जी के श्रभंग लिख लेने का निश्चय किया । सब अभंगों का लिखना अशक्यप्राय था । तुकाराम जी के अभंग सर्वदा रचे ही जाते थे। यह कहने के बजाय कि वे अभंग रचना करते थे यही कथन अधिक सत्य है कि अभंग - वाणी उन के मुख से निकलती थी । पर फिर भी तक्रे गाँव के गंगा राम जी कडूसकर ने और चाकण के संताजी तेली ने यथाशक्ति बहुत अभंग लिख डाले। ये दोनों तुकोबा के कीर्तन में उन का साथ करते थे और दोनों को तुकाराम जी की भाषा शैली से खासा परिचय था । इस कारण उन के प्रायः जितने अभंग इन्हें मिले, सब इन्हों ने लिख डाले । देहू पाम ही चिंचवड़ नाम का एक गाँव है जहाँ पर श्रीगणेश जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ भी देव उपनामक एक बडे गणेश भक्त हो गए थे जिन के वंशज तुकाराम जी के समय वहाँ महंती करते ये श्राप ने सुना कि तुकाराम जी नामदेव के अवतार समझे जाते है। यह बात प्रसिद्ध है कि श्रीविट्ठल नामदेव जी के साथ भोजन करते -खेलते और बोलते थे। तुकाराम जी की परीक्षा लेने के लिए एक बार देव जी ने उन्हें चिंचवड़ बुलाया । तुकाराम जी देव जी का हेतु मन में समझ गए। भोजन के समय तुकाराम जी ने देव जी से कहा "श्राप के से भक्तों के यहाँ आज श्रीविठ्ठल भोजन करने के लिए आनेवाले हैं। एक पात्र उन के लिए और एक पात्र श्रीगणेश जी के किए परोसिए । मैं श्रीविद्दल को बुला लाऊँगा और आप श्रीगणेश जी को बुलाइए । अपने मन की कु बुद्धि पहचानी देख देव जी लज्जित हुए और बोले "तुकोबा, इतना महद्भाग्य हमारा कहाँ ? हम तो अभिमान के मारे मरे जाते हैं।" यह सुन कर तुकाराम जी ने श्रीविठ्ठल की और गणेश जी की स्तुति की । "महाराज, आप की कृपा दृष्टि से तो बंध्यागाएँ भी दूध देंगी। मैं ऐसी कठिन बात के लिए आपकी विनय नहीं करता । मेरी तो केवल यही माँग है कि हमें अपने चरणों का दर्शन दीजिए । मेघ चातक के लिए बरसता है । राजहंस को श्राप मोती खिलाते हैं । तुकाराम की प्रार्थना मान्य करने में आपको इतना संकोच क्यों ?" कहा जाता है कि थोड़े समय में दोनों देवों के लिए परोमी हुई थालियों में से अन्न कम होने लगा । लोग समझ गए कि श्रीविठ्ठल और श्रीगणेश भोजन कर रहे है। इस प्रकार के अनेक चमत्कार भक्तों के मुख के सुने जाते हैं । भक्तों की बातें भक्त ही जान सकते हैं । चमत्कारों के विषय में अधिक कुछ न लिखकर केवल तुकाराम जी के जीवन के अंतिम चमत्कार वर्णन कर जीवनी का पूर्वार्द्ध समाप्त करता हूँ । तुकाराम जी की श्रात्म-विषयक भावना में बहुत ही धीरे-धीरे विश्वास उत्पन्न होता गया। अपनी जीवनी का वर्णन करते हुए उन्हों ने बड़ी लीनता से कहा कि 'सुनो भाई संतो, मैं तो सब से अधिक पतित हूँ। पर न मालूम श्राप इतना प्रेम मुझ पर क्यों करते हो । मेरा दिल तो मुझे इसी बात की गवाही देता है कि मैं अभी मुक्त नहीं हूं । व्यर्थ में एक पीछे दूसरा मुझे मानता जाता है। संसार में पीड़ा हुई, इस लिए घर छोड़ दिया, ढोरों को भगा दिया। जब कुछ पूरा नपड़ा, तब वैसा का वैसा ही रह गया । जो कुछ थोड़ा-बहुत धन था, वह पूर्णतया नष्ट हो गया । न कभी किसी ब्राह्मण को दिया न किसी याचक को इस प्रकार सहज में ही भाग्यहीन हो जाने के कारण स्त्री, पुत्र, भाई इन, का नाता टूट गया। लोगों को मुख दिखलाते न बना, अतएव कोनों में और जंगलों में रहने लगा और एकति वास का प्रेम इस तरह बढ़ गया। पेट-पूजने में बड़ा तंग हुआ । किसी को मेरी दया न श्राई। इस कारण यदि कोई अब मेरा सत्कार करता है, तो मैं बड़े चाव से उस के यहाँ जाता हूं। पुरखो ने कुछ श्रीविठ्ठल की सेवा की थी, जिसके पुण्य से मैं भी इसे पूजता हूं । इसा को यदि आप चाहो, तो भक्ति कह सकते हो ।" कितनी नम्रता और स्पष्टता है ! ये दोनों गुण वैसे के वैसे ही बने रहे। पर अंत में तुकाराम जी के मुख से ऐसे वाक्य निकलने लगे कि "कोई में मेरी तलाश ही न करने पाए, इस लिए मैं ने आपके चरण गहे हैं। हे नारायण श्रब ता ऐसा काजिए कि मेरा दर्शन हो किसी को न हो । मेरा मन सब बातों से लौट जगह की जगह पर ही विलीन हो गया है। तुकाराम खुद को भूल कर बोलना चालना भूल गया है। अब तो वह पूरा गूंगा बन गया है । " या "अब तो मैं अपने मइहर जाऊँगा । इन संतों के हाथ मुझे संदेशा भी आ चुका । मेरी सुख-दुःख की बातें सुन न तो मेरी मां के मन में करुणा की लाट श्री गई । सब तैयारी कर तो वह मुझे एक दिन ज़रूर बुलाने मेजेगी । मेरा चित्त उसी मार्ग में लगा है। रोज़ मायके की राह देख रहा हूँ । तुकाराम के लिए तो श्रम स्वयं मा-बाप उसे लिवा जाने श्रावेंगे।" इस प्रकार के विचारों की बाट होते-होते तुकारामजी के वय का इकतालीमवाँ साल पूरा हुआ और ने बयालीसवें साल में पदार्पण किया । इसी वर्ष की फागुन सुदी एकादशी के दिन महाराज ने नित्य नियमानुसार रात भर भजन कीर्तन कर प्रातःकाल के समय अपनी स्त्री को बुला कर उसे ग्यारह अभंगों के द्वारा उपदेश किया। आपने कहा - "सुनो जी, पांडुरंग हमारा चौधरी है। उसी ने हमें खेत जोतने के लिए दिया है। जिस में से फ़सल निकाल हम अपना पेट पालते हैं । उस की बाकी जो मुझे देनी है, वह माँग रहा है। आज तक उक की सत्तर की बाकी में से मैं दस दे चुका हूँ । पर अब तो वह घर में श्रा कर खटिया पर बैठ ही गया है और एक-सा तकाज़ा लगा रहा है। अब तो घर, बाड़ी, बर्तन जो कुछ है, उसे दे कर उस की लगान पूरी करनी चाहिए। बतलाओ क्या करना चाहिए । बिना बाकी दिए अब तो छुटकारा नहीं ।" इस प्रकार आरंभ में रूपक की भाषा में उसे समझाना शुरू किया । पर जब यह देखा कि उस की समझ में नहीं आता तो स्पष्ट रूप में कहा कि "इस बात की चिंता न करो कि इन बच्चों का क्या होगा। उन का नसीब उन के साथ बँधा है । तुम अपनी फँसी हुई गर्दन छुड़वा लो और गर्भ-वास के दुःख से खुद को बचाओ। अपने पास का माल देख कर चोर गला फाँसेंगे। इसी लिए मैं दूर भाग रहा हूँ । उन के मार की कल्पना ही से मेरा दिल काँप उठता है। अगर तुकाराम की ज़रूरत तुम्हें हो तो अपना मन खूब बड़ा करो । " " अगर तुम मेरे साथ योगी तो सुनो क्या-क्या सुख तुम हम दोनों को मिलेंगे । ऋषिदेव बड़ा उत्सव मनावेंगे । रत्नों से जड़े विमानों में हमें बिठलावेंगे, नामघोष के साथ गंधर्वो का गाना सुनावेंगे। बड़े-बड़े सिद्ध, साधु, महंत हमारा स्वा गत करेंगे । वहाँ सुखों की सब इच्छाएं पूरी होंगी । चलो, जहाँ मेरे माता पिता हैं, वहाँ तक जावें और उन्हें मिल उन के चरणों पर पड़े । तुकाराम के उस सुख का वर्णन कौन कर सकेगा, जब उस के माँ बाप उस से मिलेंगे १" तुकाराम जी ने तो उपदेश किया पर जिजाई के मन पर उस का कुछ भी असर न पड़ा । मानों अंधे को दर्पण दिखलाया या बहिरे को गाना सुनाया । श्रीतुकाराम जी उन दिनों अपनी यह कल्पना बराबर कहते रहे । " मैंने अपनी मौत अपने श्रींखों से देखी", "अपना घड़ा अपने ही हाथों से फोड़ डाला", "अपने देहरूप पिंड से पिंडदान किया" इत्यादि विचार आपके मुख से निकलने लगे। अंत में चैत्रबदी द्वितीया के रोज़ प्रातःकाल श्राप ने जिजाई से कहला भेजा कि "मैं बैकुंठ को जाता हूँ, श्रगर तुम को चलना हो तो चलमा ।" परंतु उस का जवाब आया कि "आप जाइए। मैं पाँच महीने के पेट से हूँ । घर में बच्चे छोटे-छोटे हैं, गाय, भैंस हैं, उन्हें कौन सम्हालेगा ? मुझे की फ़ुरसत नहीं। नंद से जाइएगा ।" जवाब सुनकर तुकाराम जी मुसकराए और इसी प्रकार के अभंग मुख से कहते, हाथ में फाँझ, तंबूरी लेकर ने श्रीविठ्ठल को नमस्कार किया और भजन करते-करते घर के बाहर निकले । लागों को भी आश्चर्य हुआ । वारी को जाने का दिन नहीं, कीर्तन का मामूलो समय नहीं और श्रोतुकाराम जी महाराज चले कहाँ ? कहाँ जाते हैं ? ऐसा यदि कोई तुकोबा से पूछता तो जवाब मिलता "हम बैकुंठ जाते हैं । अव न लौटेंगे ।" भक्तों को श्राश्चर्य मालूम हुआ और बुरा भी लगा । खासखास भक्त श्राप के साथ चलने लगे । उन सबों के साथ श्रीतुकाराम जी महाराज इंद्रायणी तीर पर आए औरने कीर्तन प्रारंभ किया । उस दिन कीर्तन के समय जो प्रभंगा के मुख से निकले वे बड़े अजीब रस से भरे हुए हैं। अपने अभंगों में समय-समय पर तुकाराम जी भिन्न-भिन्न भूमिकाओं पर आपको समझते थे। कहीं विट्ठल को माता मानते, कहीं पिता, कहीं मित्र, कहीं साहूकार जिसके पास से तुकाराम जी ने कर्ज़ा लिया हो, तो कहीं कर्जदार जिसे श्रा ने पैसा दिया हो। श्रीविठ्ठल से लड़ते, झगड़ते, प्रेम-कलह करते, भली-बुरी सुनाते, फिर क्षमा माँगते, पैरों पड़ते, रोते, अनेक प्रकार के खेल खेलते । पर इस आखिरी दिन का रंग कुछ और ही था। ये अभंग विराणी के कहलाते हैं । विराणी याने विहरिणी। इन अभंग में तुकाराम जी ने एक विहरिणी की अर्थात् स्वपति छोड़ अन्य पुरुष के साथ जिस पर कि उस का प्रेम हो, विहार करने वालो स्त्री की भूमिका ली है । संसार है पति और श्रीविठ्ठल हैं प्रियकर पुरुष । इसी कल्पना पर ये अभंग रचे हुए हैं। उदाहरणार्थ "पहले पति द्वारा मेरे मनोरथ पूर्ण न हुए । अतएव मैं व्यभिचार करने लगी। मेरे पास
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बहुत से लोगों ने क़तर राज्य के अस्तित्व के बारे में तभी जाना जब अरब प्रायद्वीप के किनारे के इस छोटे से देश को 2022 में विश्व फुटबॉल चैम्पियनशिप की मेजबानी का अधिकार प्राप्त हुआ। केवल कुछ ही अब जानते हैं कि कतर कहां स्थित है, और केवल विशेषज्ञ और विशेष रूप से उन्नत जनता को पता है कि क्यों देश सऊदी अरब से एक नहर द्वारा अलग हो गया है और अरब पड़ोसियों द्वारा लगभग पूरी तरह से नाकाबंदी की शर्तों के तहत कई वर्षों से यह कैसे अस्तित्व में है। माना जाता है कि फारस की खाड़ी के दूसरी ओर कतर एक प्रकार का ईरानी समर्थक है। ईरान से उद्धार वास्तव में बहुत उच्च स्तर पर कतर में जीवन का समर्थन करता है, लेकिन साथ ही, इस राज्य को हमेशा क्षेत्र में लगभग सबसे विश्वसनीय और विश्वसनीय अमेरिकी सहयोगी माना गया है। कतर में रुचि को हाल के महीनों की घटनाओं से पुनर्जीवित किया गया था, जब एक बड़ी गैस सौदेबाजी सामने आई, नॉर्ड स्ट्रीम 2 की संभावनाओं से जुड़ी और तरलीकृत प्राकृतिक गैस की आपूर्ति न केवल अमीर यूरोप को, बल्कि दुनिया के सभी महाद्वीपों को भी हुई। दोहा (कतर राज्य की राजधानी) आज विश्व बाजार में अधिक से अधिक सक्रिय रूप से खेल रहा है, और रूस के खिलाफ सबसे ऊपर है। जैसा कि आप देख सकते हैं, यूरोपीय बाजार में बसने की संभावना बहुत अधिक लुभावना है, जहां किसी ने कतर को आमंत्रित करने के लिए नहीं सोचा था। 24 मई को QPG स्टेट ऑयल एंड गैस कंपनी साद अल-क़ाबी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने क़तर की वेबसाइट में घोषणा कीः "कोरोनोवायरस महामारी और आर्थिक संकट के कारण कतर न केवल गैस की आपूर्ति कम करने का इरादा रखता है, बल्कि, इसके विपरीत, क्षमता में काफी वृद्धि करने का इरादा रखता है, भले ही इससे गैस की कीमतों में और गिरावट आए। " व्यवसायी ने यह कहकर अपने कथन की पुष्टि की कि "हम लागत के मामले में दुनिया के सबसे कुशल गैस उत्पादक हैं और इसलिए हम बाजार के झटकों को दूर कर सकते हैं। " श्री अल-क़ाबी ने यह भी कहा, रूस को लगता है कि "कई उत्पादक कम कीमतों के कारण उत्पादन को रोक देंगे, लेकिन कतर के लिए इस परिदृश्य को बाहर रखा गया है। " यह विशिष्ट है कि अगले दिन गज़प्रॉम ने अनिश्चित काल के लिए यमल-यूरोप पाइपलाइन (रूस - बेलारूस - पोलैंड - जर्मनी) के माध्यम से गैस के निर्यात पम्पिंग को निलंबित कर दिया, जिसकी यूरोपीय संघ को रूसी गैस की आपूर्ति में हिस्सेदारी 25% से कम नहीं है। 26 मई के आरएफ ऊर्जा सुरक्षा कोष के अनुसार, यह यूरोप में कीमतों में लगातार गिरावट और मुख्य रूप से पाइपलाइन गैस के लिए मांग के कारण है। मास्को के साथ कतर एक "गैस" टकराव की तैयारी कर रहा था, क्योंकि यह आधी सदी पहले निकला था। 29 मई, 1970 को, अरब प्रायद्वीप के पूर्वोत्तर में स्थित कतर में ब्रिटिश कमिश्रिएट ने अमीरात की पहली स्वायत्त सरकार की घोषणा की। दूर "गैस" दृष्टि के साथ, क्या कहा जाता है। 1915 वीं शताब्दी के बाद से, देश का नेतृत्व वंशवादी अल-थानी परिवार द्वारा किया गया है, जो पहले ओटोमन के संरक्षण में था, और फिर, XNUMX से, पहले से ही अंग्रेजों द्वारा। कतर की पहली स्वायत्त सरकार स्थापित की गई थी, हम आधी सदी पहले दोहराते हैं, जब ब्रिटिश फर्म अमीरात के तेल और गैस संसाधनों के पहले बड़े पैमाने पर अध्ययन में एक बिंदु निर्धारित करते हैं। पहले से ही विशाल गैस पैंट्री स्थापित किए गए थे, जिसका उपयोग पश्चिम में गैस की आपूर्ति के लिए बढ़ती मात्रा में किया जा सकता है। इसके अलावा, यह लंदन में ठीक था कि उन्होंने सक्रिय रूप से विरोध किया, खासकर 1970 के दशक में, यूएसएसआर से दीर्घकालिक गैस आपूर्ति के खिलाफ। कतर की पहली स्वायत्त सरकार के निर्माण के छह महीने बाद, ब्रिटिश व्यवसाय ने देश के पश्चिम और उत्तर-पूर्वी तट से 60 के दशक में खोजे गए प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार का विकास शुरू किया। 70 के दशक की शुरुआत से, ब्रिटिश और फिर अमेरिकी कंपनियों द्वारा भंडार की बढ़ती मात्रा का पता लगाया गया था। 1974 के वसंत के बाद से, कतर के तेल और गैस उद्योग और ये सभी कार्य अल-थानी राजवंश द्वारा नियंत्रित राज्य कंपनी कतर पेट्रोलियम-गैस (QPG) के नियंत्रण में आ गए हैं। मॉस्को क्षेत्र के आधे क्षेत्र और 80 के दशक में दो मिलियन की आबादी वाला यह देश वैश्विक गैस बाजार में सबसे बड़ा खिलाड़ी बन गया है। कतर में, एलएनजी को हमेशा तरलीकृत गैस पसंद किया गया है, क्योंकि पाइप बहुत दूर खींचे जाते हैं, और वे बहुत शांत क्षेत्रों से नहीं गुजरेंगे। जब तक वे चाहें टैंकरों को पाल सकते हैं - मुख्य बात यह है कि एलएनजी रिसेप्शन के लिए पर्याप्त क्षमता है। एलएनजी की वैश्विक मांग 70 के दशक की शुरुआत से कई गुना बढ़ी है, और आज यह पाइपलाइन गैस की मांग के साथ असफल हो रही है। ब्रिटिश, अमेरिकी और भी इतालवी और जापानी कंपनियों ने वास्तव में कतर से गैस उद्योग को खरोंच से बनाया है। इसी समय, वे निर्मित क्षमताओं में उच्च शेयरों का दावा भी नहीं करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सोवियत और फिर रूसी गैस के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए कतरी अधिकारियों के साथ राजनीतिक हस्तक्षेप न किया जाए। आश्चर्य की बात नहीं, 70 के दशक के उत्तरार्ध के बाद से, लगभग सभी कतर और गैस और तेल और गैस के बुनियादी ढांचे के एक पूरे के रूप में अमेरिकी वायु सेना और अमेरिकी नौसेना के विशेष बलों के अधिकार क्षेत्र में बने हुए हैं। कतर वहां एक पूर्ण सहयोगी के मामूली भूमिका में कार्य करता है। कोई यह याद नहीं कर सकता है कि ग्रेट ब्रिटेन ने 3 सितंबर 1971 को कतर की स्वतंत्रता की घोषणा की, हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब के दबाव में। अमीरात की भौगोलिक स्थिति, जिसका शाब्दिक अर्थ फारस की खाड़ी के केंद्र में "wedges" है, और यहां तक कि गैस और तेल के बड़े भंडार के साथ, कतर के साथ "पार्टिंग" से लंदन को बहुत रोका। लेकिन 1956 से, स्वेज नहर पर मिस्र के साथ युद्ध में ब्रिटेन की हार के बाद, इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक संरेखण लंदन के पक्ष में नहीं था। इसने 1961 में अंग्रेजों को इस क्षेत्र में अपने मुख्य तेल और गैस "बॉक्स" के लिए स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए मजबूर किया - कुवैत, 1967 में - दक्षिण यमन को। और 70 के दशक की शुरुआत में, कतर के साथ-साथ बहरीन, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात (तब ओमान की संधि) भी, जहां कतर की तुलना में बहुत कम तेल और गैस संसाधन नहीं हैं। सुरेन बलीव, यूएसएसआर के गैस उद्योग के उप मंत्री, और फिर तेल और गैस सूचना के लिए अकादमिक केंद्र के निदेशक, विख्यातः "उनके परिचालन विकास के दौरान कतर में प्राकृतिक गैस के भंडार का पता चलता है, यूएसएसआर से यूरोप तक बढ़ती गैस आपूर्ति के साथ भी प्रतिस्पर्धा कर सकता है। पहले से ही 70 के दशक की शुरुआत में। ग्रेट ब्रिटेन की पहल पर, पश्चिमी सरकारों और कंपनियों ने कतर और कुवैत की भागीदारी के साथ तुर्की से ग्रीस-यूगोस्लाविया, फिर पश्चिमी यूरोप तक कतर से एक ट्रांस-अरेबियन गैस पाइपलाइन बनाने की संभावना पर चर्चा की। यह पाइपलाइन कुवैत और इराक से अपने मार्ग से "एकत्रित" गैस की भूमिका निभा सकती है। भविष्य में, इस परियोजना को कथरी एलएनजी उत्पादन के विकास के पक्ष में, एस। बालीयेव ने उल्लेख किया था, लेकिन सोवियत गैस आपूर्ति पर पश्चिमी यूरोप की निर्भरता को कम करने के लिए कतरी, कुवैती और अल्जीरियाई एलएनजी के साथ-साथ एक ही परियोजना "भविष्य में बनी हुई है। " इस बीच, कतर में गैस का उत्पादन छलांग और सीमा से बढ़ गया। राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, कतर का औसत वार्षिक उत्पादन 5,5-1971 के लिए औसतन 1976 बिलियन क्यूबिक मीटर से बढ़ा है। 20-1980 में 1985 बिलियन तक और 180 में 2019 बिलियन क्यूबिक मीटर तक। इस उद्योग में दुनिया भर में सबसे कम लागत में से एक - कोलोसल संसाधन आधार और उत्पादन की कम लागत के कारण झटका सफल रहा। यह दुनिया में चौथे स्थान पर है (संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और ईरान के बाद)। ओपेक और 2019-2020 के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, कतर में गैस भंडार (प्राकृतिक और गैस घनीभूत) की मात्रा दुनिया का लगभग 14% है। इसी समय, इनमें से कम से कम 65% भंडार विकसित और संसाधित किए जाते हैं। कतर में एलएनजी का उत्पादन क्षमता और मात्रा के मामले में एक रिकॉर्ड हैः यह 14 लाइनों पर 104,7 बिलियन क्यूबिक मीटर की कुल क्षमता के साथ निर्मित होता है। प्रति वर्ष मीटर, 80 के दशक में बनाया - संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, इटली और जापान में कंपनियों द्वारा 2010 के शुरू में। यह वैश्विक एलएनजी क्षमता (25) का लगभग 2019% प्रतिनिधित्व करता है। उनमें से लगभग सभी राज्य के स्वामित्व वाले हैंः राष्ट्रीय राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी (क्यूपीजी) में हिस्सेदारी 70-85% है। इसी समय, कतर के पास लंबे समय से एक विशाल राष्ट्रीय है बेड़ा टैंकरः 2019 के अनुसार, ये 55 तकनीकी रूप से उन्नत मध्यम और उच्च क्षमता वाले गैस वाहक हैं। उनमें से ज्यादातर दक्षिण कोरियाई निर्मित क्यू-अधिकतम वर्ग के साथ 270 हजार टन और क्यू-फ्लेक्स के साथ 166 टन के वजन के साथ हैं। इस तरह के जहाज चीन, जापान और 30 ईयू देशों सहित लगभग 10 देशों को पूरी तरह से कतरी एलएनजी की आपूर्ति करते हैं। और इस उत्पाद के निर्यात की मात्रा (110 में 2019 बिलियन क्यूबिक मीटर तक) के संदर्भ में, एलएनजी के वैश्विक निर्यात में कतर का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा है। और यह वही है जो 2000 के दशक की शुरुआत से है। ट्रांस-अरब गैस पाइपलाइन कतर-कुवैत-इराक-सऊदी अरब-तुर्की-यूरोप की उल्लेखित परियोजना को भुलाया नहीं गया है। संयुक्त अरब अमीरात और रूसी इंटरनेट संसाधन अराउंड गैस के राष्ट्रीय पोर्टल ने हाल ही में बताया कि 2011 से इस परियोजना को ब्रिटिश और अमेरिकी विशेषज्ञों की भागीदारी के साथ एक कतरी-तुर्की विशेषज्ञ समूह द्वारा अंतिम रूप दिया गया है। यह समूह 2009 में तुर्की के राष्ट्रपति आर। एर्दोगन और कतर के अमीर हमद बिन खलीफा अल-थानी के संयुक्त निर्णय द्वारा बनाया गया था। जाने-माने राजनीतिक वैज्ञानिक और प्रचारक रॉबर्ट कैनेडी जूनियर, जो एक जाने-माने परिवार से आते हैं, सीनेटर रॉबर्ट कैनेडी के बेटे और राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे, पूरी तरह से परियोजना के आर्थिक और भू-राजनीतिक लक्ष्यों की विशेषता है। फरवरी 2016 में वापस, उन्होंने अमेरिकी पत्रिका पोलिटिको (आर्लिंगटन) में लिखाः इसके अलावा, "कतर मध्य पूर्व में दो विशाल अमेरिकी सैन्य ठिकानों और अमेरिकी मध्य कमान के मुख्यालय की मेजबानी करता है। " "यह यूरोपीय संघ लाएगा, जहां गैस की खपत का एक तिहाई तक - रूसी संघ से आयात - व्लादिमीर पुतिन की तेज गैस रणनीति से राहत मिलती है। तुर्की, रूस का दूसरा सबसे बड़ा गैस उपभोक्ता, विशेष रूप से अपने दीर्घकालिक प्रतिद्वंद्वी पर इस निर्भरता को समाप्त करने और खुद को एक लाभदायक ऊर्जा केंद्र के रूप में स्थिति के बारे में चिंतित है। " "रूस, जो अपने गैस निर्यात का 70% यूरोप को बेचते हैं, कतर-तुर्की पाइपलाइन को एक अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं। वी। पुतिन के अनुसार, यह गैस पाइपलाइन यूरोपीय ऊर्जा बाजार में अपने उत्तोलन को खत्म करके रूसी अर्थव्यवस्था का गला घोंटने के उद्देश्य से एक नाटो की साजिश का प्रतिनिधित्व करती है। " एक शब्द में, कतरी गैस मॉस्को पर बहुपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक दबाव के अलावा, आगे के लिए एक लीवर है। इसके अलावा, तरलीकृत गैस पहले से ही एक बहुत ही वास्तविक लीवर है, जो अमेरिकी एक के साथ युगल में भी आती है, और पाइपलाइन गैस अभी तक केवल संभावित है। और कतर, ईरान पर अपनी पूरी तरह से निर्भरता के साथ, पिछली सदी के 70 के दशक से इस भूमिका के लिए तैयार है। - लेखकः - इस्तेमाल की गई तस्वीरेंः
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गले में 'राधे-राधे' का दुपट्टा और मंगलसूत्र. हाथ में लाल चूड़ियां और माथे पर लाल बिंदी. दो कमरे के घर में चारों तरफ पत्रकारों, कैमरों और माइक से घिरीं सीमा हैदर बहुत आत्मविश्वास के साथ सवालों के जवाब दे रही हैं. पास में ही उनके प्रेमी सचिन मीणा भी कुर्सी पर बैठे हुए हैं. देश के बड़े न्यूज़ चैनलों के एंकर, रिपोर्टर से लेकर दर्जनों की तादाद में यू-ट्यूबर सीमा से बात करने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. घर में लगी भीड़ के बीच सीमा के चार बच्चों को आसानी से पहचाना जा सकता है. कुछ पत्रकार इन बच्चों से 'हिंदुस्तान जिंदाबाद' के नारे लगवा रहे हैं और ऐसा करते हुए बच्चों को अपने कैमरे में शूट कर रहे हैं. बीच-बीच में कस्बे की कुछ महिलाएं और कुछ हिंदूवादी संगठनों के लोग भी मिलने के लिए आ रहे हैं. ये लोग आशीर्वाद देते हुए सीमा के हाथ में कुछ पैसे पकड़ा रहे हैं और अपनी तस्वीरें खिंचवा रहे हैं. उमस भरे माहौल के बीच घर में 'जय श्री राम' के नारे भी सुनाई देते हैं, तो वहीं कुछ लोग सीमा से घर में लगी तुलसी में पानी देने को भी कहते हैं. ये दृश्य उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के रबूपुरा स्थित सचिन मीणा के घर के हैं. दोनों को जमानत मिलने के बाद यहां आने जाने वालों की भीड़ लगी हुई है. सुबह से हो रही तेज बारिश के बीच बीबीसी हिंदी की टीम भी सीमा हैदर और सचिन मीणा से मिलने के लिए पहुंची. कुछ घंटों के इंतजार के बाद सीमा और सचिन से बात करने के लिए हमारा नंबर आया. करीब बीस मिनट की बातचीत में दोनों ने दोस्ती से शुरू हुए प्यार, अवैध तरीके से भारत में एंट्री, जासूसी के आरोप, शादी, हिंदू धर्म में शामिल होने से लेकर उन तमाम सवालों के जवाब दिए जो इस वक्त लोगों के मन में उठ रहे हैं. पाकिस्तान की सीमा हैदर की शादी साल 2014 में जकोबाबाद के रहने वाले गुलाम हैदर से हुई थी. इस शादी से उन्हें चार बच्चे हुए. बाद में दोनों कराची शिफ्ट हो गए और साल 2019 में गुलाम हैदर काम के सिलसिले से सऊदी अरब चले गए. यही वो समय था जब सीमा की बातचीत सचिन मीणा से शुरू हुई और इसका जरिए बनी एक ऑनलाइन गेम. सीमा बताती हैं, "हमारी प्रेम कहानी की शुरुआत पब्जी खेलने से शुरू हुई. सचिन पुराने प्लेयर थे और मैं नई. मेरा 'पब्जी' पर मारिया ख़ान नाम था. सचिन ने मुझे गेम खेलने की रिक्वेस्ट भेजी थी. " सीमा बताती हैं, "तीन चार महीने गेम खेलने के बाद हम दोस्त बन गए. मैं वीडियो कॉल पर इन्हें पाकिस्तान दिखाती थी ये मुझे भारत. ये खुश होता था कि पाकिस्तान देख रहा हूं और मैं खुश होती थी कि मैं भारत देख रही हूं. खुशी होती है न कि दूसरे देश का बंदा आपसे बात करे. " प्यार, परवान चढ़ा तो सीमा ने सचिन से मिलने का फैसला किया, लेकिन यह सीमा के लिए आसान नहीं था. सीमा हैदर कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि मैं पाकिस्तान से नफरत करती हूं, मैं वहां रही हूं, वहां मेरा बचपन बीता. मेरे भाई-बहन, मम्मी-पापा सब वहीं के हैं. मेरे मां-बाप की कब्र वहीं पर है. " अपने प्यार से मिलने के लिए सीमा हैदर ने नेपाल को चुना, लेकिन इसे चुनने के पीछे एक खास वजह थी. मुलाकात का वक्त और जगह तय होने पर सीमा ने नेपाल का टूरिस्ट वीजा लिया और शारजाह होते हुए काठमांडू पहुंचीं. सीमा बताती हैं, "पहली बार मैं 10 मार्च, 2023 को पाकिस्तान से निकली और शाम को काठमांडू पहुंच गई. मैं पहली बार हवाई जहाज से जा रही थी. जहाज उड़ा, तो मैं बिल्कुल बहरी सी हो गई थी. " काठमांडू में सचिन पहले से सीमा का इंतजार कर रहा था. सचिन के मुताबिक उन्होंने न्यू बस पार्क इलाके के न्यू विनायक होटल में एक कमरा किराए पर लिया जिसके लिए वो होटल मालिक को हर रोज 500 रुपये देते थे. सीमा हैदर के इंस्टाग्राम पर इस दौरान के कई ऐसे वीडियो पड़े हैं जिसमें दोनों काठमांडू की सड़कों पर घूमते हुए नजर आ रहे हैं. इसी दौरान दोनों ने एक बड़ा फैसला किया. सीमा बताती हैं, "हमने 13 मार्च को काठमांडू में पशुपति नाथ मंदिर में शादी की. एक टैक्सी वाले भाई की मदद से हम लोग शादी कर पाए. हमारे पास वीडियो भी हैं...मैंने खुद हिंदू धर्म अपनाया है. मुझे किसी ने दबाव नहीं डाला. " शादी तो हुई, लेकिन सीमा भारत नहीं आ पाईं, क्योंकि चार बच्चे कराची में उसका इंतजार कर रहे थे. वह लाहौर में एक दरगाह पर जाने का बहाना बनाकर सचिन से मिलने नेपाल आई थी. सीमा वापस पाकिस्तान तो चली आईं लेकिन अब यहां उनका दिल नहीं लग रहा था. दो महीने का वक्त बीता और सीमा ने हमेशा के लिए अपने बच्चों के साथ पाकिस्तान छोड़ने का फैसला कर लिया. इस बार सीमा का इरादा नेपाल के रास्ते भारत में दाखिल होने का था. सफर के लिए सीमा ने फिर से 10 मई तारीख को ही चुना, क्योंकि उनका मानना था कि यह तारीख उनके लिए किस्मत वाली साबित होगी, क्योंकि 10 मार्च को ही वे पहली बार सचिन से नेपाल में मिली थीं. सीमा कहती हैं, "दूसरी बार आना आसान था, क्योंकि एंट्री, एग्जिट और कनेक्टिंग फ्लाइट का पहले से पता लग गया था. 10 मई को अपने बच्चों के साथ मैं वहां (पाकिस्तान) से चली और 11 मई की सुबह काठमांडू पहुंच गई, फिर वहां से पोखरा गई और रात भर वहीं रुकी. " यहां सचिन उनका इंतजार कर रहे थे, जिसके बाद वह उन्हें रबूपुरा स्थित कमरे पर ले आया. यह कमरा चार दिन पहले ही सचिन ने गिरजेश नाम के व्यक्ति से 2,500 रुपये प्रति महीने के हिसाब से किराए पर लिया था. पोखरा से हर सुबह दिल्ली के लिए बस चलती है. करीब 28 घंटे के इस सफर में भारत-नेपाल की सरहद पड़ती है, जहां सभी यात्रियों की चेकिंग होती है, लेकिन सीमा ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को आसानी से भेद दिया. सीमा के पति गुलाम हैदर ने सऊदी अरब से अपील की है कि उनकी पत्नी और बच्चों को वापस पाकिस्तान भेज दिया जाए. वहीं सीमा का कहना है कि गुलाम हैदर से उनकी शादी जबरन करवाई गई थी और उन्होंने उसे तलाक दे दिया है, जबकि गुलाम हैदर का कहना है कि उनके बीच में तलाक नहीं हुआ है. वे बताती हैं, "पाकिस्तान में भी 18 साल की लड़की को इजाजत है कि कोई भी फैसला ले सकती है. मैं आज 27 साल की हूं. मैं अपनी जिंदगी का फैसला ले सकती हूं. ऐसा भी नहीं है कि मैं औरत हूं, तो आदमी से तलाक नहीं ले सकती. " बीबीसी उर्दू से बातचीत में सीमा के ससुर मीर जान जख़रानी ने आरोप लगाया कि वह घर से भागते हुए सात लाख रुपये और सात तोला सोना लेकर गई है. सीमा हैदर जिस तरीके से भारत में दाखिल हुईं, उसे देखने के बाद कई लोगों ने उन पर आरोप लगाए कि वे पाकिस्तान की जासूस हैं. पाकिस्तानी सेना में उनके भाई की नौकरी, उनके पास से चार मोबाइल फोन की बरामदगी ने भी लोगों के मन में शक को गहरा कर दिया. इन आरोपों पर बोलते हुए सीमा ने कहा, "मैं जासूस नहीं हूं. सचिन से प्यार के चक्कर में मैंने घर से बाहर घूमना शुरू किया. पासपोर्ट बनवाए. हमारे यहां घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं होती. " सीमा का कहना है कि अब वे भारत में ही रहना चाहती हैं और सचिन के साथ खुश हैं, लेकिन अपनी बहनों को याद कर उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं. फिलहाल जमानत मिलने के बाद सीमा और सचिन अब साथ-साथ हैं. धर्मों और देशों की सरहदों को पार करने वाली ये कहानी आगे कहां पहुंचती है, देखना दिलचस्प होगा. (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं. )
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यह अध्ययन अर्थव्यवस्था के वित्त-तटस्थ आउटपुट अंतराल (एफएनओजी) का संदर्भ, औचित्य और विश्लेषणात्मक ढांचा उपलब्ध कराता है। पारंपरिक (मुद्रास्फीति-तटस्थ) उपाय में, मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था की स्थिति का मुख्य संकेतक है, अन्य शब्दों में इस उपाय में अर्थव्यवस्था में असंतुलन मुख्य रूप से उच्च या न्यून मुद्रास्फीति में प्रतिबिंबित होता है। तथापि, एफएनओजी में, आधिक्य क्रेडिट वृद्धि और असंधारणीय आस्ति बाजार प्रतिफल के रूप में वित्तीय चरों के उच्च स्तर मुद्रास्फीति की अपेक्षा असंतुलन के मुख्य स्रोत हैं। भारतीय संदर्भ में पारंपरिक आउटपुट अंतराल बनाम एफएनओजी दोनों के बीच उल्लेखनीय विचलन दर्शाता है। नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में एफएनओजी हाल की तिमाहियों में क्रेडिट वृद्धि में अभिवृद्धि और गतिशील आस्ति बाजार स्थितियों के कारण पारंपरिक आउटपुट अंतराल की तुलना में तेजी से बंद हुआ है। आउटपुट अंतराल "संभावित आउटपुट" से वास्तविक आउटपुट का विचलन दर्शाता है, संभावित आउटपुट को आर्थिक गतिविधि के अधिकतम स्तर के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे पूरी क्षमता से परिचालित होने पर कोई अर्थव्यवस्था हासिल कर सकती है। आउटपुट अंतराल सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है तथा यह अर्थव्यवस्था की चक्रीय स्थिति बताता है। सकारात्मक आउटपुट जो वास्तविक आउटपुट के संभावित आउटपुट से ऊपर होने पर होता है, अर्थव्यवस्था में आधिक्य मांग दर्शाता है जो मुद्रास्फीतिकारी दबाव उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत, नकारात्मक आउटपुट जो संभावित आउटपुट की तुलना में अंतराल-वास्तविक आउटपुट से कम होता है, उस समय उत्पन्न होता है जब अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं होता है और यह कम मांग दर्शाता है। आउटपुट अंतराल जो अर्थव्यवस्था में मांग स्थितियों का सारांश उपाय है, मेक्रो अर्थव्यवस्था की स्थिति का उपयोग संकेतक उपलब्ध कराता है और इसका मौद्रिक नीति के लिए महत्वपूर्ण इनपुट के रूप में उपयोग किया जाता है। पारंपरिक रूप से, मुद्रास्फीति को अर्थव्यवस्था में समष्टि-आर्थिक असंतुलन के मुख्य लक्षण के रूप में देखा गया है जिसे आउटपुट अंतराल के विभिन्न मापों में उतार-चढ़ावों द्वारा प्राप्ति किया गया है। तथापि, इतिहास में ऐसे उदाहरण देखे गए हैं जब मुद्रास्फीति कम और स्थायी थी, चाहे आउटपुट असंधारणीय रूप से बढ़ रहा था। वित्तीय असंतुलन के बड़े निर्माण का मामला था जैसाकि अगस्त 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) से पहले आधिक्य क्रेडिट वृद्धि और उच्च आस्ति कीमतों में प्रदर्शित हुआ। बड़े क्रेडिट की वृद्धि से आवास और अन्य आस्तियों के लिए मांग बढ़ी, जिससे उनके मूल्य में बढ़ोतरी हो गई और घरेलू तथा फर्मों की आय में वृद्धि हुई। इसने बैंकों को अधिक निवेश का वित्तपोषण करने के लिए क्रेडिट प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित किया। नए क्षमता संवर्धन से आर्थिक विस्तार ने आपूर्ति प्रतिबंधों को सहज बनाया और कई अर्थव्यवस्थाओं में समग्र वृद्धि दर में बढ़ोतरी की। इसके अतिरिक्त, इस मजबूत वित्तीय उछाल के परिणामस्वरूप उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में बड़ी मात्रा में पूंजीगत प्रवाह हुआ जिसके कारण उनकी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि हुई। इन कारकों ने मुद्रास्फीति को उदार रखते हुए मूल्य पर नीचे की ओर दबाव डाला। पारंपरिक ज्ञान से, व्यक्ति अर्थ निकाल सकता है कि उदार मुद्रास्फीति से मिली हुई यह उच्च आर्थिक वृद्धि संधारणीय थी। तथापि, वित्तीय क्षेत्र के आंकड़ों पर निकट दृष्टि से पता चला कि यह तेज आर्थिक वृद्धि वित्तीय उछाल के कारण थी जिसका परिणाम संसाधनों के त्रुटिपूर्ण आबंटन और असंधारणीय आस्ति कीमतों के रूप में हुआ। संकट आने और वित्तीय स्थिति कठोर होने के बाद, समग्र मांग बदतर हो गई और इनमें से कई अर्थव्यवस्थाएं अंततः लंबी मंदी के दौर में चली गई। उपर्युक्त संदर्भित गतिविधियों ने नए आउटपुट अंतराल की माप को जन्म दिया जिसे लोकप्रिय रूप से वित्त-तटस्थ आउटपुट अंतराल या एफएनओजी के रूप में जाना जाता है जो मुद्रास्फीति की अपेक्षा बैंक क्रेडिट और आस्ति बाजारों में हुई हलचल से वित्तीय गतिविधियों पर आधारित आर्थिक वृद्धि की संधारणीयता का मूल्यांकन करता है। इस माप में, सकारात्मक आउटपुट अंतराल वित्तीय बाजार में अधिक गतिविधियों के कारण अर्थव्यवस्था में अति-उष्णता (ओवरहीटिंग) दर्शाता है जबकि नकारात्मक आउटपुट अंतराल दबावग्रस्त वित्तीय स्थितियों के चलते अर्थव्यवस्था में सुस्ती दर्शाता है। अग्रणी केंद्रीय बैंक जिसमें बैंक ऑफ इंग्लैंड, दि यूरोपीयन सेंट्रल बैंक, बैंको डी एसपाना आदि हैं, मौद्रिक नीति के लिए एफएनओजी का एक इनपुट के रूप में उपयोग करते हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) और एशियन विकास बैंक (एडीबी) ने भी मौद्रिक नीति के लिए एफएनओजी की उपयोगिता पर जोर डाला है। एफएनओजी का भारतीय संदर्भ में भी अनुमान लगाया गया है। इस अनुमान को अब अक्टूबर 2017 से रिज़र्व बैंक द्वारा अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में आउटपुट अंतराल के पारंपरिक उपायों के साथ सम्मिलित किया गया है। एफएनओजी का अनुमान लगाने के लिए पद्धति और भारतीय संदर्भ में अनुभनजन्य अनुमान नीचे दिए गए हैं। तकनीकी ब्यौरे अनुलग्नक में हैं। वास्तविक आउटपुट से भिन्न, संभावित आउटपुट का स्तर और इस प्रकार आउटपुट अंतराल सीधे नहीं देखा जा सकता और इसका अनुमान अन्य उपलब्ध समष्टि आर्थिक आंकड़ों से लगाया जाता है। संभावित आउटपुट का अनुमान लगाने के लिए विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया गया है, किंतु वे सभी मानती हैं कि आउटपुट को प्रवृत्ति (संभावित आउटपुट की माप) और चक्रीय संघटक (आउटपुट अंतराल की माप) में वर्गीकृत किया जा सकता है। संभावित आउटपुट और आउटपुट अंतराल का अनुमान लगाने का सबसे सामान्य सांख्यिकीय दृष्टिकोण एकल चरीय सांख्यिकीय फिल्टर जैसे होडरिक-प्रेसकॉट (एचपी) फिल्टर का उपयोग करना है जो देखे गए आउटपुट आंकड़ों (अनुलग्नक) से चक्र (आउटपुट अंतराल) और प्रवृत्ति (संभावित आउटपुट) निकालने में मददगार होता है। एकल चरीय दृष्टिकोण का लाभ है कि यह सरल है और इसे आउटपुट आंकड़ों अर्थात सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिए सीधा उपयोग किया जा सकता है। तथापि, एकल चरीय फिल्टरों से आउटपुट अंतराल अनुमानों की अनेक सीमाएं हैं। वे स्वरूप में पूरी तरह से सांख्यिकीय हैं और किसी प्रकार की आर्थिक संरचना को सम्मिलित नहीं करते हैं तथा किसी संभावित आउटपुट या आउटपुट अंतराल का आर्थिक परिकल्पना के अनुरूप नहीं हो सकते। इसके अतिरिक्त, एकल चरीय सांख्यिकीय फिल्टर स्वाभाविक रूप से एंड-पॉइंट समस्या से ग्रस्त होते हैं जबकि प्रवृत्ति और चक्र के नवीनतम अनुमानों में नई सूचना के आने से काफी संशोधन होता है। इस प्रकार, वे नवीनतम अवधि के लिए कम सटीक अनुमान उपलब्ध करा सकते हैं जिनका नीति निर्माण में अधिक महत्व होता है। एकल चरीय दृष्टिकोणों के साथ जुड़ी उपर्युक्त संदर्भित समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए बहु-चरीय कॉलमैन फिल्टर (एमवीकेएफ) तकनीक का पालन किया जाता है जिसमें अन्य समष्टि-आर्थिक आंकड़ों का उपयोग होता है जो उल्लेखनीय हैं। एमवीकेएफ का उपयोग करते हुए पारंपरिक आउटपुट अंतराल की माप करने के लिए, अनुसंधानकर्ताओं ने मुद्रास्फीति को अतिरिक्त चर के रूप में शामिल किया है क्योंकि इसे असंधारणीयता का मुख्य स्रोत माना जाता है। इस प्रकार प्राप्त आउटपुट अंतराल को मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतराल कहा जाता है। एमवीकेएफ के साथ मापे जाने वाले एफएनओजी में, अनुसंधानकर्ताओं ने मुद्रास्फीति की बजाय वित्तीय चरों के एक सेट का उपयोग किया है। उपयोग किए गए वित्तीय चर मुख्य रूप से बैंक क्रेडिट वृद्धि और रियल स्टॉक बाजार प्रतिफल (अनुलग्नक) हैं। इस प्रकार मुद्रास्फीति-तटस्थ माप के प्रति जो मुद्रास्फीति को असंधारणीयता के स्रोत के रूप में सम्मिलित करती है, एफएनओजी में वित्तीय चरों का उपयोग आउटपुट अंतराल का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है (अनुलग्नक)। सारणी 1 में प्रस्तुत अनुमानित परिणाम दर्शाते हैं कि वास्तविक नीति दर चार तिमाहियों के अंतराल के साथ एफएनओजी को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। वास्तविक क्रेडिट वृद्धि और वास्तविक स्टॉक बाजार प्रतिफल क्रमशः दो तिमाहियों और एक तिमाही के अंतराल के साथ एफएनओजी को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। ।तालिका 1: रिग्रेशन अनुमान - निर्भर चरः आउटपुट गैप (yt) yt : आउटपुट अंतर; rt: वास्तविक ब्याज दर; bct: असली बैंक क्रेडिट वृद्धि; स्रोतः भारतीय अर्थव्यवस्था पर डाटाबेस (डीबीआईई), आरबीआई और लेखकों की गणना। तालिका 1 में एफएनओजी अनुमानों की समयबद्ध योजना संकेत देती है कि पूर्व जीएफसी अवधि (क्यू 2: 2008-09 से पहले) में एफएनओजी सकारात्मक था - वास्तविक उत्पादन संभावित उत्पादन से ऊपर था जो वित्तीय क्षेत्र और अर्थव्यवस्था में कुछ असंतुलन का सूचक है। यह उल्लेखनीय है कि 2005-06 से क्यू 1: 2008-09 की अवधि के दौरान वास्तविक गैर-खाद्य ऋण और वास्तविक शेयर बाजार (बीएसई सेंसेक्स) प्रतिफल क्रमशः 23.8 प्रतिशत और 34.9 प्रतिशत की वार्षिक औसत दर से बढ़ा, जो औसत वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9.3 प्रतिशत (चार्ट 2 ए और 2 बी) की तुलना में बहुत तेज है। जीएफसी के दौरान, एफओएनजी कुछ वर्षों तक सकारात्मक आउटपुट अंतर देखने के लिए उबरने के पहले मुख्य रूप से परिसंपत्तियों की कीमतों में तेज गिरावट के कारण नकारात्मक हो गया। हालांकि, 2013-14 के बाद, एफएनओजी कम क्रेडिट वृद्धि और निराशाजनक शेयर बाजार स्थितियों के कारण नकारात्मक बना रहा, यह 2017-18 से धीरे-धीरे सीमित हो गया। भारत के लिए एफएनओजी बनाम मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर की एक और विस्तृत तुलना से पता चलता है कि दोनों के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं जोकि तीन चरणों (चार्ट 3 और 4) से स्पष्ट हो जाता है। चरण I (क्यू 1: 2012-13 से क्यू 4: 2014-15) में, एफएनओजी मुद्रास्फीति-तटस्थ उत्पादन अंतर से अधिक था और अधिकतर सकारात्मक क्योंकि इस अवधि में उच्च क्रेडिट वृद्धि और वास्तविक शेयर बाजार प्रतिफल की घटनाएं देखी गई। हालांकि, मुद्रास्फीति-तटस्थ उत्पादन अंतर पूरी अवधि में नकारात्मक रहा। चरण II (क्यू 1: 2015-16 से क्यू 4: 2016-17) में, मुख्य रूप से बैंकों और निगमों की तनावग्रस्त बैलेंस शीट के साथ-साथ वास्तविक शेयर बाजार के नकारात्मक प्रतिफल के रूप में प्रतिबिंबित निराशाजनक शेयर बाजार के कारण कम क्रेडिट वृद्धि के रूप में कमजोर वित्तीय स्थितियों के कारण एफएनओजी नकारात्मक क्षेत्र में रहा और मुद्रास्फीति-तटस्थ उत्पादन अंतर से काफी कम रहा। चरण III (2017-18) में, एफएनओजी नकारात्मक रहा लेकिन क्रेडिट वृद्धि और उत्साहजनक शेयर बाजार स्थितियों के पुनरुत्थान को दर्शाते हुए,समाप्ति के करीब रहा। इस चरण के दौरान, मुद्रास्फीति-तटस्थ उत्पादन अंतराल भी नकारात्मक रहा और समाप्त होने के लिए प्रतिबद्ध रहा, लेकिन एफएनओजी की तुलना में धीमी गति से। एफएनओजी को समझाने में वित्तीय चर की भूमिका एफएनजीजी के ऐतिहासिक परिवर्तनीय विश्लेषण से भी स्पष्ट है,जो इसके विकास (चार्ट 5) पर विभिन्न कारकों के योगदान को दर्शाती है। उदाहरण के लिए, क्रेडिट वृद्धि और शेयर बाजार प्रतिफल ने चरण II (Q1: 2015-16 से Q4: 2016-17) में एफएनओजी के विकास के लिए नकारात्मक योगदान दिया। हालांकि, चरण III (2017-18) में, वित्तीय बाजार चरों ने एफएनजीजी को सकारात्मक योगदान दिया है। वित्तीय बाजार की जानकारी को शामिल करने वाले आउटपुट अंतर के आकलन ने हाल के वर्षों में लोकप्रियता हासिल की है। एफएनओजी उपाय, जो वित्तीय बाजार संकेतकों को शामिल करता है, नीति उद्देश्यों के लिए अर्थव्यवस्था की स्थिति का आकलन करने के लिए उपयोग किए गए संकेतकों के सेट के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान करता है। मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर माप मुद्रास्फीति पर अर्थव्यवस्था में असंतुलन के स्रोत के रूप में निर्भर है। तथापि, यह उपाय प्री-जीएफसी अवधि में उच्च क्रेडिट वृद्धि और परिसंपत्ति बाजार रिटर्न से उत्पन्न असंतुलन को पकड़ने में असफल रहा। एफएनओजी आउटपुट अंतर का आकलन करने के लिए एफएनओजी वित्तीय क्षेत्र के संकेतकों को ध्यान में रखता है, जैसे कि क्रेडिट और परिसंपत्ति बाजार चर । भारतीय परिपेक्ष्य में ति1:2006-07 से ति3: 2017-18 की अवधि के लिए अनुमानित एफएनओजी उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, खासकर उच्च / निम्न क्रेडिट वृद्धि और शेयर बाजार रिटर्न की अवधि में, जो कि पारंपरिक उपाय नहीं प्रदान करते। एफओएनजी ति3: 2014:15 के बाद से नकारात्मक रहा, लेकिन ति2: 2017:18 तक लगभग बंद हुआ। मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर के साथ एफएनओजी की तुलना से पता चलता है कि ति1: 2012-13 से ति4: 2014-15 के दौरान, एफएनओजी मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर से ऊपर रहा। तथापि, ति1:2015-16 से ति4:2016-17 के दौरान, एफएनओजी मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर से काफी नीचे रहा, जो ज्यादातर कम क्रेडिट वृद्धि के कारण था। ति1:2017-18 से, दोनों मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर और एफएनओजी नकारात्मक बने रहे लेकिन धीरे-धीरे बंद होने की तरफ झुके। हालांकि, एफएनओजी मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर के मुकाबले तेजी से बंद हो गया। संभावित आउटपुट और आउटपुट अंतर दोनों के अनुमान असुरक्षित चर हैं, और उनके अनुमान चयनित दृष्टिकोण के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। इसलिए, आरबीआई स्टाफ, वैकल्पिक अनुमान दृष्टिकोण का उपयोग करके, विभिन्न सर्वेक्षणों और अन्य समष्टि आर्थिक चर से प्राप्त जानकारी के पूरक, कारोबार चक्र के चरण पर अधिक मजबूत संदर्भ आकर्षित करने के लिए आउटपुट अंतराल का मूल्यांकन करता है। सी. बोरियो. पी. डिसयाटैट और एम. जुसेलियस, "रिथिंकिंग पोटेंशियल आउटपुटः एमबेडिंग इनफॉर्मेशन एबाउट द फाइनेंशियल साइकल," बीआईएस वर्किंग पेपर, 404, (फरवरी 2013)। ए ओकुन, "पोटेंशियल जीएनपीः इट्स मेजेरमेंट एण्ड सिगनिफिकेंट," बिजनेस और इकॉनामिक स्टेटिस्टिक्स सेक्शन, वाशिंगटनःअमेरिकन स्टेटिकल एसोशिएसन, (1962), पीपी 98-104। डी.पी. रथ, पी. मित्रा, और जे. जॉन, "ए मेजर ऑफ फाइनेंस-न्यूट्रल आउटपुट गैप फॉर इंडिया", आरबीआई वर्किंग पेपर सीरीज़, डब्ल्यूपीएस (डीईपीआर), मार्च (2017)। यह तकनीकी अनुबंध आउटपुट अंतर के यूनिवेरिएट स्टेटिकल फ़िल्टर, मुद्रास्फीति-तटस्थ और वित्त-तटस्थ उपायों के विश्लेषणात्मक सेटअप का विवरण देता है। होड्रिक-प्रेस्कॉट (एचपी) फ़िल्टर आउटपुट अंतर का आकलन करने के लिए सबसे लोकप्रिय रूप से उपयोग किया जानेवाला यूनिवेरिएट स्टेटिकल फ़िल्टर में से एक है। यह फ़िल्टर पर्यवेक्षण के भारित चल औसत पर आधारित है जो नमूना अवधि की शुरुआत और अंत के करीब पर्यवेक्षण पर अधिक भार डालता है। यह विधि निम्न फ़ंक्शन को कम करके संभावित आउटपुट (Ȳt) प्राप्त करती है, पहला शब्द प्रवृत्ति से Yt के वर्ग विचलन का योग है, अर्थात संभावित उत्पादन (Ȳt), जो चक्रीय घटक को दंडित करता है। दूसरा शब्द संभावित आउटपुट (Ȳt) के दूसरे अंतर के वर्गों के योग के एकाधिक λ है। दूसरा शब्द संभावित आउटपुट (Ȳt) की वृद्धि दर में परिवर्तन को दंडित करता है। पॉजिटिव पैरामीटर λ जितना बड़ा होगा, उतना अधिक जुर्माना और परिणामस्वरूप संभावित अनुमान बराबर होगा। इसलिए, सीमित मामले में अगर λ = 0 तब नरमी के लिए कोई दंड नहीं है, फिल्टर इस श्रृंखला के रूप में ही झुकाव उत्पन्न करता है। दूसरी तरफ, यदि λ बहुत उंचाई पर है, तो नरमी के लिए वहां एक उच्च वेटेज होगा और झुकाव एक सीधी रेखा होगी। आउटपुट अंतर (yt) को लॉग टर्म (Yt) में वास्तविक आउटपुट4 के विचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो इसके संभावित स्तर (Ȳt) से होता है। समीकरणों (2) और (3) के अतिरिक्त, आउटपुट अंतर को निम्नानुसार एक ऑटो रेग्रेसिव प्रक्रिया के रूप में मॉडलिंग किया गया है : मुद्रास्फीति-तटस्थ दृष्टिकोण में, आउटपुट के टिकाऊ स्तर को संगत आउटपुट के स्तर के रूप में कम और स्थिर मुद्रास्फीति (ओकुन, 1962) के साथ परिभाषित किया गया है। इसलिए, मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर माप का अनुमान लगाने के लिए, मुद्रास्फीति के लिए फिलिप्स कर्व इक्वेशन को शामिल किया गया, जो निम्नलिखित प्रक्रिया के अनुसार मुद्रास्फीति (πt) पर देखने योग्य डेटा के आउटपुट अंतर के विकास को जोड़ता है। इस ढांचे से अनुमानित आउटपुट अंतर (समीकरण 2 से 5 का उपयोग करके) मुद्रास्फीति स्तर के अनुरूप है और मुद्रास्फीति-तटस्थ आउटपुट अंतर के रूप में जाना जाता है। इस ढांचे में, वास्तविक ब्याज दर के साथ वित्तीय चर (वास्तविक बैंक क्रेडिट वृद्धि और वास्तविक शेयर बाजार वापसी) आउटपुट अंतर के लिए विवरणात्मक चर के रूप में उपयोग किया जाता है। इन चरों को शामिल करने के बाद संशोधित आउटपुट अंतर समीकरण नीचे दिया गया हैः जहां Xt = (rt, bct, sensext) ; rt : वास्तविक पोलिसी रेट; bct : वास्तविक बैंक क्रेडिट वृद्धि; sensext : बीएसई सेंसेक्स द्वारा वास्तविक स्टॉक मार्केट रिटर्न प्रॉक्सी। इस ढांचे से अनुमानित आउटपुट अंतर (समीकरण 2, 3 और 6 का उपयोग करके) वित्त-तटस्थ आउटपुट अंतर के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह माप वित्तीय चर में गतिविधि के लिए नियंत्रण करता है। बहुविकल्पीय कलमैन फ़िल्टर लागू करके राज्य स्पेस ढांचे में क्वासी मैक्सिमम लाइकलीहुड (क्यूएमएल) मैथड का उपयोग करके समीकरणों की प्रणाली का अनुमान लगाया जाता है। रूडोल्फ ई. काल्मन के नाम पर रखा गया कलमैन फ़िल्टरिंग, एक एल्गोरिथम है जो समय के साथ देखे गए माप चर की एक श्रृंखला का उपयोग करता है, जिसमें सांख्यिकीय नॉइज़ और अन्य त्रुटियां होती हैं, और अप्रत्यक्ष चर के अनुमान उत्पन्न करती हैं।
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डीएनए अणु - गुणसूत्र संरचना में स्थित है। एक गुणसूत्र एक भी दो स्ट्रैंड से मिलकर अणु होते हैं। डीएनए के दोहराव - एक से दूसरे अणु से धागे की आत्म प्रजनन के बाद सूचना के हस्तांतरण है। यह दोनों डीएनए और आरएनए में निहित है। यह लेख डीएनए प्रतिकृति प्रक्रिया पर चर्चा। ऐसा नहीं है कि अणु में मुड़ यार्न जाना जाता है। हालांकि, जब डीएनए प्रतिकृति की प्रक्रिया शुरू होती है, वे dispiralized, फिर अलग कदम है, और प्रत्येक नई प्रतिलिपि पर संश्लेषित होता है। पूरा होने पर दो पूरी तरह से समान अणु, एक माता पिता और एक बच्चे धागा है, जिनमें से प्रत्येक देखते हैं। इस संश्लेषण अर्द्ध रूढ़िवादी कहा जाता है। डीएनए अणु ले जाया जाता है, एक भी गुणसूत्रबिंदु में रहते हुए, और अंत में केवल वितरित हो जाते हैं जब इस गुणसूत्रबिंदु विभाजन प्रक्रिया शुरू होती है। अन्य प्रकार विरोहक संश्लेषण कहा जाता है। उन्होंने कहा कि, पिछले के विपरीत, वह किसी भी कोशिका चरण से संबद्ध नहीं है, लेकिन डीएनए की क्षति की स्थिति में शुरू होता है। वे भी व्यापक रहे हैं, तो प्रकृति, सेल अंत में मर जाता है। हालांकि, अगर क्षति स्थानीय है, तो आप उन्हें बहाल कर सकते हैं। समस्या के आधार पर बहाल या एक ही बार में डीएनए के दो किस्में अलग किया जाना है। यह, के रूप में यह कहा जाता है, अनिर्धारित संश्लेषण में लंबा समय लग नहीं करता है और ऊर्जा का एक बहुत आवश्यकता नहीं है। लेकिन जब वहाँ डीएनए के एक दोहराव है, तो ऊर्जा, सामग्री का एक बहुत खर्च, अपनी घड़ी की लंबाई फैला हुआ था। दोहराव तीन अवधियों में विभाजित किया गया हैः - दीक्षा; - बढ़ाव; - समाप्ति। हमें डीएनए प्रतिकृति के अनुक्रम पर विचार करें। मानव डीएनए में - आधार जोड़े के लाखों लोगों की कुछ दसियों (जानवरों वे केवल एक सौ नौ)। डीएनए दोहराव कई स्थानों में निम्नलिखित कारणों के लिए श्रृंखला शुरू होता है। एक ही समय शाही सेना में प्रतिलेखन होता है के आसपास, लेकिन डीएनए के संश्लेषण में चयनित स्थानों में से कुछ में निलंबित कर दिया है। इसलिए, पदार्थ की पर्याप्त मात्रा से पहले इस तरह के एक प्रक्रिया के क्रम जीन अभिव्यक्ति और सेलुलर गतिविधि है कि टूट नहीं किया गया समर्थन करने के लिए कोशिकाओं की कोशिका द्रव्य में जम जाता है। इसे देखते हुए, इस प्रक्रिया को जितना जल्दी संभव हो जाने चाहिए। इस अवधि के दौरान प्रसारण किया जाता है, और प्रतिलेखन आयोजित नहीं है। अध्ययनों से पता चला है कि डीएनए दोहराव कई हजार अंक में एक बार होता है है - एक विशिष्ट न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम के साथ छोटे क्षेत्रों। वे विशेष सर्जक प्रोटीन, जो बारी में डीएनए प्रतिकृति के अन्य एंजाइमों से जुड़े हुए है द्वारा शामिल हो गए हैं। डीएनए टुकड़ा जो संश्लेषित एक replicon कहा जाता है। यह शुरू से ही शुरू होता है और समाप्त होता है जब एंजाइम प्रतिकृति समाप्त हो जाता है। Replicon स्वायत्त है, और यह भी अपने स्वयं के सॉफ्टवेयर की पूरी प्रक्रिया आपूर्ति करती है। प्रक्रिया सभी बिंदुओं से एक ही बार में शुरू नहीं हो सकता है, कहीं न कहीं यह पहले शुरू होता है, कहीं न कहीं - बाद में; यह एक या दो विपरीत दिशाओं में जगह ले सकते हैं। घटनाओं निम्न क्रम जब छवि में जगह लेः - प्रतिकृति कांटे; - शाही सेना प्राइमर। यह हिस्सा एक प्रक्रिया है जिसमें कट यार्न में डीएनए डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक तंतु संश्लेषित कर रहे हैं प्रस्तुत करता है। इस प्रकार प्रतिकृति के तथाकथित आंख के रूप में प्लग। प्रक्रिया कार्यों के एक नंबर से पहले किया जाता हैः - एक nucleosome में हिस्टोन के सिलसिले से जारी - इस तरह के एक डीएनए प्रतिकृति मेथिलिकरण, एसिटिलीकरण, और फास्फारिलीकरण के रूप में एंजाइमों रासायनिक प्रतिक्रियाओं है कि प्रोटीन में परिणाम उनके सकारात्मक चार्ज कि उनकी रिहाई की सुविधा खो उत्पादन; - despiralization - तनाव मुक्त है, जो धागे की आगे मुक्ति के लिए आवश्यक है; - डीएनए strands के बीच हाइड्रोजन बांड को तोड़ने; - अणु के विभिन्न पक्षों में अपने विचलन; - निर्धारण एसएसबी प्रोटीन का उपयोग कर से होने वाली। संश्लेषण एक एंजाइम डीएनए पोलीमरेज़ बुलाया जाता है। हालांकि, अपने ही वह नहीं कर सकते हैं शुरू करने के लिए है, तो अन्य एंजाइमों करते हैं - आरएनए पोलीमरेज़, जो भी शाही सेना प्राइमरों कहा जाता है। वे पर डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक के समानांतर किस्में में संश्लेषित कर रहे हैं संपूरकता के सिद्धांत। इस प्रकार, दोनों सिरों, दो प्राइमरों के आरएनए संश्लेषण की दीक्षा और डीएनए strands फाड़ चला गया। इस अवधि में न्यूक्लियोटाइड अलावा और 3 'शाही सेना प्राइमर, पहले ही उल्लेख किया डीएनए पोलीमरेज़ किया जाता है जो के अंत से शुरू होता है। यह पहली बार दूसरा, तीसरा न्यूक्लियोटाइड, और इतने पर जोड़ा जाता है। नई धागा आधार माता पिता श्रृंखला से जुड़े हैं हाइड्रोजन बांड द्वारा। माना जाता है कि यार्न के संश्लेषण 5 में है '- 3'। यह कहाँ प्रतिकृति कांटा के पक्ष में होता है संश्लेषण लगातार और एक ही समय लंबा पर होता है। इसलिए, इस सूत्र प्रमुख या प्रमुख कहा जाता है। वह प्राइमर नहीं रह बनाई है आरएनए। हालांकि, माता-पिता के विपरीत किनारा पर डीएनए न्यूक्लियोटाइड आरएनए प्राइमर शामिल होने के लिए जारी है, और डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक श्रृंखला प्रतिकृति कांटा से विपरीत दिशा में संश्लेषित होता है। इस मामले में, यह देरी या चल कहा जाता है। ठंड कतरा संश्लेषण टुकड़े में होता है जिसमें संश्लेषण के एक छोर भाग है कि एक ही शाही सेना प्राइमर का उपयोग करने के पास किसी अन्य स्थान पर शुरू होता है पर। इस प्रकार, वहाँ दो देरी श्रृंखला टुकड़ा डीएनए और आरएनए शामिल हो गए हैं कर रहे हैं। वे Okazaki टुकड़े कहा जाता है। तब सब कुछ दोहराया है। तब पक्षों के लिए हेलिक्स, हाइड्रोजन फट संचार धागे की एक और बारी spliced, अग्रणी ठंड टुकड़ा आरएनए प्राइमर, जिस निम्नलिखित संश्लेषित पर लम्बे श्रृंखला - Okazaki टुकड़ा। इसके बाद, एक देरी भूग्रस्त शाही सेना में प्राइमरों नष्ट कर रहे हैं और डीएनए टुकड़े से एक में शामिल हो गए हैं। तो यह सर्किट एक ही समय में जगह लेता हैः - Okazaki टुकड़े के संश्लेषण; - आरएनए प्राइमरों के विनाश; - एक भी सर्किट में मिले। प्रक्रिया के रूप में लंबे समय से जारी है दो प्रतिकृति कांटा को पूरा नहीं करते के रूप में, या उनमें से एक अणु के समाप्त हो जाएगा। बैठक के बाद कांटे डीएनए बेटी किस्में एंजाइम द्वारा शामिल हो गए हैं। मामले में, अगर प्लग अणु के अंत में ले जाया जाता है, डीएनए दोहराव विशेष एंजाइमों का उपयोग कर समाप्त। इस प्रक्रिया में, एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रतिकृति के नियंत्रण (या सुधार) को सौंपा गया है। संश्लेषण न्यूक्लियोटाइड सभी चार प्रकार के प्राप्त करता है, और डीएनए पोलीमरेज़ जोड़ी द्वारा जांच उन है कि आवश्यक हैं का चयन करता है रखने के लिए। वांछित न्यूक्लियोटाइड हाइड्रोजन बांड के साथ-साथ टेम्पलेट डीएनए किनारा पर समान न्यूक्लियोटाइड बनाने में सक्षम हो सकते हैं। इसके अलावा, चीनी फॉस्फेट रीढ़ के बीच दो अड्डों में तीन छल्ले के लिए इसी एक निश्चित लगातार दूरी होनी चाहिए। न्यूक्लियोटाइड इन आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, कनेक्शन घटित नहीं होगा। नियंत्रण किया जाता से पहले यह सर्किट में और बाद में न्यूक्लियोटाइड चालू करने से पहले शामिल किया गया है है। उसके बाद, रीढ़ की हड्डी saharofosfata के लिए कनेक्शन। डीएनए प्रतिकृति की व्यवस्था, सटीकता के उच्च प्रतिशत के बावजूद हमेशा तंतु, जो ज्यादातर कहा जाता है में गड़बड़ी है "जीन म्यूटेशन। " एक हजार आधार जोड़े के बारे में, वहाँ एक गलती है कि दोहराव कहा जाता konvariantnaya है। यह अलग कारणों से होता है। उदाहरण के लिए, साइटोसिन के न्यूक्लियोटाइड deamination, दोनों के संश्लेषण में उत्परिवर्तजन की उपस्थिति के अधिक या बहुत कम मात्रा में। कुछ मामलों में, त्रुटि मरम्मत की प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता में अन्य सुधार असंभव हो जाता है। क्षति प्रभावित हैं नींद अंतरिक्ष, एक त्रुटि गंभीर परिणाम जब वहाँ डीएनए प्रतिकृति प्रक्रिया नहीं होगी। एक जीन के nucleotide अनुक्रम संभोग त्रुटि के साथ हो सकता है। तो फिर यह मामला नहीं है, और एक नकारात्मक परिणाम सेल की मौत, और पूरे जीव के साथ मरने के हो सकता है। यह भी है कि मन में वहन किया जाना चाहिए जीन म्यूटेशन उत्परिवर्तनीय परिवर्तनशीलता, जो plasticity के जीन पूल में आता है पर आधारित हैं। समय संश्लेषण के भीतर या तुरंत बाद यह मेथिलिकरण चेन होता है पर। यह माना जाता है कि इस प्रक्रिया के लिए आवश्यक है एक व्यक्ति गुणसूत्रों फार्म और जीन प्रतिलेखन को विनियमित करने के लिए। इस प्रक्रिया में डीएनए के बैक्टीरिया एंजाइमों काटने के खिलाफ अपनी सुरक्षा कार्य करता है।
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० आप एक उद्योगपति हंै, साथ ही आप शिक्षा व्यवसाय से भी सम्बद्ध हैं, आपकी विशेष रुचि किधर है ? रखता है । कई बार मुझपर यह आरोप लगता रहा है कि अरे यह तो व्यापारी है शिक्षा को भी व्यापार बना देगा । मेरा मानना यह है कि एक सफल व्यवसायी की निगाह और सोच काफी दूर तक जाती है वह समय और बाजार दोनों को समझता है और उसकी महत्ता को भी पहचानता है । वो यह जानता है कि समय की माँग क्या है और गुणस्तरीय उत्पादन ही बाजार में जगह पा सकता है । इसलिए मैं यह मानता हूँ कि एक सफल व्यवसायी शिक्षा के क्षेत्र की भी जरुरत को समझता है, उसकी बारीकियों को समझता है और उसके अनुसार ही छात्रों की जरुरत को पूरा करता है, उसे सफलता के मूलमंत्र के साथ तैयार होने का वातावरण देता है । ताकि वह एक गुणस्तरीय शिक्षा को प्राप्त कर के स्कूल से निकले और अपने भविष्य का निर्माण कर सके । स्कूल व्यवसाय भी उद्योग के अन्तर्गत ही आता है । दुनिया में व्यवसाय के अन्तर्गत ही इसको मान्यता प्राप्त है हाँ नेपाल में इसकी परिभाषा थोड़ी अलग जरुर है, पर आप जहाँ भी देखें तो बड़े बड़े व्यवसायी शिक्षा व्यवसाय से भी जुड़े हुए हैं और स्कूल कालेज संचालन कर रहे हैं और सफलता के साथ कर रहे हैं । जहाँ तक मेरी विशेष रुचि का सवाल है तो शिक्षा के प्रति मेरा ज्यादा झुकाव है । क्योंकि यहाँ से जुड़ने के पश्चात् एक बौद्धिक वातावरण मुझे मिलता है, यह शिक्षा का क्षेत्र है तो यहाँ जो भी कार्यरत हैं, उनका बौद्धिक स्तर ऊँचा होता है और मैं इनके संसर्ग में अच्छा महसूस करता हूँ । दूसरी बात यह है कि बच्चे समाज और देश का भविष्य होते हैं, माता पिता की उम्मीद होते हैं । इस क्षेत्र में जाने का एक कारण यह भी है कि मुझे लगता है कि मेरी संस्था एक अच्छे नागरिक का निर्माण कर रही है जो सुसंस्कृत है, सभ्य है और अनुशासनशील है और इस तरह हम एक परिवार को, एक समाज को और एक देश को, एक सही व्यक्ति दे रहे हैं । यह एक महत् कार्य है जिसे करने में मुझे संतुष्टि मिलती है । ० शिक्षा के क्षेत्र में आपका कितना योगदान है ? इस क्षेत्र में कठिनाई क्या है ? हम अपनी संस्था से शत प्रतिशत कामयाब छात्रों को बाहर भेजते हैं । आज के समय में सिर्फ पास होना महत्व नहीं रखता है । छात्रों को विशेषांक के साथ उत्तीर्ण होना पड़ता है । लोग सोचते हैं कि हम सिर्फ पैसा कमाने के लिए स्कूल या कालेज चला रहे हैं । ऐसी बात नहीं है । मैंने पहले भी कहा कि हम एक सही व्यक्ति के निर्माण पर जोर देते हैं जो अपने क्षेत्र में एक उदाहरण बन सके । वह किसी भी क्षेत्र में जाए चाहे वह डाक्टर बने, इंजीनियर बने, व्यवसायी बने तकनीशियन बने सफल बने । हमारी संस्था यही चाहती है और ऐसी ही शिक्षा प्रदान करती है । हम शुद्ध आचरण और अनुशासन पर बल देते हैं और उसे छात्रों के अन्दर पैदा करने की कोशिश करते हैं ताकि उसका सही चरित्र निर्माण हो सके । जहाँ तक कठिनाइयों का सवाल है तो यह देश ऐसा है कि यहाँ कठिनाइयाँ हीं कठिनाइयाँ हैं । इसके बिना तो कोई काम हो ही नहीं सकता । सरकार की मानसिकता ऐसी है कि वो निजी क्षेत्र को या व्यवसाय को अजीब सी मानसिकता के साथ देखते हैं । कभी कभी तो ऐसा लगता है कि हम इस ग्रह के हैं ही नहीं, यहाँ के नागरिक भी नहीं हैं । यह हमें झेलना पड़ता है । दूसरी बात कि नेपाल में जितना टैक्स लिया जाता है उतना विश्व के किसी भी देश में मेरी जानकारी में नहीं लिया जाता होगा । तो टैक्स की मार को भी हम झेलते हैं । हम जिस तरह काम कर रहें हैं या शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान दे रहे हैं उसे नजरअंदाज किया जाता है । सबकी सोच यह होती है कि हम छात्रों का या अभिभावक का आर्थिक शोषण करते हैं । हमें शिक्षा माफिया के तहत जोड़कर देखा जाता है । सबकी नजरों में एक हिकारत होती है । यह सब हमें सहन करना पड़ता है । ० नई शिक्षा नीति में क्या सुधार होनी चाहिए ? - मैंने जिन कठिनाइयों की बात कही अगर सरकार उस पर ध्यान दे दे तो सुधार स्वयं हो जाएगा । हमारे काम को महत्व दिया जाय । टैक्स सरकार अगर कम लेती है तो छात्रों पर आर्थिक दबाव कम पड़ेगा और हमारी जो आमदनी होगी उसे हम छात्रों के ऊपर खर्च कर सकेंगे जिसका प्रत्यक्ष फायदा उसे मिलेगा । हमें अच्छे माहौल में काम करने दिया जाय । शिक्षा के क्षेत्र को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाया जाय । एसी नीति बनाई जाय कि बच्चे अपने ही देश में शिक्षा प्राप्त करें । यहाँ से बच्चे बाहर जाते हैं तो पैसा भी तो बाहर जाता है । अगर वो पैसा देश में ही रहे तो शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर सुधार हो सकता है । सरकार का ध्यान इस ओर जाना चाहिए और देश के पैसे को देश में ही रहने की नीति का निर्माण करना चाहिए । अगर देश में ही गुणस्तरीय शिक्षा मिलेगी तो छात्र बाहर क्यों जाएँगे । इस ओर सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है । ० भूकम्प के बाद शिक्षा पर क्या असर पड़ा है ? - भूकम्प के बाद जो डर था वह धीरे धीरे अब खत्म हो चुका है । जो बच्चे यहाँ से चले गए थे वो भी वापस आने लगे हैं । डर से निकालना है तो काम करना होगा । आप उसमें व्यस्त हो जाते हैं तो मन से डर निकल जाता है । ० संस्था से जुड़ी उच्च शिक्षा के विषय में कुछ कहना चाहेंगे ? - हम चाहते हैं कि हम बेहतर से बेहतर शिक्षा दें किन्तु इस क्षेत्र में हमारे सामने एक और समस्या आती है कि जो उच्च शिक्षा से जुड़ी हुई है । यहाँ सरकारी निकायों में यह कानून बना दिया जाता है कि जो प्राफेसर वहाँ कार्यरत हैं वो कहीं निजी संस्थान में नहीं पढाÞ सकते, यह सही नहीं है । उनको अपनी शिक्षा का उपयोग करने का अवसर देना चाहिए ताकि दूसरे उससे ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित हो सकें । जब आप निजी संस्थान को अध्यापन कराने के लिए मान्यता देते हैं तो उसे विषय से सम्बन्धित विज्ञ की आवश्यकता होती है और अगर आप प्रोफेसर को अनुमति नहीं देंगे तो हमें शिक्षक कहाँ से मिलेंगे । इसलिए इस ओर भी समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है । गाँवों में प्लस टू तक की पढ़ाई तो सही है किन्तु उसके बाद तो बच्चे शहर ही आते हैं । नेपाल में बच्चे या तो काठमान्डू आते हैं या बाहर जाते हैं । अगर देश में ही सुविधा मिल जाय तो बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होगी । भारत में अधिकांश बच्चे वहीं अध्ययन करते हैं जबकि हमारे यहाँ के अधिकतर बच्चे बाहर जाते हैं । ० आपके और भी क्या क्या उद्योग हैं ? - हमारी दो कम्पनियाँ हैं । यती कार्पेट को मैं चलाता हूँ । जब मैं बम्बई से आया तो बाबू जी ने इसकी जिम्मेदारी मुझे दी । मैंने इस बन्द कम्पनी को फिर से शुरु किया । मेरा मानना है कि अगर आप सही तरीके से काम करेंगे अपने कर्मचारियों को खुश रखेंगे तो आप कामयाब होंगे । मैंने चार चार बन्द कम्पनियों को चलाया जिसमें यती फैब्रिक्स, यती कार्पेट, सीताराम दूध आदि कम्पनियाँ हैं और आज ये सभी अच्छी तरह से चल रही हैं । ० वत्र्तमान परिस्थिति से आप कितना सन्तुष्ट हैं ? - जिस देश में हर ओर समस्याएँ हों वहाँ कोई संतुष्ट कैसे रह सकता है ? आज विश्व विकास की बातें करता है और उस ओर तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है किन्तु हम बातें करते हैं ः बिजली की , पानी की, जाति की, संघीयता की, बन्द की, नदी साफ करने की तो ऐसे में हमारी संतुष्टि का तो सवाल ही नहीं उठता । हम अभी भी बहुत पिछड़े हुए हैं । हमें बन्दी झेलने की आदत हो गई है, लोड सेडिंग में रहने की आदत हो गई है अब तो हालत यह है कि जिस दिन चौबीस घन्टे बिजली रह गई तो वह अजीब लगता है । तो अभी की हालत में संतुष्टि का तो सवाल ही नहीं उठता । ० आपका कोई संदेश ? - नई पीढ़ी को आगे आने की जरुरत है जिनकी सोच नई हो, जो नए तकनीकि को लागु करना जानते हों, वक्त के साथ अपनी सोच को बदलना जानते हों उन्हें आगे आना चाहिए । युवा पीढ़ी ही देश को विकास की राह पर ले जा सकती है । यह बातें हमारे नेताओं को भी समझना चाहिए और युवाओं को आगे बढ़ने देना चाहिए तभी नए नेपाल का निर्माण हो सकता है । हिमालिनी को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद । आपने यह अवसर दिया इसके लिए आप का भी आभार ।
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मैने क्षमा प्रार्थनापूर्वक विश्वास दिलाया, 'मैं सुन रहा हूँ, सुन रहा हूँ।' ' सुन रहे हैं तो सुनिए' वह बोले, ' हमारे माथेमे आँखें हैं । हमारे बाहुओ बल है । आपकी तरह की मौनकी प्रतीक्षा ही हमारा काम नहीं है । प्रकृतिका जितना वैभव है, हमारे लिए है । उसमें जो गुप्त है इसलिए है कि हम उसे उद्घाटित करें। धरतीमें छिपा जल है तो इसलिए कि हम उस धरतीको छेद डालें और कुए खोदकर पानी खीच ले । धरतीके भीतर सोना-चाँदी दबा है और कोयला बंद है, - अब हम है कि धरतीको पोला करके उसके भीतरसे सब कुछ उगलवा ले । आप कहिए कि कुछ हमारे लिए नहीं है तो बेशक कुछ भी आपके लिए न होगा। पर मै कहता हूँ कि सब-कुछ हमारे लिए है; और तब, कुछ भी हमारी मुट्ठी में आये बिना नहीं रह सकता । ' वह विद्वान् पुरुष देखनेसे अभी पकी आयुके नहीं जान पड़ते । उनकी देह दुर्बल है, पर चेहरेपर प्रतिभा दीखती है। ऊपरकी बात कहते हुए उनका मुख जो पीला है, रक्ताभ हो आया है। मैने पूछा भाई, आप कौन हो ? काफी साहस आपने प्राप्त किया है । ' ' जी हाँ, साहस हमारा हक है । मै युवक हूँ । मै वही हूँ जो स्रष्टा होते हैं । मानवका उपकार किसने किया है ? उसने जिसने कि निर्माण किया है । उसने जिसने कि साहस किया है। निर्माता साहसी होता है। वह आत्म-विश्वासी होता है। मैं वही युवक हूँ। मै वृद्ध नहीं होना चाहता।' कहते कहते युवक मानो कॉप आये। उनकी आवाज़ काफी तेज हो गई थी। मानो किसीको चुनौती दे रहे हों। मुझे नही प्रतीत हुआ कि यह युवक वृद्ध होनेमें सचमुच देर लगाएँगे । बाल उनके अब भी जहाँ-तहाँसे पक चले है । उनका स्वास्थ्य हर्षप्रद नहीं है और उनकी इंद्रियाँ बिना बाहरी सहायताके मानो काम करनेसे अब भी इन्कार करना चाहती है । मैने कहा, ' भाई, मान भी लिया कि सब कुछ हमारे लिए है । तब फिर हम किसके लिए है ? ' युवकने उद्दीप्त भावसे कहा, 'हम किसके लिए है ? हम किसीके लिए नहीं है। हम अपने लिए हैं । मनुष्य सचराचर विश्वमें मूर्धन्य है । वह विश्वका भोता है । सब उसके लिए साधन है । वह स्वयं अपने आपमें साध्य है । मनुष्य अपने लिए है । बाकी और सब-कुछ मनुष्य के लिए है ---- मैने देखा कि युवकका उद्दीपन इस भाँति अधिक न हो जाय । मानव-प्राणीकी श्रेष्ठतासे मानो उनका मस्तक चहक रहा है। मानों वह श्रेष्ठता उनसे झिल नही रही है, उनमें समा नहीं रही है । श्रेष्ठता तो अच्छी ही चीज़ है, पर वह बोझ बन जाय यह ठीक नहीं है । मैने कहा, 'भाई, मैने जल-पानको पूछा ही नहीं । ठहरो, कुछ जल-पान मँगाता हूँ।' युवकने कहा, 'नहीं - नहीं, ' और वह कुछ अस्थिर हो गया। मैने उनका संकोच देखकर हठ नहीं की। कहा, ' देखो भाई, हम अपने आपमे पूरे नहीं है । ऐसा होता तो किसी चीज़की ज़रूरत न होती । पूरे होनेके रास्ते में ज़रूरतें होती है। पूरे हो जानेका लक्षण ही यह है कि हम कहें यह ज़रूरत नहीं रह गई। कोई वस्तु उपयोगी है, इसका अर्थ यही है कि हमारे भीतर उसकी उपयोगिता के लिए जगह खाली है । सब-कुछ हमे चाहिए, इसका मतलब यह है कि अपने भीतर हम बिल्कुल खाली है । सब कुछ हमारा हो, - इस हविसकी जड़मे तथ्य यह है कि हम अपने नही है । सबपर अगर हम कुब्ज़ा करना चाहते है तो आशय है कि हमपर हमारा ही काबू नहीं है, हम पदार्थोंके गुलाम है। क्यों भाई, आप गुलाम होना पसंद करते हो ? युवकका चेहरा तमतमा आया। उन्होंने कहा, 'गुलाम । मैं सबका मालिक हूँ । मै पुरुष हूँ । पुरुषकी कौन बराबरी कर सकता । है ? सब प्राणी और सब पदार्थ उसके चाकर है । है, वह स्वामी है । मै गुलाम ? मै पुरुष हूँ, मै गुलाम !.... ' आवेशमे आकर युवक खड़े हो गये । देखा कि इस बार उनको रोकना कठिन हो जायगा । बढ़कर मैने उनके कंधेपर हाथ रक्खा और प्रेमके अधिकारसे कहा, 'जो दूसरेको पकड़ता है, वह खुद पकड़ा जाता है। जो दूसरेको बाँधता है वह खुदको बाँधता है । जो दूसरेको खोलता है वह खुद भी खुलता है। अपने प्रयोजनके घेरेमे किसी पदार्थको या प्राणीको घेरना खुद अपने चारों ओर घेरा डाल लेना है । इस प्रकार स्वामी बनना दूसरे अर्थो में दास बनना है । इसीलिए, मैं कहता हूँ कि कुछ हमारे लिए नहीं है। इस तरह सबको आजाद करके अपनानेसे हम सच्चे अर्थोमे उन्हें 'अपना' बना सकते हैं। अनुरक्तिमे हम क्षुद्र बनते है, विरक्त होकर हम ही विस्तृत हो जाते हैं। हाथमे कुंडी बगलमे सोटा, चारो दिसि जागीरीमे- भाई, चारों दिशाओको अपनी जागीर बनानेकी राह है तो यह है । - ' अब तक युवक धैर्यपूर्वक सुनते रहे थे । अब उन्होने मेरा हाथ अपने कंधेपरसे भटक दिया और बोले, 'आपकी बुद्धि बहक गई है । मै आपकी प्रशंसा सुनकर आया था। आप कुछ कर्तृत्वका उपदेश न देकर यह मीठी बहककी बाते सुनाते है । मै उनमें फॅसनेवाला नहीं हूँ । प्रकृतिसे युद्धकी आवश्यकता है । निरंतर युद्ध, अविराम युद्ध । प्रकृतिने मनुष्यको हीन बनाया है । यह मनुष्यका काम है कि उसपर विजय पाये और उसे चेरी बनाकर छोड़े। मै कभी यह नहीं सुनूँगा कि मनुष्य प्रारब्धका दास है --- मैंने कहा, ' ठीक तो है । लेकिन भाई - ' पर मुझे युवकने बीचहीमें तोड़ दिया। कहा, 'जी नहीं, मैं कुछ नहीं सुन सकता। देश हमारा रसातलको जा रहा है । और उसके लिए आप जैसे लोग जिम्मेदार हैं- ' मैं एक इकेला-सा आदमी कैसे इस भारी देशको रसातल जितनी दूर भेजनेका श्रेय पा सकता हूँ, यह कुछ मेरी समझमे नही आया कहना चाहा, 'सुनो तो भाई - ' लेकिन युवकने कहा, 'जी नही, माफ़ कीजिए।' यह कहकर वह युवक मुझे वहीं छोड़ तेज़ चालसे चले गये । असल इतनी बात बढ़नेपर में पूछना चाहता था कि भाई, तुम्हारी शादी हुई या नहीं? कोई बाल-बच्चा है? कुछ नौकरी चाकरीका ठीक-ठाक है, या कि क्या ? गुज़ारा कैसे चलता है :मैं उनसे कहना चाहता था कि भाई, यह दुनिया अजव जगह है; सो तुम्हें जब ज़रूरत हो और मै जिस योग्य समझा जाऊँ, उसे कहनेमे मुझसे हिचकनेकी आवश्यकता नहीं है । तुम विद्वान् हो, कुछ करना चाहते हो । मैं इसके लिए तुम्हारा कृतज्ञ हूँ। मुझे तुम अपना ही जानो । देखो भाई, संकोच न करना । - पर उन युवकने यह कहनेका मुझे अवसर नहीं दिया, रोष भावसे मुझे परे हटाकर चलते चले गये । उन युवककी एक भी बात मुझे नामुनासिब नहीं मालूम हुई । सब बातें युवकोचित थीं । पर उन बातोंको लेकर अधीर होनेकी आवश्यकता मेरी समझ में नही आई । मुझे जान पड़ता है कि सब कुछका स्वामी बनने से पहले खुद अपना मालिक बननेका प्रयत्न वह करे तो ज्यादा कार्यकारी हो । युवककी योग्यता असंदिग्ध है, पर दृष्टि उनकी कही सदोष भी न हो ! उनके ऐनक लगी थी, इससे शायद निगाह निर्दोष पूरी तरह न रही होगी । पर वह युवक तो मुझे छोड़ ही गये है । तब यह अनुचित होगा कि मैं उन्हें न छोहूँ । इससे आइए, उन युवकके प्रति अपनी मंगल कामनाओंका देय देकर इस अपनी बातचीतके सूत्रको सँभालें । प्रश्न यह है कि अपनेको समस्तका केंद्र मानकर क्या हम यथार्थ सत्यको समझ सकते अथवा पा सकते है ? निस्संदेह सहज हमारे लिए यही है कि केंद्र हम अपनेको मानें और शेष विश्वको उसी अपेक्षा ग्रहण करें । जिस जगह हम खड़े हैं, दुनिया उसी स्थलको मध्य बिंदु मानकर वृत्ताकार फैली हुई दीख पड़ती है। जान पड़ता है, धरती चपटी है, थालीकी भाँति गोल है और स्थिर है। सूरज उसके चारों ओर घूमता है । स्थूल आँखोंसे और स्थूल वुद्धिसे यह बात इतनी सहज सत्य मालूम होती है कि जैसे अन्यथा कुछ हो ही नहीं सकता। अगर कुछ प्रत्यक्ष सत्य है तो यह ही है । पर आज हम जानते हैं कि यह वात यथार्थ नहीं है। जो यथार्थ है उसे हम तभी पा सकते हैं जब अपनेको विश्वके केंद्र माननेसे हम ऊँचे उठे । - अपनेको मानकर भी किसी भाँति अपनेको न मानना आरंभ करें । सृष्टि हमारे निमित्त है, यह धारणा अप्राकृतिक नहीं है। पर उस धारणापर अटक कर कल्पनाहीन प्राणी ही रह सकता है । मानव अन्य प्राणियोंकी भाँति कल्पनाशून्य प्राणी नहीं है । - मानवको तो यह जानना ही होगा कि सृष्टिका हेतु हममें निहित नहीं है । हम स्वयं सृष्टिका भाग हैं । हम नहीं थे, पर सृष्टि थी । हम नहीं रहेंगे, पर सृष्टि रहेगी । सृष्टिके साथ और सृष्टिके पदार्थोंके साथ हमारा सच्चा संबंध क्या है ? क्या हो ? मेरी प्रतीति है कि प्रयोजन और ' युटिलिटी' शब्दसे जिस संबंधका बोध होता है वह सच्चा नहीं है । वह काम चलाऊ भर है वह परिमित है, कृत्रिम है और वंधनकारक है। उससे कोई किसीको पा नहीं सकता । सच्चा संबंध प्रेमका, भ्रातृत्वका और आनन्दका है। इसी संबंध में पूर्णता है, उपलब्धि है और आह्लाद है; न यहाँ किसीको किसीकी अपेक्षा है, न उपेक्षा है । यह प्रसन्न, उदात्त, समभावका संबंध है पानी हमारे पीनेके लिए बना है, हवा जीनेके लिए, यदि
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प्रीलिम्स के लियेः मेन्स के लियेः चर्चा में क्यों? हाल ही में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE) ने अपने स्थापना दिवस पर डीप फ्रीज़र और लाइट कमर्शियल एयर कंडीशनर (Deep Freezer and Light Commercial Air Conditioners- LCAC) हेतु स्टार रेटिंग कार्यक्रम शुरू किया है। मुख्य बिंदुः - केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of Power) के अंतर्गत स्थापित BEE ने अपने 19वें स्थापना दिवस के अवसर पर ऊर्जा कुशल भारत के निर्माण के लिये एक दृष्टिकोण विकसित करने हेतु कार्यक्रम का आयोजन किया। - इस अवसर पर ऊर्जा दक्षता इनफॉर्मेशन टूल (Urja Dakshata Information Tool- UDIT) की भी शुरुआत की गई। - BEE द्वारा 'वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट' (World Resources Institute-WRI) के सहयोग से बनाए गए इस पोर्टल के ज़रिये विभिन्न क्षेत्रों में चलाए जा रहे ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों के बारे में जानकारी और आँकड़े हासिल किये जा सकेंगे। - उदित एक उपयोगकर्त्ता अनुकूलित मंच है जो उद्योग, उपकरण, भवन, परिवहन, नगरपालिका और कृषि क्षेत्रों में भारत के ऊर्जा दक्षता परिदृश्य की व्याख्या करता है। - उदित, ऊर्जा दक्षता क्षेत्र में वृद्धि के लिये सरकार द्वारा उठाए गए क्षमता निर्माण संबंधी नई पहलों की भी प्रदर्शित करेगा। क्या है डीप फ्रीज़र और लाइट कमर्शियल एयर कंडीशनर हेतु स्टार रेटिंग कार्यक्रम? - स्टार लेबलिंग कार्यक्रम ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत एक अधिदेश के रूप में BEE द्वारा प्रारंभ किया गया है। - इस कार्यक्रम के माध्यम से डीप फ्रीज़र और लाइट कमर्शियल एयर कंडीशनर को स्टार लेबलिंग अर्थात् स्टार रेटिंग कार्यक्रम के दायरे में लाया गया है। स्टार लेबलिंगः - स्टार लेबलिंग के माध्यम से उपकरण विनिर्माता यह बताता है कि उसका कोई उपकरण बिजली खर्च के हिसाब से कितना किफायती है। - डीप फ्रीज़र के लिये स्टार लेबलिंग कार्यक्रम स्वैच्छिक आधार पर शुरू किया गया है और ऊर्जा खपत मानदंड 31 दिसंबर, 2021 तक प्रभावी होगा। वहीं हल्के वाणिज्यिक एयर कंडीशनर के लिये यह 2 मार्च, 2020 से 31 दिसंबर, 2021 तक स्वैच्छिक होगा। डीप फ्रीज़र तथा लाइट कमर्शियल एयर कंडीशनरः - डीप फ्रीज़र का उपयोग खाने-पीने का सामान, फल, सब्जी जैसे पदार्थों को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिये होता है। वहीं हल्के वाणिज्यिक एयर कंडीशनर के तहत 3 टन से 5 टन तक की क्षमता के एसी आते हैं। - इस कार्यक्रम के तहत BEE ने अब तक 24 उपकरणों को कवर किया है, जिसमें 10 उपकरण अनिवार्य स्टार लेबलिंग के अधीन हैं। - स्वैच्छिक स्टार लेबलिंग के तहत इन दो नए उपकरणों के लॉन्च होने से अब इस कार्यक्रम में 26 उपकरण शामिल हो गए हैं। - डीप फ्रीज़र्स की वार्षिक ऊर्जा खपत का ऊर्जा खपत मानक (किलोवाट.घंटा/वर्ष) पर आधारित है। - डीप फ्रीज़र्स का उपयोग मुख्य रूप से वाणिज्यिक प्रशीतन क्षेत्र में किया जाता है और अगले दशक तक इनके 2 गुना हो जाने की संभावना है जिससे बिजली की खपत के बढ़ने की भी संभावना है। - वित्तीय वर्ष 2017-18 में चेस्ट और अपराइट डीप फ्रीज़र सेगमेंट (Chest and Upright type Deep Freezer Segment) के कुल संगठित बाज़ार का आकार लगभग 5-6 लाख यूनिट था। इसका बाज़ार पिछले 3 वर्षों में 28% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ दोगुना से अधिक हो गया है तथा इसके और बढ़ने की भी उम्मीद है। चेस्ट प्रकार के फ्रीजर का हिस्सा बाज़ार में लगभग 99% है, जबकि अपराइट प्रकार के फ्रीज़र्स का बाज़ार में हिस्सा लगभग 1% है। - लगभग 3.72 लाख डीप फ्रीज़र यूनिटस का विदेश से आयात किया गया है जबकि शेष स्वदेशी तौर पर निर्मित हैं। - डीप फ्रीज़र को स्टार रेटिंग कार्यक्रम में लाने से वर्ष 2030 तक 6.2 अरब यूनिट बिजली की बचत होगी जो कार्बन डाइऑक्साइड के 5.3 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैस की कमी के बराबर है। वहीं लाइट कमर्शियल एयर कंडीशनर के मामले में 2.8 अरब यूनिट बिजली बचत का अनुमान है अर्थात् कुल मिलाकर इससे 9 अरब यूनिट बिजली की बचत होगी जो कार्बन डाइऑक्साइड के 2.4 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैस की कमी के बराबर है। ऊर्जा कुशल भारत के विकास के लिये हितधारकों के साथ परामर्शः - भारत के ऊर्जा क्षेत्र का निर्धारण सरकार की विभिन्न विकास संबंधी महत्त्वाकांक्षाओं से निर्धारित होगा, जैसे- वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा की 175 गीगावाट क्षमता स्थापित करना, सभी के लिये 24X7 पॉवर, सभी के लिये वर्ष 2022 तक आवास, 100 स्मार्ट सिटी मिशन, ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देना, रेलवे सेक्टर का विद्युतीकरण, घरों का 100% विद्युतीकरण, कृषि पंप सेटों का सोलराइजेशन, और खाना पकाने की स्वच्छ विधियों को बढ़ावा देना। - भारत महत्त्वाकांक्षी ऊर्जा दक्षता नीतियों के कार्यान्वयन से वर्ष 2040 तक 300 GW बिजली की बचत होगी। - वर्ष 2017-18के दौरान ऊर्जा दक्षता उपायों के सफल कार्यान्वयन से देश की कुल बिजली खपत में 7.14% की बचत और 108.28 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन में कमी आई है। ऊर्जा दक्षता ब्यूरोः - भारत सरकार ने इसकी स्थापना ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के उपबंधों के अंतर्गत 1 मार्च, 2002 को की थी। - ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के समग्र ढाँचे के अंदर स्व-विनियम और बाज़ार सिद्धांतों पर महत्त्व देते हुए ऐसी नीतियों और रणनीतियों का विकास करने में सहायता प्रदान करना है जिनका प्रमुख उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में ऊर्जा की गहनता को कम करना है। प्रीलिम्स के लियेः मेन्स के लियेः चर्चा में क्यों? केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने 2 मार्च, 2020 को राज्यसभा में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक, 2019 पेश किया। मुख्य बिंदुः - इस विधेयक को 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया था तथा अगले दिन इसे पारित किया गया। - इस विधेयक का उद्देश्य भारत के तीन डीम्ड विश्वविद्यालयों को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में बदलना है। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में परिवर्तित किये जाने वाले डीम्ड विश्वविद्यालयः - राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (नई दिल्ली) - लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (नई दिल्ली) - राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (तिरुपति) - प्रस्तावित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयों के कार्यः - संस्कृत भाषा के ज्ञान का प्रसार करना और संस्कृत भाषा को और उन्नत बनाना। - मानविकी, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान के एकीकृत पाठ्यक्रम के लिये विशेष प्रावधान करना। - संस्कृत भाषा और उससे संबद्ध विषयों के समग्र विकास और संरक्षण के लिये लोगों को प्रशिक्षित करना। - शक्तियाँः - अध्ययन के पाठ्यक्रम का वर्णन करना और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना। - डिग्री, डिप्लोमा और प्रमाण पत्र प्रदान करना। - दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के माध्यम से सुविधाएँ प्रदान करना। - एक कॉलेज या संस्थान को स्वायत्त स्थिति प्रदान करना। - संस्कृत और संबद्ध विषयों में शिक्षा हेतु निर्देश प्रदान करना। - विश्वविद्यालय के प्राधिकारः - एक न्यायालय के रूप मेंः - यह विश्वविद्यालय की नीतियों की समीक्षा करेगा और इसके विकास के लिये उपाय सुझाएगा। - कार्यकारी परिषदः - यह विश्वद्यालय का एक मुख्य कार्यकारी निकाय होगा। - केंद्र द्वारा नियुक्त इस 15-सदस्यीय परिषद में कुलपति को भी शामिल किया जाएगा, जो इस बोर्ड का अध्यक्ष होगा। - इस समिति में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव, और संस्कृत या संबद्ध विषयों के क्षेत्र से दो प्रतिष्ठित शिक्षाविद् शामिल होंगे। - यह परिषद शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति का प्रावधान करेगी और विश्वविद्यालय के राजस्व और संपत्ति का प्रबंधन करेगी। - एक अकादमिक और गतिविधि परिषद (Academic and Activity Council) होगी जो अकादमिक नीतियों की निगरानी करेगी। - एक 'बोर्ड ऑफ स्टडीज़' होगा जो शोध के लिये विषयों को मंज़ूरी देगा और शिक्षण के मानकों में सुधार के उपायों की सिफारिश करेगा। - एक न्यायालय के रूप मेंः (Visitor of the universities): - भारत का राष्ट्रपति सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तरह केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयों का विज़िटर होगा। - वह विश्वविद्यालय के कामकाज की समीक्षा और निरीक्षण करने के लिये व्यक्तियों को नियुक्त कर सकता है। - निरीक्षण के निष्कर्षों के आधार पर कार्यकारी परिषद कार्रवाई कर सकती है। प्रीलिम्स के लियेः मेन्स के लियेः चर्चा में क्यों? केंद्रीय गृह राज्य मंत्री की अध्यक्षता में नई दिल्ली में भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (Land Ports Authority of India-LPAI) के 8वें स्थापना दिवस का आयोजन किया गया। - केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीमा पार व्यापार की सुविधा हेतु सीमावर्ती बुनियादी ढाँचे के निर्माण और भारत की भूमि सीमाओं पर यात्रा हेतु किये गए उत्कृष्ट कार्य के लिये LPAI की सराहना की। - ज्ञात हो कि भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर में यात्री टर्मिनल भवन के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर पाकिस्तान में रावी नदी के तट पर स्थित है और पाकिस्तान में भारत-पाकिस्तान सीमा से लगभग 3-4 किमी. दूर है। यह भारत के गुरदासपुर ज़िले में डेरा बाबा नानक से लगभग 4 किमी. दूर है और पाकिस्तान के लाहौर से लगभग 120 किमी. उत्तर-पूर्व में है। कहा जाता है कि सिख समुदाय के पहले गुरु ने अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण वर्ष यहाँ गुज़ारे जिसके कारण यह स्थान सिख धर्म के अनुयायियों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है। भारतीय सिख तीर्थयात्रियों के लिये करतारपुर साहिब की ओर जाने वाले गलियारे को खोलने की मांग भारत द्वारा कई अवसरों पर उठाई जाती रही है। इसके पश्चात् नवंबर 2018 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2019 में गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती मनाने का प्रस्ताव पारित किया और साथ ही गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर गलियारे के निर्माण और विकास को मंज़ूरी दी गई। - इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भूमि पत्तन से संबंधित विभिन्न पहलुओं जैसे- यात्रा और क्षेत्रीय संपर्क, एकीकृत चेक पोस्ट (ICPs) पर कार्गो संचालन में चुनौतियाँ और एकीकृत चेक पोस्ट के बुनियादी ढाँचे संबंधी आवश्यकताएँ आदि पर चर्चा की गई। (Land Ports Authority of India) - भारत की अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्याँमार, नेपाल और पाकिस्तान के साथ लगभग 15000 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। सीमा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर व्यक्तियों, माल और वाहनों के आवागमन के लिये कई निर्दिष्ट प्रवेश और निकास स्थान हैं। - इस संबंध में विभिन्न सरकारी कार्यों जैसे- सुरक्षा, आव्रजन और सीमा शुल्क आदि के समन्वय तथा नियंत्रण हेतु 1 मार्च, 2012 को भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) की स्थापना की गई थी। - भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) सीमा प्रबंधन विभाग, गृह मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक निकाय है। - भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 11 के तहत LPAI को भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्रों में निर्दिष्ट बिंदुओं पर यात्रियों और सामानों की सीमा पार आवाजाही के लिये सुविधाओं को विकसित एवं प्रबंधित करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। वर्ष 2003 में व्यक्तियों, वाहनों और सामानों की सीमा पार आवाजाही के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे पर चिंता व्यक्त करते हुए सचिव स्तर की एक समिति ने भारत की भूमि सीमाओं के प्रमुख प्रवेश बिंदुओं पर एकीकृत चेक पोस्ट (ICPs) स्थापित करने की सिफारिश की। इसके पश्चात् इस कार्य को करने के लिये एक स्वायत्त एजेंसी की संरचना की सिफारिश करने हेतु एक अंतर-मंत्रालयी कार्यदल का गठन किया गया। अंतर-मंत्रालयी कार्यदल ने विभिन्न विकल्पों पर विचार कर ICPs के निर्माण, प्रबंधन और रखरखाव के लिये एजेंसी हेतु सबसे उपयुक्त मॉडल के रूप में एक सांविधिक निकाय की सिफारिश की। इस प्रकार भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (LPAI) का गठन किया गया। भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 11 की उप-धारा (2) में भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण के विभिन्न कार्यों का उल्लेख किया गया हैः - एकीकृत चेक पोस्ट पर राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और रेलवे के अतिरिक्त सड़कों, टर्मिनलों एवं सहायक भवनों की योजना, निर्माण तथा रखरखाव करना; - एकीकृत चेक पोस्ट पर संचार, सुरक्षा, माल की हैंडलिंग और स्कैनिंग उपकरणों को खरीदना, स्थापित करना और उनका रखरखाव करना; - एकीकृत चेक पोस्ट पर नियुक्त कर्मचारियों के लिये आवास की व्यवस्था करना; - प्राधिकरण को सौंपे गए किसी भी कार्य के निर्वहन के लिये संयुक्त उपक्रम स्थापित करना। प्रीलिम्स के लियेः मेन्स के लियेः चर्चा में क्यों? केंद्र सरकार ने 11-12 अप्रैल को नई दिल्ली में 'सामाजिक सशक्तीकरण के लिये उत्तरदायी कृत्रिम बुद्धिमत्ता-2020' (Responsible AI for Social Empowerment-2020) यानी रेज़-2020 (RAISE 2020) नामक एक वृहद् आयोजन की घोषणा की है। - रेज़-2020 सरकार द्वारा उद्योग और शिक्षा क्षेत्र के साथ साझेदारी में आयोजित किया जाने वाला भारत का पहला कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) शिखर सम्मेलन है। - इस शिखर सम्मेलन के दौरान स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में सामाजिक सशक्तीकरण, समावेशन एवं परिवर्तन के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का इस्तेमाल करने के साथ-साथ एक पाठ्यक्रम की तैयारी हेतु विश्व भर के विशेषज्ञों द्वारा विचारों का आदान-प्रदान किया जाएगा। - इस कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा। - केंद्र द्वारा घोषित इस शिखर सम्मेलन का प्राथमिक उद्देश्य एक बेहतर भविष्य के लिये सामाजिक परिदृश्य को बदलने हेतु उत्तरदायी AI की क्षमता का उपयोग करने हेतु भारत के विज़न को रेखांकित करना है। - यह शिखर सम्मेलन डिजिटल युग में AI को नैतिक रूप से विकसित करने की आवश्यकता को लेकर व्यापक जागरूकता पैदा करने के लिये विचारों के सुचारु आदान-प्रदान को सक्षम करेगा। - रेज़-2020 कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर भारत के विज़न और उत्तरदायी AI के माध्यम से सामाजिक सशक्तीकरण, समावेशन और परिवर्तन के लिये रोडमैप बनाने के उद्देश्य से अपनी तरह की पहली वैश्विक बैठक है। - यह आयोजन एक स्टार्टअप चैलेंज - पिचफेस्ट के साथ शुरू होगा। - भारत सरकार द्वारा आयोजित इस दो-दिवसीय शिखर सम्मेलन में इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ-साथ विश्व भर की औद्योगिक हस्तियाँ, प्रमुख चिंतक, सरकार के प्रतिनिधि और शिक्षाविद् भाग लेंगे। - नीति आयोग के अनुमान के अनुसार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को अपनाने एवं बढ़ावा देने से वर्ष 2035 तक भारत की GDP में 957 बिलियन डॉलर की वृद्धि के साथ ही भारत की वार्षिक वृद्धि दर 1.3 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। - कृषि में अनुप्रयोग से यह किसानों की आय तथा कृषि उत्पादकता बढ़ाने और अपव्यय को कम करने में योगदान कर सकता है। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है और इस लक्ष्य की प्राप्ति में AI महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। - कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुँच को बढ़ा सकता है। इसकी मदद से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है एवं शिक्षा तक लोगों की पहुँच को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही प्रशासन में दक्षता को बढ़ाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त व्यापार एवं वाणिज्य में इसका लाभ सिद्ध है। (Artificial Intelligence) - कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है। - सरलतम शब्दों में कहें तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता का अर्थ है एक मशीन में सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को कंप्यूटर साइंस का सबसे उन्नत रूप माना जाता है। - कृत्रिम बुद्धिमत्ता का आरंभ 1950 के दशक में ही हो गया था, लेकिन इसकी महत्ता को पहली बार 1970 के दशक में पहचान मिली। जापान ने सबसे पहले इस ओर पहल की और 1981 में फिफ्थ जनरेशन नामक योजना की शुरुआत की थी। इसमें सुपर-कंप्यूटर के विकास के लिये 10-वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। - इसके पश्चात् अन्य देशों ने भी इस ओर ध्यान दिया। ब्रिटेन ने इसके लिये 'एल्वी' नाम से एक परियोजना की शुरुआत की। यूरोपीय संघ के देशों ने भी 'एस्प्रिट' नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी। प्रीलिम्स के लियेः ब्लैक कार्बन, समतुल्य ब्लैक कार्बन (EBC) मेन्स के लियेः चर्चा में क्यों? वैज्ञानिक पत्रिका 'ऐटमोस्पियरिक एनवायरनमेंट' (Atmospheric Environment) में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कृषि अपशिष्ट दहन और वनाग्नि से उत्पन्न 'ब्लैक कार्बन' (Black carbon) के कारण 'गंगोत्री हिमनद' के पिघलने की दर में वृद्धि हो सकती है। मुख्य बिंदुः - यह अध्ययन वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology- WIHG) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था। WIHG संस्थान विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। - यह अध्ययन वर्ष 2016 में गंगोत्री हिमनद के पास चिरबासा स्टेशन पर किया गया था। - पर्वतीय ढालों से घाटियों में रैखिक प्रवाह में बहते हिम संहति को हिमनद कहते हैं। भारत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में ऐसे हिमनद पाए जाते हैं। गंगोत्री हिमनदः - भागीरथी नदी का उद्गम गंगोत्री हिमनद से है, जबकि अलकनंदा का उद्गम अलकनंदा हिमनद से है, देवप्रयाग के निकट दोनों के मिलने के बाद इन्हें गंगा के रूप में जाना जाता है। शोध के मुख्य निष्कर्षः - ग्रीष्मकाल में गंगोत्री हिमनद क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की सांद्रता में 400 गुना तक वृद्धि हो जाती है। 'समतुल्य ब्लैक कार्बन' (Equivalent Black Carbon- EBC) की मासिक औसत सांद्रता अगस्त माह में न्यूनतम और मई माह में अधिकतम पाई गई। - EBC की मौसमी माध्य सांद्रता में मैसमी बदलाव आता है, जिससे यहाँ प्राचीन हिमनद स्रोत (Pristine Glacial Source) की उपस्थिति तथा क्षेत्र में EBC स्रोतों की अनुपस्थिति का पता चलता है। - शोध के अनुसार, ब्लैक कार्बन की मौसमी चक्रीय परिवर्तनीयता के उत्तरदायी कारकों में कृषि अपशिष्ट दहन (देश के पश्चिमी भाग में) तथा ग्रीष्मकालीन वनाग्नि (हिमालय के कगारों पर) प्रमुख थे। ब्लैक कार्बन (Black Carbon): - ब्लैक कार्बन जीवाश्म एवं अन्य जैव ईंधनों के अपूर्ण दहन, ऑटोमोबाइल तथा कोयला आधारित ऊर्जा सयंत्रों से निकलने वाला एक पार्टिकुलेट मैटर है। - यह एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है जो उत्सर्जन के बाद कुछ दिनों से लेकर कई सप्ताह तक वायुमंडल में बना रहता है। समतुल्य ब्लैक कार्बन (EBC): - ब्लैक कार्बन अपने उत्पति स्रोत के आधार पर अलग-अलग प्रकार के होते हैं तथा वे प्रकाश के विशिष्ट तरंगदैर्ध्य का अवशोषण या परावर्तन करते हैं। इसका मापन ऐथेलोमीटर (Aethalometers) उपकरण द्वारा किया जाता है। - ब्लैक कार्बन के इन मौलिक कणों को द्रव्यमान (Mass) इकाई में बदलने के लिये, इन उपकरणों का उपयोग किया जाता है तथा परिणाम को समतुल्य ब्लैक कार्बन (EBC) नाम दिया जाता है। यथा- यातायात के ब्लैक कार्बन द्रव्यमान को EBC-TR लिखा जाएगा। ब्लैक कार्बन के स्रोतः ब्लैक कार्बन के प्रभावः - वायुमंडल में इसके अल्प स्थायित्व के बावजूद यह जलवायु, हिमनदों, कृषि, मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव डालता है। - वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा समतापमंडल (stratosphere) में 18 किमी. की ऊँचाई तक इन कणों के उपस्थित होने के साक्ष्य मौजूद हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि ये ब्लैक कार्बन कण लंबे समय तक वातावरण में उपस्थित रहते हैं तथा 'ओज़ोन परत को नुकसान' पहुँचाने वाली अन्य रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिये एक बेहतर स्थिति प्रदान करते हैं। - ब्लैक कार्बन जैसे वायु प्रदूषक में गर्भवती माँ के फेफड़ों के माध्यम से प्लेसेंटा में स्थापित होने की क्षमता होती है जिसके 'शिशु पर गंभीर स्वास्थ्य परिणाम' प्रदर्शित होते हैं। हिमनद व परमाफ्रास्ट (Permafrost) पर प्रभावः - वर्ष 2005 में प्रकाशित लारेंस रिपोर्ट के अनुसार, आर्कटिक क्षेत्र में समस्त मृदा का लगभग 30% ब्लैक कार्बन भंडार है। वैश्विक तापन के कारण हिमनद तथा परमाफ्रास्ट लगातार पिघल रहा है तथा इसमें दबा हुआ ब्लैक कार्बन और मीथेन बाहर आ रही है जिससे जलवायु तापन में और तेज़ी आएगी। - ब्लैक कार्बन के कारण 'हिमालयी ग्लेशियरों' पिघलने की गति भी बढ़ गई है। आगे की राहः - वनाग्नि को जलवायु परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण आयाम मानते हुए इससे निपटने के लिये हमें वैश्विक स्तर पर नीति निर्माण की आवश्यकता है, जो 'वनाग्नि और उससे संबंधित पहलुओं' को संबोधित करती हो। - कृषि अपशिष्टों यथा- 'पराली' आदि का व्यावसायीकरण किया जाना चाहिये ताकि इनके दहन में कमी आ सके। प्रीलिम्स के लियेः इरावदी डॉल्फिन, चिल्का झील, भीतरकनिका व गहिरमाथा अभयारण्य (इनके अध्ययन के लिये मैप का उपयोग कीजिये) मेन्स के लियेः जलवायु परिवर्तन का जीवों पर प्रभाव, जीव संरक्षण व पर्यावरण प्रभाव आकलन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर-लेखन में इस प्रकार के बिंदुओं को संदर्भ अथवा उदाहरण (आवश्यकता) के तौर पर उपयोग किया जा सकता है। चर्चा में क्यों? 19 जनवरी, 2020 को ओडिशा राज्य के वन विभाग द्वारा राज्य में भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान तथा उसमें स्थित गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य में एक दिवसीय डॉल्फिन जनगणना का आयोजन किया गया जिसमें पिछली जनगणना के मुकाबले इस वर्ष डॉल्फिन की संख्या में कमी देखने को मिली। मुख्य बिंदुः - 24 फरवरी, 2020 को प्रकाशित डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में डॉल्फिन की कुल संख्या वर्ष 2020 में 233 दर्ज की गई, जबकि वर्ष 2019 यह संख्या 259 तथा वर्ष 2015 में 270 थी। - वर्ष 2020 में हुई डॉल्फिन जनगणना में केवल 62 डॉल्फिन्स को ही गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य में देखा गया। - वर्ष 2019 में गहिरमाथा में संपन्न डॉल्फिन जनगणना में जहाँ इनकी संख्या 126 आँकी गई थी, वहीं वर्ष 2015 की जनगणना में यह संख्या 307 थी। - गहिरमाथा में हुई डॉल्फिन जनगणना में 60 इरावदी डॉल्फिन (Irrawaddy Dolphins) तथा 2 बोटल नोज़ डॉल्फिन (Bottle-nose Dolphins) ही गहिरमाथा में देखी गई हैं। जबकि वर्ष 2019 में हुई डॉल्फिन जनगणना में 14 इरावदी डॉल्फिन, 14 बोटल नोज़ डॉल्फिन तथा 98 हंपबैक डॉल्फिन (Humpback Dolphins) देखी गई। - गहिरमाथा में प्रथम डॉल्फिन जनगणना वर्ष 2015 में संपन्न हुई जिसमें 58 इरावदी डाॅल्फिन, 23 बोटल नोज़ डॉल्फिन्स,123 सूसा चिनेंसिस डॉल्फिन (Sousa Chinensis Dolphins), 50 सोसा प्ल्म्बेरा डॉल्फिन (Sousa plumbera dolphins),15 पेनट्रोपिक स्पॉटेड डॉल्फिन (Pantropical Spotted Dolphins), 1 फिनलेस प्रपोईस डॉल्फिन (Finless Porpoise Dolphin) यानी वर्ष 2015 में डॉल्फिन की कुल संख्या 270 पाई गई थी। - हालाँकि प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में कुल डॉल्फिन की संख्या में गिरावट के बावजूद चिल्का झील में डॉल्फिन की संख्या में वृद्धि देखी गई है जो वर्ष 2019 के 130 की तुलना में वर्ष 2020 में बढ़कर 146 हो गई हैं। - वर्ष 2020 की गहिरमाथा डॉल्फिन जनगणना इस क्रम की चौथी डॉल्फिन जनगणना है। - सर्वप्रथम गहिरमाथा में डॉल्फिन जनगणना वर्ष 2015 में संपन्न कराई गई उसके बाद वर्ष 2018 और वर्ष 2019 की जनगणना संपन्न की गई। डॉल्फिन की संख्या में गिरावट के कारणः - जलवायु परिवर्तन, प्रतिकूल मौसम, अवैध शिकार आदि कुछ मुख्य कारण हैं जिनके चलते राज्य में डॉल्फिन की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। - इसके अलावा शिकार के दौरान जाल में फँसकर या फिर मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर से टकराकर भी इनकी मृत्यु हो जाती है जिसके चलते इनकी संख्या में कमी दर्ज की गई है। - जलवायु परिवर्तन एवं अत्यधिक वर्षा के कारण जल की लवणता कम होने की वजह से इस वर्ष कई इरावदी डॉल्फिन ने गहिरमाथा से चिल्का झील की तरफ तथा हंपबैक डॉल्फिन ने समुद्र की तरफ प्रवास किया है जिस कारण गहिरमाथा में इस वर्ष जनगणना के दौरान एक भी हमबैक डॉल्फिन को नहीं देखा गया। - गहिरमाथा में डॉल्फिन की संख्या में हुई कमी स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का सूचक नहीं है, यह गहिरमाथा में हुए पारिस्थितिकी बदलाव की तरफ इशारा करता है। गहिरमाथा समुद्री अभयारण्यः - गहिरमाथा ओडिशा के केंद्रपाड़ा ज़िले में भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित है। - यह ओडिशा का एकमात्र समुद्री अभयारण्य है। - गहिरमाथा का समुद्री तट ओलिव रिडले कछुओं (Olive Ridleys Turtuls) का विश्व में सबसे बड़ा प्रजनन स्थल है। चिल्का झील : - यह ओडिशा राज्य के पूर्वी तट पर स्थित है जो पुरी (Puri), खुर्दा (Khurda), गंजम (Ganjam) ज़िलों में विस्तारित है। - यह एशिया की सबसे बड़ी आंतरिक खारे पानी की लैगून झील है। - वर्ष 1971 में इसे रामसर अभिसमय के तहत आर्द्रभूमि स्थल के रूप में शामिल किया गया है। - यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों के लिये सबसे बड़ा शीतकालीन मैदान है। - चिल्का झील के दक्षिण में स्थित सतपद (Satapada) इरावदी डॉल्फिन के लिये प्रसिद्ध है। - विश्व में इरावदी डॉल्फिन की सर्वाधिक आबादी चिल्का झील में ही देखी जाती है। - डॉल्फिन को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनयम 1972 की अनुसूची 1 में शामिल किया गया है। - यह लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अभिसमय (Convention on International Trade in Endangered Species) के अनुबंध 1 तथा प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (Convention on Migratory Species) के अनुबंध II में शामिल है। - प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for the Conservation of Nature- IUCN) की रेड लिस्ट में डाॅल्फिन को संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में शामिल किया गया है। 3 मार्च, 2020 को दुनिया भर में विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जा रहा है। यह दिवस वन्यजीवों के संरक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता के प्रसार हेतु प्रत्येक वर्ष 3 मार्च को मनाया जाता है। 20 दिसंबर, 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मार्च को विश्व वन्य जीव दिवस के रूप में मानने का निर्णय लिया था। ज्ञात हो कि 3 मार्च, 1973 में वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) को अंगीकृत किया गया था। वर्ष 2020 के लिये विश्व वन्यजीव दिवस की थीम "धरती पर सभी जीवों का संरक्षण (Sustaining all life on Earth) है। वर्ष 2020 को जैव विविधता का वर्ष माना गया है। भारत के लिये यह वर्ष मुख्य रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी वर्ष भारत ने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्रवाई के लिये संगठन CoP-13 की अध्यक्षता प्राप्त की है। इस अवसर पर देश में जागरूकता शिविर, फोटो प्रदर्शनी तथा छात्रों और आम जनता को वन्यजीवों के संरक्षण का महत्त्व बताने के लिये कई कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं। श्रम एवं रोज़गार मंत्री संतोष गंगवार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में डीजल की डोरस्टेप डिलीवरी के लिये 'हमसफर' मोबाइल एप लॉन्च किया है। इस एप की सहायता से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होटल, अस्पताल और हाउसिंग सोसाइटी अपने घर पर डीज़ल की डिलीवरी की जाएगी। अभी यह सुविधा गुरुग्राम, गाज़ियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, हापुड, कुंडली, माणेसर और बहादुरगढ़ में उपलब्ध होगी। हमसफर के पास अभी 12 टैंकर हैं। इनकी क्षमता 4000 से 6000 लीटर की है। इन टैंकरों के अलावा हमसफर के पास 35 लोगों की एक अनुभवी टीम भी है। देश भर में 1 मार्च से 7 मार्च, 2020 तक जन औषधि सप्ताह मनाया जा रहा है। इस दौरान स्वास्थ्य जाँच शिविर, जन औषधि परिचर्चा और "जन औषधि का साथ" जैसी विभिन्न गतिविधियाँ चलाई जा रही हैं। सप्ताह के दौरान जन औषधि केंद्रों के माध्यम से देश भर में रक्तचाप, मधुमेह की जाँच, डाॅक्टरों द्वारा निशुल्क चिकित्सा जाँच और दवाओं का मुफ्त वितरण किया जा रहा है। स्वास्थ्य शिविरों में आने वाले लोगों को जन औषधि केंद्रों में बेची जा रही रही दवाओं की गुणवत्ता और उनकी कम कीमतों के बारे में जानकारी दी जा रही है। पूर्व हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह कुलार का 28 फरवरी, 2020 को निधन हो गया। हॉकी खिलाड़ी बलवीर सिंह का जन्म वर्ष 1942 में पंजाब के संसारपुर गाँव में हुआ था। बलबीर सिंह कुलार ने हॉकी की शुरुआत स्कूल में पढ़ाई के दौरान की थी। पढ़ाई के साथ-साथ अच्छा खेलने के कारण उन्हें पंजाब की हॉकी टीम में स्थान मिला। वर्ष 1962 में बलबीर सिंह कुलार को पंजाब सरकार ने पंजाब पुलिस में ASI के तौर पर नियुक्त किया। बलवीर सिंह कुलार ने वर्ष 1963 में भारतीय टीम की तरफ से अपना पहला इंटरनेशनल हॉकी मैच फ्रांँस में खेला था। ध्यातव्य है कि कुलार वर्ष 1966 में बैंकॉक एशियाई गेम्स में स्वर्ण पदक, वर्ष 1968 में मैक्सिको ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम का भी हिस्सा थे। बलबीर सिंह कुलार को वर्ष 1999 में अर्जुन अवार्ड और 2009 में पद्मश्री पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।
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थायस ने स्वाधीन, लेकिन निर्धन और मूर्तिपूजक मातापिता के घर जन्म लिया था। जब वह बहुत छोटीसी लड़की थी तो उसका बाप एक सराय का भटियारा था। उस सराय में परायः मल्लाह बहुत आते थे। बाल्यकाल की अशृंखल, किन्तु सजीव स्मृतियां उसके मन में अब भी संचित थीं। उसे अपने बाप की याद आती थी जो पैर पर पैर रखे अंगीठी के सामने बैठा रहता था। लम्बा, भारीभरकम, शान्त परकृति का मनुष्य था, उन फिर ऊनों की भांति जिनकी कीर्ति सड़क के नुक्कड़ों पर भाटों के मुख से नित्य अमर होती रहती थी। उसे अपनी दुर्बल माता की भी याद आती थी जो भूखी बिल्ली की भांति घर में चारों ओर चक्कर लगाती रहती थी। सारा घर उसके तीक्ष्ण कंठ स्वर में गूंजता और उसके उद्दीप्त नेत्रों की ज्योति से चमकता रहता था। पड़ोस वाले कहते थे, यह डायन है, रात को उल्लू बन जाती है और अपने परेमियों के पास उड़ जाती है। यह अफीमचियों की गप थी। थामस अपनी मां से भलीभांति परिचित थी और जानती थी कि वह जादूटोना नहीं करती। हां, उसे लोभ का रोग था और दिन की कमाई को रातभर गिनती रहती थी। असली पिता और लोभिनी माता थायस के लालनपालन की ओर विशेष ध्यान न देते थे। वह किसी जंगली पौधे के समान अपनी बा़ से ब़ती जाती थी। वह मतवाले मल्लाहों के कमरबन्द से एकएक करके पैसे निकालने में निपुण हो गयी। वह अपने अश्लील वाक्यों और बाजारी गीतों से उनका मनोरंजन करती थी, यद्यपि वह स्वयं इनका आशय न जानती थी। घर शराब की महक से भरा रहता था। जहांतहां शराब के चमड़े के पीपे रखे रहते थे और वह मल्लाहों की गोद में बैठती फिरती थी। तब मुंह में शराब का लसका लगाये वह पैसे लेकर घर से निकलती और एक बुयि से गुलगुले लेकर खाती। नित्यपरति एक ही अभिनय होता रहता था। मल्लाह अपनी जानजोखिम यात्राओं की कथा कहते, तब चौसर खेलते, देवताओं को गालियां देते और उन्मत्त होकर 'शराब, शराब, सबसे उत्तम शराब !' की रट लगाते। नित्यपरति रात को मल्लाहों के हुल्लड़ से बालिका की नींद उचट जाती थी। एकदूसरे को वे घोंघे फेंककर मारते जिससे मांस कट जाता था और भयंकर कोलाहल मचता था। कभी तलवारें भी निकल पड़ती थीं और रक्तपात हो जाता था। थायस को यह याद करके बहुत दुःख होता था कि बाल्यावस्था में यदि किसी को मुझसे स्नेह था तो वह सरल, सहृदय अहमद था। अहमद इस घर का हब्शी गुलाम था, तवे से भी ज्यादा काला, लेकिन बड़ा सज्जन, बहुत नेक जैसे रात की मीठी नींद। वह बहुधा थामस को घुटनों पर बैठा लेता और पुराने जमाने के तहखानों की अद्भुत कहानियां सुनाता जो धनलोलुप राजेमहाराजे बनवाते थे और बनवाकर शिल्पियों और कारीगरों का वध कर डालते थे कि किसी को बता न दें। कभीकभी ऐसे चतुर चोरों की कहानियां सुनाता जिन्होंने राजाओं की कन्या से विवाह किया और मीनार बनवाये। बालिका थायस के लिए अहमद बाप भी था, मां भी था, दाई था और कुत्ता भी था। वह अहमद के पीछेपीछे फिरा करती; जहां वह जाता, परछाईं की तरह साथ लगी रहती। अहमद भी उस पर जान देता था। बहुत रात को अपने पुआल के गद्दे पर सोने के बदले बैठा हुआ वह उसके लिए कागज के गुब्बारे और नौकाएं बनाया करता। अहमद के साथ उसके स्वामियों ने घोर निर्दयता का बर्ताव किया था। एक कान कटा हुआ था और देह पर कोड़ों के दागही-दाग थे। किन्तु उसके मुख पर नित्य सुखमय शान्ति खेला करती थी और कोई उससे न पूछता था कि इस आत्मा की शान्ति और हृदय के सन्टोष का स्त्रोत कहां था। वह बालक की तरह भोला था। काम करतेकरते थक जाता तो अपने भद्दे स्वर में धार्मिक भजन गाने लगता जिन्हें सुनकर बालिका कांप उठती और वही बातें स्वप्न में भी देखती। 'हमसे बात मेरी बेटी, तू कहां गयी थी और क्या देखा था ?' 'मैंने कफन और सफेद कपड़े देखे। स्वर्गदूत कबर पर बैठे हुए थे और मैंने परभु मसीह की ज्योति देखी। थायस उससे पूछती-'दादा, तुम कबर में बैठै हुए दूतों का भजन क्यों गाते हो।' अहमद जवाब देता-'मेरी आंखों की नन्ही पुतली, मैं स्वर्गदूतों के भजन इसलिए गाता हूं कि हमारे परभु मसीह स्वर्गलोक को उड़ गये हैं।' अहमद ईसाई था। उसकी यथोचित रीति से दीक्षा हो चुकी थी और ईसाइयों के समाज में उसका नाम भी थियोडोर परसिद्ध था। वह रातों को छिपकर अपने सोने के समय में उनकी संगीतों में शामिल हुआ करता था। उस समय ईसाई धर्म पर विपत्ति की घटाएं छाई हुई थीं। रूस के बादशाह की आज्ञा से ईसाइयों के गिरजे खोदकर फेंक दिये गये थे, पवित्र पुस्तकें जला डाली गयी थीं और पूजा की सामगिरयां लूट ली गयी थीं। ईसाइयों के सम्मानपद छीन लिये गये थे और चारों ओर उन्हें मौतही-मौत दिखाई देती थी। इस्कन्द्रिया में रहने वाले समस्त ईसाई समाज के लोग संकट में थे। जिसके विषय में ईसावलम्बी होने का जरा भी सन्देह होता, उसे तुरन्त कैद में डाल दिया जाता था। सारे देश में इन खबरों से हाहाकार मचा हुआ था कि स्याम, अरब, ईरान आदि स्थानों में ईसाई बिशपों और वरतधारिणी कुमारियों को कोड़े मारे गये हैं, सूली दी गयी हैं और जंगल के जानवरों के समान डाल दिया गया है। इस दारुण विपत्ति के समय जब ऐसा निश्चय हो रहा था कि ईसाइयों का नाम निशान भी न रहेगा; एन्थोनी ने अपने एकान्तवास से निकलकर मानो मुरझाये हुए धान में पानी डाल दिया। एन्थोनी मिस्त्रनिवासी ईसाइयों का नेता, विद्वान्, सिद्धपुरुष था, जिसके अलौकिक कृत्यों की खबरें दूरदूर तक फैली हुई थीं। वहआत्मज्ञानी और तपस्वी था। उसने समस्त देश में भरमण करके ईसाई सम्परदाय मात्र को श्रद्घा और धमोर्त्साह से प्लावित कर दिया। विधर्मियों से गुप्त रहकर वह एक समय में ईसाइयों की समस्त सभाओं में पहुंच जाता था, और सभी में उस शक्ति और विचारशीलता का संचार कर देता था जो उसके रोमरोम में व्याप्त थी। गुलामों के साथ असाधारण कठोरता का व्यवहार किया गया था। इससे भयभीत होकर कितने ही धर्मविमुख हो गये, और अधिकांश जंगल को भाग गये। वहां या तो वे साधु हो जायेंगे या डाके मारकर निवार्ह करेंगे। लेकिन अहमद पूर्ववत इन सभाओं में सम्मिलित होता, कैदियों से भेंट करता, आहत पुरुषों का क्रियाकर्म करता और निर्भय होकर ईसाई धर्म की घोषणा करता था। परतिभाशाली एन्थोनी अहमद की यह दृ़ता और निश्चलता देखकर इतना परसन्न हुआ कि चलते समय उसे छाती से लगा लिया और बड़े परेम से आशीवार्द दिया। जब थायस सात वर्ष की हुई तो अहमद ने उसे ईश्वरचचार करनी शुरू की। उसकी कथा सत्य और असत्य का विचित्र मिश्रण लेकिन बाल्यहृदय के अनुकूल थी। ईश्वर फिरऊन की भांति स्वर्ग में, अपने हरम के खेमों और अपने बाग के वृक्षों की छांह में रहता है। वह बहुत पराचीन काल से वहां रहता है, और दुनिया से भी पुराना है। उसके केवल एक ही बेटा है, जिसका नाम परभु ईसू है। वह स्वर्ग के दूतों से और रमणी युवतियों से भी सुन्दर है। ईश्वर उसे हृदय से प्यार करता है। उसने एक दिन परभु मसीह से कहा-'मेरे भवन और हरम, मेरे छुहारे के वृक्षों और मीठे पानी की नदियों को छोड़कर पृथ्वी पर जाओ और दीनदुःखी पराणियों का कल्याण करो ! वहां तुझे छोटे बालक की भांति रहना होगा। वहां दुःख हो तेरा भोजन होगा और तुझे इतना रोना होगा कि तुझे आंसुओं से नदियां बह निकलें, जिनमें दीनदुःखी जन नहाकर अपनी थकन को भूल जाएं। जाओ प्यारे पुत्र !' परभु मसीह ने अपने पूज्य पिता की आज्ञा मान ली और आकर बेथलेहम नगर में अवतार लिया। वह खेतों और जंगलों में फिरते थे और अपने साथियों से कहते थे-मुबारक हैं वे लोग जो भूखे रहते हैं, क्योंकि मैं उन्हें अपने पिता की मेज पर खाना खिलाऊंगा। मुबारक हैं वे लोग जो प्यासे रहते हैं, क्योंकि वह स्वर्ग की निर्मल नदियों का जल पियेंगे और मुबारक हैं वे जो रोते हैं, क्योंकि मैं अपने दामन से उनके आंसू पोंछूंगा। यही कारण है कि दीनहीन पराणी उन्हें प्यार करते हैं और उन पर विश्वास करते हैं। लेकिन धनी लोग उनसे डरते हैं कि कहीं यह गरीबों को उनसे ज्यादा धनी न बना दें। उस समय क्लियोपेट्रा और सीजर पृथ्वी पर सबसे बलवान थे। वे दोनों ही मसीह से जलते थे, इसीलिए पुजारियों और न्यायाधीशों को हुक्म दिया कि परभु मसीह को मार डालो। उनकी आज्ञा से लोगों ने एक सलीब खड़ी की और परभु को सूली पर च़ा दिया। किन्तु परभु मसीह ने कबर के द्वार को तोड़ डाला और फिर अपने पिता ईश्वर के पास चले गये। उसी समय से परभु मसीह के भक्त स्वर्ग को जाते हैं। ईश्वर परेम से उनका स्वागत करता है और उनसे कहता है-'आओ, मैं तुम्हारा स्वागत करता हूं क्योंकि तुम मेरे बेटे को प्यार करते हो। हाथ धोकर मेज पर बैठ जाओ।' तब स्वर्ग अप्सराएं गाती हैं और जब तक मेहमान लोग भोजन करते हैं, नाच होता रहता है। उन्हें ईश्वर अपनी आंखों की ज्योति से अधिक प्यार करता है, क्योंकि वे उसके मेहमान होते हैं और उनके विश्राम के लिए अपने भवन के गलीचे और उनके स्वादन के लिए अपने बाग का अनार परदान करता है। अहमद इस परकार थायस से ईश्वर चचार करता था। वह विस्मित होकर कहती थी-'मुझे ईश्वर के बाग के अनार मिलें तो खूब खाऊं।' अहमद कहता था-'स्वर्ग के फल वही पराणी खा सकते हैं जो बपतिस्मा ले लेते हैं।' तब थायस ने बपतिस्मा लेने की आकांक्षा परकट की। परभु मसीह में उसकी भक्ति देखकर अहमद ने उसे और भी धर्मकथाएं सुनानी शुरू कीं। इस परकार एक वर्ष तक बीत गया। ईस्टर का शुभ सप्ताह आया और ईसाइयों ने धमोर्त्सव मनाने की तैयारी की। इसी सप्ताह में एक रात को थायस नींद से चौंकी तो देखा कि अहमद उसे गोद में उठा रहा है। उसकी आंखों में इस समय अद्भुत चमक थी। वह और दिनों की भांति फटे हुए पाजामे नहीं, बल्कि एक श्वेत लम्बा ीला चोगा पहने हुए था। उसके थायस को उसी चोगे में छिपा लिया और उसके कान में बोला-'आ, मेरी आंखों की पुतली, आ। और बपतिस्मा के पवित्र वस्त्र धारण कर।' वह लड़की को छाती से लगाये हुए चला। थायस कुछ डरी, किन्तु उत्सुक भी थी। उसने सिर चोगे से बाहर निकाल लिया और अपने दोनों हाथ अहमद की मर्दन में डाल दिये। अहमद उसे लिये वेग से दौड़ा चला जाता था। वह एक तंग अंधेरी गली से होकर गुजरा; तब यहूदियों के मुहल्ले को पार किया, फिर एक कबिरस्तान के गिर्द में घूमते हुए एक खुले मैदान में पहुंचा जहां, ईसाई, धमार्हतों की लाशें सलीबों पर लटकी हुई थीं। थायस ने अपना सिर चोगे में छिपा लिया और फिर रास्ते भर उसे मुंह बाहर निकालने का साहस न हुआ। उसे शीघर ज्ञात हो गया कि हम लोग किसी तहखाने में चले जा रहे हैं। जब उसने फिर आंखें खोलीं तो अपने को एक तंग खोह में पाया। राल की मशालें जल रही थीं। खोह की दीवारों पर ईसाई सिद्ध महात्माओं के चित्र बने हुए थे जो मशालों के अस्थिर परकाश में चलतेफिरते, सजीव मालूम होते थे। उनके हाथों में खजूर की डालें थीं और उनके इर्दगिर्द मेमने, कबूतर, फाखते और अंगूर की बेलें चित्रित थीं। इन्हीं चित्रों में थायस ने ईसू को पहचाना, जिसके पैरों के पास फूलों का ेर लगा हुआ था। खोह के मध्य में, एक पत्थर के जलकुण्ड के पास, एक वृद्ध पुरुष लाल रंग का ीला कुरता पहने खड़ा था। यद्यपि उसके वस्त्र बहुमूल्य थे, पर वह अत्यन्त दीन और सरल जान पड़ता था। उसका नाम बिशप जीवन था, जिसे बादशाह ने देश से निकाल दिया था। अब वह भेड़ का ऊन कातकर अपना निवार्ह करता था। उसके समीप दो लड़के खड़े थे। निकट ही एक बुयि हब्शिन एक छोटासा सफेद कपड़ा लिये खड़ी थी। अहमद ने थायस को जमीन पर बैठा दिया और बिशप के सामने घुटनों के बल बैठकर बोला-'पूज्य पिता, यही वह छोटी लड़की है जिसे मैं पराणों से भी अधिक चाहता हूं। मैं उसे आपकी सेवा में लाया हूं कि आप अपने वचनानुसार, यदि इच्छा हो तो, उसे बपतिस्मा परदान कीजिए।' यह सुनकर बिशप ने हाथ फैलाया। उनकी उंगलियों के नाखून उखाड़ लिये गये थे क्योंकि आपत्ति के दिनों में वह राजाज्ञा की परवाह न करके अपने धर्म पर आऱु रहे थे। थायस डर गयी और अहमद की गोद में छिप गयी, किन्तु बिशप के इन स्नेहमय शब्दों ने उस आश्वस्त कर दिया-'पिरय पुत्री, डरो मत। अहमद तेरा धर्मपिता है जिसे हम लोग थियोडोरा कहते हैं, और यह वृद्घा स्त्री तेरी माता है जिसने अपने हाथों से तेरे लिए एक सफेद वस्त्र तैयार किया। इसका नाम नीतिदा है। यह इस जन्म में गुलाम है; पर स्वर्ग में यह परभु मसीह की परेयसी बनेगी।' तब उसने थायस से पूछा-'थायस, क्या तू ईश्वर पर, जो हम सबों का परम पिता है, उसके इकलौते पुत्र परभु मसीह पर जिसने हमारी मुक्ति के लिए पराण अर्पण किये, और मसीह के शिष्यों पर विश्वास करती हैं ?' हब्शी और हब्शिन ने एक स्वर से कहा-'हां।' तब बिशप के आदेश से नीतिदा ने थायस के कपड़े उतारे। वह नग्न हो गयी। उसके गले में केवल एक यन्त्र था। विशप ने उसे तीन बार जलकुण्ड में गोता दिया, और तब नीतिदा ने देह का पानी पोंछकर अपना सफेद वस्त्र पहना दिया। इस परकार वह बालिका ईसा शरण में आयी जो कितनी परीक्षाओं और परलोभनों के बाद अमर जीवन पराप्त करने वाली थी। जब यह संस्कार समाप्त हो गया और सब लोग खोह के बाहर निकले तो अहमद ने बिशप से कहा-'पूज्य पिता, हमें आज आनन्द मनाना चाहिए; क्योंकि हमने एक आत्मा को परभु मसीह के चरणों पर समर्पित किया। आज्ञा हो तो हम आपके शुभस्थान पर चलें और शेष रात्रि उत्सव मनाने में काटें।' बिशप ने परसन्नता से इस परस्ताव को स्वीकार किया। लोग बिशप के घर आये। इसमें केवल एक कमरा था। दो चरखे रखे हुए थे और एक फटी हुई दरी बिछी थी। जब यह लोग अन्दर पहुंचे तो बिशप ने नीतिदा से कहा-'चूल्हा और तेल की बोतल लाओ। भोजन बनायें।' यह कहकर उसने कुछ मछलियां निकालीं, उन्हें तेल में भूना, तब सबके-सब फर्श पर बैठकर भोजन करने लगे। बिशप ने अपनी यन्त्रणाओं का वृत्तान्त कहा और ईसाइयों की विजय पर विश्वास परकट किया। उसकी भाषा बहुत ही पेचदार, अलंकृत, उलझी हुई थी। तत्त्व कम, शब्दाडम्बर बहुत था। थायस मंत्रमुग्ध-सी बैठी सुनती रही। भोजन समाप्त हो जाने का बिशप ने मेहमानों को थोड़ीसी शराब पिलाई। नशा च़ा तो वे बहकबहककर बातें करने लगे। एक क्षण के बाद अहमद और नीतिदा ने नाचना शुरू किया। यह परेतनृत्य था। दोनों हाथ हिलाहिलाकर कभी एकदूसरे की तरफ लपकते, कभी दूर हट जाते। जब सेवा होने में थोड़ी देर रह गयी तो अहमद ने थायस को फिर गोद में उठाया और घर चला आया। अन्य बालकों की भांति थायस भी आमोदपिरय थी। दिनभर वह गलियों में बालकों के साथ नाचतीगाती रहती थी। रात को घर आती तब भी वह गीत गाया करती, जिनका सिरपैर कुछ न होता। अब उसे अहमद जैसे शान्त, सीधेसीधे आदमी की अपेक्षा लड़केलड़कियों की संगति अधिक रुचिकर मालूम होती ! अहमद भी उसके साथ कम दिखाई देता। ईसाइयों पर अब बादशाह की क्रुर दृष्टि न थी, इसलिए वह अबाधरूप से धर्म संभाएं करने लगे थे। धर्मनिष्ठ अहमद इन सभाओं में सम्मिलित होने से कभी न चूकता। उसका धमोर्त्साह दिनोंदिन ब़ने लगा। कभीकभी वह बाजार में ईसाइयों को जमा करके उन्हें आने वाले सुखों की शुभ सूचना देता। उसकी सूरत देखते ही शहर के भिखारी, मजदूर, गुलाम, जिनका कोई आश्रय न था, जो रातों में सड़क पर सोते थे, एकत्र हो जाते और वह उनसे कहता-'गुलामों के मुक्त होने के बदन निकट हैं, न्याय जल्द आने वाला है, धन के मतवाले चैन की नींद न सो सकेंगे। ईश्वर के राज्य में गुलामों को ताजा शराब और स्वादिष्ट फल खाने को मिलेंगे, और धनी लोग कुत्ते की भांति दुबके हुए मेज के नीचे बैठे रहेंगे और उनका जूठन खायेंगे।' यह शुभसन्देश शहर के कोनेकोने में गूंजने लगता और धनी स्वामियों को शंका होती कि कहीं उनके गुलाम उत्तेजित होकर बगावत न कर बैठें। थायस का पिता भी उससे जला करता था। वह कुत्सित भावों को गुप्त रखता। एक दिन चांदी का एक नमकदान जो देवताओं के यज्ञ के लिए अलग रखा हुआ था, चोरी हो गया। अहमद ही अपराधी ठहराया गया। अवश्य अपने स्वामी को हानि पहुंचाने और देवताओं का अपमान करने के लिए उसने यह अधर्म किया है ! चोरी को साबित करने के लिए कोई परमाण न था और अहमद पुकारपुकारकर कहता था-मुझ पर व्यर्थ ही यह दोषारोपण किया जाता है। तिस पर भी वह अदालत में खड़ा किया गया। थायस के पिता ने कहा-'यह कभी मन लगाकर काम नहीं करता।' न्यायाधीश ने उसे पराणदण्ड का हुक्म दे दिया। जब अहमद अदालत से चलने लगा तो न्यायधीश ने कहा-'तुमने अपने हाथों से अच्छी तरह काम नहीं लिया इसलिए अब यह सलीब में ठोंक दिये जायेंगे !' अहमद ने शान्तिपूर्वक फैसला सुना, दीनता से न्यायाधीश को परणाम किया और तब कारागार में बन्द कर दिया गया। उसके जीवन के केवल तीन दिन और थे और तीनों दिनों दिन यह कैदियों को उपदेश देता रहा। कहते हैं उसके उपदेशों का ऐसा असर पड़ा कि सारे कैदी और जेल के कर्मचारी मसीह की शरण में आ गये। यह उसके अविचल धमार्नुराग का फल था। चौथे दिन वह उसी स्थान पर पहुंचाया गया जहां से दो साल पहले, थायस को गोद में लिये वह बड़े आनन्द से निकला था। जब उसके हाथ सलीब पर ठोंक दिये गये, तो उसने 'उफ' तक न किया, और एक भी अपशब्द उसके मुंह से न निकला ! अन्त में बोला-'मैं प्यासा हूं ! 'वह स्वर्ग के दूत तुझे लेने को आ रहे हैं। उनका मुख कितना तेजस्वी है। वह अपने साथ फल और शराब लिये आते हैं। उनके परों से कैसी निर्मल, सुखद वायु चल रही है।' और यह कहतेकहते उसका पराणान्त हो गया। मरने पर भी उसका मुखमंडल आत्मोल्लास से उद्दीप्त हो रहा था। यहां तक कि वे सिपाही भी जो सलीब की रक्षा कर रहे थे, विस्मत हो गये। बिशप जीवन ने आकर शव का मृतकसंस्कार किया और ईसाई समुदाय ने महात्मा थियोडोर की कीर्ति को परमाज्ज्वल अक्षरों में अंकित किया। वह छोटी ही उमर में बादशाह के युवकों के साथ क्रीड़ा करने लगी। संध्या समय वह बू़े आदमियों के पीछे लग जाती और उनसे कुछन-कुछ ले मरती थी। इस भांति जो कुछ मिलता उससे मिठाइयां और खिलौने मोल लेती। पर उसकी लोभिनी माता चाहती थी कि वह जो कुछ पाये वह मुझे दे। थायस इसे न मानती थी। इसलिए उसकी माता उसे मारापीटा करती थी। माता की मार से बचने के लिए वह बहुधा घर से भाग जाती और शहरपनाह की दीवार की दरारों में वन्य जन्तुओं के साथ छिपी रहती। एक दिन उसकी माता ने इतनी निर्दयता से उसे पीटा कि वह घर से भागी और शहर के फाटक के पास चुपचाप पड़ी सिसक रही थी कि एक बुयि उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी। वह थोड़ी देर तक मुग्धभाव से उसकी ओर ताकती रही और तब बोली-'ओ मेरी गुलाब, मेरी गुलाब, मेरी फूलसी बच्ची ! धन्य है तेरा पिता जिसने तुझे पैदा किया और धन्य है तेरी माता जिसने तुझे पाला।' थायस चुपचाप बैठी जमीन की ओर देखती रही। उसकी आंखें लाल थीं, वह रो रही थी। बुयि ने फिर कहा-'मेरी आंखों की पुतली, मुन्नी, क्या तेरी माता तुझजैसी देवकन्या को पालपोसकर आनन्द से फूल नहीं जाती, और तेरा पिता तुझे देखकर गौरव से उन्मत्त नहीं हो जाता ?' थायस ने इस तरह भुनभुनाकर उत्तर दिया, मानो मन ही में कह रही है-मेरा बाप शराब से फूला हुआ पीपा है और माता रक्त चूसने वाली जोंक है। बुयि ने दायेंबायें देखा कि कोई सुन तो नहीं रहा है, तब निस्संक होकर अत्यन्त मृदु कंठ से बोली-'अरे मेरी प्यारी आंखों की ज्योति, ओ मेरी खिली हुई गुलाब की कली, मेरे साथ चलो। क्यों इतना कष्ट सहती हो ? ऐसे मांबाप की झाड़ मारो। मेरे यहां तुम्हें नाचने और हंसने के सिवाय और कुछ न करना पड़ेगा। मैं तुम्हें शहद के रसगुल्ले खिलाऊंगी, और मेरा बेटा तुम्हें आंखों की पुतली बनाकर रखेगा। वह बड़ा सुन्दर सजीला जबान है, उसकी दा़ी पर अभी बाल भी नहीं निकले, गोरे रंग का कोमल स्वभाव का प्यारा लड़का है।' थायस ने कहा-'मैं शौक से तुम्हें साथ चलूंगी।' और उठकर बुयि के पीछे शहर के बाहर चली गयी। बुयि का नाम मीरा था। उसके पास कई लड़केलड़कियों की एक मंडली थी। उन्हें उसने नाचना, गाना, नकलें करना सिखाया था। इस मंडली को लेकर वह नगरनगर घूमती थी, और अमीरों के जलसों में उनका नाचगाना कराके अच्छा पुरस्कार लिया करती थी। उसकी चतुर आंखों ने देख लिया कि यह कोई साधारण लड़की नहीं है। उसका उठान कहे देता था कि आगे चलकर वह अत्यन्त रूपवती रमणी होगी। उसने उसे कोड़े मारकर संगीत और पिंगल की शिक्षा दी। जब सितार के तालों के साथ उसके पैर न उठते तो वह उसकी कोमल पिंडलियों में चमड़े के तस्में से मारती। उसका पुत्र जो हिजड़ा था, थायस से द्वेष रखता था, जो उसे स्त्री मात्र से था। पर वह नाचने में, नकल करने में, मनोगत भावों को संकेत, सैन, आकृति द्वारा व्यक्त करने में, परेम की घातों के दर्शाने में, अत्यन्त कुशल था। हिजड़ों में यह गुण परायः ईश्वरदत्त होते हैं। उसने थायस को यह विद्या सिखाई, खुशी से नहीं, बल्कि इसलिए कि इस तरकीब से वह जी भरकर थायस को गालियां दे सकता था। जब उसने देखा कि थायस नाचनेगाने में निपुण होती जाती है और रसिक लोग उसके नृत्यगान से जितने मुग्ध होते हैं उतना मेरे नृत्यकौशल से नहीं होते तो उसकी छाती पर सांप काटने लगा। वह उसके गालों को नोच लेता, उसके हाथपैर में चुटकियां काटता। पर उसकी जलन से थायस को लेशमात्र भी दुःख न होता था। निर्दय व्यवहार का उसे अभ्यास हो गया था। अन्तियोकस उस समय बहुत आबाद शहर था। मीरा जब इस शहर में आयी तो उसने रईसों से थायस की खूब परशंसा की। थायस का रूपलावण्य देखकर लोगों ने बड़े चाव से उसे अपनी रागरंग की मजलिसों में निमन्त्रित किया, और उसके नृत्यगान पर मोहित हो गये। शनैःशनैः यही उसका नित्य का काम हो गया! नृत्यगान समाप्त होने पर वह परायः सेठसाहूकारों के साथ नदी के किनारे, घने कुञ्जों में विहार करती। उस समय तक उसे परेम के मूल्य का ज्ञान न था, जो कोई बुलाता उसके पास जाती, मानो कोई जौहरी का लड़का धनराशि को कौड़ियों की भांति लुटा रहा हो। उसका एकएक कटाक्ष हृदय को कितना उद्विग्न कर देता है, उसका एकएक कर स्पर्श कितना रोमांचकारी होता है, यह उसके अज्ञात यौवन को विदित न था। थायस, यह मेरा परम सौभाग्य होता यदि तेरे अलकों में गुंथी हुई पुष्पमाला या तेरे कोमल शरीर का आभूषण, अथवा तेरे चरणों की पादुका मैं होता। यह मेरी परम लालसा है कि पादुका की भांति तेरे सुन्दर चरणों से कुचला जाता, मेरा परेमालिंगन तेरे सुकोमल शरीर का आभूषण और तेरी अलकराशि का पुष्प होता। सुन्दरी रमणी, मैं पराणों को हाथ में लिये तेरी भेंट करने को उत्सुक हो रहा हूं। मेरे साथ चल और हम दोनों परेम में मग्न होकर संसार को भूल जायें।' जब तक वह बोलता रहा, थायस उसकी ओर विस्मित होकर ताकती रही। उसे ज्ञात हुआ कि उसका रूप मनोहर है। अकस्मात उसे अपने माथे पर ठंडा पसीना बहता हुआ जान पड़ा। वह हरी घास की भांति आर्द्र हो गयी। उसके सिर में चक्कर आने लगे, आंखों के सामने मेघघटासी उठती हुई जान पड़ी। युवक ने फिर वही परेमाकांक्षा परकट की, लेकिन थायस ने फिर इनकार किया। उसके आतुर नेत्र, उसकी परेमयाचना बस निष्फल हुई, और जब उसने अधीर होकर उसे अपनी गोद में ले लिया और बलात खींच ले जाना चाहा तो उसने निष्ठुरता से उसे हटा दिया। तब वह उसके सामने बैठकर रोने लगा। पर उसके हृदय में एक नवीन, अज्ञात और अलक्षित चैतन्यता उदित हो गयी थी। वह अब भी दुरागरह करती रही। मेहमानों ने सुना तो बोले-'यह कैसी पगली है ? लोलस कुलीन, रूपवान, धनी है, और यह नाचने वाली युवती उसका अपमान करती हैं !' लोलस का रात घर लौटा तो परेममद तो मतवाला हो रहा था। परातःकाल वह फिर थायस के घर आया, तो उसका मुख विवर्ण और आंखें लाल थीं। उसने थायस के द्वार पर फूलों की माला च़ाई। लेकिन थायस भयभीत और अशान्त थी, और लोलस से मुंह छिपाती रहती थी। फिर भी लोलस की स्मृति एक क्षण के लिए भी उसकी आंखों से न उतरती। उसे वेदना होती थी पर वह इसका कारण न जानती थी। उसे आश्चर्य होता था कि मैं इतनी खिन्न और अन्यमनस्क क्यों हो गयी हूं। यह अन्य सब परेमियों से दूर भागती थी। उनसे उसे घृणा होती थी। उसे दिन का परकाश अच्छा न लगता, सारे दिन अकेले बिछावन पर पड़ी, तकिये में मुंह छिपाये रोया करती। लोलस कई बार किसीन-किसी युक्ति से उसके पास पहुंचा, पर उसका परेमागरह, रोनाधोना, एक भी उसे न पिघला सका। उसके सामने वह ताक न सकती, केवल यही कहती-'नहीं, नहीं।' लेकिन एक पक्ष के बाद उसकी जिद्द जाती रही। उसे ज्ञात हुआ कि मैं लोलस के परेमपाश में फंस गयी हूं। वह उसके घर गयी और उसके साथ रहने लगी। अब उनके आनन्द की सीमा न थी। दिन भर एकदूसरे से आंखें मिलाये बैठे परेमलाप किया करते। संध्या को नदी के नीरव निर्जन तट पर हाथमें-हाथ डाले टहलते। कभीकभी अरुणोदय के समय उठकर पहाड़ियों पर सम्बुल के फूल बटोरने चले जाते। उनकी थाली एक थी। प्याला एक था, मेज एक थी। लोलस उसके मुंह के अंगूर निकालकर अपने मुंह में खा जाता। तब मीरा लोलस के पास आकर रोनेपीटने लगी कि मेरी थायस को छोड़ दो। वह मेरी बेटी है, मेरी आंखों की पुतली ! मैंने इसी उदर से उसे निकाल, इस गोद में उसका लालनपालन किया और अब तू उसे मेरी गोद से छीन लेना चाहता है। लोलस ने उसे परचुर धन देकर विदा किया, लेकिन जब वह धनतृष्णा से लोलुप होकर फिर आयी तो लोलस ने उसे कैद करा दिया। न्यायाधिकारियों को ज्ञात हुआ कि वह कुटनी है, भोली लड़कियों को बहका ले जाना ही उसका उद्यम है तो उसे पराणदण्ड दे दिया और वह जंगली जानवरों के सामने फेंक दी गई। लोलस अपनी अखंड, सम्पूर्ण कामना से थायस को प्यार करता था। उसकी परेम कल्पना ने विराट रूप धारण कर लिया था, जिससे उसकी किशोर चेतना सशंक हो जाती थी। थायस अन्तःकरण से कहती-'मैंने तुम्हारे सिवाय और किसी से परेम नहीं किया।' लोलस जवाब देता-'तुम संसार में अद्वितीय हो।' दोनों पर छः महीने तक यह नशा सवार रहा। अन्त में टूट गया। थायस को ऐसा जान पड़ता कि मेरा हृदय शून्य और निर्जन है। वहां से कोई चीज गायब हो गयी है। लोलस उसकी दृष्टि में कुछ और मालूम होता था। वह सोचती-मुझमें सहसा यह अन्तर क्यों हो गया ? यह क्या बात है कि लोलस अब और मनुष्यों कासा हो गया है, अपनासा नहीं रहा ? मुझे क्या हो गया है ? यह दशा उसे असह्य परतीत होने लगी। अखण्ड परेम के आस्वादन के बाद अब यह नीरस, शुष्क व्यापार उसकी तृष्णा को तृप्त न कर सका। वह अपने खोये हुए लोलस को किसी अन्य पराणी में खोजने की गुप्त इच्छा को हृदय में छिपाये हुए, लोलस के पास से चली गयी। उसने सोचा परेम रहने पर भी किसी पुरुष के साथ रहना। उस आदमी के साथ रहने से कहीं सुखकर है जिससे अब परेम नहीं रहा। वह फिर नगर के विषयभोगियों के साथ उन धमोर्त्सवों में जाने लगी जहां वस्त्रहीन युवतियां मन्दिरों में नृत्य किया करती थीं, या जहां वेश्याओं के गोलके-गोल नदी में तैरा करते थे। वह उस विलासपिरय और रंगीले नगर के रागरंग में दिल खोलकर भाग लेने लगी। वह नित्य रंगशालाओं में आती जहां चतुर गवैये और नर्तक देशदेशान्तरों से आकर अपने करतब दिखाते थे और उत्तेजना के भूखे दर्शकवृन्द वाहवाह की ध्वनि से आसमान सिर पर उठा लेते थे। थायस गायकों, अभिनेताओं, विशेषतः उन स्त्रियों के चालाल को बड़े ध्यान से देखा करती थी जो दुःखान्त नाटकों में मनुष्य से परेम करने वाली देवियों या देवताओं से परेम करने वाली स्त्रियों का अभिनय करती थीं। शीघर ही उसे वह लटके मालूम हो गये, जिनके द्वारा वह पात्राएं दर्शकों का मन हर लेती थीं, और उसने सोचा, क्या मैं जो उन सबों से रूपवती हूं, ऐसा ही अभिनय करके दर्शकों को परसन्न नहीं कर सकती? वह रंगशाला व्यवस्थापक के पास गयी और उससे कहा कि मुझे भी इस नाट्यमंडली में सम्मिलित कर लीजिए। उसके सौन्दर्य ने उसकी पूर्वशिक्षा के साथ मिलकर उसकी सिफारिश की। व्यवस्थापक ने उसकी परार्थना स्वीकार कर ली। और वह पहली बार रंगमंच पर आयी। पहले दर्शकों ने उसका बहुत आशाजनक स्वागत न किया। एक तो वह इस काम में अभ्यस्त न थी, दूसरे उसकी परशंसा के पुल बांधकर जनता को पहले ही से उत्सुक न बनाया गया था। लेकिन कुछ दिनों तक गौण चरित्रों का पार्ट खेलने के बाद उसके यौवन ने वह हाथपांव निकाले कि सारा नगर लोटपोट हो गया। रंगशाला में कहीं तिल रखने भर की जगह न बचती। नगर के बड़ेबड़े हाकिम, रईस, अमीर, लोकमत के परभाव से रंगशाला में आने पर मजबूर हुए। शहर के चौकीदार, पल्लेदार, मेहतर, घाट के मजदूर, दिनदिन भर उपवास करते थे कि अपनी जगह सुरक्षित करा लें। कविजन उसकी परशंसा में कवित्त कहते। लम्बी दायिों वाले विज्ञानशास्त्री व्यायामशालाओं में उसकी निन्दा और उपेक्षा करते। जब उसका तामझाम सड़क पर से निकलता तो ईसाई पादरी मुंह फेर लेते थे। उसके द्वार की चौखट पुष्पमालाओं से की रहती थी। अपने परेमियों से उसे इतना अतुल धन मिलता कि उसे गिनना मुश्किल था। तराजू पर तौल लिया जाता था। कृपण बू़ों की संगरह की हुई समस्त सम्पत्ति उसके ऊपर कौड़ियों की भांति लुटाई जाती थी। पर उसे गर्व न था। ऐंठ न थी। देवताओं की कृपादृष्टि और जनता की परशंसाध्वनि से उसके हृदय को गौरवयुक्त आनन्द होता था। सबकी प्यारी बनकर वह अपने को प्यार करने लगी थी। कई वर्ष तक ऐन्टिओकवासियों के परेम और परशंसा का सुख उठाने के बाद उसके मन में परबल उत्कंठा हुई कि इस्कन्द्रिया चलूं और उस नगर में अपना ठाटबाट दिखाऊं, जहां बचपन में मैं नंगी और भूखी, दरिद्र और दुर्बल, सड़कों पर मारीमारी फिरती थी और गलियों की खाक छानती थी। इस्कन्द्रियां आंखें बिछाये उसकी राह देखता था। उसने बड़े हर्ष से उसका स्वागत किया और उस पर मोती बरसाये। वह क्रीड़ाभूमि में आती तो धूम मच जाती। परेमियों और विलासियों के मारे उसे सांस न मिलती, पर वह किसी को मुंह न लगाती। दूसरा, लोलस उसे जब न मिला तो उसने उसकी चिन्ता ही छोड़ दी। उस स्वर्गसुख की अब उसे आशा न थी। उसके अन्य परेमियों में तत्त्वज्ञानी निसियास भी था जो विरक्त होने का दावा करने पर भी उसके परेम का इच्छुक था। वह धनवान था पर अन्य धनपतियों की भांति अभिमानी और मन्दबुद्धि न था। उसके स्वभाव में विनय और सौहार्द की आभा झलकती थी, किन्तु उसका मधुरहास्य और मृदुकल्पनाएं उसे रिझाने में सफल न होतीं। उसे निसियास से परेम न था, कभीकभी उसके सुभाषितों से उसे चि होती थी। उसके शंकावाद से उसका चित्त व्यगर हो जाता था, क्योंकि निसियास की श्रद्घा किसी पर न थी और थायस की श्रद्घा सभी पर थी। वह ईश्वर पर, भूतपरेतों पर जादूटोने पर, जन्त्रमन्त्र पर पूरा विश्वास करती थी। उसकी भक्ति परभु मसीह पर भी थी, स्याम वालों की पुनीता देवी पर भी उसे विश्वास था कि रात को जब अमुक परेत गलियों में निकलता है तो कुतियां भूंकती हैं। मारण, उच्चाटन, वशीकरण के विधानों पर और शक्ति पर उसे अटल विश्वास था। उसका चित्त अज्ञात न लिए उत्सुक रहता था। वह देवताओं की मनौतियां करती थी और सदैव शुभाशाओं में मग्न रहती थी भविष्य से यह शंका रहती थी, फिर भी उसे जानना चाहती थी। उसके यहां, ओझे, सयाने, तांत्रिक, मन्त्र जगाने वाले, हाथ देखने वाले जमा रहते थे। वह उनके हाथों नित्य धोखा खाती पर सतर्क न होती थी। वह मौत से डरती थी और उससे सतर्क रहती थी। सुखभोग के समय भी उसे भय होता था कि कोई निर्दय कठोर हाथ उसका गला दबाने के लिए ब़ा आता है और वह चिल्ला उठती थी। निसियास कहता था-'पिरये, एक ही बात है, चाहे हम रुग्ण और जर्जर होकर महारात्रि की गोद में समा जायें, अथवा यहीं बैठे, आनन्दभोग करते, हंसतेखेलते, संसार से परस्थान कर जायें। जीवन का उद्देश्य सुखभोग है। आओ जीवन की बाहार लूटें। परेम से हमारा जीवन सफल हो जायेगा। इन्द्रियों द्वारा पराप्त ज्ञान ही यथार्थ ज्ञान है। इसके सिवाय सब मिथ्या के लिए अपने जीवन सुख में क्यों बाधा डालें ?' थायस सरोष होकर उत्तर देती-'तुम जैसे मनुष्यों से भगवान बचाये, जिन्हें कोई आशा नहीं, कोई भय नहीं। मैं परकाश चाहती हूं, जिससे मेरा अन्तःकरण चमक उठे।' जीवन के रहस्य को समझने के लिए उसे दर्शनगरन्थों को पॄना शुरू किया, पर वह उसकी समझ में न आये। ज्योंज्यों बाल्यावस्था उससे दूर होती जाती थी, त्योंत्यों उसकी याद उसे विकल करती थी। उसे रातों को भेष बदलकर उन सड़कों, गलियों, चौराहों पर घूमना बहुत पिरय मालूम होता जहां उसका बचपन इतने दुःख से कटा था। उसे अपने मातापिता के मरने का दुःख होता था, इस कारण और भी कि वह उन्हें प्यार न कर सकी थी। जब किसी ईसाई पूजक से उसकी भेंट हो जाती तो उसे अपना बपतिस्मा याद आता और चित्त अशान्त हो जाता। एक रात को वह एक लम्बा लबादा ओ़े, सुन्दर केशों को एक काले टोप से छिपाये, शहर के बाहर विचर रही थी कि सहसा वह एक गिरजाघर के सामने पहुंच गयी। उसे याद आया, मैंने इसे पहले भी देखा है। कुछ लोग अन्दर गा रहे थे और दीवार की दरारों से उज्ज्वल परकाशरेखाएं बाहर झांक रही थीं। इसमें कोई नवीन बात न थी, क्योंकि इधर लगभग बीस वर्षों से ईसाईधर्म में को विघ्नबाधा न थी, ईसाई लोग निरापद रूप से अपने धमोर्त्सव करते थे। लेकिन इन भजनों में इतनी अनुरक्ति, करुण स्वर्गध्वनि थी, जो मर्मस्थल में चुटकियां लेती हुई जान पड़ती थीं। थायस अन्तःकरण के वशीभूत होकर इस तरह द्वार, खोलकर भीतर घुस गयी मानो किसी ने उसे बुलाया है। वहां उसे बाल, वृद्ध, नरनारियों का एक बड़ा समूह एक समाधि के सामने सिजदा करता हुआ दिखाई दिया। यह कबर केवल पत्थर की एक ताबूत थी, जिस पर अंगूर के गुच्छों और बेलों के आकार बने हुए थे। पर उस पर लोगों की असीम श्रद्घा थी। वह खजूर की टहनियों और गुलाब की पुष्पमालाओं से की हुई थी। चारों तरफ दीपक जल रहे थे और उसके मलिन परकाश में लोबान, ऊद आदि का धुआं स्वर्गदूतों के वस्त्रों की तहोंसा दीखता था, और दीवार के चित्र स्वर्ग के दृश्यों केसे। कई श्वेत वस्त्रधारी पादरी कबर के पैरों पर पेट के बल पड़े हुए थे। उनके भजन दुःख के आनन्द को परकट करते थे और अपने शोकोल्लास में दुःख और सुख, हर्ष और शोक का ऐसा समावेश कर रहे थे कि थायस को उनके सुनने से जीवन के सुख और मृत्यु के भय, एक साथ ही किसी जलस्त्रोत की भांति अपनी सचिन्तस्नायुओं में बहते हुए जान पड़े। जब गाना बन्द हुआ तो भक्तजन उठे और एक कतार मंें कबर के पास जाकर उसे चूमा। यह सामान्य पराणी थे; जो मजूरी करके निवार्ह करते थे। क्या ही धीरेधीरे पग उठाते, आंखों में आंसू भरे, सिर झुकाये, वे आगे ब़ते और बारीबारी से कबर की परिक्रमा करते थे। स्त्रियों ने अपने बालकों को गोद में उठाकर कबर पर उनके होंठ रख दिये। थायस ने विस्मित और चिन्तित होकर एक पादरी से पूछा-'पूज्य पिता, यह कैसा समारोह है ?' पादरी ने उत्तर दिया-'क्या तुम्हें नहीं मालूम कि हम आज सन्त थियोडोर की जयन्ती मना रहे हैं ? उनका जीवन पवित्र था। उन्होंने अपने को धर्म की बलिवेदी पर च़ा दिया, और इसीलिए हम श्वेत वस्त्र पहनकर उनकी समाधि पर लाल गुलाब के फूल च़ाने आये हैं।' यह सुनते ही थायस घुटनों के बल बैठ गयी और जोर से रो पड़ी। अहमद की अर्धविस्मृत स्मृतियां जागरत हो गयीं। उस दीन, दुखी, अभागे पराणी की कीर्ति कितनी उज्ज्वल है ! उसके नाम पर दीपक जलते हैं, गुलाब की लपटें आती हैं, हवन के सुगन्धित धुएं उठते हैं, मीठे स्वरों का नाद होता है और पवित्र आत्माएं मस्तक झुकाती हैं। थायस ने सोचा-अपने जीवन में वह पुष्यात्मा था, पर अब वह पूज्य और उपास्य हो गया हैं ! वह अन्य पराणियों की अपेक्षा क्यों इतना श्रद्घास्पद है ? वह कौनसी अज्ञात वस्तु है जो धन और भोग से भी बहुमूल्य है ? वह आहिस्ता से उठी और उस सन्त की समाधि की ओर चली जिसने उसे गोद में खेलाया था। उसकी अपूर्व आंखों में भरे हुए अश्रुबिन्दु दीपक के आलोक में चमक रहे थे। तब वह सिर झुकाकर, दीनभाव से कबर के पास गयी और उस पर अपने अधरों से अपनी हार्दिक श्रद्घा अंकित कर दी-उन्हीं अधरों से जो अगणित तृष्णाओं का क्रीड़ाक्षेत्र थे ! जब वह घर आयी तो निसियास को बाल संवारे, वस्त्रों मंें सुगन्ध मले, कबा के बन्द खोले बैठे देखा। वह उसके इन्तजार में समय काटने के लिए एक नीतिगरंथ पॄ रहा था। उसे देखते ही वह बांहें खोले उसकी ब़ा और मृदुहास्य से बोला-'कहां गयी थीं, चंचला देवी ? तुम जानती हो तुम्हारे इन्तजार में बैठा हुआ, मैं इस नीतिगरंथ में क्या पॄ रहा था?' नीति के वाक्य और शुद्घाचरण के उपदेश ?' 'कदापि नहीं। गरंथ के पन्नों पर अक्षरों की जगह अगणित छोटीछोटी थायसें नृत्य कर रही थीं। उनमें से एक भी मेरी उंगली से बड़ी न थी, पर उनकी छवि अपार थी और सब एक ही थायस का परतिबिम्ब थीं। कोई तो रत्नजड़ित वस्त्र पहने अकड़ती हुई चलती थी, कोई श्वेत मेघसमूह के सदृश्य स्वच्छ आवरण धारण किये हुए थी; कोई ऐसी भी थीं जिनकी नग्नता हृदय में वासना का संचार करती थी। सबके पीछे दो, एक ही रंगरूप की थीं। इतनी अनुरूप कि उनमें भेद करना कठिन था। दोनों हाथमें-हाथ मिलाये हुए थीं, दोनों ही हंसती थीं। पहली कहती थी-मैं परेम हूं। दूसरी कहती थी-मैं नृत्य हूं।' यह कहकर निसियास ने थायस को अपने करपाश में खींच लिया। थायस की आंखें झुकी हुई थीं। निसियास को यह ज्ञान न हो सका कि उनमें कितना रोष भरा हुआ है। वह इसी भांति सूक्तियों की वर्षा करता रहा, इस बात से बेखबर कि थायस का ध्यान ही इधर नहीं है। वह कह रहा था-'जब मेरी आंखों के सामने यह शब्द आये-अपनी आत्मशुद्धि के मार्ग में कोई बाधा मत आने दो, तो मैंने पॄा 'थायस के अधरस्पर्श अग्नि से दाहक और मधु से मधुर हैं।' इसी भांति एक पण्डित दूसरे पण्डितों के विचारों को उलटपलट देता है; और यह तुम्हारा ही दोष है। यह सर्वथा सत्य है कि जब तक हम वही हैं जो हैं, तब तक हम दूसरों के विचारों में अपने ही विचारों की झलक देखते रहेंगे।' वह अब भी इधर मुखातिब न हुई। उसकी आत्मा अभी तक हब्शी की कबर के सामने झुकी हुई थी। सहसा उसे आह भरते देखकर उसने उसकी गर्दन का चुम्बन कर लिया और बोला-'पिरये, संसार में सुख नहीं है जब तक हम संसार को भूल न जायें। आओ, हम संसार से छल करें, छल करके उससे सुख लें-परेम में सबकुछ भूल जायें।' लेकिन उसने उसे पीछे हटा दिया और व्यथित होकर बोली-'तुम परेम का मर्म नहीं जानते ! तुमने कभी किसी से परेम नहीं किया। मैं तुम्हें नहीं चाहती, जरा भी नहीं चाहती। यहां से चले जाओ, मुझे तुमसे घृणा होती है। अभी चले जाओ, मुझे तुम्हारी सूरत से नफरत है। मुझे उन सब पराणियों से घृणा है, धनी है, आनन्दभोगी हैं। जाओ, जाओ। दया और परेम उन्हीं में है जो अभागे हैं। जब मैं छोटी थी तो मेरे यहां एक हब्शी था जिसने सलीब पर जान दी। वह सज्जन था, वह जीवन के रहस्यों को जानता था। तुम उसके चरण धोने योग्य भी नहीं हो। चले जाओ। तुम्हारा स्त्रियों कासा शृंगार मुझे एक आंख नहीं भाता। फिर मुझे अपनी सूरत मत दिखाना।' यह कहतेकहते वह फर्श पर मुंह के बल गिर पड़ी और सारी रात रोकर काटी। उसने संकल्प किया कि मैं सन्त थियोडोर की भांति और दरिद्र दशा में जीवन व्यतीत करुंगी। दूसरे दिन वह फिर उन्हीं वासनाओं में लिप्त हो गयी जिनकी उसे चाट पड़ गयी थी। वह जानती थी कि उसकी रूपशोभा अभी पूरे तेज पर है, पर स्थायी नहीं इसीलिए इसके द्वारा जितना सुख और जितनी ख्याति पराप्त हो सकती थी उसे पराप्त करने के लिए वह अधीर हो उठी। थियेटर में वह पहले की अपेक्षा और देर तक बैठकर पुस्तकावलोकन किया करती। वह कवियों, मूर्तिकारों और चित्रकारों की कल्पनाओं को सजीव बना देती थी, विद्वानों और तत्त्वज्ञानियों को उसकी गति, अगंविन्यास और उस पराकृतिक माधुर्य की झलक नजर आती थी जो समस्त संसार में व्यापक है और उनके विचार में ऐसी अर्पूव शोभा स्वयं एक पवित्र वस्तु थी। दीन, दरिद्र, मूर्ख लोग उसे एक स्वगीर्य पदार्थ समझते थे। कोई किसी रूप में उसकी उपासना करता था, कोई किसी रूप में। कोई उसे भोग्य समझता था, कोई स्तुत्य और कोई पूज्य। किन्तु इस परेम, भक्ति और श्रद्घा की पात्रा होकर भी वह दुःखी थी, मृत्यु की शंका उसे अब और भी अधिक होने लगी। किसी वस्तु से उसे इस शंका से निवृत्ति न होती। उसका विशाल भवन और उपवन भी, जिनकी शोभा अकथनीय थी और जो समस्त नगर में जनश्रुति बने हुए थे, उसे आश्वस्त करने में असफल थे। इस उपवन में ईरान और हिन्दुस्तान के वृक्ष थे, जिनके लाने और पालने में अपरिमित धन व्यय हुआ था। उनकी सिंचाई के लिए एक निर्मल जल धारा बहायी गयी थी। समीप ही एक झील बनी हुई थी। जिसमें एक कुशल कलाकार के हाथों सजाये हुए स्तम्भचिह्नों और कृत्रिम पहाड़ियों तक तट पर की सुन्दर मूर्तियों का परतिबिम्ब दिखाई देता था। उपवन के मध्य में 'परियों का कुंज' था। यह नाम इसलिए पड़ा था कि उस भवन के द्वार पर तीन पूरे कद की स्त्रियों की मूर्तियां खड़ी थीं। वह सशंक होकर पीछे ताक रही थीं कि कोई देखता न हो। मूर्तिकार ने उनकी चितवनों द्वारा मूर्तियों में जान डाल दी थी। भवन में जो परकाश आता था वह पानी की पतली चादरों से छनकर मद्धिम और रंगीन हो जाता था। दीवारों पर भांतिभांति की झालरें, मालाएं और चित्र लटके हुए थे। बीच में एक हाथीदांत की परम मनोहर मूर्ति थी जो निसियास ने भेंट की थी। एक तिपाई पर एक काले ष्पााण की बकरी की मूर्ति थी, जिसकी आंखें नीलम की बनी हुई थीं। उसके थनों को घेरे हुए छः चीनी के बच्चे खड़े थे, लेकिन बकरी अपने फटे हुए खुर उठाकर ऊपर की पहाड़ी पर उचक जाना चाहती थी। फर्श पर ईरानी कालीनें बिछी हुई थीं, मसनदों पर कैथे के बने हुए सुनहरे बेलबूटे थे। सोने के धूपदान से सुगन्धित धुएं उठ रहे थे, और बड़ेबड़े चीनी गमलों में फूलों से लदे हुए पौधे सजाये हुए थे। सिरे पर, ऊदी छाया में, एक बड़े हिन्दुस्तानी कछुए के सुनहरे नख चमक रहे थे जो पेट के बल उलट दिया गया था। यही थायस का शयनागार था। इसी कछुए के पेट पर लेटी हुई वह इस सुगन्ध और सजावट और सुषमा का आनन्द उठाती थी, मित्रों से बातचीत करती थी और या तो अभिनयकला का मनन करती थी, या बीते हुए दिनों का। तीसरा पहर था। थायस परियों के कुंज में शयन कर रही थी। उसने आईने में अपने सौन्दर्य की अवनति के परथम चिह्न देखे थे, और उसे इस विचार से पीड़ा हो रही थी कि झुर्रियों और श्वेत बालों का आक्रमण होने वाला है उसने इस विचार से अपने को आश्वासन देने की विफल चेष्टा की कि मैं जड़ीबूटियों के हवन करके मंत्रों द्वारा अपने वर्ण की कोमलता को फिर से पराप्त कर लूंगी। उसके कानों में इन शब्दों की निर्दय ध्वनि आयी-'थायस, तू बुयि हो जायेगी !' भय से उसके माथे पर ठण्डाठण्डा पसीना आ गया। तब उसने पुनः अपने को संभालकर आईने में देखा और उसे ज्ञात हुआ कि मैं अब भी परम सुन्दरी और परेयसी बनने के योग्य हूं। उसने पुलकित मन से मुस्कराकर मन में कहा-आज भी इस्कन्द्रिया में काई ऐसी रमणी नहीं है जो अंगों की चपलता और लचक में मुझसे टक्कर ले सके। मेरी बांहों की शोभा अब भी हृदय को खींच सकती है, यथार्थ में यही परेम का पाश है ! वह इसी विचार में मग्न थी कि उसने एक अपरिचित मनुष्य को अपने सामने आते देखा। उसकी आंखों में ज्वाला थी, दा़ी ब़ी हुई थी और वस्त्र बहुमूल्य थे। उसके हाथ में आईना छूटकर गिर पड़ा और वह भय से चीख उठी। पापनाशी स्तम्भित हो गया। उसका अपूर्व सौन्दर्य देखकर उसने शुद्ध अन्तःकरण से परार्थना की-भगवान मुझे ऐसी शक्ति दीजिए कि इस स्त्री का मुख मुझे लुब्ध न करे, वरन तेरे इस दास की परतिज्ञा को और भी दृ़ करे। तब अपने को संभालकर वह बोला-'थायस, मैं एक दूर देश में रहता हूं, तेरे सौन्दर्य की परशंसा सुनकर तेरे पास आया हूं। मैंने सुना था तुमसे चतुर अभिनेत्री और तुमसे मुग्धकर स्त्री संसार में नहीं है। तुम्हारे परेमरहस्यों और तुम्हारे धन के विषय में जो कुछ कहा जाता है वह आश्चर्यजनक है, और उससे 'रोडोप' की कथा याद आती है, जिसकी कीर्ति को नील के मांझी नित्य गाया करते हैं। इसलिए मुझे भी तुम्हारे दर्शनों की अभिलाषा हुई और अब मैं देखता हूं कि परत्यक्ष सुनीसुनाई बातों से कहीं ब़कर है। जितना मशहूर है उससे तुम हजार गुना चतुर और मोहिनी हो। वास्तव में तुम्हारे सामने बिना मतवालों की भांति डगमगाये आना असम्भव है।' यह शब्द कृत्रिम थे, किन्तु योगी ने पवित्र भक्ति से परभावित होकर सच्चे जोश से उनका उच्चारण किया। थायस ने परसन्न होकर इस विचित्र पराणी की ओर ताका जिससे वह पहले भयभीत हो गयी थी। उसके अभद्र और उद्दण्ड वेश ने उसे विस्मित कर दिया। उसे अब तक जितने मनुष्य मिले थे, यह उन सबों से निराला था। उसके मन में ऐसे अद्भुत पराणी के जीवनवृत्तान्त जानने की परबल उत्कंठा हुई। उसने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा-'महाशय, आप परेमपरदर्शन में बड़े कुशल मालूम होते हैं। होशियार रहियेगा कि मेरी चितबनें आपके हृदय के पार न हो जायें। मेरे परेम के मैदान में जरा संभलकर कदम रखियेगा।' पापनाशी बोला-'थामस, मुझे तुमसे अगाध परेम है। तुम मुझे जीवन और आत्मा से भी पिरय हो। तुम्हारे लिए मैंने अपना वन्यजीवन छोड़ा है, तुम्हारे लिए मेरे होंठों से, जिन्होंने मौनवरत धारण किया था, अपवित्र शब्द निकले हैं। तुम्हारे लिए मैंने वह देखा जो न देखना चाहिए था, वह सुना है जो मेरे लिए वर्जित था। तुम्हारे लिए मेरी आत्मा तड़प रही है, मेरा हृदय अधीर हो रहा है और जलस्त्रोत की भांति विचार की धाराएं परवाहित हो रही हैं। तुम्हारे लिए मैं अपने नंगे पैर सर्पों और बिच्छुओं पर रखते हुए भी नहीं हिचका हूं। अब तुम्हें मालूम हो गया होगा कि मुझे तुमसे कितना परेम है। लेकिन मेरा परेम उन मनुष्यों कासा नहीं है जो वासना की अग्नि से जलते हुए तुम्हारे पास जीवभक्षी व्याघरों की, और उन्मत्त सांड़ों की भांति दौड़े आते हैं। उनका वही परेम होता है जो सिंह को मृगशावक से। उनकी पाशविक कामलिप्सा तुम्हारी आत्मा को भी भस्मीभूत कर डालेगी। मेरा परेम पवित्र है, अनन्त है, स्थायी है। मैं तुमसे ईश्वर के नाम पर, सत्य के नाम पर परेम करता हूं। मेरा हृदय पतितोद्घार और ईश्वरीय दया के भाव से परिपूर्ण है। मैं तुम्हें फलों से की हुई शराब की मस्ती से और एक अल्परात्रि के सुखस्वप्न से कहीं उत्तम पदार्थों का वचन देने आया हूं। मैं तुम्हें महापरसाद और सुधारसपान का निमन्त्रण देने आया हूं। मैं तुम्हें उस आनन्द का सुखसंवाद सुनाने आया हूं जो नित्य, अमर, अखण्ड है। मृत्युलोक के पराणी यदि उसको देख लें तो आश्चर्य से भर जायें।' थायस ने कुटिल हास्य करके उत्तर दिया-'मित्र, यदि वह ऐसा अद्भुत परेम है तो तुरन्त दिखा दो। एक क्षण भी विलम्ब न करो। लम्बीलम्बी वक्तृताओं से मेरे सौन्दर्य का अपमान होगा। मैं आनन्द का स्वाद उठाने के लिए रो रही हूं। किन्तु जो मेरे दिल की बात पूछो, तो मुझे इस कोरी परशंसा के सिवा और कुछ हाथ न आयेगा। वादे करना आसान है; उन्हें पूरा करना मुश्किल है। सभी मनष्यों में कोईन-कोई गुण विशेष होता है। ऐसा मालूम होता है कि तुम वाणी में निपुण हो। तुम एक अज्ञात परेम का वचन देते हो। मुझे यह व्यापार करते इतने दिन हो गये और उसका इतना अनुभव हो गया है कि अब उसमें किसी नवीनता की किसी रहस्य की आशा नहीं रही। इस विषय का ज्ञान परेमियों को दार्शनिकों से अधिक होता है।' 'थायस, दिल्लगी की बात नहीं है, मैं तुम्हारे लिए अछूता परेम लाया हूं।' 'मित्र, तुम बहुत देर में आये। मैं सभी परकार के परेमों का स्वाद ले चुकी हूं।' 'मैं जो परेम लाया हूं, वह उज्ज्वल है, श्रेय है! तुम्हें जिस परेम का अनुभव हुआ है वह निंद्य और त्याज्य है।' थायस ने गर्व से गर्दन उठाकर कहा-'मित्र, तुम मुंहफट जान पड़ते हो। तुम्हें गृहस्वामिनी के परति मुख से ऐसे शब्द निकालने में जरा भी संकोच नहीं होता ? मेरी ओर आंख उठाकर देखो और तब बताओ कि मेरा स्वरूप निन्दित और पतित पराणियों ही कासा है। नहीं, मैं अपने कृत्यों पर लज्जित नहीं हूं। अन्य स्त्रियां भी, जिनका जीवन मेरे ही जैसा है, अपने को नीच और पतित नहीं समझतीं, यद्यपि, उनके पास न इतना धन है और न इतना रूप। सुख मेरे पैरों के नीचे आंखें बिछाये रहता है, इसे सारा जगत जानता है। मैं संसार के मुकुटधारियों को पैर की धूलि समझती हूं। उन सबों ने इन्हीं पैरों पर शीश नवाये हैं। आंखें उठाओ। मेरे पैरों की ओर देखो। लाखों पराणी उनका चुम्बन करने के लिए अपने पराण भेंट कर देंगे। मेरा डीलडौल बहुत बड़ा नहीं है, मेरे लिए पृथ्वी पर बहुत स्थान की जरूरत नहीं। जो लोग मुझे देवमन्दिर के शिखर पर से देखते हैं, उन्हें मैं बालू के कण के समान दीखती हूं, पर इस कण ने मनुष्यों में जितनी ईष्यार्, जितना द्वेष, जितनी निराशा, जितनी अभिलाषा और जितने पापों का संचार किया है उनके बोझ से अटल पर्वत भी दब जायेगा। जब मेरी कीर्ति समस्त संसार में परसारित हो रही है तो तुम्हारी लज्जा और निद्रा की बात करना पागलपन नहीं तो और क्या है ?' पापनाशी ने अविचलित भाव से उत्तर दिया-'सुन्दरी, यह तुम्हारी भूल है। मनुष्य जिस बात की सराहना करते हैं वह ईश्वर की दृष्टि में पाप है। हमने इतने भिन्नभिन्न देशों में जन्म लिया है कि यदि हमारी भाषा और विचार अनुरूप न हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। लेकिन मैं ईश्वर को साक्षी देकर कहता हूं कि मैं तुम्हारे पास से जाना नहीं चाहता। कौन मेरे मुख में ऐसे आग्नेय शब्दों को परेरित करेगा जो तुम्हें मोम की भांति पिघला दें कि मेरी उंगलियां तुम्हें अपनी इच्छा के अनुसार रूप दे सकें ? ओ नारीरत्न ! यह कौनसी शक्ति है जो तुम्हें मेरे हाथों में सौंप देगी कि मेरे अन्तःकरण में निहित सद्परेरणा तुम्हारा पुनसरंस्कार करके तुम्हें ऐसा नया और परिष्कृत सौन्दर्य परदान करे कि तुम आनन्द से विह्वल हो पुकार उठो, मेरा फिर से नया संस्कार हुआ ? कौन मेरे हृदय में उस सुधास्त्रोत को परवाहित करेगा कि तुम उसमें नहाकर फिर अपनी मौलिक पवित्रता लाभ कर सको ? कौन मुझे मर्दन की निर्मल धारा में परिवर्तित कर देगा जिसकी लहरों का स्पर्श तुम्हें अनन्त सौन्दर्य से विभूषित कर दे ?' थायस का क्रोध शान्त हो गया। उसने सोचा-यह पुरुष अनन्त जीवन के रहस्यों में परिचित है, और जो कुछ वह कह सकता है उसमें ऋषिवाक्यों कीसी परतिभा है। यह अवश्य कोई कीमियागर है और ऐसे गुप्तमन्त्र जानता है जो जीर्णावस्था का निवारण कर सकते हैं। उसने अपनी देह को उसकी इच्छाओं को समर्पित करने का निश्चय कर लिया। वह एक सशंक पक्षी की भांति कई कदम पीछे हट गयी और अपने पलंग पट्टी पर बैठकर उसकी परतीक्षा करने लगी। उसकी आंखें झुकी हुई थीं और लम्बी पलकों की मलिन छाया कपालों पर पड़ रही थी। ऐसा जान पड़ता था कि कोई बालक नदी के किनारे बैठा हुआ किसी विचार में मग्न है। किन्तु पापनाशी केवल उसकी ओर टकटकी लगाये ताकता रहा, अपनी जगह से जौ भर भी न हिला। उसके घुटने थरथरा रहे थे और मालूम होता था कि वे उसे संभाल न सकेंगे। उसका तालू सूख गया था, कानों में तीवर भनभनाहट की आवाज आने लगी। अकस्मात उसकी आंखों के सामने अन्धकार छा गया, मानो समस्त भवन मेघाच्छादित हो गया है। उसे ऐसा भाषित हुआ कि परभु मसीह ने इस स्त्री को छिपाने के निमित्त उसकी आंखों पर परदा डाल दिया है। इस गुप्त करावलम्ब से आश्वस्त और सशक्त होकर उसने ऐसे गम्भीर भाव से कहा जो किसी वृद्ध तपस्वी के यथायोग्य था-क्या तुम समझती हो कि तुम्हारा यह आत्महनन ईश्वर की निगाहों से छिपा हुआ है ?' उसने सिर हिलाकर कहा-'ईश्वर ? ईश्वर से कौन कहता है कि सदैव परियों के कुंज पर आंखें जमाये रखे ? यदि हमारे काम उसे नहीं भाते तो वह यहां से चला क्यों नहीं जाता ? लेकिन हमारे कर्म उसे बुरे लगते ही क्यों हैं ? उसी ने हमारी सृष्टि की है। जैसा उसने बनाया है वैसे ही हम हैं। जैसी वृत्तियां उसने हमें दी हैं उसी के अनुसार हम आचरण करते हैं ! फिर उसे हमसे रुष्ट होने का, अथवा विस्मित होने का क्या अधिकार है ? उसकी तरफ से लोग बहुतसी मनग़न्त बातें किया करते हैं और उसको ऐसेऐसे विचारों का श्रेय देते हैं जो उसके मन में कभी न थे। तुमको उसके मन की बातें जानने का दावा है। तुमको उसके चरित्र का यथार्थ ज्ञान है। तुम कौन हो कि उसके वकील बनकर मुझे ऐसीऐसी आशाएं दिलाते हो ?' पापनाशी ने मंगनी के बहुमूल्य वस्त्र उतारकर नीचे का मोटा कुरता दिखाते हुए कहा-'मैं धमार्श्रम का योगी हूं। मेरा नाम पापनाशी है। मैं उसी पवित्र तपोभूमि से आ रहा हूं। ईश्वर की आज्ञा से मैं एकान्तसेवन करता हूं। मैंने संसार से और संसार के पराणियों से मुंह मोड़ लिया था। इस पापमय संसार में निर्लिप्त रहना ही मेरा उद्दिष्ट मार्ग है। लेकिन तेरी मूर्ति मेरी शान्तिकुटीर में आकर मेरे सम्मुख खड़ी हुई और मैंने देखा कि तू पाप और वासना में लिप्त है, मृत्यु तुझे अपना गरास बनाने को खड़ी है। मेरी दया जागृत हो गयी और तेरा उद्घार करने के लिए आ उपस्थित हुआ हूं। मैं तुझे पुकारकर कहता हूं-थायस, उठ, अब समय नहीं है।' योगी के यह शब्द सुनकर थायस भय से थरथर कांपने लगी। उसका मुख श्रीहीन हो गया, वह केश छिटकाये, दोनों हाथ जोड़े रोती और विलाप करती हुई उसके पैरों पर गिर पड़ी और बोली-'महात्मा जी, ईश्वर के लिए मुझ पर दया कीजिए। आप यहां क्यों आये हैं ? आपकी क्या इच्छा है ? मेरा सर्वनाश न कीजिए। मैं जानता हूं कि तपोभूमि के ऋषिगण हम जैसी स्त्रियों से घृणा करते हैं, जिनका जन्म ही दूसरों को परसन्न रखने के लिए होता है। मुझे भय हो रहा है कि आप मुझसे घृणा करते हैं और मेरा सर्वनाश करने पर उद्यत हैं। कृपया यहां से सिधारिए। मैं आपकी शक्ति और सिद्धि के सामने सिर झुकाती हूं। लेकिन आपका मुझ पर कोप करना उचित नहीं है, क्योंकि मैं अन्य मनुष्यों की भांति आप लोगों की भिक्षावृत्ति और संयम की निन्दा नहीं करती। आप भी मेरे भोगविलास को पाप न समझिए। मैं रूपवती हूं और अभिनय करने में चतुर हूं। मेरा काबू न अपनी दशा पर है, और न अपनी परकृति पर। मैं जिस काम के योग्य बनायी गयी हूं वही करती हूं। मनुष्यों की मुग्ध करने ही के निमित्त मेरी सृष्टि हुई है। आप भी तो अभी कह रहे थे कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं। अपनी सिद्धियों से मेरा अनुपकार न कीजिए। ऐसा मन्त्र न चलाइए कि मेरा सौन्दर्य नष्ट हो जाय, या मैं पत्थर तथा नमक की मूर्ति बन जाऊं। मुझे भयभीत न कीजिए। मेरे तो पहले ही से पराण सूखे हुए हैं। मुझे मौत का मुंह न दिखाइए, मुझे मौत से बहुत डर लगता है।' पापनाशी ने उसे उठने का इशारा किया और बोला-'बच्चा, डर मत। तेरे परति अपमान या घृणा का शब्द भी मेरे मुंह से न निकलेगा। मैं उस महान पुरुष की ओर से आया हूं, जो पापियों को गले लगाता था, वेश्याओं के घर भोजन करता था, हत्यारों से परेम करता था, पतितों को सान्त्वना देता था। मैं स्वयं पापमुक्त नहीं हूं कि दूसरों पर पत्थर फेंकूं। मैंने कितनी ही बार उस विभूति का दुरुपयोग किया है जो ईश्वर ने मुझे परदान की है। क्रोध ने मुझे यहां आने पर उत्साहित नहीं किया। मैं दया के वशीभूत होकर आया हूं। मैं निष्कपट भाव से परेम के शब्दों में तुझे आश्वासन दे सकता हूं, क्योंकि मेरा पवित्र धर्मस्नेह ही मुझे यहां लाया है। मेरे हृदय में वात्सल्य की अग्नि परज्वलित हो रही है और यदि तेरी आंखें जो विषय के स्थूल, अपवित्र दृश्यों के वशीभूत हो रही हैं, वस्तुओं को उनके आध्यात्मिक रूप में देखतीं तो तुझे विदित होता कि मैं उस जलती हुई झाड़ी का एक पल्लव हूं जो ईश्वर ने अपने परेम का परिचय देने के लिए मूसा को पर्वत पर दिखाई थी-जो समस्त संसार में व्याप्त है, और जो वस्तुओं को भस्म कर देने के बदले, जिस वस्तु में परवेश करती है उसे सदा के लिए निर्मल और सुगन्धमय बना देती है।' थायस ने आश्वस्त होकर कहा-'महात्मा जी, अब मुझे आप पर विश्वास हो गया है। मुझे आपसे किसी अनिष्ट या अमंगल की आशंका नहीं है। मैंने धमार्श्रम के तपस्वियों की बहुत चचार सुनी है। ऐण्तोनी और पॉल के विषय में बड़ी अद्भुत कथाएं सुनने में आयी हैं। आपके नाम से भी मैं अपरिचित नहीं हूं और मैंने लोगों को कहते सुना है कि यद्यपि आपकी उमर अभी कम है, आप धर्मनिष्ठा में उन तपस्वियों से भी श्रेष्ठ हैं जिन्होंने अपना समस्त जीवन ईश्वर आराधना में व्यतीत किया। यद्यपि मेरा अपसे परिचय न था, किन्तु आपको देखते ही मैं समझ गयी कि आप कोई साधारण पुरुष नहीं हैं। बताइये, आप मुझे वह वस्तु परदान कर सकते हैं जो सारे संसार के सिद्ध और साधु, ओझे और सयाने, कापालिक और वैतालिक नहीं कर सके ? आपके पास मौत की दवा है ? आप मुझे अमर जीवन दे सकते हैं ? यही सांसारिक इच्छाओं का सप्तम स्वर्ग है।' पापनाशी ने उत्तर दिया-'कामिनी, अमर जीवन लाभ करना परत्येक पराणी की इच्छा के अधीन है। विषयवासनाओं को त्याग दे, जो तेरी आत्मा का सर्वनाश कर रहे हैं। उस शरीर को पिशाचों के पंजे से छुड़ा ले जिसे ईश्वर ने अपने मुंह के पानी से साना और अपने श्वास से जिलाया, अन्यथा परेत और पिशाच उसे बड़ी क्रुरता से जलायेंगे। नित्य के विलास से तेरे जीवन का स्त्रोत क्षीण हो गया है। आ, और एकान्त के पवित्र सागर में उसे फिर परवाहित कर दे। आ, और मरुभूमि में छिपे हुए सोतों का जल सेवन कर जिनका उफान स्वर्ग तक पहुंचता है। ओ चिन्ताओं में डूबी हुई आत्मा ! आ, अपनी इच्छित वस्तु को पराप्त कर ! जो आनन्द की भूखी स्त्री ! आ, और सच्चे आनन्द का आस्वादन कर। दरिद्रता का, विराग का, त्याग कर, ईश्वर के चरणों में आत्मसमर्पण कर ! आ, ओ स्त्री, जो आज परभु मसीह की द्रोहिणी है, लेकिन कल उसको परेयसी होगी। आ, उसका दर्शन कर, उसे देखते ही तू पुकार उठेगी-मुझे परेमधन मिल गया !' थामस भविष्यचिन्तन में खोयी हुई थी। बोली-'महात्मा, अगर मैं जीवन के सुखों को त्याग दूं और कठिन तपस्या करुं तो क्या यह सत्य है कि मैं फिर जन्म लूंगी और मेरे सौन्दर्य को आंच न आयेगी ?' पापनाशी ने कहा-'थायस, मैं तेरे लिए अनन्तजीवन का सन्देश लाया हूं। विश्वास कर, मैं जो कुछ कहता हूं, सर्वथा सत्य है।' थायस-'मुझे उसकी सत्यता पर विश्वास क्योंकर आये ?' पापनाशी-'दाऊद और अन्य नबी उसकी साक्षी देंगे, तुझे अलौकिक दृश्य दिखाई देंगे, वह इसका समर्थन करेंगे।' थायस-'योगी जी, आपकी बातों से मुझे बहुत संष्तोा हो रहा है, क्योंकि वास्तव में मुझे इस संसार में सुख नहीं मिला। मैं किसी रानी से कम नहीं हूं, किन्तु फिर भी मेरी दुराशाओं और चिन्ताओं का अन्त नहीं है। मैं जीने से उकता गयी हूं। अन्य स्त्रियां मुझ पर ईष्यार करती हैं, पर मैं कभीकभी उस दुःख की मारी, पोपली बुयि पर ईष्यार करती हूं जो शहर के फाटक की छांह में बैठी तलाशे बेचा करती है। कितनी ही बार मेरे मन में आया है कि गरीब ही सुखी, सज्जन और सच्चे होते हैं, और दीन, हीन, निष्परभ रहने में चित्त को बड़ी शान्ति मिलती है। आपने मेरी आत्मा में एक तूफानसा पैदा कर दिया है और जो नीचे दबी पड़ी थी उसे ऊपर कर दिया है। हां ! मैं किसका विश्वास करुं ? मेरे जीवन का क्या अन्त होगा-जीवन ही क्या है ?' पापनाशी ने उसे उठने का इशारा किया और बोला-'बच्चा, डर मत। तेरे परति अपमान या घृणा का शब्द भी मेरे मुंह से न निकलेगा। मैं उस महान पुरुष की ओर से आया हूं, जो पापियों को गले लगाता था, वेश्याओं के घर भोजन करता था, हत्यारों से परेम करता था, पतितों को सान्त्वना देता था। मैं स्वयं पापमुक्त नहीं हूं कि दूसरों पर पत्थर फेंकूं। मैंने कितनी ही बार उस विभूति का दुरुपयोग किया है जो ईश्वर ने मुझे परदान की है। क्रोध ने मुझे यहां आने पर उत्साहित नहीं किया। मैं दया के वशीभूत होकर आया हूं। मैं निष्कपट भाव से परेम के शब्दों में तुझे आश्वासन दे सकता हूं, क्योंकि मेरा पवित्र धर्मस्नेह ही मुझे यहां लाया है। मेरे हृदय में वात्सल्य की अग्नि परज्वलित हो रही है और यदि तेरी आंखें जो विषय के स्थूल, अपवित्र दृश्यों के वशीभूत हो रही हैं, वस्तुओं को उनके आध्यात्मिक रूप में देखतीं तो तुझे विदित होता कि मैं उस जलती हुई झाड़ी का एक पल्लव हूं जो ईश्वर ने अपने परेम का परिचय देने के लिए मूसा को पर्वत पर दिखाई थी-जो समस्त संसार में व्याप्त है, और जो वस्तुओं को भस्म कर देने के बदले, जिस वस्तु में परवेश करती है उसे सदा के लिए निर्मल और सुगन्धमय बना देती है।' थायस ने आश्वस्त होकर कहा-'महात्मा जी, अब मुझे आप पर विश्वास हो गया है। मुझे आपसे किसी अनिष्ट या अमंगल की आशंका नहीं है। मैंने धमार्श्रम के तपस्वियों की बहुत चचार सुनी है। ऐण्तोनी और पॉल के विषय में बड़ी अद्भुत कथाएं सुनने में आयी हैं। आपके नाम से भी मैं अपरिचित नहीं हूं और मैंने लोगों को कहते सुना है कि यद्यपि आपकी उमर अभी कम है, आप धर्मनिष्ठा में उन तपस्वियों से भी श्रेष्ठ हैं जिन्होंने अपना समस्त जीवन ईश्वर आराधना में व्यतीत किया। यद्यपि मेरा अपसे परिचय न था, किन्तु आपको देखते ही मैं समझ गयी कि आप कोई साधारण पुरुष नहीं हैं। बताइये, आप मुझे वह वस्तु परदान कर सकते हैं जो सारे संसार के सिद्ध और साधु, ओझे और सयाने, कापालिक और वैतालिक नहीं कर सके ? आपके पास मौत की दवा है ? आप मुझे अमर जीवन दे सकते हैं ? यही सांसारिक इच्छाओं का सप्तम स्वर्ग है।' पापनाशी ने उत्तर दिया-'कामिनी, अमर जीवन लाभ करना परत्येक पराणी की इच्छा के अधीन है। विषयवासनाओं को त्याग दे, जो तेरी आत्मा का सर्वनाश कर रहे हैं। उस शरीर को पिशाचों के पंजे से छुड़ा ले जिसे ईश्वर ने अपने मुंह के पानी से साना और अपने श्वास से जिलाया, अन्यथा परेत और पिशाच उसे बड़ी क्रुरता से जलायेंगे। नित्य के विलास से तेरे जीवन का स्त्रोत क्षीण हो गया है। आ, और एकान्त के पवित्र सागर में उसे फिर परवाहित कर दे। आ, और मरुभूमि में छिपे हुए सोतों का जल सेवन कर जिनका उफान स्वर्ग तक पहुंचता है। ओ चिन्ताओं में डूबी हुई आत्मा ! आ, अपनी इच्छित वस्तु को पराप्त कर ! जो आनन्द की भूखी स्त्री ! आ, और सच्चे आनन्द का आस्वादन कर। दरिद्रता का, विराग का, त्याग कर, ईश्वर के चरणों में आत्मसमर्पण कर ! आ, ओ स्त्री, जो आज परभु मसीह की द्रोहिणी है, लेकिन कल उसको परेयसी होगी। आ, उसका दर्शन कर, उसे देखते ही तू पुकार उठेगी-मुझे परेमधन मिल गया !' थामस भविष्यचिन्तन में खोयी हुई थी। बोली-'महात्मा, अगर मैं जीवन के सुखों को त्याग दूं और कठिन तपस्या करुं तो क्या यह सत्य है कि मैं फिर जन्म लूंगी और मेरे सौन्दर्य को आंच न आयेगी ?' पापनाशी ने कहा-'थायस, मैं तेरे लिए अनन्तजीवन का सन्देश लाया हूं। विश्वास कर, मैं जो कुछ कहता हूं, सर्वथा सत्य है।' थायस-'मुझे उसकी सत्यता पर विश्वास क्योंकर आये ?' पापनाशी-'दाऊद और अन्य नबी उसकी साक्षी देंगे, तुझे अलौकिक दृश्य दिखाई देंगे, वह इसका समर्थन करेंगे।' थायस-'योगी जी, आपकी बातों से मुझे बहुत संष्तोा हो रहा है, क्योंकि वास्तव में मुझे इस संसार में सुख नहीं मिला। मैं किसी रानी से कम नहीं हूं, किन्तु फिर भी मेरी दुराशाओं और चिन्ताओं का अन्त नहीं है। मैं जीने से उकता गयी हूं। अन्य स्त्रियां मुझ पर ईष्यार करती हैं, पर मैं कभीकभी उस दुःख की मारी, पोपली बुयि पर ईष्यार करती हूं जो शहर के फाटक की छांह में बैठी तलाशे बेचा करती है। कितनी ही बार मेरे मन में आया है कि गरीब ही सुखी, सज्जन और सच्चे होते हैं, और दीन, हीन, निष्परभ रहने में चित्त को बड़ी शान्ति मिलती है। आपने मेरी आत्मा में एक तूफानसा पैदा कर दिया है और जो नीचे दबी पड़ी थी उसे ऊपर कर दिया है। हां ! मैं किसका विश्वास करुं ? मेरे जीवन का क्या अन्त होगा-जीवन ही क्या है ?' वह यह बातें कर रही थी कि पापनाशी के मुख पर तेज छा गया, सारा मुखमंडल आदि ज्योति से चमक उठा, उसके मुंह से यह परतिभाशाली वाक्य निकले-'कामिनी, सुन, मैंने जब इस घर में कदम रखा तो मैं अकेला न था। मेरे साथ कोई और भी था और वह अब भी मेरे बगल में खड़ा है। तू अभी उसे नहीं देख सकती, क्योंकि तेरी आंखों में इतनी शक्ति नहीं है। लेकिन शीघर ही स्वगीर्य परतिभा से तू उसे आलोकित देखेगी और तेरे मुंह से आपही-आप निकल पड़ेगा-यही मेरा आराध्य देव है। तूने अभी उसकी आलौकिक शक्ति देखी ! अगर उसने मेरी आंखों के सामने अपने दयालु हाथ न फैला दिये होते तो अब तक मैं तेरे साथ पापाचरण कर चुका होता; क्योंकि स्वतः मैं अत्यन्त दुर्बल और पापी हूं। लेकिन उसने हम दोनों की रक्षा की। वह जितना ही शक्तिशाली है उतना ही दयालु है और उसका नाम है मुक्तिदाता। दाऊद और अन्य नबियों ने उसके आने की खबर दी थी, चरवाहों और ज्योतिषियों ने हिंडोले में उसके सामने शीश झुकाया था। फरीसियों ने उसे सलीब पर च़ाया, फिर वह उठकर स्वर्ग को चला गया। तुझे मृत्यु से इतना सशंक देखकर वह स्वयं तेरे घर आया है कि तुझे मृत्यु से बचा ले। परभु मसीह ! क्या इस समय तुम यहां उपस्थित नहीं हो, उसी रूप में जो तुमने गैलिली के निवासियों को दिखाया था। कितना विचित्र समय था बैतुलहम के बालक तारागण को हाथ में लेकर खेलते थे जो उस समय धरती के निकट ही स्थित थे। परभु मसीह, क्या यह सत्य नहीं है कि तुम इस समय यहां उपस्थित हो और मैं तुम्हारी पवित्र देह को परत्यक्ष देख रहा हूं ? क्या तेरी दयालु कोमल मुखारबिन्द यहां नहीं है ? और क्या वह आंसू जो तेरे गालों पर बह रहे हैं, परत्यक्ष आंसू नहीं हैं ? हां, ईश्वरीय न्याय का कर्त्ता उन मोतियों के लिए हाथ रोपे खड़ा है और उन्हीं मोतियों से थायस की आत्मा की मुक्ति होगी। परभु मसीह, क्या तू बोलने के लिए होंठ नहीं खोले हुए है ? बोल, मैं सुन रहा हूं ! और थायस, सुलक्षण थायस सुन, परभु मसीह तुझसे क्या कह रहे हैं-ऐ मेरी भटकी हुई मेषसुन्दरी, मैं बहुत दिनों से तेरी खोज में हूं। अन्त में मैं तुझे पा गया। अब फिर मेरे पास से न भागना। आ, मैं तेरा हाथ पकड़ लूं और अपने कन्धों पर बिठाकर स्वर्ग के बाड़े में ले चलूं। आ मेरी थायस, मेरी पिरयतमा, आ ! और मेरे साथ रो।' यह कहतेकहते पापनाशी भक्ति से विह्वल होकर जमीन पर घुटनों के बल बैठ गया। उसकी आंखों से आत्मोल्लास की ज्योतिरेखाएं निकलने लगीं। और थायस को उसके चेहरे पर जीतेजागते मसीह का स्वरूप दिखाई दिया। वह करुण क्रंदन करती हुई बोली-'ओ मेरी बीती हुई बाल्यावस्था, ओ मेरे दयालु पिता अहमद ! ओ सन्त थियोडोर, मैं क्यों न तेरी गोद में उसी समय मर गयी जब तू अरुणोदय के समय मुझे अपनी चादर में लपेटे लिये आता था और मेरे शरीर से वपतिस्मा के पवित्र जल की बूंदें टपक रही थीं।' पापनाशी यह सुनकर चौंक पड़ा मानो कोई अलौकिक घटना हो गयी है और दोनों हाथ फैलाये हुए थायस की ओर यह कहते हुए ब़ा-'भगवान्, तेरी महिमा अपार है। क्या तू बपतिस्मा के जल से प्लावित हो चुकी है ? हे परमपिता, भक्तवत्सल परभु, ओ बुद्धि के अगाध सागर ! अब मुझे मालूम हुआ कि वह कौनसी शक्ति थी जो मुझे तेरे पास खींचकर लायी। अब मुझे ज्ञात हुआ कि वह कौनसा रहस्य था जिसने तुझे मेरी दृष्टि में इतना सुन्दर, इतना चित्ताकर्षक बना दिया था। अब मुझे मालूम हुआ कि मैं तेरे परेमपाश में क्यों इस भांति जकड़ गया था कि अपना शान्तिवास छोड़ने पर विवश हुआ। इसी बपतिस्माजल की महिमा थी जिसने मुझे ईश्वर के द्वार को छुड़ाकर मुझे खोजने के लिए इस विषाक्त वायु से भरे हुए संसार में आने पर बाध्य किया जहां मायामोह में फंसे हुए लोग अपना कलुषित जीवन व्यतीत करते हैं। उस पवित्र जल की एक बूंद-केवल एक ही बूंद मेरे मुख पर छिड़क दी गयी है जिसमें तूने स्नान किया था। आ, मेरी प्यारी बहिन, आ, और अपने भाई के गले लग जा जिसका हृदय तेरा अभिवादन करने के लिए तड़प रहा है।' यह कहकर पापनाशी ने बारांगना के सुन्दर ललाट को अपने होंठों से स्पर्श किया। इसके बाद वह चुप हो गया कि ईश्वर स्वयं मधुर, सांत्वनापरद शब्दों में थायस को अपनी दयालुता का विश्वास दिलाये। और 'परियों के रमणीक कुंज' में थायस की सिसकियों के सिवा, जो जलधारा की कलकल ध्वनि से मिल गयी थीं, और कुछ न सुनाई दिया। वह इसी भांति देर तक रोती रही। अश्रुपरवाह को रोकने का परयत्न उसने न किया। यहां तक कि उसके हब्शी गुलाम सुन्दर वस्त्र; फूलों के हार और भांतिभांति के इत्र लिये आ पहुंचे। उसने मुस्कराने की चेष्टा करके कहा-'अरे रोने का समय बिल्कुल नहीं रहा। आंसुओं से आंखें लाल हो जाती हैं, और उनमें चित्त को विकल करने वाला पुष्प विकास नहीं रहता, चेहरे का रंग फीका पड़ जाता है, वर्ण की कोमलता नष्ट हो जाती है। मुझे आज कई रसिक मित्रों के साथ भोजन करना है। मैं चाहती हूं कि मेरी मुखचन्द्र सोलहों कला से चमके, क्योंकि वहां कई ऐसी स्त्रियां आयेंगी जो मेरे मुख पर चिन्ता या ग्लानि के चिह्न को तुरन्त भांप जायेंगी और मन में परसन्न होंगी कि अब इनका सौन्दर्य थोड़े ही दिनों का और मेहमान है, नायिका अब परौ़ा हुआ चाहती है। ये गुलाम मेरा शृंगार करने आये हैं। पूज्य पिता आप कृपया दूसरे कमरे में जा बैठिए और इन दोनों को अपना काम करने दीजिए। यह अपने काम में बड़े परवीण और कुशल हैं। मैं उन्हें यथेष्ट पुरस्कार देती हूं। वह जो सोने की अंगूठियां पहने हैं और जिनके मोती केसे दांत चमक रहे हैं, उसे मैंने परधानमन्त्री की पत्नी से लिया है।' पापनाशी की पहले तो यह इच्छा हुई कि थायस को इस भोज में सम्मिलित होने से यथाशक्ति रोके। पर पुनः विचार किया तो विदित हुआ कि यह उतावली का समय नहीं है। वर्षों का जमा हुआ मनोमालिन्य एक रगड़ से नहीं दूर हो सकता। रोग का मूलनाश शनैःशनैः, क्रमक्रम से ही होगा। इसलिए उसने धमोर्त्साह के बदले बुद्धिमत्ता से काम लेने का निश्चय किया और पूछा-वाह किनकिन मनुष्यों से भेंट होगी ? उसने उत्तर दिया-'पहले तो वयोवृद्ध कोटा से भेंट होगी जो यहां के जलसेना के सेनापति हैं। उन्हीं ने यह दावत दी है। निसियास और अन्य दार्शनिक भी आयेंगे जिन्हें किसी विषय की मीमांसा करने ही में सबसे अधिक आनन्द पराप्त होता है। इनके अतिरिक्त कविसमाजभूषण कलिक्रान्त, और देवमन्दिर के अध्यक्ष भी आयेंगे। कई युवक होंगे जिनको घोड़े निकालने ही में परम आनन्द आता है और कई स्त्रियां मिलेंगी जिनके विषय में इसके सिवाय और कुछ नहीं कहा जा सकता कि वे युवतियां हैं।' पापनाशी ने ऐसी उत्सुकता से जाने की सम्मति दी मानो उसे आकाशवाणी हुई है। बोला-'तो अवश्य जाओ थायस, अवश्य जाओ। मैं तुम्हें सहर्ष आज्ञा देता हूं। लेकिन मैं तेरा साथ न छोडूंगा। मैं भी इस दावत में तुम्हारे साथ चलूंगा। इतना जानता हूं कि कहां बोलना और कहां चुप रहना चाहिए। मेरे साथ रहने से तुम्हें कोई असुविधा अथवा झेंप न होगी।' दोनों गुलाम अभी उसको आभूषण पहना ही रहे थे कि थायस खिलखिलाकर हंस पड़ी और बोली-'वह धमार्श्रम के एक तपस्वी को मेरे परेमियों में देखकर कहेंगे ?'
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मधुरिमा का दिल मानो बल्लियों उछलने लगा। उसने कभी नहीं सोचा था कि ज़िन्दगी में कभी ऐसे दिन भी आयेंगे। रंग भरे उमंग भरे! किसने सोचा था कि जापान के तमाम बड़े शहरों से दूर निहायत ही अलग- थलग पड़ा ये छोटा सा कस्बा, और उसके किनारे पर बिल्कुल ग्रामीण इलाकों की तरह फ़ैला- बिखरा उसका ये फार्महाउस कभी इस तरह गुलज़ार भी होगा। लेकिन तेन की मिलनसारिता और मेहनत के बदौलत ऐसे दिनों ने भी उसकी ज़िन्दगी के द्वार पर दस्तक दी जिनकी संभावित ख़ुशबू से ही उसके आने वाले दिन महक गए। अपनी मां और पापा को ख़ुश देख कर नन्ही परी तनिष्मा भी इतराई सी फिरने लगी। उसे उसकी मम्मी ने बताया कि तेरी नानी, मामा, मामी, चाचा सब यहां आयेंगे। अब वो बेचारी क्या जाने कि नानी किसे कहते हैं? उससे मिलने तो उसकी दादियां ही कभी- कभी आया करती थीं। हां, नानी से वो भारत में मिली ज़रूर थी मगर तब की पुरानी बात उसे भला कब तक याद रहती? बच्चे तो वैसे भी तोता- चश्म होते हैं, जो कुछ सामने रहे बस उसी को अपनी दुनिया समझते हैं। और मामा- मामी - चाचा की परिभाषा तो वो इतनी ही समझी कि बहुत सारे लोग... ऐसे अंकल और आंटी का जमावड़ा जिन्हें मम्मा बहुत लाइक करती हैं और पापा बहुत रिस्पेक्ट करते हैं। साथ ही वो ये भी समझ गई कि ये ग्रुप ऑफ़ पर्सन्स आते समय भी बहुत से गिफ्ट्स लाता है और जाते समय भी जिसके लोग बहुत सारी मनी देकर जाते हैं। मधुरिमा ने दुगने उत्साह से घर को सजाना - संवारना शुरू किया। तरह - तरह के फूल, पौधे नर्सरी की मदद से लाती और उन्हें खुद रोपती, सींचती। अपने बतख़, मुर्गाबियों, बटेरों के झुंड को ध्यान से देखती और सोचती कि इन उम्दा नस्ल के बेहतरीन पंछियों को देख कर उसके मेहमान कितने हर्षाएंगे! उसने समय निकाल कर बाज़ार से शॉपिंग भी कर छोड़ी थी कि किसे क्या तोहफ़ा देना है, ताकि सबके आने से पहले ही वो सब तैयारी कर के रख सके। ये मौक़ा बार - बार थोड़े ही आता है। जापान के सुदूर दक्षिण के इस इलाक़े में तो भारत के इन सैलानियों का आना "वन्स इन अ लाइफ टाइम" जैसा ही था। ये संयोग ही तो था कि मनन और मान्या की शादी अभी- अभी हुई थी और हनीमून ट्रिप के नाम पर वे लोग भी यहां आ रहे थे। वैसे उनके आने की असली वजह तो आगोश की मम्मी को कंपनी देने की ही रही। और आगोश की मम्मी भी वैसे कहां आ पातीं। ये तो तेन ने ही ज़ोर देकर उन्हें बताया कि आगोश की जिस तरह की मूर्ति वो बनवाना चाहती हैं वो चाइना में ही नहीं, बल्कि जापान और कोरिया में भी ख़ूब बनने लगी है। बस, चटपट उन लोगों का कार्यक्रम बन गया। एक बात सोच- सोच कर मधुरिमा बहुत शर्माती थी। उसका यह प्यारा सा घर उसके दोस्तों का हनीमून डेस्टिनेशन बनता जा रहा था किंतु वो ख़ुद? वो तो हनीमून के लिए यहां अब तक तरसती ही रही थी। नहीं - नहीं, उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। तेन उसके साथ है और उसे भरपूर प्यार करता है। उसकी हर इच्छा पूरी करता है, उसके आगे- पीछे फिरता है। दौलत का अंबार लगा है यहां। उसके पति तेन ने उसे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। अब अपने शरीर का कोई क्या करे? इस तकनीक संपन्न देश को वैसे भी वर्कॉलिक युवाओं का देश कहा जाता है। अपने काम के तनाव में डूबे यहां के लोग शरीर सुख के लिए तरह- तरह की दवाओं, तेलों और एक्सरसाइज पर ही निर्भर रहते हैं। ये लोग स्लिमफिट रहने और परिवार की जनसंख्या को लेकर भी बेहद सख़्त अनुशासन में रहना पसंद करते हैं। तेन ही उसका सब कुछ है। अब और कुछ उसे सोचना भी नहीं चाहिए। मधुरिमा के भीतर कोई लहर सी उठती और उसे सराबोर कर के निकल जाती। मधुरिमा के तन- मन का जैसे स्नान हो जाता। हां! इस बार एक बात और थी। वह बिना कहे नहीं रहेगी मधुरिमा! आर्यन ने उसे बताया था कि इस बार वह लंबे समय तक यहां रहने वाला है। उसकी एक फ़िल्म का क्लाइमैक्स शूट यहां जापान में ही होना था जिसके लिए ख़ुद तेन ने ही आगे बढ़ कर सारी व्यवस्था करवाई थी। इतना ही नहीं, बल्कि तेन ने शूटिंग के लिए नज़दीक के उस टापू पर अपनी खरीदी हुई जगह भी उपलब्ध कराई थी। तेन ने दौड़ - भाग करके सब ज़रूरी परमीशन लेने का कष्ट भी उठाया था और आर्यन के प्रोड्यूसर को हर तरह का सहयोग देने का वादा भी किया था। इसी भरोसे पर आर्यन यहां आ रहा था। शुरू के कुछ दिन आर्यन जयपुर से आने वाले दल, अर्थात आंटी, मान्या और मनन के साथ भी वहां रहने वाला था। मधुरिमा ने बेटी को उसका परिचय चाचा कह कर ही करवाया था। मधुरिमा ये तय नहीं कर पा रही थी कि आर्यन के इतने लंबे स्टे से वो वास्तव में खुश थी या नहीं। आर्यन इस फ़िल्म को अपने दिवंगत दोस्त आगोश को समर्पित करने की तैयारी कर चुका था। आगोश की मम्मी का यहां शूटिंग देखने और आर्यन के साथ कुछ समय बिताने का कार्यक्रम इसी आधार पर बना था। काश, मधुरिमा अपनी मम्मी से भी कह पाती कि इस समय आंटी के साथ कुछ समय के लिए यहां आने का कार्यक्रम वो भी बना लें। लेकिन वो जानती थी कि मम्मी वहां घर अकेला छोड़ कर नहीं आएंगी। कितना अंतर था भारत में और दूसरे उन्नत देशों में। भारत में लोग अपने घरों को सुख- सुविधा का गोदाम बना लेते हैं, फ़िर उसे अकेले छोड़ कर बाहर निकलने में डरते हैं। जबकि दूसरे देशों में लोग घर में केवल ज़रूरत का न्यूनतम सामान रखते हैं। कीमती चीज़ें बैंक आदि में रखते हैं। मधुरिमा को शुरू- शुरू में यहां ये देख कर बड़ा अजीब सा लगता था कि लोग कुछ भी नया लाते ही पुराने को तुरंत दूसरे ज़रूरतमंद आदमी को दे देते हैं। वहां संग्रह वृत्ति नहीं होती। भारत में यदि किसी घर में आठ- दस पैन रखे हों तो हो सकता है कि उनमें से दो- तीन ही चलते हों। लोग बल्ब या बैटरी बदलते हैं तो पुरानी बैटरी या फ्यूज्ड बल्ब को भी घर में ही रख लेते हैं। प्रायः घरों में ऐसा सामान पाया जाता है जो दो- दो साल तक कोई काम नहीं आता, पर फेंका नहीं जाता। ढीली ढेबरियां या बचा हुआ पेंट तक घर में सालों- साल रखा हुआ देखा जा सकता है। घरों की गहरी सफ़ाई साल में एक बार उन भगवान के नाम पर होती है जो चौदह साल के लिए जंगल में जाते समय भी अपनी खड़ाऊं तक घर में ही छोड़ गए थे। घर की साज- सज्जा ने मधुरिमा के दिन किसी उड़ते पंछी की भांति तेज़ी से निकाल दिए। वह एक - एक दिन गिन रही थी। उस दिन मधुरिमा हैरान रह गई जब उसने देखा कि तेन फ़ोन पर किसी से एक घंटे से भी ज्यादा समय से बातों में उलझा हुआ है। नपा तुला बोलने वाला तेन किससे बात कर रहा था? ओह! मुंबई से आर्यन का फ़ोन आया हुआ था। आर्यन ने उसे बताया कि मुंबई पुलिस ने आगोश की मूर्ति चोरी का प्रकरण सुलझा लिया है। मूर्ति बनाने वाले वहीद मियां का ही बड़ा बेटा ख़ुद चोर निकला जिसने तैयार मूर्ति कुछ तस्करों के हाथ बेच डाली और बाद में मूर्ति चोरी जाने का नाटक रच कर अपने बाप तक को मूर्ख बना दिया। सारी बात सुन कर तेन ने भी दांतों तले अंगुली दबा ली। संगमरमर के पत्थर से बनी इस मूर्ति का सौदा तस्करों ने पहले से ही कर लिया था। विचित्र बात ये थी कि इस मूर्ति में कुछ ख़ुफ़िया परिवर्तन इसे बनाने वाले कारीगर ने ख़ुद ही कर लिए। मूर्ति के मुंह से लेकर पेट के दूसरे छोर तक आर- पार एक बेहद पतली खोखली नली बनाई गई थी। होठों और कमर के पिछले नीचे के भाग के बीच में खोखले भाग की बनावट ऐसी बनाई गई थी जिसमें भीतर अवैध सामान आसानी से छिपाया जा सके। ये कीमती ड्रग्स अथवा हीरों आदि के लिए निरापद कैरियर बन गई थी। इस मूर्ति के मिलते ही तस्करों के खुफिया इरादे जाहिर हो गए थे। वो इसका इस्तेमाल स्मगलिंग में करने की तैयारी में थे। वहीद मियां का बेटा सलाखों के पीछे था। किंतु इसे खरीदने की कोशिश करने वाले तस्कर अभी तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आए थे।
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' इसीलिए समझता हूँ कि तुम्हारा इतना आकर्षण है ! सब धर्मावलम्बियों को तुम परम आत्मीय समझकर आलिंगन करते हो ! तुम्हारी भक्ति है । तुम सिर्फ देखते हो - अन्दर ईश्वर की भक्ति और प्रेम है या नहीं ? यदि ऐसा हो तो वह व्यक्ति तुम्हारा परम आत्मीय है - भक्तिमान यदि दिखाई पड़े तो वह जैसे तुम्हारा आत्मीय है । मुसलमान को भी यदि अल्लाह के ऊपर प्रेम हो, तो वह भी तुम्हारा अपना आदमी होगा; ईसाई को यदि ईसू के ऊपर भक्ति हो, तो वह तुम्हारा परम आत्मीय होगा । तुम कहते हो कि सब नदियाँ भिन्न-भिन्न दिशाओं से बहकर समुद्र में गिरती हैं। सब का गन्तव्य स्थान एक समुद्र ही है । सुना है, यह जगत् ब्रह्माण्ड महा चिदाकाश में आविर्भूत होता है, फिर कुछ समय के बाद उसी में लय हो जाता है - महा समुद्र में लहर उठती है फिर समय पाकर लय हो जाती है। आनन्द सिन्धु के जल में अनन्त-लीला तरंगें हैं। इन लीलाओं का आरम्भ कहाँ है ? अन्त कहाँ है ? उसे मुँह से कहने का अवसर नहीं है -- मन में सोचने का अवसर नहीं है। मनुष्य की क्या हकीकत - उसकी बुद्धि की ही क्या हकीकत ? सुनते हैं, महापुरुष समाधिस्थ होकर उसी नित्य परम पुरुष का दर्शन करते हैं - नित्य लीलामय हरि का साक्षात्कार करते हैं। अवश्य ही करते हैं, कारण, श्रीरामकृष्ण देव ऐसा कहते हैं । किन्तु चर्मचक्षुओं से नहीं - मालूम पड़ता है, दिव्य चक्षु जिसे कहते हैं उसके द्वारा, जिन नेत्रों को पाकर अर्जुन ने विश्व रूप का दर्शन किया था, जिन नेत्रों से ऋषियों ने आत्मा का साक्षात्कार किया था, जिस दिव्य चक्षु से ईस् अपने स्वर्गीय पिता का बराबर दर्शन करते थे ! वे नेत्र किसे होते हैं? श्रीरामकृष्ण देव के मुँह से सुना था, वह व्याकुलता के द्वारा होता है ! इस समय वह व्याकुलता किस प्रकार हो सकती है ? क्या संसार का त्याग करना होगा ? ऐसा भी तो उन्होंने आज नहीं कहा ! " परिच्छेद ३० श्रीरामकृष्ण तथा ज्ञानयोग (१) सन्यासी तथा संचय । पूर्ण ज्ञान तथा प्रेम के लक्षण । श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में विराजमान हैं। अपने कमरे में छोटी खाट पर पूर्व की ओर मुँह किए हुए बैठे हैं। भक्तगण फरी पर बैठे हैं। आज कार्तिक की कृष्णा सप्तमी है, ९ नवम्बर, १८८४ । दोपहर का समय है। श्रीयुत मास्टर आए, दूसरे भक्त भी धीरेधीरे आ रहे हैं। श्रीयुत विजयकृष्ण गोस्वामी के साथ कई ब्रह्म भक्त आए हुए हैं। पुजारी रामचक्रवर्ती भी आए हैं । क्रमशः महिमाचरण, नारायण और किशोरी भी आये । कुछ देर बाद और भी कई भक्त आए । जाड़ा पड़ने लगा है। श्रीरामकृष्ण को कुर्ते की ज़रूरत है । मास्टर से ले आने के लिए कहा था । वे नैनगिलाट के कुर्तों के सिवा एक और जीन का कुर्ता भी ले आए हैं; परन्तु इसके लिए श्रीरामकृष्ण ने नहीं कहा था । श्रीरामकृष्ण ( मास्टर से ) - तुम बल्कि इसे लेते जाओ । तुम्हीं पहनना । इसमें दोष नहीं है। अच्छा, तुमसे मैंने किस तरह के कुर्ती के लिए कहा था ? भा. २ श्री. व. ३७ मास्टर - जी, आपने सादे सधे कुर्ती की बात कही थी । ज़ीन का कुर्ता ले आने के लिए नहीं कहा था । श्रीरामकृष्ण - तो जीन वाले को ही लौटा ले जाओ। ( विजय आदि से ) " देखो, द्वारका बाबू ने बनात दी थी, और पश्चिमी ढंङ्ग का कपड़ा भी ले आए थे। मैंने नहीं लिया । ( श्रीरामकृष्ण और भी कड़ना चाहते थे, उसी समय विजय बोल उठे । ) विजय - जी हाँ, ठीक तो है । जो कुछ चाहिए और जितना चाहिए, उतना ही ले लिया जाता है। किसी एक को तो देना ही होगा। आदमी को छोड़ और देगा भी कौन ? श्रीरामकृष्ण - देने वाले वही ईश्वर हैं । सास ने कहा, बहू, सब की सेवा करने के लिए आदमी हैं, परन्तु तुम्हारे पैर दबाने वाला कोई नहीं है। कोई होता तो अच्छा होता । बहू ने कहा, अम्मा, मेरे पैर भगवान दबाएँगे, मुझे किसी की ज़रूरत नहीं है। उसने भक्तिपूर्वक यह बात कही थी । एक फकीर अकबरशाह के पास कुछ भेंट लेने गया था । बादशाह उस समय नमाज पढ़ रहा था और कह रहा था, ऐ खुदा, मुझे दौलतमन्द कर दे। फकीर ने जब बादशाह की याचनाएँ सुनीं तो उठकर वापस जाना चाहा। परन्तु अकबर शाह ने उससे बैठने के लिए इशारा किया । नमाज खतम होने पर उन्होंने पूछा, तुम क्यों वापस जा रहे थे ? उसने कहा, आप खुद ही याचना कर रहे हैं, ऐ खुदा, मुझे दौलतमन्द कर दे । इसीलिए मैंने सोचा, अगर माँगना ही है तो भिक्षुक से क्यों माँगू, खुदा से ही क्यों न माँगू ? " विजय - गया में मैंने एक साधु देखा था। वह स्वयं कुछ प्रयत्न नहीं करते थे । एक दिन इच्छा हुई, भक्तों को खिलाऊँ । देखा न जान कहाँ से मैदा और घी आ गया । फलं भी आए । श्रीरामकृष्ण ( विजय आदि से ) - - - साधुओं के तीन दर्जे हैं, उत्तम, मध्यम और अधम । जो उत्तम हैं, वे भोजन की खोज में नहीं फिरते । मध्यम और अधम इण्डियों की तरह के होते हैं । मध्यम जो हैं, वे नमोनारायण करके खड़े हो जाते हैं । जो अधम हैं वे न देने पर तकरार करते हैं । ( सच हँसे । ) उत्तम श्रेणी के साधु अजगर वृत्ति के होते हैं। उन्हें बैठे हुए ही आहार मिलता है । अजगर हिलता डुलता नहीं । एक छोकरा साधु था - बाल ब्रह्मचारी । वह कहीं भिक्षा लेने के लिए गया । एक लड़की ने आकर भिक्षा दी । उसके स्तन देखकर उसने सोचा, इसकी छाती पर फोड़ा हुआ है । जब उसने पूछा तो घर की पुरखिन ने आकर उसे समझाया । इसके पेट में बच्चा होगा, उसके पीने के लिए ईश्वर इनमें दूध भर दिया करेंगे, इसीलिए पहले से इसका बन्दोबस्त कर रखा से है । यह बात सुनकर उस साधु को बड़ा आश्चर्य हुआ । तब उसने. कहा, तो अब मुझे भिक्षा माँगने की क्या ज़रूरत है ? ईश्वर मेरे लिए भी भोजन तैयार कर दिया करेंगे । कुछ भक्त मन में सोचते हैं कि तब तो हम लोग भी यदि चेष्टा न करें, तो चल सकता है । " जिसके मन में यह है कि चेष्टा करनी चाहिए, उसे चेष्टाः करनी होगी ।" विजय - भक्तमाल में एक बड़ी अच्छी कहानी है । श्रीरामकृष्ण - कहो, ज़रा सुनें तो । विजय -- आप कहिए । श्रीरामकृष्ण - नहीं, तुम्हीं कहो, मुझे पूरी याद नहीं है। पहले पहल सुनना चाहिए, इसीलिए मैं सुना करता था । "मेरी अब वह अवस्था नहीं है। हनुमान ने कहा था, बार, तिथि, नक्षत्र, इतना सब मैं नहीं जानता, मैं तो बस श्रीरामचन्द्र जी की चिन्ता किया करता हूँ । चातक को बस स्वाति के जल की चाह रहती है। मारे प्यास के जी निकल रहा है, परन्तु गला उठाए वह आकाश की बूँदों की ही प्रतीक्षा करता है । गङ्गा यमुना और सातों समुद्र इधर भरे हुए हैं, परन्तु वह पृथ्वी का पानी नहीं पीत। । राम और लक्ष्मण जब पंपा सरोवर पर गए तत्र लक्ष्मण ने देखा, एक कौआ व्याकुल होकर बार बार पानी पीने के लिए जा रहा था, परन्तु पीता न था । राम से पूछने पर उन्होंने कहा, भाई, यह कौआ, परम भक्त है। दिन रात यह रामनाम जब रहा है। इधर मारेः स के छाती फटी जा रही है, परन्तु पानी पी नहीं सकता । सोचता है, पानी पीने लगूंगा तो जप छुट जायगा । मैंने पूर्णिमा के दिन हलधर से पूछा, दादा, आज क्या अमावस है ? ( सहास्य ) " हाँ यह सत्य है । ज्ञानी पुरुष की पहचान यह है कि पूर्णिमा और अमावस में भेद नहीं पाता । परन्तु हलधारी को इस विषय में कौन विश्वास दिला सकता है। उसने कहा, यह निश्चय ही कलिकाल है । वे ( श्री रामकृष्ण ) पूर्णिमा और अमावस में भेद नहीं जानते और फिर भी लोग उनका आइर करते हैं ! " ( इसी समय -महिमाचरण आगए । ) श्रीरामकृष्ण ( संभ्रम पूर्वक ) - आइए, आइए, बैठिए । (विजय आदि से ) इस अवस्था में दिन और तिथि का ख्याल नहीं रहता । उस दिन वेणीपाल के बगीचे में उत्सव था, - मुझे दिन भूल गया । ' अमुक दिन संक्रान्ति है, अच्छी तरह ईश्वर का नाम लूँगा,' यह अब याद नहीं रहता । ( कुछ देर विचार करने के बाद ) परन्तु अगर कोई आने को होता है तो उसकी याद रहती है । ईश्वर पर सोलहों आने मन जाने पर यह अवस्था होती है । राम ने पूछा, हनुमान, तुम सीता की खबर तो ले आए, अच्छा, तो उन्हें कैसा देखा; कहो, मेरी सुनने की इच्छा है। हनुमान ने कहा, राम, मैंने देखा, सीता का शरीर मात्र पड़ा हुआ है। उसमें मन, प्राण नहीं हैं । आपके ही पादपद्मों में उन्होंने वे समर्पण कर दिए हैं। इसलिए केवल शरीर ही पड़ा हुआ है । और काल ( यमराज ) आ. रहा है; परन्तु वह करे क्या ? वहाँ तो शरीर ही है, मन और प्राण तो हैं ही नहीं । 'जिसकी चिन्ता की जाती है, उसकी सत्ता आ जाती है। दिन रात ईश्वर की चिन्ता करते रहने पर ईश्वर की सत्ता आ जाती है क नमक का पुतला समुद्र की थाह लेने गया तो गलकर खुद वही हो गया । पुस्तकों या शास्त्रों का उद्देश क्या है ? ईश्वर लाभ । साधु की पोथी को एक को एक ने खोलकर देखा, उसमें सिर्फ राम नाम लिखा हुआ था, और कुछ भी नहीं । "ईश्वर पर प्रीति होने पर थोड़े ही में उद्दीपन हुआ करता है । तब एक बार रामनाम करने पर कोटि सन्ध्योपासन का फल होता है। " मेघ देखकर मयूर को उद्दपिन होता है । आनन्द से पंख फैला - कर नृत्य करता है । श्रीमती राधा को भी ऐसा ही हुआ करता था । मेघ देखकर उन्हें कृष्ण की याद आती थी । " चैतन्यदेव मेड़गांव के पास ही से जा रहे थे। उन्होंने सुन इस गांव की मिट्टी से ढोल बनती है । बस भावावेश में विह्वल हो गए, - क्योंकि संकीर्तन के समय ढोल का ही वाय होता है। उद्दपिन किसे होता है ? जिसकी विषय बुद्धि दूर हो गई हैं, जिसका विषयरस सूख जाता है, उसे ही थोड़े में उद्दीपन होता है । • दियासलाई भीगी हुई हो तो चाहे कितना ही क्यों न घिसो, वह जल
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एक तरफ एम पी कैडर के आई ए एस नियाज़ खान जैसे कुछ प्रबुद्ध अधिकारी ब्राह्मण के आई क्यू की प्रशंसा कर रहे है । ब्रह्मण की सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की सराहना कर रहे हैं,वही देश में बहुत बड़ा वर्ग ब्राह्मण के गुणों को नजरंदाज करते हुए नकारतमक प्रचार प्रसार कर रहा है। समाज में हमेशा अच्छी बातें ही प्रसारित होनी चाहिए। भारत में जाति संबंधी हिंसा विभिन्न रूपों में होती है । ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार , "भेदभाव पूर्ण और क्रूर, अमानवीय और भारत में 165 मिलियन से अधिक लोगों के अपमानजनक व्यवहार को जाति के आधार पर उचित ठहराया गया है। जाति प्रकृति पर आधारित है और वंशानुगत है। यह एक विशेषता निर्धारित है। किसी विशेष जाति में जन्म के बावजूद, व्यक्ति द्वारा विश्वास किए जाने के बावजूद। जाति, वंश और व्यवसाय द्वारा परिभाषित रैंक वाले समूहों में कठोर सामाजिक स्तरीकरण की एक पारंपरिक प्रणाली को दर्शाती है। भारत में जाति विभाजन आवास, विवाह, रोजगार और सामान्य सामाजिक क्षेत्रों में हावी है। बातचीत-विभाजन, जो सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक बहिष्कार और शारीरिक हिंसा के अभ्यास और खतरे के माध्यम से प्रबलित होते हैं। आरक्षण की त्रुटिपूर्ण व्यवस्था से योग्य होने के बावजूद ब्राह्मण युवा सरकारी नौकरियों में पिछड़ रहे हैं। उनके आगे बढ़ने के अवसर कम हो रहे हैं क्योंकि उनकी बात उठाने वाला कोई नहीं है। किसी एक के बूते नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को समाज के सम्मान और उत्थान के लिए प्रतिबद्ध होना पड़ेगा तभी ब्राह्मण समाज का गौरव भविष्य में बरकरार रहेगा। मंसूबे पूरे किए। इन चारों में चुनी हुई दिखावटी सरकारें बनी पर चलती थी इन सब के सत्तासीनों के मन के मुताबिक जनमत दिखाया जाता। चुनाव भी होते पर सब काम आकाओं के मन मर्जी के मुताबिक चलता था। संविधान कानून और संधि समझौते में देश का व्यापक हित ना देखकर मालिकों के हित साधे गए। विदेशी संविधान का नकल कर अपने अपने देश में कानून बने । उसे अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार बदलते जाते रहे। चूंकि नई नई आजादी मिली थी इसलिए विरोध के स्वर भी दबा दिए जाते रहे। संविधान सभा द्वारा बनाया गया नकल वाले संविधान को एक खास व्यक्तिके नाम पट्टा कर दिया गया। बदलती रही। धर्म के आधार पर देश को तोड़ने और अपने हिस्से में लेने वालो ने मुस्लिम बहुल तीन भाग मुस्लिमों को मुकम्मल दे दिया और हिन्दू बहुल भारत को खिचड़ी बना कर सबको लूटने के लिए छोड़ दिया। सनातन धर्म और परम्परा पर प्रहार किया जाता रहा। वैदिक आर्य धर्म पर हर तरह से प्रहार होता रहा। वेद उपनिषद पुराण और धर्म की खिल्ली उड़ाई जाती रही। कांग्रेस कम्नयुस्त और विदेशी दबाव ने यहां के बहुसंख्यक के हितों से खिलवाड़ करते रहे। पक्षपात होता रहा। ब्रह्मण धर्म और जाति पर सर्वाधिक प्रहार होता रहा। उन्हें अगड़ा कह कर सारी सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दिया गया। समय समय पर उन्हें जहर और जलालत के आंच में सेंका जाता रहा। महात्मा गांधी की हत्या के बाद नाथूराम गोडसे जो एक ब्राह्मण था, उस पर ब्राह्मणों द्वारा निशाना बनाया गया । कुनबी - मराठा समुदाय द्वारा बलात्कार, लिंचिंग और यौन उत्पीड़न की कई घटनाएं दर्ज की गईं। 12-13 फरवरी 1992 की मध्यरात्रि में, भारत के माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (अब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)) ने बिहार, बिहार के गया जिले के पास बारा गाँव में भूमिहार जाति के 35 सदस्यों की बेरहमी से हत्या कर दी । MCC का सशस्त्र समूह बारा गाँव के 35 लोगों को पास की एक नहर के किनारे ले आया, उनके हाथ बाँध दिए और उनका गला काट दिया। 36 के रूप में कई लोगों पर अपराध का आरोप लगाया गया था, लेकिन केवल 13. के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। दूसरों को गिरफ्तार करें, जिन्होंने अपने सम्मन को खारिज कर दिया था। छोटन शुक्ला भूमिहार समुदाय के एक गिरोह के सरगना थे। उन्हें ओबीसी बनिया जाति से होने वाले एक सरकारी मंत्री बृज बिहारी प्रसाद के साथ उनके विवाद के लिए जाना जाता था । एक चुनाव अभियान से लौटने के दौरान प्रसाद की ओर से काम कर रहे पुरुषों द्वारा कथित तौर पर उनकी हत्या कर दी गई थी। प्रतिशोध में, प्रसाद को भी गोली मार दी गई थी। आनंद मोहन सिंह, जो उच्च जाति के राजपूतों के नेता थे , और उनके करीबी साथी मुन्ना शुक्ला, जो भूमिहार नेता थे और छोटन शुक्ला के भाई थे, पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें जेल में उम्रकैद की सजा दी गई। 1999 में, यादव और दुसाध के प्रभुत्व वाले माओवादी चरमपंथी केंद्र ने जहानाबाद के पास सेनारी गाँव में 34 भूमिहारों का हत्या किया था। साल 2015 में यूपी के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव की सरकार के दौरान गंगा में मूर्ति विसर्जन को लेकर संतों ने सड़क पर बड़ा आंदोलन किया था. इस आंदोलन में पुलिस ने संतों और बटुकों पर बर्बर लाठीचार्ज किया था. यूपी के वाराणसी में सात साल पुराने संतों के प्रतिकार यात्रा में हुए बवाल मामले में हाईकोर्ट से बड़ी खबर सामने आई है. जिस मामले में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती समेत सतुआ बाबा आश्रम के पीठाधीश्वर संतोष दास और पातालपुरी मठ के प्रमुख बालक दास समेत कई संतों को निचली अदालत से जमानत लेनी पड़ी। 2017 में पांच ब्राह्मणों की नृशंस हत्या : 2017 में रायबरेली के अप्टा गांव में रोहित शुक्ला सहित पांच ब्राह्मणों की नृशंस हत्या से ब्राह्मण समाज के लोगों में आक्रोश है। ब्राह्मण समाज के लोगों ने राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन डीएम को दिया। इसमें पीड़ित परिवार के लोगों को सरकारी नौकरी देने की मांग की। ग्वालियर एमपी में, ब्राह्मण समुदाय के एक युवा छात्र को बंदूक की नोक पर लूट लिया गया और क्षेत्र में दलितों का दबदबा मानने के लिए मजबूर किया गया था। इस घटना के बाद थाने में तहरीर भी दी गई थी। आवेदक का परिवार, जो कि हिन्दू धर्म का एक ब्राह्मण परिवार है, विगत 23 वर्षों से ग्वालियर की पूजा विहार कॉलोनी, आपा गंज, लश्कर में रहता है। उनके आस पास दलित समाज के लोग रहते हैं जिनमे उमरैया परिवार बाहुबली है, जो आस पास के सवर्ण परिवारों से ज़बरन हफ्ता वसूली करता है। न देने पर SC/ST के झूठे मुकदमे में जेल भिजवाने की धमकी देता है। राजस्थान के सवाई माधोपुर में एक मुस्लिम युवक द्वारा हिंदू लड़की के अपहरण का मामला सामने आया है। घटना के विरोध में सांसद किरोड़ी लाल मीणा पीड़िता के परिजनों के साथ थाने के बाहर धरने पर बैठ गए। मीणा सहित परिजनों की मांग है कि अपहृत लड़की को जल्द से जल्द मुस्लिम युवक के चंगुल से जारी किया जाए। परवेज ने बंदूक की नोंक पर किया ब्राह्मण समाज की बेटी का अपहरण': पीड़ित परिवार के साथ धरने पर बीजेपी सांसद ने कहा - गहलोत राज में बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं हैं (18 अक्टूबर, 2022) को मुस्लिम समाज परवेज ने बंदूक की नोक पर ब्राह्मण समाज का अपहरण कर लिया। परिजनों ने जब विरोध किया तो युवक ने लड़की की मां को झटका देकर गिरा दिया। साथ ही जान मारने की धमकी देकर लड़की की कनपटी पर बंदूक दी और उसे बाइक पर बिठाकर ले गए। बागपत में अधिवक्ता के परिवार पर मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा हमला करने और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने से नाराज ब्राह्मण समाज के लोगों ने तहसील में प्रदर्शन किया है। इसके अलावा गुस्साए ब्रह्मण समाज के लोगों ने थाना पुलिस पर मिलीभगत से कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है। फिलहाल ब्राह्मण समाज के लोग धरने पर बैठ गए हैं। कानपुर देहात में '13 फरवरी 2023 को मौत का बुलडोजर' चला. यहां अतिक्रमण हटाने के दौरान मां और बेटी की जलकर मौत हो गई. एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद मैथा तहसील क्षेत्र के मडौली गांव में सोमवार 13 फरवरी की सुबह बढ़ते अतिक्रमण हटाने के लिए गए थे. प्रमिला दीक्षित (45) और उनकी बेटी नेहा (20) ने कथित तौर पर पुलिस, जिला प्रशासन और राजस्व अधिकारियों की उपस्थिति में यह कदम उठाया, जो जिले के रूरा क्षेत्र के मडौली गांव में "ग्राम समाज" की भूमि से अतिक्रमण हटाने गए थे. एक पुलिस अधिकारी ने इसकी जानकारी दी. भारतीय संविधान न्यायपालिका राजनेता और प्रबुद्ध वर्ग ने इस कौम को शोषण कर्ता बताया है । उन पर आरोप लगाए जाते हैं कि इस कौम ने करोड़ो वर्षों से लोगों का खून चूसा है । अब ये जाति संवैधानिक अछूत है । ये भले कितने भी गरीब हो , पीने के लिए पानी तक न हो , लेकिन ये ब्रह्मांड के सबसे अमीर और खून चूसने वाले प्राणी माने जा रहे हैं। ये राजनैतिक अछूत हो गए हैं और ब्रह्मांड के कण कण का इन्होंने शोषण किया है । आज अगर ब्रह्मण से इतर किसी दूसरी जाति की बात होती तो अब तक पूरा देश उबल पड़ता और दलित दलित करके सूर्य को ठंडा कर चुका होता । ब्रह्मण को धिक्कार है जो लोकशाही भारतवर्ष में जन्में जहाँ इनकी औकात सबसे बदतर है । धिक्कार है इस देश के व्यवस्थकारों को जो धीरे धीरे सारी व्यवस्था को खोखला करते हुए 21वीं सदी तक पहुंच गए हैं। अब कलियुग में आना दलित बन कर आना ज्यादा मुफीद है। जो पाप ब्रह्मण के पूर्वजों ने भी नहीं किया उसका खामियाजा उनकी औलादों को भुगतना ही पड़ रहा है। क्योंकि पूरा कलियुग अब ब्रह्म जनों का नही है गैर ब्रह्म जनों का है । अब तो ब्रह्म जन जल्दी जल्दी इसी जन्म में भज गोविंदं करके अपना उद्धार कर लो तो बेहतर होगा ताकि इस निकृष्ट दुनियाँ में उन्हें फिर न आना पड़े । लेकिन जाने- अनजाने ही समाज को जातीय संघर्ष में धकेलने का नतीजा सभी के लिए विघटनकारी होगा और भारत कभी भी विश्व गुरु नहीं बन पाएगा।
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रिचर्ड वेड फर्ले कैलिफ़ोर्निया के सनीवेल में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम्स लैब्स (ईएसएल) में सात सहकर्मियों की 1 9 88 की हत्याओं के लिए जिम्मेदार एक बड़े हत्यारे हैं। हत्याओं के कारण क्या एक सह-कार्यकर्ता की निरंतर चल रही थी। रिचर्ड वेड फेर्ले का जन्म 25 जुलाई, 1 9 48 को टेक्सास में लेकलैंड वायुसेना बेस में हुआ था। उनके पिता वायुसेना में एक विमान मैकेनिक थे, और उनकी मां एक गृहस्थ थीं। उनके छह बच्चे थे, जिनमें से रिचर्ड सबसे बड़ा था। परिवार अक्सर पेटलुमा, कैलिफोर्निया में बसने से पहले चले गए, जब फर्ली आठ साल की थीं। फर्ले की मां के मुताबिक, घर में बहुत प्यार था, लेकिन परिवार ने थोड़ा सा स्नेह दिखाया। अपने बचपन और किशोरों के वर्षों के दौरान, फर्ली एक शांत, अच्छी तरह से व्यवहार करने वाला लड़का था जिसने अपने माता-पिता से थोड़ा ध्यान देने की आवश्यकता थी। हाईस्कूल में, उन्होंने गणित और रसायन शास्त्र में रूचि दिखाई और अपनी पढ़ाई गंभीरता से ली। उन्होंने धूम्रपान नहीं किया, पीया, या नशीली दवाओं का उपयोग नहीं किया, और टेबल टेनिस और शतरंज खेलने, फोटोग्राफी में डबिंग और बेकिंग के साथ खुद का मनोरंजन किया। उन्होंने 520 हाई स्कूल के छात्रों में से 61 वें स्नातक की उपाधि प्राप्त की। मित्रों और पड़ोसियों के मुताबिक, कभी-कभी अपने भाइयों के साथ घबराहट के अलावा, वह एक अहिंसक, अच्छी तरह से मज़ेदार और सहायक युवा व्यक्ति थे। फर्ले ने 1 9 66 में हाईस्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और सांता रोजा कम्युनिटी कॉलेज में भाग लिया, लेकिन एक साल बाद बाहर निकल गया और अमेरिकी नौसेना में शामिल हो गया जहां वह दस साल तक रहा। फर्ले ने नौसेना सबमरीन स्कूल में छः कक्षा में अपनी कक्षा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की लेकिन स्वेच्छा से वापस ले लिया। बुनियादी प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, उन्हें एक क्रिप्टोलॉजिक तकनीशियन बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया - एक व्यक्ति जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाए रखता है। वह जानकारी जिसे वह उजागर किया गया था उसे अत्यधिक वर्गीकृत किया गया था। वह शीर्ष गुप्त सुरक्षा मंजूरी के लिए योग्यता प्राप्त की। सुरक्षा मंजूरी के इस स्तर के लिए योग्यता व्यक्तियों की जांच हर पांच साल में दोहराई गई थी। 1 9 77 में अपने निर्वहन के बाद, फर्ले ने सैन जोस में एक घर खरीदा और कैलिफ़ोर्निया के सनीवेल में एक रक्षा ठेकेदार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम्स लेबोरेटरी (ईएसएल) में एक सॉफ्टवेयर तकनीशियन के रूप में काम करना शुरू किया। ईएसएल रणनीतिक सिग्नल प्रोसेसिंग सिस्टम के विकास में शामिल था और अमेरिकी सेना को रणनीतिक पुनर्जागरण प्रणाली का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता था। ईएसएल में फर्ले में शामिल अधिकांश काम को "राष्ट्रीय रक्षा के लिए महत्वपूर्ण" और अत्यधिक संवेदनशील बताया गया था। उन उपकरणों पर उनके काम को शामिल करने में सेना ने दुश्मन बलों के स्थान और ताकत को निर्धारित करने में सक्षम बनाया। 1 9 84 तक, फर्ले को इस काम के लिए चार ईएसएल प्रदर्शन मूल्यांकन प्राप्त हुए। वह स्कोर 99 प्रतिशत, 96 प्रतिशत, 96. 5 प्रतिशत, और 98 प्रतिशत थे। फर्ले अपने कुछ सहकर्मियों के साथ मित्र थे, लेकिन कुछ ने उन्हें अहंकारी, अहंकारी और उबाऊ पाया। उन्हें अपने बंदूक संग्रह और उनकी अच्छी निशानेबाज़ी के बारे में उत्साहित होना पसंद आया। लेकिन फ़र्ले के साथ मिलकर काम करने वाले अन्य लोगों ने उन्हें अपने काम और आम तौर पर एक अच्छा लड़का के बारे में ईमानदार होने के लिए पाया। हालांकि, यह सब बदल गया, 1 9 84 से शुरू हुआ। 1 9 84 के वसंत में, फर्ले को ईएसएल कर्मचारी लौरा ब्लैक से पेश किया गया था। वह 22 साल की थी, एथलेटिक, सुंदर, स्मार्ट और एक साल से कम समय के लिए एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के रूप में काम कर रही थी। फर्ले के लिए, यह पहली नजर में प्यार था। ब्लैक के लिए, यह चार साल के लंबे दुःस्वप्न की शुरुआत थी। अगले चार सालों तक, लौरा ब्लैक के लिए फर्ले का आकर्षण एक निरंतर जुनून में बदल गया। पहले ब्लैक विनम्रतापूर्वक अपने निमंत्रण को अस्वीकार कर देगा, लेकिन जब वह उसे समझने में असमर्थ था या उसे स्वीकार नहीं कर पाया, तो उसने उससे बेहतर तरीके से संवाद करना बंद कर दिया। फर्ले ने उसे एक सप्ताह में औसतन पत्र लिखना शुरू किया। उसने अपनी मेज पर पेस्ट्री छोड़ी। उसने उसे दबाने और बार-बार अपने घर से घुमाया। वह उसी दिन एक एरोबिक्स कक्षा में शामिल हो गया जिसमें वह शामिल हो गई। उनकी कॉल इतनी परेशान हो गई कि लौरा एक असूचीबद्ध संख्या में बदल गया। अपने डंठल की वजह से, लॉरा जुलाई 1 9 85 और फरवरी 1 9 88 के बीच तीन बार चले गए, लेकिन फर्ले ने हर बार अपना नया पता पाया और काम पर अपने डेस्क से इसे चुरा लेने के बाद अपने घरों में से एक को चाबी प्राप्त की। 1 9 84 और फरवरी 1 9 88 के पतन के बीच, उन्हें उनसे लगभग 150 से 200 पत्र प्राप्त हुए, जिनमें उन्होंने दो पत्रों को वर्जीनिया में अपने माता-पिता के घर भेज दिया, जहां वह दिसंबर 1 9 84 में जा रही थीं। उन्होंने उन्हें अपने माता-पिता के पते के साथ प्रदान नहीं किया था। ब्लैक के कुछ सहकर्मियों ने ब्लैक के उत्पीड़न के बारे में फर्ले से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने या तो अपमानजनक रूप से या हिंसक कृत्यों को करने की धमकी देकर प्रतिक्रिया व्यक्त की। अक्टूबर 1 9 85 में, ब्लैक मानव संसाधन विभाग की सहायता के लिए बदल गया। मानव संसाधनों के साथ पहली बैठक के दौरान, फर्ले अपने घर के बाद और उसके काम कंप्यूटर का उपयोग करके ब्लैक को पत्र और उपहार भेजना बंद कर दिया, लेकिन दिसंबर 1 9 85 में, वह अपनी पुरानी आदतों पर वापस आ गया। मानव संसाधन दिसंबर 1 9 85 में और फिर जनवरी 1 9 86 में फिर से कदम उठाए, हर बार फर्ले को एक लिखित चेतावनी जारी करते हुए। जनवरी 1 9 86 की बैठक के बाद, फर्ले ने अपने अपार्टमेंट के बाहर पार्किंग स्थल पर ब्लैक का सामना किया। वार्तालाप के दौरान, ब्लैक ने कहा कि फर्ले ने बंदूकें का उल्लेख किया, उसे बताया कि वह अब उससे पूछने जा रहा था कि क्या करना है, बल्कि उसे बताएं कि क्या करना है। उस सप्ताह के अंत में उन्हें उससे एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया कि वह उसे मार नहीं पाएंगे, लेकिन उनके पास "विकल्पों की पूरी श्रृंखला थी, प्रत्येक खराब और बदतर हो रहा था। " उसने उसे चेतावनी दी कि, "मैं अपनी बंदूकें करता हूं और मैं उनके साथ अच्छा हूं," और उससे पूछा कि उसे "धक्का" न दें। उन्होंने आगे कहा कि यदि उनमें से कोई भी उपज नहीं करता है, "बहुत जल्द मैं दबाव में फंस जाता हूं और अमोक को अपने रास्ते में सबकुछ नष्ट कर देता हूं जब तक कि पुलिस मुझे पकड़ न दे और मुझे मार डाले। " फरवरी 1 9 86 के मध्य में, फर्ले ने मानव संसाधन प्रबंधकों में से एक का सामना किया और उन्हें बताया कि ईएसएल को अन्य व्यक्तियों के साथ अपने रिश्तों को नियंत्रित करने का कोई अधिकार नहीं था। मैनेजर ने फर्ले को चेतावनी दी कि यौन उत्पीड़न अवैध था और अगर वह अकेले काले नहीं छोड़ा, तो उसका आचरण उसकी समाप्ति का कारण बन जाएगा। फर्ले ने उसे बताया कि अगर उसे ईएसएल से समाप्त कर दिया गया था, तो उसके पास रहने के लिए और कुछ नहीं होगा, कि उसके पास बंदूकें थीं और उन्हें इस्तेमाल करने से डर नहीं था, और वह "लोगों को उनके साथ ले जाएगा। " मैनेजर ने उससे सीधे पूछा कि क्या वह कह रहा था कि वह उसे मार देगा , जिस पर फर्ले ने हाँ का जवाब दिया था, लेकिन वह दूसरों को भी ले जाएगा। फर्ले ने ब्लैक डंठल जारी रखा, और मई 1 9 86 में, ईएसएल के साथ नौ साल बाद, उसे निकाल दिया गया। निकाल दिया जा रहा है Farley के जुनून को ईंधन भरने लग रहा था। अगले 18 महीनों के लिए, उन्होंने ब्लैक डंठल जारी रखा, और उनके साथ उनके संचार अधिक आक्रामक और धमकी बन गए। उन्होंने ईएसएल पार्किंग स्थल के आसपास छिपकर समय बिताया। 1 9 86 की गर्मियों में, फर्ले ने मेई चांग नाम की एक महिला से डेटिंग शुरू की, लेकिन उन्होंने ब्लैक को परेशान करना जारी रखा। उन्हें वित्तीय समस्याएं भी थीं। उसने अपना घर, उसकी कार और उसके कंप्यूटर को खो दिया और उसने पिछले करों में $ 20,000 से अधिक का भुगतान किया। इनमें से कोई भी ब्लैक के उत्पीड़न को रोक नहीं पाया, और जुलाई 1 9 87 में, उसने उसे लिखा, उसे चेतावनी देने के लिए चेतावनी दी। उन्होंने लिखा, "यह वास्तव में आपके लिए नहीं हो सकता है कि अगर मैं फैसला करता हूं कि मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है तो मैं आपको परेशान करने के लिए कितना दूर हूं। " अगले कई महीनों में इसी लाइन के साथ पत्र जारी रहे। नवंबर 1 9 87 में फर्ले ने लिखा, "आपने मुझे नौकरी की लागत, इक्विटी करों में चालीस हजार डॉलर का भुगतान नहीं किया है, और एक फौजदारी है। फिर भी मैं तुम्हें अभी भी पसंद करता हूं। आप यह जानना क्यों चाहते हैं कि मैं कितना दूर जाऊंगा? " उन्होंने पत्र को समाप्त कर दिया, "मुझे बिल्कुल चारों ओर धक्का नहीं दिया जाएगा, और मैं अच्छा होने से थक गया हूं। " एक और पत्र में, उसने उसे बताया कि वह उसे मारना नहीं चाहता था क्योंकि वह चाहता था कि उसे अपने रोमांटिक संकेतों का जवाब न देने के परिणामों पर खेद पड़े। जनवरी में, लौरा को अपनी कार पर एक नोट मिला, जिसमें उसकी अपार्टमेंट कुंजी संलग्न की एक प्रति थी। डरते हुए और उसकी भेद्यता से पूरी तरह से अवगत होने पर उसने एक वकील की मदद लेने का फैसला किया। 8 फरवरी, 1 9 88 को, उन्हें रिचर्ड फर्ले के खिलाफ एक अस्थायी संयम आदेश दिया गया था, जिसमें शामिल था कि वह उससे 300 गज दूर रहें और किसी भी तरह से उससे संपर्क न करें। फर्ले को संयम के आदेश के एक दिन बाद उन्होंने अपने बदला लेने की योजना शुरू कर दी। उन्होंने बंदूकें और गोला बारूद में $ 2,000 से अधिक खरीदे। उन्होंने अपने वकील से संपर्क किया ताकि लौरा अपनी इच्छानुसार हटा दिया जा सके। उन्होंने लॉरा के वकील को यह भी एक पैकेज भेजा कि उनका प्रमाण था कि वह और लौरा का गुप्त संबंध था। रोकथाम के आदेश की अदालत की तारीख 17 फरवरी, 1 9 88 थी। 16 फरवरी को, फर्ले एक किराए पर मोटर घर में ईएसएल चली गई। वह अपने कंधे, काले चमड़े के दस्ताने, और उसके सिर और कान के आस-पास के चारों ओर एक स्कार्फ पर फंसे हुए एक भारित बैंडोलर के साथ सैन्य थकावट में पहना था। मोटर घर छोड़ने से पहले, उसने 12-गेज बेनेली दंगा अर्द्ध स्वचालित शॉटगन, एक रग्जर एम -77। 22-250 राइफल के साथ एक स्कोप के साथ खुद को सशस्त्र बनाया, एक मॉसबर्ग 12-गेज पंप एक्शन शॉटगन, एक सेंटीनेल। 22 डब्लूएमआर रिवाल्वर , एक स्मिथ एंड वेसन . 357 मैग्नम रिवाल्वर, ब्राउनिंग . 380 एसीपी पिस्तौल और स्मिथ एंड वेसन 9 मिमी पिस्तौल। उन्होंने अपने बेल्ट में एक चाकू भी लगाया, एक धूम्रपान बम और एक गैसोलीन कंटेनर पकड़ा, और फिर ईएसएल के प्रवेश द्वार के लिए नेतृत्व किया। जैसे ही फर्ले ने ईएसएल पार्किंग स्थल में अपना रास्ता बनाया, उन्होंने गोली मार दी और अपने पहले शिकार लैरी केन को गोली मार दी और कवर के लिए डक गए अन्य लोगों की शूटिंग जारी रखी। उन्होंने सुरक्षा ग्लास के माध्यम से विस्फोट करके इमारत में प्रवेश किया और श्रमिकों और उपकरणों पर शूटिंग पर रखा। उन्होंने लौरा ब्लैक के कार्यालय में अपना रास्ता बना दिया। उसने अपने कार्यालय में दरवाजा बंद करके खुद को बचाने का प्रयास किया, लेकिन उसने इसके माध्यम से गोली मार दी। फिर उसने सीधे ब्लैक पर गोली मार दी। एक गोली मिस गई और दूसरे ने उसके कंधे को तोड़ दिया, और वह बेहोश हो गई। उसने उसे छोड़ दिया और इमारत के माध्यम से चले गए, कमरे में कमरे में जा रहे थे, उन लोगों पर शूटिंग कर दी जिन्हें उन्होंने डेस्क के नीचे छुपाया या ऑफिस दरवाजे के पीछे बाधित किया। जब SWAT टीम पहुंची, तो फर्ली इमारत के अंदर कदम पर रहने से अपने स्निपर्स से बचने में कामयाब रहे। एक बंधक वार्ताकार फर्ले के साथ संपर्क करने में सक्षम था, और दोनों ने पांच घंटे की घेराबंदी के दौरान बातचीत की और बंद कर दिया। फर्ले ने वार्ताकार से कहा कि वह उपकरण शूट करने के लिए ईएसएल गए थे और उनके मन में विशिष्ट लोग थे। इसने बाद में फर्ले के वकील का खंडन किया जिसने रक्षा का उपयोग किया कि फर्ले वहां लौरा ब्लैक के सामने खुद को मारने के लिए वहां गया था, लोगों पर गोली मार नहीं। वार्ताकार के साथ अपनी बातचीत के दौरान, फर्ले ने सात लोगों की हत्या के लिए कभी भी कोई पछतावा व्यक्त नहीं किया और स्वीकार किया कि उन्हें लौरा ब्लैक को छोड़कर पीड़ितों में से कोई भी नहीं जानता था। भूख अंततः तबाही खत्म हो गया है। फर्ली भूख लगी थी और एक सैंडविच के लिए कहा था। उन्होंने सैंडविच के बदले में आत्मसमर्पण किया। लौरा ब्लैक समेत सात लोग मारे गए और चार घायल हो गए। पीड़ित पीड़ितोंः घायल लौरा ब्लैक, ग्रेगरी स्कॉट, रिचर्ड टाउन्सले और पैटी मार्कोट थे। फर्ले पर सात मौतों की पूंजी हत्या, एक घातक हथियार, दूसरी डिग्री चोरी, और बर्बरता के साथ हमला किया गया था। परीक्षण के दौरान, यह स्पष्ट हो गया कि फर्ले अभी भी ब्लैक के साथ अपने गैर-रिश्ते के बारे में इनकार कर रहा था। उन्हें अपने अपराध की गहराई की समझ में कमी महसूस हुई। उन्होंने एक और कैदी को बताया, "मुझे लगता है कि यह मेरा पहला अपराध है क्योंकि वे उदार होना चाहिए। " उन्होंने कहा कि यदि उन्होंने इसे फिर से किया, तो उन्हें उस पर "पुस्तक फेंकना" चाहिए। एक जूरी ने उसे सभी आरोपों के दोषी पाया, और 17 जनवरी 1 99 2 को, फर्ले को मौत की सजा सुनाई गई । 2 जुलाई, 200 9 को, कैलिफ़ोर्निया सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मृत्युदंड अपील से इनकार कर दिया। 2013 तक, सैन क्वींटिन जेल में फर्ले की मौत की पंक्ति पर है।
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President's Rauta 3n U.P. (Res) [Shri Dinesh Singh) their constituencies and start working for that. Therefore, while supporting the Government in its imposition of the President's rule, I would request the Home Minister to clarify the position as much as he can SHRI RANABAHADUR SINGH (Sindhi) There have been no rains in Rihand Dam Catchment area, so it is not full even today श्री शिव कुमार शास्त्री (अलीगढ़) उपाध्यक्ष जी, उत्तर प्रदेश मे राष्ट्रपति शासन की स्थापना के लिये जो युक्तिया बी गयी है उन मे परस्पर बडी प्रसगतिया है । केवल एक बात को छोड़ कर कि प्रदेश मे सूखे का प्रकोप था इसलिये शासन चलाने मे कठिभाई थी, यह बात तो कुछ समझ मे प्राती है । इस के अतिरिक्त जो तीन युक्तिया दी गयी है वह शासक दल की अयोग्यता के अतिरिक्त और किसी चीज को प्रमाणित नही करती । यदि पी०ए०सी में प्रसतोष हुआ तो क्यो ? और उस का पता न प्रदेश को चल पाया और न केन्द्र को । जब इतना बडा विस्फोट हो गया तब यह बात कही गयी । मैं यह समझता हू कि जब काग्रेस के पास सब से बड़ा प्रमाण-पत्र यह था कि बार बार वह कहते थे कि यही एव दल है जो स्थायी सरकार दे सकता है, गवर्नमेट दे सकता है, हम से यह देखा कि उन का बहुमत होते भी जिस तरह से पतझड मे पत्ते झर झर कर गिरते हैं उसी तरह से यह बहुमत मे होते हुए भी सारी की सारी सरकारी का पतन हुआ, और उस मे उत्तर प्रदेश का भी हुआ । इसलिये अपनी भयोग्यता स्वीकार कर लेनी चाहिये कि हम शासन नही चला सकते थे इसलिये बहुमत होते हुए भी हम ने उस को समाप्त किया और राष्ट्रपति शासन की स्थापना की । President's Rule 356 in U.P, (Res.) इस के साथ साथ जो अगली चीजें है वह भी एक विशेष विचारणीय हैं। राष्ट्रपति शासन से पहले ही कुछ इस प्रकार की घोषणाये वहां की लोकप्रिय सरकार ने की थी, जैसा कि श्री माननीय वाजपेयी जी ने कहा कि किसी भाषा को सरक्षण दिया जाय, उस को पढाने की व्यवस्था की जाय, इस मे किसी को कोई मतभेद नही हो सकता। लेकिन पिछले 25 वर्ष से जो आप की नीति चली ग्रा रही थी उस मे एक साथ आप ने इस प्रकार का सशोधन किया जिस से दूसरे की दृष्टि उस भोर जाती है और वह प्रापत्तिजनक प्रतीत होता है कि वहा के स्कूलो मे चार हजार उर्दू के अध्यापक एक साथ नियुक्त कर दिये जाये । इस साथ साथ वहा पढने वा या नही है इस बात का कोई ध्यान न रखा जाय । और युक्ति यह दी गयी कि जब तक और छात न हो तब तक यह उर्दू के अध्यापक और विषयो ने पढ़ाये । तो क्या और विपयो के अध्यापक तब तक नहीं थ जिन के लिये यह प्रतीक्षा की जा रही थी कि यह प्रायेगे और तभी पढाना प्रारम्भ होगा । ये इस प्रकार की चीजे हैं जो इस ओर ध्यान करानी है कि वास्तव मे यह लक्ष्य किसी भाषा मरक्षण का नही है अपितु राजनीतिक दृष्टि स लाभ प्राप्त करने का है। इस के साथ उत्तर प्रदेश मे जहा श्रावश्यक गणना की दृष्टि से इस प्रकार के लोग बसते थे कि जिस में उर्दू में प्रार्थना पत्र देने की कचहरियो मे छूट होनी चाहिये उसलिये 9 जिनो म पहले से ये सुविधाये प्राप्त थी । नेकिन यह सारे के सारे प्रार्थना पत्र फारसी लिपि में उत्तर प्रदेश मे दिये जाये, इस प्रकार की जो बात कही जा रही है वह इस बात को सोचने के लिये विवश करती है कि यह सब राजनीतिक दृष्टिकाण से किया जा रहा है, किसी भाषा के संरक्षण की दृष्टि से नहीं किया जा रहा है । इसके साथ साथ एक तरफ यह कहा जात है कि इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं कि President's Rule SRAVANA 17, in U.P. (Res.) जहां बिल्डिंग्ज मौजूद है वहां पर पाठशालाओं में प्रइमरी अध्यापक पढ़ाने के लिए नहीं हैं और जब यह मांग की जाती है शासन से कि वहा पर अध्यापक होने चाहिये तो पैसे के प्रभाव की बात कह कर इसको टाल दिया जाता है और दूसरी तरफ चार हजार अध्यापक रख दिए जाएं और भारीभरकम बोझ इस प्रकार का प्रदेश के ऊपर लाद दिया जाए यह बीज समझ में नहीं आती है । इस वास्ते राष्ट्रपति शासन के लागू होने के साथ साथ जो इस प्रकार की चीजे चल रही हैं वे बहुत ही प्रापत्तिजनक हैं और इन की और केन्द्रीय सरकार का ध्यान जाना चाहिये और इसके कारण जो असतोष उभर रहा है, उसको ध्यान में रखना चाहिये । या तो वहा पर लोकप्रिय शासन की स्थापना की जाए और यदि ऐसा नही होता है तो मैं चाहूंगा कि विधान सभा भग करके नए चुनाव कराए जाए । श्री रुद्र प्रताप सिंह (बाराबकी) उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की उदघोषणा के सम्बन्ध में हमारे गृह मंत्री श्री उमा शकर - दीक्षित जी ने जो अनुमोदन का सकल्प प्रस्तत किया है उसका समर्थन करन के लिए मै खडा हुआ हूँ। मुझ से पूर्व विरोधी दलो के वक्ताओ ने यहा पर जो विचार व्यक्त किए है वे न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण है बल्कि तथ्यो मे परे है, निराधार है और उनका कोई औचित्य नहीं है । वास्तविकता यह है कि लोक सभा के जब मध्यावधि चुनाव हुए थे और उन मे जनता ने हमे जो आदेश दिये थे देश के अन्दर सामाजिक और आर्थिक विषमताथो को समाप्त करने के, देश से गरीबी, बेकारी, भुखमरी, बेरोजगारी भौर महगाई को दूर करने के, देश में फैले हुए असन्तुलन को दूर करने के उत्तर प्रदेश मे हमारे दल की सरकार उन तमाम वादों तथा जनता द्वारा दिए गए मादेशों का पालन करने के लिए कृतसंकल्प थी और बढ़तापूर्वक उन President's Rule in U.P. (Res.) कार्यों में रत थी । इस बात के कुछ उदाहरण मैं इस सदन के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं । विधान सभा में हमारी सरकार ने वहा पर भूमि सुधारो को कार्यान्वित करने की दिशा में सीलिग का विधेयक प्रस्तुत किया था और उसको स्वीकृत कराया था। उसके द्वारा इस बात की व्यवस्था की गई थी कि अधिक से अधिक भूमि प्राप्त करके भूमिहीनों को, हरिजनों को और पिछड़े वर्गों को बी जाए । इसके साथ साथ इस बात की भी व्यवस्था की गई कि अखिल भारतीय काग्रेस कमेटी के निर्णय के अनुसार गल्ले के व्यापार का अधिग्रहण किया जाए और उत्तर प्रदेश की सरकार मे इस कार्यक्रम को तेजी के साथ कार्यान्वित किया और इस बात की व्यवस्था की कि जिस तरह से हो सके जनता के सहयोग के द्वारा सुचारू रूप से गल्ले की वसूली की जाए ताकि जो हमारे भूखे लोग हैं उनको हम भोजन दे सके । हमारी सरकार ने उत्तर प्रदेश में एक बहुत बडी व्यवस्था यह की कि उन्होंने एक कैबिनेट डिसिशन लिया जिस के अनुसार इस बात की व्यवस्था की गई थी कि उच्चतर माध्यमिक शिक्षा तक की शिक्षा का प्रान्तीयकरण किया जाएगा जिससे शिक्षा दलगत राजनीति से ऊपर उठ सके और विद्यार्थियों का सतुलित विकास हो सके, उनके व्यक्तित्त का विकास हो और शिक्षा का वातावरण शुद्ध हो सके तथा स्तर उन्नत हो सके । इन सब कामों को वह कर रही थी कि एक पी०ए०सी० की घटना घटी और न चाहते हुए भी सशस्त्र सेना का उम में सहयोग लेना पड़ा। वह गम्भीर स्थिति थी । उस पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता भी थी। यह सोचने की प्रावश्यकता थी कि यह जो कार्य हुआ है इसके पीछे तोड़फोड मे विश्वास करने वाले राजनीतिक दलों का हाथ है 359 President's Rule in U.P. (Res) [श्री या प्रताप सिंह] या इसके पीछे अनुशासनहीनता फैलाने वाले दलो का हाथ है या इसके पीछे साम्प्रदायिकता फैलाने वाले दलो का हाथ है या इसके पीछे लोकतन के विरोधी वडे अफसरो का, नौकर शाही का हाथ है या पूजिपतियो का हाथ है या इसके पीछे कोई विदेशी षडयन है। उत्तर प्रदेश जो कि एक सीमा प्रदेश है, जोकि सुरक्षा की बष्टि से महत्वपूर्ण प्रदेश है वहा हमें इस बात के लिए विवश होना पडा कि पी० ए० सी० की जो अभूतपूर्व घटना उत्तर प्रदेश ने घटी है देश की स्वतंत्रता के पश्चात यह एक अपने प्रकार की ऐसी घटना थी जिसकी ईश्वर न करे दुवारा भारत की भूमि पर कभी बोहराया जाए । इस प्रकार की घटना घटने के बाद भी हमारे विरोधी दलों के नेता पूछते हैं कि कौन सी बात थी कि माप विवश हो गए राष्ट्रपति शामन लागू करने के लिए। में अपने विरोधी दलो के नेताओ से यह पूछना चाहता हूँ कि भौर कौन इससे बडी घटना वे चाहते थे कि घंटे औौर राष्ट्रपति शासन लागू हो और कौन सी बड़ी घटना घटते हुए वे सुनना चाहते थे, पी० ए० सी० जो हमारा एक धग है, जिस के द्वारा हम प्रशासन को चलना चाहते हैं वह अग अगर हमारा साथ नहीं देता है और मनुशासनहीनता करता है तो इससे बड़ा कारण राष्ट्रपति शासन लागू करने के अलावा और कौन सा हो सकता था ? हर कोई जानता है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा में हमारा 421 मे से 271 का बहुतमत था। इतना भारी बहुमत होते हुए भी परिस्थितियों के कारणवश हमे मजबूर होना पड़ा और हमारे दल की सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा। हम समझते थे और हम चाहते थे और माता भी करते थे कि हमारे विरोधी दलों के नेता इस के लिए हमारी प्रशसा कर गे, हमारे दल की सराहना करेंगे कि हमारे दल ने इस रजत जयन्ती वर्ष में इस बात को चौहरा दिया है, सिद्ध कर दिया President's Rule H.P. (Res) है कि इस कुर्सियों से चिपके रहना नहीं चाहते, हम लोकतंत्र में विश्वास करते हैं, हम जनता की मदालत में जाना पसन्द करेगे बजाय इसके कि कुर्सियों से चिपके रहे । हमारे बनर्जी साहब ने औौर वाजपेयी जी ने विधान सभा के चुनाबो की मांग की है । मैं उसका स्वागत करता हूं । यथासमय फरवरी मे जब चुनाव होने चाहिये, हम भाशा करते हैं कि चुनाव अवश्य होगे। हम विरोधी दलो के मिथ्या प्रचार से भयभीत होने वाले नहीं है। हम भगले चुनाव में यह सिद्ध कर देगे कि लोक सभा के 1971 के मध्यावधि चुनाव में जनता ने जो फैसला किया था और 1972 के विधान सभाओ के चुनाव मे देश भर मे जो परिणाम हमने दिखाए थे, फरवरी 1974 में उत्तर प्रदेश की विधान सभा के लिए जो चुनाव होगे उन मे उसमे भी अधिक बहुमत ले कर हम विधान सभा मे भाएगे और सरकार बनाएगे । आप भय क्यो दिखाते है । हम चुनाव का स्वागत करते हैं, हमारे कनकर्ता स्वागत करते हैं सारे विधायक स्वागत हैं, जो प्रत्याशी होगे वे भी स्वागत करते हैं । यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति शासन मे विधान सभा को निलम्बित क्यो किया गया है, उसको भग क्यो नही कर दिया गया ? बडी अजीब बात है। अगर हमने भग कर दिया होता तो हमारे अटल जी कहते कि लोकतन की हत्या हो गई और जब हम निलम्बित करते हैं तो उन्हें सन्देह होता है और कहते हैं कि भंग क्यो नहीं कर दिया गया । हमारे विरोधी दलो की तो यह स्थिति है मैं यह साफ कह दू जो है फर्क मुझ से तुझ मे तेरा वर्ष वर्षे सनहा मेरा गम गमे बनाना । इन शब्दों के साथ मैं अपना भाषण समाप्त करता हूं और जो संकल्प रखा गया है इसका समर्पत करता हू 4 President's Rule SRAVANA 17, 1895 ( SAKA) President's Rule in .P. (Res.) in U.P. (Res.) श्री चन्द्रिका प्रसाद (बलिया) : उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। इसलिए हमारे विरोधी भाइयों को कोई प्राधार चाहिये । इस वास्ते उनको हमारी पार्टी में और हमारी सरकार में खराबियां ही खराबिया दिखाई पड़ती है। वे हमारे प्रधान मंत्री और हमारे नेताओं की जो कीमत है उसको गिराना चाहते हैं। प्रधान मनी का यह प्रदेश है। प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की वेव में हमारे सब विरोधी बह गए थे। वे डरते है कि कही फिर ऐसा न हो जाए। इस वास्ते वे अभी से तैयारी कर रहे है। वे समझते है कि अगर उनके इमेज को नहीं गिरायेंगे तो उनका फिर वही हाल होगा जो पहले हुआ था मापने देख ही लिया है कि किस तरह से हाउस में चार चार घंटे काम का हरजा किया जा रहा है। यह एक प्रकार से डैमोक्रेस के साथ बलात्कार करना है । ऐसा करके मदन की जो मर्यादा है उसको गिराया जा रहा है। मैं कहूंगा कि जनता इनकी फिर वही हालत करेगी जा पहले 1971 में की थी । 1971 के चुनाव में जनता ने हमें मैंडेट दिया। जिन सूबों में इनकी मरकारे थी वहां भी ये हार गए । बंगाल मे श्री ज्योति बसु की सरकार बनी । बंगाल में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलो के लोग तीन पुश्तो से रहते आ रहे हैं। हम जानते हैं कि वहां सिनेमा का एक एक लाइसेम देने के लिए पचास पचास हजार रुपये लिये गये थे और मामूली मामूली कामों को करने के लिए दम दस हजार रुपये खुले श्राम लिये जाते थे । श्री ज्योतिर्मय बसु हमारे ऊपर चार्जिज लगाते हैं। मैं चाहता हूं कि पहले वे अपने दामन को देखें, उसको पाक साफ करें। भोजपुरी में एक कहावत है, सूप हंसे तो हंसं छलनी भी हंसे जिस में 72 छेद होते हैं। अपर मुझे मौका मिले, तो मैं हर बात का सबूत दे सकता हूं। यह कहना संतसर गलत है कि हमारे नेता पार्टी के लिए चंदा भांगते हैं । हमारी पार्टी के 32 करोड़ सदस्य हैं। अगर वे एक एक रुपया भी दें, तो हम 32 करोड़ रुपये इकट्टा कर सकते हैं। मेरे जंसा व्यक्ति भी 1967 में केवल पांच छः हजार रुपये खर्च कर के जीता, जब कि उस समय कांग्रेस मेरे निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत करीब करीब सभी सीटें हार गई थी। 1971 में मैं केवल 16 से 20 हजार रुपये खर्च कर के जीत कर आया हूं। हम को रुपये की क्या जरूरत है। देश की जनता ने हमारा साथ दिया है और हम को अपनी पार्टी के वर्कर्ज पर पूरा भरोसा है। इस लिए हम पर इस प्रकार का चार्ज लगाना अन्यायपूर्ण है और पब्लिक लाइफ़ में इस तरह कीचड़ उछालना ग़लत बात है । श्री वाजपेयी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागूक रना ग़लत है लेकिन खुद श्री बनर्जी ने कहा है कि सोशालिस्ट पार्टी और अन्य विरोधी पार्टियों के लोगों ने पी० ए०सी० वालों और विद्यार्थियों को भड़काया हमारे प्रदेश मे सूखा पड़ा हुआ था। पच्चीस बरस के इतिहास में यह पहला मौका था, जब कि पी० एस० सी० और पुलिस का आपस मे संघर्ष हुआ, जिन के द्वारा ला एड भार्डर मेनटेन किया जाता है, और प्रशासन ठप्प हो गया था। उस समय हमारे मुख्य मन्त्री और उनके साथियों ने जनता के कष्ट देखकर खुशी से त्याग किया और यह साबित किया कि हम कुर्सी से चिपके नहीं रहना चाहते हैं। इस प्रकार उन्होंने वह आदर्श उपस्थित किया, जो हमारे अन्य नेता बराबर उपस्थित करते रहे हैं। . श्री बाजपेयी ने कहा है कि एसेम्बली को डिजाल्ब न करके केवल ससपेंड किया गया है मूछित किया गया है। गवर्नर ने साफ कहा है कि यह एक टेम्पोरेरी व्यवस्था है और जब प्रदेश की स्थिति में सुधार हो जायगा, 363 President's Rule in U.P. (Res ) [श्री चन्द्रिका प्रसाद] तो ऐसम्बली जिन्दा हो जायेगी और लोकप्रिय सरकार बन जायेगी। मै भी चाहता हू कि हमारे प्रदेश मे जरूर चुनाव होने चाहिए, लेकिन उससे पहले वहा लोकप्रिय सरकार बननी चाहिए। 1967 के चुनाव के बाद हमारे प्रदेश मे चार पाच साल तक सविद सरकारे रह । उन्होने सारी सरकारी मशीनरी को करप्ट कर दिया था, चारो तरफ अनुशासनहीनता फैल गई थी और भूखमरी व्याप्त थी । श्री कमलापति त्रिपाठी ने बो वर्ष मे वह काम कर दिखाया जो बीस वर्ष मे भी नही हो सकता था। श्री त्रिपाठी उन नेताओ मे से है, जो जीवन भर समाजसेवा और राजनैतिक कार्यों में लगे रहे है । उन्होने जनतन और देश की जो सेवा की हे और तीस बरस तक जो कुर्बानिया की है, वे देश के महान् नेताओ की तुलना मे किसी से कम नही हैं । यह बात नहीं है कि उन के घर मे कोई आर्थिक सकट था। वह पहले भी अच्छे घर से थे और आज भी अच्छी स्थिति मे है । इस लिए हम उन पर और उन वे परिवार पर इस प्रकार के लाछन लगाना समझते हैं । श्री वाजपेयी और श्री ज्योतिर्मय वसु दोनो ने कहा है कि भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश के प्रति हमेशा उपेक्षा की नीति अपनाई है । आज न केवल देश मे, लिल विश्व भर मे, उस की प्रति व्यक्ति प्राय सब से कम है। उत्तर प्रदेश पहले सूखे और बाढ से तगह होता रहा है और आज भी तबाह हो रहा है । हमारे यहा जितनी इडस्ट्रीज होनी चाहिए वे नही हैं । हम चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश मे राष्ट्रपति शामन तब तक रहे, जब तक कि हम अन्य प्रदेशो के समकक्ष न प्रा जाये, हमारी आर्थिक समस्याये हल न हो जाये और हमारी मार्थिक प्रगति न हो जाये । उत्तर प्रदेश में बच्चो से तीन चार महीने की फ़ीस मामी जा President's Rule in U.P. (Rea.) है और किसानों से लगान की वसूली की जा रही है हम चाहते हैं कि बच्चो की फ्रीस माफ़ की जाये और लगान की वसुली बन्द. की जाये । बनारस कमिशनरी मे खरीफ अभियान के बारे में जो मंडलोय स्तर पर सम्मलन हुभा था, मैं ने वहा भा कहा था, और प्रधान मंत्री से उत्तर प्रदेश के समद सदस्यों की जो बैठव बुलाई थी उस मे भी कहा था कि बलिया पास्टाट्युएन्सी मे नानपेमेट भ्राफ ड्यूज के कारण तान साँ ट्यूबवैल्ज के कनेक्शन कटे हुए हैं। इस वक्त लागा के पास पैसा नहीं है । अगर बिजली के बनेक्शन वटे रहेगे तो बिजली न मिलने से फल का उत्पादन नहीं हो पायेगा और मुखमरा जारी रहेगी । पब्लिम वर्कस और सरकारी अधिकारियों के काम करने का तरीका अलग अलग होता है। सरकारी अधिगरियो में यह बानही प्रती निवेद। गहान के लिए बिजली का वनेक्शन दे दे, ता षि उत्पादन में वृद्धि होग प्र वीस्थति खत्म हो जायेगी तब लागा के पास पैसे हागे आर वे पेमेट वर देगे । इन शब्द, वे ग्ाथ में उत्तर प्रदेश मे राष्ट्रपन शामर्थन रंगहू । मरत सरकार का यह नाति है वि गरोबा योर वीवर मैगन्ज की मदद की जाये । उत्तर प्रदेश में राष्ट्र शाग्न उग नीति का कार्यान्वित करे हमारे यहा एक शूगर फैक्टरी बनी है । उस म जिन डायरेक्टर्ज का नाम(नेशन हुआ है, उन में हरिजन मुसलमान भार प्रन्य अनख्यकों के प्रतिनिधि नही है । इन वर्गों को भी उस से प्रतिनिधित्व दिया जान चाहिए, ताकि उन वर्गों के हितों की रक्षा President's Rule SRAVANA 17, 1895 (SAKA) President's Rule in U.P. (Res.) ग़रीबी को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि उत्तर प्रदेश में सिंचाई की प्राजेक्टस की तरफ़ पूरा ध्यान दिया जाये । हमारे यहां गंगा और घाघरा में बाढ़ माई हुई है। घाघरा से चकीचाददेरा के चौदह घर कट गये हैं। अगर यह पूरा गाव कट गया, तो नदी अपना रास्ता बदल लेगी और इससे जिले का दो तिहाई भाग कट जायेगा । श्रम सम्बन्ध में समय पर उचित कार्यबाड़ी न की गई, तो वह क्षेत्र बर्बाद हो जायेगा। दोहरी महायक परियोजना स्वीकृत हो चुकी है, लेकिन ग्राज तक उसका काम शुरु नहीं गया है और उग का रुपया लैप्स हो रहा है। उस परियोजना के कार्य को तुरन्त हाथ में लेना चाहिए । फ़ैक्टरी चुकी है और उसका मैनेजिंग बोर्ड बन गया है । रभ काम का तेजी से किया जाये, ताकि लोगों की क्रय शक्ति बढ़े । इसी तरह मिनी स्टील पलाट भी स्त्री हो चुका है । उस को भी शाघ्र लगाया जाये । इम प्रकार हमारे क्षेत्र का प्रौद्योगिकरण करने से हमारे यहा का ग़रीबी मिट गयेगी । वहा के लागो का गहा देने के लिए टेस्ट वर्म भी शुरु किये जाये । श्री कृष्ण चन्द्र पांडे (खनालाबाद ) उपाध्यक्ष महादय, आज हम उत्तर प्रदेश के और देश के ऐसे मसले पर विचार कर रहे है, जो बहुत हो गम्भीर मसला है। उत्तर प्रदेश मे श्राज राष्ट्रपति का शासन है । यह विधि की बिडमना ही कही जा सकती है कि जिस प्रदेश में बहुमत की सरकार रही हो, उसमे राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। परन्तु भगर गम्भारता से विचार किया जाये, तो ज्ञात होगा कि जिन परिस्थितियों में राष्ट्र3, पति शासन लागू किया गया, वे बड़ी दुर्भाग्य पूर्ण थीं। आप जानते है कि उत्तर प्रदेश में सात बरस तक ऐसी स्थिति रही कि सरकार भाई औौर गई। इस बीच मे प्रशासन इतना कमजोर और भ्रष्ट हो गया कि उस को सुधारने के लिए एक सुदृढ़ शासन की आवश्यकता थी । पंडित कमलापनि विपाटी के नेतृत्व मे छब्बीस महीनों में जो कार्य हुआ, उस का अपना एक इतिहास है। इसी बीच विरोधी दलों का जा षड़यत्र चल रहा था, वह सामने भाया । वह षडयंत था लखनऊ विश्वविद्यालय वा । विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार महोदय ने, जिन पर चालीस लाख रुपये के ग़बन के आरोप थे वहा के विद्याथियों को गुमराह कर के एक षडयत्र किया । मैं गुह मत्री महोदय से यह जानना चाहता हूँ कि क्या कारण है कि लखनऊ विश्वविद्यालय की अन्य फ़ॉल्टउज मे आग नही लगाई गई, वाइस-चाम्लर का चेम्बर नही पूरा गया, लेकिन केवल रजिस्ट्रार का आफ़िस फूना गया और उनकी उन फ़ाइलों को फूका गया, जिनमे गबन सम्बन्धी वागजात थे । में जानना चाहता हूनि क्याने आज तक उस तरफ ध्यान दिया है श्री दि मही दिया है, तो उस का क्या कारण है । जहा तक मेरी जानकारी हे, उत्तर प्रदेश में पी० ए० सी० का जो भयकर विद्राह हुआ, उस को राजनैतिक सफलता नही बल्कि प्रशासनिक असफलता हा जी 1 । मुख्य मन्त्री गये, उन की कंबिनेट गई और विधायक भी अपने अपने घर गये । लोकन पी० एस० सी० की बागडोर जिन उच्चाधिकारियों के हाथ में थी, वे जिन पदो पर बैठे थे, आज भी वे उन्ही पदो पर बड़े हुए है । भाज भी उन पदो का दुरुपयोग किया जा रहा है। है । यह ठीक है कि पी० ए० सी० को नया रूप दिया जा रहा है, लेकिन पी० ए० सी० के विद्रोह के समय जिन अधिकारियों के हाथों
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तत्त्वाधिगम के उपाय यह कि मात्र शास्त्र होने के कारण ही हर एक पुस्तक प्रमाण और ग्राह्य नही कही जा सकती। अनेक टीकाकारोनेभी मूलग्रन्थका अभिप्राय समझनेमे भूले की है । अस्तु 17 - हमे यह तो मानना ही होगा कि शास्त्र पुरुषकृत हे । यद्यपि वे महापुरुष विशिष्ट जानी ओर लोक कल्याणकी सदुद्भावनावाले थे पर क्षायोपत्रमिकज्ञानवश या परम्परावा मतभेदकी गुजायग तो हो ही सकती है । ऐसे अनेक मतभेद गोम्मटसार आदिमे स्वय उल्लिखित हे । अत शास्त्र विषयक सम्यग्दर्शन भी प्राप्त करना होगा कि शात्रमे किस युगमे किस पात्रके लिए किस विवक्षासे क्या बात लिखी गई है उनका ऐतिहासिक पर्यवेक्षण भी करना होगा । दर्शनशास्त्र के ग्रन्थोमे खण्डन मण्डन के प्रसगमे तत्कालीन या पूर्वकालीन ग्रन्थोका परस्परम आदान-प्रदान पर्याप्त रूपसे हुआ है । अत आत्म-सशोधकको जैन सस्कृतिकी शास्त्र विषयक दृष्टि भी प्राप्त करनी होगी । हमारे यहा गुणकृत प्रमाणता है । गुणवान् वक्ताके द्वारा कहा गया वह शास्त्र जिसमे हमारी मूलधारासे विरोध न आता हो, प्रमाण है । আ জgood son somewone mom rephind इसीतरह् हमे मन्दिर, सस्था, समाज, शरीर, जीवन, विवाह आदिका सम्यग्दर्शन करके सभी प्रवृ त्तियोकी पुनारचना आत्मसमत्वके आधारसे करनी चाहिए तभी मानव जातिका कल्याण और व्यक्तिकी मुक्ति हो सकेगी । तत्त्वाधिगम के उपाय"ज्ञान प्रमाणमात्मादेरुपायो न्यास इध्यते । नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितोऽर्थपरिग्रहः ॥" -लघीय० । अकलकदेवने लघीयस्त्रय स्ववृत्तिमे बताया है कि जीवादि तत्त्वोका सर्वप्रथम निक्षेपोके द्वारा न्यास करना चाहिए, तभी प्रमाण और नयसे उनका यथावत् सम्यग्ज्ञान होता है । ज्ञान प्रमाण होता है । आत्मादिको रखनेका उपाय न्यास है। ज्ञाताके अभिप्रायको नय कहते है। प्रमाण और नय जानात्मक उपाय है और निक्षेप वस्तुरूप है । इसीलिए निक्षेपोमे नययोजना कपायपाहुडचूर्ण आदिमे की गई है कि अमुक नय अमुक निक्षेपको विषय करता है । निक्षेप - निक्षेपका अर्थ है रखना अर्थात् वस्तुका विश्लेषण कर उसकी स्थितिकी जितने प्रकारकी सुभावनाएँ हो सकती है उनको सामने रखना । जैसे 'राजाको बुलाओ' यहाँ राजा और बुलाना इन दो पदोका अर्थबोध करना है । राजा अनेक प्रकारके होते हैं यथा 'राजा' इस शब्दको भी राजा कहते है, पट्टीपर लिखे हुए 'राजा' इन अक्षरोको भी राजा कहते है, जिस व्यक्तिका नाम राजा है उसे भी राजा कहते है, राजाके चित्रको या मूर्तिको भी राजा कहते हैं, शतरजके मुहरो मे भी एक राजा होना ह जो आगे राजा होनेवाला है उसे भी लोग आजसे ही राजा कहन लगते है, गजाके ज्ञानको भी राजा कहते है, जो वर्तमानमे शासनाधिकारी है उसे भी राजा कहते है । अत हमें कौन राजा विवक्षित है वच्चा यदि राजा माँगता है तो उस समय किस राजाकी आवश्यकता होगी, गतरजके समय कोन राजा अपेक्षित होता है । अनेक प्रकारके राजाओसे अप्रस्तुतका निराकरण करके विवक्षित राजाका ज्ञान करा देना निक्षेपका प्रयोजन है। राजाविषयक मायका निराकरण कर विवक्षित राजाविषयक यथार्थबोध करा देना ही निक्षेपका कार्य है । इसी तरह बुलाना भी अनेक प्रकारका होता है । तो 'राजाको बुलाओ' इस वाक्यमे जो वर्तमान शामनाधिकारी हे वह भावराजा विवक्षित है, न गव्दराजा, न जानराजा न लिपिराजा न भूर्तिराजा न भावीराजा आदि । पुरानी परम्पराम अपने विवक्षित अर्थका सटीन ज्ञान करानेकेलिए प्रत्येक शब्दके सभावित वाच्यार्थीको सामने रखकर उनका विश्लेषण करनेकी परिपाटी थी । आगमोमे प्रत्येक शब्दका निक्षेप किया गया है । यहा तक क 'शेष' व्द और 'च' शब्द भी निक्षेप विधिमं भुलाये नही गये है । शब्द ज्ञान और अर्थ तीन प्रकारसे व्यवहार चलते है । कही शब्दव्यवहार कार्य चलना है तो कही ज्ञानसे तो कही अर्थसे । बच्चेको दराने के लिए शेर शब्द पर्याप्त है । शेरका ध्यान करनेके लिए शेरका ज्ञान भी पर्याप्त है। पर सरकसमे तो शेर पदार्थ ही चिघाट सकता है। विवेचनीय पदार्थ जितने प्रकारका हो सकता है उतने राव संभावित प्रकार सामने रखकर अप्रस्तुतना निराकरण करके विवक्षित पदार्थको पकडना निक्षेप हे । तत्त्वार्थसूत्रकारने उस निक्षेपको चार भागोमे वाँटा है - शब्दात्मक व्यवहारका प्रयोजक नामनिक्षेप है, 5 समे वस्तुमे उम प्रकारके गुण जाति क्रिया आदिका होना आवश्यक नहीं है जैसा उसे नाम दिया जा रहा है। किसी अन्बेका नाम भी नयनमुख हो सकता है ओर किसी सूखकर कॉटा हुए दुर्बल व्यक्तिको भी महावीर कहा जा सकता है। ज्ञानात्मक व्यवहारका प्रयोजक स्थापना निक्षेप है । इस निक्षेपमे ज्ञानके द्वारा तदाकार या अतदाकार में विवक्षित वस्तुकी स्थापना कर ली जाती है और सकेत ज्ञानके द्वारा उसका बोध करा दिया जाता है । अर्थात्मक निक्षेप द्रव्य और भावरूप होता है। जो पर्याय आगे होनेवाली है उसमें योग्यताके वलपर आज भी वह व्यवहार करना अथवा जो पर्याय हो चुकी है उसका व्यवहार वर्तमानमें भी करना द्रव्यनिक्षेप है जैसे युवराजको राजा कहना और राजपदका जिसने त्याग कर दिया है उसको भी राजा कहना । वर्तमानमे उस पर्यायवाले व्यक्तिमे ही वह व्यवहार करना भावनिक्षेप है, जैसे सिहासनस्थित शासनाधिकारीको राजा कहना । आगमोमे द्रव्य, क्षेत्र, काल आदिको मिलाकर यथासंभव पाच, छह और सात निक्षेप भी उपलब्ध होते हं परन्तु इन निक्षेपका प्रयोजन इतना ही है कि शिष्यको अपने विवक्षित पदार्थका ठीक ठीक ज्ञान हो जाय । धवला टीका ( पृ० ३१ ) निक्षेपके प्रयोजनोका मग्रह करनेवाली यह प्राचीन गाथा उद्धत है --- "अवगयनिवारणट्ट् पयदस्स परवणाणिमित्त च । ससयविणासणट्ट तच्चत्थवधारणट्ठ च ॥" अर्थात् अप्रकृतका निराकरण करने के लिए, प्रकृतका निरूपण करने के लिए, समयका विनाश करने के लिए और तत्त्वार्थका निर्णय करने के लिए निक्षेपकी उपयोगिता हे । प्रमाण, नय और स्याद्वाद -- निक्षेप विविसे वस्तुको फैलाकर अर्थात् उसका विश्लेषण कर प्रमाण और नयके द्वारा उसका अधिगम करनेका क्रम शास्त्रसम्मत और व्यवहारोपयोगी है। जानकी गति दो प्रकः रमे वस्तुको जाननेकी होती है । एक तो अमुक अशके द्वारा पूरी वस्तुको जाननेकी ओर दूसरी उसी अमुक अशको जाननेकी । जब ज्ञान पूरी वस्तुको ग्रहण करता है तव् वह प्रमाण कहा जाता है तथा जब वह एक अशको जानता है तब नय । पर्वतके एक भागके द्वारा पूरे पर्वतका अखण्ड भावने ज्ञान प्रमाण है और है उनी जग का ज्ञान नय हे । सिद्धान्त प्रमाणको मकलादेशी तथा नयको विकलादेशी कहा है उसका यही तात्पर्य है कि प्रमाण जात वस्तुभागके द्वारा सकल वस्तुको ही ग्रहण करता है जब कि नय उमी विकल अर्थात् एक अशको ही ग्रहण करता है । जैसे आखसे घटके रूपको देखकर र पमुखेन पूर्ण घटका ग्रहण करना सकलादेश है ओर घट रूप है इस रूपागको जानना विकलादेश अर्थात् नय है। अनन्तवर्मात्मक वस्तुका प्रवत् विशेषोके साथ पूर्ण रूपसे ग्रहण करना तो अल्पज्ञानियोके वशकी बात नहीं है वह तो पूर्ण ज्ञानका कार्य हो सकता है । पर प्रमाणजान तो अल्पज्ञानियोका भी कहा जाता है अत प्रमाण और नय की भेदक रेखा यही है कि जब ज्ञान अखड वस्तु पर दृष्टि रखे तत्र प्रमाण तथा जब अशपर दृष्टि रखे तव नय । वस्तुमे सामान्य और विशेष दोनो प्रकारके धर्म पाए जाते है । प्रमाण ज्ञान सामान्यविशेषात्मक पूर्ण वस्तुको ग्रहण करता है जब कि नय केवल सामान्य अशको या विशेष अशको । यद्यपि केवल सामान्य और केवल विशेषरूप वस्तु नही है पर नय वस्तुको अगभेद करके ग्रहण करता है । वृक्ताके अभिप्रायविशेषको ही नय कहते हैं । नयू जब विवक्षित अशको ग्रहण करके भी इतर अशोका निराकरण नहीं करता उनके प्रति तटस्थ रहता है तब मुनय कहलाता है और जब वही एक अगका आगह करके दूसरे अशोका निराकरण करने लगता हैं तव दुर्नय कहलाता है।
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नई दिल्ली,। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दिल्ली में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) सोसायटी की बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं। बैठक में सीएसआईआर सोसायटी के सभी सदस्यों को आमंत्रित किया गया है। बैठक में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन, पीयूष गोयल और जितेंद्र सिंह मौजूद हैं। सीएसआईआर वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक सोसायटी है और प्रधानमंत्री सोसायटी के अध्यक्ष हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- देश के लोगों को सरकार का अभाव भी नहीं लगना चाहिए और देश के लोगों को सरकार का दबाव भी महसूस नहीं होना चाहिए। पीएम मोदी ने इस मौके पर आगे कहा, 'हमारे समाज की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए खुद में आंतरिक सुधार भी करता चलता है। हमारा समाज अप्रासंगिक हो चुके कायदे-कानूनों, गलत रिवाजों को हटाता भी चलता है। ' इसके अलावा, हरियाणा के गुरुग्राम के बिलासपुर इंडस्ट्रियल एरिया में ऑटो पार्ट्स बनाने वाली एक कंपनी में आग लग गई। मौके पर दमकल की गाड़ियां मौजूद हैं। Hindi Breaking News Today Updates; केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सिरमौर में आयोजित एक सार्वजनिक रैली में हिस्सा लिया। इस दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी मौजूद रहे। हिमाचल प्रदेश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज सिरमौर में एक जनसभा को संबोधित करेंगे। बता दें कि हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होंगे विधानसभा चुनाव होगा और 8 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी। अमूल ने सभी राज्यों में फुल क्रीम दूध और भैंस के दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर बढाया है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड के एमडी आरएस सोढ़ी ने कहा -अमूल ने गुजरात को छोड़कर सभी राज्यों में फुल क्रीम दूध और भैंस के दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन(ललन) सिंह के PM मोदी पर पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग वाले टिप्पणी पर BJP सांसद रविशंकर प्रसाद ने कहा - PM मोदी के बारे में ऐसी भाषा का प्रयोग करना शर्मनाक है, नीतीश कुमार जी से मैं पूछूंगा कि आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष की यही शालीनता है? आज तक आजाद भारत के इतिहास में किसी ने PM के बारे में इस तरह की बात नहीं की। ये देश के गरीबों और पिछड़ों का अपमान है। तेलंगाना के टीआरएस के पूर्व सांसद डॉ बूरा नरसैय्या गौड़ ने पार्टी प्रमुख और तेलंगाना के सीएम केसी राव को लिखे पत्र में पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। बैठक में सीएसआईआर सोसायटी के सभी सदस्यों को आमंत्रित किया गया है। बैठक में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन, पीयूष गोयल और जितेंद्र सिंह मौजूद हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) सोसायटी की बैठक की अध्यक्षता की । लखनऊ में सीएम योगी ने 12वीं राज्य स्तरीय डाक टिकट प्रदर्शनी UPHILEX-2022 के मौके पर कहा- डाक टिकटों का संग्रह एक समय में काफी रुचि का क्षेत्र था। आज यहां 300 से ज्यादा फ्रेम्स लगे हैं। आजादी के अभी तक कौन-कौन से डाक टिकट और कवर जारी हुए हैं उन सबको देखने का अवसर आज मिला है। कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा- युवाओं के लिए मातृभाषा में एकेडमिक सिस्टम भी बनाना होगा, कानून से जुड़े कोर्सेस मातृभाषा में हो,हमारे कानून सरल, सहज भाषा में लिखे जाएं, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण केसेस की डिजिटल लाइब्रेरी स्थानीय भाषा में हो,इसके लिए हमें काम करना होगा। कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते पीएम मोदी ने कहा- आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तब लोकहित को लेकर सरदार पटेल की प्रेरणा हमें सही दिशा में भी ले जाएगी और हमें लक्ष्य तक भी पहुंचाएगी। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर भी बल दिया कि देश ने डेढ़ हज़ार से ज्यादा पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को रद्द कर दिया है इनमें से अनेक कानून तो गुलामी के समय से चले आ रहे थे। कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- कानून बनाते हुए हमारा फोकस होना चाहिए कि गरीब से गरीब भी नए बनने वाले कानून को अच्छी तरह समझ पाएं। किसी भी नागरिक के लिए कानून की भाषा बाधा न बने, हर राज्य इसके लिए भी काम करे, इसके लिए हमें लॉजिस्टिक और इंफ्रास्ट्रक्चर का सपोर्ट भी चाहिए होगा। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- देश के लोगों को सरकार का अभाव भी नहीं लगना चाहिए और देश के लोगों को सरकार का दबाव भी महसूस नहीं होना चाहिए। पीएम मोदी ने इस मौके पर आगे कहा, हमारे समाज की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए खुद में आंतरिक सुधार भी करता चलता है। हमारा समाज अप्रासंगिक हो चुके कायदे-कानूनों, गलत रिवाजों को हटाता भी चलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे हैं। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा -भारत के समाज की विकास यात्रा हजारों वर्षों की है। तमाम चुनौतियों के बावजूद भारतीय समाज ने निरंतर प्रगति की है। देश के लोगों को सरकार का अभाव भी नहीं लगना चाहिए और देश के लोगों को सरकार का दबाव भी महसूस नहीं होना चाहिए। JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन(ललन) सिंह ने कहा- 2014 में PM मोदी कह रहे थे वे अति पिछड़ा हैं। गुजरात में अति पिछड़ा नहीं पिछड़ा वर्ग है और ये पिछड़ा वर्ग में भी नहीं थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद इन्होंने अपने समाज को पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लिया। ये तो डुप्लीकेट हैं। दुष्कर्म के दोषी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को 40 दिन की पैरोल मिली। गुरमीत राम रहीम बरनावा में डेरा सच्चा सौदा आश्रम पहुंचे। दिल्ली में जर्मन दूतावास ने जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए साइकिलिंग 4 फ्यूचर कार्यक्रम का आयोजन किया। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में UPSSSC PET परीक्षा में प्रत्येक उम्मीदवार को मेटल डिटेक्टर से स्कैन करने के बाद परीक्षा केंद्र में प्रवेश करने की अनुमति दी जा रही है। देश में कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी आई है। कोरोना के केस लगातार तीन दिन तक बढ़े, लेकिन शनिवार को मामलों में कमी दर्ज की गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि बीते 24 घंटे में कोरोना के कुल 2430 मामले सामने आए हैं। देश में अब कोरोना के एक्टिव मामले 26,618 हो गए हैं। जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले के बड़ियारा और कंबाथी गांव क्षेत्र के बीच बांदीपोरा-सोपोर सड़क पर IED का पता चला। मौके पर बम निरोधक दस्ते को बुलाया गया है। एहतियात के तौर पर सड़क पर वाहनों की आवाजाही रोक दी गई है। काशीपुर में यूपी पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प में जान गंवाने वाली महिला के पति गुरताज सिंह ने कहा- मेरी पत्नी सरकारी कर्मचारी थी। जो मेरे साथ हुआ किसी और के साथ ऐसा न हो। दोनों राज्यों में BJP की सरकार है। दोनों जगह पुलिस सरकार के अंदर है। मैं सरकार से CBI जांच की मांग करता हूं। मुरादाबाद पुलिस ने मुठभेड़ के बाद जफर नाम के एक अपराधी को गिरफ्तार किया है। उस पर एक लाख रुपये का इनाम था। मुरादाबाद के एसपी अखिलेश भदौरिया ने कहा- वह उत्तराखंड के उधम सिंह नगर के भरतपुर से भाग गया (जहां कुछ दिन पहले यूपी पुलिस उसे गिरफ्तार करने गई थी)। कर्नाटक में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा के 38वें दिन की शुरुआत हलाकुंडी गांव से की। वहीं भारत जोड़ो यात्रा में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के साथ पार्टी अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शामिल हुए। कर्नाटक में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा के 38वें दिन की शुरुआत हलाकुंडी गांव से की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करेंगे। दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी एकता नगर, गुजरात में कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा की जा रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, इस सम्मेलन का आयोजन गुजरात के कानून और न्याय मंत्रालय ने किया है।
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बदलने का एक साधन है"। मार्शल इ. डिमोक के शब्दों में, "अधिकारी तंत्र समाज की ऐसी व्यवस्था है जिसमें संस्थाएँ व्यक्तियों, और साधारण पारिवारिक संबंध को ढाँक देती हैं, एकं विकास की अवस्था है जिसमें, श्रम विभाजन, विशेषीकरण, संगठन, पद-सोपान, नियोजन तथा ऐच्छिक या अनैच्छिक तरीकों से व्यक्तियों के समूह का विभाजन, आज की व्यवस्था है। अधिकारी तंत्र को सार्वजनिक तथा निजी सेवा में बड़े संगठनों की उत्पत्ति कहा जाता है। अधिकारी तंत्र संगठन अपने व्यवस्थित प्रशासन के कारण चुने हुए नेतृत्व तथा राजा की निरंकुश शक्ति को तोड़ देता है। एक व्यवस्था के रूप में राजनैतिक नेताओं को परामर्श देने में इसे अपनी स्वायत्तता तथा स्वतंत्रता को बनाए रखना है तथा निर्धारित नीतियों का निष्ठापूर्वक कार्यान्वयन करना है। हंस रोज़ेनबर्ग ने लिखा है कि ".. शासन की वर्तमान संरचना का मुख्य भाग है व्यावसायिक प्रशासन की दूर तक फैली हुई व्यवस्था तथा मनोनीत पदाधिकारियों की सोपानात्मक व्यवस्था जिसपर समाज पूरी तरह निर्भर है। चाहे हम बहुत अधिक तानाशाही या निरंकुश व्यवस्था के अंतर्गत जी रहे हों या उदारवादी प्रजातंत्र के अंतर्गत, हम बहुत हद तक किसी न किसी प्रकार की नौकरशाही से शासित होते हैं।' हरमन फाइनर का कहना है कि अधिकारी तंत्र "स्थायी, वेतनभोगी तथा कुशल अधिकारियों की एक व्यावसायिक संकाय है । " आर्थर के. डेविस नौकरशाही / अधिकारी तंत्र को संरचनात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं। उनके अनुसार नौकरशाही "विशिष्ट पदों का एकीकृत पदसोपान है जिसे व्यवस्थित नियमों, अवैयक्तिक बने बनाए ढांचे से परिभाषित किया जा सकता है जहाँ वैधानिक सत्ता पद में निवास करती है न कि पदधारी में । " चौंकरशाही प्रशासन की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें समस्त कर्मचारियों को कार्यालयों के पद- सोपान में संगठित किया जाता है तथा प्रत्येक के पद तथा उत्तरदायित्व का क्षेत्र स्पष्ट रूप से उल्लिखित होते हैं। अधिकारी तंत्र की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करते समय अधिकारी तंत्र का अर्थ और भी स्पष्ट हो जाएगा। अधिकारी तंत्र की मुख्य विशेषताएँ पद-सोपान (Hierarchy) : अधिकारी तंत्र में कार्य विशिष्टीकरण पर आधारित होता है, उनकी विशिष्ट स्थिति होती है, कार्य योग्यता प्राधिकार, उत्तरदायित्व तथा दूसरे कार्यों का स्पष्ट विभाजन होता है। प्रत्येक छोटा कार्यालय उच्चतर कार्यालय के नियंत्रण तथा पर्यवेक्षण के अधीन होता है। पदाधिकारी अपने सरकारी कार्यों के लिए उच्चाधिकारी के प्रति उत्तरदायी होता है । व्यावसायिक गुण : समस्त पदाधिकारियों में व्यावसायिक गुण होते हैं, जिनके आधार पर नियुक्ति के लिए चुने जाते हैं। उनके चुनाव की योग्य वस्तुनिष्ठ मानदंड के आध निर्धारित होती है। उनके संबंध दूसरों के साथ बड़े ही औपचारिक ढंग के होते हैं तथा सरकारी कर्तव्यों में कार्यान्वयन में भी यही रवैया अपनाते हैं। उन्हें सेवा की पर्याप्त सुरक्षा तथा उन्नति के उचित अवसर के साथ स्थायी जीवनवृत्ति प्राप्त होती है। नियम तथा कार्यविधियाँ : अधिकारी तंत्र अमूर्त नियमों की अनुरूप व्यवस्था से शासित होता है। सरकारी व्यवहार में उन्हें आचरण तथा अनुशासन के निश्चित नियमों का पालन करना होता है। प्राधिकार का प्रयोग संगठन के विनियमों के अनुसार करना होता है जिसे लिखित, युक्तिसंगत तथा अवैयक्तिक होना चाहिए। विशिष्टीकरण : सरकारी कार्य निरंतर नियमबद्ध रूप से संगठित होते हैं। ये कार्य कार्यात्मक रूप से भिन्न क्षेत्रों में उप विभाजित होते हैं। प्रत्येक के पास अपेक्षित प्राधिकार तथा अनुमोदन ( sanctions) होते हैं । यह कार्यात्मक विशिष्टता कार्यों को विशिष्टीकरण की ओर अग्रसरित करती है । नीति निर्माण : संरचना और प्रक्रिया - I संगठनात्मक साधन : संगठन के साधन निजी व्यक्ति के रूप में सदस्यों के साधन से बहुत भिन्न होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि अधिकारियों को सरकारी कर्तव्यों के संपादन के लिए प्राप्त आवश्यक साधनों पर उनका स्वामित्व नहीं होता, किंतु सरकारी साधनों के प्रयोग के लिए उत्तरदायी होते हैं। सरकारी राजस्व तथा निजी आय को कठोरता से अलग रखा गया है। 8.3 अधिकारी तंत्र की बदलती हुई प्रकृति ब्रिटेन के विख्यात लोक सेवक सर वारेन फिशर ने मंत्री तथा लोक सेवा के संबंधों को निम्नलिखित शब्दों में बताया है, "नीति का निर्धारण मंत्रियों का कार्य है तथा एक बार नीति निर्धारित हो जाए तो इस पर प्रश्न नहीं किया जा सकता तथा लोक सेवक का भी यह असंदिग्ध कर्तव्य है कि वह उन नीतियों को उसी शक्ति तथा सद्भाव से कार्यान्वित करे चाहे वह उससे सहमत हो या न हो । वह स्वयं सिद्ध होती है जिसपर कभी विवाद नहीं उठ सकता। साथ ही यह लोक सेवकों का पारंपरिक कर्तव्य है कि जब निर्णय का निर्धारण हो रहा हो तो अपने राजनैतिक अध्यक्ष (chief) को अपने समस्त अनुभवों तथा सूचना से परिचित कराए तथा इसे बिना पक्षपात के भय से करे, चाहे यह परामर्श मंत्री के प्रारंभ के विचार के अनुरूप हो या न हो। लोक सेवकों को मंत्रियों या अनुभवी अधिकारियों जिनका चुनाव सेवा में उच्च पदों को भरने के लिए किया गया है, के साथ सत्यनिष्ठता, निडरता एवं विचारों तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखना अच्छी सरकार के आवश्यक तत्व हैं। यह विचार अधिकारी तंत्र तथा राजनैतिक कार्यपालिका के संबंध को दर्शाता है। आधुनिक प्रजातंत्र में अधिकारी तंत्र ने ऊंचाई को स्पर्श किया है। इसके आकार तथा कार्यों में अधिकाधिक वृद्धि हुई है। कल्याणकारी राज्य के प्रादुर्भाव ने अधिकारी तंत्र के विस्तार में नए आयामों को जोड़ा है। इस तरह नीति निर्माण में अधिकारी तंत्र की भूमिका की प्रकृति धीरे-धीरे बदल रही है। अधिकारी तंत्र की तटस्थता की संकल्पना भी अपना महत्व खो चुकी है। राजनैतिक तटस्थता का तात्पर्य राजनैतिक कार्य तथा अधिकारी तंत्र के व्यक्तिगत सदस्य के रूप में पक्षपात का अभाव ही नहीं, बल्कि अधिकारी तंत्र को राजनैतिक कार्य पालिका की इच्छानुसार जवाब देना है। इससे उसे कोई मतलब नहीं कि इसका राजनैतिक परिणाम क्या हो सकता है। अब "वचनबद्ध अधिकारी तंत्र" शब्द का तात्पर्य यह नहीं है कि लोक सेवक विशेष व्यक्ति, राजनैतिक व्यक्ति या नेता के प्रति निष्ठा रखता है बल्कि वचनबद्धता का तात्पर्य है - संविधान तथा सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों के निहित उद्देश्यों, आदर्शों, संस्थाओं एवं रूपों (Modalities) के प्रति तथा कार्यपालिका द्वारा जारी किए गए विधियों - विनिमयों तथा नियमों के प्रति वचनबद्धता । भारतीय संदर्भ में सत्ताधारी दलों के बीच मतों की भिन्नताओं में शिथिलता आई है तथा नीति निर्धारण और कार्यान्वयन के संदर्भ में राजनीतिज्ञों एवं अधिकारी तंत्र के मध्य कार्यों के विभाजन की कठोरता में कमी आई है। नीति निर्धारण की प्रक्रिया अब राजनैतिक कार्यपालिका तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे सराकर के समस्त दायरे में व्याप्त है जिसका परिणाम है ऐसे क्षेत्र तथा नीति का हस्तांतरण जहां राजनैतिक कार्यपालिका उस दृश्य से बिल्कुल ही बाहर होती है। राजनैतिक अधिकारी तंत्र के नेतृत्व की भूमिका समस्त राजनैतिक व्यवस्था में दृष्टिगोचर होती है। अब राज्य के उद्देश्यों में कुछ तरह या दूसरे तरह की वचनबद्धता से बचना कठिन हो गया है। हां आत्म चेतना संबंधी पक्षपात (subjective bias) को कुछ सीमा तक दूर नहीं किया जा सकता। 8.4 नीति निर्माण में अधिकारी तंत्र की भूमिका नीति निर्माण में अधिकारी तंत्र अपनी भूमिका निम्न तरीकों से निभाती है। यह कार्यपालिका के बृहद नीति क्षेत्र को पहचानने, बड़े नीति प्रस्तावों को तैयार करने, सामाजिक समस्याएँ, जिनपर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता होती है, के विभिन्न विकल्पों तथा समाधानों का विश्लेषण, मुख्य नीतियों को उपनीतियों में बदलना, कार्य की योजना निर्धारित करना, वर्तमान नीतियों में इसके अनुभव के आधार पर निष्पादन के स्तर पर संशोधन का सुझाव देने में सहायता प्रदान करती है। उनकी भूमिका को तीन बृहद् क्रियाओं में विभाजित कर सकते हैंः सूचना देना, परामर्श देना तथा विश्लेषण करना। आइए उनका संक्षेप में विवेचन करें । सूचना देना : नीति निर्माण की तैयारी का मुख्य कार्य अधिकारी तंत्र के द्वारा किया जाता है। नीति मुद्दों को पहचानने तथा नीति प्रस्ताव को आकार देने के लिए वर्तमान समस्याओं के व्यवस्थित विश्लेषण की आवश्यकता होती है। अधिकारी तंत्र समस्या के सार को पहचानने के लिए स्वयं को उपयुक्त आंकड़ों तथा सूचना को एकत्रित करने में व्यस्त रखती है। इसे निर्धारित करना है कि किस प्रकार की सूचना चाहिए, किस हद तक सूचना अर्थपूर्ण या मौलिक है तथा नीति प्रस्ताव के लिए प्राप्त सूचना का उचित उपयोग कैसे किया जा सकता है। जैसा कि हम पिछली इकाई में पढ़ चुके हैं कि सरकार को लोक समर्थन प्राप्त करने के लिए नीति प्रस्तावों को प्रमाणित करना पड़ता है। अधिकारी तंत्र नीति प्रस्ताव को प्रमाणित करने के लिए उपयुक्त आंकड़े प्रस्तुत करती है। उदाहरण के लिए, यदि अधिकारी तंत्र को कृषि विकास के लिए नीति निर्धारण में सहायता करनी है तो उसे देश में पूर्ण खेतिहर भूमि की उपलब्धता, उपलब्ध भूमि के प्रकार तथा गुणवत्ता, कौन-सी फसल अच्छी बोयी जा सकती है, देश में कृषि संबंधी आवश्यकता, सिंचाई सुविधा की उपलब्धता, कृषि उत्पादन के लिए बाजार की शर्ते, देश में खपत का स्तर, निर्यात के संभावित अवसर आदि पर सूचना एकत्रित करना तथा उसे व्यवस्थित करना है। दूसरे शब्दों में, नीति निर्माण में अधिकारी तंत्र की सूचना संबंधी भूमिका नीति प्रस्तावों की व्यवस्थित रचना के लिए वस्तुगत आधार तैयार करने तथा प्रस्तावों को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक आंकड़े प्रदान करने से संबंधित है। परामर्श देना : अधिकारी तंत्र निरंतर नीति प्रस्तावों को प्रमाणित करने तथा उपयुक्त आंकड़े एकत्रित करने में व्यस्त रहता है, इसलिए यह देश में चल रही विभिन्न समस्याओं तथा मुद्दों से घनिष्ठ रूप से जुड़ा होता है। अधिकारी तंत्र को विशेष रूप से सचिवालय स्तर पर सरकार का मस्तिष्क (Think-tank) समझा जाता है। इस संदर्भ में, यह सदैव विभन्न राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं पर सोचते रहते हैं। इसी कारण अधिकारी तंत्र नीति निर्माण में परामर्श देने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राजनैतिक कार्यपालिका को समस्याओं की प्रकृति के बारे में तथा विचार के लिए कुछ मुद्दों को लेने की आवश्यकता के बारे में परामर्श देकर नीति मुद्दों को पहचानने में सहायता प्रदान करता है। यह अपने विचारों को इस ढंग से रचना करती है कि वे राजनैतिक कार्यपालिका के परामर्श के रूप में कार्य करते हैं। ये परामर्श प्रशासकीय दक्षता तथा अधिकारी तंत्र की योग्यता पर आधारित होती है। यह आवश्यक नहीं है कि नीति की • पहल सदैव राजनैतिक कार्यपालिका ही करे, अधिकारी तंत्र बहुत सारे अवसरों पर राजनैतिक कार्यपालिका को नीति मुद्दे प्रदान करता है। अधिकारी तंत्र के परामर्श देने की भूमिका राजनैतिक कार्यपालिका को वर्तमान समस्या के लिए भिन्न वैकल्पिक समाधान देने से भी संबंधित है। विश्लेषण करना : जैसा कि पहले बताया गया है, लोक नीति बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। अधिकारी तंत्र नीति निर्धारण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। महत्वपूर्ण मुद्दा, जिनपर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता होती है, को पहचानने के बाद, यह निश्चित करना होता है कि ऐसे मुद्दे जीवंत नीतियों को बना सकते हैं या नहीं, अधिकारी तंत्र नीति निर्धारण के लिए लिए गए मुद्दों के गुण-दोषों का विश्लेषण करने में स्वयं को व्यस्त रखती है। यह नीति प्रस्तावों को इसकी जीवन योग्यता (viability), भविष्य में आशा (future prospects), साधनों की उपलब्धता, स्वीकार्यता आदि को ध्यान में रखकर इसका निर्माण तथा पुनर्निर्माण करती है। यह अधिकारी तंत्र का उत्तरदायित्व है कि नीति प्रस्तावों को संविधान के उपबंधों, संसद द्वारा बनाई गई विधियों तथा दूसरे वर्तमान नियम एवं उपनियमों के संदर्भ में विश्लेषित करें। इस तरह अधिकारी तंत्र हो तथा प्रभावशाली नीतियों के निर्माण में सहायता करता है।
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Posted On: (पिछले 24 घंटों में कोविड-19 से संबंधित जारी प्रेस विज्ञप्तियां, पीआईबी फील्ड कार्यालयों से मिली जानकारियां और पीआईबी का फैक्ट चेक शामिल) ब्रिटेन में पाए गए कोरोनावायरस के नए स्वरूप सार्स सीईओवी-2 से 20 लोग संक्रमित पाए गए हैं। इनमें पहले संक्रमित पाए गए छः लोग भी शामिल हैं,जिन्हें देश की विशिष्ट प्रयोगशालाओं (निम्हान्स बेंगलुरु में 3, सीसीएमबी हैदराबाद में 2 और एनआईवी पुणे में 1) में जांच और उपचार हेतु भर्ती कराया गया है। 107 नमूनों की 10 प्रयोगशाला में जांच की गई है। नए वायरस को देखते हुए भारत सरकार ने इसके जिनोम सीक्वेंसिंग हेतु इंसाकॉग(भारतीय सार्स सीओवी-2 जिनोमिक्स कंसोर्टीयम) का गठन किया है जिसमें विशिष्ट प्रयोगशालाएं(एनआईबीएमजी कोलकाता, आईएलएस भुवनेश्वर, एनआईवी पुणे, सीसीएस पुणे, सीसीएमबी हैदराबाद, सीडीएफडी हैदराबाद, इनस्टेम बेंगलुरु,निम्हान्स बेंगलुरु, आईजीआईबी दिल्ली और एनसीडीसी दिल्ली शामिल हैं। स्थिति पर गंभीरता से निगरानी रखी जा रही है और नए वायरस से संक्रमित लोगों की पहचान करने, कंटेनमेंट और संभावित नए वायरस से संक्रमित के सैंपल इकट्ठा करने तथा उसे इंसाकॉगके लिए चिन्हित प्रयोगशालाओं को भेजने के लिए राज्यों को नियमित रूप से परामर्श जारी किए जा रहे हैं। इस बीच भारत में बीते 33 दिनों से हर दिन स्वस्थ होने वाले मरीजों की संख्या नए सामने आने वाले मामलों से ज्यादा है। पिछले 24 घंटों में 20,549 लोग कोविड-19से पॉज़िटिव पाए गए जबकि इस दौरान 26,572 लोग स्वस्थ हुए। नए मामलों की तुलना में स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या अधिक होने के चलते देश में सक्रिय कोविड-19मरीजों की संख्या निरंतर कम हो रही है। आज तक भारत में कुल 98,34,141 कोरोनावायरस रोगी स्वस्थ हो चुके हैं जोकि विश्व में सबसे अधिक है। स्वस्थ होने की दर भी बढ़ते हुए लगभग 96 प्रतिशत (95.99 प्रतिशत) के स्तर पर पहुंच गई है। इसके चलते सक्रिय मामलों और स्वस्थ होने वालों की संख्या में अंतर(95,71,869) लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में इस समय सक्रिय कोविड-19 की संख्या 2,62,272 है जो कि भारत में कुल संक्रमित हुए मरीजों का मात्र 2.56 प्रतिशत है। पिछले 24 घंटों के दौरान स्वस्थ हुए लोगों की संख्या नए मामलों की संख्या से 6,309अधिक है। विश्व स्तर पर तुलना करने से यह पता चलता है कि प्रति दस लाख आबादी पर कोविड-19 की संख्या भारत में न्यूनतम स्तर (7,423) पर है। स्वस्थ हुए कुल नए लोगों में 78.44 प्रतिशत लोग 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं। इसमें महाराष्ट्र सबसे ऊपर है, जहां पिछले 24 घंटों में 5,572 लोग स्वस्थ हुए। दूसरे स्थान पर केरल है, जहां 5,029 लोग स्वस्थ हुए जबकि तीसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ है जहां 1607 लोग स्वस्थ हुए। इसी तरह से बीते 24 घंटों में आए कुल नए मामलों में 79.24 प्रतिशत मामले 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं। केरल में सबसे अधिक 5,887 नए मामले सामने आए। दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र रहा, जहां पर 3,018 नए मामले आए और तीसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल में 1,244 नए मामले सामने आए। बीते 24 घंटों में 286 कोविड मरीजों की मृत्यु हुई। 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 79.37 प्रतिशत नई मौत के मामले हैं। महाराष्ट्र इसमें सबसे ऊपर रहा जहां 68 लोगों की मौत हुई। पश्चिम बंगाल में 30 और दिल्ली में 28 मौतें दर्ज की गईं। भारत में हर दिन होने वाली मौतों में निरंतर कमी आ रही है। भारत में प्रति दस लाख आबादी 107 लोगों की मौत हुई है जोकि दुनिया के देशों की तुलना में सबसे कम मृत्यु दर वाले देशों में है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय से सिफारिश की है कि ब्रिटेन से भारत में आने वाली उड़ानों के अस्थायी निलंबन को 7 जनवरी (गुरुवार), 2021 तक और बढ़ाया जाए। यह सिफारिश स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) के नेतृत्व में संयुक्त निगरानी समूह (जेएमजी) और महानिदेशक, आईसीएमआर और सदस्य (स्वास्थ्य) नीति आयोग के संयुक्त नेतृत्व वाले नेशनल टास्क फोर्स से प्राप्त इनपुट के आधार पर की गई है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय को यह भी सुझाव दिया गया है कि 7 जनवरी 2021 के बाद ब्रिटेन से भारत आने वाली उड़ानों को सीमित संख्या में नियमित बहाली पर विचार किया जाए। नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ परामर्श कर ऐसी व्यवस्था बनाने के लिए मिल कर काम किया जा सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने सभी राज्यों को लिखा है कि वे ऐसे सभी कार्यक्रमों पर कड़ी निगरानी रखी जाए जहाँ से संभावित "सुपर स्प्रेडर" यानि तेजी से संक्रमण का खतरा हो सकता है। साथ ही नए साल के जश्न और इसके साथ-साथ सर्दियों के मौसम में होने वाली विभिन्न कार्यक्रमों के मद्देनजर भीड़ पर अंकुश लगाने के लिए कहा गया है। गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों के लिए हाल ही में जारी की गई सलाह और मार्गदर्शन को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दोहराया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को अंतरराष्ट्रीय टीका और प्रतिरक्षा गठबंधन, गावी के बोर्ड में नामित किया गया है। डॉ. हर्षवर्धन इस बोर्ड में दक्षिण-पूर्व क्षेत्र क्षेत्रीय कार्यालय (एसईएआरओ)/ पश्चिमी प्रशांत क्षेत्रीय कार्यालय (डब्ल्यूपीआरओ) निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे। उनका कार्यकाल एक जनवरी, 2021 से 31 दिसंबर, 2023 तक रहेगा। वर्तमान में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व म्यांमार के श्री मिंत ह्टवे कर रहे हैं। इस बोर्ड की साल में दो बार जून और नवंबर/दिसंबर में बैठकें होती हैं। इसके अलावा मार्च या अप्रैल में एक वार्षिक रिट्रीट का आयोजन होता है। गावी बोर्ड रणनीतिक दिशा एवं नीति-निर्माण के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा यह टीका गठबंधन के संचालनों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी भी करता है। वहीं कई साझेदार संगठनों और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ बोर्ड संतुलित रणनीतिक निर्णय लेने, नवाचार और सहयोगात्मक साझेदारी के लिए भी एक मंच उपलब्ध कराता है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने चार राज्यों - असम, आंध्र प्रदेश, पंजाब और गुजरात में कोविड-19 टीकाकरण संबंधित गतिविधियों के लिए 28 और 29 दिसंबर, 2020 को दो दिवसीय पूर्वाभ्यास (ड्राई रन) का आयोजन किया गया। वैश्विक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) को शुरू करने तथा खसरा-रूबेला (एमआर) और वयस्क जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई) जैसे राष्ट्रव्यापी मल्टीपल वाइड-रेंज इंजेक्टेबल टीकाकरण अभियान को आयोजित करने के अनुभव के साथ, कोविड -19 के लिए स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं, फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और 50 वर्ष से ऊपर के लोगों, जैसे टीकाकरण प्राथमिकता वाले जनसंख्या समूहों को टीका लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। इस पूर्वाभ्यास क्रिया का उद्देश्य एक सिरे से दूसरे सिरे तक कोविड-19 टीकाकरण प्रक्रिया का परीक्षण करना है। इसमें परिचालन दिशा-निर्देशों के अनुसार योजना बनाना और तैयारियां करना, सीओ-विन एप्लिकेशन पर सुविधाओं और उपयोगकर्ताओं का सृजन, सत्र स्थल का निर्माण और स्थलों की मैपिंग, स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं (एचसीडब्लू) का डेटा अपलोड करना, जिले में वैक्सीन की प्राप्ति और आवंटन, सत्र की योजना बनाना, टीकाकरण टीम की तैनाती, सत्र स्थल पर लॉजिस्टिक प्रबंधन और ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर टीकाकरण आयोजित करने के लिए मॉक ड्रिल और समीक्षा बैठकों का आयोजन करना शामिल हैं। इस पूर्वाभ्यास का उद्देश्य आईटी प्लेटफॉर्म को-विन के क्षेत्र में कार्यान्वयन और वास्तविक कार्यान्वयन से पूर्व आगे बढ़ने के तरीकों के बारे में मार्गदर्शन करना शामिल है। केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने आज प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (टीआईएफएसी) द्वारा तैयार की गई आत्म निर्भर भारत के लिए कार्य सूची रिपोर्ट जारी की। इस अवसर पर वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा, टीआईएफएसी के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर प्रदीप श्रीवास्तव और वरिष्ठ वैज्ञानिक उपस्थित रहे। टीआईएफएसी के जुलाई 2020 में जारी किए गए कोविड-19 के बाद के मेक-इन-इंडिया के लिए केन्द्रित हस्तक्षेप पर श्वेत पत्र के फॉलोअप के रूप में आत्म निर्भर भारत के लिए कार्य सूची रिपोर्ट जारी की गई है। श्वेत पत्र में पांच क्षेत्रों पर जोर दिया गया है। ये हैं- स्वास्थ्य सेवाओं की मशीनरी, आईसीटी, कृषि, विनिर्माण और इलेक्ट्रॉनिक्स जो कि कोविड-19 के काल के बाद की भारत के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होंगे। डॉ. हर्ष वर्धन ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री की सोच कोविड महामारी के दौरान हम सबको प्रेरित करती रही है। इसने देश के लोगों को विश्वास दिया है और हम वायरस को हराने में कामयाब रहे हैं। हमने विश्व के पेशेवर कौशल को पीछे छोड़ दिया है। हमने दिखा दिया है कि भारत कुछ तय करता है तो कर के दिखा देता है। भारत सरकार ने ब्रिटेन में कोविड-19 विषाणु की नई प्रजाति सार्स कोविड-2 के पाए जाने की खबरों का संज्ञान लेते हुए इसके जीनोमअनुक्रमण का पता लगाने और तथा इसके नियंत्रण और बचाव के लिए समय से पहले ही एक सक्रिय रणनीति तैयार कर ली है। इस रणनीति में निम्नलिखित बातें शामिल हैं, लेकिन यह इतने तक ही सीमित नहीं है - 23 दिसंबर, 2020 की मध्यरात्रि से 31 दिसंबर, 2020 तक ब्रिटेन से आने वाली सभी उड़ानों पर अस्थायी रोक, ब्रिटेन से आने वाले सभी विमान यात्रियों का अनिवार्य रूप से आरटी-पीसीआर परीक्षण, आरटी-पीसीआर परीक्षण में पॉजिटिव पाए गए सभी नमूनों के जीनोम अनुक्रमण का पता लगाने के लिए इन्हें इस काम के लिए चिन्हित दस सरकारी प्रयोगशालाओं अर्थात आईएनएसएसीओजी में भेजा जाना, परीक्षण, उपचार, निगरानी और नियंत्रण रणनीति पर विचार करने और सुझाव देने के लिए कोविड-19 के संबंध में 26 दिसंबर को राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) की बैठक का आयोजन, ब्रिटेन में पाए गए सार्स कोविड-2 के म्यूटेंट रूप से निपटने के लिए 22 दिसंबर, 2020 को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को जारी मानक संचालन प्रोटोकॉल। 26 दिसंबर, 2020 की बैठक में राष्ट्रीय कार्यबल (एनटीएफ) की ओर से इस पूरे मामले पर विस्तार से चर्चा की गई और यह निष्कर्ष निकाला गया कि सार्स कोविड-2 के नए म्यूटेंट रूप को देखते हुए मौजूदा राष्ट्रीय उपचार प्रोटोकॉल या मौजूदा परीक्षण प्रोटोकॉल में किसी तरह के बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं है। एनटीएफ ने यह भी सुझाव दिया कि मौजूदा निगरानी रणनीति के अतिरिक्त यदि कुछ करना है तो कोविड के नए रूप के जीनोम अनुक्रमण की निगरानी बढ़ाने पर ज्यादा जोर देना बेहतर होगा। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज भारत के पहले न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) का उद्घाटन किया। इस 'न्यूमोसिल' टीके का विकास सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एसआईआईपीएल) ने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे भागीदारों के सहयोग से किया है। टीके की खुराक की संख्या के लिहाज से एसआईआईपीएल को दुनिया की सबसे बड़ी विनिर्माता और भारत की अर्थव्यवस्था में इसके योगदान का उल्लेख करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सीरम इंस्टीट्यूट के टीके का उपयोग 170 देशों में किया जाता है और दुनिया में हर तीसरे बच्चे को इस विनिर्माता के टीके से प्रतिरक्षित किया जाता है। उन्होंने याद दिलाया कि एसआईआईपीएल को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण के अनुरूप कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान भारत सरकार से पहली स्वदेशी न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) विकसित करने के लिए लाइसेंस मिला था। उन्होंने पीसीवी में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के इस प्रयास में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के असाधारण प्रयासों का भी उल्लेख किया। डॉ. हर्षवर्धन ने भारत की जरूरत के लिए टीका विकसित करने में एसआईआईपीएल की उपलब्धियों का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा,'सीरम इंस्टीट्यूट का पहला स्वदेशी न्यूमोकोकल कंजुगेट टीका एकल खुराक (शीशी और सिरिंज) में और कई खुराक वाली शीशी में न्यूमोसिल ब्रांड नाम के तहत बाजार में सस्ती कीमत के साथ उपलब्ध होगा। डॉ. हर्षवर्धन ने आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता और मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड के उनके दृष्टिकोण के बारे में बताते हुए कहा,'न्यूमोसिल अनुसंधान एवं विकास और उच्च गुणवत्ता वाले टीके के विनिर्माण में भारत की क्षमता का एक उदाहरण है। वास्तव में कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान यह ऐतिहासिक उपलब्धि हमारे देश के लिए गर्व की बात है क्योंकि अब तक हम पूरी तरह से विदेशी विनिर्माताओं द्वारा तैयार न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन पर निर्भर रहे हैं जो बाजार में बहुत अधिक कीमत पर उपलब्ध हैं।' केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने आज वीडियो कॉन्फ्रेन्स के माध्यम से अच्छे और अनुकरणीय व्यवहारों पर 7वें राष्ट्रीय सम्मेलन का डिजिटल रूप में उद्घाटन किया। डॉ. हर्ष वर्धन ने एबी-एचडब्ल्यूसी में टीबी सेवाओं के लिए संचालन दिशा निर्देशों तथा सक्रिय पहचान तथा कुष्ठ रोग के लिए नियमित निगरानी पर संचालन दिशा निर्देश 2020 के साथ नई स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) भी लॉन्च की। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अच्छे, अनुकरणीय व्यवहारों तथा भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में नवाचार पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करता है। डॉ. वर्धन ने सम्मेलन के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की और महामारी की स्थिति में सम्मेलन आयोजित करने के लिए सभी को बधाई दी। उन्होंने कहा कि नवाचारी कनवरजेंस रणनीति पर फोकस आवश्यक है। यह भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को नई ऊंचाई तक ले जाएगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा नावाचार पोर्टल पर 2020 में 210 नए कदमों को अपलोड किया गया। इन नवाचारों का अंतिम उद्देश्य एक ओर लोगों की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना है तो दूसरी ओर स्थायी रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत बनाना है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा इको सिस्टम में नवाचार पर चिंतन के लिए जमीनी स्तर के स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को शामिल और एकीकृत किया जाना चाहिए तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य डिलीवरी प्रणाली में काम कर रहे लोगों के वर्षों के अनुभव और विशेषज्ञता से प्राप्त सामूहिक समझ का लाभ उठाया जाना चाहिए। डॉ. हर्ष वर्धन ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में पोलियो उन्नमूलन अभियान के अपने अनुभव को साझा किया और स्वास्थ्य कार्यक्रमों में लोगों तथा समुदाय की भागीदारी की शक्ति के बारे में बताया। राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने आज कहा कि कोरोना वायरस ने सामाजिक रिश्तों, आर्थिक गतिविधियों, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और जीवन के अन्य विभिन्न आयामों के तौर पर विश्व में काफी बदलाव ला दिया है, लेकिन जीवन की गति रुकी नहीं है और इसका श्रेय मुख्य रूप से सूचना और संचार तकनीकी को जाता है। तकनीकी विकास को आमतौर पर बाधा के रूप में देखा जाता है, लेकिन इस साल उसने हमें एक बड़ी 'बाधा' से पार पाने में मदद की। श्री कोविंद ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से डिजिटल इंडिया अवार्ड-2020 प्रदान किये। राष्ट्रपति ने कहा कि सक्रिय डिजिटल हस्तक्षेप के चलते हम लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद महत्वपूर्ण सरकारी सेवाओं के संचालन को जारी रखना सुनिश्चित कर सकें। उन्होंने कहा कि महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों से पार पाने में देश की मदद करने के काम में डिजिटल योद्धाओं की भूमिका बहुत प्रशंसनीय रही। आरोग्य सेतु, ई-ऑफिस और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सेवाओं जैसे आईसीटी अवसंरचना समर्थित मंचों के जरिये देश महामारी की परेशानियों को कम करने में सफल रहा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 31 दिसंबर, 2020 को सुबह 11 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से राजकोट, गुजरात में एम्स की आधारशिला रखेंगे। गुजरात के राज्यपाल, गुजरात के मुख्यमंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री भी इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे। इस परियोजना के लिए 201 एकड़ भूमि आवंटित की गई है। इस परियोजना की अनुमानित लागत 1195 करोड़ रूपये हैं। इस परियोजना का कार्य 2022 के मध्य तक पूरा होने की उम्मीद है। 750 बेड वाले इस अत्याधुनिक अस्पताल में 30 बेड का आयुष ब्लॉक भी होगा। इसमें एमबीबीएस की 125 सीटें और नर्सिंग की 60 सीटें होंगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से महाराष्ट्र के संगोला से पश्चिम बंगाल के शालीमार के बीच 100वीं किसान रेल को झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर और श्री पीयूष गोयल भी उपस्थित थे। इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि किसान रेल सेवा देश के किसानों की आय को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।उन्होंने कोविड-19 महामारी के बीच 4 महीनों में 100वीं किसान रेलचलाए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह सेवा कृषि से जुड़ी अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव लेकर आएगी और देश की कोल्ड सप्लाई चेन को सशक्त करेगी। उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने युवाओं को कोविड महामारी से उत्पन्न चुनौतियों को अवसरों में बदलने की सलाह दी है। सोमवार को विजयवाड़ा में स्वर्ण भारत ट्रस्ट के प्रशिक्षुओं को प्रमाणपत्र देने के अवसर पर एक सभा को संबोधित करते हुए श्री नायडू ने कहा कि महामारी ने जहां कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है, वहीं इसने दूसरे क्षेत्रों में लोगों के लिए अवसर का मार्ग भी खोला है। देश की 65 प्रतिशत आबादी के 35 वर्ष से कम आयु का होने का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यदि हम इस मानव संसाधन का सदुपयोग करें, तो युवा और महिलाएं राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भागीदार बन सकते हैं। उन्होंने कहा "इन महत्वपूर्ण मानव संसाधनों के साथ, हम भविष्य में एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं"। इस संबंध में उपराष्ट्रपति ने युवाओं के कौशल विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न प्रयासों को याद किया और इन्हें और गति प्रदान करने का आह्वान किया। उन्होंने 21वीं सदी की जरूरतों के अनुरूप कौशल विकास पर जोर देते हुए इस क्षेत्र में निजी भागीदारी की आवश्यकता पर बल दिया। उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू ने आज ऐसा मीडिया अभियान चलाने का आह्वान किया, जिससे प्लास्टिक उत्पादों के निपटान के संबंध में लोगों के व्यवहार में बदलाव लाया जा सके। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समस्या प्लास्टिक के साथ नहीं है, बल्कि समस्या प्लास्टिक केउपयोग के बारे में हमारे दृष्टिकोण में है। विजयवाड़ा स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीआईपीईटी)के छात्रों, संकाय सदस्यों और कर्मचारियों को आज यहां संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने प्लास्टिक के स्थायित्व और लंबे समय तक कायम रहने के चलते पैदा होने वाली पर्यावरण चुनौतियों पर चिंता जताई। उन्होंने प्लास्टिककचरे के प्रबंधन की प्रक्रिया को अपनाने और जनता को तीन आर-रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकल (यानी प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना, दोबारा इस्तेमाल करनाऔर दोबारा इस्तेमाल योग्य उत्पाद बनाना) के संबंध में जागरूक बनाने की जरूरत पर जोर दिया। श्री नायडू ने देश में जारी कोविड-19 महामारी के दौरान प्लास्टिक की महत्ता की खासतौर से प्रशंसा की, क्योंकि इस महामारी के प्रसार को रोकने और इससे निपटने के लिए चिकित्सा सुरक्षा उपकरण और पीपीई किट के निर्माण में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। प्लास्टिक के अलावा पॉलीमर सामग्री का इस्तेमाल भी चिकित्सकीय उपकरण और इन्सुलिन पेन्स, आईवी ट्यूब्स, इम्प्लांट्स और टिश्यू इंजीनियरिंग में किया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था में पॉलीमर्स के महत्व को बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि 30,000 से ज्यादा प्लास्टिक प्रसंस्करण इकाइयां देशभर में 40 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया करा रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति करीब 12 किलोग्राम की औसत राष्ट्रीय खपत के साथ भारत का स्थान विश्व के पांच सबसे बड़े पॉलीमर उपभोक्ताओं में है। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने पूर्व में जारी निगरानी से संबंधित दिशा-निर्देशों को 31 जनवरी 2021 तक लागू रखने के लिए सोमवार को एक आदेश जारी कर दिया है। भले ही कोविड-19 के नए और सक्रिय मामलों की संख्या में लगातार कमी आ रही है, लेकिन वैश्विक स्तर पर मामलों में बढ़ोतरी और यूनाइटेड किंगडम (यूके) में वायरस के नए संस्करण के सामने आने के बाद निगरानी, रोकथाम और सतर्कता बनाए रखने की आवश्यकता है। इस क्रम में, नियंत्रण (कंटेनमेंट) क्षेत्रों का सावधानी से सीमांकन; इन क्षेत्रों में सुझाए गए रोकथाम के सख्त उपायों के पालन; कोविड संबंधी उपयुक्त व्यवहार को प्रोत्साहन और सख्ती से अनुपालन; और विभिन्न स्वीकृत गतिविधियों के संबंध में मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का ईमानदारी से पालन जारी रखा गया है। इस प्रकार 25 नवंबर 2020 को जारी दिशा-निर्देशों में उल्लिखित गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण (एमओएचएफडब्ल्यू) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों/एसओपी की निगरानी, रोकथाम और सख्ती से पालन पर केंद्रित दृष्टिकोण को सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों द्वारा लागू किए जाने की जरूरत है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने कोविड-19 की अवधि के दौरान जम्मू और कश्मीर में खादी कारीगरों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। इस बीच, केवीआईसी ने देश भर में स्थायी रोजगार सृजित करने के लिए अथक प्रयास किये हैं, इतना ही नहीं आयोग ने केवल जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में ही खादी संस्थानों को 29.65 करोड़ रुपये का भुगतान किया है, जिस पर भारत सरकार विशेष तौर पर ध्यान दे रही है। इस राशि को मई 2020 से लेकर सितंबर 2020 तक जम्मू-कश्मीर के 84 खादी संस्थानों में वितरित किया गया है, जिससे इन संस्थानों से जुड़े लगभग 10,800 खादी कारीगरों को लाभ पहुंचा है। - केरलः केरल सरकार ने देश के विभिन्न हिस्सों में कोविड -19 के नए स्वरूप के मामलों और ब्रिटेन से लौटे 20 लोगों के पॉजिटिव परीक्षण के बाद बरती जा रही सतर्कता के बीच यूरोप से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग के लिए कड़े कदम उठाए हैं। ब्रिटेन से आये 18 यात्रियों के पॉजिटिव परीक्षण के बाद राज्य सरकार सतर्कता बरत रही है। पॉजिटिव नमूने जिनोम सीक्वेंसिंग हेतु एनआईवी, पुणे भेजे गए थे जिससे यह जांचा जा सके कि वे नए स्वरूप के हैं या नहीं। इसके परिणाम की अभी प्रतीक्षा की जा रही है। राज्य की स्वास्थ्य मंत्री के के शैलजा ने कहा है कि वायरस के नए स्वरूप से संक्रमि मामले में, मौजूदा कोविड -19 उपचार ही जारी रहेगा। केरल में हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनावों के बाद, यह आशंका थी कि राज्य में कोविड-19 मामलों में बड़े पैमाने पर उछाल आएगा। हालांकि, पिछले पखवाड़े में दर्ज किए गए नए सकारात्मक मामलों की संख्या कम से कम इस तरह की आशंकाओं को नकारती है। राज्य में मंगलवार को 5,887 नए मामले आए और 5,029 मरीज ठीक हुए। राज्य में संक्रमण से मरने वालों की संख्या 3014 है। वर्तमान परीक्षण पॉजिटिव दर 9.5 है। - तमिलनाडुः तमिलनाडु में आज तक कुल 8,16,132 मामले दर्ज किए गए हैं और 12,092 मौतें दर्ज की गई है। ऱाज्य मे 8747 सक्रिय मामले है और 7,95,293 मरीजों को डिस्चार्ज किया गया है। - कर्नाटकः राज्य में आज तक कुल मामले 9,17,571 और सक्रिय मामले की संख्या 11,861 है। संक्रमण से मौतों की संख्या 12074 है जबकि 8,93,617 मरीजों को डिस्चार्ज किया गया है। - आंध्र प्रदेशः गुजरात, पंजाब और असम के साथ-साथ आंध्र प्रदेश में भी कोविड -19 प्रतिरक्षण अभियान के लिये निर्धारित तंत्र की व्यवस्था के आकलन के लिए दो दिवसीय पूर्वाभायस का अभियान चलाया गया। यह अभ्यास सोमवार और मंगलवार को कृष्णा जिले में विभिन्न कार्यों के लिए गठित विशिष्ट टीमों द्वारा किया गया था। यह पूर्वाभ्यास योजना, कार्यान्वयन और रिपोर्टिंग तंत्र के अलावा, को - विन की परिचालन व्यवहार्यता की जांच करने के लिए था। अभियान के तहत डमी लाभार्थी डेटा, साइट निर्माण, वैक्सीन आवंटन और टीकाकरण, टीकाकारों के विवरण और लाभार्थियों की जानकारी अपलोड करने, और लाभार्थी एकत्र करने जैसी गतिविधियां की गईं। दिल्ली हवाई अड्डे पर कर्मचारियों को चकमा देने वाली महिला के नए कोविड स्ट्रेन के लिए पॉज़िटिव होने की पुष्टि के बाद राज्य सरकार अलर्ट पर है। राज्य में अब तक ब्रिटेन से आने वाले 1,423 लोगों की पहचान की जा चुकि है साथ ही उनके संपर्क में आने वाले 6,364 लोगों की भी पहचान की गई है। कुछ दिनों में समाप्त होने जा रहा यह साल कोविड माहामारी की वजह से प्रभावित रहा है। बहुत से लोग वायरस के प्रसार के डर से फूलों के गुलदस्ते खरीदने से डरते हैं, फूलों के खरीदार उन्हें विश्वास दिलाने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं। - तेलंगानाः राज्य में आज तक, कुल मामलों की संख्या 2,81,730 तक पहुंच गई है। राज्य में कुल सक्रिय मामले 6590 है और इससे होने वाली मौतों की संख्या 1538 है। साथ ही 2,85,939 मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दी गई है। तेलंगाना के वारंगल में 49 वर्षीय व्यक्ति के कोविड -19 के नए स्वरूप से संक्रमित होने के बाद राज्य सरकार ने इससे निपटने के लिये कमर कस ली है। इस बीच सीसीएमबी के निदेशक डॉ. राकेश मिश्रा ने लोगों से आग्रह किया है कि वे कोविड के प्रति बरती जा रही सावधानियों को कम न होने दें क्योंकि ब्रिटेन से आए वेरिएंट में संक्रमण की दूसरी लहर पैदा करने की क्षमता है। भारत बायोटेक के एमडी डॉ. कृष्णा एला ने आश्वासन दिया है कि को-वाक्सिन जो उत्पादन कर रहा है वह नए स्वरूप के खिलाफ भी करगर होगा। - असमः असम में, कोविड-19 से 66 और लोग संक्रमित पाए गए और मंगलवार को 87 रोगियों को छुट्टी दी गई। राज्य में कुल मामले 216063 हो गए हैं। राज्य में कुल डिस्चार्ज मरीजों की संख्या 211720 है, जबकि सक्रिय मामले 3300 है और 1040 लोगों की कुल हुई है। राज्य में कल दो मरीजों की मौत हुई। - सिक्किमः सिक्किम में मंगलवार को 19 और लोग कोविड-19 से संक्रमित पाए गए। राज्य में कुल मामलों की संख्या बढ कर 5864 हो गई है और सक्रिय मामले 537 हो गए हैं।
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थेरेसा मैरी मे (उर्फ़ ब्रेसियर; जन्म 1 अक्टूबर 1956) यूनाइटेड किंगडम की प्रधानमंत्री और कंजर्वेटिव पार्टी की नेता है। वे 1997 से मेडनहैड सीट से संसद के सदस्य (सांसद) हैं। उन्हें एक एक-राष्ट्र रूढ़िवादी और एक उदार रूढ़िवादी के रूप में जाना जाता है। इससे पूर्व मार्गरेट थैचर वर्ष 1979 से 1990 तक ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री रहीं। गौरतलब है कि डेविड कैमरून ने जनमत संग्रह के जरिए ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर आने के फैसले के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद 13 जुलाई, 2016 को उन्होने ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया। . 9 संबंधोंः एलिज़ाबेथ द्वितीय, डेविड कैमरन, प्रदत्त नाम, ब्रिटेन, मारग्रेट थैचर, यूरोपीय संघ, सांसद, संयुक्त राजशाही के प्रधानमंत्री, जनसत्ता। एलिज़ाबेथ द्वितीय (Elizabeth II) (एलिजाबेथ ऐलैग्ज़ैण्ड्रा मैरी, जन्मः २१ अप्रैल १९२६) यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, जमैका, बारबाडोस, बहामास, ग्रेनेडा, पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन द्वीपसमूह, तुवालू, सन्त लूसिया, सन्त विन्सेण्ट और ग्रेनाडाइन्स, बेलीज़, अण्टीगुआ और बारबूडा और सन्त किट्स और नेविस की महारानी हैं। इसके अतिरिक्त वह राष्ट्रमण्डल के ५४ राष्ट्रों और राज्यक्षेत्रों की प्रमुख हैं और ब्रिटिश साम्राज्ञी के रूप में, वह अंग्रेज़ी चर्च की सर्वोच्च राज्यपाल हैं और राष्ट्रमण्डल के सोलह स्वतन्त्र सम्प्रभु देशों की संवैधानिक महारानी हैं। एलिज़ाबेथ को निजी रूप से पर घर पर शिक्षित किया गया था। उनके पिता, जॉर्ज षष्ठम को १९३६ में ब्रिटेन और ब्रिटिश उपनिवेश भारत का सम्राट बनाया गया था। ६ फरवरी १९५२ को अपने राज्याभिषेक के बाद एलिज़ाबेथ राष्ट्रकुल की अध्यक्ष व साथ स्वतंत्र देशों यूनाइटेड किंगडम, पाकिस्तान अभिराज्य, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका व सिलोन की शासक रानी बन गयीं। उनका राज्याभिषेक समारोह अपने तरह का पहला ऐसा राज्याभिषेक था जिसका दूरदर्शन पर प्रसारण हुआ था। 1956 से 1992 के दौरान विभिन्न देशों को स्वतंत्रता मिलते रहने से उनकी रियासतों की संख्या कम होती गई। वह विश्व में सबसे वृद्ध शासक और ब्रिटेन पर सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली रानी है। ९ सितम्बर २०१५ को उन्होंने अपनी परदादी महारानी विक्टोरिया के सबसे लंबे शासनकाल के कीर्तिमान को तोड़ दिया व ब्रिटेन पर सर्वाधिक समय तक शासन करने वाली व साम्राज्ञी बन गयीं। एलिज़ाबेथ का जन्म लंदन में ड्यूक जॉर्ज़ षष्टम व राजमाता रानी एलिज़ाबेथ के यहाँ पैदा हुईं व उनकी पढाई घर में ही हुई। उनके पिता ने १९३६ में एडवर्ड ८ के राज-पाठ त्यागने के बाद राज ग्रहण किया। तब वह राज्य की उत्तराधिकारी हो गयी थीं। उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जनसेवाओं में हिस्सा लेना शुरु किया व सहायक प्रादेशिक सेवा में हिस्सा लिया। १९४७ में उनका विवाह राजकुमार फिलिप से हुआ जिनसे उनके चार बच्चे, चार्ल्स, ऐने, राजकुमार एँड्रयू और राजकुमार एडवर्ड हैं। एलिज़ाबेथ के शासन के दौरान यूनाइटेड किंगडम में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जैसे अफ्रीका की ब्रिटिश उपनिवेशीकरण से स्वतंत्रता, यूके की संसद की शक्तियों का वेल्स, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड व आयरलैंड की संसदों में विभाजन इत्यादि। अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने विभिन्न युद्धों के दौरान अपने राज्य का नेतृत्व किया। . डैविड विलियम डोनाल्ड कैमरन (जन्म ९ अक्तूबर, १९६६) २०१० से जुलाई २०१६ तक संयुक्त राजशाही के प्रधान मंत्री रह चुके हैं। वे कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता थे तथा ये विटने से संसद सदस्य थे। यूरोपीय संघ की सदस्यता पर हुए जनमत संग्रह में जनता ने संघ को छोड़ने का निर्णय दिया तो उन्होंने इस्तीफे की घोषणा कर दी। कैमरन ने ब्रेज़नोज़ महाविद्यालय, ऑक्स्फ़ोर्ड से दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र (पीपीई) विषय में १९८८ में प्रथम श्रेणी (ऑनर्स) में स्नातक किया है। इन्हें इनके पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर वर्नॉन बोगडेनॉर "समर्थतम छात्रों में से एक" कहा करते थे। अपने ऑक्सफोर्ड प्रवास काल में ये बुलिंग्डब क्लब के सदस्य रहे थे। इन्हॊने कंज़र्वेटिव अनुसंधान विभाग ज्वाइन किया और नॉर्मन लेमाउण्ट एवं माईकल हावर्ड के विशेष सलाहकार बने। फ़िर ये कार्ल्टन कम्युनिकेशंस के कारपोरेट मामलों के निदेशक पद पर सात वर्ष तक आसीन रहे। कैमरन पहली बार संसद के लिये १९९७ में स्टैफ़्फ़ोर्ड निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में आए। ये यूरोस्केप्टिक मंच पर अपनी पार्टी से उसकी एकल-यूरोपीय मुद्रा (यूरो) में ब्रिटिश सदस्यता विरोधी विचारधारा के कारण उससे अलग हो गए। हालांकि राष्ट्रीय औसत वोटों से कुछ न्यून रहने पर वे हारे भी। इसके बाद उनको संसद सदस्यता हेतु प्रथम विजय २००१ के आम चुनावों में ऑक्स्फ़ोर्डशायर की विट्टने निर्वाचन क्षेत्र से मिली। तब इन्हें आधिकारिक विपक्ष का स्थान मिला। २००५ के आम चुनावों में नीति समन्वय अध्यक्ष भी बने। अपनी युवा एवं उदारवादी प्रत्याशी की छवि के कारण ही २००५ में इन्होंने कंज़र्वेटिव पार्टी के चुनावों में विजय पाई। तब ये प्रथम बार ब्रिटेन के प्रधान मंत्रीबने। . प्रदत्त नाम या दिया हुआ नाम एक ऐसा व्यक्तिगत नाम है जो कि लोगों के समूह में सदस्यों की पहचान कराता है, विशेषकर परिवार में, जहां सभी सदस्य आम तौर पर एकसमान पारिवारिक नाम (कुलनाम) साझा करते हैं, उनके बीच अंतर स्पष्ट करता है। एक प्रदत्त नाम किसी व्यक्ति को दिया गया नाम है, जो पारिवारिक नाम की तरह विरासत में नहीं मिलता। अधिकांश यूरोपीय देशों में और ऐसे देशों में जहां की संस्कृति मुख्य रूप से यूरोप से प्रभावित है (जैसे कि उत्तर और दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, आदि में बसे यूरोपीय आनुवंशिकता वाले व्यक्ति), आम तौर पर प्रदत्त नाम पारिवारिक नाम से पहले आता है (हालांकि सामान्यतः सूचियों और कैटलॉग में नहीं) और इसलिए पूर्व नाम या प्रथम नाम के रूप में जाना जाता है। लेकिन विश्व की कई संस्कृतियों में - जैसे कि हंगरी, अफ्रीका की विभिन्न संस्कृतियों और पूर्व एशिया की अधिकांश संस्कृतियों (उदा. चीन, जापान, कोरिया और वियतनाम) में - प्रदत्त नाम परंपरागत रूप से परिवार के नाम के बाद आते हैं। पूर्वी एशिया में, प्रदत्त नाम का अंश भी परिवार की किसी विशिष्ट पीढ़ी के सभी सदस्यों के बीच साझा किया जा सकता है, ताकि एक पीढ़ी की दूसरी पीढ़ी से अलग पहचान की जा सके। सामान्य पश्चिमी नामकरण परंपरा के तहत, आम तौर पर लोगों के एक या अधिक पूर्व नाम (या तो दिए गए या प्राप्त) होते हैं। यदि एक से अधिक है, तो आम तौर पर (हर रोज़ के इस्तेमाल के लिए) एक मुख्य पूर्व नाम और एक या अधिक पूरक पूर्व नाम मौजूद होते हैं। लेकिन कभी-कभी दो या अधिक एकसमान महत्व वाले होते हैं। इस तथ्य के परे कि पूर्व नाम उपनाम से पहले होते हैं, इनके लिए कोई विशिष्ट क्रमांकन नियम मौजूद नहीं है। अक्सर मुख्य पूर्व नाम शुरूआत में होता है, जिसके परिणामस्वरूप एक प्रथम नाम और एक या अधिक मध्यम नाम बनते हैं, लेकिन अन्य व्यवस्थाएं भी काफ़ी प्रचलित है। प्रदत्त नाम का उपयोग अक्सर अनौपचारिक स्थितियों में एक परिचित और मैत्रीपूर्ण ढंग से किया जाता है। अधिक औपचारिक स्थितियों में इसके बजाय उपनाम का प्रयोग किया जाता है, जब तक कि एक ही उपनाम वाले लोगों के बीच अंतर करना ज़रूरी न हो। मुहावरा "प्रथम-नाम के आधार पर" (या "प्रथम-नाम संबोधन") इस तथ्य का संकेत देता है कि व्यक्ति के प्रदत्त नाम का उपयोग, सुपरिचय जताता है। . ब्रिटेन शब्द का प्रयोग हालाँकि आम तौर पर हिंदी में संयुक्त राजशाही अर्थात् यूनाइटेड किंगडम देश का बोध करने के लिए होता है, परंतु इसका उपयोग अन्य सन्दर्भों के लिए भी हो सकता है. मारग्रेट हिल्डा थैचर, बैरोनेस थैचर (13 अक्टूबर 1925 - 8 अप्रैल 2013) ब्रिटिश राजनीतिज्ञ थीं, जो बीसवी शताब्दी में सबसे लंबी अवधि (1979-1990) के लिए यूनाईटेड किंगडम की प्रधानमंत्री रही थीं और एकमात्र महिला जिन्होंने यह कार्यभार संभाला हो। . यूरोपियन संघ (यूरोपियन यूनियन) मुख्यतः यूरोप में स्थित 28 देशों का एक राजनैतिक एवं आर्थिक मंच है जिनमें आपस में प्रशासकीय साझेदारी होती है जो संघ के कई या सभी राष्ट्रो पर लागू होती है। इसका अभ्युदय 1957 में रोम की संधि द्वारा यूरोपिय आर्थिक परिषद के माध्यम से छह यूरोपिय देशों की आर्थिक भागीदारी से हुआ था। तब से इसमें सदस्य देशों की संख्या में लगातार बढोत्तरी होती रही और इसकी नीतियों में बहुत से परिवर्तन भी शामिल किये गये। 1993 में मास्त्रिख संधि द्वारा इसके आधुनिक वैधानिक स्वरूप की नींव रखी गयी। दिसम्बर 2007 में लिस्बन समझौता जिसके द्वारा इसमें और व्यापक सुधारों की प्रक्रिया 1 जनवरी 2008 से शुरु की गयी है। यूरोपिय संघ सदस्य राष्ट्रों को एकल बाजार के रूप में मान्यता देता है एवं इसके कानून सभी सदस्य राष्ट्रों पर लागू होता है जो सदस्य राष्ट्र के नागरिकों की चार तरह की स्वतंत्रताएँ सुनिश्चित करता हैः- लोगों, सामान, सेवाएँ एवं पूँजी का स्वतंत्र आदान-प्रदान. सांसद, संसद में मतदाताओं का प्रतिनिधि होता है। अनेक देशों में इस शब्द का प्रयोग विशेष रूप से निम्न सदन के सदस्यों के लिए किया जाता है। क्योंकि अक्सर उच्च सदन के लिए एक अलग उपाधि जैसे कि सीनेट एवं इसके सदस्यों के लिये सीनेटर का प्रयोग किया जाता है सांसद अपनी राजनीतिक पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर संसदीय दल का गठन करते हैं। रोजमर्रा के व्यवहार में अक्सरसांसद शब्द के स्थान पर मीडिया में इसके लघु रूप "MP"का प्रयोग किया जाता है। . ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री. जनसत्ता हिन्दी का प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है। .
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने आज सोमवार को नोटबंदी (demonetisation) पर अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार की नोटबंदी को चुनौती देने वाली सभी 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया है। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। कोर्ट का कहना है कि हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी। जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 7 दिसंबर को सरकार और याचिकाकर्ताओं की पांच दिन की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस नजीर अपने रिटायरमेंट से दो दिन पहले नोटबंदी पर फैसला सुनाया है। फैसला सुनाने वाली बेंच में जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन, और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना शामिल हैं। इससे पहले कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और आरबीआई से नोटबंदी से जुड़े सभी दस्तावेज और रिकॉर्ड कोर्ट में पेश करने को कहा था। टीम इंडिया (Team India) को साल 2022 में चोटों (injuries) से जूझना पड़ा और उसके कई खिलाड़ी (player) इसका शिकार बने. जसप्रीत बुमराह (Jasprit Bumrah), रोहित शर्मा (Rohit Sharma) और रवींद्र जडेजा (Ravindra Jadeja) जैसे स्टार प्लेयर्स चोटिल खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल रहे. बुमराह और जडेजा की कमी तो टीम इंडिया को काफी खली और उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. अब भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (BCCI) ने खिलाड़ियों की इंजरी से निपटने के लिए एक बड़ा फैसला लिया. अब खिलाड़ियों के सेलेक्शन का आधार यो-यो टेस्ट के अलावा डेक्सा (DEXA) भी होगा. अगर डेक्सा स्कैन में कोई समस्या आती है तो खिलाड़ियों का सेलेक्शन नहीं किया जाएगा. यानी कि अब भारतीय टीम में चयन के लिए यो-यो टेस्ट के साथ-साथ इस नए टेस्ट में भी खिलाड़ियों को सफलता प्राप्त करनी होगी. मैक्सिको (mexico) के सीमावर्ती शहर जुआरेज शहर (juarez city) में एक जेल (Jail) में कुछ हमलावरों ने गोलियां चला दीं। इस हमले में 14 लोगों की मौत (Death) हो गई, वहीं एक अधिकारी ने बताया कि जेल हमले में मरने वालों में 10 सुरक्षाकर्मी और चार कैदी थे, जबकि 13 अन्य घायल हुए और कम से कम 24 भाग निकले। हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं हो सका कि हमला किसने किया। पुलिस प्रवक्ता ने कहा कि प्रारंभिक जांच में पाया गया कि हमलावर स्थानीय समयानुसार सुबह करीब सात बजे बख्तरबंद वाहनों में जेल पहुंचे और गोलियां चलाईं। शहर के एक अलग हिस्से में, बाद में दिन में दो और ड्राइवरों की मौत हो गई। अधिकारियों ने बताया कि सशस्त्र हमले में उनकी मौत हुई है। राज्य अभियोजक ने यह नहीं बताया कि क्या तीनों घटनाएं संबंधित थीं। अधिकारियों के मुताबिक, यह घटना उस वक्त हुई, जब जेल में बंद कैदियों के अपने परिवारों से मिलने का समय था। इसी दौरान सुबह लगभग 7 बजे कुछ बंदूकधारी एक गाड़ी से जेल में घुस आए और सुरक्षा अधिकारियों को गोली मार दी। इस डर के माहौल में 24 कैदी जेल से भाग निकले। सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के गोरखनाथ मंदिर में होने के दौरान रविवार दोपहर 12. 30 बजे मंदिर परिसर में आतंकी घुसने की सूचना से हड़कंप मच गया। पुलिस कंट्रोल रूम नंबर 112 पर कॉल आते ही डीएम कृष्णा करुणेश, एसएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर फोर्स के साथ गोरखनाथ मंदिर पहुंचकर जांच पड़ताल करने लगे। उधर, एसओजी, सर्विलांस टीम नंबर के आधार पर जांच पड़ताल में जुट गई। देर शाम एसओजी ने आरोपी को गिरफ्तार कर कैंट पुलिस को सौंप दिया। पुलिस आरोपी से पूछताछ कर रही है। शुरुआती जांच में सामने आया है कि आरोपी सिरफिरा है और पुलिस को परेशान करने के लिए सूचना दी थी। पकड़े गए आरोपी की पहचान बिहार के वैशाली निवासी कुर्बान अली के रूप में हुई है। वह गोरखनाथ इलाके के इंड्रस्ट्रियल एरिया में किराए के मकान में रहकर बेकरी की दुकान पर काम करता है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण (increasing infection of corona) को देखते हुए उत्तरप्रदेश में टीकाकारण कार्य में तेजी लाने का काम किया जा रहा है. कोविड प्रबंधन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने गठित उच्चस्तरीय टीम 09 के साथ सोमवार को प्रदेश की स्थिति की समीक्षा की. बैठक के दौरान सीएम ने जानकारी दी कि यूपी सरकार (UP Government) ने केंद्र सरकार से कोविड वैक्सीन की 10 लाख डोज मांगी है. समीक्षा बैठक के दौरान प्रदेश में कोरोना की स्थिति को लेकर चर्चा की गयी. इस बैठक के बाद सीएम योगी आदियानाथ ने कहा कि विभिन्न देशों में बढ़ते कोविड-19 के संक्रमण (Corona Cases In UP) के बीच उत्तर प्रदेश की स्थिति सामान्य है. दिसंबर माह में 09 लाख 06 हजार से अधिक टेस्ट किए गए, जिसमें 103 केस की पुष्टि हुई. इस अवधि में प्रदेश की पॉजिटिविटी दर 0. 01% दर्ज की गई. वर्तमान में प्रदेश में कुल 49 एक्टिव केस हैं. विगत 24 घंटों में 42 हजार से अधिक टेस्ट किए गए. यह समय सतर्क और सावधान रहने का है. विमुद्रीकरण (Demonetisation) को लेकर जारी एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ ने आज 4:1 के अनुपात में नोटबंदी के पक्ष में फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि केंद्र द्वारा नोटबंदी करना बिलकुल वाजिब था. आज इस ऐतिहासिक फैसले के मौक पर देखते हैं कि आखिर किन कारणों से नोटबंदी की गई थी. सरकार का कहना था कि देश में बड़ी मात्रा में काला धन (black money) छुपा है. साथ ये काला धन मुख्यतः 500 और 1000 रुपये के नोटों के रूप में रखा गया है. नोटबंदी से ये सारा धन बेकार हो जाएगा, वरना सरकार की नजर में आ जाएगा. इसके अलावा एक और बड़ी समस्या देश में जाली नोटों की थी. इसकी वजह से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच रहा था. नोटबंदी से जाली नोटों की समस्या पर लगाम लगाने की मंशा थी. ब्लैक मनी और जाली नोटों से देश में अशांति फैलाने वाले तत्वों को फंडिंग की जा रही थी. कश्मीर में मिलिटेंसी से लेकर छत्तीसगढ़ में माओवाद तक को इससे समर्थन दिया जा रहा था. नकली नोटों के कारण बैंकों के लिए परेशानी खड़ी हो गई थी. आए दिन एटीएम से नकली नोट निकलने की शिकायतें आ रही थी और एटीएम बंद तक करने की नौबत आ रही थी. इन जाली नोटों और काले धन के कारण एक समानांतर अर्थव्यवस्ता का संचालन हो रहा था जिसकी वजह से बैंकों को बड़ा नुकसान हो रहा था. नोटबंदी से इस पर भी रोक लगाने में मदद मिली. पाकिस्तानी हिंदुओं (Pakistani Hindus) की एक ख्वाहिश पूरी करने में नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi government) बड़ी मदद करने जा रही है. पाकिस्तान में कई हिंदुओं की अंतिम ख्वाहिश थी कि मरने के बाद उनकी अस्थियों को पवित्र गंगा नदी में विसर्जित किया जाए. लेकिन उनके परिवार के लोगों के लिए अस्थियां लेकर पाकिस्तान से भारत आना आसान नहीं है. ऐसे में अब नरेंद्र मोदी सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसके जरिए वे सभी परिवार अपने लोगों की अस्थियों की लेकर उत्तराखंड के हरिद्वार आ सकेंगे और अस्थियों को धार्मिक क्रियाओं के अनुसार पवित्र गंगा में विसर्जित कर सकेंगे. नरेंद्र मोदी सरकार की स्पॉन्सरशिप पॉलिसी में संशोधन के बाद ऐसा पहली बार होगा, जब 426 पाकिस्तानी हिंदुओं की अस्थियों को उनके परिवार के लोगों के द्वारा हरिद्वार में गंगा नदी में विसर्जित किया जाएगा. वर्तमान में ये अस्थियां कराची के कुछ मंदिरों और श्मशान घाटों और अन्य जगहों पर रखी हुई हैं. पंजाब के चंडीगढ़ (Chandigarh) में बम होने की खबर सामने आई. पुलिस बम (लाइव शैल) होने की सूचना जिस इलाके से मिली है वह पंजाब के सीएम हाउस (CM House) से कुछ ही दूरी पर है. पुलिस ने तुरंत ही बम स्क्वाड (bomb squad) को इस बात की सूचना दी है. फिलहाल मौके पर पुलिस और बम स्क्वाड (police and bomb squad) पहुंच गए हैं. मामले की जांच की जा रही है. इस वीवीआईपी इलाके (VVIP area) में बम की खबर से पूरे प्रशासन में खलबली मच गई है. यह बम एक आतंकी हमले की साजिश के तहत यहां होने के शक है. हालांकि यह साजिश नाकाम हो गई है. जानकारी के मुताबिक शहर के कांसल और मोहाली के नया गांव की सीमा पर यह बम मिला है. इसे सबसे पहले एक ट्यूबवैल चालक ने देखा था जिसके बाद उसने पुलिस को इसकी सूचना दी. पुलिस ने तुरंत बम स्क्वाड को सूचना दी और दोनों ही टीमें मौके पर पहुंच गई. बताया जा रहा है कि जहां यह बम मिला है वहां पर सीएम हाउस के अलावा पंजाब और हरियाणा सचिवालय (Punjab and Haryana Secretariat) और विधानसभा परिसर (विधानसभा परिसर) भी हैं. इस बम की लोकेशन से सीएम हाऊस के लिए बनाया गया वीवीआईपी हैलिपेड भी है. दिल्ली (Delhi) में रविवार को हुए कंझावला (Kanjhawala) मामले ने पुरे देश को अंदर तक झकझोर दिया है. जिस तरह से एक गाड़ी ने लड़की को कई किलोमीटर तक सड़क पर घसीटा, हर कोई स्तब्ध रह गया है. अब इस मामले में गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने दिल्ली पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे इस केस की एक विस्तृत रिपोर्ट (detailed report) उन्हें तुरंत सौंपे. बता दें कि दिल्ली के कंझावला में रविवार तड़के एक युवती का नग्न अवस्था में शव मिला था. बॉडी के कई हिस्से क्षत-विक्षत हो गए थे. पुलिस का दावा है कि कार सवार 5 युवकों ने एक युवती को टक्कर मारी, फिर सड़क पर 10 से 12 किमी तक घसीटा, जिससे उसकी मौत हो गई. दिल्ली पुलिस ने शव मिलने के बाद जांच की तो घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर पुलिस को एक स्कूटी भी पड़ी मिली, जो दुर्घटनाग्रस्त थी. स्कूटी के नंबर के आधार पर युवती के बारे में पता किया गया. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के एक चर्च में धर्मांतरण (conversion to church) को लेकर हिंसा हुई। नारायणपुर में आदिवासी समाज (tribal society) में गुस्सा है और वो सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों (protesters) ने सोमवार को मौके पर पहुंचे नारायणपुर के एसपी सदानंद कुमार (SP Sadanand Kumar) पर हमला कर दिया। इस हमले में उनके सिर पर गंभीर चोट आई। बताया जा रहा कि आदिवासी समाज को धर्मांतरण की जानकारी मिली थी। जिसे लेकर समाज के लोग भड़क गए। आरोप है कि इस दौरान धर्म विशेष के लोगों ने उनके साथ मारपीट की। इसमें कई लोग घायल हो गए। विरोध बढ़ गया और भीड़ ने एक चर्च में तोड़फोड़ करने की कोशिश की। भीड़ को शांत करने की कोशिश करने वाले नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक सदानंद कुमार घायल हो गए। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया। Share:
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भडन्डस हुन प्रेस क २०. ( क ) तदनन्तर किसी दिन राजा कूणिक स्नान करके, सुगन्धित द्रव्य, तिलक आदि लगाकर और राजा के योग्य शुद्ध वस्त्र - आभूषण पहनकर चेलनादेवी के पास चरण-वंदना करने के लिए आया । उस समय कूणिक राजा ने माता चेलनादेवी को उदासीन यावत् चिन्ता, शोक मे डूबी हुई देखा। देखते ही चेलनादेवी के पाँव पकड़ लिए और चेलनादेवी से इस प्रकार पूछने लगा- "माता । ऐसी क्या बात है कि आज तुम्हारे चित्त मे सतोष, उत्साह, हर्ष और आनन्द नही है जबकि मै स्वय ( आपका पुत्र ) राज्य - वैभव का उपभोग करते हुए सुखपूर्वक समय बिता रहा हूँ ?" (अर्थात् मेरा राजा बनना क्या आपको अच्छा नहीं लग रहा है ?) उत्तर मे चेलनादेवी ने कूणिक राजा से इस प्रकार कहा- "हे पुत्र । मेरे मन मे प्रसन्नता, उत्साह, 1 हर्ष अथवा आनन्द कैसे हो सकता है? जबकि तुमने देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे अत्यन्त स्नेहानुरागयुक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को बेडियो से बाँधकर अपना महान् राज्याभिषेक स्वय कराया है।" HOMAGE AT THE FEET OF THE MOTHER 20. (a) One day after taking his bath, applying perfumes and auspicious mark (tılak), and wearing clean garb and ornaments suitable for the royalty, King Kunik came to Queen Chelana to touch her feet and pay homage On this occasion he found mother Chelana sad, worried and melancholic He at once touched Queen Chelana's feet and asked"Mother ! What is the matter ? Today you do not appear contented, zealous, joyous or happy, even when 1, your son, live happily enjoying the glory of the kingdom ?" ( Iri other words, does my becoming king not please you ? ) Queen Chelana replied - "Son! How can I be contented, zealous, Joyous or happy when you have ceremoniously ascended the throne by imprisoning your god-like and guru-like father, King Shrenik, who has only love and affection for you " चेलना रानी द्वारा भ्रान्तिनिवारण २०. ( ख ) तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देविं एवं वयासी- "घाएउकामे णं, अम्मो ! मम सेणिए राया, एवं मारेउ बंधिउ निच्छुभिउकामे णं अम्मो ! ममं सेणिए राया। तं कहं णं अम्मो ! ममं सेणिए राया अच्चंतनेहाणुरागरत्ते ?" तए णं सा चेल्लणा देवी कूणियं कुमारं एवं वयासी - "एवं खलु, पुत्ता ! तुमंसि ममं गब्भे आभूए समाणे तिन्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं ममं अयमेयारूवे दोहले पाउब्भूए 'धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, (जाव) अंगपडिचारियाओ, निरवसेसं भाणियव्वं (जाव), जाहे वि य णं तुमं वेयणाए अभिभूए महया. (जाव) तुसिणीए संचिट्ठसि । एवं खलु पुत्ता ! सेणिए राया अच्चंतनेहाणुरागरत्ते।" तए णं कूणिए राया चेल्लणाए देवीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म चेल्लणं देविं एवं वयासी"दुटु णं अम्मो ! मए कयं सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणगं अच्चंतनेहाणुरागरत्तं नियलबंधण करतेणं । तं गच्छामि णं सेणियस्स रन्नो सयमेव नियलाणि छिंदामि" त्ति कटु परसुहत्थगए जेणेव चारगसाला तेणेव पहारेत्थ गमणाए। २०. ( ख ) माता चेलनादेवी की बात सुनकर कूणिक ने इस प्रकार कहा- "माता । श्रेणिक राजा तो मेरा घात करने के इच्छुक थे। हे अम्मा ! श्रेणिक राजा तो मुझे मार डालना चाहते थे, बाँधना चाहते थे और मुझे राज्य से निर्वासित कर देना चाहते थे। तो फिर हे माता । आप यह कैसे कहती है कि श्रेणिक राजा का मेरे प्रति अतीव स्नेहानुराग था ?" यह सुनकर चेलनादेवी ने कृणिककुमार से इस प्रकार कहा- "हे पुत्र । जब तू मेरे गर्भ मे आया था, तब तीन मास अच्छी तरह पूरे होने पर मुझे इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ था कि वे माताएँ धन्य है, यावत् । अगपरिचारिकाओ से मैने तुम्हे उकरडे पर फिकवा दिया, आदि। जब भी तुम वेदना से पीडित होते और जोर-जोर से रोते तब श्रेणिक राजा तुम्हारी व्रणग्रस्त अंगुली मुख मे लेते और मवाद चूसते । तब तुम शान्त हो जाते, इत्यादि पूर्व वर्णित सब वृत्तान्त चेलना ने कूणिक को सुनाया। इसी कारण हे पुत्र । मैने कहा कि श्रेणिक राजा के मन मे तुम्हारे प्रति अत्यन्त स्नेहानुराग था ।" चेलना रानी के मुख से कूणिक राजा ने इस पूर्व वृत्तान्त को सुना, उस पर विचार किया तो वह चेलनादेवी से इस प्रकार कहने लगा- "माता । निश्चित ही मैने बहुत बुरा किया जो देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे अत्यन्त स्नेहानुराग से अनुरक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को बेडियो से बाँधा। अब मै जाता हूँ और स्वय अपने हाथो से ही श्रेणिक राजा की बेडियो को काटता हूँ।' ऐसा कहकर वह परशु-कुल्हाडी हाथ मे लेकर जहाँ कारागृह था, उस ओर चल दिया। QUEEN CHELANA REMOVES MISUNDERSTANDING 20. (b) To these words of mother Chelana Kunik responded - "Mother King Shrenik was desirous of destroying me O mother King Shrenik wanted to kill me or apprehend me and exile me from the state O mother' How then do you say that he dearly loved me Hearing these words Queen Chelana said to prince Kunik-"Son ' On completion of three months after I conceived you I had this dohad"Blessed, fortunate, and contented are those mothers who and so on up to with the help of my maids I threw you on a heap of trash and so on whenever you wailed, King Shrenik came near you and sucked out the blood and pus from your wounded finger. This gave you relief and you stopped crying" Thus Queen Chelana narrated the aforesaid details to Kunik and added - "That is the reason, why I told you that King Shrenik dearly loved you King Kunik heard this story about his past from Queen Chelana and thought about it He then said - "Mother । Indeed, I have committed a grave mistake by shackling King Shrenik, my god-like and guru-like father who so profoundly loved me Now I shall go and cut his shackles with my own hands" With these words he picked up an axe and left for the prison. विवेचन - इस सूत्र पर टिप्पणी लिखते हुए आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज सूचित करते है - "इससे पता चलता है कि कूणिक इससे पूर्व अपने जन्म-विषयक, सम्पूर्ण घटनाक्रम से अपरिचित था। राजतिलक नही करने के कारण वह क्षुब्ध भी था। कुछ गलतफहमियों के कारण पिता को अपना शत्रु समझने लगा था। दूसरी बात, राज्य लोभ मे वह फँस चुका था। इस दुष्कर्म मे पूर्वजन्मो के कर्म भी प्रेरक कारण बने है। (पूर्वजन्म का वृत्तान्त परिशिष्ट मे देखे ) Elaboration Commenting on this aphorism Acharya Shri Atmaram ji M informs-This informs that prior to the said moment Kunik was not aware of all these details about the post birth incidents of his life He was also angry because of the delay in his coronation He considered his father to be his enemy because of some misunderstandings Further, he was caught in the trap of greed for the kingdom Besides, karmas accumulated in the past births were also the inspiring factor for this (see appendix for the story of the past births) श्रेणिक का अन्तर्द्वन्द्व २१. (क) तए णं सेणिए राया कूणियं कुमारं परसुहत्थगयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी - "एस णं कूणिए कुमारे अपत्थियपत्थिए (जाव) हिरि - सिरि- परिवज्जिए परसुहत्थगए इह हव्यमागच्छइ । तं न नज्जइ णं ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्सइ" त्ति कट्टु भीए (जाव) तत्थे तसिए उब्बिग्गे संजायभये तालपुडगं विस आसगंसि पक्खिवइ । तए णं से सेणिए राया तालपुडगविसंसि आसगंसि पक्खित्ते समाणे मुहुत्तंतरेण परिणममाणंसि निप्पाणे निच्चेट्ठे जीवविप्पजढे ओइण्णे । तए णं से कूणिए कुमारे जेणेव चारगसाला तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता सेणियं रायं निप्पाणं निच्चेदूं जीवविप्पजढं ओइण्णं पासइ, पासित्ता महया पिइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चम्पगवरपायवे धस त्ति धरणीयलंसि सव्यंगेहिं संनिवडिए । २१. ( क ) तब श्रेणिक राजा ने कूणिककुमार को हाथ मे कुल्हाडी लिए अपनी ओर आते हुए देखा। देखते ही उसने मन ही मन विचार किया- 'यह अकर्त्तव्य को कर्त्तव्य मानने वाला मेरा विनाश चाहने वाला, यावत् लोक-लाज से रहित, निर्लज्ज कूणिककुमार हाथ मे कुल्हाडी लेकर इधर आ रहा है। न मालूम मुझे यह किस कुमौत से मारेगा।' इस विचार से भयभीत, त्रस्त, आशकाग्रस्त, उद्विग्न और भयाक्रान्त होकर तालपुट विष को अपने मुख मे डाल लिया। तालपुट विष को मुख मे डालते ही कुछ क्षणो के बाद उस विष के शरीर मे घुल जाने पर श्रेणिक राजा निष्प्राण, निश्चेष्ट एव जीवनरहित हो गया । इसके बाद वह कूणिककुमार जहाँ कारावास था वहाँ पहुँचा। पहुँचकर उसने श्रेणिक राजा को निष्प्राण, निश्चेष्ट, निर्जीव देखा। तब वह असह्य भयकर पितृ-शोक से बिलबिलाता हुआ शोक सतप्त हुआ, कुल्हाडी से कटे चम्पक वृक्ष की तरह धडाम से पछाड खाकर भूमि पर गिर पड़ा। SHRENIK'S INNER CONFLICT 21. (a) King Shrenik saw prince Kunik approaching with an axe in his hand The moment he saw this he thought-Prince Kunik, who considers misdeeds as his duty wishes to destroy me He is shameless and devoid of any considerations of honour He is coming this way with an axe in his hand I do not know what contemptible death he will inflict on me " Filled with fear, awe, apprehension, nervousness and horror, he put taalput-vish ( a deadly poison ) in his mouth Within a few moments of swallowing it the poison spread throughout the body of King Shrenik and it was rendered breathless, motionless, and lifeless Prince Kunik reached the prison after this and found King Shrenik breathless, motionless, and lifeless Whining with bereavement of losing his father and engulfed in grief, he fall on the ground like an axed champak tree कूणिक का पश्चात्ताप २१. ( ख ) तए णं से कूणिए कुमारे मुहुत्तंतरेण आसत्थे समाणे रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे विलवमाणे एवं वयासी - "अहो णं मए अधन्त्रेणं अपुण्णेणं अकयपुण्णेणं दुटुकयं सेणियं रायं पियं देवयं अच्चतनेहाणुरागरत्तं नियलबंधणं करतेणं मम मूलागं चेव णं सेणिए राया कालगए" त्ति कट्टु । राईसरतलवर जाव माडम्बिय - कोडुम्बिय - इब्भ - सेट्ठि- सेणावइ - सत्यवाह-मंति-गणगदोवारिय- अमच्च-चेड पीढमद्द - नगर निगम - दूय - संधिवालसद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे विलवमाणे महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं सेणियस्स रन्नो नीहरणं करेइ । तए णं से कूणिए कुमारे एएणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अन्नया कयाइ अंतेउरपरियाल - संपरिवुडे सभण्डमत्तोवगरणमायाए रायगिहाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव चंपानयरी तेणेव उवागच्छइ तत्थ वि णं विउलभोग-समिइसमन्त्रागए कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था । तए णं से कूणिए राया अन्नया कयाइ कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता रज्जं च जाव रट्ठे च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च अंतेउरं च जणवयं च एक्कारसभाए विरिंचइ, विरिचित्ता सयमेव रज्जसिरि करेमाणे पालेमाणे विहरइ ।
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यह सिर्फ इतना है कि बाथरूम टाइल परिष्करण के लिए सबसे लोकप्रिय और व्यावहारिक सामग्री माना जाता है होता है। लेकिन कई बार जब, कुछ निश्चित परिस्थितियों की वजह से यह नहीं किया जा सकता है। कमरे या सीमित वित्तीय संसाधनों का एक बहुत ही छोटे से क्षेत्र घर के मालिक मजबूर विकल्प की मरम्मत के लिए विकल्पों को देखने के लिए। इससे पहले, ऐसी स्थितियों में, दीवारों चित्रित या लेप किया जा सकता था, लेकिन हाल के वर्षों में यह बाथरूम में वॉलपेपर लटका बहुत फैशनेबल बन गया है। कई लोग अभी भी इस तरह के विचारों की उलझन में हैं, लेकिन जो लोग पहले से इस विकल्प परिष्करण का लाभ लेने में कामयाब रहे, कहते हैं कि यह कई मामलों में चीनी मिट्टी कोटिंग्स से बेहतर साबित होता है। तो क्या हुआ वॉलपेपर के सभी एक ही फायदे, क्या उनकी प्रजातियों सजावट बाथरूम के लिए उपयोग करने के लिए, और कैसे परिसर की मरम्मत प्रदर्शन करने के लिए बेहतर है है? ये सवाल इस लेख में विचार किया जाएगा। आप जा रहे हैं वॉलपेपर लटका बाथरूम में, यह पहली उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आवश्यक है। वहाँ प्राथमिकता दी जानी चाहिए नमी प्रतिरोधी वेरिएंट, क्योंकि उत्पाद कागज और कपड़े अधिक तेजी के आधार पर विफल हो जाएगा पर है। सही विकल्प हो जाएगाः विनाइल वॉलपेपर, तरल कोटिंग और ग्लास फाइबर सामग्री। उनके उपयोग सकारात्मक पहलुओं की एक संख्या है। अर्थात्ः • सजावट बाथरूम वॉलपेपर मालिकों खर्च होंगे ज्यादा बिछाने टाइल्स से सस्ता है। • रंग, बनावट और छवियों का एक विशाल विविधता वास्तविकता में सबसे बोल्ड और असामान्य डिजाइन समाधान का अनुवाद करने की अनुमति देता है। • रोलर ब्लेड का प्रयोग बहुत अधिक परिसर की मरम्मत की सुविधा है, तो आप भी अपने ही हाथों से काम कर सकते हैं। • वॉलपेपर आदर्श शौचालय प्रशंसकों के साथ सजा अक्सर इस स्थिति को बदलने। चीनी मिट्टी टाइल कई वर्षों के लिए पर रखा जाता है, यह लगभग हर साल रोल सामग्री को बदलने के लिए संभव है। देखा जा सकता है, इस तरह के उत्पादों के उपयोग के लिए पूरी तरह से जायज है, यह अपने विचार निर्धारित करने के लिए केवल बनी हुई है। तथ्य यह है कि शौचालय की दीवारों लगभग पानी के साथ कोई संपर्क, उनमें नमी के प्रभाव के लिए लचीला होना करने के लिए कवर के बावजूद। इसका कारण यह है कमरे की विशिष्टता, समय-समय पर सफाई सतहों की आवश्यकता है क्रम संचय और बैक्टीरिया के गुणन से बचने के लिए है। करने के लिए बाथरूम में वॉलपेपर अच्छी तरह से रखा गया था, तो आप उन्हें संलग्न के लिए एक विशेष जल प्रतिरोधी चिपकने वाला प्रयोग करना चाहिए। यह भी वेंटिलेशन की गुणवत्ता है, जो नमी और संक्षेपण का संचय कर पाएगा की देखभाल करने की सिफारिश की है। अब हम आधुनिक के साथ सौदा करते हैं वॉलपेपर के प्रकार , और उनकी विशेषताओं। विनाइल वॉलपेपर कागज पर बना रहे हैं, लेकिन, सबसे सस्ता समकक्षों के विपरीत, वे नमी प्रतिरोधी बहुलक कोटिंग कर रहे हैं। विशेष समाधान के साथ इस तरह का बना देता है गर्भवती वे भी बाथरूम में इस्तेमाल किया जा सकता, नए नए साँचे को स्थानांतरित करने के अधीन नहीं हैं। कागज जाले सबसे आसान नहीं हैं। उनके भारी वजन नमी गोंद के लिए एक ही हेवी-ड्यूटी, और प्रतिरोधी का उपयोग करता है। सुखाने के बाद, पट्टी जंक्शन में एक अंतराल के रूप में संकुचित किया जा सकता है। इस तरह के एक सामग्री का चयन, आप लेबल है, जो यह दर्शाता है कि यह यह धोने के लिए संभव है पर ध्यान देना चाहिए। उत्पाद है, जो एक भी लहर से पता चलता एक नम स्पंज के साथ साफ किया जा सकता। दो संस्करणों में संकेत मिलता है कि उत्पाद धीरे एक डिटर्जेंट से साफ किया जा सकता। चित्रित ब्रश या तीन तरंगों हेवी-ड्यूटी का तार कोटिंग संकेत मिलता है। तरल वॉलपेपर के मूल रूप में रोल सामग्री के साथ कुछ नहीं नहीं है। कई और भी उन पर विचार प्लास्टर का एक प्रकार किया जाना है। वे ठीक सेलूलोज़ फाइबर का रंग योगों के रूप में बेचा जाता है। फिनिशिंग दीवारों वॉलपेपर शौचालय (इस प्रकार) काम कर रचना कि प्लास्टर के रूप में दीवार पर लागू होता है और साथ ही के मिश्रण के साथ शुरू होता है। इस सामग्री का सकारात्मक सुविधाओं उच्च शोर को अवशोषित गुणों मामूली अनियमितताओं और आधार में दोष को छिपाने के लिए की क्षमता है, साथ ही शामिल हैं। समाप्त कोटिंग नमी प्रतिरोध देने के लिए, यह clearcoat की एक परत के साथ कवर किया जाता है। यह विकल्प, एक ही विनाइल वॉलपेपर है बस के रूप में आधार यहाँ interlining है। वे पूरी तरह से छुपाने के सभी धक्कों के बाद गोंद सूख गया है संकोचन के अधीन नहीं हैं, और कहा कि महत्वपूर्ण है, यह बहुत नमी के लिए प्रतिरोधी है। वॉलपेपर (धोने योग्य) शौचालय के लिए अलग अलग डिजाइन है, लेकिन सबसे लोकप्रिय सेरेमिक टाइल्स की छवि माना जाता है। यह विकल्प सबसे अच्छा शास्त्रीय डिजाइन बाथरूम है, जो किसी कारण से टाइल्स का उपयोग नहीं कर सकते हैं के प्रशंसकों के लिए अनुकूल है। गैर-बुनी वॉलपेपर दो प्रकार के होते हैंः गोंद और चित्रकला के आधार पर। पहले प्रकार चिपकने वाला आधार की उपस्थिति और दूसरे रंग तैयार करने की विशेषता है अप करने के लिए 10 बार के साथ कवर किया जा सकता है। जब एक को चुनने स्वयं चिपकने वॉलपेपर बाथरूम के लिए, आप ध्यान उनके जल-प्रतिकारक गुण के लिए, कुछ विकल्प इस तरह के गुणों के पास नहीं के रूप में भुगतान करना चाहिए। ग्लास फाइबर उत्पादों कांच और कागज की पतली किस्में बुनाई से बनते हैं। प्रारंभ में, कपड़े एक हल्के भूरे रंग के रंग, जो बाद में किसी भी रंग में पानी आधारित पेंट के साथ खत्म हो गया चित्रित किया गया है। उत्कृष्ट प्रदर्शन, पर्यावरण मित्रता, कई repainting की संभावना, नमी के लिए प्रतिरोध, आग - यह इन वॉलपेपर के पास सभी सकारात्मक गुण नहीं है। अपार्टमेंट में शौचालय आदर्श है। हालांकि, अगर हम इस मुद्दे की वित्तीय घटक के बारे में बात करते हैं, तो उस फाइबरग्लास उत्पादों बहुत पिछले समकक्षों की तुलना में अधिक महंगा ध्यान दिया जाना चाहिए। लेकिन जब आप इस कोटिंग की लंबी सेवा के जीवन पर विचार, लागत उचित हैं। जो लोग कला का एक वास्तविक टुकड़ा में अपने बाथरूम चालू करना चाहते हैं, तो आप भित्ति पर गौर करना चाहिए। इंटीरियर डिजाइन और मालिक का स्वाद के किसी भी शैली के तहत एक छवि लेने के लिए सक्षम इस उत्पाद बहुत लोकप्रिय बनाता है। एक अच्छी तरह से चुना चित्रों नेत्रहीन एक छोटे से स्थान का विस्तार करने और इसे करने के लिए परिष्कार जोड़ सकते हैं। (इस प्रकार की) मरम्मत शौचालय वॉलपेपर अपने ही हाथों से प्रदर्शन करने के लिए मुश्किल हो जाता है। दोष और झुर्रियों के बिना pokleit कपड़े केवल पेशेवर जादूगर, और यह अतिरिक्त लागत के लिए नेतृत्व करेंगे कर सकते हैं। खरीदारी बाहर जा रहा है, मन है कि नहीं सभी वॉलपेपर उच्च आर्द्रता के साथ कमरे में इस्तेमाल के लिए तैयार कर रहे हैं में रहते हैं। इस बिंदु उत्पाद को खरीदने से पहले विक्रेता के साथ जांच करने के लिए सबसे अच्छा है। प्रारंभ करने के लिए समझ जाएगा कि कैसे एक तरल दीवार सतह तैयार करने के लिए है, क्योंकि इस विकल्प दीवारों विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। 1. पहला कदम (putties, वॉलपेपर, रंग, आदि पी) और किसी भी दूषित पदार्थों को जो अंततः पानी के साथ संपर्क में प्रकट वर्ष माल की दीवार साफ करने के लिए है। 2. बड़े अंतराल, छेद, छेद और किसी भी अन्य अनियमितताओं देखते हैं दीवारों, तो वे एक करणी और पोटीन के साथ दफनाया गया था। इस आदेश wholemeal मिश्रण की बेकार की खपत को कम करने के लिए आवश्यक है। अगर गहरे recesses पहले से नहीं हटाया, एक दीवार पर सूखे सजावटी परत की मोटाई की बहुत ध्यान देने योग्य अचानक परिवर्तन हो जाएगा। 3. मामलों में जहां विभिन्न दोषों की सतह पर बहुत ज्यादा, जिप्सम पोटीन के एक समान परत के साथ लेपित दीवार में। 4. आधार समतल करने के बाद यह एक मानक प्राइमर के साथ इलाज किया जाना चाहिए। इस काम में तीन बार हर तीन घंटे किया जाता है। 5. इसके तत्काल बाद तरल वॉलपेपर पूरी सतह एक विशेष पोटीन या सफेद रंग के जलीय पायस रंग के साथ लेपित लागू करने से पहले। रोल सामग्री, यहां दीवारों की तैयारी कर थोड़ा आसान करने की प्रक्रिया के रूप में। सतह भी दुरुस्त है, यह परिष्करण पलस्तर, जिस oshkurivaetsya के माध्यम से गठबंधन है। प्राइमर के साथ फ्लैट दीवार फिर से इलाज किया। आधार की पूरी सुखाने के बाद आप wallpapering शुरू कर सकते हैं। तरल pokleit करने के लिए बाथरूम में वॉलपेपर, यह पहली बार एक काम मिश्रण तैयार करने के लिए आवश्यक है। इस प्रक्रिया को भड़काना सतह के स्तर पर आगे बढ़ सकते हैं के बाद से तरल वॉलपेपर समाधान के लिए दिए गए निर्देशों का कम से कम 6 घंटे तैयार रहना चाहिए। सामग्री की संरचना तीन मुख्य घटक शामिल हैंः • cellulosic फाइबर; • सजाने मिश्रण; • सूखी गोंद। ज्यादातर मामलों में, वे, विभिन्न संकुल में पैक कर रहे हैं ताकि सभी अवयवों मिश्रण करने के लिए आप एक बड़ी क्षमता की आवश्यकता होगी। प्राप्त मिश्रण किसी भी गांठ नहीं होने चाहिए। समाप्त पानी धीरे-धीरे डालना सूखी फाइबर (अनुदेश के साथ सख्त अनुसार) गूंथी और समय निर्माता द्वारा निर्दिष्ट के लिए खड़े करने के लिए अनुमति दी है। तैयार समाधान की दीवार के साथ छोटे लेपनी और triturated वर्दी परत एक विशेष नाव का उपयोग कर प्राप्त कर रहा। परत मोटाई आम तौर पर 3-4 मिमी है। इस प्रकार यह पूरे दीवार को शामिल किया गया। बाथरूम में सभी प्रारंभिक कार्य पूरा कर लिया है, तो आप सजा दीवारों शुरू कर सकते हैं। बहुत आसान वॉलपेपर, जब पाइप plasterboard के बक्से में छिपे हुए हैं और पाइपलाइन स्थापित किया गया है गोंद के लिए। 1. सुनिश्चित करें कि दीवार काफी सुगमता से और काम करने के लिए सूखी शुरू की हुई है। 2. टेप बाहर उपाय फर्श से लेकर छत तक दीवारों की ऊंचाई मापने। चयन पद्धति की आवश्यकता नहीं चयनित वॉलपेपर (किनारों के आसपास एक छोटे से मार्जिन के अधीन) इच्छित लंबाई के कई स्ट्रिप्स मापा रहे हैं। बैंड एक पैटर्न, पहले साफ और फर्श चयनित पैटर्न सुखाने के लिए के साथ एकजुट हो रहे हैं। 3. जो के आधार पर सामग्री इस मामले में प्रयोग किया जाता है, चिपकने वाला तीन तरीकों से लागू किया जा सकताः सतह पर, केवल एक कपड़े या एक दीवार और रोल एक साथ पर। ध्यान में रखते हुए निर्माता बाथरूम में वॉलपेपर चिपके की सिफारिशों। 4. सबसे अच्छा कोनों में से एक के साथ दीवार के ऊपर चस्पा करने के लिए शुरू करो। पहली पट्टी के लिए एक ऊर्ध्वाधर लेआउट हो सकता है। तो अगर आप यह सुनिश्चित करें कि वॉलपेपर पूर्वाग्रह के बिना दीवार पर स्थित है हो सकता है। बाद के सभी कपड़े गोंद बट जोड़ों पंक्तियों के बीच ध्यान से promazyvaya। 5. एक विशेष रबर रोलर्स की मदद से वॉलपेपर रोल, उन्हें शेष हवा से बाहर मजबूर कर दिया। Desirably, चिपकने वाला पूरी तरह सूख जाने कमरे में कोई ड्राफ्ट और अत्यधिक तापमान था। • यह शौचालय भी चमकदार रंगों में दीवार आकर्षित करने के लिए अनुशंसित नहीं है। इस तरह के हरे, नीले, बेज, ऊंट, आड़ू के रूप में यहाँ और अधिक प्रासंगिक विचारशील रंग। • यदि आप अंतरिक्ष विस्तार करने के लिए नेत्रहीन कमरे की जरूरत है, विस्तृत क्षैतिज धारियों और मध्यम आकार के चित्रों के साथ वॉलपेपर हल्के रंगों का चयन करें। • खरीद वॉलपेपर, ध्यान रखें कि अलग-अलग पार्टियों से उत्पादों अक्सर विभिन्न रंग हैं में रहते हैं। इस अंतर के रोल लगभग unnoticeable हो सकता है, लेकिन अंतर की दीवार पर स्पष्ट हो जाएगा। आजकल वित्तीय घटक मरम्मत के बाद से पहली जगह में सभी इच्छुक वेब सामग्री की एक किस्म की कीमत पर ध्यान देना चाहिए। तो, विनाइल उत्पाद की औसत लागत रोल प्रति 500 रूबल है। गैर बुना कोटिंग की कीमत एक ही राशि के लिए 2000 रूबल से शुरू होता है। Paintable वॉलपेपर रोल प्रति 300 रूबल से खरीदार, और 50-150 रूबल अधिक पर ग्लास फाइबर के उत्पादन खर्च होंगे। तरल वॉलपेपर के लिए औसत लागत पैक प्रति 1000 रूबल है। हमें उम्मीद है इस लेख में जानकारी आप उपयोगी के लिए किया जाएगा और ड्रेसिंग रूम के परिवर्तन की प्रक्रिया में उपयोगी होगा। आराम से आप की मरम्मत!
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चाहिये, क्योंकि मिथ्याज्ञानी तत्वोंके यथार्थ स्वरूप को ग्रहण नहीं कर सकता + है । इसी कारण उसको सच्चा सुख प्राप्त नहीं होता । हैं । और जहां पर अन्धकार रहने से दूर में स्थित पदार्थ 'स्थाणु वा पुरुष' ऐसा स्पष्ट ज्ञान होने से उन दोनों में रहने वाले 'ऊर्ध्वता सामान्य' का प्रत्यक्ष है। वक, कोटर, आदि स्थाणु ( टूठ ) के विशेष एवं शिर, हाथ, आदि पुरुष के विशेष अवयवों का प्रत्यक्ष नहीं, किन्तु पहले उनका ज्ञान हो चुका है, इस लिये मन के द्वारा उनका स्मरण है । इस तरह से जहांपर सामान्य प्रत्यक्ष, विशेष प्रत्यक्ष और विशेष स्मरण है, वहीं पर संशय ज्ञान होने के कारण इन्द्रियों के आधीन इस की उत्पत्ति मानी गई है । परन्तु भवधिज्ञान में इन्द्रियों के व्यापार की कोई अपेक्षा नहीं, न मन के व्यापार की कोई अपेक्षा है, क्योंकि अवधिज्ञान को इन्द्रिय और मन से रहित माना है, किन्तु अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशम की विशुद्धता रहने पर वह सामान्य विशेष रूप अपने विषयभूत पदार्थों को जानता है। इसलिये अवधिज्ञान में संशय नहीं हो सकता है। परन्तु हां, मिथ्यात्व कर्म के विपरीत श्रद्धान स्वरूप मिथ्या दर्शन के साथ श्रवधिज्ञान रहता है, इस लिये वह विपरीत स्वरूप अवश्य है। तथा जिस पदार्थ की और अवधिज्ञान का उपयोग लगा हुवा है, कारण वश उसका पूरा ज्ञान न होने के प्रथम ही, दूसरे किसी ज्ञान के विषयभूत दूसरे ही पदार्थ की ओर उपयोग लग जाय, उस समय मार्ग में जाते हुये पुरुषको 'तृण स्पर्श ज्ञानके समान' अनिश्चयात्मक अवधिज्ञान हो जाता है। श्रतएव अवधिज्ञान का विपरीत परिणमन अनध्यवसाय रूप भी होता है, किन्तु जिस समय जिस पदार्थं को अवधिज्ञान विषय कर रहा है, उस समय यदि वह उपयोग दृढ़ होगा, तो अवधिज्ञान का अनध्यवसाय रूप विपरीत परिणमन नहीं हो सकता है । ( देखो श्लोकवार्तिक पृष्ठ २५६ ) + मिच्छाइट्ठी जीवी उवइटुं यवयां ग सदहदि । सदहदि असम्भवं उवहं वा अणुवटुं ॥१८॥ गो. सा यदि कोई 'अग्नि' को शीतल समझकर स्पर्श करे तो अन्त में उस को दुख ही प्राप्त होगा। इसी प्रकार मिथ्या दृष्टि के ज्ञान का उपयोग पदार्थों के यथार्थ स्वरूप के जानने में नहीं होता। मिथ्याज्ञान और सम्यग्ज्ञानका भेद लौकिक ज्ञान की अपेक्षा से नहीं है, किन्तु मोक्ष मार्ग अथवा वस्तु के यथार्थ स्वरूप के जाननेकी दृष्टि से है । मिथ्या दृष्टि दो प्रकार के होते हैं, एक भव्य, दूसरे अभव्य । जो सिद्ध अवस्था को किसी भी समय प्राप्त कर सकते हैं, उन्हें 'भव्य' कहते हैं, और इनके विपरीत जो सिद्ध अवस्था को किसी भी काल में प्राप्त नहीं हो सकते हैं, उनको 'प्रभव्य' समझना चाहिये । ये दोनों ही प्रकार के मिथ्यांदृष्टि, सम्यग्दृष्टि के समान + ही घटपटादि पदार्थों एवं रूप रसादि को ग्रहण और निरूपण करते हैं, परन्तु जो तत्व मोक्ष मार्ग में सहायक हैं, उन का ज्ञान मिथ्यादृष्टि को विपरीत होता है । इसी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि के ज्ञान को 'मिथ्याज्ञान' + और सम्यग्दर्शन सहित जीव के ज्ञानको 'सम्यग्ज्ञान' कहा गया है । अब नीचे लिखे सूत्र द्वारा मिथ्याज्ञान का विशेष वर्णन करते ‡ तथा हि, सम्यग्दृष्टि र्यथा चक्षुरादिभिः रूपादीनु लभते, तथा मिथ्यादृष्टिरपि मत्यज्ञानेन, यथा सम्यग्दृष्टिःश्रु तेन रूपादीनि जानाति च निरूपय ति तथा मिथ्यादृष्टिरपि श्रुताज्ञानेन, यथा चावधिज्ञानेन सम्यग्दृष्टिः रूपिणी sथानवगच्छति, तथा मिथ्यादृष्टि विभंग ज्ञानेन इति । स० सि० + दर्शन मोह के उदय से आत्मा का मिथ्यादर्शन परिणाम और मतिज्ञानादि दोनों एक साथ और एक स्थान में ही आत्मा में रहते हैं । इसलिये मिथ्यादर्शन के सम्बन्ध से मतिज्ञान आदिको भी मिथ्याज्ञान कहते हैं। जैसे कडुवी तूम्बी में रक्खा हुवा दूध कटुक रज के संसर्ग से दूध भी कटुआ हो जाया करता है, यही बात मिथ्या ज्ञानों के विषय में हैं। सदसतोरविशेषाद्य दृच्छोपलब्धे रुन्मत्तवत् ॥ ३२ ॥ सूत्रार्थः- (सदसतोः) सत् और असत् रूप पदार्थों के ( अविशेषात) विशेष का अर्थात भेद का ज्ञान नहीं होने से (यहच्छोपलब्धेः) स्वेच्छा रूप यद्वा तद्वा जानने के कारण ( उन्मत्तवत् ) उन्मत्त के समान ये मिथ्याज्ञान भी होते हैं । अर्थात् मिथ्यादर्शन के उदय से सत और असत् पदार्थों का भेद नहीं समझते हुये, कुमति कुश्रुत और कुअवधिज्ञान वाले का यथार्थ जानना भी मिथ्याज्ञान ही समझना चाहिये । विशेषार्थः-~~- जिस प्रकार उन्मत्त (पागल) अथवा शराबी पुरुष भार्या (स्त्री) को माता, और माता को भार्या समझता है, यह उसका ज्ञान मिथ्याज्ञान है । परन्तु यदि वह किसी समय स्त्री को स्त्री और माता को माता भी कहदे, तो भी उसका यह कथन ( कहना ) या ज्ञानमिथ्याज्ञान ही कहा जायगा। क्योंकि उसको स्त्री और माताके भेद का यथार्थ (ठीक) ज्ञान नहीं है । उसी प्रकार दर्शन मोह के उदय से सत् और असत् पदार्थ का यथार्थ (ठीक) ज्ञान न होने के कारण कुमति, कुश्रुत, और कुअवधिज्ञान भी मिथ्याज्ञान समझना चाहिये यहां पर 'सत' का अर्थ प्रशस्त अथवा विद्यमान और असत् का तथा विद्यमान समझना चाहिये । वैसे यद्यपि नेत्रादिक इन्द्रियों से घटपटादि पदार्थों के रूपादि गुणों को सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि समानरूप से ग्रहण करता है परन्तु मिथ्यादृष्टि के कारण विपरीतता, स्वरूप विपरीतता और भेदाभेद विपरीतता, ये तीन प्रकारकी विपरोतता रहती है- अब इन तीनों का स्वरूप इस प्रकार है- घटपटादि पदार्थों के रूपादि गुणों को तो जैसे हैं वैसे ही जानता है, परन्तु उसके कारणोंको मिथ्यापहला अध्याय दृष्टि विपरीत कल्पित करता है। जैसे ब्रह्माद्व तवादी रूपादिकों का कारण एक अमूर्तिक नित्य ब्रह्म ही को मानते हैं और नैयायिक वैशेषिक, पृथ्वी से परमाणुओं में जाति भेद मानते हैं । उन में पृथ्वी में तो स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, चार गुण मानते हैं परन्तु वायु और जल में गन्ध को छोड़कर तीन ही गुण मानते हैं । अग्नि में स्पर्श और वर्णं दो ही गुण मानते हैं । वायु में एक स्पर्शगुण ही मानते हैं, शेष तीन गुण नहीं मानते हैं । इससे यह बात सिद्ध करते हैं, कि पृथिवी, जल, अग्नि और वायु ये चार अपनीर जाति के पृथक स्कन्धरूप कार्यों को उत्पन्न करते हैं, अर्थात् इन चारों के परमाणु पृथक २ ही हैं । बौद्ध मत वाले पृथिवी आदि को चार भूत मान कर और स्पर्शादि गुण इन चारों के भौतिक कर्म हैं, ऐसा मानते हैं । पश्चात् इन आठों के समुदाय को 'परमाणु' कहते हैं । इस प्रकार घटपटादि पदार्थों के रूपादि गुणों के कारणों में विपरीतता मानते हैं, यह 'कारण विपरीतता' है । कोई इन समस्त पदार्थोंके स्वरूप में भी भेद मानते हैं, कितने ही तो रूप रसादिको निरंश निर्विकल्प मानते हैं, कोई कहते हैं कि रूपादि गुरण कोई ज्ञान से भिन्न वस्तु नहीं है, ज्ञान ही रूपादिकों के आकार परिणत होता है । कोई वस्तुको सर्वथा अनित्य ही मानते हैं । इसप्रकार मिथ्यात्व के उदय से वस्तुका स्वरूप बिपरीत मानते हैं, इसको 'स्वरूप विप - रोतता' समझना चाहिये । कोई कारण से कार्य को सर्वथा अभिन्न ही मानते हैं । तथा द्रव्य से गुण को और गुणों से द्रव्य को सर्वथा भिन्न ही मानते हैं । अथवा कारण कार्य को सर्वथा अभिन्न ही मानते हैं । एवं समस्त द्रव्यों को ब्रह्म से अभिन्न ही मानते हैं । इत्यादि प्रकार से भेदाभेद में सर्वथा एकान्त पक्षपात से भेदाभेद दोनों को विपरीत ही मानते हैं, यह 'भेदाभेद विपरीतता' है ।
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रूस के अनुरोध पर, नाटो शिखर सम्मेलन के उद्घाटन दिवस पर नॉर्ड स्ट्रीम को कमजोर करने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक आयोजित की जा सकती है। अगर मैं गलत नहीं हूं, तो इंग्लैंड वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता कर रहा है और उनकी चाची एक बोतल में साहसी और स्मार्ट हैं। मुझे देखना होगा। सैन्य कंप्यूटर गेम में एक विशेषज्ञ ने पर्याप्त खेला, और फिर वास्तविक जीवन में उसे पता चला कि यदि एक टैंक, एक पैदल सेना से लड़ने वाला वाहन "अपने जूते उतारता है", तो आपको उनमें से एक को पहनने की ज़रूरत है, और तब भी नायक नहीं बनना चाहिए जब आपका पैर फट गया है, "रिबूट" करने का कोई विकल्प नहीं है। यह कैसा दुःख है, किसी कारण से, ज़ी एंड कंपनी ने हेलीकॉप्टर से उड़ान नहीं भरी, बल्कि अगोचर नौकाओं का उपयोग किया। हां, लापरवाही से देखो, मैं कबूल करता हूंः पानी से किनारे तक कार के बाहर निकलने का कोई मुख्य फ्रेम नहीं है। संदेह है कि उन्होंने इसे क्रेन से पानी से बाहर निकाला। अब हवा किस दिशा में चल रही है, शायद यही कारण है? मैंने देखा, हवा स्पष्ट रूप से दक्षिण की ओर बह रही है। मुझे तुर्की कार पसंद आई, लेकिन अमेरिकी? तो वे अपने कबाड़ में डूब जाएंगे। जानकारी के लिए धन्यवाद (बमबारी ग्राफिक्स, मुझे नहीं पता था)। हमें तत्काल मेक्सिको की खाड़ी में एक मेगा-टाइफून की आवश्यकता है! लिंक्स 2000. 1981 में, पाउंड विनिमय दरः £ 1, लगभग $ 2,5, और अब? आपको जीत के लिए भुगतान करना होगा! कम से कम बेड़े के साथ। दुर्भाग्य से, अर्जेंटीना ने खुद को विसैन्यीकृत कर लिया, यह अधिक संभावना है कि फ़ॉकलैंड स्वयं इंग्लैंड से स्वतंत्रता की घोषणा करेगा, बजाय इसके कि अर्जेंटीना सेना उतारेगा। वैसे, 20 पूर्व रूसी फ़ॉकलैंड में रहते हैं (किसी तरह ऐसी जानकारी सामने आई)। राज्य की कीमत पर. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? कैसेट की आपूर्ति केवल हैम्बर्ग पर हमारी हड़ताल से रोकी जा सकती है। यूएसएसआर, संयुक्त राज्य अमेरिका के दिनों में और मैं "दुनिया के लिए खतरा कहां से आता है" किताबों में (मैंने दोनों संस्करण पढ़े, यह था) संभव) यूएसए और यूएसएसआर का संस्करण केवल हैम्बर्ग में 1 एमजीटी पर मापा गया था। समय के बाद, हैम्बर्ग में रहने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि संयुक्त राज्य अमेरिका आवासीय क्षेत्रों के लिए लक्ष्य बिंदु निर्धारित करता है, हम एक बंदरगाह और चमत्कार शिपयार्ड हैं, कम कर रहे हैं 1,5-2 गुना तक नागरिक हानि। लेकिन दोनों ही मामलों में, हैम्बर्ग में रिपरबैन को ध्वस्त कर दिया जाएगा। मेरे विश्लेषण के अनुसार, दूसरी तरफ क्रामाटोरस्क समूह में एक काफी शक्तिशाली वायु रक्षा प्रणाली है। और नाज़ी पहले से ही सोवियत डिजाइन के कैसेट टेपों से उन्हें पीट रहे हैं। गुटरिश कैसेट टेप के साथ "गोल्डन बिलियन" गधे को कवर करता है, बाकी केवल कैसेट टेप नहीं हो सकते हैं। क्या गुटरिश हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी परमाणु बमबारी की निंदा करेगा? इस रीढ़विहीन व्यक्ति को नोबेल शांति पुरस्कार, कितना साहस है। संयुक्त राज्य अमेरिका क्या कहता है, वह कहता है। क्लस्टर युद्ध सामग्री युद्ध के मैदान पर अत्यधिक प्रभावी हैं। न तो हमने और न ही संयुक्त राज्य अमेरिका ने, क्लस्टर युद्ध सामग्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए इस सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे पार करना आवश्यक है और शब्दों के साथः ठीक है, भगवान के साथ! लाल बटन दबाएं - बम बे के दरवाजे को गोली मारो। बम गिराने के लिए, भगवान मदद करने की संभावना नहीं है। कॉनकॉर्ड 2, बिना लुमिक्स के - "पागल हाथों" से एक मॉडल के लिए कितना पैसा खर्च किया गया था? और शायद रेंज सभी समान 10 किमी है। पोलैंड बेलस्टॉक के साथ विघटन में भाग लेता है? यूक्रेन कुछ भी नहीं सिखाता है। पोलैंड बेलारूस पर हमला करेगा, और वे रूस से लोगों को प्राप्त करेंगे। बिडेन पत्थर भी नहीं मारेंगे, चिंता व्यक्त नहीं करेंगे और पुतिन को अनुच्छेद 5 की कीमत पर फोन नहीं करेंगे (यह अभिजात वर्ग के लिए है, जो एक पोखर के पीछे नहीं हैं) और पश्चाताप करेंगे कि उनके पास है इससे कोई लेना-देना नहीं है. इस विषय पर आपकी टिप्पणी सर्वोत्तम है. कीव के अधिकारियों ने "राष्ट्रीय प्रतिरोध" की तैयारी के लिए यूक्रेनी राजधानी के निवासियों को लिखना शुरू कर दिया। और प्रशिक्षण के दिन के अंत में, अग्रिम पंक्ति के सेनेटोरियम का टिकट प्रदान किया जाएगा! ऐसा नहीं हो सकता, बिजली की हानि हो सकती है, और अंत में देखें कि मैकेनिकल ड्राइवरों ने फ़िल्टर में क्या भरा है। मनोरंजनकर्ता। आप अधिक सटीक रूप से एक कॉल बॉय कह सकते हैं। वह इसके लिए कोई अजनबी नहीं है - उसने हमेशा ऐसा किया है। हम डिएगो-गार्सिया बेस और विमान वाहक पोत के साथ क्या करेंगे? नशे की लत से परेशान है, एक वेश्या की तरह व्यवहार करता है (वह अब कोक नहीं पीती, वह चुटकी नहीं लेती), गैर-पारंपरिक सेक्स के लिए अतिरिक्त भुगतान की मांग करती है। दलाल ने एक मुद्रा में कहा, इसलिए एक मुद्रा में। संयुक्त राज्य अमेरिका चीन में बेचने की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक खरीदता है - यहां से हम नृत्य करते हैं। प्रतिबंधों को दो में खेलना दिलचस्प है। पुतिन की दक्षिण अफ्रीका की सुरक्षित यात्रा के लिए, उड़ान से शुरू करके एक सैन्य अभियान चलाना आवश्यक है। और यह अवास्तविक है। पुतिन की ऑस्ट्रेलिया यात्रा को याद रखें, कोई भी युद्ध की व्यवस्था करना चाहता था। नौसेना के हमारे समूह ने अभी संपर्क किया केंगुर्यत्निक और मौन। शांति, मित्रता, च्युइंग गम। बुडानोव 10 महीने गिनता है, और हम कितने समय के हैं? उन्होंने हमसे पूछा, हमारा, मानो, अमेरिकी चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है। आप शर्मनाक ब्रेस्ट शांति के बारे में नहीं भूले - आपने ऐसे संघर्ष किया। कोई मध्य नहीं है - एक किनारा है। यह जर्मनों के साथ प्रतिशोध की तरह है। एक बहुत बुरा उदाहरण। बरबॉक संभवतः जल गया है, अमेरिकी क्लस्टर युद्ध सामग्री जर्मनी में उनके गोदामों से यूक्रेन पहुंचा दी जाएगी, और बर्बॉक का मतदाताओं से कोई लेना-देना नहीं है। स्व-चालित जो, निश्चित रूप से, पोडियम से लड़ने के लिए अधिक सुरक्षित है, वह रूस के विपरीत, पीछे नहीं हटेगी। कोलोसियम में मास्क और जुकेनबर्ग का नरसंहार निश्चित रूप से बाद की अनुपस्थिति के कारण नहीं होगा। मेरा मतलब रोमन खंडहरों से है। कोई ऐसे शब्दों से ऊब गया, कूटनीति पृष्ठभूमि में फीकी पड़ गई। केवल शब्दों की पुष्टि कर्मों से होनी चाहिए। कुछ पेसकोव दूर से आए, मुझे आशा है कि ऐसा नहीं होगा। बिना जीते, ज़ी पहले से ही रूस में व्यापार कर रहा है? किसी को भारी हैंगओवर होगा। जापानी कीमतें? कोई विकल्प नहीं है, हमारे पास मछली की कीमतें ऊंची हैं, लेकिन जापानी कुछ ऐसी चीज है। वे टॉन्सिल तक, केवल लॉलीपॉप के साथ कॉकरेल से काम चला लेंगे। मैं यूक्रेनी दृष्टिकोण से सहमत हूं - सब कुछ यूक्रेन की सशस्त्र सेनाओं को परेशान कर रहा है। मैं केवल यह जोड़ूंगाः अपने ही लोगों को मारो ताकि दूसरे डरें। मुझे आश्चर्य नहीं होगा कि उनमें से एक बैंकिंग के माध्यम से शुल्क ले सकता है। स्वीकार क्यों नहीं, स्वीकार करें - और हम देखेंगे कि यह कैसा दिखेगा। एक के लिए, हम कमोडिटी एक्सचेंज और सोने को देखेंगे। ऐसी निरंतरता से डर लगता है। मंच पर बैठना एक बात है, भागीदार बनना दूसरी बात। मेरी मानसिकता के लिए खेद है, लेकिन मुझे केवल दो विकल्प दिखाई देते हैंः वे नहीं चाहते कि ध्वज के साथ पहला, दूसरा हो। तो जिसने भी वहां चिल्लाया कि यूक्रेनियन हमारे भाई हैं - यह पता चला कि हर कोई नहीं। खैर, कम से कम बाद में - पहले से कहीं ज्यादा। उपराष्ट्रपति का पद दांव पर है, ग्रीन को इसके बारे में पता है और ग्रीन को पता है कि तनाव की डिग्री और इस पर ध्यान कैसे बनाए रखना है। यूक्रेन में कटाई पहले से ही जोरों पर है, क्या आप नहीं जानते? समझने के लिए जानकारी है। सौदा बंद होने की स्थिति में, यूक्रेन डेन्यूब पर एक अनाज टर्मिनल का निर्माण कर रहा है। वीटीबी ने डेमेटर होल्डिंग छोड़ दी, वैसे, नोवोरोस्सिय्स्क अनाज टर्मिनल के मालिक। अंतिम खरीदार अज्ञात है? लेकिन संदेह हैं! और ज़ी जो पेशकश करेगा, वह केवल विश्लेषण करेगा और अनाज खिलाएगा। ओडेसा में जहाजों की आवाजाही कई दिनों से नहीं देखी गई है। एर्दोगन ने पहले ही निर्णय ले लिया है लेकिन चुप हैं। जर्मनी के वित्त मंत्रालय के प्रमुख ने 2024 के लिए एक मसौदा बजट पेश किया, जिसमें सैन्य खर्चों को छोड़कर सभी खर्चों में कटौती का प्रावधान है। और अंतिम परिणाम, वे अमेरिकी हथियार खरीदेंगे, कोई दूसरा रास्ता नहीं हो सकता, व्यर्थ में, शायद संयुक्त राज्य अमेरिका ने "ट्रैफिक लाइट" बनाई। रूस में एक मछली कंपनी है जो चीनी बाजार में जापानियों की जगह आसानी से ले सकती है। हम जापानी मछुआरों को एक वर्ग के रूप में नष्ट कर देंगे, और फिर हम उन्हें अपनी मछलियों पर डाल देंगे। दुनिया में कीमत में कुछ वृद्धि होनी चाहिए। चीन के प्रकट होने तक उत्तरी अटलांटिक मैकेरल के उपभोक्ता 60% जापानी थे। कम से कम 90 के दशक में यह ऐसा था वह। और उन्हें हमारा कैवियार कैपेलिन कितना पसंद आया। रूसी एयरोस्पेस फोर्सेज के लंबी दूरी के विमानन ने रणनीतिक मिसाइल वाहक टीयू-160 और टीयू-95एमएस को वैकल्पिक बेस एयरफील्ड में स्थानांतरित करने का काम किया। हम जिससे लड़ रहे हैं, हमें दुश्मन को दिखाना है कि उसका पिछवाड़ा है, हम उस पर कोई वार नहीं करेंगे। फ़िनलैंड से आप अफ़्रीकांडा गाँव में हवाई क्षेत्र (अवशेष) देख सकते हैं जहाँ से ज़ार बोम्बा को उसके गंतव्य तक पहुँचाया गया था। और सामान्य तौर पर, आपको गुणात्मक रूप से नए स्तर पर लौटना होगा जिसे कुबड़ा करेलिया और कोला प्रायद्वीप से लाया था। आप देखिए, उसने वहां शांति का एक क्षेत्र देखा। फिनलैंड के हमारे साथ केवल राजनयिक संबंध हैं, बाकी सब कुछ सबसे अनिच्छुक बेवकूफों पर स्वीकृत है - क्या यह ध्यान देने योग्य नहीं था कि फिन्स ने 2000 की शुरुआत से स्पष्ट स्थिति के साथ रूसियों को निचोड़ना शुरू कर दिया था। क्या आप ग्रे चूहे होने का नाटक करना चाहते थे फ़िनलैंड? अब अपनी फ़िनिश अचल संपत्ति के लिए कांपें। रूसी एयरोस्पेस फोर्सेज के लंबी दूरी के विमानन ने रणनीतिक मिसाइल वाहक टीयू-160 और टीयू-95एमएस को वैकल्पिक बेस एयरफील्ड में स्थानांतरित करने का काम किया। यह इस तथ्य के कारण है कि रणनीतिकार पहले से ही बिखरे हुए हैं, यूक्रेन के सशस्त्र बलों के विनाश के साधनों की पहुंच से बाहर हैं। यह प्रशिक्षण है - एक्स घंटे में नाटो हमले से बाहर निकलना . . किसी को रात और दिन घबराहट होती है - रूसी रणनीतिकार हवा में हैं।
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60 विधानसभा सीटों वाले त्रिपुरा में 16 फरवरी को वोटिंग हो गई। मुकाबला दो गठबंधनों में है। एक तरफ सरकार चला रही BJP-IPFT (इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) हैं, और दूसरी तरफ हैं CPI(M)-कांग्रेस। सत्ता बचाने की कोशिश कर रही BJP ने अपने सभी स्टार प्रचारक मैदान में उतार दिए थे। PM नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के CM योगी आदित्यनाथ, असम के CM हेमंत बिस्व सरमा समेत कई बड़े नेताओं ने रैलियां की। लेकिन, समीकरण CPI(M)-कांग्रेस की तरफ जाते नजर आ रहे हैं। हालांकि, BJP ने भी राम मंदिर से यूटर्न लिया और मेनिफेस्टो में विकास के बडे़-बड़े वादे किए हैं। उधर, पहली बार चुनाव लड़ रही पार्टी टिपरा मोथा दोनों गठबंधनों का गणित बिगाड़ने की ताकत रखती है। BJP की चिंता यहीं खत्म नहीं होती, जमीन के हालात बताते हैं कि त्रिपुरा में अयोध्या में राम मंदिर बनवाने का मुद्दा काम नहीं आया। इसका सबूत गृह मंत्री अमित शाह की रैली है। ये रैली 5 जनवरी को सबरूम में हुई थी। शाह ने भीड़ से पूछा, 'अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए या नहीं? ' जवाब आया, लेकिन आवाज उत्तर भारत जैसी तेज नहीं थी। अमित शाह ने फिर यही सवाल पूछा और कहा- जरा जोर से बोलिए। दूसरी बार भी भीड़ से वैसा जवाब नहीं मिला, जैसी उम्मीद थी। शाह ने बात आगे बढ़ाई, 'बाबर ने मंदिर गिराया था, नरेंद्र मोदी ने मंदिर बनाया। कोर्ट में इतने लंबे समय तक इस मामले को दबाए रखने के पीछे कांग्रेस थी। नरेंद्र मोदी आए और सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर बनने का आदेश दिया। ' तालियां बजीं, लेकिन तालियां बजाने वालों में ज्यादातर BJP कार्यकर्ता ही थे। तालियों की आवाज से साफ था कि हिंदुत्व का एजेंडा त्रिपुरा के लोगों पर उतना असरदार साबित नहीं हो रहा है। BJP को डेवलपमेंट के साथ मुख्यमंत्री माणिक साहा के करिश्मे से ही उम्मीद है। '8 फरवरी को योगी आदित्यनाथ की रैली हो या फिर 12 फरवरी को नरेंद्र मोदी की। खुद अमित शाह भी उसके बाद रैली करने आए, लेकिन उन्होंने अयोध्या का जिक्र नहीं किया। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने 9 फरवरी को दक्षिण त्रिपुरा के आदिवासी इलाके तोई बाजार में कहा- 'ये गठबंधन सांप-नेवले की जोड़ी है, आप लोगों को समझ आया कि ये लोग दिन में लड़ते थे और रात में इलू-इलू करते थे। अब खुलकर इनकी शादी हो गई है। ' दरअसल, त्रिपुरा में BJP की पैठ पिछले 5 साल में ही बनी, कांग्रेस वहां मुख्य विपक्षी पार्टी रही। गठबंधन से पहले कांग्रेस और CPI(M) एक दूसरे पर जुबानी ही नहीं, जमीनी हमले भी करते थे। दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं पर दूसरी पार्टी के समर्थकों की हत्या के आरोप भी हैं। उधर, टिपरा मोथा 60 में से 48 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। उसका एजेंडा त्रिपुरा से अलग त्रिपुरालैंड की मांग है। इस पार्टी के मुखिया प्रद्युत कुमार किशोर लगातार BJP पर हमलावर हैं। कांग्रेस और CPI(M) का विरोध उनके एजेंडे में नहीं है। ऐसी भी चर्चा है कि कांग्रेस उनकी पार्टी से गठबंधन कर सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP ने त्रिपुरा की दोनों सीटें जीती थीं, लेकिन कांग्रेस वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रही। 2018 के विधानसभा चुनाव में यह 1. 8% था, जो 2019 में बढ़कर 25% हो गया। इससे साफ हो गया कि 2018 में BJP की जीत के पीछे CPI(M) की सरकार से ऊबे कांग्रेस के पारंपरिक वोटर थे। वही वोटर एक साल में ही फिर कांग्रेस की तरफ लौट आया। यह BJP के लिए खतरे की घंटी थी। 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए जब CPI(M) और कांग्रेस ने हाथ मिलाया, तो BJP के लिए चुनौती बड़ी हो गई। इसीलिए सबसे पहले 74% हिंदू वोटर वाले राज्य में अयोध्या का कार्ड खेला गया, लेकिन इसे फेल होते देख, पार्टी ने कभी एक-दूसरे के दुश्मन रहे कांग्रेस और CPI(M) के गठबंधन को निशाना बनाया। BJP भले पिछली जीत दोहराने के दावे करे, लेकिन जमीन पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं के फीडबैक में वे अब भी पिछड़ रहे हैं। 9 फरवरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी का मेनिफेस्टो जारी किया। अब तक गठबंधन और विकास के मोर्चे पर CPI(M) को फेल बता रही BJP ने त्रिपुरा के लिए खजाना खोलने का वादा किया। आयुष्मान भारत योजना, जिसके तहत पूरे देश में इलाज के लिए 5 लाख रुपए मिलते हैं, त्रिपुरा में यह रकम बढ़ाकर 10 लाख करने वादा किया गया। घर में लड़की पैदा होने पर 49 हजार रुपए देने और ग्रेजुएशन करने वाली लड़की को स्कूटी देने की बात भी मेनिफेस्टो में है। किसान सम्मान निधि पूरे देश में 6 हजार थी, उसे बढ़ाकर 8 हजार किया जाएगा। उज्ज्वला योजना के तहत मिलने वाले LPG सिलेंडरों की संख्या बढ़ाई जाएगी। मेनीफेस्टो में यह सब ऊपर और CPI(M) पर भ्रष्टाचार और विकास न करने के आरोप नीचे थे। IPFT त्रिपुरा की रीजनल पार्टी है। 2013 में इस पार्टी ने त्रिपुरालैंड की मांग उठाई थी। 2018 में उसी मांग को पूरा करने के वादे के साथ वह BJP में शामिल हुई। इसका फायदा BJP को हुआ। 20 में से 18 रिजर्व सीटें इस गठबंधन के खाते में आईं। IPFT 12 सीटों पर चुनाव लड़ी, 8 पर जीती। त्रिपुरालैंड की मांग करने वाली IPFT अब इस मुद्दे पर खामोश है। जबकि टिपरा मोथा ने लिखित में BJP से त्रिपुरालैंड की मांग की। BJP ने इनकार किया, तो उसने गठबंधन नहीं किया। IPFT के प्रमुख रहे एनसी देबबर्मा की मौत से भी संगठन कमजोर पड़ा। उधर, टिपरा मोथा ने त्रिपुरालैंड की मांग को जोर-शोर से उठाया। गैर राजनीतिक रहे इस संगठन ने पार्टी बनाई और चुनाव में उतर गया। BJP को इसका अंदाजा लग चुका था, इसलिए IPFT को 5 सीटें ही दीं। राज्य में अब दो आदिवासी पार्टियां हैं- IPFT और टिपरा मोथा। उधर CPI(M) ने भी CM फेस के तौर पर आदिवासी नेता जितेंद्र चौधरी को प्रोजेक्ट कर दिया है। यानी आदिवासी वोटर के पास अब तीन विकल्प हैं, जो पहले एक ही था। 2018 में टिपरा मोथा ने चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन IPFT का समर्थन किया था। CPI(M) और कांग्रेस के गठबंधन की ताकत समझने के लिए 2019 में हुए उपचुनाव के गणित को समझना होगा। 3 विधानसभा सीटों पर 2022 में चुनाव हुए थे। बदरघाट विधानसभा सीट खाली होने पर चुनाव हुए। इसके नतीजे में BJP पास हुई। BJP उम्मीदवार को 20,471 वोट मिले, कांग्रेस उम्मीदवार को 9,101 और CPI(M) को 15,211 वोट मिले। दोनों को जोड़ दें तो 24,312 वोट होते हैं। वोटों का ये गणित इस चुनाव में BJP के नतीजे पलट सकता है। त्रिपुरा के सीनियर जर्नलिस्ट शेखर दत्त कहते हैं- 'BJP के लिए लड़ाई मुश्किल है। कांग्रेस का पारंपरिक वोटर और CPI(M) का वोटर मिल गया है। आदिवासी वोट टिपरा के साथ होगा। CPI(M) ने भी आदिवासी CM फेस बनाकर आदिवासी वोटर्स को मैसेज दे दिया है। ' 'BJP ने डेवलपमेंट को मुद्दा बनाया। एयरपोर्ट हो या ब्रिज, सारे प्रोजेक्ट्स CPI(M) के हैं। काम चल रहा था। BJP ने बस क्रेडिट लिया। उन्हें अपने CM को हटाना पड़ा। जनता तो पूछेगी ऐसा क्यों किया? भ्रष्टाचार के आरोप सामने न आ जाएं और लोगों की नाराजगी चुनाव में भारी न पड़े इसलिए। ' CPI(M) के जितेंद्र चौधरी कहते हैं, 'चुनाव में हिंसा हुई, तो हम तैयार हैं। हम जवाब देंगे, लेकिन उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा। पहली बार किसी राज्य में चुनाव आयोग ने लेटर जारी कर जीरो वायलेंस इलेक्शन कराने का वादा किया है। ' जर्नलिस्ट शेखर दत्त भी कहते हैं, 'हिंसा तो होगी, यह सही है कि दोनों तरफ के कार्यकर्ता लाठी-डंडों के साथ तैयार हैं। ' सूत्रों के मुताबिक, इंटेलिटेंस ब्यूरो यानी IB ने नतीजे वाले दिन हिंसा होने का इनपुट दिया है। इसके मुताबिक, नतीजा कुछ भी रहे। कोई भी पार्टी जीते, लेकिन हिंसा होगी और यह लाठी-डंडों तक सीमित नहीं रहेगा। पिछले चुनाव में BJP- IPFT के गठबंधन को 44 सीटें मिली थीं। इसमें BJP ने 36 और IPFT ने 8 सीटें जीती थीं। CPI(M) को 16 सीटें मिलीं, कांग्रेस खाता ही नहीं खोल पाई। BJP को 43% और IPFT को 7. 5% वोट मिले थे। CPI(M) को 42. 7% और कांग्रेस को 1. 8% वोट मिले थे। यानी BJP गठबंधन को 50. 5% और CPI(M) के गठबंधन को 44. 2% वोट मिले थे। अगर IPFT का वोट टिपरा और CPI(M) में बंटा तो BJP का शेयर कम होगा। रिजल्ट के बाद टिपरा मोथा किसके साथ जाएगी, ये अभी साफ नहीं है। इस पार्टी ने 2021 में ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल पर कब्जा किया था। BJP और CPI(M)-कांग्रेस गठबंधन दोनों ने चुनाव से पहले टिपरा मोथा से गठबंधन की पेशकश की थी। इससे साफ हो गया कि नई होकर भी टिपरा मोथा राज्य की राजनीति में बड़ी ताकत है। उसने पहले ही CPI(M)-कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार कर दिया था। अलग प्रदेश की मांग पर BJP से भी बात नहीं बनी। हालांकि, CPI(M) के CM फेस जीतेंद्र चौधरी को उम्मीद है कि चुनाव के बाद तीनों पार्टियों मिलकर सरकार बनाएंगी। वे कहते हैं- 'इस पर दोबारा बातचीत की जरूरत नहीं है। टिपरा मोथा की प्रदेश के बंटवारे की डिमांड छोड़कर हम इकट्ठा हों। जिस मकसद से उन्होंने ये संघर्ष किया है, वही हमारा भी है। ' मकसद यानी BJP को हराना और आदिवासियों को सुविधा देना। RSS के एक सीनियर लीडर नाम न बताने की शर्त पर चुनाव का गणित समझाते हैं- 'त्रिपुरा में BJP के लिए चुनौती कड़ी है। गठबंधन सिर्फ कांग्रेस और CPI(M) का नहीं है, अगर सरकार बनानी पड़ी तो टिपरा साथ होगी। अगर CM बिप्लब देब को नहीं हटाते, तो यह चुनौती और बड़ी होती। केंद्र को RSS और IB ने रिपोर्ट सौंप दी थी। इसके 4 महीने बाद बिप्लब को हटाना, इनकी जमीन को कमजोर कर गया। जीत तो होगी, लेकिन अंतर कम होगा, इसलिए जोड़-तोड़ तो करना पड़ेगा। ' (संध्या द्विवेदी त्रिपुरा से लौटकर, इलेक्शन एनालिसिस और ओपिनियन निजी विचार हैं) त्रिपुरा के सिपाहीजाला जिले का सोनामुरा बांग्लादेश के साथ 79. 5 किलोमीटर बॉर्डर साझा करता है। इसमें से 9. 43 किलोमीटर में फेंसिंग नहीं हुई है। इसी तरह दक्षिणी त्रिपुरा के बिलोनिया में 2 किलोमीटर, खोवाई और उत्तरी त्रिपुरा के लाफुंगा समेत कुछ इलाकों में फेंसिंग बाकी है। यही एरिया तस्करों के लिए स्वर्ग है। सिक्योरिटी के लिए BSF है, लेकिन जवानों को गोली चलाने का इजाजत नहीं है। वे डंडों से तस्करों को रोक रहे हैं। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से करीब 55 किलोमीटर दूर गोमती जिले के काकराबन गांव के दरगाह बाजार में अब एक नई मस्जिद खड़ी है। इससे बस 5 फीट दूरी पर ही 19 अक्टूबर 2021 को एक पुरानी मस्जिद को जला दिया गया था। जली हुई मस्जिद को याद करने वाला कोई नहीं। मामले में सभी आरोपी बेल पर बाहर आ चुके हैं। मस्जिद की देखभाल करने वाले भी चुप है, कहते हैं कि ऊपर के लोगों ने बोलने से मना किया है। This website follows the DNPA Code of Ethics.
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पंचकूला, 8 मार्च (ट्रिन्यू) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आज यहां कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें अतिरिक्त उपायुक्त मोहम्मद इमरान रज़ा ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। कार्यक्रम में एसडीएम रिचा राठी और नगराधीश सिमरनजीत कौर भी उपस्थित रहीं। इस अवसर पर अलग-अलग क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली विभिन्न स्कूलों की 16 छात्राओं को एक लाख 52 हजार 400 रुपए की राशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की गई। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर चंडीगढ़ से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सभी को संबोधित किया। उन्होंने आह्वान किया कि जिस प्रकार से घरों में माताएं एवं बहनों का सम्मान करते हैं उसी भावना से दूसरों की बहन व बेटियों का भी सम्मान करें। एसडीएम रिचा राठी ने शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इस साल का थीम है 'चूज़ टू चैलें'। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ व पोषण अभियान' की ब्रांड एम्बेसडर प्रियंका शर्मा ने कहा कि बेटियां आज हर क्षेत्र में उपलब्धि हासिल कर प्रदेश व देश का नाम रोशन कर रही हैं। इस मौके पर सांस्कृतिक कार्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए दून पब्लिक स्कूल की मनजोत कौर, मेधावी, अनिका गगनेजा, स्नेहा धीमान, भाव्या टुटेजा, तनिशा, नाव्या शर्मा, गुरूप्रीत कश्यप, कीर्ति भट्ट और कृष्टि अग्रवाल, डीएवी पब्लिक स्कूल की सीया चानना और भवन विद्यालय स्कूल की अनवी सोनी को 11-11 हजार रुपए की राशि प्रदान की गई। इसी प्रकार स्पाॅट पेंटिंग के क्षेत्र में चाइल्ड केयर संस्थान की शगुन, कोमल और अंजलि तथा संगीत के क्षेत्र में दीपिका को 5100-5100 रूपए की पुरस्कार राशि प्रदान की गई। अम्बाला (नस) : कल्पना चावला राजकीय महिला बहुतकनीकी अम्बाला शहर में आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह के तहत एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जन औषधि केंद्र के प्रधान नरेश कुमार अग्रवाल तथा विशिष्ट अतिथि शिक्षक एमपी गुप्ता रहे। मुख्य वक्ता नरेश कुमार ने वक्तव्य में भारतीय जन औषधि परियोजना दिवस 2021 की उपलब्धियों के बारे में बताया। कल्पना चावला गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक फॉर वुमेन में चार विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। इनमें एसे राइटिंग में मनीषा व आंचल गुप्ता, पोस्टर मेकिंग में मनीषा, कोमल, पलक, सिमरन, भाषण प्रतियोगिता मे मनजीत कौर, कोमल, पल्लवी, रिदम, शिवानी, रंगोली प्रतियोगिता में शिवानी, पल्लवी ने प्रथम स्थान ग्रहण किया। संस्था की डाक्टर विंदु आनंद ने अतिथियों का स्वागत किया व महिला सशक्तिकरण के लिए छात्राओं को जागरूक किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉक्टर अश्वनी भारद्वाज रहे व इस अवसर पर सरला, कृष्णा, डॉ़ संतोष व सविता आदि प्राध्यापक उपस्थित रहे। अम्बाला शहर (हप्र) : विश्व महिला दिवस के अवसर पर अम्बाला नगर निगम की मेयर शक्तिरानी शर्मा की ओर से महिलाओं के लिए निशुल्क मेडिकल चेकअप कैंप का आयोजन किया गया। इसमें करीब 200 महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच की गई और उन्हें परामर्श देकर मुफ्त दवाइयां भी दी गईं। शहर के नाहन हाउस स्थित भगवान वाल्मीकि सत्संग हाल में आयोजित कैंप के दौरान मिशन अस्पताल के डायरेक्टर सुनील सादिक की देखरेख में डॉक्टरों ने मरीजों की जांच की। कैंप के दौरान फिजियोथेरेपिस्ट, सामान्य चिकित्सा, स्त्री रोग विशेषज्ञ, आंखों की जांच, दवा विशेषज्ञ ने मरीजों की जांच की। अम्बाला (नस) : जीएमएन कॉलेज, अंबाला छावनी के एनएसएस यूनिट के सौजन्य वूमेन सेल द्वारा कॉलेज प्राचार्य डॉ राजपाल सिंह की अध्यक्षता में महिला दिवस के उपलक्ष्य में 'आओ स्त्री के लिए लिखें' अभियान चलाया गया जिसमें महाविद्यालय के सभी प्राध्यापकों ने स्त्री संबंधी अपने भावों को लिखा। कॉलेज प्राचार्य डॉ राजपाल सिंह ने कहा कि पुरुषों की प्रेरक के साथ-साथ स्त्री मार्गदर्शक भी है । यहां एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी डॉ धर्मवीर सैनी, व डॉ अनीश ने भी विचार रखे। पंचकूला (ट्रिन्यू) : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सोमवार को युवा व्यापार मंडल द्वारा सेक्टर 5 महिला थाना प्रभारी वहिता हामिद व उनकी सहयोगी टीम, सेक्टर-20 के सरकारी अस्पताल में मुख्य डॉक्टर अंजू शर्मा व सहयोगी टीम, कर्मचारी वंदना रानी, उद्यमी पूजा गुप्ता, मनीषा सिंगला व विभिन्न क्षेत्र से जुड़ी 36 महिलाओं को सम्मानित किया गया। इस मौके पर युवा व्यापार मंडल के प्रदेश प्रभारी राहुल गर्ग, प्रदेश सचिव कृष्ण कुमार, विशेष आमंत्रित सदस्य आशु सिंगला, सुबोध अटल, विजय बंसल आदि मौजूद थे। सुपर 100 के साथ काटा केक : प्रिंसिपल डाइट सुनीता नैन के अनुसार आज विश्व महिला दिवस पर डाइट सदस्यों ने अपनी सुपर 100 की लड़कियों के साथ केक काटा। इसमें कविताएं, गीत और नृत्य के साथ-साथ लड़कियों को संदेश दिया कि कभी खुद को कमज़ोर मत समझें। दूसरी ओर सेक्टर 6 के नागरिक अस्पताल में ठेका कर्मचारी यूनियन की प्रधान रमा देवी ने महिला कर्मचारियों को शुभकामनायें दीं। बीबीएन (निस) : अटल शिक्षा नगर, कालूझंडा स्थित आईईसी यूनिवर्सिटी में सोमवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। इस अवसर पर यूनिवर्सिटी के सभागार में महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में उनके सराहनीय प्रदर्शन और कोरोना काल में कार्य करते रहने के लिए सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में दून निर्वाचन क्षेत्र की पूर्व विधायक विनोद चंदेल और आईटी विभाग, शिमला की वर्तमान संयुक्त निदेशक, नीरज चांदला मुख्य रूप से उपस्थित रहीं। कुलपति डॉ़ अंजु सक्सेना ने जिला परिषद सदस्य रीना देवी चौहान और बीडीसी सदस्य नीलम कुमारी को सम्मानित भी किया। पंचकूला (ट्रिन्यू) : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आज यहां सेक्टर 15 स्थित पोस्ट ऑफिस में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। हरियाणा महिला आयोग की कार्यकारी अध्यक्ष प्रीति भारद्वाज ने मुख्यातिथि व उपमंडल अधिकारी ( नागरिक) डॉ़ ऋचा राठी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया। पोस्टमास्टर जनरल हरियाणा रंजू प्रसाद ने इस अवसर पर डाक महिला कर्मचारियों को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं हेतु पुरस्कृत किया। इसके अतिरिक्त सोनिया सूद, नगर पार्षद , कुमारी रीजुल सैनी बैडमिंटन खिलाड़ी, नीलम कोशिक सामाजिक कार्यकर्ता, प्रियंका शर्मा, कोरोना वारियर को सम्मानित किया गया। पिंजौर (निस) : एनआरएमयू रेलवे वर्कशॉप ब्रांच कालका ने सोमवार को महिला दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान प्रदीप कुमार ने की। इस मौके पर सचिव पुष्पिंदर शर्मा, संजीव कोहली, जगपाल सिंह, गगनदीप शर्मा, कमल कुमार, चौधरी प्रकाश चंद, किरण रेखा, अनिता शर्मा अन्य महिला कर्मी मौजूद थी। सचिव पुष्पिंदर शर्मा ने संगठन में महिलाओं के योगदान की सराहना की। संजीव कोहली ने रेलवे में महिलाओं को समान अवसर प्रदान करने और उनके कार्यों की सराहना की। पिंजौर (निस) : कालका रेलवे वर्कशॉप ब्रांच यूआरएमयू ने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय महीला दिवस के उपलक्ष्य में महिला विंग रेल कर्मियों को उपहार देकर सम्मानित किया। यूनियन सचिव विकास तलवार ने महिला कर्मियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया। इस अवसर पर गुरमीत कौर, मंजु शर्मा, पुष्पा, चित्र रेखा, प्रेम लता, मनजीत कौर, मीना देवी, वीना वधवा, रीतिका, हिना शर्मा आदि महिला कर्मी मौजूद थी। अम्बाला (नस) : क्राइम कंट्रोल एवं ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन सोनीपत द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अम्बाला छावनी के राजकीय स्कूल की हिंदी प्राध्यापिका डॉ सोनिका को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि हरियाणा की बेटी बचाओ बेटी बचाओ अभियान की ब्रांड एम्बेसडर डॉ. वीना अरोड़ा, महिला आयोग की सदस्य सोनिया अग्रवाल, सोनीपत की समाज सेवी ऊषा भंडारी एवं पूर्व केबिनेट मंत्री कविता जैन भी उपस्थित रहे। आर्गेनाइजेशन द्वारा देश भर से 61 महिलाओं को उनके द्वारा किए गए समाज हित में कार्य करने पर सम्मानित किया है। अंबाला कैंट के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मेन ब्रांच, अंबाला छावनी की हिंदी प्राध्यापिका डॉ. सोनिका को उनके लॉकडाउन के दौरान शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रयासों के लिए सम्मानित किया।
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प्रोफेसर फ्रायड ने कलम को नीचे रखा और, खिड़की की तरफ देखा, जिसे बार-बार ग्रिल द्वारा उठाया गया था, रिमझिम बारिश में, सोचाः "मैडहाउस"। और अंतिम निष्कर्ष निकालने के बाद, मैंने आदेश दियाः "बहन, वार्ड नं। XXUMX में, शामक के तीन घन हैं। प्रत्येक . . . हाँ, और रोगी को पिगलेट जगाओ - उसके भ्रम मुझे ध्यान केंद्रित करने से रोकते हैं। " उपरोक्त सभी कथा साहित्य में नहीं है। इसके विपरीत, लहजे को नरम करने का प्रयास और यह कहने के लिए नहीं कि यह एक मनोरोग अस्पताल का सामान्य वातावरण है, जिसमें प्रत्येक रोगी को तुरंत नेपोलियन, स्पिनोज़ा और मार्गरेट थैचर - एक बोतल में तीन। अस्पताल, आधा मिलियन वर्ग किलोमीटर के आकार का। जिसमें "रब पहनने वाला पहला डॉक्टर है। " और सबसे ज्यादा हिंसक मरीज थे। जो शुक्रवार को (हालांकि 13 नहीं, लेकिन 15, संख्या) एक उत्कृष्ट भाषण के द्वारा दिया गया था, शराब के कारण बढ़े हुए मनोविकार के अलावा, मुख्य चिकित्सक की कुर्सी पर बैठ गया। यह पहले से ही स्पष्ट है कि तब से वह सूख नहीं गया है - सेंट माइकल के चमत्कार की रात (सितंबर 19) "गारंटर" मैंने लिखा о полумиллиарде долларов, выделенных США на закупку летального оружия. Плюс разведтехника, плюс деньги на ремонт киборгов. Видимо воздух свободы и пары алкоголя поразили неустойчивую психику пациента. और वह एक बहुत ही उपयुक्त जगह पर शुरू हुआ - "याल्टा यूरोपीय रणनीति" की बैठक में, यल्टा की कमी के लिए, "बेसरबका" में आयोजित - कीव के केंद्र में बाजार। उनमें से ज्यादातर वहाँ - बाजार में। रेडियो Svoboda के एक उत्साही पत्रकार, याना पॉलयन्स्काया ने कहा, "रूडी महिलाएं बाल्क, वाइन और कॉकटेल डाल रही हैं। विदेशी मेहमान इकट्ठा हो रहे हैं। " अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के स्थल का आकलन करने का कोई मतलब नहीं है - आखिरकार, आयोजक के बयान और इस शो के मुख्य मसखरे कम आश्चर्यजनक नहीं हैं। कीव शासन के प्रमुख ने तुरंत घोषित किया कि, उनके बुद्धिमान नेतृत्व में, कीव द्वारा नियंत्रित यूक्रेन का एक हिस्सा संयुक्त यूरोप की सीमा है। किसके द्वारा और कब एकजुट हुआ, मैं स्पष्ट करना भूल गया। और यह तथ्य कि एक निश्चित "ब्रिक्सिट" था, और दो सप्ताह में कैटेलोनिया की राज्य स्वतंत्रता पर एक जनमत संग्रह आयोजित किया जाना था, स्पीकर को स्पष्ट रूप से पता नहीं था। लेकिन, पहले मैदान के अध्यक्ष, पान Yushchenko के नक्शेकदम पर चलते हुए, जो दुश्मनों द्वारा उकसाया गया था, उसके खूनी पुनर्जन्म ने घोषणा की कि पौराणिक यूक्रेन में "हजार-वर्षीय मिशन है। " जाहिर तौर पर, मिलेनियल रीच की थीम पर अवचेतन गठबंधन। कुछ नहीं के लिए, और नारे एक ही हैं - "राष्ट्र सब से ऊपर" और अन्य नाजी ब्रेडियातिना। हिटलर ने यूरोप को "लाल रूस" से बचाया, यह रूस से बस बचाता है। यह भूलते हुए कि इस वर्ष 28% पर उनके शासन ने न केवल यूरोप के साथ व्यापार बढ़ाया, बल्कि रूस के साथ, राष्ट्र के नेता ने बेकन के एक टुकड़े पर कसम खाई कि यूरोप के लिए रूसी सड़क उनके लिए अवरुद्ध थी। यूरोप आसान हो सकता है! "यूक्रेन वास्तव में एकजुट यूरोप का सबसे बड़ा हिस्सा बन गया है। आज, फिर से, हम पूर्व से आने वाले खतरों से हमारे आम यूरोपीय घर की रक्षा के लिए अपने हजार साल के मिशन को पूरा कर रहे हैं। मास्को के साथ, आपको हमेशा सबसे बुरे के लिए तैयार रहना चाहिए। " यही कारण है कि उन्होंने सबसे बुरे के लिए तत्परता के बारे में बात की, कि मैं वास्तव में रूसियों पर शूट करना चाहता हूं। और कुछ भी रक्षात्मक नहीं है, जैसे कि ज्वेलिन एंटी-टैंक कॉम्प्लेक्स, जो कि साल यांकियों से मांगा गया है, लेकिन एक आक्रामक, आधुनिक। सामरिक मिसाइलें ठीक हैं। "मुझे उम्मीद है कि यह सिर्फ रक्षा हथियार नहीं होगा, हालांकि यह हमारे बचाव को काफी बढ़ाएगा। हम नहीं चाहते हैं, हम दुश्मन पर हमला करने के विचार से नफरत करते हैं। हम सिर्फ इस तथ्य की पुष्टि करना चाहते हैं कि अगर वह मिन्स्क समझौतों का उल्लंघन करता है तो हमलावर बहुत अधिक कीमत चुकाएगा। और मेरे सैनिकों पर हमला करने के लिए, यह बिल्कुल उचित है। लेकिन हम शांति चाहते हैं और मैं दुनिया का राष्ट्रपति हूं। " दुनिया के राष्ट्रपति नोबेल पुरस्कार में संकेत कर रहे हैं। और क्या - यासर अराफात के बगल में यह बिल्कुल सही लगेगा। और गोर्बाचेव दाहिने हाथ पर है। यह उनकी "विशलिस्ट" और सीमा होगी। आखिरकार, यूरोपीय लोग शांत हैं, कीव के "सरपट" के लिए बेहिसाब। वे यूरोप में सरपट दौड़ रहे हैं। लेकिन नहीं, "और यहां ओस्ताप को चोट लगी": "यूक्रेन के प्यारे दोस्तों, हम यूरोपीय संघ में पूर्ण सदस्यता और नाटो में पूर्ण सदस्यता की ओर बढ़ रहे हैं। हाल के वर्षों ने दिखाया है कि यह यूक्रेनी स्वतंत्रता, संप्रभुता और समृद्धि की एक उचित गारंटी है। हमारी सभ्यता यूरोपीय सभ्यता की पूर्वी सीमा बन गई है और अंतर्राष्ट्रीय यूरोपीय सहयोग में हमारा योगदान है। "हम महाद्वीपीय अर्थव्यवस्था के इंजन बन जाएंगे। " मैं कल्पना करता हूं कि न केवल जर्मन फ्रांसीसी के साथ खुश थे, बल्कि चेक के साथ डंडे भी थे। "इंजन" के बारे में सुनकर। नहीं, पुराने लोगों को याद हो सकता है कि यूक्रेनी SSR 25 में दुनिया के सबसे आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों में से एक था। लेकिन यह एक, आधे सेवारत वक्ता की अध्यक्षता में . . ! पूरी तरह से ऋण और अनुदान सहायता के माध्यम से सभी को बचाना - धन से लेकर प्रयुक्त एम्बुलेंस तक। पूरे सोवियत विरासत को लूट लिया। सभी पूर्वजों की पीढ़ियों द्वारा बनाई गई। अंतरिक्ष, विमान निर्माण, बख़्तरबंद और हजारों अन्य उद्योग, एक नियंत्रित क्षेत्र में बेसबोर्ड के नीचे रहने के मानक को गिराते हुए। उसने लाखों नागरिकों को खो दिया है, जो रूस में, कि यूरोपीय संघ के लिए - अगर वह केवल यहां से और हमेशा के लिए दूर हो सकता है, चला जाता है। डॉक्टर को बुलाया जाना चाहिए था, लेकिन मेहमानों को भी बुफे द्वारा ले जाया गया। और पोरोशेंको नाइटिंगेल को पता है। यह पता चला है कि मित्रों का झुंड क्रीमिया के "डे-ऑक्यूपेशन" के लिए बनाया जाने वाला है, जो एक साथ हाथ पकड़ते हैं, सभी विनम्र लोगों को अपने बीयर टमी के साथ बाहर निकालते हैं। हाँ, यह पहले से ही था। उन्होंने सुनाः "क्रीमिया यूक्रेनी या निर्जन होगा। " मैं पोरोशेंको को भूल गया, जैसा कि एक्सएनयूएमएक्स में, क्रीमिया में "डे-कब्जे" के लिए आया था। और जिसने अपने महान यूरोपीय मित्र के शब्दों के बारे में बीमारी को याद दिलाया होगा (वैसे, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष) जीन-क्लाउड जुनकर, जिन्होंने अगस्त के एक्सएनयूएमएक्स के रूप में कहा था कि निम्नलिखित शब्द हैंः "अब दुनिया में युद्ध हो रहे हैं, और यूरोप में कोई नहीं है," यूक्रेन। लेकिन यूक्रेन यूरोपीय संघ से संबंधित होने के अर्थ में एक यूरोपीय देश नहीं है। मैंने अपने मित्र राष्ट्रपति पोरोशेंको को कुछ दिन पहले कहा था कि देखो, यूक्रेन लगभग यूरोपीय संघ और नाटो है। हालांकि, फिलहाल यह नहीं है। दूसरों के लिए नहीं और यह महत्वपूर्ण है कि सभी वे समझ गए। " इस पागलखाने की तुलना में वार्ड संख्या XXUMX में क्या हो रहा है, इस पर सहमति दें - सामान्यता का एक नमूना।
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भगवान् महावीर वे महा प्रभु, विश्व के विभु, सत्य के अवतार थे । वे जगत की चेतना के नियम के संसार थे । वे अहिंसा विश्व समता, दया विद्या धाम थे । वे सुकवि की कल्पना से मञ्जु मृदु अभिराम थे । विभव के धन, सुधा के धन स्वर्ग साधन को प्रणाम । गृही के जप, साधु के तप, सुख विटप 'जिन' को प्ररणाम ।। आधि-व्याधि उपाधि के, सव दोष हर शङ्कर प्रणाम । बुद्धि के बल शुद्ध केवल, भक्त के मलहर प्रणाम ।। ( श्री उदय शङ्कर भट्ट) महावीर जैसे मौन सेवा व्रतो थे; वैसे ही एक महान् विचारक, सफल प्रचारक, उग्र क्रान्तिकारी, प्रबुद्ध बुद्धिवादी, महा महिम-विभूति-शाली एवं विश्व शान्ति के अग्रदूत भी थे । त्रस्त जनता को शान्ति सन्देश देने, दुखातुरों को त्राण देने, वे उस समय प्राये जब वर्वर दानवता के पञ्जे में फँसी मानवता वारण के लिये कराह रही थी ! प्रारण के लिये छटपटा रही थी !! जीवनदान के लिये आशाभरी दृष्टि लिये कोने में विलख रही थी !!! कारण ? राजनैतिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के सम होने पर भी सामाजिक, धार्मिक स्थिति विषम हो चुकी थी ! मानव मानवता भूल चुके थे ! धर्म के नाम पर मानव का मूल्य मूक बराबर तथा मूक प्रारणी का मूल्य मिट्टी प्रस्तर बराबर भी न रह गया था ! परिस्थिति को सत्यालोक में परखने का प्रयत्न कीजिये । महावीर की समकालीन स्थिति राष्ट्र, देश, धर्म या व्यक्ति की उन्नति अवनति में सामयिक परिस्थितियों का महत्व पूर्ण योग रहता है इसलिये उनका प्रमारिणत परिचय प्राप्त करते समय तात्कालिक परिस्थितियों का अनुशीलन आवश्यक हो जाता है। भगवान् महावीर के प्रभावक व्यक्तित्व को १. राजनैतिक, २. शैक्षिक, ३. आर्थिक, ४. सामाजिक एवं ५. धार्मिक परिस्थितियों के दर्पण में इस तरह प्रतिबिम्बित देखिये । राजनैतिक स्थिति गरणतन्त्र प्ररणाली पूर्व विकसित रूप में न थी किन्तु जितने गरणतन्त्र थे वे अत्यन्त समृद्ध और बलशाली थे । संघों के संगठन में लिच्छवि-संघ विशेष प्रभावक एवं महत्त्वशील था । मगध का साम्राज्य भी अति विस्तृत एवं प्रभावशाली था परन्तु दोनों के पारस्परिक सहयोगी अब एक दूसरे के बीच मित्रता की कड़ियों को जोड़े हुए थे । लिच्छवि संघ के राजा सिद्धार्थ का इसी तरह का मैत्री सम्बन्ध सभी राज्यों से था । उनकी महारानी त्रिशला वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थीं । कौशाम्बी के राजा शतानीक, हेरकच्छ के राजा दशरथ, रोरुक नगर के अधिपति उदयन, गंधार नरेश सात्यक, चम्पा नरेश दधिवाहन और राजगृह नगर के राजा श्रेणिक सिद्धार्थ के साहू भाई थे । इस तरह सिद्धार्थ का बहुत से राजवंशों साथ मैत्री भाव पूर्ण, आत्मीयता पूरक सच्चा सम्बन्ध था । सिद्धार्थ नाथ वंश के श्रेष्ठ क्षत्रिय थे, उन्होंने अपनी शासन प्रणाली में बहुत कुछ सुधार किये थे। उनकी शासन प्रणाली में बहुमत की मुख्यता थी । इस तरह पार्श्ववर्ती राज्यों से निकट का सम्बन्ध, शासन प्रणाली में बहुमत की प्रधानता और सिद्धार्थ की शासन कला कुशलता आदि ऐसे कारण थे जिनसे उनके राज्य में सर्वत्र सुख शान्ति समृद्धि के गीत गातीं किशोर कृषक बालिकानों को देखकर अन्य देशीय-दर्शक शासकों के हृदय पटल पर सिद्धार्थ की श्रद्धा मुद्रा अङ्कित हो जाती थी । आर्थिक स्थिति सुजला, सुफला, मलयज शीतला, सस्य -श्यामला भारत भूमि पर - लहलहाते खेतों पर अल्हड़ गीत गाती कृषक कुमारियों का कूर्दन खेलन ही बता देता था - "वहां न कोई दास है ; न दासी, न मजदूर है न मजदूरिन ।" खेती का मुख्य व्यवसाय, शिल्प का साम्राज्य तथा चीन, लङ्का, फारस जैसे देशों से व्यापार था। समृद्धि के कारण वापी-कूप, तड़ाग, स्नानागार एवं कलामय निकेतन जनसाधारण की भोग्य वस्तु थे । अन्यायअत्याचार, चोरी जैसे पापाचार उस समय न थे । सादगी के साम्राज्य में विलासता का वास न था, सरल स्वभावी श्रमिकों के जीवन में प्रालस्य का श्रावास न था । शैक्षिक स्थिति शिक्षा सम्बन्धी स्थिति भी राजनैतिक स्थिति की तरह पूर्ण सन्तोष एवं गौरव पूर्ण थी । भले ही आज जैसे विश्व विद्यालय उस समय न थे फिर भी तात्कालिक भारत को शिक्षा क्षेत्र में विश्व गुरु और बिहार को उसका नेता बनने का सौभाग्य प्राप्त था । इसी परम्परा में एक समय वह था जब भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी नालन्दा में सैकड़ों छात्रों को श्रौदार्य भाव से ज्ञान-दान देते थे। वे उन दिनों बिहार के प्रतिभा सम्पन्न विद्वानों के गुरु थे । उनके दार्शनिक बुद्धिबल का परिचय जैन शास्त्रों में स्पष्ट मिलता है। समाज स्वयं छात्रों की सम्पूर्ण व्यवस्था उत्साहपूर्वक करता था । शिक्षा गुरु और समाज में पूर्णतया सहयोग भावना व्याप्त थी । और इसी प्रभावक परम्परा के कारण गुप्तकाल में एक समय वह भी आया कि नालन्दा विश्व विद्यालय जैसी सुप्रसिद्ध संस्था स्थापित हुई जिसमें १५०० उपाध्याय विद्यादान देते थे । देश विदेश के प्रज्ञानातप तप्त विद्यार्थी इसी ज्ञान कल्पतरु की सुखद छाया में सरस्वती प्रदत्त विविध विद्या सुधा का पान कर अपने को संतृप्त समझ सुख शान्ति का अनुभव किया करते थे । इस प्रान्त में भगवान् महावीर और जैन धर्म की प्रभावपूर्ण पर्याप्त मान्यता थी । सामाजिक स्थिति ईस्वी पूर्व छठी शती की भारतीय सामाजिक स्थिति विषम थी । समाज पर उन लोगों का आधिपत्य था जो रूढ़ि-जन्य क्रियाओं के कट्टर पक्षपाती थे । गरगराज्य होते हुए भी समाज के किसी भी प्रकार के निर्णय में पण्डितों की राय अपेक्षित थी । पोथियों के अक्षरों पर समाज का विकास निर्भर था, अनुभव को कोई स्थान न था । नारी और शूद्रों का सामाजिक जीवन बड़ा कष्टप्रद था । नारी के अधिकार सीमित थे । वह वेद का पारायरण न कर सकती थी । स्वार्थियों की इच्छाओं पर उन का सामाजिक अस्तित्व था । अन्धविश्वास सृजित धार्मिक भावनाओं ने समाज को पंगु बना दिया था । यह देखा गया है कि मानव जाति की किसी भी प्रकार की उन्नति के लिये सामाजिक संगठन वाञ्छनीय है। समाज जितना दृढ़, स्थिर और निर्दोष होगा वह राष्ट्र उतना ही उन्नत होगा । समाज के उचित विकास पर ही सांस्कृतिक विकास प्रव लम्बित है। दूषित समाज से उन्नति की आशा व्यर्थ है । भगवान् महावीर के समय के समाज की दशा पर प्रकाश डालने वाले स्वतन्त्र ग्रन्थ भले ही न मिलते हों पर तत्कालीन साहित्य में पाये जाने वाले समाज में साम्राज्यवाद पोषक बिचारधारा पनपती जा रही थी । व्यक्ति स्वातन्त्र्य का सिद्धान्त नाममात्र को रह गया था । गुरण पूजा का स्थान व्यक्ति पूजा ने ले लिया था । सामाजिक परिस्थिति तथा व्यक्तियों की मनःस्थिति के संघर्ष में विभिन्न ध्येय और वाद जन्मते हैं, पनपते है । सामाजिक स्थिति अगर बहुत ही जड़ या जटिल हो चुकी हो तो प्रशान्त मानव-मन प्रशान्त होने पर क्रान्ति के लिये तयार हो जाता है । क्रान्ति से अनेक आन्दोलनों की, संघर्षों की परम्परा प्रारम्भ हो जाती है । उस समय यही हुआ भी । बौद्धिक जागरण से, धार्मिक क्रान्ति से कुछ जनता को उज्जवल भविष्य निर्माण का शुभावसर मिला, तो कुछ जनता ने उसे अपनी स्वार्थ साधना का साधक भी बनाया । समाज की स्वतन्त्र स्थिति पर धार्मिक परतन्त्रता का भारी भार लाद कर चैतन्य समाज को मुर्दा बना दिया । धार्मिक वातावरण से सम्बन्धित होने के कारण सामाजिक स्थिति जटिल हो चुकी थी, धार्मिक युग की छाप समाज पर पड़े बिना कैसे रह सकती थी ? वैदिक एवं श्रमण संस्कृति के बीच धार्मिक मान्यताओं की खाई ने प्रशान्त और प्रभावपूर्ण संघर्ष के अपने दो किनारों से संस्कृति की लोल लहरियों को समय-समय पर एक दूसरे से टकराने वाला बना दिया। धार्मिक स्थिति अत्यन्त उलझ गई, साथ ही सामाजिक स्थिति को भी उलझा ले गई ! स्त्रियों और शूद्रों को धर्माराधन के अधिकारों से भी बञ्चित कर दिया गया !! जातिभेद, वर्णभेद जटिल हो चले, अन्याय के अन्धकार में पड़ो समाज की आत्मा न्याय के प्रकाश के लिये चिल्ला उठी - "विषमता का नाश हो, समता का साम्राज्य हो ।" परन्तु फिर दबा दिये गये ! धार्मिक स्थिति श्रमरण संस्कृति ने जहाँ जनता के प्रत्येक जीवन व्यवहार को सर्वतन्त्र स्वतन्त्र ( स्वच्छन्द नहीं) रखा वहां वैदिक संस्कृति ने जनता के प्रत्येक जीवन व्यवहार को बाह्य विधि-विधानों से ऐसा जकड़ा कि वेदमंत्रों या ऋचाओं के गान के बिना सोनाउठना, खाना-पीना, नहाना-धोना भी दुष्कर हो गया ! कुशल इतने ही से न थी; धर्म के नाम पर क्रूर-कुटिल विधि-विधानों और अमर्यादित आडम्बरों ने मानव जीवन के स्वर्ग को नरक से बदतर बना दिया था ! नर राक्षसों ने मूक पशु-पक्षी, और निर्बल नर-नारियों के अश्वमेध नरमेध यज्ञ रचाकर अपनी स्वर्गारोहण कल्पना को सक्रिय करना प्रारम्भ किया ! धर्म दूकानों में बिकने वाली वस्तु बन गया ! स्वर्ग के टिकिट बांटने वाला अपने आपको सर्वोच्च कहने वाला, तथा कथित एक वरर्णाभिमानी वर्ग रह गया। वह चाहे सदाचारी - प्रसदाचारी, पण्डित- मूर्ख, विवेकी अविवेकी, सुजन दुर्जन कैसा भी हो कोई पूछने वाला नहीं, उन्हें सन्तुष्ट किया कि सर्वार्थ सिद्धि होने में देर नहीं लगती थी ! इस तरह ईश्वर और धर्म के नाम पर जनता की मानसिक, अध्यात्मिक एवं सामाजिक कल्याण कोकिला को वाह्य विधि-विधान और अमर्यादित आडम्बर शलाका निर्मित दासता के पिंजड़े में बन्द कर दिया गया ! धार्मिक क्रान्ति का युगारम्भ बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्वतन्त्रता के लिए जहां उस परतन्त्र कोकिला ने फड़फड़ाना प्रारम्भ किया कि
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संवाद, भाव-भंगी और वेश-भूषा आदि का भी पूर्ण रूप से समावेश हो चुका था और सर्वांगपूर्ण रूपक होने लग गए थे । पाणिनि के सूत्रों की व्याख्या करते हुए पतंजलि अपने महाभाष्य में लिखते हैं कि रङ्गशालाओं में नाटक होते थे और दर्शक लोग उन्हें देखने के लिए जाया करते थे । उन दिनों कम-त्रय और वलि आदि तक के नाटक होने लग गए थे। इससे सिद्ध होता है कि ईसा से सैकड़ों हजारों वर्ष पहले इस देश में नाटकों का पूर्ण प्रचार हो चुका था । हरिवंश पुराण महाभारत के थोड़े ही दिनों पीछे का बना है। उसमें लिखा है कि बज्रनाभ के नगर में कौबेररंभाभिसार नाटक खेला गया था, जिसकी रङ्गभूमि में कैलास पर्वत का दृश्य दिखाया गया था। महावीर स्वामी के लगभग दो सवा दो सौ वर्ष पीछे भद्रवाहु स्वामी हुए थे, जिन्होंने कल्पसूत्र के अपने विवचन में जड़वृत्ति साधुओं का उल्लेख करते हुए एक साधु को कथा दी है। एक वार एक साधु कहीं से बहुत देर करके आया । गुरु के पूछने पर उसने कहा कि मार्ग में नटों का नाटक हो रहा था; वहीं देखने के लिए मैं ठहर गया था। गुरु ने कहा कि साधुओं को नटों के नाटक आदि नहीं देखने चाहिएं। कुछ दिनों पीछे उस साधु को एक बार फिर अपने आश्रम को आने में विलंब हो गया। इस बार गुरु के पूछने पर उसने कहा कि एक स्थान पर नटियों का नाटक हो रहा था, मैं वहीं देखने लग गया था। गुरु ने कहा कि तुम बड़े जड़वुद्धि हो। तुम्हें इतनी भी समझ नहीं कि जिसे नटों का नाटक देखने के लिये निषेध किया जाय, उसके लिये नटियों का नाटक देखना भी निषिद्ध है। इन सब बातों के उल्लेख से हमारा यही तात्पर्य है कि आज से लगभग ढाई-तीन हजार वर्ष पहले भी इस देश में ऐसे ऐसे नाटक होते थे, जिन्हें सर्वसाधारण बहुत सहज में और प्रायः देखा करते थे। कौबेररंभाभिसार सरीखे नाटकों का अभिनय करना जिनमें कैलास के दृश्य दिखाए जाते हो और ऐसी रङ्गशालाएँ बनाना जिनमें राजा रथ पर आते और आकाश मार्ग से जाते हों (दे० विक्रमोर्वशी ) सहज नहीं है। नाट्यरूपक का विकास कला को उन्नति की इस सीमा तक पहुँचने में सैकड़ों हजारों वर्ष लगे होंगे। कौवेररंभाभिसार के सम्बन्ध में हरिवंश पुराण में लिखा है कि उसमें प्रद्युम्न ने नल कूचर का, शूर ने रावण का, सांब ने 'विदूषक का गढ़ ने पारिपार्श्व का और मनोवती ने रंभा का रूप धारण किया था और सारे नाटक का अभिनय इतनी उत्तमता के साथ किया गया था कि उसे देखकर वज्रनाभ आदि दानव बहुत ही प्रसन्न हुए थे। यदि इस कथा को सर्वथा सत्यमान लिया जाय, तो यही सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण के समय में भी भारत में अच्छे-अच्छे नाटकों का अभिनय होता था। भारतवर्ष में नाक-शास्त्र के प्रधान आचार्य भरत मुनि माने जाते हैं। उनका नाट्य शास्त्र सम्बन्धी श्लोकबद्ध ग्रन्थ इस समय हमें उपलब्ध है । यद्यपि उन्होंने अपने ग्रन्थ में शिलालिन और कृशाश्व का उल्लेख नहीं किया है, तथापि उस ग्रन्थ से इतना अवश्य सूचित होता है कि उनसे भी पहले नाट्य-शास्त्र सम्बन्धी अनेक ग्रंथ लिखे जा चुके थे। भरत ने अपने ग्रन्थ को जितना सर्वांगपूर्ण बनाया है और उसमें जितनी सूक्ष्मातिसूक्ष्म बातों का विवेचन किया है, उससे यही सिद्ध होता है कि भरत से पहले इस देश में अनेक रूपक लिखे जा चुके थे और साथ ही नाट्य शास्त्र के कुछ लक्षण-ग्रन्थ भी बन चुके थे। भरत ने उन्हीं नाटकों और लक्षण-ग्रन्थों का भली भाँति अध्ययन करके और उनके गुण-दोष का विवेचन करके अपना ग्रन्थ बनाया था । भरत ने नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में नाट्य के विषय, उसके उद्देश्य और उसकी सामाजिक उपयोगिता का विशद विवेचन किया है। वे लिखते हैं - "इस संपूर्ण संसार ( त्रिलोक ) के भावों ( अवस्था कानुन ही नाट्य है ; १ - १०४।" "अनेक भावों से युक्त, अनेक वाओं से परिपूर्ण तथा लोक के चरित्रों से के अनुकरणवाला यह नाट्य मैंने बनाया है ; १ - १०८ । "यह उत्तम, मध्यम तथा प्रथम मनुष्यों के कृत्यों का समुदाय है, हितकारी उपदेशों को देनेवाला है (और धैर्य, क्रीड़ा और सुख आदि उत्पन्न करनेवाला है ; ) १ - ७६ "यह नाव्य दुःखित, असमर्थ, शोकार्त्ता तथा तपस्वियों को भी समय पर शांति प्रदान करनेवाला है; १८० । " "यह नाट्य धर्म, यश, आयु की वृद्धि करनेवाला, लाभ करनेवाला, बुद्धि चढ़ानेवाला और लौकिक या व्यावहारिक उपदेश देनेवाला होगा : १-८१" "न कोई ऐसा ज्ञान है, न शिल्प है, न विद्या है, न कला है, न योग है, न कर्म है जो इस नाट्य में न मिले : १-८२ " "यह नाट्य वेट, विद्या और इतिहास के आख्यानों का स्मरण करानेवाजा तथा समय पाकर विनोद करनेवाला होगा : १ - ८६ ।" उपर्युक्त त्रिवेचन से स्पष्ट है कि भारतीय नाव्य का आदर्श केवल जनता की चित्तवृत्ति को आनंदित करना तथा उनकी इंद्रिय-लिप्सा को उत्तेजित करना नहीं, वरन् घर्म, आयु और यश की वृद्धि करना है । भारतीय नाट्य शास्त्र तथा नाट्य साहित्य की यही विशेषता है। अव हम रूपकों के सम्बन्ध में एक और बात का विवेचन करना चाहते हैं जिससे रूपों की प्राचीनता और उनके प्रारंभिक रूप पर विशेष प्रकाश पड़ने की संभावना है। पाठकों में कठपुतली का नाच से बहुतों ने कठपुतली का नाच देखा होगा । संस्कृत में कठपुतली के लिए पुत्रिका, पुत्तली और पुत्तलिका आदि शब्दों का प्रयोग होता है, जिनका अर्थ होता है - छोटी बालिका । लैटिन भाषा में कठपुतली के लिये प्यूपा' अथवा 'प्यूपुल' आदि जो शब्द हैं उनका भी यही अर्थ है । यह कठपुतली का नाच हमारे यहाँ बहुत प्राचीन काल से प्रचलित है। प्राचीन भारत में ऊन, काठ, सींग और हाथी दाँत आदि की बहुत अच्छी पुतलियाँ बनती थीं । कहते हैं, पार्वतीजी ने एक बहुत सुन्दर पुतली बनाई थी। उस पुतली को वे शिवजी से छिपाना चाहती थी, इसलिये उन्होंने उसे मलय पर्वत पर ले जाकर रखा था। पर उसे देखने और उसका शृंगार करने के लिये वे नित्य मलय पर्वत पर जाती थीं, जिससे शिवजी को कुछ संदेह हुआ। एक दिन शिवजी भी छिपकर पार्वती के पीछे-पीछे मलय पर्वत पर जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने पार्वतीजी की वह पुतली देखी । वह पुतली रूपक का विकांस संजीव न होने पर भी सर्वथा सजीव जान पड़ती थी। अतः शिवजी ने प्रसन्न होकर उस पुतली को सजीव कर दिया था। महाभारत में भी कठपु वलियों का उल्लेख है । जिस समय अर्जुन कौरवों से युद्ध करने के लिये जा रहे थे, उस समय उत्तरा ने उनसे कहा था कि मेरे लिये अच्छी-अच्छी पुतलियाँ या गुड़ियाँ लेते आना । कथा-सरित्सागर में, एक स्थान पर लिखा है कि असुर मय की कन्या सोमप्रभा ने अपने पिता की बनाई हुई बहुत सो कठपुतलियाँ रानी कलिंगसेना को दो थीं। उनमें से एक कठपुतली ऐसी थी जो खूँटी दबाते हो हवा में उड़ने लगती थी और कुछ दूर पर रखी हुई छोटी-माटी चीजें तक उठा लाती थी । उनमें से एक पुतली पानी भरती थी, एक नाचती थी और एक बात चीत करती थी। उन पुतलियों को देखकर कलिंगसेना इतनी मोहित हो गई थी कि वह दिन-रात उन्हीं के साथ खेला करती थी और खाना-पीना तक छोड़ बैठी थी। यह तो सभी लोग जानते हैं कि कथा-सरित्सागर का मूल गुणाड्य-कृत बड़का ( बृहत्कथा ) है, जो बहुत प्राचीन काल में पैशाची भाषा में लिखी गई थी; पर यह वृहत्कथा अब कहीं नहीं मिलती । हमारे कहने का तात्पर्य केवल यही है कि गुरणाढ्य के समय में भी भारत में ऐसी अच्छी-अच्छी कठपुतलियाँ बनती थीं जो अनेक प्रकार के कठिन कार्य करने के अतिरिक्त मनुष्यों की भाँति बातचीत तक करती थीं। ये कठपुतलियाँ कोरी कवि-कल्पना कदापि नहीं हो सकतीं । कथाकोष में लिखा है कि राजा सुन्दर ने अपने पुत्र अमरचन्द्र के विवाह में कठपुतलियों का नाच कराया था। इन सब बातों से सिद्ध होता है कि बहुत प्राचीन काल में ही भारत में कठपुतलियों का नाच बहुत उन्नत दशा को पहुँच चुका था। राजशेखर ने दसवीं शताब्दी के आरम्भ में जो बाल-रामायण नाटक लिखा था, उसके पाचवें अंक में कठपुतलियों का उल्लेख है। उसमें लिखा है कि असुर मय के प्रधान शिष्य विशारद ने दो कठपुतलियाँ बनाई थीं, जिनमें से एक सीता की और दूसरी सिंदूरिका की प्रतिकृति थी । ये दोनों कठपुतलियाँ संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाएँ बहुत अच्छी तरह बोल सकती
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मालिनी अवस्थी। वसंत तरुणाई है। यह प्रतीक्षा करना नहीं जानता और इसका उत्कर्ष है होली। वसंत ऋतु और होली का पर्व कवियों-कलाकारों ही नहीं, क्रांतिकारियों को भी प्रिय है। घनी अमराई में कोयल की कूक, गुलाब गेंदा, चंपा, चमेली पर मंडराते भंवरों का गुंजन, चारों ओर पियरी ओढ़े सरसों के खेत, गेहूं की झूमती-पकती बालियां. . . इसी वासंती मौसम में होली, धमार, काफी, जोगीरा, चौताल और चैता की स्वरलहरियां सुनाई पड़ने लगती हैं। आकाश अबीर-गुलाल सा दिखने लगता है, उत्साह का कोई ओर-छोर नहीं रहता. . . मन भीगने लगता है और तन भीगना चाहता है किसी अपने के प्रेम से। वसंत और फागुन की यह दहक टेसू-पलाश के दहकते केसरिया रंग में भीग कर ही शांत होती है। वसंत यौवन है, तरुणाई है, उल्लास है। वसंत नवागत का स्वागत है। वसंत जीवन का उत्सव है, वसंत बिखरने-बिखेरने का मौसम है। वसंत अधीर है। यह प्रतीक्षा करना नहीं जानता और इसका उत्कर्ष है होली। वर्ष प्रति वर्ष, वसंत के उल्लास का चरम फागुन में रंगों से जब भीजता है तो ही पूरा होता है उमंग का यह अनुष्ठान। इन दो महीनों में मनुष्य एक जीवन जी लेता है। कामदेव ने ऐसी व्यवस्था ही रच रखी है। शिव ने अनंग को यह विशेष वरदान दिया है। वह निराकार होकर भी साकार हैं। सच है, जीवन वही जो सार्थक जिया जाए, आयु उतनी यथेष्ट जिसमें जीवन का लक्ष्य पूर्ण हो जाए। संभवतः यही कारण है कि वसंत ऋतु और होली का पर्व कवियों, कलाकारों, चित्रकारों का ही नही, क्रांतिकारियों का भी सबसे प्रिय मौसम है। क्रांति का रंग वासंतिक है, केसरिया है, अदम्य साहस, शौर्य और अध्यात्मिक ऊर्जा का है। वीरों का वसंत ऐसा ही होना चाहिए। साहस और ऊर्जा से भरपूर। प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता जब पहली बार सुनी थी, तब से मेरे लिए वीरता और वसंत एक-दूसरे में गुंथ से गए। वीरों का कैसा हो वसंत, आ रही हिमालय से पुकार, है उदधि गरजता बार बार, प्राची पश्चिम भू नभ अपार, सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत, वीरों का कैसा हो वसंत। फूली सरसों ने दिया रंग, मधु लेकर आ पहुंचा अनंग, वधु वसुधा पुलकित अंग अंग, है वीर देश में किंतु कंत, वीरों का कैसा हो वसंत। कह दे अतीत अब मौन त्याग, लंके तुझमें क्यों लगी आग, ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग, बतला अपने अनुभव अनंत, वीरों का कैसा हो वसंत। हल्दीघाटी के शिलाखंड, ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड, राणा ताना का कर घमंड, दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत, वीरों का कैसा हो वसंत। देश की रक्षा के लिए तत्पर भारत मां के लाडलों ने हंसते-हंसते अपने रक्त से भारत माता का तिलक किया है। अंग्रेजों व देश के शत्रुओं से खून की होली खेली है और मुस्कुराते हुए अपना बसंती चोला देश पर न्योछावर कर दिया है। मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला। यह गीत 'भगत सिंह का अंतिम गान' शीर्षक के रूप में वर्ष 1931 के साप्ताहिक 'अभ्युदय' के अंक में प्रकाशित हुआ था। भगत सिंह ने अंतिम समय में यह गीत गाया या नहीं इसके साक्ष्य उपलब्ध नहीं है किंतु निस्संदेह यह गीत भगत सिंह को पसंद था और वह जेल में किताबें पढ़ते-पढ़ते कई बार इस गीत को गाने लगते थे। उनके आसपास के अन्य बंदी क्रांतिकारी भी इस गीत को एक साथ गाते थे, इस बात के अनेक प्रमाण हैं। स्वाधीनता की लड़ाई में देश के कोने-कोने में क्रांतिकारी एकजुट हो रहे थे। रामप्रसाद बिस्मिल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक थे। इस संस्था के द्वारा ही चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, अशफाक उल्ला खान, राजगुरु, प्रेम किशन खन्ना, ठाकुर रोशन सिंह और भगवतीचरण व्होरा जैसे क्रांतिकारी एक दूसरे के संपर्क में आए। भगत सिंह बिस्मिल से अत्यधिक प्रभावित थे। हालांकि एक समय में वे महात्मा गांधी से भी बहुत प्रभावित थे किंतु गांधी जी के असहयोग आंदोलन रद कर देने के कारण उनमें थोड़ा रोष उत्पन्न हुआ तो उन्होंने अहिंसात्मक आंदोलन की जगह क्रांति का मार्ग अपनाना उचित समझा। उनके दल के प्रमुख क्रांतिकारियों में आजाद, सुखदेव और राजगुरु इत्यादि थे। काकोरी ट्रेन एक्शन में चार क्रांतिकारियों, जिनमें बिस्मिल और अशफाक भी शामिल थे, की फांसी और कारावास की सजा से भगत सिंह इतने उद्विग्न हुए कि उन्होंने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में विलय कर दिया और एक नया नाम दिया- हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए प्रदर्शन हुए और इन प्रदर्शनों में भाग लेने वालों पर अंग्रेजी शासन ने लाठीचार्ज किया। जिसमें लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने योजना बनाकर 17 दिसंबर, 1928 को एसपी सांडर्स को गोली मार दी। आठ अप्रैल, 1929 को केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जुर्म में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। भगत सिंह चाहते तो भाग सकते थे पर उन्होंने पहले ही सोच लिया था कि उन्हें दंड स्वीकार है। विस्फोट होने के बाद उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद का नारा लगाया। आप कल्पना कर सकते हैं कि एक हुकूमत, जिसका दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर शासन था और जिसके बारे में कहा जाता था कि उसके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता, ऐसी ताकतवर हुकूमत 23 साल के एक युवक से भयभीत हो गई थी। स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिकारी साहित्य का इतिहास भाग -दो में उल्लिखित है कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा में दिए गए दिशानिर्देश का भगत सिंह ने अक्षरशः पालन किया और अंग्रेजी सरकार से फांसी के बजाय गोली से उड़ा दिए जाने की मांग की। 23 मार्च, 1931 की शाम भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। यही वह विचारभूमि थी जिसके आधार पर निराला जी ने 'खून की होली जो खेली' लिखी थी। यह कविता गया से प्रकाशित साप्ताहिक 'उषा' के होलिकांक में मार्च 1946 में प्रकाशित हुई। युवकजनों की है जान, खून की होली जो खेली, पाया है लोगों में मान, खून की होली जो खेली। रंग गए जैसे पलाश, कुसुम किंशुक के, सुहाए, कोकनद के पाए प्राण, खून की होली जो खेली। निकले क्या कोंपल लाल, फाग की आग लगी है, फागुन की टेढ़ी तान, खून की होली जो खेली। खुल गई गीतों की रात, किरन उतरी है प्रातः की, हाथ कुसुम-वरदान, खून की होली जो खेली। आई सुवेश बहार, आम-लीची की मंजरी, कटहल की अरघान, खून की होली जो खेली। विकच हुए कचनार, हार पड़े अमलतास के, पाटल-होठों मुसकान, खून की होली जो खेली। । यहां पर मैं अपनी एक प्रिय रचना का जिक्र अवश्य करना चाहूंगी। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर शायर भी थे। उनके जीवनकाल में उनकी आंखों के सामने धीरे-धीरे हिंदुस्तान पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। इस संघर्ष में भारत ने खून की कैसी होली खेली, इसका बड़ा मार्मिक, सारगर्भित और साहित्यिक वर्णन मिलता है। ंहद में कैसो फाग मचो री जोरा जोरी, फूल का तख्र्ता ंहद बना था, केसर की सी क्यारी, कैसे फूटे भाग हमारे, लुट गई बगिया हमारी, जल गई सब फुलवारी, हिंद में कैसो फाग मचो री। गोलिन का ही गुलाल बनायो, तोपन की पिचकारी, आप रही सिगरे मुख ऊपर, हिंद में कैसो फाग मचो री। । वसंत में चहुंओर छिटकी पियरी सरसों वातावरण में नई ऊर्जा, नई आशा लाती दिखाई पड़ती है तो फागुन में खिले टेसू, पलाश, कचनार का केसरिया रंग प्रकृति को एक अलग आध्यात्मिक आभा देते हैं। केसरिया रंग भक्ति व समर्पण का रंग है। भारतीय धर्म में केसरिया रंग को साधुता, पवित्रता, शुचिता, स्वच्छता और परिष्कार का वैसे ही द्योतक माना गया है जैसे आग में तपकर वस्तुएं निखर उठती हैं। भारत के ध्वज में पहला रंग केसरिया ही है जो शुभ संकल्प, ज्ञान, तप, संयम और वैराग्य का रंग है। एक पारंपरिक ग्राम गीत में एक पारंपरिक ग्राम गीत में होली गाती हुई ग्राम बाला को किसी और रंग की नहीं, केसरिया चुनरी ही पसंद है। मोरे बांके सांवरिया, मोहे ला दे केसरिया चुनरिया, ओ रंगरेजवा न धानी गुलाबी, मोरी रंग दे चुनरिया केसरिया। बुंदेलखंड की अनेक फागों में युद्ध का, क्रांति का, वीरता का रंग दिखता है। एक फाग की चौकड़ी देखिए, जिसमें कहा जा रहा है कि अब तो पानी सिर से ऊपर हो गया है अर्थात अब सहन नही होता। ऐसा न हो कि यहां कौवे बोलने लगे अर्थात सब कुछ कहीं उजड़ न जाए। कवि श्याम का कहना है कि- सावधान हो जाओ हमें लड़ने के लिए बैरी ललकार रहा है, अपने को कमजोर न मानकर उनसे संघर्ष करने को सदैव तैयार रहो। पानी हो गव मूड डुबऊवा बोलन लगे न कौआ। रोजैं मर रए इतै आदमी, जैसे चौपे चउवा। आतंकी हमलन कौ घुस गव लोगन के मन हउवा। चैतो स्याम हमे ललकारे, बैरी बीर लड़उवा। । वीरता के लिए साहस चाहिए और साहस भी अज्ञात के साथ प्रेम प्रसंग ही है। प्रेम करने के लिए भी तो साहस चाहिए न और इसीलिए वसंत वीर की कामना करता है। (लेखिका प्रख्यात लोकगायिका हैं)
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सहस्र नर नारी भावाल पूद्ध भूख की ज्वाला से जल गए, अगणित होनहार भययुवक अन्नविद्दीन हो काल के कवल हो गए। इस दशा में नगर निवासियों की नेपोलियन ने इतनी अधिक सहायता तथा सेवा की कि वह प्रत्येक प्राणी की आंखों फ्रा तारा हो गया । सत्य है, अत्याचारी के अत्याचार से पीड़ित लोग अपना मस्तक उसके पैरों पर घर देते हैं, खुशामदी धनिकों के आगे और निर्बल घलवान के आगे स्वार्थवश सिर झुका देता है, पशुवल से धनावटी प्रतिष्ठा मनुष्य पा सकता है परंतु मनुष्य हृदय का जितना काम है उसके लिये स्नेह चाहिए, करुणा और दया चाहिए तथा हार्दिक प्रेम चाहिए । ईश्वर ने नेपोलियन को जहाँ बली और चतुर बनाया था वहाँ उसको मनुष्यों के हृदयों पर विजय पाने के भी साधन प्रदान किए थे । इन्हीं सद्गुणों के कारण आज नेपोलियन फ्रांस के हर एक छोटे बड़े का स्नेह-पात्र, प्रतिष्ठा-भाजन, उपास्य देव बन गया । विवाह से कई दिन पहले नेपोलियन इटली देशस्थ फरांसीसी सैन्यों का प्रधान सेनापति नियुक्त हो चुका था, भूतपूर्व सेनापति पृथक् किया जा चुका था । नेपोलियन को इस बड़े दायित्वपूर्ण पद पर नियुक्त करने के समय डाइरेक्टरों ने कहा - " तुम बालक हो, इतनी बड़ी जिम्मेदारी के 'उठाने योग्य अभी तुम्हारी अवस्था नहीं है, तुम कैसे बूढ़े सेनापतियों पर शासन करोगे ? " नेपोलियन ने सरल भाव से उत्तर दिया-" में बारह महीने में ही धूढ़ा हो जाऊँगा, अथवा मेरा शरीर पात हो जायगा ।" पुनः एक डाइरेक्टर ने कहा - " हम तुम्हें प्रधान सेनापति ही बनाते हैं, किंतु सैन्य के लिये धन की सहायता हम से कुछ न हो सकेगी। राज-कोप खाली है और उन लोगों के कुव्यवहार की सीमा नहीं है, ये सब बातें सोच लो ।" नेपोलियन बोला-" अच्छा यों ही सही, इन सब बातों का भी में ही दायी रहा, आप चिंता न करें । " अब पाठक थोड़े से शब्दों में यह जान लें कि इस युद्ध का कारण क्या था, क्यों इटली की ओर सेना पड़ी थी, जिसके शासन के लिये फ्रांस से नेपोलियन को जाना पड़ा । हम कुछ पहले कह चुके हैं कि फ्रांस का आभ्यंतरिक विद्रोह देख तथा उसे निर्बल जान कुछ तो अन्य युरोपीय राज्यों ने यह सोचा था कि ऐसे समय मे जो कुछ फ्रांस से हम लोग छीन सकेंछीन ले, फिर ऐसा अवसर मिले या न मिले । दूसरी बात यह थी कि फ्रांस के प्रजातंत्र की धूम युरोप में फैल गई थी, राजाओं के आसन डोल गए थे, वे यह समझते थे कि जो कहीं इस प्रजातंत्र की लहर सारे युरोप में फैली तो हमारा ठिकाना न लगेगा, हम दूसरों के पसीने की गाढ़ी कमाई से भोग विलास में निरत न रह सकेंगे। स्थानांतर में युरोपीय प्रजा ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि मांस का प्रजातंत्र कृतकार्य्यता के मुकुट से मंडित मस्तक हो और ईश्वर हमारी सुने, हमारा भी दुख दूर हो । आयरलैंड के मृतक शरीर से भी स्वतंत्रता की ध्वनि उठ खड़ी हुई थी। इसी लिये समस्त युरोपीय राज्यों ने फ्रांस की भंजातंत्र शासन प्रणाली को, जो युनाइटेड स्टेट अमेरिका के ढंग पर बनी थी, मिट्टी में मिलाने का बीड़ा उठाया था। इस काम में आस्ट्रिया, जो इटली पर घोर अत्याचार कर रहा था, प्रधान बना । इसके साथ इंगलैंड, सार्टिनिया, पोप, सभी सम्मिलित थे एक शब्द में, सारा युरोप एक ओर और नेपोलियन के आधिपत्य में फरासीसी सैन्य दूसरी ओर। सच तो यह है कि जो कहीं बीच में अटलांटिक महासागर का व्यवधान न होता तो यह कृपित युरोपीय राजमंडल नेपोलियन की भाँति वीर वाशिंगटन को भी पकड़ कर किसी सेंटहेलना में बंदी करने के लिये वश रहते, कोई भी उपाय उठा न रखता ! इस दशा में भूसी प्यासी, कई मास से बिना वेतन पाए, दुसरी, कर्तव्य भूली हुई, विदेशस्थ फरासीसी सेना के प्रधानाधिपत्य पर युवक नेपोलियन भेजा गया। लेकिन किसी कवि ने सच कहा है कि-' रागी बागी रतन पारसी नायक और नियाय । इन पांचों के गुरु सही पर उपजें अंग सुभाय ।' नेपोलियन जात नेता था कृत नहीं, इसमें आधिपत्य की शक्ति ईश्वरप्रदत्त थी । नेपोलियन 'नाइस' में पहुँचा । यहाँ ३० सहस्र फरासीसी सैन्य क्षुधातुर, हतोत्साह असंतुष्ट पड़ी थी, इसीफो ले कर वीर नेपोलियन को समस्त युरोप की सम्मिलित शक्ति के सामने मोरचे पर खड़ा होना था। पहले तो चूड़े सेनाधिप, विना मूछ दाढ़ी के बालक को प्रधान सेना परि• चालक देख कर आश्चर्य्यान्वित हो कहने लगे कि क्या इसी के अधीन काम करके हम विजयी होंगे? परंतु मेसानो, अगारो आदि इसकी प्रतिभा को जानते थे उन्होंने कहा" इसे छोटा न समझो, 'मंत्र परम लघु जामु वम वसहि देव गंधर्व । "वैजवंत लघु गनिए ना भाई ।" नेपोलियन ने जाते ही सेना में एक घोषणापत्र वितरण कराया । वह यह था"योद्धागण ! तुम लोग क्षुधार्त और वस्त्रहीन हो, शासनमंडल अनेक प्रकार से तुम्हारा ऋणी है और उसके हाथ में इसका बदला देने का कोई भी उपाय नहीं है। निस्संदेह इस पहाड़ी धरती में, इस अगम्य स्थान पर तुम्हारा साहस, तुम्हारी सहिष्णुता अनुकरणीय आदर्श है। लेकिन तुम्हारी वीरता का कोई प्रमाण नहीं मिलता। मैं तुम्हारा अधिप हो कर आया हूं और तुमको संपन्न उर्वरा धरती पर ले चलूंगा, अनेक धन धान्य संपन्न स्थान तुम्हारे करतल गत होंगे, और तुमको अन्न, वस्त्र, धन, ऐश्वर्य, सुयश किसी बात की कमी न रहेगी। अब योद्धाओ । यह बताओ कि तुम मे इस प्रकार से यश और ऐश्वर्य अपने हाथों प्राप्त करने का साहस है या नहीं ! है तो उठ सड़े हो, सब कुछ तुम्हारे हाथ तले है।" इस घोषणा के पढ़ने से सैन्यगण की छाती दूनी हो गई, उनकी नस नस उत्साह से भर उठी, उनकी भुजाएँ फड़कने लगीं । नेपोलियन ने पहले इटली में पैर धरना निश्चय किया, क्योंकि सार्डेिनिया और आस्ट्रिया मे भेद डालना बहुत आव श्यक था। इसमें कृत्कार्य्य हो कर उसने सोचा कि आस्ट्रिया की सेना को ऐसा दबाना कि आस्ट्रिया को इनकी सहायता के लिये राईन नदी पर तटस्थ सेना को बुलाना ही पड़े। तीसरे उसने पोप की शक्ति और क्षमता का नाश करना अनिवार्य्य जाना, क्योंकि यह बायॉन वंशजों के हाथ में फ्रांस का सिंहासन देने के लिये सिर तोड़ चेष्टा कर रहा था । पोप प्रजा का और शत्रु था, इसने फ्रांस के दूत को मरवा डाला था, यद्यपि दूत अवध्य होते हैं। यह सब काम कठिन और सेना केवल ३० हजार, सो भी क्षुधा से क्षीण तन, निर्जीव; रण माममी भी पूरी नहीं; पर नहीं, नेपोलियन के आगे कटिन या असंभव तो कुछ था ही नहीं। घोषणापत्र पढ़ने के उपरांत नेपोलियन ने कूच की आज्ञा दे दी। कुद्ध भुजंगिनी की तरह नेपोलियन की विशाल धतुरंगिणी युद्धाभिलापिणी हो चल पड़ी । नेपोलियन रात दिन घोड़े की पीठ पर बैठे विना विश्राम आगे बढ़ने लगा। यह सेना के प्रत्येक जन के मुख दुःख को अपनी आंखों से देसवा, संवेदना प्रकाश करता, दुःस दूर करने की चेष्टा करता हुआ आस्ट्रिया की सेना की ओर चला। सेनापति बेटीर ने आस्ट्रिया की सेना को तीन भागों में विभक्त किया था। इसमें से बोचवाली १० हजार मढेना नामक छोटे से ग्राम में थी । ११ अप्रैल की अँधेरी रात में हवा सनसना रही थी, वर्षा कहती थी कि आजही प्रलय करके छोडूंगी, पंकीभूत मार्ग दुर्गम हो रहा था। विपक्षी सेना निश्चित, मुँह बंद किए आठ हाथ की रजाई में लंनी ताने पड़ी थी । नेपोलियन मेना लिये मारो मार धावा कर रहा था। नदी पहाड़ों को चुपके से बिना सटका खुटका किए पैरों ही पार करके प्रभात होते होते मडेना के सामने के पहाड़ पर नेपोलियन ससैन्य पहुँच गया। इसने पर्वत पर से अनुसंधान ले लिया, परंतु शत्रु दल के कान में जू तफ रेंगने का अवसर न दिया। यकी हुई सेना को विश्राम का भी अवसर न दे कर नेपोलियन आस्ट्रिया और सार्डिनिया के सम्मिलित वल दल के ऊपर बिजली की तरह गिर पड़ा। आगे पीछे दहिने बाएँ चारों ओर से युगपत् आक्रमण से विदलित शत्रु दल भाग उठा । तीन हजार शत्रु दल एकदम खेत रहा और कुछ घायल पड़े रहे, शेष भाग गए। यहाँ बहुत सी रण सामग्री तथा रसद नेपोलियन के हाथ लगी। यही मडेना का युद्ध है जिसकी बावत नेपोलियन ने कहा था कि मैंने वंशगौरव मडेना के युद्ध में प्राप्त किया है। पाठकों को याद होगा कि आस्ट्रिया नरेश ने अपनी पुत्री का विवाह नेपोलियन से करना चाहा था और इसके उच्च वंशज होने न होने का प्रश्न उठा था। पराजित आस्ट्रियन सेना 'डिगो' की ओर भागी, और वहाँ नई सेना से सम्मिलित हो कर विजयी नेपोलियन की सेना के हाथ से मिलन की रक्षा करने के लिये उद्यत हुई, और साहिनिया की सेना मेलिसमों की ओर भागी और राजधानी टूरिन की रक्षा में तत्पर हुई । इस तरह एक उद्देश्य नेपोलियन का सिद्ध हो गया, जैसा ऊपर कहा गया है । इस जीत के पीछे सेना को उसने कुछ विश्राम दिया; लेकिन नेपोलियन स्वयम् शत्रु दल पर फिर आक्रमण करने की आयोजना करने में लगा रहा और उसने कुछ विश्राम न लिया । १३ वीं व १४ वीं अप्रैल को घोर युद्ध होने पर आस्ट्रिया वा सार्डिनिया की सम्मिलित सेना घंटे घंटे पर नई कुमक पाती रही और पर्वत के ऊपर से नेपोलियन की सेना पर पत्थर की चट्टानें लुढ़काने लगी । नेपोलियन सेना में फिर फिर कर सिपाहियों 'को प्रोत्साहित करता हुआ आगे बढ़ता रहा। अंततः उसने डिगो मे शत्रु दल को हटाया । यहाँ भी बहुत सी रण और खाद्य सामग्री नेपोलियन के हाथ लगी। वहाँ ३००० आस्ट्रियन सेना नेपोलियन के बंधन में आ गई मिटेसिमों में मार्टिनिया फी १५०० सेना को भी नेपोलियन ने थंदी किया। इस तरह शत्रु दल में बिजली की भाँति द्रुव बेग से नेपोलियन का आक्रमण असा हो गया और हाहाकार मच गई। भूसी निर्धन किंतु विजयी सेना लूट आरंभ कर देती पर नेपोलियन इस यात का विरोधी था, विशेषतः यह इटलीवालों की सहानुभूति प्राप्त करना चाहता था, इस लिये उसने अपने कठोर शासन द्वारा लूट की प्रथा बंद कर दी। जो रसद सामग्री उसे शत्रु दल की हाथ लगती इस से ही उसने अपनी सेना की परितृप्ति की । अतः नेपोलियन जेमोला पर्वत पर हो कर इटली का सौंदर्म्य देखता हुआ ससैन्य तूरिन पर आक्रमण करने के लिये चला । १८ वी अप्रैल को इसने देखा कि ८ हजार शत्रु दुल शिविर बनाए पड़ा हुआ है । नेपोलियन इन पर याज की तरह टूटा । सारे दिन तुमुल युद्ध हुआ । रात को प्रातः काल की प्रतीक्षा करते हुए फरासीसी बंदूकें सिरहाने घर कर सोए, किंतु उपःकाल में ही देखा गया कि साहिनिया की सेना ने भाग कर समीपवर्ती कारसग्लिया नदी के उस पार जा डेरा डाला है। यहाँ और नई सेना आ कर इनमें मिल गई थी और पीछे की ओर आस्ट्रिया का बड़ा भारी दल इकट्ठा हो रहा था। इस कठिन अवस्था में कर्तव्य कार्य के विचार के लिये रात को समर सभा बैठी और निश्चय हुआ कि नदी का सेतु अच्छी तरह अरुणोदय होने के पहले तोड़ दिया जाय । बस प्रभात होने के कुछ पहले ही फरासीसी सेना पुल पर आ पड़ी और आतंकित सार्डिनीय सेना भाग खड़ी हुई । नेपोलियन को ऐसी कापुरुपता की आशा न थी, प्रत्युत इसी पुल के द्वारा आ कर शत्रु सेना से आक्रमित होने की उसे पूरी आशंका थी । अब क्याथा, सानंद फरासीसी सेना पुल के पार हो गई। आगे आगे सार्डिनिया की सेना भागी जाती थी पीछे पीछे नेपोलियन उसे खदेड़ता जाता था । शत्रु सेना मांटोवी पहाड़ पर जा कर निवेशित हुई और संध्या होते ही फरासीसी सेना भी वहाँ जा पहुँची। यहाँ अच्छा युद्ध हुआ, अंत में विजय नेपोलियन की हुई। आठ वृहन्नलिका ग्यारह झंडे और दो सहस्र शत्रु-दल के योद्धा नेपोलियन के हाथ आए, और एक सहस्र खेत रहे। लेकिन अब भी नेपोलियन के हाथ से उन्हें छुटकारा मिलता नहीं दीसा । शत्रुदल भाग भाग कर छिपता था नेपोलियन खोज खोज कर उन्हें मारता था । केरास्को से विजय लाभ करती हुई फरासीसी सेना तूरिन से दस कोस पर आ पड़ी, राजधानी में हलचल मच गई। प्रजातंत्र के पक्षपाती लोग नेपोलियन के स्वागत करने को उत्कंठित हो उठे, वे फ्रांस की जय मनाने लगे । सार यह कि सार्डिनिया नरेश काँप उठा और उसने हाथ बाँध कर क्षमा माँगी । नेपोलियन ने अपने सहयोगियों के मत का तीव्र प्रतिवाद करके सार्डिनिया से संधि कर ली। इस संधि में यही शर्त लिखी गई कि 'अब सार्डिनिया, आस्ट्रिया वा अंग्रेजों से मैत्री न रखेगा। इस संधि के विधानानुसार नेपोलियन को तीन दुर्ग समस्त रण मामग्री तथा. खाद्य द्रव्य सहित सार्टिनिया ने प्रदान किए। जीते हुए स्थान फरासीसियों के ही पास रहे और फरामीसी सेना को आस्ट्रिया के साथ लड़ने के लिये मार्ग दिया गया इस विजय के उपरांत नेपोलियन ने समस्त सेना को एकत्र फरके एक सारगर्भित वक्तृता दी, जिसका तत्त्व यह है - "हे सैन्यगण ! तुम्हारी धीरता से २१ झंडे, ६४ तोपें और कई दुर्ग हमारे हाथ आए हैं। तुम्हारे पास अन्न वस्त्र न या उसकी अब कमी नहीं है। तुमने १० सहय वीरों को रणभूमि शायी किया और १५ सहस्र तुम्हारे कारागार में हैं । तुम फ्रांस प्रजातंत्र के विश्वासपात्र वीर हो । एक बात करना कि लूट कर के अपना और अपने देश का नाम कलंकित न करना । जिसे तुझ जीतो वह तुम्हें दस्यु लुटेरा न जान कर अपना उद्धारक मानता हुआ तुम से प्रेम करे यही तुम्हारा धम्मे है। जो तुम में लुटेरे हैं उन्हें प्राण दंड मिलेगा। उन लुटेरों के कारण तुम सबका उज्ज्वल यश कलुपित न होने पावेगा। अभी काम बहुत सा है। जब तक कार्य असंपूर्ण रहेगा तुम्हें चैन नहीं। इटलीवासियो, देगे हम तुम्हें टूटने मारने नहीं आए, जिन स्त्रत्वापहारियों से तुम पीड़ित हो, चे ही हमारे शत्रु है। तुम प्रजातंत्र फांस पर विश्वास करो।" इसके अनंतर नेपोलियन ने जीती हुई ध्वजाएँ, संधि पत्र और सारा समाचार अपने विश्वस्त चाकर मुराट के हाथों पेरिस भेजा । अन्य सेनापति चाहते थे कि राजा को पदच्युत करके सार्डिनिया में प्रजातंत्र स्थापित
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टैलेंट (talent) एक ऐसी इन्बॉर्न स्किल (जन्मजात योग्यता) है जो इंसान जन्म से ही अपने साथ लेकर आता है। ये बात बिल्कुल सही है कि अगर आप में कोई टैलेंट है तो वो आपको ज़िन्दगी में बहुत काम आता है और अपने टैलेंट को पहचानना और उसको निखारने की कोशिश करना बहुत अच्छी बात है।लेकिन फिर भी जरूरी नहीं कि हर इंसान में कोई टैलेंट हो। यहाँ तक कि बहुत से लोग बिना किसी स्पेसिफिक (विशेष) टैलेंट के बहुत ही खुशनुमा ज़िन्दगी गुजारते हैं। 1. अपने बचपन में वापिस लौटेंः टैलेंट को ढूंढ़ने और उसे पाने में "असफलता का डर" होना सबसे बड़ी रुकावट है। और, बचपन में हमारा दिमाग बिल्कुल बेफिक्र होता था जहाँ कई बार तो हम तारों को भी तोड़ लाने का सपना देखते हैं। इसीलिए जब आप अपने बचपन में वापिस लौटने की कोशिश करते हैं तो आपके लिए असफलता जैसे छोटे शब्द कोई मायने नहीं रखते। सोच सीमित नहीं थी ऐसा होता था बचपन जहाँ 2 उंगलियां जुड़ने से दोस्ती फिर शुरू हो जाया करती थी। सोचें कि बचपन में ऐसा क्या था जो आप हमेशा करना चाहते थे और ऐसी कौन सी चीज़ें थीं जो आपको करना बेहद पसंद था। इसका मतलब ये नहीं कि आप हल्क (hulk) या मरमेड (mermaid) बनने के बारे में सोचें बल्कि ऐसा करने से आपको अपने टैलेंट का पता लगाने के लिए एक दिशा मिलेगी। उदाहरण के लिए आप राजकुमारी न बन के उनके बारे में मनमोहक कहानियाँ लिख सकती हैं तो ऐसे में राइटिंग (writing) का टैलेंट सामने आता है। 2. इस बात पर गौर करें कि ऐसा क्या हैं जिसे करते समय आपको समय का भी अंदाजा नहीं रहताः उदाहरण के लिए अगर आप बोलने में बहुत निपुण हैं और आपके पास अपनी बात को कहने के लिए शब्दों का भण्डार हैं तो ये भी एक टैलेंट है। आप अपने इस टैलेंट को पब्लिक स्पीकर या किसी शो के एंकर बन कर इस्तेमाल कर सकते हैं और आसमान की बुलंदियों को छू सकते हैं। विकल्प बहुत हैं पर चुनना आपकी जिम्मेदारी हैं। ऐसा क्या हैं जिसे करने में आप कभी बोरिंग (boring) महसूस नहीं करतें ? जब स्कूल या ऑफिस में आप बोर हो जाते हैं तो क्या ऐसा करते हैं जिससे आपका मूड (mood) बदल जाता हैं? ऐसा क्या हैं जिसे करके आपको ख़ुशी मिलती हैं? अगर आपको मुँह मांगा पैसा दिया जाए तो आप उसका क्या करोगे? अगर आपको पूरी दुनिया घूमने का मौका मिले तो आप कहाँ जाना पसंद करेंगे? अगर आपके पास कोई काम न हो तो आप कैसे अपना दिन गुजारेंगे? अपने आप से कुछ इस तरह के सवाल पूछ उनके जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करें। इस तरह के सवाल पूछने से आपको पता लगता है कि आपको क्या प्रेरणा देता हैं और आप किस काम में अच्छे हैं। 3. दूसरों से पूछेंः कभी-कभी जब आपको अपना टैलेंट पता लगाने में मुश्किल होती है तो किसी दूसरे से पूछना बहुत काम आ सकता है। आपके दोस्त और आपके रिश्तेदार आपको बहुत अच्छे से जानते हैं और वो आपको कुछ ऐसी चीज़ों के बारें में बता सकते हैं जिसमे आप माहिर हैं। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि जो आपको अपने अंदर टैलेंट लगता हैं लोगों को ऐसा नहीं लगता। कोई बात नहीं। अगर आप में किसी चीज़ का इन्बॉर्न टैलेंट (inborn talent) नहीं है इसका मतलब ये नहीं कि आप उसमें अच्छा नहीं कर सकते या उसमें माहिर नहीं हो सकते। कई बार प्रैक्टिस और समय देकर आप अपनी योग्यताओं को निखार सकते हैं। और ऐसा भी नहीं कि अगर आपमें कोई टैलेंट है तो आपको वही करना चाहिए। उदाहरण के लिएः आपके रिश्तेदार और दोस्त ये मानते हैं कि आप मैथ्स (maths) में बहुत निपुण हैं खासकर एकाउंटिंग और नम्बरों में लेकिन आपको लगता हैं कि मेरा पैशन (passion) तो बैडमिंटन है। तो अपनी जिद्द के लिए बैडमिंटन को ही चुनना कोई समझदारी नहीं होगी बल्कि ये सोचें कि कैसे मैं अपनी गणित की योग्यता को पैसा जोड़ने में लगा सकता हूँ ताकि मेरा बैडमिंटन चैंपियन होने का सपना पूरा हो सके। 4. नयी चीज़ें ट्राई (try) करेंः दूसरों के टैलेंट पर ध्यान दें और उसमे इंट्रेस्ट (interest) लें। अपने टैलेंट को ढूंढ़ने के लिए आपको दूसरों के टैलेंट पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे लोगों के बारें में सोचें जो टैलेंटेड हैं (हो सकता है आपके पापा खाना बनाने में बहुत निपुण हों या आपकी मम्मी हर बात बहुत ध्यान से सुनती हैं) और उनकी प्रतिभा को सराहें। घर से थोड़ा बाहर निकालें। लोकल लाइब्रेरी या बुकस्टोर जाएँ। लेक्चर अटेंड करें। कोई क्लास ज्वाइन (join) करें। कुकिंग में हाथ साफ़ करें। आर्ट को समय दें। स्पोर्ट्स में अपनी रुचि बढ़ाएं। मतलब बात सिर्फ इतनी है कि जितना हो सकें एक्स्प्लोर (explore) करें। 5. अपनी ज़िन्दगी को थोड़ा वक़्त देंः ये अच्छी बात है कि आप दूसरों की राय और सलाह की कद्र करते है लेकिन उस पर पूरी तरह निर्भर ना हो। अपने आप को थोड़ा समय दें और सोचें आपके लिए क्या बेहतर है। अपने दिल की बात सुनें। बहुत से लोग अपना टैलेंट तब जान पाते हैं जब उन्होंने इसके बारें में सोचा भी नहीं होता और ये पता लगने में एक क्षण भी नहीं लगता। और जब उन्हे उनका टैलेंट पता चलता है तो वो उनकी पूरी ज़िन्दगी ही बदल देता है। ऐसा हो सकता है कि एक प्रतिभाशाली संगीतकार (जो उसे नहीं पता होता कि वो इतना टैलेंटेड है) किसी परफॉरमेंस (performance) को देखता है तो उसमें म्यूजिक के लिए प्यार और बढ़ जाता है और उसे अपने टैलेंट का पता चल जाता है। अकेले चलो। हमेशा अकेले ही चीज़ों को करें खासकर जब आप कुछ नया ट्राई करते हैं। इससे आपको अपने टैलेंट को ढूंढ़ने में आसानी होती है क्योंकि आपको वही चीज़ किसी के सामने करने का डर नहीं होता। आप गलत करो या सही, आप बिना किसी फ़िक्र के ट्राई करते हो। 6. प्रैक्टिस (practice) करेंः अपने रूटीन में एक निश्चित समय उस टैलेंट की प्रैक्टिस करने के लिए निकालें। उदाहरण के लिए - अगर लिखना आपका हुनर है तो काम पर जाने से पहले हर सुबह कम से कम आधा घंटा इसे दें। अगर बास्केटबॉल खेलना आपका टैलेंट है तो बाहर निकलें और मैदान में प्रैक्टिस करें। उन क्षेत्रों पर ही जरा ध्यान दें जिनमें आप कमजोर हैं। आप में चाहे कितना भी टैलेंट हो लेकिन जरूरी नहीं कि आप उस टैलेंट के हर पहलु में माहिर हों। जैसे - कहानी के डायलॉग (dialogue) लिखने में आपका जवाब नहीं लेकिन आप कहानी के प्लॉट (plot) को तैयार करने में हर बार मात खाते हैं। 7. नकारात्मक सोच को जड़ से उखाड़ फेकेंः एक नकारात्मक सोच आपकी योग्यता को अपाहिज बना सकती है। जितना आप नेगेटिव ख्यालों को दूर करते हैं, आप अपने टैलेंट को ढूंढ़ने और उसे निखारने में एक कदम आगे आते हैं। क्योंकि आपके दिमाग में अपने टैलेंट को लेकर कोई शंका नहीं होती है। अपनी सोच के पैटर्न (pattern) को पहचाने। नकारात्मकता से लड़ने का सबसे पहला कदम हैं आप क्या क्या कर रहे हैं और कब कर रहे हैं जैसे पहलुओं पर ध्यान देना। ऐसा हो सकता हैं कि आप गलत चीज़ों को अपने दिमाग में आने की जगह देते हैं या फिर हर चीज़ को विनाशकारी रूप देने में नहीं चूकते। आप अपने बारें में क्या सोचते हैं, आप स्थितियों को कैसे लेते हैं और अपने टैलेंट को कितनी एहमियत देते हैं - इन सभी बातों पर गौर करना बहुत जरूरी है। अपनी सोच पर थोड़ी नज़र रखें। आपको अपनी सोच पर थोड़ा ध्यान देना होगा तभी आप उसे बदलने की कोशिश कर सकते हैं। जैसे ही आप अपनी सोच में "गलत" को आते देखते हैं वही उसे रोक कर काबू में लाएं। और चीज़ों को पॉजिटिव रूप में देखें। अपने आप से पॉजिटिव बात करने की कोशिश करें। तो दोस्तों ट्रिक ये है कि आपको अपनी नेगेटिव सोच को बाहर फेंकना है और पॉजिटिव सोच को अपनाना है। उदाहरण के लिए- जब आप एक व्यंजन को उस तरह न बना पाएं जैसे आपने सोचा था और आप अपने आप को एक असफल शेफ के रूप में देखने लगें तो अपनी सोच को बदलें और सोचें कि ये शायद थोड़ा चुनौतीपूर्ण था और मुझे अपनी वाली परफेक्ट डिश बनाने के लिए थोड़ी और प्रैक्टिस की जरुरत है। ऐसी सोच के साथ आप अपने आप को पॉजिटिव रखते हैं। 8. अपने और दूसरों के प्रति दयालु रहेंः लोग अपने वजूद को अपने टैलेंट की वजह से देखते है और जब कभी वो टैलेंट असफल होता है (जो की अक्सर होता है) तो वो टूट जाते हैं और अपने आप को असफल इंसान की तरह देखने लगते हैं। अपनी खुशियाँ बनाए रखने के लिए अपनी योग्यताओं के प्रति दयालु रहें। आप अपने टैलेंट को लोगों के लिए कुछ अच्छा करने के लिए भी इतेमाल कर सकते हैं। अपने टैलेंट को सिर्फ अपने लिए इस्तेमाल न कर दूसरों को ख़ुशी के बारें में सोचें। ऐसा करने से आप अंदर से एक संतुष्टि महसूस करेंगे। जैसे कि - अगर आप एक लेखक हैं तो आप अपने बीमार दोस्त को बेहतर महसूस करवाने के लिए उस पर कहानी लिख सकते हैं। 9. अपने आप को हमेशा चुनौती देते रहेंः अक्सर प्रतिभाशाली लोग एक पॉइंट (point) पर आकर रुक जाते हैं, उनका टैलेंट उन्हें जहॉं तक ले आया वे वहीँ तक सीमित रह जाते हैं। अपने आप को उभारने या निखारने की कोशिश नहीं करते। अपने आप को हर दिन एक चुनौती दें ताकि आपको उसे पूरा करने का एक मकसद मिल पाए। जब आप अपने आप को चुनौती देते हैं तो ये आपको विनम्र रहने में सहायता करता है। अपने टैलेंट पर गर्व करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन शेखी मारने और ये सोचने कि मैं तो कभी कुछ गलत नहीं कर सकता/सकती, आपके आस-पास के लोगों को इर्रिटेट (irritate) करता है। ऐसी मानसिकता से इंसान अंत में नीचे ही गिरता है। अपने आप को उस काम में चुनौती दें जो आपको लगता है मैं उसकी रग-रग से वाक़िफ हूँ। तो आपने स्पेनिश भाषा अच्छे से सीख ली ? अब अपनी फेवरेट किताब को स्पेनिश में ट्रांसलेट (translate) करने की कोशिश करें। या फिर कोई उससे भी मुश्किल भाषा जैसे अरबी या चीनी भाषा सीखने की कोशिश करें। जब भी आपको लगे कि आपने अपने टैलेंट का कोई पहलूँ अच्छे से सीख लिया है तो उससे भी बड़ी चुनौतियां अपने सामने रखें और उसे निखारने की भरसक कोशिश हमेशा जारी रखें क्योंकि सुधार का कोई अंत नहीं। 10. बाकी चीज़ों पर भी ध्यान देंः कुछ ऐसी चीज़ों को भी अपना समय दें जिसका आपके टैलेंट से कोई लेना-देना नहीं। ऐसे काम जिसमे शायद आप कमजोर हैं या बुरे हैं या फिर ऐसे काम जिन्हे करना आपको अच्छा लगता है। ऐसा करके आप अपने आप को सिर्फ अपने टैलेंट तक ही सिमित नहीं रखते बल्कि और अनुभवों को भी प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए - अगर आपका टैलेंट गणित में हैं तो कभी आर्ट तो कभी योग में भी अपना हाथ साफ़ करें। अपनी एहमियत को अपने टैलेंट से कभी मत आंके। या फिर अपनी पूरी ज़िन्दगी अपने टैलेंट पर ही निर्भर ना रहने दें। आप अपने फोकस (focus) और मोटिवेशन (motivation) को तभी ज़िंदा रख सकते हैं जब आप टैलेंट को अपनी ज़िन्दगी काबू न करने दें। 11. अपने टैलेंट को जरा होशियारी से इस्तेमाल करेंः उदाहरण के लिए -अगर आप एक प्रशिक्षित गायक हैं तो जरुरी नहीं कि प्रोफेशनल सिंगिंग में ही जा सकते हैं। आप अपनी योग्यता को बच्चों को म्यूजिक सिखाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। अपने आस-पास ध्यान से देखें और पता लगाए किस चीज़ की जरुरत है जो आपका टैलेंट पूरा कर सकती है। जब आप एक जरुरत का पता लगा पाते हैं तो आप अपनी जॉब खुद बनाते है। जैसे अगर आपको लोगों से मिलना अच्छा लगता हैं तो आप कोई ऐसा बिज़नेस शुरू कर सकते हैं जो आपकी कम्युनिटी (community) में लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता है। 12. कोई ऐसा तरीका ढूंढें जिसमे आप अपना टैलेंट अपनी जॉब में इस्तेमाल कर सकेंः उदाहरण के लिए - अगर आप में आर्ट का टैलेंट हैं और आप एक कॉफ़ी शॉप में काम करते हैं तो अपनी क्रिएटिविटी (creativity) से उस बेजान से ब्लैकबोर्ड में जान डालें या फिर अपने पैशन को कैफ़े लाटे (café latte) आर्ट को सीखने में डालें। थोड़ा ठहरे और सोंचे कि कैसे आपका टैलेंट आपके सहकर्मियों या काम करने की जगह को फायदा दे सकता है। एक प्रॉब्लम के क्या क्रिएटिव और कुछ हटके हल हो सकते हैं। 13. कुछ ऐसा करें जिससे आपका टैलेंट जॉब के अलावा यूज़ हो सकेः अगर ऐसा हो कि आप अपने टैलेंट को अपनी जॉब में प्रयोग नहीं कर पा रहे तो ऐसे अवसर ढूंढें जब ऐसा हो सके। आँखें खोल कर देखें -और भी तरीके हैं अपना टैलेंट अपने और दूसरों के लिए यूज़ करें। अपने टैलेंट का कोई वीडियो या ब्लॉगिंग सीरीज़ तैयार करें। उदाहरण के लिए आपकी अरबी भाषा में पकड़ किसी और को अरबी सीखने में मदद कर सकती है। ऐसे लोगों के साथ काम करें जिनका टैलेंट आपसे मिलता जुलता हो ताकि आप और सीख सकें। तरीका कोई भी हो ऑनलाइन या आमने-सामने। ऐसे करने में आपके टैलेंट को निखार के साथ-साथ एक मज़ेदार रूप मिल जाता है। 14. अपनी कम्युनिटी के लिए कुछ करेंः अगर मैथ आपकी खासियत है तो अपनी कम्युनिटी के गरीब और जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाएं। अगर एक्टिंग करने में आप माहिर है तो एक लोकल थिएटर कैंप बनाएं जहां रंगमच की दुनिया में अपना नाम बनाने वालों को मदद मिल सके। अपने आस-पास रह रहे परिवारों को गार्डनिंग के बारें में जानकारी दें इत्यादि। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि अगर आप किसी के लिए कुछ करना चाहते है तो एक साफ़ नियत की जरुरत है। अपने क्षेत्र में किसी के गुरु बनें। उन बच्चों की सहायता करें जो आपके ही क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं। उन्हें सिखाएं और उनके टैलेंट को ढूंढ़ने में मदद करें।
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केवल घर मे ही नही, बाहरी ससार मे भी सफलता प्राप्ति के लिए नारी जीवन में सौम्य गुणो का होना आवश्यक है। अपने सौदय का प्रदशन करने वाली या अपने घर मे ही रूप गौरव ना गव करने वाली नारी न तो अपने परिवार को प्रसन्न रख सकती है, न अपनी सत्तान का ठीक प्रकार से पालनपोषण कर सकती है और न ही वह बाहरी ससार मे सफलता प्राप्त कर सकती है । पडित विजयलक्ष्मी, सरोजिनी नायडू, श्रीमती अरुणा आसफ अली, राजकुमारी अमृतकौर आदि अनेक भारतीय नारियों ने अपने सौम्य गुणों के द्वारा हो राजनीतिक तथा सामाजिन क्षेत्रो मे हो सम्मान प्राप्त नहीं किया, बल्कि विदेशा में भी भारत का नाम ऊंचा उठाया । इन आदेश नारियो ने स्वतंत्रता सग्राम मे अनेक कष्टों को सहन किया और समस्त नारी जाति मे धर्म देशभक्ति का संचार कर उनका पथ प्रदशन कर अपने वर्त्तव्य तथा धर्म का पालन किया है। उन्हाने अपना शृंगार कर अपने सौदय का प्रदर्शन नहीं किया है बल्कि महान काय करके मान-सम्मान कमाया । कर्म को ही सौदय और शृंगार माना तभी सम्मान प्राप्त किया। अतएव यदि पुरुष जीवन की सफलता के लिए उसमे भोज, चीरता, निर्भीकता, दृढता, कठोर श्रम आदि गुणो का होना आवश्यक है तो नारीजीवन को सफलता के लिए उसमे सौम्य गुणो का विकास अपेक्षित है। इसलिए यह नि सदेह सत्य है कि नारी का प्रभूषण सौन्दय नही, उसके सौम्य गण हैं। प्रतीत मे इही गुणों के कारण वह सम्मानित रही और भविष्य मे भी इही के विकास से रह सकती है । मद्यपान की प्रवृत्ति ने आज फैशन का रूप धारण कर लिया है। श्राज के सामाजिक राजनीतिक और सास्कृतिक प्रादि सभी प्रकार के जीवन व्यवहार मे मद्यपान की प्रवृत्ति उत्तरोत्तर वृद्धि पाती जा रही है। मद्यपान को भाज को व्यावहारिक सभ्यता और प्रगति का मग स्वीकार किया जाने लगा है । किसी भी प्रकार का अनुष्ठान मद्यपान के प्रभाव म माज उसी प्रकार मधूरा अपूर्ण एवं नीरस समझा जाने लगा है कि जैसे मध्यकालीन भारत में वाममार्गी साधना मे सुरा सुदरी का सेवन साधना का एक आवश्यक भग बन गया था । उस काल में जसे इस प्रवृत्ति ने तामसिक वृत्तियो को बढावा देवर सहज मानवीयता और उसके सद्धर्म को समाप्त कर दिया था, ठीक उसी प्रकार की स्थिति भाज भी भारत में मनवरत वृद्धि पाती जा रही है। उन तामसिक प्रवृत्तियो एव तद्जय दुष्परिणामों को देखकर ही भाज गाधी के देश में एक बार फिर मद्यपान की बुराई के विरुद्ध सशक्त स्वर मुखरित होने लगा है। उस स्वर की ग्रहनिश भनूगंज प्राय सभी राज्यो म विवेकवान व्यक्तियों द्वारा मुखरित की जा रही है। परन्तु वह भावाज नक्कारखाने मे तूती की भावाज से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हो पा रही। ससार वे सभी देशो मे भाज यद्यपि मद्यपान मुक्तभाव से हो रहा है, पर परम्परागत धर्म और सांस्कृतिक दृष्टि न किसी भी युग मे मद्यपान का औचित्य नही ठहराया, बल्कि इस बुराई भोर नरक को राह से सदैव दूर रहने की प्रेरणा और उपदेश दिया है। इसे एक प्रसामाजिक काय बताकर, सहज मानवीयता से पतित करने वाला कहकर, इससे हमेशा दूर हो रहने की प्रेरणा दी है । तभी तो प्रत्येक युग के साहित्य और धार्मिक ग्रंथो मे 'मदन मद्यपी, शराबी-कवाबी' जैसे गालीमूलक दशब्दो का प्रयोग ऐसे लोगो के लिए मिलता है, जो किसी भी रूप में मंदिरापान करते हैं। हमारे देश मे मदिरा को प्रासुरी या राक्षसी सभ्यता-सस्कृति की देन मानकर वज्य बताया गया है। स्वतत्रता प्राप्ति से पहले ही इसी कारण राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने स्वतन्त्र भारत को मदिरा आदि नशीले पदार्थों के सेवन से रहित, प्रादश राष्ट्र बनाने की परिकल्पना प्रस्तुत की थी। इसी कारण उन्होंने अपने भान्दोलनों में शराब की दुकानें बन्द की कराने के लिए धरनो और घेराव तक का आयोजन किया था । पर दुःख बात है कि उही राष्ट्रपिता के देश मे स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से मद्यपान को न केवल लत ही बढ़ती गई है, सरकारी स्तर पर अधिक से अधिक राजस्व प्राप्ति के लिए सभी प्रकार की मदिरा बिक्री के लिए अधिक से अधिक दुकानें आदि खोलकर उसके मुक्त एव भरपूर वितरण की व्यवस्था भी की गई है। स्थिति यह है कि नगरा को बात तो जाने दीजिए सामान्य स्वो और ग्रामा तक मे कदम कदम पर मंदिरा की दुकानों के जाल बिछे है और ये जाल वेदल ठेके के स्तर पर नहीं बल्कि सरकारी बिक्री केद्रो के रूप मे बिछे हैं। इसे गाधी के देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। मद्यपान की अनवरत वद्धि की प्रवृत्ति को हम आधुनिक भौतिक सभ्यता को देन ही मूलत मान सकते हैं । भौतिकता के प्रश्रय ने अन्य विलास प्रवत्तियो और सामग्रियो को तो बढावा दिया ही है, मंदिरा सेवन करके विलासिता की भाषना पूर्ति को भी हवा दी है। तभी तो यह क्रिया आाज सामाजिकता का प्रम बन गई है। पहले यदि कोई पीता भी था, तो सामाजिकता के भय से छिप छिया कर पिया करता था, पर भाग जब 'इस हमाम मे सभी नमें हैं तो फिर छिपाव कैसा ? सिनेमा मे मुक्त पान की प्रवृत्ति ने भी मद्य पान की प्रवृत्ति को विशेष हवा दी है। उसी के प्रभाव से भाज इसका प्रवेश स्कूलो, वॉलेजो मौर महिलाछात्रावासा तक मे हो गया है । बनबो की चीज भाज विद्या के पवित्र मदिरा ने भी पानी के समान ही पहुंच चुकी है। शादी-ब्याह या किसी भी प्रकार के सामाजिक उत्सव को मदिरा के प्रभाव में सूखा और फोवा माना जाने लगा है। इनमें भाग लेने की पहली शत के रूप में लोग मदिरा व्यवस्था की बात कहते हैं । समर्थ सम्पन्न लोग तो इसके अधिकाधिक सादी बनते ही जा रहे हैं, मरा मथ भोर निधन वर्गों में भी यह रोग कोढ के समान अधिकाधिक फैलता जा रहा है। घर मे प्रभावो का नगा नाच हो रहा है, पर मुश्किल से दो जून की रोटी अपने बच्चो को दे पाने वाले की भी शराब का नाम सुनकर बांछें खिल उठती हैं । पहले थोडे से भारम्भ होता है, फिर लत बन जाती है और तब प्रभाव मे भाव ढूढ़ने का प्रयास किया जाता है। प्रभाव मे अवैध शराब का पान किया जाता है जो कभी तत्काल भौर अक्सर धीरे धीरे सभी प्रकार से व्यक्ति को खोखला बनावर प्राणलेवा प्रमाणित होता है। इस प्रकार के समाचार हम लोग अक्सर पढ़ते सुनते रहते हैं। यह तो है प्रसमर्थ अभावग्रस्त शराबी की बात, समय घरो के युवक भी शराब के लती होवर व्यभिचार, डक्ती, चोरी आदि के शिकार होते देखे जाते है । सामाजिकता, नैतिकता आादि सभी दृष्टियो से शराबखोरी की लत मततोगत्वा हानिप्रद ही प्रमाणित होती रही है। फिर भारत जैसे गम देश में इसका अधिक सेवन यो भी उपयोगी नही । हाँ, ठण्डे जलवायु वाले देशो मे इसकी कुछ उपयोगिता अवश्य स्वीकारी जा सकती है - यह भी तभी, जब व्यक्ति के पास इसे पचाने मोर उपयागी बनाने के साधन सुलभ हो । नहीं तो वहाँ के देशा मे भी अधिक अनाचार, शराब के नशे मे, पशराब के लिए ही होते हैं, ऐसा ठण्डे देशो यानी पाश्चात्य देशो के प्रबुद्ध विचारक भी अब मुक्त भाव से स्वीकारने लगे हैं। इस स्वीकृति के साथ ही अब उन देशो मे भी शराब बदी की प्रबल भांग की जाने लगी है । पर गाँधी का देश भारत, वह बहुरा भधा होकर इस तेज धार म निरन्तर वहा जा रहा है। इस प्रकार सिद्ध बात यह है कि शराब या इस प्रकार के माय गो मागप के मूल स्वभाव और प्रवृत्ति के सवथा विपरीत हैं । यथासम्भय द्वारो वारे का सामूहिक स्तर पर मनवरत प्रयास आवश्यक है। पहले भी सीमित प्रान्तीय स्तरो पर शराबबदी का परीक्षण किया जा चुका है, जो असफल रहा । परिणामत उस बन्दी को ही बाद करना पड़ा। सरकार को वाकर रूप में करोडो रुपया प्राप्त होता है, यदि एकाएक पूर्ण नशा बन्दी कर दी जाती है तो सरकारी अथ-व्यवस्था पर तो उसका प्रभाव पडगा ही, पहले के समान समानान्तर पर तस्करी और अवैध शराब निर्माण की प्रथ-व्यवस्था चालू हो जायेगी, जो बाद ग्राज भी नहीं और मुक्त भाव से चल रही है। उसका प्रभाव अथ व्यवस्था के साथ-साथ पीने वानों के स्वास्थ्य, मनोवृत्तियो को भी दूषित एव चौपट कर रहा है। फिर यह आदत आज जिस सीमा तक बढ़ चुकी है, उसको केवल कानून बना देने से हो दूर नहीं किया जा सकता । जितने वप इस लत को व्यापक होने मे लगे हैं, उससे कहीं अधिक इसके विरुद्ध वातावरण तयार करने में लगने चाहिए, तभी मद्यनिषेध के प्रभावकारी परिणाम सामने आ सकते हैं । मद्य निषेध की दिशा मे सरकारी तौर पर कुछ कदम नई बार उठाए गये हैं । शराब बिक्री के दिन सीमित करना भी इसी प्रकार का एक कदम रहा है, जिसका कोई परिणाम न निकला और न निकलने वाला ही है। जिन्ह पोनी है वे सीमित दिन दुकानें खुलने पर अब भी बन्दी के दिनों के लिए व्यवस्था कर लेते हैं, कानून के द्वारा तो अत्यधिक निमम बनकर ही इसे रोका जा सकता है। वह यह कि एक दिन मे हो घोषणा करके शराब के कारखाने, दुकानें मादि सभी कुछ बन्द कर दिया जाए। उसके बाद पीने या इस प्रकार का वध प्रबंध घधा चरने वालो को कठोर यातना दी जाए। देशी के साथ विदेशियों के लिए भी दशराब पूर्ण प्रतिबंधित रहे । वहीं कोई ढील न हो । या फिर, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, वर्षों तक सशक्त ढंग से ऐसा वातावरण प्रस्तुत किया जाए कि लोग स्वय हो इस मोर से मुह मोड लें। चार छ वर्ष मे मद्य निषेध करने की बात अपने माप को मुलावा देने से अधिक महत्व नही रखती । धन्त में, हम यही कहना चाहते हैं कि शराब की भादत धर्म, समाज सस्कृति, जलवायु पथव्यवस्था और मानव प्रकृति भादि किसी भी दष्टि से इस देश के लिए लाभदायक नही । उसे बद करने का सही दिशा में निश्चय और सही निर्णय करके ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए कि जो दूरगामी परिणाम ला सके । कोरी भावुक्ता मौर हठवादिता निश्चय ही शुभ नही हो समती । प्रेस को स्वतन्त्रता प्रेस की स्वतंत्रता स्वत त्र प्रेस या प्रेस की स्वतन्त्रता से वास्तविक अभिप्राय है- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता । प्रेस शब्द यहा मूलत समाचार पत्रों का पर्याय एव योतक है। समाचार पत्र अपनी भूल नैतिकता मे वही कहते और छापते हैं कि जो किसी युग या देश विशेष की जनता की सामूहिक या बहुमत की भावना, इच्छा प्राकाक्षा और माँग हुआ करती है। प्रेस ही वह माध्यम है जिससे जनता अपनी जागरूकता का परिचय देकर निर्वाचित सरकार और उसकी निरकुशता पर अपना प्रवुश लगाए रख सकती है। देश की सही स्थिति का, इच्छा आकाक्षा का पता सरकार को देकर उसे तदर्थ उचित काय करने के लिए अनुप्रेरित एव सतत यत्नशील रख सकती है। प्रेस की स्वतंत्रता के रूप में अभिव्यक्ति की स्वत त्रता वस्तुत जनतश्री देशो में जन स्वातंत्र्य की वास्तविक परिचायक है। इसी कारण जनतंत्री देशो मे प्रेस का विशेष महत्त्व समझा जाता है, जबकि तानाशाही, एकतत्र प्रौर कुछ विशिष्ट रीति-नीतियो वाले देशो मे प्रेस वे कण्ठ पर हमेशा शासक वग की अगुली रहा करती है जिसे स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकार को मान्यता देने वाला कोई भी राष्ट्र या व्यक्ति भच्छा नहीं मानता । प्रेस पर अकुश तानाशाही प्रवृत्तियो का द्योतक और पोषक ही माना जा सकता है । यह एक निर्विवाद सत्य है कि स्वतंत्र और जागरूक प्रेस समय-समय पर राष्ट्रीय मन्तर्राष्ट्रीय गति विधियो का सही विवेचन विश्लेषण करके सरकारों वो तो जागरूक सावधान रखा ही करता है, जन मत के अध्ययन विश्लेषण और निर्माण में भी सहायक हुआ करता है । युद्धकाल जैसी भराजक्तापूर्ण स्थितियों में अनेक बार प्रेस पर कुछ प्रतिबंध लगाना भावश्यक हो जाया करता है, या ऐसे प्रेस पर प्रतिबंध भावश्यक हुमा करता है कि जो किसी भी रूप मे जन-भावनामा को प्रतिगामी बनाता था भडवाता है। पर केवल सरकारी तानाशाही या दुष्प्रवृत्तियों के प्रकाशन से रोकने के लिए जन अभिव्यक्ति व सबल मोर श्रेष्ठतम माध्यम पर किसी भी प्रकार का प्रतिबघ लगाना किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसा करना मन्ततोगत्वा स्वय सरकार के लिए ही हानिप्रद हुआ करता है यह थात मनेव बार और विशेषकर में प्रापातकाल में प्रमाणित हो चुकी है । पापात स्थिति की घोषणा एवं सीमा तक स्वीकार कर भी सॅ कि जनहित असफल रहा । परिणामत उस बदो हो हो बाद करना पड़ा। सरकार को श्रावकारी रूप मे क्रोडा छाया प्राप्त होता है, यदि एकाएक पूर्ण नशा बन्दी कर दी जाती है तो सरकारी भथ व्यवस्था पर तो उसका प्रभाव पडगा ही, पहले के समान समानान्तर पर तस्करी और अवैध शरान निर्माण की अथ-व्यवस्था चालू हो जायेगी, जो बाद भाज भी नहीं और मुक्त भाव से चल रही है। उसका प्रभाव मथ-व्यवस्था के साथ-साथ पीने वानों के स्वास्थ्य, मनोवृत्तियों को भी दूषित एव चौपट कर रहा है । फिर यह मादत आज जिस सीमा तक बढ़ चुकी है, उसको येवल कानून बना देने से हो दूर नहीं किया जा सकता। जितने वर्ष इस लत को व्यापक होने मे लगे हैं, उससे कहीं अधिक इसके विरुद्ध वातावरण तयार करने में लगने चाहिए, तभी मद्यनिषेध के प्रभावकारी परिणाम सामने मा सकते हैं। मद्य निषेध की दिशा में सरकारी तौर पर कुछ कदम कई बार उठाए गये हैं। शराब बिक्री के दिन सीमित करना भी इसी प्रकार का एक कदम रहा है, जिसका कोई परिणाम न निकला और न निकलने वाला हो है। जिन्हें पोनो है वे सीमित दिन दुकानें खुलने पर भब भी बन्दी के दिनों के लिए व्यवस्था कर लेते हैं, कानून के द्वारा तो प्रत्यधिक निमम बनकर ही इसे रोका जा सकता है। वह यह कि एक दिन में ही घोषणा करके शराब के कारखाने, दुकानें मादि सभी कुछ बन्द कर दिया जाए। उसके बाद पीने या इस प्रकार का वध मवैध धधा करने वाला को कठोर यातना दी जाए। देशी के साथ विदेशियों के लिए भी दाराब पूर्ण प्रतिबंधित रहे । कहीं कोई ढील न हो । या फिर, जैसा कि उ कहा जा चुका है, वर्षों तक सशक्त ढंग से ऐसा वातावरण प्रस्तुत किया कि लोग स्वय हो इस भोर से मुह मोड लें। चार छ वर्ष मे करने की बात अपने-आाप को भुलावा देने से अधिक रखती । सन्त मे, हम यही कहना चाहते हैं कि शराब की मादत धम, संस्कृति, जलवायु मथव्यवस्था और मानव प्रकृति भादि किसी भी इस देश के लिए लाभदायक नही । उसे बद करने का सही दिशा में और सही निर्णय करके ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए कि जो परिणाम ला सके । कोरी भावुक्ता मोर हठवादिता निश्चय ही शुभ न सक्ती । सब पहुंचा सकता है और इस प्रकार जनता के साथ-साथ जन हितकारी सरकारों का भी पुचित एवं हितवारी हो सबता है। जन रुचियों के परिवार, समय स्थिति के अनुरूप जन-कषियों को मोडने, निर्माण कार्यो में जुटने, भुराइयो से सघर्ष कर रहें जब-मूल से उखाड़ फेंकने के लिए जन मो तैयार करने जैसे कार्य ध्यापक स्तर पर, सरल ढंग से प्रेस के द्वारा ही सम्पादित किए जा सकते हैं। किसी भी उचित बात के लिए जन-मत तैयार करना मौर मनुचित के लिए जन विरोध करना प्रेस वा बाएँ हाम का खेल है । प्रेस मे यह पारित है कि उसकी एक ही प्रावाज पर सारा राष्ट्र एवं पक्ति में सहा हो सकता है। पर यह सवेद कहना पड़ता है कि कभी-भी प्रेस भी निहित स्वाथियों के हाथो सेला जाता है। यह भी सवेद स्वीवारना पड़ता है कि य भारत ही नहीं, विश्व का प्रेस अभी तक पूर्णतया निष्पक्ष होकर जन मानस का चितेरा नहीं बन सका। इस प्रकार की स्थितियों में ही गई बार मद्रास प्रेस एक्ट या बिहार प्रेस विधेयक जैसी बातें सामने पाती हैं, जिनका न चाहते हुए भी समयन करना पड़ता है। यदि प्रेस सावधान रहे तो ऐसे बनी भावश्यक्ता ही क्यो पढे ? प्रेस को मुख्यत (अभिव्यक्ति की दृष्टि से) दो वर्गों में रखा जा सकता है। यद्यपि प्रेस पर पूंजीपति वगया ही अधिव अधिकार है, तो भी एक वग पूजीपतियों का है, दूसरा सामान्य वर्ग का, कि जो साधन भादि की दृष्टि से काफी दुबल है। इस भेद-भाव को मिटावर ही प्रेस वास्तविव भयों मे राष्ट्रीयता का, जन-सामान्य का प्रतिनिधित्व कर सकता है। जनता का मुख बन सकता है। कई बार कुछ पत्रिकाएं विशिष्ट राजनीतिक दला का मुख बन घर भी सामने आती हैं। ऐसा होने से भी दृष्टि एकागी हो जाती है । प्रेस जन प्राकाक्षाओं का वास्तविक पूर तभी बन सकता है कि जब वह सभी घरातलो पर पूर्ण स्वतन एव निरपेक्ष हो । प्रातरिय बाह्य सभी प्रकार क दवावो से मुक्त हो । पर सखेद स्वीकार करना पड़ता है कि अभी तक विश्व में ऐसी स्थिति नहीं भा पाई है और शोघ्र भाती प्रतीत भी नही हाती । इसके लिए जिस साहस और सवरूप शक्ति की श्रावश्यक्ता है, वह न तो समय प्रेसमालिका में है न सरकार में और न विविध राजनीतिक दलो मे ही है। मत निस्तार निक्ट नही प्रतीत होता । जो हो, भाज हमारे देश और वि व के प्रेस क्षेत्र मे ऐसे लोगो को Fit नहीं है कि जो सभी प्रकार के निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर, जन हित के लक्ष्या की पूर्ति की दिशा में समय समय पर महत्त्वपूर्ण और साहसिक कदम उठाते रहते हैं, सभी प्रकार के अनाचारों के विरुद्ध साहसिक आलोचनात्मक मे की गई थी। पर उस समय सबसे बडी गलती तत्कालीन सरकार ने प्रेस का गला घोट कर अर्थात प्रेस पर ससरशिप या प्रतिबंध लगाने के रूप मे ही को । परिणामस्वरूप तथाकथित उत्साही लोग जो भी मनमानियाँ करते रहे, वे सब न तो ग्राम जनता के सामने ही प्राती रही और न सरवार मे शीषस्थ नेताग्रो के सामने ही । परिणामत सदभावना से प्रेरित काय भी एक विषमकरुण एव जय कृत्य वनता रहा । आम जनता और शीषस्थ नेता दोनों गुमराह रहे और भापात स्थिति का समर्थन करते रहे । यदि प्रेस पर प्रतिबंध न होता और सही स्थितियाँ सामने भाती रहती तो बहुत सम्भव था कि प्रापात स्थिति का दुष्परिणाम जनता और तत्कालीन सरकार को न भोगना पडता । यह एक उदाहरण है, ग्रापात स्थिति का किसी भी प्रकार से समयन नही । अन्य कई देशो में भी प्रेस की स्वतत्रता के अभाव मे ठोक ऐसा हो घट चुका है जैसा कि यहाँ घटा । पाकिस्तान आादि तानाशाही वाले देश भी इसका प्रमाण हैं । मानव स्वभाव से स्वतंत्र प्राणी है मौर चाहता है कि उस पर नैतिकता के दायरे मे किसी भी प्रकार वा प्रतिबध न लगे । इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता का मूल्य प्राणो का बलिदान देकर हो चुपाना पड़ता है। प्राणो के बलिदान के प्रतिरिक्त कुछ वैयक्तिक या सीमित वर्गीय स्वार्थों का बलिदान भी महत्वपूर्ण हुआ करता है। ऐसी स्थिति में जहाँ प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया जाना चाहिए, वहाँ प्रेस से भी यह आशा की जानी चाहिए कि वह वयक्तिक या सीमित वर्गीय निहित स्वार्थी को तिलाजलि देकर कार्य करे। एक प्रकार मे सामाजिकता, राष्ट्रीयता भोर मानवता के व्यापक हितो के सन्दम म प्रेस के लिए स्व निर्मित माचार सहिता अवश्य रहनो चाहिए कि जिसका पालन अनिवाय हो । तभी वह जन-भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व कर सकता है और 'स्वतंत्रता' शब्द की वास्तविक गरिमा की रक्षा भी कर सकता है। कई बार निहित स्वार्थों की पूर्ति और रक्षा के लिए प्रेस का दुरुपयोग भी किया जाता है। एक्तत्री, तानाशाहो और विशेष सिद्धान्ती देशो में सरकार तक इसी दृष्टि से प्रेस का दुरुपयोग करती है, जबकि जनती देशो मे पीली पत्रकारिता आादि का माग अपना कर प्रेस वा दुरुपयोग किया जाता है। दोनो ही प्रकार ये दुरुपयोगकतान्त गहित हो कहा जायेगा । जन-भावना को स्वस्थ सबल अभिव्यक्ति मिले प्रेम-स्वतंत्रता का यही वास्तविक अथ और उद्देश्य है। इसी दृष्टि से उसका समधन भी किया जा सकता है और किया जाना चाहिए । प्रेस जन-जागरण का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन भौर माध्यम है। वह देशविदेश मे चलने वाले मानव हित साधक कार्यों को सुरुचिपूर्ण ढंग से जन-जन तक पहुँ वा सकता है और इस प्रकार जनता के साथ-साथ जन हितकारी सरकारों का भी शुभचिन्तक एवं हितवारी हो सकता है। जन-रुचियो के परिष्कार, समय स्थिति के अनुरूप जन-रुचियों को मोडने, निर्माण कार्यों मे जुटने, बुराइयों से सघर्ष कर उन्हें जड-मूल से उखाड़ फेंकने के लिए जन को तैयार करने जैसे काय व्यापक स्तर पर, सरल ढंग से प्रेस के द्वारा ही सम्पादित किए जा सकते हैं। किसी भी उचित बात के लिए जन-मत तैयार करना और अनुचित के लिए जन विरोध करना प्रेस का बाएँ हाथ का खेल है । प्रेस वह शक्ति है कि उसकी एक ही भावाज पर सारा राष्ट्र एक पंक्ति मे खडा हो सकता है। पर यह सखेद कहना पड़ता है कि कभी-कभी प्रेस भी निहित स्वापियों के हाथो खेला जाता है। यह भी सखेद स्वीकारना पडता है कि केवल भारत ही नहीं, विश्व का प्रेस अभी तक पूर्णतया निष्पक्ष होकर जन मानस का चितेरा नहीं बन सका। इस प्रकार की स्थितियों में ही कई बार मद्रास प्रेस एक्ट या बिहार प्रेस विधेयक जैसी बातें सामने भाती हैं, जिनका न चाहते हुए भी समर्थन करना पड़ता है। यदि प्रेस सावधान रहे तो ऐसे कानूनी आवश्यकता हो क्यो पडे ? प्रेस को मुख्यत (अभिव्यक्ति की दृष्टि से) दो वर्गों में रखा जा सकता है । यद्यपि प्रेस पर पूजीपति वग का ही अधिक अधिकार है, तो भो एक वर्ग पूजीपतियों का है, दूसरा सामान्य वर्ग का, कि जो साधन आदि की दृष्टि से काफी दुबल है। इस भेद-भाव को मिटाकर हो प्रेस वास्तविक प्रयों मे राष्ट्रीयता का, जन सामान्य का प्रतिनिधित्व कर सकता है। जनता का मुख बन सकता है। कई बार कुछ पत्रिकाएँ विशिष्ट राजनीतिक दलो का मुख बन घर भी सामने प्राती हैं। ऐसा होने से भी दृष्टि एकागी हो जाती है। प्रेस जन आकाक्षाओं का वास्तविक पूरक तभी बन सकता है कि जब वह सभी, घरारतलो पर पूर्ण स्वतन एव निरपेक्ष हो । प्रातरिख बाह्य सभी प्रकार क दवावो से मुक्त हो । पर सखेद स्वीकार करना पड़ता है कि अभी तक विश्व में ऐसी स्थिति नहीं आ पाई है और शीघ्र माती प्रतीत भी नही हाती । इसके लिए जिस साहस और सवल्प शक्ति की श्रावश्यकता है, वह न तो समय प्रेसमालिकों में है न सरकार में और न विविध राजनीतिक दलो मे हो है । मत निस्तार निकट नही प्रतीत होता । जो हो, ग्राज हमारे देश भोर विश्व के प्रेस क्षेत्र मे ऐसे लोगो की कमी नहीं है कि जो सभी प्रकार के निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर, जन हित के लक्ष्या को पृति की दिशा मे समय समय पर महत्त्वपूर्ण और साहसिक कदम उठाते रहते हैं, सभी प्रकार के अनाचारों के विरुद्ध शाहसिक मालोचनात्मक स्वर मुखरित करते रहते हैं । यदि यह साहसिक नैतिकता स्व विनिर्मित आचार संहिता के द्वारा समूचे प्रेस जगत मे मा जाए, तो निश्चय ही मानवता का बहुत बड़ा उपहार होगा। निश्चय ही उस दिन मानवता का भाग्य खुल जाएगा, जिस दिन प्रेस जगत केवल राजनीतिक या ऊपरी दृष्टि से हो स्वतंत्रता का वरण नही कर लेगा, बल्कि भान्तरिक वरण कर लेगा। पर कब आयेगा वह दिन ? इस देश मे तो वह बीसवी शताब्दी के चार-पाँच दशको तक रह कर एक बार तो चला जा चुका है । दुबारा आने की भाशा अवश्य करनी चाहिए । आशा ही मानवता का शुभ सम्बल है । अनुशासन की महता 'अनुशासन' - अर्थात् शासन या नियमानुकूल माचरण । अत साधारण अर्थों में अनुशासन का अभिप्राय किसी प्रदेश का, व्यवस्था या प्रबंध का, विधान या नियम का विधिवत पालन है। इस पालन में जितनी अधिक तत्परता, स्फूति, त मयता, कर्मठता आादि का परिचय मिलेगा उतना अधिक अनुशासन को भान्स तथा उत्तम समभा जायेगा। ऐसे मनुशासन मे जिसमे अनुशासित का केवल तन हो नही मन का भी सहप योग हो, सच्चा मनुशासन कहा जायेगा । वास्तव मे व्यक्ति किसी भी व्यवस्था में विधान में सभी पूर्ण शक्ति और वेग के साथ काय कर सकता है जबकि उसके मन का विश्वास साथ हो । मन की शक्ति तन से कही अधिक होती है। मनुष्य के मन का यह जीवट मौर साहस हो है जो दहाडते सिंहो भोर चिपाडते हाथियों को दश मे कर सका है न कि तन और उसकी शक्ति । शेरों के साथ खेलने वाले शकुन्तला के पुत्र भरत का समय चला गया। मनुष्य की शारीरिक शक्ति भले ही क्षीण हो गई है किन्तु मन के साहस का भाज भी कोई भन्त नहीं। भतएव अनुशासन का विश्वस्त रूप वही होगा जहाँ तन के साथ मन को भी साधा गया हो । व्यक्ति स्तर पर ही नहीं, ममाज, देश और राष्ट्रीयता के स्तर भी यह साधना परमावश्यक है। इसके बिना प्रगति भौर विकास सम्भव ही नहीं। भारतीय दर्शन शास्त्र प्रादश जीवन की कल्पना प्रस्तुत करते हैं। यहाँ जीवन का मूल भाघार साधना है और साधना का ये भी एक प्रकार का यौगिक मनुशासन ही होता है। इसी दृष्टि से भारतीय मनीषियों ने इंद्रियनिग्रह पैर बल दिया है। इंद्रिय-निग्रह क्या है ? यह वास्तव में सन के मना८६
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की स्थिति में आत्मा के दर्पण में विषय का पूर्ण प्रतिबिम्ब ही नहीं उभरता वरन् आत्मा और विषय की एकाकारता हो जाती है । ऐसी स्थिति में वेद्यान्तर- शून्यता तथा स्व-पर-ज्ञान का विलयन हो जाता है । संवेदना की वास्तविक स्थिति में ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान की एकाकारता हो जाती है । यह स्थिति भावुक या सहृदय की ही हो सकती है । इसी स्थिति में कवि या कलाकार रचना की ओर प्रवृत्त होती है । वस्तुत संवेदना ( वेदन की सम = समतावस्था) वेदन = ज्ञान की समतावस्था है । ऐन्द्रिय ज्ञान चाहे गंध-संवेदना हो या रूप संवेदना अथवा स्पर्श या श्रवण संवेदना होंऐन्द्रिय होने पर उसकी वास्तविकता का पूर्व बोध नहीं हो सकेगा, केवल किञ्चिद् ज्ञान मात्र ही हो सकेगा। जब तक ऐन्द्रिय बोध का सम्पूर्ण प्रतिफल आत्मा में न हो अर्थात् आत्मा में ऐन्द्रिय बोध समाविष्ट न हो जाय, संवेदना नहीं हो सकती है। इसीलिए संवेदना वेदन ज्ञान की समतावस्था है। इस ज्ञान की समतावस्था में बोद्धा का अस्तित्व विलीन हो जाता है। यह विलयन उसकी भावुकता तथा संवेद्य वस्तु पर निर्भर करता है। कुछ लोग समुद्दीपकों से कम ही प्रभावित होते हैं और कुछ उद्दीपन मात्र से ही भावुक हो जाते है। जो जितना भावुक होगा, वह उतना ही संवेदनशील होगा । संवेदना का 'सम' शब्द सोऽहम् का प्रत्याहार रूप है। 'सः अहम्' दो पदों के पूर्व पद 'स' और उत्तर पद के 'म' से सम् पद निर्मित होता है जिसका अर्थ होता है 'वह' 'मैं' हूँ। इस संवेदना का अर्थ होता है 'वह मैं हूँ' का 'ज्ञान होना' । 'वह' पद दृश्य या संवेद्य पदार्थ का द्योतक है। यह संवेद्य जब तक 'अहम्' 'मैं' के रूप में परिवर्तित नहीं हो जाता तब तक संवेदना नहीं हो सकती है। 'मैं' पद आत्मा का द्योतक है। संवेद्य का आत्माकार में परिवर्तित हो जाना ही संवेदना है। जैसे- अरूणिम पुष्प स्फटिक में प्रतिबिम्बत होकर स्फटिक को अरूणिम बनाता हुआ वह स्फटिक के आकार के रूप में परिवर्तित हो जाता है उसी प्रकार विषय आत्मा में प्रतिबिम्बत होकर आत्माकार हो जाता है। 97 इन तथ्यों की विवेचना से यह कहा जा सकता है कि 'संवेदना' व्यक्ति के चित्त या मन की वह दशा है जहाँ ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त किसी के सुखात्मक-दुःखात्मक भाव में चेतना या आत्मा के विलीन हो जाने से उसका प्रथक् अस्तित्व समाप्त हो जाता है यद्यपि सभी संवेदनाएँ विषय और ज्ञानेन्द्रिय सापेक्ष हैं किन्तु इन सबका पर्यवसान चित्त (मनू) में ही होने के कारण संवेदनाओं का चित्तात्मक होना सिद्ध होता है। चित्त सुखात्मक दुखात्मक और मोहात्मक होता है। कोई भी संवेदना तटस्थात्मक नहीं हो सकती है। संसार में चार प्रकार के प्राणी - सुखी, दुःखी, पुण्यात्मा और अपुण्यात्मा होतें है। सुखी के प्रति मैत्री भाव रखना चाहिए, किन्तु बहुत से लोग सुखी के प्रति ईर्ष्या रखते है। दुःखी के प्रति सज्जन के मन में करूणा उत्पन्न होती है तथा दुष्टों के मन में हर्ष उत्पन्न होता है। पुण्यात्मा को देखकर सज्जन मुदित होते हैं और अपुण्यात्माओं की उपेक्षा करते हैं लोक-जीवन में उपर्युक्त सभी प्रकार के भाव देखे जाते हैं। कवि इन सभी भावों का मर्मस्पर्शी चित्रण अपनी कविता में करता है। कुशल कवि स्वाभाविक वर्णन को चित्ताकर्षक बना देता है। उसकी लेखनी स्वाभाविक पाषाण-खण्ड को रत्न बना देती है जिसकी चमक चिरस्थायी रहती है । सुखात्मक संवेदनाओं की अभिलाषा सभी प्राणी में रहती है। विश्व का प्रत्येक प्राणी सुख से प्रेम और दुःख से घृणा करता है। सुख-दुःख न विषयगत ही है और न आत्मगत । एक वस्तु किसी के लिए भले ही सुखात्मक हो किन्तु दूसरों के लिए दुःखात्मक होती है तथा तीसरे के लिए मोहात्मक भी हो सकती है। इसलिए सुख-दुःख उभयात्मक है। साहित्य अपने कलात्मक सौन्दर्य से आनन्द प्रदान करता है चाहे वह दुःखात्मक ही क्यों न हो क्योंकि साहित्यिक संवेदनाओं की चर्वणा आनन्द मे ही समाप्त होती है । सुखात्मक संवेदनाए लौकिक दृष्टि से सुखमूलक हैं। जिन वस्तुओं की सम्प्रति से अन्तःकरण आह्लादित होता है अर्थात् चित्त का विकास हो जाता है अथवा चित्त विश्रान्त हो जाता है वे वस्तुएँ सुखात्मक संवेदनाओं के कारण होते है । चित्त की विश्रान्ति ही सुख है और अविश्रान्ति दुःख है । श्रृंगार, धन-धान्य, प्रिय आदि की प्राप्ति का वर्णन पाठक को ऐन्द्रिय सुख प्रदान करता है। हास-परिहास, वसन्त, प्राकृतिक सौन्दर्य आदि के वर्णन से चित्त प्रमुदित हो जाता है। इसलिए इनकी संवेदनाएं सुखात्मक होती है। दुःखात्मक संवेदनाओं मे चित्त संकुचित हो जाता है। दुःखात्मक संवेदनाओं का साहित्य में अधिक महत्व है वाल्मीकि की करूणा ही श्लोक रूप में परिणीत हुई थी । दुःखात्मक संवेदनाएँ लोक-जीवन का अंग बनती जा रही है। इसका भुक्तभोगी कवि ही इनकी संवेदना को समझ सकता है। इस प्रकार के जनों की श्वासों में निरन्तर अग्नि-ज्वाला धधकती रहती है जिसकी उष्मा में वह निरन्तर तपता हुआ अपनी जीवन यात्रा को पूरा करता है । दुःखात्मक संवेदनाएं प्रिय का आत्यन्तिक वियोग, धन का विनाश, अकाल और दुर्घटनाओं की विभीषिका, शोषकों के आंतक आदि सामाजिक अपराधों की उर्वर भूमि में जन्म लेकर सहृदय को करूणार्द्र बनाती हैं । मोहात्मक संवेदनाएँ तमोगुण प्रधान होती है । शोषकों के अत्याचार घृणा और क्रोध को जन्म देते हैं। लोक जीवन में ऐसे लोगों को बहुतायत देखा जाता है, जो मोह ग्रस्त होकर या तो अकर्मण्य हो जाते हैं अथवा अनैतिक आचरण को जीवन का अंग बना लेते हैं। उनके क्रियाकलाप अमानवीय होते है किन्तु वे उसी पङ्क में फँसकर ही सुख का अन्वेषण करते रहते है। ऐसे व्यक्तियों के जीवन से सम्बन्धित रचनाएँ मोहात्मक-संवेदनाओं को जन्म देती है । संवेदनाएं साहित्य को जन्म देती हैं और साहित्य में संवेदनाएँ समाहित रहती हैं । दूसरे शब्दों में कहें तो संवेदना ही साहित्य है और साहित्य ही संवेदना हैं । साहित्य के शब्द केवल शब्द नहीं होतें हैं वरन् उसमें प्रवाहित संवेदनाओं के कारण ही उनका महत्व है। साहित्य के शब्द यदि संवेदनात्मक अर्थों के रूप में अपने को परिवर्तित नहीं कर पाते तो वे शब्द केवल झंकार मात्र बनकर रह जाते हैं। संवेदनाओं के माध्यम से कवि या साहित्यकार समाज, प्रकृति व मानव जीवन की विविधताओं को अपने मन-मस्तिष्क व हृदय-सिन्धु में अंकित करता है, पुनः लेखनी से अजस्र प्रवाहित होने वाले विविध प्रकार के मनोरम रंगो से उन भावों को नूतन व मर्मस्पर्शी रूप प्रदान करता है । । साहित्य में लोक-संवेदनाओं का महत्व 'लोक-संवेदना' का अर्थ है "लोक-जीवन की संवेदना ।" आचार्य भरत ने "नाट्यशास्त्र" में बताया है कि नाट्य लोकवृत्त लोक व्यवहार का अनुकरण करने वाला है जिसमें अनेक प्रकार के भावों तथा विभिन्न अवस्थाओं का समन्वय रहता है । 98 इस नाट्य मे सम्पूर्ण ज्ञान, शिल्प, विधा, कला और योग का समावेश रहता है। इनकी दृष्टि में नाट्य दुःखार्त, क्षमार्त तथा शोकार्त जनों को विश्रन्ति = सुख (आनन्द) प्रदान करने वाला है । 100 भरत - मुनि का उपर्युक्त कथन यह सिद्ध करता है कि उत्तम काव्य लोक - जीवन (जन - साधारण) के व्यवहारों का मार्मिक चित्रण करने वाला होता है। समाज में श्रमार्त, दुःखार्त और शोकार्तो का बाहुल्य है। ये जनसाधारण अपनी जीवनवृत्तियों को काव्य में पाकर शीघ्रातिशीघ्र साधारणीकरण की अवस्था को प्राप्त हो जाते है। इसीलिए उन्हें आनन्द की प्राप्ति होती है। वस्तुतः सुख और दुःख से मिश्रित लोक व्यवहार जब अभिनय अथवा काव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है तभी लोक में विनोद जनक सिद्ध होता है। 101 कवि जिस स्वभाव का होता है, उसकी कविता भी उसी प्रकार की होती है। जो कवि लोक जीवन की संवेदनाओं के रंगों से अपनी रचनाओं को चित्रित करता है, उसकी रचना अत्यधिक प्रभावशालिनी होती है। वही कवि सफल है जो अपनी अनुभूतियों को उसी रूप में प्रेक्षक तक पहुॅचा सके। 'काव्य का ध्येय यह कदापि नही है कि जो वस्तु एक हृदय में घटित होती है उसका प्रेषण करके दूसरों के लिए उसे बोधगम्य बना दिया जाय, वरन् इसका काम है दूसरे व्यक्ति में भी ऐसी मनोदशा की उत्पत्ति कराना जो कि कवि की उस मनोदशा के अनुकूल हो, जो अभिव्यक्ति द्वारा बहिर्मुख हो जाती है । 102 यह स्थिति तभी सम्भव होती है जब कवि लोक-जीवन के मार्मिक भावों को अपनी कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। लोक जीवन को प्रत्यक्ष करने वाला कवि सभी वस्तुओं को प्रत्यक्ष कर लेता है। कवि की वास्तविक अनुभूतियाँ ही कलात्मक भावों का रूप धारण करती है, जिसका परिणाम यह होता है कि कवि स्वयं जिस भावों का सूक्ष्मता से भोग करता है इसी भावों के तल तक पाठक को पहुँचाने में सफल होता है। कवि-प्रतिभा की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी कृतियों में लोक जीवन की संवेदनाओं का कितना व्यापक्तव अथवा वैविध्य मौलिक रूप में प्रभावी ढंग से उपस्थित किया गया है । लोक-संवेदनाएं मूलतः जन-साधारण के सुख-दुःख की गहरी अनुभूति कराती हैं। लोक-साहित्य में लोक-संवेदनाओं का जो रूप दिखाई पड़ता है, इतना सजग और सहज रूप उन कवियों के काव्य में नही प्राप्त होता जो लोक-प्रतिबद्ध होने का दंभ भरते हैं । वस्तुतः लोक साहित्य साधारण दुःखी जनों का स्वयं का भोगा हुआ साहित्य है, उसमें तरह किसी की कृत्रिमता नहीं रहती क्योंकि उसका प्रवाह हृदय से होता है। इसमें बौद्धिकता का विलास नहीं रहता है। कुछ प्रतिवद्ध कवि लोक पीड़ा को मार्मिक रूप में व्यक्त करने में सफल सिद्ध हुए हैं परन्तु अनेक कवियों में केवल लोक जीवन का बाह्य स्पर्श मात्र ही दिखाई पड़ता है। लोक संवेदनाओं का सच्चा रूप - उन किसानों के श्रम की बूँदों में, जो गेहूँ और धान की बालियों में परिणत होकर बाजारों में पानी के भाव बिकते हैं उन श्रमिकों की हड्डियों में, जो कारखानों की आग में पिघलती रहती है उन श्रमिक युवतियों के फटेहाल - यौवन में, जिसे पेट की आग बुझाने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता उन दीन-हीन बालकों की पीड़ा में, जो प्लेटफार्मों पर फटे दोना को लूटने के लिए आपस में लड़ते रहते हैं, होटलों में दो वक्त की रोटी प्राप्त करने के लिए दिन-रात श्रम किया करते हैं तथा बँधुआ मजदूर की जिन्दगी जीने के लिए विवश रहते हैं - भूख की ज्वाला में पुत्र-पुत्रियों से घिरी हुई उन महिलाओं के दर्द में, जिनके पति अपने प्राण हथेली पर लेकर घर से बहुत दूर कुछ कमाने गये हैं, एवं मेहनतकश श्रमिक स्त्रियों के असहनीय परिश्रम, जो क्षुधानल में जलती हुई भी खेतों में धान रोपती हुई गाती रहती है, जिनके जीवन का शैशव जाड़ों की शीत-भरी रात में पुआलों में तथा यौवन गर्मी की दोपहर में खेत-खलिहानों में तथा वृद्धावस्था सड़क के पड़े ढेले की भाँति बीतता है दिखाई पड़ता लोक-संवेदना वस्तुतः जीवन के उस अन्तःकरण की अभिव्यक्ति है जिसमें सहजता, सरसता, सिसृक्षा, जिजीविषा और दुर्धर्ष बाधाओं से संघर्ष करने की प्रबल अभिलाषा रहती है। जिसके द्वारा मानव हारकर भी विजय की अभिलाषा ही नहीं करता वरन् सन्नद्ध होकर विकराल काल से युद्ध कर प्रलय को सृजन में परिवर्तित करता रहता है । साहित्य की विशालता लोक-परम्परा से प्राप्त रीति-रिवाज, आचार-विचार, संस्कारों एवं संस्कृति का अनुपालन विविध प्रकार के अविश्वसनीय लगने वाले क्रिया-कलापों पर विश्वास, शकुन अपशकुन, व्रत-त्योहारों के प्रति देवमूलक आस्था आदि क्रिया-कलापों के सूक्ष्म निरीक्षण का प्रतिफलन है। साहित्यकारों ने लोकजीवन के उफनते हुए समुद्र को केवल दूर से ही नहीं देखा, वरन् उसमें डूबकर उसके खारेपन के साथ ही उसके लावण्यमय रूप का आस्वादन करते हुए उसके हृदय तल के रत्नों को निकालकर उन रत्नों से अपनी कविता - कामिनी को सॅवारा । विश्व का सम्पूर्ण साहित्य सुखात्मक, दुःखात्मक तथा मोहात्मक संवेदनाओं की विवेचना करता है। उनके पात्रों मे वैशिष्ट्य भले ही हो, लेकिन संवेदनाओं में अन्तर नहीं है। यह बात दूसरी है कि अभिजात्य साहित्य में भौतिक-विलास तथा बौद्धिक कीड़ा का समावेश अधिक होने से लोक-साहित्य की भाँति हृदय की सहजता व सरसता कम दिखाई पड़ती है, पर लोक-संवेदनाओं से वह शून्य नहीं है। शिष्ट साहित्य का दीपक भी लोक-संवेदनाओं की स्नेहिल वर्तिका के प्रकाश से अन्धकार का भेदन करता रहा है । वस्तुतः साहित्य और लोक का सम्बन्ध गत्यात्मक और इतना अन्तरंग है कि विद्यमान रहने पर भी सतत मुखर नहीं होता है । लोक-संवेदनाओं के माध्यम से ही साहित्य में भारतीय संस्कृति में व्याप्त धार्मिक, सहिष्णुता, नैतिकता, समन्वय, समानता व विश्ववन्धुत्व जैसी भावनाओं का समावेश हुआ है । यह भारतीय संस्कृति भारत में रहने वाले हर भारतीय के संस्कारों में चेतन या अचेतन रूप में रची-बसी है जिसका आलोक कविताओं में उतर कर जन-जन को आप्लावित करता रहता है। रामायण और महाभारत की कथाओं ने भारतीय जन-मानस को अत्यधिक प्रभावित किया । फलतः लोक-गीतों में राम व कृष्ण से सम्बन्धित कथाओं का बाहुल्य देखा जा सकता है। इन महापुरुषों से सम्बन्धित गीतों को जन्म, मुण्डन, विवाहादि संस्कारो मे गाया भी जाता है । लोक गीतों की श्रुति - परम्परा वैदिक साहित्य के उदात्तत्व को उपस्थित करती है। जिस प्रकार किसी बात की प्रमाणिकता के लिए हम वैदिक साहित्य के शब्दार्थों में डूब जाते है उसी प्रकार श्रुति - परम्परा को आज भी स्थिर रखने वाले लोक-गीतों की संवेदनाएँ साहित्य के लिए उपजीव्य है । जो कवि लोक-हृदय में पूर्ण रूप से समाया रहता है, उसी की कविता सरसता, सहजता को बिखेरती व काल-सीमा के बन्धनों को तोड़ती हुई वैश्वीकरण को प्राप्त होती है। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से भिन्न है किन्तु लोक हृदय की अन्तर्भूमियों में कुछ ऐसी समानता होती है जो भिन्न-भिन्न देश, संस्कृति और जाति के मनुष्यों को एक ही क्षण में अपने में विलीन कर देती है। इसीलिए किसी एक देश-काल का साहित्य पूरे विश्व में प्रतिष्ठित हो जाता है । मार्क्स ने कला के सम्बन्ध में कहा है कि- कला जनोपयोगी होनी चाहिए और उसके द्वारा समाज के दलित वर्गों की मूक वेदनाओं, भावनाओं तथा आशाओं एवं निराशाओं की अभिव्यंजना होनी चाहिए। अतीत की कला महलों में पत्नी थी धनिक सत्ताधरियों के आमोद-प्रमोद का साधन बनी रही, परन्तु अब उसे जन-साधारण के सुख-दुःख, हास्य तथा अश्रुपात में भाग लेना पड़ेगा और इसी में उसकी सार्थकता निहित है। कला के प्रति मार्क्स का यह दृष्टिकोण काव्य मे लोक संवेदनाओं की अनिवार्यता प्रकट करता है । लोक-संवेदनाओं में विश्वबन्धुत्व का भाव, पड़ोसी तथा समाज के प्रति प्रेम, मानव के प्रति प्रेम और श्रद्धा तथा एक दूसरे के हित के लिए आत्म-बलिदान की भावना निहित है। अतः साहित्य में इन संवेदनाओं की उपादेयता स्वयं सिद्ध है। लोक-संवेदानाओं से तादात्म्य रखने वाला कवि अहं की चहारदीवारी से बाहर निकलकर समाज व जीवन के गूढ़ यथार्थ-सत्यों से साक्षात्कार कर उनमें व्याप्त विसंगतियों, विषमताओं व विडम्बनाओं के मूल कारणों को खोजकर अपनी कविता के माध्यम से उन्हें जग-जाहिर करता हुआ उनके खिलाफ जनमत तैयार करने में योग देता है, ताकि समाज में सत्य, न्याय, प्रेम, नैतिकता, सहिष्णुता, समानता आदि मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा हो सके । अतः कहा जा सकता है कि लोक संवेदनाओं से परिपूर्ण साहित्य समाज को नैतिक व मानवीय आधार पर सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इस वैज्ञानिक युग के बढ़ते प्रभाव ने जहाँ विश्व की दूरी कम कर दी है, वहीं मनुष्य से मनुष्य की दूरी को बढ़ाया है। आज मनुष्य भौतिक विकास की लालसा में मनुष्यता की तिलाञ्जलि दे रहा है। ऐसी भयावह स्थिति में लोक-संवेदनाओं से संवलित साहित्य मानव का हित चिन्तक है । सभ्यता और भौतिकता की वृद्धि में मानव की हृदयगत कोमल भावनाओं पर प्रहार किया जिसके परिणाम स्वरूप साहित्य में अत्यधिक बौद्धिकता दिखाई पड़ती है। बौद्धिक - साहित्य अनिष्टकारी तो नही है पर लोक में उनकी पकड़ बिल्कुल न होने से उसका मूल्य आम जनता की दृष्टि से नगण्य है। स्पष्ट है कि भौतिकता के बढ़ते प्रभाव से साहित्य को लोक-संवेदनाएँ ही बचा सकती हैं क्योंकि इन लोक-संवेदनाओं में ही भारतीय सांस्कृतिक मूल्य समाहित है जो जन-जन को सही व स्वस्थ दिशा देने में समर्थ हैं । ये मूल्य हैं त्याग की भावना, सहज निश्छलता, परस्पर सौहार्द की भावना, धर्म-परम्पराओं के प्रति अनुराग की भावना आदि । त्याग की भावना स्वार्थ संकुचित मनुष्य के हृदय को विशालता प्रदान करती है। सहज निश्छलता लोभी व चतुर मनुष्य को आडम्बरमय जीवन की संकीर्ण गुफा से निकालकर विश्वबंधुत्व की धारा में प्रवाहित करने में सक्षम है। परस्पर सौहार्द्र की भावना नैतिकता तथा धर्म-परम्पराओं के प्रति अनुराग की भावना विश्रृङ्खलित मानव समाज को पाप के पङ्क से निकालकर उसे 'सत्यं शिवं और सुन्दरम' के रहस्य का साक्षात्कार कराकर परमानन्द प्रदान करने में पर्याप्त कराने में पर्याप्त है । अन्ततः कहा जा सकता है कि इस भौतिकवादी युग में लोक संवेदनाओं से युक्त साहित्य ही मनुष्य की प्रकृति विजयनी वैज्ञानिक लालसा को ध्वस्त कर, उसके आन्तरिक सन्तुलन, अनुशासन और उसके उत्कर्ष को लोकमंगलकारी बना सकता है, तथाकथित सम्य पुरूष की बर्बरता तथा अहङ्कार शीतला को नम्रता, सरसता और सहृदयता में परिवर्तित कर सकता है क्योंकि इन्ही लोक संवेदनाओं में समरसता की अजस्र धारा प्रवाहित होती रहती है ।
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- 3 min ago Seema Haider कैमरे के सामने फूट-फूटकर रोईं, कहा- 'मेरा कोई नहीं है, अगर वो मुझे पसंद करता है तो...' - 25 min ago पार्टी से निकलीं जान्हवी कपूर की हालत देख चौंके यूजर्स, ट्रोल करते हुए बोले- 'फुल पीकर टाइट है' - 40 min ago Anupamaa Spoiler Alert : अनुपमा को देख छोटी अनु को पड़ा पैनिक अटैक,बढ़ी अनुज की धड़कनें फिर हुआ.. Don't Miss! - News इजराइली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस भारत में फिर एक्टिव, दो बड़े पत्रकार बने निशाना, जानें नाम, क्या-क्या पता चला? Bollywood Live Updates 27 Septeber- सुबह होते ही हम आपके लिए फिर से बी-टाउन की कुछ खबरें लेकर सामने आए हैं और ये सिलसिला पूरे दिन जारी रहेगा। इस पेज पर आपको हर खबर की अपडेट मिलेगी। Farah Khan- मुंबई के लाल के राजा के दर्शन करना इस वक्त काफी मुश्किल हो चुका है। सितारों के जो वीडियोज सामने आ रहे हैं वो आपको हैरान करने के लिए काफी हैं। भीड़ में बुरी तरह से फंसने पर फिल्ममेकर और कोरियोग्राफर फराह खान की हालत काफी खराब हो गई। शादी के बाद मुंबई छोड़कर इस शहर में शिफ्ट होंगी परिणीति चोपड़ा? इस खबर से चौंक जाएंगे फैंस! नौबत उनकी तबियत बिगड़ने तक आ गई थी। इस दौरान देखा गया कि कुछ लोग उनको सहारा देकर भीड़ से निकालकर लिए जा रहे हैं। फिलहाल फराह खान ने पोस्ट करते हुए खुद बताया है कि वो ठीक हैं लेकिन भीड़ में फंसने की वजह से उनकी हालत ऐसी हो गई थी। Shehnaaz Gill Troll- बिग बॉस से निकलकर मशहूर हुईं शहनाज गिल इस वक्त अपने लुक्स को लेकर काफी चर्चा में रहती हैं। इस वक्त फिर से वो इस तरह की ड्रेस में सामने आई हैं कि लोग उनको खरी खोटी सुना रहे हैं। इस दौरान वो भूमि पेडनेकर के साथ थीं और येलो कलर की बेहद शॉर्ट ड्रेस पहने हुईं थीं। वायरल वीडियो में लोगों के कमेंट्स सामने आए हैं और उनको शहनाज गिल का ये बोल्ड अवतार बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है। लोगों का मानना है कि शहनाज अब पहले जैसी नहीं रही। इसी तरह की ढेरों बॉलीवुड की चटपटी खबरों के लिए आप बने रहिए फिल्मीबीट हिंदी के इस लाइव पेज के साथ.. सुपरहिट फिल्म आशिकी 2 फेम आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर एक बार फिर साथ में देखे गए। दोनों को साथ में ऐसे देखकर फैंस इमोशनल हो गए। इनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। 'फुकरे' फ्रेंचाइजी की तीसरी कड़ी 'फुकरे 3' का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है। कॉमेडी से भरपूर इस फिल्म का ट्रेलर जारी हो चुका है। इसमें फुकरे गैंग को मजेदार अंदाज में देखकर दर्शक उत्साहित हो गए हैं। हालांकि, इस बार फिल्म में अली फजल की अनुपस्थिति ने दर्शकों को थोड़ा निराश कर दिया है। हालांकि, अब खबर आ रही है कि फिल्म के तीसरे पार्ट में अली फजल का स्पेशल अपीयरेंस देखने को मिलेगा। हनीमून से पहले ही राघव को अपने इस काम से दीवाना बना रही परिणीति चोपड़ा, सुनकर आपको लगेगा झटका! Parineeti Chopra Raghav Chadha reception: न्यूली मैरिड कपल परिणीति चोपड़ा और राघव चड्ढा अपनी शादी के बाद लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। एयरपोर्ट लुक से लेकर शादी के लुक को लेकर परिणीति चोपड़ा के वीडियो और फोटोज जमकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। अब खबर है कि जल्द ही परिणीति और राघव दो जगहों पर अपनी कुछ समस्याओं की वजह से रिसेप्शन करेंगे। ऐसी खबर है कि, कपल दिल्ली में राजनेताओं और मुंबई में सेलेब्स की वजह से रिसेप्शन होगा। Bigg Boss 17: टीवी की दुनिया सबसे ज्यादा चर्चित और पॉपुलर रियालिटी शो बिग बॉस जल्द ही फिर से अपने नए सीजन के साथ दस्तक देने वाला है। सलमान खान के इस धमाकेदार शो बिग बॉस 17 में इस बार अंकिता लोखंडे और विक्की जैन एंट्री लेने वाले हैं। ऐसी खबर है कि, शो में अपनी जबरदस्त एंट्री के लिए अंकिता ने पूरा का पूजा बाजार ही खरीद लिया है। As per the report, They have purchased 200 outfits and plan on not repeating their clothes inside the house. अजीबों-गरीब ड्रेस पहनकर निकली Urfi Javed ने कहा, -"मैं राज कुंद्रा की तरह करना..." Urfi Javed: हमेशा ही अपने कपड़ो और अपने बयानों को लेकर खबरों में रहने वाली सोशल मीडिया इन्फ्लुंसर उर्फी जावेद एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई है। उर्फी हाल ही में अपने नए अतरंगी लुक के साथ मुंबई में स्पोर्ट हुई, इस दौरान उर्फी ने शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को लेकर बयान दिया और कहा वह उनकी तरह की कुछ करना चाहती हैं। इस टीवी एक्ट्रेस की मौत की खबर सुनकर रो रहे थे लोग, तभी हसीना ने फोटो शेयर करके कहा- 'मैं जिंदा हूं' Thapki Pyaar Ki Actress: मशहूर टीवी शो 'थपकी प्यार की' से प्रसिद्धि पाने वाली टेलीविजन एक्ट्रेस जिज्ञासा सिंह ने हाल ही में अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर अपनी मौत की अफवाहों को खारिज कर दिया। उन्होंने यूट्यूब वीडियो का एक स्क्रीनशॉट साझा किया, जिसका शीर्षक था 'थपकी प्यार की अभिनेत्री का निधन', 'एक्ट्रेस का आखिरी वीडियो' और 'एक्ट्रेस थपकी का निधन-चौंकाने वाली खबर'। Sonam Kapoor Video: मशहूर बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर को फैशन क्वीन भी कहा जाता है। लेकिन फैशन की एक बात जो लोगों को कत्तई पसंद नहीं आती, वो है इसमें होने वाला अंग प्रदर्शन और खासतौर पर तब जब ये अंग प्रदर्शन ऊप्स मोमेंट में तब्दील हो जाए तो। Bhojpuri Unmarried Actress: बॉलीवुड की तरह ही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री अपना नाम कमाने की कोशिश कर रही है, हालांकि, भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री आए दिन विवादों में ही रहती है। वजह है अश्लील कंटेंट। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में भर-भरकर अश्लीलता परोसी जाती है और महिला एक्ट्रेस को तो खूब हॉटनेस दिखानी पड़ती है। लेकिन इनका खामियाजा भी भोजपुरी हसीनाओं को भुगतना पड़ता है। परिणीति चोपड़ा, जो अपने अभिनय कौशल के लिए जानी जाती हैं, एक प्रतिभाशाली गायिका भी हैं और आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा के साथ अपनी शादी के लिए, उन्होंने 'ओ पिया' नामक एक रोमांटिक गाना रिकॉर्ड किया। हिंदी और पंजाबी दोनों भाषाओं में बोल वाले गाने के माध्यम से, परिणीति ने राघव के प्रति अपना प्यार जताया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अनुमान है कि जवान ने सभी भाषाओं में अपने 20वें दिन भारत में ₹5.1 करोड़ की कमाई की है। फिल्म ने पहले हफ्ते में ₹389.88 करोड़ (हिंदी में ₹347.98 करोड़, तमिल में ₹23.86 करोड़ और तेलुगु में ₹18.04 करोड़) और दूसरे हफ्ते में ₹136.1 करोड़ (हिंदी में ₹125.46 करोड़, तमिल में ₹4.17 करोड़) का कलेक्शन किया। , और तेलुगु में ₹6.47 करोड़)। सलमान खान ने फैंस के इंतजार को खत्म कर दिया है। वादे के मुताबिक टाइगर 3 का दमदार टीजर 11 बजे रिलीज हो गया है। जाहिर है कि फैंस के लिए ये किसी उपहार से कम नहीं है। जब भी बॉलीवुड में रोमांस या फिर रोमांटिक फिल्मों की बात होगी तो सबसे पहले अगर किसी का नाम आएगा तो वो होंगे यश चोपड़ा। मशहूर फिल्म फिलहाल हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी बनाई हुई हर फिल्म आज भी उनके होने का एहसास दिलाती है। आज यश चोपड़ा का जन्मदिन है और इस मौके पर उनको याद करते हुए उनके फैंस भावुक हो रहे हैँ। टाइगर श्रॉफ और कृति सैनन की धमाकेदार फिल्म गणपत को लेकर चर्चा है। इस वक्त एक पोस्टर रिलीज किया गया गया है जिसमें टाइगर श्रॉफ और कृति सैनन नजर आ रही है। कृति सैनन का ये लुक काफी पसंद किया जा रहा है। आमिर खान के साथ हाथ मिलाएंगे सनी देओल! सनी देओल और निर्देशक राजकुमार संतोषी एक एक्शन फिल्म पर चर्चा कर रहे हैं। और ये फिल्म आमिर खान के प्रोडक्शन तले बनाई जाएगी। यह तिकड़ी फिल्म को दिसंबर 2023 या जनवरी 2024 के आसपास फ्लोर पर ले जाने की सोच रही है। वहीं, फिल्म की आधिकारिक घोषणा सनी देओल के जन्मदिन (19 अक्टूबर) पर की जा सकती है। दरअसल 26 सितंबर को उनको जुड़वां बच्चों का जन्मदिन था और इस मौके पर एक बेहतरीन पोस्ट सामने आई थी। इस पोस्ट में उनके साथ उनके पति और फिल्म निर्माता विग्नेश शिवन नजर आ रहे हैं। नयनतारा के जुड़वां बच्चों का नाम उइर और उलाग है। सहज ने लिखा, "मीडिया और जनता से अपील... मुझमें साक्षात्कार करने का साहस नहीं है। बिना सबूत के किसी की फर्जी बातों पर विश्वास करके हमारी छवि को और खराब न करें। पुलिस अपना काम कर रही है। जब हमने राजनीतिक दबाव में मामला नहीं निपटाने का फैसला किया तो उन्होंने हमारे खिलाफ बयान देना शुरू कर दिया। नसीरुद्दीन शाह बोले, "मैंने आरआरआर देखने की कोशिश की, लेकिन नहीं देख सका, मैंने पुष्पा देखने की कोशिश की, लेकिन नहीं देख सका। हालाँकि मैंने मणिरत्नम की फिल्म देखी। क्योंकि वह बहुत सक्षम फिल्म निर्माता हैं और उनका कोई एजेंडा नहीं है। देखने के बाद अक्सर एक ख़ुशी का एहसास होता है जो कई दिनों तक बना रहता है। मैं कल्पना नहीं कर सकता, मैं ऐसी फिल्में देखने कभी नहीं जाऊंगा।" लाल बागचा राजा के पंडाल से एक और चौकाने वाला वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में सोनू सूद, शेखर सुमन और फराह खान नजर आ रही हैं। बेशक इस वीडियो को देखने के बाद स्टार्स स्टार्स नहीं लगेंगे बल्कि भीड़ का एक हिस्सा दिख रहे हैं। लाल बाग के राजा के दर्शन करने के दौरान भीड़ में फंसी फराह की हालत खराब, सामने आया ये वीडियो..
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राम रमापति जय जय जय, वन वन भटके वह, मर्यादा की सीख सिखाने, त्याग भावना हमें सिखाने , यहीं पे पूरे करने काम, आए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम। अयोध्या में आए श्री राम, नहीं वहां पर अब कोई वाम, सब वहां हर्षित हैं इस पल, दशरथ के मन में है हलचल, आए फिर भरत शत्रुघ्न भी, लक्ष्मण ने भी आँखें खोली, तीन रानियां सखियों जैसी, साथ साथ ममता में डोली, मानव का उत्थान है करना, इसीलिए आए श्री राम । अयोध्या में उत्सव का शोर, शंखनाद है चारों ओर, शांताकारम राम के दर्शन, करने आए सभी चहु और, यह हो सकता है कि रावण, भी आया हो दर्शन करने, यह भी सच है सभी देवता, सोच रहे अब कष्ट मिटेंगे, यद्यपि यह मेरा विचार है, कि रावण भी विष्णु भक्त था, किंतु नहीं यह वर्णन कहीं भी, कि रावण आया अयोध्या कभी भी, सभी यहां सुख सागर में है, आज यहां आए हैं राम। यह है श्री राघव की माया, कि यह कोई समझ न पाया, एक मास का एक दिवस था, हर कोई मोह में विवश था, यहां रवि भी रुका हुआ है, यहां कवि भी झुका हुआ है, यहां सभी नतमस्तक होंगे, यह है अयोध्या नगरी शुभ धाम, यहां पे जग के पालक राम। यदि यह हमने ना समझा, यदि यह हमने ना जाना, कि यह परम सत्य ही था, की रमापति ही सियापति था, प्रत्यक्ष को प्रमाण नहीं है , स्वयं सिखाएंगे श्री राम। वहां चले अब जहां सरस्वती, गुरु ने शास्त्रों की शिक्षा दी, गुरु आश्रम में ऐसे रहते, सेवा भाव से कार्य हैं करते, आए जब राम गुरुकुल में , पुनः ज्ञान अर्जित करने , वहां सभी सुख में डूबे, चारों भाई थे चार अजूबे, यह प्रभु की ही अद्भुत लीला, वेदों के ज्ञाता हैं राम। गुरु आश्रम से आ साकेत, विश्वामित्र का पा आदेश, सबको करने अभय प्रदान, लखन को ले चलें कृपानिधान, चले ताड़का वन की ओर, दुष्ट राक्षसी रहती जिस छोर, बाण एक ताड़का को मारा, मारीच सुबाहु को संघारा, मारीच को दिया क्यों जीवनदान, यह भेद जाने बस कृपा निधान, चले हैं हरने मही की त्रास , इसीलिए आए श्रीराम। चले वहां अब जहां महालक्ष्मी, जनक सुता रमा कल्याणी, वहीं होगा अब मिलन हरि से, जहां जनक राज्य हैं करते, चले संग मुनिवर लक्ष्मण के, गंगा तट पर पूजन करके , वहीं एक निर्जीव आश्रम में, तारा अहिल्या को चरण रज से , गंगा जिनकी उत्पत्ति है , वो हैं पतित पावन श्री राम। समय ने ऐसा खेल रचाया, समय ने ऐसा मेल बनाया, वहीं पे पहुंचे कृपानिधान, जहां पे थी खुद गुण की खान, वही पहुंची अब जनक सुता, उपवन में राघव को देखा , अद्भुत सौंदर्य और अतुल पराक्रम का, है यह अति पुरातन रिश्ता, तीनों लोकों में दोनों की, कोई कर सकता ना समता, गई मांगने उनसे रघुवर, जिसने तप से शिव को जीता, जनकपुरी में शुभ समय है आया, जनक राज ने प्रण सुनाया, सब का अभिनंदन करके, सीता को सखियों संग बुलाया, किंतु शिव के महा धनुष को, कोई राजा हिला न पाया, विश्वामित्र ने देखा अवसर, तब उन्होंने राम को पठाया, राम ने जाना शुभ समय है आया, सभी बड़ों को शीश नवाया, धनुष के दो टुकड़े कर डाले, हमें मिले फिर सीताराम। केकई ने षड्यंत्र रचाया, नियति ने फिर खेल रचाया, राजतिलक का समय जब आया, माता का फिर मन भरमाया, दशरथ से मांगे वर दो, भरत को राज्य , वन राम को दो, माता की आज्ञा सिर धरके, पिता वचनों की गरिमा रखने, साथ सिया और लक्ष्मण को ले, चले गए फिर वन को राम। वन में उनको मिले सभी , ऋषि तपस्वी और ज्ञानी, वन में था ज्ञान अथाह, वन में था आनंद समस्त, वन में थे राक्षस कई , वन को कलुषित करते सभी , रावण के यह बंधु सभी, करते थे दुष्कर्म कई , लिया राम ने फिर प्रण एक , निश्चर हीन धरा को यह, रक्षा इस धरती की करने , आए दोनों लक्ष्मण राम। वन में जा पहुंचा अभिमानी, मारीच उसका मामा अति ज्ञानी , अभिमानी के हाथों उसकी, मृत्यु हो जाती निष्फल , चुना मृत्यु का मार्ग सफल, बन सुंदर एक मृग सुनहरी, चला भरमाने मायापति राम। सीता को पाकर अकेली, छद्मवेश साधू का धर के, ले गया वह सीता को हर के, यहां वहां सीता ने पुकारा, हार गया जटायु बेचारा, वन वन भटके दोनों भाई , पर सीता की सुध ना पाई, यह सब तो है प्रभु का खेल, दीन बने खुद दीनानाथ राम। मिलना था अब हनुमान से, बुद्धि ज्ञान और बलवान से, वन में उनको भक्त मिला, वानर एक अनूप मिला, रुद्र अवतार राम के साथी, वानर राज सुग्रीव के मंत्री, वानर जाति का किया कल्याण, सब के रक्षक हैं श्रीराम। वानर राज ने किया संकल्प, माता की खोज हो तुरंत , चारों दिशाओं में जाओ , सीता मां की सुध लाओ , चले पवनसुत दक्षिण की ओर, मन में राम नाम की डोर, विघ्न हरण करते हनुमान , उनके मन में हैं श्रीराम। चले वहां अब जहां थी लंका, वहां पर अद्भुत दृश्य यह देखा, एक महल में शंख और तुलसी, देख उठी यह मन में शंका, वर्णन कर आने का कारण, विभीषण से जाना सब भेदन, सीता मां से चले फिर मिलने, राम प्रभु के कष्ट मिटाने, माता को दी मुद्रिका निशानी, प्रभु की सुनाकर अमर कहानी, यह तब जाना सीता माॅ ने, रामदूत आया संकट हरने, चले लांघ समुद्र महाकाय , सीता मां की सुध ले आए, रावण की लंका नगरी को, अग्नि को समर्पित कर आए, रावण का अहंकार जलाकर, बोले क्षमा करेंगे राम। हनुमत पहुंचे राम के पास, सीता मां का हाल सुनाकर, बोले ना टूटे मां की आस , दक्षिण तट पर पहुंच के बोले, अब जाना है सागर पार, राम नाम की महिमा गहरी, वो करते हैं भव से पार, राम नाम लिखकर जो पत्थर, सागर में तर जाते हैं, उसी राम के आगे देखो, शिव भी शीश झुकाते हैं, करके पूजा महादेव की, लिंग पे जल चढ़ाते हैं, राम भी उनकी सेवा करते, जो रामेश्वरम कहलाते हैं, सेतु बांध समुद्र के ऊपर, लंका ध्वस्त करेंगे राम। रावण एक महा अभिमानी, विभीषण की एक न मानी, मंदोदरी उसकी महारानी, उसकी कोई बात न मानी, सीता ने उसको समझाया, क्यों मरने की तूने ठानी, विभीषण को दे देश निकाला, लंका का विनाश लिख डाला, चले विभीषण राम के पास, मिटाने कई जन्मों की त्रास, लंकेश्वर कहकर पुकारा, शरणागत के रक्षक राम। शांताकारम राम ने सोचा, जो विनाश युद्ध से होता, सृजन में लगते लाखों कल्प, राम ने चाहा अंगद अब जाए, रावण को यह कहकर आए, माता को आदर् से लेकर, राम प्रभु की शरण में जाए, अंगद ने जा राजमहल में, पर उस अभिमानी रावण की, राज्य सभा को समझ ना आया, तब राम नाम लेकर अंगद ने, वहीं पर अपना पैर जमाया, राम ने उस अभिमानी रावण को, राम नाम का खेल दिखाया, हिला ना पाए कोई उसको, जिसके तन मन में हो राम। अब निश्चित है युद्ध का होना, रावण के अपनों का खोना, सब ने अपने प्राण गवाएं, रावण अब इस बात को समझा, कि संकट में प्राण फसाए, युद्ध भूमि में किसको भेजें, जाकर कुंभकरण को जगाएं, राम लखन के सन्मुख भेजें, वानर सेना को मरवायें, कुंभकरण ना समझ सका की, नारायण को कैसे हराऐं, यह था कुंभकरण का भाग्य, मुक्ति के दाता हैं श्री राम। वानर सेना में उत्साह का शोर, राक्षस सेना चिंतित सब ओर, युद्ध हुआ हर दिन घनघोर, पर बचा न कोई रावण की ओर, एक से एक महा भट्ट आते, आकर अपने प्राण गवाते, मेघनाथ रावण की आस, लक्ष्मण लक्ष्य लंका के सुत का, गड़ शक्ति पराक्रम बल कौशल का, यह क्या विधि ने खेल रचाया, लक्ष्मण को युद्ध में हराया, शक्ति मेघनाथ ने छोड़ी, राम लखन की जोड़ी तोड़ी, मेघनाथ के शंखनाद का कैसे उत्तर देंगे राम। अब वानर सेना है भयभीत, वानर दल की टूटी पीठ, लक्ष्मण राम प्रभु की प्रीत, लूट के ले गया इंद्रजीत, वानर दल श्री राम को चाहे, उनकी चिंता देखी न जाए, अब उनको संजीवनी बचाए, तब हनुमंत सामने आए, वानर सब उनको समझाएं, की सूर्य उदय से पहले ले आएं, वरना लक्ष्मण को जीवित ना पाएं, शांत समुद्र में जैसे तूफान, ऐसे विचलित हैं श्री राम। चले पवनसुत उत्तर की ओर, लक्ष्मण के प्राणों की टूटे ना डोर, संग ले राम नाम की आस, हनुमत पहुंचे पर्वत के पास, लक्ष्मण के प्राणों को लेकर, हनुमत पहुंचे जहां थे राम। यह तो है राम नाम की चाहत, जो लक्ष्मण हो सके न आहत, फिर गरज कर लक्ष्मण ने कहा, तेरी मृत्यु अब निश्चित है अहा, कहां है वह पाखंडी राक्षस, युद्ध के सभी नियमों का भक्षक, यहां पर तो रघुकुल का चिन्ह है, कि अब मेघनाद का मस्तक, उसके धड़ से कब होता भिन्न है, लक्ष्मण ने अब प्रण है ठाना, विजयी हो कर आऊंगा राम। युद्ध वहां है जहां है माता, इंद्रजीत को समझ न आता, जो सत्य का साथ है देता, वहीं पे लक्ष्मण ने ललकारा, युद्ध करने को उसे पुकारा, सभी शास्त्र विफल कर डाले, मेघनाद ने देखे तारे, यह समझा रावण का सुत अब, यह कैसे पितु को समझाए, राक्षस जाति को कैसे बचाए, सुबह का सूरज यह लेकर आया, अब युद्ध करेंगे रावण राम। वहां से शंखनाद यह बोला, रावण का सिंहासन डोला, यह अब अंतिम युद्ध है करना, वानर सेना करें यह गणना, यह है अब राम की इच्छा, रावण को वानर दें शिक्षा, युद्ध हुआ वह बहुत भयंकर, देख रहे ब्रह्मा और शंकर, यह अब युद्ध में निर्णय होगा, की अंत में विजयी कौन बनेगा, यहां पर सब हैं आस लगाए, कि जल्दी सीता अब आए, राम मारेंगे अब रावण को, सीता मां के दर्शन हो सबको, चलेंगे तीखे तीर रघुवर के, काटने को शीश रावण के, जों जों शीश दशानन के कटते, वर के कारण वापस आ जाते, तब रघुवर विस्मय में आए, अब तो कोई उपाय बताए, तब विभीषण सामने आए, अमृत का रहस्य बतालाए, अग्निबाण नाभि में मारो, दशानन को ब्रह्मास्त्र से संघारो, यही वो पल है जिसके कारण, धरती पर आए श्री राम। यह तो सब ने देखा उस क्षण, कि रावण का हो रहा है मर्दन, यह तो बस रघुवर में जाना, कि रावण था बड़ा सयाना, बिना राम के मुक्ति पाना, असंभव था उसने यह जाना, शुभम अथवा सत्यम का मिलना, नहीं था संभव बिना सियाराम।
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मानापमानयोः। शीतोष्णसुखदुःखेषु सड्गविवर्जितः ।।" शत्रु और मित्र में भी समान भाव रखने वाले, मान और अपमान में भी सम रहने वाले, सबको स्नेह करने वाले. अध्यक्ष महोदय, मुझे याद आता है, मैं उस समय युवा मोर्चे में काम करता था. भोपाल गैस काण्ड के बाद बहुत से आंदोलन हमने किये. जब भी कोई आंदोलन करते थे श्रद्धेय वोरा जी सहजता से बुलाते थे और चर्चा करते थे और समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते थे. वह आम आदमी के हमेशा निकट रहे और जिस पद भी उन्होंने काम किया, राजस्थान में जन्म लिया लेकिन फिर मध्यप्रदेश कार्यक्षेत्र रहा और इतने लोकप्रिय थे कि पांचवीं, छठवीं, सातवीं, आठवीं, नौवीं विधानसभा में लगातार निर्वाचित हुये. सार्वजनिक जीवन में जैसा उन्होंने स्थान बनाया लगभग असंभव सा है. चार बार राज्यसभा में, एक बार लोकसभा में और जिस भी पद पर रहे उसका निर्वाह उन्होंने पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ, पूरी गरिमा के साथ करने का प्रयास किया. मध्यप्रदेश की प्रगति और विकास में उनका जो योगदान है उसे कभी हम भुला नहीं सकते. राजनैतिक विचारधाराओं का अंतर हो सकता है लेकिन वोरा जी जैसे लोग सचमुच में असाधारण हैं. उनके चेहरे की चमक अंतिम समय तक रही. कई बार हम लोगों ने उनको चलते हुये देखा था, टीवी की बाईट में भी देखते थे, तो भले कमर थोड़ी सी उनकी झुकी हो लेकिन उसी ऊर्जा के साथ, जैसे जब तक जिएंगे तब तक काम करेंगे, उनको हमने काम करते हुये देखा है. उनके निधन से अविभाजित मध्यप्रदेश के एक वरिष्ठ और अत्यंत लोकप्रिय नेता को हमने खोया है. उनका योगदान मध्यप्रदेश कभी भुला नहीं सकता. उनके चरणों श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूं. अध्यक्ष महोदय, श्रद्धेय स्वर्गीय कैलाश नारायण सारंग जी, हम में से कम से कम प्रथम पंक्ति तो उनसे बहुत अच्छी तरह परिचित थी. भारतीय जनसंघ के बीज बोने से लेकर वट वृक्ष बनाने वाले उस पीढ़ी के अंतिम स्तम्भ थे. उन्होंने मध्यप्रदेश की राजनीति को एक अलग और नई दिशा दी. स्वर्गीय ठाकरे जी, राजमाता जी, पटवा जी, जोशी जी, प्यारेलाल खंडेलवाल जी और उनके साथ सारंग जी ने जनसंघ की जड़ों को पूरे मध्यप्रदेश में जमाने का अतुलनीय परिश्रम किया. छोटे से किराये के कार्यालय में कठिनाई से जीवन बिताते हुये दिन और रात परिश्रम करते हुये हमारे जैसे अनेकों कार्यकर्ताओं को गढ़ते हुये, इस पक्ष में जो साथी बैठे हैं उनमें से अनेकों ऐसे हैं जिनको उन्होंने उंगली पकड़कर राजनीति में चलना सिखाया. मैं विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ता के नाते, मैं तो तब बच्चा था, तब भी अगर उनसे मिलता था, उसी स्नेह और प्रेम से वे सहयोग करते थे. युवा मोर्चा के कार्यकर्ता के नाते सदैव उनका मार्गदर्शन हमें मिलता था. वे राजनीतिक मतभेदों के ऊपर थे. मुझे अच्छी तरह से याद है जब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती का एक कार्यक्रम 25 सितंबर को होना था, स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी उस समय मुख्यमंत्री हुआ करते थे, उस कार्यक्रम में स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी ने यह कहा था कि मैं अपनी विचारधारा को अक्षुण्ण रखते हुए आया हूँ. लेकिन राजनीतिक मतभेद अपनी जगह है, दीनदयाल जी दीनदयाल जी थे. हर दल में वे संबंध और संपर्क रखते थे. हमारे जैसा कार्यकर्ता अगर कभी निराश होता था, छोटा सा कार्यकर्ता भी, तो उसको नई उत्साह और ऊर्जा से भरने का कार्य अगर कोई करते थे तो वे स्वर्गीय कैलाश नारायण सारंग जी करते थे. वे केवल राजनेता नहीं थे, वे लेखक थे, वे कवि थे, वे पत्रकार थे, वे शायर थे. जब वे बोलते थे तो पता नहीं कितने शेर उनके मुँह से निकलते हुए चले जाते थे. वे कुशल संगठक थे. वे सफल प्रशासक थे. वे व्यक्ति नहीं, एक संस्था थे, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. समाज सेवा के क्षेत्र में भी उनका अतुलनीय योगदान था. मुझे याद है कि एक बार वे मुझे बरेली ले गए, बरेली में जो पैतृक निवास स्थान था, मकान था उनका, वह मकान उनका बिक गया था, माता जी का, उसको फिर से उन्होंने खरीदा और खरीदकर वहां वृद्धाश्रम प्रारंभ किया, जो अब रहा है और बिना किसी के सहयोग के, संसद से पेंशन की जो राशि मिलती थी, उस पूरी की पूरी राशि को वे उसमें लगाते श्री सज्जन सिंह वर्मा -- विश्वास भैया, पूरा सदन, पूरा प्रदेश आपके साथ है. हम सब आपके साथ हैं. श्री शिवराज सिंह चौहान -- अध्यक्ष महोदय, एक छोटे से गांव घाटपिपरिया में उनका जन्म हुआ है, रायसेन जिले में, गांव के प्रति उनका अनुराग और सहज संबंध सदैव बना रहा और आज तक वहां एक सदावृत का कार्यक्रम चलता है, जिसमें जो भी परिक्रमावासी आते हैं, नर्मदा तट पर जाने वाले मित्र जानते हैं, वहां सदावृत देने की परंपरा है. परिक्रमावासियों को, आगंतुकों को भोजन के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं और प्रबंध करना, यह काम सारंग जी करते थे. लेखक के नाते चरेवैति में हम सबने पढ़ा, इतने वर्षों तक चरेवैति का कुशल संचालन, एक पत्रिका को चलाना, यह अपने आप में असाधारण है. 'नवलोक भारत' उन्होंने स्थापित किया, उसमें उनके कई लेख ऐसे होते थे, जो अंतरात्मा को छू जाते थे और सचमुच में हमारी वह पीढ़ी जिसने हम लोगों को तैयार किया, आज हम देखते हैं कि जब तक वे थे, तो हमारे सर पर भी हाथ रखने वाला कोई था. जब भी कहीं गहरा अंधकार दिखता था, हम सारंग जी के पास जाते थे और कहते थे कि भाईसाहब, बताइये, क्या करें और स्वर्गीय सारंग जी बड़ी सहजता से हमें मार्ग दिखाते थे. उनके अनुभव का, उनके स्नेह का, उनके प्रेम का हम जैसे लोगों के जीवन के गठन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. वे जूझते भी रहे, जूझारू थे, 25 साल पहले उनका पहला बाइपास ऑपरेशन हुआ था, 25 साल तक लगातार, एक बाइपास, दो बाइपास, लेकिन लगातार काम करते रहे. जब उनका नाम लेता हूँ, तो केवल विश्वास सारंग ही नहीं, मैं भी भावुक हो जाता हूँ. बचपन से उन्होंने स्नेह और प्रेम दिया, हर काम में वे साथ देते थे, जब कोई हमें गंभीरता से नहीं लेता था, युवा मोर्चे के नाते, तब भी वे गंभीरता से हमें लेकर कहते थे कि चिंता मत करो, करो. हमने एक वरिष्ठ मार्गदर्शक खोया है, प्रदेश ने एक वरिष्ठ राजनेता खोया है. एक कुशल संगठक खोया है. "बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्हीं सो गए दासतां कहते-कहते". मुझे एक और पंक्ति याद आ रही है. अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च. किसी से द्वेश न रखने वाले, सबके मित्र और सबके प्रति स्नेह और करुणा रखने वाले ऐसे थे हमारे सारंग जी. उनके चरणों में मैं अपनी ओर से, सदन की ओर से श्रृद्धा के सुमन अर्पित करता हॅ००. श्री लोकेन्द्र सिंह जी की भारतीय जनसंघ से राजनीतिक यात्रा प्रारंभ हुई. वह अनेकों आंदोलनों में जेल गए. श्री लोकेन्द्र सिंह जी 6वीं और 10वीं विधानसभा के सदस्य रहे और बाद में लोक सभा के लिए भी निर्वाचित हुए. उनके निधन से भी हमने एक वरिष्ठ राजनेता खोया है, एक समाजसेवी खोया है. श्री गोवर्धन उपाध्याय जी एक सरल और सहज व्यक्ति थे. हममे से अनेक मित्र उनको जानते थे. सिंरोज से वह विधायक निर्वाचित हुए. वह सरपंच और जनपद पंचायत लटेरी के अध्यक्ष भी रहे. श्री उपाध्याय जी ने विभिन्न संस्थाओं में पदाधिकारी के नाते, समाजसेवी के नाते भी काम किया. श्री श्याम होलानी जी, अपराजेय स्वर्गीय श्री कैलाश जोशी जी की विजययात्रा रथ को कोई रोक पाया, एक बार रोका था स्वर्गीय श्री श्याम होलानी जी ने. वह अत्यंत लोकप्रिय नेता थे. श्री बद्रीनारायण अग्रवाल जी, जिनको हम गुरुजी के नाम से जानते थे. वह बड़े सहज कार्यकर्ता थे. उनको भारतीय जनता पार्टी ने हरदा से टिकट दिया था. वह विधायक बने और उतनी ही सहजता के साथ काम करते-करते उनको हमने खोया है. श्री कैलाश नारायण शर्मा जी गुना जिले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जमाने में भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान था. गुना जिले से वह सदस्य निर्वाचित हुए थे. श्री विनोद कुमार डागा जी ने बैतूल में सहकारिता के क्षेत्र में काम करते-करते अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. श्री कल्याण सिंह ठाकुर जी विदिशा से ही उपचुनाव में सदस्य निर्वाचित हुए थे. वह सरपंच थे, सामान्य किसान परिवार से आते थे. लेकिन विधायकी के दायित्व को उन्होंने अपनी जनसेवा से एक नये आयाम दिये. श्री महेन्द्र बहादुर सिंह जी, श्री चनेश राम राठिया जी, श्रीमती रानी शशिप्रभा देवी जी, डॉ.राजेश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी, डॉ. भानुप्रताप गुप्ता जी इनके रुप में भी हमने लोकप्रिय जननेता और कुशल समाजसेवी खोये हैं. दादा हीरासिंह मरकाम जी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक थे और उन्होंने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संगठन को एक नयी ऊंचाई प्रदान की थी. हम जानते हैं कि कई विधायक मित्र इस पार्टी से चुनकर आया करते थे. विशेषकर जनजाति समाज के लिये उन्होंने जो काम किया है, वह सदैव याद किया जाएगा. श्री लुईस बेक जी, ठाकुर देवप्रसाद आर्य जी, श्री पूरनलाल जांगड़े जी इनके चरणों में भी मैं श्रृद्धा के सुमन अर्पित करता हॅ००. स्वर्गीय श्री रामविलास पासवान जी एक अद्भुत राजनेता थे. लोकप्रियता जैसे जन्म से ही भाग्य में लिखवाकर लाए थे और मैं समझता हॅ०० कि एक विचित्र संयोग था कि लगभग सदैव ही वह मंत्री रहे. गठबंधनों की सरकारें बनीं, सरकारों में बाकी बदल जाया करते थे लेकिन श्री रामविलास पासवान जी नहीं. यह सच्चाई है हम लोग जानते हैं. वह केंद्र में मंत्री रहते ही थे और यह इस कारण कि उनकी अपनी जमीन बिहार में थी और उस जमीन को कोई तोड़ नहीं पाया. बिना उनके बिहार का समीकरण बनता ही नहीं था. सन् 1977 में उन्होंने देश में सर्वाधिक वोटों से जीतने का नया रिकार्ड स्थापित किया था. उस समय वह बहुत युवा थे. वह नौ बार लोक सभा और दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे कुल मिलाकर उन्हें लोक सभा और राज्य सभा के 11 टर्न मिले हैं. यह अपने आप में अद्वितीय है. उन्होंने मंत्री के रूप में और जन नेता के रूप में भी पूरी कर्मठता के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह किया. मुझे स्वर्गीय जसवंत सिंह जी का भी सदैव बहुत आशीर्वाद और सानिध्य मिला. हम सब वरिष्ठगण जानते हैं कि वह राजनीति में आने के पहले सेना के अधिकारी थे और सेना के अधिकारी के बाद फिर वह राजनीति में आए. माननीय नेता प्रतिपक्ष जी संसद में वर्षों तक रहे हैं हम लोग देखते थे उनकी बोलने की अपनी शैली थी वह इतनी उत्कृष्ट अंग्रेजी बोलते थे कि कई बार तो अंग्रेजी जानने वाले भी आश्चर्यचकित रह जाते थे और संसद के ऐसे सदस्य हुआ करते थे जो हर विषय पर बोलने का माद्दा रखते थे. श्रद्धेय अटल जी के मंत्रीमंडल में मंत्री होने के नाते विशेषकर जब विदेश मंत्री थे उन्होंने जैसा काम किया सारे देश ने देखा है. वह प्रमुख विभागों `मंत्री रहे और भारतीय जनता पार्टी के संगठन को मजबूती प्रदान करने में उनका अहम रोल था. अटल जी, अडवानी जी के साथ तीसरा नाम जसवंत जी का ही आता था. वर्षों तक अस्वस्थ रहने के बाद वह हमें छोड़कर चले गए मैं उनके चरणों में भी श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं. श्री तरुण गोगोई जी असम के बहुत लोकप्रिय राजनेता थे. वह लोक सभा में भी पांचवीं, छठवीं, सातवीं, दसवीं, तेरहवीं लोक सभा में भी निर्वाचित हुए. इससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है. केन्द्र सरकार में भी विभिन्न विभागों के मंत्री रहे और पांच बार असम विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए और तीन बार मुख्यमंत्री रहे केवल असम की ही नहीं देश की राजनीति में भी उनका एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान था. उनके निधन से भी हमने एक कुशल नेता और कुशल प्रशासक खोया है. सरदार बूटा सिंह जी भी एक बहुत ही लोकप्रिय नेता थे. राजनीति करने की उनकी अपनी शैली थी. तीसरी, चौथी, पांचवीं, सातवीं, आठवीं, दसवीं बार भी वह तेरहवीं लोकसभा में न केवल सदस्य निर्वाचित हुए विभिन्न विभागों के मंत्री के रुप में अपने उन्होंने दायित्व का निर्वाह कुशलता के साथ किया. स्वर्गीय माधव सिंह सोलंकी जी गुजरात के अत्यंत लोकप्रिय नेता थे. उनके बाद फिर गुजरात में कांग्रेस वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई. वह चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे सन् 1989 तक कांग्रेस को बढ़ाने में, मजबूत करने में उनका बड़ा योगदान रहा. मुख्यमंत्री के नाते और केन्द्रीय मंत्री के नाते भी उन्होंने अपनी एक अलग अमिट छाप छोड़ी. कैप्टन सतीश शर्मा जी आदरणीय कमलनाथ जी के गहरे मित्र थे और संसद में मैं भी सदस्य था तो कई बार मुझे उनसे मिलने का अवसर मिला. वह अपनी तरह से राजनीति करने वाले एक अलग राजनेता थे. केन्द्रीय मंत्री के रूप में भी उन्होने देश की सेवा की. श्री कमल मोरारका जी, वरिष्ठ राजनेता थे, हम सभी उनसे परिचित हैं. श्री रामलाल राही जी, उनके रूप में भी हमने एक कुशल राजनेता और समाजसेवी खोया माननीय अध्यक्ष महोदय, उत्तराखण्ड के चमोली में ग्लेशियर टूटने के कारण जो प्राकृतिक आपदा आई और विद्युत परियोजना में कार्य कर रहे हमारे अनेक साथी हमारे बीच नहीं रहे, मैं उनके चरणों में श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूं. ऐसी घटना हमें यह सोचने पर जरूर बाध्य करती है कि पर्यावरण और विकास दोनों में कहीं न कहीं संतुलन के बारे में दुनिया को सोचना पड़ेगा. माननीय अध्यक्ष महोदय, सीधी जिले के शारदा पटना गांव में हृदय विदारक बस दुर्घटना हुई, जिसमें बाणसागर बांध की मुख्य नहर में एक बस समा गई और हमारे अनेक भाई-बहनों की जल समाधि हो गई. यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण ह्दय विदारक घटना है. उसमें हमारे वे बच्चे भी शामिल थे, जो कहीं परीक्षा देने जा रहे थे. मैं अपने उन सभी साथियों के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं और परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्माओं को शांति दे, उनके परिजनों को, उनके अनुयायियों को, जिन वरिष्ठों का मैंने नाम लिया, उनको यह गहन दुख सहन करने की क्षमता दे. मैं अपनी ओर से दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करना हूं. ओम शांति. डॉ. विजय लक्ष्मी साधौ ( महेश्वर ) - माननीय अध्यक्ष महोदय, किसान पुत्र यदि सदन में किसानों के बारे में बोलते तो हमें पता चलता कि वर्तमान सरकार किसानों की कितनी हितैषी है ? अध्यक्ष महोदय- माननीय सदस्य, माननीय नेता प्रतिपक्ष खड़े हैं. नेता प्रतिपक्ष (श्री कमल नाथ) - माननीय अध्यक्ष महोदय, इस लंबी सूची में, हमारे बहुत सारे अपने साथी आज नहीं रहे. हम इस सदन में उन्हें याद करते हैं, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. सभी का समय आता है. हम सभी आज यहां जो बैठे हैं, हम सभी का भी समय आयेगा. सभी अपनी कोई न कोई छाप और यादगार छोड़कर जाते हैं. केवल अपने परिवार में ही नहीं अपितु समाज में, राजनैतिक क्षेत्र में, औद्योगिक क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ जाते हैं. इनमें से कई लोगों को हम करीब से जानते थे और कई लोगों को दूर से जानते थे. जिन्हें हम करीब से जानते थे, उनसे हमारे केवल राजनैतिक संबंध नहीं थे परंतु अपने जीवन में हमारे जो व्यक्तिगत संबंध बनते हैं, आज उन सभी के नाम पढ़कर बहुत सारी यादें ताजा हो गईं. मोतीलाल वोरा जी से, जब मैं जवान था, युवक कांग्रेस में हुआ करता था, उनसे मैं पहली बार दुर्ग (छ.ग.) में मिला था. वे बहुत ही सरल स्वभाव के थे. जब मैं उनसे पहली बार मिला था तब यह कभी नहीं सोच सकता था कि वे भविष्य में राज्यपाल बनेंगे, एक मुख्यमंत्री बनेंगे, एक केन्द्रीय मंत्री बनेंगे. अपने देश के इतिहास में ऐसे कितने लोग हैं, जिन्हें इतनी बार लोक सभा में, राज्य सभा में, विधान सभा में पद मिले. केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल इन पदों को हासिल किया है. ये केवल एक मौका नहीं था, मोतीलाल वोरा जी, एक ऐसे व्यक्ति थे जो सभी को अपने सरल स्वभाव से प्रभावित करते थे. अपने व्यवहार से वे सभी का दिल जीत लेते थे और इस सदन में जो इनके साथ रहे, मुझे तो उनके साथ इस सदन में मौका नहीं मिला, पर इस सदन के जो भी सदस्य उनके साथ रहे हैं उनको वह जरूर याद करते रहे होंगे कि एक सदन के नेता के रूप में उनका कैसे व्यवहार होता था. मैं तो संसदीय कार्य मंत्री था जब वह राज्य सभा के सदस्य थे और जब मैं कभी किसी को समझा नहीं सकता था तो मैं मोतीलाल वोरा जी की मदद लेता था कि आप जरा उसको समझा दीजिये, वह उसको अपने तरीके से, अपने स्वभाव से उसका दिल और दिमाग जीत आते थे. मोतीलाल वोरा जी राजनीतिक व्यक्ति तो थे, पर एक समाज सेवक भी थे और समाज सेवा में भी उन्होंने अपना एक स्थान प्राप्त किया. आज हम उन्हें और कई साथियों को याद करते हैं. मैं उनके चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. श्री कैलाश सारंग जी को मैं आखिरी दफा भोपाल में एक शादी में मिला ( श्री विश्वास सारंग की ओर इंगित होते हुए) आपको याद है, इतने प्यार और मोहब्बत से कई दिनों बाद मिले थे. मैं इतने साल की राजनीति में विपक्ष के नेताओं से मिलता था, पर उस प्रेम से जो कैलाश सारंग जी ने मुझे दिया, मुझे याद है उनके घर जाते हुए, मैं भोपाल आता था विश्वास को याद होगा उनके घर जाते हुए, वे ऐसे व्यक्ति थे, ऐसा उनका स्वभाव था. मैं सोचता था कि अगर ऐसे नेता हमारे पास भी कई होते जो दूसरों के लिये उदाहरण बनते. कैलाश सारंग जी ने अपने जीवन में केवल चुनाव ही नहीं जीता, दिल जीते. चुनाव जीतना और दिल जीतने में बहुत अंतर होता है, वह दिल जीतने वालों में से थे. ऐसे कम राजनीतिक नेता होते हैं जो चुनाव भी जीत सकते हैं और दिल भी जीत सकते हैं और केवल अपने साथियों का ही दिल नहीं जो विपक्ष में हैं उनका दिल भी जीत सकते हैं. मैं उनके चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. माननीय मुख्यमंत्री जी ने बहुत कुछ कहा है उसको मैं दोहराना नहीं चाहता हूं, पर बड़े संक्षेप में हमारे श्री श्याम होलानी जी, जो मेरे बड़े नजदीक रहे. हमारे श्री विनोद डागा जी, जिनके पुत्र आज इस सदन के सदस्य हैं वह तो मेरे करीबी जिले के थे उनका मेरे यहां बहुत आना-जाना होता था, बहुत निकट संबंध थे. बड़ा कष्ट हुआ जब जानकारी मिली कुछ महीनों पहले कि वह नहीं रहे, उसी दिन रात को वह भोजन में मेरे साथ थे और हम सब थे और उन्होंने कहा कि मैं बैतूल रवाना हो रहा हूं. मैंने कहा कि रात को क्यों जाते हो क्यों जाते हो सवेरे चले जाना, उन्होंने कहा कि नहीं मुझे जाना है, घर में मुझे सोना है और रास्ते में ही वह नहीं रहे. विनोद डागा जी ने अपना स्थान प्रदेश में बनाया. हमारे श्री हीरा सिंह मरकाम जी ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को स्थापित किया, उन्होंने केवल मध्य प्रदेश में ही नहीं छत्तीसगढ़ में भी अपना स्थान बनाया. छत्तीसगढ़ के होते हुए उन्होंने मध्यप्रदेश में एक ऐसा संगठन बनाया जो आज भी मजबूती से हमारे उस समाज को जोड़कर रख रहा है, उस समाज की लड़ाई लड़ रहा है वह तो नहीं रहे पर जो संगठन छोड़ गये हैं वह संगठन आज उस समाज का रक्षक है. श्री रामविलास पासवान जी, मेरे साथ सातवीं लोक सभा में थे और सबसे अधिक वोट से जीतकर आये थे. उस समय गिनीजिस् बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में उनका नाम था कि वह इतने लाख वोट से जीते. कम वोटर हुआ करते थे पर जब हम बात करें 3-4 लाख वोट से जीत कर आये. बहुत बड़ी बात हुआ करती थी उनका अनुभव था. मैं नया नया था सातवीं लोकसभा में उनसे मैंने बहुत ज्ञान प्राप्त किया. लगभग 10 महीने पहले उनसे फोन पर भी चर्चा कर रहा था उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं भोपाल जरूर आऊंगा. श्री तरूण गोगोई जी मेरे साथी रहे लोकसभा में जब मैं कांग्रेस का महासचिव था मैंने आसाम में उनके साथ बहुत नजदीकी से कार्य किया. वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे उस समय वे मुख्यमंत्री बने जब आसाम में हिंसा का माहौल था. गैस पाईप लाईन को बंद कर दिया गया था उस समय चुनाव हुआ था उस समय वे मुख्यमंत्री बने तब आसाम में शांति आयी. उन्होंने इस शांति का आश्वासन दिया तो हमारे आसाम में शांति उसके बाद हमेशा के लिये रही. आज भी अगर शांति का हम पुरस्कार देना चाहते हैं तो श्री तरूण गोगोई जी को देना पड़ेगा. हमारे बूटासिंह जी पंजाब के नेता थे. वे गृहमंत्री रहे उनकी धार्मिक कार्यक्रमों में बड़ी दिलचस्पी रही. उन्होंने राज्यपाल के रूप में काफी समय गुजारा. मैं सतीश शर्मा जी तथा जो विभिन्न मेरे निकट थे उन्होंने मुझे फ्लाईंग सिखाई थी वे फ्लाईंग जानते थे वे कैप्टन थे. मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन एक दिन मुझे कहा कि चलो फ्लाईंग क्लब और फ्लाईंग सीखो उस समय मैंने यह तय किया कि यह मैं करूंगा तो हम साथ साथ दिल्ली के फ्लाईंग क्लब में संजय गांधी जी एवं मैं जाया करते थे. वहां पर हमने फ्लाईंग सीखी. श्री माधव सिंह सोलंकी वरिष्ठ नेता थे वे गुजरात में आज भी गांव गांव में श्री माधव सिंह सोलंकी जी का नाम है. श्री माधव सिंह सोलंकी जी ने अपने व्यवहार से, अपने नेतृत्व से केन्द्र में वे विदेश मंत्री थे और मैं भी मंत्री था. हर केबिनेट की मीटिंग में श्री माधव सिंह सोलंकी बड़े हलके आवाज में बोलते थे, यही उनकी खूबी थी. हमारे श्री रामलाल राही जी एवं सब हमारे साथी जो आज नहीं रहे आज हम एवं पूरा सदन इनको याद करता है. साथ साथ यहां उल्लेख है कि सीधी में जो दुर्घटना हुई मैं तो श्रद्धांजलि देते हुए माननीय मुख्यमंत्री जी से अपील करूंगा जिनकी मौत हुई है उनको रोजगार देने का काम करेंगे. आपने उनके लिये राशि देने की घोषणा कर दी है. राशि तो आयेगी और जायेगी, पर उनको रोजगार देने का कुछ न कुछ प्रावधान करिये. वे बहुत ही गरीब परिवार के लोग थे, आप इस पर सोच-विचार करेंगे, मुझे पूरा विश्वास है. इसके साथ साथ उत्तराखंड में जो घटना हुई है कि यह घटना प्राकृतिक कारणों से हुई, यह एक बड़ी चुनौती हम सबके सामने है कि कैसे हम उसका संतुलन बनाये केवल उत्तराखंड जैसी जगहों पर नहीं पर अपने यहां भी यह संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है. साथ साथ मैं जो मुरैना में शराब माफिया के कारण जिनकी मृत्यु हई है आपकी इजाजत से मैं सोचता हूं कि इस सदन को उनको भी श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिये. जिक्र किया था किसानों का, यह पक्ष एवं विपक्ष का प्रश्न नहीं है. अंत में यह किसान थे आपकी तरह सबकी तरह वे किसान थे. अगर 200 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है और यह सदन श्रद्धाजंलि दे रहा है तो क्या यह उचित होगा कि हम उन किसानों को जैसे भी गये हों. बस के एक्सीडेंट में इतने सारे किसान, क्योंकि आंदोलन हो रहा है. आंदोलन आपने भी किया है, हमने भी किया है आगे भी इस तरह के आंदोलन होंगे, पर उनको भी हम श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं. अध्यक्ष महोदय आप सबका धन्यवाद. श्री शैलेन्द्र जैन (सागर) माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदन के नेता और नेता प्रतिपक्ष ने जो दिवंगत राजनेताओं का उल्लेख किया है, उनकी श्रद्धांजलि में मैं अपने आपको सम्मिलित करना चाहता हूं. उत्तराखड़ और सीधी जिले में जो हृदय विदारक घटना हुई है, उसमें जो मृतक व्यक्ति हैं, उनको मेरी श्रद्धांजलि है, उनके परिजनों को परमपिता परमेश्वर शक्ति और संबल दें. माननीय अध्यक्ष महोदय, श्रद्धेय वोरा जी से मेरा 1989 में सम्पर्क हुआ, उस समय मेरे बड़े भाई साहब काफी बीमार हुए और उस समय उन्हें एयरलिफ्ट करके मुम्बई ले जाना था. हमारे परिजनों ने श्रद्धेय वोरा जी से टेलीफोन पर बात की, उस दिन उन्हें दिल्ली जाना था, लेकिन उन्होंने दिल्ली का कार्यक्रम निरस्त करके एयरक्राप्ट सागर भेजा और सागर से हम अपने भाई साहब को लेकर मुंबई जा पाएं. यह उनका एक जनमानस के प्रति, प्रदेश की जनता के प्रति जो एक सद्भावना थी, वह व्यक्त करती है. माननीय अध्यक्ष महोदय, श्रद्धेय कैलाश नारायण सारंग जी, मैंने जब 1992 में राजनीति में प्रवेश किया, तब उनसे मेरा सम्पर्क हुआ, वे एक कुशल संगठक थे और उन्होंने हमारे जैसे अनेक नेताओं को, अनेक कार्यकर्ताओं को गढ़ने का कार्य किया. वे संगठन के शिल्पी थे. मुझे याद आता है, मेरे राजनीति में प्रवेश के बाद उनका सागर आगमन हुआ. एक आंदोलन में हम उनके साथ थे, तो मेरे अपने जीवन का पहला भाषण उनके बहुत आग्रह पर और उनके निर्देश पर मैंने अपने जीवन का भाषण दिया, उन्होंने मुझे जीवन भर, जब तक वे जीवित थे, मेरा उनसे सम्पर्क था. उन्होंने हमेशा कार्यकर्ताओं को एक पिता के समान स्नेह दिया. मैं श्रद्धेय कैलाश नारायण सारंग जी को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, बहुत बहुत धन्यवाद. अध्यक्ष महोदय - मैं सदन की ओर से शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं. अब सदन दो मिनट मौन खड़े होकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेगा. (सदन द्वारा दो मिनट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई.)
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चाँद की तेरहवीं दिन - चांद्र मास की दूसरी तिमाही। वैक्सिंग चंद्रमा पूर्ण चरण के करीब पहुंच। यह अच्छी तरह से किया जा रहा है, मन और प्रदर्शन को प्रभावित करता। व्हील, एक दुष्चक्र, एक अंगूठी - धारणा है कि सबसे सटीक रूप से 13 वीं चांद्र दिन निर्धारित। दिन की सुविधा से पता चलता है कि यह रचनात्मकता के लिए बहुत अच्छा है। इस दिन पर, आप उस मामले, जो एक लंबे समय में लगी हुई है में नई खोजों बना सकते हैं। तेरहवें एक सामंजस्यपूर्ण निरंतरता और विकास मामलों, जो कल शुरू कर दिया, 12 चांद्र दिन प्रदान करता है। एक ताबीज के रूप में, इस दिन के छल्ले के रूप में सबसे उपयुक्त आइटम नहीं है। यह महत्वपूर्ण है कि शुभंकर बंद हो गया है, तो ऊर्जा के रचनात्मक प्रवाह बर्बाद नहीं होगा, लेकिन इसके विपरीत, एक ही प्रक्षेपवक्र, सफ़ाई के साथ आ जाएगा, सुधार और सुधार। यदि इच्छा शक्ति आंदोलन है, तो एक पुरस्कृत अनुभव है कि आप विकास के एक नए चरण के लिए ले सकता है धीमा करने के लिए, व्यर्थ में नीचे जाना होगा। और सारी पूर्ववर्ती अवधि आगे बढ़ने नहीं होगा, लेकिन इसके विपरीत, वापस चल रहा है। यह 13 वीं है चाँद के दिन। दिन की सुविधा निष्क्रियता पर प्रतिबंध लगाता है। आज प्रभावी समूह में काम हो सकता है, नई जानकारी को पचाने के लिए और बाद में काम में आने के लिए सुनिश्चित करने के लिए आसान है कि प्राप्त होगा। इस दिन, प्रशिक्षण का एक नया चक्र रखना, उपयोगी जानकारीपूर्ण और पुस्तकों से भरा पढ़ना शुरू करने के लिए अच्छा है। आप तेरहवीं चंद्र दिन में अपने कर्म सुधार कर सकते हैं। यह धागा और धागे का काम द्वारा सुविधा है। अंटी नोड्स untangling, आप खोल कर्म समुद्री मील पिछली अवधि में अपने भाग्य में गठन किया गया। Talisman तेरहवीं चंद्र दिन अंगूठी है। इस दिन नए छल्ले और कंगन बंद कर दिया पहनना शुरू करने के लिए उपयोगी है। आप अपनी गर्दन या अन्य सजावट के चारों ओर एक श्रृंखला खरीदने के लिए, एक बंद अंगूठी से मिलकर करना चाहते हैं, तो 12 वीं चांद्र दिन में करते हैं। इस प्रकार, आप हताशा, जड़ता और ठहराव के खिलाफ एक शक्तिशाली अभिभावक पैदा करेगा। गले में एक रिंग में लिंक-अंगूठी, नकारात्मक बाहरी प्रभावों से आप की रक्षा करेगा। इस दिन पर, आप इस तरह के स्कार्फ और बेल्ट के रूप में सामान खरीद सकते हैं। आप कुछ ऐसी बातें है कि सौहार्दपूर्वक अपने अलमारी में फिट का चयन करने में सक्षम हो जाएगा। इस दिन पर प्रयास करें अक्सर अंगूठी की याद ताजा की वस्तुओं के साथ संपर्क में आते हैं। इस दिन आप और आपके प्यार के छल्ले की एक प्रतीकात्मक विनिमय कर देगा, तो समय के साथ आप समान विचारधारा वाले लोगों के सामंजस्य में लगता है के एक महान जोड़ी, मिल बहुत अच्छी तरह से एक दूसरे के पूरक है, और लगता है कि यह विकास और पूर्णता के लिए आवश्यक है जाएगा। माना जाता है कि एक कंपनी के भीतर फेरबदल के लिए सबसे अच्छा वास्तव में 13 चांद्र दिन अनुकूल है। दिन की सुविधा नए सहयोगियों के साथ अनुबंध में प्रवेश करने की जरूरत नहीं है। इस दिन में सही काम पुराने संबंधों को बढ़ाने के लिए, दोस्ती, गर्वित नहीं बैठकों की स्थापना और आगे और अधिक सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की। इस दिन पर, लंबे समय से चली आ रही भागीदारी के समायोजन के साथ एक बहुत अच्छा सौदा। एक रिश्ता है कि सूट नहीं था, लेकिन अब सबसे अच्छा समय एक नए चरण में प्रवेश करने के लिए है। इस दिन ट्रक ड्राइवरों, टैक्सी ड्राइवरों और ड्राइवर के लिए अच्छा है। आज आप उड़ान पर जा सकते हैं - सौभाग्य से जो लोग पहियों पर कर रहे हैं के साथ होगा। तेरहवीं चंद्र दिन में मध्यम आयु वर्ग के लोगों, एक आम रचनात्मक पेशे से एकजुट शादी करने के लिए सबसे अच्छा है। इस मामले में, शादी दो मजबूत व्यक्तित्व है कि विनाशकारी प्रतिद्वंद्विता खतरा नहीं होगा लिंक करेगा। अक्सर इन जोड़ों सफल रचनात्मक जोड़ी, एक विशेष वातावरण में ज्ञात हो। प्रोस्थेटिक्स और दंत चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी, मालिश और सेल्युलाईट उपचार 13 चांद्र दिन में बहुत अच्छी तरह से करते हैं। दिन की सुविधा पता चलता है कि जरूरत पेट और अग्न्याशय पर विशेष ध्यान दें करने के लिए। इस दिन में भूख नहीं जाना चाहिए, लेकिन भोजन के लिए पर्याप्त प्रकाश और भी चिकना नहीं होना चाहिए। बेहतर स्मोक्ड सभी को बाहर करने का। आज आप नाई यात्रा कर सकते हैं। 13 चांद्र दिन में बाल कटवाने विशेष रूप से अच्छी तरह से पता चला है। शरीर में पूर्णिमा तक वहाँ ऊर्जा का एक संग्रह, तो सकारात्मक या नकारात्मक है। अपने बालों को समाप्त होता है और posechonnye पर भंगुर है, तो अस्वस्थ ऊर्जा संचित। वह शरीर छोड़ने के लिए अनुमति दी जानी चाहिए। बाल कटवाने के बाद, उस दिन, बाल मोटा और आज्ञाकारी हो जाता है ऐसा करने के लिए, सामान्य स्थिति और मूड में सुधार। आज अपने बालों को डाई करने के लिए हैं, तो रंग, आसानी से और स्वाभाविक रूप से झूठ के रूप में अगर एक नया केश बनाने के लिए, यह एक नये जीवन की शुरुआत हो सकता है और पुराने संबंधों के नवीकरण के लिए प्रोत्साहन प्रदान कर सकता होगा। खेल का सवाल है, इस दिन में यह एक साइकिल की सवारी करने के लिए, स्केट और स्केटबोर्डिंग बहुत उपयोगी है। तुम बाहर प्रकृति में नहीं मिल सकता है, तो स्वास्थ्य केंद्र या जिम में जाने के लिए और एक स्थिर बाइक पर बाहर काम करते हैं। 13 चांद्र दिन सपने में देखा भविष्यवाणी है। आज, यह सपने में से किसी को नहीं देखना बेहतर है, के रूप में क्या आप देख पता चलता है कि अपने अतीत की समस्याओं में एक प्रतीकात्मक रूप में होगा हल किया जा करने के लिए रहते हैं। नींद पर विचार करें,, समझने की कोशिश यह किसी भी पिछले घटना के साथ जुड़ा हो सकता है। आप सफल हैं, तो आप अपने विकास को अवरुद्ध में से कुछ से छुटकारा मिल सकता है। 13 वीं चांद्र दिन में पैदा हुआ बचपन से ही लोगों को व्हील वाहनों के प्रति उदासीन नहीं हैं। इस दिन पर पैदा हुए एक बच्चे के लिए, एक सामंजस्यपूर्ण व्यक्तित्व बन गया है, वह निश्चित रूप से संभव के रूप में ज्यादा समय के छल्ले के पिरामिड के साथ खेलने के रूप में आधार पिन पर पहनने के लिए करना चाहिए। यह वांछनीय है जितनी जल्दी हो सके उसे एक साइकिल खरीदने के लिए। जल्दी ही वह पहिया के साथ में महारत हासिल, जितनी जल्दी संभव है कि क्रिएटिव होने के लिए। इन लोगों को अपनी सारी जिंदगी नए ज्ञान प्राप्त करने और पहले से ही प्राप्त कर लिया सुधार करने की कोशिश करेंगे। आपको यह सुनिश्चित करना 13 वीं चांद्र दिन में पैदा हुए अपने बच्चे, स्कूल जाने के लिए खुश है हो सकता है और अनुस्मारक बिना उनके होमवर्क कर सकते हैं। निकोले और ओल्गा - इस दिन जन्मे लोगों के लिए मुबारक के नाम। लकी नंबर - जो लोग एक को समाप्त करने या अंकों 0 के बीच में आ गए हैं। पौधों की हवाई भाग की तीव्रता में वृद्धि लूना में वृद्धि करने के लिए योगदान देता है। फूल, सलाद, खरबूजे, जामुन,: - 13 चांद्र दिन एक समय था जब आप fertilizing पौधों सबसे बड़ी ग्राहक मूल्य है ऐसा कर सकते हैं हिस्सा aboveground है फलों के पेड़ और झाड़ियों। आज यह जैव उर्वरकों के साथ पौधों की जड़ों को खिलाने के लिए संभव है। वे हवाई भाग के विकास पर गहन रूप से छोड़ देंगे। ये चंद्र दिन, फलों के पेड़ और सजावटी पौधों कलम बांधने का काम पक्ष के लिए के लिए बहुत उपयुक्त है। आज यह रोपण अंकुर और बीज ऐसा करने के लिए संभव है। पौधे जल्दी से विकास करने के लिए जाना। खैर उस दिन संयंत्र के शीर्ष पर चंद्रमा के इस चरण में के रूप में, कटाई और औषधीय पौधों की कटाई करने के लिए पोषक तत्वों की अधिकतम राशि ध्यान केंद्रित किया है। क्योंकि इस अवधि में पौधों 13 वें दिन में सबसे तेजी से बढ़ रही हैं, वे बहुतायत से पानी पिलाया जाना चाहिए। , ज़मीन खोदना hoeing और मातम के निराई, किया जा सकता है, उपयोगी पौधों की जड़ों का भी डर नहीं के रूप में इस चरण के लिए उन्हें आराम की अवधि है। तेरहवीं चंद्र दिन पुष्प दौर की व्यवस्था कर सकते में, स्थापित लॉग-पिट। इस दिन एक करने के लिए बहुत उपयोगी है फलियां के पकवान और साबुत अनाज। आज, यह रोटी बेक और पेनकेक्स बनाने के लिए सिफारिश की है। दौर रोटी पाव रोटी एक चाकू से काटा नहीं, और हाथ को कुचलने बेहतर है। Bagels, बैगल और सूखी, के रूप में कुकीज़ एक अंगूठी - सभी भविष्य के लिए किया जाएगा। एक पक्षी और एक मछली - इस दिन पर, यह कंकाल युक्त खाद्य पदार्थों को खाने के लिए बेहतर नहीं है। एक व्यंग्य, ऑक्टोपस, समुद्र ककड़ी और अन्य समुद्री भोजन और अकशेरुकी बहुत उपयोगी हो जाएगा। जादू 13 चांद्र दिन तेज या नुकीली वस्तुओं से निपटने के लिए अनुशंसित नहीं है। वे ऊर्जा के प्रवाह है, जो वस्तुओं एक गोल छेद के साथ चुस्त कर रहे हैं अद्यतन रोक सकता है। गहनता से उन्हें उस दिन का उपयोग कर, आप ब्रह्मांड के कुल ब्रह्मांडीय सद्भाव के बाहर गिर करने के लिए जोखिम। तेरहवीं चंद्र दिन अटकल प्रथाओं में ऊर्जा की धीमी गति से प्रवाह के कारण प्रभावी नहीं हैं। जाओ उद्देश्य जानकारी सफल नहीं।
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"All insults or intimidations to a person will not be an offence under the Act unless such insult or intimidation is on account of victim belonging to Scheduled Caste or Scheduled Tribe...Thus, an offence under the Act would be made out when a member of the vulnerable section of the society is subjected to indignities, humiliations and harassment," ( Excerpts of the three becnh view) आला अदालत की त्रिसदस्यीय पीठ - जिसमें न्यायमूर्ति हेमन्त गुप्ता, न्यायमूर्ति ए नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अजय रोहतगी शामिल थे - ने पिछले दिनों उत्तराखंड उच्च अदालत के एक फैसले को उलटते हुए जो निर्णय सुनाया, उसकी अनुगूंज लम्बे समय तक बनी रहेगी। मालूम हो आला अदालत अनुसूचित तबके के व्यक्ति को निजी दायरे में कथित तौर पर झेलनी पड़ी गाली गलौज, अवमानना आदि पर गौर कर रही थी। जिला पिथौरागढ़ ग्राम नयी बजेटी, तहसील पटटी चंडक में रहनेवाली अनुसूचित जाति से सम्बद्ध याचिकाकर्ता ने गांव के ही अन्य लोगों के खिलाफ यह प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर की थी, जिनके साथ जमीन के एक टुकड़े को लेकर उसका विवाद चल रहा था। याचिकाकर्ता के मुताबिक वह लोग न केवल उनके पति और परिवार के अन्य सदस्यों से गालीगलौज करते थे बल्कि 'जान से मारने की' धमकियां देते थे। 10 दिसम्बर 2019 को कथित तौर पर इन अभियुक्तों ने याचिकाकर्ता के घर में गैरकानूनी ढंग से प्रवेश किया और फिर 'मारने की धमकी' दी तथा जातिसूचक गालियां दीं थीं। घटना के दूसरे ही दिन भारतीय दंड संहिता की धाराओं 452, 504, 506 और अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम 1982 की धारा 3/1/एक्स के तहत उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। मामले को संज्ञान में लेते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भी अभियुक्तों पर कार्रवाई के आदेश दिए थे। उच्च न्यायालय के फैसले पर गौर करते हुए आला अदालत ने बताया कि जिस धारा के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है /अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम 1982 की धारा 3/1/एक्स के तहत / वह धारा ही 3/1/आर से प्रतिस्थापित हो गयी है जिसके मुताबिक उत्पीड़ित तबके के किसी व्यक्ति को किसी 'सार्वजनिक निगाहों में' /पब्लिक व्यू में अपमानित करने की बात समाविष्ट की गयी है। स्वर्ण सिंह और अन्य बनाम राज्य / (2008) 8 SCC 435 /के मामले का उल्लेख करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि आखिर 'सार्वजनिक निगाहों में" किसे कहा जाए। 'स्वर्ण सिंह' मामले में उच्चतम अदालत के फैसले को देखते हुए इस त्रिसदस्यीय पीठ ने कहा कि चूंकि घटना घर की चहारदीवारी के अंदर हुई है इसलिए उसे सार्वजनिक निगाहों में नहीं कहा जा सकता। न्यायमूर्ति राव, गुप्ता, रोहतगी की इस पीठ ने इसी आधार पर उत्तराखंड उच्च अदालत द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम 1982 की धारा 3/1/ के तहत दायर मुकदमे को खारिज करने का आदेश देती है। उच्चतम अदालत के मुताबिक भारतीय दंड विधान की अन्य धाराओं के तहत अभियुक्तों पर मुकदमा जारी रहेगा। आप इसे चुनावों की सरगर्मी कह सकते हैं कि अनुसूचित तबकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम 1989 /संशोधित/ की एक खास ढंग से की गयी इस व्याख्या के महत्वपूर्ण मसले पर अधिक चर्चा न हो सकी है। प्रश्न उठता है कि आखिर इसे कैसे समझा जाना चाहिए। गौरतलब है कि उच्चतम अदालत के इस फैसले पर पहली संगठित प्रतिक्रिया दलित अधिकारों के लिए समर्पित तीन संगठनों - नेशनल दलित मूवमेण्ट फार जस्टिस, नेशनल कैम्पेन आन दलित हयूमन राइटस और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की मजबूती के लिए बने नेशनल कोएलिशन की तरफ से संयुक्त रूप से आयी है जिन्होंने कहा है कि प्रस्तुत फैसला "अस्प्रश्यता के खिलाफ संघर्ष की जड़ों' / @"the roots of fight against untouchability पर चोट करता है। अपने साझा बयान में उनकी तरफ से कुछ महत्वपूर्ण मुददों को उठाया गया हैः एक उन्होंने इस अधिनियम के उदात्त उददेश्यों के बावजूद इस अधिनियम पर अमल करने की रास्ते में आनेवाली बाधाओं को बताया है और कहा है कि इन उत्पीड़ित तबकों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ना आज भी कितना दुरूह है। बयान में इस बात का उल्लेख भी है कि अपने साथ हो रहे अन्याय अत्याचारों की शिकायत करने में भी किस तरह इन तबकों का बहुलांश आज भी हिचकता है क्योंकि उसे प्रतिमुकदमों का, प्रतिहिंसा का डर हमेशा रहता है। फिर इस प्रसंगविशेष पर अपने आप को फोकस करते हुए बयान बताता है किस तरह ग्राम बजेटी, जिला पिथौरागढ़ के इस मामले में पुलिस द्वारा अपनी जांच में भी कुछ लापरवाहियां बरती गयीं। उनके मुताबिक जांच के प्रारंभ से ही पुलिस अधिकारियों ने एससीएसटी एक्ट /1989/ से जुड़ी कुछ विशेष धाराओं को शामिल नहीं किया था जैसे धारा 3/1/यू/ और धारा 3/2/वीए आदि जबकि इन धाराओं को इसमें लगाना जरूरी था। इतना ही नहीं इसी अधिनियम की धारा 8 अपराध के अनुमान की बात करती है, जिसकी उपधारा /सी/ के मुताबिक "जब अभियुक्त को पीड़ित या उसके परिवार की निजी जानकारी होती है, तब अदालत यह अनुमान लगाती है कि अभियुक्त को उसकी जातीय या आदिवासी पहचान का अनुमान होगा ही"। बयान के मुताबिक विडम्बना ही है कि उच्चतम अदालत ने इस केस के इन कानूनी पक्षों पर गौर नहीं किया और ऐसा फैसला सुनाया जो "सामाजिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ" पड़ता है। प्रस्तुत फैसले के खिलाफ अपनी राय का इजहार करने के बाद इनकी तरफ से सर्वोच्च न्यायालय से अपील की गयी है कि वह इस पूरे मामले को संविधान पीठ को सौंपे। सरकार से भी यह गुजारिश की गयी है कि वह इस फैसले के बारे में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल करे। गौरतलब है कि फैसला सुनाने के दौरान उच्चतम अदालत ने अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम 1989 /संशोधित/ किस तरह अनुसूचित तबकों के नागरिक अधिकारों की बहाली के लिए समर्पित है, उसके बारे में विशेष तौर पर रेखांकित किया था। ध्यान रहे संविधान की धारा 21 - जो जिन्दगी और व्यक्तिगत गरिमा के अधिकार को सुनिश्चित करने की बात करती है, उसे अगर हम ठीक से देखें तो निश्चित ही किसी उत्पीड़ित व्यक्ति को अपमान, प्रताडना का शिकार बनाना, वह किसी भी सूरत में उसके इन अधिकारों का उल्लंघन समझा जाना चाहिए, फिर भले उसे इन शाब्दिक अपमानों का शिकार कहीं भी किया जाए या होना पड़े। तय बात है कि त्रिसदस्यीय पीठ का फैसला अगर एक नज़ीर बन जाता है तो ऐसे कई मामले - जिसमें अनुसूचित तबके से आने वाले सदस्य शाब्दिक अपमान, तिरस्कार का शिकार हुए - कभी नहीं सुर्खियों में आ सकेंगे, ऐसे मामलों में कार्रवाई की मांग करना तो असंभव हो जाएगा, क्योंकि ऐसे तमाम प्रसंग बिल्कुल निजी दायरों में ही संपन्न हुए होंगे, सार्वजनिक निगाहों से बिल्कुल दूर घटित हुए होंगे। पायल तडवी की आत्महत्या के प्रसंग को ही देखें जो आदिवासी मुस्लिम तबके से सम्बधित थी तथा जो मुंबई के टी एन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कालेज में एम डी की दूसरे वर्ष की छात्रा थी, जिसे कथित तौर पर उसके तीन सीनियर छात्राओं ने ही जातीय प्रताड़ना का शिकार बनाया था। उसे किन किन स्तरों पर अपमानित किया गया, फिर चाहे अपमानित करनेवाली टिप्पणियां हों या आपरेशन थिएटर में आपरेशन करने का मौका न देना हो, इस पर बहुत लिखा जा चुका है। उसकी इस प्रताडना में उसकी तीन रूम पार्टनर ही कथित तौर पर संलिप्त थीं। आप कल्पना करें कि भविष्य में कोई उत्पीड़ित तबके का कोई व्यक्ति ऐसी प्रताड़ना को लेकर जो बिल्कुल रूम की चहारदीवारी में ही हो रही हो, प्रशासन से शिकायत भी करना चाहें तो क्या वह अब शिकायत भी कर सकता है क्योंकि उसके लिए मुमकिन नहीं होगा यह प्रमाणित करना कि उसके साथ भेदभाव निजी दायरों में नहीं हो रहा है, बल्कि सार्वजनिक निगाहों में हो रहा है। शुद्धता और प्रदूषण का वह तर्क - जो जाति और उससे जुड़े बहिष्करण का आधार है - आई आई टी जैसे संस्थानों में भी बहुविध तरीकों से प्रतिबिम्बित होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि दलित आदिवासी अपमान में ऐसे प्रसंगों की भरमार रहती है जिसमें कथित वर्चस्वशाली जाति का व्यक्ति इशारों से या शब्दों पर खास जोर देने से या विशेष शब्दों के उच्चारण से ही आप को आप की हैसियत बता देता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा कुछ साल पहले पेश की गयी 'रिपोर्ट आन प्रिवेन्शन आफ एट्रासिटीज अगेन्स्ट एससीज्' ( अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचारों के निवारण की रिपोर्ट) इन बातों का विवरण पेश करती है कि किस तरह नागरिक समाज खुद जाति आधारित व्यवस्था से लाभान्वित होता है और किस तरह वह अस्तित्वमान गैरबराबरीपूर्ण सामाजिक रिश्तों को जारी रखने और समाज के वास्तविक जनतांत्रिकीकरण को बाधित करने के लिये प्रयासरत रहता है। भारत के हर इन्साफपसन्द व्यक्ति के सामने यह सवाल आज भी जिन्दा खड़ा है। (सुभाष गाताडे स्वतंत्र लेखक-पत्रकार हैं) अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।
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चर्चा में क्यों? 29 मई, 2023 को आईआईआरएफ (इंडियन इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क) की तरफ से जारी रैंकिंग में उत्तर प्रदेश के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) को देश में दूसरा सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय घोषित किया गया है। - शिक्षण संस्थानों में शिक्षण,अनुसंधान गुणवत्ता व उत्पादकता, प्लेसमेंट, उद्योग से जुड़ाव, प्रतिष्ठा व छवि समेत कई मापदंडों को आधार बनाकर आईआईआरएफ रैंकिंग देती है। - देशभर के केंद्रीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में बीएचयू को 1000 में 982.95 अंक दिये गए हैं। पहले स्थान पर आए जेएनयू को 983.12 अंक और तीसरे स्थान पर एएमयू को 982.88 अंक मिले हैं। - अन्य विशिष्ट विश्वविद्यालयों में जामिया मिलिया इस्लामिया, हैदराबाद विश्वविद्यालय, डीयू और पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। - रैंक तालिका में बीएचयू को प्लेसमेंट और इंटरनेशनल आउटलुक के मामले में जेएनयू से ज्यादा अंक मिले हैं, जबकि शिक्षण, शोध, प्लेसमेंट व्यवस्था में यह मामूली अंतर से टॉप यूनिवर्सिटी से पीछे रहा है। पहले स्थान पर आए जेएनयू से बीएचयू को 0.17 अंक ही कम मिले हैं। चर्चा में क्यों? 29 मई, 2023 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों में विभिन्न पोषण वृद्धि निगरानी उपकरण उपलब्ध करवाने के लिये 16.97 करोड़ रुपए के वित्तीय प्रस्ताव को मंजूरी दी है। - मुख्यमंत्री के इस निर्णय से आंगनबाड़ी केंद्रों में इंफेंटोमीटर, स्टेडियोमीटर, वज़न मापने की मशीन आदि उपकरण उपलब्ध कराए जाएंगे। - इससे शिशु एवं माताओं के वज़न, लंबाई सहित विभिन्न पोषण सूचकांकों की सटीक जानकारी मिल सकेगी एवं उन्हें वांछित पोषण दिया जा सकेगा। - उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री द्वारा वर्ष 2023-24 के बजट में इस संबंध में घोषणा की गई थी। चर्चा में क्यों? 29 मई, 2023 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश के 23 लाख लघु एवं सीमांत कृषकों को प्रमुख फसलों के प्रमाणित किस्मों के बीज मिनिकिट निःशुल्क वितरित करने के लिये 128.57 करोड़ रुपए के वित्तीय प्रस्ताव को मंजूरी दी है। - प्रदेश के प्रत्येक किसान को बीज मिनिकिट में संकर मक्का के 5 किग्रा., सरसों के 2 किग्रा., मूंग व मोठ के 4-4 किग्रा. एवं तिल के 1 किग्रा. प्रमाणित किस्मों के बीज निःशुल्क उपलब्ध कराए जाएंगे। - जनजातीय कृषकों हेतु जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग द्वारा तथा गैर जनजातीय कृषकों हेतु कृषि विभाग द्वारा बीज मिनिकिट की खरीद राजस्थान राज्य बीज निगम/राष्ट्रीय बीज निगम से की जाएगी। - इन मिनिकिट का वितरण कृषि विभाग द्वारा राज किसान साथी पोर्टल के माध्यम से किया जाएगा। - उल्लेखनीय है कि राज्य में बीज उत्पादन बढ़ाने तथा लघु और सीमांत किसानों को निःशुल्क बीज उपलब्ध कराए जाने के लिये 'राजस्थान बीज उत्पादन एवं वितरण मिशन' चलाया जा रहा है। इस मिशन के उत्कृष्ट परिणामों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। - विदित है कि मुख्यमंत्री द्वारा वर्ष 2023-24 के बजट में इस संबंध में घोषणा की गई थी। चर्चा में क्यों? 29 मई, 2023 को मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार प्रदेश की पर्यटन नगरी खजुराहो और राजनगर में जल प्रदाय व्यवस्था का प्रायोगिक परीक्षण प्रारंभ हो गया है। - दोनों नगरों में स्वच्छ जल पहुँचाने के लिये कुटनी डैम पर 10 एमएलडी क्षमता का जल शोधन संयंत्र स्थापित किया गया है। दोनों निकायों में जल प्रदाय परियोजना की 10 वर्षों के संचालन और संधारण के साथ संयुक्त रूप से लागत लगभग 69 करोड़ रुपए है। - खजुराहो और राजनगर में 7 ओव्हर हेड टैंक निर्मित किये गए हैं, हर घर नल से शुद्ध जल पहुँचाने के लिये दोनों नगरों में लगभग 150 किलोमीटर वितरण लाइन बिछाई गई है। खजुराहो में 3500 घर और राजनगर में 2000 घर में नल कनेक्शन दिये गए हैं। - उल्लेखनीय है कि इस योजना में मीटरयुक्त नल कनेक्शन दिये जा रहे हैं। इसका लाभ यह होगा कि भविष्य में रहवासियों को पानी की उपयोगिता के अनुसार ही भुगतान करना होगा जो कि काफी किफायती रहेगा। - नगरीय विकास एवं आवास विभाग के उपक्रम मध्य प्रदेश अर्बन डेवलपमेंट कंपनी द्वारा एशियन डेवलपमेंट बैंक के सहयोग से इन नगरों में जल प्रदाय परियोजना पर कार्य किया गया है। - इससे अब यहाँ के निवासियों के घरों में शुद्ध जल पहुँच रहा है। पानी के लिये अब लाइन में लगने की आवश्यकता नहीं है। इससे पानी भरने में व्यर्थ जाने वाले समय का सदुपयोग हो रहा है। पानी का दबाब भी पर्याप्त है, जिससे मोटर लगाने की जरूरत नहीं रहती। चर्चा में क्यों? 29 मई, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने राज्य में छात्र-छात्राओं को उत्तम गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने के लिये गुरुग्राम ज़िले के पाथवेज स्कूल में शिक्षा मंत्री कंवर पाल गुर्जर की उपस्थिति में जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) के इंटरनेशनल बैकलॉरिएट (IB) के साथ मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किये। - राज्य के शिक्षा स्तर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पहचान दिलाने के लिये राज्य विद्यालय शिक्षा बोर्ड एवं आईबी बोर्ड के साथ एमओयू किया गया है। - इस मौके पर शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने कहा कि विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को आईबी बोर्ड द्वारा समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिससे अध्यापन के स्तर में सुधार के साथ-साथ विद्यार्थियों को भी उत्तम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकेगी। - उन्होंने कहा कि प्रदेश के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्वीकार्यता होगी। इस दिशा में जल्द ही प्रदेश के विद्यार्थियों को सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। - ज्ञातव्य है कि हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. वीपी यादव के बेहतर शैक्षणिक, सुधारात्मक व सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण ही बोर्ड नई ऊँचाइयां छू रहा है। बहुत कम समय के कार्यकाल में उन्होंने हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन, प्रथम बार पाठ्य योजना व चरणबद्ध मूल्यांकन योजना तैयार करवाने जैसी कार्रवाई को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। चर्चा में क्यों? 29 मई, 2023 को छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार राज्य के दुर्ग विकासखंड के ग्राम पंचायत चंदखुरी में महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (रीपा) के अंतर्गत 2 करोड़ की लागत से मिल्क प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किया गया है। - रीपा के अंदर एक प्रशासनिक क्षेत्र का निर्माण किया गया है, जिसमें बैंकिंग सुविधा हेतु क्योस्क, इंटरनेट सुविधा हेतु वाईफाई कनेक्शन. राज्य शासन की योजनाओं की जानकारी हेतु हेल्पडेस्क का निर्माण किया गया है एवं रीपा परिसर के मध्य में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की गई है। - रीपा केंद्र में युवाओं द्वारा पैकेज्ड मिल्क, दही व खोवा उत्पादन किया जाता है। इसके उत्पादन हेतु प्रशासन द्वारा आवश्यक मशीनें रीपा स्थल पर उपलब्ध कराए गए हैं। इसके साथ ही क्षेत्र की मांग के अनुरूप निकट भविष्य में मिल्क प्रोसेसिंग यूनिट में नए उत्पादों को भी स्थान दिया जाएगा। - इस यूनिट से आसपास के क्षेत्र के कुल 41 लोगों को रोज़गार का अवसर प्रदान किया जाएगा। उद्यम के सफल संचालन के लिये ज़िला प्रशासन द्वारा प्राइवेट कंपनियों के साथ अनुबंध कर लोकल बाज़ारों में बिक्री सुनिश्चित की जा रही है। - इसके अलावा तैयार उत्पादों को शासकीय विभागों में भी सप्लाई किया जाएगा, ताकि उत्पाद की खपत सुनिश्चित कर कार्य कर रहे श्रमिकों को रोज़गार की गारंटी प्रदान कर उनके भविष्य को आर्थिक दृष्टिकोण से बेहतर और समृद्ध बनाया जा सके। चर्चा में क्यों? 29 मई, 2023 को उत्तराखंड सूचना प्रौद्योगिकी विकास एजेंसी (आईटीडीए) की निदेशक नितिका खंडेलवाल ने बताया कि प्रदेश की 1114 ग्राम पंचायतों के सभी सरकारी कार्यालयों, निकायों में जल्द ही फ्री वाईफाई की सुविधा मिलेगी। इसके लिये सूचना प्रौद्योगिकी विकास एजेंसी (आईटीडीए) और बीएसएनएल के बीच करार हुआ है। - आईटीडीए की निदेशक नितिका खंडेलवाल ने बताया कि 50 करोड़ की इस परियोजना के लिये बीएसएनएल के साथ करार किया गया है। - इसके तहत 3090 फाइबर टू द होम (एफटीटीएच) कनेक्शन दिये जाएंगे। साथ ही, अगले पाँच सालों तक इनकी देखरेख भी बीएसएनएल ही सँभालेगा। - गौरतलब है कि पिछले साल एफटीटीएच योजना के लिये सरकार ने 50 करोड़ का बजट जारी किया था, लेकिन समय से काम शुरू नहीं हो पाया। 31 मार्च के बाद बजट लैप्स होने से बचाने के लिये सरकार ने इस साल दोबारा यह बजट दिया है। - इस योजना के तहत बीएसएनएल प्रदेश की 1114 ग्राम पंचायतों में एफटीटीएस सेवा देगा। इसके दायरे में उस ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले सभी सरकारी संस्थानों से लेकर पंचायत घर तक शामिल होंगे। इन सभी जगहों पर फ्री वाईफाई की सुविधा मिलेगी। - विदित हो कि भारत नेट-1 के तहत जिन ग्राम पंचायतों में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का काम बीएसएनएल को दिया गया था, उसे तय समय में वह पूरा नहीं कर पाया था।
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How to Follow Secure Initiative? How to Self-evaluate your answer? विषयः शिक्षा से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय। 1. भारत में किसी भी नीति के क्रियान्वयन में आने वाली सामान्य चुनौतियों को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के समयबद्ध एवं प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कुछ उपायों की विवेचना कीजिए। (250 शब्द) निर्देशक शब्दः विवेचना कीजिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय प्रश्न के सभी पक्षों की तार्किक व्याख्या कीजिए। उत्तर की संरचनाः राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बारे में संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए। विषय वस्तुः उत्तर के मुख्य भाग में निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिएः - सार्वजनिक नीति एवं उसकी चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। - राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन से पहले संभावित चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। - इसके कार्यान्वयन की राह में आने वाली संभावित चुनौतियों की व्याख्या कीजिए। आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष निकालिए। विषयः संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ। 2. भारत में महामारी एवं जीएसटी व्यवस्था के कार्यान्वयन के बाद राजकोषीय संघवाद को सशक्त करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से उपायों की सख्त आवश्यकता पर एक लेख लिखिए। (250 शब्द) निर्देशक शब्दः लेख लिखिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय पर अपने ज्ञान और समझ के आधार पर उसके सभी पहलुओं को शामिल करते हुए उत्तर लिखें। उत्तर की संरचनाः प्रश्न का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए। विषय वस्तुः भारत में राजकोषीय संघवाद द्वारा सामना किए जाने वाले प्रमुख मुद्दों पर विस्तार से चर्चा कीजिए। इन मुद्दों के समाधान के लिए राजकोषीय संघवाद के सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले प्रमुख उपायों पर प्रकाश डालिए। सुझाव दीजिए कि क्या करने की आवश्यकता है। निष्कर्ष निकालिए कि भारत में राजकोषीय संघवाद को प्रोत्साहित करने के लिए तत्काल आवश्यक उपाय किए जाने चाहिए। विषयः भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना। 3. 97वें संविधान संशोधन को रद्द करना इस बात का संकेत है कि सहकारी समितियों को विनियमित करने की शक्ति राज्यों में ही निहित होनी चाहिए। क्या आप सहमत हैं? टिप्पणी कीजिए। (250 शब्द) निर्देशक शब्दः टिप्पणी कीजिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय पर अपने ज्ञान और समझ को बताते हुए एक समग्र राय विकसित करनी चाहिए। उत्तर की संरचनाः 97वें संविधान संशोधन की संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए। विषय वस्तुः संशोधन क्यों रद्द किया गया था? समझाइए। केंद्र सरकार के बढ़ते नियंत्रण के कारणों पर चर्चा कीजिए। सहकारी क्षेत्र पर केंद्रीय नियंत्रण के मुद्दों पर प्रकाश डालिए। निष्कर्ष निकालिए कि बेहतर यही होगा कि सरकार इस निर्णय को सही भावना से लें एवं नए मंत्रालय के निर्माण के बावजूद सहकारी क्षेत्र में भविष्य के हस्तक्षेप से दूर रहे। विषयः सा.अ.2- द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार। सा.अ.3- उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव। 4. एक मुख्य व्यापार समझौते के माध्यम से भारत-यूरोपीय संघ के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों का विस्तार करने के लिए एक महत्वपूर्ण अप्रयुक्त क्षमता उपलब्ध है। स्पष्ट कीजिए। (250 शब्द) निर्देशक शब्दः स्पष्ट कीजिए- ऐसे प्रश्नों में अभ्यर्थी से अपेक्षा की जाती है कि वह पूछे गए प्रश्न से संबंधित जानकारियों को सरल भाषा में व्यक्त कर दे। उत्तर की संरचनाः प्रश्न के संदर्भ की संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए। विषय वस्तुः - समझाइए कि एशियाई भागीदारों के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौतों से सीमित आर्थिक लाभ के बाद, भारत अपने मुक्त व्यापार समझौतों के विकल्पों का पुनर्मूल्यांकन कर रहा है। - चर्चा कीजिए कि मुक्त व्यापार समझौतों को इस तरह से अभिकल्पित करने की आवश्यकता है कि वे भागीदारों के बीच पूरकता बढ़ाएं एवं व्यापार को बाधित करने वाली नियामक बाधाओं को दूर करें। - भारत-यूरोपीय संघ व्यापार संबंधों की क्षमता पर एक लेख लिखिए। - इस क्षमता को साकार करने में भारत के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष निकालिए। विषयः संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना। 5. विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों की उदाहरण सहित चर्चा कीजिए एवं भारत में इस संकट से लड़ने के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव भी दीजिए। (250 शब्द) निर्देशक शब्दः चर्चा कीजिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय / मामले के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तथ्यों के साथ उत्तर लिखें। उत्तर की संरचनाः साइबर अपराधों से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए। विषय वस्तुः विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों की विवेचना कीजिए। इन चुनौतियों के समाधान के लिए क्या किया जाना चाहिए? सुझाव दीजिए। निष्कर्ष निकालिए कि वर्तमान युग में सूचना प्रौद्योगिकी की निर्भरता को देखते हुए, सरकारों के लिए यह समय की आवश्यकता है कि वे बैंकों और वित्तीय संस्थानों की सुरक्षा के लिए कड़े साइबर सुरक्षा मानकों को स्थापित करते हुए साइबर सुरक्षा, डेटा अखंडता और डेटा सुरक्षा क्षेत्रों में मुख्य कौशल विकसित करें। विषयः प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय। 6. भारतीय कृषि में राज्य के हस्तक्षेप के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द) निर्देशक शब्दः विश्लेषण कीजिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय / मामले के बहुआयामी सन्दर्भों जैसे क्या, क्यों, कैसे आदि पर ध्यान देते हुए उत्तर लेखन कीजिए। उत्तर की संरचनाः प्रश्न के संदर्भ को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए। विषय वस्तुः भारतीय कृषि प्रणाली में विशेष रूप से राज्य के हस्तक्षेप के संबंध में शामिल चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। समझाइए कि कैसे भारत को कृषि क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण से दूर रखने के लिए यह एक अच्छी पहल रही है, लेकिन ग्रामीण संपत्ति के अधिकार, भूमि उपयोग और भूमि की सीमा में सरकार का अप्रत्यक्ष नियंत्रण रहा है। कृषि क्षेत्र सरकारी प्रतिबंधों के प्रभाव में कैसे है? उदाहरण सहित चर्चा कीजिए। आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष निकालिए। विषयः केस स्टडी। 7. ऐसे समाज में जहां सरकार भोजन या काम उपलब्ध कराने में असमर्थ है, क्या भीख माँगने को एक अवरोध अथवा अपराध माना जा सकता है? जब सरकार सभी के लिए अच्छी आजीविका की पेशकश नहीं कर सकती है तो क्या गरीबों को अपराधी बनाना अनैतिक नहीं है ? नैतिक दृष्टिकोण से विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द) निर्देशक शब्दः चर्चा कीजिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय / मामले के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तथ्यों के साथ उत्तर लिखें। उत्तर की संरचनाः हमारे देश में भिक्षा याचन से सम्बंधित कानूनों पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए। विषय वस्तुः समझाइए कि सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए ट्रैफिक लाइट, बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर आवारा एवं बेघर लोगों को भीख मांगने से रोकने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। उपर्युक्त के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा कीजिए एवं अपने विचार भी प्रस्तुत कीजिए। सदाचार एवं नैतिक रूप से उचित समाधानों के साथ निष्कर्ष निकालिए।
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 'मोदी सरनेम' वाले मामले में सूरत के जिस सेशन कोर्ट में एक याचिका दायर कर खुद को दोषी क़रार दिए जाने वाले फ़ैसले पर रोक लगाने की अपील की है. इस मामले की सुनवाई जज रॉबिन पॉल मोगेरा कर रहे हैं, जो फ़ेक एनकाउंटर के एक मामले में गृह मंत्री अमित शाह के वकील रह चुके हैं. जज बनने से पहले रोबिन पॉल मोगेरा गुजरात में वकालत करते थे. उन्हें 2017 में ज़िला जज नियुक्त किया गया था. वे वकीलों के लिए निर्धारित 25 प्रतिशत के कोटे से जज बने हैं. वकील के तौर पर अमित शाह उनके मुवक्किल रह चुके हैं. उन्होंने सीबीआई कोर्ट में अमित शाह की तरफ़ से तुलसीराम प्रजापति के कथित फ़ेक एनकाउंटर मामले में मुक़दमा लड़ा था. प्रजापति का एनकाउंटर दिसंबर 2006 में हुआ था. प्रजापति 2005 में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर वाले मामले में चश्मदीद गवाह थे. इन दोनों एनकाउंटर के समय गुजरात के गृह मंत्री अमित शाह थे. बाद में सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति तथाकथित फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) की एक विशेष अदालत ने अमित शाह को बरी कर दिया था. उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी. अब सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या कभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के वकील रह चुके शख़्स को बतौर जज ऐसे मामले की सुनवाई करनी चाहिए? क्या यह नैतिक रूप से उचित है? सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील शाश्वत आनंद का कहना है कि यह जज की नैतिकता पर निर्भर करता है. वो कहते हैं, "मेरी राय में, चूँकि न्यायाधीश ने एक वकील के रूप में एक ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व किया है, जो सज़ायाफ़्ता-अपीलकर्ता के वर्तमान राजनीतिक विरोधियों में से एक हैं. उन्हें मामले में संभावित पूर्वाग्रह के किसी भी आरोप से बचने के लिए और निष्पक्ष प्रक्रिया के साथ साथ न्यायपालिका की गरिमा के हित में ख़ुद को केस से अलग कर लेना चाहिए. लेकिन वे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हैं. " आनंद ये भी कहते हैं कि मामलों से न्यायाधीशों का अलग होना भारत के किसी भी क़ानून में दर्ज नहीं है, लेकिन इसकी परंपरा रही है. शाश्वत आनंद दावा करते हैं कि इस परंपरा का सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण 1852 के एक मामले में मिलता है. 1852 का ये मामला ब्रिटिश अदालत में डाइम्स बनाम ग्रैंड जंक्शन कैनाल प्रोपराइटर, 3 एचएल केस नंबर 759 है. जिसमें लॉर्ड चांसलर कॉटेनहैम ने ख़ुद को मामले से अलग कर लिया था, क्योंकि उनके पास मामले में शामिल कंपनी के कुछ शेयर थे. तब से सभी न्यायालयों में ये एक परंपरागत अभ्यास के रूप में विकसित हो गया. आनंद यह भी बताते हैं, "सीआरपीसी की धारा 479 भी एक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को उन मामलों की सुनवाई करने से रोकती है, जिनमें वे व्यक्तिगत रूप से रुचि रखते हैं. इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों में यह माना है कि अगर न्यायाधीश के पक्षपाती होने की आशंका है, तो न्यायाधीश को ख़ुद को मामले से अलग करना चाहिए. " शाश्वत आनंद का कहना है कि जो न्यायाधीश सुनवाई से अलग होना चाहते हैं, उन्हें यह स्पष्ट करने की ज़रूरत नहीं है कि वे क्यों इससे अलग हो रहे हैं. कुछ मुक़दमों में जजों से कहा जाता है कि वो खुद को मामलों से अलग कर लें, लेकिन वो ऐसा नहीं करते. दोनों तरह के कुछ उदाहरण मौजूद हैंः - एक उदाहरण में, तत्कालीन न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना ने एम नागेश्वर राव की बेटी की शादी में शामिल होने का हवाला देते हुए अंतरिम सीबीआई निदेशक एम नागेश्वर राव की नियुक्ति के ख़िलाफ़ मामले की सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया था. - जज लोया के मामले में तत्कालीन जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (मौजूदा मुख्य न्यायाधीश) को बार-बार सुनवाई से अलग होने के लिए कहा गया था, क्योंकि इस मामले में जिन पर इल्ज़ाम लगाए गए थे, वो बॉम्बे हाई कोर्ट के मौजूदा जज थे, जहाँ से जस्टिस चंद्रचूड़ ने जज के रूप में अपना करियर शुरू किया था, लेकिन उन्होंने केस से अलग होने से इनकार कर दिया था. - स्टेराइट से संबंधित इसी तरह के एक मामले में तत्कालीन जस्टिस एसएच कपाड़िया से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने हितों के टकराव और पूर्वाग्रह के आधार पर मांग की थी कि वो ख़ुद को केस से अलग कर लें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. - 2016 में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ ही बीजेपी-वीएचपी के अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश का मामला ख़त्म करने ख़िलाफ़ दायर याचिका की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश गोपाल गौड़ा ने बिना कोई कारण बताए ख़ुद को अलग कर लिया था. पिछले महीने 23 मार्च को राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने 2019 के मानहानि मामले में दोषी ठहराया था. सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा ने कांग्रेस सांसद को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि के अपराध के लिए दोषी ठहराते हुए दो साल के कारावास की सज़ा सुनाई और 15,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया था. राहुल गांधी ने 2019 के राष्ट्रीय चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार ज़िले में अपने एक भाषण में कहा था कि 'नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी. . . इन सबका सरनेम मोदी कैसे है? कैसे सभी चोरों का सरनेम मोदी ही होता है. ' इसके बाद बीजेपी नेता और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने आपराधिक मामला दायर किया और दावा किया कि राहुल गांधी ने अपनी टिप्पणी से मोदी समुदाय को बदनाम किया है. अदालत के इस फ़ैसले के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता चली गई. शुरू के दिनों में जब उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज हुआ था, तो उन्होंने ये कहा था कि ये मोदी सरकार की तरफ़ से उन्हें चुप कराने की एक कोशिश है. राहुल गांधी की सदस्यता जाने पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था, "राहुल गांधी की लोकसभा से सदस्यता जाना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला दिन था. ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले में कई क़ानूनी मुद्दे हैं, हालाँकि, हमारी क़ानूनी टीम द्वारा उचित मंच पर उनसे निपटा जाएगा. " राहुल गांधी ने तीन अप्रैल को सूरत में जज मोगेरा की अदालत में अपील दायर की थी. जज ने 'मोदी सरनेम' वाले मानहानि केस में राहुल गांधी की अर्ज़ी पर उसी दिन जारी किए अपने आदेश में उनकी सज़ा को निलंबित कर दिया था. उन्हें उनकी अपील पर लंबित सुनवाई के लिए ज़मानत दे दी थी और राहुल गांधी को 15,000 रुपए का ज़मानत बांड देने को कहा था. जज रॉबिन पॉल मोगेरा 2014 में अमित शाह के वकील थे. जून 2014 में वकील मोगेरा ने अमित शाह की पैरवी करते हुए अपने मुवक्किल की व्यक्तिगत पेशी से दो अलग-अलग बार छूट की अपील की थी. जज ने इस पर नाराज़गी जताई थी. कुछ ही दिनों बाद जज का तबादला हो गया था और उनकी जगह जस्टिस बीएच लोया को जज नियुक्त किया गया था. बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी राहुल गांधी पर एक अलग आपराधिक मानहानि दर्ज किया है. इस मामले में बिहार की एक विशेष अदालत ने राहुल गांधी को तलब किया था, जहाँ वो व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं हो पाए हैं. अब अदालत ने उन्हें 25 अप्रैल को हाज़िर होने को कहा है. हाल के दिनों में सावरकर के ख़िलाफ़ टिप्पणी को लेकर भी राहुल गांधी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित कई भाजपा और शिवसेना नेताओं ने उनकी टिप्पणियों के लिए उन्हें 'दंडित' करने की मांग की है. राहुल गांधी के ख़िलाफ़ मानहानि के कुछ अन्य मामले भी रहे हैं. साल 2014 में भिवंडी की एक अदालत ने उन्हें आरएसएस कार्यकर्ता राजेश कुंटे मिश्रा की ओर से दायर एक शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि के एक अन्य मामले में समन भेजा था. महात्मा गांधी की हत्या के लिए कथित रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को दोषी ठहराने के लिए राहुल गांधी के ख़िलाफ़ एक आपराधिक शिकायत दर्ज की गई थी. आरएसएस के एक कार्यकर्ता की शिकायत में आरोप लगाया गया था कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले महाराष्ट्र के भिवंडी इलाक़े में कांग्रेस की एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, "यह उनकी शैली है. उनके द्वारा गांधीजी की हत्या की गई; आरएसएस के लोगों ने गांधी जी को गोली मार दी और आज उनके लोग गांधी जी की बात करते हैं. " राहुल गांधी ने अपने ख़िलाफ़ लगे केस को रद्द करवाने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया, लेकिन वहाँ भी उन्हें राहत नहीं मिली. सूरत की अदालत से दो साल की सज़ा सुनाए जाने के कुछ दिनों बाद राहुल गांधी एक नए मानहानि के मामले का सामना कर रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की एक टिप्पणी के संबंध में कुछ सप्ताह पहले हरिद्वार की एक अदालत में शिकायत दर्ज कराई गई है. राहुल गांधी ने जनवरी में एक भाषण में आरएसएस को "21वीं सदी का कौरव" कहा था. (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं. )
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अब तक आपने पढ़ा :-मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? उसने अपनी दोस्त नीलम से इसका जिक्र किया उसके मन ने किसी तीसरे के होने का संशय जताया लेकिन उसे अभी भी किसी बात का समाधान नहीं मिला है। बैचेन कामिनी सोसाइटी में घूमते टहलते अपना मन बहलाती है वहीं अरोरा अंकल आंटी हैं जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। कामिनी की परेशानी नीलम को सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा है? रविवार के दिन राकेश सुबह से मूड में था और नीलम उससे बचने की कोशिश में। एक सितार के दो तार अलग अलग सुर में कब तक बंध सकते हैं। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है वह समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है ? कामिनी की सोसाइटी में रहने वाला सुयोग अपनी पत्नी प्रिया से दूर रहता है। ऑफिस से घर आने के बाद अकेलापन उसे भर देता है। शनिवार की वह सुबह कामिनी के लिए वही ऊब लेकर आई तो नीलम के लिए राकेश को टालना कठिन हो रहा था। कामिनी की सोसाइटी में रहने वाली शालिनी के लिए सुबह अलग ही रंग लिए थी जिसमे उदासी अकेलापन और यादें थीं। सुबह की हल्की ठंडक कमरे में प्रवेश कर चुकी थी जिसने शालिनी के शरीर को सिकुड़ने पर मजबूर किया उसने पैरों तले दोहर को टटोल कर अपने ऊपर खींचा तभी किसी दूध वाले की बाइक के तीखे हॉर्न ने कुनमुनाई सी नींद को पूरी तरह उचटा दिया। शालिनी ने बुदबुदाते हुए तकिए को खींच सिर के ऊपर कर लिया। आज शनिवार है उसे ऑफिस तो जाना नहीं है इसलिए वह देर तक सोना चाहती है। इससे दुनिया को क्या उसका काम तो सुबह से शोर मचाना है। सोसाइटी में आती स्कूल वैन दूधवाले कार धोने वाले और सुबह से घरों का काम निपटाने की हड़बड़ी में कामवाली बाई और महिलाएं शालिनी और उस जैसे छुट्टी के दिन सुबह की छुट्टी करने वाले लोगों का ध्यान रखे बिना शोर कर करके सुबह के होने का ऐलान कर रहे हैं। एक दिन भी लोग चैन से सुबह नहीं होने देते। इनके शंख नगाड़े बजे बिना मानों सूरज ही नहीं जागेगा। अब नींद खुल ही गई तो शालिनी ने सिर के ऊपर से तकिया हटाकर बाहों में दबोच लिया। कुछ शोर से उपजे आक्रोश और कुछ सूरज की तपन से उपजी गर्मी ने दोहर को पैरों के नीचे रौंद दिया। शालिनी ने आंखें खोल दीं सूरज की रोशनी कमरे में भर आई थी। सब कुछ उजला उजला लग रहा था लेकिन शालिनी की सुबह से यह उजास वर्षों पहले गायब हो गई थी। अब उसके सुबह दोपहर शाम सभी एक धुंधलके में लिपटे रहते हैं और अपने होने का अर्थ खो चुके हैं। यही नहीं शालिनी की एकाकी जिंदगी में अब दिन महीने साल भी अर्थहीन हैं। अब उसकी जिंदगी में दो तरह के दिन ही होते हैं एक वह जिस दिन उसे ऑफिस जाना हो दूसरे वह जिस दिन उसे ऑफिस नहीं जाना। ऑफिस जाने वाले दिन घड़ी की टिक टिक के साथ शुरू होते हैं और न जाने वाले दिन सोसाइटी के तमाम शोर के बावजूद एक गहरे सन्नाटे के साथ आते हैं। यह सन्नाटा शालिनी के अंदर तक धँसा होता है और उसे देर तक सुन्न पड़े रहने पर मजबूर कर देता है। उस ने बेड के बगल की ड्रावर खोलकर वह फोटो फ्रेम निकाली उस पर उंगलियां फिराते उसे निहारते शालिनी की आंखें कब धुंधली हो गई पता ही नहीं चला। आंखों का भी अजीब है कभी तो वे अथाह दुख सुख को भीतर समेट लेती हैं और कभी चार बूँद आंसू भी नहीं समेट पाती। हाँ छलक कर वे दृष्टि साफ कर देती हैं। शालिनी ने फोटो फ्रेम सीने से लगा लिया गहरी उदासी अकेलापन और कुछ अपने भविष्य की आशंका ने उसे फिर दोहर का सहारा लेने को मजबूर किया। आठ वर्ष हो गए हैं अभय को गए हुए लेकिन वह पल वह लम्हा आज भी शालिनी की जिंदगी में ठहरा हुआ है। कॉलेज कैंपस में शालिनी की उन्मुक्त मीठी हंसी बड़ी प्रसिद्ध थी वह उम्र ही ऐसी थी जिसमें छोटी-छोटी बातों पर भी हंसी आ जाती थी। दिल और दिमाग समाज के व्यवहार की कालिख से मैला हुआ था। दोस्तों और सखियों से दुनिया में उजास ही उजास था और यही उन्मुक्त हंसी का राज भी। आंखों में हसीन सपने थे उन्हें पूरा करने का हौसला था। उन्हीं सपनों में एक छोटा सा सपना था खूब प्यार करने वाले एक साथी का कि वह जो भी होगा खूब प्यार करने वाला, हर छोटी छोटी बात का ध्यान रखने वाला, होगा। होगा क्या वह तो कहीं है बस उसे सामने आने की उसे पहचानने की देर है। देर सवेर सही समय आने पर वह सामने भी आ जाएगा उसे देख कर दिल में जलतरंग भी बज उठेगा और वह तुरंत पहचान लिया जाएगा। उस दिन सुबह का पहला ही लेक्चर कैंसिल हो गया था शालिनी सहेलियों के साथ कैंटीन चली आई। दिसंबर की सर्दी तीखी हो चुकी थी ऐसे में पेड़ों से घिरे कैंपस में ठंडी हवा और धूप की आंख मिचौली में बैठने के बजाय कैंटीन की चाय की भाप खुशबू और स्वाद के साथ वक्त गुजारना ज्यादा भाता है। यहाँ चाय की गर्मी के साथ हंसी ठहाकों की गर्मजोशी भी रहती है। वैसे तो कॉलेज की लाइब्रेरी भी समय काटने का ठिकाना हो सकती है। पूरी लंबाई में बाहर को खुलने वाली खिड़कियों की श्रंखला से आती धूप के बावजूद लाइब्रेरी का शांत गंभीर माहौल मन में एक ठंडा पल भर देता है। जो शालिनी और उसके दोस्तों के मिजाज के अनुकूल तो बिलकुल नहीं है। वे सभी चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा में मशगूल थे तभी एक समवेत ठहाके ने उन सभी का ध्यान खींचा। लेकिन शालिनी का ध्यान खींचा उनमें से एक भारी गंभीर आवाज़ ने। उसने पलट कर देखा लेकिन वह आवाज़ जिसने शालिनी को आकर्षित किया था किसकी है जानना मुश्किल था। वही बेचैनी वह अब फिर महसूस करने लगी उसने दोहर फेंक पैर सीधे किए और तस्वीर को होठों से लगा लिया। जानू कितनी दिलकश थी तुम्हारी वह हँसी तुम्हारी आवाज तुम्हारी आंखें शालिनी बेतहाशा तस्वीर को चूमने लगी। अगले पीरियड का समय हो चला था दोनों ही ग्रुप उठ खड़े हुए। शालिनी मायूस थी उसका मन वहाँ से जाने का नहीं था कम से कम तब तक तो नहीं जब तक पता न चले कि वह आवाज़ किसकी है ? तभी किसी ने आवाज लगाई और क्षण भर की देर किए बिना शालिनी ने पलट कर देखा और आवाज के साथ उस सूरत को भी आंखों में कैद कर लिया। लाल चेक की शर्ट काला पेंट जूते करीने से संवरे बाल बाएं हाथ में बड़े डायल की रिस्ट वॉच गहरा गेहूंआ रंग गहरी काली आंखें घनी मूछें और दिलकश आवाज। लग तो यही रहा है यह आवाज शालिनी के दिल से आई थी लेकिन दिमाग एक बार फिर सुनिश्चित करना चाहता था। तभी फिर से आवाज लगाई गई और शालिनी का दिल बल्लियों उछलने लगा। उसकी सहेली ने उसे चिकोटी काटी। वह कौन है क्या नाम है किस डिपार्टमेंट में है यह पता लगाने का जिम्मा उसकी प्रिय सखी ने उठा लिया। जल्दी ही पता चल गया कि वह अभय है एम कॉम फाइनल ईयर में है पढ़ाई के प्रति बहुत गंभीर है और अधिकतर समय लाइब्रेरी में बिताता है। वह तो उस दिन पता नहीं कैसे दोस्तों के साथ कैंटीन में आ गया था। शालिनी को विश्वास हो गया कि उस दिन लेक्चर कैंसिल होना उसका और अभय का कैंटीन आना कायनात का इशारा है कि उनको मिलना चाहिए। लेकिन कायनात को इस मुलाकात के लिए इंतजाम करना मुश्किल ही था वह पढ़ाकू और शालिनी हंसती खेलती मदमस्त। शालिनी के दोस्त ने एमकॉम का टाइम टेबल पता करके बता दिया कुछ दिन तो वह चुपके से एमकॉम की क्लास में भी जा कर बैठी ताकि वह अभय को देख सके। फिर उसने कॉलेज की लाइब्रेरी में जाना शुरु किया यह जगह ज्यादा मुफीद थी। अभय मोटी मोटी किताबों में झुका रहता और वह उसे निहारते सपनों में खो जाती। कुछ दिनों में उसका धैर्य जवाब देने लगा। वह अभय से मिलने बात करने को लालायित थी वह जानना चाहती थी कि क्या वह भी उसके प्रति कोई भावना रखता है या वही हवाई महल बना रही है ? शालीन ने फिर फोटो को चूमा उसे वापस ड्रावर में रख दिया हाथ पैरों को तानकर अंगड़ाई ली और उठ खड़ी हुई। 9:00 बज चुके थे थोड़ी देर में मेड आ जाएगी। फ्रेश होकर उसने एक कप चाय बनाई और बाहर बालकनी में आ गई। नीले चमकीले आसमान में फैली धूप ने उसकी आंखें चौंधिया दीं। उसने आसपास के फ्लैट पर एक नजर दौड़ाई सामने की बिल्डिंग में कामिनी खड़ी थी वह भी उसी की ओर देख रही थी। शालिनी ने हाथ हिलाया प्रत्युत्तर में कामिनी ने भी हाथ हिलाया। उसका और कामिनी का परिचय सोसाइटी के एक कार्यक्रम में हुआ था वहाँ शालिनी ने गाना गाया था और कामिनी ने बेहद खूबसूरत शब्दों में उसकी तारीफ की थी। तारीफ के शब्दों से ज्यादा प्रभावित वह उसके व्यक्तित्व और ड्रेसिंग से हुई थी। सोसाइटी की महिलाएं उसके अकेले रहने के कारण उससे जरा दूरी बनाए रहती हैं लेकिन कामिनी का स्पष्ट कहना है कि किसी की पर्सनल लाइफ से नहीं वह व्यक्ति से संबंध रखती है। वह बालकनी में बैठ गई यादों का सिलसिला फिर शुरू हो गया। उसे नोटिस तो क्लास में ही कर लिया गया था लाइब्रेरी में उसकी उपस्थिति और उसे देखते रहने को भी अभय जानता था बस अनजान होने का नाटक करता था। पता तो उसने भी करवा लिया था सिर्फ यही नहीं कि वह किस विभाग में है बल्कि कहाँ रहती है पापा क्या करते हैं और परिवार में कौन-कौन है ? शालिनी अभय की अनभिज्ञता से निराश हो चली थी वह अपनी कितनी ही क्लासे बंक कर लाइब्रेरी में बिता चुकी थी लेकिन बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। वह अपने इस पागलपन पर विचार करने ही लगी थी कि उस दिन अभय ने उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए एक लाल गुलाब उसकी तरफ बढ़ा कर कहा था हैप्पी बर्थडे। चौक गई थी वह उसे कैसे पता चला कि आज उसका बर्थडे है। वह अचकचाकर थैंक्यू ही नहीं कह पाई थी कि अभय ने कहा 'आई लव यू' इन 3 शब्दों ने उसे आसमान पर पहुँचा दिया। बर्थडे पर इससे खूबसूरत गिफ्ट क्या हो सकता था। अभय ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और कहा चलें तुम्हारे दोस्त पार्टी के लिए कैंटीन में इंतजार कर रहे हैं। उस दिन पार्टी अभय ने दी उस पार्टी में दुगना उत्साह था शालिनी तो शर्म से सुर्ख गुलाब हुई जा रही थी। दरवाजे की घंटी बजी कामवाली बाई थी उसे देखकर शालिनी को याद आया उसके यहां आज वीक एन्ड पॉट लक डिनर पार्टी है। उसके दोस्त एक एक डिश बना कर लाने वाले हैं अब कौन क्या लाएगा नहीं पता। कप सिंक में रखकर वह डस्टिंग में लग गई। उसने शाम के लिए छोले गला दिए और खुद के खाने की तैयारी करने लगी। नहाकर आईने के सामने बैठी आंखों में काजल की रेखा के सहारे फिर अतीत में पहुंच गई। अभय को उसकी काजल लगी आंखें बहुत पसंद थी। पसंद तो उसकी लंबी पतली उंगलियां भी थी जिन्हें अपनी मजबूत गद्देदार हथेली में थामें बात करते-करते वह धीरे से दांतों से दबा देता और शालिनी चिंहुक जाती। उसके चेहरे पर उदास मुस्कान तैर गई कितना प्यार करता था वह उससे। पढ़ाई पूरी करते ही शादी करके उसे अपनी बाहों में छुपा कर रखने का वादा करता। वह कहती मुझे तो जॉब करना है। हाँ तो करना न लेकिन तुम मेरी हो बस मेरी। मेरी शालिनी को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा। अपने इर्द-गिर्द अपनी दोनों बाहें लपेटे शालिनी ने गहरी सांस ली। तुमने मेरी तकलीफ बांटने की बात तो की अभय लेकिन खुद की तकलीफ मुझसे नहीं बाँटी। हमेशा साथ रहने का बाहों में छुपा कर रखने का वादा करके साथ छोड़ गए। अभय की नौकरी लग गई थी दोनों के घर वाले भी राजी थे शहनाई बजने की तैयारियां होने लगी थी। अभय को छुट्टी नहीं मिल रही थी इसलिए शालिनी ने अपनी शॉपिंग भी रोक दी थी। बड़ी मनहूस सुबह थी वह जब फोन पर किसी अजनबी ने बताया था कि अभय हॉस्पिटल में है। अच्छा खासा लंबा तगड़ा आदमी एक चक्कर खाकर गिरा तो फिर उठ ही नहीं सका। ब्लड कैंसर लास्ट स्टेज सुनकर शालिनी भी खुद को कहाँ खड़ा रख पाई। आखरी समय में उसकी हथेली थामें वादा लिया था अभय ने कि वह जीना नहीं छोड़ेगी। उसे याद भले करे लेकिन आंसू नहीं बहायेगी। जल्दी ही नौकरी ढूँढ कर शादी कर लेगी। उसकी ढीली हथेली में अपनी हथेली को वह सुन्न होकर देखती रही। वह जिद करके गई थी शमशान तक लेकिन उसके बाद जब भी आंखें बंद करती जलती लपटें ही दिखती, उसके सपनों अरमानों को भस्म करती लपटें। वह घंटों छत को निहारती रहती । कभी कभी माँ जबरदस्ती उसकी पलकें बंद कर देतीं ताकि वह सो जाए बिलकुल वैसे जैसे किसी मुर्दे की की जाती हैं। अभय के जाने के बाद वह लाश से ज्यादा कुछ रह भी नहीं गई थी। माँ खिला देतीं तो मुँह में कौर रखे बैठी रह जाती चाय पानी पिला देतीं पी लेती यहाँ तक कि बहुत देर से बाथरूम नहीं गई है यह ध्यान भी वही रखतीं। अभय के मां पापा उस के हाल सुनकर देखने आए और अभय के लिए उसका प्यार देख फूट-फूटकर रोते रहे। कितना बदनसीब है अभय जो ऐसे प्यार को छोड़कर दूर अनंत यात्रा पर निकल गया। दो-तीन महीने सभी सोचते रहे कि वक्त हर घाव को भर देगा लेकिन उसकी हालत में सुधार न हुआ। अभय के पापा ने ही मनोचिकित्सक से समय लिया। दुख कहीं गहरे जम चुका था शालिनी के अंदर जिस पर बातचीत पूछताछ स्नेह सांत्वना का भी कोई असर नहीं हुआ। अंततः एंटीडिप्रेसेंट दवाओं की हाइ डोज देकर उसके दिमाग को घंटों नींद की बेहोशी में रखा गया। अभय के मम्मी पापा को भी उससे न मिलने की ताकीद दी गई। वह जब भी जागे घर में खुशनुमा माहौल बनाए रखने की सलाह भी। कई महीने तो जागते हुए भी वह सोई ही रहती जैसे किसी सपने में हो फिर अचानक फूट-फूटकर रो पड़ती जैसे इस दुनिया में नहीं किसी और दुनिया में हो। धीरे-धीरे दवाओं ने असर दिखाना शुरू किया और वह वर्तमान से तालमेल बैठाने लगी। डेढ़ साल लगा उसे खुद को जैसे-तैसे संभालने में लेकिन अभय को दिया वादा पूरा नहीं कर पाई। अभय ने भी कहाँ अपना वादा निभाया था चला गया उसे छोड़कर। फिर वही क्यों निभाए अपना वादा। तब से इस शहर में अकेली है। मम्मी पापा शादी के लिए कह कह कर हार गए फिर बमुश्किल एक फ्लैट लेने के लिए उसे तैयार किया। 29 साल की हो गई है अब वह नौकरी में व्यस्त खूब खुश दिखाई देती है लेकिन कोई नहीं जानता रात के अंधेरे में दो अदृश्य बाहें उसे जकड़ लेती हैं। उसका शरीर उसमें कसमसाता है और होंठ खुद के दाँतों से ऐसे भींचती है कि खून छलछला जाता है। अपने हाथों से दोनों वक्षों को मसलते देर तक करवटें बदलते पैरों को पटकते छटपटाती है। दिल ने अभय के बिना रहना सीख लिया है लेकिन शरीर अभय की कमी को तरसता है। उसके न होते हुए उसे महसूस करता है सिसकारी भरता है और उसे निढाल कर देता है। उपन्यास छूटी गलियाँ (प्रिंट और मातृभारती पर उपलब्ध) ओंकार लाल शास्त्री पुरस्कार बाल साहित्य के लिए।
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अब अवनी के पास कोई और रास्ता नहीं बचा था,क्योंकि पवन दिन-रात वंशिका को याद करता रहता था और वो नहीं चाहती थी पवन की और हालत बिगड़े इसलिए उसने एक फैसला लिया और ये फैसला था वंशिका को चिट्ठी लिखना, अवनी (वंशिका को चिट्ठी लिखती है)- हाय !!मेरा नाम अवनी है, और मैं दिल्ली शहर की रहने वाली हूं, मैं जानती हूं कि तुम्हारा नाम वंशिका हैं, अब तुम्हें इस बात की हैरानी हो रही होगी कि मुझे तुम्हारा नाम कैसे पता, दरअसल मैं और पवन एक दूसरे से प्यार करते हैं,और हमारी जल्द शादी भी होने वाली थी, पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, हमारी शादी के कुछ दिन पहले ही पवन का एक्सीडेंट हो गया और उसकी याददाश्त चली गई वो अपना present भूल चुका है, उससे सिर्फ अपना past याद है, जिस मैं नही तुम हो और अब वो तुम्हें पागलों की तरह याद करता है क्योंकि कभी वो तुमसे प्यार करता था, वो बात अलग हैं कि तुमने उसके प्यार को समझा नही, पर अब शायद भगवान ने तुम्हे एक chance दिया है,अब उसके लिए कुछ करने का बस मैं यह चाहती हूं, तुम पवन की याददाश्त वापस लाने में मेरी मदद करो तुम्हें जल्दी ही सिकर आना होगा पवन के घर, तुम्हारे आने से पवन ठीक हो सकता हैं, बस एक ही ज़िद पकड़ के बैठा हैं कि वो तुमसे मिलना चाहता है, किसी की नही सुन रहा बस दिन रात तुम्हें याद करता रहता हैं, मैं आशा करती हूं कि तुम मेरी बात को समझ को समझो और इंडिया आ जाओ मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगी. अवनी वह चिट्ठी post office जाकर पोस्ट कर देती है और रोज हर एक नई उम्मीद में होती है उसकी चिट्ठी का जवाब आएगा वह रोज गेट की तरफ देखती है कि कोई पोस्टमैन उसकी छुट्टी उसे देकर जाए पर ऐसा नहीं होता, काफी दिन बीत जाते हैं पर उस चिट्ठी का कोई जवाब नहीं आता फिर वह खुद post office जाकर वहां पूछती है कि क्या उसकी लंदन से कोई चिट्ठी आई है?? पर वहां पर भी कुछ पता नहीं चल पाता वह बहुत निराश हो जाती है उसे समझ नहीं आता कि अब वह क्या करेगी?? फिर एक दिन योगेंद्र जी का अवनी को फ़ोन आता हैं, योगेंद्र जी (परेशान हो कर)-अवनी तुम कहाँ हों?? तुम जल्दी से घर आ जाओ पवन की हालत खरब होती जा रही हैं, मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ?? अवनी (घबरा कर)- आप चिंता मत कीजिए मैं बस वहाँ आती हूँ और पवन से बात करती हूँ. अवनी पवन के घर के लिए निकल जाती हैं। जब अपनी पवन के घर पहुंचती हैं तो वह देखती है कि योगेंद्र जी और माया जी एक कोने में बैठे होते हैं, अवनी को वह दोनों बहुत परेशान लग रहे होते हैं अवनी उनके पास जाती है। अवनी- अंकल,आंटी क्या हुआ सब ठीक तो है ना? माया जी (परेशान हों कर )- कुछ ठीक नहीं है अवनी बेटा उसने तो ज़िद पकड़ ली कि जब तक वंशिका से नहीं मिलेगा, और अब सो उसने दवाइयां भी छोड़ दी, तुम ही बताओ बेटा अगर वह दवाईया नहीं लेगा तो ठीक कैसे होगा, अब हम वंशिका को कहां से ढूंढ कर लाए वह इस बात को समझने के लिए तैयार ही नहीं है, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है इन सब चक्कर में कहीं मैं अपने बेटे को ही ना खो दूं, हमें समझ नहीं आ रहा कि हम उसे कैसे समझाएं ना कुछ खा रहा है ना ढंग से हम से बात कर रहा हैं बस एक ही नाम है जुबान पर वंशिका! वंशिका!. योगेंद्र जी- हां बेटा माया बिल्कुल ठीक कह रही है अब हम हिम्मत हार रहे हैं बेटा हम उसे से घर से बाहर नहीं जाने दे सकते उसकी हालत ठीक नहीं है पर वो यह बात सुनने को तैयार नहीं है, कहता हैं कि हमने उसे घर में कैद करके रखा है अब हम उसे कैसे बताएं कि हमें उसकी कितनी चिंता है, उसे हम नहीं बस वो लड़की दिख रही है जिसके लिए वह अपनी जिंदगी दाऊ पर लगाने के लिए तैयार हैं, अवनी बताओ बेटा हम क्या करें? अवनी( गुस्से से)- आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए मैं भी जाकर बात करती हूं कि वह यह सब जो कर रहा है ना ना यह उसके लिए ठीक है और ना ही हम सबके लिए ठीक है उसे समझाना बहुत जरूरी है मैं बस अभी आती हूं। अवनी पवन के कमरे में जाती है जब कमरे में पवन को देखती है तो वह सोफे पर बैठी आंखें मीचे एक गहरी सोच में खोया हुआ होता हैं अवनी जब उसे देखती है तो उसका गुस्सा शांत हो जाता है। अवनी- पवन? अवनी उसे धीरे से पुकारती है, पवन अपनी आंखें खोलता है और अवनी की तरफ देखता है, पवन - अब तुम यहां क्या कर रही हो तुम भी मुझे समझाने आई हो क्या? मैं किसी की नहीं सुनने वाला और तुम्हारी तो बिल्कुल भी नहीं मुझे वंशिका से मिलना है जब तक मैं वंशिका से नहीं मिल लेता, मैं कोई दवाई नहीं खाऊंगा चाहे कुछ भी हो जाए इसलिए तुम अपना time मत खराब करो और यहां से चली जाओ मुझे कुछ नहीं सुनना, अवनी- देखो मैं जानती हूं कि तुम वंशिका से बहुत प्यार करते हो उससे मिलना चाहते हो उससे बात करना चाहते हो पर अभी वह यहां नहीं है,और तुम उसके लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हो कम से कम अपने मां बाप के बारे में तो सोचो तो तुमसे कितना प्यार करते हैं,पहले जैसे कि उन्होंने तुम्हें खो ही दिया था,पर वो दुबारा तुम्हें खोना नहीं चाहते इसलिए तुम्हें वह कहीं जाने नहीं दे रहे हैं, पर एक बार उनकी तरफ देखो और उनकी तरह सोचो तब तुम्हें पता चलेगा कि वह अपनी जगह सही है, इसलिए कह रही हो please यह दवाइयां खा लो, और रही वंशिका की बात तो मैं तुम्हें बता दूं वो तुमसे अब प्यार नहीं करती हैं मैंने उसे चिट्ठी लिखी थी तुम्हारी हालत के बारे में बताया फिर भी उसने मेरी चिट्ठी को कोई जवाब नहीं दिया, वह अपनी लाइफ में आगे बढ़ चुकी है फिर तुम क्यों पीछे पड़े हो ? एक बार अपने मां बाप के बारे में सोच कर देखो वो तुमसे बहुत प्यार करते हैं उनसे ज्यादा प्यार तुम्हें कोई और नहीं कर सकता वो लड़की भी नहीं, अगर उसे तुम्हारी फिक्र होती तो तुमसे मिलने जरूर आती पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, मेरी बात मान जाओ यह दवाई ले लो और अपना ध्यान रखो पवन. पवन को अवनी की बातें सुनकर उस पर गुस्सा आता है अवनी का हाथ पकड़ के बाहर की और लाता है। पवन (गुस्से से)- यह मनगढ़ंत कहानियां बनाना बंद करो और मुझे वंशिका के खिलाफ भड़काना भी,तुम्हें क्या पाता कि वो मुझसे कितना प्यार करती थी, अच्छा अब समझ में आया कि तुम यह सब मुझसे क्यों कह रही हो मैं बर्दाश्त नहीं हो रहा ना तुम्हें जलन हो रही है कि कि मैं तुमसे नहीं उससे प्यार करता हूं मुझे नहीं पता कि तुम कौन हो क्या हमारे बीच क्या था वह मुझे कुछ भी याद नहीं और ना ही मैं याद करना चाहता हूं मुझे सिर्फ वंशिका से प्यार है और मैं उसी के साथ अपनी जिंदगी जीना चाहता हूं, इसलिए अपनी बकवास बंद करो और यहां से चली जाओ और अब दुबारा वंशिका के खिलाफ एक word भी बोला ना तो मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा, अवनी (रोते हुए)- मेरा यकीन करो मैं सच कह रही हूं मैंने उससे मदद मांगी थी पर उसने कोई जवाब नहीं दिया मैं सच बोल रही हूं, अच्छा तुम यह चाहते हों ना कि मैं यहां से चली जाऊं तो ठीक है मैं चली जाऊंगी पर तुम दवाइयां खा लो प्लीज मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. पवन (चिढ़ते हुए)- यह सब नाटक मेरे सामने मत करो मुझे कोई दवाई नहीं खानी जब तक मैं वंशिका से नहीं मिलूंगा, और मैं इतना कमजोर नहीं हूं कि कुछ दिन दवाइयां नहीं खाऊंगा तो मर जाऊं मैं अपने आप को संभाल लूंगा तुम्हें मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, पवन अवनी की हाथ से दवाइयां फेंक देता है, ये सब कुछ पवन के मां-बाप देख रहे होते हैं, और वह दवाइयां जाकर बाहर खड़ी दरवाजे पर एक लड़की के पैरों पर जाकर गिरती है, क्या वंशिका सच में अवनी की मदद करने के लिए आई है या उसके पीछे कोई उसका मकसद है???
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विगलितदर्शनमोहैः समज्जसज्ञान षिदिततत्त्वार्थः । नित्यमपि निष्प्रकम्पैः सम्यफूचारित्रमालम्व्यम् ॥३७॥ सम्यम्वृष्टि तत्वज्ञानी सतको सम्यकुचारित्रके आलम्बनका उपदेश - जिन पुरुषांने दर्शन मोहको नष्ट कर दिया है और सम्यग्ज्ञानके द्वारा तत्त्वार्थ का अवरोध कर लिया है उन्हें बड़े निष्प्रम्प होकर धरणा सहित सभ्यक्चारित्रका आलम्बन फरना चाहिए। इसमें सर्वप्रथम यह बताया है कि जिसने दर्शन मोहको गला बाला उनको, जब तक पदार्थकी स्वतन्त्रताका भान न हो, समस्त पदार्थों से निराले निज अतरव का जब तक परिचय न हो तब तक वास्तव में सम्यक् चारित्र नहीं बनता, क्योंकि चारित्र नाम है अपने स्वभावका । अपने स्वभावका पता न हो तो रमे कहाँ ? जो बाह्य में सम्यक्चारित्र कहे जाते हैं वे साधक हैं, ५ समिति ३ गुप्ति, ५ महामन श्रावकों के लिए अरसुव्रत आदि ये सभ्यकचारित्र नाम इस लिए पाते हैं कि निश्चय चारित्र में साधक है, अन्यथा शुद्ध खानपान, देखभाल कर चलना, जीवदया पालना किस की चोज न उठाना ये तो बातें होती है। अन्तरङ्ग सम्यक चारित्र तो निज स्वभावको जानकर उसमें रमण करना है, ये सब साधक किसलिए होते हैं इसे समझना है तो इससे उल्टी घास सोचें बोई मनुष्य दया नहीं पालता, दूसरे जीषोंको सताता तो ऐसे चित्त में स्वभावधारणा नहीं बन सकती है, जो शल्यरहित हो, सत्यव्यवहार करता हो, न्याययुक्त जीवन हो ऐसे आवरण बालों में उस स्वभावकै धारण करने की योग्यता रहती है, अतएव ये सब आचरण साधक हैं। बास्तव में सम्यकचारित्र तो आत्मस्वभावमें रमण करनेका नाम है। यह बात तब बन सकती है जब दर्शन मोइ गल गया हो। जिसका मिथ्यात्व नष्ट हो गया और जिसने ७ तत्वका श्रद्धान् यथार्थ अवधारण किया वह पुरुष सम्यकचारिश्रको ग्रहण करता है, ये ३ शब्द ऐसे हैं देखना, जानना और प्रयोग करना । लौकिक कामों में भी ये श्यातें आती हैं, कोई भी काम करने जावें । यह मोक्षमार्गका प्रकरण है, इस कारण यहाँ देखनेका नाम श्रद्धान है। विश्वास होना और स्पष्ट बोध होना और उस अंतस्तत्व मे उपयोग जमाना, यही है रत्नत्रय और मोक्षका मार्ग । अब वह अतस्तत्त्व इस ज्ञानी के उपयोग मे यो बसता है कि यह ध्रुव है बिना है, किसी चीज से उत्पन्न नहीं होता और न यह किसी वस्तुको उत्पन्न करता है। जिसके मंचरण में परिणमन नाना होते हैं फिर भी किसी परिणमनरूप नहीं बनता, ऐसा जो एक चैतन्यस्वभाष वह अस्तव, चैतन्यमात्र मैं हूं, इस प्रकार की वह प्रनीति करता है और ऐसी दृष्टि जमाने की ही यत्न रखता है, अव ऐसा उपयोग बन जाय किसीका या जितने क्षण बने, स्वय बुछ थोड़ा बहुत यत्न करके अनुभव बना करे तो इस अनुभूतिके प्रसार से क्लेश दूर होते हैं और चात्मीय आनन्द प्रकट होता है । क्योंकि क्लेश तव होते हैं जब परपदार्थों में उपयोग हो । जव परपदार्थों में इष्ट अनिष्ट की बुद्धि होती है तब क्षोभ उत्पन्न होता है, इसलिए परके आत्माको कष्ट है और जब स्वयका स्वय में सत्य सहजता परिचय हो, उपयोग हो तो इसमें कोई विगाड़ नहीं रहता। ऐसी निर्विकल्परूप, अनुभूतिरूप आत्मस्वभावका उपयोग करना, यही है निश्चयदृष्टि से पारित्र । सवृत्ति और स्वानुभूतिका परस्पर सहयोग -8 व देख लीजिए कि फैसा परस्पर सयोग है कि अपने को शान्तवृत्तिमें रखे तो अनुभव जगे और अनुभव जगे तो शान्तवृत्ति बढे । इसमें एकान्त से हम दिसे कारण बतायें ? अन्तिसे अनुभूति होती है या अनुभूति से शान्ति होती है - इन दोनोमे एकान्ततः हम किसे पहिले रखें ? कुछ मद कपाय होकर जो शान्ति मिलती है यह तो बहुत चाहे तब अनुभूति जगे । 'और अनुभूति जगने से फिर उस शान्ति से वृद्धि घनती है और शान्ति ही एक चारित्रका रूप है । तो पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय प्रवचन द्वितीय भाग अनुभव करनेके लिए सदाचरण होना बहुत आवश्यक है। जो पुरुष किसी प्रकार अच्छे ढगसे व्रत और नियमसे रहते हैं उनकी यह वृत्ति स्वानुभूतिका साधक है, वेवल एक ज्ञान कर लेने मात्र से, तत्त्वकी चर्चा कर लेने मात्र से अनुभूति नहीं जगती, क्योंकि उसमें हमारा चित्त रमे, उपयोग ग्रहण करे, चित्त शान्त हो तो आत्माकी अनुभूति जगती है। चित्तमें शान्ति तव हो सकती जब हमारी अनाचाररूपवृत्ति न हो, अभक्ष्य भक्षण को प्रवृत्ति न हो। ज्ञान तो हो गया कि मद्य मासमें जीवकी हिंसा है ऐसा ज्ञान होकर जो पुरुष उसकी प्रवृत्ति करता है तो उसके चित्त में क्रूरता है और क्रूर चित्त आत्मानुभव कर नहीं सकता और जिसके ज्ञान ही नहीं कि मांस भक्षण में दोष है, इसमें जीव दिसा है, उसके तो जीवकी पहिचान हो नहीं है, आत्मानुभव तो उसके जगेगा ही क्या ? जब मिथ्यात्व अन्याय अमक्ष्यका त्याग नहीं होता उसके सम्यक्त्व नहीं होता। जब तक बाह्य आचरण ठीक न हो तब तक आत्मानुभूतिकी पात्रता ही नहीं है, इस कारण ऐसा ही ख्याल करना चाहिए कि हमें केवल सम्यक्त्व पैदा करना है, आचरण पीछे सुधारेगे । अरे विशिष्ट आचरण तो वाद सुधरेगा पर साधारण आचरण तो पहिले चाहिए। क्योंकि सम्यक्त्व घात्मानुभूतिके साथ उत्पन्न होता है। बादमें सम्यक्त्व बना रहे और आत्मानुभूति न बने यह तो सम्भव है क्योंकि आत्मानुभषका नाम है- छात्मोका उपयोग रखना । सम्यग्दृष्टि निरन्तर आत्माका उपयोग रखता हो ऐसी बात नहीं है। गृहस्थजन दूकान पर जाते, आजीविकाका साधन बनाते, परिवार का पालन पोपण करते, अनेक घटनाओं में सुधार विगाड़का यत्न रखते, परपदार्थोंका उपयोग चलता रहता है पर सम्यक्त्व बना रहता है। सम्यक्त्व की उत्पत्ति स्वके उपयोग विना नहीं हो सकती, स्वानुभूति पूर्वक ही सम्यक्त्व उत्पन्न होता है। अपनी उस अनुभूतिको जगाने के लिए हमारा पहिले से आचरण विशुद्ध हो तो कार्य बनता है। आचरण गदा है तो हममें यह योग्यता नहीं है कि सम्यग्दर्शन उत्पन्न है कर सकें । जिसे सम्यग्दर्शन होता है और भले प्रकार तत्त्वार्थका परिज्ञान है उस पुरुषको सदाकाल दृढ चिच पूर्वक विशिष्ट उत्साह सहित सम्यक चारित्रका आलम्बन लेना चाहिए । जैसे कोई पुरुष मार्ग चलता है तो रास्ता जैसे-जैसे व्यतीत होता है वैसे ही वैसे उसका उत्साह बढता जाता है ऐसे ही सभ्यक् चारित्रके मार्ग में उत्साह वह बढ़कर यह ज्ञानी पुरुष बढ़ता है, क्योंकि उसकी दृष्टि में वह स्थान है जिस स्थानपर उसे अपना उपयोग जमाना है और अपने अन्त पुरुषार्थ से वह उस ओर बढ़ रहा है और उसे स्पष्ट विदित हो रहा है कि यह अतस्तत्त्व है । कुछ और निकट पहुचता है तो अपने उपयोगको अपने अतस्तत्त्वमें पहुंचाता है। तो उत्साहपूर्वक उस मार्ग में बढ़ना है, ऐसे उत्साहसहित दृढ सम्यग्ज्ञानो पुरुषको सम्यक चारित्रका आलम्बन लेना चाहिए। न हि सम्यग्व्यपदेश चरित्रमज्ञानपूर्वक लभते । ज्ञानानन्तरमुक्त चारित्राराघन तस्मात ॥२८॥ श्रज्ञानपूर्वक चारित्रमे समीचीनताका प्रभाव - जो अज्ञानपूर्वक चारित्र है वह सम्यक् नाम नहीं पाता । चारित्र सम आदि धारण कर रहा तो उस सम्यक नहीं है, चारित्र सही चारित्र नहीं है, सही सयम नहीं, इसी कारण से सम्यग्ज्ञान के पश्चात् चारित्रका आराधन बताया । पहिले सम्यग्दर्शनकी आराधना, फिर सम्यग्ज्ञान को भारावना, फिर सम्यक् चारित्रकी आराधनाका जो क्रमसे प्रतिपादन है उसका तथ्य यह है कि सर्वतमभ्यस्वचादि । सम्पत्र के विना मोक्षमार्गका प्रारम्भ नहीं है। किसी भी काम में यदे विश्वास नहीं है तो उस काम को पूरा कर नहीं सकता। रसोई लोग बनाते हैं तो पूरा विश्वास है कि इनसे वाया जाता है और बन जाता है। आटेसे रोटी बन जाती है और विश्वास भी होता। कहाँ ऐवा तो न कि नोकर कि पान को धून से रोटी बने । तो सबसे पहिले विश्वासकी है सबके होते हो ज्ञानावर सम्पवत जाता है । सो सम्यग्ज्ञान
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रचना-सौष्ठव पर लिखने के बाद जरूरी है कि भाषा-विज्ञान पर भी कुछ लिखें । भाषा बहुभावात्मिका रचना की इच्छा मान से बदलतवाली देह है। इसीलिए रचना और भाषा के अगणित स्वरूप भिन्न भिन्न साहिकी विशेषताएँ जाहिर करते हुए देख पड़ते है । रचना युद्ध कौशल है और भाषा तदनुरूप अस्त्र । इस शास्त्र का पारंगत वीर साहित्यिक ही यथासमय समुचित प्रयोग कर सकता है। इस प्रयोग का सिद्ध साहित्यिक ही ऐसे स्थल पर कला का प्रदर्शन करेगा। मालूम होगा, यह कला स्वयं विकसित हुई है। वह सजीव होगी। प्रसिद्ध साहित्यिक वहां प्रयास करता हुआ प्राप्त होगा। अनेक ख्यातनामा लेखवा इसके उदाहरण हैं । भाषा-विज्ञान की मुख्य एक धारा गद्य और पद्य में कुछ-कुछ विशेषताएँ लेकर पृथक हो गयी है । इस भेद-भाव को छोड़कर हम साधारण-माधारण विचार पाठको के सामने रक्खेंगे। पहले हमारे यहां ब्रज भाषा में पवमादित्य ही था, गद्य का प्रचार अब हुआ है । भाषा-विज्ञान की तमाम बातें यद्यपि पथ-साहित्य में भी प्राप्त होती हैं, फिर भी उस समय के कवियों या साहित्यिकों को हम इधर प्रयत्न करते हुए नहीं पाते । वे रस, अलकार और नायिका-भेद के ही उदाहरण तैयार हुए, मिलते है । अब, जब गद्य का प्रचार हुआ, और भले-बुरे कुछ व्याकरण भी तयार किये गये, हम देखते है, फ़ारमी और उर्दू का हमारी बाहरी प्रकृति पर जैसा अधिकार था, अन्तःप्रकृति पर भी बहुत कुछ वैसा ही पड़ा है हमारा दाक्स्फुरण, प्रकाशन बहुत कुछ वैसा ही बन गया है। उर्दू आज भी युवतत्रान्त मे अदान लत की भाषा है । उर्दू के मुहावरे हिन्दी के मुहावरे हैं। उस प्रकार हिन्दी-उर्दू का मिश्रण रहने पर भी हिन्दी ही उर्दू से प्रभावित है। यही कारण है कि बहुत जल्द हिन्दी का प्रतिष्ठित लेखक बन जाता है, चाहे उस हिन्दी के अक्षर मात्र का ज्ञान हो । उसकी रचना सोधी और माया बासुहावरा समझी जाती है। गीतों में जो स्थान राज़लों का है, बहू पदों का नहीं रह गया । हिन्दी-गों में उर्दू के अशआर पढ़ने के शौकीन पाठक ज्यादा मिलेंगे। ध्रुवपद, धम्मार, रूपक और झप, सोलह मात्राओं को कव्वालियों के आगे केंप गये है। ये सब हमारी भाषा की पराधीनता के सूत्रक हैं, शब्द -विज्ञान में यही ज्ञान स्पष्ट देख पड़ता है। पर जिन प्रान्तों पर उर्दू या फारसी की अपेक्षा संस्कृत का प्रभाव अधिक था, अँगरेज़ी के विस्तार से उनकी भाषा मार्जित तथा जातीय विशेषत्व की शाधिका हो गयी है। हमारी हिन्दी अभी ऐसी नहीं हुई। उनके खार अभी निकाले नही गये। उसमें भाषाविज्ञान के बड़े-बड़े पण्डितों ने सुधार के लिए परिश्रम नही किया । उसका व्याकरण बहुत ही अधूरा है। जो लोग संस्कृत और अँगरेजी दोनो व्याकरण से परिचित हैं, वे समझ सकते हैं, दोनों के व्याकरण में कितना साम्य है लिपी की तरह उर्दू का भी भिन्न रूप हैं अवश्य बुछ साम्य मिलना है हम इस नोट मे उद्धरण नहीं दे सक्से स्थानाभाव के कारण हम यह जानत है र बिना उद्धरणो व साध रण जन अच्छी तरह समझ नहीं सकेंगे। पर अभी हम क्ष्म रूप से ही कहेंगे। किसी बगाली, गुजराती, महाराष्ट्री, मद्रासी या उड़िया विद्वान से हिन्दी के सम्बन्ध में पूछिए, वह व्याकरण-दोषवाली बात पहले कहेगा। एक बार महात्माजी ने स्वयं ऐसा भाव प्रकट किया था - युक्तप्रान्त की हिन्दी ठीक नही, अगर वहाँ कोई हिन्दी के अच्छे लेखक हैं, तो उनके साथ मेरा परिचय नहीं । महात्माजी की इस उक्ति का मूल कारण क्या हो सकता है, आप ऊपर लिखे हुए कथन पर ध्यान दें । जाति को भाषा के भीतर से भी देख सकते हैं। बाहरी दृष्टि से देखने के मुकाबले इसके साहित्य को भीतर से देखने का महत्त्व अधिक होगा। भाषा-साहित्य के भीतर हमारी जाति टूटी हुई, विकलांग हो रही है। बाहर से ज्यादा मजबूत यहीं-- भीतर उसके पराजय के प्रमाण मिलेंगे। जब भाषा का शरीर दुरुस्त, उसकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म नाडियाँ तैयार हो जाती है, नसों में रक्त का प्रवाह और हृदय में जीवन-स्पन्द पैदा हो जाता है, तब वह यौवन के पुष्प-पत्र- सकूल वसन्त से नवीन कल्पनाएँ करता हुआ नयी-नयी सृष्टि करता है। पतझड़ के बाद का ऐसा भाषा के भीतर से हमारा जातीय जीवन है ! पर जिस तरह इस ऋतु-परि वर्तन में मृत्यु का भय नहीं रहता, धीरे-धीरे एक नवीन जीवन प्राप्त होता रहता है. हमारे भाषा-विज्ञान के भीतर से हमें उसी तरह नवीन विकास प्राप्त होने को हैं। अंगरेजी साहित्य से हमें बहुत कुछ मिला है। केवल हम अच्छी तरह वह सब ले नहीं सके । कारण, अँगरेजी साहित्य को हमने उसी की हद में छोड़ दिया है। अपने साहित्य के साथ उसे मिलाने की कोशिश नहीं की। हिन्दी में और तो जाने दीजिए, कुछ ही ऐसे साहित्यिक होंगे, जो 'Direct' और 'Indirect' वाक्यों का टीक-ठीक प्रयोग करते हों। सीधे वाक्य को 'तो', 'ही' और 'भी' के अनावश्यक बोझ से गधा बना देते है । क्या मजाल, किसी विद्वान् का लिखा एक वाक्य सीधे जवान से निकल जाय । कही पूर्ण विराम पर विराम लेने की प्रथा होगी, हिन्दी मे हर विभक्ति के बाद आराम करके आगे बढ़िए । भाषा में इतना प्रखर प्रवाह फलतः जाति भी वैसी ही अंटाचित है । हमें समय मिला, तो हम आगे इस अंश पर विचार करेंगे। अभी यह कहना चाहते हैं, इस तरह शक्ति रुक जाती है। भाषा-साहित्य की बड़ी बात यह है कि जल्द से जल्द अधिक-से-अधिक भाव लिखे और बोले जा सकें। जब इस प्रकार भाषा बढ़ती हुई और प्रकाशनशील होती है, तभी उत्तमोत्तम काव्य, नाटक, उपन्यास आदि उसमें तैयार होते हैं। दूसरे, गद्य जीवन-संग्राम की भी भाषा है। इसमें कार्य बहुत करना है, समय बहुत थोड़ा है। [ 'सुवा', अर्धमासिक, 1 अक्तूबर, 1933 (सम्पादकीय) । प्रवन्ध प्रतिमा मे संकलित] हमारा कथानक-साहित्य आजकल संगार का ही रुख कथानक साहित्य की और अधिक है। कहीं नही दिलचस्पी पहले से घटने लगी है, काकी तरफथ साव सा है, फिर भी पाठासंख्या के विचार में कथानक-साहित्य का ठी अयम अदा क्षेत्र है। भंस के कर्मों से थके हुए मनुष्य प्रायः कहानी-उपसास ही मनोरंजन के लिए पसन्द करते है । योरप में इसकी कला मननशील नि के अविशा परिश्रम उच्चतम सोमा को पार कर गयी है। और, चूंकि जीवन कथार्थ छाप दस साहित्य में अनक चरित्रों के भीतर से अनेकानेक रूपों में रहती है, इसलिए अपर गायिकी अपेक्षा इसके प्रति आकर्षण खासतौर से होता है। परन्तु जीवन की प्रगति का निश्चय न रहने पर भी वह एक कुछ नहीं की तरह नही बहता । उसमें कुछ निश्चय और लक्ष्य भी होता है। यही लक्ष्म जीवन का उद्देश है। किसी जीवन का लक्ष्य बुग नहीं होता। यही कलाके उद्देश की साधना है। यहाँ अनेकानेक चरियों की पूर्तिया समाज के नितिन गोकाक एक पुष्ट रूप देती है। समाज के सामने आदर्श की स्थापना होती है। व्यक्ति और समाज को उपन्यास के भीतर से कुछ मिलता है, जिससे क पहले की अपेक्षा और सुन्दर स्वरूप, विचार और संस्कृति प्राप्त करता है । अवश्य लक्ष्य-भ्रष्ट मन्द जीवन भी कथानक माहित्य के अंग है, पर उनका निरुद्देश बना ही उन शक्ति-साहित्य का परिचय होकर समाज को उधर जाने से रोकता है । बहुत मे चरित्रों के विश्रण सघर्ष में किमी जटिल प्रश्न का समाधान भी उपन्यास-साहित्य का एक प्रधान विषय है। जो बात किसी लक्ष्य पर पहुँचने के लिए है, वही एक उलझी हुई समस्या के समाधान के लिए भी । वहा सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, हर तरह की हो सकती है। हर जाति के सामने प्रति, मुहूर्त, नये पथ पर, नये विचारों से चलने का प्रश्न रहता है। यदि ऐसा नहीं, तो मनुष्य-जाति स्वभाव को न बदल सकनेवाले पशुओं में परिणत हो जाय। यहाँ भो, ऐसे प्रश्नों के विवेचन के समय, चित्रण करते हुए, उपन्यागार की मनोहर क्या के भीतर लोक-मनोरंजन का अद्भुत कौशल प्रदर्शन करना हना है; त्रन्कि आदर्शवादवाली कला में यहाँ शक्ति को और भी पुष्ट रूप देना पडता है। क्योंकि यह समाज के स्वीकृत विषय का मार्जिन तथा उच्चतर स्वरूप नही, उसके मनीभाव के बदलने का विवेचन है, जहाँ प्रायः लोगों को नाकामयाबी हासिल होती है। हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानी-लेखक इस भूमि में नहीं आये। अब विवेचन शुरू हुआ है, और यही किसी-किसी उपन्यासकार तथा कहानी लेखक भी विशेषता है। हमारे अब तक के पुराने उपन्यास लेखकों ने समाजग जैसे अन्दर नवीन सामाजिकता से अपने उपन्यासों को अलंकृत नहीं किया, उनमें विवण को उतनी प्रयत्न शक्ति मौलिक विवेचन को अयाध धारा नहीं के प्राचीन सरकारी के भीतर ही जो कुछ कर सके करत रह करते जा रह हैं आदमशव दो होने पर
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सरल की और उत्पाद के किनारे डिजाइन करने के लिए एक ही समय शानदार तरीका में एक crocheted किनारी या सीमा की मदद से एक सजावट है। सही ढंग से धागा चयनित और हुक एक समाप्त देखो और निटवेअर, और कपड़े कपड़े से देने के लिए अनुमति देगा। यह के लिए एक अद्भुत सजावट बुना हुआ ओपेन वार्क रिम रूप में कार्य करता शॉल (हुक), योजनाओं को बनाने के लिए है कि पत्रिकाओं में प्रचुर मात्रा में हैं। परंपरागत रूप से एक ट्रिम आस्तीन और हेम कपड़े, तौलिए और नैपकिन, तौलिए और कंबल, कालीन और अन्य घरेलू सामान के साथ सजाया। बुनना हेम और अधिक असाधारण रास्ता लागू करें। उदाहरण के लिए, यह चमड़े के उत्पादों के किनारे को सजाने, साथ ही फर्नीचर को सजाने। अपने आवेदन फीता किनारी और scrapbooking के रूप में इस तरह के रूप शिल्प पाता है। मुख्य उत्पाद रिम के लिए, crocheted, जिसके लिए सर्किट बहुत ही विविध हैं, यह कई spoosbami द्वारा संलग्न किया जा सकता है। - आमतौर पर, निटवेअर रिम एक हुक के साथ सीधे जुड़ा हुआ है। लूप्स उसके आधार के लिए मुख्य बातें कर रहे हैं और वह आधार वेब के एक निरंतरता के रूप में लंबाई जोड़ें। इस प्रकार, उदाहरण के लिए, शॉल रिम हुक के लिए किया जाता है। योजनाएं इस तरह खत्म शॉल सर्किट का हिस्सा हो सकता है, लेकिन वे भी अलग से चुना जा सकता है। - एक ही विधि, डिजाइन और किनारी कपड़े के निर्माण में इस्तेमाल किया जा सकता उदाहरण मिटा के लिए। इस मामले में, हुक छोटे आकार (संख्या 0. 3, 0. 5, या संख्या № 0,75) और ठीक धागा लिया जाता है, अधिमानतः ऊतक उत्पादों के लिए उपयुक्त एक रचना जो जारी करने के लिए आवश्यक है करने के लिए। हुक ऊतक में सीधे इंजेक्ट किया, और कैनवास अनुसूचित जाति के बिना, पदों के किनारे के आसपास लिपटे है। अगला फिट रिम हुक, जो सर्किट की तरह Needlewoman। - लेकिन आप अन्य रास्ता तय कर सकते हैंः कपड़े किनारे obmetochnym टांका सुई है, जो vdevaetsya धागा, भविष्य में तैयार किया गया crochet प्रदर्शन करने के लिए लिपटा है। सीमा योजनाओं यादृच्छिक पर चुना जाता है। इस मामले में, सीवन टांके आधार होगा, लेकिन यह कैनवास बाँध होगा। - पृथक फिट रिम हुक, सर्किट जो किसी विशेष उत्पाद के डिजाइन के लिए उपयुक्त है, और फिर एक सिलाई मशीन पर या हाथ से कपड़े ओवरलैप के साथ ही सिल हैः निम्न विधि सरल हो रहा है। लेकिन इस विधि अधिक अभ्यास पहले में मुश्किल हो सकता है। तथ्य यह है crocheted सीमा कपड़े की तुलना में अधिक लोच है कि, इसलिए जब सिलाई थोड़ा बढ़ाया है, जिससे कि लेख के किनारे की लंबाई और सबसे रिम मेल नहीं खाते। आदेश में इस से बचने के लिए, यह नमूना सीमा लिंक और सही ढंग से बुनाई का घनत्व, टी। ई गिनती कितने छोरों 10cm उत्पाद के लिए है, तो आवश्यक गणना करने के लिए गणना करने के लिए सिफारिश की है। साथ या भर में हैंः crochet योजना आप की तरह किनारा बुना हुआ, दो तरह से बनाया जा सकता है। खैमाह भर में जुड़ा हुआ है, एक चक्र में प्रदर्शन या पंक्तियों को बढ़ाकर जब तक यह आवश्यक चौड़ाई तक पहुँच जाता है (यदि आप उसे पोशाक या कपड़े का आस्तीन टाई करना चाहते हैं)। इस तरह के एक खत्म का सबसे सरल रूप तथाकथित "rachy कदम है। " अनुसूचित जाति अनुसूचित जाति या अधिक के साथ nakida बिना सरल बाध्यकारी कॉलम भी इस रिम के लिए विचार किया जा सकता। इस तरह की डिजाइन विधि के साथ भी अभी शुरुआत needlewoman, केवल इस तरह के crochet के रूप में एक तकनीक स्वामी को संभालने के लिए। इस मामले में सीमा योजना की आवश्यकता नहीं है। आप हेम बुनी और ब्लेड बांध के साथ कर सकते हैं। सीमा की चौड़ाई सर्किट सेट कर दिया जाता है, और लंबाई बुनाई के दौरान समायोजित किया जा सकता। "अनुमान" पहली नजर पार के आयाम की तुलना में आसान पर एक सीमा के लिए आवश्यक लंबाई, लेकिन नमूना लिंक और गणना बुनाई का घनत्व अभी भी चोट नहीं किया गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए उत्पाद डिजाइन के साथ कि सीमा "अचानक" समाप्त नहीं है तालमेल के बीच है, जो प्रतिकूल तैयार उत्पाद की उपस्थिति को प्रभावित करेगा में आवश्यक है। पूरी तरह से उत्पाद से संबंधित ओपेन वार्क crochet सीमा का पूरक है। आरेख और इन हस्तशिल्प के विवरण को खोजने के लिए आसान है। ऐसा लगता है कि इतना बहुत प्रभावी ढंग से अंकुश लगाने। विशेष रूप से सुंदर जुड़े रिम हुक, "अनानास" festoons जो सर्किट "खोल" के विभिन्न प्रकार के एक पैटर्न शामिल हैं। इस तरह की एक सीमा "खोल" या अन्य मदों की एक संख्या से एक हो सकता है और काफी व्यापक हो सकता है - यह चयनित विकल्प पर निर्भर करता है। सीधे शब्दों में अद्भुत हो सकता है के रूप में इसे दूसरे तरीके से संबंधित हो ओपेन वार्क crochet सीमा। इसके कार्यान्वयन के लिए योजना के रूप में सबसे सरल पाया, और केवल अनुभवी बुनाई करने की ऐसी है कि एक शक्ति। वार्क सीमा एक ही पंक्ति या पंक्तियों की कुछ दसियों, जो विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब स्कर्ट, आस्तीन पर या पतलून पर झमेलें बुनाई शामिल हो सकते हैं। आदेश में विस्तृत रिम हुक योजना के कई स्तरों सबसे साधारण लिया करने के लिए कनेक्ट होने के लिए। आरेख के अनुसार पहली परत बुनाई, तो रिवर्स साइड पर इस के सिवा घने वेब dovyazyvayut, एक या दो अनुसूचित जाति के साथ स्तंभों की आम तौर पर मिलकरः अगली इस प्रकार आगे बढ़ें। आदेश धागा को बचाने के लिए और उत्पाद घने कपड़े सुविधाजनक बनाने के लिए अक्सर sirloin ग्रिड बदल दिया। तत्व की चौड़ाई ओपेन वार्क शटल की चौड़ाई से थोड़ा छोटा होता है। इसके बाद, यह अगले शटलकॉक पर लंबाई जोड़ें। आप वेतन वृद्धि के साथ कपड़े बुना, तो प्रत्येक अगले स्तर अधिक विलासी पिछले हो जाएगा। कपड़ा, तौलिए, पर्देः पट्टिका तकनीक में किए गए बॉर्डर्स पारंपरिक रूप से सजाने वस्त्र उद्योग के लिए प्रयोग किया जाता है। लेकिन यह भी एक परिष्करण फीता एक पट्टिका आवेषण, जो स्वयं उत्पाद जारी साथ कपड़ों के लिए बहुत ही आकर्षक लग रहा है, विशेष रूप से संयोजन में। Circuitry पैटर्न एक पट्टिका सीमा सेट बनाने के लिए। उनमें से कुछ विशेष रूप से बुनाई करने के लिए डिजाइन किए हैं। लेकिन यह देख सकते हैं और जुड़े पट्टिका crochet सीमा है, जहां योजना मूल रूप से कढ़ाई के लिए डिजाइन किया गया था, विशेष रूप से मोनोक्रोम करने के लिए अच्छा होगा। टेप फीता का उपयोग अच्छी तरह से रोकने में एक अच्छा विचार लगता है के रूप में। यह प्रभावशाली लग रहा है, विशेष रूप से एक साधारण चिपचिपा या कपड़े के साथ संयोजन में। इसके अलावा, जब कपड़े डिजाइन जैविक, उदाहरण के लिए दिखाई देगा, टेप फीता के नीचे उत्पाद सजाया रिम, बेल्ट के साथ संयुक्त, उसी तकनीक के साथ बनाया। Knit टेप फीता ओपेन वार्क के रूप में के रूप में आसान नहीं है, लेकिन यह एक सच में असामान्य और मूल रिम हुक पैदा करता है। आरेख और विवरण, साथ ही बुनाई फीता रिबन पर कार्यशालाओं आसानी से पाया जा सकता है। यह आयरिश फीता के तत्वों का उपयोग करके एक खास जगह प्रतिबंध पर है। वे एक बुनाई तकनीक unseparated का उपयोग कर बुना हुआ है। लेकिन तुम, फूल और पत्तियों की एक सीमा, पारंपरिक "आयरलैंड" आकर्षित कर सकते हैं एक अनियमित ग्रिड या युग्मन साधनों के माध्यम से एक दूसरे के लिए उन्हें जोड़ने। देखने के लिए फायदेमंद है, उदाहरण के, रसोई तौलिए या पर्दे के लिए, आयरिश फीता के किनारे तत्वों के साथ सजाया जाता है और कपड़े बुना हुआ तत्व है जो रोकने की शैली का खंडन नहीं करते पर सिले। इस तरह की योजनाओं के साथ बुना हुआ crochet सीमा जाहिर है, हो सकता है, लेकिन आप विशिष्ट विवरण, शो कल्पना बिना कर सकते हैं। परंपरागत रूप से एक रंग फिट रिम। रंग बुनियादी उत्पाद के स्वर के साथ मेल खाना सकता है, और यह या इसके विपरीत के साथ संयुक्त - यह सब स्वाद और कल्पना एक बुनाई करने पर निर्भर करता है। लेकिन अलग अलग रंग का उपयोग एक सीमा बनाने के लिए के रूप में यह वर्जित नहीं है। इसके विपरीत, सादा सामान, बहुरंगी सीमा के साथ सजाया, हंसमुख और उज्ज्वल लग रहा है। और, बेशक, शानदार बहुरंगी हाशिये देखो अगर needlewoman को सजाने के लिए उत्पाद न केवल एक सीमा, लेकिन यह भी, उदाहरण के लिए, बुना हुआ पिपली या मात्रा तत्वों, crocheted है का फैसला किया जाएगा। एक ही इन सजावट और रिम बनाने के लिए इस्तेमाल रंग, एक पूरी छवि बनाने, और तैयार बात को अधिक आकर्षक और दिलचस्प हो जाता है। नीचे सीमा crochet के प्रदर्शन के कुछ सरल विवरण है। यह एक सरल नाजुक सीमा, एक पंक्ति में जुड़ा हुआ है। यह कॉलम के होते हैं, अनुसूचित जाति के बिना polustolbikov और स्तंभों अनुसूचित जाति के साथ अनुसूचित जाति। polustolbik अनुसूचित जाति के साथ है, तो 3 स्तंभ एक अनुसूचित जाति के साथ बुनियादी बातों का एक ही पाश में, और फिर - - इस दोहन पूरा करने के लिए, चेहरे पर उत्पाद बारी में, अगले सेंट provyazyvayut कॉलम में एक हवा लिफ्ट पाश अनुसूचित जाति के बिना, तो अगले पाश प्रदर्शन फिर से polustoblik अनुसूचित जाति के साथ। अगले पाश फिर से अनुसूचित जाति के बिना स्तंभ provyazyvaetsya। इसके बाद, उसी क्रम में जारी है। गोले के किनारे बुनाई का एक और तरीका है। यह खत्म 3 श्रृंखला के होते हैंः - 2 श्रृंखलाः provyazyvayutsya बुनाई 5 बदल जाता है और हवा छोरों (3 छोरों और 2 हवा लिफ्ट पाश), तो पिछली पंक्ति की nakida हवा पाश बिना stoblik 4 और 1 से अधिक पिछली पंक्ति की nakida हवा पाश बिना स्तंभ 1, हवाई पाश फिट। एक नंबर provyazyvayutsya 2 हवा पाश के पूरा होने पर, पिछली पंक्ति के अंतिम पाश एक स्तंभ 1 अनुसूचित जाति के बिना किया जाता है। - 3 रेंजः बुनाई provyazyvaetsya एयरबैग पाश 1 और स्तंभ 1 घुमाया अनुसूचित जाति के बिना। पिछली पंक्ति 4 हवा उसी तरह जैसा कि पिछले नमूना में किया गया था में खोल निष्पादित छोरों के कट्टर के लिए अगलाः स्तंभ, अनुसूचित जाति polustolbik अनुसूचित जाति के बिना, 3 स्तंभ के साथ साथ अनुसूचित जाति के साथ, अनुसूचित जाति polustolbik और स्तंभ अनुसूचित जाति के बिना। शंख provyazyvayutsya इस प्रकार पंक्ति के अंत तक। कई श्रृंखला 5 हवा छोरों की पंक्ति पूर्ववर्ती के तीसरे पाश में अनुसूचित जाति के बिना स्तंभ समाप्त होता है। मूल रूप से हाशिये के किनारे लग रहा है। Knit यह भी कई तरीकों से किया जा सकता हैः - स्तंभों की Provyazyvaetsya संख्या, अनुसूचित जाति के बिना। अगली श्रृंखला के रूप में निम्नानुसार किया जाता हैः 1 हवा पाश 1 बार बिना nakida जल्दी श्रृंखला तो तालमेल हो जाता है - पिछली पंक्ति के एक ही पाश पर बुनी अगले पाश provyazyvaetsya nakida बिना 1 बार, 15 हवा पाश की एक श्रृंखला और जोड़ने बार, कि पिछले कॉलम, अनुसूचित जाति के बिना। - में "स्प्रिंग्स" किनारे विचार पिछले एक के समान है, लेकिन 15 हवाई छोरों की एक श्रृंखला की स्थापना के बाद उस पर बुनाई जारी है। 1 पाश अनुसूचित जाति के बिना हवा, बाद में हवा provyazyvaetsya 2 कॉलम में से प्रत्येक को छोड़ दिया। पिछले अवतार में वर्णित के रूप में तैयार "एक स्प्रिंग" जोड़ने स्तंभ के आधार से जुड़ी है।
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(२) संसद के सदस्या को मत संख्या का योग सत्र राज्या के विधान सभा के सदस्यों की मत-मख्या के बराबर रखा गया है । इसका कारण यह है कि ससद् के सदस्य भी सम्पूर्ण भारत की जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। तथा विधान सभाओ के सदस्य भी सम्पूर्ण भारत की जनसस्या का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसलिए दोनों को राष्ट्रपति के निर्वाचन मे समान होना चाहिए । (३) राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य भी राष्ट्रपति वे निर्वाचन में भाग लेंगे। इसका कारण यह बतलाया गया है कि ससद में साना रणतः एक ही दल का बहुमन होगा तथा वही दल मन्त्रिमंडल का भी निर्माण करेगा। इसलिए अगर केवल मसद् को ही राष्ट्रपति के निर्वाचन का अधिकार होता तो यह भय था कि बहुमत दल किसी ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति चुनता जो कि उनका ही समर्थक होता। परन्तु यह उचित नहीं होता। इसलिए विधाननिर्माताओं ने राज्यो को भी राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने का अधिकार दिया है । राष्ट्रपति के लिए योग्यताएँ -- राष्ट्रपति होने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिये । भारत का नागरिक हो । पैंतीस की आयु पूरी कर चुका हो । लोक सभा के लिए सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो । (द) भारत सरकार के प्रथवा किसी राज्य की सरकार के अधीन या इन सरकारों से नियन्त्रित किसी स्थानीय या अन्य अधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद न धारण किय हुए हो । परन्तु लाभ के पद के अन्तर्गत राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति, राज्यपाल अथवा मघ या राज्या के मन्त्रियो का पद नही समझा जावेगा। इससे यह तालन है कि ये लोग सरकारी नौकरी में होते हुए भी राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार हा सकते है । (घ ) जो व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण कर रहा है अथवा कर चुका है वह पुन अगर उसमें उपरोक्त याग्यताएँ वर्त्तमान है राष्ट्रपति पद के लिए उम्मेदवार हा सकता है । अमेरिका में पहले एक अधिसमय बन गया था कि कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए दो बार से अधिक नही चुना जावेगा। परन्तु रुजवेल्ट ( एफ० डी० ) ने चार बार निर्वाचित होकर इस अविसमय को भग कर दिया । परन्तु after afवधान में ही यह संशोधन हो गया है कि कोई व्यक्ति दो वार से अधिक इस पद के लिये निर्वाचित नहीं होगा । अन्य शर्ते - (अ) राष्ट्रपति न तो ससद के किसी सदन का और न विपी राज्य के विधान-मण्डल के सदन का सदस्य होगा। अगर मसद के किसी सदन का, अथवा किसी राज्य के विधान-मण्डल के सदन का सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाये, तो राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण की तारीख से उसकी उम सदन की सदस्यता का अपने आप अन्त हो जावेगा। (व) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण न करेगा। यह उपबन्ध इसलिये रखा गया है ताकि राष्ट्रपति अपना सम्पूर्ण समय अपने पद के कर्त्तव्या व निवाहने में ही लगावे तथा वह अन्य किमी उद्देश्य से प्रभावित न होगा । जो मनुष्य कोई अन्य आर्थिक लाभ का पद धारण किये होगा वह स्वभावत ही अपनी राष्ट्रपति पद की शक्तिया को उस मस्या अथवा व्यक्ति के हितार्थ उपयोग करने को चेप्टा करेगा जिसके नीचे वह आर्थिक लाभ का पद ग्रहण किये हुये है। पदावधि - राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख स ५ वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा। परन्तु यह अवधि कुछ दशाओ में कम हो सकती है (क) अगर राष्ट्रपति ५ वर्ष से पूर्व ही त्यागपत्र दे दें। इससे उसक हस्ताक्षर होने चाहिये। यह त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को सम्बोधित किया जायेगा । उपराष्ट्रपति इसकी सूचना एकदम लोकसभा के अध्यक्ष को देगा । (ख) अगर राष्ट्रपति संविधान का अतिक्रमण करे तो वह ससद् द्वारा महाभियोग से अपने पद से हटाया जा सकेगा। रिक्त स्थान पूर्ति नये राष्ट्रपति का निर्वाचन पहले राष्ट्रपति की पदावधि पूरी होने से पूर्व ही कर दिया जायेगा। राष्ट्रपति अपने पद की समाप्ति हो जाने पर भी अपने उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक पद धारण किये रहेगा । यदि किमी राष्ट्रपति का पद पूरी अवधि से पहिले ही रिक्त हो जावे, जैसे उसकी मृत्यु हो जावे या वह पद त्याग दे, या वह महाभियोग द्वारा हटाया जावे, तो उस दत्ता में पद रिक्त होने के ६ मास बीतने के पहिले हो नये राष्ट्रपति का निर्वाचन किया जावेगा। नया राष्ट्रपति पद ग्रहण की तारीख से ५ वर्ष तक अपने पद पर रहेगा। ऐसे अवसरों पर नये राष्ट्रपति के चुनाव तक उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा । राष्ट्रपति का वेतन आदि - राष्ट्रपति के लिये, संविधान द्वारा १०,०० रु० मासिक वेतन निश्चित किया गया है । इसके अतिरिक्त उसको रहने के लिये एक निवास स्थान दिया जायगा । उसको इसका किराया नहीं देना होगा । राष्ट्रपति को अन्य भत्ते आदि भी दिये जायेगे। जब तक इनका निश्चय ससद् नहीं करेगी तब तक राष्ट्रपति प्रति वर्ष लगभग १५,२६,००० रुपये यात्रा, सत्कार भत्ते, अनुदान, आदि पर व्यय कर सकता है। उसके कार्यकाल में उसके भत्ते, आदि नहीं घटाये जायेंगे । यद्यपि पहले के गवर्नर जनरलों को तुलना में राष्ट्रपति का वेतन भत्ते आदि बहुत कम है, तथापि यह भी सत्य है कि हमारी आर्थिक अवस्था को देखते हुये यह काफी ऊँचे रखे गये है । महाभियोग - राष्ट्रपति अपने पद से ५ वर्ष की अवधि समाप्त होने के पूर्व भी हटाया जा सकता है । इसके लिये संविधान में महाभियोग का उपबन्ध है । अगर कोई राष्ट्रपति संविधान का अतिक्रमण कर रहा है तो ससद् का कोई भी सदन उसके विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव रख सकता है। ऐसे प्रस्ताव को उस सदन के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर प्राप्त होने चाहिये । यह दिखलायेगा कि इन सदस्यों का समर्थन उसे प्राप्त है। इस प्रस्ताव की सूचना कम से कम १४ दिन पूर्व देनी चाहिये। अगर यह प्रस्ताव उस सदन कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पास हो गया तो यह दूसरे सदन को भेजा जावगा । यह दूसरा सदन राष्ट्रपति के विरुद्ध दोषारोपण का अनुसंधान करेगा या करायेगा । राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह इस अनुसंधान मे उपस्थित हो सकता है, या अपना प्रतिनिधि भेज सकता है। अगर प्रधान के फलस्वरूप दूसरा भवन दो तिहाई बहुमत से दोषोरोपणो को मान ले तो प्रस्ताव पास हो जावेगा। इसका फल होगा कि राष्ट्रपति को उस तारीख से पद-त्याग करना होगा। राष्ट्रपति इसके विरुद्ध कोई अपील नही कर सकता है । इस महाभियोग की व्यवस्था संविधान में इस कारण की गई है जिससे राष्ट्रपति अपनी शक्तियो तथा अधिकारों का दुरुपयोग न करे। क्योकि सविधान में वही पर ऐसा उपबन्ध नही है कि राष्ट्रपति अपने मन्त्रिमण्डल की राय मान हो । अमेरिका के संविधान में भी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की व्यवस्था है । परन्तु अन्तर यह है कि भारत में ससद् वा कोई भी भवन दोषारोपण पर विचार तथा निर्णय कर सकता है जबकि दूसरे सदन ने दोपारापण लगाया संघीय-काय पालिका राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति १३३ हो परन्तु अमेरिका में वेवल सीनेट ही इसका निर्णय करती है । व्यवस्थापिका (कांग्रेस) के निचले भवन को इसके निर्णय का अधिकार नहीं है । राष्ट्रपति द्वारा शपथ - प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति जो राष्ट्रपति के रूप में काम कर रहा है, अपने पद ग्रहण से पूर्व भारत के मुख्य न्याया धिपति के समक्ष निम्न रूप में शपथ करेगा तथा उसमे हस्ताक्षर करेगा 'मै 'अमुक, ईश्वर की शपथ लेता है। सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति पद वा कार्यपालन ( अथवा राष्ट्रपति के कृत्य का निर्वहन ) कस्गा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, मरक्षण और प्रतिरण करुगा और में भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा । [अन्तकालीन व्यवस्था -- ऊपर राष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि तथा अन्य उससे सम्बन्धित वाता का वर्णन किया गया है। इस प्रकार राष्ट्रपति की निर्वाचन सर्वप्रथम मई १९५२ मे जब कि सघ तथा गज्या में ग्राम- निर्वाचना के पश्चात् नई व्यवस्थापिका का निर्माण हो गया था तब हुआ । परन्तु भार तीय संविधान २६ जनवरी १९५० से लागू हो गया था। अर्न्तवाल के लिये राष्ट्रपति चाहिये था । इसलिये संविधान सभा को ही संविधान के अनुसार यह अधिकार दे दिया गया था कि वह एक अर्न्तकालीन राष्ट्रपति का निर्वाचन कर दे । उस समय डा० राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति सर्वसम्मति से चुने गये थे। (२५ जनवरी, १९५०) । र मई १६५२ का राष्ट्रपति का चुनाव - राष्ट्रपति के लिये ससद् के निर्वा चित सदस्य तथा राज्या को विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या ४,०५७ थी । इसमे ४९५ लोक सभा के २०४ राज्य परिषद के तथा ३,३५८ क ख तथा ग वग के राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य थे । इनमें काश्मीर की संविधान सभा के ८५ सदस्य भी शामिल है। काश्मीर के ससद् वे १० सदस्यों का भी निर्वाचन मे मत प्रदान का अधिकार मिला। काश्मीर के सदस्या को इस अधिकार को प्रदान करने के लिये राष्ट्रपति ने The Constitution (Applicable to Jammu and Kashmir) (Amendment ) Order, 1952' की घोषणा की। राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यो को विधान सभाओ के सदस्यों को निम्न सस्था में मताधिकार प्राप्त हुआ
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पनडुब्बी युद्ध की तीव्रता समुद्र में मित्र देशों के नुकसान में तेजी से वृद्धि हुई। मई 1915 तक, 92 जहाज तीन अधूरे महीनों में डूब गया थाः जर्मन नौकाएं प्रति दिन एक जहाज डूब रही थीं। बढ़ने लगा और पनडुब्बी की क्रूरता। पहले महीनों में, U-28 फ़ॉस्टनर के कप्तान "प्रसिद्ध हो गए," जिन्होंने पहली बार अकिला स्टीमर से आग पर जीवनरक्षक नौकाओं को फायर करने का आदेश दिया। फिर, प्रतीक्षा के साथ परेशान न होने का फैसला करने के बाद, उन्होंने चालक दल से पहले यात्री जहाज "फलाबा" को डूबो दिया और यात्रियों ने इसे छोड़ दिया था। महिलाओं और बच्चों सहित 104 आदमी को मार डाला। 7 मई एक घटना हुई जो पानी के नीचे युद्ध के प्रतीकों में से एक बन गई और पूरी दुनिया के युद्ध के आगे के पाठ्यक्रम को गंभीरता से प्रभावित किया। U-20 पनडुब्बी, जो कि कैप्टन वाल्टर श्वाइगर के पास है, आयरलैंड के तट पर एक विशाल लुसिटानिया यात्री जहाज डूब गया। जब जहाज न्यूयॉर्क में था, तब समाचार पत्रों के माध्यम से अमेरिका में जर्मन दूतावास ने विमान पर संभावित हमले की चेतावनी दी थी, लेकिन लोग टिकट खरीदना जारी रखा। मई 7 पर, स्टीमर को U-20 द्वारा देखा गया था, जो उस समय तक एक टॉरपीडो को छोड़कर लगभग सभी गोला बारूद का उपयोग कर चुका था, और बेस पर लौटने वाला था। हालांकि, इस तरह के एक स्वादिष्ट लक्ष्य को पाकर, श्वीगर ने अपना विचार बदल दिया। सबसे बड़ा महासागर लाइनर टारपीडो था। पहले विस्फोट के तुरंत बाद, एक और विनाशकारी दूसरा विस्फोट सुनाई दिया। यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य में न्यायिक आयोगों ने निष्कर्ष निकाला कि एयरलाइनर पर दो टॉरपीडो द्वारा हमला किया गया था। U-20 Schwierr के कमांडर ने तर्क दिया कि उन्होंने लोरितानिया में केवल एक टारपीडो को निकाल दिया था। दूसरे धमाके की उत्पत्ति की व्याख्या करने वाले कई संस्करण हैं, विशेष रूप से, स्टीम बॉयलरों को नुकसान, कोयले की धूल विस्फोट, जर्मनी में स्थानापन्न करने के लिए जानबूझकर कम करके या गोला-बारूद के अवैध विस्फोट को पकड़ में रखने के लिए। यह बहुत संभावना है कि अंग्रेजों ने गोला-बारूद को बोर्ड पर पहुंचाया, हालांकि उन्होंने इससे इनकार कर दिया। नतीजतन, यात्री लाइनर डूब गया, लगभग सौ बच्चों सहित 1198 लोगों की मौत हो गई। मृतकों की संख्या में 128 अमेरिकी शामिल हैं, जिनमें "समाज की क्रीम" शामिल है, जिसने अमेरिका में आक्रोश की लहर पैदा कर दी थी। वाशिंगटन बर्लिन के बहाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था, जो संकेत देता था कि पोत एक ध्वज के बिना और एक छायांकित नाम के साथ जा रहा था, यात्रियों को खतरे से आगाह किया गया था, कि लुसिटानिया के टारपीडो के कारण उसके गोला बारूद की तस्करी हो रही थी। कि जर्मन सैन्य कमान लाइनर को सहायक क्रूजर के रूप में मानती थी। जर्मनी को एक तेज नोट भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी सरकार इस तरह की त्रासदी की पुनरावृत्ति, अमेरिकी नागरिकों की मौत और व्यापारी जहाजों पर हमलों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं दे सकती है। मई 21 पर, व्हाइट हाउस ने जर्मनी को सूचित किया कि जहाज पर किसी भी बाद के हमले को संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा "जानबूझकर अमित्र कदम" माना जाएगा। 15 मई 1915 से लंदन समाचार समाचार पत्र के संस्करण में डूब "लुसीतानिया" का चित्रण। Отношения между странами крайне обострились. Газеты начали писать о скором вступлении США в войну на стороне Антанты. В Англии и США развернулась пропагандистская кампания о варварстве немецких подводников. Экс-президент США Теодор Рузвельт сравнил действия германского флота с «пиратством, превосходящим по масштабам любое убийство, когда-либо совершавшееся в старые пиратские времена». Командиры немецких подлодок были объявлены нелюдями. Черчилль цинично писал: «Несмотря на весь ужас произошедшего, мы должны рассматривать гибель «Лузитании» как важнейшее и благоприятное для стран Антанты событие. . . . Бедные дети, которые погибли в океане, ударили по германскому режиму беспощаднее, чем, возможно, 100 тысяч жертв». Есть версия, о том, что британцы фактически спланировали гибель лайнера, чтобы подставить немцев. जर्मन सैन्य-राजनीतिक नेतृत्व की योजनाओं में इस तरह की वृद्धि बिल्कुल भी नहीं थी। इस बार, बैठक में चांसलर बेट्टमैन-गोलवेग, जिसमें कैसर विल्हेम द्वितीय, उप विदेश मंत्री के रूप में राजदूत ट्रेटलर, ग्रैंड एडमिरल तिरपिट्ज़, एडमिरल बाचमन, मुलर भी शामिल थे, ने सक्रिय पानी के नीचे युद्ध को रोकने का सुझाव दिया। जनरल स्टाफ के प्रमुख फल्केनहिन ने भी राजनेताओं का समर्थन किया, उनका मानना था कि जर्मन सेना जमीन पर निर्णायक सफलता हासिल कर सकती है। नतीजतन, कैसर पनडुब्बी युद्ध को सीमित करने की आवश्यकता के बारे में आश्वस्त था। कील के बंदरगाह में अन्य नौकाओं के बीच सबमरीन U-20 (बाएं से दूसरी) जर्मन पनडुब्बी के लिए वर्ष के 1 जून 1915 ने नए प्रतिबंध लगाए हैं। अब से, उन्हें बड़े यात्री जहाजों को डूबने से मना किया गया था, भले ही वे ब्रिटिश से संबंधित हों, साथ ही साथ किसी भी तटस्थ जहाज। तिरपिट्ज़ और बछमन ने इस फैसले के विरोध में इस्तीफा दे दिया, लेकिन कैसर ने इसे स्वीकार नहीं किया। यह ध्यान देने योग्य है कि प्रतिबंधों के बावजूद, जर्मन पनडुब्बी बेड़े अभी भी दुश्मन के जहाजों को सक्रिय रूप से डूब रहा था। अगले महीनों में, डूबे हुए जहाजों की संख्या पिछले महीनों की तुलना में बढ़ गई। मई में, 66 जहाज डूब गए, जून में पहले से ही 73, जुलाई में - 97। उसी समय, जर्मनों ने पनडुब्बियों में लगभग नुकसान नहीं उठाया। मई में, उत्तरी सागर में जून में एक भी पनडुब्बी नहीं मरी, दो (U-14 और U-40)। मित्र राष्ट्र अभी भी एक प्रभावी पनडुब्बी रोधी रक्षा स्थापित नहीं कर सके। अगस्त में, 1915 सहयोगियों ने पहले से ही 121 हजार टन की कुल क्षमता के साथ 200 पोत खो दिया। लेकिन जल्द ही एक और घटना हुई, जिसने अंत में पनडुब्बी युद्ध का पहला चरण पूरा किया। अगस्त 19 पर, जर्मन U-24 पनडुब्बी ने अरबिका यात्री जहाज को डूबो दिया। उसी समय, 44 लोगों की मृत्यु हो गई। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपना कड़ा विरोध दोहराया, माफी और नुकसान की मांग की। वाशिंगटन में जर्मन राजदूत ने फिर से अमेरिकी सरकार को आश्वस्त किया कि पनडुब्बी युद्ध सीमित होगा। 26 अगस्त, जर्मन काउंसिल ने पनडुब्बी संचालन पर रोक लगाने का फैसला किया। जर्मनी के अगस्त 27 पनडुब्बी बेड़े ने स्थिति स्पष्ट करने के लिए सैन्य अभियानों को बाधित करने का आदेश दिया। पनडुब्बी युद्ध के लिए 30 अगस्त नए नियम पेश किए गए थे। पनडुब्बी बेड़े को इंग्लैंड के पश्चिमी तट और अंग्रेजी चैनल में ऑपरेशन के क्षेत्र को छोड़ने का आदेश दिया गया था। इसके अलावा, अब जहाजों को केवल समुद्र के कानून के तहत डूबने की अनुमति दी गई थी। यात्री जहाजों को डूबने से मना किया गया था, मालवाहक जहाज डूबने के लिए नहीं थे, लेकिन जब्त करने के लिए। इस प्रकार, पानी के नीचे युद्ध का पहला चरण समाप्त हो गया। पानी के नीचे युद्ध के पहले चरण में पनडुब्बी बेड़े की काफी संभावनाएं दिखाई दीं, खासकर जब पनडुब्बी रोधी रक्षा अप्रभावी थी। युद्ध की शुरुआत के बाद से, जहाज 1 300 000 टन के कुल विस्थापन से डूब गए थे। जर्मनी ने विभिन्न कारणों से 22 पनडुब्बियों को खो दिया। हालांकि, यह स्पष्ट था कि जर्मनी ने पनडुब्बी बेड़े की क्षमताओं को कम करके आंका था। वह इंग्लैंड की नौसेना की नाकाबंदी की ओर नहीं जा सका। ब्रिटेन के राज्य पर अंडरवाटर युद्ध का बहुत कम प्रभाव था। इंग्लैंड में बहुत अधिक वाणिज्यिक और नौसेना थी। जर्मनी के पास कुछ पनडुब्बी थीं और वे अभी भी परिपूर्ण से बहुत दूर थीं। इसके अलावा, यात्री जहाजों और नागरिकों की मौत के साथ पानी के नीचे युद्ध ने दुनिया में एक महान नकारात्मक प्रतिक्रिया का कारण बना। इसके अलावा, सरकार को फेंकने, जिसने एक पूर्ण पैमाने पर पनडुब्बी युद्ध शुरू करने की हिम्मत नहीं की, पनडुब्बी को रोका। जर्मन एडमिरलों और सैन्य भूमि कमांड के निरंतर हस्तक्षेप के साथ दृढ़ता से हस्तक्षेप किया। नतीजतन, एडमिरल्स बच्चन और तिरपिट्ज़ ने इस्तीफा दे दिया। कैसर ने तिरपिट्ज़ को राजनीतिक कारणों से छोड़ दिया (वे लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थे)। नौसिखिया मुख्यालय के प्रमुख के पद पर बछमन को जेनिंग वॉन होल्त्ज़ोफ़र्ड द्वारा बदल दिया गया, जो चांसलर के करीबी व्यक्ति थे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के पक्ष में थे। उन्होंने पनडुब्बी के बेड़े के तह संचालन के पाठ्यक्रम को जारी रखा। सच है, वॉन होल्त्ज़ोर्फ ने जल्द ही अपने विचारों को संशोधित किया और कैसर और सरकार को कई ज्ञापन भेजे, जिसमें उन्होंने असीमित पनडुब्बी युद्ध को फिर से शुरू करने की आवश्यकता का तर्क दिया। उत्तरी सागर में "सीमित" पनडुब्बी युद्ध जारी रहा। आयरलैंड और पश्चिमी इंग्लैंड के तट पर, जर्मनों ने पानी के नीचे खननकर्ताओं की मदद से लड़ने पर ध्यान केंद्रित किया, जिसने बंदरगाहों और तटों पर खदानें बिछाईं। लेकिन केवल एक्सएनयूएमएक्स खानों को ले जाने वाली छोटी पनडुब्बियां दुश्मन के बेड़े की स्थिति को बहुत प्रभावित नहीं कर सकीं। जर्मन पनडुब्बी युद्ध के अन्य सिनेमाघरों में संचालितः भूमध्यसागरीय, काले और बाल्टिक समुद्रों में। यह सच है, इंग्लैंड के आसपास के समुद्रों में सैन्य अभियानों की गतिविधि से कई बार ऑपरेशन का पैमाना घटिया था। उदाहरण के लिए, काला सागर में केवल कुछ जर्मन पनडुब्बियां थीं, जो मुख्य रूप से टोही में लगी हुई थीं और रूसी बेड़े के लिए गंभीर खतरा पैदा नहीं कर सकती थीं। अंडरवाटर युद्ध भूमध्य में अधिक सक्रिय था, जहां ऑस्ट्रियाई और जर्मन पनडुब्बियों ने इटली, फ्रांस और ग्रेट ब्रिटेन के जहाजों पर हमला किया था। बाल्टिक सागर पर पनडुब्बी युद्ध भी आयोजित किया गया था, हालांकि रूसी और ब्रिटिश पनडुब्बियां यहां बहुत सक्रिय थीं। इसी समय, जर्मनों ने पनडुब्बी बेड़े की शक्ति को सक्रिय रूप से बढ़ाना जारी रखा और नई पनडुब्बियों का निर्माण किया। उन्होंने नाकाबंदी तोड़ने और रणनीतिक माल पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किए गए वास्तविक महासागर पनडुब्बी क्रूजर का निर्माण शुरू किया। इन पनडुब्बियों की एक बढ़ी हुई सीमा थी। वे शक्तिशाली हथियार प्राप्त करने वाले थेः 2 500-mm बंदूक, 18 2-mm बंदूक, 150 2-mm बंदूक में गोला बारूद के साथ 88 1500-mm टारपीडो ट्यूब। पहले जन्म के दो जहाज थे "Deutschland": "Deutschland" और "Bremen"। उनके पास 12 टन से अधिक का विस्थापन था, 5 / 25 नोड्स की पानी के नीचे की गति और XNUMX हजारों मील की भारी स्वायत्तता थी। पहली पनडुब्बी "Deutschland", जून 1916 में, रणनीतिक कच्चे माल के भार के लिए अमेरिका की एक परीक्षण यात्रा की। अधिकांश भाग के लिए, नाव सतह पर थी और केवल जब एक जहाज दिखाई दिया, पानी के नीचे चला गया और पेरिस्कोप के उपयोग के साथ चला गया, और अगर यह जोखिम भरा लग रहा था, तो यह पूरी तरह से पानी में छिपा हुआ था। बाल्टीमोर में इसकी उपस्थिति, जहां पनडुब्बी टन के रबर, 350 टन निकेल, 343 टन जस्ता और आधा टन जूट बोर्ड 83 पर लाई, ने दुनिया में एक बड़ी प्रतिध्वनि पैदा की। जर्मनी में ऐसे पनडुब्बी क्रूजर की उपस्थिति का मतलब था कि अब जर्मन अपने ठिकानों से काफी दूरी पर दुश्मन जहाजों पर हमला कर सकते हैं, जिसमें अमेरिका के तट भी शामिल हैं। अंग्रेजों ने पनडुब्बी को रोकने की कोशिश की, लेकिन अगस्त 24 पर वह सुरक्षित जर्मनी लौट आई। सितंबर में, जर्मनी ने प्रयोग दोहराने का फैसला किया। दो और नावों को संयुक्त राज्य के तटों पर भेजा गया - एक और पनडुब्बी क्रूजर ब्रेमेन और एक पनडुब्बी U-XNXX। "ब्रेमेन" अमेरिका नहीं पहुंचा, यह कहीं मर गया। और U-53 सुरक्षित रूप से न्यूपोर्ट पहुंचा, वहां ईंधन भरा और फिर से समुद्र में चला गया। लॉन्ग आइलैंड के तट से, उसने सात अंग्रेजी व्यापारिक जहाजों को डूबो दिया। तब पनडुब्बी सफलतापूर्वक हेलगोलैंड द्वीप पर बेस में लौट आई। नवंबर में, Deutschland ने 53 मिलियन डॉलर के कार्गो के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक और उड़ान भरी, जिसमें कीमती पत्थर, प्रतिभूति और दवाएं शामिल थीं। वह सफलतापूर्वक जर्मनी लौट आई। फरवरी में, पनडुब्बी क्रूजर 10 को जर्मन शाही बेड़े में स्थानांतरित कर दिया गया था और पानी के नीचे परिवहन से एक U-1917 सैन्य पनडुब्बी में फिर से बनाया गया था। जहाज ने एक्सएनयूएमएक्स को एक्सएनयूएमएक्स टॉरपीडो और दो एक्सएनयूएमएक्स-एमएम तोपों के साथ टारपीडो ट्यूबों से सुसज्जित किया। इस प्रकार, जर्मन पनडुब्बी से पता चला है कि वे अब दुश्मन की ट्रान्साटलांटिक व्यापार लाइनों पर कार्य कर सकते हैं। 1916 के अंत तक, केंद्रीय शक्तियों का मार्शल कानून तेजी से बिगड़ना शुरू हो गया। वर्ष के 1916 अभियान के दौरान, जर्मनी पश्चिम या पूर्व में निर्णायक सफलता हासिल नहीं कर सका। मानव संसाधनों में कमी, कच्चे माल और भोजन की कमी थी। यह स्पष्ट हो गया कि हमले के युद्ध में जर्मन ब्लॉक हार की प्रतीक्षा कर रहा था। जर्मनी में, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि एक "निर्दयी" पनडुब्बी युद्ध को नवीनीकृत किया जाना चाहिए। जैसा कि सैन्य इतिहासकार ए. एम. इनमें से, 1917 मिलियन टन सैन्य जरूरतों के लिए थे, शेष 16 मिलियन टन वर्ष के दौरान देश के जीवन के लिए आवश्यक थे। अगर हम कुल टन भार के बड़े प्रतिशत को नष्ट करने का प्रबंधन करते हैं, और तटस्थ जहाजों को डूबने की आशंका है, तो वे इंग्लैंड के लिए अपनी यात्राओं को समाप्त कर देंगे, फिर युद्ध की निरंतरता बाद के लिए असंभव होगी। " एक्सएनयूएमएक्स दिसंबर एक्सएनयूएमएक्स ऑफ द ईयर वॉन होल्टजॉन्डर ने चीफ ऑफ जनरल स्टाफ फील्ड मार्शल हिंडनबर्ग को एक व्यापक ज्ञापन के साथ संबोधित किया। दस्तावेज़ में, एडमिरल ने एक बार फिर एक अप्रतिबंधित पनडुब्बी युद्ध शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह माना जाता था कि अगर इंग्लैंड को युद्ध से हटा लिया गया, तो पूरे एंटेंटे पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा, जो ब्रिटिश बेड़े की क्षमताओं पर निर्भर था। यह स्पष्ट है कि अमेरिकी युद्ध में प्रवेश करने के जोखिम को ध्यान में रखा गया था। हालांकि, एक असीमित पानी के नीचे के युद्ध के समर्थकों का मानना था कि भले ही वाशिंगटन एंटेंटे के साथ बैठे, लेकिन कोई विशेष खतरा नहीं था। संयुक्त राज्य अमेरिका के पास एक बड़ी भूमि सेना नहीं है जो फ्रांसीसी थिएटर में अपने सहयोगियों को मजबूत करेगी और अमेरिका पहले से ही एंटेंट देशों का समर्थन करता है। इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका के यूरोप में काफी बल बनाने और स्थानांतरित करने से पहले जर्मनों ने इंग्लैंड को अपने घुटनों पर लाने की आशा की। परिणामस्वरूप, वर्ष की जर्मन सरकार 27 जनवरी 1917 ने समुद्र में अप्रतिबंधित पनडुब्बी युद्ध को फिर से शुरू करने का फैसला किया। जनवरी 31 बर्लिन ने दुनिया को एक अप्रतिबंधित पनडुब्बी युद्ध की शुरुआत के बारे में सूचित किया है। 1916 के अंत में अंडरवाटर युद्ध - 1917 की शुरुआत। दिसंबर 9 1916 इंग्लैंड ने अंग्रेजी चैनल में तीन नागरिक स्टीमबोट्स की बाढ़ की सूचना दी। दिसंबर 11 पर, अंग्रेजी चैनल में, एक जर्मन पनडुब्बी ने स्टीमर रकीउरा को डूबो दिया, जो तटस्थ नॉर्वे का झंडा उडा रहा था। चालक दल भागने में सफल रहा। उसी दिन, सिसिली के तट से दूर, जर्मन पनडुब्बी UB-47 ब्रिटिश परिवहन मैगलन को डूब गई। 20 दिसंबरः एक जर्मन U-38 पनडुब्बी ने माल्टा के उत्तर-पूर्व में 72 मील में ब्रिटिश जहाज ईटन को डूबो दिया। 27 दिसंबर 1916, जर्मन UB-47 पनडुब्बी लेफ्टिनेंट-कमांडर स्टीनबॉयर की कमान के तहत सिसिली के तट से दूर, फ्रांसीसी युद्धपोत गोलुआ को खदेड़ दिया गया था। चालक दल को निकालने में कामयाब रहे, 4 आदमी को मार डाला। 1917 की शुरुआत के साथ, जर्मनों ने नाटकीय रूप से अपने पनडुब्बी बेड़े को आगे बढ़ाया। उसी पनडुब्बी के 1 जनवरी 1917 को पास में ही गिरा दिया गया और ब्रिटिश एयरलाइनर इवरनिया को डूबो दिया गया, जो मिस्र में सैनिकों को पहुंचा रही थी। चालक दल के कुशल कार्यों के लिए धन्यवाद, अधिकांश सैनिक नावों में भागने में सक्षम थे, 36 लोग मारे गए थे। केवल एक दिन में जनवरी के 2 वे डूब गए (मुख्य रूप से बिस्क की खाड़ी में और पुर्तगाल के तट से दूर) 12 जहाज - वाणिज्यिक जहाजों के 11 जो नॉर्वे, इंग्लैंड, फ्रांस, ग्रीस और स्पेन के थे, और रूसी युद्धपोत Peresvet। बाल्टिक में 19 वीं - 20 वीं शताब्दियों के मोड़ पर निर्मित पेर्सवेट तीन अलग-अलग युद्धपोतों (श्रृंखला में ओस्लीबिया और पोबेडा) की श्रृंखला का प्रमुख जहाज था। 1902, जहाज पोर्ट आर्थर में पहुंचा। रूसी-जापानी युद्ध के दौरान, यह जहाज पोर्ट आर्थर के बंदरगाह में डूब गया था, फिर जापानी द्वारा उठाया गया, मरम्मत की गई और "सागामी" नाम के तहत ऑपरेशन में डाल दिया गया। आर्कटिक महासागर के फ्लोटिला के लिए जहाजों की आवश्यकता के संबंध में, और संभव भागीदारी के लिए भी, कम से कम प्रतीकात्मक रूप से, भूमध्यसागरीय में मित्र राष्ट्रों के संचालन में, एक्सएनयूएमएक्स में रूस ने जापान को युद्ध ट्राफियां के रूप में विरासत में प्राप्त पूर्व रूसी जहाजों को बेचने के लिए कहा। । जापानी केवल तीन पुराने जहाजों को स्वीकार करने के लिए सहमत हुएः युद्धपोत "टैंगो" (पूर्व "पोल्टावा") और "सगास" और क्रूजर "सोया" (पूर्व "वैराग")। सगामी की खरीद रूस 7 मिलियन येन की लागत। 21 मार्च 1916, तीनों जहाज व्लादिवोस्तोक पहुंचे। अक्टूबर 1916 में, मरम्मत के बाद, पेरेज़वेट स्वेज नहर के माध्यम से यूरोप गया। यह माना जाता था कि इंग्लैंड में जहाज का ओवरहाल सबसे पहले किया जाएगा, और फिर वह रूसी उत्तरी फ्लोटिला में शामिल होगा। लेकिन 2 में जनवरी में 1917 10 में पोर्ट नेन से 17. 30 में "Relight" धनुष द्वारा उड़ा दिया गया था और एक ही बार में दो खानों पर कठोर हो गया था। जहाज तेजी से डूब गया, और कमांडर ने चालक दल को भागने का आदेश दिया। केवल एक स्टीमबोट इसे कम करने में कामयाब रही। 17. 47 में, Peresvet पर इत्तला दे दी और डूब गया। आस-पास के अंग्रेजी विध्वंसक और फ्रांसीसी ट्रॉलर ने 557 लोगों को पानी से बाहर निकाल दिया, जिनमें से कई बाद में घाव और हाइपोथर्मिया से मर गए। मारे गए 252 टीम के सदस्य Peresvet। बाद में यह पता चला कि जहाज एक माइनफील्ड पर मारा गया था, जिसे जर्मन पनडुब्बी यू-एक्सएनयूएमएक्स द्वारा उजागर किया गया था। अगले कुछ दिनों में, भूमध्य सागर में जर्मन पनडुब्बियों और एंटेन्ते देशों और तटस्थ देशों के जहाज के बेस्क की खाड़ी में डूब गए - मुख्य रूप से कार्गो स्टीमर और ट्रैवेलर्स। जनवरी में बिस्काय की खाड़ी में 54 से 9 तक, इंग्लिश चैनल, नॉर्थ, मेडिटेरेनियन और बाल्टिक सी, जर्मन पनडुब्बियों ने 15 जहाज डूबे (अधिकांश ब्रिटिश थे, लेकिन फ्रेंच, नार्वे, डेनिश, स्वीडिश)। जर्मन पनडुब्बी को केवल एक नुकसान हुआ - जनवरी 29 पर, UB-14 पनडुब्बी अंग्रेजी चैनल में डूबी हुई थी। जनवरी 17 पर, अटलांटिक महासागर में, मदीरा के पुर्तगाली द्वीप के पास, जर्मन सहायक क्रूजर "मावे" ने अंग्रेजी व्यापारी जहाज को डूबो दिया। जनवरी में 16 से 22 तक, अटलांटिक महासागर में जर्मन पनडुब्बी डूब गई (मुख्य रूप से पुर्तगाल के तट और बिस्के की खाड़ी में) और भूमध्य सागर में एंटेन्ते देशों और तटस्थ देशों के वाणिज्यिक जहाजों की कुल 48। जनवरी में 23 और 29 के बीच, जर्मन U- नौकाओं ने 48 स्वीडिश, 1 स्पेनिश, 3 नार्वेजियन, 10 डेनिश और 1 डच सहित कुल 1 जहाज डूबे, इन देशों की तटस्थता के बावजूद। जनवरी में एक जर्मन पनडुब्बी द्वारा निर्धारित खदान पर आयरिश सागर में 25, ब्रिटिश सहायक क्रूजर "लॉरेंटिक" से टकराया। क्रूजर ने लिवरपूल से हैलिफ़ैक्स (कनाडा) तक पीछा किया और पहले से ही उत्तरी जलडमरूमध्य से बाहर निकलने के दौरान एक जर्मन खदान में आया। बोर्ड पर 378 लोगों की हत्या की। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शाही बेड़े के अन्य नुकसानों और अन्य बेड़े की तुलना में इस त्रासदी को हमेशा की तरह माना जा सकता था। इसके अलावा, लॉरेंटिक खुद भी एक युद्धपोत नहीं था और ब्रिटिश बेड़े की एक मूल्यवान इकाई नहीं था। यह एक यात्री लाइनर था, जल्दबाजी में युद्ध से पहले एक सहायक क्रूजर में परिवर्तित हो गया। इसका एकमात्र लाभ केवल एक उच्च गति था। हालाँकि, इस जहाज की मृत्यु ने ब्रिटिश सरकार का सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया। जिस स्थान पर क्रूजर की मृत्यु हुई उसे तुरंत ब्रिटिश जहाजों के संरक्षण में ले जाया गया। बेड़े की कमान को गोताखोरों के आने का बेसब्री से इंतजार था। कारण यह था कि 3200 सोने की सलाखों से अधिक, यूके गोल्ड भंडार से लगभग 64 टन के कुल वजन के साथ 43 किलोग्राम वजन वाले बक्से में पैक किया गया, नीचे तक गया। क्रूजर ने उससे पहले मौजूद सभी रिकॉर्डों को तोड़ दिया, फिर भी एक भी जहाज ने इतना सोना नहीं उड़ाया। यूके के लिए खाद्य और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति के भुगतान के रूप में अमेरिकी सरकार के लिए सोने का इरादा था। यह ध्यान देने योग्य है कि युद्ध के दौरान, वाशिंगटन एंटेंटे देशों और तटस्थ शक्तियों की आपूर्ति में बहुत समृद्ध था, और एक देनदार से एक वैश्विक लेनदार में बदल गया, क्योंकि युद्धरत शक्तियों को अमेरिकी आपूर्ति के लिए सोने में भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया था, और संयुक्त राज्य से ऋण भी लिया था। इस जहाज का नुकसान ब्रिटिश वित्त पर भारी पड़ा। जल्द ही जहाज की मृत्यु के स्थान पर गोताखोर आ गए। पानी के नीचे पहले वंश ने डूबे क्रूजर का पता लगाने और आगे के काम की योजना की रूपरेखा तैयार करने की अनुमति दी। जहाज बंदरगाह की तरफ स्थित था, इसका ऊपरी डेक समुद्र की सतह से केवल 18 मीटर था। पानी के भीतर काम के लिए एक विशेष जहाज विशेष उपकरण के साथ पहुंचा। चूंकि एडमिरल्टी को स्वयं जहाज को बचाने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन केवल इसकी सामग्री प्राप्त करने के लिए, विस्फोटक का उपयोग करने का निर्णय लिया गया था। काम की शुरुआत सफल रही, कई बक्से उठाए गए। लेकिन फिर एक तूफान आया जो पूरे एक सप्ताह तक चला। जब बचाव दल "लॉरेंटिक" में लौट आए, तो वे एक उदास दृष्टि से इंतजार कर रहे थे। तूफान की लहरों के प्रहार के तहत, पोत के पतवार को एक समझौते में बदल दिया गया था, जिसके माध्यम से गोताखोरों ने अपने पहले खोज को एक दरार में बदल दिया। जहाज भी स्थानांतरित हो गया और 30 मीटर की गहराई तक डूब गया। जब गोताखोरों ने खजाने के लिए अपना रास्ता साफ किया, तो वे यह जानकर हैरान रह गए कि सारा सोना गायब हो गया था। यह पता चला कि तूफान की कार्रवाई के तहत क्रूजर शीथिंग फैल गया, सभी सोना नीचे गिर गया और कहीं न कहीं, स्टील के टुकड़ों के नीचे था। नतीजतन, काम में जोरदार देरी हुई। विस्फोटकों की मदद से गोताखोरों ने अपना रास्ता बनाया, सोने की तलाश में। 1917 के पतन में, एक तूफान की अवधि की शुरुआत के कारण काम अस्थायी रूप से बाधित हो गया था। चूंकि अमेरिका ने एंटेंट के किनारे युद्ध में प्रवेश किया था, इसलिए काम को पश्चात की अवधि के लिए स्थगित कर दिया गया था। केवल 1919 में, बचाव जहाज फिर से क्रूजर की मृत्यु के स्थान पर पहुंच गया। और फिर से गोताखोरों को फिर से शुरू करना पड़ा। अब उन्हें पत्थरों और रेत को साफ करना था, जो एक घने द्रव्यमान में संकुचित थे और सीमेंट के समान थे। विस्फोटकों का उपयोग करना असंभव था, सोना अंततः सो जाएगा। क्रॉबर और होसेस का उपयोग करने वाले गोताखोर, जिनके माध्यम से उच्च दबाव में पानी की आपूर्ति की गई थी, "सीमेंट" के टुकड़े तोड़ दिए और उन्हें सतह पर भेज दिया। परिणामस्वरूप, 1924 वर्ष तक काम जारी रहा। खोज के दौरान, एक विशाल महासागर लाइनर को सचमुच टुकड़ों में काट दिया गया और समुद्र के तल के साथ खींच लिया गया। पूरी खोज अवधि के दौरान, गोताखोरों ने 5000 से अधिक गोता लगाया और लगभग सारा सोना ब्रिटिश खजाने को लौटा दिया। ब्रिटिश सहायक क्रूजर "लॉरेंटिक" अप्रतिबंधित पनडुब्बी युद्ध के पहले पांच दिनों में, जिसे आधिकारिक तौर पर जनवरी 31 पर एक्सएनयूएमएक्स घोषित किया गया था, एंटेंटे देशों के एक्सएनयूएमएक्स जहाज और एक अमेरिकी सहित तटस्थ शक्तियां अटलांटिक महासागर और भूमध्य सागर में पनडुब्बियों द्वारा डूब गईं थीं। फरवरी में 1917 और 60 के बीच, जर्मन पनडुब्बियों ने तटस्थ देशों से 6 जहाजों सहित 12 जहाजों को भर दिया। फरवरी में 77 से 13 तक की अवधि के दौरान, जर्मनों ने एंटेंट देशों और तटस्थ राज्यों के और भी अधिक व्यापारी जहाज डूबे - 13। 19 और 96 फरवरी के बीच, जर्मन 20 जहाज से डूब गए। फरवरी 26 से मार्च 71 तक, जर्मन पनडुब्बियों ने 27 जहाजों को भर दिया। 1917 के पहले तीन महीनों में, जर्मन पनडुब्बी 728 1 168 टन के कुल विस्थापन के साथ 000 जहाज डूब गए। परिणामस्वरूप, औसतन जर्मन इन महीनों के दौरान प्रति दिन 8 जहाजों को डुबो देते हैं। सच है, उनके नुकसान में भी वृद्धि हुई है - तीन महीने में एक्सएनयूएमएक्स पनडुब्बियां। हालांकि, नई पनडुब्बियों के निर्माण की गति भी बढ़ गई और जर्मनी में इसी अवधि के लिए एक्सएनयूएमएक्स पनडुब्बी जहाज का निर्माण किया। मुख्य समस्या अब प्रशिक्षित कर्मियों की कमी थी।
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किं योगेः किं विरागेश्च जपैरन्यैः किमर्चनैः । यन्त्रेर्मन्त्रेस्तथा तन्त्रैः किमन्येरुप्रकर्मभिः ॥ स्मरणात्कीर्तनाच्चैव श्रवणाल्लेखनादपि । दर्शनाडारणदेव रामनामाखिनेष्टदम् ॥ तीर्थों और व्रतों से तथा होम और तप से क्या होता है ? यज्ञ दान और ध्यान तथा ज्ञान, विज्ञान और समाधि से क्या होता है ? योग, वैराग्य, जप, पूजन, यंत्र, मंत्र तथा तंत्रों से और उग्र क्मों से क्या होता है ? रामनाम के स्मरण करने से, कीर्तन से, श्रवण से लिखने से, दर्शन से ही सब इष्टफलों की प्राप्ति होती है। गुरुजी का न ठीक है - विना नाम के जपे कोई परमेश्वर को कदापि ध्यारा नहीं हो सका है। ५० -- इस लोक और परलोक के जो विषय भोग हैं उनकी प्राप्ति साधनों ही से होती है या विना साधनों के भी १ उ० । मू० - जेती सृष्ट उपाई वेषांविणकर्मा किमिलेलई । टी० - इस जगत् में ईश्वर की उत्पन्न की हुई जितनी सृष्टि तुम देखते हो उसमें से किसी को भी विणकर्मा, त्रिना कर्मों के क्या कुछ भी मिलता है ? कुछ भी नहीं मिलता । अर्थात् सत्र सांसारिक भोग जन्मान्तर के कर्मों के अधीन ही है । जिसने पूर्व जन्म में जैसे कर्म किये हैं, उन्हें उनके अनुसार ही दूसरे जन्म में फल मिलता है । विना कर्म के कुछ भी नहीं मिलता है । एक दृष्टांत भी है - एक राजा की दो कन्याएँ थीं । जिस समय राजा अपने घर में जाता, तो छोटी कन्या कहती - - राजन् ! तुम्हारी सदा जय हो। आप ही के मताप से हम सब लोग जीते हैं। दूसरी जो बडी कन्या थी वह कहती राजन् ! जन्मान्तर के पुण्य-कर्मों के फल को भोगो । प्रतिदिन छोटी और बडी दोनों ऊपरवाली बातों को कहतीं । एक दिन राजा को वडी क्न्या के ऊपर क्रोध थाया । बजीर को बुलाकर राजा ने कहा किसी गरीब और दुःखी लड़के के साथ इस बढी कन्या की शादी करके इस देश से दोनों को निकाल दो । वजीर राजा की आज्ञा सुनकर बाजार में लड़के की खोज में निकला । आगे एक दूसरे राजा के घर एक लड़का पैदा हु था । जब वह वड़ा हुआ, तो उसको एक वडा रोग लग गया। वह रोग अनेक उपायों से भी जब दूर न हुआ तब वह लड़का दुःखी होकर अपने देश से रात्रि में फकीर वनकर इस नगर में भाग थाया था । उसी लड़के को वजीर ने देखा । यतेि दुबला, पतला और चलने में असमर्थ । अति मलिन वस्त्रों को पहरे हुए बाजार में भीख माँग रहा है। वजीर ने उस लड़के को पकड़कर उसके साथ राजा की बड़ी लड़की की शादी कर दोनों को अपने देश से निकाल दिया। वह कन्या उस लड़के को साथ लेकर दूसरे देश में चली गई । एक दिन सवेरे चलते-चलते जब दोनों थक गए तब एक ग्राम के बाहर एक कूप के पास जाकर दोनों बैठ गए। थोड़ी देर के बाद उस लड़के को वहाँ पर बिठाकर कन्या ग्राम में भिक्षा माँगने गई । वह लड़का वहीं सो • गया । उसके भीतर एक पतला और लंबा सांप घुसा हुआ था । वही उसका रोग था । वह साँप उसके मुख से श्राधा निकलकर, वहाँ पर एक बिल थी। उस बिल में भी एक साँप रहता था, उस विलपर सिर घरकर, विलवाले साँप से बातें करने लगा। बिलवाले साँप ने उससे कहा तुम क्यों गरीब को दुःख देते हो ? यदि कोई काँजी या खट्टी या इस लड़के को पिलावे, तो तुम टुकड़े-टुकड़े होकर इसके मुख से बाहर आजायोगे । बिलवाले से उसने भी कहा कि यदि कोई तुझार गरम पानी डाले तब तुम भी मर जाओ और जिस द्रव्यपर तुम बैठे हो उसके हाथ लग जाय । इतने में कन्या आ गई और उसने दोनों की बातों को सुना । सुनकर तुरंत फिर ग्राम में चली गई और किसी के घर से कॉजी मॉग लाई और उसे उस लड़के को पिला दी । तुरंत ही लड़के के उदर में से साँप टुकड़े-टुकड़े होकर मुख द्वारा गिर पड़ा और लड़के का रूप बड़ा सुंदर हो गया । शरीर निरोग्य होगया । फिर कन्या ने पानी गरम करके उस बिलवाले सांप पर डाल दिया । वह भी मर गया । उसके द्रव्य को भी कन्या ने निकाल लिया और दोनों लड़के के देश में जाकर राज्य भोगने लगे। जिसके कर्मों में सुख होता है उसको वह हर तरह से मिलता है । जिसके नहीं होना उनको किसी तरह से भी नहीं मिलता। दृष्टांत - एक बनिया बड़ा कृपण था । उसने अपने सव धन का स्वर्ण खरीद कर उसकी उन सबको दीवार में गाड़ दीं । उसके पड़ोसी को स्वप्न याया कि दीवार में स्वर्ण की बहुत सी रोणीयें गड़ी हैं उनको तुम निकाल लो। दोनों के घरों में वह दीवार एक ही थी । उसने अपनी तरफ से उसे खोदकर सब निकालकर खाने खिलाने लगा । तब वनिये ने पूछा तुमको द्रव्य कहाँ से मिला। उसने सत्र हाल कह दिया । चनिया ने राजा के पास जाकर फरयाद की । राजा ने बनिये से कहा तुम्हारे कर्मों में यह नहीं था । इसी के कर्म में था । इसको मिला । विना कर्मों के किसी को भी कुछ नहीं मिलता है। गुरुजी का कथन ठीक है कि बिना कर्मों से कुछ नहीं मिलता । जीव को उचित हैं कि कर्मों को करता ही रहे । श्रुतिस्मृति भी कर्मों के करने का ही उपदेश करती है । श्रुतिः -- कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छ तथं समाः । कमों को करता हुआ ही सौ वरस जीने की इच्छा करे । स्मृतिःश्रौतं चापि तथा स्मार्त कर्मालम्व्य वसेद्विजः । तद्विहीनः पतत्येव ह्यानम्वरहितान्धवत् ।। श्रुतिप्रतिपाद्य तथा स्मृति प्रतिपाद्य कर्मों को संसार में रहे । कर्मों से हीन हुआ अंधे की तरह आश्रय से रहित "होकर पतित हो जाता है । तात्पर्य यह है कि बिना कर्मों के ईश्वर भी कुछ फल नहीं देता । जब तक जीने कर्मों को करे । लिखा भी है-गवां सर्पिः शरीरस्थं न करोति हि पोषणम् । तदेव कर्मरचितं पुनस्तस्यैव भेषजम् ॥ एवं स्वस्त्रशरीरस्थं सर्पिर्वत्परमेश्वरम् । विना चोपासनामेव न करोति हितं नृणाम् ॥ गौ के शरीर में घृत रहता है, परंतु उसके शरीर की पुष्टि नहीं करता । वही घृत उसके दूध से निकाल कर मोषधी बनाकर जब उस को दिया जाता है तब उसके शरीर की पुष्टि करता है। इसी प्रकार घृत की तरह सबके शरीरों में परमेश्वर रहता है, परंतु विना उपासना करने के कुछ भी फल नहीं देता है। गुरुजी ने कहा भी है कि विना कमों के कुछ भी नहीं मिलता है । म० - - कर्म का स्वरूप क्या है १ कर्म कितने प्रकार के हैं ? उ० - - कर्म अनेक प्रकार के हैं। कर्म नाम क्रिया का है । क्रिया शरीर, मन, वाणी और इंद्रियों से होती है । अच्छे बुरे संकल्पों का फुरना मन की क्रिया है । अच्छे संकल्प का नाम शुभ कर्म है । बुरे संकल्पों का नाम अशुभ कर्म हैं । मन से जो शुभ अशुभ कर्म किए जाते हैं उसका फल भी मन से ही भोगा जाता है । किसी की स्तुति करनी, मिय भाषण, सत्य भाषण करना, राम राम कहना इत्यादि वारणी के शुभ कर्म हैं। किसी की चुगुली करनी, निंदा करनी, झूठ बोलना इत्यादि वाणी के अशुभ कर्म हैं । इन दोनों का फल वाणी द्वारा ही भोगा जाता है । किसी दुःखी की सेवा करनी, हाथ से अधिकारी को देना, खिनाना, इस तरह के शारीरिक शुभ कर्म हैं । परस्त्री गमन करना, जीव की हिंसा करनी, इस तरह के अशुभ कर्म शारीरिक कर्म हैं। उनका शुभ अशुभ फल शरीर द्वारा ही भोगा जाता है। कर्म यद्यपि अनेक हैं तथापि वह शरीर, मन, वाणी से ही होते है । भक्ति तथा उपासना भी मन की वृत्तिरूप क्रियाएँ हैं । ये भी कर्म के ही अंतर्भूत हो सके हैं । विना कर्म करने के संसार में कोई जीव भी नहीं रह सक्का । इस वास्ते सदैव शुभ चिंतन करना सबको उचित है; क्योंकि विना शुभ चिंतन के दोनों लोकों में सुख कदापि नहीं मिलता है। इसी वास्ते गुरुजी ने कहा है कि बिना कर्मों के कुछ भी नहीं मिलता है । - आपने कहा है कि बिना उपासना के और भक्ति के परमेश्वर पुरुषों के हित को नहीं करता है पर शरीर में रहता है सो वह समग्र
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अर्जुन, भीम और द्रौपदी- तीनो दुर्योधन से बहुत खिलाफ थे, फिर भी उन्हें युधिष्ठिर के वचनो पर ऐसा दृढ़ विश्वास था तो तुम्हे भगवान् के वचनो पर कितना अधिक विश्वास होना चाहिए । भगवान् कहते है - सिर काटने वाला वैरी भी मिच ही है । वास्तव मे तो कोई किसी का सिर काट ही नहीं सकता, किन्तु आत्मा ही अपना शिरच्छेद कर सकती है। ही अपना असली वैरी है । अर्जुन ने गन्धर्व से कहा - 'भले ही तुम हमारे हित की बात कहते होओ, मगर अपने भाई की बात के सामने में तुम्हारी बात नहीं मान सकता । मुझे अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर की बात शिरोधार्य करके दुर्योधन को तुम्हारे वन्धन से छुडाना है। अतः तुम उसे वन्धन - मुक्त कर दो। अगर यो नहीं मुक्त करना चाहते तो युद्ध करो । अगर तुमने हमारे हित के लिए कर रखा हो तो मेरा यही कहना है कि उसे छोड दो। मुझे उसकी करतूतें नहीं देखनी है, मुझे की आज्ञा का पालन करना है। उसे छोड़ दो। न दुर्योधन को छुड़ा लाया । युधिष्ठिर अर्जुन पर बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे - 'तू मेरा सच्चा भाई है ।" उन्होंने द्रौपदी से कहा- देखो, इस जगल मे कैसा मंगल हैं। इस प्रकार युधिष्ठिर ने जंगल मे और संकट के समय में वर्म का पालन किया था। मगर इस पर से आप अपने विषय में विचार करो कि आप उपाश्रय में धर्म का पालन करने या अपने अभिमान का पोषण करने ? वर्मस्थान करते ही 'निम्मी - निन्मही' कहकर अभिमान, क्रोध निषे करना चाहिए। अगर इनका निषेध किये बिना उदाहरणाला ] हैं - अपने ऊपर भले ही लाखो जुल्म करता हो, मगर यदि वह भाई किसी तीसरे द्वारा दबाया जाता हो या पीड़ित किया जाता हो तो उसे पीडा मुक्त करना भाई का धर्म है । अर्जुन पहले कहता था- दुर्योधन, गधर्व द्वारा कैद कर लिया गया, यह बहुत अच्छा हुआ। परन्तु युधिष्ठिर की आज्ञा होते ही वह गंधर्व के पास गया । उसने दुर्योधन को बंधनमुक्त करने के लिए कहा । यह सुनकर गधर्व ने अर्जुन से कहा- 'मित्र' तुम यह क्या कह रहे हो ? तुम इतना भी विचार नहीं करते कि दुर्योधन बड़ा ही दुष्ट है और तुम सबको मारने के लिए जा रहा था । ऐसी स्थिति मे मैने उसे पकड़ कर कैद कर लिया है तो बुरा क्या किया है ? इसलिए तुम अपने घर जाओ और इसे छुडाने के प्रयत्न मे मत पडो । अर्जुन ने उत्तर दिया- दुर्योधन चाहे जैसा हो आखिर तो हमारा भाई ही है, अतएव उसे बधनमुक्त करना ही पड़ेगा ।' अर्जुन तो भाई की रक्षा के लिए इस प्रकार कहता है, मगर आप लोग भाई भाई कोर्ट में मुकद्दमेबाजी तो नहीं करते ? कदाचित् कोई कहे कि हमारा भाई बहुत खराब है तो उससे यही कहा जा सकता है कि वह कितना ही खराब क्यों न हो, मगर दुर्योधन के समान खराब तो नहीं है । जब युधिष्ठिर ने दुर्योधन के समान भाई के प्रति इतनी क्षमा और सहनशीलता का परिचय दिया तो तुम अपने भाई के प्रति इतनी क्षमा और सहनशीलता का परिचय नहीं दे सकते ? मगर तुम मे भाई के प्रति इतनी क्षमा और सहनशीलता नहीं है और इसी कारण तुम भाई के खिलाफ न्यायालय मे मुकद्दमा दायर करते हो । अमर मरंता मैंने देखे ! एक सेठ का नाम उनठनपाल था । नाम ठनठनपाल होने पर भी वह बहुत धनवान था और उसकी बहुत अच्छी प्रतिष्ठा भो यो । प्राचीन काल के श्रीमन्त, श्रीमन्त होने पर भी अपना कोई काम छोड नहीं बैठते थे । आज जरा-सी लक्ष्मी प्राप्त होते ही लोग सय काम छोडछाड़ कर बैठे रहते है और ऐसा करने में ही अपनी श्रीमताई समझते है । टनटनपाल सेठ की पत्नी सेठानी होने पर भी पानी भरना, टापोमना, कूटना आदि सब घरू काम-काज अपने हाथों करती थी। अपने हाथ में किया हुआ काम जितना अच्छा होता है, उतना अच्छा दूसरे के हाथ से करवाया काम नहीं होता । परन्तु आजकल बहुत से लोग धर्मध्यान करने के बहाने से घर का काम करना छोड़ देते हैं। उन्हें यह विचार नहीं कि वर्मयान करने वाला व्यक्ति क्या कभी आलसी बन ही धर्मस्थान में आते हो तो कहना चाहिए कि धर्मतत्व से दूर हैं । भीम ने युधिष्ठिर से कहा - 'गन्धर्व द्वारा दुर्योधन के कैद होने से तो हमे प्रसन्नता हुई थी । आप न होते तो हम इसी पाप में पड़ते रहते ।। भीम का यह कथन सुनकर युधिष्ठिर ने उत्तर दिया- 'यह तो ठीक है, मगर अर्जुन जैसा भाई न होता तो मेरी आज्ञा कौन मानता ? तुम भी झस्थ हो । तुम्हारे अन्तःकरण में इस प्रकार का पापा सभव है। फिर भी आज्ञा शिरोधार्य करने का व्यान तो तुम्हे भी रखना चाहिए । भगवान् की आज्ञा है कि सब को अपना मित्र को अपराध के लिए क्षमा माँगो और दूसरो के अपराध क्षमा कर दो । इस आज्ञा का पालन करने मे ऐसी पॉलिसी का उपयोग नही करना चाहिए कि जिनके साथ लड़ाई-झगडा किया हो उनसे तो क्षमा माँगो नहीं और दूसरो से केवल व्यवहार के लिए क्षमा याचना करो । सच्ची क्षमा माँगने का और क्षमा देने का यह सच्चा मार्ग नहीं है । शत्रु हो या मित्र, सब पर क्षमाभाव रखना ही महावीर भगवान् का महामार्ग है । भगवान् के इस महामार्ग पर चलोगे तो आपका कल्याण होगा । आज युधिष्ठिर तो रहे नही मगर उनकी कही बात रह गई है, इस बात को तुम ध्यान मे रक्खो और जीवनव्यवहार मे उतारो । [ अमर मरंता मैंने देखे सारांश यह है कि लोग अपने हाथ से काम न करके दूसरो से काम कराने मे अपनी महत्ता मानते है । उन्हें इस बात का विचार ही नहीं है कि अपने हाथ से और दूसरे के हाथ से काम करने कराने मे कितना ज्यादा अन्तर है । ठनठनपाल श्रीमान् था, फिर भी उसकी पत्नी पीसना, कूटना आदि काम अपने हाथ ही से करती थी । किन्तु जब वह अपनी पड़ोसिनो से मिलती तो पडोसिने उसकी हँसी करने के लिए कहती - 'पधारो श्रीमती ठनठनपालजी " ठनठनपालजी की पत्नी को यह मजाक रुचिकर नहीं होता था । एक दिन इस मजाक से उसे बहुत बुरा लगा। वह उदास हो कर बैठी थी कि उसी समय सेठ ठनठनपाल आ गये। अपनी पत्नी को उदास देखकर उन्होने पूछा- 'श्राज उदास क्यो दिखाई देती हो ? सेठानी बोली- तुम्हारा यह नाम कैसा विचित्र है । तुम्हारे नाम के कारण पड़ौसिने मेरी हँसी करती है। तुम अपना नाम बदल क्यों नहीं डालते ? ठनठनपाल ने कहा- - मेरे नाम से सभी लेनदेन चल रहा है। अव नाम बदल लेना सरल बात नहीं हैं। कैसे बदल सकता हूँ ? उसकी पत्नी बोली- 'जैसे बने तैसे तुम्हे यह नाम तो बदलना ही पड़ेगा । नाम न वदला तो में अपने मायके चली जाऊँगी । ठनटनपाल ने कहा- मायके जाना है तो अभी चली जा, मगर मै नाम नहीं बदल सफ्ता । तेरी जैसी हटीली श्री मायके चली जाय तो हर्ज भी क्या है ? टनटनपाल की श्री रूठ कर मायके चली । वह नगर के पर पहुंची कि कुछ लोग एक सुर्दे को उठाये वहाँ से निकले। ने उनसे पूछा- 'यह कौन मर गया है ?" लोगों ने उत्तर सकता है ? जो कार्य अपने ही हाथ से भलीभाँति हो सकता है, शास्त्रकार उसके त्याग करने का आदेश नहीं देते । तुम स्वयं जो काम करोगे, विवेकपूर्वक करोगे, दूसरे से ऐसे विवेक की आशा कैसे रक्खी जा सकती है ? इस प्रकार अपने हाथ से विवेकपूर्वक किये गये काम मे एकान्त लाभ ही है। स्वयं आलसी बनकर दूसरे से काम कराने मे विवेक नहीं रहता और परिणामस्वरूप हानि होती है। आजकल बिजली द्वारा चलने वाली चक्कियॉ बहुत प्रच लित हो गई है और हाथ की चक्कियाँ बन्द होती जा रही है । क्या घर की चक्कियाँ बन्द होने के कारण यह कहा जा सकता है कि थोड़ा हो गया है ? वर की चक्कियाँ बन्द करने से तुम निरास्रवी नहीं हुए हो परन्तु उलटे महापाप में पड़ गये हो । घर की चक्की और बिजली की चक्की का अन्तर देखोगे तो अवश्य मालूम हो जायगा कि तुम किस प्रकार महापाप मे पड़ गये हो । विचार करोगे तो हाथ चक्की और बिजली की चक्की मे राई और पहाड जितना अन्तर प्रतीत होगा। बिजली से चलने वाली चक्की से व्यवहार और निश्चय - दोनो की हानि हुई है और साथ ही साथ स्वास्थ्य की भी हानि हुई है और हो रही है। पुराने लोग मानते है कि डाकिनी लग जाती है और जिस पर उसकी नजर पड जाती है उसका वह सत्त्व चूस लेती है । डाकिनी की यह बात तो गलत भी हो सकती है परन्तु विजली से चलने वाली चक्की तो डाकिनी से भी बढकर है । वह अनाज का सत्त्व चूस लेती है यह तो सभी जानते हैं। बिजली की चक्की मे पिसाया हुआ आटा कितना ज्यादा गरम होता है, यह देखने पर विदित होगा कि आटेका सत्त्व भस्म हो गया है ।
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[ श्री मधु लिमये) दूसरे सोमबार साल पहले जिस मंत्रालय के पास कुछ हथियार भी ऐसे मौजूद थे जिनका इस्तेमाल करके जिस मंत्री अर्थव्यवस्था पर अपना कुछ रोब जमा सकते । मगर रेवेन्यू इंटेलिजेन्स उनसे छीन लिया गया। डायरेक्टोरेट ग्राफ एन्फोर्समेन्ट विदेशी मुद्रा की बोरी के बारे में, वह भी सरकार का जो सीमा शुल्क है या प्रावकारी शुल्क है, इसके बारे में जो चोरियां होती है या भाय कर है या सम्पत्ति कर हैइनके ऊपर निगरानी रखने के लिए जो रेवेन्यु इन्टेलिजेन्स होता है वह इनसे छीन लिया गया, एन्फोर्समेन्ट डायरेक्टोरेट छीन लिया गया । नतीजा यह हुमा, बिल मंत्री यह इच्छा रखने हैं या नहीं मुझे पता नहीं लेकिन अगर रखते हैं तो भाज उनमें बह सामर्थ य नहीं हैं. उनके वह हथियार नहीं है जिससे वे पूरी अर्थ व्यवस्था को प्रभावित कर सकें । मेरी प्रापके मार्फत सरकार से विनती है कि सरकारी विभाग को पुनरंचना के बारे में और गठन के बारे में यह दोदाग मोज में क्योंकि अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है । अभी वित्त मंत्री जो ने कहा कि एक वर्षा फेल होने का यह नतीजा है किगन साल. भाप जानते हैं. चुनाव के समय प्रधान मंत्रा का मैं बिहार में भाषण पढ़ रहा था कि जो बढ़िया रबी को फग़ल बाई है बह नीतियों की वजह से हमारी सेहत क्रान्ति की वजह से है। लेकिन आप जानते हैं गंगाजी में 1971 में भयंकर बाढ़ ग्राई थी। बाढ़ से कमान भी होता है परन्तु उसले नयी मिट्टी मातो है, जमीन में नमःती है । जगके बलोड़िया कमल 1973 में माई। लेकिन पहा गया मेरी वजह से हम कान्ति की बजह से ! तो मैंने कहा में जो वाड़ भाई वह भी शायद सापकी वजह से बाई । मेरी समझ में नहीं प्राग है अकेल होती है तो इन्द्र भगःगम का दोष औौरमा जाती है ताश्रय जी को तो हम इन्द्र और इन्दिरा के बक्कर में हमारा देश चोपट होना चला जा रहा है । मेरा साथ मंत्रालय और विदेश व्यापार मंत्रालय के ऊपर आरोप है। विगत तीन वर्षों में अर्थ व्यवस्था को चौपट करने की सबसे अधिक जिम्मेदारी प्रमर, किन्हीं मंत्रालयों की होगी तो वह बाथ मंत्रालय और व्यापार मंत्रालय की है । ** Expunged as ordered by the Chair.. Finance Bill, 1973: 268 चीनी पैदावार जहां 42 सान हो गई यहां एक साथ में आपने यह करिश्मा विवाया कि -11 लाख टन बीनी पैदावार घट गई 31 लाख टन पर आ गई। विगत माल चीनी जो दोप किलो का दाम था वही आज दि रुपये किलो बिक रही है तो उसकी मवालय की है । जो चीनी की मिले हैं जिनके राष्ट्रीय करण की घोषणा मापने बम्बई कांग्रेस में की थी क्या बजह है शशि भूषण जैसे युवा तुकं लोग इसका जवाब दें, 1970 में बम्बई कांग्रेस में घोषणा करने के बाद उत्तर प्रदेश की हकूमत प्रापके हाथ में रहो फिर भी तीन साल तक चीनी के मामले को ठीक करने का काम आपने नहीं किया ? 11 लाख टन चीनी की पैदावार कम हो जाती है और आप अपना जो अपयश है उसको स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होने व्यापार मंत्रालय के बारे में क्या पाज मन्त्री महोदय बनाने की स्थिति में हैं कि किन काम के लिए टैरिफ कमीशन बनाया गया था ? टैरिफ कमिशन के सामने कई मामले प्राय थे जिनमें एक कृतिम धार्म का मामला था, मैनमंड फाइबर सौ यार्म का । मेरे क्याल से तकरीबन 4 रपट टेरिफ कमिशन के द्वारा सरकार को दी गई हैं। एक रपट जब में इस सभा का सदस्य था, प्रतिम शीत सव 1970 में दो गयी थी। उस समय मुझे याद है श्री मलित नारायण मिश्र ने इस मंत्र से घोषणा की थी कि सरकार इस रिपोर्ट का अध्ययन करके इसको प्रकाशित करने का काम करंगी । 28 महीने हो गए क्या वजह है मैनमेड फाइबस यान के बारे में टैरिफ कमीशन की जितनी रपट हैं वे अभी तक प्रकाशित क्यों नही हुई ? रेयॉन कार्ड के बारे में मेरे पास मारी सूची है । मुझे बड़ी तकलीफ होती है कि टैरिफ कमाशन का मह काम या कि दामों के ढांचे के बारे में पूरी जान करके वह अपनी सिफारिमें सरकार के पास भेजे और सरकार हम सिफारिशों को प्रकाशित कर अपना जो निर्णय है, कैमला है उसके बारे में बह सदन के मामने वक्तव्य रखें। यह अब तक का तरीका जान जबसे हमारे विदेश व्यापार मंत्री बने उस समय से टैरिफ कमीशन की रपट का इस्तेमाल महोदय । ग्राम बैठिये देखिये एक बात है इस तरह से किसी की तौहीन करना ठीक नहीं है । इस्तेमाल किया है वह ठीक नहीं है। चाप भोग क्यों बोल रहे हैं । VAISAKHA 13. 1895 (SAKA) Finance Bill, 1973 270 श्री मधु लिमये : भाप कहते है तो मैं श्री ललित नारायण मिथ ही कहता हू । (व्य) : मापने नाम लिया, यह ठीक है लेकिन इस तरह का शब्द मन कहिये । उसको में हटा दूगा श्री मधु नयेः जब ग्राप फर्मा रहे है ललित नारायण ही कहू तो मैं आपकी बात मानना हू । डा० कैलास : कल ही यहां पर संसद की मर्यादा श्री ये बात कर रहे थे लेकिन ग्राज इस तरह की बाते कर रहे हैं। क्या यह हो मर्यादा रखने का तरीका है सजापति महोदय : मैने कहा और उन्होंने मान लिया है। अब आप इस बात को भागे क्यो बड़ा रहे हैं। उन्होंने जो कहा उसका मैं ने एक्सेप्शन में लिया है। अब भाप लोग किम लिए बोल रहे है। धन उनको बोलने बीजिए । श्री मधु लिमये में अजं कर रहा था कि विदेश व्यापार मत्रालय की तहत जितने विजय आते हैं एक एक को भाप ले लीजिए। मैं माघे बा मिनट में समाप्त करता हूँ। मनी इस बात को काट सकते हैं कि दो साल पहले कई के जो दाम मे उनको तुलना में रूई के दाम इस माल 30 प्रतिशत कम चल रहे हैं। यह महाराष्ट्र के हैं, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब की तरह कई पैदा करने वाले इलाके के मिल मालिक को साल पहले कहते थे चूंकि कई के दाम ज्यादा बड़ है इसलिए कपड़े के दाम बढ़ाना जरूरी है और इस तर्क को अपने माना। लेकिन जब कई के दाम 30 प्रतिशत घट गए तो मापने क्यो नही मजदूर किया कि मि मासिको को कपड़े के दाम भी कम से कम 18 प्रतिशत बढाये इस सवाल पर आप लोगो को हल्ला करना चाहिए था जो मंब बाते हैं लेकिन बहू नहीं करते। हल्ला करने के लिए एक ही विषय है न सिमये : नेकिन मत मालिक के समापति महोदय, इमलिये वित्त मंत्री जी इम बात की मफाई दें कि सई के दाम घटने के बाद कम मे कम 15 प्रतिशत दाम कपडे के क्यों नहीं घंटे 20 प्रतिशत मोटे कपडे के दाम बड़े हैं और महीन कपडे के 30 से 50 प्रतिशत दाम बढ़े हैं । सूत के मामले मे में कुछ ग्रांकडे देता है । वियन माल 80/2 डेनियर का सून 10₹० बजट के पहले था। इस साल 16३० हुमा और बजट के बाद 24रु० हा गया । मेरी बात का आाप काट सकते हैं। ? प्राप कहते हैं कि लोग सड़क पर आ रहे हैं। सड़क पर नही आयेंगे ता क्या करेंगे क्योंकि आप अथव्यवस्था को नियतित करने में बिल्कुल अमफल रहे। 10३० से शुरुआत होती है और 24० तक सूत वा दाम हो जाता है। मेरे यहां मिवारपूर, कैरी, उहया यादि कई ऐसे मोमीनों के गाव है जहा लोग मर रहे हैं। महाराष्ट्र के शिवन्डी, मालेगाव मे भौर उत्तर प्रदेश मे मऊ मे बुनकरों को क्या कृत्रिम घाये के दामो को जो हालत है उम कारण है कि श्री ललित नारायण मिश्र इम सदन करत हुए टैरिक कमोशन की रिपोर्ट को छुपा रखा है और लटकती हुई नलवार के तौर पर उन का इस्तेमाल कर क वह अपन दल के लिये चन्दा वसूल करने हैं । अगर आप चाहते हैं कि इन बातो की जब मे जायें तो एक जान कमोशन नियुक्त कीजिये । वाम का मामला केवल एक वर्षा मौनतून फेल होने से खराब नहीं हुआ है। यह एक कारण है, लेकिन सब से बड़ा कारण है अर्ब व्यवस्था मे दामो की बढ़ने की प्रेरणा आप के ऐसे कामा में मिल रही है । इसलिये मैं चाहता हू कि सरकार पूरी जानकारी दे कि कितनी रिपोर्ट टैरिफ कमीशन की भाबी, कितनी प्रकाशित की गयी और क्या निर्णय किये गये १ सारा सिलसिलेवार ब्यौरा हमारे सामन याये । रामावतार शास्त्रीः सभापति जी, जो दिस विधेयक प्रस्तुत है मैं उसका विरोध करने के लिये बड़ा हमहू । नरकार दावा करती है कि इस विशेषक के द्वारा प्राण हिन्दुस्तान मे जो माथिक संकट दिन
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न व्यापारी नाश्रमी च सर्वकर्मविवजित । ध्यायेन्नारायण शश्वत् स सन्यासीति कीर्तित ॥ शववन्मौनी ब्रह्मचारी सम्भापालापवर्जित । सर्व ब्रह्ममय पश्येत् स सन्यामीति कीर्तित ।। सर्वत्र ममबुद्धिश्च हिंसामाया विवजित । क्रोघाहकाररहित म सन्यासीति कीर्तित ।। अयाचितोपस्थितश्च मिष्टामिष्टच भुक्तवान् । न याचेत् भक्षणार्थी स सन्यामोति कोर्तित । न च पश्येत् मुख स्त्रीणा न तिष्ठेत्तत्समीपत । दारवीमपि योषाञ्चन स्पृशेद् य स भिक्षुक ।। [ सदन्न अथवा कदन्न में लोष्ट्र अथवा काञ्चन में जिसको समान बुद्धि रहती है वह सन्यासी कहलाता है । जो दण्ड, कमण्डल और रक्तवस्त्र धारण करता है और एक स्थान में न रहकर नित्य प्रवास में रहता है वह सन्यासी कहलाता है । जो शुद्ध आचार वाले द्विज का अन्न खाता है, लोभादि से रहित होता है और किसी से कुछ माँगता नहीं, वह सन्यासी कहलाता है । जो व्यापार नहीं करता, जो प्रथम तीन आश्रमो का त्याग कर चुका है, सभी कर्मों में अनासक्त, सदा नारायण का ध्यान करता है, वह सन्यासी कहलाता है । सदा मौन रहनेवाला, ब्रह्मचारी, सम्माषण और आलाप न करनेवाला और सब को ग्रह्ममय देखनेवाला होता है, वह सन्यासी कहलाता है । सर्वत्र समबुद्धि रखनेवाला, हिमा और माया से रहित, क्रोध और मह से मुक्त सन्यासी कहलाता है । विना निमत्रण के उपस्थित, मिष्ट-अमिष्ट का भोजन करनेवाला और भोजन के लिए कभी न मागनेवाला सन्यासी कहलाता है । जो स्त्री का मुख कभी नही देखता, न उनके समोप खडा होता है और काष्ठ की स्त्री को भी नही छूता, वह भिक्षुक ( सन्यासी ) है । ] गरुडपुराण ( अध्याय ४९ ) में भी सन्यासी का धर्म वर्णित है तपसा कर्षितोऽत्यन्त यस्तु ध्यानपरो भवेत् । सन्यासीह स विज्ञेयो वानप्रस्थाश्रमे स्थित ॥ योगाभ्यासरतो नित्यमारुरुक्षुज्र्ज्जितेन्द्रिय । ज्ञानाय वर्तते भिक्षु प्रोच्यते पारमेष्ठिक ॥ यस्त्वात्मरतिरेव स्यान्नित्यतृप्तो महामुनि । सम्यक् च दमसम्पन्न स योगी भिक्षुरुच्यते ॥ 'श्रुत मौनित्व तपो ध्यान विशेषतः । सम्यक् च ज्ञान-चैराग्ये धर्मोऽय भिक्षुके मत ।। ज्ञानसन्यामिन केचिद् वेदमन्यासिनोऽपरे । कर्मसन्यासिन केचित् विविध पारमैष्ठिक ।॥ योगी च विविधो ज्ञेयो भोतिको मोक्ष एव च । तृतीयोऽन्त्याश्रमी प्रोक्तो योगमूर्तिसमाश्रित ।। प्रथमा भावना पूर्व मोक्ष त्वक्षरभावना । तृतीये चान्तिमा प्रोक्ता भावना पारमेश्वरी ॥ यतीना यतचित्ताना न्यासिनामूर्ध्वरेतमाम् । आनन्द ब्रह्म तत्स्थान यस्मान्नावर्तते मुनि ।। योगिनाममृत स्थान व्योमारूय परमक्षरम् । आनन्दमैश्वर यस्मान्मुक्तो नावर्तते नर ।। कूर्मपुराण ( उपविभाग, अध्याय २७, यतिवर्मनामक अध्याय २८ ) में भी सन्यासी धर्म का विस्तार से वर्णन पाया जाता है । दे० 'आश्रम' । सपिण्ड - जिनके पिण्ड अथवा मूल पुरुष समान होते है वे आपस में सपिण्ड कहलाते हैं । सात पुरुष तक पिण्ड की ज्ञाति हैं । अशोच, विवाह और दाय के भेद से पिण्ड तीन प्रकार का होता है। एक गोत्र में दान, भोग एव अन्य सम्बन्ध से अशौच-सपिण्ड सात पुरुष तक होता है । पिता तथा पितृ-चन्धु की अपेक्षा से सात पुरुष तक विवाहसपिण्ड होता है तथा मातामह एव मातृ चन्धु की अपेक्षा से पाँच पुरुष तक होता है । उद्वाह-तत्त्व नामक ग्रन्थ में नारद का निम्नाकित वचन उद्घृत है । पञ्चमात् सप्तमाद्द्व मातृत पितृत क्रमात् । सपिण्डता निवर्तेत सर्ववर्णेष्वय विधि ॥ दाय सपिण्ड तीन पुरुष तक ही होता है । वे तीन पुरुष हैं पिता, पितामह और प्रपितामह और उनके पुत्र पौत्र एव प्रपौत्र-दौहित । इसी प्रकार मातामह, प्रमातामह, और बृद्ध प्रमातामह और उनके पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र । (दे० दायभाग ) । मत्स्यपुराण में भी सपिण्ड का विचार किया गया है । लेपभाजश्चतुर्थाद्या पित्राद्या पिण्डद सप्तमस्तेषा सापिण्डय पिण्डभागिन । साप्तपौरुषम् ॥ सपिण्डीकरण - प्रेत को पूर्वज पितरो के साथ मिलाने वाला एक पिण्ड श्राद्ध । इसमें प्रेतपिण्ड का तीन पितृपिण्डों के साथ मिश्रीकरण होता है । कूर्मपुराण (उपविभाग सत गोवावर सभा अध्याय २२) में मिलता है। सपिण्डीकरण का वर्णन इस प्रकार सपिण्डीकरण प्रोक्त पूर्वे सवत्सरे पुन । कुर्याच्चत्वारि पात्राणि प्रेतादीना द्विजोत्तमा ॥ प्रेतार्थं पितृपात्रे पु पात्रमासे चये तत । ये समाना इति द्वाम्या पिण्डानप्येवमेव हि ॥ सपिण्डीकरणश्राद्ध देवपूर्व विधीयते । पितॄनावाहयेदयत्र पृथक् पिण्डारच निद्दिशेत् ।। ये सपिण्डीकृता प्रेता न तेषा स्यात् पृथक् क्रिया । यस्तु कुर्यात् पृथक् पिण्डान् पितृहा सोऽपि जायते ॥ सप्त गोदावर - गोदावरी - समुद्र सगम का एक तीर्थ । यह आन्ध्र देश के समुद्र तट पर है । महाभारत (३८५४४) में इसका माहात्म्य वर्णित है । सप्तपदी - विवाह संस्कार का अनिवार्य और मुख्य अङ्ग । इसमें वर उत्तर दिशा में वधू को सात मन्त्रो द्वारा सप्तमण्डलिकाओ में मात पदो तक साथ ले जाता है । वधू भी दक्षिण पाद उठाकर पुन वामपाद मण्डलिकाओं में रखती है। इसके बिना विवाह कर्म पक्का नही होता । अग्नि की चार परिक्रमाओ (फेरा) से यह कृत्य अलग है । सप्तर्षि - मूल सात ऋषियो का समूह । इनके नाम इस प्रकार हैं - मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु और वसिष्ठ । प्रत्येक मन्वन्तर में सप्तर्षि भिन्न भिन्न होते है । इनका वृत्तान्त 'ऋषि' शब्द के अन्तर्गत देखिए । सप्तर्षि मण्डल - - समर्षि मण्डल आकाश में सत्र के उत्तर दिखाई पड़ता है । ब्रह्मा के द्वारा विनियुक्त सात ऋषि इसमें बसते हैं । ये ब्रह्मा के मानस पुत्र है । ब्रह्मवादियो के द्वारा ये सात ब्राह्मण कहे जाते हैं । इनकी पत्नियाँ है मरीचि की सभूति, अत्रि की अनसूया, पुलह की क्षमा, पुलस्य की प्रीति, क्रतु की सन्नति, अगिरा की लज्जा तथा वशिष्ट की अरुन्धती, जो लोकमाता कहलाती है। त्रिकाल सन्ध्या की उपासना करने वाले और गायत्री के जप में तत्पर ब्रह्मवादी ब्राह्मण सप्तर्षि लोक में निवास करते हैं । (दे० पद्मपुराण, स्वर्ग खण्ड, अध्याय ११ ) सप्तशती -सात सौ श्लोको का समूह देवीमाहात्म्य । इसको चण्डीपाठ भी कहते हैं । अर्गलास्तोत्र में कथन है । अर्गल कीलक चादी पठित्वा कवच तत । जपेत् सप्तशती चण्डी क्रम एष शिवोदित ।। नागोजी भट्ट के अनुसार तत्राद्य चरिताघ्याये श्लोका अगीतिरुत्तमा । अथ मध्ये चरित्र तु पञ्चाष्टकसुसख्यका ।। त्रयोऽध्यायाश्चतु सप्तचतुर्वेदस्ववेदका । अथोत्तरचरित्र तु पषडग्निश्लोकभाक् ।। अग्नीसोम । ध्यायवती गीता सप्तशती स्मृता । सप्तसागर अथवा सप्तसमुद्र व्रत - चेत्र शुक्ल प्रतिपदा से इस का आरम्भ होता है। सुप्रभा, काञ्चनाक्षी, विशाला मानमोद्भवा, मेघनादा, सुवेणु तथा विमलोदका धारामो का क्रमश सात दिनपर्यन्त पूजन होना चाहिए । सात सागरो के नामो से दही का हवन हो तथा ब्राह्मणो को दघियुक्त भोजन कराया जाए । व्रती स्वय रात्रि को घृत मिश्रित चावल खाए । एक वर्षपर्यन्त इस व्रत का आचरण विहित है। किसी पवित्र स्थान पर किसी भी ब्राह्मण को सात वस्त्रो का दान करना चाहिए । इस व्रत का नाम सारस्वत व्रत भी है। प्रतीत होता है कि उपर्युक्त गिनाए हुए सात नाम या तो सरस्वती नदी के है अथवा उसकी सहायक नदियों के । अतएव इस व्रत का नाम 'सारस्वत व्रत' अथवा 'सप्तसागर व्रत' । उचित ही प्रतीत होता है। इस सात नदियों के लिए तथा सारस्वत व्रत की सार्थकता के लिए दे० विष्णुधर्म० ३१६४१-७ सप्तसुन्दर व्रत - इस व्रत में पार्वती का सात नामो से पूजन करना चाहिए। वे नाम है - कुमुदा, माधवी, गौरी भवानी, पार्वती, उमा तथा अम्बिका । सात दिनपर्यन्त सात कन्याओं को (जो लगभग आठ वर्ष की अवस्था की हो ) भोजन कराना चाहिए । प्रतिदिन सात नामो में से एक नाम उच्चारण करते हुए प्रार्थना की जाय जैसे 'कुमुदा देवि प्रसोद' । उसी प्रकार क्रमश अन्य नामो का ६ दिनो तक प्रयोग किया जाना चाहिए। सातवें दिन समस्त नामो का उच्चारण करके पार्वती का पूजनादि करने के लिए गन्धाक्षतादि के साथ साथ ताम्बूल, सिन्दूर तथा नारियल अर्पित किया जाय। पूजन के उपरान्त प्रत्येक कन्या को एक दर्पण प्रदान किया जाय । इस व्रत के आचरण से सौभाग्य और सौन्दर्य की उपलब्धि होती है तथा पाप क्षीण होते है । सभा - जहाँ साथ साथ लोग शोभायमान होते है वह स्थान (सह यान्ति शोभन्ते यत्रेति ) । मनु ने इसका लक्षण (न्याय सभा के लिए ) इस प्रकार दिया है१६० यस्मिन् देशे निषीदन्ति विप्रा वदविदस्य । राज्ञः प्रतिकृतो विद्वान् ब्राह्मणास्ता सभा विदु ॥ [ जिस स्थान में तीन वेदविद् विप्र राजा के प्रति निषि विद्वान् ब्राह्मण बैठते है उसको सभा कहा गया है ] सभा का ही पर्याय परिषद् है इसकी परिभाषा इस प्रकार है विद्यो हेतुस्तक निरुक्तो धर्मपाठक । त्रयश्चाश्रमिण पूर्वे परिषत् स्याद्दशावरा ॥ [ तीन वेदपारग, हैतुक ( सयुक्तिव्यवहारी), तर्कशास्त्री, निरक्त जाननेवाला धर्मशास्त्री तथा तीन आश्रमियो के प्रतिनिधि-इन दसो से मिलकर 'दगावरा' परिषद् बनती है। ] कात्यायन ने सभा का लक्षण निम्नाकित प्रकार से क्रिया है फुल-शील-वयां-वृत्त-वित्तवद्भिरधिष्ठितम् । वणिग्भि स्यात् कतिपये कुलवृद्धैरधिष्ठितम् ।। [ कुल, शोल, वय, वृत्त तथा वित्तयुक्त सभ्यो एव कुलवृद्ध कुछ वणिग्-जनों से अघिठिन स्थान को गभा कहते हैं । ] सभा (राजसभा) में न्याय का वितरण होता था । अत सभा के सदस्यों में सत्य और न्याय के गुणो की आवश्यकता पर जोर दिया जाता था । समय - ( १ ) शपथ, आचार, करार अथवा आचारसहिता । ऋषीणा समये नित्य ये चरन्ति युधिष्ठिर निश्चिता सर्व्वधर्मज्ञास्तान् देवान् ब्राह्मणान् विंदु ।। ( महाभारत, १३९०५०) धर्मशास्त्र में धर्म अथवा विधि के स्रोतो में समय को ' गणना है 'धर्मज्ञममय प्रमाणम् (२) आगमसिद्धान्तानुमार देवाराधना का एक रूप 'समयाचार' जैसे तन्त्रों में इसका निरूपण हुआ है । समाधि- -वह स्थिति, जिसमें सम्यक् प्रकार से मन का आधान ( ठहराव ) होता है। समाधि अष्टाङ्गयोग का अन्तिम अङ्ग है - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । यह योग की चरम स्थिति है । पातञ्जल योगदर्शन में समाधि का विशद निरूपण है। चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है अत समाधि को अवस्था में चित्त की वृत्तियों का पूर्ण निरोध हो जाता है । ये चित्तवृत्तियाँ है - प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति ।। चित्तवृत्ति का निरोध वैराग्य और अभ्यास से होता है । निरोध की अवस्था के भेद से समाधि दो प्रकार की होती है - सप्रज्ञात समाधि और असप्रज्ञात समाधि । सप्रज्ञात समाधि की स्थिति में चित्त किसी एक वस्तु पर एकाग्र रहता है । तब उसकी वही एकमात्र वृत्ति जागृत रहती है, अन्य सव वृत्तियाँ क्षीण होकर उसी में लीन हो जाती हैं। इसी वृत्ति में ध्यान लगाने से उसमें 'प्रज्ञा' का उदय होता है। इसी को सप्रज्ञात समाधि कहते हैं । इसका अन्य नाम 'सबोज समाघि' भी है । इसमें एक न एक आलम्बन बना रहता है और इस आलम्वन का भान भी । इस अवस्था में चित्त एकाग्र रहता है, यथार्थ तत्त्व को प्रकाशित करता है, क्लेशो का नाश करता है, कर्मजन्य बन्धनो को शिथिल करता है और निरोध के निकट पहुँचाता है । सप्रज्ञात समाधि के भी चार भेद है - (१) वितर्कानुगत (२) विचारानुगत ( ३ ) आनन्दानुगत और अस्मितानुगत । यद्यपि सप्रज्ञात समाधि में प्रज्ञा का उदय हो जाता है किन्तु इसमें आलम्बन वना रहता है और ज्ञान, जाता, ज्ञेय का भेद भी लगा रहता है। असप्रज्ञात समाधि में ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञेय का भेद मिट जाता है । इसमें तीनो भावनायें अत्यन्त एकीभूत हो जाती है। परम वैराग्य से मभी वृत्तियाँ पूर्णत निरुद्ध हो जाती है। आलम्बन का अभाव हो जाता है। केवल सस्कारमात्र शेष रह जाता है । इमको 'निर्वीज समाधि' भी कहते हैं, क्योकि इसमें क्लेश और कर्माशय का पूर्णत अभाव रहता है । असप्रज्ञात समाधि के भी दो भेद हैभवप्रत्यय तथा उपाय प्रत्यय । भवप्रत्यय में प्रज्ञा के उदय होने पर भी पूणज्ञान का उदय नहीं होता, अविद्या बनी रहती है । इसलिये उसमें ससार की ओर प्रवृत्त हो जाने की आशका रहती है। उपाय प्रत्यय में अविद्या का सम्पूर्ण नाश हो जाता है और चित्त ज्ञान में समग्र रूप से प्रतिष्ठित हो जाता है, उसके पतन का भय सदा के लिये समाप्त हो जाता है । पुराणो में भी समाधि का विवेचन है । गरुडपुराण (अध्याय ४४) में समाधि का निम्नलिखित लक्षण पाया जाता है नित्य शुद्ध बुद्धियुक्त सत्यमानन्द मद्वयम् । तुरीयमक्षर ब्रह्म अहमस्मि पर पदम् ।
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अपनी मायाका विस्तार कर उन्होंने लोगोंको अनेक प्रकारको शिक्षा देने का प्रयत्न किया । बाल लीला - कंसको अष चैन कहां ? उसे योग मायाकी बातपर पूरा पूरा विश्वास हो गया था। प्रति 'पल वह अपने शत्रुको खोज, उसे मार डालनेकी चिन्तामें व्यश् रहता था। राक्षसोंने चारों ओर अत्याचार करना आरम्भ कर दिया था। केवल सन्देह वश, सैकड़ों सुकुमार बच्चे निर्दयता पूर्वक मार डाले जाते थे और अनेक अभागे दम्पतियोंके -लाल जबर्दस्ती उनके हाथोंसे छीन लिये जाते थे। लाख यह करने परभी कृष्ण और बलदेव उन दानवोंको दृष्टिसे न वच सके। कंसको तुरन्त सूचना दी गयीं, क्योंकि नन्दके प्रभाव, उनके व्यक्तित्व और प्रवन्धके कारण वहां हरएककी दाल न गलती थी । कंसने सोचविचार करनेके बाद इस कार्य का भार पूतना नामक राक्षसीको दिया । वह एक सुन्दर ग्वालिनका वेश धारणकर नन्दके घर गयी । यशोदाने उसका यथोचित सत्कार कर बैठनेको आसन दिया। पूतनाने बड़े प्रेमसे कृष्णको उठा लिया और उन्हें स्तनपान कराने लगी। उस दुष्टाने स्तनोंपर विष लगा रक्खा था। उसने समझ रक्खा था, कि विषपान करते ही कृष्णका अन्त हो जायगा, परन्तु मायापतिले दी उसकी यह माया कैसे चल सकती थी ! कृष्ण स्तनपान करते हुए उसकी जीवनी शक्तिका हरण करने लगे। पूननाको घ्याकुलता चढ़ने लगी। अङ्गप्रत्यङ्गमें असहा वेदना होने लगी और अन्त में उसकी आंखें उलट गयीं। उसने अपने आपको छुड़ाना चाहा, परन्तु कृष्णने न छोड़ा। वह चिल्लाती हुई वहां से भगी और निर्जीव हो' गिर पड़ी । नन्द वहांसे कृष्णको उठा लाये और उनकी रक्षापर परमात्माको धन्यवाद देने लगे । इस घटनाको देख कंसको दृढ़ विश्वास हो गया, कि कृष्णही मेरा शत्रु है। अग्नि, रोग, ऋण और रिपुको बढ़नेका अवसर न दे आरम्भहीमें नाश करना चाहिये । यह सोच वह उनके मारनेकी प्राणपणसे चेष्टा करने लगा। प्रतिदिन एक न एक वधिक इस कार्यके लिये गोकुल जाता और यथाशक्ति प्रयत्न करता । एक दिन एक राक्षस ब्राह्मण के वेशमें वहां गया, उसने यशोदासे कृष्णके दर्शनकी अभिलाषा प्रकट की। यशोदा जल भरने जा रहीं थीं, अतः लौट आनेतक बैठनेकी प्राथना की। कृष्ण भी उस समय सो रहे थे । यशोदाकी अनुपस्थिति देख उस राक्षसने उन्हें मार डालना चाहा और उनके पास गया । कृष्णने उसकी जीभ पकड़कर ऐंठ दी और मुहमें दहीभर दिया। आसपास जो पात्र पड़े थे वह भी तोड़ फोड़ डाले। यशोदाने आकर देखा, कि मटुकियां फूटी पड़ी हैं, वही दूधफा कीचड़ मच रहा है और ब्राह्मण देवता खड़े घबड़ा रहे है। उन्होंने उससे पूछा, "दही खाया तो खाया यह बरतन क्यों फोड़ ढाले ?" श्रीकृष्ण ल राक्षसमें बोलने की शक्ति न थी । उसने कृष्ण की ओर उ'गली उठादी । यशोदाको विश्वास न हुआ। एक अबोध चालक यह सब कैसे कर सकता है ? उन्होंने उसे ही दोषी समझा, परन्तु ब्राह्मण जान केवल घरसे निकाल दिया और कोई सजा न दी । इसके बाद कागासुर पहुंचा। कृष्ण ने उसकी गरदन ऐंठ फेंक दिया और वह निर्जीव हो कंसके सम्मुख जा गिरा । फिर शकटासुरकी बारी आई और उसको भी यही दशा हुई । 'एक दिन तृणावर्त्त आया और वह यशोदा सहित कृष्णको उठा ले जाने की बात सोचने लगा। इतने में बड़े जोरले आँधी आयी । कृष्णने अपना वजन बढ़ा दिया। यशोदा उन्हें उठाकर अन्दर न लेजा सकीं। समझाने पर भी वह आँगा न उडे । यशोदा ज्योंही वहाँले स्थानान्तरित हुई त्योंही कृष्ण ने उस दुष्ट का गला घोट डाला। वह निर्जीव हो, वहीं गिर गया। यह देख यशोदादिके आश्चध्यका चारापारन रहा । उन्होंने कृण की बलैया ले बहुत कुछ दान पुण्य किये । एक दिन किसीने शिकायत कर दो, कि कृष्ण ने मिट्टी खा ली है । यशोदाने उन्हें धमका कर मुह दिखाने को कहा । कृष्णने अपनी निर्दोषिता सिद्ध करने के लिये उनके सम्मुख अपना मुंह खोल दिया। यशोदाका उसमें तीनो लोक दिखायो पड़ने लगे और उनके आश्चध्यको सीमा न रहो । शुक्ल पक्षके चन्द्रकी तरह कृष्णचन्द्रकी कला मीर बढ़ती जा रही थी। ज्यों ज्यों वह बड़े होते गये त्यों त्यों अपनी बाल लीलाका विस्तार करने लगे। गोकुलकी समस्त जनता उनको अधिकाधिक चाहने लगी। सबका स्नेह भाव उनपर बढ़ताही गया। यहांतक कि, वह उत्पात करें, दही दूध नष्ट करदें, वरतन फोड़ दे, तब भी वह उन्हें उसी भावसे बुलाते, बैठाते और खिलाते । गोकुलका एक भी घर ऐसा न था। जहां कृष्णका आवागमन न हो । वह प्रत्येक. घरमें जाते, खेल कूद करते, दही दूध खाते और मौज उड़ाते थे । कहीं कहीं उत्पात कर बैठते और हसो खेलमें मटुकियां फोड़ डालते थे । क्षणमात्रमें वह उत्पात वर इधरसे उधर हो आते। उनमें इतनी चञ्चलता, इतनी स्फूर्त्ति, इतना चिलबिलापन था, कि उन्हें स्थानान्तरित होते देरही न लगती थी। एक दिन मुहल्ले में बड़ा उत्पात मचाया। प्रत्येक घरमें कुछ न कुछ तोड़ फोड़ दिया। चारों ओरसे यशोदाके पास उलाहन आने लगे। यशोदाने कहा, कृष्णतो कहीं गयाही नहीं। वास्तव में बात कुछ ऐसीही थी। उन्हें इसका पताही न रहता था कि कृष्ण कथ बाहर जाते है और कब लौट आते हैं। वह इधर उधर काम करके आतों, तो उन्हें घरमेंही पातीं । कृष्णको अनेकस्थानों में देख लोगोंको भ्रम हो जाता था। उन्हें मालूम पड़ता कि अनेक कृष्ण एकही समय अनेक स्थानों में विचरण कर रहे ।। इसका कारण उनका बिलबिलापन ही था। एक दिन कृष्ण ने अपनेहो घरमें उत्पात मचाया। वह और उनके बाल मित्रोंने खूब दही दूध और माखन उड़ाया । अन्तमें मटुकियां फोड़ डालीं और घर भरमें दही दूधकी नदियां वहा दीं। यशोदाने आकर यह देखा और बड़ा क्रोध प्रकट किया। सब लड़के तो भाग गये, परन्तु कृष्ण पकड़ लिये गये । यशोदाने उनकी कमर एक दामनसे बांध दी और उसका सिरा एक वजनदार ऊखलमेंः अटका दिया। कृष्ण बैठे बैठे रोते और विनय अनुनय करते रहे, परन्तु छूट न सके । यशोदाने आज 'कठोर दण्ड देनेका निश्चय किया था अतः मुहल्लेको कितनीही स्त्रियोंके समझाने बुझाने पर भी, उन्हें न छोड़ा । कृष्णने खड़े हो उस ऊखलको आँगनकी ओर घसीटना आरम्भ किया। वह बड़े हृष्ट पुष्ट और बलिष्ट थे । फिर भी यह काम : साधारण बच्च की शक्तिके बाहर था । कृष्ण जमीन पर पैर अड़ा अड़ा कर उसे दामनके सहारे खींचते और कुछ न कुछ खिसका ही ले जाते। उनके आँगन में दो वृक्ष थे। वह दोनों पासही पास थे।. कृष्णने उस ऊखलको उन दोनोके बीच में फंसा कर ऐसा जोर लगाया, कि वह उखड़ कर गिर पड़े। लोगोंके आश्चर्यका वार पार न रहा । उन वृक्षोंको गिरा देना आसान काम न था। यशोदाने विस्मित हो, सहर्ष उन्हें बन्धन मुक्त कर दिया। कुबेरके दो पुत्र नारदके शापसे इन वृक्षोंके रूपमें परिवर्तित हो गये थे वृक्षोंके उखड़तेही उन दोनोंका उद्धार हुआ। उन्होंने दिव्य रूपमें प्रकट हो कृष्णकी स्तुति की और फिर अन्तर्द्धान हो गये 1 कृष्णकी यह लीला देख, गोकुलके लोगोंको मितना होता था, कंसको उसका सौगुना संताप होता था। उसने अब "तक कृष्ण को मार डालनेके लिये जितनी चालें चली थीं वह सब बेकार हो गयी थीं। जितनी चेष्टायें की थीं घे सभी निष्फल : सिद्ध हुई थीं। उसका एक भी प्रयत्न सफल न हुआ था। कंसने - अब असुरोंको बड़ी कड़ी आज्ञा दी, खूब प्रलोभन भी दिया । कहा - किसी न किसी तरह कृष्ण को अवश्य मार डालो। इसी लिये राक्षसोंका उत्पात अब बहुत बढ़ गया । गोकुलमें आये दिन एक न एक अनर्थ होने लंगा। नन्दको बड़ी चिन्ता हुई। बह गोकुलको छोड़ वृन्दावन में जा बसे । वह समझे, कि अब सुरक्षित स्थानमें आ गये, परन्तु कंसके अनुचरोंने यहां भी पीछा नःछोडा । वह तो कृष्ण की घातमें थे । नन्द चाहे घरमें रहें या जङ्गलमें, गोकुलमें रहें या वृन्दावन में उन्हें तो अपने कामसे काम था । जब कृष्ण की अवस्था पांच वर्ष की हुई, तब वह अपन बालमित्रोंके साथ बछड़ोंको चरानेके लिये जङ्गलमें जाने लगे। एक : दिन एक राक्षस बछड़ेका रूप धारण कर उन्हें मारनेको चेष्टा करने लगा। कृष्णको यह रहस्य मालूम होगया। उन्होंने पैर पकड़ उसे इस जोरसे पटका कि उसके प्राण निकल गये। दूसरे दिन बकासुर आ पहुंचा। वह बड़ेही भयानक पक्षोके रूप में, था । कृष्ण के निकट वह चोंच फैलाकर बैठ गया । कृष्ण उसके उदरमें प्रवेश कर गये । ज्योंही वह अन्दर पहुंचे त्योंही उसके पेटमें दाह होने लगा। उसने कृष्ण को उसी क्षण बाहर निकाल दिया। वृष्णने ररु. की चोन पकड़ कर चीर डाली । सब लड़के उसके विकसित मुखमें बैठ, खेल करने लगे। कृष्ण भी उन्होंमें जा भिले। परन्तु राक्षसका प्राण अभी निकला नथा । उसने सबको अपने मुख में बैठे देख, वडे वेगसे सांस ली। सांसके साथही सबके सव उसके पेट में चले गये। राक्षस. प्रसन्न हुआ, परन्तु लड़कोंके प्राण सक्टमें जापढ़े। कृष्णने तुरन्त अपना शरीर बढ़ाना आरम्भ किया, यहां तक कि वत्सासुरका पेट फट गया और सबके सबबाहर निकल पड़े। एक दिन बछड़े चर रहे थे । ग्वाल-चालोंको क्षुधा लग रही थी। सबके सब एक साथ भोजन करने बैठ गये । कृष्ण मे भी उनका साथ दिया। देवताओंको यह देख सन्देह हुआ। उन्होंने कृष्णकी परीक्षा लेनेका निश्चय किया और बछड़े कहीं स्थानान्तरित कर दिये । ग्वाल-चाल खा पीकर उठे तो बछड़े गायव ! वे घवड़ाने और रोने लगे । कृष्णने उन्हें आश्वासन दिया और उसी रूप रडके बछड़े तय्यार कर दिये। बछड़ोंको पाकर ग्वाल बाल बड़े प्रसन्न हुए और देवताओंको भी विश्वास हो गया कि कृष्ण सभी कुछ करनेमें समर्थ हैं। इसी प्रकार श्रीकृष्ण अनेक लीलाओंका विस्तार कर रहे थे। एक दिन गायोंको खोजते खोजते गोपगण श्रीकृष्णसे विलग हो गये। परिश्रम करनेके कारण उन्होंने अत्यन्त तृषित होकर यमुनाका जल पी लिया। यमुनाका इस स्थानका जल विषाक था। उसे पीतेही सबके सब व्याकुल हो उठे। अचा६
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Please note that all translations are automatically generated. इमेजिंग फ्लो cytometry व्यक्तिगत और जनसंख्या स्तर पर कोशिकाओं के रूपात्मक और कार्यात्मक परिवर्तन का पता लगाने के लिए एक आदर्श दृष्टिकोण प्रदान करता है । प्रदूषक-उजागर मानव वृक्ष कोशिकाओं में लिपिड प्रतिजन प्रस्तुति के लिए बाधित endocytic समारोह जीन अभिव्यक्ति और प्रोटीन की तस्करी के रूपात्मक प्रदर्शन की एक संयुक्त transcriptomic रूपरेखा के साथ प्रदर्शन किया गया । ये विधियां अगली पीढ़ी के अनुक्रमण और प्रवाह साइटोमेट्री इमेजिंग विश्लेषण को एकीकृत करते हैं। यह दिलचस्प सवालों के जवाब में मदद कर सकता है, जैसे कि क्या कुछ फेनोटाइपिक परिवर्तन को फंसाया जाता है, बजाय ट्रांसक्रिप्टोम के, विशेष रूप से प्रदूषक जोखिम वातावरण में। हमारे लिए इस सरल विधि का मुख्य लाभ यह है कि हम इसका उपयोग जैविक रूप से महत्वपूर्ण प्रोटीन के कोलोकैलाइजेशन को मापने के लिए कर सकते हैं, एक कार्यात्मक स्तर पर प्रमुख अंतर जीन अभिव्यक्ति के परिणामों की व्याख्या करने के लिए । इस तकनीक के निहितार्थ पैथोलॉजिकल और विष विज्ञान के परिणामों के निदान की ओर विस्तार करते हैं। एक सामान्य इमेजर दृष्टिकोण के रूप में, फोर्सी में जीन अभिव्यक्ति को प्रोटीन फ़ंक्शन से जोड़ने की क्षमता है। आम तौर पर, इमेजिंग और ट्रांसक्रिप्टोमिक विश्लेषण की उच्च तकनीकी मांगों के कारण इस विधि में नए व्यक्ति संघर्ष करेंगे। मानव मोनोसाइट व्युत्पन्न डेंड्रिटिक सेल लाइब्रेरी को अनुक्रमित करने के लिए, पहले अनुक्रमण बायोसिंथेसिस और इंडेक्सिंग रिएजेंट रैक पर अनुक्रमण और अनुक्रमण अभिकर् थरों को लोड करें, और रैक को एक घंटे के लिए प्रयोगशाला ग्रेड पानी स्नान में रखें, जब तक कि सभी बर्फ पिघल न जाए, और रीजेंट्स को अच्छी तरह से मिलाया जाए। जबकि रिएजेंट्स विगलन कर रहे हैं, सीक्वेंसर पर बिजली, कंप्यूटर को नेटवर्क ड्राइव से कनेक्ट करते हैं जब डू नॉट इजेक्शन ड्राइव दिखाई देता है, और सीक्वेंसर कंट्रोल सॉफ्टवेयर लॉन्च करते हैं। इसके बाद, अनुक्रमण बायोसिंथेसिस रिएजेंट रैक में प्रत्येक बोतल में रखरखाव धोने के समाधान के बारे में 100 मिलीलीटर जोड़ें, और प्रत्येक बोतल पर एक कीप कैप स्क्रू करें। अनुक्रमण अभिकर्मक रैक में प्रत्येक 15 मिलीलीटर शंकु नली में रखरखाव धोने के समाधान के लगभग 12 मिलीलीटर जोड़ें, और टोपियां त्यागें। फिर दोनों रैक को सीक्वेंसर पर लोड करें। सीक्वेंसर नियंत्रण सॉफ्टवेयर के भीतर रखरखाव धोने का चयन करें, और अनुक्रमक द्रव प्रणाली की सफाई के लिए निर्देशों का पालन करें। गलियों से गुजरने वाले बुलबुले के लिए प्रवाह कोशिका का निरीक्षण करने के लिए एक टॉर्च का उपयोग करें, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई रिसाव नहीं है। जब वॉश सीक्वेंस समाप्त हो जाता है, तो अनुक्रम टैब खोलें, और एक नया रन शुरू करें, आउटपुट डेटा को नेटवर्क ड्राइव पर निर्देशित करें। डिमुलिप्लेक्सिंग के लिए एक नमूना शीट अपलोड करें, और उचित अभिकर्मित जानकारी दर्ज करें। अनुक्रमण अभिकर् स के साथ, सिस्टम को प्राइम करने के लिए उपयोग किए गए प्रवाह सेल का उपयोग करें। क्लस्टर जनरेशन पूरा होने के बाद फ्लो सेल को हटा दें। और सेल को पानी से हल्का स्प्रे करें। लेंस पेपर के साथ प्रवाह सेल सूखी पोंछें, इसके बाद 95% इथेनॉल के साथ एक हल्का स्प्रे करें। प्रवाह कोशिका को फिर से सूखी पोंछने के बाद, प्रकाश के खिलाफ प्रवाह कोशिका की सतह की जांच करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह मलबे या नमक अवशेषों के बिना साफ है। जब प्रधान चरण समाप्त हो जाता है, तो संकुल प्रवाह सेल लोड करें, और अनुक्रमण शुरू करें। सीक्वेंस एनालिसिस व्यूअर सॉफ्टवेयर अपने आप शुरू हो जाएगा। लगभग 26 घंटे बाद, उच्च अनुक्रम नियंत्रण सॉफ्टवेयर के माध्यम से अनुक्रमण डेटा गुणवत्ता की निगरानी करें, और डेटा की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए और किसी भी समस्या निवारण के लिए विश्लेषण दृश्य सॉफ्टवेयर अनुक्रमण करें। फिर, जब अनुक्रम समाप्त हो जाता है, तो प्रवाह सेल गैसकेट बदलें, और अगले रन की शुरुआत करने से पहले रखरखाव धोने का प्रदर्शन करें। प्रदूषक-उजागर डेंड्रिटिक कोशिकाओं के प्रवाह साइटोमेट्रिक इमेजिंग के बाद, इमेजजे फिजी खोलें, और उपचार समूह के अनुसार गैर-उजागर और प्रदूषक-उजागर मानव डेंड्रिटिक सेल नमूना समूहों के लिए 100 सहेजे गए सेल छवियों को अलग-अलग फ़ाइलों में मर्ज करें। CD1d का विश्लेषण करने के लिए, और दो आबादी के भीतर Lamp1 colocalization, प्रदूषक उजागर १०० विलय सेल छवि खोलने के लिए, और छवि, रंग का चयन करें, और विभाजन चैनलों प्रति चैनल एक फ्लोरोफोर के साथ दो व्यक्तिगत छवियों में छवि विभाजित करने के लिए । कोलोकैलाइज्ड पिक्सल का एक स्कैटर प्लॉट बनाने के लिए, एनालिसिस, कोलोकैलाइजेशन और कोलोकैलाइजेशन थ्रेसहोल्ड का चयन करें, और स्कैटर प्लॉट को बचाने के लिए प्रिंट स्क्रीन दबाएं। प्रत्येक एकल-सेलुलर छवि के लिए मंडेर के कोलोकैलाइजेशन गुणांक की गणना करने के लिए, स्प्लिट चैनलों के साथ छवि फ़ाइल पर एकल-सेल छवि का चयन करने के लिए अंडाकार चयन उपकरण का उपयोग करें, और विश्लेषण, कोलोकैलाइजेशन और कोलोकैलाइजेशन थ्रेसहोल्ड का फिर से चयन करें। फिर रुचि के क्षेत्र के लिए संवाद बॉक्स से चैनल 1 का चयन करें, और ठीक क्लिक करें । जब गुणांक की गणना सभी 100 सेल छवियों के लिए की गई है, तो परिणामों को एक उपयुक्त स्प्रेडशीट में आयात करें, और नियंत्रण गैर-उजागर सेल नमूने के लिए विश्लेषण दोहराएं। आरएनए अनुक्रमण और ट्रांसक्रिप्टोमिक डेटा विश्लेषण का उपयोग करके, प्रदूषक-उजागर डीसी में लिपिड मेटाबोलिज्म और एंडोसाइटिक कार्यों सहित कई प्रमुख परिवर्तित जीन समूहों की पहचान की गई थी । व्यक्तिगत सेल छवि स्तर पर, HLADR सकारात्मक CD11c सकारात्मक dendritic कोशिकाओं gated जा सकता है, उनके CD1d और Lamp1 coexpression के अनुसार । नियंत्रण गैर-उजागर डेंड्रिटिक कोशिकाएं न्यूनतम सीडी 1डी और लैम्प1 प्रोटीन कोलोकैलाइजेशन प्रदर्शित करती हैं, जो सीडी 1डी एंडोसाइटिक तस्करी के बेसल स्तर और शारीरिक परिस्थितियों में सतह अभिव्यक्ति का एक उच्च स्तर दर्शाती है। जबकि CD1d प्रदूषक उजागर डेंड्रिटिक कोशिकाओं के देर से एंडोसाइटिक डिब्बों में बनाए रखा है, इस प्रयोगात्मक सेल आबादी में बदल अंतःस्यात जीन प्रोफाइल की पुष्टि । व्यक्तिगत सेलुलर छवियों को एक छवि फ़ाइल में विलय करने के बाद, व्यक्तिगत छवियों को उनकी फ्लोरोफोर अभिव्यक्ति के अनुसार विभाजित किया जा सकता है, और दो चैनलों के बीच पिक्सेल तीव्रता के कोलोकैलाइजेशन को एक स्कैटर प्लॉट में कल्पना की जा सकती है। दो उपचार समूहों में CD1d और Lamp1 प्रोटीन के बीच कोलोकैलाइजेशन की डिग्री को मंडेर के गुणांकों का उपयोग करके निर्धारित किया जा सकता है। यदि प्रोटीन की तीव्रता कोलोकैलाइज्ड और गैर-कोलोकैलिज्ड क्षेत्रों के बीच विषम है, तो कोलोकैलाइज्ड तीव्रता कोलोकैलाइज्ड क्षेत्रों के समानांतर नहीं होगी, इसलिए पिक्सेल तीव्रता के आधार पर दो प्रोटीन के कोलोकलाइजेशन का और आकलन करना भी महत्वपूर्ण है । एक बार महारत हासिल होने के बाद, छवि विश्लेषण को दो घंटे में पूरा किया जा सकता है, और आरएनए अनुक्रमण सेटअप को तीन घंटे में पूरा किया जा सकता है, यदि प्रत्येक तकनीक ठीक से की जाती है। इस प्रक्रिया का प्रयास करते समय, यह सुनिश्चित करना याद रखना महत्वपूर्ण है कि सभी अभिकर् य सही स्थितियों में ठीक से लोड किए गए हैं, और अनुक्रमक में कोई रिसाव नहीं है। इस प्रक्रिया के बाद, माइक्रो आरएनए, एक्सोम, या मस्त सेल अनुक्रमण जैसे अन्य तरीकों को क्रमशः वैश्विक माइक्रो आरएनए अभिव्यक्ति, जीन उत्परिवर्तन या डीएनए मिथाइलेशन के बारे में अतिरिक्त सवालों के जवाब देने के लिए किया जा सकता है। तो इसके विकास के बाद, इस तकनीक सेलुलर इमेजिंग विश्लेषण के क्षेत्र में शोधकर्ताओं की मदद मिलेगी, और अगली पीढ़ी अनुक्रमण जीन अभिव्यक्ति और प्रोटीन समारोह पर पर्यावरण प्रदूषक के प्रभाव का पता लगाने के लिए । इस वीडियो को देखने के बाद, आपको इस बात की अच्छी समझ होनी चाहिए कि अगली पीढ़ी के अनुक्रमण को कैसे स्थापित किया जाए, और प्रोटीन कोलोकैलाइजेशन का इमेजर विश्लेषण किया जाए। यह न भूलें कि मानव रक्त के नमूनों में जहरीले प्रदूषक रसायनों के साथ काम करना बेहद खतरनाक हो सकता है। इन प्रक्रियाओं को निष्पादित करते समय रासायनिक धुएं हुड और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करने जैसी सावधानियां हमेशा ली जानी चाहिए।
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केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने पचास करोड़ रूपये तक के निवेश वाले उद्योगों को सूक्ष्म लघु और मझौले उद्योगों को मिलने वाले लाभ देने का फैसला किया खरीफ की चौदह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी मंजूरी दी गई है केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि देश में कोविड19 के मरीजों की स्वस्थ ने होने की दर चार हज़ार आठ सौ उन्नीस प्रतिशत हो गई है हरियाणा में आज कोविड19 के दो सौ इकसठ पोजिटिव मामले सामने आये हरियाणा के मुख्यमंत्री ने आज के राजदूत सतोशी सजुकी सतोशी सज़ुकी से वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से बात की जापानी कंपनियों ने हरियाणा में और निवेश करने में दिलचस्पी दिखाई जापान केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आज सूक्षम लघु और मझौले उद्योगों एमएसएमई किसानों रेहड़ी व फड़ी पर सामान बेचने वालों की मदद करने के लिए कई ऐतिहासिक फैस्ले लिये है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में लिये गये फैसले के बारे मीडिया को बताते हुये सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि सूक्षम लघु और मझौले उद्योगों की परिभाषा मे और संशोधन किया गया है जिससे और उद्योग भी इसके दायरे में आ जायेंगे जिन उद्योगों में पचास करोड़ रूपये तक का निवेश हुआ है और कारोबरा ाई सौ करोड़ रूपये तक है वे अब एमएसएमई सेक्टर के लाभ भी ले सकते है केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ की चौदह फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी मंजूरी दे दी है और अब किसानों को उनकी लागत पर पचास से तिरासी प्रतिशत लाभ होगा कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा है कि अब किसानों को ऋण उतारने के लिए अगस्त का सयम मिला गया है मंत्रिमंडल ने धान के न्यूनतम समर्थनमूल्य में तिरेपन रूये प्रति क्विंटल इजाफे को मंजूरी दी है जोकि अब एक हज़ार आठ सौ अड़सठ रूपये हो जायेगा जबकि कपास के समर्थनमूल्य में दो सौ साठ रूपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है जो पाँच हज़ार पाँच सौ पंद्रह रूपये प्रति क्विंटल के दाम बिकेगा ने स्कूलों केन्द्र सरकार ने सोशल मीडिया पर वायरल किये गये उस दावे का खंडन किया है कि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सीबीएससी ने को निर्देश दिये है कि द्वारा की गई एप्प खरीद कर ऑन लाइन परीक्षायें ली जायें और इस कार्य के लिए डॉ साहिल गहलोत को विशेष्ज्ञ कार्य अधिकारी ओएसडी नियुक्त किया है पत्र सूचना कार्यालय ने एक टवीट में इस खबर को झूठी और गुमराहूपर्ण बताया है इसने सीबीएससी ने इस कार्य के लिए कोई ओएसडी नियुक्त नहीं किया कहा कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि देश में कोविड19 के मरीजों की स्वस्थ होने की दर चार हज़ार आठ सौ उन्नीस प्रतिशत हो गई है पिछले चौबिस घंटों के दौरान कोविड19 के चार हज़ार आठ सौ पैंतीस मरीज़ स्वस्थ हुये है मंत्रालय ने कहा है कि अब तक बानवे हजार कोरोना मरीज़ स्वस्थ हो चुके है इस समय कोविड19 के तिरानवे हजार तीन सौ बाईस मरीज़ उपचाराधीन है और उन्हें डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है मंत्रालय ने कहा कि सरकार राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से मिलकर कोविड19 की रोकथाम और प्रबंधन के लिए बहुत उठा रही है इसने कहा है कि एक तरफ मरीज़ों की स्वस्थ होने की दर में सुधार है दूसरी ओर मृत्यु दर में भी कमी आई है भारत में मृत्यु दर दो सौ तिरासी प्रतिशत है जबकि विश्व में औसतन मृत्यु दर छः सौ उन्नीस प्रतिशत है से कदम चंडीगढ़ में आज बापूधाम कालोनी की एक पचहत्तर वर्षीय महिला को स्वस्थ होने के बाद पीजीआई चंडीगढ़ से छुटटी दे दी गई है महिला कोरोना वायरस से संक्रमित पाई गई थी हमारे संवाददाता ने बताया कि कल देर रात मनी माजरा ने प्रसव के दौरान कोरोना पोजिटिव पाई गई अट्ठाईस वर्षीय महिला के दस पारिवारिक सम्बधियों के नमूने लिये गये है ये महिला बापूधाम कालोनी से है इसके साथ चंडीगढ़ में कोविड19 के मरीजों की गिनती दो सौ चौरानवे हो गई है जिनमें से दो सौ व्यक्ति स्वस्थ हो गये है और चार लोगों की मृत्यु हुई है अंतिम आंकड़ों के अनुसार कोविड19 के नब्बे मरीज़ उपचाराधीन है रवाना हरियाणा में अम्बाला छावनी से रेल सेवा शुरू हो गई है आज हरिद्वार के लिए अमृतसरहरिद्वार जन शताब्दी की गई हमारे संवाददाता ने बताया कि पहले दिन इस रेलगाड़ी में सवार होने के लिए अम्बाला छावनी रेलवे स्टेशन पर बाईस यात्री पहुंचे जबकि पंद्रह यात्री गाड़ी से इस स्टेशन पर उतरे अम्बाला से सवार होने वाले यात्रियों की मुख्य द्वारा पर थर्मल स्क्रीनिंग भी की गई अम्बाला मंडल रेल प्रबंधक जी एम सिंह ने बताया कि सामाजिक दूरी का पालन करते हुये आज से देश मे सौ जोड़ा रेलगाडियां चलनी शुरू हो गई है होडल पुलिस ने आज पुन्हाना मोड़ पर एक कार से इक्कीस किलो गांजा बरामद किया है पुलिस ने चालक को गिरफ्तार कर लिया है होडल अपराध जांच शाखा प्रभारी ने बताया कि ने अपना नाम आविद बताया है वह गांव नई का रहने वाला है पूछताछ में आरोपी में आरोपी युवक तीन हरियाणा के आज कोविड19 के दो सौ इकसठ नये पोजिटिव मामले सामने आये है जबकि सात कोरोना मरीज़ों की स्वस्थ होने के बाद छुटटी दी गई है हमारे सवादाता ने बताया है कि आज सर्वाधिक एक सौ उनतीस पोजिटिव मामले गुरूग्राम से आये है इसके साथ ही अब पोजिटिव पाये गये कोविड19 मरीज़ों की गिनती दो हज़ार तीन सौ बावन हो गई है जबकि स्वस्थ होने वाले कोरोना मरीज़ों की गिनती एक हज़ार पचपन हो गई है प्रदेश में अबकि तक कोरोना संक्रमण से बीस लोगों की मृत्यु हुई है इस सयम एक हज़ार दो सौ सतहत्तर कोरोना मरीज़ विभिन्न अस्पतालों में उपचाराधीन है सिरसा से हमारे संवाददाता ने बताया कि आज एक कविड19 के अट्ठाईस पोजिटिव मामले आये है जिनमें मुम्बई से लौटे पंद्रह व्यक्तेि चार कैदी और जेल में तैनात एक पुलिस कर्मी शामिल है सिविल सर्जन डॉ सुरेन्द्र जैन ने बताया कि दो कैदी जमानत पर रिहा हुये थे उन्होंने कहा कि छब्बीस लोगों की सिरसा के कोविड अस्पताल में और दो मरीजों को अग्रोहा मेडिकल कालेज में दाखिल करवाया गया है फतेहाबाद जिले मे भी कोविड19 के दो नये मामले सामने आये है इनमें से दिल्ली से टोहाना पहुंचे गुजराती परिवार का एक व्यक्ति और रेलवे पुलिस बल का जाखल प्रभारी भी शामिल है जाखल रेलवे स्टेशन के पीछे लगती गली को सैनेटाइज़ किया किया गया भिवानी में कोविड19 के पांच और चरखी दादरी में सात मामले सामने आये है पंचकूला में एक तिरेसठ वर्षीय एक बुजुर्ग वायरस से संक्रमित पाया गया है सिविल सर्जन डा जसजीत कौर ने बताया कि यह बुजुर्ग मूलत दिल्ली के रहने वाले है और इन्हें पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती किया गया है वहीं गया है वहीं भिवानी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि विद्यायक व उनकी बेटी के दोबारा नमूने लेकर रोहतक भेजे थे जिनकी रिपोट नेगीटिव आई है रोहतक में नगर निगम के एक सफाई कर्मचारी की कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई है सिविल सर्जन डॉ अनिल बिरला ने बताया कि कई दिन पहले तबीयत खराब होने पर उसे पीजीआई में भर्ती करवाया गया था इसके अलावा पीजीआई की दो स्टाफ नर्सी के कोरोना पोजिटिव पाये जाने की भी खबर है हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आज भारत में जापान के राजदूत सतोषी सुजुकी के साथ वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से बातचीत की पहले से हरियाणा मे काम कर रही कई जापानी कंपनियों से हरियाणा मे और निवेश करने में रूचि दिखाई मुख्यमंत्री ने राजय सरकार द्वारा विदेशी निवेशकों को उद्योग के लिए भूमि को उद्योग के लिए भूमि आंवटित करने सहित कई जानकारियां दी उन्होंने बताया कि नई औद्योगिक विकास नीति देश मे बेहतर नीति है जिसमें निवेश को और आसान बनाया गया है मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार ने सूक्ष्म लघु और मझौले उद्योगों के लिए तीन नये विभाग भी कायम किये है
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सुधार के बाद रूसी विशेष बलों का भविष्य क्या है? सशस्त्र बलों में सुधार लाने और उन्हें एक नए रूप में लाने के संदर्भ में सैन्य खुफिया और विशेष बलों को पुनर्गठित करने की समस्या शायद समाज में सबसे अधिक चर्चा में है। इसी समय, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस मुद्दे पर राय विभाजित हैंः जनसंख्या का एक हिस्सा सुधारों का समर्थन करता है, लेकिन अधिक लोग अभी भी नवाचारों के बारे में बहुत गंभीर रूप से बोलते हैं। द्वारा और बड़े, इस रवैये का मुख्य कारण प्रशंसनीय जानकारी की कमी है, हालांकि विशेष बलों, परिभाषा के अनुसार, अपनी योजनाओं को जनता को समर्पित नहीं करना चाहिए। लेकिन आज, समय के साथ तालमेल बनाए रखते हुए, सैन्य सुधार की समस्या पर चर्चा करना काफी तर्कसंगत लगता है। सैन्य विषय में रुचि रखने वाले लोगों में, अफवाहें हैं कि रूसी विशेष बलों की गुप्त इकाइयां दुनिया भर में गुप्त विशेष अभियान चला रही हैं। लेकिन इस जानकारी को नौसेना खुफिया के 1 रैंक के कप्तान द्वारा मना कर दिया गया था बेड़ा जी। सिज़िकोव। उनके मुताबिक, मयूर काल में इस तरह के ऑपरेशन करने की जरूरत नहीं होती है। बेशक, सैन्य नेतृत्व एक संभावित दुश्मन के बारे में विश्वसनीय डेटा के लिए बाध्य है, लेकिन साधारण स्काउट्स इस कार्य के साथ काफी सामना कर सकते हैं। आज भी, रूसी विशेष बलों के पास एक अधिक महत्वपूर्ण कार्य है - प्रबंधन प्रणाली का पुनर्गठन। सुधार की आवश्यकता को बड़ी संख्या में तथ्यों से संकेत मिलता है। इसलिए, उदाहरण के लिए, विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया के अन्य राज्यों के उदाहरण के बाद, रूसी विशेष संचालन बलों का आधुनिकीकरण करना आवश्यक है। लेकिन साथ ही, रूसी विशेष बलों को इस तरह से आधुनिक बनाने में स्पष्ट अनिच्छा या अक्षमता है कि यह आधुनिकता की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इस तथ्य के बावजूद कि रूस में विशेष संचालन बलों के निर्माण के संबंध में निर्णय अभी भी किया गया था, इसके कार्यान्वयन के पहले चरण स्पष्ट रूप से आश्चर्यजनक हैं। इसलिए, यह स्पष्ट नहीं है कि विशेष बलों के अलग ब्रिगेड को अलग क्यों करें या उन्हें अन्य विभागों में अधीनस्थ करें। अक्सर ऐसा होता है कि विशेष बल इकाइयां तैनाती के अपने स्थानों को बदलने के लिए बाध्य होती हैं। इसी समय, राय काफी गंभीरता से व्यक्त की जाती है कि जो लोग सैन्य विभाग के नेतृत्व के फैसलों का समर्थन नहीं करते हैं और जो सशस्त्र बलों में सुधार करना पसंद नहीं करते हैं, उनका कोई स्थान नहीं है। और कभी-कभी स्थिति बेतुकी बात पर खुलकर आती हैः असंतुष्टों को लगभग पूरी तरह से सेना और राज्य के पतन के लिए दोषी ठहराया जाता है। इस तरह के निर्णय से बड़ी संख्या में प्रश्न उत्पन्न हुए हैं, जिनके उत्तर नहीं हैं। यदि यह निर्णय राजनीति से संबंधित है, तो इसकी शीघ्रता को कैसे समझाया जा सकता है? दरअसल, ब्रिगेड के स्थानांतरण के मामले में, उलान-उडे से नोवोसिबिर्स्क तक के क्षेत्र में, और एक सीधी रेखा में इस एक्सएनयूएमएक्स किलोमीटर में एक भी सैन्य इकाई या इकाई नहीं होगी? यदि निर्णय में सैन्य जड़ें हैं, तो कैसे और क्या समझा जाए कि राज्य का एक चौथाई क्षेत्र, जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है (यह वह जगह है जहां बैकल स्थित है - ताजे पानी का स्रोत), रक्षाहीन है। और सशस्त्र बलों की गतिशीलता कैसे हासिल की जाएगी और संचालन रणनीतिक कमान के पदों की स्थापना की जाएगी, अगर निकटतम सैन्य इकाई XNUMM00 किलोमीटर से अधिक है? इसके मूल में, विशेष बल सेना के विशेष रूप से बनाए गए, प्रशिक्षित और सुसज्जित इकाइयाँ हैं, जिन्हें युद्ध में और युद्धकाल में राजनीतिक, सैन्य और अन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कुछ कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। लेकिन सोवियत विशेष बलों के खाते में सफल संचालन की एक बड़ी संख्या थी। उनका सबसे अच्छा समय वह समय माना जाता है जब अफगानिस्तान में सैन्य अभियान चलाए जाते थे। उस समय, विशेष बलों में एक्सएनयूएमएक्स अलग ब्रिगेड, दो प्रशिक्षण रेजिमेंट, एक्सएनयूएमएक्स के आदेश में, अलग-अलग कंपनियां शामिल थीं। जब अफगानिस्तान में शत्रुता शुरू हुई, तो यह विशेष बल थे जिन्होंने 14 और 30 को विशेष बलों के अलग-अलग ब्रिगेड बनाने का आधार बनाया, जो संघर्ष क्षेत्र में संचालित थे। युद्ध के वर्षों के दौरान वहां किए गए सभी ऑपरेशनों में से तीन-चौथाई विशेष बलों की सक्रिय भागीदारी के बिना नहीं गए, भले ही उनकी संख्या सोवियत सेना की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक न हो। चेचन्या में युद्ध के वर्षों के दौरान, जीआरयू विशेष बलों ने भी विशेष अभियान चलाने में सक्रिय भाग लिया। इस अवधि के दौरान, 29 विशेष बलों ने रूस के नायकों का खिताब प्राप्त किया, और 2002 के लिए एक वर्ष के लिए 2 के बारे में हजारों विशेष बलों को लड़ाकू पदक और आदेश दिए गए। इसके अलावा, क्रास्नोडार क्षेत्र में पूर्ण कर्मचारियों को प्राप्त करने के लिए, 10-I विशेष बल विशेष (विशेष) ब्रिगेड को अतिरिक्त रूप से बनाया गया था, जो यूएसएसआर के दौरान क्रीमिया में तैनात था। इस प्रकार, रूसी सशस्त्र बलों के सुधार की शुरुआत के समय, विशेष बलों के पास एक्सएनयूएमएक्स विशेष ब्रिगेड थे। उनमें सोवियत संघ के 9 हीरोज़ और रूस के 5 हीरोज़ शामिल थे। यह इस बात का एक ज्वलंत प्रमाण है कि न केवल विशेष बल के सैनिक अपने विशेष साहस और देश के प्रति वफादारी से प्रतिष्ठित हैं, बल्कि यह भी है कि उनके पास अत्यधिक पेशेवर कौशल और युद्ध के अनुभव का एक बड़ा सौदा है। सभी छह सैन्य जिलों में विशेष बल ब्रिगेड वितरित किए गए। 2005-2007 में, 2, 16, 10 और 22 ब्रिगेड को फेडरल टारगेट प्रोग्राम ट्रांजिशन टू कॉन्ट्रैक्ट के हिस्से के रूप में धन आवंटित किया गया था। 24 और 14 टीमों के लिए पर्याप्त धन नहीं था। 67 विशेष बल विशेष बल ब्रिगेड की स्थिति अत्यंत कठिन थी, क्योंकि कई वर्षों तक इसके रखरखाव और विकास के लिए कोई धन आवंटित नहीं किया गया था। केवल एक चीज जो अपनी तैनाती के स्थान पर की गई थी, वह बैरक का एक प्रमुख ओवरहाल था। इसके अलावा, यदि हम 2003-2010 की अवधि पर विचार करते हैं, तो दोनों टीमों - 14 और 24 - को 3 मिलियन रूबल (! ) के लिए कुल बेस बेस, इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रेनिंग ग्राउंड के विकास के लिए मिला। 2007 में, 67-I विशेष बल विशेष बल ब्रिगेड, जो चेचन्या में संचालन करने में लगे हुए थे, को भंग कर दिया गया था। प्रारंभ में, यह माना गया था कि इसकी व्यवस्था के लिए धन आवंटित किया जाएगा, लेकिन फिर अचानक इसे भंग करने का आदेश मिला। इस प्रकार, विशेष बल, जिनके पास व्यापक युद्ध का अनुभव था, राज्य और सरकार के लिए बेकार हो गया। अधिकांश सेनानियों ने छोड़ दिया, कुछ पीछे की समर्थन इकाइयों तक, अन्य सैन्य इकाइयों में सेवा करने के लिए चले गए। और अब "हाथ पहुंच गए हैं" और 24 ब्रिगेड के लिए। प्रारंभ में, यूनिट उलान-उडे में तैनात था। एक अच्छा प्रशिक्षण आधार था, जिसने मुकाबला प्रशिक्षण को सबसे प्रभावी रूप से संचालित करना संभव बना दिया। और चूंकि ब्रिगेड एयरफील्ड से बहुत दूर नहीं थी, इसलिए यह कहना सुरक्षित है कि यह वास्तव में मोबाइल सैन्य इकाई थी। लगभग सभी कर्मियों को आवास प्रदान किए गए थे। और सैन्य आधार और उसके संचार के बुनियादी ढांचे ने नवीनतम विश्व मानकों के अनुसार ब्रिगेड को लैस करने के लिए बहुत अधिक खर्च किए बिना इसे संभव बना दिया। अचानक, सैन्य नेतृत्व ने इसके कारणों को बताए बिना, इरकुत्स्क को ब्रिगेड को स्थानांतरित करने का फैसला किया। इसके अलावा, "पुनर्वास" के लिए कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई थी, इसलिए इकाई को अपने दम पर फिर से तैयार करने के लिए मजबूर किया गया था (और यह एक्सएनयूएमएक्स किलोमीटर है)। इस तरह की व्यवस्थाओं से जीता गया सैन्य विभाग पूरी तरह से समझ में नहीं आता है, क्योंकि नई जगह पर न तो एक उपयुक्त प्रशिक्षण आधार था, न ही एक प्रशिक्षण मैदान जहां वे मुकाबला प्रशिक्षण और शूटिंग में लगे हो सकते हैं। इसके अलावा, लड़ाकू, प्रशिक्षण के बजाय, यूनिट की व्यवस्था करने के लिए और अपने खर्च पर मजबूर थे। लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद, सेना की घटनाओं में उच्च पुरस्कार लेते हुए, 24-I ब्रिगेड शीर्ष पर रही। नई जगह 24 स्पेशल फोर्सेस ब्रिगेड की विकास संभावनाएं बहुत ज्यादा नहीं हैं। नए आंदोलन में फिर से कीमती समय लगता है जिसे युद्ध प्रशिक्षण पर खर्च किया जा सकता है। इसके बजाय, सेनानियों को एक विशाल क्षेत्र की सुरक्षा, बुनियादी ढांचे के विकास के लिए मजबूर किया जाएगा। ब्रिगेड पूर्ण रूप से युद्ध प्रशिक्षण भी नहीं कर पाएगी, क्योंकि सैन्य इकाई का क्षेत्र खुद शहर के केंद्र में स्थित है, लेकिन प्रशिक्षण का कोई आधार नहीं है। इसके अलावा, नए स्थान पर सैनिकों के जीवन स्तर में काफी गिरावट आएगी, क्योंकि उनके परिवार के सदस्य फिर से बेरोजगार हो जाएंगे और उन्हें बसने के तरीकों की तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, क्योंकि रक्षा मंत्रालय उनके लिए काम खोजने में सहायता प्रदान करने का कार्य नहीं करता है। अगर इसी तरह की स्थिति में विकास जारी रहा, तो बहुत जल्द रूस को विशेष बलों के बारे में भूलना होगा। या विशेष बलों के संबंध में नीति को बदलना आवश्यक है। वर्तमान में, विशेष बलों के लड़ाकों का भविष्य केवल राज्य के प्रमुख पर निर्भर करता है, कि वह अंतर्राष्ट्रीय हितों में देश के राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा की रक्षा करने में सक्षम बल के अस्तित्व में कितना रुचि रखता है। ऐसा करने के लिए, कार्यों की एक बहुत विस्तृत श्रृंखला के कार्यान्वयन की निगरानी करना आवश्यक है जो वास्तव में विशेष बलों को सुधारने में मदद करेंगे, इसे युद्ध के लिए तैयार, पेशेवर, मोबाइल, कॉम्पैक्ट, अच्छी तरह से सुसज्जित और प्रशिक्षित बल में बदल देंगे। प्रयुक्त सामग्रीः - 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है कि जल सूर्य एव चन्द्र को किरणा, वायु सम्बन्ध, गोबर एव गोमूत्र से शुद्ध हो जाता है। इनमें कुछ पदार्थ आधुनिक वैज्ञानिक सोजी से शुद्धिकारक मान लिये गये हैं। एक स्मृति-वचन (भपराकं, १० २७३) के अनुसार वन मे प्रपा (पोसरा या प्याऊ) या कूप के पास रखे हुए घडे ( जिससे काई भी कूप से जल निकाल सकता है) का जल या पत्थर या लक्डी वाले पात्र ( नोरामोवे लिए रहते हैं) का एवं नर्म-पात्र (चरम, मशव आदि) का जल, मले हो उससे सूद का कोई सम्बन्ध न हो, पीने के अयोग्य ठहराया गया है, किन्तु आपत-काल मे ऐसा जल जितना चाहे उतना पोया जा सकता है। इससे प्रकट होता है कि प्राचीन काल मे मो जलाभाव में जल चर्म-पात्र या ढोलक (मशक, जिसे आजकल मिस्तो काम मे लाते है) मे भरकर लाया जाता था और द्विज लोग भी उसे प्रयोग में लाते थे।" अब हम धातुओ एवं पात्रा की शुद्धि की चर्चा करेंगे। बी०६० मू० (१९५१-३४-३५ एव ११६१३७-४१), वसिष्ठ (३७५८ एव ६१-६३), मनु (५/१११-११४), याज्ञ० ( १८१८२ एवं १९०), विष्णु ० (२३१२७, २३-२४), शस (१६॥३-४), स्मृत्यभंसार (५० ७० ) ने धातु-शुद्धि के विषय मे नियम दिये है, जो विभिन्न प्रकार के हैं। अत केवल मनु एव दो-एक के मत यहाँ दिये जायेंगे । मनु (५१११३) का कहना है - बुधा (विद्वान् लोगा) ने उदघोषित किया है कि सोना आदि धातुएँ, मरक्त जैने रत्न एवं पत्थर के अन्य पात्र राख, जल एव मिट्टी से शुद्ध हो जाते हैं, सोने की वस्तुएँ (जो जूठे भोजन आदि से गन्दी नही हो गयी हैं) केवल जल से हो पवित्र हो जाती है। यही बात उन वस्तुओ के साथ भी पायी जाती है जो जल से प्राप्त होती हैं (यथा-सोपी, मूंगा, शरा आदि) या जो पत्थर से बनी होती हैं या चांदी से बनी होती हैं और जिन पर शिल्पकारी नहीं हुई रहती है। सोना-चांदी जल एव तेज से उत्पन्न होते हैं. अत उनकी शुद्धि उनके भूलमूत कारणों से ही होती है, अर्थात् जल से (थोडा अशुद्ध होने पर) एव अग्नि से (अधिक अशुद्ध होने पर)। ताम्र, लोह, कास्य, पीतल, टीन (त्रपु या रोगा) और सौसा को क्षार ( भस्म ), अम्ल एवं जल से परिस्थिति के अनुसार (जिस प्रकार की अशुद्धि हो) शुद्ध किया जाता है।' वसिष्ठ (३२५८, ६१-६३) वा कथन है - 'पु (टीन), सीसा, तांबा की शुद्धि नमक के पानी, अम्ल एव साधारण जल से हो जाती है, कांसा एवं लोह भस्म एव जल से शुद्ध होते हैं। लिंगपुराण (पूर्वाधं, १८९१५८) ने कहा है-कांसा भरम से, लोह-पात्र नमक से तौबा त्रपु एव सीसा पम्ल से शुद्ध होते हैं, सोने एव चाँदी के पात्र जल से, बहुमूल्य पत्थर, रल, मूंगे एवं मोती धातु-पात्रों के समान शुद्ध किये जाते हैं।' और देखिए वामनपुराण (१४॥७०) । मेघातिथि (मनु ५१११४) ने एक उक्ति उद्धृन को है'कमि या पीतल मे पात्र जब गायो द्वारा घाट लिये जायें या जिन्हें गायें सूंघ लें या जो कुत्तो द्वारा घाट या छू लिये जायें, जिनमें धूद्र भोजन कर ले तथा जिन्हें कौए अपवित्र कर दें, वे नमक या मस्म द्वारा १० बार रगडने से शुद्ध हो जाते हैं। देखिए पराशर मी (परा० मा०, जिल्द २, भाग १, पृ० १७२ ) । सामान्य जीवन में व्यवहृत पानी एवं बरतनो को शुद्धि के विषय मे बौघा० ६० सू० (१९५१३४-५० एवं १/६/३३-४२), याज्ञ० (१९१८२-१८३), विष्णु० (२३१२-५), दास (१६१११५) आदि ने विस्तृत नियम दिये हैं। इनका कतिपय नियमो मे मतैक्य नहीं है। मिताब (याश० १११९०) ने कहा है कि यह कोई आवश्यक नहीं है कि तान६८. प्रपास्वरप्पे पटगं च भूपे होच्यां संकोशातस्याप । ऋषि धूत्रात्तवपेयमाहूरापद्गत काशितबत् पिबेश ॥ यम (अपराकं, १० २७३ः १० प्र०, १० १०४) । ६९. गया प्रातानि कांस्यानि श्रोन्टिानि यानि च । शुम्पन्ति दशमि ः काकोपहतानि । मेया० (मनु ५।११३ एवं यास० १९१९० ) । भातुओं के विविध पात्रों (भरतनों) की शुद्धि शुद्धि केवल अम्ल (सटाई) से होती है, अन्य साधन मी प्रयुक्त हो सकते हैं। पात्रों को शुद्धि की विभिन्न विधियो के विषय में लिखना आवश्यक नहीं है। प्रकाश (पू० ११७-११८) की एक उक्ति इस विषय में पर्याप्त होगी कि मध्यकाल में पात्र-शुद्धि किस प्रकार की जाती थी - "सोने, चांदी, मूंगा, रत्न, सीपियो, पत्थरो, कांसे, पोतल, टोन, सोसा के पात्र केवल जल से शुद्ध हो जाते हैं यदि उनमें गन्दगी चिपकी हुई न हो, यदि उनमे उच्छिष्ट भोजन आदि लगे हों तो वे अम्ल, जल आदि से परिस्थिति के अनुसार शुद्ध किये जाते हैं; यदि ऐसे पात्र शूद्रो द्वारा बहुत दिनो तक प्रयोग में लाये गये हो या उनमे भोजन के कणो का स्पर्श हुआ हो तो उन्हें पहले गस्म से मांजना चाहिए और तीन बार जल से घोना चाहिए और अन्त मे उन्हें अग्नि मे उस सीमा तक तपाना चाहिए कि वे समग्र रह सकें अर्थात् टूट न जाये, गल न जायँ मा जल न जायें, तभी ये शुद्ध होते हैं। कांसे के बरतन यदि कुत्तो, कौओ, शूद्रो या उच्छिष्ट भोजन से केवल एक बार छू जायें तो उन्हें जल एक नमक से दस बार मांजना चाहिए, किन्तु यदि कई बार उपर्युक्त रूप से अशुद्ध हो जायें तो उन्हें २१ बार मौजकर शुद्धे करना चाहिए। यदि तोन उच्च वर्गों के पात्र को शूद्र व्यवहार मे लाये तो वह चार बार नमक से धोने एव तपाने से तथा जल से धोये गये शुद्ध हाथों में ग्रहण करने से शुद्ध हो जाता है। सय प्रसूता नारी द्वारा व्यवहृत कौसे का पात्र या वह जो मद्य से अशुद्ध हो गया हो तपाने से शुद्ध हो जाता है, किन्तु यदि वह उस प्रकार कई बार व्यवहृत हुआ हो तब वह पुनर्निर्मित होने में हो शुद्ध होता है। वह काँसे का बरतन जिसमे बहुधा कुल्ला किया गया हो, या जिसमे पर घोये गये हो उसे पृथिवी मे छ मास तक गाड देना चाहिए और उसे फिर तपाकर काम में लाना चाहिए (पराशर ७२४-२५), किन्तु यदि वह केवल एक बार इस प्रकार अशुद्ध हुआ हो तो केवल १० दिनो तक गाड देना चाहिए। सभी प्रकार के धातु-पात्र यदि थोडे काल के लिए शरीर की गन्दगियो, यथा - मल, मूत्र, वीर्यं से अशुद्ध हो जायें तो सात दिनो तक गोमूत्र में रखने या नदी में रखने से शुद्ध हो जाते हैं, किन्तु यदि वे कई बार अशुद्ध हो जायँ या शव, सद्य प्रसूता नारी या रजस्वला नारी मे छू जायें तो तीन बार नमक, अम्ल या जल से धोये जाने के उपरान्त तपाने से शुद्ध हो जाते हैं, किन्तु यदि वे मूत्र से बहुत समय तक अशुद्ध हो जायें तो पुर्नानिमित होने पर ही शुद्ध हो सकते हैं। विष्णु ० (२३।२ एव ५) ने कहा है कि सभी धातुपात्र जब अत्यन्त अशुद्ध हो जाते हैं तो वे तपाने से शुद्ध हो जाते हैं, किन्तु अत्यन्त अशुद्ध लकडी एवं मिट्टी के पात्र त्याग देने चाहिए। किन्तु देवल का कथन है कि कम अशुद्ध हुए काठपात्र तक्षण (छोलने) से या मिट्टी, गोबर या जल से स्वच्छ हो जाते है और मिट्टी के पात्र यदि अधिक अशुद्ध नहीं हुए रहते तो तपाने से शुद्ध हो जाते हैं (याज्ञ० १११८७ मे भी ऐसा ही है ) । किन्तु वसिष्ठ ( ३।५९) ने कहा है कि सुरा, सूत्र, मल, बलगम (इलेप्मा), आँसू, धीव एवं रक्त से अशुद्ध हुए मिट्टी के पात्र अग्नि मे तपाने पर भी शुद्ध नहीं होते। " वैदिक यज्ञो मे प्रयुक्त पात्रो एव वस्तुओ की शुद्धि के लिए विशिष्ट नियम हैं। बौघा० ६० सू० (१1५1५१५२) के मत मे यज्ञों में प्रयुक्त चमस-पात्र विशिष्ट वैदिक मन्त्रो से शुद्ध किये जाते है", क्योकि वेदानुसार जब उनमे सोमरम का पान किया जाता है तो चमस-पात्र उच्छिष्ट होने के दोष से मुक्त रहते हैं। मनु (५१११६ ११७ ), याज्ञ (१९१८३-१८५), विष्णु० (२३१८-११), शख (१६०६ ), पराशर (७१२-३ ) आदि ने भी यज्ञ-पात्रो की शुद्धि के ७०. महामंत्रे पुरोषैर्वा श्लेमपूपाभुशोणितेः । सस्पृष्टं नैव शुध्येत पुनपान मुन्मयम् ॥ वसिष्ठ (३५९= मनु] [५॥१२३)। ७१. वचनाद्यते चमसपात्राणाम् । न सोमेनोच्छिटा भवन्तौति श्रुतिः । ० ० ० (१०५/५१-५२ ) । वेलिए इस प्रत्य का सड २, अध्याय ३३, जहाँ एक के पश्चात् एक पुरोहितों द्वारा चमसों से सोम पीने का उल्लेख है।
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जयपुर के श्री पं० भगवान दास जैन उन चुने हुए विद्वानों में से हैं, जिन्होंने भारतीय स्थापत्य और वास्तु शिल्प के अध्ययन में विशेष परिश्रम किया है । सन् १९३६ में ठक्कुरफेरु विरचित 'वास्तु - सारप्रकरण' नामक वास्तु संबंधी महत्वपूर्ण प्राकृत ग्रन्थ को मूल हिन्दी भाषान्तर और अनेक चित्रों के साथ उन्होंने प्रकाशित किया था। उस ग्रन्थ को देखते ही मुझे निश्चय हो गया कि पं० भगवान् दास ने परम्परागत भारतीय शिल्प के पारिभाषिक शब्दों को ठीक प्रकार समझा है और उन पारिभाषाओं के आधार पर वे मध्य कालीन शिल्प-ग्रन्थों के सम्पादन और व्याख्यान के सर्वथा अधिकारी विद्वान् हैं। शिल्प शास्त्र के अनुसार निर्मित मन्दिरों या देव प्रासादों के वास्तु की भी वे बहुत अच्छी व्याख्या कर सकते हैं, इसका अनुभव मुझे तब हुम्रा जब कई वर्ष पूर्व उन्हें साथ लेकर में आमेर के भव्य मन्दिरों को देखने गया और वहां पण्डितजी ने प्रासाद के उत्सेध या उदय संबंधी भिन्न भिन्न भागों का प्राचीन शब्दावली के साथ विवेचन किया । इस प्रकार की योग्यता रखने वाले विद्वान् इस समय विरल ही हैं। भारतीय शिल्प - शास्त्र के जो अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं उनकी प्राचीन शब्दावली से मिलाकर अद्यावधि विद्यमान मंदिरों के वास्तु-शिल्प की व्याख्या, यह एक अत्यन्त आवश्यक कार्य है । जिस की पूर्ति वर्तमान समय में भारतीय स्थापत्य के सुस्पष्ट अध्ययन के लिये आवश्यक है । श्री पं० भगवान दास जैन इस ओर अग्रसर है, इसका महत्वपूर्ण प्रमाण उनका ऊपर किया हुआ। 'प्रासाद- मण्डन' का वर्तमान गुजराती अनुवाद है। इसमें मूल ग्रन्थ के साथ गुजराजी व्याख्या और अनेक टिप्पणियां दी गई हैं और साथ में विषय को स्पष्ट करने के लिए अनेकवि भी मुद्रित है । 'सूत्रधार मंडन' के विषय में हमें निश्चित जानकारी प्राप्त होती है। वे चित्तौड़ के राणा कुंभकर्ण या कुम्भा ( १४३३-१४६८ ई० ) राज्यकाल में हुए राणा कुम्भा ने अपने राज्य में अनेक प्रकार से संस्कृति का संवर्धन किया। संगीत की उन्नति के लिए उन्होंने प्रत्यन्त विशाल संगीत-राज' ग्रंथ का प्रपन किया। सौभाग्य से यह ग्रन्थ सुरक्षित है और इस समय हिन्दू विश्व विद्यालय की ओर से इसका मुद्रा हो रहा है। राणा कुम्भा ने कवि जयदेव के गीत गोविन्द पर स्वयं एक उत्तम टीका लिखी। उन्होंने ही चित्तौड़ में सुप्रसिद्ध कीर्तिस्तंभ का निर्माण कराया। उनके राज्य में कई प्रसिद्ध शिल्पी थे। उनके द्वारा राणा ने अनेक वास्तु और स्थापत्य के कार्य संगदित कराए । 'कीर्तिस्तम्भ के निर्माण का कार्य सूत्रधार 'जइता' और उसके दो पुत्र सूत्रधार नापा और पूजा ने १४४२ से १४४८ तक के समय में पूरा किया । इस कार्य में उसके दो अन्य पुत्र पामा और बलराज भी उसके सहायक थे । राणा कुंभा के अन्य प्रसिद्ध राजकीय स्थपति सूत्रधार मण्डन हुए। वे संस्कृत भाषा के भी अच्छे विद्वान् थे। उन्होंने निम्न लिखित शिल्प ग्रन्थों की संस्कृत में रचना की प्रासाद मण्डन, वास्तु मण्डन, रूप मण्डन, राज-बल्लभ मण्डन, देवता मूर्ति प्रकरण, रूपावतार, वास्तुसार, वास्तु शास्त्र । राजवल्लभ ग्रन्थ में उन्होंने अपने संरक्षक सम्राट् राणा कुंभा का इस प्रकार गौरव के साथ उल्लेख किया है १ - श्री रत्नचन्द्र अग्रवाल, १५ वीं शती में मेवाड़ के कुछ प्रसिद्ध सूत्रधार और स्थपति सम्राट् (Some Famous Soulptors & Architects of Mewar --- 15th century A. D. ) इन्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली, भाग ३३, अंक ४ दिसम्बर १९५७ पृ० ३२१ - ३३४ मेद्रपाटे नृपकुभक-स्तदंघ्रिराजीवपरागसेवी । समण्डनारूपो भुवि सूत्रधारस्तेनोद्ध तो भूपतिवल्लभोऽयम् ।" { १४-४३ ) रूपमण्डन ग्रन्थ में सूत्रधार मण्डन ने अपने विषय में लिखा है"श्रीमद्देशे मेदपाटाभिधाने क्षेत्राख्योऽभूत् सूत्रधारो वरिष्ठः पुत्री ज्येष्ठो मण्डनस्तस्य तेन प्रोक्त शास्त्रं मण्डनं रूपपूर्वम् । " इससे ज्ञात होता है कि भराडन के पिता का नाम सूत्रधार क्षेत्र था । इन्हें ही ग्रन्य लेखों में क्षेत्राक भी कहा गया है। क्षेत्राक का एक दूसरा पुत्र सूत्रधार नाथ भी था जिसने 'वास्तु मंजरी' नामक ग्रंथ की रचना की। सूत्रधार मण्डन का ज्येष्ठ पुत्र सूत्रधार गोविन्द और छोटा पुत्र सूत्रधार ईश्वर था। सूत्रधार गोविन्द ने तीन ग्रन्थों की रचना की - उद्धार धोरणि कलानिधि और द्वारदीपिका । कलानिधि ग्रन्थ में उसने अपने विषय में संरक्षक राणा श्री राजमल्ल ( राय मल्ल ) के विषय में लिखा है"सूत्रधारः सदाचारः कलाधारः कलानिधिः । दण्डाधारः सुरागारः श्रिये गोविन्दया दिशत् ।। राज्ञा श्री राजमल्ल (न) प्रीतस्यामि (ति) मनोहरे । प्रणम्यमाने प्रासादे गोविन्दः संव्यधादिदम् ।। " (विक्र. सं १५५४ ) राणा कुंभा की पुत्री रमा बाई का एक लेख (विक्रम सं. १५५४) जावर से प्राप्त हुआ है जिसमें क्षेत्राक के पौत्र और सूत्रधार मण्डन के पुत्र ईश्वर ने कमठारणा बनाने का उल्लेख है - "श्री मेदवाटे वरे देशे कुम्भकर नृपगृहे क्षेत्राकसूत्रधारस्य पुत्रो मण्डन आत्मवान् सूत्रधारमण्डन सुत ईशरए कमठार विरचितं । " ईश्वर ने जावर में विष्णु के मन्दिर का निर्माण किया था । इसी ईश्वर का पुत्र सूत्रधार छोतर था जिसका उल्लेख विक्रम सं. १५५६ (१४६६ ई.) के चितौड़ से प्राप्त एक लेख में प्राया है । यह राणा रायमल के समय में उनका राजकीय स्थपति था। इससे विदित होता है कि राणा कुंभा के बाद भी सूत्रधार मण्डन के वंशज राजकीय शिल्पियों के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने ही उदयपुर के प्रसिद्ध जगदीश मंदिर और उदयपुर से चालीस मील दूर कांकरौली में बने हुए राज समुद्र सागर का निर्माण किया । राणा कुंभा के राज्य काल में राणकपुर में सूत्रधार देपाक ने विक्रम सं. १४६६ (१४३६ ई.) में सुप्रसिद्ध जैन मन्दिर का निर्माण किया। कुंभा की पुत्री रमा बाई ने कुभलगढ़ में दामोदर मंदिर के निर्माण के लिये सूत्रधार रामा को नियुक्त किया। सूत्रधार मण्डन को राणा कुंभा का पूरा विश्वास प्राप्त था। उन्होंने कुभलगढ़ के प्रसिद्ध दुर्ग की वास्तु कल्पना और निर्माण का कार्य सूत्रधार मण्डन को सं. १५१५ (१४५८ ई.) में सौंपा । यह प्रसिद्ध दुर्ग श्राज भी अधिकांश में सुरक्षित है और मण्डन की प्रतिभा का साक्षी है । उदयपुर : से १४ मील दूर एकलिंग जी नामक भगवान् शिव का सुप्रसिद्ध मन्दिर है। उसी के समीप एक अन्य विष्णु मन्दिर भी है। श्री रत्नचन्द्र अग्रवाल का अनुमान है कि उसका निर्माण भी सूत्रधार मन्डन ने ही किया १ - गृह और देवालय आदि इमारती काम को अभी भी राजस्थानीय शिल्पी 'कमठार बोलते है । था । उस मंदिर की भित्तियों के बाहर की ओर तीन रथिकाएं हैं। उनमें नृसिंह वराह विष्णुमुखी तीन मूर्तियां स्थापित है। उनकी रचना रूप मण्डन ग्रंथ में वरिंगत लक्षणों के अनुसार ही की गई है। एक अष्टभुजी मूर्ति भगवान् वैकुण्ठ की है । दूसरी द्वादशभुजी मूर्ति भगवान् अनंत की है और तीसरी सोलह हाथों वाली मूर्ति लोक्य मोहन की है इनके लक्षण सूत्रधार मण्डन ने अपने रूपमण्डन ग्रंथ के तीसरे में (श्लोक ५२-६२ दिये हैं। इनके अतिरिक्त मूत्रधार मण्डन ने और भी कितनी ही ब्राह्मण धर्म संबंधी देव मूर्तियां बनाई थीं ! उपलब्ध मूर्तियों की चौकियों पर लेख उत्कीरण हैं। जिनमें मूर्ति का नाम राखा कुंभा का नाम और सं. १५१५-१५१६ की निर्माण तिथि का उल्लेख है। ये मूर्तियां लगभग कुंभलगढ़ दुर्ग के साथ ही बनाई गई थीं । तब तक दुर्ग में किसी मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था, अतएव वे एक वट वृक्ष के नीचे स्वाहित कर दो गई थीं । इस प्रकार को छः मातृका मूर्तियां उदयपुर के संग्रहालय में विद्यमान हैं जिन पर इस प्रकार लेख हैं"स्वस्ति श्री सं० १५१५ वर्षे तथा शाके १३८० प्रवतमा फाल्गुन शुदि १२ बुधे पुष्य नक्षत्रे श्री कुंभल मेरु महादुर्गे महाराजाधिराज श्री कुंभकरणं पृथ्वी पुरन्दरेय श्री ब्रह्माणी मूर्तिः अस्मिन् वटे स्थापिता । शुभं भवत ।। श्री ॥ " इसी प्रकार के लेख माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही और ऐन्द्री मूर्तियों की चरण चौकियों पर भी हैं। इसी प्रकार चतुर्विंशति वर्ग को विष्णु मूर्तियों का भी रूप मण्डन में (अध्याय ३, श्लोक १०-२२) विशद न आया है। उनमें से १२ मूर्तियां कुभलगढ़ से प्राप्त हो चुकी हैं जो इस समय उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है। ये मूर्तियां भगवान विष्णु के संकर्षण, माधव, मधुसुदन, प्रोज, प्रदयुम्न, केशव, पुरुषोत्तम, अनिरुद्ध, वासुदेव, दामोदर, जनार्दन और गोविन्द रूप की हैं। इनको चौकियों पर इस प्रकार लेख है"स० १५१६ वर्षे शाके १३८२ वर्त्तमाने आश्विन शुद्ध ३ श्री कुंभमेरी महाराज श्री कुंभकरन वटे संकर्षरण मूर्ति संस्थापिता शुभं भवतु ॥ २॥ इन सब मूर्तियों की रचना रूप मण्डन ग्रन्थ में वर्णित लक्षणों के अनुसार यथार्थतः हुई है । स्पष्ट है कि सूत्रधार मण्डन शास्त्र और प्रयोग दोनों के निपुण अभ्यासी थे। शिल्प शास्त्र में वे जिन लक्षणों का उल्लेख करते थे उन्हीं के अनुसार स्वयं या अपने शिष्यों द्वारा देव मूर्तियों की रचना भी कराते जाते थे । किसी समय अपने देश में सूत्रधार मण्डन जैसे सहस्रों की संख्या में लब्ध कीर्ति स्थपति और वास्तु विद्याचार्य हुए । एलोरा के कैलाश मन्दिर, खजुराहो के कंदरिया महादेव, भुवनेश्वर के लिङ्गराज, तंजोर के बृहूदीश्वर, कोरणार्क के सूर्यदेउल आदि एक से एक भव्य देव प्रासादों के निर्माण का श्रेय जिन शिल्पाचार्यों की कल्पना में स्फुरित हुआ और जिन्होंने अपने कार्य कौशल से उन्हें मूर्त रूप दिया वे सचमुच धन्य ये और उन्होंने ही भारतीय संस्कृति के मार्ग दर्शन का शाश्वत कार्य किया । १ - दे० रहनचन्द्र अग्रवाल, राजस्थान की प्राचीन मूर्तिकला में महाविष्णु संबंधी कुछ पत्रिकाएं, शोधपत्रिका, उदयपुर, भाग ६, अंक १ ( पौष, वि० सं० २०१४ ) पृ० ६, १४, १७ ॥ २ - रत्नचन्द्र अग्रवाल रूप मण्डन तथा कुंभलगढ़ से प्राप्त महत्वपूर्ण प्रस्तर प्रतिमाएं, शोध पत्रिका, भाग ८ अंक ३ ( चैत्र, वि० सं० २०१४ ), पृ० १-१२ उन्हीं की परम्परा में सूत्रधार मण्डन भी थे । देव - प्रासाद एवं नृप मंदिर आदि के निर्माण कता सूत्रवारों का कितना अधिक सम्मानित स्थान था यह मराडन के निम्न लिखित श्लोक से ज्ञात होता है"इत्यनन्तरतः कुर्यात् सूत्रधारस्य पूजनम् 1 भूवित्तवस्त्रालङ्कार-महिष्यश्ववाहनैः प्रत्येषां शिल्पिती पूजा कर्त्तव्या कर्मकारिणाम् । स्वाधिकारानुसारेण वस्त्रताम्बूलभोजनैः ॥ काष्ठपाषाणनिर्माण - कारिणो यत्र मन्दिरे । भुञ्जतेऽसौ तत्र सौख्यं शङ्करत्रिदर्शः सह ॥ पुरावं प्रसादजं स्वामी प्रार्थयेत्सूत्रधारतः । सूत्रधारो वदेत् स्वामिनक्षयं भवतात्तव ॥" प्रसादमण्डनः ८८२-८५ अर्थात् निर्माण की समाप्ति के अनन्सर सूत्रधार का पूजन करना चाहिये और अपनी शक्ति के अनुभ सार भूमि, सुत्र, बस्त्र, अलङ्कार के द्वारा प्रधान सूत्रधार एवं उनके सहयोगी अन्य शिल्पियों का सम्मान करना आवश्यक है । जिस मन्दिर में शिला या काष्ठ द्वारा निर्माण कार्य करने वाले शिल्पी भोजन करते हैं वहीं भनवान् शंकर देवों के साथ विराजते हैं। प्रासाद या देव मन्दिर के निर्माण में जो पुराय है उस पुराय की प्राप्ति के लिये सूत्रधार से प्रार्थना करनी चाहिए, 'हे सूत्रधार, तुम्हारी कृपा से प्रासाद निर्माण का पुराय मुझे प्राप्त हो ।' इसके उत्तर में सूत्रधारक कहे - हे स्वामिन् ! सब प्रकार आप की अक्षय वृद्धि हो । सुत्रधार के प्रति सम्मान प्रदर्शन की यह प्रथा लोक में आजतक जीवित है, जब सूत्रधार शिल्पी नूतन गृह का द्वार रोककर स्वामी से कहता है 'आजतक यह गृह मेरा था, अब आज से यह तुम्हारा हुआ ' उसके अनन्तर गृह् स्वामी सूत्रधार को इष्ट-वस्तु देकर प्रसन्न करता है और फिर गृह में प्रवेश करता है । सूत्रधार मण्डन का प्रासाद - मण्डन ग्रन्थ भारतीय शिल्प ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । भण्डन ने ग्राठ अध्यायों में देव- प्रासादों के निर्माण का स्पष्ट और विस्तृत वर्णन किया है । पहले प्रध्याय में विश्व कर्मा को सृष्टि का प्रथम सूत्रधार कहा गया है। गृहों के विन्यास और प्रवेश की जो धार्मिक विधि है, उन सब का पालन देवायतनों में भी करना उचित है । चतुर्दश श्लोकों में जिन जिन प्रासादों के आकार देवों ने शंकर की पूजा के लिए बनाये उन्हीं की अनुकृति पर १४ प्रकार के प्रासाद प्रचलित हुए। उनमें देश-भेद से प्रकार के प्रासाद उत्तम जाति के माने जाते हैं. नागर, द्राविड़, भूमिज, लतिन, सावन्धार ( सान्धार ), विमान-नागर, पुष्पक और मिश्र लतिन सम्भवतः उस प्रकार के शिखर को कहते थे जिसके उरटंग में लता की प्रकृति का उठता हुम्रा रूप बनाया जाता था । शिखरों के ये भेद विशेषकर शृंग और तिलक नामक अलंकरणों के विभेद के कारण होते हैं। प्रासाद के लिए भूमि का निरूपण आवश्यक है। जो भूमि चुनी जाय उसमें ६४ या सौ पद या घर बनाने चाहिए । प्रत्येक घर का एक-एक देव होता है जिसके नाम से बह पद पुकारा जाता है। मंदिर के निर्माण में नक्षत्रों के शुभाशुभ का भी विचार किया जाता है। यहां तक कि निर्माण कर्ता के अतिरिक्त स्थापक अर्थात् स्थपति और जिस देवता का मन्दिर हो उनके भी नवाज नाड़ी वेध का मिलान आवश्यक माना गया है। काष्ठ, मिट्टी, ईंट, शिला, धातु और रत्न इन उपकरणों से मंदिर बनाए जाते हैं, इनमें उत्तरोत्तर का अधिक पुण्य है। पत्थर के प्रासाद का फल अनंत कहा गया है। भारतीय देव प्रासाद अत्यन्त पवित्र कल्पना है। विश्व को जन्म देने वाले देवाधिदेव भगवान का निवास देवगृह या मंदिर में माना जाता है। जिसे वेदों में हिरण्यगर्भ कहा गया है वही देव मंदिर का गर्भगृह है। सृष्टि का मूल जो प्राण तत्त्व है उसे ही हिरराय कहते हैं। प्रत्येक देव प्राणतत्त्व है, वही हिरण्य है । "एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति" के अनुसार एक ही देव अनेक देवों के रूप में अभिव्यक्त होता है। प्रत्येक देव हिरण्य की एक - एक कला है अर्थात् मूलभूत प्रारग तत्त्व की एक-एक रश्मि है। मंदिर का जो उत्सेध या ब्रह्म सूत्र है वही समस्त सृष्टि का मेरु या यूप है । उसे ही वेदों में 'बाण' कहा गया है। एक बाख वह है जो स्थूल दृश्य सृष्टि का आधार है और जो पृथिवी से लेकर छ लोक तक प्रत्येक वस्तु में प्रोत-प्रोत है। द्यावा पृथिवी को वैदिक परिभाषा में रोदसी ब्रह्माण्ड कहते हैं । इस रोदसी सृष्टि में व्याप्त जो ब्रह्मसूत्र है वही इसका मूलावार है । उसे ही वैदिक भाषा में 'ओपश' भी कहा जाता है। बाण, प्रोपश, मेरु, ब्रह्मसूत्र ये सब समानार्थक हैं और इस दृश्य जगत् के उस प्राधार को सूचित करते हैं जिस ध्रुव बिन्दु पर प्रत्येक प्राणी अपने जीवन में जन्म से मृत्यु तक प्रतिष्ठित रहता है । यह मनुष्य शरीर और इसके भीतर प्रतिष्ठित प्राणतत्त्व विश्वकर्मा की सबसे रहस्यमयी कृति है। देव मंदिर का निर्माण भी सर्वथा इसी की अनुकृति है। जो चेतना या प्राण देव-विग्रह या देवमूर्ति है और मन्दिर उसका शरीर है। प्राण-प्रतिष्ठा से हो पाषाणघटित प्रतिमा देवत्व प्राप्त करती है। जिस प्रकार इस प्रत्यक्ष जगत् में भूमि अन्तरिक्ष प्रौर द्यौः, तीन लोक है, उसी प्रकार मनुष्य शरीर में और प्रासाद में भी तीन लोकों की कल्पना है। पैर पृथिवी हैं, मध्यभाग अन्तरिक्ष है और सिर द्य लोक है । इसी प्रकार मंदिर की जगती या अधिष्ठान पादस्थानीय है, गर्भगृह या मंडोवर मध्यस्थानीय है पौर शिखर द्यलोक या शीर्ष-भाग है। यह त्रिक यज्ञ की तीन प्रस्तियों का प्रतिनिधि है । मूलभूत एक अग्नि सृष्टि के लिये तीन रूपों में प्रकट हो रही है। उन्हें ही उपनिषदों की परिभाषा में मन, प्राण और वाक् कहते हैं । चहां वाक् का तात्पर्य पंचभूतों से है क्योंकि पंचभूतों में प्रकाश सबसे सूक्ष्म है और प्रकाश का गुण शब्द या बाक है। अतएव वाक् को ग्राकाशादि पांचों भूतों का प्रतीक मान लिया गया है। मनुष्य शरीर में जो प्राणाग्नि है वह मन, प्राग और पंचभूतों के मिलने से उत्पन्न हुई है ( एतन्मयो वाऽप्रयमात्मा वाङमयो मनोमयः प्राणमयः शतपथ १४।४।३।१० ) पुरुष के भीतर प्रज्वलित इस अग्नि को ही वैश्वानर कहते हैं ( स एषोऽग्निवैश्वानरो यत्पुरुषः, शतपथ १०।६।१।११ ) । जो वैश्वानर अति है वही पुरुष है। जो पुरुष है वही देव-विग्रह या देवमूर्ति के रूप में दृश्य होता है । मूर्त और अमूर्त, निसक्त और घनिसक्त ये प्रजापति के दो रूप हैं। जो मूर्त है वह त्रिलोको के रूप में दृश्य और परिमित है । जो प्रमूर्त है वह अव्यक्त और अपरिमित है । जिसे पुरुष के रूप में वैश्वानर कहा जाता है वही समष्टि के रूप में पृथिवी अंतरिक्ष और द्यलोक रूप "स यः स वैश्वानरः । इमे स लोकाः । इयमेव पृथिवी विश्वमग्निर्नरः । अंतरिक्षमेव विश्वं वाघुर्नरः । यौरेव विश्वमादित्यो नरः । शतपथ ६।३।११३ ।" इस प्रकार मनुष्य देह, अखिल ब्रह्माण्ड और देव प्रासाद इन तीनों का स्वरूप सर्वथा एक-दूसरे के साथ संतुलित एवं प्रतीकात्मक है । जो पिण्ड में है वही ब्रह्माण्ड में है और जो उन दोनों में हैं उसीका मूर्तरूप देव-प्रासाद है। इसी सिद्धान्त पर भारतीय देव मंदिर की ध्रुव कल्पना हुई है। मंदिर के गर्भ गृह में जो देव विग्रह है वह उस प्रतादि प्रनन्त ब्रह्म तत्व का प्रतीक है जिसे वैदिक भाषा में प्रारण कहा गया है । जो सृष्टि से पूर्व में भी था, जो विश्व के रोम-रोम में व्याप्त है, वही प्रारण सबका ईश्वर है । सब उसके वश में हैं। सृष्टि के पूर्व की अवस्था में उसे असत् कहा जाता है और सृष्टि की अवस्था में उसे ही सत् कहते हैं । देव और भूत ये हो दो तत्त्व हैं जिनसे समस्त विश्व विरचित है। देव, प्रमृत, ज्योति प्रौर सत्य है । भूत मर्त्य, तम और अतृत हैं। भूत को ही असुर कहते हैं । हम सबकी एक ही समस्या है अर्थात् मृत्यु, तम और असत्य से अपनी रक्षा करना और अमृत, ज्योति एवं सत्य की शरण में जाना । यही देव का प्राश्रम है। देव की शरणागति मनुष्य के लिए रक्षा का एक मात्र मार्ग है । यहाँ कोई प्राणी ऐसा नहीं जो मृत्यु और अन्धकार से बचकर प्रमृत और प्रकाश की आकांक्षा न करता हो अतएव देवाराधन ही मर्त्य मानव के लिये एकमात्र श्रेयपथ है । इस तत्त्व से ही भारतीय संस्कृति के वैदिक युग में यज्ञ संस्था का जन्म हुआ। प्राणाग्नि की उपासना ही यज्ञ का मूल है । त्रिलोकी या रोदसी ब्रह्माण्ड की मूलभूत शक्ति को रद्र कहते हैं । 'अग्निवै'रुद्रः' इस सूत्र के अनुसार जो प्राणाग्नि है वही रद्र है । 'एक_एवानिर्बहुधा समिद्धः' इस वैदिक परिभाषा के अनुसार जिस प्रकार एक मूलभूत अग्नि से अन्य अनेक अग्तियों का समिन्धन होता है उसी प्रकार एक देव अनेक देवों के रूप में लोक मानस की कल्पना में आता है। कौन देव महिमा में अधिक है. यह प्रश्न हो असंगत है । प्रत्येक देव प्रमृत का रूप है । वह शक्ति का अनन्त अक्षय स्रोत है । उसके विषय में उत्तर और अधर या बड़े-छोटे के तारतम्य की कल्पना नहीं की जा सकती । देव तत्त्व मूल में अव्यक्त है । उसे ही ध्यान की शक्ति से व्यक्त किया जाता है। हृदय की इस अदभुत शक्ति को ही प्रेम या भक्ति कहते हैं । यज्ञ के अनुष्ठान में और देवप्रासादों के अनुष्ठान में मूलतः कोई अन्तर नहीं है। जिस प्रकार यज्ञ को त्रिभुवन को नाभि कहा जाता था और उसकी अग्नि जिस वेदि में प्रज्वलित होती थी उस वेदि को अनादि अनंत पृथ्वी का केन्द्र मानते थे, उसी प्रकार देव मन्दिर के रूप में समष्टि विश्व व्यस्टि के लिये मूर्त बनता है और जो समष्टि का सहस्र शीर्षा पुरुष है वह व्यष्टि के लिये देव-विग्रह के रूप में मूर्त होता है । यज्ञों के द्वारा देव तत्व की उपासना एवं देव प्रासादों के द्वारा उसी देव तत्व की आराधना ये दोनों ही भारतीय संस्कृति के समान प्रतीक थे। देव मंदिर में जो मूत्त विग्रह को प्रदक्षिणा या परिक्रमा को जाती है उसका अभिप्राय भी यही है कि हम अपने प्रापको उस प्रभाव क्षेत्र में लीन कर देते हैं जिसे देव की महान् प्राणशक्ति या महिमा कहा जा सकता है । उपासना या आराधना का मूलतत्व यह है कि मनुष्य स्वयं देव हो जाय । जो स्वयं प्रदेव है अर्थात् देव नहीं बन पाता वह देव की पूजा नहीं कर सकता । मनुष्य के भीतर प्राण और मन ये दोनों देव रूप ही हैं। इनमें दिव्य भाव उत्पन्न करके ही प्राणी देव की उपासना के योग्य बनता है । . जो देव तत्त्व है वही वैदिक भाषा में अग्नि तत्त्व के नाम से अभिहित किया जाता है । कहा है ---- 'अग्निः सर्वा देवता' अर्थात् जितने देव हैं अग्नि सत्रका प्रतीक है । अग्नि सर्वदेवमय है। सृष्टि की जितनी दिव्य या समष्टिगत शक्तियां हैं उन सबको प्राणाग्नि इस मनुष्य देह में प्रतिष्ठित रखती है । इसी तत्व को लेकर देव प्रासादों के स्वरूपका विकास हुआ। जिस प्रकार यज्ञवेदी में अग्नि का स्थान है उसी प्रकार देव की प्रतिष्ठा के लिए प्रासाद की कल्पना है । देव तत्त्व के साक्षात्कार का महत्वपूर्ण सिद्धान्त यह है कि प्रत्येक प्राणी उसे अपने ही भीतर प्राप्त कर सकता है । जो देव द्यावा पृथिवी के विशाल अंतराल में व्याप्त है वही प्रत्येक प्राणी के अंतःकरण में है। जैसा कालिदास ने कहा है६
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प्राचीन भारत में ऐसे कई लोग थे जिन्होंने बड़े-बड़े विवाद खड़े कर दिए थे और इन्हीं विवादों या उनके विवादित रहने के कारण ही उन्हें जाना जाता है। तो जानते हैं ऐसे कई लोगों में से छह लोगों के बारे में संक्षिप्त जानकारी। 1. इंद्र : इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। इन्द्र किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देता था इसलिए वह कभी विश्वामित्र जैसे तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता है, तो कभी राजाओं के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चुरा लेता है। साम, दाम, दंड और भेद सभी तरीके से वह अपने सिंहासन को बचाने का प्रयास तो करता ही है, साथ ही वह इस प्रयास के दौरान कभी-कभी ऐसा भी कार्य कर जाता है, जो देवताओं को शोभा नहीं देता जिसके कारण देवताओं को बहुत बदनामी झेलना पड़ी। राजा बलि की सहायता से ही देवराज इन्द्र ने समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन के दौरान इन्द्र ने असुरों के साथ हर जगह छल किया। जो 14 रत्न प्राप्त हुए उनका बंटवारा भी छलपूर्ण तरीके से ही संपन्न हुआ। शास्त्रों के अनुसार शचिपति इन्द्र ने गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ छल से सहवास किया था। इंद्र ने कर्ण से भी छलपूर्वक कवच और कुंडल ले लिए थे। इंद्र ने ही बाल हनुमान की तोड़ दी थी ठुड्डी। 2. वृत्रासुर : कहते हैं कि इंद्र का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी वृत्रासुर ही था। यह सतयुग की बात है जब कालकेय नाम के एक राक्षस का संपूर्ण धरती पर आतंक था। वह वत्रासुर के अधीन रहता था। दोनों से त्रस्त होकर सभी देवताओं ने मिलकर सोचा वृत्रासुर का वध करना अब जरूरी हो गया। इस वृत्तासुर के वध के लिए ही दधीचि ऋषि की हड्डियों से एक हथियार बनाया जिसका नाम वज्र था। वृत्रासुर एक शक्तिशाली असुर था जिसने आर्यों के नगरों पर कई बार आक्रमण करके उनकी नाक में दम कर रखा था। अंत में इन्द्र ने मोर्चा संभाला और उससे उनका घोर युद्ध हुआ जिसमें वृत्रासुर का वध हुआ। इन्द्र के इस वीरतापूर्ण कार्य के कारण चारों ओर उनकी जय-जयकार और प्रशंसा होने लगी थी। शोधकर्ता मानते हैं कि वृत्रासुर का मूल नाम वृत्र ही था, जो संभवतः असीरिया का अधिपति था। पारसियों की अवेस्ता में भी उसका उल्लेख मिलता है। वृत्र ने आर्यों पर आक्रमण किया था तथा उन्हें पराजित करने के लिए उसने अद्विशूर नामक देवी की उपासना की थी। इन्द्र और वृत्रासुर के इस युद्ध का सभी संस्कृतियों और सभ्यताओं पर गहरा असर पड़ा था। तभी तो होमर के इलियड के ट्राय-युद्ध और यूनान के जियॅस और अपोलो नामक देवताओं की कथाएं इससे मिलती-जुलती हैं। इससे पता चलता है कि तत्कालीन विश्व पर इन्द्र-वृत्र युद्ध का कितना व्यापक प्रभाव पड़ा था। 3. रावण : रावण इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू और सभी शास्त्रों का ज्ञाता था। लेकिन उसने ऐसे कई कार्य किए जिसके चलते वह विवादों में रहा। उसने अपने सौतेले भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर की पत्नी अप्सरा रंभा पर बुरी नजर डाली। उसने शिव के गण नंदीजी का मजाक उड़ाया। उसने वेदवती नामक तपस्विनी के साथ जबरदस्ती की थी। उसने अपनी बहन शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह का वध कर दिया था। उसने अपनी पत्नी मंदोदरी की बड़ी बहन पर भी वासनायुक्त नजर डाली थी। अंत में उसने प्रभु श्रीराम की पत्नी सीता का अपहरण करके सारी हदें पा कर दी थी। रावण ने इसके अलावा और भी कई कार्य किए थे जिसके चलते वह विवादों में रहा। जैसे उसने स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने का प्रयास किया। शनि सहित सभी ग्रहों के देवताओं को बंदी बना लिया था। रावण का रंग काला था और वह गौरे लोगों से नफरत करता था। वह खुद को ईश्वर मानता था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। इसी के चलते रावण ने शिव, सहस्रबाहु और बाली से भी युद्ध किया था। चापलूस पसंद रावण चाहता था कि शराब से दुर्गंध समाप्त कर उसका राज्य में प्रचार किया जाए। रावण चाहता था कि दुनिया के सभी सोने पर मेरा कब्जा और स्वर्ण में से सुगंध पैदा हो। ताकि यह आसानी से पता चल सके कि सोना कहां छिपा है। रावण की एक अजीब इच्छा थी वह यह कि वह चाहता था कि खून का रंग लाल की जगह सफेद हो। इस तरह रावण ने अपनी इच्छा और कार्यों से खुद को विवादित बना लिया था। 4. हिरण्याक्ष : हिरण्याक्ष भयंकर दैत्य था। वह तीनों लोकों पर अपना अधिकार चाहता था। हिरण्याक्ष का दक्षिण भारत पर राज था। ब्रह्मा से युद्ध में अजेय और अमरता का वर मिलने के कारण उसका धरती पर आतंक हो चला था। हिरण्याक्ष भगवान वराहरूपी विष्णु के पीछे लग गया था और वह उनके धरती निर्माण के कार्य की खिल्ली उड़ाकर उनको युद्ध के लिए ललकारता था। वराह भगवान ने जब रसातल से बाहर निकलकर धरती को समुद्र के ऊपर स्थापित कर दिया, तब उनका ध्यान हिरण्याक्ष पर गया। आदि वराह के साथ भी महाप्रबल वराह सेना थी। उन्होंने अपनी सेना को लेकर हिरण्याक्ष के क्षेत्र पर चढ़ाई कर दी और विंध्यगिरि के पाद प्रसूत जल समुद्र को पार कर उन्होंने हिरण्याक्ष के नगर को घेर लिया। संगमनेर में महासंग्राम हुआ और अंततः हिरण्याक्ष का अंत हुआ। आज भी दक्षिण भारत में हिंगोली, हिंगनघाट, हींगना नदी तथा हिरण्याक्षगण हैंगड़े नामों से कई स्थान हैं। उल्लेखनीय है कि सबसे पहले भगवान विष्णु ने नील वराह का अवतार लिया फिर आदि वराह बनकर हिरण्याक्ष का वध किया इसके बाद श्वेत वराह का अवतार नृसिंह अवतार के बाद लिया था। हिरण्याक्ष को मारने के बाद ही स्वायंभूव मनु को धरती का साम्राज्य मिला था। 5. महाबली : महाबली बाली अजर-अमर है। कहते हैं कि वो आज भी धरती पर रहकर देवताओं के विरुद्ध कार्य में लिप्त है। पहले उसका स्थान दक्षिण भारत के महाबलीपुरम में था लेकिन मान्यता अनुसार अब मरुभूमि अरब में है जिसे प्राचीनकाल में पाताल लोक कहा जाता था। अहिरावण भी वहीं रहता था। समुद्र मंथन में उसे घोड़ा प्राप्त हुआ था जबकि इंद्र को हाथी। उल्लेखनीय है कि अरब में घोड़ों की तादाद ज्यादा थी और भारत में हाथियों की। शिवभक्त असुरों के राजा बाली की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। वह मानता था कि देवताओं और विष्णु ने उसके साथ छल किया। हालांकि बाली विष्णु का भी भक्त था। भगवान विष्णु ने उसे अजर-अमर होने का वरदान दिया था। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बाली का जन्म हुआ। बाली जानता था कि मेरे पूर्वज विष्णु भक्त थे, लेकिन वह यह भी जानता था कि मेरे पूर्वजों को विष्णु ने ही मारा था इसलिए बाली के मन में देवताओं के प्रति द्वेष था। उसने शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को खदेड़ दिया था। वह तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था। बाली से भारत के एक नए इतिहास की शुरुआत होती है। 6. जरासंध : भगवान कृष्ण के मामा कंस अपने पूर्वजन्म में 'कालनेमि' नामक असुर था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। कंस का श्वसुर मगथ का सम्राट जरासंध था। महाभारत काल में जरासंध सबसे शक्तिशाली राजा था। श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण को सबसे ज्यादा यदि किसी ने परेशान किया तो वह था जरासंध। जरासंध बृहद्रथ नाम के राजा का पुत्र था और जन्म के समय दो टुकड़ों में विभक्त था। जरा नाम की राक्षसी ने उसे जोड़ा था तभी उसका नाम जरासंध पड़ा। महाभारत युद्ध में जरासंध कौरवों के साथ था। जरासंध अत्यन्त क्रूर एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। हरिवंश पुराण अनुसार उसने काशी, कोशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, पांडय, सौबिर, मद्र, काश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त कर सभी को अपने अधीन बना लिया था। इसी कारण पुराणों में जरासंध की बहुत चर्चा मिलती है। जरासंध का मित्र था कालयवन। भीम ने जरासंध के शरीर को दो हिस्सों में विभक्त कर उसका वध कर दिया था। जरासंध के कई किस्से हैं जिसके चलते वह विवादों में रहा।
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ज्ञानदीप आगे की लाइनें पढ़ पाता कि दरवाजें पर दस्तक हुई। लगा जैसे खाने के बीच कंकड़ आ गया हो। उसने पन्ने उठाकर एक तरफ रखा और दरवाजा खोला। सामने अली खड़ा था। "भैंया, जल्दी चलिये अम्मी को दौरा पड़ा हैं." अली हाँफता हुआ बोला। ज्ञानदीप दरवाजा बंद करके उसके साथ चला गया। जब यह बात अम्मा को पता चली तो उन्होंने मुझे बहुत डाँटा। जबकि उस वक्त मुझे हिजड़ों के बारे में कुछ भी नहीं पता था। मगर विघि का विधान तो देखिये जिस हिजड़े समाज से बोलने के लिए मुझे इतनी बड़ी सज़ा मिली थी। आज मैं उसी हिजड़े समाज की नायक हूँ। डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता। नसीबों के खेल भी कितने निराले होते हैं। यह मैंने इस उमर में जाना था। भाग्य के मैं कितने रूप बखान करूँ, हर एक रूप में दर्द ही दर्द हैं। अब तो मैं इस दुर्भाग्य को अपनी तकदीर मान बैठी हूँ और उसी के सहारे घिसटती जा रही हूँ। न जाने कब तक घिसटती जाऊँगी। माँ-बाप ने क्या सोच कर मेरा नाम दीपक रखा होगा, कि एक दिन दीपक की तरफ सारे संसार में चमकूँगा। मगर अफसोस! मैं बदनसीब दीपक न बन सका। जहाँ चमकना था वहाँ चमक न सका। जहाँ बुझना था वहाँ चमक उठा।। क्या करती परिस्थितियों के आगे विवश थी। परिस्थितियाँ इंसान को क्या से क्या बना देती है। जब भाग्य का पहिया चलता हैं तो वह किसी को नहीं बख़्शता सिर्फ़ रौंदता चला जाता हैं। उस हिजड़े वाले हादसे के बाद से पिताजी मुझे अपने साथ रखते। उनकी पैनी निगाहें हर पल मुझ पर रहती। दिन-रात की कड़ी मेहनत के बाद भी परिवार का खर्चा नहीं चल पा रहा था। दो छोटी बहन और दो छोटे भाइयों की पढ़ाई का खर्चा ठेले से निकाल पाना दूभर हो गया था। फिर क्या था पूरा परिवार दस पैसे किलों पर टाफी लपटने लगा। दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद बीस किलो टाफी पैक हो पाती थी। यह सब देखकर हम-दोनें भाइयों को बहुत तकलीफ़ होती थी। काफी सोचने-विचारने के बाद हमने यह निश्चय निकाला कि हम लोग देहरादून जायेंगे। वहाँ जाने का सबसे बड़ा कारण यह था कि वहाँ हमारे रिश्तेदार थे। जबकि अम्मा-पिताजी नहीं चाहते थे कि हम में से कोई भी किसी से पल भर के लिए दूर हो। कहते हैं ना, तकदीर जो न कराये वह कम हैं। हम-दोनों भाई तैयारी करके देहरादुन चले गए। हमारे रिश्तेदारों ने मदद करना तो दूर, बात करना भी गंवारा न समझा। हम लोगों ने जैसे-तैसे कई रातें फुटपाथ पर काटी। दिन में हम लोग होटलों में काम करते और रात में टैम्पों पर कनडकटरी करते। देखते-देखते मेरा भाई टैम्पों चलाना सीख गया था। तभी अल्लाह का एक बंदा मिल गया जिसने मेरे भाई को टैम्पों दिया और कहा चलाओं। मैं अगले दिन ट्रेन पकड़ कर अपने शहर आ गया। एक हफ्ता रहने के बाद जब मैं देहरादुन आने लगा तो पिताजी मेरे साथ चल पड़े। यह तो मुझे बाद में पता चला कि वह घूमने नहीं, छोटी बहन के लिए लड़का ढूढ़ने आए हैं। तभी दूर की रिश्तेदारी में पिताजी को एक लड़का मिल गया था। पिताजी ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि मेरे पास सिर्फ लड़की हैं और कुछ नहीं। लड़के वालों ने भी अपनी बात रख दी, हमें सिर्फ लड़की चाहिए जो हमारे परिवार को चला सके। नतीजा यह निकला कि शादी देहरादून में करनी होगी। पिताजी वापस अपने शहर आ गये। फिर एक हफ्ते के बाद अम्मा और भाई-बहनों को लेकर देहरादून आ गए। हम लोगों ने तो जो शादी में पैसा लगाया साथ-साथ लड़के वालों ने भी हमारी काफी मदद की। शादी ठीक-ठाक निपट गई थी। पिताजी सबको लेकर शहर आ गए थे। आठवे दिन मैं भी शहर आ गया। उसी के दूसरे दिन मेरे भाई का एक्सीडेंट हो गया। देहरादून के रिश्तेदारों ने मेरे बड़े भाई को खैराती अस्पताल में भर्ती कर दिया, और पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिताजी-अम्मा को बहुत दुःख हुआ। डॉक्टरों के अनुसार, भाई का एक हाथ बेकार हो चुका था। और अगर जल्दी नहीं काटा गया तो ज़हर पूरे ज़िस्म में फैल जाएगा। पिताजी भाई को लेकर अपने शहर आ गए थे। डॉक्टरों को दिखाया गया तो उन्होंने फौरन आप्ररेशन करने को कहा। रकम एक हज़ार थी मगर जहाँ खाने के लाले लगे हो, वहाँ यह रकम बहुत बड़ी थी। पिताजी ने हर एक के आगे गुज़ारिश की मगर किसी ने उनकी मदद नहीं की। वह पैसे के लिए इधर-उधर भागते रहे। पैसा मिला भी तो ब्याज पर, भाई का आप्ररेशन हुआ। पर डॉक्टर उसका दाया हाथ नहीं बचा सके। शहर में मेरे भाई का नाम था चाहे खेल का मैदान हो या पढ़ाई, वह हर जगह अव्वल आता था। मगर आज वह विकलांग बन कर रह गया था। भाई के ग़म में पिताजी घुटते जा रहे थे। फिर क्या था मैंने उन कलाकरों से मिलना-जुलना शुरू कर दिया, और गुज़ारिश की वे भी मुझे अपने साथ प्रोग्राम में ले चले। उस समय मेरी उम्र चैदह साल की थी। उन लोगों ने मुझे पाँच रूपया रोज पर रामलीला में नाचने का काम दिला दिया। दिन-भर मैं चाय का ठेला खींचता और रात-भर रामलीला में नाचता। फिर सुबह भाई को अस्पताल में ले जाकर डेसिंग कराना। यह सब मेरा रोज का काम था। मेरे तो जैसे काटों खून नहीं। ज्ञानदीप आगे की लाइनें पढ़ पाता कि अचानक बिजली गुल हो गई। उसे रह-रहकर बिजली विभाग पर गुस्सा आ रहा था। मगर वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। इस वक्त अँघेरे का वर्चस्व कायम था। तो क्या मज़ाल थी रोशनी की। ठंड़ भी अपने चरम सीमा पर थी। कोहरे का अपना बवाल था। जहाँ दिन में यह मोहल्ला कान फोड़ता हो, वही इस वक्त सन्नाटा अपनी चादर ओढ़े पड़ा था। ज्ञानदीप ने लालटेन में देखा उसमें तेल नहीं था। उसे अपने ऊपर काफी गुस्सा आया। उसका दिल-दिमाग दीपिकामाई के डायरी के पन्नों में खोया था। आगे क्या हुआ? उसकी उत्सुकता बनी हुई थी। ज्ञानदीप दरवाजा बंद करके रोड पर आ गया। मगर दुकान बंद देख वह आगे बढ़ गया। फिर भी उसे मोमबत्ती नहीं मिली तो वह हताश मन से लौट आया। जैसे 'रावन' फ्लाप होने से शाहरूख खान लंदन से मुंबई वापस आए थे। ज्ञानदीप बिस्तर पर ऐसे ढहे, जैसे जीरों पर आउट होने पर कोहली ढहे थे। ज्ञानदीप का दिल-दिमाग अभी भी दीपिकामाई के उन पन्नों में डूबा था। उन्होंने कितना कष्टमय जीवन जिया। जिस उमर में उन्हें खेलना-कूदना, पढ़ना-घूमना, मौज़मस्ती करना था। उस उमर में उन्होंने जी-तोड़ मेहनत करके अपने परिवार को पाला। वैसे तो दुख-तकलीफ़, परेशानी हर एक के साथ होती हैं। मगर दीपिकामाई के खाते में कुछ ज्यादा ही थी। जब परिस्थिति वश दीपक! दीपिकामाई! बनी होगी? तब उन पर क्या नहीं गुज़री होगी? कैसी-कैसी बातें परिवार वालों को सुननी पड़ी होगी। क्या बीती होगी उनके माँ-बाप, भाई-बहनों पर। कल्पना करता हूँ तो रूह काँप उठती हैं। कहते हैं घूर का भी एक अस्तित्व होता हैं। तो क्या दीपिकामाई का कोई अस्तित्व नहीं? ज्ञानदीप के ज़ेहन में तरह-तरह के समीकरण बन रहे थे। वह कभी दायें करवट लेता तो कभी बायें। उसकी भूख-प्यास ऐसे गायब हो गई। जैसे इंसान के जीवन से सच्चाई। मैंने डरते-डरते कहा, कि रामलीला देखने गया था। पिताजी की यह बातें मेरे दिल-दिमाग को झकझौर गई थी। शायद उन्हें मुझ पर शक हो गया था कि मैं कहाँ जाता हूँ, और क्या करता हूँ। वह अपनी बीमारी और परिस्थितियों के आगे विवश थे। वरना वह अब तक मेरे हाथ-पैर तोड़ चुके होते हैं। क्या करूँ मैं भी उनसे झूठ नहीं बोलना चाहता था, पर जो मजबूरियाँ थी उसके आगे मैं मजबूर था। आखि़रकार एक दिन मुझे चाय का ठेला बंद ही करना पड़ा। क्यों कि बनिये ने उधार देना बंद कर दिया था। याह ख़ुदा अगर मेरी झोली में और भी ग़म हैं। तो उठा ले मुझे, वरना खुशी का एक ही लम्हा दे दें ।। वक्त कभी नहीं थमता। थमता तो इंसान हैं। वक्त का पहिया तो हमेशा चलता ही जाता हैं। घर की परिस्थितियाँ दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी। छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई बीच में ही छूट गई थी। समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ? मगर परिवार तो चलाना ही था। भाई और पिता जी की बीमारी की चिंता मुझे रात-दिन खाये जा रही थी। मैं मरता क्या न करता, सीधे चंदा से मिली जो एक हिजड़ा थी। मैंने अपनी सारी बात उसे बताई। प्रोग्राम शुरू होने से पहले उसने मेरे पैरों में एक-एक किलों का घुघरूँ बाँध दिया। मैंने जैसे-तैसे उल्टा-सीधा डांस किया। प्रोग्राम खत्म होने के बाद चंदा ने मुझे दस रुपये दिए। मैंने पैसे लाकर अम्मा को दे दिए। जब यह नाचने वाली बात पिताजी को पता चली तो उन्होंने मुझे बहुत गाली दी। अगर उनकी तबियत ठीक होती तो न जाने वह मेरा क्या हाल करते। मैंने चंदा से पचास रूपये लेकर बस स्टैण्ड पर चाय की दुकान खोल ली। दिन मैं दुकान करता और रात मैं उसके साथ प्रोग्राम। मैंने उससे गुज़ारिश की यह बात किसी से मत कहना। इसी तरह मेरी उसकी दोस्ती हो गई। हम रोज़ मिलने लगे। मैंने अपने घर की सारी बातें उसे बतायी। हमारे हाथ में अपना क़ल़म कागज नहीं होता। चंदा के बार-बार हिदायत देने से भी मैं मर्दाना भाषा नहीं छोड़ पा रहा था। और वैसे भी जनानियों की भाषा बोलना मुझे जरा भी अच्छी नहीं लगता था। मैं जैसे ही जाने के लिए उठा कि तभी दो आदमी आये। उनमें से एक ने मेरा हाथ पकड़ा और जबरदस्ती मुझे अपने पास बैठाने लगा। उसकी इस हरकत से मैं तैश में आ गया और चंदा की तरफ़ मुखा़तिब हुआ, "देखो गुरू! इन्हें समझा लो हमसे बत्तमीजी न करे नहीं तो ईटा-वीटा उठा कर मार देगें." मेरे इतना कहते ही उसने मेरा हाथ छोड़ दिया। दूसरे दिन जब चंदा दुकान पर आयी तो मैंने उससे पूछा, "वे लोग तुम्हारे कौन थें? उसी बात को लेकर हम दोनों में खूब बहस हुआ। उस दिन शरीफ बाबा दोपहर में आया और पिक्चर चलने की जिद् करने लगा। मुझे उसकी जिद् के आगे झुकना पड़ा। अभी आधी ही पिक्चर ही हुई थी कि उसने मुझे घर चलने को कहा। वह घर चलने के बहाने मुझे ऐसे रास्ते पर ले गया जहाँ उसने मेरे साथ.....।
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- #Independence DayUS Independence Day: आजादी की 247वीं वर्षगांठ मनाएगा अमेरिका, जानिए कैसे हुआ था ब्रिटेन का गुलाम? नई दिल्ली, 14 अगस्त : भारत 1947 में मिली आजादी के बाद 15 अगस्त को स्वाधीनता की 76वीं वर्षगांठ मनाएगा। 76वें स्वतंत्रता दिवस के मद्देनजर देश जश्न-ए-आजादी में डूब गया है। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आजादी का अमृत महोत्सव और हर घर तिरंगा जैसा अभियान भी जारी है। भारत के 76वें स्वतंत्रता दिवस समारोह का मुख्य समारोह लाल किले पर आयोजित होगा। राष्ट्रीय राजधानी तिरंगे के रंग में रंग चुकी है। दिल्ली से लेकर जम्मू-कश्मीर तक मेगा समारोह होंगे। दिल्ली किले में तब्दील हो चुकी है। संवेदनशील जगहों पर सुरक्षाबलों मुस्तैद हैं, मानो 'सुरक्षा कवच' तैयार किया गया है। जश्न-ए-आजादी में किसी भी तरह की बाधा या खलल न पड़े इसके लिए राज्यों में पुलिस तंत्र को सतर्क कर दिया गया है। मुख्य समारोह दिल्ली में होगा, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करेंगे। मुगल-युग के स्मारक की सुरक्षा के लिए दिल्ली पुलिस के 10,000 से अधिक जवानों को तैनात किया गया है। सुरक्षा बढ़ा दी गई है। लाल किले के प्रवेश द्वार पर लगे फेशियल रिकग्निशन सिस्टम (FRS) कैमरों और बहुस्तरीय सुरक्षा कवर जैसे उपायों से सतर्कता बरती जा रही है। किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए किला क्षेत्र में छतों और अन्य संवेदनशील स्थानों पर 400 से अधिक पतंग पकड़ने वालों और फ़्लायर्स की तैनाती की गई है। पारंपरिक हवाई प्लेटफार्म से किसी भी तरह की आशंका से निपटने के मद्देनजर हॉक आई की टीम निगरानी कर रही है। लाल किले के कार्यक्रम में लगभग 7,000 आमंत्रित लोगों के शामिल होने की उम्मीद है। स्मारक के आसपास के पांच किलोमीटर के क्षेत्र में तिरंगा फहराए जाने तक "कोई पतंगबाजी नहीं" की जा सकेगी। इलाके को no kite flying zone के रूप में चिह्नित किया गया है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस के विशेष पुलिस आयुक्त (कानून व्यवस्था) दीपेंद्र पाठक ने बताया कि दिल्ली में धारा 144 के प्रावधान पहले ही लागू किए जा चुके हैं। पुलिस ने कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के ड्रोन रोधी सिस्टम भी लगाए गए हैं। देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में सुरक्षा बंदोबस्त के सवाल पर एक अधिकारी ने कहा कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एजेंसियों की मदद ली जा रही है। महानगर की सड़कों पर ड्रोन रोधी प्रणालियों के साथ लॉ एनफोर्सिंग यूनिट्स तैनात की गई हैं। अधिकारी के अनुसार, स्वतंत्रता दिवस के मद्देनजर कोई चिंताजनक खुफिया इनपुट नहीं है, लेकिन नियमित रूप से महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। अधिकारियों को मौके का दौरा करने भी भेजा गया। अधिकारी ने कहा, "हम तोड़फोड़ विरोधी जांच (anti-sabotage check) कर रहे हैं। बुधवार से ही, 'ऑपरेशन ऑल आउट' चल रहा है, जिसमें होटल, वाहनों और रोड बैरिकेडिंग की जांच शामिल है। हिस्ट्रीशीटर और बाहरी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। " बता दें कि देश आजादी के 75 साल पूरे करने के मौके पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में अधिकारी ने हर वर्ष से अधिक या सामान्य से अधिक लोगों की भीड़ जुटने की आशंका जताई है। कश्मीर में, जहां मुख्य समारोह शेर-ए-कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में होगा, जिसकी अध्यक्षता उपराज्यपाल मनोज सिन्हा करेंगे। सुरक्षा के लिए ड्रोन, स्नाइपर और सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों को निगरानी के लिए तैनात किया गया है। अधिकारियों के अनुसार, वाहनों की जांच तेज कर दी गई है, जबकि शहर और घाटी में कई जगहों पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों को भारी संख्या में तैनात किया गया है, जिससे आतंकवादियों के किसी भी नापाक मंसूबे को विफल किया जा सके। उन्होंने बताया कि घाटी में कई स्थानों पर वाहनों की अचानक तलाशी ली जा रही है और लोगों की तलाशी भी ली जा रही है। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए स्टेडियम के आसपास की सभी ऊंची इमारतों पर शार्प शूटर तैनात किए गए हैं। मानव और तकनीकी निगरानी का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है। श्रीनगर पुलिस ने ट्विटर पर कहा, "श्रीनगर शहर के प्रमुख बाजारों में उपद्रवियों, अपराधियों और विध्वंसक तत्वों की तलाश में हवाई निगरानी की जा रही है। ऐसे तत्वों को पता होना चाहिए कि उनकी निगरानी में ऊपर एक नजर है। " इसी बीच एक चिंताजनक खबर में रविवार शाम श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में मुठभेड़ हुई। इसमें एक पुलिसकर्मी के घायल होने की सूचना है। पूर्वोत्तर भारत में प्रतिबंधित उग्रवादी समूहों यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (इंडिपेंडेंट) (उल्फा (आई)) और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) ने स्वतंत्रता दिवस समारोह के "बहिष्कार" का ऐलान किया है। पूर्वोत्तर के पांच राज्यों में "पूर्ण बंद" के आह्वान के कारण सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। अधिकारियों ने बताया कि अगरतला में रणनीतिक क्षेत्रों में अतिरिक्त बलों को तैनात किया गया है, जबकि किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए श्वान दस्ते को तैनात किया गया है। बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि समारोह के दौरान शांति सुनिश्चित करने के लिए 856 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा को हाई अलर्ट पर रखा गया है। एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा कि असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं करीब हैं। ऐसे में असम के परेड मैदानों और अन्य संवेदनशील स्थानों पर बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है। असम के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा "हमें कुछ जिलों में उग्रवादी गतिविधियों के इनपुट मिले हैं, ज्यादातर गतिविधियां ऊपरी असम में अरुणाचल के साथ लगती अंतर-राज्यीय सीमा के पास होने की आशंका है। ऐले में जिला एसपी को राज्य में परेड मैदान और उसके आसपास एक बहुस्तरीय सुरक्षा प्रणाली तैनात करने के लिए कहा गया है। " स्वतंत्रता दिवस का "बहिष्कार" ! बता दें कि असम में मुख्य स्वतंत्रता दिवस समारोह गुवाहाटी के खानापारा में पशु चिकित्सा कॉलेज के खेल के मैदान में आयोजित किया जाएगा। विगत 5 अगस्त को, उल्फा (आई) और एनएससीएन ने एक संयुक्त बयान जारी कर स्वतंत्रता दिवस के "बहिष्कार" और रविवार आधी रात से सोमवार शाम 6 बजे तक "पूर्ण बंद" का आह्वान किया है। अन्य राज्यों की बात करें तो पंजाब और उत्तर प्रदेश (यूपी) में पुलिस बलों ने स्वतंत्रता दिवस से पहले आतंकवादी समूहों से जुड़े कुछ प्रमुख संदिग्धों को गिरफ्तार भी किया। अधिकारियों ने रविवार को कहा, यूपी में पुलिस ने एक 19 वर्षीय व्यक्ति को कथित तौर पर आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद के साथ संबंध रखने और सोशल मीडिया के माध्यम से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आकाओं के संपर्क में रहने के आरोप में गिरफ्तार किया है। पंजाब पुलिस ने रविवार को दावा किया कि उसने पाकिस्तान आईएसआई समर्थित आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया है और चार लोगों को गिरफ्तार किया है। इस ऑपरेशन को पंजाब पुलिस और दिल्ली पुलिस ने संयुक्त रूप से अंजाम दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सोमवार को लुधियाना में राज्य स्तरीय समारोह में तिरंगा फहराएंगे, जबकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कड़ी सुरक्षा के बीच पानीपत के समालखा में झंडा फहराएंगे।
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सच ये है कि लुटियंस इलाके की लगभग सारी कोठियां सरकार के शीर्ष मंत्रियों और बड़े बाबुओं को आवंटित होती हैं। सो सरकार के ही लोग सही मायने में आज के लुटियंस गैंग ठहरते हैं। किसी भी वक्त जाएं वहां इन्हीं के भीमकाय कमांडो और बड़ी-बड़ी एसयूवी गाड़ियां दिख जाएंगी। अपने लंबे इतिहास में राजधानी दिल्ली बार-बार बसी और उजड़ी है। मुहम्मद तुगलक से लेकर अकबर और ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजधानी यहां से हटाकर अन्य जगह ले जाने के प्रयोग किए। पर कुछेक समय तक उलट-पलट के बाद दिल्ली ही दोबारा राजधानी बन गई। ऐसी नगरी में राजनीति के बदलाव का दौर सिर्फ कुछ सत्तारूढ़ या सत्ता से दर बदर हुए घरानों या दलों तक सीमित नहीं रहता। वह कई तरह की अनकही उलझनों से भरा और कहीं न कहीं बहत गहरे सामूहिक मानवीय अनुभवों और दर्शन से भी जुड़ा साबित हुआ होता है। सत्ता के बदलाव के इन पहलुओं को अक्सर राजनेता नहीं, साहित्यकार का मन ही पकड़ पाता है। वजह यह, कि वह निजी राग-द्वेष या लालच की तहत फौरी डायग्नोसिस नहीं देता। बदलाव को वह तटस्थ मन से देश की सनातन विचार परंपरा की रौशनी में परखता है। आज जबकि 2019 के चुनाव खत्म हो चुके हैं और यह क्षण इसी तरह के सही शोध-बोध का है। पर यह काम दलीय प्रवक्ताओं और तथाकथित विशेषज्ञों की चें-चें, पें-पें से भरी टीवी बहसों की या राजनेताओं की फब्तियों, उक्तियों की तरफ से कान बंद करके ही किया जा सकता है। सो चलिए इस बार के जनादेश को बाहर खड़े होकर देखा जाए। विजय गर्व से दमकते सत्ता पक्ष की जयकार बुलवा रहे पक्ष का सवाल चौखट पर रोकता है। राजनीतिक बदलाव में जो दौर पीछे छूट गया, जो दल वनवास भेज दिया गया, उसके इतिहास पर इतना क्या सोचना? क्या मतदाता ने इस बार यह साफ नहीं जता दिया है कि उसे राजनीति के शीर्ष पर पुराना संभ्रांत वर्ग (जाने क्यों अच्छी भली हिंदी बोलने वाले भी इसके लिए अंग्रेजी के 'इलीट' या 'खान मार्केट गैंग' सरीखे विशेषण इस्तेमाल कर रहे हैं) कुबूल नहीं है। नए को समझो, उसका स्वागत करो। इलीट वर्ग और उसकी विचारधारा और जीवन शैली पर खाक डालो। जीत के बाद हारे हुओं की खिल्ली उड़ाना हर विजयी दल का प्रिय शगल होता है। मौजूदा पार्टी ही इसका अपवाद क्यों हो? पर इस बार खिल्ली का विषय चयन कठिन है। वाम दल की समाप्तप्राय धारा के मद्देनजर पुराने आरोप, शंकाएं या उपहास बेमानी पड़ चुके हैं। केंद्र द्वारा तेजी से अपनी विचारधारा में रंगे जा रहे जेएनयू के लिए 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' का विशेषण या कि बड़ी तादाद में पिछले पांच सालों में बड़े सरकारी पुरस्कारों के कृतज्ञ लाभार्थियों के द्वारा की जा रही हर मंच से वंदना के बाद 'अवार्ड वापसी गैंग' को कोसना भी अब पहले की तरह सरकारी मीडिया प्रकोष्ठ के दिल की कली नहीं खिला सकता है। 'भारतमाता ग्रामवासिनी, खेतों में फैला है अंचल धूल धूसरित'. . . किस्म का 'हम गरीब बनाम वे शहरी थैलीशाह' वाला रुदन भी अब संभव नहीं। वजह यह कि इस बार की नवनिर्वाचित लोकसभा खुद भी करोड़पतियों से भरी पूरी है, जिनकी निजी संपत्ति का औसत लगभग 20. 9 करोड़ बताया जा रहा है। तो सत्तारूढ़ दल के लोग देश की कुल आबादी के 0. 1 फीसदी संपन्नतम वर्ग के सदस्य साबित होने के बाद अब तर्क दे रहे हैं कि मां भारती तरक्की कर गरीबी से उबर चुकी है, देखा नहीं कि इन चुनावों में धर्म और जाति के रसायनों से वोट बैंकों की कितनी सफल लामबंदी की गई? 'नामदार बनाम कामदार' की तुकबंदी भी सुनने में नहीं आ रही। ऊपर वाले की कृपा से सत्तारूढ़ सरकार में कितने नामदार आ गए हैं। 40 करोड़ की घोषित संपत्ति वाली बादल परिवार की बहू हरसिमरत कौर, मेनका गांधी, वरुण गांधी, धौलपर के राजकुंवर और जयपुर की राजकुमारी जैसे नामदार खानदानी रईस लोग भारी बहुमत से चुनाव जीत कर सांसद बन गए हैं तो नामदार कामदार छोड़ो। फिर वे सोचते हैं चलो खान मार्केट पर ही चर्चा करें। सुनें कि पुराने रईस क्या खा-पहन या पढ़ रहे हैं! युवा वर्ग भी अब इस 'चलो जरा खान मार्केट तक टहल आते हैं,' वाली कामना से सहमत है। उसकी अपनी इच्छा पहले की पीढ़ी के झोलाधारियों की तरह किसी गांव में जाकर एनजीओ खोलकर धूल-पानी के बीच रहते हुए जनसेवा करने की नहीं है। वह पुराने अमीरों की नए अमीरों द्वारा टीवी पर खिंचाई सुन हंसता है। पर उस हंसी में कुंठा अधिक है, देश प्रेम या समाज सुधार के लिए लगाव बहुत कम। फेसबुक गवाह है कि आज का औसत मिलेनियल सोशल मीडिया पर सेल्फी युग का अमरत्व हासिल करने, विदेश जाकर पढ़ने, अपने दोस्तों के साथ मॉल जाकर कीमती सामान मोलाने, रेस्तरां-पब गुलजार करने और अंततः खुद भी एक सेलेब्रिटी नामदार बनने के ही सपने दिन-रात देखता है। भारत, चीन या जल संकट से अधिक चिंता उसे अपनी पोस्ट पर आने वाली लाइक्स की रहती है। रही बात भ्रष्टाचार की, सो उनके लिए इतना ही काफी है कि भगोड़े माल्या और नीरव मोदी पर सात समुंदर पार अदालती कार्रवाई चालू है। बैंकिंग के कई बड़े सितारों को भी अस्ताचलगामी बना दिया गया है। चीन के देंग श्याओ फिंग के व्यावहारिक मुहावरे में यह भारतीय मतदाता भी सोचता है कि बिल्ली काली हो या सफेद, इससे क्या फर्क पड़ना है? इतना ही जरूरी है कि वह उसकी खातिर चूहे पकड़ सकती हो। तो इस तरह कुल मिलाकर हमको तो भविष्य के लिए जो आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक सपने जगाए, गढ़े और मीडिया की मार्फत प्रचारित किए जा रहे हैं, बारीकी से देखने पर क्रांतिकारी नहीं यथास्थितिवादी ही दिख रहे हैं। एक गुलाबी अखबार ने यह भी भली याद दिलाई है कि 'खान मार्केट गैंग' का विशेषण दरअसल मीडियावालों के बीच सभी दलों के खाते-पीते सांसदों के समूह के लिए मजाक-मजाक में बना था। यह वे गुट थे, जिनको संसद के सेंट्रल हॉल में मिलने वाला रेलवई का खाना रास नहीं आता था और अच्छा कुछ खाने-पीने के लिए यह मंडली संसदीय सत्र के दौरान अक्सर दोपहर में खान मार्केट के किसी दामी रेस्तरां का रुख करती दिखती थी। बहरहाल, इन दिनों खान मार्केट गैंग विशेषण को पुरानी इलीट का समानार्थक बनाकर धड़ल्ले से टीवी और सोशल मीडिया पर फेंका जा रहा है। दूसरी गुप्त सच्चाई यह है कि लुटियंस इलाके की लगभग सारी कोठियां सरकार के शीर्ष मंत्रियों और बड़े बाबुओं को आवंटित होती रही हैं। सो आज की सरकार के ही लोग सही मायने में आज का लुटियंस गैंग ठहरते हैं। हाथ कंगन को आरसी क्या? आप किसी भी समय खान मार्केट चले जाइए आपको वहां इन्हीं के भीमकाय काले कैट कमांडो और बड़ी-बड़ी एसयूवी गाड़ियां मार्केट में उनके बीबी-बच्चों को शॉपिंग कराते या मालिकान के किसी रेस्तरां से खा-पीकर लौटने के इंतज़ार में चहलकदमी करते दिख जाएंगे। तब 'मीर' की तरह उजड़ी दिल्ली के दयार के गरीब बाशिंदों, खासकर मीडिया के वरिष्ठ जनों को, अचानक खान मार्केट गैंग के खास उल खास नाम से काहे नवाजा जा रहा है? दरअसल, पत्रकारों और पढ़ने-पढ़ाने वालों के आकर्षण का विषय उस इलाके की 'बाहरी संस' या 'फकीरचंद' सरीखी पीढ़ियों पुरानी किताबों की दुकानें ही बची हैं, जो कमर्शियल आग्रह कम पुस्तक प्रेम के कारण ही अधिक चल रही हैं, और कब तक चलेंगी कहना कठिन है। उनमें घंटों नई किताबें पलटना वहां के जानकार पुराने कर्मचारियों से लेखकों की बाबत गप लड़ाने का अपना ही सुख है। और पुराने किताबी कीड़ों के लिए ऐसी रसमय जगहें अब शेष दिल्ली में बहुत कम बची हैं। पब्लिक लायब्रेरियां तो और भी कम। पार्कों, कहवाखानों की न पूछिए, जिनकी जगह छोटे-बड़े पब हर जगह उपज रहे हैं। वहां बाहर पहलवानी व्यायमशालाओं से निकले मुच्छड़ दरबान पहरा देते हैं और भीतर अनवरत नाच-गाना और शराबनोशी चलती रहती है। सो खान मार्केट में बची-खुची लुप्तप्राय सरस्वती धाराओं से ज्ञान रस ग्रहण करने, घर खर्च में कटौती करके भी किताबें खरीदने, और उजड्डता भरे अराजक कैंपसों में पढ़ने-पढ़ाने वालों का सीमित विद्याव्यसनी वर्ग बस किताबें खरीदता है। यह वही समुदाय है जो भारत की असली परंपराओं, 1950 के संविधान निर्माताओं के द्वारा एक समन्वयवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक भारत के सपनों का चश्मदीद गवाह और जानकार बचा है। कई बार अपनी नौकरी या सर गंवाने की कीमत पर भी दिल्ली के इसी वर्ग ने पीढ़ी दर पीढ़ी बर्बर जत्थों द्वारा उजाड़ी-जलाई जा रही ज्ञान की परंपराओं को वेदव्यास की तरह किसी सुदूर जंगल में छुपा कर बचाया भी है।
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- विदेशों में पढ़ाई को आसान बनाएगा 4 साल का डिग्री कोर्स, जल्द ही जारी होंगे फाइनल रेगुलेशंसदेशभर की ज्यादातर यूनिवर्सिटी में 4 साल के ग्रैजुएशन कोर्स को लागू करने की तैयारी की जा रही है। कई यूनविर्सिटी यूजीसी के साथ इस बारे में बात कर रही हैं। ऐसा करने से उन स्टूडेंट्स को फायदा होगा जो पीजी के लिए विदेश में जाकर पढ़ाई करना चाहते हैं। - 16 अगस्त तक शुरू हो जाएगा नया सेशन, फीस वापसी पर भी सख्त नियमदिल्ली यूनिवर्सिटी में नया सेशन इस साल 16 अगस्त से शुरू होगा। यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. जगदीश कुमार ने इस बारे में बताते हुए कहा है कि इस साल सेशन समय पर शुरू करने की पूरी कोशिश की जा रही है। बता दें कि अभी देश भर की यूनिवर्सिटीज मे एडमिशन के लिए सीयूईटी एग्जाम चल रहे हैं। - JEE-अडवांस्ड में गाजियाबाद के ऋषि कालरा को तीसरी रैंक, NCR के छात्रों का जलवाIIT के एंट्रेंस एग्जाम JEE-अडवांस्ड 2023 जारी हो गया है। इस बार का टॉपर हैदराबाद जोन से है। वीसी रेड्डी ने 341 मार्क्स के साथ टॉप किया है। रमेश सूर्या दूसरे और रुड़की जोन के ऋषि कालरा ने तीसरा स्थान हासिल किया है। दिल्ली जोन में प्रभाव खंडेलवाल को छठी रैंक मिली है। - NEET-UG रिजल्ट्स के टॉप 50 में सबसे ज्यादा 8 कैंडिडेट दिल्ली केNEET-UG Result 2023: नैशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए मंगलवार रात मेडिकल नीट (यूजी) का एग्जाम रिजल्ट जारी कर दिया है। तमिलनाडु के स्टूडेंट प्रबंजन जे और आंध्र प्रदेश के स्टूडेंट बोरा वरुण ने 99. 99 पर्सेंटाइल के साथ नीट परीक्षा में टॉप किया है। - NEET-UG में आ जाए एक जैसा स्कोर, तो फिजिक्स के नंबरों से होगा फैसला! NMC का ये नियम जानते हैं आपअगर दो या ज्यादा छात्रों के नीट यूजी में एक जैसा स्कोर आ जाए तो उन्हें रैंक कैसे दी जाएगी? इसके लिए नैशनल मेडिकल कमिशन ने नया फॉर्म्युला बनाया है। इस तरह के केस में पहले फिजिक्स, फिर केमिस्ट्री और बायोलॉजी के नंबरों को प्रधानता दी जाएगी। - 9 साल में पूरा करना होगा MBBS कोर्स, जानें क्या हैं कोर्स के नए रेग्युलेशनNMC ने नोटिफिकेशन जारी करके कहा है कि एमबीबीएस में दाखिला लेने वाले छात्रों को एडमिशन की तारीख से लेकर 9 साल के अंदर कोर्स पूरा करना होगा। अभी भारत में एमबीबीएस कोर्स करने के लिए कुल मिलाकर 5. 5 से 6 वर्षों तक का समय लगता है। जिसमें 4. 5 साल पढ़ाई और फिर 1 साल की इंटर्नशिप है। - क्यों चलते फिरते अचानक हो रही है लोगों की मौत? ICMR वजह पता लगाने के लिए कर रहा स्टडीसडन डेथ यानी अचानक मौत के कारणों का पता लगाने के लिए ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) एक साथ चार स्टडी कर रहा है। इन स्टडी में मुख्य तौर पर तीन बातों की जांच की जा रही है। पहला- जिनकी अचानक मौत हुई है, क्या उनमें कोविड के सामान्य लक्षण थे? दूसरा- क्या गंभीर कोविड हुआ था। तीसरा- अस्पताल में भर्ती होने से पहले टीका लगा डिस्चार्ज होने के बाद। इन बातों के साथ ICMR देश के 39 अस्पतालों में 2020 से भर्ती कोविड मरीजों के डेटा का भी विश्लेषण कर रहा है। इसमें देखा जा रहा है कि अस्पतालों में भर्ती जो मरीज ठीक होकर घर थे, उनकी मौत कैसे हुई? जून के आखिर तक स्टडी का अंतरिम विश्लेषण पूरा हो जाएगा और कुछ तथ्य सामने आ सकते हैं। बताया जा रहा है कि अचानक मौत के मामलों में अभी तक जो स्टडी हुई है, उनमें कुछ चीजें सामने आई हैं, जो सडन डेथ के जोखिम को बढ़ाती हैं। - CUET-UG: और आगे बढ़ाई जाएंगी एग्जाम की तारीखेंCUET- UG के एग्जाम की तारीखों में एक और एक्सटेंशन किया जाने वाले है। NTA ने 9-11 जून के एग्जाम के लिए एडमिट कार्ड जारी किए हैं। 11 जून के बाद भी काफी स्टूडेंट बच जाएँगे जिसे देखते हुए टेस्ट की तारीखों को बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। 12-14 जून के एग्जाम की तैयारी भी की जा रही है। - NIRF रैंकिंगः यूनिवर्सिटी कैटिगरी में IISc बेंगलुरु नंबर वन, देखें बाकी कैटिगरी में कौन किस नंबर परराष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) की रैंकिंग में यूनिवर्सिटी कैटिगरी में IISc बेंगलुरु को पहला स्थान मिला है। इस रैंकिंग में केंद्र सरकार की ओर से उच्च शिक्षण संस्थानों को रैंकिंग दी जाती है। टॉप 10 रैंकिंग में 7 स्थानों पर आईआईटी ने अपना वर्चस्व साबित किया है। - Civil Services Exam: सिविल सर्विसेज एग्ज़ाम में क्या आर्ट्स सब्जेक्ट्स की वापसी हो रही है? पिछले एक दो सालों का ट्रेंड देखें तो साफ पता चलता है कि अब सिविल सर्विसेज एग्जाम परीक्षाओं में आर्ट्स के स्टूडेंट भी बाजी मार रहे हैं। इस साल की यूपीएससी की टॉपर इशिता किशोर हों या फिर पिछले साल की टॉपर श्रुति शर्मा। इन स्टूडेंट्स ने आर्ट्स सब्जेक्ट से पढ़ाई करके सिविल परीक्षाओं में टॉप किया। - अलग-अलग कोर्स पढ़ा रहे देश के एजुकेशन बोर्ड, फर्क घटाने की तैयारी कर रही है सरकारदेश में दो केंद्रीय बोर्ड के साथ-साथ राज्यों के करीब 60 बोर्ड हैं जिनमें अकैडमिक स्टैंडर्ड, सिलेबस, एग्जाम डेट्स का अलग-अलग फॉर्मूला है। सीबीएसई बोर्ड में पास पर्सेंटेज 95 फीसदी तक बोका है, वहीं राज्य बोर्ड की बात करें तो पास प्रतिशत 85 के आसपास है। - UGC की नई वेबसाइट से अब आसानी से मिलेगी यूनिवर्सिटी-कॉलेज और एडमिशन की जानकारीयूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन की नई वेबसाइट लॉन्च होने जा रही है। वेबसाउट को लेकर यूजीसी के अध्यक्ष ने बताया कि यूजीसी अब डिजिटल शिक्षा पर भी फोकस कर रही है और इसके लिए कई नई चीजें की जा रही है। नई साइट में स्टूडेंट के साथ-साथ शिक्षकों को भी मदद मिलेगी। - UGC ने बदला क्वॉलिफिकेशन फ्रेमवर्क, किस लेवल पर कितने क्रेडिट मिलेंगे बनाया यह नया फॉर्म्युलायूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन ने नैशनल हायर एजुकेशन क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क में बदलाव करके अब 4. 5 से आठ लेवल कर दिया है। पहले यह 5 से 10 साल का था। नए व्यवस्था में यह फ्रेमवर्क ग्रेजुएशन से लेकर पीएचडी तक लागू होगा। इस बदलाव पर 25 मई को देश भर के यूनिवर्सिटी के कुलपति और कॉलेजों प्रिंसिपलों के बीच मीटिंग होगी। - Assembly Election News: 2024 से पहले BJP का लिटमस टेस्ट, MP-राजस्थान समेत 5 राज्य तय करेंगे 'दिल्ली' का रास्ताKarnataka Chunav Results 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे (Karnataka Election Results) आ चुके हैं। इसी के साथ आगे की रणनीतिक तैयारी भी शुरू हो गई है। कर्नाटक के बाद अगला मैदान तैयार है। आम चुनाव से पहले मध्य प्रदेश-राजस्थान समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। जिन्हें 2024 रण से पहले सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा। - CUET देने वाले छात्रों को राहत, एक दिन में 6 नहीं, अधिकतम 4 पेपर ही देने होंगेCUET एग्जाम देने वाले छात्रों के लिए अच्छी खबर हैं। अब परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को एक दिन 6 पेपर के बजाए ज्यादा से ज्यादा 4 ही पेपर देने होंगे। पिछले साल सीयूईटी परीक्षा के बाद छात्रों की ओर से मिली शिकायतों के बाद यह फैसला लिया गया है। - छोटे शहरों में पानी की कमी दूर करेंगे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स, इसे किया जाएगा पानी को रीयूजपानी की कमी को दूर करने के लिए पानी के रीयूज का प्लान बनाना जरूरी हो गया है। इससे देखते हुए अब छोटे शहरों के पानी के फिर से इस्तेमाल पर फोकस किया जा रहा है। स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2. 0 के तहत छोटे शहरों में वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए 11,785 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। - CUET-UG में रेकॉर्ड 14. 99 लाख आवेदन, पिछली बार से 50% ज़्यादा, सबसे ज्यादा आवेदन इन दो यूनिवर्सिटीज के लिए आएइस साल देश भर की यूनिवर्सिटीज में अंडर ग्रैजुएट कोर्सों में एडमिशन के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट देने के लिए रेकॉर्ड स्टूडेंट्स ने रजिस्ट्रेशन किया है। खास बात यह है कि इस साल भी दिल्ली यूनिवर्सिटी और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए सबसे ज्यादा आवेदन किए गए हैं। - भारत अपनी युवा आबादी का फायदा उठा पाएगा? चीन को पीछे छोड़ने के लिए क्या करना होगाइस साल जून में भारत चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। अब सवाल उठता है कि भारत के पास जब सबसे अधिक युवा आबादी होगी तो वह इसका फायदा किस तरह से उठा सकता है। ऐसे में देश में किस तरह से नीतिगत योजनाएं बनाने की आवश्यकता होगी।
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लगे रहते हैं। सैकड़ों प्रकारकी आशाकी फॉसियोंमें बँधे हुए, काम-क्रोधसे ही जीवनका उद्देश्य सिद्ध होना समझनेवाले वे लोग विषय-भोगों की प्राप्तिके लिये नाना प्रकारसे अन्यायपूर्वक धनसंग्रह करनेकी चेष्टधमें लगे रहते हैं । आज यह पैदा किया, कल उस मनोरथकी सिद्धि होगी। इतना धन तो मेरे पास हो गया, इतना और हो जायगा । एकको तो आज मार ही डाला, शेष शत्रुओंको भी मारे बिना नहीं छोडूंगा। मैं ही तो ईश्वर हूँ, मैं ही धन-ऐश्वर्य के भोगका अधिकारी हूँ । सारी सिद्धियों, शक्तियाँ और सुख मुझमें ही तो हैं । मैं बड़ा धनवान् हूँ, मेरा बड़ा परिवार है, मेरी समता करनेवाला दूसरा कौन है ? मैं धन कमाकर नामके लिये दान करूँगा, यज्ञ करूँगा और मौज उड़ाऊँगा ( गीता १६।८-१५ ) । इस तरह अपने आपको ही सबसे श्रेष्ठ समझनेवाले ऐसे अभिमानी मनुष्य धन और मानके मदसे मत्त होकर दम्भसे मनमाने तौरपर नाममात्रके लिये यज्ञ करते हैं । अहङ्कार, शरीर बल, मानसिक दर्प, कामना, क्रोध आदि दुर्गुणोंके परायण होकर वे परनिन्दा करनेवाले दुष्ट लोग अपने और पराये सभी शरीरों में स्थित भगवान्से द्वेष करते हैं ( गीता १६ । १७-१८) । छातीपर हाथ रखकर कहिये । इस बीसवीं शताब्दीके उन्नत मानव-समाजके हमलोगों के हृदयमे उपर्युक्त आसुरी -सम्पदा के कौन-से धनकी कमी है ? जहाँ भोगोंकी लालसा होगी, वहाँ इस धनकी कमी रहेगी भी नहीं । इसीलिये महात्माओंने भोगोंकी निन्दा कर त्यागकी महिमा गायी है । इसीलिये भारतके त्यागी महर्पियोंने हिन्दुओंके चार आश्रमों में से तीन प्रधान आश्रमों ( ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास ) को त्यागपूर्ण बनाया है । इस त्यागकी भावनाको तिलाञ्जलि देकर भोगोंमें ही उन्नतिकी इतिश्री समझनेवाले आसुरी - सम्पत्तिके मनुष्योंका पतन हो जाता है, वे अनेक प्रकारसे भ्रमित चित्त हो मोहजालमें फँसकर विषयभोगोंमें ही आसक हो रहते हैं, जिसके परिणाममें उन्हे अति अपवित्र नरकोंमें गिरना पड़ता है ( गीता १६ । १६ ) । भगवान् कहते हैं ( कि सबके हृदय में स्थित अन्तर्यामी परमात्मासे द्वेष करनेवाले उन पापी क्रूर नराधमोंको मैं बारम्बार आसुरी-योनियोंमें पटकता हूँ, वे जन्म-जन्ममें आसुरी योनियोंको प्राप्त होकर फिर उससे भी अति नीच गतिको प्राप्त होते हैं, परन्तु मुझको नहीं पा सकते । 'मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यघमा गतिम्' ( गीता १६ । १९-२० ) । अतएव हमलोगोंको चाहिये कि भौतिक उन्नतिके यथार्थ आसुरीस्वरूपको भलीभाँति पहचानकर इसके मोहसे शीघ्र अपनेको मुक्त कर लें और यथार्थ उन्नतिके प्रयत्नमें लगें। ससारमें वह मनुष्य धन्य है जिसके धन, जन, परिवार, कुटुम्ब, मान प्रतिष्ठा, पद- गौरव आदि कुछ भी नहीं है, जो सब तरहसे दीन, द्दीन, घृणित और उपेक्षित है, परन्तु जिसका अन्त करण देवी - सम्पदा के दिव्य गुणोंसे विभूषित है, जिसका मन परमात्मा के प्रेममें संलग्न है और जिसकी आत्मा परमात्माके मिलनेको छटपटा रही है, ऐसी आत्मा एक ग्रामीण, राजनीतिशून्य, मूर्ख, चाण्डाल, जंगली या कोढ़ी मनुष्यमें भी रह सकती है, अतएव किसीके भी नाम-रूपको देखकर घृणा न करो, पता नहीं उसके अंदर तुमसे और तुम्हारी ऊँची-सेऊँची कल्पनासे भी बहुत ऊँची आत्मा हो ! स्वराज्य, स्वदेश, स्वजाति आदि शब्द इस समय बहुत ज्यादा प्रचलित हैं, ऐसा कोई समाचारपत्र नहीं, जिसके अङ्कों में इन शब्दोंको स्थान न मिलता हो और वास्तवमे ये शब्द हमारे लिये हैं भी बहुत आवश्यक । स्वजाति और स्वदेशका प्रेम न होनेके कारण ही हम स्वराज्यसे वञ्चित हैं इसमें कोई सन्देह नहीं । इसलिये प्रत्येक मनुष्यका यह परम कर्तव्य है कि स्वराज्यकी प्राप्ति के लिये स्वदेश और स्वजातिकी सेवामें तन-मन-धन सब कुछ अर्पण कर दे; क्योंकि स्वराज्य हमारा अनादिसिद्ध अधिकार है । जो भाई स्वदेश, स्वजातिकी सेवामे लगे हुए हैं वे सर्वथा स्तुत्य और धन्धवादके पात्र हैं, परन्तु समझना चाहिये कि इन शब्दोंका यथार्थ अर्थ क्या है और वास्तव में इनका हमसे क्या सम्बन्ध है ? किसी कार्यविशेपसे या बलात्कारसे मनुष्यको जब किसी अन्य देशमें रहना पड़ता है, तब उसे वह स्वदेश मानकर वहाँ नहीं रहता । आज भारतके जो विद्यार्थी शिक्षालाभके लिये यूरोपमें रहते हैं या सरकारके अनुचित प्रतिबन्धकके कारण जिनको विदेशोंमें रहने के लिये वाध्य होना पड़ रहा है, वे स्वदेश भारतको ही समझते हैं, वे जहाँ रहते हैं वहाँ उन्हें कोई कष्ट न होनेपर भी उनको उस देशकी अपेक्षा भारत विशेष प्रिय लगता है, वे वहाँ रहते हुए भी भारतका स्मरण करते, भारतकी भलाई चाहते - - यथासाध्य भलाई करते और भारतवासियों- से मिलने में प्रसन्न होते हैं। कारण यही है कि वे अपने स्वदेशको भूले नहीं हैं, परन्तु उनमेसे जो परदेशके भोगविलासोंमे अपना मन रमाकर देशको भूल गये हैं, परदेशको ही स्वदेश मानने लगे है, उन्होंने अपने धर्म और अपनी सभ्यतासे गिरकर अपने आपको सर्वथा विदेशी बना लिया है, ऐसे लोगोंके कारण देशप्रेमी भारतवासी दुखी रहते हैं। वे चाहते हैं कि हमारे ये भूले हुए भाईजो ऊपरी चमक-दमकके चकमेमें फँसकर विदेशको स्वदेश और विजातीयको स्वजातीय समझने लगे है - किसी तरहसे अपने स्वरूपका स्मरण कर, अपने देश और जातिके गुणोंको जानकर पुन. स्वदेशी बन जायँ तो बड़ा अच्छा हो । स्वदेशी बन जानेका यह अर्थ नहीं कि इस समय वे विदेशी या विजातीय हैं, उन्होंने अपनेको भूल जाने के कारण भ्रमसे विदेशी या विजातीय मानकर विदेशी धर्मको धारण कर लिया है । यदि वे घर लौट आवें तो उनके लिये घरका दरवाजा सदा ही खुला है और रहना चाहिये, इसीसे जाति और देशहितैषी सज्जन भ्रमसे विधर्मी बने हुए भाइयोंको पुन. स्वधर्म में दीक्षित करना चाहते हैं । परन्तु यदि एक ही देशके रहनेवाले दो गाँवोके लोग या एक ही गाँवमें रहनेवाले दो मुहल्लोंके सजातीय भाई अपनेको अलग-अलग मान लें; गाँव और मुहल्लोंके भेदसे परस्पर परभाव कर लें; अपने गाँवको या मुहल्लेको ही देश और दूसरे भाइयोंके निवासस्थान गॉव और मुहल्लोंको परदेश मान लें तो बड़ी गड़बड़ी मच जाती है। देश और जातिके शरीरका सारा संगठन विशृङ्खल हो जाता है । उसके सब अवयवों में दुर्बलता आ जाती है जिसका परिणाम सिवा मृत्युके और कुछ नहीं होता । सच पूछिये तो इन क्षुद्र भावोंके कारण ही आज भारत पर पददलित और परतन्त्र है । यदि भारतवासी अपने-अपने प्रान्त, छोटे राज्य, गॉव या मुहल्लोंको ही देश न मानकर सबकी समष्टिको स्वदेश मानते तो भारतका इतिहास और इसका मानचित्र आज दूसरे ही प्रकारका होता । अब भी इस देशके सभी निवासी अपनी-अपनी डफली अलग बजाना छोड़कर एक सूत्र में बँध जायँ और प्रान्तीयता तथा जातिगत झगड़ों को छोड़कर एक राष्ट्रीयता स्वीकार कर लें तो भारतको स्वराज्यकी प्राप्ति होने में विलम्ब नहीं हो सकता । पर क्या भारत ही हमारा देश है, भारतवासियोंकी जाति ही हमारी स्वजाति है और भारतको मिलनेवाला राजनैतिक अधिकार ही हमारा खराज्य है ? आध्यात्मिकताका आदिगुरु, परमार्थ-सन्देशका नित्यवाहक, परमात्मतत्त्वका विवेचक, परमात्माके साकार अवतारोंकी लीलाभूमि, जगत्के धर्माचार्य और पैगम्बरोंकी जन्मभूमि, मुकिपथके पथिकोंको पाथेय वितरण करनेवाला भारत इस प्रश्नका क्या उत्तर देता है ! इहलौकिक उन्नतिको ही जीवनका चरम लक्ष्य माननेवाले स्थूलवाद प्रधान जगत्का तो भूमिखण्डके किसी किसी खण्डको देश मानना, जिस कल्पित जातिमें स्थूल शरीर जन्मा हो उसीमें जन्म लेनेवालोंको स्वजाति बतलाना और उस देश या जातिको अपनी मनमानी करनेके अधिकारको ही स्वराज्य मानना सम्भव है । परन्तु भारतवासी - अखिल ब्रह्माण्डको ब्रह्मके एक अशमें स्थित और ब्रह्माण्ड में ब्रह्मको नित्य स्थित या चराचर ब्रह्माण्ड - को ब्रह्मका ही विवर्त माननेवाले भारतवासी यदि अपने असली ब्रह्मस्वरूपको भूलकर मायाकल्पित आपातरमणीय मायिक सुन्दरतायुक्त स्थल विशेषको ही अपना स्वदेश मान लें तो क्या यह ब्रह्मकी राष्ट्रीयताका विघातक नहीं है मायासे बने हुए जगत्को अपना देश मानकर उसीमें मोहित रहना क्या विदेशको स्वदेश मान लेना नहीं है ? अपनी सच्चिदानन्दरूप नित्य अखण्ड स्वाभाविक सत्ताको भूलकर मायिक सत्ताको ही अपनी सत्ता मान लेना क्या सजातीयताको छोड़कर विजातीय बन जाना नहीं है? अपने 'सत्य ज्ञानमनन्तं ब्रह्म स्वरूपको विस्मृत कर अपने मूल स्वभाव-धर्मको छोड़कर जगत्के मायिक धर्मको अपना धर्म मान लेना क्या विधर्मी बन जाना नहीं है विचार करो तुम कौन हो ' तुम अमर हो, तुम सुखरूप हो, तुम नित्य हो, तुम सर्वव्यापी हो, तुम अखण्ड हो, तुम पूर्ण हो, तुम अजर हो, तुम सबमें व्याप्त हो, तुम मायासे अतीत
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[कारिका १०३ सम्बन्ध उस कारिकासे न होकर आगे द्वार विधिका वर्णन करने वाली १०३ संख्या वाली कारिका से है । इसलिए उस पाठको वहाँसे उठाकर यहाँ लाना पड़ा है । उस स्थानान्तरित पाठको हमने यहाँ भिन्न टाइप में मुद्रित किया है। इसमें 'द्वितीये चैव कर्तव्यं रङ्गपीठस्य पृष्ठतः इस उत्तरार्ध भागकी व्याख्या की गई है । यह वात मूल कारिकाके इस भाग तथा व्याख्याके 'रंगपीठस्य यत्पृष्ठं रंगशिरः, तत्र द्वितीय मिति राश्यपेक्षयैक वचनम्' इस भागके देखते ही प्रतीत हो जाती है । इस लिए हमने इस पाठको प्रकृत कारिकासे ही सम्वद्ध मान कर उसको यहाँ स्थानान्तरित किया है। पाठसमीक्षा - इस कारिका के द्वारं तेनैव कोरणेन कर्तव्यं तस्य वेश्मनः' इस पूर्वार्द्ध भागकी व्याख्या करने वाली एक पंक्ति पूर्व-संस्करणों में यहाँ यथा स्थान छापी गई थी। किन्तु उसका पाठ पूर्व संस्करणों में 'तेनैव कोरणेनेति । वारुणीगतेन । द्वारं जनप्रवेशनम् । येन तस्मिन्नेव कोरणे द्वारे कर्तव्ये । इस प्रकार छपा था । किन्तु यह पाठ शुद्ध है । 'द्वारं तेनैव कोरणेन कर्तव्यं तस्य वेश्मनः' इस पंक्ति के द्वारा भरतमुनिने 'त्रिकोण नाटय-मण्डपके मुख्य द्वारके बनानेका निर्देश किया है। जैसा कि चतुरस्र मण्डप और विकृष्ट मण्डपके प्रकरण में हम देख चुके हैं नाटयगृहों का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वकी प्रोर ही होता है । इसलिए व्यस्र मण्डपका 'जनप्रवेशद्वार' या मुख्य द्वार पूर्व दिशा में ही होना चाहिए । किन्तु पूर्व संस्करणों में 'तेनैव कोरणेन' का अर्थ 'वारुणीगतेन' किया गया है । वारुणी दिशा पश्चिम दिशाका नाम है । उस दिशामें जनप्रवेशन द्वार का बनाना संगत नहीं है इसलिए 'बारुगोगतेन' पाठ शुद्ध है । उसके स्थानपर 'ऐन्द्रीगतेन' पाठ होना चाहिए । पाठसमीक्षा - पूर्वसंस्करणोमें ६३ संख्यावाली कारिकाको व्याख्या के साथ अ-स्थान में मुद्रित जिस पाठको हमने यहाँ स्थानानारित किया है उसमें भी कुछ प्रशुद्धि है । 'द्वितीये चैव कर्तव्यं रंगपीस्य पृष्ठतः' इस उत्तरार्धभागकी व्याख्या करते हुए उसमें रंगशीर्ष में दो द्वार बनाने का विधान किया गया है। इतनी बात तो ठीक है । पर इसके बाद इसी कारिका भागमें आए हुए चकारकी व्याख्या करते हुए 'चकारादन्यप्रवेशार्थ जनप्रवेशनद्वारं च । त्रीणि वा कार्याणि इति मतान्तरं संगृहोतं भवति' । यह पंक्ति पाई जाती है । परन्तु इस पंक्तिका पाठ अशुद्ध है । इसमें 'चकार' से 'जनप्रवेशनद्वार' का ग्रहण करना चाहिए यह वात इस पाठसे प्रतीत होती है। किन्तु 'जनप्रवेशद्वार' का विधान तो कारिका के पूर्वार्द्ध भाग में ही किया जा चुका है। यहाँ उसका दुबारा वर्णन असंगत है । अब तककी व्याख्या के अनुसार त्र्यस्र मण्डपके पूर्व दिशा में बनने वाले मुख्य द्वार या 'जनप्रवेशन द्वार' तथा रंगशीप में बनने वाले दोनों द्वारों अर्थात् कुल मिलाकर तीन द्वारोंका वर्णन किया जा चुका है । अब 'चकार' से केवल बचे हुए द्वारोंका ही ग्रहरण हो सकता है। इसके पूर्व ३८० पृष्ठपर हम यह देख चुके है नाटय-मण्डपके द्वारोंके सम्बन्ध' चतुर्द्वारं नाट्यगृहम्' तथा 'पड्वारं नाट्यगृहम् ' ये दो मत पाए जाते हैं । त्र्य मण्डपके तीन द्वारोंका वर्णन पहिले हो हो चुका है । इसलिए 'चनुर्द्वार' वाले पक्ष में एक, तथा 'पद्वारं' वाले पक्ष में तीन द्वार बननेको शेष रह गए हैं । इन्हीं अवशिष्ट द्वारोंका ग्रहण यहाँ 'चकार' से होता है । यह बात ग्रन्थकार यहां लिख रहे हैं । और वह भी दोनों मतोंका उल्लेख करते हुए लिख रहे हैं यह बात 'त्रीणि वा कार्याणि इति मतान्तरं संगृहीतं भवति' इस पंक्ति स्पष्ट होजाता है। ऐसी दशा में यह निश्चय है कि 'चकार' से 'जनप्रवेशनद्वार' का ग्रहण सम्भव नहीं है । इसलिए पूर्व संस्करण में 'चकाराव्य प्रवेशार्थं जनप्रवेशन द्वारं च' यह जो पाठ छपा है वह निश्चित रूद्ध है । यहाँ वास्तव नेपथ्यगृहमें नटोंके प्रवेश के लिए बनाए जाने वाले पिछले द्वारका ग्रहण 'चकार' से होता है । यह ग्रन्थकारका अभिप्राय है । इस अभिप्रायको व्यक्त करने के लिए 'चकारान्नटजनप्रवेशनार्थं नेपथ्यगृहद्वारं च' यह पाठ होना चाहिए । इसलिए हमने संशोधित रूप में इसी पाठको प्रस्तुत किया है। भरत० - 'विधिर्यश्चतुरश्रस्य मित्तिस्तम्भसमाश्रयः । स तु सर्वः प्रयोक्तव्यः व्यवस्थापि प्रयोक्तृभिः । १०४.।। सर्वग्रहरणादन्यूनाधिकत्यमत्र दर्शयन् विकृष्टे स्तम्भानाभाधिक्यमनुजानीते । व्यरंगपीठे तु प्रतिरंगमध्य इति । रंगोऽत्र तच्छिरः, ततः पृष्ठतः यदि वामितः ॥१०४ ॥ 'अग्रिमाध्यायसंगति सूचयति 'एवमेतेन' इति - - एवमेतेन विधिना कार्या 'नाटयगृहा बुधैः । "पुनरेषां प्रवक्ष्यामि पूजामेव यथाविधि ॥ १०५॥ यह व्याख्या 'चतुरं' वाले पक्षके अनुसार हुई । यदि 'पड्वरं नाट्यगृहम्' वाला पक्ष माना जाय तो नेपथ्यगृह वाले द्वारके अतिरिक्त मत्तवारणियोंमें बनने वाले दोनों द्वारोंका भी ग्रहरण इस चकारसे होता है । इस अभिप्रायसे 'त्रीरिण वा कार्याणि इति मतान्तरं संगृहीतं भवति यह पंक्ति ग्रन्थकारने लिखी है । भरत० - मित्तियों तथा स्तम्भोंके विषय में जो विधि चतुरस्र मण्डपमें बतलाया गया है, प्रयोक्ताको उस सबका प्रयोग व्यत्र मण्डपमें भी करना चाहिए । १०४ । अभिनव० - 'सर्व' पदके ग्रहणसे यहाँ [अर्थात् त्र्यस्त्र मण्डपमें चतुरस्र मण्डप की अपेक्षासे] न्यूनता या अधिकता नहीं होनी चाहिए इस बातको दिखलाते हुए विकृष्ट में स्तम्भोंकी अधिकताको स्वीकार किया गया है । [ त्र्यत्रमण्डपमें चतुरस्त्र मण्डपकी भित्ति तथा स्तम्भोंसे सम्बद्ध सम्पूर्ण विधिका अनुसरण करना चाहिए इसका अभिप्राय यह है कि विकृष्ट में उसका पूर्ण रूपसे पालन करने की आवश्यकता नहीं है । अतः उसमें स्तम्भोंकी अधिकता की स्वीकृति ध्वनित होती है । यह ग्रन्थकार का अभिप्राय है । यह बात आगे कहते हैं । चतुरश्र मण्डपमें रङ्गशीर्षके दोनों प्रोर दो द्वार बनानेका विधान किया था । त्र्यस्त्र मण्डपमें इतना संशोधन हो सकता है कि त्रिकोण 'प्रतिरङ्ग अर्थात् रङ्गशीर्षके बीचमें एक द्वार रचा जाय । अथवा दोनों ओर भी हो सकते हैं ] । त्र्यत्र रंगपीठ में तो प्रतिरंग अर्थात् रंगशीर्ष के मध्य में [एक द्वार बनाना चाहिए] । रङ्ग शब्दसे रंगशीर्षका ग्रहरण करना चाहिए । उसके पीछे [ एक द्वार बनाना चाहिए] अथवा उसके दोनों ओर [ दो द्वार बनाने चाहिए] । पाठसमीक्षा - इस इलोककी अभिनवभारतीका पाठ भी पूर्व संस्करणों में ६३वीं कारिका की व्याख्या के बीचमें छप गया था। हमने उसको यहाँपर यथा स्थान छापा है । १०४ ।। अभिनव० - 'एवमेतेन' आदि [[अगले श्लोक ] से अगले [तृतीय ] श्रध्याय में कहे हुए पूजन विधान] की संगति दिखलाते हैंभरत० - इस प्रकार इस [पूर्वोक्त] विधिसे विद्वानोंको [अनेक प्रकारके] नाट्यगृहोंकी रचना करनी चाहिए । इसके बाद मैं शास्त्र के अनुसार इन [मण्डपोंके अधिष्ठातृदेवताओं] के पूजनके विधिका वर्णन [अगले व्याय] करूंगा ।१०५॥ १. म. द्वितीयं चतुरश्रस्य । क. विधेयश्च पुरस्तस्य । २ ड. म. समन्वितः । ३. सङ्गति । ४. म. कार्यं नाटयगृहं बुवैः । ५. च. म. तत ऊर्ध्वं । ६. च. य. पूजामेषां । डा. प्रसन्नकुमार आचार्य द्वारा प्रस्तुत नाटय-मण्डपके चित्र GREEN RA [ कारिका १०५ ये चित्र अभिनव भारती अथवा भरत नाट्यशास्त्र के आधार पर नहीं बनाए गए हैं। परन्तु चित्रकारकी सुरुचिपूर्ण कल्पनाका परिचय अवश्य देते हैं । कारिका १०५ ] एतेन विधिना वहवो नाट्यमण्डपा : पूर्वोक्ताण्टादशमेदकलनयेत्यर्थः । बुधैरित्यूहापोहविद्भिः । पुनरिति यद्यपि गदिताः सर्वे शुभदाः तथापि पूजां वक्ष्यामीति पुनः शब्दार्थः । तच्च विधानेनोक्तम् । तदाह यथाविधीति । एषामिति मण्डपस्था देवता अनेन उपचारादुक्ताः ॥१०५।। - इति भारतीये नाट्यशास्त्रे मण्डपविधानो नाम द्वितीयोऽध्यायः । द्वितीये मण्डपाध्याये वृत्तिरेषा शुभा कृता । मयाभिनवगुप्तेन दृष्ट्या सन्तोऽनुगृह्यताम् ।। इति महामाहेश्वराभिनवगुप्ताचार्य-विरचितायामभिनवभारत्यां भारतीय नाट्यशास्त्रविवृती मण्डपाध्यायो द्वितीयः । अभिनव० - इस विधिसे बहुत से मण्डप पूर्वोक्त अठारह भेदोंको समझ कर [[आवश्यकतानुसार ] नाना प्रकारके मण्डप बनाने चाहिए । यह अभिप्राय है । 'बुधैः ' इसका अर्थ ऊहा-पोह करनेमें समर्थ है । यद्यपि [ इसी प्रध्यायमें] सारे कल्यारण- प्रद व्यापारोंको पहिले ही कहा जा चुका है फिर भी पूजनके विधिको कहूंगा यह 'पुनः ' शब्दका अभिप्राय है । और वह [ पूजनका प्रकार शास्त्रीय] विधान के अनुसार कहा जायगा यह बात [कारिकामें आए हुए] 'यथाविधि' इस पदसे कही गई है। 'एषां' इनके [पूजाविधिको कहूंगा ] इससे उपचारसे मण्डपमें रहने वाले देवताओं [को पूजा ] का निर्देश किया गया है । ॥ १०५ ॥ श्री भरतमुनि प्ररणीत नाट्यशास्त्र में मण्डपविधान नामक द्वितीय अध्याय समाप्त हुआ । अभिनव० - [भरत नाट्यशास्त्र के ] मण्डपाध्याय नामक द्वितीय अध्याय के ऊपर मुझ अभिनवगुप्तने यह सुन्दर [ अभिनवभारती] वृत्ति लिखी है । हे विद्वज्जनो आप लोग उसको देखकर [ मुझे] अनुगृहीत करें । पाठसमीक्षा - अभिनवगुप्त ने अपनी 'अभिनवभारती' में प्रत्येक अध्यायके प्रारम्भ में मंगलाचरण और अन्त में समाप्ति सूचक श्लोक लिखे है। इस द्वितीयाध्यायकी समाप्ति में उन्होंने समाप्ति सूचक श्लोक लिखा था, परन्तु उसका ठीक पाठ उपलब्ध नहीं होता है। प्रथम संस्कररण में उसका केवल एक चरण 'दृष्टया सन्तोऽनुगृह्यताम्' इस रूपमें मुद्रित किया था। दूसरे संस्करण में उसको भी निकाल दिया गया है । अन्तिम श्लोक में अभिनवगुप्त प्रायः अध्यायके नाम और अपने नामका उल्लेख करते हुए ही प्रध्यायकी समाप्ति करते हैं । इसी आदर्श पर हमने अभिनवगुप्त के अभिप्राय के अनुरूप पाठकी पूर्ति करकेयह स्वनिर्मित अन्तिम श्लोक यहां दे दिया है । श्री महामाहेश्वर- प्रभिनवगुप्ताचार्य विरचित अभिनवभारती नामक नाट्यशास्त्रको टीकामें 'मण्डपाध्याय' नामक द्वितीय अध्याय समाप्त हुआ । इति श्रीमदाचार्य - विश्वेश्वर-सिद्धान्तशिरोमरिणविरचिते 'अभिनवभारती सञ्जीवन भाष्ये' द्वितीयो ऽध्यायः समाप्तः । १. 'न तु' इत्यधिकम् । २ पूजामिति । तथापि वक्ष्यामीति । ३. तत्र हि । ४. श्रस्मदीयः ।
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शब्द "बदमाशी" - यह क्या है? अंग्रेजी से अनुवादित, इसका अर्थ है गुंडागर्दी। बुलिंग एक व्यक्ति पर बार-बार नकारात्मक मनोवैज्ञानिक दबाव है। यह न केवल स्कूलों में होता है, बल्कि काम पर भी होता है। नतीजतन, जिस व्यक्ति को नकारात्मक प्रभाव का निर्देशन किया जाता है, वह निरंतर तनाव का अनुभव करना शुरू कर देता है। और परिणामस्वरूप - मुझे अपने अध्ययन या कार्य के स्थान को बदलना होगा। स्कूल की बदमाशी अपनी क्रूरता, अकर्मण्यता के लिए उल्लेखनीय है। और इसे अलग से माना जाना चाहिए। बाहरी रूप से, उभयलिंगी अनुचित रूप से प्रकट होता हैएक व्यक्ति (कर्मचारी, छात्र) के प्रति बर्खास्तगी और अभिमानी रवैया। उनकी पूरी पहल पर सवाल उठाए गए और उनका मजाक उड़ाया गया। साथ ही बयान और कोई कार्रवाई। यह सब जहरीली आलोचना के अंतर्गत आता है। धमकाने वाला व्यक्ति कोशिश कर रहा हैयह साबित करें कि सामूहिक के लिए उनका बलिदान मूर्खतापूर्ण और बेकार है। वह खुले अपमान और अपमान और अपमान का सामना कर सकता है। हमलावर हमेशा एक सहयोगी नहीं होता है, वह पीड़ित का मुखिया हो सकता है। मैनेजर की ओर सेप्रबंधन की गतिविधियों में संलग्न होने में उनकी अक्षमता और अक्षमता को दर्शाता है। हमला पेशेवर अक्षमता और हीनता को छुपाता है, जो उत्पीड़न की डिग्री से निर्धारित होता है। यदि एक साधारण कर्मचारी धमकाने में लगा हुआ है, तो यह किसी और के खर्च पर आत्म-पुष्टि है। इस तरह के उत्पीड़न का विरोध करना बहुत मुश्किल है। सहकर्मी अक्सर तटस्थ स्थिति लेते हैं, और शायद ही कभी पीड़ित व्यक्ति के लिए हस्तक्षेप करना शुरू करते हैं, अन्य लोगों के संबंधों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं। कभी-कभी कर्मचारी हमलावर का समर्थन करते हैं, उसकी बदमाशी में शामिल होते हैं। खासकर अगर बॉस बुलिंग में व्यस्त हो। लोग तैरने क्यों जाते हैं? बुलिंग एक सामाजिक घटना हैकिसी अन्य व्यक्ति पर आक्रमण को निर्देशित करके उनकी असंगतता को छिपाने में मदद करता है अपनी हीनता दिखाने का डर। इस प्रकार हमलावर अपनी कमजोरियों को छिपाने की कोशिश करता है। ज्यादातर अक्सर यह काम में अक्षम व्यक्ति होता है। कभी-कभी अन्य कर्मचारी उससे जुड़ जाते हैं। इसका मतलब यह है कि उपरोक्त गुणों का हिस्सा उनमें मौजूद है। लेकिन अगर हमलावर - प्रमुख, फिर अपने कार्यों का समर्थन करना अपनी नौकरी खोने के डर का प्रकटन हो सकता है। मानव-निर्देशित खुला नकारात्मकमनोवैज्ञानिक प्रेस, उत्पीड़न - यह बुलिंग है। यह समझना कि कोई व्यक्ति या लोगों का एक समूह ऐसा क्यों करता है जो खड़े होने का सही तरीका चुनने में मदद करेगा। सबसे पहले, पीड़ित को इस के आगे नहीं झुकना चाहिए।दबाव, घबराहट - शांत रखने का प्रयास करना चाहिए। और धमकाने का कारण समझें। उनमें से बहुत कुछ हो सकता है - व्यक्तिगत शत्रुता, एक लंबे समय तक संघर्ष, एक पीड़ित का पद पाने की इच्छा आदि। इस पर निर्भर करते हुए, हमलावर के प्रति व्यवहार की रणनीति पर काम करने की कोशिश करें। यदि आप इसे स्वयं नहीं कर सकते,आप मैनुअल को संदर्भित करने का प्रयास कर सकते हैं। दूसरे विभाग या शाखा में स्थानांतरण के लिए कहें। यदि इस तरह के कोई विकल्प नहीं हैं और हमलावर के हमलावर का विरोध करने के लिए कोई शक्ति नहीं बची है, तो नौकरी बदलना आसान है। आपकी नसें और स्वास्थ्य अधिक महत्वपूर्ण हैं। बुलिंग - यह क्या है? दूसरे शब्दों में - एक व्यक्ति या लोगों के समूह के उद्देश्य से लगातार मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न। आप बुलिंग का विरोध कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक इस समस्या के कई समाधान देते हैंः - इस तरह से काम करना कि व्यावसायिकता को ठेस पहुँचाना असंभव हो; - एक ही के साथ हमलावर का जवाब नहीं और स्टिंग टिप्पणी और अपमान का जवाब नहीं देने की कोशिश करें; - रोने, एक खुले मौखिक संघर्ष, घोटालों और अशिष्टता के रूप में विघटन की अनुमति नहीं देने के लिए (यह केवल पीड़ित की नपुंसकता को दर्शाता है) - समान विचारधारा वाले लोगों को ढूंढें (कुछ पहले इस तरह के उत्पीड़न के अधीन हो सकते हैं); - उन सहयोगियों को खोजें, जिनके पास हमलावर के प्रति एंटीपैथी है, और उनके साथ एक आम भाषा खोजने की कोशिश करते हैं; - प्रत्येक चरण और क्रिया की गणना करें। बैल काम पर क्यों दिखाई देता है? बुलिंग - यह क्या है? सरल शब्दों में - किसी व्यक्ति पर एक नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव, जिसके दौरान उसे खुले तौर पर अपमानित किया जाता है, अपमानित किया जाता है, आलोचना की जाती है और सब कुछ कास्टिक टोन में किया जाता है। सबसे अधिक बार, रैंक्स रैंकों में होता हैकर्मचारियों को। यद्यपि यह कंपनी के व्यक्तिगत ग्राहकों को निर्देशित किया जा सकता है। प्रबंधक कभी-कभी अपनी स्थिति का दुरुपयोग करते हैं, और ऐसे मामले होते हैं जब उन्हें प्रबंधकों द्वारा भी समर्थन दिया जाता है। शोध के अनुसार यह पाया गया किज्यादातर, बदमाशी के शिकार आज्ञाकारी, कमजोर और मामूली कार्यकर्ता होते हैं। ये गुण उन्हें सहयोगियों या वरिष्ठों को नापसंद करने का कारण बन सकते हैं। लेकिन मुखर और सफल कर्मचारियों को मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न के अधीन किया जा सकता है, जिससे अन्य लोग ईर्ष्या करते हैं। बदमाशी करने में सक्षम प्रमुख खराब हैंप्रबंधक जो उच्च पदों के लिए सक्षम नहीं हैं, क्योंकि वे नहीं जानते कि क्रोध का सामना कैसे करना है, संचार और सामाजिक कौशल नहीं है। इस तरह के मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न के साथ वे बस अपनी शक्ति को बनाए रखना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए, कर्मचारियों के अपमान और अपमान का तिरस्कार न करें। काम की वजह से बुलिंग हो सकती हैअसुविधाजनक कार्यस्थलों, तंग कमरे, खराब उपकरण और काम करने की स्थिति। इन मामलों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए कर्मचारियों पर दबाव टीम में ज्यादातर स्क्वैबल्स का कारण बनता है। और यह बदमाशी की अभिव्यक्ति की शुरुआत हो सकती है। मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन किया हैजिसके परिणाम ने बदमाशी और व्यक्तित्व विकार के बीच एक संबंध स्थापित किया। कुल मिलाकर 11 प्रकार के मानसिक विकार हैं। इनमें से 3 सबसे अधिक बार अपराधियों के बीच नहीं, बल्कि संगठनों के प्रमुखों में पाए जाते हैंः - थियेट्रिकल डिसऑर्डर - इनसाइनरिटी, मैनिपुलेशन, इगोरोस्ट्रिज्म और ध्यान की बढ़ी हुई आवश्यकता की विशेषता है; - narcissistic - भव्यता के भ्रम से प्रतिष्ठित, सहानुभूति और समझ की कमी, अन्य लोगों पर श्रेष्ठता; - जुनूनी-बाध्यकारी - पूर्णतावाद, हठ, तानाशाही, क्रूरता और काम के प्रति अत्यधिक समर्पण की विशेषता। बदमाशी के कई प्रमुख रूप हैं। वे आक्रामक, अनुचित, निरंतर और अत्यधिक दृढ़ता के साथ दिखाई देते हैं। काम पर, बदमाशी के रूप में हो सकता हैः - कर्मचारियों की थकावट (आदर्श से ऊपर का काम); - ब्लैकमेल, डराना; - किसी और की सफलता के लिए विनियोग करना; - काम के लिए आवश्यक जानकारी (या इसकी अविश्वसनीयता) को छिपाना; - टीम के बाकी कर्मचारियों से अलगाव; - अच्छे काम की गैर-मान्यता; - पिछले कर्मचारी गलतियों के निरंतर अनुस्मारक। बुलिंग एक लंबी आक्रामक हैदूसरे व्यक्ति पर मनोवैज्ञानिक (कम शारीरिक) दबाव। यह सामान्य रूप से टीम के काम और विशेष रूप से लक्षित कर्मचारी के कार्य की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। उसके लिए नकारात्मक परिणामों में से एक तनाव होगा। किसी व्यक्ति को धमकाने की मदद से कभी-कभी आत्महत्या के लिए प्रेरित किया जाता है। गवाहों के उत्पीड़न नकारात्मकता की उनकी खुराक प्राप्त करते हैं। काम पर स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है, और वे दूसरी जगह जाने की कोशिश करते हैं। नतीजतन, संगठन उच्च योग्य कर्मचारियों को खो सकता है। कार्मिक टर्नओवर, मुकदमे, अनुपस्थिति, काम में गलतियाँ, आदि दिखाई देते हैं। स्कूल बदमाशी - यह घटना क्या है? दूसरे शब्दों में, एक बच्चे का आक्रामक मनोवैज्ञानिक और शारीरिक उत्पीड़न दूसरे द्वारा (या व्यक्तियों का एक समूह)। मूल रूप से, यह घटना 11 साल से दिखाई देने लगती है। अक्सर न केवल मनोवैज्ञानिक दबाव होता है, बल्कि पिटाई भी होती है। गपशप, नाम-पुकार और चुभने वाले चुटकुले को भीड़ कहते हैं। रूस में लगभग 50% बच्चे वस्तु बन जाते हैं।बदमाशी। प्राथमिक ग्रेड में, यह खुद को एक स्कूल रैकेट के रूप में प्रकट कर सकता है (सेल फोन, पैसे आदि के शिकार से वंचित)। 11 से 15 वर्ष की आयु में, उपहास, अपमान, बहिष्कार का दंश शुरू हो जाता है। नतीजतन, बच्चा पीड़ित निराशा, अकेलेपन और दर्द की भावना का अनुभव करता है। बुलिंग हमेशा एक बच्चे को शुरू करता है। फिर अन्य लोग इसमें शामिल होते हैं। यदि पीड़ित विरोध नहीं करता है और शिक्षक उत्पीड़न को रोकने की कोशिश नहीं करता है, तो पीड़ित बच्चे के लिए कोई भी हस्तक्षेप नहीं करेगा। कभी-कभी उसके प्रति सहानुभूति उदासीनता और जलन में बदल जाती है। ऐसे स्कूलों में जहां मानव गरिमा की शिक्षा पर जोर दिया जाता है, बदमाशी दुर्लभ है। शैक्षिक संस्थानों के विपरीत, जहां सब कुछ संयोग से निर्धारित होता है। बुलिंग को भी मजबूत किया जा सकता है।स्कूली बच्चे, अगर उन पर सहपाठियों या अन्य बच्चों के समूह द्वारा दबाव डाला जाता है। अक्सर, पीड़ित खुद अनजाने में हमलावरों को उकसाते हैं। उदाहरण के लिए, उनकी अशिष्ट उपस्थिति, अतिसंवेदनशीलता और भेद्यता, यह शिक्षकों का पसंदीदा भी हो सकता है। बच्चों के साथ-साथ अपने सहपाठियों से अलग तरह से। बुलिंग - यह क्या है और यह खुद को कैसे प्रकट करता है? इस शब्द को लंबे समय तक आक्रामकता के रूप में वर्णित किया जा सकता है,किसी अन्य व्यक्ति के उद्देश्य से। स्कूली बच्चे जिनके माता-पिता या वयस्कों का कोई सम्मान नहीं है, वे बछड़े बन जाते हैं। ऐसे आक्रामक बच्चों में अक्सर ध्यान और समझ की कमी होती है। अपने कार्यों से, वे उन्हें नोटिस करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ माता-पिता के प्यार के लिए तरसते हैं, जो अन्य बच्चों पर नहीं है।
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05 नवंबर 2019: करेंट अफेयर्स प्रश्नोत्तरी प्रश्न और उत्तर आपकी सामान्य जागरूकता बढ़ाने के लिए। हमारे करंट अफेयर्स क्विज़ के साथ 05 नवंबर 2019 के प्रश्नों का अभ्यास करें जो पूरे भारत के साथ-साथ विश्व की सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर करता है। सभी प्रतियोगी परीक्षाओं और साक्षात्कार में सफल होने के लिए, सभी महत्वपूर्ण करंट अफेयर्स प्रश्नोत्तरी का उपयोग 05 नवंबर 2019 को यहां दिए गए उत्तरों के साथ करें। 1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को __________ द्वारा ऑनलाइन खरीदारी को एक व्यसनी विकार के रूप में पहचानना है। उत्तरः व्याख्या : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को 2024 तक ऑनलाइन शॉपिंग को एक नशे की लत विकार के रूप में पहचानना है। लाखों लोग डिजिटल कॉमर्स का दुरुपयोग करते हैं और ऑनलाइन शॉपिंग के कारण वित्तीय तनाव का सामना करते हैं। 2. नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा el वास्टेलैंड एटलस 2019 'का ______ संस्करण जारी किया गया था? उत्तरः व्याख्या : बंजर भूमि/वेस्टलैंड एटलस को राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) के सहयोग से भूमि संसाधन विभाग द्वारा तैयार किया गया था। इससे पहले, अंतरिक्ष विभाग ने वर्ष 2000, 2005, 2010 और 2011 संस्करणों में भारत के अपशिष्ट जल एटलस प्रकाशित किए हैं। भारतीय रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए नया बंजर भूमि मानचित्रण अभ्यास, वेस्टलैंड एटलस 2019 का पांचवा संस्करण है। 3. मिजोरम के राज्यपाल के रूप में किसने शपथ ली? उत्तरः व्याख्या : 5 नवंबर 2019 को पीएस श्रीधरन पिल्लई को मिजोरम के नए राज्यपाल के रूप में शपथ दिलाई गई। शपथ ग्रहण कार्यालय का संचालन गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय लांबा द्वारा राजभवन, मिजोरम में किया गया। श्री पिल्लई केरल से मिजोरम के राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाले तीसरे राज्यपाल हैं। 4. पहली बार वेस्टलैंड एटलस कब जारी किया गया था? उत्तरः व्याख्या : राष्ट्रीय दूरस्थ संवेदी केंद्र (NRSC) के सहयोग से भूमि संसाधन विभाग द्वारा बंजर भूमि/वेस्टलैंड एटलस तैयार किया गया था। इससे पहले, अंतरिक्ष विभाग ने वर्ष 2000, 2005, 2010 और 2011 संस्करणों में भारत के बंजर भूमि एटलस को प्रकाशित किया है। 5. बंजर भूमि एटलस 2019 को किसने जारी किया? उत्तरः व्याख्या : बंजर भूमि/वेस्टलैंड एटलस को राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) के सहयोग से भूमि संसाधन विभाग द्वारा तैयार किया गया था। इससे पहले, अंतरिक्ष विभाग ने वर्ष 2000, 2005, 2010 और 2011 संस्करणों में भारत के अपशिष्ट जल एटलस प्रकाशित किए हैं। भारतीय रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए नया बंजर भूमि मानचित्रण अभ्यास, वेस्टलैंड एटलस 2019 का पांचवा संस्करण है। 6. किस एनजीओ ने कोयम्बटूर रेलवे स्टेशन को दृष्टिबाधित मैत्रीपूर्ण स्टेशन बनने में मदद की? उत्तरः व्याख्या : कोयम्बटूर रेलवे स्टेशन अब दृष्टिगत रूप से अनुकूल हो गया है। मैसूरु, बेंगलुरु, और मुंबई, महाराष्ट्र में बोरीवली स्टेशन के बाद ऐसी सुविधा वाला यह चौथा स्टेशन बन गया। रेलवे स्टेशन ने 1 नवंबर 2019 को ब्रेल सूचना बोर्ड और ब्रेल-एम्बॉस किए गए हैंड्रिल स्थापित किए हैं। कोयम्बटूर रेलवे स्टेशन में यह पहल बेंगलुरु स्थित एनजीओ अनुप्रेयस द्वारा की गई है। अनुप्रेयस ने चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन को उत्तर भारत का पहला नेत्रहीन दोस्ताना स्टेशन बनने में मदद की। 7. किस राज्य सरकार ने राज्य के जंगलों को बहाल करने और इसकी जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए फ्रांसीसी विकास एजेंसी (एएफडी) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए? उत्तरः व्याख्या : असम राज्य सरकार ने फ्रांसीसी विकास एजेंसी (एएफडी) के साथ 50 मिलियन यूरो (400 करोड़ रुपये) के समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते का उद्देश्य राज्य के जंगलों को बहाल करने और इसकी जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद करना है। 8. कौन सा रेलवे स्टेशन सबसे पहले एक नेत्रहीन मैत्रीपूर्ण स्टेशन बन गया? उत्तरः व्याख्या : मैसूरु रेलवे स्टेशन एक दृष्टिबाधित मैत्रीपूर्ण स्टेशन बनने वाला पहला शहर बन गया। 9. असम राज्य सरकार ने राज्य के जंगलों को बहाल करने और इसकी जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए फ्रांसीसी विकास एजेंसी (एएफडी) के साथ ________ के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। उत्तरः व्याख्या : असम राज्य सरकार ने फ्रांसीसी विकास एजेंसी (एएफडी) के साथ 50 मिलियन यूरो (400 करोड़ रुपये) के समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते का उद्देश्य राज्य के जंगलों को बहाल करने और इसकी जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद करना है। 10. कौन सा तमिलनाडु रेलवे स्टेशन अब दृष्टिगत रूप से अनुकूल हो गया है? उत्तरः व्याख्या : कोयम्बटूर रेलवे स्टेशन अब दृष्टिगत रूप से अनुकूल हो गया है। मैसूरु, बेंगलुरु, और मुंबई, महाराष्ट्र में बोरीवली स्टेशन के बाद ऐसी सुविधा वाला यह चौथा स्टेशन बन गया। 11. वन और जैव विविधता संरक्षण (APFBC) के लिए असम परियोजना का पहला चरण कब शुरू किया गया था? उत्तरः व्याख्या : वन और जैव विविधता संरक्षण (APFBC) के असम परियोजना के पहले चरण में, 21,000 हेक्टेयर भूमि को पुनर्निर्मित किया गया था। यह वर्ष 2013 में शुरू हुआ। राज्य ने वन्यजीवों के लिए 33 बाढ़ शरण स्थल बनाए, और एएफडी के समर्थन से वैकल्पिक आजीविका में स्थानीय समुदायों के 6,000 से अधिक सदस्यों को प्रशिक्षित किया। 12. महिला वैज्ञानिकों और उद्यमियों के सम्मेलन का __________ संस्करण 7-8 नवंबर, 2019 को कोलकाता में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (IISF) में आयोजित किया जाएगा। उत्तरः व्याख्या : 5 वां भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (IISF) कोलकाता में 5 से 8 नवंबर, 2019 तक आयोजित किया जा रहा है। महिला वैज्ञानिकों के तीसरे संस्करण और उद्यमियों के सम्मेलन का आयोजन कोलकाता में 7-8 पर इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (IISF) में किया जाएगा। नवंबर 2019। 13. ___________ के साथ केंद्र साझेदारी ने कौशल निर्माण मंच का शुभारंभ किया। उत्तरः व्याख्या : केंद्र को आईबीएम के सहयोग से स्किल बिल्ड प्लेटफॉर्म लॉन्च करना है। यह प्रशिक्षण महानिदेशालय (DGT) द्वारा घोषित किया गया था, जो कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के तहत कार्य करता है। 14. असम राज्य सरकार ने वन और जैव विविधता संरक्षण (APFBC) के असम परियोजना के दूसरे चरण के लिए कितना आवंटित किया? उत्तरः व्याख्या : परियोजना के लिए राज्य द्वारा असम परियोजना वन और जैव विविधता संरक्षण (APFBC) के दूसरे चरण के लिए आवंटित बजट 500 करोड़ रुपये है। 15. आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) का मुख्यालय कहाँ स्थित है? उत्तरः व्याख्या : आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) की स्थापना 1712 में हुई थी। मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है। 16. आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) के महानिदेशक और अध्यक्ष कौन हैं? उत्तरः व्याख्या : सौरभ कुमार आयुध कारखानों के महानिदेशक (DGOF) और कोलकाता में आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) के अध्यक्ष हैं। वह 1982 बैच के भारतीय आयुध निर्माणी सेवा के अधिकारी हैं, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एम-टेक हैं। 17. आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) का मुख्यालय कहाँ स्थित है? उत्तरः व्याख्या : आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) की स्थापना 1712 में हुई थी। मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है। 18. आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) की स्थापना कब की गई थी? उत्तरः व्याख्या : ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) की स्थापना 1712 में हुई थी। ओएफबी हवा, जमीन और समुद्री प्रणालियों के क्षेत्रों में एक व्यापक उत्पाद रेंज के परीक्षण, विपणन, अनुसंधान और रसद में लगी हुई है। यह रक्षा मंत्रालय (MoD) के रक्षा उत्पादन विभाग के अधीन कार्य करता है। 19. स्वीडिश बोफोर्स Haubits FH77 भारत द्वारा कब आयात किया गया था? उत्तरः व्याख्या : भारतीय सेना ने आधिकारिक तौर पर अप्रैल 2019 में धनुष लॉन्ग-रेंज आर्टिलरी गन्स को शामिल किया। यह ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी), कोलकाता द्वारा विकसित किया गया है। तोपों का निर्माण गन कैरिज फैक्ट्री, जबलपुर द्वारा स्वीडिश बोफोर्स हूबिट्स FH77 के आधार पर किया जाता है। यह 1980 के दशक में भारत द्वारा आयात किया गया था। 20. _________ ने मिशन इनोवेशन (एमआई) नाम दिया, जिसे COP-21 के दौरान 20 देशों द्वारा लॉन्च किया गया था। उत्तरः व्याख्या : प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मिशन इनोवेशन (एमआई) का नाम रखा। इसे COP-21 के दौरान 20 देशों द्वारा 30 नवंबर 2015 को लॉन्च किया गया था। एमआई में वर्तमान में 24 सदस्यीय देश और यूरोपीय आयोग शामिल हैं। 21. विज्ञान समागम, भारत की पहली वैश्विक मेगा-विज्ञान प्रदर्शनी है, जिसका उद्घाटन ___________ में साइंस सिटी में किया गया था। उत्तरः व्याख्या : विज्ञान समागम, भारत की पहली वैश्विक मेगा-विज्ञान प्रदर्शनी, का उद्घाटन 4 नवंबर 2019 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में साइंस सिटी में किया गया। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री और पृथ्वी विज्ञान मंत्री भारत सरकार, डॉ। हर्षवर्धन। विज्ञान समागम कोलकाता में 4 नवंबर से 31 दिसंबर 2019 तक आयोजित किया जाएगा। 22. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) द्वारा टैरिफ में कमी के लिए आधार वर्ष के रूप में किस वर्ष उपयोग किया जाता है? उत्तरः व्याख्या : 2014 को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) द्वारा टैरिफ में कमी के लिए आधार वर्ष के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत ने टैरिफ में कमी के लिए आधार वर्ष के रूप में 2014 के उपयोग के कदम पर एक लाल झंडा उठाया है। जबकि आरसीईपी वार्ताकार 2020 में समझौते पर हस्ताक्षर करने की मांग कर रहे हैं, नए टैरिफ शासन को 2022 से लागू किया जाएगा और कर्तव्यों को 2014 के स्तर पर वापस जाना होगा। 23. धनुष आर्टिलरी गन्स का विकास कौन कर रहा है? उत्तरः व्याख्या : भारतीय सेना ने आधिकारिक तौर पर अप्रैल 2019 में धनुष लॉन्ग-रेंज आर्टिलरी गन्स को शामिल किया। यह ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी), कोलकाता द्वारा विकसित किया गया है। 24. मिशन इनोवेशन (MI) कब शुरू किया गया था? उत्तरः व्याख्या : प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मिशन इनोवेशन (एमआई) का नाम रखा। इसे COP-21 के दौरान 20 देशों द्वारा 30 नवंबर 2015 को लॉन्च किया गया था। एमआई में वर्तमान में 24 सदस्यीय देश और यूरोपीय आयोग शामिल हैं। 25. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के अंतर्गत कितने सदस्य देश हैं? उत्तरः व्याख्या : RCEP में 10 आसियान राष्ट्र और इसके मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के छह साझेदार शामिल हैं, अर्थात् भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड। आरसीईपी का लक्ष्य दुनिया में सबसे बड़ा मुक्त-व्यापार क्षेत्र बनाना है। 26. भारतीय सेना के पास मार्च 2020 तक स्वदेशी रूप से उन्नत धनुष तोपों की पहली रेजिमेंट होगी। उत्तरः व्याख्या : भारतीय सेना के पास मार्च 2020 तक 18 स्वदेशी रूप से उन्नत धनुष तोपों की पहली रेजिमेंट होगी। उम्मीद है कि इसे 2022 तक सभी 114 बंदूकें मिलेंगी। अप्रैल में, ऑर्डनेंस फैक्ट्री गन कैरिज फैक्ट्री, जबलपुर, से 18 फरवरी को सेना ने, OFB ने 6 धनुष तोपों का पहला जत्था सौंपा। 114 बंदूकें 2019 के निर्माण के लिए थोक उत्पादन क्लीयरेंस प्राप्त किया। 27. किस देश ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया क्योंकि आरसीईपी देश द्वारा उठाए गए वार्ता को संबोधित करने में विफल रहा? उत्तरः व्याख्या : भारत ने मेगा रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया है, क्योंकि RCEP भारत द्वारा की गई बातचीत को संबोधित करने में विफल रहा। भारत ने टैरिफ के अंतर के कारण नियमों के उद्गम की परिधि के खतरे सहित चिंताओं को उठाया। यह व्यापार घाटे और सेवाओं के उद्घाटन के मुद्दों को संबोधित करने में विफल रहा। 28. कंबोडिया और बांग्लादेश _________ में व्यायाम कैरेट में शामिल होने वाले पहले प्रतिभागी बने। उत्तरः व्याख्या : 2010 में, कंबोडिया और बांग्लादेश व्यायाम सहयोग अफलोत रेडीनेस एंड ट्रेनिंग (CARAT) में शामिल होने वाले पहले प्रतिभागी बने। 29. चैटरोग्राम कहाँ स्थित है? उत्तरः व्याख्या : चिट्टागोंग, जिसे आधिकारिक तौर पर चटोग्राम के रूप में जाना जाता है, दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश में एक प्रमुख तटीय शहर और वित्तीय केंद्र है। शहर की आबादी 2. 5 मिलियन से अधिक है, जबकि महानगरीय क्षेत्र की आबादी 2011 में 4,009,423 थी, जो इसे देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर बनाता है। 30. मिशन इनोवेशन (MI) के तहत कितने सदस्य देश हैं? उत्तरः व्याख्या : प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मिशन इनोवेशन (एमआई) का नाम रखा। इसे COP-21 के दौरान 20 देशों द्वारा 30 नवंबर 2015 को लॉन्च किया गया था। एमआई में वर्तमान में 24 सदस्यीय देश और यूरोपीय आयोग शामिल हैं। 31. अभ्यास सहयोग Afloat Readiness and Training /अफलोत रेडीनेस एंड ट्रेनिंग (CARAT) 2019 __________ के बीच आयोजित किया जाता है। A. श्रीलंका और यू. एस. C. बांग्लादेश और यू. एस. उत्तरः व्याख्या : अमेरिका और बांग्लादेश के बीच एक नौसैनिक अभ्यास सहयोग अफलोत रेडीनेस एंड ट्रेनिंग (CARAT), 2019 की शुरुआत 4 नवंबर, 2019 को बांग्लादेश के चटोग्राम में हुई थी। इसकी घोषणा बांग्लादेश सशस्त्र बलों के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) विंग ने की थी। 32. 2019 द्विवार्षिक राष्ट्रमंडल कानून मंत्रियों के सम्मेलन का विषय क्या है? उत्तरः व्याख्या : द्विवार्षिक राष्ट्रमंडल विधि मंत्रियों का सम्मेलन कोलंबो, श्रीलंका में आयोजित किया जा रहा है। यह सम्मेलन 4-7 नवंबर 2019 को आयोजित किया जाएगा। सम्मेलन का विषय न्याय के लिए समान पहुंच और कानून का नियम है। सम्मेलन का उद्देश्य उन चुनौतियों का समाधान करना है जो कानूनी समस्याओं या विवादों को सुलझाने के लिए लाखों लोगों द्वारा सामना की जाती हैं। 33. नौसेना अभ्यास सहयोग अफलोत रेडीनेस एंड ट्रेनिंग (CARAT) 2019 कहाँ आयोजित किया जाता है? उत्तरः व्याख्या : अमेरिका और बांग्लादेश के बीच एक नौसैनिक अभ्यास सहयोग अफलोत रेडीनेस एंड ट्रेनिंग (CARAT), 2019 की शुरुआत 4 नवंबर, 2019 को बांग्लादेश के चटोग्राम में हुई थी। इसकी घोषणा बांग्लादेश सशस्त्र बलों के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) विंग ने की थी। व्यायाम अलग-अलग विषय-आधारित प्रशिक्षण और व्यायाम के साथ प्रदान किया जाता है। 34. ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री कौन हैं? उत्तरः व्याख्या : स्कॉट जॉन मॉरिसन अगस्त 2018 से ऑस्ट्रेलिया के 30 वें और वर्तमान प्रधान मंत्री और लिबरल पार्टी के नेता हैं। उन्होंने पहले ऑस्ट्रेलिया के कोषाध्यक्ष के रूप में 2013 से 2018 तक मंत्रिमंडल में कार्य किया। मॉरिसन 2007 में कुक के लिए पहली बार संसद सदस्य चुने गए थे। 35. किस देश ने 2019 द्विवार्षिक राष्ट्रमंडल कानून मंत्रियों के सम्मेलन की मेजबानी की? उत्तरः व्याख्या : द्विवार्षिक राष्ट्रमंडल विधि मंत्रियों का सम्मेलन कोलंबो, श्रीलंका में आयोजित किया जा रहा है। यह सम्मेलन 4-7 नवंबर 2019 को आयोजित किया जाएगा। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। 36. वियतनाम के समाजवादी गणराज्य के प्रधान मंत्री कौन हैं? उत्तरः व्याख्या : गुयेन जुआन फुक वियतनाम के सोशलिस्ट रिपब्लिक के प्रधान मंत्री हैं। गुयेन जुआन फुक भी नेशनल असेंबली का एक पूर्ण सदस्य है, जो अपनी 11 वीं, 12 वीं, 13 वीं और 14 वीं शर्तों पर कार्य कर रहा है। 37. सेंडाइ सेवन अभियान कब शुरू किया गया था? उत्तरः व्याख्या : वर्ष 2016 में, संयुक्त राष्ट्र कार्यालय आपदा जोखिम न्यूनीकरण (UNDRR) ने सेंदाई सेवन अभियान शुरू किया। इसका उद्देश्य आपदा जोखिम और आपदा नुकसान को कम करने के लिए सभी क्षेत्रों को बढ़ावा देना है। अभियान ने आपदा से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए प्रगति को मापने के लिए 7 लक्ष्य और 38 संकेतक निर्धारित किए हैं। 38. भारत-आसियान और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन 2019 कहाँ आयोजित किया गया है? उत्तरः व्याख्या : प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 नवंबर 2019 को बैंकाक में भारत-आसियान और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन 2019 के अवसर पर वियतनाम के समाजवादी गणराज्य के प्रधान मंत्री श्री गुयेन जुआन फुक से मुलाकात की। 39. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मीडिया कॉन्क्लेव कहाँ आयोजित किया जाता है? उत्तरः व्याख्या : विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय एक विज्ञान और प्रौद्योगिकी मीडिया कॉन्क्लेव का आयोजन कर रहा है। यह फेस्टिवल 6-7 नवंबर 2019 को कोलकाता में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (IISF) 2019 में आयोजित किया जाएगा। मीडिया कॉन्क्लेव का उद्घाटन प्रसार भारती के चेयरमैन श्री ए। सूर्य प्रकाश और डॉ। विजय प्रकाश भाटकर द्वारा किया जाएगा। अध्यक्ष, विज्ञान भारती। 40. विश्व सुनामी जागरूकता दिवस कब मनाया जाता है? उत्तरः व्याख्या : विश्व सुनामी जागरूकता दिवस 5 नवंबर 2019 को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। यह दिन सुनामी जागरूकता बढ़ाने और जोखिम कम करने के लिए नवीन दृष्टिकोण साझा करने के लिए मनाया गया था। 2019 विश्व सुनामी जागरूकता दिवस सेंदाई सात अभियान पर लक्ष्यों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यह महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के लिए आपदा क्षति को कम करने और बुनियादी सेवाओं के विघटन पर केंद्रित है। 41. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 5 नवंबर को विश्व सुनामी जागरूकता दिवस के रूप में कब नियुक्त किया? उत्तरः व्याख्या : दिसंबर 2015 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 5 नवंबर को विश्व सुनामी जागरूकता दिवस के रूप में चिह्नित किया। दिन का अवलोकन जापान द्वारा शुरू किया गया था। जापान ने वर्षों में सुनामी के कारण विनाश का अनुभव किया है।
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3.680 हे., निस्तार मद में 213.286 हे. की जानकारी दी गई थी। (ख) जिला-खरगोन की तहसील - बड़वाह अंतर्गत 09 वन ग्रामों के वर्ष 1948-49 के मिसल व मिसल का नक्शा हल्का पटवारी के पास उपलब्ध है एवं वर्ष 1948-49 एवं वर्ष 1980-81 की मिसल बंदोबस्त, खसरा पंजी, खातोनी पंजी, पटवारी मानचित्र वन मण्डल कार्यालय बड़वाह में उपलब्ध है। (ग) मध्य भारत वन विधान 1950 की धारा 20 के तहत् फॉरेस्ट एण्ड ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट ग्वालियर की अधिसूचना क्रमांक / 1623/X-F/114 (54) दिनांक 09/10/1954 राजपत्र दिनांक 21/10/1954 से आरक्षित वन अधिसूचित किया गया है। इन वन ग्रामों के अभिलेख पटवारी मानचित्र (नक्शा) राजस्व विभाग द्वारा गिरदावरी एवं आर.बी.सी. 6 (4) के लिए संधारण करता है। (घ) प्रश्नांश (ग) अनुसार अधिसूचना राजपत्र में दिनांक 21/10/1954 को आरक्षित वन अधिसूचित किया गया। ग्रामीण संसाधनों पर अधिकार 11. ( क्र. 136 ) श्री ब्रह्मा भलावी : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या बैतूल हरदा एवं होशंगाबाद जिले के कितने राजस्व ग्रामों के निस्तार पत्रक की प्रतिया प्रश्नांकित दिनांक तक ग्रामसभा / ग्राम पंचायत को प्रदान कर उनमें दर्ज कितनी-कितनी भूमियों के अधिकार नियंत्रण एवं प्रबंधन भी ग्रामसभा या ग्राम पंचायत को सौंप दिये गये हैं। (ख) ग्राम के पटवारी मानचित्र में दर्ज निस्तार पत्रक एवं अधिकार अभिलेख में किस-किस सार्वजनिक एवं निस्तारी प्रयोजनों के लिये किस-किस मद में दर्ज जमीनों के संबंध में ग्रामसभा एवं ग्राम पंचायत को संविधान की 11वीं अनुसूची, पैसा कानून 1996 एवं वन अधिकार कानून 2006 में क्या-क्या अधिकार दिए गये हैं ? (ग) सार्वजनिक एवं निस्तारी प्रयोजनों के लिये दर्ज जमीनों के संबंध में माननीय सर्वोच्च अदालत ने सिविल अपील प्रकरण क्रमांक 19869/2010 में दिनांक 28 जनवरी 2011 को दिये आदेश में ग्राम सभा और ग्राम पंचायत बावत् क्या-क्या निर्देश दिये हैं? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) बैतूल जिले के 1303 राजस्व ग्रामों के निस्तार पत्र में दर्ज 209418 हे. भूमि के निस्तार पत्रक की प्रतियां तथा जिला नर्मदापुरम के 936 राजस्व ग्रामों के निस्तार पत्रक में दर्ज 140803 हे. के निस्तार पत्रक की प्रतियां ग्राम पंचायत को सौंपी गई है जबकि जिला हरदा में अभी कोई ऐसी प्रतियां उपलब्ध नहीं कराई गई है। (ख) संविधान की 11 वीं अनूसूची, पेसा कानून 1996 एवं वन अधिकार कानून 2006 में किये गये प्रावधानों की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट- "अ" अनुसार । (ग) माननीय सर्वोच्च अदालत की सिविल अपील प्रकरण क्रमांक 19869/2010 आदेश दिनांक 28 जनवरी 2011 में दिये गये प्रावधानों की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट- "ब" अनुसार । लघु वनोपज पर ग्रामसभा का अधिकार [वन] 12. ( क्र. 137 ) श्री ब्रह्मा भलावी : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायतों को किस-किस लघु वनोपज पर संविधान की 11वीं अनुसूची पेसा कानून 1996, वन अधिकार कानून 2006, भू-राजस्व संहिता 1959 एवं भारतीय वन अधिनियम 1927 की किस-किस धारा में क्या-क्या अधिकार दिया है, किस-किस धारा में वन विभाग को क्या-क्या अधिकार दिया है ? पृथक-पृथक बतावें । (ख) ग्रामसभा एवं ग्रामपंचायतों को किस-किस लघु वनोपज पर क्या-क्या अधिकार सौंपे जाने के संबंध में राज्य मंत्रालय भोपाल ने किस-किस दिनांक को आदेश जारी किया, किस-किस लघु वनोपज को वन विभाग के नियंत्रण से मुक्त किए जाने के संबंध में किस-किस दिनांक को राजपत्र में अधिसूचना का प्रकाशन किया, आदेश एवं अधिसूचना की प्रति सहित बतावें। (ग) ग्रामसभा एवं ग्राम पंचायत को लघु वनोपज पर प्राप्त अधिकारों में हस्तक्षेप कर लघु वनोपज पर प्रतिबंध लगाने, लघु वनोपज के वन अपराध पंजीबद्ध कर जप्ती एवं राजसात करने का अधिकार राज्य शासन ने किस आदेश दिनांक से वन विभाग के किस श्रेणी के अधिकारी को सौंपा हैं? वन मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट- एक अनुसार है। (ख) ग्राम सभाओं को प्रत्योजित अधिकार की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-दो अनुसार है। (ग) ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत को लघु वनोपज पर प्राप्त अधिकारों पर कोई प्रतिबंध नहीं है किन्तु संग्रहण सतत् पोषणीय पद्धति से न करने पर एवं संग्रहण प्रकिया में वनोपज को नुकसान पहुंचाने के कारण भारतीय वन अधिनियम, 1927 के प्रावधानों के अंतर्गत वन अधिकारी कार्यवाही करने हेतु अधिकृत हैं। विवाह सहायता राशि भुगतान के प्रकरण 13. ( क्र. 153 ) श्री रामपाल सिंह : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) 25 जून 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में मध्यप्रदेश भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार मण्डल में पंजीकृत किन-किन के विवाह सहायता राशि भुगतान के प्रकरण किस स्तर पर कब से एवं क्यों लंबित हैं? (ख) संबंधितों के परिजनों को राशि का भुगतान कब तक कर दिया जायेगा? (ग) प्रश्नांश (क) के संबंध में माननीय मंत्री जी तथा विभाग के अधिकारियों को 1 जनवरी 2022 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में प्रश्नकर्ता विधायक के पत्र विवाह सहायता राशि भुगतान हेतु कब-कब प्राप्त हुए तथा उन पर क्या कार्यवाही की गई? (घ) प्रश्नकर्ता विधायक के पत्रों में उल्लेखित किन-किन को राशि का भुगतान कर दिया गया तथा किन-किन को राशि का भुगतान क्यों नहीं किया तथा कब तक राशि का भुगतान होगा? खनिज साधन मंत्री ( श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ) : (क) 25 जून 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में मध्यप्रदेश भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार मण्डल अंतर्गत पंजीकृत 80 हितग्राहियों के विवाह सहायता योजनांतर्गत राशि भुगतान के प्रकरण जनपद पंचायत / नगरीय निकाय स्तर पर लंबित हैं। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र- अ अनुसार है। त्रिस्तरीय पंचायत निर्वाचन एवं नगरीय निर्वाचन में संलग्न होने के कारण प्रकरण में कार्यवाही प्रचलित है । (ख) म.प्र. राजपत्र दिनांक 15 अप्रैल 2022 में मंडल की 'विवाह सहायता योजना में आंशिक संशोधन संबंधी अधिसूचना जारी की गई है, जिसमें योजनांतर्गत पंजीकृत पात्र महिला श्रमिक अथवा पंजीकृत श्रमिक की पुत्री (प्रति श्रमिक 02 पुत्रियों तक) द्वारा सामाजिक न्याय विभाग की "मुख्यमंत्री कन्यादान योजना" अंतर्गत आयोजित होने वाले सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में सम्मिलित होकर विवाह करने पर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के प्रावधान अनुसार हितग्राही को सामाजिक न्याय विभाग के माध्यम से हितलाभ प्रदान किए जाने संबंधी प्रावधान किया गया है। विवाह सहायता योजना में उक्त संशोधन के परिणाम स्वरूप मंडल के पत्र क्रमांक 4135 दिनांक 20-05-2022 अनुसार दिनांक 22-04-2022 के पूर्व संपन्न हुए विवाहों में संबंधित जिला कलेक्टर से प्राप्त मांग पत्र अनुसार विवाह सहायता राशि का आवंटन प्रदाय किया जायेगा तथा दिनांक 22-04-2022 को अथवा इसके पश्चात संपन्न हुए विवाहों हेतु "मुख्यमंत्री कन्यादान योजना अंतर्गत आयोजित होने वाले सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में सम्मिलित होकर विवाह करने पर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के प्रावधान अनुसार हितग्राही को सामाजिक न्याय विभाग के माध्यम से हितलाभ प्रदान किया जायेगा। (ग) प्रश्नांश (क) के संबंध में माननीय मंत्री जी तथा विभाग के अधिकारियों को 1 जनवरी 2022 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में प्रश्नकर्ता विधायक का 01 पत्र प्राप्त हुआ, जिस पर की गई कार्यवाही की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-ब अनुसार है। (घ) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-ब अनुसार है। अन्त्येष्टि एवं अनुग्रह सहायता राशि का प्रदाय 14. ( क्र. 154 ) श्री रामपाल सिंह : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) 25 जून 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में मुख्यमंत्री जनकल्याण (संबल) योजना तथा मध्यप्रदेश भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार मण्डल में पंजीकृत श्रमिकों की मृत्यु उपरांत अन्त्येष्टि एवं अनुग्रह सहायता राशि भुगतान के किन-किन प्रकरण में किस स्तर पर कब से एवं क्यों लंबित हैं? (ख) उक्त लंबित प्रकरणों का कब तक निराकरण होगा तथा संबंधित के परिजनों को राशि का भुगतान कब तक कर दिया जायेगा ? (ग) प्रश्नांश (क) के संबंध में माननीय मंत्री जी तथा विभाग के अधिकारियों को 1 जनवरी 2022 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में प्रश्नकर्ता विधायक के पत्र कब-कब प्राप्त हुए तथा उन पर क्या-क्या कार्यवाही की गई ? (घ) प्रश्नकर्ता विधायक के पत्रों में उल्लेखित किन-किन समस्याओं का निराकरण हुआ तथा किन-किन समस्याओं का निराकरण क्यों नहीं हुआ तथा कब तक निराकरण होगा? खनिज साधन मंत्री ( श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ) : (क) मुख्यमंत्री जनकल्याण (संबल ) योजना के अंतर्गत रायसेन जिले में 25 जून 2022 की स्थिति में पंजीकृत श्रमिकों की मृत्यु उपरांत अन्तेष्टि सहायता का कोई भी प्रकरण भुगतान हेतु लंबित नहीं है। अनुग्रह सहायता राशि भुगतान के 189 प्रकरण में ई.पी.ओ. जारी है। जिनमें पर्याप्त बजट उपलब्धता पर भुगतान किया जाता है। मध्यप्रदेश भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल के अंतर्गत 25 जून 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में मृत्यु की दशा में अंत्येष्टि एवं अनुग्रह सहायता योजनांतर्गत कोई भी प्रकरण भुगतान हेतु लंबित नहीं है । (ख) म.प्र. असंगठित शहरी एवं ग्रामीण कर्मकार कल्याण मण्डल अंतर्गत प्रकरणों में पात्रता अनुसार राशि भुगतान एक सतत् प्रक्रिया है। पदाभिहित अधिकारियों द्वारा पात्रता अनुसार प्रकरण स्वीकृति उपरान्त ई.पी.ओ. जारी कर डिजीटली हस्ताक्षरित किये जाने तथा मृत्यु सत्यापन की कार्यवाही पश्चात् राज्य स्तर पर प्रकरणों में बजट उपलब्धता अनुसार भुगतान किया जाता है। (ग) प्रश्नांश (क) के संबंध में माननीय विधायक महोदय द्वारा माननीय मंत्री जी को संबोधित पत्र क्रमांक 1030 दिनांक 20-04-2022 मंत्री महोदय के माध्यम से दिनांक 27-04-2022 को सचिव, असंगठित मण्डल को प्राप्त हुआ। जिस संबंध में वस्तुस्थिति से माननीय विधायक महोदय को मण्डल के पत्र क्रमांक 1539 दिनांक 29-04-2022 द्वारा अवगत कराया गया, साथ ही उक्त पत्र श्रम पदाधिकारी, मण्डीदीप की ओर आवश्यक कार्यवाही हेतु अग्रेषित किया गया। 2. इसी प्रकार माननीय विधायक महोदय का समविषयक पत्र माननीय मुख्यमंत्री कार्यालय के माध्यम से दिनांक 06-06-2022 को प्राप्त हुआ। जिसे श्रम पदाधिकारी, मण्डीदीप को आवश्यक कार्यवाही बावत् पत्र क्र. 2538 दिनांक 13-06-2022 द्वारा प्रेषित किया गया। जिसकी प्रतिलिपि माननीय विधायक महोदय जी को भी प्रेषित की गई है। 3. माननीय विधायक महोदय का माननीय मंत्री जी श्रम विभाग को संबोधित पत्र क्रमांक 1058 दिनांक 28-04-2022 माननीय मंत्री जी कार्यालय के माध्यम से दिनांक 13-06-2022 को प्राप्त हुआ। जो कि पत्र क्रमांक 8849 दिनांक 28-06-2022 के माध्यम से आवश्यक कार्यवाही हेतु श्रम पदाधिकारी, रायसेन को भेजा गया। जिसकी प्रतिलिपि माननीय विधायक महोदय जी को भी प्रेषित की गई है। प्रश्नांश (क) के संबंध में भवन मंडल अंतर्गत माननीय मंत्री जी तथा विभाग के अधिकारियों को 1 जनवरी 2022 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में प्रश्नकर्ता विधायक का 01 पत्र प्राप्त हुआ, जिस पर की गई कार्यवाही की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (घ) असंगठित मंडल अंतर्गत माननीय विधायक महोदय के पत्रों में उल्लेखित सभी समस्याओं के निराकरण हेतु तत्परता से कार्यवाही करते हुये श्रम पदाधिकारी, मण्डीदीप द्वारा मुख्य कार्यापालन अधिकारी जनपद पंचायत सिलवानी / बेगमगंज एवं मुख्य नगर पालिका अधिकारी सिलवानी / बेगमगंज को कार्यवाही हेतु पत्र प्रेषित किये गये, जिन पर त्रिस्तरीय पंचायत निर्वाचन एवं नगरीय निर्वाचन में संलग्न होने के कारण कार्यवाही प्रचलन में है। माननीय विधायक महोदय द्वारा प्रकरणों में भुगतान लंबित होने की समस्या का उल्लेख किया गया था। प्रकरणों में भुगतान एक सतत् प्रक्रिया है। पदाभिहित अधिकारियों द्वारा पात्रता अनुसार प्रकरण स्वीकृति उपरान्त ई.पी.ओ. जारी कर डिजीटली हस्ताक्षरित किये जाने तथा मृत्यु सत्यापन की कार्यवाही पश्चात् राज्य स्तर पर प्रकरणों में बजट उपलब्धता अनुसार भुगतान किया जाता है। भवन मंडल अंतर्गत प्रश्नांश की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। परिशिष्ट - "सैंतीस" प्रधानमंत्री उज्जवला योजना 15. ( क्र. 170 ) श्री बैजनाथ कुशवाह : क्या खाद्य मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत पात्रता हेतु क्या-क्या नियम एवं निर्देश हैं? (ख) प्रश्नांश (क) के प्रकाश में बी. पी. एल. कार्डधारियों को निःशुल्क गैस कनेक्शन दिये जाने का प्रावधान हैं? (ग) यदि हाँ, तो सबलगढ़ विधानसभा क्षेत्रांतर्गत स्थिति इण्डेन गैस एजेंसी रामपुर कला द्वारा ऐसे पात्र हितग्राहियों से राशि वसूली गई है? यदि हाँ, तो क्या उक्त एजेंसी के विरूद्ध कोई शिकायती आवेदन विभाग को प्राप्त हुए है? यदि हाँ, तो प्राप्त आवेदनों का विवरण व आज दिनांक तक उक्त गैस एजेंसी के विरूद्ध क्या कार्यवाही की गई है? खाद्य मंत्री ( श्री बिसाहूलाल सिंह ) : (क) प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत पात्रता हेतु भारत सरकार के पत्र दिनांक 04 अगस्त 2021 एवं म.प्र. शासन के पत्र क्रमांक 608/पी.एस.फूड/उज्जवला/ 2021 दिनांक 16.08.2021, पत्र क्र. 635 / पी. एस. खाद्य / उज्जवला/2021 दिनांक 25.08.2021, पत्र क्र.706 /उज्जवला/2021 दि.15.09.2021, पत्र क्र.756/पी.एस. खाद्य/उज्जवला/2021 दिनांक 28.09.2021, पत्र क्र. 9551/पी.एस.खाद्य/उज्जवला /2021 दिनांक 22.10.2021 के द्वारा विभागीय दिशा निर्देश जारी किये गये, जो पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-"अ" अनुसार है। (ख) जी हाँ । (ग) इण्डेन गैस एजेंसी रामपुरकलां के संचालक द्वारा अवैध राशि प्राप्त कर उज्जवला का गैस कनेक्शन देने के संबंध में प्राप्त शिकायत की जांच कराई गई एवं जांच प्रतिवेदन अनुसार पाई गई अनियमितताओं के संबंध में इण्डेन गैस एजेंसी रामपुरकलां के संचालक के विरूद्ध एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई। उक्त प्रकरण में मान. न्यायालय कलेक्टर जिला मुरैना के प्र.क्र. 83 / ब-121/2020-21 में पारित आदेश दिनांक 18.03.2021 द्वारा रूपये 10000/- अर्थदण्ड कर जमा करने हेतु आदेश पारित किया गया है। उपरोक्त आदेश के विरूद्ध गैस एजेंसी संचालक द्वारा मा. न्यायालय सत्र न्यायाधीश, सत्र खण्ड मुरैना के आपराधिक अपील क्र. 51/2021 में पारित आदेश दिनांक 10 जून 2022 द्वारा अपील स्वीकार करते हुए आलोच्य आदेश को अपास्त किया गया है। उक्त एजेंसी के विरूद्ध प्राप्त शिकायती आवेदन एवं उक्त गैस एजेंसी के विरूद्ध की गई कार्यवाही का विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-"ब" अनुसार है। वृक्षारोपण की जांच व स्थानांतरित रेन्जरों को कार्यमुक्त करना 16. ( क्र. 191 ) श्री पुरुषोत्तम लाल तंतुवाय : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला दमोह की हटा वीट अंतर्गत वर्ष 2019-20, 2020-21 व वर्ष 2021-22 में किस-किस प्रजाति के कितने वृक्ष एवं पौधे कहां-कहां रोपे गये एवं वृक्षारोपण में सरकार का कितना व्यय हुआ ? वृक्षारोपण में स्थलवार जीवित पौधों की संख्या बतायी जावे व प्राक्कलन सहित गड्ढों की खुदाई व रोपण पर व संरक्षण पर व्यय की जानकारी दी जावे । वृक्षारोपण की शिकायतें लगातार प्राप्त होती रहती है तो क्या एक प्रदेश स्तरीय जांच समिति बनाकर हटा बीट अंतर्गत हुये वृक्षारोपण की जांच कराकर कार्यवाही की जावेगी? (ख) साथ ही बताया जावे कि वन विभाग में शासन द्वारा कुछ रेंजरों की परिवीक्षा अवधि के पूर्ण हो जाने उपरांत नवीन पदस्थापना की गई थी लेकिन आज दिनांक तक नवीन पदस्थापना स्थल पर कितने रेंजरों ने कार्य भार लिया? हटा के रेंजर द्वारा नवीन पदस्थापना स्थल पर कार्यभार क्यों ग्रहण नहीं किया ? वन मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) जिला दमोह में आने वाले वन मण्डल दमोह एवं नौरादेही (वन्यप्राणी) वन मण्डल के अंतर्गत बीट हटा नहीं है, शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) परिवीक्षा अवधि पूर्ण हो जाने के उपरांत नवीन पदस्थापना पर 54 वन क्षेत्रपालों ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है। परिक्षेत्र हटा में किसी अन्य वनक्षेत्रपाल की पदस्थिति न होने से तथा तत्पश्चात कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी दमोह के आदेश क्रमांक - 185, दिनांक 31.05.2022 एवं आदेश क्रमांक-718, दिनांक 21.06.2022 द्वारा परिक्षेत्र अधिकारी हटा को त्रि-स्तरीय पंचायत आम निर्वाचन 2022 में सेक्टर अधिकारी नियुक्त किया गया है, जिस कारण नवीन पदस्थापना में कार्यभार ग्रहण करने हेतु भारमुक्त नहीं किया जा सका। कोरोना मृतकों के परिजनों को अनुग्रह राशि का प्रदाय [राजस्व] 17. (क्र. 204 ) श्री तरूण भनोत : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या कोरोना से होने वाली मृत्यु पर मृतक के परिजन को 50 लाख अथवा अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने का प्रावधान है अथवा नहीं? (ख) यदि वर्णित (क) हाँ तो जबलपुर जिले में कितने कोरोना से मृतकों के परिजनों को 50 लाख अथवा अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की गई है, जानकारी उनके नामवार एवं पतावार दी जावे। (ग) क्या उक्त योजना एस. टी. / एस. सी. कर्मचारियों के लिये भी है? यदि हाँ, तो जबलपुर स्थित शासकीय सेठ गोविन्ददास चिकित्सालय अंतर्गत कार्यरत कोरोना से मृतक एस.डी. प्रधान के परिजनों को कब अनुकंपा नियुक्ति अथवा 50 हजार की राशि प्राप्त होगी? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) जी हाँ । (ख) जबलपुर जिले में डॉ. क्षीतिज भटनागर की पत्नी डॉ. शिखा भटनागर को 50 लाख की राशि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज योजना में प्रदान की गई। इसी प्रकार श्री अब्दुल मुबीन लैब टैक्नीशियन की पत्नी श्रीमति आरजू बानो को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज योजना के अंतर्गत 50 लाख की राशि एवं अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की गई। श्री एस. डी. प्रधान कंपाउंडर की पत्नी को 50 लाख की राशि एवं उनके पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति का प्रकरण संचालनालय, स्वास्थ्य सेवायें में प्रक्रियाधीन है। (ग) जी हाँ । शासकीय सेठ गोविन्ददास चिकित्सालय जबलपुर के श्री एस. डी. प्रधान कंपाउंडर की पत्नी को 50 लाख की राशि का भुगतान बीमा कंपनी में प्रक्रियाधीन है एवं उनके पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति का प्रकरण संचालनालय, स्वास्थ्य सेवायें में प्रक्रियाधीन है। नर्मदा तट पर अवैध मुरूम उत्खन्न [खनिज साधन] 18. ( क्र. 210 ) श्री तरूण भनोत : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या भेड़ाघाट नर्मदा तट स्थित सरस्वती घाट और भीटा गांव में बेजा तरीके से अवैध मुरूम उत्खनन की घटनाओं की शिकायतें मिली हैं? (ख) यदि हाँ, तो इन शिकायतों पर शासन द्वारा क्या कार्यवाही की गई है? (ग) क्या अवैध मुरूम उत्खनन के कारण मिट्टी के ढेरों में टिटहरी पक्षी के अंडे नष्ट हो रहे है और अवैध उत्खनन से पर्यावरण को होने वाले संभावित नुकसान के साथ ही पशुपक्षियों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिये क्या कदम उठाये जा रहे है ? (घ) क्या सरकार अवैध उत्खनन को रोकने और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये किसी ठोस नीतिगत फैसले पर विचार करेगी ? खनिज साधन मंत्री ( श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ) : (क) जी नहीं। (ख) प्रश्नांश (क) के उत्तर के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता है । (ग) एवं (घ) प्रश्नांश (क) के उत्तर के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता है । निराकृत प्रकरणों की जानकारी [राजस्व] 19. ( क्र. 239 ) श्री राजेश कुमार प्रजापति : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) छतरपुर जिले की महाराजपुर तहसील में पदस्थ वर्तमान तहसीलदार द्वारा भूमि संबंधी वसीयत सीमांकन, नामांतरण, बंटवारा आदि के प्रकरण निराकृत किये गये है ? (ख) प्रश्नांश (क) यदि हाँ, तो वर्तमान पदस्थ तहसीलदार के पदांकन दिनांक से प्रश्न दिनांक तक निराकृत प्रकरणों की प्रति उपलब्ध करायें। (ग) प्रश्नांश (क) के अनुसार वसीयत प्रकरणों में आपत्तियां लगी है? यदि हाँ, तो किन-किन प्रकरणों में ? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) जी हाँ । (ख) उपरोक्त वसीयत, सीमांकन, नामांतरण, बंटवारा आदि के प्रकरणों का निराकरण म.प्र. भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 109,110 के तहत नामांतरण/वसीयत नामांतरण धारा 129 के तहत सीमांकन, धारा 178, 178 (क) के तहत बंटवारा के प्रकरणों में विधि संगत न्यायालयीन प्रक्रिया के तहत प्रकरणों का निराकरण किया गया। प्रकरणों में निराकृत आदेश की नियमानुसार प्रतियां आर. सी. एम. एस. पोर्टल पर डिजिटल साईन से अपलोड की गई है। (ग) जी हाँ। कुल 03 वसीयत नामांतरण पर आपत्तियाँ प्राप्त हुई है। आपत्तियों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार । ग्रेनाइट पत्थर उत्खनन की स्वीकृति 20. ( क्र. 240 ) श्री राजेश कुमार प्रजापति : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या डी.जी. मिनरल्स कम्पनी लवकुश नगर को ग्रेनाइट पत्थर उत्खनन की स्वीकृत शासन के नियम व निर्देशों के तहत की गयी थी? यदि हाँ, तो नियम व निर्देशों की प्रति तथा स्वीकृत दिनांक की जानकारी उपलब्ध करायें। (ख) क्या उक्त कम्पनी संचालक द्वारा नियम व निर्देशों का पालन किया जा रहा है? यदि हाँ, तो क्या कम्पनी नगर की बीच बस्ती में संचालित है तथा स्वीकृत क्षेत्र के बाहर पत्थर खोदा जा रहा है ? (ग) प्रश्नांश (ख) यदि हाँ, तो जिला खनिज अधिकारी द्वारा कार्यवाही की गयी है? यदि हाँ, तो कार्यवाही की प्रति उपलब्ध करायें। यदि नहीं, तो क्यों कारण बतायें। (घ) विगत दिनों कम्पनी की दीवाल गिरने से आर. के. महाविद्यालय के दो विद्यार्थियों की मृत्यु तथा कुछ विद्यार्थी घायल हुये थे तथा इसके पूर्व भी जन हानि की सूचनाएं प्राप्त हुई है? यदि हाँ, तो शासन कम्पनी संचालक व निरीक्षणकर्ता अधिकारियों के विरूद्ध कार्यवाही की गयी है? यदि हाँ, तो कार्यवाही की प्रति उपलब्ध करायें। यदि नहीं, तो कारण बतायें । खनिज साधन मंत्री ( श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ) : (क) जी हाँ । मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 अधिसूचित है। डी.जी. मिनरल्स कंपनी को शासन के आदेश दिनांक 21/04/2022 से स्वीकृत किया गया है। (ख) जी हाँ। जी नहीं। कंपनी द्वारा नगर के बीच बस्ती में खदान संचालित नहीं है, बल्कि नगर के बाहर एक छोर में बस्ती से निर्धारित दूरी छोड़कर खदान संचालित की जा रही है। खदान में पत्थर उत्खनन स्वीकृत क्षेत्र के अंदर किया जा रहा है। (ग) कंपनी संचालक द्वारा नियम व निर्देशों का पालन किये जाने एवं स्वीकृत क्षेत्रान्तर्गत खनन कार्य संपादित करने से कंपनी पर कार्यवाही का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (घ) जी हाँ। दिनांक 28/03/2022 की घटना को संज्ञान में लेते हुए थाना लवकुश नगर में अपराध क्रमांक 123/2022 धारा 304 ए ता. हि. का प्रकरण दर्ज किया गया है। विवेचना में दीवार निर्माण करने वाले ठेकेदार इकबाल मोहम्मद निवासी लवकुश नगर, आर. के. कॉलेज प्रबंधन समिति के प्रमुख श्री योगेन्द्र खरे व श्री रजनीश सोनी एवं डी.जी. मिनरल्स प्रायवेट लिमिटेड के प्रमुख श्री मुकेश मीना को जिम्मेदार मानते हुए अपराध में नामजद किया गया है। मामले में विवेचना जारी है। चालानी कार्यवाही होना शेष है। इस घटना के अतिरिक्त ग्रेनाईट खदान में उत्खनन के दौरान पूर्व में अन्य कोई भी जन हानि या किसी के घायल होने की सूचना थाना ईकाई में पंजीकृत नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। कोरोना काल में अनियमितता 21. ( क्र. 246 ) श्री यशपाल सिंह सिसौदिया : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) उज्जैन में वैश्विक महामारी कोरोना में कितने पीड़ितों ने इलाज या मृत्यु होने पर राहत राशि मुआवजे के लिए आवेदन प्रस्तुत किये, कितने पीड़ितों को इलाज के लिए किस-किस मद में राशि दी गयी ? (ख) प्रश्नांश (क) संदर्भित कितने पीडितों को किस कारण से मुवावजा राशि नहीं दी गयी ? (ग) कोरोना पीड़ित की मृत्यु होने पर राहत राशि मुआवजा राशि प्राप्त करने के क्या नियम प्रावधान थे, रतलाम मंदसौर जिले में ऐसे कितने आवेदन लंबित है जिनमें समस्त शासन द्वारा चाही गयी जानकारी होने के बावजूद भी पीड़ित परिवारों को मुवावजा नहीं दिया गया ? (घ) उज्जैन संभाग में कोरोना अवधि (1 जनवरी 2020 से प्रश्न दिनांक तक) में खरीदी आदि अनियमितता करने के मामले में जिला कलेक्टरों द्वारा क्या-क्या सम्बन्धित के खिलाफ कार्यवाही की गयी नाम सहित जांच प्रतिवेदन की प्रति उपलब्ध कराये? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) उज्जैन जिले अन्तर्गत कुल 1599 मृतकों के वैध वारिसानों द्वारा अनुग्रह राशि हेतु आवेदन प्रस्तुत किये। कोविड- 19 संक्रमण से मृत्यु होने पर विभाग द्वारा अनुग्रह राशि प्रदाय किये जाने के निर्देश है, ईलाज के लिये राशि प्रदाय किये जाने का प्रावधान नहीं है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-"अ" अनुसार है। (ग) कोरोना पीड़ित की मृत्यु होने पर मुआवजा राशि प्राप्त करने के दिशा-निर्देशों की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-"ब" अनुसार है। रतलाम एवं जिला मंदसौर में अनुग्रह राशि हेतु पात्र पीड़ित परिवारों के आवेदन लंबित नहीं है। (घ) उज्जैन संभाग में कोरोना अवधि (1 जनवरी 2020 से प्रश्न दिनांक तक) में खरीदी आदि अनियमितता के संबंध में कोई मामला नहीं है। अतः शेष प्रश्न उद्भूत नहीं होता है। अवैध उत्खनन की जानकारी 22. ( क्र. 248 ) श्री यशपाल सिंह सिसौदिया : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) उज्जैन संभाग में 1 जनवरी 2018 के पश्चात अवैध उत्खनन के कितने माम कहाँकहाँ, दर्ज किये गये ? इसमें कौन-कौन सा खनिज कितनी - कितनी मात्रा में जप्त किया गया तथा किस कारण से कितना वापस छोड़ा गया, कितना खनन माफिया जबरन छुड़ा ले गये ? समस्त जानकारी देवें। (ख) वर्तमान में उक्त संभाग में किस-किस सामग्री के कितने-कितने ठेके किस-किस कम्पनी/व्यक्ति के नाम से हैं जिनकी कितनी - कितनी मात्रा में खनन की स्वीकृति है? विभाग इसकी निगरानी किस तरह करता है? समस्त जानकारी देवें । (ग) प्रश्नांश (क) एवं ( ख ) संदर्भित खदानों की निगरानी विभाग किस तरह करता है? ठेकेदारों द्वारा स्वीकृत खनन से अधिक खनन के कितने मामले उक्त संभागों में, उक्त अवधि में, कहाँ-कहाँ सामने आये? उनके विरुद्ध क्या-क्या कार्यवाही विभाग द्वारा की गयी? कितनी कार्यवाही अभी भी प्रचलन में है? समस्त जानकारी देवें । (घ) खनिज विभाग के अधिकारी कर्मचारियों के विरुद्ध उक्त अवधि में, उक्त संभागों में, जांच एजेंसियों/विभाग द्वारा की गयी कार्यवाही का विवरण देवें तथा प्रतिवेदन की प्रतिलिपि देते हुए प्रकरण की वर्तमान स्थिति से अवगत करायें। खनिज साधन मंत्री ( श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ) : (क) प्रश्नांश में उल्लेखित संभाग के जिलों में प्रश्नाधीन अवधि में दर्ज अवैध उत्खनन के प्रकरणों तथा उनमें जप्त की गई खनिज की मात्रा का विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - अ में दर्शित है। जप्तशुदा खनिज अर्थदण्ड राशि जमा होने पर छोड़ा गया परंतु खनिज माफिया द्वारा जबरन छुड़ा कर खनिज ले जाने संबंधी कोई स्थिति प्रकाश में नहीं आयी है । (ख) प्रश्नांश में उल्लेखित संभाग के जिलो उज्जैन, रतलाम, आगर-मालवा, शाजापुर, मंदसौर तथा नीमच में कोई भी खनिज ठेके पर स्वीकृत नहीं किया गया है। देवास जिले में रेत खनिज का ठेका मेसर्स परम एजेन्सीस भोपाल के पक्ष में स्वीकृत किया गया है, उक्त ठेके में खनन हेतु स्वीकृत खनिज मात्रा का विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - ब अनुसार है। विभागीय अधिकारियों के साथ ही राजस्व एवं पुलिस विभाग द्वारा इसकी निगरानी नियमित निरीक्षण तथा औचक निरीक्षण कर की जा रही है । (ग) प्रश्नांश अनुसार विभाग द्वारा विभागीय अमले से खदानों का सामयिक निरीक्षण कराता है तथा औचक निरीक्षण हेतु दल गठित कर कार्यवाही कराया जाता है। संभाग के किसी भी जिले में ठेकेदारों द्वारा खनिज खनन हेतु स्वीकृत मात्रा से अधिक मात्रा में खनन किये जाने का कोई प्रकरण प्रश्नाधीन अवधि में नहीं पाया गया, अतः प्रश्नांश के शेष भाग का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) संभाग में प्रश्नाधीन अवधि में विभाग के किसी भी अधिकारी, कर्मचारी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई। प्रश्नांश के शेष भाग का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। राजस्व अधिकारी/कर्मचारियों के विरुद्ध जांच 23. ( क्र. 249 ) श्री यशपाल सिंह सिसौदिया : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) 1 जनवरी 2018 के पश्चात राजस्व विभाग में पदस्थ राजस्व अधिकारी, संयुक्त कलेक्टर, ADM, SDM / SDO, अनुविभागीय अधिकारी, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक, पटवारी सहित अन्य अधिकारी कर्मचारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार, ट्रेप अपराधिक प्रकरणों के अपराध क्रमांक, दिनांक, धारा सहित अपराध का विवरण देते हुए समस्त जानकारी देवें। (ख) प्रश्नांश "क" संदर्भित उक्त सभी अधिकारी कर्मचारी के विरुद्ध प्रचलित विभागीय कार्यवाही का विवरण प्राप्त प्रतिवेदन का विवरण देवें। (ग) प्रश्नांश "क", "ख" संदर्भित उक्त अवधि में किस-किस अधिकारी कर्मचारी के विरुद्ध विभागीय जाँच नस्तीबद्ध / समाप्त की गयी है? आदेश की प्रतिलिपि देवें । राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) एवं (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। अधिकारियों/कर्मचारियों के विरूद्ध आपराधिक प्रकरणों में संबंधित न्यायालयों में विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त / जांच एजेंसी द्वारा कार्यवाही की जाती है। पृथक अनुविभागीय अधिकारी राजस्व न्यायालय की स्थापना 24. ( क्र. 256 ) श्री दिव्यराज सिंह : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या विगत तीन माह पूर्व विकासखण्ड सिरमौर में आयोजित कार्यक्रम में माननीय मुख्यमंत्री महोदय के द्वारा तहसील जवा में पृथक अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय (एस. डी. एम. कोर्ट) को स्थापित कर डभौरा एवं अतरैला में उप तहसील कार्यालय संचालित कराने संबंधी घोषणा की गई थी? यदि हाँ, तो उक्त घोषणा के अनुक्रम में क्या कार्यवाही की गई है ? (ख) प्रश्नांश (क) के अनुक्रम में उक्त घोषित पृथक अनुविभागीय राजस्व न्यायालय ( एस. डी. एम. कोर्ट) के संचालन एवं डभौरा तथा अतरैला में नियमित रूप से उप तहसील कार्यालय संचालित करने के संबंध में क्या कार्यवाही प्रस्तावित की गई है? विभाग के द्वारा जवा में पृथक अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय ( एस. डी. एम. कोर्ट) कब से प्रारंभ किया जा सकेगा? क्या उप तहसील कार्यालय डभौरा एवं अतरैला में नियमित स्टाफ की पदस्थापना एवं नियमित कार्यालय संचालन की व्यवस्था की जावेगी? यदि हाँ, तो कब तक? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) माननीय मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा दिनांक 30 मई 2022 को प्रेषित नोटशीट के माध्यम से सिरमौर में आयोजित कार्यक्रम में तहसील जवा में अनुविभाग कार्यालय स्थापित किए जाने की घोषणा की जाने की आधिकारिक सूचना प्राप्त हुई। जिसके क्रम में जवा में पृथक अनुविभाग बनाए जाने के संबंध में कलेक्टर रीवा से प्रस्ताव प्राप्त करने की कार्रवाई प्रचलित है। (ख) जवा में अनुविभाग कार्यालय गठन संबंधी घोषणा के क्रम में कलेक्टर रीवा से विधिवत प्रस्ताव प्राप्त करने की कार्रवाई प्रचलित है। कलेक्टर रीवा से प्रस्ताव प्राप्त होने पर, घोषणा के अनुरूप नियमनुसार कार्रवाई की जाना प्रस्तावित हैं। योजना का लाभ दिया जाना 25. ( क्र. 266 ) श्री अजय कुमार टंडन : क्या खाद्य मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) दमोह जिले की विधानसभा क्षेत्र दमोह अंतर्गत कितने बुजुर्ग राशनकार्ड धारक हैं जिनके अंगूठे के निशान के बॉयोमेट्रिक मशीन से मैच न होने के कारण राशन नहीं मिल रहा है ? (ख) क्या ऐसे मामलों में परिवार से बाहर के व्यक्ति को नामांकित करने का नियम है? (ग) यदि हाँ, तो क्या सरकार बुजुर्ग राशनकार्ड धारकों की परेशानी को ध्यान में रखते हुए अंगूठे के निशान के बॉयोमेट्रिक मशीन से मैच न होने की स्थिति में ओ.टी.पी., आई स्केनर या आधार कार्ड की कापी से राशन देने का प्रावधान करेगी? खाद्य मंत्री ( श्री बिसाहूलाल सिंह ) : (क) दमोह जिले में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अंतर्गत सम्मिलित पात्र हितग्राहियों में से बुजुर्ग हितग्राहियों के अंगूठे की रेखाएं घिसने सिकुड़ने से पी.ओ.एस. मशीन पर बॉयोमेट्रिक सत्यापन विफल होने के कारण राशन प्राप्त करने से कोई हितग्राही वंचित नहीं है । (ख) जी हाँ। बॉयोमेट्रिक सत्यापन सफल न होने वाले हितग्राहियों को नॉमिनी के माध्यम से राशन वितरण का प्रावधान है। (ग) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अंतर्गत सम्मिलित पात्र परिवारों में से परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा पी. ओ. एस. मशीन पर बॉयोमेट्रिक सत्यापन के आधार पर राशन प्राप्त किया जा सकता है। हितग्राही की एक अंगुली/ अंगूठा की रेखाओं से बॉयोमेट्रिक सत्यापन सफल न होने पर एक से अधिक अंगुलियों (फ्यूजन फिंगर) के बॉयोमेट्रिक सत्यापन किया जाता है। साथ ही, बॉयोमेट्रिक सत्यापन न होने पर आधार नंबर से लिंक मोबाइल नंबर पर ओ.टी.पी. अथवा नॉमिनी के माध्यम से राशन सामग्री के वितरण की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। हितग्राही द्वारा आधार पंजीयन केन्द्र पर अपने आधार नंबर को अपडेट कराने तथा मोबाइल नंबर लिंक कराने की सुविधा उपलब्ध है। किसी भी पात्र हितग्राही को बॉयोमेट्रिक सत्यापन सफल न होने के आधार पर राशन से वंचित नहीं किया जा रहा है। कोटवारों का नियमितीकरण 26. ( क्र. 268 ) श्री अजय कुमार टंडन : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रदेश के कोटवारों को प्रति माह कितना वेतन तथा कौन-कौन सी अन्य सुविधाएं दी जाती हैं? (ख) क्या वर्तमान में प्रदेश के कोटवारों को दिया जाने वाला वेतन उनके परिवार के भरण पोषण के लिए पर्याप्त है? (ग) क्या प्रदेश के कोटवारों को नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी घोषित करने और उन्हें कलेक्टर रेट पर वेतन दिए जाने के लिए कार्यवाही करेगी? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) ग्राम कोटवार को मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता1959 की धारा-231 अनुसार सेवा भूमि या पारिश्रमिक या दोनों का प्रावधान किया गया है। जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। इसके अतिरिक्त कोटवारों को प्रतिवर्ष वर्दी, जूते, टार्च, बेल्ट एवं गरम कोट प्रदाय किये जाते हैं। (ख) कोटवारों को उनकी सेवाओं के लिए सेवाभूमि या पारिश्रमिक या दोनों मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता- 1959 के प्रावधानों अनुसार प्रदाय किए जाते हैं। (ग) ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है । परिशिष्ट- "अडतीस " गहरी खदानों के अपशिष्ट से फसलें एवं जमीनें खराब होना 27. ( क्र. 295 ) श्री सुशील कुमार तिवारी : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) खनिज संपदा निकालने हेतु कितने फिट गहराई तक खुदाई का प्रावधान है? ( ख ) जबलपुर जिले के अंतर्गत गांधी ग्राम से लगे बडखेरा रोड पर आयरन ओर की खदान 300 फीट तक खोदी गई, क्या यह सही है या नहीं? (ग) क्या खदान से निकल रहा पानी एवं अपशिष्ट नाली, नहरों एवं खेतों में बहाया जा रहा है? (घ) क्या व्यक्तिगत लाभ के लिए फसल, जमीन की उर्वरा शक्ति एवं पर्यावरण को क्षति नहीं हो रही है? यदि हाँ, तो क्या शासन कार्यवाही करेगा? खनिज साधन मंत्री ( श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ) : (क) रेत खनन को छोड़कर शेष खनिज के खनन कार्य हेतु गहराई की कोई सीमा नहीं है । (ख) से (घ) जी नहीं। ग्रामसभा एवं ग्राम पंचायतों को अधिकार 28. ( क्र. 470 ) डॉ. अशोक मर्सकोले : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) ग्रामसभा और ग्राम पंचायत को पटवारी मानचित्र में दर्ज सामुदायिक भूमियों, किस-किस लघु वनोपज पर क्या-क्या अधिकार संविधान की 11वीं अनुसूची, पेसा कानून 1996, वन अधिकार कानून 2006, भू-राजस्व संहिता 1959 की किस-किस धारा में दिया गया है, इनमें से किस-किस धारा में वन विभाग को क्या-क्या अधिकार दिए गए है? पृथक-पृथक बतावें। (ख) राज्य शासन ने पटवारी मानिचत्र, निस्तार पत्रक, अधिकार अभिलेख में सार्वजनिक एवं निस्तारी प्रयोजनों के लिए दर्ज सामुदायिक भूमियों एवं किस-किस लघु वनोपज के अधिकार, नियंत्रण एवं प्रबंधन ग्रामसभा एवं ग्राम पंचायत को सौंपे जाने का किस-किस दिनांक को आदेश या अधिसूचना जारी की है? प्रति सहित बतावें। (ग) पटवारी मानिचत्र एवं निस्तार पत्रक में दर्ज सामुदायिक भूमियों को वन विभाग द्वारा वर्किंग प्लान में शामिल कर कब्जा किए जाने, लघु वनोपज पर प्रतिबंध लगाकर लघु वनोपज के वन अपराध पंजीबद्ध किए जाने पर संबंधित वन अधिकारियों के विरूद्ध किस-किस कानून की किस-किस धारा के अनुसार कौन-कौन सी कार्यवाही के क्या-क्या अधिकार वर्तमान में किसे दिए गए है? वन मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। लघु वनोपजों में तेन्दूपत्ता विनिर्दिष्ट वनोपज घोषित होने से इसके विपणन की कार्यवाही म.प्र. राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा की जाती है । (ख) प्रश्नांश से संबंधित राज्य शासन द्वारा कोई विशिष्ट आदेश जारी नहीं किये गये है। (ग) वन विभाग द्वारा वर्किंग प्लान में अधिसूचित वन भूमियों को शामिल किया जाता है, जिसके प्रबंधन एवं नियंत्रण का अधिकार वन अधिकारियों को प्राप्त है, अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। परिशिष्ट - "उनतालीस" गौण खनिज पर ग्राम पंचायतों को छूट [ खनिज साधन] 29. (क्र. 471 ) डॉ. अशोक मर्सकोले : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) ग्राम पंचायतों द्वारा किए जाने वाले निर्माण कार्यों और ग्रामीण विकास से संबंधित जिला पंचायत द्वारा नियंत्रित मदों से स्वीकृत किए गए कार्यों में लगने वाले गौण खनिज से संबंधित क्या-क्या छूट म.प्र. गौण खनिज नियम 1996 एवं म.प्र. रेत नियम 2019 में दी गई है, इस छूट में ग्राम पंचायतों और जनपद पंचायतों को क्या-क्या अधिकार दिए गए है? (ख) गत दो वर्षों में मण्डला, डिण्डोरी एवं बैतूल जिले में किस-किस ग्राम पंचायत एवं किस-किस एजेन्सी ने ग्रामीण विकास के कितने कार्यों में कितना गौण खनिज किस दर पर क्रय किया? कितने गौण खनिज के परिवहन पर कितनी राशि खर्च की? कितने गौण खनिज की कितनी रॉयल्टी का सप्लायर को या खनिज विभाग को भुगतान किया गया ? (ग) राजपत्र में अधिसूचित छूट से संबंधित नियमों का पालन नहीं किए जाने का क्या-क्या कारण रहा है? राज्य शासन ने नियमों में दी गई छूट का लाभ सुनिश्चित किए जाने के संबंध में किस-किस दिनांक को पत्र परिपत्र, आदेश, निर्देश जारी किए? प्रति सहित बतावें। खनिज साधन मंत्री ( श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ) : (क) मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 के नियम 3 में ग्राम पंचायतों, जनपद पंचायतों, जिला पंचायतों द्वारा किये जाने वाले निर्माण कार्यों के संबंध में छूट से संबंधित निम्नानुसार प्रावधान हैंः- "नियम - 3 ( छूट) ग्राम पंचायतों, जनपद पंचायतों, जिला पंचायतों तथा उपभोक्ता संस्थाओं द्वारा सार्वजनिक कार्यों के लिये संबंधित पंचायतों तथा जल उपभोक्ता संस्थाओं द्वारा हाथ में लिये गये कार्यों के लिए शासकीय भूमि से निकाले गये गौण खनिज के लिए लागू नहीं होगी। (तथापि शासकीय विभागों को नियम 10 के उप-नियम ( 3 ) में निहित राजस्व प्राप्ति शीर्ष के अधीन रॉयल्टी जमा करना होगी)"। मध्यप्रदेश रेत (खनन, परिवहन, भंडारण तथा व्यापार) नियम, 2019 के नियम 4 (1) में पंचायतों के संबंध में छूट से संबंधित निम्नानुसार प्रावधान हैंः- "नियम 4 (1) (छूट) - पंचायत / नगरीय निकाय द्वारा शुरू की गई शासकीय योजना या अन्य लाभप्रद कार्यों (स्वच्छ भारत अधियान, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि) के लिए निकटतम स्वीकृत रेत खदान से रॉयल्टी का भुगतान करने के उपरांत ही रेत प्राप्त की जा सकेगी। पंचायत/नगरीय निकाय द्वारा जमा की गई रॉयल्टी की संपूर्ण रकम, लदान (लोडिंग) एवं परिवहन छोड़कर, की वापसी आवश्यक जांच एवं प्रमाणीकरण के आधार पर की जाएगी परंतु पंचायत/नगरीय निकाय के लिए कार्य ठेकेदार द्वारा किए जाते हैं, तो उपरोक्त जमा रॉयल्टी वापस नहीं की जाएगी।" (ख) ग्राम पंचायत द्वारा खनिजों का क्रय तथा परिवहन व्यय की जानकारी का संधारण किया जाना मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 में प्रावधानित नहीं है। ग्राम पंचायतों द्वारा रॉयल्टी का भुगतान किये जाने का प्रावधान नहीं है। अतः प्रश्नांश की जानकारी का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 के नियम 3 में प्रावधानित छूट अधिसूचित है। अधिसूचित नियमों के संबंध में पृथक से निर्देश जारी किया जाना आवश्यक नहीं है, अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। वन ग्रामों की जानकारी [वन] 30. ( क्र. 472 ) डॉ. अशोक मर्सकोले : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या राज्य के 925 वनग्रामों के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रश्न क्रमांक 2175 दिनांक 7.3.2017 एवं प्रश्न क्रमांक 3248 दिनांक 8.3.2017 में पटल पर प्रस्तुत करने के बाद भी ग्रामों के पटवारी मानचित्र एवं खसरा पंजी आदि बनाने के लिए पटवारियों की पदस्थापना बाबत् वन विभाग ने राज्य शासन को पत्र लिखा है? (ख) 925 वनग्रामों में किस ग्राम का पटवारी मानचित्र खसरा पंजी राज्य शासन के आदेश दिनांक 28.02.1980 के तहत बनाए गए ? (ग) किस ग्राम को किस अधिसूचना क्रमांक दिनांक से किस कानून की किस धारा के तहत अधिसूचित आरक्षित वन / संरक्षित वन कक्ष में कब बसाया गया, उसमें से किस-किस अधिसूचना की प्रति वन विभाग के पास उपलब्ध है? प्रति सहित बतावें । वन मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) जी हाँ । (ख) एवं (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। राजस्व ग्राम को वन ग्राम घोषित करना 31. ( क्र. 473 ) डॉ. अशोक मर्सकोले : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) खंडवा वनवृत्त के किस-किस राजस्व ग्राम को किस अधिसूचना क्रमांक या आदेश दिनांक से वनग्राम घोषित किया? किस वनग्राम को किस अधिसूचना क्रमांक या आदेश दिनांक से वीरान ग्राम घोषित किया? राजस्व ग्राम को वन ग्राम एवं वीरान ग्राम घोषित करने का क्याक्या अधिकार या छूट वन विभाग को किस कानून की किस धारा में दी है? (ख) खंडवा वनवृत्त में प्रतिवेदित किस-किस वनग्राम की भूमि से संबंधित कौन-कौन सी मिसल बंदोबस्त, खसरा पंजी, खतौनी पंजी, पटवारी मानचित्र वनमंडलों में उपलब्ध है? किस ग्राम की किस वर्ष की खसरा पंजी खतौनी पंजी भू-पोर्टल पर उपलब्ध है? इनमें किस ग्राम में कितनी निजी भूमि, कितनी आबादी मद की भूमि कितनी निस्तार मद और जंगल मद की भूमि दर्ज है? (ग) खंडवा वनवृत्त में प्रतिवेदित किस वनग्राम की कितनी निजी भूमि, कितनी आबाद मद की भूमि, कितनी निस्तार मद एवं जंगल मद की भूमि को मध्य भारत वन विधान 1950 की धारा 20 के अनुसार राजपत्र में किस दिनांक को आरक्षित वन अधिसूचित किया ? इन भूमियों से संबंधित धारा 4 की अधिसूचना किस दिनांक को प्रकाशित की गई धारा 5 से 19 तक की जांच किस प्रकरण में कर किस दिनांक को आदेश दिए गए ? धारा 4 की अधिसूचना एवं आदेश की प्रति सहित बतावें । वन मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) वनवृत्त खण्डवा अंतर्गत वनमंडल खण्डवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वाह, बडवानी एवं सेंधवा में किसी भी राजस्व ग्राम को वनग्राम अथवा वीरान घोषित नहीं किया गया है। राजस्व ग्रामों को वनग्राम एवं वीरान ग्राम घोषित करने का वन विभाग के पास कोई अधिकार / कानून नहीं है। (ख) वनवृत्त खण्डवा अंतर्गत वनमंडल खण्डवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वाह, बडवानी एवं सेंधवा के कुल 225 वनग्रामों के खसरा पंजी, मानचित्र, खसरा-खतौनी, अभिलेख, राजस्व अभिलेखागार एवं वनमंडल कार्यालय में उपलब्ध हैं। वनग्रामों में स्थित निजी भूमि, आबादी भूमि, निस्तार मद एवं जंगल मद की वनभूमियों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ग) वन वृत्त खण्डवा के अंतर्गत मध्य भारत विधान 1950 की धारा-20 के अनुसार राजपत्र दिनांक 21.10.1954 में वनमण्डल खरगोन के 58 वनग्राम, बड़वाह के 09, बड़वानी के 45 वनग्राम तथा सेंधवा के 25 वनग्राम इस प्रकार कुल 137 वनग्रामों को पुनः आरक्षित वनभूमि के रूप में अधिसूचित की गई है। खण्डवा वनवृत्त के वनग्राम पूर्व से ही धारा-20 में आरक्षित वन के रूप में घोषित होने से धारा-5 से 19 तक की कार्यवाही का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। जल संसाधन विभाग की स्वीकृत योजनाएं [जल संसाधन] 32. ( क्र. 528 ) श्री उमंग सिंघारः क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या धार जिले की गंधवानी विधानसभा में जल संसाधन विभाग द्वारा निर्माण कार्य स्वीकृत किये गये हैं? यदि हाँ, तो गंधवानी, बाग एवं तिरला विकासखण्ड में कौन-कौन से कार्य कितनीकितनी लागत राशि के कब-कब स्वीकृत किये गये हैं? विकासखण्ड, कार्यवार एवं राशिवार सूची उपलब्ध करावें। (ख) प्रश्नांकित (क) यदि हाँ, तो स्वीकृत कार्यों की प्रश्न दिनांक तक निविदा जारी कर टेण्डर प्रक्रिया क्यों नहीं की गई है? इसका जिम्मेदार कौन है तथा कब तक निविदा जारी कर टेण्डर प्रक्रिया कर दी जायेगी ? यदि नहीं, तो क्यों ? जल संसाधन मंत्री ( श्री तुलसीराम सिलावट ) : (क) एवं (ख) जी हाँ। सूची संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। गंधवानी बाग एवं तिरला विकासखण्ड में स्वीकृत 05 परियोजनाओं में से 02 परियोजनाओं की निविदा स्वीकृत की जा चुकी है। 02 परियोजनाओं की निविदा की कार्यवाही प्रचलन में है। शेष 01 परियोजना से प्रभावित होने वाली वनभूमि व्यपवर्तन की अनुमति के अभाव में निविदा की कार्यवाही नहीं की जा सकी है। अतः किसी अधिकारी के जिम्मेदार होने की स्थिति नहीं है। निविदा जारी कर टेण्डर प्रक्रिया करने की समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है। परिशिष्ट- "चालीस" प्राप्त राशि का उपयोग [वन] 33. ( क्र. 557 ) श्री देवेन्द्र सिंह पटेल : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) वित्तीय वर्ष 2021-22 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में रायसेन जिले में विभाग को किसकिस योजना में कब-कब शासन से कितनी - कितनी राशि प्राप्त हुई ? (ख) उक्त प्राप्त राशि में से क्या-क्या, कितनी-कितनी राशि के किसकी अनुशंसा पर कहाँ-कहाँ कार्य स्वीकृत किये गये? (ग) वित्तीय वर्ष 2020-21 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में माननीय मंत्री जी तथा विभाग के अधिकारियों को रायसेन जिले के किन-किन विधायकों के पत्र कब प्राप्त हुए तथा उन पर क्या-क्या कार्यवाही की गई ? (घ) प्रश्नांश (ग) में प्राप्त पत्रों में उल्लेखित किन-किन समस्याओं का निराकरण नहीं हुआ तथा क्यों? इसके लिए कौन-कौन दोषी है तथा उल्लेखित समस्याओं का निराकरण कब तक होगा? वन मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-1 अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-2 अनुसार है। (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट3 अनुसार है। (घ) वित्तीय वर्ष 2020-21 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में माननीय वन मंत्री जी एवं विधायकों के 44 पत्र प्राप्त हुये, जिसमें से 34 पत्रों का निराकरण किया गया है तथा उत्तरांश "ग" के परिशिष्ट में लिखे कारणों से 10 पत्रों के निराकरण की कार्यवाही जारी है, जिनका निराकरण शीघ्र किया जावेगा। इसके लिये कोई दोषी नहीं है। किसान सम्मान निधि 34. ( क्र. 558 ) श्री देवेन्द्र सिंह पटेल : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) 25 जून, 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में कितने किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की राशि मिल रही है? तहसीलवार संख्या बतायें । ( ख ) 25 जून, 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में कितने किसानों को मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना की राशि मिल रही है? तहसीलवार संख्या बतायें। (ग) रायेसन जिले में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि प्राप्त करने वाले कितने किसानों को मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना की राशि नहीं मिल रही है तथा इस हेतु विभाग के अधिकारियों ने क्या-क्या कार्यवाही की ? (घ) प्रश्नांश (क) एवं ( ख ) के संबंध में जिला कार्यालय रायसेन को 1 जनवरी, 2021 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में रायसेन जिले के किन-किन सांसद तथा विधायकों के पत्र प्राप्त हुए तथा उन पर क्या कार्यवाही की गई? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) 25 जून, 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में 161065 किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की राशि मिल रही है। जानकारी संलग्न परिशिष्ट - 1 अनुसार है । (ख) 25 जून 2022 की स्थिति में रायसेन जिले में 159225 किसानों को मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना की राशि मिल रही है। जानकारी संलग्न परिशिष्ट-2 अनुसार है। (ग) प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की राशि प्राप्त करने वाला प्रत्येक हितग्राही मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना की राशि प्राप्त करने हेतु पात्र होता है। सत्यापन की प्रक्रिया पूर्ण होते ही राशि हितग्राही के खाते में अंतरित कर दी जाती है। (घ) प्रश्नांश (क) एवं ( ख ) के संबंध में जिला कार्यालय रायसेन को 01 जनवरी, 2021 से प्रश्न दिनांक तक की अवधि में माननीय प्रभारी मंत्री जिला रायसेन, माननीय मंत्री लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मध्यप्रदेश शासन एवं माननीय विधायक विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 143 सिलवानी के पत्र प्राप्त हुए है। प्राप्त पत्रों पर नियमानुसार कार्यवाही हेतु संबंधित अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) एवं तहसीलदारों को निर्देशित किया गया है। परिशिष्ट - "इकतालीस" दोषियों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही 35. ( क्र. 571 ) श्री योगेन्द्र सिंह (बाबा) : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) शासकीय कर्म. गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित, तलैनी, सारंगपुर राजगढ़ के सम्बंध में प्रमुख सचिव राजस्व को प्रदान किये गये पत्र क्रमांक-561, दिनांक 30.05.2022 तथा समिति के सदस्यों के अभ्यावेदन के बिन्दु क्रमांक-1 से 5 तक बिन्दुवार जांच करवाते हुए स्वीकृत नक्शे के अनुसार सीमांकन नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी तथा तत्कालीन सरपंच द्वारा अपने नाबालिक पुत्रों को आवासीय पट्टे प्रदान करने तथा पट्टों पर क्षेत्रफल, चतुःसीमा, क्र., दिनांक का उल्लेख नहीं होने पर क्या पट्टे निरस्त किये गये हैं? (ख) प्रश्न क्रमांक - 470 दिनांक 10.03.2022 को एवं मुख्यमंत्री मेनिट के अभ्यावेदन के बिन्दुवार जांच कब करवाई गई तथा जांच प्रतिवेदन से अवगत कराया जाएगा ? स्वीकृत नक्शे के अनुसार जांच करने पर पाये गये आवास अतिक्रमण क्यों नहीं हटाया गया तथा पुनः दूसरी बार जांच 29.03.2022 को मनमानी करते हुए टी. एण्ड सी. पी. के स्वीकृत नक्शे के अनुसार नहीं करने पर दोषियों को निलंबित किया जायेगा ? (ग) प्रश्नांश (ख) अनुसार राजस्व निरीक्षक द्वारा दोनों बार जांच में बनाये गये पंचनामा तथा जांच रिपोर्ट प्रदान की जाएगी तथा स्वीकृत नक्शे के अनुसार गुमराहपूर्वक जांच रिपोर्ट तैयार करने वाले अधिकारियों को निलम्बित करते हुए, अतिक्रमण हटाया जायेगा तथा निष्पक्ष जांच कराई जायेगी? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) शासकीय कर्म गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित, तलेनी, सारंगपुर जिला राजगढ़ के संबंध में समिति के सदस्यों के अभ्यावेदन के बिंदु क्रमांक (1) से (5) की जांच प्रचलित है। जांच प्रतिवेदन अनुसार कार्यवाही प्रावधानित है। तत्कालीन सरपंच द्वारा अपने नाबालिग पुत्रों को आवासीय पट्टा प्रदान करने के संबंध में न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी सारंगपुर में प्रकरण क्रमांक 41 / बी-121/2022-23 (विविध) दर्ज कर कार्यवाही प्रचलित है। (ख) मुख्यमंत्री कार्यालय भोपाल का पत्र क्रमांक 6090/CMS/PUB/2022 भोपाल, दिनांक 08/04/2022 तहसीलदार सारंगपुर को जांच हेतु प्रेषित किया गया। प्रथम बार राजस्व निरीक्षक व दल द्वारा दिनांक 24/02/2022 को आवेदक की उपस्थिति में मौका जांच की गई जिसके प्रतिवेदन व पंचनामे में अतिक्रमण का उल्लेख नहीं है एवं दिनांक 29/03/2022 को राजस्व निरीक्षक व दल द्वारा आवेदक की उपस्थिति में सीमांकन किया गया जिसमें कोई अतिक्रमण नहीं पाया गया। शेष जानकारी उपरोक्त (क) अनुसार है। (ग) प्रश्नांश "ख" के अनुसार राजस्व निरीक्षक द्वारा दोनों बार जांच में बनाए गए पंचनामा तथा जांच रिपोर्ट की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। शेष जानकारी उपरोक्त (क) अनुसार है । किसान क्रेडिट कार्ड की जानकारी 36. ( क्र. 613 ) श्री कमलेश्वर पटेल : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधानसभा क्षेत्र में सिहावल सहित सीधी एवं सिंगरौली जिले में प्रश्न दिनांक तक कुल कितने कृषि भूमिधारक किसान हैं? (ख) उपरोक्त में से कितने किसानों के पास बैंकों द्वारा जारी किसान क्रेडिट कार्ड हैं तथा कितने किसान फसल बीमा से जुड़े हैं? (ग) क्या सरकार की जानकारी में है कि जिन किसानों के पास बैंकों द्वारा जारी किसान क्रेडिट कार्ड नहीं हैं उन्हें निजी साहूकारों से कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है ? (घ) यदि हाँ, तो क्या सरकार सभी किसानों को समय-सीमा में किसान क्रेडिट कार्ड के दायरे में लाने के लिए अधिकारियों को निर्देशित करेगी? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) सिहावल विधानसभा क्षेत्र सहित सीधी जिले में कुल 166520 एवं सिंगरौली जिले में कुल 269794 कृषि भूमि धारक किसान है । (ख) सीधी जिले में बैंकों द्वारा जारी किये गये किसान क्रेडिट कार्ड की संख्या 29080 एवं सिंगरौली जिले में 59351 है तथा सीधी जिले में खरीफ 2021 में 2525 एवं रबी 2021-22 में 2945 किसान फसल बीमा से जुड़े है एवं सिंगरौली जिले में 4876 किसान बीमा से जुड़े हुये है। (ग) जी नहीं। सीधी एवं सिंगरौली जिले में ऐसा कोई प्रकरण प्रकाश में नहीं है। (घ) उत्तरांश (ग) के प्रकाश में, प्रश्न उपस्थित नहीं होता। विभागीय भूमियों की जानकारी 37. ( क्र. 631 ) डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) रतलाम जिला अंतर्गत किन-किन स्थानों पर कितनी-कितनी शासन / विभाग की वन भूमि स्थित है? क्षेत्रफल सहित बताएं । (ख) साथ ही विकासखंडवार किन-किन स्थानों पर कितनी-कितनी भूमियां हैं ? जानकारी देकर स्पष्ट करें कि उन भूमियों पर किस किस प्रकार के कार्य किए जा रहे हैं? कितने भूमियों का उपयोग होकर कितनी भूमियां रिक्त पड़ी हैं अथवा स्थाई या अस्थाई प्रकार का अतिक्रमण, अवैध कब्जा है? स्पष्ट जानकारी दें? (ग) बताएं कि वर्ष 2018-19 से लेकर प्रश्न दिनांक तक विभाग की भूमियों पर किस-किस प्रकार के कार्य किए जाते रहे हैं? विकासखंडवार, ग्रामवार किए गए कार्यवार स्वीकृत बजट एवं व्यय राशि सहित कार्यों की पूर्णता, अपूर्णता की जानकारी दें। (घ) बताएं कि वर्ष 2018-19 से लेकर प्रश्न दिनांक तक उपरोक्तानुसार उपरोक्त उल्लेखित भूमियों पर किए गए कार्यों के उल्लेखनीय कार्य क्या होकर, उससे क्या लाभ हुआ तथा विगत समय में किसकिस स्थान पर नवीन योजनाएं बनाकर भूमियों का संरक्षण व उपयोग किया जाना सुनिश्चित हुआ? वन मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) भारतीय वन अधिनियम, 1927 में अधिसूचित वन भूमि की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-1 अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-1 अनुसार है। (ग) वन विभाग द्वारा वन परिक्षेत्रों में वन कक्षों के अंतर्गत कार्य किया जाता है। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-2 अनुसार है। (घ) रतलाम वनमंडल में विगत समय में कराये गये विभिन्न वानिकी कार्यों के फलस्वरूप इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट 2019 एवं 2021 के तुलनात्मक विश्लेषण में रतलाम जिले के अंतर्गत 15.31 वर्ग कि.मी. वन आवरण की वृद्धि हुई। पर्यावरणीय लाभ के साथ स्थानीय समुदायों को रोजगार, चारा, जलाऊ एवं लघु वनोपज की प्राप्ति हुई। योजना बनाकर विगत समय में भूमि संरक्षण एवं वृक्षारोपण कार्य का स्थलवार विवरण उत्तरांश 'ग' के पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट-2 अनुसार है। राजस्व भूमियों के संबंध में [राजस्व] 38. ( क्र. 632 ) डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या जावरा नगर फोरलेन सड़क स्थित जावरा चौपाटी से लेकर अरनियापीथा मंडी, भेसाना फंटा से आगे ग्राम रूपनगर फंटे तक सड़क के दोनों और अनेक स्थानों पर शासन की राजस्व भूमिया हैं? (ख) यदि हाँ, तो फोरलेन सड़क निर्माण के पूर्व एवं फोरलेन सड़क निर्माण के पश्चात उपरोक्त दोनों स्थलों पर शासन की राजस्व भूमियों पर कब-कब सीमांकन किया गया और किसके द्वारा किया गया? सीमांकन में निर्माण के पूर्व व पश्चात भूमियों की स्थितियां किस प्रकार की रही ? (ग ) साथ ही बताएं कि विगत वर्षों में अरनिया पीथा मंडी परिसर की बाउंड्रीवाल की चारों दिशाओं से लगी भूमियों पर एवं अरनिया पीथा मंडी के सामने ग्राम अरनिया पीथा एवं ग्राम भैसाना की भूमियों पर तथा हिंगलाज माता मंदिर के पास एवं मंदिर के सामने व औद्योगिक क्षेत्र थाना जावरा के पास व सामने शासन की भूमियों की क्या स्थिति है? (घ) अवगत कराएं कि वर्ष 2021-22 एवं वर्ष 2022-23 में विभाग द्वारा उक्त समस्त शासकीय भूमियों की जांच हेतु जांच दल गठित किए गए तो जांच दल द्वारा किस-किस दिनांक को किस-किस प्रकार की कार्यवाही करते हुए शासन की भूमि से अवैध कब्जे हटाकर अतिक्रमण मुक्त की गई? राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) जी हाँ । (ख) शासकीय भूमियां होने से सीमांकन नहीं किया। फोरलेन निर्माण के पश्चात बन्नाखेडा भूमि सर्वे नम्बर 185/251 पर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) कार्यालय बनाया है। निर्माण पूर्व / पश्चात भूमि सर्वे नं. 226/2 पर बस स्टेण्ड दुकान आदि, सर्वे नम्बर 226/3 व 226/4 पर श्रीराम कालोनी के मकान व दुकानें बनी है। सर्वे नम्बर 240/8 ग्राम रूपनगर, मंगलदास महाराज का आश्रम एवं बालाजी का मंदिर बना है। (ग) अरनियापीथा मण्डी के सामने भूमि सर्वे नम्बर 148/1/1/1 रकबा 5.036 हेक्टेयर भूमि में स्कूल भवन, खेल मैदान, पानी की टंकी (पेयजल), आबादी व खेतों के आने-जाने के रास्ते है। ग्राम भैसाना भूमि सर्वे नम्बर 161/1 रकबा 0.880 हेक्टेयर नोईयत चरागाह व सर्वे नम्बर 164 रकबा 0.430 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण है। हिंगलाज माता मंदिर कस्बा जावरा के सर्वे नम्बर 87 रकबा 3.743 हेक्टेयर नोईयत में रास्ता है एवं मंदिर के पास बगीचा भी है। इसी सर्वे नम्बर पर बागरी समाज के श्मशान की भूमि आवंटित है व कुछ भाग पर अतिक्रमण है। औद्योगिक क्षेत्र थाना जावरा के आस-पास व सामने की भूमि खाते की भूमि है। (घ) जी नहीं। राजस्व प्रकरणों का निपटारा 39. ( क्र. 644 ) श्री दिनेश राय मुनमुन : क्या राजस्व मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) सिवनी जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 01 अप्रैल 2019 से प्रश्न दिनांक तक कितने आवेदन सीमांकन, नामांतरण बंटवारे के प्राप्त हुये? कितने आवेदनों के संबंध में न्यायालय में प्रकरण दर्ज किए गए। उसमें कितने प्रकरण दर्ज करना शेष हैं? (ख) प्राप्त आवेदनों में से कितने सीमांकन, नामांतरण बंटवारा समय-सीमा में स्वीकृत किये गये? कितने आवेदन अस्वीकृत व विचाराधीन हैं? कारण सहित विवरण दें। (ग) कितने सीमांकन, त्रुटि सुधार, बंटवारा, नामांतरण के प्रकरण राजस्व अधिकारी द्वारा समय-सीमा में कार्यवाही नहीं करने के कारण निरस्त हुये हैं? आवेदनकर्ता के नाम कारण सहित विवरण दें। (घ) सिवनी जिले में 01 नवम्बर से 15 नवम्बर 2021 तक शासन द्वारा भू अभिलेख रिकार्ड शुद्धिकरण अभियान के अंतर्गत नक्शा संबंधित त्रुटियों में सुधार फोती नामांतरण, भूमि सुधार, खसरा रकबा में सुधार व्यपवर्तन डाटा एन्ट्री हेतु कितने आवेदन प्राप्त हुये ? राजस्व अधिकारी द्वारा उसमें कितने प्रकरण का निराकरण कर दिया गया तथा कितने शेष है? नाम सहित विवरण दें। राजस्व मंत्री ( श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) : (क) जिला सिवनी अंतर्गत आने वाली सभी तहसीलों में नामांतरण, बंटवारा एवं सीमांकन के प्रकरणों की स्थिति निम्नानुसार हैःमद न्यायालय में कुल प्राप्त आवेदन न्यायालय में कुल दर्ज आवेदन दर्ज होने से शेष आवेदन
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[R.46] परिचितेहि सेदावक्खित्तेहि धम्मिकेहि धम्मलद्धेहि ये ते समणब्राह्मणा मदप्पमादा पटिविरता खन्तिसोरच्चे निविट्ठा एकमत्तानं दमेन्ति, एकमत्तानं समेन्ति एकमत्तानं परिनिब्बापेन्ति, तथारूपेसु समणब्राह्मणेसु उद्धग्गिकं दक्खिणं पतिद्वापेति सोवग्गिकं सुखविपाकं, सग्गसंवत्तनिकं । अयं पञ्चमो भोगानं आदियो । इमे खो, गहपति, पञ्च भोगानं आदिया। ६. "तस्स चे, गहपति, अरियसावकस्स इमे पञ्च भोगानं आदिये आदियतो भोगा परिक्खयं गच्छन्ति, तस्स एवं होति - 'ये वत भोगानं आदिया ते चाहं आदियामि भोगा च मे परिक्खयं गच्छन्ती' ति । इतिस्स होति अविप्पटिसारो । तस्स चे, गहपति, [B.40] अरियसावकस्स इमे पञ्च भोगानं आदिये आदियतो भोगा अभिवड्ढन्ति, तस्स एवं होति - 'ये वत भोगानं आदिया ते चाहं आदियामि भोगा च मे अभिवढन्ती' ति । इतिस्स होति उभयेनेव अविप्पटिसारो ति । " भुत्ता भोगा भता भच्चा, वितिण्णा आपदासु मे। उद्धग्गा दक्खिणा दिन्ना, अथो पञ्चबलीकता । उपट्टिता सीलवन्तो, सञता ब्रह्मचारयो । "यदत्थं भोगं इच्छेय्य, पण्डितो घरमावसं । सो मे अत्थो अनुप्पत्तो, कतं अननुतापियं ॥ "एतं अनुस्सरं मच्चो, अरियधम्मे ठितो नरो। इधेव नं पसंसन्ति, पेच्च सग्गे पमोदती" ति॥ ५. "पुनः, गृहपति ! वह आर्यश्रावक ... पूर्ववत्... उन अपने कामभोगों में से कुछ अंश उन श्रमण ब्राह्मणों को दान करता रहता है; जो दान उसको देहपात के बाद सुगतिमय स्वर्ग में पहुँचाने की सामर्थ्य रखता है। वे श्रमण ब्राह्मण मद एवं प्रमाद से दूर रहते हैं, क्षान्ति एवं नम्रता की साक्षात् मूर्ति हैं; जो अपने शम दम एवं निर्वाण की साधना में सतत दत्तचित्त रहते हैं। यह उसके कामभोगों का पञ्चम आरम्भ है। इस प्रकार, गृहपति ! कामभोगों के ये पाँच आरम्भ होते हैं । (५) ६. "गृहपति ! यदि उस आर्यश्रावक द्वारा इन पाँच कामभोगों को लेने के आरम्भ में ही इनका क्षय होने लगे तो उसको यह खेद नहीं होता कि जिन कामभोगों की प्राप्ति का मैं आरम्भ कर रहा हूँ वे कामभोग पहले ही नष्ट होते जा रहे हैं। तथा इन कामभोगों के आरम्भ करने के बाद इनकी क्रमशः वृद्धि होने लगे तो उसको उसका हर्ष भी नहीं होता कि मेरे आरब्ध कामभोग वृद्धि प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार, गृहपति! उस आर्यश्रावक को उभय प्रकार से कहीं भी खेद या हर्ष नहीं होता । 'कामभोगों का यथेष्ट उपभोग किया, उनसे पालनीय लोगों का पालन पोषण किया, आपत्तियों से उनकी रक्षा की । उपरि लोक में गये परिवारजनों के हेतु दान किया तथा उससे अतिथि आदि को पाँच आगन्तुक दान किये एवं सदाचारियों का सत्कार किया ॥ "विद्वानों द्वारा जिसके लिये कामभोग चाहे जाते हैं वह सब मैंने यथेच्छ और विना किसी कष्ट के प्राप्त किया । २. सप्पुरिससुत्तं : १. "सप्पुरिसो, भिक्खवे, कुले जायमानो बहुनो [N.312] जनस्स अत्थाय हिताय सुखाय होति; मातापितूनं अत्थाय हिताय सुखाय होति; पुत्तदारस्स अत्थाय हिताय सुखाय होति; दासकम्मकरपोरिसस्स अत्थाय हिताय सुखाय होति; मित्तामच्चानं अत्थाय हिताय सुखाय होति; समणब्राह्मणानं अत्थाय हिताय सुखाय होति । २. "सेय्यथापि, भिक्खवे, महामेघो सब्बसस्सानि सम्पादेन्तो बहुनो [R.47] जनस्स अत्थाय हिताय सुखाय होति; एवमेव खो, भिक्खवे, सप्पुरिसो कुले जायमानो बहुनो जनस्स अत्थाय हिताय सुखाय होति; मातापितूनं अत्थाय हिताय सुखाय होति; पुत्तदारस्स अत्थाय हिताय सुखाय होति; मित्तामच्चानं अत्थाय हिताय सुखाय होति; समणब्राह्मणानं अत्थाय हिताय सुखाय होती ति । "हितो बहुन्नं पटिपज्ज भोगे, तं देवता रक्खति धम्मगुत्तं । बहुस्सुतं सीलवतूपपन्नं, धम्मे ठितं न विजहाति कित्ति ॥ धम्म सीलसम्पन्नं, हिरीमनं । नेक्खं जम्बोनदस्सेव को तं निन्दितुमरहति । देवा पि नं पसंसन्ति, ब्रह्म॒ना पि पसंसितो" ति॥ ३. इट्ठसुत्तं : १. अथ खो अनाथपिण्डिको गहपति येन भगवा तेनुपसङ्कमि; उपसङ्कमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि। एकमन्तं निसिन्नं खो अनाथपिण्डिकं गहपतिं भगवा एतदवोच[B.41] "आर्यधर्म में प्रतिष्ठित किसी भी पुरुष को निरन्तर यह बात स्मरण रखनी चाहिये। ऐसे पुरुष की इस लोक में भी प्रशंसा होती है तथा मरणानन्तर स्वर्ग में भी वह दिव्य सुख का अनुभव करता है ॥ " सत्पुरुष के पाँच लाभ १. "भिक्षुओ ! कुल में उत्पन्न हुआ सत्पुरुष अनेक जनों के हित एवं सुख का साधक होता है। वह (१) माता पिता के...; (२) पुत्र एवं पत्नी के...; (३) दास एवं भृत्य आदि के...; (४) मित्र एवं साथियों के...; एवं (५) श्रमणों ब्राह्मणों के हितसुख का साधक होता है। २. "जैसे, भिक्षुओ! महामेघ (वर्षा का जल) सभी धान्यों को उत्पन्न करता हुआ बहुत लोगों के हित सुख का सम्पादन करता है; इसी प्रकार, भिक्षुओ! कुल में उत्पन्न सत्पुरुष बहुत लोगों के ... पूर्ववत्... श्रमण ब्राह्मणों के हित एवं सुख का सम्पादक होता है। "जो कामभोगों को प्राप्त कर बहुत से लोगों के हित में लगा रहता है, ऐसे धर्म से रक्षित सत्पुरुष की देवता भी रक्षा करते हैं। जो बहुश्रुत होता है, सदाचार एवं व्रतपालन से सम्पन्न है, धर्माचरण में तत्पर है ऐसे पुरुष का यश साथ नहीं छोड़ता ॥ "धर्मनिष्ठ, सदाचारपरायण, सत्यवादी, पापकर्म में लज्जित होनेवाला पुरुष किसी की निन्दा का पात्र नहीं होता; जैसे कसौटी पर चढ़ा हुआ शुद्ध सुवर्ण । उसकी देवता भी प्रशंसा करते हैं तथा वह देवाधिदेव ब्रह्मा द्वारा भी प्रशंसित होता है । " २. "पञ्चिमे, गहपति, धम्मा इट्ठा कन्ता मनापा दुल्लभा लोकस्मि । कतमे पञ्च ? आयु, गहपति, इट्ठो कन्तो मनापो दुल्लभो लोकस्मि; वण्णो इट्ठो कन्तो मनापो दुल्लभो लोकस्मि; सुखं इट्टं कन्तं मनापं दुल्लभं लोकस्मि; यसो इट्ठो कन्तो मनापो दुल्लभो [N.313] लोकस्मि; सग्गा इट्ठा कन्ता मनापा दुल्लभा लोकस्मि । इमे खो, गहपति, पञ्च धम्मा इट्ठा कन्ता मनापा दुल्लभा लोकस्मि । ३. "इमेसं खो, गहपति, पञ्चन्नं धम्मानं इट्टानं कन्तानं मनापानं दुल्लभानं लोकस्मि न आयाचनहेतु वा पत्थनाहेतु वा पटिलाभं वदामि । इमेसं खो, गहपति, पञ्चन्नं [R.48] धम्मानं इट्ठानं कन्तानं मनापानं दुल्लभानं लोकस्मि आयाचनहेतु वा पत्थनाहेतु वा पटिलाभो अभविस्स, को इध केन हायेथ! ४. "न खो, गहपति, अरहति अरियसावको आयुकामो आयुं आयाचितुं वा अभिनन्दितुं वा आयुस्स वा पि हेतु। आयुकामेन, गहपति, अरियसावकेन आयुसंवत्तनिका पटिपदा पटिपज्जितब्बा आयुसंवत्तनिका हिस्स पटिपदा पटिपन्ना आयुपटिलाभाय संवत्तति। सो लाभी होति आयुस्स दिब्बस्स वा मानुसस्स वा । ५. "न खो, गहपति, अरहति अरियसावको वण्णकामो वण्णं आयाचितुं वा अभिनन्दितुं वा वण्णस्स वा पि हेतु । वण्णकामेन, गहपति, अरियसावकेन वण्णसंवत्तनिका पटिपदा पटिपज्जितब्बा। वण्णसंवत्तनिका हिस्स पटिपदा पटिपन्ना वण्णपटिलाभाय संवत्तति । सो लाभी होति वण्णस्स दिब्बस्स वा मानुसस्स वा । लोक में दुर्लभ पाँच धर्म १. ...तब अनाथपिण्डिक गृहपति भगवान् के सम्मुख पहुँचे। पहुँचकर उनको प्रणाम कर एक ओर बैठ गये। एक ओर बैठे गृहपति को भगवान् यों बोले२. "गृहपति! लोक में ये पाँच इष्ट, कान्त, मनाप धर्म दुर्लभ है। कौन पाँच ? गृहपति इष्ट कान्त मनाप आयु लोक में दुर्लभ हैं; इष्ट, कान्त मनाप वर्ण लोक में दुर्लभ हैं; इष्ट, कान्त मनाप सुख लोक में दुर्लभ हैं; इष्ट कान्त मनाप यश लोक में दुर्लभ हैं; इष्ट कान्त मनाप स्वर्ग लोक में दुर्लभ है। गृहपति ! लोक में ये पाँच इष्ट कान्त मनाप धर्म लोक में दुर्लभ हैं । ३. "गृहपति! इन पाँचों इष्ट कान्त मनाप धर्मों को लोक में किसी से माँगने, याच्या करने में मैं कोई लाभ नहीं देखता; क्योंकि माँगने या याच्या करने से यदि ये मिल जाते तो कोई इनको क्यों छोड़ता । ४. "गृहपति! आयुर्वृद्धि की इच्छा रखने वाले किसी आर्य श्रावक का किसी से आयु का माँगना उचित नहीं; अपितु इसे आयु बढ़ाने वाले मार्ग का स्वयं अनुसरण करना चाहिये । इस आयुर्वर्धक मार्ग के अनुसरण से ही उसकी आयु बढ़ सकेगी। और वह दिव्य एवं लौकिक दीर्घायु प्राप्त कर सकेगा । (१) ५. "गृहपति! वर्णवृद्धि की इच्छा रखनेवाले ... पूर्ववत्... वह दिव्य एवं लौकिक वर्ण प्राप्त कर सकेगा । (२)
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रानीखेत भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पहाड़ी पर्यटन स्थल है। यह राज्य के अल्मोड़ा जनपद के अंतर्गत स्थित एक फौजी छावनी है। देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक हिल स्टेशन है। इस स्थान से हिमाच्छादित मध्य हिमालयी श्रेणियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं। रानीखेत से सुविधापूर्वक भ्रमण के लिए पिण्डारी ग्लेशियर, कौसानी, चौबटिया और कालिका पहुँचा जा सकता है। चौबटिया में प्रदेश सरकार के फलों के उद्यान हैं। इस पर्वतीय नगरी का मुख्य आकर्षण यहाँ विराजती नैसर्गिक शान्ति है। रानीखेत में फ़ौजी छावनी भी है और गोल्फ़ प्रेमियों के लिए एक सुन्दर पार्क भी है। १८६९ में ब्रिटिश सरकार ने कुमाऊं रेजिमेंट के मुख्यालय की स्थापना रानीखेत में की, और भारतीय गर्मियों से बचने के लिए हिल स्टेशन के रूप में इस नगर का प्रयोग किया जाने लगा। ब्रिटिश राज के दौरान एक समय में, यह शिमला के स्थान पर भारत सरकार के ग्रीष्मकालीन मुख्यालय के रूप में भी प्रस्तावित किया गया था। १९०० में इसकी गर्मियों की ७,७०५ जनसंख्या थी, और उसी साल की सर्दियों की जनसंख्या १९०१ में ३,१५३ मापी गई थी। स्वच्छ सर्वेक्षण २०१८ के अनुसार रानीखेत दिल्ली और अल्मोड़ा छावनियों के बाद भारत की तीसरी सबसे स्वच्छ छावनी है। . 37 संबंधोंः चौखुटिया, द्वाराहाट, दूनागिरी, नागा रेजिमेंट, बदरीनाथ, बिनसर, बैजनाथ, उत्तराखण्ड, भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार, भारत के शहरों की सूची, भारतीय थलसेना, भांग का पौधा, भवाली, मानिला देवी मन्दिर, उत्तराखण्ड, मॉंसी, रानीखेत तहसील, रानीखेत रोग, श्यामाचरण लाहिड़ी, सोमेश्वर, उत्तराखण्ड, हल्द्वानी में यातायात, जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल, रानीखेत, खैरना, गोविन्द बल्लभ पन्त, गोविन्द बल्लभ पन्त (हिन्दी साहित्यकार), कटारमल सूर्य मन्दिर, काठगोदाम, काला चौना, कुमाऊँ मण्डल, कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड, कुमाऊँ विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालयों की सूची, कुमाऊं रेजिमेंट, अल्मोड़ा, अल्मोड़ा का इतिहास, उत्तराखण्ड, उत्तराखण्ड में जिलावार विधानसभा सीटें, उत्तराखण्ड के नगरों की सूची, उत्तराखण्ड के राज्य राजमार्गों की सूची, उत्तराखण्ड की राजनीति। चौखुटिया, अल्मोड़ा जिला, उत्तराखंड में स्थित एक क्षेत्र है। यह कुमाऊँ मण्डल में आता है। . द्वाराहाट उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले का एक कस्बा है जो रानीखेत से लगभग 21 किलोमीटर दूर स्थित है। द्वाराहाट में तीन वर्ग के मन्दिर हैं - कचहरी, मनिया तथा रत्नदेव। इसके अतिरिक्त बहुत से मन्दिर प्रतिमाविहीन हैं। द्वाराहाट में गूजरदेव का मन्दिर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। . दूनागिरी भूमंडल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के उत्तराखण्ड प्रदेश के अन्तर्गत कुमांऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा जिले में एक पौराणिक पर्वत शिखर का नाम है। द्रोण, द्रोणगिरी, द्रोण-पर्वत, द्रोणागिरी, द्रोणांचल, तथा द्रोणांचल-पर्वत इसी पर्वत के पर्यायवाची शब्द हैं। कालान्तर के उपरांत द्रोण का अपभ्रंश होते-होते वर्तमान में इस पर्वत को कुमांऊँनी बोली के समरूप अथवा अनुसार दूनागिरी नाम से पुकारा जाने लगा है। यथार्थतः यह पौराणिक उल्लिखित द्रोण है। . "नागा रेजीमेंट" भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है। नागा रेजिमेंट भारतीय सेना के एक पैदल सेना की रेजिमेंट है। यह भारतीय सेना की सबसे कम उम्र की रेजिमेंटों में से एक है - 1९७० में रानीखेत में पहली बटालियन (1 नागा) उठाया गया था। रेजिमेंट मुख्यतः नागालैंड से भर्ती होती है। . बद्रीनाथ घाटी तथा अलकनन्दा नदी बदरीनाथ भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक स्थान है जो हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ है। यह उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित एक नगर पंचायत है। यहाँ बद्रीरीनाथ मन्दिर है जो हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध धामों में से एक है। . बिनसर उत्तरांचल में अल्मोड़ा से लगभग ३४ किलोमीटर दूर है। यह समुद्र तल से लगभग २४१२ मीटर की उंचाई पर बसा है। लगभग ११वीं से १८वीं शताब्दी तक ये चन्द राजाओं की राजधानी रहा था। अब इसे वन्य जीव अभयारण्य बना दिया गया है। बिनसर झांडी ढार नाम की पहाडी पर है। यहां की पहाड़ियां झांदी धार के रूप में जानी जाती हैं। बिनसर गढ़वाली बोली का एक शब्द है -जिसका अर्थ नव प्रभात है। यहां से अल्मोड़ा शहर का उत्कृष्ट दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय भी दिखाई देते हैं। घने देवदार के जंगलों से निकलते हुए शिखर की ओर रास्ता जाता है, जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है। बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचोली चोटियों की ३०० किलोमीटर लंबी शृंखला दिखाई देती है, जो अपने आप में अद्भुत है और ये बिनसर का सबसे बड़ा आकर्षण भी हैं। . बैजनाथ उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर जनपद में गोमती नदी के किनारे एक छोटा सा नगर है। यह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता प्राप्त है। बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत 'शिव हेरिटेज सर्किट' से जोड़ा जाना है। बैजनाथ को प्राचीनकाल में "कार्तिकेयपुर" के नाम से जाना जाता था, और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी। कत्यूरी राजा तब गढ़वाल, कुमाऊँ तथा डोटी क्षेत्रों तक राज करते थे। . भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का संजाल भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची भारतीय राजमार्ग के क्षेत्र में एक व्यापक सूची देता है, द्वारा अनुरक्षित सड़कों के एक वर्ग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण। ये लंबे मुख्य में दूरी roadways हैं भारत और के अत्यधिक उपयोग का मतलब है एक परिवहन भारत में। वे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा भारतीय अर्थव्यवस्था। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 laned (प्रत्येक दिशा में एक), के बारे में 65,000 किमी की एक कुल, जिनमें से 5,840 किमी बदल सकता है गठन में "स्वर्ण Chathuspatha" या स्वर्णिम चतुर्भुज, एक प्रतिष्ठित परियोजना राजग सरकार द्वारा शुरू की श्री अटल बिहारी वाजपेयी. कोई विवरण नहीं। भारतीय थलसेना, सेना की भूमि-आधारित दल की शाखा है और यह भारतीय सशस्त्र बल का सबसे बड़ा अंग है। भारत का राष्ट्रपति, थलसेना का प्रधान सेनापति होता है, और इसकी कमान भारतीय थलसेनाध्यक्ष के हाथों में होती है जो कि चार-सितारा जनरल स्तर के अधिकारी होते हैं। पांच-सितारा रैंक के साथ फील्ड मार्शल की रैंक भारतीय सेना में श्रेष्ठतम सम्मान की औपचारिक स्थिति है, आजतक मात्र दो अधिकारियों को इससे सम्मानित किया गया है। भारतीय सेना का उद्भव ईस्ट इण्डिया कम्पनी, जो कि ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में परिवर्तित हुई थी, और भारतीय राज्यों की सेना से हुआ, जो स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रीय सेना के रूप में परिणत हुई। भारतीय सेना की टुकड़ी और रेजिमेंट का विविध इतिहास रहा हैं इसने दुनिया भर में कई लड़ाई और अभियानों में हिस्सा लिया है, तथा आजादी से पहले और बाद में बड़ी संख्या में युद्ध सम्मान अर्जित किये। भारतीय सेना का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की एकता सुनिश्चित करना, राष्ट्र को बाहरी आक्रमण और आंतरिक खतरों से बचाव, और अपनी सीमाओं पर शांति और सुरक्षा को बनाए रखना हैं। यह प्राकृतिक आपदाओं और अन्य गड़बड़ी के दौरान मानवीय बचाव अभियान भी चलाते है, जैसे ऑपरेशन सूर्य आशा, और आंतरिक खतरों से निपटने के लिए सरकार द्वारा भी सहायता हेतु अनुरोध किया जा सकता है। यह भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना के साथ राष्ट्रीय शक्ति का एक प्रमुख अंग है। सेना अब तक पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ चार युद्धों तथा चीन के साथ एक युद्ध लड़ चुकी है। सेना द्वारा किए गए अन्य प्रमुख अभियानों में ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन मेघदूत और ऑपरेशन कैक्टस शामिल हैं। संघर्षों के अलावा, सेना ने शांति के समय कई बड़े अभियानों, जैसे ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स और युद्ध-अभ्यास शूरवीर का संचालन किया है। सेना ने कई देशो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में एक सक्रिय प्रतिभागी भी रहा है जिनमे साइप्रस, लेबनान, कांगो, अंगोला, कंबोडिया, वियतनाम, नामीबिया, एल साल्वाडोर, लाइबेरिया, मोज़ाम्बिक और सोमालिया आदि सम्मलित हैं। भारतीय सेना में एक सैन्य-दल (रेजिमेंट) प्रणाली है, लेकिन यह बुनियादी क्षेत्र गठन विभाजन के साथ संचालन और भौगोलिक रूप से सात कमान में विभाजित है। यह एक सर्व-स्वयंसेवी बल है और इसमें देश के सक्रिय रक्षा कर्मियों का 80% से अधिक हिस्सा है। यह 1,200,255 सक्रिय सैनिकों और 909,60 आरक्षित सैनिकों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्थायी सेना है। सेना ने सैनिको के आधुनिकीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसे "फ्यूचरिस्टिक इन्फैंट्री सैनिक एक प्रणाली के रूप में" के नाम से जाना जाता है इसके साथ ही यह अपने बख़्तरबंद, तोपखाने और उड्डयन शाखाओं के लिए नए संसाधनों का संग्रह एवं सुधार भी कर रहा है।. भांग का पौधा और उसके विभिन्न भाग भांग (वानस्पतिक नामः Cannabis indica) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है। भारतवर्ष में भांग के अपने आप पैदा हुए पौधे सभी जगह पाये जाते हैं। भांग विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में प्रचुरता से पाया जाता है। भांग के पौधे 3-8 फुट ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। भांग के ऊपर की पत्तियां 1-3 खंडों से युक्त तथा निचली पत्तियां 3-8 खंडों से युक्त होती हैं। निचली पत्तियों में इसके पत्रवृन्त लम्बे होते हैं। भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तैयार की जाती है। भांग के मादा पौधों की रालीय पुष्प मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है। भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमे राल के समान पदार्थ को चरस कहते हैं। भांग की खेती प्राचीन समय में 'पणि' कहे जानेवाले लोगों द्वारा की जाती थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुमाऊँ में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यवसाय को अपने हाथ में ले लिया था तथा काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी। दानपुर, दसोली तथा गंगोली की कुछ जातियाँ भांग के रेशे से कुथले और कम्बल बनाती थीं। भांग के पौधे का घर गढ़वाल में चांदपुर कहा जा सकता है। इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रूप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। टनकपुर, रामनगर, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोडा़, रानीखेत,बागेश्वर, गंगोलीहाट में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई इत्यादि की पहुँच घर-घर में हो जाने तथा भांग की खेती पर प्रतिबन्ध के कारण इस लोक कला के समाप्त हो जाने का भय है। होली के अवसर पर मिठाई और ठंडाई के साथ इसका प्रयोग करने की परंपरा है। भांग का इस्तेमाल लंबे समय से लोग दर्द निवारक के रूप में करते रहे हैं। कई देशों में इसे दवा के रूप में भी उपलब्ध कराया जाता है। . भवाली या भुवाली उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल जनपद में स्थित एक नगर है। यह कुमाऊँ मण्डल में आता है। शान्त वातावरण और खुली जगह होने के कारण 'भवाली' कुमाऊँ की एक शानदार नगरी है। यहाँ पर फलों की एक मण्डी है। यह एक ऐसा केन्द्र - बिन्दु है जहाँ से काठगोदाम हल्द्वानी और नैनीताल, अल्मोड़ा - रानीखेत भीमताल - सातताल और रामगढ़ - मुक्तेश्वर आदि स्थानों को अलग - अलग मोटर मार्ग जाते हैं। भवाली नगर अपने प्राचीन टीबी सैनिटोरियम के लिए विख्यात है, जिसकी स्थापना १९१२ में हुई थी। चीड़ के पेड़ों की हवा टी. मानिला देवी मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के शल्ट क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान रामनगर से लगभग ७० किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ तक बस या निजी वाहन द्वारा पहुँचा जा सकता है। यह इस क्षेत्र का एक प्रसिद्द मन्दिर है और हर वर्ष यहाँ दूर-दूर से लोग देवी के दर्शनों के लिए आते हैं। यह मन्दिर कत्यूरी लोगो की पारिवारिक देवी मानिला का मंदिर है। मन्दिर दो भागों में बँटा हुआ है जिसे स्थानीय भाषा में मल मानिला (ऊपरी मानिला) और तल मानिला (निचला मानिला) कहते है। प्राचीन मन्दिर तो तल मनीला में ही स्थित है लेकिन मल मानिला मन्दिर के पीछे की कहानी जो स्थानीय लोगो के बीच बहुत प्रचलित है वो ये हैं कि "एक बार कुछ चोर मानिला देवी की मूर्ति को चुराना चाहते थे। लेकिन जब वो मूर्ति उठा रहे थे तो उठा न सके और तब वे मूर्ति का एक हाथ ही उखाड़ कर ले गए, लेकिन उस हाथ को भी वे अधिक दूर ना लेजा सके।" और तबसे वही पर माता का एक और मन्दिर स्थापित कर दिया गया जिसे आज मल मानिला के नाम से लोग जानते है। . मॉंसी एक गाँव है जो रामगंगा नदी के पूर्वी किनारे पर चौखुटिया (गनांई) तहसील के तल्ला गेवाड़ पट्टी में भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमांऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। यह मूलतः मासीवाल नामक उपनाम से विख्यात कुमांऊॅंनी हिन्दुओं का पुश्तैनी गाँव है। यह अपनी ऐतिहासिक व सॉस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊॅंनी सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली तथा समतल उपजाऊ भूमि के लिए पहचाना जाता है। . रानीखेत तहसील भारत के उत्तराखण्ड राज्य में अल्मोड़ा जनपद की एक तहसील है। अल्मोड़ा जनपद के मध्य भाग में स्थित इस तहसील के मुख्यालय रानीखेत छावनी में स्थित हैं। इसके पूर्व में अल्मोड़ा तहसील, पश्चिम में भिक्यासैंण तहसील, उत्तर में द्वाराहाट तहसील, तथा दक्षिण में नैनीताल जनपद की कोश्याकुटौली तहसील है। . यह मुर्गियों में फैलने वाला रोग है। यह रोग सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश के रानीखेत में देखा गया था। श्रेणीःपशु पक्षी रोग. श्यामाचरण लाहिड़ी (30 सितम्बर 1828 - 26 सितम्बर 1895) 18वीं शताब्दी के उच्च कोटि के साधक थे जिन्होंने सद्गृहस्थ के रूप में यौगिक पूर्णता प्राप्त कर ली थी। आपका जन्म बंगाल के नदिया जिले की प्राचीन राजधानी कृष्णनगर के निकट धरणी नामक ग्राम के एक संभ्रांत ब्राह्मण कुल में अनुमानतः 1825-26 ई. में हुआ था। आपका पठनपाठन काशी में हुआ। बंगला, संस्कृत के अतिरिक्त अपने अंग्रेजी भी पड़ी यद्यपि कोई परीक्षा नहीं पास की। जीविकोपार्जन के लिए छोटी उम्र में सरकारी नौकरी में लग गए। आप दानापुर में मिलिटरी एकाउंट्स आफिस में थे। कुछ समय के लिए सरकारी काम से अल्मोड़ा जिले के रानीखेत नामक स्थान पर भेज दिए गए। हिमालय की इस उपत्यका में गुरुप्राप्ति और दीक्षा हुई। आपके तीन प्रमुख शिष्य युक्तेश्वर गिरि, केशवानंद और प्रणवानंद ने गुरु के संबंध में प्रकाश डाला है। योगानंद परमहंस ने 'योगी की आत्मकथा' नामक जीवनवृत्त में गुरु को बाबा जी कहा है। दीक्षा के बाद भी इन्होंने कई वर्षों तक नौकरी की और इसी समय से गुरु के आज्ञानुसार लोगों को दीक्षा देने लगे थे। सन् 1880 में पेंशन लेकर आप काशी आ गए। इनकी गीता की आध्यात्मिक व्याख्या आज भी शीर्ष स्थान पर है। इन्होंने वेदांत, सांख्य, वैशेषिक, योगदर्शन और अनेक संहिताओं की व्याख्या भी प्रकाशित की। इनकी प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि गृहस्थ मनुष्य भी योगाभ्यास द्वारा चिरशांति प्राप्त कर योग के उच्चतम शिखर पर आरूढ़ हो सकता है। आपने अपने सहज आडंबररहित गार्हस्थ्य जीवन से यह प्रमाणित कर दिया था। धर्म के संबंध में बहुत कट्टरता के पक्षपाती न होने पर भी आप प्राचीन रीतिनीति और मर्यादा का पूर्णतया पालन करते थे। शास्त्रों में आपका अटूट विश्वास था। जब आप रानीखेत में थे तो अवकाश के समय शून्य विजन में पर्यटन पर प्राकृतिक सौंदर्यनिरीक्षण करते। इसी भ्रमण में दूर से अपना नाम सुनकर द्रोणगिरि नामक पर्वत पर चढ़ते-चढ़ते एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ थोड़ी सी खुली जगह में अनेक गुफाएँ थीं। इसी एक गुफा के करार पर एक तेजस्वी युवक खड़े दीख पड़े। उन्होंने हिंदी में गुफा में विश्राम करने का संकेत किया। उन्होंने कहा 'मैंने ही तुम्हें बुलाया था'। इसके बाद पूर्वजन्मों का वृत्तांत बताते हुए शक्तिपात किया। बाबा जी से दीक्षा का जो प्रकार प्राप्त हुआ उसे क्रियायोग कहा गया है। क्रियायोग की विधि केवल दीक्षित साधकों को ही बताई जाती है। यह विधि पूर्णतया शास्त्रोक्त है और गीता उसकी कुंजी है। गीता में कर्म, ज्ञान, सांख्य इत्यादि सभी योग है और वह भी इतने सहज रूप में जिसमें जाति और धर्म के बंधन बाधक नहीं होते। आप हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी को बिना भेदभाव के दीक्षा देते थे। इसीलिए आपके भक्त सभी धर्मानुयायी हैं। उन्होंने अपने समय में व्याप्त कट्टर जातिवाद को कभी महत्व नहीं दिया। वह अन्य धर्मावलंबियों से यही कहते थे कि आप अपनी धार्मिक मान्यताओं का आदर और अभ्यास करते हुए क्रियायोग द्वारा मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। पात्रानुसार भक्ति, ज्ञान, कर्म और राजयोग के आधार पर व्यक्तित्व और प्रवृत्तियों के अनुसार साधना करने की प्रेरणा देते। उनके मत से शास्त्रों पर शंका अथवा विवाद न कर उनका तथ्य आत्मसात् करना चाहिए। अपनी समस्याओं के हल करने का आत्मचिंतन से बढ़कर कोई मार्ग नहीं। लाहिड़ी महाशय के प्रवचनों का पूर्ण संग्रह प्राप्य नहीं है किंतु गीता, उपनिषद्, संहिता इत्यादि की अनेक व्याख्याएँ बँगला में उपलब्ध हैं। भगवद्गीताभाष्य का हिंदी अनुवाद लाहिड़ी महाशय के शिष्य श्री भूपेंद्रनाथ सान्याल ने प्रस्तुत किया है। श्री लाहिड़ी की अधिकांश रचनाएँ बँगला में हैं। . सोमेश्वर उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जनपद में स्थित एक कस्बा है। कोसी और साई नदियों के संगम पर स्थित सोमेश्वर अल्मोड़ा का एक प्रमुख कस्बा है, तथा इसी नाम की एक तहसील का मुख्यालय भी है। सोमेश्वर अल्मोड़ा के उत्तरी क्षेत्र के दर्जनों गांवों का प्रमुख बाजार है, और यहां करीब ३५० दुकानें हैं। यहां से होकर बागेश्वर, अल्मोड़ा, रानीखेत, द्वाराहाट तथा कौसानी आदि स्थानों को प्रतिदिन सैकड़ों वाहन आते जाते हैं। यहां एक ऐतिहासिक शिव मंदिर भी है। . कुमाऊँ का प्रवेश द्वार, हल्द्वानी उत्तराखण्ड के नैनीताल ज़िले में स्थित हल्द्वानी राज्य के सर्वाधिक जनसँख्या वाले नगरों में से है। इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है। नगर के यातायात साधनों में २ रेलवे स्टेशन, २ बस स्टेशन तथा एक अधिकृत टैक्सी स्टैंड है। इनके अतिरिक्त नगर से २८ किमी की दूरी पर एक घरेलू हवाई अड्डा स्थित है, और नगर में एक अंतर्राज्यीय बस अड्डा निर्माणाधीन है। . जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल की स्थापना १९८७ में भारतीय उद्योगपति घंश्याम दास बिरला की स्मृति में श्री बी के बिरला और श्रीमती सरला बिरला द्वारा कि गई थी। यह एक विद्यालय है जो भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत नामक कस्बे में स्थित है। यहाँ गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान कि जाती है और इस विद्यालय में आवासीय सुविधा के साथ कक्षा ४ से १२ तक ७०० छात्र पढ़ते हैं। यह दिल्ली से ३६० किमी दूर है। यह विद्यालय, एक पहाड़ी के हलके ढलान पर रानीखेत से ५ किमी की दूरी पर है। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जो ८५ किमी दूर है। . खैरना उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में एक छोटा सा नगर है, जो इसी नाम के पुल के दोनों ओर बस गया। खैरना पुल कोसी नदी पर ब्रिटिश काल के समय से ही स्थित है। खैरना मछिलयों के शिकार के लिए विख्यात है। . नैनीताल में गोविन्द वल्लभ पन्त की प्रतिमा पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त या जी॰बी॰ पन्त (जन्म १० सितम्बर १८८७ - ७ मार्च १९६१) प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और वरिष्ठ भारतीय राजनेता थे। वे उत्तर प्रदेश राज्य के प्रथम मुख्य मन्त्री और भारत के चौथे गृहमंत्री थे। सन 1957 में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया। गृहमंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना तथा हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना था। . गोविन्द बल्लभ पन्त (हिन्दी साहित्यकार) गोविन्द बल्लभ पन्त (१८९८ - १९९८) हिन्दी के नाटककार थे। . कटारमल सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिर है। यह पूर्वाभिमुखी है तथा उत्तराखण्ड राज्य में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गॉंव में स्थित है। इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था। यह कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक व उत्तर भारत में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है तथा समुद्र सतह से लगभग 2116 मीटर की ऊँचाई पर पर्वत पर स्थित है। . काठगोदाम भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित हल्द्वानी नगर के अंतर्गत स्थित एक क्षेत्र है। इसे ऐतिहासिक तौर पर कुमाऊँ का द्वार कहा जाता रहा है। यह छोटा सा नगर पहाड़ के पाद प्रदेश में बसा है। गौला नदी इसके दायें से होकर हल्द्वानी बाजार की ओर बढ़ती है। पूर्वोतर रेलवे का यह अन्तिम स्टेशन है। यहाँ से बरेली, लखनऊ तथा आगरा के लिए छोटी लाइन की रेल चलती है। काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए केएमओयू की बसें जाती है। कुमाऊँ के सभी अंचलों के लिए यहाँ से बसें जाती हैं। १९०१ में काठगोदाम ३७५ की जनसंख्या वाला एक छोटा सा गाँव था। १९०९ तक इसे रानीबाग़ के साथ जोड़कर नोटिफ़िएड एरिया घोषित कर दिया गया। काठगोदाम-रानीबाग़ १९४२ तक स्वतंत्र नगर के रूप में उपस्थित रहा, जिसके बाद इसे हल्द्वानी नोटिफ़िएड एरिया के साथ जोड़कर नगर पालिका परिषद् हल्द्वानी-काठगोदाम का गठन किया गया। २१ मई २०११ को हल्द्वानी-काठगोदाम को नगर पालिका परिषद से नगर निगम घोषित किया गया, और फिर इसके विस्तार को देखते हुए इसका नाम बदलकर नगर निगम हल्द्वानी कर दिया गया। . काला चौना एक गॉंव है। यह रामगंगा नदी के पूर्वी किनारे पर चौखुटिया तहसील के तल्ला गेवाड़ नामक पट्टी में, भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। यह गॉंव मूलरूप से कनौंणियॉं नामक उपनाम से विख्यात कुमांऊॅंनी हिन्दू राजपूतों का प्राचीन और पुश्तैनी चार गाँवों में से एक है। दक्षिणी हिमालय की तलहटी में बसा यह काला चौना अपनी ऐतिहासिक व सॉंस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊॅंनी सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली, प्रकृति संरक्षण, अलौकिक प्राकृतिक छटा तथा समतल-उपजाऊ भूमि के लिए पहचाना जाता है। . यह लेख कुमाऊँ मण्डल पर है। अन्य कुमाऊँ लेखों के लिए देखें कुमांऊॅं उत्तराखण्ड के मण्डल कुमाऊँ मण्डल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के दो प्रमुख मण्डलों में से एक हैं। अन्य मण्डल है गढ़वाल। कुमाऊँ मण्डल में निम्न जिले आते हैंः-. हल्द्वानी के केमू स्टेशन में खड़ी बसें। कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड (Kumaon Motor Owners Union Limited), जो अपने संक्षिप्त नाम के॰एम॰ओ॰यू॰ (K.M.O.U) या केमू से अधिक प्रसिद्ध है, उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में बस सेवा प्रदान करने वाली एक निजी कम्पनी है। १९३९ में १३ निजी कम्पनियों के विलय द्वारा अस्तित्व में आयी यह मोटर कम्पनी स्वतन्त्रता पूर्व कुमाऊँ क्षेत्र में बसें चलाने वाली एकमात्र बस कम्पनी थी। १९८७ तक यह इस क्षेत्र की सबसे बड़ी बस कम्पनी थी। . कुमाऊं विश्वविद्यालय का प्रतीक चिह्न निम्नलिखित सूची कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल से सम्बद्ध राजकीय महाविद्यालयों की हैः . कुमांऊँ रेजीमेंट भारतीय सशस्त्र सेना का एक सैन्य-दल है, जिसकी स्थापना सन् 1788 में हुई। यह कुमांऊँ नामक हिमालयी क्षेत्र के निवासियों से सम्बन्धित भारतीय सैन्य-दल है। जिसका मुख्यालय उत्तराखण्ड के कुमांऊँ क्षेत्र के रानीखेत नामक पर्वतीय स्थान में स्थित है तथा भारतीय सशस्त्र सेना के वीरता का प्रथम सर्वश्रेष्ठ सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित है। कुमांऊँ रेजिमेंट को 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान तथा 1962 के भारत और चीन युद्ध के लिये विशेष गौरवपूर्ण माना जाता है। . अल्मोड़ा भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण नगर है। यह अल्मोड़ा जिले का मुख्यालय भी है। अल्मोड़ा दिल्ली से ३६५ किलोमीटर और देहरादून से ४१५ किलोमीटर की दूरी पर, कुमाऊँ हिमालय श्रंखला की एक पहाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार अल्मोड़ा की कुल जनसंख्या ३५,५१३ है। अल्मोड़ा की स्थापना राजा बालो कल्याण चंद ने १५६८ में की थी। महाभारत (८ वीं और ९वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विवरण मिलते हैं। अल्मोड़ा, कुमाऊं राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी। स्वतंत्रता की लड़ाई में तथा शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है। . २०१३ में अल्मोड़ा अल्मोड़ा, भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक नगर है। यह अल्मोड़ा जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। इस नगर को राजा कल्याण चंद ने १५६८ में स्थापित किया था। महाभारत (८ वीं और ९वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विवरण मिलते हैं। अल्मोड़ा, कुमाऊँ राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी। . उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। . उत्तराखण्ड में जिलावार विधानसभा सीटें उत्तराखण्ड के जिलों के अन्तर्गत आने वाली विधानसभा सीटें हैं। इस सूची में जिला और उस जिले में उत्तराखण्ड विधानसभा की कौन-कौन सी सीटें हैं दिया गया है। भारतीय चुनाव आयोग द्वारा विर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किए जाए से उत्तराखण्ड में भी सीटों में बदलाव आया है। इस सूची में भूतपूर्व सीटें किसी भी जिले में नहीं दी गई हैं। . उत्तराखण्ड के नगर नामक इस सूची में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के सभी नगरों की ज़िलेवार सूची दी गई है, जो वर्णमालानुसार क्रमित है। . निम्नलिखित सूची उत्तराखण्ड राज्य के राज्य राजमार्गों की हैः . उत्तराखण्ड की राजनीति भारत के उत्तराखण्ड की राजनैतिक व्यवस्था को कहते हैं। इस राज्य राजनीति की विशेषता है राष्ट्रीय दलों और क्षेत्रिय दलों के बीच आपसी संयोजन जिससे राज्य में शासन व्यव्स्था चलाई जाती है। उत्तराखण्ड राज्य २००० में बनाया गया था। एक अलग राज्य की स्थापना लम्बे समय से ऊपरी हिमालय की पहाड़ियों पर रह रहे लोगों की हार्दिक इच्छा थी।भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी), उत्तराखण्ड की राजनीति में सबसे प्रमुख राष्ट्रीय दल हैं। इसके अतिरिक्त बहुजन समाज पार्टी(बसपा) का भी राज्य के मैदानी क्षेत्रों में जनाधार है। राष्ट्रीय स्तर के दलों को उत्तराखण्ड के राज्य स्तरीय दलों से मजबूत समर्थन प्राप्त है। विशेष रूप से, उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (उक्राद), जिसकी स्थापना १९७० के दशक में पृथक राज्य के लिए लोगों को जागृत करने के लिए कि गई थी और जो पर्वतिय निवासियों के लिए अलग राज्य के गठन के पीछे मुख्य विचारक था, अभी भी उत्तराखण्ड की राजनीति के मैदान में एक विस्तृत प्रभाव वाला दल है। राज्य गठन के बाद सबसे पहले चुनाव २००२ में आयिजित किए गए थे। इन चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरा और राज्य में प्रथम सरकार बनाई। इन चुनावों में भाजपा, दूसरा सबसे बड़ा दल था। इसके बाद, फ़रवरी २००७ के दूसरे विधानसभा चुनावों में सरकार-विरोधी लहर के चलते, भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में सामने आया। भाजपा को इन चुनावों में ३४ सीटें प्राप्त हुईं, जो बहुत से एक कम थी जिसे उक्राद के तीन सदस्यों के समर्थ्न ने पूरा कर दिया। उत्तराखण्ड राज्य विधायिका, उत्तराखण्ड की राजनीति का केन्द्र बिन्दू है। वर्तमान (2017)चुनाव में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से 57 सीटों पर जीत का परचम लहराया है। यह राज्य में अब तक के इतिहास में न केवल भारतीय जनता पार्टी, बल्कि किसी भी दल के लिए सबसे बड़ा आंकड़ा है। वहीं, कांग्रेस के खाते में बस 11 सीटें ही आई.
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नाहीं । जो चोरनिमें शिरोमणि अर जारनिमें शिरोमणि है सो कैसे आराधने योग्य होय । बहुरि सर्वज्ञवीतरागका उपदेश्या अर प्रत्यक्ष अनुमानादिकरि जामें सर्वथा बाधा नाहीं आवै अर समस्त छहकायके जीवनिकी हिंसारहित धर्मका उपदेशक आत्माका उद्धारक अनेकांतरूप वस्तुकू साक्षात् प्रगट करनेवाला ही गम है सो पढ़ने पढ़ावने श्रवणकरने श्रद्धानकरने वंदने योग्य है । अर जे रागी द्वेषीनिकरि प्ररूपणकिये अर विषयानुराग अर कषायके बधावनेवारे जिनमें हिंसा के करनेका उपदेश है ऐसे प्रत्यक्ष अनुमानकरि बाधित एकांतरूप शास्त्र श्रवण पढनेयोग्य नाहीं वन्दनायोग्य नाहीं हैं। बहुरि विषयनिकी वांछाका अर कषायका अरआरम्भपरिग्रहका जाकै अत्यन्त अभाव भया, केवल आत्माकी उज्ज्वलता करनेमें उद्यमी, ध्यान स्वाध्याय में अत्यन्त लोन, स्वाधीन कर्मवं धजनित दुःख सुखमें साम्यभावके धारक, जीवन मरण, लाभ श्रलाभ स्तवननिंदनेमें रागद्वेषरहित उपसर्गपरीषहनिके सहने में अकम्प धैर्यके धारक परमनिर्ग्रन्थ दिगम्बर गुरु ही वंदन स्तवन करनेयोग्य हैं अन्य आरम्भी कषायी विषयानुरागी कुगुरु कदाचित् स्तवन वन्दन करने योग्य नाहीं हैं। बहुरि जीवदया ही धर्म है हिंसा कदाचित् धर्म नाहीं जो कदाचित् सूर्यका उदय पश्चिम दिशा में होजाय अर अग्नि शीतल होजाय अर सर्पका मुखमें अमृत हो जाय र मेरु चलि जाय श्रर पृथ्वी उलटपलट होजाय तो हू हिंसामें तो धर्म कदाचित् नाहीं होय । ऐसा दृढश्रद्धान सम्यग्दृष्टिके होय है जाकै अपने आत्माके अनुभवन में अर सर्वज्ञ वीतरागरूप आपके स्वरूप में कर निग्रंथ विषयकषायरहित गुरुमें अर अने कांतस्वरूप आगममें अर दयारूप धर्ममें शंकाका अभाव सो निःशंकित अग है सम्यग्दृष्टि यामें कदाचित् शंका नाहीं करै है । बहुरि सम्यग्दृष्टि है सो धर्मसेवनकरि विषयनिकी वांछा नाहीं करै है जातैं सम्यग्दृष्टिकू इन्द्र अहमिन्द्रलोकके विषै हू महान वेदनारूप विनाशीक पापका बीज दोख़ है अर धर्मका फल अनन्त अविनाशी स्वाधीन सुखकरियुक्त मोक्ष दीखे है तातैं ज सें बहूमूल्य रत्न छांडि काचखण्डकू जोहरी नाहीं ग्रहण करें है तैसें जाकू सांचा आत्मीक अविनाशी बाधारहित सुख दीख्या सो झूठा बाधासहित विषयनिका सुखमें कैसैं वांछा करता सम्यग्दृष्टि वांछारहित ही होय है। श्रर जो अव्रती सम्यग्दृष्टिके वर्तमानकालमें आजीविका दिकनिमें तथा स्थानादिकपरिग्रह में वेदनाके अभाव जो वांछा होय है सो वर्तमानकालकी वेदना सहने की सामर्थ्य वेदनाका इलाजमात्र चाहै है। जैसे रोगी कति विरक्त होय है तो हू वेदनाका दःख नाहीं सह्या जाय तातैं कडवी औषधि वमन विरेचनादिकका कारण हू ग्रहण करै है, दुर्गंध तैलादिक हू लगावै है अन्तरङ्गमें औषधित अनुराग नहीं है तँसैं सम्यग्दृष्टि निर्वाछक है तो हू वर्तमानके दुःख मेटनेकू' योग्य न्यायके विषयनिकी वांछा करै है। जिनकै प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानावरणकषायका अभाव भया अपना सौ खंड होय तो हू विषयवांछा नाहीं करें हैं यात सम्यग्दृष्टिके निःकांक्षित गुरण होय ही है। बहुरि सम्यग्दृष्टि अशुभ कर्मके उदय प्राप्त भई अशुभ सामग्री तिसमें ग्लानि नाहीं करै, परिणाम नाहीं विगार्डे है पूष जैसा कर्म बांध्या तैसा भोजन पान स्त्री पुत्र दरिद्र संपदा आपदाकू प्राप्त भया हूँ तथा अन्य किसीकू रोगी दरिद्री हीन नीच मलीन देखि परिणाम नाहीं विगाड़े है, पापकी सामग्री जानि कलुषता नाहीं करै है तथा मलमुत्र कर्दमादि द्रव्यकू' देखि अर भयङ्कर श्मसान वनादि क्षेत्रकू देखि, भयरूप दुःखदायी कालकू देखि, दुष्टपना कडवापना इत्यादिक वस्तुका स्वभावकू देखि अपना निर्विचिकित्सित अंग सम्यग्दृष्टिके होय ही है । बहुरि खोटे शास्त्रनित तथा व्यन्तरादिक देवनिकृत विक्रिया तथा मरिण मन्त्र औषदिनिके प्रभाव अनेक वस्तुनिके , विपरीत स्वभाव देखि सत्यार्थ धर्म चलायमान नाहीं होना सो सम्यग्दर्शनका अमूढदृष्टि गुण है सो सम्यग्दृष्टिके होय ही है । बहुरि सम्यग्दृष्टि अन्य जीवनिके ज्ञान लगे हुए दोष देखि आच्छादन करै है जो संसारीजीव ज्ञानावरण दर्शनावरण मोहनीय कमके वशि होय अपना स्वभाव भूल रहे हैं कर्मके आधीन असत्य परधनहरण कुशीलादि पापनि में प्रवृत्ति करें हैं जे पापति दूर बतें हैं ते धन्य हैं । बहुरि कोऊ धर्मात्मा पुरुष (नामी पुरुष) पापके उदय चूकि जाय ताकू देखि ऐसा विचारै जो यो दोष प्रगट होसी तो अन्य धर्मात्मा भर जिन धर्मकी बड़ी निन्दा होसी या जानि दोष आच्छादन करै अर अपना गुण होय ताकी प्रशंसा का इच्छुक नाहीं होय है सो यो उपगूहनगुण सम्यक्त्वको है इन गुणनितैं पवित्र उज्ज्वल दर्शन विशुद्धता नाम भावना होय है । बहुरि जो धर्मसहित पुरुषका परिणाम कदाचित् रोगकी ३६१ ) वेदनाकरि धर्म चलि जाय तथा दारिद्रकरि चलि जाय तथा उपसर्ग परीसहनिकरि चलिजाय तथा असहायताकरि तथा आहारपानका निरोधकरि परिणाम धर्मर्ते शिथिल हो जाय ताकू उपदेशकरि धर्म में स्थम्भन करै । भो ज्ञानी भो धर्मके धारक ! तुम सचेत होहू कैसे कायरता धारणकरि धर्ममें सिथिल भए हो जो रोगकी वेदना धर्म चिगो हो, ज्ञानी होय कैसैं भूलो हो यो असतावेदनकर्म अपना अवसर पाय उदय में आ गया है अब जो कायर होय दीनताकरि रुदनविलापादि करते भोगोगे तो कर्म नाहीं छोड़ेगा कर्मके दया नाहीं होय है और धीर तो कर्म नाहीं छोड़ेगा कोऊ देवदानव मन्त्रतन्त्र औषधादिक तथा स्त्री, पुत्र, मित्र, बांधव सेवक सुभटादिक उदयमें आया कर्म हरनेकू' समर्थ है नाहीं यो तुम अच्छी तरह समझो हो अब इस वेदनामें कायर होय अपना धर्म अर यश अर परलोक इनकू कैसें विगाडौ हो अर इनकू' विगाड़ि स्वच्छंद चेष्टा विलापादि करनेतैं वेदना नाहीं घटै है ज्यों ज्यों कायर होवोगे त्यों त्यों वेदना दुःख बढैगा । तातैं अब साहस धारण करि परमधर्मका शरण ग्रहण करो । संसारमें नरकके तथा तिर्यंचनिके क्षुधा तृषा रोग सन्ताप ताडन मारण शीत उष्णादिक घोर दुःख असंख्यातकाल पर्यन्त अनेक वार अनन्तभव धारण करि भोगे ये तुम्हारै कहा दुःख है अल्पकाल में निर्जरैगा अर रोग वेदना देहकू मारैगा तुम्हारा चेतनस्वरूप आत्माकू नाहीं मारैगा श्रर देहका मारना अवश्य होयगा जो देह धारण किया ताकै अवश्यंभावी मरण है सो अब सचेत होहू यो कर्मका जीतवाको अवसर है अब भगवान पंच परमेष्ठीका शरण महणकर अपना अमर अखंड ज्ञाता दृष्टा स्वरूपका ग्रहण करो ऐसा अवसर फेरि मिलना दुर्लभ है इत्यादिक धर्मका उपदेश देय धर्ममें दृढ़ करना अर अनित्य रादिभावनाका ग्रहण शीघ्र करावना, त्याग व्रतादिक छांडि दिये होंय तो फिर ग्रहण करावना तथा शरीरका मर्दनादिक करि दुःख दूरि करना अर कोऊ टहल करनेवाला नाहीं होय तो आप टहल करना अन्य साधर्मीनका मेल मिला देना आहार पान औषधादिकर स्थितिकरण करना तथा मलमूत्र कफादिक होय तो धोवना पूछना इत्यादिक करि स्थिर करना तथा दारिद्रकरि चलायमान होय तिनका भोजनपानादिककरि आजीविकादिक लगाय देने करि, उपसर्ग परीषहादिक दूर करनेकरि सत्यार्थधर्म में स्थापन करना सो स्थितिकरण अंग सम्यग्दृष्टिके होय है । बहुरि वात्सल्य नामगुण सम्यग्दृष्टिके होय है संसारी जीवनिकी प्रीति तो अपने स्त्रीपुत्रदिकनिमें तथा इन्द्रियनिके विषयभोगनिमें धनके उपार्जनमें बहुत रहै है जाकै स्त्री पुत्र धन परिग्रह विषयादिकनिकू संसारपरिभ्रमरण के कारण जानि रंग विरागता धारण करि जाकी धर्मात्मा में रत्नत्रयके धारक मुनि अर्जिका श्रावक श्राविका वा धर्मके आयतननिमें अत्यन्त प्रीति होय ताकै सम्यग्दर्शनका वात्सल्य होय है । बहुरि जो अपने मनकरि वचनकरि कायकरि धनकरि दानकरि व्रतकरि तपकर भक्तिकरि रत्नत्रयका भाव प्रगट करै सो मार्ग प्रभावना अंग है। याका विशेष प्रभावना अगकी भावनामें वर्णन करियेगा । ऐसें सम्यग्दर्शन के अष्ट धारण करने इन गुणनिका प्रतिपक्षी शंकाकांक्षादिक दोषनिका अभावकरि दर्शना( ३६३ ) विशुद्धता होय है। बहुरि लोकमूढता देवमूढता गुरुमूढताका परिणामनिकू छांडि श्रद्धानकू उज्वल करना । अब लोकमूढताका स्वरूप ऐसा है जो मृतकनिका हाड नखादिक गंगामें पहुँचाने में मुक्ति भई मानै हैं तथा गंगाजलकू उत्तम मानना तथा गंगास्नानमें अन्य नदीके स्नानमें नदीकी लहर लेने में धर्म मानना तथा मृतक भर्ता के साथ जीवती स्त्री तथा दासी अग्निमें दग्ध होजाय ताकू सतीमानि पूजना मरयाकू पितर मानि पूजना पितरनिकू पातडी में स्थापन करि पहरना तथा सूर्यचन्द्र मंगलादिक ग्रहनिकू सुवर्णरूपाका बनाय गले में पहरना तथा ग्रहनिका दोष दूरि करनेकू दान देना संक्रांति व्यतिपात सोमोती अमावसी मानि दान करना सूर्यचन्द्रमाका ग्रहणका निमित्तितें स्नान करना, डाभकू शुद्ध मानना, हस्तीके दंतनिकू शुद्ध मानना कूवा पूजना सूर्यचंद्रमाकू अर्घ देना देहली पूजना मूशलकू' पूजना छककू पूजना, विनायक नामकरि गणेश पूजना, तथा दीपकको जोतिकू' पूजना तथा देवताकी बोलारी बोलना जडूला चोटी रखना देवताकी भेटके करार अपना सन्तानादिककू जीवित मानना सन्तानकू देवताका दिया मानना तथा अपने लाभ वास्ते तथा कार्यसिद्धि वास्तै ऐसी वीनती करै जो मेरे एता लाभ होजाय तथा सन्तानका रोग मिटि जाय तथा सन्तान होजाय वा वैरी का नाश होजाय तो मैं आपके छत्र चढ़ाऊ इतना धन भेट करू ऐसा करार करै है देवताकू सौंक (रिसवत) देय कार्य की सिद्धि के वास्ते वां है। तथा रात जगा करना कुलदेवकू पूजना शीतलाकू' पूजना, लक्ष्मीकू पूजना, सोना रूपाकू' पूजना पशुनिकू पूजना अन्नकू' जलकू' पूजना, शस्त्रकू' वृक्षकू' पूजना, अग्नि देव मानि पूजना सो लोकमढता मिथ्यादर्शनका प्रभावर्ते श्रद्धानके विपरीतपना है सो त्यागने योग्य है । बहुरि देवकुदेवका विचाररहित होय कामी क्रोधी शस्त्रधारीहूमें ईश्वरपना की बुद्धि करना जो यह भगवान् परमेश्वर हैं समस्त रचना याकी है ये ही कर्त्ता हैं हर्त्ता हैं जो कुछ होय है सो ईश्वरको कियो होय है, समस्त छी बुरी लोकनिसू. ईश्वर करावे है ईश्वरका किया बिना कळू ही नाहीं होय है, सब ईश्वर की इच्छाके आधीन है शुभकर्म ईश्वरकी प्रेरणा बिना नाहीं होय है इत्यादिक परिणाम मिथ्यादर्शनके उदयकरि होय सो देवमूढ़ता है। बहुरि पाखण्डी हीन-चार धारक तथा परिग्रही, लोभी विषयनिका लोलुपीनिकू करामाती मानना, वाका वचन सिद्ध मानना तथा ये प्रसन्न हो जाय तो हमारा वांछित सिद्ध हो जाय ये तपस्वी हैं, पूज्य हैं, महापुरुष हैं, पुराण हैं इत्यादिक विपरीत श्रद्धान करै सो गुरुमूढता है तातैं जिनके परिणामनितैं इन तीनमूढताका लेशमात्र हू नाहीं होय ताकै दर्शनकी विशुद्धता होय है । बहुरि छह अनायतनका त्याग करि दर्शनविशुद्धता होय है कुदेव कुगुरु कुशास्त्र अर इनके सेवन करने वाले ये धर्मके आयतन कहिये स्थान नाहीं तातैं ये अनयतन हैं । भावार्थ - जो रागी द्वेषी कामी क्रोधी लोभी शस्त्रादिक सहित मिथ्यात्वकार सहित हैं तिनमें सम्यक् धर्म नाहीं पाईये तातैं कुदेव हैं ते अनायतन हैं । बहुरि पंचइन्द्रियनिके विषय निके लोलुपी परिग्रहके धारी आरंभ करनेवाले ऐसे भेषधारी ते गुरु नाहीं, धर्महीन हैं तातैं अनायतन हैं । बहुरि हिंसाके आरंभकी प्रेरणा करने( ३६५ ) वाला रागद्वेषकामादिक दोषनिका बधावनेवाला सर्वथा एकान्तका प्ररूपक शास्त्र हैं ते कुशास्त्र धर्मरहित हैं ता अनायत है बहुरि देवी दिहाडी क्षेत्रपालादिक देवकू वंदने वाले अनायतन बहुरि कुगुरुनिके सेवक हैं भक्ति धर्म रहित हैं ते अनाया है बहुरि मिथ्याशास्त्रके पढ़नेवाले अर इनकी सेवाभक्ति करनेवाले एकांती धर्मका स्थान नाहीं तारौँ अनायतन हैं ऐसे कुदेव कुगुरु कुशास्त्र अर इनकी सेवा भक्ति करनेवाले इन छहूनिमें सम्यकधर्म नाहीं है ऐसा दृढ़श्रद्धानकरि दर्शनविशुद्धता होय है । बहुरि जातिमद कुलमद ऐश्वर्यमद रूपमद शासनका मद तपकामद बलकामद विज्ञानमढ़ इन अष्ट मदनिका जाकै अत्यन्त प्रभाव होय है ताकै दर्शनविशुद्धता होय है सम्यग्दृष्टि के सांचा विचार ऐसा है हे आत्मन् ! या उच्च जाति है सो तुम्हारा स्वभाव नाहीं यह तो कर्मकी परिणमनि है, परकृत है विनाशीक है, कर्मनिके अधीन है। संसार अनेकवार अनेक जाति पाई हैं माताकी पक्षकू जाति कहिये है जीव अनेक बार चांडालोके तथा भीलनीके तथा म्लेक्षणीके चमारी के धोबन के नायणिके डूमणिके नटनीके वेश्याके दासीके कलालीके धीवरी इत्यादि मनुष्यनिके गर्भमें उपज्या है तथा सूकरी कूकरी गई भी स्यालणी कागली इत्यादिक तिर्यचनिके गर्भ में अनंतबार उपजि उपजि मरथा है अनन्तबार नीचजाति पावै तब एकबार उच्चजाति पावै फिर अनंतबार नीचजाति पावै तब एकबार उच्चजाति पावै ऐसे उच्च जाति भी अनंतबार पाई तो हू संसारपरिभ्रमण ही किया अर ऐसें ही पिताकी पक्षका कुल हू ऊंचा नीचा अनंतबार प्राप्त भया संसारमें जातिका, कुलका मद कैसें करिये है स्वर्गका महर्द्धिकदेव मरिकरि एकेन्द्रिय उपजै है तथा श्वानादिक निद्य तिर्यचनिमें उपजै है तथा उत्तम कुलका धारक होय सो चांडाल में जाय उपजै तातैं जातिकुल अहंकार करना मिथ्यादर्शन है । हे आत्मन् तुम्हारा जातिकुल तो सिद्धनिके समान है तुम आपाभूलि माताका रुविर पिताका वीर्यतै उपजे जाति कुल में मिथ्या घरि फेरनन्तकाल निगोदवास मति करो । वीतरागका उपदेश ग्रहण किया है तो इस देहकी जातिकू हू संयम शील दया सत्यवचनादिकरि सफल करो जो में उत्तम जातिकुल पाय नीचकर्मीनिकेसे हिंसा असत्य परधनहरण कुशीलसेवन अभक्ष्य भक्षणादि योग्य आचरण कैसे करू नाही करू ऐसा अहंकार करना योग्य है सम्यग्दृष्टिके कर्मकृत पुद्गलपर्याय में कदाचित आत्मबुद्धि नाहीं होय है । बहुरि ऐश्वर्य पाय ताका मद कैसे करिये यो ऐश्वर्य तो आग भुलाय बहु आरंभ रागद्वेषादिकमें प्रवृत्ति कराय चतुर्गति में परिभ्रमणका कारण है और निर्मंथपना तीनलो कमें ध्यावने योग्य है पूज्य है अर यो ऐश्वर्य क्षणभंगुर है बड़े । २ इंद्र निका पतनसहित है बलभद्र नारायणनिका ऐश्वर्य चरणमात्रमें नष्ट हो गया अन्य जीवनिका ऐश्वर्य केताक है ऐसें जानि ऐश्वर्य दोय दिन पाया है तो दुःखित जीवनिका उपकार करो विनयवान होय दान देहु परमात्मस्वरूप अपना ऐश्वर्य जानि इस कर्मकृत ऐश्वर्य में विरक्त होना योग्य है । बहुरि रूपका मद मति करो यो विनाशीक पुद्गलको रूपमा स्वरूप नाहीं विनाशीक है क्षणक्षरण में नष्ट होय है इस रूपकू रोग वियोग दरिद्र जरा महाकुरूप करैगा ऐसा हाडचामका रूपमें रागी होय मद करना बडा अथ है। इस माका रूप तो केवलज्ञान है जिसमें लोक लोक सर्व प्रतिबिंबित होय हैं तातैं चामडाका रूपमें आपा छांडि अविनाशी ज्ञानस्वरूप में आपाधारहू । बहुरि श्रुतका गर्वकू छांडहू आत्मज्ञानरहितका श्रुत निष्फल है, जातै एकादश अंगका ज्ञान सहित होय करके हूं अभव्य संसारहीमें परिभ्रमरण करै है सम्यग्दर्शन विना अनेक व्याकरण छंद अलंकार काव्य कोषादिक पढना विपरीत धर्ममें अभिमान लोभमें प्रवर्तन कराय संसाररूप अंध डुवोबनेके । और इस इंद्रियजनित ज्ञानका कहा गर्व है एकक्षण में वातपित्तकफादिकके घटनेबधने ज्ञान चलायमान हो जाय है अर इंद्रियजनित ज्ञान तो इनका विनाशकी साथ हो विनशैगा अर मिथ्याज्ञान तो ज्यों बंधैगा त्यों खोटे काव्य, खोटी टीकादिकनिकी रचनामें प्रवर्तन कराय अनेक जीवनिकू दुराचार में प्रवर्तन कराय डबोय देगा तारौँ श्रुतका मद छांडहू, ज्ञान पाय आत्मविशुद्धता करहू, ज्ञान पाय अज्ञानी कैसे आचरणकरि संसार में भ्रमण करना योग्य नाहीं । बहुरि सम्यक्त्व विना मिथ्यादृष्ट्रिका तप निष्फल है तपको मद करो हो जो मैं बडा तपस्वी हूं सो मदके प्रभाव बुद्धि नष्टकरिकेँ यो तप दुर्गति में परिभ्रमण करावेगा तातैं तपका गर्व करना महा अनर्थ जानि भव्यनिकू तपका गर्व करना योग्य नाहीं है । बहुरि जिस बलकरि कर्मरूप वैरीकू जीतिये कथा काम क्रोध लोभकू जीतिये सो बल तो प्रशंसायोग्य है और देहका बल यौवनका बल ऐश्वर्यका बल पाय अन्य निर्बल अनाथ जीवनिकू मारिलेना, धनखोसिलेना जमी जीविका खोसिलेना, कुशील सेवनकरना, दुराचार में प्रवर्तन
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हाल ही में रूस में दिखाई दियामेरा व्यवसाय नामक एक संबद्ध कार्यक्रम, जिसका मुख्य उद्देश्य ऑनलाइन अकाउंटिंग को लागू करना है यह उत्पाद अधिक लोकप्रिय हो रहा है, और इसके अस्तित्व के दौरान पहले से ही सैकड़ों हद तक अनुयायी जीतने में कामयाब हो गया है। और यह आश्चर्य की बात नहीं है आखिरकार, सिस्टम संपूर्ण लेखा पद्धति को पूरा करने में सक्षम है, साथ ही वर्तमान उपयोगकर्ता को वर्तमान विशेषज्ञ सलाह और सेवाएं प्रदान करता है। "माय केस" नामक सेवा का इतिहास शुरू हुआवर्ष 200 9 में कंपनी की स्थापना आईटी प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में काम कर रहे दो व्यापारियों द्वारा की गई - मैक्सिम यारेमको और सेर्गेई पैनोव पहले से ही 2010 में उनके वंश ने "अर्थशास्त्र और व्यवसाय" के क्षेत्र में रूसी इंटरनेट के विकास में इस तरह का एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जो प्रतिष्ठित "रननेट अवार्ड" के विजेता बन गया। 2011 में, कंपनी को "विशेषज्ञ ऑनलाइन" के क्षेत्र में शीर्ष पांच में सबसे अधिक आशाजनक में शामिल किया गया था। ऑनलाइन लेखा "मेरा व्यवसाय" क्या ऑफर करता है? प्रयोक्ता टिप्पणियाँ, तर्क है कि क्लाउड सेवा उन्हें सचमुच कुछ ही क्लिक करों और योगदान के भुगतान बनाने के लिए करने के लिए, इंटरनेट के माध्यम से किसी भी बयान लेने, कार्य करता है, अनुबंध, बिल, चालान के रूप में और इतने पर .. इसके अलावा की अनुमति देता है इस तरह के बड़े रूसी बैंकों के साथ सेवा एकीकरण के लिए धन्यवाद "Promsvyazbank" और "अल्फा-बैंक", "एसडीएम-बैंक" और "द लोको-बैंक", ग्राहक चालान-प्रक्रिया से स्वचालित रूप से उपयोगकर्ता के इंटरनेट लेखांकन के लिए डाउनलोड करता है के रूप में "मेरा काम।" ग्राहक की निजी कैबिनेट, जिसमें व्यवसायी कर सकते हैंइलेक्ट्रॉनिक कुंजी का उपयोग कर दर्ज करें, बचाता है और प्राप्त सभी डेटा प्रदर्शित करता है। साथ ही, आय और व्यय मदों से नकदी प्रवाह का एक स्वचालित वितरण होता है, राशियों पर करों की गणना होती है, आदि। इंटरनेट अकाउंटेंसी "माय बिज़नेस" उद्यमी को आकर्षित करती है छोटे व्यापार मालिकों से विशेष रूप से, जो अपनी रिपोर्ट बनाए रखते हैं, उनका मानना है कि यह उनके काम को सरल करता है। तिथि करने के लिए, रूसी बाजार पर सेवा के मुख्य लाभ हैंः - "एक खिड़की" मोड का उपयोग, जो एक सेवा में सब कुछ जोड़ रहा है जो लेखांकन और कर्मियों के रिकॉर्ड के लिए जरूरी है; - प्रत्येक अंक की विस्तृत व्याख्या के साथ गणना की पारदर्शिता, जिसमें कैलकुलेटर पर अतिरिक्त सत्यापन शामिल नहीं है; - पेशेवर परामर्शों का कार्यान्वयन, जो कि इंटरनेट अकाउंटेंसी "मेरा व्यवसाय" द्वारा अपने उपयोगकर्ताओं को मुफ्त में दिया जाता है; - कंप्यूटर पर विशेष सॉफ्टवेयर को स्थापित किए बिना, इंटरनेट के माध्यम से एफएसएस, फेडरल टैक्स सर्विस, रोजस्टेट और पेंशन फंड को रिपोर्ट भेजना। ऑनलाइन लेखा कैसे गोपनीय है"मेरा व्यवसाय"? विशेषज्ञों की समीक्षा जिन्होंने सेवा दावे को बनाया है, ग्राहक के लिए डेटा हानि का कोई खतरा नहीं है। स्थानांतरण के सभी दस्तावेजों को सबसे बड़े बैंकों में उपयोग किए गए SSL कोड के साथ एन्क्रिप्ट किया गया है। इसके अलावा, सभी क्लाइंट सूचना यूरोप में विशेष सर्वर पर संग्रहीत की जाती है, और वित्तीय क्षति पूरी तरह से बीमा है। आज, मौजूदा कानून के अनुसार,कंपनी खुद को कई संगठनात्मक और कानूनी रूपों और कराधान की व्यवस्था में से एक चुन सकती है। हालांकि, शुरुआती व्यवसायियों की एक विस्तृत सूची से, एक नियम के रूप में, चुनेंः - व्यक्तिगत उद्यमिता; - एलएलसी - सीमित देयता कंपनी; - एनसीओ संगठन का एक गैर-लाभकारी प्रकार है; - नगरपालिका एकात्मक उद्यम - एक नगर निगम एकात्मक उद्यम का रूप। किस संगठन के लिए ऑनलाइन अकाउंटिंग कार्य होता है"मेरा व्यवसाय"? सेवा सेवाएं केवल एलएलसी और आईपी के लिए हैं जो भी इस कार्यक्रम के माध्यम से अपने मामलों के प्रबंधन में रुचि रखते हैं, वह इस सूचना को संगठनात्मक और कानूनी रूप चुनने के स्तर पर लेना चाहिए। कंपनियों के बीच मतभेद हैंकराधान प्रणाली उनमें से केवल दो हैं यह एक सामान्य प्रणाली (ओएसएस) और सरलीकृत है - (यूएसएन)। उनमें से सबसे पहले संगठन को अपने शास्त्रीय रूप में लेखांकन रखना चाहिए। यह शासन छोटी कंपनियों के लिए लाभहीन है, लेकिन बड़े संगठन इसे मना नहीं कर सकते सरलीकृत कराधान प्रणाली के साथ, उद्यम में कम कर का बोझ होता है ऐसे शासन को कानूनी रूप से छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों के लिए निर्धारित किया गया है और इनमें चार किस्म हैंः यूएसएन 6%, 15%, साथ ही यूटीआईआई और यूएससीएन। नया इंटरनेट अकाउंटेंट कौन है? एसटीएस आईपी के लिए पहले तीन प्रकार ये सिस्टम हैंः - "एसटीएस आय", जब कर की रिपोर्टिंग अवधि के लिए राजस्व की मात्रा का 6% की दर से भुगतान किया जाता है; - आय की मात्रा और लागत की मात्रा के बीच अंतर के 15% की राशि में कराधान के आवेदन के साथ "आय से कम व्यय"; मेरी कंपनी अपने ग्राहकों को किस तरह का भुगतान करती है?(ऑनलाइन अकाउंटिंग)? सेवाओं के लिए टैरिफ अलग-अलग हैं वे प्रत्येक उपयोगकर्ता द्वारा अलग-अलग चुना जाता है और प्रस्तुत आवश्यकताओं और वित्तीय संभावनाओं पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी आईपी के लिए ऑनलाइन अकाउंटिंग, कर्मचारियों के बिना काम करना, 333 rubles प्रति माह खर्च होगा। यह सबसे सस्ता सेवा योजना है अधिक बड़े आईपी और एलएलसी "माय केस" (छोटे व्यवसायों के लिए इंटरनेट अकाउंटिंग) सेवाओं की एक अधिक विस्तृत सूची प्रदान करता है, जिसकी लागत 1499 रूबल होगी। प्रति माह यह सबसे महंगी प्रणाली टैरिफ योजना है इन सेवाओं के लिए न्यूनतम सदस्यता अवधि 12 महीने की अवधि है। ग्राहकों की समीक्षाओं के अनुसार, "मेरा व्यवसाय" नामक एक सेवा शुरुआती कारोबार के लिए बहुत ही लाभप्रद ऑनलाइन लेखा है, जो उद्यमियों को रिकॉर्ड रखने के लिए समय और पैसा बचाने की अनुमति देता है। यह सेवा खोलने का अवसर प्रदान करती हैखुद के व्यवसाय मिनटों में और किसी भी समय। यह हमारे देश में कहीं से भी किया जा सकता है, और पूरी तरह से मुक्त है। ऐसा करने के लिए, आपको उपयुक्त निर्देश सीखने और इसे व्यवहार में लागू करने की आवश्यकता है। 15 मिनट के लिए अपना खुद का व्यवसाय खुला होगा! ऐसी सेवा प्रदान की गई है जिन्होंने आईपी या एलएलसी खोलने का फैसला किया था। उपयोगकर्ता प्रतिक्रिया के अनुसार, साइट का इंटरफ़ेस, परजो छोटे व्यवसायों के लिए जिम्मेदार है, काम में काफी सरल और सुविधाजनक है। इसकी रंग योजना इस तरह से चुनी जाती है कि यह आंखों को परेशान नहीं करती है। ग्राहकों द्वारा और आसानी से निर्मित साइट नेविगेशन चिह्नित। सभी वस्तुओं का एक स्पष्ट और तार्किक विभाजन है। कार्यक्रम की आंतरिक संरचना भी trifles के माध्यम से सोचा है। ऐसे अवसरों और लाभों पर ग्राहकों की प्रतिक्रिया जो कि ऑनलाइन बहीखाता पद्धति प्रदान करता है, कार्यक्रम के मुख्य पृष्ठ पर पाई जा सकती है। आईपी और छोटे व्यापार प्रस्तावों के लिए इंटरनेट अकाउंटिंगः - "मेघ" में दस्तावेज़ बनाएं और संचालन करें कार्यक्रम में कुछ ही क्लिक में, बिल और अनुबंध, चालान और प्रमाण पत्र, और मजदूरी की गणना भी है। - करों की गणना, रिपोर्ट भेजें, ऑनलाइन फीस का भुगतान करें, और मनसे निरीक्षण के साथ जांच करें। - निपटान खाते पर स्वचालित रूप से भुगतान आदेश और विवरण का आदान प्रदान करें। - आलेख और आरेखों का उपयोग करके व्यावसायिक विश्लेषण करें। शुरुआती उद्यमियों की सेवा "मेरा व्यवसाय"(ऑनलाइन अकाउंटिंग) का परीक्षण मुफ्त में किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए, आपको कार्यक्रम के मुख्य पृष्ठ पर एक सरल पंजीकरण प्रक्रिया के माध्यम से जाना होगा। एक साधारण डेटा प्लेट में भरना, आपको बस "निः शुल्क के लिए प्रयास करें" बटन पर क्लिक करना होगा उसके बाद, व्यवसाय करने और आवश्यक कराधान प्रणाली का रूप चुना जाता है। सर्वर के साथ काम करने के बारे में विस्तृत जानकारी संलग्न वीडियो में प्राप्त की जा सकती है। इंटरनेट अकाउंटेंसी "मेरा व्यवसाय" कैसे काम करता है? निजी कैबिनेट के प्रथम पृष्ठ का विवरण, जहां उपयोगकर्ता पहले प्रवेश करता है, काफी आसान और समझ में आता है। "होम" और "धन", "दस्तावेज़" और "स्टॉक", "कॉन्ट्रैक्ट्स" और "कैशियर", "काउंटरपेरिस्ट" और "वेतन", "कर्मचारी" और "बैंक", "Analytics "और" वेबिनार " अधिक विवरण में इन सभी टैब की कार्यक्षमता पर विचार करें। इस टैब में ऐसी सेवाएं शामिल हैंः 1. क्रियाएँ इस टैब के साथ, उपयोगकर्ता प्राथमिक दस्तावेज बनाता है और अपने प्रतिपक्षों के बारे में जानकारी में प्रवेश करता है। 2. कर कैलेंडर। रिपोर्ट तैयार करने और उन पर भुगतान करने के लिए आवश्यक है। 4. इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्टिंग इस टैब की सहायता से, इंटरनेट के माध्यम से भेजे गए उन रिपोर्टों के आंकड़े संकलित किए गए हैं। यह टैब संगठन के वित्तीय लेनदेन के कार्यान्वयन और लेखांकन के लिए एक उपकरण है। इसमें शामिल हैंः 1. नकदी किताब का कुदर और नकली अप ये दस्तावेज़ किसी भी समय डाउनलोड और मुद्रित किए जा सकते हैं। नकद पुस्तक संगठन द्वारा की गई नकद प्राप्तियां और जबरन वसूली की राशि को रिकॉर्ड करती है। कुडिर (आय और खर्च के लेखांकन पर किताब) सभी आईपी और यूएसएन के साथ संगठनों द्वारा आयोजित किया जाता है। इस दस्तावेज़ में कालानुक्रमिक क्रम इस रिपोर्टिंग अवधि में हुई आर्थिक कार्रवाइयों को दर्शाता है। 2. उपलब्ध आय और व्यय पर जानकारी। यह या तो मैन्युअल रूप से या बैंक स्टेटमेंट का उपयोग कर किया जाता है। 3. भुगतान आदेश भेजने की सेवा। इस टैब का प्रयोग, उपयोगकर्ताचालान और कार्य, चालान इत्यादि बनाने की संभावना प्रदान की जाती है। दस्तावेज़ बनाने के लिए, आपको सूची में से किसी एक को चिह्नित करने की आवश्यकता है, और फिर कार्रवाई एल्गोरिदम का चयन करें। इसके बाद, फॉर्म हो सकता हैः - डाउनलोड, मुद्रित और संचरित; - ग्राहक को ई-मेल भेजा गया; - यांडेक्स मनी की मदद से या बैंक कार्ड द्वारा भुगतान के संदर्भ के साथ खुलासा किया गया है। यह टैब भुगतान के लिए जरूरी चालान स्थापित करने, सामग्रियों या सामानों को स्वीकार करने या जहाज भेजने, वेयरहाउस से वेयरहाउस में उत्पादों को स्थानांतरित करने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही, उपयोगकर्ता के आगमन और व्यय के साथ-साथ उस समय शेष सूची पर जानकारी भी होती है। यह टैब कई विकल्प प्रदान करता है। इस पर आप एक टेम्पलेट डाउनलोड कर सकते हैं, अनुबंध बना सकते हैं और किए गए सौदों पर आंकड़े देख सकते हैं। नया दस्तावेज़ बनाने के लिए, क्लाइंट का चयन किया जाता है। साथ ही, आपको ड्रॉप-डाउन सूची से आवश्यक अनुबंध टेम्पलेट का चयन करना होगा। यह स्वचालित रूप से भर जाएगा। ग्राहक विभिन्न अनुबंधों के उन्नीस टेम्पलेट उपलब्ध कराता है, जो सेवा विशेषज्ञों द्वारा बनाए गए थे। दस्तावेज़ के अपने संस्करण को भी प्रोग्राम में लोड किया जा सकता है। यह टैब ड्राफ्ट के रूप में काम करता है। यहां "मनी" सेवा से जानकारी बहती है। यहां, मसौदा आय और निपटारे नकद आदेश बनाया जा सकता है। यह टैब प्रवेश के लिए हैग्राहकों और भागीदारों पर जानकारी। यहां, राज्य रजिस्टर स्टेटमेंट के माध्यम से प्रतिपक्षियों की जांच की जाती है, साथ ही सांख्यिकी उन सभी संगठनों के लिए संकलित की जाती है जिनके साथ उत्पादों की आपूर्ति या बिक्री के लिए अनुबंध समाप्त हो चुके हैं। इस टैब पर, आप कंपनी के कर्मचारियों को नकदी मुआवजे के भुगतान पर सभी जानकारी देख सकते हैं। अर्थात्ः - पूरी तरह से गणना; - प्रत्येक कर्मचारी के लिए गणना; - निपटान चादरें; - समय पत्रक; - करों और योगदान पर बयान; - मौद्रिक मुआवजे का भुगतान। इस टैब के साथ आप अस्पताल और छुट्टी की गणना कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए, आपको केवल कर्मचारी की अनुपस्थिति की तारीखों को ध्यान में रखना होगा। गणना सूत्र और देय कुल रकम स्क्रीन पर दिखाई देगी। यह टैब, जिसमें "मेरा व्यवसाय" सेवा शामिल है(इंटरनेट एकाउंटिंग), उद्यमियों के जीवन को बहुत सरल बनाता है। कार्यक्रम का उपयोग करके, वे इस रूप में प्रभावी रूप से प्रपत्रों के रूपों को भरते हैं, उनकी प्रासंगिकता के बारे में सोचने के बिना। उपयोगकर्ताओं के निपटान में 2000 से अधिक विभिन्न नमूने हैं, जिनमें से एक को सही चुनना आसान है। इस टैब का उपयोग करके, उपयोगकर्ता अपनी आय, व्यय, साथ ही लाभ के आंकड़े देख सकता है। और आप इसे महीनों तक टूटने में विभिन्न अवधि के लिए कर सकते हैं। इस टैब में वे वीडियो हैं जो आपको दिखाते हैं कि कैसे करेंकानून में परिवर्तन यहां वीडियो निर्देश दिए गए हैं, जो आपके व्यक्तिगत कैबिनेट के साथ काम करने में अमूल्य सहायता प्रदान करते हैं। इसके अलावा, उपयोगकर्ता विशेषज्ञों और सफल व्यवसायियों के साथ विभिन्न साक्षात्कार देख सकते हैं। इन टैबों में सेवा "मेरा व्यवसाय" - इंटरनेट एकाउंटिंग शामिल है। हालांकि, उनमें से प्रत्येक ग्राहक के लिए उपलब्ध नहीं है। खोलने के लिए टैब की संख्या चयनित टैरिफ पर निर्भर करती है। "मेरा व्यवसाय" - छोटे के लिए ऑनलाइन लेखांकनव्यापार - वास्तव में एक अद्वितीय प्रणाली है। कार्यक्रम अतिरिक्त सेवाओं तक पहुंच खोलता है, जिसके माध्यम से ग्राहक अपने ग्राहकों की संख्या में वृद्धि कर सकता है और तदनुसार लाभ। तो, मामले के उद्घाटन के बाद, व्यवसायियों की शुरुआतलेखांकन के ऑटोसोरिंग का उपयोग कर सकते हैं। यह गलत दस्तावेज के जोखिम को कम करेगा और एक विशेषज्ञ को आकर्षित करने के लिए पैसे बचाएगा।
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भारत में अपने बूते विकास करने की पूरी क्षमता है। इसके लिए आर्थिक सुधारों और मजबूत आर्थिक नीति की दरकार है। ऐसा कर निवेशकों को भी आकर्षित किया जा सकता है। बता रहे हैं आकाश प्रकाश संकट के लिए चीन के लोग जिस शब्द का आमतौर पर इस्तेमाल करते हैं, वह खतरे और मौके का मिश्रण है और इन परिस्थितियों में दोनों ही भारत पर लागू होते हैं। अगर आर्थिक सुधार के मोर्चे पर हम दोनों को साथ लेकर नहीं चलेंगे तो अर्थव्यवस्था के पास कई साल तक मंदी में फिसल जाने का असली खतरा है। दूसरी ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट भारत के लिए निर्यात आधारित विकास दर के मॉडल वाली अर्थव्यवस्था से अपने आपको अलग करने का असली मौका है। मेरे विचार से खतरा स्पष्ट है, 5 साल तक 8. 5 फीसदी की आर्थिक विकास दर और उत्साहजनक कर राजस्व के बावजूद हमारी राजकोषीय स्थिति जोखिम भरी है। साल 2009 में कुल मिलाकर हमारा राजकोषीय घाटा जीडीपी के 12 फीसदी के स्तर पर रहेगा जो अब तक का रिकॉर्ड होगा। सरकार का अपना अनुमान है कि साल 2010 में यह मामूली गिरकर 10-10. 5 फीसदी पर आ सकता है, बावजूद इसके कि हम जिंसों की कीमत को अनुकूल मानकर चल रहे हैं। दुर्भाग्य से अगर जिंस बाजार में एक बार फिर उछाल आ गया तो इन परिस्थितियों में साल 2010 और भी खराब हो सकता है। आप सवाल कर सकते हैं कि इस समय राजकोषीय स्थिति पर चिंता करने की जरूरत क्या है? क्या पूरी दुनिया में ऐसा नहीं हो रहा है, तो फिर हम अछूते कैसे रह सकते हैं? समस्या यह है कि ऐसे ऊंचे राजकोषीय घाटे की बदौलत हम असुरक्षित हो जाएंगे और विकास दर को बनाए रखने व आधारभूत ढांचे में निवेश की खातिर पूरी तरह से विदेशी पूंजी के प्रवाह पर निर्भर हो जाएंगे। साल 2003 में 27-28 फीसदी पर रहा बचत का स्तर पिछले साल 35 फीसदी पर पहुंच गया था, यह मुख्य रूप से कॉरपोरेट बचत दर में सुधार की बदौलत संभव हो पाया था, जो कि कुल मिलाकर दोगुना हो गया था। (जीडीपी के प्रतिशत के आधार पर) साथ ही संप्रग सरकार के शुरुआती दिनों में सरकारी सेक्टर में गैर-बचत से बचत की तरफ बढने केकारण भी ऐसा मुमकिन हो पाया था। घरेलू बचत में हमें वास्तव में इतना ज्यादा सुधार देखने को नहीं मिला। राजकोषीय स्थिति में कमी आने से सरकार एक बार फिर गैर-बचत की तरफ बढ़ जाएगी। ऐसे में अगर कॉरपोरेट सेक्टर की बात करें तो वहां बचत पिछले साल के मुकाबले आधी रह जाएगी क्योंकि उनके मुनाफेपर भारी असर पड़ा है। इस तरह 35 फीसदी की बचत दर को अगर हम आने वाले साल में 27-28 फीसदी के स्तर पर बनाए रखने में कामयाब रहे तो हम सौभाग्यशाली कहलाएंगे। इस तरह से निवेश की दर भी 37-38 फीसदी से गिरकर 30 फीसदी के आसपास आ जाएगी। विकास और पूंजी निर्माण पर यही असली असर होगा। राजकोष में भारी गिरावट के इस दौर में हम एक और समस्या से घिरने वाले हैं क्योंकि इस साल के लिए सरकारी उधारी तीन लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगी। वैसे साल में जब कॉरपोरेट क्रेडिट की मांग में कमी आ रही है, इस तरह की उधारी घरेलू बचत से पूरी की जा सकती है। लेकिन जैसे ही अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी, घरेलू बचत कॉरपोरेट इंडिया की विकास की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगी, साथ ही बढ़ते सरकारी खर्चों के संबंध में भी। अगर बड़ी मात्रा में विदेशी पूंजी के प्रवाह के बिना हम 12 फीसदी के राजकोषीय घाटे के वित्त पोषण और 8 फीसदी की जीडीपी वृध्दि दर को बनाए रखना चाहते हैं तो ब्याज दर को उचित दर पर रखे जाने का कोई रास्ता नहीं है। बड़ी संख्या में कॉरपोरेट घरानों ने अपने वित्त की दिशा ऑफशोर यानी विदेशों की ओर मोड़ दी है, उनमें से ज्यादातर अब देश में पुनर्वित्त के जरिए आ रहा है। अगर ब्याज दर में बढ़ोतरी हुई तो यह एक बार फिर विकास, निवेश और कंपनियों के मुनाफे पर अवरोध खड़ा करेगा। अन्य मुद्दा है हमारे आधारभूत संरचना में कमी का। संसाधनों में कमी की वजह से सरकार ने इस बाबत पीपीपी रूट यानी सरकारी और निजी क्षेत्र की भागीदारी का सहारा लिया था ताकि इसके लिए पूंजी को आकर्षित किया जा सके। बढ़ते राजकोषीय घाटे के कारण अब आधारभूत संरचना के लिए रकम उपलब्ध नहीं है और अब वैश्विक स्तर पर भी पूंजी उपलब्ध है जो इस खाई को पाट सके। आधारभूत संरचना के कई क्षेत्रों को अब भी नीतिगत रूप से पीपीपी के लिए नहीं खोला गया है। इस संबंध में नीति की बाबत विवाद हो सकता है, लेकिन अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है। सच्चाई यह है कि भारी भरकम राजकोषीय घाटे ने भारत को कॉरपोरेट सेक्टर व आधारभूत संरचना के वित्त पोषण के लिए प्राइवेट विदेशी पूंजी प्रवाह पर निर्भर बना दिया है। मजबूत पूंजी प्रवाह के बिना हम अपनी विकास दर का आकलन करने में सक्षम नहीं हो पा रहे, जैसा कि यह देश अपेक्षा कर रहा है। ऐसे समय में जब हम पूरी तरह पूंजी के प्रवाह पर निर्भर हैं, वैश्विक वातावरण खतरे वाली पूंजी की खातिर ज्यादा प्रतिकूल हो गया है। वर्तमान में लंबी अवधि वाली पूंजी के लिए तरलता के काफी कम स्रोत रह गए हैं या फिर वैसे लोग कम रह गए हैं जो ऐसे खतरे उठाने के लिए तैयार हों। ओईसीडी जहां पूरे बैंकिंग सिस्टम के अर्ध्दराष्ट्रीयकरण की बात कर रहा है, पूंजी देश में वापस लौट जाएगी। हमें इस बात का अहसास करना होगा कि किसी भगवान ने हमें अरबों की पूंजी हासिल करने का अधिकार नहीं दिया है । हमें पूंजी को आकर्षित करने के लिहाज से अपनी नीतियां बनानी होंगी और वैसे वैश्विक वित्तीय निवेशकों में आत्मविश्वास पैदा करना होगा जिन देशों से हमारा कारोबार चलता है। लंबी अवधि के निवेशकों को हमें बताना होगा कि लंबी अवधि तक विकास दर बनाए रखने की जरूरत के हिसाब से हम कठिन आर्थिक फैसले ले सकते हैं। उभरते हुए बाजार में उपलब्ध सीमित पूंजी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उनसे प्रतिद्वंद्विता करनी होगी। हमारी ढांचागत विकास दर को देखते हुए वैश्विक निवेशक एक बार फिर उत्साहित हो सकते हैं। हमारा मानना है कि निवेशक भारत में बने रहेंगे और यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भी आंशिक रूप से सही है कि वित्तीय पूंजी के मामले में इस तरह की कोई प्रतिबध्दता नहीं है। निवेशक वहीं जाएंगे जहां उन्हें अच्छा रिटर्न मिलेगा। ढांचागत राजकोषीय घाटे के मुद्दे से पार पाने के लिए या तो हम अपने खर्चों और सब्सिडी का लक्ष्य तय करें या फिर विनिवेश और सरकारी संपत्ति मसलन स्पेक्ट्रम की बिक्री करें। इन कदमों के अभाव में हम दहाई अंक के राजकोषीय घाटे, ऊंची ब्याज दर, कमजोर आधारभूत संरचना आदि में उलझ जाएंगे। अगर नई सरकार शिक्षा, श्रम नीति, वित्तीय प्रणाली आदि में दूसरी पीढ़ी के सुधार का काम हाथ में ले तो हम निवेशकों का भरोसा लौटा सकते हैं और वैश्विक पूंजी प्रवाह में अपने हिस्से का दावा कर सकते हैं। भारत की स्थिति मजबूत है। हमारी अर्थव्यवस्था बड़ी है जो निर्यात पर कम से कम निर्भर है। देसी बाजार में 65 फीसदी माल खपत होता है और हमारा जनसंख्या का स्वरूप बताता है कि उपभोग का स्तर मजबूत बना रहेगा और हमारी बैंकिंग प्रणाली दिवालिया होने से बची रहेगी। भारत की स्थिति अलग है और हमारी किस्मत भी काफी हद तक हमारे हाथों में ही है। अच्छी नीति उत्पादकता और विकास दोनों में भारी अंतर ला सकती है। अगर हम आर्थिक सुधार करते हैं और मजबूत आर्थिक नीति बनाते हैं तो हम अच्छी तरह विकास कर सकते हैं और निवेशकों को भी आकर्षित कर सकते हैं। यही मौका है जब हम अपने आपको दूसरे से अलग दिखा सकते हैं। Apple जल्द Samsung को पछाड़ बन जाएगी भारत की सबसे बड़ी स्मार्टफोन निर्यातक !
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जनज्वार। वर्ष 2015 में अनुष्का शर्मा की एक फ़िल्म आई थी 'एन-एच 10' याद होगी! झूठी शान के लिए की गई हत्या पर फ़िल्म आधारित थी। फ़िल्म की कहानी ग्रामीण इलाके पर आधारित थी, जिसमें शहर से आया दम्पत्ति भी घटनाक्रमों में शामिल हो जाता है। 'जनज्वार' के फेसबुक पेज पर 15 मई, 2021 को शाम साढ़े सात बजे उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर स्थित घाटमपुर कोतवाली क्षेत्र बिराहीनपुर गांव में घर के अंदर अपनी नाबालिग बेटी और उसके प्रेमी को आपत्तिजनक स्थिति में देखने के बाद ट्रक ड्राइवर पिता द्वारा दोनों को कुल्हाड़ी से काट डालने की ख़बर पर वीडियो पोस्ट किया गया था। 1 जून तक 13 लाख से भी ज्यादा लोगों द्वारा देखे जा चुके इस वीडियो पर तेरह हज़ार से ज्यादा लोग अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुके हैं, एक हज़ार से ज़्यादा लोगों ने इस पर टिप्पणी दी और पांच हज़ार से ज्यादा लोगों ने इस वीडियो को साझा किया है। झूठी शान और नाक की खातिर की गई इस हत्या पर समाज क्या सोचता है, यह हमें इस वीडियो पर लोगों द्वारा की गई टिप्पणियों से पता चल सकता है। उमेश पाल की टिप्पणी पर 136 लोग प्रतिक्रियाएं देते हैं। उमेश पाल कहते हैं पिता ने अगर एक ही को मारा होता तो वह गलत था, आपत्तिजनक हालत में देखने पर दोनों को मारा तो सराहनीय कार्य और वह ऐसा हर बाप को करने के लिए भी कहते हैं, जिससे सबमें डर बना रहे। इस पर टिप्पणी करते हुए सोनी यादव लिखती हैं, हत्या करना अच्छा होता है तो तू भी अपनी बेटी को मार दे। उमेश के लिखे पर सोनी की इस टिप्पणी पर ही तीन-चार लोग सोनी नाम की महिला के लिए जिस तरह की भाषा का प्रयोग और गाली - गलौज करते हैं, उससे हमारे समाज की महिलाओं के प्रति मानसिकता को समझने में भी मदद मिलती है। एडीवी मंजूर शेख तो यह निर्णय ही नहीं ले पा रहे कि वास्तव में लिखना क्या चाहिए, उनकी टिप्पणी है कि अपनी नाबालिग लड़की को ऐसे हालत में बालिग के साथ देखा होगा तो ज़ाहिर सी बात है गुस्से में मार दिया, हालांकि किसी को जान से मारना गलत है। सतीश यादव हिंदू धर्म के ठेकेदार जान पड़ते हैं और लिखते हैं बहुत सही किया, हर एक परिवार वालों को ऐसा ही करना चाहिए, ताकि हिन्दू संस्कृति खत्म होने से पहले बच सके और कोई दूसरा ऐसा करने से पहले सौ बार सोचे। ओम प्रकाश वैष्णव ओम अपने नाम के मुताबिक विचार वाले लगते और न ही उनकी लिखी हिंग्लिश समझ आती है, इसलिए विनय कुमार की टिप्पणी ली, हिंग्लिश में लिखी यह टिप्पणी समझनी थोड़ा आसान है। वह लिखते हैं कि जब वार्निंग दी थी तो नही जाना चाहिए, सही किया। पिंकी वर्मा शालिनी वर्मा को उन बच्चों की मां से हमदर्दी थी और उन्होंने इस बात को गलत कहा। संदीप पटेल कहते हैं, यह उस तरह की लड़कियां हैं जो प्यार में पड़कर बाद में कहती हैं मुझे मेरा बाप मार डालेगा। इनको मार के इनकी दोनों लाशों को भी ठिकाने लगा देना चाहिए था, पुलिस से कहना था * फलाने के साथ भाग गई। अल सबर लिखते हैं, बहुत ही सराहनीय काम किया है भाई ने, बहुत परिश्रम से परवरिश होती है बच्चों की। जगबीर कुमार लिखते हैं, बाप ने बिल्कुल सही किया है और हर एक बाप का ये करना भी जरूरी है। दलजीत सिंह ने लिखा बहुत बढ़िया करे भाई, सत्यम सिंह भी सही किया लिखते हैं। आफ़ताब आलम भी अच्छा किया लिख हत्यारे पिता के पक्ष में हैं। यानी यहां एक बात समझ में आती है कि धर्म के ठेकेदार चाहे हिंदू हों या मुस्लिम वह इस तरह बाप द्वारा हत्या किये जाने का समर्थन करते नजर आते हैं। ख़ुर्शीद अहमद ने लिखा, सही किया, पागल हो गए हैं आशिक़ी के चक्कर में पूरा घर रुलाया। प्यार मध्यमवर्गीय के लिए नही, अमीरों की मज़े लेने की चीज़ है। भोगेन्द्र राज रॉय ने भी लिखा, बहुत सही किया। किशोर भाई लिखते हैं लाइफ़ में पहली बार किसी बाप ने अपना फ़र्ज़ निभाया। अब आंखें खोलो दुनिया वालों और इनका साथ दो। बसंत प्रजापति ने लिखा कि गुस्सा किसी तूफान से कम नहीं होता, लेकिन जो हुआ अफ़सोस की बात है। सेना के जवान की पेंटिंग को अपनी प्रोफाइल पिक्चर बनाए रियाज़ अहमद लिखते हैं कानून को अपने हाथ में नही लेना था पिता को बट सही किया!!! धर्मराज सिंह लिखते हैं कि वेरी गुड, बहुत सही किया है बाप ने। जसवीर ठाकुर ने लिखा बहुत अच्छा किया है। संतोष सिंह लिखते हैं ऐसे पिता को सैल्यूट बनता है। नीरज कुमार ने लिखा बहुत सही किया बाप ने। विनय जाटव भी पिता की तरफ़ रहते हुए लिखते हैं एकदम सही किया। अहमद खान किसी विद्यालय के मास्टर या किसी क्रिकेट टीम के कोच जान पड़ते हैं, वह लिखते हैं गुड जॉब अच्छा किया बाप ने। पाल अग्रवाल तो राजनीति और एक हिंदी फ़िल्म में अमरीश पुरी के निभाए किरदार मोगेम्बो से ज्यादा ही प्रेरित दिखाई लगते हैं, वह लिखते हैं योगी खुश हुआ, लड़की के बाप को बुलाइए इनाम मिलेगा। रमेन्द्र द्विवेदी लिखते हैं लड़की का पिता सही है अपनी जगह। आरती मिश्रा सवाल पूछना चाहती हैं या अपनी राय दे रही हैं यह समझ नही आता। वह लिखती हैं कि गलत क्या किया दोनों को मार दिया। एमडी शरीफ नाम के अनुसार बेहद शरीफ़ नज़र आते हैं और चुपके से टिप्पणी पर करेक्ट का स्टिकर चिपका देते हैं। संदीप पाल पहले ऐसे व्यक्ति नज़र आते हैं, जिन्हें प्यार करने वालों से हमदर्दी है वह लिखते हैं क्या प्यार करना गलत है भाई। वीडियो में की गयीं अधिकतर टिप्पणियां नफ़रत से भरी हुई थी, इतनी लिजलिजी कि इंसानियत शरमा जाये। मोटामोटी आंकड़ा निकाला जाये तो केवल चार प्रतिशत लोगों को मरने वालों से सहानुभूति थी, बाकि सबका यही कहना था कि पिता ने ऐसा कर ठीक ही किया। टिप्पणी करने वाली महिलाओं की बात करें तो लगभग साठ प्रतिशत महिलाओं को प्रेमी जोड़े से सहानुभूति थी और चालीस प्रतिशत ने पिता को ही सही बताया। सबसे बड़ी बात यह है कि नफ़रत भरी टिप्पणी करने वाले अधिकतर वह लोग हैं, जिन्हें न हिंदी अच्छे से लिखने आती है और न ही अंग्रेज़ी और इनका ज्यादातर ज्ञान वाट्सएप यूनिवर्सिटी से जुटाया गया लगता है। अगर इनके परिवार वालों को ही यह टिप्पणियां पढ़ा दी जाएं तो मारे शर्म के इनका मुंह लाल हो जाए। इस वीडियो के साथ की गयी टिप्पणियों में जिस अभद्र और अश्लील भाषा का प्रयोग किया गया है, उससे लगता है कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध ऐसे ही लोगों की वज़ह से लगाया जाता है, जो ऐसे मौकों का फ़ायदा उठा हिंसा फैलाते हैं, इन लोगों की न कोई जाति होती है न धर्म। किसी मशहूर व्यक्ति के सोशल मीडिया अकाउंट पर यह लोग उसकी टांग खींचने या उसे मुफ्त का ज्ञान देने से पीछे नहीं रहते। जनज्वार ने यह प्रयोग पत्रकारिता में अब तक लगभग असंभव माने जाने वाले फीडबैक को प्राप्त करने के लिए किया गया है, जिससे यह पता चले कि समाचारों में दिखाई जा रही इन खबरों के प्रति समाज के लोगों का क्या नज़रिया है, क्या ऐसी खबरों को दिखाए जाने के बाद लोग ऐसे अपराध कम करते हैं , क्या अपने मन में इतनी नफ़रत पाले इन लोगों को पत्रकारिता के माध्यम से जागरूक कर सुधारा जा सकता है। भारतीय समाज आज चाहे कितना भी पश्चिम का आडम्बर ओढ़ ले, पर अपने समाज में उसे आज भी प्रेम सम्बन्धों से नफ़रत है। वह इसे अनैतिक मानता है, यह हमारी शिक्षा प्रणाली और संस्कारों की ही कमी है जो हम आज तक अपनी अगली पीढ़ी को प्रेम, महिलाओं के सम्मान के अर्थ नही समझा पाए। यह झूठी आन की वज़ह से ली जा रही मौतें जाने कब ख़त्म होगी।
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पवित्रताका संचार होता है। इसी बातको मौर अच्छे शब्दों में निम्नकारिकाद्वारा स्पष्ट किया गया है-स्तुतिः स्तोतुः साधोः कुशलपरिणामाय स तदा भवेन्मा वा स्तुत्यः फलमपि ततस्तस्य च सत. किमेवं स्वाधीन्याज्जगति सुलभे श्रायसपथे स्तुयान्न त्वा विद्वान्सततमभिपूज्यं नमिजिनम् ।।११६॥ इसमें बतलाया है कि- 'स्तुतिके समय और स्थानपर स्तुत्य चाहे मौजूद हो या न हो और फलकी प्राप्ति भी चाहे सीधी ( Direct ) उसके द्वारा होतो. हो या न होती हो, परन्तु आत्मसाधना में तत्पर साधुस्तोताकी - विवेकके साथ भक्तिभावपूर्वक स्तुति करनेवालेकी स्तुति कुशलपरिणामकी - पुण्यप्रसाधक या पवित्रता- विधायक शुभभावोंकी-कारण जरूर होती है; और वह कुशलपरिणाम अथवा तज्जन्य पुण्यविशेष श्रेय फलका दाता हैं। जब जगत में इस तरह स्वाधीनतासे श्रेयोमार्ग सुलभ है - स्वयं प्रस्तुत की गई अपनी स्तुतिके द्वारा प्राप्य है - तब हे सर्वदा अभिपूज्य नमि-जिन ! ऐसा कौन विद्वान् - परीक्षापूर्वकारी मथवा विवेकी जन- है जो आपकी स्तुति न करे ? करे ही करे। अनेक स्थानोंपर समन्तभद्रने जिनेन्द्रकी स्तुति करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए अपनेको अज्ञ ( १५ ), बालक (३०) तथा अल्पधी ( ५६ ) के रूप में उल्लिखित किया है; परन्तु एक स्थानपर तो उन्होने अपनी भक्ति तथा विनम्रता की पराकाष्ठा ही कर दी है, जब इतने महान् ज्ञानी होते हुए और इतनी प्रौढ स्तुति रचते हुए भी वे लिखते हैं - त्वमीदृशस्तादृश इत्ययं मम प्रलाप-लेशोऽल्प- मतेर्महामुने ! अशेष-माहात्म्यमनीरयन्नपि शिवाय संस्पर्श इवाऽमृताम्बुधेः ॥७०॥ '( हे भगवन् ! ) आप ऐसे है, वैसे है - प्रापके ये गुरण हैं, के गुर है-इस प्रकार स्तुतिरूपमें मुझ अल्पमंतिका-यथावत् गुणोंके परिशानसे रहित स्तोताका - यह थोड़ासा प्रलाप है । ( तब क्या यह निष्फल होगा ? नहीं । ) अमृतसमुद्रके अशेष माहात्म्यको न जानते और न कंथन करते हुए भी जिस प्रकार उसका संस्पर्श कल्याणकारक होता है उसी प्रकार हे महामुने ! आपके भशेष माहात्म्यको न जानते और न कथन करते हुए भी मेरा यह थोडासा प्रलाप आपके गुरगोके सस्पर्शरूप होनेसे कल्यारणका ही हेतु है।' इससे जिनेन्द्र गुणोका स्पर्शमात्र थोडासा मधूरा कीर्तन भी कितना महत्त्व रखता है यह स्पष्ट जाना जाता है। जब स्तुत्य पवित्रात्मा, पुण्य गुणोकी मूर्ति और पुण्यकीर्ति हो तब उसका नाम भी, जो प्राय गुरण प्रत्यय होता है, पवित्र होता है और इसीलिये ऊपर उद्धृत ८७ वी कारिकामें जिनेन्द्र के नाम कीर्तनको भी पवित्र करनेवाला लिखा है तथा नीचेकी कारिकामे, प्रजितजिनकी स्तुति करते हुए, उनके नामको 'परमपवित्र' बतलाया है और लिखा है कि आज भी अपनी सिद्धि चाहनेवाले लोग उनके परमपवित्र नामको मगलके लिये - पापको गालने अथवा विघ्नबाधाप्रोका टालनेके लिये -- बडे आदरके साथ लेते हैंअद्यापियाडजित शासनस्य सतां प्रणेतुः प्रतिमंगलार्थम् । प्रगृह्यते नाम परम पवित्र स्वसिद्धि-कामेन जनेन लोके ।।७।। जिन अनोका नाम-कीर्तन तक पापोको दूर करके आत्माको पवित्र करता है उनके शरण में पूर्ण हृदय से प्राप्त होनेका तो फिर कहना ही क्या है - वह तो पाप-तापको और भी अधिक शान्त करके आत्माको पूर्ण निर्दोष एवं सुख-शान्तिमय बनाने में समर्थ है । इसीसे स्वामी समन्तभद्रने अनेक स्थानोपर ततस्त्वं निर्मोहः शरणमसि न. शान्ति-निलय.' (१२०) जैसे वाक्यो के साथ अपनेको अर्हतोकी शरण मे अर्पण किया है । यहा इस विषयका एक खास वाक्य उद्धृन किया जाता है, जो शरण-प्राप्ति कारण के भी स्पष्ट उल्नेखको लिये हुए हैस्वदोष-शान्त्या विहितात्म-शान्तिः शाम्तेर्विधाता शरणं गतानाम् । भूयाद्भव-क्लेश भयोपशान्त्यै शान्तिर्जिनो मे भगवान् शरण्यः ।।८।। इसमे बतलाया है कि 'वे भगवान् शाक्लिजिन मेरे शरण्य है- मैं उनकी शरण लेता हूँ-- जिन्होने अपने दोनोक्री - प्रज्ञान, मौह त्या राय-द्वेष-कामकोषादि-विकारोकी --शान्ति करके मात्मामें परमशान्ति स्थापित की है- पूर्ण सुखस्वरूपा स्वाभाविकी स्थिति प्राप्त की है - पोर इसलिये जो शरणागनोंको ऋतिविष है उनमें अपनेमभावसे क्षेपोंकी शान्ति करके शान्तिजैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश सुखका संचार करने प्रथवा उन्हें शान्ति सुखरूप परिणत करने में सहायक एवं निमित्तभूत है । अतः ( इस शरणागतिके फलस्वरूप ) वे शान्तिजिन मेरे संसार - परिभ्रमणका अन्त भौर सांसारिक क्लेशों तथा भयोंकी समाप्तिमें कारगीभूत होंवें ।' यहां शान्तिजिनको शरणागतोंकी शान्तिका जो विधाता (कर्ता ) कहा है उसके लिये उनमें किसी इच्छा या तदनुकूल प्रयत्नके भारोपकी जरूरत नही है, वह कार्य उनके 'विहितात्म-शान्ति' होनेसे स्वयं ही उस प्रकार हो जाता है जिस प्रकार कि भग्निके पास जानसे गर्मीका और हिमालय या शीतप्रधान प्रदेशके पास पहुचनेसे सर्दीका संचार अथवा तद्रूप परिगमन स्वयं हुआ करता है और उसमें उस प्रग्नि या हिममय पदार्थकी इच्छादिक-जैसा कोई कारण नही पड़ता । इच्छा तो स्वयं एक दोष है और वह उस मोहका परिणाम है जिसे स्वय स्वामीजीने इस ग्रन्यमे 'अनन्तदोषाशय-विग्रह (६६) बतलाया है । दोषोंकी शान्ति हो जानेसे उसका अस्तित्व ही नहीं बनता । और इसलिए अर्हन्तदेव में विना इच्छा तथा प्रयत्नवाला कर्तृत्व सुघटित है। इसी कर्तृत्वको लक्ष्यमे रखकर उन्हे 'शान्तिके विधाता' कहा गया है - इच्छा तया प्रयत्नवाले कर्तृत्वकी दृष्टिसे वे उसके विधाता नहीं है। मोर इस तरह कर्तृत्व विषय में अनेकान्त चलता है - सर्वथा एकान्तपक्ष जैनशासनमें ग्राह्य ही नहीं है। यहां प्रसंगवश इतना और भी बतला देना उचित जान पडता है कि उक्त पद्यके तृतीय चरण में सांसारिक क्लेशों तथा भयोंकी शान्तिमें कारणीभूत होनेकी जो प्रार्थना की गई है व जैनी प्रार्थनाका मूलरूप है, जिसका और भी स्पष्ट दर्शन नित्य की प्रार्थनामें प्रयुक्त निम्न प्राचीनतम गाथा में पाया जाता है - दुक्ख खत्रो कम्म-खो समाहि-मरणं च बोहिलाहो य । मम होउ तिजगबंधव ! तव जिगवर चरण-सरणे-रण ।। इसमें जो प्रार्थना की गई है उसका रूप यह है कि - हे त्रिजगतके (निनिमिच) बन्धु जिनदेव ! आपके चरण-शरणके प्रसादसे मेरे दुःखोंका क्षय, कर्मोंका क्षय, समाधिपूर्वक मरण और बोषिका - सम्यग्दर्शनादिकका लाभ होवे ।" इससे यह प्रार्थना एक प्रकार से प्रात्मोत्कर्षकी भावना है और इस बातको सूक्ति करती है कि जिनदेवकी शरण प्राप्त होनेसे-प्रसन्नतापूर्वक जिनदेवके चरणोंका समतभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र ग्राराधन करनसे - दु खोका क्षय और कमका क्षयादिक सुख साध्य होता है। यही भाव समतभद्रकी प्राथनाका है। इसी भावको लिए हुए ग्रथम दूसरी प्राथनाए इस प्रकार है'मति प्रवेक स्तुवतोऽस्तु नाथ । (२५) मम भवताद् दुरितासनोन्तिम् ' (१०५) भवतु ममाऽपि भवोपशान्तये (११५) पर तु ये ही प्राथनाए जब जिन द्रदेवको साक्षातूरूपम कुछ करन करानके लिये प्रेरित करती हुई ज न पडती है तो वे मलकृतरूपको धारण किये हुए होती है। प्राथनाके इस अलकृतरूपको लिये हुए जो वाक्य प्रस्तुत प्रथम पाये जाते है वे निम्न प्रकार है१ पुनातु चेतो मम नाभिनन्दन ( ५ ) २ जिन श्रिय मे भगवान् विधत्ताम् (१०) ३ ममाऽऽर्य देया शिवतातिमुच्च (१५) ४ पूया पवित्रो भगवान् मनो मे (४०) ५ श्रेयसे जिनवृष । प्रसीद न ये सब प्राथनाए चित्तको पवित्र करन जिनश्री तथा शिवमतिका न और कल्यारण करनकी याचनाको लिये हुए है आत्मो ॠष एव अमविक सको लक्ष्य करके की गई है इनम प्रसगतता तथा प्रसभाव्य जसी कोई बात नही है - सभी जिन द्रदेवके सम्पर्क तथा शरणम भानसे स्वय सफल होनवाली अथवा भक्ति उपासनाके द्वारा सहजसाध्य ह - और इसलिये अलकारकी भापाम की गई एक प्रकारकी भावनाए ही हैं। इनके ममको प्रत्यके अनुवादम स्पष्ट किया गया है। वास्तवमें परम वीतरागदेवसे विवेकी जनकी प्राथनाका भय देवके समक्ष अपनी भावनाको व्यक्त करना है अथाद यह प्रकट करना है कि वह आपके चरण शरण एवं प्रभावम रह कर और कुछ पदार्थपाठ लेकर प्रारम शक्तिको जागृत एवं विकसित करता हुआ पनी उस इच्छा कामना या भावनाको पूरा करनेमें समर्थ होना चाहता हैन उसका यह भाशय कदापि
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वर्षों से अपने बिल में छुपे रहे चोर बिल्डर अनिल शर्मा जब एक रोज जनता के सामने आया तो लुटे निवेशकों में से एक ने उसके मुंह पर पैसे लेने के बावजूद काम बंद करने का आरोप लगा दिया. इस महिला के आरोप सुनने के बाद जब अनिल शर्मा जवाब देने को तत्पर हुआ तो उसकी जुबान लड़खड़ाने लगी. सुप्रीम कोर्ट ने आज बेइमान और धोखेबाज बिल्डर कंपनी आम्रपाली के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है. घर पाने से वंचित निवेशकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली के निदेशकों से पूछा है कि बिना बहानेबाजी किए यह साफ साफ बताओ, घर कब दोगे. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा- बहानेबाजी मत करो. यह गंभीर मसला है. लोगों की जीवनभर की कमाई लगी है. साफ बताओ, घर कब दोगे. आपको उत्तरदायी बनना पड़ेगा. आम्रपाली को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वो एक सप्ताह के अंदर अपने हर प्रोजेक्ट के प्लान से संबंधित रेसोल्यूशन जमा करें. नोएडा : 88 लाख रुपये देने के बावजूद भी फ्लैट नहीं मिलने की शिकायत पर सेक्टर-58 पुलिस ने आम्रपाली बिल्डर के खिलाफ धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज की है। पीड़ित ने ग्रेटर नोएडा के जीटा-1 में आम्रपाली ग्रैंड प्रॉजेक्ट में फ्लैट बुक करवाया था। शिकायत के आधार पर एसएसपी ने एसपी देहात को जांच के आदेश दिए थे। शुरुआती जांच में मामला सही सामने आने पर एसपी देहात ने सेक्टर-58 पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। आम्रपाली बिल्डर अनिल शर्मा को 'एड्स' होने की खबर! नोएडा के The hyde park के निवासियों ने बिल्डर की मनमानी के खिलाफ किया प्रदर्शन (देखें तस्वीरें) Dear Press/ Media Guys, Please help 30,000 Flat owners of Jaypee Greens Noida to present there case... we will be oblige if you can contribute and help us to get our dream homes! ! ! we have paid 90% of flat cost & EMI are running but not getting possession as Builders are doing fraud & hiding behind LAW. Your family member or yourself would be affect directly or indirectly please help us! ! ! इटावा के रहने वाले अरविंद कुमार शोरावल ने जेपी ग्रुप के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है. ये एफआईआर दर्ज कराने के लिए उन्हें पहले कोर्ट जाना पड़ा और कोर्ट के आदेश बाद ही पुलिस ने जेपी ग्रुप के खिलाफ मुकदमा लिखा. अरविंद ने जेपी ग्रुप में एक फ्लैट बुक कराया था, 19 अप्रैल 2014 को. उन्हें अमन थर्ड टावर में फ्लैट दिया गया. इसके लिए उन्होंने जरूरी भुगतान किए. बाद में पता चला कि जुलाई 2015 तक निर्माण ही नहीं शुरू हुआ. रीयल इस्टेट कंपनी आम्रपाली का भगोड़ा मालिक अनिल शर्मा वैसे तो हजारों निवेशकों का पैसा दाबे बैठा है और खुद के पास पैसा न होने का रोना रोते हुए लोगों को उनका घर नहीं दे रहा है लेकिन जब उसका दामाद, जो आम्रपाली का सीईओ भी है, और एक डायरेक्टर गिरफ्तार होता है तो फौरन वह चार करोड़ 29 लाख रुपये जमा करवा देता है. आखिरकार 4 करोड़ 29 लाख जमा करने के बाद छूट गए आम्रपाली ग्रुप के दोनों पदाधिकारी. पार्ट पेमेंट के लिए कंपनी के पदाधिकारी कर रहे थे प्रशासन से अनुरोध, लेकिन पूरी पेमेंट जमा करने पर अड़ गए एडीएम दादरी अमित कुमार. अंततः पूरी पेमेंट जमा करवा कर ही आम्रपाली के दोनों लोगों को रिहा किया गया. दिवालिया हो चुकी रीयल इस्टेट कंपनी आम्रपाली से खबर आ रही है कि इसके भगोड़े मालिक अनिल शर्मा के दामाद ऋतिक सिन्हा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. यह कार्रवाई लेबर सेस नहीं चुकाने पर किया गया है. साथ ही साथ आम्रपाली का ऑफिस भी सील कर दिया गया है. आम्रपाली बिल्डर अनिल शर्मा के दामाद के अलावा एक अन्य पदाधिकारी निशांत मुकुल को भी अरेस्ट कर जेल भेजे जाने की खबर है. सेवा में, श्रीमान उपायुक्त, दिल्ली पुलिस, नई दिल्ली। विषय - अवैध निर्माण पर चल रहे नगर निगम के डमोलिशन की खबर को ना करने व झूठे केस में फंसाने की धमकी देते हुए । महोदय, निवेदन यह है कि मैं पंकज चौहान S/O श्री राजाराम सिंह, पता- 14/ 202, दक्षिणपुरी एक्सटेंशन, डॉ. अंबेडकरनगर, नई दिल्ली -62 में रहता हूं। मैं दिल्ली से 'सनसनी इन्वेस्टीगेटर' नाम से अपना एक नेशनल साप्ताहिक अखबार चलाता हूं। मैंने अपने पिछले एडीशन में दक्षिणपुरी की डीडीए मार्केट नंबर-2 में स्थित दुकान नंबर- 11, 12, 13, 14 की उस समय खबर लगाई थी जब यहां पर एम. सी. डी. के बिल्डिंग विभाग के दस्ते ने तोड़फोड़ की थी। अब दिनांक- 29/03/2017 को एम. सी. डी. , ग्रीन पार्क ज़ोन से भवन विभाग के दस्ते ने दोबारा इसी अवैध निर्माण पर तोड़फोड़ का कार्यक्रम किया जिसको मैं अपने साथी रिपोर्टर के साथ कवर करने के लिए पहुंचा। हे भगवान, बिल्डरों ने 'राम' और 'लक्ष्मण' को भी ठगा! मुंबई। बिल्डरों की ठगी के शिकार आम आदमी के साथ साथ ऐसे लोग भी हो रहे हैं जिनका नाम सुनकर शायद आप अचरज में पड़ जायें। घोर कलयुग की महिमा देखिए। बिल्डरों द्वारा टेलीविजन के मयार्दा पुरुषोत्तम राम और उनके भ्राता लक्ष्मण को भी यहां चूना लगा दिया जाता है। रामानंद सागर सृजित रामायण के राम यानि अरुण गोविल और लक्ष्मण यानि सुनील लहरी सहित कई जाने माने लोगों ने पेमेंट करने के सात साल बाद भी ओशिवरा में अपार्टमेंट ना मिलने की शिकायत ओशिवरा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाई है। ग्रेटर नोएडा में नेहरू प्लेस एक्स्टेन्शन के नाम से बन रहे अर्बटेक बिल्डर के प्रोजेक्ट के सभी बायर्स बिल्डर और प्राधिकरण के बीच हुयी मिलीभगत से परेशान हैं. इसको लेकर आज सभी खरीदारों ने फ़ोनरवा के अध्यक्ष एनपी सिह और बायर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अन्नू खान के साथ एक मीटिंग की. इसमें बिल्डर और प्राधिकरण के चलते हो रही परेशानियों पर चर्चा की गई और आगे की रणनीत तय की गयी. गुरबत के दिनों में किसी घिसी हुई पतलून की जेब से कभी लापरवाही से रख छोड़े पैसे हाथ लग जायें तो कैसा महसूस होगा? मेहदी हसन की इन अनसुनी ग़ज़लों का खजाना हाथ लग जाने के बाद मुझे कुछ ऐसा ही लग रहा है। सदा-ए-इश्क मेरी जानकारी में मेहदी हसन साहब का अंतिम एल्बम था जो म्यूजिक टूडे वालों ने वर्ष 2000 के आस-पास निकाला था। इसके बाद केवल एक ग़ज़ल "तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है, मुझे तू मेरे दुःख जैसा लगे है" सुनने में आयी थी जो उन्होंने लता मंगेशकर के साथ गायी थी। इस ग़ज़ल में दोनों गायकों ने अपना-अपना हिस्सा भारत और पाकिस्तान में रेकार्ड किया था और बाद में इसकी मिक्सिंग भारत में हुई। एक साथ इन दो बड़े कलाकारों की यह संभवतः इकलौती और ऐतिहासिक प्रस्तुति थी। ग़ज़ल उन्हीं दिनों में सुनने में आयी जब मेहदी हसन साहब बीमार चल रहे थे और अपन ने भी मान लिया था कि इस खूबसूरत ग़ज़ल को खाँ साहब की अंतिम सौगात समझ लेना चाहिये। मिर्जापुर (यूपी) : रामपुर बांगर गांव के खसरा नम्बरान 62 और 70 पर उच्च न्यायालय द्वारा यथास्थिति बनाये रखने के आदेश पारित किये गये थे, उस जमीन पर गौड सिटी बिल्डर द्वारा कार्य शुरू कर दिये जाने से किसानों का आक्रोश सड़कों पर आ गया। किसान नेता धीरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में 50 गांवों के किसानों की एक महापंचायत गौड सिटी बिल्डर की साइट पर हुई। पुलिस द्वारा धारा 144 का हवाला देकर किसानों को धमकाकर रोकने का प्रयास किया गया, जिससे स्थिति और बिगड़ गयी। पुलिस के रवैये से नाराज किसानों ने गौड सिटी बिल्डर की साईट पर ही बैठकर अनिश्चितकालीन धरना देने का ऐलान कर दिया तथा कब्जा लेने के लिए ट्रैक्टर मंगवा लिए। (आजतक न्यूज चैनल को अलविदा कहने के बाद एक नए प्रयोग में जुटे हैं दीपक शर्मा) भारतीय मीडिया ओवरआल पूंजी की रखैल है, इसीलिए इसे अब कारपोरेट और करप्ट मीडिया कहते हैं. जन सरोकार और सत्ता पर अंकुश के नाम संचालित होने वाली मीडिया असलियत में जन विरोधी और सत्ता के दलाल के रूप में पतित हो जाती है. यही कारण है कि रजत शर्मा हों या अरुण पुरी, अवीक सरकार हों या सुभाष चंद्रा, संजय गुप्ता हों या रमेश चंद्र अग्रवाल, टीओआई वाले जैन बंधु हों या एचटी वाली शोभना भरतिया, ये सब या इनके पिता-दादा देखते ही देखते खाकपति से खरबपति बन गए हैं, क्योंकि इन लोगों ने और इनके पुरखों ने मीडिया को मनी मेकिंग मीडियम में तब्दील कर दिया है. इन लोगों ने अंबानी और अडानी से डील कर लिया. इन लोगों ने सत्ता के सुप्रीम खलनायकों को बचाते हुए उन्हें संरक्षित करना शुरू कर दिया. (आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने अपनी जनपक्षधरता और जनसक्रियता से उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में एक क्रांति ला दी है. आमतौर पर यूपी पुलिस विभाग के अफसर सत्ता के दबाव और सत्ता के इशारे पर संचालित होते हैं. लेकिन अमिताभ ठाकुर किसी भी जेनुइन मामले को बिना भय उठाते हैं भले ही उससे सीधे सीधे सत्ता के आका लोग निशाने पर आते हों. ऐसे ही एक मामले में आज अमिताभ ठाकुर ने पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए मुहिम शुरू की. पढ़िए इस नए प्रकरण की कहानी उन्हीं की जुबानी. -एडिटर, भड़ास4मीडिया) आज मैंने एसएसपी, लखनऊ यशस्वी यादव से मुलाकात कर मिर्जापुर, थाना गोसाईंगंज में एमबीएससी ग्रुप के लोगों के आपराधिक कृत्यों तथा उस गांव के पोसलाल पुत्र परीदीन की जमीन को जबरदस्ती खरीदने के प्रयास के बारे में शिकायत दिया. एसएसपी ने एसओ गोसाईंगंज को तत्काल मामले में एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. शिकायत के अनुसार एमबीएससी ग्रुप ने बीएससी होम्स नाम से लगभग 170 लोगों से बुकिंग के नाम पर करोड़ो रूपये ले भी लिए हैं जबकि अभी उसके पास न तो आवश्यक जमीन है और न ही उसका नक्शा एलडीए से स्वीकृत है. राजस्थान में साल भर पहले लांच हुए ज़ी ग्रुप के रीजनल न्यूज चैनल जी मरुधरा के खिलाफ बिल्डरों ने मोर्चा खोल दिया है. आरोप है कि चैनल बिल्डरों को ब्लैकमेल करता है. बिल्डर एसोसिएशन द्वारा सभी सदस्य बिल्डरों को संगठित कर ज़ी समूह के सभी चैनलों पर भविष्य के लिये विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध का फैसला लिया गया है. क्रेडाई ने अपने संगठन के सभी सदस्य बिल्डरों से अपील की है की वे रेपोर्टरों की ब्लैकमेलिंग या निगेटिव न्यूज़ से डरकर उन्हें किसी प्रकार कोई नगद, फ्लैट, ज़मीन या गिफ्ट आदि देकर शोषण के कारोबार को बढ़ावा ना दें. मथुरा : उत्तर प्रदेश में मथुरा के हाइवे थाने में पुष्पांजलि ग्रुप और 'पुष्प सवेरा' अखबार के मालिक बीडी अग्रवाल उनके बेटे मयंक और पुनीत अग्रवाल समेत चार लोगों पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है. इन फ्राड टाइप के बाप-बेटों ने किसी के नाम का प्लाट किसी दूसरे को बेच दिया. पुलिस के अनुसार पुष्पांजलि उपवन स्थित कालोनी राधा नगर निवासी महेंद्र खत्री की पत्नी सुषमा ने १२ सितंबर २००६ को २०० वर्ग गज के एक भूखण्ड का खरीदने के लिए अनुबंध कराया था.
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समाचार फ़ीड देखने से देश और दुनिया में घटनाओं में रुचि होने के नाते, हम अक्सर चित्र, वीडियो देखने के प्राकृतिक आपदाओं के कीचड़ धंसना की वजह से। दुनिया में आपदाओं अधिक से अधिक हो जाता हैः ग्लोबल वार्मिंग को दोष देना, हो सकता है, मानव गतिविधि है, या हमारे ग्रह ही कुछ "आपत्तिजनक" कुछ अन्य कारणों से अपने इतिहास की अवधि के माध्यम से चला जाता है, लेकिन आपदाओं के प्रभाव को हमेशा एक ही कर रहे हैं। भयभीत लोग, शरणार्थियों, खो घरों और संपत्ति, पशु और विकृत परिदृश्य को मार डाला, केवल कल एक परी कथा लग रहा था, और आज सर्वनाश के विषय पर फिल्मों के चित्र के समान है। उसी तरह mudflow के बाद से, क्या मौत और विनाश से बचने के लिए, या आपदा न्यूनतम के परिणामों बनाने के लिए किया जा सकता है? क्या प्रकृति में कृषि है? शब्द अरबी जड़ है। अनुवाद का अर्थ है "अशांत प्रवाह"। भवनों, परिदृश्य, एक साथ अपने सभी निवासियों के साथ, पशुओं से मनुष्यों में - मैला कीचड़ वजन, बहुत तेज गति के साथ भागने, बुवाई मौत, दूर अपने रास्ते में सब कुछ स्वीप। बड़े और छोटे पत्थर, रॉक कणों, जो संयोगवश, कुल वजन का आधा से अधिक होना कर सकते हैंः mudflow कई कठिन समावेशन में शामिल है। एक लंबे समय के लिए वहाँ पहाड़ों में कई गांवों में, खुशी से प्राकृतिक आपदाओं से बचने, एक लंबा इतिहास है, लेकिन प्रकृति में वहाँ कुछ असामान्य, असाधारण (तेजी से और लंबे समय तक वर्षा, तेजी से वार्मिंग, बर्फ के बहुत तेजी से पिघलने, पहाड़ों में एक ग्लेशियर के साथ संयुक्त) है - और कुछ दुष्ट दिस वे आता है। बड़े पैमाने पर तत्व आमतौर पर अल्पकालिक, कई घंटे के लिए चलाता है, लेकिन यह पर्याप्त से अधिक कुछ वर्षों के भीतर प्रकृति और लोगों को नुकसान अपूरणीय पैदा करने के लिए, के रूप में उदाहरण के लिए, यह गया था के बाद 2013 कीचड़ धंसना जॉर्जिया में आया है। फिर, आपदा की वजह से यह पूरी तरह से यातायात पंगु कर दिया गया है। काफी गंभीर क्षति भी लाया जाता है और mudflow टाबा में (यह एक पल में दिखाता हूँ) है। Mudflow एक बहुत ही उच्च चलती गति है। कीचड़ वजन अक्सर अचानक दिखाई देते हैं, काफी की इजाजत दी परिचालन उपाय करने के लिए समाज व प्रकृति की रक्षा के लिए बिना। हार्ड रॉक शामिल mudflow प्रति सेकंड 2. 4 6. 4 मीटर की दर से किया जाता है। आसपास के परिदृश्य से गायब हो जाने पूरी तरह से अलग रूपरेखा लग सकता है की एक परिणाम के रूप मेंः बस कुछ ही घंटों में पत्थरों नई नदी के किनारों और नदियों, मलबे की एक परत अतिक्रमण और गंदगी उपजाऊ Piedmont सादा फसलों और चराई उगाने के लिए इस्तेमाल को शामिल किया गया। Blooming घाटी मर चुका है और रहने और काम के लिए अयोग्य हो जाता है। Mudflow आगे आपदा के आकार में वृद्धि के प्रत्येक नई लहर के साथ, कई चरणों में जा सकते हैं। इस प्राकृतिक घटना के कारण होते हैं? - तूफानी और लंबे समय तक वर्षा। स्थानीय "दुनिया बाढ़" के मामले हैं, वे वास्तव में, पहाड़ों mudflows से उतरते लोगों और इमारतों अनित्य साथ देखा। - तीव्र वार्मिंग, जो एक मौसमी चरित्र, या ऑफ सीजन है, जो बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने का कारण बन सकती है। ग्लेशियर गांव के अंतर्गत स्थित हमेशा एक बढ़ा जोखिम है। - में एक बड़ी पूर्वाग्रह के साथ क्षेत्रों में नदी का ताल मलबे के साथ जमीन का एक महत्वपूर्ण भाग को संक्षिप्त कर सकते हैं और इस प्रकार जलाशय ब्लॉक, एक और, अप्रत्याशित तरीके से, ट्रिगर हिमस्खलन को भेजें। क्या के रूप में अतिरिक्त कारकों सेवा कर सकते हैं, एक तबाही उत्तेजक? वृक्ष की जड़ों में अच्छी तरह से मिट्टी की ऊपरी परत को मजबूत बनाने, चलती, तब भी जब भारी बारिश के प्रवाह के संपर्क में या वन वृक्षारोपण की वजह से अल्हड़ कटाई अपक्षय से रोकता है - मुख्य कारक बढ़ रही इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के खतरे में से एक। कटाव और भूम सफलता का एक परिणाम के रूप मेंः कारणों तीन समूहों में विभाजित कर रहे हैं पर बैठ गया। कहाँ संभावित खतरनाक की फोकी कर रहे हैं? लंबे समय में खतरनाक है, यह एक पहाड़ नदी, जो आसानी से पानी धाराओं मिट्टी, रॉक द्वारा ले जाया गया जम जाता है के किसी भी भाग हो सकता है। यह चीरों या ruts, साथ ही जेब बिखरे mudflow हो सकता है। गड्ढे - ढलानों पर शिक्षा, रॉक, मैदान और अन्य सतहों के माध्यम से कटौती, वे लंबाई और गहराई में छोटे हैं, और एक खतरा पैदा नहीं करता है, धारा, जो चट्टानों के आंदोलन को जन्म दे सकता जब तक। चीरा - मोरैने जमा पर आधारित शिक्षा, ऊंचाई में तेज परिवर्तन के साथ जुड़ा। वे बहुत प्राचीन काल कर रहे हैं। युवा चीरों हाल ज्वालामुखी गतिविधि का एक परिणाम के रूप में हो सकता है, और भूस्खलन, भू-स्खलन की वजह से। गहराई और हद में बड़े गड्ढे चीरों। बिखरी हुई mudflow ऊंची पर्वत क्षेत्रों में जहां चट्टानों के टुकड़े का एक बहुत ध्यान केंद्रित किया, उत्पादों अपक्षय पर हो सकती है। इस तरह की सतह क्षेत्र काफी हाल ही में भूकंप, सक्रिय विवर्तनिक प्रक्रिया में दिख सकता है। इन खांचे की सतह के घावों, जिसमें उत्पादों धीरे-धीरे मलबे, जो, कुछ शर्तों के अधीन, एक चैनल में विलय करने के लिए कर सकते हैं और एक ढलान पर स्थित वस्तुओं के लिए अपनी शक्ति नीचे लाने के लिए जमा से आच्छादित है। कैसे हिमस्खलन को रोकने के लिए? पानी और मलबे प्रवाह सभा के लिए मुख्य कारणों में से एक के बाद से वन के नुकसान स्टैंड, समस्या वृक्षारोपण का समाधान हो सकता है। हाइड्रोलिक संरचनाओं (खाइयों, तटबंधों, अनुरेखण), डाइवर्ट संभावित खतरनाक धाराओं भी एक बड़ा सकारात्मक प्रदान कर सकते हैं। सड़क खतरनाक नदियों और खाड़ियों पर बांधों की स्थापना बड़े पैमाने पर, जो थोड़ा इसके विनाशकारी क्षमता को कमजोर कर रहा है की ढलान से समर्थन के हिस्से में देरी। किसी भी अन्य संरचनाओं (गड्ढ़े, ताल, बांधों) भी आपदा के खतरे को कम, यह shorelines मजबूत करने के लिए, उनके अतिरिक्त कटाव रोकने के लिए, खासकर अगर इमारत के किनारे पर स्थित महत्वपूर्ण है। से mudflows के पारित होने के अक्सर सड़क की सतह से ग्रस्त है, सुरक्षा के लिए, जिनमें से यह सलाह दी जाती सड़क पर या उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में इसके तहत ट्रे (पत्थर या प्रबलित कंक्रीट) के निर्माण के लिए है। - 17 से टायरॉल में 1891 अगस्त 18 को, ऑस्ट्रिया के आल्प्स में, एक बड़े mudflow उतराः लहर 18 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच गया, एक विशाल क्षेत्र मलबे प्रवाह बड़े पैमाने पर की एक मोटी परत के साथ कवर किया गया था। - मार्च 1, 1938 लॉस एंजिल्स मारा, 200 से अधिक लोग मारे गए। - जुलाई 8, 1921 फ़ीड अल्मा-अता (अब अल्मा-अता) मारा, कई तरंगों शहर में 35 लाख वर्ग मीटर ले आया। कठिन सामग्री हूँ। - 1970 में, वहाँ पेरू में एक दुर्घटना थी, मलबे प्रवाह गतिविधि का एक परिणाम के रूप में 60,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई, और 800,000 विस्थापित हो गए, उनकी संपत्ति खो दिया है, उनके सिर के ऊपर एक छत के बिना छोड़ दिया गया। - 24 जनवरी 2013 सोची में कीचड़ धंसना आया था। उन्होंने कहा कि समय पर की वजह से बंद कर दिया गया था और सुयोग्य शहर प्रशासन की किलेबंदी के निर्माण पर कार्य किया। - मई 8, 2014 बारिश की वजह से मिस्र और इसराइल की सीमा पर कई होटल बाढ़ आ गई थी। तब टाबा में mudflow आया था, सड़क मारा। परिणाम एक सप्ताह के भीतर बाहर हो गया। - मई 17, 2014 जॉर्जिया में कीचड़ धंसना आया था, निपटान Gveleti के पास। फ्लो टेरेक नदी अवरुद्ध कर दिया। सड़क खंड बंद कर दिया गया "व्लादिकाव्काज़-लार्स" कई गांवों में बाढ़ का आसन्न खतरा दिखाई दिया। मुसीबत बीत चुका है - पानी के लिए एक अस्थायी चैनल "मिला", और इसके स्तर खतरनाक स्तर को पार नहीं किया। जब लार्स में कीचड़ धंसना नीचे आया, आवश्यक उपाय समय में ले लिया गया है, स्थानीय आबादी तुरंत एक सुरक्षित क्षेत्र में खाली करा लिया।
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निश्चयनय / ३७ सिद्ध होता है। इस तथ्य की मीमासा करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं "आत्मवस्तु ज्ञानमात्र है, तो भी उसमें उपायभाव और उपेयभाव विद्यमान हैं, क्योंकि वह एक होते हुए भी साधक और सिद्ध उभयरूप में परिणमित होता है। इनमे जो साधकरूप है वह उपाय है और जो सिद्धरूप है वह उपेय आत्मा अनादिकाल से मिथ्यादर्शन, अज्ञान और अचारित्र के वशीभूत हो स्वरूप से च्युत होकर ससरण करता है। वह जब व्यवहार सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्र को सुनिश्चलरूप से ग्रहण करता है तब उसके पाकप्रकर्ष की परम्परा से क्रमशः स्वरूप मे आरूढ़ होता है और अन्तर्मग्न ( स्वात्माश्रित ) निश्चयसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र की विशेषता से साधक-रूप मे परिणमित होता है। तथा जब स्वात्माश्रित रत्नत्रय परमप्रकर्ष पर पहुँचता है तब समस्त कर्मों का क्षय कर निर्मल परमात्मस्वभाव की प्राप्ति द्वारा स्वयं सिद्धरूप मे परिणमित होता है। इस प्रकार एक ही ज्ञान उपाय और उपेय भावो को साधता है।" उक्त आशय को व्यक्त करने वाले आचार्य अमृतचन्द्र के शब्द इस प्रकार "आत्मवस्तुनो हि ज्ञानमात्रत्वेऽप्युपायोपेयभावो विद्यत एव । तस्यैकस्यापि स्वयसाधकसिद्धोभयपरिणामित्वात् । तत्र यत्साधकं रूप स उपायः । यत्सिद्ध रूपं स अतोऽस्यात्मनोऽनादिमिथ्यादर्शनज्ञानाचारित्रै स्वरूपप्रच्यवनात्संसरत. सुनिश्चलपरिगृहीतव्यवहारसम्यग्दर्शनशानचारित्रपाकप्रकर्षपरम्परया क्रमेण स्वरूपमारोप्यमाणस्यान्तर्मग्ननिश्चयसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रविशेषतया साधकरूपेण तथा परमप्रकर्षमकरिकाधिरूढरत्नत्रयातिशयप्रवृत्तसकलकर्मक्षयप्रज्वलितास्खलितविमलस्वभावभावतया सिद्धरूपेण च स्वय परिणममानज्ञानमात्रमेकमेवोपायोपेयभाव साधयति। "" आचार्यद्वय अमृतचन्द्र एव जयसेन ने मौलिकअभेदावलम्बिनी निश्चयदृष्टि का आश्रय लेकर स्वय के साथ ही आत्मा के मोक्षविषयक साध्य - साधक भाव को अभेदषट्कारक के रूप में इस प्रकार प्रतिपादित किया है "आत्मा स्वतन्त्ररूप से सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्ररूप में परिणमन करता है, अतः स्वय कर्त्ता होता है। स्वयं सिद्धपर्यायरूप परिणाम को प्राप्त होता है, अतः स्वय कर्म बनता है। सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्ररूप से साधक बनकर सिद्धपर्याय को साधता है, इसलिए स्वयं करण का रूप धारण करता है। उपलब्ध सिद्धपर्याय स्वय को प्रदान कर स्वयं को सन्तुष्ट करता है, इस तरह स्वयं ही सम्प्रदान में परिणत १. समयसार / स्याद्वादाधिकार/ पृ० ५३१ ३८ / जैनदर्शन मे निश्चय और व्यवहार नय एक अनुशीलन हो जाता है। पूर्वप्रवृत्त मत्यादिज्ञानविकल्पो का अपगम होने पर सहजज्ञानस्वभाव के रूप मे ध्रुव रहता है, अतः स्वयं अपादानभाव को प्राप्त होता है। अपने शुद्ध चैतन्यस्वभाव का स्वय आधार होने से स्वय अधिकरण है। "" आचार्य अमृतचन्द्र परद्रव्य के साथ आत्मा के षट्कारकात्मक साध्य-साधक सम्बन्ध का निषेध करते हुए लिखते हैं - "स्वयमेव षट्कारकीरूपेणोपजायमान, उत्पत्तिव्यपेक्षया द्रव्यभावभेदभिन्नघातिकर्माण्यपास्य स्वयमेवाविर्भूतत्वाद्वा स्वयम्भूरिति निर्दिश्यते । अतो न निश्चयत परेण सहात्मन. कारकत्वसम्बन्धोऽस्ति ।" स्वय ही षट्कारकरूप से परिणत होने के कारण अथवा उत्पत्ति की अपेक्षा द्रव्यकर्म और भावकर्म इन दो प्रकार के घाती कर्मों का विनाशकर स्वयमेव आविर्भूत होने से आत्मा स्वयम्भू कहलाता है। अत निश्चयनय से परद्रव्य के साथ आत्मा का कारकात्मक सम्बन्ध नही है। पर के साथ आधाराधेयसम्बन्ध का निषेध मौलिकभेदावलम्बिनी निश्चयदृष्टि का अनुसरण करते हुए अरहन्तदेव ने आत्मा और परद्रव्य मे आधाराधेय सम्बन्ध का भी अभाव बतलाया है। इस पर प्रकाश डालते हुए आचार्य अमृतचन्द्र कहते है "न खल्वेकस्य द्वितीयमस्ति द्वयोर्भिन्न प्रदेशत्वेन एकसत्तानुपपत्ते । तदसत्त्वे च तेन सहाधाराधेयसम्बन्धोऽपि नास्त्येव । तत स्वरूपप्रतिष्ठत्वलक्षण एवाधाराधेय सम्बन्धोऽवतिष्ठते।"" - एक वस्तु मे दूसरी वस्तु की सत्ता नही है, क्योंकि दोनो के प्रदेश परस्पर भिन्न है, इसलिए उनकी एक सत्ता की उपपत्ति नहीं होती। एकसत्तात्मक न होने से उनमे आधाराधेयसम्बन्ध भी नहीं है। वस्तु स्वरूप में ही स्थित होती है, अत स्वरूप के ही साथ उसका आधाराधेय सम्बन्ध घटित होता है। पुद्गलकर्मनिमित्तक रागादिभावों के साथ आत्मा के उक्त सम्बन्ध का निषेध करते हुए आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं उवओए उवओगो कोहादिसु णत्थि को वि उवओगो । कोहे कोहो चेव ही उवओगे णत्थि खलु कोहो । १. प्रवचनसार / तत्त्वदीपिका एव तात्पर्यवृत्ति १ / १६ २. वही / तत्त्वदीपिका १ / १६ ३. समयसार / आत्मख्याति/गाथा, १८१-१८३ निश्चयनय / ३९ अट्ठवियप्पे कम्मे णोकम्मे चावि णत्थि उवओगो । उवओगम्हि य कम्म णोकम्म चावि णो अत्थि ।। - चैतन्यपरिणामभूत दर्शनज्ञानरूप उपयोग, उपयोग में ही स्थित है, क्रोधादि भावो मे नही, और क्रोध की सत्ता क्रोध मे ही है, उपयोग मे नही । आठ प्रकार के ज्ञानावरणादि कर्मों मे तथा शरीरादि नोकर्मो मे भी उपयोग स्थित नही और उपयोग मे इन कर्म-नोकर्मो का अस्तित्व नही है। कारण यह है कि इनके स्वरूप अत्यन्त विपरीत हैं, अतः इनमे परमार्थतः आधाराधेयसम्बन्ध नही है। आत्मा का स्वरूप के साथ तादात्म्य होता है, इसलिए मौलिकअभेदावलम्बिनी निश्चयदृष्टि से देखने पर स्वरूप आधेय के रूप मे और आत्मा उसके आधार के रूप मे दृष्टिगोचर होता है। तथापि बाह्यसम्बन्धावलम्बिनी व्यवहारदृष्टि से प्राप्त ज्ञान के अनुसार परद्रव्य के साथ आत्मा का आधाराधेय सम्बन्ध होता है। इसका निरूपण अगले अध्याय में किया जायेगा। इस प्रकार मौलिकभेदावलम्बिनी निश्चयदृष्टि ( निश्चयनय ) से अवलोकन करने पर निश्चित होता है कि परद्रव्य से आत्मा किसी भी प्रकार सम्बद्ध नही है, न स्वस्वामिभावरूप से, न कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण, इन षट्कारको के रूप मे । निश्चयदृष्टि से वह परद्रव्यो से सर्वथा पृथक् दिखाई देता मौलिक अभेदावलम्बिनी दृष्टि से आत्मस्वरूप का निर्णय वस्तु और उसके गुणपर्यायरूप धर्मो मे प्रदेश ( सत्ता ) की अपेक्षा अभेद है, किन्तु सज्ञा ( नाम ), सख्या, लक्षण और प्रयोजन की दृष्टि से भिन्नता ( अन्यत्व ) है। जैसे जीव और उसके दर्शनज्ञानादि गुणो के प्रदेश पृथक्-पृथक् नही हैं, वे ( जीव और दर्शनज्ञानादि गुण ) एक ही वस्तु है, तथापि उनमे सज्ञादि की अपेक्षा भिन्नता है। यथा, जीवद्रव्य की सज्ञा 'जीव' है और ज्ञानगुण की सज्ञा 'ज्ञान' । यह सज्ञा की दृष्टि से भेद है। जो चतुर्विध प्राणो से जीता है, जियेगा और और जीता था, वह जीव है तथा जिसके द्वारा पदार्थों का ज्ञान होता है वह ज्ञान है। यह लक्षण की अपेक्षा अन्यत्व है। अविनश्वर रहते हुए बन्धमोक्षादि पर्यायरूप से परिणमित होना जीवद्रव्य का प्रयोजन है और पदार्थों को जानना ज्ञानगुण का " न च ज्ञाने क्रोधादय कर्म नोकर्म वा सन्ति परस्परमत्यन्त स्वरूपवैपरीत्येन परमार्थाधाराधेयसम्बन्ध शून्यत्वात् ।" वही / आत्मख्याति/गाथा १८१-१८३ - ४० / जैनदर्शन मे निश्चय और व्यवहार नयः एक अनुशीलन प्रयोजन है। यह प्रयोजनगत भेद है। इसी प्रकार दर्शन, ज्ञान, चारित्र आदि गुणो मे एक ही जीवद्रव्य व्याप्त होता है, किन्तु एक जीवद्रव्य मे, दर्शन, ज्ञान आदि अनेक गुण अन्तर्मग्न होते हैं। यह संख्या की दृष्टि से भेद है। यह संज्ञा, संख्या, लक्षण और प्रयोजन का भेद बाह्य भेद है। मूलत वस्तु और उसके धर्मों में अभेद है, क्योंकि उनके स्वभाव, प्रदेश या सत्ता अभिन्न होती है। स्वभावगत अभेद, प्रदेशगत अभेद, सत्तागत अभेद अथवा वस्तुरूप अभेद ये सब मौलिक अभेद के नामान्तर है। मौलिक - अभेदावलम्बिनी निश्चयदृष्टि ( निश्चयनय ) का अनुसरण करते हुए अरहन्तदेव ने धर्म और धर्मी, गुण और गुणी, पर्याय और पर्यायी, कर्त्ता और कर्म आदि मे भिन्नत्व का निषेध किया है और एकत्व दर्शाया है। अर्थात् धर्म और धर्मी आदि अलग-अलग वस्तु न होकर एक ही वस्तु के अलग-अलग नाम है, यह उपदेश दिया है। दूसरे शब्दो मे जीवादि द्रव्यो को एकत्वमय, अद्वैत या अखण्ड बतलाया है। धर्म-धर्मी में भिन्नत्व का निषेध आचार्य कुन्दकुन्द ने उपर्युक्त निश्चयनय का अवलम्बनकर आत्मा से दर्शनज्ञानचारित्रादि धर्मो के भिन्न होने का निषेध इन शब्दो मे किया है ववहारेणुवदिस्सइ णाणिस्स चरित्त दसण णाण । णवि णाण ण चरित ण दसण जाणगो सुद्धो ॥ आत्मा मे दर्शन है, ज्ञान है, चारित्र है, इस प्रकार धर्म और धर्मी मे भिन्नता दर्शानेवाला वर्णन व्यवहारनय से किया जाता है। निश्चयनय से न दर्शन आत्मा से स्वतन्त्र वस्तु है, न ज्ञान, न चारित्र, अपितु दर्शन भी आत्मा ही है, ज्ञान भी आत्मा ही चारित्र भी आत्मा ही है। अत. मात्र आत्मा ( ज्ञायक ) ही एक स्वतन्त्र वस्तु है। १ "सज्ञादि . सज्ञासख्यालक्षणप्रयोजनानि । गुणगुणीति सज्ञा नाम। गुणा अनेके गुणीत्वेक इति सङ्ख्याभेद । सद्रव्यलक्षण, द्रव्याश्रयानिर्गुणा गुणा इति लक्षणभेद । द्रव्येण लोकमान क्रियते, गुणेन द्रव्य ज्ञायते इति प्रयोजनभेद । यथा जीवद्रव्यस्य जीव इति सज्ञा ज्ञानगुणस्य ज्ञानमिति सज्ञा चतुर्भि प्राणैर्जीवति, जीविष्यति अजीवद् इति जीवद्रव्यलक्षणम्। ज्ञायते पदार्थ अनेनेति ज्ञानमिति ज्ञानगुणलक्षणम्। जीवद्रव्यस्य बन्धमोक्षादिपर्यायैरविनश्वररूपेण परिणमन प्रयोजनम्। ज्ञानगुणस्य पुन पदार्थपरिच्छित्तिमात्रमेव प्रयोजनमिति ।" आलापपद्धति/टिप्पण/सूत्र, ११२ २ समयसार/गाथा, ७
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समाचार (Muzaffarnagar News) मुजफ्फरनगर। अलग अलग स्थानों से कई वांछितों/वारंटियों को गिरफ्तार किया। थाना को0नगर पर नियुक्त उ0नि0 जोगेन्द्रपाल सिंह द्वारा गैगिस्टर एक्ट वारण्टी अभि0 इन्तजार पुत्र अख्तर निवासी न्याजूपुरा थाना कोतवालीनगर मु0नगर को अभि0 के मस्कन से गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा थाना कोतवालीनगर पर नियुक्त उ0नि0 अखिल चौधरी द्वारां वांछित अभियुक्त हारुन पुत्र असरफ नि0 ग्राम बहेडी थाना को0नगर मु0नगर को बहेडी कट से गिरफ्तार किया। वहीं थाना भोपा पर नियुक्त उ0नि0 सुनील कुमार हूण द्वारा वारण्टी अभियुक्त रूपेश उर्फ छोटा पुत्र कूडा नि0 बारूकी थाना भोपा मु0नगर को अभि0 के मस्कन से गिरफ्तार किया गया। मुजफ्फरनगर। अलग अलग स्थानों से कई को अवैध शस्त्र सहित गिरफ्तार किया। थाना सिखेडा पर नियुक्त उ0नि0 बीबी शर्मा द्वारा अभियुक्त नसीम पुत्र बाबू नि0 दाहे खेडी थाना सिखेडा मु0नगर को जौली रोड से गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त के कब्जे से 01 मो0सा0 स्पलेण्डर यूपी 12 डीएल 1268 व 01 नाजायज छुरी को बरामद किया गया। इसके अलावा थाना कोतवालीनगर पर नियुक्त उ0नि0 रविन्द्र सिंह द्वारा वांछित अभियुक्त आजाद पुत्र अलीहसन, . शादाब पुत्र मौ0 आलम नि0 उपरोक्त किदवईनगर थाना को0नगर मु0नगर को मछली बाजार गेट से गिरफ्तार किया गया। जिनके कब्जे से 01-01 नाजायज छुरे बरामद किये गये । मुजफ्फरनगर। साइबर ठग ने थाना जी. आर. पी. मे तैनात है० कान्सटेबल को उसका रिस्तेदार बताकर ४५००० का चुना लगा दिया। जिसके बाद है० कान्सटेबल ने साइबर हेल्प सेन्टर से अपनी धनराशी को वापस दिलाने की गुहार लगाई। साइबर हेल्प सेन्टर ने तत्काल कार्यावाही करते हुए उसकी सम्पूर्ण धनराशी को आवेदक के खाते मे वापस करा दी गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार थाना जी०आर०पी० मुजफ्फरनगर मे तैनात है०्का० ५०२ नरेश कुमार ने साइबर हेल्प सेन्टर को प्रार्थना देकर बताया कि अज्ञात व्यक्ति साइबर ठग द्वारा रिश्तेदार बनकर लिंक के माध्यम से ४५ हजार रुपये की धोखाधड़ी की गयी है। जिसके बाद साइबर हेल्प सेन्टर द्वारा तत्काल कार्यवाही करते हुए फ्लिपकार्ट कम्पनी को फ्रॉड से अवगत कराया गया तथा ४५ हजार रूपये मे से १५ हजार रूपये पहले वापस कराये गये। जिसके बाद शेष सम्पूर्ण धनराशि ३०००० रु को आवेदक के खाते में वापस कराया गया। आवेदक द्वारा साईबर हेल्प सेन्टर द्वारा की गयी तत्काल कार्यवाही के लिए धन्यवाद दिया गया। मुजफ्फरनगर। जीआरपी में तैनात हेड कांस्टेबल नरेश कुमार से रिश्तेदार बनकर साइबर ठग ने ४५ हजार रुपये ठग लिए। नरेश ने साइबर सेल में जानकारी दी। कॉल करने वाले ने खुद को नरेश का रिश्तेदार बताया था और मोबाइल पर उनसे लिंक ओपन करा लिया। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए ४५ हजार रुपये साइबर ठग से वापस करा दिए। शाहपुर। पशु चोरी की घटना का खुलासा करते हुए पुलिस ने तीन शातिर अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जिनके कब्जे से ५२ हजार रूपये व अवैध शस्त्र बरामद किये। जानकारी के अनुसार थाना क्षेत्र शाहपुर में अज्ञात बदमाशों द्वारा पशु चोरी की घटना को अंजाम दिया गया था। जिसके सम्बन्ध में थाना शाहपुर पर सुसंगत धारा में अभियोग पंजीकृत किया गया था। थाना शाहपुर पुलिस द्वारा दौराने पुलिस कार्यवाही बरवाला वाले रास्ते पर सरकारी ट्यूबैल के पास से ०३ शातिर चोर अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार अभियुक्तों ने पुलिस पूछताछ में नदीम पुत्र नफीस पहलवान निवासी मौ० फिरदौसनगर खालापार थाना कोतवालीनगर, मुजफ्फरनगर, सद्दाम पुत्र छोटा उर्फ नईम निवासी मौ० फिरदौसनगर खालापार थाना कोतवालीनगर, मुजफ्फरनगर, साजिद पुत्र सरमुल्ला निवासी धर्मकांटे के पास मिमलाना रोड़ थाना कोतवाली नगर, मुजफ्फरनगर बताया जिनके कब्जे से ०२ तमन्चा मय ०२ जिन्दा व ०२ खोखा कारतूस ३१५ बोर, ०१ छुरी नाजायज, ५२ हजार रूपये नगद बरामद किया। पुलिस पूछताछ अभियुक्तगण द्वारा बताया गया कि उन्होंने 17-18 की रात्रि को ग्राम बरवाला के ०१ मकान से ०१ भैसा व ०१ भैस चोरी कर लिये थे, जिनहें ५२,००० रूपये में ०१ व्यापारी को बेच दिया था। अभियुक्तगण शातिर किस्म के चोर प्रवर्ति के अपराधी हैं तथा आपराधिक इतिहास की जानकारी की जा रही है। मुजफ्फरनगर। बदमाशों ने दिन निकलते ही पुलिस को चुनौती देते हुए गुड़ कारोबारी से लाखों रुपए की नगदी लूट ली। हथियारों की नोंक पर लूटी गई नकदी को लेकर बदमाश आराम के साथ फरार हो गए। दिनदहाड़े सरेआम लाखों रुपए की लूट की जानकारी मिलते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया। पुलिस फोर्स के साथ कोतवाल मौके पर पहुंचे। उधर जिला मुख्यालय पर पहुंची लूट की घटना की जानकारी के बाद एसपी क्राइम ने भी नगर में पहुंचकर लूट का शिकार हुए कारोबारी से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की। बुधवार को नगर के मोहल्ला कांशीराम निवासी गुड कारोबारी मुकेश जैन पुत्र रोशनलाल जैन तकरीबन एक लाख ५० हजार रुपए की नगदी लेकर बैंक में जमा कराने जा रहा था। इसी दौरान रास्ते में बाइक पर सवार होकर आए बदमाशों ने गुड कारोबारी को हथियारों के निशाने पर ले लिया और उससे नकदी भरा थैला लूटने लगे। गुड कारोबारी ने जब विरोध जताया तो बदमाशों ने उसके साथ मारपीट की। इसके बाद हथियार बंद बदमाश गुड कारोबारी से लूटे गए रुपयों को लेकर आराम के साथ बाइक पर बैठकर फरार हो गये। हालांकि शोर-शराबा करते हुए गुड कारोबारी ने आसपास के लोगों से मदद भी मांगी। लेकिन जब तक आसपास के लोग गुड कारोबारी की मदद के लिये मौके पर पहुंचते, उस समय तक लुटेरे नगदी को समेटकर फरार होने में कामयाब हो चुके थे। दिन निकलते ही सरेआम लाखों रुपए की लूट की घटना हो जाने की जानकारी मिलते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया। पुलिस फोर्स के साथ कोतवाल मौके पर पहुंचे और पीड़ित गुड कारोबारी से बदमाशों के हुलिए आदि के संबंध में जानकारी प्राप्त की। बदमाशों की तलाश के लिए पुलिस ने नाकेबंदी भी की। मगर वह पुलिस को चकमा देकर भागने में कामयाब रहे। उधर लूट की जानकारी जब जिला मुख्यालय पर पहुंची तो एसपी क्राइम ने मौके पर पहुंचकर मामले की जांच पड़ताल करते हुए पुलिस को मामले के खुलासे के निर्देश दिए। गौरतलब है कि पुलिस को बदमाश लगातार चुनौती दे रहे हैं। पिछले दिनों भी जानसठ रोड पर स्थित मदरसे में मौलाना को बंधक बनाते हुए बदमाशों ने लूट की वारदात को अंजाम दिया था। इसके अलावा ग्राम खोखनी में सर्राफ को गोली मारने समेत लूट की कई अन्य घटनाएं भी हो चुकी है। हालांकि आला अधिकारियों के दबाव के चलते कई लूट को खोलने में पुलिस कामयाब भी हुई है, मगर जिस तरह से लगातार घटनाएं हो रही है, उसे पता चल रहा है कि बदमाशों को पुलिस का खौफ नहीं रहा है। मुजफ्फरनगर। मीरांपुर क्षेत्र में कैथोडा के निकट आज सवेरे बारात की बस एक ट्राले से टकरा जाने से बस चालक की मौत हो गयी जबकि दर्जनों बाराती गम्भीर रूप से घायल हो गये। आठ घायलों को जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है। सूचना पर पहुंची पुलिस ने सभी घायलों को अस्पताल में भिजवाया और मृतकं के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। जानकारी के अनुसार दिल्ली-पौढ़ी राजमार्ग पर गांव किठौड़ा के पास स्टेयरिंग फेल हो जाने से बरात की बस गन्ने के खाली ट्रॉले से टकरा गई। हादसे में बस में सवार करीब ४० बराती घायल हुए है। ं पुलिस ने घायलों को जानसठ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया। भोपा निवासी गगन की शादी रामराज से तय हुई थी। बस में बरात भोपा से दिल्ली-पौढ़ी हाईवे होते हुए जा रही थी। किठौड़ा गांव के पास बस का स्टेयरिंग फेल हो गया। टिकौला चीनी मिल में गन्ना उतारकर आ रहे ट्रैक्टर-ट्रॉले में बस की टक्कर हो गई। हादसे के बाद मौके पर चीख-पुकार मच गई। आसपास के लोग मदद के लिए दौड़े। ट्रॉला करीब छह फीट तक बस में धंस गया। घायलों को जानसठ अस्पताल में ले जाया गया। बस चालक की मौत हो गयी। पुलिस ने मृतक के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। आठ गम्भीर घायलों में सोनू, जितेंद्र, आत्माराम, शिवकुमार, कामेश, विजय, महेंद्र व जोगेंद्र को जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है। मुजफ्फरनगर। जिलाधिकारी द्वारा जनता दर्शन में जन समस्याओं का निस्तारण किया गया। कलैक्ट्रेट स्थित जिलाधिकारी कार्यलय में जिलाधिकारी महोदय चंद्र भूषण सिंह के द्वारा अपने कार्यालय कक्ष में जनसुनवाई के अंतर्गत फरयादियों की समस्याओं को सुना गया। जनता दरबार में मुख्य रूप से भूमि विवाद, कृषि,राशन, जलभराव आदि से सम्बंधित शिकायते प्राप्त हुई। जिनके निस्तारण हेतु जिलाधिकारी द्वारा सम्बन्धित अधिकारीयों को आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिये गये। जिलाधिकारी द्वारा उपस्थित अधिकारियों को यह भी निर्देश दिये गये कि सम्बन्धित शिकायतो का निस्तारण त्वरित एवं प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। इसमें किसी प्रकार की शिथिलता बर्दाश्त नहीं की जायेगी। मुजफ्फरनगर। कुलदेवी आद्य महालक्ष्मी मन्दिर,अग्रोहा के तत्वाधान में पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आज मिनाक्षी चौक स्थित कोल्ड स्टोरेज से अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन द्वारा श्री अग्रोहा धाम से भ्रमण करते हुए श्री महालक्ष्मी जी की प्रतिमा नगर मे पहुंची। जहां संस्था के पदाधिकारियों एवं वैश्य समाज के गणमान्य लोगो के द्वारा कुलदेवी आद्य महालक्ष्मी जी की प्रतिमा का पूजन किया गया। कुलदेवी आद्य महालक्ष्मी मन्दिर अग्रोहा प्रतिमा की भारत यात्रा का आज इस कार्यक्रम के माध्यम से विधिवत शुभारम्भ हुआ। समाजसेवी सुरेन्द्र अग्रवाल के मिनाक्षी चौक स्थित कोल्ड स्टोरेज पर आयोजित महालक्ष्मी जी की प्रतिमा के पूजन के दौरान मुख्य अतिथि के रूप मे पधारे मंत्री कपिलदेव अग्रवाल,तथा कार्यक्रम मे विशिष्ठ अतिथि के रूप मे उपस्थित रहे पूर्व विधायक सोमांश प्रकाश, उद्यमी राकेश बिन्दल,उद्यमी सतीश गोयल, प्रमुख समाजसेवी भीमसैन कंसल,सौरभ स्वरूप, दिनेश गर्ग,भाजपा नेता श्री मोहन तायल ने महालक्ष्मी पूजन किया। इस दौरान अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष सुरेन्द्र अग्रवाल, प्रदेश महामंत्री प्रमोद मित्तल,जिला अध्यक्ष विनोद संगल, जिला महामंत्री अंकुर गर्ग आदि संस्था के पदाधिकारीगण एवं वैश्य समाज के गणमान्य लोग मौजूद रहे। खतौली। मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण २०२२ के अंतर्गत उप जिलाधिकारी खतौली द्वारा विधानसभा खतौली १५ के ग्राम पंचायत दौलतपुर एवं अभिपुरा के बूथों का निरीक्षण किया गया। भारत निर्वाचन आयोगों के निर्देशों के क्रम में मतदाता सूची का विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण २०२२ के तहत आज दिनांक ०१. १२. २०२१ को उप जिलाधिकारी खतौली श्री जीत सिंह राय के द्वारा विधानसभा खतौली १५ के ग्राम पंचायत दौलतपुर एवं अभिपुरा के बूथों का निरीक्षण किया गया। जिसके अंतर्गत बूथ स्थल पर सफाई एवं पानी आदि की भी व्यवस्था जांची गयी। मुजफ्फरनगर। आलोक यादव, मुख्य विकास अधिकारी एवं डा0 एम0एस0 फौजदार मुख्य चिकित्सा अधिकारी की अध्यक्षता में जन जागरूकता रैली का आयोजन किया गया। रैली का शुभारम्भ टाऊन हॉल मैदान से श्री आलोक यादव, आईएएस, मुख्य विकास अधिकारी एवं डा0 एम0एस0 फौजदार, मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा संयुक्त रूप से हरी झण्डी दिखाकर किया गया। रैली में छात्र-छात्राए एड्स स्लोगन जैसे एड्स का ज्ञान, बचाये जान। एक को समझाए एक, एड्स से बच पाये अनेक। हम सब ने यह ठाना, भारत से एड्स रोग भगाना है, आदि स्लोगन वाली तख्तिया लिये तथा रेड रिबन लगाकर बच्चो ने रैली में प्रतिभाग किया तथा रैली टाऊन हॉल परिसर से प्रारम्भ होकर शिव चौक होते हुए जिला चिकित्सालय परिसर में समाप्त हुई। जिसमें जनपद के विद्यालय से सर छोटू राम इन्टर कालेज मुजफ्फरनगर, एस0डी0 इण्टर कालेज मुजफ्फरनगर, एम0एम0 इण्टर कालेज मुजफ्फरनगर, दीपचन्द ग्रीन चैम्बर इण्टर कालेज मुजफ्फरनगर, जैन इण्टर कालेज मुजफ्फरनगर राजकीय इण्टर कालेज मुजफ्फरनगर, के बच्चों द्वारा प्रतिभाग किया गया। जिनके द्वारा एड्स विषय पर छात्र-छात्राओं की संगोष्ठी की गई। संगोष्ठी के आयोजन में डा0 लोकेश चन्द्र गुप्ता, जिला क्षय रोग अधिकारी मुजफ्फरनगर ने सभी को एड्स रोग के लक्षण तथा उनसे बचाव की जानकारी के साथ -साथ यह भी बताया कि एचआईवी का कोई उपचार नही है परन्तु एन्टी- रेट्रोवायरल थैरेपी (एआरटी) कहलाने वाली दवाइयां ज़रूर उपलबध है। ये दवाइयां व्यक्ति की प्रतिरोधक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को मजबूत रखने में सहायता करती है, इस तरह रोगी बीमारी से लड़ना जारी रख सकते है और एड्स की षुरूआत को टाल सकते है। डा0 अरविन्द पंवार अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा संगोष्ठी में बताया कि एड्स रोग की कोई वैक्सीन अभी तक नही बनी है तथा कोई कारगर उपचार भी नही है अतः एड्स रोग के बारे में समाज को जानकारी देकर ही इस रोग से बचाव सम्भव है। अतः उन्होने नारा दिया कि एड्स का ज्ञान बचाये जान। डा0 एम0एस0 फौजदार, मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि एड्स से बचाव के लिए सबसे कारगर कदम एड्स रोग के प्रति जागरूकता एवं जानकारी ही है। एड्स रोग मुख्यतः असुरक्षित यौन सम्बन्ध, सक्रमित खून के चढ़ाने से तथा एक ही सुई द्वारा नशे के इन्जेक्शन लेने से एवं संक्रमित मॉ से बच्चे मे आने से फैलता है। एड्स रोग छूने से, गले लगाने से, रोगी के कपडे पहने से, रोगी की समस्त वस्तुए इस्तेमाल करने से, संयुक्त शौचालय इस्तेमाल करने से, टेलीफोन प्रयोग करने से तथा मच्छर के काटने से नही फैलता है। उपरोक्त समस्त विद्यालयों के छात्रों एवं अध्यापकों, यूपीएनपी प्लस से ममता एनजीओ, टीआई एनजीओ, स्वास्थ्य विभाग से डा0 गीताजंली वर्मा, एआरटी स्टाफ, सहबान उल हक, विप्रा, प्रवीन कुमार, अतुल शर्मा, हेमन्त यादव, अभिषेक गर्ग, सुनील सिंह, विपिन कुमार एवं संजीव शर्मा द्वारा रैली में प्रतिभाग किया गया। मुजफ्फरनगर। एस०डी० कॉलेज ऑफ मैनेजमेन्ट स्टडीज में बी०बी०ए०/बी०सी०ए० विभाग के सभागार में च्च्विश्व एड्स दिवसष् के उपलक्ष में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ कॉलेज प्राचार्य डा० संदीप मित्तल व बी०बी०ए०/बी०सी०ए० विभागाध्यक्ष डा० संजीव तायल व राजीव पाल सिंह द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संयोजन व संचालन प्रवक्ता डा० संगीता गुप्ता ने किया। जिसमें छात्र/छात्राओं को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे मे जानकारी दी गयी। सर्वप्रथम इस अवसर पर कॉलेज प्राचार्य डा० संदीप मित्तल ने सभी छात्र/छात्राओं एवं शिक्षको को अपने विचार प्रस्तुत करते हुये बताया कि विश्व एड्स दिवस १९८८ के बाद से १ दिसम्बर को हर साल मनाया जाता है। जिसका उददेश्य एचआईवी संक्रमण के प्रसार की वजह से एड्स महामारी के प्रति जागरूकता बढाना है। सरकार और स्वास्थ्य अधिकारी, गैर सरकारी संगठन व दुनिया भर में लोग इस दिन एड्स की रोकथाम व नियन्त्रण के लिये निरीक्षण करते है व जगह-जगह कैम्प लगाकर लोगो को इस विषय मे सुझाव देते है। कई अभियान चलाए जाते है जिससे इस महामारी को जड़ से खत्म करने के प्रयास किये जा सकें। प्रवक्ता दीपक गर्ग ने अपने शब्दो मे समझाया एड्स का पूरा नाम श्एक्वायर्ड इम्यूलनो डेफिसिएंशी सिंड्रोमश् है और यह एक तरह का विषाणु है, जिसका नाम एच०आई०वी० है। विश्व एड्स दिवस का मुख्य उददेश्य एच०आई०वी० एड्स से ग्रसित लोगों की मदद् करने के लिये धन जुटाना, लोगो में एड्स से जुडें मिथ को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना है। इसी क्रम में बी०बी०ए० विभागाध्यक्ष श्री राजीव पाल सिंह ने आगे बोलते हुए कहा कि एड्स एक ऐसी बीमारी है जो इंसान को जीते-जीम रने पर विवश कर देती है, आज एड्स दुनियाभर में सबसे घातक बीमारी के रूप में उभरकर सामने आया है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज नही है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस बीमारी से बचा ही नही जा सकता, इस बीमारी का एकमात्र इलाज है बचाव । बी०सी०ए० विभागाध्यक्ष डा० संजीव तायल ने बताया कि आजकल की भागदौंड भरी जिंदगी और अनैतिक संबंधो की बाढ़ में यह बीमारी ओर भी तेजी से फैल रही है, सिर्फ असुरक्षित यौन संबंधो से ही नही यह बीमारी संक्रमित खून या संक्रमित इंजेक्शन की वजह से भी फैलती है। आज यह बीमारी पूरे विश्व के लिए एक सिरदर्द बन चुकी है और यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र भी इस बीमारी को बेहद गंभीरता से लेता है और हर साल विश्व एड्स दिवस के रूप मे मनाता है। डा० आलोक कुमार गुप्ता ने बताया कि इस अवसर पर महाविद्यालय के बी०बी०ए० एवं बी०सी०ए० विभाग के अक्षय जैन, प्राची गर्ग, सोनिका, वैभव वत्स, रोबिन गर्ग, नवनीत चौहान, चॉदना दीक्षित, तरूण शर्मा, मोहित गोयल, राहुल शर्मा, रोबिन मलिक, अनुज गोयल, उमेश मलिक, प्रशान्त गुप्ता, विनिता चौधरी, शशांक भारद्वाज व सतीश आदि शिक्षकगण व स्टॉफ एवं सभी छात्र/छात्रायें उपस्थित रहें। मुजफ्फरनगर। सचिव सहकारी गन्ना समिति सुभाष चंद्र यादव द्वारा क्रय केंद्र मखियाली प्रथम का औचक निरीक्षण किया गया। जिलाधिकारी चंद्र भूषण सिंह के निर्देशानुसार कृषकों की शिकायत पर एवं ज़िला गन्ना अधिकारी के निर्देश के अनुपालन में सचिव सहकारी गन्ना समिति सुभाष चंद्र यादव द्वारा क्रय केंद्र मखियाली प्रथम का औचक निरीक्षण किया गया। क्रय केंद्र मखियाली प्रथम का किसानों की सुविधाओं हेतु उदाहरणतः प्रकाश सफ़ाई, मिल यार्ड प्रत्येक काँटे पर मानक बाँट की उपलब्धता, किसानों को पीने के पानी की व्यवस्था आदि का निरीक्षण किया। निरीक्षण के उपरांत कृषको ने संतोष व्यक्त किया। मुजफ्फरनगर। प्रदेश एनएचएम संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के आह्वान पर जिले के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदाकर्मियों ने मांगे पूरी न होने पर बुधवार को हड़ताल कर दी है। जनपद की समस्त स्वास्थ्य इकाई सहित कोविड टीकाकरण व स्वास्थ्य सेवाओं (आकस्मिक स्वास्थ्य सेवाओं को छोड़कर) का बहिष्कार कर स्वास्थ्य कर्मी सीएमओ कार्यालय के बाहर धरना देकर बैठ गए। प्रदर्शन करते हुए मांगे पूरी न होने तक हड़ताल समाप्त न करने की घोषणा की। उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कर्मचारी संघ मुजफ्फरनगर उपाध्यक्ष डा. सचिन जैन ने बताया कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुपालन में २५ नवम्बर २०२१ को काला फीता बांधकर स्वास्थ्य कर्मियों ने विरोध प्रकट किया था। उन्होंने बताया कि उच्चाधिकारियों ने संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों की मांगों पर कोई विचार-विमर्श नहीं किया। जिसके दृष्टिगत प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों के आह्वान पर एक दिसंबर से कामबंद हड़ताल शुरू कर दी गई। बताया कि प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों के आह्वान पर जनपद में कोविड टीकाकरण सहित सभी स्वास्थ्य सेवाएं बंद रखी गई हैं। सीएमओ कार्यालय धरना प्रदर्शन कर रहे संविदा स्वास्थ्य कर्मियों ने कहा कि उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। काफी दिनों से संगठन अपनी जायज मांगों को लेकर लोकतांत्रिक तरीकों से प्रदर्शन करता आ रहा है। लेकिन उच्चाधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। कहा कि प्रदेश में समस्त संविदाकर्मी अपनी जान पर खेलकर कोविड-१९ जैसी महामारी से निपटने में दिन- रात ड्यूटी में लगे हुए हैं। जनपद में कोविड-१९ जैसी महामारी में भी एनएचएम संविदा कर्मचरियों ने आपदा मेंअपनी जान जोखिम में डालकर जनसमुदाय की सेवा की और प्रदेश का गौरव बढाया। फिर भी उक्त महामारी में शहीद चिकित्सक, पैरामेडिकल अथवा अन्य कर्मचरियों को घोषित धनराशि का ही सहारा है। अन्य कोई बीमा या अन्य लाभ मिशन निदेशक स्तर से संविदा कर्मियों को नहीं दिया जा रहा। डॉ इफ्तिखार, डॉ शमशेर आलम, एहतेशाम खां, इंजी मोहित जौहरी, हसरत अली, अश्वनी कुमार, रवि कुमार, जुनैद अंसारी आदि हड़ताल में शामिल रहे। मुजफ्फरनगर। सपा जिला मीडिया प्रभारी साजिद हसन ने जानकारी देते हुए बताया कि सपा कार्यालय मुजफ्फरनगर आगमन पर समाजवादी अल्पसंख्यक सभा प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी का सपा अल्पसंख्यक सभा जिलाध्यक्ष डा नूर हसन सलमानी महानगर अध्यक्ष अल्पसंख्यक सभा सलीम अंसारी व उनकी कार्यकारिणी द्वारा जोरदार स्वागत किया गया। सपा जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी एडवोकेट की अध्यक्षता व सपा जिला उपाध्यक्ष असद पाशा के संचालन में डॉ नूरहसन सलमानी व महानगर अध्यक्ष अल्पसंख्यक सभा सलीम अंसारी द्वारा आयोजित सभा को संबोधित करते हुए सपा जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी एडवोकेट ने कहा कि समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ है, अल्पसंख्यकों में चाहे मुस्लिम हो या सिख समाज उन पर किसी भी उत्पीड़न व भेदभाव को समाजवादी पार्टी कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। प्रदेश अध्यक्ष अल्पसंख्यक सभा शकील नदवी ने कहा कि योगी मोदी सरकार अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की आड़ में महत्वपूर्ण व जनहित के मुद्दों से जनता का ध्यान हटाकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहरीले बोल की आड में किसान मजदूर नौजवान का उत्पीड़न व आरक्षण तथा देश के संसाधन बेचने व छीनने के एजेंडे पर काम कर रही है। योगी सरकार में अल्पसंख्यकों के साथ ही दलित पिछड़ों का जातिगत भेदभाव के साथ खुला उत्पीड़न किया जा रहा है। शकील नदवी ने वोट बांटने की साजिश से धर्म जाति की आड़ में राजनीति करने वालों को सबक सिखाने का आह्वान किया। उन्होंने सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी जरूरत बताया। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता सरदार देवेंद्र सिंह खालसा ने कहा कि योगी मोदी सरकार सिख समाज के उत्पीड़न को लेकर गफलत की राजनीति में है, सिख समाज ने ५०० साल के इतिहास में भी कभी किसी जालिम तानाशाह के आगे हार नहीं मानी किसानों के मुद्दे पर सिख समाज ने अपनी ताकत का एहसास करा भी दिया है। सपा महानगर अध्यक्ष अलीम सिद्दीकी सपा जिला महासचिव जिया चौधरी ने अपने संबोधन में कहा कि कोई भी जालिम तानाशाह सरकार हो सपा कार्यकर्ता उसके गुरुर को तोड़ना जानते हैं। सपा जिला मीडिया प्रभारी साजिद हसन व पूर्व महानगर अध्यक्ष अंसार आढती ने अपने संबोधन में कहा कि भाजपा सरकार ने अल्पसंख्यक समाज के उत्पीड़न की आड़ में बहुसंख्यक समाज को गुमराह करने का काम किया है। अल्पसंख्यको के उत्पीड़न की आड में नौजवानों की नौकरी किसानों की फसल का उचित दाम मजदूरों की मजदूरी दलित पिछड़ों आरक्षण छीन लिया गया है। अल्पसंख्यक सभा प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी का वरिष्ठ सपा नेता सरदार देवेंद्र सिंह खालसा के नेतृत्व में सरदार जसविंदर सिंह, गुरमेल सिंह ,गुरमीत सिंह, हरविंद्र सिंह, जगतार सिंह,सुखविंदर सिंह, कंवलजीत सिंह, शमशेर सिंह द्वारा स्वर्ण मंदिर की आकर्षक कृति देकर व मुकीम कासमी,प्रधान दिलशाद राणा,अब्दुल्ला प्रधान, अहसान अली पूर्व प्रधान, मौलाना अहमद हसन, आस मोहम्मद कासमी, जावेद अली, सद्दाम हुसैन, रिसालत अली द्वारा माल्यर्पण कर स्वागत किया गया। प्रोग्राम में मुख्यरुप से सपा जिला उपाध्यक्ष विनय पाल ,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लोहिया वाहिनी हारून अली राष्ट्रीय सचिव लोहिया वाहिनी शौकत अंसारी रोहन त्यागी प्रदेश सचिव यूथ ब्रिगेड शमशेर मलिक लोहिया वाहिनी प्रदेश सचिव डॉ इसरार अल्वी सलीम मलिक,जुनेद रउफ,शमशाद अहमद मौलाना नज़र, यूथ ब्रिगेड जिलाध्यक्ष राशिद मलिक ,छात्र सभा जिलाध्यक्ष यूसुफ गौर युवजन सभा के पूर्व जिलाध्यक्ष रागिब कुरैशी, नवेद रँगरेज,आमिर डीलर, काज़ी खुर्रम फ़राज़ अंसारी अनिल जैन फ़राज अंसारी आफाक पठान,काज़ी फसीह अख्तर,ईशान अग्रवाल,आसिफ अली,गुलसनववर, तनवीर प्रधान दिलशाद कुरैशी सुमित पँवार बारी अकरम अली अन्नू कुरैशी सभासद, शाहिद राजा सहित अनेक कार्यकर्ता मौजूद रहे। मुजफ्फरनगर। सहकारी गन्ना विकास समिति तितावी के सचिव द्वारा जनसुनवाई के अतंर्गत गन्ना किसानों की समस्याएं सुनी। जिलाधिकारी महोदय चंद्रभूषण सिंह के निर्देशानुसार ज्येष्ठ गन्ना विकास निरीक्षक तितावी सतीश कुमार के द्वारा जनसुनवाई के अंतर्गत सहकारी गन्ना विकास समिति तितावी के ग्राम पंचायत छपार के गन्ना कृषक नफीस, अजमेर एवं राजेन्द्र, सुदेश वीर आदि की गन्ने से सम्बन्धित समस्याएं सुनी गई एवं सम्बन्धित पटल पर उक्त समस्याओं का मौके पर ही निस्तारण कर दिया गया। मुजफ्फरनगर। जिला पूर्ति अधिकारी ने बताया कि आयुक्त खाद्य तथा रसद विभाग, उ0प्र0 जवाहर भवन, लखनऊ के कार्यालय पत्रांक 4045/आ0पू0रा0-कोरोना-विविध निर्देश/2020 दिनांक 30 नवम्बर, 2021 द्वारा अवगत कराया गया है कि माह नवम्बर, 2021 में दिनांक 20. 11. 2021 से 30. 11. 2021 तक खाद्यान्न (गेहूँ व चावल) का वितरण कराने हेतु पूर्व में निर्देश दिये गये थे। उक्त पत्र में यह भी उल्लिखित किया गया है कि कतिपय जनपदों के जिलाधिकारियों द्वारा यह अवगत कराया है कि उचित दर विक्रेताओं को विपणन केन्द्रों से खाद्यान्न का निर्गमन न होने के कारण समस्त लाभार्थियों को खाद्यान्न का वितरण 30. 11. 2021 तक कराया जाना सम्भव नहीं हो पा रहा है तथा वितरण तिथि बढाने हेतु अनुरोध किया गया है। जिसके दृष्टिगत खाद्यायुक्त द्वारा राष्ट्रीय खा़द्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के अन्तर्गत माह नवम्बर, 2021 में द्वितीय चक्र में खाद्यान्न वितरण हेतु अवशेष लाभार्थियों को नियमित खाद्यान्न की वितरण तिथि दिनांक 03. 12. 2021 एवं 04. 12. 2021 (02 दिवस) निर्धारित की गयी है। उक्त अवधि में ई-पॉस के माध्यम से आधार आधारित वितरण किया जायेगा। उक्त दो वितरण दिवसो में कार्डधारको को पोर्टेबिलिटी से खाद्यान्न प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध रहेगी। इस हेतु विक्रेता अपने स्टॉक में अवशेष खाद्यान्न की उपलब्धता की सीमा तक पोर्टेबिलिटी के अन्तर्गत खाद्यान्न वितरित कर सकेंगे। उपरोक्त के क्रम में सभी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के अन्तर्गत अन्त्योदय एवं पात्र गृहस्थी कार्डधारकों) से अनुरोध है कि जिन लाभार्थियों ने माह नवम्बर, 2021 के द्वितीय चक्र (दिनांक 20. 11. 2021 से 30. 11. 2021) में अपना खाद्यान्न प्राप्त नहीं किया है, ऐसे लाभार्थी अपना खाद्यान्न दिनांक 03. 12. 2021 एवं 04. 12. 2021 (दो दिवस) में सम्बन्धित उचित दर विक्रेता से ई-पॉस मशीन के माध्यम से नियमानुसार प्राप्त कर लें। इस सम्बन्ध में सभी उचित दर विक्रेताओं एवं उचित दर दुकानों पर नियुक्त नोडल अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि वह उपरोक्तानुसार निर्धारित तिथियों में सम्बन्धित उचित दर विक्रेताओं की दुकानो पर उपस्थित रहकर खाद्यान्न प्राप्त करने से अवशेष रहे कार्डधारको में नियमानुसार ई-पॉस मशीन के माध्यम से खाद्यान्न का वितरण कराना सुनिश्चित करेंगे तथा खाद्यान्न वितरण के समय कोरोना संक्रमण के बचाव हेतु सोशल डिस्टेन्सिंग का अनुपालन सुनिश्चित किया जाये। मुजफ्फरनगर। गली में तेजी के साथ गुजर रहे स्कूटर की टक्कर से बुजुर्ग व्यक्ति घायल हो गया। जिसे उसके परिजनो ने उपचार के लिए अस्पताल भिजवाया। मिली जानकारी के अनुसार नई मन्डी के पटेलनगर संजय मार्ग निवासी करीब 70 वर्षीय बैजनाथ गोयल आज दोपहर के वक्त अपने घर के बाहर गली मे बैठे अखबार पढ रहे थे कि इसी बीच गली मे तेजी के साथ पहुंचे स्कूटर की चपेट मे आ जाने से बुजुर्ग व्यक्ति घायल हो गया। बताया जाता है कि इस हादसे के बाद आरोपी स्कूटर चालक अपने स्कूटर सहित मौके से फरार हो गया। बुजुर्ग के चीखने की आवाज सुनकर उनके परिजन तथा पडौसी मौके पर पहुंचे। तथा आनन-फानन मे घायल बैजनाथ को उपचार के लिए जिला अस्पताल भिजवाया। मुजफ्फरनगर। भारतीय किसान यूनियन ने जिला कार्यकारिणी एवम तहसील व ब्लॉक स्तर तक विस्तार करते हुए अध्यक्षों की नियुक्ति की है। भाकियू के जिलाध्यक्ष योगेश शर्मा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार प्रताप सिंह को तुगलपुर,ब्लॉक पुरकाजी का अध्यक्ष बनाया गया है। अनिल चौधरी को खतौली तहसील अध्यक्ष, सरदार अमीर सिह को मोरना ब्लॉक अध्यक्ष,अनुज बालियान को बुढाना तहसील अध्यक्ष बनाया गया है। ठा. कुशलवीर सिंह को सचिव तहसील सदर, राजेन्द्र सैनी को सचिव सदर तहसील,विपिन बालियान को सचिव तहसील बुढाना,विदेश मोतला को उपाध्यक्ष तहसील खतौली की जिम्मेदारी सौपी गई है। जिलाप कार्यकारिणी मे विकास शर्मा को उपाध्यक्ष,बिटटू को उपाध्यक्ष,सर्वेन्द्र राठी को उपाध्यक्ष,अशोक घटायन को उपाध्यक्ष तथा राजीव उर्फ नीटू दुल्हैरा को प्रवक्ता,सुबोध काकरान को महासचिव, सतेन्द्र पुण्डीर को महासचिव, रोशन दीक्षित को महासचिव,विपुल निर्वाल को संगठन मंत्री,राकेश चौधरी के संगठन मंत्री,शक्ति सिह को मीडिया प्रभारी, कुलदीप सिरोही को महामंत्री,अंशु त्यागी को महामंत्री,मांगेराम त्यागी को सचिव,अहसान त्यागी को सचिव पद पर नियुक्त किया गया है। इमरान ,भरतवीर आर्य, विपिन मंहदीयान,हरिओम त्यागी,रविन्द्र पंवार,योगेश बालियान, मोहसीन रजा,मनीष अहलावत सभी को सचिव एवं सरदार पलविन्दर व बब्लू सहरावत को मंत्री बनाया गया है। इनके अलावा देव अहलावत को सदर ब्लॉक अध्यक्ष,विकास चौधरी को मोरना ब्लाक अध्यक्ष,कुलदीप त्यागी को चरथावल ब्लॉक अध्यक्ष, सतेन्द्र चौहान को खतौली ब्लॉक अध्यक्ष,संजय त्यागी को पुरकाजी ब्लॉक अध्यक्ष, जोगिन्द्र पहलवान को जानसठ ब्लाक अध्यक्ष अमरजीत तोमर को बघरा ब्लॉक अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौपी गई है। संजीव पंवार को बुढाना ब्लॉक अध्यक्ष,बिजेन्द्र बालियान को शाहपुर ब्लॉक अध्यक्ष बनाया गया है। मुजफ्फरनगर। एक युवक ने गांव के ही युवक पर उसकी पत्नी के अपहरण का आरोप लगाते हुए एसएसपी से कार्यवाही की गुहार लगाई है। एसएसपी के नाम दिये गये प्रार्थना पत्र में भौराकलां थाना क्षेत्र के गांव जैतपुर गढी निवासी युवक ने आरोप लगाया कि गांव का ही युवक उसकी पत्नी पर बुरी नजर रखता था जिसके चलते वह पंजाब भट्टे पर अपनी पत्नी के साथ जाकर रहने लगा था। आरोप है कि उक्त युवक ने पंजाब भट्टे से उसकी पत्नी का अपहरण कर लिया। उसने भागदौड़ कर आरोपी युवक के रिश्तेदार के घर से अपनी पत्नी को बरामद कर लिया और गांव में आकर रहने लगा। पीडित ने आरोप लगाया कि २५ नवम्बर को आरोपी युवक गांव से उसकी पत्नी का अपहरण कर ले गया है। पीडित ने एसएसपी से कार्यवाही की गुहार लगाई है। मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेष राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन संविदा कर्मचारी संघ के आह्वान पर जिला मुजफ्फरनगर के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदाकर्मियों ने अपनी मांगे पूरी न होने पर हड़ताल करने का आह्वान कर दिया है, जिसके क्रम में जनपद की समस्त स्वास्थ्य इकाई सहित कोविड टीकाकरण व स्वास्थ्य सेवाएं (आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर) बंद कर मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में धरना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेष राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कर्मचारी संघ मुजफ्फरनगर षाखा के उपाध्यक्ष डा. सचिन जैन ने बताया कि अपनी सात सूत्रीय मांगों को लेकर स्वास्थ्य संविदा कर्मचारियों ने आज काम बंद हड़ताल षुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि जब तक प्रदेष सरकार हमारी मांगों को पूरा नहीं करेंगे हम हड़ताल पर रहेंगे। उन्होंने बताया कि जनपद में लगभग एक हजार संविदाकर्मचारी है, जो कि बेहद कम वेतन पर अपनी सेवाएं स्वास्थ्य विभाग में दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि जनपद सहित अन्य जिलों में यह कार्य बहिश्कार हड़ताल चल रही है। आज के धरने को राज्य कर्मचारी संयुक्त परिशद के अध्यक्ष डॉ0 संजीव लाम्बा, डिप्लोमा फार्मेसी संरक्षक श्री के. सी. राय, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संगठन के महामंत्री षारदा मिश्रा, लैब टैक्नीषियन संघ के अध्यक्ष षोराज सिंह ने अपना समर्थन दिया है। जनपद में कोविड-19 जैसी महामारी में भी एन0एच0एम0 संविदा कर्मचरियों द्वारा अपनी अग्रणी भूमिका को निभाते हुए आपदा में अपनी जान जोखिम में डालकर जनसमुदाय की सेवा और प्रदेष का गौरव बढाया है। फिर भी उक्त महामारी में शहीद हमारे चिकित्सक/पैरामेडिकल अथवा अन्य कर्मचरियों को आप द्वारा घोशित राषि का ही सहारा है अन्य कोई इन्ष्योरेन्स या लाभ मिषन निदेषक स्तर से हम संविदा कर्मियों को प्राप्त नही है। जिसके कारण कर्मचारियों में रोश व्याप्त है और संवेदनहीनता की भावना प्रचुर होती जा रही है कि कम वेतन व कम सुविधाओं के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को निर्वाहन किस प्रकार किया जाये। आज के धरने में डॉ. सचिन जैन, विपिन कुमार, अनुज सक्सैना, डा. संजीव सैनी, डा. राहुल, डा. अनिल कौशिक, डा देवेन्द्र, डा. सुदेश, एहतेषाम, कमल कुमार, अश्वनी कुमार, निर्मला आशा, रेणु आशा, ममता आषा, सपना आषा, मीनाक्षी आषा, रूबी आषा, मोहित, रवि कुमार, तरूण शर्मा, देवेन्द्र कुमार, सलीम अहमद, शशांक त्यागी, मणीकान्त त्यागी, मोनिका एएनएम, प्रियंका सहित समस्त एएनएम, समस्त आषा, समस्त फार्मासिस्ट, समस्त वार्डब्वाय, समस्त कम्पयूटर आपरेटर आदि षामिल रहे।
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प्रतिदर्श परिगणना से पता चलता है कि एक टेलीफोन कॉल को संप्रेषित करने के लिए कितनी बिटों की आवश्यकता होती है। यदि 4 कि. हर्ट्ज के टेलीफोन चैनल को 8 कि. हर्ट्ज (एक सेकेंड का 8,000 गुना) पर प्रतिदर्शित होता है तो प्रतिदर्श में कूटित विस्तारण को व्यक्त करने के लिए प्रत्येक बार 7 बिटों की जरूरत होती है तो प्रति सेकेंड 64,000 बिटों ( 64 कि. बिट्/सेकेंड) की आवश्यकता होगी। विभिन्न संप्रेषण चैनलों की क्षमता और संदेश स्रोत की जटिलता प्रति सेकेंड बिटों के हिसाब से नापी जा सकती है। इस क्षेत्र में भी लागू होने वाला एक गणितीय सिद्धांत क्लाउड ई. शैनॉन (जन्म 1916) द्वारा सन् 1948 में बतलाया गया था। इस सिद्धांत का असर यह था कि यदि सूचना दर चैनल की क्षमता से अधिक न हो (प्रति सेकेंड बिटों में भी अभिव्यक्त किया गया) तो संदेश बिना किसी त्रुटि के भेजे जा सकते हैं। यदि ठीक से संदेश भेजा जाये (प्रति सेकेंड बिट के रूप में) तो सूचना प्रवाह चैनल की क्षमता तक पहुंच सकता है। इस सिद्धांत के आधार पर गति संकेत में प्रेषण प्रणाली की निष्पादन प्रक्रिया और व्याघात उत्पन्न करने वाले शोर तथा संकेतक की विशेषताएं इंजीनियर बतला सकते हैं और उसका मूल्यांकन कर सकते हैं। मनुष्य के वाक् की सूचना दर कदाचित प्रति सेकेंड 1,000 बिट से कम है जबकि टेलीफोन चैनल 60,000 बिट प्रति सेकेंड संप्रेषित कर सकता है । रेडियो के लिए चैनल क्षमता 80,000 बिट प्रति सेकेंड एफ. एम. रेडियो के लिए 2,50,000 बिट है और रंगीन टी. वी. (525 लाइनें) 90 मिलियन बिट प्रति सेकेंड की है। यह परिगणना शैनॉन के सिद्धांत पर आधारित है। प्रति सेकेंड64,000 बिटों के संप्रेषण के साथ स्वर संचार के क्षेत्र में श्रेष्ठ गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है। 32,000 बिट प्रति सेकेंड सीमित रखकर काफी अच्छे संकेत प्राप्त किये जा सकते हैं । बिटों का संयोजन विभिन्न स्रोतों से प्राप्त बिटों को सामान्यतया संप्रेषण के उद्देश्य से संयोजित किया जाता है। यदि टेलीफोन को (8 बिट प्रतिदर्श के साथ एक सेकेंड में 8,000 गुना की दर पर) प्रतिदर्शित किया जाता है तो हमें 64,000 बिट प्रति सेकेंड की आवश्यकता होती है। यदि 24 टेलीफोन चैनल हों तो कुल 192 अंकों (और समक्रमण के लिए एक अतिरिक्त) के आठ-आठ अंकों के समय-सांचे रहेंगे। एक सेकेंड में 8,000 समयसांचों की बार बार पुनरावृति होती है जिससे 15,44,000 बिटें प्रति सेकेंड बनती हैं। दरअसल संयुक्त राज्य और जापान ने 1.544 मैगा बिट प्रति सेकेंड की दर से 24 स्वर चैनलों की एक आधारभूत इकाई को अपनाया है। दुनिया के बाकी देशों ने 2.048 मेगा बिट प्रति सेकेंड की दर से 30 स्वर चैनल समूह अपनाये हैं। 30 चैनल प्रणाली (समक्रमण और संकेतन के लिए 2 अतिरिक्त चैनल) में 32 आधारभूत समय-सांचे होते हैं और प्रत्येक की क्षमता प्रति सेकेंड 64 किलो बिट की होती है जिससे 2,048 कि. बिट प्रति सेकेंड अथवा 2 मे. बिट प्रति सेकेंड बनती हैं। 32 विभिन्न चैनलों से प्रतिदर्श सूचना एक के बाद एक प्रतिदर्श निरंतर भेजी जाती है (चित्र- 16 ) । 2 मे. बिट प्रति सेकेंड संप्रेषण अंकानुक्रमण के प्राथमिक स्तर की संरचना करता है। 30 चैनलीय मल्टीप्लेक्स के चार चैनलों में से चित्र-16 समय विभाजन मल्टीप्लेक्स में स्पंदन कोड मॉडुलन का प्रयोग होता है। यहां 32 स्वर चैनल, प्रति सेकेंड 8,000 चार के अनुक्रम में प्रतिदर्शित किये जाते हैं और प्रत्येक प्रतिदर्श के के आयाम का पी. सी. एम. की भांति द्विअंकीय रूप में प्रतिनिधित्व होता है जिन्हें एकाधिक 'एक' और एकाधिक 'शून्य' के रूप में अंतःपत्रित एवं संप्रेषित किया जाता है। 8 अंकों (256) के 32 समय-सांचे की (तथा 1 अतिरिक्त 257) प्रति सेकेंड 20,56,000 अंकों के योग के लिए, एक सेकेंड में 8,000 बार पुनरावृति होती है। अंकीय स्पंदन एक ही केबिल पर अंतःपत्रित की जा सकती है जो इसके पश्चात् प्रति सेकेंड आठ मिलियन बिट के रूप में 120 वार्तालापों को वहन कर सकता है। इसके बाद 8 मिलियन बिट मल्टीप्लेक्स के चार सैट, 34 मिलियन बिटों के प्रवाह के 480 चैनल संपर्क प्राप्त करने के लिए अंतःपत्रित किये जा सकते हैं। इनमें से 4 प्रवाह भी एक ही टेलीफोन केबिल पर साथ साथ भेजे जा सकते हैं । थिरकनों की सभी श्रृंखलाएं प्राप्ति वाले छोर पर वाक् के रूप में पुनसृजित की जाती हैं। स्पंदन कोड नियमन (पल्स कोड मॉड्युलेशन) की विशेषताएं चार हजार हर्ट्ज तक की किसी आवृति के पुनसृजन के लिए प्रति सेकेंड 8,000 बार प्रतिदर्शित पल्स कोड मॉड्युलेशन (पी. सी. एम.) से छोटे पथों पर प्रति टेलीफोन चैनल लागत घटायी जा सकती है और नगर के भीतर ही लाइनों के उपयोग में वृद्धि हो सकती है। पी. सी. एम. के अनेक लाभ हैं। इस पर लाइन के शोर या बातचीत के टकराव का प्रभाव नहीं पड़ता। यहां तक कि पुराने केबिल जैसे खराब साधन से भी काम चल जाता है। कंप्यूटर से प्राप्त उच्च संप्रेषण दर को भी संभालने में पी. सी. एम. आदर्श सिद्ध होता है। यह तकनीक उपग्रह संचार में काम आती है क्योंकि उपग्रह को भेजे जाने वाले बिट प्रवाह के आवश्यकतानुसार समय विभाजन भी मल्टीप्लेक्सित हो सके। नेटवर्क का नियंत्रण और गोपनीयता का प्रावधान आदि इसके कुछ अन्य लाभ हैं । तथापि टेलीफोन संकेतों को बिटों की कम संख्या में कूटित करने के भी तरीके हैं, जिनसे डिजिटल ट्रंकों की क्षमता में वृद्धि होती है। कुछ सैन्य या फिर आपात संचार प्रणालियों जैसी स्थिति में जहां वाक् के परिष्कृत प्रतिदर्शन की जरूरत नहीं होती वहां पहले से ही निम्न प्रतिदर्श दरें इस्तेमाल हो रही हैं। इस पद्धति में डेल्टा मॉड्युलेशन कूट केवल इतना ज्ञात कर पाता है कि वाक् संकेत का विस्तारण पिछले प्रतिदर्श से कम है अथवा अधिक । यदि प्रतिदर्श अधिक है तो वह 'एक' है और कम है तो 'शून्य' । यह प्रतिदर्श पी. सी. एम. में एक सेकेंड में 8,000 बार के बदले 32,000 बार होता है। इस प्रकार डेल्टा मॉड्युलेशन में पी. सी. एम. के तहत एक सेकेंड में 64,000 बिटों की अपेक्षा 32,000 बिटें होंगी । इस पद्धति के स्पष्ट लाभ ये हैं कि पी. सी. एम. की तुलना में उसी सूचना को प्रेषित करने के लिए केवल आधी बैंडविड्थ और ऊर्जा अपेक्षित होती है । यद्यपि पी. सी. एम. की अपेक्षा इसमें प्रतिदर्श उतने सही नहीं होते, डेल्टा में कूटन इतना सरल है कि प्रत्येक प्रतिदर्श के लिए बिट होती है, इस कारण इसमें त्रुटि की संभावना कम होती है। .डिजिटल संचार के क्षेत्र में त्रुटि ज्ञात करने की परिष्कृत तकनीकें प्रयोग में लायी जाती हैं। इसमें निर्धारित लंबाई के बाइनरी करेक्टर कोड में एक या एकाधिक बिटें संयुक्त की जाती हैं। उदाहरण के लिए 6 बिट के कूट में, संप्रेषण की शुद्धता की जांच करने के लिए सातवीं बिट संयुक्त कर दी जाती है। विशेष युक्तियां डाटा संप्रेषण के लिए कुछ विशेष युक्तियां आवश्यक हैं। टेलीफोन केबिल जैसे संप्रेषण माध्यम का अर्थ एनॉलाग संकेतकों का वहन करना होता है। जब तक टेलीफोन नेटवर्क का प्रयोग अंकीय सूचना के संप्रेषण के लिए होता रहेगा तब तक, संप्रेषण माध्यम के निमित्त उपयोगी अंकीय निर्गत को अनुकूल बनाने की युक्ति आवश्यक होगी। अनुकूलक और अननुकूलक (मॉडुलेटर और डिमॉडुलेटर) के लिए (चित्र-17 ) इस प्रकार की युक्ति मोडेम कहलाती है। यह अंकीय संकेत को केबिल या सूक्ष्म तरंगों
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कानूनी विनियमन की व्यवस्था क्या है? रूस में अपने विशेषताएं क्या हैं और रूसी कानूनी व्यवहार में प्रामाणिक और कानूनी कृत्यों क्या है? विनियमन क्या है? मानक कार्य करता है - लिखा में निहित है कानून के स्रोतों के रूप। अपनी बुनियादी सुविधाओं में - औपचारिक चरित्र विवरण (. . गोद लेने, शीर्षक, शरीर जो कार्य, आदि को अपनाया के नाम की तारीख) कि एक निश्चित संरचना के अनुमोदन (सरकार या कॉर्पोरेट), लोक प्रसिद्धि (लोकप्रिय प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्लेसमेंट के माध्यम से सहित, इस तथ्य )। अधिकारियों द्वारा जारी नियमों के लिए, सरकारी भाषा में प्रकाशन की विशेषता। उपकरणों का एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता - वे विशिष्ट है कानून के नियमों को एक निश्चित प्रजातियों में से या लोगों के एक संकीर्ण चक्र के साथ प्रक्रियाओं के नियमन के विषय में। "मानक" और "कानूनी" में कार्य करता है - नहीं एक ही बात? कुछ वकीलों, "कानूनी अधिनियम" की अवधारणा विचाराधीन पद की पहचान। इस मामले में, दोनों शब्दों को एक साथ उपयोग किया जाता है, एक हाइफन से अलग कर दिया। क्षेत्र में अन्य कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इन दो घटनाएं - नहीं काफी एक ही बात। उनकी थीसिस है। मानक कार्य करता है - यह केवल सरकारी दस्तावेजों (- राष्ट्रपति, राज्य ड्यूमा, आदि . . . प्राधिकारियों द्वारा जारी) है। वे (जैसे संविधान के रूप में) उच्च पद के अन्य कृत्यों के साथ संघर्ष नहीं करना चाहिए। साधन एक व्यापक अवधारणा के रूप में परिभाषित किया गया है। वे किसी भी दस्तावेज कानूनी महत्व है कि हो सकता है। उदाहरण के लिए, यह निगम के भीतर सरकारी उपयोग के लिए फ़ाइलें। यही कारण है, उनकी उपस्थिति कंपनी के बाहर के लोगों के लिए अनिवार्य कानूनी मानदंडों संकेत नहीं करता है। प्रावधान ऐसे दस्तावेजों में निहित हैं किसी विशेष विषय (विभाग, अधिकारी और की तरह। डी) को संबोधित किया। ऐसा लगता है कि विनियामक और कानूनी कृत्यों निम्नलिखित मानदंडों से की जाती है। सबसे पहले, यह उनके उपयोग का स्वभाव है। मानक कार्य करता है - सामान्य और कानूनी - एक व्यक्ति ध्यान केंद्रित किया। दूसरे, यह कृत्यों की गुंजाइश है। लोगों के एक विशिष्ट समूह - विनियम संस्थाओं और कानूनी के एक असीमित संख्या को संबोधित कर रहे हैं। तीसरा, यह हमलों की अवधि है। मानक अधिनियम के रूप में लंबे समय तक, जब तक वे निरस्त कर दिया या संशोधित कर रहे हैं। कानूनी, एक नियम के रूप में, विशिष्ट स्थितियों में इस्तेमाल के लिए अक्सर एक बार करना है,। वकीलों के बीच, प्रामाणिक और कानूनी कृत्यों के संबंध के सवाल पर देखने की एक अन्य बिंदु है। ऐसा नहीं है कि विनियमन एक कानूनी आदर्श बनाता है (या मौजूदा संशोधन), और इस प्रावधान के सही क्रियान्वयन के लिए एक कानूनी साधन है निकलता है। चलो देखते हैं, रूस कानूनी व्यवहार में नियमों के प्रकार क्या कर रहे हैं। उनके भेदभाव दो अवधारणाओं अधीनता पर आधारित है। पहले - एक "कानून"। इस प्रकार के कार्य एक जनमत संग्रह के माध्यम से अधिकारियों (विधायी या प्रतिनिधि) या देश के नागरिकों द्वारा विशेष रूप से लिया जाता है। मार्क या कानून में परिवर्तन कर केवल अपने अधिकार प्रकाशित कर सकें। इस तरह के अधिनियमों राज्य और समाज के विकास से जुड़े प्रमुख प्रक्रियाओं को विनियमित करने के डिजाइन किए हैं। कार्य करता है और विस्तार नियमों स्थापना के रूप में कानून में निर्धारित की व्याख्या का एक और प्रकारः वे प्राथमिक नियम होते हैं। हमलों के इन प्रकार के प्रक्रियात्मक आदेश की सख्त अवलोकन में बना रहे हैं। दूसरी धारणा - एक "नियम-कानून"। वे आधार पर और कानून प्रवर्तन के प्रयोजन के लिए जारी किए जाते हैं और पदानुक्रम रूप से मॉडल है जिसमें नियम अधिक से अधिक कानूनी बल के सूत्रों में निर्धारित है कि का पालन करना चाहिए, और हो सकता है एक निचले स्तर के कृत्यों के लिए आधार बनाया जाता है। नियमों के मुख्य प्रकार रूस निम्नलिखित में प्रकृति उपनियम। यह सामान्य संघीय कार्य करता है (फरमान और रूस, सरकारी नियमों, मंत्रालयों और विभागों के आदेश के राष्ट्रपति के आदेश)। यह महासंघ के विषयों (स्थानीय संविधानों, विधियों, और इस क्षेत्र में विधायी और कार्यकारी अधिकारियों द्वारा पारित कानूनों) का कार्य करता है। यह नगर निगम के कानून (निर्देश, निर्णय या आदेश टाउन हॉल, शहर परिषदों और समान संरचना द्वारा किए गए)। नियमों का एक विशेष प्रकार का - अंतरराष्ट्रीय कानूनों। वे रूस अधिकार क्षेत्र से बाहर के संगठनों में लिया जाता है और दो प्रकार में विभाजित कर रहे हैं - निर्देशों है कि सरकार विशिष्ट देशों वास्तव में कैसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और विनियमों, जो प्रत्यक्ष सभी राज्यों की आवश्यकताओं पर बाध्यकारी है लागू करने के लिए चयन करने के लिए दे। रूसी संविधान कहा गया है कि सिद्धांतों और नियमों अंतरराष्ट्रीय कानून और अन्य देशों के साथ रूस की संधियों के लिए विशिष्ट राष्ट्रीय कानूनी प्रणाली का हिस्सा हैं। और अगर किसी दूसरे देश के साथ एक समझौते रूस में अपनाया कानून में निर्धारित के अलावा अन्य नियमों स्थापित करता है, उच्च कानूनी प्रभाव होगा कानून का एक अंतरराष्ट्रीय स्रोत। शब्द "अधिनियम" और "कानून" अक्सर वकीलों द्वारा पहचाने जाते हैं। यह सच है, लेकिन केवल एक मामले मेंः यदि "कानून" द्वारा राजनीतिक संस्थाओं या सीधे आदेश, व्यक्तियों के सभी या कुछ श्रेणियों के लिए अनिवार्य के माध्यम से समाज द्वारा उत्पादित करने का मतलब है। विशिष्ट कार्य करता है - प्रश्न में या तो लिखित स्रोत नियमों या उनके प्रदर्शन की बारीकियों को समझा दस्तावेज। कानून - परिवार के कानून उदाहरण के लिए, - नियमों का एक सेट, यह सब राज्य में है, या कुछ क्षेत्रों से संबंधित। मानक कार्य करता है - जैसे कानूनी अर्थ में कानून। ऐतिहासिक, यह की घटना से पहले किया गया था कानूनी व्यवहार। लेकिन विभिन्न लोगों, देशों और महाद्वीपों के सीमा शुल्क के बीच विरोधाभास खुलासा के रूप में नियमों के अधिनियमों में उल्लिखित किया जाना है एक दूसरे को पारंपरिक "लोक" एक ही मानक के लिए नियमों के विपरीत ले जा सकता है शुरू कर दिया। कानून और आधुनिक कानूनी शब्दावली की दृष्टि से नियमों का पर्याय बन गया हो सकता है। का प्रभाव कानूनी कृत्यों कई स्तरों पर वितरित किया जा सकता। वे रूस के पूरे क्षेत्र पर बाध्यकारी हैं - काम करता है वहाँ obshchefederalnye। वे, बारी में, कुछ क्षेत्रों के निवासियों के लिए लागू होते हैं, साथ ही साथ करने के लिए सभी व्यक्तियों (निवास और यहां तक कि नागरिकता की परवाह किए बिना), विषय के लिए आ रहा या अस्थायी रूप से उसमें रहने वाले - वहाँ संघ के विषयों के अधिकार के स्रोत हैं। वहाँ एक नगर निगम के कानूनी कार्य करते हैं, जो शहर, काउंटी या जिला के निवासियों के लिए लागू है, साथ ही लोगों के लिए आ रहा हैं। अंत में, स्थानीय कानूनी कार्य करता है - वे एक संकीर्ण ध्यान में शामिल (वे एजेंसियों, निगमों या किसी अधिकारी की गतिविधियों को विनियमित कर सकते हैं)। संघीय नियमों - कानून के स्रोतों, जो एक विशेष क्रम में स्वीकृत होते हैं। वे, क्षेत्रीय नगर निगम और स्थानीय अधिनियम सही के संबंध में सर्वोच्च कानूनी बल के साथ संपन्न हो। संघीय कानून एक संवैधानिक प्रकृति के कृत्यों के रूप में एक उप-प्रजाति हैं, एक उच्च कानूनी बल (- केवल आरएफ संविधान से ऊपर) है। कानून के इस उप-प्रजाति सही व्याख्या और संविधान में निहित नियमों का विकास के उद्देश्य के लिए अपनाया। वे यह सुनिश्चित करें कि सिविल कानून के विषयों आजादी के इन कानूनों को लागू करने के लिए हर अवसर है मदद करने के लिए डिजाइन किए हैं। हर रूसी नगर पालिका अपने नियमों जारी करने का अधिकार है। यह स्थानीय सरकार के मुख्य साधन है। यहां इस तरह के कृत्यों के कुछ उदाहरण हैं। इस शहर प्रशासन के नगर पालिका के कार्यकारी निकाय को प्रत्यायोजित कुछ शक्तियां कसरत के लिए प्रक्रिया हो सकती है। उदाहरण के लिए, मास्को महापौर कार्यालय नागरिकों के साथ सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्य के क्षेत्र में Mitino जिले शक्तियों उल्लेख कर सकते हैं। यह किसी भी नियमों के अनुमोदन पर कोई फैसला हो सकता है, कार्यान्वयन जिनमें से नगर पालिका पर झूठ होगा के लिए जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए, मास्को बुर्जुआ परिषद के एक जिले कैसे परिवार के विकास पर समस्याओं का व्यावहारिक समाधान हो जाएगा पर विनियमों को अनुमोदित कर सकते, मास्को के कानून के अनुसार, "आवंटन पर स्थानीय सरकारों की हिरासत और संरक्षकता के क्षेत्र में अलग शक्तियों। " नगर पालिकाओं बुनियादी ढांचे के विकास और सामाजिक प्रोफाइल क्षेत्रों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का अनुमोदन कर सकते। हमें तर्क है कि हम ऊपर किया है, जो "मानक" और "कानूनी" अधिनियम के बीच के अंतर से संबंधित है याद करते हैं। कुछ वकीलों के मुताबिक, दूसरे प्रकार के स्रोतों किसी भी गैर सरकारी दस्तावेजों चरित्र (अधिकारियों से संबंधित नहीं) शामिल हैं। दस्तावेज़ों के परिसंचरण निगमों में कर रहे हैं - इस तरह के कृत्य का सबसे अक्सर सामना करना पड़ा उदाहरण। वे कुछ लक्षण है। सबसे पहले, वे कंपनी द्वारा ही लिया जाता है। दूसरे, वे कानून के शासन की है। तीसरा, वे एक दिशा हैः प्रावधानों दस्तावेज़ में दी गई तहत, पूरे संगठन गिर जाता है, या यह एक अलग संरचना (या अधिक) है। : इस तरह के उपकरणों के उदाहरण स्टाफ, छुट्टी अनुसूची, आदेश निपटान शीट का अनुमोदन। विनियामक और कानूनी कृत्यों के स्थानीयकरण का स्पष्ट संकेत है। प्रामाणिक और कानूनी कार्य करता है क्या की बात हो रही है, यह उनकी तैयारी के लिए दो ऐतिहासिक दृष्टिकोण देखते हैं कि ध्यान दिया जाना चाहिए। पश्चिम, यूरोप की विशेषता और रूस के लिए कुछ हद तक, और पूर्व, खाड़ी, एशिया, भारत और उन क्षेत्रों में अन्य देशों के विशिष्ट। यूरोपीय परंपरा के लिए प्रमुख मुद्दा - कृत्यों का औपचारिक, कानून के शासन, वैधता। एक परंपरा धार्मिक स्रोतों के आधार पर - पूर्व, कानून का मुख्य स्रोत हैं। पश्चिम में, वहाँ कानूनों के एक पदानुक्रम है, जिनमें से सबसे अधिक चरण संविधान है (या नियमों का समूह है, यह बदल दिया जाता है)। पूर्व में, वहाँ पारंपरिक कानून के रूप में एक अनिवार्य, कृत्यों के बाकी एक दूसरे के पदानुक्रम रिश्तेदार से काफी मुक्त किया जा सकता है, लेकिन कानून की अनिवार्य स्रोत का पालन करना चाहिए। कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि रूसी कानून व्यवस्था पश्चिमी परंपरा जाता है। यह तथ्य यह है कि हर मानक कानूनी कार्य एक निश्चित स्तर पर है द्वारा की पुष्टि की है - एक कानूनी रूप से मजबूत नियमों प्रस्तुत करने या खुद को उन कमजोर मरम्मत। निर्धारित नियमों और विनियमों, परंपरा पर ध्यान केंद्रित करने की उपेक्षा - रूसी समाज में एक ही समय के रूप में विशेषज्ञों की एक संख्या का उल्लेख किया, वहाँ पूर्व की एक बहुत कुछ है। कई रूसियों नियमों के मन में - यह केवल एक "कागज" है। तथाकथित "कानूनी आदर्शवादियों" जो पत्र के रूप में आकार करने के लिए कानून का पालन करना चाहते हैं - एक ही समय में समाज में एक और ध्रुव है। नतीजतन, रूस में वहाँ कानूनी प्रणाली की जनता की समझ का कोई एकीकृत मानक है। कैसे विनियामक, कानूनी कृत्य कर रहे हैं? कानून - वह कौन लिखा? नियमों का निर्माण अक्सर कानून निर्माण में जाना जाता है, और इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए कई बुनियादी तरीके हैं। सबसे पहले, यह राज्य निकायों के काम pravoustanovitelnaya। दूसरे, यह legitimization (वैधता) कानूनी प्रथाओं की शक्ति है कि एक लंबे समय के लिए ही अस्तित्व में है। तीसरा, यह कानून बनाने प्रत्यक्ष लोकतंत्र के साधन (उदाहरण के लिए, एक जनमत संग्रह के माध्यम से) द्वारा होता है। योजना बनाई है, औचित्य, स्थिरता, लोकतंत्र - वकीलों कानून निर्माण का मुख्य सिद्धांतों की संख्या कहते हैं। मानक कार्य करता है - कानून के स्रोतों, जो परिभाषा के अनुसार सही नहीं हो सकता है, अगर केवल क्योंकि है कि समाज, बदल रहा है विकसित हो रहा है। उपकरण, विधियों और तंत्र कानून के स्रोतों में सुधार करने के - कार्य करता है वास्तविकता के करीब के रूप में किया गया है करने के लिए, वहाँ कानूनी तकनीकों का विभिन्न प्रकार हैं। इस दिशा में काम कर रहे वकीलों का मुख्य कार्य - एक और अधिक संभव हो, सक्षम, पारदर्शी के रूप में लोगों को समझ में आता है के रूप में कानून बनाने के लिए। एक ऐसा क्षेत्र है विनियमित करने विभिन्न स्तरों के कानूनों एक स्पष्ट तार्किक आपसी संबंध होना चाहिए। विधायी, व्यवस्थित, लेखा और कानून - वहाँ कानूनी तकनीक के चार मुख्य प्रकार हैं। रूसी संघ के मानक कार्य करता है, यह माना जाता है वकीलों, प्रौद्योगिकी के प्रत्येक प्रकार के भाग के रूप में सुधार किया जाना चाहिए। विभिन्न देशों में कैसे कानूनों से संचालित पर राष्ट्रीय दिशा निर्देशों देखते हैं। रूस में, इस तंत्र संविधान (अनुच्छेद 54) में वर्णित है। यह क्या कहता है? सबसे पहले, तथ्य यह है कोई कानून नहीं स्थापित कि या उत्तेजक जिम्मेदारी यह लागू नहीं किया जा सकता। दूसरी बात यह है कि कोई भी अपराध के समय इस बात का कार्यों के लिए जिम्मेदार कानून के मौजूदा नियमों की दृष्टि से नहीं थे। तीसरा, अगर, एक कार्रवाई कानून के अनुच्छेद के तहत गिरने के बाद, नया, अधिक उदार नियम है कि वे लागू अपनाया। बदले में, हमेशा के कानूनों के सिद्धांतों के सभी देशों के लिए आम - समय, स्थान और व्यक्तियों के विशिष्ट समूह (यदि हम पूरे समाज के बारे में बात नहीं कर रहे हैं) पर ध्यान केंद्रित।
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शायद, निजी के हर मालिकमैंने प्रोसेसर के लिए एक पानी शीतलन प्रणाली के अस्तित्व के बारे में सुना है। कम से कम, मीडिया में उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया से देखते हुए, यह डिवाइस अधिक सुनवाई पर है। हालांकि, सभी एक दिलचस्प गौण हासिल करने की जल्दी में नहीं हैं, वास्तव में, उच्च लागत (यह दस हजार रूबल है) के अलावा, कई उपयोगकर्ता अपने ऑपरेशन के सिद्धांत को नहीं समझते हैं। इस लेख का फोकस पानी हैनाम Corsair H110 के तहत ठंडा। पाठक एक दिलचस्प कंप्यूटर घटक से परिचित पाने के लिए, अपने विनिर्देशों जानने के लिए, तस्वीरें देख आमंत्रित किया, और प्रतिक्रिया मालिकों और विशेषज्ञों से अपने खुद के निष्कर्ष निकालने के लिए पर आधारित है। उत्पाद से परिचित होने से पहले,आपको पहले समझने की आवश्यकता है, और यह किस प्रकार का सिस्टम है, इसका उद्देश्य क्या है वास्तव में, यह एक सामान्य कूलर है। इसका मुख्य अंतर यह है कि इसकी एक बेहतर गर्मी अपव्यय है। उसी प्रणाली में कोर्सैर एच -110 डिवाइस का सिद्धांत काफी सरल हैः एक काफी सरल प्रणाली न केवल अनुमति देता हैक्रिस्टल के तापमान को प्रभावी ढंग से कम करते हैं, लेकिन कंप्यूटर के मालिक को केस के अंदर शोर से बचाने के लिए भी। आखिरकार, पानी के शीतलन प्रणालियों में, विशाल, कम गति वाले प्रशंसक स्थापित होते हैं, जो बहुत चुपचाप से काम करते हैं। उपयोगकर्ता जो पहले से ही ब्रांड से परिचित हैंCorsair, एक बार फिर खरीदारों के लिए निर्माता के व्यक्तिगत दृष्टिकोण रेखांकित, और सभी नवागंतुकों न केवल उत्पाद की उपस्थिति से, बल्कि अपने उत्कृष्ट उपकरणों के द्वारा आश्चर्यचकित हो जाएगा लाल और काले रंग में बनाई गई एक स्मार्ट कार्डबोर्ड बॉक्स में वितरित Corsair H110i GT 280mm चरम प्रदर्शन। सामग्री पर सभी आवश्यक जानकारी पैकेज पर हैः उत्पाद फोटो, विनिर्देशों और अतिरिक्त स्पेयर पार्ट्स की एक सूची उपलब्ध है। इसलिए, क्योंकि हम बंडलिंग, भविष्य के बारे में बात कर रहे हैंमालिक को यह पता होना चाहिए कि निर्माता पहले से ही प्लेटफॉर्म के साथ उत्पाद की पूर्ण संगतता (यह सॉकेट्स के बारे में है) के बारे में चिंतित है। इसलिए, बॉक्स में, शीतलन प्रणाली और निर्देशों के अलावा, आप कंप्यूटर के सिस्टम इकाई में निर्माण के सुविधाजनक स्थापना के लिए कई फास्टनरों और एडेप्टर पा सकते हैं। कॉर्सैर हाइड्रो सीरीज खोने वाले पानी को खोने के बादबॉक्स के बाहर एच 110, लंबे समय तक उपयोगकर्ता के समृद्ध बंडल का आनंद लें। गलती घटकों का वर्गीकरण है, जो प्रोसेसर सॉकेट पर उचित रूप से समूहबद्ध और स्थापित होना चाहिए। यही वह जगह है जहां समस्याएं शुरू होती हैं। निर्माता किसी तरह वर्णन की उपेक्षा कीविधानसभा किट मालिकों की प्रतिक्रियाओं में, इस संबंध में अक्सर नकारात्मक होता है। सब के बाद, आप सभी तत्वों की संख्या और प्रत्येक मंच के लिए शीतलन प्रणाली स्थापित करने के लिए एल्गोरिदम लिख सकते हैं। फिटिंग के लिए सवाल खुद हैं उनकी सतह एक डबल-स्तरीय प्लास्टिक टेप से सुसज्जित है, और वे बहुत ही भंगुर प्लास्टिक से बने हैं। वास्तव में, स्थापना एक बंद है। अगर उपयोगकर्ता प्रोसेसर या मदरबोर्ड को बदलने का फैसला करता है, तो उसे तुरंत एडेप्टर के नए सेट के बारे में चिंता करनी चाहिए। किसी भी शीतलन प्रणाली का काम सीधे निर्भर करता हैहीटिंग तत्व और कूलर के बीच संपर्क की दक्षता से इसलिए, कोर्सैर हाइड्रो सीरीज एच 110 संपर्क पैड का अध्ययन पहले किया जाता है। कारखाने के संस्करण में, सहायक के तांबा कोर पर थर्मल पेस्ट की एक छोटी परत है। जाहिर है, इसलिए, इस प्रणाली के इस तत्व के बारे में मीडिया में ज्यादा जानकारी नहीं है, क्योंकि हर जगह थर्मल पेस्ट की एक परत के साथ एक तस्वीर होती है। हाँ, संपर्क पैड निर्माता के साथ स्पष्ट रूप सेकई उपयोगकर्ताओं को फंसाया। सब के बाद, इसकी गुणवत्ता कई संदेह उठाती है यह एक दर्पण की सतह है, जिसे बिल्कुल नहीं देखा जाता है, साथ ही एक सपाट सतह को छूने की प्रभावशीलता - दबाना के निशान केवल सर्कल के केंद्र में ही रहते हैं। इसका मतलब है कि प्लेटफार्म में उत्तल आकार होता है। तदनुसार, प्रोसेसर के मूल के एक विश्वसनीय फिट के लिए, उपयोगकर्ता को उच्च स्तरीय दलदलापन के साथ थर्मल तेल का उपयोग करना होगा। Corsair H110 शीतलन प्रणाली एक से लैस हैछोटी नलियों के साथ पहली नज़र कई संभावित खरीदारों का मानना है कि ऐसी व्यवस्था केवल कंप्यूटर मामले से नहीं लाई जा सकती। उपयोगकर्ता का आश्चर्य होगा, जब वह सीखता है कि कुछ भी उत्पादन नहीं है और इसकी ज़रूरत नहीं है, डिवाइस सिस्टम इकाई का एक तत्व है और सिस्टम के अंदर ही होना चाहिए। हां, इस तरह के उपकरण के लिए आपको एक बड़े की आवश्यकता होगीएटीएक्स प्रारूप का मामला है, जो समान सिस्टम की स्थापना के लिए शीर्ष पर एक मंच प्रदान करता है। वैकल्पिक रूप से, आप ट्यूबों को स्वयं बढ़ा सकते हैं, हालांकि, यह पहले से ही उपयोगकर्ता के जोखिम और जोखिम पर किया जाता है। तरल के आसवन के लिए कंप्रेसर के लिएसिस्टम के अंदर, तो मालिकों की राय विभाजित हैं कुछ कोर में सीधे पंप के स्थान की व्यवस्था करते हैं। दूसरों का मानना है कि कंप्रेसर के लिए पावर केबल डिज़ाइन के स्वरूप को खराब कर देता है। और विशेषज्ञों का यह भी आश्वासन है कि कोर पर पंप तरल के साथ एक अधिक मात्रा में टैंक को जोड़कर सिस्टम को आधुनिक बनाने की अनुमति देता है। हम जल शीतलन प्रणाली को जारी रखना जारी रखते हैंCorsair H110 समीक्षा कई संभावित खरीदारों को डेटा देखने में रुचि होती है जो कि प्लेटफॉर्म की प्रभावशीलता प्रदर्शित कर सकती है। सबसे पहले, ऐसा उत्पाद प्रोसेसर को मंच के प्रदर्शन में सुधार के प्रशंसकों के प्रशंसकों के हित में है, इसलिए यह गर्मी हटाने की बात होगी। वास्तव में, परीक्षण के परिणाम के रूप में नाममात्र मोड में शीतलन उपकरण, आधे से क्रिस्टल के तापमान को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक ही एएमडी एफएक्स -8300 क्रिस्टल, जो लगभग 9 0 डिग्री सेल्सियस की सीमा में काम कर रहे तापमान है, को चालीस डिग्री तक ठंडा किया जाएगा। यह एक अच्छा परिणाम है, लेकिन इसके दुष्प्रभाव हैं। यह चुप संचालन के बारे में है - यह पूरी तरह से हैअनुपस्थित है 1500 आरपीएम पर चल रहे दो प्रशंसकों के लिए, 40 डेसिबल का एक गुम अस्वीकार्य लगता है लेकिन गति को कम करते हुए शीतलन दक्षता में गिरावट होती है - सीपीयू तापमान चिकना है, लेकिन निश्चित रूप से यह सत्तर डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने लगती है। किसी भी उत्साही का अगला कार्य हैकूलिंग सिस्टम में प्रशंसकों के हमलों को नष्ट करना Corsair Hydro H110 आखिरकार, अधिकांश उपयोगकर्ताओं के लिए, नीरसता के अतिरिक्त, प्रोसेसर का निम्न तापमान भी महत्वपूर्ण है। वहाँ कुछ निकास हैं, और सबसे अच्छा समाधान कुछ अधिक कुशल के साथ नियमित impellers को बदलने के लिए है मार्केट में सबसे अच्छे स्कीथ प्रशंसकों हैं, और आईटी प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में लगभग सभी विशेषज्ञों द्वारा उन्हें अनुशंसित किया जाता है। कूलिंग सिस्टम के बारे में Corsair H110i GT 280mmउपयोगकर्ता समीक्षा बहुमुखी हैं मुख्य नकारात्मक, जो डिवाइस के सभी मालिकों पर ध्यान देते हैं, यह अत्यधिक अनुमानित लागत है। दस हजार रूबल के लिए आप एक मदरबोर्ड या प्रोसेसर खरीद सकते हैं। और एक गौण बस इतना मूल्य नहीं होना चाहिए। कूलर के काम का दावा है। यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि निर्माता ने सोचा जब उसने सस्ते प्रशंसकों के साथ इस तरह के एक गैजेट को सुसज्जित किया। उनका काम सभी उपयोगकर्ताओं द्वारा असंतोषजनक माना जाता है। वास्तव में, प्ररित करनेवाला का संसाधन उपयोग के एक वर्ष के लिए पर्याप्त है, जिसके बाद कूलर पीस और चीखना शुरू करता है।
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नरकेषु बिलानि स्युः प्रज्वलन्ति महान्ति च । नारका येषु पश्यन्ते 'कुम्भोज दुरामकाः ।।१२।। एकं त्रीणि तथा सप्त दश सप्तदशापि च । द्वाविंशतिस्त्रयस्त्रिंशदायुस्तत्राब्धिसंख्यया ॥९३ ॥ धनूंषि सप्त तिस्रः स्युः श्ररत्न्योऽङ्गलयश्च षट् । धर्मायां नारकोत्सेधो द्विद्विशेषासु लक्ष्यताम् ।।९४॥ 'पोगण्डा हुण्डसंस्थानाः 'पढकाः पूतिगन्धयः । दुर्वर्णाश्चैव दुःस्पर्शा दुःस्वरा दुर्भगाश्च ते ॥१५॥ तमोमयैरिवारब्धा विरुक्षैः परमाणुभिः । जायन्ते कालकालाभाः" नारका द्रव्यलेश्यया ॥१६॥ भावलेश्या तु कापोती जघन्या मध्यमोत्तमा । नीला च मध्यमा नीला नीलोत्कृष्टा च कृष्णया ॥९७॥ कृष्णा च मध्यमोत्कृष्टा कृष्णा चेति यथाक्रमम् । घर्मादि सप्तमी यावत् तावत्पृथिवीपु वर्णिताः ।।१८।। यादृशः कटुकालाबुकाञ्जीरादिसमागमे । रमः कटुरनिष्टश्च तद्द्वात्रेष्वपि तादृशः ॥१९॥ श्वमार्जारखरोष्ट्रादिकुण पानां 'समाहतौ । यगन्ध्यं तदप्येषां देहगन्धस्य नोपमा ॥१०० ॥ यादृशः करपत्रेषु गोक्षुरेपु" च यादृशः । तादृशः कर्कशः स्पर्शः तदङ्गेष्वपि जायते ॥११॥ लाख, दस लाख, तीन लाख, पांच कम एक लाख और पांच बिल हैं । ये बिल सदा ही जाज्वल्यमान रहते हैं और बड़े बड़े हैं। इन बिलोंमें पापी नारकी जीव हमेशा कुम्भीपाक ( बंद घड़े में पकाये जानेवाले जल आदि) के समान पकते रहते हैं ।।६१-६२ । उन नरकोंमें क्रमसे एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दस सागर, सत्रह सागर, बाईस सागर और तेंतीस सागरकी उत्कृष्ट आयु है ।। ९३ ।। पहली पृथिवीमें नारकियों के शरीरकी ऊंचाई सात धनुष तीन हाथ और छह अंगुल है। और द्वितीय आदि पृथिवियोंमें क्रम क्रमसे दूनी दूनी समझना चाहिये । अर्थात् दूसरी पृथिवीमें पन्द्रह धनुप दो हाथ बारह अंगुल, तीसरी पृथिवीमें इकतीस धनुष एक हाथ, चौथी पृथिवीमें बासठ धनुष दो हाथ पांचवीं पृथिवीमें एक सौ पचीस धनुष, छठवी पृथिवीमें दो सौ पचास हाथ और सातवीं पृथिवीं में पांच सौ धनुष शरीरकी ऊंचाई है ॥ ६४ ॥ वे नारकी विकलांग, हुण्डक संस्थानवाले, नपुंसक, दुर्गन्धयुक्त, बुरे काले रंगके धारक, कठिन स्पर्शवाले, कठोर स्वर सहित तथा दुर्भग ( देखने में अप्रिय ) होते हैं ।।९५।। उन नारकियोंका शरीर अन्धकारके समान काले और रूखे परमाणुओं से बना हुआ होता है । उन सबकी द्रव्यलेश्या अत्यन्त कृष्ण होती है ॥ १६ ॥ परन्तु भावलेश्या में अन्तर है जो कि इस प्रकार है- पहली प्रथिवी में जघन्य कापोती भावलेश्या है, दूसरों पृथिवीमें मध्यम कापोती लेश्या है, तीसरी पृथिवी में उत्कृष्ट कापोती लेश्या और जघन्य नील लेश्या है, चौथी पृथिवीमें मध्यम नील लेश्या है, पांचवीं में उत्कृष्ट नील तथा जघन्य कृष्ण लेश्या है, छठवीं पृथिवीमें मध्यम कृष्ण लेश्या है और सातवीं पृथिवीमें उत्कृष्ट कृष्ण लेश्या है । इस प्रकार घर्मा आदि सात पृथिवियोंमें क्रमसे भावलेश्याका वर्णन किया ॥ ९७-६८ ॥ कड़वी तूंबी और कांजीरके संयोग से जैसा कड़ा और अनिष्ट रस उत्पन्न होता है वैसा ही रस नारकियों के शरीर में भी कडुआ उत्पन्न होता है ।। ९९ ॥ कुत्ता, बिलाव, गधा, ऊँट आदि जीवोंके मृतक कलेवरोंको इकट्ठा करनेसे है जो दुर्गन्ध उत्पन्न होती है वह भी इन नाकियोंके शरीरकी दुर्गन्धकी बराबरी नहीं कर सकती ॥ १०० ॥ करोत और गोखुरू में जैसा कठोर स्पर्श होता है वैसा ही कठोर स्पर्श नार१ पिठरेषु । 'कुम्भी तु पाटला वारी पर्णे पिटरकटफले' इत्यभिधानात् । कुम्भेष्विव म०, ल० । २ द्विगुणः द्विगुणः । ३ विकलाङ्गाः । ४ पण्डकाः च०, ग्र०, प० । ५ प्रतिकृष्णाः । ६ घर्मायां कापोती जघन्या । वंशायां मध्यमा कापोतो लेश्या मेघायाम् - उत्तमा कापोती लेश्या जघन्या नौललेश्या च । अञ्जयांमध्यमा नीललेश्या अरिष्टायाम् उत्कृष्टा नीललेश्या जघन्या कृष्णलेश्या च । मध्यमा कृष्णा माघव्यां मघव्यां सप्तभ्यां भूमौ उत्कृष्टा कृष्णलेश्या । ७ संयोगे । ८ संग्रहे । ६ ऋषु । १० गोकण्टकेषु । पृथग्विक्रियास्तेषाम् अशुभाद् दुरितोदयात् । ततो विकृतबीभत्सविरूपात्मैव सा मता ॥१०२॥ विवोधोऽस्ति विभङ्गाख्यः तेषां पर्याप्स्यनन्तरम् । तेनान्यजन्मवैराणां स्मरन्युयन्ति न ।।१०३।। यदमी प्राक्तने जन्मन्यासन् पापेपु पण्डिताः । कहदाश्च दुराचाराः तद्विपाकोऽयमुल्वणः" ॥१०४।। ईडग्विधं महादुःखं द्वितीयनरकाश्रितम् । पापेन कर्मणा प्रापत शतबुद्धिरसौ सुर ॥१०५॥ तस्माद्दुःखमनिच्छूनां नारकं तीव्रमीदृशम् । उपास्योऽयं जिनेन्द्राणां धर्मो मतिमतां नृणाम् ॥ १६॥ धर्मः प्रपाति दुःखेभ्यो धर्मः शर्म तनोत्ययम् । धर्मो नैःश्रेयस सौख्यं दत्ते कर्मक्षयोद्भवम् ।।१०७॥ धर्मादेव सुरेन्द्रत्वं नरेन्द्रत्वं गणेन्द्रता । धर्मात्तीर्थकरत्वञ्च परमानन्त्यमेव च ।।१०८॥ धर्मो बन्धुश्च मित्रञ्च धर्मोऽयं गुरुरङ्गिनाम् । तस्माद्मे मतिं धत्स्व स्वर्मोत्तसुखदायिनि ।।१०६॥ तदा प्रीतिङ्करस्येति वचः श्रुत्वा जिनेशिनः । श्रीधरो धर्मसंवेगं परं प्रापन स पुण्यधीः ।।११०।। 'गत्वा गुरुनिदेशेन शतबुद्धिबोधयत् । किं भद्रमुख मां वेन्सि शतद्धं महाबलम् ॥१११॥ तदासांत्तव मिथ्यात्वम् उक्त दुर्नयात् । पश्य तत्परिपाको यम् अस्वन्तम्ते पुरःस्थितः ॥११२ ।। इत्यसौ बांधितस्तेन शुद्धं दर्शनमग्रहीत । मिथ्यात्वकलुपापायान् परां शुद्धिमुपाश्रितः ।।११३॥ कालान्ते नरकाद्वीमान निर्गत्य शतधीचरः ।वदेहमुपागतः ॥ ११४॥ कियों के शरीर में भी होता है ।। १०१ ॥ उन नारकियोंके अशुभ कर्मका उदय होनसे अपृथक विक्रिया ही होती है और वह भी अत्यन्त विकृत, घृणित तथा कुरूप हुआ करती है। भावार्थएक नारकी एक समय में अपने शरीरका एक ही आकार बना सकता है सो वह भी अत्यन्त विकृत, घृणाका स्थान और कुरूप आकार बनाता है, देवोंके समान मनचाहे अनेक रूप बनानेकी सामर्थ्य नारकी जीवोंमें नहीं होती ॥१०२ ।। पर्याप्त होते ही उन्हें विभंगावधि ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिससे वे पूर्वभवके वैरांका स्मरण कर लेते हैं और उन्हें प्रकट भी करने लगते हैं ।। १०३ ॥ जो जीव पूर्वजन्ममें पाप करने में बहुत ही पण्डित थे, जो खोटे वचन कहनेनें चतुर थे और दुराचारी थे यह उन्हींके दुष्कर्म का फल है ॥ १०४ ॥ हे देव वह शतबुद्धि मन्त्रीका जीव अपने पापकर्म के उदयसे ऊपर कहे अनुसार द्वितीय नरक सम्बन्धी बड़े बड़े दुःखांको प्रात हुआ है । १०५ ।। इसलिये जो जीव ऊपर कहे हुए नरकोंके तो दुःख नहीं चाहते उन बुद्धिमान पुरुषोंको इस जिनेन्द्रप्रणीत धर्मकी उपासना करना चाहिये ।। १०६ ।। यहा जैन धर्म हा दुःखांस रक्षा करता है, यही धर्म मुख विस्तृत करता है, और यहीं धर्म कर्मोंके दायमे उत्पन्न होने वाले मोक्षसुखको देता है ॥ १०७ ॥ इस जैन धर्मसे इन्द्र चक्रवर्ती और गणधरके पद प्राप्त होते हैं। तीर्थकर पढ़ भी इसी धर्म प्राप्त होता है और सर्वोत्कृष्ट सिद्ध पद भी इसीसे मिलता है ।।१०८ ॥ यह जैन धम ही जीवांका बन्धु है, यही मित्र है और यही गुरु है, इसलिये है देव, स्वर्ग और मोक्षके सुख देनेवाले इस जैनधर्म में ही तूं अपनी बुद्धि लगा ॥ १०६ ।। उस समय प्रीतिकर जिनेन्द्र के ऊपर कहे वचन सुनकर पवित्र बुद्धिका धारक श्रीधरदेव अतिशय धर्मप्रेमको प्राप्त हुआ ।। ११० ॥ और गुरुके आज्ञानुसार दूसरे नरक में जाकर शतबुद्धिको समझाने लगा कि है भले मृख शतबुद्धि, क्या तू मुझ महाबलको जानता है ? ॥ १११ ॥ उस भवमें अनेक मिथ्यानयोक आश्रयसे तेरा मिथ्यात्व बहुत ही प्रबल हो रहा था। देख, उसी मिथ्यात्वका यह दुःख दनवाला फल तेरे सामने है ।। ११२ ।। इस प्रकार श्रीधरदेवके द्वारा समझाये हुए शतबुद्धि के जीवन शुद्ध सम्यग्दर्शन धारण किया और मिथ्यात्वरूपी मैलके नष्ट हो जानेसे उत्कृष्ट विशुद्धि प्राप्त की ॥११३॥ तत्पश्चात् १ ततः कारणात् । नरकमेन्य । ७ भद्रश्रेष्ठ । २ विरूप दुर्व। ३ उद्धादयन्ति । ४ दुर्वचनाः । ५। ६ द्वितीयभद्र मुग्ध श्र०, प० स० ८ उत्कटम् । ६ दुःखायमानः ।
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पृथक्त्ववितर्क, एकस्ववितर्फ, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाल ओर व्युतस्तक्रिया निवृत्ति --ये चार शुक्लध्यान है। वह ( शुक्लध्यान ) अनुक्रम से तीन योगवाले, किसी एक योगवाले, काययोगनाले और बोमरहित को होता है । पहले के दो एकावित एव सवितर्क होते हैं। इनमे से पहला सविचार है, दूसरा अविचार है। वितर्क अर्थात् श्रुत । विचार अर्थात् अर्थ, व्यञ्जन एव योग को सक्रान्ति । यहाँ शुषलध्यान से सम्बन्धित स्वामी, भेद और स्वरूप ये तीन बातें वर्णित हैं । स्वामी - स्वामी विषयक कथन यहाँ दो प्रकार से किया गया है- पहला गुणस्थान की दृष्टि से और दूसरा योग की दृष्टि से । गुणस्थान की दृष्टि से शुक्लध्यान के चार भेदों में से पहले दो भेदो के स्वामी ग्यारहवें और बारहवे गुणस्थानवाले ही होते हैं जो कि पूर्णचर भी हो । 'पूर्वघर' विशेषण से सामान्यत यह अभिप्राय है कि जो पूर्वधर न हो पर ग्यारह आदि अड्डा का धारक हो उसके ग्यारहवे- बारहवें गुणस्थान में शुक्लध्यान न होकर धमध्यान ही होगा। इस सामान्य विधान का एक अपवाद यह ह कि जो पूर्ववर न हो उन माषतुष मरुदवी आदि जैसी मात्माओ मे भी शुक्लध्यान सम्भव है । शुक्लध्यान के शेष दो भेदो के स्वामी केवली अर्थात तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवाले ही है । योग की दृष्टि से तीन योगवाला ही चार में से पहले शुक्लध्यान का स्वामो होता है । मन, वचन और काय मे से किसी भी एक योगवाला शुक्लध्यान के दूसरे भेद का स्वामी होता है । इस ध्यान के तीसरे भेद का स्वामी केवल काययोगवाला और चौथे भेद का स्वामी एकमात्र अयोगी होता है । भेद- - शुक्लध्यान के भी अन्य ध्यानो की भाँति चार भेद है, जो इसके चार पाये भी बहलाते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- १ पृथक्त्ववितर्कमविचार, २ एकत्व वितर्क-निविचार ३ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती ४ व्युपरतक्रियानिवृत्ति ( समुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति ) । पहले दो शुक्लध्यानो का आश्रय एक है अर्थात् उन दोनो का आरम्भ पूर्वज्ञानघारी आत्मा द्वारा होता है। इसीलिए ये दोनों ध्यान वितर्क --- श्रुतज्ञान सहित है। दोनों में वितर्क का समय होने पर भी यह वैषम्य है कि पहले में पृथक्त्व ( भेद ) है जब कि दूसरे में एकत्व ( अभेद ) है। इसी प्रकार पहले में विचार ( संक्रम) है, जब कि दूसरे में विचार नहीं है इसी कारण इन दोनों ध्यानों के नाम क्रमवा पुनस्ववितकं सविचार और एकस्ववितर्क-निविचार है। पृथमत्ववितर्क सविचार - जब ध्यान करनेवाला पूर्वेपर हो तब वह पूर्वगत' के आधार पर और जंब पूर्वधर न हो तब अपने में सम्भावित घुस के आधार पर किसी भी परमाणु आदि जड में या आत्मरूप जेलम में - एक द्रव्य में उत्पत्ति, स्थिति, नाश, मूर्तस्व, अमूर्तस्थ आदि अनेक पर्यायो का द्रव्यास्तिक, पर्यायास्तिक आदि विविध नयो के द्वारा भेदप्रधान चिन्तन करता है और यथासम्भव भुतज्ञान के आधार पर किसी एक इम्परूप अर्थ पर से दूसरे द्रव्यरूप अर्थ पर या एक द्रव्यरूप अर्थ पर से पर्यायरूप अन्य अर्थ पर अथवा एक पर्यायरूप अर्थ पर से अन्य पर्यायरूप अर्थ पर या एक पर्यायरूप अर्थ पर से अन्य द्रव्यरूप अर्थ पर चिन्तन के लिए प्रवृत्त होता है। इसी प्रकार अर्थ पर से शब्द पर और शब्द पर से अर्थ पर चिन्तन के लिए प्रवृत्त होता है तथा मन आदि किसी भी एक योग को छोड़कर अन्म योग का अवलम्बन लेता है, तब वह ध्यान पृथक्त्ववितर्क सविचार कहलाता है। कारण यह है कि इसमें वितर्क ( श्रुतज्ञान ) का अबलम्बन लेकर किसी भी एक द्रव्य में उसके पर्याय के भेद ( पृथक्त्व ) का विविध दृष्टियो से चिन्तन किया जाता है और श्रुतज्ञान को अवलम्बित करके एक अर्थ पर से दूसरे अर्थ पर, एक शब्द पर से दूसरे शब्द पर, अर्थ पर से शब्द पर, शब्द पर से अर्थ पर तथा एक योग से दूसरे योग पर सक्रम ( सचार ) करना पडता है । एग्रवत्ववितर्क-निविचार-सक कथन के विपरीत जब ध्यान करनेवाला अपने में सम्भाव्य भूत के आधार पर किसी एक ही पर्यायरूप अर्थ को लेकर उस पर एकत्व ( अभेदप्रधान ) चिन्तन करता है और मन आदि तीन योगो में से किसी एक ही योग पर अटल रहकर शब्द और अर्थ के चिन्तन एवं भिन्नभिन्न योगो में सचार का परिवर्तन नहीं करता, तब यह ध्यान एकस्ववितकेंनिविचार कहलाता है, क्योंकि इसमें वितर्क ( श्रुतज्ञान ) का अवलम्बन होने पर भी एकत्व ( अभेद ) का चिन्तन प्रधान रहता है और अर्थ, शब्द अथवा योगो का परिवर्तन नही होता। उक्त दोनों में से पहले मैदान का वन्यास दृढ़ हो जाने के बाद ही दूसरे अभेदप्रधान ध्यान को योग्यता प्राप्त होती है। जैसे समग्र शरीर में व्यास सर्पवि को मन्त्र आदि उपचारो से डक की जगह लाकर स्थापित किया जाता वैसे ही सम्पूर्ण जगत् में भिन्न-भिन्न विषयों में अस्थिर रूप में भटकते हुए मन को ध्यान के द्वारा किसी भी एक विषय पर केन्द्रित करके स्थिर किया जाता है। स्थिरता दृढ हो जाने पर जैसे बहुत सा इंधन निकाल लेने और बचे हुए थोड़े से ईंधन को मुलगा देने से अथवा पूरे ईंधन को हटा देने से आग बुझ जाती है वैसे ही उपर्युक्त क्रम से एक विषय पर स्थिरता प्राप्त होते हो मन भी सर्वथा शान्त हो जाता है अर्थात चचलता मिट जाने से निष्कम्प बन जाता है। परिणामत ज्ञान के सकल आवरणो का विलय हो जाने पर सर्वज्ञता प्रकट होती है। सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाती- जब सवश भगवान योगनिरोध के क्रम में सूक्ष्मशरीर योग का आश्रय लेकर शेष योगो को रोक देते हैं तब वह सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती ध्यान कहलाता है क्योकि उसमें श्वास उच्छ्वास के समान सूक्ष्म क्रिया ही शेष रह जाती है और उससे पतन भी सम्भव नहीं है । समुच्छिन्नक्रिया निवृत्ति - जब शरीर की श्वास प्रश्वास आदि सूक्ष्म क्रियाएँ भी बन्द हो जाती हैं और आत्मप्रदेश सवथा निष्प्रकम्प हो जाते है तब वह समुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति ध्यान कहलाता है क्योंकि इसमें स्थूल या सूक्ष्म किसी भी प्रकार की मानसिक, वाचिक, कायिक क्रिया नहीं होती और वह स्थिति बाद में नष्ट भी नही होती । इस चतुर्थ ध्यान के प्रभाव से समस्त मालव और बन्ध के निरोषपूर्वक शेष कर्मों के क्षीण हो जाने से मोक्ष प्राप्त होता है। तीसरे और चौथे शुक्र ध्यान में किसी भी प्रकार के श्रुतज्ञान का आलबन नही होता अत वे दोनो अनालबन भी कहलाते हैं । ३९४६ । सम्यग्दृत्रियों की कमनिजरा का तरतमभाव सम्यग्दृष्टिभावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिमा क्रमशोऽसङ्ख्येयगुणनिर्जरा । ४७ । सम्यग्दृष्टि, श्रावक, विरत, अनन्तानुबन्धिवियोजक, दर्शनमोहक्षपक, उपशमक उपशान्तमोह, क्षपक क्षीणमोह और जिन- ये दस क्रमश असख्ययगुण निजरावाले होते है । १ यह क्रम यों है - स्थूल काययोग के आश्रय से वचन और मन के स्थूल योग को सूक्ष्म बनाया जाता है उसके बाद वचन और मन के सूक्ष्म योग को अवलम्बित करके शरीर के स्थूल योग को सूक्ष्म बनाया जाता है। फिर शरीर के सूक्ष्म योग को अवलम्बित करक वचन और मन क सूक्ष्म योग का निरोध किया जाता है और अन्त में सूक्ष्म शरीरयोग का भी निरोध किया जाता है । निर्वण्य के भेद सर्व कर्मयों का सर्वथा क्षय ही मोल है और कमों का अंतः क्षय निर्जरा है। दोनों के लक्षणों पर विचार करने से स्पष्ट है कि निर्जरा मोक्ष का पूर्वगामी अंग है। प्रस्तुत शास्त्र में मोक्षतत्व का प्रतिपादन मुख्य है, बस उसकी तान्ह अंगभूत निर्जरा का विचार करना भी यहाँ उपयुक्त है। इसलिए यद्यपि सकल संसारी में कर्मनिर्जरा का क्रम जारी रहता है उपानि वहाँ विशिष्ट आत्माओं की ही कर्मनिर्जरा के कम का विचार किया गया है। वे विशिष्ट वर्थात् मोक्षाभिमुख आत्माएं है । यथार्थ मोक्षाभिमुखता सम्यग्दृष्टि की प्राप्ति से ही प्रारम्भ हो जाती है और वह जिम ( सर्वज्ञ ) अवस्था में पूरी होती है । स्थूलदृष्टि की प्राप्ति से लेकर सर्वशदशा तक मोक्षाभिमुखता के दस विभाग किए गए है, जिनमें पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तर-उत्तर विभाग में परिणाम की विशुद्धि सबिशेष होती है । परिणाम की विशुद्धि जितनी अधिक होगी, कर्म बिर्जरा भी उतनी ही विशेष होगी। अत प्रथम-प्रथम अवस्था में जितनी कर्मनिर्जरा होतो है उसकी अपेक्षा आगे-आगे की अवस्था में परिणामविशुद्धि की विशेषता के कारण कर्मनिजरा भी असख्यातगुनी बढती जाती है। इस प्रकार असते-बढ़ते अन्त मे सक्श-अवस्था मे निजरा का प्रमाण सबसे अधिक हो जाता है। कर्मनिजरा के इस सरतमभाव में सबसे कम निर्जरा सम्यग्दृष्टि की और सबसे अधिक निजरा सर्वज्ञ को होती है। इन दस अवस्थाओं का स्वरूप इस प्रकार है. १ सम्यग्दृष्टि - जिस अवस्था में मिथ्यात्व दूर होकर सम्यक्त्व का आविर्भाव होता है । २ श्रावक - जिसमे अप्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम से अल्पाश म विरति ( त्याग ) प्रकट होती है । ३ विरत - जिसमें प्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम से सर्वांश में विरति प्रकट होती है । ४ अनन्तवियोजक- जिसमे अनन्तानुबन्धी कषाय का क्षय करने योग्य विशुद्धि प्रकट होती है। ५ निमोहक्षपक - जिसमें दशनमोह का क्षय करने योग्य विशुद्धि प्रकट होती है । ६. उपशमक - जिस अवस्था मे मोह की शेष प्रकृतियों का उपक्रम जारी हो । ७ उपशाम्तमोह - जिसमें उपशम पूर्ण हो चुका हो । ८ अपकजिसमेह की शेष प्रकृतियो का क्षय जारी हो । ९ क्षीणमोह --जिसमें मोह का क्षय पूर्ण शिद्ध हो चुका हो । १० जिन जिसमें सर्वशता प्रकट हो गई हो । ४७ । निग्रन्थ के भेद पुलाकबकुशकुशीलनिग्रन्थस्नातका निन्याः । ४८ । पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक-ये निर्ग्रन्थ के पाँच प्रकार हैं ।
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बॉलीवुड लंबे समय से अलग हो गया हैसिनेमाई साम्राज्य। बेशक, भारतीय फिल्में अमेरिकी ब्लॉकबस्टर के रूप में दुनिया भर में ऐसे नकद डेस्क एकत्र नहीं करती हैं। हालांकि, बॉलीवुड सितार कभी-कभी रूस और चीन दोनों में दर्शकों और विदेशों के लिए जाने जाते हैं। वे कौन हैंः बॉलीवुड के हस्तियां संख्या 1? अब तक, बॉलीवुड सितारों तक नहीं पहुंच सकते हैंऐश्वर्या राय के रूप में महिमा के इस तरह के शीर्ष। यह भारतीय अभिनेत्री और मॉडल पूरी दुनिया में अच्छी तरह से जाना जाता है। वोग पत्रिका के लिए बार-बार ऐश्वर्या ने देखा, प्रमुख फिल्म समारोहों में जूरी सदस्य थे। बॉलीवुड में अभिनय करियर के लिएऐश्वर्या दुर्घटना से पूरी तरह से आया था। शुरुआत में, उसने खुद के लिए एक वास्तुकार का करियर चुना। लेकिन पहले से ही विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण के दौरान, लड़की मॉडलिंग व्यवसाय में भाग लेने के लिए भाग्यशाली थी। फिर ऐश्वर्या को एक फिल्म निर्माता ने देखा और सिनेमा में अपना हाथ लगाने की पेशकश की। 24 में, राई ने पहली बार फिल्म में अभिनय किया। यह तमिल तस्वीर "टंडेम" थी। फिर शुरुआत अभिनेत्री का करियर तेजी से चढ़ गयाः स्क्रीन पर एक साल में ऐश्वर्या की भागीदारी के साथ 4-5 से कम फिल्में नहीं थीं। स्वर्ग ने हॉलीवुड "थ्री" में भी खेलने की पेशकश की, लेकिन अभिनेत्री ने इनकार कर दिया, क्योंकि उसके वर्जित के लिए स्पष्ट कामुक दृश्य। विवाहित ऐश्वर्या 34 साल की उम्र में चले गए। 38 वर्षों में अभिनेत्री की बेटी थी। इस संबंध में, राय ने अपने अभिनय करियर में 5 साल तक ब्रेक लिया। लेकिन 2010 में, भारतीय स्टार फिर से सेट पर लौट आया। बॉलीवुड का एक और असली मास्टर शाहरुख खान है। वह "बॉलीवुड के राजा" के अस्पष्ट नाम भी लेते हैं। और सब क्योंकि खान के इतने सारे किनेग्राग हैं जो भारतीय गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में प्रवेश करने के लिए फिट बैठते हैं। खान 24 साल की उम्र में भारतीय सिनेमा में आया था। उनके पास कोई विशेष शिक्षा नहीं थी, और सीधे सेट पर अभिनय कला की मूल बातें महारत हासिल की। हालांकि, इसने खान को एक विचित्र करियर बनाने से नहीं रोका। शाहरुख के पास नकारात्मक नायक का मजबूत आकर्षण है। यह खलनायकों की भूमिकाओं के निष्पादन के लिए था कि उन्हें सबसे अधिक पुरस्कार प्राप्त हुए। खान की भागीदारी के साथ सबसे प्रसिद्ध फिल्मेंः "अनसुलझा दुल्हन", "माई नेम इज खान", "डॉन। माफिया के नेता "और" चेन्नई एक्सप्रेस "। शाहरुख का विवाह 25 से अधिक वर्षों से उनके चुने हुए व्यक्ति से हुआ है। जोड़े के तीन बच्चे हैं। भारत में शुरुआती सितारों में अब बॉलीवुड अभिनेता अनिल कपूर - सोनम की बहुत लोकप्रिय बेटी है। लड़की ने सहायक निदेशक के रूप में बॉलीवुड में अपना करियर शुरू किया। 2007 में, सोनम ने फिल्म "प्रिय" में अपनी शुरुआत की, जो डोस्टोव्स्की की कहानी "व्हाइट नाइट्स" पर आधारित थी। एक शुरुआत के करियर में एक वास्तविक वाणिज्यिक हिटअभिनेत्री एक रोमांटिक कॉमेडी बन गई "मुझे प्यार कहानियों से नफरत है।" सोनम तो एक्शन फिल्म "खिलाड़ी" में अभिनय किया है, जो प्रथम श्रेणी के ठग (फिल्माने का हिस्सा सेंट पीटर्सबर्ग और साइबेरिया में जगह ले ली) के बारे में बताता है। कपूर को कोल्डप्ले क्लिप में और सप्ताहांत वीडियो के लिए गीत के लिए वीडियो के लिए भी देखा जा सकता है। "प्रभावशाली बॉलीवुड सितारे" की गुप्त सूची में 50 वर्षीय अभिनेता आमिर खान का नाम भी शामिल है। वह सिर्फ शाहरुख खान का नाम है, दोनों कलाकारों के बीच कोई संबंध नहीं है। पहली बार आमिर 1 9 73 में स्क्रीन पर दिखाई दिए। बॉलीवुड में वह सफल परियोजनाओं को चुनने में सक्षम होने के लिए प्रसिद्ध है। 2001 और 2015 के बीच, खान की भागीदारी के साथ कोई फिल्म विफलता साबित हुई। चूंकि खान नाटकीय का अनुयायी हैभूमिका पर काम करने के लिए दृष्टिकोण, वह खुद को दोहराने की कोशिश नहीं करता हैः स्क्रीन पर हर बार एक कलाकार एक नई छवि में दिखाई देता है, जबकि खुशी के साथ वह अपनी उपस्थिति और आदतों को बदलता है, कभी-कभी पहचान से परे भी। बॉलीवुड में खान का गुप्त उपनाम "श्री पूर्णता" है। "श्री पूर्णता" इस तथ्य के लिए प्रसिद्ध है कि वहएक अनुकरणीय परिवार आदमी। अभिनेता रविवार को अपने परिवार के साथ उस दिन बिताने के लिए काम करने से इंकार कर देता है। इसी कारण से, खान प्रति वर्ष केवल 1-2 परियोजनाओं में भाग लेता है। रिया का जन्म 1 9 81 में कलकत्ता शहर में हुआ था। अभिनेत्री की जीवनी के बारे में कुछ भारत के बाहर जाना जाता है। लेकिन अपने मातृभूमि में रिया सेन को सबसे खूबसूरत महिलाओं और एक प्रतिभाशाली कलाकार माना जाता है। तब लड़की कई वीडियो क्लिप और विज्ञापनों में दिखाई दी, जिसके बाद सहयोग के लिए और अधिक गंभीर प्रस्ताव आने लगे। फिलहाल आरआई की फिल्मोग्राफी में लगभग 23 फिल्में हैं। उनमें से सबसे प्रसिद्धः "कृष्णा -2", तारा सितारा, झंकर बीट्स और "प्यार की कला"। अक्षय कुमार का जन्म 1 9 67 में पंजाब परिवार में हुआ था। कॉलेज में, वह मार्शल आर्ट्स का शौक था। लंबे समय तक उन्होंने खेल खंड में पढ़ाया। अक्षय कुमार ने अपने प्रसिद्ध पोर्टफोलियो कंपनियों को अपना पोर्टफोलियो भेजा। 1 99 1 में, युवा व्यक्ति ने फिल्म "द ओथ" में अपनी शुरुआत की। प्रसिद्धि कुमारू ने थ्रिलर "अपहरण" लाया। अपने फिल्म कैरियर के 20 वर्षों के लिए, कलाकार 100 से अधिक फिल्मों में दिखाई दिया है। इसके अलावा कुमार ने अपनी खुद की उत्पादन कंपनी हरि ओम प्रोडक्शंस खोला। नम्रता शिरोडकर, कई अन्य लोगों की तरहनिष्पादक, मॉडलिंग व्यवसाय से भारतीय सिनेमा में आए। अभिनेत्री का जन्म मुंबई में 1 9 72 में हुआ था। बॉलीवुड के स्टार बनने से पहले नम्रता को "मिस इंडिया" का खिताब मिला। 2005 में नम्रता शिरोडकर ने परिवार और मातृत्व के पक्ष में महिमा छोड़ दी। दस वर्षों के लिए, एक बार प्रसिद्ध अभिनेत्री व्यावहारिक रूप से जीवन का एक समावेशी तरीका है। शाहिद कपूर भारतीय सिनेमा के उभरते सितारे हैं, सभी युवा लड़कियों का सपना है। अभिनेता असाधारण बाहरी डेटा से प्रतिष्ठित है और आत्मविश्वास से करियर की सीढ़ी को आगे बढ़ाता है। स्क्रीन पर शाहिद 1 999 में दिखाई दिए। उन्हें ऐश्वर्या राय के साथ "लयम्स ऑफ लव" फिल्म में बैले प्रतिभागी के रूप में आमंत्रित किया गया था। तब युवा व्यक्ति ने पहली बार फिल्म कैरियर के बारे में गंभीरता से सोचा। थोड़ी देर बाद, कपूर ने पीईपीएसआई विज्ञापन में अभिनय किया, और फिर उन्हें संगीत वीडियो शूट करने के लिए आमंत्रित किया गया। वर्ष 2003 में कपूर को युवा कॉमेडी "व्हाट इज शी, लव" में उनकी पहली भूमिका मिली। युवा कलाकार को तुरंत मान्यता मिली और सबसे आशाजनक पदार्पणकर्ताओं में से एक था। तब से, शाहिद ने कई भूमिकाएं निभाई हैं। शायद भविष्य में कलाकार स्वयं को निर्देशक के रूप में पेश करेगा। भारतीय सिनेमा के लिए परवीन बाबी - वैसे भी, वहहॉलीवुड के लिए मर्लिन मोनरो। और यद्यपि भारतीय संस्कृति फ्रेम में साहसी चाल और स्पष्ट दृश्यों की अनुमति नहीं देती है, लेकिन परवीन एक हॉलीवुड डिवा की तरह शानदार और आकर्षक था। 70 से 80 के दशक तक बाबी को भारतीय सिनेमा की पहली महिला माना जाता था। वह अमेरिकी पत्रिका समय के कवर को हिट करने वाले पहले बॉलीवुड कलाकार थे। 1 9 83 में परवीन ने भारतीय सिनेमा में एक निश्चित क्रांति कीः वह सुल्तान की बेटी के ऐतिहासिक उत्पादन में एक समलैंगिक की भूमिका निभाने पर सहमत हुईं। उसी वर्ष, वे बाबी के करियर की गिरावट को जोड़ते हैंः उनके पास स्किज़ोफ्रेनिया का गंभीर रूप था। 10 साल की अभिनेत्री विदेश में बिताई, ठीक होने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सबकुछ बेकार था। 2005 में, बाबी अपने मुंबई अपार्टमेंट में अकेले ही मर गए। बॉलीवुड सितारों और प्रेस लंबे समय से बात कर रहे हैंभारतीय सिनेमा के प्रमुख अभिनेत्री में से एक के रूप में प्रीति जिन्ते। लड़की ने 1 99 8 में अपना करियर शुरू किया और उसके बाद से उसने बहुत बढ़िया कदम उठाए, कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के मालिक बन गए।
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प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कम्पोस्ट योग्य पॉलिमर पिछले कुछ वर्षों में सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। यह पॉलिमर प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़े करता है और जैविक संसाधनों में घुल मिलकर उनका कम्पोस्ट बना देता है। प्लास्टिक के खतरे से बचने का यह नया और आधुनिक तरीका है। प्रौद्योगिकी के विकास और वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि के साथ जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक सामग्री का व्यापक उपयोग होने लगा है। 20वीं सदी के आरंभ से ही प्लास्टिक बेहद आम सामग्री हो गई है और उसके बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्लास्टिक के टिकाऊपन, हल्के वजन और कम लागत के कारण वह बहुत उपयोगी साबित हुआ है। बहरहाल, पॉलिइथिलीन, पॉलिप्रापलिन, पॉलिस्टाइरिन, पॉली (विनायल क्लोराइड) एवं पॉली (इथिलीन टेरेफ्थैलेट) जैसी परम्परागत प्लास्टिक का कम्पोस्ट नहीं बन सकता, और पर्यावरण में उसके बढ़ते ढेर से धरती के समक्ष संकट पैदा हो गया है। लाखों टन प्लास्टिक कचरा माइक्रोप्लास्टिक टुकड़ों में विश्व के महासागरों में तैर रहा है! तैरती प्लास्टिक थैलियों में कछुए, समुद्री जीव एवं पंछी उलझ जाते हैं और प्लास्टिक कबाड़ खाकर मर जाते हैं, जो एक दुखद पहलू है। (संलग्न चित्र देखें) प्लास्टिक में कोई निष्क्रिय एवं केमिकल एडिटिव नहीं है। कुछ अंतःस्रावी अवरोधक हैं, जो शरीर के ऊतकों में संक्रमित हो सकते हैं और खाद्य-शृंखला का हिस्सा बन सकते हैं। दूसरी चुनौती है स्रोतों का संरक्षण। यूरोपीय यूनियन में अभी भी कोई 50 फीसदी प्लास्टिक कचरा जमीन में दबा दिया जाता है। इस तरह, उसे नए उत्पादों में पुनर्चक्रित करने के बदले यह प्रक्रियागत कच्चा माल और उससे संभावित काफी ऊर्जा यूंही नष्ट हो जाती है। भारत में- चेन्नै महानगरपालिका के आयुक्त राजेश लखोनी का कहना है, "हर दिन शहर में जमा होनेवाले 3,400 टन प्लास्टिक में से 35 से 40 टन प्लास्टिक कबाड़ है, जिनमें अधिकतर प्लास्टिक की थैलियां ही होती हैं।"(1) मुंबई के घरों में प्रति वर्ष औसतन प्लास्टिक के 1,000 थैलियों का इस्तेमाल होता है। पूरे महानगर के बारे में सोचें तो मुंबई में प्रति वर्ष 300 लाख प्लास्टिक थैलियों का उपयोग होता है।(2) दुनियाभर में प्रति वर्ष लगभग 500 बिलियन से 1 ट्रिलियन प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल किया जाता है। हिसाब करें तो यह प्रति मिनट एक मिलियन होता है और कुछ ही मिनटों में वह कूड़ेदान की भेंट चढ़ जाता है। प्लास्टिक के निपटारे में लापरवाही के कारण उत्पन्न खतरे से निपटने की बेहद जरूरत है। कुछ कदम अवश्य उठाए गए हैं, फिर भी सभी स्तरों पर अन्य कदम उठाने की आवश्यकता है जैसे कि वैकल्पिक सामग्री की खोज, प्लास्टिक के उपयोग पर जनसाधारण में जागृति और निपटान के लिए कड़े नियम बनाना तथा उन्हें सख्ती से लागू करना। पहला काम है, शीघ्र विघटनयुक्त एवं कम्पोस्टयोग्य वैकल्पिक सामग्री का उत्पादन करना। पेट्रोलियम से उत्पादित प्लास्टिक का जल्दी जैविक-विघटन नहीं होता और उसका सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए विघटन न होने से पर्यावरण में वह जमा होते जाता है तथा उसके दुष्परिणामों को हमें भुगतना पड़ता है। इसके विकल्प के रूप में (जैव) कम्पोस्ट में परिवर्तित होनेवाला पॉलिमर पिछले कुछ वर्षों में सफलतापूर्वक विकसित किया गया है और हाल के वर्षों में वह दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहा है। ये पॉलिमर फौरन प्लास्टिक को सूक्ष्म टुकड़ों में परिवर्तित कर देता है, जो खुली आंखों से दिखाई तक नहीं देते। यही नहीं, वह जैवीय संसाधनों में घुलमिल जाता है अथवा सीओ-2 और पानी में तब्दील हो जाता है। पॉलिमर एवं ईंधन जैसे पेट्रोलियम आधारित उत्पादों में और जैव आधारित पॉलिमर- यहां तक कि जीवन निर्माण में भी- सबसे महत्वपूर्ण घटक कार्बन होता है। "जैव आधारित" अर्थात केवल नवीनीकरणीय कार्बन स्रोत। विघटन का अर्थ है पर्यावरण की विशेष परिस्थितियों में किसी उत्पाद या सामग्री के रासायनिक ढांचे में उल्लेखनीय बदलाव आना, जिससे उसके कुछ गुणों का र्हास होना। यह जरूरी नहीं कि प्लास्टिक "प्राकृतिक रूप से उत्पन्न सूक्ष्म जीवों" से विघटित हो जाए। इन दिनों पॉलिमर के विघटन को बढ़ावा देनेवाले मिश्रण, जिसे ऑक्सो-विघटनयोग्य मिश्रण कहा जाता है, दुनियाभर में बहुतायत से इस्तेमाल किए जा रहे हैं और माना जाता है कि वे वाणिज्यिक पॉलिमर को प्रभावी रूप से विघटित कर देते हैं। ऑक्सो- विघटनयोग्य पॉलिमर उन्हें कहते हैं, जो गैर-जैविक-विघटनयोग्य परम्परागत पॉलिमर्स से उत्पादित होते हैं और उसमें ऐसे एक या अनेक मिश्रण मिलाए जाते हैं जिससे ओषजन, ताप और/अथवा प्रकाश के सम्पर्क में आने पर पॉलिमर को विघटनयोग्य बना देते हैं। इस मिश्रण में संक्रमण तत्व (कोबाल्ट, मैंगनीज, लौह, जस्ता) शामिल होते हैं जो ताप, हवा और/अथवा प्रकाश के सम्पर्क में आने पर ऑक्सीडेशन को बढ़ावा देते हैं और प्लास्टिक के विघटन की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। यह जैवीय रूप में या घास में नहीं बदलता। ऑक्सो-प्लास्टिक के छोटे टुकड़े होते हैं, जो खुली आंखों से दिखाई तक नहीं देते। जैविक-विघटन का अर्थ है ऐसा उत्पाद या सामग्री जो जैविक रूप से उपलब्ध बैक्टीरिया, फंगी आदि सूक्ष्म जीवों के जरिए समय के साथ विघटन कर देता है। इसमें 'जहरीला तत्व' नहीं रहता तथा जैविक विघटन के लिए समय भी नहीं लगता। कम्पोस्टयोग्य का अर्थ है ऐसा उत्पाद या सामग्री "जो कम्पोस्ट के स्थान पर जैविक विघटन की क्षमता रखता हो और चाहे वह दिखाई भी न दें, फिर भी कार्बन डायोक्साइड, पानी, अजैविक संयुगों में, जैविक रूप से ज्ञात कम्पोस्टयोग्य सामग्री (उदा. सेल्युलोज) में निरंतर गति से तब्दील कर दें।" सभी कम्पोस्टयोग्य सामग्री स्वभाव से ही जैव-विघटनयोग्य होती है। जैव-कम्पोस्टयोग्य पॉलिमर उसकी नई पीढ़ी का उत्पाद है, जो कम्पोस्ट के जरिए जैव-विघटनयोग्य है। उनका उत्पादन आम तौर पर स्टार्च (उदा. मका, आलू, टॉपिओका आदि), सेल्यूलोज, सोया प्रोटीन, लैक्टिक आम्ल आदि से किया जाता है, जो खतरनाक/जहीरीला उत्पाद नहीं है। इस पॉलिमर का अधिकतर हिस्सा बायोमास से बनाया जाता है। * सीमित जीवाश्म स्रोतों पर निर्भरता कम करने में मदद करता है, क्योंकि जीवाश्म स्रोत आनेवाले दशकों में बहुत महंगे पड़नेवाले हैं। जीवाश्म स्रोत धीरे-धीरे घटते जा रहे हैं और उसके स्थान पर नवीनीकरणीय स्रोतों (वर्तमान में मुख्य रूप से मका एवं मीठे चुकंदर जैसी वार्षिक उपज अथवा कसावा एवं गन्ने की निरंतर होनेवाली उपज) का उपयोग किया जा रहा है। * हरित गृहों के उत्सर्जन को घटाने अथवा कार्बन को निष्प्रभावी करने की उसकी अनोखी क्षमता होती है। पौधें बढ़ने के साथ ही वातावरण का कार्बन डायऑक्साइड शोषित कर लेते हैं। इस बायोमास का जैव-आधारित प्लास्टिक बनाने में उपयोग करने से वातावरण से हरित गृह गैस (सीओ-2) अस्थायी तौर पर हटाई जा सकती है। यदि सामग्री का पुनर्चक्रण किया गया तो कुछ अवधि तक कार्बन को रोका जा सकता है। - नवीनीकरणीय स्रोतों का उपयोग बायोपॉलिमर उत्पादों के लिए करते समय उत्पाद के जीवन-चक्र के दौरान उनका जैवीय पुनर्चक्रण (कम्पोस्ट बनाना) करना तथा इस प्रक्रिया के दौरान मूल्यवान बायोमास/ह्यूमस का उत्पादन करना। * यही नहीं, जैव-आधारित एवं कम्पोस्टयोग्य प्लास्टिक होने से जैव-कूड़ा जमीन में डालने से बचने में सहायता हो सकती है और इस तरह कचरा-प्रबंधन सक्षमता से हो सकता है। कुल मिलाकर, जैव-पॉलिमर से स्रोतों का अधिकतम उपयोग हो सकता है। जैव-कम्पोस्टयोग्य पॉलिमर की लागत परम्परागत प्लास्टिक के मुकाबले आम तौर पर अधिक है और इसी कारण उसके व्यापक उपयोग पर सीमा लगती है। लिहाजा, लगभग पिछले दशक से उत्पाद-क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
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यह एक दान, एक बीमारी, या किसी भी तरह से एक पुलिस या अग्निशामक से संबद्ध समूह के लिए धन जुटाने वाला दान है। आपको क्या करना चाहिये? फोन रख देना? अपना क्रेडिट कार्ड प्राप्त करें? उन्हें बाद में फोन करने के लिए कहो? जो भी आप तय करते हैं, बहुत सावधान रहें। इन दिनों टेलीफोन द्वारा घोटाला सबसे आम अपराध होना चाहिए। वह कॉल एक वैध दान से हो सकता है, एक टेलीमार्केट जो दान की तरफ से बुलाता है, या पूरी तरह से धोखाधड़ी करता है। टेलीमार्केटिंग क्या है? टेलीमार्केटिंग सर्वव्यापी है। व्यवसाय अपने उत्पादों या सेवाओं को बेचने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। चैरिटी इसका उपयोग अपने मौजूदा या संभावित दाताओं तक पहुंचने के लिए करते हैं। यह सिर्फ उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए फोन का उपयोग कर रहा है। दुर्भाग्य से, टेलीमार्केटिंग सभी प्रकार के स्कैमर द्वारा प्रेतवाधित है। और उन घोटालों में दान अक्सर पकड़े गए हैं। चैरिटीज द्वारा टेलीमार्केटिंग इतनी खराब है? अकेले टेलीमार्केट दान के लिए एक बुरी चीज नहीं है। विशेष रूप से जब कोई दान कर्मचारी या स्वयंसेवकों का उपयोग करके कॉल करता है। जब समस्याएं बाहरी कंपनियों को उनके लिए टेलीमार्केटिंग करने के लिए किराए पर लेती हैं तो समस्याएं उत्पन्न होती हैं। कई बड़े दान, क्योंकि उन्हें हजारों दाताओं की आवश्यकता है, टेलीमार्केटिंग फर्मों का उपयोग करें। आपको शायद इन अल्मा माटर या जाने-माने राष्ट्रीय दानों में से एक के लिए काम करने वाली कंपनियों में से एक द्वारा बुलाया गया है। अक्सर यह ठीक है। कंपनियां जो लाया जाता है और पैमाने की अर्थव्यवस्था से गैर-लाभकारी लाभ का उचित प्रतिशत कमाते हैं। टेलीमार्केटिंग कंपनियों द्वारा प्राप्त किए गए बड़े हिस्सों को कुछ विशेषज्ञों द्वारा बचाव किया जाता है क्योंकि टेलीमार्केटिंग की लागत पहले से कम है और समय के साथ घट जाती है। उदाहरण के लिए, शायद टेलीमार्केटिंग कंपनी का उपयोग करके दान देने वाले पहले $ 25 में से अधिकांश को कंपनी को भुगतान किया जाता है। लेकिन, चूंकि अब आप एक दाता हैं और कई सालों तक दे सकते हैं, दान के लिए दी गई प्रति डॉलर लागत कम हो जाती है। लेकिन कुछ दान कंपनियां उन कंपनियों को किराए पर लेती हैं जो दान करने के लिए लोगों को मनाने के लिए संदिग्ध तकनीकों का उपयोग करती हैं, और फिर कंपनियां दान के लिए वापस जाने के कुछ हिस्सों के साथ अधिकतर धन रखती हैं। इस तरह की प्रथाओं में अक्षमता होती है। यह दान द्वारा उठाए गए प्रति डॉलर बहुत अधिक खर्च करता है। यही कारण है कि दाताओं को दान के दक्षता आंकड़ों की जांच करने की आवश्यकता होती है। हालांकि, केवल उन आंकड़ों को देखकर आपको बहुत कुछ नहीं बताया जा सकता है। कई दाताओं को चौंका दिया जाता है जब वे सीखते हैं कि चैरिटी की आय का चालीस प्रतिशत ओवरहेड तक जाता है। लेकिन वे भूल जाते हैं कि उपरि (या अप्रत्यक्ष लागत) में बहुत सारी जमीन शामिल है। यह केवल धन उगाहने की लागत के बारे में नहीं है। दरवाजों को खुले रखने, उपकरणों को अद्यतित रखने, वाहनों की रख-रखाव, जो दान की सेवाओं को प्रदान करने में मदद करते हैं, के साथ जुड़े लागत भी हैं। अक्सर हम एक असंभव मानक के लिए दान रखते हैं, जिससे वे नंगे हड्डियों के बजट पर सामाजिक जरूरतों को हल करने की उम्मीद करते हैं। अकेले दक्षता स्कोर पूरी कहानी नहीं बताते हैं। दाताओं को यह तय करने से पहले ओवरहेड मिथक से परिचित होना चाहिए कि कोई दान अपने ऑपरेशन को चलाने पर बहुत अधिक खर्च करता है या नहीं। दान का एक बेहतर उपाय यह कितना प्रभावी है। लेकिन यह मापना हमेशा आसान नहीं होता है और शायद यही कारण है कि दानदाता सरल और भ्रामक दक्षता स्कोर का सहारा लेते हैं। सौभाग्य से, चैरिटी नेविगेटर जैसे बेहतर व्यापार ब्यूरो ने चैरिटी राइटर्स को अब और अधिक यथार्थवादी मॉडल विकसित किए हैं, यह आकलन करते समय कि दान कितना अच्छा कर रहा है। हाल के वर्षों में, प्रेस द्वारा कई संदिग्ध टेलीमार्केटिंग स्थितियों का खुलासा किया गया है, जो इसे हर किसी के ध्यान में ला रहा है और कुछ दानों को दर्दनाक काले आंखें दे रहा है। कुछ प्रसिद्ध और सम्मानित दान मुख्य समाचारों के साथ-साथ छोटे गैर-लाभकारी लोगों के लिए अज्ञात हैं। वे टेलीमार्केटिंग कंपनियों से जुड़े हुए हैं जो धर्मार्थ टेलीमार्केटिंग से कमाई गई भारी मात्रा में धन के लिए कुख्यात हैं। हालांकि चैरिटी फंडराइजिंग में खराब अभिनेताओं के बारे में जागरूक होना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी बुद्धिमान है कि सभी धर्मार्थियों को उसी काले ब्रश से पेंट न करें। अधिकतर दानदाताओं को आपके दाता डॉलर को जिस तरह से वे कहते हैं, खर्च करने के लिए भरोसा किया जा सकता है। सभी दाताओं को उनके द्वारा समर्थित दानों और विस्तारित अवधि से परिचित होना चाहिए। कभी आश्चर्य की बात है कि आपको एक दान से कॉल (या प्रत्यक्ष मेल धन उगाहने वाला पत्र) क्यों मिला है, जिसमें आपने कभी रुचि नहीं दिखाई है? उन्हें आपकी जानकारी कैसे मिली? देश के कई सबसे बड़े दान या तो अपने दाताओं के नाम बेचते हैं या साझा करते हैं। देश के कई सबसे प्रसिद्ध धर्मार्थियों के लिए दाता सूची ऑनलाइन डेटा दलालों से बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। चैरिटी नेविगेटर के अनुसार, फोर्ब्स द्वारा सूचीबद्ध 25 सबसे बड़े दानों में से आठ में पर्याप्त दाता गोपनीयता नीतियों की कमी है। उनके पास या तो पॉलिसी की कमी है, यह बताता है कि जब तक दाता स्पष्ट रूप से बाहर निकलता है तब तक वे जानकारी साझा करते हैं या जानकारी साझा करते हैं । उन 25 सबसे बड़े दानों में से केवल सात चैरिटी नेविगेटर से उच्चतम गोपनीयता रेटिंग प्राप्त करते हैं। 25 सबसे बड़े दानों में से कुछ ऐसे हैं जो पर्याप्त दाता गोपनीयता का वादा करते हैं। इनमें डायरेक्ट रिलीफ, बॉयज़ एंड गर्ल्स क्लब ऑफ अमेरिका, कम्पासियन इंटरनेशनल और समरिटिन पर्स शामिल हैं। उच्च दाता गोपनीयता नीतियों वाले छोटे दानों में विकीमीडिया फाउंडेशन, इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन, कक्ष पढ़ने और दानः पानी शामिल हैं। चैरिटीज टेलीमार्केटिंग का उपयोग करते समय आपके अधिकार क्या हैं? नेशनल डू नॉट कॉल रजिस्ट्री है, जिसे हम में से अधिकांश को अवांछित फोन कॉल पर कटौती करने के लिए उपयोग करना चाहिए। लेकिन, रजिस्ट्री में दानों द्वारा किए गए कॉल शामिल नहीं हैं। हालांकि, अगर कोई चैरिटी टेलीमार्केटिंग कंपनी का उपयोग करता है, तो उस कंपनी को "नो कॉल" सूची बनाए रखना चाहिए। आप अनुरोध कर सकते हैं कि आपका नाम उस सूची में रखा गया हो। यह केवल उस विशेष दान को कवर करेगा, हालांकि। टेलीमार्केटर्स द्वारा घोटाले से बचने के लिए आपको क्या करना चाहिए? - फोन रख देना! यदि आप टेलीमार्केटिंग कॉल से नफरत करते हैं, तो करने के लिए सबसे अच्छी बात तुरंत लटका है। या कॉल लटका जाना चाहिए कॉल बुरी तरह से जाना चाहिए। मैंने हाल ही में एक राजनीतिक धन उगाहने वाले कॉल पर लटका दिया क्योंकि कॉलर ने मुझे यह भी पूछे बिना कि वह मुझे कॉल करने का सुविधाजनक समय है, उसे बिना पिच के साथ डूब गया। - कॉलर से पूछें कि क्या वह टेलीमार्केटिंग कंपनी के लिए काम करता है या यदि वह दानकर्ता का स्वयंसेवक या स्टाफ सदस्य है। आप एक पेशेवर टेलीमार्केट की तुलना में एक स्वयंसेवक को देने की इच्छा रखते हैं। अगर कॉल किसी कंपनी से है, तो कॉलर से पूछें कि आपका दान दान में कितना होगा। कानून की आवश्यकता है कि कंपनियां आपको बताएं। और वे जानते हैं। अगर कॉलर कहता है कि उसके पास वह जानकारी नहीं है, तो कॉल को समाप्त करें। - कहें कि आप फोन नहीं देते हैं। यह वही है जो मैं हमेशा करता हूं। क्योंकि मैं फोन नहीं देता हूं। फोन पर क्रेडिट कार्ड नंबर साझा करना बहुत खतरनाक है। - क्या तुम खोज करते हो। दान की जांच करने के लिए चैरिटी रेटिंग संगठनों का उपयोग करें। चैरिटी नॅविगेटर या बेहतर बिजनेस ब्यूरो साइट पर जाएं और जिस दान पर आप विचार कर रहे हैं उसे देखें। यदि इसका स्कोर अधिक है, तो दान करने पर विचार करें। इन सूचियों पर सभी दानों को खोजने की उम्मीद न करें। लेकिन आम तौर पर बड़े होते हैं। छोटे दानों के लिए, अपने स्थानीय क्षेत्र में रहना बुद्धिमानी है। उन संगठनों को समझना और उन पर टैब रखना आसान है। - सीधे दें अपने पसंदीदा दान को चेक भेजें या इसे चैरिटी के कार्यालय से छोड़ दें। चैरिटी की वेबसाइट पर जाएं और अपनी भुगतान प्रणाली का उपयोग करके दान करें। अपने टिकट खरीदें, अपनी विशेष घटनाओं में भाग लें, और, विशेष रूप से यदि आप एक महत्वपूर्ण राशि दे रहे हैं, तो व्यक्तिगत रूप से धन उगाहने वाले अधिकारी से मिलने के लिए कहें। - कॉलर द्वारा खराब करने में मत देना। दबाव में कभी न दें। यदि आप असहज महसूस करते हैं, तो कॉल समाप्त करें। - फोन पर अपनी क्रेडिट कार्ड की जानकारी, बैंकिंग या किसी अन्य प्रकार की व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से बचें। यह बस सुरक्षित नहीं है। यदि आप दान करना चाहते हैं, तो कॉलर को आपको मेल में एक पत्र भेजने के लिए कहें (स्कैमर ऐसा नहीं करेंगे) या आप दान देने के लिए चैरिटी वेबसाइट पर जाएंगे। - दान करने से पहले किसी भी चैरिटी की गोपनीयता नीतियां देखें। यदि आप नहीं चाहते हैं कि आपकी जानकारी अन्य समूहों के साथ साझा की जाए, तो किसी भी दान को दान न करें जो गोपनीयता का वादा नहीं करता है। बस ऐसा करने से फ़ोन कॉल और डायरेक्ट मेल पर रास्ता कम हो सकता है जिसे आप नहीं चाहते हैं। गोपनीयता नीतियां किसी भी चैरिटी की वेबसाइट पर सही होनी चाहिए, और चैरिटी नेविगेटर प्रत्येक चैरिटी को अपने डेटाबेस में गोपनीयता के लिए रेट करता है। - धर्मार्थ देने के बारे में खुद को शिक्षित करें। अपने पसंदीदा प्रकाशनों में परोपकार और दान पर लेख पढ़ें, रेटिंग साइटों पर आलेख ब्राउज़ करें, धर्मार्थ देने के बारे में मित्रों के साथ बातचीत में संलग्न हों, और जानकारी साझा करें। आप एक कार नहीं खरीदेंगे, जिम नहीं लेंगे, या अपना शोध किए बिना डेकेयर चुनेंगे। चैरिटेबल देने के लिए देखभाल और ध्यान की एक ही राशि का हकदार है। दान से टेलीमार्केटिंग कॉल स्वाभाविक रूप से बुरा नहीं हैं। और कुछ दान सिर्फ हाल ही में दान के लिए चेक इन करने के लिए फोन करते हैं, या यहां तक कि आपको धन्यवाद भी देते हैं। एक बार जब आप जानते हैं कि कॉल धन उगाहने के लिए है, तो सुनिश्चित करें कि आप एक वैध कंपनी या दानकर्ता के स्वयंसेवक या कर्मचारी सदस्य के साथ बात कर रहे हैं। उदार रहो, लेकिन घोटाले के लिए मत गिरना।
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मैंने अपनी नींद से उठते हुए किताब निकाली, और मैं इसमें पढ़ाः "और भी बुरे समय थे, लेकिन कोई मतलब नहीं था। " और मैं इसमें पढ़ाः "और भी बुरे समय थे, लेकिन कोई मतलब नहीं था। " हां, फिल्म "ज़ोया" से ठंडा होने का समय नहीं है, जिसके बाद यह वास्तव में हिल रहा था, इसलिए अगली गंदी चाल का अगला प्रीमियर ध्वस्त हो गया। फिल्म "नाकाबंदी डायरी" का निर्देशन एंड्रे ज़ैतसेव ने किया है। मेडुज़ा और रोसिस्काया गज़ेटा की तरह प्रेस से टकराया और दूसरी तरफ से तीखी आलोचना की, उदाहरण के लिए, राडा मिखाइलोवना ग्रानोव्स्काया, मनोविज्ञान के डॉक्टर, घेराबंदी करने वाली महिला, निकोलाई पुचकोव और बैर इरिनचेव, एंड्रे सिदोरचिक और कई अन्य उदासीन नहीं हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात, लोग। फिल्म ने 42 वें अंतर्राष्ट्रीय मॉस्को फिल्म महोत्सव "गोल्डन सेंट जॉर्ज" का ग्रैंड प्रिक्स जीता। वह स्वाभाविक रूप से उन लोगों की प्रशंसा करता है, जिन्हें उसकी प्रशंसा करनी चाहिए। लेकिन जो लोग आलोचना करते हैं वे भी उनकी राय के हकदार हैं, खासकर अगर वे वास्तव में भागीदार थे। पहले ही ट्रेलर ने लोगों को नाराज कर दिया है। हां, एक ट्रेलर एक प्रचारक उत्पाद है जिसे लोगों को थिएटर में आकर्षित करना चाहिए। "जब मैंने लेनिनग्राद की घेराबंदी के बारे में इस फिल्म का वीडियो देखा, तो मेरा दिल दुख और आक्रोश से भर उठा। वीडियो में जिस तरह से लेनिनग्राद के निवासियों को दिखाया गया है वह गंदा चाल और झूठ है। वीडियो में उन वीर लोगों को दर्शाया गया है जिन्होंने अपने शहर का बचाव किया था, "ग्रानोव्स्काया ने क्रास्नाया वेस्ना के साथ एक साक्षात्कार में कहा। "यह मेरे लिए स्पष्ट हो गया कि फिल्म के लेखक नाकाबंदी लोगों को नहीं मानते हैं। अगर हम ऐसे लोग होते, जैसा कि फिल्म निर्माताओं ने दिखाया, तो हमने लेनिनग्राद का बचाव नहीं किया होता। और आपको उन लोगों से नफरत करने की ज़रूरत कैसे है जो इस तरह की फिल्म बनाने के लिए नाकाबंदी से बच गए थे! " शायद राडा मिखाइलोवना अत्यधिक भावुक थे? तुम्हें पता है, मैं भी अपने आप को "अतिरिक्त भावुकता" की अनुमति दूंगा। युद्ध से पहले लेनिनग्राद में दो सौ से अधिक रिश्तेदार रहते थे। एक नाकाबंदी से बच गया। अलेक्जेंड्रा स्ट्रेलनिकोवा, दूसरी निकासी अस्पताल की नर्स। बाकी - बोगोसलोव्स्की, ओबुखोव्स्की और पिस्करेवस्की पर। लेकिन यह व्यक्तिगत के बारे में नहीं है, यह राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रासदी थी। और पूरे देश ने लेनिनग्राद के लिए लड़ाई लड़ी। बड़ी कठिनाई के साथ, निर्यात किए गए बच्चों को पूरे सोवियत संघ में, पूरे गणराज्य में स्वीकार किया गया था। यह थोड़ा सम्मानजनक कर्तव्य माना जाता था। और यह वही है जो फिल्मों के बारे में बनाया जाना चाहिए - वीरता के बारे में, लोगों के आध्यात्मिक पराक्रम के बारे में, और न केवल जीवित रहना, बल्कि ऐसी परिस्थितियों में काम करना और लड़ना। लेकिन कोई नहीं। योग्य नहीं। और अगर वे अयोग्य हैं, तो इसे ज़ोंबी सर्वनाश के विषय पर न लें। पटकथा लेखक स्क्रिप्ट में प्रवेश नहीं कर सकता है, निर्देशक निर्देशन नहीं कर सकता है, संपादक संपादित नहीं कर सकता है, लेकिन आप, दर्शक, आपको इस भुगतान के कारण देखेंगे। अरे हाँ . . . क्या यह किसी को परेशान करता है कि निर्देशक, पटकथा लेखक, संपादक, निर्माता एक व्यक्ति हैं? एंड्री ज़ैतसेव, एक बहु-स्थानीय स्टक्खनोवित? जिनकी पीठ के पीछे सब कुछ वैसा ही है जैसा कि फिल्म "ज़ोया" में आरवीआईओ, मेडिंस्की और संस्कृति मंत्रालय की भूमिका है। और फिर मैं घोषणा करना चाहता हूंः "कोविद की जय! " यदि संगरोध उपायों के लिए नहीं, तो हम एक बार फिर कीचड़ से सराबोर हो जाते। जीत की 75 वीं वर्षगांठ के लिए नहीं (ओह, हम कैसे चाहेंगे! ), लेकिन नाकाबंदी के उठाने की अगली सालगिरह पर। यह हमारे लिए पर्याप्त नहीं है, खलनायक क्रोसोव्स्की के "हॉलिडे", हम वहां, जनता के सम्मान के लिए, चले गए ताकि कोई भी स्क्रीन पर इस को प्रदर्शित करने की हिम्मत न करे। हमने तय किया कि इंटरनेट पर्याप्त होगा। लेकिन जब आरवीआईओ हस्तक्षेप से मेडिंस्की के घोंसले का हिस्सा होता है, तो यह तुरंत स्पष्ट हो जाता हैः एक बजट होगा, जिसका अर्थ है कि सिनेमाघरों के स्क्रीन पर भी किराये होंगे। दुर्भाग्य से। तो वे हमें क्या दिखाएंगे? आंद्रेई ज़ेटसेव से क्या उम्मीद करें, वैसे, इस समय कुछ खास नहीं है जिसे मास्टरपीस बनाने के संदर्भ में नोट नहीं किया गया है? ज़ोंबी सर्वनाश। द वाकिंग डेड। हर एक चीज़। यह सब कुछ निर्देशक के दिमाग और कल्पना के लिए पर्याप्त था। आमतौर पर एक ट्रेलर "फेटेस्ट" फ़्रेम का एक कट होता है जिसे दर्शक पसंद कर सकते हैं। कभी-कभी ट्रेलर से सभी दिलचस्प फुटेज फिल्म में सबसे मूल्यवान चीज होती है। लेकिन श्री ज़ैतसेव ने हमें लाश के बारे में वास्तव में एक फिल्म दिखाने का फैसला किया, जिसने सब कुछ मानव को खो दिया है। ब्लैक एंड व्हाइट "फिल्म", कुछ वास्तव में पोस्ट-एपोकैलिक शहर, इमारतों के साथ, छत से जमीन तक किसी कारण से कुछ अजीब ड्रिप, ठंढ के साथ . . . धीरे-धीरे चलती आंकड़े . . . एक, जैसे फिल्म "ज़ोया"। एक स्लेज को खींचते हुए ऑडियो ट्रैक को भरते हुए। लाइन के ठीक बगल में स्लेड्स पलट जाते हैं और ब्रेड की रोटियां बर्फ पर गिरती हैं। लाइन में खड़े लोगों के सिर धीरे-धीरे मुड़ते हैं और बार-बार होने वाली आवाज़ से लगता हैः "ब्रेड . . . ब्रेड . . . ब्रेड . . . ब्रेड . . . ब्रेड . . . "। घातक और शोकाकुल गुनगुनाना। उच्चतम स्तर की विकटता। फिर से अपने टिकटों के साथ हॉलीवुड। भगवान, हमें यह सब क्यों चाहिए? हमें इतनी देर तक सजा क्यों भुगतनी पड़ती है, यह सब बकवास है, इन औसत दर्जे के निर्देशकों और पटकथा लेखकों को पैसा क्यों दिया जाता है? क्या इसके लिए वोट देना जरूरी था? यह संविधान इसलिए रक्षा करता है ऐतिहासिक सच्चाई? नहीं, ऐसा नहीं था। हाँ, इतिहास के शास्त्री वास्तव में ज़ोम्बीलैंड को दिखाना चाहते हैं, जो उन प्राणियों से आबाद हैं जो अपना मानवीय स्वरूप खो चुके हैं। कुछ वृत्ति के एक सेट का प्रदर्शन। बच्चों से रोटी न चुराएँ और न खाएँ यह एक वीरता और उपलब्धि है? क्या यह सब गर्व और बिना शर्त लेनिनग्राद करने में सक्षम था? नहीं। पर्याप्त दस्तावेज, संस्मरण, संस्मरण, किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद कोई भी केवल एक निष्कर्ष निकाल सकता हैः लेनिनग्राद मौत का एक राज्य नहीं था, लाश का निवास था जो अपनी मानवीय उपस्थिति खो चुके हैं। यह एक कठिन मोर्चा था, जीवन और मृत्यु के युद्ध का मोर्चा। लाशों ने कारखानों में काम नहीं किया, मरम्मत और विमोचन किया टैंक और स्व-चालित बंदूकें। लाश नहीं जर्मन छापे विमानन और तोपखाने गोलाबारी का विरोध किया। वे लोग थे। और न केवल लोग, बल्कि उच्चतम भावना और दृढ़ता के लोग। एक दूसरे की मदद करना। आखिरी मिनट तक लड़े। जिन्होंने संघर्ष किया, काम किया, सिखाया और अध्ययन किया। हां, हवाई छापे और गोलाबारी के तहत मरना, भूख और ठंड से मरना। लेकिन बेवकूफ लाश के रूप में नहीं, बल्कि उन लोगों के रूप में जो युद्ध में थे, वे कत्ल जानवरों के रूप में नहीं थे, बल्कि बहुत ही मातृभूमि के कुछ हिस्सों के रूप में, जो अंततः वे थे। ज़ैतसेव यह नहीं समझता है। वह शिक्षा नहीं, वह शिक्षा नहीं। इसलिए उसकी लाश है। और जिन्हें ठीक से शिक्षित और शिक्षित किया गया उनकी स्मृति में पूरी तरह से अलग लोग हैं। जिन्होंने बच्चों को आखिरी तड़प दिया ताकि वे इस भयानक समय से बच सकें। हाँ, वहाँ शैतान थे। चोर, दारोगा, डाकू। महान शहर की आबादी की उज्ज्वल छवि पर छाया, जो पागल कुत्तों की तरह पकड़े गए और नष्ट हो गए। पाठ में मैं उपयोगी स्रोतों के लिए कई लिंक दूंगा, लेकिन मैं हर किसी को बहुत दिलचस्प काम, अलेक्जेंडर किकनडज़ की पुस्तक "द लॉन्ग टाइम" पढ़ने की सलाह देता हूं। पुस्तक लेनिनग्राद डायनमो के टीएचएटी फुटबॉल मैच के लिए समर्पित है, लेकिन इसमें कई दिलचस्प तथ्य शामिल हैं कि खिलाड़ियों ने युद्ध के दौरान क्या किया। अत्यधिक सिफारिश किया जाता है। और अगर कम से कम कुछ लेनिनग्रादर्स उन राक्षसों में बदल गए थे जो कि ज़ेतसेव ने अपने परिवाद में हटा दिया, तो शहर निश्चित रूप से गिर जाएगा। और आश्चर्य के रूप में यह लग सकता है, किसी कारण के लिए जैतसेव शुरू होता है . . . झूठ बोलना! Rossiyskaya Gazeta के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहाः "यह एक वृत्तचित्र वास्तविकता है। मैंने स्टार्स ऑफ द डे पर आधारित पटकथा लिखी, बुक ऑफ सीज से मिले सबूत और डेनियल ग्रैनिन के संस्मरण। और मैं खुद को नाकाबंदी के बारे में कुछ कल्पना करने की अनुमति नहीं देता। यह एक पवित्र विषय है, और फिल्म में जो कुछ भी है वह नाकाबंदी के बचे लोगों की यादें हैं। 1941 की सर्दियों में ग्रैनिन, बर्गोल्ट्स और नाकाबंदी की डायरियों में शहर का विस्तृत वर्णन है - भयंकर, जब बहुत सारे लोग ठंढ और भूख से मर गए थे। तब हमने किसी तरह अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए सीखा था, वहाँ भोजन अधिक था, और बाद में सड़कों पर फिल्म बनाना इतना घातक नहीं लगता है। और पहला साल सबसे खराब होता है। दिसंबर में, बिजली काट दी गई, कैमरामैन ने अपने कैमरे सौंप दिए, और यह क्रूर सर्दी लगभग फोटो में या समाचारपत्रों में नहीं है। " ज़ैतसेव ने सब कुछ कैसे पढ़ा, इसके बारे में बैर इरिंचेव ने बहुत अच्छी तरह से कहा, और मुझे उसके बाद दोहराने का कोई कारण नहीं दिखता है, यह पुचुकोव के भाषण में उसे दिखाने के लिए पर्याप्त है। ईमानदार काम। बगल के लेनिनग्राद के दस्तावेजी फिल्मांकन, 1941-1942 की सर्दियों की तस्वीरें खींची गईं। सोवियत वर्षों में, ये सभी फोटोग्राफिक सामग्री उपलब्ध नहीं थीं, लेकिन अब उनके साथ परिचित होना काफी संभव है। यह तथ्य कि ज़ैतसेव को पता नहीं है कि ऑपरेटरों को बिजली की आवश्यकता नहीं थी, आश्चर्य की बात है। काश, किसी ने कहीं भी अपने कैमरे नहीं सौंपे। वे उस भयानक सर्दी सहित फिल्माए गए, जैसा कि आप ऊपर की तस्वीरों से देख सकते हैं। कैमरामैन बोरिस डेमेंटयेव, बोरिस सोकोलोव, मिखाइल पॉसेल्स्की और रोमन कारमेन, मई 1945, जर्मनी, बर्लिन। यहाँ मेरे ऑल-टाइम आइडल रोमन कारमेन और उनके "आयमो 71-क्यू" हैं, जो बेल एंड हॉवेल का एक अमेरिकी कैमरा है। हालांकि हमारे KS-4 और KS-5 भी मौजूद थे। और फिर, मुख्य सवालः ज़ैतसेव हमें क्या दिखाना चाहता है? नाकेबंदी का खौफ? माफ कीजिए, एक संग्रहालय में रखी सरोगेट ब्रेड के 125 ग्राम राशन से ज्यादा बुरा क्या हो सकता है? तान्या सविचवा की डायरी के पन्नों से ज्यादा क्या झटका दे सकता है? रोड ऑफ लाइफ ट्रैफिक कंट्रोलर्स के काले ठंढे हाथ और पैर जो रात में बर्फीले पानी में खड़े थे ताकि शहर के निवासियों के लिए जीवन के साथ कारें चल सकें? जीतसेव ने लेनिनग्राद के नायकों के खिलाफ उन लोगों को नायक के रूप में नहीं दिखाने का प्रयास किया, जिन्होंने एक व्यक्ति के लिए सबसे कीमती चीज का बलिदान किया, जो जीवन के लिए - विजय की वेदी तक, लेकिन पीड़ितों के रूप में। जिन्हें कुछ अतुलनीय लक्ष्यों और आदर्शों के लिए बलिदान किया गया था। यह बहुत ही पुनर्लेखन है जिसके खिलाफ, सिद्धांत रूप में, पुतिन संविधान को काम करना चाहिए था। लेकिन यह किसी कारण से काम नहीं करता है। और यह एक और बातचीत का विषय है। और अब मैं एक अन्य वीडियो सामग्री का प्रस्ताव करता हूं, जो पूरी तरह से और ईमानदारी से आंद्रेई जैतसेव के बारे में बताता है। मैं उद्धृत नहीं करना चाहता, गैलिना शेचर्बा इस फिल्म के कलात्मक मूल्य को पूरी तरह से समझती हैं। बैर इरिनचेव और दिमित्री पुचकोव की तुलना में कोई कम पूरी तरह से ऐतिहासिक मूल्य का विश्लेषण नहीं करता है। आंद्रेई जैतसेव द्वारा निर्देशित फिल्म की समीक्षा। चित्र और अर्थ। मुझे क्या समझ आया। और मुझे निम्नलिखित का एहसास हुआः रूसी सिनेमा में आज जो कुछ भी हो रहा है, मैं नहीं जानता कि किसकी इच्छा से, लेकिन इसका उद्देश्य इतिहास के सबसे उलट पुनर्लेखन में है। ऐतिहासिक मूल्यों को प्रतिस्थापित करने के लिए। ग्रेट देशभक्ति युद्ध में SOVIET लोगों के पराक्रम को समर्पित करने के लिए। नाकाबंदी की नकली सेटिंग एक उपलब्धि नहीं थी, लेकिन एक आपदा थी। युद्ध की व्यर्थता, मूल्यह्रास। "दुः ख और पश्चाताप" के साथ "याद रखें और गर्व करें"। सभी आगामी परिणामों के साथ। आपका संविधान, श्री पुतिन कहाँ है? हमारे ऐतिहासिक मूल्यों की सुरक्षा कहाँ है? और क्या यह गंभीरता से सोचने का समय नहीं है कि रूसी सिनेमा के साथ क्या हो रहा है और जहां दस वर्षों में RVIO का Vlasov क्लीक हमें अग्रणी बना रहा है? क्या हमें ऐसी कहानी की जरूरत है? आज "ज़ोया" पर, जो भयानक है, हुक या बदमाश द्वारा वे दर्शकों, विशेष रूप से युवाओं को ड्राइव करने की कोशिश कर रहे हैं। शायद यह बुरे सपने की धारा को रोकने का समय है कि आरवीआईओ और मेडिंस्की हमें स्क्रीन से बहाने की कोशिश कर रहे हैं? विशेष रूप से एक सैन्य विषय की एक निश्चित अवधारणा और सामान्य रूप से हमारे इतिहास का एक कलात्मक चित्रण विकसित करें? ठीक है, तुम सब कुछ अब हो रहा है जिस तरह से नहीं कर सकते! सोचिए, प्रिय पाठकों, अंतिम दिग्गज और पीछे के अंतिम कार्यकर्ता, जिसमें आसपास के निवासी लेनिनग्राद शामिल हैं, छोड़ रहे हैं। और बदमाश, "जीवन की सच्चाई" के आधार पर, ऐतिहासिक सिनेमा को छोड़ देते हैं। और कौन बचा है? एक निश्चित देश के नागरिकों के प्रति उदासीन और विश्वास नहीं रह गया है, जो अक्सर अतीत को देखते हुए घृणा करते हैं। एकदम सही झुंड। प्रबंधन में आसान। क्या यह हम बहुत करीने से नेतृत्व कर रहे हैं? वीर, मादक और अपराधी अलेक्जेंडर मैट्रोजोव, सिज़ोफ्रेनिक ज़ोया कोस्मोडेमेन्स्काया, बच्चों-सबोटर्स "बस्टर्ड" के बजाय घिरे लेनिनग्राद के शिकार। अगला कौन है? और फिर, जैसा कि मैं इसे समझता हूं, क्या यह व्लासोव, क्रास्नोव, अख्मेट-गिरी, डेनिकिन, युडिकिच है? हां, ऐसे महान अतीत वाला देश एक "महान" भविष्य नहीं हो सकता है। और यह, स्पष्ट रूप से, मारता है। - लेखकः